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instaPDF - in Santoshi Mata Vrat Katha Arti 149
instaPDF - in Santoshi Mata Vrat Katha Arti 149
ॐ ॐ
ॐ ॐ
ॐ ॐ
ॐ ॐ
ॐ ॐ
ॐ ॐ
ॐ ॐ
संतोषी माता
ॐ ॐ
ॐ ॐ
ॐ
व्रत कथा ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ
ॐ ॐ
ॐ
व्रत माहात्म्य एवं िवि ॐ
ॐ ॐ
सं तोषी माता के पिता गणिपत और माता ऋपिससपि हैं। इनका
िररवार धनधान्य, सोनाचांदी, मोतीमं गा तथा रत्ों से भरा है। ॐ
ॐ
पिता गणेश की कृ िा से दररद्रता और कलह का नाश, घर में
IN
ॐ ॐ
सुख तथा शांपत, बालगोिाल से भरा िररवार, व्यािार में
F.
D
ॐ
लाभहीलाभ, मन की सववकामनाओं की िपतव और शोक, ॐ
AP
ॐ
कथा प्रारं भ करने से िहले िपवत्र स्थान िर एक तांबे का कलश ॐ
ॐ
व्रत माहात्म्य एवं िवि ॐ
ॐ ॐ
कथा कहने वाला अिने सीधे हाथ में गुड़ व चना रखे। कथा
श्रवण करने वाले समयसमय िर 'सं तोषी माता की जय' बोलते
ॐ ॐ
रहें। कथा समाप्त होने िर आरती करें तथा कलश में रखा जल
IN
ॐ िहले िरे घर में सिड़कें पिर शेष जल तुलसी को चढा दें । कथा ॐ
F.
कहने वाला अिने हाथ में रखा गुड़ और चना गऊ माता को
D
ॐ ॐ
AP
सखलाए। इसके िश्चात् कटोरी में रखा प्रसाद कथा सुनने वालों
ॐ तथा घर के सदस्ों में बांट दें । एक समय भोजन करें। सजतने ॐ
ST
ॐ ॐ
उद्यािन करना आवश्यक है। उद्यािन में घर के तथा िड़ोस के
ॐ बच्ों को बुलाकर भोजन करवाकर यथाशपि दसक्षणा दें । इस ॐ
ॐ
संतोषी माता व्रत कथा ॐ
ॐ ॐ
एक बुपढया के सात बेटे थे। िः बेटे क कमाने वाले थे और
एक बेटा पनकम्मा था बुपढया मां िहों िुत्रों का झठा सातवें को
ॐ ॐ
दे ती। सातवां िुत्र एक पदन अिनी ित्ी से बोला, "दे खो! मेरी
IN
ॐ ॐ
माता का मुझ िर पकतना प्रेम है।" वह बोली, "क्ों नहीं,
F.
D
सबका झठा बचा हुआ तुमको सखलाती है।" वह बोला, "जब ॐ
ॐ
AP
ॐ ॐ
IN
ॐ ॐ
जठन साि कर मां ने उसे िुकारा, "उठ बेटा! उठ! तेरे भाइयों
F.
D
ने भोजन कर सलया, त भी उठकर भोजन कर ले।" उसने ॐ
ॐ
AP
कहा, "मां! मुझे भोजन नहीं करना। मैं िरदे स जा रहा हं।
ॐ ॐ
ST
ॐ
बोला,'हांहां, जा रहा हं।" यह कहकर वह घर से फ्र पनकल ॐ
मुझे दे दो।" वह बोली, "मेरे िास फ्र क्ा है? यह गोबर भरा
ॐ ॐ
हाथ है।"
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ
यह कहकर ित्ी ने उसकी िीठ िर गोबर के हाथ की थाि
मार दी।वह चल पदया। चलतेचलते दर दे श में िहुंचा। वहां
ॐ ॐ
एक साहकार की दुकान थी। वहां जाकर बोला, "सेठ जी,
ॐ ॐ
मुझे नौकरी िर रख लो।" साहकार को नौकर की सख्त जरूरत
थी। साहकार ने कहा, "काम दे खकर तनख्वाह पमलेगी।"
ॐ ॐ
उसने कहा, "सेठ जी, जैसा आि ठीक समझें।" उसे साहकार
IN
ॐ ॐ
के यहां नौकरी पमल गई।
F.
