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Dhyan Sutra PDF
Dhyan Sutra PDF
ु तकं म्
ु त उपल्ि
करायी जायं और इ्टरनट पर हहदी की उप््ितत क अधिक स अधिक बढ़ाया
जाए | इसी रम मं मं आपक सामन एक स एक अधिक प्
ु तकं र्तुत कर
रहा हू |
यह चन
ु ती हमार सामन भी ह , लककन एक वव्वास भी कक हहदी क जागूक
ह रह पाठकं क इस सम्या क बार मं अदाज़ा ह और व इस बार मं कवल
मक
ू दिशक नही ह | हम आपक हहदी की प्
ु तकं दं ग , हहदी मं जानकारी दं ग
और बहुत कुछ दं ग और हमं आिा ह कक आप भी हम बदल मं अपना ्यार
दं ग और हमारी मदद करं ग हह्दी क स्र्ि बनान मं |
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ि्यवाद
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्यान–सर
ू (ओश )रवचन–पहला
मरररयआ्मन ्,
सबस पहल त आपका ्वागत करं–इसललए कक परमा्मा मं आपकी उ्सुकता ह–इसललए कक सामा्य जीवन क ऊपर एक साधक
क जीवन मं रवश करन की आकांषा ह–इसललए कक संसार क अततरर्त स्य क पान की ्यास ह।
स भा्य ह उन ल गं का, ज स्य क ललए ्यास ह सकं। बहुत ल ग पदा ह त हं, बहुत कम ल ग स्य क ललए ्यास ह पात हं।
स्य का लमलना त बहुत बड़ा स भा्य ह। स्य की ्यास ह ना भी उतना ही बड़ा स भा्य ह। स्य न भी लमल, त क ई हजज नहीं;
लककन स्य की ्यास ही पदा न ह , त बहुत बड़ा हजज ह।
स्य यदद न लमल, त मंन कहा, क ई हजज नहीं ह। हमन चाहा था और हमन रयास ककया था, हम रम ककए थ और हमन आकांषा
की थी, हमन संक्प बांधा था और हमन ज हमस बन सकता था, वह ककया था। और यदद स्य न लमल, त क ई हजज नहीं; लककन
स्य की ्यास ही हममं पदा न ह , त जीवन बहुत दभ
ु ाज्य स भर जाता ह।
और मं आपक यह भी कहूं कक स्य क पा लना उतना मह्वपू्ज नहीं ह, जजतना स्य क ललए ठीक अथं मं ्यास ह जाना ह।
वह भी एक आनंद ह। ज षुर क ललए ्यासा ह ता ह, वह षुर क पाकर भी आनंद उपल्ध नहीं करता। और ज ववराट क ललए
्यासा ह ता ह, वह उस न भी पा सक, त भी आनंद स भर जाता ह।
इस पुनः द हराऊं–ज षुर क ललए आकांषा कर, वह अगर षुर क पा भी ल, त भी उस क ई शांतत और आनंद उपल्ध नहीं ह ता
ह। और ज ववराट की अभी्सा स भर जाए, वह अगर ववराट क उपल्ध न भी ह सक, त भी उसका जीवन आनंद स भर जाता ह।
जजन अथं मं हम र्ठ की कामना करन लगत हं, उ्हीं अथं मं हमार भीतर क ई र्ठ पदा ह न लगता ह।
क ई परमा्मा या क ई स्य हमार बाहर हमं उपल्ध नहीं ह गा, उसक बीज हमार भीतर हं और व ववकलसत हंग। लककन व तभी
ववकलसत हंग जब ्यास की आग और ्यास की तवपश और ्यास की गमी हम पदा कर सकं। मं जजतनी र्ठ की आकांषा करता
हूं, उतना ही मर मन क भीतर तिप हुए व बीज, ज ववराट और र्ठ बन सकत हं, व कंवपत ह न लगत हं और उनमं अंकुर आन की
संभावना पदा ह जाती ह।
जब आपक भीतर कभी यह खयाल भी पदा ह कक परमा्मा क पाना ह, जब कभी यह खयाल भी पदा ह कक शांतत क और स्य
क उपल्ध करना ह, त इस बात क ्मर् रखना कक आपक भीतर क ई बीज अंकुर ह न क उ्सुक ह गया ह। इस बात क
्मर् रखना कक आपक भीतर क ई दबी हुई आकांषा जाग रही ह। इस बात क ्मर् रखना कक कुि मह्वपू्ज आंद लन आपक
भीतर ह रहा ह।
उस आंद लन क हमं स्हालना ह गा। उस आंद लन क सहारा दना ह गा। ्यंकक बीज अकला अंकुर बन जाए, इतना ही काफी नहीं
ह। और भी बहुत-सी सुरषाएं जररी हं। और बीज अंकुर बन जाए, इसक ललए बीज की षमता काफी नहीं ह, और बहुत-सी सुववधाएं
भी जररी हं।
एक बीज की यह षमता ह, एक मनु्य की त षमता और भी बहुत ्यादा ह। एक बीज स इतना बड़ा, ववराट ववकास ह सकता ह,
एक प्थर क ि ट-स टुकड़ स अगर अ्ु क वव्फ ट कर ललया जाए, त महान ऊजाज का ज्म ह ता ह, बहुत शज्त का ज्म ह ता
ह। मनु्य की आ्मा और मनु्य की चतना का ज अ्ु ह, अगर वह ववकलसत ह सक, अगर उसका वव्फ ट ह सक, अगर उसका
ववकास ह सक, त जजस शज्त और ऊजाज का ज्म ह ता ह, उसी का नाम परमा्मा ह। परमा्मा क हम कहीं पात नहीं हं, बज्क
अपन ही वव्फ ट स, अपन ही ववकास स जजस ऊजाज क हम ज्म दत हं , जजस शज्त क , उस शज्त का अनुभव परमा्मा ह।
उसकी ्यास आपमं ह, इसललए मं ्वागत करता हूं।
लककन इसस क ई यह न समझ कक आप यहां इक्ठ ह गए हं , त जररी ह कक आप ्यास ही हं। आप यहां इक्ठ ह सकत हं
मार एक दशजक की भांतत भी। आप यहां इक्ठ ह सकत हं एक मार सामा्य जजञासा की भांतत भी। आप यहां इक्ठ ह सकत हं
एक कुतूहल क कार् भी। लककन कुतूहल स क ई ्वार नहीं खल
ु त हं। और ज ऐस ही दशजक की भांतत खड़ा ह , उस क ई रह्य
उपल्ध नहीं ह त हं। इस जगत मं ज भी पाया जाता ह, उसक ललए बहुत कुि चक ु ाना पड़ता ह। इस जगत मं ज भी पाया जाता
ह, उसक ललए बहुत कुि चकु ाना पड़ता ह। कुतूहल कुि भी नहीं चक
ु ाता। इसललए कुतूहल कुि भी नहीं पा सकता ह। कुतूहल स क ई
साधना मं रवश नहीं करता। अकली जजञासा नहीं, मुमुषा! एक गहरी ्यास!
कल सं्या मं ककसी स कह रहा था कक अगर एक मु्थल मं आप हं और पानी आपक न लमल, और ्यास बढ़ती चली जाए, और
वह घड़ी आ जाए कक आप अब मरन क हं और अगर पानी नहीं लमलगा, त आप जी नहीं सकंग। अगर क ई उस व्त आपक कह
कक हम यह पानी दत हं, लककन पानी दकर हम जान ल लंग आपकी, यातन जान क मू्य पर हम पानी दत हं, आप उसक भी लन
क राजी ह जाएंग। ्यंकक मरना त ह; ्यास मरन की बजाय, त्ृ त ह कर मर जाना बहतर ह।
उतनी जजञासा, उतनी आकांषा, जब आपक भीतर पदा ह ती ह, त उस जजञासा और आकांषा क दबाव मं आपक भीतर का बीज
टूटता ह और उसमं स अंकुर तनकलता ह। बीज ऐस ही नहीं टूट जात हं, उनक दबाव चादहए। उनक बहुत दबाव चादहए, बहुत उताप
चादहए, तब उनकी स्त ख ल टूटती ह और उसक भीतर स क मल प ध का ज्म ह ता ह। हम सबक भीतर भी बहुत स्त ख ल
ह। और ज भी उस ख ल क बाहर आना चाहत हं, अकल कुतूहल स नहीं आ सकंग। इसललए ्मर् रखं , ज मार कुतूहल स इक्ठ
हुए हं, व मार कुतूहल क लकर वापस ल ट जाएंग। उनक ललए कुि भी नहीं ह सकगा। ज दशजक की भांतत इक्ठ हुए हं, व दशजक
की भांतत ही वापस ल ट जाएंग, उनक ललए कुि भी नहीं ह सकगा।
इसललए र्यक अपन भीतर पहल त यह खयाल कर ल, उसमं ्यास ह? र्यक अपन भीतर यह ववचार कर ल, वह ्यासा ह? इस
बहुत ्प्ट रप स अनभ
ु व कर ल, वह सच मं परमा्मा मं उ्सक
ु ह? उसकी क ई उ्सक
ु ता ह स्य क , शांतत क , आनंद क उपल्ध
करन क ललए?
अगर नहीं ह, त वह समझ कक वह ज भी करगा, उस करन मं क ई रा् नहीं ह सकत; वह तन्रा् ह गा। और तब कफर उस
तन्रा् च्टा का अगर क ई फल न ह , त साधना जज्मवार नहीं ह गी, आप ्वयं जज्मवार हंग।
इसललए पहली बात अपन भीतर अपनी ्यास क ख जना और उस ्प्ट कर लना ह। आप सच मं कुि पाना चाहत हं? अगर पाना
चाहत हं, त पान का रा्ता ह।
एक बार ऐसा हुआ, ग तम बु्ध एक गांव मं ठहर थ। एक ्यज्त न उनक आकर कहा कक ‘आप र ज कहत हं कक हर एक ्यज्त
म ष पा सकता ह। लककन हर एक ्यज्त म ष पा ्यं नहीं लता ह?’ बु्ध न कहा, ‘मर लमर, एक काम कर । सं्या क गांव मं
जाना और सार ल गं स पि
ू कर आना, व ्या पाना चाहत हं। एक फहरर्त बनाओ। हर एक का नाम ललख और उसक सामन ललख
लाना, उनकी आकांषा ्या ह।’
वह आदमी गांव मं गया। उसन जाकर पूिा। उसन एक-एक आदमी क पूिा। थ ड़-स ल ग थ उस गांव मं , उन सबन उतर ददए। वह
सांझ क वापस ल टा। उसन बु्ध क आकर वह फहरर्त दी। बु्ध न कहा, ‘इसमं ककतन ल ग म ष क आकांषी हं?’ वह बहुत हरान
हुआ। उसमं एक भी आदमी न अपनी आकांषा मं म ष नहीं ललखाया था। बु्ध न कहा, ‘हर एक आदमी पा सकता ह, यह मं कहता
हूं। लककन हर एक आदमी पाना चाहता ह, यह मं नहीं कहता।’
हर एक आदमी पा सकता ह, यह बहुत अलग बात ह। और हर एक आदमी पाना चाहता ह, यह बहुत अलग बात ह। अगर आप पाना
चाहत हं, त यह आ्वासन मानं। अगर आप सच मं पाना चाहत हं, त इस जमीन पर क ई ताकत आपक र कन मं समथज नहीं ह।
और अगर आप नहीं पाना चाहत, त इस जमीन पर क ई ताकत आपक दन मं भी समथज नहीं ह।
त सबस पहली बात, सबस पहला सूर, ज ्मर् रखना ह, वह यह कक आपक भीतर एक वा्तववक ्यास ह? अगर ह, त आ्वासन
मानं कक रा्ता लमल जाएगा। और अगर नहीं ह, त क ई रा्ता नहीं ह। आपकी ्यास आपक ललए रा्ता बनगी।
दस
ू री बात, ज मं रारं लभक रप स यहां कहना चाहूं, वह यह ह कक बहुत बार हम ्यास भी ह त हं कक्हीं बातं क ललए, लककन हम
आशा स भर हुए नहीं ह त हं। हम ्यास ह त हं, लककन आशा नहीं ह ती। हम ्यास ह त हं, लककन तनराश ह त हं। और जजसका
पहला कदम तनराशा मं उठगा, उसका अंततम कदम तनराशा मं समा्त ह गा। इस भी ्मर् रखं , जजसका पहला कदम तनराशा मं
उठगा, उसका अंततम कदम भी तनराशा मं समा्त ह गा। अंततम कदम अगर सफलता और साथजकता मं जाना ह, त पहला कदम बहुत
आशा मं उठना चादहए।
त इन तीन ददनं क ललए आपस कहूंगा–यंू त परू जीवन क ललए कहूंगा–एक बहुत आशा स भरा हुआ ृज्टक ्। ्या आपक पता
ह, बहुत कुि इस पर तनभजर करता ह आपक चचत का कक ्या आप आशा स भरकर ककसी काम क कर रह हं या तनराशा स? अगर
आप पहल स तनराश हं, त आप अपन ही हाथ स उस डगाल क काट रह हं, जजस पर आप बठ हुए हं।
त मं आपक यह कहूं, साधना क संबंध मं बहुत आशा स भरा हुआ ह ना बड़ा मह्वपू्ज ह। आशा स भर हुए ह न का मतलब यह ह
कक अगर इस जमीन पर ककसी भी मनु्य न स्य क कभी पाया ह, अगर इस जमीन पर मनु्य क इततहास मं कभी भी क ई
मनु्य आनंद क और चरम शांतत क उपल्ध हुआ ह, त क ई भी कार् नहीं ह कक मं उपल्ध ्यं नहीं ह सकंू गा।
उन लाखं ल गं की तरफ मत दखं , जजनका जीवन अंधकार स भरा हुआ ह और जज्हं क ई आशा और क ई ककर् और क ई रकाश
ददखाई नहीं पड़ता। उन थ ड़-स ल गं क इततहास मं दखं , जज्हं स्य उपल्ध हुआ ह। उन बीजं क मत दखं , ज वष
ृ नहीं बन पाए
और सड़ गए और न्ट ह गए। उन थ ड़-स बीजं क दखं , जज्हंन ववकास क उपल्ध ककया और ज परमा्मा तक पहुंच। और
्मर् रखं कक उन बीजं क ज संभव ह सका, वह र्यक बीज क संभव ह। एक मनु्य क ज संभव हुआ ह, वह र्यक दसू र
मनु्य क संभव ह।
मं आपक यह कहना चाहता हूं कक बीज रप स आपकी शज्त उतनी ही ह जजतनी बु्ध की, महावीर की, कृ्् की या राइ्ट की ह।
परमा्मा क जगत मं इस अथं मं क ई अ्याय नहीं ह कक वहां कम और ्यादा संभावनाएं दी गई हं। संभावनाएं सबकी बराबर हं,
लककन वा्तववकताएं सबकी बराबर नहीं हं। ्यंकक हममं स बहुत ल ग अपनी संभावनाओं क वा्तववकता मं परर्त करन का
रयास ही कभी नहीं करत।
त एक आधारभत ू खयाल, आशा स भरा हुआ ह ना ह। यह वव्वास रखं कक अगर कभी भी ककसी क शांतत उपल्ध हुई ह, आनंद
उपल्ध हुआ ह, त मझ
ु भी उपल्ध ह सकगा। अपना अपमान न करं तनराश ह कर। तनराशा ्वयं का सबस बड़ा अपमान ह।
उसका अथज ह कक मं इस य ्य नहीं हूं कक मं भी पा सकंू गा। मं आपक कहूं, इस य ्य आप हं, तनज्चत पा सकंग।
दखं! तनराशा मं भी जीवनभर चलकर दखा ह। आशा मं इन तीन ददन चलकर दखं। इतनी आशा स भरकर चलं कक ह गी घटना, जरर
घटना घटगी। ्यूं! यह ह सकता ह आप आशा स भर हं, लककन बाहर की दतु नया मं ह सकता ह क ई काम आप आशा स भर हं,
त भी न कर पाएं। लककन भीतर की दतु नया मं आशा बहुत बड़ा रा्ता ह। जब आप आशा स भरत हं, त आपका क्-क् आशा स
भर जाता ह, आपका र आं-र आं आशा स भर जाता ह, आपकी ्वास-्वास आशा स भर जाती ह। आपक ववचारं पर आशा का रकाश
भर जाता ह और आपक रा् क ्पंदन मं , आपक दय की धड़कन मं आशा ्या्त ह जाती ह।
आपका पूरा ्यज्त्व जब आशा स भर जाता ह, त भूलमका बनती ह कक आप कुि कर सकंग। और तनराशा का भी ्यज्त्व ह ता
ह–क्-क् र रहा ह, उदास ह, थका ह, डूबा हुआ ह, क ई रा् नहीं हं। सब–जस कक आदमी जजंदा नाममार क ह और मरा हुआ ह।
ऐसा आदमी ककसी रयास पर तनकलगा, ककसी अलभयान पर, त ्या पा सकगा? और आज्मक जीवन का अलभयान सबस बड़ा
अलभयान ह। इसस बड़ी क ई च टी नहीं ह, जजसक क ई मनु्य कभी चढ़ा ह । इसस बड़ी क ई गहराई नहीं ह समुरं की, जजसमं
मनु्य न कभी डुबकी लगाई ह । ्वयं की गहराई सबस बड़ी गहराई ह और ्वयं की ऊंचाई सबस बड़ी ऊंचाई ह।
त मं आपक कहूंगा, तीन ददन आशा की एक भाव-ज्थतत क कायम रखं। आज रात ही जब स एं, त बहुत आशा स भर हुए स एं।
और यह वव्वास लकर स एं कक कल सबु ह जब आप उठं ग, त कुि ह गा, कुि ह सकगा, कुि ककया जा सकगा।
दस
ू री बात मंन कही, आशा का एक ृज्टक ्। आशा क इस ृज्टक ् क साथ ही यह भी आपक ्मर् ददला दं ,ू इन पीि कुि
वषं क अनुभव स इस नतीज पर पहुंचा हूं कक हमारी तनराशा इतनी गहरी ह कक जब हमं कुि लमलना भी शुर ह ता ह, त तनराशा
क कार् ददखाई नहीं पड़ता।
अभी मर पास एक ्यज्त आत थ। व अपनी प्नी क मर पास लाए। उ्हंन पहल ददन, जब व आए थ, त मुझ कहा कक मरी
प्नी क नींद नहीं आती। बबलकुल नींद नहीं आती बबना दवा क। और दवा स भी तीन-चार घंट स ्यादा नींद नहीं आती। और मरी
प्नी भयभीत ह। अनजान भय उस परशान ककए रहत हं। घर क बाहर तनकलती ह, त डरती ह। घर क भीतर ह ती ह, त डरती ह
कक मकान न चगर जाए। अगर पास मं क ई न ह , त घबड़ाती ह कक अकल मं कहीं म्ृ यु न ह जाए, इसललए पास मं क ई ह ना ही
चादहए। रात क सब दवाइयां अपन पास मं रखकर स ती ह कक बीच रात मं क ई खतरा न ह जाए। उ्हंन मझ
ु अपनी प्नी की
यह भय की और तनराशा की हालत बतायी।
मंन उनक कहा कक ्यान का यह ि टा-सा रय ग शुर कररए, लाभ ह गा। उ्हंन रय ग शुर ककया। सात ददन बाद व मुझ लमल।
मंन उनस पूिा, ‘्या हुआ? कसा ह?’ व ब ल, ‘अभी कुि खास नहीं हुआ। बस नींद भर आन लगी ह।’ उ्हंन मुझस कहा, ‘अभी कुि
खास नहीं हुआ, बस नींद भर आन लगी ह।’
सात ददन बाद व मझु कफर लमल, मंन उनस पि ू ा, ‘्या हुआ?’ ब ल, ‘अभी कुि खास नहीं हुआ, थ ड़ा-सा भय दरू ह गया ह।’ व सात
ददन बाद मुझ कफर लमल। मंन उनस पूिा, ‘कुि हुआ?’ व ब ल, ‘अभी कुि ववशष त नहीं हुआ, यही ह कक थ ड़ी नींद आ जाती ह, भय
कम ह गया ह, दवाइयां-ववाइयां अपन पास नहीं रखती। और कुि खास नहीं हुआ।’
इसक मं तनराशा की ृज्ट कहता हूं। और ऐस आदमी क कुि ह भी जाए, त उस पता नहीं चलगा। यह ृज्ट त बुतनयाद स गलत
ह। इसका त मतलब ह, इस आदमी क कुि ह नहीं सकता, अगर ह भी जाए, त भी–त भी उस कभी पता नहीं चलगा कक कुि
हुआ। और बहुत कुि ह सकता था, ज कक ुक जाएगा।
त आशा क इस ृज्टक ् क साथ-साथ रसंगवशात मं आपस यह कहूं, इन तीन ददनं मं ज घदटत ह , उसक ्मर् रखं ; और ज
घदटत न ह , उसक बबलकुल ्मर् न रखं ।
इन तीन ददनं मं ज घदटत ह , उसक ्मर् रखं। और ज घदटत न ह , ज न ह पाए, उस बबलकुल ्मर् न रखं। ्मर्ीय वह
ह ज घदटत हुआ ह । थ ड़ा-सा क् भी अगर लग शांतत का, उसक पकड़ं। वह आपक आशा दगा और गततमान करगा। और अगर
आप उसक पकड़त हं ज नहीं हुआ, त आपकी गतत अवु्ध ह जाएगी और ज हुआ ह, वह भी लमट जाएगा।
त इन तीन ददनं मं यह भी ्मर् रखं कक इन ्यान क रय गं मं ज थ ड़ा-सा आपक अनुभव ह , उसक ्मर् रखं , उसक
आधार बनाएं आग क ललए। ज न ह , उसक आधार न बनाएं। मन्ु य जीवनभर इसी दख
ु मं रहता ह। ज उस लमलता ह, उस भल
ू
जाता ह। और ज उस नहीं लमलता, उसका ्मर् रखता ह। ऐसा आदमी गलत आधार पर खड़ा ह। वसा आदमी बनं , जजस ज लमला
ह, उस ्मर् रख और उस आधार पर खड़ा ह ।
अभी मं पढ़ता था, एक ्यज्त न ककसी क कहा कक ‘मर पास कुि भी नहीं ह। मं बहुत दररर हूं।’ उस दस ू र ्यज्त न कहा कक
‘अगर तुम दररर ह , त एक काम कर । मं तु्हारी बायीं आंख चाहता हूं। इसक मं पांच हजार ुपए दता हूं। तम
ु पांच हजार ुपए ल
ल और बायीं आंख द द ।’ उस आदमी न कहा, ‘यह मुज्कल ह, मं बायीं आंख नहीं द सकता।’ उसन कहा, ‘मं दस हजार ुपए दता हूं,
द नं आंखं द द ।’ उसन कहा, ‘दस हजार! कफर भी मं नहीं द सकता।’ उसन कहा, ‘मं तु्हं पचास हजार ुपए दता हूं, तुम अपनी जान
मुझ द द ।’ उसन कहा, ‘यह असंभव ह। मं नहीं द सकता।’ त उस आदमी न कहा, ‘तब त तु्हार पास बहुत कुि ह, जजसका बहुत
दाम ह। तु्हार पास द आंखं हं, जजनक तुम दस हजार मं दन क राजी नहीं ह । लककन तुम कह रह थ, मर पास कुि भी नहीं ह।’
मं उस आदमी और उस ववचार की बात आपस कह रहा हूं। ज आपक पास ह, उसक ्मर् रखं। और ज साधना मं लमल थ ड़ा-सा,
रतीभर भी लमल, उस ्मर् रखं। उसका ववचार करं , उसकी चचाज करं । उसक आधार स और लमलन का रा्ता बनगा, ्यंकक आशा
बढ़गी। और ज नहीं लमला…।
एक मदहला मर पास आती थीं। पढ़ी-ललखी हं, एक कालज मं र फसर हं , सं्कृत की वव्वान हं। व मर पास आती थीं। एक सात ददन
का रय ग चलता था ्यान का, उसमं आती थीं। पहल ददन व रय ग करन क बाद उठीं और बाहर जाकर मझ
ु स कहीं, ‘षमा करं , अभी
मझ
ु आज क ई ई्वर क दशजन नहीं हुए!’ पहल ददन व रय ग कीं और बाहर जाकर मझ
ु स कहीं, ‘षमा करं , अभी मझ
ु क ई ई्वर क
दशजन नहीं हुए।’
मंन कहा, ‘अगर ई्वर क दशजन ह जात, त ही खतर की बात ह ती। ्यंकक इतना स्ता ज ई्वर लमल जाए, उस कफर शायद आप
ककसी मतलब का भी न समझतीं।’ और मंन उनस कहा कक ‘ज यह आकांषा कर कक वह दस लमनट आंख बंद करक बठ गया ह,
इसललए ई्वर क पान का हकदार ह गया ह, उसस ्यादा मूढ़तापू्ज और क ई ववृ त और ववचार नहीं ह सकता।’
त मं आपस यह कहता हूं कक ज थ ड़ी-सी भी शांतत की ककर् आपक लमल, उस आप सरू ज समझं। इसललए सरू ज समझं कक उसी
ककर् का सहारा पकड़कर आप सूरज तक पहुंच जाएंग। इस अंधकार स भर कमर मं अगर मं बठा हूं और एक मुझ थ ड़ी-सी ककर्
ददखाई पड़ती ह , त मर पास द रा्त हं। एक त मं यह कहूं कक यह ककर् ्या ह, अंधकार इतना घना ह। इस ककर् स ्या
ह गा! अंधकार इतना ्यादा ह। एक रा्ता यह भी ह कक मं यह कहूं कक अंधकार ककतना ही ह , लककन एक ककर् मुझ उपल्ध ह।
और अगर मं इसकी ददशा मं इसका अनुगमन करं, त मं वहां तक पहुंच जाऊंगा, जहां स ककर् पदा हुई और जहां सूरज ह गा।
त मं आपक अंधकार ्यादा ह , त भी उस ववचार करन क नहीं कहता। ककर् ि टी ह , त भी उस पर ही ववचार क खड़ा करन
क कहता हूं। इसस आशा की ृज्ट खड़ी ह गी।
अ्यथा हमार जीवन बड़ उलट हं। अगर मं आपक एक गुलाब क फूल क प ध क पास ल जाऊं और आपक प धा ददखाऊं, त शायद
आप मुझस कहं कक ‘इसमं ्या ह! भगवान कसा अ्यायी ह! द -चार त फूल हं, हजारं कांट हं।’ एक ृज्ट यह भी ह कक गुलाब क
पास जाकर हम यह कहं कक ‘भगवान कसा अ्यायी ह! हजारं कांट हं, कहीं एकाध फूल ह।’
त मं आपक दस ू री ृज्ट रखन क कहूंगा इन तीन ददनं मं । ि टी-सी भी आशा की ज भी झलक आपक लमल साधना मं , उसक
आधार बनाएं, उसक संबल बनाएं।
तीसरी बात, साधना क इन तीन ददनं मं आपक ठीक वस ही नहीं जीना ह, जस आप आज सांझ तक जीत रह हं। मनु्य बहुत कुि
आदतं का यंर ह। और अगर मनु्य अपनी पुरानी आदतं क घर मं ही चल, त साधना की नई ृज्ट ख लन मं उस बड़ी कदठनाई
ह जाती ह। त थ ड़-स पररवतजन करन क मं आपस कहूंगा।
एक पररवतजन त मं आपस यह कहूंगा कक इन तीन ददनं मं आप ्यादा बातचीत न करं । बातचीत इस सदी की सबस बड़ी बीमारी
ह। और आपक पता नहीं कक आप ककतनी बातं कर रह हं। सुबह स सांझ तक, जब तक आप जाग रह हं, बातं कर रह हं। या त
ककसी स कर रह हं, अगर कफर क ई म जूद नहीं ह, त अपन भीतर खद
ु स ही कर रह हं।
इन तीन ददनं मं , इसका बहुत सजग रयास करं कक आपकी बातचीत की ज बहुत यांबरक आदत ह, वह न चल। आदत ह हमारी। यह
साधक क जीवन मं बहुत संघातक ह।
इन तीन ददनं मं मं चाहूंगा, आप कम स कम बात करं । और ज बात भी करं , वह बात भी अ्िा ह कक आपकी वही सामा्य न
ह , ज आप र ज करत हं। आप ्या र ज बातं कर रह हं, उसका क ई बहुत मू्य ह? आप उस नहीं करं ग, त क ई नुकसान ह?
जजसक आप कर रह हं, उसका, अगर नहीं उस बताएंग, क ई अदहत ह?
इन तीन ददनं मं ्मर् रखं कक हमं ककसी स क ई ववशष बात नहीं करनी ह। बहुत अदभत
ु लाभ ह गा। अगर क ई थ ड़ी-बहुत बात
आप करं भी, अ्िा ह कक वह साधना स ही संबंचधत ह , और कुि न ह । अ्िा त यह ह कक न ही करं । ्यादा स ्यादा समय
म न क रखं। वह भी जबरद्ती म न रखन क नहीं कहता हूं कक आप बबलकुल ब लं ही न, या ललखकर ब लं। आप ब लन क ललए
मु्त हं, बातचीत करन क मु्त नहीं हं। और ्मर्पूवक
ज , जजतना साथजक ह उतना ब लं , बाकी चप
ु रहं ।
द लाभ हंग। एक त बड़ा लाभ ह गा कक ्यथज ज शज्त ्यय ह ती ह ब लन मं , वह संचचत ह गी। और उस शज्त का हम उपय ग
साधना मं कर सकंग। दस
ू रा लाभ यह ह गा कक आप दस
ू र ल गं स टूट जाएंग और आप थ ड़ एकांत मं ह जाएंग। हम यहां पहाड़
पर आए हं। पहाड़ पर आन का क ई रय जन पूरा न ह गा, अगर यहां हम द स ल ग इक्ठ हुए हं और आपस मं बातचीत करत
रह और बठकर गपशप करत रह। त हम भीड़ क भीड़ मं रह, हम एकांत मं नहीं आ पाए।
यह मं आपक कहूं कक भीड़ मं जीवन का क ई र्ठ स्य न कभी पदा ह ता ह और न कभी अनभ ु व ह ता ह। भीड़ मं क ई
मह्वप्ू ज बात कभी नहीं हुई ह। ज भी स्य क अनभ
ु व हुए हं, व अ्यंत एकांत मं और अकलपन मं हुए हं।
जब हम ककसी मनु्य स नहीं ब लत और जब हम सारी बातचीत बाहर और भीतर बंद कर दत हं , त रकृतत ककसी बहुत रह्यमय
ढं ग स हमस ब लना शुर कर दती ह। वह शायद हमस तनरं तर ब ल रही ह। लककन हम अपनी बातचीत मं इतन ्य्त हं कक वह
धीमी-सी आवाज हमं सुनाई नहीं पड़ती। हमं अपनी सारी आवाज बंद कर दनी ह गी, ताकक हम उस अंतस-चतन की आवाज क सुन
सकं, ज र्यक क भीतर चल रही ह।
हम यह भी भल
ू गए हं कक हमारा रकृतत स क ई संबंध ह और क ई नाता ह। और हमक यह भी पता नहीं ह कक रकृतत क
साज्न्य मं ्यज्त जजतनी शीरता स परमा्मा की तनकटता मं पहुंचता ह, उतना और कहीं नहीं पहुंचता।
त इस अदभुत तीन ददन क म क का, अवसर का, लाभ उठाएं। अकल मं चल जाएं और ्यथज की बातचीत न करं । वह तीन ददन क
बाद कफर करन क आपक काफी समय रहगा; उस बाद मं कर ल सकत हं।
इस तीसरी बात क ्मर् रखं कक अचधकतर तीन ददन म न मं , एकांत मं और अकल मं बबतान हं। सब साथ हं, त भी अकल मं
ही हम बबता रह हं। साधना का जीवन अकल का जीवन ह। हम यहां इतन ल ग हं , हम ्यान करन बठं ग, त लगगा कक समह
ू मं
्यान कर रह हं। लककन सब ्यान वयज्तक हं। समूह का क ई ्यान नहीं ह ता। बठ जरर हम यहां इतन ल ग हं। लककन हर एक
भीतर जब अपन जाएगा, त अकला रह जाएगा। जब वह आंख बंद करगा, अकला ह जाएगा। और जब शांतत मं रवश करगा, उसक
साथ क ई भी नहीं ह गा। हम यहां द स ल ग हंग, लककन हर एक आदमी कवल अपन साथ ह गा। बाकी एक स तन्यानब क साथ
नहीं ह गा।
सामूदहक क ई ्यान नहीं ह ता, न क ई राथजना ह ती ह। सब ्यान, सब राथजनाएं वयज्तक ह ती हं, अकल ह ती हं। यहां भी हम
अकल रहं ग, बाहर भी हम अकल रहं ग। और अचधकतर म न मं समय क ्यतीत करं ग। नहीं ब लंग। इतना ही काफी नहीं ह कक नहीं
ब लंग। अंतस मं भी ्मर् रखंग कक ्यथज की ज तनरं तर बकवास चल रही ह भीतर आपक–आप खद
ु ही ब ल रह हं, खद
ु ही उतर
द रह हं–उस भी लशचथल रखंग, उस भी ि ड़ंग। अगर भीतर वह लशचथल न ह ती ह , त बहुत ्प्ट भीतर आदश दं कक बकवास बंद
कर द । बकवास मुझ पसंद नहीं ह। अपन भीतर ्वयं स कहं ।
यह भी मं आपक कहूं कक साधना क जीवन मं अपन स कुि आदश दना बहुत मह्वपू्ज ह। कभी आदश दकर दखं । अकल मं बठ
जाएं और अपन मन क कह दं कक ‘बकवास बंद। मुझ यह पसंद नहीं ह।’ और आप हरान हंग कक एक झटक स बातचीत भीतर
टूटगी।
पांचवीं बात, कुि लशकायतं ह सकती हं, क ई तकलीफ ह सकती ह। तीन ददन उसका क ई खयाल नहीं करगा। क ई ि टी-म टी
तकलीफ ह , अड़चन ह , उसका क ई खयाल नहीं करगा। हम कक्हीं सुववधाओं क ललए यहां इक्ठ नहीं हुए हं।
अभी-अभी मं एक चीनी सा्वी का जीवन पढ़ता था। वह एक गांव मं गई थी। उस गांव मं थ ड़-स मकान थ। उसन उन मकानं क
सामन जाकर–सांझ ह रही थी, रात पड़न क थी, वह अकली सा्वी थी–उसन ल गं स कहा कक ‘मुझ घर मं ठहर जान दं ।’ अपररचचत
्री। कफर उस गांव मं ज ल ग रहत थ, वह उनक धमज क मानन वाली नहीं थी। ल गं न अपन दरवाज बंद कर ललए। दस
ू रा गांव
बहुत दरू था। और रात, और अकली। उस उस रात एक खत मं जाकर स ना पड़ा। वह एक चरी क दर्त क नीच जाकर चप
ु चाप स
गई।
सुबह वह उस गांव मं गई और उन-उन क ध्यवाद ददया, जज्हंन राबर ्वार बंद कर ललए थ। और उ्हंन पूिा, ‘काह का
ध्यवाद!’ उसन कहा, ‘तुमन अपन रमवश, तुमन मुझ पर कु्ा और दया करक रात अपन ्वार बंद कर ललए, उसका ध्यवाद। मं
एक बहुत अदभुत ष् क उपल्ध कर सकी। मंन चरी क फूल खखल दख और मंन पूरा चांद दखा। और मंन कुि ऐसा दखा ज
मंन जीवन मं नहीं दखा था। और अगर आपन मुझ जगह द दी ह ती, त मं वंचचत रह जाती। तब मं समझी कक उनकी कु्ा कक
उ्हंन ्यं मर ललए ्वार बंद कर रख हं।’
जीवन मं एक और ज्थतत भी ह, जब हम र्यक चीज क रतत ध्यवाद स भर जात हं। साधक ्मर् रखं कक उ्हं इन तीन ददनं
मं र्यक चीज क रतत ध्यवाद स भर जाना ह। ज लमलता ह, उसक ललए ध्यवाद। ज नहीं लमलता, उसस क ई रय जन नहीं ह।
उस भूलमका मं अथज पदा ह ता ह। उस भूलमका मं भीतर एक तनज्चंतता पदा ह ती ह और एक सरलता पदा ह ती ह।
और अंततम रप स एक बात और। इन तीन ददनं मं हम तनरं तर रयास करं ग अंतस रवश का, ्यान का, समाचध का। उस रवश क
ललए एक बहुत रगाढ़ संक्प की जररत ह। रगाढ़ संक्प का यह अथज ह, हमारा ज मन ह, उसका एक बहुत ि टा-सा दह्सा,
जजसक हम चतन मन कहत हं, उसी मं सब ववचार चलत रहत हं। उसस बहुत ्यादा गहराइयं मं हमारा न दह्सा मन और ह।
अगर हम मन क दस खंड करं , त एक खंड हमारा कांशस ह, चतन ह। न खंड हमार अचतन और अनकांशस हं। इस एक खंड मं ही
हम सब स चत-ववचारत हं। न खंडं मं उसकी क ई खबर नहीं ह ती, न खंडं मं उसकी क ई सूचना नहीं पहुंचती।
हम यहां स च लत हं कक ्यान करना ह, समाचध मं उतरना ह, लककन हमार मन का बहुत-सा दह्सा अपररचचत रह जाता ह। वह
अपररचचत दह्सा हमारा साथ नहीं दगा। और अगर उसका साथ हमं नहीं लमला, त सफलता बहुत मजु ्कल ह। उसका साथ लमल सक,
इसक ललए संक्प करन की जररत ह। और संक्प मं आपक समझा दं ,ू कसा हम करं ग। अभी यहां संक्प करक उठं ग। और कफर
जब राबर मं आप अपन बब्तरं पर जाएं, त पांच लमनट क ललए उस संक्प क पुनः द हराएं और उस संक्प क द हरात-द हरात
ही नींद मं स जाएं।
संक्प क पदा करन का ज रय ग ह, वह मं आपक समझा दं ,ू उस हम यहां भी करं ग और र ज तनयलमत करं ग। संक्प स मंन
आपक समझाया कक आपका पूरा मन चतन और अचतन, इक्ठ रप स यह भाव कर ल कक मुझ शांत ह ना ह, मुझ ्यान क
उपल्ध ह ना ह।
जजस राबर ग तम बु्ध क समाचध उपल्ध हुई, उस रात व अपन ब चधवष ृ क नीच बठ और उ्हंन कहा, ‘अब जब तक मं परम
स्य क उपल्ध न ह जाऊं, तब तक यहां स उठूंगा नहीं।’ हमं लगगा, इसस ्या मतलब ह? आपक नहीं उठन स परम स्य कस
उपल्ध ह जाएगा? लककन यह खयाल कक जब तक मुझ परम स्य उपल्ध न ह जाए, मं यहां स उठूंगा नहीं, यह सार रा् मं गूंज
गया। व नहीं उठ, जब तक परम स्य उपल्ध नहीं हुआ। और आ्चयज ह कक परम स्य उसी राबर उ्हं उपल्ध हुआ। व िः वषज
स च्टा कर रह थ, लककन इतना रगाढ़ संक्प ककसी ददन नहीं हुआ था।
संक्प की रगाढ़ता कस पदा ह , वह मं ि टा-सा रय ग आपक कहता हूं। वह हम अभी यहां करं ग और कफर उस हम राबर मं
तनयलमत करक स एंग।
अगर आप अपनी सारी ्वास क बाहर फंक दं और कफर ्वास क अंदर ल जान स ुक जाएं, ्या ह गा? अगर मं अपनी सारी ्वास
बाहर फंक दं ू और कफर नाक क बंद कर लूं और ्वास क भीतर न जान दं ,ू त ्या ह गा? ्या थ ड़ी दर मं मर सार रा् उस
्वास क लन क तड़फन नहीं लगं ग? ्या मरा र आं-र आं और मर शरीर क ज लाखं क ्ठ हं, व मांग नहीं करन लगं ग कक हवा
चादहए, हवा चादहए! जजतनी दर मं र कंू गा, उतना ही मर गहर अचतन का दह्सा पुकारन लगगा, हवा चादहए! जजतनी दर मं र क
रहूंगा, उतन ही मर रा् क नीच क दह्स भी चच्लान लगं ग, हवा चादहए! अगर मं आखखरी ष् तक र क रहूं, त मरा पूरा रा्
मांग करन लगगा, हवा चादहए! यह सवाल आसान नहीं ह कक ऊपर का दह्सा ही कह। अब यह जीवन और म्ृ यु का सवाल ह, त
नीच क दह्स भी पुकारं ग कक हवा चादहए!
इस ष् की ज्थतत मं , जब कक पूर रा् हवा क मांगत हं, तब आप अपन मन मं यह संक्प सतत द हराएं कक मं ्यान मं रवश
करक रहूंगा। उन ष्ं मं , जब आपक पूर रा् ्वास मांगत हं, तब आप अपन मन मं यह भाव द हरात रहं कक मं ्यान मं रवश
करक रहूंगा। यह मरा संक्प ह कक मं ्यान मं रवश करक रहूंगा। उस व्त आपका मन यह द हराता रह। उस व्त आपक रा्
्वास मांग रह हंग और आपका मन यह द हराएगा। जजतनी गहराई तक रा् कंवपत हंग, उतनी गहराई तक आपका यह संक्प
रवव्ट ह जाएगा। और अगर आपन पूर रा्-कंवपत हालत मं इस वा्य क द हराया, त यह संक्प रगाढ़ ह जाएगा। रगाढ़ का
मतलब यह ह कक वह आपक अचतन, अनकांशस माइंड तक रवव्ट ह जाएगा।
इस हम र ज ्यान क पहल भी करं ग। राबर मं स त समय भी आप इस करक स एंग। इस करं ग, कफर स जाएंग। जब आप स न
लगं ग, तब भी आपक मन मं यह सतत ्वतन बनी रह कक मं ्यान मं रवव्ट ह कर रहूंगा। यह मरा संक्प ह कक मझ
ु ्यान मं
रवश करना ह। यह वचन आपक मन मं गंज ू ता रह और गंज
ू ता रह, और आप कब स जाएं, आपक पता न पड़।
स त समय चतन मन त बह श ह जाता ह और अचतन मन क ्वार खुलत हं। अगर उस व्त आपक मन मं यह बात गूंजती
रही, गूंजती रही, त यह अचतन पतं मं रवव्ट ह जाएगी। और आप इसका परर्ाम दखंग। इन तीन ददनं मं ही परर्ाम दखंग।
संक्प क रगाढ़ करन का उपाय आप समझं। उपाय ह, सबस पहल धीम-धीम पूरी ्वास भर लना, पूर रा्ं मं , पूर फफड़ं मं ्वास
भर जाए, जजतनी भर सकं। जब ्वास पूरी भर जाए, तब भी मन मं यह भाव गूंजता रह कक मं संक्प करता हूं कक ्यान मं रवव्ट
ह कर रहूंगा। यह वा्य गूंजता ही रह।
कफर ्वास बाहर फंकी जाए, तब भी यह वा्य गजंू ता रह कक मं संक्प करता हूं कक मं ्यान मं रवश करक रहूंगा। यह वा्य
द हरता रह। कफर ्वास फंकत जाएं बाहर। एक घड़ी आएगी, आपक लगगा, अब ्वास भीतर बबलकुल नहीं ह, तब भी थ ड़ी ह, उस भी
फंकं और वा्य क द हरात रहं । आपक लगगा, अब बबलकुल नहीं ह, तब भी ह, आप उस भी फंकं।
आप घबराएं न। आप पूरी ्वास कभी नहीं फंक सकत हं। यातन इसमं घबरान का क ई कार् नहीं ह। आप पूरी ्वास कभी फंक ही
नहीं सकत हं। इसललए जजतना आपक लग कक अब बबलकुल नहीं ह, उस व्त भी थ ड़ी ह, उसक भी फंकं। जब तक आपस बन, उस
फंकत जाएं और मन मं यह गूंजता रह कक मं संक्प करता हूं कक मं ्यान मं रवश करक रहूंगा।
यह अदभत
ु रकरया ह। इसक मा्यम स आपक अचतन पतं मं ववचार रवव्ट ह गा, संक्प रवव्ट ह गा और उसक परर्ाम आप
कल सुबह स ही दखं ग।
त एक त संक्प क रगाढ़ करना ह। उसक अभी हम जब अलग हंग यहां स, त उस रय ग क करं ग। उसक पांच बार करना ह।
यातन पांच बार ्वास क फंकना और र कना ह, और पांच बार तनरं तर उस भाव क अपन भीतर द हराना ह। जजनक क ई दय की
बीमारी ह या क ई तकलीफ ह , व उस बहुत ्यादा तजी स नहीं करं ग, उस बहुत आदह्ता करं ग; जजतना उनक सरल मालूम पड़
और तकलीफ न मालूम पड़।
यह ज संक्प की बात ह, इसक मंन कहा कक र ज राबर क इन तीन ददनं मं स त समय करक स ना ह। स त व्त जब बब्तर
पर आप लट जाएं, इसी भाव क करत-करत रमशः नींद मं ववलीन ह जाना ह।
यह संक्प की ज्थतत अगर हमन ठीक स पकड़ी और अपन रा्ं मं उस आवाज क पहुंचाया, त परर्ाम ह ना बहुत सरल ह और
बहुत-बहुत आसान ह।
य थ ड़ी-सी बातं आपक आज कहनी थीं। इनमं ज रासांचगक जररतं हं, वह मं समझता हूं, आप समझ गए हंग। जसा मंन कहा कक
बातचीत नहीं करनी ह। ्वाभाववक ह कक आपक अखबार, रडडय , इनका उपय ग नहीं करना ह। ्यंकक वह भी बातचीत ह। मंन
आपस कहा, म न मं और एकांत मं ह ना ह। इसका ्वाभाववक मतलब हुआ कक जहां तक बन साचथयं स दरू रहना ह। जजतनी दर
हम यहां लमलंग, वह अलग। भ जन क ललए जाएंग, वह अलग। वहां भी आप बड़ म न स और बड़ी शांतत स भ जन करं । वहां भी
स्नाटा ह , जस पता न चल कक आप वहां हं। यहां भी आएं, त स्नाट मं और शांतत मं आएं।
दखं , तीन ददन शांत रहन का रय ग ्या परर्ाम लाता ह! रा्त पर चलं , त बबलकुल शांत। उठं -बठं , त बबलकुल शांत। और
अचधकतर एकांत मं चल जाएं। सुंदर क ई जगह चुनं, वहां चप
ु चाप बठ जाएं। अगर क ई साथ ह, त वह भी चप
ु चाप बठ, बातचीत न
कर। अ्यथा पहाडड़यां ्यथज ह जाती हं। संदयज ्यथज ह जाता ह। ज सामन ह, वह ददखाई नहीं पड़ता। आप बातचीत मं सब
समा्त कर दत हं। अकल मं जाएं।
और इसी भांतत य थ ड़ी-सी बातं मंन कहीं आपक ललए ज -ज जररी ह और हर एक क ललए। अगर आपक भीतर ्यास नहीं मालूम
ह ती बबलकुल, त उस ्यास क कस पदा ककया जाए, उसक संबंध मं कल मुझस र्न पूि लं । अगर आपक ऐसा नहीं लगता ह, कक
मुझ क ई आशा नहीं मालूम ह ती ह; त आशा कस पदा ह , उसक संबंध मं कल सुबह मुझस र्न पूि लं । अगर आपक लगता ह
कक मुझ क ई संक्प करन मं कदठनाई ह, या नहीं बन पाता, या नहीं ह ता, त सारी कदठनाइयां मुझस सुबह पूि लं ।
कल सुबह ही तीन ददन क ललए ज भी कदठनाइयां आ सकती हं, वह आप मुझस पूि लं , ताकक तीन ददन मं क ई भी समय ्यय न
ह । अगर र्यक ्यज्त की क ई अपनी वयज्तक तकलीफ और दख
ु और पीड़ा ह, जजसस वह मु्त ह ना चाहता ह, या जजसकी
वजह स वह ्यान मं नहीं जा सकता, या जजसकी वजह स उस ्यान मं रवश करना मजु ्कल ह ता ह, समझ लं। अगर आपक क ई
एक ववशष चचंता ह, ज आपक रवव्ट नहीं ह न दती शांतत मं , त आप उसक ललए अलग स पि
ू लं । अगर आपक क ई ऐसी पीड़ा
ह, ज आपक नहीं रवव्ट ह न दती, उसक आप अलग स पि
ू लं। वह सबक ललए नहीं ह गी सामदू हक। वह आपकी वयज्तक ह गी,
उसक ललए आप अलग रय ग करं ग। और ज भी तकलीफ ह , वह ्प्ट सुबह रख दं , ताकक हम तीन ददन क ललए ्यवज्थत ह
जाएं।
य थ ड़ी-सी बातं मुझ आपस कहनी थीं। आपकी एक भाव-ृज्ट बन। और कफर ज हमं करना ह, वह हम कल स शुर करं ग और कल
स समझंग।
अभी हम सब थ ड़-थ ड़ फासल पर बठ जाएंग। हॉल त बड़ा ह, सब फासल पर बठ जाएंग, ताकक हम संक्प का रय ग करं और कफर
हम यहां स ववदा हं।
…ऐस झटक स नहीं, बहुत आदह्ता-आदह्ता, पूरा फफड़ा भर लना ह। जब आप फफड़ क भरं ग, तब आप ्वयं अपन मन मं द हरात
रहं ग कक मं संक्प करता हूं कक मं ्यान मं रवश करक रहूंगा। इस वा्य क आप द हरात रहं ग। कफर जब ्वास पूरी भर जाए
आखखरी सीमा तक, तब उस थ ड़ी दर र कं और अपन मन मं यह द हरात रहं । घबड़ाहट बढ़गी। मन ह गा, बाहर फंक दं । तब भी थ ड़ी
दर र कं। और इस वा्य क द हरात रहं । कफर ्वास क धीर-धीर बाहर तनकालं। तब भी वा्य द हरता रह। कफर सारी ्वास बाहर
तनकालत जाएं, आखखरी सीमा तक लग, तब भी तनकाल दं , तब भी वा्य द हरता रह। कफर अंदर जब खाली ह जाए, उस खालीपन क
र कं। ्वास क अंदर न लं। कफर द हरता रह वा्य, अंततम समय तक। कफर धीर-धीर ्वास क अंदर लं। ऐसा पांच बार। यातन एक
बार का मतलब हुआ, एक दफा अंदर लना और बाहर ि ड़ना। एक बार। इस तरह पांच बार। रमशः धीर-धीर सब करं ।
जब पांच बार कर चक ु ं , तब बहुत आदह्ता स रीढ़ क सीधा रखकर ही कफर धीम-धीम ्वास लत रहं और पांच लमनट ववराम स बठ
रहं । ऐसा क ई दस लमनट हम यहां रय ग करं । कफर चपु चाप सार ल ग चल जाएंग। बातचीत न करन का ्मर् रखंग। अभी स
उसक शुर कर दना ह। लशववर शुर ह गया ह इस अथं मं । स त समय कफर इस रय ग क पांच-सात दफा करं , जजतनी दर आपक
अ्िा लग। कफर स जाएं। स त समय स चत हुए स एं उसी भाव क कक मं शांत ह कर रहूंगा, यह मरा संक्प ह। और नींद आपक
पकड़ ल और आप उसक स चत रहं ।
त लाइट बुझा दं । जब आपका पांच बार ह जाए, त आप चप ु चाप अपना-अपना बठकर थ ड़ी धीमी ्वास लत हुए बठ रहं ग। रीढ़
सीधी कर लं । सार शरीर क आराम स ि ड़ दं । रीढ़ सीधी ह और शरीर आराम स ि ड़ दं । आंख बंद कर लं । बहुत शांतत स ्वास
क अंदर लं। और जसा मंन कहा, वसा रय ग पांच बार करं ।
मं ्यान मं रवश करक रहूंगा। मं ्यान मं रवश करक रहूंगा। मरा संक्प ह कक ्यान मं रवश ह गा। मरा संक्प ह कक ्यान मं
रवश ह गा। पूर रा्ं क संक्प करन दं कक ्यान मं रवश ह गा। परू रा् मं यह बात गूंज जाए। यह अंतस-चतन तक उतर
जाए।
पांच बार आपका ह जाए, त कफर बहुत आदह्ता स बठकर शांतत स रीढ़ क सीधा रख हुए ही धीम-धीम ्वास क लं , धीम ि ड़ं
और ्वास क ही दखत रहं । पांच लमनट ववराम करं । उस ववराम क समय मं , ज संक्प हमन ककया ह, वह और गहर अपन आप
डूब जाएगा। पांच बार संक्प कर लं , कफर चप
ु चाप बठकर ्वास क दखत रहं पांच लमनट तक। और बहुत धीमी ्वास लं कफर।
आजइतनाही।
्यान–सर
ू (ओश )रवचन–दस
ू रा
मर वरय आ्मन,्
राबर क साधना की रारं लभक भूलमका कस बन, उस संबंध मं थ ड़ी-सी बातं आपस कही हं। साधना की ज ृज्ट मर मन मं ह, वह
कक्हीं शा्रं पर, कक्हीं रंथं पर, ककसी ववशष संरदाय पर आधाररत नहीं ह। जसा मंन अपन भीतर चलकर जाना ह, उन रा्तं की
बात भर आपस कर रहा हूं। इसललए मरी बात क ई स्धांततक बात नहीं ह। उस पर जब मं आपस कह रहा हूं कक आप चलं और
दखं , त मुझ रतीभर भी ऐसा खयाल नहीं ह कक आप चलंग, त ज पान की आपकी क्पना ह, उस आप नहीं पा सकंग। इसललए यह
आ्वासन और वव्वास ह कक जजन रा्तं पर मंन रवश करक दखा ह, कवल उनकी ही आपस बात कर रहा हूं।
एक बहुत पीड़ा और संताप क समय क मंन गुजारा। बहुत च्टा क, बहुत रय्न क समय क गुजारा। उस समय बहुत क लशश, बहुत
रय्न करता था अंतस रवश क। बहुत रा्तं स, बहुत प्धततयं स उस तरफ जान की बड़ी संल्न च्टा की। बहुत पीड़ा क ददन थ
और बहुत दख
ु और परशानी क ददन थ। लककन सतत रयास स, और जस पवजत स क ई झरना चगरता ह और चगरता ही चला जाए,
त नीच की च्टानं भी टूट जाती हं , वस ही सतत रयास स ककसी ष् मं क ई रवश हुआ। उस रवश क जजस रा्त स मंन संभव
पाया, लसफज उसी रा्त की आपस बात कर रहा हूं। और इसललए बहुत आ्वासन और बहुत वव्वास स आपक कह सकता हूं कक यदद
रय ग ककया, त परर्ाम सुतनज्चत ह। तब एक दख ु था, तब एक पीड़ा थी, अब वसा क ई दख
ु और वसी क ई पीड़ा मर भीतर नहीं
ह।
कल मुझ क ई पूिता था कक इतनी सम्याएं ल ग आपक सामन रखत हं, त आप परशान नहीं ह त? मंन उ्हं कहा, सम्या अपनी
न ह , त परशानी का क ई कार् नहीं ह ता। सम्या दस
ू र की ह , त क ई परशानी नहीं ह ती ह। सम्या अपनी ह , त परशानी शुर
ह जाती ह। मरी क ई सम्या इस अथं मं नहीं ह। लककन एक नए तरह का दख
ु अब जीवन मं रवव्ट ह गया। और वह दख
ु यह
ह कक मं अपन चारं तरफ जजन ल गं क भी दखता हूं, उ्हं इतनी परशानी मं और इतनी पीड़ा मं अनुभव करता हूं, जब कक मुझ
लगता ह, उनक हल इतन आसान हं! जब कक मुझ लगता ह कक व ्वार खटखटाएंग और ्वार खल ु जाएगा; और व ्वार पर खड़ ही
र रह हं! त एक बहुत नए कक्म क दख
ु और पीड़ा का अनुभव ह ता ह।
एक ि टी-सी पारसी कहानी मं पढ़ता था। एक अंधा आदमी और उसका एक लमर एक रचग्तान क पार करत थ। व द नं अलग-
अलग यारा पर तनकल थ, रा्त मं लमलना ह गया और वह आंख वाला आदमी उस अंध आदमी क अपन साथ ल ललया। व कुि
ददन साथ-साथ चल, उनमं मरी घनी ह गयी।
एक ददन सब
ु ह अंधा आदमी पहल उठ गया, सब
ु ह उसकी नींद पहल खल
ु गयी। उसन टट लकर अपनी लकड़ी ढूंढी। मु्थल की रात
थी और ठं ड क ददन थ। लकड़ी त उस नहीं लमली, एक सांप पड़ा हुआ था, ज ठं ड क मार एकदम लसकुड़कर कड़ा ह गया था। उसन
उस उठा ललया। उसन भगवान क ध्यवाद ददया कक मरी लकड़ी त ख गयी, लककन उसस बहुत ्यादा बहतर, बहुत चचकनी और
बहुत सुंदर लकड़ी मुझ तुमन द दी। उसन भगवान क ध्यवाद ददया कक तुम बड़ कृपालु ह । उसन उसी लकड़ी स अपन आंख वाल
लमर क ध्का ददया और उठान की क लशश की कक उठ , सुबह ह गयी ह।
वह आंख वाला लमर उठा। दखकर घबड़ा गया और उसन कहा कक ‘तुम यह ्या हाथ मं पकड़ हुए ह ? इस एकदम ि ड़ द । यह सांप
ह और जीवन क ललए खतरनाक ह जाएगा।’ वह अंधा आदमी ब ला, ‘लमर,र् ई्या क वश तुम मरी इस सुंदर लकड़ी क सांप बता रह
ह ! चाहत ह कक मं इस ि ड़ दं ,ू त तुम इस उठा ल । अंधा जरर हूं, लककन इतना नासमझ नहीं हूं।’
उस आंख वाल आदमी न कहा, ‘पागल ह गए ह ? उस एकदम ि ड़ द । वह सांप ह और जीवन का खतरा ह।’ अंधा आदमी हं सा और
ब ला, ‘तुम इतन ददन मर साथ रह, लककन यह न समझ पाए कक मं भी समझदार हूं। मरी लकड़ी ख गयी ह और परमा्मा न एक
बहुत सुंदर लकड़ी मुझ द दी ह, त तुम उस सांप बता रह ह ।’
वह अंधा आदमी ग्
ु स मं , लमर की इसर् ई्या और जलन क दखकर, अपन रा्त पर चल पड़ा। थ ड़ी दर मं सरू ज तनकला और उस
सांप की लसकुड़न समा्त ह गयी, उसकी सदी लमट गयी। उसमं कफर रा् का संचार हुआ और उसन उस अंध आदमी क काट
ललया।
मं जजस दख
ु की आपक बात कह रहा हूं, वह वही दख
ु ह, ज उस सुबह उस आंख वाल आदमी क उस अंध लमर क रतत हुआ ह गा।
वस ही एक दख
ु , हमं चारं तरफ ज ल ग ददखायी पड़त हं, उनक रतत मुझ अनुभव ह ता ह। व हाथ मं ज ललए हं, वह लकड़ी नहीं
ह। व हाथ मं ज ललए हं, वह सांप ह। लककन अगर मं उनक कहूं कक यह सांप ह, त शायद उनक मन मं ह , न मालूम ककसर् ई्या
क वश, न मालूम ककस कार् हमारी लकडड़यं क सांप बताया जा रहा ह।
यह मं ककसी और क ललए नहीं कह रहा हूं, यह मं आपक ललए कह रहा हूं। ऐसा मत स चना कक आपक पड़ स मं ज बठ हं, उनक
ललए कह रहा हूं। बबलकुल आपक ललए कह रहा हूं। और आपक सबक हाथं मं मुझ सांप ददखायी पड़त हं। और आप जजनक भी
सहार समझ हुए हं और लकडड़यां समझ हुए हं, व क ई सहार नहीं हं और क ई लकडड़यां नहीं हं।
लककन इसक पहल कक आप रा्ता ि ड़कर चल जाएं और समझं कक मंनर् ई्यावश आपकी लकड़ी िीनन क ललए क ई बात कही ह,
इसललए एकदम उस सांप नहीं कहता हूं। आदह्ता-आदह्ता आपक समझान की क लशश करता हूं कक ज आप पकड़ हुए हं, वह
गलत ह। बज्क यह भी नहीं कहता हूं कक ज पकड़ हुए हं, गलत ह। यही कहता हूं कक कुि और भी र्ठ ह, ज पकड़ा जा सकता
ह। ककसी और ववराट आनंद क पकड़ा जा सकता ह। जीवन मं कक्हीं और बड़ स्यं क पकड़ा जा सकता ह। ज आप पकड़ हं, वह
आपक डुबान का कार् ह जाएगा।
जीवनभर हम ज करत हं, वही हमं डुबा दता ह, सार जीवन क न्ट कर दता ह। और जब जीवन न्ट ह जाता ह, समा्त ह जाता
ह, तब हमं ज पीड़ा और परशानी पकड़ती ह म्ृ यु क ष् मं , अंततम ददनं मं ज मनु्य क क्ट पकड़ लता ह, ज संताप पकड़
लता ह, वह यही ह ता ह कक एक बहुत अदभुत जीवन क मंन ्यथज ख ददया।
त आज की सब
ु ह मं सबस पहल त यह बात कहूं कक जजस ्यास क ललए मंन रात क आपक कहा था, वह तभी पदा ह गी आपमं ,
जब आपक यह ददखाई पड़ और यह अनभु व ह कक जजस जीवन क आप जी रह हं, वह एकदम गलत ह। उस ्यास का ज्म तभी
ह गा, जब आप समझं कक आप जजस जीवन क जी रह हं, वह गलत ह और साथजक नहीं ह।
और ्या यह बहुत कदठन बात ह समझ लना? ्या आप स चत हं, ज आप इक्ठा कर रह हं, वह सच मं संपवत ह? ्या आप
स चत हं कक ज आप इक्ठा कर रह हं, उसस आपक जीवन उपल्ध ह गा? ्या आप स चत हं कक ज रम आप कर रह हं, जजन
ददशाओं मं , उन ददशाओं मं आप रत पर और पानी पर महल खड़ कर रह हं या कक ककसी च्टान पर नींव रख रह हं? इस थ ड़ा
ववचारना, इस पर थ ड़ा मनन करना जररी ह।
ज ल ग भी थ ड़ा-सा चचंतन और मनन करं ग जीवन क संबंध मं , उनकी ्यास जगनी शुर ह जाएगी। स्य की ्यास चचंतन और
मनन स पदा ह ती ह। हममं स बहुत कम ल ग जीवन क संबंध मं स चत हं–बहुत कम ल ग। अचधक ल ग इस तरह जीत हं, जस
क ई लकड़ी क टुकड़ क नदी मं बहा द और वह बहा चला जाए। और लहरं उस जहां ल जाएं, वहां चला जाए। ककनारं पर ल जाएं,
त ककनारं पर चला जाए; और मझधार मं ल आएं, त मझधार मं आ जाए, जजसका अपना क ई जीवन नहीं ह ता। एक लकड़ी क
टुकड़ की तरह हममं स अचधक ल ग जीत हं। समय और पररज्थततयां जहां ल जाती हं, हम चल जात हं।
त अपन जीवन क बाबत यह ववचार करं , आप एक लकड़ी क टुकड़ त नहीं हं, ज नदी मं बह रहा ह? आप दर्त स पतझड़ मं चगर
गए एक पत त नहीं हं, ज हवाओं मं उड़ रहा ह? और आप ववचार करं ग, त आपक ददखायी पड़गा, आप एक लकड़ी क टुकड़ हं; और
आपक ददखायी पड़गा, पतझड़ मं चगर गए एक पत हं, जजस हवाएं कहीं भी उड़ा रही हं। अभी सड़कं उन पतं स भरी हुई हं। और व
पत, जहां भी हवाएं आती हं, वहीं सरक जात हं। आपन जजंदगी मं सचतन ववकास ककया ह, या कवल हवा क ध्कं पर उड़त रह हं?
और अगर हवा क ध्कं पर उड़त रह हं, त ्या कहीं पहुंच सकंग? ्या क ई कभी इस तरह पहुंचा ह?
