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ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ

पूर्णमासीव्रत
जगन्नाथ व्रत कथा
थाा
ॐ ॐ

ॐ ॐ

पूजा विधि और सामग्री सहित



और पूजा विधि ॐ

ॐ ॐ

ॐ ॐ

ॐ ॐ

ॐ ॐ

ॐ ॐ

ॐ ॐ

ॐ ॐ

ॐ ॐ

ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ

ॐ पूर्णमासी पूजा विधि ॐ

ॐ ॐ
पूजन करने वाला व्यक्ति प्रातः काल स्नान आक्ति से क्तनवृत्त होकर क्तकसी पक्तवत्र स्थान पर
आटे से चैक पूर कर के ले का मण्डप बनाकर शिव-पाववती की प्रक्ततमा बनाकर स्थाक्तपत
ॐ करे। तत्पश्चात् नवीन वस्त्र धारण कर आसन पर पूवावशिमुख बैठकर िे िकालाक्ति के ॐ
उच्चारण के साथ हाथ में जल लेकर सं कल्प करें। उसके बाि गणेि जी का आवाहन

IN
व पूजन करें। अनन्तर वरुणाक्ति िेवों का आवाहन करके कलि पूजन करें, चन्दन आक्ति
ॐ समक्तपवत करें, कलि मुद्रा क्तिखाएं , घण्टा बजायें। गन्ध अक्षताक्ति द्वारा घण्टा एवं िीपक ॐ

F.
को नमस्कार करें। इसके बाि ‘ओम अपक्तवत्रः पक्तवत्रो वा सवाववस्थां गतोअक्तप वा। यः
स्मरेत पुण्डरीकाक्षं स वाह्याभ्यन्तरः िुशचः ’ इस मन्त्र द्वारा पूजन सामग्री एवं अपने ऊपर
D
ॐ जल शिड़कें । इन्द्र आक्ति अष्टलोकपालों का आवाहन एवं पूजन करें। क्तनम्नशलशखत मन्त्र ॐ
AP

से शिव जी को स्नान करायें -

ॐ मन्दार मालाकु शलजालकायै, कपालमालाक्तकंतिेखराय। क्तिव्याम्बरायै च सरस्वती ॐ


ST

रेवापयोश्णीनमविाजलैः । स्नाक्तपताशस मया िेक्तव तेन िान्तन्त पुरुष्व मे।


IN

ॐ क्तनम्नशलशखत मन्त्र से पाववती जी को स्नान करायें - नमो िेव्यै महािेव्यै सततम नमः । ॐ
नमः प्रकृ त्यै िद्रायै क्तनयताः प्रणता स्मताम्। इसके बाि पं चोपचार पूजन करें। चन्दन,
अक्षत, पुष्प, धूप, िीप क्तिखाएं । क्तिर नैवेद्य चढाकर आचमन करायें। अनन्तर हाथों के
ॐ शलए उबटन समपवण करें। क्तिर सुपारी अपवण करें, िशक्षणा िेंट करें और नमस्कार करें। ॐ
इसके बाि उत्तर की ओर क्तनमावल्य का क्तवसजवन करके महा अशिषेक करें। अनन्तर
सुन्दर वस्त्र समपवण करें, यज्ञोपवीत धारण करायें। चन्दन, अक्षत और सप्तधान्य
ॐ समक्तपवत करें। क्तिर हल्दी, कुं कु म, मांगशलक शसंिरू आक्ति अपवण करें। ताड़पत्र ॐ
(िोजपत्र), कण्ठ की माला आक्ति समपवण करें। सुगन्तन्धत पुष्प चढायें तथा धूप िें।
िीप क्तिखाकर नैवेद्य समक्तपवत करें। क्तिर हाथ मुख धुलाने के शलए जल िोड़ें। चन्दन
ॐ अक्तपवत करें। नाररयल तथा ऋतुिल चढायें। ताम्बूल सुपारी और िशक्षणा द्रव्य चढायें। ॐ
कपूर की आरती करें और पुष्पांजशल िें। सब प्रकार से पूजन करके कथा श्रवण करें।

ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ

ॐ पूर्णमासी व्रत कथा ॐ

ॐ ॐ

द्वापर युग में एक समय की बात है क्तक यिोिा जी ने कृ ष्ण से कहा - हे कृ ष्ण!
ॐ तुम सारे सं सार के उत्पन्नकताव, पोषक तथा उसके सं हारकताव हो, आज कोई ऐसा ॐ
व्रत मुझसे कहो, शजसके करने से मृत्युलोक में शस्त्रयों को क्तवधवा होने का िय न

IN
रहे तथा यह व्रत सिी मनुष्ों की मनोकामनाएं पूणव करने वाला हो। श्रीकृ ष्ण
ॐ कहने लगे - हे माता! तुमने अक्तत सुन्दर प्रश्न क्तकया है। मैं तुमसे ऐसे ही व्रत को ॐ
F.
सक्तवस्तार कहता हूँ । सौिाग्य की प्राक्तप्त के शलए शस्त्रयों को बत्तीस पूणवमाशसयों
का व्रत करना चाक्तहए। इस व्रत के करने से शस्त्रयों को सौिाग्य सम्पक्तत्त क्तमलती
D
ॐ है। यह व्रत अचल सौिाग्य िेने वाला एवं िगवान् शिव के प्रक्तत मनुष्-मात्र की ॐ
AP

िक्ति को बढाने वाला है। यिोिा जी कहने लगीं - हे कृ ष्ण! सववप्रथम इस व्रत
को मृत्युलोक में क्तकसने क्तकया था, इसके क्तवषय में क्तवस्तारपूववक मुझसे कहो।
ॐ ॐ
ST

श्रीकृ ष्ण जी कहने लगे क्तक इस िूमण्डल पर एक अत्यन्त प्रशसद्ध राजा चन्द्रहास
IN

से पाशलत अनेक प्रकार के रत्ों से पररपूणव ‘काक्ततका’ नाम की एक नगरी थी।


ॐ ॐ
वहां पर धनेश्वर नाम का एक ब्राह्मण था और उसकी स्त्री अक्तत सुिीला रूपवती
थी। िोनों ही उस नगरी में बड़े प्रेम के साथ रहते थे। घर में धन-धान्य आक्ति
ॐ की कमी नहीं थी। उनको एक बड़ा िुख था क्तक उनके कोई सन्तान नहीं थी, ॐ
इस िुख से वह अत्यन्त िुखी रहते थे। एक समय एक बड़ा तपस्वी योगी उस
नगरी में आया। वह योगी उस ब्राह्मण के घर को िोड़कर अन्य सब घरों से
ॐ शिक्षा लाकर िोजन क्तकया करता था। रूपवती से वह शिक्षा नहीं शलया करता ॐ
था। उस योगी ने एक क्तिन रूपवती से शिक्षा न लेकर क्तकसी अन्य घर से शिक्षा
लेकर गं गा क्तकनारे जाकर, शिक्षान्न को प्रेमपूववक खा रहा था क्तक धनेश्वर ने योगी
ॐ का यह सब कायव क्तकसी प्रकार से िे ख शलया। ॐ

ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ
अपनी शिक्षा के अनािर से िुखी होकर धनेश्वर योगी से बोला - महात्मन् !
आप सब घरों से शिक्षा लेते हैं परन्तु मेरे घर की शिक्षा किी िी नहीं लेत,े
ॐ इसका कारण क्या है? योगी ने कहा क्तक क्तनः सन्तान के घर की िीख पक्तततों के ॐ
अन्न के तुल्य होती है और जो पक्तततों का अन्न खाता है वह िी पक्ततत हो जाता
है। चूं क्तक तुम क्तनः सन्तान हो, अतः पक्ततत हो जाने के िय से मैं तुम्हारे घर की
ॐ शिक्षा नहीं लेता हूँ । धनेश्वर यह बात सुनकर अपने मन में बहुत िुखी हुआ ॐ

और हाथ जोड़कर योगी के पैरों पर क्तगर पड़ा तथा आतविाव से कहने लगा -
हे महाराज! यक्ति ऐसा है तो आप मुझको पुत्र प्राक्तप्त का उपाय बताइये। आप
ॐ ॐ
सववज्ञ हैं, मुझ पर अवश्य ही यह कृ पा कीशजए। धन की मेरे घर में कोई कमी
नहीं, परन्तु मैं पुत्र न होने के कारण अत्यन्त िुखी हं। आप मेरे इस िुख का

