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ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ

ॐ ॐ

ॐ ॐ

ॐ ॐ

ॐ ॐ

ॐ ॐ

ॐ ॐ

ॐ ॐ

ॐ ॐ

ॐ ॐ

ॐ ॐ

ॐ ॐ

ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ


चित्रगुप्त पूजा विधि ॐ

ॐ ❖ चित्रगुप्त भगवान की पूजा करने से पहले पूजा स्थल को साफ कर एक ॐ


िौकी बनाएं ।
ॐ ❖ उस पर एक कपड़ा बबछा कर चित्रगुप्त भगवान की तस्वीर रखें। ॐ

❖ अब पूजा की थाली में आवश्यक पूजा सामग्री रखें। अब पूजा स्थल पर

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ॐ ॐ
गं गाजल चछड़कें । df
❖ इसके बाद दीपक जला कर चित्रगुप्तजी भगवान को रोली और अक्षत से
ॐ ॐ
ap
टीका करें।


❖ इसके बाद फल, बमठाई, बवशेष रूप से इस बदन के चलए बनाए गए ॐ
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बवशेष पं िामृत और पान-सुपारी का भोग लगाएं ।


In

ॐ ❖ बफर गणेश वं दना करें। इसके बाद पररवार के सभी सदस्य एक सादे ॐ

कागज़ पर ‘ओम चित्रगुप्ताय नमः ’ चलखे और बाकी बिे खाली कागज़


ॐ ॐ
पर राम राम राम राम राम राम चलखकर उसे भर दे ।
❖ चित्रगुप्त भगवान का बदहां करते हुए उनके मं त्र का उच्चारण करें।
ॐ ॐ
इसके बाद एक दूसरे कागज़ पर रोली से स्वास्तिक बनाएं । इसके नीिे
एक तरफ अपना नाम, पता और तारीख चलखें और दूसरी तरफ अपनी ॐ

आय-व्यय का बववरण दें ।
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ


चित्रगुप्त पूजा कथा ॐ


एक बार युचिबिरजी भीष्मजी से बोले- हे बपतामह! आपकी कृ पा से मैंने िममशास्त्र ॐ
सुने, परन्तु यमबितीया का क्या पुण्य है, क्या फल है यह मैं सुनना िाहता हूँ।


आप कृ पा करके मुझे बविारपूवमक कबहए। भीष्मजी बोले- तूने अच्छी बात पूछी। ॐ
मैं उस उत्तम व्रत को बविारपूवमक बताता हूँ। काबतमक मास के उजले और िैत्र के

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ॐ अूँिेरे की पक्ष जो बितीया होती है, वह यमबितीया कहलाती है। युचिबिरजी ॐ
बोले- उस काबतमक के उजले पक्ष की बितीया में बकसका पूजन करना िाबहए और
df
ॐ िैत्र महीने में यह व्रत कै से हो, इसमें बकसका पूजन करें ? ॐ
ap

ॐ भीष्मजी बोले- हे युचिबिर, पुराण सं बं िी कथा कहता हूँ। इसमें सं शय नहीं बक ॐ


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इस कथा को सुनकर प्राणी सब पापों से छू ट जाता है। सतयुग में नारायण


In

ॐ भगवान् से, चजनकी नाचभ में कमल है, उससे िार मुूँ ह वाले ब्रह्माजी उत्पन्न हुए, ॐ

चजनसे वेदवेत्ता भगवान् ने िारों वेद कहे। नारायण बोले- हे ब्रह्माजी! आप सबकी
ॐ ॐ
तुरीय अवस्था, रूप और योबगयों की गबत हो, मेरी आज्ञा से सं पूणम जगत् को शीघ्र
रिो। हरर के ऐसे विन सुनकर हषम से प्रफु स्तित हुए ब्रह्माजी ने मुख से ब्राह्मणों
ॐ ॐ
को, बाहुओं से क्षबत्रयों को, जं घाओं से वैश्यों को और पैरों से शूद्ों को उत्पन्न
बकया।
ॐ ॐ

ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ उनके पीछे दे व, गं िवम, दानव, राक्षस, सपम, नाग जल के जीव, स्थल के जीव, ॐ

नदी, पवमत और वृक्ष आबद को पैदा कर मनुजी को पैदा बकया। इनके बाद दक्ष
ॐ प्रजापबतजी को पैदा बकया और तब उनसे आगे और सृबि उत्पन्न करने को कहा। ॐ

दक्ष प्रजापबतजी से 60 कन्या उत्पन्न हुई, चजनमें से 10 िममराज को, 13 कश्यप


ॐ ॐ
को और 27 िं द्मा को दीं।

ॐ ॐ
कश्यपजी से दे व, दानव, राक्षस इनके चसवाय और भी गं िवम, बपशाि, गो और

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पचक्षयों की जाबतयाूँ पैदा हुईं। िममराज को िमम प्रिान जानकर सबके बपतामह
ॐ ॐ
ब्रह्माजी ने उन्हें सब लोकों का अचिकार बदया और िममराज से कहा बक तुम
df
आलस्य त्यागकर काम करो। जीवों ने जैसे-जैसे शुभ व अशुभ कमम बकए हैं, उसी
ॐ ॐ
ap
प्रकार न्यायपूवमक वेद शास्त्र में कही बवचि के अनुसार कताम को कमम का फल दो

ॐ और सदा मेरी आज्ञा का पालन करो। ब्रह्माजी की आज्ञा सुनकर बुबिमान िममराज ॐ
st

ने हाथ जोड़कर सबके परम पूज्य ब्रह्माजी को कहा- हे प्रभो! मैं आपका सेवक
In

ॐ बनवेदन करता हूँ बक इस सारे जगत के कमों का बवभागपूवमक फल दे ने की जो ॐ


आपने मुझे आज्ञा दी है, वह एक महान कमम है।
ॐ ॐ

आपकी आज्ञा चशरोिायम कर मैं यह काम करूूँगा बक चजससे कत्तामओ ं को फल


ॐ बमलेगा, परन्तु पूरी सृबि में जीव और उनके दे ह भी अनन्त हैं। दे शकाल ज्ञात- ॐ

अज्ञात आबद भेदों से कमम भी अनन्त हैं।


ॐ ॐ

ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ उनमें कताम ने बकतने बकए, बकतने भोगे, बकतने शेष हैं और कै सा उनका भोग है ॐ

तथा इन कमों के भी मुख्य व गौण भेद से अनेक हो जाते हैं एवं कताम ने कै से
ॐ बकया, स्वयं बकया या दूसरे की प्रेरणा से बकया आबद कमम िक्र महागहन हैं। अतः ॐ

मैं अके ला बकस प्रकार इस भार को उठा सकूूँ गा, इसचलए मुझे कोई ऐसा सहायक
ॐ ॐ
दीचजए जो िाबममक, न्यायी, बुबिमान, शीघ्रकारी, लेख कमम में बवज्ञ, िमत्कारी,
तपस्वी, ब्रह्मबनि और वेद शास्त्र का ज्ञाता हो।
ॐ ॐ

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िममराज की इस प्रकार प्राथमनापूवमक बकए हुए कथन को बविाता सत्य जान मन में
ॐ ॐ
प्रसन्न हुए और यमराज का मनोरथ पूणम करने की चिंता करने लगे बक उक्त सब
df
गुणों वाला ज्ञानी लेखक पुरुष होना िाबहए। उसके बबना िममराज का मनोरथ पूणम
ॐ ॐ
ap
न होगा। तब ब्रह्माजी ने कहा- हे िममराज! तुम्हारे अचिकार में मैं सहायता

ॐ करूूँगा। इतना कह ब्रह्माजी ध्यानमग्न हो गए। उसी अवस्था में उन्होंने एक हजार ॐ
st

