You are on page 1of 26

पाठ-सम्पादन की षड् -विध पद्धवियााँ


Various Methods of Text Editing

के न्रीय संस्कृ ि विश्वविद्यालय


एकलव्य पररसर, अगरिला, लेम्बुछेरा, विपुरा

िसन्िकु मार म. भट्ट


पूिव-वनदेशक, भाषा-सावित्य भिन,
गुजराि युवनिर्सवटी, अिमदािाद - 380009

v.k.bhatt53@gmail.com
1
प्राच्य विद्या Indological Studies का नि-जागरण 1784 में आ
Est. Asiatic Society of Bengal , + Asiatic Researches Volumes
सर विवलयम
• सर विवलयम जोन्स
जोन्स नेने 1789
1789 मेंमें अवभ.शकु
अवभ.शकुन्िल
न्िलका
का प्रथम
प्रथम अंअंग्रग्रेजेजीी अनु
अनुििाद
ाद प्रकावशि
प्रकावशि ककया
ककया ।।
िमारी पाण्डु वलवपओं का विदेशों में वनगवमन शूरु िो जािा िै ...........,
• ओटो बोििललंग ने 1842 में देिनागरी पाण्डु वलवपयों के धार पर शाकु न्िल वनकाला ।
• ई. स.1849 में Max Muller ( मेक्स म्युलर ) ने
• उन्िोंने 12 पाण्डु वलवपयााँ लेकर, ऋग्िेद-संवििा का सायण-भाष्य के साथ सम्पादन ककया
• उन्िों ने समीविि पाठ-सम्पादन के वसद्धान्ि कदये ।
(क) अशुवद्ध और पाठान्िर में भेद करके , पादरटप्पणी में के िल साथवक पाठान्िर को िी वलखे
(ख) उन्िों ने पाण्डु वलवपयों का िंशिृि सोचने के िकव भी प्रस्िुि ककये ।। जैसे कक –
1. वजन पाण्डु वलवपयों में एक समान अशुवद्ध िो, उनकी पूिवज-प्रवि एक समान िोगी ।
2. वजन पाण्डु वलवपयों में एक समान लुप्ांश वमलिे िो, उनकी भी पूिवज-प्रवि एक िोगी 2

• मिाभारि की पाण्डु वलवपयों से समीविि पाठ-सम्पादन
• 11िीं इन्टरनेशनल कॉंग्रेस ऑफ ओररएन्टावलस्ट, पेररस 1897 में विन्टरवनत्न ने मिाभारि
की समीवििािृवि की मांग की थी । 1899 की 12िीं पररषद् में "संस्कृ ि एवपक टेक्स्ट
सोसायटी" की स्थापना आई । और बर्लवन-वियेना ने चंदा (फलण्डंग) एकि ककया ।
• 1908 मेंिन े रीच ल्युडसव ने कदपिव के 67 श्लोकों की वनदशावत्मक समीवििािृवि िैयार की
वजस की पादटीप में पाठान्िर कदये िथा ब्रह्मा-गणेश का प्रविप् संिाद पररवशष्ट में कदया ।
• विन्टरवनत्न ने 20 िषव के बाद कफर ििीं मांग की । लेककन विश्वयुद्ध से रुकािट गई ।
• भाण्डारकर ओरर. ररसचव इन्स्टीट्युट, पूणें के द्वारा 1919 से 1954 के दौरान आ था ।
• श्री रामकृ ष्ण गोपाल भाण्डारकर ने पिली संिुलन-पविका में नारायणं नमस्कृ त्य...वलखा ।
• 1923 में नारायण बापुजी उटगीकर ने विराटपिव की वनदशावत्मक िृवि वनकाली,
और भारि, युरोप एिं अमररका के विद्वानों के प्रशंसनीय अवभप्राय कदये ।
• डॉ. िी. एस. सुकथंकर जी ने 1933 में कदपिवन् की प्रथम समीवििािृवि प्रकावशि की ।
3
पाठ-सम्पादन की समस्याओं का बाआल्य
• स्ििस्िलेख के अभाि में पाण्डु वलवपयों से पाठसम्पादन करना
एक बड़ी चुनौिी िोिी िै ।
• 1. उपलब्ध पाण्डु वलवपयााँ परििी काल की िैं ।
• 2. सिायक-सामग्री उिरििी काल की वमलिी िै ।
• 3. किृवत्ि-भेद के कारण समस्याओं में भी भेद िै ।
• 4. पाठ-संचरण का इवििास प्रायः अज्ञाि िै ।
• 5. पाठ-संचरण के स्िरूप में बआि िैविध्य िै ।
• 6. ( वलवपभेद ि वलप्यन्िरण बार बार िोिा रिा िै )
• पाठिैविध्य के कारण पाठसम्पादन की प्रविवध
• एिं वसद्धान्िों में भेद करना िश्यक िै ।
4
संस्कृ ि में पाठ-िैविध्य एिं पाठसंचरण की विधाएं
दृष्ट प्रोक्त कृ ि श्रुि उत्कीणव
सावित्य सावित्य सावित्य सावित्य सावित्य

