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Sun Dark and
Sun Dark and
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जाम्बवान के सुहावने वचन सुनकि हनुमानजी को अपने मन में वे वचन बहुत अच्छे लिे॥
िाह दे खना॥
जय नसयािाम जय जय नसयािाम
जबतक मै सीताजीको दे खकि ल ट न आऊुँ, क्ोंनक कायय नसद्ध होने पि मन को बड़ा हषय
होिा॥
ऐसे कह, सबको नमस्काि किके, िामचन्द्रजी का ह्रदय में ध्यान धिकि, प्रसन्न होकि हनुमानजी
नफि वािं वाि िामचन्द्रजी का स्मिण किके, बड़े पिाक्रम के साथ हनुमानजी ने िजयना की॥
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जय नसयािाम जय जय नसयािाम
नजस पहाड़ पि हनुमानजी ने पाुँ व िखे थे , वह पहाड़ तुिंत पाताल के अन्दि चला िया॥
सोिठा – Sunderkand
समुद्रके वचन कानो में पड़तेही मैनाक पवयत वहां से तुिंत उठा औि हनुमानजीके पास आकि
दोहा – Sunderkand
हनुमानजी ने उसको अपने हाथसे छूकि नफि उसको प्रणाम नकया, औि कहा की, िामचन्द्रजीका
सुंदरकाण्ड – 01
आज तो मुझको दे वताओं ने यह अच्छा आहाि नदया| यह बात सुन हुँ स कि, हनुमानजी बोले॥
जब उसने नकसी उपायसे उनको जाने नहीं नदया, तब हनुमानजी ने कहा नक तू क्ों दे िी
सुिसाने अपना मुंह एक योजनभिमें फैलाया| हनुमानजी ने अपना शिीि दो योजन नवस्तािवाला
नकया॥
सुिसा ने अपना मुुँह सोलह (१६) योजनमें फैलाया| हनुमानजीने अपना शिीि तुिंत बिीस
सुिसा ने जैसा जैसा मुंह फैलाया, हनुमानजीने वैसेही अपना स्वरुप उससे दु िना नदखाया॥
जब सुिसा ने अपना मुंह स योजन (चाि स कोस का) में फैलाया, तब हनुमानजी तुिंत बहुत
उसके मुंहमें पैठ कि (घुसकि) झट बाहि चले आए| नफि सुिसा से नवदा मां ि कि
उस वक़्त सुिसा ने हनुमानजी से कहा की हे हनुमान! दे वताओंने मुझको नजसके नलए भेजा
दोहा – Sunderkand
तुम बल औि बुन्हद्ध के भण्डाि हो, सो श्रीिामचंद्रजी के सब कायय नसद्ध किोिे| ऐसे आशीवाय द
च पाई – सुंदिकाण्ड
समुद्र के अन्दि एक िाक्षस िहता था| सो वह माया किके आकाशचािी पक्षी औि जंतुओको
उसकी पिछाई को जल में पकड़ लेता, नजससे वह नजव जंतु नफि वहा से सिक नहीं सकता|
उसने वही कपट हनुमानसे नकया| हनुमान ने उसका वह छल तु िंत पहचान नलया॥
जय नसयािाम जय जय नसयािाम
धीि बुन्हद्धवाले पवनपुत्र वीि हनुमानजी उसे मािकि समुद्र के पाि उति िए॥
वहा जाकि हनुमानजी वन की शोभा दे खते है नक भ्रमि मकिं द के लोभसे िुुँजाहट कि िहे
है ॥
जय नसयािाम जय जय नसयािाम
वहा सामने हनुमान एक बड़ा नवशाल पवयत दे खकि ननभयय होकि उस पहाड़पि कूदकि चढ
बैठे॥
जय नसयािाम जय जय नसयािाम
पवयत पि चढकि हनुमानजी ने लंका को दे खा, तो वह ऐसी बड़ी दु ियम है की नजसके नवषय में
िंका का र्र्वन
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छं द – Sunderkand Lyrics
उस नििीका ित्ों से जड़ा हुआ सुवणय का कोट अनतव सुन्दि बना हुआ है | च हटे , दु काने व
जहा हाथी, घोड़े , खच्चि, पैदल व िथोकी निनती कोई नहीं कि सकता| औि जहा महाबली
अद् भुत रपवाले िाक्षसोके सेनाके झुंड इतने है की नजसका वणयन नकया नहीं जा सकता॥
जय नसयािाम जय जय नसयािाम
जहा वन, बाग़, बािीचे, बावनडया, तालाब, कुएुँ , बावनलया शोभायमान हो िही है | जहा मनुष्यकन्या
कही पवयत के समान बड़े नवशाल दे हवाले महाबनलष्ट मल्ल िजयना किते है औि अनेक अखाड़ों
में अनेक प्रकािसे नभड िहे है औि एक एकको आपस में पटक पटक कि िजयना कि िहे
है ॥
जय नसयािाम जय जय नसयािाम
जहा कही हाथीनकेसे मदोमि औि नवकट शिीि वाले किोडो भट चािो तिफसे नििकी िक्षा
किते है औि कही वे िाक्षस लोि भैंसे, मनुष्य, ि , िधे, बकिे औि पक्षीयोंको खा िहे है ॥
िाक्षस लोिो का आचिण बहुत बुिा है | इसीनलए तुलसीदासजी कहते है नक मैंने इनकी कथा
बहुत संक्षेपसे कही है | चाहो ये महादु ष्ट है , पिन्तु िामचन्द्रजीके बानरप पनवत्र तीथयनदीके अन्दि
अपना शािीि त्यािकि िनत अथाय त मोक्षको प्राप्त होंिे इसमें कुछभी फकय नहीं है ॥
जय नसयािाम जय जय नसयािाम
दोहा – Sunderkand
च पाई – सुंदिकाण्ड
हनुमानजी मच्छि के समान, छोटा-सा रप धािण कि, प्रभु श्री िामचन्द्रजी के नाम का सुनमिन
तूने मेिा भेद नहीं जाना? जहाुँ तक चोि हैं , वे सब मेिे आहाि हैं ।
हनुमानजी से कहती है ॥
हे तात! मेिे बड़े पुण्य हैं , जो मैं श्री िामजी के दू त को अपनी आुँ खों से दे ख पाई।
जय नसयािाम जय जय नसयािाम
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दोहा – Sunderkand
नमलकि उस सुख के बिाबि नहीं हो सकते , जो क्षण मात्र के सत्संि से होता है ॥4॥
सुंदिकाण्ड – 05 (लंका में प्रवेश)
च पाई – सुंदिकाण्ड
अयोध्यापुिी के िाजा िघुनाथ को हृदय में िखे हुए निि में प्रवेश किके सब काम कीनजए।
उसके नलए नवष अमृत हो जाता है , शत्रु नमत्रता किने लिते हैं , समुद्र िाय के खुि के बिाबि
औि हे िरुड़! सुमेरु पवयत उसके नलए िज के समान हो जाता है , नजसे िाम ने एक बाि
उिोंने एक-एक (प्रत्येक) महल की खोज की। जहाुँ -तहाुँ असंख्य योद्धा दे खे। नफि वे िावण
के महल में िए। वह अत्यंत नवनचत्र था, नजसका वणयन नहीं हो सकता।
जय नसयािाम जय जय नसयािाम
हनुमानजी ने महल में िावण को सोया हुआ दे खा| वहा भी हनुमानजी ने सीताजी की खोज
की, पिन्तु सीताजी उस महल में कही भी नदखाई नहीं दीं। नफि उिें एक सुंदि भवन नदखाई
दोहा – Sunderkand
वह महल िाम के आयुध (धनुष-बाण) के नचह्ों से अंनकत था, उसकी शोभा वणयन नहीं की
जा सकती। वहाुँ नवीन-नवीन तुलसी के वृक्ष-समूहों को दे खकि कनपिाज हनुमान हनषयत हुए॥
5॥
सुंदिकाण्ड – 06 (Sunderkand Path)
च पाई – सुंदिकाण्ड
इस तिह हनुमानजी मन ही मन में नवचाि किने लिे। इतने में नवभीषण की आुँ ख खुली॥
जय नसयािाम जय जय नसयािाम
औि जािते ही उिोंने ‘िाम! िाम!’ ऐसा स्मिण नकया, तो हनुमानजीने जाना की यह कोई
सत्पुरुष है । इस बात से हनुमानजीको बड़ा आनंद हुआ॥ हनुमानजीने नवचाि नकया नक इनसे
जरि पहचान किनी चनहये , क्ोंनक सत्पुरुषोके हाथ कभी काययकी हानन नहीं होती॥
जय नसयािाम जय जय नसयािाम
नफि हनुमानजीने ब्राम्हणका रप धिकि वचन सुनाया तो वह वचन सुनतेही नवभीषण उठकि
उनके पास आया॥ औि प्रणाम किके कुशल पूुँ छा, की हे नवप्र (ब्राह्मणदे व)! जो आपकी बात
जय नसयािाम जय जय नसयािाम
नवभीषणने कहा नक शायद आप कोई भिवन्तोमेंसे तो नहीं हो! क्ोंनक मेिे मनमें आपकी
अथवा मुझको बडभािी किने के वास्ते भक्तोपि अनुिाि िखनेवाले आप साक्षात नदनबन्धु ही
दोहा – Sunderkand
नाम बताया।
पिस्पिकी बाते सुनतेही दोनोंके शिीि िोमां नचत हो िए औि श्री िामचन्द्रजीका स्मिण आ
च पाई – सुंदिकाण्ड
नवभीषण कहते है की हे हनुमानजी! हमािी िहनी हम कहते है सो सुनो। जैसे दां तों के
हे प्यािे ! वे सूययकुल के नाथ (िघुनाथ) मुझको अनाथ जानकि कभी कृपा किें िे? ॥
जय नसयािाम जय जय नसयािाम
नजससे प्रभु कृपा किे ऐसा साधन तो मेिे है नहीं। क्ोंनक मेिा शिीि तो तमोिुणी िाक्षस है ,
अवश्य कृपा किें िे। क्ोंनक भिवानकी कृपा नबना सत्पुरुषोंका नमलाप नहीं होता॥
जय नसयािाम जय जय नसयािाम
हनुमानजी कहते है की कहो मै क नसा कुलीन पुरुष हुँ । हमािी जानत दे खो (चंचल वानि
की), जो महाचंचल औि सब प्रकािसे हीन निनी जाती है ॥ जो कोई पुरुष प्रातुःकाल हमािा
(बंदिों का) नाम ले लेवे तो उसे उसनदन खानेको भोजन नहीं नमलता॥
जय नसयािाम जय जय नसयािाम
दोहा – Sunderkand
हे सखा, सुनो मै ऐसा अधम नीच हुँ । नतस पि भी िघुवीिने कृपा कि दी, तो आप तो सब
आप पि कृपा किे इस में क्ा बड़ी बात है । ऐसे प्रभु श्री िामचन्द्रजी के िुणोंका स्मिण
च पाई – सुंदिकाण्ड
हनुमानजी वृक्षों के पिो की ओटमें नछपे हुए मनमें नवचाि किने लिे नक हे भाई अब मै क्ा
कर? ।।
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उस अवसिमें बहुतसी न्हियोंको संि नलए िावण वहा आया। जो न्हिया िावणके संि थी, वे
उस दु ष्टने सीताजी को अनेक प्रकाि से समझाया। साम, दाम, भय औि भेद अनेक प्रकािसे
नदखाया।।
जो ये मेिी मंदोदिी आदी िाननयाुँ है इन सबको तेिी दानसयाुँ बनादू ं यह मेिा प्रण जान।।
िावण का वचन सुन बीचमें तृण िखकि (नतनके का आड़ – पिदा िखकि), पिम प्यािे
की हे िावण! सुन, खद्योत अथाय त जुिनू के प्रकाश से कमनलनी कदापी प्रफुन्हल्लत नहीं होती।
नकंतु कमनलनी सूययके प्रकाशसेही प्रफुन्हल्लत होती है । अथाय त तू खद्योतके (जुिनूके) समान है
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सीताजीने अपने मन में ऐसे समझकि िावणसे कहा नक िे दु ष्ट! िामचन्द्रजीके बाणको अभी
अिे ननलयज्ज! अिे अधम! िामचन्द्रजी के सूने तू मुझको ले आया। तुझे शमय नहीं आती।।
जय नसयािाम जय जय नसयािाम
दोहा – Sunderkand
सीता के मुख से कठोि वचन अथाय त अपनेको खद्योतके (जुिनूके) तु ल्य औि िामचन्द्रजीको
सुययके समान सुनकि िावण को बड़ा क्रोध हुआ। नजससे उसने तलवाि ननकाल कि ये वचन
कहे ॥9॥
सुंदिकाण्ड – 10 (Ashokvaatika)
