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श्री कालभैरव स्तोत्र 

नमो भैरवदे वाय नित्यायानंद मर्त


ू ये । 
विधिशास्त्रांत मार्गाय वेदशास्त्रार्थ दर्शिने ॥ १ ॥ 
दिगंबराय कालाय नम: खट्वांग धारिणे ॥ 
विभूतिविल सद्भाल नेत्रायार्धेंदम
ु ोलिने ॥ २ ॥ 
कुमारप्रभवे तभ्
ु यं बटुकाय महात्मने । 
नमोs चिंत्य प्रभावाय त्रिशूलायुधधारिणे ॥ ३ ॥ 
नमः खड्गमहाधार ह्रतत्रैलोक्य भितये । 
पुरितविश्र्व विश्र्वाय विश्र्वपालायते नमः ॥ ४ ॥ 
भुतावासाय भूताय भूतानां पतये नमः । 
अष्टमर्ते
ू नमस्तभ्
ु यं कालकालायते नमः ॥ ५ ॥ 
कंकाला याति घोराय क्षेत्रपालाय कामिने । 
कलाकाष्ठादिरुपाय कालाय क्षेत्र वासीने ॥ ६ ॥ 
नमः क्षत्रजित तुभ्यं विराजे ज्ञानशालिने । 
विधानां गरु वे तभ्
ु यं निधीनांपतये नमः ॥ ७ ॥ 
नमः प्रपंच दोर्दंड दै त्यदर्प विनाशिने । 
निज भक्तजनोद्दाम हर्ष प्रवर दायिने ॥ ८ ॥ 
नमो दं भारिमख्
ु याय नामैश्र्वर्याष्ट दायिने । 
अनंत दःु ख संसार पारावारांत दर्शने ॥ ९ ॥ 
 नमो दं भाय मोहाय द्वेषायोच्चोटकारिणे । 
वशंकराय राजन्य मौलिन्यस्य निजांघ्रये ॥ १० ॥ 
नमो भक्तापदा हं त्रे स्मति
ृ मात्रार्थ दर्शिने । 
आनंदमूर्तये तुभ्यं स्मशान निलयायते ॥ ११ ॥ 
वेताळभत
ू कुश्मांड ग्रहसेवा विलासिने । 
दिगंबराय महते पिशाचाकृति शालिने ॥ १२ ॥ 
नमो ब्रह्मादिभिर्वंद्द पदरे णु वरायष
ु े । 
ब्रह्मादि ग्रास दक्षाय निःफलाय नमो नमः ॥ १३ ॥ 
नमः काशीनिवासाय नमो दं डकवासिने । 
नमोs नंत प्रबोधाय भैरवाय नमो नमः ॥ १४ ॥ 
 श्री कालभैरव स्तोत्र संपूर्णम ् ॥ श्री कालभैरवार्पणंs स्तु ॥ 
शभ
ु ं भवतु ॥ 

श्री स्वर्णाकर्षण भैरव स्तोत्र


।। श्री मार्क ण्डेय उवाच ।।

भगवन ् ! प्रमथाधीश ! शिव-तुल्य-पराक्रम !


पूर्वमुक्तस्त्वया मन्त्रं, भैरवस्य महात्मनः ।।
इदानीं श्रोतुमिच्छामि, तस्य स्तोत्रमनुत्तमं ।
तत ् केनोक्तं परु ा स्तोत्रं, पठनात्तस्य किं फलम ् ।।
तत ् सर्वं श्रोतमि
ु च्छामि, ब्रहि
ू मे नन्दिकेश्वर !।।

।। श्री नन्दिकेश्वर उवाच ।।


इदं ब्रह्मन ् ! महा-भाग, लोकानामुपकारक !
स्तोत्रं वटुक-नाथस्य, दर्ल
ु भं भुवन-त्रये ।।
सर्व-पाप-प्रशमनं, सर्व-सम्पत्ति-दायकम ् ।
दारिद्र्य-शमनं पुंसामापदा-भय-हारकम ् ।।
अष्टै श्वर्य-प्रदं नण
ृ ां, पराजय-विनाशनम ् ।
महा-कान्ति-प्रदं चैव, सोम-सौन्दर्य-दायकम ् ।।
महा-कीर्ति-प्रदं स्तोत्रं, भैरवस्य महात्मनः ।
न वक्तव्यं निराचारे , हि पुत्राय च सर्वथा ।।
शुचये गुरु-भक्ताय, शुचयेऽपि तपस्विने ।
महा-भैरव-भक्ताय, सेविते निर्धनाय च ।।
निज-भक्ताय वक्तव्यमन्यथा शापमाप्नुयात ् ।
स्तोत्रमेतत ् भैरवस्य, ब्रह्म-विष्णु-शिवात्मनः ।।
श्रण
ृ ष्ु व ब्रहि
ू तो ब्रह्मन ् ! सर्व-काम-प्रदायकम ् ।।
विनियोगः- ॐ अस्य श्रीस्वर्णाकर्षण-भैरव-स्तोत्रस्य ब्रह्मा ऋषिः, अनष्ु टुप ् छन्दः, श्रीस्वर्णाकर्षण-भैरव-दे वता, ह्रीं बीजं,
क्लीं शक्ति, सः कीलकम ्, मम-सर्व-काम-सिद्धयर्थे पाठे विनियोगः ।

