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विद्यादानसमितिरचनाराजेः प्रथमङ्सुमम्‌

अमरकोरा-संग्रदः
बारुकोडा-रचना
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५८ ज्ञानं मोक्षे धीः सद्विवेकभराञ्ज्ञानम्‌


बोधराक्तिग्रहायत्त एव विवेकः ।
व्याकरणोपमानकोराप्तवाक्येभ्यः
- व्यवहराचच राक्तिग्रह ” इति बुधाः ॥

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प्रतिप्रा्िन्ञाराः
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॥ श्री कृष्णपरमात्पने नमः ॥

॥ श्री गणेशाय नमः॥ ॥ श्री गरुभ्यो नमः॥ ॥ श्री महासर स्वत्ये नमः॥

अमरकोष-संग्रहः
(नार्क्रीडा-रचना)

यस्य ज्ञानदयासिन्धोरगाघधस्यानघा गुणाः ।


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१ विनायको-विक्वराज-दसादुर-गभापिषाः | (४१३)२18)
९ अप्यकटन्त-हर्‌म्य-दन्म!दर्‌-गलाननः |
३ शम्भुरीशः पश्पतिः शिवः धर्‌; | (51४९)
७ इश्वरः शव ईशानः शंकरथन्द्ररेखरः |
५ भूतेशः खण्डपरश्चुभिरीश्लो गिरिशो म्रडः ।
६ मृत्युञ्जयः कृत्तिवासाः पिनाकी प्रमथाधिपः
७ उग्रः कपर्द श्रीकण्ठः हितिकण्ठः कपालभृत्‌ ।
८ वामदेवो महादेवो विसूपाक्षखिलोचनः
९ करशानुरेताः सवज्ञो धूजिर्नाललोहितः |
१० हरः सरहरो भगः उपम्बकचिपुरान्तकः |
११ गंगाधरोऽन्धकरिपुः क्रतुध्वंसी वृषध्वजः |
१२ व्योमकेशो भवो भीमः खाण्‌ सुद्र उमापतिः ।
अमरकोष-संग्रहः

अहिबुध्न्योऽ्मूर्तिश्च गजारिष महानटः ।


कपदांऽख जयाचू€' पिनाकोऽजगवं धनुः ¦
बिभूतिभूतिरेशयं अणिमादिकमष्टधा ।
अणिमा महिमा चैव गरिमा ठकथिमा तथा । (50ताण5)
प्राप्तिः प्राकाम्यमीरित्वं वशित्वं चाषटसिद्धयः।
भृद्धी भङ्गी रिरिस्तुण्डी नन्दिको नन्दिकेश्वरः | (०५) &५.)
प्रमथाः स्युः पारिषदा ब्राह्मीयाधास्तु मातरः ।
ब्राह्मी माहेश्वरी चैव कोमारी वेष्णवी तथा ।
वाराही च तथेन्द्राणी चायुण्डा सप्तमातरः |
उमा कालयायनी गौरी काटी हैमवतीश्वरी | (1192)
शिवा भवानी रुद्राणी शवांणी सवैमङ्गला ।
अपर्णा पार्वती दुर्गा ग्रडानी चण्डिकास्विका |
आर्या दाक्षायणी चेव गिरिजा मेनकात्मजा ।
कर्ममोरी त॒ चाग्जण्डा च्॑प्रण्डा तु चिका
कार्तिकेयो महासेनः शरजन्मा षडाननः | (आवाप)
पार्वतीनन्दनः स्कन्दः सेनानीरप्निभूेहः
वाहुलेयस्तारकनिद्विशाखः शिखिवाहनः ।
षाण्मातुरः शक्तिधरः कुमारः क्रोश्चदारणः ।
विष्णुनांरायणः कृष्णो वेङुण्डो विष्टरश्रवाः | (५;5प)
दामोदरो हृषीकेशः केशवो माधवः खभूः |
दैखयारिः पुण्डरीकाक्षो गोविन्दो गरुडध्वजः ।
पीताम्बरोऽच्युतः शाङ्गी विष्वक्सेनो जनादंनः ।
२५ उपेन्द्र इन्द्रावरजश्वक्रपाणिश्वतु यजः ।
पद्मनाभो मधुरिपुवासुदेवख्िविक्रमः ।
अमरकोष-संग्रहः ३

देवकीनन्दनः शौरिः श्रीपतिः पुरुषोत्तमः


वनमाली वलिष्वसी कंसारातिरधोक्षजः ।
विश्वम्भरः कैटभजिद्िधुः श्रीवत्सलाञ्छनः
पुराणपुरूपो यज्ञपुरुषो नरकान्तकः ।
जलशायी विश्वरूपो मुकुन्दो मुरमर्दनः ।
लन्छनं लक्ष्मीपतेः श्रीवत्सो मणिस्त॒ कौस्तुभः ।
रदः पाञ्चजन्यश्चक्रं सदशन कोमोदकी | (10111 & # 6200115)
गदा खद्धो नन्दकः चापश्च शाङ्गमिति स्मृतः |
४५५ अश्वाश्र शेव्यसुप्रीव मेघपुष्पं वलाहकाः | (619०, प ०5८5)
सारथिद्‌सुको मन्त्री हयुद्धवशानुजो गदः ।
वसुदेवोऽसख जनकः स एवानकदुन्दुभिः |
गरुत्मान्‌ गरुडस्ताक्ष्यो वैनतेयः खगेश्वरः । (८०7८०१०)
नागान्तको विष्णुरथः सुपर्णः पन्नगाशनः ।
बलभद्रः प्रलम्बो वलदेवोञ्च्युताग्रनः | (8212]1201.2)
रेवतीरमणो रामः कामपारो हलायुधः |
नीलाम्बरो रौहिणेयस्तालाङ्न मसरी हली ।
सङ्षणः सीरपाणिः कालिन्दीभेदनो बलः।
मदनो मन्मथो मारः प्रद्युम्नो मीनकेतनः । (एप्प)
कन्दर्पो दपकोऽनङ्गः कामः पञ्चशरः समरः ।
शम्बरारिर्मनसिजः कुसमेपुरनन्यजः ।
पुष्पधन्वा रतिपतिर्मकरध्वज आत्मभूः ।
अरविन्दमशोकं च चूतं च नवमट्टिका |(1९211125 8117005 & 0५5)
नीलोत्पटं च पश्वेते पश्चयाणसख सायकाः ।
उन्मादनस्तापनश्च सोषणस्तम्भनस्तथा ।
अपम्ररकोष-सम्रहः

संमोहनश्च कामख पञ्चबाणाः प्रकीर्तिताः ।


ब्रह्मूर्विश्वकेतुः खाद निरुद्ध उषापतिः । = (^ण7"०१त) ०)
लक्ष्मी; पञालया पद्मा कमला श्रीहैरिप्रिया । (1.गजण्ण)
इन्दिरा लोकमाता मा क्षीरोदतनया रमा ।
९६५ भागेवी लोकजननी क्षीरसागरकन्यका ।
ब्रह्मात्मभूः सुरज्येष्ठः परमेष्टी पितामहः । (ए ाण2)
हिरण्यगर्भो लोकेशः खयम्भूश्रतुराननः ।
धाताव्जयोनिद्रंहिणो विरिञ्चिः कमलासनः
छटा प्रजापतिर्वधाः विधाता विश्वखंड्‌ पिधिः |
नाभिजन्माण्डजः पूवां निधनः कसखोद्धवः |
सदानन्दो रजोमूर्तिः सत्यको दंसवाहनः |
समावोङ्ारप्रणवौ क्षयः सलयवचसंः | 07 (ऽ6प्णत) 158
सप्तक्रपयो मरीच्यत्रिपुखाधिव्रक्लिखण्डिनः |
मत्रावरूणी वसिष्टोऽगस्यश्च सैव कुम्भभृः |
५9५ ब्राह्मी तु भारती भाषा गीवाग्वाणी सरखती | (६०१२५५०८)
श्रुतिः स्ञी वेद्‌ आभ्नाय क्रकसामयजुषी त्रयी | (४९५०)
धर्मस्तु तद्विधिस्तथा स्पृतिश्च धर्मसंहिता | (ऽग)
साद्भममस्चियां पुण्यश्रेयसी सुरतं वृषः | (11001702)
असली ङ्कम्‌ पुमान्‌ पाप्मा पापं किस्विपकरमपम्‌ | (ऽ
कट्पं वृजिनेनोऽघमंहो दुरितदष्कृतम्‌ ।
रिक्षेयादि श्रुतेरङ्ख उदात्ताद्याञ्चपः! खराः | (\€011025)
आन्वीक्षिकी दण्डनीतिस्तकंविवार्थशास्योः |
इतिहासं पुरावृत्तं पुराणं पश्चलक्षणम्‌ ।
आख्यायिकोपठन्धार्था प्रबन्धकल्पना कथा |
अपमरकोष-सम्रहः ९९

८८५ उपन्यासस्त॒ वाडमुखं उपोद्रात उदाहारः । (९८००९) एरवा९)


८६ समस्या त॒ समासार्था समाहृतिः स संग्रहः । (^+0";0९ण९ग।)
८७ सर्वज्ञः सुगतो बुद्धो धर्मराजस्तथागतः | (३५५१०)
८८ समन्तभद्रो भगवान्‌ मारजिषोकजिन्जिनः ।
< ९, षडभिज्ञो दशवरोऽढ यवादी विनायकः |
९० मुनीन्द्रः श्रीघनश्शास्ता मुनिः शाक्यमुनिस्तु यः ।
९१ स शाक्यसिंहः सर्वार्थसिद्धः शौद्धोदनिश्व सः ।
९९ गौतमश्चाककबन्धुश् मायादेवीस॒तश्च सः |
९२ इन्द्रो मस्त्यान्‌ मधवा षरिडोजाः पाक्चासनः | (17072)
९.८ वरद्धश्रवाः सनासीरः पृहटरतः पुरन्दरः ।
९.५ निष्ण्तेखपभः शरकरः एरतसन्युरदिं वस्तिः ।
९६ सुत्रामा मोत्रसिद्रखी दासो व्र्रह्म वृषा |
९७ वास्तोष्पतिः सरपतिबेरारातिः शचीपतिः ।
९.८ जस्थमेदी हरिहयः खाराण्नपुचिष्रदनः ।
९९ संक्रन्दनो दुङ्च्यवनस्तुरापाण्मेववाहनः ।
१०० आखण्डलः सह्चाक्षः ऋक्षास्तस्य त॒ प्रया ।
९१०९ पुलोमजा शचीन्द्राणी जयन्तः पाकञ्चासनिः । (\४;1८ & 5०)
१०२ स्यात्‌ प्रासादो वैजयन्तः नगरीत्वमरावती ।
९१०२ नन्दन वन तसिश्च मन्दारः पारिजातकः | (©०४९)
१०४ सन्तानः कस्पतव्ृक्ष्च पसि वा हरिचन्दनम्‌ ।
१०५ ेरावतोऽश्रमातङ्खैरावणाभ्रमुवल्भाः | (५१५८ प्रालः॥००११)
९०६ हय उचयेःश्रवाः सरतो मातलिः शक्रश्राणि । (@12101८्लः)
९०७ हादिनी वजमस्ी स्यात्कृलिश्ं भिदुरं पविः । (गाप्पतनएगप)
९१०८ शतकोटिः खरुः शम्बो दम्मोरिरश्निदयोः ।
अमरकोष-संग्रहः

व्योमयानं षिमानोऽखी सुधमां सा देवसभा ।


देवास्त्वमरा निजेराक्षिदश्चा विबुधाः सुराः । (५२5)
सुपर्वाणः सुमनसस्चिदिवेश्चा दिवोकसः ।
बृन्दारका दैवतानि पुंसि वा देवताः सियाम्‌ ।
आदितेया दिविषदो ठेखा अदितिनन्दनाः ।
वर्दिपुखाः क्रतु गीर्वाणा दानवारयः ।
आदिलया ऋभवोञ्खञ। अमदो अगतान्धसः ।
षीयूषमसरतं सुधा स्वेदस्तु गररं विषम्‌ । (१००६००-ए००)
नारदाचाः सुरषयः खर्वेयावश्िनीसुतौ । (45१ ण -+कनण४)
नासलयावश्चिनौ दस्रावा्चिनेयौ च तावुभौ ।
अप्सरसस्ताः खर्वेश्याः सुकेशी मन्जुघोषादयः | (4758725)
घृताची मेनका रम्भा उर्वश्षी च तिलोत्तमा ।
हह ूहूशेवमाया गन्धवा खिदिवौ कस्‌ | (2011215)

ताण्डवं नटनं नाव्यं साखं नृं च नतनम्‌ । (०८९)


तौ्भ्रिकं नृयगीतवा्धं नाव्यमिदं त्रयम्‌ । (^८५ग४)
भ्रकुंसश्च शरकुंसश्च धढुसशवेति नतक; । (०70)
नर्तकी लासकी समे तथा गीतं च गानं च | (7००४९४७)
पड्जर्षभगान्धारमध्यमपश्चमधेवताः।
निषादश्चेयमी सप्र तन्त्रीकण्टोत्थिताः खराः
वादित्रे वीणा व्क विपञ्ची परिवादिनी । (८८०००)
कण्डोलवह्की सा चण्डालवीणा चाण्डालिका ।
कोणो वीणादिवादनं आतो तु ढकाभे्यौ । (५401८ 5५०)
दन्दुभिर्मदङ्गपुरजे डमरुमर्दलाघाः ।
वंशादिकं तु शिरं काखतालादिकं धनम्‌ । (ाप,<)
अमरकोष-संग्रहः

१२२ कालक्रियामाने तालः ल्यः साम्यमेकताटः ।


१२० अङ्कहारोऽङ्कविक्षेपो व्यञ्जकामिनयौ समौ । (^८'६)
१२५ भृङ्खार-वीर-करुणाद्त-दाख-भयानकाः । (5८८८ ।5)
१२६ बीभत्सरोद्रौ च रसाः श्रङ्गारः शुचिरुज्ज्वलः । (1.०५८)
९१२७ स्रीणां विलासषिम्बोकविभ्रमा कलितं तथा
९१२८ हेला रीला इलयमी हावाः क्रियाः शृङ्गारभावजाः ।
१२९ द्रवकेटिपरीहासाः क्रीडा रीला च नमं च।
९१४० व्याजोऽपदेशो रक्ष्यं च वीर उत्साहवधेनः । (४८ ०ण)
१४९ उत्साहोऽध्यवसायः खात्‌ कारण्यं करणा घृणा । (ए)
१४२ कृपा दयाञ्नुकम्पाऽनुक्रोशो विस्य आश्चयम्‌ । (५०११८)
१४२ चित्रमद्धतं हास्ये हासहासौ आच्छुरितकम्‌ । (णाग)
१८४ सोसरासः मध्यमे विहसितमेवं स्मितं मनाक्‌ ।
९४५ भयानके मैरवं घोरं मीर्म मीवणं भीष्मम्‌ । ("187")
९१४६ भयङ्रं प्रतिभयं दारुणं साध्वसं भयम्‌ ।
१७७ भीतिदरघ्रास रौद्रम॒ग्र वीभत्ये विकृतम्‌ | (10211507)

९४८ सुरलोकः खर्म-नाक-त्रिदिव-त्रिदश्ालयाः । (परछण्ट)


१४९ द्यौ दिवौ द खियां कीं त्रिविष्टपम्‌ खरव्ययम्‌ ।
१५० मन्दाकिनी वियदवङ्गा खणंदी सुरदीोधिका । (0४ 5पतरणः)
१५९ मेरुः समेरुः हेमाद्री रत्साजुः सुरारयः । (ध)
१५२ अर्निवेश्ानरो वदहिर्वीतिहोत्रो धनञ्जयः । (^+&)
९५२ कृपीटयोनिर्ज्वलनो जातवेदास्तन्‌ूनपात्‌ ।
१५५ वहिः शष्मा कृष्णवर्त्मा सोचिष्केश उपवुधः ।
१५५ आश्रयान्नो ब्रहद्धानुः कृशानुः पावकोऽनटः ।
१५६ रोहिताश्चो वायुसखः शिखावानाश््यक्षणिः ।
अमरकोष-सग्रहः

हिरण्यरेता हुत्‌ दहनो हव्यवाहनः ।


सप्ताचिर्दमूनाः श्रुक्रधित्रभानुर्विभावसुः ।
शचिरप्पित्तमौर्वस्त॒ वाडवो वडवानलः । (ऽप्0पाका716 0६)
दवस्तु दयो वनहताशनः खा दहेदेयोः | (1701९8६ 7८)
ज्वालकीलावविर्हेतिः शिखा सयां स्फुलिद्धे । (7191116)
त्रिष्वग्रिकणः उस्मुकोऽलातः उरस्का खेजा ज्वाला । (पलपल्ग)
सा भग्रभात्‌ भूतिः क्षारो रक्षा भसितभस्मनी । (५5)
श्वसनः स्पश्नो वायुर्मातरिश्वा सदागतिः । (४०४)
पृषदश्चो गन्धवहो गन्धवाहानिाद्चुगा ।
समीर-मास्त-मरुन्जगस्राण-समीरण
नभखदात-पवन-पवमान-प्रभञ्जनाः |
प्रकम्पनो महावातो वाया वातृछखम्रा्ुखः | (1 ८77९७)
सञ्ञ्रावातः सवृष्टिकः वायवयोऽसवः अश्रः |
हदि प्राणो गुदेऽपानः समानो नाभिमण्ड्छे |
उदानः कण्ठदेशे खयाग्ानः सर्वशरीरगः |
रंहस्तरसी रयः खदो जवो जवनो जूतिः | (5८्८्प)
सत्वरं त्वरितं शीघ्र रघु क्षिप्रमरं द्रुतम्‌ । (0१५)
उचण्डं चपलं तूणंमविलम्बितमाद् च ।
स्राग्चटियज्ञसाह्वाय द्राः सपदि द्रुते ।
सततानरताश्रान्तसन्तताविरतानिशम्‌ । (1०८९४०११
नियानवरताजघं त्रिष्वेषां सत्वगामि यत्‌ ।
शश्धतस्तु शरवो निय सदातन सनातनाः । (2101)
प्रचेता वरुणः पाञ्ञी यादसां पतिरप्पतिः | (0००)
तिमि तिमिङ्गिखादयो यादांसि जलजन्तवः | (१०1०, &८.
अमरकोष-संग्रहः ९

१८९ तद्धेदाः शिद्युमारोद्रश्षङ्वो मकरादयः ।


१८२ ग्राहोऽवहारो नक्रः कुम्भीरः कमख्कच्छपौ । (८०००००1९)
१८२ द्रौ कूर्मे परथुरोमा श्षषो मत्स्यो मीनश्चाण्डजः । (श)
१८४ विश्लारः शरी चैवं गडकः श॒कुलाभकः | (511ण8)
१८५ चद्राण्डमत्स्यसङ्घातः पोताधानं खात्कुरीरः । (51००)
१८६ ककंटकः रशद्खः कम्बु क्षुद्रशह्वाश्च शम्बूकाः | (49, (पलो)
९८५७ मुक्तास्फोटः शुक्तिः मणि्भुक्ता प्रवालं विद्रुमः । (८०2)
१८८ सपुद्रोऽन्धिरङूपारः पारावारः सरित्पतिः । (0५८२०)
१८९ उदन्वानुदधिः सिन्धुः सरसान्‌ सागरोणंवः |
१९० रताकरो जलनिधियादःपपिरपपितिः ।
लवणेष्च सुरा सर्पिद्‌धिष्

१९९ | | (6८४८) 5९25)

१९२ भङ्कप्तरङ्क र्थि धियां वीचिगह। मर्‌ | (4१९८)


९१९२ उष्ोखक्छोलौ चक्रं खाद एवहौजलसद्टास्परसः । (11048) ५५2९९)
१९४ निश्न गभीरं गभ्यीरमगाययतरश्प्षेः | (0)
१९५ द्रीपोऽख्ियां अन्तरीपं यदन्ववरिणस्तरष््‌ । (15120)
१९६ नौस्तरणिस्तरिः खियाड्पं त धवः कोरः । (आ, 1२०)
१९७ नौकादण्डः क्षेपणी स्यादरित्रं केनिपातकः | (0ष्य)
१९८ कर्णधारस्तु नाविकः नियामकः पोतवाहः | (०००)
१९९. सांयात्रिकः पोतवणिक्‌ सात्तरपण्यं आतरः । (7०९)
२०० नाव्यं त्रिलिङ्ग नौतार्येऽतीतनोकेऽतिनु त्रिषु | ([{213€010911.211011)
२०१ कुवेरस्त्यम्बकसखो यक्षरा इगुद्यकेश्वरः । (1९५४०८०)
२०२९ मनुष्यधर्मा धनदो राजराजो धनाधिपः ।
२०३ किन्नरेशो वैश्रवणः पौलस्सयो नरवाहनः ।
२०४ यश्चैकपिङ्गेरबिल-श्रीदपुण्यजनेश्वराः ।
१० अप्ररकोष्र-सग्रहः

९०५ चैत्ररथमुघयानमलका पूः श्यानं कैलासम्‌ ।


२०६ विमानं पुष्पकं तस्य पुत्रस्तु नलकरूषरः ।
२०७ निधिना शेवधिर्भदाः पद्मज्ह्वादयो निधेः । (1८०८)
२०८ महापद्मश्च पद्मश्च श्लो मकरकच्छपौ ।
२०९. मुकन्द-ङन्द-नीराश्च खवेश्च निधयो नव ।
२९० सयात्किन्नरः किपुस्पस्तुरङ्गवदनो मयुः । (1९1117021.2)
२११ यातुधानः पुण्यजनो नेक्रतो पातुरी ।
२९२ राक्षसः कोणपः क्रव्यात्‌ क्रव्यादोऽघप आचरः । (1२9७268)
२१२ राप्रिचरो रात्रिचरः कवरो निकषात्मजः ।
२९४ आदिल विश्चवसवस्तुपिता माखरानिलाः | (प्रग &०क5)
२९५ महाराजिकसाध्याश्च द्रा गणदेवताः |
२१६ विद्याधरोऽप्सरो यक्षरक्षो गन्धवं क्रिल |
२९७ पिशाचो गुद्यकः सिद्धो भूतोऽमी देवयोनयः |
२९८ यदिव दे खयां अभ्रं व्योम एुष्करसस्वरम्‌ | (51)
२९९ नभोन्तरिक्ष गगनमनन्तम्‌ सुरवर खम्‌ ।
२२० वियद्विष्णुपदम्‌ वा पुंसि आकालविहायसी |
२२१ नाकतारापथ। मेषाध्वाऽव्ययेधरुर्महा्िरम्‌ ।
९२९२ धमराजः पित्रपतिः समवर्ती परेतराट्‌ । (५०१५)
२२३ कृतान्तो यमुनाभ्राता शमनो यमराद्‌ यमः |
२२४ कालो दण्डधरः श्राद्धदेवो वैवखतोऽन्तकः ।
९९५५ सयाननिक्रेतिरलक्ष्मीः नारको नरको दुर्गतिः । (दाप, पता)
२९२६ निरयश्च वेतरणी सिन्धुः स्युर्नारकाः प्रेताः ({11126115}
२९२९७ परासुः प्राप्तपञ्चत्व-परेत-णतसंखिताः | (८०५)
१९८ विष्टराजूः कारणा तु यातना तीव्रवेदना । (10.7०)
पेरावतः-अश्रमु
इन्द्रः-र विः
पूर्वा-प्राची
सुप्रतीकः -अञ्नावती क
पुण्डरीकः -काषल्ा
देहाः बहस्पतिः वाहः शुक्रः
(५