च पाई – सुंदिकाण्ड
हे सीता! तूने मेिा मान भंि कि नदया है । इस वास्ते इस कठोि खडि (कृपान) से मैं तेिा
िावण के ये वचन सुनकि सीताजी ने कहा हे शठ िावण, सुन मेिा भी तो ऐसा पक्का प्रण है
सुढाि िामचन्द्रजी की भुजा िहे िी या तेिा यह महाघोि खडं ि िहे िा। अथाय त िामचन्द्रजी के
सीता उस तलवाि से प्राथयना किती है नक हे तलवाि! तू मेिा नशि उडाकि मेिे संताप को
सीताजी कहती है , हे अनसवि! तेिी धािरप शीतल िानत्रसे मेिे भािी दु ख़को दू ि कि।।
जय नसयािाम जय जय नसयािाम
सीताजीके ये वचन सुनकि, िावण नफि सीताजी को मािने को द ड़ा। तब मय दै त्यकी कन्या
नफि िावणने सीताजीकी िखवािी सब िाक्षनसयोंको बुलाकि कहा नक तुम जाकि सीता को
यनद वह एक महीने के भीति मेिा कहना नहीं मानेिी तो मैं तलवाि ननकाल कि उसे माि
डालूुँिा।।
जय नसयािाम जय जय नसयािाम
दोहा – Sunderkand
उधि तो िावण अपने भवनके भीति िया। इधि वे नीच िाक्षनसयोंके झंुडके झंु ड अनेक
लिजटा का स्वप्न
–
च पाई – सुंदिकाण्ड
उनमें एक नत्रजटा नाम की िाक्षसी थी। वह िामचन्द्रजीके चिनोकी पिमभक्त औि बड़ी ननपुण
औि नववेकवती थी।।
उसने सब िाक्षनसयों को अपने पास बुलाकि जो उसको सपना आया था वहा सबको सुनाया
औि उनसे कहा की हम सबको सीताजी की सेवा किके अपना नहत किलेना चानहए।।
जय नसयािाम जय जय नसयािाम
क्ोनक मैंने सपने में ऐसा दे खा है नक एक वानिने लंकापुिीको जलाकि िाक्षसों की सािी
औि िावण िधेपि सवाि होकि दनक्षण नदशामें जाता हुआ मैंने सपने में दे खा है । वह भी
नत्रजटा कहती है की मै आपसे यह बात खूब सोच कि कहती हुँ की यह स्वप्न चाि नदन
दोहा – Sunderkand
नफि सब िाक्षनसयां नमलकि जहां तहां चली ियी। तब सीताजी अपने मनमें सोच किने लिी
की एक मनहना नबतने के बाद यह नीच िाक्षस (िावण) मुझे माि डालेिा ॥11॥
सुंदिकाण्ड – 12 (Sundarkand Hindi Lyrics)
च पाई – सुंदिकाण्ड
नफि नत्रजटाके पास हाथ जोड़कि सीताजी ने कहा की हे माता! तू मेिी सच्ची नवपनिकी
सानथन है ।।
सीताजी कहती है की जल्दी उपाय कि नहीं तो मै अपना दे ह तजती हुँ । क्ोंनक अब मुझसे
जय नसयािाम जय जय नसयािाम
हे माता! अब तू जल्दी काठ ला औि नचता बना कि मुझको जलानेके वास्ते जल्दी उसमे
आि लिा दे ।।
हे सयानी! तू मेिी प्रीनत सत्य कि। सीताजीके ऐसे शूलके सामान महाभयानाक वचन सुनकि।।
जय नसयािाम जय जय नसयािाम
–
औि नसताजीसे कहा की हे िाजपुत्री! अभी िात्री है , इसनलए अभी अनि नहीं नमल सकती। ऐसा
तब अकेली बैठी बैठी सीताजी कहने लिी की क्ा कर दै वही प्रनतकूल हो िया। अब न तो
सीताजी चन्द्रमा को दे खकि कहती है नक यह चन्द्रमा का स्वरुप साक्षात अनिमय नदख पड़ता
अशोकके वृक्ष को दे खकि उससे प्राथयना किती है नक हे अशोक वृक्ष! मेिी नवनती सुनकि तू
अपना नाम सत्य कि। अथाय त मुझे अशोक अथाय त शोकिनहत कि। मेिे शोकको दू ि कि।।
जय नसयािाम जय जय नसयािाम
हे अनिके समान िक्तवणय ननवन कोंपलें (नए कोमल पिे )! तु म मुझको अनि दे कि मुझको
शां त किो।।
दोहा – Sunderkand
उस समय हनुमानजीने अपने मनमे नवचाि किके अपने हाथमेंसे मुनद्रका (अुँिूठी) डाल दी।
सो सीताजी को वह मुनद्रका उससमय कैसी नदख पड़ी की मानो अशोकके अंिािने प्रिट हो
कि हमको आनंद नदया है (मानो अशोक ने अंिािा दे नदया।)। सो नसताजीने तुिंत उठकि
च पाई – सुंदिकाण्ड
तब दे खी मुनद्रका मनोहि।
उस मुनद्रकाको दे खतेही सीताजी चनकत होकि दे खने लिी। आन्हखि उस मुनद्रकाको पहचान कि
यह क्ा हुआ? यह िामचन्द्रजीकी नामां नकत मुनद्रका यहाुँ कैसे आयी? या तो उिें नजतनेसे यह
इस प्रकाि सीताजी अपने मनमे अनेक प्रकाि से नवचाि कि िही थी। इतनेमें ऊपिसे
हनुमानजी िामचन्द्रजीके िुनोका वणयन किने लिे। उनको सुनतेही सीताजीका सब दु ुःख दू ि हो
िया।।
सीताजी सुनायी।।
जय नसयािाम जय जय नसयािाम
कानोंको अमृतसी मधुि लिनेवाली कथा सुनाई है वह मेिे सामने आकि प्रकट क्ों नहीं होता?
दे खकि सीताजीके मनमे बड़ा नवस्मय हुआ की यह क्ा! सो कपट समझकि हनुमानजी को
आपको दी है ।।
जय नसयािाम जय जय नसयािाम
तब नसताजी ने कहा की हे हनुमान! नि औि वानिोंके बीच आपसमें प्रीनत कैसे हुई वह मुझे
कह। तब उनके पिस्पमे जैसे प्रीनत हुई थी वे सब समाचाि हनुमानजी ने नसताजीसे कहे ।।
जय नसयािाम जय जय नसयािाम
दोहा – Sunderkand
हनुमानजीके प्रेमसनहत वचन सुनकि सीताजीके मनमे पक्का भिोसा आ िया औि उिोंने जान
च पाई – सुंदिकाण्ड
हनुमानजी को हरिभक्त जानकाि सीताजीके मन में अत्यंत प्रीनत बड़ी, शिीि अत्यंत पुलनकत हो
सीताजीने हनुमान से कहा की हे हनुमान! मै नविहरप समुद्रमें डूब िही थी, सो हे तात!
हे हनुमान! िामचन्द्रजी तो बड़े दयालु औि बड़े कोमलनचि है । नफि यह कठोिता आपने क्ों
धािण नक है ? ।।
जय नसयािाम जय जय नसयािाम
यह तो उनका सहज स्वभावही है नक जो उनकी सेवा किता है उनको वे सदा सुख दे ते िहते
कभी मेिे भी नेत्र िामचन्द्रजीके कोमल श्याम शरििको दे खकि शीतल होंिे।।
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जय नसयािाम जय जय नसयािाम
सीताजीकी उस समय यह दशा हो ियी नक मुखसे वचन ननकलना बंद हो िया औि नेत्रोमें
िए।।
सीताजीको नविह्से अत्यंत व्याकुल दे खकि हनुमानजी बड़े नवनयके साथ कोमल वचन बोले।।
जय नसयािाम जय जय नसयािाम
तव दु ख दु खी सुकृपा ननकेता॥
दोहा – Sunderkand
उसे सुनो ऐसे कह्तेही हनुमानजी प्रेम से िदिद हो िए औि नेत्रोमे जल भि आया ॥14॥
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सुंदिकाण्ड – 15
च पाई – सुंदिकाण्ड
िामचन्द्रजी ने कहा है नक तुम्हािे नवयोिमें मेिे नलए सभी बाते नवपिीत हो ियी है ।।
ननवन कोपलें तो मानो अनिरप हो िए है । िानत्र मानो कालिानत्र बन ियी है । चन्द्रमा सूिजके
कमालोका वन मानो भालोके समूहके समान हो िया है । मेघकी वृनष्ट मानो तापेहुए तेलके
समान लिती है ।।
मै नजस वृक्षके तले बैठता हं , वही वृक्ष मुझको पीड़ा दे ता है औि शीतल, सुिंध, मंद पवन
औि अनधक क्ा कहं ? क्ोंनक कहनेसे कोई दु ुःख घट थोडाही जाता है ? पिन्तु यह बात
मेिे औि आपके प्रेमके तत्वको क न जानता है ! कोई नहीं जानता। केवल एक मेिा मन तो
पि वह मन सदा आपके पास िहता है । इतनेहीमें जान लेना नक िाम नकस कदि प्रेमके वश
है ।।
िामचन्द्रजीके सन्दे श सुनतेही सीताजी ऐसी प्रे ममे मि होियी नक उिें अपने शिीिकी भी सुध
न िही।।
जय नसयािाम जय जय नसयािाम
दो)।।
जय नसयािाम जय जय नसयािाम
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दोहा – Sunderkand
च पाई – सुंदिकाण्ड
हे माता! जो िामचन्द्रजीको आपकी खबि नमल जाती तो प्रभु कदानप नवलम्ब नहीं किते।।
क्ोंनक िामचन्द्रजी के बानरप सूययके उदय होने पि िाक्षस समूहरप अन्धकाि पटलका पता
कहाुँ है ? ।।
जय नसयािाम जय जय नसयािाम
इसनलए हे माता! आप कुछ नदन धीिज धिो। िामचन्द्रजी वानिोंकें साथ यहाुँ आयेंिे।।
जय नसयािाम जय जय नसयािाम
औि िाक्षसोंको मािकि आपको ले जाएुँ िे। तब िामचन्द्रजीका यह सुयश तीनो लोकोमें नािदानद
हनुमानजी की यह बात सुनकि सीताजी ने कहा की हे पुत्र! सभी वानि तो तुम्हािे सामान है
इसका मेिे मनमे बड़ा संदेह है । सीताजीका यह वचन सुनकि हनुमानजीने अपना शिीि प्रकट
नकया।।
की जो शिीि सुवणय के पवयत के समान नवशाल, युद्धके नबच बड़ा नवकिाल औि िणके बीच
जय नसयािाम जय जय नसयािाम
दोहा – Sunderkand
हनुमानजीने कहा नक हे माता! सुनो, वानिोंमे कोई नवशाल बुन्हद्ध का बल नहीं है । पिं तु प्रभुका
च पाई – सुंदिकाण्ड
भन्हक्त, प्रताप, तेज औि बलसे नमलीहुई हनुमानजी की वाणी सुनकि सीताजीके मनमें बड़ा संतोष
हुआ।।
नफि सीताजीने हनुमान को श्री िाम का नप्रय जानकि आशीवाय द नदया नक हे तात! तुम बल
हे पुत्र! तुम अजि (जिािनहत – बुढापे से िनहत), अमि (मिणिनहत) औि िुणोंका भण्डाि हो
‘प्रभु िामचन्द्रजी कृपा किें िे’ ऐसे वचन सुनकि हनुमानजी प्रेमानन्दमें अत्यंत मि हुए।।
जय नसयािाम जय जय नसयािाम
औि हनुमानजी ने वािं वाि सीताजीके चिणोंमें शीश नवाकि, हाथ जोड़कि, यह वचन बोले।।
हे माता! अब मै कृताथय हुआ हुँ , क्ोंनक आपका आशीवाय द सफलही होता है , यह बात
जित्प्रनसद्ध है ।।
जय नसयािाम जय जय नसयािाम
–
हे माता! सुनो, वृक्षोंके सुन्दि फल लिे दे खकि मुझे अत्यंत भूख लि ियी है , सो मुझे आज्ञा
दो।।
तब सीताजीने कहा नक हे पुत्र! सुनो, इस वनकी बड़े बड़े भािी योद्धा िाक्षस िक्षा किते है ।।
जय नसयािाम जय जय नसयािाम
तब हनुमानजी ने कहा नक हे माता! जो आप मनमे सुख माने (प्रसन्न होकि आज्ञा दें ), तो
दोहा – Sunderkand
च पाई – सुंदिकाण्ड
सीताजी के वचन सुनकि उनको प्रणाम किके हनुमानजी बाि के अन्दि घुस िए। फल फल
जो वहां िक्षाके के नलए िाक्षस िहते थे उनमेसे से कुछ मािे िए औि कुछ िावणसे पुकािे
नक हे नाथ! एक बड़ा भािी वानि आया है । उसने तमाम अशोकवनका सत्यानाश कि नदया
है ।।
यह बात सुनकि िावण ने बहुत सुभट पठाये (िाक्षस योद्धा भेजे)। उनको दे खकि युद्धके
