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कुरआन पर ही

आपत्ति क्यों?

लेखक:
डॉक्टर यासिर नदीम अल वासिदी

अनुवादक:
मोहम्मद िनु ैद
कुरआन पर ही आपत्ति क्यों? 2

त्तवषय सचू ी
सवषय प्रष्ठ
अनवु ादक की बात………………………………………. 3
पररचय………………………………………………… 17
धर्म और अधर्म ………………………………………… 20
सारे र्श ु ररक नापाक हैं?...................................................... 21
अधर्ी, र्सु लर्ानों के शत्र… ु …………………………….. 22
त्तवधत्तर्मयों के साथ कुत्तिलता अपनाने का आदेश……………... 23
अत्तवश्वास का दडं ……………………………………….. 23
दोस्त ना बनाओ………………………………………… 24
उपहास करने वालों को त्तर्त्र ना बनाओ……………………... 25
त्तधतकारे हुए लोग………………………………………... 26
नकम का ईधन…………………………………………….
ं 27
अपरात्तधयों से इतं ेकार्……………………………………. 28
र्ाले ग़नीर्त……………………………………………. 29
ग़नीर्त की वैधता……………………………………….. 30
कपिचाररयों से यद्ध ु ……………………………………… 30
दष्ु कत्तर्मयों को यातना देना…………………………………. 31
यद्धु का फल……………………………………………. 32
यद्ध ु पर उभारना…………………………………………. 33
शत्रु को राज़दार ना बनाना………………………………… 34
यद्ध ु कर………………………………………………... 36
जहां पाओ, वध करो……………………………………... 37
यद्ध ु पर उभारना…………………………………………. 38
रोब……………………………………………………. 38
नबी के ज़र्ाने के कपिचाररयों से यद्ध ु ………………………. 39
सम्र्ात्तनत र्हीने गुज़र जाने के बाद यद्ध ु ……………………... 40
त्तनवेदन………………………………………………… 42
कुरआन पर ही आपत्ति क्यों? 3

अनुवादक की बात
प्रस्ततु पस्ु तक “कुरआन पर ही आपत्ति क्यों?” र्ें प्रेर् व भाईचारे
वाले देश भारत र्ें कुरआन को लेकर सांप्रदात्तयकता और भाई भाई के बीच
घृणा फे लाने वाले उन लोगों की सद्भावना व र्ागमदशमन के त्तलए त्तलखी गई है,
जो इस्लार् से अपने घृणा और हठ के कारण कुरआन के त्तवरोध र्ें ग़लत प्रचार
करते हैं, इनर्ें अत्तधकतर वे लोग हैं, जो व्यत्तिगत लाभ हात्तसल करने के त्तलए
कुरआन की आयतों को काि छााँि कर पेश करते हैं र्नर्ानी ढंग से अनवु ाद
करते हैं और आयत के सही संदभम को त्तछपाकर कुरआन पर आपत्ति करते हैं
उनका र्क़सद के वल भोले भाले लोगों को गर्ु राह करके उनके त्तदलों र्ें
इस्लार् और र्सु लर्ानों के प्रत्तत नफ़रत पैदा करना होता है, कुछ भाई शोध के
अभाव और इस्लार् की वास्तत्तवक व सच्ची तस्वीर से अज्ञानता के
पररणार्स्वरूप इन लोगों के झासं े र्ें आ जाते हैं, हालात्तं क इन लोगों को भली-
भांत्तत ज्ञात है त्तक के वल शब्दों के अनवु ाद से कोई त्तनणमय नहीं त्तलया जा सकता
बाकी सदं भम को ध्यान र्ें रखना अत्यतं आवश्यक है त्तवशेषकर ऐसे धर्म ग्रथं के
साथ यह व्यवहार तो कदात्तप उत्तचत नहीं त्तजसर्ें आस्था रखने वाले करोड़ों की
सख्ं या एन शात्तं तत्तप्रय हों और वे चीख चीखकर बता रहे हों त्तक कुरआन की
आयतों का जो अथम अपने त्तलया है वह उत्तचत नहीं है बत्तकक स्वयं यह अथम
कुरआन ही के त्तवरुद्ध है आयमसर्ात्तजयों के प्रत्तसद्ध त्तवद्वान दयानदं सरस्वती के
अनसु ार “शब्द का अथम विा के अथम के अनसु ार होना चात्तहए, अत्तधकतर हठी
और त्तज़द्दी लोग ऐसे होते हैं जो विा(बोलने वाले) की र्ंशा के त्तखलाफ ग़लत
व्याख्या करते हैं।” उदाहरण के तौर पर हर् एक आयत पेश करते हैं, कुरआन
र्ें है “र्शु रीकों को जहां पाओ, वध करो।” अब अगर इस आयत के के वल
अनवु ाद को देखा जाएगा और कुरआन सर्झने के र्हत्वपूणम त्तसद्धांत अथामत
सदं भम नज़र अदं ाज़ त्तकया जाएगा, तो इस आयत से रि पात की त्तशक्षा की
त्तनराधार आपत्ति पैदा हो जाएगी, परंतु अगर पणू म आयत और इसी प्रकार
अगली त्तपछली आयतों को सार्ने रखकर पैग़बं र(स0) की जीवनी के प्रकाश
की सहायता से इस आयत पर त्तवचार त्तकया जाएगा तो यह आपत्ति स्वयं नष्ट
हो जाएगी, यह लोग इस बात को जानते हैं परंतु व्यत्तिगत लाभ के कारण
कुरआन पर त्तनराधार आपत्तियााँ करने पर त्तववश हैं, इन कुरआन त्तवरोत्तधयों की
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बत्तु द्ध से यह बात त्तनकल जाती है त्तक यह र्ार्ला त्तवशेष रूप से के वल और


के वल कुरआन के साथ नहीं है, अत्तपतु सर्स्त धात्तर्मक ग्रंथ यहााँ तक त्तक वेद,
गीता आत्तद के साथ भी यही र्ार्ला है, अगर शब्दों ही से र्नर्ाना अथम
त्तनकालना संभव र्ान त्तलया जाए तो त्तफर वेद आत्तद पर भी वही आपत्तियााँ
होंगी जो ये लोग कुरआन पर करते हैं। उदाहरण स्वरूप वेद के त्तनम्नत्तलत्तखत
र्ंत्रों का अध्ययन करें !
त्वया ा॑ । प्रऽमर्ा॑ णम् । मसद
ृ॒ तृ॒ म् । अृ॒सनन: । दहृ॒ तृ॒ ु ृ॒ । दु:ऽसित
ृ॒ मा॑ ् ॥
हे वेदवाणी !] (त्वया) तुझ करके (प्रर्णू मर्)् बााँध त्तलये गये, (र्ृत्तदतर्)् कुचले गये
(दत्तु ितर्)् अत्तनष्ट त्तचन्तक को (अत्त्निः) आग (दहतु) जला डाले। (अथवमवेद 12- 5- 61)
वश्चृ॒ ृ॒ । प्र । वश्चृ॒ ृ॒ । िम् । वश्चृ॒ ृ॒ । दह ा॑ । प्र । दहृ॒ ृ॒ । िम् । दहृ॒ ृ॒ वै ॥
वेदवाणी !] तू [वेदत्तनन्दक को] (वृि) काि डाल, (प्र वृि) चीर डाल, (सं वृि) फाड़
डाल, (दह) जला दे, (प्र दह) फाँू क दे, (सं दह) भस्र् कर दे। (अथवमवेद 12- 5- 62)
ब्रह्मृ॒ ृ॒ऽज्यम् । देसृ॒ वृ॒ । अृ॒घ्नये ृ॒ । आ । मलाता॑ ् । अृ॒नुऽि ृ॒ ंदहा॑ ॥
हे देवी ! [उिर् गणु वाली] (अघ्नन्ये) हे अवध्य ! [न र्ारने यो्य, प्रबल वेदवाणी]
(ब्रह्मज्यर्)् ब्रह्मचाररयों के हात्तनकारक को (आ र्ल ू ात्) जड़ से (अनसु दं ह) जलाये जा।
भावार्ण: राजा को उत्तचत है त्तक वेदव्यवस्था के अनुसार अधर्ी वेदत्तवरोत्तधयों को दरू
कारागार र्ें रक्खे। (अथवमवेद 12- 5- 63)
प्र । स्कृ॒नधान् । प्र । सिर:ा॑ । िृ॒सह ृ॒ ॥
स्कन्धान)् कन्धों और (त्तशरिः) त्तशर को (प्र प्र जत्तह) तोड़-तोड़ दे। (अथवमवेद 12- 5- 67)
लोमासन । अस्य । िम् । सिसनध । त्विम् । अस्य । सव । वेष्टय ॥
अस्य) उस [वेदत्तवरोधी] के (लोर्ात्तन) लोर्ों को (सं त्तछत्तन्ध) काि डाल, (अस्य) उसकी
(त्वचर्)् खाल (त्तव वेष्टय) उतार ले। (अथवमवेद 12- 5- 68)
मांिासन । अस्य । िातय । स्नावासन । अस्य । िम् । वह ॥
(अस्य) उसके (र्ासं ात्तन) र्ासं के िुकड़ों को (शातय) बोिी-बोिी कर दे, (अस्य) उसके
(स्नावात्तन) नसों को (सं वृह) ऐठं दे। (अथवमवेद 12- 5- 69)
उत् । त्वा । मनदनतु । स्तोमा: । कर्ुष्व । राध: । असिव: ॥ अव ।
ब्रह्मऽसिष ॥
अत्तिविः) हे अन्नवाले ! [वा वज्रवाले परर्ेश्वर !] (त्वा) तुझको (स्तोर्ािः) स्तुत्तत करनेवाले
लोग (उत्) अच्छे प्रकार (र्दन्त)ु प्रसन्न करें, तू [हर्ारे त्तलये] (राधिः) धन (कृ णष्ु व) कर,
(ब्रह्मत्तद्वषिः) वेदद्वेत्तषयों को (अव जत्तह) नष्ट कर दे। (अथवमवेद 20-93-1)
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उपयमि
ु वेद र्त्रं ों के शात्तब्दक अथम को लेकर अगर कोई यह आपत्ति
करे की वेद र्ें तो र्सु लर्ानों, ईसाइयों, यहूत्तदयों, त्तसखों और अन्य सभी धर्म
के र्ानने वालों को को र्ारने, कािने और भस्र् करने के आदेश त्तदए हैं,
क्योंत्तक वेदों र्ें इन धर्ों की कोई आस्था नहीं है, बत्तकक र्सु लर्ान, ईसाई
इत्यात्तद तो के वल अपनी धात्तर्मक पस्ु तकों का बताया गया आचरण ही स्वीकार
करते हैं ना की वेदों का तो क्या त्तकसी बत्तु द्धर्ान त्तहन्दू व्यत्ति के त्तलए यह
आपत्ति उत्तचत होगी? त्तजस प्रकार त्तकसी देश के संत्तवधान र्ें प्रयोग त्तकए गए
शब्दों के ज़ात्तहरी अथम से कोई त्तनणमय लेना या त्तफर शब्दों र्ें घिा बढ़ा कर कोई
र्नर्ाना अथम त्तनकालना त्तनयायपवू मक नहीं होता, इसी तरह कुरआन जो की
सर्स्त र्ानवता के त्तलए र्ागम दशमक की र्हत्वता रखता है, उसर्ें र्नर्ाना
त्तनणमय त्तनकालने की त्तकसी भी संगठन या व्यत्ति को अत्तधकार नहीं होना
चात्तहए बत्तकक शोध और सही ज्ञान प्राप्त करने के त्तलए कुरआन के र्ुत्तस्लर्
त्तवशेषज्ञों से संपकम करना चात्तहए, त्तजस प्रकार संत्तवधान की पेचीदत्तगयों र्ें
उलझने पर संत्तवधान त्तवशेषज्ञों से र्शवरा त्तलया जाता है लेत्तकन कुछ हठधर्म
लोग अपने व्यत्तिगत लाभ के त्तलए कुरआन का र्नर्ाना अथम ही त्तनकालते हैं
तो उन लोगों की त्तखदर्त र्ें यह छोिी सी पस्ु तक पेश की जाती है, इस पस्ु तक
र्ें उन लोगों को एक नए प्रकार से सर्झाने का प्रयास त्तकया गया है और
बताया गया है त्तक अगर कुरआन के अथम का अनथम बग़ैर सदं भम के हो सकता
है, तो वेद, गीता आत्तद का भी अथम संदभम के बग़ैर कुछ का कुछ बन सकता है,
इसत्तलए वे अपनी इस ग़लती को सधु ार लें!
असल पस्ु तक से पहले कुछ र्हत्वपणू म बातें पढ़ने वाले के सार्ने रख
देना आवश्यक है। पत्तवत्र कुरान पर आलोचनात्र्क त्तिप्पत्तणयााँ करने वाले एक
ग़लती यह भी करते हैं त्तक कुरान र्ें जहां कहीं भी “त्तजहाद” शब्द पाते हैं, तो
उसक अथम “लड़ने और यद्ध ु ” से कर देते हैं जबत्तक कुरान र्ें त्तजहाद शब्द का
प्रयोग अपने शात्तब्दक अथम “संघषम”, “त्तनरंतर प्रयास”, “कष्टों और पीड़ाओ ं पर
धीरज” व “स्वयं अपनी आत्र्ा त्तक बरु ाइयों, पापों और गदं त्तगयों से संघषम
करना” भी होता है।
उदाहरण के त्तलए ये आयतें पत्तढ़ये:
“‫”و َم ْن َجا َھ َد فَاِ نَ َما ُی َجا ِھ ُد لِ َنف ِْسہٖ۔‬
َ
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“जो कोई सघं षम करता है, तो वह स्वयं के लाभ के त्तलए ही संघषम करता है।”
(कुरआन: 29:6)

