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कर चले हम फ़िदा कै़ि़ी आज़म़ी

कर चले हम फ़िदा जानो-तन साफियो अब तुम्हारे हवाले वतन साफियो

सााँस िमत़ी गई, नब्ज जमत़ी गई फिर भ़ी बढ़ते कदम को न रुकने फदया

कट गए सर हमारे तो कुछ गम नह़ी ीं सर फहमालय का हमने न झुकने फदया

मरते-मरते रहा बााँकपन साफियोीं अब तुम्हारे हवाले वतन साफियो।।

कफिन शब्ोीं के अिथ


फ़िदा-बफलदान, वतन-दे श, हवाले-स प
ीं ना, नब्ज़-नाड़ी, िमत़ी-रुकत़ी.

बााँकपन - जवाऩी का जोश साहस जानो-तन-शऱीर और प्राण।

प्रस्तुत ग़ीत में कफव ने स्वयीं को भारतमाता के सैफनक के रूप में अींफकत फकया है। युद्धभूफम
में सैफनक शह़ीद होते समय भ़ी अपना साहस नह़ी ीं छोडते और अपने दू सरे साफियोीं को सींदेश
दे ते हैं फक हमने अपऩी जान और तन दे श को समफपथत कर फदया है। दे श क़ी रक्षा करते हुए
हम इस सींसार से जा रहे हैं। अब इस दे श क़ी रक्षा का भार तुम पर है। दे श क़ी सुरक्षा के
फलए लडते-लडते हमाऱी सााँसें अटकने लग़ी ीं और िीं ड के कारण नसें जमने लग़ी ि़ी ीं, फिर भ़ी
हमने कदमोीं को आगे बढ़ने से नह़ी ीं रोका और फनरीं तर बऱि पर आगे बढ़ते रहे। शत्रुओ ीं से
लडते-लडते और मुकाबला करते हुए हमने अपने फसर कटवा फदए. परीं तु फहमालय के सर को
झुकने नह़ी ीं फदया अिाथत उसके मान-सम्मान पर आाँ च न आने द़ी। हमें इस बात क़ी प्रसन्नता
है फक फहमालय के ग रव का बाल भ़ी बााँका नह़ी ीं होने फदया। मरते दम तक अपने साहस को
बनाए रखा और सींघर्थ करते रहे. अब हम इस सींसार से फवदा ले रहे हैं। अब दे श क़ी सुरक्षा
क़ी बागडोर और फज़म्मेदाऱी तुम्हाऱी है।

कला पक्ष
1. कफव ने उदू थ शब्ावल़ी से कफवता के स द ीं यथ को बढ़ा फदया है।
2. व़ीर रस का प्रयोग है। ओज गुण है।
3. दे शभक्ति का प्रबल भावना प्रकट क़ी गई है ।
4. उद्बोधनात्मक, सींबोधन शैल़ी है।
5. फचत्रात्मक भार्ा है, भावाफभव्यक्ति क़ी प्रधानता है।

2 .फजीं दा रहने के म सम बहुत है मगर जान दे ने क़ी रुत रोज आत़ी नह़ी ीं

हुस्न और इश्क दोनोीं को रुस्वा करे वो जवाऩी जो खूाँ में नहात़ी नह़ी ीं
आज धरत़ी बऩी है दु लहन साफियो अब तुम्हारे हवाले वतन साफियो
कफिन शब्ोीं के अिथ
फजींदा-ज़ीफवत, रुत-म सम, हुस्न-स द
ीं यथ, रुस्वा-बदनाम, खूाँ खून।

कफव सैफनक के रूप में युद्धभूफम में उपक्तथित अन्य सैफनकोीं को सींबोफधत करते हुए कहता है
फक दे श के फलए ज़ीने के अवसर तो अनेक बार फमलते हैं परीं तु दे श क़ी रक्षा के फलए बफलदान
दे ने के अवसर बहुत कम फमलते हैं। ये म के कभ़ी-कभ़ी आते हैं। युवावथिा वह अवथिा है
फजसमें प्रेम, स दीं यथ और जोश चरमोत्कर्थ पर होता है। यफद जवाऩी क़ी अवथिा में दे श क़ी
रक्षा के फलए रि नह़ी ीं बहाया तो वह जवाऩी और ज़ीवन व्यिथ है। ऐस़ी जवाऩी तो प्यार और
सद ीं यथ को भ़ी बदनाम करत़ी है। आज हमाऱी धरत़ी हमारे फलए दु लहन के समान है। यह
हमाऱी आन है। इसक़ी शान के फलए सवथस्व न्योछावर करने का सुनहरा अवसर तुम्हारे
सामने है। हमारे जाने के बाद इसक़ी सुरक्षा क़ी फजम्मेदाऱी तुम्हारे हािोीं में है। तुम्हें ह़ी इसक़ी
रक्षा करऩी है।

राह कुबाथफनयोीं क़ी न व़ीरान हो तुम सजाते ह़ी रहना नए काफ़िले

़ितह का जश्न इस जश्न के बाद है फजीं दग़ी म त से फमल रह़ी है गले

बााँध लो अपने सर से क़िन साफियो अब तुम्हारे हवाले वतन साफियो

कफिन शब्ोीं के अिथ


राह-रास्ता, कुबाथऩी-बफलदान, व़ीरान-सूऩी/सुनसान, काफ़िले याफत्रयोीं का समू ह, ़ितह-
ज़ीत, जश्न-खुश़ी, सर से क़िन बााँधना-मृ त्यु और बफलदान के फलए तैयार रहना ।

