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ॐ पूजन विधि ॐ
ॐ ॐ
श्री हनुमानजी की ननत्य पूजा में साधक शुद्ध वस्त्र (यथा सं भव लाल) पहनकर
पूवव अथवा उत्तर की ओर मुख करके बैठ साधना में सहायक श्री हनुमान जी की
ॐ मूनतव, चित्र अथवा तांबे या भोज पत्र पर अंनकत यं त्र सामने रखें। पूजन सामग्री ॐ
में लाल पुष्प, अक्षत्, चसन्दूर का प्रयोग होता है। प्रसाद में बून्दी, भुने िने व
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चिर ज ं ी दाना तथा नाररयल िढ़ता है। साधक हाथ में अक्षत् व पुष्प लेकर
ॐ ननम्नचलचखत मं त्र से श्री हनुमानजी का ध्यान करें। ॐ
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अतुचलतबलधामं हेमशैलाभदे हं, दनुजवनकृ शानुं ज्ञानननामग्रगण्यम्। सकलगुणननधानं
वानराणामधीशं , रघुपनत नप्रयभक्तंवातजातं नमामी।।मनोजवं मारुततुल्यवेगं चजतेचियं
बुनद्धमतां वररष्ठम् । वातात्मजं वानरयूथमुख्यं श्रीरामदूतं शरणं प्रपद्ये।।
ॐ ॐ
इसके उपरान्त पुष्प, अक्षत् आनद अनपवत कर िालीसा का पाठ करें। पाठ
ॐ समाप्तकर ॐ हनु हनु हनु हनुमते नमः मं त्र का िन्दन आनद की माला से १०८ ॐ
बार जाप नवशेष फलदायी है।
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ
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हनुमान चालीसा पाठ ॐ
ॐ || दोहा || ॐ
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बल बुनद्ध नबद्या दे हु मोनहं, हरहु कलेस नबकार।।
ॐ ॐ
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|| चौपाई ||
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ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ
लाय सजीवन लखन चजयाये। श्रीरघुबीर हरनष उर लाये।।
रघुपनत कीन्ही बहुत बड़ाई। तुम मम नप्रय भरतनह सम भाई।।
ॐ ॐ
सहस बदन तुम्हरो जस गावैं। अस कनह श्रीपनत कं ठ लगावैं।।
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ॐ जुग सहस्र जोजन पर भानू। लील्यो तानह मधुर फल जानू।। ॐ
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प्रभु मुनद्रका मेचल मुख माहीं। जलचध लांनघ गये अिरज नाहीं।।
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ॐ दुगवम काज जगत के जेते। सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते।। ॐ
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भूत नपसाि ननकट ननहं आवै। महाबीर जब नाम सुनावै।।
नासै रोग हरै सब पीरा। जपत ननरं तर हनुमत बीरा।।
ॐ ॐ
सं कट तें हनुमान छु ड़ावै। मन क्रम बिन ध्यान जो लावै।।
सब पर राम तपस्वी राजा। नतन के काज सकल तुम साजा।
ॐ ॐ
और मनोरथ जो कोई लावै। सोइ अनमत जीवन फल पावै।।
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िारों जुग परताप तुम्हारा। है परचसद्ध जगत उचजयारा।। ॐ
साधु-सं त के तुम रखवारे। असुर ननकं दन राम दुलारे।।
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ
अष्ट चसनद्ध न ननचध के दाता। अस बर दीन जानकी माता।।
राम रसायन तुम्हरे पासा। सदा रहो रघुपनत के दासा।।
ॐ ॐ
तुम्हरे भजन राम को पावै। जनम-जनम के दुख नबसरावै।।
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ॐ जो सत बार पाठ कर कोई। छू टनह बं नद महा सुख होई।। ॐ
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जो यह पढ़ै हनुमान िालीसा। होय चसनद्ध साखी ग रीसा।।
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ॐ तुलसीदास सदा हरर िेरा। कीजै नाथ हृदय मं ह डेरा।। ॐ
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|| दोहा ||
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पवन तनय सं कट हरन, मं गल मूरनत रूप।
राम लखन सीता सनहत, हृदय बसहु सुर भूप।।
ॐ ॐ
ॐ ॐ
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ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ
ॐ ॐ
|| दोहा ||
ॐ श्रीगुरु िरन सरोज रज, ननज मनु मुकुरु सुधारर। ॐ
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बरनऊं रघुबर नबमल जसु, जो दायकु फल िारर।।
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अथव: श्री गुरूजी महाराज के िरण कमलों की धूचल से अपने मना रूपी ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
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|| दोहा ||
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बुनद्धहीन तनु जाननके , सुनमर ं पवन-कु मार।
ॐ बल बुनद्ध नबद्या देहु मोनह,ं हरहु कलेस नबकार।। ॐ
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अथव: हे पवनकु मार! मैं आपका स्मरण करता हूूँ। आप तो जानते हैं नक
मेरा शरीर और बुनद्ध ननबवल है। मुझे शारीररक बल, सद्बनु द्ध एवं ज्ञान
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दीचजए और मेरे दुः खों व दोषों का नाश कर दीचजए।
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ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
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|| चौपाई ||
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जय हनुमान ज्ञान गुन सागर।
ॐ जय कपीस नतहुं लोक उजागर।। ॐ
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अथव: श्री हनुमानजी! आपकी जय हो। आपका ज्ञान और गुण अथाह
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