ْ ُ َ َ‫” َوال َ ِذ ْی َن َجا َھ ُد ْوا فِ ْی َنا لِ َن ْھ ِد ی‬


“‫َّن ُس ُبل َ َنا۔‬
“जो र्नष्ु य हर्ारी राह र्ें कष्टों व पीड़ाओ ं को बदामश्त करते हैं हर् उनका र्ागम
दशमन अवश्य करें गे।” (कुरान: 29:69)
हााँ! कुरआन र्ें पैग़ंबर(स0) को यद्ध ु के आदेश भी त्तदए गए हैं, लेत्तकन
यह भी स्पष्ट कर त्तदया गया है की पैग़ंबर का यद्ध ु असार्ात्तजक तत्वों, सर्ाज के
असहाय और पीत्तड़त वगों का दर्न व उनपर अत्याचार करने वालों, उनको
जीवन के अत्तधकार से वंत्तचत करने वालों, उनकी स्वतंत्रता छीनने वालों से
होता है, कुरआन की सरू ह त्तनसा, आयात नंबर 75 र्ें है: “तम्ु हें क्या हुआ है,
तर्ु खदु ा की राह र्ें यद्ध
ु नहीं करते? उन कर्ज़ोर र्दम, त्तियों और छोिे छोिे
बच्चों के त्तलए, त्तजनपर अत्याचार हो रहा है, जो यह प्राथना करते हैं, ए
परवरत्तदगार! हर्ें इस बस्ती (र्क्का) से र्त्तु ि (त्तनकाल) दीत्तजए त्तजसके वासी
हर्पर ज़कु र् व अत्याचार करते हैं।”
इस आयत का भी एक संदभम (context) है, इस आयत र्ें प्राथना
करने वाले वे कर्ज़ोर वगम के लोग हैं, त्तजनपर शत्तिशाली दरु ाचाररयों ने
अत्याचार की सीर्ा लांघ दी थी, इन पीत्तड़तों र्ें बड़ी संख्या त्तियों और त्तनदोष
बालकों की थी, अब स्वयं त्तनयायपवू मक बताइए त्तक क्या इन पीत्तड़त त्तियों और
बच्चों की स्वतंत्रता के त्तलए लड़ना अनत्तु चत था या उत्तचत?
एक आयत र्ें है त्तक: “उन लोगों को लड़ने की अनर्ु त्तत है, त्तजनसे
लड़ा गया इसत्तलए त्तक उनपर अकारण अत्याचार त्तकया गया।” (कुरआन:22:39)
इस आयत र्ें प्रयोग त्तकए गए “इज़्न” के शब्द से हर एक सरलता से
सर्झ सकता है त्तक अनर्ु त्तत और आदेश र्ें त्तकतना बड़ा अंतर है, इस आयत र्ें
पैग़ंबर के सर्य के र्ज़लूर्ों को यद्ध ु की अनुर्त्तत दी गई और अनुर्त्तत का कारण
भी बताया गया त्तक यद्ध ु की अनर्ु त्तत के वल इसत्तलए है क्योंत्तक उनपर अत्याचार
हुए हैं और अत्याचार, सर्ाज को असंतल ु नता के र्ागम पर डाल देता है।
यद्ध
ु की अनर्ु त्तत तो दी गई त्तकन्तु यद्ध ु र्ें स्वाभात्तवक रूप से सीर्ा
लांघ कर स्वयं अन्याय करने की संभावना के द्वार को यह कह कर बंद कर
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त्तदया गया त्तक “अनर्ु त्तत यद्ध ु की है, स्वयं उनकी भात्तं त अत्याचारी बनकर
सीर्ा लांघने की नहीं।” (कुरआन:2:95)
जहााँ कहीं भी कुरआन र्ें यद्धु संबंध आयतें हैं, उनका एक संदभम होता
है, उदाहरण के तौर पर कुरआन र्ें कहा गया: त्तक “जहां पाओ, वध करो।
(shoot at sight)”
इस आयत का भी एक खास सदं भम है, वह यह त्तक इस्लार्ी इत्ततहास
र्ें एक सर्झौता “सल ु ह हुदेबीयह” के नार् से प्रत्तसद्ध है, पैग़ंबर(स0) और
आपके सात्तथयों को असार्ात्तजक तत्वों ने पत्तवत्र र्क्का शहर र्ें प्रवेश से रोक
त्तदया था, बात सर्झौते तक आन पहुचाँ ी थी, इसी कारण पैग़ंबर व
असार्ात्तजक तत्वों के बीच एक त्तसन्धी हुई थी, उस त्तसन्धी र्ें प्रवेश से रोकने
वालों ने ये शतम भी रखी थी त्तक इस वषम पैग़ंबर अपने सात्तथयों को लेकर वापस
र्दीना प्रस्थान कर जाएंगे और अगले वषम र्क्का र्ें प्रवेश करके उनको र्क्का
र्ें उर्रा करने त्तक अनर्ु त्तत होगी, परंतु जब अगला वषम आया, तो पैग़ंबर(स0)
के सात्तथयों के र्न र्ें ये खिका पैदा हुआ की अगर त्तपछले वषम की भांत्तत इस
वषम भी अत्याचाररयों ने र्क्का शहर र्ें प्रवेश ना करने त्तदया और हर्से
सर्झौता तोड़कर लड़ने र्ारने पर उतारू हो जाएं, तो ऐसी त्तवकि पररत्तस्तत्तथ र्ें
हर् क्या करें गे? पैग़बं र के सात्तथयों की इस सोच त्तवचार पर कुरआन की यह
आयत उतरी, त्तजसर्ें कहा गया: त्तक “अगर वे सर्झौता तोड़कर लड़ने र्ारने
पर उतारू हो जाएं और तुर् त्तववश हो जाओ, तो त्तफर तम्ु हें भी अनर्ु त्तत है त्तक
जहां पाओ, वध करो।” (कुरआन:2:191)
दसू रे शब्दों र्ें यह आयत अपनी रक्षा हेतु एक रक्षात्र्क यद्ध ु (self
defence) के त्तलए थी।
पैग़बं र(स0) जब र्दीना चले गए, तो र्क्का के भात्तं त र्दीने र्ें भी
आपको उन्ही पररत्तस्तत्तथयों का सार्ना करना पड़ा, कुछ लोग या तो खल ु कर
या त्तछपकर र्दीने के वातावरण र्ें नफ़रत, आपसी घृणा, दगं ा, फ़साद, उर्वाद,
ज़कु र्, अत्याचार, उत्पीड़न, औरतों के साथ दष्टु व्यवहार, र्ासर्ू बच्चों का
वध जैसी बरु ाइयों का त्तवष घोलने लगे थे और वे चाहते थे की त्तजस प्रकार
र्क्का से इन कर्ज़ोरों को र्ारकर भगा त्तदया गया, उसी प्रकार र्दीने से भी इन
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लोगों को र्ारकर भागा त्तदया जाए या र्दीने र्ें ही उनका नार्ों त्तनशान त्तर्िा
त्तदया जाए, ऐसे लोगों के त्तवरुद्ध पैग़ंबर और उनके सात्तथयों को यद्ध ु करने की
अनर्ु त्तत दी गई, क्योंत्तक अगर उन्हे अनर्ु त्तत ना दी जाती, तो उनका अपना
अत्तस्तत्व नष्ट हो जाता, कुरआन र्ें कई आयतें इसी प्रकार के यद्ध ु से सबं धं
रखती हैं, जैसे सरू ह तौबा की आयतें।
र्दीने र्ें जब पैग़ंबर ने एक न्याय व्यवस्था स्थात्तपत की और जनता के
हर वगम को इसं ाफ़ पवू मक अत्तधकार देने के त्तनयर् लागू त्तकए, तो कुछ ऐसे लोग
भी थे त्तक जो इस न्याय व्यवस्था का उकलंघन त्तकया करते थे, उनकी चोरी
चकारी, लिू र्ार की हद तक और लिू र्ार, डाका, धरती पर अत्याचार,
उन्र्ाद, उपिव की हद तक बढ़ गई थी त्तजससे सर्ाज और न्याय व्यवस्था र्ें
असंतल ु न पैदा होना संभव था, इसीत्तलए उस सर्य ऐसे फ़सात्तदयों को दडं देने
का प्रावधान रखा गया, सरू ह र्ायदा आयत नबं र 23 और 34 इसी वध और
दडं से संबंध रखती है, लेत्तकन इसी आयत र्ें यह भी है त्तक न्याय व्यवस्था के
ऐसे बात्तग़यों के न्याय के प्रीत्तत सर्त्तपमत हो जाने की पररत्तस्तत्तथयों र्ें उनका वध
तो नहीं त्तकया जाएगा, दसू रा कोई दडं त्तदया जा सकता है।
आज भी दत्तु नया के हर देश के शासक व सिा धारी अपनी धरती पर
शांत्तत को त्तबगाड़कर अशात्तन्त फे लाने की कदात्तप अनर्ु त्तत नहीं देते, बत्तकक
