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Instapdf - in Chitragupta Pooja Katha 818
Instapdf - in Chitragupta Pooja Katha 818
ॐ ॐ
ॐ ॐ
ॐ ॐ
ॐ ॐ
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ॐ ॐ
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ॐ ॐ
ॐ ॐ
ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ
ॐ
चित्रगुप्त पूजा विधि ॐ
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ॐ ॐ
गं गाजल चछड़कें । df
❖ इसके बाद दीपक जला कर चित्रगुप्तजी भगवान को रोली और अक्षत से
ॐ ॐ
ap
टीका करें।
ॐ
❖ इसके बाद फल, बमठाई, बवशेष रूप से इस बदन के चलए बनाए गए ॐ
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ॐ ❖ बफर गणेश वं दना करें। इसके बाद पररवार के सभी सदस्य एक सादे ॐ
ॐ
चित्रगुप्त पूजा कथा ॐ
ॐ
एक बार युचिबिरजी भीष्मजी से बोले- हे बपतामह! आपकी कृ पा से मैंने िममशास्त्र ॐ
सुने, परन्तु यमबितीया का क्या पुण्य है, क्या फल है यह मैं सुनना िाहता हूँ।
ॐ
आप कृ पा करके मुझे बविारपूवमक कबहए। भीष्मजी बोले- तूने अच्छी बात पूछी। ॐ
मैं उस उत्तम व्रत को बविारपूवमक बताता हूँ। काबतमक मास के उजले और िैत्र के
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ॐ अूँिेरे की पक्ष जो बितीया होती है, वह यमबितीया कहलाती है। युचिबिरजी ॐ
बोले- उस काबतमक के उजले पक्ष की बितीया में बकसका पूजन करना िाबहए और
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ॐ िैत्र महीने में यह व्रत कै से हो, इसमें बकसका पूजन करें ? ॐ
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ॐ भगवान् से, चजनकी नाचभ में कमल है, उससे िार मुूँ ह वाले ब्रह्माजी उत्पन्न हुए, ॐ
चजनसे वेदवेत्ता भगवान् ने िारों वेद कहे। नारायण बोले- हे ब्रह्माजी! आप सबकी
ॐ ॐ
तुरीय अवस्था, रूप और योबगयों की गबत हो, मेरी आज्ञा से सं पूणम जगत् को शीघ्र
रिो। हरर के ऐसे विन सुनकर हषम से प्रफु स्तित हुए ब्रह्माजी ने मुख से ब्राह्मणों
ॐ ॐ
को, बाहुओं से क्षबत्रयों को, जं घाओं से वैश्यों को और पैरों से शूद्ों को उत्पन्न
बकया।
ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ उनके पीछे दे व, गं िवम, दानव, राक्षस, सपम, नाग जल के जीव, स्थल के जीव, ॐ
नदी, पवमत और वृक्ष आबद को पैदा कर मनुजी को पैदा बकया। इनके बाद दक्ष
ॐ प्रजापबतजी को पैदा बकया और तब उनसे आगे और सृबि उत्पन्न करने को कहा। ॐ
ॐ ॐ
कश्यपजी से दे व, दानव, राक्षस इनके चसवाय और भी गं िवम, बपशाि, गो और
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पचक्षयों की जाबतयाूँ पैदा हुईं। िममराज को िमम प्रिान जानकर सबके बपतामह
ॐ ॐ
ब्रह्माजी ने उन्हें सब लोकों का अचिकार बदया और िममराज से कहा बक तुम
df
आलस्य त्यागकर काम करो। जीवों ने जैसे-जैसे शुभ व अशुभ कमम बकए हैं, उसी
ॐ ॐ
ap
प्रकार न्यायपूवमक वेद शास्त्र में कही बवचि के अनुसार कताम को कमम का फल दो
ॐ और सदा मेरी आज्ञा का पालन करो। ब्रह्माजी की आज्ञा सुनकर बुबिमान िममराज ॐ
st
ने हाथ जोड़कर सबके परम पूज्य ब्रह्माजी को कहा- हे प्रभो! मैं आपका सेवक
In
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ उनमें कताम ने बकतने बकए, बकतने भोगे, बकतने शेष हैं और कै सा उनका भोग है ॐ
