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Hindi - Kshitij
प्रश्न अभ्यास
उत्तर: शहनाई और डु मरााँ व एक-दू सरे के लिए ज़रूरी हैं । शहनाई बनाने के लिए रीड का
प्रयोग होता है ,जो अंदर से पोिी होती है लजसकी मदद से शहनाई को फूाँका जाता है । रीड
नरकट से बनाई जाती है ,जो एक प्रकार की घास है जो डु मरााँ व में सोन नदी के लकनारे पाई
जाती है । साथ ही, मशहूर शहनाई वादक "लबस्मिल्ला खााँ " का जन्म डु मरााँ व में ही हुआ था।
इसी कारण शहनाई की दु लनया में डु मरााँ व को याद लकया जाता है ।
उत्तर: अवधी पारं पररक िोक गीतों और चैती में शहनाई का उल्लेख मुख्यतः मां गलिक
अवसरों पर लकया गया है । शहनाई को मंगि ध्वलन पैदा करने वािा यंत्र कहा जाता है और
लबस्मिल्ला खााँ इसी वाद्य यंत्र से मंगि ध्वलन बजाते थे ।उनका स्थान शहनाई वादक के रूप में
सववश्रेष्ठ है और आज भी पूरी दु लनया उन्हें उनकी मंगि ध्वलन से याद रखती है ।और शहनाई
का नाम आते ही लबस्मिल्ला खााँ का नाम लिया जाता है , इसी कारण उन्हें शहनाई की मंगिध्वलन
का नायक कहा गया है ।
3.सुनिर-वाद्ोों से क्ा अनिप्राय है ? शहनाई को ‘सुनिर वाद्ोों में शाह’ की उपानि क्ोों
दी गई होगी?
उत्तर: संगीत शास्त्ों में शहनाई को 'सुलिर वैद्यों' में लगना जाता है , लजसका अथव है 'फूाँककर
बजाए जाने वािे वाद्य'।शहनाई एक मंगिध्वलन उत्पन्न करने वािा वाद्य है , लजसकी तुिना
लकसी और सुलिर वाद्य से नहीं की जा सकती क्ोंलक इसकी ध्वलन बेजोड़ है । इसी कारण
शहनाई को 'सुलिर वाद्यों में शाह' की उपालध दी गई होगी।
उत्तर: यहााँ लबस्मिल्ला खााँ ने कपड़े और सुर की तु िना करते हुए सुर को अलधक महत्त्वपूणव
बताया है । कपड़े से उनका तात्पयव धन-दौित है । उनका कहना है लक यलद कपड़ा फट जाए
तो उसे दोबारा लसिा जा सकता है और धन-दौित भी दोबारा कमाई जा सकती है , परं तु एक
बार यलद सुर फट जाए तो वह दोबारा ठीक नहीं होता। लबस्मिल्ला खााँ की पहचान उनके सुरों
से ही थी इसलिए उनके लिए सुरों का स्थान धन-दौित से ऊपर है ।
(ख) ‘मेरे मानलक सुर बख्श दे । सुर में वह तासीर पै दा कर नक आाँ खोों से सच्चे मोती की
तरह अनगढ़ आाँ सू ननकल आएाँ ।’
उत्तर: लबस्मिल्ला खााँ पााँ च वक़्त की नमाज़ के बाद खुदा से सच्चे सुर की दु आ करते थे । उनकी
पहचान उनके सुरों से थी और वह यह प्राथव ना करते थे लक खुदा उनको ऐसे सुर दे जो अत्यंत
प्रभावशािी हों। वह चाहते थे लक उनकी शहनाई की मंगिध्वलन के सुरों का िोगों के लदिों पर
ऐसा असर हो लक उनकी आाँ खों से सच्चे मोती की तरह आाँ सू लनकिें ।
(ग) काशी में हो रहे कौन-से पररवततन नबस्मिल्ला खााँ को व्यनित करते िे?
उत्तर: काशी में बहुत सारी परं पराएाँ िु प्त होती जा रही थी। संगीत, सालहत्य और अदब में आ
रहे पररवतव न लबस्मिल्ला खााँ को व्यलथत करते थे। अब काशी में धमव का अथव बदि रहा था और
लहं दू-मुसिमान भाईचारा भी पहिे जै सा नहीं था। पहिे काशी खान-पान की चीजों के लिए
लवख्यात हुआ करता था परं तु अब खाने में वह बात नहीं रही थी। यह बदिता काशी लबस्मिल्ला
खााँ को व्यलथत करता था।
उत्तर: लबस्मिल्ला खााँ लमिी-जु िी संस्कृलत के प्रतीक थे इसका सबसे बड़ा प्रमाण उनका
काशी के प्रलत प्रेम था। वह अक्सर कहा करते थे लक "काशी छोड़ कर कहााँ जाऊाँ। गंगा मैया
यहााँ , बािाजी यहााँ , बाबा लवश्वनाथ यहााँ । मरते दम तक न शहनाई छूटे गी, और न ही काशी। "
उत्तर: लबस्मिल्ला खााँ के लिए उनके सुर धन-दौित से भी ज़्यादा महत्वपूणव थे । उन्हें काशी की
लमिी-जु िी संस्कृलत से अत्यंत प्रेम था। वह हर धमव का सम्मान करते थे और धमव से ऊपर
मानवता को मानते थे । भारत रत्न से सम्मालनत होने के पश्चात् भी उनमें घमंड नहीं आया
था,उनके लिए हमेशा उनकी शहनाई के सुर सबसे महत्त्वपूणव रहे ।