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रामदूत अतुचलत बल धामा। ॐ
अंजनन-पुत्र पवनसुत नामा।।
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अथव: हे पवनसुत अंजनीनन्दन! श्रीरामदूत! आपके समान, दूसरा कोई
ॐ बलवान नहीं है। ॐ
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ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
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महाबीर नबक्रम बजरंगी। ॐ
कु मनत ननवार सुमनत के सं गी।।
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ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
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कं िन बरन नबराज सुबेसा। ॐ
कानन कुं डल कुं चित के सा।।
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अथव: आप सुनहले रंग, सुन्दर वस्त्रों, कानों में कु ण्डल और घुं घराले
ॐ बालों में सुशोचभत हैं। ॐ
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ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
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हाथ बज्र औ ध्वजा नबराजै। ॐ
कांधे मूं ज जनेऊ साजै।
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अथव: आपके हाथ में वज्र और ध्वजा है तथा कन्धे पैर मूूँ ज का जनेउ
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शोभायमान है।
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ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
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सं कर सुवन के सरीनं दन। ॐ
तेज प्रताप महा जग बन्दन।।
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ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
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नवद्यावान गुनी अनत िातुर। ॐ
राम काज कररबे को आतुर।।
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ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
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प्रभु िररत्र सुननबे को रचसया। ॐ
राम लखन सीता मन बचसया।।
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अथव: आप श्रीराम के िररत्र सुनने में आनन्द - रस लेते हैं। श्री राम,
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सीता और लक्ष्मण आपके हृदय में बसते हैं।
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ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
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सूक्ष्म रूप धरर चसयनहं नदखावा। ॐ
नबकट रूप धरर लं क जरावा।।
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अथव: आपने अपना बहुत छोटा रूप धारण करके सीता माूँ को नदखाया
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तथा भयं कर रूप धारण करके लं का को जलाया।
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ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
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भीम रूप धरर असुर सं हारे। ॐ
रामिं द्र के काज सं वारे।।
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ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
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लाय सजीवन लखन चजयाये। ॐ
श्रीरघुबीर हरनष उर लाये।।
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ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
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रघुपनत कीन्ही बहुत बड़ाई। ॐ
तुम मम नप्रय भरतनह सम भाई।।
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ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
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सहस बदन तुम्हरो जस गावैं। ॐ
अस कनह श्रीपनत कं ठ लगावैं।।
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ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
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सनकानदक ब्रह्मानद मुनीसा। ॐ
नारद सारद सनहत अहीसा।।
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अथव: श्री सनक, श्रीसनातन, श्रीसनत्कु मार आनद मुनन, ब्रह्मा आनद
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देवता, नारदजी, सरस्वतीजी, शेषनागजी।
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ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
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जम कु बेर नदगपाल जहां ते। ॐ
कनब कोनबद कनह सके कहां ते।।
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ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
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तुम उपकार सुग्रीवनहं कीन्हा। ॐ
राम नमलाय राज पद दीन्हा।।
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ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
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तुम्हरो मं त्र नबभीषन माना। ॐ
लं के स्वर भए सब जग जाना।।
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ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
