You are on page 1of 31

गणेश का रह य

देवद पटनायक
गणेश का रह य
आकित 1.1 िशव का प रवार
आकित 1.1 म प रवार िदखाया गया ह : िपता, माता तथा दो पु ; परतु यह कोई सामा य िच नह ह। यह
भगवा िशव क प रवार का िच ह। ये पवत पर अपनी प नी (िहमालय पु ी) पावतीजी तथा अपने दो पु गणेश
अथा गजानन एवं भालाधारी काितकयजी क साथ िवराजमान ह।
िहदू धम या िहदु व से अप रिचत य क िलए यह िच अजीब हो सकता ह। िकसी क बाल से नदी कसे
वािहत हो सकती ह? िकसी क हाथी का िसर तथा चार हाथ कसे हो सकते ह? कोई मोर पर सवार कसे हो
सकता ह? इनसे ई र का ितपादन कसे हो सकता ह? भला इतने सार भगवा कसे हो सकते ह?
परतु िहदू इन धारणा को सहज प म लेते ह, य िक ये इ ह िच व मूितय को देखकर पलते-बढ़ते ह।
इ ह समझने क िलए उ ह तक का सहारा नह लेना पड़ता। ये िवचार पीढ़ी-दर-पीढ़ी चले आ रह ह। इनक ज रए
िहदू देव व क धारणा से प रिचत होते ह। िहदू धम म देव व क धारणा अ ुत ह। इसलाम से िभ , यह साकार
ह। यह वन पित जग से पशुजग तथा मानव जग तक फली ह। ईसाई धम से िभ , यह एक ही िवचार या मत
म नह िसमटी ह, यहाँ अनेक देवी-देवता ह। ये सभी ई र क अलग-अलग अंश या प ह।
इस धारणा या िव ास को इस कहानी से अिधक प िकया जा सकता ह एक िदन जब िशव प रवार एक
साथ बैठा था, वहाँ मुिनवर नारदजी आए, ये जहाँ भी जाते थे, वही कछ-न-कछ परशानी खड़ी कर देते थे।
नारदजी ने कहा, ‘‘आपक े तर पु क िलए मेर पास एक आम ह।’’
भगवा िशव ने अपनी प नी पावतीजी क ओर मुड़कर कहा, ‘‘म यह फसला कसे क गा?’’
‘‘आइए, ितयोिगता का आयोजन करते ह।’’
पावतीजी ने कहा, ‘‘यह आम उसे िमलेगा, जो तीन बार िव क प र मा करक पहले लौटगा।’’
‘‘ऐसा ही करते ह!’’ भगवा िशव ने कहा।
आकित 1.2 म िदखाया गया ह, काितकय त काल मोर पर सवार होकर आकाश क ओर बढ़ने लगे। उ ह ने
संक प िलया िक वे िव क सबसे पहले प र मा तीन पूरी कर लगे। लेिकन गणेशजी िहले तक नह । वे अपने
माता-िपता क साथ बैठ रह और चूह से खेलते रह। काितकय ने िव क एक प र मा लगाई, िफर दूसरी और
आ य! गणेशजी या करते रह? गणेशजी टस-से-मस नह ए। जब काितकयजी तीसरा और अंितम च र पूरा
करने जा रह थे, गणेशजी खड़ हो गए और िच 1.3 म दरशाए अनुसार अपने माँ-बाप क तीन च र लगाए और
घोिषत कर िदया, ‘‘म जीत गया ।’’
‘‘आप कसे जीत गए?’’ काितकयजी ने कहा, ‘‘मने िव क तीन बार प र मा क ह। आपने तो माता-िपता
क ही दि णा ली ह।’’
‘‘यह स य नह ह। आपने िव का च र लगाया। मने अपने िव का च र लगाया। बताएँ कौन सा
िव , जग मह वपूण या सारगिभत ह?’’
यह िव िवषयपरक ह, मेरा िव आ मगत ह। यह जग तािकक और वै ािनक ह। मेरा जग भावना मक
एवं अंतदश ह। यह िव गोल ह, िवशाल ह, मेरा िव सीिमत ह। दोन ही स य ह, परतु गणेशजी पूछते ह,
‘‘िकसका मह व अिधक ह?’’
येक सं कित म जग अलग-अलग प म देखा जाता ह। कछ क िलए यहाँ िनराकार देव व ह, कछ क
िलए साकार प म देव व ह। सही कौन ह? कछ क ि म कवल एक बार ज म होता ह, पुनज म नह होता।
जबिक अ य प मानता ह िक जीव बार-बार ज म लेता ह। सही कौन ह? इन न क सावभौिमक उ र नह
होते। ये उ र सं कित सापे ह। इनसे िव ास उ प होता ह। िव ास यवहार का आधार ह। इनक आधार पर
न तो कोई कम सिह णु होता ह, न ही अिधक सुन य! इसीिलए मेरा जग ही अिधक मह वपूण व सारगिभत ह!
