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वराह अवतार कथा
वराह अवतार कथा
केलए व णु
बने
वराह
एक बार ा जी के
मानस पुसनत-सनका द भगवान व णु केदशन करने वै
कु
ंठ धाम प ं
च।ेवै
कु
ं
ठ म व णु
धाम के ार पर भगवान के दो पाषद जय- वजय ारपाल के प म बै
ठेथे
। इन दग बर साधु को देखकर पहले
तो उ ह हं
सी आ गई, फर पूछा- “आप लोग कौन है
? ऐसेनं
ग-धड़ं
ग यहां
कहां चलेआ रहे है
?
ार पर इस ववाद को सु
नकर भगवान व णुवयंबाहर आ गए और सनत-सनका द को आदर से अं
दर जाने
को
कहा। उधर जय- वजय को खी देख भगवान व णुनेकारण पू
छा तो उ ह ने
अपने
शाप क बात बताई।
भगवान व णु ने
कहा-“उ ंडता का फल तो तु ह भोगना ही पड़े
गा। असु
र कु
ल म तुहारा अगला ज म अव य
होगा। इतनी चता मत करो। तु
म मे
रेपाषद हो, इस लए इसका पु य भी मले
गा। मे
रेारा ही तु
ह दै
य-यो न से
मु मले गी।”
भगवान व णुने
दे
वता तथा ऋ षय को आ ासन दया- “जब पृ वी पर पाप का भार यादा हो जाता है
तो
उसकेउ ार केलए मु
झेअवतार ले
ना ही पड़ता है
। आप लोग न त होकर जाइये । म कु
छ करता ं ।”
दे
वता के चले जाने
पर भगवान व णु नेनीचेदेखा। पृ
वी का कही पता नह , सव जल-ही-जल दख रहा था।
फर तो भगवान वाराह के प म कट ए और समुम कू द पड़े, भयंकर गजना के साथ अपनी वशाल दाढ़ पर
पृवी को रखकर वे अथाह जल रा श को चीरतेए ऊपर आ गए। पृ वी को समुसे ऊपर आते दे
ख तथा वाराह
का भयंकर श द सु नकर हर या बौखला गया क कसने उसक श को चु नौती द है। वाराह को दे
खतेही वह
उसेमारने दौड़ा। उसका हर अ -श वराह के शरीर से
टकराकर चू र-चू
र हो जाता था। भगवान कु छ दे
र उसके
हार झेलते रहेऔर उसके ोध को भड़काते रहे
। प भले ही वाराह का था, पर थेतो वेपर अन त श
भगवान व णु ।
उ ह नेएक झटके सेहर या को अपनी दाढ़ पर उठा लया और घु माकर आकाश म र फक दया। आकाश म
च कर काटकर वह धड़ाम से पृवी पर वाराह केपास ही गर पड़ा। मरणास हर या ने दे
खा क वह वाराह अब
वाराह न होकर भगवान व णु
है
। उसेअपना पू व ज म याद हो आया।
उसनेभगवान के
चरण पकड़ लए और कहा- “भगवान ! पाप के
शाप का आपनेअंत कर दया और अपने ही हाथ
इस ज म से
मु दलाई। मु
झेतो मु मली, पर मे
रे
भाई हर यक शपु का या होगा ? उसे
भी तो मु द जये ।
भगवान व णु
केये
श द सु
नकर हर या ने
बड़ी शा त से
अपनेाण याग दए।