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Instapdf - in Jagannath Vrat Katha Pooja Vidhi 984
Instapdf - in Jagannath Vrat Katha Pooja Vidhi 984
ॐ ॐ
ॐ
और पूजा विधि ॐ
ॐ ॐ
ॐ ॐ
ॐ ॐ
ॐ ॐ
ॐ ॐ
ॐ ॐ
ॐ ॐ
ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ
ॐ ॐ
एक बार भगवान श्रीकृ ष्ण सो रहे थे। ननद्रावस्था में उनके मुख से
ॐ ॐ
अचानक ननकला- “राधे” पटराननयोों ने इसे सुना सहज स्त्रीभाव से वे
सोचने लगीों नक हम प्रभु की इतनी सेवा करती हैं परोंतु उन्हें ज्यादा
IN
ॐ राधाजी का ही स्मरण रहता है। ॐ
F.
राधाजी के साथ प्रभु के प्रेम का ररश्ता कै सा था। यह अनुराग नकस
D
ॐ ॐ
प्रकार का था? प्रभु ने उनके प्रनत प्रेम का प्रदर्शन कै से नकया? स्वयों
AP
ॐ ॐ
बहुओों को सास और ननद की याद आई। सभी रोनहणीजी के पास
पहुोंची। उनसे राधारानी-श्रीकृ ष्ण के प्रेम व भगवान की ब्रज की
ॐ लीलाएों सुनाने की प्राथशना की। ॐ
IN
ॐ
“राधाकृ ष्ण के प्रेम की अनूठी कथा” ॐ
F.
माता रोनहणी ने भगवान की र्ैर्व लीला का बखान र्ुरू नकया।
D
ॐ भगवान नवजात खर्र्ु के रूप में कै से लगते थे। नकस प्रकार से सोते ॐ
AP
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ
पटराननयाों तो डू बी ही थीों भगवान भी नवभोर होकर सुध-बुध खो बैठे।
ऐसे नवभोर हुए नक मूनतश के समान जड़ प्रतीत होने लगे। बड़े
ॐ ध्यानपूवशक देखने पर भी उनके हाथ-पैर नदखाई नहीों देते थे। सुदर्शन ॐ
ने भी द्रनवत होकर लों बा रूप धारण कर खलया।
ॐ ॐ
तभी अचानक देवनषश नारद का वहाों प्रवेर् हो गया। देवमुनन नारद भी
भगवान के इस रूप को दे खकर आश्चयशचनकत हो ननहारते रहे। कोई
ॐ सुध में ही न था। ॐ
IN
ॐ
कु छ समय बाद नारद की तों द्रा भों ग हुई। प्रणाम करके भगवान से ॐ
कहा- प्रभु! मेरी इच्छा है मैंने आज जो रूप देखा है, वह आपके
F.
भिजनोों को पृथ्वीलोक पर खचरकाल तक देखने को नमले। आप इस
D
ॐ रूप में पृथ्वी पर वास करें। ॐ
AP
ॐ
भगवान, नारदजी की बात से प्रसन्न हुए और उन्होोंने कहा- ॐ
ST
“तथास्तु”। कखलकाल में मैं इसी रूप में नीलाोंचल क्षेत्र में अपना
स्वरूप प्रकट करुोंगा। आपने खजस बालभाव वाले रूप में अोंगहीन मुझे
IN
ॐ देखा है, मेरा वही नवग्रह प्रकट होगा। आपको धैयशपूवशक उसकी ॐ
प्रतीक्षा करनी होगी।
ॐ ॐ
भगवान ने मेरी प्राथशना स्वीकार कर ली यह बात सुनकर नारद गदगद
हो गए। उन्होोंने भगवान से पूछा- वह भाग्यर्ाली कौन होगा खजसे
ॐ यह सुवअसर नमलेगा। आपतो जानते ही हैं मेरी कमजोरी है मेरा ॐ
कौतूहल। इस बात को यनद न जान जाऊों तो मैं व्याकु ल रहोंगा। प्रभु
ॐ क्या मैं कखलकाल के आने तक व्याकु ल रहों? ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ
भगवान नारद की चतुराई पर होंस पड़े। भगवान बोले- आपको इस
दुलशभ स्वरूप के पुनः दर्शन के खलए प्रतीक्षा तो करनी ही पड़ेगी देवनषश।
ॐ
मालवराज इों द्रद्युुुम्न समुद्र के उत्तर नदर्ा और महानदी के दखक्षणनदर्ा ॐ
में श्रीक्षेत्र में भव्य मों नदर का ननमाशण कराएों गे। वहाों मेरी प्रनतमा धातु
या पाषाण की न होकर स्वयों कल्पवृक्ष से होगी। वहाों मेरा स्वरूप
ॐ ॐ
वही होगा जो आपने देखने की लालसा प्रकट की।
IN
क्षेत्र में इों द्रद्युम्न द्वारा भगवान जगन्नाथ मों नदर की स्थापना की कथा यहीों
ॐ ॐ
से आरभ होती है। भगवान नीलमाधव के इस पुरुषोत्तम क्षेत्र पर
F.