पेशान-उत्तरपूर्वा भाघ्नेयी- दक्षिणपूर्वा


1२51

नि .{251 | 9 , 1851

सार्वभोमः-अङ्गना वामनः-पिद्गला
कुबेरः-वुधः 011} ----- ६०१) यमः-भोपः
उत्तरा-उदक्‌ दक्िणा-अवाक्‌
४ . १५८5। | 4. \५'(5।

\६.८५।

वायवी-उत्तरपथिमा नेकती-दक्षिणपथिमा
मरुत्‌-विधुः नेकरेतः-स्वर्मानुः
पुष्पदन्तः -गुथदन्ती कुमूदः-अचुषपमा
पश्िमा-पतीची
तरुणः- सो रि१
अञ्जनः-ता्रपर्णीं
अमरकोष-सग्रहः १९१

२२९ असुरा देय-देतेय-दनुजेन्द्रारि-दानवाः । (¢ऽप्ा 2)


२२० शुक्रशिष्या दितिसताः पूर्वदेवाः सुरद्विषः ।
२२१ अधोभुवन पाताल बलिसद्म रसातलम्‌ । (लल *०1प)
२२२ अमूनि स्यर्दयलोकाः नागलोकोऽपि तत्र हि।
२२२ विवरं निव्येथनं रन्धं शभ्र॑ च षिलं वपा । (८०५५)
२२४ कुहरं गतावटो छिद्रं श्चपिरं रोकं शुषिः ।
२२५ दिशस्तु ककुभः काष्टा आश्चाश्च हरितश्च ताः । (५१००1 ए०ग!७)
२२६ प्राच्यवाची प्रतीय्यसताः पू दक्षिण पश्चिमाः ।
२२७ एवम॒त्तरादिगदी ची सादिश्यं तु दिग्भवे |
२२८ प्राचीनमवाचीनं च प्रतीचीनग्रुदौीचीनम्‌ |
२२३९ कछ्रोवाव्यय त्वपि दिशोमध्ये विदिक्खियाम्‌ | (11८ 01715}
२४० अभ्यन्तरन्त्वन्तराटम्र्‌ चक्रवारं तु मण्डलम्‌ । (०20)
२४९१ ृन्द्राग्रीयमनेक्रतौ पाली यायुर्मयुरीलः | (1२८९८015)
२४२ रविः शक्रो मदीष्नुःखभाुभादुजो विधुः | (21215)
२१४२ वुधो वरहस्पतिशेते पतयश्च ग्रहाः क्रसात्‌ |
२४५४ ए्रावतः पुण्डरीको वामनः कुमुदोऽञ्जनः । (एालगव15)
९८४५५ पुष्पदन्तः सार्वभौमः सुप्रतीक दिग्गजाः ।
२४६ करिण्योऽग्रपुकपिरा पिङ्गलानुपमाः क्रमात्‌ ।
२५५७५ ताम्रकं शुभ्रदन्ती चाङ्गना चाञ्जनावती |
२८४८ विश्च सवे स कृत्सं निखिरं खमस्ताखिले । (२१०९८, ९7०1९)
२४९ निशरेषमरेषं एण समग्रं सकठाखण्े ।
९५० साकस्योक्तिः पारायणं शकटं भित्तखण्डयोः । (71)
९५९ घूर सूर्यायेमादिय द्वादश्चात्म दिवाकराः । (51)
९५२ भास्कराहस्करत्रघ प्रभाकर विभाकराः |
अमरकोष-संग्रहः

भाखद्विवखत्सप्नाश्च हरिदोष्मरश्मयः
विकतेनाकंमार्ताण्ड मिहिरार्णपूपणः ।
द॒मणिस्तरणिर्मित्रः चित्रभानुर्विरोचनः
विभावसुग्रेहपतिस्त्विपापतिरहषतिः ।
भानुहसः सहघ्वा्स्तपनः सविता रविः ।
पद्मा्षस्तेजसाराशिरछ्ायानाथस्तमिखहा ।
कर्मसाक्षी जगचश्चुखकबन्धुखथीतनुः ।
प्र्ोतनो दिनमणिः खद्योतो लोक्वान्धवः |
इनो भगो धामनिधिश्नुमास्यल्नसीपतिः |
पिङ्टो दण्डशवण्डा्नोः पारिप व
माठरः [पङ्ञट दण्ड्श्चण्डद्याः पारपा, | (< 11115 21045 )

परष्रतोऽस्णौ ऽन 191 ध उ {5 ((:11217101ल्ला)


परिवेपस्तु परिधिः मकाद त्रत आदः | (प्रवाण) ऽणा्ण7९)
युषे यसिन्नष्तमेति उ द्धन रटनि च | (तार -एच्ववल)
~

अंशुमानभिनिसुकाभ्युदितौ च यथाक्रसप्‌ |
भावुःकरो मरीचिः खान्प्रगतृष्मा सरीचिका | (२), 31119ध८)
कोष्णं कवोष्णं मन्दोष्ण्‌ कदुष्णं त्रिरु तट्रति | (1.पल०ा)
तिग्मं तीक्षण खरं त त्सन्तापः सञ्ञ्वरः समौ | (०, ५८ ॥०1)
हिमाशधन्द्रमाशन्द्र इन्दुः कुप्रुदवान्धवः । (1100)
विधुः सुधां; शभरा्रोपधीश्लो निशापतिः ।
अव्जो जेवातृकस्सोमो ग्लोगरगाङ्कः कलानिधिः ।
दिजराजः शशधरो नक्षत्रेशः क्षपाकरः ।
कलङ्कङ्खो खाञ्छनं च चिदं लक्ष्म च रक्षणम्‌ | (5१०१, 10०1
कला तु षोडशो भागो कलाहीने त्वनुमतिः ।
पूरणे निश्ञाकरे राका पौर्णमासी च पूणिमा | (7५11 1००१)
अमरकोष-सग्रहः १३

२७७ दृ्टन्दुकला सिनीवाटी नष्टेन्दुकला कूः ।


२७८ अमावस्या त्वमावास्या द्यः पूर्यन्दुसङ्गमः । (९५ २१००१)
२७९ साद्राहग्रसे ग्रहोपरक्तोपषवोपरागाः । (7०1175०)
२८० अन्तर्धा व्यवधा पसि त्वन्तधिरपवारणम्‌ | (721587९० ००८)
२८१ अपिधानतिरोधानपिधानाच्छादनानि च ।
२८२ चन्द्रिका कौमदी ज्योत्स्रा विगतारोकौ निष्प्रभा । (24०० प)
२८२ किरणोघ्मयूखांश्च-गभस्ति-घरणि-रदमयः । (1२०१)
२८४ स्युः प्रभा रुरूचिस्त्विड्भाम्‌शछविघ्युतिदप्तयः । (1."50८)
शोभाकान्ती रोचिःलोचिस्ये्धीवे ची दीधितिः ।
^. ॐ ^ अ,

२८५
२८६ सपमा परमा शोभा तिल तिरि तेमः | (701१८७5)
२८५७ ध्वान्तमन्धकारोऽच्चियः ध्वान्ते गादेऽन्धतससम्‌ |
२८८ क्षीणेऽवतमसं तमो विष्व्सन्वसस् कष्ठतर्‌ |
२८९. एकयोक्लया पृष्पवन्तौ दिवाक्रनिक्नाकरै |
२१९० घसो दिनाहनी च वा द्धी दिवसवासरौ | (०५)
२९१ निशा नित्रीथिनी रात्रिख्ियामा क्षणदा क्षेपा । (रप)
२९९ विभावरीतमखिन्यौ रजनी यामिनी तमी ।
२९२ शर्वरी तमोज्योत्खायुक्तराच्यौ तमिख्ाज्योत्स्न्यौ ।
२९४ अ्धैरात्रस्त॒ निश्चीथः गणरात्रं निद्या बह्मयः ।
१९५ आगामि व्तमानाहयुक्तायां निशि पक्षिणी | (2 ००१७ & 3 78191)
२९६ प्रदोषो रजनीमुखं प्रत्यूपोऽहग्रखं कल्यम्‌ । (70७, 12०५")
२९७ विभातं प्रत्यु उपो व्युष्टं प्रभातं गोसगेः ।
९९८ पितप्रद्ः साय॑सन्ध्या कुतपस्त्वाष्टमोंऽशोऽहः ।
९९९ स्युः प्राहपराह् मध्याह्ाखिसन्ध्यं च त्रिसन्ध्यी ।
२०० अङ्गारकः कुजो भौमो लोहिताङ्गो महीसुतः । (10975)
अपमरकोष-सग्रहः

रौहिणेयो बुधः सौम्यो वृहस्पतिः सराचायेः । (धलत्ण))


वाचस्पतिरङ्किरसो गीपंतिर्थिपणो गुरुः ।
जीवधित्रशिखण्डिजः शक्रो देयगुरः काव्यः । (४ण्ण्पऽ)
उशना भार्गवः कविः समो मौरिगनेशवरं। । (8०1४)
तमस्तु राहुः खर्भानुः बेंहिकेयो विधुन्तुदः | (२०)
नक्षत्रमृक्षं म तारा तारकाप्युटु वा याम्‌ | (ऽन)
म्रगद्यीषं मरगरिरस्तच्छिरस्तारा इष्वसाः ।
पुंस्येव परनर्वसुस्तथा प्ये तु निध्यतिष्यौ |
दाक्षायण्योडधिनीयाहि तारा अश्पुगधिनी
राधा विद्रा भविष्ठ तु धनिष्ठा ब्राष्टपदाः |
भाद्रपदाः सप्ठविश्च तिरवं स्युधरुवत्वन्य; | (7०16-5 ०7)
सालो दिष्रोऽनेहा समयः सान्निमेपष्टादद्षं । (1८)
काटा त्रिसत्त ताः केला तास्त ति्यरक्षणसते च ।
दादश मुद्रतोऽल्ियां व्रित्ते याद्टराघ्रः । (0०) & ६४
स॒ एव यामाथष्टौ च यामप्रहरो ठौ समौ |
दश॒पश्चाहः पक्षः पक्षतिः प्रतिपत्‌ तदाचाः
तिथयः प्रतिपत्पश्चदश्चयोमंध्यं पवेसन्धिः |
पक्षौ पूर्वापर शङ्खक्रष्णौ मासस्तु ताबुभौ । (णण)
मासा द्ादक्च मार्गाद्ा्तौ ढौ ऋठुस्त्वयनं पट्‌ । (8८25००5)
ते चार्कस्युदग्दक्षिणगती दवे त्तरः स्मृतः ।
समरापिन्दिने कृले षिपवद्विपएव च तत्‌ । (६१८१००५)
पूर्णिमायां पुष्यो यस्मिन्‌ च पौष एवं माघादाः ।
मागे सहा मागं आग्रहायणिकथ सः । (परऽ ० क०णप४)
पौपे तैप-सदस्यौ द्वौ तपा माघेऽथ फार्मुने ।
अमरकोष-सग्रः १५

२२५ स्यात्तपसः फाल्गुनिकः चैत्रे तु चैत्रिको मधुः ।


२२६ वैशाखे माधवो राधो ज्येष्ठे शुक्रः खादापादे ।
२२७ शुचिरेव श्रावणे खान्नभाः श्रावणिकथ सः |
२२८ स्युनभख-प्रोष्टपद-भाद्र-माद्रपदाः समाः ।
२२९ सखादाधिन इपोऽप्याश्चयुजोऽपि तथा कार्तिके ।
२२० वाहरोजो कार्तिकिको मासेन पैत्रवासर; | (2 ०। ०८७)
२२९ मागादियुम्मैः क्रमादतवो हेमन्तादयः |
२२२ शिशिरान्ताः पट तुपारस्तुहिन मिहिका हिमम्‌ । (१४7८ -ः०५५)
२२२ अवयायस्त्‌ नीष्टारः हिमानी हिमसंहतिः । (ग०५।-(वण्ला्ट)
२२४ सुषीमशिशिरजडतुपार्सीतलसीताः । (८०)
२२५ हिमश्च शीते सतते सत्वगामिनि स्युर्‌ ।
२२९ वसन्ते पष्पस्सयः सुरधिग्राप्म उप्मरः | (डगतणट, इणणष्ल)
२२५७ निदाध उष्मोपगम उष्ण उष्सागमस्तपः | (2०९००४-प्र८वा)
२२८ स्िथमेतो ब्राव्रडभूम्नि वर्पः शरद्‌ हायनाब्द । (0०) ०1 6०05)
२२९ संबत्परवत्परो शरत्समाः देववासरे ।
२४० तत्कारस्त॒ तदाच सखादुचरकालं आयतिः; | (1८७८९१1 076)
२४१ देवं दिष्टं भागधेयं भाग्यं स्वी नियतिविधिः । (५००५ पल)
२४२ मन्वन्तरं त॒ दिव्यानां युगानामेकसद्रतिः । (2190४0प1वात)
२०५२ देवे युगसहस्रे द द्विपरार्धा बराह्मकरपौ | (13171218 {2192}
२४५५४ कृर्पस्त॒ प्रलयः क्षयः संवते: कट्पान्तोऽपि च । (९१८६५ १००६०)
२४५ अन्तोऽन्तिः जघन्यं चरसश्च पाथधालयपश्चिमौ । (४५)
२४६ अन्यमपि पंखादिः पूर्वपोरस्तयप्रथमाद्याः । (एव्ाण्णण६)
२५७ जनुर्जननजन्मानि जनिरत्पत्तिरुद्धवः । (1100)
२४८ दिव्योपपादुका देवाः एवं जरायुजाण्डजाः । (ण्ट)
अमरकोष-संग्रहः

स्वेद्‌जाशवत्वारः गुल्माचयुद्धिदु द्धिज्जमुद्धिदम्‌ । (§५८२१-०7१)


हेत॒नां कारणम्‌ बीजम्‌ निदानं त्वादिकारणम्‌ | (1२००९०१)
हेत॒सन्यायां तु उभे स्वैरिता यदच्छेत्यपि | (८०५०९)
्षत्रज् जत्ना परस्प; प्रधानं प्रक्रतिः क्ियाम्‌ |(एता प्ऽ118, पिपा)
खसूप खमभावनिसगां सच्वाद्गुगाञ्यः |
प्राणी तु चेतनो जन्मी जन्तु-जन्युश्रीरिणः । (14.178 ४८108)
जन्तुषुध्वेघ्लोतमरियङुर्वागिति जातिघ्रयमर्‌ |(71१२, ध 7०।, 74)
मरथमो द्वावविदो भृरितमचः घ्रापल्लास्तिरः |
अविदयाज्ञानमहम्सतिः व्यस्िः परशगात्पत। | (1707071८)
बुद्धिमनीषा धिदण षीः >
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५१ 410 । (17161९1६)
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शक्षापल(न्धचत्सवित्‌ >प्रोनि
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पस-वरनाः |

मेधा तु धारणाय्ती षीडकिदिषस्रञपि चं |


उपाधिना धर्मचिन्ता च्चा ल्या विचारणा | [तल्ला ज)
उदोऽध्याहारस्तके नि्णयनिश्वमिद्रान्ताः । (७५८७४)
९8 ।न्त सन्दहसतशयदपरा वाचकत्सा । (2००)
समे भावना वासना छन्दस्भिप्रायाशयौ | (1.०1
प्रमादोऽनवधानता व्यापादो द्रोहचिन्तनम्‌ । (1२१1९110)
भ्रमो भ्रान्तिर्मिथ्यामतिः मिथ्यादृष्टिरनास्तिकता । (0००७५०१)
धीः शिसपशास्रयोर्विज्ञानं ज्ञानं सा त्वेव मोक्षे|
मोक्षोऽपवरगो मुक्तिः केवस्यं च निर्वाणं प्रेय; | (^एग०६०१)
सयान्निःश्रयसं चामृतं चित्तं तु चेतो हृदयम्‌ । (10:००)
खान्तं हुन्मानसं मनः सङ्कल्पः कर्मं मानसम्‌ । (२०४०1५८)
अवधानं समाधानं प्रणिधानं चित्ताभोगः | (०००९.०।०१)
मनस्कारः पूणगोधोऽवहित्था त्वाकारगुपषिः ।(घः०;०४ (नाण)
अमरकोष-संग्रहः १७

२७२ विकारो मानसो भावोऽनुभावो भावबोधकः |(8110\1£ {६९115}


२७४ स्तम्भः स्वेदो रोमाश्चः वेपतुस्तथा वैवण्येम्‌।
२७५ सखरभङ्गो अश्रप्रलय एते केचन बोधकाः ।
२७६ स्याज्जडीभावः स्तम्भस्तथा घमा निदाघः स्वेदः । (ऽा०८।००५०)
२५७७ रोमाश्चो रोमह्पणं वेपथुः कम्पोऽश्रुचाख । (¶८गग5)
२७८ नेत्राम्बुरोदनं चाघ्ं प्रलयो नष्टचेष्टता । (३५००)
२७९. कामक्रोधादयो भावाः कामोऽभिखापश्च तषंः । (7697८)
२८० इच्छा काहला स्पृहेहा तड वान्छा लिप्सा मनोरथः |
२८९ अभीष्टेऽभीप्सितं ह्यं दयितं वह्यं प्रियम्‌ । (1.1६)
२८२ कौतूहरं कौतुकं च इतुकं च कुतूहलम्‌ । ((५";०5)९))
२८२ सोऽलयथं ालसाऽभिध्या परस्य विषये स्पृहा । (७८८५)
२८० दोहदमिच्छा गभिण्याः कोपक्रोधामर्परोषाः । (^०६न)
२८५ प्रतिधा रुटकुधौ भरङुटिश श्ुकुरिभरूकुटिः ।
२८६ अदृष्टिः सखादसौम्येऽक्िणि शचौ तु चरितं शीलम्‌ । (०।४९)
२८५७ गर्वोऽभिमानोऽ्दङ्कारो मानधित्तसम्रुनतिः । (10९)
२८८ दर्पोऽवलेपोऽवष्टम्भधित्तोद्रेकः सयो मदः ।
२८९. अनादरः परिभवः परीभावस्तिरस्क्रिया | (7;5९&270)
२९० रीटढावमाननावज्ञाऽवदेखनमष्क्षणम्‌ । (175प]ः)
२९१ कपटोऽच्ी व्याजदम्भोपथयश्छद्मकेतवो । (7५१५)
२९२ कुस॒तिर्िकृतिः शाल्यं विप्रलम्भो तिसंवादः | (00८2६)
२९२ अक्षान्तिरीष्यः!ऽघूया तु दोषारोपो गुणेष्वपि । (7०"1-9पःण्ट)
२९४ ्षान्तिस्तितिक्षा च क्षमा समो संवेगसंभ्रमौ । (^९'०(0०)
२९५ दान्तस्तु दमथो दमः शमस्तु शमथः शान्तिः । (रवा भपप)
२९६ वियामो वियमो यामो यमः संयामसंयमे ।
अमरकोष-सग्रहः

पश्ात्तापोऽ्नुतापश्च विप्रतीसार इदयपि । (7 0011216८)


प्रमा ना प्रियता हादं प्रेमः स्नेहः खाप | (1.०५९)
वेरं विरोधो देष्येऽक्षिगतः मन्युशोकौ तु शुक्‌ । (५५०)
व्यस्ते त्वप्र्ुणाकुलौ विषस्तव्याकुरौ समौ । (^६)(०।०१)
गखीतिः प्रस॑दो दषः प्रमोदामोदसंमदाः | (10 )
उद्धे मह उद्धवः क्ण उत्थ इयि |
स्यादानन्दथुरानन्दः श्रमैश्नातद्ध॑खानि च |
शःभरेयसं श्चिवं भद्रं कृस्याणं सङ्गटं श्भम्‌ | (^+"5; ५०४७)
भावुकं भविकं सव्यं दुरं क्षेमं च शत्तम्‌ |
पीडा बाधा व्यथा दुःखं आमनद्य वद्रतिज्‌ । (79;")
चिन्ता खास्सम्रतिराध्या्नं उत्कृण्टोत्कृलिकाधिः । (५५०५४)
विस्म्तमन्तगतं स्यादुन्मादस्तु चिच्पिभ्रसः |
मन्दाक्षं हीच्ठपा व्रीडा च ज्जा चापत्रपाल्न्यतः । (11०0८)
तन्द्री प्रमीखा्रमथः स्ात्कुसथुरपि छम । (1०५1४०८)
जम्भश जम्भं तथा जागरूक जागरिता | (४०५४)
निद्रायां त॒ शयनं च संवेशः खापश्च खम्मः | (ऽन्तः)
उप्लायो विद्चायश्च पर्यापद्रयनार्थको । (9८८ 1# ऽ
शब्दो सूपं गन्धरसस्पशौश्च विषया अमी । (5८5८ ०८८७)
गोचरा इन्दरियाथाशच हूषीकं बिपयीन्दियंस्‌ | (६८०४८ ०25)
प्रयक्षं खादेन्द्ियकं अप्रयक्षमतीन्दरियम्‌ ।
शब्दे निनादनिनदध्वनिध्वानरवखनाः । (§०४१)
खान निर्घाष निहाद नादनिस्खाननिखनाः।
आरवारावसंरावविरावाश्चाथ ममर: । (२५1९)
खनिते वस्रपणानां भूषणानां तु शिञ्धितम्‌ । (11118)
अमरकोष-सं्रहः १९