िमथ एक िवचार ह, जो मेरी दुिनया म मंथन से िनकला ह पौरािणक कथा , तीक और कमकांड का एक
सेट ह, जो िमथ को सं ेिषत करता ह।
आकित 1.4 देवी-देवता क िविभ प
िवचार क तरह कथाएँ, तीक और कमकांड बाहरी य क िलए बेतुक लग सकते ह, लेिकन आ था
रखनेवाला य उनका संपूण भाव समझ सकता ह। आकित 1.1 इसका उदाहरण ह। इस पु तक म दी गई अ य
आकितय को भी उदाहरण क प म िलया जा सकता ह। इनम से हर आकित िहदु क मन म एक प भाव
उ प करती ह; लेिकन जो लोग िहदू नह ह, वे इस भाव को नह समझ सकते; और न ही उ ह तकसंगत तरीक
से समझाने क कोिशश क जाती ह। यही वजह ह िक गैर-िहदू यह नह समझ पाते ह िक निदयाँ िशव क जटा से
य फटती ह और उनक पु क धड़ पर हाथी का िसर य ह। इसिलए, इस तरह क िवषय क ित परानुभूित का
ि कोण अपनाना चािहए और उ सुकता से उसका अ ययन करना चािहए। साथ ही, यह यान म रखना चािहए
िक इस तरह क चीज िकसी सं कित क आ मा क िखड़क होती ह।
आधुिनक युग म मनु य म परानुभूित का बेहद अभाव िदखता ह। हर चीज को कसौटी पर कसा जाता ह, हर
चीज क नाप-जोख क जाती ह। िवचार को मा यता तभी दी जाती ह जब वे त य एवं सबूत और गिणत एवं
िव ान क कसौटी पर खर उतरते ह; लेिकन जीवन म ऐसी कई चीज ह, िजनक या या तक क आधार पर नह
क जा सकती। कम-से-कम जीवन, मृ यु और ई र क मामले म तो िबलकल नह । मृ यु क बाद या होता ह,
कौन जानता ह? िविभ सं कितय म इस न क िविभ उ र िदए गए ह। हर उ र एक िवषय सापे स ाई
ह, इसिलए हर उ र एक िमथ, एक कहानी, एक आ था ह।
िशव भगवा ह, लेिकन वे अकले भगवा नह ह। वे कई भगवान म एक भगवा ह। िहदू जग म यह चीज
अपने आप म अनूठी ह िक ई र एक नह ह; उसका एकल अ त व नह ह। उसका पु षव अ त व भी नह
ह। जैसािक आकित 1.4 म िदखाया गया ह, िशव क प नी पावती देवी ह, िजनका दजा उनक पित क बराबर ह।
गणेश और काितकय दोन देवता ह, िजनका दजा िशव और पावती से नीचे ह। गणेश बाधा को दूर करते ह और

आकित 1.5 शुक को आशीवाद देते ा


आकित 1.6 एक िस पु ष
काितकय असुर क िखलाफ लड़ाई म देवता का नेतृ व करते ह; लेिकन जब िशव अपने ने बंद कर लेते ह
तो पूरी सृि न हो जाती ह। इसीिलए िशव को संहारकता कहा जाता ह और उ ह भगवा माना जाता ह। पावती
को इसिलए देवी माना जाता ह, य िक उनम भय से लेकर ेम, भु व से लेकर क णा तक सभी तरह क भाव
अंतिनिहत ह। दूसरी तरफ, िशव क जटा से िनकलनेवाली गंगा कमतर हिसयत क देवी ह। उनका देव व उस नदी
तक सीिमत ह, िजसका वे ितिनिध व करती ह।
दरअसल, देव व आकारहीन होता ह; लेिकन इसे समझने क िलए हम मनु य को आकार क ज रत पड़ती ह।
हर आकार अधूरा होता ह, यह उसक कित ह। कोई भी एक आकित अपने आप म संपूण नह हो सकती; लेिकन
भगवान और देवी-देवता क सम त अधूरी आकितय क मा यम से हम कम-से-कम देव व क अवधारणा को
समझ सकते ह।
लेिकन चीज इतनी आसान नह ह। िजस मंिदर म िशव या पावती क िबना गणेश क िविश प से पूजा क
जाती हो या काितकय अकले ित ािपत ह , वहाँ देवता भगवा बन जाते ह, यानी असीम देव व सीिमत हो जाता
ह।
आकितय क ज रए सभी सं कितय ने अपने-अपने यथाथ को य िकया ह। आकित 1.5 को गौर से देिखए।
इसम चार िसर वाला एक य एक पु तक िलये ए ह और तोते क िसरवाले एक ऋिष को आशीवाद दे रहा ह।
चार िसर वाला य ा ह, िजनक मुँह से पहली बार वेद िनकला और ऋिषय ने उसे सुनकर मानव जाित तक
प चाया। वेद तो का संकलन ह और िहदू ा क ोत क प म काम करता ह। इन तो को कालातीत
