लोक मानस को पावन बनाने के लिए श्रीमद रामचरित मानस भागीरथी की भांति है। यह धर्म और अध्यात्म का ऐसा कल - कल निनाद है, जिसमें मज्जन करके जिज्ञासु, साधक, मुमुक्ष सब परम गति को प्राप्त करते हैं। भक्ति और ज्ञान की अद्भुत युति के दर्शन इस मंगल कारी, जीवनोपयोगी ग्रन्थ में प्राप्त होते हैं। समाज के संक्रमण काल में गोस्वामी जी ने राष्ट्र गौरव को पुनर्स्थापित करने के लिए, भारत की सोई मनीषा को जगाने के लिए इस सुग्राह्य ग्रन्थ की रचना की।
साधकों के कल्याणार्थ श्रीमदरामचरितमानस के अरण्य कांड पर प्रवचन हुआ। अरण्य कांड का एक वैशिष्ट्य है,इसमें मोह नाश के साथ-साथ ज्ञान की अजस्र धारा का प्रवाह है। यदि जयंत का मोह (अज्ञान) नाश है तो लक्ष्मण को ज्ञान का उपदेश है। इसमें भगवान का स्वयं चलकर संतों से भेंट करना, आह्लादकारी है। चित्रकूट से आगे बढ़ने पर अत्रि ऋषि से भेंट फिर शरभंग ऋषि, फिर सुतीक्ष्ण ऋषि और अगस्त ऋषि से भगवान् भेंट करते हैं। भाव यह है कि यदि भक्ति और मुक्ति दोनों चाहिए तो संतों के पास जाना चाहिए।
लोक मानस को पावन बनाने के लिए श्रीमद रामचरित मानस भागीरथी की भांति है। यह धर्म और अध्यात्म का ऐसा कल - कल निनाद है, जिसमें मज्जन करके जिज्ञासु, साधक, मुमुक्ष सब परम गति को प्राप्त करते हैं। भक्ति और ज्ञान की अद्भुत युति के दर्शन इस मंगल कारी, जीवनोपयोगी ग्रन्थ में प्राप्त होते हैं। समाज के संक्रमण काल में गोस्वामी जी ने राष्ट्र गौरव को पुनर्स्थापित करने के लिए, भारत की सोई मनीषा को जगाने के लिए इस सुग्राह्य ग्रन्थ की रचना की।
साधकों के कल्याणार्थ श्रीमदरामचरितमानस के अरण्य कांड पर प्रवचन हुआ। अरण्य कांड का एक वैशिष्ट्य है,इसमें मोह नाश के साथ-साथ ज्ञान की अजस्र धारा का प्रवाह है। यदि जयंत का मोह (अज्ञान) नाश है तो लक्ष्मण को ज्ञान का उपदेश है। इसमें भगवान का स्वयं चलकर संतों से भेंट करना, आह्लादकारी है। चित्रकूट से आगे बढ़ने पर अत्रि ऋषि से भेंट फिर शरभंग ऋषि, फिर सुतीक्ष्ण ऋषि और अगस्त ऋषि से भगवान् भेंट करते हैं। भाव यह है कि यदि भक्ति और मुक्ति दोनों चाहिए तो संतों के पास जाना चाहिए।
लोक मानस को पावन बनाने के लिए श्रीमद रामचरित मानस भागीरथी की भांति है। यह धर्म और अध्यात्म का ऐसा कल - कल निनाद है, जिसमें मज्जन करके जिज्ञासु, साधक, मुमुक्ष सब परम गति को प्राप्त करते हैं। भक्ति और ज्ञान की अद्भुत युति के दर्शन इस मंगल कारी, जीवनोपयोगी ग्रन्थ में प्राप्त होते हैं। समाज के संक्रमण काल में गोस्वामी जी ने राष्ट्र गौरव को पुनर्स्थापित करने के लिए, भारत की सोई मनीषा को जगाने के लिए इस सुग्राह्य ग्रन्थ की रचना की।
साधकों के कल्याणार्थ श्रीमदरामचरितमानस के अरण्य कांड पर प्रवचन हुआ। अरण्य कांड का एक वैशिष्ट्य है,इसमें मोह नाश के साथ-साथ ज्ञान की अजस्र धारा का प्रवाह है। यदि जयंत का मोह (अज्ञान) नाश है तो लक्ष्मण को ज्ञान का उपदेश है। इसमें भगवान का स्वयं चलकर संतों से भेंट करना, आह्लादकारी है। चित्रकूट से आगे बढ़ने पर अत्रि ऋषि से भेंट फिर शरभंग ऋषि, फिर सुतीक्ष्ण ऋषि और अगस्त ऋषि से भगवान् भेंट करते हैं। भाव यह है कि यदि भक्ति और मुक्ति दोनों चाहिए तो संतों के पास जाना चाहिए।