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ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ

16 सोमवार व्रत
ॐ ॐ

कथा

ॐ ॐ

IN

पूजा विधि और आरती सहित ॐ

F.
ॐ ॐ
D
ॐ ॐ
P
A

ॐ ॐ
ST

ॐ ॐ
IN

ॐ ॐ

ॐ ॐ

ॐ ॐ

ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ

ॐ ॐ


पूजा ववधि ॐ

ॐ ॐ

IN
❖ सोमवार के ददन सबसे पहले सयोदय में स्नान करके व्रत का सां कल्प लेकर शिव
मां ददर में जाना चादहए। िुद्धाभ जल से शिवशलां ग का अशभषेक करते हुए मां त्र- ऊॅ ॐ

F.
महाशिवाय सोमाय नम: का जाप करना चादहए।


❖ दफर गाय के िुद्धाभ कच्चे दि को शिवशलां ग पर अदपवत करना चादहए। यह करने से ॐ
D
मनुष्य के तन-मन-िन से जुडी सारी परेिादनयाां खत्म हो जाती है।
❖ इसके बाद शिवशलां ग पर िहद या गन्ने का रस चढाए। दफर कपर, इत्र, पुष्प-ितरे
ॐ ॐ
P
और भस्म से शिवजी का अशभषेक कर शिव आरती करना करें। अपनी मनोकामना
A

पदतव के शलए ह्रदय से प्राथवना करना चादहए। ॐ



❖ इस व्रत में सफेद रांग का खास महत्व होता है। व्रत वाले को ददन में सफेद कपडे
ST

पहनकर शिवशलां ग पर सफेद पुष्प चढाने से व्यदक्त की सभी मनोकामनाएां पणव होती
ॐ ॐ
है।
IN

❖ सोमवार के ददन शिवपजा का दविान है। भोलेनाथ एक लोटे जल से भी प्रसन्न हो


ॐ ॐ
जाते हैं। सोमवार के ददन भगवान शिव की पजा करने से व्यदक्त की हर मनोकामना
की पदतव होती है।
ॐ ॐ
❖ यदद भोलेनाथ की पजा शिवमां त्र के साथ की जाए तो भाग्योदय के साथ रोजगार,
उन्नदत व मनचाहे जीवन-साथी पाने की मनोकामना िीघ्र पणव होती है।
ॐ ॐ

ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ

ॐ ॐ
❖ शिवशलां ग पर जलाशभषेक के बाद गाय का दि अदपवत करें। इससे तन, मन और
िन सां बां िी हर समस्या दर होती है।
ॐ ॐ
❖ शिवशलां ग पर िहद की िारा अदपवत करें। इससे आजीदवका, नौकरी व व्यवसाय से
सां बां शित सभी परेिादनयोां से छु टकारा दमलता है।
ॐ ॐ

IN
❖ लाल चां दन लगाएां व श्रृांगार करें। माना जाता है दक शिवशलां ग पर चां दन लगाने से
जीवन में सुख-िाांदत आती है।
ॐ ॐ
❖ इन उपायोां के बाद यथािदक्त गां ि, अक्षत, फल, नैवेद्य अदपवत कर शिव आरती

F.
करें।
ॐ ॐ
❖ साथ ही शिव जी को अदपवत दकए गए दि, िहद को चरणामृत के रूप में ग्रहण
D
करें और चां दन लगाकर मनोकामना पदतव हेतु भोलेनाथ से प्राथवना करें।
ॐ ॐ
P
A

ॐ ॐ
ST

ॐ ॐ
IN

ॐ ॐ

ॐ ॐ

ॐ ॐ

ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ

ॐ ॐ


16 सोमवार व्रत कथा ॐ

ॐ ॐ

IN

पहली कथा ॐ

F.
एक समय श्री महादे व जी पाववती के साथ भ्रमण करते हुए मृत्युलोक
ॐ ॐ
में अमरावती नगरी में आए। वहाां के राजा ने शिव मां ददर बनवाया था,
D
जो दक अत्यां त भव्य एवां रमणीक तथा मन को िाांदत पहुांचाने वाला ॐ

