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Harishankar Parsai Ki Vyangya Rachnaye
Harishankar Parsai Ki Vyangya Rachnaye
म-
बांितकार क कथा
प'वऽता का दौरा
पुिलस-मंऽी का पुतला
वह जो आदमी है न
नया साल
घायल बसंत
संःकृ ित
बारात क वापसी
मीटं ग काड7 और राशन काड7
हरशंकर परसाई के लेखन के उ;रण
उखड़े खंभे
भोलाराम का जीव
शम7 क बात पर ताली पीटना
'पटने-'पटने म> फक7
यस सर
बदचलन
एक अशु; बेवकूफ
भारत को चाहए जादगर
ू और साधु
भगत क गत
मुBडन
दो नाक वाले लोग
वकलांग ौ$ा का दौर
ू
अभी-अभी एक आदमी मेरे चरण छकर गया है । म2 बड़ तेजी से ौ$े य हो रहा हंू , जैसे
कोई चलतू औरत शाद के बाद बड़ फुत. से पितोता होने लगती है । यह हरकत मेरे
साथ पछले कुछ महनL से हो रह है क जब-तब कोई मेरे चरण छू लेता है । पहले ऐसा
नहं होता था। हॉं, एक बार हआ
ु था, पर वह मामला वहं रफा-दफा हो गया। कई साल
पहले एक साहO/यक समारोह म< मेर ह उॆ के एक सQजन ने सबके सामने मेरे चरण
छू िलए। वैसे चरण छना
ू अँलील कृ /य क तरह अकेले म< ह कया जाता है । पर वह
सQजन सावFजिनक Sप से कर बैठे, तो म2ने आसपास खड़े लोगL क तरफ गवF से दे खा-
ितलचTटL दे खो म2 ौ$े य हो गया। तुम िघसते रहो कलम। पर तभी उस ौ$ालु ने मेरा
पानी उतार दया। उसने कहा-, “अपना तो यह िनयम है क गौ, ॄाWण, कXया के चरण
ू ह2 ।” यानी उसने मुझे बड़ा लेखक नहं माना था। बZहन माना था।
जSर छते
ौ$े य बनने क मेर इ[छा तभी मर गई थी। फर म2ने ौ$े यL क दगF
ु ित भी
दे खी। मेरा एक साथी पी-एच.ड. के िलए रसचF कर रहा था। डॉ]टरे ट अ-ययन और
^ान से नहं, आचायF-कृ पा से िमलती है । आचाय_ क कृ पा से इतने डॉ]टर हो गए ह2 क
ब[चे खेल-खेल म< प/थर फ<कते ह2 तो कसी डॉ]टर को लगता है । एक बार चौराहे पर
यहॉं पथराव हो गया। पॉंच घायल अःपताल म< भत. हए
ु और वे पॉंचL हं द के डॉ]टर
थे। नसF अपने अःपताल के डॉ]टर को पुकारती: ‘डॉ]टर साहब’ तो बोल पड़ते थे ये
हं द के डॉ]टर।
ू के बहाने उनक टांग खींची है । लँगोट धोने के
म2ने खुद कुछ लोगL के चरण छने
बहाने लँगोट चुराई है । ौ$े य बनने क भयावहता म2 समझ गया था। वरना म2 समथF हंू ।
अपने आपको कभी का ौ$े य बना लेता। मेरे ह शहर म< कॉलेज म< एक अ-यापक थे।
उXहोने अपने नेम-cलेट पर खुद ह ‘आचायF’ िलखवा िलया था। म2 तभी समझ गया था
क इस फूहड़पन म< महानता के लGण ह2 । आचायF बंबईवासी हए
ु और वहॉं उXहोने अपने
को ‘भगवान रजनीश’ बना डाला। आजकल वह फूहड़ से शुS करके माXयता ूाcत
भगवान ह2 । म2 भी अगर नेम-cलेट म< नाम के आगे ‘पंडत’ िलखवा लेता तो कभी का
‘पंडतजी’ कहलाने लगता।
ू लगे ह2 ? यह ौ$ा एकाएक कैसे पैदा हो
सोचता हंू , लोग मेरे चरण अब ]यL छने
गई? पछले महनL म< म2ने ऐसा ]या कर डाला? कोई खास िलखा नहं है । कोई साधना
नहं क। समाज का कोई क5याण भी नहं कया। दाड़ नहं बढ़ाई। भगवा भी नहं
पहना। बुजुग. भी कोई नहं आई। लोग कहते ह2 , ये वयोवृ$ ह2 । और चरण छू लेते ह2 । वे
अगर कमीने हए
ु तो उनके कमीनेपन क उॆ भी 60-70 साल हुई। लोग वयोवृ$
कमीनेपन के भी चरण छू लेते ह2 । मेरा कमीनापन अभी ौ$ा के लायक नहं हआ
ु है ।
इस एक साल म< मेर एक ह तपःया है - टांग तोड़कर अःपताल म< पड़ा रहा हंू । हhड
जुड़ने के बाद भी ददF के कारण टांग फुत. से समेट नहं सकता। लोग मेर इस मजबूर
का नाजायज फायदा उठाकर झट मेरे चरण छू लेते ह2 । फर आराम के िलए म2 तiत पर
लेटा ह Qयादा िमलता हंू । तiत ऐसा प वऽ आसन है क उस पर लेटे दरा/
ु मा के भी
ू क ूेरणा होती है ।
चरण छने
]या मेर टांग म< से ददF क तरह ौ$ा पैदा हो गई है ? तो यह वकलांग ौ$ा है ।
ू चुक है । तभी मुझे भी
जानता हंू , दे श म< जो मौसम चल रहा है , उसम< ौ$ा क टांग टट
ू गई है । यह असमथF
यह वकलांग ौ$ा द जा रह है । लोग सोचते हLगे- इसक टांग टट
हो गया। दयनीय है । आओ, इसे हम ौ$ा दे द< ।
हां, बीमार म< से ौ$ा कभी-कभी िनकलती है । साह/य और समाज के एक सेवक
से िमलने म2 एक िमऽ के साथ गया था। जब वह उठे तब उस िमऽ ने उनके चरण छू
ू
िलए। बाहर आकर म2ने िमऽ से कहा- “यार तुम उनके चरण ]यL छने लगे?” िमऽ ने
कहा- “तुZह< पता नहं है , उXहे डायबटज हो गया है ?” अब डायबटज ौ$ा पैदा करे तो
ू टांग भी कर सकती है । इसम< कुछ अटपटा नहं है । लोग बीमार से कौन फायदे नहं
टट
उठाते। मेरे एक िमऽ बीमार पड़े थे। जैसे ह कोई ःऽी उXह< दे खने आती, वह िसर
पकड़कर कराहने लगते। ःऽी पूछती- “]या िसर म< ददF है ?” वे कहते- “हां, िसर फटा
पड़ता है ।” ःऽी सहज ह उनका िसर दबा दे ती। उनक प/नी ने ताड़ िलया। कहने लगी-
“]यL जी, जब कोई ःऽी तुZह< दे खने आती है तभी तुZहारा िसर ]यL दखने
ु लगता है ?”
उसने जवाब भी माकूल दया। कहा- “तुZहारे ूित मेर इतनी िनंठा है क परःऽी को
दे खकर मेरा िसर दखने
ु लगता है । जान ूीत-रस इतनेहु माहं।”
ौ$ा महण करने क भी एक विध होती है । मुझसे सहज ढं ग से अभी
ौ$ा महण नहं होती। अटपटा जाता हंू । अभी ‘पाटF टाइम’ ौ$े य ह हंू । कल दो आदमी
ू
आए। वे बात करके जब उठे तब एक ने मेरे चरण छने को हाथ बढ़ाया। हम दोनL ह
ू
नौिसखुए। उसे चरण छने ु
का अlयास नहं था, मुझे छआने का। जैसा भी बना उसने
चरण छू िलए। पर दसरा
ू आदमी द ु वधा म< था। वह तय नहं कर पा रहा था क मेरे
ु या नहं। म2 िभखार क तरह से दे ख रहा था। वह थोड़ा सा झुका। मेर आशा
चरण छए
उठm। पर वह फर सीधा हो गया। म2 बुझ गया। उसने फर जी कड़ा करके कोिशश क।
थोड़ा झुका। मेरे पांवL म< फड़कन उठm। फर वह असफल रहा। वह नमःते करके ह चला
ु चL के चरण छते
गया। उसने अपने साथी से कहा होगा- तुम भी यार कैसे ट[ ू हो। मेरे
ौ$ालु ने जवाब दया होगा- काम िनकालने को उ5लुओं से ऐसा ह कया जाता है । इधर
मुझे दन-भर लािन रह। म2 हनता से पीO़डत रहा। उसने मुझे ौ$ा के लायक नहं
ु
समझा। लािन शाम को िमट जब एक क व ने मेरे चरण छए। उस समय मेरे एक िमऽ
ू
बैठे थे। चरण छने के बाद उसने िमऽ से कहा, “म2ने साह/य म< जो कुछ सीखा है ,
परसाईजी से।” मुझे मालूम है , वह क व सZमेलनL म< हट
ू होता है । मेर सीख का ]या
यह नतीजा है ? मुझे शमF से अपने-आपको जूता मार लेना था। पर म2 खुश था। उसने
मेरे चरण छू िलए थे।
अभी क[चा हंू । पीछे पड़ने वाले तो पितोता को भी िछनाल बना दे ते ह2 । मेरे ये
ौ$ालु मुझे प]का ौ$े य बनाने पर तुले ह2 । प]के िस$-ौ$े य म2ने दे खे ह2 । िस$
मकर-वज होते ह2 । उनक बनावट ह अलग होती है । चेहरा, आंखे खींचने वाली। पांव ऐसे
क बरबस आदमी झुक जाए। पूरे य B/व पर ‘ौ$े य’ िलखा होता है । मुझे ये बड़े बौड़म
लगते ह2 । पर ये प]के ौ$े य होते ह2 । ऐसे एक के पास म2 अपने िमऽ के साथ गया था।
ु जो उXहLने वकट ठं ड म< भी ौ$ालुओं क सु वधा के िलए चादर
िमऽ ने उनके चरण छए
ु
से बाहर िनकाल रखे थे। म2ने उनके चरण नहं छए। नमःते करके बैठ गया। अब एक
चम/कार हआ।
ु होना यह था क उXह< हनता का बोध होता क म2ने उXह< ौ$ा के योय
नहं समझा। हआ
ु उ5टा। उXहLने मुझे दे खा। और हनता का बोध मुझे होने लगा- हाय
ू
म2 इतना अधम क अपने को इनके प वऽ चरणL को छने के लायक नहं समझता।
सोचता हंू , ऐसा बा-य करने वाला रोब मुझ ओछे ौ$े य म< कब आयेगा।
ौ$े य बन जाने क इस ह5क सी इ[छा के साथ ह मेरा डर बरकरार है । ौ$े य
बनने का मतलब है ‘नान परसन’-‘अय B’ हो जाना। ौ$े य वह होता है जो चीजL को
हो जाने दे । कसी चीज का वरोध न करे - जबक य B क, चरऽ क, पहचान ह यह
है क वह कन चीजL का वरोध करता है । मुझे लगता है , लोग मुझसे कह रहे ह2 - तुम
अब कोने म< बैठो। तुम दयनीय हो। तुZहारे िलए सब कुछ हो जाया करे गा। तुम कारण
नहं बनोगे। म]खी भी हम उड़ाएंगे।
और फर ौ$ा का यह कोई दौर है दे श म<? जैसा वातावरण है , उसम< कसी को
भी ौ$ा रखने म< संकोच होगा। ौ$ा पुराने अखबार क तरह रo म< बक रह है ।
वँवास क फसल को तुषार मार गया। इितहास म< शायद कभी कसी जाित को इस
तरह ौ$ा और वँवास से हन नहं कया गया होगा। Oजस नेत/ृ व पर ौ$ा थी, उसे
नंगा कया जा रहा है । जो नया नेत/ृ व आया है , वह उतावली म< अपने कपड़े खुद उतार
रहा है । कुछ नेता तो अंडर वयर म< ह ह2 । कानून से वँवास गया। अदालत से वँवास
छmन िलया गया। बु $जी वयL क नःल पर ह शंका क जा रह है । डॉ]टरL को बीमार
पैदा करने वाला िस$ कया जा रहा है । कहं कोई ौ$ा नहं वँवास नहं।
ू का मौसम नहं, लात मारने
अपने ौ$ालुओं से कहना चाहता हंू - “यह चरण छने
का मौसम है । मारो एक लात और बांितकार बन जाओ।”
सदाचार का तावीज
वैंणव क फसलन
वकलांग राजनीित
चुनाव के समय हर चीज का मह/व बढ़ जाता है । मेर टांग क कमत भी बढ़।
मुझे यह मुगालता है क मेर टांग म< ृे]चर हो गया था, यह खबर सारे वँव
म< फैल चुक है । मुझे यह सुखद ॅम न होता तो मेर टांग इतनी ज5द ठmक न होती।
यश क खुशफहमी का cलाःटर उपर से चढ़ा िलया था म2ने।
चुनाव ूचार जब गम. पर था, तब म2 सहारे से लंगड़ाकर चलने लगा था। म2 दखी
ु
ू टांग के कारण म2 जनतंऽ को भावी Sप नहं दे पा रहा हंू ।
था क टट
पर एक दन दो-तीन राजनीित के लोग मेरे पास आए। वे जनता पाट~ के थे।
पहले उXहLने बड़ िचंता से मेर त बयत का हाल पूछा। म2ने बताया, तब उXहLने कहा,
“जरा चार कदम चलकर बताव<गे।”
म2ने लंगड़ाते हए
ु चलकर बताया।
उन लोगL ने एक-दसरे
ू क तरफ दे खा।
एक ने कहा, “वेर गुड। इतने से काम चल जाएगा।”
दसरे
ू ने कहा, “लेकन टांग के बाहर कुछ चोट के िनशान भी दखने चाहए।”
तीसरे ने कहा, “कोई मुOँकल नहं है । हम ह5के से कुछ घाव बना द< गे।
परसाईजी को तकलीफ भी नहं होगी। उपर से पTट बांध द< गे।”
मैने कहा, “आप लोगL क बात मेर समझ म< नहं आ रह।”
उXहLने कहा, “हम आपसे एक ूाथFना करने आए ह2 । आप ूबु$ आदमी ह2 । आप
जानते ह ह2 क यह ऐितहािसक चुनाव है । तानाशह और जनतंऽ म< संघषF है । इस
सरकार ने नागरक अिधकार छmन िलए ह2 । वाणी क ःवतंऽता छmन ली है । हजारL
नागरकL को बेकसूर जेल म< रखा। Xयायपािलका के अिधकार नंट कए। जनता पाट~
इस तानाशाह को ख/म करके जनतंऽ क पुन: ःथापना करने के िलए चुनाव लड़ रह
है । इस प वऽ कायF म< आपका सहयोग चाहए।”
म2ने पूछा, “म2 कैसे सहयोग कर सकता हंू ?”
वे बोले, “हमारा मतलब है आपक टांग का सहयोग चाहए।”
म2ने आँचयF से कहा, “मेर टांग? अरे भई, म2 हंू तो मेर टांग है ।”
ू
उXहLने कहा, “नहं टांग टटने से उसका अलग य B/व हो गया है । बO5क टू ट
टांग ने रांशय जीवन म< आपको मह/वपूणF बना दया है । हम< अनुमित दOजए क हम
ूचार कर द< क कांमेिसयL ने आपक टांग तोड़ द। इससे सारे दे श म< कांमेस के वw$
वातावरण बनेगा।”
म2ने जवाब दया, “म2 यह झूठा ूचार नहं करना चाहता।”
एक ने कहा, “जरा सोिचए- दे श के िलए, जनतंऽ के िलए।”
दसरे
ू ने कहा, “मानव-अिधकारL के हे तु। मानव गरमा के िलए। आOखर आप
समाज-चेता लेखक ह2 ।”
म2ने उनक बात नहं मानी। मुझे मेर टांग क िचंता थी। म2 कसी को शyद से
ू नहं दे ना चाहता था।
भी टांग छने
शाम को कांमेस के दो-तीन लोग आ गये। उXहLने भी मेर टांग क जांच क
और कहा, “इससे अपना काम बन जाएगा।”
म2ने पूछा, “बात ]या है ?”
उXहLने कहा, “आपको ]या समझाना। आप ःवयं ूबु$ ह2 । इस समय दे श का
भ वंय संकट म< है । यद जनता पाट~ जीत गई तो दे श खंड-खंड हो जाएगा। वकास
कायF wक जाव<गे। जनता पाट~ म< शािमल दल घोर दOGणपंथी ूितबयावाद ह2 । वे
सावFजिनक Gेऽ को खतम कर द< गे। वे इस दे श को अमेरका के पास िगरवी रख द< गे।”
म2ने पूछा, “तो म2 ]या कSं?”
उXहLने कहा, “आपको कुछ नहं करना है । करना हम< ह है । कांमेस खुद ह सब
करती है । तीस सालL से, यहां तक क, हम हारते भी ह2 , तो दसरे
ू से नहं- कांमेस ह
ू दे द< क हम यह ूचार कर सक< क जनता
कांमेस को हराती है । आप हम< इतनी छट
पाट~ के लोगL ने आपक टांग तोड़ द है । इससे जनता इस पाट~ के Oखलाफ हो जाएगी।”
म2ने उनसे भी कहा, “म2 अपनी टांग के बारे म< यह झूठा ूचार नहं होने दं ग
ू ा।”
एक ने कहा, “इस दे श क िलए।:”
दसरे
ू ने कहा, “सश]त क<ि के िलए।”
तीसरे ने कहा, “ूगितशील नीितयL के िलए।”
म2 राजी नहं हआ।
ु
दसरे
ू दन जनता पाट~ वाले फर आ गए।
ू
उXहLने छटते ह पूछा, “आOखर आपका ‘रे ट’ ]या है ?”
म2ने बोध से कहा, “म2 ]या रं ड हंू क मेरा रे ट होगा।”
ू
उXहLने कहा, “हमारा मतलब है क अपनी टट टांग के उपयोग के िलए आप
]या ल<ग?े पांच सौ काफ हLगे?”
म2ने उXह< डांटा। वे जाते-जाते कह गये, “आपको हमसे असहयोग का फल भोगना
पड़े गा। आपको इस सरकार ने इलाज के िलए wपये दए थे। हमार सरकार बनने पर हम
इसक जांच करवाएंगे और सारा पैसा आपसे वसूल कया जाएगा।”
थोड़ दे र बाद कांमेसी फर आ गये।
कहने लगे, “बड़े शमF क बात है । आप ूगितशील बनते ह2 मगर पांच सौ wपयL
म< अपने को ूितबयावादयL को बेच दया। पैसा ह चाहए था तो हमसे हजार ले
लीOजए। अभी हमार सरकार ने आपको काफ wपये इलाज के िलए दए। मगर आप
इतने अहसान-फरामोश ह2 क हमारे ह Oखलाफ हो गए।”
म2ने कहा, “म2 नहं बका। म2ने जनता पाट~ क बात नहं मानी। म2 आपक बात
भी नहं मानूंगा। मेर टांग कसी का चुनाव-पोःटर नहं बन सकती।”
इतने म< जनता पाट~ वाले फर आ गए। उXह< दे ख कांमेसी िच5लाए, “आ गए
आप लोग परसाईजी को पांच सौ wपये म< खरदने के िलए।”
जनता वालL ने कहा, “पांच सौ? इस दो कौड़ के लेखक को हम पांच सौ द< गे।
तुZह उसे हजार म< खरदने आए हो।”
कांमेिसयL ने कहा, “अरे , हजार wपये हम इस कूड़ा लेखक को द< गे।”
अब दोनL पाट~वालL म< लड़ाई शुS हो गई।
पहले वे एक-दसरे
ू के ‘साले’ बने। इस रँते के कायम होने से मुझे वँवास हो
गया क दे श म< िमली-जुली ःथाई सरकार बन जावेगी।
फर कुछ ‘मादर’ वगैरह हआ।
ु इससे ल2िगक नैितकता म< एक मानदं ड ःथा पत
हआ।
ु
फर मारपीट हई।
ु
म2ने कहा, “आप दोनL का काम बना पैसे खचF कए हो गया। अब मेर टांग क
जSरत आपको नहं है । आपके अपने िसर फूटे ह2 । और नाक म< से खून बह रहा है । अब
ूचार कOजए। जनतंऽ के िलए, दे श के िलए। म2 गवाह बनने को तैयार हंू ।”
एक म-यवग.य कुा
कुेवाले घर मुझे अ[छे नहं लगते. वहां जाओ तो मेजबान के पहले कुा भrककर
ःवागत करता है . अपने ःनेह से “नमःते“ हई
ु ह नहं क कुे ने गाली दे द- “]यL
यहां आया बे? तेरे बाप का घर है ? भाग यहां से !”
फर कुे का काटने का डर नहं लगता- चार बार काट ले. डर लगता है उन चौदह बड़े
इं जे]शनL का जो डॉ]टर पेट म< घुसेड़ता है . यूं कुछ आदमी कुे से अिधक ज़हरले होते
ह2 . एक परिचत को कुे ने काट िलया था. म2ने कहा, ”इXह< कुछ नहं होगा. हालचाल
उस कुे का पूछो और इं जे]शन उसे लगाओ.”
कुछ दनL बाद वे िमले तो िशकायत क, ”आप उस दन चाय पीने नहं आये.” म2ने कहा,
“माफ़ कर< . म2 बंगले तक गया था. वहां तiती लटक थी- ‘कुे से सावधान.‘ मेरा उयाल
ु दखी.“ यूं कोई-कोई
था, उस बंगले म< आदमी रहते ह2 . पर नेमcलेट कुे क टं गी हई
आदमी कुे से बदतर होता है . माकF Tवेन ने िलखा है - ‘यद आप भूखे मरते कुे को
रोट Oखला द< , तो वह आपको नहं काटे गा.‘ कुे म< और आदमी म< यह मूल अंतर है .
बंगले म< हमारे ःनेह थे. हम< वहां तीन दन ठहरना था. मेरे िमऽ ने घCट बजायी तो
जाली के अंदर से वह ”भr-भr” क आवाज़ आयी. म2 दो क़दम पीछे हट गया. हमारे
मेजबान आये. कुे को डांटा- ‘टाइगर, टाइगर!’ उनका मतलब था- ‘शेर, ये लोग कोई
चोर-डाकू नहं ह2 . तू इतना वफ़ादार मत बन.‘
कुा ज़ंजीर से बंधा था. उसने दे ख भी िलया था क हम< उसके मािलक खुद भीतर ले जा
रहे ह2 पर वह भrके जा रहा था. म2 उससे काफ़ दरू से लगभग दौड़ता हआ
ु भीतर
गया. म2 समझा, यह उ[चवग.य कुा है . लगता ऐसा ह है . म2 उ[चवग.य का बड़ा अदब
करता हंू . चाहे वह कुा ह ]यL न हो. उस बंगले म< मेर अजब Oःथित थी. म2
हनभावना से मःत था- इसी अहाते म< एक उ[चवग.य कुा और इसी म< म2! वह मुझे
हकारत क नज़र से दे खता.
शाम को हम लोग लॉन म< बैठे थे. नौकर कुे को अहाते म< घुमा रहा था. म2ने दे खा,
फाटक पर आकर दो ‘सड़कया‘ आवारा कुे खड़े हो गए. वे सवFहारा कुे थे. वे इस कुे
को बड़े गौर से दे खते. फर यहां-वहां घूमकर लौट आते और इस कुे को दे खते रहते. पर
यह बंगलेवाला उन पर भrकता था. वे सहम जाते और यहां-वहां हो जाते. पर फर आकर
इस कु् ते को दे खने लगते. मेजबान ने कहा, “यह हमेशा का िसलिसला है . जब भी यह
अपना कुा बाहर आता है , वे दोनL कुे इसे दे खते रहते ह2 .“
म2ने कहा, “पर इसे उन पर भrकना नहं चाहए. यह पTटे और ज़ंजीरवाला है .
सु वधाभोगी है . वे कुे भुखमरे और आवारा ह2 . इसक और उनक बराबर नहं है . फर
यह ]यL चुनौती दे ता है !”
रात को हम बाहर ह सोए. ज़ंजीर से बंधा कुा भी पास ह अपने तखत पर सो रहा था.
अब हआ
ु यह क आसपास जब भी वे कुे भrकते, यह कुा भी भrकता. आOखर यह
उनके साथ ]यL भrकता है ? यह तो उन पर भrकता है . जब वे मोह5ले म< भrकते ह2 तो
यह भी उनक आवाज़ म< आवाज़ िमलाने लगता है , जैसे उXह< आासन दे ता हो क म2
यहां हंू , तुZहारे साथ हंू .
मुझे इसके वगF पर शक़ होने लगा है . यह उ[चवग.य कुा नहं है . मेरे पड़ोस म< ह एक
साहब के पास थे दो कुे. उनका रोब ह िनराला ! म2ने उXह< कभी भrकते नहं सुना.
आसपास के कुे भrकते रहते, पर वे -यान नहं दे ते थे. लोग िनकलते, पर वे झपटते भी
नहं थे. कभी म2ने उनक एक धीमी गुराFहट ह सुनी होगी. वे बैठे रहते या घूमते रहते.
फाटक खुला होता, तो भी वे बाहर नहं िनकलते थे. बड़े रोबीले, अहं कार और आ/मतु.
थोड़ा-सा मर आवाज़ म< गुराFया. आसपास वे आवारा कुे भrक रहे थे, पर यह उनके
साथ भrका नहं. थोड़ा गुराFया और फर िनढाल पड़ गया. म2ने मेजबान से कहा, “आज
तुZहारा कुा बहत
ु शांत है .“
यह अकड़ से फाटक के बाहर िनकला होगा. उन कुL पर भrका होगा. उन कुL ने कहा
होगा- “अबे, अपना वगF नहं पहचानता. ढLग रचता है . ये पTटा और ज़ंजीर लगाये ह2 .
मुझत का खाता है . लॉन पर टहलता है . हम< ठसक दखाता है . पर रात को जब कसी
आसXन संकट पर हम भrकते ह2 , तो तू भी हमारे साथ हो जाता है . संकट म< हमारे साथ
है , मगर यL हम पर भrकेगा. हमम< से है तो िनकल बाहर. छोड़ यह पTटा और ज़ंजीर.
छोड़ यह आराम. घूरे पर पड़ा अXन खा या चुराकर रोट खा. धूल म< लोट.“ यह फर
भrका होगा. इस पर वे कुे झपटे हLगे. यह कहकर- ‘अ[छा ढLगी. दग़ाबाज़, अभी तेरे
झूठे दपF का अहं कार न कए दे ते ह2 .‘
कुा चुपचाप पड़ा अपने सह वगF के बारे म< िचXतन कर रहा है .
असहमत
“हां, सुना तो। छZब म< पाकःतानी सेना को रोकने के िलए यह ज़Sर है ।“ “खाक़ ज़Sर
है ! जहां वे लड़< , वहां लड़ना चाहए या हर कह घुसना चाहए?“
“हां, उधर नहं बढ़ना था।“ “मगर म2 कहता हंू ]यL नहं बढ़ना था? उधर से दबाव पड़े गा
तो इधर तुZहारे बाप रोक सकते ह2 उXह< ?“ “फर तो उधर बढ़ना ह ठmक हआ।
ु “
“ठmक हआ
ु ! ठmक हआ
ु ! कुछ समझते भी हो इसका ]या मतलब होता है ? इसका मतलब
होता है - टोटल वार! पूणF यु$! हमला!”
“तुम व5सन के कहने क परवाह ]यL करते हो? जो तुZह< सह दखे, करो।“ “ ब5कुल
ठmक है । जो दे श के हत म< हो, वह हम< करना चाहए।“
“दे शहत क बात करते हो! दे शहत कोई समझता भी है ? िसफ़F दे शहत दे खोगे या
अXतराFीय ूितबया का भी उयाल रखोगे?“ “ठmक कहते हो। आज क दिनया
ु म<
अXतराFीय ूितबया दे खना भी ज़Sर है ।“
इस बातचीत म< जो लगातार सहमत होने क कोिशश करता रहा, वह म2 हंू । म2 उससे
बहस नहं करता, मतभेद ज़ाहर नहं करता, िसफ़F सहमत होना चाहता हंू । पर वह
सहमत होने नहं दे ता। वह कभी कसी को सहमत नहं होने दे ता। अगर कोई सहमत
होने लगता है तो वह झट से असहमित पर पहंु च जाता है । सहमित से भी वह नाराज़
होता है और असहमित से भी। पर असहमित का वःफोट बड़ा भयंकर होता है । इसिलए
म2 सहमत होते-होते िनकल जाता हंू , जैसे आंधी आने पर आदमी ज़मीन पर लेट
जाए। उसने मेर तरफ़ दे खा। म2 कुछ नहं बोला। दसर
ू तरफ़ दे खने लगा। वह
Oखिसयाया- कैसे बेवकूफ़ से पाला पड़ा है ! खीजा- कैसे बेईमान लोग ह2 ! बोिधत हआ
ु -
सबको दे खग
ूं ा! तना- म2 कसी क परवाह नहं करता! ढला हआ
ु - कैसा दभाF
ु य है दःखी
ु
हआ
ु - ऐसL क चलती है , मेर नहं चलती मन म< फर तनाव आया। वह अंगुिलयL के
कटाव िगनता हआ
ु ज5द-ज5द चला गया।
सार दिनया
ु ग़लत है । िसफ़F म2 सह हंू , यह अहसास बहत
ु दःु ख दे ता है । इस अहसास म<
आगे क अपेGा होती है क मुझे सह होने का ौेय िमले, माXयता िमले, क़मत भी
िमले। दिनया
ु को इतनी फ़ुरसत होती नहं है क वह कसी कोने म< बैठे उस आदमी को
माXयता दे ती जाए जो िसफ़F अपने को हमेशा सह मानता है । उसक अवहे लना होती है ।
अब सह आदमी ]या करे । वह सबसे नफ़रत करता है । खीजा रहता है । दःख
ु -भरे तनाव
म< दन गुज़ारता है । इसक दिनया
ु से इसी तरह क लड़ाई है । पर वह मुझसे ह ]यL
उलझता है ? हर बार मुझे ह ग़लत ]यL िस$ करता है ? बात यह है क पूर दिनया
ु से
एक साथ लड़ा नहं जा सकता। दिनया
ु के हज़ारL मोच ह2 और करोड़L लड़ने वाले ह2 ।
मगर दो दे शL क लड़ाई म< पूरे दे श आपस म< नहं लड़ते। िसपाह से िसपाह लड़ता है ।
लड़ने के मामले म< िसपाह दे श का ूितिनिध होता है । उन कुछ लोगL को, Oजनसे उसक
अ]सर भ<ट होती है , उसने दिनया
ु का ूितिनिध मान िलया है । इनम< भी सबसे एयादा
मुलाक़ात मुझसे होती है , इसिलए इन कुछ का ूितिनिध म2 हआ।
ु इस तरह दिनया
ु का
ूितिनिध म2 बन गया। मुझे ग़लत बताता है तो दिनया
ु ग़लत होती है । मुझे गाली दे ता
है तो दिनया
ु को गाली लगती है । मुझ पर नाराज़ होता है तो दिु नया पर नाराज़गी ज़ाहर
होती है । म2 दबता हंू तो दिनया
ु को दबा दे ने का सुख उसे िमलता है । सार दिनया
ु क
तरफ़ से इस मोचF पर म2 खड़ा हंू और पट रहा हंू । वह मुझसे नफ़रत करता है । मगर
मुझे ढंू ढता है । कुछ दन नहं िमलू,ं तो वह परे शान होता है । Oजससे नफ़रत है , उससे
िमलने क इतनी ललक ूेम-सZबXध म< भी नहं होती। मुझसे िमलकर मुझे ग़लत
बताकर, मुझ पर खीजकर और मुझे दबाकर जो सुख उसे िमलता है , उसके िलए वह मुझे
तलाशता है । व- वजय के गौरव और सXतोष के िलए यो$ा दिनयाभर
ु क खाक़ छानते
थे। वह कुल चार-पांच मील सड़कL पर मुझे खोजता है तो दिनया
ु को जीतने के िलए
कोई एयादा नहं चलता।
“हां, बहत
ु फैला है ।“ “लोग ह5ला एयादा मचाते ह2 । इतना ॅाचार नहं है । यहां तो सब
िसयार ह2 । एक ने कहा, ॅाचार! तो सब कोरस म< िच5लाने लगे ॅाचार!”