सुदरू मालव में राज करने वाले इों द्रद्युम्न कै से पहुोंचे। कै से हुई मों नदर की
D
ॐ स्थापना। क्योों कहा जाता है इसे पुरुषोत्तम क्षेत्र। ॐ
AP
बहुत सरस कथा आती है राजनषश राजा इों द्रद्युम्न की। नवभोर करने
ॐ ॐ
ST
वाली कथा स्कों दपुराण में भी आती है। कथा को आगे बढाने से पहले
मैं आपको श्रीक्षेत्र के बारे में बताउों गा। आखखर भगवान ने इसी क्षेत्र
IN
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ
खजस क्षेत्र में प्रवेर्मात्र से ही हृदय में नारायण का वास हो जाता है।
मेरी वहाों जाने की लालसा है। राजा के प्रश्न से उस सभा में र्ाोंनत छा
ॐ
गई। कोई एकस्थान के बारे में ऐसा ननणशय नहीों कर पाया। ॐ
IN
ॐ ॐ
”प्रेत योनन, भूल से भी न करें ये पाोंच पाप हो जाएों गे प्रेत”
F.
D
ॐ राजा और वहाों उपक्मस्थनत सभी नवद्वान यह सुनकर आश्चयश में थे। सों त ॐ
AP
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ
उस ऋनष ने श्रीक्षेत्र की मनहमा का इतना वणशन नकया नक राजा
व्याकु ल हो गया दर्शन को। उसके मन में बस भगवान नीलमाधव के
ॐ उस छनव के दर्शन की उत्कों ठा रहने लगी। राजा का नकसी काम में ॐ
मन न लगता। वह भगवान के मों नदर में पहुोंचा और उसके करूण
प्राथशना की।
ॐ ॐ
IN
व्यथश लगता है। यनद आप मुझे दर्शन न देंगे तो मैं प्राण त्याग दूोंगा।
ॐ ॐ
भगवान के सामने करूण प्राथशना करते, आों सू बहाते राजा इों द्रद्युम्न
F.
अचेत हो गए। वह गहरी ननद्रा में चले गए। राजा ने एक सपना
D
ॐ देखा। सपने में उन्हें एक देववाणी सुनाई पड़ी- तुम्हें नवर्ेष कायश के ॐ
AP
खलए चुना गया है। तुम ननरार्ा का भाव त्याग दो। भगवान
नीलमाधव के खजस नवग्रह दर्शन के खलए तुम इतने व्यग्र हो, उसकी ॐ
ॐ
ST
ॐ ॐ
तुम एक भव्य मों नदर का ननमाशण कराओ। उसके खलए उपयुि नवग्रह
ॐ
की प्रानप्त भी तुम्हें समय आने पर हो जाएगी। ॐ
यह स्वप्न सुनकर राजा अचानक हड़बड़ाकर उठ बैठा। वह भागकर
अपनी राजसभा में गया।
ॐ ॐ
राजा ने अपने मों नत्रयोों, पुरोनहतोों को सारा स्वप्न कह सुनाया।
ॐ
राजपुरोनहत के सुझाव पर र्ुभमुहतश में पूवी समुद्रतट पर एक नवर्ाल ॐ
मों नदर के ननमाशण का ननश्चय हुआ।
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ वैनदक-मों त्रोचार के साथ मों नदर ननमाशण का श्रीगणेर् हुआ। राजा ॐ
ॐ ॐ
सागरतट पर नवर्ाल मों नदर का ननमाशण तो हो गया परोंतु भगवान की
मूनतश की समस्या जस की तस थी। राजा निर से खचोंनतत होने लगे।
ॐ
एक नदन मों नदर के गभशगृह में बैठकर इसी खचोंतन में बैठे राजा की ॐ
आों खोों से आों सू ननकल आए।
IN
ॐ ॐ
”भगवान जगन्नाथ बीमार क्योों पड़े? जगन्नाथधाम के नवखचत्र पौराखणक
रहस्य” F.