जीवन मं एक सचतन ल्य न ह , त क ई कहीं पहुंचता नहीं। सचतन ल्य की ्यास इस बात स पदा ह गी कक आप चचंतन करं
और मनन करं और ववचार करं ।
बु्ध क बाबत आपन सुना ह गा। उ्हं जजस बात स ववराग हुआ, जजस बात स व ववराग क जीवन मं रवव्ट हुए, जजस बात स उ्हं
स्य की आकांषा पदा हुई, वह कहानी बड़ी रचललत ह, बड़ी अथजपू्ज ह। उनक मां-बाप न, बचपन मं ही उनक कहा गया कक यह
्यज्त या त बहुत बड़ा सराट ह गा, चरवती ह गा या बहुत बड़ा सं्यासी ह गा। उनक वपता न सारी ्यव्था की उनकी सुख-
सुववधा की कक उ्हं क ई दख
ु ददखायी भी न पड़, जजसस कक सं्यास पदा ह । उनक वपता न उनक ललए मकान बनवाए, उस समय
की सारी कला और क शल सदहत। उ्हंन सारी ्यव्था की बगीचं की। हर म सम क ललए अलग भवन बनाया और आञा दी
पररचारकं क कक एक कु्हलाया हुआ फूल भी ग तम क ददखायी न पड़, लस्धाथज क ददखायी न पड़। उस यह खयाल न आ जाए
कहीं कक फूल मुझाज जाता ह, कहीं मं त न मुझाज जाऊंगा?
त रात उनक बगीच स सार कु्हलाए फूल और पत अलग कर ददए जात थ। ज दर्त थ ड़ भी कमज र ह जात, व उखाड़कर
अलग कर ददए जात थ। उनक आस-पास युवक और युवततयां इक्ठी थीं, क ई व्
ृ ध नहीं रवश पाता था; कहीं लस्धाथज क यह
ववचार न उठ आए कक ल ग बूढ़ ह जात हं, कहीं मं त बूढ़ा न ह जाऊंगा? जब तक व युवा हुए, उ्हं पता नहीं था कक म्ृ यु भी ह ती
ह। उन तक क ई खबर म्ृ यु की नहीं पहुंचायी जाती थी। उनक गांव मं ल ग मरत भी हं, इसस उ्हं बबलकुल अपररचचत रखा गया;
कहीं उ्हं यह चचंतन पदा न ह जाए कक ल ग मरत हं, त मं भी त नहीं मर जाऊंगा?
मं चचंतन का मतलब समझा रहा हूं। चचंतन का मतलब यह ह कक चारं तरफ ज घदटत ह रहा ह, उस पर ववचार कररए। म्ृ यु
घदटत ह रही ह, त स चचए कक मं त नहीं मर जाऊंगा? बुढ़ापा घदटत ह रहा ह, त स चचए कक मं त बूढ़ा नहीं ह जाऊंगा?
एक ददन बु्ध गांव स तनकल और राह पर उ्हंन दखा, एक बूढ़ा आदमी चला आता ह। उ्हंन अपन सारथी क पूिा, ‘इस आदमी
क ्या ह गया ह? ऐसा आदमी भी ह ता ह?’ सारथी न कहा, ‘झूठ मं कस ब लूं? हर आदमी अंत मं ऐसा ही ह जाता ह।’ बु्ध न
त्ष् पूिा, ‘मं भी?’ उस सारथी न कहा, ‘भगवन, झूठ मं कस कहूं? क ई भी अपवाद नहीं ह।’ बु्ध न कहा, ‘वापस ल ट चल । मं बूढ़ा
ह गया।’ बु्ध न कहा, ‘वापस ल ट चल , मं बूढ़ा ह गया। अगर कल ह ही जाना ह, त बात समा्त ह गयी।’
लककन सारथी न कहा, ‘हम एक युवक मह ्सव मं जा रह हं। सार गांव क ल ग रतीषा करं ग, इसललए चलं।’ बु्ध न कहा, ‘अब चलन
मं क ई रस न रहा। युवक मह ्सव ्यथज ह, ्यंकक बुढ़ापा आता ह।’ लककन व गए। और आग बढ़ और उ्हंन दखा, एक अथी ललए
जात हं ल ग, क ई मर गया ह। बु्ध न पूिा, ‘यह ्या हुआ? य ल ग ्या करत हं? य कंधं पर ककस चीज क ललए हं?’ सारथी न
कहा, ‘कस कहूं! आञा नहीं। लककन अस्य न ब ल सकंू गा। यह आदमी मर गया। एक आदमी मर गया ह, उस ल ग ललए जात हं।’
बु्ध न पूिा, ‘मरना ्या ह?’ और उ्हं पहली दफा पता चला, एक ददन जीवन की सररता सूख जाती ह और आदमी मर जाता ह।
ब्
ु ध न कहा, ‘अब बबलकुल वापस ल ट चल । मं मर गया। यह आदमी नहीं मरा, मं मर गया।’
इसक मं चचंतन कहता हूं। वह आदमी चचंतन और मनन मं समथज हुआ ह, जजसन दस
ू र पर ज घटा ह, उसस समझा और जाना ह
कक वह उस पर भी घदटत ह गा। व ल ग अंध हं, ज चारं तरफ ज घदटत ह रहा ह, उस नहीं दख रह हं। और इस अथज मं हम सब
अंध हं। और इसललए मंन वह कहानी कही, अंध आदमी की, ज सांप क हाथ मं ललए चलता ह।
इसललए आपक ललए पहली ज बहुत मह्वप् ू ज बात ह, वह यह कक आंख ख लकर चारं तरफ दखखए, ्या घदटत ह रहा ह! और उस
घदटत ह न स चचंतन पदा ह गा, मनन पदा ह गा। और वह मनन ्यास दगा और ककसी ववराट स्य क जानन की।
यह, इस पीड़ा क बहुत मंन अनुभव ककया। वह पीड़ा गयी; और उसक जान मं जजन सीदढ़यं क मुझ ददखायी पड़ना शुर हुआ, उन
सीदढ़यं मं पहली सीढ़ी की आज मं चचाज करंगा।
ऐसा मुझ ददखायी पड़ता ह कक परम जीवन या परमा्मा या आ्मा या स्य क पान क ललए द बातं जररी हं। एक बात त जररी
ह, ज पररचध की जररत ह। समझं, साधना की पररचध। और एक बात जररी ह, जजसक हम कहं ग साधना का कंर। साधना की पररचध
और साधना का कंर। या साधना का शरीर और साधना की आ्मा। साधना की पररचध पर आज मं चचाज करंगा; और कल साधना की
आ्मा पर या साधना क कंर पर; और परसं साधना क परर्ाम पर। य तीन ही बातं हं–साधना की पररचध, साधना का कंर और
साधना का परर्ाम। या यूं कह सकत हं कक साधना की भूलमका, साधना और साधना की लस्चध।
साधना की भलू मका या साधना की पररचध मं आपकी ज पररचध ह, वही संबंचधत ह ती ह। आपक ्यज्त्व की पररचध आपका शरीर
ह। साधना की पररचध भी आपका शरीर ह। साधना का बबलकुल रारं लभक चर् आपक शरीर पर रखना ह ता ह।
इसललए एक बात ्मर् रखं कक शरीर क संबंध मं अगर सुनी-सुनायी क ई बुरी भावना मन मं ह , उस फंक दं । शरीर मार साधन ह,
संसार का भी और स्य का भी। शरीर न शरु ह, न लमर ह; शरीर मार साधन ह। आप चाहं त उसस पाप करं और चाहं त पु्य
करं । चाहं त संसार मं रवव्ट ह जाएं और चाहं त परमा्मा मं रवश पा लं । शरीर मार साधन ह। उसक संबंध मं क ई दभ
ु ाजव मन
मं न रखं। ऐसी बहुत-सी बातं रचललत ह गयी हं कक शरीर द्ु मन ह, और शरीर पाप ह, और शरीर बुरा ह, और शरु ह, और इसका
दमन करना ह। व मं आपक कहूं, गलत हं। न शरीर शरु ह, न शरीर लमर ह। आप उसका जसा उपय ग करत हं, वही वह साबबत ह
जाता ह। और इसललए शरीर बड़ा अदभुत ह! शरीर बड़ा अदभुत ह। दतु नया मं ज भी बुरा हुआ ह, वह भी शरीर स हुआ ह; और ज
भी शुभ हुआ ह, वह भी शरीर स हुआ ह। शरीर कवल एक उपकर् ह, एक यंर ह।
साधना भी जररी ह कक शरीर स शुर ह , ्यंकक बबना इस यंर क ्यवज्थत ककए आग क ई भी नहीं बढ़ सकता। शरीर क बबना
्यवज्थत ककए क ई आग नहीं बढ़ सकता। त पहला चर् ह, शरीर-शु्चध। शरीर जजतना शु्ध ह गा, उतना अंतस मं रवश मं
सहय गी ह जाएगा।
शरीर-शु्चध क ्या अथज हं? शरीर-शु्चध का पहला त अथज ह, शरीर क भीतर, शरीर क सं्थान मं , शरीर क यंर मं क ई भी ुकावट,
क ई भी रंचथ, क ई भी कां्ल्स न ह , तब शरीर शु्ध ह ता ह।
समझं, शरीर मं कस कां्ल्स और रंचथयां पदा ह ती हं। अगर शरीर बबलकुल तनरंथ ह , उसमं क ई रंचथ न ह , उसमं क ई उलझन
न ह , शरीर मं कहीं क ई अटकाव न ह , त शरीर श्
ु ध ज्थतत मं ह ता ह और अंतस रवश मं सहय गी ह जाता ह। अगर आप बहुत
रु्ध हंग, र ध करं ग और र ध क रकट न कर पाएंग, त उस र ध की ज ऊ्मा और गमी पदा ह गी, वह शरीर क ककसी अंग मं
रंचथ पदा कर दगी।
आपन दखा ह गा, र ध मं दह्टीररया आ सकता ह, र ध मं क ई बीमारी आ सकती ह। भय मं क ई बीमारी आ सकती ह। अभी ज
सार रय ग चलत हं ्वा््य क ऊपर, उनस ञात ह ता ह कक स बीमाररयं मं क ई पचास बीमाररयां शरीर मं नहीं ह तीं, मन मं ह ती
हं। लककन मन की बीमाररयां शरीर मं रंचथ पदा कर दती हं। और शरीर मं अगर रंचथयां पदा ह जाएं, शरीर मं अगर गांठं पदा ह
जाएं, त शरीर का सं्थान जकड़ जाता ह और अशु्ध ह जाता ह।
त शरीर-शु्चध क ललए सार य ग न, सार धमं न बड़ अदभुत और रांततकारी रय ग ककए हं। और उन रय गं क थ ड़ा समझना
जररी ह। और अगर अपन शरीर पर आप करत हं, त आप थ ड़ ही ददनं मं हरान ह जाएंग, यह शरीर त बड़ी अदभुत जगह ह, बड़ी
अदभुत बात ह। और तब यह आपक शरु न मालूम ह गा, बज्क मंददर मालूम ह गा, जजसक भीतर परमा्मा ववराजमान ह। तब यह
द्ु मन नहीं मालूम ह गा, यह बड़ा साथी मालूम ह गा और आप इसक रतत अनुगह
ृ ीत हंग। ्यंकक शरीर आपका नहीं ह, पदाथज स
बना ह। आप लभ्न हं और शरीर लभ्न ह। कफर भी आप इसका अदभुत उपय ग कर सकत हं। और तब आप शरीर क रतत बड़ा
रदटटयूड, बड़ी कृतञता अनुभव करं ग कक शरीर इतना साथ द रहा ह!
शरीर मं ज भी कंपन हं, व मन क कंपन स पदा ह त हं। मन का कंपन जजतना कम ह न लगता ह, शरीर उतना चथर मालूम ह न
लगगा। य बु्ध और महावीर की मूततजयां, ज बबलकुल प्थर जसी मालूम ह ती हं, य आदमी भी बठ ह त, त भी ऐस ही मालूम ह त
थ। य मूततजयां ही प्थर जसी नहीं मालूम ह तीं, इन आदलमयं क भी आपन दखा ह ता, त य बबलकुल प्थर जस मालूम ह त। हमन
इनकी प्थर की मूततजयां ्यथज ही नहीं बनायीं, उसक पीि कार् था। य बबलकुल प्थर जस ही मालूम ह न लग थ। इनक भीतर
कंपन ववलीन ह गए थ। या कक कंपन साथजक थ, जब उनकी जररत थी, ह त थ; अ्यथा व ववलीन थ।
आप जब पर दहला रह हं, त आपक भीतर अशांतत स ज एनजी पदा ह रही ह, ज शज्त पदा ह रही ह, उस तनकालन का क ई
रा्ता न पाकर, पर मं कंवपत ह कर वह तनकल रही ह। जब एक आदमी र ध मं ह ता ह, उसक दांत लभंच जात हं और मु्दठयां बंध
जाती हं। ्यं? उसकी आंखं मं खन
ू उतर आता ह। ्यं? आखखर मु्दठयां बंधन स ्या रय जन ह? अगर आप अकल मं भी ककसी
पर रु्ध हंग, त भी म्
ु दठयां बंध जाएंगी। वहां त क ई मारन क भी नहीं, जजसक आप मारं । लककन ज शज्त र ध स पदा ह
रही ह, उसका तन्कासन कस ह गा? हाथ क ्नायु खखंचकर उस शज्त क ्यय कर दत हं।
स्यता न बहुत दद्कत पदा कर दी ह। अस्य आदमी का शरीर हमस ्यादा श् ु ध ह ता ह। एक जंगली आदमी का शरीर हमस
बहुत श्
ु ध ह ता ह, उसमं रंचथयां नहीं ह तीं, ्यंकक उसक भावावग वह सहज रकट कर दता ह। लककन हम अपन भावावगं क दबा
लत हं।
समझ लीजजए, आप द्तर मं हं और माललक न कुि कहा। आपक र ध त आया, लककन आप मु्दठयां नहीं भींच सकत। वह ज
शज्त पदा हुई ह, उसका ्या ह गा? शज्त न्ट नहीं ह ती, ्मर् रखखए। क ई शज्त न्ट नहीं ह ती। अगर आपन मुझ गाली दी
और मुझ र ध आ गया, लककन यहां इतन ल ग थ कक मं उस रकट नहीं कर सका, न मं दांत भींच सका, न मं हाथ खींच सका, न मं
गाली बक सका, न मं ग्
ु स मं कूद सका, न मं प्थर उठा सका। त उस शज्त का ्या ह गा, ज मर भीतर पदा ह गयी? वह
शज्त मर शरीर क ककसी अंग क करप्ड कर दगी। और उसक करप्ड करन मं , उसक ववकृत करन मं ्यय ह जाएगी। एक रंचथ
पदा ह गी।
शरीर की रंचथयं का मरा मतलब यह ह। शरीर मं हमार बहुत रंचथयां पदा ह जाती हं। और आप शायद हरान हंग, आप कहं ग, ऐसी
त हमं कुि रंचथयां पता नहीं हं! त मं आपक एक रय ग करन क कहता हूं। आप दखं , कफर आपक पता चलगा कक ककतनी
रंचथयां हं।
्या आपन कभी खयाल ककया ह कक अकल ककसी कमर मं आप ज र स दांत बबचकान लग हं , या आईन मं जीभ ददखान लग हं, या
गु्स स आंख फाड़न लग हं! और आप अपन पर भी हं स हंग कक यह मं ्या कर रहा हूं! ह सकता ह, ्नानगह ृ मं आप नहा रह हं
और आप अचानक कूद हं। आप हरान हंग कक मं ्यं कूदा हूं? या मंन आईन मं दखकर दांत ्यं बबचकाए हं ? या मरा ज र स
गुनगुनान का मन ्यं हुआ ह?
मं आपक कहूं, ककसी ददन आधा घंट क स्ताह मं एक एकांत कमर मं बंद ह जाएं और आपका शरीर ज करना चाह, करन दं ।
आप बहुत हरान हंग। ह सकता ह, शरीर आपका नाच। ज करना चाह, करन दं । आप उस बबलकुल न र कं। और आप बहुत हरान
हंग। ह सकता ह, शरीर आपका नाच। ह सकता ह, आप कूदं । ह सकता ह, आप चच्लाएं। ह सकता ह, आप ककसी का्पतनक
द्ु मन पर टूट पड़ं। यह ह सकता ह। और तब आपक पता चलगा कक यह ्या ह रहा ह! य सारी रंचथयां हं, ज दबी हुई हं और
म जद ू हं और तनकलना चाहती हं, लककन समाज नहीं तनकलन दता ह और आप भी नहीं तनकलन दत हं।
ऐसा शरीर बहुत-सी रंचथयं का घर बना हुआ ह। और ज शरीर रंचथयं स भरा हुआ ह, वह शरीर शु्ध नहीं ह ता, वह भीतर रवश
नहीं कर सकता। त य ग का पहला चर् ह ता ह, शरीर-शु्चध। और शरीर-शु्चध का पहला चर् ह, शरीर की रंचथयं का ववसजजन।
त नयी रंचथयां त बनाएं नहीं और पुरानी रंचथयां ववसजजन करन का उपाय करं । और उसक उपाय क ललए जररी ह कक महीन मं
एक बार, द बार अकल कमर मं बंद ह जाएं और शरीर जसा करना चाह, करन दं । अगर कपड़ फंककर और न्न नाचन का मन ह ,
त नाचं और सार कपड़ फंक दं ।
और आप हरान हंग, आधा घंट की उस उिलकूद क बाद आप बहुत ररल््ड, बहुत शांत, बहुत ्व्थ अनुभव करं ग। यह बात बहुत
अजीब लगगी, लककन आप बहुत शांत अनुभव करं ग। और आपक बहुत हरानी ह गी कक यह शांतत कस आ गयी? आप ज ्यायाम
करत हं, या घूमन चल जात हं, उसक बाद ज आपक हलकापन लगता ह, उसका कार् ्या ह? उसका कार् यह ह कक बहुत-सी
रंचथयां उसमं ववसजजजत ह ती हं।
आपक पता ह, आपका लड़न का ज मन ह ता ह ल गं स, उलझन का ज मन ह ता ह, उसका कार् ्या ह? आपक भीतर बहुत-सी
शज्तयां रंचथयं की तरह म जद
ू हं, व ववसजजजत ह ना चाहती हं। इसललए आप बबलकुल उ्सक
ु ह त हं कक क ई लमल जाए और कुि
ह जाए!
जब यु्ध का समय आता ह–वपिल द महायु्ध हुए, उन महायु्धं मं आप ज सुबह स अखबार पढ़त हं बहुत उ्सुकता स। और
सारी दतु नया मं बड़ी खबू बयं की बातं घदटत ह ती हं। यु्ध क समय द बातं घदटत हुं। दतु नया मं आ्मह्याएं एकदम कम ह गयी
थीं; आपक शायद पता नहीं ह गा। वपिला महायु्ध हुआ, उसक पहल पहला महायु्ध हुआ, मन वञातनक बहुत हरान हुए कक
आ्मह्याएं कम ्यं ह गयीं? एकदम आ्मह्याएं कम ह गयीं। जब तक य् ु ध चला, आ्मह्याएं नहीं हुं। सारी दतु नया मं उनका
अनुपात एकदम चगर गया। इसका कार् ्या था? और मन वञातनक बहुत परशान हुए! उन ददनं खन
ू भी नहीं हुए, आ्मह्याएं भी
नहीं हुं; और एक बड़ी बात हुई, मानलसक बीमारं की सं्या कम रही यु्ध क समय मं ।
त अंततः यह समझ मं आया कक यु्ध की ज खबरं थीं, ज ज श-खर श था, उसमं मनु्य की बहुत-सी रंचथयां ववसजजजत हुं और
उतनी रंचथयं न उसक बचाया। जस कक यु्ध की खबरं आप सुनत हं, त आप ककसी न ककसी तरह उसमं संल्न ह जात हं।
आपका र ध–समझ लीजजए, आप गु्स मं आ गए हं, अगर आप दहटलर क रतत गु्स मं आ गए हं, त ल ग दहटलर की मूततज
बनाकर जला दं ग, नार लगाएंग, चच्लाएंग, घर मं बठकर दहटलर क गाललयां दं ग। एक का्पतनक द्ु मन! दहटलर त म जूद नहीं ह
आपक सामन। और उसमं आपकी बहुत-सी रंचथयां ववसजजजत हंगी। और उसका परर्ाम यह ह गा कक आपक मानलसक ्वा््य
लमलगा।
अभी दहंद्
ु तान पर चीन का हमला हुआ। आपमं एकदम स ज शज्त का संचार हुआ था, आप समझत हं, उसका कार् ्या था?
उसका कार् था, आपकी बहुत-सी रंचथयां ज शरीर मं बंधी थीं, व उस ग्
ु स मं तनकलीं और आप हलक हुए।
और जब तक दतु नया मं ऐस ल ग हं, जजनक शरीर अशु्ध हं , तब तक यु्ध स नहीं बचा जा सकता। यु्ध तब समा्त हंग, जब
ल गं क शरीर इतन शु्ध हंग कक उनक पास क ई रंचथयां यु्ध मं ववसजजजत करन क नहीं हंगी। यातन आपक मं यह कह रहा हूं,
यह बहुत अजीब-सा लगगा, लककन जब तक ल गं क शरीर शु्ध ज्थतत मं नहीं हं, दतु नया स यु्ध बंद नहीं ह सकत। क ई ककतनी
ही क लशश कर, यु्ध का मजा रहगा।
आपक भी लड़न मं मजा आता ह। इस जरा ववचार करना। आपक लड़न मं मजा आता ह। वह लड़ाई चाह ककसी तल की ह , चाह
्वतांबर ददगंबर जन स लड़ता ह और चाह दहंद ू मुसलमान स लड़ता ह , वह लड़ाई का क ई तल ह ।
आप हरान हंग। आप दखत हं कक एक-एक ि टा धमज बनता ह, उसमं बीस-बीस संरदाय बन जात हं! कफर एक-एक संरदाय मं ि ट-
ि ट संरदाय बन जात हं! ्या कार् ह?
ल गं क शरीर अशु्ध हं और रंचथयं स भर हं। और उनक लड़न क ललए क ई भी बहाना चादहए। व क ई ि टा-सा बहाना लंग और
लड़ंग। और लड़न स उनक राहत लमलगी, उनक हलकापन आएगा।
शरीर-शु्चध राथलमक चर् ह साधना का। त आपक ललए मं द बातं कहता हूं। पुरानी ज रंचथयां हं, उनक ववसजजजत करन का त
उपाय यह ह कक आप एकांत मं बबलकुल जंगली ह जाएं। यातन ि ड़ दं सारा खयाल, कमरा बंद कर लं। और सारी पतं, ज आपन
जबरद्ती अपन ऊपर लाद रखी हं , व सब ि ड़ दं । और कफर ह न दं ; शरीर ्या करता ह, उस दखं आप। वह नाचता ह, कूदता ह,
चगरकर पड़ा रह जाता ह, घूंस तानता ह, ककसी का्पतनक द्ु मन क मारता ह, िुरी मारता ह, ग ली चलाता ह; ्या करता ह, उस दखं
और चप
ु चाप उस करन दं ।
ज पुरान साधक जंगलं मं चल जात थ और एकांत पसंद करत थ और नहीं चाहत थ कक भीड़ मं आएं, उसका कुल सबस बड़ कार्ं
मं एक कार् यह भी था। उन एकांत मं आपक पता नहीं, महावीर न ्या ककया! आपक पता नहीं ह, बु्ध न ्या ककया! आपक
पता नहीं, म ह्मद न ्या ककया! क ई ककताबं नहीं कहतीं कक उ्हंन ्या ककया। उन पहाड़ं पर जब व थ, त व ्या कर रह थ?
त मं आपक कहता हूं कक यह ह नहीं सकता ह कक उ्हंन यह न ककया ह कक उ्हंन शरीर की रंचथयां ववसजजजत न की हं।
महावीर क त हम तनरंथ कहत हं। और उसका मं ज अथज करता हूं, यही करता हूं, सारी रंचथयां षी् जजसकी ह गयी हं।
और सारी रंचथयं का रारं लभक चर् शरीर ह। त शरीर की रंचथयां ज पीि पकड़ी हं , उनक ववसजजजत करना ह। आपक पहल
अजीब-सा लगगा। अगर आपक ज र स हं सी आए अपन इस काम पर कक मं यह ्या पागलपन कर रहा हूं कक कूद रहा हूं, त ज र
स हं लसए। अगर आपक खब
ू र ना आए, त ज र स र इए।
आप बहुत हरान हंग। अगर आपक अभी मं यहां कह दं ू कक आप बबलकुल ि ड़ दं अपना खयाल, त आपमं स कई ल ग र न लगं ग
और कई ल ग ज र स हं सन लगं ग। कभी क ई ुदन, ज आना चाहा ह गा, वह भीतर दबा रह गया ह, वह तनकलगा। और कभी क ई
हं सी, ज फूट पड़नी चाही थी लककन र क ली गयी ह, वह कहीं रंचथ बनकर ुकी हुई ह, वह अब तनकलगी। बहुत ए्सडज मालम ू ह गा
कक यह ्या ह रहा ह, लककन यह ह गा। इसका, इसका एकांत मं रय ग करं शरीर-श् ु चध क ललए। ज परु ानी हमार ऊपर रंचथयां हं, व
हलकी हंगी।
दस
ू री बात, नयी रंचथयां न बनं , इसका रय ग करं । यह त पुरानी रंचथयं क ववसजजन क ललए मंन कहा। नयी रंचथयां हम र ज बनाए
चल जा रह हं। आपक मंन क ई एक अपश्द कह ददया और आपक र ध उठा, लककन स्यता और लश्टता आपक उस र ध क
रकट नहीं करन दगी। एक शज्त का पुंज आपक भीतर घूमगा। वह कहां जाएगा? वह कक्हीं नसं क लसक ड़कर, इरिा-ततरिा करक
बठ जाएगा। इसललए र धी आदमी क चहर मं , आंखं मं और शांत आदमी क चहर मं और आंखं मं फकज ह ता ह। ्यंकक वहां ककसी
र ध क वग न ककसी चीज क ववकृत नहीं ककया ह। और शरीर तब अपन पररपू्ज संदयज क उपल्ध ह ता ह, जब उसमं क ई
रंचथयां नहीं ह ती हं। यातन शरीर क संदयज का क ई और मतलब ही नहीं ह। आंखं तब बड़ी संद
ु र ह जाती हं। तब कुरप स कुरप
शरीर भी संद
ु र ददखन लगता ह।
गांधी का शरीर कुरप था, जब व युवा थ। लककन जस-जस व बूढ़ ह त गए, उनमं एक अलभनव संदयज आया, ज बहुत अदभुत था। वह
संदयज शरीर का नहीं था, वह रंचथयं क षी् ह न का था। उस कम ल ग पहचान और समझ हंग। गांधी कुरप थ, इसमं क ई शक
नहीं ह। त गांधी का शरीर ककसी भी संदयज क मापदं ड स सुंदर नहीं था। और अगर आप उनक पुरान चचर दखंग, त बचपन उनका
कुरप ह, जवानी उनकी कुरप ह। लककन जस-जस व बूढ़ ह त हं, व कुि सुंदर ह त जात हं! बुढ़ाप मं त आदमी और असुंदर ह ता ह,
पर व सुंदर ह त जा रह हं।
और अगर जीवन का ठीक ववकास ह , त जवानी उतनी सुंदर नहीं ह ती, जजतना बुढ़ापा ह ता ह। ्यंकक जवानी मं बड़ वग ह त हं,
बुढ़ापा बड़ा तनरावग ह जाता ह। अगर ठीक स ववकास ह , त बुढ़ापा सुंदरतम ष् ह जीवन का, ्यंकक उस व्त सार वग षी् ह
जात हं। और सारी रंचथयां ववलीन ह नी चादहए, अगर ठीक ववकास ह ।
इसललए अगर आप खयाल करं ग, कस यह हमारी ववकृतत इक्ठी ह ती ह शरीर क वग की? मंन आपक अपमानजनक श्द कहा,
आपमं र ध उठा। एक शज्त पदा हुई। और शज्त न्ट नहीं ह ती। क ई शज्त न्ट नहीं ह ती। अब उसका क ई उपय ग ह ना
चादहए। अगर उसका उपय ग नहीं ह गा, त वह आपक ववकृत करक न्ट ह जाएगी। त उपय ग कररए। कस उपय ग कररएगा?
अगर समझ लीजजए, आपक र ध आ रहा ह और आप द्तर मं बठ हुए हं, और आपक बहुत ज र स र ध आया ह और आप उसक
रकट नहीं कर सकत, आप एक काम कररए। उस शज्त क , ज पदा हुई ह, एक करएदटव ्ांसफामेशन कररए उसका। अपन द नं परं
क ज र स लसक डड़ए। व पर ककसी क ददखायी नहीं पड़ रह हं। आप उन द नं परं की सारी मस्स क ज र स लसक डड़ए, जजतना
लसक ड़ सकं; ज्टफ कररए, पूरा खींचत जाइए। जब आपकी बबलकुल साम्यज क बाहर ह जाए खींचना, तब उनक एकदम स ररल्स
कर दीजजए।
अगर आपक हाथ कमज र हं, आप द नं हाथं क ज र स भींचचए। वह सारी शज्त ज र ध की पदा हुई ह, उन हाथं मं लगगी।
अगर आपका पट कमज र ह, त सारी पट की आंतं क अंदर लसक डड़ए। और उस र ध की शज्त क , भावं मं कज्पत कररए कक वह
जाकर पट की सारी नसं क लसक ड़न मं ्यय ह रही ह। और आप हरान हंग, आप एक द लमनट बाद पाएंग कक र ध ववलीन ह
और शज्त उपयु्त ह गयी ह, शज्त का रय ग ह गया।
शज्त हमशा तट्थ ह। यातन र ध की ज शज्त पदा ह रही ह, वह बुरी नहीं ह, उसका र ध की तरह उपय ग ह रहा ह। उसका
दस
ू रा उपय ग कररए। और ज उसका दस
ू रा उपय ग नहीं करगा, वह शज्त त काम करगी ही। वह शज्त त बबना काम क नहीं
जान वाली ह। वह शज्त त काम करगी ही। अगर हम उसका उपय ग सीख लंग, त वह हमार जीवन क रांतत द दगी।
जीसस राइ्ट क जीवन मं एक उ्लख ह। व एक गांव स तनकल। उ्हंन एक आदमी क एक ित पर ज र स गाललयां बकत,
अ्लील बातं बकत हुए दखा। व सीदढ़यां चढ़कर उसक पास गए और उ्हंन उसस कहा कक ‘मर लमर, यह तुम ्या कर रह ह ? और
अपन जीवन क इस अ्लील बकवास मं ्यं खचज कर रह ह ? रतीत ह ता ह, तुमन शराब पी ली ह।’ उस आदमी न आंख ख ली,
उसन ईसा क पहचाना। उसन उठकर ईसा क हाथ ज ड़। और उसन कहा कक ‘मर रभु, मं त बबलकुल बीमार था, मं त बबलकुल
मर्ास्न था। तुमन अपन आशीवाजद स मुझ ठीक कर ददया था। ्या तुम भूल गए? और अब मं पररपू्ज ्व्थ हूं, लककन इस
्वा््य का ्या करं? त शराब पी लत हं।’ ईसा बहुत हरान हुए। उसन कहा कक ‘अब मं पररपू्ज ्व्थ हूं। इस ्वा््य का ्या
करं? त अब शराब पी लत हं। ज बनता ह, वह करत हं।’
ईसा बहुत दख
ु ी नीच उतर। व गांव मं अंदर गए, त एक आदमी क उ्हंन एक व्या क पीि भागत हुए दखा। त उ्हंन उस र का
और उ्हंन कहा कक ‘लमर, अपनी आंखं का यह ्या उपय ग कर रह ह ?’ उसन ईसा क पहचाना और उसन कहा, ‘आप भल ू गए? मं
त अंधा था, आपन हाथ रखकर मरी आंखं एक दफा ठीक कर दी थीं। अब इन आंखं का ्या करं?’
ईसा बहुत दख
ु ी मन उस गांव स वापस ल टत थ। एक आदमी गांव क बाहर िाती पीटकर र रहा था। ईसा न उसक लसर पर हाथ
रखा और कहा कक ‘्यं र रह ह ? जीवन मं बहुत आनंद ह। जीवन र न क ललए नहीं ह।’ उसन ईसा क पहचाना और उसन कहा,
‘अर, भूल गए! मं मर गया था और कर मं ल ग मुझ ल जा रह थ, तुमन अपन जाद ू स मुझ जजंदा कर ददया था। अब इस जीवन का
मं ्या करं?’
यह कहानी बबलकुल का्पतनक और झूठी-सी मालूम ह ती ह, लककन हम ्या कर रह हं? हम इस जीवन का ्या कर रह हं? हमार
पास जीवन मं ज भी शज्तयां लमली हं, उन सबस हम ्वयं अपना डड्््शन, उनस हम ्वयं अपना ववनाश कर रह हं।
जीवन क द ही रा्त हं। ज शज्तयां आपक शरीर और मन मं हं, उनका ववनाश कर लं , यही नकज का रा्ता ह। और ज शज्तयां
और ऊजाजएं, ज एनजीज आपक भीतर हं, उनका सज
ृ ना्मक उपय ग कर लं , यही ्वगज का रा्ता ह। सज
ृ न ्वगज ह और ववनाश नकज
ह। अपनी शज्तयं का ज सज
ृ ना्मक, सारी शज्तयं का सज
ृ ना्मक उपय ग कर ल, उसन ्वगज की तरफ चर् रखन शुर कर
ददए। और ज अपनी शज्तयं का ववनाशा्मक उपय ग कर ल, वह नकज की तरफ जा रहा ह। और क ई मतलब नहीं ह।
आप अपन स पूिं, आप ्या कर रह हं? जब एक आदमी र ध स भरता ह, त आप समझत हं, ककतनी शज्त, ककतनी डायनलमक
फ सज उसमं पदा ह ती ह? ्या आपक पता ह, एक कमज र आदमी भी र ध मं आकर एक ऐसी च्टान उठा सकता ह, ज कक वह
कभी शांत ष्ं मं उठान की क्पना नहीं कर सकता था? ्या आपक पता ह, एक रु्ध आदमी अपन स बहुत बलल्ठ शांत आदमी
क ष्ं मं परा्त कर सकता ह?
एक दफा जापान मं ऐसा हुआ। वहां एक वगज ह ता ह समरु ाई, वहां क षबरय हं व। उनका धंधा तलवार ह। और जीवन-मरना वही
उनका श क ह। एक समरु ाई बहुत बड़ा सतनक था, बहुत बड़ा सनापतत था। उसकी प्नी स, उसक घर मं ज न कर था, उसका रम ह
गया। वहां यह ररवाज था कक अगर ककसी की प्नी स ककसी का रम ह जाए, त वह उस ्वं्व-य्
ु ध क ललए ललकार। त द मं स
एक मर जाएगा, ज शष रहगा, प्नी स उसका वववाह ह जाएगा या प्नी उसकी ह गी। उसक न कर का समरु ाई, एक बहुत बड़
सनापतत की प्नी स रम ह गया।
सनापतत न कहा, पागल, अब ्वं्व-यु्ध क लसवाय क ई रा्ता नहीं ह। अब हम लड़ंग। अब तू कल तलवार लकर सुबह आ जा। वह
त बड़ा घबराया। वह त तलवार का मा्टर था, वह त अदभुत कुशल आदमी था, ज माललक था। यह बचारा न कर, घर मं झाडू-
बुहारी लगाता था, यह ्या तलवार चलाता! इसन तलवार कभी िुई नहीं थी। इसन उसस कहा कक ‘मं कस तलवार उठाऊंगा?’ लककन
उसन कहा, ‘अब इसक लसवाय क ई रा्ता नहीं ह। अब रा्ता यही ह कक तुम कल तलवार लकर आ जाओ।
वह घर गया, उसन रातभर स चा। इसक लसवाय क ई रा्ता ही नहीं था। उसन सुबह तलवार उठायी। उसन कभी इसक पहल जजंदगी
मं तलवार नहीं उठायी थी। उसन सुबह तलवार उठायी, वह तलवार लकर पहुंचा। ल ग दखकर दं ग रह गए। वह त जस आग का
अंगारा था, जब वह तलवार लकर वहां पहुंचा। वह सनापतत थ ड़ा घबराया। और उसन पिू ा कक ‘तुम तलवार उठाना भी जानत ह ?’ वह
बबलकुल गलत ही पकड़ हुए था। उसन कहा, ‘अब क ई सवाल नहीं ह। अब मरना ही ह। और मरना ही ह, त मारन की एक क लशश
करं ग। त मरना तय ह, अब एक मारन की क लशश करं ग।’
और वह बड़ा अजीब ्वं्व-य् ु ध हुआ। उसमं सनापतत मारा गया और वह न कर जीता। उसमं इस वजह स कक अब मरना ही ह और
क ई रा्ता नहीं ह, अदभत
ु ऊजाज और शज्त पदा हुई। वह तलवार चलाना बबलकुल नहीं जानता था। उसन बबलकुल ही गलत वार
ककए। बबलकुल ही गलत! ज कक उसक ही ववपरीत थ। लककन उसक वार दखकर, उसक र ध क और उसकी ज्थतत क दखकर,
सनापतत पीि हटन लगा। उसकी सारी कुशलता ्यथज ह गयी। ्यंकक वह बबलकुल शांत लड़ रहा था। उस क ई–क ई खास बात नहीं
थी। उसक ललए लड़ाई बबलकुल साधार्-सी बात थी। वह पीि हटन लगा। और उस ऊजाज मं उसकी म्ृ यु हुई, उस मरना पड़ा। और
वह आदमी जीता, ज कक बबलकुल ही नासमझ था, ज उस कला क भी नहीं जानता था।
र ध मं या ऐस ककसी भी वग मं आपक भीतर बहुत शज्त उ्प्न ह ती ह। आपक सार क्, आपक शरीर मं जजतन ललववंग स्स
हं, जजतन जीववत क ्ठ हं, व सबक सब अपनी शज्त का दान करत हं। और आपक शरीर मं बहुत-स संरषषत क श हं शज्त क। व
हमशा सुरषा क ललए, स्टी मजसज हं, व सामा्यतया काम मं नहीं आत।
अगर आपक हम कहं , द डड़ए रततय चगता मं , आप ककतन ही तज द डड़ए, आप उतन तज कभी नहीं द ड़ सकत, जजतना एक आदमी
आपक पीि बंदकू लकर लगा ह , तब आप द ड़ंग। त सवाल यह ह कक आप अपनी च्टा स बहुत द ड़ रततय चगता मं , लककन आप
उतन कभी नहीं द ड़ सकत, जब एक आदमी बंदकू लकर लगा ह । उस व्त ज स्टी मजसज हं आपक भीतर, आपक शरीर मं ज
रंचथयां शज्त क रख हुए हं जररत क ललए, व अपनी शज्त क खन ू मं ि ड़ दती हं। उस व्त आपका शरीर बड़ी शज्त स
आ्लाववत ह जाता ह। अगर उस शज्त का उपय ग सज ृ ना्मक न ह , त वह शज्त आपक ही खंडडत करगी और आपक ही त ड़
दगी।
इस दतु नया मं अश्त ल ग पाप नहीं करत हं, शज्तशाली ल ग पाप करत हं। और मजबरू ी मं ! उनकी शज्त उ्हं पाप करवाती ह।
इस दतु नया मं अश्त ल ग बरु काम नहीं करत। इस दतु नया मं शज्तशाली ल ग बरु काम करन क मजबरू ह जात हं, ्यंकक
शज्त का सज
ृ ना्मक उपय ग उ्हं पता नहीं ह। इसललए जजतन अपराधी हं, जजतन पापी हं, उ्हं आप शज्त का र त समखझए। और
अगर उ्हं संपकज लमल जाए, त उनकी सारी शज्तयां अदभुत रप स पररवततजत ह जाती हं।
इसललए आपक पता ह गा, धालमजक इततहास मं ऐस सकड़ं उदाहर् हं , जब कक पापी ष्भर मं पु्या्मा ह गए हं। और उसका कुल
कार् इतना ह कक शज्तयां बहुत थीं, कवल ्ांसफामेशन की बात थी, एक जाद ू का संपकज चादहए था और सब बदल जाएगा।
अंगुलीमाल न इतनी ह्याएं कीं। उसन एक हजार ल गं की ह्या करन का रत ललया था। उसन न स तन्यानब ल गं की ह्या
करक माला पहन ली थी। उस आखखरी आदमी चादहए था। जजस जगह खबर ह जाती थी कक अंगुलीमाल ह, वहां रा्त तनजजन ह
जात थ, ्यंकक वहां क न चलता! वह त दखता ही नहीं था, ववचार ही नहीं करता था। ज आया, उसकी ह्या करता था। खद
ु बादशाह
रसनजजत ज था बबहार का, वह डरता था। उसकी िाती कंप जाती थी अंगुलीमाल का नाम सुनकर। उसन बड़ सतनक वहां भज,
लककन अंगुलीमाल पर क ई क्जा नहीं हुआ।
बु्ध उस पहाड़ स तनकलत थ। ल गं न, गांव क ल गं न कहा, ‘इधर मत जाइए। आप एक तनह्थ लभषु हं , अंगुलीमाल ह्या कर
दगा!’ बु्ध न कहा, ‘हम त ज रा्ता चन
ु त हं, उस पर चलत हं। और ककसी की वजह स उसक नहीं बदलत हं। और अगर
अंगुलीमाल यहां ह, त हमारी और भी जररत ह गयी ह कक हम वहां जाएं। अब दखना यह ह कक अंगुलीमाल हमं मारता ह या हम
अंगुलीमाल क मारत हं।’ त ल गं न कहा, ‘बड़ी पागलपन की बात ह। आपक पास कुि भी नहीं ह, आप अंगुलीमाल क माररएगा?
तनह्थ, कमज र बु्ध और अंगुलीमाल बड़ा बबलकुल द्य जसा आदमी!’ बु्ध न कहा, ‘अब दखना यह ह कक अंगुलीमाल बु्ध क
मारता ह या बु्ध अंगुलीमाल क मारत हं। और हम त ज रा्ता चन
ु त हं, उस पर चलत हं। और यह और भी स भा्य कक
अंगुलीमाल स लमलना ह जाएगा। अनायास यह म का आ गया!’
ब्
ु ध वहां गए। अंगल
ु ीमाल न अपनी टकरी पर स दखा कक एक तनह्था लभषु शांत रा्त पर चला आ रहा ह। उसन वहीं स
चच्लाकर कहा कक ‘दख , यहां मत आओ। लसफज इसललए कह रहा हूं कक तम
ु सं्यासी ह । वापस ल ट जाओ। इतनी दया आ गयी
त्ु हारी चाल दखकर। धीम-धीम चल आ रह ह । तम
ु ल ट जाओ, आग मत बढ़ । ्यंकक हम ककसी पर दया करन क आदी नहीं हं,
ह्या कर दं ग।’ बु्ध न कहा, ‘हम भी ककसी की दया करन क आदी नहीं हं।’ बु्ध न कहा, ‘हम भी ककसी की दया करन क आदी
नहीं हं। और जहां चन
ु ती ह , वहां त सं्यासी पीि कस ल टगा? त हम त आत हं, तुम भी आओ।’
अंगुलीमाल बहुत हरान हुआ। यह आदमी पागल ह! उसन अपना फरसा उठाया और वह नीच उतरा। जब वह बु्ध क पास पहुंचा, त
बु्ध स उसन कहा कक ‘अपन हाथ स अपनी म्ृ यु म ल ल रह ह !’ बु्ध न कहा, ‘इसक पहल कक तुम मुझ मार , एक ि टा-सा काम
कर । यह ज सामन वष
ृ ह, इसक चार पत त ड़ द ।’ उसन अपन फरस क मारा, एक डगाल त ड़ दी। और उसन कहा, ‘य रह चार
्या, चार हजार!’
बु्ध न कहा, ‘अब एक ि टा काम और कर । इसक पहल कक तुम मुझ मार , इनक वापस इसी दर्त मं ज ड़ द ।’ वह आदमी ब ला
कक ‘यह त मुज्कल ह।’ त बु्ध न कहा, ‘त ड़ना त ब्चा भी कर दता। ज ड़ना! त ड़ना त ब्चा भी कर दता; ज ड़ना ज कर सक,
उसमं पुुष ह, उसमं पुुषाथज ह। तुम बहुत कमज र आदमी ह । तुम लसफज त ड़ सकत ह । तुम यह खयाल ि ड़ द कक तुम बड़
शज्तशाली ह । एक पता नहीं ज ड़ सकत!’
उसन एक ष् ग र स स चा। उसन कहा, ‘यह त जरर ह। ्या पता ज ड़न का भी क ई रा्ता ह सकता ह?’ ब्
ु ध न कहा, ‘ह। हम
उसी रा्त पर चल रह हं।’ उसन ग र स दखा और उसक ्वालभमान क पहली दफा यह पता चला, मारन मं क ई मतलब नहीं ह।
मारना कमज र भी कर सकता ह। त उसन कहा, ‘मं त कमज र नहीं हूं। मं अब ्या करं?’ ब्
ु ध न कहा, ‘मर पीि आओ।’
वह उस ददन लभषा मांगन गांव मं गया। लभषु ह गया वह, गांव मं लभषा मांगन गया। ल गं न–सब ल ग डर क मार अपन मकानं
पर चढ़ गए और उसक प्थर मार। वह नीच चगर पड़ा लहूलुहान। उस पर प्थर पड़ रह हं। बु्ध उसक पास आए और उसस कहा,
‘अंगुलीमाल, रा्म् अंगुलीमाल, उठ ! आज तुमन पुुषाथज क लस्ध कर ददया। जब उनक प्थर तु्हार ऊपर पड़ रह थ, त तु्हार
दय मं जरा भी र ध नहीं आया। और जब तु्हार शरीर स लहू चगरन लगा और तुम जमीन पर चगर गए, तब भी तु्हार दय मं
उनक रतत रम ही भरा हुआ था। तुमन अपन पुु ष क लस्ध कर ददया। और तुम रा्म् ह गए।’
रसनजजत क खबर लगी, त वह लमलन आया बु्ध स कक अंगुलीमाल पररवततजत हुआ ह! वह आकर बठा। उसन कहा, ‘हम सुनत हं
कक अंगुलीमाल साधु ह गए हं। ्या मं उनक दशजन कर सकता हूं?’ बु्ध ब ल, ‘ज बगल मं लभषु मर बठ हुए हं, वह अंगुलीमाल हं।’
रसनजजत न सुना, उसक हाथ-पर कंप गए। नाम त पुराना था और डर वही था उस आदमी का। अंगुलीमाल न कहा, ‘मत डर । वह
आदमी गया। वह शज्त ज उस आदमी की थी, पररवततजत ह गयी। अब हम दस
ू र रा्त पर हं। अब तुम हमं मार डाल , त हमार
मन स तु्हार रतत क ई–क ई अशुभ आकांषा नहीं उठगी।’
इस दतु नया मं क ई बुरा नहीं ह और इस दतु नया मं क ई भला नहीं ह; कवल शज्त की ददशाएं हं। हमार भीतर बहुत शज्त ह इस
शरीर मं । इस शरीर की शज्तयं का सज ृ ना्मक उपय ग!
त एक त मंन कहा कक जब भावावश उठ, त आप शरीर क ककसी अंग स उस भावावश का उपय ग कर लं , उस ए्सरसाइज मं
उपय ग कर लं । दस
ू री बात, अपन जीवन मं कुि सज
ृ ना्मक काम सीखं । हम सब गर सज
ृ ना्मक हं।
पुरान ददन थ–कल मं बात करता था रात–पुरान ददन थ, एक गांव मं एक आदमी जूता बनाता था। और क ई उसक जूत क पहनता
था, त वह ग रव स कहता था, मरा बनाया हुआ जूता ह। एक सज
ृ न का आनंद था। एक आदमी गाड़ी का चाक बनाता था, त मरा
बनाया हुआ ह।
आज दतु नया मं सजृ न का क ई आनंद नहीं रह गया ह। आपका बनाया हुआ कुि भी नहीं ह। आपका बनाया हुआ कुि भी नहीं ह।
यह दतु नया जसी ह, उसमं आदमी का बनाया हुआ अब कुि भी नहीं रह जाएगा। उसका परर्ाम यह हुआ ह कक ज सज ृ ना्मक
आनंद था आपका, वह ववलीन ह गया ह। और अगर वह ववलीन ह जाएगा, त शज्तयं का ्या ह गा? व ववनाश की तरफ उ्सुक
हंगी। ्वाभाववक शज्त का कुि न कुि ह गा, या त ववनाश ह गा या सज
ृ न ह गा।
त जीवन मं क ई सज
ृ ना्मक काम भी करं । सज
ृ ना्मक मतलब, ज लसफज आप अपन आनंद क ललए तनलमजत कर रह हं। एक मतू तज
बनाएं, त क ई हजज नहीं। एक गीत ललखं , एक गीत गाएं, एक लसतार क बजाएं, त क ई हजज नहीं। उस करं लसफज आनंद क ललए,
्यवसाय क ललए नहीं। जीवन मं एक काम चनु ं , ज आपका आनंद ह, ज आपका ्यवसाय नहीं ह। त आपकी बहुत-सी शज्तयं का
ववनाशा्मक ुख पररवततजत ह गा और व सज
ृ न मं लगं गी।
एक ि टा-सा गीत ललखं। क ई कफर नहीं, एक अ्पताल मं जाएं और कुि मरीजं क द -द फूल द आएं। क ई कफर नहीं ह, रा्त
पर क ई लभखमंगा लमल जाए, द ष् उस गल लगा लं। क ई कफर नहीं ह, कुि सज
ृ ना्मक करं , ज लसफज आनंद ह आपका और
जजसमं आपक कुि लना नहीं ह, कुि दना नहीं ह। जजस कर लना ही आपका आनंद ह।
त जीवन मं शज्त का सज्लमशन, उसका उ्दातीकर् बहुत जररी ह। त एक यह ्मर् रखं । शरीर की संपू्ज शु्चध क ललए
जीवन मं कुि सज
ृ ना्मक ह न की च्टा करं । सज
ृ ना्मक मनु्य ही कवल धालमजक ह सकता ह; और क ई मन्ु य धालमजक नहीं ह
सकता।
शरीर-शु्चध क ललए य बुतनयादी बातं मंन आपस कहीं, बहुत बुतनयादी। अब बहुत ग ् बातं। य बहुत बुतनयादी बातं हं। इनक ज
स्हालता ह, ग ् बातं अपन आप स्हल जाएंगी। बहुत ग ् बातं मं यह ह, जजसक हम अपन मु्क मं आहार कहत हं, वह शरीर-
श्
ु चध मं उपय गी ह। आपका शरीर त बबलकुल भ ततक सं्थान ह। उसमं आप ज डालत हं, उसक परर्ाम ह न ्वाभाववक हं।
अगर मं शराब पी लंग
ू ा, त मर शरीर क सल बह श ह जाएंग। यह बबलकुल ्वाभाववक ह। और अगर शरीर मरा बह श ह, त उस
बह शी का परर्ाम मर मन पर पड़गा।
मन और शरीर बहुत अलग-अलग नहीं हं, बहुत संयु्त हं। हमारा ज ्यज्त्व ह, वह शरीर और मन, ऐसा अलग-अलग नहीं ह।
शरीर-मन ऐसा इक्ठा। वह साइक स मदटक ह। उसमं हमारा शरीर और मन इक्ठा ह। शरीर का ही अ्यंत सू्म दह्सा मन ह
और मन का ही अ्यंत ्थल
ू दह्सा शरीर ह। इस यूं समखझए, य द नं बबलकुल अलग-अलग चीजं नहीं हं।
इसललए ज शरीर मं घदटत ह गा, उसक परर्ाम मन मं रतत्वतनत ह त हं। और ज मन मं घदटत ह ता ह, उसक परर्ाम शरीर
तक आ जात हं। अगर मन बीमार ह, शरीर ्यादा दर ्व्थ नहीं रहगा। अगर शरीर बीमार ह, त मन ्यादा दर ्व्थ नहीं रह
सकगा। य खबरं एक-दस
ू र मं सुनी और समझी जाती हं। इसललए ज ल ग मन क ्व्थ रखन का उपाय समझ लत हं, व शरीर क
बाबत मु्त मं बहुत-सा ्वा््य उपल्ध कर लत हं। जजसक ललए व क ई कमात नहीं हं, जजसक ललए व क ई रयास नहीं करत हं।
शरीर और मन संयु्त घटना ह। शरीर पर ज ह गा, वह मन पर ह गा। इसललए आपक अपन आहार मं , आपक भ जन मं आपक
थ ड़ा वववकपू्ज ह ना जररी ह।
पहली बात, वह इतना ्यादा न ह कक शरीर उसक कार् आल्य स भरता ह । आल्य अशु्चध ह। वह ऐसा न ह कक शरीर
उतजना स भरता ह । उतजना अशु्चध ह। ्यंकक उतजना रंचथयां पदा करगी। वह ऐसा न ह कक शरीर षी् ह ता ह , ्यंकक
षी्ता कमज री ह। और शज्त अगर उ्प्न न ह गी, त परमा्मा की तरफ ववकास भी नहीं ह सकता। शज्त पदा ह , लककन
शज्त उतजक न ह , ऐसा आहार ह ना चादहए। शज्त पदा ह , लककन वह इतनी न ह कक शरीर उसक कार् आल्य स भर जाए।
अगर आपन जररत स ्यादा भ जन ककया ह, त सार शरीर की शज्त उसक पचान मं लग जाती ह, शरीर मं आल्य िा जाता ह।
शरीर मं आल्य िान का और क ई मतलब नहीं ह। सारी शज्त पचान मं लगती ह, त शरीर आल्य स भर जाता ह। आल्य इस
बात की सूचना ह कक भ जन जररत स ्यादा ह गया।
दस
ू री बात ग ् बातं मं , शरीर क ललए थ ड़ा-सा ्यायाम अ्यंत आव्यक ह। ्यंकक शरीर जजन त्वं स लमलकर बना ह, व त्व
्यायाम क समय मं वव्तार पात हं। ्यायाम का मतलब, वव्तार। संक च क ववपरीत ह ्यायाम श्द। ्यायाम का अथज ह
वव्तार। जब आप द ड़त हं, त आपक सार क् और सार ललववंग स्स, पूर जीववत क ्ठ वव्तत
ृ ह त हं, फलत हं। और जब व
फलत हं, त आपक ्वा््य का अनुभव ह ता ह। जब व लसकुड़त हं, त बीमारी का अनुभव ह ता ह। जब आपकी ्वास पूर क पूर
रा् क फफड़ क ख लती ह और सार काबजन डाइआ्साइड क बाहर फंकती ह, त आपकी खन
ू की गतत बढ़ती ह। और खन
ू की गतत
बढ़ती ह, त शरीर की सारी अश्
ु चधयां दरू ह ती हं। इसललए य ग न शरीर-श च क , शरीर की पररप्
ू ज श्
ु चध क बहुत अतनवायज
तनयमं क अंतगजत रखा ह। त थ ड़ा ्यायाम।
अतत ववराम नुकसान करता ह, अतत ्यायाम भी नुकसान करता ह। इसललए अतत ्यायाम क नहीं कह रहा हूं। अतत ्यायाम नहीं,
थ ड़ा, स्यक ्यायाम कक जजसस आपक ्वा््य का ब ध ह । और अतत ववराम नहीं, थ ड़ा ववराम भी। जजतना ्यायाम, उतना
ववराम।
इस सदी मं ्यायाम भी नहीं ह और ववराम भी नहीं ह। हम बहुत अजीब हालत मं हं। आप ्यायाम त करत नहीं, आप ववराम भी
नहीं करत। जजसक आप ववराम कहत हं, वह ववराम नहीं ह। आप पड़ हं, करवटं बदल रह हं, वह ववराम नहीं ह। एक गहरी रगाढ़
तनरा! जजसमं कक सारा शरीर स जाए और उसक सार काम का ज भी ब झ और भार उस पर पड़ा ह, वह सब ववलीन ह जाए।
्या आपन कभी खयाल ककया, अगर आप सुबह बहुत अ्व्थ उठ हं और तबबयत ताजी नहीं ह, त आपका ्यवहार ्व्थ नहीं
ह ता! अगर आपक नींद अ्िी नहीं हुई और सुबह एक लभखारी आपस भीख मांगन आया ह, बहुत असंभव ह कक आप उस भीख द
सकं। और अगर आप रात बहुत गहरी नींद स ए हं और ककसी न हाथ बढ़ाए हं, त बहुत असंभव ह कक आप अपन हाथ क दन स
र क सकं।
इसललए लभखारी सुबह आपक घर मांगन आत हं, शाम क नहीं आत हं। ्यंकक सुबह संभावना लमलन की ह, शाम क क ई संभावना
नहीं ह। यह बहुत मन वञातनक ह। लभखारी यूं ही नहीं सुबह आपक घर आ रहा ह। शाम क नहीं आता ह। शाम क क ई मतलब
नहीं ह। शाम क आप इतन थक और शरीर इतना गलत हालत मं ह गा कक आप शायद ही ककसी क कुि द सकं। इसललए वह
सुबह आता ह। अभी सूरज ऊग रहा ह, आप नहाए हंग, ककसी न घर मं राथजना की ह गी। और वह बाहर आकर बठा ह। अभी इनकार
करना बहुत मुज्कल ह गा।
शरीर क ठीक ववराम लमल, त आपका ्यवहार बदलता ह। इसललए हमन आहार और ववहार क संय्
ु त माना ह हमशा स। जसा
आहार ह गा, जसा ववहार ह गा, अगर उन द नं मं साज्वकता ह गी, त जीवन मं बड़ी गतत और बड़ा आंतररक रवश ह ना शर
ु ह ता ह।
्वा््य की एक भूलमका बहुत जररी ह। और उसक ललए स्यक आहार, स्यक ्यायाम और स्यक ववराम, इनक आप बुतनयादी
दह्स मानं।
ववराम भी करन क ललए कुि समझ चादहए, जसा ्यायाम करन क ललए कुि समझ चादहए। ववराम करन क ललए समझ चादहए,
शरीर क ि ड़न की समझ चादहए। वह हम राबर क जब ्यान करं ग, त उसस आपक समझ मं आएगा कक उस ्यान क बाद
अगर आप ववराम करत हं, त ववराम वा्तववक ह गा।
ह सकता ह, यहां कुि लमर हं, ज शारीररक रप स बहुत ्यायाम न कर सकत हं, न जा सकत हं जंगल और पहाड़ न चढ़ सकत
हं, उनक ललए मं एक दसू रा रय ग कहता हूं। व कवल पंरह लमनट क सुबह उठकर ्नान करन क बाद एकांत कमर मं लट जाएं,
आंख बंद कर लं और क्पना करं कक मं पहाडड़यां चढ़ रहा हूं और द ड़ रहा हूं। लसफज क्पना करं , कुि न करं । व्
ृ ध हं , व नहीं जा
सकत हं। या ऐसी जगह हं कक वहां घूमन नहीं जा सकत हं। त एकांत कमर मं लट जाएं, आंख बंद कर लं और क्पना करं कक मं
जा रहा हूं, एक पहाड़ चढ़ रहा हूं और द ड़ रहा हूं। धप
ू तज ह और मं भागा चला जा रहा हूं। मरी ्वास ज र स बढ़ रही ह।
और आप हरान हंग, आपकी ्वास बढ़न लगगी। और आपकी इमजजनशन, आपकी क्पना जजतनी रगाढ़ ह ती जाएगी, आप पंरह
लमनट मं पाएंग कक ज घम
ू न का फायदा था, वह लमल गया ह। आप पंरह लमनट बाद बबलकुल ताज, ्यायाम करक उठ आएंग।
जररी नहीं ह कक आप ्यायाम करन जाएं। शरीर क अ्ओ
ु ं क पता चलना चादहए कक ्यायाम ह रहा ह, त व तयार ह जात हं।
यातन व उसी ज्थतत मं आ जात हं, जजस ज्थतत मं व्तत
ु ः आप चल ह त तब आत। व उसी ज्थतत मं आ जात हं।
्या आपन कभी खयाल नहीं ककया, ्व्न मं घबड़ा गए हं, त उठन क बाद भी दय कंपता रहता ह। ्यं? ्व्न की घबड?ााहट
त बड़ी झूठी थी, लककन दय ्यं कंप रहा ह? जागन पर भी ्यं कंप रहा ह? दय त कंप गया, दय क बबलकुल पता नहीं ह कक
यह ्व्न मं घटना घटी कक सच मं घटना घटी। दय क त पता ह कक घटना घटी, बस।
त अगर आप इमजजनशन मं भी ्यायाम करत हं , त फायदा उतना ही ह जाता ह, जजतना कक व्तुतः ्यायाम कररए। क ई भद
नहीं पड़ता। इसललए ज बहुत समझदार थ इस मामल मं , उ्हंन बड़ी अदभुत तरकीबं तनकाल ली थीं। अगर उ्हं आप एक जल मं
भी बंद कर दं , त उनक ्वा््य क क ई नुकसान नहीं पड़गा। ्यंकक व पंरह लमनट ववराम करक और ्यायाम कर लं ग।
त इसक भी करक दखं। ज नहीं जा सकत हं , नहीं जान की ज्थततयं मं हं, व इसका रय ग करं । और तनरा क ललए राबर का ज
्यान ह, उसक बाद तनरा करं । शरीर ऐस श्
ु ध ह गा। और शरीर श्
ु ध ह गा, त शरीर की श्
ु चध भी अपन आप मं एक अदभत
ु
आनंद ह। और उस आनंद मं कफर और अंतस रवश ह ता ह। यह पहला चर् हुआ।
दस
ू र द चर् हं भूलमका क, ववचार-शु्चध और भाव-शु्चध। उनकी मं बात करंगा।
अब हम सुबह का ्यान करं ग और कफर ववदा हंग। सुबह क ्यान क ललए थ ड़ी-सी बात आपक कह दं ।ू सुबह क ्यान का पहला
चर् त वही ह गा, जजसक हमन राबर मं संक्प कहा। पांच बार हम संक्प की ज्थतत करं ग। उसक बाद, जब संक्प हम कर चक
ु
हंग, द लमनट तक धीमी ्वास लकर बठ रहं ग। उसक बाद हम भावना करं ग। पहल संक्प, कफर भावना और कफर ्यान। ऐस तीन
चर् हंग सुबह क ललए।
संक्प, राबर क जसा मंन कहा, वसा। ्वास क पूरा गहरा अंदर ल जाएंग। जब ्वास अंदर जान लगगी, तब मन मं यह भाव करं ग
कक मं संक्प करता हूं कक मरा ्यान मं रवश ह कर रहगा। मं ्यान मं रवव्ट ह ऊंगा। इस भाव क करत रहं ग, जब ्वास अंदर
जाएगी और पूर फफड़ं मं भरगी। पूरी भर लनी ह, जजतनी आपस बन सक। कफर उस एक सकंड, द सकंड, जजतनी दर आप र क सकं,
र क रखना ह। जब ्वास क आप ल जात हं, पूरा ल जाएं, कफर उस थ ड़ी दर र कं। जज्हं य ग न पूरक, कंु भक और रचक कहा ह,
वही रकरया ह। ्वास क पूरा अंदर ल जाएं, कफर उस र कं और इस पूर व्त संक्प करत रहं , मन मं वही संक्प गूंजता रह। कफर
पूरी ्वास क बाहर फंकं, मन मं वही संक्प गूंजता रह। कफर थ ड़ा ुकं और मन मं वही संक्प गूंजता रह।
इस भांतत आपक परू अंतस चतन मन तक, अंतःकर् तक यह संक्प रवव्ट ह जाएगा। आपक परू ्यज्त्व क पता चल जाएगा
कक तन्जय हुआ ह कक ्यान मं रवश करना ह। त आपक परू ्यज्त्व का सहय ग लमलगा। अ्यथा आप ऊपर ही घम
ू त रहं ग,
उसस क ई अंतर नहीं पड़गा बहुत।
त पहल त संक्प, कफर भावना। संक्प क बाद भावना–ज मंन कल आपक कही–आशा, आनंद, वव्वास, वह द लमनट तक करं ग।
द लमनट तक अपन सार शरीर क अनुभव करं ग कक आप बहुत ्वा््य स भर हुए हं, बहुत आनंद का अनुभव कर रह हं, सार शरीर
क क्-क् रफु्ल ह गए हं और बड़ी आशा की ज्थतत ह। कुि ह गा।
संक्प। कफर यह भावना कक मर चारं तरफ अ्यंत शांतत ह, मर भीतर अ्यंत आनंद ह, मर भीतर अ्यंत आशा ह और मर शरीर
का क्-क् उ्मुख ह और उ्सुक ह और रफु्ल ह, इसका भाव करं ग। उसक बाद कफर सुबह का ्यान करं ग।
सुबह क ्यान मं रीढ़ क सीधा रखना ह। बबना दहल-डुल आराम स बठ जाना ह। सार शरीर क कंपन क ि ड़ दना ह, रीढ़ क सीधा
कर लना ह। आंख क बंद कर लना ह। कफर धीमी ्वास लनी ह, बहुत आदह्ता ्वास लनी ह और आदह्ता ही ्वास ि ड़ दनी ह।
्वास क दखना ह। भीतर आंख बंद ककए हुए ्वास क दखत रहना ह, वह भीतर गई और बाहर गई।
अचधक ल गं क सुववधाजनक पड़गा कक व नाक क पास दखं। ्वास अंदर रवव्ट ह गी, नाक क लगती ह, कफर तनकलगी, कफर लगती
ह। उसी ्थान क आप दखं कक ्वास लगी, अंदर गयी; ्वास लगी, बाहर गयी। ज ल ग पीि रय ग ककए हं नालभ का, उनक नालभ
का सुववधाजनक मालूम पड़ता ह , व नालभ क पास दखं कक पट ऊपर उठा, नीच चगरा। जहां जजसक ठीक लग, वहां उस रय ग क कर
ल। लसफज दस लमनट तक ्वास क दखता रह।
त अब हम बठं सब
ु ह क रय ग क ललए। सब ल ग फासल पर ह जाएं। एक-दस
ू र का ब ध लमट जाए, िूना लमट जाए, सब इतन
फासल पर ह जाएं।
आजइतनाही।
्यान–सर
ू (ओश )रवचन–तीसरा
मरररयआ्मन ्,
सबसपहलएकर्नपछ
ू ाहककसाधकक रकाशकीककरणममल, उसक सततबनाएरखनकमलए्याककयाजाए?
