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कार काक काक


काक काक काक काक काक काक काक काक काक काक काक काक सार सार सार सार सार
सार सार सार सार सार सार सार सार सार सार सार सार सिंह सिंह सिंह सिंह सिंह सिंह सिंह
सिंह सिंह सिंह सिंह सिंह सिंह सिंह सिंह सिंह हार हार हार हार हार हार हार हार हार हार हार
हार हार हार हार हार हार हार राय राय राय राय राय राय राय राय राय राय राय राय राय
राय राय राय राय राय रं ‍क रं क रं क रं क रं क रं क रं क रं क रं क रं क रं क रं क रं क रं क रं क रं क
रं क रं क रं क कोरा कोरा कोरा कोरा कोरा कोरा कोरा कोरा कोरा कोरा कोरा कोरा कोरा कोरा हरि
हरि हरि हरि हरि हरि हरि हरि हरि हरि हरि हरि हरि हरि हरि हरि हरि हरि हरि हारे हारे हारे
हारे हारे हारे हारे हारे हारे हारे हारे हारे हारे हारे हारे हारे हारे हारे हारे सेक सेक सेक सेक सेक
सेक सेक सेक सेक सेक सेक सेक सेक सेक सेक सेक कही कही कही कही कही कही कही कही
कही कही कही कही कही कही कही कही स‍हारा सहारा सहारा सहारा सहारा सहारा सहारा सहारा
स‍हारा सहारा सहारा सहारा रही रही रही रही रही रही रही रही रही रही रही रही रही रही रही
रही रही रही रही सीर सीर सीर सीर सीर सीर सीर सीर सीर सीर सीर सीर सीर सीर सीर सीर
सीर राह राह राह राह राह राह राह राह राह राह राह राह राह राह राह राह राह राह राह रास
रास रास रास रास रास रास रास रास रास रास रास रास रास रास रास रास किस किस किस
किस किस किस किस किस किस किस किस किस किस किस सिर सिर सिर सिर सिर सिर
सिर सिर सिर सिर सिर सिर‍सिर सिर सिर सिर‍सही सही सही सही सही सही सही सही सही
सही सही सही सही सही सही सही सिहर सिहर सिहर सिहर सिहर सिहर सिहर सिहर सिहर
सिहर सिहर सिहर सिहर हं स हं स हं स हं स हं स हं स हं स हं स हं स हं स हं स हं स हं स हं स हं स हं स
हं स हं स हं स रहस रहस रहस रहस रहस रहस रहस रहस रहस रहस रहस रहस रहस रहस रहस
सरस सरस सरस सरस सरस सरस सरस सरस सरस सरस सरस सरस सरस हे र हे र हे र हे र
हे र हे र हे र हे र हे र हे र हे र हे र हे र हे र हे र हे र हे र हे र हे र हे र हे र हे र हे र कंकर कंकर कंकर कंकर
कंकर कंकर कंकर कंकर कंकर कंकर कंकर कंकर कंकर किया किया किया किया किया किया
किया किया किया किया किया किया किया‍सिरा सिरा सिरा सिरा सिरा सिरा सिरा सिरा सिरा
सिरा सिरा सिरा सिरा सिरा रिहा रिहा रिहा रिहा रिहा रिहा रिहा रिहा रिहा रिहा रिहा रिहा रिहा
रिहा रिहा काक काक काक काक कार कार सार सार हार हार राय राय रं क रं क कोरा कोरा हरि
हरि हारे हारे सेक सेक कही कही सहारा सहारा रही ही सीर सीर राह राह रास रास किस किस
किस सिर सिर सही सही सिहर सिहर सिहर हं स हं स रहस रहस सरस सरस हे र हे र कंकर
कंकर के के सी के के सी केसर केसर किसी किसी किराया किराया कोरा कोरा कोरा कोरा
सरकार सरकार जल जल जल जल तल तल तल तल तल तल वन वन वन वन वन वन वन
वन वन वन जय जय जय जय जय जय जय जय जय मत मत मत मत मत मत मत मत
मत मत तज तज तज तज तज तज तज तज तन तन तन तन तन तन तन तन तन मन
मन मन मन मन मन मन मन पल पल पल पल पल पल पल पल पल पल नल नल नल
नल नल नल नल कल कल कल कल कल कल लय लय लय लय लय लय लय लय लय सच
सच सच सच सच सच सच सच सच सच सच सच सच सच सच सच सच सच सच सच सच
सच मून मून मून मून मून मून मून मून मून मून मून मून मून मून मून चुन चुन चुन चुन
चन
ु चन
ु चन
ु चन
ु चन
ु चन
ु तिलक तिलक तिलक तिलक तिलक तिलक तिलक तिलक तिलक
तिलक तिलक तिलक तिलक तिलक तिलक तिलक तिलक तिलक तिलक तिलक माया माया
माया माया माया माया माया माया माया माया सुर सरु सुर सुर सुर सुर सुर सुर सुर सुर कुल
कुल कुल कुल कुल कुल कुल कुल कुल कुल कुल कुल कुल कुल कुल कुल कुल कुल कुल कुल
सन
ु ना सन
ु ना सन
ु ना सन
ु ना सन
ु ना सन
ु ना सन
ु ना सन
ु ना सन
ु ना सन
ु ना सन
ु ना सन
ु ना सन
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सुनना सुनना सुनना सुनना सुनना करम करम करम करम करम करम करम मकर मकर मकर
मकर मकर सरल सरल सरल सरल सरल सरल सरल सरल सरल पलक पलक पलक पलक
पलक पलक पलक पलक पलक पलक पलक पलक पलक पलक पलक पलक पलक पलक
पलक पलक पलक पलक पलक पलक पलक पलक पलक सकल सकल सकल सकल सकल
सकल सकल सकल सकल चयन चयन चयन चयन चयन चयन चयन चयन चयन चयन
चयन चयन चयन चयन पावस पावस पावस पावस पावस पावस पावस पावस पावस पावस

अयोध्‍या के भूपति श्री दशरथ के ज्‍येष्‍ट पुत्र श्री रामचन्‍द्र जी ने रावण से घमासान यद्ध
ु में
उसकी नाभि में अमत
ृ का भेद ज्ञात हो जाने के बाद कुछ ही क्षणों में अपने प्रचण्‍ड बाणों से
उसकी नाभि मे ऐसा प्रहार किया जिससे कुछ ही क्षणों में उसके प्राण पखेरू हो गये ऋषियों का
कहना है कि ऐसा विद्यावान मनष्ु ‍य कभी सफल नहीं हो सकता है इसलिए व्‍यक्ति को कभी
घमण्‍ड नहीं करना चाहिए।
बेरोजगार बेरोजगारी बेरोजगारी महत्‍वपूर्ण महन्‍वपूर्ण महत्‍वपूर्ण समव्‍या समस्‍या समस्‍या
समस्‍या समस्‍या क्रियान्‍वित क्रियान्‍वयन विकास विकास विकास विकास विकास विकास कर
सकता है विकास कर सकता है विकास कर सकता है विकास कर सकता है विकास कर सकता
है माननीय माननीय माननीय माननीय माननीय माननीय माननीय माननीय माननीय माननीय
माननीय माननीय मान्‍यवर मान्‍यवर मान्‍
यवर मान्‍यवर मान्‍यवर माननीय मान्‍यवर रोजगार
रोजगार रोजगार रोजगार रोजगार रोजगार रोजगार रोजगार बेरोजगार बेरोजगार बेरोजगार यहां
तक तो यहां तक तो यहां तक तो यहां तक तो यहां तक तो यहां तक तो यहां तक तो यहां
तक तो यहां तक तो यहां तक तो यहां तक तो जहां तक तो जहां तक जहां तक यहां तक यहां
तक यहां तक यहां तक यहां तक यहां तक यहां तक यहां तक मानदण्‍ड मानदण्‍ड मानदण्‍ड
मानदण्‍ड मानदण्‍ड मानदण्‍ड मानदण्‍ड मानदण्‍ड मानदण्‍ड मानदण्‍ड मानदण्‍ड मानदण्‍ड मानदण्‍ड
मानदण्‍ड मानदण्‍ड मानदण्‍ड मानदण्‍ड मानदण्‍ड पैसा पेसा पशु पैसा पेसा पशु पैसा पेसा पशु
पैसा पेसा पशु पैसा पेसा पशु पैसा पेसा पशु पैसा पेसा पशु जाना पडेगा जाना पडेगा जाना
पडेगा जाना पडेगा जाना पडेगा जाना पडेगा जाना पडता है जाना पडता है जाना पइता है जाना
पडता है जाना पडता है जाना पडता है जाना पड रहा है जाना पड रहा है जाना पडा होगा जाना
पडा था जाना पडा था जाना पडा होता जाना पडा होता जाना पडा होता प्रश्‍न प्रश्‍न प्रश्‍न प्रश्‍न
प्रश्‍न प्रश्‍न प्रश्‍न प्रश्‍न रोजगार की समस्‍या रोजगार की समस्‍या रोजगार की समस्‍या मनुष्‍य
मनुष्‍य मनुष्‍य मनुष्‍य मनुष्‍य मनुष्‍य अनुमान अनुमान अनुमान अनुमान अनुमान अनुमान
अनुमान अनुमान प्रतिशत प्रतिशत प्रतिशत प्रतिशत प्रतिशत प्रतिशत प्रतिशत प्रतिशत प्रतिशत
प्रतिशत प्रतिशत प्रतिशत प्रतिशत प्रतिशत प्रतिशत प्रतिशत प्रतिशत प्रतिशत प्रतिशत प्रतिशत
प्रतिरोध प्रतिरोध प्रतिरोध प्रतिरोध प्रतिरोध प्रतिराध प्रतिरोध प्रतिरोध प्रातिरोध मांग मांग मांग
मांग मांग मांग मांग मांग मांग मांग मांग मौकापरस्थि मौकापरस्त मांग मांगें मांगों मांगप
मांगप त्‍याग त्‍
याग त्‍याग त्‍
याग त्‍यागप इसको ध्‍
यान में रखते हुये ध्‍यान में रखते हुये इसको
ध्‍यान में रखते हुये रोजगार की जो समस्‍या है रोजगार की जो समस्‍या है खायी खायी खायी
खायी ऐसा माना गया है ऐसा माना गया है प्रधान प्रधान प्रधान प्रधान प्रधान परिषद परिषद
परिषद परिषद परिषद परिषद परिषद जानकार जानकार जानकार जानकारी जानकारी जानकारी
जानकारी जानकारी जानकार जानकारी प्रशन प्रश्‍न प्रश्‍न प्रश्‍न प्रश्‍न प्रश्‍न प्रश्‍न प्रश्‍न प्रश्‍न प्रश्‍न
न्रश्‍न प्रश्‍न प्रश्‍न प्रश्‍न आर्थिक आर्थिक आर्थिक माना जाता है माना जा रहा है माना जा चुका
कूकत कूकत कूकत कूकत कूकत कूकत कूकत कूकत कूकत कूकत कूकत कूकत हरित हरित
हरित हरित हरित हरित हरित हरित हरित हरित हरित हरित हरित नीली नीली नीली नीली
नीली नीली नीली नीली नीली नीली नीली नीली नीली नीली नीली नीली नीली नीली पाली पाली
पाली पाली पाली पाली पानी पानी पानी पानी पानी रानी रानी रानी रानी रानी रानी रानी रानी
रानी रानी रानी चुनना चन
ु ना चुनना चुनना चुनना चुनना चुनना चुनना वीरता वीरता वीरता
वीरता वीरता वीरता वीरता मरु त मरु त मरु त मरु त मरु त मरु त मरु त मरु त मरु त मरु त मरु त
मुरत मूरत मूरत मूरत मूरत मूरत मूरत सूरज सूरज सूरज सरू ज सूरज सूरज सूरज सूरज सूरज
सूरज सूरज सूरज तुमको तुमको तुमको तुमको तुमको जुन जून जन
ू जून जून जून जून जून
जून जून जून जून जून जून जून जून जून जन
ू जून पारस पारस पारस पारस पारस पारस
लकीर लकीर लकीर लकीर गबअइ दउए गबअइ दउउ गबअइ दउए गबअइ दउउ गबअइ दउउ
गबअइ दउए गबअइ दउए गबअइ दउए गबअइ दउए गबअइ दउए गबअइ गबअइ गबअइ
गबअइ दउए गबअइ दउए गबअइ दउए गबअइ दउए गबअइ दउए गबअइ दउए गबअइ दउए
गबअइ दउए गबअइ दउए ण ध ण ध ध ण ण ध ण ध ण ध ण ध ध ण ण ण ण ण ण ण
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ध ध ध ध ध ध ध ध ध ध ध ध ध ध ध ध ध ध ण ध ध ध ध ध ध ध ध ध ध ध ण ण
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दउए दउए दउए दउए दउए दउए दउए दउए दउए दउए दउए दउए दउएदउए दउए गबअइ
गबअइ दउए गबअइ दउए गबअइ दउए गबअइ दउए दउए दउए दउए दउए दउए दउए दउए
दउए दउए दउए दउए दउए दउए दउए दउए दउए दउए दउए दउए दउए दउए दउए दउए दउए
दउए दउए दउए दउए दउए दउए दउए गबअइ गबअइ गबअइ गद गद गद गद गद गद गद
गद गद गद गद गद गद गद गद गद गद गद गद गद गद गद गद गद गद गद गद गद गद
गद गद गद गद गद गद वेद वेद वेद वेद वेद वेद वेद वेद वेद वेद वेद वेद वेद वेद वेद वेद
वेद वेद वेद दग दग दग दग दग दग दग दग दग दग दग दग दग दग दग दग दग दग दग
दग दग दग दग दब दब दब दब दब दब दब दब दब दब दब दब दब द‍ब दब दब दब दब दब
दब दब दब दब दब दब दब दब दब दब दब दब दब दब दब दब दब दब दब दब दब दब दब
दब दब दब दब दब उब उब उब उब उब उब उब उब उब उब उब उब उब उब उब उब उब उब
उब उब उब उब उब उब उब उब उब उब उब उब उब उब उब उब उब उब उब उब उब उब एग
एग एग एग एग एग एग एग एग एग एग एग एग एग एग एग एग एग एग एग एग एग
एग एग एग एग एग एग एग एग एग एग एग एग एग एग दग दग दग दग दग दब दब दब
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एवं एवं एवं एवं एवं एवं एवं एवंएवं एवं एवं एवं एवं एवं एवं एवं एवं दं ग दं ग दं ग दं ग दं ग दं ग
दं ग दं ग दं ग दं ग दं ग दं ग दं ग दं ग दं ग दं ग दं ग दं ग दं ग दं ग दं ग दं ग दं ग दं ग दं ग दं ग दं ग दं ग
दं ग दं ग दं ग दं ग दं ग दं ग दं ग दं ग दं ग दं ग दं ग दं ग दं ग दं ग दं ग दं ग अद अद अद अद अद
अद अद अद अद अद अद अद अद अद अद अद अद अद अद अद अद अद अद अद अद अद
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बल बल बल बल बल बल बल बल बल बल बल बल बल बल बल बल बल बल बल बल बल
बल बल बल बल बल बल दन दन दन दन दन दन दन दन उन दन दन दन दन दन दन दन
दन दन दन दन दन दन दन दन दन दन दन दन दन दन दन दन दन दन दन दन दन दन
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बल बल बल बल बल बल बल बल बल बल बल बल बल बल बल बल बल बल बल बल बल
बल बल बल बल बल बल बल बल बल दन दन दन दन दन दन दन दन दन दन दन दन
दन दन दन दन दन दन दन दन दन दन दन दन दन दन दन दन दन दन दन दन दन दन
दन दन दन दन लद लद लद लद लद लद लद लद लद लद लद लद लद लद लद लद लद
लद लद लद लद लद लद लद लद लद लद लद लद लद लद लद लद लद लद लद तब तब
तब तब तब तब तब तब तब तब तब तब तब तब तब तब तब तब तब तब तब तब तब तब
तब तब तब तब तब तब तब तब तब तब तब तब तब तब दिल दिल दिल दिल दिल दिल
दिल दिल दिल दिल दिल दिल दिल दिल दिल दिल दिल दिल दिल दिल दिल दिल दिल दिल
दिल दिल दिल दिल दिल दिल दिल दिल दिल दिल दिल दिल दिल दिल दिल दिल दिल दिल
कुल कुल कुल कुल कुल कुल कुल कुल कुल कुल कुल कुल कुल कुल कुल कुल कुल कुल कुल
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मूल मूल मूल मूल मूल मूल मूल मूल मूल मूल मूल मूल मूल मूल मूल मूल मूल मूल बलि
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बलि बलि बलि बलि बलि बलि बलि बलि बलि बलि बलि बलि बलि बलि बलि बलि रे ल रे ल
रे ल रे ल रे ल रे ल रे ल रे ल रे ल रे ल रे ल रे ल रे ल रे ल रे ल रे ल रे ल रे ल रे ल रे ल रे ल रे ल रे ल रे ल
रे ल रे ल रे ल रे ल रे ल रे ल रे ल रे ल रे ल रे ल रे ल रे ल नील नील नील नील नील नील नील नील
नील नील नील नील नील नील नील नील नील नील नील नील नील नील नील नील नील नील
ओला ओला ओला ओला ओला ओला ओला ओला ओला ओला ओला ओला ओला ओला ओला
ओला ओला ओला ओला ओला ओला ओला ओला ओला ओला ओला ओला ओला ओला ओला
ओला ओला ओला ओला लाइ लाइ लाइ लाइ लाइ लाइ लाइ लाइ लाइ लाइ लाइ लाइ लाइ लाइ
लाइ लाइ लाइ लाइ लाइ लाइ लाइ लाइ लाइ लाइ लाइ लाइ लाइ लाइ लाइ लाइ लाइ लाइ लाइ
लाइ लाइ लाइ लाइ लाइ लाइ लाइ लाइ लाइ लाइ लाइ लाइ लाइ लाइ लाइ लाइ लाइ पाइ पाइ
पाइ पाइ पाइ पाइ पाइ पाइ पाइ पाइ पाइ पाइ पाइ पाइ पाइ पाइ पाइ पाइ पाइ पाइ पाइ पाइ
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बाल बाल बाल बाल बाल बाल बाल बाल बाल बाल बाल बाल बाल बाल बाल बाल बाल बाल
बाल बाल बाल आन आन आन आन आन आन आन आन आन आन आन आन आन आन
आन आन आन आन आन आान आन आन आन आन आन आन आन आन आन आन आन
आन आन आन आन आन आन आन आन आन आन आन आन आन आन आन आन आन
आन आन आन आन आन आन आन बान बान बाना बान बान बान बान बान बान बान बान
बान बान बान बान बान बान बान बान बान बान बान बान बान बान बान बान बान बान बान
बान बान बान बान बान बान बान बान बान ग्रेग ग्रेग ग्रेग ग्रेग ग्रेग ग्रेग ग्रेग ग्रेग ग्रेग ग्रेग
ग्रेग ग्रेग ग्रेग ग्रेग ग्रेग ग्रेग ग्रेग ग्रेग ग्रेग ग्रेग ग्रेग ग्रेग ग्रेग ग्रेग ग्रेग ग्रेग ग्रेग ग्रेग ग्रेग ग्रेग
ग्रेग ग्रेग ग्रेग ग्रेग ग्रेग ग्रेग ग्रेग ग्रेग प्रश्‍न प्रश्‍न प्रश्‍न प्रश्‍न प्रश्‍न प्रश्‍न प्रश्‍न प्रश्‍न प्रश्‍न प्रश्‍न
प्रश्‍न प्रश्‍न प्रश्‍न प्रश्‍न प्रश्‍न प्रश्‍न प्रश्‍न प्रश्‍न प्रश्न प्रश्‍न प्रश्‍न प्रश्‍न प्रश्‍न प्रश्‍न प्रश्‍न प्रश्‍न प्रश्‍न
प्रश्‍न प्रश्‍न प्रश्‍न प्रश्‍न प्रश्‍न प्रश्‍न प्रश्‍न प्रश्‍न प्रश्‍न प्रश्‍न प्रश्‍न प्रश्‍न प्रश्‍न प्रश्‍न प्रश्‍न प्रश्‍न प्रश्‍न
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क्राक क्राक क्राक क्राक क्राक क्राक क्राक क्राक क्राक क्राक क्राक क्राक क्राक क्राक क्राक क्राक
क्राक क्राक क्राक क्राक क्राक क्राक क्राक क्राक क्राक क्राक क्राक क्राक क्राक क्राक क्राक क्राक
क्राक क्राक क्राक बिक्री बिक्री बिक्री बिक्री बिक्री बिक्री बिक्री बिक्री बिक्री बिक्री बिक्री बिक्री बिक्री
बिक्री बिक्री बिक्री बिक्री बिक्री बिक्री बिक्री बिक्री बिक्री बिक्री बिक्री बिक्री बिक्री बिक्र‍ी बिक्री
बिक्री बिक्री बिक्री बिक्री बिक्री बिक्री ब्रिकी बिक्री बिक्री बिक्री बिक्री बिक्री मिस्र मिस्र मिस्र मिस्र
मिस्र मिस्र मिस्र मिस्र मिस्र मिस्र मिस्र मिस्र मिस्र मिस्र मिस्र मिस्र मिस्र मिस्र मिस्र मिस्र म्रिस
मिस्र मिस्र मिस्र मिस्र मिस्र मिस्र मिस्र मिस्र मिस्र मिस्र मिस मिस्र म्रिस मिस्र मिस्र म्रिस‍्रमिस्र
मिस्र मिस्र मिस्र मिस्र मिस्र मिस्र मिस्र मिस्र मिस्र मिस्र मिस्र मिस्र मिस्र मिस्र मिस्र मिस्र मिस्र
मिस्र मिस्र ऐनक ऐनक ऐनक ऐनक उे नक ऐनक ऐनक ऐनक ऐनक ऐनक ऐनक ऐनक ऐनक
ऐनक ऐनक ऐनक ऐनक ऐनक ऐनक ऐनक ऐनक ऐनक ऐनक ऐनक ऐनक ऐनक ऐनक ऐनक
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ऐनक ऐनक बेसन बेसन बेसन बेसन बेसन बेसन बेसन बेसन बेसन बेसन बेसन बेसन बेसन
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बेसन बेसन बेसन बेसन गूजर गज
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ू र गूजर गूजर गज
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ू र गूलर गूलर गूलर गूलर गूलर गूलर गूलर गूलर गूलर गूलर
गूलर गूलर गूलर गूलर गूलर गूलर गूलर गूलर गूलर गूलर गूलर गूलर गूलर गूलर गूलर गूलर
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बिजली बिजली बिजली बिजली बिजली बिजली बिजली बिजली बिजली बिजली बिजली बिजली
बिजली बिजली बिजली बिजली बिजली बिजली बिजली बिजली बिजली बिजली बिजली बिजली
बिजली बिजली बिजली बिजली बिजली बिजली बिजली बिजली बिजली बिजली अकेली अकेली
अकेली अकेली अकेली अकेली अकेली अकेली अकेली अकेली अकेली अकेली अकेली अकेली
अकेली अकेली अकेली अकेली अकेली अकेली अकेली अकेली अकेली अकेली अकेली अकेली
अकेली अकेली अकेली अकेली अकेली अकेली अकेली अकेली अकेली बिनना बिनना बिनना
बिनना बिनना बिनना बिनना बिनना बिनना बिनना बिनना बिनना बिनना बिनना बिनना
बिनना बिनना बिनना बिनना बिनना बिनना बिनना बिनना बिनना बिनना बिनना बिनना
बिनना बिनना बिनना बिनना बिनना बिनना बिनना बिनना बिनना बेबस बेबस बेबस बेबस
बेबस बेबस बेबस बेबस बेबस बेबस बेबस बेबस बेबस बेबस बेबस बेबस बेबस बेबस बेबस बेबस
बेबस बेबस बेबस बेबस बेबस बेबस बेबस बेबस बेबस बेबस बेबस बेबस बेबस बेबस बेबस बेबस
बेबस बेबस बेबस बेबस बेबस बेबस बेबस बेबस बेबस बेबस बेबस बेबस बेबस बेबस उपवन
उपवन उपवन उपवन उपवन एपवन उपवन उपवन उपवन उपवन उपवन उपवन उपवन उपवन
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उलचना उलचना उलचना उलचना उलचना उलचना गीली गीली गीली गीली गीली गीली

गद गद गद गद वेद वेद वेद वेद वेद दग दग दग दग दग दग दग दग दब दब दब दब दब


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लाइ लाइ लाइ लाइ लाइ लाइ लाइ पाइ पाइ पाइ पाइ पाइ पाइ पाइ पाइ पाइ बाल बाल बाल
बाल बाल बाल बाल बाल बाल आन आन आन आन आन आन आन आन आन आन आन
आन आन बान बान बान बान बान बान बान बान बान ग्रेग ग्रेग ग्रेग ग्रेग ग्रेग ग्रेग ग्रेग ग्रेग
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प्रकार प्रकार प्रकार प्रकार प्रकार प्रकार ग्रहण ग्रहण ग्रहण ग्रहण ग्रहण ग्रहण ग्रहण ग्रहण ग्रहण
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क्राक क्राक क्राक क्राक बिक्री बिक्री बिक्री बिक्री बिक्री बिक्री बिक्री बिक्री बिक्री बिक्री मिस्र मिस्र
मिस्र मिस्र मिस्र मिस्र मिस्र मिस्र मिस्र मिस्र मिस्र मिस्र मिस्र मिस्र ऐनक ऐनक ऐनक ऐनक
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बिजली बिजली बिजली बिजली बिजली बिजली बिजली बिजली बिजली बिजली बिजली अकेली
अकेली अकेली अकेली अकेली अकेली अकेली अकेली अकेली अकेली अकेली बिनना बिनना
बिनना बिनना बिनना बिनना बिनना बिनना बिनना बिनना बिनना बिनना बिनना बिनना
बिनना बिनना बिनना बिनना बिनना बिनना बिनना उपवन उपवन उपवन उपवन उपवन
उपवन उपवन उपवन उपवन उपवन उपवन उपवन उपवन गीली गीली गीली गीली गीली गीली
गीली गीली गीली गीली गीली गीली गीली गीली गीली गिरना गिरना गिरना गिरना गिरना
गिरना गिरना गिरना गिरना गिरना गिरना गिरना गिरना गिरना बीमार बीमार बीमार बीमार
बीमार बीमार बीमार बीमार बीमार बीमार बीमार बीमार गबन गबन गबन गबन गबन गबन
गबन गबन गबन गबन गबन गबन गबन गबन गबन गबन गबन गबन गबन जामुन जामुन
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तितली तितली तितली ति‍तली तितली तितली तितली तितली तितली तितली तितली तितली
तिलली तिलली तिलली तिलली तिलली तितली तिलली तिलली तितली तितली तितली तितली
तितली तितली तितली तितली तितली तितली तितली तितली तितली तितली लेजर लेजर लेजर
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वीलर वीलर वीलर वीलर वीलर वीलर वीलर वीलर वीलर वीलर वीलर वीलर वीलर वीलर वीलर
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पलिया पलिया पलिया पलिया पलिया पलिया पलिया शलजम शलजम शलजम शलजम शलजम
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मलमल मलमल मलमल मलमल मलमल मलमल मलमल मलमल मलमल मलमल मलमल
मलमल मलमल कसरत कसरत कसरत कसरत कसरत कसरत कसरत कसरत कसरत कसरत
कसरत कसरत कसरत कसरत कसरत कसरत कसरत कसरत कसरत कसरत कसरत कसरत
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कसरत कसरत कसरत कसरत कसरत कसरत कसरत कसरत कसरत कसरत कसरत कसरत
कसरत कसरत कसरत कसरत कसरत कसरत कसरत कसरत कसरत कसरत कसरत कसरत
आजीविका आजीविका आजीविका आजीविका आजीविका आजीविका आजीविका आजीविका
आजीविका आजीविका आजीविका आजीविका आजीविका आजीविका आजीविका आजीविका
आजीविका अग्रसर अग्रसर अग्रसर अग्रसर अग्रसर अग्रसर अग्रसर अग्रसर अग्रसर अग्रसर
अग्रसर अग्रसर अग्रसर अग्रसर अग्रसर अग्रसर अग्रसर एहसान एहसान एहसान एहसान एहसान
एहसान एहसान एहसान एहसान एहसान एहसान एहसान एहसान एहसान एहसान एहसान
एहसान एहसान एहसान बनारस बनारस बनारस बनारस बनारस बनारस बनारस बनारस
बनारस बनारस बनारस बनारस ध्‍यान ध्‍यान ध्‍यान ध्‍यान ध्‍यान ध्‍यान ध्‍यान ध्‍यान ध्‍यान
ध्‍यान ध्‍यान ध्‍यान ध्‍यान ध्‍यान ध्‍यान ध्‍यान ध्‍यान ध्‍यान ध्‍यान ध्‍यान ध्‍यान ध्‍यान ध्‍यान
ध्‍यान ध्‍यान ध्‍यान ध्‍यान ध्‍यान ध्‍यान धन्‍यवाद धन्‍यवाद धन्‍
यवाद सरकार सरकार सरकार
सरकार सरकार संविधानिक संविधानिक संविधानिक

कृपा कृपा कृपा कृपा कृपा कृपा कृपा कृपा कृपा कृपा कृपा कृपा कृपा कृपा कृपा कृपा कृपा कृपा
कृपा कृपा कृपा कृपा कृपा कृपा कृपा कृपाकृपा कृपा कृपा कृपा कृपा कृपा कृपा कृपा कृपा कृपा
कृपा कृपा कृपा कृपा कृपा कृपा कृपा कृपा कृपा कृपा कृपा कृपा कृपा कृपा कृपा कृपा कृपा कृपा
कृपा कृपा कृपा कृपा कृपा कृपा कृपा कृपा कृपा बज
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खाना खाना खाना खााना खाना खाना खाना खाना खाना खाना खाना खाना खाना खाना खाना
खाना सशष सशष सशष सशषसशष सशष षष ष ष ष ष ष ष ष श शश ष ष ष ष ष ष ष ष
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झमाझम झमाझम झमाझम झमाझम झमाझम झमाझम झमाझम झमाझम झमा झम झमा
झमा झमा झम झमा झम झमा झम झम झमा झम झमा झम झमा झमा झम झमा झमा
झम झमा झम झमा झम झमा झम झमा झमा झमा झमाझम झमा झमा झनकार झनकार
झनकार झनकार झनकार झनकार झनकार झनकार झनकार झनकार झनकार झनकार झनकार
झनकार झनकार झन्‍कार झनकार झनकार झन्‍कार झनकार झनकार झनकार झनकार झनकार
झनकार झमाझम झमाझम झमाझम झनकार झनकार घनघोर घनघोर घनघोर घनघोर घनघोर
घनघोर घनघोर घनघोर घनघोर घनघोर झमाझम झमाझम झमाझम झमा झमझमाझमा
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घ झ घ झ घ झघ घ्‍झ घ झ घ झ घ झ घ झ घ झ घ ख खक्षक्षक्ष ख क्ष क्ष क्ष ष

ख ख ख ख क्ष क्ष क्ष क्ष क्षमा क्षमा क्षमा क्षमा क्षमा क्षमा क्षमा क्षमा क्षमा क्षमा क्षमा क्षमा
क्षमा क्षमा क्षमा क्षमा क्षमा क्षाम क्षमा क्षाम क्षामा क्षमा क्षमाक्षमा क्षमा क्षमा क्षमा क्षमा
क्षमाक्षमा क्षमा क्षमा क्ष्‍मक्षमा क्षमा क्षमा क्षमा क्षमा क्षमा क्षमा क्षमा क्षमा क्षमा क्षमा क्षमा
क्षमा क्षमा शेष शेष शेष झमाझम झमाझम झमाझमा झमाझम झमा झम झमा झम झमा झम
घनघोर घनघोर

थ थकान थकान थकान थकान सिक्‍


का सिक्‍का सिक्‍
का सिक्‍
का सिक्‍का सिक्‍
का सिक्‍
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किसका सिक्‍का सिक्‍का सिक्‍
का सिक्‍का सिक्‍का सिक्‍
का सिक्‍का सिक्‍का सिक्‍
का सिक्‍का सिक्‍का
सिक्‍
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का सिक्‍का सिक्‍
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भारत भारत क्‍क्‍क्‍क्‍क्‍क्‍क्‍क्‍क्‍क्‍क्‍क्‍क्‍क्‍क्‍ै ै ैक्‍ै े ै ै ै ै ै ै ै ै क्‍
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रावण रावण रावण रावण रावण्‍से घमासान रावण रावण रावण रावण रावण झमाझमा
झमाझमा झमा झम झमा झमा झमा झमा झमा झमा झम झमा झमा झम झमा झम झमा
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थकान थकान थकान थकान थकान थकान थकान थकान थकान थकान थकान थकान थकान
थकान थकान थकान थकान थकान खरगोश खरगोश खरगोश खरगोश खरगोश खरगोश
खरगोश खरगोश खरगोश शिक्षा शिक्षा शिक्षा शिक्षा द्वारा द्वारा द्वारा द्वारा द्वारा द्वारा
द्वारा द्वारा द्वारा द्वारा द्वारा द्वारा द्वारा द्वारा द्वारा द्वारा द्वारा द्वारा द्वारा द्वारा
द्वारा द्वारा द्वारा द्वारा द्वारा द्वारा द्वारा द्वारा द्वारा द्वारा द्वारा द्वारा शिक्षा शिक्षा
शिक्षा शिक्षा शिक्षा फैशन फैशन की दनि
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राम रामकुमार रामकुमार दयालु दयालु भौतिक भौतिक भौतिक भौतिक भौतिक भौतिक भौतिक
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भारत भारत भारत रास्‍ता रास्‍ता रास्‍ता रास्‍ता रास्‍ता रास्‍ता रास्‍ता रास्‍ता रास्‍ता रास्‍ता रास्‍ता
रास्‍ता रास्‍ता रास्‍ता रास्‍ता रास्‍ता रास्‍ता रास्‍ता रास्‍ता रास्‍ता रास्‍ता रास्‍ता रास्‍ता रास्‍ता रास्‍ता
रास्‍ता रास्‍ता रास्‍ता रास्‍ता रास्‍ता रास्‍ता रास्‍ता रास्‍ता हास्‍य हास्‍य हास्‍य हास्‍य हास्‍य हास्‍य
हास्‍य हास्‍य हास्‍य हास्‍य हास्‍य हास्‍य हास्‍य हास्‍य हास्‍य हास्‍य हास्‍य हास्‍य हास्‍य हास्‍य हास्‍य
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हास्‍य हास्‍य हास्‍य हास्‍य हास्‍य हास्‍य हास्‍य हास्‍य हास्‍य क्‍या क्‍
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या क्‍या शोर शोर शोर शोर शोर शोर शेार शोर शोर शोर
शोर शोर शोर शोर शोर शोर शोर शोर शोर शोर शोर शोर शोर शोर शोर शोर शोर शोर शोर
शोर शोर शोर शोर शोर शोर शोर शोर शोर शोर शोर शोर शोर शोर शोर शोर शोर शोर ज्ञानी
ज्ञानी ज्ञानी ज्ञानी ज्ञानी ज्ञानी ज्ञानी ज्ञानी ज्ञानी ज्ञानी ज्ञानी ज्ञानी ज्ञानी ज्ञानी ज्ञानी ज्ञानी
ज्ञानी ज्ञानी ज्ञानी ज्ञानी ज्ञानी ज्ञानी ज्ञानी ज्ञानी ज्ञानी ज्ञानी ज्ञानी ज्ञानी ज्ञानी ज्ञानी ज्ञानी
ज्ञानी ज्ञानी ज्ञानी ज्ञानी ज्ञानी ज्ञानी ज्ञानी ज्ञानी त‍थ्‍य तथ्‍य त‍
थ्‍य तथ्‍य तथ्‍य तथ्‍य तथ्‍य
तथ्‍य तथ्‍य तथ्‍य तथ्‍य तथ्‍य तथ्‍य तथ्‍य तथ्‍य तथ्‍य तथ्‍य तथ्‍य तथ्‍य तथ्‍य तथ्‍य तथ्‍य तथ्‍य
तथ्‍य तथ्‍य तथ्‍य तथ्‍य तथ्‍य तथ्‍य तथ्‍य तथ्‍य तथ्‍य तथ्‍य तथ्‍य तथ्‍य तथ्‍य तथ्‍य तथ्‍य तथ्‍य
तथ्‍य तथ्‍य

शीरा शीरा शीरा शीरा शीरा शीरा शीरा शीरा शीरा शीरा शीरा शीरा शीरा शीरा शीरा शीरा शीरा
शीरा शीरा शीरा शीरा शीरा शीरा शीरा शीरा शीरा शीरा शीरा शीरा शीरा शीरा शीरा शीरा शीरा
शीरा शीरा शीरा शीरा शीरा शीरा शीरा शीरा शीरा शीरा शीरा खाल खाल खाल खाल खाल खाल
खाल खाल खाल खाल खाल खाल खाल खाल खाल खाल खाल खाल खाल खाल खाल खाल
खाल खाल खाल खाल खाल खाल खाल खाल खाल खाल खाल खाल खाल खाल खाल खाल
खाल खाल खाल खाल धीमा धीमा धीमा धीमा धीमा धीमा धीमा धीमा धीमा धीमा धीमा धीमा
धीमा

धीमा धीमा धीमा धीमा धीमा धीमा धीमा धीमा धीमा धीमा धीमा धीमा धीमा धीमा धीमा
धीमा धीमा धीमा धीमा धीमा धीमा धीमा धीमा धीमा धीमा धीमा कैसा कैसा कैसा कैसा कैसा
कैसा कैसा कैसा कैसा कैसा कैसा कैसा कैसा कैसा कैसा कैसा कैसा कैसा कैसा कैसा कैसा कैसा
कैसा कैसा कैसा कैसा कैसा कैसा कैसा कैसा कैसा कैसा कैसा कैसा कैसा कैसा कैसा कैसा कैसा
कैसा कैसा कैसा बस्‍ता बस्‍ता बस्‍ता बस्‍ता बस्‍ता बस्‍ता बस्‍ता बस्‍ता बस्‍ता बस्‍ता बस्‍ता बस्‍ता
बस्‍ता ज्ञानी ज्ञानी ज्ञानी ज्ञानी ज्ञनी ज्ञानी भारत भारत भारत भारत भारत भारत भारत ज्ञभ्‍भ्‍
श्रावण श्रावण श्रावण श्रावण श्रावण श्रावण श्रावण श्रावण श्रावण श्रावण श्रावण श्रावण श्रावण
श्रावण श्रावण श्रावण श्रावण श्रावण श्रावण श्रावण श्रावण श्रावण श्रावण श्रावण श्रावण श्रावण
श्रावण श्रावण श्रावण श्रावण श्रावण श्रावण श्रावण श्रावण रूना रूना रूना रूना रूना रूना रूा रूना
रूना रूना रूना रूना रूना रूना रूना रूना रूना रूनर रूनर रूनर रून रून रून रूना रूना रूना
रूना रूना रूना रूना रूना रूना रूना रूना रूना रूपा रूपा रूपा रूपा रूपा रूपा रूपा रूपा रूपा रूपा
रूपा रूपा रूपा रूपा रूपा रूपा रूपा रूपा रूपा रूपा रूपा रूपा रूपा रूपा रूपा रूपा

ऋत्रद्ध त्रद्ध’ त्रद्धऋ ऋत्रद्ध ऋत्रद्ध ऋत्रद्ध ऋत्रद्ध ऋत्रद्ध ऋत्रद्ध त्रत्रद्ध त्रत्रद्ध ऋत्र 8 ऋत्रद्ध ऋत्रद्ध ऋत्र 8
ऋत्र 8 ऋत्रद्ध ऋत्रद्ध ऋत्रद्ध ऋत्रद्ध ऋत्रद्ध ऋत्रद्ध ऋत्र’द्ध द्धत्रऋ द्धत्रऋ द्ध 9 ऋ द्धत्रऋ द्धत्रऋ द्धत्रऋ
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द्धत्रऋ द्धत्रऋ द्धत्रऋ द्धत्रऋ द्धत्रऋ द्धत्रऋ द्धत्रऋ द्धत्रऋ द्धत्रऋ द्धत्रऋ द्धत्रऋ द्धत्रऋ पथ्
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रूस्‍रूस रूस रूस रूस रूस रूस रूस रूस रूस रूस रूस थाल थाल थाल थाल थाल थाल थाल
थाल थाल थाली थाली थाल थाल थानी थाली थाली थाली थाली थाली थाली थाली थाल थाल
थाल थाल थाली थमा थमा थमा थमा थमा थमा थमा थमा थमा थाम थमा थमा थमा थमा
थमा थ्‍मा थ्‍मा थम थमा थम थम थम थम थम थम थम थम थम थम थम थम थम थम
थम थम थम थम थम थम थम थम थम बौना बौना बौना बौना बौना बौना बौना बौना बौना
बौना बौना बौना बौना बौना बौना बौना बौना बौना बौना बौना बौना बौना बौना रूपया रूपया
रूपया रूपया रूपया रूपया रूपया रूपया रूपया रूपया रूपया रूपाया रूपया रूपाया रूपया रूपया
रूपाया रूपया रूपाया रूपया रूपया रूपया रूपया रूपया रूपया रूपया रूपया रूपया रूपाया रूपया
रूपया रूपया रूपया रूपया रूपया रूपया रूपया रूपया रूपया रूपया रूपया रूपया रूपया रूपया
रूपया रूपया रूपया रूपया मस्‍ताना मस्‍ताना मस्‍ताना मस्‍ताना मस्‍ताना मस्‍ताना मस्‍ताना

सवाल जवाब करना करना पढना लिखना सोना खाना पहनना दिसम्‍बर दिसम्‍बर दिसम्‍बर
अक्‍टूबर अक्‍टूबर अक्‍टूबर भारतवर्ष भारतवर्ष भारतवर्ष पल्‍लव पल्‍लव पल्‍लव पग्‍
गड पग्‍
गड
पग्‍ग्ड
‍ दिग्‍गज दिग्‍गज दिग्‍
गज यथार्थ यथार्थ यथार्थ ग्राहक ग्राहक ग्राहक भ्रमण भ्रमण भ्रमण
टमटम टमटम टमटम वाक्‍य वाक्‍य वाक्‍य शक्तिशाली शक्तिशाली प्रभावशाली प्रभावशाली
प्रभावशाली बलशाली बलशाली बलशाली श्रद्धापू ्र्वक श्रद्धापूर्वक श्रद्धापूर्वक चरणामत
ृ चरणामत

चरणामत
ृ चरणामत
ृ चरणामत
ृ चरणामत
ृ प्रकृति प्रकृति प्रकृाति प्रकृति प्रकृति प्रकृति प्रकृति
प्रकृति प्रकृति ज्‍वालामुखी ज्‍वालामुखी ज्‍वालामुखी ज्‍वालामुखी पर्वत पर्वत पर्वत पर्वत इतिहास
इतिहास इतिहास इतिहास इतिहास इतिहास राजनीतिज्ञ राजनीतिज्ञ राजनीतिज्ञ राजनीतिज्ञ
राजनीतिज्ञ राजनीतिज्ञ राजनीतिज्ञ स्‍वस्‍थ स्‍वस्‍थ स्‍वस्‍थ स्‍वस्‍थ स्‍वस्‍थ स्‍वस्‍थ स्‍वस्‍थ व्‍यापारी
व्‍यापारी व्‍यापारी व्‍यापारी व्‍यापारी व्‍यापारी व्‍यापारी विश्‍वविद्धालय केन्‍द्र केन्‍द्र केन्‍द्र केन्‍द्र
केन्‍्द्र केन्‍द्रीय केन्‍द्रीय केन्‍द्रीय केन्‍द्रीय स्‍वार्थी स्‍वार्थी स्‍वार्थी स्‍वार्थी नगण्‍य नगण्‍य नगण्‍

नगण्‍य नगण्‍य नगण्‍य नगण्‍य नगण्‍य नगण्‍य नगण्‍य नगण्‍य नगण्‍य

अयोध्‍या के भूपति श्री दशरथ के ज्‍येष्‍ठ पुत्र श्री रामचन्‍द्र जी ने रावण से घमासान युद्ध के बाद
में उस‍की नाभि में अमत
ृ का भेद ज्ञात हो जाने पर झटपट रथ पर चढकर अपने प्रचण्ड बाणों
का उसकी नाभि पर ऐसा प्रहार किया जिससे कुछ ही क्षणों में उसके प्राण पखेरू हो गये।
ऋषियों का कहना है कि ऐसा विद्धावान मनष्ु ‍य अर्थात रावण की प्रकृति वाला व्‍यक्ति कभी
सफल नहीं हो सकता इसलिए मनुष्‍य को कभी घमण्ड नहीं करना चाहिए।