IN
ॐ हरण करें , आप सामर्थ्ववान हैं। ॐ

F.
यह सुनकर योगी कहने लगे - हे ब्राह्मण! तुम चण्डी की आराधना करो। घर
D
ॐ आकर उसने अपने स्त्री से सब वृत्तान्त कहा और स्वयं तप के क्तनक्तमत्त वन में ॐ
AP

चला गया। वन में जाकर उसने चण्डी की उपासना की और उपवास क्तकया।


चण्डी ने सोलहवें क्तिन उसको स्वप्न में ििवन क्तिया और कहा - हे धनेश्वर! जा
ॐ तेरे पुत्र होगा, परन्तु वह सोलह वषव की आयु में ही मृत्यु को प्राप्त हो जाएगा। ॐ
ST

यक्ति तुम िोनों स्त्री-पुरुष बत्तीस पूणवमाशसयों का व्रत क्तवशधपूववक करोगे तो वह


IN

िीघावयु होगा। शजतनी तुम्हारी सामर्थ्व हो आटे के क्तिये बनाकर शिव जी का


ॐ ॐ
पूजन करना, परन्तु पूणवमासी को बत्तीस जो जाने चाक्तहए। प्रातः काल हाने पर
इस स्थान के समीप ही तुम्हें एक आम का वृक्ष क्तिखाई िे गा, उस पर तुम
ॐ चढकर एक िल तोड़कर िीघ्र अपने घर चले जाना, अपनी स्त्री से सब ॐ
वृत्तान्त कहना। ऋतु-स्नान के पश्चात वह स्वच्छ होकर, श्रीिं कर जी का ध्यान
करके उस िल को खा लेगी। तब िं कर िगवान् की कृ पा से उसको गिव हो
ॐ जायगा। जब वह ब्राह्मण प्रातः काल उठा तो उसने उस स्थान के पास ही एक ॐ
आम का वृक्ष िे खा शजस पर एक अत्यन्त सुन्दर आम का िल लगा हुआ था।
ॐ ॐ

ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ अपनी शिक्षा के अनािर से िुखी होकर धनेश्वर योगी से बोला - महात्मन् ! आप ॐ
सब घरों से शिक्षा लेते हैं परन्तु मेरे घर की शिक्षा किी िी नहीं लेते, इसका
कारण क्या है? योगी ने कहा क्तक क्तनः सन्तान के घर की िीख पक्तततों के अन्न के
ॐ तुल्य होती है और जो पक्तततों का अन्न खाता है वह िी पक्ततत हो जाता है। चूं क्तक ॐ
तुम क्तनः सन्तान हो, अतः पक्ततत हो जाने के िय से मैं तुम्हारे घर की शिक्षा नहीं
लेता हूँ । धनेश्वर यह बात सुनकर अपने मन में बहुत िुखी हुआ और हाथ
ॐ ॐ
जोड़कर योगी के पैरों पर क्तगर पड़ा तथा आतविाव से कहने लगा - हे महाराज!
यक्ति ऐसा है तो आप मुझको पुत्र प्राक्तप्त का उपाय बताइये। आप सववज्ञ हैं, मुझ
पर अवश्य ही यह कृ पा कीशजए। धन की मेरे घर में कोई कमी नहीं, परन्तु मैं
ॐ ॐ
पुत्र न होने के कारण अत्यन्त िुखी हं। आप मेरे इस िुख का हरण करें, आप
सामर्थ्ववान हैं। यह सुनकर योगी कहने लगे - हे ब्राह्मण! तुम चण्डी की

IN
ॐ आराधना करो। घर आकर उसने अपने स्त्री से सब वृत्तान्त कहा और स्वयं तप ॐ

F.
के क्तनक्तमत्त वन में चला गया। वन में जाकर उसने चण्डी की उपासना की और
उपवास क्तकया। चण्डी ने सोलहवें क्तिन उसको स्वप्न में ििवन क्तिया और कहा - हे
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ॐ धनेश्वर! जा तेरे पुत्र होगा, परन्तु वह सोलह वषव की आयु में ही मृत्यु को प्राप्त हो ॐ
AP

जाएगा। यक्ति तुम िोनों स्त्री-पुरुष बत्तीस पूणवमाशसयों का व्रत क्तवशधपूववक करोगे
तो वह िीघावयु होगा। शजतनी तुम्हारी सामर्थ्व हो आटे के क्तिये बनाकर शिव जी
ॐ ॐ
ST