निक्राणो निक्रणः क्राणः करणः क्रणनमिलयपि ।


प्राणादयो वीणायाः मधुरास्फुटे सक्ष्मे त॒।
काकरी कठो मन्द्रो गम्भीरस्तारः अत्युञैः
नणामुरसिमध्यसो द्वाविंशति विधो ध्वनिः
काङ्कः श्ञोकभीलयादिजः प्रणादस्त्वनुरागजः
उचेध॑षटं त॒ घोषणा कोलाहले कलकलः । (ए ०ग)
तिरथां वाहित स्तस्ी प्रतिश्चुलरति ध्वनिः | (^7718] €, ८0100)
वृत्तान्तो वातां प्रवरृत्तिरुन्तो वाचिकमन्यत्‌ । (२०५५)
व्याहार उक्तिरुपितं भाषितं वचर्नं वचः | (5१०८८०१)
उदितं जल्पितमाख्यातमभिहितम्‌ इत्यपि ।
अपग्र॑शचोऽपश्चब्दः स्याल्टुप्नवणंपदं ग्रस्तम्‌ | (० ण( ९९०१)
निरस्तं त्वरितोदितं विस्पष्रं प्रकरोदितस्‌ ।
स्फुटं प्रव्यक्तयुखणं म्लिष्ट यत्तद विस्पष्टम्‌ |
सङ्कटं षटं च वाक्ये प्रस्परपराहते । (000 ०्तःपज)
आम्रेडितं द्वित्रिरुक्तमनुलापो मृदुभाषा ।
अपलापस्तु निहवः समावालापरसह्छापौ । {7५5०१}
आभापणमेवं प्रखापोऽवद्भादते अनथके |
विलापः परिदेवनं विप्ररापो विरोधोक्तिः । (;5०१९)
सुप्रलापः सुवचनं सा च कल्या श्युभात्मिका ।
सह्छोपो भाषणं मिथः मोघं स्यच निरथकम्‌ | (11561685)
सूचतं तस्ये सस्ये सलं तथ्यमृतं सम्यक्‌ ।
वितथेऽच॒तं चाटु चट्‌ छावा प्रेयकत्थनम्‌ । (एग)
अलर्थमधुरं सान्त्वं सङ्गतं हृदयङ्गमम्‌ । (.^१९५१०००५८)
श्राव्यं ह्यं मनोहारि कोमलं स॒दुलं मदु ।
अमरकोष-सग्रहः

सुकुमारं पेट स्शयां स्वश्छीठं निष्ठुरम्‌ । (प्श)


ककं कठिनं करूरं कटोरं जरटं द्टम्‌ ।
सभाजनार्थक्े यादानन्दनं तथाप्रच्छननम्‌ ।
यशः कीर्तिः समज्ञा च स्तवः स्तोत्रं स्तुतियैतिः । (7०९)
अयः शुभावहो विधिः तथा प्र्चस्तवाक्येषु ।
मतट्िका मच्यिका प्रकाण्डमृद्धतद्यजौ । (८५८्८।<7')
व्याघ्रपद्गवर्षभसिहशादूलकुञ्राघाः ।
नागाश्रोत्तरपदेऽतिरिक्तथेवं श्रेष्ठार्थकः ।
प्रेयान्‌ श्रष्ठः पएष्कलः सत्तमः साद तिशोभने ।
अभ्युपपत्तिरनुग्रहः तद्विरोधे निग्रहः । (210551०, (८756)
शपनं शपथस्तथा चापक्रोश्चो दुरेपणे ।
अभिशापो मिध्याभिदंसनमभ्याख्यानम्‌ । (72156 01६९)
मिथ्याभियोगाभीपङ्ग आक्रोल्षने आक्षारणा ।
साक्रो्ो मैथुनं प्रति भत्संनमपकारगीः । (11९१)
आक्षेपश्चोचे चाव्णोक्षेपनिर्वादापवादाः । (^८७९)
उपक्रोशो जुगुप्सा च कुत्सा निन्दा च गहणे ।
यः सनिन्द उपालम्भस्तत्र खात्परिभापणम्‌ |
विवादो व्यवहारः सखाक्तन्दनं रुदितं कष्टम्‌ | , 7०८)
आह्ययेऽऽख्याहय अभिधानं नामधेयं नाम च । (तण६)
हूतिराकारणाह्यानं संहूतिबेहुभिः कृता । (211८०)
परभनोऽनुयोगः पच्छा च प्रतिवाक्योत्तरे समे । (001८७; ०)
संवेदो वेदना न ना याच्ञा भिक्षार्थनादेना | (1ण0ण्णण६)
सनिथाष्येषणा याचना चाभिश्षस्तिरियपि ।
प्रबहिका प्रहेलिका किवदन्ती जनश्रुतिः । (२१९, प्त८०52)
अमरकोष-सग्रहः २१

५६९ वलक्षषदाः । (९1८ ०००४)


रूपे श्ङ्खल्यभ्रह्यचिश्वेतविश
\७9० अवदातः सितो गौरो धवलोऽयुनपाण्डरौ ।
९,७९ पाण्डुरः पाण्डुहैरिणे ईषत्पाण्डस्तु धूसरः । (2०५)
५५७९ कृष्णे नीरासितस्यामकालश्यामरमेचकाः । (219)
८४५७२ पीतो गौरो हर््राभः पालाश्चो हरितो हरित्‌ । (४८०५)
५७९ लोहितो रोहितो रक्तः शोणः कोकनदच्छविः । (२२८१)
७८.७५ पाटलश्ेतरक्तौ कृष्णरक्ते धूम्रधूमलौ । (२०1९ 7८0)
८\७६ अव्यक्तेऽरुणः कडारः फपिलः कट्पिङ्गलौ | (19)
८\५७ सयावः कपिशः पिङ्गपिचङ्गौ त पीतरोहिते ।
८५८ चित्रं किर्मीरकस्माप-्वरैताश्च कदरे । (४०१८६००!
४७९ गन्धे सुरभिरघ्ाणतपंणः जनमनोहरे । (§प८ा], ए ०९7०२१)
८ ० विमदत्थि परिमल आमोदी वुख्वासनः ।
४८९ आमोदः सोऽतिनिर्हारी खानिह।री समाकपी ।
४८२ टुगन्धः पूतिगन्धि सुगन्धिर्विद्मामगन्धिः | (1२०५ ९11)
४८३ रसे मघुरकडुलवणाम्टतिक्त-तुवराः । (1०७!८ 8५५९८)
७८ इन्द्रियाणि कर्मधियौ पन्नसाद्याः पञ्चपञ्च | (§९०७९ ०&475)
५८ पादः पदांधरिश्वरणः स्यात्पादाग्रन्तु प्रपदम्‌ । (२००१)
५८६ तद्म्रन्थी घुटिके गुल्फौ पाष्णिस्तयोरधः जङ्घा | (^]१९, १८९)
८७ प्रसृता जानूर्पर्वाख््टीवत्‌ सक्थ छीवे उः | (57201, 1९१९९)
४८८ तत्सन्धिवक्षणः गदं पायुरपानं शमलम्‌ । (76८५६)
४८९ शकृत्पुरीषुचारावस्करो गूथवचंस्कम्‌ । (८५०९०)
९० विष्टठाविद्चौ किटूमले कटः ककुदमती श्रोणिः । (९००८०)
४९९ श्रोणिफलकं जघनं नितम्बः पशात्छीकव्याः ।
८४९२ प्रोथ खियां स्फिचौ उपस्थो भगं योनिदेयोः | (@€८7811*€)
4. अमरकोष-सग्रहः

५९२ शिश्चो मेदो मेहनशेफसी वृषणोऽण्डकोजन्ञः ।


५९. मुष्कश्च मूं प्रसावः शक्रं तु तेजो रेतसी । (8०९०)
७९५५ बीजवीर्यन्दियाणि च मध्यमं चावलग्रं मध्यः | (\#०)9)
४९६ पिचण्डकुक्ी जटरोदरं तुन्द्‌ स्तनौ कुन | (8ला]$) 07625185)
८९७ चूचुकः कुचाग्र क्रोडमुरो वत्स च वक्षश्च । (7716, ०116१)
९.८ पार््ेऽथ स्कन्धो यूनरिरोऽसः सन्धी तं जच्रुणी | (01121001)
५४९९ ञूजबाहू प्रवेष्टो दोः पञ्चशाखः शयःपाणिः । (प्2०)
८९० ० कफोणिः कूरः उपयंधः प्रगण्डभ्रकेषटौ | (71०५)
१९९ 0 ९ पाणिर्निकुन्जः प्रघ्तिस्तौ युतावज्ञलिः पमान्‌ । (?17)
५०९ पाणौ चपेटप्रतलग्रहस्ता विस्तताङ्गरौ ।
५०२ करस्य बहिः करभः करश्ाखाः स्युरङ्गल्यः । (7:78 €$)
५०४ अंग््॒तर्जनी मध्यमाऽनामिका कनिषटेति । (1४०८४, &८]
4० ^ ्रदेशिनीऽपि तजंन्यां पुनभेवकररहौ । (भ)
५५०६ नखनखरौ नखाभावे तिरं शफखुरौ । (००।)
८९ ०\9 ्रादेश्चतालगोकर्णास्तजेन्यादियुते तते ।
८4 ० ८
वितस्तिमदश्चाङ्कलः रल्न्यरती मानार्थके | (574, ०४०१)
"९०९. बाह्यो सकरयोस्ततयोस्तियगन्तरं व्यामः |
५९० ऊर्ध्वबिस्तृतदोःपाणिनृमाने पौरुषं त्रिषु ।
4९ ग्रीवा शिरोधिः कन्धरः कम्बुग्रीवा त्रिरेखा सा । (4८०)
५१२ अवटुर्घाटा कृकाटिका मन्या च कष्टो गलः |(०7९ 1०81)
५९२ वक्त्रा वदन तुण्डमाननं रुपनं मुखम्‌ । (100५1)
५९५ अथस्ताचिनुकं ओष्ठाधरौ दञ्चनवाससी । (८1१०, 1705)
५९५ रदनच्छटौ च गण्डौ कोलो तत्परा हुः । (0९८५ ¡०५)
५१६ रदना दश्चना दन्ता रदास्ताड तु काकुदम्‌ । (7०८11, ?०1०।९)
अमरकोष -संग्रहः २३

५९४७ प्रान्ताबोष्टख सृकिणी सृणिका खन्दिनी लाला । (1.ए-व्ण प्ल)


५५१८ रसज्ञा रसना जिहेयादयश्च ज्ञानेन्द्रिय | ({08पट)
५९९ प्राणं छीवे गन्धवहो घोणा नासा च नासिका । (1२०६९)
५५९० पक्षिणां तु चञ्चृसख्ोटिः नासामल खात्‌ सिक्घाणम्‌ । (१८५1९)
५२९ लोचनं नयनं नेत्रमीक्षृण चक्षुरक्षिणी । (९४०)
५९९ अम्बकं दग्टष्टी ्ियौ तारकार्कष्णः कनीनिका । (गण)
५२२ अपाद्धौ नेत्रयोरन्तौ कराक्षोऽपाङ्खदशेने । (»८-८0१८)
५५९० टरं दूपिका रग्स्पामूरध्वं ्रवं। मध्यं कूर्चम्‌ | (7०५५)
५९५ कर्णश्ब्दग्रह श्रोत्र श्रतिः स्री श्रवणं श्रवः | (2)
५२६ पिज्जूषं कर्णयोर्मटं रलाटमलिकं गोधिः | (701८१५०१)
५२७ उत्तमाङ्गं शिरः शीषं मूधां ना सस्तकोऽद्ियाम्‌ । (८२०)
^ ९८ चिङरः ङुन्दलो वालः कचः क्षः रिरोरुहः । (घ्नः)
५९९ अलकार्चूर्णुन्तलाः ककारे ते भ्रमरकाः । (८१)
५२ ©
काकपक्षः शिखण्डकः शिखा चूडा केरपाश्ची । (7।५)
५२१ व्रतिनस्त॒ सटा जटा स्ात्कबरी केरवेश्चः । (27०1१)
५२२ धम्मि्टः संयताः कचाः वेणिः प्रवेणिः विश्चद । (0077९०८१)
५२२ शीर्षण्यरिरसो केरिकं च कैर्यं च तद्ब्न्दे |
५२४ पाक्ञः पक्षश्च दस्त कछापाथां कचात्परे । (प्रपा 1 127)
५२५ तन्‌रुदं रोम खोम तियेकपंसो मुखे रेमश्रु | (पणा, 1052 6}16)
५२६ त्वगस॒ग्धराऽय॒ग्ोहिताघ्रक्षतजं च रक्तम्‌ । (311, 11०00)
५२७ शोणितं वुक्रा रुधिरं पिितं तरसं मांसम्‌ । (1८9)
५२ ८ पठठं क्रव्यमामिषं सखादर्दटूर उपतप्तम्‌ ।
"५२९. शुष्कमांसं हृधग्रमांसं मेदस्तु वपा वसा । (7०५)
१५० वस्नसा ल्लायुः कीकसं कुल्यमस्ि खादखनि । (प्ऽ्लट)
4. अमरकोष-सग्रहः

५४१ कङ्ालः शारीरिकः पृष्ठे करोरुका पद्यैका तु । (81००५००)


4७२ पावे मूधिं करोटिः स्री कपालस्तसिन्‌ ककरः । (8५1)
५८२ मस्तिष्कं गोद गोद; आन्तरं पुरीतट्रल्मे फीहः । (०५०];)
॥१.; तिलकं कोमनि तथा नाडी तु धमनिः शिरा । (1.1श्ला, 167५८)
५८५ अङ्ग प्रतीकोऽवयवोऽपघनोऽथ कलेवरम्‌ । (1.४)
९५६ गात्रं वपुः संहननं शरीरं वष्मं विग्रहः । (०५)
९९४७ कायो देहः ्ीवपुसोः खयां मूर्तिस्तनुस्तन्‌ः ।
८८ वामं शरीरं सव्यं यादपसव्यं तु दक्षिणम्‌ ।
८९, प्रसव्य प्रतिकलं यादपसव्यमपष्ट च ।
४ अनामय खादारोग्यं वार्ता निरामयः कल्पः । (पल्गा)
५५९ उल्लायो निगेतो गदाद्ग्लानग्लास्न्‌ आमयावी | (०५०1९७०८)
४. विकृतो व्याकृतोऽपटुः आतुरोऽभ्यमितोऽभ्यान्तः | (57०1
५५२ सी रुटूरुजा चोपतापरोगव्याधिगदामयाः । (1215९25)
५४ व्याधिभेदाः प्रतिश्यायः पीनसः क्षकं क्षवः । (0००)
५ कासः क्षवथुः क्षयः शोपोऽयक्ष्मा दुर्नामार्च॑सी । (0०)
५१५६ भगन्दरो निबन्धानाहौ ग्रहणी प्रवाहिका | ((015{[0211011)
44७ प्रच्छर्दिका वमथुरवमिः मूत्रकृच्छ्र स्वहमरी | (०)
44८ शोकस्तु श्वपथुः शोथः श्ीपदं पादवर्मीकम्‌ । (5५९)
4. पाद्स्फोटौ विपादिका विस्फोटः पिटकोऽख्ियाम्‌ । (10०५)
५६५ पामपामे विचचिका कण्डूः खञश्च कण्डूया । (11८)
५६९ कच्छवां किलाससिध्मे कोरस्तु धत्रं मण्डलकम्‌ | (1.लग०७))
५६२ ष्टं च वणोऽख्िषां ईमंमरः ना नाडीव्रणः । (ण्ण)
५६२ भेपजौपध-भेषञ्यान्यगदो जायुरितयपि । (८१; ५०८)
५५९६४ रोगहायेगद्लारौ भिषःवयो चिकित्सके । (06०)
अमरकोष-सग्रहः २९५

५५६५ भूभूमिरचलानन्ता रसा विश्वम्भरा सिरा । (ग?)


५६६ धरा धरिप्री धरणी क्षोणिज्या काश्यपी क्षितिः ।
५५६७ सवेसहा वसुमती वसुधोर्वी वरुन्धरा ।
५५६८ गोत्रा कुः परथिवी प्रथ्वी क्ष्माऽवनिर्मदिनी मही ।
५५६९, विपा गहरी धाघ्री गौरिला कुम्भिनी क्ष॒मा ।
५७० भूतधात्री च जगती जगच सागराम्बरा ।
५७१ धेनुश्च लोकधारिणी महद्धिरमिमन्विता ।
५९७९ विष्टपं थवनं लोको रलगर्भेति च स्मृता |
५५.७२ रलं मणिद्रेयोरस्मजातौ स॒क्तादि केऽपि च | (71661005 51076)
५७४ गारुत्मतं मरकतं अदमगभा हरिन्मणिः । (76०1१)
4.94 शोणे लोहितकः पद्मरागः स्ात्निराकरः | (रण), 71९)
५५६ खण सुवणं कनकं हिरण्यं हेमहाटकम्‌ । (०10)
९९.५७ तपनीयं शातकुम्भं गाद्धेयं भर्म कवुरम्‌ ।
"५५८ चामीकरं जातरूपं महारजतकाश्चने ।
५५९, रुक्मं कातंखरं जाम्बूनदमष्टपदेऽचखियाम्‌ ।
५८ © अलङ्ारसुवणं भृङ्गी कनकं कृताकृते ।
५८ ९
हेमरूप्ये कोद्श्च हिरण्यं कुप्यं ताभ्यामन्यत्‌ । (5८ २९।९])
4८२ रवं रजतं रूप्यं खजूरं श्रतं खप्रीतौ । (51५)
५८ र
आरटः ताम्रे श्चल्वं म्लेच्छपुखमुदुम्बरम्‌ । (8455, ०गृणः्ल)
५८४ दष्ट च वरिष्ठं तीक्ष्णपिण्डेऽ्मसारः शख्कम्‌ । (170)
4८५ लोदहोऽयः कारायसं सिहाणमण्डूरे तन्मरम्‌ । (२५५)
५८६ नागसीसके वभ्रयोगेष्टे रङ्गवङ्घे त्रपुः । (1.०५, भण)
५८७ पिचिटं च सवं खात्तेजसं लोहे काचे क्षारा । (61255)
५८८ मृण्मृत्तिका प्रशस्ता तु मरत्सामृत्ा च मृत्तिका । (5न)
अमरकोष-संग्रहः

ऊष ऊषवानूषरो क्षारम्रदाकरो र्मा । (591०८) 521६ 7016}


समौ मरुधन्वानौ ठं खटी खिलाप्रहते । (12८5, ५०७१८}
, बन्धुरघुन्रतानतमुचावचं नैकभेदम्‌ । (०८५८०)
शकेरा शकेरिलः शाकैरश्च शकंरावति | (८०५९)
सिकतावति चेवं वल्मीकं नाकरर्वामिल्रः । (8), 221-1111)
नडग्राये नड्वान्रड्वलेत्थ कुपुद्रान्‌ वेतस्वान्‌ । (२८८५, ०171४००)
शादलः शादहरिते सजम्बाठे तु पङ्किलः | (0०58४, पव)
जम्बालस्तु निषट्टरः पङ्कोऽखी शाद कदमौ । (1४५५)
जलप्रायमनूपं कच्छः सवंसस्याल्योर्वैरा | (2धगाश#, [लि प]९)
दश्च परथिवी च सखादेकयोक्लया दिवस्पृथिव्यौ । (51 & 52017)
दावाप्रथिव्यौ रोदस्यौ चयावाभूमी च रोदसी ।
महीप शिखरिष्माभृदहायेधरपर्वताः | (10प०६९7)
अद्रिगोत्रगिरिप्रावाचल्रेलशिलोचयाः ।
लोकालोकश्चक्रवारसिङूटसिककुत्समोौ ।
हिमवद्िनध्यगन्धमादनादयोलन्ये च नगाः ।
करूटोऽस्ीशिखरं श्रृङ्गं स्युः प्रथः सानुरस्ियाम्‌ । (२९०)
तङ्गे च तथा सख्यादुचग्रार्न्तोदग्रोच्िताः। (पहः)
002

692
कटकोऽस्ली नितम्बोड्द्रेः प्रपातस्त्वतयो भगुः । (§:१९७, न# )
दन्तकास्त॒ बदिस्तियक््रदेशानिगेता गिरेः ।
उपलखकाऽड्दरेरासन्ना भूमिरूध्वमधियका । (1.01)
पादाः प्रयन्तपर्वताः पाषाणप्रस्तरोौ ग्रावन्‌ । (70001911, 5०0८)
लिलोपलारमानौ दृषत्‌ टङ्क; पाषाणदारणः । (5!००८-४८००)
9)
2
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(ॐ
€०2©~ स्थूलारच्युता गण्डशेसाः द्री गह्वरं कन्द्रः । (0०८)
गुहाऽपि निकु्लकुञ्जौ रतादिपिदितोदरे । (५०४)
€ (4 ®.

९९२
अमरकोब-सय्रहः २७

६९२ मनश्शिला मनोगुप्ना मनोहा नागनिद्धिका । (7२८१ ९१०) .