अयोध्‍या के भप
ू ति श्री दशरथ के ज्‍येष्‍ठ पत्र
ु श्री रामचन्‍द्र जी ने रावण से घमासान यद्ध
ु में
उसकी नाभि में अमत
ृ का भेद ज्ञात हो जाने पर झटपट रथ पर चढकर अपने प्रचण्ड बाणों का
उसकी नाभि पर ऐसा प्रहार किया जिससे कुछ ही क्षणों में उसके प्राण पखेरू हो गये। ऋषियों
का कहना है कि ऐसा विद्धावान मनुष्‍य अर्थात रावण की प्रकृति वाला व्‍यक्ति कभी सफल नहीं
हो सकता इसलिए मनष्ु ‍य को कभी घमण्‍ड नहीं करना चाहिए।

आजकल हमारे दे श में फैशन सा चल पडा है कि कुछ विशिष्‍ट लोग, दस


ू रों के द्वारा पहनार्इ
गयी, सग
ु न्‍ध्ति पष्ु ‍पों की माला को पहनने के तरु न्‍त बाद ही उतार दे ते हैं, उन्‍हें यह माला ऐसी
लगती है जैसे किसी ने उनके गले में काला ना लपेट दिया हो। हमारा प्राचीन साहित्‍य एवं
इतिहास यह स्‍मरण कराता है कि सुमन माला को निकालने के कारण ही दे वासुर संग्राम तक
छिड गया था। जिसमें दे वराज कंठहार को निकालने के अपराध में दे वराज इन्‍द्र सिंहासन से
उतार दिये गये थे। गले में डाली गयी माला की सग
ु न्‍
ध स्‍वाभाविक ही नाक में प्रवेश कर जाती
है जिससे भीतर समार्इ हुई दर्ग
ु न्‍ध दरू हो जाती है , मन प्रसन्‍न एवं प्रफुल्‍लित हो जाता है ,रोग
दोष दरू भाग जाते हैं। शरीर स्‍वस्‍थ और शुभ संकल्‍पों का सम्‍यक समीकरण जाग्रत हो जाता
है । गले में डाली गयी माला का अपमान करने के कारण भगवान शिव की सती को, अमने ही
पिता दक्ष द्वारा संचालित यज्ञ में आहूति दे कर अपने शरीर को नष्‍ट करना पडा था, क्‍योंकिे
उनके पिता ने ऋषि द्वारा दी गई माला का अपमान किया था।

हमारे दे श में जिस तरह नई शिक्षा नीति के माध्‍यम से सामाजिक,आर्थिक पुनर्गठन का कार्य
शुरू किया गया है उसी प्रकार सोवियत संघ में शिक्षण पद्धतियों के साथ साथ शिक्षा प्रक्रिया में
सुधार के श्रेष्‍ठ तरीकों को खोजने का प्रयास कर रहे हैं। इसे स्‍कल में पेरेस्‍त्रोइका का नाम दिया
जा रहा है ।

ऊ ऊ उफ ऊ ऊ ऊ ऊ ऊ ऊ ऊ ऊ ऊ ऊ ऊ ऊ ऊ ऊ ऊ ऊ ऊ ऊ ऊ उु ऊ ऊ ऊ ऊ ऊ ऊ ऊ ऊ
ऊ ऊ ऊ ऊ ऊ ऊ
अयोध्‍या के भुपति श्री दशरथ के ज्‍येष्‍ठ पुत्र श्री रामचन्‍द्र जी ने रावण से घमासान युद्ध के
उसकी नाभि में अमत
ृ का भेद ज्ञात हो जाने पर झटपट रथ पर चढकर अपने प्रचण्‍ड बाणों से
उसकी नाभि पर ऐसा प्रहार किया जिससे कुछ ही क्षणों में उसके प्राण पखेरू हो गये। ऋषियों
का कहना है कि ऐसा विद्धावान मनष्ु ‍य अर्थात रावण की प्रकृति वाला मनष्ु ‍य कभी सफल नहीं
हो सकता इसलिए मनुष्‍य को कभी घमण्‍ड नहीं करना चाहिए। ऊ ऊ

अयोधया के भप
ू ति श्री दरशरथ के ज्‍येष्‍ठ पत्र
ु श्री रामचन्‍द्र जी ने रावण से घमासान यद्ध
ु में
उसकी नाभि में अमत
ृ का भेद ज्ञात हो जाने पर झटपट रथ पर चढकर अपने प्रचण्‍ड बाणों से
का उसकी नाभि पर ऐसा प्रहार किया कि कुछ ही क्षणों में उसके प्राण पखेरू हो गये। ऋषियों
का कहना है कि ऐसा विद्यावान मनुष्‍
य अर्थात रावण की प्रकृति वाला व्‍यक्ति कभी सफल नहीं
हो सकता इसलिए मनष्ु ‍य को कभी घमण्‍ड नहीं करना चाहिए।

अयोध्‍या के भूपति श्री दशरथ के ज्‍येष्‍ठ पुत्र श्री रामचन्‍द्र जी ने रावण से घमासान युद्ध में
उसकी नाभि में अमत
ृ का भेद ज्ञात हो जाने पर झटपट रथ पर चढकर अपने प्रचण्‍ड बाणों का
उसकी नाभि पर ऐसा प्रहार किया जिससे कुछ ही क्षणों में उसके प्राण पखेरू हो गये। ऋषियों
का कहना है कि ऐसा विद्यावान मनुष्‍
य अर्थात रावण की प्रकृति वाला व्‍यक्ति कभी सफल नहीं
हो सकता इसलिए मनुष्‍य को कभी घमण्‍ड नहीं करना चाहिए। अयोध्‍या के भूपति श्री दशरथ के
ज्‍येष्‍ठ पुत्र श्री रामचन्‍द्र जी ने रावण से घमासान युद्ध में उसकी नाभि में अमत
ृ का भेद ज्ञात
हो जाने पर झटपट रथ पर चढकर अपने प्रचण्‍ड बाणों का उसकी नाभि पर ऐसा प्रहार किया
जिससे कुछ ही क्षणों में उसके प्राण पखेरू हो गये। ऋषियों का कहना है कि ऐसा विद्यावान
मनुष्‍य अर्थात रावण की प्रकृति वाला

आजकल हमारे दे श एवं प्रदे श में यह फैशन सा चल पडा है कि कुछ विशिष्‍ट लोग,दस
ू रों के
द्वारा पहनाई गयी सुगन्धित पुष्‍पों की माला को पहनने के तुरन्‍त बाद ही उतार दे ते हैं,उन्‍हें
यह सम्‍मान सूचक माला ऐसी लगती है जैसे किसी ने उनके गले में नाग लपेट दिया हो।
हमारा प्राचीन साहित्‍य एवं इतिहास यह स्‍मरण कराता है कि सम
ु न माला को निकालने के
कारण ही दे वासुर संग्राम तक छिड गया था,क्‍योकि कंठहार को निकालने के अपराध में दे वराज
इन्‍द्र सिंहासन से उतार दिये गये थे। गले में डाली गयी माला की सग
ु न्ध स्‍वाभाविक ही नाक
में प्रवेश कर जाती है जिससे भीतर समार्इ हुई दर्ग
ु न्‍ध दरू हो जाती है , मन प्रसन्‍न एव ्ं
प्रफुल्‍लित हो जाता है ,रोग दोष भाग जाते हैं। शरीर में स्‍वस्‍थ और

अयोधया के भूपति श्री दशरथ के ज्‍येष्‍ठ पुत्र श्री रामचन्‍द्र जी ने रावण से घमासान युद्ध में
उसकी नाभि में अमत
ृ का भेद ज्ञात हो जाने पर झटपट रथ पर चढकर अपने प्रचण्‍ड बाणों का
प्रयोग से उसकी नाभि पर ऐसा प्रहार किया जिससे कुछ ही क्षणों में उसके प्राण पखेरू हो गये।
ऋषियों का कहना है कि ऐसा विद्यावान मनुष्‍य अर्थात रावण की प्रकृति वाला व्‍यक्ति कभी
सफल नहीं हो सकता इसलिए मनुष्‍य को कभी घमण्‍ड नहीं करना चाहिए।

अयोध्‍या के भूपति श्री दशरथ के ज्‍येष्‍ठ पुत्र श्री रामचन्‍द्र जी ने रावण से घमासान युद्ध में
उसकी नाभि में अमत
ृ का भेद ज्ञात हो जाने पर झटपट रथ पर चढकर अपने प्रचण्‍ड बाणों से
उसकी नाभि पर ऐसा प्रहार किया तिससे कुछ ही क्षणों में उसके प्राण पखेरू हो गये। ऋषियों
का कहना है कि ऐसा विद्यावान मनुष्‍
य अर्थात रावण की प्रकृति वाला व्‍यक्ति कभी सफल नहीं
हो सकता इसलिए मनुष्‍य को कभी घमणड नहीं करना चाहिए।

अयोध्‍या के भूपति श्री दशरथ के ज्‍येष्‍ठ पुत्र श्री रामचन्‍द्र जी से घमासान युद्ध में उसकी नाभि
में अमत
ृ का भेद ज्ञात हो जाने पर झटपट रथ पर चढकर अपने प्रचण्‍ड बाणों से उसकी नाभि
पर ऐसा प्रहार किया जिससे कुछ ही क्षणों में उसके प्राण पखेरू हो गये। ऋषियों का कहना है
कि ऐसा विद्यावान मनुष्‍य अर्थात रावण की प्रकृति वाला मनुष्य व्‍यक्ति कभी सफल नहीं हो
सकता इस‍लिए मनष्ु ‍य को कभी घमण्‍ड नहीं करना चाहिए।

साहित्‍य साहित्‍
य साहित्‍य साहित्‍य साहित्‍य साहित्य साहित्‍य साहित्‍य साहित्‍य साहित्‍
य साहिै त्‍य
साहिै त्‍य साहित्‍
य साहित्‍य साहित्‍य साहित्‍य सामाजिक सामाजिक सामाजिक सामाजिक
सामाजिक सामाजिक सामाजिक हिन्‍दी हिन्‍दी हिन्‍दी हिन्‍दी हिै न्‍दी हिन्‍दी हिन्‍दी हिन्‍दी हिन्‍दी
हिन्‍दी हिन्‍दी हिन्‍दी हिन्‍दी हिन्‍दी हिन्‍दी हिन्‍दी हिन्‍दी हिन्‍दी साहित्‍य लगती लगती लगती
लगती है । लगती है । रहती है । रहती है । रहती है । रहती है । रहती है । रहती है । खाती है । करती
है । करती है । करती है । करती है । करती है । करती है । करती है । करती है । बन जायेगा किया
था। किया था। जा रहा है । जा रहा है । जा र‍हा है । जा रहा है । जा रहा है । जा रहा है । जा रहा
है । जा रहा है । जा रहा है । हुई हुई हुई हुई हुई हुई हुई हुई हुई करे गा करे गा करे गा करे गा करे गा
करे गा करे गा करे गा करे गा करे गा करे गा करे गा करे गा करे गा करे गा करे गा करे गा करे गा गये थे
। गये थे। गये थे। गये थे। गये थे। गये थे।

आजकल हमारे दे श एवं प्रदे श में यह फैशन सा चल पडा है कि कुछ विशिष्‍ट लोग, दस
ू रों के
द्वारा पहनाई गयी सग
ु न्धित पष्ु ‍पों की माला को पहनने के तरु न्‍त बाद ही उतार दे ते हैं, उन्‍हें
यह सम्‍मान सूचक माला ऐसी लगती है जैसे किसी ने उनके गले मे काला नाग लपेट दिया हो।
हमारा प्राचीन साहित्‍य एवं इतिहास यह स्‍मरण कराता है कि सुमन माला को निकालने के
कारण ही दे वासुर संग्राम तक छिड गया था जिसमें कंठहार को निकालने के अपराध में दे वराज
इन्‍द्र सिंहासन से उतार दिये गये थे।

गले में डाली गयी माला की सुगन्‍


ध स्‍वाभाविक ही नाक में प्रवेश कर जाती है जिससे भीतर
समाई हुई दर्ग
ु न्‍
ध दरू हो जाती है , मन प्रसन्‍न एवं प्रफुल्लित हो जाता है , रोग दोष भाग जाते हैं,
शरीर में स्‍वस्‍थ और शुभ संकल्‍पोंग का सम्‍यक समीकरण स्‍थापित हो जाता है । गले में डाली
गयी माला का अपमान करने के कारण भगवान शिव की सती को , अपने ही पिता दक्ष द्वारा
संचालित यज्ञ में आहूति दे कर अपने शरीर को नष्‍ट करना पडा था, क्‍योंकि उनके पिता ने ऋषि
द्वारा दी गयी माला का अपमान किया था। हमारे दे श में जिस तरह की नई शिक्षा नीति के
माध्‍यम से सामाजिक ,आर्थिक पुनर्गठन का कार्य शुरू किया गया है उसी प्रकार सोवियत संघ
में शिक्षण पद्धतियों के बवशेषज्ञों विशेषज्ञों के साथ साथ शिक्षा की प्रक्रिया में सध
ु ार के श्रेष्ठ

तरीकों को खोजने का प्रयास कर रहे हैं।

अत: कोई भी व्‍यक्ति अपना एकछत्र, मनमाना शासन संचालित करने की चेष्‍टा नहीं करे गा। डा
राम मनोहर लोहिया जो कि अपने समय के एक महान समाजवादी नेता थे एक बार कहा था
कि जिस प्रकार तवे पर रोटी बार बार पलटने से ठीक प्रकार से नहीं पक जाती है उसी प्रकार
संसदीय लोकतंत्र में व्‍यवस्‍थाओं के बदलते रहने से लोकतंत्र मजबूत होता है अत: कोई भी
व्‍यक्ति अपना एकछत्र मनमाना शासन संचालित करने की चेष्‍टा नहीं करता।

मां वह शब्‍द है जिसमें बहुत से रहस्‍य छिपे हैं। मां शब्‍द एक बहुत ही महत्‍वपूर्ण शब्‍द है ,
जिसके ारण ही सारे संसार के महत्‍वपूर्ण एवं पराक्रमशाली व्‍यक्ति अपने जीवन में उत्‍कृष्‍ट
स्‍‍थान एवं उददे शय को प्राप्‍त ारने में समर्थ हो सके थे । कोई भी मनष्ु ‍य किसी ऊंचे पद पर
तभी पहुंच सकता है जबकि उसको बचपन में सही आदर्श एवं उन्‍नतिशील शिक्षा प्राप्‍त हुई हो।

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आजकल हमारे दे श एवं प्रदे श में फैशन सा चल पडा है कि कुछ विशिष्‍ट लोग दस
ू रों के द्वारा
पहनाई गयी सुगन्धित पुष्‍पों की माला को पहनने के तुरन्‍त बाद ही उतार दे ते हैं, उन्‍हें यह
सम्‍मान सच
ू क माला ऐसी लगती है जैसे किसी ने उनके गले में काला नाग लपेट दिया हो।
हमारा प्रचीन साहित्‍य एव ्ं इतिहास यह स्‍मरण कराता है कि सुमन माला को निकालने के
कारण ही दे वासुर संग्राम तक छिड गया था जिसमें कंठहार को निकालने के कारण अपराध में
दे वराज इन्‍द्र सिंहासन से ासरउतार दिये गये थे।

गले में डाली गयी माला की सुगन्‍


ध स्‍वाभाविक ही नाक में प्रवेश कर जाती है जिससे भीतर
समाई हुई दर्ग
ु न्‍
ध दरू हो जाती है मन प्रसन्‍न एवं प्रफुल्लित हो जाता है रोग दोष दरू भाग
जाते हैं। शरीर स्‍वस्‍थ और शभ
ु संकल्‍पों का संम्‍यक समीकारण स्‍थापित हो जाता है । गले मे
डाली गयी माला का अपमान करने के ही कारण भगवान शिव की सती को अपने ही पिता दक्ष
द्वारा संचालित यज्ञ में े आहूति दे कर पने शरीर को नष्‍ट करना पडा था, क्‍योंकि उनके पिता ने
ऋषि द्वारा दी गई माला का अपमान किया था ।
हमारे दे श में जिस तरह नई शिक्षा नीति के माध्‍यम से सामाजिक आर्थिक पुनर्गठन का कार्य
शुरू किया गया है , उसी प्रकार सोवियत संघ में शिक्षण पद्धतियों के विशेषज्ञों के सा‍थ साथ
अध्‍यापकगण शिक्षा की प्रक्रिया में सध
ु ार के श्रेष्‍ठ तरीकों को खोजने का प्रयास कर रहे हैं।
क्‍योकि उनके पिता ने ऋषि द्वारा दी गई माला का अपमान किया था।

डा राम मनोहर लोहिया जो कि अपने समय के एक महान समाजवादी नेता थे एक बार कही
था कि जिस प्रकार तवे पर रोटी बार बार पलटने से ठीक प्रकार से पक जाती है उसी प्रकार से
संसदीय लोकतंत्र में व्‍यवस्‍थाओं के बदलते रहने से लोकतंत्र मजबूत होता है अत: कोई भी
व्‍यक्ति अपना एकछत्र मनमाना शासन संचालित करने की चेष्‍टा नहीं करे गा।

मां वह शब्‍द हैजिसमें बहुत से रहस्‍य छिपे हैं। मां शब्‍द एक बहुत ही महत्‍वपूर्ण शब्‍द है , जिसके
कारण ही सारे संसार के महत्‍वपूर्ण एवं पराक्रमशाली व्‍यक्ति अपने जीवन में उत्‍
कृष्‍ट स्‍थान एवं
उदे श्‍य को प्राप्‍त करने में समर्थ हो सके थे। कोई मनष्ु ‍य किसी भी ऊंचे पद पर तभी पहुंच
सकता है जबकि उसको बचपन में वही आदर्श एवं उन्‍नतिशील शिक्षा प्राप्‍त हुई हो।

महोदय किसी भी आदमी को अपने मताधिकार अर्थात वोट का प्रयोग मजहबी आधार पर नहीं
करना चाहिए। इस प्रक्रिया को बन्‍द करने से ही लोकतंत्र मजबूत होगा। लोकतंत्र में वोट जुडा है
व्‍यवस्‍था से शासन से। शासन जुउा है दे श में कानून का राज्‍य स्‍‍थापित करने से। इसलिये वोट
दे श में कानून का राज्‍य स्‍थापित करने के लिये दिया जाना चाहिये। वोट वर्गभेद तथा
विघटनकारी नारों व फतवे पर नहीं दिया जाना चाहिये।

दे शाटन ज्ञान की वद्धि


ृ का सर्वाधिक प्रयोग में आने वाला साधन है । विभिन्‍न दे शों के निवासियों
के आचार विचार तथा विशिष्‍ट वस्‍तओ
ु ं का जितना सन्
ु ‍दर एवं पर्ण
ू ज्ञान दे शाटन द्वारा होता है ,
उतना अन्‍
य किसी साधन द्वारा नहीं। यद्यपि पुस्‍तकों समाचार पत्रों के द्वारा भी उक्‍त ज्ञान
प्राप्‍त होता है किन्‍तु जितना पूर्ण और सर्वांगीण ज्ञान दे शाटन से प्राप्‍त होता है , उतना अन्‍

साधनों से नहीं।

अयोध्‍या के भूपति श्री दशरथ के ज्‍येष्‍ठ पुत्र श्री रामचन्‍द्र जी ने रावण से घमासान युद्ध में
उसकी नाभि में अमत
ृ का भेद ज्ञात हो जाने पर झटपट र‍थ पर चढकर अपने प्रख्‍णड बाणों से
उसकी नाभि पर ऐसा प्रहार किया जिससे कुछ ही क्षणों में उसके प्राण पखेरू हो गये। ऋषियों
का कहना है कि ऐसा विद्यावान मनुष्‍
य अर्थात रावण की प्रक्रति वाला मनुष्‍य कभी सफल नहीं
हो सकता। इसलिए मनष्ु ‍य को कभी घमण्‍ड नहीं करना चाहिए।

अयोध्‍या के भूपति श्री दशरथ के ज्‍येष्‍ठ पुत्र श्री रामचन्‍द्र जी ने रावण से घमासान युद्ध में
उसकी नाभि में अमत
ृ का भेद ज्ञात हो जाने पर झटपट र‍थ पर चढकर अपने प्रचण्‍ड बाणों से
उसकी नाभि पर ऐसा प्रहार किया जिससे कुछ हि क्षणों में उसके प्राण पखेरू हो गये। ऋषियों
का कहना है कि ऐसा विद्यावान मनुष्‍
य अर्थात रावण की प्रक्रति वाला कभी सफल नहीं हो
सकता। इ‍स‍लिए मनुष्‍य को कभी घमण्‍ड नहीं करना चाहिए।

अयोध्‍या के भूपति श्री रामचन्‍द्र जी दशरथ के ज्‍येष्‍ठ पुत्र श्री जी ने रावण से घमासान युद्ध में
उसकी नाभि में अमत
ृ का भेद ज्ञात हो जाने पर झटपट रथ पर चढकर अपने प्रचण्‍ड बाणों से
उसकी नाभि पर ऐसा प्रहार किया जिससे कुछ ही क्षणों में उसके प्राण पखेरू हो गये। ऋषियो
का कहना है कि ऐसा विद्यावान मनुष्‍
य अथार्त
् रावण की प्रक्रति वाला मनुष्‍य कभी सफल
न‍हीं हो सकता। इ‍सलिए मनुष्य को कभी घमण्‍
ड नहीं करना चाहिए।

आजकल हमारे दे श एवं प्रदे श मे यह फैशन सा चल पडा है कि कुछ विशिष्‍ट लोग दस


ू रों के
द्वारा पहनाई गयी सुगन्‍धित पुष्‍पों की माला को पहनने के तुरन्‍त बाद उतार दे ते हैं उन्‍हें य‍ह
सम्‍मान सच
ू क माला ऐसी लगती है जैसे किसी ने उनके गले में नाग लपेट दिया हो। हमारा
प्राचीन साहित्‍य एवं इतिहास यह स्‍मरण कराता है कि सम
ु न माला को निकालने के कारण ही
दे वासुर संग्राम तक छिड गया था जिसमें कंठहार को निकालने के अपराध में दे वराज इन्‍द्र
सिंहासन से उतार दिये गये थे।

गले में डाली गयी माला की सुगन्‍


ध स्‍वाभाविक ही नाक में प्रवेश कर जाती है जिससे भीतर
समार्इ हुई दर्ग
ु न्‍
ध दरू हो जाती है मन प्रसन्‍न एवं प्रफुल्लित हो जाता है रोग दोष दरू भाग
जाते हैं शरीर में स्‍वस्‍थ और शुभ संकल्‍पों का सम्‍यक समीकरण स्‍‍थापित हो जाता है गले में
डाली गयी माला का अपमान करने के ही कारण भगवान शिव की सती को अपने ही पिता दक्ष
द्वारा संचालित यज्ञ में आहूति दे ने का अपने शरीर को नष्‍ट करना पडा था। क्‍योंकि उनके
पिता ने ऋषि के द्वारा दी गर्इ माला का अपमान किया था ।
हमारे दे श में जिस प्रकार की नई शिक्षा नीति के माध्‍यम से सामाजिक ,आर्थिक पुनर्गठन शुरू
किया गया है उसी प्रकार सोवियत संघ में शिक्षण पद्धतियों के विशेषज्ञों के साथ साथ
अध्‍यापकगण शिक्षा में प्रक्रयिा में सध
ु ार के श्रेष्‍ठ तरीकों को खोजने का प्रयास कर रहे हैं।

डा राम मनोहर लोहिया जो कि अपने समय के एक महान समाजवादि नेता थे एक बार कहा
जाता है कि जिस प्रकार तवे में रोटी बार बार पलटने से ठीक तरह से पक जाती है उसी प्रकार
संसदीय लोकतंत्र में व्‍यवस्‍थाओं के बदलते रहने से लोकतंत्र मजबूत होता है ,अत: कोई भी
व्‍यक्ति अपना एकछत्र मनमाना शासन संचालित करने की चेष्‍टा नहीं करे गा।
मां वह शब्‍द है जिसमे बहुत से रहस्‍य छिपें हैं। मां शब्‍द एक बहुत ही महत्‍वपूर्ण शब्‍द है ,
जिसके कारण ही सारे संसार के महत्‍वपर्ण
ू एवं पराक्रमशाली व्‍यक्ति अपने जीवन में उत्‍
कृष्‍ट
एव ्ं उदे श्‍य को प्र

डा राम मनोहर लोहिया जो कि अपने समय के एक महान समाजवा‍दी नेता थे एक बार कहा
जाता है कि जिस प्रकार तवे पर रोटी बार बार पलटने से ठीक प्रकार से पक जाती है उसी
प्रकार संसदीय लोकतंत्र में व्‍यवस्‍थाओं के बदलते रहने से लोकतंत्र मजबूत होता है अत: कोई भी
व्‍यक्ति अपना एकछत्र मनमाना शासन संचालित करने की चेष्‍टा नहीं करे गा।

मां वह शब्‍द है जिसमें बहुत से रहस्‍य छिपे हुये हैं । मां शब्‍द एक बहुत ही महत्‍व्‍पूर्ण शब्‍द है
जिसके कारण ही सारे संसार के महत्‍वपूर्ण एवं पराक्रमशाली व्‍यक्ति अपने जीवन मे उत्‍
कृष्‍ट
स्‍थान एवं उदे श्‍य को प्राप्‍त करने में समर्थ हो सके हैं। कोई भी मनष्ु ‍य किसी ऊंचे पद पर तभी
पहुंच सकता है जबकि उसको बचपन में सही आदर्श एवं उन्‍नतिशील शिक्षा प्राप्‍त हुई हो ।

भगवान भगवान भगवान भगवान अपमान अपमान अपमान अपमान अपमान अपमान अपमान
अपमान रहे हैं। जाता है । जाता है । जाता है । जाता है । जाता है । जाता है । जाता है । जाता है ।
एक एक एक एक एक एक एक एक एक एक एक एक बार एक बार एक बार एक बार एकबार
एकबार एकबार एकबार एकबार कईबार तथा तथा तथा तथा तथा तथा तथा तथा शब्‍द शब्‍द
शब्‍द शब्‍द एक एक एक एक एवं एवं एवं एवं एवं एंव एवं एवं एवं एवं एवं एवं एक एक एवं
एवं एवं एवं एक एक एक एवं और और और और और और और और और और ओ और और
और और और और और और और और और और और संचालित संचा‍लित संचालित संचालित
संचालित को को को को को करने करने करे न में कारण कारण कारण कारण कारण कारण
कारण कारण करने करने करने करने करने करने करने करने में कारण कारण कारण कारण
कारण सही सही सही सही सही सही सही कारण सह कोई कारण ही है अपने अपने अपने
अपने अपने अपने अपने अपने अपने अपने समय समय समय समय समय समय समय सम
समय सम ठीक ठीक ठीक ठीक ठीक ठीक ठीक ठीक ठीक ठीक ठीक ठीक ठीक ठीक ठीक
ठीक ठीक ठीक ठीक तरह से करने का कारण की कामना करती जबकि जबकि जबकि जबकि
जबकि जबकि जबकि जबकि जबकि जबकि जबकि जबकि जबकि जबकि जबकि जबकि जबकि
जबकि जबकि जबकि ज‍बकि जबकि जबकि जबकि प्रयास प्रयास प्रयास प्रयास प्रयास प्रयास
प्रयास प्रयास सुगन्‍ध सुगन्‍
ध सुगन्‍ध सुगन्‍
ध सुगन्‍ध सग
ु न्‍ध प्रकार प्रकार प्रकार प्रकार प्रकार
प्रकार प्रकार प्रकार प्रकार प्रकार प्रकार प्रकार प्रकार प्रकार प्रकार प्रकार प्रकार प्रकार माध्‍यम
माध्‍यम माध्‍यम माध्‍यम माला माला माला माला माला

प्राचीन कथाओं में मिश्र भी सहारा मरूस्‍थल का एक अंग था जो नील नदी की कृपा से बहुत
उपजाऊ बन गया है । पर्वी
ू सहारा मे ऐसे मरू उद्यानों का उल्‍लेख है जो बाद में एकदम गायब
हो गये इन कथाओं पर आधुनिक वैज्ञानिकों विश्‍वास नहीं करते।

महोदय किसी भी आदमी को अपने मताधिकार अर्थात वोट का प्रयोग मजहबी आधार पर नहीं
करना चाहिए। इस प्रक्रिया को बन्‍द करने से ही लोकतंत्र मजबूत होगा । लो‍
कतंत्र में वोट जुडा
है व्‍यवस्‍था से, शासन से । शासन जुडा है दे श में कानून का राज्‍य स्‍थापित करने से। इसलिए
वोट दे श में कानून का राज्‍य स्‍थापित करने के लिए दिया जाना चाहिए। वोट वर्गभेद तथा
विघटनकारी नारों व फतवे पर दिया जाना चाहिए। दे शाटन ज्ञान की वद्धि
ृ का सर्वाधिक प्रयोग
में आने वाला साधन है । विभिन्‍न दे शों के निवासियों के आचार विचार तथा विभिन्‍न वस्‍तुओं
का जितना सुन्‍दर एवं पूरण
् ्‍ज्ञान दे शाटन के द्वारा प्राप्‍त होता है ,उतना अन्‍
य किसी साधन के
द्वारा नहीं। यद्यपि पुस्‍तकों समाचार पत्रों के द्वारा भी उक्‍त ज्ञान प्राप्‍त होता है किन्‍तु
जितना पर्ण
ू और सर्वांगीण ज्ञान दे शाटन से प्राप्‍त होता है , उतना अन्‍
य साधनों से नहीं।

मनुष्‍य के जीवन के तीन महत्‍वपूर्ण पक्ष होते हैं, सत्‍ता, सम्‍पदा और नैतिकता। ये तीनों ही बडी
शक्‍तियां हैं। सत्‍
ता के पास दं ड की शक्ति ,सम्‍पदा के पास विनिमय की और नैतिकता में
आत्‍म विश्‍वास और आस्‍‍था की। इन्‍
ही तीनों के द्वारा मनुष्‍य का जीवन संचालित होता है । जब
तक इनका संतुलन ठीक साधन द्वारा तब तक जीवन यात्रा संतुलित रहती है । यदि इनमें
आपस में असंतल
ु न पैदा हो जाता है तो मानव जीवन रथ चरमरा जाता है ।

महोदय किसी भी आदमी को अपने मताधिकार अर्थात वोट का प्रयोग मजहबी आधार पर नहीं
करना चाहिए। इस प्रक्रिया को बन्‍द करने से ही लोकतंत्र मजबत
ू होगा । लोकतंत्र में वोट जड
ु ा
है व्‍यवस्‍था से शासन से । शासन जुडा है दे श में कानून का राज्‍य स्‍थापित करने से। इसलिए
वोट दे श में कानून का राज्‍य स्‍थापित करने के लिए दिया जाना चाहिए। वोट वर्गभेद तथा
विघटतकारी नारों व फतवे पर नहीं दिया जाना चाहिए।

मनुष्‍य के जीवन में तीन महत्‍वपूर्ण पक्ष होते हैं सतता

प्रेस अर्थात समाचार पत्र प्रकाशन संस्‍था का प्रजातंत्र में बडा महत्‍व होता है । इस संस्‍था के
द्वारा जनता तथा सरकार के बीच सदै व सम्‍पर्क बनाये रखा जाता है । प्रजातंत्र में प्रेस इतना
शक्तिशाली होता है कि उसे चौ‍
थी सत्‍ता कहा जाता है । प्रेस इतना शक्तिशाली होता है क्‍योंकि
इसकी सौ आंखे होती हैं। यह सरकार की नीतियों का समर्थन अथवा आलोचना राष्‍ट्रीय
परिपेक्ष्‍य में बात को सुधारने का काम करता है । चकि
ूं प्रेस द्वारा जनता की सही भावना को
उजागर करके सरकार के समक्ष न्‍याय के लिए रखा जाता है अत: यह कार्य है समात सध
ु ार का
कार्य। अपने सम्‍पादकीय लेखों द्वारा यह समाज में व्‍याप्‍त विभिन्‍
न प्रकार के अंध विश्‍वासों
बरु ाईयों के विरूद्ध जनमत तैयार करके उन पर विजय पाने की दिशा में सक्रिय भमि
ू का अदा
करता है ।

प्राचीन कथाओं मे मिश्र भी सहारा मरूस्‍थल का एक अंग था जो नील नदी की कृपा से बहुत
उपजाऊ बन गया था। पर्वी
ू सहारा में ऐसे मरू उद्यानों का उल्‍ले,ख है जो बाद में एकदम
गायब हो गये इन कथाओं पर आधुनिक वैज्ञानिक विश्‍वास नहीं करते।

लगभग दो वर्ष पूर्व संयक्


ु ‍त राज्‍य अमेरिका की अंतरिक्ष शटल कोलम्बिया ने राडार संकेतों की
मदद से ऐसी नदियों के संकेत भेजे थे जो आत से लगभग 2 करोड वर्ष पूर्व सहारा में बहती
थी। वैज्ञानिकों को यह मालूम है कि सहारा हमेशा से मरूस्‍थल नहीं था। वहां काफी आबादी थी
विशेष रूप से प्राचीन नदियों के किनारे ।

मनुष्‍य के जीवन के तीन महत्‍वपूर्ण पक्ष होते हैं, सत्‍ता, सम्‍पदा और नैतिकता। से तीनों ही बडी
शक्तियां हैं। सत्‍
ता के पास दं ड की शक्ति सम्‍पदा के पास विनिमय की और नैतिकता के पास
आत्‍म विश्‍वास की। और आस्‍‍था की। इन्‍हीं तीनों के द्वारा मनष्ु ‍य का जीवन संचालित होता है ,
जब तक इनका संतुलन ठीक रहता है तब तक जीवन यात्रा संतुलित रहती है । यदि इनमें
आपस में असंतुलन पैदा हो जाता है तो मानव रथ चरमरा जाता है ।
दे शाटन ज्ञान की वद्धि
ृ का सर्वाधिक प्रयोग में आने वाला साधन है । विभिन्‍न दे शों के

प्रेस अर्थात समाचार पत्र प्रकाशन संस्‍था का प्रजातंत्र में बडा महत्‍व होता है । इस संस्‍था के
द्वारा जनता तथा सरकार के बीच सदै व सम्‍पर्क बनाये रखा जाता है । प्राजातंत्र में प्रेस इतना
शक्‍तिशाली होता है कि उसे चौथी सत्‍ता कहा जाता है । प्रेस इतना शक्‍तिशाली इसलिए होता है
क्‍योंकि इसकी सैा आंखे होती हैं। यह सरकार की नीतियों का समर्थन अथवा उनकी आलोचना
की सही भावना को उजागर करके सरकार के समक्ष न्‍याय के लिए रखा जाता है अत: यह कार्य
है समात सुधार का कार्। अपने सम्‍पादकीय लेखों द्वारा यह समाज में स्‍याप्‍त विभिन्‍न प्रकार
के अंध विश्‍वासों बरु ाईयों के विरूद्धजनमत तैयार करना उन पर विजय प्राप्‍त कर पाने की दिशा
में सक्रिय भूमिका भी अदा करता है ।

प्रचीन कथाओं में मिश्र भी सहारा मरूस्‍थल का एक अंग था जो नील नदी की कृपा की मदद
से ऐसी नदियों के संकेत भेजे थे जो आज से लगभग 2 करोड वर्ष पूर्व सहारा में बहती थी।
वैज्ञानिकों को यह मालूम है कि सहारा हमेशा से मरूस्‍थल नहीं था।उ वहां काफी आबादी थी
विशेष रूप से प्राचीन नदियों के किनारे ।

मनुष्‍य दो वर्ष पूर्व संयुक्‍त राज्‍य अमेरिका की अंतरिक्ष शटल कोलम्बिया ने राडार संकेतों

सहारा संसार का सबसे बडा गर्म मरूस्‍थल है । वहां हजारों वर्ग किलोमीटर के ऐसे क्षेत्र हैं जहां
यदा कदा ही वर्षा होती है । उसका पूर्वी क्षेत्र तो ऐसा है जहां शायद तीस चालीस साल में कभी
एक बार वर्षा हो जाती है ।
भारत दे श में नदी जल प्रकृति की बहुमूल्‍य दे न है । इस जल का उपयोग त सिर्फ आर्थिक
विकास के लिए आवश्‍यक है बल्कि दे श की बढती हुई जनसंख्‍या को खाद्य सामग्री की जरूरतों
को परू ा करने के लिए जरूरी है । असमान वर्षा के कारण इस जल को एकत्र करने के लिए बांध
और जलाशयों का निर्माण भी दे श की उन्‍नति में सहायक सिद्ध होगा।

महोदय , दे श की संसद हो या राज्‍यों की विधान सभाएं अध्‍यक्ष या पीठासीन अधिकारी ही


सदन की मान मर्यादा का रक्षक माना जाता है । उसका सर्वोपरि दासित्‍व यह है कि वह
शांतिपूर्ण ढं ग से सदन की कार्यवाही का संचालन करें । बडे दख
ु की बात है कि पिछले कुछ
समय से सदनों में हमारे ही सदस्‍यों द्वारा किसी न किसी बात पर हंगामा खडा किया जाता
रहा है जिससे कि सदन की कार्यवाही घंटो तक रूकी रहती है । इस प्रकार जनता के द्वारा
टै क्‍स में वसूला गया मेहनत का पैसा व्‍यर्थ बनबाद होता रहता है । इस प्रकार के व्‍यवहार को
एवं आचरण से निश्‍
चय ही हमारी लोकतांत्रिक संस्‍थानों की महान क्षति होती है ।

मध्‍य प्रदे श सरकार द्वारा आदिवासी मजदरू ों को ज्‍यादा से ज्‍यादा लाभ पहुंचाने के उदे श्‍य से
बनायी गयी तें द ू पत्‍ता नीति ने एक ओर पज
ूं ीपतियों की नींद हराम कर दी है वहीं दस
ू री ओर
अनेक संगठनों ने इसे शासक दल का प्रचार एवं शासकीय धन का दरू
ु पयोग करने का आरोप
लगाया है । इस जंगल में पाये जाने वाले पत्‍तों से लगभग 25 लाख को आदिवासियों को
रोजगार उपलब्‍ध होता है । इस प्रकार यह शासक दल का क्रांतिकारी कदम कहलायेगा क्‍
योंकि
इसके द्वारा 25 लाख रोजगार के साधन उपलब्‍ध होते हैं।

महोदय हमारे दे श में सहकारिता जीवन का मुख्‍य आधार है तथा यह समाज का एक प्रमुख
स्‍तम्‍
भ है जिसके द्वारा अभाव मे जन्‍म से मत्ृ ‍यु तक कोई भी कार्य संभव नहीं है । आज के
युग में भी सामाजिक, सांस्क
‍ ृ तिक व आर्थिक तीनों पहलुओं में सहकारिता या सहयोग का अपना
महत्‍व है । चंकि
ू हमारा दे श कृषि प्रधान दे श है इसलिए आज भी दे हात में खेती मे मदद करने
में , जन्‍म वि‍वाह, मत्ृ ‍यु अवसरों पर आपसी सहयोग के अनगिनत उदाहरण आज भी दे खने को
मिलते हैं। परन्‍तु वर्तमान समय में सहकारिता का अर्थ ग्रामीण व नगरीय क्षेत्रों में सहकारी
समितियों के माध्‍यम से उनकी आर्थिक उन्‍नति से ही लगाया जाता है ।
अयोध्‍या के भूपति श्री दशरथ के ज्‍येष्ट पुत्र श्री रामचन्‍द्र जी ने रावण से घमासान युत्र मे
उसकी नाभि में अमत
ृ का भेद ज्ञात हो जाने पर झटपट रथ पर चढकर अपने प्रचण्‍ड बाणों से
उसकी नाभि पर ऐसा प्रहार किया की कुछ ही क्षणों में उसके प्राण पखेरू हो गये ।ऋषियों का
कहना है कि ऐसा विद्यावान मनुष्‍य अर्थात रावण की प्रक्रति वाला व्‍यक्ति कभी सफल नहीं हो
सकता । इसलिए मनुषय को कभी घमण्‍ड नहीं करना चाहिए।

अयोध्‍या के भूपति श्री दशरथ के ज्‍येष्‍ट पुत्र श्री रामचन्‍द्र जी ने रावण से घमासान यद्ध
ु में
उसकी नाभि में अर्मत का भेद ज्ञात हो जाने पर झटपट रथ पर चढकर अपने प्रचण्‍ड बाणों से
उसकी नाभि पर ऐसा प्रहार किया जिससे कुछ ही क्षणों में उसके प्राण पखेरू हो गये। ऋषियों
का कहना है कि ऐसा विद्यावान मनष्ु ‍
य अर्थात रावण की प्रक्रति वाला व्‍यक्‍ति कभी सफल नहीं
हो सकता। इसलिए मनुष्‍य को कभी घमण्‍ड नहीं करना चाहिए।

अयोधया के भप
ू ति श्री दशरथ के ज्‍येष्ठ
‍ पत्र
ु श्री रामचन्‍द्र जी ने रावण से घमासान यद्ध
ु में
उसकी नाभि में अमत
ृ का भेद ज्ञात हो जाने पर झटपट रथ पर चढकर अपने प्रचण्‍ड बाणों से
उसकी नाभि पर ऐसा प्रहार किया जिससे कुछ ही क्षणों में उसके प्राण पखेरू हो गये। ऋषियों
का कहना है कि ऐसा विद्यावान मनुष्‍
य अर्थात रावण की प्रक्रति वाला व्‍यक्‍ति कभी सफल नहीं
हो सकता। इसलिए मनष्ु ‍य को कभी घमण्ड नही करना चाहिए।

आजकल हमारे दे श एव ्ं प्रदे श में यह फैशन सा चल पडा है कि कुछ विशिष्‍ट लोग , दस


ू रों के
द्वारा पहनार्इ गयी सग
ु न्‍धित पस्
ु ‍पों की माला को पहनने के तरु न्‍त बाद ही उतार दे ते हैं, उन्‍हें
यह माला सम्‍मान सूचक ऐसी लगती है जैसे किसी ने उनके गले में काला नाग लपेट दिया होै।
हमारा प्राचीन साहित्‍य एवं इतिहास यह स्‍मरण कराता है कि सुमन माला को निकालने के
कारण ही दे वासुर संग्राम तक छिड गया था जिसमें कंठहार को निकालने के अपराध में दे वराज
इन्‍द्र सिंहासन से उतार दिये गये थे।

गले मं डाली गयी माला की सुगन्‍


ध स्‍वाभाविक ही नाक में प्रवेश कर जाती है जिससे भीतर
समाई हुई दर्ग
ु न्‍
ध दरू हो जाती है , मन प्रसन्‍न एवं प्रफुल्लित हो जाता है , रोग दोष भाग जाते हैं।
शरीर में समाई स्‍वस्‍थ और शुभ संकल्‍पों का सम्‍यक समीकरण स्‍थापित हो जाता है । गले में
डाली गयी माला का अपमान करने के ही कारण भगवान शिव की सती को अपने प्राण पिता
उक्ष द्वारा संचालित यज्ञ में आहूति दे कर अपने शरीर को नष्‍ट करना पडा था, क्‍योंकि उनके
पिता ने ऋषि के द्वारा दिये गये माला का अपमान किया था।

हमारे दे श में जिस तरह नई शिक्षा नीति के माध्‍यम से सामाजिक आर्थाक पुनर्गठन का कार्य
शुरू किया गया है उसी प्रकार सोवियत संघ में शिक्षण पद्धतियों के विषेशज्ञों के साथ साथ
अध्‍यापकगण शिक्षा की प्रक्रिया में सध
ु ार के श्रेष्‍ठ तरीकों को खोंजने का प्रयास कर रहे हैं। इसे
स्कल में पेरेस्‍त्रइ
े का का नाम दिया गया है ।

