Professional Documents
Culture Documents
10th std common notes तीसरी कसम प्रश्नोत्तर
10th std common notes तीसरी कसम प्रश्नोत्तर
3. लेखक ने ऐसा क्यों शलखा है फक 'तीसरी कसम' ने सादहत्य रचना के साथ शत-
प्रनतशत न्याय फकया है ?
उत्तर- लेखक के अनस
ु ार 'तीसरी कसम' चंद उन फ़िल्मों में से है जिन्होंने सादहत्य
रचना के साथ शत-प्रनतशत न्यायः फकया था। फ़िल्म के ननमााता ननदे शक शैलेंद्र के
अनुसार कलाकार की रचना ऐसी होनी चादहए जिसमें शांत नदी का प्रवाह और
समुद्र की गहराई हो। शैलेंद्र ने इसी ववशेषता को अपनी जिंदगी में अपनाया था
और अपनी फ़िल्म के द्वारा साबबत िी फकया था। उन्होंने रािकपूर िैसे ववशाल
व्यजक्तत्व वाले थिार को हीरामन बना ददया था।
4 शैलेंद्र के गीतों की क्या ववशेषताएाँ हैं? अपने शब्दों में शलखखए। उत्तर- शैलेंद्र के
गीत सरल, सहि िाषा में होने के बाविूद बहुत बडे अथा को अपने में समादहत
रखते थे। वे एक आदशावादी िावक
ु कवव थे और उनका यही थविाव उनके गीतों
में िी झलकता था। अपने गीतों में उन्होंने झठ
ू े ददखावे को किी कोई थथान नहीं
ददया। उनके गीतों में िावों की प्रधानता थी, और वे आम िन िीवन से िुडे हुए
थे। 'मेरा िूता है िापानी, ये पतलून इंगशलथतानी, सर पे लाल िोपी रूसी, फिर िी
ददल है दहंदथ
ु तानी' िैसा सरल, थविाववक गीत शैलेंद्र ने ही शलखा है । उनके गीतों
में शांत नदी सा प्रवाह और समुद्र सी गहराई होती थी। अपनी इस थविावगत
ववशेषता को उन्होंने अपने गीतों और अपनी फ़िल्म में ज्यों का त्यों उतार ददया
था।
5. फ़िल्म ननमााता के रूप में शैलेंद्र की ववशेषताओं पर प्रकाश डाशलए।
उत्तर- शैलेंद्र एक आदशावादी, संवेदनशील और िावक
ु कवव थे। उन्होंने अपने िीवन
में केवल एक फ़िल्म बनाई. जिसका नाम था 'तीसरी कसम' शैलेंद्र फ़िल्म ननमााता
बनने के योग्य नहीं थे क्योंफक, उनका फ़िल्म ननमााण का उद्दे श्य दशाकों की रुचच
के नाम पर उल्िे -सीधे दृश्य फ़िल्म में डालकर, फ़िल्म को दहि करवाकर केवल
धन और यश को प्राप्त करना नहीं था। फ़िल्म ननमााण के पीछे उनकी कामना थी
फक उनकों आत्मसंतुजष्ि का सुख शमले और इसी कारणवश तीसरी कसम के महान
फ़िल्म होने के बाविद
ू इसे ववतरक नहीं शमले।
6. शैलेंद्र के ननिी िीवन की छाप उनकी फ़िल्म में झलकती है - कैसे ? थपष्ि
कीजिए।
उत्तर- शैलेंद्र फ़िल्म इंडथरी में वषों से थे। वे वहााँ के तौर-तरीकों को अच्छी तरह
िानते थे परं त,ु उन्होंने उन ननयम कायद को किी नहीं अपनाया। वे एक
आदशावादी कलाकार थे और अपनी कला के माध्यम से इंसाननयत की रक्षा करना
चाहते थे। उनका दृढ़ ववचार था फक दशाकों की रुचच की आड में ननम्नथतरीय कला
को उन पर नहीं थोपना चादहए। वे मानते थे फक हमें उपिोक्ता की रुचचयों को
पररष्कृत करने का प्रयास करना चादहए और उन्होंने अपने िीवन में यही फकया।
उनके शलखे गीत बेहद लोकवप्रय हुए। उन्होंने झठ
ू े ददखावे को किी नहीं अपनाया।
उनके गीत िावनाओं से िरे थे परं तु कदठन नहीं थे। शैलेंद्र समद्र
ु सी गहराई और
शांत नदी सा प्रवाह अपने में समेिे हुए थे और यही िाव उनके गीतों और फ़िल्म
में िी झलकता है ।
7. िेिक के इस कथन से की 'तीसरी कसम' फ़िल्म कोई सच्चा कवव-हृदय ही बना सकता
था, आप कहााँ तक सहमत हैं ? स्पष्ट्ट कीक्जए ।
उत्तर- िेिक के इस कथन से फक 'तीसरी कसम' फ़िल्म को कोई सच्चा कवव हृदय ही बना