का पूजन करना, परन्तु पूणवमासी को बत्तीस जो जाने चाक्तहए। प्रातः काल हाने
पर इस स्थान के समीप ही तुम्हें एक आम का वृक्ष क्तिखाई िेगा, उस पर तुम
IN

चढकर एक िल तोड़कर िीघ्र अपने घर चले जाना, अपनी स्त्री से सब वृत्तान्त


ॐ कहना। ऋतु-स्नान के पश्चात वह स्वच्छ होकर, श्रीिं कर जी का ध्यान करके उस ॐ
िल को खा लेगी। तब िं कर िगवान् की कृ पा से उसको गिव हो जायगा। जब
वह ब्राह्मण प्रातः काल उठा तो उसने उस स्थान के पास ही एक आम का वृक्ष ॐ

िे खा शजस पर एक अत्यन्त सुन्दर आम का िल लगा हुआ था। उस ब्राह्मण ने
उस आम के वृक्ष पर चढकर उस िल को तोड़ने का प्रयत् क्तकया, परन्तु वृक्ष पर
कई बार प्रयत् करने पर िी वह न चढ पाया। तब तो उस ब्राह्मण को बहुत ॐ

शचन्ता हुई और क्तवघ्न-क्तवनािक श्रीगणेि जी की वन्दना करने लगा - हे ियाक्तनधे!
अपने ििों के क्तवघ्नों का नाि करके उनके मं गल कायव को करने वाले, िुष्टों का
ॐ नाि करने वाले, ऋक्तद्ध-शसक्तद्ध के िे ने वाले, आप मुझ पर कृ पा करके इतना बल ॐ
िें क्तक मैं अपने मनोरथ को पूणव कर सकूं ।

ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ इस प्रकार गणेि जी की प्राथवना करने पर उनकी कृ पा से धनेश्वर वृक्ष पर चढ ॐ
गया और उसने एक अक्तत सुन्दर आम का िल िे खा। उसने क्तवचार क्तकया क्तक जो
वरिान से िल क्तमला था वह यह है, और कोई िल क्तिखाई नहीं िेता, उस
ॐ धनेश्वर ब्राह्मण ने जल्दी से उस िल को तोड़कर अपनी स्त्री को लाकर क्तिया और ॐ
उसकी स्त्री ने अपने पक्तत के कथनानुसार उस िल को खा शलया और वह
गिववती हो गई। िे वी जी की असीम कृ पा से उसे एक अत्यन्त सुन्दर पुत्र उत्पन्न
ॐ ॐ
हुआ, शजसका नाम उन्ोंने िे वीिास रखा। माता-क्तपता के हषव और िोक के साथ
वह बालक िुक्लपक्ष के चन्द्रमा की िांक्तत अपने क्तपता के घर में बढने लगा।
िवानी की कृ पा से वह बालक बहुत ही सुन्दर, सुिील और क्तवद्या पढने में बहुत
ॐ ॐ
ही क्तनपुण हो गया। िुगाव जी की आज्ञानुसार उसकी माता ने बत्तीस पूणवमासी का
व्रत रखना प्रारम्भ कर क्तिया था, शजससे उसका पुत्र बड़ी आयु वाला हो जाए।

IN
ॐ ॐ

F.
सोलहवां वषव लगते ही िे वीिास के माता-क्तपता को बड़ी शचन्ता हो गई क्तक कहीं
उनके पुत्र की इस वषव मृत्यु न हो जाए। इसशलए उन्ोंने अपने मन में क्तवचार
D
ॐ क्तकया क्तक यक्ति यह िुघवटना उनके सामने हो गई तो वे कै से सहन कर सकें गे? ॐ
AP

अस्तु उन्ोंने िे वीिास के मामा को बुलाया और कहा क्तक हमारी इच्छा है क्तक
िे वीिास एक वषव तक कािी में जाकर क्तवद्याध्ययन करे और उसको अके ला िी
ॐ ॐ
ST

नहीं िोड़ना चाक्तहए। इसशलए साथ में तुम चले जाओ और एक वषव के पष्चात्
इसको वापस लौटा लाना। सब प्रबन्ध करके उसके माता-क्तपता ने कािी जाने के
IN

