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सुंद र लोगः चार कविविताएँ

एकव

एकव िदन हमारे बच्चे हमसे जानना चाहेगे

हमने जो हत्याएँ कवीं उनकवा खून विे कवैसे धोएँ

हताश फाडेगे विे िकवताबों कवे पन्ने

जहाँ भी उल्लेख होगा हमारा

रोने कवो नहीं होगा हमारा कवंधा उनकवे पास

कवोई औचिचत्य नहीं समझा पाएँ गे हम

हमारे बच्चे विे बदला लेने कवो ढू ँढेगे हमे

पूछेगे सपनों मे हमे रोएँ तो कवहाँ रोएँ

हर िदन विे िजएँ गे स्मृतितयों कवे बोझ से थकवे

रात जागेगे दःु स्विप्नों से डर डर

कवई कवई बार नहाएँ गे िमटाने कवो कवत्थई धब्बे

जो हमने उनकवो िदए है

जीविन अनंत बीतेगा हमारी याद कवे िखलाफ

सोच सोच कवर िकव आगे कवैसे क्या बोएँ ।

दो

कवोई भूकवंप मे पेड कवे िहलने कवो कवारण कवहता है

कवोई िक्रिया प्रतितिक्रिया कवे विैज्ञािनकव िनयमों कवी दहु ाई देता है

हर रुप मे साँड साँड ही होता है

व्यथर हम उनमे सुनयनी गाएँ ढू ँढते है


साँड कवी नज़रों मे

मौत महज कवोई घटना है

इसिलए विह दनदनाता आता है

जब हम टी विी पर बैठे संतुष्ट होते है

सुन सुन सुंदर लोगों कवी उिक्तियाँ

इसी बीच नंदीग्राम बन जाता है गेरनीकवा

जीविनलाल जी

यह हमारे अंदर उन गिलयों कवी लडाई है

जो हमारी अंतिडयों से गुजरती है।

तीन

दौड रहा है आइन्स्टाइन एकव बार िफर

इस बार बिलर न नहीं अहमदाबाद से भागना है

िचंता खाए जा रही है

जो रह गया प्लांकव उसकवी िनयित क्या होगी

अनिगनत समीकवरण सापेक्ष िनरपेक्ष छूट रहे है

उन्मत्त साँड चीख रहा िकव विह साँड नहीं शेर है

िकवशोर िकवशोिरयाँ आतंिकवत है

प्रतेम कवे िलए अब जगह नहीं

साँड कवे पीछे चले है कवई साँड

लटकवते अंडकवोषों मे भगविा टपकवता जार जार

आतंिकवत है विे सब िजन्हे जीविन से है प्यार


बार बार पूविरजों कवी गलितयों कवो धो रहे है

डर ेस्डेन कवे फव्विारों मे

दौड रहा है आइन्स्टाइन एकव बार िफर

इस बार बिलर न नहीं अहमदाबाद से भागना है।

चार

ये जो लोग है

जो कवह देते है िकव हम इनसे दरू चले जाएँ

क्योंिकव हमारे सविाल उन्हे पसंद नहीं

ये लोग सुंदर लोग है

अत्याचारी राजाओं कवे दरबारी सुंदर होते है

दरबार कवी शानोशौकवत मे विे िछपा रखते है

जल्लादों कवो जो इनकवे सुंदर नकवाबों कवे पीछे होते है

धरती पर फैलता है दःु खों कवा लाविा

मौसम लगातार बदलता है

सुंदर लोग मशीनों कवे पीछे नाचते है

अपने दख
ु ों कवो िछपाने कवी कवोिशश कवरते है

सडकवों मैदानों मे हर ओर िदखता है आदमी

िफर भी सुंदर लोग जानना चाहते है िकव मनुष्य क्या है

सुंदर नकवाब कवे पीछे िछपे जल्लाद से झल्लाया प्रताणी

हर पल बेचन
ै हर पल उलझा

सच औचर झूठ कवी पहेिलयाँ बुनता


ये सुंदर लोग है

ये कवह देते है िकव हम इनसे दरू चले जाएँ

क्योंिकव हमारे सविाल उन्हे पसंद नहीं

ये लोग सुंदर लोग है।

(जनसत्ताः 2008)

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