डा राम मनोहर लोहिया जो कि अपने समय के महान समाजवादी नेता थे एक बार कहा था कि
जिस प्रकार तवे पर रोटी बार बार पलटने से ठीक तरह से पक जाती है उसी प्रकार संसदीय
लोकतंत्र में व्‍यवस्‍थाओं के बदलते रहने से लोकतंत्र मजबूत होता है अत: कोई भी व्‍यक्ति अपना
एकछत्र मनमाना शासन संचालित करने की चेष्‍टा नहीं करे गा।

मां वह शब्‍द है सारे संसार में बहुत से रहस्‍य छिपे हैं। मां शब्‍द एक बहुत ही महत्‍वपूर्ण शेब्‍द है
जिसके कारण ही सारे संसार के महत्‍वपूर्ण एवं पराक्रमशाली व्‍यक्ति अपने जीवन में उस्‍कृष्‍ट
स्‍थान एवं उदे श्‍य को प्राप्‍त करने में समर्थ हो सके थे। कोई मनष्ु ‍य किसी ऊॅ

प्रेस अर्थात समाचार पत्र प्रकाशन संस्‍था का प्रजातंत्र में बडा महत्‍व होता है । इस संस्‍था के
द्वारा जनता तथा सरकार के बीच सदै व सम्‍पर्क बनाये रखा जाता है । प्रजातंत्र में प्रेस इतना
शक्तिशाली होता है , कि उसे चौथी सत्‍ता कही जाता है । प्रेस इतना शक्तिशाली इसलिए होता है
क्‍योंकि इसकी सौ आंखे होती हैं। यह सरकार की नीतियो का समर्थन अथवा उनकी आलोचना
राष्‍ट्रीय परिक्षेप्‍य में करके प्रत्‍येक बात को सध
ु ारने का काम करता है । चूंकि प्रेस द्वारा जनता
की सही भावना को उजागर करके सरकार के समक्ष न्‍याय के लिए रखा जाता है । अत: यह
कार्य है समाज सुधार का कार्य। अपने सम्‍पादकीय लेखों द्वारा यह समाज में व्‍याप्‍त विभिन्‍न
प्रकार के अंध विश्‍वासों बुराइयों के विरूद्ध जनमत तैयार करके उन पर विजय पाने की दिशा मे
सक्रिय भूमिका भी अदा करता है ।
प्राचीन कथाओं में मिश्र भी सहारा मरूस्‍थल का एक अंग था जो कि नील नदी की कृपा से
बहुत उपजाऊ बन गया है । पूर्वी सहारा में ऐसे मरू उद्यानों का उल्‍लेख है जो बाद में एकदम
से गायब हो गये इन कथाओं पर आधनि
ु क वैज्ञानिक विश्‍वास नहीं करते।

लगभग दो वर्ष पूव्‍्र संयुक्‍त राज्‍य अमेरिका ही अंतरिक्ष शटल कोलम्बिया ने राडार संकेतों की
मदद से ऐसी नदियो के संकेतो भेजे थे जो आज से लगभग 2 कारोड वर्ष परू व
् ््‍ सहारा में
बहती थी । वैज्ञानिको को यह मालूम है कि सहाराा हमेशा से मरूस्‍थल नहींथा । वहां काफी
आबादी थी विशेष रूप से प्राचीन नदियों के किनारे ।

मनुष्‍य के जीवन में तीन महत्‍वपूर्ण पक्ष होते हैं। सत्‍ता सम्‍पदा और विनिमय नैतिकता। ये
तीनों ही बडी शक्‍तियां हैं। सत्‍ता के पास दं ड की श्‍क्ति सत्‍ता के पास विनमय की और
नैतिकता के पास में आत्‍म विश्‍वास की । इन्‍हीं तीनो के द्वारा मनुष्‍य का जीवन पूर्ण रूप से
संचालित होता है । जब तक इनका सं‍तल
ु न ठीक रहता है तब तक जीवन संतलि
ु त रहता है ।
यदि इनमें आपस में असं‍तुलन की पैदा हो जाता है तो मानव रथ चरमरा जाता है ।

दे शाटन ज्ञान की वद्धि


ृ का सर्वाधिक प्रयोग में आने वाला साधन है । विभिन्‍न दे शों के निवासियों
के आचार विचार तथा विशिष्‍ट वस्‍तुओं का जितना सुन्‍दर एवं पूर्ण ज्ञान दे शाटन द्वारा होता है ,
उतना अन्‍
य किसी साधन से नहीं। यद्यपि पुस्‍तकों समाचार पत्रों के द्वारा भी उक्‍त ज्ञान
प्राप्‍त होता है , किन्‍तु जितना पूर्ण और सर्वांगीध ज्ञान दे शाटन से प्राप्‍त होता है , उतना अन्‍

किसी साधन से नहीं।

महोदय किसी भी आदमी को अपने मताधिकार अर्थात वोट का प्रयोग मजहबी आधार पर नहीं
करना चाहिए। इस प्रक्रिया को बन्‍द करने से ही लोकतंत्र मजबत
ू होगा। सरकार में वोट जड
ु ा है
व्‍यव्‍स्‍था से, शासन से । शासन जड
ु ा है दे श में कानून का राज्‍य स्‍थापित करने से। इसलिए वोट
दे श में कानून का राज्‍य स्‍थापित करने के लिये दिया जाना चाहिये। वोट वर्गभेद तथा
विघटनकारी नारों व फतवे पर नहीं दिया जाना चाहिये।

महोदय किसी भी आदमी को अपने मताधिकार अर्थात वोट का प्रयोग मजहबी आधार पर नहीं
करना चाहिए। इस प्रक्रिया को बन्‍द करने से ही लोकतंत्र मजबूत होगा। सरकार मे वोट जुडा है
व्‍यवस्‍था से शासन से । शासन जड
ु ा है दे श में कानून का राज्‍य स्‍थापित करने से। इसलिए
वोट दे श में कानून का राज्‍य स्‍थापित करने के लिये दिया जाना

अयोध्‍या के भूपति श्री दशरथ के ज्‍येष्‍ठ पुत्र श्री रामचन्‍द्र जी ने रावण से घमासान युद्ध में
उसकी नाभि में अमत
ृ का भेद ज्ञात हो जाने पर झटपट रथ पर चढकर अपने प्रचण्‍ड बाणो का
उसकी नाभि पर ऐसा प्रहार किया जिससे कुछ ही क्षणों में उसके प्राण पखेरू हो गये। ऋषियों
का कहना है कि ऐसा विद्यावान मनुष्‍
य अर्थात रावण की प्रक्रति वाला व्‍यक्ति कभी सफल नहीं
हो सकता इसलिए मनुष्‍य को कभी घमण्‍ड नहीं करना चाहिए।

अयोध्‍या के भूपति श्री दश्‍रथ्‍के ज्‍येष्‍ठ पुत्र श्री रामचन्‍द्र जी ने रावण से घमासान युद्ध में
उसकी नाभि में अर्मत का भेद ज्ञात हो जाने पर झटपट रथ पर चढकर अपने प्रचण्‍ड बाणों से
उसकी नाभि पर ऐसा प्रहार किया जिससे कुछ ही क्षणों में उसके प्राण पखेरू हो गये। ऋषियों
का कहना है कि ऐसा विद्यावान मनष्ु ‍
य अर्थात रावण की प्रक्रति वाला व्‍यक्ति कभी सफल नहीं
हो सकता इसलिए मनुष्‍य को कभी घमण्‍ड नही करना चाहिए।

अयोध्‍या के भप
ू ति श्री दशरथ के ज्‍येष्‍ठ पत्र
ु श्री रामचन्‍द्र जी ने रावण से घमासान यद्ध
ु में
उसकी नाभि में अर्मत का भेद ज्ञात हो जाने पर झटपट रथ पर चढकर अपने प्रचण्‍ड बाणों से
उसकी नाभि पर ऐसा प्रहार किया जिससे कुछ ही क्षणों में उसके प्राण पखेरू हो गये। ऋषियों
का कहना है कि ऐसा विद्यावान मनुष्‍
य अर्थात रावण की प्रक्रति वाला व्‍यक्ति कभी सफल नहीं
हों सकता इसलिए मनष्ु ‍य को कभी घमण्‍ड नही करना चाहिए।

अयोध्‍या के भूपति श्री दशरथ के ज्‍येष्‍ठ पुत्र श्री रामचन्‍द्र जी ने रावण से घमासान युद्ध में
उसकी नाभि में अर्मत का भेद ज्ञात हो जाने पर झटपट रथ पर चढकर अपने प्रचण्‍ड बाणों से

आज‍
कल हमारे दे श में एवं प्रदे श में यह फैशन सा चल पडा है कि कुछ विशिष्‍ट लोग , दस
ू रों
के द्वारा पहनाई गयी सुगन्‍धित पुष्‍पों की माला को पहनने के तरु न्‍त बाद उतार दे ते हैं उन्‍हें
यह सम्‍मान सूचक माला ऐसी लगती है जैसे किसी ने उनके गले में काला नाग लपेट दिया हो।
यह सम्‍मान सच
ू क माला हमारा प्राचीन इतिहास एवं साहित्‍य यह स्‍मरण कराता है कि सम
ु न
माला को निकालने के कारण ही दे वासुर संग्राम तक छिड गया था जिसमें कंठहार को निकालने
के अपराध में दे वराज इन्‍द्र सिंहासन से उतार दिये गये थे।

गले मे डाली गयी माला की सुगन्‍


ध स्‍वाभाविक ही नाक में प्रवेश कर जाती है जिससे भीतर
समाई हुई दर्ग
ु न्‍
ध दरू हो जाती है , मन प्रसन्‍न एवं प्रफुलिल्‍त हो जाता है रोग दोष भाग जाते हैं।
शरीर में स्‍वस्‍थ और शभ
ु संकल्‍पों का सम्‍यक समीकरण स्‍थापित हो जाता है । गले में डाली
गयी माला का अपमान करने के ही कारण भगवान शिव की स‍ती को , अपने ही पति दक्ष
द्वारा संचालित यज्ञ में आहूति दे कर अपने शरीर को नष्‍ट करना पडा था, क्‍योंकि उनके पिता
ने ऋषि के द्वारा दी गयी माला का अपमान किया था।

हमारे दे श मे जिस तरह की नई शिक्षा नीति के माध्‍यम से सामाजिक आर्थिक पुनर्गठन शुरू
किया गया है उसी प्रकार सोवियत संघ में शिक्षण पद्धतियों को खोजने के विशेषज्ञों के साथ
साथ अध्‍यापकगण शिक्षा की प्रक्रिया मे सध
ु ार के श्रेष्‍ठ तरीकों को खोजने का प्रयास कर रहे
हैं। इसे स्‍कल में पेरेस्‍त्रोइका का नाम दिया जा रहा है ।

डा राम मनोहर लोहिया जो कि अपने समय के एक महान समाजवादी नेता थे एक बार कहा
जाता है कि जिस प्रकार तवे पर रोटी बार बार पलटने से ठीक तरह से पक जाती है उसी प्रकार
संसदीय लोकतंत्र में व्‍यवस्‍थाओं के बदलते रहने से लोकतंत्र मजबूत होता है अत: कोई भी
व्‍यक्ति अपना एकछत्र मनमाना शासन संचालित नहीं करने की चेष्‍टा करे गा।

मां वह श्‍ब्‍द है जिसमें बहुत से रहस्‍य छिपें हैं। मां शब्‍द एक बहुत ही महत्‍वपूरण
् ्‍शब्‍द है
जिसके कारण ही संसार क महत्‍वपूर्ण एवं पराक्रमशाली व्‍यक्ति जीवन मे उत्‍कृष्‍ट स्‍थान एवं
उदे श्‍य को प्राप्‍त कर सके हैं समर्थ हो सके हैं। कोई मनष्ु ‍य किसी ऊंचे पद पर तभी पहुंच
सकता है जबकि उसको बचपन मे सही आदर्श एवं उन्‍नतिशील शिक्षा प्राप्‍त हुयी हो।

प्रेस अर्थात समाचार पत्र प्रकाशन संस्‍था का संचालन का प्रजातंत्र में बडा महत्‍व होता है । इस
संस्‍था के द्वारा जनता तथा सरकार के बीच सदै व सम्‍पर्क बनाये रखने जाता है । प्रजातंत्र मं
प्रेस इतना शक्तिशाली होता है कि उसे चैाथी सत्‍ता कहा जाता है । प्रेस इतना शक्तिशाली
इसलिए होता है क्‍योंकि इसकी सौ आंखे होती हैं। यह सरकार की नीतियों का समर्थन अथवा
उनकी आलोचना राष्‍टी्रय परिक्षेप्‍य में करके प्रत्‍येक बात को सुधारने का काम करता है । चकि
ूं
प्रेस द्वारा जनता की सही भावना को उजागर करके सरकार के समक्ष न्‍याय के लिए रखा
जाता है । अत: यह सरकार को न्‍याय करने के लिए भी बाध्‍य करता है । इसके अतिरिक्‍त इसका
एक महत्‍वपूर्ण कार्य है समाज सुधार का कार्य। अपने सम्‍पादकीय लेखों द्वारा यह समाज में
व्‍याप्‍त विभिन्‍न प्रकार के अंध विश्‍वासों बुराईयों के विरूद्ध जनमत तैयार करके उन पर विजय
पाने की दिशा में सक्रिय भूमिका भी अदा करता है ।

प्रेस द्वारा जनता की सही भावना को उजागर करके सरकार के समक्ष न्‍याय के लिए रखा
जाता है । अत: सरकार को न्‍याय करने के लिए भी बाध्‍य करता है । इसके अतिरिक्‍त इसका एक
महत्‍वपर्ण
ू कार्य है समाज सध
ु ार का कार्य। अपने सम्‍पादकीय लेखों द्वारा यह समाज मे व्‍याप्‍त
विभिन्‍न प्रकार के अंध विश्‍वासों बुराईयों के विरूद्ध जनमत तैयार करके उन पर विजय पाने की
दिशा मे सक्रिय भूमिका भी अदा करता है ।

प्रेस द्वारा जनता की सही भावना को उजागर करके सरकार के समक्ष न्‍याय के लिए रखा
जाता है । अत: सरकार को न्याय करने के लिए भी बाध्‍य करता है । इसके अतिरिक्‍त इसका एक
महत्‍वपूर्ण कार्य है समाज सुधार का कार्य। अपने सम्‍पादकीय लेखों द्वारा यह समाज में व्‍याप्‍त
विभिन्‍न प्रकार के अंध विश्‍वासेां बरु ाईयों के विरूद्ध जनमत तैयार करके उन पर विजय पाने की
दिशा मे सक्रिय भूमिका भी अदा करता है ।

प्राचीन कथाओं में मिश्र भी सहारा मरूस्‍थल का एक अंग था जो नील नदी की कृपा से बहुत से
उपजाऊ बन गया है । पर्वी
ू सहारा में ऐसे मरू उद्यानों का उल्‍लेख है जो बाद में एकदम गायब
हो गये थे इन कथाओं पर आधनि
ु क वैज्ञानिक विश्‍वास नहीं करते ।

लगभग दो वर्ष पूर्व संयक्


ु ‍त राज्‍य अमेरिका की अंतरिक्ष शटल कोलम्बिया ने राडार संकेतों की
मदद से ऐसी नदियों के संकेत भेजे थे जो आज से लगभग 2 करोड वर्ष पूर्व सहारा में बहती
थी। वैज्ञानिकों को यह मालूम है कि सहारा हमेशा से मरूस्‍थल नहीं था। वहां काफी आबादी थी
विशेष रूप से प्राचीन नदियों के किनारे ।
मनुष्‍य के जीवन में तीन महत्‍वपूर्ण पक्ष होते हैं। सत्‍ता , सम्‍पदा और नैतिकता। से तीनों ही
बडी शक्तियां हैं। सत्‍ता के पास दं ड की शक्ति, सम्‍पदा के पास विनिमय की और नैतिकता के
पास आत्‍म विश्‍
वास और आस्‍था की। इन्‍हीं तीनों के द्वारा मनष्ु ‍य का जीवन संचालित होता है ,
जब तक इनका संतुलन ठीक नहीं होता है तब तक जीवन यात्रा संतुलित रहती है । यदि इनमें
असंतुलन पैदा हो जाता है तो मानव जीवन रथ चरमरा जाता है ।

दे शाटन ज्ञान की वद्धि


ृ का सर्वाधिक प्रयोग में आने वाला साधन है । विभिन्‍न दे शो के निवासियों
के आचार विचार तथा विशिष्‍ट वस्‍तुओं का जितना सुन्‍दर एवं पूर्ण ज्ञान दे शाटन से द्वारा होता
है , उतना अन्‍
य किसी साधन से नहीं। यद्यपि पुस्‍तकों समाचार पत्रों के द्वारा भी उक्‍त ज्ञान
प्राप्‍त होता है किन्‍तु जितना पर्ण
ू और सर्वांगीण ज्ञान दे शाटन से प्राप्‍त होता है उतना अन्‍य
ि‍कसी साधनों से नहीं।

महोदय किसी भी आदमी को अपने मताधिकार अर्थात वोट का प्रयोग मजहबी आधार पर नहीं
करना चाहिए। इस प्रक्रिया को बन्‍द करने से ही लोकतंत्र मजबूत होगा। लोकतंत्र में वोट जुडा है
व्‍यवस्‍था से शासन से । शासन जड
ु ा है दे श में कानून का राज्‍य स्‍थापित करने से । इसलिए
वोट दे श में कानून का राज्‍य स्‍थापित करने के लिये दिया जाना चाहिये। वोट वर्गभेउ तथा
विघटनकारी नारों व फतवे पर नहीं दिया चाहिये।

मध्‍य प्रदे श में आदिवासी मजदरू ों को ज्‍यादा से ज्‍यादा लाभ पहुंचाने के लिये के उद्देश्‍य से
बनायी गयी तें द ू पत्‍ता नीति ने एक ओर पज
ंू ीपतियों की नींद हराम कर दी है वहीं दस
ू री ओर
संगठनों ने इस शासक दल का प्रचार एवं शासकीय धन का दरू
ु पयोग करने का आरोप लगाया
है । इस जंगल में पाये जाने वाले पत्‍तों से लगभग 25 लाख आदिवासियों को रोजगार उपलब्‍ध
होता है । इस प्रकार यह शासक दल का क्रांतिकारी कदम कहलायेगा क्‍योंकि इसके द्वारा 25
लाख रोजगार के साधन उपलब्‍ध होते हैं।

महोदय, हमारे दे श मे स‍हकारिता जीवन का मुख्‍य आधार है तथा समाज का एक प्रमुख स्‍तम्‍भ
है जिसके अभाव में जन्‍म से मत्ृ ‍यु तक कोई भी कार्य संभव नहीं है । आज के यग
ु में भी
सामाजिक सांस्‍कृतिक व आर्थिक तीनों ही पहलुओं मे सहकारिता या सहयोगग का अपना महत्‍व
है । चकि
ूं दे श कृषि प्रधान दे श है इसलिए आज भी दे हात मे खेती मे मदद करने में , जन्‍म
विवाह, मत्ृ य
‍ ु अवसरों पर आपसी सहयोग के अतगिनत उदाहरण आज भी दे खे जा सकते हैं।
परन्‍
तु वर्त्‍मान समय में सहकारिता का अर्थ ग्रामीण व नगरीय क्षेत्रों में सहकारी समितियों के
माध्‍यम से उनकी आर्थिक उन्नति से ही लगाया जाता है ।

महोदय दे श की संसद हो या राज्‍य की राज्‍य सभायें अध्‍यक्ष पीठासीन अधिकारी ही सदन की


मान मर्यादा का रक्षक माना जाता है । उसका सर्वोपरि दायित्‍व यह है कि वह शांतिपर्ण
ू ढं ग से
सदन की कार्यवाही का संचालन करें । बडे दख
ु की बात है कि पिछले साल कुछ समय से सदन
में हमारे ही सदस्‍यों द्वारा किसी न किसी बात पर हं गामा खडा किया जाता रहा है जिससे कि
सदन की कार्यवाही घटों रूकी रही है ।

अयोध्‍या के भूपति श्री दशरथ के ज्‍येष्‍ठ पुत्र श्री रामचन्‍द्र जी ने रावण से घमासान युद्ध में
उसकी नाभि में अर्मत का भेद ज्ञात हो जाने पर झटपट रथ पर चढकर अपने प्रचण्‍ड बाणों से
उसकी नाभि पर ऐसा प्रहार किया जिससे कुछ ही क्षणों में उसके प्राण पखेरू हो गये। ऋषियों
का कहना है कि ऐसा विद्यावान मनुष्‍
य अर्थात रावण की प्रक्रति वाला व्‍यक्ति कभी सफल नहीं
हो सकता । इसलिए मनुष्‍य को कभी घमण्‍ड नहीं करना चहिए।

मनुष्‍य के जीवन के तीन महत्‍वपूर्ण पक्ष होते हैं। सत्‍ता , सम्‍पदा और नैतिकता। ये तीनों ही
बडी शक्तियां हैं। सत्‍ता के पास दं ड की शक्ति , सम्‍पदा के पास विनिमय की और नैतिकता में
आत्‍म विश्‍वास की और आस्‍‍था की। इन्‍
हीं के द्वारा मनुष्‍य का जीवन रथ संचालित होता है ।
जब तक इनका संतल
ु न ठीक रहता है तब तक जीवन यात्रा संतलि
ु त रहती है । यदि इनमें
आपस में असंतुलन की पैदा हो जाता है तो मानव जीवन रथ चरमरा जाता है ।

दे शाटन ज्ञान की वद्धि


ृ का सर्वाधिक प्रयोग में आने वाला साधन है । विभिन्‍न दे शों के निवासियों
के आचार विचार तथा विशिष्‍ट वस्‍तुओं का जितना सुन्‍दर एवं पूर्ण ज्ञान दे शाटन के द्वारा होता
है , उतना किसी के द्वारा नहीं। यद्यपि पुस्‍तकों समाचार पत्रों के द्वारा भी उक्‍त ज्ञान प्राप्‍त
होता है किन्‍तु जितना पूर्ण और सर्वांगीण ज्ञान दे शाटन से प्राप्‍त होता है उतना अन्‍
य किसी
साध्‍नों से नहीं।
प्रेस अर्थात समाचार पत्र प्रकाशन संस्‍था का प्रजातंत्र में बडा महत्‍व होता है । इस संस्‍था के
द्वारा जनता तथा सरकार के बीच सदै व सम्‍पर्क बनाये रखा जाता है । प्रजातंत्र में प्रेस इतना
शक्तिशाली होता है कि उसे चौथी सत्‍ता कहा जाता है । प्रेस इतना शक्तिशाली इसलिए होता है
क्‍योंकि इसकी सौ आंखें होती है । यह सरकार की नीतियों का समर्थन अथवा उनकी आलोचना
राष्‍ट्रीय परिक्षेप्‍य में करके प्रत्‍येक बात को सध
ु ारने का काम करता है । चूंकि प्रेस द्वारा जनता
की सही भावना को उजागर करके सरकार के समक्ष न्‍याय के लिए रखा जाता है । अत: यह
कार्य है समाज सध
ु ार का कार्य। अपने सम्‍पादकीय लेखों द्वारा समाज में व्‍याप्‍त विभिन्‍न
प्रकार के अंध विश्‍वासों बुराईयों के विरूद्ध जनमत तैयार करके उन पर विजय पाने की दिशा में
सक्रिय भूमिका भी अदा करता है ।

प्राचीन कथाओं में मिश्र भी सहारा मरूस्‍थल का एक अंग था जो नील नदी की कृपा से बहुत
उपजाऊ बन गया है । पर्वी
ू सहारा में ऐसे मरू उद्यानों का उल्‍लेख है जो बाद में एकदम से
गायब हो गये इन कथाओं पर आधुनिक वैज्ञानिक विश्‍वास नहीं करते।

महोदय दे श की संसद हो या राज्‍य की विधान सभायें अध्‍यक्ष या पीठासीन अधिकारी ही सदन


की मान मर्यादा का रक्षक माना जाता है । उसका सर्वोपरि दायित्‍व यह है कि वह शांतिपूर्ण ढं ग
से सदन की कार्यवाही का संचालन करें । बडे दख
ु की बात है कि पिछले कुछ समय से सदन
की में हमारे ही सदस्‍यों द्वारा किसी न किसी बात पर हं गामा खडा किया जाता रहा है जिससे
सदन की कार्यवाही घंटों तक रूकी रहती है । इस प्रकार जनता के द्वारा टै क्‍स में वसूला गया
मेहनत का पैसा व्‍यर्थ रहता है । इस प्रकार के व्‍यवहार एवं आचरण से निश्‍
चय ही हमारी
लोकतांत्रिक संस्‍थानों की महान क्षति होती ह।

मध्‍य प्रदे श सरकार द्वारा आदिवासी मजदरू ों को ज्‍यादा से ज्‍यादा लाभ पहुंचाने के उदे श्‍य से
बनायी गयी तें द ू पत्‍ता नीति ने एक ओर पज
ंू ीपतियों की नींद हराम कर दी है वहीं दस
ू री ओर
अनेक संगठनों ने इसे शासक दल का प्रचार एवं शासकीय धन का दरू
ु पयोंग करने का आरोप
लगाया है । इस जंगल में पाये जाने वाले पत्‍तों से लगभग 25 लाख आदिवासियों को रोजगार
उपलब्‍ध होता है । इस प्रकार यह शासक दल का क्रांतिकारी कदम कहलायेगा क्‍योंकि इसके
द्वारा 25 लाख रोजगार के साधन उपजब्‍ध होते हैं।
महोदय, हमारे दे श मे सहकारिता जीवन का मुख्‍य आधार है तथा समाज का एक प्रमुख स्‍तम्‍भ
है जिसके अभाव में जन्‍म से मत्ृ ‍यु तक कोई भी कार्य संभव नहीं है । आज के युग में भी
सामाजिक सांस्‍कृतिक व आर्थिक तीनों ही पहलओ
ु ं में सहकारिता या सहयोग का अपना महत्‍व
है । चकि
ूं हमारा दे श कृषि प्रधान दे श है इसलिए आज भी दे हात में खेती में मदद करने में ,
जन्‍म विवाह मत्ृ य
‍ ु अवसरों पर आपसी सहयोग से अनगिनत उदाहरण आज भी दे खे जा सकते
हैं। परन्‍तु वर्तमान समय में सहकारिता का अर्थ ग्रामीण व नगरीय क्षेत्रों में सहकारी समितियों
के माध्‍यम से उनकी आर्थिक उन्‍नति से ही लगाया जाता है । मध्‍य प्रदे श सरकार द्वारा
आदिवायी मजदरू ों को ज्‍यादा से ज्‍यादा लाभ पहुंचाने के लिए से बनायी गयी तें द ू पत्‍ता नीति
ते एक ओर पूंजीपतियों की नींद हराम कर दी है वहां दस
ू री ओर अनेक संगठनों ने इसे शासक
दल का प्रचार एवं शासकीय धन का दरू
ु पयांग करने का आरोप लगाया है । इस जंगल में पाये
जाने वाले पत्‍तों से लगभग 25 लाख आदिवासियों को रोजगार उपलब्‍ध कराया जाता है । इस
प्रकार यह शासक दल का क्रांतिकारी कदम कहलायेगा क्‍योंकि इसके द्वारा लाख रोजगार के
साधन उपलब्‍ध्‍होते हैं।

मां वह शब्‍द है जिसमें संचालित बहुत से रहस्‍य छिपें हैं। मां शब्‍द एक बहुत ही महत्‍वपूर्ण शब्‍द
है , जिसके कारण ही सारे संसार के महत्‍वपूर्ण एवं पराक्रमशाली व्‍यक्ति अपने जीवन में उत्‍
कृष्‍ट
एवं उद्देश्‍य को प्राप्‍त करने में समर्थ हो सके थे। कोई मनुष्‍य किसी ऊंचे पद पर तभी पहुंच
सकता है जबकि उसको बचपन में सही आदर्श एवं उन्‍नतिशील शिक्षा प्राप्‍त हुई हो।

अयोध्‍या के भूपति श्री दशरथ के ज्‍येष्‍ठ पुत्र श्री रामचन्‍द्र जी ने रावण से घमासान युद्ध में
उसकी नाभि में अर्मत का भेद ज्ञात हो जाने पर झटपट रथ पर चढकर अपने प्रचण्‍ड बाणों से
उसकी नाभि पर ऐसा प्रहार किया जिससे कुछ ही क्षणों में उसके प्राण पखेरू हो गये। ऋषियों
का कहना है कि ऐसा विद्दावान मनुष्‍य अर्थात रावण की प्रक्रति वाला व्‍यक्ति कभी सफल नहीं
हो सकता । इसलिए मनुष्‍य को कभी घमण्‍ड नहीं करना चाहिए।

हमारे दे श में जिस तरह की नई शिक्षा नीति के माध्‍यम से सामाजिक आर्थिक पुनर्गठन का
कार्य समाई हुई दर्ग
ु न्‍ध दरू हो जाती है , मन प्रसन्‍न एवं प्रफुल्लित हो जाता है , रोग दोष भाग
जाते हैं। शरीर में स्‍वस्‍थ्‍और संकल्‍पों का सम्‍यक समीकरण जाग्रत हो जाता है । गले में डाली
गयी माला का अपमान करने के ही कारण भगवान की सती को अपने पिता दक्ष द्वारा
संचालित यज्ञ में आहूति दे कर अपने शरीर को नष्‍ट करना पडा था, क्‍योंकि उनके पिता ने ऋषि
द्वारा दी गई माला का अपमान किया था।

डा राम मनोहर लोहिया जो कि अपने समय के एक महान समाजवादी नेता थे एक बार कहा
जाता है कि जिस प्रकार तवे पर रोटी बार बार पलटने से ठीक प्रकार से पक जाती है उसी
प्रकार संसदीय लोकतंत्र में व्‍यवस्‍थाओं के बदलते रहने से लोकतंत्र मजबूत होता है अत: कोई भी
व्‍यक्ति अपना एकछत्र मनमाना शासन संचालित करने की चेष्‍टा नहीं करे गा।

आजकल हमारे दे श एवं प्रदे श में यह फैशन सा चल पडा है कि कुछ विशिष्‍ट लोग दस
ू रों के
द्वारा पहनाई गयी माला पुष्‍पों की माला को पहनने के तुरन्‍त बाद ही उतार दे ते हैं, उन्‍हें यह
सम्‍मान सच
ू क माला ऐसी लगती है जैसे किसी ने उनके गले में काला नाग लपेट दिया हो।
हमारा प्राचीन साहित्‍य एवं इतिहास यह स्‍मरण कराता है कि सम
ु न माला को निकालने के
कारण ही दे वासुर तक छिड गया था जिसमें कंठहार को निकालने के कारण के अपराध मे इन्‍उ्र
सिंहासन से उतार दिये गये थे।

लगभग दो वर्ष परू व


् ्‍संयुक्‍त राज्‍य अमेरिका की अंतरिक्ष शटल कोलम्बिया ने राडार संकेतो की
मदद से ऐसी नदियों के संकेत भेजे थे जो आज से लगभग 2 करोड वर्ष पूर्व सहारा में बहती
थी। वैज्ञानिकों को यह मालूम है कि सहारा हमेशा से मरूस्‍थल नहीं था। वहां काफी आबादी थी
विशेष रूप से प्राचीन नदियों के किनारे ।

महोदय किसी भी आदमी को अपने मताधिकार अर्थात वोट का प्रयोग मजहबी आधार पर नहीं
करना चाहिए। इस प्रक्रिया को बन्‍द करने से ही लोकतंत्र मजबत
ू होगा। लोकतंत्र में वोट जड
ु ा है
व्‍यवस्‍था से, शासन से। शासन जुडा है दे श में कानून का राज्‍य स्‍थापित करने से। इसलिये वोट
दे श में कानून का राज्‍य स्‍थापि‍त करने के लिये दिया जाना चाहिये। वोट वर्गभेद तथा
विघटनकारी नारों व फतवे पर नहीं दिया जाना चाहिए।

मनुष्‍य के जीवन के तीन महत्‍वपूर्ण पक्ष होते हैं। सत्‍ता , सम्‍पदा और नैतिकता । ये तीनों ही
बडी शक्तियां हैं। सत्‍ता के पास दं ड की शक्ति, सम्‍पदा के पास विनिमय और नैतिकता में
आत्‍म विश्‍वास और आस्‍था की । इन्‍
हीं तीनों के द्वारा मनुष्‍य का जीवन संचालित होता है , जब
तक इनका संतुलन ठीक रहता है तब तक जीवन रथ संतुलित रहता है । यदि इनमें आपस में
असंतल
ु न की पैदा हो जाता है तो मानव जीवन रथ चरमरा जाता है ।

सहारा संसार का सबसे बडा मरूस्‍थल है । वहां हजारों वर्ग किलोमीटर के ऐसे क्षेत्र हैं जहां यदा
कदा ही वर्षा होती है । उसका पर्वी
ू क्षेत्र तो ऐसा है जहां शायद तीस चालीस साल में कभी एक
बार वर्षा हो जाती है ।

भारत दे श में नदी जल प्रकृति की बहूमल्


ु ‍य दे न है । इस जल का उपयोग न सिर्फ आर्थिक
विकास के लिए आवश्‍यक है बल्कि दे श की बढती जनसंख्‍या को खाद्य सामग्री की जरूरतों को
पूरा करने के लिए जरूरी है । असमान वर्षा के कारण इस जल को एकत्र करने के लिए बांध
और जलाशयों का निर्माण भी दे श की उन्‍नति में सहायक सिद्ध होता है ।

महोदय, दे श की संसद हो या राज्‍यो की विधान सभाएं अध्‍यक्ष या पीठासीन अधिकारी ही सदन


की मान मर्यादा का रक्षक माना जाता है । उसका सर्वोपरि दायित्‍व यह है कि वह शांतिपूर्ण ढं ग
से सदन की कार्यवाही का संचालन करें । बडे दख
ु की बात है कि पिछले कुछ समय से सदनों में
हमारे ही सदस्‍यों द्वारा किसी न किसी बात पर हंगामा खडा किया जाता रहा है जिससे कि
सदन की कार्यवाही घंटो तक रूकी रहती है । इस प्रकार सरकार द्वारा टै क्‍स में वसूला जाने
वाला गया मेहनत का पैसा व्‍यर्थ बरबाद होता रहता है । इस प्रकार के व्‍यवहार एवं आचरण से
निश्‍
चय ही हमारी संस्‍थानों की महान क्षति होती है ।

सामाजिक सांस्‍कृतिक आर्थिक सहकारिता सहकारिता उदाहरण इसलिए इसलिए माध्‍यम


अनगिनत आपसी सहयोग जिसके अभाव में जन्‍म तक कोई भी कार्य संभव नहीं है । अनेक
संगठनों ने इसे शासक दल का प्रचार करने एवं शासकीय धन का दरू
ु पयोग करने का आरोप
लगाया है । इस जंगल में पाये जाने वाले पत्‍तों से लगभग लाख आदिवासियों को रोजगार
उपलब्‍ध कराया जाता है । इस प्रकार यह शासक दल का क्रांतिकारी कदम कहलायेगा क्‍योंकि
इसके द्वारा रोजगार के साधन उपजब्‍
ध होते हैं।
महोदय हमारे दे श में सहकारिता जीवन का मुख्‍य आधार है तथा समाज का एक प्रमुख स्‍तम्‍भ
है जिसके अभाव में ज्‍न्‍म से मत्ृ ‍यु तक कोई भी कार्य संभव नहीं है । आज के युग में भी
सामाजिक सांस्‍कृतिक और आर्थिक तीनों ही पहलओ
ु ं में सहकारिता या सहयोग का अपना
महत्‍व है । चूंकि दे श कृषि प्रधान दे श है इसलिए आज भी दे हात में खेती करने में जन्‍म विवह
मत्ृ ‍यु अवसरों पर आपसी सहयोग से अनगिनत उदाहरण भी दे खे जा सकते हैं। परन्‍
तु व‍र्तमान
में सहकारिता का अर्थ ग्रामीण व नगरीय क्षेत्रों में सहकारी समितियों के माध्‍यम से उनकी
आर्थिक उन्‍नति से ही लगाया जाता है ।

जब तक हिन्‍दी भाषी हिन्‍दी को ह्रदय से स्‍वीकार नहीं करते तब तक वह राष्‍ट्र भाषा का स्‍थान
नहीं पा सकती है । अक्‍सर यह सुनने में आता है कि हिन्‍दी भाषा में वैज्ञानिक साहित्‍य या
न्‍यायिक कम है या नहीं के बराबर है , यह बात बिल्‍कुल निराधार है । मैं इस बात को दावे के
साथ कह सकता हूं कि यदि सरकार हिन्‍दी को पर्ण
ू रूपेण सभी क्षेत्रों में ईमानदारी से लागू करें
तो जो हिन्‍दी साहित्‍य का भाषा नहीं है , एक तो पर्याप्‍त साहित्‍य उपलब्‍ध है ही अगर जो
साहित्‍य उपलब्‍ध नहीं है , तो वह एक साल के अन्‍दर अवश्‍य उपलब्‍ध हो जायेगा।

इस सम्‍बन्‍ध में अक्‍सर यह सुनने में आता है कि हमारे यहां अभी स्‍नातकोत्‍तर पढाई के लिए
पर्याप्‍
त साहित्‍य नहीं है । बडी गलत बात है अभी सरकार के द्वारा ही कुछ महीने पहले यहां
पर एक विशाल प्रदर्शनी का आयोजन किया गया था। उस प्रदर्शनी में जिन पुस्‍तकों का प्रदर्शन
किया गया था उन पस्
ु ‍तकों से यह बात स्‍पष्‍ट है कि हमारे यहां पर वैज्ञानिक न्‍यायिक और
शास्‍त्रीय विषयों पर भी हिन्‍दी में पर्याप्‍त पुस्‍तकें हैं।

इसके पर्व
ू भी मैं इस बात को अनेकों बार कहता रहा हूं कि साहित्‍य की तैयारी की एक योजना
सरकार को बनानी चाहिये और दे श के विभिन्‍न विश्‍
व विद्यालयों में विद्यानों को एक एक
पुस्‍तक अलग अलग विषयों पर लिखने के लिए दे नी चाहिए तथा उनसे करार कर लेना चाहिए
और मेरा विश्‍
वास है कि एक वर्ष के अन्‍दर कोई ऐसा ग्रन्‍थ नहीं है जो तैयार न हो सके, तो
साहित्‍य तैयार नहीं है यह बडी गलत बात है । इस प्रकार की गलत दलीलों से राष्‍ट्र भाषा हिन्‍दी
का अपमान ही होता है । इस प्रकार की गलत जिस दे श में राष्‍ट्र भाषा के प्रति कुछ ऐसे लोग
जो अपने को प्रगतिशील विचारों वाला मानते हैं तथा यह कहकर आलोचना करते हैं कि इस
भाषा में विभिन्‍न क्षेत्रों में प्रयोग की जाने वाली शब्‍दावली नहीं है , इस प्रकार का दृष्टिकोंण
रखतें हैं उन्‍हें दे श भक्‍त या राष्‍ट्र भाषा का शभ
ु चिन्‍तक नहीं माना जा सकता।

अयोध्‍या के भूपति श्री रामचन्‍द्र जी ने रावण से घमासान युद्ध में उसकी नाभि में अर्मत का
भेद ज्ञात हो जाने पर झटपट रथ पर चढकर अपने प्रचण्‍ड बाणों से उसकी नाभि पर ऐसा प्रहार
किया जिससे कुछ ही क्षणों में उसके प्राण पखेरू हो गये। ऋषियों का कहना है कि ऐसा
विद्दावान मनुष्‍य अर्थात रावण की प्रक्रति वाला व्‍यक्ति कभी सफल नहीं हो सकता । इसलिए
मनुष्‍य को कभी घमण्‍ड नहीं करना चाहिए।

प्रेस अर्थात समाचार पत्र प्रकाशन संस्‍था का प्रजातंत्र में बडा महत्‍व होता है । इस संस्‍था के
द्वारा जनता तथा सरकार के बीच सदै व सम्‍पर्क बनाये रखा जाता है । प्रजातंत्र में प्रेस इतना
शक्तिशाली होता है कि एसे चौथी सत्‍ता कहा जाता है । प्रेस इतना शक्तिशाली इसलिए होता है
क्‍योंकि इसकी सौ आंखे हाती है । यह सरकार की नीतियों का समर्थन अथवा उनकी आलोचना
राष्‍ट्रीय परिक्षेप्‍य में करके प्रत्‍येक बात को सध
ु ारने का काम करता है । चूंकि प्रेस द्वारा जनता
सरकार को न्‍याय करने के लिए भी बाध्‍
य करता है । इसके अतिरिक्‍त इसका एक महत्‍वपूर्ण
कार्य है समात सध
ु ार का कार्य। अपने सम्‍पादकीय लेखों द्वारा य‍ह समाज में व्‍याप्‍त विभिन्‍न
प्रकार के अंध विश्‍वासों बुराईयों के विरूद्ध जनमत तैयार करके उन पर विजय पाने की दिशा में
सकिे्रय भूमिका भी अदा करता है ।

प्राचीन कथाओं में मिश्र भी सहारा मरूस्‍थल का एक अंग था जो नील नदी की कृपा से बहुत
उपजाऊ बन गया है । पर्वी
ू सहारा में ऐसे मरू उद्यानों का उल्‍लेख है जो बाद में एकदम गायब
हो गये इन कथाओं पर आधुनिक वैज्ञानिक विश्‍वास नहीं करते।

जब तक हिन्‍दी भाषी हिन्‍दी को ह्रदय से स्‍वीकार नहीं करते तब तक वह राष्‍ट्र भाषा का स्‍थान
नही पा सकती है । अक्‍सर यह सुनने में आता है कि हिन्‍दी भाषा में वैज्ञानिक साहित्‍य या
न्‍यायिक साहित्‍
य कम है या नहीं के बराबर है , यह बात बिल्‍
कुल निराधार है । मैं इस बात से को
दावे के साथ कह सकता हूं कि यदि सरकार हिन्‍दी भाषा को पूर्णरूपेण सभी क्षेत्रों में इमानदारी
से लागू करें तो जो साहित्‍य हिन्‍दी भाषा का नहीं है , एक तो पर्याप्‍त साहित्‍य उपलब्‍ध है ही
अगर साहित्‍य उपलब्‍ध नहीं है , तो वह एक साल में अन्‍दर अवश्‍य उपलब्‍ध हो जायेगा।

इस सम्‍बन्‍ध में अक्‍सर सुनने में आता है कि हमारे यहां अभी स्‍नातकोत्‍तर पढाई के लिये
पर्याप्‍
त साहित्‍य नहीं है । बडी गलत बात है अभी सरकार के द्वारा ही कुछ महीने पहले ही यहां
पर एक विशाल आयोजन किया गया था। उस प्रदर्शनी में जिन पस्
ु ‍तकों का प्रदर्शन किया गया
था उन पुस्‍तकों से यह बात स्‍पष्‍ट है कि हमारे यहां पर वैज्ञानिक न्‍यायिक और शास्‍त्रीय
विषयों पर भी हिन्‍दी में पर्यौप्‍त पुस्‍तकें हैं।

यदि श्रीमान जी मुझे इस विषय पर प्रकाश डालने का अवसर दें तो मैं इस विषय में एक
उदाहरण दे ना पर्याप्‍त समझता हूं। इसके पूर्व भी मैं इस बात को अनेकों बार कहता रहा हूं कि
साहित्‍य की तैयारी की एक योजना सरकार को बनानी चाहिए और दे श के विभ्न्नि विश्‍व
विद्यालयों में विद्यानों को एक एक पस्
ु ‍तक अलग अलग विषयों पर लिखने के लिए दे नी
चाहिए तथा उनसे करार कर लेना चाहिए कि और मेरा विश्‍वास है कि एक वर्ष ्‍के अन्‍दर कोई
ऐसा ग्रन्‍
थ नहीं है जो तैयार न हो सके, तो साहित्‍
य तैयार नहीं है बडी गलत बात है । इस प्रकार
की गलत दलीलों से राष्‍ट्र भाषा हिन्‍दी का अपमान ही होता है । जिस दे श में राष्‍ट्र भाषा के
प्रति कुछ ऐसे लोग जो अपने को प्रगतिशील समझते हैं। तथा यह कहकर आलोचना करते हैं
कि इस भाषा में विभिन्‍
न क्षेत्रों में प्रयोग की जाने वाली शब्‍दावली नहीं है , इस प्रकार का
दृष्टिकोंण रखते हैं उन्‍हें दे श भ्‍क्‍त राष्‍
ट्र भाषा का शुभचिन्‍तक नहीं माना जा सकता है ।