मंन सब
ु ह कहा, ज अनुभव ह आनंद का, ज शांतत का, आनंद का अनभ
ु व ह , उस हम सतत च बीस घंट अपन भीतर बनाए रखं।
कस बनाए रखंग?
द रा्त हं। एक रा्ता त ह कक हम उस चचत-ज्थतत क , ज ्यान मं अनभ
ु व हुई, उसका जब भी हमं अवसर लमल, पन
ु ः ्मर्
करं । जस ्यान क समय शांत ्वास ली ह। जब भी ददन मं समय लमल, जब आप क ई ववशष काम मं नहीं लग हं, उस समय ्वास
क धीमा कर लं और नाक क पास जहां ्वास का कंपन ह , उसका थ ड़ा-सा ्मर् करं । उस ्मर् क साथ ही उस भाव क कफर
स आर वपत कर लं कक आप आनंददत हं, रफुज्लत हं, शांत हं, ्व्थ हं। उस भाव क पुनः ्मर् कर लं । जब भी ्मर् आ जाए–
स त समय, उठत समय, रा्त पर जात समय–जहां भी ्मर् आ जाए, उस भाव क पुनः आवततजत कर लं।
उसका परर्ाम ह गा कक ददन मं अनक बार वह ्मतृ त, वह ्मर् आपक भीतर आघात करगा और कुि समय मं आपक उस अलग
स याद करन की जररत न रह जाएगी। वह आपक साथ वस ही रहन लगगा, जस ्वासं आपक साथ हं।
एक त इस भाव-ज्थतत क बार-बार ्मर् करना। जब भी खयाल लमल जाए–बब्तर पर लट गए हं, ्मर् आया ह, ्यान की
ज्थतत क वापस द हरान का भाव कर लं । रा्त पर घूमन गए हं, राबर क चांद क नीच बठ हं , ककसी दर्त क पास बठ हं, क ई
नहीं ह, कमर मं अकल बठ हं, पन
ु ः ्मर् कर लं । बस मं सफर कर रह हं, या ्न मं सफर कर रह हं, अकल बठ हं, आंख बंद कर
लं , उस भाव-ज्थतत क पुनः ्मर् कर लं । ददन क ्य्त काम-काज मं भी, द्तर मं भी, द लमनट क ललए कभी उठ जाएं, खखड़की
क पास खड़ ह जाएं, गहरी ्वास ल लं , उस भाव-ज्थतत क ्मर् कर लं ।
ददन मं ऐसा अगर दस-प्चीस बार, लमनट आधा लमनट क भी उस ज्थतत क ्मर् ककया, त उसका सात्य घना ह गा और कुि
ददनं मं आप पाएंग, उस ्मर् नहीं करना ह ता ह, वह ्मर् बना रहगा। त यह एक रा्ता, ्यान मं ज अनुभव ह , उस इस
भांतत तनरं तर ववचार क मा्यम स ्वयं की ्मतृ त मं रवश ददलान का ह।
दस
ू रा रा्ता, राबर क स त समय, जस अभी मंन आपक संक्प करन क ललए कहा ह, जब संक्प आपका रगाढ़ जजस रा्त स ह ता
ह, उसी रा्त स ्यान की ्मतृ त क भी कायम रखा जा सकता ह। जब ्यान का एक अनुभव आन लग, त राबर क स त समय
वही रकरया करं और उस व्त यह भाव मन मं द हराएं कक ्यान मं मुझ ज भी अनुभव ह गा, उसकी ्मतृ त मुझ च बीस घंट बनी
रहगी। ज मंन संक्प क ललए रय ग बताया ह–्वास क बाहर फंक कर संक्प करन का या ्वास क भीतर लकर संक्प करन
का–जब आपक कुि अनुभव आन लग शांतत का, त इसी रकरया क मा्यम स यह संक्प मन मं द हराएं कक ्यान मं मुझ ज
भी अनुभव ह गा, वह मुझ च बीस घंटा, एक सतत अंतः्मर् उसका मर भीतर बना रहगा।
इसक द हरान स आप पाएंग कक आपक बबना ककसी कार् क अचानक ददन मं कई बार ्यान की ज्थतत का खयाल आ जाएगा।
य द नं संय्
ु त करं , त और भी ्यादा लाभ ह गा। कफर अभी हम ववचार और भाव की श्
ु चध क संबंध मं जब बात करं ग, त इस
संबंध मं और बहुत-सी बातं चचाज ह सकंगी। लककन इन द नं बातं का रय ग ककया जा सकता ह।
बहुत-सा समय च बीस घंट का हमार पास ्यथज ह ता ह, जजसका हम क ई उपय ग नहीं करत। उस ्यथज क समय मं अगर ्यान की
्मतृ त क द हरात हं, त बहुत अंतर पड़गा।
इसक कभी इस तरह खयाल करं । अगर आपक द वषज पहल ककसी ्यज्त न गाली दी थी, द वषज पहल आपका ककसी न अपमान
ककया था, द वषज पहल कहीं आपक साथ क ई दघ
ु जटना घटी थी, अगर आप आज भी उस ्मर् करन बठं ग, त उस परू ी घटना क
्मर् करत-करत आप यह भी हरान ह जाएंग कक घटना क ्मर् करत-करत आपक शरीर की और चचत की अव्था भी उसी
िाप क ल लगी, ज द वषज पहल घदटत हुआ ह गा। अगर द वषज पहल आपका क ई भारी अपमान हुआ था, आप आज बठकर अगर
उसका ्मर् करं ग कक वह घटना कस घटी थी और कस अपमान हुआ था, त आप ्मर् करत-करत हरान हंग कक आपका शरीर
और आपका चचत उसी अव्था मं पुनः पहुंच गया ह और आप जस कफर स अपमान क अनुभव कर रह हं।
त अगर आज सुबह आपक ्यान मं अ्िा लगा ह , त ददन मं दस-पांच बार उसका पुन्मजर् बहुत मह्वपू्ज ह गा। उस भांतत
वह ्मतृ त गहरी ह गी। और बार-बार ्मर् आ जान स वह चचत क ्थायी ्वभाव का दह्सा बनन लगगी। इस, यह ज र्न पूिा
ह, इस भांतत अगर इस पर रय ग हुआ, त लाभ ह गा। और यह करना चादहए।
अ्सर मनु्य की भूल यह ह कक ज भी गलत ह, उसका त वह ्मर् करता ह; और ज भी शुभ ह, उसका ्मर् नहीं करता।
मनु्य की बुतनयादी भूलं मं स एक यह ह कक ज भी नकारा्मक ह, तनगदटव ह, उसका वह ्मर् करता ह; और ज भी ववधायक
ह, उसका ्मर् नहीं करता। आपक शायद ही व ष् याद आत हं, जब आप रम स भर हुए थ; शायद ही व ष् याद आत हं, जब
आपन ्वा््य की क ई बहुत अदभुत अनुभूतत की थी; शायद ही व ष् याद आत हं, जब आप बहुत शांत ह गए थ। लककन
आपक व ्मर् र ज आत हं, जब आप र चधत हुए थ, जब आप अशांत हुए थ; जब ककसी न आपका अपमान ककया था, या आपन
ककसी स बदला ललया था। आप उन-उन बातं क तनरं तर ्मर् करत हं, ज घातक हं; और उनका ्मर् शायद ही ह ता ह , ज कक
आपक जीवन क ललए ववधायक ह सकती हं।
ववधायक अनुभूततयं का ्मर् बहुत बहुमू्य ह। उन-उन अनुभूततयं क तनरं तर ्मर् करन स द बातं हंगी। सबस मह्वपू्ज त
यह ह गा कक अगर आप ववधायक अनुभूततयं क ्मर् करत हं, त उन अनुभतू तयं क वापस पदा ह न की संभावना आपक भीतर
बढ़ जाएगी। ज आदमी घ्
ृ ा की बातं क बार-बार याद करता ह , बहुत संभावना ह, आज भी घ्
ृ ा की क ई घटना उसस घटगी। ज
आदमी उदासी की बातं क बार-बार ्मर् करता ह , बहुत संभव ह, आज वह कफर उदास ह गा। ्यंकक उसक एक तरह क झुकाव
पदा ह जात हं और वही बातं उसमं पुनु्त ह जाती हं। य, य ज भाव हं, ्थायी बन जात हं और जीवन मं उन-उन भावं का बार-
बार पदा ह जाना आसान ह जाता ह।
इसक अपन भीतर ववचार करं कक आप ककस तरह क भावं क ्मर् करन क आदी हं। हर आदमी ्मर् करता ह। ककस तरह क
भावं क आप ्मर् करन क आदी हं? और यह ्मर् रखं कक अतीत क जजन भावं क आप ्मर् करत हं, भवव्य मं आप
उ्हीं भावं क , बीजं क ब रह हं और उनकी फसल क काटं ग। अतीत का ्मर् भवव्य क ललए रा्ता बन जाता ह।
्मर्पूवक
ज , ज ्यथज ह, जजसका क ई उपय ग नहीं ह, उस याद न करं । उसका क ई मू्य नहीं ह। अगर उसका ्मर् भी आ जाए,
त ुकं और उस ्मर् क कहं कक बाहर ह जाओ, तु्हारी क ई आव्यकता नहीं ह। कांटं क भूल जाएं और फूलं क ्मर् रखं ।
कांट जरर बहुत हं, लककन फूल भी हं। ज फूलं क ्मर् रखगा, उसक जीवन मं कांट षी् ह त जाएंग और फूल बढ़ जाएंग। और
ज कांटं क ्मर् रखगा, उसक जीवन मं ह सकता ह, फूल ववलीन ह जाएं और कवल कांट रह जाएं।
हम ्या ्मर् करत हं, वही हम बनत चल जात हं। जजसका हम ्मर् करत हं, वही हम ह जात हं। जजसका हम तनरं तर ववचार
करत हं, वह ववचार हमं पररवततजत कर दता ह और हमारा रा् ह जाता ह। इसललए शुभ, सद, ज भी आपक र्ठ मालूम पड़, उस
्मर् करं । और जीवन मं –इतना दररर जीवन क ई भी नहीं ह कक उसक जीवन मं क ई शांतत क, आनंद क, संदयज क, रम क ष्
न घदटत हुए हं। और अगर आप उनक ्मर् मं समथज ह गए, त यह भी ह सकता ह कक आपक चारं तरफ अंधकार ह , लककन
आपकी ्मतृ त मं रकाश ह और इसललए चारं तरफ का अंधकार भी आपक ददखायी न पड़। यह भी ह सकता ह, आपक चारं तरफ
दख
ु ह , लककन आपक भीतर क ई रम की, क ई संदयज की, क ई शांतत की अनुभूतत ह और आपक चारं तरफ का दख
ु भी ददखायी न
पड़। यह संभव ह, यह संभव ह कक बबलकुल कांटं क बीच मं क ई ्यज्त फूलं मं ह । इसक ववपरीत भी संभव ह। और यह हमार
ऊपर तनभजर ह।
यह मनु्य क ऊपर तनभजर ह कक वह अपन क कहां ्थावपत कर दता ह, वह अपन क कहां बबठा दता ह। यह हमार ऊपर तनभजर ह
कक हम ्वगज मं रहत हं या नकज मं रहत हं। मं आपक कहना चाहूंगा, ्वगज और नकज क ई भ ग ललक ्थान नहीं हं। व मानलसक,
मन वञातनक ज्थततयां हं। हममं स अचधकतर ल ग ददन मं कई बार नकज मं चल जात हं और कई बार ्वगज मं आ जात हं। और
हममं स कई ल ग ददनभर नकज मं रहत हं। और हममं स कई ल ग ्वगज मं वापस ल टन का रा्ता ही भूल जात हं। लककन ऐस
ल ग भी हं, ज च बीस घंट ्वगज मं रहत हं। इसी जमीन पर, इ्हीं ज्थततयं मं ऐस ल ग हं, ज ्वगज मं रहत हं। आप भी उनमं स
एक बन सकत हं। क ई बाधा नहीं ह, लसवाय कुि वञातनक तनयमं क समझन क।
एक ्मर् मझ
ु आया। ब्
ु ध का एक लश्य था, प्
ू ।ज उसकी दीषा परू ी हुई, उसकी साधना परू ी हुई। प्
ू ज न कहा कक ‘अब मं जाऊं
और आपक संदश क उनस कह दं ,ू जजनक उसकी जररत ह।’ ब्ु ध न कहा, ‘त् ु हं मं जान की आञा त दं ,ू लककन एक बात पि ू लं:ू
तम
ु कहां जाना चाह ग?’ बबहार मं एक ि टा-सा दह्सा था ‘सख
ू ा’। प्
ू ज न कहा, ‘मं सख
ू ा की तरफ जाऊं। अब तक क ई लभषु वहां
नहीं गया। और वहां क ल ग आपक अमर संदश स वंचचत हं।’
बु्ध न कहा, ‘वहां क ई नहीं गया, इसक पीि कार् था। वहां क ल ग बहुत बुर हं। ह सकता ह, तुम वहां जाओ, व तु्हारा अपमान
करं । व तु्हं गाललयां दं , तु्हं परशान करं , त तु्हार मन मं ्या ह गा?’ पू्ज न कहा, ‘मं उ्हं ध्यवाद दं ग
ू ा। ध्यवाद दं ग
ू ा कक व
कवल गाललयां दत हं, अपमान करत हं, लककन मारत नहीं।’ उसन कहा, ‘मं उ्हं ध्यवाद दं ग
ू ा कक व गाललयां दत हं, अपमान करत हं,
लककन मारत नहीं हं। मार भी सकत थ।’ बु्ध न कहा, ‘यह भी ह सकता ह कक उनमं स क ई तु्हं मार, त तु्हार मन क ्या
ह गा?’ उसन कहा, ‘मं ध्यवाद दं ग
ू ा कक व मारत हं, लककन मार ही नहीं डालत हं। व मार भी डाल सकत थ।’
बु्ध न कहा, ‘मं अंततम एक बात और पूिता हूं। यह भी ह सकता ह, क ई तु्हं मार ही डाल, त त्
ु हार मन क ्या ह गा?’ उसन
कहा, ‘मं ध्यवाद दं ग
ू ा कक उ्हंन मुझ उस जीवन स िुटकारा ददला ददया, जजसमं क ई भूल ह सकती थी।’ उस पू्ज न कहा, ‘मं
ध्यवाद दं ग
ू ा कक उ्हंन मुझ उस जीवन स िुटकारा ददला ददया, जजसमं क ई भूल ह सकती थी। मं उनका अनुरह मानूंगा।’ बु्ध न
कहा, ‘तब तुम कहीं भी जाओ। अब इस जमीन पर सब जगह तु्हार ललए पररवार ह, ्यंकक जजसक दय की यह ज्थतत ह, उसक
ललए इस जमीन पर क ई कांट नहीं हं।’
कल मं बात करता था रा्त मं । महावीर क ललए कहा जाता ह–बड़ी झूठी बात लगगी–महावीर क ललए कहा जाता ह कक व जब
रा्तं पर चलत थ, त कांट अगर सीध पड़ हं, त व उलट ह जात थ। यह बात ककतनी झूठ ह! क ई कांट क ्या मतलब कक क न
चलता ह? ककसी कांट क ्या रय जन कक महावीर चलत हं या क न चलता ह? और कांट कस सीध पड़ हं त उलट ह जाएंग? और
मंन सुना ह कक म ह्मद क बाबत कहा जाता ह कक जब व अरब क गमज रचग्तानं मं चलत थ, त एक बदली उनक ऊपर िाया
ककए रहती थी। यह ककतनी झूठी बात ह! बदललयं क ्या रय जन कक नीच क न चलता ह? म ह्मद चलत हं या क न चलता ह, व
कस िायाएं करं गी?
लककन मं आपस कहूं, य बातं सच हं। क ई कांट उलटकर उलट नहीं ह त और क ई बदललयां नहीं चलतीं, लककन इनमं हमन कुि
सचाइयां जादहर की हं। हमन कुि सचाइयां जादहर की हं, इन बातं मं हमन कुि रम भरी बातं कहीं हं। हमन यह कहना चाहा ह कक
जजस आदमी क दय मं क ई कांटा नहीं रह गया, इस जगत मं उसक ललए क ई कांटा सीधा नहीं ह। और हमन यह कहा ह कक जजस
आदमी क दय मं उताप नहीं रह गया, इस जगत मं उसक ललए हर जगह एक िायादार बदली ह और उस कहीं क ई धप
ू नहीं ह।
हमन यह कहना चाहा ह। और यह बड़ी सच बात ह।
हमार चचत की ज्थतत हम जसी बनाए रखंग, यह दतु नया भी ठीक वसी बन जाती ह। न मालूम क न-सा चम्कार ह कक ज आदमी
भला ह ना शुर ह ता ह, यह सारी दतु नया उस एक भली दतु नया मं पररवततजत ह जाती ह। और ज आदमी रम स भरता ह, इस सारी
दतु नया का रम उसकी तरफ रवादहत ह न लगता ह। और यह तनयम इतना शा्वत ह कक ज आदमी घ्
ृ ा स भरगा, रततकार मं घ्
ृ ा
उस उपल्ध ह न लगगी। हम ज अपन चारं तरफ फंकत हं, वही हमं उपल्ध ह जाता ह। इसक लसवाय क ई रा्ता भी नहीं ह।
त च बीस घंट उन ष्ं का ्मर् करं , ज जीवन मं अदभुत थ, ई्वरीय थ। व ि ट-ि ट ष्, उनका ्मर् करं और उन ष्ं
पर अपन जीवन क खड़ा करं । और उन बड़ी-बड़ी घटनाओं क भी भूल जाएं, ज दख
ु की हं, पीड़ा की हं, घ्
ृ ा की हं, दहंसा की हं।
उनका क ई मू्य नहीं ह। उ्हं ववसजजजत कर दं , उ्हं झड़ा दं । जस सूख पत दर्तं स चगर जात हं, वस ज ्यथज ह, उस ि ड़त चल
जाएं; और ज साथजक ह और जीवंत ह, उस ्मर्पूवक
ज पकड़त चल जाएं। च बीस घंट इसका सात्य रह। एक धारा मन मं बहती रह
शुभ की, संदयज की, रम की, आनंद की।
त मंन ज कहा, ्यान मं ज अनुभव ह –थ ड़ा-सा भी रकाश, थ ड़ी-सी भी ककर्ं , थ ड़ी-सी भी शांतत–उस ्मर् रखं। जस एक ि ट-
स ब्च क उसकी मां स्हालती ह, वस ज भी ि टी-ि टी अनुभूततयां हं, उ्हं स्हालं। उ्हं अगर नहीं स्हालंग, व मर जाएंगी।
और ज जजतनी मू्यवान चीज ह ती ह, उस उतना स्हालना ह ता ह।
जानवरं क भी ब्च ह त हं, उनक स्हालना नहीं ह ता। और जजतन कम ववकलसत जानवर हं , उनक ब्चं क उतना ही नहीं
स्हालना ह ता, व अपन आप स्हल जात हं। जस-जस ववकास की सीढ़ी आग बढ़ती ह, वस-वस आप पात हं–अगर मनु्य क ब्च
क न स्हाला जाए, वह जी ही नहीं सकता। मनु्य क ब्च क न स्हाला जाए, वह जी नहीं सकता। उसक रा् समा्त ह
जाएंग। ज जजतनी र्ठ ज्थतत ह जीवन की, उस उतन ही स्हालन की जररत पड़ती ह।
त जीवन मं भी ज अनभ
ु तू तयां म्
ू यवान हं, उनक उतना ही स्हालना ह ता ह। उतन ही रम स उनक स्हालना ह ता ह। त ि ट-
स भी अनभ
ु व हं, उ्हं स्हालं ; वस ही जस…। आपन पि
ू ा, कस स्हालं ? अगर मं आपक कुि हीर द दं ,ू त आप उ्हं कस
स्हालंग? अगर आपक क ई बहुम् ू य खजाना लमल जाए, उस आप कस स्हालंग? उस आप कस स्हालंग? उस आप कहां रखंग? उस
आप तिपाकर रखना चाहं ग; उस अपन दय क करीब रखना चाहं ग।
एक लभखमंगा मरता था एक अ्पताल मं । और जब पादरी उसक पास गया और डा्टरं न कह ददया कक वह मरन क ह। और
पादरी उसक पास गया अंततम भगवान की राथजना करवान क ललए। उसस कहा, ‘तुम हाथ ज ड़ ।’ उसन एक ही हाथ उठाया। एक हाथ
की मु्ठी बंद थी। पादरी न कहा, ‘द नं हाथ ज ड़ ।’ उसन कहा, ‘षमा करं , दस
ू रा मं नहीं ख ल सकता हूं।’
वह आदमी मरन क ह और दस
ू रा हाथ नहीं ख ल रहा ह! वह मर गया द ष् बाद। हाथ ख ला गया। कुि गंद लस्क वह इक्ठ
ककए हुए था, जजस पर उसन मु्ठी बांधी हुई थी। कुि गंद लस्क! उस पता ह, मर रहा ह, लककन मु्ठी बंधी हुई ह!
साधार् लस्कं क हम स्हालना जानत हं, सब जानत हं। और ज र्ठतम लस्क हं, उ्हं स्हालन का हमं कुि पता नहीं ह।
और हम उसी लभखमंग की तरह हं, ज एक ददन मु्ठी बंद ककए हुए पाए जाएंग। और जब उनकी मु्ठी ख ली जाएगी, त कुि गंद
लस्कं क लसवाय वहां कुि भी नहीं लमलगा।
उन अनुभूततयं क स्हालं , व ही असली लस्क हं, जज्हंन आपक जीवन क ्फुर्ा दी ह , रर्ा दी ह , आपक भीतर कुि
पररवततजत ककया ह , कुि कंवपत हुआ ह , कुि र्ठ की तरफ आपक भीतर लपट पदा हुई ह । और उ्हं इस भांतत स्हालं। य द
रा्त मंन कह। रमशः रय ग करन स बात समझ मं आ सकगी।
एकदस
ू रममरनपछ
ू ाहककस्सएकसज
ृ ना्मकश््तह।पतत-प्नीकसंबंधमं उसकाकिएटिवउपय गकसककयाजाए?
यह बड़ी बहुम्
ू य बात पि
ू ी ह। शायद ही ऐस ल ग हंग, ज इस तरह क, जजनक ललए इस तरह का र्न उपय गी न ह , साथजक न
ह । दतु नया मं द ही तरह क ल ग हं। एक व ल ग हं, ज स्स की, काम की शज्त स पीडड़त हं। और एक व ल ग हं, जज्हंन काम
की शज्त क रम की शज्त मं परर्त कर ललया ह।
आप जानकर हरान हंग, रम और काम, रम और स्स ववर धी चीजं हं। जजतना रम ववकलसत ह ता ह, स्स षी् ह जाता ह। और
जजतना रम कम ह ता ह, उतना स्स ्यादा ह जाता ह। जजस आदमी मं जजतना ्यादा रम ह गा, उतना उसमं स्स ववलीन ह
जाएगा। अगर आप पररपू्ज रम स भर जाएंग, आपक भीतर स्स जसी क ई चीज नहीं रह जाएगी। और अगर आपक भीतर क ई
रम नहीं ह, त आपक भीतर सब स्स ह।
स्स की ज शज्त ह, उसका पररवतजन, उसका उदातीकर् रम मं ह ता ह। इसललए अगर स्स स मु्त ह ना ह, त स्स क दबान
स कुि भी न ह गा। उस दबाकर क ई पागल ह सकता ह। और दतु नया मं जजतन पागल हं, उसमं स स मं स न्ब सं्या उन ल गं
की ह, जज्हंन स्स की शज्त क दबान की क लशश की ह। और यह भी शायद आपक पता ह गा कक स्यता जजतनी ववकलसत
ह ती ह, उतन पागल बढ़त जात हं, ्यंकक स्यता सबस ्यादा दमन स्स का करवाती ह। स्यता सबस ्यादा दमन, सरशन
स्स का करवाती ह! और इसललए हर आदमी अपन स्स क दबाता ह, लसक ड़ता ह। वह दबा हुआ स्स ववषष्तता पदा करता ह,
अनक बीमाररयां पदा करता ह, अनक मानलसक र ग पदा करता ह।
स्स क दबान की ज भी च्टा ह, वह पागलपन ह। ढर साधु पागल ह त पाए जात हं। उसका क ई कार् नहीं ह लसवाय इसक कक
व स्स क दबान मं लग हुए हं। और उनक पता नहीं ह, स्स क दबाया नहीं जाता। रम क ्वार ख लं , त ज शज्त स्स क
मागज स बहती थी, वह रम क रकाश मं परर्त ह जाएगी। ज स्स की लपटं मालूम ह ती थीं, व रम का रकाश बन जाएंगी। रम
क वव्ती्ज करं । रम स्स का करएदटव उपय ग ह, उसका सज
ृ ना्मक उपय ग ह। जीवन क रम स भरं ।
आप कहं ग, हम सब रम करत हं। मं आपस कहूं, आप शायद ही रम करत हं; आप रम चाहत हंग। और इन द नं मं जमीन-
आसमान का फकज ह। रम करना और रम चाहना, य बड़ी अलग बातं हं। हममं स अचधक ल ग ब्च ही रहकर मर जात हं। ्यंकक
हरक आदमी रम चाहता ह। रम करना बड़ी अदभुत बात ह। रम चाहना बबलकुल ब्चं जसी बात ह।
ि ट-ि ट ब्च रम चाहत हं। मां उनक रम दती ह। कफर व बड़ ह त हं। व और ल गं स भी रम चाहत हं , पररवार उनक रम दता
ह। कफर व और बड़ ह त हं। अगर व पतत हुए, त अपनी पज्नयं स रम चाहत हं। अगर व पज्नयां हुं, त व अपन पततयं स रम
चाहती हं। और ज भी रम चाहता ह, वह दख
ु झलता ह। ्यंकक रम चाहा नहीं जा सकता, रम कवल ककया जाता ह। चाहन मं
प्का नहीं ह, लमलगा या नहीं लमलगा। और जजसस तुम चाह रह ह , वह भी तुमस चाहगा। त बड़ी मुज्कल ह जाएगी। द नं लभखारी
लमल जाएंग और भीख मांगंग। दतु नया मं जजतना पतत-पज्नयं का संघषज ह, उसका कवल एक ही कार् ह कक व द नं एक-दस
ू र स
रम चाह रह हं और दन मं क ई भी समथज नहीं ह।
इस थ ड़ा ववचार करक दखना आप अपन मन क भीतर। आपकी आकांषा रम चाहन की ह हमशा। चाहत हं, क ई रम कर। और जब
क ई रम करता ह, त अ्िा लगता ह। लककन आपक पता नहीं ह, वह दस
ू रा भी रम करना कवल वस ही ह जस कक क ई मिललयं
क मारन वाला आटा फंकता ह। आटा वह मिललयं क ललए नहीं फंक रहा ह। आटा वह मिललयं क फांसन क ललए फंक रहा ह।
वह आटा मिललयं क द नहीं रहा ह, वह मिललयं क चाहता ह, इसललए आटा फंक रहा ह। इस दतु नया मं जजतन ल ग रम करत
हुए ददखायी पड़त हं, व कवल रम पाना चाहन क ललए आटा फंक रह हं। थ ड़ी दर व आटा खखलाएंग, कफर…।
और दस
ू रा ्यज्त भी ज उनमं उ्सुक ह गा, वह इसललए उ्सुक ह गा कक शायद इस आदमी स रम लमलगा। वह भी थ ड़ा रम
रदलशजत करगा। थ ड़ी दर बाद पता चलगा, व द नं लभखमंग हं और भूल मं थ; एक-दस
ू र क बादशाह समझ रह थ! और थ ड़ी दर बाद
उनक पता चलगा कक क ई ककसी क रम नहीं द रहा ह और तब संघषज की शुुआत ह जाएगी।
दतु नया मं दा्प्य जीवन नकज बना हुआ ह, ्यंकक हम सब रम मांगत हं, दना क ई भी जानता नहीं ह। सार झगड़ क पीि बुतनयादी
कार् इतना ही ह। और ककतना ही पररवतजन ह , ककसी तरह क वववाह हं, ककसी तरह की समाज ्यव्था बन, जब तक ज मं कह
रहा हूं अगर नहीं ह गा, त दतु नया मं ्री और पु
ु षं क संबंध अ्ि नहीं ह सकत। उनक अ्ि ह न का एक ही रा्ता ह कक हम
यह समझं कक रम ददया जाता ह, रम मांगा नहीं जाता, लसफज ददया जाता ह। ज लमलता ह, वह रसाद ह, वह उसका म्ू य नहीं ह।
रम ददया जाता ह। ज लमलता ह, वह उसका रसाद ह, वह उसका मू्य नहीं ह। नहीं लमलगा, त भी दन वाल का आनंद ह गा कक
उसन ददया।
गांधी जी पीि वहां लंका मं थ। व क्तूरबा क साथ लंका गए। वहां ज ्यज्त था, जजसन उनका पररचय ददया पहली सभा मं , उसन
समझा कक बा आयी हं साथ, शायद य गांधी जी की मां हंगी। बा स उसन समझा कक गांधी जी की मां भी साथ आयी हुई हं। उसन
पररचय मं गांधी जी क कहा कक ‘यह बड़ स भा्य की बात ह कक गांधी जी भी आए हं और उनकी मां भी आयी हुई हं।’
बा त बहुत हरान ह गयीं। गांधी जी क सरटरी ज साथ थ, व भी बहुत घबड़ा गए कक भूल त उनकी ह, उनक बताना चादहए था
कक क न साथ ह। व बड़ घबड़ा गए कक शायद बापू डांटंग। शायद कहं ग कक ‘यह ्या भ्दी बात करवायी!’ लककन गांधी जी न ज
बात कही, वह बड़ी अदभुत थी। उ्हंन कहा कक ‘मर इन भाई न मरा ज पररचय ददया, उसमं भूल स एक स्ची बात कह दी ह।
कुि वषं स बा मरी प्नी नहीं ह, मरी मां ह गयी ह।’ उ्हंन कहा, ‘कुि वषं स बा मरी प्नी नहीं ह, मरी मां ह गयी ह!’
स्चा सं्यासी वह ह, जजसकी एक ददन प्नी मां ह जाए; प्नी क ि ड़कर भाग जान वाला नहीं। स्चा सं्यासी वह ह, जजसकी
एक ददन प्नी मां बन जाए। स्ची सं्यालसनी वह ह, ज एक ददन अपन पतत क अपन पुर की तरह अनुभव कर पाए।
पुरान ऋवष सूरं मं एक अदभुत बात कही गयी ह। पुराना ऋवष कभी आशीवाजद दता था कक ‘तु्हार दस पुर हं और ई्वर कर,
्यारहवां पुर तु्हारा पतत ह जाए।’ बड़ी अदभुत बात थी। य आशीवाजद दत थ वधु क वववाह करत व्त कक ‘तु्हार दस पुर हं और
ई्वर कर, तु्हारा ्यारहवां पुर तु्हारा पतत ह जाए।’ यह अदभुत क म थी और अदभुत ववचार थ। और इसक पीि बड़ा रह्य था।
अगर पतत और प्नी मं रम बढ़गा, त व पतत-प्नी नहीं रह जाएंग, उनक संबंध कुि और ह जाएंग। और उनस स्स ववलीन ह
जाएगा और व संबंध रम क हंग। जब तक स्स ह, तब तक श ष् ह। स्स श ष् ह! और जजसक हम रम करत हं, उसका
श ष् कस कर सकत हं? स्स एक ्यज्त का, एक जीववत ्यज्त का अ्यंत गदहजत और तन्न उपय ग ह। अगर हम उस रम
कर सकत हं, त हम उसक साथ ऐसा उपय ग कस कर सकत हं? एक जीववत ्यज्त का हम ऐसा उपय ग कस कर सकत हं अगर
हम उस रम करत हं? जजतना रम गहरा ह गा, वह उपय ग ववलीन ह जाएगा। और जजतना रम कम ह गा, वह उपय ग उतना ्यादा
ह जाएगा।
इसललए जज्हंन यह पि
ू ा ह कक स्स एक सजृ ना्मक शज्त कस बन, उनक मं यह कहूंगा कक स्स बड़ी अदभत ु शज्त ह। शायद
इस जमीन पर स्स स बड़ी क ई शज्त नहीं ह। मन्ु य जजस चीज स करयमा् ह ता ह, मन्ु य क जीवन का न्ब रततशत दह्सा
जजस चर पर घमू ता ह, वह स्स ह; वह परमा्मा नहीं ह। व ल ग त बहुत कम हं, जजनका जीवन परमा्मा की पररचध पर घम
ू ता
ह। अचधकतर ल ग स्स क कंर पर घूमत और जीववत रहत हं।
स्स सबस बड़ी शज्त ह। यातन अगर हम ठीक स समझं, त मनु्य क भीतर स्स क अततरर्त और शज्त ही ्या ह, ज उस
गततमान करती ह, पररचाललत करती ह। इस स्स की शज्त क , इस स्स की शज्त क ही रम मं पररवततजत ककया जा सकता ह।
और यही शज्त पररवततजत ह कर परमा्मा तक पहुंचन का मागज बन जाती ह।
इसललए यह ्मर्ीय ह कक धमज का बहुत गहरा संबंध स्स स ह। लककन स्स क दमन स नहीं–जसा समझा जाता ह–स्स क
सज्लमशन स ह। स्स क दमन स धमज का संबंध नहीं ह। र्मचयज स्स का ववर ध नहीं ह, र्मचयज स्स की शज्त का
उदातीकर् ह। स्स की ही शज्त र्म की शज्त मं पररवततजत ह जाती ह। वही शज्त, ज नीच की तरफ बहती थी, अध गामी थी,
ऊपर की तरफ गततमान ह जाती ह। स्स ऊ्वजगामी ह जाए, त परमा्मा तक पहुंचान वाला बन जाता ह। और स्स अध गामी
ह , त संसार मं ल जान का कार् ह ता ह।
वह रम स पररवतजन ह गा। रम करना सीखं। और रम करन का मतलब, अभी हम जब आग भावनाओं क संबंध मं बात करं ग, त
आपक परू ी तरह समझ मं आ सकगा कक रम करना कस सीखं। लककन इतना मं अभी कफलहाल कहूं।
मं ज कह रहा हूं, अगर वह सच ह, त उसक पीि बु्ध और महावीर और कृ्् और राइ्ट क हाथ हं। अगर ज मं कह रहा हूं,
वह सच ह, त उनकी आवाज उसमं लमली-जुली ह। और अगर मरी आवाज मं क ई ताकत मालूम ह ती ह, त वह मरी अकल की नहीं
ह सकती; वह उन सार ल गं की ह, जज्हंन कभी भी उन श्दं क कहा ह गा।
लककन ज संत नहीं हं, व जरर कभी साथ लमलकर काम नहीं कर सकत। और ऐस बहुत-स संत हं, ज संत नहीं हं, लककन संत
मालूम ह त हं। उस हालत मं दज
ु न
ज ल ग लमलकर काम कर सकत हं, लककन वस तथाकचथत साधु लमलकर काम नहीं कर सकत। ्यं
नहीं कर सकत हं? उनका संत्व अहं कार क ववसजजन स पदा नहीं हुआ ह, उनका संत्व भी अहं कार की तजृ ्त का एक मा्यम ह।
और जहां अहं कार ह, वहां लमलन नहीं ह ता। और जहां अहं कार ह, वहां क ई लमलन ह ही नहीं सकता। ्यंकक अहं कार हमशा ऊपर
ह ना चाहता ह।
मं एक जगह था। वहां बहुत-स साधु आमंबरत थ। एक बहुत बड़ा जलसा था। बहुत बड़-बड़ साधु आमंबरत थ। नाम उनक नहीं लंग
ू ा,
्यंकक ककसी क दखु ह । म् ु क क बहुत बड़-बड़ ल ग वहां थ। जज्हंन आय जन ककया था, उनकी बड़ी आकांषा थी कक सार ल ग
एक ही मंच पर बठकर ब लं। लककन व ‘संत’ राजी नहीं हुए! ्यंकक उ्हंन कहा कक ‘क न नीच बठगा, क न ऊपर बठगा?’ ्यंकक
उ्हंन कहा कक ‘हम ऊपर बठं ग, नीच नहीं बठ सकत।’ उ्हंन कहा या कहलवाया। और कहन वाला त कफर भी सरल ह ता ह,
कहलान वाला और भी जदटल और कपटी ह ता ह। उ्हंन कहलवाया कक व क ई एक साथ नहीं बठ सकत।
उनका मंच ्यथज गया। वहां एक-एक आदमी क बठकर ब लना पड़ा। बड़ा मंच बनाया था कक स ल ग बठ सकं। लककन स साधु एक
साथ कस बठ सकत हं? उसमं क ई शंकराचायज थ, ज कक बबना अपन लसंहासन क नीच नहीं बठ सकत। और अगर व नीच नहीं बठ
सकत हं, त उनक लसंहासन क बगल मं दस
ू र संत कस बठ सकत हं नीच!
और तब बड़ी हरानी ह गी, जजनक अभी कुलसजयं मं भी ऊंचाइयां और नीचाइयां हं और जज्हं अभी इसमं भी मापत ल ह कक क न
ककतना ऊंचा बठा ह और क न ककतन नीच बठा ह, इनक चचत कहां बठ हंग, यह पता चल सकता ह।
द साधु इसललए आपस मं लमल नहीं सकत कक पहल क न नम्कार करगा! ्यंकक पहल क न हाथ ज ड़गा? ्यंकक ज हाथ ज ड़गा,
वह नीचा ह जाएगा। हद आ्चयज की बात ह! हम मानत रह हं सदा स कक ज पहल हाथ ज ड़ ल, वह ऊंचा ह। लककन व संत
समझत हं कक ज पहल हाथ ज ड़गा, वह नीचा ह जाएगा!
मं एक बड़ साधु क स्संग मं था। एक बहुत बड़ राजनीततञ भी वहां गए हुए थ। उन साधु क त ऊपर त्त पर बबठाया गया था,
हम सार ल ग नीच बठ थ। स्संग शुर हुआ। उन राजनीततञ न कहा कक ‘मं सबस पहल यह पि ू ू ं कक हम नीच बठ हं, आप ऊपर
्यं बठ हं? अगर आप भाष् भी कर रह ह त, तब भी ठीक था। यह त स्संग ह। वाताज ह गी। और आप इतन ऊपर चढ़ हं कक
बातचीत मुज्कल ही ह गी। आप कृपा करक नीच आ जाएं।’ लककन व साधु नीच नहीं आ सक। और उस राजनीततञ न पूिा, ‘अगर
नीच न आ सकत हं, क ई ऐसा कार् ह , त हमं समझाएं कक ऊपर बठन का कार् ्या ह?’
व खद
ु त नहीं ब ल सक, बहुत घबड़ा गए। उनक एक साधु न उतर ददया कक ‘यह परं परागत ह कक व ऊपर बठं ।’ उस राजनीततञ न
कहा कक ‘य आपक गुु हंग। लककन हमार गुु नहीं हं!’ उस राजनीततञ न यह भी कहा, ‘हमन हाथ ज ड़कर नम्कार ककया, आपन
हाथ नहीं ज ड़, आपन हमक आशीवाजद ददया। अगर समझ लीजजए, क ई दस
ू रा साधु लमलन आया ह ता और आप आशीवाजद दत, त
झगड़ा ह जाता। आपक भी हाथ ज ड़न चादहए।’ उतर लमला कक ‘व हाथ नहीं ज ड़ सकत हं, ्यंकक यह परं परागत नहीं ह।’ वह बात
इतनी खराब ह गयी कक वह ग ्ठी आग चल ही नहीं सकती थी।
साधु बहुत रस्न हुए। और जब हम ववदा ह न लग, साधु न मर कंध पर हाथ रखा और कहा, ‘आपन अ्िा मुंहत ड़ जवाब ददया।’
मंन उनक कहा कक ‘वह जवाब उनक ललए नहीं था, वह आपक ललए भी था।’ और मंन उनक कहा कक ‘मुझ दखु ह, वह आदमी
्यादा सरल साबबत हुआ और आप उतन सरल भी साबबत नहीं हुए। उसन ्वीकार ककया कक मरा अहं कार ह, लककन आपन यह भी
्वीकार नहीं ककया, उलट आपन अपन अहं कार का प ष् कर ललया मर उतर स!’
ऐस ज संत हं, ऐस ज साधु हं, व लमलकर काम नहीं कर सकत हं। उनका त सारा काम ककसी की द्ु मनी मं ह। उनका त सारा
ज श ककसी की द्ु मनी मं ह। अगर क ई द्ु मन न ह , त व कुि कर ही नहीं सकत। उनकी त सारी करया ककसी की घ्
ृ ा और
ववर ध स तनकल रही ह। इतन जजतन संरदाय हं, इतन जजतन धमज हं, इनक नामं स ज साधु खड़ हं, उनक क ई नासमझ ही साधु
कह सकता ह। ्यंकक साधु का पहला लष् त यह ह गा कक वह ककसी धमज का नहीं रह जाएगा। साधु का पहला लष् त यह
ह गा, उसकी क ई सीमा नहीं रह जाएगी, उसका क ई संरदाय नहीं ह गा। उसका क ई घरा नहीं ह गा। वह सबका ह गा। और उसका
पहला लष् यह ह गा, उसकी अहं ता लमट गयी ह गी, उसकी अज्मता ववलीन ह गयी ह गी।
लककन य सब त अहं कार क बढ़ान और प ष् करन क उपाय हं। ्मर् रखखए, बहुत धन स भी अहं कार त्ृ त ह ता ह। बहुत ्याग
मंन ककया ह, इसस भी त्ृ त ह ता ह। बहुत ञान मर पास ह, इसस भी त्ृ त ह ता ह। मंन सब लात मार ददया दतु नया पर, इसस भी
त्ृ त ह ता ह। और इनकी जजनकी तजृ ्तयां हं, व कभी साथ नहीं ह सकत। अहं कार अकला ववभाजक त्व ह और तनरहं काररता
अकला ज ड़न वाला त्व ह। त जहां तनरहं कार ह, वहां ज ड़ ह।
एक बार कबीर जहां रहत थ, उनक गांव क पास स एक मुसलमान फकीर था फरीद, उसका तनकलना हुआ। उसक कुि साथी और वह
यारा पर तनकल थ। उसक साचथयं न फरीद स कहा कक ‘बड़ा सुय ग ह, रा्त मं कबीर का भी तनवास पड़ता ह। उनकी कुटी पर हम
द ददन ुकं। और आप द नं की चचाज ह गी, त हमं बहुत आनंद ह गा। आप द नं लमलंग और बातं करं ग, त हम सुनकर बहुत
लाभाज्वत हंग।’ फरीद न कहा, ‘जरर ुकंग, लमलंग भी; लककन चचाज शायद ही ह ।’ उ्हंन कहा, ‘्यं?’ फरीद न कहा, ‘चलं ुकं।
लमलंग भी, ुकंग भी; चचाज शायद ही ह ।’
कबीर क लश्यं क पता चला, त उ्हंन कहा कक ‘यहां स फरीद तनकलन क हं। हम उ्हं र क लं । बहुत आनंद ह गा। द ददन
आपकी बातं हंगी।’ कबीर न कहा, ‘लमलंग जरर। जरर र क , बहुत आनंद ह गा।’
फरीद र का गया। फरीद और कबीर गल लमल। व द नं खश ु ी मं र ए। लककन द ददन उनमं क ई बात नहीं हुई। व द नं ववदा ह
गए। लश्य बहुत तनराश हुए। जब व द नं ववदा ह गए, द नं क लश्यं न पिू ा, ‘आप कुि ब ल नहीं!’ उ्हंन कहा, ‘हम ्या ब लत!
ज व जानत हं, वही हम जानत हं।’ फरीद न कहा, ‘ज मं जानता हूं, वही कबीर जानत हं। हम ब लत ्या? और हम द भी कहां हं,
ज हम ब लत। क ई तल ह, जहां हम एक हं।’
वहां ब लन तक का ववर ध नहीं ह संतं मं –ब लन तक का! डायलाग भी संभव नहीं ह। वह भी एक ववर ध ह। उस तल पर संतं का
सनातन काम एक ही ह रहा ह। उसमं क ई र्न ही नहीं ह ववर ध का। व ककसी दह्स मं पदा हुए हं, ककसी क म मं और ककसी ढं ग
स रह हं, उनमं क ई ववर ध नहीं ह। लककन ज संत नहीं हं, ्वाभाववक ह, उनमं ववर ध ह । इसललए ्मर् रखं , संतं मं क ई ववर ध
नहीं ह। और जजनमं ववर ध ह , इस कस टी समझं कक व संत नहीं हंग।
एकऔरममरनपूछाहककआपकाअंततम्यययालषयांत्याह? मुझसपूछाहककमरा्यालषयह?
मरा क ई ल्य नहीं ह। इसललए क ई ल्य नहीं ह…। इस थ ड़ा समझना जररी ह। जीवन मं द तरह की करयाएं ह ती हं। एक
करया ह ती ह, ज वासना स उदभूत ह ती ह। एक करया ह ती ह, ज वासना स उदभूत ह ती ह; उसमं ल्य ह ता ह। और एक करया
ह ती ह, ज रम स या कु्ा स उदभूत ह ती ह; उसमं क ई ल्य नहीं ह ता। अगर ककसी मां स क ई पूि कक तुम अपन ब्च क
रम करती ह , इसमं ल्य ्या ह? त मां ्या कहगी? मां कहगी, ल्य का क ई पता नहीं। बस हम रम करत हं और रम करना
आनंद ह। यंू भी नहीं कक आज रम करं ग, त कल आनंद लमलगा। रम ककया, वह आनंद था।
त एक त करया ह ती ह, ज वासना स उदभतू ह ती ह। मं यहां ब ल रहा हूं। मं इसललए ब ल सकता हूं कक इस ब लन स मझ
ु कुि
लमलगा। कफर चाह वह लमलना ुपए क लस्कं मं ह , यश क लस्कं मं ह , आदर क लस्कं मं ह , रतत्ठा क रप मं ह –वह लमलना
ककसी रप मं ह –मं इस कार् स ब ल सकता हूं कक मझ
ु कुि लमलगा। त वह ल्य ह गा।
मं कवल इस कार् स ब ल सकता हूं कक मं बबना ब ल नहीं रह सकता, कुि हुआ ह भीतर और वह बंटन क उ्सुक ह। मं इसललए
ब ल सकता हूं, जस कक फूल खखल जात हं और अपनी गंध फंक दत हं। उनस क ई पूि, ल्य ्या ह? क ई भी ल्य नहीं ह।
वासना स कुि करयाएं उदभूत ह ती हं, तब उनमं ल्य ह ता ह। कु्ा स भी कुि करयाएं उदभूत ह ती हं, तब उनमं क ई ल्य नहीं
ह ता। और इसीललए वासना स ज करयाएं उदभूत ह ती हं, उनस कमज-बंध ह ता ह। और कु्ा स ज करयाएं उदभूत ह ती हं, उनस
कमज-बंध नहीं ह ता। जजस करया मं ल्य ह गा, उसमं बंध ह गा; और जजस करया मं क ई ल्य नहीं ह गा, उसमं बंध नहीं ह गा।
और यह जानकर आप हरान हंग, आप बुरा काम बबना ल्य क नहीं कर सकत हं। यह एक अदभुत बात ह। पाप मं हमशा ल्य
ह गा, पु्य मं क ई ल्य नहीं ह ता ह। और जजस पु्य मं भी ल्य ह , वह पाप का ही रप ह। पाप मं हमशा ल्य ह ता ह, बबना
ल्य क क ई पाप नहीं कर सकता। ल्य क रहत भी करन मं मुज्कल पड़ती ह, बबना ल्य क त कर ही नहीं सकता। मं आपकी
बबना ल्य क ह्या नहीं कर सकता हूं। ्यं करंगा? पाप बबना ल्य का कभी नहीं ह सकता। ्यंकक पाप कु्ा स कभी नहीं ह
सकता। पाप हमशा वासना स ह गा। वासना मं हमशा ल्य ह गा; कुि पान की आकांषा ह गी।
कुि करयाएं हं , जजनमं पान की क ई आकांषा नहीं ह ती ह। महावीर क कव्य उ्प्न हुआ, उसक बाद व चालीस-पंतालीस वषं तक
सकरय थ। पूिा जा सकता ह, उतन ददनं उ्हंन करया की, उसका बंध ्यं नहीं हुआ? उतन ददन तक व काम त कर ही रह थ–
भ जन भी करत थ, जात भी थ, आत भी थ, ब लत भी थ, बतात भी थ–चालीस-पंतालीस वषं तक तनरं तर सकरय थ, त उस करया का
उन पर फल ्यं नहीं हुआ? बु्ध क तनवाज् उपल्ध हुआ, उसक बाद व भी चालीस वषं तक सकरय थ। उसका बंध ्यं नहीं
हुआ? ्यंकक उस सकरयता मं क ई ल्य नहीं था। ल्य-शू्य करयाएं थीं व और मार कु्ा थीं।
मं कई दफा स चता हूं कक मं आपस ्यं ब ल रहा हूं? इसमं ्या रय जन ह सकता ह? मझ
ु क ई रय जन ख ज नहीं लमलता, लसवाय
इसक कक मझु कुि ददखायी पड़ रहा ह और यह एक मजबरू ी ह कक उस बबना कह नहीं रहा जा सकता ह। ्यंकक उस बबना कह
कवल वही रह सकता ह, जजसमं दहंसा शष रह गयी ह । वह दहंसा ह गी।
मंन सुबह आपक एक कहानी कही। अगर आपक हाथ मं एक सांप क ललए हुए मं दखूं और आपस बबना कुि कह अपन रा्त चला
जाऊं कक मरा ल्य ्या ह! त यह तभी संभव ह, जब मर भीतर अतत दहंसा ह , अतत रूरता ह । अ्यथा मं कहूंगा कक ‘यह सांप ह,
इस ि ड़ दं ।’ और क ई अगर मुझस पूि कक ‘आप ्यं कह रह हं कक यह सांप ह, इस ि ड़ दं ? आपका ्या ल्य ह?’ त मं कहूंगा,
‘क ई भी ल्य नहीं ह, लसवाय इसक कक मरी अंतरा्मा क संभव नहीं ह कक इस ज्थतत मं बबना कह रह जाए।’ यातन उ्रर्ा बाहर
नहीं ह कक क ई ल्य ह , रर्ा आंतररक ह, जजसका क ई ल्य नहीं ह ता।
हरान हंग आप, जब भी ल्य ह ता ह, त रर्ा कहीं बाहर ह ती ह। और जब क ई ल्य नहीं ह ता, त रर्ा कहीं भीतर ह ती ह।
यातन कुि चीजं ह ती हं, ज हमं खींचती हं, तब ल्य ह ता ह। और कुि चीजं ह ती हं, ज हमं भीतर स धकाती हं, तब क ई ल्य
नहीं ह ता।
इसललए वासना जजसक भीतर ह, उस हमार रंथ ‘पशु’ कहत हं। पशु का अथज ह, ज पाश स बंधा ह; ज ककसी चीज स बंधा ह और
खींचा जा रहा ह। पशु का मतलब जानवर, एनीमल नहीं ह। पशु का मतलब ह, ज ककसी पाश स बंधा ह और खींचा जा रहा ह।
मुझ क ई ल्य नहीं ह। इसललए अगर इसी व्त मरा रा् तनकल जाए, त मुझ एक ष् क भी ऐसा नहीं लगगा कक क ई काम
अधरू ा रह गया ह। अगर इसी व्त मर जाऊं यहीं बठ-बठ, त एक ष् क भी यह खयाल नहीं आएगा कक ज बात मं कह रहा था,
वह अधरू ी रह गयी। ्यंकक क ई काम त था ही नहीं उसमं ; कुि पूरा करन का क ई र्न नहीं था। जब तक ्वास थी, वह काम पूरा
हुआ। नहीं ्वास रही, त वह काम वहीं रह गया। उसमं क ई रय जन नहीं था, कुि अधरू ा नहीं रहा।
त क ई ल्य नहीं ह, लसवाय इसक कक एक अंतःरर्ा ह, एक आंतररक मजबूरी ह, एक आंतररक वववशता ह। और उसस ज कुि
ह गा, वह ह गा। ऐसी ज्थतत क हम अपन मु्क मं यह कहत हं कक ऐस ्यज्त न अपन क ई्वर क हाथ मं संप ददया। अब
ई्वर की ज मजी ह , उसस करा ल। उसका अपना क ई ल्य नहीं ह। यह कहन का ढं ग भर ह कक ई्वर की मजी ज ह , उसस
करा ल। इसका मतलब कवल इतना ही ह कक उसका अपना क ई ल्य नहीं रहा। उसन अनंत सता क हाथ मं अपन जीवन क ि ड़
ददया ह। अब ज ह गा, वह ह गा। वह अनंत सता की जज्मवारी ह, उसकी अपनी क ई जज्मवारी नहीं ह।
यह ज आपन पि ू ा, यह अ्िा ही पि
ू ा। इस मा्यम स मं आपस यह कहना चाहूंगा कक जीवन क वासना स कु्ा मं परर्त
करं । एक ऐसा जीवन बनाएं, जजसमं ल्य त न रह जाए, एक अंतःरर्ा रवव्ट ह जाए। एक ऐसा जीवन बनाएं, जजसमं कुि पान
की त आकांषा न रह जाए, कुि दन की आकांषा रबल ह जाए। जजसक मंन रम कहा–पाना नहीं, दना। और रम मं क ई ल्य नहीं
ह ता, लसवाय इसक कक हम दत हं। जजसक मंन रम कहा, उसक ही मंन दस
ू र श्दं मं कु्ा कहा। त आप कह सकत हं–कह
सकत हं कक क ई ल्य नहीं ह, लसवाय इसक कक रम ह। और रम का क ई ल्य नहीं ह ता, ्यंकक रम ्वयं अपना ल्य ह।
सुबह मंन बात की ह। मं आपक यह कहा हूं–र ध त कवल एक उदाहर् क ललए ललया था–सार भावावग शज्तयां हं। और अगर
उन शज्तयं का क ई सज
ृ ना्मक उपय ग न ह , त व शरीर क ककसी अंग क , चचत की ककसी ज्थतत क ववकृत करक अपनी शज्त
क ्यय कर लत हं। शज्त का ्यय ह ना जररी ह। ज शज्त बबना ्यय की हुई भीतर रह जाएगी, वह रंचथ बन जाएगी। रंचथ का
मतलब, वह गांठ बन जाएगी, वह बीमारी बन जाएगी।
समझं। र ध की ही बात नहीं ह। अगर मर भीतर रम दना ह और मं रम न द पाऊं ककसी क , त रम गांठ बन जाएगा। अगर मर
भीतर र ध ह और मं र ध न कर पाऊं, त र ध गांठ बन जाएगा। अगर मर भीतर भय पदा ह और मं भय रकट न कर पाऊं, त
भय गांठ बन जाएगा। सार भावावश भीतर एक शज्त क उ्प्न करत हं। उस शज्त का तन्कासन चादहए।
तन्कासन द तरह स ह सकता ह। एक तनगदटव रा्ता ह, एक नकारा्मक रा्ता ह। जस एक आदमी क र ध आया, नकारा्मक
रा्ता यह ह कक वह गया और उसन प्थर चलाए, लकड़ी मारी, गाललयां बकीं। यह नकारा्मक इसललए ह कक इसकी शज्त त ्यय
हुई, लककन फल इस कुि भी नहीं लमला। फल यह लमलगा कक जजसक यह गाली दगा, वह दग
ु न
ु ी वजन की गाली इसक ल टाएगा।
जजसक यह प्थर मारगा, उसक भीतर भी र ध पदा ह गा। और वह भी सामा्य आदमी ह, उसका भी नकारा्मक ढं ग ह गा र ध क
रकट करन का। वह भी लकड़ी उठाएगा। अगर आपन ककसी क प्थर मारा ह, त वह बड़ा प्थर आपक मारगा।
र ध का नकारा्मक उपय ग और र ध क पदा करगा। शज्त ्यय ह गी। कफर स र ध पदा ह गा और नकारा्मक आदत कफर र ध
करवाएगी। कफर शज्त ्यय ह गी, कफर ववपरीत उतर मं कफर र ध पदा ह गा। र ध की शंख
ृ ला अनंत ह गी, उसमं कवल शज्त ही
्यय ह ती जाएगी, परर्ाम कुि भी नहीं ह गा।
र ध की शंख
ृ ला क तभी आप त ड़ सकत हं, जब आप र ध का क ई सकरय उपय ग कर लं , क ई सज
ृ ना्मक उपय ग कर लं।
इसललए महावीर न कहा ह, ज घ्
ृ ा करता ह, वह घ्
ृ ा उतर मं पाता ह। ज र ध करता ह, वह र ध क पदा करता ह। ज वर करता
ह, वह वर क ज्म दता ह। और इस शंख
ृ ला का क ई अंत नहीं ह। और इसमं कवल शज्त ही ्यय ह सकती ह। परर्ाम ्या ह
सकता ह? समझ लं , मं र ध करं, आप उतर मं मुझ र ध दं , मं कफर पुनः र ध करं, आप कफर उतर मं मुझ र ध दं –परर्ाम ्या
ह गा? हर र ध मुझ षी् करगा और मरी शज्त क ्यय कर जाएगा। इस वजह स स्यता न तनयम बनाया ह कक र ध मत कर ।
इस वजह स स्यता न तनयम बनाया कक ककसी पर र ध जादहर मत कर ।
ब्चं की आंखं मं ज तनमजलता ह ती ह, उसका ्या कार् ह? उनक ज ह ता ह, उस व तनकाल दत हं। उनकी क ई रंचथयां पदा
नहीं ह तीं। अगर उ्हं र ध आता ह, त र ध तनकाल दत हं। अगरर् ई्या ह ती ह, त र् ई्या तनकाल दत हं। अगर ककसी ब्च का
खखल ना िीनना ह, त उसक िीन लत हं। दमन नहीं ह ब्च क जीवन मं , इसललए सरलता मालूम ह ती ह। और आपक जीवन मं
दमन ह, इसललए जदटलता शुर ह जाती ह।
रंचथ का अथज ह, कां्लज्सटी। कुि भीतर ह ता ह, कुि आप बाहर ददखात हं। वह ज शज्त नहीं तनकल पाती ह, वह कहां जाएगी?
वह रंचथ बन जाती ह। रंचथ का मरा मतलब ह, वह गांठ की तरह आपक चचत मं या आपक शरीर मं अवु्ध ह जाती ह। जस नदी
मं क ई पानी का दह्सा बफज क टुकड़ बनकर बहन लग, त जजतन बड़-बड़ टुकड़ ह त जाएंग, नदी की धार उतनी कंु दठत ह ती जाएगी।
अगर सब बफज ह जाए, त नदी जमकर वहीं समा्त ह जाएगी।
त हम उन नददयं की तरह हं, जजनक भीतर बड़-बड़ बफज क टुकड़ बह रह हं। उनक वपघलाना जररी ह। वह रंचथयं स मरा मतलब
ह कक व ज बफज क बड?ा-बड़ टुकड़ हमार जीवन मं बह रह हं। हमार घ्
ृ ा क, हमार र ध क, हमार स्स क ज दलमत वग थ,
उ्हंन हमार भीतर बफज क बड़-बड़ टुकड़ पदा कर ददए हं। अब व हमारी धार क बहन नहीं दत हं। कुि की त धारं ऐसी हं कक सब
बफज ही बफज ह गया ह, वहां क ई धार ही नहीं ह।
अब य दखखए आप, ि ट ब्च हं, उनमं बड़ा वग ह ता ह, बड़ी शज्त ह ती ह। अगर उनक आप घर मं ि ड़त हं, त व इस चीज क
उठात हं, उसक पटकत हं; यह चीज त ड़त हं, वह चीज फ ड़त हं। आप उनक कहत हं, यह मत कर , यह मत कर । आप उनस यह
त कहत हं कक यह मत कर , लककन आप यह कभी नहीं कहत कक कफर ्या कर । और आपक यह पता नहीं ह कक जब एक ब्चा
एक चगलास क उठाकर पटक रहा ह, त ्यं पटक रहा ह! उसक भीतर शज्त ह और शज्त तनकास मांगती ह। अब कुि नहीं
लमलता, त एक चगलास क पटक रहा ह। उस चगलास क पटकन स उसकी शज्त तनकलसत ह ती ह, तनकलती ह।
लककन आपन कहा, ‘चगलास मत त ड़ दना।’ और वह चगलास त ड़न स ुक गया। वह बाहर गया, उसन फूल त ड़ना चाहा। आपन कहा,
‘दख , फूल मत िू दना।’ वह फूल भी नहीं िू पाया। वह अंदर गया, उसन ककताब उठायी। आप ब ल, ‘दख , ककताब खराब मत कर
दना।’ त आपन उस यह त बताया कक ्या मत करना, आपन यह उस नहीं बताया कक अब ्या कर । यह ब्च मं रंचथयां शुर ह
गयीं, कां्ल्सस पदा ह न शुर ह गए। अब इसमं गांठं पड़ती चली जाएंगी। यह एक ददन गांठ ही गांठ रह जाएगा। इसक भीतर यह
न कर , वह न कर , यह सब रहगा। ्या कर , इस कुि समझ मं नहीं आएगा।
मरा कहना यह ह सज
ृ ना्मक उपय ग का कक इस यह बताओ कक ्या कर । अगर यह चगलास उठाकर पटक रहा ह, त इसका
मतलब ह कक इसक पास शज्त ह और कुि करना चाहता ह। आपन कह ददया, यह मत कर । इसस बहतर था, आप इस लम्टी दत
और कहत, एक चगलास बनाओ। इसी चगलास की तरह एक चगलास बनाओ। त यह सज
ृ ना्मक उपय ग ह ता। मरी आप बात समझ?