हनुमानजीने उसी समय तमाम िाक्षसोंको माि डाला। जो कुछ अधमिे िह िए थे वे वहा से
नफि िावण ने मंदोदरिके पुत्र अक्षय कुमाि को भेजा। वह भी असंख्य योद्धाओं को संि लेकि
िया।
उसे आते दे खतेही हनुमानजीने हाथमें वृक्ष लेकि उसपि प्रहाि नकया औि उसे मािकि नफि
दोहा – Sunderkand
हनुमानजीने कुछ िाक्षसोंको मािा औि कुछ को कुचल डाला औि कुछ को धूल में नमला
च पाई – सुंदिकाण्ड
िावण िाक्षसोंके मुखसे अपने पुत्रका वध सुनकि बड़ा िुस्सा हुआ औि महाबली मेघनादको
भेजा।।
औि मेघनादसे कहा नक हे पुत्र! उसे मािना मत नकंतु बां धकि पकड़ लें आना, क्ोंनक मैभी
इन्द्रजीत (इं द्र को जीतनेवाला) असंख्य योद्धाओ को संि लेकि चला। भाई के वध का
हनुमानजी ने उसे दे खकि यह कोई दारुण भट (भयानक योद्धा) आता है ऐसे जानकाि
एक बड़ा भािी वृक्ष उखाड़ कि उससे मेघनादको नविथ अथाय त िथहीन कि नदया।।
उसके साथ जो बड़े बड़े महाबली योद्धा थे, उन सबको पकड़ पकड़कि हनुमानजी अपने शिीि
से मसल डाला।।
जय नसयािाम जय जय नसयािाम
ऐसे उन िाक्षसोंको मािकि हनुमानजी मेघनादके पास पहुुँ चे। नफि वे दोनों ऐसे नभड़े नक मानो
नफि मेघनादने सचेत होकि अनेक मायाये फैलायी पि हनुमानजी नकसी प्रकाि जीते नहीं िए।।
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जय नसयािाम जय जय नसयािाम
–
दोहा – Sunderkand
मेघनाद अनेक अि चलाकि थक िया, तब उसने ब्रम्हाि चलाया। उसे दे खकि हनुमानजी ने
क्ोंनक जो मै इस ब्रम्हािको नहीं मानूंिा तो इस अिकी अद् भुत मनहमा घट जाये िी ॥19॥
सुंदिकाण्ड – 20 (Sunderkaand Paath – 20)
च पाई – सुंदिकाण्ड
मेघनादने हनुमानजीपि ब्रम्हाि चलाया, उस ब्रम्हािसे हनुमानजी नििने लिे तो नििते समय भी
लंकामे ले िया।।
जय नसयािाम जय जय नसयािाम
महादे वजी कहते है नक हे पावयती! सुनो, नजनके नामका जप किनेसे ज्ञानी लोि भवबंधन को
काट दे ते है ।।
उस प्रभुका दू त (हनु मानजी) भला बंधन में कैसे आ सकता है ? पिं तु अपने प्रभुके काययके
हनुमानजी को बंधा हुआ सुनकि सब िाक्षस दे खनेको द ड़े औि क तुकके नलए उसे सभामे ले
आये।।
हनुमानजी ने जाकि िावण की सभा दे खी, तो उसकी प्रभुता औि ऐश्वयय नकसी कदि कही जाय
कािण यह है की, तमाम दे वता बड़े नवनय के साथ हाथ जोड़े सामने खड़े उसकी भ्रुकुटीकी
ओि भयसनहत दे ख िहे है ।।
यद्यनप हनुमानजी ने उसका ऐसा प्रताप दे खा, पिं तु उनके मन में ज़िा भी डि नहीं था।
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हनुमानजी उस सभामें िाक्षसोंके बीच ऐसे ननडि खड़े थे नक जैसे िरुड़ सपोके बीच ननडि
िहा किता है ।।
जय नसयािाम जय जय नसयािाम
दोहा – Sunderkand
िावण हनुमानजी की औि दे खकि हुँ सा औि कुछ दु वयचन भी कहे , पिं तु नफि उसे पुत्रका मिण
च पाई – सुंदिकाण्ड
मैं तुझे अत्यंत ननडि दे ख िहा हुँ सो क्ा तूने कभी मेिा नाम अपने कानों से नहीं सुना है ?।।
जय नसयािाम जय जय नसयािाम
तुझको हम जीसे नहीं मािें िे, पिन्तु सच कह दे नक तूने हमािे िाक्षसोंको नकस अपिाध के नलए
मािा है ?।।
िावणके ये वचन सुनकि हनुमानजीने िावण से कहा नक हे िावण! सुन, यह माया (प्रकृनत)
हे िावण! नजसके बलसे ब्रह्मा, नवष्णु औि महे श ये तीनो दे व जितको िचते है , पालते है औि
संहाि किते है ।।
औि नजनकी सामर्थ्यसे शेषजी अपने नशिसे वन औि पवयतोंसनहत इस सािे ब्रम्हां डको धािण
किते है ।।
जय नसयािाम जय जय नसयािाम
नजसने महादे वजीके अनत कनठन धनुषको तोड़कि तेिे साथ तमाम िाजसमूहोके मदको भंजन
औि नजसने खि, दू षण, नत्रनशिा औि बानल ऐसे बड़े बलवाले योद्धओको मािा है ।।
जय नसयािाम जय जय नसयािाम
दोहा – Sunderkand
औि हे िावण! सुन, नजसके बलके लवलेश अथाय त नकन्हित्मात्र अंश से तूने तमाम चिाचि जित
च पाई – सुंदिकाण्ड
हे िावण! आपकी प्रभुता तो मैंने तभीसे जान ली है नक जब आपको सहस्रबाहुके साथ युद्ध
तब नफि हनुमानजी ने कहा नक हे िावण! मुझको भूख लि ियी थी इसनलए तो मैंने आपके
सबको बहुत प्यािा लिता है , सो वे खोटे िास्ते चलने वाले िाक्षस मुझको मािने लिे।।
जय नसयािाम जय जय नसयािाम
तब मैंने अपने प्यािे शिीिकी िक्षा किनेके नलए नजिोंने मुझको मािा था उनको मैंने भी मािा।
हनुमानजी कहते है नक मुझको बंध जाने से कुछ भी शमय नहीं आती क्ोंनक मै अपने
हे िावण! मै हाथ जोड़कि आपसे प्राथयना किता हुँ । सो अनभमान छोड़कि मेिी नशक्षा सुनो।
औि अपने मनमे नवचाि किके तुम अपने आप खूब अच्छीतिह दे खलो औि सोचनेके बाद भ्रम
उस पिमात्मासे कभी बैि नहीं किना चानहये। इसनलए जो तू मेिा कहना माने तो सीताजीको
िामचन्द्रजीको दे दो।।
जय नसयािाम जय जय नसयािाम
दोहा – Sunderkand
इसनलए यनद तू उनकी शिण चला जाएिा तो वे प्रभु तेिे अपिाधको माफ़ किके तेिी िक्षा
किें िे ॥22॥
सुंदिकाण्ड – 23
च पाई – सुंदिकाण्ड
िाज कि।।
हे िावण! तू अपने मनमें नवचाि किके मद औि मोहको त्यािकि अच्छी तिह जां चले नक
हे िावण! चाहे िी सब अलंकािोसे अलंकृत औि सुन्दि क्ों न होवे पिं तु विके नबना वह
कभी शोभायमान नहीं होती। ऐसेही िामनाम नबना वाणी शोभायमान नहीं होती।।
जय नसयािाम जय जय नसयािाम
दे खो, नजन ननदयों के मूल में कोई जलस्रोत नहीं है वहां बिसात हो जाने के बाद नफि सब
हे िावण! सुन, मै प्रनतज्ञा कि कहता हुँ नक िामचन्द्रजीसे नवमुख पुरुषका िखवािा कोई नहीं
है ।।
हे िावण! िामचन्द्रजीसे द्रोह किनेवाले तुझको ब्रह्मा, नवष्णु औि महादे व भी बचा नहीं सकते।।
जय नसयािाम जय जय नसयािाम
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दोहा – Sunderkand
हे िावण! मोह्का मूल कािण औि अत्यंत दु ुःख दे नेवाली अनभमानकी बुन्हद्धको छोड़कि कृपाके
च पाई – सुंदिकाण्ड
यद्यनप हनुमानजी िावणको अनत नहतकािी औि भन्हक्त, ज्ञान, धमय औि नीनतसे भिी वाणी कही
इससे हुँ सकि बोला नक हे वानि! आज तो हमको तु बडा ज्ञानी िुरु नमला।।
जय नसयािाम जय जय नसयािाम
हे नीच! तू मुझको नशक्षा दे ने लिा है सो हे दु ष्ट! कहीं तेिी म त तो ननकट नहीं आियी
है ?।।
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िावणके ये वचन सुन पीछे नफिकि हनुमान् ने कहा नक हे िावण! अब मैंने तेिा बुन्हद्धभ्रम स्पष्ट
हनुमान् के वचन सुनकि िावणको बड़ा कोध आया, नजससे िावणने िाक्षसोंको कहा नक हे
िाक्षसो! इस मूखयके प्राण जल्दी लेलो अथाय त इसे तुिंत माि डालो।।
इस प्रकाि िावण के वचन सुनतेही िाक्षस मािनेको द ड़ें तब अपने मंनत्रयोंके साथ नवभीषण
बहे नवनयके साथ िावणको प्रणाम किके नबभीषणने कहा नक यह दू त ( वकील) है । इसनलए
सब िाक्षसोंने
िावण इस बातको सुनकि बोला नक जो इसको मािना ठीक नहीं है तो इस बंदिका कोई अंि
दोहा – Sunderkand
च पाई – सुंदिकाण्ड
आएिा।। इस वानिने नजसकी अतुनलत बडाई की है भला उसकी प्रभुताको मैं दे खूं तो सही
नक वह कैसा है ?।।
जय नसयािाम जय जय नसयािाम
िावनके ये वचन सुनकि हनुमानजी मनमें मुसकुिाए औि मनमें सोचने लिे नक मैंने जान नलया
है नक इस समय सिस्वती सहाय हुई है । क्ोंनक इसके मुंहसे िामचन्द्रजीके आनेका समाचाि
तुलसीदासजी कहते है नक वे िाक्षसलोि िावणके वचन सुनकि वही िचना किने लिे अथाय त
उस समय हनुमानजीने ऐसा खेल नकया नक अपनी पूंछ इतनी लंबी बड़ा दी नजसको
नििके जो लोि तमाशा दे खनेको वहां आये थे वे सब लातें माि मािकि बहुत हुँ सते हैं ।।
जय नसयािाम जय जय नसयािाम
अनेक ढोल बज िहे हे , सबलोि ताली दे िहे हैं , इस तिह हनुमानजीको नििीमें सवयत्र नफिाकि
नलया।।
जय नसयािाम जय जय नसयािाम
औि बंधन से ननकलकि पीछे सुवणयकी अटारियोंपि चढ िए, नजसको दे खतेही तमाम िाक्षसोंकी
दोहा – Sunderkand
उस समय भिवानकी प्रे िणासे उनचासो पवन बहने लिे औि हनुमानजीने अपना स्वरप ऐसा
बढाया नक वह आकाशमें जा लिा नफि अट्टहास किके बड़े जोिसे ििजे ॥25॥
सुंदिकाण्ड – 26 (Lanka Dahan)
च पाई – सुंदिकाण्ड
यद्यनप हनुमानजीका शिीि बहुत बड़ा था पिं तु शिीिमें बड़ी फुती थी नजससे वह एक घिसे
नजससे तमाम निि जल िया। लोि सब बेहाल हो िये औि झपट कि बहुतसे नवकिाल
कोटपि चढ िये।।
जय नसयािाम जय जय नसयािाम
तुलसीदासजी कहते हैं नक हनुमानजीने एक क्षणभिमें तमाम नििको जला नदया. केवल एक
महादे वजी कहते है नक हे पावयती! नजसने इस अनग्रको पैदा नकया है उस पिमेश्विका नबभीषण
दू सिी ओि तक) तमाम लंकाको जला कि नफि समुद्रके अंदि कूद पडे ।।
जय नसयािाम जय जय नसयािाम
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दोहा – Sunderkand
अपनी पूछको बुझाकि, श्रमको नमटाकि (थकावट दू ि किके), नफिसे छोटा स्वरप धािण किके
च पाई – सुंदिकाण्ड
औि बोले नक हे माता! जैसे िामचन्द्रजीने मुझको पहचानके नलये मुनद्रकाका ननशान नदया था,
तब सीताजीने अपने नशिसे उताि कि चूडामनण नदया। हनुमानजीने बड़े आनंदके साथ वह ले
नलया।।
जय नसयािाम जय जय नसयािाम
सीताजीने हनुमानजीसे कहा नक है पुत्र! मेिा प्रणाम कह कि प्रभुसे ऐसे कहना नक हे प्रभु !