६१४ गेरेयमथ्यं गिरिजमर्मजं च शिलाजतु । (0211. &)
६९५ सिन्दूराञ्जनान्येवं नैकविधानि स्ातपारदे ।
६१६९ एतश्च चपलो रसश्च गिरिजामलमभ्रकम्‌ । (0;०11४०' १०1०}
६१७ अभ्रं मेघो वारिवाहः स्तनयित्नुषेराहकः । (1०८)
६९८ धाराधरो जलधरस्तडित्वान्वारिदोऽवुभत्‌ ।
६१९ घनजीमूतमुदिरजलपुग्धूमयोनयः |
६२० कादम्बिनी मेघमाला त्रिषु मेघभवेऽभ्रियम्‌ ।
६२१ स्तनितं गजितं मेषनिपि रसितादि च । (वपल)
६२२ शम्पा-शतहदा-हादिन्येरावलयः क्षणप्रभा । (रहण)
६२२ तडित्सौदामिनी विद्युचश्चला चपला अपि।
६२४ स्फूजेथुर्वजनिर्घोपो मेषज्योतिरिरंमदः ।
६२५ इन्द्रायुधं शक्रधनुस्तदेव कऋरोहितम्‌ । (२०१४०५५)
६२६ वृिर्वषं तद्धिघातेऽवग्रहाचग्रहौ समौ । (२०११, ००४६६)
६२७ धारासम्पात आसारः परषन्तिषिन्दु प्रपताः । (षग)
६२८ सीकरश्च ना विप्रपः स्वी एतेऽम्बुकणाः स्मृताः ।
६२९ वर्षोपलस्तु करका मेषच्छन्नेऽह्वि दुदिनम्‌ । (3211107)
६२० आपः स्री भूभ्नि वावारि सलिलं कमलं जलम्‌ । (\५०५९)
६२६ पयः कीराटमम्रतं जीवनं भुवनं वनम्‌ ।
६२२ कवन्धप्रदकं पाथः पुष्करं सवंतोमुखम्‌ ।
६२२ अभ्भोऽर्णस्तोयपानीयनीरक्षीराम्बुश्चम्बरम्‌ ।
६२४ मेघपुष्पं घनरसः त्रिषु दे आप्यमम्मयम्‌ ।
९२५ नदी सरित्तरद्किणी तटिनी हादिनी घुनी । (1रण्ल)
९२६ स्रोतखती द्वीपवती स्रवन्ती निभ्नगापगा ।
२२८ अमरकोष-सग्रहः

६२७ कूलङ्पो रैवलिनी रोधोवक्रा सरखती ।


६२८ तोयोत्थितं तत्पुलिनं सैकतं सिकतामयम्‌ (3211) 58110)
६२९ कूलं रोधस्तीरं प्रतीरं तटमन्तरे पात्रम्‌ । (२०५)
६४० पारावारे परावाची जलोच्छ्वासाः परीवाहाः । (0५०1०)
६७५९ डिण्डीरोऽन्धिकफः फेनः कूपकास्तु विदारकाः । (70)
६७४२ प्रसन्नोऽच्छः प्रसादश्च कटुषोऽनच्छाविलः । (@1€20,. 0171)
६७३ मरीमसं त॒ मलिनं कचरं मलदूपितम्‌ |
६४० पूतं पवित्र मेध्यं च वीध्रं तु विमलोऽर्थकम्‌ | (८८)
६८५ निर्णिक्तं शोधितं मष्ट निःशोध्यमनवस्करम्‌ ।
९४६ उत्सः प्रस्रवणं वारिप्रवाहो नि्चरो ज्ञरः | (८०००२१९)
६४७ सरणे खतःस्लोतः प्रणाली कृत्रिमा क्रूस्याञ्स्पा । (©) ०८])
६४७८ भ्रमः सखाज्जलनिगमः सरित्सु त्वत्र गङ्गाद्याः । (0५५)
६४९ गङ्गा विष्णुपदी जहुतनया त्रिस्रोता भीष्मघ्ररपि । (०१६२)
६५० काणिन्दी ष्यतनया यमुना श्मनस्वसा । (५००००)
६५९ रेवा तु नमेदा सोमोद्भवा मेकलकन्यका | (1९०1209)
६५२ तद्धस्त॒ शतुद्रिः खाद्विपाशा तु विपाट्‌ सियाम्‌ | (ऽत)
६५५२ शोणो हिरण्यवाहः सरखती कावेर्याद्याश्च | (३०१८
६१५४ सम्भेदः सिन्धुसङ्गमः जलाशयो जलाधारः | (00९०८)
६५५ तत्रागाधे हृदः खेयं परिखा पस्येवाधारः । (11०2१)
६५६ अन्धुः प्रहिः कूपः बोदपानं वापी तु दोधिका | (शन्‌)
६५७ आहावो निपानं तथा उपङ्ूपजलारये । (11०08)
६५८ तरप नेमिखिका वोनाहस्त॒ मुखबन्धनम्‌ । (7114 %)
६५९. उद्वारटनं घटीयन्त्रं सलिकोदयाहनं प्रहे ।
६६० शख वराटकं स्री रज्जुखिषु वटी गुणः । (२२०7९)
अमरकोष-सग्रहः २९

६६९ आलावालमावालमावापः वेशन्तोऽस्पसरः । (72517 ८०१1९)


६६२ पल्वलमपि पृष्करिण्यां त॒ खातं चाखात च ।
६६२ पद्माकरस्तडागोज्छी कासारः सरसी सरः । (1.०1.८)
>. कुप्रदिनी प्चिनीमखाः हंसादयः सरोषिजाः । (1.०5-70110 )
६६५ ह॑सास्त॒ शेतगर्तश्वक्राङ्गा मानसौकसाः । (5५०7)
६६६ राजर्हसास्त॒ ते सिताः चञ्चुचरणेर्लोहिते; । (०१९०)
६६७ मठिनैर्मदिकाक्षास्ते धातेराष्राः सितेतरैः । (७००४९)
६६८ हंसी वरटा कोकशथक्रथक्रवाको रथाङ्ग; | (1२५००) &००५८)
६६९ शश्ारिरारिराडिश्च वलाका विसकण्डिका | (13)
६७० यकः कलः पुष्कराहस्तु सारसः क्च रक्ष्मणा |
९७९ कादम्बः कलहंसः खादुत््रोदयङ्कररौ समौ । (ष्ट; जभ लक)
६७२ जलनीटी शैवलः शैवाठं श्यादुत्पके सिते । (1,1055)
६७२ कारं कुपुदं कैरवं सौगन्धिकं नीठे तु | (४7) ]719)
६७४ कुवलयमिन्दीवरं रक्तोत्पलं कोकनदम्‌ । (एण 17], 7८ 1०15)
६७५ वा पुंसि प्नं नकिनमर विन्द्‌ महोत्पलम्‌ । (1.01"5)
९७६ सहस्रपत्र कमठ शतपत्रं कुरोशयम्‌ ।
६.५७ पङ्करूदं तामरसं सारसं सरसीरुहम्‌ ।
६७८ षिसम्र्नराजीव-पुष्कराम्भोरुहाणि च ।
६७९ पुण्डरीकं सिताम्भोजं दष्टकं रक्तसन्ध्यकम्‌ | (1191८ 1०105)
६८० उत्पलकन्दः शाटकं पद्म तु करहाटः | (5५।1६)
६८१ मृणारबिसनाखास्तु नाट किञ्जल्कः केसरः । (7119700€201)
६७२ संवर्तिका नवदलं बीजकोशो वराटकः । (5०८० ०५?)
६८२ कोरकः क्षारको जालकं कलिका स्री मुकुलः । (०५)
९८५ कुडमलथ पुष्टोत्फु्टौ त्वेते विकसिते तथा । (810५)
अमरकोष-संग्रहः

प्रफु् सफु व्याकोश्च विकचास्फुटेत्यपि ।


खां भूम्नि सुमनसः पुष्यं प्रहरनं कुसुमम्‌ । (71०५८)
साच सुम क्कीवे परागः स तु सुमनोरजः । (एगाल)
मकरन्दः पुष्परसो मधु कषोद्र च माक्षिकम्‌ । (००८)
मधूच्छिष्टं तु सिक्थकं खाद्रच्छकस्तु स्तम्बकः | (8८८5 ५०५}
रतातस्वीरट्रमजातेवाः इुसुमभेदाः ।
वसन्ते माक्ती जातिमांघे च कन्दं मन्दारम्‌ ।
स्याचम्पा हेमङुस॒मं तत्त॒ तर्स पुद्धवम्‌ ।
ओण्ड्पुष्पं जपापुष्यं बजपुष्पं तिलख यत्‌।
लतायां वही व्रततिः खात्‌ अतिमृक्तस्तु पौण्ड्कः | (0८८८)
प्रियगुः फलिनी फटी कारम्भा प्रियक सा |
वासन्ती माधवी तदत्‌ द्राक्षा खाद्री च मृद्विका | (7८)
गो्तन्यपि मधुरसा ताम्बूरबहटी ताम्बूली । (एलन 1०20)
नागवह्टी च वृक्षा जीवन्तिकाद योऽपि ।
लताप्रतानिनी वीरुटुल्मन्युरुप इलयपि । (ग) 2019])
विद्यृत्वरो विस॒मरः प्रसारी च विसारिणी ।
भोञ्यफलदा कूष्माण्डकोऽ्लावरू ककंटीयादि ।
कन्दे रणोऽशघः मूले पलाण्डुः सुकन्दकः | (४१, ००1०१)
लताकेदुद्ुमौ तत्र हरिते मूरकमन्यत्‌ ।
लुन गुञ्ञनारि्ट-महाकन्दरसोनकाः । (८००)
शाकाख्यं खात्पत्रपुष्पादयमून्यपि भोज्यदाः ।
अघ्ली शाकं हरितकं शिग्रकडम्बौ नाडिका ।
शाकक्षेत्रादिके शाकशाकटं शाकशाकिनम्‌ । (६०८ &०1व८ा}
वेन मरीचं कोठकं कृष्ण धमेपत्तनम्‌ । ((०पतापाल४७)
अमरकोष-संग्रहः २१

\७०९ जीरको जरणाऽजाजी खादप्रेकं भृज्गवेरम्‌ ।


५७९० युस्तुम्बुरु च धन्याकं शण्ड विश्वं महौपधम्‌ |
७११ हरिद्रा वरवणिनी वेसवार उपस्करः |
७९२ नडस्तु घमनः खानडादयश्च तृभमेदाः | (२०९)
७१२ काशौ ना भूम्नि बस्वजाः स्ादिक्षू रसालस्तथा । (०९०१-००१९)
७९४ वीरण वीरतरे मूकेऽस्योश्लीरं लामज्जकम्‌ । (1र10-1]105)
७९१५ नलदमभयं सेव्यमम्रणारं जलाशयम्‌ ।
७१६ दूवां शतपर्विका सहस्रवीयाऽनन्तारुहा | (72५ &155)
५५७९७ कुरुविन्दो मेघनामा मुस्ता मुस्तको गवेधुः ।
७९८ गपुसमुखास्ची कुं कथो दमश्च पवित्रम्‌ ।
७९९ शष्पो वालतृणं घासो यवसं तृणमनम्‌ । (1८०0० 8725)
७२० कत्तृणं भस्तरणाधपि तरणराजाह्ययश्ताठः । (९०17५०९
७२१ घोण्टा पूगा क्रमुको गुवाकः खपुरः फलटेऽछ । (००८४)
७९९ उदरेगः ख्जूरः केतकी ताली खजरी समे । (००1८-एाण)
७२२ नालिक्रेरस्त॒ लाङ्गली तरण्या नच्येति संहतौ ।
७९५ व॑रो त्वक्सार कमार त्वचिसार तणध्वजाः | (1100)

७९५ शतपर्वा यवफलो वेणुमस्कर तेजनाः ।


७२६ वेणवः कीचकास्ते स्युर्ये खनन्यनिटोद्रताः ।
\७९\७9 ग्रन्थिना पर्वपरुषी वेतसे रथाभ्रपुष्पम्‌ । (1९०८)
७९८ विदुर-शीतवानीरवञ्जलाः विदुलोऽम्बुजः ।
७९९, हखश्चावशिफः श्वुपः एरण्डो व्याप्रपुच्छके । (ऽप, ००७५०)
७२० उसबुकरूचकचित्रकचञ्चुपश्चाङ्गुलाः ।
७२१ गन्धर्वहस्तकमण्डवधमानन्यडम्बकाः ।
७२२ अस्पाशमी शमीरः करवीरे हयमारकः ।
२२ अमरकोष-संग्रहः

७२२ उन्मत्तः कितवो धूर्ता धत्तूरः कनकाहयः ।


७३७ मात॒लो मदनश्च जम्बीरे स्यात्तु मरूबकः । (पण)
७२५५ ओपध्यः फलपाकान्ताः कदली वारणबुसा । (1००।००)
७२६ रम्भा मोचांह्यमत्फला काष्ठीला इयपि स्मृता ।
\७२० वृक्षो महीरुहः शाखी विटपी पादपस्तरः । (1९)
\७२८ अनोकहः कुटः शालः पलाशी द्रद्रमागमाः ।
७२९, वानस्पयः फर पष्पात्तेरपुष्पाद्रनस्पतिः ।
\७८४० वन्ध्योऽफलोऽवकेशी च स्युरवन्ध्यः फलेग्रहिः ।
७८१ फलवान्‌ फलिनः फी व्रक्षादीनां फर सस्यम्‌ ।
\५८२ आमे फले रला; शुष्के वानं विनाशोन्प्रखे । (२२५५, 0०:९५)
७४९ पक्त परिणते च स्याचेवं अभिनवोद्धिदि । (र)?८, भगण्णः)
\७८० अंकुरः मूलं बुधोंऽधिः खाणुवा ना धुवः शङ्कुः । (1२००)
७७५ प्रकाण्डः स्कन्धः वस्कठं वरकमेतेऽस्ियां त्वक्च । (5८, एय)
७५४६ सारो मज्जा वष्रि्मञ्ञरि; कोटरं निष्कुटः । (3१००, 52)
\9८\७ विस्तारो विरपः वन्तं प्रसववन्धनं समे | (108; 0120)
\७ ८८८ साखारते स्कन्धशाखा-लाठे जटा शाखारिफा ।
५८९, अवरोहः सैव सयाच मूलादग्रं गता रता ।
\94 ० शाखाग्रं शिखरं वा ना नगाधारोहः उच्छायः। (10, 7661)
७५६ उत्सेधश्रोच्छरयश्च सः पत्रं पलाशं छदनम्‌ । (1.९1)
७५५ दलं पणं छदः पुमान्‌ पष्टवोऽखी किसलयम्‌ । (71८06 1९26)
७५२ काष्ट (६ इन्धनं इध्ममेधः समित्छियाम्‌ | (एला)
७५ अश्वत्थे बोधिद्रमश्चलदलः कुञ्जराश्चनः । (एर०ण)
७५५ पिप्पलश्च स्युरन्याथ कपित्थोदुम्बरादयः ।
५१५६ पला किं्चुकः पर्णा वातपोथः पृक्षे जटिः ।
अमरकोष-संग्रहः ३३
पकंटी च न्यग्रोधो बहुपाद्मटः बिल्वे शाण्डिरयः । (7,४.०८)
शेदूषमादट्र-श्रीफलाः खात्ककन्धूः बदरी । (-णप४९)
कोरिश्च तदस्तु यूपः साले स्जकः स्थाद्‌भूर्जे ।
चर्मि-म॒दुत वचो खदिरो दन्तधावनोऽभया | (एलु )
साऽव्यथा पथ्या काया पूतनाऽपृता श्रेयसी । (14909 भ)
हरीतकी हेमवती चेतकी रिवाऽऽमलकी ।
अमरता च वयसा च निम्बे पिचुमन्दोऽरिषटिः । (पिदा)
हिगुनियांसमारको देवदारौ च सप्रमिद्‌ ।
केसरे वकुटो वञ्जुखोऽल्लोके कुटजः शक्रः |
समौ करकदाडिमौ तमाठतापिच्छौ तथा | (ए०ण्व्छ">००।९)
कालस्कन्धे आग्रश्चतो रसालस्त्वतिसौरमे । (11९9०)
हकारः पनसः कण्टकिफलः चिश्चाम्लिका | (]°८)
तिन्तिडी चुक्रं जम्बीरे जम्बजम्भीरजम्भलाः | (1.75)
अकृषटटकृएटकृष्टाकृष्दूताः व्रक्षल्ताद्याः |
कृएटजाः प्रायो भोज्यदा अन्ये मेषजप्रभवाः |
कृष्टे सीयदय्ये द्विहय्यं द्विसीत्यं शम्बाकृतम्‌ । (71०प््१८त)
द्विगुणाढृतं हितीयाकृतं चेवं त्रिहस्यायः ।
कृषकः फालःसीरः फाटं लाङ्गलं गोदारणम्‌ । (7०४10०7८)
शम्या युगकीलकः स्यादीषायां लाङ्गलदण्डः |
परुयोकत्रदारस्मेधिः सीता लाङ्गलपद्धतिः । (४०४८, (०५)
प्रानं तोदनं तोत्रं नध्री वर्ध्र च वरत्रा | (6०९)
कशापि खनित्रमवदारणे खाष्छोे लेषु; । (5१०१९, ०2}
कोटिशो रोष्टमेदनः वग्रोऽ्री क्षेत्रे केदारः । (८००००१०२)
कैदारकं केदार क्षेत्रगणे तु कैदारिकम्‌ ।
अमरकोष-सम्रहः

परिक्षिपर निवतं वेष्टितं वठयितं रुद्धम्‌ । (1५10560)


संवीतमावृतं च समौ वृत्तव्यावृत्तौ तथा ।
देशो नघम्बुवरृ्टयम्बुसंपन्नव्रीहिपालितः । (१५८ -८५)
सखानदीमात्रको देवमातृकश्च यथाक्रमम्‌ ।
बोजाकृतं तूप्तकृष्टे व्रीहिभवन ्रेहेयम्‌ | (7]0प्ा1€त "1८८ 710)
शाद्युद्धबोचितं शाकेयमेवं पष्टिक्यमादि ।
यव्यं यवक्यं तिस्य तेरी हिरूपता तथा । (51)
मापोमाणुभङ्गाः शेषे मौद्रीन-कोद्रबीणादि । (ण)
अतसी तूमा श्षुमा भङ्गा मातुखानी खादणुः |
व्रीहिभेदः व्रीहिः धान्यं स्तम्बकरिः स्तम्बो गुच्छः | (७९)प)
काण्डो नाडी नारं स्यादबुसं पलालः कटंकरः । (8179५)
त॒षो धान्यत्वक्न एतं बहुलीकृत धान्यं ऋद्धम्‌ । (11४5)
आवसितं श्कोऽस्ी छक्ष्णतीक्ष्णाग्रे शमी शिम्बा । (8121-९)
रितशचकयवोौ समौ तोक्मस्तु तत्र हरिते | ((द्टा) 1087168)
कोरदूषस्तु कोद्रवः स्यान्मसुरो म॑गस्यकः । (1,<9६)])
सपपेऽजुने सिद्धार्थः माषादयः शमीधान्ये | (२०५।००)
दकधान्ये यवादयः तणधान्यानि नीवाराः ।
स्यान्नीवाकस्तु प्रयामः स्तम्बन्तस्तु स्तम्बघनः । (9१९)
उत्कारश्च निकारशर द्वौ धान्योतक्षपणार्थकौ | (४०११४)
अयोग्र मुसरोऽस्री < 1६टदखलदष्ुद्खलम्‌ | (7€5116., 1101121)
स्फोटनं शुपमस्री चालनी तितउः पुमान्‌ । (५५१०००५.४०७१.८)
द्धं संदानितं मूतमुदितं संदितं सितम्‌ । {५०५ ५7)
स्यूतप्रसेवौ कण्डोलपिटौ कटकिलि्चकौ | (8००० ५१२)
दुराजग्रगन्द्रावासो विपिनं काननं वनम्‌ | (०९७५)
अमरकोष-संग्रहः ३५५

गहनमटव्यरण्यम्‌ अरण्यानी महारण्यम्‌ । (०७ 0८5}


वनसमूहे तु वन्या खात्तथा तद्धवेऽपि च ।
सिंहो मृगेन्द्रः पश्वाखो हयेक्षः केसरी हरिः । ({,101 )

कण्ठीरवो स्गरिपुख्गदषटगेगाशनः
पुण्डरीकः चित्रकायः पश्चनखो मृगद्विषः ।
शादूलद्वीपिनौ व्याघ्रे गण्डके खद्धखद्गिनौ । (1;धल)
अष्टपादः शरभः सिहधाती उष्रार्थेऽपि च ।
दन्ती दन्तावलो हस्ती हिरदोऽनेकपो दिपः ({1€118111)
मतंगजो गजो नागः कुरो वारणः करी |
इभः स्तम्बेरमः पद्मी करिणी धेनुका वद्या | (7०1९)
कलभः करिज्ावकः यूथनाथस्तु यूथपः । (८1)
मदोत्कटो मदकरः प्रभिन्नो गर्जितो मत्तः | (11)-1111 )
समावुद्वान्त-निर्मदोौ मदो दानं खा्टारे | (०५। ०। 7४, 5००)
अवग्रहः कुम्भो पिण्डौ ईपिका अक्िकरूटकम्‌ | (वलणः1८, ९»८-०]11)
अपाङ्देश्षो निया कर्णमूं तु चूलिका |
आसन स्कन्धदेश्षः सखात्पद्मकं विन्दुजालकम्‌ | (०।०४१९५१ 7२०१)
शृहुले अन्दुको निगडः आलानं बन्धस्तम्भः | (@1 ण)
वारी तु गजबमन्धनी दृष्या कक्ष्या वरत्रा च | (1.<वल इग)
तोत्र वेणुकं अंकुशः सृणिःख्ी प्रवेणी कुथः | (§]0€व1, 1051118}
उषे क्रमेरको मयो महाङ्गश्च मरुदिपः । (८47५)
शृह्ूलकथ कण्टकथुक्‌ करभस्तु तच्छिदयः ।
तरश्चस्तु मृगादनः कोक इंहामृगो वरकः । (प्#९००, ५01)
वराहः घकरो धृष्टिः कोलः पोत्री किरिःकिटिः । (?०गः)
द्री घोणी स्तन्धरोमा क्रोडो भूदार इलयपि ।
२४ अमरकोष-संग्रहः

८२९ ग्राम्यो विट्चरः भल्ट्के कक्षाच्छ-भष्भव्छुकाः । (£, ०८)


८२० श्रावित्त॒ शस्यस्त्टोभ्चि शरी शलं शलम्‌ । (९०९०९)
८२१९ सियां शिवा भूरिमायगोमायुग्रगधूतेकाः । (1०५२)
८२२ भृगाटर्वचुककरष्टफेरुफेर वजम्बुकाः ।
८२२ लुलायो महिषो बाहदिषत्कासरसेरिभाः । (8:०7)
८ २७ तच्छद्गे गवं घोटके बीलयश्ववाजिवाहाः । (०९)
८ २५५ तुरग-तरंग-तरंगमार्व॑-गन्धवेहयाः ।
८२९ सैन्धवसप्री च सिते तसिन्ककेः स्थौरी प्रष्टचः ।
८ २७ वीतेऽसारं ययुर्मेधीयो ब्न्दमश्चीयमाश्वम्‌ ।
८२३८ वाम्यश्चा वडवा वाडवं गणे स्याद्‌ हेषा च हषा |297९, "6181"
८२९ शरीरेऽश्वानां मध्यं करयं निगालो गलोदेशः । (८०)
८० घोणा तु प्रोथमस्ियां कविका तु खलिनी घ्नी । (801९)
८४९ पुच्छस्तेषां टूमलाङ्के वारदहस्तो वाङधिः । (1)1)
८८४२ आस्कन्दितादि पश्चधाराऽऽश्रीनं त्वेकाहयातम्‌ । (२००८)
८७२ चक्रीवन्तस्तु बालेया रासभा गदंभाः खराः 1 (7०ण्लः)
८७९ वातप्रमीर्वातमृगो वातायुः ङुरङ्गम्रगौ । (€)
८ ७५ कदरी कन्दली चीनश्वमूरुप्रियकावपि ।
८ ७६; समूर्ेति हरिणा अमी अजिनयोनयः |
८ ४\9 कृष्णसाररुन्यकुरंकु-शम्बररौहिषाः ।
८ ८ गोकर्णपृषतेणर्यरोहिताश्मरोमगाः ।
८४९ गन्धर्वरामसृमराश्च चर्मायेणेयमेण्यम्‌ ।
० क्कः
दक्षिणारु> धयोगादक्षिणेमां कुर्‌ । (\#०८११९१ $ [ला]
८५१ गवयो वन्यः उक्षा भद्रो बलीवदेशवषेमः । (५11 ०» एषण]
८५९ अनड्वान्‌ वृषभो वृषः सौरमेयो गौः तद्द्न्दे ।
अमरकोष-संग्रहः ३७

