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ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ

ॐ ॐ

ॐ ॐ

ॐ ॐ

ॐ ॐ

ॐ ॐ

ॐ ॐ

ॐ ॐ

संतोषी माता
ॐ ॐ

ॐ ॐ


व्रत कथा ॐ

ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ

ॐ ॐ


व्रत माहात्म्य एवं िवि ॐ

ॐ ॐ
सं तोषी माता के पिता गणिपत और माता ऋपिससपि हैं। इनका
िररवार धनधान्य, सोनाचांदी, मोतीमं गा तथा रत्ों से भरा है। ॐ

पिता गणेश की कृ िा से दररद्रता और कलह का नाश, घर में

IN
ॐ ॐ
सुख तथा शांपत, बालगोिाल से भरा िररवार, व्यािार में
F.
D

लाभहीलाभ, मन की सववकामनाओं की िपतव और शोक, ॐ
AP

पविपि, सचंता आपद सब दर होती हैं।


ॐ ॐ
ST
IN


कथा प्रारं भ करने से िहले िपवत्र स्थान िर एक तांबे का कलश ॐ

जल से भरकर रखें। उस कलश के ऊिर एक कटोरी में गुड़


ॐ ॐ
और चना रखें। ध्यान रहे, प्रसाद सदै व सवाया ही चढाया
ॐ जाता है जैसे सवा रुिये का, ढाई रुिये का आपद, अिनी ॐ

क्षमता के अनुसार ही प्रसाद लें। माता प्रेम व श्रिा की भखी


ॐ ॐ
हैं, मात्रा की नहीं।
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ

ॐ ॐ


व्रत माहात्म्य एवं िवि ॐ

ॐ ॐ
कथा कहने वाला अिने सीधे हाथ में गुड़ व चना रखे। कथा
श्रवण करने वाले समयसमय िर 'सं तोषी माता की जय' बोलते
ॐ ॐ
रहें। कथा समाप्त होने िर आरती करें तथा कलश में रखा जल

IN
ॐ िहले िरे घर में सिड़कें पिर शेष जल तुलसी को चढा दें । कथा ॐ

F.
कहने वाला अिने हाथ में रखा गुड़ और चना गऊ माता को
D
ॐ ॐ
AP

सखलाए। इसके िश्चात् कटोरी में रखा प्रसाद कथा सुनने वालों
ॐ तथा घर के सदस्ों में बांट दें । एक समय भोजन करें। सजतने ॐ
ST

शुक्रवार व्रत करने का सं कल्प पकया हो, वह समय िरा होने िर


IN

ॐ ॐ
उद्यािन करना आवश्यक है। उद्यािन में घर के तथा िड़ोस के
ॐ बच्ों को बुलाकर भोजन करवाकर यथाशपि दसक्षणा दें । इस ॐ

पदन घर में कोई खटाई का सामान न बनाएं ।पवसध के अनुसार


ॐ ॐ
व्रत करने से व्रतकताव की सभी मनोकामनाएं िणव होंगी। िररवार

ॐ में सुख शांपत और व्यािार में उन्नपत के सलए यह व्रत ● सवोिम ॐ

तथा अत्यसधक सरल है।


ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ

ॐ ॐ


संतोषी माता व्रत कथा ॐ

ॐ ॐ
एक बुपढया के सात बेटे थे। िः बेटे क कमाने वाले थे और
एक बेटा पनकम्मा था बुपढया मां िहों िुत्रों का झठा सातवें को
ॐ ॐ
दे ती। सातवां िुत्र एक पदन अिनी ित्ी से बोला, "दे खो! मेरी

IN
ॐ ॐ
माता का मुझ िर पकतना प्रेम है।" वह बोली, "क्ों नहीं,
F.
D
सबका झठा बचा हुआ तुमको सखलाती है।" वह बोला, "जब ॐ