यह फूल त ड़न गया था। इस आप कागज पकड़ा दत और कहत कक इसी तरह का फूल बनाओ, त यह सज
ृ ना्मक उपय ग ह ता।
यह ककताब फाड़ रहा था या ककताब उठाया था, इस आपक कुि दना चादहए था कक उस शज्त का उपय ग करता।
अब एक आदमी ज तनरं तर तनंदा करता ह ककसी की, ह सकता था, वह क ई गीत ललखता। और आप जानत हं, ज गीत नहीं ललख
पात, कववता नहीं ललख पात, व आल चक ह जात हं। वह वही शज्त ह। व ज करदट्स हं , व ज आल चक हं; वह वही शज्त ह, ज
गीत ललख सकती थी, कववता बना सकती थी। लककन उ्हंन उसका सज
ृ ना्मक उपय ग नहीं ककया। व कवल यह कर रह हं कक व
दस
ू रं की आल चना कर रह हं कक क न गलत ललख रहा ह, क न ्या कर रहा ह!
यह ववनाशा्मक उपय ग ह। दतु नया बहुत बहतर दतु नया ह जाए, अगर हम अपनी शज्तयं का सज
ृ ना्मक उपय ग करं , और हर
शज्त का। और शज्त बुरी और भली नहीं ह ती, ्मर् रखखए। र ध की शज्त भी बुरी और भली नहीं ह। उसक उपय ग की बात
ह। आप यह मत स चचए कक र ध की शज्त बुरी ह। शज्त क ई बुरी-भली नहीं ह ती।
अब एटालमक एनजी ह; न बरु ी ह, न भली ह। उसस ववनाश ह सकता ह सार जगत का, उसस सार जगत का तनमाज् ह सकता ह।
सब शज्तयां ्य्
ू ल ह ती हं। क ई शज्त बरु ी और भली नहीं ह ती। ववनाशा्मक उपय ग ह , त बरु ी ह जाती ह; और सज
ृ ना्मक
उपय ग ह , त भली ह जाती ह।
ज -ज आपमं दग
ु ध
ं द रहा ह, वही-वही आपमं सुगंध दन का कार् बन सकता ह–वही। ्यंकक ज दग
ु ध
ं दता ह, कवल वही सुगंध द
सकता ह। इसललए कभी बुरा मत मातनए कक आप र धी हं। यह शज्त ह और आपका स भा्य ह। और कभी बुरा मत मातनए कक
आप स्सुअल हं कक आप कामुक हं। यह शज्त ह और आपका स भा्य ह। दभ
ु ाज्य यह ह ता कक आप स्सुअल न ह त। दभ
ु ाज्य
यह ह ता कक आपमं र ध ही न ह ता, त आप इ्प टं ट ह त; त आप पुंस्वहीन ह त, त आप ककसी मतलब क न ह त। ्यंकक
आपमं क ई शज्त न ह ती, जजसस कुि ककया जा सक। त शज्त क ललए स भा्य मातनए। और आपक भीतर ज भी शज्तयां हं,
सबका ध्यवाद मातनए, ्यंकक व शज्तयां हं। अब यह आपक हाथ मं ह कक आप उनका ्या उपय ग करत हं!
दतु नया क जजतन महापुुष हुए हं, सब ए्स्ीम स्सुअलल्ट थ। जजतन दतु नया क महापुुष हुए हं, सब अतत कामुक थ। यह असंभव
ह, अगर न रह हं। अगर अतत कामुक न ह त, महापुुष नहीं ह सकत थ।
गांधी जी क आप जानत हं, अतत कामुक थ। और जजस ददन उनक वपता की म्ृ यु हुई, डा्टरं न कह ददया कक वपता मरन क हं, व
उस रात भी अपन वपता क पास नहीं बठ सक। जब उनक वपता मर, त व अपनी प्नी क पास स ए हुए थ। और डा्टर कह कक
वपता मरन क हं और उस रात भी व वपता क पास नहीं बठ सक। व मरन क थ रात मं , यह जादहर ही था। गांधी जी क बहुत
ध्का लगा इस बात स कक मं कसा आदमी हूं! मं आदमी कसा हूं!
लककन ध्यभाग था उनका कक व इतन कामुक थ। वही कामुकता उनका र्मचयज बन गयी–वही कामुकता। अगर व उस रात वपता
क पास बठ रहत, त प्का मातनए, गांधी पदा नहीं ह ता दतु नया मं । हममं स अचधक बठ ही रहत। रात ्या, द रात बठ रहत, पर
गांधी पदा नहीं ह ता। वह ज उस ददन दग
ु ध
ं मालूम हुई ह गी उनक चचत क , वही बाद मं उनक जीवन की सारी सुगंध बन गयी।
त ककसी शज्त का अनादर मत कररए। अपन भीतर उठी ककसी भी शज्त का अनादर मत कररए। स भा्य मातनए और उसक
पररवततजत करन मं लचगए। हर शज्त बदल जाती ह और हर शज्त समपररवततजत ह जाती ह। और ज आपमं बरु ा ददखता ह, वही
सग
ु ंध मं और फूलं मं परर्त ह जाता ह।
य थ ड़-स र्नं की मंन चचाज की। द -चार िूट गए हं, उनक कल ववचार कर लंग।
आजइतनाही।
्यान–सर
ू (ओश )रवचन-च िा
मरररयआ्मन ् ,
पहल चर् की बात सब
ु ह मंन कही। शरीर की श्
ु चध कस संभव ह, उस पर थ ड़ी-सी बातं आपक बतायीं। दस
ू री पतज मन्ु य क
्यज्त्व की, उसक ववचार की ह। शरीर श्
ु ध ह , ववचार श्
ु ध ह –तीसरी पतज भाव की ह–और भाव श्
ु ध ह , त साधना की पररचध
तयार ह ती ह। य तीन बातं भी सध जाएं, त जीवन मं बहुत अलभनव आनंद का, शांतत का ज्म ह जाता ह। य तीन बातं भी सध
जाएं, त जीवन का नया ज्म ह जाता ह।
लककन यह पररचध की साधना ह। एक अथज मं यह बदहरं ग साधना ह। अंतरं ग साधना और भी गहरी ह। उसमं शरीर क , ववचार क
और भाव क हम श्
ू य करत हं; श्
ु ध करत हं, उसमं श्
ू य करत हं। अभी शरीर क श्
ु ध करत हं, उसमं शरीर का ्याग ही करत
हं। उसमं शरीर नहीं ह, इस अव्था मं रवश करत हं। ववचार नहीं ह, इस अव्था मं रवश करत हं। भाव नहीं ह, इस अव्था मं
रवश करत हं। पर उसक पूव,ज पररचध क रप मं अशु्ध का ्याग करत हं।
शरीर क संबंध मं मंन आपक कहा। अब ववचार क संबंध मं ववचार करं । ववचार की अशु्चध ्या ह? ववचार भी तरं गं की भांतत हं।
और ववचार भी मनु्य क चचत पर अपना रभाव शुभ या अशुभ क ललए ि ड़त हं। ज ्यज्त जजन ववचारं स आंद ललत ह ता ह,
उसका ्यज्त्व वसा ही तनलमजत ह जाता ह। ज ्यज्त जजन ववचारं स आंद ललत ह ता ह, उसका ्यज्त्व वसा ही तनलमजत ह
जाता ह। ज ्यज्त संदयज का ववचार करगा, जजस ्यज्त की चतना तनरं तर संदयज क तनकट चचंतन और मनन करगी, उसक
्यज्त्व मं एक संदयज का ज्म ह जाना बबलकुल ्वाभाववक ह। ज ्यज्त लशव्व क संबंध मं , शभ
ु क संबंध मं ववचार करगा
और उसकी चतना उस कंर पर परररम् करगी, उसक जीवन मं शभ
ु का पदा ह जाना आ्चयजजनक नहीं ह। ज स्य का चचंतन
करगा, स्य का मनन करगा, उसक जीवन मं स्य का अवतर् ह जाना सहज संभव ह।
त इस संबंध मं मं आपस यह कहूं कक आप अपन बाबत ववचार करं , आप ककस चीज पर तनरं तर चचंतन करत हं? ककस चीज क संबंध
मं आप तनरं तर चचंतन करत हं?
हममं स अचधक ल ग या त धन क संबंध मं ववचार करत हं, या यश क संबंध मं ववचार करत हं, या काम क संबंध मं ववचार करत
हं।
चीन मं बहुत समय हुआ, एक राजा हुआ। वह अपन समुरतट क रा्य की सीमा क दखन गया। वह अपन वजीर क भी साथ ल
गया था। व द नं पहाड़ की च टी पर खड़ ह कर दरू तक फल समर
ु क दखन लग। अनक-अनक जहाज उस समुर मं चल रह थ, आ
रह थ, जा रह थ। उस राजा न कहा अपन मंरी क , ‘ककतन जहाज आ रह हं और ककतन जहाज जा रह हं!’ उस मंरी न कहा, ‘राजन,
अगर स्य पूिं, त कवल तीन जहाज आ रह हं और तीन ही जहाज जा रह हं।’ राजा न पूिा, ‘तीन? अनक ददखायी पड़त हं। ्या
तु्हं ददखायी नहीं पड़त?’ उसन कहा, ‘मंन तीन ही जहाज जान हं–एक यश का जहाज ह, एक धन का जहाज ह, एक काम का जहाज
ह। और इन तीन जहाजं पर सबकी यारा चलती ह।’
यह सच ह। हमार ववचार की यारा इन तीन जहाजं पर ही चलती ह। और ज इन तीन पर चल रहा ह, वह अशु्ध ववचार मं ह। ज
इन तीन स नीच उतर आए, वह शु्ध ववचार मं रवश करता ह।
त यह र्यक क ललए ववचार्ीय ह कक उसका कंरीय चचंतन ्या ह? उसका घाव ्या ह मन का, जहां सारी चीजं घम
ू ती हं? ्यंकक
च बीस घंट मं जजस बात पर उसका चचत बार-बार ल ट आता ह , वह उसकी कंरीय कमज री ह गी। त यह हरक स च, ्या धन पर
ल ट आता ह? ्या स्स पर ल ट आता ह? ्या यश पर ल ट आता ह? ्या आपका चचंतन इनमं स ककसी एक पर ल ट आता ह?
्या अस्य पर ल ट आता ह? बईमानी पर ल ट आता ह? ध खा दन पर ल ट आता ह? य सब उनक ग ् दह्स हं। तीन कंर त वही
हं। उन तीन पर अगर आपका चचत चचंतन करता ह, त आप अशु्ध ववचार की ज्थतत मं हं। इस अशु्ध हम इसललए कह रह हं
कक इस भांतत का ववचार करक आप जीवन-स्य क उपल्ध नहीं ह सकंग।
शु्ध ववचार का अथज ह गा, जजसक हम अपन दश मं स्यम ् लशवम ् सुंदरम ् कहत हं। जजस हम कहत हं स्य, लशव और सुंदर। य
तीन ही शुभ ववचार क कंर हं। काम, यश और धन, य अशुभ ववचार क कंर हं। स्य, लशव और सुंदर, य शु्ध ववचार क कंर हं।
ककतना आप स्य क संबंध मं चचंतन करत हं ? करत हं चचंतन स्य क संबंध मं ? कभी स चत हं , स्य ्या ह? कक्हीं एकांत ष्ं मं
आपका मन इसस आंद ललत ह ता ह? कभी यह बात आपक मन क पीडड़त करती ह कक स्य ्या ह? कभी आपक मन क ह ता ह,
जानं कक सुंदर ्या ह? कभी आपक मन क ह ता ह कक जानं कक शुभ ्या ह?
अगर य ववचार आपक मन क आंद ललत नहीं करत हं, त आपकी ववचार-ज्थतत अश्
ु ध ह और उस अश्
ु ध ववचार-ज्थतत मं समाचध
मं रवश नहीं ह गा।
अशु्ध ववचार बाहर ल जाता ह और शु्ध ववचार भीतर लाता ह। अशु्ध ववचार की ददशा बदहगाजमी ह और अध गामी ह। और शुभ
ववचार या शु्ध ववचार की ददशा अंतगाजमी ह और ऊ्वजगामी ह। यह असंभव ह कक क ई ्यज्त स्य का ववचार कर, सुंदर का ववचार
कर, शुभ का ववचार कर–यह असंभव ह कक वह इनका ववचार कर, त ववचार करत-करत ही उसक जीवन मं इनकी िाप, इनका अंकन
और इसकी िाया न पड़न लग।
गांधी जी जल मं पीि बंद थ। व तनरं तर स चत थ स्य क संबंध मं , अपरररह क संबंध मं , अनासज्त क संबंध मं । उन ददनं सुबह
क ना्त मं व दस खजूर फुलाकर लत थ। उसक पानी मं डालकर दस खजूर लत थ। व्लभ भाई पटल उनक साथ जल मं थ।
उ्हंन दखा, दस खजूर भी क ई ना्ता हुआ? इतन स ्या ह गा? त उ्हंन–व ही फुलात थ उन खजूरं क –उ्हंन एक ददन पंरह
खजूर फुला ददए। और उ्हंन कहा, ‘पता भी ्या चलगा इस बूढ़ आदमी क कक ककतन थ, दस थ कक पंरह थ! ऐस खा लं ग।’
गांधी जी न दखा कक कुि खजरू ्यादा हं। उ्हंन कहा कक ‘व्लभ भाई, इनकी चगनती कर ।’ चगनती की, त व पंरह थ। गांधी जी
न कहा, ‘य त पंरह हं।’ व्लभ भाई न कहा, ‘अर दस और पंरह मं ्या फकज ह?’ गांधी जी द ष् आंख बंद करक बठ गए और
स चत रह। उ्हंन कहा, ‘व्लभ भाई, तम
ु न मझ
ु बड़ा सर
ू द ददया। तम
ु न कहा, दस और पंरह मं ्या फकज ह? मरी समझ मं आ
गया कक दस और पांच मं भी क ई फकज नहीं ह। आज स हम पांच ही लंग।’ गांधी जी न कहा, ‘आज स हम पांच ही लं ग। तम
ु न
गजब की बात कह दी कक दस और पंरह मं क ई फकज नहीं ह। त पांच और दस मं भी क ई फकज नहीं ह। आज स हम पांच ही
लंग।’
व्लभ भाई त घबरा गए। उ्हंन कहा, ‘हम त इसललए कक थ ड़ा ना्ता ्यादा ह जाएगा आपका। यह हमं खयाल न था कक इस
तरह आप स चं ग।’ गांधी जी न कहा, ‘ज तनरं तर अपरररह पर स च रहा ह, उसक बु्चध ऐस ही सूझगी। ज तनरं तर यह स च रहा ह
कक ककतना कम स कम ह जाए, उसकी बु्चध ऐसा ही उतर दगी। ज तनरं तर स च रहा ह, ्यादा स ्यादा कस ह जाए, उस दस
और पंरह मं फकज नहीं ह गा। ज स च रहा ह, कम स कम कस ह जाए, उस पांच और दस मं फकज नहीं ह गा।’
त आप ज चचंतन करत हं, वह आपकी ि टी-ि टी जीवनचयाज मं रकट ह ना शुर ह जाएगा। एक और घटना आपक कहूं।
गांधी जी सब
ु ह पानी गमज करक उसमं नीबू और शहद डालकर लत थ। महादव दसाई उनक तनकट थ। वह एक ददन पानी मं शहद
और नीबू डालकर उ्हंन रखा। वह गमज पानी था। उबलती हुई उसस भाप तनकलती थी। जब गांधी जी आए, त क ई पांच लमनट बाद
उनक पीन क ददया। गांधी जी उस द ष् दखत रह और कफर उ्हंन कहा, ‘अ्िा हुआ ह ता, इस ढं क दत।’ महादव दसाई न कहा,
‘पांच लमनट मं ्या बबगड़ता ह। और कफर मं दख ही रहा हूं, इसमं कुि भी नहीं चगरा।’ गांधी जी न कहा, ‘कुि चगरन का र्न नहीं
ह। इसस गमज भाप उठ रही ह, कुि न कुि कीटा्ओु ं क ्यथज ही नक ु सान पहुंचा ह गा।’ गांधी जी न कहा, ‘ढं कन का और चगर जान
का उतना र्न नहीं ह। लककन इसस गमज भाप तनकल रही ह। वायु क बहुत-स कीटा्ओ ु ं क ्यथज ही नक ु सान पहुंचा ह गा। क ई
कार् न था, उस हम बचा सकत थ।’
ज अदहंसा पर तनरं तर चचंतन कर रहा ह, यह ्वाभाववक ह कक उसक यह ववृ त और ब ध आ जाए। यातन मं यह कह रहा हूं कक आप
जब कक्हीं चीजं पर तनरं तर चचंतन करं ग, त आप जीवनचयाज मं ि टी-ि टी बातं मं पाएंग कक फकज ह जाता ह।
सुबह यहां एक लमर न आपक खबर दी। उ्हंन कहा, ‘यह बहुत दख
ु की बात ह कक बहुत-स ल गं क हम द बार कह चक
ु , कफर भी
व अभी तक नहीं आए हं और दस लमनट की दर ह गई।’ उ्हंन कहा कक यह बहुत दखु की बात ह कक कुि ल गं क हम द बार
कह चकु हं, लककन व अभी तक नहीं आए हं। अगर मुझ यह बात कहनी पड़, त मं यह कहूंगा, ‘यह बहुत खश
ु ी की बात ह कक द ही
बार कहन स इतन ल ग आ गए हं।’ और मं यह कहूंगा कक ‘यह और भी ्यादा खश
ु ी की बात ह गी कक ज नहीं आए हं, व भी आ
जाएं।’ यह अदहंसा्मक ढं ग ह गा और वह दहंसा्मक ढं ग था। उसमं दहंसा ह।
ववचार बड़ी अदभुत शज्त ह। त आप ्या ववचार रह हं तनरं तर, इस पर बहुत कुि तनभजर ह। अगर आप तनरं तर धन क संबंध मं
ववचार रह हं और समाचध क रय ग कर रह हं, त ददशा ववपरीत ह। वह ऐसा ही ह, जस हमन एक ही बलगाड़ी मं द नं तरफ बल
ज त ददए हं। त वह बलगाड़ी टूट जाएगी उन बलं क खींचन स, लककन आग नहीं बढ़गी।
ववचार की ददशा शु्ध ह , त आप पाएंग, बड़ी ि टी-ि टी चीजं मं अंतर पड़ना शुर ह जाता ह। बहुत बड़ी-बड़ी बातं नहीं हं जीवन
मं ; जीवन बड़ी ि टी-ि टी बातं स बनता ह। जीवन बड़ी ि टी-ि टी घटनाओं स बनता ह। आप कस उठत हं, कस बठत हं, कस
ब लत हं, ्या ब लत हं, इस पर बहुत कुि तनभजर ह ता ह। बहुत कुि तनभजर ह ता ह! और इन सारी बातं का ज कंर ह, जहां स इन
सबका ज्म ह ता ह, वह ववचार ह।
त ववचार क स्य ्मुख, लशव ्मुख और संदयो्मुख ह ना चादहए। तनरं तर जीवन मं यह ्मर् बना रह कक हम स्य का चचंतन
करं । समय जब लमल, त हम स्य पर थ ड़ा ववचार करं , संदयज पर थ ड़ा ववचार करं , शुभ पर थ ड़ा ववचार करं । और इसक पहल कक
हम क ई काम करन मं रवत
ृ हं, एक ष् ुक जाएं और स चं कक हम ज करं ग, वह स्य, सुंदर और शुभ क अनुकूल ह गा या
रततकूल ह गा? जब क ई ववचार मन मं चलन लग, त हम स चं कक यह ज धारा चल रही ह, यह ववचार की धारा शुभ क, स्य क,
सुंदर क अनुकूल ह या कक रततकूल ह?
यदद यह रततकूल ह, त इस धारा क खंडडत कर दं । इसका साथ ि ड़ं, यह धारा लाभ की नहीं ह। यह जीवन क ग्ढ मं ल जाएगी।
यह जीवन क नीच ल जाएगी। त इसक ्मर्पूवक
ज दखं कक आपकी ववचार की पतं की धारा कसी ह! और उस साहस स, रयास
स और रम स और संक्पपूवक
ज शुभ और स्य की ओर उ्मुख करं ।
अनक बार ऐसा लगगा कक हम तय भी नहीं कर पाएंग कक स्य ्या ह? अनक बार ऐसा लगगा कक हम तय भी नहीं कर पाएंग कक
शभ
ु ्या ह? ह सकता ह, आप तय न कर पाएं। लककन आपन ववचार ककया, तय करन की च्टा की, यह भी काफी म्
ू यवान ह और
आपमं फकज लाएगा। और ज तनरं तर चचंतन करगा, वह धीर-धीर उस ददशा क अनभ
ु व कर लता ह कक उस पता चल कक शभ
ु ्या ह,
या स्य ्या ह।
र्यक ववचार क , र्यक वा्ी क , र्यक करया क करन क पूवज एक ष् ुक जाएं, इतनी ज्दी कुि भी नहीं ह। और दखं कक मं
ज कर रहा हूं, उसस ्या रकट ह रहा ह? उसमं ्या जादहर ह रहा ह? उसमं क न-सी घटना घट रही ह? इसका सतत चचंतन साधक
क जररी ह।
त मं पहली त बुतनयादी ज ववचार-शु्चध की बात ह, वह यह ह कक हमारी ददशा क कंर ्या हं चचंतन क! अगर व कंर आपमं नहीं
हं, जजनकी मं बात कर रहा हूं, त उन कंरं क जगाना ह गा।
आप जानकर हरान हंग, अगर स्य, लशव या सुंदर मं स एक भी कंर आपमं जग जाए, त द कंर अपन आप जगन शुर ह जाएंग।
और यह भी मं आपक उ्लख कर दं ू कक तीन तरह क ल ग ह त हं जगत मं । एक व ल ग ह त हं, जजनक भीतर स्य क कंर क
ववकलसत ह न की शीर संभावना ह ती ह। एक व ल ग ह त हं, जजनक भीतर शभ
ु क कंर क ववकलसत ह न की शीर संभावना ह ती ह।
और एक व ल ग ह त हं, जजनक भीतर संदयज क ववकलसत ह न की शीर संभावना ह ती ह।
यह ह सकता ह, आपमं स सबक कंर अलग हं। लककन अगर एक कंर भी जग जाए, त द अपन आप जगन शुर ह जात हं। अगर
क ई ्यज्त संदयज क ठीक स रम करन लग, त अस्य नहीं ब ल सकता। ्यंकक अस्य ब लना बड़ी असुंदर बात ह, बड़ी कुरप
बात ह। अगर क ई ्यज्त सुंदर क ठीक स रम करन लग, त अशुभ कृ्य नहीं कर सकता ह, ्यंकक अशुभ कृ्य कुरप ह ता ह।
यातन वह इसललए च री नहीं कर सकता ह कक च री करना बड़ा कुरप कृ्य ह। त अगर उसकी संदयज क रतत भी पूरी आकांषा पदा
ह जाए, त भी बहुत कुि ह जाएगा।
एक बार गांधी जी रवी्रनाथ क यहां महमान थ। रवी्रनाथ बूढ़ ह गए थ। व त संदयज क साधक थ। स्य स और शुभ स उ्हं
क ई मतलब न था। इस अथज मं मतलब नहीं था कक व उनकी सीधी ददशा नहीं थ। व संदयज क साधक थ। गांधी जी वहां महमान
थ। सं्या क द नं घूमन तनकलन क थ, त रवी्रनाथ न कहा, ‘द ष् ुकं, मं थ ड़ा बाल संवारकर आया।’
गांधी जी न कहा, ्या बहूदी बात! बाल संवारना! गांधी जी उनक साफ ही कर चक
ु थ, इसललए संवारन की झंझट ही खतम ह गयी।
और इस बुढ़ाप मं बाल संवारना! यह त बड़ी अजीब और गांधी जी क ललए बड़ी अस चनीय बात थी। व बड़ गु्स मं खड़ रह, लककन
अब रवी्रनाथ क कुि कह भी नहीं सकत थ।
रवी्रनाथ भीतर गए। द लमनट बीत, पांच लमनट बीत, दस लमनट बीत। गांधी जी हरान हुए कक य कस बाल संवार जा रह हं! उ्हंन
खखड़की स झांका, त व आदमकद आईन क सामन खड़ हं और बाल संवार ही चल जात हं। गांधी जी की बरदा्त क बाहर हुआ।
उ्हंन कहा कक ‘मं समझ नहीं पा रहा हूं, यह आप ्या कर रह हं? घूमन का व्त तनकला जा रहा ह। और बाल भी ्या संवारन?
और इस बुढ़ाप मं बाल ्या संवारन?’
त मं आपक यह कहूंगा कक अगर आपमं सुंदर ह न की उ्सुकता ह, त पूरी तरह सुंदर ह जाइए। पूरी तरह सुंदर ह जाइए कक
सवांग जीवन सुंदर ह जाए। त मं यह नहीं कहता कक ज बाल संवार रह हं, व बुरा कर रह हं। नहीं, मं उनस यही कहता हूं कक बाल
जरर संवारं , और भी बहुत कुि ह ज संवार लं । मं नहीं कहता, आप आभूष् पहनकर तनकल हं, त बुरा कर रह हं। मं यह कहता हूं,
आभूष् पहन हं, यह त अ्िा ककया, लककन स्च आभूष् भी पहन लं। मं यह नहीं कहता कक आप शुर व्र पहनकर आए हं, त
बुरा ककया। बहुत अ्िा ककया। शुर व्र पहन, यह त ठीक ही ककया, शुर अंतस भी ह जाए।
इन तीन मं स क ई भी आपकी ददशा ह , क ई भी आपकी ुचच का कंर बनता ह , उसक कंर बना लं और अपन ववचार क उसकी
पररचध पर घूमन दं और उसस अंतःरभाववत ह न दं । एक कंर चन
ु ं इन तीन मं स और उस साधं। और जीवन की सवांगी्–
सवांगी्–ववचधयं मं , ्यवहारं मं , आचार मं और ्यवहार मं उस साधं। त आप धीर-धीर एक अदभुत बात अनुभव करं ग, जस-जस
वह कंर सधन लगगा, वस-वस आपक जीवन की ववकृततयां और अशु्ध ववचार ववलीन ह न लगं ग।
मं आपक यह नहीं कहता हूं बहुत ज र स कक आप धन का चचंतन ि ड़ं। मं आपस यह कहता हूं, आप शुभ का, सुंदर का और स्य
का चचंतन रारं भ करं । जब आप सुंदर का चचंतन रारं भ करं ग, त आप धन का चचंतन नहीं कर सकंग, ्यंकक धन क चचंतन स ्यादा
कुरप और क ई ज्थतत नहीं ह। जब आप सुंदर का चचंतन करं ग, त आप स्स का चचंतन नहीं कर सकत हं, ्यंकक उसस ्यादा
कुरप चचत की और क ई ज्थतत नहीं ह।
त मं पाजजदटवली, ववधायक रप स यह कहता हूं कक शुभ, शु्ध ववचार क ककसी कंर पर अपनी ऊजाज क और अपनी शज्त क
संल्न ह न दं । आप पाएंग, आपकी शज्त ्यथज क कंरं स सरकती चली आ रही ह, उसन वहां स हाथ ि ड़ ददए हं।
्मर्पूवक
ज ज अशु्ध ह, उस ि ड़ना और ्मर्पूवक
ज ज शु्ध ह, उस पर अपन क चथर करना और ्थावपत करना ह। ववचार
शु्ध ह गा, त जीवन मं कफर बहुत गहरी गतत ह गी। यह ववचार की मूल बात ह। ववचार-शु्चध क ललए ववचार की यह मूल बात ह।
कफर कुि और बातं हं, ज ग ् हं। वह भी मं आपक ्मर् ददला दं ।ू
ववचार क श्
ु ध ह न क ललए मह्वप्
ू ज ह कक आप यह जानं कक आपक भीतर सार ववचार बाहर स आत हं। क ई ववचार आपक
भीतर नहीं ह ता। सार ववचार आपक पास बाहर स आत हं। ववचार की खदंू टयां भीतर ह ती हं, ववचार बाहर स आत हं। यह जरा
समझ लं। ववचार बाहर स आत हं, खदंू टयां भीतर ह ती हं।
अगर ककसी ्यज्त न धन का चचंतन ककया ह, त धन क ववचार त बाहर स आत हं, कवल धन क ववचार करन की ज कामना ह,
उसकी खूंटी भर भीतर ह ती ह। ववचार बाहर स आकर उस खट
ूं ी पर टं ग जात हं। ज स्स का चचंतन करता ह, स्स की खट
ूं ी त
भीतर ह ती ह, ववचार बाहर स आकर उस पर टं ग जात हं। ज जजस बात का चचंतन करता ह, उसकी लसफज खट
ूं ी भीतर ह ती ह, ववचार
हमशा बाहर स आकर टं ग जात हं। आपक पास जजतन ववचार हं , व सब बाहर स आए हुए हं।
ववचार की शु्चध क ललए यह जानना जररी ह कक ववचार, ज बाहर स हमार भीतर आ रह हं, व अवववकपू्ज रीतत स भीतर न आएं।
हम सजग हं और जजसक भीतर आन दना चाहत हं, वही हमार भीतर आए। शष क हम बाहर फंक दं ।
मं अभी पीि कहता था, अगर मर घर मं क ई कचरा फंक दगा, त मं उसस झगड़न जाऊंगा; लककन मर ददमाग मं अगर क ई कचरा
फंकता ह, त मं झगड़न नहीं जाता। अगर आप रा्त पर मझ
ु लमलं और मं एक कफ्म की कहानी आपक सन
ु ान लगंू, त आपक
क ई दद्कत नहीं ह ती। और अगर मं घर मं जाकर आपक थ ड़ा कचरा फंक आऊं, त आप कहं ग, आपन यह ्या ककया? कानन
ू क
ववपरीत ह। और मं आपक ददमाग मं कचरा डालंू, एक कफ्म की कहानी सन
ु ाऊं, त आप बड़ मज स बठकर सन
ु त रहत हं!
अभी हमक यह पता नहीं ह कक ददमाग मं भी कचर फंक जा सकत हं। और हम सार ल ग एक-दस
ू र क ऐस द्ु मन हं कक एक-दस
ू र
क ददमाग मं कचरा फंकत रहत हं। जजनक आप लमर समझत हं , व आपक साथ ्या कर रह हं? उनस बड़ा दर्ाु्यवहार और क ई
नहीं कर सकता। इसस द्ु मन बहतर; कम स कम आपक ददमाग मं कुि नहीं फंकता, ्यंकक आपस लमलता-जुलता नहीं ह।
हम सब एक-दसू र क ददमाग मं कचरा डाल रह हं। और हम इतन स ए हुए ल ग हं कक हमं पता ही नहीं ह ता कक हम ्या ल रह
हं। हम सबक ्वीकार कर लत हं। हम धमजशालाओं की तरह हं, जजनमं क ई रखवाला नहीं ह और जजन पर क ई ्वारपाल नहीं बठा
मन क धमजशाला नहीं ह ना चादहए। अगर मन धमजशाला ह गा, सुरषषत नहीं ह गा, त अशु्ध ववचार स िुटकारा मुज्कल ह। त
्मर्पूवक
ज मन क ऊपर पहरा ह ना चादहए। शु्ध ववचार क ललए दस
ू री जररत ह कक मन पर पहरा ह , एक वाचफुलनस ह । हम
जाग, सजग पहरदार हं कक हमार भीतर ्या आता ह! ज ्यथज ह, उस इनकार कर दं ।
मं अभी एक सफर मं था। मं था और मर साथ मर कंपाटज मंट मं एक स्जन और थ। व मुझस कुि बातचीत करना चाहत हंग।
जस ही मं बठा, उ्हंन लसगरट तनकालकर मझ
ु दी। मंन कहा, ‘षमा करं , मं नहीं लंग
ू ा।’ उ्हंन लसगरट अंदर रख ली। कफर थ ड़ी दर
बाद उ्हंन पान तनकाला और मझ
ु स कहा, ‘लीजजए।’ मंन कहा, ‘माफ करं । मं नहीं लंग
ू ा।’ व कफर पान रखकर बठ गए। कफर उ्हंन
अपना अखबार उठाया, ब ल, ‘इसक पदढ़एगा?’ मंन कहा, ‘षमा करं , मं नहीं पढूंगा।’ व ब ल, ‘बड़ा मजु ्कल ह। हम आपक कुि भी दत
हं, आप नहीं लत हं!’ व मझ
ु स ब ल, ‘हम आपक कुि भी दत हं, आप कुि भी नहीं लत!’ मंन कहा कक ‘ज कुि भी ल लत हं, व
नासमझ हं। और आप ज द रह हं, मं क लशश करंगा कक आपस भी तिन जाए। मं त उस नहीं लंग
ू ा, आपस भी तिन जाए, यह
क लशश करंगा।’
आप ्या करत हं, अगर खाली बठ हं? अखबार उठाकर पढ़न लगं ग, ्यंकक खाली बठ हं! त खाली बठ रहना बहतर ह, बजाय कचरा
इक्ठा करन स। खाली बठ रहना बुरा नहीं ह। कुि ऐस पागल हं, ज यह कहत हं कक कुि न कुि करना न करन स अ्िा ह। यह
गलत ह। कुि भी गलत करन स न करना हमशा बहतर ह। कुि हं, ज कहत हं कक कुि न कुि करत रहना कुि भी न करन स
बहतर ह। मं आपस कहता हूं, कुि भी न करना कुि भी गलत-सलत करन स हमशा बहतर ह। ्यंकक उस व्त कम स कम आप
कुि ख त नहीं रह। उस व्त कम स कम कुि ्यथज त इक्ठा नहीं कर रह हं।
त इसकी एक सजगता। ववचार क आंतररक संरम् मं हम सजग हं, त ववचार क शु्ध रखना कदठन नहीं ह। अशु्ध ववचार क
पहचान लना कदठन नहीं ह। व ववचार, ज आपक भीतर जाकर उतजना पदा करत हं, अशु्ध हं। व ववचार, ज आपक भीतर जाकर
शांतत क झरन पदा करत हं, शु्ध हं। व ववचार, ज आपक भीतर जाकर आनंद ्मुख करत हं, शुभ हं। व ववचार, ज आपक भीतर
जाकर ककसी तरह की बचनी, चचंता, एं्जाइटी पदा करत हं, व अशुभ हं। त उन ववचारं स अपन क बचाएं। और अपन मन क सजग
पहरदार बनं , त ववचार-शु्चध की तरफ संरम् ह ता ह।
इस बहुत अंधर स भरी हुई दतु नया मं बबलकुल अंधरा नहीं ह, कुि दीए हं–लम्टी क ही सही। और ि टी उनकी ल ह , त भी सही।
लककन व भी हं। उनका हम साज्न्य ख जं। ्यंकक ज जलत हुए दीयं क करीब अपन बुझ दीए क ल जाएगा, बहुत संभव ह,
उसकी ्य तत ज कक बुझी-बुझी ह, उन दस
ू र दीयं क साज्न्य मं पुनु्जीववत ह जाए। बहुत संभव ह कक वह अपन धओ
ु ं क ख
द और लपट बन जाए।
साज्न्य ख जं उन ककर्ं का, ज कक स्य क ललए, शुभ क ललए और सुंदर क ललए हं। उसक साज्न्य मं अपन क ल जाएं। उन
ववचारं क, उन ववचार पुुषं क, उन वचाररक तरं गं क आवतज मं अपन क ल जाएं, जहां यह संभव ह ।
रकृतत क ई अशुभ ववचार नहीं दती ह। अगर आप आकाश क बठकर दखं , लसफज दखत रहं , आकाश आपमं कुि अशुभ पदा नहीं
करगा, बज्क आपका सारा कचरा थ ड़ी दर मं षी् ह जाएगा और आप पाएंग कक आप आकाश क दखत-दखत आकाश क साथ
एक ह गए हं। एक पहाड़ स चगरत हुए झरन क दखत-दखत आप पाएंग कक आप पहाड़ का झरना ह गए हं। एक हररयाली स भर
हुए वन क दखत-दखत आप पाएंग कक आप भी एक दर्त ह गए हं।
एक साधु हुआ। उसस एक ्यज्त न जाकर पूिा कक ‘मं स्य क जानना चाहता हूं, कस जानूं?’ उसन कहा, ‘अभी बहुत ल ग हं। कभी
अकल मं आना।’ वह ददनभर नहीं आया, वह सांझ क आया, जब क ई भी नहीं था। दीए जल गए थ, रात ह गयी थी, साधु अकला था,
अपना दरवाजा बंद करन क था। उस आदमी न कहा, ‘ठहरं , अब क ई भी नहीं ह। आप आए हुए ल गं क ववदा करक दरवाजा बंद
कर रह हं। मं बाहर ही ुका था कक जब सब ववदा ह जाएंग, मं भीतर रवश करंगा। अब मं आ गया। अब मं पूिना चाहता हूं, मं
शांत कस ह जाऊं और परमा्मा क कस उपल्ध ह जाऊं?’
उसन कहा, ‘बाहर आओ। यह झ पड़ क भीतर नहीं ह सकगा। ्यंकक यहां ज दीया जलाया ह, वह आदमी का जलाया हुआ ह। और
यह झ पड़ी क भीतर नहीं ह सकगा, ्यंकक यह ज झ पड़ी ह, आदमी की बनायी हुई ह। बाहर आएं। एक बड़ी दतु नया भी ह, ज
ककसी की बनायी हुई नहीं ह या कक परमा्मा की बनायी हुई ह। बाहर आएं, वहां मनु्य का सज
ृ न कुि भी नहीं ह। वहां मनु्य की
क ई िाप नहीं ह।’
और आप ्मर् रखं , अकला मनु्य ऐसा रा्ी ह, ज अशुभ िापं ि ड़ता ह। और क ई अशुभ िापं नहीं ि ड़ता।
व बाहर आए। वहां बांस क दर्त थ और चांद ऊपर खखला हुआ था, ऊपर ऊगा हुआ था। वह साधु उन दर्तं क पास जाकर खड़ा
ह गया–एक लमनट, द लमनट, दस लमनट, पंरह लमनट। उस आदमी न पूिा, ‘कुि ब ललए भी त ! आप चपु चाप खड़ हं , इसस हम ्या
समझंग!’ उसन कहा, ‘अगर तम
ु समझ सकत, त समझ जात। तम
ु भी चप
ु चाप खड़ ह जाओ। और हम बांस का एक दर्त ह गए
हं और तम
ु भी ह जाओ।’ वह ब ला, ‘यह त बड़ा मजु ्कल ह।’
उस साधु न कहा, ‘यही हमारी साधना ह। बांसं क पास खड़-खड़ हम थ ड़ी दर मं भूल जात हं कक हम अलग हं। और हम बांस ही ह
जात हं। और चांद क दखत-दखत हम थ ड़ी दर मं भूल जात हं कक हम अलग हं और हम चांद ही ह जात हं।’
लककन हम कुि ऐस अंध हं कक हम कवल मुरदं क पूजन क आदी हं। और हम ऐस अंध हं कक जीववत क ई ्यज्त हमार ललए
कभी सद ह ही नहीं सकता। लसफज मुरद हमार ललए सद ह त हं। और मुरदं स स्संग बड़ा मुज्कल ह। और दतु नया मं जजतन धमज
हं, व सब मुरदं क पूजक हं। जीववत का पूजक करीब-करीब क ई भी नहीं ह। और व सब मर हुओं क पूजत हं। और सबक यह रम
ह कक जजतन सदपुुष ह न थ, व सब ह चक ु , आग क ई भी नहीं ह गा। और सबक यह रम ह कक ज जीववत ह , वह सद कस ह
सकता ह!
हमशा जमीन पर सदपुुष उपल्ध हं। व जगह-जगह म जूद हं। आंखं हं, त पहचान जा सकत हं। और कफर बड़ी बात त यह ह कक
अगर व पूर सद न भी हं आपकी तुलना मं और आपकी क्पना मं , त भी आपक उनक असद स ्या लना ह?
एक फकीर था। उसन कहा कक ‘मंन आज तक जजनक पास भी गया, सबस सीखा।’ ककसी न पि
ू ा, ‘यह कस ह सकता ह? एक च र स
्या सीखखएगा?’ उसन कहा, ‘एक बार ऐसा हुआ, हम एक च र क घर मं महमान थ। और ऐसा हुआ कक उस च र क घर हम एक
महीना महमान थ। वह र ज रात क च री करन तनकलता और तीन बज, चार बज वापस ल टता। हम उसस पि ू त, कह कुि हुआ?
वह हं सकर कहता, आज त कुि नहीं हुआ, शायद कल ह । एक महीना वह च री नहीं कर पाया। कभी दरवाज पर सतनक लमल गया,
कभी ल ग घर मं जग थ, कभी ताला नहीं त ड़ पाया, कभी भीतर भी घस
ु ा, खजान तक नहीं पहुंच पाया। और वह च र र ज रात क
थका हुआ ल टता और हम उसस पूित कक कह , कुि हुआ? वह कहता, आज त नहीं हुआ, लककन कल शायद ह । हमन उसस यह
सीख ललया। हमन सीख ललया कक जब आज न ह , त कफर मत करना। याद रखना कक कल ह सकता ह।’
‘और एक च र ज च री करन गया ह, तनपट खराब काम करन गया ह, वह भी इतनी आशा स भरा ह।’ त उस फकीर न कहा, ‘उन
ददनं हम परमा्मा की तलाश मं थ, हम परमा्मा की च री मं लग थ। हम भी वहां दीवालं खटखटा रह थ और दरवाज टट ल रह थ,
क ई रा्ता नहीं लमलता था। हम थक गए थ और तनराश ह गए थ और हमन स चा था, कफजूल ह सब, ि ड़ं। लककन उस च र न
हमक बचा ललया। और उसन कहा, आज नहीं हुआ, कल शायद ह गा। और हमन यह सर ू बना ललया कक आज नहीं ह गा, त कल
शायद ह गा। और कफर वह ददन आया कक बात घदटत हुई। च र न च री कर ली और हमन भी परमा्मा चरु ा ललया।’
त सवाल यह नहीं ह कक आप सदपुुष स ही सीखंग। सवाल यह ह कक सीखन की बु्चध और समझ ह , त इस सार जगत मं
सदपुुष भर हुए हं। और अगर वह न ह , त महावीर क करीब स भी ल ग तनकल हं, जज्हंन समझा कक यह क ई लफंगा ह, क ई
नंगा ह। न मालूम क न ह! पागल ह। महावीर क करीब स ल ग तनकल हं। और आप ज सुनत हं, ल ग कहत हं, फलां आदमी नंगा-
लु्चा ह, यह सबस पहल महावीर क ललए रयु्त हुआ श्द ह। ्यंकक व नंग थ और कश लुंच करत थ, इसललए नंग-लु्च कहलात
थ। ल ग कहत थ, ‘नंगा-लु्चा ह।’ अब वह श्द गाली ह आज। अगर आपस क ई कह दगा, आप ग्ु स मं आ जाएंग। लककन वह
न्न और कश लुंच करन वाल साधु महावीर क ललए सबस पहल रयु्त हुआ था।
त महावीर क करीब स तनकलन वाल ल ग थ, जज्हंन समझा कक न मालूम क न फालतू आदमी ह! ऐस ल ग थ, जज्हंन उनक
मारा, ठंका और समझा कक यह क ई बईमान ह, क ई ठग ह, क ई जासूस ह।
ऐस ल ग हुए, ज महावीर क नहीं समझ सक। ऐस ल ग हुए, जज्हंन राइ्ट क सूली पर लटका ददया, यह समझकर कक यह त
झूठ बातं ब लता ह। ऐस ल ग हुए, जज्हंन सुकरात क जहर वपला ददया। और व ल ग उस ददन हुए, ऐसा मत स चना, व सब आपक
भीतर म जूद हं। य ही ल ग थ। अभी आपक म का लमल जाए, त सुकरात क जहर वपला दं ग; और म का लमल जाए, त राइ्ट क
सूली पर लटका दं ग; और म का लमल जाए, त महावीर क दखकर आप हं सन लगं ग कक यह कसा पागल आदमी ह! लककन चकूं क व
मर गए, मुरदं क आप पूज लत हं, उनस क ई दद्कत नहीं ह। ज जजंदा हं, उनक पूजना बड़ा मुज्कल ह; उनक मानना, उनक
समझना बड़ा मुज्कल ह।
त अगर सद की ख ज ह , त यह सारा जगत सदपुुषं स हमशा भरा हुआ ह। ऐसा कभी नहीं हुआ ह, न कभी ह गा। और जजस ददन
यह ह जाएगा कक सदपुुषं की परं परा खंडडत ह जाएगी, उस ददन आग क ई सदपुुष नहीं ह सकगा। ्यंकक वह धारा ही टूट
जाएगी, वह रचग्तान मं ववलीन ह जाएगी। म टी और पतली हमशा बह रही ह वह धारा। उसस पररचचत ह ना, संबंचधत ह ना। और
उसक ललए रा्ता यह नहीं ह कक आपक क ई जब बबलकुल ही परम ्यज्त लमलगा, तब आप समझंग। आपकी आंख खुली रखं।
ि टी-ि टी घटनाओं मं समझना ह सकता ह।
एक बात मं पढ़ता था एक साधु क बाबत। व साठ वषज की उर तक ्यवसाय करत रह। उनका नाम, घर का नाम राजा बाबू था।
व्
ृ ध ह गए, त भी ल ग उ्हं राजा बाबू कहत। एक ददन सब
ु ह-सब
ु ह व घम
ू न तनकल थ। सब
ु ह अभी सरू ज नहीं ऊगा ह, व गांव क
बाहर घम
ू न गए हं। एक ्री अपन घर मं एक ब्च क जगा रही ह। वह उसस कह रही ह कक ‘राजा बाब!ू कब तक स ए रह ग? अब
सुबह ह गयी, उठ ।’ व बाहर िड़ी ललए हुए चल जा रह थ, उ्हं सुनायी पड़ा कक ‘राजा बाबू! कब तक स ए रह ग? अब त सुबह ह
गयी, अब त उठ ।’ और उ्हंन यह सुना और व वापस ल ट आए और उ्हंन घर जाकर कहा कक ‘अब मुज्कल ह, आज उपदश लमल
गया। आज सुनायी पड़ गया कक राजा बाबू, कब तक स ए रह ग! अब त सुबह भी ह गयी, अब उठ ।’ त उ्हंन कहा, ‘आज त बस
बात समा्त ह गयी।’
अब यह ककसी ्री न न मालूम ककस ब्च क सुबह उठान क ललए कहा था, लककन जजसक पास आंख थी, उसक ललए उपदश बन
गया। और यह ह सकता ह कक क ई आपक ही उपदश द रहा ह और आपक पास कान और आंख न हं, और आप बठ सन
ु त रहं ,
और समझं कक शायद ककसी और स कहता ह गा।
त सद का संपकज, सद की आकांषा, सद की तलाश, अ्वष् और सदववचारं का जीवन मं रवश, रकृतत का साज्न्य, य सदववचार क
ललए, शु्ध ववचार क ललए उपय गी शतं और भूलमकाएं हं।
भाव क संबंध मं कल मं बात करंगा कक भाव-शु्चध क ललए हम ्या करं । अब राबर क ्यान क ललए थ ड़ी-सी बात समझ लं और
कफर हम राबर क ्यान क ललए बठं ग।
राबर क ्यान क ललए सबस पहल त हम संक्प करं ग, जसा सुबह क ्यान मं ककया। पांच बार संक्प करं ग। कफर पांच बार क
बाद थ ड़ी दर तक जस सुबह भाव ककया, वसा भाव करं ग। उसक बाद सब ल ग लट जाएंग। सब ल ग पहल ही स लट जाएंग।
अपनी-अपनी जगह पर चप
ु चाप लट जाएंग। लटन क बाद अंधकार ह जाएगा। कफर हम अपन शरीर क लशचथल करं ग। पीि ज
लशववर मं थ, वहां हमन शरीर क इक्ठा लशचथल ककया था। ह सकता ह, कुि ल गं का इक्ठा लशचथल नहीं ह पाता ह, इसललए
उनक ललए और सरल रा्ता मं सुझाता हूं।
शरीर मं य ग की ृज्ट स सात चर ह त हं। शरीर मं य ग की ृज्ट स सात चर ह त हं। उन सात चरं मं स पांच का रय ग हम
इस ्यान क ललए करं ग। सबस ज राथलमक चर ह, वह मल
ू ाधार कहलाता ह, वह जननंदरय क करीब ह ता ह। वह पहला चर ह,
जजसका हम रय ग करं ग अभी इस राबर क ्यान मं । दस
ू रा चर ह, ्वाचध्ठान चर। वह नालभ क करीब मान ल सकत हं। अभी
क्पना मं समझ लं। जननंदरय क करीब ज चर ह, उसका नाम मल
ू ाधार। नालभ क पास ज चर ह, उसका नाम ्वाचध्ठान। और
ऊपर चलं , दय क पास ज चर ह, उसका नाम अनाहत। और ऊपर चलं, माथ क पास ज चर ह, उसका नाम आञा। और ऊपर चलं ,
च टी क पास ज चर ह, उसका नाम सहरार।
इन पांच का हम उपय ग करं ग। यूं चर त सात हं, और भी ्यादा हं। इन पांच का हम उपय ग करं ग और इनक उपय ग क साथ
हम शरीर क लशचथलता की तरफ ल जाएंग। और आप हरान हंग, मूलाधार ज चर ह, उसका तनयंर् आपक परं पर ह। हम सुझाव
दं ग मूलाधार चर क । जब आप लट जाएंग, त मं कहूंगा, मूलाधार चर पर ्यान क ल जाइए। त आप अपन भीतर जननंदरय क
करीब मूलाधार चर क पास ्यान क ल जाएंग, वहां ब ध रखं ग। कफर मं कहूंगा, मूलाधार चर क लशचथल ि ड़ दीजजए और उसक
साथ ही द नं टांगं क लशचथल ि ड़ दीजजए। आप भीतर भाव करं ग कक मूलाधार चर लशचथल ह रहा ह, मूलाधार चर लशचथल ह रहा
ह और पर लशचथल ह त जा रह हं। आप थ ड़ी ही दर मं पाएंग कक पर द नं मरु द की तरह लटककर लशचथल ह गए हं।
कफर हम और ऊपर बढ़ं ग और दय क पास आएंग और मं कहूंगा, अनाहत चर लशचथल ह रहा ह। तब आप दय क लशचथल ि ड़ंग
और अनाहत पर ्यान रखंग, उस जगह, दय क पास और भावना करं ग कक अनाहत लशचथल ह रहा ह, त िाती का पूरा का पूरा
यंर और सं्थान लशचथल ह जाएगा।
कफर हम ऊपर आएंग और माथ क पास द नं आंखं क बीच मं आञा चर ह, उसका अंदर भाव करं ग कक आञा क पास हमारा ्यान
ह, ृज्ट ह। और मं कहूंगा, आञा चर लशचथल ह रहा ह और मज्त्क लशचथल ह रहा ह। उसक साथ सारा मज्त्क, गदज न, सार लसर
का दह्सा एकदम लशचथल ह जाएगा। तब आपक लसफज च टी क पास थ ड़ी-सी धक-धक और भार मालम ू पड़गा, सारा शरीर लशचथल
ह जाएगा। लसफज च टी क पास आपक थ ड़ा-सा भार और धक-धक मालम
ू पड़गा।
अंततम रप स मं कहूंगा, सहरार चर–तब आप लसर क ऊपर ्यान ल जाएंग च टी क पास–वह लशचथल ह रहा ह। और उसक साथ
सारा मज्त्क लशचथल ह रहा ह। तब भाव करन स आप पाएंग कक भीतर भी सब लशचथल ह जाएगा।
इसक लंबी रकरया मं ककया, ताकक यह हरक क ललए ह ही जाए कक उसका शरीर बबलकुल मत
ृ ह जाए। इन पांच चरं पर सुझाव
दं ग
ू ा। और जब यह सब लशचथल ह जाएगा, तब मं आपस कहूंगा कक अब शरीर बबलकुल मुरदा ह गया, अब उसक ि ड़ दं , त उस
बबलकुल ि ड़ दं । शरीर मुरदा ह गया ह। कफर मं कहूंगा, ्वास आपकी लशचथल ह रही ह, शांत ह रही ह। थ ड़ी दर उसका सुझाव
दं ग
ू ा। उसक बाद सुझाव दं ग
ू ा कक मन बबलकुल शू्य ह रहा ह। य तीन सुझाव दं ग–पहल चरं क ललए, दस
ू रा रा्-्वास क ललए
और तीसरा ववचार क ललए।
इस पूरी रकरया मं करन क बाद आपस कहूंगा, दस लमनट क ललए सब शू्य ह गया। उस शू्य मं आप भीतर पड़ हुए, लसफज ब ध
मार आपका रहगा, एक ्य तत जलती रहगी ब ध की और आप चप ु चाप पड़ रहं ग। लसफज वह ब ध मार रहगा, लसफज ह श भर रहगा कक
मं पड़ा हूं। इसमं यह ह सकता ह कक शरीर जब बबलकुल मरु दा-सा मालम
ू ह न लग–ज कक मालम
ू ह गा, ्यंकक चरं क रय ग क
साथ शरीर एकदम मरु दा ह गा–त घबराना नहीं ह ककसी क । अगर ऐसा लगन लग कक शरीर बबलकुल मरु दा ह, त घबराना नहीं ह।
यह बड़ा शभ
ु ह। यह बहुत शभ
ु ह। ज जीत जी अपन शरीर क मरु दा ह न क अनभ ु व कर लगा, वह धीर-धीर म्ृ यु क भय स म्ु त
ह जाता ह। त उसमं घबराना नहीं ह। क ई भी अनभ
ु तू त मालम
ू ह , क ई रकाश, आल क मालमू ह , शांतत मालम
ू ह , उसक चपु चाप
दखत रहना ह और शांत श्
ू य मं पड़ रहना ह। यह अतनवायज ह, इन तीन रकरयाओं मं –संक्प, भाव और कफर ्यान–यह राबर का
्यान ह गा।
मं समझता हूं, आप मरी बात समझ गए हंग। त अब सब इतन दरू बठ जाएं ल ग कक पहल त हम अपनी जगह बना लं कक आप
लट सकंग। सब इतन दरू बठ जाएं। सारी जगह का उपय ग कर लं। क ई बठा हुआ नहीं रहगा।
आजइतनाही।
्यान–सर
ू (ओश )रवचन–पांचवां
मरररयआ्मन ्,
साधना की पररचध भलू मका क संबंध मं हमन द चर्ं पर बातं की हं, शरीर-श्
ु चध और ववचार-श्
ु चध। शरीर और ववचार स भी गहरा
तल भाव का, भावनाओं का ह। भाव की श्
ु चध सवाजचधक मह्वप्
ू ज त्व ह। पररचध की भलू मका और साधना मं शरीर और ववचार
द नं स ्यादा भाव की श्
ु चध की उपय चगता ह।
यह इसललए कक मन्ु य ववचार स बहुत कम जीता ह, मन्ु य भाव स ्यादा जीता ह। यह कहा जाता ह कक मन्ु य एक रशनल
एतनमल ह, एक ब ्चधक रा्ी ह। यह बात उतनी सच नहीं ह। आप अपन जीवन मं ववचार करक बहुत कुि, बहुत कुि नहीं करत
हं। आप अचधक ज करत हं, वह भाव स रभाववत ह ता ह। आप ज घ्
ृ ा करत हं, आप ज र ध करत हं, आप ज रम करत हं, वह
सब भावनाओं स संबंचधत ह ता ह, ववचारं स संबंचधत नहीं।
जीवन की अचधकतर चयाज भाव क जगत स उदभूत ह ती ह, ववचार क जगत स नहीं। इसललए यह भी आपन दखा ह गा कक आप
ववचार कुि करत हं, लककन समय पर काम कुि और कर जात हं। उसका कार् ववचार और भाव मं लभ्न ह ना ह ता ह। आप तय
करत हं कक मं र ध नहीं करंगा। आप ववचार करत हं कक र ध बुरा ह। लककन जब र ध आपक पकड़ता ह, त आपका ववचार एक
तरफ पड़ा रह जाता ह और र ध ह जाता ह।
जब तक भाव क जगत मं पररवतजन न ह , कवल ववचार क जगत मं स च-ववचार स क ई रांतत जीवन मं नहीं ह ती ह। इसललए बहुत
आधारभत
ू , पररचध-साधना मं ज सबस आधारभत
ू बबंद ु ह, वह भावनाओं का ह, वह भावं का ह। भाव की श्
ु चध या शु्ध भावं का
रवतजन कस ह , इस संबंध मं आज सब
ु ह हम ववचार करं ।
भाव की ज ववलभ्न ददशाएं हं, उनमं चार पर मं सवाजचधक ज र दना पसंद करंगा। चार त्वं की बात करंगा, जजनक मा्यम स भाव
शु्ध ह सकत हं। व ही चार त्व ववपरीत ह कर अशु्ध भावं क ज्मदाता बन जात हं। व चार भाव; उनमं रथम ह मरी, ्ववतीय
ह कु्ा। रथम मरी, ्ववतीय कु्ा, तत
ृ ीय रमुददता और च था कृतञता।
यह हम ववचार करं कक हमारी भाव की पररचध ककन बातं स रभाववत ह ती ह और संचाललत ह ती ह। ्या हमार जीवन मं मरी की
जगह वर, वमन्य ्यादा रमुख ह? ्या हम मरी की बजाय द्ु मनी स, शरत
ु ा स ्यादा संचाललत ह त हं? ्या हम ्यादा रभाववत
ह त हं? ्या हम ्यादा सकरय ह जात हं? ्या हमार भीतर शज्त का उदभव ्यादा ह ता ह?
जसा मंन पीि कहा, र ध मं शज्त ह। लककन मरी मं भी शज्त ह। और ज कवल र ध की ही शज्त क पदा करना जानता ह, वह
जीवन क एक बहुत बड़ दह्स स वंचचत ह। जजसन मरी की शज्त क जगाना नहीं जाना, ज कवल शरत
ु ा मं ही शज्तमान ह ता ह
और मरी की अव्था मं लशचथल ह जाता ह…।
यह आपक पता ह गा, दतु नया क सार रा्् शांतत क ददनं मं कमज र ह जात हं और य्
ु ध क ददनं मं शज्तशाली ह जात हं।
्यं? ्यंकक मरी की शज्त पदा करना हमं पता नहीं ह। शांतत हमार ललए शज्त नहीं ह, अशज्त ह। और यही वजह ह कक भारत
जस म्ु क, जज्हंन शांतत की बहुत चचाज की, रम की बहुत चचाज की, व शज्तहीन ह गए। ्यंकक शज्त पदा करन का सामा्यतया
एक ही रा्ता ह, शरत
ु ा।
दहटलर न अपनी आ्मकथा मं ललखा ह, अगर ककसी रा्् क शज्तमान बनाना ह, त या त स्च द्ु मन या झूठ द्ु मन पदा कर ।
अपन मु्क क समझाओ कक द्ु मन आस-पास हं, चाह व न हं। और जब उनक यह ब ध ह गा कक द्ु मन आस-पास हं, शज्त का
और ऊजाज का ज्म ह गा। इसललए दहटलर न बबलकुल झूठ द्ु मन खड़ ककए, यहूदी, जजनस क ई मतलब न था। और दस वषज उसन
रचार ककया और सार मु्क क समझा ददया कक यहूदी द्ु मन हं और इनस बचाव करना ह, और शज्त पदा ह गयी।
जमजनी की सारी शज्त वमन्य स पदा हुई। जापान की सारी शज्त वमन्य स पदा हुई। आज स ववयत रस की या अमररका की
सारी शज्त वमन्य पर ह। अभी तक मनु्य का इततहास कवल शरत ु ा की शज्त क पदा करना जानता ह। लमरता की शज्त का
हमं पता नहीं।
महावीर और ब्
ु ध न और राइ्ट न लमरता की शज्त की पहली बतु नयादं रखी हं। और उ्हंन ज कहा, अदहंसा शज्त ह, या
राइ्ट न कहा कक रम शज्त ह, या ब्
ु ध न कहा कक कु्ा शज्त ह, यह हम सन
ु त हं, लककन हमं पता नहीं।
त मं आपक कहूं, अपन जीवन मं ववचार करं , आप कब शज्तशाली अनुभव करत हं? जब आप ककसी स शरत ु ा मं ह त हं तब? या
जब आप ककसी क रतत शांत और रम स भर ह त हं तब? त आपक ञात ह गा, आप शरत ु ा की ज्थतत मं शज्तशाली ह त हं; और
जब आप शांत, अवर की ज्थतत मं ह त हं, त आप अश्त और कमज र ह जात हं।
इसका अथज ह कक आप एक अशु्ध भाव स रभाववत ह त हं। यह अशु्ध भाव की जजतनी रगाढ़ता हमार भीतर ह गी, उतना हम
भीतर रवश नहीं कर सकंग। ्यं भीतर रवश नहीं कर सकंग? बड़ा मह्वपू्ज ह यह बबंद ु समझ लना।
शरत
ु ा हमशा बदहकंदरत ह ती ह। यातन क ई ्यज्त बाहर ह ता ह, उसस शरत
ु ा ह ती ह। अगर बाहर क ई ्यज्त न ह , त आपमं
शरत
ु ा नहीं ह सकती। और मं आपक यह कहूं, रम बदहकंदरत नहीं ह ता। अगर बाहर क ई भी न ह , त भी भीतर रम ह सकता ह।
रम अंतःकंदरत ह ता ह, मरी अंतःकंदरत ह ती ह। और शरत
ु ा पर-कंदरत ह ती ह, वह दस
ू र स संबंचधत ह ती ह। घ्
ृ ा बाहर स
पररचाललत ह ती ह, रम भीतर स उदभाववत ह ता ह। रम क झरन भीतर स बहत हं। घ्
ृ ा की रततकरया बाहर स पदा ह ती ह।
अश्
ु ध भाव बाहर स पररचाललत ह त हं, श्
ु ध भाव भीतर स बहत हं। अश्
ु ध और श्
ु ध भाव क भद क ठीक स समझ लं ।
ज भाव बाहर स पररचाललत ह त हं, व शु्ध नहीं हं। त वह रम, वह पशन, जजसक हम रम कहत हं, शु्ध नहीं ह, ्यंकक वह बाहर
स पररचाललत ह। वही रम शु्ध ह, ज भीतर स रवादहत ह, बाहर स पररचाललत नहीं। इसललए हम अपन मु्क मं रम क और म ह
क अलग कर दत हं। पशन क , वासना क और रम क हम अलग कर दत हं। वासना बाहर स पररचाललत ह।
उस व्या न कहा, ‘द ष् क अगर मर भवन क भीतर न गए, त मर मन का बहुत अपमान ह गा। द ष् ुक ।’ और उस व्या
न कहा, ‘यह पहला म का ह कक मं ककसी क आमंबरत कर रही हूं। ल ग मर ्वार आत हं और वापस ल टा ददए जात हं। यह पहला
म का ह जीवन मं , मं ककसी क आमंबरत कर रही हूं।’ राइ्ट न कहा, ‘तम
ु न कहा त समझ कक मं आ ही गया। लककन रा्ता मरा
लंबा ह, मुझ जान द ।’ राइ्ट न कहा, ‘तुमन कहा त समझ कक मं आ ही गया।’ उस व्या न कहा, ‘इसस मुझ बड़ी पीड़ा ह गी।
इसका अथज ह गा, आप इतना भी रम नहीं ददखा सकत कक मर भवन मं भीतर चल सकं!’ राइ्ट न कहा, ‘्मर् रखना, मं अकला
आदमी हूं, ज तु्हं रम कर सकता ह। और जजतन ल ग तु्हार ्वार आए, व क ई रम नहीं करत हं।’ राइ्ट न कहा, ‘मं अकला
आदमी हूं, ज त्ु हं रम कर सकता ह। और ज तु्हार ्वार आए, व तु्हं क ई रम नहीं करत हं। ्यंकक उनक पास रम नहीं ह, व
तु्हार कार् आए हं। और मर भीतर रम ह।’
रम दीए क रकाश की भांतत ह। अगर क ई भी यहां न ह , त रकाश शू्य मं चगरता रहगा और क ई तनकलगा त उस पर पड़
जाएगा। और वासना और म ह रकाश की भांतत नहीं हं। व ककसी स रभाववत हंग, त खखंचत हं। इसललए वासना एक तनाव ह, एक
टं शन ह। रम तनाव नहीं ह, रम मं क ई तनाव नहीं ह। रम अ्यंत शांत ज्थतत ह।
अश्
ु ध भाव व हं, ज बाहर स रभाववत ह त हं। अश्
ु ध भाव व हं , जजनकी तरं गं बाहर की हवाएं आपमं पदा करती हं। और श्
ु ध
भाव व हं, ज आपस तनकलत हं; बाहर की हवाएं जज्हं रभाववत नहीं करतीं।
महावीर क और बु्ध क कभी हम इस भाषा मं नहीं स चत हं कक व रम करत थ। मं आपक यह कहूं, व ही अकल ल ग हं, ज
रम करत हं। लककन उस रम मं और आपक रम मं फकज ह। आपका रम एक संबंध ह ककसी ्यज्त स। उनका रम संबंध नहीं ह,
्टट आफ माइंड ह, ्टट आफ ररलशनलशप नहीं ह। उनका रम क ई संबंध नहीं ह ककसी स। उनका रम उनक चचत की अव्था ह।
यातन व रम करन क मजबूर हं, ्यंकक उनक पास कुि और करन क नहीं ह।
ल ग कहत हं, महावीर क ल गं न अपमातनत ककया, प्थर मार, कान मं खील ठंक और उ्हंन सब कुि षमा कर ददया। मं कहता
हूं, व गलत कहत हं। महावीर न ककसी क षमा नहीं ककया। ्यंकक षमा व ल ग करत हं, ज रु्ध ह जात हं। और महावीर न उन
पर क ई दया नहीं की। ्यंकक दया व ल ग करत हं, ज रूर ह त हं। और महावीर न क ई स च-ववचार नहीं ककया कक मं इनक साथ
बुरा ्यवहार न करं। ्यंकक यह स च-ववचार व ल ग करत हं, जजनक मन मं बुर ्यवहार का खयाल आ जाता ह।
कफर महावीर न ्या ककया? महावीर मजबूर हं, रम क लसवाय उनक पास दन क कुि भी नहीं ह। आप कुि भी कर , उतर मं रम ही
आ सकता ह। आप एक फलं स लद हुए दर्त क प्थर मार , उतर मं फल ही चगर सकत हं। और क ई रा्ता नहीं ह। इसमं
दर्त कुि भी नहीं कर रहा ह, यह मजबूरी ह। और आप जल स भर हुए झरन मं कसी ही बाज्टयां फंक , व गंदी हं या सुंदर हं,
या ्व्ज की हं या ल ह की हं, इसक लसवाय क ई रा्ता नहीं ह कक झरना आपक पानी द द। इसमं झरन की क ई खब ू ी नहीं ह;
मजबूरी ह। त जब रम चचत की अव्था ह ती ह, तब वह एक वववशता ह ती ह, उस दना ही पड़गा, उसक लसवाय क ई रा्ता नहीं ह।
त व भाव, ज भीतर स तनकलत हं, जजनक आप बाहर स खींचत नहीं, जज्हं आप बाहर स नहीं खींच सकत हं, व भाव शु्ध हं। और
व भाव, ज बाहर क तूफान आपमं लहरं की तरह पदा करत हं, व अशु्ध हं। ज बाहर स पदा ककए जाएंग, व आपमं बचनी और
परशानी पदा करं ग; और ज भीतर स तनकलंग, व आपक बहुत आनंद स भर जाएंग।
श्
ु ध और अशु्ध भाव क ललए पहली बात यह ्मर् रखं। श्
ु ध भाव चचत की अव्था ह। अश्
ु ध भाव चचत की ववकृतत ह,
अव्था नहीं। अश्
ु ध भाव चचत पर बाहर का परर्ाम ह; श्
ु ध भाव चचत पर अंतस का ववकास ह। त अपन जीवन मं यह ववचार
करं कक मं जजन भावनाओं स संचाललत ह ता हूं, व मर भीतर स आत हं या दस
ू र ल ग मझ
ु मं पदा करत हं?