फ़सात्तदयों को देखते ही गोली र्ार देने या त्तगरफ़्तार करके कड़ा दडं देने का
आदेश लगभग सर्स्त देशों र्ें है, त्तजसे दडं संत्तहता की भाषा र्ें “waging
war against the king” कहते हैं।
कुरआन पर आपत्ति यह भी की जाती है त्तक कुरआन र्ें र्ुसलर्ानों
को ग़ैर र्त्तु स्लर्ों से त्तर्त्रता रखने से रोका है, हालात्तं क उपरोि त्तववरण के
र्ाध्यर् से यह वास्तत्तवकता सरलता से सर्झी जा सकती है त्तक कुरआन र्ें
के वल उन लोगों से दोस्ती ना रखने के आदेश त्तदए थे त्तजन्होंने के वल इस
कारण पैग़ंबर(स0) और आपके सात्तथयों पर अत्याचार त्तकए, क्योंत्तक उनका
धर्म अत्याचाररयों के धर्म से त्तभन्न था, वे अपनी नफ़रत और घृणा र्ें इतने
आगे बढ़े त्तक पैग़ंबर और आपके सात्तथयों को उनके अपने देश, अपने वतन
(र्क्का) से त्तनकाला, भला कोई बताए त्तक अगर उसे के वल धर्म के आधार पर
नफ़रत, अत्याचार, दव्ु यमवहार का सार्ना करना पड़ा, उसकी बीवी बच्चों का
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अकारण रि बहाया गया हो, क्या वह ऐसे दरु ाचाररयों को त्तर्त्र रखेगा? हााँ वे
लोग त्तजन्हे पैग़ंबर और उनके सात्तथयों की धात्तर्मक, सार्ात्तजक स्वतंत्रता को
स्वीकार त्तकया अकलाह ने ऐसे अच्छे आचरण वालों से त्तर्त्रता व दोस्ती करने
से र्सु लर्ानों को कभी नहीं रोका, कुरआन र्ें है: “अकलाह तम्ु हें नहीं रोकता
त्तक तर्ु ऐसे लोगों के साथ अच्छा व्यवहार व उनके साथ न्याय करो, त्तजन्होंने
धर्म के आधार पर तर्ु से ना लड़ाई की और ना तम्ु हें तम्ु हारे र्कु क व वतन
(र्क्का) से त्तनकालने का प्रयास त्तकया, त्तनसंदह अकलाह न्याय करने वालों से
प्रेर् करता है।” (कुरआन:60:8)
डा0 र्फ़्ु ती यात्तसर नदीर् आलवात्तजदी के अनुसार कुरआन र्ें
“सदीक़” शब्द का प्रयोग नहीं हुआ है, त्तजसका अथम दोस्त होता है, बत्तकक
“वली” शब्द का प्रयोग हुआ है, त्तजसका र्ल ू त्तवलायत है और त्तवलायत का
अथम अंग्रेज़ी भाषा र्ें “Allegiance” या “Loyalty” होता है। आयत का
वास्तत्तवक अथम यह बनेगा त्तक शत्रओ ु ं को “loyal” भरोसेर्ंद ना सर्झो।
आपत्तियााँ जताने वालों को यह क्यों त्तदखाई नहीं देता त्तक जब
पैग़बं र(स0) ने अपने सात्तथयों के साथ त्तबना यद्ध ु के त्तवजेता के रूप र्ें र्क्का र्ें
प्रवेश त्तकया, तो त्तजन लोगों ने अत्याचार त्तकए थे, शोत्तषतों का शोषण त्तकया था
जबत्तक पीत्तड़त कोई और नहीं बत्तकक पैग़बं र और आपके साथी ही थे, शत्ति
प्राप्त हो जाने के बाद पैग़ंबर का उनसे बदला लेना आसान था, लेत्तकन उन्होंने
सावमजत्तनक रूप से सबके त्तलए क्षर्ा के परवाने की घोषणा करदी।
एक त्तनराधार आपत्ति त्तबना त्तकसी प्रर्ाण के यह दी जाती है त्तक
कुरआन र्ें इस्लार् के अत्ततररि अन्य धर्ों र्ें आस्था रखने वालों को के वल
धर्म की त्तवत्तभनता के कारण वध करने की त्तशक्षा दी गई थी, हालांत्तक अगर धर्म
के आधार पर ग़ैर र्त्तु स्लर्ों के वध की अनर्ु त्तत होती, तो इस अनर्ु त्तत पर स्वयं
पैग़ंबर, र्क्का की त्तवजय के सर्य अर्ल करते, लेत्तकन पैग़ंबर ने आर् र्ाफी
का ऐलान त्तकया और त्तकसी ग़ैर र्त्तु स्लर् का के वल धर्म के आधार पर वध नहीं
त्तकया, इस्लार्ी इत्ततहास र्ें अत्याचाररयों के क्षर्ा करने के उदाहरण त्तर्ल जाते
हैं, लेत्तकन त्तफर भी कुरआन पर आपत्तियााँ की जाती हैं त्तक कुरआन त्तनदोषों का
वध करने का आदेश देता है, परंतु वास्तत्तवकता यह है की कुरआन ने हर्ेशा
त्तनदोषों की सहायता और रक्षा की ही त्तशक्षा दी है।
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कुरआन की दृत्तष्ट र्ें सर्स्त र्ानवता, आदर् की सतं ान है और हर एक


व्यत्ति खदु ा का कंु बा है, तो त्तफर यह कै से हो सकता है त्तक कंु बे के त्तकसी एक
व्यत्ति के त्तलए दसू रे व्यत्ति का रि बहाना उत्तचत हो? कुरआन ने त्तवश्व शांत्तत
की स्थापना के त्तलए जो त्तशक्षा दी है, वह यह है त्तक जो त्तकसी त्तनदोष जान की
रक्षा करता है, तो ऐसा ही है जैसे उसने सर्स्त र्ानवता और हर जानदार की
रक्षा की और जो अकारण और खदु ा की धरती पर उपिव व फ़साद ना र्चाने
वाले त्तकसी त्तनदोष जान का वध करता है, तो ऐसा ही है जैसे उसने सर्स्त
र्ानवता और हर जान की बेरहर् बली चड़ा दी। (कुरआन:5:32)
ऐसा नहीं है त्तक त्तफ़तना, फ़साद, भ्रष्टाचार, अत्याचार और ज़कु र् जैसे
त्तवष को खत्र् करके शांत्तत स्थापना के त्तलए इस्लार् ने के वल यद्ध ु , दडं व सज़ा
के ही आदेश त्तदए हों, अत्तपतु शांत्तत स्थापना के त्तलए कुरआन ने पहला र्ागम
“अम्र त्तबल र्ारूफ़, नहीं अत्तनल र्नु कर” का र्ागम भी दशामया है, कुरआन के
अनसु ार: “र्सु लर्ान एक बेहतरीन क़ौर् उस सर्य तक ही हो सकती है, जब
तक वे इसं ात्तनयत के लाभ के त्तलए संघषम करती रहे और प्रेर् भाव और
सद्भावना के साथ भलाई, अच्छाई, शात्तं त, ईश्वर र्ें आस्था का प्रचार करती रहे
और ज़कु र्, अत्याचार, नफ़रत, आपसी घृणा से लोगों को रोकती रहे।”
(कुरआन:3:110)
पैग़ंबर(स0) की हदीस र्ें है त्तक त्तजसने ज़कु र् से धरती का एक
बात्तलश्त भाग भी हात्तसल त्तकया, तो क़यार्त के त्तदन उसके गले र्ें अकलाह
सात ज़र्ीनों का बोझ लिकाएगा। (र्त्तु स्लर्:3020)
एक आपत्ति यह भी की जाती है त्तक इस्लार् बलपवू मक फै ला है,
तलवार के बल पर इसं ानों का धर्ाांतरण कराया गया, इस आरोप र्ें त्तकतनी
सच्चाई है, उसपर हर् कुछ नहीं कहेंगे, हााँ इस्लार् की त्तशक्षा तो यह है त्तक
इस्लार् र्ें त्तकसी ग़ैर र्त्तु स्लर् पर दबाव डालकर उसे लालच देकर बलपवू मक
र्सु लर्ान बनाना अपराध है। (कुरआन:2:356)
र्सु लर्ानों को कुरआन का आदेश के वल इतना है त्तक र्सु लर्ान
कुरआन की सही बात लोगों तक पहुचाँ ा दें, बलपवू मक र्सु लर्ान बनाना तो दरू
की बात के वल र्ुसलर्ान बनाना भी र्सु लर्ानों की त्तज़म्र्ेदारी नहीं है,
कुरआन र्ें है: “ए नबी! आप त्तजसको चाहें, त्तहदायत नहीं दे सकते (र्सु लर्ान
कुरआन पर ही आपत्ति क्यों? 11