और सावभौम कहा जाता ह। चूँिक ये तो ा क मुँह से िनकले ह, इसिलए इ ह ई रीय ान कहा जाता ह।
कहा जाता ह िक एक बार भयानक सूखा पड़ा और ऋिष तो को भूल गए। भा यवश से यास नाम क एक
ऋिष ने उनका िफर से संकलन िकया। तोते क िसरवाले ऋिष शुक ह। वे यास क पु ह। उ ह ने ही सारा वैिदक
ान हम तक प चाया ह।
आकित 1.5 म ा और शुक ऋिष क बीच तीका मक संवाद िदखाया गया ह। ा पु ष ह, लेिकन उनक
साथ कोई नारी नह ह, इसिलए वे अधूर ह। उनक इस अधूरपन का अथ यह ह िक उनक साथ कोई नारी ह,
लेिकन वह नारी ह कहाँ? वह नारी एक अगोचर धारणा ह, जो इस आकित को वैध और संपूण बनाती ह। वह
िनराकार ा ह, जो ा से शुक म संचा रत हो रही ह। उसे सर वती कहते ह। सर वती देवी ह, िज ह कभी-
कभी वेद-माता क नाम से संबोिधत िकया जाता ह। ा ने वेद क रचना नह क । कोई भी पु ष नारी क िबना
िकसी चीज क रचना नह कर सकता, यहाँ तक िक भगवा भी नह । कछ लोग कहते ह िक सर वती ने ा को
वेद क रचना क िलए े रत िकया। कछ अ य लोग का कहना ह िक ा ने सर वती क मुँह से वेद सुना। इनम
से चाह जो भी सही हो, लेिकन स ाई यह ह िक वेद अ त व म आया और ा ने उसे कवल संचा रत िकया।
ा क चार िसर वेद क चार ान का ितिनिध व करते ह। ये चार ान जीवन क चार ल य ह धम, अथ,
काम और मो । िजस तरह से ा चार िसर क िबना अधूर ह, ठीक उसी तरह से जीवन इनम से िकसी भी
ल य क िबना अपूण ह।
शुक का अथ तोता होता ह। शुक का तोते जैसा िसर यह दरशाता ह िक वेद का संचार िबना िकसी हर-फर क
िकया जा रहा ह, इसिलए वह ुिटहीन, असंपािदत और ेपक-रिहत ह। इस तरह पौरािणक आकित लोग क दैवी
ान क ोत और उस ान क संचार से संबंिधत उनक आ था को दरशाती ह।
आकित 1.6 म एक सं यासी को दरशाया गया ह, िजसने अपने म त क और अपनी ानि य पर पूण प से
िवजय ा कर ली ह। दुिनया पर भु व थािपत करने क इस सं यासी क कोई इ छा नह ह। वह सभी मानवीय
सीमा से पर ह। जब ऐसा होता ह तो अजीब चीज घटती ह सार टकराव ख म हो जाते ह। दूसर धम क साथ
कोई तनाव नह होता। बकरी, गाय और शेर एक घाट पर पानी पीते ह। सप, िज ह लोक-सािह य म खजाने का
र क कहा गया ह, अपने धन को खुले हाथ से बाँटते ह। दूसर श द म, कित और
आकित 1.7 खंडोबा
सं कित का नकारा मक प ख म हो जाता ह। वहाँ कवल शांित और सौहाद होता ह, भय और अभाव गायब
हो जाता ह। यही वग ह, यही आदश दुिनया ह। जो य धरती को वग म बदल देता ह, िहदू उसे पूजनीय
मानते ह। ऐसा य कवल संत नह होता, ब क उसे कभी-कभी धरती पर भगवा का अवतार माना जाता ह।
आकित 1.7 भगवा क एक थानीय अवतार को दरशाती ह। इस अवतार को ‘खंडोबा’ कहते ह, िजनक
महारा म ब त ा से पूजा क जाती ह। वे घोड़ पर सवार ह और उनक साथ उनक पहली प नी हा सा
बैठी ह। हा सा एक यापारी क बेटी ह। वे दोन दो असुर मिण और म से लड़ रह ह। सं कत क ंथ म
खंडोबा को िशव का भीषण प ‘मातड भैरव’ बताया गया ह। द न े म मातड भैरव को जमीन का े पाल,
यानी र क माना जाता ह। र क क प म वे असुर से लड़ते ह। मिण जैसे कछ असुर, जो प ा ाप करना
चाहते ह, मंिदर प रसर म देवता क प म पूजे जाते ह; लेिकन म जैसे असुर, िजनक िच मंिदर क सीि़ढय
पर बने ए ह, अभी भी दंिडत िकए जाते ह। भ उ ह कचलते ए मंिदर म जाते ह और खंडोबा क पूजा करते
ह।
खंडोबा को ह दी पसंद ह। उनका मंिदर, उनक भ और उनक मूितयाँ ह दी से आ छािदत रहती ह। ह दी
ऐंटीसे टक होती ह। हालाँिक खंडोबा को ह दी ब त पसंद ह, लेिकन उनका मिहमागान र क क प म िकया
