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16 सोमवार व्रत
ॐ ॐ
कथा
ॐ
ॐ ॐ
IN
ॐ
पूजा विधि और आरती सहित ॐ
F.
ॐ ॐ
D
ॐ ॐ
P
A
ॐ ॐ
ST
ॐ ॐ
IN
ॐ ॐ
ॐ ॐ
ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ
ॐ
पूजा ववधि ॐ
ॐ ॐ
IN
❖ सोमवार के ददन सबसे पहले सयोदय में स्नान करके व्रत का सां कल्प लेकर शिव
मां ददर में जाना चादहए। िुद्धाभ जल से शिवशलां ग का अशभषेक करते हुए मां त्र- ऊॅ ॐ
ॐ
F.
महाशिवाय सोमाय नम: का जाप करना चादहए।
ॐ
❖ दफर गाय के िुद्धाभ कच्चे दि को शिवशलां ग पर अदपवत करना चादहए। यह करने से ॐ
D
मनुष्य के तन-मन-िन से जुडी सारी परेिादनयाां खत्म हो जाती है।
❖ इसके बाद शिवशलां ग पर िहद या गन्ने का रस चढाए। दफर कपर, इत्र, पुष्प-ितरे
ॐ ॐ
P
और भस्म से शिवजी का अशभषेक कर शिव आरती करना करें। अपनी मनोकामना
A
पहनकर शिवशलां ग पर सफेद पुष्प चढाने से व्यदक्त की सभी मनोकामनाएां पणव होती
ॐ ॐ
है।
IN
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ
❖ शिवशलां ग पर जलाशभषेक के बाद गाय का दि अदपवत करें। इससे तन, मन और
िन सां बां िी हर समस्या दर होती है।
ॐ ॐ
❖ शिवशलां ग पर िहद की िारा अदपवत करें। इससे आजीदवका, नौकरी व व्यवसाय से
सां बां शित सभी परेिादनयोां से छु टकारा दमलता है।
ॐ ॐ
IN
❖ लाल चां दन लगाएां व श्रृांगार करें। माना जाता है दक शिवशलां ग पर चां दन लगाने से
जीवन में सुख-िाांदत आती है।
ॐ ॐ
❖ इन उपायोां के बाद यथािदक्त गां ि, अक्षत, फल, नैवेद्य अदपवत कर शिव आरती
F.
करें।
ॐ ॐ
❖ साथ ही शिव जी को अदपवत दकए गए दि, िहद को चरणामृत के रूप में ग्रहण
D
करें और चां दन लगाकर मनोकामना पदतव हेतु भोलेनाथ से प्राथवना करें।
ॐ ॐ
P
A
ॐ ॐ
ST
ॐ ॐ
IN
ॐ ॐ
ॐ ॐ
ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ
ॐ
16 सोमवार व्रत कथा ॐ
ॐ ॐ
IN
ॐ
पहली कथा ॐ
F.
एक समय श्री महादे व जी पाववती के साथ भ्रमण करते हुए मृत्युलोक
ॐ ॐ
में अमरावती नगरी में आए। वहाां के राजा ने शिव मां ददर बनवाया था,
D
जो दक अत्यां त भव्य एवां रमणीक तथा मन को िाांदत पहुांचाने वाला ॐ
ॐ
P
था। भ्रमण करते सम शिव-पाववती भी वहाां ठहर गए। पाववतीजी ने
A
प्रारां भ हुआ। शिवजी कहने लगे- मैं जीतां गा। इस प्रकार उनकी आपस
ॐ ॐ
में वातावलाप होने लगी। उस समय पुजारीजी पजा करने आए।
IN
बोला- इस खेल में महादे वजी के समान कोई दसरा पारां गत नहीां हो
ॐ सकता इसशलए महादे वजी ही यह बाजी जीतेंगे। परां तु हुआ उल्टा, ॐ
ॐ ॐ
कोढी हो गया। शिव-पाववतीजी दोनोां वापस चले गए। कु छ समय
पश्चात अप्सराएां पजा करने आईं। अप्सराओां ने पुजारी के उसके कोढी ॐ
ॐ
होने का कारण पछा। पुजारी ने सब बातें बता दीां। अप्सराएां कहने
ॐ ॐ
लगीां- पुजारीजी, आप 16 सोमवार का व्रत करें तो शिवजी प्रसन्न
IN
होकर आपका सां कट दर करेंगे। पुजारीजी ने अप्सराओां से व्रत की
ॐ ॐ
दवशि पछी। अप्सराओां ने व्रत करने और व्रत के उद्यापन करने की
F.