वषम तक तपस्या की।


In

ॐ ॐ
जब समाचि खुली तब अपने सामने श्याम रंग, कमल नयन, शं ख की सी गदमन,
ॐ गूढ़ चशर, िं द्मा के समान मुख वाले, कलम, दवात और पानी हाथ में चलए हुए, ॐ

महाबुबि, दे वताओं का मान बढ़ाने वाला, िमामिमम के बविार में महाप्रवीण


ॐ लेखक, कमम में महाितुर पुरुष को दे ख उसे पूछ बक तू कौन है? ॐ

ॐ ॐ

ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ तब उसने कहा- हे प्रभो! मैं माता-बपता को तो नहीं जानता, बकन्तु आपके शरीर ॐ

से प्रकट हुआ हूँ, इसचलए मेरा नामकरण कीचजए और कबहए बक मैं क्या करूूँ?
ॐ ब्रह्माजी ने उस पुरुष के विन सुन अपने हृदय से उत्पन्न हुए उस पुरुष को हूँसकर ॐ

कहा- तू मेरी काया से प्रकट हुआ है, इससे मेरी काया में तुम्हारी स्तस्थबत है,
ॐ ॐ
इसचलए तुम्हारा नाम कायस्थ चित्रगुप्त है। िममराज के पुर में प्राचणयों के शुभाशुभ
कमम चलखने में उसका तू सखा बने, इसचलए तेरी उत्पबत्त हुई है। ब्रह्माजी ने
ॐ ॐ
चित्रगुप्त से यह कहकर िममराज से कहा- हे िममराज! यह उत्तम लेखक तुझको

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मैंने बदया है जो सं सार में सब कममसूत्र की मयामदा पालने के चलए है। इतना
ॐ ॐ
कहकर ब्रह्माजी अन्तध्यामन हो गए।df
ॐ ॐ
ap
बफर वह पुरुष (चित्रगुप्त) कोबट नगर को जाकर िण्ड-प्रिण्ड ज्वालामुखी कालीजी

ॐ के पूजन में लग गया। उपवास कर उसने भबक्त के साथ िस्तण्डकाजी की भावना ॐ


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मन में की। उसने उत्तमता से चित्त लगाकर ज्वालामुखी दे वी का जप और िोत्रों


In

ॐ से भजन-पूजन और उपासना इस प्रकार की- हे जगत् को िारण करने वाली! ॐ


तुमको नमस्कार है, महादे वी! तुमको नमस्कार है। स्वगम, मृत्य,ु पाताल आबद
ॐ लोक-लोकान्तरों को रोशनी दे ने वाली, तुमको नमस्कार है। सन्ध्या और राबत्र रूप ॐ

भगवती तुमको नमस्कार है। श्वेत वस्त्र िारण करने वाली सरस्वती तुमको
ॐ नमस्कार है। सत, रज, तमोगुण रूप दे वगणों को कास्तन्त देने वाली दे वी, बहमािल ॐ

पवमत पर स्थाबपत आबदशबक्त िण्डी दे वी तुमको नमस्कार है।


ॐ ॐ

ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ उत्तम और न्यून गुणों से रबहत वेद की प्रवृबत्त करने वाली, तैंतीस कोबट दे वताओं ॐ

को प्रकट करने वाली बत्रगुण रूप, बनगुमण, गुणरबहत, गुणों से परे, गुणों को देने
ॐ वाली, तीन नेत्रों वाली, तीन प्रकार की मूबतम वाली, सािकों को वर देने वाली, ॐ

दै त्यों का नाश करने वाली, इं द्ाबद दे वों को राज्य देने वाली, श्री हरर से पूचजत
ॐ ॐ
दे वी हे िस्तण्डका! आप इं द्ाबद दे वों को जैसे वरदान देती हैं, वैसे ही मुझको वरदान
दीचजए। मैंने लोकों के अचिकार के चलए आपकी िुबत की है, इसमें सं शय नहीं
ॐ ॐ
है।

