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१॰ कलश-जल का माहा य
- ‘कलश’ के जल से म तक पर अभषेक करने से सभी कार क अभलाषा पूरी होती है।
– ‘कलश’ के जल को िपलाने से असमय म ‘गभ-पात’ नह होता है तथा ■ज ह गभ-धारण नह होता, उ ह लाभ होता है।
– ‘कलश’ के जल को वृ , फसल, गो-शाला आिद म डालने से वृ खूब फलरे-फूलते ह, फसल क वृ होती है और गाँए
पया मा ा म दधू देती ह।
– ‘कलश’ के जल को घर म छड़कने से ‘ ेत-बाधा‘ का िनवारण होता है।
– ‘कलश’ के जल को रोगी के म तक पर छड़कने से रोग का िनवारण होता है।
– ‘कलश’ के जल से म द बु वाले छा या छा ओं का अभषेक करने से ऊनक बु का िवकास होता है।
२॰ जय ती का माहा य
ऐसी जय ती, ■जसे ‘शारदीय नवरा ’ म ‘ह त-न ’ म बोया गया हो और ‘ वण न ‘ म काटा गया हो, उसका माहा य
िवभ काय म य देखा जा सकता है। यथा-
‘िवजयादशमी‘ के िदन माथे पर धारण करने से वष भर सभी े म िवजय ा होती है।
‘जय ती’ को य म मढ़ाकर गले अथवा भुजा पर धारण कर कोट आिद म जाने से िवजय- ाि होती है।
‘ ेत-बाधा- ■सत’ यि को ‘य ’ म मढ़ाकर धारण करवाने से ेत-बाधा शा त होती है।
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‘जय ती’ को कैश-बा स, मनी-बैग आिद म रखने से धन- ाि होती है।
धारण-िवध- ‘जय ती’ धारण करने के लये सोने, चाँदी, ता बे अथवा अ -धातु का ताबीज बनवाना चािहए। जय ती को
गंगा-जल से धोकर इसम रखकर ब द कर देना चािहए। इसके बाद य को पश करते हुए ‘ ाण- त ा-म ’ तीन बार
पढ़ना चािहए। तथा-
“ॐ आं यं रं लं वं शं षं सं ह हंसः य -राज य ाणा इह ाणाः। ॐ आं यं रं लं वं शं षं सं ह हंसः य -
राज य जीव इह थतः। ॐ आं यं रं लं वं शं षं सं ह हंसः य -राज य सव याण इह थतािन। ॐ आं
यं रं लं वं शं षं सं ह हंसः य -राज य वाङ् -मन वक्-च ुः ो -■ज ा- ाण-पाद-पायूप थािन इहैवाग य सुखं चरं
त तु वाहा।”
िफर ‘य का प ोपचार-पूजन कर लाल रेशमी धागे म गूँथ कर िन न म को पढ़ते हुए गले अथवा भुजा पर धारण करे।
नारी वाम-भुजा पइर और पु ष दािहनी भुजा पर धारण करे। धारण िकए हुए य को उतारना नह चािहए। धारण-म इस
कार है-
“जय ती मंगला काली, भ -काली कला लनी।
दगु ा मा शवा धा ी, वधा वाहा नमोऽ तु ते।।”
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