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ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ

जगन्नाथ व्रत कथा


ॐ ॐ

ॐ ॐ


और पूजा विधि ॐ

ॐ ॐ

ॐ ॐ

ॐ ॐ

ॐ ॐ

ॐ ॐ

ॐ ॐ

ॐ ॐ

ॐ ॐ

ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ

ॐ जगन्नाथ व्रत कथा ॐ

ॐ ॐ

एक बार भगवान श्रीकृ ष्ण सो रहे थे। ननद्रावस्था में उनके मुख से
ॐ ॐ
अचानक ननकला- “राधे” पटराननयोों ने इसे सुना सहज स्त्रीभाव से वे
सोचने लगीों नक हम प्रभु की इतनी सेवा करती हैं परोंतु उन्हें ज्यादा

IN
ॐ राधाजी का ही स्मरण रहता है। ॐ

F.
राधाजी के साथ प्रभु के प्रेम का ररश्ता कै सा था। यह अनुराग नकस
D
ॐ ॐ
प्रकार का था? प्रभु ने उनके प्रनत प्रेम का प्रदर्शन कै से नकया? स्वयों
AP

राधाजी भगवान के प्रनत प्रेमभाव आखखर कै से नदखाती थीों?


ॐ रुक्मिणीजी एवों अन्य राननयोों के मन में ये सब प्रश्न उठने लगे। पर ॐ
ST

उनकी खजज्ञासा र्ाोंत करे कौन?


IN

ॐ ॐ
बहुओों को सास और ननद की याद आई। सभी रोनहणीजी के पास
पहुोंची। उनसे राधारानी-श्रीकृ ष्ण के प्रेम व भगवान की ब्रज की
ॐ लीलाएों सुनाने की प्राथशना की। ॐ

बहुओों की खजद पर माता ने कथा सुनाने की हामी तो भर दी पर एक


ॐ ॐ
र्तश रखी। रोनहणीजी ने कहा- सुनाउों गी तो सही पर श्रीकृ ष्ण या
बलराम को इसकी भनक न नमले इसका प्रबों ध करो। यनद उन दोनोों ने
ॐ कथा सुन ली तो वे निर से व्रज चले जाएों गे। तुमसब नमलकर भी उन्हें ॐ
रोक न पाओगी। निर द्वारकापुरी कौन सों भालेगा?
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ
तय हुआ नक सभी राननयोों रोनहणीजी के साथ एक गुप्त स्थान पर
जाएों गी। वहाों पर सारी श्रीकृ ष्ण लीला कथा कही-सुनी जाएगी। माता
ॐ के र्तश अनुसार वहाों कोई और न आए इसके खलए सुभद्राजी पहरा ॐ
देंगी। भाखभयोों ने ननद को मनुहार करके इसके खलए मना खलया।
ॐ ॐ
सुभद्राजी को आदेर् हुआ नक स्वयों श्रीकृ ष्ण या बलराम भी आएों तो
उन्हें भी अोंदर न आने देना। माता ने कथा सुनानी आरम्भ की।
ॐ सुभद्रा द्वार पर तैनात थी। ॐ

IN

“राधाकृ ष्ण के प्रेम की अनूठी कथा” ॐ

F.
माता रोनहणी ने भगवान की र्ैर्व लीला का बखान र्ुरू नकया।
D
ॐ भगवान नवजात खर्र्ु के रूप में कै से लगते थे। नकस प्रकार से सोते ॐ
AP

थे। कै से बालसुलभ हठ करते थे। रोनहणीजी इतने भाव से सुना रही



थीों जैसे कथा नहीों है सबकु छ उसी समय चल रहा है। ॐ
ST

कथा सुनकर सुभद्राजी भी स्वयों को बालरूप में अनुभव करने लगीों।


IN

ॐ वह नकसी नवजात खर्र्ु के जैसी वहीों द्वारपर पड़ गईं। उन्हें कु छ ॐ


होर् ही न था।
ॐ ॐ
थोड़ी दे र में श्रीकृ ष्ण एवों बलराम वहाों आ पहुोंचे। सुभद्राजी को द्वार
पर ऐसे देखा तो कु छ सों देह हुआ। बाहर से ही अपनी सूक्ष्मर्नि
ॐ द्वारा माता द्वारा वखणशत ब्रजलीलाएों आनों द लेकर सुनने लगे। ॐ
बलरामजी भी कथा का आनों द लेने लगे।
ॐ ॐ

ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ
पटराननयाों तो डू बी ही थीों भगवान भी नवभोर होकर सुध-बुध खो बैठे।
ऐसे नवभोर हुए नक मूनतश के समान जड़ प्रतीत होने लगे। बड़े
ॐ ध्यानपूवशक देखने पर भी उनके हाथ-पैर नदखाई नहीों देते थे। सुदर्शन ॐ
ने भी द्रनवत होकर लों बा रूप धारण कर खलया।
ॐ ॐ
तभी अचानक देवनषश नारद का वहाों प्रवेर् हो गया। देवमुनन नारद भी
भगवान के इस रूप को दे खकर आश्चयशचनकत हो ननहारते रहे। कोई
ॐ सुध में ही न था। ॐ

IN

कु छ समय बाद नारद की तों द्रा भों ग हुई। प्रणाम करके भगवान से ॐ
कहा- प्रभु! मेरी इच्छा है मैंने आज जो रूप देखा है, वह आपके
F.
भिजनोों को पृथ्वीलोक पर खचरकाल तक देखने को नमले। आप इस
D
ॐ रूप में पृथ्वी पर वास करें। ॐ
AP


भगवान, नारदजी की बात से प्रसन्न हुए और उन्होोंने कहा- ॐ
ST

“तथास्तु”। कखलकाल में मैं इसी रूप में नीलाोंचल क्षेत्र में अपना
स्वरूप प्रकट करुोंगा। आपने खजस बालभाव वाले रूप में अोंगहीन मुझे
IN

ॐ देखा है, मेरा वही नवग्रह प्रकट होगा। आपको धैयशपूवशक उसकी ॐ
प्रतीक्षा करनी होगी।
ॐ ॐ
भगवान ने मेरी प्राथशना स्वीकार कर ली यह बात सुनकर नारद गदगद
हो गए। उन्होोंने भगवान से पूछा- वह भाग्यर्ाली कौन होगा खजसे
ॐ यह सुवअसर नमलेगा। आपतो जानते ही हैं मेरी कमजोरी है मेरा ॐ
कौतूहल। इस बात को यनद न जान जाऊों तो मैं व्याकु ल रहोंगा। प्रभु
ॐ क्या मैं कखलकाल के आने तक व्याकु ल रहों? ॐ

ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ
भगवान नारद की चतुराई पर होंस पड़े। भगवान बोले- आपको इस
दुलशभ स्वरूप के पुनः दर्शन के खलए प्रतीक्षा तो करनी ही पड़ेगी देवनषश।

मालवराज इों द्रद्युुुम्न समुद्र के उत्तर नदर्ा और महानदी के दखक्षणनदर्ा ॐ
में श्रीक्षेत्र में भव्य मों नदर का ननमाशण कराएों गे। वहाों मेरी प्रनतमा धातु
या पाषाण की न होकर स्वयों कल्पवृक्ष से होगी। वहाों मेरा स्वरूप
ॐ ॐ
वही होगा जो आपने देखने की लालसा प्रकट की।

ॐ नारदजी का कौतूहल र्ाोंत हो गया। वह प्रसन्न होकर भगवान की ॐ


स्तुनत करके अपने लोक को चले गए। श्रीक्षेत्र यानी श्रीजगन्नाथपुरी

IN
क्षेत्र में इों द्रद्युम्न द्वारा भगवान जगन्नाथ मों नदर की स्थापना की कथा यहीों
ॐ ॐ
से आरभ होती है। भगवान नीलमाधव के इस पुरुषोत्तम क्षेत्र पर
F.
सुदरू मालव में राज करने वाले इों द्रद्युम्न कै से पहुोंचे। कै से हुई मों नदर की
D
ॐ स्थापना। क्योों कहा जाता है इसे पुरुषोत्तम क्षेत्र। ॐ
AP