ध्यानः-
मन्दार-द्रम
ु -मूल-भाजि विजिते रत्नासने संस्थिते ।
दिव्यं चारुण-चञ्चुकाधर-रुचा दे व्या कृतालिंगनः ।।
भक्तेभ्यः कर-रत्न-पात्र-भरितं स्वर्ण दधानो भश
ृ म्।
स्वर्णाकर्षण-भैरवो भवतु मे स्वर्गापवर्ग-प्रदः ।।

।। स्तोत्र-पाठ ।।
ॐ नमस्तेऽस्तु भैरवाय, ब्रह्म-विष्णु-शिवात्मने,
नमः त्रैलोक्य-वन्द्याय, वरदाय परात्मने ।।
रत्न-सिंहासनस्थाय, दिव्याभरण-शोभिने ।
नमस्तेऽनेक-हस्ताय, ह्यनेक-शिरसे नमः ।
नमस्तेऽनेक-नेत्राय, ह्यनेक-विभवे नमः ।।
नमस्तेऽनेक-कण्ठाय, ह्यनेकान्ताय ते नमः ।
नमोस्त्वनेकैश्वर्याय, ह्यनेक-दिव्य-तेजसे ।।
अनेकायुध-युक्ताय, ह्यनेक-सुर-सेविने ।
अनेक-गण
ु -यक्
ु ताय, महा-दे वाय ते नमः ।।
नमो दारिद्रय-कालाय, महा-सम्पत ्-प्रदायिने ।
श्रीभैरवी-प्रयक्
ु ताय, त्रिलोकेशाय ते नमः ।।
दिगम्बर ! नमस्तभ्
ु यं, दिगीशाय नमो नमः ।
नमोऽस्तु दै त्य-कालाय, पाप-कालाय ते नमः ।।
सर्वज्ञाय नमस्तुभ्यं, नमस्ते दिव्य-चक्षुषे ।
अजिताय नमस्तुभ्यं, जितामित्राय ते नमः ।।
नमस्ते रुद्र-पुत्राय, गण-नाथाय ते नमः ।
नमस्ते वीर-वीराय, महा-वीराय ते नमः ।।
नमोऽस्त्वनन्त-वीर्याय, महा-घोराय ते नमः ।
नमस्ते घोर-घोराय, विश्व-घोराय ते नमः ।।
नमः उग्राय शान्ताय, भक्तेभ्यः शान्ति-दायिने ।
गुरवे सर्व-लोकानां, नमः प्रणव-रुपिणे ।।
नमस्ते वाग ्-भवाख्याय, दीर्घ-कामाय ते नमः ।
नमस्ते काम-राजाय, योषित्कामाय ते नमः ।।
दीर्घ-माया-स्वरुपाय, महा-माया-पते नमः ।
सष्टि
ृ -माया-स्वरुपाय, विसर्गाय सम्यायिने ।।
रुद्र-लोकेश-पूज्याय, ह्यापदद्ध
ु ारणाय च ।
नमोऽजामल-बद्धाय, सुवर्णाकर्षणाय ते ।।
नमो नमो भैरवाय, महा-दारिद्रय-नाशिने ।
उन्मूलन-कर्मठाय, ह्यलक्ष्म्या सर्वदा नमः ।।
नमो लोक-त्रेशाय, स्वानन्द-निहिताय ते ।
नमः श्रीबीज-रुपाय, सर्व-काम-प्रदायिने ।।
नमो महा-भैरवाय, श्रीरुपाय नमो नमः ।
धनाध्यक्ष ! नमस्तुभ्यं, शरण्याय नमो नमः ।।
नमः प्रसन्न-रुपाय, ह्यादि-दे वाय ते नमः ।
नमस्ते मन्त्र-रुपाय, नमस्ते रत्न-रुपिणे ।।
नमस्ते स्वर्ण-रुपाय, सुवर्णाय नमो नमः ।
नमः सुवर्ण-वर्णाय, महा-पुण्याय ते नमः ।।
नमः शद्ध
ु ाय बद्ध
ु ाय, नमः संसार-तारिणे ।
नमो दे वाय गह्
ु याय, प्रबलाय नमो नमः ।।
नमस्ते बल-रुपाय, परे षां बल-नाशिने ।
नमस्ते स्वर्ग-संस्थाय, नमो भर्लो
ू क-वासिने ।।
नमः पाताल-वासाय, निराधाराय ते नमः ।
नमो नमः स्वतन्त्राय, ह्यनन्ताय नमो नमः ।।
द्वि-भुजाय नमस्तुभ्यं, भुज-त्रय-सुशोभिने ।
नमोऽणिमादि-सिद्धाय, स्वर्ण-हस्ताय ते नमः ।।
पूर्ण-चन्द्र-प्रतीकाश-वदनाम्भोज-शोभिने ।
नमस्ते स्वर्ण-रुपाय, स्वर्णालंकार-शोभिने ।।
नमः स्वर्णाकर्षणाय, स्वर्णाभाय च ते नमः ।
नमस्ते स्वर्ण-कण्ठाय, स्वर्णालंकार-धारिणे ।।
स्वर्ण-सिंहासनस्थाय, स्वर्ण-पादाय ते नमः ।
नमः स्वर्णाभ-पाराय, स्वर्ण-काञ्ची-सुशोभिने ।।
नमस्ते स्वर्ण-जंघाय, भक्त-काम-दघ
ु ात्मने ।
नमस्ते स्वर्ण-भक्तानां, कल्प-वक्ष
ृ -स्वरुपिणे ।।
चिन्तामणि-स्वरुपाय, नमो ब्रह्मादि-सेविने ।
कल्पद्रम
ु ाधः-संस्थाय, बहु-स्वर्ण-प्रदायिने ।।
भय-कालाय भक्तेभ्यः, सर्वाभीष्ट-प्रदायिने ।
नमो हे मादि-कर्षाय, भैरवाय नमो नमः ।।
स्तवेनानेन सन्तष्ु टो, भव लोकेश-भैरव !
पश्य मां करुणाविष्ट, शरणागत-वत्सल !
श्रीभैरव धनाध्यक्ष, शरणं त्वां भजाम्यहम ् ।
प्रसीद सकलान ् कामान ्, प्रयच्छ मम सर्वदा ।।

