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श्री दर्गा

ु आरती शिव जी की आरती


------------------------------------------------------------------------------ श्री मालकेतु में राजत, कोटि रतन ज्योति ॥ जय 0
जय अम्बे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी । श्री अम्बे जी की आरती, जो कोई नर गावै ।
तम
ु को निशदिन ध्यावत, हरि ब्रह्मा शिवरी ॥ टे क ॥ कहत शिवानन्द स्वामी, सुख सम्पत्ति पावै ॥ जय
मांग सिंदरू विराजत, टीको मग
ृ मद् को ।
उज्जवल से दोउ नैना, चन्द्रबदन नीको ॥ जय 0 ------------------------------------------------------------------------------
कनक समान कलेवर, रक्ताम्बर राजै । ॐ जय शिव ओंकारा, भोले हर शिव ओंकारा।
रक्त पष्ु प गलमाला, कण्ठन पर साजै ॥ जय 0
ब्रह्मा विष्णु सदा शिव अर्द्धांगी धारा ॥ ॐ ॥
के हरि वाहन राजत, खड़ग खप्परधारी ।
एकानन चतरु ानन पंचानन राजे।
सरु नर मनि
ु जन सेवक, तिनके दख
ु हारी ॥ जय 0
कानन कुण्डल शोभित, नासाग्रे मोती । हं सानन गरुड़ासन वष
ृ वाहन साजे ॥ ॐ ॥
कोटिक चन्द्र दिवाकर, राजत सम ज्योति ॥ जय 0 दो भज
ु चार चतुर्भुज दस भज
ु अति सोहे ।
शम्
ु भ निशम्
ु भ विडारे , महिषासरु घाती ।
तीनों रूपनिरखता त्रिभुवन जन मोहे ॥ ॐ ॥
धम्र
ू विलोचन नैना, निशदिन मदमाती ॥ जय 0
अक्षमाला बनमाला मण्
ु डमाला धारी।
चण्ड मण्
ु ड संघारे , शोणित बीज हरे ।
मधक
ु ै टभ दौड़ मारे , सरु भयहीन करे ॥ चंदन मग
ृ मद सोहै भोले शशिधारी ॥ ॐ ॥
जय ब्रहमाणी रुद्राणी तम
ु कमला रानी । श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे।
आगम निगम बखानी, तम
ु शिव पटरानी ॥ जय 0
सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे ॥ ॐ ॥
चौसठ योगिनी गावँत, नत्ृ य करत भैरुं ।
कर के मध्य कमंडल चक्र त्रिशूल धर्ता।
बाजत ताल मद
ृ ं गा, अरु बाजत डमरु ॥ जय 0
तम
ु हो जग की माता, तम
ु ही हो भर्ता । जगकर्ता जगभर्ता जगपालन करता ॥ ॐ ॥
भक्तन की दःु ख हरता, सख
ु -सम्पत्ति करता ॥ ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका।
जय भज
ु ा चार अति शोभित, खड़ग खप्परधारी ।
प्रणवाक्षर के मध्ये ये तीनों एका ॥ ॐ ॥
मनवांछित फल पावत, सेवत नर नारी ॥ जय 0
त्रिगुण शिवजीकी आरती जो कोई नर गावे।
कंचन थाल विराजत, अगर कपूर बाती ।
कहत शिवानन्द स्वामी मनवांछित फल पावे ॥ ॐ ॥

ॐ जय शिव ओंकारा भोले हर शिव ओंकारा

ब्रह्मा विष्णु सदाशिव अर्द्धांगी धारा ।। ॐ।।…

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