जाता ह। ह दी का चटक ला पीला रग सोने का तीक ह, इसिलए खंडोबा को समृ का देवता भी माना जाता
ह। वे काम क भी देवता ह, िजनक कपा से संतान उ प होती ह। उनक कई प नयाँ ह पहली प नी हा सा
यापारी समुदाय क ह; दूसरी प नी बनै गड़ रया समुदाय से आती ह। अ य प नय म एक दज समुदाय क ह,
एक तेली समुदाय क ह और एक माली समुदाय क ह।
उनक िववाह क कहानी एक ाम देवता क मा यम से िविभ समुदाय को आपस म जोड़ती ह। इस तरह
खंडोबा क ज रए आपस म जुड़ होने क बावजूद हर समुदाय का अपना अ त व बना रहता ह। वे अपना अ त व
आकित 1.8 पृ वी पर भगवा क अवतार ित पित बालाजी अपनी प नय और ारपाल क साथ,
जैसािक आं देश म क पना क गई ह
बचाए रखने क िलए एक-दूसर का साथ देते ह। गाँव ने अपने देवता खंडोबा को अिखल िहदू देवता िशव से
जोड़ िदया ह। इस तरह गाँव बृह र िहदू समुदाय का अंग बन गया ह। गाँव अनूठा ह, इसक बावजूद वह एक बड़
समुदाय का िह सा ह। उसका थानीय देवता ई र का थानीय तीक ह।
इस तरह, खंडोबा क कथा ालु क आ था दिशत करती ह। वे एक ऐसा देवता चाहते ह, जो उनक
थानीय ज रत को पूरा कर, उनक र ा कर। वे वै क िहदू पहचान से जुड़कर अपने थानीय प रवार और
गाँव क पहचान को भी बनाए रखना चाहते ह। इस तरह उनक पास एक ऐसा देवता ह, जो देवता और ई र दोन
ह।
आकित 1.8 एक दूसर अिखल िहदू ई र िव णु से हमारा प रचय कराती ह। वे पूरी तरह से िशव क िवपरीत ह।
जहाँ िशव बफ से आ छािदत पवत पर यानम न मु ा म रहते ह, वह िव णु ीर सागर म तैरनेवाले नाग पर
महाराजा क तरह लेट रहते ह। िव णु क चरण क पास उनक दो प नयाँ ी और भू खड़ी रहती ह। ी धन क
देवी ह और भू धरती क । आकित का नीचे का आधा िह सा िव णु क थानीय अिभ य ह। ये ित पित बालाजी
ह, िजनका मंिदर आं देश म ह।
कहानी कछ इस तरह ह एक बार िव णु और उनक प नी ी म झगड़ा हो गया और वे कह चली गई। ी को
खोजते ए िव णु ीर सागर से धरती पर आ गए, जहाँ उनका ेम राजकमारी प ावती से हो गया। प ावती क
िपता सात पहाड़ क तलहटी म बसे एक देश पर शासन करते थे। खंडोबा क तरह, जो धरती पर कई मिहला
को िदल दे बैठ थे, िव णु ने भी प ावती से णय िनवेदन करने का फसला कर िलया। िव णु क कई बार णय
िनवेदन करने क बाद आिखरकार प ावती उनसे िववाह करने क िलए सहमत हो गई, लेिकन उ ह ने बदले म
भारी दहज माँगा। दहज देने क िलए िव णु ने देवी ी क कोषा य कबेर से भारी ऋण िलया। जब तक वे ऋण म
थे, प ावती या ी क साथ अपने महल म नह लौट सकते थे। इसिलए वे ित पित बालाजी क प म सात पवत
क ऊपर रह। ऋण चुकाने म उनक मदद करने क िलए
आकित 1.9 चामुंडा और चोटीला
ालु ने उ ह बड़ी मा ा म धन देने क पेशकश क । िव णु ने आभार य करते ए उ ह धन-धा य से
प रपूण होने का आशीवाद िदया।
आकित 1.9 म िदखाई गई देिवयाँ गुजरात क ह, िज ह चामुंडा और चोटीला क नाम से जाना जाता ह। उनक
लाल और हरी साि़डयाँ, उनक ि शूल, उनका शेर और पहाड़ क ऊपर उनका आवास यह दरशाता ह िक वे
अिखल िहदू देवी श , िज ह पावती क प म भी जाना जाता ह, क थानीय प ह। पावती पवतराज क पु ी
थ और उनका िववाह िशव से आ था। हालाँिक चामुंडा और चोटीला थानीय तर पर ही जानी जाती ह, लेिकन
उनक ज रए ालु बृह र िहदू समुदाय क अंग बन गए ह। इस बात को कोई नह जानता िक ये दोन आकित म
जुड़वाँ प म य िदखती ह। कछ लोग का कहना ह िक चोटीला चामुंडा क बहन ह। अ य लोग का कहना ह
िक वे चामुंडा क सहली ह। श ने दो असुर चंड और मुंड को मारने क िलए दो प धारण िकए थे। ये दोन
