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भामती

वे दाां त में एक कथा आती है भामती की उसके त्याग की

भामती की कहानी भारतीय नारी की गौरव गाथा है , आऔ आज कथा के पररपेक्ष्य में हम उस नारी की
तपस्या को नमन भी करें

वे दान्त दर्शन (ब्रह्मसू त्र) आध्यात्म ववद्या का अत्यन्त सरस ववषय है पर उतना ही क्लिष्ट भी।पांवित वाचस्पवत
वमश्र ने उसके भाष्य का सां कल्प वकया।

उन्ीां वदनोां उनका वववाहसां स्कार भी हुआ जब उनके मक्लिष्क में इस भाष्य की कल्पना चल रही थी। इधर
घर में धमशपत्नी ने प्रवे र् वकया उधर पांवित जी ने भाष्य प्रारम्भ वकया। ववषय है ही ऐसा वक उसकी गहराइश
में वजतना िूबोां उतनी ही अवधक गहराइश वदखाइश दे ती चली जाये । उसके वचन्तन मनन और उसके भाष्य मेंंां
वाचस्पवत वमश्र को प्राय: 20 वषश लगे ।

वजस वदन ग्रन्थ् पूरा हुआ वो वचन्तन से बाहर आये र्ाम का समय हल्का अांधेरा हो रहा था वाचस्पवत की
तां द्रा टू टी दे खा एक हाथ आया और हल्के से वदया जला वदया

तु रांत उन्ें स्मरण आया-वे वववाह कर धमशपत्नी को घर लाये थे वकन्तु अपनी सावहत्य साधना में वे उन्ें
वबल्कुल ही भू ल गये । अपराध बोध बाचस्पवत ने सीधा भामती का हाथ पकडा और इतने वदनोां तक ववस्मृत
वकए जाने का पश्चाताप करते हुए क्षमायाचना की। पवत का स्नेह पाकर भामती भाव-ववभोर हो गइश । पांवित
जी ने पूछा-मैंने इतने वदनोां तक आपका कोइश ध्यान नही ां वदया विर भी वदनचयाश में कोइश व्यवतरे क नही ां
आया जीवनवनवाश ह की सारी व्यवस्था कैसे हुइश ?

भामती ने बताया-स्वामी! हम जांगल से मूूँज काट लाते थे। उसकी रस्सी बट कर बाजार में बे च आते थे।
इससे इतनी आजीववका वमल जाती थी वक हम दोनोां का जीवन वनवाश ह भली भाूँ वत हो जाता था। इसी तरह
हम दोनोां के भोजन ते ल, ले खन सामग्री आवद की सभी आवश्यक व्यवस्थायें होती चलीां आइश । आप इस दे र्,
जावत, धमश और सां स्कृवत के वलए ब्रह्मसू त्र के भाष्य जैसा कविन तप कर रहे थे उसमें मेरा आपकी सहधवमशणी
का भी तो योगदान आवश्यक था? इस अभू तपूवश कर्त्शव्य परायणता से ववभोर वाचस्पवत वमश्र ने अपना ग्रन्थ
उिाया और उसके ऊपर ‘‘भामती’’ वलखकर गन्थश का नामकरण वकया और बोले भामवत आज से तू अमर हो
गयी जब तक लोग इस ग्रन्थ का अध्यन करें गें तु म्हारा समशपण त्याग सादर याद करें गें । वाचस्पवत वमश्र की
अपेक्षा अपने नामके कारण ‘‘भामती’’ ब्रह्मसूत्र की आज कही ां अवधक ख्यावत है ।

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