यद्यनप आप सवय प्रकािसे पूणयकाम हो (आपको नकसी प्रकाि की कामना नहीं है )।।
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हे नाथ! आप दीनदयाल हो, इसनलये अपने नविदको सुँभाल कि (दीन दु ुःन्हखयों पि दया किना
हे पुत्र । नफि इन्द्रके पुत्र जयंतकी कथा सुनाकि प्रभुकों बाणोंका प्रताप समझाकि याद
नदलाना।।
हे तात! कहना, अब मैं अपने प्राणोंको नकस प्रकाि िखूुँ ? क्ोंनक तुमभी अब जाने को कह िहे
हो।।
तुमको दे खकि मेिी छाती ठं ढी हुई थी पिं तु अब तो नफि मेिेनलए वही नदन हैं औि वही िातें
हैं ।।
जय नसयािाम जय जय नसयािाम
दोहा – Sunderkand
चिन कमल नसरु नाइ कनप िवनु िाम पनहं कीि ॥27॥
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हनुमानजीने सीताजीको (जानकी को) अनेक प्रकािसे समझाकि कई तिहसे धीिज नदया औि
नफि उनके चिणकमलोंमें नशि नमाकि वहां से िामचन्द्रजीके पास िवाना हुए ॥27॥
सुंदिकाण्ड – 28 (Sunderkand Hindi – 28)
च पाई – सुंदिकाण्ड
जाते समय हनुमानजीने ऐसी भािी िजयना की, नक नजसको सुनकि िाक्षनसयोंके िभय निि िये ।।
सपुद्रको लां घकि हनुमानजी समुद्रके इस पाि आए। औि उस समय उिोंने नकलनकला शब्द
(िाका नदन पहुँ चेउ हनुमन्ता। धाय धाय कापी नमले तुिन्ता।।
हनुमानजीने लंकासे ल टकि कानतयककी पूनणयमाके नदन वहां पहुं चे। उस समय द ड़ द ड़ कि
हनुमानजीको दे खकि सब वानि बहुत प्रसन्न हए औि उस समय वानिोंने अपना नया जन्म
समझा।।
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हुनमानजीका मुख अनत प्रसन्न औि शिीि तेजसे अत्यंत दे दीप्यमान दे खकि वानिोंने जान नलया
औि इसीसे सब वानि पिम प्रेमके साथ हनुमानजीसे नमले औि अत्यन्त प्रसन्न हुए। वे कैसे
प्रसन्न हुए सो कहते हैं नक मानो तड़पती हुई मछलीको पानी नमल िया।।
नफि वे सब सुन्दि इनतहास पूंछतेहुए आि कहते हुए आनंदके साथ िामचन्द्रजीके पास चले।।
जय नसयािाम जय जय नसयािाम
नफि उन सबोंने मधुवनके अन्दि आकि युविाज अंिदके साथ वहां मीठे फल खाये।।
जब वहां के पहिे दाि बिजने लिे तब उनको मुक्कोसे ऐसा मािा नक वे सब वहां से भाि िये।।
जय नसयािाम जय जय नसयािाम
दोहा – Sunderkand
वहां से जो वानि भाि कि बचे थे उन सबोंने जाकि िाजा सुग्रीवसे कहा नक हे िाजा! युविाज
अंिदने वनका सत्यानाश कि नदया है । यह समाचाि सुनकि सुग्रीवको बड़ा आनंद आया नक वे
च पाई – सुंदिकाण्ड
सुग्रीवको आनंद क्ों हुआ? उसका कािण कहते हैं । सुग्रीवने मनमें नवचाि नकया नक जो उनको
सीताजीकी खबि नहीं नमली होती तो वे लोि मधुवनके फल कदानप नहीं खाते।।
िाजा सुग्रीव इस तिह मनमें नवचाि कि िहे थे। इतनेमें समाजके साथ वे तमाम वानि बहां
चले आये।।
जय नसयािाम जय जय नसयािाम
औि आकि उन सभीने नमस्काि नकया तब बड़े प्यािके साथ सुग्रीव उन सबसे नमले।।
सुग्रीवने सभीसे कुशल पूं छा तब उिोंने कहा नक नाथ! आपके चिण कुशल दे खकि हम
हे नाथ! यह काम हनुमानजीने नकया है । यह काम क्ा नकया है मानो सब वानिोंके इसने
यह बात सुनकि सुग्रीव उठकि नफि हनुमानजीसे नमले औि वानिोंके साथ िामचन्द्रजीके पास
आए।।
जय नसयािाम जय जय नसयािाम
वानिोंको आते दे खकि िामचन्द्रजीके मनमें बड़ा आनन्द हुआ नक ये लोि काम नसद्ध किके
आ िये हैं ।। िाम औि लक्ष्मण ये दोनों भाई स्फनटकमनणकी नशलापि बैठे हुए थे। वहां जाकि
दोहा – Sunderkand
च पाई – सुंदिकाण्ड
उस समय जाम्बवान िामचन्द्रजीसे कहा नक हे नाथ! सुनो, आप नजसपि दया किते हो।।
उसके सदा सवयदा शुभ औि कुशल ननिं ति िहते हें । तथा दे वता मनुष्य औि मुनन सभी उसपि
यह सब काम आपकी कृपासे नसद्ध हुआ हैं । औि हमािा जन्म भी आजही सफल हुआ है ।।
जय नसयािाम जय जय नसयािाम
दे नाथ! पवनपुत्र हनुमानजीने जो काम नकया है उसका हजाि मुखों से भी वणयन नहीं नकया
जा सकता
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(वह कोई आदमी जो लाख मुखोंसे कहना चाहे तो भी वह कहा नहीं जा सकता)।।
औि श्रीिामने हनुमानजीसे पूछा नक हे तात! कहो, सीता नकस तिह िहती है ? औि अपने
दोहा – Sunderkand
क्षणभि न िह। पिं तु सीताजीने आपके दशयनके नलए प्राणोंको ऐसा बंदोबस्त किके िखा है नक
िात नदन अखंड पहिा दे नेके वास्ते आपके नामको तो उसने नसपाही बना िखा है (आपका
नाम िात-नदन पहिा दे नेवाला है )। औि आपके ध्यानको कपाट वनाया है (आपका ध्यान ही
नकवाड़ है )| औि अपने नीचे नकये हुए नेत्रोंसे जो अपने चिणकी ओि ननहािती है वह यंनत्रका
च पाई – सुंदिकाण्ड
तब हनुमानजीने कहा नक हे नाथ! दोनो हाथ जोड़कि नेत्रोंमें जल लाकि सीताजीने कुछ
सीताजीने कहा है नक लक्ष्मणजीके साथ प्रभुके चिण धिकि मेिी ओिसे ऐसी प्राथयना किना नक
नफि मन, वचन औि कमयसे चिणोमें प्रीनत िखनेवाली मुझ दासीको आपन नकस अपिाधसे त्याि
नदया है ॥
जय नसयािाम जय जय नसयािाम
हाुँ , मेिा एक अपिाध पक्का (अवश्य) हैं औि वह मैंने जान भी नलया है नक आपसे नबछु ितेही
पिं तु हें नाथ! वह अपिाध मेिा नहीं है नकन्तु नेत्रोका है ; क्ोंनक नजस समय प्राण ननकलने
लिते है उस समय ये नेत्र हटकि उसमें बाधा कि दे ते हैं (अथाय त् केवल आपके दशयनके
हे प्रभु! आपका नविह तो अनि है मेिा शिीि तू ल (रुई) है । श्वास प्रबल वायु है । अब इस
पिं तु नेत्र अपने नहतके नलए अथाय त् दशयनके वास्ते जल बहा बहा कि उस नविह की आि को
शां त किते हैं , इससे नविह की आि भी मेि शिीिको जला नहीं पाती॥
जय नसयािाम जय जय नसयािाम
अच्छा है ॥
जय नसयािाम जय जय नसयािाम
दोहा – Sunderkand
इसनलए जल्दी चलकि औि अपने बाहुबलसे दु ष्टोंके दलको जीतकि उनको जल्दी ले आइए
॥31॥
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सुंदिकाण्ड – 32
च पाई – सुंदिकाण्ड
सुखके धाम श्रीिामचन्द्रजी सीताजीके दु ुःखके समाचाि सुन अनत न्हखन्न हुए औि उनके कमलसे
दोनों नेत्रोंमें जल भि आया।। िामचन्द्रजीने कहा नक नजसने मन, वचन व कमयसे मेिा शिण
आपका भजन स्मिण नही किता।। हे प्रभु इस िाक्षसकी नकतनीसी बात है । आप शत्रुको
िामचन्द्रजीने कहा नक हे हनुमान! सुन, तेिे बिाबि मेिे उपकाि किनेवाला दे वता मनुष्य औि
हे हतुमान! सुन, मेंने अपने मनमें नवचाि किके दे ख नलया है नक मैं तुमसे उऋण नहीं हो
सकता।।
िामचन्द्रजी ज्ों ज्ों वािं वाि हनुमानजीकी ओि दे खते है ; त्यों त्यों उनके नेत्रोंमें जल भि आता
दोहा – Sunderkand
हनुमानजी प्रभुके वचन सुनकि औि प्रभुके मुखकी ओि दे खकि मनमें पिम हनषयत हो िए।।
औि बहुत व्याकुल होकि कहा ‘हे भिवान् ! िक्षा किो’ ऐसे कहता हुए चिणोंमे निि पड़े
॥32॥
सुंदिकाण्ड – 33
च पाई – सुंदिकाण्ड
यद्यनप प्रभु उनको चिणोंमेंसे बाि-बाि उठाना चाहते हैं , पिं तु हनुमान् प्रेममें ऐसे मि हो िए थे
कनव कहते है नक िामचन्द्रजीके चिणकमलोंके बीच हनुमानजी नसि धिे है इस बातको स्मिण
किके महादे वकी भी वही दशा होियी औि प्रे ममें मि हो िये ; क्ोंनक हनु मान् रुद्रका
अंशावताि है ।।
जय नसयािाम जय जय नसयािाम
नफि महादे व अपने मनको सावधान किके अनत मनोहि कथा कहने लिे।।
महादे वजी कहते है नक हे पावयती! प्रभुने हनमान् कों उठाकि छातीसे लिाया औि हाथ पकड
िामचन्द्रजीकी यह बात सुन उनको प्रसन्न जाकि हनुमानजीने अनभमानिनहत होकि यह वचन
कहे नक।।
जय नसयािाम जय जय नसयािाम
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हे प्रभु! बानिका तो अत्यंत पिाक्रम यही है नक वृक्षकी एक डािसे दू सिी डािपि कूद जाय।।
पिं तु जो मै समुद्रको लां घकि लंका में चला िया औि वहा जाकि मैंने लंका को जला नदया
सो सब तव प्रताप िघुिाई।
दोहा – Sunderkand
हे प्रभु! आप नजस पि प्रसन्न हों, उसके नलए कुछ भी असाध्य (कनठन) नहीं है ।
॥33॥
सुंदिकाण्ड – 34 (Saral Sundarkand – 34)