उनसे करार कर लेना चाहिए कि और में रा विश्‍वास है कि एक वर्ष के अन्‍दर कोई ऐसा ग्रन्‍

नहीं है जो तैयार न हो सके, तो साहित्‍य तैयार नहीं है बडी गलत बात है । इस प्रकार की गलत
दलीलों से राष्‍ट्र भाषा हिन्‍दी का अपमान ही होता है । जिस दे श में राष्‍ट्र भाषा के प्रति कुछ ऐसे
लोग अपने को प्रगतिशील समझते हैं। तथा यह कहकर आलोचना करते हैं कि इस भाषा में
विभिन्‍न क्षेत्रों में प्रयोग की जाने वाली शब्‍दावली नहीं हैं, इस प्रकार का दृष्‍टिकोण रखते है उन्‍हें
दे श राष्‍ट्र भाषा का शुभचिन्‍तक नहीं माना जा सकता है ।

अयोध्‍या के भूपति श्री दशरथ के ज्‍येष्‍ठ पुत्र श्री रामचन्‍द्र जी ने रावण से घमासान युद्ध में
उसकी नाभि में अर्मत का भेद ज्ञात हो जाने पर झटपट रथ पर चढकर अपने प्रचण्‍ड बाणों से
उसकी नाभि पर ऐसा प्रहार किया जिससे कुछ ही क्षणों में उसके प्राण पखेरू हो गये। ऋषियों
का कहना है कि ऐसा विद्यावान मनुष्‍
य अर्थात रावण की प्रक्रति वाला व्‍यक्ति कभी सफल नहीं
हो सकता इसलिए मनष्ु ‍य को कभी घमण्‍ड नहीं करना चाहिए।

जब तक हिन्‍दी भाषी हिन्‍दी को ह्रदय से स्‍वीकार नही करते तब तक वह राष्‍ट्र भाषा का स्‍थान
नही पा सकती है । अक्‍सर यह सन
ु ने में आता है कि हिन्‍दी भाषा में वैज्ञानिक साहित्‍य या
न्‍यायिक साहित्‍
य कम है या नही के बराबर है , यह बात बिल्‍
कुल निराधार है , मैं इस बात को
दावे के साथ कह सकता हूं कि यदि सरकार हिन्‍दी को पूर्णरूपेण सभी क्षेत्रों में ईमानदारी से
लागू करें तो जो साहित्‍य हिन्‍दी भाषा में नहीं है , वह एक साल के अन्‍दर अवश्‍य उपलब्‍ध हो
जायेगा।

इस सम्‍बन्‍ध में अक्‍सर यह सुनने में आता है कि हमारे यहां अभी स्‍नातकोत्‍तर पढाई के लिए
पर्याप्‍
त साहित्‍य नहीं है । बडी गलत बात है ‍अभी सरकार के द्वारा ही कुछ महीने पहले ही यहां
पर एक विशाल प्रदर्शनी का आयोजन किया गया था उस प्रदशनी में जिन पुस्‍तकों का प्रदर्शन
किया गया था उन पुस्‍तकों से यह बात स्‍पष्‍ट है कि हमारे यहां पर वैज्ञानिक न्‍यायिक और
शास्‍त्रीय विषयों पर भी हिन्‍दी में पर्याप्‍त पुस्‍तकें हैं।

यदि श्रीमान जी मुझे इस विषय पर प्रकाश डालने का अवसर दें तो मैं इस विषय में एक
उदाहरण दे ना पर्याप्‍त समझता हूं। पहले समय मे मैट्रिक पढाई का माध्‍यम अंग्रेजी थाऔर यह
दलील दी जाती थी कि हमारे यहां पर मैट्रिक की पढ़ाई का पर्याप्‍त साहित्‍य नहीं हैं।

इसके पूर्व भी मैं इस बात को अनेकों बार कहता रहा हूं कि साहित्‍य की तैयारी की एक योतना
सरकार को बनानी चाहिए और दे श के विभिन्‍न विश्‍
व विद्यालयों में विद्यान तथा में को एक
एक बार पुस्‍तक अलग अलग विषयों पर लिखने के लिए दे नी चाहि तथा उनसे करार लेना
चाहिए और मेरा विश्‍वास है कि एक वर्ष के अन्‍दर कोई ऐसा ग्रन्‍
थ नहीं है जो तैयार न किया
जा सके, तो साहित्‍य तैयार नही है यह बडी गलत दलील है । इस प्रकार केी गलत दलीलों से
राष्‍ट्र भाषा हिन्‍दी का अपमान ही होता है । जिस दे श में राष्‍ट्र भाषा के प्रति कुछ ऐसे लोग जो
अपने को प्रगतिशील विचारों वाला मानते हैं तथा यह कहकर आलोचना करते हैं कि इस भाषा
में विभिन्‍न क्षेत्रों में प्रयोग किया जाने वाली शब्‍दावली नहीं है , इस प्रकार का दृष्टिकोंण रखते हैं
उन्‍हें दे श भक्‍त या राष्‍ट्र भाषा का शुभचिन्‍तक नहीं माना जा सकता।

इस सम्‍बन्‍ध ् में अक्‍सर यह सुनने में आता है कि हमारे यहां अभी स्‍नातकोत्‍तर पढाई के लिए
पर्याप्‍
त साहित्‍य नहीं है । बडी गलत बात है अभी सरकार के द्वारा ही कुछ महीने पहले यहां
पर एक साहित्‍य प्रदर्शनी का आयोजन किया गया था उस प्रदर्शनी में जिन पस्
ु ‍तकों

वर्तमान यग
ु जिसे आधनि
ु क यग
ु कहा जाता है में राष्‍ट्रीय राजमार्गों का एक विशेष महत्‍व है ।
राजमार्ग न केवल परिवहन की दृि‍ष्‍ट से बल्कि अर्थ स्‍यवस्‍था को सुदृढ़ करने मे भी महत्‍वपूर्ण
भूमिका निभातें हैं। भारत जैसे विकासशील दे श के लिए तो इनका महत्‍व और भी अधिक है ,
क्‍योंकि यहां परिवहन के अन्‍
य साधन परू ी तरह से विकसित नही हो पा रहे हैं। प्राचीन काल से
ही हमारे दे श में सड़को के निर्माण को काफी महत्‍व दिया जाता रहा है लेकिन स्‍वतंत्रता प्राम्ति
के पश्‍चात राष्‍ट्रीय राजमार्गों के विकास और विस्‍तार के कार्य में विशेष तेजी आई है ।

आज विज्ञान के क्षेत्र में जो प्रग‍ि‍त हो रही है , उससे परिवहन के अन्‍य साधनों का भी विकास
सम्‍भव हो पाया है । विमान एवं रे लगाडियों परिवहन का प्रमुख साधन बने हुये हैं, कारण यह है
कि राष्‍ट्रीय राजमार्गें इन सबके बावजूद परिवहन केा प्रमुख साधन बने हुये हैं। परिवहन कारण
यह है कि विमान एवं रे ल सेवा के विस्‍तार की सम्‍भावनाएं सीमित हैं। इसलिए सरकार ने
राजमार्गों के विकास पर जोर दे कर सारे दे श मे इनका जाल सा बिछा दिया है फिर भी दे श के
पहाड़ी एवं दरू दराज के ग्रामीण इलाकों में सड़कों की कमी है । विमान एवं रे ल सेवा के विस्‍तार
की सम्‍भवनाएं सीमित हैं।

आजादी के पश्‍चात 1984 मे राष्ट्रीय राजमार्ग की महत्‍


वपूर्ण भूमिका को स्‍वीकार करते हुये इनके
विकास की नई नई योजनाये बनी जिससे कुछ नये राजमार्गों का विकास हुआ एवं पुराने मार्गों
की मरम्‍त एवं रख रखाव में तेजी आई। राजमार्गों के रख रखाव एवं सुधार की जिम्‍मेदारी
मख्
ु ‍य रूप से सरकारों की ही है परन्‍तु संसाधनों की कमी के कारण दे श सरकारें इस कार्य को
उचित महत्‍व नहीं दे पाती हैं। इसके अतिरिक्‍त राजमार्गों के विकास के काम में राज्‍
यों के बीच
में कोई सामंजस्‍य भी नहीं है । इस कमी को दरू करने के लिए राष्‍ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण का
गठन 1989 में एक सरकारी अधिसच
ू ना के जरिए किया गया ।

आजादी के पश्‍चात 1984 मे राष्ट्रीय राजमार्ग की महत्‍


वपर्ण
ू भमि
ू का को स्‍वीकार करते हुये इनके
विकास की नई नई योजनाये बनी जिससे कुछ नये राजमार्गों का विकास हुआ एवं परु ाने मार्गों
की मरम्‍त एवं रख रखाव में तेजी आई। राजमार्गों के रख रखाव एवं सुधार की जिम्‍मेदारी
मुख्‍य रूप से सरकारों की ही है परन्‍तु संसाधनों की कमी के कारण दे श सरकारें इस कार्य को
उचित महत्‍व नहीं दे पाती हैं। इसके अतिरिक्‍त राजमार्गों के विकास के काम में राज्‍
यों के बीच
में कोई सामंजस्‍य भी नहीं है । इस कमी को दरू करने के लिए राष्‍ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण का
गठन 1989 में एक सरकारी अधिसच
ू ना के जरिए किया गया ।

आजादी के पश्‍चात में राष्‍ट्रीय राजमार्ग की महत्‍वपर्ण


ू भमि
ू का को स्‍वीकार करते हुये इनके
विकास की नई नई योजनाये बनी जिससे कुछ नये राजमार्गों का विकास हुआ एवं पुराने मार्गों
की मरम्‍त एवं रख रखाव में तेजी आई। राजमार्गों के रख रखाव एवं सुधार की जिम्‍मेदारी
मख्
ु ‍य रूप से सरकारों की ही है परन्‍तु संसाधनों की कमी के कारण दे श सरकारें इस कार्य को
उचित महत्‍व नहीं दे पाती हैं । इसके अतिरिक्‍त राजमार्गों के विकास के काम में राज्‍
यों के
बीच में कोई सामंजस्‍य भी नहीं है । इस कमी को दरू करने के लिए राष्‍ट्रीय राजमार्ग प्राध्किारण
का गठान में एक सरकारी अधिसच
ू ना के जरिये किया गया।

आज विज्ञान के क्षेत्र में जो प्रगति हो रही है उससे परिवहन के अन्‍य साधनों का भी विकास
सम्‍भ्‍व हो पाया है विमान एवं रे लगाडि़यां परिवहन के क्षेत्र में काफी महत्‍व रखती हैं, लेकिन
राष्‍ट्रीय राजमार्ग इन सबके बावजद
ू परिवहन का प्रमख
ु साधन बने हुये हैं कारण यह है कि
विमान एवं रे ल सेवा के विस्‍तार क सम्‍भावनाएं सीमित हैं इसलिए सरकार ने राजमार्गों के
विकास पर जोर दे कर सारे दे श में इनका जाल बिछा दिया है फिर भी दे श के पहाडी एवं दरू
दराज के ग्रामीण इलाकों में सड़कों की कमी है ।

अयोध्‍या के भूपति श्री दशरथ के ज्‍येष्‍ठ पुत्र श्री रामचन्‍द्र जी ने रावण से घमासान युद्ध में
उसकी नाभि में अमत
ृ का भेद ज्ञात हो जाने पर झटपट र‍थ पर चढकर अपने प्रचण्‍ड बाणों से
उसकी नाभि पर ऐसा प्रहार किया जिससे कुछ ही क्षणों में उसके प्राण पखेरू हो गये। ऋषियों
का कहना है कि ऐसा विद्यावान मनुष्‍
य अर्थात रावण की प्रकृति वाला व्‍यक्ति कभी सफल नहीं
हो सकता इसलिए मनुष्‍य को कभी घमण्‍ड नहीं करना चाहिए।

प्रेस अर्थात समाचार पत्र प्रकाशन संस्‍था का प्रजातंत्र में बडा महत्‍व होता है । इस संस्था के
द्वारा जनता तथा सरकार के बीच सदै व सम्‍पर्क बनाये रखा जाता है । प्रजातंत्र में प्रेस इतना
शक्तिशाली होता है कि उसे चौथी सत्‍ता कहा जाता है । प्रेस इतना शक्तिशाली इसलिए होता है
क्‍योंकि इसकी सौ आंखें होती है । यह सरकार की नीतियों का समर्थन अथवा उनकी आलोचना
राष्‍ट्रीय परिक्षेप्‍य में करके प्रत्‍येक बात को सध
ु ारने का कार्य कनता है । चूंकि प्रेस द्वारा जनता
की सही भावना को उजागर करके सरकार के समक्ष न्‍याय के लिए रखा जाता है अत: यह
सरकार को न्‍याय करने के लिए बाध्‍य करता है । इसके अतिरिक्‍त इसका एक महत्‍वपूर्ण कार्य है
समाज सध
ु ार का कार्य। अपने सम्‍पादकीय लेखों द्वारा यह समाज में व्‍याप्‍त विभिन्‍न प्रकार के
अंध विश्‍वासों बरु ाईयों के विरूद्ध जनमत और करके उन पर विजय पाने की दिशा में सक्रिय
भूमिका भी अदा करता है ।

प्राचीन कथाओं में मिश्र भी सहारा का मरूस्‍थल का एक अंग था जो नील नदी की कृपा से
बहुत उपताऊ बन गया है । पर्वी
ू सहारा में ऐसे मरू उद्यानों का उल्‍लेख है जो बाद में एकदम
से गायब हो गये इन कथाओं पर आधुनिक वैज्ञानिक विश्‍वास नहीं करते।

प्राचीन कथाओं में मिश्र भी सहारा का मरूस्‍थल का एक अंग था जो नील नदी की कृपा से
बहुत उपताऊ बन गया है । पर्वी
ू सहारा में ऐसे मरू उद्यानों का उल्‍लेख है जो बाद में एकदम
से गायब हो गये इन कथाओं पर आ‍
धनि
ु क वैज्ञानिक विश्‍वास नहीं करते।
महोदय किसी भी आदमी को अपने मताधिकार अर्थात वोट का प्रयोग मजहबी आधार पर नहीं
करना चाहिए। इस प्रक्रिया को बन्‍द करने से ही लोकतंत्र मजबूत होगा। लोकतंत्र में वोट जूड़ा है
व्‍यवस्था से शासन से। शासन जड
ु ा है दे श में कानन
ू का राज्‍य स्‍थापित करने से। इसलिये वोट
दे श में कानून का राज्‍य स्‍‍थापित करने के लिये दिया जाना चाहिये। वोट वर्गभेद तथ
विघटनकारी नारों या फतवे पर नहीं दिया जाना चाहिये।

महोदय हमारे दे श में सहकारिता जीवन का मुख्‍य आधार है तथा यह समात का एक प्रमुख
स्‍तम्‍
भ है जिसके अभाव में जन्‍म से मत्ृ ‍यु तक कोई भी कार्य संभव नहीं है । आज के युग में
भी सामाजिक आर्थिक और सांस्‍कृतिक तीनों पहलुओं में सहकारिता या सहयोग का अपना
महत्‍व है । चंकि
ू दे श कृषि प्रधान दे श है इसलिए आज भी दे हात में खेती करने में किया था।

सहारा संसार का सबसे बडा गर्म मरूस्‍थल है । वहां हजारों वर्ग किलोमीटर के ऐसे क्षेत्र हैं जहां
यदा कदा वर्षा होती है । उसका पर्वी
ू क्षेत्र तो ऐसा भाग है जहां शायद तीस चालीस साल से में
कभी एक बार वर्षा हो जाती है ।

भारत दे श में नदी जल प्रक्रति की बहुमल्


ू ‍य दे न है । इस जल का उपयोग न सिर्फ आर्थिक
विकास के लिए आवश्‍यक है बल्कि दे श की बडती हुई जनसंख्‍या केा खाद्य सामग्री की जरुरतों
को पूरा करने के लिए जरूरी है । असमान वर्षा के कारण इस साल को एकत्र करने के लिए बांध
और जलाशयों का निर्माण भी दे श की उन्‍नति में सहायक सिद्ध होगा।

महोदय आजकल एवं कुछ शताब्दियों से भारतवर्ष की जनता के बीच इलाहाबाद शहर का नाम
बडी श्रद्धा के साथ लिया जाता है । इसका कारण है कि वहां पर तीर्थराज संगम की महत्‍ता ।
इलाहाबाद शहर का नामकरण पहले प्रयाग था जो कि मग
ु ल शासन काल के दौरान इसका
नामकरण अल्‍लाहाबाद रखा गया, यही नाम कालान्‍तर में आगे चलकर इलाहाबाद के नाम से
प्रसिद्ध हुआ।

महोदय दे श की संसद हो या राज्‍यो की विधान सभायें अध्‍यक्ष या पीठासीन अधिकारी ही सदन


का मान मर्यादा का रक्षक माना जाता है । उसका सर्वोपरि दायित्‍व यह है कि वह शांतिपूर्ण ढं ग
से सदन की कार्यवाही का संचालन करें । बडे दख
ु की बात है कि पिछले समय में सदनो में
हमारे ही सदस्‍यों द्वारा ही किसी न किसी बात पर हंगामा खड़ा किया जाता रहा है । जिससे
कि सदन की कार्यवही घंटो तक रूकी रहती है । इस प्रकार जनता के द्वारा टै क्‍स में वसूला
गया मेहनत का पैसा व्‍यर्थ बरबरद होता दिख रहा है । इस प्रकार के व्‍यवहार एवं आचरण से
निश्‍
चय ही हमारी लोकतांत्रिक संस्‍थानेां की महान क्षति होती है ।

प्राचीन कथाओं में मिश्र भी सहारा का एक अंग था जो नील नदी की कृपा से बहुत ही उपजाऊ
बन गया है । पूर्वी सहारा में ऐसे मरू उद्यानों का उल्‍लेख है जो बाद में एकदम गायब हो गये
इन कथाओं पर आधुनिक वैज्ञानिक विश्‍वास नहीं करते। लगभग दो वर्ष पूर्व संयुक्‍त राज्‍य
अमेरिका की अंतरिक्ष शटल कोलम्बिया ने राडार की मदद से ऐसी नदियों का संकेत भेजे थे जो
आज से लगभग 2 करोड़ वर्ष पर्व
ू सहारा में बहती थी। वैज्ञानिकों को यह मालम
ू है कि सहारा
हमेशा से मरूस्‍थल नहीं था। वहां काफी आबादी थी विशेष रूप से प्राचीन नदियों के किनारे ।

पर्वी
ू सहारा में ऐसे मरू उद्यानों का उल्‍लेख है जो बाद में एकदम गायब हो गये इन कथाओं
पर आधुनिक वैज्ञानिक विश्‍वास नहीं करते । लगभग दो वर्ष पूर्व संयुक्‍त राज्‍य अमेरिका की
अंतरिक्ष शटल कोलम्बिया ने राडार की मददसे ऐसी नदियो का संकेत भेजे थे जो आज से
लगभग 2 करोड़ वर्ष पूर्व सहारा में बहती थी। वैज्ञानिकों को यह मालूम है कि सहारा हमें शा से
मरूस्‍
थल नहीं था। वहां काफी आबादी थाी विशेष रूप से प्राचीन नदियों के किनारे ।

दे शाटन ज्ञान की वद्धि


ृ का सर्वाधिक प्रयोग में आने वाला साधन है । विभिन्‍न दे शों के निवासियों
के आचार विचार तथा विशिष्‍ट वस्‍तओ
ु ं का जितना सन्
ु ‍दर एवं पर्ण
ू ज्ञान दे शाटन होता है , उतना
अन्‍य किसी साधन द्वारा नहीं। यद्यपि पुस्‍तकों समाचार पत्रों के द्वारा भी उक्‍त ज्ञान प्राप्‍त
होता है किन्‍तु जितना पूर्ण एवं सर्वांगीण ज्ञान दे शाटन से प्राप्‍त होता है , उतना अन्‍
य किसी
साधन से नहीं।

दे शाटन ज्ञान की वद्धि


ृ का सर्वाधिक प्रयोग में आने वाला साधन है । विभिन्‍न दे शों के निवासियों
के आचार विचार तथा विशिष्‍ट वस्‍तुओं का जितना सुन्‍दर एवं पूर्ण ज्ञान दे शाटन होता है , उतना
अन्‍य किसी सधन द्वारा नहीं। यद्यपि पस्
ु ‍तकों समाचार पत्रों के द्वारा भी उक्‍त ज्ञान प्राप्‍त
होता है किन्‍तु जितना पूर्ण एवं सर्वांगीण ज्ञान दे शाटन से प्राप्‍त होता है , उतना अन्‍
य किसी
साधन से नहीं।
महोदय किसी भी आदमी को अपने मताधिकार अर्थात वोट का प्रयोग मजहबी आधार पर नहीं
करना चाहिये। इस प्रक्रिया को बन्‍द करने से पहले से ही लोकतंत्र मजबूत होगा। लोकतंत्र में
वोट जड़
ु ा है व्‍यवस्‍था से, शासन से। शासन जड़
ु ा है दे श में कानन
ू का राज्‍य स्‍थापित करने से ।
इसलिये वोट दे श में कानून का राज्‍य स्‍थापित करने के लिये दिया जाना चाहिये। वोट वर्गभेद
तथा विघटनकारी नारों व फतवे पर नहीं दिया जाना चाहिए।

सहारा संसार का सबसे बडा गर्म मरूस्‍थल है । वहां हजारों वर्ग किलोमीटर के ऐसे क्षेत्र हैं जहां
यदा कदा ही वर्षा होती है । उसका पूर्वी क्षेत्र तो ऐसा भाग है जहां शायद तीस चालीस साल में
कभी एक बार वर्षा हो जाती है ।

भारत दे श में नदी जल प्रकृति की दे न है । इस साल जल का उपयोग न सिर्फ आर्थिक विकास


के लिये आवश्‍सक है बल्कि उे श की बढ़ती हुई जनसंख्‍या को खाद्य सामग्री की जरूरत को पूरा
करने के लिये जरूरी है । असमान वर्षा के कारण ही इस जल को एकत्र करने के लिए बांध और
जलाशयों का निर्माण भी दे श की उन्‍नति में सहायक सिद्ध होगा।

महोदय आजकल एवं कुछ शताब्दियों से भारतवर्ष की जनता के बीच इलाहाबाद शहर का नाम
बडी श्रद्धा व लगन के साथ लिया जाता है । इसका कारण है कि वहां पर तीर्थराज संगम की
महत्‍ता। इलाहाबाद शहर का नामकरण पहले प्रयाग था जो मिक मुगल शासन काल के दौरान
इसका नामकरण अल्‍लाहबाद रखा गया, यही नाम कालान्‍तर में आगे चलकर इलाहाबाद के नाम
से प्रसिद्ध हुआ।

महादय, दे श की संसद हो या राज्‍यों की विधान सभायें अध्‍यक्ष पीठासीन अधिकारी ही सदन की


मान मर्यादा का रक्षक माना जाता है । उसका सर्वोपरि दायित्‍व यह है कि वह शांतिपर्ण
ू ढं ग ेस
सदन की कार्यवाही का संचालन करें । बड़े दख
ु की बात है कि पिछले कुछ समय से सदनों में
हमारे ही सदस्‍यों द्वारा किसी त किसी बात पर हंगामा खड़ा किया जाता रहा है । जिससे कि
सदन की कार्यवाही घंटो तक रूकी रही है । इस प्रकार जनता के द्वारा टै क्‍स में वसूला गया
मेहनत का पैसा व्‍यर्थ बरबाद होता रहता है । इस प्रकार के व्‍यवहार एवं आजरण से निश्‍
चय ही
हमारी लोकतंत्रिक संस्‍थानों की महान क्षति होती है ।
मध्‍य प्रदे श सरकार द्वारा आदिवासी मजदरू ों को ज्‍यादा से ज्‍यादा लाभ पहुंचाने के उदे श्‍य से
बनायी गयी तें द ू पत्‍ता नीति ने एक ओर पज
ूं ीपतियों की नींद हराम कर दी हे

अयोध्‍या के भूपति श्री दशरथ के ज्‍येष्‍ट पुत्र श्री रामचन्‍द्र जी ने रावण से घमासान यद्ध
ु में
उसकी नाभि में अर्मत का भेद ज्ञात हो जाने पर झटपट रथ पर चढ़कर अपने प्रचण्‍ड बाणों से
उसकी नाभि में ऐसा प्रहार किया जिससे कुछ ही क्षणों में उसके प्राण पखेरू हो गये। ऋषियों
का कहना है कि ऐसा विद्यावान मनूष्‍
य अर्थात रावण की प्रक्रति वाला व्‍यक्ति कभी सफल नहीं
हो सकता इसलिए मनुष्‍य को कभी घमण्‍ड नहीं करना चाहिये। अयोध्‍या के भूपति श्री दशरथ
के ज्‍येष्‍ठ पूत्र श्री रामचन्‍द्र जी ने रावण से घमासान युद्ध में उसकी नाभि में अर्मत का भेद
ज्ञात हो जाने पर झटपट रथ पर चढकर अपने प्रचण्‍
ड बाणों से उसकी नाभि में ऐसा प्रहार
किया जिससे कुछ ही क्षणों में उसके प्राण पखेरू हो गये। ऋषियों का कहना है कि ऐसा
विद्यावान मनुष्‍य अर्थात रावण की प्रक्रति वाला व्‍यक्ति कभी सफल नहीं हो सकता इसलिये
मनुष्‍य को कभी घमण्‍ड नहीं करना चाहिए।

जब तक हिन्‍दी भाषी हिन्‍दी को हृदय से स्‍वीकार नही करते तब तक वह राष्‍ट्र भाषा का स्‍थान
नही पा सकती है । अक्‍सर यह सुनने में आता है कि हिन्‍दी भाषा में वैज्ञानिक साहित्‍य या
न्‍यायिक साहित्‍
य कम है या नहीं के बराबर है यह बात बिल्‍कुल निराधार है मैं इस बात को
दावे के साथ कह सकता हूं कि यदि सरकार हिन्‍दी को पूर्णरूपेण सभी क्षेत्रों में ईमानदारी से
लागू करें तो जो हिन्‍दी साहित्‍य भाषा में नही है , एक तो पर्याप्‍त साहित्‍य उपलब्‍ध है ही अगर
साहित्‍य उपलब्‍ध नहीं है , तो वह एक साल में अन्‍दर अवश्‍य उपलब्‍ध हो जायेगा1

जब तक हिन्‍दी भाषी हिन्‍दी को हृउय से स्‍वीकार नहीं करते तब तक वह राष्‍ट्र भाषा का स्‍थान
नही पा सकती है । अक्‍सर यह सुनने में आता है कि हिन्‍दी भाषा में वैज्ञानिक साहित्‍य या
न्‍यायिक साहित्‍
य कम है या नहीं के बराबर है यह बात बिल्‍कुल निराधार हे मैं इस बात को
दावे के साथ कह सकता हूं कि यदि सरकार हिन्‍दी को पूर्णरूपेण सभी क्षेत्रों में ईमानदारी से
लागू करें तो हिन्‍दी साहित्‍य भाषा में नहीे है , एक तो पर्याप्‍त साहित्‍य उपलब्‍ध है ही अगर
साहित्‍य उपलब्‍ध नहीं हे तो वह एक साल के अन्‍दर अवश्‍य उपलब्‍ध हो जायेगा। इस सम्‍बन्‍ध
इसके पूर्व भी मैं इस बात को अनेको बार कहता रहा हूं कि साहित्‍य की तयारी की योजना
बनानी चाहिये । और दे श के विभिन्‍न विश्‍वविद्यालयां में विद्यानों को एक एक पुस्‍तक अलग
अलग विषयेां पर लिखने के लिये दे नी चाहिये तथा उनसे करार कर लेना चाहिए और मेरा
विश्‍वास है कि एक वर्ष के अन्‍दर कोई ऐसा ग्रन्‍थ नहीं है जो तैयार न हो सके तेा साहिे तय
तैयार नहीं है यह बडी गलत दलील है इस प्रकार की गलत दलीलों से राष्‍ट्रभाषा हिन्‍
दी का
अपमान ही होता है जिस दे श में राष्‍ट्र भाषा के प्रति कुछ ऐसे लोग जो अपने को प्रगतिशील
विचारों वाला मानते हैं तथा यह कहकर आलोचना करते हैं कि इस भाषा में विभिन्‍न क्षेत्रों में फ

रहा हैं रहा है रहा है रहा है रहा है रहा है रहा है रहा है रहा है रहा है रहा है रहा है रहा है

रहे हैं रहे है रहे हैं रहे हैं रहे हैं रहे हैं रहे हैं रहे हैं रहे हैं रहे हैं रहे है रहे है रहे हैं रहे हैं

जाता है जाता है जाता है जाता है जाता है जाता है जाता है जाता है जाता है जाता है जाता है

जाते हैं जाते हैं जाते हैं जाते है जाते हैं जाते है जाते हैं जाते हैं जाते है जाते है जाते है जाते है

जाती है जाती है जाती है जाती है जाती है जाती है जाती है जाती है जाती है जाती है

होता है होता है होता है होता है होता है होता है होता है होता है होता है होता है होता है होता
है होता है सकता है सकता है सकता है सकता है सकता है सकता है सकता है सकता है नही
है नही है नही है नही है नही है नही है नही है नही है नही है नही है नही है नही है नही है
नही है नही है ऐसा ऐसा ऐसा ऐसा ऐसाऐसा ऐसा ऐसा ऐसा ऐसा ऐसा ऐसा ऐसा ऐसा ऐसा कोई
कोई कोई कोई कोई कोई कोर्इ कोई कोई कोई कोई कोई कोई कोई कई कई कई कई कई कई
कई कई कई कई कई कई कई कई करते हैं करते हैं बात करते हैं बात करते हैं बात करते हैं
बात करते हैं दी जाती है दी जाती है दी जाती है दी जाती थी दी जाती थी दी जाती थी दी
जाती थी थी थी सरकार सरकार सरकार सरकार सरकार सरकार भारत सरकार भारत सरकार
भारतीय भारतीय भारतीय भारतीय भारतीय चाहिए चाहिए चाहिए चाहिए चाहिए चाहिए चाहिए
चाहिये चाहिये चाहिये चाहिए चाहिए चाहिए चाहिए चाहिए चाहिए चाहिए जिसका जिसका
जिसका जिसका जिसका जिसका जिसका जिसका जिसका जिसका जिसकी जिसकी जिसकी
जिसकी जिसकी जिसकी जिसकी इसलिए इसलिए इसलिए इसलिए इसलिए इसलिए इसलिए
इसलिए इसलिए इसलिए इसलिए इसलिए इसलिए इ‍सलिए

इसके पूर्व भी मैं इस बात को अनेको बार कहता रहा हूं कि साहित्‍य की तैयारी की एक योजना
सरकार को बनानी चाहिए और दे श के विभिन्‍न विश्‍सविद्यालयों में विद्यानों को एक एक
पस्
ु ‍तक अलग अलग विषयों पर लिखने के लिये दे नी चाहिए तथा उनसे करार कर लेना चाहिए
और में रा विश्‍
वास है कि एक वर्ष के अन्‍दर कोई ऐसा ग्रन्‍थ नही है जो तैयार न हो सके तो
साहित्‍य तैयार नही है यह बडी गलत दलील है इस प्रकार की गलत दलीलो से राष्‍ट्र भाषा
हिन्‍दी का अपमान ही होता है जिस दे श में राष्‍ट्र भाषा के प्रति कुछ ऐसे लोग जो अपने को
प्रगतिशील विचारे ा वाला मानते हैं तथा यह कहकर आलोचना करते है ।

जब तक हिन्‍दी भाषी हिन्‍दी को हृदय से स्‍वीकार नही करते तब तक वह राष्‍ट्र भाषा का स्‍थान
नही पा सकती है । अक्‍सर यह सन
ु ने में आता है कि हिन्‍दी भाषा में वैज्ञानिक साहित्‍य या
न्‍यायिक साहित्‍
य कम है या नहीं के बराबर है , यह बात बिल्‍
कुल निराधार है । मैं इस बात को
दावे के साथ कह सकता हूं कि यदि सरकार हिन्‍दी को पूर्णरूपेण सभी क्षेत्रों में लागू करें तो जा
साहित्‍य हिन्‍दी का है नहींहै एक तो पर्याप्‍त हिन्‍दी साहित्‍य उपलब्‍ध नहीं है अगर जा साहित्‍य
उपलब्‍ध नहीं है तो वह एक साल में अवश्‍य उपलब्‍ध हो जायेगा।

जब तक हिन्‍दी भाषी हिन्‍दी को हृदय से स्‍वीकार नहीं करते तब तक वह राष्‍ट्र भाषा का स्‍थान
नहीं पा सकती है । अक्‍सर यह सन
ु ने में आता है कि हिन्‍दी भाषा का वैज्ञानिक साहित्‍य या
न्‍यायिक साहित्‍
य कम है या नहीं के बराबर है , यह बात बिल्‍
कुल निराधार है । मैं इस बात को
दावे के साथ कह सकता हूं कि यदि सरकार हिन्‍दी का पूर्णरूपेण सभी क्षेत्रों में लागू करें तो जो
साहित्‍य हिन्‍दी का नही है एक तो पर्याप्‍त साहित्‍य उपलब्‍धनहीे है अगर जो साहित्‍य उपलब्‍ध
नहीं है वह एक साल में अवश्‍य उपलब्‍ध हो जायेगा।

इस सम्‍बन्‍ध में अक्‍सर सुनने में आता है कि हमारे यहां पर अभी स्‍नातकोत्‍तर पढाई के लिए
पर्याप्‍
त साधन नहीं है । बडी गलत बात है कि अभी सरकार के द्वारा ही कुछ महीने पहले यहां
पर एक विशाल प्रदशनी का आयोजन किया गया था उस प्रदर्शनी मे जिन पुस्‍तकों का आयोजन
किया गया था उन पुस्‍तकों से यह बात स्‍पष्‍ट है कि हमारे यहां पर वैज्ञानिक न्‍यायिक और
शास्‍त्रीय विषयों पर पर्याप्‍त पुस्‍तकें हैं

दे शाटन ज्ञज्ञन की वद्धि


ृ का सर्वाधिक प्रयोग में आने वाला साधन है । विभिन्‍न दे शों के
निवासियों के आचार विचार तथा‍विशिष्‍ट वस्‍तुओं का जितना सुन्‍दर एवं पूर्ण ज्ञान दे शाटन से
प्राप्‍त हे ाता है उतना अन्‍
य किसी साधन से नहीं। यद्यपि पस्
ु ‍तको समाचार पत्रों के द्वारा भी
ज्ञान प्राप्‍त होता है किन्‍तु जितना पूर्ण एवं सर्वांगीण ज्ञान दे शाटन से प्राप्‍त होता है उतना
अन्‍य साधनों से नहीं। महोदय किसी भी आदमी को अपने मताधिकार अर्थात वोट का प्रयोग
मजहबी आधार पर नहीं करना चाहिए। इस प्रक्रिया केा बन्‍द करने के लिए लोकतंत्र मजबूत
होगा। लोकतंत्र में वोट जड़
ु ा है शासन से। शासन जड़
ु ा है दे श में कानन
ू का राज्‍य स्‍थापित
करने से। इसलिये वोट दे श में कानून का राज्‍य स्‍थापित करने के लिये दिया जाना चाहिए।
वोट वर्गभेद तथा विघटनकारी नारों व फतवे पर नहीं दिया जाना चाहिए।

मनुष्‍य के जीवन में तीन महत्‍वपूर्ण पक्ष होते हैं सत्‍ता , सम्‍पदा और नैतिकता। ये तीनों ही बड़ी
शक्तियां हैं। सत्‍
ता के पास दं ड की शक्ति सम्‍पदा के पास विनिमय की और नैतिकता के पास
आत्‍म विश्‍वास और आस्‍था की। इन्‍
हीं तीनों के द्वारा मनुष्‍य का जीवन संचालित होता है , जब
तक इनका संतल
ु न ठीक रहता है तब तक जीवन यात्रा संतलि
ु त रहती है । यदि इनमें आपस में
असंतुलन की पैदा हो जाता है तो मानव जीवन रथ चरमरा जाता है ।

प्रेस अर्थात समाचार पत्र प्रकाशन संस्‍था का प्रजातंत्र में बडा महत्‍व है । इस संस्‍था के द्वारा
जनता तथा सरकार के बीच सदै व सम्‍पर्क बनाये रखा जाता है । प्रजातंत्र में प्रेस इतना
शक्तिशाली होता है कि उसे चौथी सत्‍ता कहा जाता है । प्रेस इतना शक्तिशाली इसलिए होता है
क्‍योंकि इसकी सौ आंखें होती है । यह सरकार की नीतियों का समर्थन करता है अथवा उनकी
आलोच‍ना राष्‍ट्रीय परिक्षेप्‍य पें करके प्रतयेक बात के सध
ु ारने का काम करता है । चंकि
ू प्रेस
द्वारा जनता की सही भावना केा उजागर करके सरकार के समक्ष न्‍याय के लिए रखा जाता है
अत: यह सरकार केा न्‍याय करने के लिए भी बाध्‍य करता है । इसके अतिरिक्‍त इस‍का एक
महत्‍वपूर्ण कार्य है समाज सुधार का कार्य। अपने सम्‍पादकीय लेखों द्वारा यह समाज में व्‍याप्‍त
विभिन्‍न प्रकार के अंध विश्‍वासों बुराईयों के विरूद्ध जनमत तैयार करके उन पर विजय पाने की
दिशा में सक्रिय भूमिका भी अदा करता है ।

प्राचीन कथाओं में मिश्र भी सहारा के मरूस्‍थल का एक अंग थ जो नील नदी की कृपा से बहुत
उपताऊ बन गया है । पूर्वी सहारा में ऐसे मरू उद्यानों का उल्‍लेख है जो बाद में एकदम से
गायब हो गये थे इन कथाओं पर आधनि
ु क वैज्ञानिक विश्‍वास नहीं करते।

लगभग दो वर्ष पूर्व संयक्


ु ‍त राज्‍य अमेरिका की अंतरिक्ष

प्राचीन कथओं में मिश्र भी सहारा के मरूस्‍थल का एक अंग था जो नील नदी की कृपा से बहुत
उपजाऊ बन गया है । पर्वी
ू सहारा में ऐसे मरू उद्यानों का उल्‍लेख है जो बाद में एकदम से
गायब हो गये थे इन कथाओं पर आ‍
धनि
ु क वैज्ञानिक विश्‍वास नहीं करते।

माननीय सभापति महोदय मैं आपकी अनुमति से शिक्षामंत्री जी ने जो प्रस्‍ताव सदन के सामने
प्रस्‍तत
ु किया है , उसका समर्थन करने के लिए खडा अवश्‍य हुआ हूं लेकिन क्‍या माननीय मंत्री
महोदय जी यह बताने की कृपा करें गें कि हमारे दे श मे शिक्षा की नीति का आधार क्‍या है ।
शिक्षा की नीति में सबसे प्रमुख बाते क्‍या होनी चाहिए। इस बात में मेरे विचार इस प्रकार हैं
कि अपने दे श में वे तमाम बच्‍चे हो पढना चाहते हैं या जिनके माता पिता पढाना चा‍हते हैं
उनको शिक्षा प्राप्‍त करने का अवसर सल
ु भ होना चाहिए। दस
ू री बात यह है कि दे श के गरीब
लोगों के लिए शिक्षा सस्‍ती होनी चाहिए। और तीसरी बात यह है कि शिक्षा मिलने के बाद इस
बात पर की गारन्‍टी होनी चाहिए कि जो लोग पढ लिख कर निकलें उनकों किसी न किसी
काम में लगाया जा सकें।

दस
ू री शिक्षा कामन विद्यार्थियो के लिये है साधारण विद्यार्थियो के लिए है , साधारण
विद्याथियों का अर्थ है , कि गावों के गरीब बच्‍चे, जहां स्‍कूल मे टाट पट्टी भी नहीं है तथा बैठने
के लिए भवन भी नहीं है , वहां पर किताब भी नहीं है , जहां पर ब्‍लक
ै बोर्ड भी नहीं है । इसके
अतिरिक्‍त इसमें से कुछ स्‍कूल भी जहां यदि जगह है तो मास्‍टर नहीं है । इस प्रकार यहां शिक्षा
की यह दशा कर दी गयी है एक शिक्षा उच्‍च वर्ग के बच्‍चों के लिए है तथा एक शिक्षा साधारण
वर्ग के बच्‍
चों के लिए। इस तरह शिक्षा के क्षेत्र में हमारे दे श और प्रदे श में जो अन्‍याय हो रहा
है यह बात हमारे सामने कई वर्षो से चली आ रही है , कुछ दिनों से यह चर्चा सदन में हो रही
थी कि शिक्षा इस तरह निर्धारित की जाये उसमें एक समानता लाई जाये और उसके लिए एक
पाठयक्रम निर्धारित किया जाये।

दस
ू री शिक्षा कामन विद्यार्थियों के लिये है साधारण वि़द्यार्थियों के लिये है , साधारण
विद्यार्थियों का अर्थ है कि गावों के गरीब बच्‍
चे जहां स्‍कूल में टाट पटृी भी नहीं है तथा बैठने
के लिए भवन भी नहीं है , वहां पर किताब भी नहीं है , जहां पर ब्‍लक
ै बोर्ड भी नहीं है । इसके
अतिरिक्‍त इसमें से कुछ स्‍कूल भी जहां यदि जगह है तो मास्‍टर नहीं है । इस प्रकार यहां शिक्षा
की यह दशा कर दी गयी है एक शिक्षा उच्‍च वर्ग के बच्‍चों के लिए है तथा एक शिक्षा साधारण
वर्ग के बच्‍
चों के लिए। इस तनह शिक्षा के क्षेत्र में हमारे दे श और प्रदे श में जो अन्‍याय हो रहा
है यह बात हमारे सामने कई वर्षों से चली आ रही है ।

में रा आशय यह है कि शिक्षा नीति को इन कसौटियों कों ध्‍यान में रखकर व्‍यवहार में लाया
जाना चाहिए। क्‍या शिक्षा नीति यहां की सस्‍ती है , क्‍या सभी को सुलभ है तथा क्‍या वह रोजगार
तलब है । मान्‍यवर इन तीन कसौटियों पर विचार करने के बाद हम इस निष्‍
कर्ष पर पहुंचेंगें
और यह सदन भी इस निष्‍कर्ष पर पहुंचग
े ा कि न तो शिक्षा सुलभ है और न ही स्‍स्‍
ती है न
यह रोजगार है । आज शिक्षा के अन्‍दर भी वर्ग बने हूये हैं। क्‍या शिक्षा क्‍लास के लोंगों के लिए
है जा कि उन लोंगों को पब्लिक स्‍कूलों के माध्‍यम से दी जाती है और वहां पर जो बच्‍
चे पढते
हैं उन पर कई सौ रूपये प्रति माह व्‍यय होता है ।

माननीय सभापति महोदय मैं आपकी अनुमति से शिक्षामंत्री जी ने जो प्रस्‍ताव सदन के सामने
प्रस्‍तुत किया है , उसका र्सम‍थन करने के लिये खडा अवश्‍य हुआ हूं लेकिन क्‍या माननीय मंत्री
महोदय जी यह बात बताने की कृपा करें गें कि हमारे दे श में शिक्षा की नीति का आधार क्‍या
है । शिक्षा की नीति में सबसे प्रमख
ु बातें क्‍या होनी चाहिए। इस सम्‍बन्‍ध में मेरे विचार इस
प्रकार हैं कि अपने दे श में वे तमाम बच्‍
चे जेा पढना चाहते हैं या जिनके माता पिता पढाना

