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मैं इंतजार में था कोई इसको इंगित करें चूंकि रोमांटिक सिनेमा का हफ्ता है | शायद पहले कोई कह चुका

हों इसके बारे में | मणि रत्नम द्वारा निर्देशित बॉलीवुड की मेरी सबसे पसंदीदा रोमांटिक फिल्मों में सबसे
ऊपर यही है , कसम से – दिल से|

इसकी स्टोरीलाइन बाकी “लौंडा लौंडी बावले, लौंडी का बाप सनकी और अंत में जा जीले ज़िन्दगी” वाली
cringe कहानियों से बहुत ही अलग है – और इतना अलग कि उस वक़्त के दर्शकों के गले नहीं उतरी
फिल्म और पकड़ के पीट दिया मूवी को और भाई की मूवी, जानम समझा करो, को हिट करवाने चल
दिए|

सबसे पहले इस फिल्म के सबसे बेहतरीन पहलु की बात – सिनेमेटोग्राफी| संतोष सिवान एक लीजेंडरी
फ्रेम मेकर हैं| उनके दिखाए हुए फ्रेम सिनेमा स्कूलों में पढाये जाते हैं, उनकी कैमरा मूवमें ट, लाइट के
विपरीत, समक्ष और साइड में वस्तुओं/सब्जेक्ट को रख कर silhouettes से विभिन्न प्रकार के surreal
खिलवाड़ करना, दरू किसी subject से फोकस शिफ्टिं ग किसी क्लोज-अप वाले ऑब्जेक्ट पर लेकिन दोनों
का कोई मेल ना होना, सीन को नेचुरल और इंटेंस रखने के लिए और भी बहुत कुछ – संतोष सिवान
भारतीय सिनेमा के सबसे बेहतरीन और माने हुए सिनेमेटोग्राफर हैं| इस मूवी में उन्होंने अपने करियर की
सबसे दमदार सिनेमेटोग्राफी करी है |

एक क्लासिक सीक्वेंस है (गैंग ऑफ़ वास्सेय्पुर फेम रामधीर सिंह, aka तिग्मांशु धुलिया द्वारा लिखा हुआ)
- अमर और मेघना के बीच लद्दाख में दर्शायी केमिस्ट्री, बस ख़राब खड़ी है , सारे यात्री आस पास के शरण
स्थल पर जाने के लिए ट्रे क कर रहे हैं, ये दोनों उस वक़्त आपस में बातें करते हुए भीड़ से अलग निकल
पड़ते हैं और उन पहाड़ों और बियाबानों जैसे सुन्दर सपने दे खने सुनने बुनने के बाद अंत में शरण स्थली
पर ही पहुँचते हैं | और अगली सुबह हकीकत से सामना होने पर मनीषा की अक्ल पर पड़ा सुनेहरा पर्दा
हटता है और वो अमर को अकेला छोड़ कर निकल जाती है | ये symbolism है , मेघना के अंदर उमड़ते
अमर के प्रति infatuation जो सुंदर नजारों के साथ ही ख़तम हो जाता है | उन सुन्दर वादियों और बर्फ से
ढं के पहाड़ों पर लद्दाख को जिस प्रकार से दिखाया गया है , आप विडियो रोक कर किसी भी फ्रेम का
स्क्रीनशॉट ले कर अपना वॉलपेपर बना सकते हैं| ऐसे बहुत सीन है मूवी में जो आप अब नोटिस करें गे
जिसमें लाइट का शानदार प्ले अभिभूत रखता है |

दस
ू री बात – एक्टिं ग|

इस फिल्म में जिसने भी काम किया है उसने अपने करियर का बेहतरीन काम किया| मनीषा कोइराला
केवल शांत रहकर इतना कुछ बोल जाती हैं, आप सारी मूवी में उसके लिए द्रवित रहते हैं, उसकी घुटन
तक महसूस होती है , उसके वो सॉफ्ट-टोन में बोले हुए शब्द – जैसे भावार्थ में कुछ और हों| शाहरुख़ एक
फ्लैट-फेस एक्सप्रेशन लिए भी सब कुछ उगल दे ता है , ये अपने आप में मील का पत्थर है |

तीसरी बात - स्टोरीलाइन


मणिरत्नम की ब्रिलियंस और वरना नहीं तो एक नार्मल स्क्रिप्ट में की गयी चारागरी यहाँ असल में
दिखती है | उन्होंने स्क्रिप्ट को अरे बियन परिभाषा के अनुसार इश्क के सात विभिन्न चरणों वाली ट्रीटमें ट
दी है जो निम्नलिखित है :

दिलकशी (Attraction) उन्स (Infatuation)  इश्क (Love)  अकीदत (Trust/reverence)  इबादत


(Worship)  जन
ू ून (Passion/madness)  मौत (Death)

ये मूवी इन सभी चरणों से गुजरते हुए अमर की कहानी एक haunting पोएट्री इन मोशन के दृष्टिकोण से
दिखाती है | ये सभी चरण आपको एक गाने में दे खने को मिलते हैं “सतरं गी रे ” जिसमें आपको मनीषा के
रं ग बदलती पोशाकें और शाहरुख़ की एक ही काले कलर की पोशाक आपको इश्क के अलग अलग चरणों
में होने और रं ग बदलती माशूका और एक कलर में अपनी जिद लिए खड़े शाहरुख़ का एहसास करवाता
है | और ये गाना लिखा भी इन्ही साथ चरणों के हिसाब से है गुलज़ार साहब ने|

आखिरी बात - ऐ आर रहमान ने भी अपने करियर के सबसे बेहतरीन म्यूजिक शायद यहीं दे दिया है |
एक एक गाने में इस्तेमाल किये गए इंस्ट्रूमें ट्स और उनका improvisation को सदी की महानतम रचनाओं
में से एक मानग
ूं ा| शाहरुख़ की व्यथा को दर्शाता हुआ, ऐ अजनबी या दिलकशी में सना “दिल से रे ...” या
लद्दाख में अमर को अकेले छोड़ने के बाद दिल्ली में पहली बार उससे फिर वापस मिलने पर रौंगटे खड़े
कर दे ने वाला BGM स्कोर – रहमान ने महफिल लूट ली और बेंचमार्क ऐसा बना दिया जिसपे वो भी खुद
कभी वापस नहीं पहुँच पाए|

ये ऐसी मूवी है जिसकी रिपीट वाच वैल्यू कमाल की है | ऐसी बहुत सी मूवीज है जो underrated रह गयी
और रिलीज़ होने पर भाई की जमात द्वारा पेल दी गयी, खुद भाई की फ़िल्में भी हैं इसमें | ऐसी बहुत
मूवीज का कभी फुर्सत में रिव्यु डालँ ग
ू ा| मूवी Netflix पर मिल जाएगी, बस हाई क्वालिटी में दे खना, एवरे ज
या गुड क्वालिटी में दे खने का फायदा नहीं|

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