।। फल-श्रति
ु ।।
श्रीमहा-भैरवस्येदं, स्तोत्र सक्
ू तं स-ु दर्ल
ु भम ् ।
मन्त्रात्मकं महा-पण्
ु यं, सर्वैश्वर्य-प्रदायकम ् ।।
यः पठे न्नित्यमेकाग्रं, पातकैः स विमच्
ु यते ।
लभते चामला-लक्ष्मीमष्टै श्वर्यमवाप्नुयात ् ।।
चिन्तामणिमवाप्नोति, धेनुं कल्पतरुं ध्रुवम ् ।
स्वर्ण-राशिमवाप्नोति, सिद्धिमेव स मानवः ।।
संध्याय यः पठे त्स्तोत्र, दशावत्ृ त्या नरोत्तमैः ।
स्वप्ने श्रीभैरवस्तस्य, साक्षाद् भूतो जगद्-गुरुः ।
स्वर्ण-राशि ददात्येव, तत्क्षणान्नास्ति संशयः ।
सर्वदा यः पठे त ् स्तोत्रं, भैरवस्य महात्मनः ।।
लोक-त्रयं वशी कुर्यात ्, अचलां श्रियं चाप्नुयात ् ।
न भयं लभते क्वापि, विघ्न-भूतादि-सम्भव ।।
म्रियन्ते शत्रवोऽवश्यम लक्ष्मी-नाशमाप्नुयात ् ।
अक्षयं लभते सौख्यं, सर्वदा मानवोत्तमः ।।
अष्ट-पञ्चाशताणढ्यो, मन्त्र-राजः प्रकीर्तितः ।
दारिद्र्य-दःु ख-शमनं, स्वर्णाकर्षण-कारकः ।।
य येन संजपेत ् धीमान ्, स्तोत्र वा प्रपठे त ् सदा ।
महा-भैरव-सायुज्यं, स्वान्त-काले भवेद् ध्रुवं ।।

मूल-मन्त्रः- “ॐ ऐं क्लां क्लीं क्लूं ह्रां ह्रीं ह्रूं सः वं आपदद्ध


ु ारणाय अजामल-बद्धाय लोकेश्वराय स्वर्णाकर्षण-भैरवाय मम
दारिद्र्य-विद्वेषणाय श्रीं महा-भैरवाय नमः ।

भय को नष्ट करने वाले दे वता का नाम है भैरव


भैरव के होते है आठ प्रमख
ु रूप
किसी भी रूप की साधना बना सकती है महाबलशाली
भैरव की सौम्य रूप में करनी चाहिए साधना पज
ू ा
कुत्ता भैरव जी का वाहन है
कुत्तों को भोजन अवश्य खिलाना चाहिए
पूरे परिवार की रक्षा करते हैं भैरव दे वता
काले वस्त्र और नारियल चढाने से होते हैं प्रसन्न
भैरव के भक्त को तीनो लोकों में कोई नहीं हरा पता
जीवन के हर क्षेत्र में सफलता के लिए भैरव को चौमख
ु ा दीपक जला कर चढ़ाएं
भैरव की मूर्ती पर तिल चढाने से बड़ी से बड़ी बाधा भी नष्ट होती है
भैरव के मन्त्रों से होता है सारे दख
ु ों का नाश

भय नाशक मंत्र
ॐ भं भैरवाय आप्द्दुदारानाय भयं हन

उरद की दाल भैरव जी को अर्पित करें


पुष्प,अक्षत,धूप दीप से पूजन करें
रुद्राक्ष की माला से 6 माला का मंत्र जप करें
दक्षिण दिशा की और मुख रखें

शत्रु नाशक मंत्र


ॐ भं भैरवाय आप्द्दुदारानाय शत्रु नाशं कुरु

नारियल काले वस्त्र में लपेट कर भैरव जी को अर्पित करें


गग
ु ल
ु की धन
ू ी जलाएं
रुद्राक्ष की माला से 5 माला का मंत्र जप करें
पश्चिम कि और मुख रखें