तथा इन कमों के भी मुख्य व गौण भेद से अनेक हो जाते हैं एवं कताम ने कै से
ॐ बकया, स्वयं बकया या दूसरे की प्रेरणा से बकया आबद कमम िक्र महागहन हैं। अतः ॐ
मैं अके ला बकस प्रकार इस भार को उठा सकूूँ गा, इसचलए मुझे कोई ऐसा सहायक
ॐ ॐ
दीचजए जो िाबममक, न्यायी, बुबिमान, शीघ्रकारी, लेख कमम में बवज्ञ, िमत्कारी,
तपस्वी, ब्रह्मबनि और वेद शास्त्र का ज्ञाता हो।
ॐ ॐ
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िममराज की इस प्रकार प्राथमनापूवमक बकए हुए कथन को बविाता सत्य जान मन में
ॐ ॐ
प्रसन्न हुए और यमराज का मनोरथ पूणम करने की चिंता करने लगे बक उक्त सब
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गुणों वाला ज्ञानी लेखक पुरुष होना िाबहए। उसके बबना िममराज का मनोरथ पूणम
ॐ ॐ
ap
न होगा। तब ब्रह्माजी ने कहा- हे िममराज! तुम्हारे अचिकार में मैं सहायता
ॐ करूूँगा। इतना कह ब्रह्माजी ध्यानमग्न हो गए। उसी अवस्था में उन्होंने एक हजार ॐ
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ॐ ॐ
जब समाचि खुली तब अपने सामने श्याम रंग, कमल नयन, शं ख की सी गदमन,
ॐ गूढ़ चशर, िं द्मा के समान मुख वाले, कलम, दवात और पानी हाथ में चलए हुए, ॐ
ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ तब उसने कहा- हे प्रभो! मैं माता-बपता को तो नहीं जानता, बकन्तु आपके शरीर ॐ
से प्रकट हुआ हूँ, इसचलए मेरा नामकरण कीचजए और कबहए बक मैं क्या करूूँ?
ॐ ब्रह्माजी ने उस पुरुष के विन सुन अपने हृदय से उत्पन्न हुए उस पुरुष को हूँसकर ॐ
कहा- तू मेरी काया से प्रकट हुआ है, इससे मेरी काया में तुम्हारी स्तस्थबत है,
ॐ ॐ
इसचलए तुम्हारा नाम कायस्थ चित्रगुप्त है। िममराज के पुर में प्राचणयों के शुभाशुभ
कमम चलखने में उसका तू सखा बने, इसचलए तेरी उत्पबत्त हुई है। ब्रह्माजी ने
ॐ ॐ
चित्रगुप्त से यह कहकर िममराज से कहा- हे िममराज! यह उत्तम लेखक तुझको
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मैंने बदया है जो सं सार में सब कममसूत्र की मयामदा पालने के चलए है। इतना
ॐ ॐ
कहकर ब्रह्माजी अन्तध्यामन हो गए।df
ॐ ॐ
ap
बफर वह पुरुष (चित्रगुप्त) कोबट नगर को जाकर िण्ड-प्रिण्ड ज्वालामुखी कालीजी
भगवती तुमको नमस्कार है। श्वेत वस्त्र िारण करने वाली सरस्वती तुमको
ॐ नमस्कार है। सत, रज, तमोगुण रूप दे वगणों को कास्तन्त देने वाली दे वी, बहमािल ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ उत्तम और न्यून गुणों से रबहत वेद की प्रवृबत्त करने वाली, तैंतीस कोबट दे वताओं ॐ
को प्रकट करने वाली बत्रगुण रूप, बनगुमण, गुणरबहत, गुणों से परे, गुणों को देने
ॐ वाली, तीन नेत्रों वाली, तीन प्रकार की मूबतम वाली, सािकों को वर देने वाली, ॐ
दै त्यों का नाश करने वाली, इं द्ाबद दे वों को राज्य देने वाली, श्री हरर से पूचजत
ॐ ॐ
दे वी हे िस्तण्डका! आप इं द्ाबद दे वों को जैसे वरदान देती हैं, वैसे ही मुझको वरदान
दीचजए। मैंने लोकों के अचिकार के चलए आपकी िुबत की है, इसमें सं शय नहीं
ॐ ॐ
है।
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ॐ ॐ
ऐसी िुबत को सुन दे वी ने चित्रगुप्तजी को वर बदया। दे वीजी बोलीं- हे चित्रगुप्त!