माननीय सभापति महोदय मैं आपकी अनम


ु ति से शिक्षामंत्री जी ने जो प्रस्‍ताव सदन के सामने
प्रस्‍तुत किया है , उसका समर्थन करने के लिए खड़ा अवश्‍य हुआ हूं लेकिन क्‍या माननीय मंत्री
महोदय जी यह बात बताने की कृपा करें गें कि हमारे दे श में शिक्षा की नीति का आधार क्‍या
है । शिक्षा की नीति में सबसे प्रमुख बातें क्‍या होनी चाहिए। इस सम्‍बन्‍ध में मेरे विचार इस
प्रकार हैं कि अपने दे श में वे तमाम बच्‍
चे जो पढ़ना चाहते है या जिनके माता पिता पढ़ाना
चाहते हैं उनकी शिक्षा गरीब लोगों के लिए शिक्षा सस्‍ती होनी चाहिए। और तीसरी बात यह है
कि शिक्षा मिलने के बाद इस बात की गारन्‍टी होनी चाहिए कि जो लोग पढ़ लिख कर निकलें
उनकों किसी न किसी काम में लगाया जा सके।

इसके अतिरिक्‍त खादी के वस्‍त्रों को पहनने से व्‍यक्ति में स्‍वदे शी की भावना उत्‍पन्‍
न होती है
तथा व्‍यक्ति को यह स्‍वाभाविक रूप से अनुभूति होती है कि उसने बेरोजगारी जैसी भीषण
समस्‍या के समाधान हे तु अंशमात्र योगदान दिया है । हमारे दे श के अधिकाधिक लोगों में यह
भावना यदि उत्‍पन्‍न हो जाये तो इससे रोजगार उपलब्‍ध कराने की दिशा में बहुत सहायता
मिलेगी तथा विदे शी कपडों के बहुमूल्‍य विदे शी मुद्रा चुकानी पडती है , उससे बचा जा सकता है ।

इसके अतिरिक्‍त खादी के वस्‍त्रों को पहनने से व्‍यक्ति में स्‍वदे शी की भावना उत्‍पन्‍
न होती है
तथा व्‍यक्ति को यह स्‍वाभाविक रूप से अनुभूति होती है कि उसने बेरोजगारी जैसी भीषण
समस्‍या के समाधान हे तु अंशमात्र योगदान दिया है । हमारे दे श के अधिकाधिक लोगों में यह
भावना यदि उत्‍पन्‍न हो जाये तो इससे रोजगार उपलब्‍ध कराने की दिशा में बहुत सहायता
मिलेगी तथा विदे शी कपडों के बहुमल्
ू ‍य विदे शी मद्र
ु ा चक
ु ानी पडती है , उससे बचा जा सकता है ।

इसके पूर्व भी मैं इस बात को अनेकों बार कहता रहा हूं कि साहित्‍य की तैयारी की एक योजना
सरकार को बनानी चाहिए और दे श के विभिन्‍न विश्‍
व विद्यालयों में विद्यानों को एक एक
पुस्‍तक अलग अलग विषयों पर लिखने के लिए दे नी चाहिए तथा उनसे करार कर लेना और
मेरा विश्‍वास पर लिखने के लिए दे नी चाहिए तथा उनसे करार कर लेना चाहिए और में रा
विश्‍वास है कि इस एक वर्ष के अन्‍दर कोई ऐसा ग्रन्‍थ नहीं है जो तैयार न किया जा सके। ता
साहित्‍य तैयार नहीं है यह बड़ी ही गलत बात है । इस प्रकार की गलत दलीलों से राष्‍ट्र भाषा
हिन्‍दी का अपमान होता है । जिस दे श में राष्‍ट्र के प्रति, कुछ ऐसे लोग जो अपने को प्रगतिशील
विचारों वाला मानते हैं यह कहकर आलोचना करते हैं कि इस भाषा में विभिन्‍न क्षेत्रों में प्रयोग
की जाने वाली शब्‍दावली नहीं है , इस प्रकार का दृष्टिकोंण रखतें हैं उन्‍हे दे श भक्‍त या राष्‍ट्र
भाषा का शभ
ु चिन्‍तक नहीं माना जा सकता।
विचारो वाला मानते हैं यह सरकार आलोचना करते हैं कि इस भाषा में विभिन्‍न क्षेत्रों में प्रयोग
की जाने वाली शब्‍दावली नहीं है , इस प्रकार का दृष्टिकोंण रखते हैं उन्‍हें दे श भक्‍त या राष्‍ट्र
भाषा का शभ
ु चिन्‍तक नहीं माना जा सकता।

यदि श्रीमान जी मुझे इस विषय पर प्रकाश डालने का अवसर दें तो मैं इस विषय में एक
उदाहरण दे ना पर्याप्त समझता हूं कि पहले समय में मैट्रिक की पढाई का माध्‍यम अंग्रेजी था
और यह दलील दी जाती थी कि हमारे यहां पर मैट्रिक की पढाई का पर्याप्‍त साधन नहीं है
लेकिन आवश्‍यकता होती है कि तब चीजें उपलब्‍ध हो जाती हैं त्‍यों हि मैट्रिक में हमारी राष्‍ट्र
भाषा हिन्‍दी तथा अन्‍य भारतीय भाषाओं को सरकार ने माध्‍यम बनाया त्‍यों ही हमारा साहित्‍य
जो अभी तक नहीं था छ महीने में तैयार हो गया।

मेरा आशय यह है कि शिक्षा की नीति इन तीन कसौटियों को ध्‍यान में रखते हूये व्‍यवहार में
लाया जाना चाहिए । क्‍या शिक्षा यहां की स्‍सती है , क्‍या सभी को सुलभ है तथा क्‍या वह
रोजगार तलब है । मान्‍यवर इन तीन कसौटियों पर विचार करने के बाद हम इस निष्‍कर्ष पर
पहुंचेंगें और यह सदन भी इस निष्‍कर्ष पर पहुंचेगा हक न तो शिक्षा सल
ु भ है और न ही साधन
तलब है । आज शिक्षा के अन्‍दर भी वर्ग बने हूये हैं क्‍या शिक्षा हाई क्‍लास के बच्‍चों के लिये है
जो कि उन लोगों को स्‍
कूलों के माध्‍यम से दी जाती है और वहां पर जो बच्‍चें पढते हैं उन पर
कई सौ रूपये प्रति माह व्‍यय होता है । माननीय सभापति महोदय मैं आपकी अनुमति से
शिक्षामंत्री जी ने जो प्रस्‍ताव सदन के सामने प्रस्‍तत
ु किेया है , उसका समर्थन करने के लिए खडा
अवश्‍य हूं लेकिन क्‍या माननीय महोदय जी यह बताने का कृपा करें गें कि हमारे दे श में शिक्षा
की नीति का आधार क्‍या है । शिक्षा की नीति में सबसे प्रमुख बातें क्‍या होनी चाहिए। इस
सम्‍बन्‍ध में मेरे विचार इस प्रकार हैं कि अपने दे श में वे तमाम लोगों के लिए शिक्षा को सस्‍ती
होना चाहिए और तीसरी बात यह है कि शिक्षा मिलने के बाद इस बात की गारन्‍टी होनी
चाहिए।

हमारे प्रउश ने वर्ष 1990 में विभिन्‍न क्षेत्रों में सीमित साधनों तथा प्राकृतिक आपदाओं के
बावजूद प्रगति के नवीनतम कीर्तिमान स्‍थापित किये हैं। खाद्यन्‍न उत्‍पादन बढाने़ के लिए कृषि
निवेशों की आपूर्ति की गई तथा कृषकों की समस्‍याओं के कुशल नेतत्ृ ‍व में जो रणनीति अपनाई
गई उसके परिणामस्‍वरूप विशेष रूप से कृषि तथा औद्योगिक उतपादन में वद्धि
ृ हूई।

प्रधानमंत्री के बीस सूत्रीय कार्यक्रम में से कम से कम दस सूत्रों के अन्‍तर्गत शत प्रतिशत से


अधिक की उपलब्‍धि करके सामाजिक आर्थिक विकास को नया आयाम दिया गया और गरीबी
की रे खा के नीचे जीवन बसर करने वालों के जीवन में एक नया सवेरा लाने का प्रयास किया
गया। बैंकों के माध्‍
यम से शिक्षित बेरोजगारों अनुसचि
ू यों जाति एवं जनजाति के परिवारों को
वित्‍त पोषण का लाभ सूनिश्चित कराया गया। कानून और व्‍यवस्‍था के र्मोचे पर निरन्‍तर
चौकसी के फलस्‍वरूप राज्‍य में सभी हस्‍तक्षेत्रीय अपराधों में कमी हूई तथा शान्ति व्‍यवस्‍था में
उल्‍लेखनीय सध
ु ार हुआ। असामाजिक ततवों पर प्रभावी नियंत्रण रखा गया जिससे निर्बल वर्गों
को सामाजिक सुनक्षा प्राप्‍त हुई।

त्‍वरित औद्योगिक विकास के लिए प्रभावी औद्योगिक नीति अपनाकर उपयक्


ु ‍त औद्योगिक
वातावरण का सज
ृ न किया गया। राज्‍
य में केन्‍द्रीय क्षेत्र के गैसों पर आ‍धारित चार चार उर्वरक
कारखानों के अतिरिक्‍त अन्‍य कारखानों को स्‍थापित करने की स्‍वीकृति प्राप्‍त ही गई तथा
4356 लघु एवं ग्रामीण औद्योगिक इकाईयों की स्‍थापना ही गयी जिससे साठ हजार से अधिक
लोगों को रोजगार के अवसर प्राप्‍त हुए। कृषि और कृषि से सम्‍बन्धित विभिन्‍न कार्यक्रमों के
समुचित विस्‍तार के लिये राष्‍ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक से एक अरब चार करोड़ रूपये
की पुनर्वित प्राप्‍त करके इस दे श ने सम्‍पूर्ण दे श में इस वर्ष प्रथम स्‍थान प्राप्‍त किया।

पिछले दिनों यह बात सामने आयी कि समद्ध


ृ यूरेनियम बनाने सम्‍बन्‍धी अनुसन्‍धान को
इसलिये उत्‍साहित नहीं किया गया क्‍
योंकि भविषय में हमारा नाभिकीय विद्युत कार्यक्रम
प्राकृतिक यूरेनियम का ही उपयोग करे गा। इस प्रकार के अनुसन्‍धान के विषय में मतभेदों की
चर्चा थी लेकिन अब यह स्‍पष्‍ट हो गया है कि वैज्ञानिक भी इस बात पर एकमत नहीं है , कि
भविष्‍य में किस यूरेनियम ईंधन को नाभिकीय केन्‍द्रो में इस्‍तेमाल किया जाये।

प्रधानमंत्री के बीस सत्र


ू ीय कार्यक्रमों में से कम से कम दस सत्र
ू ों के अन्‍तर्गत शत प्रतिशत से
अधिक की उपलब्‍धि करके सामाजिक आर्थिक विकास को नया आयाम दिया गया और गरीबी
की रे खा के नीचे बसर करने वालों के जीवन में एक नया सवेरा लाने को प्रयास किया गया।
बैंको के माध्‍यम से शिक्षित बेरोजगारे ां अनुसूचित जाति एवं जनताति के परिवारों को वित्‍त
पोषण का लाभ सुनिश्चित कराया गया। कानून और व्‍यवस्‍था के पोर्चे पर निरन्‍तर चौकसी के
फलस्‍वस्‍प राज्‍
य में सभी हस्‍तक्षेत्रीय अपराधों में कमी हुई तथा शान्ति व्यवस्‍था में उल्‍लेखनीय
सुधार हुआ। असामाजिक तत्‍
वों पर प्रभावी नियंत्रण रखा गया जिसमें निर्बल वर्गों को सामाजिक
सुरक्षा प्राप्‍त हुई।

किसी भी योजना या कार्यक्रम की सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि जनता का उसमें


कितना विश्‍वास है और कहां तक उसका सहयोग और समर्थन मिल रहा है । इसी उद्देश्‍य से
वर्तमान सरकार द्वारा प्रधानों और ब्‍लाक प्रमुखो के चुनाव जो एक लम्‍बी अवधि से किन्‍हीं
कारणों से नहीं हो पाये थे, कराये गये। ग्राम प्रधान का यह चन
ु ाव जिसमें लगभग करोड़ लाख
मतदाताओं ने भाग लिया, गांव स्‍तर के बुनियादी जनतंत्र का सम्‍भवत: संससर का सबसे बड़ा
चुनाव था जो स्‍वयं में एक बडी उपलब्‍धि है ।

किसी भी योजना या कार्यक्रम की सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि जनता का उसमें


कितना विश्‍वास है और कहां तक उसका सहयोग और समर्थन मिल रहा है । इसी उद्देश्‍य से
वर्तमान सरकार द्वारा ग्राम प्रधानों और ब्‍लाक प्रमुखों के चुनाव जो एक लम्‍बी अवधि से
किन्‍
हीं कारणों से नहीं हो पाये थे, कराये गये। ग्राम प्रधानों को यह चन
ु ाव जिसमें लगभग करोड
लाख मतदाताओं ने भाग लिया, गांव व्‍
तर के बुतियादी जनतंत्र का सम्‍भवत: संसार का सबसे
बडा चुनाव था जो स्‍वयं में एक बडी उपलब्‍धि है ।

यूरोप में अनंत काल से इन भारतीय श्रमिकों द्वारा उत्‍पादित श्रेष्ठ


‍ सूती वस्‍त्रों का आयात होता
रहा है और वहां से बदले में मूल्‍यवान धातए
ु ं आती रहीं हैं1 इसका भुगतान भारत को स्‍वर्ण और
रजत के रूप में मिला करता था यह इस बात का प्रमाण है कि भारतीय अर्थ व्‍यवस्‍था यूरोप के
दे शों से अच्‍
छी थी, परन्‍तु इंग्‍लड
ैं में औद्योगिक क्रान्ति हो जाने पर बाद में यरू ोप में जो
आर्थिक विकास का दौर प्रारम्‍भ हूआतो ये प्रभुत्‍व स्‍‍थापित करने में सफलता मिल गयी। अंग्रेजी
शासको ने भारतीय अर्थ व्‍यवस्‍था के विकास में न केवल बाधायें डाली वरन्‍यहां के ढांचे को
नष्‍ट कर इंग्‍लड
ैं की पूरक अर्थ व्‍यवस्‍था को जन्‍म दिया।
यूरोप में अनंत काल से इन भारतीय श्रमिकों द्वारा उत्‍पादित श्रेष्ठ
‍ सूती वस्‍त्रों का आयात होता
रहा है और वह से बदले में मूल्‍यवान धातुएं आती रहीं हैं। इसका भुगतान भारत को स्‍वर्ण अज
और रजत के रूप में मिला करता था यह इस बात का प्रमाण है कि भारतीय अर्थ व्‍
यवस्‍था
यूरोप के दे शों से अच्‍छी थी, परन्‍तु इंग्‍लड
ैं में औद्योगिक क्रान्ति हो जाने पर बाद में यूरोप में
जो आर्थिक विकास का दौर प्रारम्‍भ हुआ तो से प्रभुत्‍व स्‍थापित करने में सफलता मिल गयी।
अंग्रेजी शासकों ने भारतीय अर्थ व्‍सवस्‍
था के विकास में न केवल बाधायें डाली वरन्‍यहां के ढांचे
को नष्‍ट कर इंग्‍लढ
ैं की परू क अर्थ व्‍सवस्‍था को जन्‍म दिया।

यूरोप में अनत ्ं काल से इन भारतीय श्रमिकों द्वारा उत्‍पादित श्रेष्ठ


‍ सूती वस्‍त्रों का आयात होता
र‍हा है और वह से बदले में मल्
ू ‍यवान धातए
ु ं आती रही हैं। इसका भग
ु तान भारत को स्‍वर्ण और
रजत के रूप में मिला करता था यह इस बात का प्रमाण है कि भारतीय अर्थ व्‍यवस्‍था यूरोप के
दे शों से अच्‍
छी थी, परन्‍तु इंग्‍लैड में औद्योगिक क्रान्ति हो जाने पर बाद में यूरोए में जो
आर्थिक विाकास का दौर प्रारम्भ हुआ तो से प्रभुत्‍व स्‍थापित करने में सफलता मिल गयी।
अंग्रेजी शासकों ने भारतीय अर्थ व्‍यवस्‍था के विकास में न केवल बाधायें डाली वरन्‍यहां के ढांचे
को नष्‍ट कर इंग्‍लैड की पूरक अर्थ व्‍यवस्‍था को जन्‍म दिया।

अयोध्‍या के भप
ू ति श्री राजा दशरथ के ज्‍येष्‍ठ पत्र
ु श्री रामचन्‍द्र जी ने रावण से घमासान यद्ध
ु में
उसकी नाभि में अर्मत का भेद ज्ञात हो जाने पर झटपट रथ पर चढकर अपने प्रचण्‍ड बाणों से
उसकी नाभि पर ऐसा प्रहार किया जिससे कुछ ही क्षणों में उसके प्राण पखेरू हो गये। ऋषियों
का कहना है कि ऐसा विद्यावान मनुष्‍
य अर्थात रावण की प्रक्रति वाला व्‍यक्ति कभी सफल नहीं
हो सकता इसलिए मनष्ु ‍य को कभी घमण्‍ड नहीं करना चाहिए।

दिल्‍ली उच्‍च न्‍यायालय के निर्देश पर विधि आयोग की ओर से इस पर विचार किया जाना एक


सही कदम है कि अवैध रूप से हिरासत में लिए गए लोंगों को मआ
ु वजा दे ने का कोर्इ कानन

बने। इस तरह के कानून की मांग एक लंबे अर्से से होती चली आ रही है , लेकिन इस दिशामें
कोई ठोस कदम नहीं उठाए जा सके । चकि
ूं भारत में ऐसा कोईै कानून नहीं बना सका है
इसलिए अवैध रूप से हिरासत में लिए गये लोंगों को कोई राहत नही मिल पा रहीं है । इस
संदर्भ में कोई कानन
ू बनाने की आवश्‍यकता इसलिए है , क्‍योंकि एक बडी ़ संख्‍या में पलि
ु स बिना
किसी ठोस सबूत के कारण के लोंगों को गिरफ्तार कर जेल भेज रही है । ऐसे लोगों की संख्‍या
बढती चली जा रही है । गलत रूप से हिरासत में लिए गये लोंगों को अदालत से राहत अवश्‍य
मिल जाती है , लेकिन उस क्षति की भरपाई नहीं हो पा नही है जो उन्‍हें अवैध हिरासत के रूप
में चुकानी पड रही है । ऐसे लोग केवल अनावश्‍यक तौर पर जेल जाने के लिए ही विवश नहीं
होते, बल्कि किसी न किसी स्‍तर पर सार्वजनिक अपमान सहने के लिए भी मजबरू होते हैं।
अवैध रूप से हिरासत के मामले इसलिए बढ़ रहे हैं क्‍योंकि दबाव बढ़ता जा रहा है इसलिए कई
बार बिना किसी जांच पड़ताल के ही लोंगों को गिरफ्तार कर लेती है । कई बार यह आरोप भी
लग जाता है कि पुलिस भी मामले को रफा दफा कर रही है इसलिए दे र हो जाती है ।

स्‍पष्‍ट है कि सारा का सारा दोष पलि


ु स पर नहीं डाला जा सकता है । बेहतर है कि हमारे नीति
नियंता यह समझे कि यदि पुलिस सध
ु ारों से इस तरह बचने की कोशिश की गई तो समस्‍याएं
और अधिक बढ़ें गी। विडंबना यह है कि एक जो ओर जहां पुलिस सुधारों संबधी सुप्रीम कोर्ट के
दिशा निर्देशों का पालन करने से इनकार किया जा रहा है वहीं दस
ू री ओर ऐसी भी कोई
व्‍यवस्‍था नहीं की जा रही है जिससे पलि
ु स के कामकाजों को दो हिस्‍सों में बांटा जाए। पहले
हिस्‍से के तौर पर आपराधिक मामलों की छानबीन का काम पुलिस की एक अलग इकाई के
हवाले करने की जरूरत एक अर्से से महसूस की जा रही है , लेकिन नतीजा ढाक के पात वाला
ही है । आश्‍चर्यजनक है कि दनि
ु या के तमाम दे शों में पुलिस की कार्यप्रणाली में सुधार किए
जाने और यहां तक कि अवैध हिरासत की स्थिति में लोंगों को मआ
ु वजा दे ने के नियम कानन

बन जाने के बावजूद भारत में इस मोर्चे पर कुछ होता हुआ दिखाई नहीं दे रहा है । ध्‍यान रहे
कि समस्‍या केवल अवैध हिरासत की ही नहीं, बल्कि हिरासत में प्रताड़ना की भी है । बेहतर हो
कि एक और काम बनाने के साथ ही पुलिस की कार्यप्रणाली में जो सध
ु ार आवश्‍यक हो चुके हैं
उन पर भी गंभीरता से ध्‍यान दिया जाए।

दिशा निर्देशों का पालन करने से इनकार किया जा रहा है वहीं दस


ू री ओ ऐसी कोई व्‍यवस्‍था
नहीं की जा रही है जिससे पलि
ु स के कामकाजों को दो हिस्‍सों में बांटा जाए। पहले हिस्‍से के
तौर पर आपराधिक मामलों की छानबीन का काम पुलिस की एक अलग इकाई हवाले करने की
जरूरत एक अर्से से महसूस की जा रही है , लेकिन नतीजा ढाक के पात वाला ही है ।
आश्‍
चर्यजनक है कि दनि
ु या के तमाम दे शों में पुलिस की कार्यप्रणाली में सुधार किए जाने और
यहां तक कि अवैध हिरासत की स्थिति में लोंगों को मुआवजा दे ने के नियम कानून बन जाने
के बावजूद भारत में इस मोर्चे पर कुछ होता हुआ दिखाई नहीं दे रहा है । ध्‍यान रहे कि एक
और काम बनाने के साथ ही पलि
ु स की कार्यप्रणाली में जो सध
ु ार आवश्‍यक हो चक
ु े हैं उन पर
भी गंभीरता से ध्‍
यान दिया जाए।

अयोध्‍या के भप
ू ति श्री दशरथ के ज्‍येष्‍ठ पत्र
ु श्री रामचन्‍द्र जी ने रावण से घमासान यद्ध
ु में
उसकी नाभि पर अमत
ृ का भेद ज्ञात हो जाने पर झटपट रथ पर चढकर अपने प्रचण्‍
ड बाणों से
उसकी नाभि पर ऐसा प्रहार किया जिससे कुछ ही कुछ ही क्ष्‍णों में उसके प्राण पखेरू हो गये।
ऋषियों का कहना है कि ऐसा विद्यावान मनुष्‍य अर्थात रावण की प्रकृति वाला मनुष्‍या कभी
सफल नहीं हो सकता ।

अयोध्‍या के भूपति श्री दशरथ के ज्‍येष्‍ठ पुत्र श्री रामचन्‍द्र जी ने रावण से घमासान युद्ध में
उसकी नाभि में अर्मत का भेद ज्ञात हो जाने पर झटपट रथ पर चढकर अपने प्रचण्‍ड बाणों से
उसकी नाभि में ऐसा प्रहार किया जिससे कुछ ही क्षणों में उसके प्राण पखेरू हो गये। ऋषियों
का कहना है कि ऐसा विद्यावान मनुष्‍
य अर्थात रावण की प्रकृति वाला व्‍यक्ति कभी सफल नहीं
हो सकता इसलिए मनुष्‍य को कभी घमण्‍ड नहीं करना चाहिए।

अयोध्‍या के भूपति श्री दशरथ के ज्‍येष्‍ठ पुत्र श्री रामचन्‍द्र जी ने रावण से घमासान युद्ध में
उसकी नाभि में अर्मत का भेद ज्ञात हो जाने पर झटपट रथ पर चढकर अपने प्रचण्‍ड बाणों से
उसकी नाभि पर ऐसा प्रहार किया जिससे कुछ ही क्षणों में उसके प्राण पखेरू हो गये। ऋषियों
का कहना है कि ऐसा विद्यावान मनुष्‍
य अर्थात रावण की प्रकृति वाला व्‍यक्ति कभी सफल नहीं
हो सकता इसलिए मनुष्‍य को कभी घमण्‍ड नहीं करना चाहिए।

आजकल हमारे दे श एवं प्रदे श में फैशन सा चल पडा है कि कुछ विशिष्‍ट लोग, दस
ू रो के द्वारा
पहनाई गयी, सुगन्घित पुष्‍पों की माला को पहनने के तरु न्‍त बाद ही उतार दे ते हैं, उन्‍हें यह
सम्‍मान सच
ू क माला ऐसी लगती है जैसे किसी ने उनके गले में काला नाग लपेट दिया हो ।
हमारा प्राचीन साहित्‍य एवं इतिहास यह स्‍मरण कराता है कि सम
ु न माला का अपमान करने के
कारण ही दे वासुर संग्राम तक छिड़ गया था जिसमें कंठहार को निकालने के कारण के अपराध
में दे वराज इन्‍द्र सिंहासन से उतार दिये गये थे।
गले में डाली गयी माला की सुगन्‍
ध स्‍वाभाविक ही नाक में प्रवेस कर जाती है जिससे भीतर
समाई हुयी दर्ग
ु न्‍
ध दरू हो जाती है , मन प्रसन्‍न एवं प्रफुल्लित हो जाता है , रोग दोष भाग जाते
हैं। शरीर में स्‍वस्‍थ और शभ
ु संकल्‍पो का सम्‍यक समीकरण स्‍थापित हो जाता है । गले में डाली
गयी माला का अपमान करने के कारण ही भगवान की सती को , अपने ही पुत्र पिता दक्ष
द्वारा संचालित यज्ञ में आहूति दे कर अपने शरीर को नष्‍ट करना पडा था, क्‍योंकि उनके पिता
ने ऋषि द्वारा दी गयी माला का अपमान किया था।

हमारे दे श में जिस तरह की नई शिक्षा नीति के माध्‍यम से सामाजिक, आर्थिक पुनर्गठन का
कार्य शुरू किया गया है उसी प्रकार सोवियत संघ में शिक्षण पद्धतियों के विशेषज्ञों के सा‍थ सा‍

अध्‍यापकगण शिक्षा की प्रकिया में सध
ु ार के श्रेष्‍ठ तरीकों को खोजने का प्रयास कर रहे हैं।

अयोध्‍या के भूपति श्री दशरथ के ज्‍येष्‍ठ पुत्र श्री रामचन्‍द्र जी ने रावण से घमासान युद्ध में
उसकी नाभि में अर्मत का भेद ज्ञात हो जाने पर झटपट रथ पर चढकर अपने प्रचण्‍ड बाणों से
उसकी नाभि पर ऐसा प्रहार किया जिससे कुछ ही क्षणों में उसके प्राण पखेरू हो गये। ऋषियों
का कहना है कि ऐसा विद्यावान मनुष्‍
य अर्थात रावण की प्रकृति वाला व्‍यक्ति कभी सफल नहीं
हो सकता इसलिए मनुष्‍य को कभी घमण्‍ड नहीं करना चाहिए।

अयोध्‍या के भूपति श्री दशरथ के ज्‍येष्‍ठ पुत्र श्री रामचन्‍द्र जी ने रावण से घमासान युद्ध में
उसकी नाभि में अर्मत का भेद ज्ञात हो जाने पर झटपट रथ पर चढकर अपने प्रचण्‍ड बाणों से
उसकी नाभि में ऐसा प्रहार किया जिससे कुछ ही क्षणों में उसके प्राण पखेरू हो गये। ऋषियेां
का कहना है कि ऐसा विद्यावान मनुष्‍
य अर्थात रावण की प्र‍कृति वाला व्‍यक्ति कभी सफल नहीं
हो सकता इसलिए मनुष्‍य को कभी घमण्‍ड नहीं करना चाहिए।

आजकल हमारे दे श में एवं प्रदे श में यह फैशन सा चल पडा है कि कुछ विशिष्‍ट लोग, दस
ू रों के
द्वारा पहनाई गयी , सुगन्धित पुष्‍पों की माला को पहनने के तुरन्‍त बाद ही उतार कर दे ते हैं,
उन्‍हें यह सम्‍मान सूचक माला ऐसी लगती है जैसे किसी ने उनके गले में काला नाग लपेट
दिया हो। हमारा प्राचीन साहित्‍य एवं इतिहास यह स्‍मरण कराता है कि सम
ु न माला को
निकालने के कारण ही दे वासुर संग्राम तक छिड गया था जिसमें कंठहार को निकालने के
अपराध में दे वराज इन्‍द्र सिंहासन से उतार दिये गये थे।
गले में डाली गयी माला की सुगन्‍
ध स्‍वा‍भाविक ही नाक में प्रवेश कर जाती है जिससे भीतर
समाई हुई दर्ग
ु न्‍
ध दरू हो जाती है , मन प्रसन्‍न एवं प्रफुल्लित हो जाता है रोग-दोष भाग जाते हैं।
शरीर में स्‍वस्‍थ और शभ
ु संकल्‍पो का सम्‍यक समीकरण स्‍थापित हो जाता है । गले में डाली
गयी माला का अपमान करने के कारण ही भगवान शिव की सती को अपने ही पिता की दक्ष
द्वारा संचालित यज्ञ में आहूति दे कर अपने शरीर को नष्‍ट करना पडा था, क्‍योंकि उनके पिता
ने ऋषि द्वारा दी गयी माला का अपमान किया था।

हमारे दे श में जिस तरह की शिक्षा नीति के माध्‍यम से सामाजिक, आर्थिक पुनर्गठन का कार्य
शुरू किया गया है उसी प्रकार सोवियत संघ में शिक्षण पद्धतियों के विषेशज्ञों के साथ-साथ
अध्‍यापकगण शिक्षा की प्रक्रिया में सध
ु ार के श्रेष्‍ठ तरीको को खोजने के प्रयास कर रहे हैं। इसे
स्‍कल में पेरेस्‍त्रोइका का नाम दिया जा रहा है ।

डा राम मनोहर लोहिया जो कि अपने समय के एक महान समाजवादी नेता थे एक बार कहा
था कि जिस प्रकार तवे पर रोटी बार-बार पलटने से ठीक प्रकार से पक जाती है उसी प्रकार
संसदीय लोकतंत्र में व्‍यवस्‍थाओं के बदलते रहने से लोकतंत्र मजबूत होता है , अत: कोई भी
व्‍यक्ति अपना एकछत्र मनमाना शासन संचालित नहीं कर सकने की चेष्‍टा नहीं करे गा।

मां वह शब्‍द है जिसमें बहुत सारे रहस्‍य छिपे हैं। मां शब्‍द एक बहुत ही महत्‍वपूर्ण शब्‍द है ,
जिसके कारण ही सारे संसार के महत्‍वपूर्ण एवं पराक्रमशाली व्‍यक्ति अपने जीवन में उत्‍
कृष्‍ट
स्‍थान एवं उद्येश्‍य को प्राप्‍त करने में समर्थ हो सके थे। कोई मनष्ु ‍य किसी उचें पद पर तभी
पहुंच
् सकता है जबकि उसको बचपन में सही आदर्श एवं उन्‍नतिशील शिक्षा प्राप्‍त हुई हो

अयोध्‍या के भप
ू ति श्री दशरथ के ज्‍येष्‍ठ पत्र
ु श्री रामचन्‍द्र जी ने रावण से घमासान यद्ध
ु में
उसकी नाभि में अर्मत का भेद ज्ञात हो जाने पर झटपट रथ पर चढकर अपने प्रचण्‍ड बाणों से
उसकी नाभि पर ऐसा प्रहार किया जिससे कुछ ही क्षणों में उसके प्राण पखेरू हो गये। ऋषियों
का क‍
हना है कि ऐसा विद्यावान मनुष्‍
य अर्थात रावण की प्रकृति वाला व्‍यक्ति कभी सफल नहीं
हो सकता इसलिए मनष्ु ‍य को कभी घमण्‍ड नहीं करना चाहिए।
दच
ु ा को जीवन का शाश्‍वत सत्‍य बताया गया है । सवाल य‍ह है कि दख
ु का निवारण कैसे हो
इसकी खोज में अनत ्ं काल से मनीषियों ने अपना जीवन अर्पित किया और पाया है कि दख

का कारण है कि और इसका निवारण भी है । दख
ु के कई कारण है । सबसे बडा कारण है चाह,
इच्‍
छा या कामना। चाह का न होना और अनचाहे का हो जाना दख
ु का मूल कारण है । हम
जन्‍म से ही कुछ न कुछ चाहते हैं और चाह की पूर्ती न होन पर हम दख
ु ी होते हैं। दख
ु का
दस
ू रा कारण है कि हमारा शरीर जो रोगों का भंडार है । कई बच्‍
चे तो जन्‍म से ही रोग का
सिकार हो जाते हैं। कई रोगों पर तो नियंत्रण हो चक
ु ा है । परं तु अभी अनेक रोग लाइलाज हैं।
वद्ध
ृ ावस्‍था में कुछ ज्‍यादा ही रोग उत्‍पन्‍न होते हैं। रोग से उत्‍पन्‍न पीडा व रोग से उपचार के
खर्च से रोगी और परिजन दो‍नों दख
ु ी रहते हैं। चाह का बदला रूप है आकांक्षा । हम जीवन में
ऊंचा पद, यश और कीर्ति चाहते हैं। आकांक्षा अपने आप में बरु ी नहीं हैं, परं तु जब यह ममत्‍व व
संग्रह की प्रवत्ति
ृ से जड़
ु जाती है तो यह न केवल स्‍वयं के लिए दख
ु का कारण बनती है ,
बल्कि परू े समाज में विग्रह और विषमता का कारण भी बनती है ।

आकंक्षा जन्‍म दे ती है अहं और लोभ को। अहं से पैदा होता है क्रोध और संघर्ष। विजयी बनने
की आकांक्षा उचित अनुचित की सीमा समाप्‍त कर दे ती है । संघर्ष हिंसात्‍मक हो जाता है तब
मूक वर्ग हिंसा के शिकार स दमित होतें हैं। भोग उपभोग के साधन बनते हैं। शासित व दमिते
होते हैं। सामाजिक व आर्थिक स्‍यवस्‍था का आधार शोषण होने से व्‍यक्ति चाहकर भी शोष्‍ण के
जाल से मक्
ु ‍त नहीं हो पाता। जिनका नही है , परं तु मजदरू और साधनहीन को तो सब
ु ह होते ही
मजदरू ी पर जाना है साधनों की प्रचरु ता के बावजूद अनेक लोग सुखी महसूस न करने पर
आनन्‍द की खोज में अन्‍यत्र भटकते रहते हैं।

अयोध्‍या के भूपति श्री दशरथ के ज्‍येष्‍ठ पुत्र श्री रामचन्‍द्र जी ने रावण से घमासान युद्ध में
उसकी नाभि में अर्मत का भेद ज्ञात हो जाने पर झटपट रथ पर चढकर अपने प्रचण्‍ड बाणों का
उसकी नाभि पर ऐसा प्रहार किया जिससे कुछ ही क्षणों में उसके प्राण पखेरू हो गये। ऋषियों
का कहना है कि ऐसा विद्यावान मनष्ु ‍
य अर्था‍त रावण की प्रकृति वाला व्‍यक्ति कभी सफल नहीं
हो सकता इसलिए मनुष्‍य को कभी घमण्‍ड नहीं करना चाहिए।
सहारा संसार का सबसे बडा मरूस्‍थल है । वहां हजारों वर्ग किलोमीटर के ऐसे क्षेत्र हैं जहां यदा-
कदा ही वर्षा होती है । उसका पूर्वी क्षेत्र तो ऐसा भाग है जहां शायद तीस चालीस साल में कभी
एक बार वर्षा हो जाती है ।

भारत दे श मंे नदी जल प्रकृति की बहुमूल्‍य दे न है । इस जल का उपयोग न सिर्फ केवल


आर्थिक विकास के लिए आवश्‍यक है बल्कि दे श की बढती हुई जनसंख्‍या को खाद्य सामग्री की
जरूरतों को पूरा करने के लिए जरूरी है । असमान वर्षा के कारण इस साल जल को एकत्र करने
के लिए बांध और जलाशयेां का निर्माण भी दे श की उन्‍नति में सहायक सिद्ध होगा।

महोदय आजकल एवं कुछ शताब्दियों से भारतवर्ष की जनता के बीच इलाहाबाद शहर का नाम
बडी श्रद्धा व लगन के साथ लिया जाता है । इसका कारण है कि वहां पर तीर्थराज संगम की
महत्‍ता इलाहाबाद शहर का नामकरण पहले प्रयाग था जो कि मुगल शासन काल के दौरान
इसका नामकरण अल्‍लाहाबाद रखा गया, यही नाम कालान्‍तर में आगे चलकर इलाहाबाद के नाम
से प्रविद्ध हुआ।

महोदय दे श की संसद हो या राज्‍यों की विधान सभायें अध्‍यक्ष या पीठासीन अधिकरी ही सदन


की मान मर्यादा का रक्षक माना जाता है । उसका सर्वोपरि दायित्‍व यह है कि वह शांतिपूर्ण ढं ग
से सदन की कार्यवाही का संचालन करें । बडे दख
ु के साथ कहना पड रहा है कि पिछले कुछ
समय से सदनों में हमारे ही सदस्‍यों द्वारा किसी न किसी बात पर हंगामा खडा किया जाता
रहा है । जिससे कि सदन की कार्यवाही कुछ घटों तक रूकी रहती है । इस प्रकार जनता के
द्वारा टै क्‍स में वसूला गया मेहनत का पैसा व्‍यर्थ बरबाद होता रहता है । इस प्रकार के व्‍यवहार
एवं आचरण से निश्‍
चय ही हमारी लोकतांत्रिक संस्‍थानों की महान क्षति होती है ।

गध्‍
य प्रदे श सरकार द्वारा आदिवासी मजदरू ों को ज्‍यादा से ज्‍यादा लाभ पहुंचाने के उद्येश्‍य से
बनायी गयी तें द ू पत्‍ता नीति ने एक बार ओर पज
ूं ीपतियों की नींद हराम कर दी है वहीं दस
ू री
ओर अनेक संगठनों ने इसे शासक दल का प्रचार एवं शासकीय धन का दरू
ु पयोंग करने का
आरोप लगाया है । इस जंगल में पाये जाने वाले पत्‍तों से लगभग 2 लाख आदिवासियों को
रोजगार उपलब्‍ध होता है । इस प्रकार यह शासक दल का क्रांतिकारी कदम कहलायेगा क्‍
योंकि
इसके द्वारा 25 लाख रोजगार के साधन उपलब्‍ध होते हैं।
महोअय हमारे दे श में सहकारिता जीवन का मुख्‍य आधार है । तथा यह समाज का एक प्रमुख
स्‍तम्‍
भ है जिसके अभाव में जन्‍म से मत्‍ृ ‍यु तक कोई भी कार्य संभव नहीं है । आज के युग में
भी सामाजिक, सांस्क
‍ ृ तिक व आर्थिक तीनों ही पहलओ
ु ं में सहकारिता या सहयोग का अपना
महत्‍व है । चूंकि हमारा दे श कृषि प्रधान दे श है ‍इसलिए आज भी दे हात में खेती में मदद करने
में जन्‍म विवाह , मत्ृ य
‍ ु अवसरों पर आपसी सहयोग के अनगिनत उदाहरण आज भी दे खे जा
सकते है । परन्‍तु वर्तमान समय में सहकारिता का अर्थ ग्रामीण व नगरीय क्षेत्रों में सहाकारी
समितियों के माध्‍यम से उनकी आर्थिक उन्‍नति से ही लगाया जा सकता है ।

अयोध्‍या के भूपति श्री दशरथ के ज्‍येष्‍ट पुत्र श्री रामचन्‍द्र जी रावण से घमासान युद्ध में उसकी
नाभि में अर्मत का भेद ज्ञात हो जाने पर झटपट रथ पर चढकर अपने प्रचण्‍ड बाणों से उसकी
नाभि में ऐसा प्रहार किया जिससे कुछ ही क्षणों में उसके प्राण पखेरू हो गये। ऋषियों का
कहना है कि ऐसा विद्यावान मनुष्‍य अर्थात रावण की प्रकृति वाला व्‍यक्ति कभी सफल नहीं हो
सकता इसलिए मनुष्‍य को कभी घमण्‍ड नहीं करना चाहिए।

प्रेस अर्थात समाचार पत्र प्रकाशन संस्‍था का प्रजातंत्र में बडा महत्‍व होता है । इस संस्‍था के
द्वारा जनता तथा सरकार के बीच सदै व सम्‍पर्क बनाये रखा जाता है । प्रजातंत्र में प्रेस इतना
शक्तिशाली होता है कि उसे चौथी सत्‍ता कहा जाता है । प्रेस इतना शक्तिशाली इसलिए होता है
क्‍योंकि इस‍
की सौ आंखें होती हैं। यह सरकार की नीतियों का समर्थन अथवा उनकी आलोचना
राष्‍ट्रीय परिक्षेप्‍य में करके प्रत्‍येक बात को सध
ु ारने का काम करता है । चूंकि प्रेस द्वारा जनता
की सही भावना को उजागर करके सरकार के समक्ष न्‍याय के लिए रखा जाता है अत: यह
सरकार को न्‍याय करने के लिए भी बाध्‍
य करता है । इसके अतिरिक्‍त इसका एक महत्‍वपर्ण

कार्य है कि समाज सध
ु ार का कार्य। अपने सम्‍पादकीय लेखों द्वारा यह समाज में व्‍याप्‍त
विभिन्‍न प्रकार के अंध विश्‍वासों, बुरार्इयों के विरूद्ध जनमत तैयार करके उन पर विजय पाने की
दिशा में सक्रिय भूमिका भी अदा करता है ।

प्राचीन कथाओं में मिश्र भी सहारा मरूस्‍थल का एक अंग था जो नील नदी की कृपा से बहुत
उपजाऊ बन गया है । पर्वी
ू सहारा में ऐसे मरू उद्यानों का उल्‍लेख है जो बाद में एकदम से
गायब हो गये इन कथाओं पर आधनि
ु क वैज्ञानिक विश्‍वास नहीं करते ।
लगभ्‍ग दो वर्ष पूर्व संचक्
ु ‍त राज्‍य अमेंरिका की अंतरिक्ष शटल कोलम्बिया ने राडार संकेतों की
मदद से ऐसी नदियों के संकेत भेजे थे जो आज से लगभग 2 करोड वर्ष पूर्व सहारा में बहती
थी। वैज्ञानिकों को यह मालम
ू हे कि सहारा हमेशा से मरूस्‍थल नहीं था। वहां काफी आबादी थी
विशेष रूाप से प्राचीन नदियों के किनारे ।

मनष्ु ‍य के जीवन में तीन महत्‍वपर्ण


ू पक्ष होते हैं सत्‍ता , सम्‍पदा और नैतिकता। ये तीनों ही बडी
शक्तियां हैं। सत्‍
ता के पास है दं ड की शक्ति, सम्‍पदा के पास विनिमय की और नैतिकता के
पास आत्‍म विश्‍
वास की शक्ति और आस्‍था की। इन्‍हीं तीनों के कारण ही मनुष्‍य का जीवन
संचालित होता है , जब तक इनका संतुलन ठीक रहता है तब तक जीवन यात्रा संतुलित रहती है ।
यदि इनमें आपस में असंतल
ु न की स्थिती पैदा हो जाती है तो मानव रथ चरमरा जाता है ।

दे शाटन, ज्ञान की वद्धि


ृ का सर्वाधिक प्रयोग में आने वाला साधन है । विभिन्‍न दे शों के निवासियों
के आचार-विचार तथा विशिष्‍ट वस्‍तओ
ु ं का जितना सन्
ु ‍दर एवं पर्ण
ू ज्ञान दे शाटन से प्राप्‍त होता
है उतना किसी साधन से नहीं। यद्यपि पुस्‍तकों समाचार पत्रों के द्वारा भी उक्‍त ज्ञान प्राप्‍त
होता है किन्‍तु जितना पूर्ण और सर्वांगीण ज्ञान दे शाटन से प्राप्‍त होता है , उतना अन्‍य किसी
साधनों से नहीं।

महोदय किसी भी आदमी को अपने मताधिकार अर्थात वोट का प्रयोग मजहबी आधार पर नहीं
करना चाहिए। इस प्रक्रिया को बन्‍द करने के लिए ही लोकतंत्र मजबूत होगा। लोकतंत्र में वोट
जड
ु ा है व्‍यवस्‍था से , शासन से। शासन जड
ु ा हैै दे श में कानन
ू का राज्‍य स्‍थापित करने से।
इसलिए वोट दे श में कानून का राज्‍य स्‍‍थापित करने के लिये दिया जाना चाहिये। वोट वर्गभेद
तथा विघटनकारी नारों व फतवे पर नहीं दिया जाना चाहिए।