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जुग सहस्र जोजन पर भानू। ॐ
लील्यो तानह मधुर फल जानू।।
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ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
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प्रभु मुनद्रका मेचल मुख माहीं। ॐ
जलचध लांनघ गये अिरज नाहीं।।
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दुगवम काज जगत के जेते। ॐ
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते।।
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ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
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राम दुआरे तुम रखवारे। ॐ
होत न आज्ञा नबनु पैसारे।।
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ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
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सब सुख लहै तुम्हारी सरना। ॐ
तुम रक्षक काहू को डर ना।।
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अथव: जो भी आपकी शरण में आते हैं उन सभी को आनन्द एवं सुख
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प्राप्त होता है और जब आप रक्षक हैं, तो नफर नकसी का डर नहीं
ॐ रहता। ॐ
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ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
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आपन तेज सम्हारो आपै। ॐ
तीनों लोक हांक तें कांपै।।
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अथव: आपके चसवाय आपके वेग को कोई नहीं रोक सकता। आपकी
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गजवना से तीनों लोक कांप जाते हैं।
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ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
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भूत नपसाि ननकट ननहं आवै। ॐ
महाबीर जब नाम सुनावै।।
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ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
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नासै रोग हरै सब पीरा। ॐ
जपत ननरंतर हनुमत बीरा।।
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नासै रोग हरै सब पीरा। ॐ
जपत ननरंतर हनुमत बीरा।।
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सं कट तें हनुमान छु ड़ावै। ॐ
मन क्रम बिन ध्यान जो लावै।।
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अथव: हे हनुमानजी! नविार करने में, कमव करने में और बोलने में
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चजनका ध्यान आप में लगा रहता है, उनको सब दुः खों से आप दूर कर
ॐ देते हैं। ॐ
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ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
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सब पर राम तपस्वी राजा। ॐ
नतन के काज सकल तुम साजा।
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और मनोरथ जो कोई लावै। ॐ
सोइ अनमत जीवन फल पावै।।
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अथव: चजस पर आपकी कृ पा हो, ऐसी जीवन में कोई भी अचभलाषा करे
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तो उसे तुरन्त फल नमल जाता है, जीव चजस फल के नवषय में सोि भी
ॐ नहीं सकता वह नमल जाता है अथावत् सारी कामनायें पूरी हो जाती है। ॐ
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िारों जुग परताप तुम्हारा। ॐ
है परचसद्ध जगत उचजयारा।।
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अथव: आपका यश िारों युगों (सतयुग, त्रेता, द्वापर तथा कचलयुग) में
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फैला हुआ है, सम्पूणव सं सार में आपकी कीनतव सववत्र प्रकाशमान है।
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साधु-सं त के तुम रखवारे। ॐ
असुर ननकं दन राम दुलारे।।
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अष्ट चसनद्ध न ननचध के दाता। ॐ
अस बर दीन जानकी माता।।
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अथव: हे हनुमंत लालजी आपको माता श्री जानकी से ऐसा वरदान नमला
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हुआ है, चजससे आप नकसी को भी 'आठों चसनद्धयाूँ ' और 'न ननचधयाूँ '
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ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
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राम रसायन तुम्हरे पासा। ॐ
सदा रहो रघुपनत के दासा।।
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अथव: आप ननरन्तर श्री रघुनाथ जी की शरण में रहते हैं, चजससे आपके
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पास वृद्धावस्था और असाध्य रोगों के नाश के चलए 'राम-नाम' रूपी
ॐ औषधी हैं। ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
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राम रसायन तुम्हरे पासा। ॐ
सदा रहो रघुपनत के दासा।।