“मुझे भी लगता है , लोग ॅाचार का ह5ला एयादा उड़ाते ह2 ।“ “मगर बना कारण लोग
ह5ला नहं मचाएंगे जी? होगा तभी तो ह5ला करते ह2 । लोग पागल थोड़े ह ह2 ।“
“हां, सरकार कमFचार ॅ तो ह2 ।“ “सरकार कमFचार को ]यL दोष दे ते हो? उXह< तो
हम-तुम ह ॅ करते ह2 ।“
“हां, जनता खुद घूस दे ती है तो वे लेते ह2 ।“ “जनता ]या ज़बरदःती उनके गले म< नोट
ठंू सती है ? वे ॅ न हL तो जनता ]यL दे ?“
कोई घटना होती है तो वह उसके बारे म< एक कोण बना लेता है और उससे उसका
उ5टा कोण पहले ह मन म< हमारे ऊपर मढ़ दे ता है । फर वह हमसे उस आरो पत
कोण के िलए नफ़रत करता है । नफ़रत इतनी इकTठm हो जाती है क वह उस घटना
के िलए Oज़Zमेदार भी हम< मान लेता है । चीन ने भारत को तीन दन का अ5टमेटम
दया तो उसे लगा, जैसे अ5टमेटम हमने दया हो। बःतर म< आदवािसयL पर गोली
हमने ह चलायी। रोडे िशया म< गोर तानाशाह कायम हो गयी तो, उसे लगा, जैसे हमने
ह इयान Oःमथ क सरकार बनवा द हो। वयतनाम पर अमेरक बमबार फर शुS हो
गयी तो उसने मान िलया क हमने ह बम-वषाF का ह]म
ु दया है । कुछ दन वह खूब
भXनाता रहा। िमला नहं। एक दन वह िमल गया। ऐसे िमला, जैसे यु$-अपरािधयL से
िमल रहा हो। िमलते ह फूट पड़ा- “तुZहारे अमेरका ने फर बम बरसाना शुS कर दया
है ।“ उसने हम< ऐसे दे खा, जैसे पुिलस ह/यारे को दे खती है ।
“]यL ठmक है ? नागरक GेऽL पर बम बरसाना ठmक है , यह कहते शमF आनी चाहए!”
“मगर बहत
ु -से बेवकूफ़ इस नारे को बना समझे लगाते ह2 । वे भूल जाते ह2 क इधर चीन
बैठा है जो सबको िनगल जाएगा।“ हम चुप हो गए। वह कुछ भुनभुनाता रहा। फर
झटके से उठा और अंगुिलयL के कटाव िगनता हआ
ु फुत. से चला गया।
गोरे और सुडौल इस जवान के कपाल पर तीन रे खाएं Oखंची रहती ह2 । हमेशा तनाव म<
रहता है । नौकर उसक साधारण है । एक कॉलेज म< पढ़ाता है । कॉलेज से नफ़रत करता
है । लौटता है तो जैसे पाप करके लौट रहा हो। ूंिसपल से, सािथयL से, वािथFयL से
नफ़रत करता है । बगीचे म< Oखले फूलL से भी उसे नफ़रत है । मकान मािलक से इसिलए
नाराज़ है क मकान उसका है । नगरपािलका से सड़क के िलए नाराज़ है । नाले से म[छरL
के िलए नाराज़ है । दिन
ु या से ]यL नाराज़ है , यह ठmक वह जानता होगा। म2 अXदाज़ ह
लगा सकता हंू । शुS म< ह उसने दिनया
ु से कुछ एयादा ह उZमीद कर ली होगी। बहत
ु -
से नौजवान मौजूदा हालात के संदभF म< मह/वाकांGा नहं बनाते। वह अनुपात से एयादा
हो जाती है । बहत
ु -से तो अपने पता के ज़माने के सXदभF म< मह/वाकांGा बना लेते ह2 -
पता के ज़माने म< हर एम.ए. पास ूोफ़ेसर हो जाता था, अब नहं होता। मगर उस
सXदभF म< जो एम.ए. होकर ूोफ़ेसर बनने का तय कर लेता है , वह अ]सर िनराश होता
है । मह/वाकांGा के कारण वह ःकूल क नौकर भी नहं करता, बेकार रहता है । घुटता
है । इस आदमी ने भी जवानी के शुS मे तय कर िलया होगा क मुझे दिनया
ु से इतना
िमलना चाहए, यह मेरा हक़ है । इस हसाब से कहं वह गड़बड़ कर गया। उसने योयता
के हसाब से मह/वाकांGा नहं बनायी। अपने मू5य-
य-िनधाFरण म< वह एयादा ह उदार हो
गया। उसने शुS म< ह विशता से अपने को मOCडत कर िलया। साधारण से विश
बनने क ज़Sरत उसने नहं समझी। उसने मौजूदा ज़माने क ःपधाF, पGपात और
चतुरता को भी नज़रअंदाज़ कर दया। कॉलेज म< पढ़ाना चाहता था तब इस घटया
कॉलेज म< नौकर िमली। उसने मान िलया क दिनया
ु ने उसक क़मत नहं द। उसके
साथ अXयाय कया और िसफ़F उसी के साथ। वह आसपास आगे बढ़ते हए
ु तु[छ लोगL
ू
क भीड़ दे खता और सबसे नफ़रत करता है । उसका य B/व टटता है , वह उसे जैसे-तैसे
समेटकर दिनया
ु के सामने चुनौती दे कर खड़ा होता है । ःथायी असहमित उसका अपने
आपको जोड़ने का ूय है । इससे वह विश बने रहने क कोिशश करता है ]यLक
विश हए
ु बना वह जी नहं सकता। एक बार ह म2ने उसे समहत होते पाया है । उसने
केXिय सरकार म< कसी बड़ नौकर के िलए आवेदन कया था। वह उसे नहं िमली।
मुझे िमला तो म2ने पूछा।
म2 डर रहा था क कहं इसने इसके िलए भी मुझे ह Oज़Zमेदार न मान िलया हो। पर
उसक आंखL म< ऐसा आरोप-भाव नहं था। मेर हZमत बढ़। म2ने कहा, “आजकल
पGपात बहत
ु चलता है ।“ वह सहमत हो गया। बोला, “ठmक कहते हो। ऊपर के लोग
अपनL को अ[छm जगह फट करते ह2 ।“
“और योय आदिमयL क अवहे लना होती है ।“ “हां, और नालायक ऊंचे पदL पर बठाये
जाते ह2 ।“
“तभी तो सब जगह ःतर िगर रहा है ।“ “अरे भाई, ःतर तो कुछ रहा ह नहं।“ “पता
नहं, कब तक यह अXधेर चलेगा!”
सहमित के इस दलF
ु भ Gण को म2 बगड़ने नहं दे ना चाहता था। इसिलए इससे पहले क
वह कसी बात पर असहमत हो उठे , म2 चल दया। वह भी मुड़ा। मगर वह अंगुिलयL के
कटाव नहं िगन रहा था।
चूहा और म2
यह कहानी ःटन बेक के लघु उपXयास ‘आफ मेन एंड माउस’ से अलग है ।
चाहता तो लेख का शीषFक ‘म2 और चूहा’ रख सकता था। पर मेरा अहं कार इस
चूहे ने नीचे कर दया है । जो म2 नहं कर सकता, वह मेरे घर का चूहा कर लेता है । जो
इस दे श का सामाXय आदमी नहं कर पाता, वह इस चूहे ने मेरे साथ करके बता दया।
इस घर म< एक मोटा चूहा है । जब छोटे भाई क प/नी थी, तब घर म< खाना
बनता था। इस बीच पारवारक दघF
ु टनाओं- बहनोई क मृ/यु आद- के कारण हम लोग
बाहर रहे ।
इस चूहे ने अपना यह अिधकार मान िलया था क मुझे खाने को इसी घर म<
िमलेगा। ऐसा अिधकार आदमी भी अभी तक नहं मान पाया। चूहे ने मान िलया है ।
लगभग प2तालीस दन घर बXद रहा। म2 जब अकेला लौटा, घर खोला, तो दे खा
क चूहे ने काफ बाकर फशF पर िगराकर फोड़ डाली ह2 । वह खाने क तलाश म<
भड़भड़ाता होगा। बाकर और डyबL म< खाना तलाशता होगा। उसे खाना नहं िमलता
होगा, तो वह पड़ोस म< कहं कुछ खा लेता होगा और Oजंदा रहता होगा। पर घर उसने
नहं छोड़ा। उसने इसी घर को अपना घर मान िलया था।
जब म2 घर म< घुसा, बजली जलायी तो म2ने दे खा क वह खुशी से चहकता हआ
ु
यहां से वहां दौड़ रहा है । वह शायद समझ गया क अब इस घर म< खाना बनेगा, डyबे
खुल<गे और उसक खुराक उसे िमलेगी।
दन-भर वह आनंद से सारे घर म< घूमता रहा। म2 दे ख रहा था। उसके उ5लास से
मुझे अ[छा ह लगा।
पर घर म< खाना बनना शुS नहं हआ।
ु म2 अकेला था। बहन के के यहां, जो पास
म< ह रहती है , दोपहर को भोजन कर लेता। रात को दे र से खाता हंू तो बहन डyबा भेज
दे ती रह। खाकर म2 डyबा बंद करके रख दे ता। चूहाराम िनराश हो रहे थे। सोचते हLगे
यह कैसा घर है । आदमी आ गया है । रोशनी भी है । पर खाना नहं बनता। खाना बनता
ु
तो कुछ बखरे दाने या रोट के टकड़े उसे िमल जाते।
मुझे एक नया अनुभव हआ।
ु रात को चूहा बार-बार आता और िसर क तरफ
ू
म[छरदानी पर चढ़कर कुलबुलाता। रात म< कई बार मेर नींद टटती। म2 उसे भगाता। पर
थोड़ दे र बाद वह फर आ जाता और मेरे िसर के पास हलचल करने लगता।
वह भूखा था। मगर उसे िसर और पांव क समझ कैसे आई। वह मेरे पांवL क
तरफ गड़बड़ नहं करता था। सीधे िसर क तरफ आता और हलचल करने लगता। एक
दन वह म[छरदानी म< घुस गया।
म2 बड़ा परे शान। ]या कSं? इसे माSं और यह कसी अलमार के नीचे मर गया,
तो सडे ़गा और सारा घर दग
ु ध से भर जाएगा। फर भार अलमार हटाकर इसे िनकालना
पड़े गा।
चूहा दन-भर भड़भड़ाता और रात को मुझे तंग करता। मुझे नींद आती, मगर
चूहाराम फर मेरे िसर के पास भड़भड़ाने लगते।
आOखर एक दन मुझे समझ म< आया क चूहे को खाना चाहए। उसने इस घर
को अपना घर मान िलया है । वह अपने अिधकारL के ूित सचेत है । वह रात को मेरे
िसरहाने आकर शायद यह कहता है - ]यL बे, तू आ गया है । भरपेट खा रहा है । मगर म2
भूखा मर रहा हंू । म2 इस घर का सदःय हंू । मेरा भी हक है । म2 तेर नींद हराम कर
दं ग
ू ा। तब म2ने उसक मांग पूर करने क तरकब िनकाली।
ु
रात को म2ने भोजन का डyबा खोला, तो पापड़ के कुछ टकड़े यहां-वहां डाल दये।
ु
चूहा कहं से िनकला और एक टकड़ा उठाकर अलमार के नीचे बैठकर खाने लगा। भोजन
ु
पूरा करने के बाद म2ने रोट के कुछ टकड़े फशF पर बखरा दये। सुबह दे खा क वह सब
खा गया है ।
ु
एक दन बहन ने चावल के पापड़ भेजे। म2ने तीन-चार टकड़े फशF पर डाल दये।
चूहा आया सूंघा और लौट गया। उसे चावल के पापड़ पसंद नहं। म2 चूहे क पसंद से
ु
चम/कृ त रह गया। म2ने रोट के कुछ टकड़े ु
डाल दये। वह एक के बाद एक टकड़ा लेकर
जाने लगा।
अब यह रोजमराF का काम हो गया। म2 डyबा खोलता, तो चूहा िनकलकर दे खने
ु
लगता। म2 एक-दो टकड़े डाल दे ता। वह उठाकर ले जाता। पर इतने से उसक भूख शांत
ु
नहं होती थी। म2 भोजन करके रोट के टकड़े फशF पर डाल दे ता। वह रात को उXह< खा
लेता और सो जाता।
इधर म2 भी चैन क नींद सोता। चूहा मेरे िसर के पास गड़बड़ नहं करता।
फर वह कहं से अपने एक भाई को ले आया। कहा होगा- ‘चल रे मेरे साथ उस
घर म<। म2ने उस रोट वाले को तंग करके, डराके, खाना िनकलवा िलया है । चल, दोनL
खाय<गे। उसका बाप हम< खाने को दे गा। वरना हम उसक नींद हराम कर द< गे। हमारा हक
है ।’
अब दोनL चूहाराम मजे म< खा रहे ह2 ।
मगर म2 सोचता हंू - आदमी ]या चूहे से भी बदतर हो गया है ? चूहा तो अपनी
रोट के हक के िलए मेरे िसर पर चढ़ जाता है , मेर नींद हराम कर दे ता है ।
इस दे श का आदमी कब चूहे क तरह आचरण करे गा?
महे श योगी¸ बाल योगेर¸ बाल भोगेर आद के बाद अब ]या हो? म2 दे श–भB आदमी
हँू । मगर म2 अमेरक पीढ़ को भी जानता हँू । म2 जानता हँू ¸ वह 'बोर' समाज का आदमी
ह2 – याने बड़ा बोर आदमी। शेअर अपने आप डालर दे जाते ह2 । घर म< टे ली वजन है ¸ दाS
क बोतल< ह2 । शाम को वह दस–पXिह आदिमयL से 'हाउ डु यू डू ' कर लेता है । पर इससे
बोरयत नहं िमटती। हनोई पर कतनी भी बम–वषाF अमेरका करे ¸ उेजना नहं होती।
कुछ चाहए उसे। उसे भारत से ह चाहए।
मुझे िचXता Oजतनी बड़ अमेरका क है उतनी ह भारतीय भाइयL क। इXह< भी कुछ
चाहए।
अब हम भारतीय भाई वहाँ डालर और यहाँ SपयL के िलए ]या ले जाय<? र वशंकर से वे
बोर हो चुके। योगी¸ सXत वगैरेह भी काफ हो चुके। अब उXह< कुछ नया चाहए – बोरयत
ख/म करने और उेजना के िलए। डालर दे ने को वे तैयार ह2 ।
मेरा वनॆ सुझाव है क इस बार हम भारत से 'डवाइन 5यूनेटक िमशन' ले जाय<। ऐसा
िमशन आज तक नहं गया। यह नायाब चीज होगी – भारत से ' डवाइन 5यूनेटक िमशन'
याने आ-याO/मक पागलL का िमशन।
यह अ-या/म के डपाटF मेCट से होता है । Oजस महान दे श भारत म< गुजरात के एक गाँव
म< एक आदमी ने प वऽ जल बाँटकर गाँव उजाड़ दया¸ वह ]या अमेरक को ःवगF म<
'ःमगल' नहं कर सकता?
याने चेले पाँच सौ साल के वैसे ह हो गये और अपनी अलग कZपनी खोल सकते ह2 । तो
म2 भी सोचता हँू क सब भारतीय माल तो अमेरका जा चुका – कामशा¸ अ-या/म¸
योगी¸ साधु वगैरह।
म2 'डवाइन 5यूनेटक िमशन' बनाना चाहता हँू । इसके सदःय वह लोग हो सकते ह2 ¸ जो
पागलखाने म< न रहे हL। हम< पागलखाने के बाहर के पागल चाहए याने वे जो सह
पागल का अिभनय कर सक<। योगी का अिभनय करना आसान है । ईर का अिभनय
करना भी आसान है । मगर पागल का अिभनय करना बड़ा ह कठन है । म2 योय लोगL
क तलाश म< हँू । दो–एक ूोफेसर िमऽ मेर नजर म< ह2 Oजनसे म2 िमशन म< शािमल होने
क अपील कर रहा हँू ।
िमशन बनेगा और जSर बनेगा। अमेरका म< हमार एजेXसी ूचार करे गी – सी रयल
इOCडयन डवाइन 5यूनेट]स (स[चे भारतीय आ-याO/मक पागलL को दे खो।) हम लोगL
के XयूयाकF हवा◌ाई अडे पर उतरने क खबर अखबारL म< छपेगी। टे ली वजन तैयार रहे गा।
िमसेज़ राबटF ¸ िमसेज िसZपसन से पूछेगी¸ "तुमने ]या स[चा आ-याO/मक भारतीय पागल
दे खा है ?"
िमसेज राबटF कहे गी¸ "हाँ¸ कल ह भारतीय आ-याO/मक पागलL का एक िमशन XयूयाकF
आ रहा है । चलो हम लोग दे ख<गे : इट वल बी ए रअल Oःपरचुअल ए]सपीरयंस। (वह
एक वरल आ-याO/मक अनुभव होगा।)"
XयूयाकF हवाई अडे पर हमारे भारतीय पागल आ-याO/मक िमशन के दशFन के िलए
हजारL ी – पुSष हLगे – उXह< जीवन क रोज ह बोरयत से राहत िमलेगी। हमारा
ःवागत होगा। मालाएँ पहनायी जाय<गी। हमारे ठहराने का बढ़या इXतजाम होगा।
और तब हम लोग पागल अ-या/म का ूोमाम द< गे। हर गैरपागल पहले से िशOGत होगा
क वह स[चे पागल क तरह कैसे नाटक करे । ूवेश–फस 50 डालर होगी और हजारL
अमेरक हजारL डालर खचF करके 'इं डयन डवाइन 5यूनेट]स' के दशFन करने आय<गे।
हमारा धXधा खूब चलेगा। म2 िमशन का अ-यG होने के नाते भाषण दँ ◌ूगा¸ "वी आर
रअल इOCडयन डवाइन 5यूनेट]स। अवर ऋषीज एCड मुनीज थाउसेCड ईअसF एगो सेड
दै ट द वे टु रअल इं टरनल पीस एCड सा5वेजन लाइज ाू 5यूनेसी।" (हम लोग भारतीय
आ-याO/मक पागल ह2 । हमारे ऋ ष–मुिनयL ने हज़ारो साल पहले कहा था क आXतरक
शाOXत और मु B पागलपन से आती है ।)
इसके बाद मेरे साथी तरह–तरह के पागलपन के करतब कर< गे और डालर बरस<गे।
Oजन लोगL को इस िमशन म< शािमल होना है ¸ वे मुझसे सZपकF कर< । शतF यह है क वे
वाःत वक पागल नहं होने चाहए। वाःत वक पागलL को इस िमशन म< शािमल नहं
कया जायेगा – जैसे स[चे साधुओं को साधुओं क जमात म< शािमल नहं कया जाता।
अमेरका से लौटने पर¸ द5ली म< रामलीला माउCड या लाल कले के मैदान म< हमारा
शानदार ःवागत होगा। म2 कोिशश कSँगा क ूधानमXऽी इसका उघाटन कर< ।
वे समय न िनकाल सकं तो कई राजनैितक वनवास म< तपःया करते नेता हम< िमल
जाय<गे।
ूथम ःमगलर
लआमण मेघनाथ क श B से घायल पड़े थे। हनुमान उनक रGा के िलए हमाचल ूदे श
से संजीवनी नामक दवा लेकर लौट रहे थे क अयो-या के नाके पर पकड़ िलए गए।
पकड़ने वाले नाकेदार को हनुमान ने पीटकर िलटा दया। राजधानी म< ह5ला मच गया
क बड़ा बलशाली ‘ःमगलर’ आया हआ
ु है । पूरा फोसF भी उसका मुकाबला नहं कर पा
रह।
आOखर भरत और शऽुन आए। हनुमान अपने आरा-य रामचंि के भाईयL को
दे खकर दब गए।
शऽुन ने कहा, “इन ःमगलरL के मारे नाक म< दम है , भैया आप तो सXयास
लेकर बैठ गए ह2 । मुझे भुगतना पड़ रहा है ।”
भरत ने हनुमान से पूछा- कहां से आ रहे हो?
हनुमान- हमाचल ूदे श से।
भरत- ]या है तुZहारे पास? सोने के बःकुट, गांजा, अफम?
हनुमान- दवा है ।
शऽुन ने कहा- अ[छा दवाईयL क ःमगिलंग चल रह है । िनकालो कहां है ।
हनुमानजी ने संजीवनी िनकालकर रख द और कहा- मुझे आपके बड़े भाई
रामचंि ने इस दवा को लेने के िलए भेजा था।
शऽुन ने भरत क तरफ दे खा, बोले- बड़े भैया यह ]या करने लगे ह2 । ःमगिलंग
म< लग गए ह2 । पैसे क तंगी थी तो हमसे मंगा लेते। ःमगिलंग के धंधे म< ]यL फंसते
ह2 । इससे बड़ बदनामी होती है ।
भरत ने हनुमान से पूछा- यह दवा कहां ले जा रहे थे? कहां बेचोगे इसे?
हनुमान ने कहा- लंका ले जा रहा था।
भरत ने कहा- अ[छा, वहां उ/तर भारत का ःमगल कया हआ
ु माल बकता है ।
कौन खरदते ह2 ? रावण के लोग।
हनुमान ने कहा- यह दवा तो म2 राम के िलए ह ले जा रहा था। बात यह है क
आपके भाई लआमण घायल पड़े ह2 । वे मरणसXन ह2 । इस दवा के बना वे बच नहं
सकते।
भरत और शऽुन ने एक-दसरे
ू क तरफ दे खा। तब तक रOजःटर म< ःमगिलंग
का मामला दजF हो चुका था।
शऽुन ने कहा- भरत भैया, आप ^ानी ह2 । इस मामले म< नीित ]या कहती है ?
शासन का ]या कतFय है ?
भरत ने कहा- ःमगिलंग तो अनैितक है । पर ःमगल कए हए
ु सामान से अपना
या अपने भाई-भतीजL का फायदा होता है , तो यह काम नैितक हो जाता है । जाओ
हनुमान, ले जाओ दवा।
मुंशी से कहा- रOजःटर का पXना फाड़ दो।
खेती
बजली- वभाग ने उसम< बजली लगाई और उसे िसंचाई- वभाग को भेज दया
गया.िसंचाई वभाग म< फाइल पर पानी डाला गया.
जब फाइल सब द तर घूम चुक तब उसे पक जानकर फूडकारपोरे शन के द तर म< भेज
दया गया और उस पर िलख दयागया क इसक फसल काट ली जाये.इस तरह दस
लाख एकड़ कागज क फाइलL क फसल पक कर फूड काप¡रे शन के के पास पहंु च गयी.
कुछ दनL बाद सरकार ने बयान दया-’इस साल तो सZभव नहं हो सका ,पर आगामी
साल हम जSर खा म< आ/मिनभFर हो जाय<गे.’
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दे वभ B
एक शहर क बात है । शहर म< गणेशो/सव बड़ धूम से मनाया जाता है । ूथा कुछ ऐसी
चल गयी है क हर जाित के लोग अपने अलग गणेशजी रखते ह2 । इस तरह ॄWणL के
अलग गणेश होते ह2 , अमवालL के अलग, तेिलयL के अलग, कुZहारL के अलग। प[चीस-
तीस तरह के गणेशो/सव होते ह2 , और नौ-दस दनL तक खूब भजन-कतFन, पूजा-ःतुित,
आरती, गायन-वादन होते ह2 । आOखर दन गणेश- वसजFन के िलए जो जुलूस िनकलता
है , उसम< सबसे आगे ॄाWणL के गणेशजी होते ह2 ।
इस साल ॄाWणL के गणेशजी का रथ उठने म< जरा दे र हो गयी। इसिलए तेिलयL
के गणेशजी आगे हो गए।
जब यह बात ॄाWणL को मालूम हई
ु , तो वे बड़े बोिधत हुए। बोले, “तेिलयL के
गणेश क ‘ऐसी-तैसी’। हमारा गणेश आगे जाएगा।”
दCड
एक कलाकार ने कोई बड़ा अपराध कया। वह राजा के सामने उपOःथत कया गया। राजा
ने मXऽी से पूछा- “इसे तीन वषF क कैद दे द जाये?”
मXऽी ने कहा- “अपराध बहत
ु जघXय है । तीन साल बहत
ु कम ह2 ।”
“तो दस साल सह।”
“दस साल भी कम सजा है ।”
“तो आजीवन कारावास।”
“नहं, यह भी कम है ।”
“तो फांसी दे द जाए?”
“नहं, फांसी भी कम सजा है ।”
राजा ने खीझकर कहा- “फांसी से बड़ सजा ]या होगी, तुZहं बताओ।”
मXऽी ने कहा- “इसे कहं बठाकर इसके सामने दसरे
ू कलाकार क ूशंसा करनी
चाहए।”
उपदे श
‘सेवक जी’ नार आंदोलन के बड़े समथFक थे। ःऽी क सामाOजक ःवतंऽता के िलए वे
कठोर संघषF करते थे।
एक सभा म< उXहLने भाषण दया- “....हम< नार को ःवतंऽता दे नी होगी; उसके
य B/व को ःवीकारना होगा। उसे घर म< कैद करके हमने सदयL से समाज के आधे
भाग को िनOंबय कर दया है । अब समय बदल गया है । नार को हम< बाहर िनकलकर
समाज के मंगलकाय_ म< हाथ बंटाने दे ना चाहए।”
भाषण क सबने ूशंसा क।
‘सेवक जी’ घर पहंु चे। थोड़ दे र बाद लड़के ने आकर कहा- “ पताजी अZमा नार
मंगल सिमित के कायFबम म< भाग लेने जाना चाहती ह2 ।”
‘सेवक जी’ क आंख< चढ़ गयीं। बोले- “कह दे कहं नहं जाना है । जहां दे खो वहां
मुंह उठाये चल दं। कुछ लाज-शमF भी है या नहं।”
लड़का था वाचाल। उसने कहा- “ पताजी अभी तो आपने सभा म< कहा था क
ःऽी को बाहर समाज म< िनकलना चाहए।”
‘सेवक जी’ ने समझाया, “तू अभी नादान है । बात सतझता नहं है । अरे , जब
कहा जाये क ःऽी बाहर िनकले, तब अथF होता है क दसरL
ू क Oयां िनकल<, अपनी
नहं।”
आवारा भीड़ के खतरे
हमारे दे श म< युवाओं क आबाद सबसे Qयादा है । युवा ऊजाF के ूतीक होते ह2 । इस ऊजाF
के साथFक उपयोग से दे श का बहमु
ु खी वकास हो सकता है । वहं उनका गलत इःतेमाल
कये जाने क संभावना भी बनी रहती है । नये उमर के लोगL के िलये सह-गलत क
पहचान के खतरे हमेशा रहते ह2 ।
हम ४-५ लेखक चचाF करते रहे क लड़के के इस कृ /य का ]या कारण है ? ]या अथF है ?
यह कैसी मानिसकता है ? यह मानिसकता ]यL बनी? बीसवीं सद के उराधF म< ये सवाल
दिनया
ु म< भर म< युवाओं के बारे म< उठ रहे ह2 -पOम के सZपXन दे शL म< भी और तीसर
दिनया
ु के गरब दे शL म< भी। अमेरका से आवारा हcपी और’हरे राम हरे कृ Cण’ गाते
अपनी यवःथा से असंतु युवा भारत आते ह2 और भारत का युवा लालाियत रहता है क
चाहे चपरासी का काम िमले,अमेरका म< रहँू । ‘ःटे Tस’ जाना है यािन चौबीस घंटे गंगा
नहाना है । ये अपवाद है । भीड़-क-भीड़ उन युवकL क है ,जो हताश,बेकार और कु$ ह2 ।
संपXन पOम के युवकL के यवहार और भारत के युवकL के यवहार म< अंतर ह2 ।
सवाल है -उस युवक ने सुंदर माडल के चेहरे पर प/थर ]यL फ<का? हरामजाद बहत
ु
खूबसूरत है -यह उस गुःसे का कारण ]यL है ? वाह ,कतनी सुंदर है -ऐसा इस तरह के
युवक ]यL नहं कहते?
युवक साधारण कुताF पाजाम पहने था। चेहरा बुझा था Oजसक राख म< िचंगार िनकली थी
प/थर फ<कते वB । िशOGत था। बेकार था। नौकर के िलये भटकता रहा था।धंधा कोई
नहं। घर क हालत खराब। घर म< अपमान बाहर अवहे लना। वह आ/म लािन से
Gुyध।घुटन और गुःसा। एक नकारा/मक भावना। सबसे िशकायत । ऐसी मानिसकता म<
सुंदरता दे खकर िचढ़ होती है । Oखले हये
ु बुरे फूल बुरे लगते ह2 । कसी के अ[छे घर से
घृणा होती है ।सुंदर कार पर थूकने का मन होता है । मीठा गाना सुनकर तकलीफ होती है ।
अ[छे कपड़े पहने खुशहाल सािथयL से वर B होती है । Oजस चीज से ,खुशी ,सुंदरता,
संपXनता,सफलता,ूित¢ा का बोध होता है ,उस पर गुःसा आता है ।
बूढ़े-सयाने लोगL को लड़का जब िमडल ःकूल म< होता है ,तभी से िशकायत< होने लगती
ह2 । वे कहते ह2 - ये लड़के कैसे हो गये ? हमारे जमाने म< ऐसा नहं था। हम पता ,गुS
समाज के आदरणीयL क बात िसर झुका के मानते थे। अब ये लड़के बहस करते ह2 ।
कसी क नहं मानते ।म2 याद करता हँू क जब म2 छाऽ था,तब मुझे पता क बात
गलत तो लगती थी,पर म2 ूितवाद नहं करता था। गुS का भी ूितवाद नहं करता
।समाज के नेताओं का भी नहं। मगर तब हम कशोरावःथा म< थे,जानकार ह ]या थी?
