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विवाह संस्कार - विकिपीडिया PDF
विवाह संस्कार - विकिपीडिया PDF
ब त ही सुंदर श द म ह ववाह क व ध को
समझाया गया है जसमे सफ क यादान अथात् क या
के दान श द से मै सहमत नही ँ, ववाह का व ह अथ
व+वाह य न उ रदा य व का ांसफर है तो इसका सही
नाम क या अथवा वर का ववाह ही उ म है
सं कार योजन
ववाह का व प
आज ववाह वासना- धान बनते चले जा रहे ह। रंग,
प एवं वेष- व यास के आकषण को प त-प न के
चुनाव म धानता द जाने लगी है, यह वृ ब त ही
भा यपूण है। य द लोग इसी तरह सोचते रहे, तो
दा प य-जीवन शरीर धान रहने से एक कार के वैध-
भचार का ही प धारण कर लेगा। पा ा य जैसी
थ त भारत म भी आ जायेगी। शारी रक आकषण क
यूना धकता का अवसर सामने आने पर ववाह ज द -
ज द टू टते-बनते रहगे। अभी प नी का चुनाव शारी रक
आकषण का यान म रखकर कये जाने क था चली
है, थोड़े ही दन म इसक त या प त के चुनाव म
भी सामने आयेगी। तब असु दर प तय को कोई प नी
पस द न करेगी और उ ह दा प य सुख से वं चत ही
रहना पड़ेगा।
वशेष व था
ववाह सं कार म दे व पूजन, य आ द से स ब धत
सभी व थाएँ पहले से बनाकर रखनी चा हए।
सामू हक ववाह हो, तो येक जोड़े के हसाब से
येक वेद पर आव यक साम ी रहनी चा हए,
कमका ड ठ क से होते चल, इसके लए येक वेद पर
एक-एक जानकार भी नयु करना चा हए। एक
ही ववाह है, तो आचाय वयं ही दे ख-रेख रख सकते ह।
सामा य व था के साथ जन व तु क ज रत
वशेष कमका ड म पड़ती है, उन पर ार भ म
डाल लेनी चा हए। उसके सू इस कार ह।
वर-वरण ( तलक)
ववाह से पूव ' तलक' का सं त वधान इस कार है-
ॐ व णु व णु व णुः ीम गवतो
महापु ष य व णोरा या वतमान य,
अ ी णो तीये पराधे
ी ेतवाराहक पे, वैव वतम व तरे,
भूल के, ज बू पे, भारतवषे ,
भरतख डे, आयाव कदे शा तगते,
.......... े े, .......... व मा दे
.......... संव सरे .......... मासानां
मासो मेमासे .......... मासे ..........
प े .......... तथौ .......... वासरे
.......... गो ो प ः ............
(क यादाता) नामाऽहं ...............
(क या-नाम) ना या क यायाः
(भ ग याः) क र यमाण उ ाहकम ण
ए भवरण ैः ...............( वर का
गो ) गो ो प ं ...............( वर का
नाम) नामानं वरं क यादानाथ
वरपूजनपूवकं वामहं वृणे, त म कं
यथाश भा डा न , व ा ण,
फल म ा ा न ा ण च...............