जाद ू टोना नाशक मंत्र


ॐ भं भैरवाय आप्द्दुदारानाय तंत्र बाधाम नाशय नाशय

आटे के तीन दिये जलाएं


कपूर से आरती करें
रुद्राक्ष की माला से 7 माला का मंत्र जप करें
दक्षिण की और मुख रखे

प्रतियोगिता इंटरवियु में सफलता का मंत्र


ॐ भं भैरवाय आप्द्दुदारानाय साफल्यं दे हि दे हि स्वाहा:

बेसन का हलवा प्रसाद रूप में बना कर चढ़ाएं


एक अखंड दीपक जला कर रखें
रुद्राक्ष की मलका से 8 माला का मंत्र जप करें
पूर्व की और मुख रखें

बच्चों की रक्षा का मंत्र


ॐ भं भैरवाय आप्द्दुदारानाय कुमारं रक्ष रक्ष

मीठी रोटी का भोग लगायें


दो नारियल भैरव जी को अर्पित करें
रुद्राक्ष की माला से 6 माला का मंत्र जप करें
पश्चिम की ओर मख
ु रखें

लम्बी आयु का मंत्र


ॐ भं भैरवाय आप्द्दुदारानाय रुरु स्वरूपाय स्वाहा:
काले कपडे का दान करें
गरीबों को भोजन खिलाये
कुतों को रोटिया खिलाएं
रुद्राक्ष की माला से 5 माला का मंत्र जप करें
पूर्व की ओर मुख रखें

बल प्रदाता मंत्र
ॐ भं भैरवाय आप्द्दुदारानाय शौर्यं प्रयच्छ

काले रं ग के कुते को पालने से भैरव प्रसन्न होते हैं


कुमकुम मिला लाल जल बहिरव को अर्पित करना चाहिए
काले कम्बल के आसन पर इस मंत्र को जपें
रुद्राक्ष की माला से 7 माला मंत्र जप करें
उत्तर की ओर मख
ु रखें

सुरक्षा कवच का मंत्र


ॐ भं भैरवाय आप्द्दुदारानाय बज्र कवचाय हुम

भैरव जी को पञ्च मेवा अर्पित करें


कन्याओं को दक्षिणा दें
रुद्राक्ष की माला से 5 माला का मंत्र जप करें
पूर्व की ओर मुख रखें

श्री भैरव चालीसा

।। दोहा ।।

श्री गणपति, गुरु गौरिपद l प्रेम सहित धरी माथ।


चालीसा वंदन करौं l श्री शिव भैरवनाथ।।
श्री भैरव संकट हरण l मंगल करण कृपाल।
श्याम वरन विकराल वपु l लोचन लाल विशाल।।
जय जय श्री काली के लाला। जयति जयति कशी कुतवाला।।
जयति ‘बटुक भैरव’ भयहारी। जयति ‘काल भैरव’ बलकारी।।
जयति ‘नाथ भैरव’ विख्याता। जयति ‘सर्व भैरव’ सुखदाता।।
भैरव रूप कियो शिव धारण। भव के भार उतरन कारण।।
भैरव राव सुनी ह्वाई भय दरू ी। सब विधि होय कामना पूरी।।
शेष महे श आदि गुन गायो। काशी कोतवाल कहलायो।।
जटा-जुट शिर चंद्र विराजत। बाला, मुकुट, बिजयाथ साजत।।
कटी करधनी घुंघरू बाजत। धर्षण करत सकल भय भजत।।
जीवन दान दास को दीन्हो। कीन्हो कृपा नाथ तब चीन्हो।।
बसी रसना बनी सारद काली। दीन्हो वर राख्यो मम लाली।।
धन्य धन्य भैरव भय भंजन। जय मनरं जन खल दल भंजन।।
कर त्रिशल
ू डमरू शच
ु ी कोड़ा। कृपा कटाक्ष सय
ु श नहीं थोड़ा।।
जो भैरव निर्भय गन
ु गावत। अष्ट सिद्धि नवनिधि फल वावत।।
रूप विशाल कठिन दःु ख मोचन। क्रोध कराल लाल दहु ू ँ लोचन।।
अगणित भुत प्रेत संग दोलत। बं बं बं शिव बं बं बोलत।।
रुद्रकाय काली के लाला। महा कलाहुं के हो लाला।।
बटुक नाथ हो काल गंभीर। श्वेत रक्त अरु श्याम शरीर।।
करत तिन्हुम रूप प्रकाशा। भारत सुभक्तन कहं शुभ आशा।।
रत्न जडित कंचन सिंहासन। व्यग्र चर्म शुची नर्म सुआनन।।
तुम्ही जाई काशिही जन ध्यावही। विश्वनाथ कहं दर्शन पावही।।
जाया प्रभु संहारक सुनंद जाया। जाया उन्नत हर उमानंद जय।।
भीम त्रिलोचन स्वान साथ जय। बैजनाथ श्री जगतनाथ जय।।
महाभीम भीषण शरीर जय। रुद्र त्रयम्बक धीर वीर जय।।
अश्वनाथ जय प्रेतनाथ जय। स्वानारुढ़ सयचन्द्र नाथ जय।।
निमिष दिगंबर चक्रनाथ जय। गहत नाथन नाथ हाथ जय।।
त्रेशलेश भूतश
े चंद्र जय। क्रोध वत्स अमरे श नन्द जय।।
श्री वामन नकुलेश चंड जय। क्रत्याऊ कीरति प्रचंड जय।।
रुद्र बटुक क्रोधेश काल धर। चक्र तड
ंु दश पानिव्याल धर।।
करी मद पान शम्भू गण
ु गावत। चौंसठ योगिनी संग नचावत।।
करत ड्रिप जन पर बहु ढं गा। काशी कोतवाल अड़बंगा।।
दे य काल भैरव जब सोता। नसै पाप मोटा से मोटा।।
जानकर निर्मल होय शरीरा। मिटे सकल संकट भव पीरा।।
श्री भैरव भूतों के राजा। बाधा हरत करत शुभ काजा।।
ऐलादी के दःु ख निवारयो। सदा कृपा करी काज सम्भारयो।।
सुंदर दास सहित अनुरागा। श्री दर्वा
ु सा निकट प्रयागा।।
श्री भैरव जी की जय लेख्यो। सकल कामना पूरण दे ख्यो।।
।। दोहा ।।
जय जय जय भैरव बटुक स्वामी संकट टार।
कृपा दास पर कीजिये, शंकर के अवतार।।
जो यह चालीसा पढ़े , प्रेम सहित सत बार।
उस पर सर्वानंद हो, वैभव बड़े अपार।।