df
तूने मेरा आरािन पूजन बकया, इससे मैंने आज तुमको वर बदया बक तू परोपकार
ॐ ॐ
ap
में कु शल अपने अचिकार में सदा स्तस्थर और असं ख्य वषों की आयु वाला होगा।
ॐ हुए। ॐ
ॐ उसी समय ऋबषयों में उत्तम ऋबष सुशमाम ने चजसको सन्तान की िाहना थी, ॐ
के आठ पुत्र उत्पन्न हुए , चजनके नाम यह हैं- िारु, सुिारु, चित्र, मबतमान,
ॐ ॐ
बहमवान, चित्रिारु, अरुण और आठवाूँ अतीचिय।
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ दूसरी जो मनु की कन्या दचक्षणा चित्रगुप्त से बववाही गई, उसके िार पुत्र हुए। ॐ
और वहाूँ रहने से मथुरा हुए। हे राजन् सुिारु गौड़ बं गाले को गए, इससे वह गौड़
ॐ ॐ
हुए।
चित्र भट्ट नदी के पास के नगर को गए, इससे वे भट्टनागर कहलाए। श्रीवास नगर
ॐ ॐ
में भानु बसे, इससे वह श्रीवािव्य कहलाए। बहमवान अम्बा दुगामजी की आरािन
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कर अम्बा नगर में ठहरे इससे वह अम्बि कहलाए। सखसेन नगर में अपनी भायाम
ॐ ॐ
के साथ मबतमान गए इससे वह सूयमध्वज कहलाए और अनेक स्थानों में बसे
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अनेक जाबत कहलाए।
ॐ ॐ
ap
ॐ उस समय पृथ्वी पर एक राजा चजसका नाम सौदास था, सौरािर नगर में उत्पन्न ॐ
st
ॐ महाअचभमानी, िुगलखोर और पाप कमम करने वाला था। हे राजन्! जन्म से लेकर ॐ
सारी आयु पयमन्त उसने कु छ भी िमम नहीं बकया। बकसी समय वह राजा अपनी
ॐ सेना लेकर उस वन में, जहाूँ बहुत बहरण आबद जीव रहते थे, चशकार खेलने ॐ
गया। वहाूँ उसने बनरंतर व्रत करते हुए एक ब्राह्मण को दे खा। वह ब्राह्मण चित्रगुप्त
ॐ और यमराजजी का पूजन कर रहा था। ॐ
ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ यमबितीया का बदन था। राजा ने पूछा- महाराज! आप क्या कर रहे हैं? ब्राह्मण ने ॐ
साथ िममराजजी का पूजन बकया। व्रत करके उसके बाद वह अपने घर में आया।
ॐ ॐ
कु छ बदन पीछे उसके मन को बवस्मरण हुआ और वह व्रत भूल गया। याद आने
पर उसने बफर से व्रत बकया।
ॐ ॐ
.in
समयोपरान्त काल सं योग से वह राजा सौदास मर गया। यमदूतों ने उसे दृढ़ता से
ॐ ॐ
बाूँ िकर यमराजजी के पास पहुूँिाया। यमराजजी ने उस घबराते हुए मन वाले
df
राजा को अपने दूतों से बपटते हुए देखा तो चित्रगुप्तजी से पूछा बक इस राजा ने
ॐ ॐ
ap
क्या कमम बकया? उस समय िममराजजी का विन सुन चित्रगुप्तजी बोले- इसने
ॐ बहुत ही दुष्कमम बकए हैं, परन्तु दै वयोग से एक व्रत बकया जो काबतमक के शुक्ल ॐ
st
पक्ष में यमबितीया होती है, उस बदन आपका और मेरा गन्ध, िं दन, फूल आबद