AP

तक आं खों से न दे खं मान नहीं सकता।" ित्ी ने हंसकर


ॐ ॐ
ST

कहा, "दे ख लोगे तब तो मानोगे ?“


IN

ॐ ॐ

कु ि पदन बाद एक बड़ा त्योहार आया। घर में सात प्रकार के


ॐ ॐ
भोजन और चरमा के लड्ड बने। वह ित्ी की बात को जांचने

ॐ के सलए ससरददव का बहाना बनाकर ितला किड़ा ससर िर ॐ

ओढकर रसोई में जाकर सो गया और किड़े में से सब दे खता


ॐ ॐ
रहा। िहों भाई भोजन करने आए।
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ उसने दे खा, मां ने उनके के सलए सुं दरसुं दर आसन पबिाए, ॐ

सात प्रकार की रसोई िरोसी और आग्रह करकरके उन्हें भोजन


ॐ ॐ
कराती रही। वह दे खता रहा। िहों भाई भोजन कर उठ गए
ॐ ॐ
तब मां ने उनकी थासलयों में से लड्डुओं के टुकड़ों को उठाया
और एक लड्ड बनाया।
ॐ ॐ

IN
ॐ ॐ
जठन साि कर मां ने उसे िुकारा, "उठ बेटा! उठ! तेरे भाइयों
F.
D
ने भोजन कर सलया, त भी उठकर भोजन कर ले।" उसने ॐ

AP

कहा, "मां! मुझे भोजन नहीं करना। मैं िरदे स जा रहा हं।
ॐ ॐ
ST

माता ने कहा, 'कल जाना हो तो आज ही जा।" वह


IN


बोला,'हांहां, जा रहा हं।" यह कहकर वह घर से फ्र पनकल ॐ

गया। चलते समय उसे ित्ी की याद आई। वह गौशाला में


ॐ ॐ
कं डे थाि रही थी। वहां जाकर वह बोला, "मेरे िास तो कु ि

ॐ नहीं है। यह अंगठी है, सो ले लो और अिनी कोई पनशानी ॐ

मुझे दे दो।" वह बोली, "मेरे िास फ्र क्ा है? यह गोबर भरा
ॐ ॐ
हाथ है।"
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ
यह कहकर ित्ी ने उसकी िीठ िर गोबर के हाथ की थाि
मार दी।वह चल पदया। चलतेचलते दर दे श में िहुंचा। वहां
ॐ ॐ
एक साहकार की दुकान थी। वहां जाकर बोला, "सेठ जी,
ॐ ॐ
मुझे नौकरी िर रख लो।" साहकार को नौकर की सख्त जरूरत
थी। साहकार ने कहा, "काम दे खकर तनख्वाह पमलेगी।"
ॐ ॐ
उसने कहा, "सेठ जी, जैसा आि ठीक समझें।" उसे साहकार

IN
ॐ ॐ
के यहां नौकरी पमल गई।
F.
D
ॐ ॐ
AP

वह वहां पदनरात काम करने लगा। कु ि पदन में 1लेनदे न,


ॐ ॐ
ST

पहसाबपकताब, ग्राहकों को माल दुकान का बेचना, सारा काम


IN


करने लगा। साहकार के सातआठ नौकर थे। वे सब चक्कर ॐ

खाने लगे। लेपकन उसने अिनी लगन, िररश्रम और ईमानदारी


ॐ ॐ
से सभी को िीिे िोड़ पदया। उसे अिने पकए का िल पमला।

ॐ सेठ ने भी उसका काम दे खा और तीन महीने में ही उसे ॐ

मुनािे में साझीदार बना सलया।


ॐ ॐ

ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ िररश्रम करते करते बारह वषव में ही वह नगर का नामी सेठ ॐ

बन गया और सेठ अिना सारा कारोबार उस िर िोड़कर बाहर


ॐ ॐ
चला गया। इधर उसकी ित्ी िर क्ा बीती वह सुनें।
ॐ सासससुर उसे दुख दे ने लगे। गृहस्थी का काम करवाकर, उसे ॐ