बहुत सरस कथा आती है राजनषश राजा इों द्रद्युम्न की। नवभोर करने
ॐ ॐ
ST

वाली कथा स्कों दपुराण में भी आती है। कथा को आगे बढाने से पहले
मैं आपको श्रीक्षेत्र के बारे में बताउों गा। आखखर भगवान ने इसी क्षेत्र
IN

ॐ को क्योों चुना? इस क्षेत्र की इतनी मनहमा क्योों है? यह कथा स्वयों ॐ


लक्ष्मीजी ने बताई है।
ॐ ॐ
इों द्रद्युम्न एक बार ऋनषयोों की सभा में पहुोंचे। राजा ने ऋनषयोों नवद्वानोों
से पूछा- सवशश्रेष्ठ नवद्वतजनोों से भरी सभा में मैं एक खजज्ञासा रखना
ॐ चाहता हों। ऋनषयोों आपने समस्त तीथों का सेवन नकया है। मुझे ॐ
कोई ऐसा तीथश बताइए खजसके सेवन से बड़े-से-बड़ा पापी भी
ननष्कलों क हो जाता है। खजसके दर्शन से ुोंसों खचत पुण्ोों का नार् नहीों
ॐ ॐ
होता।

ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ
खजस क्षेत्र में प्रवेर्मात्र से ही हृदय में नारायण का वास हो जाता है।
मेरी वहाों जाने की लालसा है। राजा के प्रश्न से उस सभा में र्ाोंनत छा

गई। कोई एकस्थान के बारे में ऐसा ननणशय नहीों कर पाया। ॐ

एक वृद्ध सों त उठ खड़े हुए और बोले- राजन आप श्रीक्षेत्र चानहए।


ॐ ॐ
वहाों भगवान नारायण का साक्षात वास है। स्वयों ब्रह्माजी और समस्त
देवता प्रनतनदन नारायण के दर्शन को वहाों आते हैं। वहाों रोनहणी कुों ड
ॐ के पास एक कल्पवृक्ष है। उस सरोवर में भूल से भी स्नान कर लेने ॐ
वाला भगवान श्रीकृ ष्ण का सायुज्य प्राप्त कर लेता है।

IN
ॐ ॐ
”प्रेत योनन, भूल से भी न करें ये पाोंच पाप हो जाएों गे प्रेत”
F.
D
ॐ राजा और वहाों उपक्मस्थनत सभी नवद्वान यह सुनकर आश्चयश में थे। सों त ॐ
AP

ने कथा आगे बढाई।


ॐ ॐ
ST

एक बार एक कौवे को जलक्रीड़ा की सूझी। वह मस्ती में डू बकर


रोनहणी कुों ड के पास पहुोंचा और कुों ड के जल में एक डु बकी लगाई।
IN

ॐ जल का स्पर्श करने के सात ही चमत्कार हुआ। नीच योनन वाला वह ॐ


पर्ु तत्काल पनवत्र हो गया। उसे श्रीकृ ष्ण का सायुज्य प्राप्त हो गया।
वह श्रीकृ ष्ण के समान नदखने वाला और पनवत्र हो गया। ॐ

हे परमनारायण भि इों द्रद्युम्न आप उस पुरुषोत्तम क्षेत्र में जाइए। वहाों


ॐ भगवान के नीलकों ठ स्वरूप का दर्शन करें। वहाों आपको एक साथ ॐ
समस्त देवताओों के दर्शन हो जाएों गे। देवतागण अपने-अपने लोक से
प्रनतनदन भगवान के खलए सुों दर पुष्प एवों भोग अपशण करते हैं। आप
ॐ ॐ
उस नदव्यभूनम में अवश्य जाएों ।

ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ
उस ऋनष ने श्रीक्षेत्र की मनहमा का इतना वणशन नकया नक राजा
व्याकु ल हो गया दर्शन को। उसके मन में बस भगवान नीलमाधव के
ॐ उस छनव के दर्शन की उत्कों ठा रहने लगी। राजा का नकसी काम में ॐ
मन न लगता। वह भगवान के मों नदर में पहुोंचा और उसके करूण
प्राथशना की।
ॐ ॐ

हे नारायण यनद मैं आपका सच्चा भि हों, यनद मैंने ननष्ठापूवशक


ॐ प्रजापालन नकया है यनद मैं धमश पर पक्का हों तो आप मुझे दर्शन नदया। ॐ
प्रभु उन महात्मा द्वारा सुने आपके रूप के दर्शन के नबना यह जीवन

IN
व्यथश लगता है। यनद आप मुझे दर्शन न देंगे तो मैं प्राण त्याग दूोंगा।
ॐ ॐ
भगवान के सामने करूण प्राथशना करते, आों सू बहाते राजा इों द्रद्युम्न
F.
अचेत हो गए। वह गहरी ननद्रा में चले गए। राजा ने एक सपना
D
ॐ देखा। सपने में उन्हें एक देववाणी सुनाई पड़ी- तुम्हें नवर्ेष कायश के ॐ
AP

खलए चुना गया है। तुम ननरार्ा का भाव त्याग दो। भगवान
नीलमाधव के खजस नवग्रह दर्शन के खलए तुम इतने व्यग्र हो, उसकी ॐ

ST

खोज करो। तुम अपनी ओर से प्रयास करो, तुम्हें दे वोों की सहायता


प्राप्त होती रहेगी।
IN

ॐ ॐ
तुम एक भव्य मों नदर का ननमाशण कराओ। उसके खलए उपयुि नवग्रह

की प्रानप्त भी तुम्हें समय आने पर हो जाएगी। ॐ
यह स्वप्न सुनकर राजा अचानक हड़बड़ाकर उठ बैठा। वह भागकर
अपनी राजसभा में गया।
ॐ ॐ
राजा ने अपने मों नत्रयोों, पुरोनहतोों को सारा स्वप्न कह सुनाया।

राजपुरोनहत के सुझाव पर र्ुभमुहतश में पूवी समुद्रतट पर एक नवर्ाल ॐ
मों नदर के ननमाशण का ननश्चय हुआ।

ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ वैनदक-मों त्रोचार के साथ मों नदर ननमाशण का श्रीगणेर् हुआ। राजा ॐ

इों द्रद्युम्न के मों नदर बनवाने की सूचना खर्क्मल्पयोों और कारीगरोों को हुई।



सभी इसमें योगदान दे ने पहुोंचे। नदन रात मों नदर के ननमाशण में जुट ॐ
गए। कु छ ही वषों में मों नदर बनकर तैयार हुआ।

ॐ ॐ
सागरतट पर नवर्ाल मों नदर का ननमाशण तो हो गया परोंतु भगवान की
मूनतश की समस्या जस की तस थी। राजा निर से खचोंनतत होने लगे।

एक नदन मों नदर के गभशगृह में बैठकर इसी खचोंतन में बैठे राजा की ॐ
आों खोों से आों सू ननकल आए।

IN
ॐ ॐ
”भगवान जगन्नाथ बीमार क्योों पड़े? जगन्नाथधाम के नवखचत्र पौराखणक
रहस्य” F.
D
ॐ ॐ
AP

राजा ने भगवान से नवनती की- प्रभु आपके नकस स्वरूप को इस मों नदर
में स्थानपत करूों इसकी खचोंता से व्यग्र हों। मागश नदखाइए। आपने
ॐ ॐ
ST

स्वप्न में जो सों के त नदया था उसे पूरा होने का समय कब आएगा?