शलए िे वीिास को एक घोड़े पर बैठाकर उसके मामा को उसके साथ कर क्तिया,


ॐ क्तकन्तु यह बात उसके मामा या क्तकसी और से नहीं कही। धनेश्वर ने सपत्ीक ॐ
अपने पुत्र की मं गलकामना तथा िीघावयु के शलए िगवती िुगाव की आराधना और
पूणवमाशसयों का व्रत करना आरम्भ कर क्तिया। इस प्रकार बराबर बत्तीस पूणवमासी ॐ

का व्रत पूरा क्तकया।

कु ि समय पश्चात् एक क्तिन वह िोनों - मामा और िान्जा मागव में राक्तत्र क्तबताने ॐ

के शलए क्तकसी ग्राम में ठहरे हुए थे, उस क्तिन उस गांव में एक ब्राह्मण की
अत्यन्त सुन्दरी, सुिीला, क्तविुषी और गुणवती कन्या का क्तववाह होने वाला था।
ॐ शजस धमविाला के अन्दर वर और उसकी बारात ठहरी हुई थी, उसी धमविाला में ॐ
िे वीिास और उसके मामा िी ठहरे हुए थे।

ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ
सं योगवि कन्या को तेल आक्ति चढाकर मण्डप आक्ति का कृ त्य क्तकया गया तो
लग्न के समय वर को धनुवावत हो गया। अस्तु, वर के क्तपता ने अपने कु टुन्तम्बयों से
परामषव करके क्तनश्चय क्तकया क्तक यह िे वीिास मेरे पुत्र जैसा ही सुन्दर है, मैं इसके
ॐ ॐ
साथ ही लग्न करा िूं और बाि में क्तववाह के अन्य कायव मेरे लड़के के साथ हो
जाएं गे। ऐसा सोचकर िे वीिास के मामा से जाकर बोला क्तक तुम थोड़ी िेर के
ॐ शलए अपने िान्जे को हमें िे िो, शजससे क्तववाह के लग्न का सब कृ त्य सुचारु रूप ॐ
से हो सके । तब उसका मामा कहने लगा क्तक जो कु ि िी मधुपकव आक्ति
कन्यािान के समय वर को क्तमले वह सब हमें िे क्तिया जाए, तो मेरा िान्जा इस
ॐ बारात का िूल्हा बन जाएगा। यह बात वर के क्तपता ने स्वीकार कर लने पर ॐ
उसने अपना िान्जा वर बनने को िेज क्तिया और उसके साथ सब क्तववाह कायव

IN
राक्तत्र में क्तवशधपूववक सम्पन्न हो गया। पत्ी के साथ वह िोजन न कर सका और
ॐ अपने मन में सोचने लगा क्तक न जाने यह क्तकसी स्त्री होगी। वह एकान्त में इसी ॐ

F.
सोच में गरम क्तनः श्वास िोड़ने लगा तथा उसकी आं खों में आं सू िी आ गए। तब
वधू ने पूिा क्तक क्या बात है? आप इतने उिासीन व िुखी क्यों हो रहे हैं? तब
D
ॐ उसने सब बातें जो वर के क्तपता व उसके मामा में हुई थीं उसको बतला िी। तब ॐ
AP

कन्या कहने लगी क्तक यह ब्रह्म क्तववाह के क्तवपरीत हो कै से सकता है। िे व,


ब्राह्मण और अक्तग्न के सामने मैंने आपको ही अपना पक्तत बनाया है इसशलए आप
ॐ ॐ
ST

ही मेरे पक्तत हैं। मैं आपकी ही पत्ी रहंगी, क्तकसी अन्य की किाक्तप नहीं। तब
िे वीिास ने कहा - ऐसा मत कररए क्योंक्तक मेरी आयु बहुत थोड़ी है, मेरे पश्चात्
IN