P
था। भ्रमण करते सम शिव-पाववती भी वहाां ठहर गए। पाववतीजी ने
A

ॐ कहा- हे नाथ! आओ, आज इसी स्थान पर चौसर-पाांसे खेलें। खेल ॐ


ST

प्रारां भ हुआ। शिवजी कहने लगे- मैं जीतां गा। इस प्रकार उनकी आपस
ॐ ॐ
में वातावलाप होने लगी। उस समय पुजारीजी पजा करने आए।
IN

ॐ पाववतीजी ने पछा- पुजारीजी, बताइए जीत दकसकी होगी? पुजारी ॐ

बोला- इस खेल में महादे वजी के समान कोई दसरा पारां गत नहीां हो
ॐ सकता इसशलए महादे वजी ही यह बाजी जीतेंगे। परां तु हुआ उल्टा, ॐ

जीत पाववतीजी की हुई। अत: पाववतीजी ने पुजारी को कोढी होने का


ॐ ॐ
श्राप दे ददया दक तने दमथ्या भाषण दकया है। अब तो पुजारी
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ

ॐ ॐ
कोढी हो गया। शिव-पाववतीजी दोनोां वापस चले गए। कु छ समय
पश्चात अप्सराएां पजा करने आईं। अप्सराओां ने पुजारी के उसके कोढी ॐ

होने का कारण पछा। पुजारी ने सब बातें बता दीां। अप्सराएां कहने
ॐ ॐ
लगीां- पुजारीजी, आप 16 सोमवार का व्रत करें तो शिवजी प्रसन्न

IN
होकर आपका सां कट दर करेंगे। पुजारीजी ने अप्सराओां से व्रत की
ॐ ॐ
दवशि पछी। अप्सराओां ने व्रत करने और व्रत के उद्यापन करने की

F.
ॐ सां पणव दवशि बता दी। पुजारी ने दवशिपववक श्रद्धाभाभाव से ॐ
D
व्रत प्रारां भ दकया और अांत में व्रत का उद्यापन भी दकया। व्रत के
ॐ ॐ
P
प्रभाव से पुजारीजी रोगमुक्त हो गए।
A

ॐ कु छ ददनोां बाद िां कर-पाववतजी पुन: उस मां ददर में आए तो पुजारीजी ॐ


ST

को रोगमुक्त दे खकर पाववतीजी ने पछा- मेरे ददए हुए श्राप से मुदक्त


ॐ पाने का तुमने कौन सा उपाय दकया। पुजारीजी ने कहा- हे माता! ॐ
IN

अप्सराओां द्वारा बताए गए 16 सोमवार के व्रत करने से मेरा यह कष्ट


ॐ ॐ
दर हुआ है। पाववतीजी ने भी 16 सोमवार का व्रत दकया शजससे उनसे

ॐ रूठे हुए कादतवकेयजी भी अपनी माता से प्रसन्न होकर आज्ञाकारी हुए। ॐ

कादतवकेयजी ने पछा- हे माता! क्या कारण है दक मेरा मन सदा आपके


ॐ ॐ
चरणोां में लगा रहता है। पाववतीजी ने कादतवकेय को 16 सोमवार के

ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ

ॐ ॐ
व्रत का माहात्म्य तथा दवशि बताई, तब कादतवकेयजी ने भी इस व्रत को
ॐ दकया तो उनका दबछडा हुआ दमत्र दमल गया। अब दमत्र ने भी इस ॐ

व्रत को अपने दववाह होने की इच्छा से दकया। फलत: वह दवदे ि


ॐ ॐ

IN
गया। वहाां के राजा की कन्या का स्वयां वर था। राजा ने प्रण दकया था
दक हशथनी शजस व्यदक्त के गले में वरमाला डाल देगी, उसी के साथ ॐ