काशिकापुराधिनाथ कालभैरवं भजे ... !


अवंतिकापुराधिनाथ कालभैरवं भजे ... !!
जय जय श्री काल भैरव

ॐ श्री काल भैरवाय: नम:

ॐ नमो भैरव रुपाये भैरवाये नमो नमः ... l


नमो भद्र स्वरुपाये जग्दाद्ये नमो नमः ... ll

ll ॐ भू: भुव: स्व: श्री काल भैरवाय: साम्भ सदा शिवाय: नम: ll

।। अथ भैरव तांण्डव स्तोत्र ।।


ॐ चण्डं प्रतिचण्डं करधत
ृ दण्डं कृतरिपुखण्डं सौख्यकरम ् । लोकं सुखयन्तं विलसितवन्तं प्रकटितदन्तं नत्ृ यकरम ् ।।
डमरुध्वनिशंखं तरलवतंसं मधुरहसन्तं लोकभरम ् । भज भज भूतश
े ं प्रकटमहे शं भैरववेषं कष्टहरम ् ।।
चर्चित सिन्दरू ं रणभूविदरू ं दष्ु टविदरू ं श्रीनिकरम ् । किँकिणिगणरावं त्रिभुवनपावं खर्प्परसावं पुण्यभरम ् ।। करुणामयवेशं
सकलसुरेशं मुक्तशुकेशं पापहरम ् । भज भज भूतेशं प्रकट महे शं श्री भैरववेषं कष्टहरम ् ।।
कलिमल संहारं मदनविहारं फणिपतिहारं शीध्रकरम ् । कलुषंशमयन्तं परिभत
ृ सन्तं मत्तदृगन्ृ तं शुद्धतरम ् ।।
गतिनिन्दितहे शं नरतनदे शं स्वच्छकशं सन्मुण्डकरम ् । भज भज भूतश
े ं प्रकट महे शं श्रीभैरववेशं कष्टहरम ् ।।
कठिन स्तनकंु भं सुकृत सुलभं कालीडिँभं खड्गधरम ् । वत
ृ भूतपिशाचं स्फुटमद
ृ व
ु ाचं स्निग्धसुकाचं भक्तभरम ् ।।
तनुभाजितशेषं विलमसुदेशं कष्टसुरेशं प्रीतिनरम ् । भज भज भूतश
े ं प्रकट महे शं श्रीभैरववेशं कष्टहरम ् ।।
ललिताननचंद्रं सुमनवितन्द्रं बोधितमन्द्रं श्रेष्ठवरम ् । सुखिताखिललोकं परिगतशोकं शुद्धविलोकं पुष्टिकरम ् ।।
वरदाभयहारं तरलिततारं क्ष्युद्रविदारं तष्टि
ु करम ् । भज भज भूतश
े ं प्रकट महे शं श्रीभैरववेषं कष्टहरम ् ।।
सकलायुधभारं विजनविहारं सुश्रविशारं भष्ृ टमलम ् । शरणागतपालं मग
ृ मदभालं संजितकालं स्वेष्टबलम ् ।।
पदनूपूरसिंजं त्रिनयनकंजं गुणिजनरं जन कुष्टहरम ् । भज भज भूतश
े ं प्रकट महे शं श्री भैरव वेषं कष्टहरम ् ।।
मदयिँतुसरावं प्रकटितभावं विश्वसभ
ु ावं ज्ञानपदम ् । रक्तांशुकजोषं परिकृततोषं नाशितदोषं सन्मंतिदमम ् ।।
कुटिलभ्रकुटीकं ज्वरधननीकं विसरं धीकं प्रेमभरम ् । भज भज भूतश
े ं प्रकट महे शं श्रीभैरववेषं कष्टहरम ् ।।
परिर्निजतकामं विलसितवामं योगिजनाभं योगेशम ् । बहुमधपनाथं गीतसग
ु ाथं कष्टसन
ु ाथं वीरे शम ् । कलयं तमशेषं
भत
ृ जनदे शं नत्ृ य सरु े शं वीरे शम ् । भज भज भत
ू श
े ं प्रकट महे शं श्रीभैरववेषं कष्टहरम ् ।। ॐ

