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गणेश का रहस्य
गणेश का रहस्य
देवद पटनायक
गणेश का रह य
आकित 1.1 िशव का प रवार
आकित 1.1 म प रवार िदखाया गया ह : िपता, माता तथा दो पु ; परतु यह कोई सामा य िच नह ह। यह
भगवा िशव क प रवार का िच ह। ये पवत पर अपनी प नी (िहमालय पु ी) पावतीजी तथा अपने दो पु गणेश
अथा गजानन एवं भालाधारी काितकयजी क साथ िवराजमान ह।
िहदू धम या िहदु व से अप रिचत य क िलए यह िच अजीब हो सकता ह। िकसी क बाल से नदी कसे
वािहत हो सकती ह? िकसी क हाथी का िसर तथा चार हाथ कसे हो सकते ह? कोई मोर पर सवार कसे हो
सकता ह? इनसे ई र का ितपादन कसे हो सकता ह? भला इतने सार भगवा कसे हो सकते ह?
परतु िहदू इन धारणा को सहज प म लेते ह, य िक ये इ ह िच व मूितय को देखकर पलते-बढ़ते ह।
इ ह समझने क िलए उ ह तक का सहारा नह लेना पड़ता। ये िवचार पीढ़ी-दर-पीढ़ी चले आ रह ह। इनक ज रए
िहदू देव व क धारणा से प रिचत होते ह। िहदू धम म देव व क धारणा अ ुत ह। इसलाम से िभ , यह साकार
ह। यह वन पित जग से पशुजग तथा मानव जग तक फली ह। ईसाई धम से िभ , यह एक ही िवचार या मत
म नह िसमटी ह, यहाँ अनेक देवी-देवता ह। ये सभी ई र क अलग-अलग अंश या प ह।
इस धारणा या िव ास को इस कहानी से अिधक प िकया जा सकता ह एक िदन जब िशव प रवार एक
साथ बैठा था, वहाँ मुिनवर नारदजी आए, ये जहाँ भी जाते थे, वही कछ-न-कछ परशानी खड़ी कर देते थे।
नारदजी ने कहा, ‘‘आपक े तर पु क िलए मेर पास एक आम ह।’’
भगवा िशव ने अपनी प नी पावतीजी क ओर मुड़कर कहा, ‘‘म यह फसला कसे क गा?’’
‘‘आइए, ितयोिगता का आयोजन करते ह।’’
पावतीजी ने कहा, ‘‘यह आम उसे िमलेगा, जो तीन बार िव क प र मा करक पहले लौटगा।’’
‘‘ऐसा ही करते ह!’’ भगवा िशव ने कहा।
आकित 1.2 म िदखाया गया ह, काितकय त काल मोर पर सवार होकर आकाश क ओर बढ़ने लगे। उ ह ने
संक प िलया िक वे िव क सबसे पहले प र मा तीन पूरी कर लगे। लेिकन गणेशजी िहले तक नह । वे अपने
माता-िपता क साथ बैठ रह और चूह से खेलते रह। काितकय ने िव क एक प र मा लगाई, िफर दूसरी और
आ य! गणेशजी या करते रह? गणेशजी टस-से-मस नह ए। जब काितकयजी तीसरा और अंितम च र पूरा
करने जा रह थे, गणेशजी खड़ हो गए और िच 1.3 म दरशाए अनुसार अपने माँ-बाप क तीन च र लगाए और
घोिषत कर िदया, ‘‘म जीत गया ।’’
‘‘आप कसे जीत गए?’’ काितकयजी ने कहा, ‘‘मने िव क तीन बार प र मा क ह। आपने तो माता-िपता
क ही दि णा ली ह।’’
‘‘यह स य नह ह। आपने िव का च र लगाया। मने अपने िव का च र लगाया। बताएँ कौन सा
िव , जग मह वपूण या सारगिभत ह?’’