F.
राजकु मारी का दववाह करूांगा। यह ब्राह्मण दमत्र भी स्वयां वर दे खने की
ॐ इच्छा से वहाां एक ओर जाकर बैठ गया। हशथनी ने इसी ब्राह्मण दमत्र ॐ
D
को माला पहनाई तो राजा ने बडी िमिाम से अपनी राजकु मारी का
ॐ ॐ
P
दववाह उसके साथ कर ददया। तत्पश्चात दोनोां सुखपववक रहने लगे।
A


एक ददन राजकन्या ने पछा- हे नाथ! आपने कौन-सा पुण्य दकया ॐ
ST

शजससे हशथनी ने आपके गले में वरमाला पहनाई। ब्राह्मण पदत ने


ॐ कहा- मैंने कादतवकेयजी द्वारा बताए अनुसार 16 सोमवार का व्रत पणव ॐ

दवशि-दविान सदहत श्रद्धाभा-भदक्त से दकया शजसके फल के कारण मुझे


IN

ॐ ॐ
तुम्हारे जैसी सौभाग्यिाली पत्नी दमली। अब तो राजकन्या ने भी सत्य-


पुत्र प्रादि के शलए व्रत दकया और सववगण
ु सां पन्न पुत्र प्राि दकया। बडे ॐ

होकर पुत्र ने भी राज्य प्रादि की कामना से 16 सोमवार का व्रत


ॐ ॐ
दकया। राजा के देवलोक होने पर इसी ब्राह्मण कु मार को राजगद्दी

ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ

ॐ ॐ
दमली, दफर भी वह इस व्रत को करता रहा। एक ददन उसने अपनी
ॐ पत्नी से पजा सामग्री शिवालय ले चलने को कहा, परां तु उसने पजा ॐ

सामग्री अपनी दाशसयोां द्वारा शभजवा दी। जब राजा ने पजन समाि


ॐ ॐ

IN
दकया, तो आकािवाणी हुई दक हे राजा, तुम इस पत्नी को त्याग दो
नहीां तो राजपाट से हाथ िोना पडेगा। ॐ

F.
प्रभु की आज्ञा मानकर उसने अपनी पत्नी को महल से दनकाल ददया।
ॐ ॐ
तब वह अपने भाग्य को कोसती हुई एक बुदढया के पास गई और
D
अपना दुखडा सुनाया तथा बुदढया को बताया- मैं पजन सामग्री राजा ॐ

P
के कहे अनुसार शिवालय में नहीां ले गई और राजा ने मुझे दनकाल
A

ॐ ददया। बुदढया ने कहा- तुझे मेरा काम करना पडेगा। उसने स्वीकार ॐ
ST

कर शलया, तब बुदढया ने सत की गठरी उसके शसर पर रखी और


ॐ ॐ
बाजार भेज ददया। रास्ते में आां िी आई तो शसर पर रखी गठरी उड
IN

ॐ गई। बुदढया ने डाांटकर उसे भगा ददया। अब रानी बुदढया के यहाां से ॐ

चलते-चलते एक आश्रम में पहुांची। गुसाांईजी उसे दे खते ही समझ गए


ॐ दक यह उच्च घराने की अबला दवपदि की मारी है। वे उसे िैयव बां िाते ॐ

हुए बोले- बेटी, त मेरे आश्रम में रह, दकसी प्रकार की शचांता मत कर।
ॐ ॐ
रानी आश्रम में रहने लगी, परां तु शजस वस्तु को वह हाथ लगाती, वह
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ

ॐ ॐ
वस्तु खराब हो जाती। यह दे खकर गुसाांईजी ने पछा- बेटी, दकस देव
ॐ के अपराि से ऐसा होता है? रानी ने बताया दक मैंने अपने पदत की ॐ

आज्ञा का उल्लां घन दकया और शिवालय में पजन के शलए नहीां गई,


ॐ ॐ

IN
इससे मुझे घोर कष्ट उठाने पड रहे हैं। गुसाांईजी ने शिवजी से उसके
कु िलक्षेम के शलए प्राथवना की और कहा- बेटी, तुम 16 सोमवार का ॐ