लकड़ी लेने जं गल में भेजते।


ॐ ॐ

IN
ॐ इस बीच घर की रोपटयों के आटे से जो भसी पनकलती, उसकी ॐ

F.
रोटी बनाकर रख दी जाती और िटे नाररयल की नरे ली में
D
ॐ ॐ
AP

िानी पदया जाता। इस तरह पदन बीतते रहे। एक पदन वह जब


ॐ ॐ
ST

जं गल में लकड़ी लेने जा रही थी तब उसे रास्ते में बहुतसी


IN

सियां सं तोषी माता का व्रत करती पदखाई दीं। वह वहां खड़ी


ॐ ॐ
होकर ििने लगी, "बहनो, यह तुम पकस दे वता का व्रत करती
ॐ ॐ
हो और इसके करने से क्ा िल होता है? इस व्रत के करने
की क्ा पवसध है ? यपद तुम अिने इस व्रत का पवधान मुझे ॐ

समझाकर कहोगी तो मैं तुम्हारा बड़ा अहसान मानं गी।" उनमें
ॐ ॐ
से एक िी बोली, "सुनो, यह सं तोषी माता का व्रत है।

ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ
इसके करने से पनधवनता, दररद्रता का नाश होता है, लक्ष्मी
आती हैं। मन की सचंताएं दर की होती हैं। घर में सुख होने से
ॐ ॐ
मन को प्रसन्नता और शांपत पमलती है। पनिती को िुत्र पमलता
ॐ ॐ
है, प्रीतम बाहर गया हो तो वह शीघ्र लौट आता है, कुं वारी
कन्या को मन िसं द वर पमलता है, चलता मुकदमा खत्म जाता ॐ

है, कलह क्लेश की पनवृपि हो, सुखशांपत होती है, घर में धन

IN
ॐ ॐ
जमा हो, धनजायदाद का लाभ होता है तथा और भी मन में
F.
D

जो कु ि कामना हो सब सं तोषी माता की कृ िा से िरी हो ॐ
AP

जाती हैं।
ॐ ॐ
ST
IN


इसमें सं दे ह नहीं।" वह ििने लगी, "यह व्रत कै से पकया ॐ

जाता है? यह भी बताओ तो बड़ी कृ िा होगी।" वह िी कहने


ॐ ॐ
लगी, "पबना िरेशानी, श्रिा और प्रेम से सजतना भी बन सके

ॐ प्रसाद लेना। सवा िांच िैसे से सवा िांच आने तथा इससे भी ॐ

ज्यादा शपि और भपि के अनुसार गुड़ और चना लें।


ॐ ॐ

ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ
हर शुक्रवार को पनराहार रहकर कथा कहना, सुनना। इसके
बीच क्रम नहीं टटे । लगातार पनयम िालन करना। सुनने वाला
ॐ ॐ
कोई न पमले तो घी का दीिक जलाकर, उसके आगे जल के
ॐ ॐ
िात्र को रख कथा कहना, िरं तु पनयम न टटे । जब तक कायव
ससि न हो, पनयम िालन करना और कायवससि हो जाने िर ॐ

व्रत का उद्यािन अ करना। तीन मास में माता िरा िल प्रदान

IN
ॐ ॐ
करती हैं। यपद पकसी के खोटे ग्रह हों तो भी माता एक वषव में
F.
D

अवश्य उन्हें अनुकल करती हैं। कायव ससि होने िर ही उद्यािन ॐ
AP

करना चापहए, बीच में नहीं।


ॐ ॐ
ST
IN


उद्यािन में अढाई सेर आटे का खाजा तथा इसी अनुसार खीर ॐ

तथा चने का साग बनाना। आठ बच्ों को भोजन कराना।


ॐ ॐ
जहां तक पमलें दे वर, जेठ, भाई बं धु, कु टुं ब के लड़के लेना, न

ॐ पमलें तो ररश्तेदारों और िड़ोससयों के लड़के बुलाना। उन्हें ॐ

भोजन करा, यथाशपि दसक्षणा दे , माता का पनयम िरा


ॐ ॐ
करना।
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ
ध्यान रखना उस पदन घर में कोई खटाई न खाए।"यह सुन
वह वहां से चल दी। रास्ते में लकड़ी के बोझ को बेच पदया
ॐ ॐ
और उन िैसों से गुड़ चना ले माता के व्रत की तैयारी कर आगे
ॐ ॐ
चली। रास्ते में सं तोषी माता के मं पदर में जा, माता के चरणों
में लोटने लगी। पवनती करने लगी, 'मां! मैं दीन हं, पनिट ॐ