८५५२ ओक्षकं गव्या गोत्रा एवं च वात्सक-परनुके । (१५०)


८५ शकृत्करिवेत्सः सद्योजातस्तर्णकः द
म्यस्तु । (पिला, $०प्1९)
८५५५ वत्सतरः जातोक्षो महोक्षो ब्रद्धो जरट्वः |
८५६ पण्डो गोपतिरिट्चरः खान्नखोतस्तु नस्तितः । (1५८०५ 1)
८ 4७9 स्कन्धो वहः सास्रा गटकम्बलः युगपार््गे |(81०५10९ ०९८५] ०)
८५८ ्र्टवाद्युग्यो हालिकसेरिको एवं प्रासंग्यः । (एाणण्धा-०५)
८५९. शाकटश्च बोढरि स्युधरय-धौरेय-धुरीणाः। (२००-१प]])
८६० माहेयी सौरभेयी गौसुघला माता प्रगिणी | (0०५)
८६१ अयुन्यघ्न्या च रोणी नैचिकी सा गोपृत्तमा । (५)
८६२ उधस्तु क्रोवमापीनं पीनोध्ची पीवरस्तनी | (100९)
८६२ सुव्रता सुखसन्दोद्या खकरा चाचण्डी च सा |
८ ६४ एकान्दा एकहायनी न्रन्दा द्विहायनीयादि । (४९०-०1१ &५)
८६५५ वशा वन्ध्या वेहच्च काव्या तु प्रजनोपसयां । (8317)
८६६ अवतोका स्वद्वभां प्रष्ठौही बालगर्भिणी |
८६५७ बष्कयिणी चिरग्रघता घेनुनेवघ्रतिका । (१९५1 ८२1५९८)
८६८ वहुष्ूतिः परेष्टका समांसमीनाऽन्दगप्रस्‌ः ।
८६९ अजा छागी श्युभच्छाग-बस्तछगलका अजे | (6०३।)
८७० मेदरभरोरणोणायुमेषवरष्णय एडके | (1०)
८५७१ वर्रस्तरुणः प्यः बृन्दे आजकोरभरकम्‌ । (४०५४)
८७२ कौठेयकः सारमेयः कुक्कुरो मृगदं शकः । (7०)
८७३ शुनको भषकः श्वा विश्वकदुमगयाक्षमः । (प्प्णधण् १०६)
<८\9 सरमा कुक्छुरी शनी अलकस्तु स योगितः । (1129 १०४)
<८\७५५ ओतुर्विंडालो माजांरो वृषरदशक आयु भुक्‌ । (0०)
८७६ कपि-पुवङ्क-एवग-श्ाखामृग-वरीमुखाः । (10०6)
अमरकोष-सय्रटः

मर्कटो वानरः कीश्चो वनौकाः शद्योऽपि वन्यः ।


नागास्तु काद्रवेयास्तेपामीश्वरः शेपोऽनन्तः । (5००९)
अजगरे शयुबाहसौ खाद्राजिरो इण्डुभः । (००, 7०150111555)
अलगदो जरव्यालः सपराजस्तु वासुकिः । (८०४2)
सः प्रदाङुथूजगो युजङ्गोऽदि जङ्गमः ।
आदश्ीविपो विपधरश्चक्री व्यालः सरीसृपः ।
कुण्डली गूडपाचक्षुःशरवाः काकोदरः फणी ।
दर्वीकरो दीषेपृषटठो दन्तशको बिलेशयः ।
अगः पन्नगो भोगी जिह्मगः पवनाशनः ।
लेलिहानो दहिरसनो गोकणः कच्जुक॑ौ तथा ।
कुम्भीनमः फणधरो हरिभागधरश्च सः ।
अहेस्तनुः भोगः द॑ष्रिकाऽऽश्चीः फणायान्तु स्फटा । (५८110, 1००५)
समौ कञ्जुक-निमाको नियुक्तो युक्तकञ्जुकः । (31०८६)
विषमेदाः काटकरूटादि नव विपाद्याहेयम्‌ ।
वृधिकः शुककीरोऽलिद्रणौ टूना तन्तुवायः । (ऽ८०)०प)
उर्णनाममक्छटकौ क्रिमिस्तु कर्णजलौका; । (पम)
अधोगन्ता तु खनको वरकः पंध्वज उन्दुरः | (1०४७९)
उन्दस्मूश्क आयुश्च गिरिका बालमूपिका ।
भेके मण्टरकवर्पाभूः शादर-एवददुराः । (०६)
रिटी गण्डूपदी भेकी वषाभ्वी कमी इलिः।
सरटः कृकलासः सयान्म॒सटी गृहगोधिका | ((]1471€1€01))
खगे विहंगविहगविहंगमविहायसः । (87प)
शकुन्तिपक्षि्चकुनि-शकुन्तशकुनदिजाः ।
पतत्रिपत्रिपतगपतत्‌-पत्ररथाण्डजाः ।
अमरकोष-संग्रहः २२

नगोको वाजिविकिर-विविष्किर-पतत्रयः ।
(4 (५ (4 (५,
९०९
९०२ नीडोद्धवा गरुत्मन्तः पित्सन्तो नभसङ्गमाः ।
९०२ स्युः पत्र पतत्रं तनूरुहम्‌ गरुत्पश्षच्छदाः । (18)
९०४ तन्मूरं पक्षतिः प्रडीनोड़ीनसंडीना गतौ । (71८ ०००९४)
९०५५ आतापिचि्टौ प्री श्येनः दाक्षाय्यगृधौ समौ । (प्०५)
९०६ लोहपृष्ः कंकः कुड क्रौंचः चाषः फिकीदिविः । (९०)
९०७ ककरेटुः करेटुस्तित्तिरः सारङ्गश्वातकः । (२221;08९)
९०८ व्याघाटो भरद्राजः दावाघाटः शतपत्रकः । (31:#121)
९०९. वनप्रियः परभृतः फोफिलः पिक इत्यपि | (1६०५६1०)
९९० द्रोणकाकस्तु काकोलो दाव्यूहः कालकण्ठकः । (१२९५०९२)
९९९ कीरः शुकः उलूकस्तु वायसाराति-पेचकौ । (२००१)
९९२ दिवान्धः कौशिको घूको दिवाभीतो निशाटनः । (0)
९९२ काके तु करटारिष्ट-बलिपुष्ट-सकृलमजाः । (1०५)
९९४ ध्वा्कात्मघोषौ परभद्रलियुग्वायसोऽपि च ।
९१५ चिरञ्जीवी चैकष्िरमौकुलिः करविङ्स्तु । (5770)
९९६ चटकः चटका सनी खात्पुमपत्ये चाटकैरः ।
९९४७ पारावतः कटरवः कपोतः कापोतं बृन्दम्‌ | (8९०१)
९९१८ जतंकाऽजिनपव्र \ सयातकरक्कुभो वन्यकुककुट ¦ । (232१, \#11 [०५५ )

९९९ करकवाङक्ताप्रचूडः कुक्कुट्रणायुधः । (८००५)


९२० मयूरो वर्हिषी वहीं नीलकण्ठो यजङ्ध थुक्‌ । (२८२९०९९)
९२९ शिखावलः शिखी केकी मेषनादानुलखपि ।
९२२ केका वाणी मयूरस्य समौ चन्द्रकमेचकौ । (८ ०० 121)
९२२ फर्शुसाराः खगाः फठधान्यादो नीडवासिनः ।
नीडं कुलायः गिरिलिद्रादिकेतना ¦ वाजिवयाः । (नि ८७४)
(+ (4 (५

९२४
अमरकोष-संग्रहः

भृगारी ज्ञीरुका चीरी च स्चिष्धिका मक्षिकायाम्‌ । (८१०४५५)


वन्या दंजञोऽल्पा त॒ दनी वर्वणा मक्षिका नीला । (21८ 0)
खचोतो ज्योतिरिंगणः पतङ्कशलभौ समौ । (घ"८ी+)
गन्धोरी वरटा दयोः सरघा मधुमक्षिका । (०), ४८९)
मधुव्रतो मधुकरो मधुलिण्मघुपालिनः ।
दविरेफपुष्पलिद्‌-भगपदट्पद भ्रमरालयः ।
सीपंसौ मिथुनं दन्द युग्म च युगलं युगम्‌ । (०"71९)
समूहो निवहव्यूहसन्दोहविसरव्रजा; । (५०।९५५०)
स्तोमोघनिकरव्रातवारसंघात-सश्चयाः ।
गणे सम॒दायसमुदयौ समवायश्च यः ।
सजन्तभिः सङ्कसार्धवर्गाः सजातीयः करम्‌ ।
निकायसमाजौ सहधर्मिणाम्‌ पदरनाम्‌ समजः ।
पुञ्जराश्ची तूत्करः कूटः निकरम्बं कदम्बकम्‌ । (प्८०?)
बृन्दे संहतिः स्री कापोत शौकमायूरादीनि ।
गहासक्ताः पक्षिमरगाश्छेकास्ते गृह्यका ते । (1970९)
गृहं गेहोदवसितम्‌ वेश्म सद्म निकेतनम्‌ । (२०४५९)
निदान्तपस्यसदनं भवनागारमन्दिरम्‌ ।
गृहाः पुंसि च भूम्न्येव निकाय्य-निलयार्याः ।
वासः कटी शाला सभायां चाश्वश्चाला मन्दिरा । (511९)
संजवन चतुर्शाठं चन्द्र्मटा शिरोगृहम्‌ | (24727081)
पर्णश्ालोटजश्चैत्यमायतनं शिरपश्चाखा । (प्ल्य12९८)
आवेशनं मटर्छात्रादि वासः प्रपा गज्ञा च । (2010)
पानीयमयश्चालिकयोः मण्टपोऽस्री जनाश्रयः । (2५11०)
हम्यादि धनिनां वासः प्रासादो देवभूयुजाम्‌ | (12715101)
अपमरकोष-संग्रहः ७१

सोधोऽस्ी राजसदनं उपकार्योपकारिका । (२०२०९)


विच्छन्दकादि भेदा हि भवन्तीश्वरसगनाम्‌ ।
विशङ्ट थु बृहुद्विशाटं पृथुल गहत्‌ | (> {€151 ५6)
वदोरु विपिरं चास्िन्याद्विष्वक्समे तु निधः । (८८०९)
अरां वृजिन जिह्यमूर्मिमत्‌ कुञ्चितं नतम्‌ । (८१००६८५)
आविद्धं कुटिलं वेदितं वक्रं यं रुगणोऽपि । (?<\)
ऋरजावजिह्-प्रगुणो वतं निस्तलं वृत्तम्‌ । (5००४1)
गभांगारं वासगरहमरिष सूतिकागृहम्‌ | (वला 100)
राजस्ूञ्यागारमन्तःपुरावरोधावरोधनम्‌ । (प्प)
शद्धान्तःप्रघाणप्रघणालिन्दा च प्रकोष्ठके । (2०; ००)
तोरणोऽस्री बदिद्रीरं पूर्दारि कूटं गोपुरम्‌ । (७०५८५०१)
कुडिमोऽस्ी निबद्धा भूश्चत्वराजिरे त्वङ्गणम्‌ | (?4४८ग +)
गृहावग्रहणी देहली शिलानासे दार्वधोच्ेः । (17८1०10)
ती द्वारं प्रतीहारः प्रच्छन्ने अन्तदि यत्‌ | (2०)
कपाटमररं विष्कम्भोऽग॑रं खान्निरगगलम्‌ । (२००८, ०)
अयाधकं वितर्दिस्तु वेदिका पटलं छदिः । (०1००१)
पटलग्रान्ते वटीकनीध्र स्यात्कपोतालयम्‌ | (२०० ८०६९)
विटङ्क गोपानसी त॒ वलभी भित्तिख्ी कुल्यम्‌ । (§1071£ "01 )
आरोहणं खात्सोपान निश्रणिस्त्वधिरोहिणी । (5312175, 1३0}
गृहारामे निष्कुटः उपवनं कृत्रिमं वनम्‌ । (6०70)
राज्ञस्तूद्यानमाक्रोडः तदेव प्रमदवनम्‌ ।
यदन्तःपुरोचितं तथा चामायगणिकयोः |
सेव वृक्षवाटिका खान्मालिके तु मालाकारः । (७०११८१०)
वीथ्यालिरावकिः पंक्तिः श्रेणिरंखास्तु राजयः । (२०५)
४२ अमरकोष-संग्रहः

९५२ सुन्दरं रुचिरं चारु खषमं साधु शोभनम्‌ । (1.००)


९.७४ कान्तं मनोरमं स्च्य मनोज्ञं मञ्जमञ्जुलम्‌ ।
९,७५ तदासेचनकं तप्तर्नास्यन्तो यख दशेनात्‌ ।
९,७६ वास्तु बेश्मभूः ग्रामः संवसथोऽन्तपुपशचस्यम्‌ । (प६०८५०-५५८)
९\५७ ग्रामाजीवे देवाजीवो देवलः कारस्तु श्षिस्पी । (7";९७)
९५८ शिरं क्मकलादिकं सजातिसंहतिः श्रेणि; । (61)
९७९ कुरकः सात्कुरश्रष्ठी रङ्गाजीवधित्रकरः । (72६८)
९८० देपिका तूलिका समे प्रतियातनाऽपि चित्रे । (डप, एलपरा€)
९.८९ पाश्चालिका पुत्रिका खादख्रदन्तादिभिः कृता । (7°1])
९.८२ तन्तुवायः कुविन्दस्तन्तुः छप घरप्रवेष्टनम्‌ । (\८्यण्ल, #व77)
९८२ रसरो वेमा वायदण्डो वाणिव्यूतिः वसने । (8१४१९)
९८ छ वस्रमाच्छादनं वासथैलमंज्ुकम्‌ तोन । (1०0)
९.८५ त्वज्फलक्रिमिरोमाणि वाकं क्षौमे दुकूलम्‌ ।
२,८६्‌ फले कापासधादरे कोदोथं कृमिकोश्चजम्‌ ।
९८७ पत्रोणं धौतकोरोयं बहुमूल्य महाधनम्‌ । (812५८ 511)
९,८ ८ राङ्कवं मरगरोमजं समो र्टुक-कम्बलो । (21०९)
९८९ नीशारः प्रावरणं साद्‌ हिमानिलनिवारणे । (5०५1)
९९० अनाहतं निष्परवाणि तन्त्रकं च नवाम्बरम्‌ । (1२८५ ००१)
९९६ पटचरं जीर्णवस् समौ नक्तककषैटौ । (019 ००)
९९२ सुचेटकः परोऽस्री स्यदभर्श ९व्‌९या [रकः । (08186 ८1011)

९९२ दाः स्री भूम्नि वचर दध्यं आयाम आरोहः । (8०१ल)


९,९.५४ परिणाहो विशालता निवीत प्रावतं त्रिषु | (\#1411, ८०४८77६)
९९५५ तच्यादुद्भमनीयं यद्धौतयोर्वस्लयोयुगम्‌ ।
९९.६ प्रावारोत्तरासङ्गो बरहतिकोत्तरीयं च तत्‌ । (ए 09)
अमरकोष-संग्रहः ७३

संव्यानं चोलः कूपांसको अर्धोरुकं चण्डातकम्‌ | (९1०४९, ४५१)


अन्तरीयोपसंव्यान-परिधानान्यधोंश्युके | (ए70-८ा)
प्रतिसीरा जवनिका सखात्तिरस्करिणी च सा | (5०६८)
असी वितानमृष्टोचो दृष्याद्य वस्रवेऽमनि । (121102४; {611}
एनवायस्तु सौचिकः कृपाणी कतरी समे । (81101, 56155015)
सेवनं सीवनं स्यूतिः ऊतं स्यूतपतं चेति । (5०५18)
छिन छातं ट्ूनं छरत्तं दातं दितं छितं वृक्णम्‌ । (५।४६)
पादूकृचमंकारः आरा तु चरम॑भ्रमेदिका । ((०४ान, 2५1)
विद्धे वेधितच्छिद्रितौ आस्फोटनी वेधनिका । (८५०९०, शोग1ल)
पदायतानुपदीना पादुका पादृरूपानत्‌ । (7००1-५*८8य)
भसा चमंप्रसेविका नाडिन्धमः खर्णकारः । (1.८०110८ ०)
कलादो रुक्मकारकः नाराच खादेषणिका । (ऽ71ज्ल अप)
व्योकारो लोहकारकः मूपा तैजसावतेनी । (1०)
समौ स्थूणायःप्रतिमा प्रतिमाचां प्रतिनिधिः । (1००)
प्रतिच्छाया प्रतिकृतिः प्रतिविम्वं प्रतिमानम्‌ ।
उपमानमुपमा समस्तुल्यः सदक्सटक्षः । (५०२)
सदश्च: समानः साधारणश तृत्तरपदे ।
निभसङ्का्नीकाशप्रतीकाशोपमादयः |
शोलिकस्ताग्रङुदकः सयल्कुम्भकारः कुलालः ।((गृण़ल ~ग!) )
सर्वमावपनं भाण्डं पात्रामत्रं च भाजनम्‌ । (५८४5०)
सयच्छाह्धिकः काम्बविकः वेणुध्माःस्युर्वेणविकाः | गला भ<ल
वीणावादा वैणिका माद॑ङ्खिकाः पाणिधासतद्त्‌ । (1४५५)
तक्षा त॒ वधकि्त्वष्टा रथकारस्तु काष्तद्‌ । (८०17८१६)
प्रामाधीनो ग्रामतक्षः कोटतक्षोऽनधीनकः ।
४४ अभमरकोष-समग्रहः

९०२१ व्रनः पत्रपरष्युः क्रकचोऽस्ी करपत्रम्‌ । (5०५)


१०२२ तष्टत्वष्टौ तनूकृते दारिते भिन्नभेदितौ | (71216, 52५7) )
१०२२ पलगण्डस्त॒ लेपकः पुरत ठेप्यादिकमेणि । (एाग्लट)
१०२४ ्षरी मुण्डी दिवाकीर्तिनापितान्तावसायिनः । (एन)
१०२५ निर्णेजको रजकः मायाकारः प्रतिहारकः | (४०517281)

१०२६ माया शाम्बरी खलपूरवहुकरः वैवधिके । (8५००९, ९01०)


१०२७ वार्तावहो भारको भारवाहः खाद्धारयषटिः ।
१०२८ विहङ्ककस्तदाटम्वि शिक्यं पिटकः पेटकः । (51118) 1025६61}
९१०२९ पेटा च मञ्जूषा भृतकः कमकरो भृतिथुक् । (्)7०१ ऽध ५३१६)
१०२० वैतनिकः वेतनं भृतिभया भरण्य विधा । (५०६८)
१०२९ भरणं भ्म कर्मण्या मूट्यं पणश्च निर्वेशः ।
९१०२२ मनुष्या मानुपा मलयां मनुजा मानवा नराः । (7४9)
९०२२ नास्रीङ्कीवं लिज्ञत्रिकं वचनानि ब्ेकवहु ।
१०२४ पुमांसः पञ्चजनाः पूरुषाः पुरुषाश्च नरः । (1४21९)
१०२५ प्रकृतिविशेषास्तत्र महेच्छश महाशयः | (12679"01प00४)
१०२६ हृदयादधः सुहृदयः सिग्धश्च वत्सलश्च सः । (^1८०००।९)
१०२७ स्यादयाटुः कारुणिकः समौ कृपाटुघ्रतौ । (1९10)
१०२८ ्रद्धायुक्ते श्रद्राः शङ्को यः स प्रियवद्‌ः ।
१०२९ शरास्पातिको हिस शंसः पापश्च क्रूरः । (८५५)
१०४० स्यु्वदान्यस्थूलरक्ष्यदानशौण्डा बहुप्रदे । (४९? 1४८०)
१०४९ सकलो दातभोक्तरि यादधिकद्विः सम॒द्धः । (श्ल)
१०५२ वरदस्तु समधेकः अतिरिक्तः समधिकः | (४५८९11८५)
१०४२ सत्कृयांकृतां कन्यां यो ददाति स कूकुदः ।
१०४४ कदर्ये कृपणः क्षुद्रः फिंपचानो मितंपचः । (1415८)
अमरकोष-सं्रहः ८५५

९०४५ वराङ्गरूपोपेतो यः सिहसंहननोऽपि सः ।


१०४६ निर्वायेः कायेकर्ता यः सम्पन्नः सच्वसम्पदा । (1८७501९)
१०४७ महोत्साहो महोद्यमः क्रियावान्‌ कर्मस्रू्यतः ।
९०४८ स कामः कर्मसीलो यः कर्मशुरस्त कमठः ।
१०४९ क्मक्षमोऽलङ्क्मीणः कर्मकारस्तु तक्ियः ।
१०५० मन्दस्तुन्दपरिम्रजालख-श्लीतोऽनुष्णोऽलसे ।
१०५९ दीधेसूत्रश्िरक्रियः जाव्मस्तु सोऽसमीक्ष्यकृत्‌ । (7)121०)
१०५२ दक्षे चतरः पेशलः पटः सत्थान उष्णकः |
१०५५२ शिशिदानोऽङृष्णकमां तुष्णींश्ीलस्तु तूष्णीक; । (;०४४)
१०५४ तत्परे प्रसितासक्ताविष्टा्था्युक्त उत्सुकः । (57०81€ 7१;११८१)
१०५५ एकतानोऽनन्यव्रत्तिरेकग्रैकायनावपि ।
१०५६ अप्येकसम एकाग्रयोऽप्येकायतनशापि सः ।
१०५७ पिविधः खाद्वहुविधः नानारूपः परथग्विधः । (४००४४)
१०५८ यास्व सिरतरः स्थेयानेकरूपतया तु यः । (८५)
९०५९ संकसुकोऽस्िरश्पलधिकुरश चरिष्णुः | (1751684४)
१०६० चरनं कम्पनं कम्प्र चरं रोठं चराचलम्‌ ।
१०६९ चश्वलं तरं धुवनं पारिएव-परिप्वे ।
९१०६२ बेट प्रह्णं चेवं व्रसमिद्गं चराचरम्‌ ।
१०६२ दक्षिणे सरलोदारौ निकृतस्त्वनजः शट; । (811810111-01210)
१०६४ धूर्तो वश्चकः पिशुनो दुजनः खलः चके । (५००५)
१०६५ कर्णेजपः परोभागी दोषेकटक्‌ षन्ता क्षमी । (1्एण्ण्ल)
१०६६ सहिष्णुः सहनस्तितिक्चुः खात्तु क्रोधने । (^ण६)
१०६७ अमर्षणः कोपी तथा चण्डकोऽखन्तकोपनः ।
९०६८ कामुको कमितानुकः कम्रः कामयिताऽभीकः । (1.119)५१०८४)
४६ अमरकोष-सग्रहः