F.
व्रत दवशि के अनुसार करो, तब रानी ने दवशिपववक व्रत पणव दकया।
ॐ व्रत के प्रभाव से राजा को रानी की याद आई और दतोां को उसकी ॐ
D
खोज में भेजा। आश्रम में रानी को दे ख दतोां ने राजा को बताया। तब
ॐ ॐ
P
राजा ने वहाां जाकर गुसाांईजी से कहा- महाराज! यह मेरी पत्नी है। मैंने
A


इसका पररत्याग कर ददया था। कृ पया इसे मेरे साथ जाने की आज्ञा ॐ
ST

दें । शिवजी की कृ पा से प्रदतवषव 16 सोमवार का व्रत करते हुए वे


ॐ आनां द से रहने लगे और अांत में शिवलोक को प्राि हुए। ॐ
IN


दसरी कथा ॐ


एक बार दकसी एक नगर में एक साहूकार था। उसके घर में िन की ॐ
कोई कमी नहीां थी लेदकन कोई सां तान न होने के कारण वह बहुत
ॐ ॐ
दुखी था। सां तान प्रादि के शलए वह हर सोमवार को व्रत रखता था

ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ

ॐ ॐ
और परी श्रद्धाभा के साथ शिव मां ददर जाकर भगवान शिव और माता
पाववती की पजा करता था। उसकी भदक्त देखकर एक ददन माां पाववती ॐ

प्रसन्न होकर भगवान शिव से साहूकार की मनोकामना पणव करने का
ॐ ॐ
दनवेदन दकया। पाववती जी के आग्रह पर भगवान शिव ने कहा दक ‘हे

IN
पाववती, इस सां सार में हर प्राणी को उसके कमों का फल दमलता है
ॐ ॐ
और शजसके भाग्य में जो हो उसे भोगना ही पडता है’ लेदकन पाववती

F.
ॐ जी ने साहूकार की भदक्त दे खकर उसकी मनोकामना पणव करने की ॐ
D
इच्छा व्यक्त की। माता पाववती के आग्रह पर शिवजी ने साहूकार को
ॐ ॐ
P
पुत्र-प्रादि का वरदान तो ददया लेदकन उन्ोांने बताया दक यह बालक
A

12 वषव तक ही जीदवत रहेगा।


ॐ ॐ
ST

माता पाववती और भगवान शिव की बातचीत को साहूकार सुन रहा


ॐ ॐ
था, इसशलए उसे ना तो इस बात की खुिी थी और ना ही दुख। वह
IN

पहले की भाांदत शिवजी की पजा करता रहा। कु छ समय के बाद ॐ



साहूकार की पत्नी ने एक पुत्र को जन्म ददया। जब वह बालक ग्यारह
ॐ वषव का हुआ तो उसे पढने के शलए कािी भेज ददया गया। साहूकार ने ॐ

पुत्र के मामा को बुलाकर उसे बहुत सारा िन दे ते हुए कहा दक तुम


ॐ ॐ
इस बालक को कािी दवद्या प्रादि के शलए ले जाओ।

ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ

ॐ ॐ
तुम लोग रास्ते में यज्ञ कराते जाना और ब्राह्मणोां को भोजन-दशक्षणा
दे ते हुए जाना। दोनोां मामा-भाांजे इसी तरह यज्ञ कराते और ब्राह्मणोां ॐ

को दान-दशक्षणा दे ते कािी नगरी दनकल पडे। इस दौरान रात में एक
ॐ ॐ
नगर पडा जहाां नगर के राजा की कन्या का दववाह था, लेदकन शजस

IN
राजकु मार से उसका दववाह होने वाला था वह एक आां ख से काना
ॐ ॐ
था। राजकु मार के दपता ने अपने पुत्र के काना होने की बात को छु पाने