In
ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ऐसा सुनकर राजा युचिबिर भीष्म से बोले- हे बपतामह! इस व्रत में मनुष्ों को ॐ
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ॐ ॐ
हे िममराजजी! आपको नमस्कार है। हे चित्रगुप्तजी! आपको नमस्कार है। पुत्र
df
दीचजए, िन दीचजए सब मनोरथों को पूरे कर दीचजए। इस प्रकार चित्रगुप्तजी के
ॐ ॐ
ap
साथ श्री िममराजजी का पूजन कर बवचि से दवात और कलम की पूजा करें।
ॐ िं दन, कपूर, अगर और नैवेद्य, पान, दचक्षणाबद सामबग्रयों से पूजन करें और कथा ॐ
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सुन।ें बहन के घर भोजन कर उसके चलए िन आबद पदाथम दें। इस प्रकार भबक्त
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ॐ ॐ
ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ
ॐ
चित्रगुप्त आरती ॐ
ॐ
ॐ्जय्चित्रगुप्त हरे, स्वामीजय चित्रगुप्त हरे्। ॐ
भक्तजनों्के ्इस्तच्छत, फलको पूणम्करे॥
ॐ
बवघ्न्बवनाशक्मं गलकताम, सन्तनसुखदायी । ॐ
भक्तों्के ्प्रबतपालक, बत्रभुवनयश छायी्॥
.in
ॐ ॥्ॐ्जय्चित्रगुप्त हरे...॥ ॐ
ॐ ॐ
॥्ॐ्जय्चित्रगुप्त हरे...॥
कलम, दवात, शं ख, पबत्रका, करमें अबत्सोहै ।
ॐ ॐ
वैजयन्ती वनमाला, बत्रभुवनमन मोहै ॥
॥्ॐ्जय्चित्रगुप्त हरे...॥
ॐ ॐ
बवश्व्न्याय्का्कायम्सम्भाला, ब्रम्हाहषामये ।
कोबट्कोबट दे वता्तुम्हारे, िरणनमें िाये्॥
ॐ ॐ
॥्ॐ्जय्चित्रगुप्त हरे...॥
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ
नृप्सुदास अरू भीष्म्बपतामह, यादतुम्हें कीन्हा ।
ॐ वेग, बवलम्ब न्कीन्हौं, इस्तच्छतफल दीन्हा ॥ ॐ
॥्ॐ्जय्चित्रगुप्त हरे...॥
ॐ दारा, सुत, भबगनी, सबअपने स्वास्थ के ्कताम्। ॐ
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ॐ ॐ
तुम्बबन्और्न्दूजा, आसकरूूँ चजसकी्॥
df
॥्ॐ्जय्चित्रगुप्त हरे...॥
ॐ ॐ
ap
जो्जन्चित्रगुप्त जी्की्आरती, प्रेम्सबहत्गावैं ।
िौरासी्से्बनचित्छू टैं, इस्तच्छत्फल्पावैं ॥
ॐ ॐ
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॥्ॐ्जय्चित्रगुप्त हरे...॥
In
ॐ ॐ
ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ
ॐ ॐ
ॐ ॐ
ॐ ॐ
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ॐ ॐ
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ॐ ॐ
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ॐ ॐ
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ॐ ॐ
ॐ ॐ
ॐ ॐ
ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