१०६९ कमनः कामनोऽभिकः प्रगरभः प्रतिभान्विते । (8०0)


२०७० धृष्टे धृष्णग्वियातोऽगरृषटे श्ञालिनोऽदहङ्कारवान्‌ । (177००९१)
९ ०७६ अहंयुः समुद्धतोऽविनीतमत्तश्चौण्डोत्कटाः । (२०८०)
१०७२ ्षीबे चात्तगर्वाऽभिभूतः वश्यो विनयग्राही । (प१५१;०।९)
९०७९३ विधेयप्रणय-निभृतविनीतश् प्रश्रितः ।
९०७४ रजाज्ञीलेऽपत्रपिष्णुरभ्यागारिके उपाधिः | ८५०।९ 1० [7]
९०७५ कुटुम्बव्याप्तः खादारसुरेवमाशसितरि । (प्ण)
९०७६ हषंमाणो विकुर्वाणः प्रमना हृष्टमानसः । (००४५)
९ ०५५७ मत्तस्त्प्रः प्रोतः प्रमुदितः प्रहन इत्यपि ।
९ ०७८ सन्तापित धूपित दून धूपायिताः सन्तप्ने । (^,१)१५१९५)
९१०७९ विहरे व्यसनातपिरक्तान्त्मना दुर्मनाः ।
९०८० उत्कोन्मनाश्च विमनाः संशयात्मा सांशयिकः |
१०८१ जेवात्कस्त्वायुष्मान्‌ सिद्धे निरवृत्तनिष्यन्नौ | (त्वमा त्व)
१०८२ बुभुक्षितः स्याक्चुधितो जिषत्पुरश्नायिता । (प्ण)
९१०८२ भक्षको षसरोऽगरः आमिषाशी तु शौष्कलः | (१(८०।-८०।८)
९०८७ बुभक्षाशनाया क्षुत्पिपासोदन्या च तृटतर्षः । (ण्ण, पारम)
१०८५ ग्रासः कवलः जग्धिभाजनं जेमनमाहारः । (70नऽन, {००
९१०८६ न्याद निधसो लेह फेला थृक्तसयुज््िते | (००५ 1९217165)
९०८७ विजिगीषा विवमिते स्यादाद्ून ओदरिकः । (७1५110४)
९१०८८ खोदरपूरके उभावात्मम्भरिः कुक्षिम्भरेः ।
९०८९, परान्नः परपिण्डादः सर्वान्नीनः सर्वान्नयुक्‌ ।
१०९० सग्धिः स्री सहभोजनं सपीतिः सी तुस्यपानम्‌ |
९०९१ युक्तेऽ्जग्धग्लस्त-ग्रस्तारितप्सात-खादितम्‌ ।
१५९२ च्वितलीट प्रयवसिताभ्यवहूत भरिते ।
अमरकोष-संग्रटः ७

९१०९२ कामं प्रकामं पयोप्ं निकामेष्टं यथेण्सितम्‌ । (7०४)


9 {५

१०९४ प्रभूत प्रचुरं प्राज्यमदभ्रं बहुं बहु । (२1९१५)


१०९५ पुटः परु भूयिष्टं स्फारं भूयश्च भूरि च ।
१०९६ छियां मात्रा तुदिः पंसि लवलेश्-कणाणवः । (४०? 1110९)
१०९५७ अदयल्पेऽल्पि्टं अल्पीयः कणीयोऽणीय इयपि
१०९८ गृहयाटम्हीतरि स्ाद्गृघ्ो गधेनस्तुस्यः | (८८५))
१०९९ लुत्पोऽभिखापृकस्तष्णकः द्रौ रोदुपरोटभौ ।
११०० सी योपिद्वला योपा नारी सीमन्तिनी वधूः | (४४०)
९१९५९ पिरोषास्तु प्रतीपदशिनी महिका वनिता |
९११०२ वामा वामलोचनाद्गना कान्ता कामिनी भीरुः ।
१९१०३ प्रमदा च मानिनी ललना रामा नितम्बिनी | (1.०४९ा#-1;7८0)
१९१०४ रमणी सन्दरी कोपना खाच सैव भामिनी |
१९०५ वरारोहा मत्तकाशिन्य॒त्तमा वरवर्णिनी |
१९०६ पोटा ख्ीपसलक्षणा व्रा पठिक्तो गोष्वपि | ए €०10८0 „07121

९९०७ कालयायन्यधवरद्धा या काषायवसनाऽधवा |


१९१०८ मध्यमा युवतिस्तरूणी दृष्टरजाः खादविः | (४०५६)
१९०९ ह्वीधर्मिण्यात्रेयी मलिनी रजखलातेमती ।
११९० पष्पवत्युदक्या च निष्कला सा विगतातेवा । (टापः)
१११९ सयाद्रजः पुष्पमातेवं कन्या तु कमारी गौरी ।
११९२ नम्रिकानागतातेवा नभ्निका क्षी खात्कोटवी । (गहण)
१११२ नग्नोऽवासा दिगम्बरे खादालिः सखी वयखा ।
१११४ प्रेष्या त्वन्तःपुरश्री सेरन्धी या परवेरमखा | ०71 ऽ९१९२०॥
१९१९५ इच्छावती काप्रुका खादूवृषययन्ती त॒ कामुकी | (65)\0ए)
पुश्टी कान्ताथिनी साङ्कतिका साभिसारिका । (१५०१।०)

११५६
८८ अमरकोष-संग्रहः

१९१७ सैरिणी ध्षिणी बन्धक्यसती कुरटेत्वरी ।


११९१८ पांसुला च दूती सश्वारिका कटनी शम्भरी ।
११९९ वारस्ी गणिका वेश्या च रूपाजीवा जनयां । (प्र 1०)
११२० सत्कृता सा वारमुख्या वेशो वेश्याजनाश्रयः । (^०००९)
११२९१ प्राज्ञी प्रज्ञा प्राज्ञा धीमती दैवज्ञा विप्रभिका | (^5गण्डल)
११२२ सखर्ववरा पतिंवरा वर्या खात्पाणिपीडने । (1४2728९)
११२२ विवाहोपयमपरिणयोद्राहोपयामाश ।
११२४ व्यवायो ग्राम्यधर्मो मेथुन विधवनं रतम्‌ । (८०0०१)
९९१२५ दम्पती जम्पती जायापती भायीपती समे ।
११२६ कुलस्री कुटम्बिनी करपालिका च पुरन्ध्री । (प्त००५९-५) (८)
{१२७ सती सुचरित्रा साध्वी पतिव्रता स्ाचिरिण्टी | व तपणात भणण)
१९१२८ सुवासिनी कृतसापतिकाऽध्यूटा चाधिविन्ना । (\#10)) ००-४(ट)
९१२९. पुनभूर्दिधिषूरूढा दविसतस्या दिधिषुः पतिः । (1२८-फशत्त)
११२३० दिजश्चेत्सोऽग्रेदिधिषः विश्वस्ता विधवाधवा | (५००५)
११२९ अशिश्री शिश्ना विना अवीरा निष्पतिसुता ।
९१९२२ आपन्नसत्वा गुर्विण्यन्तव्ली गर्भिणीयपि । (९५१९५०१)
१९२२ ्रद्धाटुदोहिदवती खाज्जरायुगेभशयः । (भगण?)
१९२४ गर्भो भ्रणः कलरोलं सरतिमासो वैजननः । (एण +०)
९९१२५ स्याज्जातापदया प्रष्रता प्रजाता च प्रसूतिका । (7€;५८९१)
९९१२६ सौभागिनेयः सभगासतः पारखेणेयस्तु ।
१९२७ परस्याः बन्धुले बान्धकिंनेयोऽसतीसुतः ।
१९१२८ कौरटेरकोर्टेयो कोरुरिनेयो भिक्षुक्याः |
१९२९ कौरुटेयोऽपि सा सती चेत्‌कन्याजाते कानीनः ।(४1185 8०)
११४० अमृते जारजः कुण्डो मृते भतेरि गोलकः ।
भमरकोष-संग्रटः ४९

तृतीया प्रकृतिः षण्डः छ्धीबः पण्डो नपुंसके । (९५०४८०१)


मातुःपिता मातामहः पितामहः पितुःपिता | (7970 (फल)
तत्पिता प्रपितामहः तातस्तु जनकः पिता | (7०0९)
निपेकादिकृदधरः जननी जनयित्री प्रषः । (70०)
तद्भ्राता सन्मातुरः मातुठानी तु मात॒खी ।
पितव्यस्तु पितुभ्राता पेत्रष्वसेयसखात्सुतः ।
पेतृष्वस्चीयश्च पितष्वसुः खाद्‌ भगिनी खसा । (5)
भागिनेयस्तत्पुत्रः खघ्ीयः भ्रातुस्तु भ्रात्रीयः |
ूर्वजस्त्वग्रियोऽग्रनः कनिषटयवीयानुजाः । (2०1८)
जघन्यजावरजौ च समानोदयसोदर्यो ।
सगमभ्यसदहजौ समो ज्येषटेऽन्‌टे परिवेत्ता ।
अनुजो दारपरिग्रहात्‌ परिवित्तिसतञ्ञ्यायान्‌ । (10८)
पल्ली पाणिगृहीता दहितीया च सहधर्मिणी | (\५{८)
भायां जाया पुँ्रुञ्चि दाराश्च भता धवः प्रियः | (०५४००)
पतिः (जारस्तूपपतिः) तयोर्मिथः प्रस; श्वश्रूः | (एत. अण०४)
शश्ुरः पिता, पलीभ्राता उ्यालः, देवृदेवरौ । (-1२-12५5)
तौ पत्युः तत्खसा ननान्दा स्युररतिवगंभा्याः |
यातरोऽन्योन्यं, भ्रात्रजाया प्रजावती खजाते । (87०८० ५;{६)
ओरसोरस्यौ आत्मजस्तनयः घलु सुतः । (5०) |
पुत्रोऽपि खयां सर्वेऽमी दुहितरि तोकाप्ये । (7००६)
जामाता पतिददितुः समाः स्नुपाजनी-वध्वः | 12211116 -77)-] ९
सगोत्रवान्धव्ञातिवन्धुखस्जनाः समाः । (1०9८१)
ज्ञातेयं बन्दे बन्धुता वरस सिग्धस्तु जन्यः ।
एकोक्टा स्रीपुंसोः पितरौ श्वद्यरौ च भ्रातरौ ।
९१०७ अमरकोष-सग्रह्‌ः

९९१६५ शितं होशचवं बाल्यं तारुण्यं यौवन जरा । (014 ०६९)


९९६६ स्थाविरं व्दधत्वं विस्साऽवस्था बन्दे वाधेकम्‌ ।
९९६७ पाकोऽर्भको डिम्भः शियः प्रथुकः, पोतशावरकौ | (1१)
९११६८ स्यातां पतत्पश्वोः डिम्भोत्तानश्चयस्तर्गधयः ।
११६९ स्तनपाश्च वालो माणवकः किशोरः पौगण्डः । (2०)
९१७० युवावयसखत्तर्णः समे जीर्णां जरञ्ज्यायान्‌ । (01 7200}
९ ९७१ जीनः स्थविरः प्रवया दशमी वपीयान्बृद्धः |
११७२ अमांसो दुबेलश्छातो वलवान्‌ मांसलेंऽसलः । (एच्च)
९९१७२ उजेखलःस्यादूजंस्वी समौ उरस्व्युरसिखौ । (२१००५ ०९७८)
९ १७५४ पीनः पीन्नः स्थूलः पीवरः खात्श्चिरल्पतनु; । (8०४, 1९92}
११७५ षुष्टऽत्पस्तोकः सक्षम शछक्ष्णं दभ्रं कृ तयु ।
९९७६ खर्वहसखौ न्यङ्नीचौ वामने कुञ्जे गडुलः | (72५2) `
९ १७७ रुजा भरे न्युव्जोऽवाप्रेऽवनतानतम्‌ । (२८)
९ १७८ केरी केशिकः परिवापितस्तु मुण्डसुण्डितौ । (1.०8 12770)
९९७९ वलिनः वलिभिः एडो वधिरः खाच बलिर; । (\771।९0)
१९८० केकरेऽन्धोऽटडः चुद्धचिष्टपिष्टाः छ्धिन्नाक्षेऽक्ष्णि च ।
१९१८१ अवनीटोऽवरीटोऽवभ्रटः सुरणः खुरणाः । (7194 २०४९0)
१९८२ खरणाः खात्रणसो विग्रस्तु गतनासिकः । (4०-०५९)
१९८२ मूकोऽवाक्‌ एडमूकः श्रोतु वक्तुं अशिक्षितः । (10५)
९९८४ तुन्दिलस्तन्दिभस्तुन्दी बृहत्कुक्षिः पिचण्डिलः। (?०-०९11; ९)
११८५ वृद्धनाभश ककरः कुणिः श्रोणः पगु¦ खोडः । (41111- 81116)
१९८६ उर्वेजानुके उर्ध्वः पर्न प्रगतजानुकः । (1,०8.9० 1.८९)
९९८७ ९९)
संहते संनु जङ2ः कठिकः पिष्लुसिलकः | (1061-1
११८८ तिरककालकः विकलाङ्गोऽपोगण्डः सखात्पामने । (11010)
अभमरकोष-संग्रहः ८५९

१९८९ कच्छुरोऽपि श्लेष्मलः श्लेष्मणः कफी खाद्रातकी । (5०४४)


९१९० वातरोगी अररोगय॒तोऽशसः सातिसारे । (1२1८८५२०)
१९१९१ अतिसारकी फिलास्ी त॒ सिध्मरश्च दद्रुणः | (7८16)
९१९९२ मूरछलो मूर्तमूकितौ स्यादुन्मत्तस्तून्मदिष्णुः । (5५०००९१)
१९९२ उन्मादवच्र सः प्रतिकर्मणि तु प्रसाधनम्‌ । (170716५)
१९९५४ प्रतिकर्मागसंस्कारः खान्माष्टिर्माजना स्रजा । (८1८ण5)ण४६)
९९९५ आवः स्रानमाप्वः खान्मृतस्रानेऽपस्रानम्‌ । (००५1)
११९६ उद्र्तनप्रत्सादनं चर्चा चा्चिक्यं यासकः | 1२८०५8६ 9०८८
११९७ गन्धसारो मलयजो भद्रशरीश्वन्दनोऽखिपाम्‌ | (§१०])
११९८ प्रोधनमनुषोधो मण्डनस्त्वरङ्रिष्णुः ।
११९९ समुद्रकः सम्पुटकः पिष्टातः पटवासनः | ((०७\६ल)
९२०० दर्पणे मुराद प्रसाधनी कङ्कतिका | (7707, ८०)
१२०१ शायनं मञ्च-पयङ्क-पर्यङ्काः खटृव्या च समाः । (०)
१२०२ शय्यायां लयनीयवत्‌ उपधा तृपवहेः | (८५, 11०५५)
१२०२ पीटमासनं प्रतिग्राहः पतत्यराहः प्रदीपे | (51911000)
१२०४ दीपो गदुकः कन्दुकः व्यजनं ताटघ्रन्द्‌ कम्‌ । (711, (1)
९२०५ संमाजनी शोधनी क्षितिञतर सङ्करोऽवकरः । (10017)
१२०६ रजसि रेणुः पानां सरी धूलिः चण च क्षोदः । (५७५)
१२०७ जनिप्रकृतिवार्तामिर्भिननधर्मवणाश्रमाः ।
१२०८ विप्रकषत्रियविट्रद्राथातुर्वण्येमिति स्यतम्‌ ।
१२०९ वटुर्गेदी यतिन्य।सी स्युस्लथाऽऽश्रमधर्भिणः ।
१२९० अवर्ण, पश्चमः खादलयाश्रमी परमहंसः ।
१२९१९ सन्ततिगोत्र-जनन-ङलान्यभिजनन्वयी | (7412111; 7466}
१२९२ वंशोऽन्ववायः सन्तानो बीज्यस्तु कुठसम्भवः ।
वर्‌ भमरकोष-सग्रहः

९१२१३ महाकुरकुलीनायेसभ्यसज्जनसाधवः । (०४०)


१२१४ अधिभूनायको नेता प्रथः परिवढोऽधिषः । (1,८०0त)
९१२१५ खामी पतिरीश्चर ईरिता धनी तविभ्य आद्यः । (0णल+)
९१२१६ लक्ष्मीवान्लक्ष्मणः श्रीश्च श्रीमान्‌ श्ुभयुश्च सः ।
१२१७ निःखस्तु दुर्विधो दीनो दर्दर दुगेतोऽपि सः | (7००)
९२९८ द्विजोऽयमग्रजन्मा ब्रह्म भूदेव-विप्र-वाडवाः | (भाणाण)
१२१९ विद्ठान्विपधिदोपज्ञः सन्छुधीः कोविदो बुधः | (1.८21९त)
१२२० धीरो मनीषी ज्ञः प्राज्ञः संख्यावान्‌ पण्डितः कविः । (५5९)
१२२१ धीमान्घ्रिः कृती कृष्टिरब्धवर्णा विचक्षणः ।
१२२२ प्रवीणनिपरणामिज्ञ विज्ञ निष्णात शिक्षिताः |
१२२३ वैज्ञानिकः कृतमुखः कुदरारथासो दीषदक्‌ ।
१२२४ अज्ञे मूढ-यथाजातमूखं-वैधेय-वालिशाः । (70०)
१२२५ अनूचानः प्रवचने साङ्गे सोऽधीती छान्दसः | ८१;८ 500]87
१२२६ ्रोत्रियः यागादिभिवतो विप्रः स षट्कर्मा |
१२२७ सांवत्सरो ज्यौतिषिको दैवज्ञ गणकावपि । (457101०८)
१२२८ स्यर्मोहूर्तिकमोूते-ज्ञानिकार्तान्तका अपि ।
१२२९. तान्नरिको ज्ञातसिद्धान्तः नष्टाप्निः खाच वीरहा |
१२२० मन्तरन्याख्याकृदाचायेः उपाध्यायस्त्वध्यापकः । (1८९०)
१२३१ पयोगे स्त्याचार्यानी खत आचायां चोपाध्याया ।
१२३२ उपाध्यायान्युपाध्यायी ज्ञाता तु विदुरो विदः | (५5६)
१२३३ बुद्ध वुधितं मनितं प्रतिपन्नमवसितम्‌ । (1६०५7)
१२२४ दक्षिणीयो दक्षिणाहे-दकिण्यौ पूज्यः प्रतीक्ष्यः ।
९२३२५ प्रतीते प्रथितख्यात-वित्तविज्ञातविश्रुताः | (ए०पऽ)
१२३६ गुणैः प्रतीते त॒ कृतलक्षणाहतरक्षणौ ।
अमरकोष-संग्रहः ५३

१२२७ वदो वदावदो वक्ता वागीक्ो वाक्पतिः समे । (0"०"0)


१२३८ वाचोयुक्तिः पटुवाग्मी वावदूकोऽतिवक्तरि ।
९२२९ स्याज्जलपाकस्तु वाचालः वाचाटो बहुगद्यवाक्‌ । (5०४71०४)
१२४० टुई्खे सखान्प कददः ुखर ः।
कुचरः कुबद्‌ः
१२४१ लोहलोऽस्फुटवाक्समौ नान्दीवादी नान्दीकरः । ("०1०६ ०९)
९२४२ छााऽन्तेवासिनौ रिष्ये रक्षाः प्राथमकल्पिकाः | (8५०९०)
१२४३ संस्कारपवं ्रहणं स्यादुपाकरणं श्रुतेः ।
१२४४ उपञ्ञा ज्ञानमाचम्‌ स्याञ्ज्ञात्वारम्भ उपक्रमः | (104८1००)
१२४५५ दान्तो वर्णी ब्रह्मचारी सतीथ्यास्त्वेकगुरवः ।
१२४६ एकव्रह्मव्रताचारा मिथः सत्रह्मचारिणः । (1४55-०९६)
१२४७ जपः खाध्यायोऽखाध्यायो निराकृतिः गुरोस्त यः|
९१२४८ लब्धानुज्ञः समातव्ृत्तः पवित्रः प्रयतः पूतः | (११५००१९, 1019)
९२४९ स्याद्रद्यवर्चसन्तु वर्ताध्ययनादिसमृद्धिः ।
१२५० सीमांसको जेमिनेये वेदान्ती ब्रह्मवादिनि ।
१२५१ वैरोपिके सखयादोट्क्यः सौगतः शल्यवादिनि । (०००))५)
१२५२ नैयापिकस्त्वक्षपादः सखाद्वादिक आकः । (]५;")
१२५३ चार्वाको छोकायतिकः सत्कार्ये साह्वयकापिलो । (10216) 21)
१२५४ पाखण्डाः सर्वलिद्धिनः त्ववकीर्णी क्षतव्रतः । (१८ ५।०)
१२५५ पाठो होमश्चातिथीनां सपर्या तपंणं वलिः ।
१२५६ एते पञ्चमहायज्ञा ब्रह्मयज्ञादि नामका ।
१३५७ सांनाय्यं हविरम्रौ हतं अतिथिनां गृहागते । (७५८७)
१२५८ आवेशिकथागन्तुः प्राधूणिकश्च प्राधूणंकः ।
१२५९, आतिथेये पाद्यमध्यमुपस्पशस्त्वाचमनम्‌ ।
९२६० पादग्रहणममिवादनम्‌ तत्कर वन्दारुः । (३०1०५०००)
क ~ अमररकोष-सग्रहः

पूजा नमसखाऽपचितिः सपर्या्चाहिणाः समाः । (भगगाः)