अकिृवक अनेक किृवक एक किृवक उच्चररि / स्मृि प्रेरक


रचनायें रचनायें रचनायें सावित्य किृवक रचनाएं
मन्ि-संवििायें- रामायण, काव्य, नाटक, भगिान् स्िंभलेख,
ऋग्िेद-संवििा मिाभारि, पुराण, भाष्यग्रन्थ, बुद्ध के िचन, वशलालेख,
यजुिदे , सामिेद, नाट्यशास्त्र, टीकाकद मिािीर की िाम्रपिाकद
अथिविद े -संवििा स्मृवि, युिेद िाणी

अद्यािवध पररिधवनशील अवनयवन्िि वनयवन्िि, वनयवन्िि


वनयवन्िि पाठसंचरण पाठसंचरण बाद में- लेककन-
पाठसंचरण अवनयवन्िि अकस्माि् ग्रस्ि

पाठसंचरण की विधा वभन्न िोने से पाठभेद की समस्या में भेद िोिा िै । 5


पाठ-सम्पादन के वलए क्या क्या जानना िश्यक िै ?

• भारि िषव में रवम्भक काल में वजन दो ग्रन्थों का समीविि पाठ-सम्पादन का कायव आ
• ककन्िु िे दोनों िी ग्रन्थ प्रोक्त ( वनत्य पररििवनशील ) प्रकार के ग्रन्थ थे ।
• अिः उनके िी मागव पर एिं वसद्धान्िों पर चल कर,
• अन्य सभी ग्रन्थों का पाठ-सम्पादन सिी निीं िोगा ।
• यद्यवप उनके मागव एिं वसद्धान्िों में से बआि कु छ सािवविक, िैवश्वक कोरट के िैं,
• िथावप कु छ कु छ ग्रन्थों में उनका यथािथ अनुसरण निीं ककया जा सकिा िै ।
• एिञ्च, इिने िषों के बाद, कु छ नया वचन्िन करना, नयी दृवष्ट को अपनाना चाविए ।
• धुवनक टेकनोलॉजी की सुविधाओं का फायदा भी उठाना चाविए ।