मं रा्त पर जा रहा हूं और आप मुझ एक गाली दत हं, और अगर मुझ र ध पदा हुआ ह, यह अशु्ध भाव ह। ्यंकक आपन मुझमं
पदा ककया। मं रा्त स जा रहा हूं और आप मुझ आदर करत हं, और मं रस्न हुआ। यह अशु्ध भाव ह। ्यंकक यह आपन मुझमं
पदा ककया ह। मं रा्त स जा रहा हूं, आप गाली दत हं या कक आप मरी रशंसा करत हं और मरी अव्था वही बनी रहती ह ज कक
थी, गाली दन क पहल या रशंसा करन क पहल, वह शु्ध भाव ह। ्यंकक आपन उस पदा नहीं ककया ह; वह मरा ह।
ज मरा ह, वह शु्ध ह। ज मरा ह, वह शु्ध ह; और ज बाहर स आता ह, वह अशु्ध ह। बाहर स ज आता ह, वह ररए्शन ह, वह
रतत्वतन ह।
हम वहां एक इक ्वाइंट दखन गए थ पीि। और वहां आवाज कररए, त वहां स पहाड़ उसक द हरा दत थ। मंन कहा कक हममं स
अचधक ल ग इक ्वाइंट हं। आप कुि कदहए, व द हरा दत हं। उनक पास अपना कुि नहीं ह, व खाली पहाड़ हं। आप कुि चच्लाइए,
वहां स भी चच्लाहट ल टती ह। वह उनकी नहीं ह। वह आपन पदा की थी। और आपन ज पदा की थी, वह आपकी नहीं थी; वह
ककसी दस
ू र न आपमं पदा की थी।
हम सब इक ्वाइंट हं। और हमार पास अपनी क ई आवाज नहीं ह और अपना क ई जीवन नहीं ह, अपना क ई भाव नहीं ह। हमार
सब भाव अशु्ध हं , ्यंकक व दस
ू रं क हं , उधार हं।
मरी साधनी ह गी। मरी इसललए साधनी ह गी, ्यंकक मरी का ज शज्त बबंद ु ह हमार भीतर, उसक ववकलसत ह न क जीवन बहुत
कम म क दता ह। वह अववकलसत पड़ा रहता ह, वह बीज की तरह हमार मन भूलम मं पड़ा रहता ह, ववकलसत नहीं ह पाता। शरत
ु ा का
बीज एकदम ववकलसत ह जाता ह। ्यं? उसक भी राकृततक कार् हं, वह भी जररत ह। वह जररत जरर ह, लककन जीवनभर की
संगी और साथी ह न की जररत नहीं ह। उसकी एक ददन जररत ह, एक ददन उस ि ड़ दन की भी जररत ह।
ब्चा जब पदा ह ता ह, पदा ह त स ही वह ज अनुभव करता ह, पदा ह त स ज उस अनुभव ह ता ह, वह रम का नहीं ह ता। ब्च
क पदा ह त स ही ज अनुभव ह ता ह, वह भय का, कफयर का ह ता ह। और ्वाभाववक ह, एक ि टा-सा ब्चा, ज मां क पट मं बड़ी
्यव्था और सुववधा मं था, जहां क ई अड़चन न थी, क ई परशानी न थी। भ जन कमान की, पानी पीन की क ई चचंता न थी। वहां
वह बड़ी ही सुखद तनरा मं स या हुआ था और जी रहा था। जब वह मां क पट क बाहर आता ह, एक ि टा-सा ब्चा, सब तरह स
कमज र, उस ज पहला अनुभव, ज पहला आघात ह ता ह, वह भय का ह ता ह। और अगर भय का आघात ह , त जजनक वह दखता
ह, उनक रतत रम पदा नहीं ह ता, उनस डर पदा ह ता ह। और जजनस डर पदा ह ता ह, उनक रतत घ्
ृ ा पदा ह ती ह।
इस तनयम समझ लं। भय कभी रम नहीं पदा करता ह। ककसी न अगर कहा ह कक भय क बबना रीतत नहीं ह ती, त बबलकुल गलत
कहा ह। भय ह त रीतत ह ही नहीं सकती। भय मं कभी रीतत नहीं ह ती। और ऊपर स रीतत अगर ददखायी भी जाए, त भीतर
अरीतत ह ती ह।
इस दतु नया मं जजतनी रीतत हम दखत हं, वह अचधकतर भय पर खड़ी हुई ह। और भय पर ज रीतत खड़ी हुई ह, वह झूठी ह। इसललए
ऊपर स रीतत रहती ह और भीतर स घ् ृ ा सरकती रहती ह। हम जजन-जजन क रम करत हं, उ्हीं क घ्
ृ ा भी करत हं। ्यंकक
रीतत ऊपर ह ती ह, घ्
ृ ा नीच ह ती ह, ्यंकक हम उनस भयभीत ह त हं।
्मर् रखं , ज ्यज्त ककसी क भयभीत कर रहा ह, वह अपन रम पान क अवसर ख रहा ह। अगर वपता अपन पुर क भयभीत
कर रहा ह, वह उसक रम क नहीं पा सकगा। अगर पतत अपनी प्नी क भयभीत कर रहा ह, वह उसक रम क नहीं पा सकगा। वह
रम का अलभनय पा सकता ह, रम नहीं पा सकगा। ्यंकक रम कवल अभय मं ववकलसत ह ता ह, भय मं ववकलसत नहीं ह ता।
इसललए मरी का और रम का हमार भीतर ज बबंद ु ह, उस ववकलसत करना ह गा, सारी रकृतत क खखलाफ ववकलसत करना ह गा,
्यंकक रकृतत उस ववकलसत ह न का म का नहीं दती ह। ज आप जीवन पात हं, वह उस म का नहीं दता। उसमं कवल शरत
ु ा
ववकलसत ह ती ह। और जजसक हम मरी कहत हं, वह मरी कवल औपचाररकता ह ती ह और लश्टाचार ह ती ह। वह मरी कवल एक
्यव्था ह ती ह शरत
ु ा स बचन की, शरत
ु ा क पदा न कर लन की। लककन वह मरी नहीं ह ती। मरी बड़ी अलग बात ह।
उस बबंद ु क कस ववकलसत करं ? कस हमार भीतर मरी का भाव पदा ह ना शुर ह ? उसका भाव करना ह गा। मरी का सतत भाव
करना ह गा। ज भी हमार चारं तरफ ल ग हं, उनक रतत मरी का संदश भजना ह गा, मरी की ककर्ं भजनी हंगी। और अपन भीतर
उस मरी क बबंद ु क तनरं तर सच्ट करना ह गा और सकरय करना ह गा।
जब आप नदी क ककनार बठ हं, त नदी की तरफ रम भजजए। इसललए नदी का नाम ल रहा हूं कक ककसी आदमी की तरफ रम
भजन मं थ ड़ी दद्कत ह सकती ह। एक दर्त क रतत रम भजजए। इसललए दर्त की बात कह रहा हूं कक एक आदमी की तरफ
भजन मं थ ड़ी कदठनाई ह सकती ह। सबस पहल रकृतत की तरफ रम भजजए। रम का बबंद ु सबस पहल रकृतत की तरफ ववकलसत
ह सकता ह। ्यं? ्यंकक रकृतत आप पर क ई च ट नहीं कर रही ह।
पुरान ददनं मं , अदभुत ल ग थ, सार जगत क रतत रम का संदश भजत थ। सुबह सूरज ऊगता था, त हाथ ज ड़कर उस नम्कार कर
लत थ। और उस कहत कक ‘ध्य ह । और त्
ु हारी कु्ा अपार ह कक तुम हमं रकाश दत और तम
ु हमं र शनी दत।’
यह पूजा क ई पगतन्म नहीं था, यह पूजा क ई नासमझी नहीं थी। इसमं अथज थ, इसमं बड़ अथज थ। ज ्यज्त सूरज क रतत रम
स भर जाता था, ज ्यज्त नदी क मां कहकर रम स भर जाता था, ज जमीन क माता कहकर उसक ्मर् स रम स भर जाता
था, यह असंभव था कक वह आदलमयं क रतत अरम स भरा हुआ ्यादा ददन रह जाए। यह असंभव ह। अदभुत ल ग थ, उ्हंन सारी
रकृतत की तरफ रम क संदश भज थ। और सब तरफ पूजा और रम और भज्त क ववकलसत ककया था।
जररत ह इसकी। अगर रम का अंकुर भीतर पदा करना ह, त सबस पहल उसका संदश रकृतत की तरफ भजना ह गा। हम त ऐस
अजीब ल ग हं कक रात परू ा चांद भी ऊपर खड़ा रहगा और हम नीच बठकर ताश खलत रहं ग और रमी खलत रहं ग। और हम दहसाब-
ककताब लगात रहं ग कक एक ुपया हार गए हं या एक ुपया जीत गए हं! और चांद ऊपर खड़ा रहगा और रम का एक इतना अदभुत
अवसर ्यथज ख जाएगा।
चांद आपक उस कंर क जगा सकता था। अगर चांद क पास द ष् मंरमु्ध बठकर आपन रम का संदश भजा ह ता, त उसकी
ककर्ं न आपक भीतर क ई बबंद ु सकरय कर ददया ह ता, क ई त्व, और आप रम स भर गए ह त।
चारं तरफ म क हं। चारं तरफ म क हं, यह पूरी रकृतत बहुत अदभुत चीजं स भरी हुई ह। उनकी तरफ रम कररए। और रम का
क ई भी म का आ जाए, उस खाली मत जान दीजजए, उसका उपय ग कर लीजजए। उसका उपय ग इसललए कक अगर रा्त स आप जा
रह हं और एक प्थर पड़ा ह, त उस हटा दीजजए। यह बबलकुल मु्त मं लमला हुआ उपय ग ह, ज आपक जीवन क बदल दगा। यह
बबलकुल स्ता-सा काम ह। इसस स्ती और साधना ्या ह गी कक आप रा्त स तनकल हं और एक प्थर पड़ा था और आपन
उठाकर उस ककनार रख ददया ह। न मालूम क न अपररचचत वहां स तनकलगा! और न मालूम क न अपररचचत उस प्थर स च ट
खाएगा! आपन रम का एक कृ्य ककया ह।
मं आपक इसललए कह रहा हूं, बड़ी ि टी-ि टी बातं जजंदगी मं रम क त्व क ववकलसत करती हं, बहुत ि टी-ि टी बातं । एक रा्त
पर एक ब्चा र रहा ह। आप चल जात हं। आप खड़ ह कर द ष् उसक आंसू नहीं पंि सकत!
अरादहम ललंकन एक सीनट की बठक मं अपनी जा रहा था, बीच मं एक सूअर फंस गया एक नाली मं । वह भागा हुआ गया और
उसन कहा कक ‘सीनट क थ ड़ी दर र कना। मं अभी आया।’ यह बड़ी अजीब बात थी। अमररका की संसद शायद ही कभी ुकी ह इस
तरह स। वह वापस ल टा, उसन सूअर क तनकाला। उसक सब कपड़ लमड़ गए कीचड़ मं । उस नाली स बाहर तनकालकर उसन रखा,
कफर वह अंदर गया। ल गं न पूिा, ‘्या बात थी? इतन आप घबराए हुए काम र ककर बाहर ्यं गए!’ त उसन कहा, ‘एक रा्
संकट मं था।’
यह रम का ककतना सरल-सा कृ्य था, लककन ककतना अदभुत ह। और य ि टी-ि टी बातं …। अब मं दखता हूं, ऐस ल ग हं, ज
इसललए पानी िानकर पीएंग कक क ई कीड़ा न मर जाए, लककन उनक मन मं रम नहीं ह। त उनका पानी िानना बकार ह। वह
उनक ललए बबलकुल ही मकतनकल हबबट की बात ह कक व पानी िानकर पीत हं; कक व रात क खाना नहीं खात, ्यंकक क ई कीड़ा
न मर जाए। लककन उनक दय मं रम नहीं ह, त इसस क ई मतलब नहीं ह।
मतलब इसस नहीं ह कक पानी िानकर पीत हं, कक रात क खाना नहीं खात हं; कक मांसाहार नहीं करत हं, इसस भी मतलब नहीं ह।
एक रा्म् या एक जन या एक ब ्ध मांसाहार नहीं करगा, त यह मत समझना कक उसका मन रम स भरा हुआ ह। यह कवल
आदत की बात ह, यह कवल वंश-परं परागत सुनी हुई बात ह, समझी हुई बात ह। लककन उसक मन मं रम नहीं ह।
त जीवन मं बड़ ि ट-ि ट काम हं , बड़ ि ट-ि ट काम हं। और हम भूल ही गए हं। यातन मं आपस यह कहता हूं, जब आप ककसी क
कंध पर हाथ रखत हं, त अपन सार दय क रम क अपन हाथ स उसक पास भजं। अपन सार रा् क , अपन सार दय क उस
हाथ मं संकललत ह न दं और जान दं । और आप हरान हंग, वह हाथ जाद ू ह जाएगा। और जब आप ककसी की आंख मं झांकत हं, त
अपनी आंखं मं अपन सार दय क उं डल दं । और आप हरान ह जाएंग, व आंखं जाद ू ह जाएंगी और व ककसी क भीतर कुि दहला
दं गी। न कवल आपका रम जागगा, बज्क ह सकता ह कक दस
ू र क रम जगन क भी आप उपाय और ्यव्था कर दं । जब क ई
एक ठीक स रम करन वाला आदमी पदा ह ता ह, त लाखं ल गं क भीतर रम सकरय ह जाता ह।
य मरी और रम क बबंद ु क उठान क ललए ज भी आपक म का लमल, उस मत ख एं। और उसक म का लमलन क ललए एक सूर
याद रखं। तनयलमत च बीस घंट मं यह ्मर् रखं कक एक-द काम ऐस जरर करं , जजनक बदल मं आपक कुि भी नहीं लना ह।
च बीस घंट हम काम कर रह हं। उन कामं क हम इसललए कर रह हं कक बदल मं हम कुि चाहत हं। च बीस घंट मं तनयमपूवक
ज
कुि काम ऐस करं , जजनक बदल मं आपक कुि भी नहीं लना ह। व काम रम क हंग और आपक भीतर रम क पदा करं ग। अगर
एक ्यज्त ददन मं एक काम भी ऐसा कर जजसक बदल मं उसकी क ई आकांषा नहीं ह, उसका उस बहुत बड़ा बदला लमल जाएगा,
्यंकक उसक भीतर रम का कंर सकरय ह जाएगा और ववकलसत ह गा।
त कुि करं , जजसक बदल मं आपक कुि भी नहीं चादहए; कुि भी नहीं चादहए। उसस मरी धीर-धीर ववकलसत ह गी। एक घड़ी आएगी
कक आप कवल उनक रतत मरीप्
ू ज ह पाएंग, ज आपक रतत शरत
ु ाप्
ू ज नहीं हं। कफर और ववकास ह गा और एक घड़ी आएगी, आप
उनक रतत भी मरीप्
ू ज ह सकंग, ज आपक रतत शरत
ु ाप्
ू ज हं। और एक घड़ी आएगी, कक आपक समझ मं नहीं आएगा कक क न
लमर ह और क न शरु ह।
महावीर न कहा ह, ‘लमवत म स्ब भुएषु वरं म्झ न कवई। सब मर लमर हं और ककसी स मरा वर नहीं ह।’
यह क ई ववचार नहीं ह, यह भाव ह। यातन यह क ई स च-ववचार नहीं ह, यह भाव की ज्थतत ह कक क ई मरा शरु नहीं ह। और क ई
मरा शरु नहीं, यह कब ह ता ह? जब मं ककसी का शरु नहीं रह जाता हूं। यह त ह सकता ह कक महावीर क कुि शरु रह हं, लककन
महावीर कहत हं, क ई मरा शरु नहीं ह। इसका मतलब ्या ह? इसका मतलब ह, मं ककसी का शरु नहीं। और महावीर कहत हं, मरा
वर ककसी क रतत नहीं ह। ककतन आनंद की घटना नहीं घटी ह गी!
आप एक ्यज्त क रम कर लत हं, ककतना आनंद उपल्ध ह ता ह। और जजस ्यज्त क सार जगत क रम करन की संभावना
खल
ु जाती ह गी, उसक आनंद का क ई दठकाना ह! यह स दा महं गा नहीं ह। आप ख त कुि नहीं हं और पा बहुत लत हं।
इसललए मं महावीर क , बु्ध क ्यागी नहीं कहता हूं। इस जगत मं सबस बड़ा भ ग उ्हीं ल गं न ककया ह। इस जगत मं सबस
बड़ा भ ग उ्हीं ल गं न ककया ह। ्यागी आप ह सकत हं , व नहीं। आनंद क इतन अपररसीम अनंत ्वार उ्हंन ख ल। इस जगत
मं ज भी र्ठतम था, ज भी सुंदर था, ज भी शुभ था, सबक उ्हंन पीया और जाना। और आप ्या जान रह हं? लसवाय जहर क
आप कुि भी नहीं जान रह हं। और उ्हंन अमत
ृ क जाना।
त मं आपक यह कहूं कक रम की वह अंततम चरम घड़ी, जब हम सार जगत क रतत रम क वव्ती्ज कर पात हं और हमार दय
स ककर्ं बहती रहती हं, उसक ललए जीवन क साधना ह गा। क ई कृ्य रम का र ज जरर करं , सचत करं । और सार ददन हजार
म क हं, जब आप रम जादहर कर सकत हं। लककन आदतं हमारी खराब हं। रम जादहर करन क सार म क हम ख दत हं और घ्
ृ ा
जादहर करन का एक भी म का नहीं ख त! घ्
ृ ा जादहर करन क जजतन म क ख सकं, उतना शुभ ह। और रम जादहर करन क जजतन
म क पकड़ सकं, उतना शभ
ु ह। घ्
ृ ा क म क क खाली जान दं । एकाध म क क सचत ह कर खाली जान दं और रम क एकाध म क
क सचत ह कर पकड़ं। इसस साधना मं अदभुत गतत आएगी।
अब हम यहां इतन ल ग बठ हुए हं। नहीं कह सकता, सांझ इनमं स क ई समा्त ह जाए। एक सांझ त सब समा्त ह ही जाएंग।
एक न एक ददन हममं स हर आदमी चक ु जाएगा। अगर मुझ यह खयाल ह कक ज ल ग मर सामन बठ हं, ह सकता ह, इनमं स
क ई चहर मं दब
ु ारा नहीं दख पाऊंगा, त ्या मर दय मं उनक रतत कु्ा पदा नहीं ह गी?
बु्ध क ऊपर एक दफा एक आदमी न आकर थूक ददया। इतन गु्स मं आ गया, उनक ऊपर थक
ू ददया। उ्हंन उसक पंि ललया
और उस आदमी स कहा, ‘कुि और कहना ह?’ उनक पास ज लभषु था आनंद, उसन कहा, ‘आप ्या बात कर रह हं? उसन कुि कहा
ह? हमं आञा दं , हम उस ठीक करं । यह त ह्द ह गयी कक वह आपक ऊपर थक
ू द।’ बु्ध न कहा, ‘वह कुि कहना चाहता ह। अब
भाषा असमथज ह।’ बु्ध न कहा, ‘वह कुि कहना चाहता ह, भाषा असमथज ह, वग तीर ह। कह नहीं सका, करया स रकट ककया ह।’
इसक मं कहता हूं कु्ा। बु्ध उस पर दया खाए कक ककतनी भाषा असमथज ह। वह कुि कहना चाहता ह, क ई बड़ी र ध की बात
ह, उस रकट करना चाहता ह। श्द नहीं लमल रह, थक
ू कर जादहर ककया ह।
कल मं यहां स जाता था। कुि ल ग मर पर पड़न लग और मुझ बड़ी कु्ा आयी, आदमी ककतना असमथज ह! कुि कहना चाहता ह
और नहीं कह पाता ह और पर पकड़ लता ह। मर पीि मर एक वरय लमर थ। व ववचारशील हं। उ्हंन कहा, ‘न-न, यह मत कर ।’
उ्हंन भी ठीक कहा। ककतना बुरा हुआ ह जगत मं ! पर पड़न वाल त ठीक थ, पर पड़ान वाल पदा ह गए हं। त उ्हंन ठीक ही
कहा कक, ‘न-न, यह मत कर ।’ मुझ उनकी बात ठीक लगी, लककन ठीक नहीं भी लगी। ठीक उ्हंन कहा, यह गलत ह कक दतु नया मं
क ई ककसी स पर पड़वाए। लककन वह दतु नया भी गलत ह गी, जजसमं ऐस ल ग न रह जाएं, जजनक पर पड़न का मन ह । और वह
दतु नया भी गलत ह गी, जहां ऐस दय न रह जाएं, ज ककसी क पर मं झुक जाएं। और वह दतु नया गलत ह गी, जब कक हममं ऐस
भाव न उठं , ज बबना पर पकड़ जादहर नहीं ह सकत हं।
मरी आप बात समझत हं? वह दतु नया गलत ह गी, जब हममं ऐस भाव न उठं , ज कक बबना पर पकड़ जादहर नहीं ह सकत हं। आदमी
बहुत सूखा और बमानी ह जाएगा।
और कफर मं यह भी आपक ्मर् ददलाऊं; मं हरान हुआ हूं, जब मंन ककसी क अपन पर मं झक ु त दखा ह, त मंन पाया, वह मर
पर नहीं पकड़ हुए ह। उस मर पर मं कुि ददख रहा ह; वह शायद परमा्मा क ही पर पकड़ हुए ह। और जब भी क ई ककसी क पर
मं झक
ु ा ह आज तक–झक
ु ाया न गया ह वह–जब भी क ई ककसी क पर मं झक
ु ा ह, वह लसफज परमा्मा क पर मं झक
ु ा ह, वह ककसी
क परं मं नहीं झक
ु ा ह। आखखर ककसी क परं मं ्या ह, जजसमं झक
ु न जसा ह ? लककन क ई भाव ह भीतर, जजसक ललए रा्ता नहीं
लमलता।
कल मुझ रम करन वाला क ई मर पास था कमर मं । और सांझ जब नहान जान लगा और मंन ब्ब जलाया, त उसन कहा कक
‘रकाश ह गया, मुझ अपन पर पकड़ लन दं ।’ मं बहुत हरान हुआ। और उ्हंन मर पर पकड़ ललए। और मंन उनकी आंखं मं ज
आंसू दख, उन आंसुओं स सुंदर जमीन पर कुि भी नहीं ह। इस जमीन पर उन आंसओ
ु ं स संद
ु र न क ई कववता ह, न क ई गीत ह,
ज ककसी रम की घड़ी मं उ्प्न ह त हं। और अगर इनक रतत ब ध ह और अगर इनका ्मर् ह , अगर य ददखाई पड़त हं, त
आपक ककतनी कु्ा नहीं मालूम ह गी!
लककन आप ्या दख रह हं? आप ल गं मं वह दख रह हं, जजनस कु्ा त नहीं पदा ह ती, तनंदा पदा ह ती ह। आप ल गं मं वह
दख रह हं, जजनस कु्ा त पदा नहीं ह ती, रूरता पदा ह ती ह। आप ल गं मं वह दख रह हं, ज उनका असली दह्सा नहीं ह, ज
उनका दय नहीं ह, ज उनकी मजबूररयां हं। एक आदमी मुझ गाली दता ह। यह क ई दय ह उसका? यह उसकी मजबूरी ह गी। बुर
स बुर आदमी क भीतर एक दय ह, जजस तक अगर हमारी पहुंच ह पाए, त हम बहुत कु्ा स भर जाएंग, बहुत कु्ा स भर
जाएंग।
बु्ध न उस सुबह कहा था, ‘दया आती ह। दया आती ह, भाषा कमज र ह आनंद। आदमी का दय बहुत कुि कहना चाहता ह, नहीं
कह पाता ह।’ उसस कहा, ‘कुि और कहना ह?’ वह आदमी और ्या कहता! अब त कहना मुज्कल ह गया। वह ल ट गया। रात वह
बहुत पिताया। वह दस
ू र ददन षमा मांगन आया। वह परं मं चगर गया और र न लगा। बु्ध न कहा, ‘दखत ह आनंद, भाषा कमज र
ह। अब भी वह कुि कहना चहता ह और नहीं कह पा रहा ह। कल भी उसन कुि कहना चाहा था और नहीं कह पाया था। तब भी
उसन क ई कृ्य ककया था, अब भी क ई कृ्य कर रहा ह। भाषा बहुत कमज र ह आनंद, और आदमी बड़ा दया य ्य ह।’
और चार ददन का यह जीवन ह। और चार ददन का भी हम कहत हं, चार घड़ी का भी ्या ह? और इस चार घड़ी क लमलन मं अगर
हम कु्ा स न भर जाएं एक-दस
ू र क रतत, त हम आदमी ही न थ। हमन जीवन क जाना भी नहीं, हम पहचान नहीं।
त अपन चारं तरफ कु्ा क फंकं, अपन चारं तरफ पररचचत हं। ककतन दख
ु ी हं ल ग! उनक दख
ु मं और दख
ु क मत बढ़ाएं।
आपकी कु्ा उनक दख
ु क कम करगी। एक कु्ा स भरा हुआ श्द उनक दख
ु क कम करगा। उनक दख
ु क और मत बढ़ाएं।
हम सब एक-दस
ू र क दख
ु क बढ़ा रह हं। हम सब एक-दस
ू र क दख
ु दन मं सहय गी हं। एक-एक आदमी क पीि अनक-अनक ल ग
पड़ हुए हं दख
ु दन क । अगर कु्ा का ब ध ह गा, त आप ककसी क दख
ु पहुंचान क सार रा्त अलग कर लंग। और अगर ककसी
क जीवन मं क ई सुख द सकत हं, त उस दन का उपाय करं ग।
फल बाहर स नहीं आत हं, फल भीतर पदा ह त हं। हम ज करत हं, उसी की ररसज्टववटी हमार भीतर ववकलसत ह जाती ह। ज रम
चाहता ह, रम क फला द। और ज आनंद चाहता ह, वह आनंद क लुटा द। और ज चाहता ह, उसक घर पर फूलं की वषाज ह जाए,
वह दस
ू रं क आंगनं मं फूल फंक द। और क ई रा्ता नहीं ह।
तीसरी बात ह, रमुददता, उ्फु्लता, रस्नता, आनंद का एक ब ध, ववषाद का अभाव। हम सब ववषाद स भर हं। हम सब उदास ल ग,
थक ल ग हं। हम सब हार हुए, पराजजत, रा्तं पर चलत हं और समा्त ह जात हं। हम ऐस चलत हं, जस आज ही मर गए हं।
हमार चलन मं क ई गतत और रा् नहीं ह। हमार उठन-बठन मं क ई रा् नहीं ह। हम सु्त हं, और उदास हं, और टूट हुए हं, और
हार हुए हं। यह गलत ह। जीवन ककतना ही ि टा ह , म त ककतनी ही तनज्चत ह , जजसमं थ ड़ी समझ ह, वह उदास नहीं ह गा।
सक
ु रात मरता था, उसक जहर ददया जा रहा था और वह हं स रहा था। और उसक एक लश्य रट न पि
ू ा, ‘हं सत हं! हमारी आंखं
आंसुओं स भरी हुई हं। और म त करीब ह और यह ववषाद का ष् ह।’ सुकरात न कहा, ‘ववषाद कहां ह? अगर मरा और बबलकुल ही
मर गया, त ववषाद ्या? ्यंकक दखु क अनुभव करन क क ई बचगा नहीं। और अगर मरा और बचा रहा, त दख ु ्या? ज ख या,
वह अपन न थ, ज अपन थ वह बच हुए हं।’ त उसन कहा, ‘मं खश ु हूं। म त द ही काम कर सकती ह। या त बबलकुल लमटा दगी।
बबलकुल लमटा दगी, त खश
ु हूं, ्यंकक बचग
ूं ा ही नहीं दख
ु अनुभव करन क । और अगर बचा दगी मुझक , त खश ु हूं। ्यंकक ज
मरा नहीं ह, वह न्ट ह जाएगा, मं त बचग
ूं ा। म त द ही काम कर सकती ह, इसललए हं सन जसी ह।’
सक
ु रात न कहा, ‘मं रस्न हूं, ्यंकक म त ्या िीन लगी? या त बबलकुल ही लमटा दगी, त ्या िीना? ्यंकक अब जजसस िीना,
वह भी नहीं ह, त दखु का क ई अनभ ु व नहीं ह गा। और अगर मं बच रहा, त सब बच रहा। मं बच रहा, त सब बच रहा। ज िीन
ललया, वह मरा नहीं था।’ त इसललए सक
ु रात न कहा, ‘मं खश
ु हूं।’
मंसरू क व सल
ू ी द रह थ। उसक पर काट ददए, उसक हाथ काट ददए, उसकी आंखं फ ड़ दीं। दतु नया मं उसस कठ र यातना कभी
ककसी क नहीं दी गयी। राइ्ट क ज्दी मार डाला गया, गांधी क ज्दी ग ली मार दी गयी, सक
ु रात क जहर द ददया गया। मंसरू
मनु्य क इततहास मं सबस ्यादा पीड़ा स मारा गया। पहल उसक पर काट ददए। जब उसक परं स खन
ू बहन लगा, त उसन खन
ू
क लकर अपन हाथं पर लगाया। भीड़ इक्ठी थी, ल ग प्थर फंक रह थ। उ्हंन पूिा, ‘यह ्या कर रह ह ?’ उसन कहा, ‘वजू
करता हूं।’ मुसलमान नमाज क पहल हाथ ध त हं। उसन अपन खन
ू स अपन हाथ ध ए। उसन कहा, ‘वजू करता हूं।’ और उसन कहा,
ल ग बहुत हरान हुए कक पागल ह। उसक पर काट ददए गए, कफर उसक हाथ काट ददए गए। कफर उसकी उ्हंन आंखं फ ड़ दीं। और
एक लाख ल ग इक्ठ हं और प्थर मार रह हं और उसका एक-एक अंग काटा जा रहा ह। और जब उसकी आंखं फ ड़ दी गयीं, तब
वह चच्लाया कक ‘ह परमा्मा, ्मर् रखना। मंसूर जीत गया।’
ल गं न पूिा, ‘्या बात ह? ककस बात मं जीत गए?’ उसन कहा, ‘परमा्मा क कह रहा हूं। परमा्मा ्मर् रखना, मंसूर जीत गया।
मं डरता था कक शायद इतनी शरत ु ा मं रम कायम नहीं रह सकगा। त ्मर् रखना परमा्मा कक मंसरू जीत गया। रम मरा
कायम ह। इ्हंन ज मर साथ ककया ह, मर साथ नहीं कर पाए। इ्हंन ज मर साथ ककया ह, मर साथ नहीं कर पाए। रम कायम
ह।’ और उसन कहा, ‘यही मरी राथजना ह और यही मरी इबादत ह।’
त च बीस घंट उ्फु्लता क साचधए। य लसफज आदतं हं। उदासी एक आदत ह, जजसक आपन बना ललया ह। उ्फु्लता एक आदत
ह, उसक बना सकत हं। उ्फु्लता क बनाए रखन क ललए जररी ह कक जजंदगी का वह दह्सा दखखए, ज रकालशत ह; वह दह्सा
नहीं, ज अंधर स भरा ह।
मं अगर आपक कहूं कक ‘मरा क ई लमर ह और यह बहुत अदभुत गीत गाता ह या बहुत अदभुत बांसुरी बजाता ह।’ आप मुझस
कहं ग, ‘ह गा। यह ्या बांसुरी बजाएगा! इसक हमन शराबखान मं शराब पीत दखा ह!’ मं अगर आपस कहूं कक ‘मरा लमर ह और
बहुत अदभुत बांसुरी बजाता ह।’ त आप कहं ग, ‘यह ्या बांसुरी बजाएगा! हमन इस शराबखान मं शराब पीत दखा ह।’ यह अंधरा
दखना ह।
अगर मं आपस कहूं कक ‘य मर लमर हं, शराब पीत हं।’ और आप मुझस कहं , ‘ह गा। लककन य त अदभुत बांसुरी बजात हं!’ त यह
जजंदगी क रकालशत पष क दखना ह।
जजसक खश
ु ह ना ह, वह रकाश क दख। जजसक खश
ु ह ना ह, वह यह दख कक द ददनं क बीच मं एक रात ह। और जजसक उदास
ह ना ह, वह यह दख कक द रातं क बीच मं एक ददन ह। हम कसा दखत हं जजंदगी क , वसा हमार भीतर कुि ववकलसत ह जाता ह।
त जजंदगी क अंधर पष क न दखं। जजंदगी क उजाल पष क दखं।
मं ि टा था और मर वपता गरीब थ। उ्हंन बड़ी मुज्कल स एक अपना मकान बनाया। गरीब भी थ और नासमझ भी थ, ्यंकक
कभी उ्हंन मकान नहीं बनाए थ। उ्हंन बड़ी मुज्कल स एक मकान बनाया। वह मकान नासमझी स बना ह गा। वह बना और
हम उस मकान मं पहुंच भी नहीं और वह पहली ही बरसात मं चगर गया। हम ि ट थ और बहुत दख
ु ी हुए। व गांव क बाहर थ।
उनक मंन खबर की कक मकान त चगर गया और बड़ी आशाएं थीं कक उसमं जाएंग। व त सब धलू मल ह गयीं। व आए और उ्हंन
गांव मं रसाद बांटा और उ्हंन कहा, ‘परमा्मा का ध्यवाद! अगर आठ ददन बाद चगरता, त मरा एक भी ब्चा नहीं बचता।’ हम
आठ ददन बाद ही उस घर मं जान क थ। और व उसक बाद जजंदगीभर इस बात स खश
ु रह कक मकान आठ ददन पहल चगर गया।
आठ ददन बाद चगरता, त बहुत मुज्कल ह जाती।
यूं भी जजंदगी दखी जा सकती ह। और ज ऐस दखता ह, उसक जीवन मं बड़ी रस्नता, बड़ी रस्नता का उदभव ह ता ह। आप
जजंदगी क कस दखत हं, इस पर सब तनभजर ह। जजंदगी मं कुि भी नहीं ह। आपक दखन पर, आपका एटीटयूड, आपकी पकड़, आपकी
समझ, आपकी ृज्ट सब कुि बनाती और बबगाड़ती ह।
आप अपन स पि
ू ं कक आप ्या दखत हं? ्या आपन एक भी ऐसा बरु स बरु ा आदमी दखा ह, जजसमं कुि ऐसा न ह , ज साधओ
ु ं मं
भी मजु ्कल ह ता ह? ्या आपन ऐसा बरु स बरु ा आदमी भी दखा ह, जजसमं एक भी चीज ऐसी न लमल जाए, ज साधओ
ु ं मं मजु ्कल
ह ती ह? और अगर आपक लमल सकती ह, त उस दखं। वह उस आदमी का असली दह्सा ह। और जजंदगी मं चारं तरफ ख जं
ककर् क , रकाश क । उसस आपक भीतर ककर् और रकाश पदा ह गा।
ज इतनी रफु्लता और आनंद क अपन भीतर संज ता ह, वह साधना मं गतत करता ह। साधना की गतत क ललए यह बहुत जररी
ह, बहुत जररी ह।
एक साधु हुआ। वह जीवनभर इतना रस्न था कक ल ग हरान थ। ल गं न कभी उस उदास नहीं दखा, कभी पीडड़त नहीं दखा। उसक
मरन का व्त आया और उसन कहा कक ‘अब मं तीन ददन बाद मर जाऊंगा। और यह मं इसललए बता रहा हूं कक तु्हं ्मर् रह
कक ज आदमी जीवन भर हं सता था, उसकी कर पर क ई र ए नहीं। यह मं इसललए बता रहा हूं कक जब मं मर जाऊं, त इस झ पड़
पर क ई उदासी न आए। यहां हमशा आनंद था, यहां हमशा खश
ु ी थी। इसललए मरी म त क एक उ्सव बनाना। मरी म त क दख
ु
मत बनाना, मरी म त क एक उ्सव बनाना।’
ल ग त दख
ु ी हुए, बहुत दख
ु ी हुए। वह त अदभुत आदमी था। और जजतना अदभुत आदमी ह , उतना उसक मरन का दख
ु घना था।
और उसक रम करन वाल बहुत थ, व सब तीन ददन स इक्ठ ह न शुर ह गए। वह मरत व्त तक ल गं क हं सा रहा था और
अदभुत बातं कह रहा था और उनस रम की बातं कर रहा था। सुबह मरन क पहल उसन एक गीत गाया। और गीत गान क बाद
उसन कहा, ‘्मर् रह, मर कपड़ मत उतारना। मरी चचता पर मर पूर शरीर क चढ़ा दना कपड़ं सदहत। मुझ नहलाना मत।’
उसन कहा था, आदश था। वह मर गया। उस कपड़ सदहत चचता पर चढ़ा ददया। वह जब कपड़ सदहत चचता पर रखा गया, ल ग उदास
खड़ थ, लककन दखकर हरान हुए। उसक कपड़ं मं उसन फुलझड़ी और फटाख तिपा रख थ। व चचता पर चढ़ और फुलझड़ी और
फटाख िूटन शर
ु ह गए। और चचता उ्सव बन गयी। और ल ग हं सन लग। और उ्हंन कहा, ‘जजसन जजंदगी मं हं साया, वह म त मं
भी हमक हं साकर गया ह।’
ब खझल मन स ज जाता ह, उसन तीर मं प्थर बांध ददए हं। ब खझल मन स ज जाता ह, उसन तीर मं प्थर बांध ददए, तीर कहां
जाएगा? जजतनी तीर गतत चादहए ह , उतना हलका और भारहीन मन चादहए। जजतन तीर क दरू पहुंचाना ह , उतना तीर मं वजन कम
चादहए। और जजस जजतन ऊंच पहाड़ चढ़न हं, उतना ब झ उस नीच ि ड़ दना पड़ता ह। और सबस बड़ा ब झ दख ु का और ववषाद का
ह, उदासी का ह। इसस बड़ा क ई ब झ नहीं ह।
्या आप ल गं क दखत हं? व दब चल जा रह हं, जस भारी ब झ उनक लसर पर रखा हुआ ह। इस ब झ क नीच फंक दं और
उ्फु्लता की एक हुंकार करं और लसंहनाद करं और यह बता दं परू जीवन क कक जीवन कसा ही ह , उसमं भी खश
ु ी और जजंदगी
गीत बनायी जा सकती ह। जजंदगी एक संगीत ह सकती ह। इस तीसरी रमदु दता क ्मर् रखं ।
और च था मंन कहा, कृतञता। कृतञता बहुत डडवाइन, बहुत दद्य बात ह। हमारी सदी मं अगर कुि ख गया ह, त कृतञता ख गयी
ह, रटीटयूड ख गया ह।
आपक पता ह, आप ज ्वास ल रह हं, वह आप नहीं ल रह हं। ्यंकक ्वास जजस ष् नहीं आएगी, आप उस नहीं ल सकंग।
आपक पता ह, आप पदा हुए हं? आप पदा नहीं हुए हं। आपका क ई सचतन हाथ नहीं ह, क ई तन्जय नहीं ह। आपक पता ह, यह ज
ि टी-सी दह आपक लमली ह, यह बड़ी अदभुत ह। यह सबस बड़ा लमरकल ह इस जमीन पर। आप थ ड़ा-सा खाना खात हं, आपका यह
ि टा-सा पट उस पचा दता ह। यह बड़ा लमरकल ह।
अभी इतना वञातनक ववकास हुआ ह, अगर हम बहुत बड़ कारखान खड़ करं और हजारं ववशषञ लगाएं, त भी एक र टी क पचाकर
खन
ू बना दना मुज्कल ह। एक र टी क पचाकर खनू बना दना मुज्कल ह। यह शरीर आपका एक लमरकल कर रहा ह च बीस घंट।
यह ि टा-सा शरीर, थ ड़ी-सी ह्डडयां, थ ड़ा-सा मांस। वञातनक कहत हं, मजु ्कल स चार ुपए, पांच ुपए का सामान ह इस शरीर मं ।
इसमं कुि ्यादा म्
ू य की चीजं नहीं हं। इतना बड़ा चम्कार च बीस घंट साथ ह, उसक रतत कृतञता नहीं ह, रटीटयड
ू नहीं ह!
अपन शरीर क रतत सबस पहल कृतञ ह जाएं। ज अपन शरीर क रतत कृतञ ह, वही कवल दस
ू रं क शरीरं क रतत कृतञ ह
सकता ह। और सबस पहल अपन शरीर क रतत रम स भर जाएं। ्यंकक ज अपन शरीर क रतत रम स भरा हुआ ह, वही कवल
दस
ू रं क शरीरं क रतत रम स भर जाता ह।
व ल ग अधालमजक हं , ज आपक अपन शरीर क खखलाफ बातं लसखात हं। व ल ग अधालमजक हं , ज कहत हं कक शरीर द्ु मन ह और
द्ु ट ह, और ऐसा ह और वसा ह, शरु ह। शरीर कुि भी नहीं ह। शरीर बड़ा चम्कार ह। और शरीर अदभुत सहय गी ह। इसक रतत
कृतञ हं। इस शरीर मं ्या ह? ज इस शरीर मं ह, वह इन पंचमहाभूतं स लमला ह। इस शरीर क रतत कृतञ हं, इन पंचमहाभूतं क
रतत कृतञ हं।
एक ददन सूरज बुझ जाएगा, त आप कहां हंग! वञातनक कहत हं, चार हजार वषं मं सूरज बुझ जाएगा। वह काफी र शनी द चक
ु ा ह,
वह खाली ह ता जाएगा। और एक ददन आएगा कक वह बुझ जाएगा। अभी हम र ज इसी खयाल मं हं कक र ज सूरज ऊगगा। एक ददन
व्त आएगा कक ल ग सांझ क इस खयाल स स एंग कक कल सुबह सूरज ऊगगा, और वह नहीं ऊगगा। और कफर ्या ह गा?
सूरज ही नहीं बुझगा, सारा रा् बुझ जाएगा, ्यंकक रा् उसस उपल्ध ह। ्यंकक सारी ऊ्मा और सारा उताप उसस उपल्ध ह।
समुर क ककनार बठत हं। कभी खयाल ककया, आपक शरीर मं सतर परसंट समुर ह, पानी ह! और मनु्य का ज्म इस जमीन पर,
कीटा्ु का ज पहला ज्म हुआ, वह समुर मं हुआ था। और आप यह भी जानकर हरान हंग, आपक शरीर मं भी नमक और पानी
मं वही अनुपात ह, ज समुर मं ह–अभी भी। और उस अनुपात स जब भी शरीर इधर-उधर ह जाएगा, बीमार ह जाएगा।
कभी समर
ु क करीब बठकर आपन अनभ
ु व ककया ह कक मर भीतर भी समर
ु का एक दह्सा ह। और मर भीतर ज दह्सा ह समर
ु
का, उसक ललए मझ
ु समुर का कृतञ ह ना चादहए। और सरू ज की र शनी मर भीतर ह, उसक रतत मझ
ु कृतञ ह ना चादहए। और
हवाएं मर रा् क चलाती हं, उनक रतत कृतञ ह ना चादहए। और आकाश और प्
ृ वी, व मझ
ु बनात हं, उनक रतत कृतञ ह ना
चादहए।
इस रटीटयूड क मं दद्य कहता हूं। इस कृतञता क बबना क ई आदमी धालमजक नहीं ह सकता। अकृतञ मनु्य ्या धालमजक हंग!
इस कृतञता क अनुभव करं तनरं तर और आप हरान ह जाएंग, यह आपक इतनी शांतत स भर दगी कृतञता और इतन रह्य स!
और तब आपक एक बात का पता चलगा कक मरी ्या साम्यज थी कक य सारी चीजं मुझ लमलं ! और य सारी चीजं मुझ लमली हं।
इसक ललए आपक मन मं ध्यवाद ह गा। इसक रतत आपक मन मं ध्यवाद ह गा, ज आपक लमला ह, उसक रतत कृताथजता का
ब ध ह गा।
त कृतञता क ञावपत करन का, कृतञता क ववकलसत करन का उपाय करं ; उसस साधना मं गतत ह गी। और न कवल साधना मं ,
बज्क जीवन बहुत लभ्न ह जाएगा। जीवन बहुत लभ्न ह जाएगा, जीवन बहुत दस
ू रा ह जाएगा।
राइ्ट क सल
ू ी पर लटकाया। त राइ्ट जब मरन लग त उ्हंन कहा, ‘ह परमा्मा, इ्हं षमा कर दना। इ्हं षमा कर दना और
द कार्ं स षमा कर दना। एक त य जानत नहीं कक ्या कर रह हं।’ इसमं त उनकी कु्ा थी। ‘और एक इस कार् स कक
मर और तर बीच ज फासला था, वह इ्हंन चगरा ददया। परमा्मा क और मर बीच ज फासला था, इ्हंन चगरा ददया। इसक ललए
इनक रतत कृतञता ह।’
मंन आपक बताया, शरीर कस शु्ध ह गा, ववचार कस शु्ध ह गा, भाव कस शु्ध ह गा। अगर य तीन ही ह जाएं, त भी आप
अदभुत ल क मं रवश कर जाएंग। अगर य तीन ही ह जाएं, त भी बहुत कुि ह जाएगा।
तीन ज कंरीय त्व हं, उनकी हम आग बात करं ग। उन तीन त्वं मं हम शरीर-शू्यता, ववचार-शू्यता और भाव-शू्यता का ववचार
करं ग। अभी हमन शु्चध का ववचार ककया, कफर हम शू्यता का ववचार करं ग। और जब शु्चध और शू्यता का लमलन ह ता ह, त
समाचध उ्प्न ह जाती ह। जब शु्चध और शू्यता का लमलन ह ता ह, त समाचध उ्प्न ह जाती ह। और समाचध परमा्मा का
्वार ह। उसकी हम बात करं ग।
सार ल ग दरू -दरू ह जाएं, ताकक क ई ककसी क िूता हुआ मालूम न पड़।
आजइतनाही।
्यान–सर
ू (ओश )रवचन–छ्ठवां
मरररयआ्मन,्
कुि र्न हं। र्न त बहुत-स हं, उन सबका संयु्त उतर ही दन का रयास करंगा। कुि दह्सं मं उनक बांट ललया ह।
भवव्य मं ज सं्कृतत पदा ह गी, अगर वह सं्कृतत मनु्य क दहत मं ह न क ह, त उस सं्कृतत मं धमज और ववञान का संतुलन
ह गा। उस सं्कृतत मं धमज और ववञान का सम्वय ह गा। वह सं्कृतत वञातनक या धालमजक, ऐसी नहीं ह गी। वह सं्कृतत वञातनक
रप स धालमजक ह गी या धालमजक रप स वञातनक ह गी।
त मं आपक कहूंगा, धमज और ववञान का क ई ववर ध नहीं ह, जस शरीर और आ्मा का क ई ववर ध नहीं ह। ज मन्ु य कवल शरीर
क आधार पर जीएगा, वह अपनी आ्मा ख दगा। और ज मन्ु य कवल आ्मा क आधार पर जीन क रयास करगा, वह भी ठीक स
नहीं जी पाएगा, ्यंकक शरीर क ख ता चला जाएगा।
जजस तरह मनु्य का जीवन शरीर और आ्मा क बीच एक संतुलन और संय ग ह, उसी तरह पररप्
ू ज सं्कृतत ववञान और धमज क
बीच संतुलन और संय ग ह गी। ववञान उसका शरीर ह गा, धमज उसकी आ्मा ह गी।
लककन यह मं आपस कह दं ,ू अगर क ई मुझस यह पूि कक अगर ववक्प ऐस हं कक हमं धमज और ववञान मं स चन
ु ना ह, त मं
कहूंगा कक हम धमज क चन ु न क राजी हं। अगर क ई मुझस यह कह कक ववञान और धमज मं स चनु ाव करना ह, द नं नहीं ह
सकत, त मं कहूंगा, हम धमज क लन क राजी हं। हम दररर रहना और असुववधा स रहना पसंद करं ग, लककन मनु्य की अंतरा्मा
क ख ना पसंद नहीं करं ग।
उन सुववधाओं का ्या मू्य ह, ज हमार ्व्व क िीन लं ! और उस संपवत का ्या मू्य ह, ज हमार ्वरप स हमं वंचचत कर
द! व्तत
ु ः न वह संपवत ह, न वह सवु वधा ह।
मं एक ि टी-सी कहानी कहूं, मुझ बहुत रीततकर रही। मंन सुना ह, एक बार यूनान का एक बादशाह बीमार पड़ा। वह इतना बीमार
पड़ा कक डा्टरं न और चचकक्सकं न कहा कक अब वह बच नहीं सकगा। उसकी बचन की क ई उ्मीद न रही। उसक मंरी और
उसक रम करन वाल बहुत चचंततत और परशान हुए। गांव मं तभी एक फकीर आया और ककसी न कहा, ‘उस फकीर क अगर लाएं,
त ल ग कहत हं, उसक आशीवाजद स भी बीमाररयां ठीक ह जाती हं।’
व उस फकीर क लन गए। वह फकीर आया। उसन आत ही उस बादशाह क कहा, ‘पागल ह ? यह क ई बीमारी ह? यह क ई बीमारी
नहीं ह। इसका त बड़ा सरल इलाज ह।’ वह बादशाह, ज महीनं स बब्तर पर पड़ा था, उठकर बठ गया। और उसन कहा, ‘क न-सा
इलाज? हम त स च कक हम गए! हमं बचन की क ई आशा नहीं रही ह।’ उसन कहा, ‘बड़ा सरल-सा इलाज ह। आपक गांव मं स ककसी
शांत और सम्
ृ ध आदमी का क ट लाकर इ्हं पहना ददया जाए। य ्व्थ और ठीक ह जाएंग।’
वजीर भाग, गांव मं बहुत सम्ृ ध ल ग थ। उ्हंन एक-एक क घर जाकर कहा कक हमं आपका क ट चादहए, एक शांत और सम् ृ ध
आदमी का। उन सम् ृ ध ल गं न कहा, ‘हम दख
ु ी हं। क ट! हम अपना रा् द सकत हं; क ट की क ई बात नहीं ह। बादशाह बच जाए,
हम सब द सकत हं। लककन हमारा क ट काम नहीं करगा। ्यंकक हम सम्
ृ ध त हं, लककन शांत नहीं हं।’
व गांव मं हर आदमी क पास गए। व ददनभर ख ज और सांझ क तनराश ह गए और उ्हंन पाया कक बादशाह का बचना मुज्कल
ह, यह दवा बड़ी महं गी ह। सुबह उ्हंन स चा था, ‘दवा बहुत आसान ह।’ सांझ उ्हं पता चला, ‘दवा बहुत मुज्कल ह, इसका लमलना
संभव नहीं ह।’ व सब बड़ ल गं क पास ह आए थ। सांझ क व थक-मांद उदास ल टत थ। सरू ज डूब रहा था। गांव क बाहर, नदी क
पास एक च्टान क ककनार एक आदमी बांसुरी बजाता था। वह इतनी संगीतपू्ज थी और इतन आनंद स उसमं लहरं उठ रही थीं कक
उन वजीरं मं स एक न कहा, ‘हम अंततम रप स इस आदमी स और पूि लं , शायद यह शांत ह ।’
उस बादशाह क नहीं बचाया जा सका। ्यंकक ज शांत था, उसक पास सम्
ृ चध नहीं थी। और ज सम्
ृ ध था, उसक पास शांतत नहीं
थी। और यह दतु नया भी नहीं बचायी जा सकगी, ्यंकक जजन क मं क पास शांतत की बातं हं, उनक पास सम्
ृ चध नहीं ह। और जजन
क मं क पास सम्
ृ चध ह, उनक पास शांतत का क ई ववचार नहीं ह। वह बादशाह मर गया, यह क म भी मरगी मनु्य की।
इलाज वही ह, ज उस बादशाह का इलाज था। वह इस मनु्य की पूरी सं्कृतत का भी इलाज ह। हमं क ट भी चादहए और हमं शांतत
भी चादहए। अब तक हमार खयाल अधरू रह हं। अब तक हमन मनु्य क बहुत अधरू ढं ग स स चा ह और हमारी आदतं ए्स्ीम
पर चल जान की हं। मनु्य क मन की सबस बड़ी बीमारी अतत ह, ए्स्ीम ह।
कन्यूलशयस एक गांव मं ठहरा हुआ था। वहां ककसी न कन्यूलशयस क कहा, ‘हमार गांव मं एक बहुत वव्वान, बहुत ववचारशील
आदमी ह। आप उसक दशजन करं ग?’ कन्यलू शयस न कहा, ‘पहल मं यह पि
ू लंू कक आप उस बहुत ववचारशील ्यं कहत हं? कफर मं
उसक दशजन क जरर चलंग
ू ा।’ उन ल गं न कहा, ‘वह इसललए ववचारशील ह कक वह ककसी भी काम क करन क पहल तीन बार
स चता ह–तीन बार!’ कन्यलू शयस न कहा, ‘वह आदमी ववचारशील नहीं ह। तीन बार थ ड़ा ्यादा ह गया। एक बार कम ह ता ह,
तीन बार ्यादा ह गया। द बार काफी ह।’ कन्यलू शयस न कहा, ‘वह आदमी ववचारशील नहीं ह। तीन बार थ ड़ा ्यादा ह गया, एक
बार थ ड़ा कम ह ता ह। द बार काफी ह। ब्
ु चधमान व हं, ज बीच मं ुक जात हं। नासमझ अततयं पर चल जात हं।’
और हमं सीख लना चादहए। हमार इततहास की दरररता और हमार मु्क की पराजय और पूरब क मु्कं का पददललत ह जाना
अकार् नहीं ह; वह अतत, धमज की अतत उसका कार् ह। और पज्चम क मु्कं का आंतररक रप स दररर ह जाना अकार् नहीं ह,
ववञान की अतत उसका कार् ह। भवव्य सुंदर ह गा, अगर ववञान और धमज संयु्त हंग।
यह जरर ्प्ट ह कक ववञान और धमज क संय ग मं धमज कंर ह गा और ववञान पररचध ह गा। यह ्प्ट ह कक ववञान और धमज क
मल मं धमज वववक ह गा और ववञान उसका अनुचर ह गा। शरीर माललक नहीं ह सकता ह, ववञान भी माललक नहीं ह सकता ह।
माललक त धमज ह गा। और तब हम एक बहतर दतु नया का तनमाज् कर सकंग।
इसललए यह न पूिं कक वञातनक युग मं धमज का ्या उपय ग ह? वञातनक युग मं ही धमज का उपय ग ह, ्यंकक ववञान एक अतत
ह और वह अतत खतरनाक ह। धमज उस संतुलन दगा। और उस अतत और उस खतर स मनु्य क बचा सकगा।
इसललए सारी दतु नया मं धमज क पनु ु्थान की एक घड़ी बहुत करीब ह। यह ्वाभाववक ही ह, यह सतु नज्चत ही ह, यह एक
अतनवायजता ह कक अब धमज का पन ु ु्थान ह , अ्यथा ववञान म्ृ यु का कार् बन जाएगा। इसललए मं कहूं, ववञान क यगु मं धमज
की ्या आव्यकता ह, यह पि
ू ना त ्यथज ह ही। ववञान क यग
ु मं ही धमज की सवाजचधक आव्यकता ह।
मं समझता हूं, मरी इस बात स वह भी आपक खयाल मं आया ह गा। ्यंकक जजस बात का उपय ग एक मनु्य क ललए ह, उस बात
का उपय ग अतनवायजतया पूर रा्् और परू समाज क ललए ह गा। ्यंकक रा्् और समाज ्या हं? व मनु्यं क ज ड़ क अततरर्त
और ्या हं? त क ई इस रम मं न रह कक क ई रा्् धमज क अभाव मं जी सकता ह।
भारत मं यह दभ
ु ाज्य हुआ। हम कुि श्दं क भूल समझ गए। हमन धमज-तनरपष रा्य की बातं शुर कर दीं। हमं कहना चादहए था
संरदाय-तनरपष और हम कहन लग धमज-तनरपष! संरदाय-तनरपष ह ना एक बात ह और धमज-तनरपष ह ना बबलकुल दस ू री बात ह।
क ई भी समझदार आदमी संरदाय-तनरपष ह ता ह और कवल नासमझ ही धमज-तनरपष ह सकत हं।
संरदाय-तनरपष ह न का मतलब ह, हमं जन स क ई मतलब नहीं ह, हमं दहंद ू स, हमं ब ्ध स, हमं मुसलमान स क ई मतलब नहीं ह।
संरदाय-तनरपष ह न का मतलब यह ह। लककन धमज-तनरपष ह न का मतलब ह कक हमं स्य स और अदहंसा स और रम स और
कु्ा स क ई मतलब नहीं ह। क ई रा्् धमज-तनरपष नहीं ह सकता। और ज ह गा, उसका दभ
ु ाज्य ह। रा्् क त धमजरा् ह ना
पड़गा, धमज-तनरपष नहीं। हां, संरदाय-तनरपष ह ना बहुत जररी ह।
दतु नया मं धमज क सबस ्यादा नक ु सान नाज्तकं न नहीं पहुंचाया ह। दतु नया मं धमज क सबस ्यादा नक ु सान भ ततकवादी
वञातनकं न नहीं पहुंचाया ह। दतु नया मं सबस बड़ा धमज क नक ु सान धालमजक सांरदातयकं न पहुंचाया ह। उन ल गं न, जजनका आरह
धमज पर कम ह, जन पर ्यादा ह; उन ल गं न, जजनका आरह धमज पर कम ह, दहंद ू पर ्यादा ह; जजनका आरह धमज पर कम ह और
इ्लाम पर ्यादा ह। उन ल गं न इस दतु नया क धमज स वंचचत ककया ह। संरदाय, ज कक धमज क शरीर ह न चादहए थ, धमज क
ह्यार साबबत हुए हं।
और इसललए धमज का त बहुत उपय ग ह, संरदायं का क ई उपय ग नहीं ह। संरदाय और सांरदातयकता जजतनी षी् ह , उतना
अथजपू्ज ह गा, उतनी उपय चगता ह गी।
और यह असंभव ह कक क ई क म या क ई रा्् या क ई समाज धमज क आधारं क बबना खड़ा ह जाए। यह कस संभव ह? ्या यह
संभव ह कक हम रम क आधारं क बबना खड़ ह जाएं? ्या क ई रा्् रा्् बन सकता ह रम क आधारं क बबना? और ्या क ई
रा्् स्य क आधारं क बबना रा्् बन सकता ह? या कक क ई रा्् ्याग, अपरररह, अदहंसा, अभय, इनक आधारं क बबना रा्् बन
सकता ह?
य त बुतनयादं हं आ्मा की। इनक अभाव मं क ई रा्् नहीं ह ता, न क ई समाज ह ता ह। और अगर वसा समाज ह और वसा
रा्् ह , त उसमं जजसमं थ ड़ा भी वववक ह, वह उस मन्ु यं का यांबरक समह
ू कहगा, वह उस रा्् नहीं कह सकगा।
रा्् बनता ह अंतसंबंधं स, इंटर-ररलशनलशप स। मरा ज आपस संबंध ह, आपका ज आपक पड़ सी स संबंध ह, उन सार अंतसंबंधं
का नाम रा्् ह। व अंतसंबंध जजतन स्य पर, रम पर, अदहंसा पर, परमा्मा पर खड़ हंग, उतन रा्् क जीवन मं सुवास ह गी;
उतन रा्् क जीवन मं आल क ह गा; उतन रा्् क जीवन मं अंधकार कम ह गा।
त मं कहूं, रा्् और समाज, उनक रा् धमज पर ही रततज्ठत ह सकत हं। धमज-तनरपष श्द स थ ड़ा-सा सावधान ह न की जररत
ह। परू रा्् क सावधान ह न की जररत ह। उस श्द की आड़ मं बहुत खतरा ह। उस श्द की आड़ मं ह सकता ह, हम समझं,
धमज की क ई जररत नहीं ह। धमज की ही एकमार जररत ह मन्ु य क जीवन मं । और सारी बातं ग ् हं और ि ड़ी जा सकती हं।
धमज अकली ऐसी कुि चीज ह, ज नहीं ि ड़ी जा सकती ह।
सामा्य रप स ्यान क संबंध मं ज भी ववचार रचललत हं, उसमं हम ्यान क ‘ककसी क ्यान’ क रप मं खयाल करत हं। ककसी
का ्यान करं ग। इसललए ्वाभाववक यह र्न उठता ह कक ्यान ककसका? राथजना ककसकी? आराधना ककसकी? रम ककसस?