हमारे कःबे म< दस-बारह अखबार आते थे। रे डयो नहं । ःवतंऽता संमाम का जमाना
था।सब नेता हमारे हरो थे-ःथानीय भी और जवाहरलाल नेहS भी। हम पता,गुS,समाज
के नेता आद क कमजोरयाँ नहं जानते थे। मुझे बाद म< समझ म< आया क मेरे आया
क मेरे पता कोयले के भTटL पर काम करनेवाले गLडL का शोषण करते थे।
पर अब मेरा यारह साल का नाती पाँचवीं कGा का छाऽ है । वह सबेरे अखबार पढ़ता
है ,टे ली वजन दे खता है ,रे डयो सुनता है । वह तमाम नेताओं क पोल< जानता है । दे वीलाल
और ओमूकाश चौटाला क आलोचना करता है । घर म< कुछ ऐसा करने को कहो तो
ूितरोध करता है -मेर बात भी तो सुनो। दन भर पढ़कर आया हँू । अब फर कहते हो क
पढ़ने बैठ जाऊँ। थोड़ दे र नहं खेलूँगा नहं तो पढ़ाई भी नहं होगी। हमार पुःतक म<
िलखा है । वह जानता है क घर म< बड़े कब-कब झूठ बोलते ह2 ।
बड़े लड़के अपने पता को भी जानते ह2 । वे दे खते ह2 क पता का वेतन तो तीन हजार है
,पर घर का ठाठ-बाट आठ हजार wपयL का है । मेरा बाप घूस खाता है । मुझे ईमानदार के
उपदे श दे ता है । हमारे समय के लड़के-लड़कयL के िलये सूचना और जानकार के इतने
मा-यम खुले ह2 , क वे सब GेऽL म< अपने बड़L के बारे म< सब कुछ जानते ह2 । इसिलये
युवाओं से ह नहं ब[चL से भी अंधआ^ाकारता क आशा नहं क जा सकती।हमारे यहां
^ानी ने बहत
ु पहले कहा था-
उनसे बात क जा सकती है ,उXह< समझाया जा सकता है । कल परसL मेरा बारह साल का
ु
नाती बाहर खेल रहा था। उसक परGा हो चुक है और लंबी छTट है । उससे घर आने
के िलये उसके चाचा ने दो तीन बार कहा। डाँटा। वह आ गया और रोते हये
ु िच5लाया -
ु
हम ]या कर< ? ऐसी तैसी सरकार क Oजसने छTट ु
कर द। छTट काटना उसक समःया
है । वह कुछ तो करे गा ह। दबाओगे तो विोह कर दे गा। जब ब[चे का यह हाल है तो
तwणL क ूितबयाएँ ]या हLगी।
युवकL का यह तकF सह नहं है क जब सब पितत ह2 ,तो हम ]यL नहं हL। सब दलदल
म< फँसे ह2 ,तो जो लोग नये ह2 ,उXह< उन लोगL को वहाँ से िनकालना चाहये। यह नहं क
वे भी उसी दलदल म< फँस जाएँ। दिनया
ु म< जो बांितयाँ हई
ु ह2 , सामाOजक परवतFन हये
ु
ह2 ,उनम< युवकL क बड़ भूिमका रह है । मगर जो पीढ़ ऊपर क पीढ़ क पतनशीलता
अपना ले ]यLक वह सु वधा क है और उसम< सुख है वह पीढ़ कोई परवतFन नहं कर
सकती। ऐसे युवक ह2 ,जो बांितकारता का नाटक बहत
ु करते ह2 ,पर दहे ज भरपूर लेते
ह2 ।कारण बताते ह2 -म2 तो दहे ज को ठोकर मारता हँू ।पर पताजी के सामने झुकना पड़ा।
यद युवकL के पास दशा हो, वचारधारा हो,संक5पशीलता हो,संगठत संघषF हो तो वे
परवतFन ला सकते ह2 ।
-हरशंकर परसाई
जून १९९१
हम,वे और भीड़
हम,वे और भीड़
जनवर के नो«स
पुराने कैलेCडर क तःवीर ब[चे काट लेते ह2 और उसे कहं िचपका दे ते ह2 । हम सोचते ह2
,ब[चL का मन बहलता है , पर यह उनके साथ कतना बड़ा धोखा है । साल-दर-साल हम
उनसे कहते ह2 ,लो बेटL ,जो साल हमने बगाड़ दया,उसे लो। उसक तःवीर से मन
बहलाओ। बीते हये
ु क बदरं ग मुरझाई तःवीर< ह2 ये। आगत क कोई चमकली तसवीर
हम तुZह< नहं दे सकते। हम उसम< खुद धोखा खा चुके ह2 और खाते रह< गे। दे ने वाले हम<
भी तो हर साल के शुS म< रं गीन तसवीर दे ते ह2 क लो अभागL ,रोओ मत। आगामी साल
क यह रं गीन तसवीर है । मगर वह क[चे रं ग क होती है । साल बीतते वह भo हो जाती
है । धोखा, जो हम< वरासत म< िमला, हम तुZह< दे ते ह2 । कसी दन तुम इन बदरं ग तसवीरL
को हमारे सामने ह फाड़कर फ<क दोगे और हमारे मुँह पर थूकोगे।
नया साल आ गया। पहले म2 १५ अगःत से नया साल िगनता था। अब वैसा करते डर
लगता है । मन म< ददF उठता है क हाय , इतने साल हो गये फर भी! जवाब िमलता है
कोई जाद ू थोड़े ह है । पर तरह-तरह के जाद ू तो हो रहे ह2 । यह ]यL नह होता? अफसर
के इतने बडे ़ मकान बन जाते ह2 क वह रापित को कराये पर दे ने का हौसला रखता है ।
कस जाद ू से गोदाम म< रखे गेहूँ का हर दाना सोने का हो गया? इसे बो दया जायेगा ,तो
फर सोने क फसल कट जायेगी।
जनवर से साल बदलने म< ददF न उठता , न हाय होती और न ‘फर भी’ का सवाल
उठता। आOखर ह ते म< कुछ याद< जSर होती ह2 । २३ जनवर याद दलाती है क सुभाष
बाबू ने कहा था- ‘तुम मुझे खून दो, म2 तुZह< आजाद दँ ग
ू ा।’ खून तो हमने दे दया ,मगर
आजाद कXह< दे द गयी? फर भी २४ या २५ तारख को लाल कले पर सवFभाषा क व
सZमेलन होता है Oजसम< बडे -़ बड़े क व मेहनत करके घटया क वता िलखकर लाते ह2 और
छोटे क व मेहनत से और घटया अनुवाद करते ह2 । हXद और उदF ू के क व खास तौर से
उच]कापन और ओवरएO]टं ग करते ह2 । यL इन भाषाओं क सार समकालीन क वता
घटया हरो क ओवरएO]टं ग है । फर २६ जनवर को गणतXऽ दवस होता है और हम
सं वधान क ूित िनकालकर गणतXऽ के िनद शक िस$ाXत और बुिनयाद अिधकारो का
पाठ करते ह2 । इसी वB गुS गोलवरकर क वाणी सुनाई दे ती है क यह रा तो िसफF
हXदओं
ु का है -मुसलमान ,पारसी,ईसाई वगैरह वदे शी ह2 और खासकर मुसलमान तो
दे शिोह ह2 । मगर जो सुरGा सZबXधी गु¦ बात< पाकःतान को दे ते पकड़े गये,वे शु$
ॄाWण ह2 । यह भी जाद ू है ।
फर ३० जनवर…।
धोखा ह हआ
ु न! हम< और हमारे बापL को बताया ह नहं गया था क आजाद क घास
तो होगी ,पर कुछ के पास कभी-कभी भ2से भी हLगी।
और हम अपने बाप को कोसते ह2 क तुमने तभी इस बारे म< साफ बात< ]यL नहं कर
लीं।वह काली भ2सL वाली शतF ]यL मान ली? ]या हक था तुZह< हमार तरफ से सौदा
करने का?
ह2 तो। घर से दकान
ु तक पहँु चते भाव बढ़ जाते ह2 ।
‘शःय ँयामला’ भूिम के वासी ‘भारत भाय वधाता’ से ूाथFना करते ह2 क इस साल
अमेरका म< गेहूँ खूब पैदा हो और जापान म< चावल।
हम ‘मदरलैCड’ न कहकर ‘फादरलैCड’ कहने लग< तो ठmक होगा। रोट माँ से माँगी जाती है
,बाप से नहं। ‘फादरलैCड ‘ कहने लग<गे , तो ये माँग< और िशकायत< नहं हLगी।
छोटा आदमी हमेशा भीड़ से कतराता है । एक तो उसे अपने वैिशंTय के लोप हो जाने
का डर रहता है ,दसरे
ू कुचल जाने का। जो छोटा है और अपनी विशता को हमेशा
उजागर रखना चाहता है ,उसे सचमुच भीड़ म< नहं घुसना चाहये। लघुता को बहत
ु लोग
इस गौरव से धारण करते ह2 ,जैसे छोटे होने के िलये उXह< बहत
ु बड़ तपःया करनी पड़
है । उXह< भीड़ म< खो जाने का डर बना रहता है ।
एक तरकब है ,Oजससे छोटा आदमी भी भीड़ म< विश और सबके -यान का क<ि बन
सकता है -उसे बकरे या कुे क बोली बोलने लगना चाहये। भीड़ का उ$े ँय जब सःता
अनाज लेने का हो,वह इसके िलये आगे बढ़ रह हो, उसका -येय ,एक मन:Oःथित और
एक गित हो -तब यद छोटा आदमी बकरे क बोली बोल उठे , तो वह एकदम विश हो
जायेगा और सबका -यान खींच लेगा।
लोग मुझसे कहं होिशयार ह2 । मेरे बताये बना भी वे यह तरकब जानते ह2 और भूखL क
भीड़ म< बकरे क बोली बोल रहे ह2 ।
वे नहं जानते या िछपाते ह2 क भीड़ से अलग करके भी कसी एकाXत म< दबोचे जाते ह2 ।
लेखकL क चोर करने वाले कई िगरोह ह2 । वे भीड़ म< िशकार को ताड़ते रहते ह2 और उसे
भीड़ से अलग करके ,अपने साथ कसी अँधेर कोठर म< ले जाते ह2 । वहाँ उसके हाथ-पाँव
बाँधकर मुँह म< कपड़ा ठँू स दे ते ह2 । तब ःवतंऽ िचंतक िसफF ‘घL-घL’ क आवाज िनकाल
सकता है । िगरोहवाले उस ‘घL-घL’ म< सौXदयFशांऽीय मू5य ढ़ँू ढ़कर बता दे ते ह2 । उसे त/व
^ान िस$ कर दे ते ह2 ।
लेखक क हालत खःता है । वह सोचता है क मेरा अलग से कुछ हो जाये। सबके साथ
होने म< विशता मार जाती है । दन-भर पेट भरने के िलये उसके जूते िघसते ह2 और
शाम को काफ हाउस म< बैठकर वह कहता है क हम< कोई भीड़ से बचाओ।
लेखक दZभ से कहता है ,पहली बार हमने जीवन को उसके पूणF और यथाथF Sप म<
ःवीकारा है ।
कल अगर फािसःट तानाशाह आ गयी , तो हे ःवतंऽ िचंतक ,हे भीड़ ¥े षी, तेरे ःवतंऽ
िचंतन का ]या होगा? फर तो तेरा गला दबाया जायेगा और तूने अपनी इ[छा से कोई
आवाज िनकालने क कोिशश क तो गला ह कट जायेगा।
‘अ^ेय’ को ‘आँगन से पार ¥ार’ पर अकादमी -पुरःकार िमल गया। पहले ]यL नहं िमला?
उॆ कम थी। आम मत है क ‘आँगन के पार ¥ार’ से पहले के संमहL क क वताय< अ[छm
ह2 ।
जानसन ने लाडF चैःटरफ5ड को िचTठm म< िलखा था क माई लाडF , ]या ‘पेशन’ वह होता
है जो कनारे पर खड़ा-खड़ा आदमी को डू बते दे खता रहे और जब वह कसी तरह बचकर
बाहर िनकल आये, तो वह उसे गले लगा ले।
पुरःकार और आिथFक सहायता रचना करने के िलये िमलते ह2 या रचना बंद करने के
िलये?
म2 दे ने वालL के पास जाऊँ और कहँू - सर,म2 िलखना बXद कर रहा हँू -इस उपलआय म<
आप मुझे ]या दे ते ह2 ?
एक वृ$ गरब लेखक बेचाराइधर शहर म< घूम रहा है । उसे दो ‘ूित ¢त’ आदिमयL से
दरिता के सटF फकेट चाहये। उसने सहायता के िलये दरiवाःत द है । उसम< न/थी
करे गा। तब कले]टर जाँच करके िसफारश करे गा क हाँ,यह लेखक सचमुच दरि है ,दन
है । दन नहं है , ऐसे दो बेईमान चXदा खानेवालL ने इसक दरिता ूमाOणत क है ।
]या मतलब है इन शyदL का- ःवतंऽचेता, िा, विश,आ/मा के ूित ूितबo ,आ/मा का
अXवेषी?
Oजसने हम< बाOXत िसखायी थी औरजो कहता था क मेर आ/मा म< हमालय घुस गया
है , उसे म2ने अभी दे खा।
कहाँ दे खा?
मुiयमंऽी के आसपास। तीनL म< ूितःपधाF चल रह थी क कौन कस जेब म< घुस जाये।
कोट क दो जेबL म< दो घुस गये।
तीसरे ने कहा-हाय,अगर मुiयमंऽी पतलून पहने होते तो , तो म2 उसक जेब म< घुस
जाता। तीनL ‘एZcलायमेCट ए]सच<ज’ से काडF बनवाकर जेब म< रखे ह2 । कसी को कुछ
होना है ,कसी को कुछ।
कहानी पर बात करना यथF है । म2 पछले दो महने से यूह- रचना के सZपकF म< नहं
हँू । उसे जाने बना मू5यL क बात नहं हो सकती। द5ली जाकर चार तरह के लेखकL से
िमलूँगा। वे चार तरह के कौन? काफ हाउस वाले,ट हाउस वाले, शालीमार वाले और फोन
पर हे लो वाले।
साह/य क सबसे बड़ समःया इस समय यह है क डा. नामवार िसंह ने एक लेख म<
ौीकाXत वमाF को ‘कोट’ कया है और तारफ तथा सहमित के साथ कया है । यह चकत
करने वाली बात है ।
हरशंकर परसाई
-हरशं
गदF श कभी थी ,अब नहं है ,आगे नहं होगी-यह गलत है । गदF श का िसलिसला बदःतूर
है ,म2 िनहायत बेचन
ै मन का संवेदनशील आदमी हँू । मुझे चैन कभी िमल ह नहं
सकता,इस िलये गदF श िनयित है ।
ओम जय जगदश हरे ,
भB जनL के संकट पल म< दरू कर< ।
पाँच भाई-बहनL म< माँ क मृ/यु का अथF म2 ह समझता था-सबसे बड़ा था।
म2 तैयार होने लगा । खूब पढ़ने वाला,खूब खेलने वाला और खूब खाने वाला म2 शुS से
था। पढ़ने और खेलने म< म2 सब कुछ भूल जाता था। मैशक हआ
ु ,जंगल वभाग म< नौकर
िमली। जंगल म< सरकार टपरे म< रहता। ´टे रखकर,उन पर पटया जमाकर बःतर
लगाता, नीचे जमीन चूहL ने पोली कर द थी। रात भर नीचे चूहे धमाचौकड़ करते रहते
ू जाती पर म2 फर सो जाता।
और म2 सोता रहता। कभी चूहे ऊपर आ जाते तो नींद टट
छह महने धमाचौकड़ करते चूहL पर म2 सोया।
बेचारा परसाई?
नहं,नहं ,म2 खूब मःत था। दन-भर काम। शाम को जंगल म< घुमाई। फर हाथ से
बनाकर खाया गया भरपेट भोजन शु$ घी और दध
ू !
पर चूहL ने बड़ा उपकार कया। ऐसी आदत डाली क आगे क OजXदगी म< भी तरह-तरह
के चूहL मेरे नीचे ऊधम करते रहे , साँप तक सराFते रहे ,मगर म2 पटये बछा कर पटये
ु
पर सोता रहा हँू । चूहL ने ह नहं मनुंयनुमा ब[छओं और सापL ने भी मुझे बहत
ु काटा-
पर ‘जहरमोहरा’मुझे शुS म< ह िमल गया। इसिलये ‘बेचारा परसाई’ का मौका ह नहं आने
दया। उसी उॆ से दखाऊ सहानुभूित से मुझे बेहद नफरत है । अभी भी दखाऊ
सहाननुभूित वाले को चाँटा मार दे ने क इ[छा होती है । जyत कर जाता हँू ,वरना कई
शुभिचXतक पट जाते।
फर ःकूल माःटर। फर टचसF शिनंग और नौकर क तलाश -उधर पताजी मृ/यु के
नजदक। भाई पढ़ाई रोककर उनक सेवा म<। बहन< बड़ बहन के साथ,हम िशGण क
िशGा ले रहे थे।
फर नौकर क तलाश। एक वा मुझे और आ गयी थी- बना टकट सफर करना।
जबलपुर से इटारसी,टमरनी,खंडवा,दे वास बार-बार च]कर लगाने पड़ते। पैसे थे नहं। म2
बना टकट बेखटके गाड़ म< बैठ जाता। तरकब< बचने क बहत
ु आ गयीं थीं। पकड़ा
जाता तो अ[छm अंमेजी म< अपनी मुसीबत का बखान करता। अंमेजी के मा-यम से
मुसीबत बाबुओं को ूभा वत कर दे ती और वे कहते-ले«स हे 5प द पुअर yवाय।
दसर
ू वा सीखी उधार माँगने क। म2 ब5कुल िन:संकोच भाव से कसी से भी उधार
मांग लेता। अभी भी इस वा म< िस$ हँू ।
तीसर चीज सीखी -बेफब। जो होना होगा,होगा,]या होगा? ठmक ह होगा। मेर एक बुआ
थी। गरब,Oजंदगी गदF श -भर,मगर अपार जीव श B थी उसम<। खाना बनने लगता तो
उनक बहू कहती-बाई , न दाल ह है न तरकार। बुआ कहती-चल िचंता नहं। राह-
मोह5ले म< िनकलती और जहाँ उसे छcपर पर सyजी दख जाती,वहं अपनी हमउॆ
मालकन से कहती- ए कौश5या,तेर तोरई अ[छm आ गयी है । जरा दो मुझे तोड़ के दे ।
और खुद तोड़ लेती। बहू से कहती-ले बना डाल,जरा पानी जादा डाल दे ना। म2 यहाँ-वहाँ से
मारा हआ
ु उसके पास जाता तो वह कहती-चल,िचंता नहं,कुछ खा ले।
नौकर िमली जबलपुर से सरकार ःकूल म<। कराये तक के पैसे नहं। अ-यापक महोदय
ने दर म< कपडे ़ बाँधे और बना टकट चढ़ गये गाड़ म<। पास म< कले]टर का खानसामा
बैठा था। बातचीत चलने लगी। आदमी मुझे अ[छा लगा। जबलपुर आने लगा तो म2ने उसे
अपनी समःया बताई। उसने कहा -िचXता मत करो। सामान मुझे दो। म2 बाहर राह
दे खग
ूँ ा। तुम कहं पानी पीने के बहाने सींखचL के पास पहँु च जाना। नल सींखचL के पास
ह है । वहाँ सींखचL को उखाड़कर िनकलने क जगह बनी हई
ु है । Oखसक लेना। म2ने वैसा
ह कया। बाहर खानसामा मेरा सामान िलये खड़ा था। म2ने सामान िलया और चल दया
शहर क तरफ। कोई िमल ह जायेगा,जो कुछ दन पनाह दे गा,अिनय म< जी लेना मुझे
तभी आ गया था।
म2 डरा नहं । बेईमानी करने म< भी नहं डरा। लोगL से नहं डरा तो नौकरयाँ गयीं। लाभ
गये,पद गये,इनाम गये। गैर-OजZमदार इतना क बहन क शाद करने जा रहा हँू । रे ल म<
जेब कट गयी,मगर अगले ःटे शन पर पूड़-साग खाकर मजे म< बैठा हँू क िचXता नहं।
कुछ हो ह जायेगा। मेहनत और परे शानी जSर पड़ यL क बेहद बजली-पानी के बीच
एक पुजार के साथ बजली क चमक से राःता खोजते हये
ु रात-भर म< अपनी बड़ बहन
के गाँव पहँु चना और कुछ घंटे रहकर फर वापसी याऽा। फर दौड़-धूप! मगर मदद आ
गयी और शाद भी हो गयी।
इXहं परOःथितयL के बीच मेरे भीतर लेखक कैसे जXमा,यह सोचता हँू । पहले अपने द:ु खL
के ूित सZमोहन था। अपने को दखी
ु मानकर और मनवाकर आदमी राहत पा लेता है ।
बहत
ु लोग अपने िलये बेचारा सुनकर सXतोष का अनुभव करते ह2 । मुझे भी पहले ऐसा
लगा। पर म2ने दे खा,इतने Qयादा बेचारL म< म2 ]या बेचारा! इतने वकट संघष_ म< मेरा ]या
संघषF!
जागने वाले का रोना कभी ख/म नहं । यंय-लेखक क गदF श भी ख/म नहं होगी।
ताजा गदF श यह है क पछले दनL राजनीितक पद के िलये पापड़ बेलते रहे । कहं से
उZमीद दला द गई क राQयसभा म< हो जायेगा। एक महना बड़ गदF श म< बीता।
घुसपैठ क आदत नहं है ,िचट भीतर भेजकर बाहर बैठे रहने म< हर Gण मृ/यु-पीडा़ होती
है । बहादरु लोग तो महनL िचट भेजकर बाहर बैठे रहते ह2 ,मगर मरते नहं। अपने से नहं
बनता। पछले कुछ महने ऐसी गदF श के थे। कोई लाभ खुद चलकर दरवाजे पर नहं
आता। िचरौर करनी पड़ती है । लाभ थूकता है तो उसे हथेली पर लेना पड़ता है ,इस
कोिशश म< बड़ तकलीफ हई।
ु बड़ गदF श भोगी।
मेरे जैसे लेखक क एक गदF श और है । भीतर Oजतना बवंडर महसूस कर रहे ह2 ,उतना
शyदL म< नहं आ रहा है , तो दन-रात बेचन
ै ह2 । यह बड़ गदF श का वB होता है ,Oजसे
सजFक ह समझ सकता है ।
हरशंकर परसाई
-हरशं
यंय जीवन से साGा/कार करता है - हरशंकर परसाई
[यंय ]या होता है ? यंय क सामाOजक भूिमका ]या है तथा आद ूµL के बारे म<
परसाई जी ने अपने वचार अ]सर ूकट कये ह2 । १९६२ म< अपने यंय लेखL के संमह
‘सदाचार का ताबीज’ क भूिमका िलखते हये
ु परसाई जी ने इस बारे म< वःतार से िलखा
है । यह भूिमका म2 अपने सािथयL के िलये यहाँ पेश कर रहा हँू ।]
एक सQजन अपने िमऽ से मेरा परचय करा रहे थे-यह परसाईजी ह2 । बहत
ु अ[छे लेखक
ह2 । ह राइTस फनी िथंस।
कुछ पाठक समझते ह2 क म2 हमेशा उच]केपन और ह5केपन के मूड म< रहता हँू । वे
िचTठm म< मखौल करने क कोिशश करते ह2 ! एक पऽ मेरे सामने है । िलखा है - कहये
जनाब बरसात का मजा ले रहे ह2 न! मेढकL क जलतरं ग सुन रहे हLगे। इस पर भी िलख
डािलये न कुछ।
बहार के कसी कःबे से एक आदमी ने िलखा क तुमने मेरे मामा का, जो फारे ःट
अफसर है ,मजाक उड़ाया है । उसक बदनामी क है । म2 तुZहारे खानदान का नाश कर
दँ ग
ू ा। मुझे शिन िस$ है ।
कुछ लोग इस उZमीद से िमलने आते ह2 क म2 उXह< ठलठलाता ,कुलाँचे मारता,उछलता
िमलूँगा और उनके िमलते ह जो मजाक शुS कSँगा तो सारा दन दाँत िनकालते गुजार
द< गे। मुझे वे गZभीर और कम बोलने वाला पाते ह2 । कसी गZभीर वषय पर म2 बात छे ड़
दे ता हँू । वे िनराश होते ह2 । काफ लोगL का यह मत है क म2 िनहायत मनहस
ू आदमी हँू ।
और एक िमऽ मुझे उस दन सलाह दे रहे थे- तुZह< अब गZभीर हो जाना चाहये। इट
इज़ हाई टाइम!
यंय िलखने वाले क शे Oजड कोई एक नहं ह2 । ‘फ़नी’ से लेकर उसे मनुंयता क भावना
से हन तक समझा जाता है ।’मजा आ गया’ से लेकर ‘गZभीर हो जाओ’ तक क
ूितबयाय< उसे सुननी पढ़ती ह2 । फर लोग अपने या अपने मामा,काका के चेहरे दे ख लेते
ह2 और दँमन
ु बढ़ते जाते ह2 । एक बहत
ु बड़े वयोवृ$ गाँधी-भB साह/यकार मुझे अनैितक
लेखक समझते ह2 । नैितकता का अथF उनके िलये शायद गबoपन
ू होता है ।
लेकन इसके बावजूद ऐसे पाठकL का एक बड़ा वगF है ,जो यंय म< िनहत सामाOजक-
राजनीितक अथF संकेत को समझते ह2 । वे जब िमलते ह2 या िलखते ह2 तो मजाक के मूड
म< नहं। वे उन OःथितयL क बात करते ह2 ,Oजन पर म2ने यंय कया है ,वे उस रचना के
तीखे वा]य बनाते ह2 । वे हालातL के ूित िचOXतत होते ह2 ।
अ[छा,
अ[छा तो तुम लोग यंयकार ]या अपने ‘ूाफ
-अ[छा ूाफेट
़ ’ को समझते हो? फनी’
फनी कहने पर बुरा
हो ‘फनी
मानते हो।खुद हँ साते हो और लोग हँ सकर कहते ह2 -मजा आ गया,तो
गया तो बुरा मानते हो और
कहते हो-
हो-िसफF मजा आ गया?
गया तुम नहं जानते क इस तरह क रचनाय< ह5क मानी
जाती ह2 और दो घड़ के िलये पढ़ जाती ह2 । [यह बात म2 अपने-आपसे कहता हँू ,अपने-
आपसे ह सवाल करता हँू ।]
-जवाब: हँ सना अ[छm बात है । पकौड़े जैसी नाक को दे खकर भी हँ सा जाता है ,आदमी कुे
-जैसे भrके तो भी लोग हँ सते ह2 । साइकल पर डबल सवार िगर< ,तो भी लोग हँ सते ह2 ।
संगित के कुछ मान बजे हये
ु होते ह2 - जैसे इतने बड़े शरर म< इतनी बड़ नाक होनी
चाहये। उससे बड़ होती है ,तो हँ सी आती है । आदमी आदमी क ह बोली बोले,ऐसी
संगित मानी हुई है । वह कुे-जैसा भrके तो यह वसंगित हई
ु और हं सी का कारण।
असामंजःय,अनुपातहनता, वसंगित हमार चेतना को छोड़ दे ते ह2 । तब हँ सी भी आ सकती
है और हँ सी नहं भी आ सकती-चेतना पर आघात पड़ सकता है । मगर वसंगितयL के भी
ःतर होते ह2 । आदमी कुे क बोली बोले -यह एक वसंगित है । और वनमहो/सव का
आयोजन करने के िलये पेड़ काटकर साफ कये जाय<,जहाँ मXऽी महोदय गुलाब के ‘वृG’
क कलम रोप< -यह भी एक वसंगित है । दोनL म< भेद है ,गो दोनL से हँ सी आती है । मेरा
मतलब है - वसंगित क ]या अहिमयत है ,वह जीवन म< कस हद तक मह/वपूणF है ,वह
कतनी यापक है , उसका ूभाव कतना है -ये सब बात< वचारणीय ह2 । दाँत िनकाल दे ना
उतना मह/वपूणF नहं है ।
लेकन यार,इस
-ले यार इस बात से ]यL कतराते हो क इस तरह का साह/य ह5का ह माना जाता
है ?
-माना जाता है तो म2 ]या कSँ? भारतेXद ु युग म< ूतापनारायण िमौ और बालमुकुXद गु¦
जो यंय िलखते थे ,वह कतनी पीडा़ से िलखा जाता था। दे श क ददFु शा पर वे कसी
भी कौम के रहनुमा से Qयादा रोते थे। हाँ,यह सह है क इसके बाद wिच कुछ ऐसी हई
ु
क हाःय का लेखक वदषक
ू बनने को मजबूर हआ
ु ु टन
। ‘मदार और डमS’,'टन ु ’जैसे पऽ
िनकले और हाःयरस के क वयL ने ‘चLच’ और ‘काग’ जैसे उपनाम रखे। याने हाःय के
िलये रचनाकार को हाःयाःपद होना पड़ा। अभी भी यह मजबूर बची है । तभी कुंज बहार
पाCडे को ‘कुा’ शyद आने पर मंच पर भrककर बताना पड़ता है और काका हाथरसी को
अपनी पुःतक के कवर पर अपना काटFू न छपाना पड़ता है । बात यह है क हXद-उदF ू क
िमिौत हाःय-यंय परZपरा कुछ साल चली,Oजसने हाःय रस को भडौ़आ बनाया। इसम<
बहत
ु कुछ ह5का है । यह सीधी सामXती वगF के मनोरं जन क जSरत से पैदा हई
ु थी।
शौकत थानवी क एक पुःतक का नाम ह ‘कुितया’ है । अज़ीमबेग चुग़ताई नौकरानी क
लड़क से ‘ लटF ’ करने क तरकब< बताते ह2 ! कोई अचरज नहं क हाःय-यंय के लेखकL
को लोगL ने ह5के ,गैरOजZमेदार और हाःयाःपद मान िलया हो।
और ‘पीवाद
-और पीवाद’
पीवाद वाला हाःयरस!
हाःयरस! वह तो ःवःथ है ? उसम< पारवारक-
पारवारक-सZबXधL
सZबXधL क िनमFल
आ/मीयता होती है ?
-ी से मजाक एक बात है और ी का उपहास दसर
ू बात। हमारे समाज म< कुचले हये
ु
का उपहास कया जाता है । ी आिथFक Sप से गुलाम रह ,उसका कोई य B/व नहं
बनने दया गया,वह अिशOGत रह,ऐसी रह-तब उसक हनता का मजाक करना ‘सेफ’ हो
गया। पी के पG के सब लोग हन और उपहास के पाऽ हो गये-खासकर साला,गो हर
आदमी कसी न कसी का साला होता है । इसी तरह घर का नौकर सामXती परवारL म<
मनोरं जन का मा-यम होता है । उर भारत के सामXती परवारL क परदानशीन दिमत
रईस-जादयL का मनोरं जन घर के नौकर का उपहास करके होता है । जो Oजतना मूखF ,
सनक और पौwषहन हो ,वह नौकर उतना ह दलचःप होता है । इसिलये िसकXदर िमयाँ
चाहे काफ बु $मान हL,मगर जानबूझकर बेवकूफ बन जाते ह2 ]यLक उनका ऐसा होना
नौकर को सुरOGत रखता है । सलमा िस$क ने िसकXदरनामा म< ऐसे ह पारवारक
नौकर क कहानी िलखी है । म2 सोचता हँू िसकXदर िमयाँ अपनी नजर से उस परवार क
कहानी कह< ,तो और अ[छा हो।
तो ]या पी,साला
-तो पी साला,नौकर
साला नौकर,नौकरानी
नौकर नौकरानी आद को हाःय का वषय बनाना अिशता है ?
-’व5गर’ है । इतने यापक सामाOजक जीवन म< इतनी वसंगितयाँ ह2 । उXह< न दे खकर बीबी
क मूखत
F ा बयान करना बड़ संकणFता है ।
और ‘िश
िश’
िश और ‘अिश
अिश’
अिश ]या है ?
-अ]सर ‘िश’ हाःय क माँग वे करते ह2 ,जो िशकार होते ह2 । ॅाचार तो यह चाहे गा क
आप मुंशी क या साले क मजाक का िश हाःय करते रह< और उस पर चोट न कर< ।
हमारे यहाँ तो ह/यारे ’ॅाचार’ पीड़क से भी ‘िशता’ बरतने क माँग क जाती है -’अगर
जनाब बुरा न माने तो अजF है क ॅाचार न कया कर< । बड़ कृ पा होगी सेवक पर।’
ु
यंय म< चोट होती ह है । Oजन पर होती है वह कहते ह2 -’इसम< कटता आ गयी। िश
हाःय िलखा करये।’ माकF Tवेन क वे रचनाय< नये संकलनL म< नहं आतीं,Oजनम< उसने
अमेरक शासन और मोनोपोली के बOखये उधेड़े ह2 । वह उसे केवल िश हाःय का
मनोरं जन दे ने वाला लेखक बताना चाहते ह2 - ‘ह डलाइटे ड िमिलयXस’।
लेकन वह शायद मनुंय के बारे म< आशा खो चुका होता है । िनराशावाद हो जाता है ।
-ले
उसे मनुंय क बुराई ह दखती है । तुZहार रचनाओं म< दे खो-
ो-सब चरऽ बुरे ह ह2 ।
-यह कहना तो इसी तरह हआ
ु क डा]टर से कहा जाये क तुम wण मनोवृ के आदमी
हो। तुZह< रोग ह रोग दखते ह2 । मनुंय के बारे म< आशा न होती ,तो हम उसक
कमOजरयL पर ]यL रोते? ]यL उससे कहते क यार तू जरा कम बेवकूफ
, ववेकशील,स[चा और Xयायी हो जा।
अ[छा यार,
-अ[छा यार तुZह< आ/म-
आ/म-ूचार का मौका दया गया था। पर तुम अपना कुछ न कहकर
जनरल ह बोलते जा रहे हो। तुZहार रचनाओम को पढ़कर कुछ बात< पूछm जा सकती ह2 ।
]या तुम सुधारक हो?तु
हो तुमम< आयF समाजी-
समाजी-वृ दे खी जाती है ।
कोई सुधर जाये तो मुझे ]या एतराज है । वैसे म2 सुधार के िलये नहं,बदलने के िलये
-कोई
िलखना चाहता हँू । याने कोिशश करता हँू -चेतना म< हलचल हो जाये,कोई वसंगित नजर
के सामने आ जाये।इतना काफ है । सुधरने वाले खुद अपनी चेतना से सुधरते ह2 । मेर एक
कहानी है -’सदाचार का तावीज’। इसम< कोई सुधारवाद संकेत नहं ह2 । कुल इतना है क
तावीज बाँधकर आदमी को ईमानदार बनाने क कोिशश क जा रह है ,(भाषणL और
उपदे शL से)। सदाचार का तावीज बाँधे बाबू दसर
ू तारख को घूस लेने से इं कार कर दे ता
है मगर २९ तारख को ले लेता है -’उसक तXiवाह ख/म हो गयी । तावीज बंधा है , मगर
जेब खाली है ।’ संकेत म2 यह करना चाहता हँू क बना यवःथा परवतFन कये,ॅाचार के
मौके को ख/म कये और कमFचारयL को बना आिथFक सुरGा दये, भाषणL ,सकुFलरL,
उपदे शL,सदाचार सिमितयL,िनगरानी आयोगL के ¥ारा कमFचार सदाचार नहं होगा। इसम<
कोई उपदे श नहं है । उपदे श का चाजF वे लोग लगाते ह2 , जो कसी के ूित दािय/व का
कोई अनुभव नहं करते। वह िसफF अपने को मनुंय मानते ह2 और सोचते ह2 क हम
कड़L के बीच रहने को अिभश¦ ह2 । यह लोग तो कुे क दम
ु म< पटाखे क लड़ बाँधकर
उसम< आग लगाकर कुे के मृ/यु-भय पर भी ठहाका लगा लेते ह2 ।
अ[छा यार,
-अ[छा यार बात< तो और भी बहत
ु -सी करनी थीं। पर पाठक बोर हो जाय<गे। बस एक
बात बताओ-
बताओ-तुम इतना राजनीितक यंय ]यL िलखते हो?
