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भारत के संविधान के अनुच्छेद 338 में मूलतः अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों के लिए एक विशेष अधिकारी नियुक्त करने का प्रावधान
है विशेष अधिकारी का कर्तव्य है कि वह अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए संविधान में दिए गए सुरक्षणों
से संबंधित सभी विषयों का अन्वेषण करें और उन सुरक्षणों के कार्यक्रम के संबंध में ऐसे अंतराल ऊपर जो राष्ट्रपति निर्दिष्ट करें
राष्ट्रपति को प्रतिवेदन दें। इस प्रावधान के अनुकरण में एक विशेष अधिकारी की नियुक्ति पहली बार 18 नवंबर 1950 को की
गई जिसका पदनाम आयुक्त अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति रखा गया। 1965 तक आयुक्त अनुसूचित जनजाति एवं
अनुसूचित जाति के अधीन 17 क्षेत्रीय कार्यालय विभिन्न राज्यों में खोले गए। इन कार्यालयों के प्रमुख के रूप में सहायक आयुक्त
अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति नियुक्त किए गए जिनका पदनाम जुलाई 1965 में बदलकर उपायुक्त कर दिया गया।
आयुक्त का यह क्षेत्रीय संगठन जून 1967 में पांच आंचलिक कार्यालयों के रूप में पुनर्गठित किया गया उसे समाज कल्याण विभाग में नव
स्थापित पिछड़ा वर्ग कल्याण महानिदेशालय के अधीन रखा गया प्रत्येक आंचलिक कार्यालय का प्रमुख आंचलिक (जोनल)
निदेशक पिछड़ा वर्ग कल्याण नव सृजित पद होता था। और पहले सृजित किए गए क्षेत्रीय उप आयुक्त अनुसूचित जाति एवं
अनुसूचित जनजाति के सभी पदों का नाम बदलकर उपनिदेशक पिछड़ा वर्ग कल्याण कर दिया गया तथा उन्हें आंचलिक
निदेशक चंडीगढ़ उत्तरी अंचल भोपाल मध्य आंचल पटना पूर्वी आंचल बड़ौदा पश्चिमी अंचल तथा मद्रास दक्षिणांचल के
नियंत्रणाधीन रखा गया।पूर्वी अंचल कार्यालय की दो शाखाएं भुवनेश्वर तथा शिलांग में भी तथा बाद में कें द्रीय अंचल कार्यालय
की एक शाखा लखनऊ में भी स्थापित की गई इन सभी शाखा कार्यालयों का प्रमुख उप निदेशकों को बनाया गया पश्चिमी
अंचल कार्यालय को 1969 में अहमदाबाद में स्थापित कर दिया गया यह व्यवस्था नवंबर 1978 तक बरकरार रही। 89 वां
संविधान संशोधन अधिनियम 2003 में हुआ जिसमें राष्ट्रीय अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति आयोग को दो भागों में
विभाजित कर दिया गया जो कि फरवरी 2009 से क्रियान्वयन में आया दो भागों में विभाजित होने के बाद राष्ट्रीय अनुसूचित
जाति आयोग अनुच्छेद 338 तथा अनुसूचित जनजाति आयोग अनुच्छेद (338 क) में बट गया 1.12.1978 से क्षेत्रीय
कार्यालयों को नए गठित अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति आयोग में ही स्थानांतरित कर दिया गया तथा आंचलिक
निदेशक पिछड़ा वर्ग कल्याण तथा उप निदेशक पिछड़ा वर्ग कल्याण का पदनाम फिर से बदलकर कर क्रमशः निदेशक
अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति तथा उपनिदेशक अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति कर दिया गया कु छ
समय के बाद आंचलिक व्यवस्था को समाप्त कर दिया गया और आयोग के अधीन पुनः 17 क्षेत्रीय कार्यालय आ गए । चूंकि
क्षेत्रीय आयुक्त अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए भी कार्य करते थे अतः उनका पद नाम बदलकर निदेशक
अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति तथा पदेन उपायुक्त अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति कर दिया गया।
1. संविधान में अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति को दिए गए सुरक्षा से संबंधित सभी मामलों की जांच करना इसमें अन्य बातों के
साथ-साथ उस प्रक्रिया की समीक्षा भी शामिल होगी जिसके अनुसार सरकारी सेवाओं में अनुसूचित जाति और अनुसूचित
जनजाति के लिए निर्धारित आरक्षण ओं को व्यावहारिक रूप में कार्यान्वित किया जाता है।
2. छु आछू त समाप्त करने और छु आछू त के कारण उत्पन्न होने वाले पक्षपातपूर्ण भेदभाव को 5 वर्ष की अवधि के भीतर समाप्त करने के
उद्देश्य को विशेष रुप से ध्यान में रखते हुए सिविल अधिकार संरक्षण अधिनियम 1955 के कार्यान्वयन का अध्ययन करना।