ॐ सां पणव दवशि बता दी। पुजारी ने दवशिपववक श्रद्धाभाभाव से ॐ
D
व्रत प्रारां भ दकया और अांत में व्रत का उद्यापन भी दकया। व्रत के
ॐ ॐ
P
प्रभाव से पुजारीजी रोगमुक्त हो गए।
A
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ
व्रत का माहात्म्य तथा दवशि बताई, तब कादतवकेयजी ने भी इस व्रत को
ॐ दकया तो उनका दबछडा हुआ दमत्र दमल गया। अब दमत्र ने भी इस ॐ
IN
गया। वहाां के राजा की कन्या का स्वयां वर था। राजा ने प्रण दकया था
दक हशथनी शजस व्यदक्त के गले में वरमाला डाल देगी, उसी के साथ ॐ
ॐ
F.
राजकु मारी का दववाह करूांगा। यह ब्राह्मण दमत्र भी स्वयां वर दे खने की
ॐ इच्छा से वहाां एक ओर जाकर बैठ गया। हशथनी ने इसी ब्राह्मण दमत्र ॐ
D
को माला पहनाई तो राजा ने बडी िमिाम से अपनी राजकु मारी का
ॐ ॐ
P
दववाह उसके साथ कर ददया। तत्पश्चात दोनोां सुखपववक रहने लगे।
A
ॐ
एक ददन राजकन्या ने पछा- हे नाथ! आपने कौन-सा पुण्य दकया ॐ
ST
ॐ ॐ
तुम्हारे जैसी सौभाग्यिाली पत्नी दमली। अब तो राजकन्या ने भी सत्य-
ॐ
पुत्र प्रादि के शलए व्रत दकया और सववगण
ु सां पन्न पुत्र प्राि दकया। बडे ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ
दमली, दफर भी वह इस व्रत को करता रहा। एक ददन उसने अपनी
ॐ पत्नी से पजा सामग्री शिवालय ले चलने को कहा, परां तु उसने पजा ॐ
IN
दकया, तो आकािवाणी हुई दक हे राजा, तुम इस पत्नी को त्याग दो
नहीां तो राजपाट से हाथ िोना पडेगा। ॐ
ॐ
F.
प्रभु की आज्ञा मानकर उसने अपनी पत्नी को महल से दनकाल ददया।
ॐ ॐ
तब वह अपने भाग्य को कोसती हुई एक बुदढया के पास गई और
D
अपना दुखडा सुनाया तथा बुदढया को बताया- मैं पजन सामग्री राजा ॐ
ॐ
P
के कहे अनुसार शिवालय में नहीां ले गई और राजा ने मुझे दनकाल
A
ॐ ददया। बुदढया ने कहा- तुझे मेरा काम करना पडेगा। उसने स्वीकार ॐ
ST
हुए बोले- बेटी, त मेरे आश्रम में रह, दकसी प्रकार की शचांता मत कर।
ॐ ॐ
रानी आश्रम में रहने लगी, परां तु शजस वस्तु को वह हाथ लगाती, वह
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ
वस्तु खराब हो जाती। यह दे खकर गुसाांईजी ने पछा- बेटी, दकस देव
ॐ के अपराि से ऐसा होता है? रानी ने बताया दक मैंने अपने पदत की ॐ
IN
इससे मुझे घोर कष्ट उठाने पड रहे हैं। गुसाांईजी ने शिवजी से उसके
कु िलक्षेम के शलए प्राथवना की और कहा- बेटी, तुम 16 सोमवार का ॐ
ॐ
F.