हो
-इसिलये क राजनीित बहत
ु बड़ िनणाFयक श B हो गयी है । वह जीवन से ब5कुल िमली
हई
ु है । वयतनाम क जनता पर बम ]यL बरस रहे ह2 ? ]या उस जनता क कुछ अपनी
OजZमेदार है ? यह राजनीितक दाँव-प<च के बम ह2 । शहर म< अनाज और तेल पर
मुनाफाखोर कम नहं हो सकती,]यLक यापरयL के Gेऽ से अमुक-अमुक को चुनकर
जाना है ।राजनीित -िस$ाXत और यवहार क- हमारे जीवन का एक अंग है । उससे नफरत
करना बेवकूफ है । राजनीित से लेखक को दरू रखने क बात वह करते ह2 ,Oजनके िनहत
ःवाथF ह2 ,जो डरते ह2 क कहं लोग हम< समझ न जाय<। म2ने पहले भी कहा है क
राजनीित को नकारना भी एक राजनीित है ।
अ[छा तो बात को यहं ख/म कर< ! तुम अब राजनीित पर चचाF करने लगे । इससे
-अ[छा
ले बल िचपकते ह2 ।
-ले बल का ]या डर! दसरL
ू को दे शिोह कहने वाले,पाकःतान को भूखे बंगाल का चावल
‘ःमगल’ करते ह2 । ये सारे रहःय मुझे समझ म< आते ह2 । मुझे डराने क कोिशश मत करो।
हरशंकर परसाई
-हरशं
१९६२ म< ूकािशत सदाचार का ताबीज से साभार
[परसाईजी के लेखL क ौंखला म< पेश है उनका ूिस$ यंय लेख- पहला सफेद बाल।
इस लेख म< जो यौवन क परभाषा परसाईजी ने बतायी है वह मुझे खासतौर पर
आक षFत करती है -यौवन नवीन भाव, नवीन वचार महण करने क त/परता का नाम है ;
यौवन साहस, उ/साह, िनभFयता और खतरे -भर OजXदगी का नाम ह2 ,; यौवन लीक से बच
नाम
िनकलने क इ[छा का नाम है । और सबसे ऊपर, बेहचक बेवकूफ़ करने का नाम यौवन
है । | यह लेख पढ़ये और दे Oखये आपम< कतना यौवन बचा है । कतना बेहचक बेवकूफ़
करने का माoा बचा है आपम< ]
आज पहला सफ़ेद बाल दखा। कान के पास काले बालL के बीच से झांकते इस पतले
रजत-तार ने सहसा मन को झकझोर दया।
ऎसा लगा जैसे बसXत म< वनौी दे खता घूम रहा हंू क सहसा कसी झाड़ से शेर िनकल
पड़े ;
या पुराने जमाने म< कसी मजबूत माने जानेवाले कले क दवार पर रात को बेफ़ब
घूमते गरबीले कलेदार को बाहर से चढ़ते हए
ु शऽु के िसपाह क कलगी दख जाय;
या कसी पाकF के कुंज म< अपनी राधा को ॑दय से लगाये ूेमी को एकाएक राधा का बाप
आता दख जाय।
कालीन पर चलते हए
ु कांटा चुभने का ददF बड़ा होता है । म2 अभी तक कालीन पर चल
रहा था। रोज नरसीसस जैसी आ/म-रित से आईना दे खता था, घुंघराले काले केशL को
दे खकर, सहलाकर, संवारकर, ूसXन होता था। उॆ को ठे लता जाता था, वा$F]य को अंगूठा
दखाता था। पर आज कान म< यह सफ़ेद बाल फ़ुस-फ़ुसा उठा, ‘भाई
भाई मेरे, एक बात
कानफ़डे Xस’
‘कानफ़डे स म< कहंू - अपनी दकान
ू समेटना अब शुS कर दो!’
दो
तभी से दखी
ु हंू । ^ानी समझायेग<-जो अवँयZभावी है , उसके होने का ]या द:ु ख? जी हां,
मौत भी तो अवँयZभावी है । तो ]या OजXदगी-भर मरघट म< अपनी िचता रचते रह< ? और
^ानी से कहं हर दख
ु जीता गया? वे ]या कम ^ानी थे, जो मरणासXन लआमण का िसर
गोद म< लेकर वलाप कर रहे थे- ‘मे
मेरो सब पुSषारथ थाको!’
थाको Oःथतू^ दशFन अजुन
F को
समझानेवाले क आंख उ$व से गोकुल क यथा-कथा सुनकर, डबडबा आयी थी। मरण
को /यौहार
माननेवाले ह ॆ/यु से सबसे अिधक भयभीत होते ह2 । वे /योहार का ह5ला करके अपने
॑दय के स/य भय को दबाते ह2 ।
म2 वाःतव म< दखी
ु हंू । िसर पर सफ़ेद कफ़न बुना जा रहा है ; आज पहला तार डाला गया
है । उॆ बुनती जायगी इसे और यह यौवन क लाश को ढं क लेगा। द:ु ख नह होगा मुझे?
द:ु ख उXह< नहं होगा, जो बूढ़े ह जXमे है ।
मुझे गुःसा है , इस आईने पर। वैसे तो यह बड़ा दयालु है , वबित को सुधार-कर चेहरा
सुडौल बनाकर बताता रहा है । आज एकाएक यह कैसे बूर हो गया! ]या इस एक बाल
को िछपा नहं सकता था? इसे दखाये बना ]या उसक ईमानदार पर बड़ा कलंक लग
जाता? उदF -ू क वयL ने ऎसे संवेदनशील आईनL का Oजब कया है , जो माशूक के चेहरे म<
अपनी ह तःवीर दे खने लगते है , जो उस मुख के सामने आते ह गश खाकर िगर पड़ते
है ; जो उसे पूर तरह ूित बOZबत न कर सकने के कारण चटक जाते ह2 । सौXदयF का
सामना करना कोई खेल नहं है । मूसा बेहोश हो गया था। ऎसे भले आईने होते ह2 , उदF -ू
क वयL के। और यह एक हXद लेखक का आईना है ।
]या कSं? इसे उखाड़ फ़<कूं? लेकन सुना है , यद एक सफ़ेद बाल को उखाड़ दो, तो वहां
एक गु[छा सफ़ेद हो जाता है । रावण जैसा वरदानी होता, कमबiत। मेरे
चाचा ने एक नौकर सफ़ेद बाल उखाड़ने के िलए ह रखा था। पर थोड़े ह समय म< उनके
िसर पर कांस फ़ूल उठा था। एक तेल बड़ा ‘मनराखन
मनराखन ‘ हो गया है । कहते ह2 उससे बाल
काले हो जाते है (नाम नह िलखता, यथF ूचार होगा), उस तेल को लगाऊं ? पर उससे
भी शऽु मरे गा नहं, उसक वद~ बदल जायेगी। कुछ लोग Oखजाब लगाते है । वे बड़े
दयनीय होते ह2 । बुढ़ापे से हार मानकर, यौवन का ढLग रचते ह2 । मेरे एक परिचत Oखजाब
लगाते थे। शिनवार को वे बूढ़े लगते और सोमवार को जवान- इतवार उनका रं गने का
दन था। न जाने वे ढलती उॆ म< काले बाल कसे दखाते थे! शायद तीसरे ववाह क
पी को। पर वह उXह< बाल रं गते दे खती तो होगी ह। और ]या ी को केवल काले बाल
दखाने से यौवन का ॅम उ/मXन कया जा सकता है ? नहं, यह सब नहं होगा। शऽु को
िसर पर बठाये रखना पड़े गा। जानता हंू , धीरे -धीरे सब वफ़ादार बालL को अपनी ओर
िमला लेगा।
यह सब म2 कसी दसरे
ू से नहं कह रहा हंू , अपने आपको ह समझा रहा हंू । ¥मुखी संघषF
है यह- दसरL
ू को ॅिमत करना और मन को समझाना। दसरL
ू
से भय नह। सफ़ेद बालL से कसी और का ]या बगड़े गा? पर मन तो अपना है । इसे तो
समझाना ह पड़े गा क भाई तू परे शान मत हो। अभी ऎसा ]या हो गया है ! य¹ तो
पहला ह है । और फ़र अगर तू नह ढला होता, तो ]या बगड़नेवाला है !
पहले सफ़ेद बाल का दखना एक पवF है । दशरथ को कान के पास सफ़ेद बाल दखे, तो
उXहोने राम को राजगo दे ने का संक5प कया। उनके चार पुऽ थे। उXह< दे ने का सुभीता
था। म2 कसे सौपू? कोई कXधा मेरे सामने नह ह2 , Oजस पर यह गौरवमय भार रख दं ।ू
कस पुऽ को सौपूं? मेरे एक िमऽ के तीन पुऽ ह2 । सबेरे यह मेरा दशरथ अपने कुमारL को
चु5लू-चु5लू पानी िमला दध
ू बांटता है । इनके कXधे ह नह है -भार कहां रखेग<? बड़े
आदिमयL के दो तरह के पुऽ होते ह2 - वे जो वाःतव म< ह2 , पर कहलाते नहं है और वे जो
कहलाते है , पर ह2 नहं। जो कहलाते ह2 , वे धन-सZप के मािलक बनते ह2 और जो
वाःतव म< ह2 , वे कह पंखा खीचते ह2 या बतFन मांजते ह2 । होने से कहलाना Qयादा
लाभदायक है ।
पर हम ]या द< ? महायु$ क छाया म< बढ़े हम लोग; हम गरबी और अभाव म< पले लोग;
केवल Oजजी वषा खाकर Oजये हम लोग। हमार पीढ़ के बाल तो जXम से ह सफ़ेद ह2 ।
हमारे पास ]या ह2 ? हां, भ वंय है , लेकन वह भी हमारा नहं, आनेवालL का है । तो इतना
रं क नह हंू - वराट भ वंय तो है । और अब उरािधकार क समःया भी हल हो गयी। पुऽ
तो पीढ़यL के होते ह2 । केवल जXमदाता कसी का पता नहं होता। वराट भ वंय को
एक पुऽ ले भी कैसे सकता ह2 ? इससे ]या क कौन कसका पुऽ होगा, कौन कसका पता
कहलायेगा! मेर पीढ़ के समःत पुऽL! म2 तुZह< वह भ वंय ह दे ता हंू । य प वह अभी
मूF नहं हआ
ु है , पर हम जुटे ह2 , उसे मूF करने। हम नीव मे धंस रहे है क तुZहारे िलए
एक भय भ वंय रचा जा सके। वह एक वतFमान बनकर ह आयेगा- हमारा तो कोई
वतFमान भी नह था। म2 तुZह< भ वंय दे ता हंू और इसे दे ने का अथF यह है क हम
अपने-आपको दे रहे ह2 , ]योक उसके िनमाFण म< अपने-आपको िमटा रहे ह2 ।
लो सफ़ेद बाल दखने के इस पवF पर यह तुZहारा ूाcय संभालो। होने दो हमारे बाल
सफ़ेद। हम काम म< तो लगे है -जानते है क काम बXद करने और मरने का Gण एक ह
होता
होता है । हम< तुमसे कुछ नह चाहए। ययाित-जैसे ःवाथ. हम नह है जो पुऽ क जवानी
लेकर युवा हो गया था। बाल के साथ, उसने मुंह भी काला कर िलया।
हम< तुमसे कुछ नहं चाहए। हम नीव म< धंस रहे है ; लो हम तुZह< कलश दे ते है ।
ठठु रता हआ
ु गणतंऽ
चार बार म2 गणतXऽ-दवस का जलसा द5ली म< दे ख चुका हंू । पांचवीं बार दे खने का
साहस नहं। आOखर यह ]या बात है क हर बार जब म2 गणतXऽ-समारोह
दे खता, तब मौसम बड़ा बूर रहता। ºyबीस जनवर के पहले ऊपर बफ़F पड़ जाती है । शीत-
लहर आती है , बादल छा जाते ह2 , बूंदाबांद होती है और सूयF िछप जाता है । जैसे द5ली
क अपनी कोई अथFनीित नहं है , वैसे ह अपना मौसम भी नहं है । अथFनीित जैसे डालर,
पौCड, wपया, अXतराFीय मुिाकोष या भारत सहायता ]लब
से तय होती है , वैसे ह द5ली का मौसम कँमीर, िसO]कम, राजःथान आद तय करते ह2 ।
इतना बेवकूफ़ भी नहं क मान लूं , Oजस साल म2 समारोह दे खता हंू , उसी साल ऐसा
मौसम रहता है । हर साल दे खने वाले बताते ह2 क हर गणतXऽ-दवस पर मौसम ऐसा ह
ु
धूपहन ठठरनवाला होता है ।
दये। सूयF को बाहर िनकालने के िलये सौ वषF दये, मगर हर साल उसका छोटा-मोटा
कोना तो िनकलता दखना चाहये। सूयF कोई ब[चा तो है नहं जो अXतरG क कोख म<
अटका है , Oजसे आप आपरे शन करके एक दन म< िनकाल द< गे।
इधर जब कांमेस के दो हःसे हो गये तब म2ने एक इं डकेट कांमेस से पूछा। उसने कहा-
’हम हर बार सूयF को बादलL से बाहर िनकालने क कोिशश करते थे, पर हर बार
िसCडकेट वाले अडं गा डाल दे ते थे। अब हम वादा करते ह2 क अगले गणतXऽ दवस पर
सूयF को िनकालकर बताय<गे।
एक िसCडकेट पास खडा़ सुन रहा था। वह बोल पड़ा- ‘यह लेड(ूधानमंऽी) कZयुिनःटL
के च]कर म< आ गई है ।वह उसे उकसा रहे ह2 क सूयF को िनकालो। उXह< उZमीद है क
बादलL के पीछे से उनका cयारा ‘लाल सूरज’ िनकलेगा। हम कहते ह2 क सूयF को िनकालने
क ]या जSरत है ? ]या बादलL को हटाने से काम नहं चल सकता?
जनसंघी भाई से भी पूछा। उसने कहा-’ सूयF से]युलर होता तो इस सरकार क परे ड म<
िनकला आता। इस सरकार से आशा मत करो क भगवान अंशुमाली को िनकाल सकेगी।
हमारे राQय म< ह सूयF िनकलेगा।
ूसोपा भाई ने अनमने ढं ग से कहा-’ सवाल पेचीदा है । नेशनल कrिशल क अगली बैठक
म< इसका फ़ैसला होगा। तब बताउं गा।’
राजाजी से म2 िमल न सका। िमलता, तो वह इसके िसवा ]या कहते क इस राज म< तारे
िनकलते ह2 , यह गनीमत है ।’
ु
ःवतंऽता-दवस भीगता है और गणतXऽ-दवस ठठरता है ।
म2 ओवरकोट म< हाथ डाले परे ड दे खता हंू । ूधानमंऽी कसी वदे शी मेहमान के साथ खुली
गाड़ म< िनकलती ह2 । रे डयो टcपणीकार कहता है -’घोर करतल--विन हो रह है ।’ म2 दे ख
रहा हंू , नहं हो रह है । हम सब तो कोट म< हाथ डाले बैठे ह2 ।बाहर िनकालने का जी नहं
हो रहा है । हाथ अकड़ जाय<गे।
लेकन हम नहं बजा रहे ह2 , फर भी तािलयां बज रहं ह2 । मैदान म< जमीन पर बैठे वे
लोग बजा रहे ह2 , Oजनके पास हाथ गरमाने के िलये कोट नहं है । लगता है ,
ु
गणतXऽ ठठरते हये
ु हाथL क तािलयL पर टका है । गणतXऽ को उXहं हाथL क ताली
िमलतीं ह2 , Oजनके मािलक के पास हाथ िछपाने के िलये गमF कपडा़ नहं है ।
मगर टले को घेरे समाजवाद कहते ह2 -’पहले यह तय होगा क कौन तेरा हाथ पकड़कर
ले जायेगा।’
समाजवाद परे शान है । उधर जनता भी परे शान है । समाजवाद आने को तैयार खड़ा है ,
मगर समाजवादयL म< आपस म< धौल-धcपा हो रहा है । समाजवाद एक तरफ
उतरना चाहता है क उस पर प/थर पड़ने लगते ह2 ।’खबरदार, उधर से मत जाना!’ एक
समाजवाद उसका एक हाथ पकड़ता है , तो दसरा
ू हाथ पकड़कर खींचता है । तब बाक
ु दे ते ह2 । लहू-लुहान समाजवाद टले पर खड़ा है ।
समाजवाद छmना-झपट करके हाथ छड़ा
एक सिचव दसरे
ू सिचव से कहे गा-’लो, ये एक और वी.आई.पी. आ रहे ह2 । अब इनका
इXतजाम करो। नाक म< दम है ।’
कले]टरL को ह]म
ु चला जायेगा। कले]टर एस.ड.ऒ. को िलखेगा, एस.ड.ऒ.तहसीलदार
को।
द तरL म< बड़े बाबू छोटे बाबू से कह< गे-’काहे हो ितवार बाबू, एक कोई समाजवाद वाला
कागज आया था न! जरा िनकालो!’
ितवार बाबू कागज िनकालकर द< गे। बड़े बाबू फर से कह< गे-’अरे वह समाजवाद तो परसL
ह िनकल गया। कोई लेने नहं गया ःटे शन। ितवार बाबू, तुम कागज
दबाकर रख लेते हो। बड़ खराब आदत है तुZहार।’
तमाम अफसर लोग चीफ-सेबेटर से कह< गे-’सर, समाजवाद बाद म< नहं आ सकता? बात
यह है क हम उसक सुरGा का इXतजाम नहं कर सक<गे। पूरा फोसF
दं गे से िनपटने म< लगा है ।’
मुiय सिचव द5ली िलख दे गा-’हम समाजवाद क सुरGा का इं तजाम करने म< असमथF
ह2 । उसका आना अभी मुल/वी कया जाये।’
मु Bबोध भयंकर तनाव म< जीते थे। आिथFक क उXह< असीम थे। उन जैसे
रचनाकार का तनाव साधारण से बहत
ु अिधक होगा भी। वे सXऽास म< जीते थे। आजकल
सXऽास का दावा बहत
ु कया जा रहा है । मगर मु Bबोध का एक-चौथाई तनाव भी कोई
झेलता ,तो उनसे आधी उॆ म< मर जाता।
बीमार से लड़कर मु Bबोध िनOत जीत गये थे। बीमार ने उXह< मार दया ,पर तोड़
नहं सक। मु Bबोध का फौलाद य B/व अंत तक वैसा ह रहा। जैसे Oजंदगी म< कसी
से लाभ के िलये समझौता नहं कया,वैसे मृ/यु से भी कोई समझौता करने को वे तैयार
नहं थे।
वे मरे । हारे नहं। मरना कोई हार नहं होती।
राजनाँदगाँव म< तालाब के कनारे पुराने महल का दरवाजा है - नीचे बडे ़ फाटक के आसपास
कमरे ह2 ,दसर
ू मंOजल पर एक बड़ा हाल और कमरे ,तीसर मंOजल पर कमरे और खुली
ू हये
छत। तीन तरफ से तालाब घेरता है । पुराने दरवाजे और Oखड़कयाँ ,टटे ु झरोखे,कहं
Oखसकती हई
ु ´टे ,उखड़े हये
ु cलाःटर क दवार< । तालाब और उसके आगे वशाल मैदान।
शाम को जब ^ानरं जन और म2 तालाब क तरफ गये और वहाँ से धुध
ँ लके म< उस महल
को दे खा तो वह भयावह रहःय म< िलपटा वह नजर आया।
दसर
ू मंOजल के हाल के एक कोने म< वकलांग मु Bबोध खाट पर लेटे हये
ु थे। लगा, जैसे
इस आदमी का य B/व कसी मजबूत कले-सा है । कई लडा़इयL के िनशान उस पर ह2 ।
गोलL के िनशान ह2 ,पलःतर उखड़ गया है ,रं ग समय ने धो दया है -मगर Oजसक मजबूत
दवार< गहर नींव म< धंसी ह2 और वह िसर ताने गरमा के साथ खड़ा है ।
म2ने मजाक क,”इसम< तो ॄWराGस ह रह सकता है ।” मु Bबोध क एक क वता
है ,’ॄWराGस’। एक कहानी भी है Oजसम< शापमःत ॄWराGस महल के खँडहर म< रहता है ।
मु Bबोध जैसे सपने म< डू बते से बोले,” आप जहाँ बैठे ह2 वहाँ कसी समय राजा क
महफल जमती थी। खूब रोशनी होती होगी,नाच- गाने होते हLगे। तब यहाँ ऐयF क
चकाचrध चकाचrध थी। कुछ भी कहो ,पाटF नर,” यूडिलQम’(सामXतवाद) म< एक शान तो
थी…बरसात म< आइये यहाँ। इस कमरे म< रात को सोइये। तालाब खूब जोर पर होता
है ,साँय-साँय हवा चलती है और पानी रात-भर दवारL से टकराकर छप-छप करता
है …कभी-कभी तो ऐसा लगता है ,जैसे कोई नतFक नाच रह हो,घुँधwओं क आवाज
सुनायी पड़ती है । पछले साल शमशेर आये थे। हमलोग २-३ बजे तक सुनते रहे …और
पाटF नर बहत
ु खूबसूरत उ5लू…म2 ]या बताऊँ आपसे,वैसा खूबसूरत उ5लू म2ने कभी दे खा ह
नहं…कभी चमगादड़< घुस आती ह2 ”…बडे ़ उ/साह से वे उस वातावरण क बात< करते रहे ।
अपनी बीमार का जरा अहसास नहं।
दोपहर म< हम लोग पहँु चे थे। हम< दे खा ,तो मु Bबोध सदा क तरह-’अरे वाह,अरे
वाह’,कहते हये
ु हँ सते रहे । मगर दसरे
ू ह Gण उनक आँखL म< आँसू छलक पड़े । डे ढ़-एक
महने वे जबलपुर रहकर आये थे। एO]जमा से परे शान थे। बहत
ु कमजोर। बोलते-बोलते
दम फूल आता था। तब मुझे वे बहत
ु शंकामःत लगे थे। डरे हये
ु से। तब भी उनक
आँखL म< आँसू छलछला आये थे,जब उXहLने कहा था-पाटF नर अब बहत ू गये हम।
ु टट
Qयादा गाड़ Oखंचेगी नहं। दस,पाँच साल िमल जाय<,तो कुछ काम जमकर कर लूँ।
आँसू कभी पहले उनक आँखL म< नहं दे खे थे। इस पर हम लोग वशेष िचंितत हये
ु ।
िमऽL ने बहत
ु जोर दया क आप यहाँ एक महने wककर िचक/सा करा ल<। पर उXह<
wण पता को दे खने नागपुर जाना था। स¦ाह भर म< लौट आने का वादा करके चले
गये। फर वे लौटे नहं।
यह औपचारक नहं था। मु Bबोध क कसी भी भावना म< औपचारकता नहं- न ःनेह
म< ,न घृणा म< ,न बोध म<। Oजसे पसंद नहं करते थे,उसक तरफ घंटे भर बना बोले
आँखे फाड़े दे खते रहते थे। वह घबडा़ जाता था।
फर बोले -”िचOTठयाँ आती ह2 क आप यहाँ आ जाइये या वहाँ चले जाइये। पर कैसे
जाऊँ? जाना ]या मेरे वस क बात है ?…हाँ एक भयंकर क वता हो गयी। सुनाऊँगा नहं।
मुझे खुद उससे डर लगता है । बेहद डाकF,लूमी! भयंकर ‘इमेज<’ ह2 । न जाने कैसी
मन:Oःथित थी। क वता वा/ःयायनजी को भेज द है ।…पर अब लगता है ,वैसी बात है
नहं। Oजंदगी म< दम है । बहत
ु अ[छे लोग ह2 ,साथ।कतनी िचOTठयाँ िचXता क आयी ह2 ।
कतने लोग मुझे चंगा करना चाहते ह2 ! कतना ःनेह ,कतनी ममता है ,आसपास!
पाटF नर…अब दसर
ू क वता िलखी जायेगी।”
^ानरं जन ने कहा,” पछली भी सह थी और अब जो होगी,वह भी सह होगी।”
वे आःत से लगे। हम लोगL ने समझाया क बीमार मामूली है ,भोपाल म< एक-दो महने
म< ठmक हो जायेगी।
उनक आँखL म< चमक आ गयी। बोले,”ठmक हो जायेगी न! मेरा भी यह iयाल है । न हो
पूर ठmक ,कोई बात नहं। म2 लँगड़ाकर चल लूँगा। पर िलखने-पढ़ने लायक हो जाऊँ।”
इतने म< ूमोद वमाF आ गये। दे खते ह मु Bबोध फर हँ स पड़े ,”लो,अरे लो,ये भी आ गये!
वाह ,बड़ा मजा है ,साहब!”
तय हआ
ु क ज5द भोपाल ले चलना चाहये। िमऽL ने कुछ पैसा जहाँ-तहाँ से भेज दया
था। हम लोगL ने सलाह क क इसे रमेश के नाम से ब2क म< जमा कर दे ना चाहये।
वे अड़ गये। खाता मेरे नाम से खुलेगा। थोड़ दे र बाद कहने लगे,”बात यह है पाटF नर क
मेर इ[छा है ऐसी। ‘आई वश इट’। म2 नहं जानता क ब2क म< खाता होना कैसा होता है ।
एक नया अनुभव होगा मेरे िलये। तकFहन लालसा है -पर है जSर ,क एक बार अपना भी
एकाउXट हो जाये! जरा इस सXतोष को भी दे ख लूँ।”
मु Bबोध हमेशा ह घोर आिथFक संकट म< रहते थे। अभावL का ओर-छोर नहं था। कजF से
ु
लदे रहते थे। पैसा चाहते थे ,पर पैसे को ठकराते भी थे। पैसे के िलये कभी कोई काम
वास के ूितकूल नहं कया। अचरज होता है क Oजसे पैसे-पैसे क तंगी है ,वह wपयL
का मोह बना खटके कैसे छोड़ दे ता है । ब2क म< खाता खुलेगा-यह क5पना उनके िलये बड़
उेजक थी। गजानन माधव मु Bबोध का ब2क म< खाता है -यह अहसास वे करना चाहते
थे। वे शायद अिधक सुरOGत अनुभव करते।
तभी एक Qये¢ लेखक क िचTठm आयी क आप घबड़ाय< नहं,हम कुछ लेखक ज5द ह
अखबार म< आपक सहायता के िलये अपील ूकािशत करा रहे ह2 ।
उस शाम को रमेश ने एक िचTठm लाकर द,Oजसम< बीस wपये के नोट थे। िचTठm उनके
एक वाथ. क थी। उसने िलखा था क म2 एक जगह काम करके पढ़ाई का खचF चला
रहा हँू । आपके ूित मेर ौ$ा है । म2 दे ख रहा हँू क अथाFभाव के कारण आप जैसे
साह/यकार क िचक/सा ठmक से नहं हो पा रह है । म2ने ये बीस wपये बचाये ह2 । इXह<
आप महण कर< । ये मेर ह कमाई के ह2 ,इसिलये आप इXह< लेने म< संकोच न कर< । ःवयं
आपको wपये दे ने का साहस मुझम< नहं है ,इसिलये इस तरह पहँु चा रहा हँू ।
िचTठm और wपये हाथ म< िलये वे बड़ दे र तक Oखड़क के बाहर दे खते रहे । उनक आँख<
भर आयीं। बोले,”यह लड़का गरब है । उससे कैसे पैसे ले लूँ।”
वहाँ एक अ-यापक बैठे थे। उXहLने कहा,”लड़का भावुक है । वापस कर द< गे , तो उसे चोट
पहँु चेगी। ” मु Bबोध बहत
ु ि वत हो गये इस ःनेह से। बड़ दे र तक गुमसुम बैठे रहे ।
भोपाल जाने क तैयार होने लगी। उनका िमऽ -भाव फरजाग उठा। मुझसे कहने
लगे,”पाटF नर,म2 आपसे एक बात साफ कहना चाहता हँू । बुरा मत मानना। दे Oखये, आपक
जी वका िलखने से चलती है । आप अब भोपाल मेरे साथ चल<गे। वहाँ रह< गे। आप िलख
नहं पाय<गे, तो आपको आिथFक क होगा। म2 कहता हँू क आप मेरे पैसे को अपना पैसा
समझकर उपयोग म< लाइए।”
मु Bबोध बहत
ु गZभीर थे। हम लोग एक-दसरे
ू को दे ख रहे थे।
जो थोडे ़ से पैसे उनके हाथ म< आ गये थे,वे कुलबुला रहे थे। उXह< कतने ह कतFय याद
आ रहे थे। कोई िमऽ क म< है ,कसी क पी बीमार है ,कसी के ब[चL के िलये कपड़े
बनवान ह2 । उस अवःथा म< जब वे खुद अपंग हो गये थे और अथाFभाव से पीड़त थे,वे
दसरL
ू पर इन पैसL को खचF कर दे ना चाहते थे। आगे भोपाल म< तो इस बात पर
बाकायदा यु$ हआ
ु और बड़ मुOँकल से हम उXह< समझा सके क रोगी का कसी के
ूित कोई कतFय नहं होता,सबके कतFय उसके ूित होते ह2 ।
और उस रात हम लोग गाड़ पर चढ़े ,तो साथ म< रमL कागज था। मु Bबोध ने हठ
करके पूर क वताय¾,अधूर क वताय<, तैयार पाCडु िल पयाँ सब लदवा लीं। बोले, “यह सब मेरे
साथ जायेगा। एकाध ह ते बाद म2 कुछ काम करने लायक हो जाऊँगा ,तो क वताय< पूर
कSँगा, नयी िलखूग
ँ ा और पाCडु िल पयाँ दरःत
ु कSँगा। अपने से अःपताल म< बेकार पडा़
नहं रहा जायेगा,पाटF नर! और हाँ…,वह पासबुक रख ली है न?”