मखव हं। व्रत के पनयम कु ि जानती नहीं। मैं बहुत मैं दुखी हं।

IN
ॐ ॐ
हे माता! मेरा दुख दर कर। मैं तेरी शरण में हं।'माता को दया
F.
D

आई। ॐ
AP

ॐ ॐ
ST

एक शुक्रवार बीता पक दसरे शुक्रवार को ही उसके िपत का


IN


ित्र आया और तीसरे शुक्रवार को उसका भेजा हुआ िैसा आ ॐ

िहुंचा। यह दे खकर जेठानी मुुँ ह ससकोड़ने लगी, "इतने पदनों


ॐ ॐ
बाद इतना िैसा आया। इसमें क्ा बड़ाई है ? " लड़के ताने

ॐ दे ने लगे, "काकी के िास अब ित्र आने लगे, रुिया आने ॐ

लगा, अब तो काकी अ की खापतर बढे गी, अब तो काकी


ॐ ॐ
बुलाने से भी नहीं बोलेगी।"
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ
बेचारी सरलता से कहती,'भैया ित्र आए, रुिया आए तो हम
सबके सलए अच्छा है।" ऐसा कहकर, आं खों में अ आं स
ॐ ॐ
भरकर, सं तोषी माता के मं पदर में जा, मातेश्वरी के चरणों में
ॐ ॐ
पगरकर रोने लगी, "मां मैंने तुमसे िैसा नहीं मांगा। मुझे िैसे
से क्ा काम? मुझे तो अिने सुहाग से काम है। मैं तो अिने ॐ

स्वामी के दशवन और सेवा मांगती हं।" तब माता ने प्रसन्न

IN
ॐ ॐ
होकर कहा, 'जा बेटी! तेरा स्वामी जल्दी ही आएगा।" यह
F.
D

सुन खुशी से बावली हो वह घर आकर काम करने लगी। ॐ
AP

ॐ ॐ
ST

सं तोषी मां पवचार करने लगीं, 'इस भोली िुत्री से मैंने कह तो


IN


पदया पक तेरा िपत शीघ्र आएगा, िर आएगा कहां से? वह तो ॐ

इसे स्वप्न में भी याद नहीं करता। उसे इसकी याद पदलाने तो
ॐ ॐ
मुझे ही जाना िड़ेगा।' सं तोषी माता ने उस बुपढया के बेटे को

ॐ स्वप्न में समझाया, "िुत्र! तेरी घरवाली कष्ट उठा रही है।" वह ॐ

बोला, "हां माता! यह तो मुझे भी मालम है, िरं तु क्ा करूं,


ॐ ॐ
वहां कै से जाऊुँ ? िरदे स की बात है, लेनदे न का सारा पहसाब
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ
पकताब है, कोई जाने का रास्ता नजर नहीं आता। आि ही
कोई राह पदखाएं पक वहां कै से जाऊं।“
ॐ ॐ

ॐ ॐ
मां कहने लगीं, "सवेरे नहाधोकर सं तोषी माता का नाम ले,
घी का दीिक जला दण्डवत कर और दुकान िर जा बैठना। ॐ