सकता था से मैं पूर्त
ण या सहमत हूाँ। इस फ़िल्म को दे िने के बाद ऐसा िगता है मानों यह
केवि फ़िल्म ही नहीं बक्ल्क साहहत्य की एक अत्यंत मालमणक कृनत है , क्जसे किाकारों ने परू ी
ईमानदारी और साथणकता की पराकाष्ट्ठा को छूते हुए पदे पर उतारा है । इस फ़िल्म में शैिेंद्र
की स्वभावगत संवेदनशीिता और आदशण पूरी लशद्दत के साथ मौजूद हैं। इसीलिए इस
फ़िल्म की गर्ना हहंदी फ़िल्म इंडस्री की कुछ यादगार फ़िल्मों में की जाती है ।
(ग) ननम्नलिखित का आशय स्पष्ट्ट कीक्जए-
1. वह तो एक आदशणवादी भावुक कवव था, क्जसे अपार संपवत्त और यश तक की इतनी
कामना नहीं थी क्जतनी आत्म संतुक्ष्ट्ट के सुि की अलभिाषा थी।
उत्तर- इन पंक्ततयों से िेिक का आशय है फक शैिेंद्र एक ऐसे कवव थे क्जनके लिए अपने
आदशों और भावनाओं का सम्मान और पािन ही जीवन का उद्दे श्य था। वे सच्चे अथों में
किाकार थे। अपनी किा के माध्यम से वे िोगों की रुचचयों का पररष्ट्कार करने का प्रयत्न
करते थे। उन्होंने जब तीसरी कसम फ़िल्म का ननमाणर् फकया तो उनका उद्दे श्य केवि पैसा
कमाना नहीं था। वे इस फ़िल्म के माध्यम से अपने भीतर के किाकार को संतष्ट्ु ट करना
चाहते थे।
2. उनका यह दृढ़ मंतव्य था फक दशणकों की रुचच की आड़ में हमें उथिेपन को उन पर नहीं
थोपना चाहहए। किाकार का यह कतणव्य भी है फक वह उपभोतता की रुचचयों का पररष्ट्कार
करने का प्रयत्न करे ।
उत्तर- फ़िल्में आज के दौर में मनोरं जन का एक सशतत माध्यम हैं। समाज के हर वगण के
िोग फ़िल्म दे िते हैं और उनसे प्रभाववत भी होते हैं। आज जो भी फ़िल्में प्रदलशणत होती हैं,
उनमें से अचिकतर इस स्तर की नहीं होतीं की परू ा पररवार एक साथ बैठ कर दे ि सके। इस
बात का हर ननमाणता ननदे शक के पास एक ही उत्तर होता है फक, दशणकों को यही पसंद है । शैिेंद्र
का यह दृढ़ ववश्वास था फक दशणकों की पसंद का बहाना बनाकर हमें ननम्नस्तरीय किा
अथवा साहहत्य का ननमाणर् नहीं करना चाहहए बक्ल्क किाकार की रचना ऐसी होनी चाहहए
क्जससे वह दशणकों की रुचच को भी स्तरीय बना दे ।
3. व्यथा आदमी को पराक्जत नहीं करती, उसे आगे बढ़ने का संदेश दे ती है ।
उत्तर- िेिक के अनुसार हमारी क्जंदगी में दि
ु तकिी़िे तो आती ही रहती हैं परं तु हमें उन
दि
ु ों से हार नहीं माननी चाहहए। जीवन की कहठनाइयों का साहसपूवक
ण सामना करके उन
पर काबू पाना चाहहए। इस प्रकार जो मनुष्ट्य अपने दि
ु ों पर ववजय पाता है वह जीवन में
आगे बढ़ता है और सफिता प्राप्त करता है ।
4. दरअसि इस फ़िल्म की संवेदना फकसी दो से चार बनाने वािे की समझ से परे है ।
उत्तर- कवव शैिेंद्र ने जब तीसरी कसम फ़िल्म का ननमाणर् फकया तो उनके मन में केवि िन
और यश प्राप्त करने की अलभिाषा नहीं थी। वे इस फ़िल्म के माध्यम से अपने भीतर के
किाकार को संतुष्ट्ट करना चाहते थे। इस फ़िल्म को बनाने के पीछे शैिेंद्र की जो भावना थी
उसे केवि िन अक्जणत करने की इच्छा रिने वािे व्यक्तत नहीं समझ सकते थे।
5. उनके गीत भाव-प्रवर् थे- दरू
ु ह नहीं।
उत्तर- शैिेंद्र एक संवेदनशीि और आदशणवादी कवव थे। उन्होंने अपनी गीतों में सरि व सहज
भाषा को अपनाते हुए समाज को संदेश दे ने का प्रयत्न फकया। उनके गीतों में भावनाओं की
अचिकता थी परं तु उन भावनाओं को अलभव्यतत करने वािी भाषा बेहद सरि और आम
बोिचाि की थी।