आपकी क्या गक्तत होगी इन बातों को अच्छी तरह क्तवचार लो। परन्तु वह दृढ
ॐ ॐ
क्तवचार वाली थी, बोली क्तक जो आपकी गक्तत होगी वही मेरी गक्तत होगी। हे
स्वामी! आप उक्तठये और िोजन कररए, आप क्तनश्चय ही िूखे होंग।े इसके बाि
ॐ िे वीिास और उसकी पत्ी िोनों ने िोजन क्तकया तथा िेष राक्तत्र वे सोते रहे। ॐ
प्रातः काल िे वीिास ने अपनी पत्ी को तीन नगों से जड़ी हुई एक अंगूठी िी, एक
रूमाल क्तिया और बोला - हे क्तप्रये! इसे लो और सं के त समझकर न्तस्थर शचत्त हो
ॐ जाओ। मेरा मरण और जीवन जानने के शलए एक पुष्पवाक्तटका बना लो। उसमें ॐ
सुगन्तन्ध वाली एक नव-मन्तिका लगा लो, उसको प्रक्ततक्तिन जल से सींचा करो
और आनन्द के साथ खेलो-कू िो तथा उत्सव मनाओ, शजस समय और शजस क्तिन
ॐ मेरा प्राणान्त होगा, ये िूल सूख जाएं गे और जब ये क्तिर हरे हो जाएं तो जान ॐ
लेना क्तक मैं जीक्तवत हूँ ।

ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ यह बात क्तनश्चय करके समझ लेना इसमें कोई सं िय नहीं है। यह समझा कर वह ॐ
चला गया। प्रातः काल होते ही वहां पर गाजे-बाजे बजने लगे और शजस समय
क्तववाह के कायव समाप्त करने के शलए वर तथा सब बाराती मण्डप में आए तो
ॐ कन्या ने वर को िली प्रकार से िे खकर अपने क्तपता से कहा क्तक यह मेरा पक्तत ॐ
नहीं है। मेरा पक्तत वही है, शजसके साथ राक्तत्र में मेरा पाशणग्रहण हुआ था। इसके
साथ मेरा क्तववाह नहीं हुआ है। यक्ति यह वही है तो बताए क्तक मैंने इसको क्या
ॐ क्तिया, मधुपकव और कन्यािान के समय जो मैंने िूषणाक्ति क्तिए थे उन्ें क्तिखाए ॐ
तथा रात में मैंने क्या गुप्त बातें कही थीं, वह सब सुनाए। क्तपता ने उसके
कथनानुसार वर को बुलवाया। कन्या की यह सब बातें सुनकर वह कहने लगा
ॐ क्तक मैं कु ि नहीं जानता। इसके पश्चात् लन्तित होकर वह अपना सा मुं ह लेकर ॐ
चला गया और सारी बारात िी अपमाक्तनत होकर वहां से लौट गई।

IN
ॐ ॐ
िगवान् श्रीकृ ष्ण बोले - हे माता! इस प्रकार िे वीिास कािी क्तवद्याध्ययन के शलए
F.
चला गया। जब कु ि समय बीत गया तो काल से प्रेररत होकर एक सपव राक्तत्र के
D
समय उसको डसने के शलए वहां पर आया। उस क्तवषधर के प्रिाव से उसके
ॐ ॐ
AP

ियन का स्थान चारो ओर से क्तवष की ज्वाला से क्तवषैला हो गया। परन्तु व्रत


राज के प्रिाव से उसको काटने न पाया क्योंक्तक पहले ही उसकी माता ने बत्तीस
ॐ पूशणवमा का व्रत कर रखा था। इसके बाि मध्याह्न के समय स्वयं काल वहां पर ॐ
ST