देिवयाँ संभवतः उ ह प क तीक ह और असुर क मार जाने क बाद उनका नाम चंडी और चामुंडी पड़ गया।
हो सकता ह िक चंड और मुंड को मारनेवाली चामुंडा वै क देवी ह और पवत क चोटी पर रहनेवाली चोटीला
थानीय देवी ह । आकित 1.7 और 1.8 क िवपरीत चंडी और चामुंडी क साथ उनक पित नह ह, य िक िववाह
घरलू परपरा मानी जाती ह। ये दोन देिवयाँ यो ा ह और उनक यु मता उनका यान िववाह या मातृ व क
तरफ नह जाने देती।
आकित 1.6 म िदखाए गए सं यासी क साथ जो कछ हो रहा ह, उससे िन कष िनकालते ए कछ िव ान का
कहना ह िक खंडोबा जैसे गाँव क देवता थानीय नायक थे, िज ह देवता क प म िति त कर िदया गया।
बालाजी शायद बु मान अजनबी थे, िज ह ने एक थानीय ी से िववाह िकया और सात पहाड़ क इद-िगद बसे
समुदाय का कायापलट कर िदया। हो सकता ह िक दोन देिवयाँ दो सामा य मिहलाएँ या बहन या सखी रही ह ,
िज ह ने अपनी यु कला से गाँववाल क शंसा हािसल क । इस तरह क िन कष क ज रए दरअसल एक
धािमक रीित- रवाज को तकसंगत बनाने क कोिशश क गई ह।
आकित 1.10 किव-संत अंडाल
आ था पर इसका शायद ही कोई भाव पड़ा ह।
आकित 1.10 म िन त प से एक ऐितहािसक मिहला का िच बना आ ह, िजसे लोग ने देवी बना िदया
था। वे बारहव सदी क तिमल कविय ी-संत अंडाल ह, जो गोदई क प म भी जानी जाती ह। गोदई का अथ ह
‘िजसे गाय ने िदया ह।’ अंडाल का नाम ‘गोदई’ इसिलए पड़ा, य िक वे िशशु क प म चरती ई गाय क बीच
पाई गई थ । उनका पालन-पोषण मंिदर क एक संतानहीन पुजारी ने िकया। अंडाल बड़ी होने पर अपने िपता क
मंिदर क देवता क ेम म पड़ गई। वे देवता पर चढ़ाए जानेवाले फल क माला बनाकर अपने गले म डाल लेती
थ , िफर उसे देवता पर चढ़ा देती थ । इससे मंिदर क दूसर पुजारी ब त नाराज ए। उनका मानना था िक अंडाल
फल को छकर अपिव कर देती ह। िफर एक िदन देवता ने उन पुजा रय से सपने म कहा िक वे उन छए ए
फल को ब त पसंद करते ह, य िक अंडाल उनसे सचमुच ेम करती ह। अंडाल को अंततः मंिदर क देवता क
प नी माना जाने लगा और बाद म उ ह देवी क प म िति त कर िदया गया। आकित म उनक कवल दो हाथ
ह, िजसका अथ यह ह िक वे मनु य ह। उनक हाथ म एक तोता और कमल का एक फल ह, जो इस बात का
संकत ह िक वे ेम क देवी ह। तोता और कमल दोन ही कामदेव से संब ह।
देवी-देवता से मनु य क शादी क धारणा क कारण म यकाल म देवदासी था का ज म आ। देवदािसय
को ई र क प नी माना जाता था, जो मंिदर म रहती थ , नाचती-गाती थ और पुजा रय व तीथयाि य को यौन-
सुख भी मुहया कराती थ । जहाँ आमतौर पर मिहलाएँ मंिदर क देवता से याही जाती थ , वह भारत क कछ
िह स म पु ष भी देवता क ित समिपत थे। खंडोबा क मंिदर म वा य और मुरली आ करती थ । लड़क और
लड़िकयाँ देवता क ित समिपत होते थे, िज ह िववाह करने क इजाजत नह थी। उनसे उ मीद क जाती थी िक वे
नृ य और संगीत क ज रए अपनी आजीिवका कमाएँग।े इन था क कारण हर तरह का शोषण होता था।
आधुिनक भारतीय रा य जब अ त व म आया तो उसने इन था को गैर- कानूनी घोिषत कर िदया।
आकित 1.11 िव कमा
सभी देवता िकसी िवशेष भूगोल से नह जुड़ ह। आकित 1.11 िव कमा क ह। िव कमा िश पकार क देवता
माने जाते ह। उनक पूजा औजार का इ तेमाल करनेवाले लोग करते ह। िव कमा ाचीन देवता ह। वैिदक काल
म वे ‘ व ’ क प म जाने जाते थे और क हार , लोहार , सोनार , बढ़इय एवं बुनकर क देवता थे। िव कमा
हाथी क सवारी करते ह, िजसक कारण उ ह इ क समक माना जाता ह। इ देवता क राजा ह।