दे खतेदेखते क तेरा लेनदे न चुक जाएगा, जमा माल पबक

IN
ॐ ॐ
जाएगा, सांझ होतेहोते धन का ढे र लग जाएगा।“
F.
D
ॐ ॐ
AP

वह अगले पदन सुबह बहुत जल्दी उठा। उसने अिने


ॐ ॐ
ST

पमत्रबं धुओ ं िररसचतों से स्वप्न में माता द्वारा कही गई बात कह


IN


सुनाई। वे सब उसकी बात सुनकर उसकी सखल्ली उड़ाने ॐ

लगे। वे कहने लगे पक कहीं कभी सिने की बात भी सच्ी


ॐ ॐ
होती है।

ॐ ॐ

एक बढा व्यपि बहुत समझदार था। वह बोला, "दे खो भाई


ॐ ॐ
मेरी बात मानो इस तरह
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ
सांच या झठ कहने के बदले दे वता ने जैसा क कहा है, वैसा
ही करना। तेरा क्ा जाता है?" बढे की बात मानकर,
ॐ ॐ
नहाधोकर उसने सं तोषी माता को प्रणाम पकया। पिर घी का
ॐ ॐ
दीिक जलाकर दुकान िर जा बैठा। शाम तक धन का ढे र
लग गया। वह हैरान हुआ। मन में सं तोषी माता का नाम ले, ॐ

प्रसन्न हो, घर जाने के वास्ते गहना, किड़ा व सामान खरीदने

IN
ॐ ॐ
लगा। सब काम से पनिट अिने घर को रवाना हुआ।
F.
D
ॐ ॐ
AP

उधर उसकी ित्ी जं गल में लकड़ी लेने गई। लौटते वि थक


ॐ ॐ
ST

जाने के कारण सं तोषी माता के मं पदर िर पवश्राम करने बैठ


IN


गई। यह तो उसका रोज रुकने का स्थान था। धल उड़ती दे ख ॐ

उसने माता से ििा, “हे माता! क यह धल कै सी उड़ रही है?


ॐ ॐ
मां ने कहा, "हे िुत्री! तेरा िपत आ रहा है। अब त ऐसा कर,

ॐ लकपड़यों के तीन बोझ बना। एक नदी के पकनारे रख, दसरा ॐ

मेरे मं पदर िर और तीसरा अिने ससर िर रख। तेरे िपत को


ॐ ॐ
लकड़ी का गट्ठा दे खकर मोह िैदा होगा।
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ
वह वहां रुके गा, नाश्तािानी बनाखाकर मां से पमलने जाएगा।
त लकड़ी का बोझ उठाकर जाना और बीच चौक में गट्ठा
ॐ ॐ
डालकर तीन आवाजें जोर से लगाना लो सासजी! लकपड़यों
ॐ ॐ
का गट्टा लो, भसी की रोटी दो, नाररयल के खोिरे में िानी दो!
आज कौन मेहमान आया है?" सं तोषी मां की बात सुनकर वह ॐ

बहुत अच्छा मां' कहकर प्रसन्न मन से लकपड़यों के तीन गट्ठे

IN
ॐ ॐ
बना लाई। एक नदी के तट िर, दसरा माता के मं पदर िर
F.
D

रखा। इतने में ही क मुसापिर वहां आ िहुंचा। सखी लकड़ी ॐ
AP

दे ख उसकी इच्छा हुई पक अब यहीं पवश्राम करे और भोजन


ॐ ॐ
ST

बना खािीकर गांव चले।


IN

ॐ ॐ

इस प्रकार भोजन कर, पवश्राम कर, वह अिने गांव में आ


ॐ ॐ
गया। उसी समय बह ससर िर लकड़ी का गट्ठा सलए आई।

ॐ उसने गड्डा आं गन में डाल, जोर से तीन आवाजें दीं, 'लो ॐ

सासजी, लकड़ी का गट्ठा लो, भसी की रोटी दो, नाररयल के


ॐ ॐ
खोिरे में िानी दो।
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ
क आज कौन मेहमान आया है?" यह सुनकर सास ने अिने
पदए हुए कष्टों को भुलाने हेतु कहा, “बह, त ऐसा क्ों कहती
ॐ ॐ
है ? तेरा मासलक ही तो आया है। बैठ, मीठा भात खाकर
ॐ ॐ
किड़ेगहने िहन । "ित्ी की आवाज सुनकर उसका स्वामी
बाहर आया और उसके हाथ में िहनी अंगठी दे ख व्याकु ल हो ॐ