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अथव: आप ननरन्तर श्री रघुनाथ जी की शरण में रहते हैं, चजससे आपके
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पास वृद्धावस्था और असाध्य रोगों के नाश के चलए 'राम-नाम' रूपी
ॐ औषधी हैं। ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
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तुम्हरे भजन राम को पावै। ॐ
जनम-जनम के दुख नबसरावै।।
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अन्तकाल रघुबर पुर जाई। ॐ
जहां जन्म हरर-भक्त कहाई।।
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अथव: अन्त समय श्री रघुनाथजी के धाम को जाते हैं और यनद नफर भी
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मृत्युलोक में जन्म लेंगे तो भनक्त करेंगे और श्री राम भक्त कहलायेंगे।
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और देवता चित्त न धरई। ॐ
हनुमत सेइ सबव सुख करई।।
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सं कट कटै नमटै सब पीरा। ॐ
जो सुनमरै हनुमत बलबीरा।।
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जै जै जै हनुमान गोसाईं। ॐ
कृ पा करहु गुरुदेव की नाईं।।
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जो सत बार पाठ कर कोई। ॐ
छू टनह बं नद महा सुख होई।।
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जो यह पढ़ै हनुमान िालीसा। ॐ
होय चसनद्ध साखी ग रीसा।।
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तुलसीदास सदा हरर िेरा। ॐ
कीजै नाथ हृदय मं ह डेरा।।
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|| दोहा ||
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पवनतनय सं कट हरन, मं गल मूनतव रूप | राम
ॐ लखन सीता सनहत, हृदय बसहु सुर भूप || ॐ
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अथव: हे सं कटमोिन पवनकु मार! आप आनं द मं गलों के स्वरूप हैं, हे
ॐ देवराज! आप श्रीराम, सीताजी और लक्ष्मण सनहत मेरे हृदय में ननवास ॐ
कीचजए।
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ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
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बाल समय रनब भचक्ष चलयो तब, तीनहुं लोक भयो अंचधयारो ।
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तानह सों त्रास भयो जग को, यह सं कट काहु सों जात न टारो ॥
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दे वन आन करर नबनती तब, छांनड़ नदयो रनब कष्ट ननवारो । ॐ
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को ननहं जानत है जग में कनप, सं कटमोिन नाम नतहारो ॥ 1 ॥
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ॐ बाचल की त्रास कपीस बसै नगरर,जात महाप्रभु पं थ ननहारो । ॐ
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हेरर थके तट चसंधु सबै तब,लाय चसया-सुचध प्राण उबारो । ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
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रावन त्रास दई चसय को सब,राक्षचस सों कनह शोक ननवारो ।
तानह समय हनुमान महाप्रभु,जाय महा रजनीिर मारो ॥ ॐ
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िाहत सीय अशोक सों आनग सु,दै प्रभु मुनद्रका शोक ननवारो ।
ॐ ॐ
को ननहं जानत है जग में कनप,सं कटमोिन नाम नतहारो ॥4॥
बाण लग्यो उर लचछमन के तब,प्राण तजे सुत रावण मारो ।
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लै गृह बैद्य सुषेन समेत,तबै नगरर द्रोण सु बीर उपारो ॥
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ॐ आनन सजीवन हाथ दई तब,लचछमन के तुम प्राण उबारो । ॐ
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को ननहं जानत है जग में कनप,सं कटमोिन नाम नतहारो ॥5॥
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को ननहं जानत है जग में कनप,सं कटमोिन नाम नतहारो ॥6॥
बं धु समेत जबै अनहरावन,लै रघुनाथ पाताल चसधारो । ॐ
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दे नबनहं पूचज भली नबचध सों बचल,दे उ सबै नमनत मं त्र नबिारो ॥
ॐ जाय सहाय भयो तब ही,अनहरावण सैन्य समेत सूँ हारो । ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
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काज नकये बड़ दे वन के तुम,वीर महाप्रभु दे चख नबिारो ।
क न सो सं कट मोर गरीब को,जो तुमसों ननहं जात है टारो ॥
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बेनग हरो हनुमान महाप्रभु,जो कछु सं कट होय हमारो ।
ॐ को ननहं जानत है जग में कनप,सं कटमोिन नाम नतहारो ॥8॥॥ ॐ
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|| दोहा ||
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॥लाल दे ह लाली लसे,अरू धरर लाल लं गूर ।
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बज्र दे ह दानव दलन,जय जय जय कनप सूर ॥
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|| दोहा ||
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ननश्चय प्रेम प्रतीनत ते, नबनय करैं सनमान।
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तेनह के कारज सकल शुभ, चसद्ध करैं हनुमान॥
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|| चौपाई || F.