D
ॐ ॐ
AP
राजा ने भगवान से नवनती की- प्रभु आपके नकस स्वरूप को इस मों नदर
में स्थानपत करूों इसकी खचोंता से व्यग्र हों। मागश नदखाइए। आपने
ॐ ॐ
ST
ॐ ॐ
राजा की आों खोों से आों सू झर रहे थे और वह प्रभु से प्राथशना करते जा
रहे थे- प्रभु आपके आर्ीवाशद से मेरा बड़ा सम्मान है। प्रजा समझेगी
ॐ ॐ
नक मैंने झूठ-मूठ में स्वप्न में आपके आदे र् की बात कहकर इतना बड़ा
श्रम कराया। हे प्रभु मागश नदखाइए।
ॐ ॐ
राजा दुखी मन से अपने महल में चले गए। उस रात को राजा ने
निर एक सपना देखा।
ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ सपने में उसे देववाणी सुनाई दी- राजन! यहाों ननकट में ही भगवान ॐ
श्रीकृ ष्ण का नवग्रहरूप है। उस नवग्रह के तुम्हारे द्वारा बनाए मों नदर में
ॐ
स्थापना ही नवखध का नवधान है। वह होकर रहेगा। उस नदव्य नवग्रह ॐ
को खोजने का प्रयास करो, तुम्हें दर्शन नमलेंगे।
ॐ ॐ
इों द्रदय़ुम्न ने स्वप्न की बात पुनः पुरोनहत और मों नत्रयोों को बताई। सभी
यह ननष्कषश पर पहुोंचे नक प्रभु की कृ पा सहज प्राप्त नहीों होगी। उसके
ॐ
खलए हमें ननमशल मन से पररश्रम आरोंभ करना होगा। ॐ
IN
भगवान का नवग्रह कहाों है, इसका पता लगाने की खजम्मेदारी इों द्रद्युमन
ॐ ॐ
ने चार नवद्वान पों नडतोों को सौोंप नदया। प्रभु इच्छा से प्रेररत चारोों
F.
नवद्वान चार नदर्ाओों में ननकले। उन चारोों में एक थे नवद्यापनत।
D
ॐ ॐ
AP
ॐ ॐ
नवद्यापनत श्रीकृ ष्ण के उपासक थे। उन्होोंने श्रीकृ ष्ण का स्मरण नकया
और राह नदखाने की प्राथशना की। भगवान श्रीकृ ष्ण की प्रेरणा से उन्हें
ॐ ॐ
राह नदखने लगी। प्रभु का नाम लेते वह वन में चले जा रहे थे।
जों गल के मध्य उन्हें एक पवशत नदखाई नदया। पवशत के वृक्षोों से सों गीत
ॐ की ध्वनन सा सुरम्य गीत सुनाई पड़ रहा था। ॐ
नवद्यापनत सों गीत के जानकार थे। उन्हें वहाों मृदोंग, बों सी और करताल
ॐ ॐ
की नमखश्रत ध्वनन सुनाई दे रही थी।
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ यह सों गीत उन्हें नदव्य लगा। यह सों गीत तो सामान्य मानवोों द्वारा हो ॐ
ही नहीों सकता। ये वाद्य या तो गों धवश बजा रहे हैं या स्वयों देवता।
ॐ
सों भवतः मैं सही जगह आ पहुोंचा हों। उस ऋनष ने बताया था नक ॐ
भगवान के नवग्रह की पूजा करने से पूवश देवता गीत-सों गीत से उन्हें
प्रसन्न करते हैं।
ॐ ॐ
IN
भील नृत्य कर रहे थे।
ॐ ॐ
F.
नवद्यापनत उस दृश्य को देखकर मों त्रमुग्ध थे। सिर के कारण थके थे
D
ॐ
पर सों गीत से थकान नमट गयी। उन्हें नीोंद आने लगी। तभी वहाों ॐ
AP
”भगत के वर् में हैं भगवान सदना जी की नवभोर करने वाली कथा”
IN
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ
युवती बाघ की पीठ को प्यार से थपथपाने लगी, बाघ स्नेह से लोटता
रहा। वह स्त्री वहाों मौजूद खस्त्रयोों में सवाशखधक सुों दर थी। वह भीलोों के
ॐ राजा नवश्वावसु की इकलौती पुत्री थी-लखलता। ॐ
IN
पास आई और पूछा- आप कौन हैं? भयानक जानवरोों से भरे इस वन
ॐ ॐ
में आप कै से पहुोंच?े आपके आने का प्रयोजन बताइए तानक मैं आपकी
सहायता कर सकूों । F.
D
ॐ ॐ
AP
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ
नवश्वावसु के अनुरोध पर नवद्यापनत कु छ नदन वहाों अनतखथ बनकर रूके ।
वह भीलोों को धमश और ज्ञान का उपदेर् देने लगे। उनके उपदेर्ोों को
ॐ नवश्वावसु तथा लखलता बड़ी रूखच के साथ सुनते थे। लखलता के मन ॐ
में नवद्यापनत के खलए अनुराग पैदा हो गया।
ॐ ॐ
नवद्यापनत ने भी भाोंप खलया नक लखलता को उनसे प्रेम हो गया है नकोंतु
नवद्यापनत एक बड़े कायश के खलए ननकले थे। वह खजस कायश के खलए
ॐ ननकले थे उसका बस एक सों के त नमला था- सों गीत के रूप में। परोंतु ॐ
उससे आगे अभी तक कु छ नहीों हुआ, वह प्रेम कर ही नहीों सकते।
IN
ॐ ॐ
ईश्वर को तो अपनी लीला पूरी करनी थी। अचानक एक नदन
F.