च पाई – सुंदिकाण्ड
िामचन्द्रजीके ये वचन सुनकि हनुमानजीने कहा नक हे नाथ! मुझे तो कृपा किके आपकी
अनपानयनी (नजसमें कभी नवच्छे द नहीं पडे ऐसी, ननश्चल) कल्याणकािी औि सुखदायी भन्हक्त
दो।।
महादे वजीने कहा नक हे पावयती! हुनुमानकी ऐसी पिम सिल वाणी सुनकि प्रभुने कहा नक हे
हनुमान् ! ‘एवमस्तु ’ (ऐसाही हो) अथाय त् तुमको हमािी भन्हक्त प्राप्त हो।।
जय नसयािाम जय जय नसयािाम
हे पावयती! नजिोंने िामचन्द्रजीके पिम दयालु स्वभावको जान नलया है उनको िामचन्द्रजीकी
जय जय जय कृपाल सु खकंदा॥
प्रभुके ऐसे वचन सुनकि तमाम वानिवृन्दने पुकाि कि कहा नक हे दयालू! हे सुखके
अब नवलम्ब क्ों नकया जाता है । अब तुम वानिोंको तुिंत आज्ञा क्ो नहीं दे ते हो।।
दोहा – Sunderkand
साथही वानि औि िीछोके झुंड नक नजनके अनके प्रकािक वणय हैं औि अतूनलत बल हैं वे
वहां आये।।
सुंदिकाण्ड – 35
च पाई – सुंदिकाण्ड
महाबली वानि औि िीछ वहां आकि िजयना किते हैं औि िामचन्द्रजीके चिणकमलोंमें नसि
तमाम वानिॉकी सेनाको दे खकि कमलनयन प्रभुने कृपा दृनष्टसे उनकी ओि दे खा।।
जय नसयािाम जय जय नसयािाम
प्रभुकी कृपादृनष्ट पड़तेही तमाम वानि िघुनाथजीके कृपाबलको पाकि ऐसे बली औि बड़े होिये
उस समय िामचन्द्रजीने आनंनदत होकि प्रयाण नकया. तब नाना प्रकािके अच्छे औि सुन्दि
प्रभुने प्रयाण नकया उसकी खबि सीताजीको भी हो िई; क्ोंनक नजस समय प्रभुने प्रयाण नकया
उस वक्त सीताजीके शुभसूचक बाएं अंि फड़कने लिे (मानो कह िह है की श्री िाम आ िहे
हैं )।।
जय नसयािाम जय जय नसयािाम
इस प्रकाि िामचन्द्रजीकी सेना िवान हुई, नक नजसके अन्दि असंख्यात वानि औि िीछ ििज
नजनके नखही तो शि हैं । पवयत व वृक्ष हाथोंमें है वे इच्छाचािी वानि (इच्छानुसाि सवयत्र
बेिोक-टोक चलनेवाले) औि िीछ आकाशमें कूदते हुए आकाशमािय होकि सेनाके बीच जा िहे
है ।।
वानि व िीछ माियमें जाते हुए नसंहनाद कि िहे है . नजससे नदग्गज हाथी डिमिाते हैं औि
छं द – Sunderkand
जब िामचन्द्रजीने प्रयाण नकया तब नदग्गज नचंघाड़ने लिे, पृथ्वी डिमिाने लिी, पवयत कां पने लिे,
समुद्र खड़भड़ा िये, सयुय आनंनदत हुआ नक हमाि वंशमें दु ष्टोंको दं ड दे नेवाला पैदा हुआ।
दे वता, मुनन, नाि व् नकन्नि ये सब मन में हनषयत हुए नक अब हमािे दु ुःख टल िए। वानि
नवकट िीनतसे कटकटा िहे है , कोटयानकोट बहुतसे भट इधि उधि द ड़ िहे हैं औि
छं द – Sunderkand
उस सेनाके अपाि भािको शेषजी (सपयिाज शेष) स्वयं सह नहीं सकते नजससे वािं वाि मोनहत
होते
हें औि अपने दाुँ तोंसे बाि-बाि कमठकी (कच्छप की) कठोि पीठको पकडे िहते है । सो वह
शोभा कैसी मालूम होती है नक मानो िामचन्द्रजीके सुन्दि प्रयाणकी प्रन्हथथनत (प्रथथान यात्रा) को
पिमिम्य जानकि शेषजी कमठकी पीठरप खप्पिपि अपने दां तोसे नलख िहै हैं , नक नजससे वह
प्रथथानका पनवत्र संवत् च नमती सदा न्हथथि बनी िहे , जैसे कुएं बावली मंनदि आनद बनानेवाले
उसपि पत्थिमें प्रशन्हस्त खुदवाकि लिा दे ते है ऐसे शेषजी मानो कमठकी पीठपि प्रशन्हस्तही
दोहा – Sunderkand
कृपाके भ्रंडाि श्रीिामचन्दज्ञी इस तिह जाकि समुद्रके तीिपि उतिे , तब वीि िीछ औि वानि
च पाई – सुंदिकाण्ड
जबसे हनुमान् लंकाको जलाकि चले िए तबसे वहां िाक्षसलोि शंकासनहत (भयभीत) िहने
लिे।।
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औि अपने अपने घिमें सब नवचाि किने लिे नक अब िाक्षसकुल बचने का नहीं है (िाक्षस
हम लोि नजसके दू तके बलको भी कह नहीं सकते उसके आनेपि नफि पुिका भला कैसे हो
नििके लोिोंकी ऐसी अनत भयसनहत वाणी सुनकि मन्दोंदिी अपने मनमें बहुत घबिायी।।
जय नसयािाम जय जय नसयािाम
औि एकान्तमें आकि हाथ जोड़कि पानतके चिणोंमे नििकि नननतके िससे भिे हुए ये वचन
बोली।।
हे कान्त! हरि भिवानसे जो आपके वैिभाव हैं उसे छोड़ दीनजए। मै जो आपसे कहती हुँ वह
भला अब उसके दू तके कामको तो दे खो नक नजसको नाम लेनेसे िाक्षनसयोंके िभय निि जाते हैं
।।
जैसे शीतऋतु अथाय त् नशनशि िीतुकी िानत्र (जाड़े की िानत्र) आनेसे कमलोंके बनका नाश हो
जाता हे ऐसे तुम्हािे कुलरप कमलबनका सं हाि किनेके नलये यह सीता नशनशि रितुकी िानत्रके
समान आयी है ।।
हे नाथ! सुनो, सीताको नबना दे नेके तो चाहे महादे व ओि ब्रह्माजी भले कुछ उपाय क्ों न किे
दोहा – Sunderkand
झुंडके समान हैं । सो वे इनका संहाि नहीं किते इससे पहले पहले आप यत् किो औि नजस
सुंदिकाण्ड – 37 sundarkand-chaupai-037
च पाई – सुंदिकाण्ड
औि बोला नक जित् में जो यह बात कही जाती है नक िीका स्वभाव डिपोक होता है सो यह
क्ोंनक अब वानिोकी से ना यहां आवेिी तो क्ा नबचािा वह जीती िह सकेिी क्ोंनक िाक्षस
नजसकी त्रासके मािे लोकपाल कां पते है उसकी िीका भय होना यह तो एक बड़ी हुँ सीकी
बात है ।।
जय नसयािाम जय जय नसयािाम
वह दु ष्ट मंदोदािीको ऐसे कह, उसको छातीमें लिाकि मनमें बड़ी ममता िखता हुआ सभामें
िया।।
िावण सभामे जाकि बैठा वहां ऐसी खबि आयी नक सब सेना समुद्र के उस पाि आ ियी
है ।।
नफि बोले की हे नाथ! जब आपने दे वता औि दै त्योंको जीता उसमेंभी आपको श्रम नही हुआ
दोहा – Sunderkand
जो मंत्री भय वा लोभसे िाजाको सुहाती बात कहता है , तो उसके िाजका तुिंत नाश हो जाता
है , औि जो वैद्य िोिीको सुहाती बात कहता है तो िोिीका वेिही नाश हो जाता है , तथा िुरु
जो नशष्यके सुहाती बात कहता है , उसके धमयका शीघ्रही नाश हो जाता है ॥37॥
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सुंदिकाण्ड – 38
च पाई – सुंदिकाण्ड
सो िावणके यहां वैसीही सहाय बन ियी अथाय त् सब मंत्री सुना सुना कि िावणकी स्तुनत किने
लिे।।
उस अवसिको जानकि नवभीषण वहां आया औि बड़े भाईके चिणोंमें उसने नसि नवाया।।
जय नसयािाम जय जय नसयािाम
हे तात! जो आप अपना कल्याण, सुयश, सुमनत, शुभ-िनत, औि नाना प्रकािका सुख चाहते हो।।
तब तो हे स्वामी! पििीके नललािका (ललाट को) च थके चां दकी नाई (तिह) त्याि दो
(जैसे लोि च थ के चंद्रमा को नहीं दे खते , उसी प्रकाि पििी का मुख ही न दे खे)।।
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जय नसयािाम जय जय नसयािाम
चाहो कोई एकही आदमी च दहा लोकोंका पनत होजावे पिं तु जो प्राणीमात्रसे द्रोह िखता है वह
जो आदमी िुणोंका सािि औि चतुि है पिं तु वह यनद थोड़ा भी लोभ कि जाय तो उसे
दोहा – Sunderkand
हे नाथ! ये सद्ग्रन्थ अथाय त् वेद आनद शाि ऐसे कहते हैं नक काम, कोध, मद औि लोभ ये सब
निकके मािय हैं इसवास्ते इिें छोड़कि िामचन्द्रजीके चिणोंकी सेवा किो ॥38॥
सुंदिकाण्ड – 39 (Sundarkand Katha – 39)
च पाई – सुंदिकाण्ड
हे तात! िाम मनुष्य औि िाजा नहीं हैं , नकंतु वे साक्षात नत्रलोकीनाथ औि कालके भी काल
है ।।
जन िं जन भंजन खल ब्राता।
वे कृपानसंधु ि , ब्राह्मण, दे वता औि पृथ्वीका नहत किनेके नलये , दु ष्टोके दलका संहाि किनेके
हे नाथ! िामचन्द्रजीका सीता दे दीनजए औि कामना छोडकि स्नेह िखनेवाले िामका भजन
किो।।
जय नसयािाम जय जय नसयािाम
हे नाथ! वे शिण जानेपि ऐसे अधमीको भी नहीं त्यािते नक नजसको नवश्वद्रोह किनेका पाप
लिा हो।।
हे िावण! आप अपने मनमें ननश्चय समझो नक नजनका नाम लेनेसे तीनों प्रकािके ताप ननवृि
दोहा – Sunderkand
हे िावण! मैं आपके वािं वाि पावोंमें पड़कि नवनती किता हुँ , सो मेिी नवनती सुनकि आप
दोहा – Sunderkand
पुलस्त्यऋषीने अपने नशष्यको भेजकि यह बात कहला भेजीथी सो अवसि पाकि यह बात हे
च पाई – सुंदिकाण्ड
वह माल्यावान नाम एक सुबुन्हद्ध मंत्री बैठा हुआ था. वह नवभीषणके वचन सुनकि. अनतप्रसन्न
हुआ ।।
औि उसने िावणसे कहा नक तात ‘आपका छोटाभाइ बड़ा नीनत जाननेवाला है ुँ इसवास्ते
माल्यवान्की यह बात सु नकि िावणने कहा नक हे िाक्षसो! ये दोनों नीच शत्रुकी बड़ाई किते