6
पाण्डु वलवपओं की सङ्ख्या, पाठ के प्रकार एिं पाठसंचरण की विधा
1. प वजस ग्रन्थ की समीविि िृवि िैयार करना चाििे िो िि ग्रन्थ –
के िल एक िी पाण्डु वलवप में उपलब्ध िोगा, अथिा
एकावधक/शिावधक पाण्डु वलवपओं में उपलब्ध िोगा ।
2. संस्कृ ि, पावल-प्राकृ ि ग्रन्थों के
पाठों का स्िरूप एकविध निीं िै, ककन्िु बआ विध िै ।
3. इन ग्रन्थों के पाठ-संचरण का इवििास प्रायः अज्ञाि िै, के िल अनुमानगम्य िै
इन िीनों को ध्यान में लेकरपाठ-सम्पादन की विवध का स्िरूप वनधावररि िोिा िै
Method of text editing depends upon
1. the numbers of extant manuscripts, 2. kind of the texts &
3. history of text-transmission. 7
पाठ-सम्पादन की षड् -विध पद्धवियााँ
• 1. बआसं्यक पाण्डु वलवपयों के समान पाठ को • 4. प्रविलेखन पद्धवि से पाठसम्पादन
संदोिन पद्धवि से सम्पाकदि करना चाविए । • Copy Text Editing
• ( Majority of the Manuscript School ) • ( जिााँ एक िी पाण्डु वलवप वमलिी िो )
2. प्राचीनिम पाण्डु वलवप के पाठ का सम्पादन • 5. मधुकर-िृवि से पाठसम्पादन
( The Oldest Manuscript School ) • Eclectic Text – Editing
• 3. सिोिम पाण्डु वलवप के पाठ का सम्पादन • ( जिााँ एकावधक पाण्डु वलवपयााँ िो )
( The Best Manuscript School ) • 6. िंशिृि पद्धवि से पाठसम्पादन
• िीनों अवभगमों में िथयांश िोिे आए भी, • Stemma tic Text Editing
• उनमें गर्भवि रूप से िकव दोष भी िै । • ( जिााँ एकावधक पाण्डु वलवपयााँ िो )
8
1. Majority of the Manuscript School
• ककसी एक ग्रन्थ की उपलब्ध िो रिी शिावधक पाण्डु वलवपओं में से, वजस पाठान्िर को एिं
वजस पाठ्ांश को बआ-सं्यक पाण्डु वलवपओं का समथवन वमलिा िो – उस पाठान्िर या
उस पाठ्ांश को मूलगामी-पाठ मान कर ककया गया सम्पादन िोिा िै । ( सत्यांश िै )
• ककन्िु इस पद्धवि में बआ-सं्यक पाण्डु वलवपयााँ ककिनी पुरानी िै ?- िि निीं देखा जािा िै
इस दृवष्टकोण में सािीओं का सं्याबल वनणावयक बनिा िै । जो कदावचि् भ्रामक भी िोगा
( िो सकिा िै कक बआ-सं्यक पाण्डु वलवपयााँ परििी काल की िोगी,
और प्राचीनिम पाण्डु वलवप के पाठ की उपेिा िो जायेगी । )
• इस पद्धवि का ंवशक उपयोग करके , "उपमूलादशव-प्रवि" ( समान िंशज प्रविओं की पूिवज
प्रवि ) के पाठ का वनष्यन्दन िो सकिा िै, ििां यानी िंशिृि-पद्धवि में यि दृवष्टकोण
ंवशकिया उपकारक िोगा ।
9
2. The Oldest Manuscript School
• इस पद्धवि में, ककसी भी ग्रन्थ की उपलब्ध िो रिी सभी पाण्डु वलवपओं में से जो सब से
पुरानी पाण्डु वलवप िोगी, उसके पाठ का सम्पादन ककया जािा िै । इस पद्धवि के पीछे
ऐसा िकव संवनविि िै कक प्राचीनिम पाण्डु वलवप में सुरविि रिे पाठ में कम अशुवद्धयााँ
िोगी िथा िि प्रवि मूलपाठ के नजदीक का पाठ देनेिाली पाण्डु वलवप िोगी ।
• ककन्िु यि बाि सभी ककस्सों में लागु निीं िोगी । क्योंकक, मूलग्रन्थकार के और उपलब्ध
प्राचीनिम पाण्डु वलवप के बीच में शिावब्दओं का अन्िर िो सकिा िै ।
• ऐसा प्राचीनिम पाठ का सिारा िभी वलया जािा िै कक जब प्राप् सभी पाण्डु वलवपओं में
के िल अनुलेखनीय सम्भािनािाला ( =अशुवद्धयााँ से भरा ) पाठ िी संचररि िो,
और साथवक पाठान्िर प्रायः न िो ।।