दे शबXधु,रायपुर
२६ अगःत,१९७३
ूय भाई,
यूँ तुम इस पऽ के अिधकार नहं हो,]यLक जब ५-६ महने पहले म2ने ५० वषF पूरे कये
थे तो तुमने मुझ पर कोई ूशंसा/मक लेख िलखना तो दरू रहा,बधाई क एक िचTठm तक
नहं भेजी। इसीिलये जब तुम पटकर ‘आल
आल इं डया’
डया से कुछ ऊपर के ‘फगर
फगर‘
फगर हो गये हो तो
म2ने तुZहार मातमपुरसी तक नहं क। इसिलये क कम-से-कम तुZहार लेखनी के िलये
कुछ और नया मसाला िमलेगा।
फर भी,बहत
ु दनL से तुमसे मुलाकात नहं हई
ु ,इसिलये यह सावFजिनक पऽ िलखे ह दे ता
हँू ताक लोगL को यह मालूम हो जाये क तुZहारे भी पचास वषF पूरे हो गये ह2 । दरअसल
उॆ तो चलती ह रहती है । बात तो उपलOyधयL क है । इस उॆ म< तुZहार कलम ने
बहत
ु जौहर दखाये ह2 और उसक वजह से तुZह< अOखल भारतीय iयाित भी ूा¦ हई
ु है ।
पर इससे ]या हआ
ु ? तुम अभी भी ऐसे मकान म< रहते हो,Oजसम< बरसात का पानी चूता
है ,Oजसके चारL ओर कोई Oखड़कयाँ नहं और कोई मकान बनाने लायक कमाई तुम कर
नहं पाये। उZमीद थी क सन ् ७२ म< राQयसभा के जो चुनाव हये
ु थे उसम< तुZहारा भी
एक नाम होगा, लेकन चुनाव तो तुम लड़ नहं सकते। जो लोग वोट दे ने वाले ह2 ,तुम
उनक ह बOखया उधेड़ते रहते हो,तब रापित ह तुZह< मनोनीत कर< यह एक वक5प
बाक है । वहाँ तक तुZहारा नाम पहँु चने के बावजूद पOम बंगाल बाजी मार ले गया।
दरअसल वहाँ भी बना कसी ऊँची िशफारश के कोई काम नहं हो सकता। अगले साल
फर कुछ उZमीद क जा सकती है ,और तुम कुछ करोगे नहं,इसीिलये इस लेख के ¥ारा
उन लोगL को याद दलाना चाहता हँू जो एक बार फर इसके िलये पहल कर< ।चुनाव लड़ने
का नतीजा तो तुम दे ख ह चुके हो। मुझे िसफF ५ वोट िमले और पं.¥ारका ूसाद िमौ
इसिलये मेर मदद नहं कर सके क रापित डा. राधाकृ ंणन ,कांमेसा-यG कामराज तथा
क<िय मXऽी मोरारजी दे साई ने ौीए.ड.मOण के नाम बचत वोट दे ने का परवाना भेज
दया था।
म.ू. म< रहकर िलखा-पढ़ म< ]या रखा है । तुम अगर द5ली म< रहो तो हो सकता है क
आगे-पीछे घूमने से तुZह< भी कोई ःकालरिशप िमल जाये। एकाध ःटे नोमाफर भी िमल
सकता है और कुछ साल तुम सुखी रह सकते हो। यह तो हम कई बार वचार ह चुके ह2
क इस तरह क हे राफेर के िलये द5ली का मौसम बहत
ु अनुकूल पड़ता है ।
िस$ाXतL से म2 भी बहत
ु िचपका हआ
ु हँू । लेकन अखबारL क हालत यह है क मँहगाई
का एक झLका नहं सह सके। पछले साल कुछ बड़े अखबारL ने अपने व^ापन- दर बढ़ा
दये तो हमारे जैसे बहत
ु -छोटे से अखबार माकट से आउट हो गये। सरकार क हम जSर
दाद दे ते रहते ह2 जो भले ह कुछ न करे ,लेकन छोटे अखबारL के साथ हमदद~ जSर
जताती रहती है । तुZहार दशा इससे कुछ अलग नहं है । तुZहार लेखनी पर खुश होकर
तुZह< हर साल एक-दो पुरःकार िमल जाते ह2 और इसका अथF यह लगा लेना चाहये क
तुम इससे अिधक और कोई अपेGा मत करो।
मेर सलाह मानो क अपनी कुटलता छोड़ दो। और तुम इससे बाज नहं आते। अभी
जब तुम पटे थे तो जबलपुर नगर संघ चालक दबड़गाँवकरजी ने तुZह< आःत कया था
क भ वंय म< तुZहारे साथ ऐसी कसी घटना क पुनरावृ नहं होगी। बेचारे
दबड़गाँवकरजी का सीधा आशय यह था क अगली बार संघ तुZहार रGा करे गा और एक
तुम हो क उसका अथF यह लगा िलया क तुZहार पहली पटाई संघ के ःवयंसेवकL ने
ह क थी। इसीिलये तो हनुमान वमाF का कहना है क हम लोग तुZहारा जो मरणोपराXत
साह/य ूकािशत कर< ग,े उसका नाम ‘परसाई
परसाई मXथमाला’
मXथमाला न रखके ‘परसाई
परसाई वषवमन’
वषवमन रख<गे।
कौन जानता है क तुम हम< यह मौका दोगे या नहं या हम लोग ह पहले चल द< गे।
पटने के बाद तुमने पुिलस ¥ारा कुछ न कये जाने क गुहार लगाई। अफसोस है क
शेषनारायण राय के मामले के अनुभव से तुमने कुछ नहं सीखा। दरअसल ,पुिलस
समदश. है । अगर कभी तुम कसी पुिलस थाने के सामने से िनकले होगे तो एक बडे ़ से
बोडF पर तुमने ‘दे
दे शभ B और जनसेवा’
ा िलखा दे खा होगा। बात सीधी है । जनसेवा का
मतलब होता है -बहजन
ु हताय, बहजन
ु सुखाय। तुम एक हो और पटाई करने वाले अनेक
एक का साथ दे ना जन-सेवा नहं होती। Oजस पG के लोग Qयादा हL उनका साथ दे ना
जनसेवा का ूतीक है ,और वह दे शभ B। इतनी छोट-सी बात तुZहार समझ म< बहत
ु
पहले आ जानी चाहये थी।
QयL-/यL करके तुZह< साह/य सZमेलन म< लाये। तुमने कुछ अ[छे काम भी कये।
लेकन राजनाँदगाँव सZमेलन क सबसे बड़ उपलOyध तुमने आदरणीय डा.बलदे व ूसाद
जी िमौ ¥ारा दये गये भोज को माना। सZमेलन के अ-यG पं. ूभुदयाल अOनहोऽी को
भी तुमने नहं छोड़ा। ऐसी Oःथित म< तुम साह/यकारL के बीच कैसे’ पापुलर’ हो सकते
हो? इसिलये (ौी हनुमान वमाF Gमा कर< ) हनुमान का iयाल है क Oजसे तुम यंय
समझते हो ,दरअसल वे चुटकुले ह2 ।
साह/य क बात छोडो़। म2 तुZह< तुZहारे ह आइने म< दे खना चाहता हँू । कुछ ऐसी आदत<
ह2 OजXह< तुम या तो ब5कुल छोड़ सकते हो या सीिमत कर सकते हो। यह जSर नहं
क ‘कक’ िमलने पर ह अ[छे साह/य क रचना क जा सकती है । म2ने ऐसा कुछ नहं
कया। इसके बाद भी ौीबाल पांडेय ने मुझे अ[छा सZपादक और क व मान िलया। यह
एक ऐसी सलाह है Oजस पर अमल करने के िलये म2 बार-बार तुमसे आमह करता रहा हँू ।
तुZहारे साह/य का ]या Oजब कSँ। वह अपने आपम< समृ$ है और कसी क ूशंसा का
मोहताज नहं । बहत
ु से यंयकार वा]य के वा]य उड़ा लेते ह2 और ःवनामधXय
अखबारL म< छप भी जाते ह2 । अगर तुZहारा साह/य इस लायक न होता तो वह चोर ]यL
क जाती।
तुZहारा
मायाराम सुरजन
दे शबXधु,रायपुर
७ िसतZबर,१९७३
cयारे भाई,
दे शबXधु रायपुर-जबलपुर म< तुZहारा खुला पऽ मेरे नाम पढ़ा।
म2 जानता हँू तुम अ/यXत भावुक हो। म2ने तुZहार आँखL म< आँसू दे खे ह2 । बन पड़ा तो
पLछे भी ह2 । तुमने भी मेरे आँसू पLछे ह2 । पर हम लोग सब वभाOजत य B/व (Oःपिलट
पसFनािलट) के ह2 । हम कहं कwण होते ह2 और कहं बूर होते ह2 । इस तtय को
ःवीकारना चाहये।
जहाँ तक मेरा सवाल है -म2 नहं जानता,मुझे यश कैसे िमल गया।म2ने अपना कतFय
कया। पटवाया पऽकार िमऽL ने मुझे लगातार छापकर।वनाF म2 कहं समझौता करके
‘मोनोपोली’ म< बैठ जाता। उXह< बा-य कया जाता है क वे ‘फयेट’ कार खरद< ]यLक यह
कZपनी क इQजत का सवाल है ।
साथ ह-
म2 आसन से नहं डोला तो थोडा़ यश िमल गया। पर तुZहारा िलखना ठmक है क साधना
और यश के बाद भी मेरा घर चू रहा है । पर यह हम जैसे लोगL क िनयित है । गा़िलब
ने कहा है -
अब तो दर ओ-दवार पे आ गया सyजा-गा़िलब,
हम बयाबाँ म< ह2 और घर पे बहार आई है ।।
तो यह चुनने का ूµ है । अपनी िनयित म2ने ःवयं चुनी। तुमने भी। मुझे कसी ने बा-य
नहं कया क म2 िलखूँ और ऐसा ूखर यंय िलखू।ँ यह मेरा अपना िनणFय था। जो
िनणFय म2ने खुद िलया । उसके खतरे को समझकर िलया। उसके परणाम भोगने के
अहसास के साथ िलया।
जहाँ तक राQयसभा क सदःयता का सवाल है ,तुम लड़े और हारे । पर तुम वचिलत नहं
हये
ु ,इसका म2 गवाह हँू । और तुम उसके गवाह हो क राQयसभा म< मनोनीत होने क
पहल म2ने नहं ,एक बड़े ^ानी राजनैितक नेता ने क थी। मुझे अपने घिन¢ िमऽ का तार
और शं क िमले। म2 गया ]यLक िमऽ का बुलावा था। पर तब तक केXि शासन इस
अहं कार म< था क उसने बंगाल जीत िलया ,इसिलये िस$ाथF शंकर रे क चल गयी और
मेरे समथFक राजनैितक पुwष क नहं चली। इं दराजी ने उनसे पूछा था मेरे सZबXध म<।
पर उXहLने टालमटोल का उर दया। वे जानते थे क उनका अवमू5यन हो रहा है । और
िस$ाथF क चल रह है , इसिलये मुझे िशकायत नहं ,वे भी मेरे लेखक बXधु ह2 ।
ूय परसाई जी,
२१ जून क घटना का समाचार १५ जुलाई के दनमान ¥ारा िमला।आपक यंय ूितभा
का कायल वष_ से हँू । आपके कोण समथFक भी हमारे समाज के wढ़मःत
अXध वास के Gय के उपचार के िलये आप अनथक परौम से जो इं जे]शन दे ते आ रहे
ह2 उसके िलये आभार ूकट करता हँू । २१ को आपक िन¢ा और साहस के िलये जो
ूमाण-पऽ आपको दया गया उसके िलये मेरा आदर ःवीकार< । आज से बीस-प[चीस साल
पहले जब म2 ‘जनयु$’ या अXयऽ ऐसा कुछ िलखता था तो भारतीय संःकृ ित क पीठ म<
ु मारने के अपराध म< मुझे धमक
खंजर भLकने और हXद ू धमF भावना के ³दय म< छर
भरे पऽ िमलते थे। आपके िलये धमकयाँ पयाF¦ नहं समझीं गयीं। यह आपके ूय से
अिधक साथFक होने का ूमाण है ।
काफले तो बहत
ु तेज रौ म< मगर,
रहबरL के कदम लड़खड़ाने लगे।
िमऽ मुझे जीवन म< अ[छे िमले,हालाँक शऽु म2ने Qयादा बनाये। पछले दनL बीमार
बहनोई,जो अब दे ह /यागकर गये ह2 ,क सेवा करते-करते भोपाल म< बीमार पड़ा तो रमन
कटनी लौटने के पहले मेरे होटल आये। म2 सो रहा था,तो रमन म2नेजर के पास दो सौ
wपये मेरे िलये जमा करके चले गये। तुम पूछोगे क बहनोई को ःवग.य ]यL नहं कहते।
मुझे पता क ह खबर नहं िमली क वे ःवगF म< ह2 या नकF म<।
तो िमऽ ऐसा ह क -
म2 तो तXहा ह चला था जािनबे मंOजल मगर,
लोग साथ आते गये काफला बनता गया।।
म2 तुZहारे जीवन संघष_ को जानता हँू । तुZहार मानिसक पीडा़ओं को भी। िमऽ म-य वगF
के बेटे होकर भी तुमने इतना कया यह तुZहारे ह दमखम क बात है । पर अब आगे
मत बढ़ाओ। Oजतना है उसी को सZभालो और संवरो,तुम अौी रामगोपाल माहे र कभी
नहं हो सकते। यह म2ने तुमसे पहले भी कहा था। इस उॆ म< योजना बनाकर काम
करना चाहये। पर तुZहारा और मेरा चरऽ ह ऐसा रहा है क ५० साल क उमर म< २०-
२२ साल के लड़के क तरह बताFव करते ह2 । है न ?
सःनेह
हरशंकर परसाई
-हरशं
बांितकार क कथा
‘बांितकार’ उसने उपनाम रखा था। खूब पढ़ा-िलखा युवक। ःवःथ, सुंदर। नौकर भी
अFछG। 'विोह। माIस7-लेिनन के उ;रण दे ता, चे-वेवारा का खास भIत।
कॉफ हाउस म> काफ दे र तक बैठता। खूब बात> करता। हमेशा बांितकारता के तनाव म>
रहता। सब उलट-पुलट दे ना है । सब बदल दे ना है । बाल बड़े , दाड़ करने से बढ़ाई हई।
ु
'विोह क घोषणा करता। कुछ करने का मौका ढंू ढ़ता। कहता- “मेरे 'पता क पीढ़ को
जNद मरना चाहए। मेरे 'पता घोर दकयानूस, जाितवाद, ूितबयावाद हP । ठे ठ बुजआ
ु7 ।
जब वे मर> गे तब मP न मुंडन कराऊंगा, न उनका ौा; कSंगा। मP सब परं पराओं का नाश
कर दं ग
ू ा। चे-वेवारा Tजंदाबाद।”
साथी ने कहा, “अगर तुUहारा Vयार कसी लड़क से हो जाए और संयोग से वह ॄाZण
हो तो तुम शाद करोगे न?”
एक दन उसने कायःथ लड़क से कोट7 म> शाद कर ली। उसे लेकर अपने शहर आया
और दोःत के घर पर ठहर गया।
बड़े शहदाना मूड म> था। कह रहा था, “आई ॄोक दे अर नेक। मेरा बाप इस समय िसर
धुन रहा होगा, मां रो रह होगी। मुहNले-पड़ोस के लोग\ को इक]ठा करके मेरा बाप कह
रहा होगा ‘हमारे िलए लड़का मर चुका’। वह मुझे ^याग दे गा। मुझे ूापट_ से वंिचत कर
दे गा। आई ड\ट केअर। मP कोई भी बिलदान करने को तैयार हंू । वह घर मेरे िलए दँु मन
का घर हो गया। बट आई 'वल फाइट टू द एंड-टू द एंड।”
उसका एक दोःत आया। बोला, “तुUहारे फादर कह रहे थे क तुम प^नी को लेकर सीधे
घर Iय\ नहं आए। वे तो काफ शांत थे। कह रहे थे, लड़के और बहू को घर ले आओ।”
बांितकार कNपनाओं म> था। हिथयार पैने कर रहा था। बाSद सुखा रहा था। बांित का
िनणा7यक cण आने वाला है । मP वीरता से लडू ं गा। बिलदान हो जाऊंगा।
तीसरे दन उसका एक खास दोःत आया। उसने कहा, “तुUहारे माता-'पता टै Iसी लेकर
तुUह> लेने आ रहे हP । इतवार को तुUहार शाद के उपलआय म> भोज है । यह िनमंऽण-पऽ
बांटा जा रहा है ।”
बांितकार ने सर ठ\क िलया। पसीना बहने लगा। पीला हो गया। बोला, “हाय, सब ख^म
हो गया। Tजंदगी भर क संघष7-साधना ख^म हो गयी। नो ःशगल। नो रे वोNयूशन। मP हार
गया। वे मुझे लेने आ रहे है । मP लड़ना चाहता था। मेर बांितकारता! मेर बांितकारता!
दे वी, तू मेरे बाप से मेरा ितरःकार करवा। चे-वेवारा! डयर चे!”
उसक प^नी चतुर थी। वह दो-तीन दन\ से बांितकारता दे ख रह थी और हं स रह थी।
उसने कहा, “डयर एक बात कहंू । तुम बांितकार नहं हो।”
प'वऽता का दौरा
सुबह क डाक से िच]ठG िमली, उसने मुझे इस अहं कार म> दन-भर उड़ाया क मP प'वऽ
आदमी हंू Iय\क साह^य का काम एक प'वऽ काम है । दन-भर मPने हर िमलने वाले
को तुFछ समझा। मP हर आदमी को अप'वऽ मानकर उससे अपने को बचाता रहा।
प'वऽता ऐसी कायर चीज है क सबसे डरती है और सबसे अपनी रcा के िलए सचेत
रहती है । अपने प'वऽ होने का एहसास आदमी को ऐसा मदमाता है क वह उठे हए
ु सांड
क तरह लोग\ को सींग मारता है , ठे ले उलटाता है , बFच\ को रगेदता है । प'वऽता क
भावना से भरा लेखक उस मोर जैसा होता है Tजसके पांव म> घुंघS बांध दए गए ह\। वह
इऽ क ऐसी शीशी है जो गंद नाली के कनारे क दकान
ु पर रखी है । यह इऽ गंदगी के
डर से शीशी म> ह बंद रहता है ।
इतने साल साह^य के cेऽ म> हो गए। मP कई बार प'वऽ होने क दघ7
ु टना म> फंसा, पर
हर बार बच गया। मुझे िलखते जब कुछ ह समय हआ
ु था, तभी बुजुग7 साह^यकार
मुझसे कहते थे- आपने साह^य रचना का काय7 अपने हाथ म> िलया है । माता वीण-पाTण
के मंदर क प'वऽता बनाए रTखए। मP थोड़ा फूलता था। सोचता था, िसगरे ट पीना छोड़
दं ू Iय\क इस धुए
ं से दे वी के मंदर के धूप क सुगंध दबती होगी। पर मP उबर आया। वे
बुजुग7 कहते- मां भारती ने आपके सामने आंचल फैलाया है । उसे मTणय\ से भर दTजए।
(वैसे क'व ‘अंचल’ उस दन कह रहे थे क हम तो अब ‘रजाई’ हो गए)। जी हां, मां
भारती के अंचल म> आप कचरा डालते जाएं और उसी म> मP मTण छोड़ता जाऊं। ये प'वऽ
लोग और प'वऽ ह िलखने वाले लोग बड़े दलचःप होते हP । एक मुझसे बार-बार कहते-
आप अब कुछ शाँवत साह^य िलTखए। मP तो शाँवत साह^य ह िलखता हंू । वे स]टे
का फगर रोज नया लगाते थे, मगर साह^य शाँवत िलखते थे। वे मुझे बाNमीक क
तरह दमक\ के बमीठे म> दबे हए
ु लगते थे। शाँवत साह^य िलखने का संकNप लेकर
बैठने वाले मPने तुरंत मरते दे खे हP । एक शाँवत साह^य िलखने वाले ने कई साल पहले
मुझसे कहा था- अरे , आप ःकूल माःटर होकर भी इतना अFछा िलखते हP । मP तो सोचता
था, आप ूोफेसर ह\गे। उbह\ने ःकूल-माःटर लेखक क हमेशा उपेcा क। वे खुद
ूोफेसर रहे । पर आगे उनक यह दग7
ु ित हई
ु क उbह> कोस7 म> लगी मेर ह रचनाएं कcा
म> पढ़ानी पड़ं। उनका शाँवत साह^य कोस7 म> नहं लगा।
सोचता हंू , हम कहां के प'वऽ हP । हमम> से अिधकांश ने अपनी लेखनी को रं ड बना दया
है , जो पैसे के िलए कसी के भी साथ सो जाती है । स^ता इस लेखनी से बला^कार कर
लेती है और हम रपोट7 तक नहं करते। कतने नीच\ क तारफ मPने नहं िलखी। कतने
िमlया का ूचार मPने नहं कया। अखबार\ के मािलक\ का [ख दे खकर मेरे स^य ने Sप
बदले हP । मुझसे िसनेमा के चाहे जैसे डायलाग कोई िलखा ले। मP इसी कलम से
बला^कार क ूशंसा म> भी फNमी गीत िलख सकता हंू और भगवm भजन भी िलख
सकता हंू । मुझसे आज पैसे दे कर मजदरू 'वरोधी अखबार का संपादन करा लो और कल
मP उससे nयादा पैसे लेकर शे ड-यूिनयन के अखबार का संपादन कर दं ।ू इसी कलम से
मPने पहले ‘इं दरा गांधी Tजंदाबाद’ िलखा था, फर ‘इं दरा गांधी मुदा7बाद’ िलखा था, और
अब फर ‘इं दरा भारत है ’ िलख रहा हंू ।
Iया हमार प'वऽता है ? साह^य भवन क प'वऽता को िसनेमा भवन Iया नंट कर
दे गा? पर होता तो है प'वऽता, शराफत, चरऽ का एक गुमान। इधर ह एक मुहNले म>
िसनेमा बनने वाला था, तो शरफ\ ने बड़ा हNला मचाया- यह शरफ\ का मोहNला है ।
यहां शरफ Toयां रहती हP और यहां िसनेमा बन रहा है । गोया िसनेमा गुंड\ के मोहNले
म> बनना चाहए ताक इनके घर\ क शरफ औरते िसनेमा दे खने गुंड\ के बीच जाएं।
मुहNले म> एक आदमी रहता है । उससे िमलने एक ःऽी आती है । एक सnजन कहने लगे-
यह शरफ\ का मुहNला है । यहां यह सब नहं होना चाहए। दे Tखए, फलां के पास एक
ःऽी आती है । मPने कहा- साहब, शरफ\ का मुहNला है , तभी तो वह ःऽी अपने पु[ष
िमऽ से िमलने बेखटके आती है । Iया वह गुंड\ के मुहNले म> उससे िमलने जाती?
मP शाम वाले पऽ से हNका हो गया। प'वऽता का मेरा नशा उतर गया। मPने सोचा,
साह^य भवन के सिचव को िलखू-ं मुझे दसरे
ू पc का पऽ भी िमल गया है Tजसम>
बताया गया है क अपनी संःथा म> कतना ॅंटाचार है । अब तो िसनेमा-मािलक को ह
मांग करनी चाहए क यह साह^य क संःथा यहां से हटाई जाए, Tजससे दश7क\ क
नैितकता पर बुरा असर न पड़े । इसम> बड़ा ॅंटाचार है ।
पुिलस-
लस-मंऽी का पुतला
अफसर\ ने कहा, “गजब करते हो। मंऽी का पुतला है । उसे हम कैसे जलाएंगे? नौकर
खोना है Iया?”
इतने म> रामलीला का मौसम आ गया। एक बड़े पुिलस अफसर को ‘ॄेनवेव’ आ गई।
उसने रामलीला वाल\ को बुलाकर कहा, “तुUह> दशहरे पर जलाने के िलए रावण का पुतला
चाहए न? इसे ले जाओ। इसम> िसफ7 नौ िसर कम हP , सो लगा लेना।”
वह जो आदमी है न
िनंदा म> 'वटािमन और ूोटन होते हP । िनंदा खून साफ करती है , पाचन-बया ठGक करती
है , बल और ःफूित7 दे ती है । िनंदा से मांसपेिशयां पुंट होती हP । िनंदा पायरया का तो
शित7या इलाज है । संत\ को परिनंदा क मनाह होती है , इसिलए वे ःविनंदा करके
ःवाःlय अFछा रखते हP । ‘मौसम कौन कुटल खल कामी’- यह संत क 'वनय और
आ^मलािन नहं है , टॉिनक है । संत बड़ा कांइया होता है । हम समझते हP , वह
आ^मःवीकृ ित कर रहा है , पर वाःतव म> वह 'वटािमन और ूोटन खा रहा है ।
ःवाःlय 'वhान क एक मूल ःथापना तो मPने कर द। अब डॉIटर\ का कुल इतना काम
बचा क वे शोध कर> क कस तरह क िनंदा म> कौन से और कतने 'वटािमन होते हP ,
कतना ूोटन होता है । मेरा अंदाज है , ःऽी संबंधी िनंदा म> ूोटन बड़ माऽा म> होता है
और शराब संबंधी िनंदा म> 'वटािमन बहत
ु होते हP ।
मेरे सामने जो ःवःथ सnजन बैठे थे, वे कह रहे थे- आपको मालूम है , वह आदमी शराब
पीता है ?
मPने uयान नहं दया। उbह\ने फर कहा- वह शराब पीता है ।
िनंदा म> अगर उ^साह न दखाओ तो करने वाल\ को जूता-सा लगता है । वे तीन बार
बात कह चुके और मP चुप रहा, तीन जूते उbह> लग गए। अब मुझे दया आ गई। उनका
चेहरा उतर गया था।
वे चकत हए।
ु बोले- पीने दो, आप कहते हP पीने दो?
मPने कहा- हां, हम लोग न उसके बाप हP , न शुभिचंतक। उसके पीने से अपना कोई
नुकसान भी नहं है ।
तब मPने लगातार उनसे कुछ सवाल कर डाले- आप चावल nयादा खाते हP या रोट? कस
करवट सोते हP ? जूते म> पहले दाहना पांव डालते हP या बायां? ःऽी के साथ रोज संभोग
करते हP या कुछ अंतर दे कर?
अब वे ‘हं-हं’ पर उतर आए। कहने लगे- ये तो ूाईवेट बात> हP , इनसे Iया मतलब।
मPने कहा- वह Iया खाता-पीता है , यह उसक ूाईवेट बात है । मगर इससे आपको जSर
मतलब है । कसी दन आप उसके रसोईघर म> घुसकर पता लगा ल>गे क कौन-सी दाल
बनी है और सड़क पर खड़े होकर िचNलाएंगे- वह बड़ा दराचा
ु र है । वह उड़द क दाल
खाता है ।
तनाव आ गया। मP पोलाइट हो गया- छोड़ो यार, इस बात को। वेद म> सोमरस क ःतुित
म> 60-62 मंऽ हP । सोमरस को 'पता और ईँवर तक कहा गया है । कहते हP - तुमने मुझे
अमर बना दया। यहां तक कहा है क अब मP पृlवी को अपनी हथेिलय\ म> लेकर मसल
सकता हंू ।(ऋ'ष को nयादा चढ़ गई होगी।) चेतन को दबाकर राहत पाने या चेतना का
'वःतार करने के िलए सब जाितय\ के ऋ'ष कसी मादक िय का उपयोग करते थे।
फर राजनीित आ गई। छोT़डए। बात शराब क हो रह थी। इस संबंध म> जो िशcाूद
बात> ऊपर कहं हP , उन पर कोई अमल करे गा, तो अपनी ‘रःक’ पर। नुकसान क
TजUमेदार कंपनी क नहं होगी। मगर बात शराब क भी नहं, उस प'वऽ आदमी क हो
रह थी, जो मेरे सामने बैठा कसी के दराचार
ु पर िचंितत था।
मP िचंितत नहं था, इसिलए वह नाराज और दखी
ु था।
वह मुझसे 'बNकुल िनराश हो गया। सोचता होगा, कैसा प^थर आदमी है यह क इतने
ऊंचे दज के ‘ःकPडल’ म> भी दलचःपी नहं ले रहा। वह उठ गया। और मP सोचता रहा
क लोग समझते हP क हम Tखड़क हवा और रोशनी के िलए बनवाते हP , मगर वाःतव
म> Tखड़क अंदर झांकने के िलए होती है ।
कतने लोग हP जो ‘चरऽहन’ होने क इFछा मन म> पाले रहते हP , मगर हो नहं सकते
और िनरे ‘चरऽवान’ होकर मर जाते हP । आ^मा को परलोक म> भी चैन नहं िमलता
होगा और वह पृlवी पर लोग\ के घर\ म> झांककर दे खती होगी क कसका संबंध कससे
चल रहा है ।
कसी ःऽी और पु[ष के संबंध म> जो बात अखरती है , वह अनैितकता नहं है , बTNक यह
है क हाय उसक जगह हम नहं हए।
ु ऐसे लोग मुझे चुग
ं ी के दरोगा मालूम होते हP । हर
आते-जाते ठे ले को रोककर झांककर पूछते हP - तेरे भीतर Iया िछपा है ?
वे बेचारे वाःतव म> िशकायत करते हP क 'पताजी, आपक बेट हम> ‘चरऽहन’ होने का
चांस नहं दे रह है । उसे डांटए न क हम> भी थोड़ा चरऽहन हो लेने दे ।
Tजस आदमी क ःऽी-संबंधी कलंक कथा वह कह रहा था, वह भला आदमी है - ईमानदार,
सFचा, दयालु, ^यागी। वह धोखा नहं करता, कालाबाजार नहं करता, कसी को ठगता
नहं है , घूस नहं खाता, कसी का बुरा नहं करता।
एक ःऽी से उसक िमऽता है । इससे वह आदमी बुरा और अनैितक हो गया।
बड़ा सरल हसाब है अपने यहां आदमी के बारे म> िनण7य लेने का। कभी सवाल उठा होगा
समाज के नीितवान\ के बीच के नैितक-अनैितक, अFछे -बुरे आदमी का िनण7य कैसे कया
जाए। वे परे शान ह\गे। बहत
ु सी बात\ पर आदमी के बारे म> 'वचार करना पड़ता है , तब
िनण7य होता है । तब उbह\ने कहा होगा- nयादा झंझट म> मत पड़ो। मामला सरल कर
लो। सार नैितकता को समेटकर टांग\ के बीच म> रख लो।
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घायल बसंत
मPने सोचा, Tजसे बसbत के आने का बोध भी अपनी तरफ से काराना पड़े , उस 'ूय से तो
शऽु अFछा। ऐसे नासमझ को ूकृ ित - 'वhान पढ़ाय>गे या उससे Vयार कर> गे। मगर क'व
को न जाने Iय\ ऐसा बेवकूफ पसbद आता है ।
पहली पं'p सुनते ह मP समझ गया क इस क'वता का अbत ‘हा हbत’ से होगा, और
हआ।
ु अbत, सbत, दगbत आद के बाद िसवा 'हा हbत' के कौन पद पूरा करता ? तुक क
यह मजबूर है । लीक के छोर पर यह गहरा गढ़ा होता है । तुक क गुलामी करोगे तो
आरUभ चाहे 'बसbत ' से कर लो, अbत जSर ' हा हbत ' से होगा। िसफ7 क'व ऐसा नहं
करता। और लोग भी, सयाने लोग भी , इस चIकर म> होते है । य'pगत और सामाTजक
जीवन म> तुक पर तुक 'बठाते चलते है । और 'वसbत ' से शुS करके 'हा हbत' पर पहंु चते
हP । तुक> बराबर फ़ट बैठती हP , पर जीवन का आवेग िनकल भागता है । तुक> हमारा पीछा
छोड़ ह नहं रह हP । हाल ह म> हमार समाजवाद सरकार के अथ7मbऽी ने दबा सोना
िनकालने क जो अपील क , उसक तुक शुuद सव
दय से िमलायी -- 'सोना दबाने वालो
, दे श के िलए ःवेFछा से सोना दे दो।' तुक उाम ूकार क थी; साँप तक का दल नहं
दखा।
ु पर सोना चार हाथ और नीचे चला गया। आTखर कब हम तुक को ितलांजिल द> गे
? कब बेतुका चलने क हUमत कर> गे ?
क'व ने क'वता समा कर द थी। उसका 'हा हbत' आ गया था। मPने कहा, 'धोरे क !' 7
तुक\ म> ह ट> बोल गया। राक'व इस पर कम -कम-कम 51 तुक> बॉधते। 9 तुक> तो
उbह\ने 'चब' पर बांधी हP । ( दे खो 'यशोधरा ' पृ 13 ) पर तू मुझे Iया बतायेगा क बसbत
आ गया। मुझे तो सुबह से ह मालूम है । सबेरे वसbत ने मेरा दरवाजा भी खटखटाया
था। मP रजाई ओढ़े सो रहा था। मPने पूछा – “कौन?” जवाब आया-- '' मP वसbत। '' मP
घबड़ा उठा। Tजस दकान
ू से सामान उधार लेता हँू , उसके नौकर का नाम भी वसbतलाल
है । वह उधार वसूल करने आया था। कैसा नाम है , और कैसा काम करना पड़ता है इसे !
इसका नाम पतझड़दास या तुषारपात होना था। वसbत अगर उधार वसूल करता फरता
है , तो कसी दन आनbदकर थानेदार मुझे िगरqतार करके ले जायेगा और अमृतलाल
जNलाद फॉसी पर टांग दे गा !