F.
ॐ के शलए सोचा क्योां न उसने साहूकार के पुत्र को दल्हा बनाकर ॐ
D
राजकु मारी से दववाह करा दां । दववाह के बाद इसको िन देकर दवदा
ॐ ॐ
P
कर दां गा और राजकु मारी को अपने नगर ले जाऊांगा। लडके को दल्हे
A

के वस्त्र पहनाकर राजकु मारी से दववाह करा ददया गया।


ॐ ॐ
ST

साहूकार का पुत्र ईमानदार था। उसे यह बात सही नहीां लगी इसशलए
ॐ ॐ
उसने अवसर पाकर राजकु मारी के दुपट्टे पर शलखा दक ‘तुम्हारा दववाह
IN

तो मेरे साथ हुआ है लेदकन शजस राजकु मार के सां ग तुम्हें भेजा जाएगा
ॐ ॐ
वह एक आां ख से काना है। मैं तो कािी पढने जा रहा हूां।’ जब

ॐ राजकु मारी ने चुन्नी पर शलखी बातें पढी तो उसने अपने माता-दपता को ॐ

यह बात बताई। राजा ने अपनी पुत्री को दवदा नहीां दकया दफर बारात
ॐ ॐ
वापस चली गई। दसरी ओर साहूकार का लडका और उसका मामा

ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ

ॐ ॐ
कािी पहुांचे और वहाां जाकर उन्ोांने यज्ञ दकया। शजस ददन लडका 12
साल का हुआ उस ददन भी यज्ञ का आयोजन था लडके ने अपने मामा ॐ

से कहा दक मेरी तबीयत कु छ ठीक नहीां है। मामा ने कहा दक तुम
ॐ ॐ
अांदर जाकर आराम कर लो। शिवजी के वरदानुसार कु छ ही दे र में उस

IN
बालक के प्राण दनकल गए। मृत भाांजे को देख उसके मामा ने दवलाप
ॐ ॐ
करना िुरू दकया। सां योगवि उसी समय शिवजी और माता पाववती

F.
ॐ उिर से जा रहे थे। पाववती माता ने भोलेनाथ से कहा- स्वामी, मुझे ॐ
D
इसके रोने के स्वर सहन नहीां हो रहा, आप इस व्यदक्त के कष्ट को
ॐ ॐ
P
अवश्य दर करें।
A

ॐ जब शिवजी मृत बालक के समीप गए तो वह बोले दक यह उसी ॐ


ST

साहूकार का पुत्र है, शजसे मैंने 12 वषव की आयु का वरदान ददया था,
ॐ ॐ
अब इसकी आयु परी हो चुकी है लेदकन मातृ भाव से दवभोर माता
IN

पाववती ने कहा दक हे महादे व, आप इस बालक को और आयु दे ने की ॐ



कृ पा करें अन्यथा इसके दवयोग में इसके माता-दपता भी तडप-तडप
ॐ कर मर जाएां गे। माता पाववती के पुन: आग्रह पर भगवान शिव ने उस ॐ

लडके को जीदवत होने का वरदान ददया। शिवजी की कृ पा से वह


ॐ ॐ
लडका जीदवत हो गया। शिक्षा परी करके लडका मामा के साथ अपने

ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ

ॐ ॐ
नगर की ओर वापस चल ददया। दोनोां चलते हुए उसी नगर में पहुांचे,
जहाां उसका दववाह हुआ था। उस नगर में भी उन्ोांने यज्ञ का ॐ

आयोजन दकया। उस लडके के ससुर ने उसे पहचान शलया और महल
ॐ ॐ
में ले जाकर उसकी खादतरदारी की और अपनी पुत्री को दवदा दकया।

IN
ॐ ॐ
इिर साहूकार और उसकी पत्नी भखे-प्यासे रहकर बेटे की प्रतीक्षा कर

F.
ॐ रहे थे। उन्ोांने प्रण कर रखा था दक यदद उन्ें अपने बेटे की मृत्यु का ॐ
D
समाचार दमला तो वह भी प्राण त्याग दें गे परां तु अपने बेटे के जीदवत
ॐ ॐ
P
होने का समाचार पाकर वह बेहद प्रसन्न हुए। उसी रात भगवान शिव
A