व्रत दवशि के अनुसार करो, तब रानी ने दवशिपववक व्रत पणव दकया।
ॐ व्रत के प्रभाव से राजा को रानी की याद आई और दतोां को उसकी ॐ
D
खोज में भेजा। आश्रम में रानी को दे ख दतोां ने राजा को बताया। तब
ॐ ॐ
P
राजा ने वहाां जाकर गुसाांईजी से कहा- महाराज! यह मेरी पत्नी है। मैंने
A
ॐ
इसका पररत्याग कर ददया था। कृ पया इसे मेरे साथ जाने की आज्ञा ॐ
ST
ॐ
दसरी कथा ॐ
ॐ
एक बार दकसी एक नगर में एक साहूकार था। उसके घर में िन की ॐ
कोई कमी नहीां थी लेदकन कोई सां तान न होने के कारण वह बहुत
ॐ ॐ
दुखी था। सां तान प्रादि के शलए वह हर सोमवार को व्रत रखता था
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ
और परी श्रद्धाभा के साथ शिव मां ददर जाकर भगवान शिव और माता
पाववती की पजा करता था। उसकी भदक्त देखकर एक ददन माां पाववती ॐ
ॐ
प्रसन्न होकर भगवान शिव से साहूकार की मनोकामना पणव करने का
ॐ ॐ
दनवेदन दकया। पाववती जी के आग्रह पर भगवान शिव ने कहा दक ‘हे
IN
पाववती, इस सां सार में हर प्राणी को उसके कमों का फल दमलता है
ॐ ॐ
और शजसके भाग्य में जो हो उसे भोगना ही पडता है’ लेदकन पाववती
F.
ॐ जी ने साहूकार की भदक्त दे खकर उसकी मनोकामना पणव करने की ॐ
D
इच्छा व्यक्त की। माता पाववती के आग्रह पर शिवजी ने साहूकार को
ॐ ॐ
P
पुत्र-प्रादि का वरदान तो ददया लेदकन उन्ोांने बताया दक यह बालक
A
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ
तुम लोग रास्ते में यज्ञ कराते जाना और ब्राह्मणोां को भोजन-दशक्षणा
दे ते हुए जाना। दोनोां मामा-भाांजे इसी तरह यज्ञ कराते और ब्राह्मणोां ॐ
ॐ
को दान-दशक्षणा दे ते कािी नगरी दनकल पडे। इस दौरान रात में एक
ॐ ॐ
नगर पडा जहाां नगर के राजा की कन्या का दववाह था, लेदकन शजस
IN
राजकु मार से उसका दववाह होने वाला था वह एक आां ख से काना
ॐ ॐ
था। राजकु मार के दपता ने अपने पुत्र के काना होने की बात को छु पाने
F.
ॐ के शलए सोचा क्योां न उसने साहूकार के पुत्र को दल्हा बनाकर ॐ
D
राजकु मारी से दववाह करा दां । दववाह के बाद इसको िन देकर दवदा
ॐ ॐ
P
कर दां गा और राजकु मारी को अपने नगर ले जाऊांगा। लडके को दल्हे
A
साहूकार का पुत्र ईमानदार था। उसे यह बात सही नहीां लगी इसशलए
ॐ ॐ
उसने अवसर पाकर राजकु मारी के दुपट्टे पर शलखा दक ‘तुम्हारा दववाह
IN
तो मेरे साथ हुआ है लेदकन शजस राजकु मार के सां ग तुम्हें भेजा जाएगा
ॐ ॐ
वह एक आां ख से काना है। मैं तो कािी पढने जा रहा हूां।’ जब
यह बात बताई। राजा ने अपनी पुत्री को दवदा नहीां दकया दफर बारात
ॐ ॐ
वापस चली गई। दसरी ओर साहूकार का लडका और उसका मामा
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ
कािी पहुांचे और वहाां जाकर उन्ोांने यज्ञ दकया। शजस ददन लडका 12
साल का हुआ उस ददन भी यज्ञ का आयोजन था लडके ने अपने मामा ॐ
ॐ
से कहा दक मेरी तबीयत कु छ ठीक नहीां है। मामा ने कहा दक तुम
ॐ ॐ
अांदर जाकर आराम कर लो। शिवजी के वरदानुसार कु छ ही दे र में उस
IN
बालक के प्राण दनकल गए। मृत भाांजे को देख उसके मामा ने दवलाप
ॐ ॐ
करना िुरू दकया। सां योगवि उसी समय शिवजी और माता पाववती
F.