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आगे जाय लं नकनी रोका। मारे हु लात गई सुरलोका॥
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ॐ भूत, प्रेत, नपसाि ननसािर। अनगन बेताल काल मारी मर॥ ॐ
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इन्हें मारु, तोनह सपथ राम की। राखु नाथ मरजाद नाम की॥
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सत्य होहु हरर सपथ पाइ कै । राम दूत धरु मारु धाइ कै ॥
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बन उपबन मग नगरर गृह माहीं। तुम्हरे बल ह ं डरपत नाहीं॥
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जनकसुता हरर दास कहाव । ताकी सपथ नबलं ब न लाव ॥ ॐ
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|| दोहा ||
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ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
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भये प्रगट कृ पाला, दीनदयाला क सल्या नहतकारी
हरनषत महतारी, मुनन मनहारी अद्भुत रूप नबिारी
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लोिन अचभरामा, तनु घनस्यामा, ननज आयुध भुज िारी
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भूषन वनमाला, नयन नबसाला, सोभाचसंधु खरारी
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कह दुइ कर जोरी, अस्तुनत तोरी, के नहत नबचध करूं अनं ता
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माया गुन ग्यानातीत अमाना, वेद पुरान भनं ता
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ॐ कनह कथा सुहाई, मातु बुझाई, जेनह प्रकार सुत प्रेम लहे ॐ
माता पुनन बोली, सो मनत डोली, तजहु तात यह रूपा
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कीजे चससुलीला, अनत नप्रयसीला, यह सुख पराम अनूपा ॐ
सुन बिन सुजाना, रोदन ठाना, होई बालक सुरभूपा
ॐ यह िररत जे गावनह, हररपद पावनह, तेनह न परनहं भवकू पा।। ॐ
॥इनत श्रीरामावतार स्तोत्र सं पूणम
व ॥
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ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
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श्री राम-स्तुवत ॐ
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भजु दीनबं धु नदनेश दानव - दै त्यवं श - ननकं दनं ।
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रघुनंद आनं दकं द क शलिं द्र दशरथ - नन्दनम् ।।
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चसर मुकुट कुं डल नतलक िारु उदारु अंग नवभूषणं ।
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ॐ आजानुभुज शर - िाप - धर , सं ग्राम - चजत - खरदुषणं ॥ ॐ
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छंद्:
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मनु जानहं रािेउ नमलनहं सो बरु सहज सुं दर साूँ वरो ॥
करुणा ननधान सुजान सीलु सनेह जानत रावरो ॥
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एनह भाूँ नत ग रर असीस सुनन चसय सनहत नहय हरषीं अली ।
तुलसी भवानननह पूचज पुनन पुनन मुनदत मन मं नदर िली ॥
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।।सोरठा।।
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आरती कीजै हनुमान लला की। दुष्ट दलन रघुनाथ कला की।।
जाके बल से नगररवर कांपे। रोग दोष जाके ननकट न झांके।।
ॐ अंजनन पुत्र महाबलदायी। सं तान के प्रभु सदा सहाई। ॐ
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लं का सो कोट समुद्र सी खाई। जात पवनसुत बार न लाई।
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ॐ लं का जारी असुर सं हारे। चसयारामजी के काज सं वारे। ॐ
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बाएं भुजा असुर दल मारे। दानहने भुजा सं तजन तारे।
सुर-नर-मुनन जन आरती उतारे। जै जै जै हनुमान उिारे।
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कं िन थार कपूर ल छाई। आरती करत अंजना माई।
लं कनवध्वं स कीन्ह रघुराई। तुलसीदास प्रभु कीरनत गाई।
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ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
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