।। श्री भैरव तांण्डव स्तोत्रम ् सम्पूर्णम ् ।।

।। श्री महाकाल भैरवाष्टक स्तोत्रम ् ।।


ॐ यं यं यं यक्षरुपं दश दिशिवदनं भमि
ू कम्पायमानं, सं सं संहारमर्ति
ू शभ ु मक
ु ु टजटाशेखरं चन्द्रबिम्बम ् ।
दं दं दं दीर्धकायं विकृतनखमख
ु ं चोर्ध्वरोमं करालं, पं पं पं पापनाशं प्रणमत सततं भैरवं क्षेत्रपालम ् ।।
रं रं रं रक्तवर्णँ कटकटिततनुं तीक्ष्णदं ष्ट्राविशालं, घं घं घं घोरघोषं घघघघघटितं घर्घराघोरनादम ् ।
कं कं कं कालरूपं धगधगधगितं ज्वालितं कामदे हं, दं दं दं दिव्यदे हं प्रणमत सततं भैरवं क्षेत्रपालम ् ।।
लं लं लं लम्बदन्तं ललललललि
ु तं दीर्घजिह्वं करालं, धंू धंू धंू धम्र
ू वर्ण स्फुटविकृतमख
ु ं भासरु ं भीमरुपम ् ।
रुं रुं रुं रुण्डमालं रुधिरमयमुखं ताम्रनेत्रं विशालं, नं नं नं नग्नरुपं प्रणमत सततं भैरवं क्षेत्रपालम ् ।।
वं वं वं वायुवेगं प्रलयपरिमितं ब्रह्मरुपं स्वरुपं, खं खं खं खड्गहस्तं त्रिभुवननिलयं भास्करं भीमरुपम ् ।
चं चं चं चालयन्तं चलचलचलितं चालितं भत
ू चक्रं, मं मं मं मायकायं प्रणमत सततं भैरवं क्षेत्रपालम ् ।।
शं शं शं शंखहस्तं शशिकरधवलं पूर्णतेजः स्वरुपं, भं भं भं भावरुपं कुलमकुलकुलं मन्त्रमूर्ति स्वतत्वम ् ।
भं भं भं भूतनाथं किलकिलितवश्चारु जिह्वालुलन्तं, अं अं अं अन्तरिक्षं प्रणमत सततं भैरवं क्षेत्रपालम ् ।।
खं खं खं खड्गभेदं विषममत
ृ मयं काल-कालान्धकारं , क्षिं क्षिँ क्षिँ क्षिप्रवेगं दह दह दहनं नेत्रसन्धीप्यमानम ् ।
हूं हूं हुंकारशब्दं प्रकटितगहनं गर्जितं भूमिकम्पं, बं बं बं बाललीलं प्रणमत सततं भैरवं क्षेत्रपालम ् ।।
सं सं सं सिद्धयोगं सकलगण ु मयं दे वदे वं प्रसन्नं, पं पं पं पघनाभं हरिहरवदनं चन्द्रसर्या
ू ग्निनेत्रम ् ।
यं यं यं यक्षनाथं सततभयहरं सर्वदे वस्वरुपम,् रौँ रौँ रौँ रौद्ररुपं प्रणमत सततं भैरवं क्षेत्रपालम ् ।।
हं हं हं हं सघोषं हसितकहकहाराव रौद्राट्टहासं, यं यं यं यक्षरुपं शिरसि कनकजं मौकुटं सन्दधानम ् ।
रं रं रं रं ङरं ङ प्रहसितवदनं पिंगलं श्यामवर्णँ, सं सं सं सिद्धनाथं प्रणमत सततं भैरवं क्षेत्रपालम ् ।।
एवं वै भावयुक्तः प्रपठति मनुजो भैरवस्याष्टकं यो, निर्विघ्नं दःु खनाशं भवति भयहरं शाकिनीनां विनाशम ् ।
दस्यूनां व्याघ्रसर्पोद्भवजनितभियां जायते सर्वनाशः, सर्वे नश्यन्ति दष्ु टा ग्रहगणविषमा लभ्यते चेष्टसिद्धिः ।।
।। इति श्री महाकाल भैरव स्तोत्रम ् सम्पूर्णम ् ।।
 