देवनवग्रह नवहीन मों नदर देख सभी मुझ पर होंसेंगे।
IN

ॐ ॐ
राजा की आों खोों से आों सू झर रहे थे और वह प्रभु से प्राथशना करते जा
रहे थे- प्रभु आपके आर्ीवाशद से मेरा बड़ा सम्मान है। प्रजा समझेगी
ॐ ॐ
नक मैंने झूठ-मूठ में स्वप्न में आपके आदे र् की बात कहकर इतना बड़ा
श्रम कराया। हे प्रभु मागश नदखाइए।
ॐ ॐ
राजा दुखी मन से अपने महल में चले गए। उस रात को राजा ने
निर एक सपना देखा।
ॐ ॐ

ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ सपने में उसे देववाणी सुनाई दी- राजन! यहाों ननकट में ही भगवान ॐ

श्रीकृ ष्ण का नवग्रहरूप है। उस नवग्रह के तुम्हारे द्वारा बनाए मों नदर में

स्थापना ही नवखध का नवधान है। वह होकर रहेगा। उस नदव्य नवग्रह ॐ
को खोजने का प्रयास करो, तुम्हें दर्शन नमलेंगे।

ॐ ॐ
इों द्रदय़ुम्न ने स्वप्न की बात पुनः पुरोनहत और मों नत्रयोों को बताई। सभी
यह ननष्कषश पर पहुोंचे नक प्रभु की कृ पा सहज प्राप्त नहीों होगी। उसके

खलए हमें ननमशल मन से पररश्रम आरोंभ करना होगा। ॐ

IN
भगवान का नवग्रह कहाों है, इसका पता लगाने की खजम्मेदारी इों द्रद्युमन
ॐ ॐ
ने चार नवद्वान पों नडतोों को सौोंप नदया। प्रभु इच्छा से प्रेररत चारोों
F.
नवद्वान चार नदर्ाओों में ननकले। उन चारोों में एक थे नवद्यापनत।
D
ॐ ॐ
AP

चारोों नवद्वानोों में सबसे कम उम्र के थे नवद्यापनत। सभी प्रभु के नवग्रह


की खोज को चल पड़े। पों नडत नवद्यापनत पूवश नदर्ा की ओर चले।
ॐ ॐ
ST

कु छ आगे चलने के बाद नवद्यापनत उत्तर की ओर मुड़े तो उन्हें एक


जों गल नदखाई नदया। वन भयावह था।
IN

ॐ ॐ
नवद्यापनत श्रीकृ ष्ण के उपासक थे। उन्होोंने श्रीकृ ष्ण का स्मरण नकया
और राह नदखाने की प्राथशना की। भगवान श्रीकृ ष्ण की प्रेरणा से उन्हें
ॐ ॐ
राह नदखने लगी। प्रभु का नाम लेते वह वन में चले जा रहे थे।
जों गल के मध्य उन्हें एक पवशत नदखाई नदया। पवशत के वृक्षोों से सों गीत
ॐ की ध्वनन सा सुरम्य गीत सुनाई पड़ रहा था। ॐ

नवद्यापनत सों गीत के जानकार थे। उन्हें वहाों मृदोंग, बों सी और करताल
ॐ ॐ
की नमखश्रत ध्वनन सुनाई दे रही थी।

ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ यह सों गीत उन्हें नदव्य लगा। यह सों गीत तो सामान्य मानवोों द्वारा हो ॐ

ही नहीों सकता। ये वाद्य या तो गों धवश बजा रहे हैं या स्वयों देवता।

सों भवतः मैं सही जगह आ पहुोंचा हों। उस ऋनष ने बताया था नक ॐ
भगवान के नवग्रह की पूजा करने से पूवश देवता गीत-सों गीत से उन्हें
प्रसन्न करते हैं।
ॐ ॐ

नवद्यापनत को तो जैसे पों ख लग गए। वह सों गीत की लहररयोों को



खोजते नवद्यापनत आगे बढ चले। वह जल्दी ही पहाड़ी की चोटी पर ॐ
पहुोंच गए। पहाड़ के दूसरी ओर उन्हें एक सुों दर घाटी नदखी जहाों

IN
भील नृत्य कर रहे थे।
ॐ ॐ

F.
नवद्यापनत उस दृश्य को देखकर मों त्रमुग्ध थे। सिर के कारण थके थे
D

पर सों गीत से थकान नमट गयी। उन्हें नीोंद आने लगी। तभी वहाों ॐ
AP

एक बड़ी नवखचत्र बात हो गई।


ॐ ॐ
ST

”भगत के वर् में हैं भगवान सदना जी की नवभोर करने वाली कथा”
IN

ॐ अचानक एक बाघ की गजशना सुनकर नवद्यापनत घबरा उठे । बाघ ॐ


उनकी और दौड़ता आ रहा था। बाघ को दे खकर नवद्यापनत घबरा गए
और बेहोर् होकर वहीों नगर पडे। बाघ नवद्यापनत पर आक्रमण करने ही
ॐ ॐ
वाला था नक तभी एक स्त्री ने बाघ को पुकारा। “बाघा! ओ बाघा!
रूक जा!”
ॐ ॐ
उस आवाज को सुनकर बाघ मौन खड़ा हो गया। स्त्री ने उसे लौटने
का आदेर् नदया तो बाघ लौट पड़ा। बाघ स्त्री के पैरोों के पास ऐसे
ॐ ॐ
लोटने लगा जैसे कोई नबल्ली पुचकार सुनकर खेलने लगती है।

ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ
युवती बाघ की पीठ को प्यार से थपथपाने लगी, बाघ स्नेह से लोटता
रहा। वह स्त्री वहाों मौजूद खस्त्रयोों में सवाशखधक सुों दर थी। वह भीलोों के
ॐ राजा नवश्वावसु की इकलौती पुत्री थी-लखलता। ॐ

लखलता ने अपनी सेनवकाओों को अचेत नवद्यापनत की देखभाल के खलए


ॐ ॐ
भेजा। सेनवकाओों ने झरने से जललेकर नवद्यापनत पर खछड़का।

ॐ कु छ देर बाद नवद्यापनत की चेतना लौटी। उन्हें जल नपलाया गया। ॐ


नवद्यापनत यह सब देखकर कु छ आश्चयश में थे। लखलता नवद्यापनत के

IN
पास आई और पूछा- आप कौन हैं? भयानक जानवरोों से भरे इस वन
ॐ ॐ
में आप कै से पहुोंच?े आपके आने का प्रयोजन बताइए तानक मैं आपकी
सहायता कर सकूों । F.
D
ॐ ॐ
AP

नवद्यापनत के मन से बाघ का भय पूरी तरह गया नहीों था। लखलता ने


यह बात भाोंप ली। साोंत्वना देते हुए बोली- नवप्रवर आप मेरे साथ
ॐ ॐ
ST

चलें। जब आप स्वस्थ होों तब अपने लक्ष्य की ओर प्रस्थान करें।


IN

ॐ नवद्यापनत लखलता के पीछे -पीछे उनकी बस्ती की तरि चल नदए। ॐ


नवद्यापनत भीलोों के पाजा नवश्वावसु से नमले। नवश्वावसु को उसने
अपना पूरा पररचय नहीों नदया। बस यह कहा नक वह श्रीकृ ष्ण के ॐ

भि हैं। वह भ्रमण करके लोगोों को भगवान के नवषय में ज्ञान देते
हैं। उनकी र्ों का का समाधान करते हैं।
ॐ ॐ
नवद्यापनत ने अपना वास्तनवक पररचय तब तक छु पाना उखचत समझा
जब तक नक वह अपने लक्ष्य तक न पहुोंच जाए। नवश्वावसु, नवद्यापनत ॐ

जैसे नवद्द्वान से नमलकर बड़े प्रसन्न हुए।

ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ
नवश्वावसु के अनुरोध पर नवद्यापनत कु छ नदन वहाों अनतखथ बनकर रूके ।
वह भीलोों को धमश और ज्ञान का उपदेर् देने लगे। उनके उपदेर्ोों को
ॐ नवश्वावसु तथा लखलता बड़ी रूखच के साथ सुनते थे। लखलता के मन ॐ
में नवद्यापनत के खलए अनुराग पैदा हो गया।
ॐ ॐ
नवद्यापनत ने भी भाोंप खलया नक लखलता को उनसे प्रेम हो गया है नकोंतु
नवद्यापनत एक बड़े कायश के खलए ननकले थे। वह खजस कायश के खलए
ॐ ननकले थे उसका बस एक सों के त नमला था- सों गीत के रूप में। परोंतु ॐ
उससे आगे अभी तक कु छ नहीों हुआ, वह प्रेम कर ही नहीों सकते।