तय माल्यवान् तो उठकि अपने घिको चला िया. औि नबभीषणने हाथ जोड़कि नफि कहा।।
जय नसयािाम जय जय नसयािाम
नक हे नाथ! वेद औि पुिानोमें ऐसा कहा है नक सुबुन्हद्ध औि कुबुन्हद्ध सबके मनमें िहती है
जो िाक्षसोंके कुलकी कालिानत्र है उस सीतापि आपकी बहुत प्रीनत हैं यह कुबुन्हद्ध नहीं तो औि
क्ा हे ।।
जय नसयािाम जय जय नसयािाम
दोहा – Sunderkand
हे तात में चिण पकडकि आपसे प्राथयना किता हं सो मेिी प्राथयना अंिीकाि किो आप सीता
च पाई – सुंदिकाण्ड
नजसको सुनकि िावण िुस्सा होकि उठ खड़ाहुआ औि बोला नक हे दु ष्ट! तेिी मृत्यु ननकट
आियी दीखती है ||
जय नसयािाम जय जय नसयािाम
कहनस न खल अस को जि माहीं।
हे नीच! सदा तू जीनवका तो मेिी पाता है औि शत्रुका पक्ष उसका सदा अच्छा लिता है ||
हे दु ष्ट! तू यह नही कहता नक नजसको हमने अपन भुजबलसे नहीं जीता ऐसा जित् में क न
है ? ||
जय नसयािाम जय जय नसयािाम
ऐसे कहकि िावणने लातका प्रहाि; नकया पिं तु नबभीषणने तो इतने पिभी वािं त्राि पैिही
पकड़े ||
जय नसयािाम जय जय नसयािाम
नशवजी कहते हैं , है पावय ती! सत्पुरुषोंकी यही बड़ाई है नक बुिा किनेपि भी वे तो पीछा
नवभीषण ने कहा, हे िावण! आप मेिे नपताके बिाबि हो इसवास्ते आपने जो मुझको मािा वह
ऐसे कहकि नबभीषण अपने मंनत्रयोंको सं ि लेकि आकाशमािय िया औि जातेसमय सबको
दोहा – Sunderkand
च पाई – सुंदिकाण्ड
आयूहीन भए सब तबहीं॥
नजस वक़्त नवभीषण ऐसे कहकि लंकासे चले उसी समय तमाम िाक्षस आयुहीन हो िये॥
महादे वजीने कहा नक हे पावयती! साधू पुरुषोकी अवज्ञा किनी ऐसी ही बुिी है नक वह तुिंत
िावणने नजस समय नबभीषणका परित्याि नकया उसी क्षण वह मंदभािी नवभवहीन हो िया॥
नबभीषण मनमें अनेक प्रकािके मनोिथ कितेहुए आनंदके साथ िामचन्द्रजीके पास चला॥
जय नसयािाम जय जय नसयािाम
दं डक कानन पावनकािी॥
नवभीषण मनमें नवचाि किने लिा नक आज जाकि मैं िघुनाथजीके भक्तलोिोंके सुखदायी अरुण
जय नसयािाम जय जय नसयािाम
जे पद जनकसुताुँ उि लाए।
हि उि सि सिोज पद जेई।
नजनको सीताजी अपने हृदयमें सदा लिाये िहतीं है . जो कपटी हरिण ( मािीच िाक्षस) के
पीछे द ड़े ॥
रप हृदयरपी सिोवि भीति कमलरप हैं , उन चिणोको जाकि मैं दे खूंिा। अहो! मेिा बड़ा
भाग्य हे ॥
जय नसयािाम जय जय नसयािाम
दोहा – Sunderkand
नजन चिणोकी पादु काओमें भितजी िातनदन मन लिाये है आज मैं जाकि इिी नेत्रोसे उन
च पाई – सुंदिकाण्ड
नयभीषण इस प्रकाि प्रेमसनहत अनेक प्रकािके नवचाि किते हुए तुिंत समुद्रके इस पाि आए॥
वानि उनको वही िखकि सुग्रीवके पास आये औि जाकि उनके सब समाचाि सुग्रीवको
सुनाये॥
तब सुग्रीवने जाकि िामचन्द्रजीसे कहा नक हे प्रभु ! िावणका भाई आपसे नमलनेको आया है ॥
जय नसयािाम जय जय नसयािाम
तब िामचन्द्रजीने कहा नक हे सखा! तुम्हािी क्ा िाय है (तुम क्ा समझते हो)? तब सुग्रीवने
िाक्षसोंकी माया जाननेमें नहीं आ सकती. इसीबास्ते यह नहीं कह सकते नक यह मनोवां नछत
मम पन सिनाित भयहािी॥
तब िामचन्द्रजीने कहा नक है सखा! तुमने यह नीनत बहुत अच्छी नबचािी पिं तु मेिा पण
शिणाितोंका भय नमटाने का है ॥
जय नसयािाम जय जय नसयािाम
िामचन्द्रजीके वचन सुनकि हनुमानजीको बड़ा आनंद हुआ नक भिवान् सच्चे शिणाितवत्सल हैं
दोहा – Sunderkand
आदनमयोंको पामि (पािल) औि पापरप जानना चानहये क्ोंनक उनको दे खनेहीसे हानन होती
है ॥43॥
सुंदिकाण्ड – 44 (Sundarkand Hindi Arth – 44)
च पाई – सुंदिकाण्ड
प्रभुने कहा नक चाहे कोई महापापी होवे अथाय त् नजसको किोड़ ब्रह्महत्याका पाप लिा
हुआ होवे औि वह भी यनद मेिे शिण चला आवे तो में, उसको नकसीकदि छोंड़ नहीं सकता॥
यह जीव जब मेिे सन्मुख हो जाता है तब मैं उसके किोड़ों जन्मोंके पापोको नाश कि दे ता
हं ॥
जय नसयािाम जय जय नसयािाम
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पापी पुरुषोंका यह सहज स्वभाव है नक उनको नकसी प्रकािसे मेिा भजन अच्छा नहीं लिता॥
हे सुग्रीव! जो पुरुष (वह िावण का भाई) दु ष्टहृदय होिा क्ा वह मेिे सत्पि आ सकेिा?
कदानप नहीं॥
जय नसयािाम जय जय नसयािाम
दे सुग्रीव! जो आदमी ननमयल अंतुःकिणवाला होिा वही मुझको पावेिा क्ोंनक मुझको छल
कदानचत् िावणने इसको भेद लेनेके नलए भेजा होिा तोभी हे सुग्रीव! हमको उसका न तो
क्ोंनक जित् में नजतने िाक्षस है उन सबोंको लक्ष्मण एक क्षणभिमें माि डालेिा॥
औि उनमेंसे भयभीत होकि जो मेिे शिण आजायिा उसको तो में अपने प्राणोंके बिाबि
िखूुँिा॥
जय नसयािाम जय जय नसयािाम
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दोहा – Sunderkand
हुँ सकि कृपाननधान श्रीिामने कहा नक हे सु ग्रीव! चाहो वह शुद्ध मनसे आया हो अथवा
भेदबुन्हद्ध नवचािकि आया हो, दोनो ही तिहसे इसको यहां ले आओ। िामचन्द्रजीके ये वचन
सुनकि अंिद औि हनुमान् आनद सब बानि हे कृपालु! आपका. जय हो ऐसे कहकि चले
॥44॥
सुंदिकाण्ड – 45
च पाई – सुंदिकाण्ड
वे वानि आदिसनहत नवभीषणको अपने आिे लेकि उस थथानको चले नक जहां करुणाकी खान
नफि वह छनवके धाम श्रीिामचन्द्रजीको दे खकि पलकोको िोककि एकटक दे खते खड़े िहे ||
श्रीिघुनाथजीका स्वरप कैसा है नजसमें लंबी भुजा है , कमलसे लालनेत्र हैं | मेघसा सधन श्याम
नजसके नसंहकेसे कंधे है , नवशाल वक्षुःथथल शोभायमान है , मुख ऐसा है नक नजसकी छनवको
उस स्वरपका दशयन होतेही नवभीषणको नेत्रोंमें जल आिया| शिीि अत्यंत पुलनकत हो िया,
नक हे दे वताओंके पालक! मेिा िाक्षसोंके वंशमें तो जन्म है औि हे नाथ! मैं िावणका भाई||
स्वभावसेही पाप मुझको नप्रय लिता है , औि यह मेिा तामस शिीि है सो यह बात ऐसी है नक
जैसे उल्लूका अंधकािपि सदा स्नेह िहता है | ऐसे मेिे पाप पि प्याि है ||
जय नसयािाम जय जय नसयािाम
दोहा – Sunderkand
शिण आया हुँ | सो हे आनतय (दु ुःख) हिण हािे ! हे शिणाितोंको सुख दे नेवाले प्रभु ! मेिी िक्षा
सुंदिकाण्ड – 46
च पाई – सुंदिकाण्ड
ऐसे कहते हुए नबभीषणको दं डवत किते दे खकि प्रभु बड़े अल्हादके साथ तुिंत उठ खड़े
हए||
औि नबभीषणके दीन वचन सुनकि प्रभुके मनमें वे बहुत भाए आि उसीसे प्रभुने अपनी नवशाल
लस्मणसनहत प्रभुने उससे नमलकि उसको अपने पास नबठाया. नफि भक्तोंके नहत किनेवाले
बीचमें है ||
जय नसयािाम जय जय नसयािाम
िात नदन तुम दु ष्टोंकी मंडलीके बीच िहते हो इससे , हे सखा! आपका धमय कैसे ननभता होिा||
मैने तुम्हािी सब िनत जानली है | तुम बडे नीनतननपुण हो औि तुम्हािा अनभप्राय अन्यायपि नहीं
िामचन्द्रजीके ये वचन सुनकि नवभीषणने कहा नक हे प्रभु ! चाहे निकमें िहना अच्छा है पिं तु
दु ष्टकी संिनत अच्छी नहीं. इसनलये हे नवधाता! कभी दु ष्टकी संिनत मत दे ओ||
हे िधुनाथजी! आपने अपना जन जानकि जो मुझपि दया की, उससे आपके दशय न हुए सो| हे
दोहा – Sunderkand
है प्रभु! यह मनुष्य जबतक शोकके धामरप काम अथाय त् लालसाको छोंड कि श्रीिामचन्द्रजीके
चिणोंकी सेवा नहीं किता तबतक इस जीवको स्वप्रमें भी न तो कुशल है औि न कहीं मनको
च पाई – सुंदिकाण्ड
जबतक धनुप बाण धािण नकये औि कमिमें तिकस कसेहुए श्रीिामचन्द्रजी हृदयमें आकि नहीं
नबिाजते तबतक लोभ, मोह, मत्सि, मद औि मान ये अनेक दु ष्ट हृदयके भीति ननवास कि
जबतक जीवके हृदयमें प्रभुका प्रतापरप सूयय उदय नहीं होता तबतक िािद्वे षरप उल्लुओं को
हे प्रभु! मैं जानतका िाक्षस हं | मेिा स्वभाव अनत अधम है | मैंने कोईभी शु भ आचिन नहीं नकया
है ||
नतसपिभी प्रभुने कृपा किके आनंदसे मुझको छातीसे लिाया नक नजस प्रभुके स्वरपको ध्यान
दोहा – Sunderkand
सुखकी िानश िामचन्द्रजीकी कृपासे अहो! आज मेिा भाग्य बड़ा अनमत औि अपाि हैं क्ोनक
ब्रह्माजी औि महादे वजी नजन चिणािनवन्दयुिलकी (युिल चिण कमलों नक) सेवा किते हैं उन