ॐ उिर से जा रहे थे। पाववती माता ने भोलेनाथ से कहा- स्वामी, मुझे ॐ
D
इसके रोने के स्वर सहन नहीां हो रहा, आप इस व्यदक्त के कष्ट को
ॐ ॐ
P
अवश्य दर करें।
A
साहूकार का पुत्र है, शजसे मैंने 12 वषव की आयु का वरदान ददया था,
ॐ ॐ
अब इसकी आयु परी हो चुकी है लेदकन मातृ भाव से दवभोर माता
IN
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ
नगर की ओर वापस चल ददया। दोनोां चलते हुए उसी नगर में पहुांचे,
जहाां उसका दववाह हुआ था। उस नगर में भी उन्ोांने यज्ञ का ॐ
ॐ
आयोजन दकया। उस लडके के ससुर ने उसे पहचान शलया और महल
ॐ ॐ
में ले जाकर उसकी खादतरदारी की और अपनी पुत्री को दवदा दकया।
IN
ॐ ॐ
इिर साहूकार और उसकी पत्नी भखे-प्यासे रहकर बेटे की प्रतीक्षा कर
F.
ॐ रहे थे। उन्ोांने प्रण कर रखा था दक यदद उन्ें अपने बेटे की मृत्यु का ॐ
D
समाचार दमला तो वह भी प्राण त्याग दें गे परां तु अपने बेटे के जीदवत
ॐ ॐ
P
होने का समाचार पाकर वह बेहद प्रसन्न हुए। उसी रात भगवान शिव
A
ने साहूकार के स्वप्न में आकर कहा- हे श्रेष्ठी, मैंने तेरे सोमवार के व्रत
ॐ ॐ
करने और व्रतकथा सुनने से प्रसन्न होकर तेरे पुत्र को लम्बी आयु प्रदान
ST
ॐ
की है। इसी प्रकार जो कोई सोमवार व्रत करता है या कथा सुनता ॐ
ॐ ॐ
होती हैं।
ॐ ॐ
ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ
ॐ
श्री शिव चालीसा ॐ
ॐ ॐ
IN
ॐ
दोहा ॐ
F.
श्री गणेि दगररजा सुवन, मां गल मल सुजान।
ॐ ॐ
कहत अयोध्यादास तुम, देहु अभय वरदान॥
D
ॐ ॐ
P
चौपाई
A
ॐ ॐ
जय दगररजा पदत दीन दयाला। सदा करत सन्तन प्रदतपाला॥
ST
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ
दे वन जबहीां जाय पुकारा। तब ही दुख प्रभु आप दनवारा॥
दकया उपद्रव तारक भारी। दे वन सब दमशल तुमदहां जुहारी॥
ॐ ॐ
तुरत षडानन आप पठायउ। लवदनमेष महँ मारर दगरायउ॥
आप जलां िर असुर सां हारा। सुयि तुम्हार दवददत सां सारा॥
ॐ ॐ
IN
दत्रपुरासुर सन युद्धाभ मचाई। सबदहां कृ पा कर लीन बचाई॥
दकया तपदहां भागीरथ भारी। पुरब प्रदतज्ञा तसु पुरारी॥
ॐ ॐ
दादनन महां तुम सम कोउ नाहीां। सेवक स्तुदत करत सदाहीां॥
F.