गया। उसने मां से ििा, "मां, यह कौन है ?" मां बोली,

IN
ॐ ॐ
"बेटा, यह तेरी ित्ी है। आज बारह वषव हो गए, जब से त
F.
D

गया है, तब से सारे गांव में जानवर की तरह भटकती पिरती ॐ
AP

है।
ॐ ॐ
ST
IN


कामकाज कु िकरती नहीं, चार समय आकर खा जाती है। ॐ

अब तुझे दे खकर भसी की रोटी और नाररयलके खोिरे में िानी


ॐ ॐ
मांगती है।" वह बोला,"ठीक है मां, मैंने इसे भी दे खा है और

ॐ तुम्हें भी। अब मुझे दसरे घर की चाबी दो, मैं उसमेंरहंगा।" ॐ

'ठीक है बेटा, जैसी तेरी मरजी।" कहकर अ मां ने ताली का


ॐ ॐ
गुच्छा बेटे के सामने रख पदया।
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ
उसने दसरे घर को खोलकर सारा सामान जमाया। एक ही
पदन में वहां राजा के महल जैसा ठाटबाट बन गया। अब क्ा
ॐ ॐ
था, वह सुख भोगने लगी। अगला शुक्रवार आया तो उसने
ॐ ॐ
िपत से कहा, "मुझे सं तोषी माता का उद्यािन करना है।" िपत
बोला, अच्छा, खुशी से कर ले।“ ॐ

IN
ॐ ॐ
वह उद्यािन की तैयारी करने लगी। जेठ के लड़कों को भोजन
F.
D

के सलए कहने गई, उन्होंने मं जर पकया। िरं तु िीिे से जेठानी ॐ
AP

ने अिने बच्ों को ससखलाया, "दे खो रे! भोजन के समय सब


ॐ ॐ
ST

लोग खटाई मांगना, सजससे उसका उद्यािन िरा न हो।"


IN


लड़के भोजन करने आए। खीर िेट भरकर खाई। िरं तु बात ॐ

याद आते ही कहने लगे, "हमें कु ि खटाई खाने को दो, खीर


ॐ ॐ
खाना हमें भाता नहीं, दे खकर अरुसच होती है।" लड़के उठ

ॐ खड़े हुए। बोले, "िैसे लाओ।" भोली बह कु ि जानती न थी, ॐ

उसने उन्हें िैसे दे पदए। लड़कों ने बाजार जाकर उन िैसों से


ॐ ॐ
इमली खरीदी और खाई।
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ
यह दे खकर बह िर माता जी ने कोि पकया। राजा के दत
उसके िपत को िकड़कर ले गए। जेठजेठानी मनमाने खोटे
ॐ ॐ
वचन कहने लगे, "लटलटकर धन इकट्ठा कर लाया था, सो
ॐ ॐ
राजा के उसे िकड़कर ले गए हैं। अब सब मालम हो जाएगा।
जब जेल से ने की रोटी खाएगा!" बह यह वचन सहन क नहीं ॐ