नवद्यापनत बीमार हो गए। बीमार क्या मरणासन्न। ऐसा लगा नक अब
D
ॐ गए नक तब गए। लखलता ने उनकी सेवा-सुश्रुषा की। उसका लाभ ॐ
AP
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ
इस बीच नवद्यापनत को एक नवर्ेष बात पता चली। नवश्वावसु एक
पहर रात बाकी रहती तभी उठकर कहीों चला जाता। सूयोदय के बाद
ॐ ही लौटता था। नकतनी भी नवकट क्मस्थनत आए उसका यह ननयम ॐ
कभी नहीों टू टता था। ऐसा वह न जाने कब से करता आया था।
ॐ ॐ
भीलराजा नवश्वावसु के इस व्रत पर नवद्यापनत को आश्चयश हुआ। उनके
मन में इस रहस्य को जानने की इच्छा हुई, आखखर नवश्वावसु जाता
ॐ कहाों है। कहीों इसका सों बों ध उस अखभयान से तो नहीों खजसके खलए मैं ॐ
यहाों आ पहुोंचा हों। कहीों ईश्वर मुझे सों के त तो नहीों दे रहे। यह
IN
सोचकर नवद्यापनत परेर्ान थे।
ॐ ॐ
F.
लखलता ने परेर्ान दे खा तो कारण पूछ खलया। नवद्यापनत ने लखलता से
D
ॐ पूछा- नवश्वावसु प्रनतनदन कहाों जाते हैं? नवकट से नवकट पररक्मस्थनत में ॐ
AP
भी उनका ननयम नहीों टू टता ऐसा क्योों? मुझे यह जानने की बड़ी तीव्र
इच्छा है। यही सोचकर मैं परेर्ान हों।
ॐ ॐ
ST
ॐ ॐ
लखलता के सामने धमशसोंकट आ गया। वह पनत की बात को ठु करा
नहीों सकती थी लेनकन पनत जो पूछ रहा था उसे बता नहीों सकती थी। ॐ
ॐ
यह उसके वों र् की गोपनीय परों परा से जुड़ी बात थी खजसे खोलना
सों भव नहीों था।
ॐ ॐ
लखलता ने कहा- स्वामी! यह हमारे कु ल का रहस्य है खजसे नकसी के
सामने खोला नहीों जा सकता। आप मेरे पनत हैं, मैं आपको कु ल का ॐ
ॐ
पुरुष मानते हुए खजतना सों भव है बताऊोंगी।
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ
यहाों से कु छ दूरी पर एक गुिा है खजसके अन्दर हमारे कु लदेवता हैं।
उनकी पूजा हमारे सभी पूवशज करते आए हैं। यह पूजा ननबाशध चलनी
ॐ चानहए। उसी पूजा के खलए नपताजी रोज सुबह ननयनमत रूप से जाते ॐ
हैं। नवद्यापनत ने लखलता से कहा- तुमने मुझे कु ल का पुरुष माना तो
क्या मैं कु लदेवता का दर्शन नहीों कर सकता? मेरी बड़ी इच्छा है दर्शन ॐ
ॐ
की। तुम इसे पूरी करो।
IN
नवद्यापनत ने कहा- देवता के दर्शन से नकसी को रोकना तो घोर पाप ॐ
ॐ
है। तुम्हारे नपता ऐसा पाप कै से करेंगे? मैं धमशननष्ठ व्यनि हों। धमश का
F.
पालन करता हों। इसखलए देवता के दर्शन का तो मेरा अखधकार है।
D
ॐ मुझे इस अखधकार से न वों खचत करो नप्रये। ॐ
AP
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ
लखलता ने हारकर कहा नक अपने नपताजी से नवनती करेगी नक वह
आपको दर्शन करा दें। लखलता ने नपता को सारी बात बताई तो वह
ॐ क्रोखधत हो गए। ॐ
लखलता ने नवश्वावसु से कहा- मैं आपकी अके ली सों तान हों। आपके ॐ
ॐ
बाद देवता के पूजा का दानयत्व मेरा होगा। इसखलए मेरे पनत का यह
अखधकार बनता है क्योोंनक आगे उसे ही पूजना होगा। आप पुत्र और
ॐ पुत्री में भेद नहीों कर सकते। जामाता को पुत्र समझें और उसे उसका ॐ
अखधकार दें। नवश्वावसु इस तकश के आगे झुक गए।
IN
ॐ ॐ
वह बोले- गुिा के दर्शन नकसी को तभी कराए जा सकते हैं जब वह
F.