IN
ॐ ॐ
ईश्वर को तो अपनी लीला पूरी करनी थी। अचानक एक नदन
F.
नवद्यापनत बीमार हो गए। बीमार क्या मरणासन्न। ऐसा लगा नक अब
D
ॐ गए नक तब गए। लखलता ने उनकी सेवा-सुश्रुषा की। उसका लाभ ॐ
AP

हुआ और नवद्यापनत स्वस्थ भी हो गए। इससे नवद्यापनत के मन में भी


लखलता के प्रनत प्रेम भाव पैदा हो गया।
ॐ ॐ
ST

भील राजकु मारी को बाहर से आए ब्राह्मण से प्रेम हुआ तो यह नपता


IN

ॐ से छु प न सका। उन्हें अपनी प्रनतष्ठा की खचोंता हुई। निर सोचा यनद ॐ


यह नवद्वान नववाह करके यहीों बस जाए तो सारे भीलोों को लाभ होगा।
नवश्वावसु ने नवद्यापनत के सामने लखलता से नववाह का प्रस्ताव रखा। ॐ

नवद्यापनत ने इसे स्वीकार कर खलया। दोनोों का नववाह हुआ। कु छ


ॐ नदन दोनोों के सुखमय बीते। दाोंपत्य जीवन से नवद्यापनत प्रसन्न तो थे ॐ
पर एक खचोंता उन्हें सताती रहती। मुझे राजा ने खजस कायश के खलए
भेजा है वह अधूरा है। पर सूझता ही न था नक आगे क्या करें। ॐ

ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ
इस बीच नवद्यापनत को एक नवर्ेष बात पता चली। नवश्वावसु एक
पहर रात बाकी रहती तभी उठकर कहीों चला जाता। सूयोदय के बाद
ॐ ही लौटता था। नकतनी भी नवकट क्मस्थनत आए उसका यह ननयम ॐ
कभी नहीों टू टता था। ऐसा वह न जाने कब से करता आया था।
ॐ ॐ
भीलराजा नवश्वावसु के इस व्रत पर नवद्यापनत को आश्चयश हुआ। उनके
मन में इस रहस्य को जानने की इच्छा हुई, आखखर नवश्वावसु जाता
ॐ कहाों है। कहीों इसका सों बों ध उस अखभयान से तो नहीों खजसके खलए मैं ॐ
यहाों आ पहुोंचा हों। कहीों ईश्वर मुझे सों के त तो नहीों दे रहे। यह

IN
सोचकर नवद्यापनत परेर्ान थे।
ॐ ॐ

F.
लखलता ने परेर्ान दे खा तो कारण पूछ खलया। नवद्यापनत ने लखलता से
D
ॐ पूछा- नवश्वावसु प्रनतनदन कहाों जाते हैं? नवकट से नवकट पररक्मस्थनत में ॐ
AP

भी उनका ननयम नहीों टू टता ऐसा क्योों? मुझे यह जानने की बड़ी तीव्र
इच्छा है। यही सोचकर मैं परेर्ान हों।
ॐ ॐ
ST

”समस्या ननदान करने वाला अचूक मों त्र”


IN

ॐ ॐ
लखलता के सामने धमशसोंकट आ गया। वह पनत की बात को ठु करा
नहीों सकती थी लेनकन पनत जो पूछ रहा था उसे बता नहीों सकती थी। ॐ

यह उसके वों र् की गोपनीय परों परा से जुड़ी बात थी खजसे खोलना
सों भव नहीों था।
ॐ ॐ
लखलता ने कहा- स्वामी! यह हमारे कु ल का रहस्य है खजसे नकसी के
सामने खोला नहीों जा सकता। आप मेरे पनत हैं, मैं आपको कु ल का ॐ

पुरुष मानते हुए खजतना सों भव है बताऊोंगी।

ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ
यहाों से कु छ दूरी पर एक गुिा है खजसके अन्दर हमारे कु लदेवता हैं।
उनकी पूजा हमारे सभी पूवशज करते आए हैं। यह पूजा ननबाशध चलनी
ॐ चानहए। उसी पूजा के खलए नपताजी रोज सुबह ननयनमत रूप से जाते ॐ
हैं। नवद्यापनत ने लखलता से कहा- तुमने मुझे कु ल का पुरुष माना तो
क्या मैं कु लदेवता का दर्शन नहीों कर सकता? मेरी बड़ी इच्छा है दर्शन ॐ

की। तुम इसे पूरी करो।

ॐ लखलता बोली- यह सों भव ही नहीों। हमारे कु लदेवता के बारे में नकसी ॐ


को जानने की इच्छा है, यह सुनकर मेरे नपता क्रोखधत हो जाएों गे।

IN
नवद्यापनत ने कहा- देवता के दर्शन से नकसी को रोकना तो घोर पाप ॐ

है। तुम्हारे नपता ऐसा पाप कै से करेंगे? मैं धमशननष्ठ व्यनि हों। धमश का
F.
पालन करता हों। इसखलए देवता के दर्शन का तो मेरा अखधकार है।
D
ॐ मुझे इस अखधकार से न वों खचत करो नप्रये। ॐ
AP

”जीवन में एक बार नगररराज गोवधशन स्पर्श क्योों जरूरी है?” ॐ



ST

लखलता तकश से सहमत थी पर एक बात ऐसी थी खजससे वह नववर्


IN

ॐ थी। वह नवद्यापनत को यह बात स्वयों नहीों बताना चाहती थी। उसने ॐ


एक ननणशय नकया।
ॐ ॐ
नवद्यापनत की उत्सुिा बढ रही थी। वह तरह-तरह से लखलता के
अपने प्रेम की र्पथ देकर उसे मनाने लगे। उसने पनतव्रत धमश
ॐ ननभाने की र्पथ नदलाई। लखलता से कहा नक जो स्त्री पनत की इच्छा ॐ
नहीों पूरी करती वह मोक्ष नहीों पाती। उसका पनत भी प्रेत बनकर

भटकता रहता है। उसके कु ल का उद्धार नहीों होता। ॐ

ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ
लखलता ने हारकर कहा नक अपने नपताजी से नवनती करेगी नक वह
आपको दर्शन करा दें। लखलता ने नपता को सारी बात बताई तो वह
ॐ क्रोखधत हो गए। ॐ

लखलता ने नवश्वावसु से कहा- मैं आपकी अके ली सों तान हों। आपके ॐ

बाद देवता के पूजा का दानयत्व मेरा होगा। इसखलए मेरे पनत का यह
अखधकार बनता है क्योोंनक आगे उसे ही पूजना होगा। आप पुत्र और
ॐ पुत्री में भेद नहीों कर सकते। जामाता को पुत्र समझें और उसे उसका ॐ
अखधकार दें। नवश्वावसु इस तकश के आगे झुक गए।

IN
ॐ ॐ
वह बोले- गुिा के दर्शन नकसी को तभी कराए जा सकते हैं जब वह
F.
भगवान की पूजा का दानयत्व अपने हाथ में ले ले। तुम भली-भाोंनत
D
ॐ जानती हो नक मैं नवद्यापनत को वहाों क्योों नहीों जाने देना चाहता। ॐ
AP

लखलता बोली- मैं जानती हों पर नवद्यापनत अब कोई यात्री नहीों। वह ॐ



ST

हमारे पररवार का सदस्य हैं। वह यहीों के वासी हो चुके हैं। इसखलए


उनके दर्शन करने से दे वता का सों कट नहीों आएगा। हमारे कु लदेवता
IN

ॐ लुप्त नहीों होोंगे। ॐ


नवद्यापनत छु पकर नपता-पुत्री के बीच की बात सुन रहे थे। देवता लुप्त ॐ
हो जाएों गे, यह सुनकर वह अपना कौतूहल रोक न सके । सामने आ
गए देवता के लुप्त होने का क्या रहस्य है यह पूछा। नवश्वावसु ने जब
ॐ जाना नक नवद्यापनत ने उसके देवता का रहस्य सुन खलया है तो उनका ॐ
हृदय धक कर गया।
ॐ ॐ

ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ
“ऐसे उतारें नजर, नजर दोष से बचाते हैं ये सरल उपाय”

ॐ नवद्यापनत ने अपने ससुर को नवश्वास नदलाया नक वह दानयत्व को पूरा ॐ


करेगा। इसके खलए वह ईश्वर की सौगों ध लेने को तैयार है तो
नवश्वावसु ने वह रहस्य बताना र्ुरू नकया।नवश्वावसु बोले- यहाों ॐ

देवताओों का प्रनतनदन आगमन होता है। वे अपने साथ नवनवध प्रकार
के नैवेद्य, िल-िूल आनद लेकर आते हैं। वे हमारे कु लदेवता की
ॐ पूजा करने आते हैं। उनके पूजन में नकसी तरह का नवघ्न न हो इसके ॐ
खलए उन्होोंने चारोों तरि पहाड़ और वन बना नदए हैं।

IN
ॐ ॐ
कोई नवघ्न न डाले इसके खलए वन में नहोंसक जों तु हैं। इसी कारण तुम्हें
F.
इस क्षेत्र में अनुपम सुगोंध, अनुपम िल-पुष्प प्राप्त होते हैं जो कहीों
D
ॐ और नहीों होते। यक्ष आनद देवता के खलए गीत गाते हैं। उनके पूजन ॐ
AP

करने के जाने के उपराोंत मैं पृथ्वीवाखसयोों की ओर से उनकी पूजा


करता हों। उनकी कृ पा से ही हम सभी प्रकार के सों कटोों से मुि हैं। ॐ

ST

हमारे देवता की प्रनतमा ऐसी मनोहर है नक जो उसे देखता है देखता


ही रह जाता है। एक रहस्यमयी प्रनतमा है खजसमें बहुत आकषशण है।
IN

ॐ सबके खलए उसे दे खना भी सों भव नहीों। जो देख ले वही उसे अपने ॐ
साथ खलए जाना चाहेगा।
ॐ ॐ
एक बार हमारे पूवशजोों को र्ों का हुई नक कहीों कोई हमारे देवता की
प्रनतमा लेकर तो नहीों चला जाएगा। उन न्होोंने यह र्ों का स्वगशलोक से
ॐ आने वाले देवताओों के सामने रखी। दे वताओों ने बताया नक ॐ
कखलकाल में एक राजा इसे यहाों से ले जाकर कहीों और प्रनतनष्ठत कर

देगा। कहीों देवता के प्रस्थान के साथ ही हमारा दुभाशग्य न आ जाए ॐ
इसीखलए नकसी को भी दर्शन नहीों करने नदया जाता।

ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ
तुम बाहर से आए हो। इसखलए तुम्हें दर्शन से रोक रहा था। पर
तुमने र्पथ ली है तो मुझे थोड़ा भरोसा हुआ है। मैं तुम्हें दर्शन को
ॐ लेकर तो जाउों गा पर अभी वह मागश नहीों बताउों गा। मेरे जीवनकाल ॐ
तक पूजा का दानयत्व मेरा है। मेरे उपराोंत तुम पूजन करोगे। पुत्री
की खजद के कारण मैं तुम्हें कल आँ खोों पर पट्टी बाोंधकर ले चलने को ॐ

तैयार हों।

ॐ ”खर्वखलोंग या खर्व की मूनतश, पूजा के खलए कौन है श्रेष्ठ?” ॐ

IN
नवद्यापनत के मन में अब कोई सों देह ही न रहा नक यह वही प्रनतमा है ॐ

खजसे खोजने वह ननकले हैं। उनका लक्ष्य पूरा होने को था।
F.
नवद्यापनत के वल दर्शन करने तो आए नहीों थे। उन्हें मूनतश लेकर जानी
D
ॐ थी। इसखलए उन्होोंने एक चाल चली। ॐ
AP

दूसरे नदन सूयोदय से पूवश नवद्यापनत की आों खोों पर पट्टी बाोंधकर ॐ



ST

नवश्वावसु उनका दायाों हाथ पकड़कर चले। नवद्यापनत ने बाईं मुट्ठी में
सरसोों रख खलया था। रास्ते में वह सरसोों छोड़ते हुए गए। कािी दे र
IN

ॐ चलने के बाद नवश्वावसु रूके । ॐ


नवश्वावसु ने नवद्यापनत के आँ खोों की काली पट्टी खोल दी। वे एक ॐ
गुिा के सामने थे। उस गुिा में नीले रोंग का प्रकार् चमक उठा।
हाथोों में मुरली खलए भगवान श्रीकृ ष्ण का रूप नवद्यापनत को नदखाई
ॐ नदया। नवद्यापनत आनों दमग्न हो गए। उन्होोंने भगवान के दर्शन नकए, ॐ
स्तुनत की। दर्शन के बाद तो जैसे नवद्यापनत जाना ही नहीों चाहते थे।

नवश्वावसु ने लौटने का आदेर् नदया तो नववर् होकर उठे । निर ॐ
उनकी आों खोों पर पट्टी बाोंधी और दोनोों लौट पड़े।

ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ लौटने पर लखलता ने नवद्यापनत से पूछा- क्या आपके प्रदेर् में भी ॐ

हमारे कु लदेवता जैसी प्रनतमा है? क्या आपने ऐसा नवग्रह कहीों और
देखा है? आप उन्हें नकस नाम से जानते हैं, कै से पूजते हैंुों? ॐ

लखलता ने प्रश्नोों की झड़ी लगा दी पर नवद्यापनत चुप रहे।

ॐ ॐ
”कुँ आरी क्योों हैं माता वैष्णो देवी?”


गुिा में नदखे अलौनकक दृश्य के बारे में पत्नी को बताना उखचत नहीों ॐ
समझा। नवश्वावसु के कु लदेवता ही नीलमाधव भगवान हैं, अब यह

IN
पक्का हो चुका था। महाराज ने स्वप्न में खजस प्रभु नवग्रह के बारे में
ॐ ॐ
देववाणी सुनी थी, वह यही भगवान नीलमाधव हैं। नकसी तरह इसी
नवग्रह को लेकर राजधानी पहुोंचना होगा। F.
D
ॐ ॐ
AP

नवद्यापनत गुिा से मूनतश लेकर जाने की सोच तो रहे थे, पर भीलराज से


नवश्वासघात के नवचार से मन व्यखथत भी था। नवद्यापनत धमश-अधमश
ॐ ॐ
ST

के बारे में सोचते रहे। निर नवचार आया, यनद नवश्वावसु ने सचमुच
नवश्वास नकया होता तो आों खोों पर पट्टी बाोंधकर गुिा तक नहीों ले
IN


जाते। इसखलए उनके साथ नवश्वासघात का प्रश्न नहीों उठता। ॐ
नवद्यापनत ने गुिा से मूनतश चुराने का ननश्चय कर ही खलया।
ॐ ॐ
”करना है उद्धार तो मारो जूते चार”

ॐ नवद्यापनत ने लखलता से कहा नक वह अपने माता-नपता के दर्शन के ॐ


खलए जाना चाहता है। वे उसे लेकर परेर्ान होोंगे। लखलता भी साथ
चलने को तैयार हुई। नवद्यापनत ने यह कहकर समझा खलया नक वह
ॐ ॐ
र्ीघ्र ही लौटे गा तो उसे लेकर जाएगा।

ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ
लखलता मान गई। नवश्वावसु ने उसके खलए घोड़े का प्रबों ध नकया।
अब तक सरसोों के दाने से पौधे ननकल आए थे। उनको देखता
ॐ नवद्यापनत गुिा तक पहुोंच गए। भगवान की स्तुनत की और क्षमा ॐ
प्राथशना के बाद मूनतश उठाकर झोले में रख ली।
ॐ ॐ
लों बे सिर के बाद वह राजधानी पहुोंच गए और सीधे राजा के पास
गए। नदव्य प्रनतमा राजा को सौोंप दी और पूरी कहानी सुनायी। राजा
ॐ ने बताया नक उसने कल एक सपना देखा नक सुबह सागर में एक ॐ
लकड़ी का कु न्दा बहकर आएगा।