.in
ॐ ॐ
ऐसी िुबत को सुन दे वी ने चित्रगुप्तजी को वर बदया। दे वीजी बोलीं- हे चित्रगुप्त!
df
तूने मेरा आरािन पूजन बकया, इससे मैंने आज तुमको वर बदया बक तू परोपकार
ॐ ॐ
ap
में कु शल अपने अचिकार में सदा स्तस्थर और असं ख्य वषों की आयु वाला होगा।

ॐ यह वर देकर दुगाम दे वीजी अन्तध्यामन हो गईं। उसके बाद चित्रगुप्त िममराज के ॐ


st

साथ उनके स्थान पर गए और वह आरािना करने योग्य अपने आसन पर स्तस्थत


In

ॐ हुए। ॐ

ॐ उसी समय ऋबषयों में उत्तम ऋबष सुशमाम ने चजसको सन्तान की िाहना थी, ॐ

उसने ब्रह्माजी का आरािन बकया। तब ब्रह्माजी ने प्रसन्नता से उसकी इरावती नाम


ॐ की कन्या को पाकर चित्रगुप्त के साथ उसका बववाह बकया। उस कन्या से चित्रगुप्त ॐ

के आठ पुत्र उत्पन्न हुए , चजनके नाम यह हैं- िारु, सुिारु, चित्र, मबतमान,
ॐ ॐ
बहमवान, चित्रिारु, अरुण और आठवाूँ अतीचिय।

ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ दूसरी जो मनु की कन्या दचक्षणा चित्रगुप्त से बववाही गई, उसके िार पुत्र हुए। ॐ

उनके भी नाम सुनो- भानु, बवभानु, बवश्वभानु और वीर्य्ामवान््‌। चित्रगुप्त के ये


ॐ बारह पुत्र बवख्यात हुए और पृथ्वी-तल पर बविरे। उनमें से िारु मथुराजी को गए ॐ

और वहाूँ रहने से मथुरा हुए। हे राजन् सुिारु गौड़ बं गाले को गए, इससे वह गौड़
ॐ ॐ
हुए।
चित्र भट्ट नदी के पास के नगर को गए, इससे वे भट्टनागर कहलाए। श्रीवास नगर
ॐ ॐ
में भानु बसे, इससे वह श्रीवािव्य कहलाए। बहमवान अम्बा दुगामजी की आरािन

.in
कर अम्बा नगर में ठहरे इससे वह अम्बि कहलाए। सखसेन नगर में अपनी भायाम
ॐ ॐ
के साथ मबतमान गए इससे वह सूयमध्वज कहलाए और अनेक स्थानों में बसे
df
अनेक जाबत कहलाए।
ॐ ॐ
ap

ॐ उस समय पृथ्वी पर एक राजा चजसका नाम सौदास था, सौरािर नगर में उत्पन्न ॐ
st

हुआ। वह महापापी, पराया िन िुराने वाला, पराई चस्त्रयों में आसक्त,


In

ॐ महाअचभमानी, िुगलखोर और पाप कमम करने वाला था। हे राजन्! जन्म से लेकर ॐ
सारी आयु पयमन्त उसने कु छ भी िमम नहीं बकया। बकसी समय वह राजा अपनी
ॐ सेना लेकर उस वन में, जहाूँ बहुत बहरण आबद जीव रहते थे, चशकार खेलने ॐ

गया। वहाूँ उसने बनरंतर व्रत करते हुए एक ब्राह्मण को दे खा। वह ब्राह्मण चित्रगुप्त
ॐ और यमराजजी का पूजन कर रहा था। ॐ

ॐ ॐ

ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ यमबितीया का बदन था। राजा ने पूछा- महाराज! आप क्या कर रहे हैं? ब्राह्मण ने ॐ

