------------------------------------------------------------------------------ श्री मालकेतु में राजत, कोटि रतन ज्योति ॥ जय 0 जय अम्बे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी । श्री अम्बे जी की आरती, जो कोई नर गावै । तम ु को निशदिन ध्यावत, हरि ब्रह्मा शिवरी ॥ टे क ॥ कहत शिवानन्द स्वामी, सुख सम्पत्ति पावै ॥ जय मांग सिंदरू विराजत, टीको मग ृ मद् को । उज्जवल से दोउ नैना, चन्द्रबदन नीको ॥ जय 0 ------------------------------------------------------------------------------ कनक समान कलेवर, रक्ताम्बर राजै । ॐ जय शिव ओंकारा, भोले हर शिव ओंकारा। रक्त पष्ु प गलमाला, कण्ठन पर साजै ॥ जय 0 ब्रह्मा विष्णु सदा शिव अर्द्धांगी धारा ॥ ॐ ॥ के हरि वाहन राजत, खड़ग खप्परधारी । एकानन चतरु ानन पंचानन राजे। सरु नर मनि ु जन सेवक, तिनके दख ु हारी ॥ जय 0 कानन कुण्डल शोभित, नासाग्रे मोती । हं सानन गरुड़ासन वष ृ वाहन साजे ॥ ॐ ॥ कोटिक चन्द्र दिवाकर, राजत सम ज्योति ॥ जय 0 दो भज ु चार चतुर्भुज दस भज ु अति सोहे । शम् ु भ निशम् ु भ विडारे , महिषासरु घाती । तीनों रूपनिरखता त्रिभुवन जन मोहे ॥ ॐ ॥ धम्र ू विलोचन नैना, निशदिन मदमाती ॥ जय 0 अक्षमाला बनमाला मण् ु डमाला धारी। चण्ड मण् ु ड संघारे , शोणित बीज हरे । मधक ु ै टभ दौड़ मारे , सरु भयहीन करे ॥ चंदन मग ृ मद सोहै भोले शशिधारी ॥ ॐ ॥ जय ब्रहमाणी रुद्राणी तम ु कमला रानी । श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे। आगम निगम बखानी, तम ु शिव पटरानी ॥ जय 0 सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे ॥ ॐ ॥ चौसठ योगिनी गावँत, नत्ृ य करत भैरुं । कर के मध्य कमंडल चक्र त्रिशूल धर्ता। बाजत ताल मद ृ ं गा, अरु बाजत डमरु ॥ जय 0 तम ु हो जग की माता, तम ु ही हो भर्ता । जगकर्ता जगभर्ता जगपालन करता ॥ ॐ ॥ भक्तन की दःु ख हरता, सख ु -सम्पत्ति करता ॥ ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका। जय भज ु ा चार अति शोभित, खड़ग खप्परधारी । प्रणवाक्षर के मध्ये ये तीनों एका ॥ ॐ ॥ मनवांछित फल पावत, सेवत नर नारी ॥ जय 0 त्रिगुण शिवजीकी आरती जो कोई नर गावे। कंचन थाल विराजत, अगर कपूर बाती । कहत शिवानन्द स्वामी मनवांछित फल पावे ॥ ॐ ॥