3. लागू कानूनों के रास्ते में आने वाली बाधाओं की समाप्ति सुनिश्चित करने की दृष्टि से अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के
व्यक्तियों के विरुद्ध अपराध किए जाने से संबंधित सामाजिक आर्थिक और अन्य संबंधित परिस्थितियों का पता लगाना और
समुचित प्राधिकारी के उपायों की सिफारिश करना जिसमें अपराधों की शीघ्रता से जांच करना भी शामिल है। 4. अनुसूचित
जाति या जनजाति का सदस्य होने का दावा करने वाले व्यक्ति को अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति को प्राप्त सुरक्षणों
से वंचित किए जाने के बारे में व्यक्तिगत शिकायतों की जांच करना।
संविधान द्वारा संरक्षित उपरोक्त अधिकारों के संरक्षित होने के बावजूद राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग में दलित उत्पीड़न के गंभीर
मामले सामने आते हैं जिसमें जातिगत भेदभाव के कारण पदोन्नति रोकना दूरदराज के इलाके में ट्रांसफर कर देना अनुसूचित
जाति के व्यक्ति के लिए आरक्षित पेट्रोल पंप आवंटन तथा उससे संबंधित जमीन विवाद दबंग जातियों द्वारा जमीन कब्जा करना
मारपीट करना निर्मम हत्या आदि के मामले देखने को मिलते हैं जिसमें पुलिस द्वारा लापरवाही के कारण उपरोक्त समस्याएं
विकराल रूप ले रही हैं इनसे संबंधित चार्जशीट मेडिकल की गड़बड़ी की शिकायतें प्रायः आती हैं।
इन सबके अलावा दलित महिलाओं के साथ हो रही हिंसा अनेक प्रकार की हैं जैसे-
नौकरी में आरक्षण का अनुपालन न किया जाना।
प्रमोशन या ट्रांसफर में भेदभाव का सामना करना
उच्च जाति के उच्च अधिकारी द्वारा सीसीटीवी कै मरे द्वारा गतिविधियों की निगरानी करके उत्पीड़न करना
अंतर जाति विवाह के बाद सामान्य पुरुष द्वारा दलित महिला को छोड़ देना उच्च जाति के पुरुषों द्वारा अभद्र टिप्पणी गाली गलौज किया
जाना
निर्मम बलात्कार एवं हत्या
महिला को निर्वस्त्र करके मानव मल पीने के लिए मजबूर करना
उपरोक्त बिंदुओं का पता मुझे राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग की सुनवाई में नियमित रूप से दो बैठक सुनने के बाद पता चला। जिसमें 1
दिन डॉक्टर योगेंद्र पासवान जी के द्वारा की गई सुनवाई में 5 सुनवाई तथा 8-10 शिकायत कर्ताओं की प्रथम दृष्टया शिकायत
से जानकारी प्राप्त हुई जिसमें चार मामलों मामले महिलाओं से संबंधित थे तथा दूसरे दिन 15 10 2019 को माननीय
चेयरमैन की सुनवाई के बाद लगभग 30 शिकायत कर्ताओं में 4 मामले गंभीर, महिला तथा साथ ही दलित उत्पीड़न के थे।
न्याय की हर गुहार लगाने के बाद उपरोक्त व्यक्ति राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग दिल्ली अपनी शिकायत लेकर आता है जिसमें
अधिकांश मामले निम्न निम्न वर्ग के होते हैं क्योंकि आयोग न्याय पाने का सबसे सस्ता या कहें ना के बराबर खर्चीला साधन है
साथ ही सीधी कार्यवाही से पीड़ित को तत्काल राहत भी पहुंचाई जाती है इसलिए यह मामले राज्य अनुसूचित जाति आयोग से
न्याय न मिलने पर राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग आते हैं दलित उत्पीड़न के गंभीर मामले में आयोग स्वतः संज्ञान भी लेता है।
शोष के उद्देश्य
1. सामाजिक न्याय की दृष्टि से राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग भारत सरकार दिल्ली सरल और सीधा माध्यम है शोध का उद्देश्य इसका
मूल्यांकन करना है
2. एक स्वायत्त संस्था होने की वजह से यह पीड़ित दलितों तथा राष्ट्रपति के बीच की कड़ी है जिसमें राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग में
आने वाले मामलों की सीधी रिपोर्ट राष्ट्रपति के समक्ष प्रस्तुत की जाती है शोध का उद्देश्य इसकी पुष्टि करना है।
शोध प्रश्न या परिकल्पना
3. यह दलित उत्पीड़न से जुड़े गंभीर मामलों पर स्वायत्त संस्था होने के नाते स्वतः संज्ञान भी लेती है जेंडर के आधार पर स्वत संज्ञान
लिए गए मामलों की पड़ताल करना।
4. इस शोध का उद्देश्य बिहार राज्य में दलित महिला उत्पीड़न से जुड़े सभी मामलों का नारीवादी दृष्टि से अध्ययन करना है
5. दलित महिला उत्पीड़न से संबंधित मामलों में महिलाओं के विरुद्ध कार्यस्थल पर यौन हिंसा अधिनियम 2013 तथा घरेलू हिंसा