(वर का नाम) वराय समपय।
ह र ालेपन
ववाह से पूव वर-क या के ायः ह द चढ़ाने का
चलन है, उसका सं त वधान इस कार है-
सव थम षट् कम, तलक, कलावा, कलशपूजन,
गु व दना, गौरी-गणेश पूजन, सवदे वनम कार,
व तवाचन कर। त प ात् न न मं बोलते ए वर/
क या क हथेली- अंग-अवयव म (लोकरी त के
अनुसार) ह र ालेपन कर-
ॐ यदाब न दा ायणा , हर य
शतानीकाय , सुमन यमानाः।
त मऽआब ना म शतशारदाय ,
आयु मांजरद यथासम्॥ -३४.५२
ार पूजा
ववाह हेतु बारात जब ार पर आती है, तो सव थम
'वर' का वागत-स कार कया जाता है, जसका म इस
कार है- 'वर' के ार पर आते ही आरती क था हो,
तो क या क माता आरती कर ल। त प ात् 'वर' और
क यादाता पर पर अ भमुख बैठकर षट् कम, कलावा,
तलक, कलशपूजन, गु व दना, गौरी-गणेश पूजन,
सवदे वनम कार, व तवाचन कर। इसके बाद
क यादाता वर स कार के सभी कृ य आसन, अ य, पा ,
आचमन, मधुपक आ द ( ववाह सं कार से) स प
कराएँ। त प ात्
मा यापण म -
दान म -
ववाह घोषणा
ववाह घोषणा क एक छोट -सी सं कृत भाषा क
श दावली है, जसम वर-क या के गो पता- पतामह
आ द का उ लेख और घोषणा है क यह दोन अब
ववाह स ब ध म आब होते ह। इनका साहचय धम-
संगत जन साधारण क जानकारी म घो षत कया आ
माना जाए। बना घोषणा के गुपचुप चलने वाले दा प य
तर के ेम स ब ध, नै तक, धा मक एवं कानूनी से
अवांछनीय माने गये ह। जनके बीच दा प य स ब ध
हो, उसक घोषणा सवसाधारण के सम क जानी
चा हए। समाज क जानकारी से जो छपाया जा रहा हो,
वही भचार है। घोषणापूवक ववाह स ब ध म
आब होकर वर-क या धम पर परा का पालन करते ह।
व त ीम दन दन चरणकमल भ सद्
व ा
वनीत नजकु लकमलक लका काशनैकभा
कार सदाचार स च र स कुल स त ा
ग र य .........गो य ........ महोदय य
पौ ः .......... महोदय य पौ ..........
महोदय य पु ः॥ ....... महोदय य पौ ी,
........ महोदय य पौ ी .........महोदय य
पु ी यतपा णः शरणं प े। व त
संवादे षूभयोवृ वरक ययो रंजी वनौ
भूया ताम्।
मंगला क
ववाह घोषणा के बाद, स वर मंगला क म बोल
जाएँ। इन म म सभी े श य से मंगलमय
वातावरण, मंगलमय भ व य के नमाण क ाथना क
जाती है। पाठ के समय सभी लोग भावनापूवक वर-वधू
के लए मंगल कामना करते रह। एक वयं सेवक उनके
ऊपर पु प क वषा करता रहे।
ॐम पंकज व रो ह रहरौ,
वायुमह ोऽनलः। च ो भा कर व पाल
व ण, ता धपा द हाः। नो नलकूबरौ
सुरगजः, च ताम णः कौ तुभः, वामी
श धर लांगलधरः , कुव तु वो मंगलम्॥
१॥
गंगा गोम तगोप तगणप तः ,
गो व दगोवधन , गीता गोमयगोरजौ
ग रसुता , गंगाधरो गौतमः। गाय ी ग डो
गदाधरगया , ग भीरगोदावरी ,
ग धव हगोपगोकु लधराः, कुव तु वो
मंगलम्॥२॥
ह तपीतकरण
श ा एवं ेरणा
या और भावना
श ा एवं ेरणा
क यादान
क यादान का अथ
गु तदान
गोदान
दशा ेरणा
मयादाकरण
दशा और ेरणा
या और भावना
ॐ गौर क या ममां पू य!
यथाश वभू षताम्। गो ाय शमण तु यं,
द ां दे व समा य॥ धम याचरणं स यक् ,
यतामनया सह। धमेर् चाथेर् च कामे च,
य वं ना तचरे वभ ॥ वर कह- ना तचरा म।
पा ण हण
दशा एवं ेरणा
या और भावना
थब धन
दशा और ेरणा
या और भावना-
या और भावना-
वर-वधू वयं त ाएँ पढ़, य द स भव न हो, तो आचाय
एक-एक करके त ाएँ ा या स हत समझाएँ।
वर क त ाएँ
क या क त ाएँ
या और भावना