नहीं बना सकते) लेत्तकन अकलाह त्तजसको चाहता है, इस्लार् की त्तहदायत दे
देता है।” (कुरआन:28:56)
कुरआन के अनसु ार पैग़ंबर और उनर्ें आस्था रखने वालों की
त्तज़म्र्ेदारी के वल अपने धर्म का प्रचार व प्रसार करने की है, कुरआन र्ें है: “ए
नबी! आपका कार् तो के वल प्रचार करना है, त्तकसी को र्सु लर्ान बनाना
नहीं, यह के वल अकलाह का कार् है और बदं े और खदु ा दोनों का त्तनजी
र्ार्ला है।” (कुरआन:36:17)
अकलाह के क़ाननू पर जो खरा उतर गया, अकलाह उसे इस्लार् की
सच्चाई सर्झा देता है।
इस स्पष्टीकरण के बाद त्तकसी को के वल इस पर आपत्ति है त्तक
कुरआन र्ें यद्ध ु और वध से संबंत्तधत शब्दों का प्रयोग त्तकया गया है, तो ऐसा
सर्झने वाले के बारे र्ें यही धारणा बन सकती है त्तक उसने अपनी बत्तु द्ध पर
नासर्झी के परदे डाल त्तलए हैं और अगर कुरआन पर आलोचना के वल इस
कारण है त्तक कुरआन र्ें यद्ध ु जैसे शब्दों का प्रयोग त्तकया गया है, तो त्तफर
आपत्तियााँ कुरआन पर ही नहीं अन्य धात्तर्मक पस्ु तकों पर भी होनी चात्तहयें।
वेद, गीता और र्नस्ु र्ृत्तत के र्ंत्रों व श्लोकों को भी बग़ैर संदभम और
उसका वास्तत्तवक अथम जाने सर्झा जाएगा, तो वही आपत्तियााँ होंगी, जो
कुरआन पर हुई हैं इसत्तलए त्तक ऐसा नहीं है त्तक इन पत्तवत्र ग्रंथों र्ें यद्ध ु और वध
संबंत्तधत र्ंत्र व श्लोक नहीं हैं, उदाहरण के त्तलए कुछ यहााँ पेश त्तकए जाते हैं:
आ ते ा॑ महृ॒ इनिोत्य
ा॑ ग्रु ा॑ ृ॒ िमना॑ यवो ृ॒ यत्िमृ॒ रना॑ त ृ॒ िेना ा॑। पतासा॑ त सदद्यृ॒ नु नयणस्ा॑ य
बाह्वृ॒ ोमाण ते ृ॒ मनो ा॑ सवष्विृ॒ ्य१॑ा॑॑ृ॒सनव िारा॑ ीत्
हे (उग्र) शत्रओ ु ं के र्ारने र्ें कत्तठन स्वभाववाले (इन्ि) सेनापत्तत ! (यत)् त्तजस (नयमस्य)
र्नुष्यों र्ें साधु (र्हिः) र्हान् (ते) आप के (सर्न्यविः) क्रोध के साथ विमर्ान (सेनािः) सेना
(ऊती) रक्षण आत्तद त्तक्रया से (आ, सर्रन्त) सब ओर से अच्छी जाती हैं उन (ते) आप की
(बाह्ोिः) भजु ाओ ं र्ें (त्तदद्यतु ्) त्तनरन्तर प्रकाशर्ान यद्ध
ु त्तक्रया (र्ा) र्त (पतात्तत) त्तगरे , र्त
नष्ट हो और तुम्हारा (र्निः) त्तचि (त्तवष्वि्यक्) सब ओर से प्राप्त होता हुआ (त्तव, चारीत्)
त्तवचरता है ॥१॥
भावार्ण: हे सेनात्तधपत्तत ! जब संग्रार् सर्य र्ें आओ तब जो क्रोध प्रज्वत्तलत क्रोधात्त्न से
जलती हुई सेना शत्रओ ु ं के ऊपर त्तगरें , उस सर्य वे त्तवजय को प्राप्त हों, जब तक तुम्हारा
बाहुबल न फै ले र्न भी अन्याय र्ें न प्रवृि हो, तब तक तुम्हारी उन्नत्तत होती है, यह जानो।
कुरआन पर ही आपत्ति क्यों? 12

ा॑ श्नसर्ह्यृ॒समत्ाना॑ सृ॒ भ ये नो ृ॒ मताणिा॑ ो अृ॒मसनत।ा॑ आृ॒रे तं िि


सन दुर्णृ॒ इनि ं ं ा॑ कर्ुसह
सनसनत्ृ॒ िोरा नो ा॑ भर िभ ंृ॒ रर्ा॑ ृ॒ं विना॑ ाम् ॥२॥
हे (इन्ि) दष्टु शत्रओ
ु ं के त्तनवारनेवाला राजा ! (ये) जो (र्िामसिः) र्नुष्य (निः) हर् लोगों को
(दगु े) शत्रओु ं को दिःु ख से पहुचाँ ने यो्य परकोिा र्ें (अर्त्तन्त) रोगों को पहुचाँ ाते हैं उन
(अत्तर्त्रान)् सब के साथ िोहयि ु रहने वालों को आप (त्तन, अत्तभ, श्नत्तथत्तह) त्तनरन्तर सब
ओर से र्ारो, हर् लोगों से (आरे ) दरू उनको फें को (त्तनत्तनत्सोिः) और त्तनन्दा की इच्छा
करनेवाले से हर् लोगों को दरू कर (निः) हर् लोगों के (तर्)् उस (शसं र्)् प्रशसं नीय त्तवजय
को (कृ णत्तु ह) कीत्तजये तथा (वसनू ार्)् िव्यात्तद पदाथों के (सभं रणर्)् अच्छे प्रकार पोषण
को (आ, भर) सब ओर से स्थात्तपत कीत्तजये।
िृ॒तं ते ा॑ सिसप्रननतय ु ृ॒ ा॑ िहृ॒ स्ृ॒ं िंिा ा॑ उतृ॒ रासृ॒ तरस्ा॑ तु। िृ॒सह वधवा॑ णनृ॒ ुषो ृ॒
ृ॒ ा॑ िदािे
मत्यणस्ा॑ यास्ृ॒ मे द्यम्नमसध
ु ृ॒ ृ॒ रत्नं ा॑ ि धेसह
हे (त्तशत्तप्रन्) अच्छे र्ख
ु वाले राजा ! (ते) आपके (वनुषिः) याचना करते हुए पीत्तड़त र्नुष्य
की (शतर्)् सैकड़ों (ऊतयिः) रक्षा आत्तद त्तक्रया और (सहस्रर्)् असंख्य (शंसािः) प्रशंसा हों
(उत) और (सदु ासे) जो उिर्ता से देता है उसके त्तलये (रात्ततिः) दान (अस्त)ु हो आप
(वनुषिः) अधर्म से र्ााँगनेवाले पाखण्डी (र्त्यमस्य) र्नुष्य की (वधिः) ताड़ना को (जत्तह)
हनो, नष्ट करो तथा (अस्र्े) हर् लोगों र्ें (द्यम्ु नर्)् धर्मयि
ु यश और (रत्नं च) रर्णीय धन
भी (अत्तध, धेत्तह) अत्तधकता से धारण करो।
त्वावता॑ ो ृ॒ हीनिा॑ ृ॒ क्रत्वे ृ॒ असस्मृ॒ त्वावता॑ ोऽसवतृ॒ ु िरा॑ रातृ॒ ौ। सवश्वेदहासा॑ न
तसवषीव उग्रर ृ॒ ओक ा॑ कर्ुष्व हररवो ृ॒ न मधा॑ ध
हे (तत्तवषीविः) प्रशत्तं सत सेना वा (हररविः) प्रशत्तं सत हरणशील र्नष्ु योंवाले (शरू ) त्तनभमय
(इन्ि) सेनापत्तत ! (त्तह) त्तजस कारण र्ैं (त्तवश्वा, इत्) सभी (अहात्तन) त्तदनों (त्वावतिः) तुम्हारे
सर्ान के (क्रत्वे) बुत्तद्ध वा कर्म के त्तलये प्रवृि हूाँ (त्वावतिः) और आपके सदृश (अत्तवतुिः)
रक्षा करनेवाले के (रातौ) दान के त्तनत्तर्ि उद्यत (अत्तस्र्) हूाँ उस र्ेरे त्तलये (उग्रिः) तेजस्वी
आप (ओकिः) घर (कृ णष्ु व) त्तसद्ध करो, बनाओ और अधात्तर्मक त्तकसी जन को (न) न
(र्धीिः) चाहो।
कुत्िा ा॑ एतेृ॒ हयणश्वा॑ ाय िषसमनिे
ृ॒ ृ॒ िहो ा॑ देवृ॒ िता॑ समयानृ॒ ा । ित्ृ॒ ा का॑ सध िहना
ु ृ॒ ा॑ िर
वत्ाृ॒ वयृ॒ ं तरा॑त्ा िनुयामृ॒ वािमा॑ ्
हे (शरू ) त्तनभमय ! त्तजन (इन्िे) परर्ैश्वर्ययमयि
ु आप र्ें (हयमश्वाय) प्रशंत्तसत त्तजसके र्नुष्य वा
घोड़े उसके त्तलये (एते) ये (कुत्सािः) वज्र अि और शि आत्तद सर्हू हों उनको और
(देवजतू र्)् देवों से पाये हुए (शषू र्)् बल तथा (सहिः) क्षर्ा (इयानािः) प्राप्त होते हुए
(तरुत्रािः) दिःु ख से सबको अच्छे प्रकार तारनेवाले (वयर्)् हर् लोग (वाजर्)् त्तवज्ञान को
कुरआन पर ही आपत्ति क्यों? 13