10
3. The Best Manuscript School
• ककसी भी ग्रन्थ की उपलब्ध अनेक पाण्डु वलवपओं में से वजसमें सुन्दर िस्िािर िो,
कम अशुवद्धयााँ िो, वजसमें बीच बीच में वचिांकन भी िो ( अलंकृि प्रवि िो ) उसी को
धार बना कर, जब पाठ-सम्पादन ककया जािा िै िो
उसे उिम पाण्डु वलवप को मानने िाला सम्प्रदाय किा जायेगा ।
• लेककन जो प्रवि बविरं ग से सुन्दर िो उसमें सिी, श्रद्धेय पाठ संचररि आ िोगा – ऐसा
मानना भ्रामक िो सकिा िै । क्योंकक सुन्दरिा सत्यिा का पयावय निीं िै ।
• सवचि पाण्डु वलवपओं का मूल्य कला-जगि् के इवििास के साथ जुडा िै, उस रूप में उस
प्रवि का मूल्य िो सकिा िै । उसके सम्पादन के वसद्धान्ि भी वभन्न िै ।
• लेककन जो सवचि निीं िै, कु छ अन्य दृवष्ट से सुन्दर िै, िो ऐसी प्रवि सिी, श्रद्धेय पाठ भी
• प्रस्िुि करे गी ऐसा वनश्चयपूिवक निीं किा जािा िै ।
11
4. प्रविलेखन पद्धवि से पाठ-सम्पादन के अिसर
Copy Text Editing : codex unicus
जब ककसी भी कृ वि का पाठ —
1. के िल एक िी पाण्डु वलवप में उपलब्ध िो रिा पाठ,
2. वशला, पिवि, स्िम्भ, िाम्रपि पर वलखा आ पाठ,
3. ककसी ग्रन्थकार का स्ििस्िलेख वमल जाय िो,
4. लघुवचििाली पाण्डु वलवप का पाठ िो, िब ।
प्रविलेखन पद्धवि से पाठसम्पादन करना चाविये ।
वजसमें प्रत्यिर का सम्यक् िाचन, एिं यथािथ वनरूपण अपेविि िै । यकद कोई अिर लुप्,
या विनष्ट आ िो िो, पूिावपर-सन्दभव में सुसंगि िो ऐसे कवल्पि पाठ को कोष्टक में रखना िै
( कवल्पि पाठ यानी पुनगवरठि ककया गया पाठ ) 12
एकल पाण्डु वलवप के सन्दभव में –
"वस्थिस्य गविवश्चन्िनीया" के वद्वविध अथवघटन
रूकििादी पाठसम्पादक उदारिािादी पाठसम्पादक
• अिाच्यांश या िुरटिांश के वलये – • असम्बद्ध या दुबोध पाठ को असह्य मानिे िैं ।
• वबन्दुओं की लकीर ....... से यथािि् रखने के • पूिावपर सन्दभव में जो अनुकूल प्रिीि िोिा िो
पि में िैं ।। ऐसे कवल्पि-पाठ का सुनाि देिे िैं ।
• या दुबोध पाठ का अथवघटन करने को िी • पाठसुधार एिं पुनगवठन के पिपािी िैं ।।
प्राथम्य देना चाििे िैं ।
• रूकििादी पाठसम्पादक – • नाट्यशास्त्र की अवभनि-भारिी टीका के
सम्पादन में चायव विश्वेश्वरजी ने िुरटि पाठ
• दुबोध पाठ को व्याकरण या कोश की मदद से के पुनगवठन को िी प्राधान्य कदया िै ।
सुसंगि करके कदखाने में कौशल समनिे िैं ।
• पूिावपर सन्दभों के अनुकूल, एिं स्िकवल्पि
• परम्परागि पाठ की रिा िी, पाठ की सेिा
समनिे िै । (=वस्थिस्य गविः समथवनीया ) निीन शब्दों से लुप्ांश की पूर्िव करिे िैं ।।
13
चायव विश्वेश्वर ने लुप् पाठ का पुनगवठन ( नि रचना )
• िडोदरा की िृवि में मंगलाचरण का श्लोक लुप् घोवषि ककया गया िै । ककन्िु चायव ने
किा िै कक अवभनिगुप् ने अष्टमूर्िव वशि की एक एक मूर्िव को प्रत्येक अध्याय में प्रणाम
ककया िै । 1 से 5 अध्यायों में क्रमशः पृवथिी, जल, िेज, िायु और काश रूपा मूर्िवओं
को प्रणाम िो चुका िै । अब चन्र, सूयव एिं त्मा अिवशष्ट िैं । अिः षष्ठाध्याय के रम्भ
में वशि की चन्ररूपा मूर्िव को प्रणाम िोना चाविए, क्योंकक षष्ठाध्याय रसाध्याय िै ।
• प्यायन्िीं जगत्कृ त्नं प्रिरन्िीं रसामृिम् ।
चन्रमूर्िवम् प्रभोिवन्दे सरसां सुमनोिराम् ।।
• रसाध्याय के रम्भ में रसमयी, अमृिमयी चन्रमूर्िव को िी नमस्कार करना उवचि िै ।
• ऐसे अवभनिगुप् के पूिवदष्ट
ृ शय को ध्यान में लेकर, उपयुवक्त नये मंगलश्लोक की रचना की
Reconstruction of a lost portion 14
5 (क). मधुकर-िृवि से पाठसम्पादन करने की विचारधारा
Eclectic Text Editing
• पाण्डु वलवपयााँ शिावधक िोने पर, और साथवक पाठान्िर िोने पर,
• मधुकर-िृवि का श्रयण करना अनौवचत्यपूणव लगिा िैः—