भगवान की पूजा का दानयत्व अपने हाथ में ले ले। तुम भली-भाोंनत
D
ॐ जानती हो नक मैं नवद्यापनत को वहाों क्योों नहीों जाने देना चाहता। ॐ
AP
ॐ
नवद्यापनत छु पकर नपता-पुत्री के बीच की बात सुन रहे थे। देवता लुप्त ॐ
हो जाएों गे, यह सुनकर वह अपना कौतूहल रोक न सके । सामने आ
गए देवता के लुप्त होने का क्या रहस्य है यह पूछा। नवश्वावसु ने जब
ॐ जाना नक नवद्यापनत ने उसके देवता का रहस्य सुन खलया है तो उनका ॐ
हृदय धक कर गया।
ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ
“ऐसे उतारें नजर, नजर दोष से बचाते हैं ये सरल उपाय”
IN
ॐ ॐ
कोई नवघ्न न डाले इसके खलए वन में नहोंसक जों तु हैं। इसी कारण तुम्हें
F.
इस क्षेत्र में अनुपम सुगोंध, अनुपम िल-पुष्प प्राप्त होते हैं जो कहीों
D
ॐ और नहीों होते। यक्ष आनद देवता के खलए गीत गाते हैं। उनके पूजन ॐ
AP
ॐ सबके खलए उसे दे खना भी सों भव नहीों। जो देख ले वही उसे अपने ॐ
साथ खलए जाना चाहेगा।
ॐ ॐ
एक बार हमारे पूवशजोों को र्ों का हुई नक कहीों कोई हमारे देवता की
प्रनतमा लेकर तो नहीों चला जाएगा। उन न्होोंने यह र्ों का स्वगशलोक से
ॐ आने वाले देवताओों के सामने रखी। दे वताओों ने बताया नक ॐ
कखलकाल में एक राजा इसे यहाों से ले जाकर कहीों और प्रनतनष्ठत कर
ॐ
देगा। कहीों देवता के प्रस्थान के साथ ही हमारा दुभाशग्य न आ जाए ॐ
इसीखलए नकसी को भी दर्शन नहीों करने नदया जाता।
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ
तुम बाहर से आए हो। इसखलए तुम्हें दर्शन से रोक रहा था। पर
तुमने र्पथ ली है तो मुझे थोड़ा भरोसा हुआ है। मैं तुम्हें दर्शन को
ॐ लेकर तो जाउों गा पर अभी वह मागश नहीों बताउों गा। मेरे जीवनकाल ॐ
तक पूजा का दानयत्व मेरा है। मेरे उपराोंत तुम पूजन करोगे। पुत्री
की खजद के कारण मैं तुम्हें कल आँ खोों पर पट्टी बाोंधकर ले चलने को ॐ
ॐ
तैयार हों।
IN
नवद्यापनत के मन में अब कोई सों देह ही न रहा नक यह वही प्रनतमा है ॐ
ॐ
खजसे खोजने वह ननकले हैं। उनका लक्ष्य पूरा होने को था।
F.
नवद्यापनत के वल दर्शन करने तो आए नहीों थे। उन्हें मूनतश लेकर जानी
D
ॐ थी। इसखलए उन्होोंने एक चाल चली। ॐ
AP
नवश्वावसु उनका दायाों हाथ पकड़कर चले। नवद्यापनत ने बाईं मुट्ठी में
सरसोों रख खलया था। रास्ते में वह सरसोों छोड़ते हुए गए। कािी दे र
IN
ॐ
नवश्वावसु ने नवद्यापनत के आँ खोों की काली पट्टी खोल दी। वे एक ॐ
गुिा के सामने थे। उस गुिा में नीले रोंग का प्रकार् चमक उठा।
हाथोों में मुरली खलए भगवान श्रीकृ ष्ण का रूप नवद्यापनत को नदखाई
ॐ नदया। नवद्यापनत आनों दमग्न हो गए। उन्होोंने भगवान के दर्शन नकए, ॐ
स्तुनत की। दर्शन के बाद तो जैसे नवद्यापनत जाना ही नहीों चाहते थे।
ॐ
नवश्वावसु ने लौटने का आदेर् नदया तो नववर् होकर उठे । निर ॐ
उनकी आों खोों पर पट्टी बाोंधी और दोनोों लौट पड़े।
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ लौटने पर लखलता ने नवद्यापनत से पूछा- क्या आपके प्रदेर् में भी ॐ
हमारे कु लदेवता जैसी प्रनतमा है? क्या आपने ऐसा नवग्रह कहीों और
देखा है? आप उन्हें नकस नाम से जानते हैं, कै से पूजते हैंुों? ॐ
ॐ
लखलता ने प्रश्नोों की झड़ी लगा दी पर नवद्यापनत चुप रहे।
ॐ ॐ
”कुँ आरी क्योों हैं माता वैष्णो देवी?”