हुए। वह सं तोषी माता के मं पदर में गई और कहने लगी,

IN
ॐ ॐ
"माता! तुमने यह क्ा ने पकया, हंसाकर क्ों रुलाने लगीं?"
F.
D

माता द बोली, “िुत्री! तने मेरा व्रत भं ग पकया है। ने इतनी ॐ
AP

जल्दी सब बातें भुला दीं।" वह बोली, "माता! भली तो नहीं


ॐ ॐ
ST

हं, न कु ि अिराध ले, पकया है। मुझे तो लड़कों ने भल में


IN


डाल पदया। मुझे क्षमा करो मां।" मां बोली, "ऐसी भल भी ॐ

कहीं होती है।" वह बोली, "मां! ई। अब भल नहीं होगी।


ॐ ॐ
अब बताओ, मेरे िपत कै से आएं गे?" मां बोली, "िुत्री! जा तेरा

ॐ इकर िपत तुझे रास्ते में ही आता पमलेगा।" वह मं पदर से ॐ

पनकलकर बाहर आई तो रास्ते में उसे अिना िपत आता हुआ


ॐ ॐ
पमला। उसने
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ
ििा, "कहां गए थे?" वह बोला, "इतना धन जो कमाया है,
उसका कर राजा ने मांगा था। वह भरने गया था।" वह प्रसन्न
ॐ ॐ
होकर बोली, "भला हुआ, अब घर चलो।" पिर अ अगला
ॐ ॐ
शुक्रवार आया। वह बोली, "मुझे माता का उद्यािन करना
है।" िपत ने कहा, "ठीक है, करो।" वह पिर जेठ के लड़कों ॐ

से भोजन क को कहने गई।

IN
ॐ ॐ

F.
D

जेठानी ने लड़कों को ससखा पदया पक तुम िहले ही खटाई ॐ
AP

मांगना।लड़के भोजन करने बैठे िरं तु भोजन करने से िहले ही


ॐ ॐ
ST

कहने लगे, "हमें खीरिरी नहीं क भाती। जी पबगड़ता है।


IN


कु ि खटाई खाने को दो।" बह बोली, खटाई खाने को नहीं ॐ

पमलेगी, खाना हो तो खाओ।"


ॐ ॐ

ॐ उनके उठकर चले जाने िर उसने ब्राह्मणों के लड़के बुलाकर ॐ

भोजन करवाया। दसक्षणा की जगह उन्हें एक एक िल पदया।


ॐ ॐ
इससे सं तोषी माता प्रसन्न हो गई।
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ
माता की कृ िा से नौ माह बाद उसको चं द्रमा के समान एक
सुं दर िुत्र प्राप्त हुआ। िुत्र को लेकर वह प्रपतपदन सं तोषी माता
ॐ ॐ
के मं पदर में जाने लगी। मां ने सोचा पक यह रोज आती है,
ॐ ॐ
आज क्ों न मैं ही इसके घर चलं । इसका आसरा दे खं तो
सही। यह पवचार कर माता ने भयानक रूि बनाया। ॐ

IN
ॐ ॐ
गुड़ और चने से सना मुख, ऊिर से सं ड के समान होंठ, उस
F.
D

िर मक्खियां सभनसभना रहीं थीं। दहलीज में िैर रखते ही ॐ
AP

उसकी सास सचल्लाई, "दे खो रे! कोई चुड़ैलडापकनी चली आ


ॐ ॐ
ST

रही है। लड़को, इसे भगाओ, नहीं तो सबको खा जाएगी।"


IN


बह रोशनदान से दे ख रही थी। वह प्रसन्न हो उठी,"आज मेरी ॐ

माता मेरे घर आई हैं।" यह कहकर दध िीते बच्े को गोद से


ॐ ॐ
उतार पदया। इस िर उसकी सास क्रोध में भरकर बोली, "अरी

ॐ रोड। इसे दे खकर कै सी ॐ

ॐ ॐ

ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ
उतावली हुई, जो बच्े को िटक पदया।" इतने में मो के प्रताि
से जहां दे खो, वहां लड़के ही लड़के नजर आने लगे। बह
ॐ ॐ
बोली, "मां जी! मैं सजनका व्रत करती हं, यह वही सं तोषी
ॐ ॐ
माता हैं।" इतना कह उसने झट से घर के सारे पकवाड़ खोल
पदए। सबने माता के चरण िकड़ सलए और पवनती कर कहने ॐ