(सनुयार्) याचें आप (सत्रा) सत्य से (वृत्रा) दिःु खों को (सहु ना) नष्ट करने के त्तलये सगु र्
(कृ त्तध) करो।
भावार्ण: हे राजा ! यत्तद राज्य पालने वा बढ़ाने को आप चाहें तो शि अि और सेना
जनों को त्तनरन्तर ग्रहण करो, त्तफर सत्य आचार को र्ााँगते हुए त्तनरन्तर बढ़ो और हर् लोगों
को बढ़ाओ (स्वार्ी दयानदं सरस्वती)।
ृ॒ न ा॑ इनि ृ॒ वायणस्ा॑ य पसधणृ॒ प्र ते ा॑ महृ॒ ीं िमु ा॑ सृ॒ तं वेसा॑ वदाम। इषं ा॑ सपनव
एवा
मघृ॒ वदा॑ ््य िवीरा ु ृ॒ ं ा॑ ययृ॒ ं पाता॑ स्वसृ॒ स्तसभ ृ॒ िदा ा॑ न
(ऋ्वेद:7:25:2-3-4-5)
ससन्तु त्या अरातयो बोधन्तु शूर रातयिः. आ तू न इन्ि शंसय गोष्वश्वेषु शत्तु भ्रषु
सहस्रेषु तवु ीर्घ (४)
हे शरू ! हर्ारे शत्रु असावधान रहें और हर्ारे त्तर्त्र सावधान रहें. अनतं धनशाली इिं !
हर्ें संदु र और अगत्तणत गायों तथा अश्वों द्वारा उिर् धनवान् बनाओ। (र्ाले ग़नीर्त) (४)
सत्तर्न्ि गदमभं र्ृण नवु न्तं पापयार्यु ा.
आ तू न इन्ि शसं य गोष्वश्वेषु शत्तु भ्रषु सहस्रेषु तवु ीर्घ (५)
हे इिं ! यह गधे के रूप वाला हर्ारा बैरी त्तनदं ा रूपी वचनों से आपकी बदनार्ी कर रहा है.
इसे र्ार डालो. हे अनतं धनशाली इिं ! हर्ें संदु र और अगत्तणत गायों तथा अश्वों द्वारा उिर्
धनवान् बनाओ। (५)
पतात्तत कुण्डुणाच्या दरू ं वातो वनादत्तध. आ तू न इन्ि शंसय गोष्वश्वेषु शत्तु भ्रषु
सहस्रेषु तवु ीर्घ.. (६)
हर्ारे प्रत्ततकूल वायु कुत्तिल गत्तत से चलती हुई वन से दरू चली जाए. हे अनंत धनशाली
इिं ! हर्ें संदु र और अगत्तणत गायों तथा अश्वों द्वारा धनवान् बनाओ।
सवम पररक्रोश जत्तह जम्भया कृ कदाश्वर्.् आ तू न इन्ि शंसय गोष्वश्वेषु शत्तु भ्रषु
सहस्रेषु तवु ीर्घ.. (७)
तर्ु हर्ारे प्रत्तत क्रोध करने वालों का नाश करो, हर्ारी त्तहसं ा करने वालों को र्ार डालो. हे
अनंत धनशाली इिं ! हर्ें संदु र और अगत्तणत गायो तथा अवों द्वारा उिर् धनवान् बनाओ।
(सूि:29, अनुवादक:डॉक्िर गंगा सहाय शर्ाम)
सव नऽा॑ इनि ृ॒ मधो ा॑ िसह नीि ृ॒ ा यच्ा॑ ि पतनयतृ॒ । योऽअृ॒स्मार२ऽअसा॑ भदृ॒ ाित्ृ॒ यधरा॑ ं
र्मया ृ॒ तम ा॑। उपृ॒ यृ॒ ामृ॒ र्हा॑ ीतोऽृ॒ िीनिाया॑ त्वा सवमृ॒ धऽा॑ एषृ॒ ते ृ॒ योसनरृ॒ रनिाया॑ त्वा
सवमृ॒ धे॥ा॑ ४४॥
पदार्ण: हे (इन्ि) सेनापते! तू (निः) हर्ारे (पृतन्यतिः) हर् से यद्ध
ु करने के त्तलये सेना की
इच्छा करनेहारे शत्रओु ं को (जत्तह) र्ार और उन (नीचा) नीचों को (यच्छ) वश र्ें ला और
कुरआन पर ही आपत्ति क्यों? 14

जो शत्रजु न (अस्र्ान्) हर् लोगों को (अत्तभदासत्तत) सब प्रकार दिःु ख देवे उस (त्तवर्ृधिः) दष्टु
को (तर्िः) जैसे अन्धकार को सर्यू यम नष्ट करता है, वैसे (अधरर्)् अधोगत्तत को (गर्य) प्राप्त
करा, त्तजस (ते) तेरा (एषिः) उि कम्र्म करना (योत्तनिः) राज्य का कारण है, इससे तू हर्
लोगों से (उपयार्गृहीतिः) सेना आत्तद सार्ग्री से ग्रहण त्तकया हुआ (अत्तस) है, इसी से
(त्वा) तुझ को (त्तवर्ृधे) त्तजस र्ें बड़े-बड़े यद्धु करने वाले शत्रजु न हैं, (इन्िाय) ऐश्वर्ययम देने
वाले उस यद्ध ु के त्तलये स्वीकार करते हैं (त्वा) तझु को (त्तवर्ृधे) त्तजस के शत्रु नष्ट हो गये
हैं, उस (इन्िाय) राज्य के त्तलये प्रेरणा देते हैं अथामत् अधम्र्म से अपना विामव न विे॥४४॥
(यजुवेद: 8:44)
योऽअृ॒स्म्यमा॑ रातीयृ॒ ाद्यश्च ा॑ नो ृ॒ िेषा॑ ते ृ॒ िन ा॑। सननदाद्य
ृ॒ ोऽअृ॒स्मान् सधपिाच्ा॑ िृ॒
िवव ृ॒ तं भस्ा॑ मि ृ॒ ा कुा॑र॥८०॥
पदार्ण: हे सभा और सेना के स्वात्तर्न!् आप (यिः) जो (जनिः) र्नुष्य (अस्र्भ्यर्)् हर्
धर्ामत्र्ाओ ं के त्तलये (अरातीयात्) शत्रतु ा करे (यिः) जो (निः) हर्ारे साथ (द्वेषते) दष्टु ता करे
(च) और हर्ारी (त्तनन्दात्) त्तनन्दा करे (यिः) जो (अस्र्ान्) हर् को (त्तधप्सात्) दम्भ त्तदखावे
(च) और हर्ारे साथ छल करे (तर्)् उस (सवमर्)् सब को (भस्र्सा) जला के सम्पणू म भस्र्
(कुरु) कीत्तजये॥८०॥
(यजवु ेद: 4:80)
यस्ते ा॑ मनृ॒ योऽसवधा॑ िज्र िायकृ॒ िह ृ॒ ओि ा॑ पष्ु यसत ृ॒ सवश्वमा॑ ानषक ु ृ॒ ् । िाह्य
ृ॒ ामृ॒ दािमृ॒ ायव ृ॒
ु ृ॒ वयृ॒ ं िहस्ा॑ कतेन ृ॒ िहिा॑ ाृ॒ िहस्ा॑ वता ॥ 1॥
त्वया ा॑ यिा
पदार्ण: (वज्र) हे वज्ररूप (सायक) हे शत्रनु ाशक (र्न्यो) दीत्तप्तर्ान् क्रोध ! (यिः) त्तजस परुु ष
ने (ते) तेरी (अत्तवधत्) सेवा की है, वह (त्तवश्वर्)् सब (सहिः) शरीरबल और (ओजिः)
सर्ाजबल (आनुषक्) लगातार (पष्ु यत्तत) पष्टु करता है। (सहस्कृ तेन) बल से उत्पन्न हुए,
(सहस्वता) बलवान,् (त्वया यजु ा) तुझ सहायक के साथ (सहसा) बल से (वयर्)् हर् लोग
(दासर्)् दास, कार् त्तबगाड़ देनेवाले र्ख ू म और (आयमर्)् आयम अथामत् त्तवद्वान् का (सह्यार्)
त्तनणमय करें ॥१॥"
(अथमववेद: 4:32:1)
ऐषु ा॑ नह्यृ॒ वषासृ॒ िनं ा॑ हररर्स्या
ृ॒ ृ॒ सभयं ा॑ कसध। पराङा॑ ृ॒समत् ृ॒ एषत्ा॑ ववृ॒ ाणिी ृ॒
र्ौरपेषा॑ तु ॥ 3॥
पदार्ण: [हे सेनापत्तत !] (एष)ु इन [अपने वीरों] र्ें (वृषा=वृष्णिः) ऐश्वयमवान् परुु ष का
(अत्तजनर्)् चर्म [कवच] (आ नह्य) पत्तहना दे, और [शत्रओ ु ं र्ें] (हररणस्य) हररण का
(त्तभयर्)् डरपोकपन (कृ त्तध) करदे। (अत्तर्त्रिः) शत्रु (पराङ्) उलिे र्ख ु होकर, (एषत)ु चला
जावे (गौिः) भत्तू र् [यद्ध
ु भत्तू र् और राज्य] (अवामची) हर्ारी ओर (उप एषत)ु चली आवे ॥३॥
कुरआन पर ही आपत्ति क्यों? 15