मंन सब
ु ह आपक एक बात कही। एक रम ह, जजसमं हम पि
ू त हं, रम ककसस? और एक रम ह, जजसमं हम यह पि
ू त हं, रम मर
भीतर ह या नहीं? ककसस क ई संबंध नहीं ह।
त मंन कहा, रम की द अव्थाएं हं। एक, लव एज ए ररलशनलशप, रम एक संबंध की तरह। और एक रम, एज ए ्टट आफ माइंड,
रम मन ज्थतत की तरह। पहल रम मं हम पूित हं, ‘ककसस?’ अगर मं आपस कहूं, मं रम करता हूं; त आप पूिंग, ‘ककसस?’ और मं
अगर यह कहूं कक ‘ककसस का क ई सवाल नहीं। मं बस रम करता हूं।’ त आपक दद्कत ह गी। लककन दस ू री बात ही समझन की
ह।
वही आदमी रम करता ह, ज बस रम करता ह और ककसका क ई सवाल नहीं ह। ्यंकक ज आदमी ‘ककसी स’ रम करता ह, वह शष
स ्या करगा? वह शष क रतत घ्
ृ ा स भरा ह गा। ज आदमी ‘ककसी का ्यान’ करता ह, वह शष क रतत ्या करगा? शष क रतत
मू्िाज स तघरा ह गा। हम जजस ्यान की बात कर रह हं, वह ककसी का ्यान नहीं ह, ्यान की एक अव्था ह। अव्था का मतलब
यह ह। ्यान का मतलब, ककसी क ्मर् मं लाना नहीं ह। ्यान का मतलब, सब ज हमार ्मर् मं हं, उनक चगरा दना ह; और
एक ज्थतत लानी ह कक कवल चतना मार रह जाए, कवल कांशसनस मार रह जाए, कवल अवयरनस मार रह जाए।
यहां हम एक दीया जलाएं और यहां स सारी चीजं हटा दं , त भी दीया रकाश करता रहगा। वस ही अगर हम चचत स सार आ्ज््स
हटा दं , चचत स सार ववचार हटा दं , चचत स सारी क्पनाएं हटा दं , त ्या ह गा? जब सारी क्पनाएं और सार ववचार हट जाएंग, त
्या ह गा? चतना अकली रह जाएगी। चतना की वह अकली अव्था ्यान ह।
्यान ककसी का नहीं करना ह ता ह। ्यान एक अव्था ह, जब चतना अकली रह जाती ह। जब चतना अकली रह जाए और चतना
क सामन क ई ववषय, क ई आ्ज्ट न ह , उस अव्था का नाम ्यान ह। मं ्यान का उसी अथज मं रय ग कर रहा हूं।
ज हम रय ग करत हं, वह ठीक अथं मं ्यान नहीं, धार्ा ह। ्यान त उपल्ध ह गा। ज हम रय ग कर रह हं–समझ लं , राबर क
हमन रय ग ककया चरं पर, सब
ु ह हम रय ग करत हं ्वास पर–यह सब धार्ा ह, यह ्यान नहीं ह। इस धार्ा क मा्यम स एक
घड़ी आएगी, ्वास भी ववलीन ह जाएगी। इस धार्ा क मा्यम स एक घड़ी आएगी कक शरीर भी ववलीन ह जाएगा, ववचार भी
ववलीन ह जाएंग। जब सब ववलीन ह जाएगा, त ्या शष रहगा? ज शष रहगा, उसका नाम ्यान ह। जब सब ववलीन ह जाएंग, त
ज शष रह जाएगा, उसका नाम ्यान ह। धार्ा ककसी की ह ती ह और ्यान ककसी का नहीं ह ता।
त धार्ा हम कर रह हं, चरं की कर रह हं , ्वास की कर रह हं। आप पूिंग कक बहतर न ह कक हम ई्वर की धार्ा करं ? बहतर
न ह कक हम ककसी मूततज की धार्ा करं ?
वह खतरनाक ह। वह खतरनाक इसललए ह कक मूततज की धार्ा करन स वह अव्था नहीं आएगी, जजसक मं ्यान कह रहा हूं। मूततज
की धार्ा करन स मूततज ही आती रहगी। और जजतनी मूततज की धार्ा घनी ह ती जाएगी, उतनी मूततज ्यादा आन लगगी।
रामकृ्् क ऐसा हुआ था। व काली क ऊपर ्यान करत थ, धार्ा करत थ। कफर धीर-धीर उनक ऐसा हुआ कक काली क उनक
साषात ह न लग अंतस मं । आंख बंद करक वह मूततज सजीव ह जाती। व बड़ रसमु्ध ह गए, बड़ आनंद मं रहन लग। कफर वहां एक
सं्यासी का आना हुआ। और उस सं्यासी न कहा कक ‘तुम यह ज कर रह ह , यह कवल क्पना ह, यह सब इमजजनशन ह। यह
परमा्मा का साषात नहीं ह।’ रामकृ्् न कहा, ‘परमा्मा का साषात नहीं ह? मुझ साषात ह ता ह काली का।’ उस सं्यासी न कहा,
‘काली का साषात परमा्मा का नहीं ह।’
परमा्मा का साषात नहीं ह ता ह, परमा्मा स सज्मलन ह ता ह। आमन-सामन क ई खड़ा नहीं ह ता कक इस तरफ आप खड़ हं, उस
तरफ परमा्मा खड़ हुए हं! एक घड़ी आती ह कक आप लीन ह जात हं सम्त सता क बीच, जस बंद
ू सागर मं चगर जाए। और उस
घड़ी मं ज अनभु व ह ता ह, वह अनभ
ु व परमा्मा का ह।
परमा्मा का साषात या दशजन नहीं ह ता। परमा्मा क लमलन की एक अनुभूतत ह ती ह, जस बूंद क सागर मं चगरत व्त अगर ह ,
त ह गी।
त उस सं्यासी न कहा, ‘यह त भूल ह। यह त क्पना ह।’ और उसन रामकृ्् स कहा कक ‘अपन भीतर जजस भांतत इस मूततज क
आपन खड़ा ककया ह, उसी भांतत इसक द टुकड़ कर दं । एक क्पना की तलवार उठाएं और मूततज क द टुकड़ कर दं ।’
रामकृ्् ब ल, ‘तलवार! वहां कस तलवार उठाऊंगा?’ उस सं्यासी न कहा, ‘जजस भांतत मूततज क बनाया, वह भी एक धार्ा ह। तलवार
की भी धार्ा करं और त ड़ दं । क्पना स क्पना खंडडत ह जाए। जब मूततज चगर जाएगी और कुि शष न रह जाएगा–जगत त
ववलीन ह गया ह, अब एक मतू तज रह गयी ह, उसक भी त ड़ दं –जब खाली जगह रह जाएगी, त परमा्मा का साषात ह गा।’ उसन
कहा, ‘जजसक आप परमा्मा समझ हं, वह परमा्मा नहीं ह। परमा्मा क पान मं ला्ट दहंरंस, वह आखखरी अवर ध ह, उसक और
चगरा दं ।’
रामकृ्् क बड़ा कदठन पड़ा। जजसक इतन रम स संवारा, जजस मूततज क वषं साधा, ज मूततज बड़ी मुज्कल स जीववत मालूम ह न
लगी, उसक त ड़ना! व बार-बार आंख बंद करत और वापस ल ट आत और व कहत कक ‘यह कुकृ्य मुझस नहीं ह सकगा!’ उस
सं्यासी न कहा, ‘नहीं ह सकगा, त परमा्मा का साज्न्य नहीं ह गा।’ उस सं्यासी न कहा, ‘परमा्मा स तु्हारा रम थ ड़ा कम ह।
एक मूततज क तुम परमा्मा क ललए हटान क ललए राजी नहीं ह !’ उसन कहा, ‘परमा्मा स तु्हारा रम थ ड़ा कम ह। एक मूततज क
तुम परमा्मा क ललए हटान क राजी नहीं ह !’
हमारा भी परमा्मा स रम बहुत कम ह। हम भी बीच मं मूततजयां ललए हुए हं, और संरदाय ललए हुए हं, और रंथ ललए हुए हं। और
क ई उनक हटान क राजी नहीं ह।
त इसललए मं ककसी क्पना करन क नहीं कह रहा हूं। क्पना का मतलब यह, ककसी ऐसी क्पना क करन क नहीं कह रहा हूं,
ज कक बाधा ह जाए। और ज थ ड़ी-सी बातं मंन कही हं–जस चरं की, जस ्वास की–इनस क ई बाधाएं नहीं, ्यंकक इनस क ई
रम पदा नहीं ह ता। और इनस क ई मतलब नहीं ह। य कवल कृबरम उपाय हं, जजनक मा्यम स भीतर रवश ह जाएगा। और य
बाधाएं नहीं ह सकत हं।
त कवल उन क्पनाओं क रय ग की बात कर रहा हूं, ज अंततः ्यान मं रवश ह न मं बाधा न बन जाएं। इसललए मंन ककसी का
्यान करन क आपक नहीं कहा ह, लसफज ्यान मं जान क कहा ह। ्यान करन क नहीं, ्यान मं जान क कहा ह। ककसी का
्यान नहीं करना ह, अपन भीतर ्यान मं पहुंचना ह। इस थ ड़ा ्मर् रखं ग, त बहुत-सी बातं साफ ह सकंगी।
आज तक नहीं हुं। आज तक आ्याज्मक ुचचयां सांसाररक ुचचयं क सामन कभी परा्त नहीं हुई हं। आप कहं ग, गलत कह रहा
हूं, ्यंकक आपक अपन भीतर र ज पराजय मालूम ह ती ह गी। लककन मं आपक कहूं, आपक आ्याज्मक ुचच ह? ज पराजजत ह ती
ह, वह ह ही नहीं, लसफज एक आ्याज्मक ववचार ह सुना हुआ। क ई अगर यह कह कक हीरं की म जद
ू गी मं भी, कंकड़ं क सामन हीर
पराजजत ह जात हं, त हम ्या कहं ग! हम कहं ग, हीर वहां हंग ही नहीं। हीर का्पतनक हंग और कंकड़ असली हंग। त हीर हार
जाएंग और कंकड़ जीत जाएंग। और हीर अगर वा्तववक हुए, त कंकड़ं क सामन कस हार जाएंग?
आप स चत हंग कक हमार जीवन मं त सांसाररक ववृ तयां हमारी सब आ्याज्मक ववृ तयं क पराजजत कर दती हं। आ्याज्मक
ववृ तयां कहां हं? त ज पराजय मालूम ह ती ह, वह कवल का्पतनक ह। दस
ू रा पष म जूद ही नहीं ह।
आप तनरं तर स चत हंग कक घ्
ृ ा जीत जाती ह और रम हार जाता ह। लककन रम ह कहां? आप स चत हंग, धन क पान की
आकांषा जीत जाती ह और परमा्मा क पान की आकांषा हार जाती ह; वह ह कहां? अगर वह ह , त क ई आकांषा उसक सामन
जीत नहीं सकती। वह अगर ह , त क ई आकांषा दटक भी नहीं सकती, जीतन का त र्न ही नहीं ह।
अगर क ई कहन लग कक रकाश त ह, लककन अंधरा जीत जाता ह। त हम कहं ग, आप पागल हं। अगर रकाश ह , त अंधरा रवश ही
नहीं कर सकता। लड़ाई आज तक रकाश और अंधर मं हुई ही नहीं ह। आज तक रकाश और अंधकार मं क ई लड़ाई नहीं हुई, ्यंकक
रकाश क ह त ही अंधरा म जूद ही नहीं रह जाता ह। यातन वह कभी दस
ू रा पष नहीं ह लड़ाई का, त जीतगा ्या? और जीतता वह
तभी ह, जब रकाश म जूद ही नहीं ह ता। यातन उसकी जीत रकाश की गर-म जूदगी मं ही ह कवल। रकाश की म जूदगी मं क ई
सवाल ही नहीं ह, ्यंकक वह त ववलीन ह जाता ह, वह ह ता ही नहीं ह।
जजनक आप सांसाररक ववृ तयां कह रह हं, व अगर आज्मक ववृ तयां पदा ह जाएं, त ववलीन ह जाती हं, पायी नहीं जाती हं। इसललए
मरी ज च्टा ह पूरी, वह यह ह कक मं आपक सांसाररक ववृ तयां ववलीन करन पर उतना ज र नहीं द रहा हूं, जजतना मं ज र इस बात
पर द रहा हूं कक आपमं आज्मक ववृ त पदा ह । यह पाजजदटवली आपक भीतर पदा ह ।
जब ववधायक रप स आ्मववृ त पदा ह ती ह, त सांसाररक ववृ तयां षी् ह जाती हं। जजसक भीतर रम पदा ह ता ह, उसक भीतर घ्
ृ ा
ववलीन ह जाती ह। घ्
ृ ा और रम मं ट्कर कभी नहीं हुई; अभी तक नहीं हुई। जजसक भीतर स्य पदा ह ता ह, उसक भीतर अस्य
ववलीन ह जाता ह। अस्य और स्य मं ट्कर आज तक नहीं हुई। जजसक भीतर अदहंसा पदा ह ती ह, उसकी दहंसा ववलीन ह जाती
ह। अदहंसा-दहंसा मं ट्कर आज तक नहीं हुई। पराजय का त र्न ही नहीं ह, मक
ु ाबला ही नहीं ह ता। दहंसा इतनी कमज र ह कक
अदहंसा क आत ही षी् ह जाती ह। अधमज बहुत कमज र ह, संसार बहुत कमज र ह, अ्यंत कमज र ह।
इसललए हमारा मु्क संसार क माया कहता रहा। माया का मतलब ह कक ज इतना कमज र ह कक जरा-सा ही िुआ कक ववलीन ह
जाए। मजजकल ह। जस ककसी न झाड़ बता ददया आपक कक यह आम का झाड़ लगा हुआ ह। लककन वह जाद ू का झाड़ ह। आप
पास गए, पाया, वह नहीं ह। कहीं रात क एक र्सी लटकी हुई दखी और आपन समझा सांप ह। और आप पास गए और पाया, सांप
नहीं ह। त वह ज र्सी मं सांप ददखायी पड़ा था, वह माया था। वह लसफज ददख रहा था, था नहीं।
इसललए हमारा मु्क इस संसार क माया कहता ह, ्यंकक ज इसक करीब जाएगा, वह पाएगा स्य क दखत ही स कक संसार ह ही
नहीं। जजसक हम संसार कह रह हं, उसन आज तक स्य का मुकाबला नहीं ककया ह।
इसललए जब आपक लगता ह कक हमारी आ्याज्मक ववृ तयां हार जाती हं, त एक बात ्मर् रखं , व ववृ तयां आपकी का्पतनक
हंगी, ककताबं मं पढ़कर सीख ली हंगी। व आपक भीतर हं नहीं।
बहुत ल ग हं! एक ्यज्त मर पास आए। व मुझस पूित थ कक ‘पहल ऐसा ह ता था कक मुझ भगवान का अनुभव ह न लगा था, अब
मझ
ु नहीं ह ता!’ मंन उनस कहा, ‘वह कभी नहीं हुआ ह गा। यह आज तक कभी हुआ ह कक भगवान का अनुभव ह न लग और कफर
वह न ह ?’ मुझ अनक ल ग आत हं, व कहत हं, ‘पहल हमारा ्यान लग जाता था, अब नहीं लगता।’ मंन कहा, ‘वह कभी नहीं लगा
ह गा। ्यंकक यह असंभव ह कक वह लग गया ह और कफर न लगा ह जाए।’
जीवन मं र्ठ सीदढ़यां पायी जा सकती हं, ख यी नहीं जा सकती हं। इसक ्मर् रखं। जीवन मं र्ठ सीदढ़यां पायी जा सकती हं ,
ख यी नहीं जा सकतीं। ख न का क ई रा्ता नहीं ह। ञान ललया जा सकता ह, उपल्ध ककया जा सकता ह, ख या नहीं जा सकता।
यह असंभव ह
पर ह ता ्या ह, हमार भीतर लशषा स, सं्कारं स कुि धालमजक बातं पदा ह जाती हं। उनक हम धमज समझ लत हं। व धमज नहीं हं,
व कवल सं्कार मार हं। सं्कार और धमज मं भद ह। बचपन स आपक लसखाया जाता ह कक आ्मा ह। आप भी सीख जात हं। रट
लत हं। याद ह जाता ह। यह आपकी मम री का, ्मतृ त का दह्सा ह जाता ह। बाद मं आप भी कहन लगत हं, आ्मा ह। और आप
समझत हं कक हम जानत हं कक भीतर आ्मा ह।
यह आ्मा आपक पास ह ही नहीं। लसफज एक खयाल आपक भीतर ह। और वह खयाल समाज न पदा कर ददया ह, वह भी आपका
नहीं ह। अपन अनुभव स जब आज्मक शज्तयं की ऊजाज जागती ह, त संसार की शज्तयां ततर दहत ह जाती हं। व कफर नहीं
पकड़ती हं।
इस ्मर् रखं। और जब तक पराजय ह ती ह , तब तक समझं कक जजस आपन धमज समझा ह, वह सुना हुआ धमज ह गा, जाना हुआ
धमज नहीं ह। ककसी न बताया ह गा, आपन अनुभव नहीं ककया ह। मां-बाप स सुना ह गा। परं पराओं न आपस कहा ह, आपक भीतर
घदटत नहीं हुआ ह। यातन रकाश, आप स चत हं कक ह; ह नहीं, इसललए अंधकार जीत जाता ह। और जब रकाश ह ता ह, उसका ह ना
ही अंधकार की पराजय ह। अंधकार स रकाश लड़ता नहीं ह, उसका ह ना ही, उसका एज्झ्टं स मार, उसकी सता मार अंधकार की
पराजय ह।
इस ्मर् रखं । और ज थ थी धालमजक रववृ तयां, आ्याज्मक रववृ तयां हारती हं, उ्हं थ था समझकर बाहर फंक दं । उनका क ई
मतलब नहीं ह। वा्तववक ववृ तयं क पदा करन की समझ तभी आपमं आएगी, जब थ थी ववृ तयं क फंकन की समझ आ जाए।
हममं स बहुत-स ल ग अ्यंत का्पतनक चीजं क ढ त रहत हं, ज उनक पास नहीं हं। यातन हम ऐस लभखमंगं मं स हं , ज अपन
क बादशाह समझ रहत हं, ज कक हम नहीं हं। इसललए जब खीस मं हाथ डालत हं और पस नहीं पात हं, त हम कहत हं, ‘यह
बादशाहत कसी ह!’ वह बादशाहत ह ही नहीं। लभखमंगं क एक श क ह ता ह, बादशाह क सपन दख लन का। और सभी लभखमंग
जमीन पर बादशाह ह न क सपन दखत रहत हं।
त जजतन हम सांसाररक ह त हं, उतन ही धालमजक ह न क सपन भी दखत हं। सपनं की कई तरकीबं हं। सुबह मंददर ह आत हं।
कभी कुि थ ड़ा दान-दषष्ा भी करत हं। कभी रत-उपवास भी रख लत हं। कभी क ई गीता, कुरान, बाइबबल भी पढ़ लत हं। त यह
रम पदा ह ता ह कक हम धालमजक हं। य सब धालमजक ह न का रम पदा करन क रा्त हं। और कफर जब य धालमजक रववृ तयां जरा-सी
सांसाररक रववृ त क सामन हार जाती हं, त बड़ा ्लश ह ता ह, बड़ा प्चाताप ह ता ह। और हम स चत हं, ‘धालमजक रववृ तयां ककतनी
कमज र हं और सांसाररक रववृ तयां ककतनी रबल हं!’ आपमं धालमजक रववृ तयां हं ही नहीं। धालमजक ह न का आप ध खा अपन क द रह
हं।
त ज रववृ त हारती ह वासना क समष, उस जानना कक वह लम्या ह। यह कस टी ह। ज आ्याज्मक रववृ त सांसाररक रववृ त क
सामन हारती ह , इस कस टी समझना कक वह लम्या ह, वह झूठी ह। जजस ददन क ई ऐसी रववृ त भीतर पदा ह जाए कक जजसक
म जूद ह त ही सांसाररक रववृ तयां ववलीन ह जाएं, ख ज स न लमलं , उस ददन समझना कक कुि घदटत हुआ ह; ककसी धमज का अवतर्
हुआ ह।
सुबह सूरज ऊग आए और अंधरा वस ही का वसा बना रह, त हम समझंग कक सपन मं दख रह हं कक सूरज ऊग आया ह। जब
सूरज ऊगता ह, अंधकार अपन आप ववलीन ह जाता ह। आज तक सूरज का अंधकार स लमलना नहीं हुआ ह। अभी तक सरू ज क
पता नहीं ह कक अंधकार भी ह ता ह। उसक पता ह भी नहीं सकता ह। आज तक आ्मा क पता नहीं ह कक वासना ह ती भी ह।
जजस ददन आ्मा जागती ह, वासना पायी नहीं जाती। उनकी अभी तक मुलाकात नहीं हुई ह।
एक आदमी उपवास कर रहा ह। हम समझत हं, तप्चयाज कर रहा ह। वह कवल भूखा मर रहा ह। और मं त यह भी कहता हूं कक
वह उपवास कर ही नहीं रहा ह। वह कवल अनाहार ह। अनाहार रहना, भ जन न करना एक बात ह। उपवास मं रहना बबलकुल दस
ू री
बात ह।
उपवास का मतलब ह, परमा्मा क तनकट तनवास। उपवास का अथज ह, आ्मा क तनकट ह ना। उपवास का अथज ह, आ्मा क
साज्न्य मं ह ना। और अनाहार का ्या मतलब ह? अनाहार का मतलब ह, शरीर क साज्न्य मं ह ना। व ववपरीत बातं हं।
भूखा आदमी शरीर क साज्न्य मं ह ता ह, आ्मा क साज्न्य मं नहीं। उसस त पट भरा हुआ आदमी कम साज्न्य मं ह ता ह
शरीर क। ्यंकक भूखा आदमी पूर व्त भूख की और पट की और शरीर क संबंध मं स चता ह। उसक चचंतन की धारा शरीर ह ती
ह। उसका आंतररक साज्न्य शरीर स और र टी स ह ता ह।
जजन ददनं का आपक ्मर् ह, जब य पूरब क मु्क धालमजक थ, भारत धालमजक था, व बड़ सम्
ृ चध क, बड़ सुख क, बड़ स भा्य क
ददन थ। महावीर और बु्ध राजाओं क पुर थ, जनं क च बीस तीथंकर राजाओं क पुर थ, यह आकज्मक नहीं ह। अभी तक ककसी
दररर घर मं क ई तीथंकर ्यं पदा नहीं हुआ?
भूख रहन का क ई मू्य नहीं ह, उपवास का मू्य ह। हां, यह ह सकता ह कक उपवास की हालत मं भ जन का ्मर् न रह और
अनाहार ह जाए। यह बबलकुल दस
ू री बात ह।
महावीर तप्चयाज करत थ, त भूख रहन की नहीं करत थ, उपवास की कर रह थ। उपवास का मतलब ह, व तनरं तर क लशश कर रह थ
कक आ्मा क साज्न्य मं पहुंच जाऊं। ककसी घड़ी जब व आ्मा क साज्न्य मं पहुंच जात थ, शरीर का ब ध भूल जाता था। य
घडड़यां लंबी ह सकती हं। एक ददन, द ददन, महीना भी बीत सकता ह।
महावीर क बाबत कहा जाता ह, बारह वषं की तप्चयाज मं उ्हंन कवल तीन स पचास ददन भ जन ललया। महीन और द -द महीन
भी बबना भ जन क बीत। आप स चत हं, भख
ू अगर रहत, त द महीन बीत सकत थ? भख
ू ा आदमी त मर जाता। लककन महावीर
नहीं मर, ्यंकक शरीर का ब ध ही नहीं था उन ष्ं मं । आ्मा की इतनी तनकटता थी, इतना साज्न्य था कक शरीर ह, इसका भी
पता नहीं था।
और यह बड़ रह्य की बात ह। अगर आपक शरीर ह, इसका पता न रह जाए, त शरीर बबलकुल दस
ू री ्यव्था स काम करन
लगता ह और उस भ जन की जररत नहीं रह जाती। अब यह एक बड़ी वञातनक बात ह। अगर आपक बबलकुल शरीर का ब ध न
रह जाए, त शरीर बहुत दस
ू री ्यव्था स काम करन लगता ह और उस भ जन की उतनी जररत नहीं रह जाती। और जजतना
्यज्त आज्मक जीवन मं रवव्ट ह ता ह, उतना ही वह भ जन स बहुत स्
ू म, बहुत सू्म शज्त क उ्प्न करना संभव उसक
ललए ह जाता ह, ज कक सामा्य ्यज्त क संभव नहीं ह ता।
त महावीर जब भूख रह, उसका कुल कार् इतना ह कक व आ्मा क इतन तनकट थ कक उ्हं याद नहीं रहा। पीि संभवतः एक
घटना घटी।
एक सं्यासी मर पास थ, व मुझस एक ददन ब ल कक ‘मं आज उपवास ककया हूं।’ मंन कहा, ‘अनाहार ककया ह गा, उपवास ्या ककया
ह गा!’ व ब ल, ‘अनाहार और उपवास मं ्या फकज ह?’ मंन कहा, ‘अनाहार मं यह ह कक हम भ जन ि ड़ दत हं और भ जन का चचंतन
करत हं। और उपवास का अथज यह ह कक हमं भ जन स क ई मतलब ही नहीं ह ता, हम आ्मा क चचंतन मं ह त हं और भ जन भूल
जाता ह।’
उपवास त तप्चयाज ह और अनाहार शरीर-क्ट ह, शरीर-दमन ह। अनाहार अहं कारी ल ग करत हं, उपवास तनरहं कारी करत हं।
अनाहार मं दं भ की तजृ ्त ह ती ह, मं इतन ददन अनाहार रहा! चारं तरफ रशंसा और सुख सुनन मं आता ह। चारं तरफ धालमजक ह न
की खबर फलती ह। थ ड़-स शरीर-क्ट मं इतन दं भ की तजृ ्त ह ती ह। त ज बहुत दं भी ह त हं, व इतना करन क राजी ह जात
हं।
यह मं आपस ्प्ट कहूं, य अहं कार की ही ववृ तयां हं। य धमज की ववृ तयां नहीं हं। धालमजक ्यज्त जरर उपवास करत हं, अनाहार नहीं
करत। उपवास का मतलब यह ह कक व सतत संल्न ह त हं इस च्टा मं कक आ्मा की तनकटता लमल जाए। और जब व आ्मा क
तनकट ह न लगत हं, त कभी ऐस म क आत हं कक भ जन भल
ू जाता ह, ्मर् नहीं ह ता।
इस मं हर तरह स आपक कहूं, यातन न कवल यह इस मामल मं , बज्क हर मामल मं सही ह। कल पीि मं स्स की और रम की
बात आपस कर रहा था या क ई और बात ह । ज आदमी स्स क दमन मं लगा ह, वह हमक तप्वी मालूम ह गा, जब कक वह
तप्वी नहीं ह। तप्वी वह ह, ज रम क ववकास मं लगा ह। और रम क ववकास स स्स अपन आप ववलीन ह जाएगा। परमा्मा
की तनकटता जस-जस लमलन लगगी, शरीर क बाबत बहुत-स पररवतजन ह जाएंग। शरीर की ृज्ट बदल जाएगी; दह-ृज्ट पररवततजत ह
जाएगी।
तप्चयाज मं उस ववञान क कहता हूं, जजसक मा्यम स ्यज्त, ‘मं दह हूं’, इस भूलकर, ‘मं आ्मा हूं’, इस जानता ह। तप्चयाज एक
ट्नीक की बात ह। तप्चयाज एक ट्नीक ह, एक सतु ह, एक रा्ता ह, जजसक मा्यम स ्यज्त मं दह हूं, इसक भूल जाता ह और
उस इस ब ध का ज्म ह ता ह कक मं आ्मा हूं।
लककन रांत तप्चयाजएं सारी दतु नया मं चली हं और उन रांत तप्चयाजओं न बड़ खतर पदा ककए हं। उनस कुि दं लभयं का दं भ त
त्ृ त ह ता ह, लककन जन-मानस क नक ु सान पहुंचता ह। ्यंकक जन-मानस समझता ह, यही तप्चयाज ह, यही साधना ह, यही य ग
ह। य कुि साधनाएं नहीं हं, कुि य ग नहीं हं।
और एक बात आपक कह दं ,ू ज ल ग इस तरह स शरीर-दमन मं उ्सुक ह त हं, व कुि ्यूर दटक ह त हं, थ ड़-स ववषष्त ह त हं।
और भी मं आपक एक बात कहूं कक ज ल ग अपन शरीर क क्ट दन मं मजा लत हं, य व ही ल ग हं, जज्हंन ककसी दस
ू र क
शरीर क क्ट दन मं मजा ललया ह ता। और यह कवल पररवतजन की बात ह कक ज क्ट इ्हंन दस
ू रं क दन मं मजा ललया ह ता,
य अपन ही शरीर क दकर ल रह हं। य दहंसक ल ग हं। यह आ्मदहंसा ह। यह अपन साथ दहंसा ह।
और यह भी मं आपक ्मर् ददला दं ,ू मनु्य क भीतर द तरह की ववृ तयां ह ती हं। एक उसमं जीवन की ववृ त ह ती ह कक मं
जीववत रहूं। आपक यह शायद पता न ह , उसमं एक म्ृ यु की ववृ त भी ह ती ह कक मं मर जाऊं। अगर म्ृ यु की ववृ त न ह , त
दतु नया मं आ्मह्याएं नहीं ह सकती हं। म्ृ यु की एक स यी हुई ववृ त, एक डथ इंज्टं ्ट हर आदमी क भीतर ह। य द नं उसक
साथ बठी हुई हं।
वह ज म्ृ यु की ववृ त ह, वह अनक बार आदमी क अपनी ही ह्या करन क ललए उ्सुक करती ह। उसमं भी रस आना शुर ह
जाता ह। कई ल ग एकदम आ्मह्या कर लत हं, कुि ल ग धीर-धीर करत हं। ज धीर-धीर करत हं, व हमं लगत हं, तप्वी हं। ज
एकदम कर लत हं, हम कहत हं, उ्हंन आ्मह्या कर ली। ज धीर-धीर करत हं, व हमं लगत हं, तप्वी हं।
तप्चयाज आ्मह्या नहीं ह। तप्चयाज का म्ृ यु स संबंध नहीं ह, अनंत जीवन स संबंध ह। तप्चयाज मरन क नहीं और प्
ू ज जीवन
क पान क उ्सुक ह ती ह।
और ्मर् रखखए, ज ल ग जजन चीजं क ि ड़कर भागत हं, व ल ग उ्हीं चीजं का चचंतन करत रहत हं। यह असंभव ह कक उनक
उ्हीं चीजं का चचंतन न चल। ्यंकक अगर व ऐस ल ग ह त कक उन चीजं का चचंतन उ्हं नहीं चलगा, त उनकी म जूदगी मं भी
नहीं चलता।
और मं आपक यह भी कहूं, चीजं जब म जूद ह ती हं, त उनका चचंतन नहीं चलता ह; जब व म जूद नहीं रह जाती हं, तब चचंतन
चलता ह। ्या आपक खद
ु इसका अनुभव नहीं ह? ज म जूद ह, उसका चचंतन नहीं चलता। चचंतन, ज म जूद नहीं रह जाता, उसका
चलता ह। जजनक आप रम करत हं, अगर व आपक तनकट हं , त आप उनक भूल जात हं; जब व दरू ह त हं, त व याद आन लगत
हं। व जजतन दरू ह त हं, उतनी रगाढ़ उनकी ्मतृ त घनी ह न लगती ह।
सं्यासी जजनक हम कहत हं, उनक क्ट का आपक पता नहीं ह। और अगर दतु नया क सार सं्यासी ईमानदार हं, त सं्यासी ह न
का रम टूट जाए। और अगर व ईमान स अपनी आ्म्यथा क कह दं , ज उनक भीतर घदटत ह ता ह और ज वदनाएं व सहत हं
और जजन वासनाओं स व रलसत ह त हं और ज वासनाएं उ्हं पीड़ा दती हं और ज शतान उ्हं सताता हुआ मालूम ह ता ह, अगर
व उस सबक ख ल दं , त आपक पता चल कक नकज जमीन पर और कहीं नहीं ह सकता ह। यह मं इसललए आपक वव्वास स कह
रहा हूं कक नकज जमीन पर और कहीं नहीं ह सकता ह, उस आदमी का जीवन नकज ह, जजसन ववृ तयं का समपररवतजन, ्ांसफामेशन त
नहीं ककया और ज भाग खड़ा हुआ ह।
तप्चयाज भागना नहीं ह, ्ांसफामेशन ह। तप्चयाज ररनंलसएशन नहीं ह, ्ांसफामेशन ह। तप्चयाज ्याग नहीं ह, समपररवतजन ह। उस
समपररवतजन स ज भी घदटत ह , वह ठीक ह। भागन स, ्यागन स ज भी घदटत ह , वह ठीक नहीं ह। और काश, हमं यह समझ मं
आ जाए, त बहुत लाभ ह सकता ह।
लाखं जीवा्माएं क्ट भ ग रही हं। उनका मजा एक ही ह, वह लसफज दं भ की तजृ ्त का ह। वह भी उनमं स थ ड़ं का त्ृ त ह पाता
ह, सभी का त्ृ त नहीं ह पाता। उसमं ज बहुत रततभाशाली ह त हं ककसी कार् स, उनका दं भ त त्ृ त ह जाता ह, शष लसफज क्ट
भ गत हं। लककन इस आशा मं कक शायद ्वगज लमलगा, शायद नकज स बच जाएंग, शायद म ष लमलगा। वही ल भ ज आपक पकड़
हुए ह, उ्हं पकड़ रहता ह। और ल भ बहुत-स क्ट सहन की साम्यज द दता ह। एक साधार् आदमी भी ल भ मं बहुत क्ट सह
लता ह। एक साधार् धन का कामी भी ककतन क्ट सहता ह धन क पान मं ! ्वगज क ल भी भी सह लत हं।
जब राइ्ट क ल ग ह्या क ललए सूली पर ल जान लग, त उनक एक लश्य न पूिा, ‘यह त बता दं , हमन आपक ललए यह सब
ि ड़ा, भगवान क रा्य मं हमार साथ ्या ्यवहार ह गा?’ उसन कहा, ‘हमन आपक ललए सब ि ड़ा, भगवान क रा्य मं हमार ललए
्या ्थान ह गा? ्या ्यवहार ह गा?’ राइ्ट न उस बहुत दया स दखा ह गा और शायद दयावश या मजाक मं , पता नहीं उ्हंन
्यं कहा, उ्हंन कहा, ‘भगवान क पास ही तु्हार ललए भी ्थान रहगा।’ वह आदमी खश
ु ह गया। उसन कहा, ‘तब ठीक ह।’
वह तप्चयाज झूठी ह, जजसमं लमलन का खयाल ह। ्यंकक वह तप्चयाज ही नहीं ह, वह ल भ का एक रप ह। इसललए जजतनी
तप्चयाजएं हं, आपक सब मं साथ लगा हुआ लमलगा पीि ही कक इस तप्चयाज क करन स यह लमलगा। और जजन-जजन न यह
तप्चयाज की पीि इततहास मं , उनक यह-यह लमला ह। य सब रीड क, ल भ क रप हं।
तप्वी वह ह, लसफज एक ही तप्चयाज ह और वह यह ह कक वह ्वयं क जानन मं लग। इस वजह स नहीं कक ्वयं क जानन स
क ई ्वगज मं जगह लमल जाएगी, क ई बदह्त मं जगह लमल जाएगी, क ई बड़ा सुख ह गा, बज्क इसललए कक ्वयं क न जानना
जीवन क ही नहीं जानना ह। और ्वयं क न जानना–जजसमं थ ड़ा भी ब ध ह, उस ्वयं क जानन की ववृ त का और ववचार का
पदा न ह जाना असंभव ह। उस ह ही जाएगा कक वह जान कक मं क न हूं, कक वह पररचचत ह कक मर भीतर यह जीवन-शज्त ्या
ह।
तप्चयाज जीवन-स्य क जानन का उपाय ह। तप्चयाज शरीर-दमन नहीं ह। हां, यह ह सकता ह कक तप्वी क बहुत-सी बातं घदटत
ह ती हं, ज आपक लगती हं कक वह दह-दमन कर रहा ह, जब कक वह नहीं कर रहा ह।
महावीर की मूततजयां दखी हं! उन मूततजयं स ्या ऐसा लगता ह कक इस आदमी न दह-दमन की ह गी? वसी दहं ददखायी पड़ती हं?
और कफर महावीर क पीि चलन वाल सं्यासी दख हं! उ्हं दखकर ही लगगा कक इ्हंन दह-दमन ककया ह। रख, सख
ू गए उनक
रा्र त हं। उदास और लशचथल उनकी काया ह, वसा ही चचत भी लशचथल ह। लसफज एक ल भ क वश खींच चल जा रह हं। वह आनंद
कहां ह, वह शांतत कहां ह, ज महावीर की मूततज मं ददखायी पड़ती ह?
यह थ ड़ा ववचार्ीय ह। महावीर क शरीर पर ज भी परर्ाम हुए हंग…। महावीर न व्र ि ड़ ददए। हम स च, उ्हंन व्र ि ड़
ददए, ्यंकक उ्हंन स चा कक व्र का ्याग करना चादहए। नहीं, ्यंकक उ्हंन जाना कक न्न ह न का भी आनंद ह।
मं आपक यह बहुत ए्फदटकली, बहुत ज र स कहना चाहता हूं। महावीर न व्र इसललए नहीं ि ड़ कक व्र ि ड़न मं क ई आनंद
ह, व्र इसललए ि ड़ कक न्न ह न मं क ई आनंद ह। न्न ह ना इतना आनंद ह कक व्र पहनना क्ट ह गया। न्न ह ना इतना
आनंद अनुभव हुआ कक व्र का ह ना क्ट ह गया। व्र फंक ददए।
उनक पीि चलन वाला सं्यासी जब व्र ि ड़ता ह, तब उस व्र ि ड़न मं आनंद नहीं ह ता, व्र ि ड़न मं क्ट ह ता ह। और
क्ट मानकर वह समझता ह, मं तप्चयाज कर रहा हूं। जस-जस व्र ि ड़ता ह, वह समझता ह, मं तप्चयाज कर रहा हूं। महावीर क
ललए वह तप्चयाज नहीं ह, कवल एक आनंद का कृ्य ह। उनक पीि अगर क ई चल रहा ह , बबना उ्हं समझ, उनकी आ्मा क
समझ, वह कवल व्र ि ड़गा। व्र ि ड़ना उसक ललए क्ट ह गा, इसललए इसक वह तप्चयाज कहगा।
तप्चयाज क्ट नहीं ह। तप्चयाज स बड़ा क ई आनंद नहीं ह। लककन ज उस बाहर स पकड़ंग, उ्हं वह क्ट ददखाई पड़गी, उ्हं वह
पीड़ा मालम
ू पड़गी। और उतनी पीड़ा उठान क बदल व अपन दं भ क त्ृ त करं ग जमीन पर और ल भ क त्ृ त करं ग परल क मं । मं
उसक तप्चयाज नहीं कहता हूं।
आप थ ड़ा स चं , अगर मं बरसात भर भी बाहर खड़ा रहूं, त ्या उसमं ्यादा तप्चयाज ह या इसमं कक जब मुझ क ई गाली द त
मर भीतर र ध न उठ? मं कांटं पर लटा रहूं, उसमं ्यादा तप्चयाज ह या इसमं कक जब मुझ क ई प्थर मार त मर दय स भीतर
उसक प्थर मारन की क्पना न उठ? ककस मं तप्चयाज ह?
तप्चयाज मार अ्यास नहीं ह कक ककसी चीज का अ्यास कर ललया। लककन हम अचधकतर जजनक तप्वी कहं ग, उनमं स स मं स
तन्यानब ल गं की हालत ऐसी ह। मुज्कल स कभी क ई वह आदमी लमलगा, जजसकी तप्चयाज उसक आनंद का फल ह। और जब
आनंद का फल ह ती ह तप्चयाज, तभी वह स्य ह ती ह। और जब वह दख
ु की आराधना ह ती ह, तब वह सुसाइडल इंज्टं ्ट, वह
आ्मह्या की ववृ त का रपांतर ह ती ह और कुि भी नहीं ह ती। वह धालमजक नहीं ह, वह ्यूर दटक ह; वह ववषष्त ह न की बात ह।
और दतु नया मं अगर समझ बढ़गी, त ऐस सं्यासी क हम चचकक्सालय भजंग, मंददर नहीं। और यह व्त आएगा ज्दी कक यह
समझ पदा ह गी। और हमं ऐस आदमी का इलाज करवाना पड़गा, ज अपन क क्ट दन मं रस ल रहा ह।
बीमारी स मु्त वह ह, ज शरीर का उपय ग कर रहा ह। शरीर स न त रस ल रहा ह, न उसक भ ग स, न उसक ्याग स। शरीर
कवल एक उपकर् ह। उसक दबाकर या उसक फुलाकर, उस पर जजसका न क ई सुख आधाररत ह, न क ई दख
ु आधाररत ह; जजसक
आनंद शरीर पर तनभजर नहीं हं, जजसक आनंद आ्मा पर तनभजर हं, वह आदमी सं्यास की तरफ गततमान ह। और जजसक आनंद
शरीर पर तनभजर हं…।
त द तरह क ल ग हं, जजनक आनंद शरीर पर तनभजर हं। एक व ल ग, ज ्यादा खाकर आनंद लत हं। एक व ल ग, ज अनाहार
रहकर आनंद लत हं। लककन द नं शरीर का आनंद ल रह हं। यातन अगर उनका क ई भी रस ह, त वह शरीर स बंधा हुआ ह।
इसललए भ गी और इस तल क सं्यासी, द नं क मं भ ततकवादी और शरीरवादी कहता हूं। धमज क इस शरीरवादी रपांतर स बहुत
अदहत हुआ ह। धमज क वापस, उसक आज्मक रपं क रतत्ठावपत करन की जररत ह।
इसीसंबंधमं एकअंततमर्नऔर।ककसीनपछ
ू ाहककरागऔररवरागऔरवीतरागमं ्याभदह?
ज मंन अभी बात कही, उस अगर समझंग, त राग का अथज ह, ककसी चीज मं आसज्त; ववराग का अथज ह, उस आसज्त का ववर ध।
एक ्यज्त धन इक्ठा करता ह, यह राग ह। और एक आदमी धन क लात मारकर भाग जाता ह, यह ववराग ह।
आप हरान हंग, जजनक पास धन ह, व भी आंकड़ रखत हं कक ककतना ह। और जज्हंन ि ड़ा ह, व भी आंकड़ रखत हं कक ककतना
ि ड़ा ह। साधओ
ु ं और सं्यालसयं की फहरर्तं तनकलती हं कक उ्हंन ककतन उपवास ककए हं! ककतन-ककतन रकार क उपवास ककए
हं, सबका दहसाब-ककताब रखत हं। ्यंकक ्याग का भी दहसाब ह ता ह, भ ग का भी दहसाब ह ता ह। राग भी दहसाब करता ह, ववराग
भी दहसाब करता ह। ्यंकक द नं की नजर एक ह, द नं का बबंद ु एक ह, द नं की पकड़ एक ह।
कबीर का एक लड़का था, कमाल। कबीर क अ्यंत ववराग की आदत थी। कमाल की आदतं उ्हं पसंद नहीं थीं। कमाल क क ई भं ट
कर जाता कुि, त कमाल रख लता। कबीर न उस कई बार कहा कक ‘ककसी की भं ट ्वीकार मत कर । हमं धन की क ई जररत
नहीं।’ उसन कहा, ‘अगर धन बकार ह, त नहीं कहन की भी ्या जररत ह? अगर धन बकार ह, त हम उसक मांगन नहीं गए, ्यंकक
बकार ह। कफर क ई यहां पटकन आ गया, त हम उस नहीं भी नहीं करत, ्यंकक बकार ह।’
कबीर क पसंद नहीं पड़ा। उ्हंन कहा कक ‘तुम अलग रह ।’ उनका ववराग इसस खंडडत ह ता था। कमाल अलग कर ददया गया। वह
अलग झ पड़ मं रहन लगा।
काशी क नरश लमलन जात थ। उ्हंन पूिा, ‘कमाल ददखाई नहीं पड़ता!’ कबीर न कहा, ‘उसक ढं ग मुझ पसंद नहीं। आचर् लशचथल
ह। अलग ककया ह। अलग रहता ह।’ पूिा, ‘्या कार् ह?’ कहा, ‘धन पर ल भ ह। क ई कुि दता ह, त ल लता ह।’
वह राजा गया। उसन एक बहुत बहुमू्य हीरा जाकर उसक पर मं रखा और नम्कार ककया। कमाल न कहा, ‘लाए भी त एक प्थर
लाए!’ कमाल न कहा, ‘लाए भी त एक प्थर लाए!’ राजा क हुआ कक कबीर त कहत थ कक उसका म ह ह। और वह त कहता ह कक
लाए भी त एक प्थर लाए! त वह उठाकर उस रखन लगा। त कमाल न कहा, ‘अगर प्थर ह, त अब वापस ढ न का क्ट मत
कर ।’ कमाल न कहा, ‘अगर प्थर ह, त वापस ढ न का क्ट मत कर । नहीं त अब भी तुम उसक हीरा समझ रह ह ।’ राजा ब ला,
‘यह त कुि चालाकी की बात ह।’ कफर उसन कहा कक ‘मं इस कहां रख दं ?ू ’ कमाल न कहा, ‘अगर पूित ह कक कहां रख दं ,ू त कफर
प्थर नहीं मानत। कहां रख दं ू पूित ह , त कफर प्थर नहीं मानत। डाल द । रखन की ्या बात ह!’ कफर उसन झ पड़ मं खंस
ददया सन ललयं मं । वह चला गया। उसन स चा कक यह त बईमानी की बात ह। मं मुड़ा और वह तनकाल ललया जाएगा।
वह िः महीन बाद वापस पहुंचा। उसन जाकर कहा कक ‘कुि समय पहल मं कुि भं ट कर गया था।’ कमाल न कहा, ‘बहुत ल ग भं ट
कर जात हं। और अगर उनकी भं टं मं मतलब ह ता, त या त हम उ्सक
ु ता स उनक रखत या उ्सक ु ता स ल टात।’ उसन कहा,
‘अगर उनकी भं टं मं क ई मतलब ह ता, त या त उ्सुकता स हम रखत या उ्सुकता स ल टात। लककन भं ट बमानी ह, इसललए
क न दहसाब रखता ह! जरर द गए ह ग। तुम कहत ह , त जरर द गए ह ग।’ उसन कहा, ‘वह भं ट ऐसी आसान नहीं थी; बहुत
बहुमू्य थी। कहां ह वह प्थर ज मं द गया था?’ कमाल न कहा, ‘यह त मुज्कल ह गयी। तुम कहां रख गए थ?’
उसन दखा झ पड़ मं जाकर, जहां उसन खंसा था, वह प्थर वहीं रखा हुआ था। वह हरान हुआ। उसकी आंख खल
ु ी।
यह आदमी अदभुत था। इसक ललए वह प्थर ही था। इसक मं वीतरागता कहूंगा। यह ववराग नहीं ह। यह ववराग नहीं ह, यह
वीतरागता ह।
राग ह ककसी क पकड़न मं रस। ववराग ह उसी क ि ड़न मं रस। वीतरागता का मतलब ह, उसका अथजहीन ह जाना; उसका
मीतनंगलस ह जाना। वीतरागता ही ल्य ह। वीतरागता ही ल्य ह। ज उस उपल्ध ह त हं , व परम आनंद क उपल्ध ह त हं।
्यंकक बाहर स उनक सार बंधन षी् ह जात हं।
एक और र्न इस संबंध मं ह कक मंन ज साधना की भूलमका कही ह, शरीर-शु्चध, ववचार-शु्चध और भाव-शु्चध की, ्या उसक
बबना ्यान असंभव ह?
नहीं, उसक बबना भी ्यान संभव ह, लककन बहुत कम ल गं क संभव ह। उसक बबना भी ्यान संभव ह, लककन बहुत कम ल गं क
संभव ह। अगर ्यान मं पररपू्ज संक्प स रवश ह , त इनमं स ककसी क भी श्ु ध ककए बबना ्यान मं रवश ह सकता ह। और
रवश ह त ही य सब शु्ध ह जाएंग। लककन अगर यह संभव न ह , इतना संक्प जुटाना आसान न ह –बहुत मुज्कल ह इतना
संक्प जुटाना–त कफर रमशः इनक शु्ध करना पड़गा।
इनक शु्ध ह न स ्यान नहीं लमलगा, इनक शु्ध ह न स संक्प की रगाढ़ता लमलगी। इनक श्
ु ध ह न स इनकी अशु्चध मं ज
शज्त ्यय ह ती ह, वह बचगी और वह शज्त संक्प मं परर्त ह गी और ्यान मं रवश ह गा। य सहय गी हं, अतनवायज नहीं हं।
त जजनक भी संभव न मालूम पड़ कक ्यान मं सीधा रवश ह सकता ह, उनक ललए अतनवायज हं, अ्यथा उनका ्यान मं रवश ही
नहीं ह सकगा। लककन अतनवायज इसललए नहीं हं कक अगर ककसी मं बहुत रगाढ़ संक्प ह , त एक ष् मं भी बबना कुि ककए
्यान मं रवश ह सकता ह। एक ष् मं भी! अगर क ई अपन पूर रा्ं क इक्ठा पुकार और कूद जाए, त क ई वजह नहीं ह कक
उस क ई र कन क ह। क ई र कन क नहीं ह, क ई अशु्चध र कन क नहीं ह। लककन उतन पुुषाथज क पुकारना कम ल गं का
स भा्य ह। उतन साहस क जुटा लना कम ल गं का स भा्य ह। उतना साहस व ही ल ग जुटा सकत हं, जस मं एक कहानी कहूं।
एक आदमी था, उसन स चा कक दतु नया का अंत जरर कहीं ह गा। त वह ख जन तनकला। वह दतु नया का अंत ख जन तनकला। वह
गया। वह चला। हजारं मील चलना पड़ा। और ल गं स पि
ू ता रहा कक ‘मझ
ु दतु नया का अंत ख जना ह।’
आखखर मं एक मंददर आया और उस मंददर क वहां ललखा था, ‘दहयर एं्स दद व्डज।’ वहां एक त्ती लगी थी, उस पर ललखा था, ‘यहां
दतु नया समा्त ह ती ह।’ वह बहुत घबरा गया। त्ती आ गयी। थ ड़ी ही दरू मं दतु नया समा्त ह ती ह। नीच त्ती क ललखा था,
‘आग मत जाना।’
लककन उस दतु नया का अंत दखना था, वह आग गया। थ ड़ ही फासल पर जाकर दतु नया समा्त ह जाती थी। एक ककनारा था और
नीच ख्ड था अनंत। उसन जरा ही आंख की, और उसक रा् कंप गए। वह ल टकर भागा। वह पीि ल टकर भी नहीं दख सकता।
वहां अनंत ख्ड था। ि ट ख्ड घबरा दत हं ; अनंत! दतु नया का अंत था। ख्ड अंततम था। और कफर उस ख्ड क नीच कुि भी
नहीं था। उसन दखा और वह भागा।
वह घबराहट मं मंददर क अंदर चला गया और उसन पुजारी स कहा, ‘यह अंत त बड़ा खतरनाक ह।’ उस पुजारी न कहा, ‘अगर तुम
कूद जात, त जहां दतु नया समा्त ह ती ह, वहीं परमा्मा लमल जाता ह।’ उसन कहा, ‘अगर तुम कूद ही जात उस ख्ड मं , त जहां
दतु नया समा्त ह ती ह, वहीं परमा्मा लमल जाता ह।’
लककन उतना साहस जुटाना कक अनंत ख्ड मं क ई कूद जाए, जब तक न ह , तब तक ्यान क ललए भूलमकाएं जररी हं। और अनंत
ख्ड मं कूदन क ललए ज राजी ह, उसक ललए क ई भूलमका नहीं ह। क ई भूलमका ह ती ह ्या? क ई भूलमका नहीं ह। इसललए इन
भूलमकाओं क हम बदहरं ग साधन कह हं। य बाहर क साधन हं, थ ड़ी सहायता दं ग। साहस जजसमं ह , वह सीधा कूद जाए। न साहस
ह , सीदढ़यं का उपय ग कर। यह ्मर् रखंग।
आजइतनाही।
्यान–सर
ू (ओश )रवचन–सातवां
मरररयआ्मन ्,
साधना की भलू मका क पररचध बबंदओ
ु ं पर हमन बात की ह। अब हम उसक कंरीय ्वरप पर भी ववचार करं ।
शरीर, ववचार और भाव, इनकी श्
ु चध और इनका श्
ु ध ्वरप उपल्ध करना राथलमक भलू मका ह। उतना भी ह , त जीवन मं बहुत
आनंद फललत ह ता ह। उतना भी ह , त जीवन मं बहुत दद्यता आती ह। उतना भी ह , त हम अल ककक स संबंचधत ह जात हं।
लककन वह अल ककक स संबंध ह, अल ककक मं लमलन नहीं। वह अल ककक स संबंचधत ह ना ह, लककन अल ककक स एक ह जाना
नहीं। वह परमा्मा क जानना ह, लककन परमा्मा स सज्मललत ह जाना नहीं। शु्चध की भूलमका परमा्मा की तरफ उ्मुख करती
ह और परमा्मा पर ृज्ट क ल जाती ह। उसक बाद शू्य की ृज्ट परमा्मा स लमलन कराती ह और परमा्मा स एक कर दती
ह।
पहली पररचध पर हम स्य क जानत हं, दस
ू र कंर पर हम स्य ह जात हं। अब हम उस दस
ू री बात का ववचार करं । पहल त्व क
मंन शु्चध कहा, दस
ू र त्व क शू्य कह रहा हूं। शू्य क भी तीन चर् हंग–शरीर पर, ववचार पर और भाव पर।
शरीर की शू्यता शरीरतादा््य का ववर ध ह। शरीर क साथ हमारा तादा््य ह, एक आइडंदटटी ह। हमं ऐसा रतीत नहीं ह ता कक
हमारा शरीर ह। ककसी तल पर हमं रतीत ह ता रहता ह, मं शरीर हूं। मं शरीर हूं, यह भाव ववलीन ह जाए, त शरीर-शू्यता घदटत
ह गी। शरीर क साथ मरा तादा््य टूट जाए, त शरीर-शू्यता घदटत ह गी।
लसकंदर जब भारत स वापस ल टता था, त उसन चाहा कक वह एक फकीर क भारत स ल जाए, ताकक वह यन
ू ान मं ददखा सक कक
फकीर, भारतीय फकीर कसा ह ता ह। यंू त बहुत फकीर जान क राजी थ, उ्सकु थ। लसकंदर आमंबरत कर, शाही स्मान स ल जाए,
त क न जाना पसंद न करगा! लककन ज -ज उ्सक ु थ, लसकंदर न उ्हं ल जाना ठीक न समझा। ्यंकक ज उ्सक ु थ, इसस ही
जादहर था कक व फकीर नहीं थ। लसकंदर उस फकीर की क लशश मं रहा, जजस ल जाना अथज का ह ।
जब वह सीमांत रदशं स वापस ल टता था, त एक फकीर का पता चला। ल गं न कहा, ‘एक साधु ह नदी क तट पर, अर्य मं , उस
ल जाएं।’ वह गया। उसन पहल अपन सतनक भज और उस फकीर क कहलवाया। सतनकं न जाकर कहा कक ‘तु्हारा ध्यभाग ह।
सकड़ं न तनवदन ककया लसकंदर स कक हमं ल चल , उसन अभी ककसी क चन ु ा नहीं ह। और महान लसकंदर की कृपा तु्हार ऊपर हुई
ह और उसन चाहा ह कक तुम चल । शाही स्मान स तु्हं यूनान ल जाएं।’ उस फकीर न कहा, ‘फकीर क ल जान की ताकत ककसी
मं भी नहीं ह।’
सतनक हरान हुए। ववजता लसकंदर क सतनक थ, और एक नंगा फकीर ऐसा कह! उ्हंन कहा, ‘भूलकर ऐस श्द दबु ारा मत तनकालना,
अ्यथा जीवन स हाथ ध बठ ग।’ उस फकीर न कहा, ‘जजस जीवन क हम ि ड़ चक ु , उसस अब िुड़ान वाला क ई भी नहीं ह। और
जाकर अपन लसकंदर क कह , उसक जाकर कह कक तु्हारी ताकतं सब जीत लं , उस नहीं जीत सकती हं, जजसन अपन क जीत
ललया ह ।’ उसन कहा, ‘जाकर कह कक तु्हारी ताकतं सब जीत लं , लककन उस नहीं जीत सकती हं, जजसन अपन क जीत ललया ह ।’
इसललए कृ्् न कहा कक जजस अज्न न जला सक और जजस बा् िद न सकं और जजस तलवार त ड़ न सक, वसी क ई सता, वसी
क ई अंतरा्मा हमार भीतर ह। जजस अज्न न जला सक और जजस बा् न बध सकं, वसी क ई अवव्िद सता हमार भीतर ह।
उस सता का ब ध और शरीर स तादा््य का टूट जाना; यह भाव टूट जाना कक मं दह हूं, शरीर की शू्यता ह। इस त ड़न क ललए
कुि करना ह गा। इस त ड़न क ललए कुि साधना ह गा। और शरीर जजतना शु्ध ह गा, उतनी आसानी स शरीर स संबंध ववज्ि्न
ह सकता ह। शरीर जजतनी शु्ध ज्थतत मं ह गा, उतनी शीरता स यह जाना जा सकता ह कक मं शरीर नहीं हूं। इसललए वह शरीर-
शु्चध भूलमका थी, शरीर-शू्यता उसका चरम फल ह।
कस हम साधंग कक मं शरीर नहीं हूं? यह अनभ ु व ह जाए। एक बात, उठत-बठत, स त-जागत अगर हम थ ड़ा ्मर्पव
ू क
ज दखं , अगर
थ ड़ी राइट माइंडफुलनस ह , अगर थ ड़ी ्मतृ त ह शरीर की करयाओं क रतत, त पहला चर् श्ू यता लान का रमशः ववकलसत ह ता
ह।
जब आप रा्त पर चलत हं, त जरा अपन भीतर ग र स दखं , वहां क ई ऐसा भी ह, ज नहीं चल रहा ह! आप चल रह हं, आपक
हाथ-पर चल रह हं। आपक भीतर क ई ऐसा त्व भी ह, ज बबलकुल नहीं चल रहा ह! ज मार आपक चलन क दख रहा ह। जब
हाथ-पर मं ददज ह , पर पर च ट लग गयी ह , त जरा भीतर सजग ह कर दखं , च ट आपक लग गयी ह या च ट दह क लगी ह और
आप च ट क जान रह हं! जब क ई पीड़ा ह शरीर पर, त जरा सजग ह कर दखं कक पीड़ा आपक ह रही ह या आप कवल पीड़ा क
साषी हं, पीड़ा क दशजक हं ! जब भूख लग, त ्मर्पूवक
ज दखं , भूख आपक लगी ह या दह क लगी ह और आप कवल दशजक हं! और
जब क ई खश
ु ी आए, त उसक भी दखं और अनुभव करं कक वह खश
ु ी कहां घदटत हुई ह!
हमारी आदतं तादा््य की घनी हं। अगर आप एक कफ्म भी दखत हं, एक नाटक दखत हं, त यह ह सकता ह कक आप कफ्म या
नाटक दखत हुए र न लगं । यह ह सकता ह कक आप हं सन लगं । यह ह सकता ह कक जब रकाश जल भवन मं , त आप च री स
अपन आंसू पंि लं कक क ई दख न ल। आप र ए, एक चचर क दखकर आपन तादा््य ककया। चचर क ककसी नायक स, ककसी पार
स आपन तादा््य कर ललया। उस पर पीड़ा घटी ह गी, वह पीड़ा आप तक संरलमत ह गयी और आप र न लग।
मनु्य क अंतस जीवन मं भी शरीर पर ज घदटत ह रहा ह, चतना उस ‘मुझ पर ह रहा ह’, ऐसा मानकर दख
ु ी और पीडड़त ह। सार
दख
ु का एक ही कार् ह कक हमारा शरीर स तादा््य ह। और सार आनंद का भी एक ही कार् ह कक शरीर स तादा््य ववज्ि्न
ह जाए, हमं यह ्मर् आ जाए कक हम दह नहीं हं।
त उसक ललए स्यक ्मतृ त, दह की करयाओं क रतत स्यक ्मतृ त, राइट अवयरनस, दह की करयाओं का स्यक दशजन, स्यक
तनरीष् रकरया ह। दह-शू्यता आएगी दह क रतत स्यक तनरीष् स।
आप जानत हं, जब आप ्व्न मं ह त हं, त आपक अपनी दह की ्मतृ त नहीं रह जाती ह। और आप जानत हं, जब आप गहरी
तनरा मं जात हं, त आपक अपनी दह का पता रह जाता ह? ्या आपक अपना चहरा याद रह जाता ह?