• गुणििा सभर सरल, सुगम
पाठान्िर का स्िीकार पाठान्िर का अस्िीकार

दोषः– पाठ-सम्पादक की अपनी रुवच एिं अरुवच प्रविवबवम्बि िोिी िै ।


पाण्डु वलवपओं में संचररि पाठान्िर एिं सम्पाकदि-पाठ के बीच में धुवनक सम्पादक खडा िै
अिः ऐसा पाठसम्पादन वििादास्पद बनेगा िथा सिव-स्िीकायव निीं बनेगा 15
इकलेक्टीक वप्रन्सीपल्स से बने देिनागरी संस्करण
अवभज्ञानशा(श)कु न्िलम्=मधुकर िृवि से बनाई गई शालेय िृवियााँ माि िैं ।

• मोनीयर विवलयम्स की देिनागरी – 1855


• पी. एन. पाटणकर की शुद्धिर देिनागरी – 1898
• एम. र. काळे , िथा शारदा रं जन राय की देिनागरी – 1898, 1908
• गौरीनाथ शास्त्री1980 एिं श्रीरे िाप्रसाद वद्विेदी की देिनागरी,1986, 2008
• लेककन मधुकर-िृवि से ककये गये पाठसम्पादन सिवस्िीकायव निीं िोिे िैं ।
• प्रथमांक- इदानीं किमं प्रयोगमावश्रत्यैनमाराधयाम । ( प्रकरण, प्रयोगकरण )
• वद्विीयांक- गावमचिुथवकदिसे पुिलपंडपालनो नाम प्रिृिपारणो मे उपिासो0
• िृिीयांक- संमीलवन्ि न िािद् बन्धनकोशा0, जैसे अनेक पाठान्िर बंगाली,
एिं मैवथली िाचनाओं में से वलए गये िैं ।। 16
मधुकर-िृवि किााँ – क्यूं अनुवचि ?
• ( एक-किृवक काव्य ) कृ ि-प्रकार श्रुि-प्रकार ( बौद्ध-विवपटक एिं जैनागम )
का सावित्य का सावित्य

वजसमें धुवनक पाठसम्पादकों की

• रुवच–अरुवच साम्प्रदावयक अवभवनिेश-बुवद्ध


प्रविवबवम्बि िोिी िै, प्रविवबवम्बि िोिी िै ।

दोनों में स्िीकृ ि पाठ्ांश के प्राचीनिर या प्राचीनिम अंश


खोजने का उपक्रम िी निीं िैं ।। 17
5(ख) संदोिन पद्धवि से पाठ-सम्पादन
• साथवक पाठान्िरिाली शिावधक पाण्डु वलवपयााँ िोने पर संदोिन पद्धवि उवचि लगिी िैः-

• बआसं्यक अल्प-सं्यक
• पाण्डु वलवपओं का पाठ पाण्डु वलवपओं का पाठ

ग्राह्य अग्राह्य
• ---ककन्िु पुनर्िवचारणीय---
• गुण-पिः- पाठ-ग्रिण िस्िुलिी किा जायेगा,
• दोष-पिः- ककन्िु उसमें समयानुक्रम ( प्राचीनिरिा ) का विचार छु ट जािा िै ।
• किााँ उपयुक्त िै ?- उपमूलादशव-प्रवि के पाठ का वनधावरण करने के वलए यि पद्धवि ठीक िै
18
6. िंशिृि पद्धवि (Stemmatic Text-editing) से पाठ का सम्पादन
• Lower Criticism – प्राथवमक, वनम्न स्िरीय पाठ-समीिा
• 1. Heuristics, ( अनु-सन्धान की प्रविवध )
• 2. Recensio, ( िंशिृि एिं िाचना-वनधावरण की प्रविवध )
• 3. Emendatio ( पाठ-सुधारणापूिक व , अवधक श्रद्धेय पाठ का सम्पादन )
• 4. Higher Criticism ( उच्चिर पाठ-समीिा )
• दोनों में अन्िर यिी िै कक – (क) प्राथवमक, वनम्न स्िरीय पाठ-समीिा में के िल पाण्डु वलवप
• के साक्ष्य को ध्यान में वलया जािा िै । (ख) उच्चिर पाठसमीिा में पाण्डु वलवपओं के साक्ष्य
से बािर जाकर, उपलब्ध पाठान्िरों की िकव वनष्ठ परीिा की जािी िै ।
िथा न्िररक सम्भािान पर ज्यादा बल कदया जािा िै ।

