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* वराह अवतार कथा – जब हर या का वध करने

केलए व णु
बने
वराह
एक बार ा जी के
मानस पुसनत-सनका द भगवान व णु केदशन करने वै
कु
ंठ धाम प ं
च।ेवै
कु

ठ म व णु
धाम के ार पर भगवान के दो पाषद जय- वजय ारपाल के प म बै
ठेथे
। इन दग बर साधु को देखकर पहले
तो उ ह हं
सी आ गई, फर पूछा- “आप लोग कौन है
? ऐसेनं
ग-धड़ं
ग यहां
कहां चलेआ रहे है
?

उनक बात का सनत ने बुरा नह माना, य क येारपाल थे और बना पूरी जां


च-पड़ताल केकैसेअंदर जाने
देत।े
अपनी वेश-भू
षा पर उनके हंसनेका भी बु
रा नह माना, य क वैकु

ठ जैसेवैभवशाली प रवे
श म ऐसेसाधु का
या काम। उनके का उ र दे तेए उ ह ने कहा-“हम सनत कुमार भगवान व णुके दशन करना चाहतेहै
। हम
सदा इसी प म रहते है
, इस लए हमे अंदर जानेदो। ”

मगर जय- वजय नामक ारपाल ने सनत-सनका द को अं


दर नह जानेदया। इससे ऋ षय को ोध आ गया क
इन ारपाल को इतनी भी समझ नह क ऋ षय साधु के साथ कै
सा वहार करना चा हए। ोध म उ ह ने
शाप दे
तेए कहा-“तु
म दोन नेदे
व के
साथ रहकर भी दैय जैसा वहार कया है, इस लए अगले
ज म म तुम
दोन दैय कु
ल म ज म लोगे
।”

ार पर इस ववाद को सु
नकर भगवान व णुवयंबाहर आ गए और सनत-सनका द को आदर से अं
दर जाने
को
कहा। उधर जय- वजय को खी देख भगवान व णुनेकारण पू
छा तो उ ह ने
अपने
शाप क बात बताई।

भगवान व णु ने
कहा-“उ ंडता का फल तो तु ह भोगना ही पड़े
गा। असु
र कु
ल म तुहारा अगला ज म अव य
होगा। इतनी चता मत करो। तु
म मे
रेपाषद हो, इस लए इसका पु य भी मले
गा। मे
रेारा ही तु
ह दै
य-यो न से
मु मले गी।”

सनत-सनका द भगवान के दशन कर चले गए। जय- वजय क मृ यु होनेपर उनका ज म क यप ऋ ष क प नी


द त केगभ सेआ। द त दै य कु ल क माता थी, अतः उसके गभ से ज म लेनेवालेजय- वजय का नाम इस
ज म म हर या और हर यक शपुआ। उन दोन म बल आसु री श थी। उ ह ने अपने उ पात ारा आसुरी
श के बल पर आसु री रा य था पत कया। उ ह ने दे
वलोक पर भी आ मण कर दे वता को भी त कर रखा
था। उ ह ने घोषणा क क अब से उनकेरा य केसारे य उनके ही नाम पर ह गे
। दे
व को कोई य भाग नह
मलेगा। कसी भी दे वी-दे
वता या ई र क पू जा आराधना के बजाय उनक ही पू जा होगी। दे
वगण कभी यहां प ं

ही न सके , इस लए म पृ वी को ही पाताल म प ं
च ा दे
ता ं
।” यह न य कर हर या आसु री श के बल पर
पृ वी को रसातल म ले गया।
इससे सारे ां
ड म उथल-पुथल मच गई। सृ का नयम भं ग होनेलगा। चतु
दक हा-हा-कार मच गया। ऋ षय -
मुनय तथा दे
वता ने मलकर व णु सेाथना क - “भगवान ! दे
खए इन दो महापरा मी असु रो नेया कया ?
दे
वता का य भाग छ ना, पू जा-पाठ, धा मक कमकांड समा त कए और अब तो सम त भू म डल को ही
रसातल म लेगए। उ ठए, कु
छ क रए। ा क सृ म बड़ा वधान उप थत हो गया है । आप ऋ षय -मु नय
तथा मानव केरहनेका थान बनाएं। पृवी जल म डु
ब रही है
, उसकेउ ार केलए वैकुठ का वास छोड़कर कोई
अवतार ली जए। ”

भगवान व णुने
दे
वता तथा ऋ षय को आ ासन दया- “जब पृ वी पर पाप का भार यादा हो जाता है
तो
उसकेउ ार केलए मु
झेअवतार ले
ना ही पड़ता है
। आप लोग न त होकर जाइये । म कु
छ करता ं ।”

दे
वता के चले जाने
पर भगवान व णु नेनीचेदेखा। पृ
वी का कही पता नह , सव जल-ही-जल दख रहा था।
फर तो भगवान वाराह के प म कट ए और समुम कू द पड़े, भयंकर गजना के साथ अपनी वशाल दाढ़ पर
पृवी को रखकर वे अथाह जल रा श को चीरतेए ऊपर आ गए। पृ वी को समुसे ऊपर आते दे
ख तथा वाराह
का भयंकर श द सु नकर हर या बौखला गया क कसने उसक श को चु नौती द है। वाराह को दे
खतेही वह
उसेमारने दौड़ा। उसका हर अ -श वराह के शरीर से
टकराकर चू र-चू
र हो जाता था। भगवान कु छ दे
र उसके
हार झेलते रहेऔर उसके ोध को भड़काते रहे
। प भले ही वाराह का था, पर थेतो वेपर अन त श
भगवान व णु ।

उ ह नेएक झटके सेहर या को अपनी दाढ़ पर उठा लया और घु माकर आकाश म र फक दया। आकाश म
च कर काटकर वह धड़ाम से पृवी पर वाराह केपास ही गर पड़ा। मरणास हर या ने दे
खा क वह वाराह अब
वाराह न होकर भगवान व णु
है
। उसेअपना पू व ज म याद हो आया।

उसनेभगवान के
चरण पकड़ लए और कहा- “भगवान ! पाप के
शाप का आपनेअंत कर दया और अपने ही हाथ
इस ज म से
मु दलाई। मु
झेतो मु मली, पर मे
रे
भाई हर यक शपु का या होगा ? उसे
भी तो मु द जये ।

भगवान व णुहंसकर बोले- “समय से


पू
व कसी के पाप का अं
त नह होता। तु
हारे
भाई हर यक शपु के पाप का
अभी अं
त नह है। तुहारे
अंत केलए पृवी कारण बनी। उसकेअंत केलए मुझेएक और अवतार ले ना पड़ेगा।
तु
हारेलए वाराह बनना पड़ा। उसकेलए नृ सह प म अवतार ले कर उसका उ ार करना पड़े
गा।”

भगवान व णु
केये
श द सु
नकर हर या ने
बड़ी शा त से
अपनेाण याग दए।

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