D
ॐ ॐ
AP
ॐ
करने लगा। साहकार के सातआठ नौकर थे। वे सब चक्कर ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ िररश्रम करते करते बारह वषव में ही वह नगर का नामी सेठ ॐ
IN
ॐ इस बीच घर की रोपटयों के आटे से जो भसी पनकलती, उसकी ॐ
F.
रोटी बनाकर रख दी जाती और िटे नाररयल की नरे ली में
D
ॐ ॐ
AP
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ
इसके करने से पनधवनता, दररद्रता का नाश होता है, लक्ष्मी
आती हैं। मन की सचंताएं दर की होती हैं। घर में सुख होने से
ॐ ॐ
मन को प्रसन्नता और शांपत पमलती है। पनिती को िुत्र पमलता
ॐ ॐ
है, प्रीतम बाहर गया हो तो वह शीघ्र लौट आता है, कुं वारी
कन्या को मन िसं द वर पमलता है, चलता मुकदमा खत्म जाता ॐ
ॐ
है, कलह क्लेश की पनवृपि हो, सुखशांपत होती है, घर में धन
IN
ॐ ॐ
जमा हो, धनजायदाद का लाभ होता है तथा और भी मन में
F.
D
ॐ
जो कु ि कामना हो सब सं तोषी माता की कृ िा से िरी हो ॐ
AP
जाती हैं।
ॐ ॐ
ST
IN
ॐ
इसमें सं दे ह नहीं।" वह ििने लगी, "यह व्रत कै से पकया ॐ
ॐ प्रसाद लेना। सवा िांच िैसे से सवा िांच आने तथा इससे भी ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ
हर शुक्रवार को पनराहार रहकर कथा कहना, सुनना। इसके
बीच क्रम नहीं टटे । लगातार पनयम िालन करना। सुनने वाला
ॐ ॐ
कोई न पमले तो घी का दीिक जलाकर, उसके आगे जल के
ॐ ॐ
िात्र को रख कथा कहना, िरं तु पनयम न टटे । जब तक कायव
ससि न हो, पनयम िालन करना और कायवससि हो जाने िर ॐ
ॐ
व्रत का उद्यािन अ करना। तीन मास में माता िरा िल प्रदान
IN
ॐ ॐ
करती हैं। यपद पकसी के खोटे ग्रह हों तो भी माता एक वषव में
F.
D
ॐ
अवश्य उन्हें अनुकल करती हैं। कायव ससि होने िर ही उद्यािन ॐ
AP
ॐ
उद्यािन में अढाई सेर आटे का खाजा तथा इसी अनुसार खीर ॐ
IN
ॐ ॐ
हे माता! मेरा दुख दर कर। मैं तेरी शरण में हं।'माता को दया
F.
D
ॐ
आई। ॐ
AP
ॐ ॐ
ST
ॐ
ित्र आया और तीसरे शुक्रवार को उसका भेजा हुआ िैसा आ ॐ
IN
ॐ ॐ
होकर कहा, 'जा बेटी! तेरा स्वामी जल्दी ही आएगा।" यह
F.
D
ॐ
सुन खुशी से बावली हो वह घर आकर काम करने लगी। ॐ
AP
ॐ ॐ
ST
ॐ
पदया पक तेरा िपत शीघ्र आएगा, िर आएगा कहां से? वह तो ॐ
इसे स्वप्न में भी याद नहीं करता। उसे इसकी याद पदलाने तो
ॐ ॐ
मुझे ही जाना िड़ेगा।' सं तोषी माता ने उस बुपढया के बेटे को
ॐ स्वप्न में समझाया, "िुत्र! तेरी घरवाली कष्ट उठा रही है।" वह ॐ
ॐ ॐ
मां कहने लगीं, "सवेरे नहाधोकर सं तोषी माता का नाम ले,
घी का दीिक जला दण्डवत कर और दुकान िर जा बैठना। ॐ
ॐ
दे खतेदेखते क तेरा लेनदे न चुक जाएगा, जमा माल पबक
IN
ॐ ॐ
जाएगा, सांझ होतेहोते धन का ढे र लग जाएगा।“
F.
D
ॐ ॐ
AP
ॐ
सुनाई। वे सब उसकी बात सुनकर उसकी सखल्ली उड़ाने ॐ
ॐ ॐ
IN
ॐ ॐ
लगा। सब काम से पनिट अिने घर को रवाना हुआ।
F.
D
ॐ ॐ
AP
ॐ
गई। यह तो उसका रोज रुकने का स्थान था। धल उड़ती दे ख ॐ
IN
ॐ ॐ
बना लाई। एक नदी के तट िर, दसरा माता के मं पदर िर
F.