बफलदान होता हुआ सैफनक अन्य सैफनकोीं को सींदेश दे ता है फक दे श के फलए बफलदान दे ने का


फसलफसला जो चल पडा है, वह कभ़ी समाप्त न हो और न ह़ी रुके। बफलदान का मागथ कभ़ी
सुनसान नह़ी ीं होना चाफहए अिाथत दे श क़ी सुरक्षा के फलए फनत सैफनकोीं के समूह तैयार होते
रहें। उन्हें दे श क़ी रक्षा के फलए खुश़ी से आगे आते रहना चाफहए। एक बार सींघर्थ और बफलदान
का उत्सव मना फलया तो इस कुबाथऩी के बाद अगला फवजय का उत्सव ह़ी होगा। आज फजींदग़ी
स्वयीं आगे बढ़कर म त को अपने गले लगा रह़ी है। मृत्यु क़ी फचींता न करके शत्रुओ ीं से सींघर्थ
के फलए तैयार रहना चाफहए। हे साफियो! अब दे श के फलए न्योछावर होने का अवसर आया
है। अपने फसर पर क़िन बााँधकर आगे बढ़ो। अिाथ त मृत्यु का भय मन से फनकालकर
साहसपूवथक शत्रु का मुकाबला करो। अब हमारे जाने के पश्चात इस दे श क़ी सुरक्षा और मान
का भार तुम्हारे हािोीं में है। इसक़ी रक्षा करना।

कला पक्ष
I. कफव ने उदू थ शब्ावल़ी से कफवता के स द
ीं यथ को बढ़ा फदया है।
2. व़ीर रस का प्रयोग है। ओज गुण है।
3. मुहावरोीं का सट़ीक प्रयोग हुआ है।
4. उद्बोधनात्मक / सींबोधन शैल़ी का प्रयोग है।
5. खड़ी बोल़ी फहींद़ी के शब्ोीं का भ़ी प्रयोग है।
6. फचत्रात्मक भार्ा है। भावाफभव्यक्ति क़ी प्रधानता है।
7. दे श क़ी सुरक्षा के फलए बफलदान क़ी महत्ता प्रफतपाफदत क़ी गई है।

ख़ी ींच दो अपने खूाँ से जम़ीीं पर लक़ीर इस तऱि आने पाए न रावन कोई
तोड दो हाि अगर हाि उिने लगे। छू न पाए स़ीता का दामन कोई
राम भ़ी तुम, तुम्ह़ी लक्ष्मण साफियो अब तुम्हारे हवाले वतन साफियो।

कफिन शब्ोीं के अिथ


खू-खून, जम़ी-धरत़ी, दामन -आाँ चल, हाि उिना- आक्रमण होना।

शह़ीद होता हुआ सैफनक अपने अन्य सैफनक साफियोीं से कहता फक मेरे साफियो! तुम अपने
खून से इस धरत़ी पर लक़ीर (रे खा) ख़ी ींच दो और घेरा बनाकर धरत़ी को सुरफक्षत कर दो।
इस लक़ीर को पार करने क़ी फकस़ी भ़ी शत्रु क़ी फहम्मत न हो। दे श क़ी स़ीमा के भ़ीतर कोई
भ़ी रावणरूप़ी शत्रु घुस न पाए। अिाथत शत्रु के मन में इतना ख ़ि पैदा कर दो फक वह हमारे
दे श क़ी ओर नज़र उिाकर भ़ी न दे खें। अगर कोई शत्रु दे श क़ी ओर हाि उिाता है तो उसे
तोडकर रख दो। अिाथत तुरींत शत्रु को कुचल डालो। भारतमाता के मान-सम्मान को िे स नह़ी ीं
पहुींचऩी चाफहए। फजस प्रकार राम और लक्ष्मण ने रावण से स़ीता क़ी मयाथ दा को बचाया िा
उस़ी प्रकार तुम भ़ी दे श के राम और लक्ष्मण बनकर भारतमाता रूप़ी स़ीता क़ी रक्षा करना।
तुम ह़ी भारत के रक्षक और प्रहऱी हो। अब दे श क़ी सुरक्षा क़ी फजम्मे दाऱी तुम्हारे हािोीं में है ।
इसक़ी रक्षा करना।

कला पक्षः
1. कफव ने उदू थ शब्ावल़ी से कफवता के स द ीं यथ को बढ़ा फदया है।
2. व़ीर रस का प्रयोग है ओजगुण है
3. उद्बोधनात्मक/सींबोधन शैल़ी का प्रयोग है।
4. खड़ी बोल़ी फहींद़ी के शब्ोीं का भ़ी प्रयोग है।
5. फचत्रात्मक भार्ा है। भावाफभव्यक्ति क़ी प्रधानता है।
6. मुहावरोीं का सट़ीक प्रयोग हुआ है।
7. दे शभक्ति क़ी प्रेरणा दे ते हुए दे श पर सवथस्व न्योछावर करने क़ी बात कह़ी गई है।

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