काम और कामदेव, िव कमा और रोमन अ नदेवता तथा इ और यूनानी देवराज क बीच समानता क
कारण कई लोग ज दबाजी म यह िन कष िनकाल लेते ह िक िहदू पुराण ीक पुराण क समान ह। लेिकन ीक
पुराण िहदू पुराण से ब त िभ ह। यह ीकवािसय क य -सापे स ाई दिशत करती ह, जो िहदु क
य -सापे स ाई पूरी तरह िभ थी। ीक िनवासी भगवा म नह , देवी-देवता म िव ास करते थे। ीक
पुराण क देवता टाइटन को परा त कर ांड क मािलक बन बैठ थे। टाइटन एक शु आती न ल क श शाली
लोग थे। टाइटन बाद म श शाली बन गए और ताकतवर दै य का त ता पलट िदया। रा यारोहण क इस तरह
क िवषय-व तु वैिदक सािह य म नह िमलती। ीक देवता क िवपरीत िहदू देव मानव से कभी नह डर। िहदू
देव को यह डर कभी नह सताया िक मानव उनका त ता पलट दगे। देव क श ु ज र थे, िज ह असुर कहा
जाता था, लेिकन वे असुर टाइटन नह थे। देव और असुर दरअसल ा क संतान थे, िजनक बीच लड़ाई चलती
रहती थी। कभी देव क जीत होती थी तो कभी असुर क । इस जीत-हार क च को फसल बोने और काटने का
वैक पक च माना जाता था।
िव कमा क बार म यादा कछ नह मालूम ह। कछ लोग का कहना ह िक ा ही िव कमा ह। कहा जाता
ह िक िव कमा ने इस दुिनया का िनमाण िकया। यही नह , उ ह ने माँ क गभ म ब को आकित दी। िव कमा
ने देवता क औजार बनाए और आकाश क ऊपर देव शहर अमरावती का िडजाइन तैयार िकया, िजसे मनु य
वग कहते ह। उ ह ने सर वती म िनिहत ान को बदल िदया, िजसे ा ने औजार म संचा रत िकया। इन
औजार क कारण ही मनु य ने अपने अ त व को बचाए रखा और फला-फला।
आकित 1.12 ब चारा
जहाँ आकित 1.11 म िदखाए गए देवता को िश पकार पूजते ह वह 1.12 म िदखाई गई देवी को वह समुदाय
पूजता ह, िजसे मु यधारा क समाज ने हािशए पर ढकल िदया ह। इस देवी को ब चारा कहते ह। लेिकन कोई नह
जानता िक उनका वा तिवक नाम या ह। कछ लोग का कहना ह िक यह नाम ब आचार से िनकला ह।
‘ब चारा’ नाम शायद देवी क धैय का तीक ह। उनक भ म गुजरात क थानीय समुदाय क न कवल पु ष
और मिहलाएँ शािमल ह, जो ब क चाहत रखते ह, ब क भारत क कई िह स क िहजड़ भी उ ह अपना देवता
मानते ह। ये िहजड़ िलंग क अपनी मनोकामना पूरी करने क िलए ब चारा क पूजा करते ह। िहजड़ पु ष होते ह,
जो अपने को ी मानते ह। इसिलए वे समाज क मु यधारा म नह रहते। िहजड़ मिहला क तरह कपड़ पहनते
ह और समाज से बाहर दूसर िहजड़ क साथ रहते ह। वे अपनी आजीिवका कमाने क िलए भीख माँगते ह, यहाँ
तक िक वे यावृि भी करते ह। कछ िहजड़ खुद अपना बिधया करवा लेते ह। ऐसा करवाते ए वे ब चारा क
ाथना करते ह। िकवदंती ह िक देवी ब चारा ने एक बार एक मिहला को पु ष बना िदया और उसे दुलहन क प
म िमली मिहला का पित बनने क इजाजत दे दी।
ब चारा क भ एक कहानी सुनाते ह। इस कहानी क अनुसार, दो िम कई वष बाद एक मेले म िमले। उन
दोन क प नयाँ गभवती थ । एक पुजारी ने उ ह बताया िक एक को बेटा होगा और दूसर को बेटी। अपनी दो ती
प करने क िलए दोन दो त ने अपने अज मे ब क एक-दूसर से शादी कर देने का फसला िकया; लेिकन,
िजसे बेटा होने क भिव यवाणी क गई थी उसे बेटी ई। इस स ाई को िछपाकर रखा गया, य िक पुजारी ने
उनसे कहा था िक उसक भिव यवाणी िन त प से सही होगी। लड़क का पालन-पोषण
आकित 1.13 िशव को भोजन कराना
लड़क क तरह िकया गया और समय आने पर उससे अपनी दुलहन लाने को कहा गया। एक घोड़ी पर सवार
होकर लड़क अपनी दुलहन लाने क िलए िनकल पड़ी। रा ते म दोन एक तालाब म िगर पड़। जब वे पानी क