ॐ वं नो अ ने व ण य व ान्, दे व य हेडो
अव या ससी ाः। य ज ो व तमः
शोशुचानो , व ा े षा स मुमु य मत्
वाहा। इदम नीव णा यां इदं न मम॥
-२१.३ ॐ स वं नो अ नेऽवमो भवोती,
ने द ो अ या ऽ उषसो ु ौ। अव य व नो
व ण रराणो, वी ह मृडीक सुहवो न ऽ ए ध
वाहा। इदम नीव णा यां इदं न मम॥
-२१.४ ॐ अया ा नेऽ य , न भश तपा ,
स य म वमयाऽ अ स। अया नो य ं
वहा यया , नो धे ह भेषज वाहा। इदम नये
अयसे इदं न मम। -का० ौ०सू० २५.१.११
ॐ ये ते शतं व ण ये सह ं, य याः पाशा
वतता महा तः, ते भनोर्ऽअ स वतोत
व णुः, व े मुंच तु म तः वकार्ः वाहा।
इदं व णायस व े व णवे व े यो दे वे यो
म द् यः वके य इदं न मम। -का० ौ०
सू० २५.१.११ ॐ उ मं व ण
पाशम मदवाधमं , वम यम थाय। अथा
वयमा द य ते तवानागसो, अ दतये याम
वाहा। इदं व णाया द याया दतये च इदं न
मम। -१२.१२
शलारोहण
दशा एवं ेरणा
या और भावना
प र मा
अ न क प त-पतनी प र मा कर। बाय से दाय क
ओर चल। पहली चार प र मा म क या आगे रहे
और वर पीछे । चार प र मा हो जाने पर लड़का आगे हो
जाए और लड़क पीछे । प र मा के समय प र मा
म बोला जाए तथा हर प र मा पूरी होने पर एक-एक
आ त वर-वधू गाय ी म से करते चल, इसका
ता पयर् है- घर-प रवार के काय म लड़क का नेतृ व
रहेगा, उसके परामश को मह व दया जाएगा, वर उसका
अनुसरण करेगा, य क उन काम का नारी को अनुभव
अ धक होता है। बाहर के काय म वर नेतृ व करता है
और नारी उसका अनुसरण करती है, य क
ावसा यक े म वर का अनुभव अ धक होता है।
जसम जस दशा क जानकारी कम हो, सरे म उसक
जानकारी बढ़ाकर अपने समतु य बनाने म यतनशील
रह। भावना े म नारी आगे ह, कम े म पु ष। दोन
प अपने-अपने थान पर मह वपूण ह। कुल मलाकर
नारी का वच व, पद, गौरव एवं वजन बड़ा बैठता है।
इस लए उसे चार प र मा करने और नर को तीन
प र मा करने का अवसर दया जाता है। गौरव के
चुनाव के ४ वोट क या को और ३ वोट वर को मलते ह।
इस लए सदा नर से पहला थान नारी को मला है।
सीताराम, राधे याम, ल मीनारायण, उमामहेश आ द
यु म म पहले नारी का नाम है, पीछे नर का।
या और भावना
लाजाहोम
स तपद
दशा और ेरणा भाँवर फर लेने के उपरा त स तपद
क जाती है। सात बार वर-वधू साथ-साथ कदम से
कदम मलाकर फौजी सै नक क तरह आगे बढ़ते ह।
सात चावल क ढे री या कलावा बँधे ए सकोरे रख दये
जाते ह, इन ल य- च को पैर लगाते ए दोन एक-
एक कदम आगे बढ़ते ह, क जाते ह और फर अगला
कदम बढ़ाते ह। इस कार सात कदम बढ़ाये जाते ह।
येक कदम के साथ एक-एक म बोला जाता है।
पहला कदम अ के लए, सरा बल के लए, तीसरा
धन के लए, चौथा सुख के लए, पाँचवाँ प रवार के
लए, छठवाँ ऋतुचया के लए और सातवाँ म ता के
लए उठाया जाता है। ववाह होने के उपरा त प त-
पतनी को मलकर सात काय म अपनाने पड़ते ह।
उनम दोन का उ चत और याय संगत योगदान रहे,
इसक परेखा स तपद म नधा रत क गयी है।
आसन प रवतन
स तपद के प ात् आसन प रवतन करते ह। तब तक
वधू दा हनी ओर थी अथात् बाहरी जैसी थ त म
थी। अब स तपद होने तक क त ा म आब हो
जाने के उपरा त वह घर वाली अपनी आ मीय बन
जाती है, इस लए उसे बाय ओर बैठाया जाता है। बाय
से दाय लखने का म है। बायाँ थम और दा हना
तीय माना जाता है। स तपद के बाद अब प नी को