खड्गं कपालं डमरुं त्रिशूलं हस्तांबुजे सन्दधतं त्रिणेत्रम ् ।


दिगम्बरं भस्मविभषि
ू ताङ्ग नमाम्यहं भैरवमिन्दच
ु ड
ू म ्॥

श्री भैरव तांण्डव स्तोत्र

।। अथ भैरव तांण्डव स्तोत्र ।।

ॐ चण्डं प्रतिचण्डं करधत


ृ दण्डं कृतरिपुखण्डं सौख्यकरम ् ।
लोकं सुखयन्तं विलसितवन्तं प्रकटितदन्तं नत्ृ यकरम ् ।। 
डमरुध्वनिशंखं तरलवतंसं मधुरहसन्तं लोकभरम ् । 
भज भज भूतश
े ं प्रकटमहे शं भैरववेषं कष्टहरम ् ।।
चर्चित सिन्दरू ं रणभवि
ू दरू ं दष्ु टविदरू ं श्रीनिकरम ् ।
किँकिणिगणरावं त्रिभुवनपावं खर्प्परसावं पण्
ु यभरम ् ।।
करुणामयवेशं सकलसुरेशं मुक्तशुकेशं पापहरम ् । 
भज भज भूतश
े ं प्रकट महे शं श्री भैरववेषं कष्टहरम ् ।।
कलिमल संहारं मदनविहारं फणिपतिहारं शीध्रकरम ् ।
कलष
ु श
ं मयन्तं परिभत
ृ सन्तं मत्तदृगन्ृ तं शद्ध
ु तरम ् ।।
गतिनिन्दितहे शं नरतनदे शं स्वच्छकशं सन्मण्
ु डकरम ् ।
भज भज भत
ू श
े ं प्रकट महे शं श्रीभैरववेशं कष्टहरम ् ।।
कठिन स्तनकंु भं सक
ु ृ त सल
ु भं कालीडिँभं खड्गधरम ् ।
वत
ृ भत
ू पिशाचं स्फुटमद
ृ व
ु ाचं स्निग्धसक
ु ाचं भक्तभरम ् ।।
तनुभाजितशेषं विलमसुदेशं कष्टसुरेशं प्रीतिनरम ् ।
भज भज भूतश
े ं प्रकट महे शं श्रीभैरववेशं कष्टहरम ् ।।
ललिताननचंद्रं सुमनवितन्द्रं बोधितमन्द्रं श्रेष्ठवरम ् ।
सुखिताखिललोकं परिगतशोकं शुद्धविलोकं पष्टि
ु करम ् ।।
वरदाभयहारं तरलिततारं क्ष्युद्रविदारं तुष्टिकरम ् ।
भज भज भूतश
े ं प्रकट महे शं श्रीभैरववेषं कष्टहरम ् ।।
सकलायुधभारं विजनविहारं सुश्रविशारं भष्ृ टमलम ् ।
शरणागतपालं मग
ृ मदभालं संजितकालं स्वेष्टबलम ् ।।
पदनप
ू रू सिंजं त्रिनयनकंजं गणि
ु जनरं जन कुष्टहरम ् ।
भज भज भत
ू श
े ं प्रकट महे शं श्री भैरव वेषं कष्टहरम ् ।।
मदयिँतस
ु रावं प्रकटितभावं विश्वसभ
ु ावं ज्ञानपदम ् ।
रक्तांशक
ु जोषं परिकृततोषं नाशितदोषं सन्मंतिदमम ् ।।
कुटिलभ्रकुटीकं ज्वरधननीकं विसरं धीकं प्रेमभरम ् ।
भज भज भूतश
े ं प्रकट महे शं श्रीभैरववेषं कष्टहरम ् ।।
परिर्निजतकामं विलसितवामं योगिजनाभं योगेशम ् ।
बहुमधपनाथं गीतसगु ाथं कष्टसुनाथं वीरे शम ् । 
कलयं तमशेषं भत
ृ जनदे शं नत्ृ य सुरेशं वीरे शम ् ।
भज भज भूतश
े ं प्रकट महे शं श्रीभैरववेषं कष्टहरम ् ।। 