आया और उसके िरीर से उसके प्राणों को क्तनकालने का प्रयत् करने लगा


शजससे वह मूशिव त होकर पृथ्वी पर क्तगर पड़ा। िगवान् की कृ पा से उसी समय
IN

ॐ पाववती जी के साथ श्रीिं कर जी वहां पर आ गए। उसको मूशिव त ििा में िेखकर ॐ
पाववती जी ने िगवान् िं कर से प्राथवना की क्तक हे महाराज! इस बालक की माता
ने पहले बत्तीस पूशणवमा का व्रत क्तकया था, शजसके प्रिाव से हे िगवन् ! आप
ॐ इसको प्राण िान िें । िवानी के कहने पर िि-वत्सल िगवान् श्रीशिव जी ने ॐ
उसको प्राण िान िे क्तिया। इस व्रत के प्रिाव से काल को िी पीिे हटना पड़ा
और िे वीिास स्वस्थ होकर बैठ गया।
ॐ ॐ
उधर उसकी स्त्री उसके काल की प्रतीक्षा क्तकया करती थी, जब उसने िेखा क्तक
उस पुष्प वाक्तटका में पत्र-पुष्प कु ि िी नहीं रहे तो उसको अत्यन्त आश्चयव हुआ
ॐ ॐ
और जब वह वैसे ही हरी-िरी हो गई तो वह जान गई क्तक वह जीक्तवत हो गये
हैं।
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ
यह िेखकर वह बहुत प्रसन्न मन से अपने क्तपता के कहने लगी क्तक क्तपता जी! मेरे
पक्तत जीक्तवत हैं, आप उनको ढू क्तढये। जब सोलहवां वषव व्यतीत हो गया तो
िे वीिास िी अपने मामा के साथ कािी से चल क्तिया। इधर उसे श्वसुर उसको
ॐ ढू ढने के शलए अपने घर से जाने वाले ही थे क्तक वह िोनों मामा-िान्जा वहां पर ॐ
आ गये, उसको आया िेखकर उसका श्वसुर बड़ी प्रसन्नता के साथ अपने घर में
ॐ ले आया। उस समय नगर के क्तनवासी िी वहां इकट्ठे हो गए और सबने क्तनश्चय ॐ
क्तकया क्तक अवश्य ही इसी बालक के साथ इस कन्या का क्तववाह हुआ था। उस
बालक को जब कन्या ने िे खा तो पहचान शलया और कहा क्तक यह तो वही है,
ॐ जो सं के त करके गया था। तिुपरान्त सिी कहने लगे क्तक िला हुआ जो यह आ ॐ
गया और सब नगरवाशसयों ने आनन्द मनाया।

IN
ॐ कु ि क्तिन बाि िे वीिास अपनी पत्ी और मामा के साथ अपने श्वसुर के घर से ॐ
F.
बहुत सा उपहाराक्ति लेकर अपने घर के शलए प्रस्थान क्तकया। जब वह अपने गांव
के क्तनकट आ गया तो कई लोगों ने उसको िेखकर उसके माता-क्तपता को पहले
D
ॐ ही जाकर खबर िे िी क्तक तुम्हारा पुत्र िे वीिास अपनी पत्ी और मामा के सक्तहत ॐ
AP

आ रहा है। ऐसा समाचार सुनकर पहले तो उन्ें क्तवश्वास ही नहीं हुआ क्तकन्तु जब
और लोगों ने िी आकर उनकी बात का समथवन क्तकया तो उनको बड़ा आश्चयव
ॐ हुआ लेक्तकन थोड़ी िे र में िेवीिास ने आकर अपने माता-क्तपता के चरणों में अपना ॐ
ST

शसर रखकर प्रणाम क्तकया और उसकी पत्ी ने अपने सास-श्वसुर के चरणों को


IN

स्पिव क्तकया तो माता-क्तपता ने अपने पुत्र और पुत्रवधु को अपने हृिय से लगा


ॐ शलया और िोनों की आं खों में प्रेमाश्रु बह चले। अपने पुत्र और पुत्रवधु के आने ॐ
की खुिी में धनेश्वर ने बड़ा िारी उत्सव क्तकया और ब्राह्मणों को िी बहुत सी
ॐ िान-िशक्षणा िे कर प्रसन्न क्तकया। ॐ

श्रीकृ ष्ण जी कहने लगे क्तक इस प्रकार धनेश्वर बत्तीस पूशणवमाओं के व्रत के प्रिाव
ॐ से पुत्रवान हो गया। जो िी शस्त्रयां इस व्रत को करती हैं, वे जन्म-जन्मान्तर में ॐ
वैधव्य का िुख नहीं िोगतीं और सिै व सौिाग्यवती रहती हैं, यह मेरा वचन है,
इसमें कोई सन्दे ह नहीं मानना। यह व्रत पुत्र-पौत्रों को िेने वाला तथा सम्पूणव
ॐ मनोकामनाओं को पूणव करने वाला है। बत्तीस पूशणवमाओं के व्रत करने से व्रती ॐ
की सब इच्छाएं िगवान् शिव जी की कृ पा से पूणव हो जाती हैं।

ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ

ॐ ॐ

ॐ ॐ

ॐ ॐ

ॐ ॐ

IN
ॐ ॐ

F.
D
ॐ ॐ
AP

ॐ ॐ
ST
IN

ॐ ॐ

ॐ ॐ

ॐ ॐ

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