वसbतलाल ने मेरा मुहू त7 'बगाड़ दया। इधर से कहं ऋतुराज वसbत िनकलता होगा, तो
वह सोचेगा क ऐसे के पास Iया जाना Tजसके दरवाजे पर सबेरे से उधारवाले खड़े रहते
हP ! इस वसbतलाल ने मेरा मौसम ह खराब कर दया।
मPने उसे टाला और फर ओढ़कर सो गया। ऑख> झंप गयीं । मुझे लगा, दरवाजे पर फर
दःतक हई।
ु मPने पूछा --कौन? जवाब आया—“मP वसbत !” मP खीझ उठा - '' कह तो दया
क फर आना।'' उधर से जवाब आया—“मै। बार-बार कब तक आता रहंू गा ? मP। कसी
बिनये का नौकर नहं हंू ; ऋतुराज वसbत हंू । आज तुUहारे ार पर फर आया हंू और
तुम फर सोते िमले हो। अलाल , अभागे, उठकर बाहर तो दे ख। ठंू ठ\ ने भी नव पNलव
पहन रखे हP । तुUहारे सामने क ूौढ़ा नीम तक नवोढ़ा से हाव -भाव कर रह है -- और
बहत
ु भr लग रह है ।''
मैने मुंह उधाड़कर कहा-, '' भई, माफ़ करना , मPने तुUह> पहचाना नहं। अपनी यह 'वडUबना
है क ऋतुराज वसbत भी आये, तो लगता है , उधार के तगादे वाला आया। उमंग> तो मेरे
मन म> भी हP , पर यार, ठBड बहत
ु लगती है ।'' वह जाने के िलए मुड़ा। मPने कहा, '' जाते -
जाते एक छोटा-सा काम मेरा करते जाना। सुना है तुम ऊबड़ -खाबड़ चेहर\ को िचकना
कर दे ते हो ; 'फेसिलTqटं ग' के अFछे कारगर हो तुम। तो जरा यार, मेर सीढ़ ठGक करते
जाना, उखड़ गयी है । ''
उसे बुरा लगा। बुरा लगने क बात है । जो सुbदरय\ के चेहरे सुधारने का कारगर है , उससे
मPने सीढ़ सुधारने के िलए कहा। वह चला गया।
मP उठा और शाल लपेटकर बाहर बरामदे म> आया। हज़ार\ साल\ के संिचत संःकार मेरे
मन पर लदे हP ; टन\ क'व - कNपनाएं जमी हP । सोचा, वसbत है तो कोयल होगी ह ।
पर न कहं कोयल दखी न उसक कूक सुनायी द। सामने क हवेली के कंगूरे पर बैठा
कौआ 'कांव-कांव' कर उठा। काला, कुSप, कक7श कौटा-- मेर सौदय7-भावना को ठे स
लगी। मPने उसे भगाने के िलए कंकड़ उठाया। तभी खयाल आया क एक परUपरा ने कौढ
को भी ूिता दे द है । यह 'वरहणी को 'ूयतम के आगमन का सbदे सा दे ने वाला
माना जाता है । सोचा , कहं यह आसपास क कसी 'वरहणी को 'ूय के आने का सगुन
न बता रहा हो। मै। 'वरहTणय\ के राःते म> कभी नहं आता ; पितोताओं से तो बहत
ु
डरता हंू । मPने कंकड़ डाल दया। कौआ फर बोला। नाियका ने सोने से उसक च\च मढ़ाने
का वायदा कर दया होगा। शाम क गाड़ से अगर नायक दौरे से वा'पस आ गया , तो
कल नाियका बाजार से आनेवाले सामान क जो सूची उसके हाथ म> दे गी, उसम> दो तोले
सोना भी िलखा होगा। नायक पूछेगा , '''ूये, सोना तो अब काला बाजार म> िमलता है ।
लेकन अब तुम सोने का करोगी Iया?'' नाियका लजाकर कहे गी , '' उस कौए क च\च
मढ़ाना है , जो कल सेबेरे तुUहारे आने का सगुन बता गया था।'' तब नायक कहे गा, '' 'ूय,
तुम बहत
ु भोली हो। मेरे दौरे का काय7बम यह कौआ थेड़े ह बनाता है ; वह कौआ बनाता
है Tजसे हम 'बड़ा साहब' कहते हP । इस कलूटे क च\च सोने से Iय\ मढ़ाती हो? हमार
दद7ु शा का यह तो कारण है क तमाम कौए सोने से च\च मढ़ाये हP , और इधर हमारे पास
हिथयार खरदने को सोना नहं हP । हम> तो कौओं क च\च से सोना खर\च लेना है । जो
आनाकानी कर> गे, उनक च\च काटकर सोना िनकाल ल>गे। 'ूये, वह बड़ ग़लत परUपरा है ,
Tजसम> हं स और मोर क च\च तो नंगी रहे , पर कौए क च\च सुbदर खुद सोना मढ़े ।''
नाियका चुप हो जायेगी। ःवण7 - िनयbऽण कानून से सबसे nयादा नुकसान कौओं और
'वरहTणय\ का हआ
ु है । अगर कौए ने 14 केरे ट के सोने से च\च मढ़ाना ःवीकार नहं
कया, तो 'वरहणी को 'ूय के आगमन क सूचना कौन दे गा? कौआ फर बोला। मP इससे
युग\ से घृणा करता हंू ; तब से, जब इसने सीता के पांव म> च\च मार थी। राम ने अपने
हाथ से फूल चुनकर, उनके आभूषण बनाकर सीता को पहनाये। इसी समय इbि का
'बगडै ़ल बेटा जयbत आवारागद_ करता वहां आया और कौआ बनकर सीता के पांव म>
च\च मारने लगा। ये बड़े आदमी के 'बगडै ल लड़के हमेशा दसर\
ू का ूेम 'बगाड़ते हP । यह
कौआ भी मुझसे नाराज हP , Iय\क मPने अपने घर के झरोख\ म> गौरै य\ को घ\सले बना
लेने दये हP । पर इस मौसम म> कोयल कहां है ? वह अमराई म> होगी। कोयल से अमराई
ू
छटती नहं है , इसिलए इस वसbत म> कौए क बन आयी है । वह तो मौक़ापरःत है ;
घुसने के िलए पोल ढंू ढता है । कोयल ने उसे जगह दे द है । वह अमराई क छाया म>
आराम से बैठG है । और इधर हर ऊंचाई पर कौआ बैठा 'कॉव-कॉव' कर रहा है । मुझे
कोयल के पc म> उदास पुरातन ूेिमय\ क आह भी सुनायी दे ती है , ' हाय, अब वे
अमराइयां यहां कहां है क कोयल> बोल>। यहां तो ये शहर बस गये हP , और कारखाने बन
गये है ।' मP कहता हंू क सव7ऽ अमराइयां नहं है , तो ठGक ह नहं हP । आTखर हम कब
तक जंगली बने रहते? मगर अमराई और कुंज और बगीचे भी हम> Vयारे हP । हम कारखाने
को अमराई से घेर द> गे और हर मुहNले म> बगीचा लगा द> गे। अभी थोड़ दे र है । पर
कोयल को धीरज के साथ हमारा साथ तो दे ना था। कुछ दन धूप तो हमारे साथ सहना
था। Tजसने धूप म> साथ नह दया , वह छाया कैसे बंटायेगी ? जब हम अमराई बना ल>गे
, तब Iया वह उसम> रह सकेगी? नहं, तब तक तो कौए अमराई पर क़kजा कर ल>गे।
कोयल को अभी आना चाहए। अभी जब हम िम]ट खोद> , पानी सींचे और खाद द> , तभी
से उसे गाना चाहए। मP बाहर िनकल पड़ता हंू । चौराहे पर पहली बसbती साड़ दखी। मP
उसे जानता हंू । यौवन क एड़ दख रह है -- वह जा रहा है -- वह जा रहा है । अभी
कुछ महने पहले ह शाद हई
ु है । मP तो कहता आ रहा था क चाहे कभी ले, 'Sखी र यह
डाल वसन वासbती लेगी' - (िनराला )। उसने वसन वासbती ले िलया। कुछ हजार म> उसे
यह बूढ़ा हो रहा पित िमल गया। वह भी उसके साथ है । वसbत का अTbतम चरण और
पतझड़ साथ जा रहे हP । उसने मांग म> बहत
ु -सा िसbदरू चुपड़ रखा है । Tजसक Tजतनी
मुTँकल से शाद होती है , वह बेचार उतनी ह बड़ मांग भरती है । उसने बड़े अिभमान से
मेर तरफ दे खा। फर पित को दे खा। उसक नजर म> ठसक और ताना है , जैसे अंगूठा
दखा रह है क ले, मुझे तो यह िमल ह गया। मगर यह Iया? वह ठBड से कांप रह है
ू रह है ।
और 'सीसी' कर रहं है । वसbत म> वासbती साड़ को कंपकंपी छट
यह कैसा वसbत है जो शीत के डर से कांप रहा है ? Iया कहा था 'वापित ने-- ' सरस
वसbत समय भल पाओिल दिछन पवन बहु धीरे ! नहं मेरे क'व, दTcण से मलय पवन
नहं बह रहा। यह उार से बफ़ली हवा आ रह है । हमालय के उस पार से आकर इस
बफ़ली हवा ने हमारे वसbत का गला दबा दया है । हमालय के पार बहत
ु - सा बफ7
बनाया जा रहा है Tजसम> सार मनुंय जाित को मछली क तरह जमा कर रखा जायेगा।
यह बड़ भार साTजश है बफ7 क साTजश ! इसी बफ7 क़ हवा ने हमारे आते वसbत को
दबा रखा है । य\ हम> 'वास है क वसbत आयेगा। शेली ने कहा है , 'अगर शीत आ गयी
है , तो Iया वसbत बहत
ु पीछे होगा? वसbत तो शीत के पीछे लगा हआ
ु ह आ रहा है । पर
उसके पीछे गरमी भी तो लगी है । अभी उार से शीत -लहर आ रह है तो फर पTम
से लू भी तो चल सकती है । बफ7 और आग के बीच म> हमारा वसbत फॅसा है । इधर शीत
उसे दबा रह है और उधर से गरमी। और वसbत िसकुड़ता जा रहा है ।
मौसम क मेहरबानी पर भरोसा कर> गे, तो शीत से िनपटते-िनपटते लू तंग करने लगेगी।
मौसम के इbतजार से कुछ नहं होगा। वसbत अपने आप नहं आता ; उसे लाया जाता
है । सहज आनेवाला तो पतझड़ होता है , वसbत नहं। अपने आप तो पे झड़ते हP । नये
पे तो वृc का ूाण-रस पीकर पैदा होते हP । वसbत य\ नहं आता। शीत और गरमी के
बीच से जो Tजतना वसbत िनकाल सके, िनकाल ल>। दो पाट\ के बीच म> फंसा है , दे श का
वसbत। पाट और आगे Tखसक रहे हP । वसbत को बचाना है तो ज़ोर लगाकर इन दोन\
पाट\ को पीछे ढकेलो - इधर शीत को, उधर गरमी को। तब बीच म> से िनकलेगा हमारा
घायल वसbत।
संःकृ ित
भूखा आदमी सड़क कनारे कराह रहा था । एक दयालु आदमी रोट लेकर उसके
पास पहँ चा और उसे दे ह रहा था क एक-दसरे
ू आदमी ने उसका हाथ खींच
िलया । वह आदमी बड़ा रं गीन था ।
पहले आदमी ने पूछा, "Iय\ भाई, भूखे को भोजन Iय\ नहं दे ने दे ते ?"
रं गीन आदमी बोला, "ठहरो, तुम इस ूकार उसका हत नहं कर सकते । तुम
केवल उसके तन क भूख समझ पाते हो, मP उसक आ^मा क भूख जानता हँू ।
दे खते नहं हो, मनुंय-शरर म> पेट नीचे है और दय ऊपर । दय क अिधक
महा है ।"
पहला आदमी बोला, "लेकन उसका दय पेट पर ह टका हआ
ु है । अगर पेट
म> भोजन नहं गया तो दय क टक-टक बंद नहं हो जायेगी !"
रं गीन आदमी हँ सा, फर बोला, "दे खो, मP बतलाता हँू क उसक भूख कैसे
बुझेगी !"
यह कहकर वह उस भूखे के सामने बाँसुर बजाने लगा । दसरे
ू ने पूछा, "यह
तुम Iया कर रहे हो, इससे Iया होगा ?"
रं गीन आदमी बोला, "मP उसे संःकृ ित का राग सुना रहा हँू । तुUहार रोट से
तो एक दन के िलए ह उसक भूख भागेगी, संःकृ ित के राम से उसक जनम-
जनम क भूख भागेगी ।"
वह फर बाँसूर बजाने लगा ।
और तब वह भूखा उठा और बाँसूर झपटकर पास क नाली म> फ>क द ।
बारात क वापसी
बारात म> जाना कई कारण से टालता हँू । मंगल काय म> हम जैसी चढ़ उॆ के कुँवार\ का जाना
अपशकुन है । महे श बाबू का कहना है , हम> मंगल काय से 'वधवाओं क तरह ह दरू रहना चाहये।
कसी का अमंगल अपने कारण Iय\ हो ! उbह> पछतावा है क तीन साल पहले Tजनक शाद म>
वह गये थे, उनक तलाक क Tःथित पैदा हो गयी है । उनका यह शोध है क महाभारत का यु; न
होता, अगर भींम क शाद हो गयी होती। और अगर कृ ंणमेनन क शाद हो गयी होती, तो चीन
हमला न करता।
सारे यु; ूौढ़ कुंवार\ के अहं क तु' के िलए होते हP । 1948 म> तेलंगाना म> कसान\ का
जागा था। कहने लगे, " बस, अब तुमलोग\ क बारात म> जाने क इFछा है । " हम लोग\ ने कहा - '
अब कशोर\ जैसी बारात तो होगी नह। अब तो ऐसी बारात ऐसी होगी- कसी को भगा कर लाने
के कारण हथकड़ पहने हम ह\गे और पीछे चलोगे तुम जमानत दे ने वाले। ऐसी बारात होगी।
ताकत लड़कय\ क शाद करने मे जा रह है । पाव ताकत िछपाने मे जा रह है - शराब पीकर
िछपाने म>, ूेम करके िछपाने म>, घूस लेकर िछपाने म> ... बची पाव ताकत से दे श का िनमा7ण हो
यह बात मPने उस दन एक 'वँव'वालय के छाऽसंघ के वा'ष7को^सव म> कह थी। कहा
था, “तुम लोग बांितकार त[ण-त[Tणयां बनते हो। तुम इस दे श क आधी ताकत को
बचा सकते हो। ऐसा करो Tजतनी लड़कयां 'वँव'वालय म> हP , उनसे 'ववाह कर डालो।
अपने बाप को मत बताना। वह दहे ज मांगने लगेगा। इसके बाद Tजतने लड़के बच>, वे
एक-दसरे
ू क बहन से शाद कर ल>। ऐसा बुिनयाद बांितकार काम कर डालो और फर
Tजस िसगड़ को जमीन पर रखकर तुUहार मां रोट बनाती है , उसे टे 'बल पर रख दो,
Tजससे तुUहार प^नी सीधी खड़ होकर रोट बना सके। बीस-बाईस साल\ म> िसगड़ ऊपर
नहं रखी जा सक और न झाडू म> चार फुट का डं डा बांधा जा सका। अब तक तुम लोग\
छाऽ थोड़े चके। कुछ ह-ह करते भी पाये गये। मगर कुछ नहं।
एक त[ण के साथ साल\ मेहनत करके मPने उसके खयालात संवारे थे। वह शाद के मंडप
म> बैठा तो ससुर से बFचे क तरह मचलकर बोला, “बाबूजी, हम तो वेःपा ल>गे, वेःपा के
ने साल भर म> वेःपा दे ने का वादा कया, नेग के िलए बाजार से वेःपा का Tखलौना
मंगाकर थाली म> रखा, फर सबा [पया रखा और दामाद को भ>ट कया। सबा [पया तो
मरते वIत गोदान के िनिम^त दया जाता है न। हां, मेरे उस त[ण दोःत क
हँू क बारात क 'वदा के पहले ह कुछ बहाना करके कराया लेकर लौट पड़ता हँू ।
हम पांच िमऽ\ ने तय कया क शाम ४ बजे क बस से वापस चल>। पbना से इसी कUपनी क बस
सतना के िलये घBटे -भर बाद िमलती है , जो जबलपुर क शे न िमला दे ती है । सुबह घर पहंु च
जाय>गे। हमम> से दो को सुबह काम पर हाTज़र होना था, इसिलये वापसी का यह राःता अपनाना
ज़Sर था। लोग\ ने सलाह द क समझदार आदमी इस शाम वाली बस से सफ़र नहं करते। Iया
बस को दे खा तो ौ;ा उभर पड़। खूब वयोवृmध थी। सदय\ के अनुभव के िनशान िलये हए
ु थी।
लोग इसिलए सफ़र नहं करना चाहते क वृ;ावःथा म> इसे क होगा। यह बस पूजा के योय थी।
उस पर सवार कैसे हआ
ु जा सकता है !
बोले-चलती Iय\ नहं है जी! अभी चलेगी। हमन> कहा-वह तो हम दे खना चाहते हP । अपने-आप
हम आगा-पीछा करने लगे। पर डाIटर िमऽ ने कहा-डरो मत, चलो! बस अनुभवी है । नई-नवेली
बस\ से एयादा 'वशवनीय है । हम> बेट\ क तरह Vयार से गोद म> लेकर चलेगी। हम बैठ गये। जो
छोड़ने आए थे, वे इस तरह दे ख रहे थे, जैसे अंितम 'वदा दे रहे हP । उनक आख> कह रह थी -
आना-जाना तो लगा ह रहता है । आया है सो जायेगा - राजा, रं क, फ़कर। आदमी को कूच करने
हP । कांच बहत
ु कम बचे थे। जो बचे थे, उनसे हम> बचना था। हम फौरन Tखड़क से दरू सरक गये।
इं जन चल रहा था। हम> लग रहा था हमार सीट के नीचे इं जन है ।
वp अवँय जवान रह होगी। उसे शे िनंग िमल चुक थी। हर हःसा दसरे
ु से असहयोग कर रहा
था। पूर बस स'वनय अवhा आंदोलन के दौर से गुज़र रह थी। सीट का बॉड से असहयोग चल
रहा था। कभी लगता, सीट बॉड को छोड़ कर आगे िनकल गयी। कभी लगता क सीट को छोड़
कर बॉड आगे भागे जा रह है । आठ-दस मील चलने पर सारे भेद-भाव िमट गए। यह समझ म>
रहा था क थोड़ दे र बाद बस कUपनी के हःसेदार इं जन को िनकालकर गोद म> रख ल>गे और उसे
बस क रqतार अब पbिह-बीस मील हो गयी थी। मुझे उसके कसी हःसे पर भरोसा नहं था।
एकाएक फर बस Sक। साइवर ने तरह-तरह क तरकब> कं, पर वह चली नहं। स'वनय अवhा
आbदोलन शुS हो गया था। कUपनी के हःसेदार कह रहे थे - बस तो फःट7 Iलास है जी! ये तो
इफाक क बात है । cीण चांदनी म> वृc\ क छाया के नीचे वह बस बड़ दयनीय लग रह थी।
लगता, जैसे कोई वृ;ा थककर बैठ गयी हो। हम> लानी हो रह थी क इस बेचार पर लदकर हम
चले आ रहे हP । अगर इसका ूाणांत हो गया तो इस 'बयाबान म> हम> इसक अb^येी करनी
पड़े गी।
हःसेदार साहब ने इं जन खोला और कुछ सुधारा। बस आगे चली। उसक चाल और कम हो गयी
थी।
धीरे -धीरे वृ;ा क आख\ क nयोित जाने लगी। चांदनी म> राःता टटोलकर वह र> ग रह थी। आगे
या पीछे से कोई गाड़ आती दखती तो वह एकदम कनारे खड़ हो जाती और कहती - िनकल
क तरफ ौ;ा भाव से दे खा। वह टायर\ क हाल जानते हP , फर भी जान हथेली पर ले कर इसी बस
अगर बस नाले म> िगर पड़ती और हम सब मर जाते, तो दे वता बांह> पसारे उसका इbतज़ार करते।
कहते - वह महान आदमी आ रहा है Tजसने एक टायर के िलए ूाण दे दए। मर गया, पर टायर
नहं बदला।
दसरा
ू िघसा टायर लगाकर बस फर चली। अब हमने वp पर पbना पहंु चने क उUमीद छोड़ द
थी। पbना कभी भी पहंु चने क उUमीद छोड़ द थी - पbना, Iया, कहं भी, कभी भी पहंु चने क
उUमीद छोड़ द थी। लगता था, Tज़bदगी इसी बस म> गुज़ारनी है और इससे सीधे उस लोक क
ओर ूयाण कर जाना है । इस पृlवी पर उसक कोई मंTज़ल नहं है । हमार बेताबी, तनाव ख^म
हो गये। हम बड़े इ^मीनान से घर क तरह बैठ गये। िचbता जाती रह। हं सी मज़ाक चालू हो
गया।
ठBड बढ़ रह थी । Tखड़कयाँ खुली ह थीं। डाIटर ने कहा - ' गलती हो गयी। 'कुछ' पीने को ले
आता तो ठGक रहता । ' एक गाँव पर बस [क तो डाIटर फौरन उतरा । साइवर से बोला - 'जरा
रोकना ! नारयल ले आऊँ । आगे मढ़या पर फोड़ना है । डाIटर झोपड़य\ के पीछे गया और
कUपनी के हःसेदार शहर के बाहर ह अपने घर पर उतर गये। बस शहर मे अपने ठकाने पर
तीन िमऽ बस-मािलक\ पर झपटे । उनक गम7 डाँट हम सुन रहे थे। पर वे िनराश लौटे । बस-
मािलक\ ने कह दया था, सतना क बस तो चार- पाँच घBटे पहले जा चुक थी। अब लौटती होगी।
अब तो बस सवेरे ह िमलेगी।
डाIटर बस-मािलक\ के पास गया। पाँचेक िमनट मे उनके साथ लौटा तो बदला हआ
ु था। बड़े
अदब से मुझसे कहने लगा," सर, नाराज़ मत होइए। सरदार जी कुछ इं तजाम कर> गे। सर,सर उbह>
अभी डाIटर बेतकुNलफ से बात कर रहा था और अब मुझे 'सर' कह रहा है । बात Iया है ? कह
ठरा7 nयादा असर तो नहं कर गया। मैने कहा, "यह तुमने Iया 'सर-सर' लगा रखी है ? "
उसने वैसे ह झुक कर कहा, " सर, नाराज़ मत होइए ! सर, कुछ इं तजाम हआ
ु जाता है । "
मुझे तब भी कुछ समझ म> नह आया। डाIटर भी परे शान था क मP कुछ समझ Iय\ नह रहा हँू ।
वह मुझे अलग ले गया और समझाया, " मैने इन लोग\ से कहा है क तुम संसद सदःय हो। इधर
जांच करने आए हो।मP एक Iलक7 हँू , Tजसे साहब ने एम. पी. को सतना पहँु चाने के िलए भेजा है ।
मैने इनसे कहा क सरदारजी, मुझ गरब क तो गद7 न कटे गी ह, आपक भी लेवा-दे ई हो जायेगी।
वह ःपेशल बस से सतना भेजने का इं तजाम कर दे गा। ज़रा थोड़ा एम. पी. पन तो दखाओ। उNलू
कोई [प दे दे ते हP । नेता भी दखता हँू , शायर भी और अगर बाल सूखे -'बखरे ह\ तो जुUमन
मैने िमlयाचार का आ^मबल बटोरा और लौटा तो ठGक संसद सदःय क तरह। आते ह
गया है ? "
सरदारजी घबरा उठे । डाक् टर खुश क मैने फःट7 Iलास रोल कया है ।
रोबदार संसद सदःय का एक वाIय काफ़ है , यह स\चकर मP दरू खड़े होकर िसगरे ट पीने लगा।
िमऽ महे शद िमौ का नाम धारण कर लूँगा। गाँधीवाद होने के नाते, वह थोड़ा झूठ बोलकर मुझे
बचा ह ल>गे।
फोन हो तो जरा कलेIटर को इ'ला कर दो। वह ग़ाड़ का इं तजाम कर द> गे। "
डाIटर वहं से बोला, " सर, बस एक िमनट! जःट ए िमनट सर !" थोड़ दे र बाद सरदारजी ने
मुझे एम. पी. पन काफ भाड़ पड़ रहा था। मP दोःत\ के बीच अजनबी क तरह अकड़ा बैठा था।
सतना म> जब रे लवे के मुसाफरखाने मे पहँु चे तब डाIटर ने कहा, " अब तीन घBटे लगातार तुम
मुझे 'सर' कहो। मेर बहत
ु तौहन हो चुक है ।"
....
मेर टे 'बल पर दो काड7 पड़े हP - इसी डाक से आया दवाली मीटं ग काड7 और दकान
ु से लौटा राशन
काड7 . मीटं ग काड7 म> कसी ने शुभेFछा ूगट क है क मP सुख और समृ'; ूा कSँ. अभी अपने
शुभिचbतक बने हए
ु हP जो सुख दए 'बना चैन नहं ल>गे. दवाली पर कम से कम उbह> याद तो
आती है क इस आदमी का सुखी होना अभी बकाया है . वे काड7 भेज दे ते हP क हम तो सुखी हP ह,
अगर तुम भी हो जाओ, तो हम> फलहाल कोई एतराज़ नहं.
मेरा राशन काड7 मेरे सुख क कामना कर रहा है . मगर राशन काड7 बताता है क इस हझते से गेहूँ क
माऽा आधी हो गयी है . राशन काड7 मे मीटं ग काड7 को काट दया. ऐसा तमाचा मारा क खूबसूरत
मीटं ग काड7 जी के कोमल कपोल र'pम हो गए.शु[ से ह राशन काड7 इस मीटं ग काड7 क ओर
गुरा7कर दे ख रहा था. जैसे ह मP मीटं ग काड7 पढ़कर खुश हआ
ु , राशन काड7 ने उसक गद7 न दबाकर
कहा- Iय\ बे साले, मीटं ग काड7 के बFचे, तू इस आदमी को सुखी करना चाहता है ? जा, इसका गेहूँ
आधा कर दया गया. बाक काला-बाज़ार से खरदे या भूखा रहे .
बेचारा मीटं ग काड7 दनता से मेर ओर दे ख रहा है . मP Iया कSँ? झूठ\ क रcा का ठे का मुझे थोड़े
ह िमला है . Tजbह> िमला है उनके सामने हाथ जोड़ो. मेरे राशन काड7 को तेर झूठ बदा7ँत नहं हई
ु .
इन हालात म> सुख का झूठG आशा लेकर तू Iय\ आया? मीटं ग काड7 रासंघ के शाTbत ूःताव\ क
तरह सुbदर पर ूभावहन है . राशन काड7 खुरदरा और बदसूरत है , पर इसम> अनाज है . मेरे िलए
यह स^य है . और इस रं गीन िचकनाहट म> स^यहन औपचारक शुभेFछा है . मीटं ग काड7 स^य
होता अगर इसके साथ एक राशन काड7 भी भेजा गया होता और िलखा होता- हम चाहते हP क तुम
सुख ूा करो. इस हे तु हम एक मरे हए
ु आदमी के नाम से जाली राशन काड7 बनवाकर भेज रहे हP .
जब तक धाँधली चले सःता अनाज लेते जाना और सुखी रहना. पकड़े जाने पर हमारा नाम मत
बताना. संकट के वp शुभिचंतक का नाम भूल जाना चाहए.
िमऽ\ से तो मP कहना चाहता हँू क ये काड7 ने भेज>. शुभकामना इस दे श म> कारगर नहं हो रह हP .
यहाँ गोरcा का जुलूस सात लाख का होता है और मनुंय रcा का िसफ7 एक लाख का. दिनया
ु भर
म> शुभकामना बोझ हो गयी है . पोप क शुभकामना से एक बम कम नहं िगरता. िमऽ\ क ह इFछा
से कोई सफल, सुखी और समृ; कैसे हो जाएगा? सफलता के महल का ूवेश ार बंद है . इसम>
पीछे के नाबदान से ह घुसा जा सकता है . Tजbह> घुसना है नाक पर [माल रखकर घुस जाते हP . पास
ह इऽ सने [माल\ के ठे ले खड़े हP . [माल खरदो, नाक पर रखो और नाबदान म> से घुस जाओ
सफलता और सुख के महल म>. एक आदमी खड़ा दे ख रहा है . कोई पूछता है - घुसते Iय\ नहं? वह
कहता है - एक नाक होती तो घुस जाते. हमारा तो हर रोम एक नाक है . कहाँ-कहाँ [माल लपेट>.
एक डर भी है . सफलता, सुख और समृ'; ूा भी हो जाए, तो पता नहं कतने लोग बुरा मान
जाएँ. संकट म> तो शऽु भी मदद कर दे ते हP . िमऽता क सFची परcा संकट म> नहं, उ^कष7 म> होती
है . जो िमऽ के उ^कष7 को बदा7ँत कर सके, वह सFचा िमऽ होता है . संकट म> तपी हई
ु िमऽता
ू गए.
उ^कष7 म> खोट िनकलती मPने दे खी है . एक बेचारे क चार क'वताएँ छप ग, तो चार िमऽ टट
ू गये. दो क'व सUमेलन\ म> जमने से एक ःथानीय क'व के क'व-िमऽ
आठ छपने पर पूरे आठ टट
Sठ गए. तीसरे क'व सUमेलन म> जब वह ‘हट
ू ’ हआ
ु , तब जाकर िमऽता अपनी जगह लौट.
मीटं ग काड पर अपना भरोसा नहं. 20 साल\ से इस दे श को मीटं ग काड के सहारे चलाया गया
है . अUबार लग गए हP . हर ^योहार पर दे शवािसय\ को मीटं ग काड7 दए जाते हP - 15 अगःत और 26
जनवर पर, संसद के अिधवेशन पर, पाट_ के सUमेलन पर. बढ़या सुनहले रं ग\ के मीठे शkद\ के
मीटं स- दे शवािसय\, बस इस साल तुम सुखी और समृ; हो जाओ. मीटं ग काड के ढे र लगे हP ,
मगर राशन काड7 छोटा होता जाता है .
यंय लेखन को साह^य म> ूिता दलाने म> परसाई जी का योगदान अमूNय है .आजाद
के बाद के भारतीय समाज क Tःथित का आईना है उनका लेखन.उनक पcधरता आम
आदमी क तरफ है .
3.अFछG आ^मा फोTNडं ग कुस क तरह होनी चाहये.जSरत पड तब फैलाकर बैठ
गये,नहं तो मोडकर कोने से टका दया.
5.अमरक शासक हमले को सयता का ूसार कहते हP .बम बरसते हP तो मरने वाले
सोचते है ,सयता बरस रह है .
11.शासन का घूंसा कसी बड और पु पीठ पर उठता तो है पर न जाने कस चम^कार
से बड पीठ Tखसक जाती है और कसी दब7
ु ल पीठ पर घूंसा पड़ जाता है .
12.मैदान से भागकर िश'वर म> आ बैठने क सुखद मजबूर का नाम इnजत है .इnजतदार
आदमी ऊंचे झाड़ क ऊंची टहनी पर दसरे
ू के बनाये घोसले म> अंडे दे ता है .
15.कैसी अ त
ु एकता है .पंजाब का गेहूं गुजरात के कालाबाजार म> 'बकता है और
मuयूदे श का चावल कलका के मुनाफाखोर के गोदाम म> भरा है . दे श एक है . कानपुर
का ठग मदरई
ु म> ठगी करता है , हbद भाषी जेबकतरा तिमलभाषी क जेब काटता है
ू गयीं.
और रामेरम का भp बिनाथ का सोना चुराने चल पडा है . सब सीमाय> टट
16.रे डयो टVपणीकार कहता है --'घोर करतल uविन हो रह है .'मP दे ख रहा हंू ,नहं हो रह
है .हम सब लोग तो कोट म> हाथ डाले बैठे हP .बाहर िनकालने का जी नहं होत.हाथ अकड
जाय>गे.लेकन हम नहं बजा रहे हP फर भी तािलयां बज रह हP .मैदान म> जमीन पर बैठे
ु
वे लोग बजा रहे हP ,Tजनके पास हाथ गरमाने को कोट नहं हP .लगता है गणतbऽ ठठरते
हये
ु हाथ\ क तािलय\ पर टका है .गणतbऽ को उbहं हाथ\ क तािलयां िमलती हP ,Tजनके
मािलक के पास हाथ िछपाने के िलये गम7 कपडा नहं है .
18.सरकार कहती है क हमने चूहे पकडने के िलये चूहेदािनयां रखी हP .एकाध चूहेदानी क
हमने भी जांच क.उसमे घुसने के छे द से बडा छे द पीछे से िनकलने के िलये है .चूहा इधर
फंसता है और उधर से िनकल जाता है .'पंजडे बनाने वाले और चूहे पकडने वाले चूह\ से
िमले हP .वे इधर हम> 'पंजडा दखाते हP और चूहे को छे द दखा दे ते हP .हमारे माथे पर िसफ7
चूहेदानी का खच7 चढ रहा है .
19.एक और बडे लोग\ के Iलब म> भाषण दे रहा था.मP दे श क िगरती हालत,मंहगाई
,गरबी,बेकार,ॅाचारपर बोल रहा था और खूब बोल रहा था.मP पूर पीडा से,गहरे आबोश
से बोल रहा था .पर जब मP nयादा मिम7क हो जाता ,वे लोग तािलयां पीटने लगते थे.मPने
कहा हम बहत
ु पितत हP ,तो वे लोग तािलयां पीटने लगे.और मP समारोह\ के बाद रात को
घर लौटता हंू तो सोचता रहता हंू क Tजस समाज के लोग शम7 क बात पर हं से,उसमे
Iया कभी कोई बTbतकार हो सकता है ?होगा शायद पर तभी होगा जब शम7 क बात पर
ू गे .
ताली पीटने वाले हाथ कट> गे और हं सने वाले जबडे टट>
20.िनbदा म> 'वटािमन और ूोटन होते हP .िनbदा खून साफ करती है ,पाचन बया ठGक
करती है ,बल और ःफूित7 दे ती है .िनbदा से मांसपेिशयां पु होती हP .िनbदा पयरया का तो
सफल इलाज है .सbत\ को परिनbदा क मनाह है ,इसिलये वे ःविनbदा करके ःवाःlय
अFछा रखते हP .
21.मP बैठा-बैठा सोच रहा हंू क इस सडक म> से कसका बंगला बन जायेगा?...बड
इमारत\ के पेट से बंगले पैदा होते मPने दे खे हP .दशरथ क रािनय\ को यh क खीर खाने
से पुऽ हो गये थे.पुBय का ूताप अपार है .अनाथालय से हवेली पैदा हो जाती है .
