ज्ञान में वह सामर्थ्य है कि वह सभी प्रकार के कर्मों को भस्म कर सकता है। जिस प्रकार मकड़ी अपना ही जाला बुनकर उसमें फंसती है उसी प्रकार जीव अज्ञान के कारण कर्म बंधन में फँस जाता है। ऐसे में ज्ञान की कोई किरण उसे बंधन से मुक्त कर देती है। 'मंकि गीता' महाभारत में उल्लिखित गीताओं में अत्यधिक महत्वपूर्ण है। इसमें भीष्म पितामह का धर्मराज युधिष्ठिर को उपदेश है। कामना रहित हो जाने के लिए उन्होंने ५४ श्लोकों में यह गीता गायी है। मंकि के जीवन वृत्त के माध्यम से उन्होंने साधकों के प्रश्नों का समाधान किया है। दृष्टव्य है -
काम जानामि ते मूलं संकल्पात् किल जायसे।
न त्वां संकल्पयिष्यामि समूलो न भविष्यसि॥
(हे काम! मैं तुम्हारे मूल को जानता हूँ । तुम केवल संकल्प से ही उत्पन्न होते हो अतः अब मैं तेरा संकल्प ही नहीं करुंगा, जिससे तुम उत्पन्न ही नहीं होगे।)
ज्ञान में वह सामर्थ्य है कि वह सभी प्रकार के कर्मों को भस्म कर सकता है। जिस प्रकार मकड़ी अपना ही जाला बुनकर उसमें फंसती है उसी प्रकार जीव अज्ञान के कारण कर्म बंधन में फँस जाता है। ऐसे में ज्ञान की कोई किरण उसे बंधन से मुक्त कर देती है। 'मंकि गीता' महाभारत में उल्लिखित गीताओं में अत्यधिक महत्वपूर्ण है। इसमें भीष्म पितामह का धर्मराज युधिष्ठिर को उपदेश है। कामना रहित हो जाने के लिए उन्होंने ५४ श्लोकों में यह गीता गायी है। मंकि के जीवन वृत्त के माध्यम से उन्होंने साधकों के प्रश्नों का समाधान किया है। दृष्टव्य है -
काम जानामि ते मूलं संकल्पात् किल जायसे।
न त्वां संकल्पयिष्यामि समूलो न भविष्यसि॥
(हे काम! मैं तुम्हारे मूल को जानता हूँ । तुम केवल संकल्प से ही उत्पन्न होते हो अतः अब मैं तेरा संकल्प ही नहीं करुंगा, जिससे तुम उत्पन्न ही नहीं होगे।)
ज्ञान में वह सामर्थ्य है कि वह सभी प्रकार के कर्मों को भस्म कर सकता है। जिस प्रकार मकड़ी अपना ही जाला बुनकर उसमें फंसती है उसी प्रकार जीव अज्ञान के कारण कर्म बंधन में फँस जाता है। ऐसे में ज्ञान की कोई किरण उसे बंधन से मुक्त कर देती है। 'मंकि गीता' महाभारत में उल्लिखित गीताओं में अत्यधिक महत्वपूर्ण है। इसमें भीष्म पितामह का धर्मराज युधिष्ठिर को उपदेश है। कामना रहित हो जाने के लिए उन्होंने ५४ श्लोकों में यह गीता गायी है। मंकि के जीवन वृत्त के माध्यम से उन्होंने साधकों के प्रश्नों का समाधान किया है। दृष्टव्य है -
काम जानामि ते मूलं संकल्पात् किल जायसे।
न त्वां संकल्पयिष्यामि समूलो न भविष्यसि॥
(हे काम! मैं तुम्हारे मूल को जानता हूँ । तुम केवल संकल्प से ही उत्पन्न होते हो अतः अब मैं तेरा संकल्प ही नहीं करुंगा, जिससे तुम उत्पन्न ही नहीं होगे।)