ऊपर आए तो लड़क लड़क म और घोड़ी घोड़ म त दील हो चुक थी। उनका पीछा करनेवाली एक जादूगरनी भी
तालाब म िगर पड़ी थी। वह क े म त दील होकर बाहर िनकली। यह सब इसिलए आ, य िक तालाब क बगल
म ब चारा का मंिदर था। उस िदन से बेट क कामना करनेवाले लोग क मंिदर म भीड़ होने लगी। िहजड़ मंिदर म
इस िव ास से आते ह िक अगले ज म म वे पूण पु ष या पूण नारी क प म ज म लगे।
देवी ब चारा क बार म एक कहानी यह ह िक जब वे युवा थ तो उ ह ने एक चोर को िहजड़ म त दील कर
िदया था। उस चोर ने उनक उस समय इ त लूटने क कोिशश क थी, जब वे िववाह करने जा रही थ । अ य
लोग का कहना ह िक दुलहन बनने क बाद ब चारा ने पाया िक उनका पित पु ष नह , ब क िहजड़ा ह। िलहाजा
देवी बनने क बाद उ ह ने सभी िहजड़ का उ ार करने क पेशकश क । लेिकन उ ह ने िहजड़ क सामने एक
शत रखी िक वे उनक पूजा करगे और मिहला से शादी नह करगे। इस तरह, हािशए पर रहनेवाले िहजड़ भी
ब चारा क ज रए मु यधारा से जुड़ ए ह।
आकित 1.13 िकसी िवशेष भूगोल या समुदाय से संब नह ह। वे रसोईघर क सावभौिमक और शा त देवी
ह, िज ह अ पूणा कहते ह। अ पूणा का अथ होता ह ‘िखलानेवाली माँ’। उनक िबना दुिनया भर म भुखमरी फल
जाएगी। इसिलए उ ह सावभौिमक देवी कहा जाता ह। लेिकन संपूण जीवन जीने क िलए कवल अ ही पया
नह ह, आ या मक ान क भी ज रत होती ह। जहाँ आकित 1.13 इस ज रत को दरशाती ह, वह आकित
1.14 म अ पूणा को मंिदर म ित ािपत देवी क प म िदखाया गया ह। उनका सबसे लोकि य मंिदर काशी म
गंगा नदी क िकनार ह।
करीब 4,000 वष पहले वैिदक काल म ऋिषय ने गाय ी मं क रचना क थी, िजसम देवी को महा ◌् बताते
ए अ ानता क अँधेर को भगाने क िलए
आकित 1.16 ल मी, सर वती और गणेश
उनसे ान क रोशनी फलाने क ाथना क गई थी। इसका उ े य बौ कता को बढ़ाना और भौितक या
आ या मक मनोकामना को पूरा करना था। िजस समय इस मं क रचना क गई थी, िहदु क मंिदर नह थे।
लोग देवी-देवता क पूजा मं क ज रए करते थे और अ न तथा जल को आ ित देते थे; लेिकन मं ो ार और
उसपर िवचार वही लोग कर सकते थे िजनक एका ता उ कोिट क होती थी। बहरहाल, यादातर लोग मं को
भावा मक नज रए से देखते थे, इसिलए मं को देवी मान िलया गया। आकित 1.15 इसका उदाहरण ह। लोग का
िव ास था िक इस देवी क आराधना क ज रए वही फल पाया जा सकता ह, जो मं ो ार से िमलता ह। इस तरह
गाय ी मं को देवी का प दे िदया गया, िजसे गाय ी कहते ह। यिद आकित 1.14 मनु य क भौितक ज रत
क पूित दरशाती ह तो आकित 1.15 आ या मक कामना क पूित दरशाती ह।
देवी अ पूणा धन-दौलत क देवी ल मी बन जाती ह। आकित 1.16 म ल मी वण-वषा करते ए कमल क
फल पर खड़ी ह और उनक दाएँ-बाएँ दो सफद हाथी ह। इसी तरह देवी गाय ी ान क देवी सर वती बन जाती
ह। आकित 1.16 म सर वती ेत व पहने, हाथ म वीणा, माला और पु तक िलये ए बैठी ह। आकित 1.5 म
यह िदखाया गया ह िक ा ने सर वती क मुँह से सबसे पहले वेद सुना और िफर ऋिषय को सुनाया। ल मी क
बाएँ िशव क पु गणेश ह, जो सभी बाधा को दूर करते ह और सौभा य लाते ह।
हाल क समय म गणेश िहदु क सबसे लोकि य देवता म से एक माने जाते ह। कोई भी नया काम शु
करने से पहले उनक पूजा क जाती ह। माना जाता ह िक वे सभी बाधा को दूर करते ह, सभी अ य अवरोध
को हटाते ह। उनक धड़ पर हाथी का िसर श का तीक ह। हाथी श शाली जानवर ह, िजसका जंगल म कोई
दु मन नह होता। कोई भी जानवर उसक राह काटने का दुःसाहस नह करता। हाथी िबना िकसी बाधा क चलता