उखड़े खUभे
[कुछ सािथय\ के हवाले से पता चला क कुछ साइट> बैन हो गयी हP । पता नहं यह कतना
सच है लेकन लोग\ ने सरकार को कोसना शुS कर दया। अरे भाई,सरकार तो जो दे श
हत म> ठGक लगेगा वह करे गी न! पता नहं मेर इस बात से आप कतना सहमत हP
लेकन यह है सह बात क सरकार हमेशा दे श हत के िलये सोचती है । मP शायद ठGक से
अपनी बात न समझा सकूँ लेकन मेरे पसंददा लेखक ,यंयकार हरशंकर परसाई ने इसे
अपने एक लेख उखड़े खUभे म> बखूबी बताया है ।
यहां जानकार के िलये बता दया जाये क भारत के ूथम ूधान मंऽी ःव.
ःव.जवाहरलाल
नेहS ने एक बार घोषणा क थी क मुनाफाखोर\ को 'बजली के खUभ\ पर लटका दया
जायेगा।]
सुबह होते ह लोग 'बजली के खUभ\ के पास जमा हो गये। उbह\ने खUभ\ क पूजा
क,आरती उतार और उbह> ितलक कया।
शाम तक वे इं तजार करते रहे क अब मुनाफाखोर टांगे जाय>गे- और अब। पर कोई नहं
टाँगा गया।
लोग जुलूस बनाकर राजा के पास गये और कहा,”महाराज,आपने तो कहा था क
मुनाफाखोर 'बजली के खUभे से लटकाये जाय>गे,पर खUभे तो वैसे ह खड़े हP और
मुनाफाखोर ःवःथ और सानbद हP ।”
राजा ने कहा,”कहा है तो उbह> खUभ\ पर टाँगा ह जायेगा। थोड़ा समय लगेगा। टाँगने के
िलये फbदे चाहये। मPने फbदे बनाने का आड7 र दे दया है । उनके िमलते ह,सब
मुनाफाखोर\ को 'बजली के खUभ\ से टाँग दँ ग
ू ा।
तभी दसरा
ू बोल उठा,”पर वह तो कह रहा था क फाँसी पर लटकाने का ठे का भी मP ह
ले लूँगा।”
राजा ने जवाब दया,”नहं,ऐसा नहं होगा। फाँसी दे ना िनजी cेऽ का उोग अभी नहं हआ
ु
है ।”
राजा ने कहा,”आज से ठGक सोलहव> दन वे तुUह> 'बजली के खUभ\ से लटके दख>गे।”
सोलहव> दन सुबह उठकर लोग\ ने दे खा क 'बजली के सारे खUभे उखड़े पड़े हP । वे है रान
हो गये क रात न आँधी आयी न भूकUप आया,फर वे खUभे कैसे उखड़ गये!
उससे राजा ने कहा,” Iय\ जी तुUह> मालूम है ,मPने आज मुनाफाखोर\ को 'बजली के खUभे
से लटकाने क घोषणा क थी?”
अब इं जीिनयर बुलाया गया। उसने कहा उसे 'बजली इं जीिनयर ने आदे श दया था क
रात म> सारे खUभे उखाड़ दे ना चाहये।
'बजली इं जीिनयर से कैफयत तलब क गयी,तो उसने हाथ जोड़कर कहा,”सेबेटर साहब
का हIम
ु िमला था।”
सेबेटर ने कहा,”साहब ,पूरे शहर क सुरcा का सवाल था। अगर रात को खUभे न हटा
िलये जाते, तो आज पूरा शहर न हो जाता!”
'वशेषh ने िनवेदन कया,” सरकार ,मP 'वशेषh हँू और भूिम तथा वातावरण क हलचल
का 'वशेष अuययन करता हँू । मPने परcण के ारा पता लगाया है क जमीन के नीचे
एक भयंकर ूवाह घूम रहा है । मुझे यह भी मालूम हआ
ु क आज वह 'बजली हमारे
शहर के नीचे से िनकलेगी। आपको मालूम नहं हो रहा है ,पर मP जानता हँू क इस वp
हमारे नीचे भयंकर 'बजली ूवाहत हो रह है । यद हमारे 'बजली के खUभे जमीन म> गड़े
रहते तो वह 'बजली खUभ\ के ारा ऊपर आती और उसक टIकर अपने पावरहाउस क
'बजली से होती। तब भयंकर 'वःफोट होता। शहर पर हजार\ 'बजिलयाँ एक साथ िगरतीं।
तब न एक ूाणी जी'वत बचता ,न एक इमारत खड़ रहती। मPने तुरbत सेबेटर साहब
को यह बात बतायी और उbह\ने ठGक समय पर उिचत कदम उठाकर शहर को बचा
िलया।
लोग बड़ दे र तक सकते म> खड़े रहे । वे मुनाफाखोर\ को 'बNकुल भूल गये। वे सब उस
संकट से अ'वभूत थे ,Tजसक कNपना उbह> द गयी थी। जान बच जाने क अनुभूित से
दबे हये
ु थे। चुपचाप लौट गये।
भोलाराम का जीव
सामने बैठे िचऽगु बार-बार चँमा प\छ, बार-बार थूक से पbने पलट, रTजःटर पर
रTजःटर दे ख रहे थे. गलती पकड़ म> ह नहं आ रह थी. आTखर उbह\ने खीझ कर
रTजःटर इतने जोर से बbद कया क मIखी चपेट म> आ गई. उसे िनकालते हए
ु वे बोले
- "महाराज, रकाड7 सब ठGक है . भोलाराम के जीव ने पाँच दन पहले दे ह ^यागी और
यमदत
ू के साथ इस लोक के िलए रवाना भी हआ
ु , पर यहाँ अभी तक नहं पहँु चा."
यमदत
ू हाथ जोड़ कर बोला - "दयािनधान, मP कैसे बतलाऊं क Iया हो गया. आज तक
मPने धोखा नहं खाया था, पर भोलाराम का जीव मुझे चकमा दे गया. पाँच दन पहले
जब जीव ने भोलाराम का दे ह ^यागा, तब मPने उसे पकड़ा और इस लोक क याऽा
आरUभ क. नगर के बाहर nय\ ह मP उसे लेकर एक तीो वायु-तरं ग पर सवार हआ
ु ^य\
ू कर न जाने कहाँ गायब हो गया. इन पाँच दन\ म> मPने सारा
ह वह मेर चंगुल से छट
ॄZाBड छान डाला, पर उसका कहं पता नहं चला."
धम7राज बोध से बोला - "मूख7 ! जीव\ को लाते-लाते बूढ़ा हो गया फर भी एक मामूली
बूढ़े आदमी के जीव ने तुझे चकमा दे दया."
दत
ू ने िसर झुका कर कहा - "महाराज, मेर सावधानी म> 'बलकुल कसर नहं थी. मेरे
ू सके. पर इस बार तो कोई
इन अयःत हाथ\ से अFछे -अFछे वकल भी नहं छट
इbिजाल ह हो गया."
इसी समय कहं से घूमते-घामते नारद मुिन यहाँ आ गए. धम7राज को गुमसुम बैठे दे ख
बोले - "Iय\ धम7राज, कैसे िचTbतत बैठे हP ? Iया नरक म> िनवास-ःथान क समःया
अभी हल नहं हई
ु ?"
धम7राज ने कहा - "वह समःया तो कब क हल हो गई. नरक म> 'पछले साल\ म> बड़े
गुणी कारगर आ गए हP . कई इमारत\ के ठे केदार हP Tजbह\ने पूरे पैसे लेकर रr इमारत>
बना. बड़े बड़े इं जीिनयर भी आ गए हP Tजbह\ने ठे केदार\ से िमलकर पंचवषय योजनाओं
का पैसा खाया. ओवरसीयर हP , Tजbह\ने उन मजदर\
ू क हाTजर भर कर पैसा हड़पा जो
कभी काम पर गए ह नहं. इbह\ने बहत
ु जNद नरक म> कई इमारत> तान द हP . वह
समःया तो हल हो गई, पर एक बड़ 'वकट उलझन आ गई है . भोलाराम नाम के एक
आदमी क पाँच दन पहले मृ^यु हई
ु . उसके जीव को यह दत
ू यहाँ ला रहा था, क जीव
इसे राःते म> चकमा दे कर भाग गया. इस ने सारा ॄZाBड छान डाला, पर वह कहं नहं
िमला. अगर ऐसा होने लगा, तो पाप पुBय का भेद ह िमट जाएगा."
नारद बोले - "मामला बड़ा दलचःप है . अFछा मुझे उसका नाम पता तो बताओ. मP
पृlवी पर जाता हँू ."
ार पर जाकर उbह\ने आवाज लगाई - "नारायण! नारायण!" लड़क ने दे खकर कहा-
"आगे जाओ महाराज."
नारद ने कहा - "मुझे िभcा नहं चाहए, मुझे भोलाराम के बारे म> कुछ पूछ-ताछ करनी
है . अपनी मां को जरा बाहर भेजो, बेट!"
भोलाराम क प¢ी बाहर आई. नारद ने कहा - "माता, भोलाराम को Iया बीमार थी?"
"Iया बताऊँ? गरबी क बीमार थी. पाँच साल हो गए, प>शन पर बैठे. पर प>शन अभी
तक नहं िमली. हर दस-पbिह दन म> एक दरgवाःत दे ते थे, पर वहाँ से या तो जवाब
आता ह नहं था और आता तो यह क तुUहार प>शन के मामले म> 'वचार हो रहा है .
इन पाँच साल\ म> सब गहने बेच कर हम लोग खा गए. फर बरतन 'बके. अब कुछ नहं
बचा था. िचbता म> घुलते-घुलते और भूखे मरते-मरते उbह\ने दम तोड़ द."
दःख
ु क कथा सुनने क फुरसत नारद को थी नहं. वे अपने मुrे पर आए, "मां, यह तो
बताओ क यहाँ कसी से उन का 'वशेष ूेम था, Tजस म> उन का जी लगा हो?"
oी ने गुरा7 कर नारद क ओर दे खा. बोली - "अब कुछ मत बको महाराज ! तुम साधु
हो, उचIके नहं हो. Tजंदगी भर उbह\ने कसी दसर
ू oी क ओर आँख उठाकर नहं
दे खा."
नारद को दया आ गई थी. वे कहने लगे - "साधुओं क बात कौन मानता है ? मेरा यहाँ
कोई मठ तो है नहं. फर भी मP सरकार दqतर जाऊँगा और कोिशश कSंगा."
वहाँ से चल कर नारद सरकार दझतर पहँु च.े वहाँ पहले ह से कमरे म> बैठे बाबू से
उbह\ने भोलाराम के केस के बारे म> बात> कं. उस बाबू ने उbह> uयानपूवक
7 दे खा और
बोला - "भोलाराम ने दरgवाःत> तो भेजी थीं, पर उन पर वज़न नहं रखा था, इसिलए
कहं उड़ गई ह\गी."
नारद उस बाबू के पास गए. उस ने तीसरे के पास भेजा, तीसरे ने चौथे के पास चौथे ने
पांचवे के पास. जब नारद पFचीस-तीस बाबुओं और अफ़सर\ के पास घूम आए तब एक
चपरासी ने कहा - "महाराज, आप Iय\ इस झंझट म> पड़ गए. अगर आप साल भर भी
यहाँ चIकर लगाते रहे , तो भी काम नहं होगा. आप तो सीधे बड़े साहब से िमिलए. उbह>
खुश कर दया तो अभी काम हो जाएगा."
नारद बड़े साहब के कमरे म> पहँु च.े बाहर चपरासी ऊँघ रहा था. इसिलए उbह> कसी ने
छे ड़ा नहं. 'बना ‘'वTजटं ग काड7 ' के आया दे ख साहब बड़े नाराज हए
ु . बोले - "इसे कोई
मTbदर वTbदर समझ िलया है Iया? धड़धड़ाते चले आए! िचट Iय\ नहं भेजी?"
साहब बोले- "आप हP बैरागी. दझतर\ के रित-रवाज नहं जानते. असल म> भोलाराम ने
गलती क. भई, यह भी एक मTbदर है . यहाँ भी दान पुBय करना पड़ता है . आप
भोलाराम के आ^मीय मालूम होते हP . भोलाराम क दरgवाःत> उड़ रह हP . उन पर वज़न
रTखए."
नारद ने सोचा क फर यहाँ वज़न क समःया खड़ हो गई. साहब बोले - "भई, सरकार
पैसे का मामला है . प>शन का केस बीस\ दqतर\ म> जाता है . दे र लग ह जाती है . बीस\
बार एक ह बात को बीस जगह िलखना पड़ता है , तब पIक होती है . Tजतनी प>शन
िमलती है उतने क ःटे शनर लग जाती है . हाँ, जNद भी हो सकती है मगर..." साहब
[के.
साहब ने कुटल मुसकान के साथ कहा, "मगर वज़न चाहए. आप समझे नहं. जैसे
आपक यह सुbदर वीणा है , इसका भी वज़न भोलाराम क दरgवाःत पर रखा जा सकता
है . मेर लड़क गाना बजाना सीखती है . यह मP उसे दे दं ग
ू ा. साधु-सbत\ क वीणा से तो
और अFछे ःवर िनकलते हP ."
नारद अपनी वीणा िछनते दे ख जरा घबराए. पर फर संभल कर उbह\ने वीणा टे 'बल पर
रख कर कहा - "यह लीTजए. अब जरा जNद उसक प>शन ऑड7 र िनकाल दTजए."
साहब ने ूसbbता से उbह> कुस द, वीणा को एक कोने म> रखा और घBट बजाई.
चपरासी हाTजर हआ
ु .
साहब ने हIम
ु दया - बड़े बाबू से भोलाराम के केस क फ़ाइल लाओ.
थोड़ दे र बाद चपरासी भोलाराम क सौ-डे ढ़-सौ दरgवाःत\ से भर फ़ाइल ले कर आया.
उसम> प>शन के कागजात भी थे. साहब ने फ़ाइल पर नाम दे खा और िनTत करने के
िलए पूछा - "Iया नाम बताया साधु जी आपने?"
नारद समझे क साहब कुछ ऊँचा सुनता है . इसिलए जोर से बोले - "भोलाराम!"
सहसा फ़ाइल म> से आवाज आई - "कौन पुकार रहा है मुझे. पोःटमैन है ? Iया प>शन का
ऑड7 र आ गया?"
नारद ने कहा - "मP नारद हँू . तुUह> लेने आया हँू . चलो ःवग7 म> तुUहारा इं तजार हो रहा
है ."
आवाज आई - "मुझे नहं जाना. मP तो प>शन क दरgवाःत\ पर अटका हँू . यहं मेरा मन
लगा है . मP अपनी दरgवाःत> छोड़कर नहं जा सकता."
शम7 क बात पर ताली पीटना
मुझे भाषण के िलए अIसर बुलाया जाता है । 'वषय यह होते हP - दे श का भ'वंय, छाऽ
समःया, युवा-असंतोष, भारतीय संःकृ ित भी(हालांक िनमंऽण क िच]ठG म> ‘संःकृ ित’
अIसर गलत िलखा होता है ), पर मP जानता हंू Tजस दे श म> हं द-हं सा आंदोलन भी
जोरदार होता है , वहां मP ‘संःकृ ित’ क सह शkद रचना अगर दे खूं तो बेवकूफ के साथ
ह ‘रांश-िोह’ भी कहलाऊंगा। इसिलए जहां तक बनता है , मP भाषण ह दे आता हंू ।
मजे क बात यह है क मुझे धािम7क समारोह\ म> भी बुला िलया जाता है । सनातनी,
वेदाbती, बौ;, जैन सभी बुला लेते हP ; Iय\क इbह> न धम7 से मतलब है , न संत से, न
उसके उपदे श से। ये धम
पदे श को भी समझना नहं चाहते। पर ये साल म> एक-दो बार
सफल समारोह करना चाहते हP । और जानते हP क मुझे बुलाकर भाषण करा दे ने से
समारोह सफल होगा, जनता खुश होगी और उनका जलसा कामयाब हो जाएगा।
पर मेर एक नयी मुसीबत पैदा हो गयी है । जब मP ऐसी बात करता हंू Tजस पर शम7
आनी चाहए, तब उस पर लोग हं सकर ताली पीटने लगते हP ।
मP एक संत क जयंती के समारोह म> अuयc था। मP जानता था क बुलाने वाले लोग
मुझसे भीतर से बहत
ु नाराज रहते हP । यह भी जानता हंू क ये मुझे गंद-गंद गािलयां
दे ते हP , Iय\क राजनीित और समाज के मामले म> मP मुंहफट हो जाता हंू । तब सुनने
वाल\ का दन बोध बड़ा मजा दे ता है । पर उस शाम मेरे गले म> वह लोग मालाएं डाल
रहे थे- यह अFछG और उदा^त बात भी हो सकती है । पर मP जानता था क ये मेरे
यंय, हाःय और कटु उ'pय\ का उपयोग करके उन तीन-चार हजार ौोताओं को ूसbन
करना चाहते हP - याने आयोजन सफल करना चाहते हP - याने बेवकूफ बनाना चाहते हP ।
जयbती एक बांितकार संत क थी। ऐसे संत क Tजसने कहा- खुद सोचो। स^य के
अनेक क\ण होते हP । हर बात म> ‘शायद’ का uयान जSर रखना चाहए। महावीर और
बु; ऐसे संत हए
ु , Tजbहोने कहा- सोचो। शंका करो। ूँन करो। तब स^य को पहचानो।
जSर नहं क वह शाँवत स^य है , जो कभी कसी ने िलख दया था।
'वhान नदारद। गNला कम तौल>गे, मगर ै तवाद, अै तवाद, 'विशंटाै तवाद, मु'p और
पुनज7bम के बारे म> बड़े परे शान रह> गे। कपड़ा कम नाप>गे, दाम nयादा ल>गे, पर पंच
आभूषण के बारे म> बड़े जामत रह> गे।
दगंबर मुिन और ँवेतांबर मुिन आपस म> कैसे दे ख रहे थे, यह मP जांच रहा था। लेखक
क दो नहं सौ आंख> होती हP । दगंबर अपने को सव7हारा का मुिन मानता है और
ँवेतांबर मुिन को संपbन समाज का। यह मP समझ गया- उनके तेवर से।
मPने आरं भ म> कहा भी- “सयता के 'वकास का बम होता है । जब हे Bडलूम, पावरलूम,
कपड़ा िमल नहं थी तब 'वँव के हर समाज का ऋ'ष और शाःता कम से कम कपड़े
पहनता था; Iय\क जो भी अFछे कपड़े बन पाते थे, उbह> सामंत वग7 पहनता था। तब
लंगोट लगाना या नंगा रहना दिनया
ु भर म> संत का आचार होता था।”
पर इसके बाद जब मुिन बोले तो उbह\ने घोर हं सा क शैली म> अहं सा समझायी। कुछ
शkद मुझे अभी भी याद हP , “पाखTBडय\, Iया संत को सट7 फकेट दे ने का समारोह करते
हो? तुUहारे सट7 फकेट से संत को कोई परिमट या नौकर िमल जाएगी? पाप क कमाई
खाते हो। झूठ बोलते हो। स^य क बात करते हो। बेईमानी से परमह करते हो। बताओ
ये चार-पांच मंTजल\ क इमारत> Iया स^य, अहं सा और अपरमह से बनी हP ?”
मP दं ग रह गया। मुिन का चेहरा लाल था बोध से। वे कसी सFचे बांितकार क तरह
बोल रहे थे; Iय\क उbह\ने शरर ढांकने को कपड़ा लेने का कसी से अहसान नहं लेना
था।
लगातार सbनाटा।
और मुिन पूसे बोध के साथ सार बनावट और फरे ब को नंगा कर रहे थे।
अंत म> मुझे अuयcीय भषण दे ना लाTजमी था। मP दे ख रहा था क तीस-चालीस साल के
गुट म> युवक लोग पांच-छ: ठकान\ पर बैठे इं तजार कर रहे थे क मP Iया कहता हंू ।
मPने बहत
ु छोटा धbयवाद जैसा भाषण दया। मुिनय\ और 'वान\ का आभार माना और
अंत म> कहा- “एक बात मP आपके सामने ःवीकार करना चाहता हंू । मPने और आपने तीन
घंटे ऊंचे आदश क, सदाचरण क, ूेम क, दया क बात> सुनीं। पर मP आपके सामने
साफ कहता हंू क तीन घंटे पहले Tजतना कमीना और बेईमान मP था, उतना ह अब भी
हंू । मेर मPने कह द। आप लोग\ क आप लोग जान>।”
इस पर भी Iया हआ
ु - हं सी खूब हई
ु और तािलयां 'पटं।
मP पूर पीड़ा से, गहरे आबोश से बोल रहा था। पर जब मP nयादा मािम7क हो जाता, वे
लोग तािलयां पीटते थे। मPने कहा- हम लोग बहत
ु पितत हP । तो वे ताली पीटने लगे।
और मP इन समारोह\ के बाद रात को घर लौटता हंू , तो सोचता रहता हंू क Tजस समाज
के लोग शम7 क बात पर हं स> और ताली पीट> , उसम> Iया कभी कोई बांितकार हो सकता
है ?
होगा शायद। पर तभी होगा, जब शम7 क बात पर ताली पीटने वाले हाथ कट> गे और
ू गे।
हं सने वाले जबड़े टट>
(यह आ^म ूचार नहं है । ूचार का भार मेरे 'वरोिधय\ ने ले िलया है । मP बर हो गया।
यह लिलत िनबंध है ।)
बहत
ु लोग कहते हP - तुम 'पटे । शुभ ह हआ।
ु पर तुUहारे िसफ7 दो अखबार वIतय छपे।
तुम लेखक हो। एकाध कहानी िलखो। रपोता7ज िलखो। नहं तो कोई लिलत िनबंध िलख
डालो। 'पट भी जाओ और साह^य-रचना भी न हो। यह साह^य के ूित बड़ा अbयाय
है । लोग\ को िमरगी आती है और वे िमरगी पर उपbयास िलख डालते हP । ट-हाउस म> दो
लेखक\ म> िसफ7 मां-बहन क गाली-गलौज हो गयी। दोन\ ने दो कहािनयां िलख डालीं।
दोन\ बT़ढया। एक ने िलखा क पहला नीच है । दसरे
ू ने िलखा- मP नहं, वह नीच है ।
पढ़ने वाल\ ने िनंकष7 िनकाला क दोन\ ह नीच हP । दे खो, साह^य का कतना लाभ
हआ
ु क यह िस; हो गया क दोन\ लेखक नीच हP । फर लोग\ ने दे खा क दोन\ गले
िमल रहे हP । साथ चाय पी रहे हP । दोन\ ने मां-बहन क गाली अपने मन के कलुष से
नहं द थी, साह^य-साधना के िलए द थी। ऐसे लेखक मुझे पसंद हP ।
'पटाई क सहानुभूित के िसलिसले म> जो लोग आये, उनक संgया काफ होती थी। मP
उbह> पान Tखलाता था। जब पान का खच7 बहत
ु बढ़ गया, तो मPने सोचा पीटने वाल\ के
पास जाऊं और कहंू , “जब तुमने मेरे िलए इतना कया है , मेरा यश फैलाया है , तो कम
से कम पान का खच7 दे दो। चाहे तो एक ब>त और मार लो। लोग तो खर\च लग जाय
तो भी पान का खच7 ले लेते हP ।”
मगर एक दलचःप आदमी आये। बोले, “इतने साल\ से िलख रहे हो। Iया िमला? कुछ
लोग\ क तारफ, बस! िलखने से nयादा शोहरत 'पटने से िमली। इसिलए हर लेखक को
साल म> कम से कम एक बार 'पटना चाहए। तुम छ: महने म> एक बार 'पटो। फर
दे खो क 'बना एक शkद िलखे अbतरा7ंशय gयाित के होते हो या नहं। तुम चाहो तो
तुUहारा यह काम मP ह कर सकता हंू ।”
मPशक म> था तो एक सहपाठG रामेँवर से मेरा झगड़ा था। एक दन उसे मP ढकेलते-
ढकेलते कcा क दवार तक ले गया। वह फंस गया था। मPने उसे पीटा। फर दोन\ म>
अFछे संबंध हो गये। ःकूली लड़ाई ःथाई नहं होती। पर वह गांठ बांधे था। हमारे घर से
ःकूल डे ढ़ मील दरू था। एक दन हम दोन\ गपशप करते शाम के झुटपुटे म> आ रहे थे
क वह एकाएक बोला, “अरे , यह रामदास कहां से आ रहा है ? वह दे खो।” मP उस तरफ
दे खने लगा। उसने 'बजली क तेजी से मेर टांग\ म> हाथ डाला और वह पटखनी द क
मP नाले के पुल से नीचे िगर पड़ा। उठा। शरर से ताकत से मP डे वढ़ा पड़ता था। सोचा,
इसे दमचू।ं पर उसने बड़े मजे क बात कह। कहने लगा, “दे खो, अदा-बदा हो गये। अपन
अब पIके दोःत। मPने तुUह> कैसी बT़ढया तरकब िसखायी है ।” मPने भी कहा, “हां यार,
तरकब बT़ढया है । मP काफ दँु मन\ को ठGक कSंगा।” फर मPने चार 'वरोिधय\ को वहं
आम के झुरमुट म> पछाड़ा। तरकब वह- साथ जा रहे हP । एकाएक कहता- अरे , वह उधर
से ँयाम सुंदर आ रहा है । वह उधर दे खने लगता और मP उसक टांग\ म> हाथ डालकर
सड़क के नीचे गढ़े म> फ>क दे ता।
मुझे दो िचT]ठयां िमलीं- ‘खबरदार, कभी कमला कहानी म> आयी तो ठGक कर दये
जाओगे। वह मेर ूेिमका है और तुम उससे कहानी म> हर कुछ करवाते हो। वह ऐसी
नहं है ।’
एक दन संकर गली से घर आ रहा था। आगे गली का मोड़ था। वहं मकान के पीछे
क दवार थी। एक आदमी चुपचाप पीछे से आया और ऐसे जोर से धIका दया क मP
दवार तक पहंु च गया। हाथ आगे बढ़ाकर मPने दवार पर रख दये और िसर बचा िलया,
वरना िसर फूट जाता। बाद म> मालूम हआ
ु क वह शहर का नंबर एक का पहलवान है ।
मPने कमला को 'वमला कर दया। लेखक को नाम से Iया फक7 पड़ता है ।
पर यह जून वाली ताजा 'पटाई बड़ मजेदार रह। मारने वाले आये। पांच-छ: ब>त मारे ।
मPने हथेिलय\ से आंख> बचा लीं। पांच-सात सेकंड म> काम ख^म। वे दो वाIय राजनीित
के बोलकर हवा म> 'वलीन हो गये।
तीन दन बाद अखबार\ म> खबर छपी तो मजे क बात> मेरे कान\ म> शहर और बाहर से
आने लगीं। ःनेह, दख
ु क आती ह थीं। पर-
- अFछा 'पटा।
- 'पटने लायक ह था।
- घोर अहं कार आदमी।
- ऐसा िलखेगा तो 'पटे गा ह।
- जो िलखता है , वह साह^य है Iया? अरे , ूेम कहानी िलख। उसम> कोई नहं
'पटता।
कुछ लेखक\ क ूसbनता मेरे पास तक आयी। उनका कहना था- अब यह Iया िलखेगा?