@ (५

९२६१
९२९२ वरिवस्या तु शुश्रूषा परिचयौऽप्युपासना । (5०५०८)
९१२६२ यमनियमौ त॒ नियं क्षारीरागन्तुसाधने ।
१२६४ नियो व्रतं पुण्यकर्मोपवरस्यं तुपवासः । (7251)
१२६५ क्रतुः खातादीष्टापते सुकृती पृण्यवान्‌ धन्यः ।
१२६६ श्राद्धं पितकम शासतः पितदानं निवापः | (1.0०६०ग)
१२६७ समानौ रसवलयां तु पाकसथान-महानसे । (1६101 €)
९१२६८ अशमन्तमुद्धानमधिश्रयणी चुद्धिर न्तिका । (71713९८)
९२९६९ हसन्यज्ञारधानिकाङ्गारशाकटी हसन्ती | (०{०४।८ ०९८४)
९२७० क्रजीपं पिष्टपचनं भ्राप्रोऽम्वरीपं कन्दुस्तु | (ए) 23)
९२.७९ स्वेदनी पिठरः श्थाल्युखा शरावो वधमान; | (1211८)
१२.७२ कुण्डः कललो घटः कुटनिपौ साद रिच्ञरे | (५८५5८)
१२७२ मभिकः कर्पाटुभेरन्तिका पानार्थं कंसः ।
१२७४ द्धिः कम्बिः खजिका च स्यात्तदूदरुहस्तक; | (57०0)
९ २५७५ कृत्ते स्नेहप्र ० उत्‌ सेवारपा ना ङंतुपः | (1.ल्वला) [01)
१२.७६ पौरोगवस्तव्राध्यक्षः आपक्रं पौलिरभ्युपः । (11०11-95८ध)
९२\५७ पूपोऽपएपः पिष्टकः आपूपिकस्तु कान्दविकः | (८०1४८, एवल)
१२५७८ आरनालकसौवीर-ङुस्मापाभिषतानि च । (6"५८)
९२७९ अवन्तिसोमधान्याम्ल-कुञ्ञलानि च काञ्चिके ।
१२८० मासराचासनिसख्लावा मण्डे भक्तसमुद्धवे |
१२८१९ यवागूरुष्णिका राणा विपी तरला च सा|
९१२८२ भिस्सा क्ली भक्तमन्धोऽन्रमोदनोऽच्ी स दीदिविः । (१०९)
१२८२ साद्धिस्सटा द्ग्धिका च दग्धे रषटप्लुष्टोषित ‡; | (एप्रा६ ०८)
१२८४ छपकारा वद्वा आरालिकान्धसिकाश्च ते । (८००
भमरकोष-संग्रटः ५५५

१२८५ सूदा ओदानिका गुणाः खयाद्लवणे च समुद्रे । (३८०-४०])


१२८६ वशिराष्षीवे शीतशिवमणिमन्थे सैन्धवः ।
१२८७ रौमकवसुकविडानि कृतके सोवर्चरम्‌ | (1{२०९].-52]1)
९२८८ मत्खाण्डिका खण्डविकारः सिता तसन्‌ शकरा । 5०६०००१०)
१२८९ मनं निष्टान तुल्य उभे भावितवासिते। ((01101171€111)
९१२९० दुग्धं क्षीरं पयः पीयूपमभिनवे तत्पाके । (10117 519, ०11९0)
९१२९९ स्याच्छृतं क्षीरविकारे कूचिका मृष्टो रसाला ।
९२९२ पयोभवे द्रप्सं दधि घनान्यत्तक्रं उद्‌धित्‌ | (८५१५)
९१२९२ दण्डाहतं काठदोपमरिएमपि मोरसः ।
१२९४ मस्तु मण्डं दधिभवं सवेरसाग्रऽखी मण्डम्‌ । (3०४ दाल्वा)
९२९५ वेशाखमन्थमन्थानमन्थानो मन्थदण्डके | ((ापा;7ह 1०0)
१२९६ कुटरो दण्डनिष्कम्भो मन्थनी गगरी समे । (८1. ?०५६)
१२९४७ गवां सवं गव्यं गोविड्गोमयं शुष्कं करीषः । (0०५वपण&)
१२९८ यज्ञः सवोऽध्वरो यागः सप्ततन्तुमंखः क्रतुः | (5००११०६)
१२९९ आस्थानी त्वाख्थानं सदः वेदिः परिष्कृता भूमिः ।(^ऽऽलण])
१३०० समे स्थण्डिलचत्वरे कुम्बा सुगहना वृतिः | 8००९१ 1010501.6
१२०१ दक्षिणगाईपल्याहवनीया अग्रयद्धेता ।
९२०२ प्रणीतः संस्कृतोऽनरो धुषित्र एेणव्वजनम्‌ | (1)टला-ऽः77 0 71)

९१२०२ लाजाः पुभूम्न्यक्षताः भृष्टयवे तु चिपिटकः! | 71211९0 1८८


१३०४ धाना च प्रृथुकः तथा सदध्याज्यं पृषदाज्यम्‌ ।
१२०५ चरा हव्यं आमिक्षा कव्यं तु पैत्रमनरं यात्‌ ।
९२०६ घतमाज्यं हविः स्पिनेवनीतं नवोद्धृतम्‌ । (१८९, ४८८)
९२०७ तत्त॒ हेयङ्कवीनं यद्धयोगोदोदोदधव घृतम्‌ ।
९२३०८ प्रयग्रोऽभिनवो नव्यो नवीनो नूलनूतनौ । (14०५)
५६ अमरकोष-समग्रहः

९२०९ पुराणे प्रतन प्र पुरातन चिरन्तनाः । (01१)


९२९१० यज्ञोपयुक्तपात्राणि खवादिकं खचःस्ियः । (ऽव्०्^.४८७४०)
९१२१९ तमं यूपाग्रं चषारः कटकः यस्त्वभिमन्त्य ।
९१२९२ क्रतौ हतः पञ्च; सखयादपाकृतः परम्पराकम्‌ । 3०011. 512६716९
१२९२ शमनं प्रोक्षण वधः खाधज्ञशिष्टममरतम्‌ ।
१२९४ भोजनरोपो विघसः सौहित्यं तपेणं त्तिः |
९२९१५ व्रतीनामासर्नं वृषी अजिन चमं एरत्तिः सी । (7व्ल श्ण)
९१२९६ यष्टा यजमानो व्रती स सोमवति दीक्षितः । (5८0८)
१२९७ विधिनेष्टवान्‌ तु यज्वा गीष्पतीष्टया स स्थपतिः |
१२९८ इञ्याशीलो यायजूकः सत्री गृहपतिः समौ ।
१२९९ सर्ववेदाः स येनेटो यागः स्वखदक्षिणः ।
१२२० समज्या परिषद्वोष्टठौ सभा समिति संसदः । (^ऽऽलणए1))
१२२१ सदस्या विधिदर्िनः सभासदः सभास्ताराः ।
१२३२२ सभ्याः सामाजिकाः सृत्वाऽञ््रीध्राधा याजकतिजः |
१२२२ स्युभनैर्वा्याः यज्ञे दीक्षान्तो यज्ञियावभूथः । (8०८;. ७०१)
१२२४ लाभो विहापितं दानमुत्सजेनविसजेने । (60)
१२२५ विश्राणनं वितरणं स्पशेनं प्रतिपादनम्‌ ।
१२२६ प्रादेशं निर्वपणमपवजंनम॑हतिः ।
१२३२७ ल्त दीनं विधुतं सपुज्सितं धूतं उत्सृष्टम्‌ । (५२०००००५)
१२२८ पर्यपणा परीष्टिथान्वेषणा च गवेषणा | (§८९70))
१३२९ निजितेन्दरियग्रामो यतियतिनौ इयातिगः । (५४०८९)
१२२० स्थाण्डिटः स्थाण्डिलक्चायी अनशने पुमान्‌ प्रायः । (725)
१२२१ कष्टं च कृं चाभीरं स्ादरृन्तुदे मम॑स्प्क्‌ । (7199०21 ?२;१)
१२२२ तपस्वी तापसः पारिकाक्षी वाचंयमो मुनिः ।
अमर्कोष-संग्रहः ८७

वरज्याटाय्या पयेटनं चर्या त्वीर्यापथेस्थितिः । (५००००7६)


प्रलोभात्सा मिथ्येयापथकल्पना सख्यात्कुहना । (प्#?०८)०))
याचना्थिनौ याचनके वनीयकमागेगो | (8८६६०)
भिश्च परिवाद्‌ कर्मन्द पाराशयेपि मस्करी ।
रब्धं प्राप विन्नं भावितमासादितम्‌ भूतं च । (0४।०;०९य)
भैक्ष भिक्षाकदस्बकम्‌ कुण्डी त्वस्ली कमण्डलु; | (^15)
स्याद्र भूयं ब्रह्मत्वं ब्रह्मसायुज्यमिलयपि ।
मूर्धाभिषिक्तो राजन्यो व्राहुजः क्षत्रियो विरा | (1९5४२।प)०)
श्षत्रिया सखी क्षत्रियाणी पयोगे खात्त॒ क्षत्रियी |
राजा राट्‌ पाथिवः क्ष्माभृन्मदीभरभूपश्च नृपः | (1178)
मण्डलेश्रेऽभिपिक्ता सा सदिपी भोगिन्योऽन्याः | (पल्ल)
प्रणतादोपसामन्तोऽीश्रश्च चक्रवर्ता | (6.०)
सार्वभौमः स सम्राट्‌ च येनेष्टं राजस्येन ।
वे प्रधानं प्रप्ुखभ्रवेकानुत्तमोत्तमाः | (५ ८()
मुख्यवयेवरेण्याथ प्रवहोऽनवराध्येवत्‌ |
पराध्याग्रप्ा्रहरप्राग्याग्रयाग्रीयमग्रियम्‌ |
अप्राग्रयं दयदीने दे अप्रधानोपसजने | (६९०००००१
असार णदमु शल्यं तु वरिकं तच्छररिंक्तके । (11118111 06811)
राटषत्रिययोगेणे राजकराजन्यके क्रमात्‌ ।
नाय्योक्तौ राजा भटरारको देवः कृताभिषेका | 09०८ (लाप६
सखदेवीतरासु भनी युवराजः कुमारः |
भर्तैदारकः भतंदारिका कुमारी राष्टियः ।
घाद्राजश्यालः जनकोऽघ्वुकः माताम्बा बाठा त॒ ।
वाघ; अत्तिका भगिनी ज्येष्ठा आवुत्तस्तत्पतिः ।
५५८ अमरकोष-सग्रह्‌ः

१२५७ हण्डे हंजे हसाह्यानं नीचां चेटीं सखीं प्रति ।


९१२५८ मारिष आर्थो भावो विद्वान्‌ नटे तु जायाजीवः । (^५०)
१२५९ रोाटी कृख्ाश्ची रैदरषः चारणे ऊुद्ीलवः | ५००८ त १८०४
९१२६० स्रीवेपधारी गणिकांजुका निष्ठा निवेहणम्‌ । ((2195170]19€)
९२६१ आ्यावतः पुण्यभूमिः मध्यं विन्ध्यहिमालयोः | (^79०५०12)
९१२६२ प्रयन्तो म्लेच्छदेशः देदस्तु नीबरज्जनपद्‌ । (1२८7)
९२६२ पिपयश्चोपवतेनं पयेन्तभूः परिसरः ।
९२९४ पूः स्री पुरीनगर्यो वा पत्तनं पुटभेदनम्‌ । (0)
९२६५ स्थानीयं निगमः शाखानगरं स्यात्ततो वहिः । (ऽए)
९१२६६ स्यायो वप्रमस्चियां प्राकारो वरणः सालः | (7९०712०1)
१२६७ रथ्या प्रतोली विशिखा संसरणं घटापथः | (भंप 1०20)
९२६८ उपनिष्करं पद्धतिः पथावतन्येकपदी । (70०1-12211)
९२६९ अयनं वत्ममागाध्वपन्थानः पदवी सृतिः । (१२०२१)
९२७० सरणिश्चातिपन्थाः रषन्थाः सत्पथः खध्वनि |
९१२७९ अपन्थास्त्वपथं विपथः स्यात्कापथः कद्‌ध्वा | (22५ 1०20)
१२७२ दुरध्वो व्यध्वश्च कान्तारं यततद्र्म दुगेभम्‌ । (1025520९)
१२७२ अध्वनीनोऽध्वगोऽध्वन्यः पान्थः पथिक इलयपि । ((त्ण्नाल)
९२७४ शृगाटकं चतुष्पथं दूरङल्योध्वा प्रान्तरम्‌ | ((1055-70००७)
९२७५ गव्यूतिः स्री करोशयुगं नवः किष्डुचतुःशतम्‌ । (400 ०४४७)
९२७६ दूरं स्ाहग्रकृ्टक स्यातां सुदूरे दवीयः । (ताभ)
९२७७ द्विष्टं च दीष त्वायतं समीपे संनिकृष्टम्‌ । (1.08 , 1621)
९२७८ निकटासन-सनीड-सदेशाभ्याशसविधाः ।
९२७९ समयादोपकण्ठान्तिकाभ्यर्णाभ्यग्राप्यभितः।
९२८० नेदीयं च नेदिष्ठं च उभेऽप्यन्तिकातिशये । (1१००५, &५)
अमरकोष-सग्रहः ९५९

राजन्वान्त॒ सराज्ञिदेरो ततोऽन्यत्र राजवान्‌ | \#ला-&०४८०९प


(4 =
१२८१९
१२८२ प्रक्रिया त्वधिकारः खान्नृपासनं भद्रासनम्‌ । (२०४०1 105१२)
१२८२ सिंहासनं हेमं छत्र स्वातपत्रं प्रकीर्णके ।
१२८४ साचामरं भद्रकुम्धः एणंङुम्भः किरीट च |
९१३८५ मुकुटं च भंगार कलकालुका तृपलक्ष्म | (०५५ १०.१५.०१६
९१२८६ वैतालिका वोधराश्चाक्रिका घाण्टिकाथकाः | (2970)
१२३८७ स्य॒र्मागधास्त॒ मगधाः वन्दिनः स्ततिपाटकांः |
१२८८ ईलितशचस्तपणायितपनायित प्रणुताः । (719;5९५)
१२८९. पणितपनितगीर्णबर्णिताभिष्ठतेटिताः ।
१३९० खाम्यभायसुहत्कोपरष्रई गेवलानि च ।
१२९१ राज्यांगानि मन्त्री घीसचिवोऽमातयः महामात्राः । (५,
९१२९२ अन्येऽपि कर्मश्चिवाः अध्यक्षधिदरतो स्मौ । (५५९०५५५८)
१३९२ भौरिकः कनकाध्यक्षुः स्प्याध्यक्स्तु नैष्किकः ।
९१२९४ अन्तःपएरे सौविदद्धः कल्की सौविदः पण्डः । (०.
१३९५ वर्षवरश्च प्रतीहारदारपाख्दशेका; । (12001-+ल्लुल)
१२३९६ दराःस्थद्ाःस्थितौ रकषिवर्भऽनीकस्थः सेवकोऽर्थीं । (4,
१२९७ अनुजीवी परतन्त्रश्च पराधीनः परवत्‌ । (§€1७९71, १८]०८१प८+)
१२९८ नाथवानधीननिद्ायत्ताऽखच्छन्दे गृह्यकः ।
१३९९ भृयदासेरदासेय-दासगोप्यकचेटकाः ।
१५४०० नियोज्यकिंकरपरैष्य-युजिष्यपरिचारकाः ।
९१४०१ पराचितपरिस्कन्द्-परजात-परधिताः ।
१४०२ तन्त्रो ऽपाव्रतः खेरी स्वच्छन्दो निरवग्रहः । (17160601)

९१४०३ स्थायुकरोऽथिकृतो ग्रामे गोपो ग्रामेषु भूरिषु । (४11198८ ०)


१४०४ गोपायित गप्र रित त्रात त्राणमवितम्‌ | (7101661 ८६त्‌)
६० अमरकोष-संग्रहः

९४०५ प्राइविवाकोऽक्षदशेक-कारणिक-परीक्षकाः । ([०९९)


९४०६ चौरेकागारिकस्तेनदस्यु-तस्कर-मोषकाः । (71९1)
९४०७ प्रतिरोधि-परास्कन्दि-पाटचरमलिम्ड्चाः ।
९४०८ चौरिका स्तेन्यचोर्यो च स्तेयं लोप्त्रं तु तद्धने । (८)
९४०९ आगोऽपराधो मन्तु संप्रधारणा समथंनम्‌ । (द170€, ०८।८००६)
९४९० उपधा धर्माचे; परीक्षणं युक्तमौपयिकम्‌ । (7977, ००९५००१९}
९४९९ आज्ञाववादो निर्देश-निदेशौ शासन शिष्टिः । (0ष्पल)
१४१२ निकृतो विप्रकृतोऽधिक्षप्षप्रतिशिप्नौ समौ । (५९1८१)
९४९२ ्रग्रहोपग्रह प्रतियलाः बन्धस्था्नं कारा | (4775६, ¡211
१७१४ उदानबन्धने कीरितसंयतौ दापिते तु | (12:10, 8०९)
१४१५ साधितः दिषाधो द्विगुणो दण्डः करयः कशाः
९१४९६ शिरच्डेयो वध्यः विषेण विष्यः एवं मुसल्यः
१०७१७ निष्कासितोऽवकृष्टो निरस्तस्तु स प्रयादिष्टः | (470)
९४१८ प्रयाख्यातनिराकृतौ अपध्वस्तस्तु धिक्कृतः । (1) 98०२८९९)
१४१९ लिपिकारोऽक्षरचणोऽक्षर चुञ्चुश्च लेखके । (016)
९४२० छिखिताक्षरविन्यासे लिपिरिधिरुमे श्ियौ । (५1४९८)
१४७२१ सयात्घन्देशहरो दूतो दूयं तद्धावकर्ममी | (0८5८०)
१४२२ प्रकृतयः पौराणां श्रेणयः मित्रं सखा सुहृत्‌ । (ऽप ८०, 0:00)
१४२२ वयसः सिग्धः सवया अन्वगन्वक्षमनुग्‌ः | (70110५८)
१४२४ अनुपुवः सहायश्चानुचरोऽभिसरः समाः । (^1१९-१८-००ग)
९४२५ सख्य साप्रपदीनं वहितोयादि भूषां भयम्‌ । (^1122५८)
१४२६ स्पक्षजं चादृष्टं चष्ट खात्तु परचक्रजम्‌ ।
१४२७ रिपौ वैरि सपलारिद्विषदुद्रेषणद हृद; । (€$)
५ (५

१४२८ दद्चपक्लाहतामत्रद स्युशात्रवश्चत्रवः ।


अभमरकोष-समग्रहः

१४२९ अभिषातिपराराति-प्रय्थि-परिषन्थिनः ।
९१४२० प्रभावोत्साहमन्रजाः शक्तयः कोषदण्डजम्‌ ।
१५२९ तेजः प्रभावश्च प्रतापः गूढपुरुषशधारः । (1४2) 5॥#, 9४)
१४२२ चरः स्पशो यथावर्ण प्रणिधिरपसपः ।
१४२२ आप्तः प्रययितः विष्लम्भो विश्वासोऽषटक्षीणः । (107)
१४२४ यद्धितीयाद्यगोचरः रहस्ये रहथोपांशचु । (5९०९)
१४२५ विविक्तविजनच्छन-निःशङाकास्तथा रहः । (5०119)
९१४२६ संकटं ना संबाधः संकीणं कलिलगहने । (८००५१९५)
१०७२७ संकुलाकीर्णे सामदाने मेददण्डावुपायाः ।
१७३८ सामसान्तवं प्राभतप्रदेशनोपायनोपदाः । (^792560 1, & 111}
९४२९ उपग्राद्यमुपहारः सुदायो हरणमन्यत्‌ ।
१७७० भागघेयः करो बलिः घट्रादिदेयं शुस्कोऽखी । (1००९, (011)
१४४९ मेदस्तृपजापः तथा दमश्च साहसो दण्ड; | 77९३1, एण) €
१४७४२ सन्धिर्ना विग्रहो यानमासनं दरेधमाश्रयः |
९४४२ विग्रहेऽच्ियां समरकरहानीकरणाश्च । (37:1८)
१४७७४ युद्रमायोधनं जन्यं प्रधर्न प्रविद्‌ारण॑स्‌ । (५५०)
९४४५ मृधसास्कन्दनं संख्य समीक सांपरायिकम्‌ ।
१४४६ संप्रहाराभिसंपात कटठिसंस्फोटसंयुगाः ।
१४५७७ े
अभ्यामदसमाषात-स ंग्रामाभ्यागमाहवाः ।
१४५८ संयत्समिलयाजिसमिद्युधः स्यः बाहूयुदध | ((105€ 8111)
१४४९ सान्नियुद्ध्‌ प्रसभं तु बरात्कारश्चापि हठः | (एन ४1४)
१४५० याने चक्रिणि युद्धार्थे शताज्गः खन्द्नो रथः । (००)
१५५१ पुष्परथस्त्वसमरे छ्ीवेऽनः शकटश्वास्नी । (०1)
९४५२ रथ्या रथकयव्याऽपि बन्दे रथाङ्गमपस्करः । (12701 2115}
अमरकोष-सग्रहः
६२