(अथमववेद: 6:67:3)
यदृच्िया िोपपननं स्वर्णिारमपावतम् |
िसु खन: क्षसत्या: पार्ण लभनते यद्ध
ु मीदृिम् || 32||
अपने आप प्राप्त हुआ यद्ध
ु खल ु ा हुआ स्वगमका दरवाजा है। हे पृथानन्दन वे क्षत्तत्रय बड़े
सखु ी हैं त्तजनको ऐसा यद्ध
ु प्राप्त होता है।
अर् िैत्त्वसममं धम्यव िंग्रामं न कररष्यसि।
तत स्वधमव कीसतव ि सहत्वा पापमवापस्यसि ||
अब अगर तू यह धर्मर्य यद्ध
ु नहीं करे गा तो अपने धर्म और कीत्ततमका त्याग करके पापको
प्राप्त होगा।
अकीसतव िासप भतासन कर्सयष्यसनत तेऽव्ययाम।्
िंभासवतस्य िाकीसतणमणरर्ादसतररच्यते।
सब प्राणी भी तेरी सदा रहनेवाली अपकीत्ततक म ा कथन करें गे। वह अपकीत्ततम सम्र्ात्तनत
र्नष्ु यके त्तलये र्ृत्यसु े भी बढ़कर दिःु खदायी होती है।
(गीता: अध्याय:2:32-34)
कालोऽसस्म लोकक्षयकत्प्रवद्धो
लोकानिमाहतणसु मह प्रवत: ।
ऋतेऽसप त्वां न भसवष्यसनत िवे
येऽवसस्र्ता: प्रत्यनीके षु योधा
र्ैं लोकों का नाश करने वाला बढ़ा हुआ र्हाकाल हू।ाँ इस सर्य इन लोकों को नष्ट करने
के प्रवृि हुआ हू।ाँ इसत्तलये जो प्रत्ततपत्तक्षयों की सेना र्ें त्तस्थत योद्धा लोग हैं वे सब तेरे त्तबना
भी नहीं रहेंगे अथामत् तेरे यद्ध
ु न करने पर भी इन सबका नाश हो जायेगा।
तस्मात्त्वमुसिष्ठ यिो लभस्व
सित्वा ित्नभडु ् ्व राज्यं िमद्धम् ।
मयैवैते सनहता: पवणमेव
सनसमिमात्ं भव िव्यिासिन् ।।
अतएव तू उठ ! यश प्राप्त कर और शत्रओ ु ं को जीतकर धन-धान्य से सपं न्न राज्य को
भोग। ये सब शरू वीर पहले ही से र्ेरे ही द्वारा र्ारे हुए हैं हे सव्यसात्तचन् ! तू तो के वल
त्तनत्तर्ि र्ात्र बन जा। (गीता: अध्याय:11:32-33)
गीता के अनसु ार त्तजस्र् नष्ट हो जाता है, लेत्तकन आत्र्ा अर्र है और
इस फ़लसफ़े (philosophy) को सदं भम के बग़ैर देखें तो ऐसा लगता है जैसे
कुरआन पर ही आपत्ति क्यों? 16

र्ानव जीवन कोई र्कू य ही नहीं, हर्ारा उद्देश्य के वल इतना है त्तक यद्ध ु की
आयतें के वल कुरआन र्ें ही नहीं, बत्तकक त्तहन्दू धर्म की पत्तवत्र ग्रंथ भी यद्ध
ु के
श्लोकों व र्ंत्रों से भरी हुई हैं, अगर कुरआन को बग़ैर संदभम के सर्झना उत्तचत
है, तो त्तफर अन्य धर्म ग्रथं ों को क्यों नहीं, आशा है त्तक यह छोिी सी पस्ु तक
संदभम की र्हत्वता सर्झने र्ें त्तसद्ध होगी, अगर भाषा शैली या अन्य त्तकसी
प्रकार की ग़लती आपकी दृत्तष्ट र्ें आए, तो सत्तू चत करने की क्रपा करें ।

अनवु ादक:
र्ोहम्र्द जनु ैद
9 त्तसतंबर 2021ई
कुरआन पर ही आपत्ति क्यों? 17

पररिय
डॉक्टर यासिर नदीम अल वासिदी
त्तपछले कुछ त्तदनों से र्कु क र्ें नफरत और घृणा का र्ाहौल बनाने की कोत्तशशें
की जा रही हैं। खल ु े आर् पत्तवत्र कुरआन पर अनत्तु चत आपत्तियााँ की जा रही
हैं। एक त्तवशेष धर्म के र्ानने वालों की धात्तर्मक भावनाओ ं को ठे स पहुचाई जा
रही है। र्ानवता के अत्तं तर् दतू हज़रत र्ोहम्र्द (PBUH) पर अनत्तु चत
त्तिप्पत्तणयां की जा रही हैं। र्ीत्तडया, यिू ् यबू , फे स्बक
ू और अन्य सोशल र्ीत्तडया
प्लेिफॉर्म पर त्तववात्तदत और आपत्ति जनक पोस्िों और वीत्तडयोज़ की एक
भरर्ार है। हुकूर्त और काननू देश र्ें नफरत फे लाने वालों को रोकने के त्तलए
तैयार नहीं हैं। देश र्ें इस्लार् के त्तवरुद्ध नफरत पर आधाररत वातावरण बनाने
का परु जोर प्रयास त्तकया जा रहा है। बहुत ही गंभीर त्तस्तत्तथ है। ऐसा प्रतीत होता
है र्ानो ये सब त्तवशेष धर्म के त्तवरुद्ध त्तकया जा रहा सनु योत्तजत षणयत्रं का एक
भाग है और इसके पीछे उद्देश्य इसके त्तसवाय कुछ नहीं त्तक र्सु लर्ानों को
उकसाकर उन्हे सड़कों पर उतारा जाए और देश र्ें दगं े और फसाद त्तकए जाए।ं
आर0एस0एस (RSS) प्रकार की दायें बाज़ू के संगठनों के सदस्य आजकल
र्ीत्तडया और सोशल र्ीत्तडया पर छाए हुए हैं जो रात त्तदन र्ुसलर्ानों के त्तवरुद्ध
वातावरण बनाने का प्रयास करते हैं। इनकी वीत्तडयोज़ और सोशल र्ीत्तडया
पोस्िें, हज़रत र्हु म्र्द (PBUH) के अपर्ान और पत्तवत्र कुरआन के बारे र्ें
आपत्तियों पर आधाररत होती हैं। वसीर् ररजवी वास्तव र्ें इन्ही संघठनों का
एक र्ोहरा है जो सप्रु ीर् कोिम ये इच्छा लेकर गया था त्तक कुरआन करीर् के
संबंध र्ें देश के अंदर वाद त्तववाद शरू ु हो जाए हालांत्तक सप्रु ीर् कोिम ही क्या
दत्तु नया की बड़ी से बड़ी शत्तियां एक होकर भी पत्तवत्र कुरआन का एक शब्द
बत्तकक एक र्ात्रा को बदलने का प्रयास करें तब भी उनको अपने इस प्रयास र्ें
सफलता प्राप्त नहीं हो सकती परंतु कोिम जाने के बाद वसीर् ररजवी अचानक
से सावमजत्तनक दृश्य से ग़ायब हो गया र्ैंने कई बार वसीर् ररजवी से संपकम करने
का प्रयास त्तकया, एक र्तमबा उसने लाइव आकर इस त्तवषय पर बातचीत करने
का वादा भी त्तकया लेत्तकन उसने अपना वादा नहीं त्तनभाया। वसीर् ररजवी तो
सावमजत्तनक दृश्य से ग़ायब है लेत्तकन ये व्यत्ति त्तजन संगठनों के हाथों की
कठपतु ली है उन संगठनों के कुछ तथाकत्तथत काररंदे हैं जो अब भी पत्तवत्र
कुरआन पर ही आपत्ति क्यों? 18

कुरआन की उन 26 आयतों पर भोंडी आपत्तियााँ जता रहे हैं, जब हर् इन


आपत्तिकतामओ ं से अनरु ोध करते हैं त्तक आप कुरआन करीर् की इन आयतों
को त्तनयर् अनसु ार, सदं भम (context) के बग़ैर नहीं सर्झ सकते तो ये लोग
हर्ारा उपहास उड़ाते हैं, वास्तत्तवकता यह है त्तक कुरआन की आयतों का एक
त्तवशेष प्रष्टभत्तू र् व सदं भम होता है, हालात्तं क ये लोग र्ात्र अनवु ाद के सहारे
कुरआन पढ़ते हैं अब जो आयात भी इनको अपने त्तखलाफ नज़र आती है,
बग़ैर उसका संदभम जाने कर् पढ़ी त्तलखी जनता के सार्ने पेश कर देते हैं तात्तक
देश र्ें र्ुसलर्ानों के त्तखलाफ नफरत का वातावरण बने और दगं ा फसाद करने
का कायम त्तकया जाए। कारण स्पष्ट है की कुरआन की आयतों को बग़ैर संदभम के
पेश त्तकया जा रहा है, बहुत से र्त्तु स्लर् धर्म गरुु ओ ं ने कुरआन की इन आयतों
को संदभम के साथ बयान करके नफरत की इस आग को जो ये संगठन भड़का
रहे हैं ठंडा करने का भी प्रयास त्तकया है। लेत्तकन र्ैं सर्झता हूाँ उनकी ये
कोत्तशशें लाभदायक नहीं हैं क्योंत्तक इन नफरत के सौदागरों ने पहले ही ये तय
कर त्तलया है त्तक इनको कुछ सर्झना ही नहीं है, जब ये तय है त्तक इन्हे कुरआन
त्तबना संदभम के ही पढ़ना है और र्न चाहा अथम त्तनधामररत करना है या दसू रे
शब्दों र्ें धात्तर्मक ग्रंथों का बग़ैर संदभम जाने अध्ययन करना ही इनका त्तनयर् है
तो ठीक है हर् भी त्तहन्दू धात्तर्मक ग्रंथों से श्लोक व र्ंत्र पेश करें गे त्तजनर्े र्ारने
कािने की बात की गई है। हर् कुरआन की एक आयत के र्क ु ाबले र्ें एक
श्लोक या र्ंत्र पेश करें गे और त्तनयायपवू मक यह जााँचने का प्रयास करें गे की
कुरआन की आयत और श्लोक र्ें क्या सर्ानता और क्या अतं र है? अगर
कुरआन की आयतों और त्तहन्दू धर्म ग्रंथों के श्लोकों के बीच कुछ सर्ानता
होगी तो हर्ारे त्तहन्दू भाइयों को के वल कुरआन ही पर आपत्ति नहीं होनी
चात्तहए। कोई व्यत्ति अगर कुरआन की 26 आयतों को कुरआन से त्तनष्कात्तसत
कराने के त्तलए सप्रु ीर् कोिम चला गया, तो वसीर् ररजवी की प्रशसं ा करने
वालों र्ें कोई ऐसा व्यत्ति भी होना चात्तहए जो हर्ारे द्वारा पेश त्तकए गए श्लोकों
व र्त्रं ों को धात्तर्मक ग्रथं से त्तनष्कात्तसत कराने के त्तलए एससी (SC-Supreme
Court) जाए, शायद कोई ऐसा व्यत्ति आपको ना त्तर्ले क्योंत्तक इस सर्य
दत्तु नया र्ें दोर्हु ी और पाखडं अपने चरर् पर है जो लोग कुरआन पर आपत्ति
जता रहे हैं वास्तव र्ें वो पाखंडवाद का त्तशकार हैं, उन्हे सर्झ जाना चात्तहए त्तक
कुरआन पर ही आपत्ति क्यों? 19