च पाई – सुंदिकाण्ड
नबभीषणकी भन्हक्त दे खकि िामचन्द्रजीने कहा नक हे सखा! मैं अपना स्वभाव कहता हं , सो तू
सुन, मेिे स्वभावको या तो काकभुशुंनड जानते हैं या महादे व जानते है , या पावयती जानती है |
प्रभु कहते हैं नक जो मनुष्य चिाचिसे (जड़-चेतन) द्रोह िखता हो, औि वह भी जो भयभीत
जय नसयािाम जय जय नसयािाम
मद, मोह, कपट औि नानाप्रकािके छलको छोड़कि हे सखा! मैं उसको साधु पुरुषके समान
किलेता हुँ ||
दे खो, माता, नचता, बंचु, पुत्र, श्री, सन, धन, घि, सुहृद औि कुटु म्ब
जय नसयािाम जय जय नसयािाम
इन सबके ममतारप तािोंको इकट्ठा किके एक सुन्दि डोिी बट (डोिी बनाकि) औि उससे
अपने मनको मेिे चिणोंमें बां ध दे | अथाय त् सबमेंसे ममता छोड़कि केवल मुझमें ममता िखें, जैसे
”त्वमेव माता नपता त्वमेव त्वमेव बंधूश्चा सखा त्वमेव। त्वमेव नवद्या द्रनवणं त्वमेव त्वमेव सवय मम
दे वदे व”||
जो भक्त समदशी है औि नजसके नकसी प्रकािकी इच्छा नहीं हे तथा नजसके मनमें हषय , शोक,
औि भय नहीं है ||
जय नसयािाम जय जय नसयािाम
अस सज्जन मम उि बस कैसें।
ऐसे सत्पुरुप मेिे हृदयमें कैसे िहते है , नक जैसे लोभी आदमीके मन. धन सदा बसा िहता है
||
हे नबभीषण! तुम्हािे जैसे जो प्यािे सन्त भक्त हैं उिीके अथय मैं दे ह धािण किता हं औि
दोहा – Sunderkand
जो लोि सिुण उपासना कितै हैं , बड़े नहतकािी हैं , नीनतमें ननित है , ननयममें दृढ है औि नजनकी
ब्राह्मणोंके चिणकमलों प्रीनत है वे मनुष्य मुझको प्राणों के समान प्यािे लिते हें ॥48॥
सुंदिकाण्ड – 49
च पाई – सुंदिकाण्ड
है लंकेश (लंकापनत)! सुनो, आपमें सब िुण है औि इसीसे आप मुझको अनतशय प्यािें लिते
हो||
िामचन्द्रजीके ये वचन सुनकि तमाम वानिोंके झंु ड कहने लिे नक हे कृपाके पुंज! आपकी
जय हो||
जय नसयािाम जय जय नसयािाम
ओि नवभीषणभी प्रभुकी बाणीको सुनता हुआ उसको कणाय मृतरप जानकि तृप्त नहीं होता
था||
औि वािं वाि िामचन्द्द्वजीके चिणकमल धिकि ऐसा आल्हानदत हुआ नक वह अपाि प्रेम हृदयके
प्रनतपाल उि अंतिजामी॥
पहले मेिे जो कुछ वासना थी वहभी आपके चिणकमलकी प्रीनतरप नदीसे बह िई||
जय नसयािाम जय जय नसयािाम
औि कहा नक हे सखा! यद्यनप तेिे नकसी बातकी इच्छा नहीं है तथानप जित् में मेिा दशयन
अमोघ है अथाय त् ननष्फल नही है || ऐसे कहकि प्रभुने नबभीषणके िाजनतलक किनदया. उस
दोहा – Sunderkand
िावणका क्रोध तो अनिके समान है औि उसका श्वास प्रचंड पवनके तुल्य है | उससे जलते हुए
दोहा – Sunderkand
च पाई – सुंदिकाण्ड
ऐसे प्रभुको छोड़कि जो आदमी दू सिे को भजते हैं वे मनुष्य नवना सींि पूंछके पशु हैं ||
प्रभुने नबभीषणको अपना भक्त जानकि जो अपनाया, यह प्रभुका स्वभाव सब वानिोंको अच्छा
लिा||
जय नसयािाम जय जय नसयािाम
प्रभु तो सदा सवयत्र, सबके घटमें िहनेवाले (सबके हृदय में बसनेवाले), सवयरप (सब रपों में
िाक्षसकुलके संहाि किने वाले, नीनतको पालनेवाले, मायासे मनुष्यमूनतय (कािण से भक्तों पि कृपा
क्ोंनक यह समुद्र सपय , मिि औि अनेक जानतकी मछनलयोंसे व्याप्त हो िहा है , बड़ा अथाह है ,
उसवक्त लंकेश अथाय त् नवभीषणने कहा नक हे िधुनाथ! सुनो, आपके बाण ऐसे हैं नक नजनसे
तथानप नीनतमें ऐसा कहा है नक पहले साम वचनोंसे काम लेना चानहये , इसवास्ते समुद्रके पास
दोहा – Sunderkand
कहे िा औि उपायको धिकि ये वानि औि िीछ नवनाही परिश्रम समुद्रके पाि हो जाएुँ िे ॥50॥
सुंदिकाण्ड – 51
च पाई – सुंदिकाण्ड
नबभीषणकी यह बात सुनकि िामचन्द्रजीने कहा नक हे सखा! तुमने यह उपाय तो बहुत अच्छा
बतलाया औि हम इस उपायको किें िे भी, पिं तु यनद दै व सहाय होिा तो सफल होिा||
यह सलाह लक्ष्मणके मनमें अच्छी नही लिी अतएव िामचन्द्रजीके वचन सुनकि लक्ष्मणने बड़ा
दु ख पाया||
जय नसयािाम जय जय नसयािाम
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दै व दै व आलसी पुकािा॥
औि लक्ष्मणने कहा नक हे नाथ! दै वका क्ा भिोसा है ? आप तो मनमें क्रोध लाकि समुद्रको
सुखा दीनजये ||
दै वपि भिोसा िखना यह तो कायि पुरुषोंके मनका एक आधाि है ; क्ोंनक वेही आलसी लोि
लक्ष्मणके ये वचन सुनकि प्रभुने हुँ सकि कहा नक हे भाई! मैं ऐसेही कर
ं िा पि तू मनमे
औि प्रथमही प्रभुने जाकि समुद्रको प्रणाम नकया औि नफि कुश नबछा कि उसके तटपि
नविाजे ||
दोहा – Sunderkand
उस दू तने कपटसे वानिका रप धिकि वहां का तमाम हाल दे खा. तहां प्रभुका शिणाितोंपि
अनतशय स्नेह दे खकि उसने अपने मनमें प्रभुके िुणोंकी बड़ी सिाहना की ॥51॥
सुंदिकाण्ड – 52
च पाई – सुंदिकाण्ड
औि दे खते दे खते प्रेम ऐसा बढ िया नक वह नछपाना भूल कि िामचन्द्रजीके स्वभावकी प्रकटमें
सुग्रीवने दे खकि कहा नक हे वानिो सुनो, इस िाक्षस दु ष्टको अंि-भंि किके भेज दो||
सुग्रीवके ये वचन सुनकि सब वानि द ड़े , नफि उसको बां ध कि कटक (सेना) में चािों ओि
नफिाया||
जय नसयािाम जय जय नसयािाम
वानि उसको अनेक प्रकािसे मािने लिे औि वह अनेक प्रकािसे दीनकी भां नत पुकािने लिा
तब उसने पुकाि कि कहा नक जो हमािी नाक कान काटते है उनको श्रीिामचन्द्रजीकी शपथ
है ||
जय नसयािाम जय जय नसयािाम
सेनामें खिभि सुनकि लक्ष्मणने उसको अपने पास बुलाया औि दया आ जानेसे हुँ सकि
दोहा – Sunderkand
सुंदिकाण्ड – 53
च पाई – सुंदिकाण्ड
लक्ष्मणके ये वचन सुन तुिंत लक्ष्मणके चिणोंमें नशि झुका कि िामचन्द्रजीके िुणोंकी प्रशंसा
िामचन्द्रजीके यशकों िाता हुआ लंकामें आया. िावणके पास जाकि उसने िावणके चिणोंमें
प्रणाम नकया||
जय नसयािाम जय जय नसयािाम
उस समय िावणने हुँ सकि उससे पूंछा नक हे शु क! अपनी कुशलताकी बात कहो||
उस शठने लंकाको िाज किते किते छोड़नदया सो अब उस अभािेकी जवके (ज के) घुनके
(कीड़ा) समान दशा होिी अथाय त् जैसे जव पीसनेके साथ उसमेंका घुनभी पीस जाता है ऐसे
हे शुक! अभी उनके जीवकी िक्षा किनेवाला नबचािा कोमलहृदय समुद्र हुआ है (उनके औि
िाक्षसों के बीच में यनद समुद्र न होता तो अब तक िाक्षस उिें मािकि खा िए होते )| सो
औि नफि उन तपन्हस्वयोकी बात कहो नजनके ह्रदयमें मेिी बड़ी त्रास बैठ िही है (मेिा बड़ा
डि है )||
जय नसयािाम जय जय नसयािाम
दोहा – Sunderkand
हे शुक! क्ा तेिी उनसे भेट हुई? क्ा वे मेिी सुख्यानत (सुयश) कानोंसे सुनकि पीछे ल ट
िए| हे शुक! शत्रुके दलका तेज आि बल क्ों नहीं कहता? तेिा नचि चनकत-सा (भ च
ं क्का-
च पाई – सुंदिकाण्ड
िावणके ये वचन सुनकि शुकने कहा नक हे नाथ! जैसे आप कृपा किके पूंछते हो ऐसे ही
हे नाथ! नजससमय आपका भाई िामसे जाकि नमला उसीक्षण िामने उसके िाजनतलक कि
नदया है ||
जय नसयािाम जय जय नसयािाम
मै वानिका रप धिकि सेनाके भीति घुसा सो नफिते नफिते वानिोंने जब मुझको आपका दू त
जान नलया तब उिोंने मुझको बां धकि अनेक प्रकािका दु ुःख नदया||
औि मेिी नाक कान काटने लिे तब मैंने उनको िामकी शपथ दी तब उिोंने मुझको छोड़
नदया||
जय नसयािाम जय जय नसयािाम
नहीं जा सकती||
हे िावण! िीछ औि वानि अनेक िं ि धािण नकये बड़े डिावने दीखते हैं , बड़े नवकट उनके
उनके बीच कई नामी भट पड़े हे , नक जो बड़े भयानक औि बड़े कठोि हैं . नजनके नाना
दोहा – Sunderkand
उनमें जो बड़े बड़े योद्धा हैं उनमेंसे कुछ नाम कहता हुँ सो सुनो – नद्वनवद, मयन्द, नील,
नल, अंिद विैिे, नवकटास्य, दनधिख, केसिी, कुमुद, िव. औि बलका पुंज जाम्बवान ॥54॥
सुंदिकाण्ड – 55
च पाई – सुंदिकाण्ड
ये सब वानि सुग्रीवके समान बलवान हैं | इनके बिाबि दू सिे किोड़ों वानि हैं , क न निन सकता
है ? ||
िामचन्द्रजीकी कृपासे उनके बलकी कुछ तु लना नहीं है | वे उनके प्रभावसे नत्रलोकीको त्रनके
जय नसयािाम जय जय नसयािाम
हे िावण! वहां मैं निन तो नहीं सका पिं नु कानोंसे ऐसा सुना था नक अठािह पद्म तो अकेले