19
20
शिावधक पाण्डु वलवपओं के वलए िंशिृि पद्धवि में कम्प्युटर
• Classical Text-Editor ( CTE )
• This software is costing about few hundred euroes.
• There is a web-site :- collate.net
• This is a online tool for collation.
• Or,
• You can use excel program too.
• संिुलन पविकाएं बनाने के वलए टेकनोलॉजी का विवनयोग अपेविि िै

21
वनष्कषविः िंशिृि पद्धवि के गुणपि में किना िोगा कक –
• 1. यि पद्धवि पूणव रूप से दस्िािेजीय
• ( पाण्डु वलवपओं ) के प्रमाण पर वनभवर िै ।
• 2. िंशिृि बनाने ( पाण्डु वलवपओं का नुिंवशक संबन्ध सोचने ) से
• प्राचीन से प्राचीनिर पाठ की खोज िो सकिी िै ।
• 3. ककसी भी ग्रन्थ की पाठ-परम्पराओं की िाचनाओं का वनधावरण
• एिं पाठयािा खोजी जा सकिी िै ।
• 4. पाठ-सम्पादक की रुवच-अरुवच को किीं पर भी स्थान निीं िै ।
• ( िुलनात्मक दृवष्ट, ऐवििावसक दृवष्ट एिं िस्िुलवक्ष्यिा अन्िर्नवविि िै )
22
Variorum : उपलब्ध सभी पाठान्िरों का संग्रि
• The collation of all known variants of a text is referred
to as a “variorum”,
,namely a work of textual criticism
whereby all variations and emendations are set side by
side so that a reader can track how textual decisions
have been made in the preparation of a text for publication.
"िेररयोरम" यानी उपलब्ध सभी पाठान्िरों का सिवग्रािी मिासंग्रि ।
वजसमें 1. पाण्डु वलवपयों में संचररि आए पाठान्िर, 2. काव्यशास्त्रीय ग्रन्थों में
( पूिवपि रूप में ) उद्धृि अंशों के पाठान्िर, िथा 3. टीकाओं में वनर्दवष्ट पाठभेद
23
सर विवलयम जोन्स ( 1746 – 1946 ) वद्वजन्म शिाब्दी

• रॉयल एवशयारटक सोसायटी, कोलकािा में वद्वजन्म शिाब्दी मनाने के वलए


डॉ. के .सी. चट्टोपाध्याय की अध्यििा में वमटटंग आई थी ।
• वजसमें A Variorum of the Abhijnanas’akuntalam
िैयार करने का प्रस्िाि
रॉयल एवशयारटक सोसायटी, कोलकािा
के सामने रखा गया था ।
• लेककन यि प्रस्िाि अद्यािवध कायाववन्िि निीं आ िै ।।

24
विपुल पाठभेदों का संग्रि – िीन वनदशव
1. Kalidasa – Complete collection of various readings in Madras
Manuscripts ( vol. 1 - 4 ) T. Foulkes, 1904
2. Kalidasa Lexicon by A. Scharpe in 1954
• इसमें देिनागरी एिं बंगाली िाचनाओं के पाठ में
जो संस्कृ ि-प्राकृ ि गद्य िाक्य िैं, उनके पाठान्िरों का संग्रि िै ।
• देिनागरी, दाविणात्य, बंगाली, काश्मीरी िाचनाओं
िथा अलंकार-शास्त्र में प्राप् िोनेिाले पद्यों के पाठान्िरों कदये गये िैं ।
3. अवभज्ञानशकु न्िला नाटकस्य पञ्च रङ्खगािृियः ।। 2020
काश्मीरी-मैवथली-बंगाली-दाविणात्य-देिनागरी 5 िाचनाओं के समग्र (7अंकों के ) पाठ
सभी पाठान्िरों की एक िी स्थान पर प्रस्िुवि की िै ।।
25
अमन्िमिरं नावस्ि, नावस्ि मूलमनौषधम् ।
अयोग्या पद्धविनाववस्ि, योजकस्िि दुलवभः ।।

My YouTube channel – Vasantkumar Bhatt

।। धन्यिादा वििीयवन्िे ।।
v.k.bhatt53@gmail.com

के न्रीय संस्कृ ि विश्वविद्यालय, एकलव्य पररसर, विपुरा, 23 - 03- 2023


26

You might also like