सब ख^म। हो गया इसका काम-तमाम। बहत
ु आंग मूतता था। पर मPने ठGक वैसा ह
िलखना जार रखा और इस बीच पांच कहािनयां तथा चार िनबंध िलख डाले और एक
डायर उपbयास ितहाई िलख िलया है ।
सहानुभूित वाले बड़े दलचःप होते हP । तरह-तरह क बात> करते हP । बुजुग-7 बीमार-वरंठ
साह^यकार बाबू रामानुजलाल ौीवाःतव ने अपनी मोट छड़ भेजी और िलखा- “अब यह
मेरे काम क नहं रह। मेर दिनयां
ु अब 'बःतर हो गयी है । इस छड़ को साथ रखो।”
एक अपरिचत आये और एक छड़ दे गये। वह गुVती थी, पर भीतर फलक नहं था। मूठ
पर पैने लोहे का ढIकन लगा था, Tजसके कनपट पर एक वार से आदमी पछाड़ खा
जाए।
मेरे चाचा नUबर एक के लठै त थे। वे ल]ठ को तेल 'पलाते थे और उसे दखभं
ु जन कहते
थे। मुहNले के रं गदार को, जो सबको तंगा करता था, उbह\ने पकड़ा। सामने एक पतले
झाड़ से बांधा और वह 'पटाई क क वह हमेशा के िलए ठGक हो गया। मPने ह कहा,
“दादा इसे अब छोड़ दो।” उbह\ने छोड़ दया, मगर कहा, “दे ख मPने दखभं
ु जन से काम
नहं िलया। गड़बड़ क तो दखभं
ु जन अपना काम करे गा।”
वह दखभं
ु जन पता नहं कहां चला गया। उनक मृ^यु हो गयी। पर वे शीशम क अपनी
छड़ छोड़ गये हP ।
मP परे शान। Tजस बात को ढाई महने हो गये, Tजसे मP भूल जाना चाहता हंू , उसी क
पूर तफशीश कर रहा है । कहं यह खुफया 'वभाग का आदमी तो नहं है ? पर Tजसका
सब खुला है , उसे खुफया से Iया डर।
आTखर वे खुले।
कहने लगे, “मुgयमंऽी आपक बात मानते हP । लड़के का तबादला अभी कांकरे हो गया है ।
जरा मुgयमंऽी से कहकर उसका तबादला यहं करवा दTजए।”
'पटे तो तबादला करवाने, िनयु'p कराने क ताकत आ गयी- ऐसा लोग मानने लगे हP ।
मान>। मानने से कौन कसे रोक सकता है । यह Iया कम साह^य क उपलTkध है क
'पटकर लेखक तबादला कराने लायक हो जाये। सन ् 1973 क यह सबसे बड़ साहT^यक
उपलTkध है । पर अकादमी माने तो।
यस सर
एक काफ अFछे लेखक थे। वे राजधानी गए। एक समारोह म> उनक मुgयमंऽी से भ>ट
हो गयी। मुgयमंऽी से उनका परचय पहले से था। मुgयमंऽी ने उनसे कहा- आप मजे म>
तो हP । कोई कंट तो नहं है ? लेखक ने कह दया- कंट बहत
ु मामूली है । मकान का
कंट। अFछा सा मकान िमल जाए, तो कुछ ढं ग से िलखना-पढ़ना हो। मुgयमंऽी ने
कहा- मP चीफ सेबेटर से कह दे ता हंू । मकान आपका ‘एलाट’ हो जाएगा।
मुgयमंऽी ने चीफ सेबेटर से कह दया क अमुक लेखक को मकान ‘एलाट’ करा दो।
सब बाजाkता हआ।
ु पूरा ूशासन मकान दे ने के काम म> लग गया। साल डे ढ़ साल बाद
फर मुgयमंऽी से लेखक क भ>ट हो गई। मुgयमंऽी को याद आया क इनका कोई काम
होना था। मकान ‘एलाट’ होना था।
एक बाड़ा था। बाड़े म> तेरह कराएदार रहते थे। मकान मािलक चौधर साहब पास ह एक
बंगले म> रहते थे।
एक नए कराएदार आए। वे डVट कलेIटर थे। उनके आते ह उनका इितहास भी मुहNले
म> आ गया था। वे इसके पहले वािलयर म> थे। वहां दqतर क लेड टाइ'पःट को लेकर
कुछ मामला हआ
ु था। वे साल भर सःपPड रहे थे। यह मामला अखबार म> भी छपा था।
मामला रफा-दफा हो गया और उनका तबादला इस शहर म> हो गया।
डVट साहब के इस मकान म> आने के पहले ह उनके 'वभाग का एक आदमी मुहNले म>
आकर कह गया था क यह बहत
ु बदचलन, चरऽहन आदमी है । जहां रहा, वहं इसने
बदमाशी क। यह बात सारे तेरह कराएदार\ म> फैल गई।
करदार आपस म> कहते- यह शरफ आदिमय\ का मोहNला है । यहां ऐसा आदमी रहने आ
रहा है । चौधर साहब ने इस आदमी को मकान दे कर अFछा नहं कया।
डVट साहब को मालूम था क मेरे बारे म> खबर इधर पहंु च चुक है । वे यह भी जानते
थे क यहां सब लोग मुझसे नफरत करते हP । मुझे बदमाश मानते हP । वे इस माहौल म>
अड़चन महसूस करते थे। वे हनता क भावना से मःत थे। नीचा िसर कए आते-जाते
थे। कसी से उनक दआ
ु -सलाम नहं होती थी।
इधर मुहNले के लोग आपस म> कहते थे- शरफ\ के मुहNले म> यह बदचलन आ बसा है ।
डVट साहब का िसफ7 मुझसे बोलचाल का संबंध ःथा'पत हो गया था। मेरा परवार नहं
था। मP अकेला रहता था। डVट साहब कभी-कभी मेरे पास आकर बैठ जाते। वे अकेले
रहते थे। परवार नहं लाए थे।
मुहNले के लोग आपस म> कहते थे- शरफ\ के मुहNले म> यह बदचलन आ गया।
दो-तीन दन बाद डVट साहब ने मुझसे कहा- ये जो िमसेज चोपड़ा हP , इनका इितहास
आपको मालूम है ? जानते हP इनक शाद कैसे हई
ु ? तीन आदमी इनसे फंसे थे। इनका पेट
फूल गया। बाक दो शादशुदा थे। चोपड़ा को इनसे शाद करनी पड़।
दसरे
ू दन डVट साहब का िसर थोड़ा और ऊंचा हो गया।
मुहNले वाले अभी भी कह रहे थे- शरफ\ के मुहNले म> कैसा बदचलन आदमी आ बसा।
तीन-चार दन बाद फर डVट साहब ने कहा- ौीवाःतव साहब क लड़क बहत
ु 'बगड़
गई है । मीन होटल म> पकड़ गई थी एक आदमी के साथ।
मुहNले वाले अभी भी कह रहे थे- शरफ\ के मुहNले म> यह कहां का बदचलन आ गया।
तीन-चार दन बाद डVट साहब ने कहा- ये जो पांडे साहब हP , अपने बड़े भाई क बीवी
से फंसे हP । िस'वल लाइं स म> रहता है इनका बड़ा भाई।
मुहNले के लोग अभी भी कहते थे- शरफ\ के मुहNले म> यह बदचलन कहां से आ गया।
डVट साहब ने मुहNले म> लगभग हर एक के बारे म> कुछ पता लगा िलया था। मP नहं
कह सकता क यह सब सच था या उनका गढ़ा हआ।
ु आदमी वे उःताद थे। ऊंचे
कलाकार। हर बार जब वे कसी क बदचलनी क खबर दे ते, उनका िसर और ऊंचा हो
जाता।
अब डVट साहब का िसर पूरा तन गया था। चाल म> अकड़ आ गई थी। लोग\ से दआ
ु
सलाम होने लगी थी। कुछ बात भी कर लेते थे।
एक अशु; बेवकूफ
'बना जाने बेवकूफ बनाना एक अलग और आसान चीज है । कोई भी इसे िनभा दे ता है ।
मगर यह जानते हए
ु क मP बेवकूफ बनाया जा रहा हंू और जो मुझे कहा जा रहा है , वह
सब झूठ है - बेवकूफ बनते जाने का एक अपना मजा है । यह तपःया है । मP इस तपःया
का मजा लेने का आद हो गया हंू । पर यह महं गा मजा है - मानिसक Sप से भी और
इस तरह से भी। इसिलए Tजनक है िसयत नहं है उbह> यह मजा नहं लेना चाहए। इसम>
मजा ह मजा नहं है - क[णा है , मनुंय क मजबूरय\ पर सहानुभूित है , आदमी क
पीड़ा क दा[ण यथा है । यह सःता मजा नहं है । जो है िसयत नहं रखते उनके िलए दो
राःते हP - िचढ़ जाय> या शु; बेवकूफ बन जाय>। शु; बेवकूफ एक दै वी वरदान है , मनुंय
जाित को। दिनया
ु का आधा सुख ख^म हो जाए, अगर शु; बेवकूफ न ह\। मP शु; नहं,
‘अशु;’ बेवकूफ हंू । और शु; बेवकूफ बनने को हमेशा उ^सुक रहता हंू ।
अभी जो साहब आये थे, िनहायत अFछे आदमी हP । अFछG सरकार नौकर म> हP ।
साहT^यक भी हP । क'वता भी िलखते हP । वे एक परिचत के साथ मेरे पास क'व के Sप
म> आये। बात> काय क ह घंटा भर होती रहं- तुलसीदास, सूरदास, गािलब, अनीस
वगैरह। पर मP ‘अशु;’ बेवकूफ हंू , इसिलए काय-चचा7 का मजा लेते हए
ु भी जान रहा था
क भ>ट के बाद काय के िसवाय कोई और बात िनकलेगी। वे मेर तारफ भी करते रहे
और मP बरदाँत करता रहा। पर मP जानता था क वे साह^य के कारण मेरे पास नहं
आये।
मPने उनसे क'वता सुनाने को कहा। आमतौर पर क'व क'वता सुनाने को उ^सुक रहता है ,
पर वे क'वता सुनाने म> संकोच कर रहे थे। क'वता उbह\ने सुनायी, पर बड़े बेमन से। वे
साह^य के कारण आये ह नहं थे- वरना क'वता क फरमाइश पर तो मुदा7 भी बोलने
लगता है ।
मPने कहा- कुछ सुनाइए।
पर ये सnजन क'वता सुनाने म> संकोच कर रहे थे और कह रहे थे- हम तो आपसे कुछ
लेने आये हP ।
मP समझता रहा क ये समाज और साह^य के बारे म> कुछ hान लेने आये हP ।
क'वताएं उbह\ने बड़े बेमन से सुना दं। मPने तारफ क, पर वे ूसbन नहं हए।
ु यह
अचरज क सी बात थी। घटया से घटया साहT^यक सज7क भी ूशंसा से पागल हो
जाता है । पर वे जरा भी ूशंसा से 'वचिलत नहं हए।
ु
उठने लगे तो बोले- डपाट7 म>ट म> मेरा ूमोशन होना है । कसी कारण अटक गया है । जरा
आप सेबेटर से कह दTजए, तो मेरा काम हो जाएगा।
एक ूोफेसर साहब Iलास वन के। वे इधर आये। 'वभाग के डन मेरे घिनंठ िमऽ हP ,
यह वे नहं जानते थे। य\ वे मुझसे पFचीस\ बार िमल चुके थे। पर जब वे डन के साथ
िमले तो उbह\ने मुझे पहचाना ह नहं। डन ने मेरा परचय उनसे करवाया। मPने भी ऐसा
बता7व कया, जैसे यह मेरा उनसे पहला परचय है ।
डन मेरे यार हP । कहने लगे- यार चलो केBटन म>, अFछG चाय पी जाय। अFछा नमकन
भी िमल जाए तो मजा आ जाय।
कहने लगे- साल\ से मेर लालसा थी क आपके दश7न कSं। आज यह लालसा पूण7
हई।
ु (हालांक वे कई बार िमल चुके थे। पर डन सामने थे।)
अंमेजी म> एक बड़ा अFछा मुहावरा है - ‘टे क इट 'वद ए 'पंच ऑफ साNट’- याने थोड़े
नमक के साथ लीTजए। मPने अपनी तारफ थोड़े नमक के साथ ले ली।
शाम को ूोफेसर साहब मेरे घर आये। कहने लगे- डन साहब तो आपके बड़े घिनंठ हP ।
उनसे कहए न क मुझे पेपर दे द> , कुछ कां'पयां भी- और ‘माडरे शन’ के िलए बुला ल>
तो और अFछा है ।
बेचारे Iया जवाब दे ते? अशु; बेवकूफ मP- मजा लेता रहा क वे Iलास वन के अफसर
नहं, चपरासी क तरह मेरे पास से 'वदा हए।
ु बड़ा आदमी भी कतना बेचारा होता है ।
एक दन मई क भर दोपहर म> एक साहब आ गये। भयंकर गम और धूप। मPने सोचा
क कोई भयंकर बात हो गई है , तभी ये इस वIत आये हP । वे पसीना प\छकर 'वयतनाम
क बात करने लगे। 'वयतनाम म> अमरक बब7रता क बात कर रहे थे। मP जानता था
क मP िनIसन नहं हंू । पर वे जानते थे क मP बेवकूफ हंू । मP भी जानता था क इनक
िचंता 'वयतनाम नहं है ।
मPने दे दए और 'वयतनाम क समःया आTखर कुल दस [पये म> िनपट गई।
मPने कहा- बु';जीवी वIतय दे रहे हP । यह काफ है । कल वे ठGक उNटा वIतय भी दे
सकते हP , Iय\क वे बु';जीवी हP ।
मPने कहा- आप जाइए। िनTंत रहए- लड़के के िलए जो मP कर सकता हंू कSंगा।
ू रहे हP । हर
यह 26 जनवर 1972 फर आ गया। यह गणतंऽ दवस है , मगर ‘गण’ टट
ू
गणतंऽ दवस ‘गण’ के टटने या नये ‘गण’ बनने के आंदोलन के साथ आता है । इस
बार आंी और तेलंगाना हP । अगले साल इसी पावन दवस पर कोई और ‘गण’ संकट
आयेगा।
इस पूरे साल म> मPने दो चीज> दे खीं। दो तरह के लोग बढ़े - जादगर
ू और साधु बढ़े । मेरा
अंदाज था, सामाbय आदमी के जीवन के सुभीते बढ़> गे- मगर नहं। बढ़े तो जादगर
ू और
साधु-योगी। कभी-कभी सोचता हंू क Iया ये जादगर
ू और साधु ‘गरबी हटाओ’ ूोमाम
के अंतग7त ह आ रहे हP ! Iया इसम> कोई योजना है ?
रोज अखबार उठाकर दे खता हंू । दो खबर> सामने आती हP - कोई नया जादगर
ू और कोई
नया साधु पैदा हो गया है । उसका 'वhापन छपता है । जादगर
ू आंख\ पर प]ट बांधकर
ःकूटर चलाता है और ‘गरबी हटाओ’ वाली जनता कामधाम छोड़कर, तीन-चार घंटे
आंख\ पर प]ट बांधे जादगर
ू ् को दे खती हजार\ क संgया म> सड़क के दोन\ तरफ खड़
रहती है । ये छोटे जादगर
ू हP । इस दे श म> बड़े बड़े जादगर
ू हP , जो छkबीस साल\ से आंख\
पर प]ट बांधे हP । जब वे दे खते हP क जनता अकुला रह है और कुछ करने पर उताS
है , तो वे फौरन जाद ू का खेल दखाने लगते हP । जनता दे खती है , ताली पीटती है । मP
पूछता हंू - जादगर
ू साहब, आंख\ पर प]ट बांधे राजनैितक ःकूटर पर कधर जा रहे हो?
कस दशा को जा रहे हो- समाजवाद? खुशहाली? गरबी हटाओ? कौन सा गbतय है ? वे
कहते हP - गbतय से Iया मतलब? जनता आंख\ पर प]ट बांधे जादगर
ू का खेल दे खना
चाहती है । हम दखा रहे हP । जनता को और Iया चाहए?
जनता को सचमुच कुछ नहं चाहए। उसे जाद ू के खेल चाहए। मुझे लगता है , ये दो
छोटे -छोटे जादगर
ू रोज खेल दखा रहे हP , इbह\ने ूेरणा इस दे श के राजनेताओं से महण
क होगी। जो छkबीस साल\ से जनता को जाद ू के खेल दखाकर खुश रखे हP , उbह> तीन-
चार घंटे खुश रखना Iया कठन है । इसिलए अखबार म> रोज फोटो दे खता हंू , कसी शहर
म> नये 'वकिसत कसी जादगर
ू क।
मुझे लगता है , छkबीस साल\ म> दे श क जनता क मानिसकता ऐसी बना द गयी है क
जाद ू दे खो और ताली पीटो। चम^कार दे खो और खुश रहो।
भारत-पाक यु; ऐसा ह एक जाद ू था। जरा बड़े ःकेल का जाद ू था, पर था जाद ू ह।
जनता अभी तक ताली पीट रह है ।
हमार ूधानमंऽी कह> गी- इधर भी गरबी हट नहं रह। कमत> बढ़ती जा रह हP । जनता
म> बड़ बेचन
ै ी है । बेकार बढ़ती जा रह है ।
तब दोन\ तय कर> ग-े Iय\ न पंिह दन\ का एक और जाद ू हो जाए। चार-पांच साल दोन\
दे श\ क जनता इस जाद ू के असर म> रहे गी।(दे शभIत माफ कर> - मगर जरा स\च>)
दसरा
ू कमाल इस दे श म> साधु है । अगर जाद ू से नहं मानते और राशन क दकान
ु पर
लाइन लगातार बढ़ रह है , तो लो, साधु लो।
जैसे जादगर\
ू क बाढ़ आयी है , वैसे ह साधुओं क बाढ़ आयी है । इन दोन\ म> कोई
संबंध जSर है ।
साधु कहता है - शरर िमlया है । आ^मा को जगाओ। उसे 'वँवा^मा से िमलाओ। अपने
को भूलो। अपने सFचे ःवSप को पहचानो। तुम सत ्-िचत ्-आनbद हो।
आनंद ह ॄZ है । राशन ॄZ नहं। Tजसने ‘अbनं ॄZ’ कहा था, वह झूठा था। नौिसTखया
था। अंत म> वह इस िनण7य पर पहंु चा क अbन नहं ‘आनbद’ ह ॄZ है ।
सब ॄZ ह ॄZ है ।
साधु का यह कम7 है क मनुंय को ॄZ क तरफ ले जाय और पैसे इक]ठे करे ; Iय\क
‘ॄZ स^यं जगTbमlया।’
26 जनवर आते आते मP यह सोच रहा हंू क ‘हटाओ गरबी’ के नारे को, हटाओ
महं गाई को, हटाओ बेकार को, हटाओ भुखमर को Iया हआ
ु ?
भगत क गत
सारा मुहNला अभी तक याद करता है क भगतजी मंदर म> आधीरात तक भजन करते
थे। हर दो-तीन दन\ म> वे कसी समथ7 ौ;ालु से मंदर म> लाउड-ःपीकर लगवा दे ते
और उस पर अपनी मंडली समेत भजन करते। पव7 पर तो चौबीस\ घंटे लाउड-ःपीकर पर
अखBड कत7न होता। एक-दो बार मुहNले वाल\ ने इस अखBड कोलाहल का 'वरोध कया
तो भगतजी ने भIत\ क भीड़ जमा कर ली और दं गा कराने पर उताS हो गए। वे
भगवान के लाउड-ःपीकर पर ूाण दे ने और ूाण लेने पर तुल गये थे।
ऐसे ईँवर-भIत, Tजbह\ने अरब\ बार भगवान का नाम िलया, नरक म> भेजे गए और
अजािमल, Tजसने एक बार भूल से भगवान का नाम ले िलया था, अभी भी ःवग7 के मजे
लूट रहा है । अंधेर कहां नहं है !
भगतजी बड़े 'वँवास से उस लोक म> पहंु चे। बड़ दे र तक यहां-वहां घूमकर दे खते रहे ।
फर एक फाटक पर पहंु चकर चौकदार से पूछा- ःवग7 का ूवेश-ार यह है न?
चौकदार ने कहा- हां यह है ।
वे आगे बढ़ने लगे, तो चौकदार ने रोका- ूवेश-पऽ यानी टकट दखाइए पहले।
भगतजी को बोध आ गया। बोले- मुझे भी टकट लगेगा यहां? मPने कभी टकट नहं
िलया। िसनेमा मP 'बना टकट दे खता था और रे ल म> भी 'बना टकट बैठता था। कोई
मुझसे टकट नहं मांगता। अब यहां ःवग7 म> टकट मांगते हो? मुझे जानते हो। मP
भगतजी हंू ।
भगतजी उसे ठे लकर आगे बढ़ने लगे। तभी चौकदार एकदम पहाड़ सरखा हो गया और
उसने उbह> उठाकर दqतर क सीढ़ पर खड़ा कर दया।
भगतजी दqतर म> पहंु चे। वहां कोई बड़ा दे वता फाइल> िलए बैठा था। भगतजी ने हाथ
जोड़कर कहा- अहा मP पहचान गया भगवान काित7केय 'वराजे हP ।
फाइल से िसर उठाकर उसने कहा- मP काित7केय नहं हंू । झूठG चापलूसी मत करो। जीवन-
भर वहां तो कुकम7 करते रहे हो और यहां आकर ‘ह> -ह> ’ करते हो। नाम बताओ।
भगतजी ने कहा- मेरा मामला तो 'बNकुल सीधा है । मP सोलह आने धािम7क आदमी हंू ।
िनयम से रोज भगवान का भजन करता रहा हंू । कभी झूठ नहं बोला और कभी चोर
नहं क। मंदर म> इनी Toयां आती थीं, पर मP सबको माता समझता था। मPने कभी
कोई पाप नहं कया। मुझे तो आंख मूंदकर आप ःवग7 भेज सकते हP ।
अिधकार ने कहा- भगतजी आपका मामला उतना सीधा नहं है , Tजतना आप समझ रहे
हP । परमा^मा खुद उसम> दलचःपी ले रहे हP । आपको मP उनके सामने हाTजर कये दे ता
हंू ।
एक चपरासी भगतजी को भगवान के दरबार म> ले चला। भगतजी ने राःते म> ह ःतुित
शुS कर द। जब वे भगवान के सामने पहंु चे तो बड़े जोर-जोर से भजन गाने लगे-
भजन पूरा करके गदगद वाणी म> बोले- अहा, जbम-जbमाbतर क मनोकामना आज पूर
हई
ु है । ूभु, अपूव7 Sप है आपका। Tजतनी फोटो आपक संसार म> चल रह हP , उनम> से
कसी से नहं िमलता।
भगवान ःतुित से ‘बोर’ हो रहे थे। [खाई से बोले- अFछा अFछा ठGक है । अब Iया
चाहते हो, सो बोलो।
भगतजी को इस ूँन से चोट लगी। Tजसके िलए इतना कया, वह पूछता है क तुमने
ऐसा Iया कया! भगवान पर बोध करने से Iया फायदा- यह सोचकर भगतजी गुःसा पी
गये। दनभव से बोले- मP रोज आपका भजन करता रहा।
भगवान ने कहा- वे तो अपनी चीज का 'वhापन करते हP । तुम Iया मेरा 'वhापन करते
थे? मP Iया कोई 'बकाऊ माल हंू ।
भगवान ने कहा- फर अbतया7मी को सुनाने के िलए लाउड-ःपीकर Iय\ लगाते थे? Iया
मP बहरा हंू ? यहां सब दे वता मेर हं सी उड़ाते हP । मेर प^नी मजाक करती है क यह
भगत तुUह> बहरा समझता है ।
भगवान को और गुःसा आया। वे कहने लगे- तुमने कई साल तक सारे मुहNले के लोग\
को तंग कया। तुUहारे कोलाहल के मारे वे न काम कर सकते थे, न चैन से बैठ सकते
थे और न सो सकते थे। उनम> से आधे तो मुझसे घृणा करने लगे हP । सोचते हP , अगर
भगवान न होता तो यह भगत इतना हNला न मचाता। तुमने मुझे कतना बदनाम कया
है !
भगत ने साहस बटोरकर कहा- भगवना आपका नाम ल\ग\ के कान\ म> जाता था, यह तो
उनके िलए अFछा ह था। उbह> अनायास पुBय िमल जाता था।
भगवान हं से। कहने लगे- भगत, तुमने आदिमय\ क ह^या क है । उधर क अदालत से
बच गये, पर यहां नहं बच सकते।
हां, यह मेरे मुहNले का रमानाथ माःटर है । 'पछले साल बीमार से मरा था।– भगतजी ने
'वँवास से कहा।
भगवान बोले- बीमार से नहं, तुUहारे भजन से मरा है । तुUहारे लाउड-ःपीकर से मरा है ।
रमानाथ, तुUहार मृ^यु Iय\ हई
ु ?
रमानाथ ने कहा- ूभु मP बीमार था। डॉIटर ने कहा क तुUह> पूर तरह नींद और आराम
िमलना चाहए। पर भगतजी के लाउडःपीकर पर अखBड कत7न के मारे मP सो न सका,
न आराम कर सका। दसने
ू दन मेर हालत 'बगड़ गयी और चौथे दन मP मर गया।
तभी एक बीस-इIकस साल का लड़का बुलाया गया। उससे पूछा- सुर>ि,तुम कैसे मरे ?
मुBडन
डन
कसी दे श क संसद म> एक दन बड़ हलचल मची। हलचल का कारण कोई राजनीितक
समःया नहं थी, बTNक यह था क एक मंऽी का अचानक मुBडन हो गया था। कल तक
उनके िसर पर लंबे घुंघराले बाल थे, मगर रात म> उनका अचानक मुBडन हो गया था।
सदःय\ म> कानाफूसी हो रह थी क इbह> Iया हो गया है । अटकल> लगने लगीं। कसी ने
कहा- शायद िसर म> जूं हो गयी ह\। दसरे
ू ने कहा- शायद दमाग म> 'वचार भरने के
िलए बाल\ का पदा7 अलग कर दया हो। कसी और ने कहा- शायद इनके परवार म>
कसी क मौत हो गयी। पर वे पहले क तरह ूसbन लग रहे थे।
आTखर एक सदःय ने पूछा- अuयc महोदय! Iया मP जान सकता हंू क माननीय मंऽी
महोदय के परवार म> Iया कसी क मृ^यु हो गयी है ?
एक सदःय ने पूछा- अuयc महोदय! Iया माननीय मंऽी को मालूम है क उनका मुBडन
हो गया है ? यद हां, तो Iया वे बताय>गे क उनका मुBडन कसने कर दया है ?
कई सदःय िचNलाये- हआ
ु है ! सबको दख रहा है ।
मंऽी ने कहा- सबको दखने से कुछ नहं होता। सरकार को दखना चाहए। सरकार इस
बात क जांच करे गी क मेरा मुBडन हआ
ु है या नहं।
एक सदःय ने कहा- इसक जांच अभी हो सकती है । मंऽी महोदय अपना हाथ िसर पर
फेरकर दे ख ल>।
सदःय िचNलाये- इसक जांच क Iया जSरत है ? िसर आपका है और हाथ भी आपके
हP । अपने ह हाथ को िसर पर फेरने म> मंऽी महोदय को Iया आप' है ?
मंऽी बोले- मP सदःय\ से सहमत हंू क िसर मेरा है और हाथ भी मेरे हP । मगर हमारे
हाथ परं पराओं और नीितय\ से बंधे हP । मP अपने िसर पर हाथ फेरने के िलए ःवतंऽ नहं
हंू । सरकार क एक िनयिमत काय7ूणाली होती है । 'वरोधी सदःय\ के दबाव म> आकर मP
उस ूणाली को भंग नहं कर सकता। मP सदन म> इस संबंध म> एक वIतय दं ग
ू ा।
सदःय\ ने कहा- यह मामला कुतुब मीनार का नहं जो सदय\ जांच के िलए खड़ रहे गी।
यह आपके बाल\ का मामला है , जो बढ़ते और कटने रहते हP । इसका िनण7य तुरंत होना
चाहए।
मंऽी ने जवाब दया- कुतुब मीनार से हमारे बाल\ क तुलना करके उनका अपमान करने
का अिधकार सदःय\ को नहं है । जहां तक मूल समःया का संबंध है , सरकार जांच के
पहले कुछ नहं कह सकती।
जांच सिमित साल\ जांच करती रह। इधर मंऽी के िसर पर बाला बढ़ते रहे ।
एक दन मंऽी ने जांच सिमित क रपोट7 सदन के सामने रख द।
सदन के दसरे
ू भाग से ‘शम7-शम7’ क आवाज> उठGं। एतराज उठे - यह एकदम झूठ है ।
मंऽी का मुBडन हआ
ु था।
मंऽी मुःकुराते हए
ु उठे और बोले- यह आपका gयाल हो सकता है । मगर ूमाण तो
चाहए। आज भी अगर आप ूमाण दे द> तो मP आपक बात मान लेता हंू ।
ऐसा कहकर उbह\ने अपने घुंघराले बाल\ पर हाथ फेरा और सदन दसरे
ू मसले सुलझाने म>
यःत हो गया।
मP उbह> समझा रहा था क लड़क क शाद म> टमटाम म> यथ7 खच7 मत करो।
पर वे बुजुग7 कह रहे थे- आप ठGक कहते हP , मगर रँतेदार\ म> नाक कट जाएगी।
नाक उनक काफ लंबी थी। मेरा gयाल है , नाक क हफाजत सबसे nयादा इसी दे श म>
होती है । और या तो नाक बहत ु बहत
ु नम7 होती है या छरा ु तेज, Tजससे छोट सी बात से
भी नाक कट जाती है । छोटे आदमी क नाक बहत
ु नाजुक होती है । यह छोटा आदमी
नाक को िछपाकर Iय\ नहं रखता?
कुछ बड़े आदमी, Tजनक है िसयत है , इःपात क नाक लगवा लेते हP और चमड़े का रं ग
चढ़वा लेते हP । कालाबाजार म> जेल हो आए हP औरत खुलेआम दसरे
ू के साथ ‘बाIस’ म>
िसनेमा दे खती है , लड़क का साव7जिनक गभ7पात हो चुका है । लोग उःतरा िलए नाक
काटने को घूम रहे हP । मगर काट> कैसे? नाक तो ःटल क है । चेहरे पर पहले जैसी ह
फट है और शोभा बढ़ा रह है ।
ःमगिलंग म> पकड़े गये हP । हथकड़ पड़ है । बाजार म> से ले जाये जा रहे हP । लोग नाक
काटने को उ^सुक हP । पर वे नाक को ितजोड़ मे रखकर ःमगिलंग करने गये थे। पुिलस
को Tखला-'पलाकर बर होकर लौट> गे और फर नाक पहन ल>गे।
ु होिशयार हP , वे नाक को तलवे म> रखते हP । तुम सारे शरर म> ढंू ढ़ो, नाक ह
जो बहत
नहं िमलती। नाितन क उॆ क दो लड़कय\ से बला^कार कर चुके हP । जालसाजी और
बPक को धोखा दे ने म> पकड़े जा चुके हP । लोग नाक काटने को उतावले हP , पर नाक
िमलती ह नहं। वह तो तलवे म> है । कोई जीवशाःऽी अगर नाक क तलाश भी कर दे
तो तलवे क नाक काटने से Iया होता है ? नाक तो चेहरे पर क कटे , तो कुछ मतलब
होता है ।
कुछ नाक> गुलाब के पौधे क तरह होती हP । कलम कर दो तो और अFछG शाखा बढ़ती है
और फूल भी बT़ढया लगते हP । मPने ऐसी फूलवाली खुशबूदार नाक> बहत
ु दे खीं हP । जब
खुशबू कम होने लगती है , ये फर कलम करा लेते हP , जैसे कसी औरत को छे ड़ दया
और जूते खा गये।
‘जूते खा गये’ अजब मुहावरा है । जूते तो मारे जाते हP । वे खाये कैसे जाते हP ? मगर
भारतवासी इतना भुखमरा है क जूते भी खा जाता है ।
तीन-चार महने बाद वे िमले तो खुश थे। नाक भी पहले से लंबी हो गयी थी। मPने कहा-
नाक तो पहले से लंबी मालूम होती है ।
वे बोले- हां, कुछ बढ़ गयी है । काफ लोग कहते हP , आपने बड़ा बांितकार काम कया।
कुछ 'बरादर वाले भी कहते हP । इसिलए नाक बढ़ गयी है ।
कुछ लोग मPने दे खे हP जो कई साल अपने शहर क नाक रहे हP । उनक नाक अगर कट
जाए तो सारे शहर क नाक कट जाती है । अगर उbह> संसद का टकट न िमले, तो सारा
शहर नकटा हो जाता है । पर अभी मP एक शहर गया तो लोग\ ने पूछा- फलां साहब के
Iया हाल हP ? वे इस शहर क नाक हP । तभी एक मसखरे ने कहा- हां साहब, वे अभी भी
शहर क नाक हP , मगर िछनक हई।
ु (यह वी^स रस है । रस िस;ांत ूेिमय\ को अFछा
लगेगा।)
तो जो भूतपूव7 संपbन बुजुग7 मेरे सामने बैठे थे, वे ूगितशील थे। लड़क का
अbतरजातीय 'ववाह कर रहे थे। वे खऽी और लड़का शु; काbयकुkज। वे खुशी से शाद
कर रहे थे। पर उसम> 'वरोधाभास यह था क शाद ठाठ से करना चाहते थे। बहत
ु लोग
ु
एक परं परा से छटकारा पा लेते हP , पर दसर
ू से बंधे रहते हP । रात को शराब क पाट_ से
कसी ईसाई दोःत के घर आ रहे हP , मगर राःते म> हनुमान का मंदर दख जाए तो
थोड़ा ितलक भी िसंदरू का लगा ल>गे। मेरा एक घोर नाTःतक िमऽ था। हम घूमने
िनकलते तो राःते म> मंदर दे खकर वे कह उठते- हरे राम! बाद म> पछताते भी थे।
तो मP उन बुजुग7 को समझा रहा था- आपके पास [पये हP नहं। आप कज7 लेकर शाद
का ठाठ बनाय>गे। पर कज7 चुकाय>गे कहां से? जब आपने इतना नया कदम उठाया है , क
अbतरजातीय 'ववाह कर रहे हP , तो 'ववाह भी नये ढं ग से कTजए। लड़का काbयकुबज
का है । 'बरादर म> शाद करता तो कई हजार उसे िमलते। लड़के शाद के बाजार म>
मवेशी क तरह 'बकते हP । अFछा मालवी बैल और हरयाणा क भPस ऊंची कमत पर
'बकती हP । लड़का इतना ^याग तो लड़क के ूेम के िलए कर चुका। फर भी वह कहता
है - अदालत जाकर शाद कर लेते हP । बाद म> एक पाट_ कर द> गे। आप आय7-समाजी हP ।
घBटे भर म> राःते म> आय7समाज मंदर म> वैदक रित से शाद कर डािलए। फर तीन-
चार सौ [पय\ क एक पाट_ दे डािलए। लड़के को एक पैसा भी नहं चाहए। लड़क के
कपड़े वगैरह िमलाकर शाद हजार म> हो जाएगी।
वे कहने लगे- बात आप ठGक कहते हP । मगर रँतेदार\ को तो बुलाना ह पड़े गा। फर
जब वे आय>गे तो इnजत के gयाल से सजावट, खाना, भ>ट वगैरह दे नी होगी।
उbह\ने जवाब दया- वे पंजाब म> हP । पटयाला म> ह तीन करबी रँतेदार हP । कुछ
दNली म> हP । आगरा म> हP ।
मPने फर कहा- मP आपसे कहता हंू क दरू से रँतेदार का िनमंऽण पऽ मुझे िमलता है ,
तो मP घबरा उठता हंू ।
सोचता हंू - जो ॄाZण यारह [पये म> शिन को उतार दे , पFचीस [पय\ म> सगोऽ 'ववाह
करा दे , मंगली लड़क का मंगल पंिह [पय\ म> उठाकर शुब के दायरे म> फ>क दे , वह
लन िसतंबर से लेकर माच7 तक सीिमत Iय\ नहं कर दे ता ? मई और जून क भयंकर
गम क लन> गोल Iय\ नहं कर दे ता ? वह कर सकता है । और फर ईसाई और
मुसलमान\ म> जब 'बना लन शाद होती है , तो Iया वर-वधू मर जाते हP ? आठ ूकार
के 'ववाह\ म> जो ‘गंधव7 'ववाह’ है वह Iया है ? वह यह शाद है जो आज होने लगा है ,
क लड़का-लड़क भागकर कहं शाद कर लेते हP । इधर लड़क का बाप गुःसे म> पुिलस म>
रपोट7 करता है क अमुक लड़का हमार ‘नाबािलग’ लड़क को भगा ले गया है । मगर
कुछ नहं होता; Iय\क लड़क मैशक का सट7 फकेट साथ ले जाती है Tजसम> जbम-
तारख होती है ।
वे कहने लगे- नहं जी, रँतेदार\ म> नाक कट जाएगी।
मPने कहा- पटयाला से इतना कराया लगाकर नाक काटने इधर कोई नहं आयेगा। फर
पटयाला म> कट नाक को कौन इधर दे खेगा। काट ल> पटयाला म>।
मPने कहा- दे Tखए जी, आप चाह> तो मP पुरोहत हो जाता हंू और घBटे भर म> शाद करा
दे ता हंू ।
मPने कहा- हां, ॄाZण का बेटा हंू । बुजुग ने सोचा होगा क लड़का नालायक िनकल जाए
और कसी काम-धbधे के लायक न रहे , तो इसे कम से कम स^यनारायण क कथा और
'ववाह 'विध िसखा दो। ये मP बचपन म> ह सीख गया था।
वे हं सने लगे।
उbह\ने सोचा। फर बोले- तरकब ठGक है ! पर इस तरह क धोखाधड़ मुझे पसंद नहं।
दसरे
ू दन मुझे बाहर जाना पड़ा। दो-तीन महने बाद लौटा तो लोग\ ने बताया क
उbह\ने सामान और नकद लेकर शाद कर डाली।