शीशे के घर र्ें बैठकर दसू रों के घर र्ें पत्थर नहीं र्ारा करते वरना उस घर से
जो पत्थर आता है उसकी गत्तत अत्यंत तीव्र होती है जो आपकी परू ी शीशे की
दीवार चिखाने की क्षर्ता रखती है, देखते हैं जो प्रश्न हर् यहााँ पेश करने वाले
हैं, उनका ये लोग क्या उिर देते हैं, संदभम के साथ या संदभम को बयान त्तकए
बग़ैर? याद रहे इस पस्ु तक से हर्ारी र्ंशा त्तकसी की भावनाओ ं को आहत
करना नहीं है, हर्ें यक़ीन है त्तक त्तहन्दू धात्तर्मक पस्ु तकों से जो र्ंत्र व श्लोक हर्
पेश करें गे, उसका कोई ना कोई उत्तचत अथम अवश्य होगा, हर्ारा उद्देश्य तो
के वल इतना है त्तक संदभम से त्तनकालकर के वल अनवु ाद के सहारे कुरआन
सर्झने वाले अपनी आाँखें खोलें और अंधकार से बाहर आ जाएं, क्योंत्तक
संदभम से बग़ैर आपकी पस्ु तकों र्ें भी अथम का अनथम हो सकता है।
कुरआन पर ही आपत्ति क्यों? 20

धमण और अधमण
र्लू त्तवषय पर आने से पहले धर्म और अधर्म की पररभाषा जान लेना
आवेश्यक है तात्तक जब हर् श्लोकों व र्ंत्रों की बात करें तो इन लोगों के पास
ये कहने का त्तवककप ना रहे की ये तो अधर्म की बात चल रही है और अधर्म
का अथम होता है: “पाप”।
इसत्तलए हर् पहले धर्म और अधर्म को गीता के हवाले से पररभात्तषत
करें गे। गीता र्ें धर्म की हानी के सर्य ईश्वर के अवतररत होने का उकलेख
त्तर्लता है, श्री कृ ष्ण कहते हैं:
“यदा यदा सह धमणस्य नलासनभणवसत भारत |
अ्यत्ु र्ानमधमणस्य तदात्मानं ििाम्यहम।् ”
“हे भारत जब जब धर्म की हानी और अधर्म की वृत्तद्ध होती है तब तब र्ैं स्वयं को प्रकि
करता हू।ाँ ” (भगवद गीता: अध्याय: 4:7)
भगवत गीता (18:66) र्ें कहा गया:
िवणधमाणनपररत्यज्य मामेकं िरर्ं व्रि |
अहं त्वां िवणपापे्यो मोक्षसयष्यासम मा िुि।
“सब धर्ों का पररत्याग करके तुर् एक र्ेरी ही शरण र्ें आओ, र्ैं तुम्हें सर्स्त पापों से
र्ि
ु कर दगंू ा, तुर् शोक र्त करो।” (अनुवाद: स्वार्ी तेजोयानन्द)
उपयमिु भगवत गीता के दोनों श्लोकों को त्तर्लाने से ये वास्तत्तवकता
स्पष्ट हो जाती है त्तक धर्म के वल कृ ष्ण भत्ति और कृ ष्ण की शरण र्ें जाने का
नार् है क्योंत्तक र्ीता 18:66 र्ें सर्स्त धर्ों को त्याग कर कृ ष्ण भत्ति की
त्तशक्षा दी जा रही है, त्तजसका अथम त्तसवाय इसके कुछ नहीं के कृ ष्ण की शरण र्ें
जाना ही वास्तत्तवक धर्म है इसके अत्ततररि त्तवश्व के वो धर्म जो कृ ष्ण जी पर
त्तवश्वास नहीं रखते जैसे: इस्लार्, ईसाइयत, जैन धर्म और अन्य सभी धर्म
वास्तव र्ें धर्म नहीं बत्तकक अधर्म हैं। धर्म और अधर्म की पररभाषा स्पष्ट हो गई
त्तक श्री कृ ष्ण को र्ानना धर्म है और ना र्ानना अधर्म। अब त्तहन्दू धर्म ग्रंथों से
अधत्तर्मयों को र्ारने कािने के जीतने श्लोक हर् पेश करें गे, उन अधत्तर्मयों र्ें
त्तहन्दू धर्म के अत्ततररि अन्य सभी धर्म, पंथ और र्त पद शात्तर्ल होंगे।
अब हर् कुरआन की आयतों और पत्तवत्र पस्ु तकों के श्लोक व र्त्रं
पेश करें गे।
कुरआन पर ही आपत्ति क्यों? 21

िारे मुिररक नापाक हैं?


कुरआन पर सबसे अत्तधक होने वाली आपत्ति ये है त्तक कुरआन ने
अकलाह के साथ अन्य त्तकसी को साझी सर्झने वालों को अपत्तवत्र और अशुद्ध
घोत्तषत त्तकया है हालांत्तक अपत्तवत्रता के वल तन व शरीर की नहीं होती बत्तकक
र्न, बत्तु द्ध और कर्म की गंदगी भी अपत्तवत्रता ही कहलाती है लेत्तकन हर् यहााँ
कुरआन की आयतों पर होने वाली आपत्तियों का जवाब नहीं देंगे बत्तकक उसकी
तलु ना र्ें एक र्त्रं या एक श्लोक त्तलख कर त्तनणमय, पाठकों पर छोड़ देंगे।
कुरआन र्ें कहा गया:
“‫”اِ نَ َما ال ُْم ْش ِرک ُْو َن نَ َج ٌس۔‬
“अकलाह के साथ साझी सर्झने वाले अपत्तवत्र हैं।”
ये लोग इस आयात का ये अथम लेते हैं के इसर्ें तर्ार् ही ग़ैर र्त्तु स्लर्ों
को अपत्तवत्र घोत्तषत कर त्तदया गया र्त्तु स्लर् धर्म गरुु ओ ं के पक्ष से बहुत से उिर
दे त्तदए गए हैं परंतु ये लोग र्ानते नहीं, हर् भी यहााँ इस आयत की कोई
व्याख्या नहीं करें गे, जैसा अनवु ाद है वैसा ही त्तलख देंगे।
कुरआन की उपयमि ु आयत आपने पढ़ली, अब गीता का अध्याय: 3,
श्लोक: 12 पत्तढ़ए, त्तजसर्ें कहा गया है:
“इष्टानभोर्ासनह वो देवा दास्यनते यज्ञभासवता: |
तैदणिानप्रदायै्यो यो भङ ु ् ते स्तेन एव ि: |”
“यज्ञ द्वारा पोत्तषत देवतागण तुम्हें इष्ट भोग प्रदान करें गे। उनके द्वारा त्तदए भागों को जो परुु ष
उनको त्तदए त्तबना ही भोगता है वह त्तनिय ही चोर है।”
(अनुवाद: स्वार्ी तेजोर्यानंद)
इस श्लोक र्ें त्तहदं ओ
ु ं के अत्ततररि सर्स्त र्नष्ु यों को त्तनियपूवमक चोर
कहा गया है। कुरआन की उपयमि ु आयत और गीता के इस श्लोक के बीच
तलु ना करें एक जगह देवतापूजकों को अपत्तवत्र कहा जा रहा है तो दसू री जगह
देवता की पजू ा उपासना न करने वालों को चोर कहा जा रहा है अपत्तवत्रता का
शब्द इतना संगीन नहीं क्योंत्तक यह ज़रूरी नहीं त्तक एक आदर्ी तन व शरीर ही
से गंदा हो बत्तकक र्न, कर्म, सोच, त्तवचार की गंदगी भी अपत्तवत्रता ही है (और
देश र्ें नफरत फै लाने के त्तलए कुरआन पर आपत्ति करने वाले र्न से ही
कुरआन पर ही आपत्ति क्यों? 22