ॐ वेद नाम मदहमा तव गाई। अकथ अनादद भेद नदहां पाई॥ ॐ
D
प्रगट उदशि मां थन में ज्वाला। जरे सुरासुर भये दवहाला॥
कीन् दया तहँ करी सहाई। नीलकण्ठ तब नाम कहाई॥
ॐ ॐ
P
पजन रामचां द्र जब कीन्ा। जीत के लां क दवभीषण दीन्ा॥
A
ॐ ॐ
दुष्ट सकल दनत मोदह सतावै । भ्रमत रहे मोदह चैन न आवै॥
त्रादह त्रादह मैं नाथ पुकारो। यदह अवसर मोदह आन उबारो॥
ॐ ॐ
लै दत्रिल ित्रुन को मारो। सां कट से मोदह आन उबारो॥
मातु दपता भ्राता सब कोई। सां कट में पछत नदहां कोई॥
ॐ ॐ
स्वामी एक है आस तुम्हारी। आय हरहु अब सां कट भारी॥
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ
िन दनिवन को दे त सदाहीां। जो कोई जाांचे वो फल पाहीां॥
अस्तुदत के दह दवशि करौां तुम्हारी। क्षमहु नाथ अब चक हमारी॥
ॐ ॐ
िां कर हो सां कट के नािन। मां गल कारण दवघ्न दवनािन॥
योगी यदत मुदन ध्यान लगावैं। नारद िारद िीि नवावैं॥
ॐ ॐ
IN
नमो नमो जय नमो शिवाय। सुर ब्रह्माददक पार न पाय॥
जो यह पाठ करे मन लाई। ता पार होत है िम्भु सहाई॥
ॐ ॐ
ॠदनया जो कोई हो अशिकारी। पाठ करे सो पावन हारी॥
F.
ॐ पुत्र हीन कर इच्छा कोई। दनश्चय शिव प्रसाद तेदह होई॥ ॐ
D
पच्छण्डत त्रयोदिी को लावे। ध्यान पववक होम करावे ॥
त्रयोदिी ब्रत करे हमेिा। तन नहीां ताके रहे कलेिा॥
ॐ ॐ
P
िप दीप नैवेद्य चढावे। िां कर सम्मुख पाठ सुनावे॥
A
दोहा
IN
ॐ ॐ
दनि नेम कर प्रातुः ही, पाठ करौां चालीसा।
ॐ तुम मेरी मनोकामना, पणव करो जगदीि॥ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ
ॐ
श्री शिव आरती ॐ
ॐ ॐ
जय शिव ओांकारा ॐ जय शिव ओांकारा । ब्रह्मा दवष्णु सदा शिव अद्धाभाांगी िारा ॥
IN
ॐ जय शिव...॥
ॐ एकानन चतुरानन पां चानन राजे । हांसानन गरुडासन वृषवाहन साजे ॥ ॐ
F.
ॐ जय शिव...॥
ॐ दो भुज चार चतुभुवज दस भुज अदत सोहे। दत्रगुण रूपदनरखता दत्रभुवन जन मोहे ॥ ॐ
ॐ जय शिव...॥ D
अक्षमाला बनमाला रुण्डमाला िारी । चां दन मृगमद सोहै भाले िशििारी ॥
ॐ ॐ
P
ॐ जय शिव...॥
A
कर के मध्य कमां डलु चक्र दत्रिल िताव । जगकताव जगभताव जगसां हारकताव ॥
ॐ ॐ जय शिव...॥ ॐ
ॐ ॐ जय शिव...॥ ॐ
कािी में दवश्वनाथ दवराजत निी ब्रह्मचारी। दनत उदठ भोग लगावत मदहमा अदत भारी ॥
ॐ ॐ जय शिव...॥ ॐ
दत्रगुण शिवजीकी आरती जो कोई नर गावे । कहत शिवानि स्वामी मनवाांशछत फल पावे ॥
ॐ जय शिव...॥
ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ
ॐ ॐ
ॐ ॐ
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ॐ ॐ
ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