जब तक हिन्‍दी भाषी हिन्‍दी को ह्रदय से स्‍वीकार नही करते तब तक वह राष्‍ट्र भाषा का स्‍थान
नहीं पा सकती है । अक्‍सर यह सुनने में आता हे कि हिन्‍दी भाषा में वैज्ञानिक साहित्‍य या
न्‍यायिक साहित्‍
य कम है या नहीं के बराबर है , यह बात बिल्‍
कुल निराधार है , मैं इस बात को
दावे के साथ कह सकता हूं कि यदि सरकार हिन्‍दी का पूर्णतया सभी क्षेत्रों में इमानदारी से
लागू करे तो जो हिन्‍दी साहित्‍य भाषा में नहीं है , एका तो पर्याप्‍त साहित्‍य उपलब्‍ध है ही अगर
जो साहित्‍य उपलब्‍ध नहीं है , तो वह एक साल के अन्‍दर अवश्‍य उपलब्‍ध हो जायेगा।

अयोध्‍या के भूपति श्री दशरथ के ज्‍येष्‍ट पुत्र श्री रामचन्‍द्र जी ने रावण से घमासान यद्ध
ु में
उसकी नाभि में अर्मत का भेद ज्ञात हो जाने पर झटपट रथ पर चढकर अपने प्रचण्‍ड बाणों से
उसकी नाभि में ऐसा प्रहार किया जिससे कुछ ही क्षणों में उसके प्राण पखेरू हो गये। ऋषियेां
का कहना है कि ऐसा विद्यावान मनुष्‍
य अर्थात रावण की प्रक(ति वाला व्‍यक्ति कभी सफल
नहीं हो सकता इसलिए मनुष्‍य को कभी घमण्‍ड नहीं करना चाहिए।

जब तक हिन्‍दी भाषा को पहले से स्‍वीकार नही करते तब तक वह राष्‍ट्र भाषा का स्‍


थान नहीं
प्राप्‍त कर सकती है । अक्‍सर यह सुनने में आता है कि हिन्‍दी भाषा में वैज्ञानिक साहित्‍य या
न्‍यायिक साहित्‍
य कम है या नहीं के बराबर है , यह बात बिल्‍
कुल निराधार है । मैं इस बात से को
दावे के साथ कह सकता हूं कि यदि सरकार हिन्‍दी को पूर्णरूपेण सभी क्षेत्रों में ईमानदारी से
लागू करें तो जो साहित्‍य हिन्‍दी भाषा में नहीं है , एक तो पर्याप्‍त साहित्‍य उपलब्‍ध है ही अगर
जो साहित्‍य उपलब्‍ध नहीं है , तो वह एक साल के अन्‍दर अवश्‍य उपलब्‍ध हो जाना चाहिए।

इस सम्‍बन्‍ध में अक्‍सर यह सुनने में आता है कि हमारे यहां अभी स्‍नातकोत्‍तर पढाई के लिए
पर्याप्‍
त साधन नहीं है । बडी गलत बात है अभी सरकार के द्वारा ही कुछ समय पहले हीे यहां
पर मैट्रिक की पढाई यहां पर एक विशाल प्रदर्शनी का आयोजन किया गया था उस प्रदर्शनी में
जिन पुस्‍तकों का प्रदर्शन किया गया था उन पुस्‍तकों से यह बात स्पष्‍ट है कि साहित्‍य हमारे
यहां पर वैज्ञानिक न्‍यायिक और शास्‍त्रीय विष्‍यों पर भी हिन्‍दी में पर्याप्‍त पुस्‍तकें हैं।

अयोध्‍या के भूपति श्री दशरथ के ज्‍येष्‍ट पुत्र श्री रामचन्‍द्र जी ने रावण से घमासान यद्ध
ु में
उसकी नाभि में अमत
ृ का भेद ज्ञात हो जाने पर झटपट रथ्‍पर चढकर अपने प्रचण्‍ड बाणों का
उसकी नाभि पर ऐसा प्रहार किया जिससे कुछ ही क्षणों में उसके प्राण पखेरू हो गये। ऋषियों
का कहना है कि ऐसा विद्यावान मनष्ु ‍
य अर्थात रावण की प्रकृति वाला व्‍यक्ति कभी सफल नहीं
हो सकता इसलिए मनुष्‍य को कभी घमण्‍ड नहीं करना चाहिए।
आजकल हमारे दे श एवं प्रदे श में यह फैशन सा चल पड़ा है कि कुछ विशिष्‍ट लोग, दस
ू रों के
द्वारा पहनाई गयी सुगन्धित पुष्‍पों की माला को पहनने के तुरन्‍त बाद ही उतार दे ते हैं, उन्‍हें
यह सम्‍मात सच
ू क माला ऐसी लगती है जैसे किसी ने उनके गले में काला नाग लपेट दिया हो।
हमारा प्राचीन साहित्‍य एवं इतिहास यह स्‍मरण कराता है कि सुमन माला को निकालने के
कारण ही दे वासुर संग्राम तक छिड गया था जिसमें कंठहार को निकालने के अपराध में दे वराज
इन्‍द्र सिंहासन से उतार दिये गये थे।

गले में डाली गयी माला की सुगन्‍


ध स्‍वाभाविक ही नाक में प्रवेश कर जाती है जिससे भीतर
समाई हुई दर्ग
ु न्‍
ध दरू हो जाती है , मन प्रसन्‍न एवं प्रफुल्लित हो जाता है , रोग दोष भाग जाते हैं।
शरीर में स्‍वस्‍थ और शभ
ु संकल्‍पों का सम्‍यक समीकरण स्‍थापित हो जाता है । गले में डाली
गयी माला का अपमान करने के कारण भगवान शिव की सती को, अपने ही पिता दक्ष्‍द्वारा
संचालित यज्ञ में आहूति दे कर अपने शरीर को नष्‍ट करना पडा था, क्‍योंकि उनके पिता ने ऋषि
द्वारा दी गयी माला का अपमान किया था।

हमारे दे श में जिस तरह नई शिक्षा नीति के माध्‍यम से सामाजिक, आर्थिक पुनर्गठन का कार्य
शुरू किया गया है उसी प्रकार सोवियत संघ में शिक्षण पद्धतियों के विशेषज्ञों के साथ-साथ
अध्‍यापकगण शिक्षा की प्रक्रिया में सध
ु ार के श्रेष्‍ठ तरीकों को खोजने का प्रयास कर रहे हैं। इसे
स्‍कल में पेरेस्‍त्रोइका का नाम दिया गया है ।

डा राम मनोहर लोहिया जो कि अपने समय के एा महान समाजवादी नेता थे एक बार कहा था
कि जिस प्रकार तवे पर रोटी बार बार पलटने से ठीक प्रकार से पक जाती है उसी प्रकार
संसदीय लोकतंत्र में व्‍यवस्‍थाओं के बदलते रहने से लोकतंत्र मजबूत होता है अत: कोई भी
व्‍यक्ति अपना एकछत्र मनमाना शासत संचालित करने की चेष्‍टा नहीं करे गा।

अयोध्‍या के भूपति श्री रामचन्‍द्र जी ने रावण से घमासान युद्ध में उसकी नाभि में अमत
ृ का
भेद ज्ञात हो जाने पर झटपट रथ पर चढकर अपने प्रचण्‍ड बाणों से उसकी नाभि में ऐसा प्रहार
किया जिससे कुछ ही क्षणों में उसके प्राण पखेरू हो गये। ऋषियों का कहना है कि ऐसा
विद्यावान मनुष्‍य अर्थात रावण की प्रकृति वाला व्‍यक्ति कभी सफल नहीं हो सकता । इसलिए
मनुष्‍य को कभी नही करना चाहिए।
आजकल हमारे दे श में एवं प्रदे श में यह फैशन सा चल पडा है कि कुछ विशिष्‍ट लोग दस
ू रों के
द्वारा पहनाई गई माला सुगन्धित पुष्‍पों की माला का अपमान करने के तरु न्‍त बाद ही उतार
दे तें हैं उन्‍हें यह माला ऐसी लगती है जैसे किसी ने उनके गले में काला नाग लपेट दिया हो।
हमारा प्राचीन इ‍तिहास यह स्‍मरण कराता है कि सुमन पुष्प की माला को निकालने के कारण
ही दे वासुर संग्राम तक छिड गया था जिसमें कंठहार को निकालने के अपराध में दे वराज इन्‍द्र
को सिंहासन से उतार दिया गया था ।

गले में डाली गयी माला की सुगन्‍


ध स्‍वाभाविक ही नाक में प्रवेश कर जाती है जिससे भीतर
समाई हुई दर्ग
ु न्‍
ध दरू हो जाती है मर प्रसन्‍न एवं प्रफुल्लित हो जाता है रोग दोष भाग जाते हैं।
शरीर में स्‍वस्‍थ और शभ
ु संकल्‍पों का सम्‍यक समीकरण स्‍थापित हो जाता है । गले में डाली
गयी माला का अपमान करने के ही कारण भगवान शिव की सती को अपने ही पिता की दक्ष्‍
द्वारा संचालित यज्ञ में आहूति दे कर अपने शरीर को नष्‍ट करना पडा था क्‍योंकि उनके पिता
ने ऋषि द्वारा दी गयी माला का अपमान किया था।

हमारे दे श में जिस तरह की शिक्षा नीति के माध्‍यम से सामाजिक आर्थिक पन


ु र्गठन का कार्य
शुरू किया गया है उसी प्रकार सोवियत संघ में शिक्ष्‍ण पद्धतियों के विशेष्‍ज्ञों के साथ साथ
अध्‍यापकगण शिक्षा की प्रक्रिया में सध
ु ार के श्रेष्‍ठ तरीकों को खोजने का प्रयास कर रहे हैं। इसे
स्‍कल में पेरेस्‍त्रोइका का नाम दिया गया है ।

डा राम मनोहर लोहिया जो कि अपने समय के एक महान समाजवादी नेता थे एक बार कहा
था कि जिस प्रकार तवे पर रोटी बार बार पलटने से ठीक प्रकार से पक जाती है उसी प्रकार
संसदीय लोकतंत्र में व्‍यवस्‍थाओं के बदलते रहने से लोकतंत्र मजबूत हो जाता है अत: को भी
व्‍यकित अपना एकछत्र मनमाना राज्‍य शासन संचालित नहीं कर सकता।

मां वह शब्‍द है जिसमें बहुत से रहस्‍य छिपे हुये हैं। मां शब्‍द एक बहुत ही महत्‍वपूर्ण शब्‍द है ,
जिसके कारण ही सारे संसार के महत्‍वपूर्ण एवं पराक्रमशाली व्‍यक्ति अपने जीवन में उत्‍
क्रष्‍ट
एवं स्‍थान एवं उद्देश्‍य को प्राप्‍त करने में समर्थ हो सके हैं। कोई मनष्ु ‍य किसी ऊंचे पद पर तभी
पहुंच सकता है जबकि उसकी बचपन में सही आदर्श एवं उन्‍नतिशील शिक्षा प्राप्‍त हुई हो।
महोदय किसी भी आदमी को अपने मताधिकार अर्थात वोट का प्रयोग मजहबी आधार पर नहीं
करना चाहिए। इस प्रक्रिया को बन्‍द करने से ही लोकतंत्र मजबूत होगा। लोकतंत्र में वोट जुडा है
व्‍यवस्‍था से, शासन से। शासन जड
ु ा है दे श में कानन
ू का राज्‍य स्‍थापित करने से । इसलिए
वोट दे श में कानून का राज्‍य स्‍थापित करने के लिए दिया जाना चाहिए। वोट वर्गभेद तथा
विघटनकारी नारों व फतवे पर नहीं दिया जाना चाहिए।

दे शाटन ज्ञान की वद्धि


ृ का सर्वाधिक प्रयोग में आने वाला साधन है । विभिन्‍न दे शों के निवासियों
के आचार विचार तथा विशिष्‍ट वस्‍तुओं का जितना सुन्‍दर एवं पूर्ण ज्ञान दे शाटन से प्राप्‍त होता
है उतना अन्‍य किसी साधन से नहीं । यद्यपि पुस्‍तकों समाचार पत्रों के द्वारा भी उक्‍त ज्ञान
प्राप्‍त होता है , किन्‍तु जितना पर्ण
ू और सर्वांगीण ज्ञान दे शाटन से प्राप्‍त होता है उतना अन्‍य
साधनों से नहीं।

महोदय, हमारे दे श में सहकारिता जीवन का मख्


ु ‍य आधार है । तथा समाज का एक प्रमख
ु स्‍तम्‍भ
है । जिसके अभाव में जन्‍म से मत्ृ य
‍ ु तक कोई भी कार्य संभव नहीं है । आज के यग
ु में भी
सामाजिक सांस्‍कृतिक व आर्थिक तीनों ही पहलुओं में सहकारिता या सहयोग का अपना महतव
है । चकि
ूं हमारा दे श कृषि प्रधान दे श है इसलिए आज भी दे हात में खेती में मदद करने में ,
जन्‍म विवाह, म‍त्ृ ‍यु अवसरों पर आपसी सहयोग के अनगिनत उदाहरण आज भी दे खे जा सकते
हैं। परन्‍तु वर्तमान में सहकारिता का अर्थ ्‍ग्रामीण व नगरीय क्षेत्रों में सहकारी समितियों के
माध्‍यम से उनकी आर्थिक उन्‍नति से ही लगाया जाता है ।

मध्‍य प्रदे श सरकार द्धारा मजदरू ों को ज्‍यादा से ज्‍यादा लाभ पहुंचाने के उद्येश्‍य से बनायी गयी
तें द ू पत्‍ता नीति ने एक ओर पज
ंू ीपतियों की नींद हराम कर दी है वहीं दस
ू री ओर अनेक
संगठनों ने इसे शासक दल का प्रचार एवं शासकीय धन का दरू
ु पयोंग करने का आरोप लगाया
है । इस जंगल में पाये जाने वाले पत्‍तों से लगभग पच्‍चीस लाख आदिवासियों को रोजगार
उपलब्‍ध कराया जाता है । इस प्रकार यह शासक दल का क्रांतिकारी कदम कहलायेगा कयोंकि
इसके द्धारा पच्‍
चीस लाख रोजगार के साधन उपलब्‍ध होते हैं।
जब तक हिन्‍दी भाषी हिन्‍दी को ह्रदय से स्वीकार नहीं कर लेते तब तक वह राष्‍ट्र भाषा का
स्‍थान नहीं प्राप्‍त कर सकती है । अ क्‍सर यह सुनने में आता है कि हिन्‍दी भाषा में वैज्ञानिक
साहित्‍य या न्‍यायिक साहित्‍
य कम से कम है या नहीं के बराबर है , यह बात बिल्‍
कुल निराधार
है । मैं इस बात से सहमत नहीं हूं इस बात को दावे के साथ कह सकता हुं कि यदि सरकार
हिन्‍दी को पूर्णरूपेण सभी क्षेत्रों में र्इमानदारी से लागू करे तो जो साहित्‍य हिन्‍दी भाषा में नहीं
है , एक तो पर्याप्‍त साहितय
उपलब्‍ध है ही अगर जो साहित्‍य उपलब्‍ध नहीं है , तो वह एक साल के अन्‍दर अवश्‍
य उपलब्‍ध
हो जायेगा ।

यदि श्रीमान जी मझ
ु े इस विषय पर प्रकाश डालने का अवसर दें तो मैं इस विषय में इस
उदाहरण दे ना पर्याप्‍त समझता हूं। पहले समय में मैट्रिक पढाई का माध्‍यम अंग्रेजी था और यह
दलील दी जाती है कि हमारे यहां मैट्रिक की पढाई का प‍
र्याप्‍त साहित्‍य नहीं है , लेकिन जब
आवश्‍यकता होती है तब चीजें उपलब्‍ध हो जाती है ज्‍यों ही मैट्रिक में हमारी राष्‍ट्र भाषा हिन्‍दी
तथा अन्‍य भारतीय भाषाओं को सरकार ने माध्‍यम बनाया त्‍यों ही सारा साहित्‍य जो अभी तक
नहीं था छ: महीने में तैयार हो गया।

इसके पर्व
ू भी मैं इस बात को अनेको बार कहता रहा हूं कि साहित्‍य की तैयारी की एक योजना
सरकार को बनानी चाहिऐ और दे श के विभिन्‍न विश्‍
व विद्यालयों में विद्वानों को एक एक
पुस्‍तक अलग अलग विषयों पर लिखने के लिए दे नी चाहिए तथा उनसे करार कर लेना चाहिए
और में रा विश्‍
वास है कि एक वर्ष के अन्‍दर कोई ऐसा साहित्‍य ग्रन्‍थ नहीं है जो तैयार न हो
सके, तो साहित्‍य तैयार नहीं है यह बडी गलत दलील है । इस प्रकार की गलत दलीलों से राष्‍ट्र
भाषा हिन्‍दी का अपमान ही होता है । जिस दे श में राष्‍ट्र के प्रति कुछ ऐसे लोग जो अपने को
प्रगतिशील विचारों वाला मानते हैं तथा कहकर आलोचना करते हैं कि इस भाषा में विभिन्‍न
क्षेत्रों में प्रयोग की जाने वाली शब्‍दावली नहीं है , इस प्रकार का दृष्टिकोण रखते हैं उनहें दे श
भक्‍त या राष्‍ट्र भाषा का शभ
ु चिन्‍तक नहीं माना जाना चाहिए।

महोदय, किसी भी दे श के आर्थिक एवं स्‍यापारिक विकास में बैंकों की महत्‍वपूर्ण भूमिका होती
है । बैंकों का मख्
ू ‍य कार्य जनता से धन जमा करता है तथा इस धन को राष्‍ट्र के उत्‍
पादक एवं
सामाजिक रूप से लाभदायक कार्यों हे तु ऋण के रूप में दे कर उत्‍पादकता में वद्धि
ृ करना है ।
परन्‍
तु राष्‍ट्रीयकरण से पूर्व बैंक केवल कुछ चुने हुए विशिष्‍ट क्षेत्रों में बडें उद्योगपतियों एवं बडें
व्‍यापातियों को ही ऋण सवि
ु धायें प्रदान करते थे। जिसके कारण केवल कुछ ही हाथों में ही
आर्थिक शक्ति का केन्‍द्रीकरण हो रहा था।

इन उद्येश्‍यों की प्राप्ति के लिए राष्‍ट्रीयकरण के फलस्‍वरूप बैकों के दृषिटकोण एवं कार्यपद्धति


में व्‍यापक परिवर्तन हुआ है । इन परिवर्तनों के कारण वर्ग बैंकिग का स्‍थान सामुदायिक बैंकिंग
ने लिया जिससे के कमजोर से कमजोर स्‍यक्ति को आसानी से ऋण एवं अन्‍य बैंकिंग सुविधाएं
सुलभ हो रही हैं। बैंक अब उपेक्षित क्षत्रों को सरकार के निर्देशानुसार प्रा‍थ्‍मिकता के आधार पर
ऋण दे ने हे तु प्रतिबद्ध है । ये क्षेत्रों हैं कृषि, लघु उद्योग, परिवहन ,खद
ु रा व्‍यापार, लघु व्‍यवसाय,
शिक्षा उपयोग ऋण कमजोर वर्गों का गहृ निर्माण हे तु ऋण तथा निर्यात ऋण।

अयोध्‍या के भप
ू ति श्री दशरथ के ज्‍येष्‍ट पत्र
ु श्री रामचन्‍द्र जी ने रावण से घमासान यद्ध
ु में
उसकी नाभि में अमत
ृ का भेद ज्ञात हो जाने पर झटपट रथ पर चढकर अपने प्रचण्‍ड बाणों से
उसकी नाभि पर ऐसा प्रहार किया जिससे कुछ ही क्षणों उसके प्राण पखेरू हो गये। ऋषियों का
कहना है कि ऐसा विद्यावान मनुष्‍य अर्थात रावण की प्रकृति वाला व्‍यक्ति कभी सफल नहीं हो
सकता इसलिए मनष्ु ‍य को कभी घमण्‍ड नहीं करना चाहिए।

महोदय हमारे दे श में सहकारिता जीवन का मुख्‍य आधार है तथा यह समाज का एक प्रमुख
स्‍तम्‍
भ है जिसके अभाव में जन्‍म से मत्ृ ‍यु तक कोई भी कार्य सम्‍भव नहीं है । आज के यग
ु में
भी सामाजिक सांस्‍कृतिक व आर्थिक तीनों ही पहलुओं में सहकारिता या सहयोग का अपना
महत्‍व है । चूंकि हमारा दे श कृषि प्रधान दे श है इसलिए आज भी दे हात में खेती में मदद करने
में जन्‍म विवाह मत्ृ ‍यु अवसरों पर आपसी सहयोग के अनगिनत उदाहरण आज भी दे खे जा
सकते हैं। परन्‍तु वर्त्‍मान समय में सहकारिता का अर्थ ग्रामीण व नगरीय क्षेत्रों में सहकारी
समितियों के माध्‍यम से उनकी आर्थिक उन्‍नति से ही लगाया जाता है ।

महोदय किसी भी दे श के आर्थिक विकास एवं व्‍यापारिक विकास में बैंको की महत्‍वपर्ण
ू भमि
ू का
होती है । बैंकों का मुख्‍य कार्य जनता से धन जमा करना है तथा इस धन को राष्‍ट्र के उत्‍पादक
एवं सामाजिक रूप से लाभदायक कार्यों हे तु ऋण के रूप में दे कर उत्‍पादकता में वद्धि
ृ करना
है । परन्‍तु राष्‍ट्रीयकरण से पर्व
ू बैंक केवल कुछ चुने हुऐ विशिष्‍ट क्षेत्रों में बडें उद्योगपतियों एवं
बडे व्‍यापारियों को ही ऋण्‍सुविधायें प्रदान करते थे। जिसके कारण केवल कुछ ही हाथों में ही
आर्थिक शक्ति का केन्‍द्रीकरण हो रहा था।

इन उद्येश्‍यों की प्राप्ति के लिए राष्‍ट्रीयकरण के फलस्‍वरूप बैंकों के दृष्टिकोंण एवं कार्यपद्धति


में व्‍यापक परिवर्तन हुआ है । इन परिवर्तनों के कारण वर्ग बैंकिंग का स्‍थान सामद
ु ायिक बैंकिंग
ने लिया जिससे के कमजोर से कमजोर व्‍यक्ति को आसानी से ऋण एवं अन्‍य बैंकिंग सुविधाएं
सुलभ हो रही हैं। बैंक अब उपेक्षित क्षेत्रों को सरकार के निर्देशानुसार प्राथमिकता के आधार पर
ऋण दे ने हे तु प्रतिबद्ध है । ये क्षेत्र कृषि लघु उद्योग परिवहन खुदरा व्‍यापार लघु व्‍यवसाय शिक्षा
उपयोग ऋण कमजोर वर्गों को गहृ निर्माण हे तु ऋण तथा निर्यात ऋण।

वर्तमान यग
ु जिसे आधुनिक युग कहा जाता है में राष्‍ट्रीय राजमार्गों का एक विशेष महत्‍व है ।
राजमार्ग न केवल परिवहन की दृष्टि से बल्कि अर्थ व्‍यवस्‍था को सदृ
ु ढ करने में भी मख्
ु ‍य एवं
महत्‍वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। भारत जैसे विकासशील दे श के लिए तो इनका महत्‍व और भी
अधिक है , क्‍योंकि हमारे यहां परिवहन के अ न्‍य साधन पूरी तरह से विकसित नहीं हो पा रहे
हैं। प्राचीन काल से ही हमारे दे श में सडकों के निर्माण को काफी महत्‍व दिया जाता रहा है
लेकिन स्‍वतन्‍त्रता प्राप्ति के पश्‍चात्‍राष्‍
ट्रीय राजमार्गों के विकास और विस्‍तार के कार्य में विशेष
तेजी आर्इ है ।

आज विज्ञान के क्षेत्र में जो प्रगति हो रही है , उससे परिवहन के अन्‍य साधानों का भी विकास
सम्‍भव हा पाया है । विमान एवं रे लगाडियां परिवहन के क्षेत्र में काफी महत्‍व रखती हैं, लेकिन
राष्‍ट्रीय राजमार्ग इन सबके बावजूद परिवहन का प्रमुख साधन बने हुए हैं, कारण है कि विमान
एवं रे ल सेवा के विस्‍तार की सम्‍भावनाएं सीमित हैं। इसलिए सरकार ने राजमार्गों के विकास
पर जोर दे कर सारे दे श में इनका जाल सा बिछा दिया है फिर भी दे श के पहाडी एवं दरू दराज
के ग्रामीण इलाकों में सडकों की कमी है ।

आजादी के पश्‍चात्‍1984 में राष्‍ट्रीय राजमार्ग की महत्‍वपर्ण


ू भमि
ू का को स्‍वीकार करते हुए इनके
विकास की नई-नई योजनाएं बनी जिससे कुछ नये राजमार्गों का विकास हुआ एवं पुराने मार्गां
की मरम्‍मत एवं रख रखाव में तेजी आई। राजमार्गों के रख-रखाव एवं सुधार की जिम्‍मेदारी
मुख्‍य रूप से राज्‍य सरकारों की ही है परन्‍तु संसाधनों की कमी के कारण प्रदे श सरकारें इस
कार्य को उचित महत्‍व नहीं दे पाती हैं। इसके अतिरिक्‍त राज मार्गों के विकास के काम में
राज्‍यों के बीच में कोई सामंजस्‍य भी नहीं है । इस कमी को दरू करने के लिए राष्‍ट्रीय राजमार्गों
का गठन 1989 में एक सरकारी अधि-सूचना के जरिए किया गया।

भाइयों, भग
ू ोल, पर्वत और समद्र
ु ने भारत के स्‍वरूप का निर्माण किया है । कोई मानव संस्‍था
इसके आकार को बदल नहीं सकती और न ही उसके अंतिम लक्ष्‍य में बाधक बन सकती है ।
आर्थिक परिस्थितियों और अंतर्राष्‍ट्रीय मामलों की लगातार मांगों के कारण भारत की एकता
और भी आवश्‍यक हो गई है । भारत के जिस चित्र को हमने अपने दिलों में संजोया है , वह सदा
हमारे दिलों और दिमागों में रहे गा। अ भ कांग्रेस समिति गंभीरता से यह विश्‍वास करती है कि
जब वर्तमान भावनाओं की उत्‍तेजना समाप्‍त हो जायेगी, तो भारत की समस्‍याओं को उचित
परिक्षेप्‍य में दे खा जाएगा और भारत में दो राष्‍ट्रों के अस्तित्‍व के झूठे सिद्दान्‍तों को समाप्‍त कर
दिया जाएगा और सभी इसका त्‍याग कर दें गे। सामान्‍यत: राष्‍ट्रीयता जातीय, भाषाई अथवा
भौगोलिक तत्‍वों पर आधारित होती है । परन्‍तु इस्‍लाम की स्‍वतन्‍त्र धर्मनिरपेक्ष राष्‍ट्रीयता के
बाद आज भी कई जिम्‍मेदार नेता दावा करते है कि मुसलमान अलग राष्‍ट्र हैं।

काग्रें स ने अपने चन
ु ाव के घोष्‍णापत्र में इसकी मोटी रूपरे खा न बना ली होती तो बेशक यह
सभव्ं न हो पाता। इस घोष्‍णापत्र के मुख्‍य निर्माता स्‍वयं राजीव गांधी थे और इसे तैयार करने
में श्री राव उनके मुख्‍य सहायक थे। दे श को संकट से उबारने के लिए और आर्थिक रास्‍ते पर ले
जाने के लिए बेशक मनमोहन सिंह की दे शभक्ति , विद्वत्‍ता और ख्‍याति महत्‍वपूर्ण कारण थे।
नर्इ आर्थिक नीति जनता के हित में नहीं है , इस काल्‍पनिक तथ्‍य को लेकर काफी हं गामा
मचाया जा रहा है । इसके उजट अगर आपेक्षिक ढं ग से अगर लागू नहीं किया जा रहा है तो
इसकी वजह यह है कि जनता के नाम पर हर तरह की आंशिक और कारपोरे ट मांगे पूरी की
जा रही हैं। प्रधान मंत्री ने दो महत्‍वपूर्ण तरीको से नई आर्थिक नीतियां बनाने में अपना
योगदान दिया है । सब से पहले तो उन्‍होंने नई नीति लागू करने में उन्‍होंने जो दस
ू रा महत्‍वपर्ण

योगदान किया है वह इसके पक्ष में राष्‍ट्रीय सहमति बनाना।
आज भी हम इतना ही कह सकते है कि इस पद्धति का, अभी केवल प्रयोग ही किया जा रहा है ।
इसे राष्‍ट्रीय कार्यक्रम मानकर हमारी सरकार ने उसको लागू करने का निश्‍चय नहीं किया और
क्रियात्‍मक रूप से कुछ करने की बात मानकर तो नही के बराबर है । उसका परिणाम यह हुआ
है कि पुरानी पद्ति की संस्‍थाएं प्रतिदिन बढती जा रही हैं और शिक्षा पर सरकार जो कुछ कर
सकती है या करना चा‍हती है उसका बहुत बडा अंश प्रोत्‍साहन मिला है । मेरा अपना विश्‍वास है
कि शिक्षा में मौलिक परिवर्तन अवश्‍य किया जाएगा।

महोदय, कोसी नदी, जिसे शोक और दख


ु का सूचक माना जाता है , इस वर्ष फिर अपने प्रकोप के
कारण से महान हानि का कारण बनी। अब इस नदी पर काबू पाने के लिए और इसकी उपद्रवी
लीला समाप्‍त करने के लिए भी योजना तैयार हो गई है । इस योजना की रूपरे खा तैयार हो
चक
ु ी है और निर्माण का काम हाथ मे लिया गया जा चक
ु ा है । आशा है इस योजना के निर्माण
से बडे पैमाने पर जनसाधारण को सेवाऐं उपलब्‍ध होंगी। जब यह नया परीक्षण सफल होगा, तो
महान योजनाओं के निर्माण में और भारत की महान जन-शक्ति के उपयोग के संबध में हमारी
जानकारी और अनभ
ु व में महत्‍वपर्ण
ू वधि
ृ होगी। औदयोगीकरण के क्षेत्र में उन्‍नति , उत्‍पादन
में और अधिक वधि
ृ होगी। भारत की प्रति व्‍यक्ति आय में वदृ
ृ धि विचाराधीन,वर्ष की कुछ
महत्‍वपूर्ण बातें हैं। औद्योगीकरण के साथ ही रोजगार के क्षेत्र को विस्‍तत
ृ करने का प्रयत्‍न भी
बराबर जारी है । कुटीर उद्योगों और घरे लू धंधों को प्रोत्‍साहन दे कर औद्योगीकरण और रोजगार
में समचि
ू त संतल
ू न स्‍थापित करने का प्रयास किया जा रहा है । यह बात सभी स्‍वीकार करते हैं
कि भारत के जनसाधारण को उदासीनता और हार मानने की भावना से मुक्‍त करना है , तो
बढती हुई बेरोजगारी को दरू करने का उपाय करना होगा। इस दिशा में घरे लू उद्योग धधें, बहुत
से लोगों को आंशिक या पूर्ण रूप से उपयोगी काम दे कर इस समस्‍या का बहुत कुछ समाधान
कर सकते हैं। इसीलिए पंचवर्षीय योजनाओं में परु ाने घरे लू उद्योगों को पन
ु र्जीवित करने और
चालू करने के कुटीर उद्योगों को प्रोत्‍साहन दे ने की व्‍यवस्‍था की जा रही है ।

विदे शी मामलों के क्षेत्र में हमारी सफलता और भी अधिक है । हमारी नीति, जिसे मैं और
सोद्योय तटस्‍थता की नीति कहना चाहूंगा, वास्‍तविक व्‍यवहार में किसी भी दे श अथवा यहां के
लोगों को अपना शत्रु न समझने की नीति है । इस नीति के फलस्‍वरूप हमें विश्‍वशांति के पक्ष
की कुछ सेवा करने का अवसर मिला है । हम प्रसन्‍न और प्रभारी हैं कि विश्‍वशांति के पक्ष की
कुछ सेवा करने का अवसर मिला है कि संसार के राष्‍ट्रों में भारत का स्‍थान इतना ऊंचा है ।
इंडोचीन नियंत्रण और निरीक्षण अंतर्राष्‍ट्रीय आयोग की अध्‍यक्षता हमने स्‍वेक्षा से स्‍वीकार की
है । और हमारे नागरिक यथासाध्‍य उस दे श में शांतिपर्ण
ू निर्वाचन संबधों समस्‍याओं का सामना
कर रहे है । हम सभी राष्‍ट्रीय अथवा अंतर्राष्‍ट्रीय समस्‍याओं का सामना कर रहे हैं। मुझे बहुत
प्रसन्‍नता है कि भारत में फ्रांसीसी बस्तियों की समस्‍या शांति और सदृभावना के वातावरण में
है ।जैसे ही यह वर्ष समाप्‍त हो रहा है हम अपने सबसे निकट के पडोंसी पाकिस्‍तान के साथ
अपने संबधों में अपने सख
ु द परिवर्तन दे खते हैं। पाकिस्‍तान के लिए हमारे हृदय में सदै व से
पूर्ण सदृभावना और शुभकामनाएं हैं।
माता- पिता अपने बच्‍चों के स्‍वास्‍थ्‍य के लिए चिंतित रहते हैं अपने सामर्थ्य के अनुसार वह
कम से कम बच्‍
चों के खाने- पीने में कोई कोर कसर बाकी नहीं रहने दे ते हैं। इस प्रयास में
अक्‍सर यही दे खा गया है कि माता- पिता खाने - पीने के मामले में बच्‍
चों पर मनोवैज्ञानिक
दबाव रखने में लगे रहते हैं। उनकी कोशिश यही रहती है कि उनका बच्‍
चा हमेशा खाता-पीता
रहे और फिर यह होता है कि बच्‍
चे के खाने- पीने का कोई समय निर्धारित नहीं हो पाता और
उनकी आदतें बिगड जाती हैं। इन बच्‍
चों में मोटापा होना उचित है । असमय खाने पीने के
कारण कई सारी समस्‍याऐं पैदा हो जाती हैं। अगर आंकाडों पर नजर डालें तो पता चलता है
कि विकसित दे शों में खासतौर पर बच्‍चों से का मोटापर चिंता को विष्‍य बनता जा रहा है ।
पिछले कुछ दशकों से खासतौर पर अमरीका में मोटापे के शिकार बच्‍चों की संख्‍या दग
ु ुनी हो
गई है । कुल मिलाकर छह से सत्रह वर्ष की उम्र के ऐसे अमरीकी बच्‍चों का कुल औसत 10
प्रतिशत था। ऐसे बच्‍
चों की प्रतिशत औसत मोटापे की तल
ु ना में दो गन
ु े से अधिक थी। इनमें
मोटापे के शिकार बच्‍
चों की संख्‍या पिछले दस-बारह सालो में काफी तेजी से बढ रही है ।

कांग्रेस ने अपने चन
ु ाव घोषणापत्र में इसकी मोटी रूपरे खा न बना ली होती तो बेशक यह संभव
न हो पाता। इस घोषणापत्र के मुख्‍य निर्माता स्‍वयं राजीव गांधी थे और तैयार करने में श्री राव
उनके मुख्‍य सहायक थे। दे श को संकट से बचाने के लिए और नए आर्थिक रास्‍ते पर ले जाने
के लिए में बेशक मनमोहन सिंह की दे शभक्ति, विदृवत्‍ता और ख्याति महत्‍वपूर्ण कारण थे। नई
आर्थिक नीति जनता की हित में नहीं है , इस का काल्‍पनिक तथ्‍य को लेकर काफी हं गामा
मचाया जा रहा है । इसके उलट अगर उसे अपेक्षिक ढं ग से लागू किया जा रहा है तो इसकी
वजह यह है कि जनता के नाम पर हर तरह की आंशिक और कारपोरे ट मांगे परू ी की जा रही
हैं। प्रधान मंत्री ने दो महत्‍
वपूर्ण तरीकों से नई नीति लागू करने के लिए प्रस्‍ताव मध्‍
यम मार्ग
अपनाने पर जोर दिया है । नए आर्थिक कार्यक्रम को लागू करने में उन्‍होने जो दस
ू रा महत्‍वपर्ण

योगदान दिया है वह है इसके पक्ष में राष्‍ट्रीय सहमति बनाना।

हमें यह स्‍मरण रखना चाहिए कि पहले की हमारी पंचायते क्‍यों हिट गईं। हमारे दे श में पंचायतें
परं परा से चली आ रही थीं। अंग्रेजों ने भी मुक्‍त कंठ से इस बात को स्‍वीकार किया है कि
भारत का प्रत्‍येक गणराज्‍य था। पर एक समय आया जब गांव स्‍वतंत्र गणराज्‍य न रहे और दे श
परतंत्र हो गया। इसका कारण हममें कमजोरियों का आना था। हमें उन कामजोरियों से भी
बचते रहना चाहिए जिससे फिर से वह दिन दे खना पडे। वह कमजोरी थी। उन अपना दे श माना
और इस कारण जब एक पंचायत पर आक्रमण हुआ तो दस
ू री पंचायतों ने उसकी रक्षा में हाथ
बंटाना अपना धर्म नहीं समझा। इसी प्रकार विदे शियों ने एक-एक बार पर आक्रमण करके सारे
दे श पर अपना अधिकार कर लिया । हमारे शत्रओ
ू ं ने हमारे पारस्‍परिक वैमनस्‍य और भेदभाव
से भी लाभ उठाया। अभी यह हाल में जब भाषावार राज्‍
येां का प्रश्‍
न उपस्थित हुआ तो गांव की
छोटी-छोटी पंचायतों ने जैसी सम्‍मतियां प्रकट की उनसे यह स्‍पष्‍ट हो गया।

महोदय, बहुत पहले से ही महिलाओं को अपने रखकर परू


ु ष प्रधान भारतीय समाज ने उनके
विकास के द्वार बंद कर रखे हैं। प्राचीन भारत में सामाजिक और राजनैतिक बदलाव के साथ-
साथ महिलाओं की स्थिति में भी बदलाव आता रहा है । कभी तो यह माना गया है कि जहां
नारी की पज
ू ा होती है वहां दे वता निवास करते हैं। तो कभी उसे प्रताडना का पात्र बताया जाता
है । इतिहास के एक बडे काल- खंड में उसे चारदीवारी और परदे के अंदर रखा जाता गया है ।
इसके बावजूद जब भी नारी को परदे से बाहर आकर दनि
ु या को दे खने व समझने का अवसर
दिया गया उसने अपनी क्षमता, योग्‍यता और प्रतिभा का भरपरू प्रदर्शन किया ।

भारत को स्‍वतंत्र हुए पांच दशक होने जा रहे हैं। स्‍वतन्‍त्रता प्राप्‍त, करने के बाद महिलाओं के
विकास के लिए संविधान में अनेक प्रावधान किए गए हैं, परं तु मात्र नियम- कानून बना दे ने से
किसी व्‍यक्ति या वर्ग में परिवर्तन नहीं आते, इसके लिए व्‍यवहार और कानून अमल की भी
आवश्‍यकता होती है , किंतु भारतीय महिलाओं के लिए इसका प्रयोग नहीं किया गया। यंू तो
प्रथम योजना काल से ही महिला विकास के छिटपुट प्रयास आरं भ हो गए थे परं तु हकीकत में
सर्वप्रथम छठी योजना के दस्‍तावेज में महिलाओं के सामाजिक व आर्थिक विकास का अध्‍याय
जोडा गया। इसके बाद से महिला विकास की योजनाएं निरं तर क्रियाशील रहीं फिर भी भारतीय
महिलाओं की स्थिति में अपेक्षित परिवर्तन नहीं लाया जा सका है ।

जब भारतीय महिलाओं की तल
ु ना दस
ू रे दे शों की महिलाओं से की जाती हैं तो हमें बडे
दिलचस्‍प तथयों से सक्षात्‍
कार करता पडता है , और हम तभी जान पाते हैं कि भारतीय
महिलाओं की स्थिति वास्‍‍तविक क्‍या है , यानी बेहद चिंताजनक और दरू
ु ह।

हमने संसार के सभी दे शों के साथ बराबर मैत्री की नीति बरती है और यद्यपि कभी-कभी इसके
बारे में भ्रांति हुई है तो भी इस नीति को दस
ू रे लोग अधिकाधिक समझने लग गए हैं और
इसका परिणाम भी अच्‍छा हुआा है । मुझे विश्‍वास है कि हम इस नीति का दृढता से पालन
करते रहें गे और आज संसार के अ धिकांश भागों में जो जनजाती तनातनी है , इस प्रकार उसको
कुछ कम करने का प्रयास करें गे। भारत सरकार दस
ू रे दे शों के मामलों में हस्‍तक्षेप नहीं करना
चा‍हती कयोंकि हम अपने दे श में दस
ू रों का हस्‍तक्षेप पसंद नहीं करते। जहां कहीं संभव हुआ है ,
हमने सहयोग से ही काम लिया है और हम शांति स्‍थापना में सहायता दे ने के लिए सदा तत्‍पर
हैं। हम अपनी सहायता का भार किसी पर लादना नहीं चाहते। किंतु हम इस बात को समझतें
हैं। कि आज के संसार में कोई भी दे श बिल्‍कुल अलग होकर नहीं रह सकता है और यह
अनिवार्य भी है कि अंतराष्‍ट्रीय सहयोग बढता रहे ताकि सुदरू भविष्‍य में मानव जाति की
उन्‍नति के लिए संसार के सारे राष्‍ट्र महान सहकारी प्रयास में सम्मिलित हो जायें। प्राय: एक
वर्ष से कोरिया में विराम संधि स्‍थापित करने का प्रयास किया जा रहा है । जिससे उन बहुतेरी
समस्‍याओं को , जिन्‍होंने सुदरू पूर्व एशिया में उथल- पुथल मचवा रखी है , शांतिमय ढं ग से
निबटाया जा सके,। मैंने कई बार यह आशा प्रकट की है कि ये प्रयत्‍न सफल होंगे।

बहुत जमाना हुआ जब तक एक अंग्रेज यहां आया था। वह बडा विद्यवान था। उनकी किताबें
अब भी चल रही हैं। गांधी जी उस समय खादी और ग्रामोद्योग की बात चला रहे थे। आप
जानते हैं कि पशिचीमी दे शों में कोई भी चीज ऐसी नहीं है कि जो बिना संयत्र के हो। वहां
सब काम मशीनो के द्वारा किये जाते हैं। यहां तक कि मेज पर खाना परोसने का काम भी
खुद व खुब हो जाता है । और आदमी को लाकर रखने की जरूरत नहीं पडती।
वहां के आदमी ने आकर दे खा कि यहां के लोग घर में बैठ के रूई का सूत बना लेते हैं, उस
सत
ू से कपडा बन
ु ते हैं और उसी से घर में कपडा सी लेते हैं। उसने यह भी दे खा की यहां के

हिंदी वालों का यह प्रयास कि सभी अरबी तथा अंग्रेजी भाषा के शब्‍द हिंदी में नहीं
आने दे ने चाहिए, उतना ही हानिकारक है , जितना उर्दू वालों का यह प्रयास कि उर्दू में अंग्रेज में
केवल अरबी और उर्दू भाषा के ही शब्‍द रखे जाएं, संस्‍कृत के नहीं। उसके साथ-साथ हमको यह
भी मानना होगा कि हिंदस्
ू ‍तान में जो बहुत-सी भाषाएं हैं, वे अलग-अलग प्रदे शों की अलग-अलग
भाषाएं हैं जैसे- उत्‍तर भारत में मराठी, गज
ु राती, हिंदी ,बंगला, उडिया तथा असमिया तथा दक्षिण
में तमिल ,तेलगू ,मलयालम तथा कन्‍नड। इन सब भाषाओं में संस्‍कृत के शब्‍द बहुत हैं। हिन्‍दी
को छोडकर और किसी भी भाषा में उर्दू के शब्‍द नहीं मिेलेंगें। दे श में हिन्‍दी को इस योग्‍य
बनाना है कि लोग उसे सरलता से सीख सकें। इसलिए उसमें संस्‍कृत के शब्‍द लेने ही पडेगें ,
उससे बचा नहीं जा सकता। हमारे संविधान में हिन्‍दी की व्‍याख्‍या इस प्रकार दी गयी है कि हम
उसी भाषा को हिन्‍दी मानते हैं जिसके मल
ु में संस्‍कृत है । यह कोई नयी बात नहीं है । इसे सभी
लोग मानते हैं और समझते हैं। आज-कल लोग कुछ ऐसी हिन्‍दी लिखने लगे हैं जिसमें संस्‍कृत
के बडे-बडे शब्‍द आते हैं। जो मेरे जैसे आदमी को जिसने संस्‍कृत नहीं पढी है , समझ नहीं
आती। जो व्‍यक्ति संस्‍कृत या अरबी भाषाओं में किसी भी ऐक को भी नही जानते परतु अच्‍
छी
हिन्‍दी या हिन्‍दस्
ु ‍तानी लिख सकते हैं, उनको इतना समय नहीं कि वे संस्‍कृत ओंर अरबी के बडे-
बडे शब्‍द लें। वे तो छोटे शब्‍दों में ही अपना काम निकाल लेते हैं। बडे शब्‍द लेने हो तो वह
दस
ू री चीज है ।