ॐ।। श्री भैरव तांण्डव स्तोत्रम ् सम्पूर्णम ् ।।ॐ 

अस्ति कस्ति काळभैरव

कपाल मालकाकान्तं ज्वाला पावक लोचनम ् ।


कपालधरमत्यग्र
ु ं कलये कालभैरवम ् ।।

श्रीकालभैरव स्तोत्र
श्रीगणेशायनमः ।। दे वाःउचःु ।।
नमो भैरवदे वाय नित्ययानंदमूर्तये ।।
विधिशास्त्रान्तमार्गाय वेदशास्त्रार्थदर्शिने ।।1।।
दिगंबराय कालाय नमः खट्वांगधारिणे ।।
विभूतिविलसद्भालनेत्रायार्धेंदम
ु ालने ।।2।।
कुमारप्रभवे तुभ्यं बटुकायमहात्मने ।।
नमोs चिंत्यप्रभावाय त्रिशल
ू ायध
ु धारिणे ।।3।।
नमः खड्गमहाधारहृत त्रैलोक्य भीतये ।।
पूरितविश्वविश्वाय विश्वपालाय ते नमः ।।4।।
भत
ू ावासाय भत
ू ाय भत
ू ानां पतये नम ।।
अष्टमूर्ते नमस्तुभ्यं कालकालाय ते नमः ।।5।।
कं कालायातिघोराय क्षेत्रपालाय कामिने ।।
कलाकाष्टादिरूपाय कालाय क्षेत्रवासिने ।।6।।
नमः क्षेत्रजिते तुभ्यं विराजे ज्ञानशालने ।।
विद्यानां गुरवे तभ्
ु यं विधिनां पतये नमः ।।7।।
नमः प्रपंचदोर्दंड दै त्यदर्प विनाशने ।।
निजभक्त जनोद्दाम हर्ष प्रवर दायिने ।।8।।
नमो जंभारिमुख्याय नामैश्वर्याष्टदायिने ।।
अनंत दःु ख संसार पारावारान्तदर्शिने ।।9।।
नमो जंभाय मोहाय द्वेषायोच्याटकारिणे ।।
वशंकराय राजन्यमौलन्यस्त निजांध्रये ।।10।।
नमो भक्तापदां हं त्रे स्मति
ृ मात्रार्थ दर्शिने ।।
आनंदमूर्तये तभ्
ु यं श्मशाननिलयाय ् ते ।।11।।
वेतालभूतकूष्मांड ग्रह सेवा विलासिने ।।
दिगंबराय महते पिशाचाकृतिशालने ।।12।।
नमोब्रह्मादिभर्वंद्य पदरे णुवरायुषे ।।
ब्रह्मादिग्रासदक्षाय निःफलाय नमो नमः ।।13।।
नमः काशीनिवासाय नमो दण्डकवासिने ।।   
 नमोs नंत प्रबोधाय भैरवाय नमोनमः ।।14।।
श्री कालभैरवाष्टक
श्रीगणेशाय नम: ।।
दे वराज सेव्यमानपावनांध्वि पंकजं ।।
व्याल यज्ञसूत्रमें दश
ु ेखरं कृपा करम ् ।।
नारदादियोगिवन्ृ दवन्दितं दिगंबरं ।।
काशिकापुराधिनाथ कालभैरवं भजे ।।1।।
भानुकोटिभास्वरं भवाब्धि तारकं परं ।।
नीलकंठमीप्तितार्थदायकं त्रिलोचनम ् ।।
काल कालमम्बुजाक्षमक्षशूलमक्षरं ।।
काशिकापुराधिनाथ कालभैरवं भजे ।।2।।
शूलटं कपाशदण्डपाणिमादिकारणं ।।
श्यामकायमादिदे वमक्षरं निरामयम ् ।।
भीमविक्रमंप्रभुं विचित्र ताण्डवप्रियं ।।
काशिकापुराधिनाथ कालभैरवं भजे ।।3।।
भक्ति
ु मक्ति
ु दायकं  प्रशस्तचारुविग्रहं ।।
भक्तवत्सलंस्थितं समस्त लोकविग्रहं ।।
विनिक्वणन्मनोज्ञहे मकिंकिणी लसत्कटिं ।।
काशिकापरु ाधिनाथ कालभैरवं भजे ।। 4।।
धर्मसेतूपालकं त्वधर्म मार्गनाशकं ।।
कर्मपाशमोचकं सश
ु र्मदायकं विभंु ।।
स्वर्णवर्णशेषपाशशोभितांग मण्डलं ।।
काशिकापुराधिनाथ कालभैरवं भजे ।। 5।।
रत्नपादक
ु ाप्रभाभिरामपादयग्ु मकं ।।
नित्यमद्वितीयभिष्टदै वतं  निरं जनम।्‌ ।
मत्ृ यद
ु र्पनाशनं करालदं ष्ट्रमोक्षणं ।।
काशिकापुराधिनाथ कालभैरवं भजे ।। 6।।
अट्‍टहासभिन्नपद्मजाण्डकोशसंततिं ।।
  दृष्टिपातनष्टपापजालमुग्रशासनं ।।
अष्टसिद्धिदायकं कपालमालकन्धरं ।।
काशिकापुराधिनाथ कालभैरवं भजे ।। 7।।
भत
ू संघनायकं विशालकीर्ति दायकं ।।
काशिवासलोकपुण्यपापशोधकं विभूं ।।
नीतिमार्गकोविदं परु ातनं जगत्पतिं ।।
काशिकापुराधिनाथ कालभैरवं भजे ।। 8।।
काल भैरवाष्टकं पठन्ति ये मनोहरं ।।
ज्ञानमुक्ति साधनं विचित्र पुण्यवर्धनं ।।
शोक मोह दै न्य लोभ कोप ताप नाशनम ् ।।
प्रयान्ति कालभैरवांध्रिस
ं न्निधिं नराध्रुवम ् ।।
काशिकापुराधिनाथ कालभैरवं भजे ।। 9।।
श्रीमत ् शंकराचार्य विरचित कालभैरवाष्टक संपूर्ण ।।
*  *  *

आरती काळभैरवाची
(चाल : आरती सप्रेम)
आरती ओवाळू भावे, काळभैरवाला ।।
दीनदयाळा  भक्तवत्सला, प्रसन्न हो मजला ।।
दे वा,  प्रसन्न हो मजला ।।ध।ृ ।
धन्य तुझा अवतार जगीं या, रौद्ररूपधारी ।
उग्र भयंकर भव्य मर्ती
ू परि, भक्तासी तारी ।
काशीक्षेत्री नास तुझा तूं, तिथला अधिकारी ।
तझि
ु या नामस्मरणे पळती, पिशाच्चादि भारी ।।
पळती, पिशाच्चादि भारी ।।आरती...।।1।।
उपासकां वरदायक होसी, ऐसी तव किर्ती ।
क्षुद्र जीवा मी अपराध्यांना, माझ्या नच गणती ।
क्षमा करावी कृपा असावी, सदै व मजवरती ।
मिलिंदमाधव म्हणे दे वा, घडो तुझी भक्ती ।।
दे वा, घडो तुझी भक्ती ।।आरती...।।2।।

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