यम बितीया व्रत कह सुनाया। यह सुनकर राजा ने वहीं उसी बदन काबतमक के


ॐ महीने में शुक्ल पक्ष की बितीया को िूप तथा दीपाबद सामग्री से चित्रगुप्तजी के ॐ

साथ िममराजजी का पूजन बकया। व्रत करके उसके बाद वह अपने घर में आया।
ॐ ॐ
कु छ बदन पीछे उसके मन को बवस्मरण हुआ और वह व्रत भूल गया। याद आने
पर उसने बफर से व्रत बकया।
ॐ ॐ

.in
समयोपरान्त काल सं योग से वह राजा सौदास मर गया। यमदूतों ने उसे दृढ़ता से
ॐ ॐ
बाूँ िकर यमराजजी के पास पहुूँिाया। यमराजजी ने उस घबराते हुए मन वाले
df
राजा को अपने दूतों से बपटते हुए देखा तो चित्रगुप्तजी से पूछा बक इस राजा ने
ॐ ॐ
ap
क्या कमम बकया? उस समय िममराजजी का विन सुन चित्रगुप्तजी बोले- इसने

ॐ बहुत ही दुष्कमम बकए हैं, परन्तु दै वयोग से एक व्रत बकया जो काबतमक के शुक्ल ॐ
st

पक्ष में यमबितीया होती है, उस बदन आपका और मेरा गन्ध, िं दन, फूल आबद
In

ॐ सामग्री से एक बार भोजन के बनयम से और राबत्र में जागने से पूजन बकया। ॐ

ॐ हे दे व! हे महाराज! इस कारण से यह राजा नरक में डालने योग्य नहीं है। ॐ

चित्रगुप्तजी के ऐसा कहने से िममराजजी ने उसे छु ड़ा बदया और वह इस


ॐ यमबितीया के व्रत के प्रभाव से उत्तम गबत को प्राप्त हुआ। ॐ

ॐ ॐ

ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ऐसा सुनकर राजा युचिबिर भीष्म से बोले- हे बपतामह! इस व्रत में मनुष्ों को ॐ

िममराज और चित्रगुप्तजी का पूजन कै से करना िाबहए? सो मुझे कबहए। भीष्मजी


ॐ बोले- यमबितीया के बविान को सुनो। एक पबवत्र स्थान पर िममराज और ॐ

चित्रगुप्तजी की मूबतम बनाएूँ और उनकी पूजा की कल्पना करें। वहाूँ उन दोनों की


ॐ ॐ
प्रबतिा कर सोलह प्रकार की व पाूँ ि प्रकार की सामग्री से श्रिा भबक्तयुक्त नाना
प्रकार के पकवानों, लड्डुओं, फल, फूल, पान तथा दचक्षणाबद सामबग्रयों से
ॐ ॐ
िममराजजी और चित्रगुप्तजी का पूजन करना िाबहए। पीछे बारम्बार नमस्कार करें।

.in
ॐ ॐ
हे िममराजजी! आपको नमस्कार है। हे चित्रगुप्तजी! आपको नमस्कार है। पुत्र
df
दीचजए, िन दीचजए सब मनोरथों को पूरे कर दीचजए। इस प्रकार चित्रगुप्तजी के
ॐ ॐ
ap
साथ श्री िममराजजी का पूजन कर बवचि से दवात और कलम की पूजा करें।

ॐ िं दन, कपूर, अगर और नैवेद्य, पान, दचक्षणाबद सामबग्रयों से पूजन करें और कथा ॐ
st

सुन।ें बहन के घर भोजन कर उसके चलए िन आबद पदाथम दें। इस प्रकार भबक्त
In

ॐ के साथ यमबितीया का व्रत करने वाला पुत्रों से युक्त होता है और मनोवांचछत ॐ


फलों को पाता है।
ॐ ॐ

ॐ ॐ

ॐ ॐ

ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ


चित्रगुप्त आरती ॐ


ॐ्‌जय्‌चित्रगुप्त हरे, स्वामीजय चित्रगुप्त हरे्‌। ॐ
भक्तजनों्‌के ्‌इस्तच्छत, फलको पूणम्‌करे॥