उत्तर: लबस्मिल्ला खााँ के जीवन में बहुत-सी घटनाओं और व्यस्मियों ने उनकी संगीत साधना
को समृद्ध लकया।
1. बचपन में वह बािाजी मंलदर पर जाकर प्रलतलदन शहनाई बजाते थे । बािाजी मंलदर के
रास्ते में रसूिनबाई और बतूिनबाई के मधुर स्वर सुनने को लमिते । वहााँ से गुज़रते
समय ठु मरी,टप्पे,तो कभी दादरा की आवाज़ें सुनाई पड़ती थी। इन दोनों बहनों को
सुनकर ही लबस्मिल्ला खााँ को संगीत की प्रेरणा लमिी और साथ ही मंलदर पर जाकर
शहनाई बजाने से उनकी किा हर लदन लनखरने िगी।
2. चार साि की आयु में लबस्मिल्ला खााँ छु पकर अपने नाना को शहनाई बजाते हुए सुनते
और उनके जाने पर उनकी शहनाई ढू ढं ते थे और उन्हीं की तरह शहनाई वादन करने
की इच्छा रखते थे ।
3. जब लबस्मिल्ला खााँ के मामा शहनाई बजाते हुए सम पर आते तो लबस्मिल्ला खााँ धड़ से
एक पत्थर ज़मीन में मारते । ऐसा करके उन्होंने संगीत में दाद दे ना सीखा।
उत्तर: लबस्मिल्ला खााँ का सम्पूणव व्यस्मित्व ही बहुत प्रभावशािी था। उनकी लनम्नलिस्मखत
लवशे िताएाँ उनके व्यस्मित्व को प्रभावशािी बनती हैं :
1. ईश्वर के प्रलत उनकी श्रद्धा बहुत ज़्यादा थी। यह श्रद्धा केवि अपने धमव के लिए नहीं
अलपतु सभी धमों के लिए थी।
3. लबस्मिल्ला खााँ एक सीधे -सादे सच्चे मनुष्य थे । भारत रत्न लमिने के उपरां त भी उनमें
कभी घमंड नहीं आया।
4. वह भारत से अत्यंत प्रेम करते थे । उन्हें काशीकी लमिी-जुिी संस्कृलत से बहुत प्रेम था।
वह कहते थे लक वह मरते दम तक काशी और शहनाई को नहीं छोड़ सकते ।
उत्तर: मुहरव म के महीने में लशया मुिमान शोक मनाते थे और इसी कारण उनका पररवार
पूरे दस लदन तक संगीत से दू र रहता था। मुहरव म के महीने की आठवीं तारीख लबस्मिल्ला
खााँ के लिए बहुत महत्त्वपूणव होती थी क्ोंलक इस लदन वह खड़े होकर शहनाई बजाते थे ।
वह तक़रीबन आठ लकिोमीटर का रास्ता पैदि रोते हुए और नोरा बजाते हुए तय करते
3. नबस्मिल्ला खााँ कला के अनन्य उपासक िे, तकत सनहत उत्तर दीनजए।
उत्तर: लबस्मिल्ला लबस्मिल्ला खााँ भारत रत्न लमिने के बाद भी लबना घमंड अपने संगीत से
जु ड़े हुए थे। भारत में वह सववश्रेष्ठ शहनाई वादक थे । उनकी पूरी लज़न्दगी पूणवतः संगीत
और किा को समलपवत थी। वह जीवन भर अपने सुरों को अधूरा समझ खुदा से यही दु आ
करते रहे लक खुदा उन्हें ऐसे सुर दे जो आत्मा को छूकर आाँ खों से सच्चे मोती के समान
लनकिे । उनका मानना था लक फटा कपड़ा लसिा जा सकता है और धन-दौित भी दोबारा
कमाई जा सकती है ,परं तु फटा सुर ठीक नहीं हो सकता। इसलिए वह ईश्वर से सदा यही
प्राथव ना करते लक ईश्वर उन्हें मधुर सुर दे । उन्होंने संगीत को सबसे ऊपर रखा। इससे
प्रमालणत होता है लक लबस्मिल्ला खााँ किा के अनन्य उपासक थे ।
िािा-अध्ययन
(ख) रीड अोंदर से पोली होती है नजसके सहारे शहनाई को फूाँका जाता है ।
(ग) रीड नरकट से बनाई जाती है जो डु मरााँव के मुख्यतः सोन नदी के नकनारे पाई जाती
है ।
(ड़) नहरन अपनी ही महक से परे शान पु रे जोंगल में उस वरदान को खोजता है नजसकी
गमक उसी में समाई है ।
(च) खााँ साहब की सबसे बड़ी दे न हमें यही है नक पू रे अस्सी बरस उन्ोनें सोंगीत को
सम्पूर्तता व एकानिकार से सीखने की नजजीनविा को अपने िीतर नजोंदा रखा।
उत्तर: उपवाक् : पूरे अस्सी बरस उन्होनें संगीत को सम्पूणवता व एकालधकार से सीखने की
लजजीलविा को अपने भीतर लजं दा रखा।
(ख) कशी में सोंगीत आयोजन नक एक प्राचीन एवों अद् िुत परों परा है ।
उत्तर: काशी में संगीत का आयोजन होता है जो लक एक प्राचीन एवं अद् भुत परं परा है ।
उत्तर: धत्! पगिी ई भारतरत्न हमको िुं लगया पे नाहीं, शहनईया पे लमिा है ।
(घ) कशी का नायब हीरा हमेशा से दो कौमोों को एक होकर आपस में िाईचारे के साि
रहने की प्रे रर्ा दे ता रहा।