जजस भांतत हम राबर का ्यान कर रह हं, उसी भांतत सार शरीर क लशचथल ि ड़कर, र्यक चर पर सुझाव दकर शरीर क लशचथल
ि ड़कर, अंधकार करक कमर मं , ्यान मं रवश करं । जब शरीर लशचथल ह जाए, जब ्वास लशचथल ह जाए और जब चचत शांत ह
जाए, त एक भावना करं कक आप मर गए हं, आपकी म्ृ यु ह गयी ह। और ्मर् करं अपन भीतर कक अगर मं मर गया हूं, त मर
क न स वरयजन मर आस-पास इक्ठ ह जाएंग! उनक चचरं क अपन आस-पास उठत हुए दखं। व ्या करं ग, उनमं क न र एगा,
क न चच्लाएगा, क न दख
ु ी ह गा, उन सबक बहुत ्प्टता स दखं । व सब आपक ददखायी पड़न लगं ग।
कफर दखं कक मह
ु ्ल-पड़ स क और सार वरयजन इक्ठ ह गए और उ्हंन लाश क आपकी उठाकर अब अथी पर बांध ददया ह।
उस भी दखं । और दखं कक अथी भी चली और ल ग उस लकर चल। और उस मरघट तक पहुंच जान दं । और उ्हं उस चचता पर भी
रखन दं ।
यह सब दखं। यह पूरा इमजजनशन ह, यह पूरी क्पना ह। इस पूरी क्पना क अगर थ ड़ ददन रय ग करं , त बहुत ्प्ट दखं ग।
और कफर दखं , उ्हंन चचता पर आपकी लाश क भी रख ददया। और लपटं उठी हं और आपकी लाश ववलीन ह गयी।
जब यह क्पना इस जगह पहुंच कक लाश ववलीन ह गयी और धआु ं उड़ गया आकाश मं और लपटं हवाएं ह गयी हं और राख पड़ी
ह, तब एकदम स सजग ह कर अपन भीतर दखं कक ्या ह रहा ह! उस व्त आप अचानक पाएंग, आप दह नहीं हं। उस व्त
तादा््य एकदम टूटा हुआ ह जाएगा।
इस रय ग क अनक बार करन पर जब आप उठ आएंग रय ग करन क बाद भी, चलंग, बात करं ग, और आपक पता लगगा, आप दह
नहीं हं। इस अव्था क हमन ववदह कहा ह–इस अव्था क । इस रकरया क मा्यम स ज जानता ह अपन क , वह ववदह ह जाता
ह।
अगर यह च बीस घंट सध जाए और आप चलं , उठं -बठं , बात करं और आपक ्मर् ह कक आप दह नहीं हं, त दह श्
ू य ह गयी।
त यह दह श्
ू य ह जाना अदभत
ु ह। यह अदभत
ु ह, इसस अदभत
ु क ई घटना नहीं ह। दह का तादा््य टूट जाना सबस अदभत
ु ह।
तब अगर क ई आपक तलवार भंक द, त आप दखंग, उसन दह मं तलवार भंक दी और आपक कुि भी पता नहीं चलगा कक
आपक कुि हुआ। आप अ्पलशजत रह जाएंग। उस व्त आप कमल क पत की तरह पानी मं हंग। उस व्त, जब दह-शू्यता का
ब ध ह गा, तब आप ज्थतरञ की भांतत जीवन मं जीएंग। तब बाहर क क ई आवतज और बाहर क क ई तूफान और आंचधयां आपक
नहीं िू सकंगी, ्यंकक व कवल दह क िूती हं। उनक संघात कवल दह तक ह त हं, उनकी च टं कवल दह तक पड़ती हं। लककन
भूल स हम समझ लत हं कक व हम पर पड़ीं, इसललए हम दख
ु ी और पीडड़त और सुखी और सब ह त हं।
यह आंतररक साधना का, कंरीय साधना का पहला चर् ह। हम दह-शू्यता क साधं। यह सध जाना कदठन नहीं ह। ज रयास करत
हं, व तनज्चत सफल ह जात हं।
दस
ू रा त्व आंतररक साधना का ववचार-शू्यता ह। जजस भांतत मंन कहा कक स्यक तनरीष् स दह क दह-शू्यता घदटत ह ती ह,
उसी तरह ववचार क स्यक तनरीष् स ववचार-शू्यता घदटत ह ती ह। इस आंतररक साधना का मूल त्व स्यक तनरीष् ह, राइट
आ्जवेशन ह। इन तीनं चर्ं मं –शरीर पर, ववचार पर और भाव पर–स्यक ्मर् और स्यक तनरीष्, दखना।
ववचार की ज धाराएं हमार चचत पर द ड़ती हं, कभी उनक मार तनरीषक ह जाएं। जस क ई नदी क ककनार बठा ह और नदी की
भागती हुई धार क दख; लसफज ककनार बठा ह और दख। या जस क ई जंगल मं बठा ह , पषषयं की उड़ती हुई कतार क दख; लसफज
बठा ह और दख। या क ई वषाज क आकाश क दख और बादलं की द ड़ती हुई, भागती पंज्तयं क दख। वस ही अपन मन क
आकाश मं ववचार क द ड़त हुए मघं क , ववचार क उड़त हुए पषषयं क , ववचार की बहती हुई नदी क चप
ु चाप तट पर खड़ ह कर
दखना ह। जस हम ककनार पर बठ हं और ववचार क दख रह हं। ववचार क उ्मु्त ि ड़ दं , ववचार क बहन दं और भागन दं और
द ड़न दं और आप चप
ु बठकर दखं । आप कुि भी न करं । क ई िड़िाड़ न करं । क ई ुकाव न डालं । क ई दमन न करं । क ई ववचार
आता ह , त र कं न; न आता ह , त लान की च्टा न करं । आप मार तनरीषक हं।
उस मार तनरीष् मं ददखायी पड़ता ह, अनुभव ह ता ह, ववचार अलग हं और मं अलग हूं। ्यंकक ब ध ह ता ह कक ज ववचारं क
दख रहा ह, वह ववचारं स पथ
ृ क ह गा, अलग ह गा, लभ्न ह गा। और जब यह ब ध ह ता ह, त अदभुत शांतत घनी ह न लगती ह।
्यंकक तब क ई चचंता आपकी नहीं ह। आप चचंताओं क बीच मं ह सकत हं, चचंता आपकी नहीं ह। आप सम्याओं क बीच मं ह
सकत हं, सम्या आपकी नहीं ह। आप ववचारं स तघर ह सकत हं, ववचार आप नहीं हं।
और अगर यह खयाल आ जाए कक मं ववचार नहीं हूं, त ववचारं क रा् टूटन शुर ह जात हं, ववचार तनजीव ह न लगत हं। ववचारं
की शज्त इसमं ह कक हम यह समझं कक व हमार हं। जब आप ककसी स वववाद करन पर उतर जात हं , त आप कहत हं, ‘मरा
ववचार!’ क ई ववचार आपका नहीं ह। सब ववचार अ्य हं और लभ्न हं, आपस अलग हं। उनका तनरीष्।
उसन कहा कक ‘यह हुआ कक जब मं गया, द मील का फासला था, रा्त मं मुझ व भ जन ्मर् आए, ज मुझ रीततकर हं। और
जब मं उस ्वार पर गया, त उस राववका न व ही भ जन बनाए थ। मं हरान हुआ। मंन स चा, संय ग ह। लककन कफर यह हुआ कक
जब मं भ जन करन बठा, त मर मन मं यह खयाल आया कक र ज अपन घर था, भ जन क बाद द ष् ववराम करता था। आज
क न ववराम करन क कहगा! और जब मं यह स चता था, तभी उस राववका न कहा, भंत, अगर भ जन क बाद द ष् ुकंग और
ववराम करं ग, त अनुरह ह गा, त कृपा ह गी, त मरा घर पववर ह गा। त मं हरान हुआ था। कफर भी मंन स चा कक संय ग ह गा कक
मर मन मं खयाल आया और उसन भी कह ददया। कफर मं लटा और ववराम करन क था कक मर मन मं यह खयाल उठा कक आज
न अपनी क ई श्या ह, न क ई साया ह। आज दस ू र का ि्पर और दस
ू र की दरी पर, दस
ू र की चटाई पर लटा हूं। और तभी उस
राववका न पीि स कहा, लभषु, न श्या आपकी ह, न मरी ह। और न साया आपका ह, न मरा ह। और तब मं घबरा गया। अब संय ग
बार-बार ह न मुज्कल थ। मंन उस राववका क कहा, ्या मर ववचार तुम तक पहुंच जात हं? ्या मर भीतर चलन वाली ववचारधाराएं
तु्हं पररचचत ह जाती हं? उस राववका न कहा, ्यान क तनरं तर करत-करत अपन ववचार शू्य ह गए हं और अब दसू रं क ववचार
भी ददखायी पड़त हं। तब मं घबरा गया और मं भागा हुआ आया हूं। और मं षमा चाहता हूं, कल मं वहां नहीं जा सकंू गा।’
बु्ध न कहा, ‘्यं?’ उसन कहा कक ‘इसललए कक…कस कहूं, षमा कर दं और न कहं वहां जान क ।’ लककन बु्ध न आरह ककया और
उस लभषु क बताना पड़ा। उस लभषु न कहा, ‘उस सुंदर युवती क दखकर मर मन मं ववकार भी उठ थ, व भी पढ़ ललए गए हंग। मं
ककस मुंह स वहां जाऊं? कस मं उस ्वार पर खड़ा ह ऊंगा? अब दबु ारा मं नहीं जा सकता हूं।’ बु्ध न कहा, ‘वहीं जाना ह गा। यह
तु्हारी साधना का दह्सा ह। इस भांतत तु्हं ववचारं क रतत जागर् पदा ह गा और ववचारं क तुम तनरीषक बन सक ग।’
मजबरू ी थी, उस दस
ू र ददन कफर जाना पड़ा। लककन दस
ू र ददन वही आदमी नहीं जा रहा था। पहल ददन वह स या हुआ गया था रा्त
पर। पता भी न था कक मन मं क न-स ववचार चल रह थ। दस ू र ददन वह सजग गया, ्यंकक अब डर था। वह ह शपूवकज गया। और
जब उसक ्वार पर गया, त ष्भर ठहर गया सीदढ़यां चढ़न क पहल। अपन क उसन सचत कर ललया। उसन भीतर आंख गड़ा
ली। बु्ध न कहा था, भीतर दखना और कुि मत करना। इतना ही ्मर् रह कक अनदखा क ई ववचार न ह , अनदखा क ई ववचार
न ह । बबना दख हुए क ई ववचार तनकल न जाए, इतना ही ्मर् रखना बस।
वह सीदढ़यां चढ़ा, अपन भीतर दखता हुआ। उस अपनी सांस भी ददखायी पड़न लगी। उस अपन हाथ-पर का हलन-चलन भी ददखायी
पड़न लगा। उसन भ जन ककया, एक क र भी उठाया, त उस ददखायी पड़ा। जस क ई और भ जन कर रहा था और वह दखता था।
जब आप दशजक बनंग अपन ही, त आपक भीतर द त्व ह जाएंग, एक ज करयमा् ह और एक ज कवल साषी ह। आपक भीतर
द दह्स ह जाएंग, एक ज कताज ह और एक ज कवल र्टा ह।
उसन दखा, वह हरान हुआ। वह नाचता हुआ वापस ल टा। और उसन बु्ध क जाकर कहा, ‘ध्य ह, मुझ कुि लमल गया। द अनुभव
हुए हं; एक त यह अनुभव हुआ कक जब मं बबलकुल सजग ह जाता था, त ववचार बंद ह जात थ।’ उसन कहा, ‘एक अनुभव त यह
हुआ कक जब मं बबलकुल सजग ह कर दखता था भीतर, त ववचार बंद ह जात थ। दस ू रा अनुभव यह हुआ कक जब ववचार बंद ह
जात थ, तब मंन दखा, कताज अलग ह और र्टा अलग ह।’ बु्ध न कहा, ‘इतना ही सूर ह। ज इस साध लता ह, वह सब साध लता
ह।’
ववचार क र्टा बनना ह, ववचारक नहीं। ्मर् रह, ववचारक नहीं, ववचार क र्टा।
इसललए हम अपन ऋवषयं क र्टा कहत हं, ववचारक नहीं। महावीर ववचारक नहीं हं, बु्ध ववचारक नहीं हं। य र्टा हं। ववचारक त
बीमार आदमी ह। ववचार व करत हं, ज जानत नहीं हं। ज जानत हं, व ववचार नहीं करत, व दखत हं। उ्हं ददखायी पड़ता ह, उ्हं
दशजन ह ता ह। और दशजन की प्धतत अपन भीतर ववचार का तनरीष् ह। उठत-बठत, स त-जागत, अपन भीतर ज भी ववचार की
धारा चलती ह , उस दखं। और ककसी भी ववचार क साथ तादा््य न करं कक इस ववचार क साथ मं एक ह गया। ववचार क अलग
चलन दं , आप अलग चलं। आपक भीतर द धाराएं ह नी चादहए।
साधार् आदमी क भीतर एक धारा ह ती ह, मार ववचार की। साधक क भीतर द धाराएं ह ती हं, ववचार की और दशजन की। साधक क
भीतर द परलल, द समानांतर धाराएं ह ती हं, ववचार की और दशजन की। सामा्य आदमी क भीतर एक धारा ह ती ह, मार ववचार
की। और लस्ध क भीतर भी एक ही धारा ह ती ह, मार दशजन की। इस समझ लं।
साधार् आदमी क भीतर एक धारा ह ती ह, ववचार की। दशजन स या हुआ ह ता ह। साधक क भीतर द धाराएं ह ती हं समानांतर,
ववचार की और दशजन की। लस्ध क भीतर भी एक ही धारा रह जाती ह, दशजन की; ववचार मत
ृ ह जाता ह।
त हमं ववचार स दशजन तक पहुंचना ह, त हमं ववचार और दशजन की समानांतर साधना करनी ह गी। अगर ववचार स दशजन तक
पहुंचना ह, त हमं ववचार की और दशजन की समानांतर साधना करनी ह गी। उसक मं स्यक तनरीष् कह रहा हूं, उसक स्यक
्मतृ त कह रहा हूं। उसक महावीर न वववक कहा ह। ववचार और वववक। ज ववचार क भी दखता ह, वह वववक ह। ववचारक लमल
जान त बहुत आसान हं। जजनका वववक जारत ह , वस ल ग बहुत कदठन हं।
जब मं ककसी क घ् ृ ा करता हूं, त ्या मर भीतर ककसी बबंद ु क यह पता नहीं चलता कक मं घ्
ृ ा कर रहा हूं? और जब मं ककसी
क रम करता हूं, त ्या मर भीतर ककसी क यह पता नहीं चलता कक मं रम कर रहा हूं? जजसक पता चलता ह, वह रम स पीि
ह, घ्
ृ ा स पीि ह। वही हमारी आ्मा ह, ज शरीर क और ववचार क और भाव क, सबक पीि ह।
इसललए पुरान रंथ उस कहत हं, नतत-नतत। न वह दह ह, न वह ववचार ह, न वह भाव ह। वह कुि भी नहीं ह। जहां कुि भी नहीं शष
रह जाता, वहीं कवल वह दशजक, वह र्टा, वह साषी चत्य हमारी आ्मा ह।
त भाव की धारा क रतत भी र्टा ब ध रखना ह। आखखर मं उसक बचा लना ह, ज कवल दशजन ह। ज शु्ध दशजन मार ह, उस
बचा लना ह। वही शु्ध दशजन रञा ह। उसी शु्ध दशजन क हमन ञान कहा ह। उसी शु्ध दशजन क हम आ्मा कहत हं। य ग का
और धमं का चरम ल्य वही ह।
अंतरं ग साधना मं मूल त्व ह, स्यक तनरीष्–दह की करयाओं का, ववचार की रकरयाओं का, भाव की अंतरं ग धाराओं का। इन तीनं
पतं क ज पार करक साषी क पकड़ लता ह, उस ककनारा लमल गया। उस ककनारा ्या, उस ल्य लमल गया। और ज इन तीन मं
स ककसी स बंधा रहता ह, वह ककनार स बंधा हुआ ह। उस अभी ल्य नहीं लमला।
एक कहानी मंन पढ़ी थी, सुनी थी। एक रात, पूख्जमा की रात थी–जस आज ह–और चांद पूरा था और बहुत सुंदर रात थी। और कुि
लमरं क हुआ कक व न का-ववहार क तनकलं। व आधी रात गए न का-ववहार क गए। और आनंद मनान गए थ, त उ्हंन नाव मं
रवश क पहल खब
ू शराब पी। कफर व नाव मं बठ। कफर उ्हंन पतवारं उठायीं और नाव क उ्हंन चलाना शुर ककया। कफर उ्हंन
बहुत नाव क चलाया।
कफर सब
ु ह का व्त आन लगा और ठं डी हवाएं आ गयीं और उनका नशा उखड़ा और उ्हंन स चा, ‘हम ककतन चल आए हंग!
रातभर नाव चलायी ह!’ और उ्हंन ग र स दखा, व उसी तट क ककनार खड़ थ, जहां व रात आए थ। और तब उ्हंन जाना कक व
भल
ू गए थ। पतवार त उ्हंन बहुत चलायी थी, लककन नाव क नदी क ककनार स ि ड़ना भल ू गए थ। और जजसन अपनी नाव नदी
क ककनार स नहीं ि ड़ ली ह, वह अनंत परमा्मा क सागर मं ककतना ही तड़फ, ककतना ही चच्लाए, उसकी क ई गतत नहीं ह गी।
आपकी चतना की नाव कहां बंधी ह? दह स बंधी ह, ववचार स बंधी ह, भाव स बंधी ह। आपकी चतना की नाव दह स बंधी ह, ववचार
स बंधी ह, भाव स बंधी ह, यह आपका ककनारा ह। और नश मं आप ककतनी ही पतवार चलात रहं , एक ज्म, अनंत ज्म। और अनंत
ज्मं क बाद भी जब ठं डी हवाएं लगं गी ककसी सत ववचार की, ककसी सत दशजन की, ककसी रकाश ककर् का जब ध्का लगगा और
आप जागकर दखंग, त पाएंग, अनंत ज्मं की पतवार चलाना ्यथज चला गया। हम उसी ककनार खड़ हं , हम वहीं बंध हं, जहां हमन
शुर ककया था। और तब एक बात ददखायी पड़गी, नाव क ख लना भूल गए थ।
नाव क ख लना सीखना जररी ह। पतवार चलाना बहुत आसान, नाव क ख ल लना बहुत कदठन ह। साधार्तया नाव क ख ल लना
बहुत आसान ह ता ह और पतवार चलाना थ ड़ा कदठन ह ता ह। बाकी जीवन की धारा मं नाव क ख ल लना नदी स बहुत कदठन ह,
पतवार चलाना बहुत सरल ह। बज्क अगर हम यूं कहं –रामकृ्् न एक दफा कहा था, ‘तुम अपनी नाव त ख ल , अपन पाल त
ख ल द । और परमा्मा की हवाएं तु्हं ल जाएंगी, तु्हं पतवार भी नहीं चलानी ह गी।’
यह ठीक ही कहा था। अगर हम नाव ही ख ल लं , त हवाएं बह रही हं परमा्मा की, और व हमं ल जाएंगी, और उन दरू -ददगंत क
गंत्यं तक पहुंचा दं गी, जहां पहुंच बबना क ई आदमी आनंद क उपल्ध नहीं ह ता। लककन नाव क ख ल लना।
अंतरं ग साधना मं हम नाव ख लत हं। उस रात व लमर नाव ख ल ्यं नहीं सक? उस रात व नश मं थ, मू्िाज मं थ। सुबह जब ठं डी
हवाएं लगीं और मू्िाज गयी, त उ्हंन पाया कक नाव बंधी ह। मंन कहा, स्यक तनरीष्। स्यक तनरीष् मू्िाज का ववर ध ह।
हम मू्िाज मं हं, इसललए नाव क बांध हुए हं शरीर स, ववचार स और भाव स। अगर स्यक तनरीष् की ठं डी हवाएं लगं और हम
सजग ह जाएं, त नाव क ख ल लना कदठन नहीं ह। मू्िाज नाव क बांध हुए ह। अमू्िाज नाव क ि ड़ दगी। अमू्िाज का उपाय ह
स्यक तनरीष्, राइट अवयरनस, सम्त करयाओं की।
अंतरं ग साधना एक ही ह, स्यक ्मर्, स्यक ्मतृ त, स्यक वववक, स्यक ह श, अमू्िाज। इस ्मर् रखं । यह सवाजचधक
मह्वपू्ज ह। और इसका सतत रय ग करं । और इसका तनरं तर रय ग करं ।
तीन शु्चधयां, तीन शू्यताएं यदद घदटत ह जाएं…। तीन शु्चधयां तीन शू्यता क लान मं सहय गी हं। तीन शू्यताएं आ जाएं, त
परर्ाम मं समाचध उ्प्न ह ती ह। समाचध ्वार ह स्य का, ्वयं का, परमा्मा का। ज समाचध मं जागता ह, उस संसार लमट
जाता ह।
लमट जान का अथज यह नहीं ह कक य दीवारं लमट जाएंगी और आप लमट जाएंग। लमट जान का यह अथज, य दीवारं दीवारं न रह
जाएंगी और आप आप न रह जाएंग। लमट जान का यह अथज, जब पता दहलगा, त पता ही नहीं, वह रा् भी ददखगा, ज पत क
दहलाता ह। और जब हवाएं बहं गी, त हवाएं ही नहीं ददखंगी, व सताएं भी ददखंगी, ज हवाओं क बहाती हं। और तब लम्टी मं , क्-
क् मं भी कवल म्ृ मय ही नहीं ददखगा, चच्मय क भी दशजन हंग। संसार लमट जाएगा इस अथं मं कक परमा्मा रकट ह जाएगा।
परमा्मा संसार क बनान वाला नहीं ह। आज क ई मुझस पूिता था, ककसन बनाया? हम पहाड़ क पास थ वहां घादटयं क और क ई
पूिता था, य घादटयां और य दर्त, य ककसन बनाए? यह हम तब तक पि
ू ं ग कक ककसन बनाए, जब तक हम जानत नहीं। और जब
हम जानंग, तब हम यह न पूिंग कक ककसन बनाए; हम जानंग, यह ्वयं बनान वाला ह। करएटर क ई भी नहीं ह, र्टा क ई भी नहीं
ह। सजृ ्ट ही र्टा ह। जब दशजन ह ता ह, जब ददखायी पड़ता ह, त यह करएशन ही करएटर ह जाता ह। यह ज चारं तरफ ववराट
जगत ह, यही परमा्मा ह जाता ह। संसार क ववर ध मं परमा्मा नहीं लमलता, संसार का ब ध ववसजजजत ह ता ह और परमा्मा
उपल्ध ह ता ह।
समाचध चरम ल्य ह धमं का–सम्त धमं का, सम्त य गं का। यह हमन ववचार ककया। इस पर चचंतन करं ग, इस पर मनन
करं ग, इस पर तनदद्यासन करं ग। इस स चं ग, इस ववचारं ग, इस रा्ं मं उतारं ग। ज माली की तरह बीज क ब एगा, वह कफर एक
ददन खश
ु ह कर दखगा कक उसमं फूल खखल गए हं। और ज रम करगा और खदानं क त ड़गा, वह एक ददन पाएगा, हीर-जवाहरात
उपल्ध ह गए हं। और ज पानी मं डूबगा और गहराइयं तक जाएगा, वह एक ददन पाएगा कक वह म ततयं क ल आया ह।
जजनकी भी आकांषा ह और जजनक भी पुुषाथज क लगता ह कक क ई चुन ती ह, उनक रा् कंवपत हंग, आंद ललत हंग और व
अरसर हंग। ककसी पहाड़ पर चढ़ना उतनी बड़ी चुन ती नहीं ह, ्वयं क जान लना सबस बड़ी चन
ु ती ह। और ज ठीक अथं मं पुुष
हं, ज ठीक अथं मं जजनक भीतर क ई भी शज्त और ऊजाज ह, उनका यह अपमान ह कक बबना ्वयं क जान व समा्त ह जाएं।
र्यक क भीतर यह संक्प भर जाना चादहए कक मं स्य क जानकर रहूंगा, ्वयं क जान कर रहूंगा, समाचध क जानकर रहूंगा।
इस संक्प क साधकर और इन भूलमकाओं क रय ग करक आप भी सफल ह सकत हं, क ई भी सफल ह सकता ह। यह बात आप
ववचार करं ग।
अब हम राबर क ्यान क ललए बठं ग। राबर क ्यान क संबंध मं कफर थ ड़ा-सा आपक कह दं ।ू कल मंन आपक बताया, शरीर मं
पांच चरं की बात कही। उन पांच चरं स बंध हुए अंग हं। उन चरं क यदद हम लशचथल करं और लशचथल ह न का भाव करं , त
व-व अंग उनक साथ-साथ लशचथल ह जात हं।
पहला चर ह मूलाधार। जननं दरय क तनकट मूलाधार की धार्ा करं ग कक मूलाधार चर ह और उस चर क हम लशचथल ह न का
आदश दं ग कक मूलाधार, लशचथल ह जाओ। पूर मन स और पूरी आञा दनी चादहए कक मूलाधार, लशचथल ह जाओ।
आप स चं ग, हमार कहन स ्या ह गा? आप स चत हंग, हम कहं ग, पर लशचथल ह जाओ, पर लशचथल कस ह जाएंग! हम कहं ग कक
शरीर जड़ ह जाओ, शरीर जड़ कस ह जाएगा!
आप थ ड़ स च-समझ क अगर हं, त इतना आपक खयाल नहीं आता! जब आप कहत हं, हाथ रमाल उठाओ, त हाथ रमाल कस
उठाता ह? और जब आप कहत हं, पर चल , त पर चलत कस हं? और जब आप कहत हं कक पर मत चल , त पर ुक कस जात हं?
यह शरीर का अ्ु-अ्ु आपकी आञा मानता ह। अगर यह आञा न मान, त शरीर चल ही नहीं सकता। आप आंखं स कहत हं, बंद
ह जाओ, त आंखं बंद ह जाती हं। भीतर ववचार ह ता ह कक आंख बंद ह जाए और आंख बंद ह जाती ह। ्यं? ववचार मं और
आंख मं क ई संबंध नहीं ह गा? नहीं त आप भीतर बठ स च ही रह हं कक आंख बंद ह जाओ और आंख बंद नहीं ह रही ह! और
आप स च रह हं कक पर चल , और पर बठ हुए हं!
मन ज कहता ह, वह त्ष् शरीर तक पहुंच जाता ह। अगर हमक थ ड़ी समझ ह , त हम शरीर स कुि भी करवा सकत हं। यह
ज हम करवा रह हं, कवल राकृततक ह। लककन ्या आपक पता ह कक यह भी एकदम राकृततक नहीं ह, इसमं भी सुझाव काम कर
रह हं। ्या आपक पता ह, अगर एक आदमी क ब्च क जानवरं क बीच पाला जाए, त वह सीधा खड़ा ह गा? वसी घटनाएं घटी हं।
वहां पीि लखनऊ क पास जंगलं मं एक घटना घटी। एक लड़का पाया गया, जजस भडड़यं न पाला। भडड़यं का श क ह कक ब्चं क
गांव स उठा ल जाना और कभी-कभी भडड़ए उनक पाल भी लत हं। ऐसी जमीन पर कई घटनाएं घटी हं। अभी पीि चार वषज पहल
जंगल स एक च दह-पंरह वषज का लड़का लाया गया, ज भडड़यं न पाला ह। ि ट ब्च क गांव स उठा ल गए और कफर उ्हंन
उसक दध
ू वपलाया और पाल ललया।
वह च दह वषज का लड़का बबलकुल भडड़या था। वह चार हाथ-पर स चलता था, सीधा खड़ा नहीं ह ता था। और वह भडड़यं की तरह
आवाज तनकालता था और खख
ंू ार था और खतरनाक था। और आदमी क पा जाए, त क्चा खा सकता था। लककन वह क ई भाषा
नहीं ब लता था।
पंरह वषज का ब्चा भाषा ्यं नहीं ब लता? और अगर आप उसस कहं कक ब ल , ब लन की क लशश कर , त भी ्या करगा! और
पंरह वषज का ब्चा सीधा खड़ा ्यं नहीं ह ता? उस सुझाव नहीं लमल सीध खड़ ह न क, उस खयाल नहीं लमला सीधा खड़ ह न का।
जब आपक घर मं एक ि टा ब्चा पदा ह ता ह, आपक सबक चलत दखकर उस यह सुझाव लमलता ह कक चला जा सकता ह। उस
यह खयाल लमलता ह कक द पर पर सीधा खड़ा हुआ जा सकता ह। यह ववचार उसक लमल जाता ह, यह उसक अंतस-चतन मं
रवव्ट ह जाता ह। और तब वह चलन की दह्मत करता ह और क लशश करता ह। और सब तरफ ल गं क चलत दखता ह, त
दह्मत बढ़ती ह और वह धीर-धीर चलना शुर कर दता ह। दस
ू रं क ब लत दखता ह, त उस खयाल ह ता ह कक ब ला जा सकता ह।
और कफर वह च्टा करता ह। और उसकी व रंचथयां, ज ब ल सकती हं, सकरय ह जाती हं।
हमार भीतर बहुत-सी रंचथयां हं, ज सकरय नहीं हं। अभी मनु्य का पूरा ववकास नहीं हुआ ह, ्मर् रखं। ज शरीर क ववञान क
जानत हं, व यह कहत हं कक मन्ु य क मज्त्क का बहुत ि टा-सा दह्सा सकरय ह। शष दह्सा बबलकुल इनएज्टव पड़ा हुआ ह।
उसकी क ई करया नहीं ह। और वञातनक असमथज हं यह जानन मं कक वह शष दह्सा ककस काम क ललए ह। उसका क ई काम ही
नहीं ह अभी। आपकी ख पड़ी का बहुत-सा दह्सा बबलकुल बंद पड़ा हुआ ह। य ग का कहना ह कक वह सारा दह्सा सकरय ह सकता
ह।
और नीच उतरं आदमी स, त जानवर का और भी थ ड़ा दह्सा सकरय ह, उसका और ्यादा दह्सा तनज्रय ह। और नीच उतरं , त
जजतन नीच उतरत हं, उतन ही जानवर जजतन नीच तबक क हं, उनक मज्त्क का उतना ही दह्सा तनज्रय पड़ा हुआ ह।
काश, हम महावीर और ब्
ु ध का ददमाग ख ल पात, त हम पात कक उनका सारा दह्सा सकरय ह, उसमं तनज्रय कुि भी नहीं ह।
उनका परू ा मज्त्क काम कर रहा ह, परू ा। और हमारा ि टा-ि टा टुकड़ा काम कर रहा ह।
अब ज शष काम नहीं कर रहा ह, उसक ललए उस सजग करना ह गा, सुझाव दन हंग, च्टा करनी ह गी। य ग न चरं क मा्यम स
मज्त्क क उसी दह्स क सकरय करन क उपाय ककए हं। य ग ववञान ह और एक व्त आएगा कक दतु नया का सबस बड़ा ववञान
य ग ही ह गा।
यह ज पांच चरं की मंन बात कही, इन पांच चरं पर ्यान क कंदरत करक सुझाव दन स व-व अंग त्ष् लशचथल ह जाएंग।
मूलाधार क हम सुझाव दं ग और साथ मं भाव करं ग कक पर लशचथल ह रह हं। पर लशचथल ह जाएंग। कफर ऊपर बढ़ं ग। नालभ क
पास ्वाचध्ठान चर क सुझाव दं ग और नालभ क आस-पास का सारा यंर-जाल लशचथल ह जाएगा। कफर और ऊपर बढ़ं ग और दय
क पास अनाहत क , अनाहत चर क सुझाव दं ग, दय का सारा सं्थान लशचथल ह जाएगा। कफर और ऊपर बढ़ं ग और आंखं क बीच
आञा चर क सुझाव दं ग, त चहर क सार ्नायु लशचथल ह जाएंग। और ऊपर बढ़ं ग और च टी क पास सहरार चर क सुझाव दं ग,
त मज्त्क की सारी अंतस की, अंदरनी सारा का सारा यंर लशचथल ह कर शांत ह जाएगा।
अगर ज्दी परर्ाम न आएं, त घबराना नहीं। अगर बहुत ज्दी कुि घदटत न ह , त क ई बचन ह न की बात नहीं ह। साधार्-सी
चीजं हम सीखत हं, वषं लग जात हं; ज आ्मा क सीखन क उ्सुक ह , उस ज्म भी लग जाएं, त थ ड़ा समय ह। त बहुत
संक्प स, बहुत रतीषा स और बहुत शांतत स रय ग करन स परर्ाम अव्यंभावी ह।
इन पांच चरं क सुझाव दकर शरीर क लशचथल करं ग। कफर ्वास क लशचथल करन क ललए मं कहूंगा, त उस ढीला ि ड़ दं ग। और
मं कहूंगा, ्वास शांत ह रही ह, त भाव करं ग। कफर अंत मं मं कहूंगा, ववचार शू्य ह रह हं, मन शू्य ह रहा ह।
यह त रय ग ह गा ्यान का। इस ्यान क पहल द लमनट भाव करं ग और द लमनट भाव करन क पहल संक्प करं ग पांच बार।
अब हम राबर क ्यान क ललए बठं ग। इस ्यान मं सबक स जाना ह, लट जाना ह, लटकर ही उस करना ह। इसललए अपना ्थान
बना लं। बठकर संक्प करं ग, भाव करं ग और कफर लटं ग।
आजइतनाही।
्यान–सर
ू (ओश )रवचन–आठवां
मरररयआ्मन ्,
स्य्याह? ्याउसकीरा्ततअंशतःसंभवह? औरयटदनहीं, त मन्ु यउसकीरा्ततकमलए्याकरसकताह? ्यंककहरक
मन्ु यसंतह नासंभवनहींह।यहपछ
ू ाह।
पहली बात त यह, संत ह ना हरक मन्ु य की संभावना ह। संभावना क क ई वा्तववकता मं परर्त न कर, यह दस
ू री बात ह। यह
दस
ू री बात ह कक क ई बीज वष
ृ न बन पाए, लककन हर बीज वष
ृ ह न क ललए अपन अंतस स तन्ीत ह। यातन हर बीज की यह
संभावना ह, यह प टं लशयललटी ह कक वह वष
ृ बन सकता ह। न बन, यह बबलकुल दस
ू री बात ह। खाद न लमल और भलू म न लमल, और
पानी न लमल और र शनी न लमल, त बीज मर जाए यह ह सकता ह, लककन बीज की संभावना जरर थी।
संत ह ना र्यक मनु्य की संभावना ह। इसललए पहल त अपन मन स यह खयाल तनकाल दं कक संत्व कुि ल गं का ववशष
अचधकार ह। संत्व कुि ववशष ल गं का अचधकार नहीं ह। और जजन ल गं न रचललत की ह यह धार्ा, वह कवल अपन अहं कार क
पररप ष् क ललए ह। ्यंकक इस बात स अहं कार क पररप ष् लमलता ह कक अगर मं कहूं कक संत ह ना बड़ा दर
ु ह ह और बहुत
थ ड़-स ल गं क ललए संभव ह। और कफर मं यह कहूं कक बहुत थ ड़-स ल ग ही संत ह सकत हं। यह कुि ल गं की अहं ता की तजृ ्त
का मागज भर ह, अ्यथा संत ह ना सबकी संभावना ह। ्यंकक स्य क उपल्ध करन क ललए सबक ललए सुववधा और गुंजाइश ह।
मंन कहा कक यह दस
ू री बात ह कक आप उपल्ध न ह सकं। उसक ललए लसफज आप ही जज्मवार हंग, आपकी संभावना नहीं
जज्मवार ह गी। हम सार ल ग यहां बठ हं। उठकर चलन की हम सबकी शज्त ह, लककन हम न चलं और बठ रहं ! शज्तयां त उ्हं
सकरय करन स ञात ह ती हं; जब तक सकरय न करं , ञात नहीं ह तीं।
अभी आप यहां बठ हं, हमक ञात भी नहीं ह सकता कक आप चल सकत हं। और आप भी अगर अपन भीतर ख जंग, त चलन की
शज्त कहां लमलगी आपक ! एक बठा हुआ आदमी अपन भीतर ख ज कक मर भीतर चलन की शज्त कहां ह? त उस कस पता
चलगी! उस पता भी नहीं चलगी, वह स चगा कक चलन की शज्त कहां ह! बठा हुआ आदमी ककतना ही अपन भीतर तलाश, उस क ई
्थान न लमलगा, जजसक वह कह सक कक यह मरी चलन की शज्त ह, जब तक कक वह चलकर न दख। चलकर दखन स पता
चलगा कक चलन की शज्त ह या नहीं और संत बनन की रकरया स गुजरकर दखना ह गा कक वह हमारी संभावना ह या नहीं। ज
उस रय ग ही नहीं करं ग, उ्हं जरर वह संभावना ऐसी रतीत ह गी कक कुि ल गं की ह।
यह गलत ह। त पहली त यही बात समझं कक स्य क पान क ललए सबका अचधकार ह; वह सबका ज्मलस्ध अचधकार ह। उसमं
ककसी क ललए क ई ववशष अचधकार नहीं ह।
दस
ू रीबात, पूछाहककस्य्याह? और्याउसअंशतःपायाजासकताह?
स्य क अंशतः नहीं पाया जाता। ्यंकक स्य अखंड ह और उसक टुकड़ नहीं ह सकत हं। यातन ऐसा नहीं ह सकता ह कक ककसी
आदमी क अभी थ ड़ा-सा स्य लमल गया ह, कफर थ ड़ा और लमलगा, कफर थ ड़ा और लमलगा। ऐसा नहीं ह ता। स्य त इक्ठा ही
उपल्ध ह ता ह। यातन वह रम स, रजअ
ु ल नहीं लमलता। वह त परू ा लमलता ह, वव्फ ट स लमलता ह। लककन अगर यह बात मं
कहूंगा कक वह इक्ठा ही लमलता ह, त बहुत घबराहट मालम
ू ह गी। ्यंकक हम इतन कमज र ल ग, हम उस इक्ठा कस पा सकंग!
एक आदमी ित पर चढ़न क जाता ह। ित त इक्ठी ही लमलती ह जब वह ित पर पहुंचता ह, लककन सीदढ़यां वह रम स चढ़
लता ह। लककन ककसी भी सीढ़ी पर वह ित पर नहीं ह ता ह। पहली सीढ़ी पर जब ह ता ह, तब भी ित पर नहीं ह; और अंततम सीढ़ी
पर जब ह ता ह, तब भी ित पर नहीं ह ता। ित क करीब त ह न लगता ह, लककन ित पर नहीं ह ता।
स्य क करीब त रम स हुआ जा सकता ह, लककन स्य जब उपल्ध ह ता ह, त पूरा उपल्ध ह ता ह। यातन स्य की तनकटता
त रम स लमलती ह, लककन स्य की उपलज्ध पू्त
ज ा ह ती ह, वह कभी खंड मं नहीं ह ती, टुकड़ं मं नहीं ह ती। इस ्मर् रखं ।
त ज मंन भूलमका कही ह साधना की, व सीदढ़यां हं, उनस स्य नहीं लमलगा, स्य की तनकटता लमलगी। और जब अंततम सीढ़ी पर
आकर–जजसक मंन भाव की शू्यता कहा ह–जब भाव की शू्यता क क ई िलांग लगा जाता ह, त वह स्य क उपल्ध ह जाता
ह। तब स्य पूरा ही लमलता ह, इन ट टललटी, वह समरता मं उपल्ध ह ता ह।
परमा्मा क खंडडत अनुभव नहीं ह त; परमा्मा का अनुभव अखंड ह ता ह। लककन परमा्मा तक पहुंचन का रा्ता ज ह, वह बहुत
खंडं मं ववभाजजत ह। इस ्मर् रखं । स्य तक पहुंचन का रा्ता रलमक ह और खंडं मं ववभाजजत ह, लककन स्य ववभाजजत नहीं
ह। इसललए ऐसा न स चं कक हम कमज र ल ग पूर स्य क कस पा सकंग! अगर वह थ ड़ा-थ ड़ा लमलता ह ता, त शायद हम पा भी
लत!
नहीं, हम भी उस पा सकंग, ्यंकक रा्ता थ ड़ा-थ ड़ा ही चलना ह ता ह। क ई भी रा्ता इक्ठा नहीं चला जाता ह। क ई भी रा्ता
इक्ठा नहीं चला जाता ह, रा्ता थ ड़ा-थ ड़ा ही चला जाता ह। लककन मंजजल हमशा इक्ठी लमलती ह, मंजजल थ ड़ी-थ ड़ी नहीं
लमलती। इस ्मर् रखंग।
उस श्दं मं बतान का क ई उपाय नहीं ह। आज तक मनु्य की वा्ी स नहीं कहा जा सका ह। और ऐसा नहीं ह कक भवव्य मं
कहा जा सकगा। ऐसा नहीं ह कक पीि मनु्य क पास भाषा इतनी सम्
ृ ध न थी कक वह नहीं कह सका और आग कह सकगा। कभी
नहीं कहा जा सकगा।
उसका कार् ह। मनु्य की ज भाषा ववकलसत हुई ह, वह उसक ल क-्यवहार क ललए हुई ह। भाषा का ज्म ल क-्यवहार क ललए
हुआ ह, भाषा का ज्म स्य क रकट करन क ललए नहीं हुआ। और जजन ल गं न भाषा बनायी ह, उनमं स शायद ही क ई स्य क
जानता ह। इसललए स्य क ललए क ई श्द भी नहीं ह। और जजन ल गं न स्य क पाया ह, उ्हंन भाषा स नहीं पाया, म न ह कर
पाया ह। यातन उ्हं जब स्य उपल्ध हुआ ह, तब व पररप्
ू ज म न थ और वहां क ई श्द नहीं था। इसललए बड़ी कदठनाई ह, जब व
ल टकर कहना शर ु करत हं, त एक ्थान खाली रह जाता ह ज कक स्य का ह। उसक ललए क ई श्द दना संभव नहीं ह ता। या
जब व श्द दत हं , तब श्द अधरू पड़ जात हं और ि ट पड़ जात हं।
और उ्हीं श्दं पर झगड़ शुर ह जात हं। उ्हीं श्दं पर! ्यंकक सब श्द अधरू रहत हं, व स्य क रकट नहीं कर पात। व
इशारं की तरह हं। जस क ई चांद क अंगुली ददखाए और हम उसकी अंगुली क पकड़ लं कक यही चांद ह, त दद्कत शुर ह
जाएगी। अंगुली चांद नहीं ह, अंगुली कवल इशारा ह। और ज इशार क पकड़ लगा, वह दद्कत मं पड़ जाएगा।
इशार क ि ड़ना पड़ता ह, ताकक वह ददखायी पड़ सक, जजसकी तरफ इशारा ह। श्दं क ि ड़ दना ह ता ह, तब स्य का थ ड़ा-सा
अनुभव ह ता ह। ज श्दं क पकड़ लता ह, वह स्य क अनुभव स वंचचत ह जाता ह।
इसललए क ई रा्ता नहीं ह कक मं आपक कहूं कक स्य ्या ह। और अगर क ई कहता ह , त वह आ्मवंचना मं ह। अगर क ई
कहता ह , त वह खदु ध ख मं ह और दसू रं क ध ख मं डाल रहा ह। स्य क कहन का क ई उपाय नहीं ह। लककन हां, स्य क
कस पाया जा सकता ह, इस कहन का उपाय ह। मथड त बताया जा सकता ह स्य क पान का, उसकी प्धतत त बतायी जा
सकती ह, लककन स्य ्या ह, यह नहीं बताया जा सकता।
स्य क जानन की प्धततयां हं, स्य की क ई पररभाषाएं नहीं हं। स्य क जानन की प्धततयां हं , लककन पररभाषाएं नहीं हं। उस
प्धतत की हमन इन तीन ददनं मं चचाज की ह। यह जरर लगगा कक हम स्य क बबलकुल ि ड़ रह हं। स्य क बहुत दफा कहा,
लककन कुि बताया नहीं कक स्य ्या ह।
उस नहीं बताया जा सकता, उस जाना जा सकता ह। स्य क बताया नहीं जा सकता ह, जाना जा सकता ह। उस आप जानंग।
प्धतत बतायी जा सकती ह। स्य का अनभ
ु व आपका ह गा। स्य का अनभ
ु व हमशा वयज्तक ह। उसका क ई क्यतु नकशन, क ई
संवाद एक-दस
ू र क संभव नहीं ह।
त इसललए यह त मं नहीं कहूंगा कक स्य ्या ह। इसललए नहीं कक उस र कना चाहता हूं, बज्क इसललए कक उस कहा नहीं जा
सकता ह। जब कभी, बहुत पीि अतीत मं एक दफा ऐसा हुआ। उपतनषदं क समय मं एक ऋवष स ककसी न जाकर पि ू ा, ‘स्य ्या
ह?’ उस ऋवष न बहुत ग र स उस आदमी क दखा। उसन दब ु ारा पूिा कक ‘स्य ्या ह?’ उसन तीसरी बार पूिा कक ‘स्य ्या ह?’
उस ऋवष न कहा, ‘मं बार-बार कहता हूं, लककन तुम समझत नहीं।’ वह ्यज्त ब ला, ‘आप कसी बात कर रह हं! मंन तीन बार पूिा,
आप तीनं ही बार चप
ु थ। और आप कहत हं, मं बार-बार कहता हूं!’ उसन कहा, ‘काश, तुम मर चप
ु ह न क दख पात, त तुम समझत
कक स्य ्या ह। काश, तुम मर साइलं स क , मर म न क दख पात, त समझत कक स्य ्या ह।’
अगर आप भी म न ह सकं, त उस जान सकत हं। अगर आप म न न हं, त उस नहीं जान सकत हं। स्य क आप जान सकत हं,
लककन जना नहीं सकत। त इसललए मं नहीं कहूंगा कक स्य ्या ह, ्यंकक नहीं कहा जा सकता ह।
वह कर लगा और कल उसस मु्त ह जाएगा, उसक साथ उसका ककया हुआ नहीं ह गा। इसललए मनु्य न त पूरी तरह बंधा हुआ ह
और न पूरी तरह म्
ु त ह। उसका एक पर बंधा ह और एक खल
ु ा ह।
एक दफा हजरत अली स ककसी न पूिा, ठीक यही बात पूिी। हजरत अली स ककसी न पूिा कक ‘मनु्य ्वतंर ह या परतंर ह अपन
कमं मं ?’ अली न कहा, ‘अपना एक पर ऊपर उठाओ!’ अली न कहा, अपना एक पर ऊपर उठाओ। वह आदमी ्वतंर था, बायां उठाए
या दायां उठाए। उसन अपना बायां पर ऊपर उठाया। अली न कहा, ‘अब दस
ू रा भी उठा ल ।’ वह ब ला, ‘आप पागल हं! दस
ू रा अब नहीं
उठा सकता हूं!’ अली न कहा, ‘्यं?’ उसन कहा, ‘एक उठान क ्वतंर था।’ अली न कहा, ‘ऐसा ही मनु्य का जीवन ह। उसमं हमशा
द पर हं आपक पास, और एक उठान क आप हमशा ्वतंर हं, एक हमशा बंधा हुआ ह।’
इसललए संभावना ह कक ज बंधा ह उस मु्त कर सकं उसक ्वारा ज कक अभी उठन क ्वतंर ह। और यह भी संभावना ह कक
उस भी बांध सकं उसक ्वारा ज कक बंधा ह।
अतीत मं आपन ज ककया ह, वह आपन ककया ह। आप ्वतंर थ करन क ; आपन ककया ह। आपका एक दह्सा जड़ ह गया ह और
परतंर ह गया ह। लककन आपका एक दह्सा अभी भी ्वतंर ह, उसक ववपरीत करन क आप म्
ु त हं। उसक ववपरीत करक आप
उसक खंडडत कर सकत हं। उसस लभ्न क करक आप उस ववन्ट कर सकत हं। उसस र्ठ क करक आप उसक ववसजजजत कर
सकत हं। मनु्य क हाथ मं ह कक वह अतीत-सं्कारं क भी ध डाल।
आपन कल तक र ध ककया था, त र ध करन क आप ्वतंर थ। तनज्चत ही, ज आदमी बीस वषं स र ज र ध करता रहा ह, वह
र ध स बंध जाएगा। बंध जान का मतलब यह ह कक एक आदमी, जजसन बीस साल स र ध ककया ह तनरं तर, वह एक ददन सुबह
स कर उठता ह और अपन बब्तर क पास अपनी च्पलं नहीं पाता, एक यह आदमी ह; और एक वह आदमी ह जजसन बीस सालं स
र ध नहीं ककया, वह भी सुबह उठता ह और बब्तर क पास अपनी च्पलं नहीं पाता; ककस मं इस बात स र ध क पदा ह न की
संभावना अचधक ह?
उस आदमी मं , जजसन बीस साल स र ध ककया, र ध पदा ह गा। इस अथं मं वह बंधा ह, ्यंकक बीस साल की आदत त्ष् उसमं
र ध पदा कर दगी कक ज उसन चाहा था, वह नहीं हुआ। इस अथं मं वह बंधा ह कक बीस साल का एक सं्कार उस आज भी वस
ही काम करन क रररत करगा कक कर , ज तुमन तनरं तर ककया ह। लककन ्या वह इतना बंधा ह कक र चधत न ह , यह उसकी
संभावना नहीं ह?
इतना क ई कभी नहीं बंधा ह। अगर वह इसी व्त सचत ह जाए, त ुक सकता ह। और र ध क न आन द, यह उसकी संभावना
ह। आए हुए र ध क परर्त कर ल, यह उसकी संभावना ह। और अगर वह यह करता ह, त बीस साल की आदत थ ड़ी दद्कत त
दगी, लककन परू ी तरह नहीं र क सकती ह। ्यंकक जजसन आदत बनायी थी, अगर वह खखलाफ चला गया ह, त वह त ड़न क ललए
्वतंर ह। दस-पांच दफ क रय ग करक वह उसस म्
ु त ह सकता ह।
कमज बांधत हं, लककन बांध ही नहीं लत। कमज जकड़त हं, लककन जकड़ ही नहीं लत। उनकी जंजीरं हं, लककन सब जंजीरं टूट जाती हं।
ऐसी क ई जंजीर नहीं ह, ज न टूट। और ज न टूट, उसक जंजीर भी नहीं कह सकंग। जंजीर बांधती ह, लककन सब जंजीरं खल
ु न की
षमता रखती हं। अगर ऐसी क ई जंजीर ह , ज कफर खल
ु ही न सक, त उसक जंजीर भी नहीं कह सककएगा। जंजीर वही ह, ज बांध
भी सक और ख ल भी सक। कमज बंधन ह, इसी अथं मं , कक तनबंधन भी ह सकता ह। और हमारी चतना हमशा ्वतंर ह। हमन ज
कदम उठाए हं, हम जजस रा्त पर चलकर आए हं, उस पर ल टन क हम हमशा ्वतंर हं।
त अतीत आपक बांध हुए ह, लककन भवव्य आपका मु्त ह। एक पर बंधा ह और एक खल ु ा ह। अतीत का एक पर बंधा हुआ ह,
भवव्य का एक पर खल
ु ा हुआ ह। आप चाहं , त इस भवव्य क पर क भी उसी ददशा मं उठा सकत हं, जजसमं आपन अतीत क पर
क बांधा ह। आप बंधत चल जाएंग। आप चाहं , त इस भवव्य क पर क अतीत की ददशा स ववपरीत उठा सकत हं। आप खल
ु त
चल जाएंग। यह आपक हाथ मं ह। उस ज्थतत क हम म ष कहत हं , जहां द नं पर खल
ु जाएं। और उस ज्थतत क हम पररपू्ज
तन्नतम नकज कहं ग, जहां द नं पर बंध जाएं।
इस वजह स, अतीत स घबरान की जररत नहीं ह, न वपिल ज्मं स घबरान की जररत ह। जजसन व कदम उठाए थ, वह अब भी
कदम उठान क ्वतंर ह।
अपन एक लमर क , दरू स आए हुए, मं एक बार नदी पर न का-ववहार क ललए ल गया था। व बहुत दरू क दशं स ल ट थ। उ्हंन
बहुत नददयां और बहुत झीलं दखी थीं। व सब उनक खयालं स भर हुए थ। जब मं परू चांद की रात मं उनक न का पर ल गया, त
व ज्वटजरलंड की झीलं की बातं करत रह और क्मीर की झीलं की बातं करत रह। जब हम घंटभर बाद वापस ल ट, त उ्हंन
रा्त मं मुझस कहा कक ‘जहां आप ल गए थ, वह जगह बड़ी र्य थी।’
मंन कहा, ‘आप बबलकुल झूठ ब लत हं। उसक आपन दखा भी नहीं। ्यंकक मंन पूर व्त अनुभव ककया कक आप ज्वटजरलंड मं ह
सकत हं, क्मीर मं ह सकत हं, जजस नाव मं हम बठ थ, वहां आप नहीं थ।’
‘और तब मं आपस अब यह भी कहना चाहता हूं,’ मंन उनक तनवदन ककया कक ‘जब आप ज्वटजरलंड मं रह हंग, त आप कहीं और
रह हंग। और जब आप क्मीर मं रह हंग, त आप उस झील पर न रह हंग, जजसकी आप बातं कर रह हं।’ त मंन उनस कहा कक
‘न कवल मं यह कहता हूं कक जजस झील पर मं ल गया था, उसक आपन नहीं दखा। मं आपक यह कहता हूं, आपन क ई झील नहीं
दखी ह।’
आपक खयाल क पदे आपक साषी नहीं ह न दत। आपका ववचार आपक र्टा नहीं ह न दता। जब हम ववचार क ि ड़त हं, जब
ववचार क हम अलग करत हं, तब हम साषी ह त हं। ववचार की तनजजरा स साषी हुआ जाता ह।
नहीं, क ई ववचार नहीं कर रहा ह, मार साषी रह गया। और वह मार साषी ज ह हमारा, वही हमारी अंतरा्मा ह। अगर आप पररपू्ज
साषी की ज्थतत मं रह जाएं कक क ई ववचार की तरं ग नहीं उठती ह, क ई ववचार की लहर नहीं उठती ह, त आप अपन मं रवश
करं ग। वस ही जस ककसी सागर पर क ई लहर न उठती ह , क ई लहर न उठती ह , क ई कंपन न आता ह , त उसकी सतह शांत ह
जाए और हम उसकी सतह मं झांकन मं समथज ह जाएं।
ववचार तरं ग ह और ववचार बीमारी ह और ववचार एक उतजना ह। ववचार की उतजना क ख कर हम साषी क उपल्ध ह त हं। त
जब हम साषी ह त हं, तब ववचार क ई भी नहीं करता ह। अगर हम ववचार करत हं, तब हम साषी नहीं रह जात। ववचार और साषी
मं ववर ध ह।
इसललए हमन परू ा रयास ककया इस ्यान की प्धतत क समझन मं , हम असल मं ववचार ि ड़न का रय ग ककए हं। और ज हम
रय ग कर रह हं, उसमं हम ववचार क षी् करक ि ड़ रह हं। ताकक वह ज्थतत रह जाए, जब ववचार त नहीं हं और ववचारक ह।
यातन ववचारक स मरा मतलब, ज ववचार करता था, वह त म जद
ू ह, लककन ववचार नहीं कर रहा ह। जब वह ववचार नहीं करगा, त
उसमं दशजन ह गा। यह समझ लं।
ववचार और दशजन ववपरीत बातं हं। इसललए मंन पीि कहा कक कवल अंध ल ग ववचार करत हं , जजनकी आंखं हं, व ववचार नहीं करत
हं। समझं, अगर मर पास आंखं नहीं हं और मुझ इस मकान स बाहर तनकलना ह, त मं ववचार करंगा कक दरवाजा कहां ह! अगर मर
पास आंखं नहीं हं और मुझ इस भवन स बाहर तनकलना ह, त मं ववचार करंगा कक दरवाजा कहां ह! और अगर मर पास आंखं हं , त
्या मं ववचार करंगा? मं दखग
ूं ा और तनकल जाऊंगा। यातन सवाल यह ह कक अगर मर पास आंखं हं, त मं दखग
ूं ा और तनकल
जाऊंगा। मं ववचार ्यं करंगा?
जजनक पास जजतनी आंखं कम हं, उतन व ्यादा ववचार करत हं। दतु नया उनक ववचारक कहती ह। और हम उनक अंधा कहं ग। और
जजनक पास जजतनी ्यादा आंखं हं , व उतना कम ववचार करत हं।
इसललए हम अपन मु्क मं , हम अपन मु्क मं इस प्धतत का ज शा्र ह, उसक दशजन कहत हं। दशजन का मतलब, दखना। हम
उसक कफलासफी नहीं कहत। कफलासफी और दशजन पयाजयवाची श्द नहीं हं। सामा्यतया कफलासफी स हम दशजन का अथज कर लत
हं, वह गलत ह। भारत क दशजन क ‘इंडडयन कफलासफी’ कहना बबलकुल गलत ह। वह कफलासफी ह ही नहीं। कफलासफी का मतलब ह,
चचंतन, ववचार, मनन। और दशजन का मतलब ह, चचंतन, ववचार, मनन सबका ि ड़ दना।
पज्चम मं ववचारक हुए हं, पज्चम की कफलासफी ह। उ्हंन ववचार ककया ह कक स्य ्या ह? व इसका ववचार करत हं। हमार म्
ु क
मं हम इसका ववचार नहीं करत कक स्य ्या ह। हम इसका ववचार करत हं कक स्य का दशजन कस ह सकता ह? यातन हम इस
बात का ववचार करत हं कक आंखं कस खल
ु ं ? इसललए हमारी पूरी रकरया आंख ख लन की ह। हमारी पूरी रकरया चषु ख लन की ह।
जहां ववचार ह ता ह, वहां तकज ववकलसत ह ता ह। और जहां दशजन ह ता ह, वहां य ग ववकलसत ह ता ह। ववचार का अनुबंध, संबंध तकज
स ह। और दशजन का अनुबंध और संबंध य ग स ह।
पूरब मं क ई तकज ववकलसत नहीं हुआ। लाजजक क हमन क ई रम नहीं ककया ह। हमन उसक खल समझा ह, ब्चं का खल समझा
ह। हमन कुि और बात ख जी, हमन दशजन ख जा और दशजन क ललए य ग क । य ग प्धतत ह, जजसस आपकी आंख खल ु गी और
आप दखंग। उस दखन क ललए साषी का रय ग ह। जस-जस आप साषी हंग, ववचार षी् ह गा, और एक घड़ी आएगी तनववजचार की–
ववचारहीनता की नहीं कह रहा हूं–तनववजचार की।
ववचारहीन और तनववजचार मं बहुत भद ह। ववचारहीन ववचारक स नीच ह और तनववजचार ववचारक क बहुत ऊपर ह। तनववजचार का अथज
ह, उसक चचत मं तरं गं नहीं हं और चचत शांत ह। और दखन की षमता उस शांतत मं पदा ह ती ह। और ववचारहीन का मतलब ह कक
उस सझ
ू ता ही नहीं कक ्या कर।
त मं ववचारहीन ह न क नहीं, तनववजचार ह न क कह रहा हूं। ववचारहीन वह ह, जजसक सूझता नहीं। तनववजचार वह ह, जजसक लसफज
सूझता भर ह; जजस ददखायी पड़ता ह। त साषी आपक ञान की तरफ ल जाएगा, ्वयं की आ्मा की तरफ ल जाएगा।
यह ज हमन रय ग ्वास क या ्यान क, साषी क जगान क ललए ककए हं, यह मार इसललए, ताकक ककसी भी भांतत हम उस ष्
का अनुभव कर सकं, जब हम त ह त हं और ववचार नहीं ह ता ह। अगर एक ष् क भी वह तनमजल ष् उपल्ध ह जाए, जब हम
त हं और ववचार नहीं हं, त आप जीवन मं ककसी बड़ी अदभुत संपवत क उपल्ध ह जाएंग।
उस तरफ चलं और उसक ललए च्टा करं और अपनी समर शज्त क ज ड़कर उस घड़ी की आकांषा करं , जब चतना त ह गी, लककन
ववचार नहीं ह गा।
सब
ु ह जब मं भवन स तनकलता था, त ककसी न मझ
ु स पि
ू ा कक ‘्या इस समय मं कवल-ञान संभव ह?’ मंन उनस कहा, ‘संभव ह।’
व र्न पि
ू हं कक ‘अगर कवल-ञान इस समय संभव ह, त ्या मं बता सकता हूं कक व क न-सा र्न मझ
ु स पि
ू ना चाहत हं?’
कवल-ञान का यह मतलब नहीं ह कक आपक मन मं ्या चल रहा ह, उसक बता ददया जाए। आप कवल-ञान का अथज ही नहीं
समझ। कवल-ञान का अथज ह चतना की वह ज्थतत, जहां क ई ञय नहीं रह जाता, जहां क ई ञाता नहीं रह जाता, मार ञान की
शज्त भर रह जाती ह। कवल-ञान श्द स ही वह रगट ह, जहां कवल ञान मार रह जाता ह।
अभी जब भी हम कुि जानत हं, त जानन मं तीन चीजं ह ती हं–जानन वाला ह ता ह, वह ञाता ह ता ह; जजसक जानत हं, वह ह ता
ह, वह ञय ह ता ह; और इन द नं क बीच ज संबंध ह ता ह, वह ञान ह ता ह। त ञान ज ह, ञाता और ञय स दबा रहता ह, उनस
बंधा रहता ह। कवल-ञान का अथज ह कक ञय ववलीन ह जाए, आ्ज्ट ववलीन ह जाए। और अगर ञय ववलीन ह जाएगा, त कफर
ञाता कहां रहगा! वह त ञय स बंधा हुआ था। जब ञय ववलीन ह जाएगा, त ञाता ववलीन ह जाएगा। तब ्या शष रह जाएगा?
तब मार ञान शष रह जाएगा। उस ञान की घड़ी मं मजु ्त का ब ध ह ता ह और ्वतंरता का ब ध ह ता ह।
त कवल-ञान का अथज ह, शु्ध ञान क अनुभव कर लना। जजसक मंन समाचध कहा ह, वह शु्ध ञान का अनुभव ह। यह अलग-
अलग संरदायं क अलग-अगल स्य हं। जजस पतंजलल न समाचध कहा ह, उस जनं न कवल-ञान कहा ह, उस बु्ध न रञा कहा ह।
कवल-ञान का मतलब यह नहीं ह कक आपक लसर मं ्या चल रहा ह, उस बता दं । वह त बहुत आसान-सी बात ह। वह त
साधार्-सी टलीपथी ह, वह त थाट-रीडडंग ह, उसका कवल-ञान स क ई मतलब नहीं ह। और अगर आप उ्सकु ही हं जानन क कक
आपक ददमाग मं ्या चल रहा ह, त मं आपक रा्ता बता सकता हूं कक आपक बगल क आदमी क ददमाग मं ्या चल रहा ह, उस
आप जान सकत हं। मं त नहीं बताऊंगा कक आपक ददमाग मं ्या चल रहा ह, लककन मं आपक रा्ता बता सकता हूं कक आप
जान सकं कक दस
ू र क ददमाग मं ्या चल रहा ह, वह ्यादा आसान ह गा।
मंन आपक पीि ज अभी संक्प का रय ग कहा कक सारी ्वास क बाहर फंक दं और एक ष् ुक जाएं, ्वास न लं। आप घर
ल टकर द -चार ददन ककसी ि ट ब्च पर रय ग कर लंग, त आपक समझ मं आ जाएगा। अपनी सारी ्वास बाहर फंक दं ; उस
ब्च क सामन बबठा लं ; और जब ्वास भीतर न रह जाए, तब पूर ज र स संक्प करं और यह आंख बंद करक दखन की क लशश
करं कक इसक ददमाग मं ्या चल रहा ह। और उस ब्च क कह दं कक क ई ि टी चीज तुम स चना, क ई फूल का नाम स चना।
उसक बताएं न, उसस कह दं , क ई फूल का नाम स चना। और आंख बंद करक और ्वास क बाहर फंककर आप यह संक्प रगाढ़
करं कक इसक ददमाग मं ्या चल रहा ह।
आप द तीन ददन मं जानना शुर कर दं ग। और अगर आपन एक श्द भी जान ललया, त कफर क ई फकज नहीं पड़ता, कफर वा्य जान
जा सकत हं। वह लंबी रकरया ह। लककन इसस यह मत समझ लना कक आप कवल-ञानी ह गए! इसस कवल-ञान का क ई मतलब
नहीं ह। यह मन-पयाजय-ञान ह, दस
ू र क मन मं ्या चल रहा ह, उस पढ़ लना। और इसक ललए धालमजक ह न की भी क ई जररत
नहीं ह और साधु ह न की भी क ई जररत नहीं ह।
पज्चम मं काफी ज र स काम चला हुआ ह। वहां ढर साइककक स साइटीज बनी हुई हं, ज टलीपथी पर और थाट-रीडडंग पर काम कर
रही हं। और वञातनक रप स सब तनयम बनाए जा रह हं। स -पचास वषं मं हर डा्टर उसका रय ग करगा, हर लशषक उसका रय ग
करगा। हर दक
ु ानदार उसका रय ग कर सकगा कक राहक ्या पसंद करगा, इसक जान सकगा। और उस सबका श ष् मं उपय ग
ह गा। और वह कवल-ञान बबलकुल नहीं ह, वह कवल एक ट्नीक ह। वह ट्नीक अभी अचधक ल गं क ञात नहीं ह, इसललए
आपक ऐसा मालूम ह ता ह। थ ड़ा रय ग करं ग, त आप हरान ह जाएंग, कुि समझ मं आ सकता ह। पर वह कवल-ञान नहीं ह।
कवल-ञान बड़ी दरू की बात ह।
कवल-ञान का त मतलब ह, शु्ध ञान की चरम ज्थतत क अनुभव कर लना। उस अव्था मं अमत
ृ का, और जजस मंन
सज्चदानंद कहा, उसका ब ध ह ता ह।
औरएकममरनपूछाह, समाथधकमसवाय्यापरमा्माकाममलनसंभवह?