IN
ॐ ॐ
उस कुों दे की नक्कार्ी करवाकर भगवान की मूनतश बनवा लेना खजसका
F.
अोंर् तुम्हें प्राप्त होने वाला है। वह भगवान श्रीनवष्णु का स्वरूप होगा।
D
ॐ तुम खजस मूनतश को लाए हो वह भी भगवान नवष्णु का अोंर् है। दोनोों ॐ
AP

आश्वस्त थे नक उनकी तलार् पूरी हो गई है।


ॐ ॐ
ST

राजा ने कहा- जब भगवान द्वारा भेजी लकड़ी से हम इस प्रनतमा का


बड़ा स्वरूप बनवा लेंगे तब तुम अपने ससुर से नमलकर उन्हें मूनतश
IN

ॐ वापस कर देना। उनके कु लदेवता का नवर्ाल नवग्रह एक भव्य मों नदर ॐ


में स्थानपत देखकर उन्हें खुर्ी ही होगी।
ॐ ॐ
दूसरे नदन सूयोदय से पूवश इों द्रद्युम्न नवद्यापनत तथा मों नत्रयोों को लेकर
सागरतट पर पहुोंचे। स्वप्न के अनुसार एक बड़ा कुों दा पानी में बहकर
ॐ आ रहा था। सभी उसे दे खकर प्रसन्न हुए। दस नावोों पर बैठकर ॐ
राजा के सेवक उस कुों दे को खीोंचने पहुोंचे।
ॐ ॐ

ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ
”इन सों के तोों से जानें आसपास भूत प्रेत आत्मा का वास तो नहीों”

ॐ मोटी-मोटी रक्मियोों से कुों दे को बाोंधकर खीोंचा जाने लगा लेनकन कुों दा ॐ


टस से मस न हुआ। और लोग भेजे गए। सैकड़ोों लोग और नावोों
का प्रयोग करके भी कुों दे को नहलाया तक नहीों जा सका।
ॐ ॐ
राजा का मन उदास हो गया। सेनापनत ने एक लों बी सेना कुों दे को
खीोंचने के खलए भेज दी।
ॐ ॐ
सारे सागर में सैननक ही सैननक नजर आने लगे लेनकन सभी नमलकर

IN
कुों दे को अपने स्थान से नहला तक न सके । सुबह से रात हो गई।
ॐ ॐ
अचानक राजा ने काम रोकने का आदेर् नदया। उसने नवद्यापनत को
F.
अके ले में ले जाकर कहा नक वह समस्या का कारण जान गया है।
D
ॐ राजा के चेहरे पर सों तोष के भाव थे। राजा ने नवद्यापनत को गोपनीय ॐ
AP

रूप से कहीों चलने की बात कही।


ॐ ॐ
ST

”नबगड़े काम बनाएों गे, धन बरसाएों गे ये पैसे के टोटके ”


IN

ॐ राजा इों द्रद्युम्न ने कहा नक अब भगवान का नवग्रह बन जाएगा बस एक ॐ


काम करना होगा। मुझे भगवान के सों के त नमल रहे हैं। इों द्रद्युम्न
जान गए थे नक प्रभु के नवग्रह के खलए आई लकड़ी का कुों दा नहल-डु ल ॐ

भी क्योों नहीों रहा।

ॐ राजा ने कहा- नवद्यापनत इस नदव्य मूनतश की अब तक जो पूजा करता ॐ


आया था उससे तुरोंत भेंट करके क्षमा माोंगनी होगी। नबना उसके
स्पर्श नकए यह कुों दा आगे नहीों बढ सके गा। ॐ

ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ
राजा इों द्रद्युम्न और नवद्यापनत नवश्वावसु से नमलने पहुोंचे। राजा ने पवशत
की चोटी से जों गल को दे खा तो उसकी सुों दरता को दे खता ही रह
ॐ गया। दोनोों भीलोों की बस्ती की ओर चुपचाप चलते रहे। ॐ

इधर नवश्वावसु अपने ननयनमत नदनचयाश के नहसाब से गुिा में अपने


ॐ ॐ
कु लदेवता की पूजा के खलए चले। वहाों प्रभु की मूनतश गायब देखी तो
वह समझ गए नक उनके दामाद ने ही यह छल नकया है।
ॐ ॐ
नवश्वावसु लौटे और लखलता को सारी बात सुना दी। नवश्वावसु पीड़ा से

IN
भरे घर के आों गन में पछाड़ खाकर नगर गए। लखलता अपने पनत द्वारा
ॐ ॐ
नकए नवश्वासघात से दुखी थी। स्वयों को इसका कारण मान रही थी।
F.
नपता-पुत्री नदनभर नवलाप करते रहे। दोनोों अनहोनी की आर्ों का से
D
ॐ खचोंनतत थे। अब भीलोों का अक्मस्तत्व समाप्त हो जाएगा। उनका कु ल, ॐ
AP

उनके लोग नष्ट हो जाएों गे। दोनोों यही कहते नवलाप कर रहे थे।
ॐ ॐ
ST

”भरा रहेगा घर का अन्न धन भों डार, करें ये सरल उपाय”


IN

ॐ सारा नदन नवलाप करते ननकल गया। दोनोों नवलाप करते बेसुध हो ॐ
जाते। सुध आती तो निर रोने लगते और बेहोर् हो जाते। ऐसे ही
एक नदन बीत गया। ॐ

अगली सुबह नवश्वावसु उठे और सदा की तरह नदनचयाश का पालन


ॐ करते हुए गुिा की तरि बढ ननकले। वह जानते थे नक प्रभु का ॐ
नवग्रह वहाों नहीों है निर भी उनके पैर गुिा की ओर खीोंचे चले जाते
थे। ॐ

ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ
नवश्वावसु के पीछे लखलता और ररश्तेदार भी चले। नवश्वावसु गुिा के
भीतर पहुोंचे। जहाों भगवान की मूनतश होती थी उस चट्टान के पास
ॐ हाथ जोड़कर खडे रहे। निर उस ऊोंची चट्टान पर नगर गए और ॐ
नबलख–नबलखकर रोने लगे। उनके पीछे प्रजा भी रो रही थी।
ॐ ॐ
”जन्मनदन या वार से चुटनकयोों में जानें नकसी की जन्मकुों डली”

ॐ एक भील युवक भागता हुआ गुिा के पास आया। उसने बताया नक ॐ


महाराज और उनके साथ नवद्यापनत बस्ती की ओर आ रहे हैं। यह

IN
सुनकर सब चौोंक उठे । नवश्वावसु राजा के स्वागत में गुिा से बाहर
ॐ ॐ
आए लेनकन उनकी आों खोों में आों सू थे। राजा इों द्रद्युमन नवश्वावसु के
F.
पास आए और उन्हें अपने हृदय से लगा खलया।
D
ॐ ॐ
AP

राजा बोले- भीलराज, तुम्हारे कु लदेवता की प्रनतमा का चोर तुम्हारा


दामाद नहीों मैं हों। उसने तो अपने महाराज के आदेर् का पालन
ॐ ॐ
ST

नकया। यह सुनकर सब चौोंक उठे ।


IN

ॐ नवश्वावसु ने राजा को आसन नदया। राजा ने उस नवश्वावसु को र्ुरू से ॐ


अोंत तक पूरी बात बताकर कहा नक आखखर क्योों यह सब करना पड़ा।
निर राजा ने उनसे अपने स्वप्न और निर जगन्नाथपुरी में सागरतट पर ॐ

मों नदर ननमाशण की बात कह सुनाई।

ॐ राजा ने नवश्वावसु से प्राथशना की- भील सरदार नवश्वावसु, कई पीनढयोों ॐ


से आपके वों र् के लोग भगवान की मूनतश को पूजते आए हैं। भगवान
के उस नवग्रह के दर्शन सभी को नमले इसके खलए आपकी सहायता ॐ