दे शवासियों, मैंने अभी-अभी राष्‍ट्रपति के पद की शपथ ली है और इस महान दे श की सेवा


में अपने को समर्पण कर दे ने का दृढ़ निश्‍चय व्‍यक्‍ति किया है । मैं आपके सामने भारत के
गणराजय के प्रतीक और चिह्नस्‍वरूप राष्‍ट्रपति के रूप में खड़ा हूँ। हमें अपने प्राचीन इतिहास
में दे श के विभिन्‍न भागों में और विभिन्‍न यग
ु ों में गणराज्‍यों की स्‍थापना के उल्‍लेख मिलते हैं,
किंतु उनका प्रभत्ु ‍व दे श के छोटे -छोटे भागों तक ही सीमित था और हमें उनको राज्‍य–पद्धति का
भी पूरा ज्ञान नहीं है । यह पहला अवसर नहीं है जब यह सारा दे श एकछत्र गणराज्‍य के
आधिपत्‍य और शासन के नीचे आया है । हमारे संविधान ने इस गणराज्‍य की व्‍यापक नींव का
आधार इस दे श के सब वयस्‍क स्‍त्री-पुरुषों को बनाया है । भारत के प्रशासन और उसके भाग्‍य
का वि‍धाता है ।

साफ है कि यदि कोई दे श जिसके पास परमाणु बम है , भारत पर हमला करता चाहे तो सैनिक
दृषिट से हम बहुत कम सुरक्षित हैं। हो सकता है कि एटम बम के इस खतरे का सामना हम
अन्‍य बातों से करें क्‍योंकि जिस दे श में जीवन शक्ति ,ताकत व एकता है , जो दे श आत्‍म
समर्पण नही करे गा चाहे कुछ भी हो, उसे कभी हराया नहीं जा सकता । इसलिए मैने प्राय: कहा
है कि एट बम का असली जवाब अन्‍
य क्षेत्रों में निहित है । मैं ऐसा इसलिए कह रहा हूं कि
अंतत: आपकी फौज या फौजी हथीयारों का महत्‍व नहीं है बल्कि लोंगों की एकता की भावना
का, हर कठिनाई और जोखिम के होते हुए भी लोंगों के जीवित रहने की भावना का महत्‍व है ।
यदि मुझे भारत पर भरोसा है तो यह भरोसा अन्‍य बातों के अलावा अपने लोगों की एकता और
हिम्‍मत पर है । यदि यही कमजोर है तो चाहे जितने ही टैंक या हवाई जहाज झोंक दें । कोई
फर्क नहीं पडेगा। टे क्‍नोलाजी में इतनी तेजी से तरक्‍
की हुई है कि अगर दर्भा
ु ग्‍य से भविष्‍य में
कोई बडा यदृ
ु ध हो तेा यदृ
ु ध के बारे में लिखि गई हर ऐक किताब और पिछले यदृ
ु धों में
इस्‍तेमाल हुआ हरे क हथियार परु ाना लगेगा। इस नजर से दे खने पर संसार के केवल कुछ ही
दे शों को छोडकर शेष सब दे श और भारत में हम पूरी तरह पिछड गये हैं और फिलहाल हमारे
लिए किसी तरह का सहारा नहीं है । सुरक्षा के लिए किसी मुल्‍क की ताकत किस चीज में होती
है हर आदमी तरु ं त सरु क्षा सेनाओं थलसेना , नौसेना और वायस
ु ेना – के बारे में सोचता है ।

इसी तरह से जहां घर में चरखा चलाकर हम अपना कपडा बना सकते थे वहां आज हमको रूई
दनि
ु या के एक महान कोने से लानी पडती है । उसे लाने के लिए जहाज, रे ल आदि हर तरह के
वाहनों की जरूरत पडती है । इसके अलावा उसे एक कारखाने से दस
ू रे , दस
ू रे से तीसरे और तीसरे
से चौथे भेजना पडता है । और उसके बाद एक दक
ु ान से दस
ू री और दस
ू री से तीसरी भेजना
पडता है । तब कहीं हमारे घर में कपडा आता है । जिसको हम आसानी से घर में तैयार किया
करते थे, उसमें अब कितनी दे र होती है । मैं ये नहीं कहता की जो कुछ हुआ है , वो सब गलत
हुआ है क्‍योंकि ऐसा कहने से लोग समझते हैं कि पिछडा आदमी है । हम तो ये चाहते हैं कि
सांइस के द्वारा आज हमें जितनी अच्‍
छी चीजें मिलनी हैं उनमें से हम एक को भी ना छोडे
और उनमें से जो लाभ उठा सकते हैं वो जरूर उठाएं। मगर इसके पहले यह सोच लें कि किस
चीज की कीमत क्‍या है और हमें कहां तक ले जायेगी और किस ओर। मैं यही चाहता हूं कि
जो रचनात्‍मक कार्यक्रम गांधी जी ने बताया वह बहुत अनुभव के बाद इन सब चीजों को परख
करके की उन्‍होंने निकाला था।

महोदय आज जितनी तेजी से साथ लोगों के ख्‍यालों में तबदीली हो रही है उससे इंसान यह
महसस
ू करने लगा है कि वह जो चाहे कर सकता है और करा सकता है । मगर वह करने और
कराने की ताकत क्‍या है वह एक दिन के अंदर कोई एक शहर ही नहीं सैकडों इलाकों को बर्बाद
कर सकता है । अभी तक किसी आदमी के हाथ में बर्बाद करने की ताकत के अलावा पैदा करने
की ताकत है , पैदा करने की ताकत नहीं। गांधी जी जिस समाज का स्‍वप्‍न दे खा करते थे वह
एक एक ऐसा समाज था जिसमें सब लोग खश
ु हाल होंगे और किसी को किसी दस
ू रे को सताने
की जरूरत नहीं पडेगी। और इंसान , इंसान रहे गा। वह न तो शैतान बनने की कोशिश करे गा
और न तो खुदा बनने की । वह चाहते थे कि मनुष्‍य के लिए चारों तरफ से हदे बांधी गयी हैं,
उन्‍ही के अन्‍दर रह करके जितनी हो सकती है उतनी उन्‍नति करे । पर उन हदों के बाहर न जा
पाये। इसमें कोई संदेह नहीं है कि आज साइसं की काफी उन्‍नति हो गयी है , पर किस ओर

अयोध्‍या के भूपति श्री दशरथ के ज्‍येष्‍ट पुत्र श्री रामचन्‍द्र जी ने रावण से घमासान यद्ध
ु में
उसकी नाभि में अमत
ृ का भेद ज्ञात हो जाने पर झटपट रथ पर चढकर अपने प्रचण्‍ड बाणों से
उसकी नाभि में ऐसा प्रहार किया ़ जिससे कुछ ही क्षणों में उसके प्राण पखेरू हो गये। ऋषियों
का क‍
हना है कि ऐसा विद्यावान मनुष्‍
य अर्थात रावण की प्रकृति वाला व्‍यक्ति कभी सफल नहीं
हो सकता इसलिए मनुष्‍य को कभी घमण्‍ड नहीं करना चाहिए।

आज का विज्ञान के क्षेत्र में जो प्रगति हो रही है , उससे परिवहन के अन्‍य साधनों का भी


विकास सम्‍भ्‍व हो पाया है । विमान एवं रे लगाडिायां परिवहन के क्षेत्र में कॉफी महत्‍व रखती हैं,
लेकिन राष्‍ट्रीय राजमार्ग इन सब के बावजद
ू परिवहन का प्रमख
ु साधन बने हुये हैं। कारण यह
है कि विमान एवं रे ल सेवा के विस्‍तार की संभावनाएं सीमित हैं। इसलिए सरकार ने राजमार्गां
पर जोर दे कर सारे दे श में इनका जाल सा बिछा दिया है । फिर भी दे श के पहाडी एवं दरू दराज
के इलाकों में सडकों की कमी है ।
वर्तमान सरकार जल्‍दी से जल्‍दी कृषि पर निर्भरता करके लोगो को उद्योगों में लगाने के लिए
तत्‍पर हैं। संकल्‍पबद्ध हैं, उतावली हैं। वह जानती है कि प्रदे श की सारी श्रम-शक्ति खेती में नहीं
लग सकती है , उसका दस
ू रा उपयोग जल्‍दी से जल्‍दी तलाश करना होगा क्‍योंकि श्रमशक्ति ही
प्रदे श को उन्‍नत और समद्ध
ृ कर सकती है । यह ऐसा साधन है जिसका अपव्‍यय या जिसकी
उपेक्षा प्रगति के रास्‍ते में बाधक है ।

औ़द्योगीकरण की दौड में उत्‍तर प्रदे श , मप्र ,बिहार, राजस्‍


थान के पिछड जाने का एक बडा
कारण ऐतिहा‍सिक है । अंग्रेज बम्‍बई, कलकत्‍ता , मद्रास पर आकर टिके तो आस- पास के क्षेत्रों
के विकास को प्राथमिकता मिली , वहां औद्योगिक विकास का वातावरण बना किन्‍तु उत्‍तर
प्रदे श एवं अन्‍य राज्‍य अंग्रेजों की आंखों के कांटे थे। सन्‍1857 के प‍हले स्‍वतन्‍त्रता संग्राम से
लेकर सन्‍1947 तक आजादी के हर तरह के आदोलन में उत्‍तर प्रदे श एवं अन्‍य राज्‍य अंग्रणी
थे। उसकी सजा उसे आर्थिक उपेक्षा के रूप में मिली। यहां के फलते- फूलते उद्योग भी नष्‍ट
कर दिये गये, नये उद्योग लगाने की बात ही नहीं उठती थी।

माननीय सभापति महोदय, मैं आपकी अनुमति से, शिक्षामंत्री जी ने जो प्रस्‍ताव सदन के सामने
प्रस्‍तुत किया है , उसका समर्थन करने के लिए खडा अवश्‍य हुआ हूं लेकिन क्‍या माननीय मंत्री
महोदय जी यह बताने की कृपा करें गे कि हमारे दे श में शिक्षा की नीति का आधार क्‍या है ।
शिक्षा की नीति में सबसे प्रमुख बातें क्‍या होनी चाहिए। इस सम्‍बन्‍ध में मेरे विचार इस प्रकार
हैं कि अपने दे श में वे तमाम बच्‍चे जो पढना चाहते हैं या जिनके माता पिता पढाना चाहते हैं
उनको शिक्षा प्राप्‍त करने का अवसर सुलभ होना चाहिए दस
ू री बात यह है कि हमारे दे श के
गरीब लोगों के लिए शिक्षा सस्‍ती होनी चाहिए और तीसरी बात यह है कि शिक्षा मिलने के बाद
इस बात की गारन्‍टी होनी चाहिए कि जो लोग पढ लिख नहीं कर निकलें उनको किसी न किसी
काम में लगाया जा सकें।

ग्राम पंचायतें जनतन्त्रीय शासन व्‍यवव्‍


था की पहली सीढी हैं। प्रदे श सरकार का इस बात में
गहरा विश्‍वास है ‍कि जनता के लाभार्थ किसी भी योजना की शुरूआत जनतंत्र के बुनियादी ढॉचे
से होनी चाहिए।
किसी भी योजना या कार्यक्रम की सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि जनता का उनमें
कितना विश्‍वास है और कहां उसका सहयोग और समर्थन मिल रहा है । इसी उदृदे श्‍य से वर्तमान
सरकार द्धारा ग्राम प्रधानों और ब्‍लाक प्रमख
ु ों के चन
ु ाव जो एक लम्‍बी अवधि से किन्‍
ही कारणों
से नहीं हो पाये थे, कराये गये। ग्राम प्रधानों का यह चुनाव जिसमें लगभग 4 करोड 42 लाख
मतदाताओं ने भाग लिया , गॉव स्‍तर के बुनियादी जनतंत्र का सम्‍भवत: संसार का सबसे बडा
चुनाव था जो स्‍वयं में एक बडी उपलब्धि है ।

ग्रामीण जनता की खुशीहाली और ग्रामीण अर्थ व्‍यवस्‍था को सुदृढ बनाने के उदृदे श्‍य से 20
सूत्रीय कार्यक्रम और विशेष रूप से एकीकृत ग्राम्‍य विकास योजना की सफलता के लिए वर्तमान
सरकार ने इन योजनाओं में ग्राम प्रधानों का सक्रिय सहयोग प्राप्‍त करने का निर्णय लिया तथा
इन योजनाओं का लाभ पात्र और जरूरतमंद लोगों को मिले,यह सुनिश्चित करने के लिए शासन
द्धारा यह निर्णय लिया गया है कि एकीकृत ग्राम विकास योजनाओं के लिए सही लाभार्थियों का
चयन गांव सभाओं की खुशी बैठकों में किया जाय।

पंचायत राज संस्‍थाओं के सुदृढीकरण और उनकी आय में वद्धि


ृ करने के लिए एक प्रोत्‍साहन
योजना के अन्‍तर्गत चालू वित्‍तीय वर्ष में 2 लाख 88 हजार रूपये की धनराशि स्‍वीकृ‍ती की गई
है । इस योजना के अन्‍तर्गत जिले की तीन सर्वश्रेष्‍ठ ग्राम पंचायतों तथा सभाओं को जो अपनी
आय में करों शुल्‍क , भूमि प्रबन्ध , सम्‍पत्ति और अन्‍य साधनों को जो अपनी आय से तीन
वर्षों की तुलना में सर्वाधिक वद्धि
ृ करें गी, उनहें पुरस्‍कृत किया जायेगा। प्रथम पुरस्‍कार तीन
हजार रूपये दिृतीय पुरस्‍कार दो हजार रूपये तथा तत
ृ ीय पुरस्‍कार एक हजार रूपये तक का
होगा।

यूरोप में अनंत काल से इन भारतीय श्रमिकों द्धारा उत्‍पादित श्रेष्‍ठ सूती वस्‍त्रों का आयात होता
रहा है और वहां से बदले में मल्
ू ‍यवान वस्‍तु आती रही हैं। इसका भग
ु तान भानत को स्‍वर्ण और
रजत के रूप में मिला करता था यह इस बात का प्र

माण है कि भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था यरू ोप के दे शों से अच्‍छी थी, परन्‍तु इंग्‍लैड में औद्योगिक
क्रान्ति हो जाने के बाद यूरोप में जो आर्थिक विकास का दौर प्रारम्‍भ हुआ तो ये दे श विकास
पथ पर अग्रसर होते ही गए तभी इस काल में अंग्रेजों को भारत में अपना प्रभुत्‍व स्‍थापित
करने में सफलता मिल गयी। अंग्रेज शासकों ने भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था के विकास में न केवल
बाधायें डाली वरन्‍यहां के ढांचे को नष्‍ट कर इंग्‍लड
ैं की पूरक अर्थव्‍यवस्‍था को जन्‍म दिया ।

मेरा यह आशय है कि शिक्षा नीति को इन तीन कसौटियों को ध्‍यान में रखार व्‍यवहार में लाया
जाना चाहिए। क्‍या शिक्षा नीति यहां की सस्‍ती है , क्‍या सभी को सुलभ है तथा क्‍या वह रोजगार
तलब है । मान्‍यवर इन तीन कसौटियों पर विचार करने के बाद यह हम निष्‍कर्ष पर पहुंचग
े ा कि
न तो शिक्षा सुलभ है न सस्‍ती है और न ही यह रोजगार तलब है । आज शिक्षा के अन्‍दर भी
वर्ग बने हुये हैं। क्‍या शिक्षा हाई क्‍लास के लोंगों के लिए है जो कि उन लोंगों को पब्लिक
स्‍कूलों के माध्‍यम से दी जाती है और वहां पर जो बच्‍चे पढते हैं उन पर कई सौ रूपये प्रति
माह व्‍यय होता है । ह

ंेकहि यसारी ंेकहि यसारी ंेकहि यसारी ंेकहि यसारी ंेकहि यसारी ंेकहि यसारी
ंेकहि यसारी ंेकहि यसारी ंेकहि यसारी ंेकहि यसारी ंेकहि यसारी ंेकहि यसारी
ंेकहि यसारी ंेकहि यसारी ंेकहि यसारी ंेकहि यसारी ंेकहि यसारी ंेकहि यसारी
ंेकहि यसारी ंेकहि यसारी ंेकहि यसारी ंेकहि ंेकहि यसारी ंेकहि यसारी ंेकहि
यसारी ंेकहि यसारी ंेकहि यसारी ंेकहि यासरी ंेकहि यसारी ंेकहि यसारी ंेकहि
यसारी ंेकहि यसारी ंेकहि यसरी ंेकहि यसारी ंेकहि यसारी ंेकहि यसारी ंेकहि
यसारी ंेकहि यसारी ंेकहि यसारी ंेकहि यसारी ंेकहि यसरी ंेकहि यसारी ंेकहि
यसारी ंेकहि यसारी ंेकहि यसारी ंेकहि यसारी ंेकहि यसारी ंेकहि यसारी ंेकहि
यसारी ंेकहि यसारी ंेकहि यसारी ंेकहि यसारी ंेकहि यसारी ंेकहि यसारी ंेकहि
ंेकहि यसारी ंेकहि यसारी ंेकहि यसारी ंेकहि यसारी ंेकहि यसारी ंेकहि यसारी

क का की कि कु कू के कै को कौ कं क: ख खा खि खी खु खू खे खै खो खौ खं ख: ग गा गि
गी गु गू गे गै गो गौ गं ग: घ घा घि घी घु घू घे घै घो घौ घं घ: च चा चि ची चु चू चे चै चो
चौ चं च: छ छा छि छी छु छू छे छै छो छौ छं छ: ज जा जि जी जु जू जे जै जो जौ जं ज: झ
झा झि झी झु झू झे झै झो झौ झं झ: ट टा टु टू टे टै टो टौ टि टी टं ट: ठ ठा ठि ठी ठु ठू ठे
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नै नो नौ नं: क का कि की कु कू के कै को कौ कं क: ख खा खि खी खु खू खे खै खो खौ खं
ख: ग गा गि गी गे गै गु गू गो गौ गं ग: च चा चि ची चु चू चे चै चो चौ चं च: छ छा छि छी
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ढू ढे ढै ढो ढौ ढं ढ: त ता ति ती तु तू ते तै तो तौ तं त: थ था थि थी थु थू थे थै थो थौ थं
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पे पै पो पौ पं प: फ फा फि फी फु फू फे फै फो फौ फं फ: ब बा बि बी बु बू बे बै बो बौ बं ब:
भ भा भि भी भु भू भे भै भो भौ भं भ: य या यि यी यु यू ये यै यो यौ यं य: र रा रि री रु रू
रे रै रो रौ रं र: ल ला लि ली ले लै लो लौ लं: व वा वि वी वे वै वो वौ वं व: स सा सि सी से
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म: न ना नि नी नु नू ने नै नो नौ नं न:

क का कि की कु कू के कै को कौ कं कः ख खा खि खी खु खू खे खै खो खौ खं खः ग गा गि
गी गु गू गे गै गो गौ गं गः घ घा घी घु घू घे घै घो घौ घं घः च चा चि ची चु चू चे चै चो
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पा पि पी पु पू पे पै पो पौ पं पः फ फा फि फी फु फू फे फै फो फौ फं फः ब बा बि बी बु बू
बे बै बो बौ बं बः भ भा भि भी भु भू भे भै भो भौ भं भः म मा मि मी मु मू मे मै मो मौ मं
मः य या यि यी यु यू ये यै यो यौ यं यः र रा रि री रु रू रे रै रो रौ रं रः ल ला लि ली लु
लू ले लै लो लौ लं लः व वा वि वी वु वू वे वै वो वौ वं वः श शा शि शी शु शू शे शै शो शौ
शं शः ष षा षि षी षु षू षे षै षो षौ षं षः स सा सि सी सु सू से सै सो सौ सं सः ह हा हि
ही हु हू हे है हो हौ हं हः क्ष क्षा क्षि क्षी क्षु क्षू क्षे क्षै क्षो क्षौ क्षं क्षः त्र त्रा त्रि त्री त्रु त्रू त्रे त्रै त्रो
त्रौ त्रं त्रः ज्ञ ज्ञा ज्ञि ज्ञी ज्ञु ज्ञू ज्ञे ज्ञै ज्ञो ज्ञौ ज्ञं ज्ञः क का कि की कु कू के कै को कौ कं कः
ख खा खि खी खु खू खे खै खो खौ खं खः ग गा गि गी गु गू गे गै गो गौ गं गः घ घा घि
घी घु घू घे घै घो घौ घं घः च चा चि ची चु चू चे चै चो चौ चं चः छ छा छि छी छु छू छे छै
छो छौ छं छः ज जा जि जी जु जू जे जै जो जौ जं जः झ झा झि झी झु झू झे झै झो झौ झं
झः ट टा टि टी टु टू टे टै टो टौ टं टः ठ ठा ठि ठी ठु ठू ठे ठै ठो ठौ ठं ठः ड डा डि डी डु डू
डे डै डो डौ डं डः ढ ढा ढि ढी ढु ढू ढे ढै ढो ढौ ढं ढः त ता ति ती तु तू ते तै तो तौ तं तः थ
था थि थी थु थू थे थै थो थौ थं थः द दा दि दी द ु द ू दे दै दो दौ दं दः ध धा धि धी धु धू धे
धै धो धौ धं धः

अयोध्‍या के भूपति श्री दशरथ के ज्‍येष्‍ठ पुत्र श्री रामचन्द्र जी ने रावण से घमासान युद्ध में
उसकी नाभि में अमत
ृ का भेद ज्ञात हो जाने पर झटपट रथ पर चढ़कर अपने प्रचण्‍ड बाणों का
उसकी नाभि में ऐसा प्रहार किया जिससे कुछ ही क्षणों में उसके प्राण पखेरू हो गये। ऋषियों
का कहना है कि ऐसा विद्यावान मनुष्‍
य अर्थात रावण की प्रकृति वाला व्‍यक्ति कभी सफल नहीं
हो सकता इसलिए मनुष्‍य को कभी घमण्‍ड नहीं करना चाहिए।

अयोध्‍या के भूपति श्री दशरथ के ज्‍येष्‍ठ पुत्र श्री रामचन्‍द्र जी ने रावण से घमासान युद्ध में
उसकी नाभि में अमत
ृ का भेद ज्ञात हो जाने पर झटझट रथ पर चढ़कर अपने प्रचण्‍ड बाणों से
उसकी नाभि में ऐसा प्रहार किया जिससे कुछ ही क्षणों में उसके प्राण पखेरू हो गये। ऋषियों
का कहना है कि ऐसा विद्यावान मनुष्‍
य अर्थात रावण की प्रकृति वाला व्‍यक्ति कभी सफल नहीं
हो सकता इसलिए मनुष्‍य को कभी घमण्‍ड नहीं करना चाहिए।

अयोध्‍या के भूपति श्री दशरथ के ज्‍येष्‍ठ पुत्र श्री रामचन्‍द्र जी ने रावण से घमासान युद्ध में
उसकी नाभि में अमत
ृ का भेद ज्ञात हो जाने पर झटपट रथ पर चढ़कर अपने प्रचण्‍ड बाणों से
उसकी नाभि में ऐसा प्रहार किया जिससे कुछ ही क्षणों में उसके प्राण पखेरू हो गये। ऋषियों
का कहना है कि ऐसा विद्यावान मनुष्‍
य अर्थात रावण की प्रकृति वाला व्‍यक्ति कभी सफल नहीं
हो सकता इसलिए मनुष्‍य को कभी घमण्‍ड नहीं करना चाहिए।

उपाध्‍
यक्ष महोदय, इस विधेयक का हम समर्थन करते हैं और मुझे आशा है कि यह बच्‍
चों का
शोषण रोकने के लिए एक कदम दे ना होगा। इसका विरोध करना शोषण को बढ़ावा दे ना होगा।
कोई भी व्‍यक्ति जो समाज की प्रगति में विश्‍वास करता है , वह इसका विरोध नही करे गा।
लेकिन दो बातों को मंत्री महोदय ठीक से अपने ध्‍यान में रख लें। वह इस बात को ध्‍यान में
रखें कि आर्थिक असमानता को जब तक हम दे श से समाप्‍त नहीं करते हैं और साथ ही साथ
पूर्ण रोजगार की जो पॉलिसी है , उसको लागू नहीं करते तब तक इस समस्‍या का हल नहीं हो
सकता। जो बच्‍
चे पढ़ने वाले होते हैं उनके परिवारों को चलाने वाले लोगों का पास परु ा रोजगार
नहीं होता और इसीलिए बच्‍
चों को काम करना पड़ता है । इसलिए सब से पहले हमें आर्थिक
असमानता को दरू करना है , तभी दे श में सुख-समद्धि
ृ एवं खुशी लायी जा सकती है ।

मित्रों, आज हमारी यह भावना होनी चाहिए कि यह राष्‍ट्र हमारा है , उसके सब लोग हमारे परिवार
के ही व्‍यक्ति हैं। जिस मां की कोख से हमने जन्‍म लिया उसका ऋण हम पर बाकी है । बिना
इस संकल्‍प के बात नहीं बनेगी। दरअसल, हमारी आजादी का कोई मतलब ही न होगा, अगर
हम अपनी भाषा न अपना सके। प्रेम से हर एक व्‍यक्ति को बताना होगा कि हिन्‍दी भाषा है
और एक मात्र भाषा है जो टूटे हुऐ दिलों को जोड़ सकती है और हर एक व्‍यक्ति के मन में
राष्‍ट्र प्रेम प्रज्‍वलित कर सकती है ।

मुझे बताया गया है कि दे श के कोने काने से आए आप सभी लोग दिन भर यहां बैठ कर
कानून और नियमों के अनुसार सरकारी कम्‍पनियों में हिन्‍दी के प्रयोग की आवश्‍यकता और
योजनाओं पर विचार-विनिमय करें गें, इसलिए मैं आप लोंगों के विचार- विनिमय में अधिक समय
तक बाधक नहीं बनना चा‍
हता। मझ
ु े विश्‍
वास है कि आपने जितने धैर्यपर्व
ू क मेरी बातें सन
ु ी हैं,
उतने ही धैर्यपूर्वक आज के सारे मसलों पर विचार करें गें।
माण है कि भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था यूरोप के दे शों से अच्‍छी थी, परन्‍तु इंग्‍लैड में औद्योगिक
क्रान्ति हो जाने के बाद यूरोप में जो आर्थिक विकास का दौर प्रारम्‍भ हुआ तो ये दे श विकास
पथ पर अग्रसर होते ही गए तभी इस काल में अंग्रेजों को भारत में अपना प्रभुत्‍व स्‍थापित
करने में सफलता मिल गयी। अंग्रेज शासकों ने भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था के विकास में न केवल
बाधायें डाली वरन्‍यहां के ढांचे को नष्‍ट कर इंग्‍लड
ैं की पूरक अर्थव्‍यवस्‍था को जन्‍म दिया ।

मेरा यह आशय है कि शिक्षा नीति को इन तीन कसौटियों को ध्‍यान में रखार व्‍यवहार में लाया
जाना चाहिए। क्‍या शिक्षा नीति यहां की सस्‍ती है , क्‍या सभी को सुलभ है तथा क्‍या वह रोजगार
तलब है । मान्‍यवर इन तीन कसौटियों पर विचार करने के बाद यह हम निष्‍कर्ष पर पहुंचग
े ा कि
न तो शिक्षा सुलभ है न सस्‍ती है और न ही यह रोजगार तलब है । आज शिक्षा के अन्‍दर भी
वर्ग बने हुये हैं। क्‍या शिक्षा हाई क्‍लास के लोंगों के लिए है जो कि उन लोंगों को पब्लिक
स्‍कूलों के माध्‍यम से दी जाती है और वहां पर जो बच्‍चे पढते हैं उन पर कई सौ रूपये प्रति
माह व्‍यय होता है । ह

ंेकहि यसारी ंेकहि यसारी ंेकहि यसारी ंेकहि यसारी ंेकहि यसारी ंेकहि यसारी
ंेकहि यसारी ंेकहि यसारी ंेकहि यसारी ंेकहि यसारी ंेकहि यसारी ंेकहि यसारी
ंेकहि यसारी ंेकहि यसारी ंेकहि यसारी ंेकहि यसारी ंेकहि यसारी ंेकहि यसारी
ंेकहि यसारी ंेकहि यसारी ंेकहि यसारी ंेकहि ंेकहि यसारी ंेकहि यसारी ंेकहि
यसारी ंेकहि यसारी ंेकहि यसारी ंेकहि यासरी ंेकहि यसारी ंेकहि यसारी ंेकहि
यसारी ंेकहि यसारी ंेकहि यसरी ंेकहि यसारी ंेकहि यसारी ंेकहि यसारी ंेकहि
यसारी ंेकहि यसारी ंेकहि यसारी ंेकहि यसारी ंेकहि यसरी ंेकहि यसारी ंेकहि
यसारी ंेकहि यसारी ंेकहि यसारी ंेकहि यसारी ंेकहि यसारी ंेकहि यसारी ंेकहि
यसारी ंेकहि यसारी ंेकहि यसारी ंेकहि यसारी ंेकहि यसारी ंेकहि यसारी ंेकहि
ंेकहि यसारी ंेकहि यसारी ंेकहि यसारी ंेकहि यसारी ंेकहि यसारी ंेकहि यसारी

क का की कि कु कू के कै को कौ कं क: ख खा खि खी खु खू खे खै खो खौ खं ख: ग गा गि
गी गु गू गे गै गो गौ गं ग: घ घा घि घी घु घू घे घै घो घौ घं घ: च चा चि ची चु चू चे चै चो
चौ चं च: छ छा छि छी छु छू छे छै छो छौ छं छ: ज जा जि जी जु जू जे जै जो जौ जं ज: झ
झा झि झी झु झू झे झै झो झौ झं झ: ट टा टु टू टे टै टो टौ टि टी टं ट: ठ ठा ठि ठी ठु ठू ठे
ठै ठो ठौ ठं ठ: ड डा डु डू डि डी डु डू डे डै डो डौ डं ड: ढ ढा ढु ढू ढि ढी ढे ढै ढो ढौ ढं ढ: त ता
ति ती तु तू ते तै तो तौ तं त: थ था थु थू थि थी थे थै थो थौ थं थ: द दा दि दी द ु द ू दे दै
दो दौ दं द: ध धा धि धी धु धू धे धै धो धौ प पा पि पी पु पू पे पै पो पौ पं प: फ फा फि फी
फु फू फे फै फो फौ फं फ: ब बा बि बी बु बू बे बै बो बौ बं ब: भ भा भि भी भु भू भे भै भो भौ
भं भ: य या यि यी यु यू ये यै यो यौ यं य: र रा रि री रु रू रे रै रो रौ रं र: ल ला लि ली लु
लू ले लै लो लौ लं ल: व वा वि वी वे वै वो वौ वं व: स सा सि सी सु सू से सै सो सौ सं स: ह
हा हि ही हु हू हे है हो हौ हं ह: म मा मि मी मु मू मे मै मो मौ मं म: न ना नि नी नु नू ने
नै नो नौ नं: क का कि की कु कू के कै को कौ कं क: ख खा खि खी खु खू खे खै खो खौ खं
ख: ग गा गि गी गे गै गु गू गो गौ गं ग: च चा चि ची चु चू चे चै चो चौ चं च: छ छा छि छी
छु छू छे छै छो छौ छं छ: ज जा जि जी जु जू जे जै जो जौ जं ज: ट टा टि टी टु टू टे टै टो
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ढू ढे ढै ढो ढौ ढं ढ: त ता ति ती तु तू ते तै तो तौ तं त: थ था थि थी थु थू थे थै थो थौ थं
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पे पै पो पौ पं प: फ फा फि फी फु फू फे फै फो फौ फं फ: ब बा बि बी बु बू बे बै बो बौ बं ब:
भ भा भि भी भु भू भे भै भो भौ भं भ: य या यि यी यु यू ये यै यो यौ यं य: र रा रि री रु रू
रे रै रो रौ रं र: ल ला लि ली ले लै लो लौ लं: व वा वि वी वे वै वो वौ वं व: स सा सि सी से
सै सो सौ सं स: सु सू ह हा हि ही हु हू हे है हो हौ हं ह: म मा मि मी मु मू मे मै मो मौ मं
म: न ना नि नी नु नू ने नै नो नौ नं न:

अयोध्‍या के भूपति श्री दशरथ के ज्‍येष्‍ठ पुत्र श्री रामचनद्र जी ने रावण से घमासान युद्ध में
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ृ का भेद ज्ञात हो जाने पर झटपट रथ पर चढ़कर अपने प्रचण्‍ड बाणों का
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का कहना है कि ऐसा विद्यावान मनुष्‍
य अर्थात रावण की प्रकृति वाला व्‍यक्ति कभी सफल नहीं
हो सकता इसलिए मनुष्‍य को कभी घमण्‍ड नहीं करना चाहिए।

अयोध्‍या के भूपति श्री दशरथ के ज्‍येष्‍ठ पुत्र श्री रामचन्‍द्र जी ने रावण से घमासान युद्ध में
उसकी नाभि में अमत
ृ का भेद ज्ञात हो जाने पर झटझट रथ पर चढ़कर अपने प्रचण्‍ड बाणों से
उसकी नाभि में ऐसा प्रहार किया जिससे कुछ ही क्षणों में उसके प्राण पखेरू हो गये। ऋषियों
का कहना है कि ऐसा विद्यावान मनष्ु ‍
य अर्थात रावण की प्रकृति वाला व्‍यक्ति कभी सफल नहीं
हो सकता इसलिए मनुष्‍य को कभी घमण्‍ड नहीं करना चाहिए।

अयोध्‍या के भप
ू ति श्री दशरथ के ज्‍येष्‍ठ पत्र
ु श्री रामचन्‍द्र जी ने रावण से घमासान यद्ध
ु में
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उसकी नाभि में ऐसा प्रहार किया जिससे कुछ ही क्षणों में उसके प्राण पखेरू हो गये। ऋषियों
का कहना है कि ऐसा विद्यावान मनुष्‍
य अर्थात रावण की प्रकृति वाला व्‍यक्ति कभी सफल नहीं
हो सकता इसलिए मनष्ु ‍य को कभी घमण्‍ड नहीं करना चाहिए।

उपाध्‍
यक्ष महोदय, इस विधेयक का हम समर्थन करते हैं और मुझे आशा है कि यह बच्‍
चों का
शोषण रोकने के लिए एक कदम दे ना होगा। इसका विरोध करना शोषण को बढ़ावा दे ना होगा।
कोई भी व्‍यक्ति जो समाज की प्रगति में विश्‍वास करता है , वह इसका विरोध नही करे गा।
लेकिन दो बातों को मंत्री महोदय ठीक से अपने ध्‍यान में रख लें। वह इस बात को ध्‍यान में
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चे पढ़ने वाले होते हैं उनके परिवारों को चलाने वाले लोगों का पास पुरा रोजगार
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असमानता को दरू करना है , तभी दे श में सुख-समद्धि
ृ एवं खुशी लायी जा सकती है ।

मित्रों, आज हमारी यह भावना होनी चाहिए कि यह राष्‍ट्र हमारा है , उसके सब लोग हमारे परिवार
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और एक मात्र भाषा है जो टूटे हुऐ दिलों को जोड़ सकती है और हर एक व्‍यक्ति के मन में
राष्‍ट्र प्रेम प्रज्‍वलित कर सकती है ।

मुझे बताया गया है कि दे श के कोने काने से आए आप सभी लोग दिन भर यहां बैठ कर
कानून और नियमों के अनुसार सरकारी कम्‍पनियों में हिन्‍दी के प्रयोग की आवश्‍यकता और
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हता। मुझे विश्‍
वास है कि आपने जितने धैर्यपूर्वक मेरी बातें सुनी हैं,
उतने ही धैर्यपूर्वक आज के सारे मसलों पर विचार करें गें।
माण है कि भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था यूरोप के दे शों से अच्‍छी थी, परन्‍तु इंग्‍लैड में औद्योगिक
क्रान्ति हो जाने के बाद यरू ोप में जो आर्थिक विकास का दौर प्रारम्‍भ हुआ तो ये दे श विकास
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ैं की पूरक अर्थव्‍यवस्‍था को जन्‍म दिया ।

मेरा यह आशय है कि शिक्षा नीति को इन तीन कसौटियों को ध्‍यान में रखार व्‍यवहार में लाया
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न तो शिक्षा सुलभ है न सस्‍ती है और न ही यह रोजगार तलब है । आज शिक्षा के अन्‍दर भी
वर्ग बने हुये हैं। क्‍या शिक्षा हाई क्‍लास के लोंगों के लिए है जो कि उन लोंगों को पब्लिक
स्‍कूलों के माध्‍यम से दी जाती है और वहां पर जो बच्‍चे पढते हैं उन पर कई सौ रूपये प्रति
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क का की कि कु कू के कै को कौ कं क: ख खा खि खी खु खू खे खै खो खौ खं ख: ग गा गि
गी गु गू गे गै गो गौ गं ग: घ घा घि घी घु घू घे घै घो घौ घं घ: च चा चि ची चु चू चे चै चो
चौ चं च: छ छा छि छी छु छू छे छै छो छौ छं छ: ज जा ंेकहि यसारी ंेकहि यसारी
ंेकहि यसारी ंेकहि यसारी ंेकहि यसारी ंेकहि यसारी जि जी जु जू जे जै जो जौ जं
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बो बौ बं ब: भ भा भि भी भु भू भे भै भो भौ भं भ: य या यि यी यु यू ये यै यो यौ यं य: र रा
रि री रु रू रे रै रो रौ रं र: ल ला लि ली ले लै लो लौ लं: व वा वि वी वे वै वो वौ वं व: स सा
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मो मौ मं म: न ना नि नी नु नू ने नै नो नौ नं न:

अयोध्‍या के भूपति श्री दशरथ के ज्‍येष्‍ठ पुत्र श्री रामचनद्र जी ने रावण से घमासान युद्ध में
उसकी नाभि में अमत
ृ का भेद ज्ञात हो जाने पर झटपट रथ पर चढ़कर अपने प्रचण्‍ड बाणों का
उसकी नाभि में ऐसा प्रहार किया जिससे कुछ ही क्षणों में उसके प्राण पखेरू हो गये। ऋषियों
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य अर्थात रावण की प्रकृति वाला व्‍यक्ति कभी सफल नहीं
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अयोध्‍या के भूपति श्री दशरथ के ज्‍येष्‍ठ पुत्र श्री रामचन्‍द्र जी ने रावण से घमासान युद्ध में
उसकी नाभि में अमत
ृ का भेद ज्ञात हो जाने पर झटझट रथ पर चढ़कर अपने प्रचण्‍ड बाणों से
उसकी नाभि में ऐसा प्रहार किया जिससे कुछ ही क्षणों में उसके प्राण पखेरू हो गये। ऋषियों
का कहना है कि ऐसा विद्यावान मनुष्‍
य अर्थात रावण की प्रकृति वाला व्‍यक्ति कभी सफल नहीं
हो सकता इसलिए मनुष्‍य को कभी घमण्‍ड नहीं करना चाहिए।

अयोध्‍या के भूपति श्री दशरथ के ज्‍येष्‍ठ पुत्र श्री रामचन्‍द्र जी ने रावण से घमासान युद्ध में
उसकी नाभि में अमत
ृ का भेद ज्ञात हो जाने पर झटपट रथ पर चढ़कर अपने प्रचण्‍ड बाणों से
उसकी नाभि में ऐसा प्रहार किया जिससे कुछ ही क्षणों में उसके प्राण पखेरू हो गये। ऋषियों
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य अर्थात रावण की प्रकृति वाला व्‍यक्ति कभी सफल नहीं
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उपाध्‍
यक्ष महोदय, इस विधेयक का हम समर्थन करते हैं और मझ
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चों का
शोषण रोकने के लिए एक कदम दे ना होगा। इसका विरोध करना शोषण को बढ़ावा दे ना होगा।
कोई भी व्‍यक्ति जो समाज की प्रगति में विश्‍वास करता है , वह इसका विरोध नही करे गा।
लेकिन दो बातों को मंत्री महोदय ठीक से अपने ध्‍यान में रख लें। वह इस बात को ध्‍यान में
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चे पढ़ने वाले होते हैं उनके परिवारों को चलाने वाले लोगों का पास पुरा रोजगार
नहीं होता और इसीलिए बच्‍
चों को काम करना पड़ता है । इसलिए सब से पहले हमें आर्थिक
असमानता को दरू करना है , तभी दे श में सख
ु -समद्धि
ृ एवं खश
ु ी लायी जा सकती है ।

मित्रों, आज हमारी यह भावना होनी चाहिए कि यह राष्‍ट्र हमारा है , उसके सब लोग हमारे परिवार
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इस संकल्‍प के बात नहीं बनेगी। दरअसल, हमारी आजादी का कोई मतलब ही न होगा, अगर
हम अपनी भाषा न अपना सके। प्रेम से हर एक व्‍यक्ति को बताना होगा कि हिन्‍दी भाषा है
और एक मात्र भाषा है जो टूटे हुऐ दिलों को जोड़ सकती है और हर एक व्‍यक्ति के मन में
राष्‍ट्र प्रेम प्रज्‍वलित कर सकती है ।

मुझे बताया गया है कि दे श के कोने काने से आए आप सभी लोग दिन भर यहां बैठ कर
कानून और नियमों के अनुसार सरकारी कम्‍पनियों में हिन्‍दी के प्रयोग की आवश्‍यकता और
योजनाओं पर विचार-विनिमय करें गें, इसलिए मैं आप लोंगों के विचार- विनिमय में अधिक समय
तक बाधक नहीं बनना चा‍
हता। मुझे विश्‍
वास है कि आपने जितने धैर्यपूर्वक मेरी बातें सुनी हैं,
उतने ही धैर्यपूर्वक आज के सारे मसलों पर विचार करें गें।

अयोध्‍या के भप
ू ति श्री दशरथ के ज्‍येष्‍ठ पत्र
ु श्री रामचन्‍द्र जी ने रावण से घमासान यद्ध
ु में
अपने प्रचण्‍ड बाणों से उसकी नाभि में ऐसा प्रहार किया जिससे कुछ ही क्षणों में उसके प्राण
पखेरू हो गये। ऋषियों का कहना है कि ऐसा विद्यावान मनुष्‍य अर्थात रावण की प्रकृति वाला
व्‍यक्ति कभी सफल नहीं हो सकता इसलिए मनुष्‍य को कभी घमण्‍ड नहीं करना चाहिए।

अयोध्‍या के भूपति श्री दशरथ के ज्‍येष्‍ठ पुत्र श्री रामचन्‍द्र जी ने रावण से घमासान युद्ध में
उसकी नाभि में अमत
ृ का भेद ज्ञात हो जाने पर झटपट रथ पर चढकर अपने प्रचण्‍ड बाणों से
उसकी नाभि में ऐसा प्रहार किया जिससे कुछ ही क्षणों में उसके प्राण पखेरू हो गये। ऋषियों
का कहना है कि ऐसा विद्यावान मनुष्‍
य अर्थात रावण की प्रकृति वाला व्‍यक्ति कभी सफल नहीं
कर सकता इसलिए मनुष्‍य को कभी घमण्‍ड नहीं करना चाहिए।
दिसम्‍बर अक्‍टूबर भारतवर्ष पल्‍लव दिग्‍
गज यथार्थ ग्राहक भ्रमण