नहीं संभव ह। समाचध त कवल ्वार ह। जस क ई कह कक ्या बबना ्वार क इस मकान क अंदर आना संभव ह? त हम ्या
कहं ग? हम कहं ग, नहीं संभव ह। और अगर वह कहीं स दीवार त ड़कर भी आ जाए, त हम कहं ग, वह ्वार ह गया। त ्वार ्या
ह? अगर हम कहं कक इस मकान मं ्वार स आन क लसवाय क ई रा्ता नहीं ह और वह ककसी दीवार क त ड़कर अंदर आ जाए, त
हम कहं ग, वह रा्ता ह गया, वह ्वार ह गया। लककन इस मकान मं बबना ्वार क आना संभव नहीं ह। ककसी भी भांतत आएं,
्वार स आएंग। समझदार हंग, त सीध चल आएंग। नासमझ हंग, कहीं दीवार त ड़ंग।
समाचध क बबना क ई रा्ता नहीं ह। समाचध त ्वार ह परमा्मा क रतत, स्य क रतत। और बबना ्वार क मं नहीं समझता कक
कस जाएंग! बबना ्वार क कभी क ई कहीं नहीं गया ह।
इस ्मर् रखं , ऐसा न स चं कक बबना समाचध क भी संभव ह जाएगा। मन हमारा ऐसा ह ता ह कक और भी क ई स्ता रा्ता ह ।
यातन मतलब यह कक ऐसा रा्ता ह , जजसमं चलना ही न पड़। लककन सब रा्तं पर चलना ह ता ह। चलन का मतलब ही ह, तब व
रा्त ह त हं। लककन हम चाहत हं, ऐसा ्वार ह , जजसमं रवश ही न करना पड़ और पहुंच जाएं। ऐसा क ई ्वार नहीं ह ता, जजसमं
रवश बबना ककए आप पहुंच जाएं।
पर हमार मन की कमज ररयां हं बहुत। और हमार मन की कमज ररयां य हं कक हम कुि भी नहीं करना चाहत और कुि पाना चाहत
हं। ववशषतया परमा्मा क संबंध मं त हमारी धार्ा यह ही ह कक अगर वह बबना ककए लमल जाए, त ववचार्ीय ह। बज्क ह
सकता ह कक अगर क ई आपक बबना ककए भी दन क राजी ह जाए, त भी आप ववचार करं कक लना या नहीं लना!
एक बार ऐसा हुआ, वहां रीलंका मं एक साधु था। वह र ज म ष की और तनवाज् की और समाचध की बातं करता। कुि ल ग उस वषं
स सन
ु त थ। एक आदमी न एक ददन खड़ ह कर पि ू ा कक ‘मं यह पि
ू ना चाहता हूं, आपक इतन ल ग इतन ददन स सन
ु त हं, इनमं स
ककसका तनवाज् हुआ और ककसकी समाचध हुई?’ उस साधु न कहा, ‘त् ु हारा ववचार ह, त आज ही समाचध ह जाए। राजी ह ? अगर तम ु
राजी ह , त आज यह मरा सच ह कक त्
ु हं समाचध लगवा दं ग
ू ा।’ वह आदमी ब ला, ‘आज!’ उसन कहा, ‘थ ड़ा ववचार करं , ककसी…। आज
ही?’ उसन कहा, ‘थ ड़ा ववचार करं । मं कफर आकर आपक बताऊं।’
और आपस भी क ई कह कक मं आज ही इसी व्त आपक परमा्मा स लमला सकता हूं, त मं नहीं समझता कक आपका ददल
एकदम स कहगा, हां। आपका ददल बहुत स च-ववचार करन लगगा। मं सच आपस कह रहा हूं, आपका ददल बहुत स च-ववचार करन
लगगा कक लमलना या नहीं लमलना! मु्त मं भी परमा्मा लमल, त भी हम ववचार करं ग! त कीमत दकर त लन मं ववचार करना
बहुत ्वाभाववक ह। मन यही ह ता ह कक मु्त मं लमल जाए।
हम मु्त मं उस चीज क पाना चाहत हं, जजसका हमार मन मं क ई मू्य नहीं ह। यातन हम तनमू्
ज य उस पाना चाहत हं, जजसका
हमार मन मं क ई मू्य नहीं ह। मू्य स हम उस पाना चाहत हं, जजसका हमार मन मं मू्य ह।
अगर परमा्मा क रतत थ ड़ा भी खयाल पदा ह गा, त आप पाएंग कक आप अपना सब दन क राजी हं। अपना सब दन क राजी हं
और सब दकर भी अगर उसकी एक झलक लमलती ह, त लन क राजी ह जाएंग।
यह ज पूिा ह कक ‘समाचध क बबना ह सकता ह?’ नहीं ह सकता ह। रम क बबना नहीं ह सकता ह। अ्यवसाय क बबना नहीं ह
सकता ह। आपक पूर संक्प और साधना क बबना नहीं ह सकता ह।
लककन इस तरह क ज कमज र ल ग हं, व कमज र ल ग कुि समझदार ल गं क श ष् का म का दत हं। सारी दतु नया मं एक तरह
का ररलीजस ए्स्लायटशन चलता ह, एक तरह का धालमजक श ष् चलता ह। चकूं क आप बबना कुि ककए पाना चाहत हं, इसललए
ल ग खड़ ह जात हं, ज कहत हं, हमारी कृपा स लमल जाएगा। हमं पज
ू , हमार पर पड़ , हमारा नाम ्मर् कर , हम पर र्धा रख ,
लमल जाएगा। और ज कमज र ल ग हं, व इस वजह स उनकी र्धा करत हं और पर िूत हं और जीवन गंवात हं।
कुि भी नहीं लमलगा, यह लसफज एक श ष् ह। यह लसफज एक श ष् ह। क ई गुु परमा्मा नहीं द सकता। परमा्मा तक जान का
मागज द सकता ह, लककन मागज पर खद
ु चलना ह ता ह। क ई गुु आपक ललए नहीं चल सकता ह। इस दतु नया मं क ई आदमी ककसी
दस
ू र क ललए नहीं चल सकता ह। अपन पर ही चलात हं। अपन परं पर ही चलना ह ता ह। और अगर क ई कहता ह , और ऐस
कहन वाल अनक हं, ज कहत हं, ‘हम एक ही बात आपस मांगत हं कक हम पर र्धा कर , और शष सब हम कर दं ग।’ व आपका
श ष् कर रह हं। और आप चकूं क कमज र हं , आप श ष् का म का दत हं।
दतु नया मं जजतन धालमजक पाखंड चलत हं, उसका कार् पाखंडी कम हं , आपकी कमज ररयां ्यादा हं। अगर आप कमज र न हं, त
दतु नया मं क ई धालमजक पाखंड खड़ा नहीं ह गा। ्यंकक अगर क ई आदमी थ ड़ा भी पुुषाथजवान ह, अगर थ ड़ा भी उस अपन जीवन
का ग रव और गररमा ह, और क ई उसस कहगा कक मं अपनी कृपा स तुमक परमा्मा ददलाए दता हूं! वह कहगा, षमा करं ; इसस
बड़ा मरा और ्या अपमान ह सकता ह! यातन वह कहगा, षमा करं ; इसस बड़ा मरा और ्या अपमान ह सकता ह कक परमा्मा मं
आपकी कृपा स पाऊं!
और ज दस
ू र की कृपा स लमलगा, ्या वह दस
ू र की नाराजगी स िीन नहीं ललया जा सकता ह? ्या ज दस
ू र की कृपा स लमलगा,
वह दस
ू र की नाराजगी स िीना नहीं जा सकता? ज कृपा स लमलता ह, वह कृपा क हटन स तिन भी सकता ह। वह लसफज ध खा
ह गा, ज परमा्मा लमल और िीन ललया जाए और जजस क ई दस
ू रा द सक।
अहं कार शज्त नहीं ह, वह आपकी ज्थतत ह। वह कभी पदा नहीं ह ता, वह ह आपक साथ। वह आपक सब कामं क पीि खड़ा हुआ
ह। वह आपकी ज्थतत ह। उसक कार् बहुत-सी चीजं पदा ह ती हं, लककन वह पदा नहीं ह ता।
अहं कार क कार् र ध पदा ह सकता ह। अगर आप अहं कारी हं , त आप ्यादा र धी हंग। अगर आप अहं कारी हं, त आप ्यादा
यश-ल लुप हंग, ल भी हंग, पद-ल लुप हंग। अगर आप अहं कारी हं, त य सारी बातं आपमं पदा हंगी। अहं कार क कार् य शज्तयां
पदा हंगी आपक भीतर, लककन अहं कार आपक चचत की एक ज्थतत ह। और जब तक अञान ह, तब तक अहं कार ह ता ह। और जब
ञान आता ह, त अहं कार ववलीन ह जाता ह और उसकी जगह आ्मा का दशजन ह ता ह।
अहं कार आ्मा क घर हुए एक आ्ि्न पदाज ह। आ्मा क घर हुए अहं कार एक पदाज ह। वह शज्त नहीं ह, अञान ह। उसक ्वारा
बहुत-सी शज्तयां पदा ह ती हं–उस अञान क ्वारा। और अगर उनका हम ववनाशा्मक उपय ग करं , त अहं कार की ज्थतत और
मजबूत ह ती चली जाती ह। और अगर उन पदा हुई शज्तयं का हम सज ृ ना्मक और करएदटव उपय ग करं , त अहं कार की शज्त
षी् ह ती चली जाती ह; अहं कार की ज्थतत षी् ह ती चली जाती ह। अगर सारी पदा की हुई शज्तयं का सज
ृ ना्मक उपय ग ह ,
त एक ददन अहं कार ववलीन ह जाता ह। और जब अहं कार का धआ
ु ं ववलीन ह जाता ह, त नीच पता चलता ह, आ्मा की ल ह।
अहं कार का धआ
ु ं घर हुए ह आ्मा की ल क । जब तनधमूज ह ता ह चचत, सारा धआ ु ं अहं कार का दरू ह ता ह, जब ‘मं’ भाव की सारी
पतं दरू ह जाती हं, जब यह ्मर् भी नहीं आता ह कक ‘मं भी हूं’, तब गहराई मं उपलज्ध ह ती ह।
रामकृ्् कहा करत थ कक एक बार ऐसा हुआ, एक नमक का पुतला समुर क ककनार एक मल मं गया। एक मला लगा और एक
नमक का पुतला मल क दखन समुर क ककनार गया। और समुर क ककनार उसन दखा, बड़ा अथाह सागर ह। क ई रा्त मं पूिन
लगा, ‘ककतना गहरा ह गा?’ उस पुतल न कहा कक ‘मं अभी ख जकर आता हूं।’ और वह नमक का पुतला पानी मं कूद पड़ा। और बहुत
ददन बीत और बहुत वषज बीत, वह पुतला अब तक वापस नहीं ल टा ह। उसन कहा था, मं अभी ख जकर आता हूं, लककन वह नमक का
पुतला था और सागर मं कूदत ही नमक वपघल गया और ववलीन ह गया और वह सागर की तलहटी क नहीं पा सका।
इसका मतलब यह हुआ कक ‘मं’ क कभी परमा्मा का लमलन नहीं ह गा। जब ‘मं’ नहीं ह गा, तब परमा्मा लमलगा। और जब तक ‘मं’
ह गा, तब तक परमा्मा नहीं लमलगा।
इसललए कबीर न कहा ह, ‘रम गली अतत सांकरी, तामं द न समाय। रम की गली बहुत संकरी ह, उसमं द नहीं बन सकत। या त
तुम बन सकत ह या परमा्मा बन सकता ह। और जब तक तुम ह , तब तक परमा्मा नहीं बन सकता। और जहां तम ु ववलीन ह
गए, तब परमा्मा ह।
यह ज हमारा अहं कार ह, यह कवल हमारा अञान ह। इस अञान क कार् हमार जीवन की बहुत-सी शज्तयं का दु
ु पय ग ह ता ह।
अगर हम उनका सदप ु य ग करं , त अहं कार क प ष् नहीं लमलगा और अहं कार धीर-धीर षी् ह जाएगा।
और इस जगत मं ज बहुत र धी हं, अगर उनकी शज्त पररवततजत ह , त उतनी ही कु्ा स भर सकत हं, ्यंकक शज्त नया रप
ल लगी। शज्त न्ट नहीं ह ती, नए रप ल लती ह। जसा मंन कहा कक ज बहुत कामुक हं, बहुत स्सुअल हं, व ही ल ग र्मचयज
क उपल्ध ह जात हं। ्यंकक वह ज स्स की उनकी शज्त ह, वही समपररवततजत ह कर उनक ललए र्मचयज बन जाती ह।
लककन अहं कार जब ववलीन ह ता ह, त ककसी मं परर्त नहीं ह ता। ्यंकक वह कवल अञान था। उसकी परर्तत का क ई सवाल
नहीं, वह कवल रम था। जस अंधर मं ककसी न र्सी क सांप समझा ह । और जब पास जाकर दख कक र्सी ह, सांप नहीं ह, और
हम पूिं कक सांप का ्या हुआ? त हम कहं ग, सांप का कुि भी नहीं हुआ, ्यंकक सांप था ही नहीं। उसक पररवतजन का क ई सवाल
नहीं ह। वस ही अहं कार आ्मा क रांत रप स समझन का परर्ाम ह। वह आ्मा की रांतत ह, आ्मा का इलूजरी, रामक दशजन ह।
जस र्सी मं सांप ददख जाए, ऐसा आ्मा मं अहं कार ददख रहा ह। जब हम आ्मा क करीब पहुंचंग, त हम पाएंग, अहं कार त नहीं
ह। वह ककसी चीज मं परर्त नहीं ह गा। परर्तत का क ई सवाल ही नहीं था, वह था ही नहीं। वह कवल रम था और ददखायी
पड़ता था।
त यह ्मर् रखं , अहं कार का क ई पररवतजन नहीं ह गा, न क ई परर्तत ह गी। अहं कार बस ववलीन ह जाएगा। वह उस अथज मं
शज्त नहीं ह।
अ्िा ह ता, पूिा ह ता, आ्मा क आनंद मं ववलीन ह न की ्या आव्यकता ह? अ्िा ह ता, पूिा ह ता, आ्मा क ्व्थ ह न की
्या आव्यकता ह? अ्िा ह ता, पूिा ह ता, आ्मा क अंधकार क बाहर रकाश मं जान की ्या आव्यकता ह?
आ्मा क परमा्मा मं ववलीन ह न की आव्यकता इतनी ही ह कक जीवन दख
ु और वदना स त्ृ त नहीं ह ता ह। यातन ककसी भी
ज्थतत मं जीवन दख
ु क ्वीकार नहीं कर पाता ह और आनंद का आकांषी ह ता ह। परमा्मा स अलग ह कर जीवन दख
ु ह।
परमा्मा मं ह कर वह आनंद ह जाता ह। र्न परमा्मा का नहीं, र्न आपक भीतर दख
ु स आनंद मं उठन का ह। आपक भीतर,
अंधकार स आल क मं उठन का ह। और अगर आपक क ई आव्यकता रतीत नहीं ह ती, त बबलकुल दख
ु मं तनज्चंत रह सकत हं।
लककन क ई दख
ु मं तनज्चंत नहीं रह सकता। दख
ु ्वरपतः अपन स दरू हटाता ह और आनंद ्वरपतः अपन रतत खींचता ह। दख
ु
हटाता ह, आनंद खींचता ह। संसार दख
ु ह, परमा्मा आनंद ह। परमा्मा स लमलन की आव्यकता क ई धालमजक आव्यकता नहीं ह।
परमा्मा स लमलन की आव्यकता ्वरपगत आव्यकता ह।
इसललए दतु नया मं यह ह सकता ह कक क ई परमा्मा क इनकार करता ह , लककन आनंद क क ई इनकार नहीं करगा। इसललए मं
यह कहना शर
ु ककया हूं कक जगत मं क ई भी नाज्तक नहीं ह। नाज्तक कवल वही ह सकता ह, ज आनंद क अ्वीकार करता ह ।
जगत मं र्यक ्यज्त आज्तक ह। इस अथं मं आज्तक ह कक र्यक आनंद का ्यासा ह।
द तरह क आज्तक हं, एक सांसाररक आज्तक, एक आ्याज्मक आज्तक। एक, जजनकी आ्था संसार मं ह कक इसक ्वारा आनंद
लमलगा। एक, जजनकी आ्था इस बात मं ह कक आ्याज्मक जीवन क ववकास स आनंद लमलगा। जजनक आप नाज्तक कहत हं, व
संसार क रतत आज्तक हं। पर उनकी तलाश भी आनंद की ह। व भी आनंद क ख ज रह हं। और आज नहीं कल, उ्हं जब ददखायी
पड़गा कक संसार मं क ई आनंद नहीं ह, त लसवाय परमा्मा क रतत उ्सुक ह न क क ई रा्ता नहीं रह जाएगा।
आपकी ख ज आनंद की ह। परमा्मा की ख ज ककसी की भी नहीं ह। आपकी ख ज आनंद की ह। आनंद क ही हम परमा्मा कहत
हं। पू्ज आनंद की ज्थतत क हम परमा्मा कहत हं। आप जजस घड़ी प्
ू ज आनंद की ज्थतत मं हंग, उस घड़ी परमा्मा हं। यातन
मतलब यह कक जजस घड़ी आपकी क ई आव्यकता शष न रह जाएगी, उस घड़ी आप परमा्मा हं। पू्ज आनंद का मतलब, जब क ई
आव्यकता शष नहीं ह। अगर क ई शष ह, त दख
ु शष रहगा। जब आपकी क ई आव्यकता शष नहीं ह, तब आप पू्ज आनंद मं हं
और तभी आप परमा्मा मं हं।
पि
ू ा ह कक परमा्मा मं ह न की आव्यकता ्या ह?
इसक मं ऐसा कहूं, आव्यकताएं हं, इसललए परमा्मा मं ह न की आव्यकता ह। जजस ददन क ई आव्यकता नहीं रह जाएगी, उस
ददन परमा्मा मं ह न की क ई जररत नहीं रह जाएगी, आप परमा्मा ह जाएंग। हर आदमी आव्यकताओं स मु्त ह ना चाहता ह।
त अगर ऐसी ्वतंरता की घड़ी चाहता ह, जहां क ई आव्यकता का बंधन न ह , जहां वह ह , अखंड ह और पू्ज ह और उसक पार
पान क कुि शष न रह जाए, कुि हटान क , ि ड़न क शष न रह जाए, वसी अखंड और पू्ज ज्थतत परमा्मा ह।
परमा्मा स मतलब नहीं ह कक कहीं क ई ऊपर बठ हुए हं स्जन, और उनक आपक दशजन हंग, और व आप पर कृपा करं ग। और
आप उनक चर्ं मं बठं ग और जाकर वहां ्वगज मं मज करं ग। ऐसा क ई परमा्मा कहीं नहीं ह। और अगर ऐस परमा्मा की
तलाश मं हं, त रम मं हं। ऐसा परमा्मा कभी नहीं लमलगा। आज तक ककसी क नहीं लमला ह।
परमा्मा चचत की अंततम आनंद की अव्था ह। परमा्मा क ई ्यज्त नहीं ह, अनुभूतत ह। यातन परमा्मा का साषात नहीं ह ता।
साषात इस अथं मं नहीं ह ता कक एनकाउं टर ह जाए; कक आप गए और मुठभड़ ह गयी उनस! व आपक सामन खड़ हं और आप
उनक दख रह हं , तनहार रह हं।
य सब क्पनाएं हं, ज आप तनहार रह हं। जब सारी क्पनाएं चचत ि ड़ दता ह और सार ववचार ि ड़ दता ह, तब वह अचानक उस
उदघाटन ह ता ह कक इस सार वव्व अखंड का, इस पूर जगत का, र्मांड का, वह एक जीववत दह्सा मार ह। उसका ्पंदन इस सार
जगत क ्पंदन स एक ह जाता ह। उसकी ्वास इस सार जगत स एक ह जाती ह। उसक रा् इस सार जगत क साथ आंद ललत
ह न लगत हं। उनमं क ई भद, क ई सीमा नहीं रह जाती।
उस घड़ी वह जानता ह, ‘अहं र्माज्म।’ उस घड़ी वह जानता ह कक जजस मंन ‘मं’ करक जाना था, वह त सार र्मांड का अतनवायज
दह्सा ह। ‘मं र्मांड हूं’, उस अनभ
ु तू त क हम परमा्मा कहत हं।
य आपक र्न पूर हुए। उसक बाद थ ड़ समय क ललए, ज ल ग उ्सुक हं द -चार लमनट अकल मं लमलन क , व अकल मं लमल लं।
उ्हं कुि ज अकल मं पूिना ह , व अकल मं पूि लं।
आजइतनाही।
्यान–सर
ू (ओश )रवचन–न वां
मरररयआ्मन ्,
इन तीन ददवसं मं बहुत रम की, और बहुत शांतत की, आनंद की वषाज हमार दयं मं रही। और मं त उन पषषयं मं स हूं, जजनका
क ई नीड़ नहीं ह ता। और मझ
ु आपन अपन दयं मं जगह दी, मर ववचारं क और मर दय स तनकल हुए उदगारं क आपन चाहा,
उ्हं म न स सनु ा, उनक समझन की क लशश की और उनक रतत बहुत रम रकट ककया, उस सबक ललए मं अनग ु ह
ृ ीत हूं। आपकी
आंखं मं , आपकी खश ु ी मं , और आपकी खश
ु ी मं आ गए आंसओ
ु ं मं मझ
ु ज ददखायी पड़ा, उसक ललए भी अनग
ु ह
ृ ीत हूं।
मं बहुत आनंददत हुआ, इस बात स आनंददत हुआ कक आपक भीतर आनंद क ललए एक ्यास जगान मं सफल ह जाऊं। इसस
आनंददत हुआ कक आपक असंत्ु ट करन मं सफल ह जाऊं। यही जीवन मं ददखायी पड़ता ह कक यही काम ह गा कक ज चप
ु चाप हं
और संतु्ट हं, उ्हं मं असंतु्ट कर दं ।ू और ज चप
ु चाप चल रह हं , उ्हं जगा दं ू और उनस कहूं कक ज जीवन ह, वह जीवन नहीं ह।
और जजस व जीवन समझ हुए हं, वह ध खा ह और म्ृ यु ह। जजस जीवन की पररसमाज्त म्ृ यु पर ह जाए, उस जीवन नहीं मानना
ह। ज जीवन और ववराट जीवन मं ल जाए, वही स्चा ह ता ह।
त इन तीन ददनं मं हमन स्च जीवन क जीन की, उस तरफ आंखं उठान की क लशश की ह। अगर संक्प हमारा रगाढ़ ह गा और
हमारी आकांषा गहरी ह गी, त यह असंभव नहीं ह कक जजस ्यास स हम संत्ृ त हुए हं, उसकी पररतजृ ्त तक हम न पहुंच जाएं।
आज क ददन इस आखखरी रात मं , ववदा की रात मं कुि थ ड़ी-सी बातं और आपक कहूं। पहली बात त यह कक यदद परमा्मा क
पान का खयाल आपक भीतर एक लपट बन गया ह , त उस खयाल क ज्दी कायज मं लगा दना। ज शभ ु क करन मं दर करता ह,
वह चक
ू जाता ह। और ज अशुभ क करन मं ज्दी करता ह, वह भी चक
ू जाता ह। शुभ क करन मं ज दर करता ह, वह चक
ू
जाता ह। और अशुभ क करन मं ज ज्दी करता ह, वह चक
ू जाता ह।
जीवन का सर
ू यही ह कक अशभ
ु क करत समय ुक जाओ और दर कर , और शभ
ु क करत समय दर मत करना और ुक मत
जाना।
अगर क ई शुभ ववचार खयाल मं आ जाए, त उस त्ष् शुर कर दना उपय गी ह। ्यंकक कल का क ई भर सा नहीं ह। आन वाल
ष् का क ई भर सा नहीं ह। हम हंग या नहीं हंग, नहीं कहा जा सकता। इसक पहल कक म्ृ यु हमं पकड़ ल, हमं तन्ाजयक रप स
यह लस्ध कर दना ह कक हम इस य ्य नहीं थ कक म्ृ यु ही हमारा भा्य ह । इसक पूवज कक म्ृ यु हमं पकड़ ल, हमं यह लस्ध कर
दना ह कक हम इस य ्य नहीं थ कक म्ृ यु ही हमारा भा्य ह । म्ृ यु स ऊपर का कुि पान की षमता हमन ववकलसत की थी, यह
म्ृ यु क आन तक तय कर लना ह। और वह म्ृ यु कभी भी आ सकती ह, वह ककसी भी ष् आ सकती ह। अभी ब ल रहा हूं और
इसी ष् आ सकती ह। त मुझ उसक ललए सदा तयार ह न की जररत ह। रततष् मुझ तयार ह न की जररत ह।
त कल पर न टालना। अगर क ई बात ठीक रतीत हुई ह , त उस आज स शुर कर दना जररी ह। कल रात मं वहां कहता था, झील
पर हम बठ थ और कल रात मंन वहां कहा कक तत्बत मं एक साधु हुआ। उसस क ई ्यज्त लमलन गया था, और स्य क संबंध
मं पूिन गया था। वहां तत्बत मं ररवाज था कक साधु की तीन परररमाएं कर और कफर उसक पर िुओ और कफर जजञासा कर ।
वह युवक गया, उसन न त परररमा की और न पर िुए। उसन जात स ही पूिा कक ‘मरी क ई जजञासा ह, उतर दं ।’ उस साधु न
कहा, ‘पहल ज औपचाररक तनयम ह, उस त पूरा कर !’ वह युवक ब ला कक ‘तीन त ्या, मं तीन हजार च्कर लगाऊं। लककन अगर
तीन ही च्करं मं मर रा् तनकल गए और स्य क मं न जान पाया, त जज्मा ककसका ह गा? मरा या आपका? इसललए पहल मरी
जजञासा पूरी कर दं , कफर मं च्कर पूर कर दं ग
ू ा।’ उसन कहा कक ‘्या पता कक मं तीन च्कर लगाऊं और समा्त ह जाऊं!’
त कल पर ककसी र्ठ बात क मत टाल दना। और अर्ठ बात क जजतना बन सक, उतना टालना। ह सकता ह, म त बीच मं आ
जाए, और उस अर्ठ क करन स हम बच जाएं। अगर क ई बुराई करन का मन ह , उस जजतना बन उतना टाल दना। म त क बहुत
फासला नहीं ह। अगर क ई आदमी कुि बुराइयं क दस-बीस साल टालन भर मं सफल ह जाए, त जीवन परमा्मा ह सकता ह।
म त का बहुत लंबा फासला नहीं ह। थ ड़-स वषज अगर बुराइयां टालन मं क ई सफल ह जाए, त जीवन शु्ध ह सकता ह। और म त
का क ई फासला नहीं ह, ज शभ
ु क ठहराए रखगा दर तक, उसक जीवन मं कुि उपल्ध न ह गा।
इसललए शुभ क करन मं जजतनी शीरता ह , उसका ्मर् ददलाना चाहता हूं। और अगर क ई बात शुभ मालूम हुई ह , त उस शुर ही
कर दना। यह मत स चना कक कल करं ग। ज आदमी स चता ह, कल करं ग, वह करना नहीं चाहता ह। ज आदमी स चता ह, कल
करं ग, वह करना नहीं चाहता ह। ‘कल करना’ टालन का एक उपाय ह। अगर न करना ह , त उसका भी ्प्ट ब ध ह ना चादहए कक
मुझ नहीं करना ह। वह अलग बात ह। लककन कल पर टालना खतरनाक ह। ज कल पर टालता ह, वह अ्सर हमशा क ललए टाल
दता ह। ज कल पर ि ड़ता ह, वह अ्सर हमशा क ललए ि ड़ दता ह।
यदद क ई बात जीवन मं ठीक लगती ह , त जजस ष् ठीक लग, वही ष् उस करन का ष् भी ह। उस उसी ष् रारं भ कर दना
ह।
त इस बात क ्मर् रखंग कक शुभ क करन मं शीरता और अशुभ क करन मं ुक जाना। और यह भी ्मर् रखं ग कक शुभ
क साधन क, स्य क साधन क ज सूर मंन कह हं, व सूर क ई ब ्चधक लस्धांत की बातं नहीं थ। यातन मुझ क ई रस नहीं ह कक
मं क ई लस्धांत आपक समझाऊं। क ई एकडलमक रस मर मन मं नहीं ह। व मंन इसललए कह हं कक अगर आप करन क राजी ह
जाएं, अगर आप उन सूरं क करन क राजी ह जाएं, त व सूर आपक ललए कुि करं ग।
अगर आप उनक करन क राजी हुए, त व सर ू आपक ललए कुि करं ग। और अगर आपन उनका उपय ग ककया, त व सर ू आपक
पररवततजत कर दं ग। व सर
ू बहुत जीववत हं। व जीववत अज्न की तरह हं। अगर थ ड़ा ही उस जगाया, त आप नए ्यज्त का अपन
भीतर ज्म अनभ
ु व कर सकत हं।
एक ज्म हमं मां-बाप स लमलता ह। वह क ई ज्म नहीं ह। वह एक और नयी म्ृ यु का आगमन ह। वह एक और च्कर ह,
जजसमं अंत मं म्ृ यु आएगी। वह क ई ज्म नहीं ह, वह कवल एक और नए शरीर का धार् ह। एक और भी ज्म ह, ज मां-बाप
स नहीं लमलता, ज साधना स लमलता ह, वही वा्तववक ज्म ह। उसी क पाकर ्यज्त ्ववज ह ता ह, दब
ु ारा ज्म पाता ह। वह
ज्म र्यक क ्वयं दना ह ता ह, अपन क दना ह ता ह।
बहुत आनंद ह इस जगत मं , और बहुत आल क ह, और बहुत संदयज ह। काश, हमार पास दखन की आंखं हं और रह् करन वाला
दय ह । त वह रह् करन वाला दय और दखन वाली आंख पदा ह सकती ह। उसक ललए ही तीन ददन बहुत-सी बातं आपस
कहा हूं।
एक अथज मं व बातं , बहुत-सी नहीं भी हं; थ ड़ी ही हं। द ही बातं कहा हूं, जीवन श्
ु ध ह और चचत श्ू य ह । द ही बातं कहा हूं,
जीवन श्
ु ध ह और चचत श् ू य ह । एक ही बात कहा हूं यंू त , चचत श् ू य ह । जीवन की श्
ु चध उसकी भलू मका मार ह।
चचत शू्य ह , त उस शू्य स वह आंख लमलती ह, ज जगत मं तिप रह्य क ख ल दती ह। और तब पतं मं पत नहीं ददखत,
बज्क पतं का ज रा् ह, उसका दशजन ह न लगता ह। और सागर की लहरं मं लहरं नहीं ददखतीं, बज्क लहरं क ज कंपाता ह,
उसक दशजन ह न लगत हं। और मनु्यं मं तब दहं नहीं ददखतीं, बज्क दहं क भीतर ज रा् ्पंददत ह, उसका अनुभव ह न लगता
ह। और तब कस आ्चयज का और कस चम्कार का अनुभव ह ता ह, उस कहन का क ई उपाय नहीं ह।
उस रह्य क ललए आमंबरत ककया ह और आ्वान ककया ह। और उस रह्य तक पहुंचन क ि ट-स सूर आपक कह हं। व सूर
सनातन हं। व सूर मर या ककसी और क नहीं हं। व सूर सनातन हं। और जब स मनु्य ह और जब स मनु्य मं दद्य की
जजञासा ह, तब स सकरय हं। उन सूरं का ककसी धमज स क ई वा्ता नहीं ह, ककसी रंथ स क ई वा्ता नहीं ह, व शा्वत हं। और
जब क ई रंथ न थ और क ई धमज न थ, तब भी व थ। और अगर कल सार धमजरंथ न्ट ह जाएं और सार मंददर-मज्जद चगर जाएं,
तब भी व हंग।
धमज शा्वत ह; संरदाय बनत हं और लमट जात हं। धमज शा्वत ह; शा्र बनत हं और लमट जात हं। धमज शा्वत ह; तीथंकर और
पगंबर पदा ह त हं और ववलीन ह जात हं।
यह ह सकता ह, एक व्त आए कक हम भूल जाएं कक कभी कृ्् हुए, महावीर हुए, राइ्ट हुए, बु्ध हुए। लककन धमज न्ट नहीं
ह गा। धमज तब तक न्ट नहीं ह गा, जब तक मनु्य क भीतर आनंद की ्यास और जजञासा ह, जब तक मनु्य दख ु स ऊपर उठना
चाहता ह।
यदद आप दख
ु ी हं , यदद आपक ब ध ह ता ह कक दख
ु ह, त उस दख
ु क झलत मत चल जाइए, उस दख
ु क सहत मत चल जाइए।
उस दख
ु क ववर ध मं खड़ ह इए और उस दख
ु क ववसजजजत करन का उपाय कररए।
साधार् मनु्य दख
ु क पाकर ज काम करता ह वह, और साधक ज काम करता ह वह, द नं मं बहुत थ ड़ा-सा भद ह। जब
साधार् ्यज्त क सामन दख
ु खड़ा ह ता ह, त वह दख
ु क भुलान का उपाय करता ह। और जब साधक क सामन दख ु खड़ा ह ता
ह, त वह दख
ु क लमटान का उपाय करता ह।
दख
ु क भुलान का उपाय एक तरह की मू्िाज ह। आप च बीस घंट दख
ु क भुलान का उपाय कर रह हं। आप ल गं स बातं कर रह
हं, या संगीत सन
ु रह हं, या शराब पी रह हं, या ताश खल रह हं, या जएु मं लग हुए हं, या ककसी और उपरव मं लग हुए हं, जहां कक
अपन क भल ू जाएं, ताकक आपक ्मर् न आए कक भीतर बहुत दख ु ह।
एक राजा क ऐसा एक बार हुआ। उसक एक वजीर न, उसक एक मंरी न उसक कहा कक ‘अगर ककसी आदमी क हम बबलकुल
अकला बंद कर दं , त वह तीन महीन मं पागल ह जाएगा।’ राजा न कहा, ‘कस ह जाएगा? हम उस अ्ि खान की ्यव्था दं ग,
अ्ि व्र दं ग, कफर भी?’ उस वजीर न कहा, ‘वह ह जाएगा। ्यं? ्यंकक उस अकलपन मं अपन दख
ु क न भुला सकगा।’ राजा न
कहा, ‘हम दखं ग। और गांव मं ज सबस ्व्थ आदमी ह और सबस युवा और सबस रस्न, उसक पकड़ ललया जाए।’
गांव मं एक यव
ु क था, जजसक संदयज की, जजसक ्वा््य की चचाज थी। उस यव
ु क क पकड़ ललया गया और उस एक क ठरी मं बंद
कर ददया गया। उस सारी सख
ु -सवु वधा दी गई, अ्िा भ जन, अ्ि व्र, लककन उस समय क भल
ु ान का क ई उपाय नहीं ददया गया।
वह खाली दीवारं और कमरा! और पहर पर ज आदमी था, वह भी ऐसा रखा कक उसकी भाषा न समझ। उस र टी पहुंचा दी जाती।
भ जन पहुंचा ददया जाता। पानी पहुंचा ददया जाता। और वह बंद था।
एक-द ददन वह बहुत चच्लाया कक मुझ ्यं बंद ककया गया ह? उसन बहुत हाथ-पर फटकार। एक-द ददन उसन खाना भी नहीं
खाया। लककन धीर-धीर खाना भी खान लगा और उसन चच्लाना भी बंद कर ददया। पांच-सात ददन क बाद दखा गया कक वह आदमी
बठा हुआ अकल अपन स ही बातं कर रहा ह।
वजीर न उस बादशाह क खखड़की स ददखलाया, ‘दखत हं, अब वह भुलान का अंततम उपाय कर रहा ह, अपन स ही बातं कर रहा ह!’
जब क ई नहीं ह ता आपक पास, त आप अपन स ही बातं करन लगत हं। और जस-जस ल ग व् ृ ध ह न लगत हं, व बहुत अपन स
बातं करन लगत हं। युवा ह त हं, तब तक त उनक हंठ भी बंद ह त हं। जब व व्
ृ ध ह न लगत हं, त उनक हंठ भी फड़कन लगत
हं। व अपन स बातं करत हं। रा्त पर चलत हुए ल ग आपन दख हंग। व ्या कर रह हं? व अपन क भल
ु ान का उपाय कर रह
हं।
तीन माह तक वह युवक बंद था। तीन महीन क बाद जब उस तनकाला गया; वह पागल ह चक
ु ा था। पागल का मतलब ्या ह?
पागल का मतलब ह, उसन अपन क भुलान क ललए एक बबलकुल का्पतनक दतु नया खड़ी कर ली थी। लमर थ, द्ु मन थ, उनस
लड़ता था, बातं करता था। पागल का मतलब ्या ह? असली दतु नया उपल्ध न थी वहां, ककसस लड़, ककसस ब ल, ककसक साथ बातं
कर, त उसन एक का्पतनक दतु नया खड़ी कर ली थी। अब उस इस दतु नया स क ई मतलब न था। अब उसकी अपनी एक दतु नया
थी, उसमं वह अपन क भूल गया।
धालमजक ्यज्त वह ह, जजस अगर बबलकुल अकला ि ड़ ददया जाए, बबलकुल अकला, त भी उस क ई दख
ु नहीं ह गा; वह क ई उपाय
नहीं ख जगा।
जमजनी मं एक साधु था, इकहाटज । वह एक ददन वन मं गया हुआ था और एक दर्त क नीच अकल मं बठा हुआ था। उसक कुि
लमर भी वन-ववहार क गए थ। उ्हंन दखा, इकहाटज अकला ह। व उसक पास गए और उ्हंन उसस कहा कक ‘लमर! हमन दखा तुम
अकल बठ ह , स चा चल त्
ु हं कंपनी दं , त्
ु हं साथ दं ।’
इकहाटज न उनकी तरफ दखा और कहा कक ‘लमर ! इतनी दर तक मं परमा्मा क साथ था। तुमन आकर मुझ अकला कर ददया।’
इकहाटज न कहा, ‘इतनी दर मं परमा्मा क साथ था, ्यंकक अपन साथ था। तुमन आकर मुझ अकला कर ददया।’ अदभुत उसन बात
कही।
हम उसक ववपरीत हं। हम च बीस घंट ककसी क साथ हं कक कहीं अपना साथ न ह जाए। हम च बीस घंट ककसी न ककसी क साथ हं
कक कहीं अपना साथ न ह जाए। अपन स हम डर हुए हं। इस जगत मं सब ल ग अपन स डर हुए हं। यह अपन स डरा हुआ ह ना
खतरनाक ह।
मंन ज सूर कह, व आपक अपन स पररचचत कराएंग और अपन भय क लमटाएंग। और आप उस ज्थतत मं खड़ हंग कक अगर
आप इस जमीन पर बबलकुल अकल हं, बबलकुल अकल कक इस जमीन पर क ई भी न ह , त भी आप उतन ही आनंद मं हंग, जजतन
कक तब, जब कक यह जमीन भरी हुई ह। आप अकल मं उतन ही आनंद मं हंग, जजतन कक तब, जब कक आप भीड़ मं हं। वही आदमी
कवल म्ृ यु स नहीं डरगा, जजसन अकल ह न का आनंद ललया ह। ्यंकक म्ृ यु अकला कर दती ह; और ्या करती ह! आप म्ृ यु स
इतन डरत हं, उसका कुल कार् इतना ह कक आप त थ ही नहीं, भीड़ थी। और म त भीड़ िीन लगी, सार संबंध िीन लगी और आप
अकल ह जाएंग। अकलापन भय दता ह।
इन तीन ददनं मं हमन ज ्यान की बात की ह, वह मूलतः बबलकुल अकल मं , ट टल ल नलीनस मं जान क रय ग हं, एकदम अकल
मं अपन भीतर जान क रय ग हं। उस कंर पर जाना ह, जहां आप ही ह और क ई भी नहीं ह।
और वह कंर अदभत
ु ह। उस कंर क ज अनभ
ु व कर लता ह, वह अनभ
ु व करता ह उन गहराइयं क ज समर
ु क नीच ह ती हं। हम
कवल समर ु की लहरं पर तर रह हं। और हमं पता नहीं कक इन लहरं क नीच अनंत गहराइयां तिपी हुई हं, जहां कभी क ई लहर
नहीं गई, जहां कभी ककसी लहर न क ई रवश नहीं ककया ह।
अपन ही भीतर बहुत गहराइयां हं। अकलपन मं , जजतन आप दस ू र ल गं स दरू ह कर अकल मं चलं ग, अपन मं चलंग, दस
ू रं क
ि ड़ंग और ्वयं मं चलंग, उतनी ही ्यादा गहराई मं , उतनी ही ्यादा गहराई मं आप पहुंचंग। और यह बड़ा रह्य ह कक आपक
भीतर आप जजतनी गहराई मं पहुंचंग, आपका बाहर जीवन उतनी ही ऊंचाई क उपल्ध ह जाएगा।
यह गख्त का तनयम ह। यह जीवन क गख्त का तनयम ह, आप अपन भीतर जजतनी गहराई पा लंग, उतन ही आपक जीवन मं
बाहर ऊंचाई उपल्ध ह जाएगी। ज अपन भीतर जजतना कम गहरा ह गा, वह बाहर उतना ही नीचा ह गा। ज अपन भीतर बबलकुल
गहरा नहीं ह गा, बाहर उसकी क ई ऊंचाई नहीं ह गी। हम उनक महापुुष कहत हं, हम उनक महापुुष कहत हं, जजनक भीतर गहराई
ह ती ह और उस गहराई क पररमा् मं उनक बाहर ऊंचाई ह जाती ह।
त अगर जीवन मं ऊंचाई चादहए, त ्वयं मं गहराई चाहनी ह गी। ्वयं मं गहराई का उपाय समाचध ह। समाचध अंततम गहराई ह।
उस समाचध क ललए कस हम चर् रखं और कस अपन क साधं और स्हालं और कस व बीज ब एं, ज कक परमा्मा क फूलं मं
परर्त ह सकत हं, उनकी बहुत थ ड़ी-सी बातं आपस कही हं। पर यदद उन थ ड़ी-सी बातं मं स भी कुि आपकी ्मतृ त क पकड़ लं
और क ई बीज आपक दय की भलू म मं पड़ जाए, त क ई कार् नहीं ह कक उसमं अंकुर आ जाए और आप एक नए जीवन क
अनभ
ु व कर सकं।
जजस जीवन क आप जीत रह हं, उस वसा ही जीए जान की आकांषा क ि ड़ दं । उसमं क ई अथज नहीं ह। उसमं कुि नए क जगह
दं , कुि नवीन क जगह दं । जस आप जीत रह हं, अगर वस ही जीत जाएंग, त लसवाय म्ृ यु क और क ई परर्ाम नहीं ह गा।
यह आकांषा और यह अतजृ ्त पदा ह सक, उसक लसवाय और मरा क ई मन नहीं ह। साधार्तः ल ग कहत हं, धमज संत ष ह। और
मं कहता हूं, धालमजक ल ग बड़ असंतु्ट ल ग ह त हं। सम्त जीवन स उनक मन मं असंत ष ह ता ह और तभी व धमज की तरफ
उ्सुक ह त हं।
त मं आपक संत ष करन क नहीं कहता हूं। नहीं कहता हूं कक आप संत ष करं । मं आपस कहूंगा कक असंतु्ट ह जाएं, पररपू्ज
आ्मा स असंतु्ट ह जाएं, आपक रा् और मन का क्-क् असंतु्ट ह जाए। असंतु्ट ह जाए दद्य क ललए, असंतु्ट ह जाए
स्य क ललए। उस असंत ष की अज्न मं आपका नया ज्म ह गा।
कलक ईमझ
ु सपछ
ू तािाकक्याइसतरहकीसाधनाकरकहमं संसारसदरू चलाजानाह गा? ्याहमं सं्यासीह जाना
ह गा? ्याहमयहश्
ू यसाधंग, त हमारसंसारका्याह गा? हमारपररवारका्याह गा?
इस संबंध मं भी जररी ह कक इस अंततम ददन मं आपस कुि कहूं। मं आपक यह कहूं कक धमज पररवार का और संसार का ववर धी
नहीं ह। धमज पररवार और संसार का ववर धी नहीं ह। और यह ज बात हमार ददमाग मं पदा ह गई ह वपिल वषं मं , वपिली सददयं
मं , उसन हमं और हमार धमज क बहुत नुकसान पहुंचाया ह।
धमज संसार का ववर धी नहीं ह। धमज पररवार का ववर धी नहीं ह। धमज का संबंध सब ि ड़कर भाग जान स नहीं ह। धमज त आज्मक
पररवतजन ह। पररज्थतत स उसका क ई वा्ता नहीं ह; मनःज्थतत स उसका वा्ता ह। वह मन क बदलन की बात ह, पररज्थतत क
बदलन की बात नहीं ह। आप अपन क बदलं।
बाहर ज दतु नया ह, उस ि ड़कर भागन स थ ड़ ही क ई बदलता ह। अगर मं घ् ृ ा स भरा हुआ हूं, त मं जंगल मं जाकर ्या
करंगा? मं वहां भी घ्
ृ ा स भरा रहूंगा। अगर मं अहं कार स भरा हुआ हूं, त मं पवजतं पर जाकर ्या करंगा? मं वहां भी अहं कार स
भरा रहूंगा। एक खतरा ह सकता ह। समाज मं था, भीड़ मं था, त अहं कार का र ज-र ज पता चल जाता था। दहमालय की ठं डक मं ,
पहाड़ पर बठकर, वहां ल ग म जूद न हंग, अहं कार का पता न चलगा। अहं कार का पता न चलना एक बात ह और अहं कार का लमट
जाना बबलकुल दस
ू री बात ह।
एक साधु क संबंध मं मंन सुना ह, व तीस वषज तक दहमालय पर थ। और उ्हं ऐसा रतीत हुआ उन तीस वषं मं कक व पररपू्ज शांत
ह गए हं; अहं कार ववलीन ह गया ह। कफर उनक कुि लश्यं न एक बार उनस कहा कक ‘नीच मला ह और आप मल मं चलं।’
व नीच मल मं आए। और जब व भीड़ मं मल की रवव्ट हुए और ककसी अनजान आदमी का पर उनक पर पर पड़ गया, त उ्हं
त्ष् पता चला कक उनका अहं कार और र ध वापस जाग गया ह। व त हरान हुए। तीस साल दहमालय जजस न ददखा सका, एक
आदमी क पर पर पर रखन स उसक दशजन ह गए!
इसक ्मर् रखं , आपक अपन क बदलना ह, अपनी जगह क नहीं बदलना ह। जगह क बदलन का क ई मतलब नहीं ह। जगह
क बदलन मं ध खा ह, ्यंकक जगह क बदलन स यह ह सकता ह कक आपक कुि बातं पता न चलं । नए वातावर् मं , शांत
वातावर् मं आपक ध खा ह कक आप शांत ह गए हं।
ज शांतत रततकूल पररज्थततयं मं न दटक, वह क ई शांतत नहीं ह। इसललए ज समझदार हं , व रततकूल पररज्थततयं मं ही शांतत क
साधत हं। ्यंकक ज रततकूल मं साध लत हं, अनुकूल मं त उस हमशा उपल्ध कर ही लत हं।
इसललए जीवन स भागन की बात नहीं ह। जीवन क परीषा समझं। और इस ्मर् रखं कक आपक आस-पास ज ल ग हं, व सब
सहय गी हं। वह आदमी भी आपका सहय गी ह, ज सब
ु ह आपक गाली द जाए। उसन एक म का ददया ह आपक । चाहं त अपन
भीतर रम क साध सकत हं। वह आदमी आपका सहय गी ह, ज आप पर र ध क रकट कर। वह आदमी आपका सहय गी ह, ज
आपकी तनंदा कर जाए। वह आदमी आपका सहय गी ह, ज आप पर कीचड़ उिालता ह । वह आदमी भी आपका सहय गी ह, ज
आपक रा्त पर कांट बबिा द। ्यंकक वह भी एक म का ह और परीषा ह। और चाहं और उस पार ह जाएं, त आपक मन मं उसक
रतत इतना ऋ् ह गा, जजसका दहसाब नहीं ह। साधु ज नहीं लसखा सकत हं इस जगत मं , शरु लसखा सकत हं।
मं पुनः कहूं, साधु ज नहीं लसखा सकत हं इस जगत मं , शरु लसखा सकत हं। अगर आप सजग हं और सीखन की समझ ह, त आप
जजंदगी क हर प्थर क सीढ़ी बना सकत हं। और नहीं त नासमझ, सीदढ़यं क भी प्थर समझ लत हं और उनस ही ुक जात हं।
अ्यथा हर प्थर सीढ़ी ह सकता ह, अगर समझ ह । अगर समझ ह , त हर प्थर सीढ़ी ह सकता ह।
इस थ ड़ा ववचार करं । आपक अपन घर मं , पररवार मं ज -ज बातं प्थर मालूम ह ती हं कक इनकी वजह स मं शांत नहीं ह पाता,
उ्हीं क साधना का कंर बनाएं और दखं कक व ही आपक शांत ह न मं सहय गी ह जाएंगी। क न-सी बात आपक नहीं बनाती?
पररवार मं ्या अड़चन ह? क न-सी बात आपक र कती ह? ज बात आपक र कती ह , जरा ववचार करं , ्या क ई रा्ता उस सीढ़ी
बनान का ह सकता ह? बराबर रा्त ह सकत हं। और अगर ववचार करं ग और वववक करं ग, त रा्ता ददखाई पड़गा।
क न-सा कार् ह, ज आपक कहता ह कक पररवार ि ड़ं, तब आप शांत हंग और स्य क उपल्ध हंग? क ई भी वा्तववक कार्
नहीं ह। अपन जीवन क , अपन चचत क ठीक स समझं और अपन आस-पास की पूरी पररज्थततयं का उपय ग करं ।
हम ्या करत हं! पररज्थततयं का उपय ग नहीं करत, बज्क पररज्थततयां ही हमारा उपय ग कर लती हं। हम पूर जीवन इसललए
घाट मं रह जात हं कक हम पररज्थततयं का उपय ग नहीं करत, पररज्थततयां हमारा उपय ग कर लती हं। और हम घाट मं इसललए
रह जात हं कक हम कवल रततकमज करत रहत हं, ररए्शंस करत रहत हं, हम क ई कमज कभी नहीं करत।
आपन मुझ गाली दी, त मं त्ष् उसस वजनी गाली आपक दकर रहूंगा। आपन मुझ एक गाली दी, मं उसस वजनी गाली या द
गाललयां आपक दं ग
ू ा। और मं यह न स चग
ूं ा कक यह मंन कवल एक रततकमज ककया, एक ररए्शन ककया। एक गाली दी गई थी, मंन
द ल टा दी हं। यह क ई कमज नहीं ह।
आप अगर अपन च बीस घंट क जीवन क दखं , त आप पाएंग, उसमं सब रततकमज ह रह हं। क ई कुि कर रहा ह, आप उसक उतर
मं कुि कर रह हं। मं आपस पि
ू ू ं , आप ऐसा भी कुि कर रह हं ्या ज ककसी का उतर नहीं ह? क ई काम आप ऐसा भी कर रह हं
्या ज ककसी का उतर नहीं ह? ज ककसी का उतर न ह , ज ककसी क कार् ररए्शन मं पदा न हुआ ह , ज रततकरया न ह , वह
कमज ह। और वह कमज ही साधना ह।
संसार का ववर ध सं्यास नहीं ह, संसार की शु्चध सं्यास ह। अगर संसार मं आप शु्ध ह त चल जाएं, एक ददन आप पाएंग कक
आप सं्यासी ह गए हं। सं्यासी ह ना क ई वश-पररवतजन नहीं ह कक हमन कपड़ बदल ललए और हम सं्यासी ह गए। सं्यास त
पूर अंतस का पररवतजन ह, एक ववकास ह। सं्यास एक र थ ह। बड़ आदह्ता, बहुत आदह्ता एक ववकास ह।
अगर क ई ्यज्त ठीक स अपन जीवन का उपय ग कर, जसी भी पररज्थततयां हं, उनका उपय ग कर, त रलमक रप स धीर-धीर
पाएगा, उसक भीतर सं्यासी का ज्म ह रहा ह। ववृ तयं पर ववचार करन की और ववृ तयं क श्
ु ध और श्
ू य करन की बात ह।
दखं अपन भीतर, आपकी क न-सी ववृ तयां हं, ज आपक संसारी बनाए हुए हं? ्मर् रखं , क ई दस ू र ल ग आपक संसारी नहीं बनाए
हुए हं। मं जजस घर मं हूं, उस घर मं मर वपता मुझ संसारी नहीं बनाए हुए हं। मर वपता मुझ कस बनाएंग? मरा वपता क रतत ज
म ह ह गा, वह बना सकता ह। आप जजस घर मं हं, आपकी प्नी आपक संसारी कस बनाएगी? प्नी क रतत आपक ज भाव हंग, व
आपक संसारी बनाए हुए हं।
प्नी क ि ड़कर भागन स ्या ह गा? व भाव त आपक साथ चल जाएंग। क ई भावं क ि ड़कर नहीं भाग सकता कहीं। अगर
भावं क ि ड़कर हम भाग सकत, दतु नया बड़ी आसान ह जाती। आप भागत हं; जस िाया आपक पीि जाती ह, वस आपक सार भाव
आपक साथ चल जात हं। व दस
ू री जगह नया आर प् कर लं ग और आप दस
ू री जगह नयी गह
ृ ्थी बना लं ग।
बड़ स बड़ सं्यासी बड़ी-बड़ी गह
ृ ज्थयां बना लत हं। उनकी गह
ृ ज्थयां बन जाती हं, और उनक म ह पदा ह जात हं, और उनकी
आसज्तयां बन जाती हं, और उनक सुख-दख
ु ह जात हं। ्यंकक व उन भावं क साथ ल आए थ, व नयी जगह खड़ ह जाएंग।
इसस क ई भद नहीं पड़ता! आदमी बदल जाएंग, चीजं वही रहं गी।
त मं आपक यह नहीं कहता कक आप चीजं क ि ड़कर भाग जाएं। मं आपक कहता हूं, आप भावं क ि ड़ दं । चीजं जहां हं, व वहीं
हंगी; भाव बीच स चगर जाएंग और आप मु्त ह जाएंग।
जापान मं एक राजा हुआ। उस राजा क गांव क बाहर ही एक सं्यासी बहुत ददन तक रहता था। वह एक झाड़ क नीच पड़ा रहता।
अदभतु सं्यासी था। बड़ी उसकी ग रव-गररमा थी। बड़ी उसकी ्य तत थी। बड़ा उसका रकाश था। बड़ी उसक जीवन मं सग
ु ंध थी।
वह राजा भी उस आकषज् स खखंचा हुआ धीर-धीर उसक पास पहुंचा। उसन उस अनक ददन वहां पड़ दखा। अनक बार उसक चर्ं
मं जाकर बठा। उसका रभाव उस पर घना ह ता गया। और एक ददन उसन उसस कहा, ‘्या अ्िा न ह कक इस झाड़ क ि ड़ दं
और मर साथ महल मं चलं!’ उस सं्यासी न कहा, ‘जसा मन, चाहं वहीं चल सकत हं।’
राजा थ ड़ा हरान हुआ। इतन ददन क आदर क थ ड़ा ध्का लगा। उसन स चा था, सं्यासी कहगा, ‘महल! हम सं्यासी, हम महल मं
्या करं ग!’ सं्यासी की बंधी भाषा यही ह। अगर सं्यास सीखा हुआ ह , त यही उतर आएगा कक हम सं्यासी, हमक महल स ्या
मतलब! हम लात मार चक
ु । लककन उस सं्यासी न कहा, ‘जसा मन, वहीं चल सकत हं।’
द -चार-दस ददन ही बीत कक उसन उसस कहा कक ‘षमा करं , मन मं मर एक संदह ह ता ह।’ उस सं्यासी न कहा, ‘अब ्या ह ता ह,
वह उसी ददन ह गया था।’ उस सं्यासी न कहा, ‘अब ्या ह ता ह, वह उसी ददन ह गया था। कफर भी कहं , ्या संदह ह?’ राजा न
कहा, ‘संदह यह ह ता ह कक आप कस सं्यासी हं? और मझ
ु संसारी मं और आप सं्यासी मं फकज ्या ह?’
राजा न कहा, ‘मं त जानना ही चाहता हूं। संदह स मन बड?ाा ्यचथत ह, मरी नींद तक खराब ह गई ह। आप झाड़ क नीच थ, त
अ्िा था, मर मन मं आदर था। और आप यहां महल मं हं, त मरा त आदर चला गया।’
वह सं्यासी राजा क लकर गांव क बाहर गया। जब नदी पार हुई, ज कक सीमा थी गांव की, व उस तरफ हुए, त उस राजा न कहा,
‘अब ब लं।’ उस सं्यासी न कहा, ‘और थ ड़ा आग चलं।’ धप
ू बढ़न लगी। द पहर ह गई। सूरज ऊपर आ गया। उस राजा न कहा, ‘अब
त बता दं ! अब त बहुत आग तनकल आए।’ सं्यासी न कहा, ‘यही बताना ह कक अब हम पीि ल टन क नहीं, आग ही जात हं। तुम
साथ चलत ह ?’ उस राजा न कहा, ‘मं कस जा सकता हूं! पीि मरा पररवार ह, मरी प्नी ह, मरा रा्य ह!’ सं्यासी न कहा, ‘अगर
फकज ददख, त दख लना। हम आग जात हं और पीि हमारा कुि भी नहीं ह। और जब हम उस त् ु हार महल मं थ, तब भी हम
त्
ु हार महल मं थ, लककन त्
ु हारा महल हमार भीतर नहीं था। हम त्
ु हार महल क भीतर थ, लककन त्
ु हारा महल हमार भीतर नहीं
था। इसललए हम अब जात हं।’
उस राजा न पर पकड़ ललए। उसका रम टूटा। उसका संदह लमटा। उसन कहा, ‘षमा करं , मुझ बहुत प्चाताप ह गा जीवनभर, ल ट
चलं।’ सं्यासी न कहा, ‘अब भी ल ट चलूं, लककन संदह कफर आ जाएगा।’ उस सं्यासी न कहा, ‘हमक ्या ह, इधर न गए, इधर ल ट
चल। कफर ल ट चलूं, लककन तु्हारा संदह कफर ल ट आएगा। तुम पर कृपा करक अब मं सीधा ही जाता हूं।’ उसन ज वचन कहा,
्मर्ीय ह। उसन कहा, ‘तुम पर कृपा करक अब मं सीधा ही जाता हूं। मरी कु्ा कहती ह कक अब मुझ सीधा जान दं ।’
और मं आपक ्मर् ददलाता हूं कक महावीर क न्न ह न मं उनक न्न ह न का आरह कम ह, आप पर कु्ा ्यादा ह। और
सं्यासी का जंगल मं पड़ रहन मं , ज सच मं सं्यासी ह, उसका जंगल स म ह कम ह, आप पर कु्ा ्यादा ह। और न्न ्वार-
्वार लभषा मांगन मं लभषा मांगन का आरह कम ह, आप पर कु्ा ्यादा ह। अ्यथा वह बबना लभषा मांग आपक घर भी ल
सकता ह। और बाहर सड़क पर पड़ रहन की बजाय महल मं भी स सकता ह। सं्यासी क क ई भद नहीं पड़ता ह। हां, झूठ सं्यासी
क पड़ता ह गा।
सं्यासी क क ई भद नहीं पड़ता ह। भद इसललए नहीं पड़ता ह कक उसक चचत मं कुि रवव्ट नहीं ह ता ह। चीजं अपनी जगह हं,
महल की दीवारं अपनी जगह हं, ग्ददयां जजन पर हम बठ हं, व अपनी जगह हं। व अगर मर चचत मं रवश न करं , त मं उनस
अिूता हूं और दरू हूं।
त आप जहां हं, उस ि ड़न क मं नहीं कहता हूं। आप ज हं, उसक बदलन क कहता हूं। आप जहां हं, वहां स भागन क नहीं कहता
हूं। कमज र भागत हंग, आपक त मं बदलन क कहता हूं। और बदलना असली बात ह।
सजग हं अपनी चचत-ज्थतत क रतत और उस बदलन मं लग जाएं। क ई एक बबंद ु पकड़ लं और उस बदलन मं लग जाएं। बंद
ू -बंद
ू
करक, बंद
ू -बंद
ू करक सागर भर सकता ह। बंद
ू -बंद
ू चलकर परमा्मा उपल्ध ह सकता ह। एक-एक बंद
ू चलं , ्यादा चलन क नहीं
कहता। एक-एक बूंद चलं । और बूंद-बूंद चलकर परमा्मा उपल्ध ह सकता ह। बहुत मत स चं कक मरी साम्यज ्यादा नहीं ह, मं
कस पहुंचग
ूं ा!
ककतन ही कमज र हं, एक कदम चलन य ्य सबकी साम्यज ह। और ्या मं आपक पूिूं कक बड़ स बड़ समथज भी एक कदम स
्यादा कभी एक बार मं चल हं? बड़ स बड़ समथज भी एक कदम स ्यादा एक बार मं कभी नहीं चल हं। और एक कदम चलन
य ्य साम्यज सबकी ह और सदा ह।
त एक कदम चलं। और कफर एक कदम चलं। और कफर एक कदम चलं । एक ही कदम चलना ह सदा। पर एक ही कदम ज चलता
चला जाता ह, वह अनंत फासल पूर कर लता ह। और ज यह स चकर कक ‘एक कदम चलन वाल हम कहां पहुंचंग’ ुक जाता ह, वह
कहीं भी नहीं पहुंच पाता ह।
त उस एक कदम चलन क ललए मं आमंर् दता हूं। और इन ददनं इतन रम स मरी बातं क सन ु ा ह, इतनी शांतत स उनक सन
ु ा
ह, उसस ककतन आनंद क , ककतन अनर
ु ह क मंन अनभ
ु व ककया ह। बहुत अनग
ु ह
ृ ीत हुआ हूं। दय मं ज जगह दी ह, उसस बहुत
अनग
ु ह
ृ ीत हुआ हूं। उसक ललए बहुत-बहुत, उसक ललए बहुत-बहुत ध्यवाद और मर रम क ्वीकार करं ।
अब हम आज क अंततम ्यान क रय ग क ललए बठं ग। और उसक बाद ववदा हंग। इस आशा स ववदा करता हूं कक जब हम दब ु ारा
लमलंग, त मं पाऊंगा, आपकी शांतत बढ़ी ह और आपका आनंद बढ़ा ह। और मं पाऊंगा कक जजस कदम क उठान क ललए मंन कहा
था, वह आपन उठाया ह। और मं पाऊंगा कक कुि अमत
ृ की बूंदं आपक करीब आयी हं और आप कुि अमत
ृ क करीब पहुंच हं।
परमा्मा कर, एक कदम, कम स कम एक कदम उठान की साम्यज आपक द। शष कदम उसक बाद अपन आप उठ जात हं।
आजइतनाही।
यह चन
ु ती हमार सामन भी ह , लककन एक वव्वास भी कक हहदी क जागूक
ह रह पाठकं क इस सम्या क बार मं अदाज़ा ह और व इस बार मं कवल
मक
ू दिशक नही ह | हम आपक हहदी की प्
ु तकं दं ग , हहदी मं जानकारी दं ग
और बहुत कुछ दं ग और हमं आिा ह कक आप भी हम बदल मं अपना ्यार
दं ग और हमारी मदद करं ग हह्दी क स्र्ि बनान मं |
अपना हाि बढाइय और हमारी मदद की्जय | मदद करन क शलए जूरी नही
ह कक आप पस या आधिशक मदद ही करं , आप ्जस तरह चाहं उस तरह
हमारी मदद कर सकत हं | हमारी मदद करन क तरीकं क आप यहा दख
सकत हं |
अगर आपक हमारा रय्न पसद आया ह त शस्श 500 ू. का सहय ग कर| आपका सहय ग हहदी साहह्य
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सकत हः | अधिक जानकारी क शलए मल करं preetam960@gmail.com अिवा यहा दखं
ि्यवाद