ॐ
गुिा में नदखे अलौनकक दृश्य के बारे में पत्नी को बताना उखचत नहीों ॐ
समझा। नवश्वावसु के कु लदेवता ही नीलमाधव भगवान हैं, अब यह
IN
पक्का हो चुका था। महाराज ने स्वप्न में खजस प्रभु नवग्रह के बारे में
ॐ ॐ
देववाणी सुनी थी, वह यही भगवान नीलमाधव हैं। नकसी तरह इसी
नवग्रह को लेकर राजधानी पहुोंचना होगा। F.
D
ॐ ॐ
AP
के बारे में सोचते रहे। निर नवचार आया, यनद नवश्वावसु ने सचमुच
नवश्वास नकया होता तो आों खोों पर पट्टी बाोंधकर गुिा तक नहीों ले
IN
ॐ
जाते। इसखलए उनके साथ नवश्वासघात का प्रश्न नहीों उठता। ॐ
नवद्यापनत ने गुिा से मूनतश चुराने का ननश्चय कर ही खलया।
ॐ ॐ
”करना है उद्धार तो मारो जूते चार”
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ
लखलता मान गई। नवश्वावसु ने उसके खलए घोड़े का प्रबों ध नकया।
अब तक सरसोों के दाने से पौधे ननकल आए थे। उनको देखता
ॐ नवद्यापनत गुिा तक पहुोंच गए। भगवान की स्तुनत की और क्षमा ॐ
प्राथशना के बाद मूनतश उठाकर झोले में रख ली।
ॐ ॐ
लों बे सिर के बाद वह राजधानी पहुोंच गए और सीधे राजा के पास
गए। नदव्य प्रनतमा राजा को सौोंप दी और पूरी कहानी सुनायी। राजा
ॐ ने बताया नक उसने कल एक सपना देखा नक सुबह सागर में एक ॐ
लकड़ी का कु न्दा बहकर आएगा।
IN
ॐ ॐ
उस कुों दे की नक्कार्ी करवाकर भगवान की मूनतश बनवा लेना खजसका
F.
अोंर् तुम्हें प्राप्त होने वाला है। वह भगवान श्रीनवष्णु का स्वरूप होगा।
D
ॐ तुम खजस मूनतश को लाए हो वह भी भगवान नवष्णु का अोंर् है। दोनोों ॐ
AP
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ
”इन सों के तोों से जानें आसपास भूत प्रेत आत्मा का वास तो नहीों”
IN
कुों दे को अपने स्थान से नहला तक न सके । सुबह से रात हो गई।
ॐ ॐ
अचानक राजा ने काम रोकने का आदेर् नदया। उसने नवद्यापनत को
F.
अके ले में ले जाकर कहा नक वह समस्या का कारण जान गया है।
D
ॐ राजा के चेहरे पर सों तोष के भाव थे। राजा ने नवद्यापनत को गोपनीय ॐ
AP
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ
राजा इों द्रद्युम्न और नवद्यापनत नवश्वावसु से नमलने पहुोंचे। राजा ने पवशत
की चोटी से जों गल को दे खा तो उसकी सुों दरता को दे खता ही रह
ॐ गया। दोनोों भीलोों की बस्ती की ओर चुपचाप चलते रहे। ॐ
IN
भरे घर के आों गन में पछाड़ खाकर नगर गए। लखलता अपने पनत द्वारा
ॐ ॐ
नकए नवश्वासघात से दुखी थी। स्वयों को इसका कारण मान रही थी।
F.
नपता-पुत्री नदनभर नवलाप करते रहे। दोनोों अनहोनी की आर्ों का से
D
ॐ खचोंनतत थे। अब भीलोों का अक्मस्तत्व समाप्त हो जाएगा। उनका कु ल, ॐ
AP
उनके लोग नष्ट हो जाएों गे। दोनोों यही कहते नवलाप कर रहे थे।
ॐ ॐ
ST
ॐ सारा नदन नवलाप करते ननकल गया। दोनोों नवलाप करते बेसुध हो ॐ
जाते। सुध आती तो निर रोने लगते और बेहोर् हो जाते। ऐसे ही
एक नदन बीत गया। ॐ
ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ
नवश्वावसु के पीछे लखलता और ररश्तेदार भी चले। नवश्वावसु गुिा के
भीतर पहुोंचे। जहाों भगवान की मूनतश होती थी उस चट्टान के पास
ॐ हाथ जोड़कर खडे रहे। निर उस ऊोंची चट्टान पर नगर गए और ॐ
नबलख–नबलखकर रोने लगे। उनके पीछे प्रजा भी रो रही थी।
ॐ ॐ
”जन्मनदन या वार से चुटनकयोों में जानें नकसी की जन्मकुों डली”
IN
सुनकर सब चौोंक उठे । नवश्वावसु राजा के स्वागत में गुिा से बाहर
ॐ ॐ
आए लेनकन उनकी आों खोों में आों सू थे। राजा इों द्रद्युमन नवश्वावसु के
F.