D
ॐ
रखा। इतने में ही क मुसापिर वहां आ िहुंचा। सखी लकड़ी ॐ
AP
ॐ ॐ
IN
ॐ ॐ
"बेटा, यह तेरी ित्ी है। आज बारह वषव हो गए, जब से त
F.
D
ॐ
गया है, तब से सारे गांव में जानवर की तरह भटकती पिरती ॐ
AP
है।
ॐ ॐ
ST
IN
ॐ
कामकाज कु िकरती नहीं, चार समय आकर खा जाती है। ॐ
IN
ॐ ॐ
वह उद्यािन की तैयारी करने लगी। जेठ के लड़कों को भोजन
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D
ॐ
के सलए कहने गई, उन्होंने मं जर पकया। िरं तु िीिे से जेठानी ॐ
AP
ॐ
लड़के भोजन करने आए। खीर िेट भरकर खाई। िरं तु बात ॐ
IN
ॐ ॐ
"माता! तुमने यह क्ा ने पकया, हंसाकर क्ों रुलाने लगीं?"
F.
D
ॐ
माता द बोली, “िुत्री! तने मेरा व्रत भं ग पकया है। ने इतनी ॐ
AP
ॐ
डाल पदया। मुझे क्षमा करो मां।" मां बोली, "ऐसी भल भी ॐ
IN
ॐ ॐ
F.
D
ॐ
जेठानी ने लड़कों को ससखा पदया पक तुम िहले ही खटाई ॐ
AP
ॐ
कु ि खटाई खाने को दो।" बह बोली, खटाई खाने को नहीं ॐ
IN
ॐ ॐ
गुड़ और चने से सना मुख, ऊिर से सं ड के समान होंठ, उस
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D
ॐ
िर मक्खियां सभनसभना रहीं थीं। दहलीज में िैर रखते ही ॐ
AP
ॐ
बह रोशनदान से दे ख रही थी। वह प्रसन्न हो उठी,"आज मेरी ॐ
ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ
उतावली हुई, जो बच्े को िटक पदया।" इतने में मो के प्रताि
से जहां दे खो, वहां लड़के ही लड़के नजर आने लगे। बह
ॐ ॐ
बोली, "मां जी! मैं सजनका व्रत करती हं, यह वही सं तोषी
ॐ ॐ
माता हैं।" इतना कह उसने झट से घर के सारे पकवाड़ खोल
पदए। सबने माता के चरण िकड़ सलए और पवनती कर कहने ॐ
ॐ
लगे, "हे माता! हम मखव हैं, अज्ञानी हैं।
IN
ॐ ॐ
F.
D
ॐ
तुम्हारे व्रत की पवसध हम नहीं जानते, तुम्हारा व्रत भं ग कर ॐ
AP
ॐ
हुई। इसके बाद उसकी सास कहने लगी, हे सं तोषी माता! ॐ
ॐ ॐ
ॐ
|| बोलो सं तोषी माता की जय || ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ
ॐ ॐ
ॐ
संतोषी माता व्रत उद्यापन ॐ
ॐ ॐ
16 शुक्रवार पवसधवत तरीके से िजा करने िर ही सं तोषी
ॐ माता व्रत का शुभ िल पमलता है। इसके बाद व्रत का ॐ
IN
उद्यािन करना जरूरी होता है। उद्यािन के सलए 16वें ॐ
ॐ
F.
शुक्रवार यानी अंपतम शुक्रवार को बापक के पदनों की तरह ही
D
ॐ ॐ
िजा, कथा व आरती करें। इसके बाद 8 बालकों को
AP
ॐ
खीरिरीचने का भोजन कराएं तथा दसक्षणा व के ले का प्रसाद ॐ
ST
ॐ ॐ
पदन घर में कोई खटाई ना खाए, ना ही पकसी को कु ि भी
ॐ खट्टा दें । ॐ
ॐ ॐ
ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ
ॐ ॐ
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स्वणव ससंहासन बैठी चं वर दुरे प्यारे ।
ॐ धि, दीि, नैवेद्य, मधुमेवा भोग धरे न्यारे ॥ ॐ
F.
गुड़ अरु चना िरमपप्रय तामे सं तोष पकयो ।
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सं तोषी कहलाई भिन वैभव पदयो ॥ ॐ
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ॐ ॐ
ॐ ॐ
ॐ ॐ
ॐ ॐ
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ॐ ॐ
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ॐ ॐ
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ॐ ॐ
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ॐ ॐ
ॐ ॐ
ॐ ॐ
ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