हे नाथ! उस कटकमें (सेना) ऐसा वानि एकभी नहीं है नक जो िणमें आपको जीत न
सके||
जय नसयािाम जय जय नसयािाम
सब वानि बड़ा कोध किके हाथ मीजते हैं ; पिं तु नबचािे किें क्ा? िामचन्द्रजी उनको आज्ञा नहीं
दे ते||
वे ऐसे बली है नक मछनलयां औि सपोंके साथ समुद्रको सुखा सकते हैं औि नखोंसे नवशाल
औि सब वानि ऐसे वचन कहते हैं नक हम जाकि िावणको माि कि उसी क्षण धूल में नमला
दें िे||
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(ननिलना) चाहते है ||
जय नसयािाम जय जय नसयािाम
दोहा – Sunderkand
श्रीिामचन्द्रजी नसि पि है | इसनलए हे िावण! वे किोड़ों कालों को भी सं ग्राममें जीत सकते हैं
॥55॥
सुंदिकाण्ड – 56
च पाई – सुंदिकाण्ड
सक सि एक सोनष सत सािि।
िामचन्द्रजीके तेज, बल, औि बुन्हद्धकी बढाईको किोड़ों शेषजी भी िा नहीं सकते तब औिकी तो
बातही क न?||
यद्यनप वे एक बाणसे स समुद्रकों सुखा सकते है पिं तु आपका भाई नबभीषण नीनतमें पिम
ननपुण है इसनलए श्री िाम ने समुद्रका पाि उतिनेके नलये आपके भाई नवभीषणसे पूछा||
जय नसयािाम जय जय नसयािाम
तब उसने सलाह दी नक पहले तो निमीसे काम ननकालना चानहये औि जो निमीसे काम नहीं
ननकले तो पीछे तेजी किनी चानहये || नबभीपणके ये वचन सुनकि श्री िाम मनमें दया िखकि
दू तके ये वचन सुनकि िावण हुँ सा औि बोला नक नजसकी ऐसी बुन्हद्ध है , तभी तो वानिोंको तो
सहाय बनाया है ||
जय नसयािाम जय जय नसयािाम
औि स्वभावसे डिपोंकके (नवभीषण के) वचनोंपि दृढता बां धी है तथा समुद्रसे अबोध बालककी
हे मूखय! उसकी झूठी बड़ाई तू क्ों किता वै ? मैंने शत्रुके बल औि बुन्हद्धकी थाह पा ली है ||
जय नसयािाम जय जय नसयािाम
खल िावनके ये वचन सुनकि दू तको बड़ा क्रोध आया| इससे उसने अवसि जानकि लक्ष्मणके
ओि कहा नक यह पनत्रका िामके छोटे भाई लक्ष्मणने दी है | सो हे नाथ! इसको पढकि अपनी
िावणने हुँ सकि वह पनत्रका बाएं हाथमें ली औि यह शठ (मूखय) अपने मंनत्रयोंको बुलाकि
पढाने लिा||
जय नसयािाम जय जय नसयािाम
दोहा – Sunderkand
(पनत्रका में नलखा था -) हे शट (अिे मूखय)! तू बातोंसे मनको भले रिझा ले, हे कुलां तक!
अपने कुलका नाश मत कि, िामचन्द्रजीसे नविोध किके नवष्णु , ब्रह्मा औि महे शके शिण जाने
पि भी तू बच नही सकेिा॥56(क)॥
जय नसयािाम जय जय नसयािाम
दोहा – Sunderkand
तू अनभमान छोड़कि अपने छोटे भाईके जैसे प्रभुके चिणकमलोंका भ्रमि होजा| अथाय त्
िामचन्द्रजीके चिणोंका चेिा होजा| अिे खल! िामचन्द्रजीके बाणरप आिमें तू कुलसनहत पतं ि
मत हो, जैसे पतंि आिमें पड़कि जल जाता है ऐसे तू िामचन्द्रजीके बाणसे मिे मत ॥56(ख)॥
सुंदिकाण्ड – 57
च पाई – सुंदिकाण्ड
ये अक्षि सुनकि िावण मनमें तो कुछ डिा, पिं तु ऊपिसे हुँ सकि सबको सुनाके िावणने
कहा||
नक इस छोटे तपस्वीकी वाणीका नवलास तो ऐसा है नक मानों पृथ्वीपि पड़ा हुआ आकाशको
हे नाथ! आप कोध तजकि मेिे वचन सुनो, औि िामसेजो नविोध बां ध िक्खा है उसे छोड़
दो||
जय नसयािाम जय जय नसयािाम
यद्यनप वे िाम सब लोकोंके स्वामी हैं तोभी उनका स्वभाव बड़ाही कोमल है ||
आप जाकि उनसे नमलोिे तो नमलते ही वे आपपि कृपा किें िे, आपके एकभी अपिाधको वे
(शुकने कई बातें कहीं पिं तु िावण कुछ नहीं बोला पिं तु ) नजस समय सीताको दे नेकी बात
तब वहभी (नवभीषण की भाुँ नत) िावणके चिणोंमें नशि नमाकि वहां को चला नक जहां कृपाके
िामचन्द्रजी को प्रणाम किके उसने वहां की सब बात कही| तदनंति वह िाक्षस िामचन्द्रजीकी
महादे वजी कहते हैं नक हे पावयती! यह पूवयजन्ममें बड़ा ज्ञानी मुनन था, सो अिस्त्य ऋनषके
यहां िामचन्द्रजीके चिणोको वािं वाि नमस्काि किके नफि अपने आश्रमको िया||
जय नसयािाम जय जय नसयािाम
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दोहा – Sunderkand
जब जड़ समुद्रने नवनयसे नहीं माना अथाय त् िामचन्द्रजीको दभाय सनपि बैठे तीन नदन बीत िये
च पाई – सुंदिकाण्ड
हे लक्ष्मण! धनुष बाण लाओ. क्ोंनक अब इस समुद्रको बाणकी आिसे सुखाना होिा||
दे खो, इतनी बातें सब ननष्फल जाती हैं | शठके पास नवनय किना, कुनटल आदमीसे प्रीनत िखना,
ममतासे भिे हुए जनके पास ज्ञानकी बात कहना, अनतलोभीके पास वैिाग्यका प्रसंि चलाना||
क्रोधीके पास समताका उपदे श किना, कामी (लंपट) के पास भिवानकी कथाका प्रसंि चलाना
यह मत लनछमन के मन भावा॥
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ऐसे कहकि िामचन्द्रजीने अपना धनुष चढाया. यह िामचन्द्रजीका मत लक्ष्मणके मनको बहुत
अच्छा लिा||
प्रभुने इधि तो धनुषमें नवकिाल बाणका सन्धान नकया औि उधि समुद्रके हृदयके बीच
तब वह मानको तज, ब्राह्मणका स्वरप धि, हाथमें अनेक मनणयोंसे भिाहुआ कंचनका थाि ले
बानहि आया||
जय नसयािाम जय जय नसयािाम
दोहा – Sunderkand
काकभुशुंनडने कहा नक हे िरुड़! दे खा, केला काटनेसही फलता है . चाहो दू सिे किोडों उपाय
किलो औि ख़ूब सीच लो, पिं तु नबना काटे नहीं फलता| ऐसेही नीच आदमी नवनय किनेसे नहीं
सुं दिकाण्ड – 59
च पाई – सुंदिकाण्ड
समुद्रने भयभीत होकि प्रभुके चिण पकड़े औि प्रभुसे प्राथयना की नक हे प्रभु मेिे सवय अपिाध
क्षमा किो||
औि सृनष्टके नननमि आपकीही प्रेिणासे मायासे ये प्रकट हुए है , सो यह बात सब ग्रंथोंमें प्रनसद्ध
हे ||
हे प्रभु! नजसको स्वामीकी जैसी आज्ञा होती है वह उसी तिह िहता है तो सुख पाता है ||
जय नसयािाम जय जय नसयािाम
हे प्रभु! आपने जो मुझको नशक्षा दी, यह बहुत अच्छा नकया; पिं तु मयाय दा तो सब आपकी ही
बां धी हुई है ||
जय नसयािाम जय जय नसयािाम
हे प्रभु! मैं आपके प्रतापसे सूख जाऊंिा औि उससे कटक भी पाि उति जायिा. पिं तु इसमें
यह बात वेदमें िायी है | अब जो आपको जुँचे वही आज्ञा दे वें सो मै उसके अनुसाि शीघ्र
कर
ं ||
जय नसयािाम जय जय नसयािाम
दोहा – Sunderkand
समुद्रके ऐसे अनतनवनीत वचन सुनकि, मुस्कुिा कि, प्रभुने कहा नक हे तात! जैसे यह हमािा
च पाई – सुंदिकाण्ड
इस कािण हे प्रभु ! नलका छु आ हुआ भािी पवयत भी आपके प्रतापसे समुद्रपि तैि जायिा||
(नील औि नल दोनो बचपनमें खेला किते थे | सो ऋनषयोंके आश्रमोंमें जाकि नजस समय
समुद्रमें फेंक दे ते थे | इससे ऋनषयोंने शाप नदया नक नलका डाला हआ पत्थि नहीं डु बेंिा| सो
हे प्रभु! मुझसे जो कुछ बनसकेिा वह अपने बलके अनुसाि आपकी प्रभुताकों हदयमें िखकि
में भी सहाय कर
ं िा||
हे नाथ! इस तिह आप समुद्रमें सेतु बां ध दीनजपे नक नजसको नवद्यमान दे खकि नत्रलोकीमें लोि
हे नाथ! इसी बाणसे आप मेिे उिि तटपि िहने वाले पापके पुंज दु ष्टोंका संहाि किो||
ऐसे दयालु िणधीि श्रीिामचन्द्रजीने साििके मनकी पीड़ाका जानकि उसको तुिंत हिनलया||
जय नसयािाम जय जय नसयािाम
समुद्रने सािा हाल िामचन्द्रजीको कह सुनाया, नफि चिणोंको प्रणाम कि अपने धामको नसधािा||
जय नसयािाम जय जय नसयािाम
दोहा – Sunderkand
समुद्र तो ऐसे प्राथयना किके अपने घिको िया| िामचन्द्रजीके भी मनमें यह समुद्रकी सलाह भा
ियी|
तुलसीदासजी कहते हैं नक कनलयु ि के पापों को हिनेवाला यह िामचन्द्रजीका चरित मेिी जैसी
बुन्हद्ध है वैसा मैंने िाया है ; क्ोंनक िामचन्द्रजीके िुणिाण (िुणसमूह) ऐसे हैं नक वे सुखके तो
धाम हैं , संशयके नमटानेवाले है औि नवषाद (िं ज) को शां त किनेवाले है सो नजनका मन पनवत्र
औि सुनते हैं ||
जय नसयािाम जय जय नसयािाम
दोहा – Sunderkand
सवय प्रकािके सुमंिल दे नेवाले िामचन्द्रजीके िुणोंका जो मनुष्य िान किते है औि आदिसनहत
सुनते हैं वे लोि संसािसमुद्रको नबना नाव पाि उति जाते हें ॥60॥
जय नसयािाम जय जय नसयािाम
कनलयुि के समस्त पापों का नाश किनेवाले श्री िामचरितमानस का यह पाुँ चवाुँ सोपान समाप्त
हुआ।
जय नसयािाम जय जय नसयािाम