चानहए।

ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ
”इस कथा को सुनने से नमलता है मोक्ष”

ॐ ईश्वर द्वारा भेजे गए लकड़ी के कुों दे से बनी मूनतश के भीतर हम इस ॐ


नदव्य मूनतश को सुरखछत रखना चाहते हैं। अपने कु ल की प्रनतमा को
पुरी के मों नदर में स्थानपत करने की अनुमनत दो। उस कुों दे को तुम
ॐ ॐ
स्पर्श करोगे तभी वह नहलेगा।

ॐ नवश्वावसु राजी हो गए। राजा सपररवार नवश्वावसु को लेकर सागरतट ॐ


पर पहुोंचे। नवश्वावसु ने कुों दे को छु आ। छू ते ही कुों दा अपने आप

IN
तैरता हुआ नकनारे पर आ लगा। राजा के सेवकोों ने उस कुों दे को
ॐ ॐ
राजमहल में पहुोंचा नदया। अगले नदन मूनतशकारोों और खर्क्मल्पयोों को
F.
राजा ने बुलाकर मों त्रणा की नक आखखर इस कुों दे से कौन सी देवमूनतश
D
ॐ बनाना र्ुभदायक होगा। मूनतशकारोों ने कह नदया नक वे पत्थर की ॐ
AP

मूनतशयाों बनाना तो जानते हैं लेनकन लकड़ी की मूनतश बनाने का उन्हें


ज्ञान नहीों।
ॐ ॐ
ST

एक नए नवघ्न के पैदा होने से राजा निर खचोंनतत हो गए। राजा पुनः


IN

ॐ भगवान का स्मरण करने लगे। भगवान ने प्रेरणा दी नक तुम इसकी ॐ


खचोंता छोड़ो। तुम्हारे पास एक योग्य खर्ल्पी पधारेंगे। वही इस नवग्रह
का ननमाशण कर सकते हैं। वे ननयम के बड़े पक्के हैं। तुम उन्हें मान ॐ

लेना और अपना वचन मत भों ग करना।

ॐ अगले नदन एक वृद्ध व्यनि राजसभा में आया और बोला- मैं जानता हों ॐ
नक कौन सी प्रनतमा स्थानपत की जानी चानहए। मैं वह प्रनतमा भी
बनाउों गा। आप भगवान श्रीकृ ष्ण को उनके भाई बलभद्र तथा बहन ॐ

सुभद्रा के साथ यहाों नवराजमान करें। इस दैवयोग का यही सों के त है।

ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ राजा को उस बूढे व्यनि की बात से साोंत्वना नमली। उसे भगवान का ॐ
स्वप्न याद आया। परखने के खलए राजा ने पूछा नक आखखर मूनतश
बनेगी कै से?
ॐ ॐ

”दूसरोों की ये वस्तुएों आपको चुपके से दररद्र बनाती हैं”


ॐ ॐ
उस वृद्ध ने कहा- मैं इस कला में कु र्ल हों। मैं इस पनवत्र कायश को
पूरा करूोंगा और मूनतशयाों बनाउों गा। पर मेरी एक र्तश है। मैं भगवान
ॐ ॐ
की मूनतश ननमाशण का काम एकाोंत में करूोंगा। मैं यह काम बों द कमरे में

IN
करुोंगा। कायश पूरा करने के बाद मैं स्वयों दरवाजा खोलकर बाहर
ॐ आऊोंगा। ॐ

F.
D
इस बीच कोई मुझे न बुलाए, न मेरे पास आए। यनद नकसी ने बीच
ॐ ॐ
AP

में बाधा की तो मैं काम अधूरा छोड़कर लुप्त हो जाऊोंगा। जब तक


ननमाशणकायश चले बाहर सों गीत बजना चानहए तानक मेरे कायश की सूचना
ॐ नकसी को न लगे। मेरे औजारोों के चलने की आवाज महल के बाहर ॐ
ST

न जाए इसकी व्यवस्था कर दें।


IN

ॐ ॐ
राजा सहमत तो थे लेनकन उन्हें एक खचोंता हुई। राजा बोले- यनद कोई
आपके पास नहीों आएगा तो ऐसी हालत में आपके खाने पीने की
ॐ व्यवस्था कै से होगी? खर्ल्पी ने कहा- जब तक मेरा काम पूणश नहीों ॐ

होता मैं कु छ खाता-पीता नहीों हों।


ॐ ॐ
राजमों नदर के एक नवर्ाल कक्ष में उस बूढे खर्ल्पी ने स्वयों को 21 नदनोों
के खलए बों द कर खलया। बाहर वादक वाद्ययों त्र बजाने लगे तो मूनतश
ॐ ननमाशण कायश आरोंभ हुआ। भीतर से औजारोों के चलने की आवाजें ॐ

आती थीों।
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ महारानी गुों डीचा देवी दरवाजे से कान लगाकर अक्सर छे नी-हथौड़े के ॐ
चलने की आवाजें सुना करती थीों। महारानी रोज की तरह कमरे के
दरवाजे से कान लगाए खड़ी थीों। ॐ

पों द्रह नदन बाद उन्हें कमरे से आवाज सुनायी पड़नी बों द हो गई। जब
ॐ मूनतशकार के काम करने की कोई आवाज न नमली तो रानी खचोंनतत हो ॐ

गईं।
ॐ ॐ
उन्हें लगा नक वृद्ध आदमी है, खाता-पीता भी नहीों कहीों उसके साथ

IN
कु छ अननष्ट न हो गया हो। व्याकु ल होकर रानी ने दरवाजे को धक्का
ॐ देकर खोला और भीतर झाोंककर देखा। ॐ

F.
D
महारानी गुों डीचा देवी ने इस तरह मूनतशकार को नदया हुआ वचन भों ग ॐ

AP

कर नदया था। मूनतशकार अभी मूनतशयाों बना रहा था परोंतु रानी को


देखते ही अदृश्य हो गए। मूनतश ननमाशण का कायश अभी तक पूरा नहीों
ॐ ॐ
ST

हुआ था। भगवान के हाथ-पैर अभी नहीों बन सके थे।


IN


राजा और रानी दोनोों नवलाप करने लगे। उन्होोंने अपना वचन भों ग कर ॐ
नदया था। ईश्वर ने उन्हें हृदय में प्रेरणा दी तुम व्यथश खचोंनतत हो रहे
हो। जो खर्ल्पी आए थे वे स्वयों भगवान नवश्वकमाश थे।
ॐ ॐ

खजन प्रनतमाओों को तुम अपूणश समझ रहे हो वास्तव में वैसी ही प्रनतमा
ॐ स्थानपत होनी थी। मैंने नारद को यह वरदान नदया था। नारद भी ॐ
इतने समय से तुम्हारे बीच ही गोपनीय रूप में उपक्मस्थत हैं। नारद
तुम्हें दर्शन देकर सारा रहस्य बताएों गे। अब तुम ध्यान से वह नवखध
ॐ ॐ
सुनो खजसे करके ही प्राण प्रनतष्ठा करना।

ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ नीलाोंचल पर सौ कु एों बनवाओ। सौ यज्ञोों का आयोजन करो। कु ओों ॐ
के जल से मेरा अखभषेक होगा। उसके बाद इसकी स्थापना स्वयों
ब्रह्मदेव से करेंगे। वहाों तुम्हें लेकर नारद जाएों गे। ॐ

”ऐसे जानें आप पर र्नन का प्रकोप है या नहीों”


ॐ ॐ

राजा ने नीलाोंचल पवशत पर नवर्ाल मों नदर का ननमाशण कराया। ऐसा


नवर्ाल मों नदर उस समय भूलोक पर दूसरा न था। भगवान के बताए ॐ

अनुसार नारदजी प्रकट हुए। भगवान की इच्छानुसार वह राजा इों द्रद्युम्न

IN
को लेकर ब्रह्मलोक की ओर चले।
ॐ ॐ

F.
राजा इों द्रद्युनमन समय की गनत से चलकर ब्रह्मलोक पहुोंचे। ब्रह्माजी की
D
स्तुनत के बाद उन्हें भगवान की कही बातें बताई। ब्रह्माजी यह ॐ