१४५५२ रथाज्गमेव चक्र प्रधिर्नेमिः ल्ली वरूथस्त॒ ।


१७५७ रथिः गनी कम्बलिबाह्कं दोला प्र॑खा । (0,५०१।, 11५५)
९४५५५ शिविका याप्ययानं पारंपरं वैनीतकम्‌ ।
१४७५६ तवं याद्राहनं यान युग्यं पत्रं च धोरणम्‌ । (८०१०९,
९४८५७ या रणे त्वभिक्रमः आततायी वधोचयुतः । (^\*५\)
१४५८ यत्तेनयाभिगमनमरौ तदभिषेणनम्‌ । (^7"०८५ ०१३८४)
१४५९ खादासारः प्रसरणम्‌ प्रचक्रं चकिताथकम्‌ ।
१४६० यात्रा त्रज्याऽभिनिर्याणम्‌ प्रस्थानं गमन गमः । (1०५९)
१४६९ आसा त्वासना स्थितिः निर्वेशः श्षिविरं सज्जनम्‌ । (८० ण्ण?)
१४६२ उपरक्षणंद्रैभे स्खलितं छं विषयाश्रयौ । (९८८, °51पण)
१४६२ मर्यादा धारणा अरो रेपो तथा यथोचितात्‌ ।
१४६४ हस्यश्वरथपादातं सेना ख्ाचतुष्टयम्‌ ।
१४६५ आधोरणा हस्तिपका हस्व्यारोहा निषादिनः । (2५121०५)
१४६६ वैर्याष्टिजभवोऽम्बष्टः खदश्रारोहाः सादिनः | (प्गऽ€2)
१४९७ नियन्ता प्राजिता यन्ता सरतः क्षत्ता च सारथिः । 0्पणल्ट
१४६८ सेव्यषटरदक्षिणस्थौ च संज्ञा रथङुटुभ्बिनः |
१४६९ रथिनः स्यंदनारोहाः रथिरा रथिकाश्च ते । ((27-५2110)
१४७० योध-योद्ध-भटाः सेनासंगते सेन्य-सेनिकाः । (ऽगमल)
१४७१ सेनारक्षोऽपि सेनिकः सेनानीवाहिनीपति ¦ | (८0117027 €)
१४७२ सेना वाहिनी पृतना ध्वजिन्यनीकिनी चमूः । (^""))
१४७२ वरूथिनी बरं सेन्यं चक्रं चानीकमल्ियाम्‌ ।
१४७४ परिधिस्थः परिचरः कञ्चुको वारबाणोऽस्ली । (८०००-2)
९१४७५ सारसनमधिकाङ्गः तचत्रं वमे दंशनम्‌ ।
१४७६ उरश्छदे कङूट-जगरकवचाः शिरस्‌ ।
अमरकोष-संग्रहः २
न}

९७७५७ शीषेण्यश्लीषेफे प्रतिमुक्ताय॒क्तो पिनद्ध | 71९६, धा 710 ८व्‌


९७७८ सनद्धापिनद्भवर्मितसम्जनव्धूढकङ्कयाः ।
१४७९ दंरिताश् समे गणे वर्मभृतां कावचिकम्‌ ।
९७८० पदातिपत्ति पदग पादातिक पदाजयः । (7००।११०१)
१४८१ पटथ पदिकश्च पत्तिसंहतः श्यात्पादातम्‌ । (11५70)
१४८२ पुरोगामरेसरग्र्टाग्रतःसरयुरःसराः । (1.८0)
१४८२ पुरोगमः पुरोगामी मन्दगामी त॒ मन्थरः ।
१७८० तरस्वी त्वरितो वेगी प्रजवी जवनो जवः । (7351 ५21९८ )

९५४८५ जघाङोऽतिजवायन्तीनौ जंघाकर-जांधिको ।


९४८९ अहितान्‌ प्रयभीतस्य रणे यानमभिक्रमः । (^&&'८51०)
९७८५७ सोऽभ्यमित्योऽम्यमिग्रीयोऽभ्यमित्रीणः शूरो वीरः ।
१७८८ विक्रान्त सांयुगीनः कर्मगाम्यनुकामीनः ।
९७८९ परस्परमदहंकारे स्वहमहमिका च सा । (द्ःर्नाग))
१४९.० अदहपूरवमहपूर्वमित्यहपूरविका सियाम्‌ ।
१४९ ९ आहोपुरुपिका दर्पाः खात्संमावनात्मनि । (8०2
5)
१४९२ सहोबलरदैर्याणि शक्तिः खाम्‌ शुष्मं पराक्रमः । (४
गण्णः)
१४९३ वीरपाणं ह यत्पानं वृत्ते भाविनि वा रणे ।
१४९४ प्रहरणे शचाच्चायुधानि वा ना धलुशवापे । (५९०?००, १०५)
९४९.५ धन्व हरासन कोदण्डकापुकं इष्वारश्च ।
१४९६ गुऽख मौर्वीं ज्या रििजिनी घातत्रे गोधाले । ०५-भग४
१४९७ धन्वी धनुष्मान्‌ धानुष्को निषण्यस्ली धडुधरः । (^"०६)
९४९८ पृषत्क बाण विशिखा अनजिह्यग खगाश्चगाः । (^ ०५)
९१४९९ कलबमार्गण-दराः पत्री रोप इषद्रयोः ।
-119८५
१४५०० ्रकष्वेडनास्तु नाराचाः विषाक्त दिग्धटिप्रकौ | 201501
६४ अमरकोष-संग्रहः

१५० १ पक्षो वाजक्िपत्तरे निरस्तः प्रहिते बाणे । (7+५12"8९0)


९५०२ नुत्तनुननास्तनिष्ट्यूताविद्धक्षिपैरिताः समाः ।
१५०२ तृण्यां तूणोपासङ्ग तूणीर निषगा इषुधिः । (0पमण्न)
१५०४ श॒राभ्यास् उपासनं रक्ष्य त॒ लक्षं श्रव्यम्‌ । (7०78०)
१५०५ कृतहस्तः सप्रयोगविशिखः कृतपुहवत्‌ । (ए)
१५०६ काण्डवान्‌ काण्डीरः निखिशथन्द्रहासा सा रिष्टिः ।
१५५०७ कौक्षेयको मण्डलाग्रः करवालः कृपाणवत्‌ । (5५०१)
१५०८ त्सरुः खद्धादिमुष्टौ खान्मेखला तन्निबन्धनम्‌ । (प००१ा८)
१५०९ स्याननैसिशिकोऽसिहेतिः फलकोऽछी फलं चमं । (571५)
१५१० संग्राहो म॒ष्टिरख यः साची फलकपाणिः |
१५१९ सादीली करवालिका परिषः परिधातिनः । (८०९)
१५१२ कोणे च चिः पास्यश्रिकोटयः द्वयोः कुटारः । (08९, २०४८)
१५१२ खधितिः परश्चः परश्रधोऽस्मिन्‌ पारश्चधिकः ।
१५१४ सयाच्छल्ली चासिपुत्री च हुरिका चासिधेनुका । (01८)
१५१५ शखमार्जाऽसिधावकः शाणस्त॒ निकपषस्तथा ।
१५१६ निशित-क्ष्णुत-श्ातानि तेजिते शल्य तु शकुः | (8187८0९)
१५९४७ सयातप्रासस्तु इन्तः समौ प्रासिककौन्तिको तथा । (ऽ ल्य)
१५१८ शसखराजीवे काण्डपृष्टायुधोयायुधिकाः समाः | (ल व्लगक)
१५९९ ध्वजः केतनं पताका पताकी वेजयन्तिकः | ("7 6)
१५२० व्यूहस्तु बरविन्यासः प्रयासारौ व्यूहपाष्णिः | (०8)
१५२१ सैन्यपृष्ठे प्रतिग्रहः संसक्तमभ्यवहितम्‌ । (1;1.-5त)
१५२२ अपदान्तर अनूलकं घनं निरन्तरं सारम्‌ ।
१५२३ सयात्लिग्धेऽपि च मेदुरं विररं तद्विपयेयः ।
१५२४ पत्तिस्तु एकेभैकरथा ्यश्वा पञ्चपदातिका । ($ पा 165)
अपमरकोष-सग्रहः ६५

१५२५ पर्यरौखिगणेः सर्वैः क्रमादाख्या यथोत्तरम्‌ ।


१५२६ सेनामुखं गुल्मगणौ वाहिनी पृतना चमूः ।
१५२७ अनीकिनी दज्ञानीकिन्यक्षौहिणी सर्वेधे ।
१५२८ सर्वाभिसारः सर्वसन्ाहोऽवमदं; पीडनम्‌ ।
१५२९. अभ्पवस्कन्दनं त्वभ्यासादनं विपदापदौ । (5०५०)
१५२० विपस्यां संपत्संपत्तिः श्रीरेक्ष्मीः जेयो जेतव्यम्‌ । (7"09९')
१५२९ जय्यस्तु जेत॑श्चक्ये जेता जिष्णुर्जवरजित्वरौ ।
९५२२ अजन्य स्युरुत्पातोपसगापरक्तोपणवाः 0016101)

११९२२ आपन्नापल्प्राप्रः विहस्तव्साकखाकुखव्यस्तः । (ए९५५1वलातव्‌)


१५२४ विङ्कवाप्रगुणौ समुचिज्ञपिञ्नलो त्वदयं ।
१५२५ धीरे कातरसखस्तो भीरूभीस्क-भाटकाः । ((०५१प्‌)
१५२६ विलक्षो विस्मयानिवितः कान्दिशीको भयद्रुतः । (718(५८)
१५५२७ ्द्रावोद्रावसंद्रावसंदावा विद्रवो द्रवः | (71८८8)
१५२८ अपक्रमोऽपयानं च समयादनिवर्तिनः । (ऽप्न वाण)
१५२९ ते संशप्रकाः विजयो जयन जयः भङ्गस्तु । (४१५०१, १८।८१८)
१५४० पराजयः पराजित-पराभूतौ परिभूते । (४९११०१८५)
१५४ ९ सयाच्चवगणितमवमतावमानिते च | (प्रणा) ५८८१)
१५४२ अव्ञातो वैरछद्धि्नियांतनं प्रतीकारः । (९५८४९)
९१५५२ सा वीरार॑सनं युद्ध शूमियांऽतिभयगप्रदा ।
१५४४ प्रमापणं निवर्हणं निकारणं विज्ञारणम्‌ । (51211९11)
१५४५ प्रवासनं परासनं निषूदन निहिसनम्‌ ।
९१५५६ निर्वासनं संज्ञपनं निग्रन्थ नमपासनम्‌ ।
१५७५७ निस्तदहेणं निहननं क्षणन पारेवजनम्‌ ।
१५७८ निर्वापणं विन्सनं मारणं प्रतिघातनम्‌ ।
|
द अमरकोष-सग्रहः

९१५४९ उद्रासनप्रमथनक्रथनोज्जासनानि च ।
१५५० आलम्भपिञ्ञ-विश्चरधातोन्माथवधा अपि ।
१५५१ स्ात्ञ्ता कालधर्मो दिष्टान्तः प्रलयोऽलयः । (८2)
१५५२ अन्तो नाशो द्रयो्दयर्मरणं निधनमस्षियाम्‌ ।
१५५२ कबन्धोऽस्ी क्रियायुक्तमपमूधकलठेवरम्‌ ।
१५५४ कुणपः शवं रमशानं पितवरनं चिता चिलया | पाला ०] इ70पाते
१५५५ चितिश्वाखियां याच्च जीवातुर्ना जीवनोपधम्‌ |
१५५६ आयुर्जीवितकार एवं जीवश्चासधारणम्‌ ।
१५५७ आजीवो जीविका वार्ता वृत्ति्वतेन-जीवने | (1.५८]1१००५)
९१५५८ कृषिः स्री पाश्पास्यं वाणिज्यं कुसीद व्त्तयः |
१५५९ सेवा श्ववत्तिरनृतं कृ पिरुूक्षशिकं ऋतम्‌ ।
१५६० कृषीवलः क्षेत्राजीवः कृपिकश्च स कषक; | (74176)
१५६९ गोपे गोपालगोसंरव्य गोधुगाभीरव्वाः | (०५16१)
१५६२ गवीश्वरे गोमान्गोमी ख्याद्धोमहिष्यादिकम्‌ ।
१५६२ पादबन्धनं गोकुरं तु गोधनं गवां व्रजे ।
१५६४ गोष्ठं गोस्थानकं तत्त गोष्टी भूतपूवेकम्‌ | (12८९1100 512116८}
१५६५ समौ शिवककीरलको पश्रञ्जुस्तु दामनी । (६००।८॥ {०51}
१५६६ धेनुष्या बन्धकेस्थिता सयाज्जाबालो द्यजाजीवः |71८4९९५ ००५
१५६७ वाणिज्यं वणिज्या परिदानं च परीवदेश्च | (96)
१५६८ नेमेयनिमयो वाणिजो वैदेहको नैगमः | (1५८0127)
१५६९ साथंवाहश्च वणिक्‌ पण्याजीवस्त्वापणिकः | (3107-८)
१५५७० सेव क्रयविक्रयिकः समौ विपणविक्रयौ । (5०1०)
१५.७९१ आपणस्तु निषद्यायां विपणि; पण्यवीथिका | (7०229?)
१५७२ मूरुधनं नीवी परिपणः न्यासस्त्ुपनिधिः । (८971191)
अपमरकोप-सग्रहः ६७

१५७२ प्रतिदान तदपूर्ण संविदागूः प्रतिज्ञानम्‌ | (^\81८ा1€1711)

१५७४ नियमाश्रवसंश्रवा अंगीकारोऽभ्युपगमः ।


१५७५ प्रतिश्रवश्च समाधिः सलाकरृतिः सलयापनम््‌ | 11211051 ग्0णा९)
१५.७६ सत्यकारः सलयानृत वणिग्भावः ऊरीकृते । (^ 6८८]2 2110८)
१५७७ उररीकृतं संगीणं-विदित-पमाहिताथ ।
१५७८ विक्रेता खाद्टिक्रयिकः क्रायिकक्रयिकौ समो । (5८, प्ल)
१५७९ करये प्रसारितं क्रस्यम्‌ क्रये क्रेतव्यं विक्रेयम्‌ | (ऽ] ८० ०४।)
१५८० पणितव्यं च एण्यं मूल्यं वल्लश्च अवक्रयः | (11८८)
१५५८१ यौतवं द्रवयं पाय्यं माने तुखाङ्किप्रस्थेः । (24८25५८)
१५८२ तुला स्ियां पलशतं भारं खाद्विश्तितुखाः । (५५६. ०२1०१८८)
९१५८२ आचितो दरभाराः स्युः ्ाकटो भार आचितः । (€०1-1०2५)
९१५४८ परिमाणे स्युरा्टक द्रोण इव प्रस्थाचाः ।
१५८८५ पादस्तुरीयो भागः खादंञ्चभागौ तु वण्टके | (0८)
१५८६ द्रव्य वित्तं खार्पतेय रिक्थसरक्थ धन वन्तु | (\४८त](]))
१५८५७ हिरण्यं द्रविणं द्युञ्चमर्थ-र-विथवा अपि |
१५८८ अर्थप्रयोगस्त्‌ द्वारः खादृणं पयुद चनम्‌ । (>°)
१५८९ उत्तमार्णाधमणों ह। प्रयोक्त-प्राहका क्रमात्‌ । (1.८0)
१५९० समे गुणिताहते च निदिग्धोपचितेयपि । (णपा ९प)
१५९१ याचिताऽयाचितयोयेथासंसख्यं मरतामते ।
१५९२ याच्जयाघ्रं याचितकं निमयादापमियकम्‌ ।
१५९३ कुसीदिको वाधपिको बृद्धयाजीवश्च वाधुपिः । (ऽणल)
१५९४ उरव्या उस्ना अर्या वेश्या भूमिस्परशा विश्चः । (४०;)०)
१५९५ वियामर्या खादर्याणी तु भार्या ह्ययजन्मनः |
१५५९६ तथा शुद्र भायां श्द्रख खात्‌ शद्रा जातिमप्रे |
१५९७ आभीरी त॒ महाशद्री जाति-पयोगयोः समा ।
६८ अपम्रकोष-सय्रहः

१५९८ शरद्राश्चावरवणीश वृषलाश्च जघन्यजाः | (६५१)


१५९९ संकीर्णवर्ण चण्डालो ब्राह्मण्यां वरृपलजातः | (1१८५१५८)
१६०० विट्ूजातस्तघ्ां वेदेहकः घ्रूतस्तथा क्षत्रियात्‌ ।
१६०१ मागधः कषत्रियाविश्चोः अम्ब्टोऽयाद्विजन्मनोः ।
१६०२ मादिष्योऽर्या-कषत्रिययोः क्षत्तायशिद्रयोः इतः ।
१६०२ शुद्राक्षत्रिययोश्यः शद्राविज्ोस्तु करणः ।
१६०४ रथकारस्तु मादिष्यात्करण्यां यश्य संभवः |
१६०५ विवर्ण; पामरो नीचः प्राकृतश्च परथग्जनः | (0०0५।८७।८९)
१६०६ निदीनोऽपस्दो जार्मः ्षु्टकशेतरथ सः ।
१६०४७ निकृषट-प्तिकृटावेरेफयाप्यावमाधमाः ।
९१६०८ कुप्‌य-ङस्सितावद्यखेरगर्याणक्रः खमाः |
१६०९ चण्डालप्रुवमातगदि वाकीर्तिजनगमाः । (110८5)
१६९० निप॑दश्चपचौ अन्तेवासिचाण्डारप्कसाः ।
९१६९९ भेदाः किरातशवरपुलिन्दा स्लेच्छजातयः | (\००त१२)))
१६९२ पकणः शवरालयः सखाद्घोपस्त्वाभीरपट्ि; । (२८७११०१०८)
९१६९२ व्याधो मृगवधाजीवो मृगयुदधेष्धकोऽपि स्‌: | (णाल)
१६९१४ आच्छोदनं म्रगव्यं खादाखेटो सगया सियाम्‌ । : 7019६)
१६९५ जीवान्तकः शाकुनिको हौ वागुरिक-जारिकौ । (70/1८
१६९६६ येतंिकः कौटिकशच मांसिकथ समं त्रयम्‌ |
१६१७ वीर्तसस्तूपकरणं बन्धने मृगपक्षिणाम्‌ | (ऽ००"८)
९१६९८ उन्माथः कूटयन्त्ं याद्रागुरा सगघन्धनी ।
१६१९ कैवर्ते दाश-धीवरोौ बडिशं मर्खवेधनम्‌ । (नभल०२४)
१६२० आनायः पुंसि जालम्‌ सखाच्छणसूत्र पवित्रकम्‌ । (५)
९१६२१ मत्सयाधानी त॒ कुवेणी शौण्डिको सण्डहारकः । ए}70-925\ल।)
९१६२२ शण्डापानं मदस्थान तदेव गञ्जा इयपि । (1०+"2)
अमर कोष-संग्रटः ६९

मदमे मदिरा सुरा च हरिप्रिया इडा । (1 (1101)


पारेखद्ररणारमजा गन्ोत्तमा परिखता ।
परसनेरा कादम्बरी मध्वासको माघवकः | (11५१८)-४८५४)
मधु माध्वीकं भेरेयमासवः सीषुर्मेदकः |
जगल भक्षणऽवदशोऽभिपवः संघानम्‌ । (501101112)6)
९)(^
2 सन्न रीण सुतं खत दछारोत्तरं सुरामण्डः| (४८५)
८)6)
~>)
602)
०/9
„ष्व अपानं पानगोष्टिक सघ्रुबा मधुत्रमाः | (८०8)
सपि
60९0
| अद्ुवषणं सरकः च { पृनेपात्रभ्‌ |
घतोऽस्ी सेतयमक्चयती देदचास्त॒ प्रणाः | (८701)
(^
(10९)

पा्चकायाक्षाः पभृद पटहः यसातद्वः | (§।२।८)


लम्रकाः सभिद्ध ब्रुठकरकाः ब्रृतद्कदूशृत्त; | (7221, 24711178)
कितवोऽक्षधूतऽक्षदेवी श्ारिफलेऽष्टापदम्‌ | य पा०]ल)
शाश्निये परिणायः प्राणिद्यूतं समाहुपः । 2९11172 ० 90770219
स्तं ध्वस्तं अष्टं स्छन पञ च गदत चवुतम्‌ । (110८)
अद्र स्रं किनं तिमितं स्तिभिदप्रुलपुत्तम्‌ । (५०)
प्रथितं संदितं ४ दृटस्विस्तु सहतः । (11९ 1011९}
सयपासत उवाहतः खद्‌ तमस्तु भरः | (०८५5१४८६)
अतिवेलभ्र्रायर्थातिमाप्रोद्रादनिभेरम्‌ ।
तीत्रेकान्तनितान्वानि गादवबादब्टानि च॑ ।
्षेपिष्ट-क्षोदिषट्एटवरिषटस्थ विष्ट-वटिष्ठाः । (५"१५।१(५८ ७[)
क्षव्रक्द्रन प्सतप्रथुपीच र्वक्‌ । (01८, & ५.)
साधिष्द्राधिष्टस्फषटगरिषटहसिश््रन्दि्टाः ।
स्युवाटायतवहु गुर्वामनब्न्दारके ।
न्दे ग्रामता जनता सहायता माचुष्यकम्‌ । (८०।५५५०)
ओपगवकं माणव्यं वाडव्यं ब्राह्मण्यं तथा ¦
अप्ररकोष-संग्रहः

हस्या धुम्या पाश्या गल्या खल्या त॒ खरनीलयपि ।


दे पशयकानां पृष्टानां पारव पृष्टयमनुक्रमात्‌ ।
आपूपिकं श्ाष्छृुलिकमिदयादाः स्युरचेतसाम्‌ ।
अहहेयद्धुते खेदे हश विषादशगार्तिष | (111{€ा]€८11015)
खेदानुकम्पासंतोषविसखमयामन्त्रणे बत ।
हन्त हर्षऽनुकम्पायां बाक्यारम्भविवादयोः ।
अमा सहसमीपे च आराद्दूरसमीपयोः | (11019, १८९०-1)
समीपोभयतः शीघ्साकस्याभिमृशेऽमितः ।
समन्ततस्त॒ परितः सवेतो विष्वमगिलयपि । (^^]1-2100111)
सामि त्वर्धं जुगुप्सिते व्यथके तु वृथा मुधा ।
मृषा मिथ्या च वितथे मिथोऽन्योन्यं रहसखपि |
नाम प्राकार्यसंभाव्य-कोधोपगम-कुत्सने ।
तूष्णीमर्थे सखे जोषं प्राध्वमानुक्कद्याथकम्‌ | (12५01118019)
नयु च सखाद्विरोधोक्ते प्रसह्य तु हठाथकम्‌ ।
प्रभ्ावधारणाज्ञाचुनयामन््रणे ननु ।
पृथग्विनान्तरेणर्ते दिस्डनाना च वजेने ।
साधं तु साकं सत्रा सम॑ सह जातु कदाचित्‌ । (01, ०००९)
मुहः पुनः पुनः शश्वदभीक्ष्णमसकृत्समाः |
चिराय चिररात्राय चिरखाद्याधिराथकाः । (कण 1०४)
उषा रात्रेरवसाने प्रगे च प्रातः प्रभाते | (^। ००५५)
एतरहिं संप्रतीदानीमधुना स्रत तथा । (०५)
किचिदीषन्मनागर्थे क्षेमपुण्यादौ खस्याश्ची; । (1.41116)
म॑ङ्गलानन्तरारम्भ प्रभ्षकात्स्न्यष्वथो अथ ।
उपरमारलयवरतिविरतयो विरामः । (२८५०४)
व्रह्यापेणमरसित्वयं कतिः
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