जाता ह। गणेश का मोटा शरीर और लंबा उदर पया खा क उपल धता और कम काम क संभावना दरशाता
ह। कल िमलाकर गणेश धन-धा य और समृ क
आकित 1.17 गणेश
तीक ह। गणेश क सवारी चूह को दुिनया का सबसे अिधक परशान करनेवाला ाणी माना जाता ह। वह िकसी
भी दरार से िनकल सकता ह, िकसी भी कावट क बीच से अपना रा ता बना सकता ह और अनाज चुरा सकता
ह। चूहा जीवन क सम या का तीक ह। इन सम या को गणेश दूर करते ह। इस तरह गणेश श और
धन-धा य से प रपूण जीवन का ितिनिध व करते ह। गणेश का प एक िवचार का वाहक ह। िहदू गणेश क पूजा
इस िव ास क साथ करते ह िक उनक मनोकामना िबना िकसी बाधा क पूरी होगी।
गणेश क ज म क पीछ एक कहानी ह। यह कहानी आकित 1.17 म बताई गई ह। पावती ने यह जानते ए भी
िशव से िववाह िकया िक वे तप वी ह और उनक िच भौितक जीवन म नह ह। िशव िपता बनना नह चाहते थे।
उनका मानना था िक प रवार खड़ा करना बेमतलब ह; लेिकन पावती माँ बनना चाहती थ । सो, एक बार नहाते ए
पावती ने अपने शरीर पर लगे ए ह दी क उबटन को रगड़कर छड़ा िदया और उसे एक गुि़डया का आकार दे
िदया। उ ह ने गुि़डया म जान भी फक दी। इस तरह िजस ब े का सृजन आ, उसका नाम िवनायक रखा गया।
िवनायक का अथ होता ह िबना िकसी पु ष (नायक) क मदद से उ प आ िशशु। िशव ने िवनायक को अपनी
प नी क पु क प म नह पहचाना। उधर, िवनायक ने भी िशव को अपनी माँ क पित क प नह पहचाना। जब
एक बार िवनायक ने अपनी माँ क िनदश पर िशव को उनक अपने ही घर म घुसने से रोक िदया तो िशव ने
उसका िसर धड़ से अलग कर िदया। इससे पावती शोक त हो गई। उनक दुःख को देखकर िशव ने िवनायक क
धड़ पर हाथी का िसर लगाकर उसे जीिवत कर िदया। िशव ने िवनायक क धड़ पर िजस हाथी का िसर लगाया, वह
कोई साधारण हाथी नह था। वह वषा क देवता इ का हाथी ऐरावत था। िशव ने उसे उ र िदशा म पाया था। उ र
अमर व, शांित और थािय व क िदशा ह।
इस तरह, गणेश दो िवपरीत ुव क संयोग क तीक ह िशव, जो िववाह करना और प रवार पालना नह चाहते
थे और पावती, जो िववाह करना चाहती थ । िशव आ या मक आकां ा क तीक ह। पावती भौितक
आकित 1.18 िशव अपने पु क साथ
आकां ा क तीक ह। िहदु ने इन दोन ल य क बीच हमेशा टकराव महसूस िकया ह। गणेश इन दोन
ल य क बीच संतुलन क तीक ह। आकित 1.18 म इस सां कितक टकराव को िदखाया गया ह। इसम तप वी
िशव िपता क प म अपने पु गणेश को गोद म िबठाए ए ह।
गणेश न र शरीर और अन र म त क क बीच संतुलन क भी तीक ह। उनका मानव शरीर, िजसका सृजन
उनक माँ ने पृ वी पर िकया था, भौितक संसार का तीक ह। मानव शरीर न र ह, जो मृ यु और पुनज म क
च से गुजरता ह। उनका हाथी जैसा िसर, िजसे उनक िपता ने देवता क मदद से हािसल िकया था,
आ या मक दुिनया का तीक ह, जो अन र ह।
सो, गणेश क यह आकित िहदु म पराभौितक िवचार को ज म देती ह और साथ ही एक बुिनयादी तर पर
भी काम करती ह यानी रोजमरा क जीवन क परशािनय से मु िदलाती ह।
इस तरह हम ऐसी तमाम आकितयाँ पाते ह, जो िहदु क य -सापे स ाई सामने लाती ह। िहदू धम म
देवी ह, देव ह, ई र ह और महाश याँ ह, जो यह संदेश देने क कोिशश करते ह िक वे साकार और िनराकार,
थानीय और सावभौिमक दोन हो सकते ह। उनम न कवल आ या मक त व, ब क भौितक त व भी होता ह।
एक साथ िमलकर वे अनंत देवी-देवता क संपूणता हािसल करने क कोिशश करते ह। एक साथ िमलकर वे
िहदु क िव - ि क िखड़क क प म काम करते ह।
qqq

You might also like