अयोध्‍या के भूपति श्री दशरथ के ज्‍येष्‍ठ पुत्र श्री रामचन्‍द्र जी ने रावण से घमासान युद्ध में
उसकी नाभि में अमत
ृ का भेद ज्ञात हो जाने पर झटपट रथ पर चढ़कर उसकी नाभि में ऐसा
प्रहार किया जिससे कुछ ही क्षणों में उसके प्राण पखेरू हो गये। ऋषियों का कहना है कि ऐसा
विद्यावान मनष्ु ‍य अर्थात रावण की प्रकृति वाला व्‍यक्ति कभी सफल नहीं हो सकता है इसलिए
मनुष्‍य को कभी घमण्‍ड नहीं करना चाहिए।

अयोध्‍या के भप
ू ति श्री दशरथ के ज्‍येष्‍ठ पत्र
ु श्री रामचन्‍द्र जी ने रावण से घमासान यद्ध
ु में
उसकी नाभि में अमत
ृ का भेद ज्ञात हो जाने पर झटपट रथ पर चढ़कर अपने प्रचण्‍ड बाणों से
उसकी नाभि में ऐसा प्रहार किया जिससे कुछ ही क्षणों में उसके प्राण पखेरू हो गये। ऋषियों
का कहना है कि ऐसा विद्यावान मनुष्‍
य अर्थात रावण की प्रकृति वाला व्‍यक्ति कभी सफल नहीं
हो सकता है इसलिए मनष्ु ‍य को कभी घमण्‍ड नहीं करना चाहिए।

पुलवामा आ‍तंकी हमले के जवाब में सैन्‍य कार्रवाई के हमारे विकल्‍प सीमित हैं, क्योंकि
पाकिस्‍तान के पास भी परमाणु अस्‍त्र हैं। कोई भी सैन्‍य कार्रवाही परमाणु यद्ध
ु में बदल सकती
है । जो दोनों दे शों पर बहुत भारी पड़ेगी। पुलवामा के बाद भी पाकिस्‍तान द्वारा भारतीय सरहद
के भीतर गोलीबारी जारी है । लगता है कि पाकिस्‍तान भारत की विवशता को समझ रहा है कि
हम सैन्‍य कार्रवाही नहीं कर सकेंगें और हमारी इस मजबूरी का लाभ उठा रहा है । इस
परिस्थिति से निपटने के लिए भारत सरकार ने पाकिस्‍तान की आर्थिक मोर्चेबन्‍दी की रणनीति
अपनाई है । पाकिस्‍तान से आयात होन वाली सभी वस्‍तुओं पर 200 प्रतिशत का आयात कर
लगा दिया है । जिसके कारण पाकिस्‍तान से कोई भी आयात संभव नहीं होगा, मगर पाकिस्‍तान
द्वारा भारत को मात्र 14 प्रतिशत है । पाकिस्‍तान भारत को मुख्‍य रूप से सीमें ट फलों का
निर्यात करता है । ऐसा नहीं हैं कि ये केवल भारत को ही निर्यात होती हैं। ऐसे में पाकिस्‍तान
इन्‍हें दस
ू रे दे शों में निर्यात करने का रास्‍ता निकाल लेगा। हालांकि फलों को फौरी तौर पर दस
ू रे
दे शों में निर्यात करने के लिए में जरूार कुछ मश्कि
ु लें आ सकती हैं। इससे किसानों को घरे लू
मंडी में माल बेचना होगा, घरे लू बाजार में फल के कम दाम होंगे और घरे लू खपत बढ़े गी। जैसे
किसान का दध
ू बिकना कम हो जाये तो घर में बच्‍
चों को दध
ू अधिक मिलता है । इसका
पाकिस्‍तानी अर्थव्‍यवस्‍था पर विप‍रीत प्रभाव पड़ेगा, परं तु संकट जैसी स्थिति पैदा नहीं होगी।
इसलिए आयात कर की इस वद्धि
ृ का पाकिस्‍तान की अर्थव्‍यवस्‍था पर कोई विशेष प्रभाव पड़ने
की संभावना कम ही है ।

हालांकि पाकिस्‍तान की वित्‍तीय हालत पहले से ही खराब है , लेकिन इस कमजोर वित्‍तीय


स्थिति से भी पाकिस्‍तान टूटे गा नहीं। चीन और सउदी अरब ने पाकिस्‍तान को धन उपलब्‍ध
करा दिया है । अंतर्राष्‍ट्रीय मुद्रा कोष भी पाकिस्‍तान को धन उपलब्‍ध कराने के लिऐ तैयार है ।
सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस हाल में भारत आए थे। उन्‍होंने आतंकवाद के विषय में कुछ बातें
जरूर कहीं, लेकिन पाकिस्‍तान का नाम नहीं लिया जो कि उनके पाकिस्‍तान के समर्थन को ही
दर्शाता है । ऐसे हालात में हमें सिधंु जल समझौते को निरस्‍त करने पर गंभीरता से विचार
करना चाहिए। पाकिस्‍तान के पास कुल 1450 लाख एकड़ फुट नदी का पानी उपलब्‍
ध है । 1
लाख एकड़ फुट का अर्थ हुआ एक एकड़ भूमि पर 1 फुट जितना पानी उपलब्‍ध हो। इस 1450
लाख एकड जल में 1160 लाख एकड़ फुट पानी सिंधु ,झेलम और चिनाब नदियों से पाकिस्‍तान
को मिलता है , जो भारत से होकर ही बहती हैं। वर्षा के पानी को छोड़ दें तो नदियों से मिलने
वाले पानी का अस्‍सी प्रतिशत पानी पाकिस्‍तान को भारत से मिलता है । यही पानी सर्दी और
गर्मी में पाकिस्‍तान की कृषि, उ़द्योंगों और शहरों के काम आता है । यदि हम इस पानी को रोक
दें तो जल्‍द ही पाकिस्‍तान को घुटनों में लाया जा सकता है , लेकिन ऐसा करने में भारत और
पाकिस्‍तान के बीच हुआ सिंधु जल समझौता आड़े आता है । इसका भी रास्‍ता उपलब्‍ध है ।

अयोध्‍या के भूपति श्री दशरथ के ज्‍येष्‍ट पुत्र श्री रामचन्‍द्र जी ने रावण से घमासान यद्ध
ु में
उसकी नाभि में अमत
ृ को भेद ज्ञात हो जाने पर झटपट रथ पर चढ़कर अपने प्रचण्‍ड बाणों से
उसकी नाभि में ऐसा प्रहार किया जिससे कुछ ही क्षणों में उसके प्राण पखेरू कर दिये। ऋषियों
का कहना है कि ऐसा विद्यावान मनुष्‍
य अर्थात रावण की प्रकृति वाला व्‍यक्ति कभी सफल नहीं
हो सकता इसलिए मनुष्‍य कभी घमण्‍ड नहीं करना चाहिए।

अयोध्‍या के भूपति श्री दशरथ के ज्‍येष्‍ठ पुत्र श्री रामचन्‍द्र जी ने रावण से घमासान युद्ध में
उसकी नाभि में ऐसा प्रहार किया जिससे कुछ ही क्षणों में उसके प्राण पखेरू हो गये।
इसमें दो राय नहीं है कि राजनेताओं की हर गतिविधी के पीछे कहीं न क‍हीं चुनाव और वोट
की दृष्टि रहती है । यह अनचि
ु त भी नहीं, बशर्ते राजनीतिक दल या नेता मतदाताओं को मोहित
करने के लिए विकास का सहारा लें , जैसा अमेठी के मामले में प्रधानमंत्री नरें द्र मोदी ने किया।

कांग्रेस अध्‍यक्ष राहुल गांधी का संसदीय क्षेत्र अमेठी दशकों से गांधी नेहरू परिवार का गढ़ रहा,
पर इस क्षेत्र के विकास का हाल दे खकर ऐसा नहीं लगता। अमेठी ने अपने वीआइपी रूतबे की
बड़ी कीमत अपने विकास से चक
ु ाई। अटल जी के प्रधानमंत्री बनने के बाद उनके संसदीय क्षेत्र
लखनऊ का हुलिया बदल गया।
ंेकहि यसारी ंेकहि यसारी ंेकहि यसारी ंेकहि यसारी ंेकहि यसारी ंेकहि यसारी
ंेकहि यसारी ंेकहि यसारी ंेकहि यसारी ंेकहि यसारी ंेकहि यसारी ंेकहि यसारी
ंेकहि यसारी ंेकहि यसारी ंेकहि यसारी ंेकहि ंेकहि यसारी ंेकहि यसारी ंेकहि
यसारी ंेकहि यसारी ंेकहि यसारी ंेकहि यासरी ंेकहि यसारी ंेकहि यसारी ंेकहि
यसारी ंेकहि यसारी ंेकहि यसरी ंेकहि यसारी ंेकहि यसारी ंेकहि यसारी ंेकहि
यसारी ंेकहि यसारी ंेकहि यसारी ंेकहि यसारी ंेकहि यसरी ंेकहि यसारी ंेकहि
यसारी ंेकहि यसारी ंेकहि यसारी ंेकहि यसारी ंेकहि यसारी ंेकहि यसारी ंेकहि
यसारी ंेकहि यसारी ंेकहि यसारी ंेकहि यसारी ंेकहि यसारी ंेकहि यसारी ंेकहि
ंेकहि यसारी ंेकहि यसारी ंेकहि यसारी ंेकहि यसारी ंेकहि यसारी ंेकहि यसारी

क का की कि कु कू के कै को कौ कं क: ख खा खि खी खु खू खे खै खो खौ खं ख: ग गा गि
गी गु गू गे गै गो गौ गं ग: घ घा घि घी घु घू घे घै घो घौ घं घ: च चा चि ची चु चू चे चै चो
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अयोध्‍या के भप
ू ति श्री दशरथ के ज्‍येष्‍ठ पत्र
ु श्री रामचनद्र जी ने रावण से घमासान यद्ध
ु में
उसकी नाभि में अमत
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का कहना है कि ऐसा विद्यावान मनुष्‍
य अर्थात रावण की प्रकृति वाला व्‍यक्ति कभी सफल नहीं
हो सकता इसलिए मनष्ु ‍य को कभी घमण्‍ड नहीं करना चाहिए।

अयोध्‍या के भूपति श्री दशरथ के ज्‍येष्‍ठ पुत्र श्री रामचन्‍द्र जी ने रावण से घमासान युद्ध में
उसकी नाभि में अमत
ृ का भेद ज्ञात हो जाने पर झटझट रथ पर चढ़कर अपने प्रचण्‍ड बाणों से
उसकी नाभि में ऐसा प्रहार किया जिससे कुछ ही क्षणों में उसके प्राण पखेरू हो गये। ऋषियों
का कहना है कि ऐसा विद्यावान मनुष्‍
य अर्थात रावण की प्रकृति वाला व्‍यक्ति कभी सफल नहीं
हो सकता इसलिए मनुष्‍य को कभी घमण्‍ड नहीं करना चाहिए।

अध्‍यक्ष महोदय, हमारे दल ने असम राज्‍य की समस्‍या को जिस रूप में समझा है , उसको हमारे
दल के नेता ने इस सदन में अपने भाषण के समय स्‍मष्ट रूप से कह दिया है । मैं फिर से
उसी बात को दोहराना चा‍हता हूँ। मैं इस बात से परू ी तरह से सहमत हूँ कि यह समस्‍या एक
गम्‍भीर समस्‍या है और दे श की एकता के लिए, दे श की आर्थिक स्थिति के लिए यह एक कठिन
समस्‍या बनी हुई है । कुछ दल इस समस्‍या को और भी बढ़ाना चाहते हैं, इसमें कोई शक नहीं
है , लेकिन हमारा दल और हम लोग इस बात के खिलाफ हैं। आप और हम भी यह चाहते हैं कि
कुछ विदे शी शक्तियां, जिनकी चर्चा सदन में भी हो चक
ु ी है , ये सभी काम कर रही हैं। यह
समस्‍या केवल असम राज्‍य में है , बल्कि धीरे -धीरे यह दे श के अन्‍य कई राज्‍यों में भी पैदा हो
रही है । ऐसी विदे शी शक्तियों की यह इच्छा है कि दे श सदा के लिए अलग-अलग हिस्‍सों में बंट
जाए।

अध्‍यक्ष महोदय, इस बारे में हम सरकार के साथ हैं। हम अपने दे श की एकता, को किसी भी
कीमत पर भंग नहीं होने दें गे। इस सबके बावजद
ू , हमें यह जरूर सोचना चाहिए कि केन्‍द्र
सरकार ने ऐसे कौन से कदम उठाए हैं, जिनसे असम राज्‍य की इस समस्‍या को सुलझाने में
मदद मिली हो। इस सदन में मेरे एक माननीय सदस्‍य कह रहे थे कि असम की आर्थिक
स्थिति का लाभ उठाकर ये सभी शक्तियां वहां पर अपना काम कर रही हैं। मैं भी इस बात से
सहमत हूँ, लेकिन सरकार का भी कर्तव्‍य हो जाता है कि असम राज्‍य की आर्थिक स्थिति को
जितनी जल्‍दी हो सके सुधारा जाये, ताकि विदे शी शक्तिायां वहां की गरीब जनता से अनुचित
लाभ न उठा सकें। मुझे याद है , असम राज्‍य के मुख्‍यमत्र्ं ी जी ने बताया था कि असम राज्‍य के
जो उन्‍नति के साधन हैं, वे बड़े पैमाने पर बाहर चले जाते हैं और इस ओर उन्‍होंने केन्‍द्र
सरकार का ध्‍
यान भी आ‍कर्षित किया था, लेकिन उस समय केन्‍द्र सरकार ने, मख्
ु ‍यमंत्री जी की
इस बात की ओर विशेष ध्‍यान नहीं दिया। इसी तनह से यदि आप दें खे तो असम राज्‍य की
और भी विकास योजनाओं की तरफ विशेष ध्‍यान नहीं दिया गया। यही कारण है कि असम
राज्‍य का अब तक उतना विकास नहीं हुआ जितना कि होना चाहिए। असम के विकास में अभी
समय लगेगा।

ंेकहि यसारी ंेकहि यसारी ंेकहि यसारी ंेकहि यसारी ंेकहि यसारी ंेकहि यसारी
ंेकहि यसारी ंेकहि यसारी ंेकहि यसारी ंेकहि यसारी ंेकहि यसारी ंेकहि यसारी
ंेकहि यसारी ंेकहि यसारी ंेकहि यसारी ंेकहि ंेकहि यसारी ंेकहि यसारी ंेकहि
यसारी ंेकहि यसारी ंेकहि यसारी ंेकहि यासरी ंेकहि यसारी ंेकहि यसारी ंेकहि
यसारी ंेकहि यसारी ंेकहि यसरी ंेकहि यसारी ंेकहि यसारी ंेकहि यसारी ंेकहि
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अयोध्‍या के भूपति श्री दशरथ के ज्‍येष्‍ठ पुत्र श्री रामचनद्र जी ने रावण से घमासान युद्ध में
उसकी नाभि में अमत
ृ का भेद ज्ञात हो जाने पर झटपट रथ पर चढ़कर अपने प्रचण्‍ड बाणों का
उसकी नाभि में ऐसा प्रहार किया जिससे कुछ ही क्षणों में उसके प्राण पखेरू हो गये। ऋषियों
का कहना है कि ऐसा विद्यावान मनुष्‍
य अर्थात रावण की प्रकृति वाला व्‍यक्ति कभी सफल नहीं
हो सकता इसलिए मनुष्‍य को कभी घमण्‍ड नहीं करना चाहिए।

अयोध्‍या के भूपति श्री दशरथ के ज्‍येष्‍ठ पुत्र श्री रामचन्‍द्र जी ने रावण से घमासान युद्ध में
उसकी नाभि में अमत
ृ का भेद ज्ञात हो जाने पर झटझट रथ पर चढ़कर अपने प्रचण्‍ड बाणों से
उसकी नाभि में ऐसा प्रहार किया जिससे कुछ ही क्षणों में उसके प्राण पखेरू हो गये। ऋषियों
का कहना है कि ऐसा विद्यावान मनष्ु ‍
य अर्थात रावण की प्रकृति वाला व्‍यक्ति कभी सफल नहीं
हो सकता इसलिए मनुष्‍य को कभी घमण्‍ड नहीं करना चाहिए।
प्रतिलेखन संख्‍या -29

अध्‍यक्ष जी राष्‍ट्रपति के अभिभाषण पर काफी सदस्‍यों ने अपने विचार प्रकट किए हैं। राष्‍ट्रपति
जी के अभिभाषण में राष्‍ट्रपति जी का अपना कोई विचार नहीं होता। सरकार जो कुछ लिखकर
दे ती है , वही उन्‍हें बोलना पड़ता है । वे तो विराम को भी बदल नहीं सकते हैं। किसी भी सरकार
को यह अधिकार है कि वह अपनी सफलता पर खूब खुशी मनावे, लेकिन प्रश्‍न यह उठता है कि
जब दे श की स्थिति खराब होती है तो क्‍या यह कांग्रेस वालों के लिए नहीं होती। वास्‍तव में
दे श की स्थिति जब खराब होगी तो कांग्रेस वालों के लिए भी खराब होगी। मंहगाई जब
आसमान को छुने लगती है तो आप यह दावा नहीं कर सकते कि इससे सिर्फ दस
ू रे लोगों को
ही हानि होगी, कांग्रेस वालों को हानि नहीं होगी। आप खुशी मना लें कि कीमते गिरने लगी हैं,
लेकिन वास्‍तव में हो क्‍या रहा है । थोड़े ही दिनों में कीमते फिर से बढ़ने लगी हैं।

आप जानते हैं कि दे श में सुरक्षा कि स्थिति बढ़ती जा रही है । जहां-जहां अनेक दं गे हुए हैं।
उससे लोगों के अन्‍दर डर की भावना प्रकट हो गयी है । कमजोर वर्ग के साथ जो अत्‍याचार बढ़
रहा है , उससे किसी भी समाज को सिर नीचा कर लेना पड़ेगा। आशा की जाती थी कि राष्‍ट्रपति
के इस भाषण के द्वारा सरकार दे श को विश्‍वास दिलायेगी कि आप ठोस कदम उठाने वाले हैं,
जिससे मंहगाई रोकी जा सके, लोगों के दिल में डर को मिटाया जा सके। उनसे बार-बार यह
कहा जाये कि दे श के प्रति तुम वफादार हो, इसका प्रमाण पेश करो, लेकिन यह कुछ नहीं कहा
गया। दाम बढ़ रहे हैं दे श की आर्थिक स्थिति बिगड़ रही है । उसको सध
ु ारा जा सकता है , लेकिन
दे श का नैतिक पतन हो जाए तो जल्‍दी नहीं सध
ु ार जा सकता है । बड़े द:ु ख की बात है ‍कि
कानून और सरकार का आदर दे श में खत्‍म होता जा रहा है । कानून का लोगों के दिलों में कोई

डर नहीं है , सरकार के लिए कोई आदर नहीं है । मैं दरू की बात नहीं कहॅूगा। सदन के सदस्‍य
समझें कि दिल्‍ली में क्‍या हो रहा है । पहले चोरी- डकैती रात को होती थी, परन्‍तु आज हालत
क्‍या है । आज चोरी-डकैती राजधानी में दिन में होती है । इसका अर्थ क्‍या है । आपको सोचने के
लिए क्‍या विवश नहीं होना पड़ता है ।

आज समाज के हर वर्ग में क्रोध की हालत पैदा हो गई है । क्‍या आपको यह मजबूर नहीं करता
है कि इस बार विचार करें और सदन के सामने बताऐं कि इस क्रोध को कम करने के लिए
आप कौन से कदम उठा रहे हैं। आपके चुप रह जाने से काम नहीं चलेगा। क्रोध इससे और भी
बढ़े गा। मैं धमकी नहीं दे ना चाहता, लेकिन राजनीति का कोई भी आदमी जानता है कि क्रोध
जब बढ़ जाता है तो वह बगावत में बदल सकता है । यह बढ़े सौभाग्‍य की बात है कि यहां
बगावत नहीं हुई है । हम दे खते हैं‍कि जब भी कोई व्‍यक्ति बगावत करता है तो वह अपना
मानसिक सुतुलन खोने लगता है । अत: सभी को चाहिए कि मानसिक सुतुलन नहीं खोना
चाहिए।

अयोध्‍या के भूपति श्री दशरथ के ज्‍येष्‍ठ पुत्र श्री रामचन्‍द्र जी ने रावण से घमासान युद्ध में
उसकी नाभि में अम ृ ्त का भेद ज्ञात हो जाने पर झटपट रथ पर चढ़कर अपने प्रचण्‍ड बाणों से
उसकी नाभि में ऐसा प्रहार किया जिससे कुछ ही क्षणों में उसके प्राण पखेरू हो गये। ऋषियों
का क‍
हना है कि ऐसा विद्यावान मनुष्‍
य अर्थात रावण की प्रकृति वाला व्‍यक्ति कभी सफल नहीं
हो सकता है इसलिए मनुष्‍य को कभी घमण्‍ड नहीं करना चाहिए।

मैं अब अधिक कुछ न कहकर केवल इतना कहूंगा कि भाषा का प्रयोग करते समय आप यह
ध्‍यान में रखें कि उसमें विद्वता की जरूरत से ज्‍यादा चमक तो नहीं, कहीं ऐसा तो नहीं कि
आप जिसके लिए वह कर रहे हैं वह उसके लिए उपयोग की वस्‍तु न रहकर पाडिण्‍त्य
‍ - प्रदर्शन
की वस्‍तु हो जाए। सच्‍चा पंडित वही है जो अपने पाण्डित्‍य को दबाकर उस चीज को आगे रख
सके जिससे कि वास्‍तविक लक्ष्‍य प्राप्‍त करने में आसानी हो जाये। मुझे विश्‍वास है कि प्रशिक्षण
के दौरान भी इस बात पर जोर दिया जाता होगा और आप लोग भी यह समझकर चलते होंगे
कि केवल कठिन शब्‍दों की जानकारी से यह तय नहीं किया जा सकता है कि आपको भाषा का
कितना अधिक ज्ञान है । सारे संसार में वही भाषाऐं आगे बढी हैं, जिनमें और भाषाओं को जानने
की शक्ति है , औरों को साथ लेकर चलने का साहस है

जब मैं पहली बार चन


ु कर भारत की संसद में आया तो मेरी अजीब दशा हुई। कभी-कभी मैं
सोचता कि मैं इंगलिस्‍तान की संसद में हॅू या भारत की संसद में । यहां प्रत्‍येक व्‍यक्ति अपने
आप को अंग्रेजीदा कहकर , कहलवाकर , अपने प्रतिष्‍ठा बढ़ाना चाहता है और अपनी भाषा
जानने वाला व्‍यक्ति छोटे पन के एहसास में फंसा हुआ है । इसलिए जरूरत इस बात की है कि
हम राष्‍ट्र-ध्‍वज और राष्‍ट्र-गीत की भांति ही राष्‍ट्र भाषा को सम्‍मान दें । हम अपनी भाषा का
महत्‍व समझें, हमें अपनी भाषा से प्‍यार हो, अपनी भाषा में बोलें, अपनी भाषा में प्रेम के गीत गा
सकें और जब भी कोई अपनी भाषा में बोले तो हमें उससे मोहब्‍बत होनी चाहिए। हमारे परिवार
के जो लोग उनसे आगे बढ़ जाना चाहते हैं। इसलिए हमें परिवार के उन बंधओ
ु ं को सीने से
लगाना होगा और उन्‍हें बताना होगा कि हम लोग उन्‍हें छोड़कर नहीं बढ़ना चाहते हैं।

अयोध्‍या के भप
ू ति श्री दशरथ के ज्‍येष्‍ठ पत्र
ु श्री रामचन्‍द्र जी ने रावण से घमासान यद्ध
ु में
उसकी नाभि में अमत
ृ का भेद ज्ञात हो जाने पर झटपट रथ पर चढ़कर अपने प्रचण्‍ड बाणों से
उसकी नाभि में ऐसा प्रहार किया जिससे कुछ ही क्षणों में उसके प्राण पखेरू हो गये। ऋषियों
का कहना है कि ऐसा विद्यावान मनुष्‍
य अर्थात रावण की प्रकृति वाला व्‍यक्ति कभी सफल नहीं
हो सकता है इसलिए मनष्ु ‍य को कभी घमण्‍ड नहीं करना चाहए।

सभापति महोदय, एक सवाल इस सदन में बार-बार उठाया जाता है कि शिक्षा को नौकरी करने
के उद्देश्‍य से दिया जाना चाहिए। शिक्षा को उद्योग के उद्देश्‍य से दिया जाना चाहिए और शिक्षा
को ज्ञान प्राप्ति के उद्देश्‍य से दिया जाना चाहिए। यह ठीक है लेकिन मैं जानना चाहूंगा कि
अपनी सरकार का सुझाव किस ओर है । मैं प्रार्थना करुं गा कि मंत्री जी अपने भाषण में
मार्गदर्शन करें कि कहां तक शिक्षा नौकरी के उद्दश्‍य से है । कहां तक शिक्षा ज्ञान के उद्देश्‍य से
है और कहां तक उद्योग के उद्देश्‍य से। आज हम अपने विद्यालयों में उची शिक्षा दे रहे हैं।
लकिन ऐसी ऊंची शिक्षा दे कर भी हम क्‍लर्क पैदा कर रहे हैं। अगर इतनी शिक्षा दे कर भी हमें
क्‍लर्क बनना है तो क्‍यों नहीं विद्यालयों में बच्‍चों को ऐसा प्रशिक्षण दिया जाये जिससे वे
हिसाब-किताब कर सकें। जब से भारत स्‍वतंत्र हुआ है तब से प्रौढ़ शिक्षा का प्रचलन कभी कम
हुआ और कभी ज्‍यादा।

अयोध्‍या के भूपति श्री दशरथ के ज्‍येष्‍ठ पुत्र श्री रामचन्‍द्र जी ने रावण से घमासान युद्ध में
उसकी नाभि में अमत
ृ का भेद ज्ञात हो जाने पर झटपट रथ पर चढ़कर अपने प्रचण्‍ड बाणों से
उसकी नाभि मे ऐसा प्रहार किया जिससे कुछ ही क्षणों में उसके प्राण पखेरू हो गये। ऋषियों
का कहना है कि ऐसा विद्यावान मनुष्‍
य अर्थात रावण की प्रकृति वाला व्‍यक्ति कभी सफल नहीं
हो सकता है इसलिए मनुष्‍य को कभी घमण्‍ड नहीं करना चाहिए।
अयोध्‍या के भूपति श्री दशरथ के ज्‍येष्‍ट पु श्री रामचन्‍द्र जी ने रावण से घमासान यु में उसकी
नाभि में अमत
ृ का भेद ज्ञात हो जाने पर झटपट रथ पर चढ़कर अपने प्रचण्‍ड बाणों से उसकी
नाभि में ऐसा प्रहार किया जिससे कुछ ही क्षणों में उसके प्राण पखेरू हो गये षियों का कहना है
कि ऐसा विद्यावान मनुष्‍य अर्थात रावण की प्रकृति वाला व्‍यक्ति कभी सफल नहीं हाक सकता
है इसलिए मनुष्‍य को कभी घमण्‍ड नहीं करना चाहिए

अयोध्‍या के भूपति श्री दशरथ के ज्‍येषठ पुत्र श्री रामचन्‍द्र जी ने रावण

कार कार कार कार कार कार कार कार कार कार कार कार कार कार कार कार कार कार कार
काक काक काक काक काक काक काक काक काक काक काक काक काक काक काक काक
सार सार सार सार सार सार सार सार सार सार सार सार सार सार सार सार सार सार सार
सिंह सिंह सिंह सिंह सिंह सिंह सिंह सिंह सिंह सिंह सिंह सिंह सिंह सिंह सिंह सिंह सिंह सिंह
हार हार हार हार हार हार हार हार हार हार हार हार हार हार हार हार हार हार हार हार हार
राय राय राय राय राय राय राय राय राय राय राय राय राय राय राय राय राय राय राय राय
रं क रं क रं क रं क रं क रं क रं क रं क रं क रं क कोरा कोरा कोरा कोरा कोरा कोरा कोरा कोरा कोरा
हरि हरि हरि हरि हरि हरि हरि हरि हरि हरि हारे हारे हारे हारे हारे हारे हारे हारे हारे हारे हारे
हारे सेक सेक सेक सेक सेक सेक सेक सेक सेक कही कही कही कही कही कही कही कही कही
कही कही सहारा सहारा सहारा सहारा सहारा सहारा सहारा सहारा सहारा सहारा सहारा सहारा
रही रही रही रही रही रही रही सीर सीर सीर सीर सीर सीर सीर सीर सीर सीर सीर सीर सीर
राह राह राह राह राह राह राह राह राह राह राह राह रास रास रास रास रास रास किस किस
किस किस किस किस सिर सिर सिर सिर सिर सिर सिर सही सही सही सही सही सिहर सिहर
सिहर सिहर सिहर सिहर हं स हं स हं स हं स हं स हं सहं स रहस रहस रहस रहस रहस रहस रहस
रहस रहस रहस रहस रहस रहस रहस सरस सरस सरस सरस सरस सरस सरस सरस सरस
हे र हे र हे र हे र हे र हे र हे र हे र कंकर कंकर कंकर कंकर कंकर कंकर कंकर कंकर कंकर कंकर
किया किया किया किया किया किया किया रिहा रिहा रिहा रिहा रिहा सारी सारी राही राही
हिंसक हिंसक हिंसक हिंसक हिंसक हिंसक सराय सराय सराय सराय सराय सराय सराय केसर
केसर केसर केसर केसर केसर केसर किसी किसी किसी किसी किसी किराया किराया किराया
किराया किराया किराया किराया किराया कोर कोरा कोरा कोरा कोरा सरकार सरकार सरकार
सरकार सरकार सरकार सरकार सरकार सरकार सरकार जल जल जल जल जल तल तल तल
तल वन वन वन वन वन जय जय जय जय मत मत मत मत मत तज तज तज तज तज
तज तज वन वन वन वन वन वन तन तन तन तन तन मन मन मन मन मन मन पल पल
पल पल नल नल नल नल पल कल कल कल कल कल लय लय लय लय लय सच सच सच
सच सच सच सच सच मून मून मून मून मून मून मून चुन चुन चुन चुन चुन तिलक तिलक
तिलक तिलक तिलक तिलक तिलक तिलक तिलक तिलक माया माया माया माया माया माया
सरु सरु सरु सरु सरु सरु सरु सरु कुल कुल कुल कुल कुल कुल कुल सन
ु ना सन
ु ना सन
ु ना सन
ु ना
करम करम करम करम करम करम करम करम करम मकर मकर मकर मकर मकर सरल
सरल सरल सरल सरल सरल सरल सरल सरल पलक पलक पलक पलक पलक पलक पलक
पलक सकल सकल सकल सकल सकल सकल सकल सकल सकल सकल चयन चयन चयन
चयन चयन चयन चयन चयन चयन चयन पावस पावस पावस पावस पावस पावस पावस
पावस कूकत कूकत कूकत कूकत कूकत कूकत कूकत कूकत कूकत हरित हरित हरित हरित
हरित हरित हरित हरित हरित हरित हरित हरित हरि‍त हरित हरित सार सरे सरि काम करने
के लिए वर्तमान युग में जिसे आधुनिक युग कहा जाता है । राष्‍ट्रीय राजमार्गों का एक विशेष
महत्‍व है । राजमार्गों न केवल परिवहन की द्रष्टि से बल्कि अर्थ व्‍यवस्‍था की सद्र
ु ढ़ करने में
महत्‍वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। भारत जैसे विकासशील दे श के लिए तो इनका महत्‍व और भी
अधिक है , क्‍योंकि हमाने यहॉ ं परिवहन के अन्य साधन पूरी तरह से विकसित नहीं हो पा रहे
हैं। प्राचीन काल से ही हमारे दे श में सड़कों के निर्माण को काफी महत्‍व दिया जाता रहा है
लेकिन स्‍वतंत्रता प्राप्ति के पश्‍चात्‍राष्‍ट्रीय राजमार्गों के विकास और विस्‍तार के कार्य में विशेष
तेजी आर्इ है ।
आज विज्ञान के क्षेत्र में जो प्रगति हो रही है , उससे परिवहन के अन्‍य साधनों का भी विकास
सम्‍भव हो पाया है । विमान एवं रे लगाडि़यॉ ं परिवहन के क्षेत्र में काफी महत्‍व रखती हैं, लकिन
राष्‍ट्रीय राजमार्ग इन सबके बावजद
ू परिवहन का प्रमख
ु साधन बने हुऐ हैं, कारण यह है कि
विमान एवं रे ल सेवा के विस्‍तार की सम्‍भावनाएँ सीमित हैं। इसलिए सरकार ने राजमार्गों के
विकास पर जोर दे कर ग्रामीण इलाकों में सड़कों की कमी है ।
किसी भी योजना या कार्यक्रम की सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि जनता का उसमें
कितना विश्‍वास है और कहां तक उसका सहयोग और समर्थन मिल रहा है । इसी उद्देश्‍य से
वर्तमान सरकार द्वारा ग्राम प्रधानों और ब्‍लाक प्रमख
ु ों के चन
ु ाव जो एक लम्‍बी अवधि से
किन्‍
हीं कारणों से नहीं हो पाये थे, कराये गये। ग्राम प्रधानों का यह चुनाव जिसमें लगभग 4
करोड़ 42 लाख मतदाताओं ने भाग लिया, गॉवं स्‍तर के बुनियादी जनतंत्र का सम्‍भ्‍वत: संसार का
सबसे बड़ा चुनाव था जो स्‍वयं में एक बड़ी उपलब्धि है ।

ग्रामीण जनता की खुशहाली और ग्रामीण अर्थ-व्‍यवस्‍था को सुद्रढ़ बनाने के उद्देश्‍य से 20 सूत्रीय


कार्यक्रम और विशेष रूप से एकीकृत ग्राम्‍य विकास योजना की सफलता के लिए वर्तमान
सरकार ने इन योजनाओं में ग्राम प्रधानों का सक्रिय सहयोग प्राप्‍त करने का निर्णय लिया तथा
इन योजनाओं का लाभ, पात्र और जरूरतमंद लोगों को मिले, यह सुनिश्चित करने के लिए
शासन द्वारा यह निर्णय लिया गया है कि एकीकृत ग्राम विकास योजनाओं के लिए सही
लाभाथ्यिों का चयन गॉवं सभाओं की खुली बैठकों में किया जाय।

अयोध्‍या के भूपति श्री दशरथ के ज्‍येष्‍ठ पुत्र श्री रामचनद्र जी ने रावण से घमासान युद्ध में
उसकी नाभि में अमत
ृ का भेद ज्ञात हो जाने पर अपने प्रचण्‍ड बाणों से ऐसा प्रहार किया जिससे
कुछ ही क्षणों में उसके प्राण पखेरू हो गये। ऋषियों का कहना है ‍कि ऐसा विद्यावान मनष्ु ‍य
अर्थात रावण कि प्रकृति वाला व्‍यक्ति कभी सफल नहीं हा सकता है । इसलिए कहा जाता है कि
मनुष्‍य को कभी घमण्‍ड नहीं करना चाहिए।

माननीय सभापति महोदय, मैं आपकी अनुमति से, शिक्षामंत्री जी ने जो प्रस्‍ताव सदन के सामने
प्रस्‍तुत किया है , उसका समर्थन करने के लिए खड़ा अवश्‍य हुआ हूं लेकिन क्‍या माननीय मंत्री
महोदय जी यह बताने की कृपा करें गें कि हमारे दे श में शिक्षा की नीति का आधार क्‍या है ।
शिक्षा की नीति में सबसे प्रमख
ु बातें क्‍या होनी चाहिए। इस सम्‍बन्‍ध में मेरे विचार इस प्रकार
हैं कि अपने दे श में वे तमाम बच्‍चे जो पढ़ना चाहते हैं या जिनके माता पिता पढ़ाना चाहते हैं
उनको शिक्षा प्राप्‍त करने का अवसर सुलभ होना चाहिए दस
ू री बात यह है कि हमारे दे श के
गरीब लोंगों के लिए शिक्षा सस्‍ती होनी चाहिए और तीसरी बात यह है कि शिक्षा मिलने के बाद
इस बात की गारन्‍टी होनी चाहिए कि जो लोग पढ़-लिख कर निकलें उनकों किसी न किसी
काम में लगाया जा सकें।

मेरा आशय यह है कि शिक्षा नीति को इन तीन कसौटियों को ध्‍यान में रखकर व्‍यवहार में
लाया जाना चाहिए। क्‍या शिक्षा नीति यहां की सस्‍ती है , क्‍या सभी को सुलभ है तथा क्‍या वह
रोजगार तलब है । मान्‍यवर इन तीन कसौटियों पर विचार करने के बाद हम इस निष्‍कर्ष पर
पहुंचेंगें और यह सदन भी इस निष्‍कर्ष पर पहुंचेगा कि न तो शिक्षा सुलभ है न सस्‍ती है और
न यह रोजगार तलब है । आज शिक्षा के अन्‍दर भी वर्ग बने हुऐ हैं। क्‍या शिक्षा हाई क्‍लास के
लोगों के लिए है जो कि इन लोगों को पब्लिक स्‍कूलों के माध्‍यम से दी जाती है और वहां पर
जो बच्‍
चे पढ़ते है उन पर कई सौ रूपये प्रति माह व्‍यय होता है ।

दस
ू री शिक्षा कामन विद्यार्थियों के लिए है , साधारण विद्यार्थियों के लिए है , साधारण
विद्यार्थियों का अर्थ है गावों के गरीब बच्‍
चे, जहां स्‍कूल में टाट पट्टी भी नहीं है तथा बैठने के
लिए भवन भी नहीं है , वहां पर किताब भी नहीं है , जहां पर ब्‍लैक बोर्ड भी नहीं है । इसके
अतिरिक्‍त इसमे से कुछ ऐसे स्‍कूल भी है जहां यदि जगह है तो वहां मास्‍टर नहीं है । इस
प्रकार यहां शिक्षा की यह दशा कर दी गई है एक शिक्षा उच्‍च वर्ग के बच्‍चों के लिए है तथा
एक शिक्षा साधारण वर्ग के लोगों के लिए है । इस तरह शिक्षा के क्षेत्र में हमारे दे श और प्रदे श
में जो अन्‍याय हो रहा है यह बात हमारे सामने कई वर्षों से चली आ रही है । कुछ दिनों से यह
चर्चा सदन में हो रही थी कि शिक्षा इस तरह निर्धारित की जाये कि उसमें एक समानता लाई
जाये और उसके लिए एक पाठयक्रम निर्धारित किया जाये।

काम करता है काम करना चाहिए काम करना है काम किया जाता है होता है कहता है कहता
है होता है होता है जा रहा है हो रहा है किया जा रहा है काम करने के लिए विचार विमर्श
होता है होता है होना है होना है कर करके करना करीब किनारे कम क्‍या किया किन किनने
किनका किनसे किनपर किनमें हम हमने हमारा हमे हमको तुम तुमने तुम्‍हारा तुम्‍हें तुमको

उस उसने उसका उसे उसको मैं मैंने मेरा मझ


ु े मझ
ु को उस उसने उसका उसे उसको कहां पैसा
पेसा पशु वास्‍तव अथवा वास्‍ते सर्वथा ऐसा आशा स्‍वत: इसलिए ईश्‍वर कम क्‍या किया कहता
कहना कहा कहा कहता कहना साधारण सारा सर्व सवेरा सिर्फ सुरू अर्थात अतिरिक्‍त उदाहरण
विचार विचार-विमर्श विचारणीय विचारार्थ प्रचार-प्रसार प्रचार और प्रसार यदि दाम दे दे ना दे ता
दिन दी दिया तथा ताईं तो तथापि ताकत वक्‍त किताब ताकि कभी कभीभी कभी-कभी

श्रीमन्‍, मैं यह कह रहा था कि यह तो एक वर्ग है जिसकी गरीबी हमें दरू करनी है , लेकिन दस
ू री
वर्ग कौन सा है जिसकी हमें गरीबी दरू करनी है , उस पर विचार करें । मेरे ख्‍याल से दस
ू री वर्ग
वह है जो कि दिन-रात हर समय मेहनत करता है और उसके बाद में भी उसे न्‍याय पर्ण
ू वेतन
नहीं मिल पाता है । यह बात जरूरी है कि मजदरू ों में भी कई वर्ग हैं। एक ऐसा मजदरू वर्ग है
जो बड़े-बड़े कारखानों में काम करता है , संगठित है , संघर्ष करता है , लड़ता है और दिन-रात
झगड़ता है , ऐसे मजदरू ों ने अपने लिए सारी सुविधायें प्राप्‍त कर ली हैं। कई जगह ऐसे मजदरू
को दो ढाई सौ रूपये महिाना मिलता है । लकिन इस मजदरू के साथ ही वह दस
ू रे मजदरू भी हैं
जिन्‍
हें एक दिन में 10 या 12 घंटे काम करने के बाद भी दो ढाई सौ रूपये भी नसीब में नहीं
मिलते हैं। मैं कहना चाहता हूं कि हमें इस असमानता को दरू करना चाहिए। बड़ी उं ची आवाज
में लोग कहते हैं कि जो बड़े- बड़े लोग हैं जिनके पास सारी दौलत है , सारी आर्थिक शक्ति
केन्‍द्रित है , जब तक उनको समाप्‍त नहीं किया जाता तब तक दे श में समाजवाद नहीं आ सकता
है । यह बात ठीक है । लेकिन हमें पहले उन लोगों की तरफ ध्‍यान दे ना चाहिए जो श्रमिक हैं
और श्रमिक होने के बाद भी आज सरकार के द्वारा उनके लिए कोई गम्‍भीर विचार नहीं किया
जा रहा है । आपकी जानकारी के लिए मैं एक उद्योग का उदाहरण दे ना चाहता हुं जिसमें पिछले
बीस सालों से मैं काम कर रहा हूं। वह उद्योग है बीड़ी बनाने वाले मजदरू ों का। यद्यपि बीड़ी
एक मामूली सी चीज दिखाई दे ती है और कई लोग जब बीड़ी की बात आती है तो उसे नफरत
की निगाह से दे खते हैं। मगर यह बात हमें नहीं भूलनी चाहिए कि हमारे दे श में बीड़ी का बड़ा
महत्‍व है । वह महत्‍व इसलिए है कि इसमें रोजगार के अवसर बहुत ज्‍यादा हैं। हमारे दे श में
लगभग 20 लाख से अधिक मजदरू बीड़ी उद्योग में काम करते हैं और अगर एक बीड़ी बनाने
वाले व्‍यक्ति पर आश्रित रहने वाले व्‍यक्ति का हिसाब लगाया जाये तो दो तीन लोगों के हिसाब
से लगभग 90 लाख लोगों का यह सवाल है । इस उद्योग में जो वेतन निर्धारित किया गया है ,
वह बहुत ही कम है । अत: सरकार को चाहिए कि इस उद्योग में कार्यरत मजदरू ों को वेतन
समान रूप से मिलना चाहिए।
अध्‍यक्ष महोदय, सब से पहले मैं दो तीन बातों के बारे में जिक्र करना चाहता हूं जो सदन में
उठाई गई हैं और जिन का अभी तक हमें मंत्री जी से कोई उत्‍तर नहीं मिला है । जहां तक
यतायात का सवाल है , वाहनों के द्वारा ही हमारी तरक्‍की हो सकती है और वाहनों के द्वारा ही
हम प्रगति कर सकते हैं। लकिन उसकी यह सरकार जितनी उपेक्षा कर रही है , उतनी शायद
दस
ू रे कामों की नहीं कर रही है । मैं पहले यह स्‍पष्‍ट कर दं ू कि हमारा दृष्टिकोंण प्रशंसा करने
का नहीं होता, हमारा दृष्टिकोण आलोचना का होता है जो अवगुण हैं उनहें बताने की कोशिश
करूंगा, जो गण
ु हैं उन्‍हें तो दस
ू री पार्टी के लोग बताएंगे, ऐसी प्रथा है ।

अब जहां यातायात का सवाल है , रे ल डिब्‍बों के संबध


ं में इस सदन में और बाहर भी बार-
बार इस चीज की मांग की गई है कि इस बारे में कुछ किया जाए क्‍योंकि आपके पास जितने
डिब्‍बें हैं उनकी भी सप्‍लाई आप बराबर नहीं कर पा रहे हैं।

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