ने साहूकार के स्वप्न में आकर कहा- हे श्रेष्ठी, मैंने तेरे सोमवार के व्रत
ॐ ॐ
करने और व्रतकथा सुनने से प्रसन्न होकर तेरे पुत्र को लम्बी आयु प्रदान
ST


की है। इसी प्रकार जो कोई सोमवार व्रत करता है या कथा सुनता ॐ

और पढता है उसके सभी दुख दर होते हैं और सभी मनोकामनाएां पणव


IN

ॐ ॐ
होती हैं।

ॐ ॐ

ॐ ॐ

ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ

ॐ ॐ


श्री शिव चालीसा ॐ

ॐ ॐ

IN

दोहा ॐ

F.
श्री गणेि दगररजा सुवन, मां गल मल सुजान।
ॐ ॐ
कहत अयोध्यादास तुम, देहु अभय वरदान॥
D
ॐ ॐ
P
चौपाई
A

ॐ ॐ
जय दगररजा पदत दीन दयाला। सदा करत सन्तन प्रदतपाला॥
ST

भाल चन्द्रमा सोहत नीके । कानन कु ण्डल नागफनी के ॥


ॐ ॐ
अांग गौर शिर गां ग बहाये। मुण्डमाल तन छार लगाये॥
IN

ॐ वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे। छदव को देख नाग मुदन मोहे॥ ॐ


मैना मातु की ह्वै दुलारी। बाम अांग सोहत छदव न्यारी॥

ॐ कर दत्रिल सोहत छदव भारी। करत सदा ित्रुन क्षयकारी॥ ॐ


नशि गणेि सोहै तहँ कै से। सागर मध्य कमल हैं जैसे॥
ॐ कादतवक श्याम और गणराऊ। या छदव को कदह जात न काऊ॥ ॐ

ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ

ॐ ॐ
दे वन जबहीां जाय पुकारा। तब ही दुख प्रभु आप दनवारा॥
दकया उपद्रव तारक भारी। दे वन सब दमशल तुमदहां जुहारी॥
ॐ ॐ
तुरत षडानन आप पठायउ। लवदनमेष महँ मारर दगरायउ॥
आप जलां िर असुर सां हारा। सुयि तुम्हार दवददत सां सारा॥
ॐ ॐ

IN
दत्रपुरासुर सन युद्धाभ मचाई। सबदहां कृ पा कर लीन बचाई॥
दकया तपदहां भागीरथ भारी। पुरब प्रदतज्ञा तसु पुरारी॥
ॐ ॐ
दादनन महां तुम सम कोउ नाहीां। सेवक स्तुदत करत सदाहीां॥

F.
ॐ वेद नाम मदहमा तव गाई। अकथ अनादद भेद नदहां पाई॥ ॐ
D
प्रगट उदशि मां थन में ज्वाला। जरे सुरासुर भये दवहाला॥
कीन् दया तहँ करी सहाई। नीलकण्ठ तब नाम कहाई॥
ॐ ॐ
P
पजन रामचां द्र जब कीन्ा। जीत के लां क दवभीषण दीन्ा॥
A

ॐ सहस कमल में हो रहे िारी। कीन् परीक्षा तबदहां पुरारी॥ ॐ


ST

एक कमल प्रभु राखेउ जोई। कमल नयन पजन चहां सोई॥


ॐ कदठन भदक्त दे खी प्रभु िां कर। भये प्रसन्न ददए इच्छच्छत वर॥ ॐ

जय जय जय अनां त अदवनािी। करत कृ पा सब के घटवासी॥


IN

ॐ ॐ
दुष्ट सकल दनत मोदह सतावै । भ्रमत रहे मोदह चैन न आवै॥
त्रादह त्रादह मैं नाथ पुकारो। यदह अवसर मोदह आन उबारो॥
ॐ ॐ
लै दत्रिल ित्रुन को मारो। सां कट से मोदह आन उबारो॥
मातु दपता भ्राता सब कोई। सां कट में पछत नदहां कोई॥
ॐ ॐ
स्वामी एक है आस तुम्हारी। आय हरहु अब सां कट भारी॥

ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ

ॐ ॐ
िन दनिवन को दे त सदाहीां। जो कोई जाांचे वो फल पाहीां॥
अस्तुदत के दह दवशि करौां तुम्हारी। क्षमहु नाथ अब चक हमारी॥
ॐ ॐ
िां कर हो सां कट के नािन। मां गल कारण दवघ्न दवनािन॥
योगी यदत मुदन ध्यान लगावैं। नारद िारद िीि नवावैं॥
ॐ ॐ

IN
नमो नमो जय नमो शिवाय। सुर ब्रह्माददक पार न पाय॥
जो यह पाठ करे मन लाई। ता पार होत है िम्भु सहाई॥
ॐ ॐ
ॠदनया जो कोई हो अशिकारी। पाठ करे सो पावन हारी॥

F.
ॐ पुत्र हीन कर इच्छा कोई। दनश्चय शिव प्रसाद तेदह होई॥ ॐ
D
पच्छण्डत त्रयोदिी को लावे। ध्यान पववक होम करावे ॥
त्रयोदिी ब्रत करे हमेिा। तन नहीां ताके रहे कलेिा॥
ॐ ॐ
P
िप दीप नैवेद्य चढावे। िां कर सम्मुख पाठ सुनावे॥
A

ॐ जन्म जन्म के पाप नसावे। अन्तवास शिवपुर में पावे॥ ॐ


ST

कहे अयोध्या आस तुम्हारी। जादन सकल दुुः ख हरहु हमारी॥


ॐ ॐ

दोहा
IN

ॐ ॐ
दनि नेम कर प्रातुः ही, पाठ करौां चालीसा।
ॐ तुम मेरी मनोकामना, पणव करो जगदीि॥ ॐ

मगसर छदठ हेमन्त ॠतु, सां वत चौसठ जान।


ॐ ॐ
अस्तुदत चालीसा शिवदह, पणव कीन कल्याण॥

ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ

ॐ ॐ


श्री शिव आरती ॐ

ॐ ॐ
जय शिव ओांकारा ॐ जय शिव ओांकारा । ब्रह्मा दवष्णु सदा शिव अद्धाभाांगी िारा ॥

IN
ॐ जय शिव...॥
ॐ एकानन चतुरानन पां चानन राजे । हांसानन गरुडासन वृषवाहन साजे ॥ ॐ

F.
ॐ जय शिव...॥

ॐ दो भुज चार चतुभुवज दस भुज अदत सोहे। दत्रगुण रूपदनरखता दत्रभुवन जन मोहे ॥ ॐ
ॐ जय शिव...॥ D
अक्षमाला बनमाला रुण्डमाला िारी । चां दन मृगमद सोहै भाले िशििारी ॥
ॐ ॐ
P
ॐ जय शिव...॥
A

श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अांगे । सनकाददक गरुणाददक भताददक सां गे ॥


ॐ ॐ
ॐ जय शिव...॥
ST

कर के मध्य कमां डलु चक्र दत्रिल िताव । जगकताव जगभताव जगसां हारकताव ॥
ॐ ॐ जय शिव...॥ ॐ

ब्रह्मा दवष्णु सदाशिव जानत अदववेका । प्रणवाक्षर मध्ये ये तीनोां एका ॥


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ॐ ॐ जय शिव...॥ ॐ

कािी में दवश्वनाथ दवराजत निी ब्रह्मचारी। दनत उदठ भोग लगावत मदहमा अदत भारी ॥

ॐ ॐ जय शिव...॥ ॐ
दत्रगुण शिवजीकी आरती जो कोई नर गावे । कहत शिवानि स्वामी मनवाांशछत फल पावे ॥
ॐ जय शिव...॥
ॐ ॐ

ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ

ॐ ॐ

ॐ ॐ

ॐ ॐ

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