AP

जानकर बड़े प्रसन्न हुए। सौभाग्य मानकर वह इसके खलए सहषश तैयार
हो गए।
ॐ ॐ
ST

ब्रह्माजी ने कहा- तुम आगे चलो मैं पीछे से आऊोंगा। एक बात का


IN


ध्यान रखना। जब तुम वापस जाओगे तब तक धरती पर बहुत कु छ ॐ
बदल चुका होगा। तुम्हारी कई पीनढयाों बीत गईं हैं। हजारोों वषश बीत
चुके होोंगे। अब तक 71 कल्प ननकल गए। मनु भी बदल चुके हैं।
ॐ ॐ
इसखलए नवस्मय में मत रहना।

ॐ ब्रह्माजी से नवदा लेकर इों द्रद्युम्न नारद के साथ पृथ्वी पर आए। अब ॐ


वहाों राजा गाला का राज्य स्थानपत हो चुका था। जो मों नदर नवश्वावसु
ने बनाया था उसका अखधकाोंर् अोंर् लुप्त चुका है। इों द्रद्युम्न ने पूजा की
ॐ ॐ
तैयारी र्ुरू की।

ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ
राजा गाला को लगा नक कोई उसके राज्य में अनतक्रमण करने आया
है। वह अपनी सेना लेकर चढ आया पर जब दृश्य दे खा तो नवनीत
ॐ हो गया। कु ओों से ननकालकर 108 कलर्ोों में जलभरकर भगवान के ॐ
खर्र्ुरूप का अखभषेक आरोंभ हुआ।
ॐ ॐ
भगवान ने नारदजी को वचन नदया था नक वह एक साधारण बालक
की तरह अपनी लीलाएों करके उन्हें आनों नदत करेंगे। इसखलए भगवान
ॐ ने लीला आरोंभ की। इतने स्नान से भगवान को सदी लग गई। ॐ
भगवान का पों द्रह नदनोों तक नवर्ेष उपचार नकया गया। तब वे जाकर

IN
बलरामजी और सुभद्रा के साथ स्वस्थ हुए।
ॐ ॐ

F.
भगवान श्रीकृ ष्ण, बलभद्र और सुभद्राजी की नबना-हाथ पाोंव वाली
D
ॐ मूनतशयाों इसी कारण ऐसी हैं। उन प्रनतमाओों को ही मों नदर में स्थानपत ॐ
AP

कराया गया। कहते हैं नवश्वावसु सों भवतः उस जरा बहेखलए का वों र्ज
था खजसने अोंजाने में भगवान कृ ष्ण की हत्या कर दी थी। नवश्वावसु
ॐ ॐ
ST

र्ायद कृ ष्ण के पनवत्र अवर्ेषोों की पूजा करता था। ये अवर्ेष


मूनतशयोों में खछपाकर रखे गए हैं। नवद्यापनत और लखलता के वों र्ज खजन्हें
IN

ॐ दैत्यपनत कहते हैं उनका पररवार ही यहाों अब तक पूजा करता है। ॐ

भगवान जगन्नाथ की नवग्रह मूनतश के ननमाशण की प्रनक्रया भी अनोखी ॐ



है। खजस वषश में आषाढ मास में अखधकमास होता है उस वषश भगवान
की नई प्रनतमा बनाई जाती है। पुरानी प्रनतमा को मों नदर के प्राोंगण में
ॐ ही समाखध दे जाती है। इस प्रनक्रया को नवकलेवरम कहते हैं। मों नदर ॐ
के पुजारी आों ख बों द करके प्रनतमा का ननमाशण करते हैं। निर एक
नवर्ेष प्रनक्रया से प्राण प्रनतष्ठा की जाती है। ॐ

ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ
राजा गाला को लगा नक कोई उसके राज्य में अनतक्रमण करने आया
है। वह अपनी सेना लेकर चढ आया पर जब दृश्य दे खा तो नवनीत
ॐ हो गया। कु ओों से ननकालकर 108 कलर्ोों में जलभरकर भगवान के ॐ
खर्र्ुरूप का अखभषेक आरोंभ हुआ।
ॐ ॐ
भगवान ने नारदजी को वचन नदया था नक वह एक साधारण बालक
की तरह अपनी लीलाएों करके उन्हें आनों नदत करेंगे। इसखलए भगवान
ॐ ने लीला आरोंभ की। इतने स्नान से भगवान को सदी लग गई। ॐ
भगवान का पों द्रह नदनोों तक नवर्ेष उपचार नकया गया। तब वे जाकर

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बलरामजी और सुभद्रा के साथ स्वस्थ हुए।
ॐ ॐ

F.
भगवान श्रीकृ ष्ण, बलभद्र और सुभद्राजी की नबना-हाथ पाोंव वाली
D
ॐ मूनतशयाों इसी कारण ऐसी हैं। उन प्रनतमाओों को ही मों नदर में स्थानपत ॐ
AP

कराया गया। कहते हैं नवश्वावसु सों भवतः उस जरा बहेखलए का वों र्ज
था खजसने अोंजाने में भगवान कृ ष्ण की हत्या कर दी थी। नवश्वावसु
ॐ ॐ
ST

र्ायद कृ ष्ण के पनवत्र अवर्ेषोों की पूजा करता था। ये अवर्ेष


मूनतशयोों में खछपाकर रखे गए हैं। नवद्यापनत और लखलता के वों र्ज खजन्हें
IN

ॐ दैत्यपनत कहते हैं उनका पररवार ही यहाों अब तक पूजा करता है। ॐ

भगवान जगन्नाथ की नवग्रह मूनतश के ननमाशण की प्रनक्रया भी अनोखी ॐ



है। खजस वषश में आषाढ मास में अखधकमास होता है उस वषश भगवान
की नई प्रनतमा बनाई जाती है। पुरानी प्रनतमा को मों नदर के प्राोंगण में
ॐ ही समाखध दे जाती है। इस प्रनक्रया को नवकलेवरम कहते हैं। मों नदर ॐ
के पुजारी आों ख बों द करके प्रनतमा का ननमाशण करते हैं। निर एक
नवर्ेष प्रनक्रया से प्राण प्रनतष्ठा की जाती है। ॐ

ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ

ॐ जगन्नाथ पूजा विधि ॐ

ॐ ॐ

भगवान जगन्नाथ यात्रा पूजा नवखध इस प्रकार हैं:-


ॐ ॐ

 पनत पत्नी पीले वस्त्र धारण करके भगवान जगन्नाथ की पूजा करें।

IN
ॐ  उनको चन्दन लगायें , नवखभन्न भोग प्रसाद और तुलसीदल अनपशत ॐ
करें।
F.
 भगवान जगन्नाथ को मालपुए का भोग लगायें।
D
ॐ ॐ
 इसके बाद सों तान गोपाल मों त्र का जाप करें और सों तान प्रानप्त की
AP

प्राथशना करें।
ॐ  इसके बाद गजेंद्र मोक्ष का पाठ करें , या गीता के ग्यारहवें अध्याय ॐ
ST

का पाठ करें।
 एक ही मालपुए के दो नहिे करें , आधा आधा पनत पत्नी खाएों .
IN

ॐ ॐ
 भगवान जगन्नाथ, सुभद्रा और बलभद्र के खचत्र या मूनतश की
स्थापना करें।
ॐ  उनको िूलोों से सजाएँ और उनके समक्ष घी का दीपक जलाएों . ॐ
 इसके बाद सभी लोग नमलकर "हरर बोल - हरर बोल" का कीतशन
करें।
ॐ ॐ
 निर साथ में नमलकर प्रसाद ग्रहण करें।

ॐ ॐ

ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ

ॐ ॐ

ॐ ॐ

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ॐ ॐ

ॐ ॐ

ॐ ॐ

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