अधिनियम रोजगार एवं श्रम कानून को अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति अधिनियम के अनुपालन के संदर्भ में
अध्ययन करना है।
इस शोध का उद्देश्य जाति तथा जेंडर के अंतर संबंधों की बारीकी से पड़ताल करते हुए राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग द्वारा इसके निवारण
करने की प्रक्रिया पर नारीवादी दृष्टि से विस्तृत चर्चा करना भी है।
इंटरसेक्शनैलिटी में सभी प्रकार की सामाजिक एवं सांस्कृ तिक कई श्रेणियां आती हैं जैसे जाति जेंडर नस्ल वर्ग योग्यता क्षेत्रीयता आदि
अनेक अस्मिताएं आती हैं तथा सामाजिक असमानता तथा अन्याय के कारण यह हाशिए के लोग हिंसा का शिकार भी होते हैं
उनके निवारण के लिए बनी राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग की भूमिका का अध्ययन करना इस शोध का उद्देश्य है।
शोध प्रविधि
प्रस्तावित शोध नारीवादी शोध प्रविधि के अंतर्गत किया जाएगा जिसके अंतर्गत प्राथमिक द्वितीयक स्रोतों का प्रयोग किया जाएगा प्राथमिक
स्रोतों में साक्षात्कार भागीदारी अवलोकन से प्राप्त आंकड़ों को सम्मिलित किया जाएगा द्वितीय क्षेत्र में राष्ट्रीय अनुसूचित जाति
आयोग द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट किताबें पत्रिकाएं आदि से प्राप्त आंकड़ों का प्रयोग किया जाएगा राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग के
निर्णयों का नारीबारी दृष्टि से अध्ययन करना भी शोध का मुख्य लक्ष्य है।
सारांश
बाबा साहेब डॉक्टर भीमराव अंबेडकर का बहुत ही प्रसिद्ध और प्रचलित उद्धरण है कि-"I measure the progress of
community by the degree of progress with women have achieved" जिसे मोटे तौर पर
हिंदी में यूं लिखा जाता है कि अगर किसी समाज की प्रगति का मूल्यांकन करना हो तो उस समाज की महिलाओं की स्थिति
देखनी चाहिए जहां चांद के उत्तरी भाग पर भारत अपना चंद्रयान उतार रहा है विकास की सरपट दौड़ में वह बुलेट ट्रेन के सपने
को साकार कर रहा है साथ ही देश-विदेश में तमाम अनुसंधान और आविष्कारों का मात्र सिर्फ हिस्सा ही नहीं बन रहा बल्कि
उसमें अपनी सक्रिय प्रतिभागिता भी दिखा रहा है परंतु ऐसे ही दौर में बहुसंख्यक जनता न्यूनतम संसाधनों पर जीने के लिए
मजबूर है उसमें भी दलितों आदिवासियों की स्थिति और दयनीय है इस संरचनात्मक सीढ़ी नुमा ढांचे में स्त्री सबसे निचले
पायदान पर है अगर मोटा मोटी आंकड़ों को उठाकर देखा जाए तो पिछले दशक से 2016 में 25% से अधिक महिला दलित
उत्पीड़न का के स दर्ज किये गए हैं। अनुच्छेद 338 के अनुसार अनुसूचित जातियों अनुसूचित जनजातियों के लिए एक विशेष
अधिकारी नियुक्त करने का प्रावधान है विशेष अधिकारी का कर्तव्य है कि वह अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजातियों के
लिए संविधान में दिए गए सुरक्षा से संबंधित सभी विषयों की पड़ताल करें और उन सुलक्षणा के कार्यक्रम के संबंध में ऐसे
अंतराल ऊपर जो राष्ट्रपति निर्दिष्ट करें राष्ट्रपति को प्रतिवेदन दे। वार्षिक रिपोर्ट 1942-43 पृष्ठ 1) वह अनुसूचित जाति एवं
अनुसूचित जनजाति से संबंधित सभी मामलों की जांच पड़ताल कर राष्ट्रपति के दिए गए निर्देशों का पालन करेगा 1950 से
लेकर अब तक कई परिवर्तन हुए पर दलित आदिवासियों की स्थिति वही बनी हुई है। उसमें भी हाशिए पर दलित स्त्री है जो कि
शोषण की दोहरी मार झेल रही है वह सिर्फ पितृसत्ता की ही शिकार नहीं हो रही अपितु उसे जाति दंश का भी कोपभाजक
बनना पड़ रहा है। आए दिन अखबारों समाचारों तथा अन्य माध्यमों से दलित महिला के उत्पीड़न की खबर आती रहती है
जिनके अपराध की प्रकृ ति अति निंदनीय और निर्दयी तथा घिनौनी और अपमानजनक होती है जो कि सामान्य मनुष्य की
कल्पना से भी बाहर की बात होती है इस शोध कार्य के माध्यम से राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग भारत सरकार दिल्ली में
दलित महिलाओं के उत्पीड़न के मामलों को देखने का प्रयास किया जाएगा जिसमें बिहार, उत्तर पूर्व के राज्य, गुजरात तथा
उत्तर प्रदेश आदि राज्यों से आने वाले मामलों को देखने का प्रयास किया जाएगा।