बवघ्न्‌बवनाशक्‌मं गलकताम, सन्तनसुखदायी । ॐ
भक्तों्‌के ्‌प्रबतपालक, बत्रभुवनयश छायी्‌॥

.in
ॐ ॥्‌ॐ्‌जय्‌चित्रगुप्त हरे...॥ ॐ

रूप्‌ितुभुमज, श्यामल्‌मूरत, पीताम्बरराजै ।


df
ॐ मातु इरावती, दचक्षणा, वामअंग साजै ॥ ॐ
ap
॥्‌ॐ्‌जय्‌चित्रगुप्त हरे...॥
ॐ ॐ
st

कि्‌बनवारक, दुि्‌सं हारक, प्रभुअंतयाममी ।


सृबि्‌सम्हारन, जन्‌दु:ख हारन, प्रकटभये स्वामी्‌॥
In

ॐ ॐ
॥्‌ॐ्‌जय्‌चित्रगुप्त हरे...॥
कलम, दवात, शं ख, पबत्रका, करमें अबत्‌सोहै ।
ॐ ॐ
वैजयन्ती वनमाला, बत्रभुवनमन मोहै ॥
॥्‌ॐ्‌जय्‌चित्रगुप्त हरे...॥
ॐ ॐ
बवश्व्‌न्याय्‌का्‌कायम्‌सम्भाला, ब्रम्हाहषामये ।
कोबट्‌कोबट दे वता्‌तुम्हारे, िरणनमें िाये्‌॥
ॐ ॐ
॥्‌ॐ्‌जय्‌चित्रगुप्त हरे...॥

ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ
नृप्‌सुदास अरू भीष्म्‌बपतामह, यादतुम्हें कीन्हा ।
ॐ वेग, बवलम्ब न्‌कीन्हौं, इस्तच्छतफल दीन्हा ॥ ॐ

॥्‌ॐ्‌जय्‌चित्रगुप्त हरे...॥
ॐ दारा, सुत, भबगनी, सबअपने स्वास्थ के ्‌कताम्‌। ॐ

जाऊूँ्‌कहाूँ ्‌शरण्‌में्‌बकसकी, तुमतज मैं्‌भताम्‌॥


ॐ ॥्‌ॐ्‌जय्‌चित्रगुप्त हरे...॥ ॐ

बन्धु, बपता्‌तुम्‌स्वामी, शरणगहूँ बकसकी्‌।

.in
ॐ ॐ
तुम्‌बबन्‌और्‌न्‌दूजा, आसकरूूँ चजसकी्‌॥
df
॥्‌ॐ्‌जय्‌चित्रगुप्त हरे...॥
ॐ ॐ
ap
जो्‌जन्‌चित्रगुप्त जी्‌की्‌आरती, प्रेम्‌सबहत्‌गावैं ।
िौरासी्‌से्‌बनचित्‌छू टैं, इस्तच्छत्‌फल्‌पावैं ॥
ॐ ॐ
st

॥्‌ॐ्‌जय्‌चित्रगुप्त हरे...॥
In

न्यायािीश्‌बैंकुंठ बनवासी, पापपुण्य चलखते्‌।


ॐ ॐ
'नानक' शरण्‌बतहारे, आसन्‌दूजी्‌करते्‌॥

ॐ ॐ्‌जय्‌चित्रगुप्त हरे, स्वामीजय चित्रगुप्त हरे्‌। ॐ


भक्तजनों्‌के ्‌इस्तच्छत, फलको पूणम्‌करे ॥

ॐ ॐ

ॐ ॐ

ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ

ॐ ॐ

ॐ ॐ

ॐ ॐ

ॐ ॐ

.in
ॐ ॐ
df
ॐ ॐ
ap

ॐ ॐ
st
In

ॐ ॐ

ॐ ॐ

ॐ ॐ

ॐ ॐ

ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ

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