यह िव िवषयपरक ह, मेरा िव आ मगत ह। यह जग तािकक और वै ािनक ह। मेरा जग भावना मक
एवं अंतदश ह। यह िव गोल ह, िवशाल ह, मेरा िव सीिमत ह। दोन ही स य ह, परतु गणेशजी पूछते ह,
‘‘िकसका मह व अिधक ह?’’
येक सं कित म जग अलग-अलग प म देखा जाता ह। कछ क िलए यहाँ िनराकार देव व ह, कछ क
िलए साकार प म देव व ह। सही कौन ह? कछ क ि म कवल एक बार ज म होता ह, पुनज म नह होता।
जबिक अ य प मानता ह िक जीव बार-बार ज म लेता ह। सही कौन ह? इन न क सावभौिमक उ र नह
होते। ये उ र सं कित सापे ह। इनसे िव ास उ प होता ह। िव ास यवहार का आधार ह। इनक आधार पर
न तो कोई कम सिह णु होता ह, न ही अिधक सुन य! इसीिलए मेरा जग ही अिधक मह वपूण व सारगिभत ह!
िमथ एक िवचार ह, जो मेरी दुिनया म मंथन से िनकला ह पौरािणक कथा , तीक और कमकांड का एक
सेट ह, जो िमथ को सं ेिषत करता ह।
आकित 1.4 देवी-देवता क िविभ प
िवचार क तरह कथाएँ, तीक और कमकांड बाहरी य क िलए बेतुक लग सकते ह, लेिकन आ था
रखनेवाला य उनका संपूण भाव समझ सकता ह। आकित 1.1 इसका उदाहरण ह। इस पु तक म दी गई अ य
आकितय को भी उदाहरण क प म िलया जा सकता ह। इनम से हर आकित िहदु क मन म एक प भाव
उ प करती ह; लेिकन जो लोग िहदू नह ह, वे इस भाव को नह समझ सकते; और न ही उ ह तकसंगत तरीक
से समझाने क कोिशश क जाती ह। यही वजह ह िक गैर-िहदू यह नह समझ पाते ह िक निदयाँ िशव क जटा से
य फटती ह और उनक पु क धड़ पर हाथी का िसर य ह। इसिलए, इस तरह क िवषय क ित परानुभूित का
ि कोण अपनाना चािहए और उ सुकता से उसका अ ययन करना चािहए। साथ ही, यह यान म रखना चािहए
िक इस तरह क चीज िकसी सं कित क आ मा क िखड़क होती ह।
आधुिनक युग म मनु य म परानुभूित का बेहद अभाव िदखता ह। हर चीज को कसौटी पर कसा जाता ह, हर
चीज क नाप-जोख क जाती ह। िवचार को मा यता तभी दी जाती ह जब वे त य एवं सबूत और गिणत एवं
िव ान क कसौटी पर खर उतरते ह; लेिकन जीवन म ऐसी कई चीज ह, िजनक या या तक क आधार पर नह
क जा सकती। कम-से-कम जीवन, मृ यु और ई र क मामले म तो िबलकल नह । मृ यु क बाद या होता ह,
कौन जानता ह? िविभ सं कितय म इस न क िविभ उ र िदए गए ह। हर उ र एक िवषय सापे स ाई
ह, इसिलए हर उ र एक िमथ, एक कहानी, एक आ था ह।
िशव भगवा ह, लेिकन वे अकले भगवा नह ह। वे कई भगवान म एक भगवा ह। िहदू जग म यह चीज
अपने आप म अनूठी ह िक ई र एक नह ह; उसका एकल अ त व नह ह। उसका पु षव अ त व भी नह
ह। जैसािक आकित 1.4 म िदखाया गया ह, िशव क प नी पावती देवी ह, िजनका दजा उनक पित क बराबर ह।
गणेश और काितकय दोन देवता ह, िजनका दजा िशव और पावती से नीचे ह। गणेश बाधा को दूर करते ह और