पास आए और उन्हें अपने हृदय से लगा खलया।
D
ॐ ॐ
AP
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ
”इस कथा को सुनने से नमलता है मोक्ष”
IN
तैरता हुआ नकनारे पर आ लगा। राजा के सेवकोों ने उस कुों दे को
ॐ ॐ
राजमहल में पहुोंचा नदया। अगले नदन मूनतशकारोों और खर्क्मल्पयोों को
F.
राजा ने बुलाकर मों त्रणा की नक आखखर इस कुों दे से कौन सी देवमूनतश
D
ॐ बनाना र्ुभदायक होगा। मूनतशकारोों ने कह नदया नक वे पत्थर की ॐ
AP
ॐ अगले नदन एक वृद्ध व्यनि राजसभा में आया और बोला- मैं जानता हों ॐ
नक कौन सी प्रनतमा स्थानपत की जानी चानहए। मैं वह प्रनतमा भी
बनाउों गा। आप भगवान श्रीकृ ष्ण को उनके भाई बलभद्र तथा बहन ॐ
ॐ
सुभद्रा के साथ यहाों नवराजमान करें। इस दैवयोग का यही सों के त है।
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ राजा को उस बूढे व्यनि की बात से साोंत्वना नमली। उसे भगवान का ॐ
स्वप्न याद आया। परखने के खलए राजा ने पूछा नक आखखर मूनतश
बनेगी कै से?
ॐ ॐ
IN
करुोंगा। कायश पूरा करने के बाद मैं स्वयों दरवाजा खोलकर बाहर
ॐ आऊोंगा। ॐ
F.
D
इस बीच कोई मुझे न बुलाए, न मेरे पास आए। यनद नकसी ने बीच
ॐ ॐ
AP
ॐ ॐ
राजा सहमत तो थे लेनकन उन्हें एक खचोंता हुई। राजा बोले- यनद कोई
आपके पास नहीों आएगा तो ऐसी हालत में आपके खाने पीने की
ॐ व्यवस्था कै से होगी? खर्ल्पी ने कहा- जब तक मेरा काम पूणश नहीों ॐ
आती थीों।
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ महारानी गुों डीचा देवी दरवाजे से कान लगाकर अक्सर छे नी-हथौड़े के ॐ
चलने की आवाजें सुना करती थीों। महारानी रोज की तरह कमरे के
दरवाजे से कान लगाए खड़ी थीों। ॐ
ॐ
पों द्रह नदन बाद उन्हें कमरे से आवाज सुनायी पड़नी बों द हो गई। जब
ॐ मूनतशकार के काम करने की कोई आवाज न नमली तो रानी खचोंनतत हो ॐ
गईं।
ॐ ॐ
उन्हें लगा नक वृद्ध आदमी है, खाता-पीता भी नहीों कहीों उसके साथ
IN
कु छ अननष्ट न हो गया हो। व्याकु ल होकर रानी ने दरवाजे को धक्का
ॐ देकर खोला और भीतर झाोंककर देखा। ॐ
F.
D
महारानी गुों डीचा देवी ने इस तरह मूनतशकार को नदया हुआ वचन भों ग ॐ
ॐ
AP
ॐ
राजा और रानी दोनोों नवलाप करने लगे। उन्होोंने अपना वचन भों ग कर ॐ
नदया था। ईश्वर ने उन्हें हृदय में प्रेरणा दी तुम व्यथश खचोंनतत हो रहे
हो। जो खर्ल्पी आए थे वे स्वयों भगवान नवश्वकमाश थे।
ॐ ॐ
खजन प्रनतमाओों को तुम अपूणश समझ रहे हो वास्तव में वैसी ही प्रनतमा
ॐ स्थानपत होनी थी। मैंने नारद को यह वरदान नदया था। नारद भी ॐ
इतने समय से तुम्हारे बीच ही गोपनीय रूप में उपक्मस्थत हैं। नारद
तुम्हें दर्शन देकर सारा रहस्य बताएों गे। अब तुम ध्यान से वह नवखध
ॐ ॐ
सुनो खजसे करके ही प्राण प्रनतष्ठा करना।
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ नीलाोंचल पर सौ कु एों बनवाओ। सौ यज्ञोों का आयोजन करो। कु ओों ॐ
के जल से मेरा अखभषेक होगा। उसके बाद इसकी स्थापना स्वयों
ब्रह्मदेव से करेंगे। वहाों तुम्हें लेकर नारद जाएों गे। ॐ
ॐ
IN
को लेकर ब्रह्मलोक की ओर चले।
ॐ ॐ
F.
