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राजा भरत की कहानी

भारत हमारी पूर्वजो की भूमि है । यह हमारी आध्यात्मिक भूमि भी है । भारत का


असली और प्राचीन नाम भरत है । क्या आप जानते हैं कि हमारी आध्यात्मिक भूमि
का नाम "भारत" कैसे पड़ा?

यहाँ एक महान और बहादरु राजा रहते थे जिनका नाम था भरत। हमारी

आध्यात्मिक भमि
ू भारत उनके नाम पर नामकरण किया गया। राजा भरत के जन्म

के बारे में एक अद्भत


ु कहानी है ।

भरत राजा दष्ु यंत और शकंु तला के पत्र


ु थे। दष्ु यंत हस्तिनापरु के राजा और कौरवो-

पांडवों के पूर्वज थे। एक बार जंगल में शिकार करते हुए उन्होंने एक सुंदर स्त्री को

दे खा, जिनका नाम शकंु तला था। दोनों को एक दस


ू रे से प्रेम हो गया और दोनों ने

गंधर्व विवाह कर लिया. थोड़े दिन गुजरने के बाद राज्य से एक सिपाही आया और

उसने कोई खबर सन


ु ाई, जिसके चलते राजा दष्ु यंत को अपने राज्य के लिए प्रस्थान

करना पड़ा। उन्होंने शकंु तला से वादा किया कि वह बाद में आएंगे और उसे अपने

राज्य हस्तिनापुर ले जायेंगे।


एक बार दर्वा
ु शा ऋषि जंगल से जा रहे थे, और उन्होंने रस्ते में कुटिया दे खि जो किसी

ऋषि की मालूम पड़ती थी। उन्होंने उस कुटिया में प्रवेश किया, तब शकंु तला अकेली

थी और वह राजा दष्ु यंत के खयालो में खोयी हुई थी, ऋषि के आगमन का उसे प्रतीत

नहीं हुआ और ऋषि को यह अपमान सहन नहीं कर सके की उनके आगमन पर कोई

ध्यान न दे । उन्होंने तुरंत ही शकंु तला को श्राप दिया के जिसके खयालो में खोयी हुई हे

वह उसे भल
ू जायेगा। शकंु तला ने ऋषि से अपने गलती के लिए क्षमा याचना

की, यह दे ख कर ऋषि का क्रोध ठण्डा हुआ और उन्होंने यह कहते हुए

आश्रम से प्रस्थान किया के वह अपना श्राप वापस नहीं ले सकते पर सही

समय आनेपर उसे (महाराज को) सब याद आ जायेग।

राजा दष्ु यंत पूरी तरह से शकंु तला को भल


ू गए । बहोत दिन बीत गए पर राजा से

शकंु तला को कोई संदेश न मिलने पर वह राजा से मिलने हस्तिनापुर गई। वह

शकंु तला को पहचान भी नहीं पाये, तत्पश्चात दख


ु ी और निराश होकर शकंु तला ऋषि

मारीच के साथ उनके आश्रम में रहने लगी। यहाँ उसने भरत नामक पुत्र को जन्म
दिया। वह एक बहुत था बहादरु बच्चा। वह किसी से भी नहीं डरता था। भरत रोज शेर

के शावकों के साथ खेलते थे।

राजा दष्ु यंत अपनी पत्नी शकंु तला को भल


ू गए थे और उन्हें पता नहीं था कि उनका

एक बेटा भी है । एक बार, हस्तिनापुर नरे श महाराज दष्ु यंत जंगल में शिकार खेलते

हुए आश्रम से गज
ु र रहे थे, तब उन्होंने एक छोटे से लड़के को शेरो के साथ खेलते हुए

दे खा। लड़के ने अपने हाथों से शेर के जबड़े खोले और कहा, “हे जंगल के राजा! अपना

मँह
ु चौड़ा करो, ताकि मैं तम्
ु हारे दाँत गिन सकु”, महाराज दष्ु यंत बालक की ऐसी

वीरता दे ख कर बहुत ही चकित हुए।

बाद में शकंु तला और ऋषि वहां आये और महाराज दष्ु यंत को उनसे यह पता चला कि

भरत उन्ही के पुत्र है । यह बात सुनकर राजा को भल


ु ा हुआ वह सभी वाक्या याद आ

गया और उन्हें बहुत खुशी हुई के भरत उन्ही के पुत्र हे । उन्हों ने यह बात सुनते ही

अपने पुत्र को प्रेम से गले लगाने में कोई दे री नहीं की। महाराज दष्ु यंत शकंु तला और

भरत को अपने साथ हस्तिनापरु ले गए। बाद में भरत एक महान चक्रवर्ती सम्राट के

रूप में विकसित हुए। हमारे दे श "भारत" का नाम उन्ही के नाम "भरत" से पड़ा हे ,
क्योकि सम्राट भरत ने अपनी राज्य की सीमाएं इतनी बढ़ा दी थी के उनके राज्य के

आलावा ओर कोई भी राज्य नहीं था, सभी उनके राज्य के अंदर गौण राज्य थे।

चक्रवर्ती सम्राट भरत को उनकी बहादरु ी के लिए सभी याद करते हैं।

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