मुखता ा त हो गयी। ल मी-नारायण्, उमा-महेश,
सीता-राम, राधे- याम आ द नाम म प नी को थम,
प त को तीय थान ा त है। दा हनी ओर से वधू का
बाय ओर आना, अ धकार ह तांतरण है। बाय ओर के
बाद पतनी गृह थ जीवन क मुख सू धार बनती है।
ॐ इह गावो नषीद तु, इहा ा इह पू षाः। इहो
सह द णो य , इह पूषा नषीदतु॥ -पा०गृ०सू०
१.८.१०
पाद ालन
आसन प रवतन के बाद गृह था म के साधक के पम
वर-वधू का स मान पाद ालन करके कया जाता है।
क या प क ओर त न ध व प कोई द प त या
अकेले पाद ालन करे। पाद ालीन करने
वाल का प व ीकरण- सचन कया जाए। हाथ म ह द ,
वार्, थाली म जल लेकर ालन कर। थम म के
साथ तीन बार वर-वधू के पैर पखार, फर सरे म के
साथ यथा ा भट द। ॐ या ते प त नी जा नी
पशु नी, गृह नी यशो नी न दता, तनूजार न
ततऽएनांकरो म, सा जीयर् वां मया सह॥ -पार०गृ०सू०
१.११ ॐ णा शालां न मतां, क व भ न मतां मताम्।
इ ा नी र तां शालाममृतौ सो यं सदः॥ -अथवर्०
९.३.१९
ुव-सूय यान
ुव थर तारा है। अ य सब तारागण ग तशील रहते ह,
पर ुव अपने न त थान पर ही थर रहता है। अ य
तारे उसक प र मा करते ह। ुव दशन का अथ है-
दोन अपने-अपने परम प व क पर उसी तरह ढ़
रहगे, जैसे क ुव तारा थर है। कुछ कारण उ प होने
पर भी इस आदश से वच लत न होने क त ा को
नभाया जाए, त को पाला जाए और संक प को पूरा
कया जाए। ुव थर च रहने क ओर, अपने
क पर ढ़ रहने क ेरणा दे ता है। इसी कार सूय
क अपनी खरता, तेज वता, मह ा सदा थर रहती
है। वह अपने नधा रत पथ्◌ा पर ही चलता है, यही हम
करना चा हए। यही भावना प त-प नी कर।
सूय यान ( दन म)
शपथ आ ासन
प त-प नी एक सरे के सर पर हाथ रखकर समाज के
सामने शपथ लेते ह, एक आ ासन दे कर अ तम त ा
करते ह क वे न संदेह न त प से एक- सरे को
आजीवन ईमानदार, न ावान् और वफादार रहने का
व ास दलाते ह। पछले दन पु ष का वहार
य के साथ छली-कपट और व ासघा तय जैसा
रहा है। प, यौवन के लोभ म कुछ दन मीठ बात करते
ह, पीछे ू रता एवं ता पर उतर आते ह। पग-पग पर
उ ह सताते और तर कृत करते ह। त ा को
तोड़कर आ थक एवं चा र क उ छृ ं खलता बरतते ह
और प नी क इ छा क परवाह नह करते। समाज म
ऐसी घटनाएँ कम घ टत नह होत । ऐसी दशा म ये
त ाएँ औपचा रकता मा रह जाने क आशंका हो
सकती है। स तान न होने पर लड़ कयाँ होने पर लोग
सरा ववाह करने पर उता हो जाते ह। प त सर पर
हाथ रखकर कसम खाता है क सरे रा मा क
ेणी म उसे न गना जाए। इस कार प नी भी अपनी
न ा के बारे म प त को इस शपथ- त ा ारा व ास
दलाती है।
मंगल तलक
वधू वर को मंगल तलक करे। भावना करे क प त का
स मान करते ए गौरव को बढ़ाने वाली स होऊ ॐ
व तये वायुमुप वामहै, सोमं व त भुवन य य प तः।
बृह प त सवगणं व तये, व तयऽ आ द यासो भव तु
नः॥ -ऋ० ५.५१.१२
ववाह के कार
1. ववाह
2. दै व ववाह
3. आश ववाह
4. जाप य ववाह
क या क सहम त के बना उसका ववाह अ भजा य
वग के वर से कर दे ना ' जाप य ववाह' कहलाता है।
5. गंधव ववाह
6. असुर ववाह
7. रा स ववाह
क या क सहम त के बना उसका अपहरण करके
जबरद ती ववाह कर लेना 'रा स ववाह' कहलाता है।
8. पैशाच ववाह
इ ह भी दे ख
बाहरी क ड़याँ
गाय ी शां तकुंज क ओर से
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