लगे, "हे माता! हम मखव हैं, अज्ञानी हैं।

IN
ॐ ॐ

F.
D

तुम्हारे व्रत की पवसध हम नहीं जानते, तुम्हारा व्रत भं ग कर ॐ
AP

हमने बड़ा अिराध पकया है। हे माता! आि हमारे अिराधों को


ॐ ॐ
ST

क्षमा करो।' इस प्रकार बारबार कहने िर सं तोषी माता प्रसन्न


IN


हुई। इसके बाद उसकी सास कहने लगी, हे सं तोषी माता! ॐ

आिने बह को जैसा िल पदया, वैसा सबको दे ना। जो यह


ॐ ॐ
कथा सुने या िढे उसका मनोरथ िणव हो।‘

ॐ ॐ


|| बोलो सं तोषी माता की जय || ॐ

ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ

ॐ ॐ


संतोषी माता व्रत उद्यापन ॐ

ॐ ॐ
16 शुक्रवार पवसधवत तरीके से िजा करने िर ही सं तोषी
ॐ माता व्रत का शुभ िल पमलता है। इसके बाद व्रत का ॐ

IN
उद्यािन करना जरूरी होता है। उद्यािन के सलए 16वें ॐ

F.
शुक्रवार यानी अंपतम शुक्रवार को बापक के पदनों की तरह ही
D
ॐ ॐ
िजा, कथा व आरती करें। इसके बाद 8 बालकों को
AP


खीरिरीचने का भोजन कराएं तथा दसक्षणा व के ले का प्रसाद ॐ
ST

दे कर उन्हें पवदा करें । अंत में स्वयं भोजन ग्रहण करें। इस


IN

ॐ ॐ
पदन घर में कोई खटाई ना खाए, ना ही पकसी को कु ि भी

ॐ खट्टा दें । ॐ

ॐ ॐ

ॐ ॐ

ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ

ॐ ॐ

संतोषी माता जी की रतती


ॐ ॐ
जय सं तोषी माता जय जय सं तोषी माता।
अिने सेवक जन को सुख सं िपि दाता ॥
ॐ सुं दर चीर सुनहरी मां धारण कीन्हो । ॐ
हीरा िन्ना दमके तन ससंगार लीन्हो ॥
गेरू लाल िटा िपव बदन कमल सोहे।
ॐ ॐ
मं द हंसत करुणामयी पत्रभुवन जन मोहे ॥

IN
स्वणव ससंहासन बैठी चं वर दुरे प्यारे ।
ॐ धि, दीि, नैवेद्य, मधुमेवा भोग धरे न्यारे ॥ ॐ

F.
गुड़ अरु चना िरमपप्रय तामे सं तोष पकयो ।
D
सं तोषी कहलाई भिन वैभव पदयो ॥ ॐ

AP

शुक्रवार पप्रय मानत आज पदवत सो ही।


भि मण्डली आई कथा सुनत मोही ॥
ॐ ॐ
ST

मं पदर जगमग ज्योपत मं गल ध्वपन िाई।


पवनय करें हम बालक चरनन ससर नाई ।।
IN

भपि भावमय िजा अंगीकृ त कीजै । ॐ



जो मन बसे हमारे इच्छा िल दीजै ॥
दुः खी, दररद्र, रोगी, सं कटमुि पकए।
ॐ ॐ
बहु धनधान्य भरे सुख सौभाग्य पदए ॥
ध्यान धरो जाने तेरो मनवांसित िल िायो ।

िजा कथा श्रवण कर घर आनं द आयो ॥ ॐ
शरण गहे की लज्जा रसखयो जगदंबे ।
सं कट त ही पनवारे दयामयी मां अंबे ॥
ॐ ॐ
सं तोषी मां की आरती जो कोई नर गावे ।
ऋपिससपि सुख सं िपि जी भरके िावे ॥
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ

ॐ ॐ

ॐ ॐ

ॐ ॐ

ॐ ॐ

IN
ॐ ॐ

F.
D
ॐ ॐ
AP

ॐ ॐ
ST
IN

ॐ ॐ

ॐ ॐ

ॐ ॐ

ॐ ॐ

ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ

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