राजा इों द्रद्युनमन समय की गनत से चलकर ब्रह्मलोक पहुोंचे। ब्रह्माजी की
D
स्तुनत के बाद उन्हें भगवान की कही बातें बताई। ब्रह्माजी यह ॐ
ॐ
AP
जानकर बड़े प्रसन्न हुए। सौभाग्य मानकर वह इसके खलए सहषश तैयार
हो गए।
ॐ ॐ
ST
ॐ
ध्यान रखना। जब तुम वापस जाओगे तब तक धरती पर बहुत कु छ ॐ
बदल चुका होगा। तुम्हारी कई पीनढयाों बीत गईं हैं। हजारोों वषश बीत
चुके होोंगे। अब तक 71 कल्प ननकल गए। मनु भी बदल चुके हैं।
ॐ ॐ
इसखलए नवस्मय में मत रहना।
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ
राजा गाला को लगा नक कोई उसके राज्य में अनतक्रमण करने आया
है। वह अपनी सेना लेकर चढ आया पर जब दृश्य दे खा तो नवनीत
ॐ हो गया। कु ओों से ननकालकर 108 कलर्ोों में जलभरकर भगवान के ॐ
खर्र्ुरूप का अखभषेक आरोंभ हुआ।
ॐ ॐ
भगवान ने नारदजी को वचन नदया था नक वह एक साधारण बालक
की तरह अपनी लीलाएों करके उन्हें आनों नदत करेंगे। इसखलए भगवान
ॐ ने लीला आरोंभ की। इतने स्नान से भगवान को सदी लग गई। ॐ
भगवान का पों द्रह नदनोों तक नवर्ेष उपचार नकया गया। तब वे जाकर
IN
बलरामजी और सुभद्रा के साथ स्वस्थ हुए।
ॐ ॐ
F.
भगवान श्रीकृ ष्ण, बलभद्र और सुभद्राजी की नबना-हाथ पाोंव वाली
D
ॐ मूनतशयाों इसी कारण ऐसी हैं। उन प्रनतमाओों को ही मों नदर में स्थानपत ॐ
AP
कराया गया। कहते हैं नवश्वावसु सों भवतः उस जरा बहेखलए का वों र्ज
था खजसने अोंजाने में भगवान कृ ष्ण की हत्या कर दी थी। नवश्वावसु
ॐ ॐ
ST
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ
राजा गाला को लगा नक कोई उसके राज्य में अनतक्रमण करने आया
है। वह अपनी सेना लेकर चढ आया पर जब दृश्य दे खा तो नवनीत
ॐ हो गया। कु ओों से ननकालकर 108 कलर्ोों में जलभरकर भगवान के ॐ
खर्र्ुरूप का अखभषेक आरोंभ हुआ।
ॐ ॐ
भगवान ने नारदजी को वचन नदया था नक वह एक साधारण बालक
की तरह अपनी लीलाएों करके उन्हें आनों नदत करेंगे। इसखलए भगवान
ॐ ने लीला आरोंभ की। इतने स्नान से भगवान को सदी लग गई। ॐ
भगवान का पों द्रह नदनोों तक नवर्ेष उपचार नकया गया। तब वे जाकर
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बलरामजी और सुभद्रा के साथ स्वस्थ हुए।
ॐ ॐ
F.
भगवान श्रीकृ ष्ण, बलभद्र और सुभद्राजी की नबना-हाथ पाोंव वाली
D
ॐ मूनतशयाों इसी कारण ऐसी हैं। उन प्रनतमाओों को ही मों नदर में स्थानपत ॐ
AP
कराया गया। कहते हैं नवश्वावसु सों भवतः उस जरा बहेखलए का वों र्ज
था खजसने अोंजाने में भगवान कृ ष्ण की हत्या कर दी थी। नवश्वावसु
ॐ ॐ
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ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ
ॐ ॐ
पनत पत्नी पीले वस्त्र धारण करके भगवान जगन्नाथ की पूजा करें।
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ॐ उनको चन्दन लगायें , नवखभन्न भोग प्रसाद और तुलसीदल अनपशत ॐ
करें।
F.
भगवान जगन्नाथ को मालपुए का भोग लगायें।
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ॐ ॐ
इसके बाद सों तान गोपाल मों त्र का जाप करें और सों तान प्रानप्त की
AP
प्राथशना करें।
ॐ इसके बाद गजेंद्र मोक्ष का पाठ करें , या गीता के ग्यारहवें अध्याय ॐ
ST
का पाठ करें।
एक ही मालपुए के दो नहिे करें , आधा आधा पनत पत्नी खाएों .
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ॐ ॐ
भगवान जगन्नाथ, सुभद्रा और बलभद्र के खचत्र या मूनतश की
स्थापना करें।
ॐ उनको िूलोों से सजाएँ और उनके समक्ष घी का दीपक जलाएों . ॐ
इसके बाद सभी लोग नमलकर "हरर बोल - हरर बोल" का कीतशन
करें।
ॐ ॐ
निर साथ में नमलकर प्रसाद ग्रहण करें।
ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ
ॐ ॐ
ॐ ॐ
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ॐ ॐ
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ॐ ॐ
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ॐ ॐ
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ॐ ॐ
ॐ ॐ
ॐ ॐ
ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