अपत्तवत्र हैं), हााँ त्तकसी को चोरी का दोष देना अत्तधक सगं ीन है, क्योंत्तक चोरी
दत्तु नया के त्तनयर् अनसु ार भी दंडनीय है।
अधमध, मि
ु लमानों के ित्ु:
َ ‫ْص ُروا م‬
‫ِن‬ ُ ‫” َواِذَا َض َربْ ُت ْم ِِف ْاْل َْر ِض فَل َ ْی َس عَل َْيك ُْم ُج َناحٌ ا َ ْن َتق‬
‫الص ََل ِة اِ ْن ِخ ْف ُت ْم ا َ ْن یَ ْف ِت َنك ُُم ال َ ِذی َن َكف َُر ۚوا اِ َن الْكَا ِف ِر ی َن ك َانُوا لَك ُْم‬
َ
)۱۰۱ :‫ني۔“ (سورة النسآء‬ ًّ ‫َع ُد ًّوا ُم ِب‬
“और जब तर्ु धरती र्ें यात्रा करो, तो इसर्ें तर्ु पर कोई गनु ाह नहीं त्तक नर्ाज़
को कुछ संत्तक्षप्त कर दो; यत्तद तम्ु हें इस बात का भय हो त्तक त्तवधर्ी लोग तम्ु हें
सताएाँगे और कष्ट पहुचाँ ाएाँगे। त्तनिय ही त्तवधर्ी लोग तम्ु हारे खल ु े शत्रु हैं।”
इस आयत पर आपत्ति ये है के इसर्े अधत्तर्मयों को शत्रु कहा गया है,
हालांत्तक र्हाभारत यद्ध ु र्ें कौरव और पांडव र्ें से कौरव अधर्ी थे और पांडव
धर्म पर इसत्तलए श्री कृ ष्ण ने कौरवों से इस यद्ध ु र्ें पाडं वों का साथ त्तदया, यद्ध ु
होने का अथम ही ये है के एक सेना दसू री सेना की दश्ु र्न होती है, अथामत कौरव
जोत्तक त्तवधर्ी थे पांडवों के शत्रु और दश्ु र्न ही कहलाये जाएंगे।
गीता अध्याय 7 और श्लोक 27 र्ें कहा गया:
“इच्िािेषिमुत्र्ेन िनिमोहेन भारत।
िवणभतासन िम्मोहं िर्े यासनत परनतप।”
स्वार्ी र्क ु ंु दानंद ने इस श्लोक का अनवु ाद इस प्रकार त्तकया है:
“हे भारतवश
ं ी, र्ोह से इच्छा और द्वेष के द्वद्वं उत्पन्न होते हैं। हे ित्ओ
ु ं को िीतने वाले,
भौत्ततक जगत के सभी जीव जन्र् से ही इनसे र्ोहग्रस्त हैं।”
(https://www.holy-bhagavad-gita.org/chapter/7/verse/27)
इस श्लोक र्ें श्री कृ ष्ण ने अजमनु को “शत्रुओ ं पर त्तवजय प्राप्त करने
वाला” कहा, अथामत जो अधर्म पर हैं वो अजमनु और उसकी सेना के शत्रु हुए
और अजमनु उनपर त्तवजय प्राप्त करने वाला। इससे स्पष्ट हो गया की गीता के
अनसु ार त्तवधर्ी, शत्रु होते हैं। हर्ें ना गीता पर आपत्ति है और कुरआन पर तो
हो ही नहीं सकती हर्ारा प्रश्न तो उन आपत्ति कतामओ ं से है के त्तजन्हे के वल
कुरआन पर ही आपत्ति है।
कुरआन पर ही आपत्ति क्यों? 23

सवधसमणयों के िार् कुसटलता अपनाने का आदेि:


َ ‫” ٰٰۤیاَیُ َھا الَـ ِذ ْی َن ٰا َم ُن ْـوا قَا تِل ُوا الَـ ِذ ْی َن َیل ُْو َنك ُْم م‬
ِ ‫ِن الْك َُف‬
‫ار َو ل َْي ِج ُد ْوا‬
َ ْ ‫َوا ْعل َُم ٰۤوا ا َ َن اللٰ َہ َم َع ال ُْم َت ِق‬
)۲۳ :‫ني۔“ (سورة التوبة‬ ‫ِف ْيك ُْم غِل َْظ ۚ ًّة‬
“ईर्ान वालों! अपने आस-पास के कात्तफ़रों से यध्ु द करो और चात्तहए त्तक वे
तर्ु र्ें कुत्तिलता पायें तथा त्तवश्वास रखो त्तक अकलाह आज्ञाकाररयों के साथ है।”
इस आयत पर आपत्ति ये है त्तक इस आयात र्ें अंधत्तवश्वात्तसयों से यद्ध ु
की बात की जा रही है, दसू री आपत्ति ये है त्तक उनके साथ कुत्तिलता अपनाने
का आदेश त्तदया जा रहा है, आइए देखते हैं त्तक गीता र्ें युद्ध की बात की गई है
या नहीं और शत्रओ ु ं के साथ कुत्तिलता का आदेश त्तदया गया है या नम्रता का?
गीता र्ें कहा गया है त्तक:
“हतो वा प्रापस्यसि स्वर्व सित्वा वा भो्यिे महीम।्
तस्मादुसिष्ठ कौनतेय यद्ध ु ाय कतसनश्चय ।”
“यद्ध
ु र्ें र्रकर तुर् स्वगम प्राप्त करोगे या जीतकर पृथ्वी को भोगोगे इसत्तलये हे कौन्तेय यद्ध

का त्तनिय कर तर्ु खड़े हो जाओ।” (गीता: 2:36)
इस श्लोक र्ें क्या वही बात नहीं की गई जो उपयमि ु आयत र्ें की गई
थी, स्वयं त्तनणमय लीत्तजए, इस श्लोक र्ें यद्ध
ु र्ें र्रने पर पर स्वगम और जीत्तवत रह
जाने पर पृथ्वी पर राज की प्रात्तप्त की बात की जा रही है। इसी प्रकार नम्रता को
छोड़ कर यद्ध ु के त्तलए कुत्तिलता के साथ खड़े हो जाने की प्रेरणा दी जा रही है।
असवश्वाि का दडं :
‫ارا ك ُل َ َما نَ ِض َج ْت ُجل ُودُ ُھم‬ َ ‫”اِ َن ال َ ِذی َن َكف َُروا۟ ِبـَا ٰیَ ِت َنا َس ْو‬
ْ ِ ‫ف نُ ْصل‬
ًّ َ‫ِِهي ن‬
ًّ ‫َان َع ِز ی ًّزا َح ِك‬
“‫يما۔‬ َ َ ‫اب اِ َن‬
َ ‫اّلل ك‬ َ َ‫َْي َھا ل َِيذُ وقُوا۟ ال َْعذ‬ ْ ُ َٰ ْ‫بَ َدل‬
َ ْ ‫َّن ُجل ُودًّا غ‬
)۵۶ :‫(سورة النسآ‬
“वास्तव र्ें, त्तजन लोगों ने हर्ारी आयतों के साथ कुफ़्र (अत्तवश्वास) त्तकया, हर्
उन्हें नरक र्ें झोंक देंगे। जब-जब उनकी खालें पकें गी, हर् उनकी खालें बदल
देंगे, तात्तक वे यातना चखें, त्तनिःसंदहे अकलाह प्रभत्ु वशाली तत्वज्ञ है।”
(कुरआन : 4:56)
कुरआन पर ही आपत्ति क्यों? 24

इस आयत पर आपत्ति ये है त्तक ईश्वर पर त्तवश्वास ना करने वालों को


नकम र्ें झोंक देने की बात की जा रही है।
ठीक है लेत्तकन आपको “स्कंदपरु ाण” (P:1; C:3; V:82) पर भी
आपत्ति होनी चात्तहए त्तजसर्ें कहा गया:
“Those people who solely depend on Karman and are
engaged in denying Isvara, go to hell even if they
performed hundred crores of Yajnas”
जो लोग कर्म पर ही त्तनभमर रहते हैं और ईश्वर र्ें त्तवश्वास नहीं रखते वो
नकम र्ें झोंक त्तदए जाएगं े चाहे उन्होंने सौ करोड़ बार यज्ञ त्तकया हो।
अथामत इनके अनसु ार नकम की जो भी आयु होगी वह ईश्वर र्ें त्तवश्वास
ना रखने वाला व्यत्ति उस आयु को भोगेगा। अब आपत्ति करने वालों को त्तसफम
कुरआन ही की आयत पर आपत्ति नहीं होनी चात्तहए, स्कंदपरु ाण के इस श्लोक
पर भी आपत्ति होनी चात्तहए।
दोस्त ना बनाओ:
‫” ٰٰۤیاَیُ َھا ال َ ِذی َن ا ٰۤ َم ُنوا َْل َت َت ِخذُ ْوا آ َبا َءك ُْم َواِ ْخ َوا نَکُ ْم ا َ ْو ل َِيآ َء اِ ِن‬
)۵:‫ان۔“ (سورة التوبة‬ ِ ‫یم‬َ ِ ‫كف َْر ع َََل ْاْل‬
ُ ْ‫اس َت َحبُوا ال‬ ْ
“हे ईर्ान वालो! अपने बापों और भाईयों को अपना प्रात्तधकारी न बनाओ, यत्तद वे ईर्ान
की अपेक्षा कुफ़्र से प्रेर् करें और तर्ु र्ें से जो उन्हें प्रात्तधकारी बनाएाँग,े तो वही अत्याचारी
होंगे।” (कुरआन : 9:5)
इस आयत पर आपत्ति ये है त्तक यत्तद बाप और भाई ईर्ान की आपेक्षा
कुफ्र से प्रेर् करें तो उन्हे दोस्त ना बनाने का आदेश त्तदया जा रहा है। हालांत्तक
उनकी ये आपत्ति अनत्तु चत है क्योंत्तक आयत र्ें “औत्तलया” का शब्द प्रयोग
त्तकया गया है, त्तजसका अथम है “प्रात्तधकारी(authority)” ना त्तक दोस्त। त्तर्त्र
और दोस्त के त्तलए अरबी र्ें “अत्तस्दक़ा” का शब्द प्रयोग त्तकया जाता है।
र्हाभारत के यद्ध ु र्ें जब दोनों सेनायें आर्ने सार्ने थीं तो अजमनु ने
कौरवों की सेना र्ें क्या देखा, त्तकसको देखा, गीता कहती है:
“तत्ापश्यसत्स्र्तानपार्ण सपतनर् ृ़ सपतामहान।्
आिायाणनमातुलानरातनपृ़ ुत्ानपौत्ानिखींस्तर्ा।” (र्ीता: 1:26)
कुरआन पर ही आपत्ति क्यों? 25

“उसके बाद पृथानन्दन अजमनु ने उन दोनों ही सेनाओ ं र्ें त्तस्थत त्तपताओ ं को, त्तपतार्हों को,
आचायों को, र्ार्ाओ ं को, भाइयों को, पत्रु ों को, पौत्रों को तथा त्तर्त्रों को, ससरु ों को और
सहृु दों को भी देखा।”
अथामत दश्ु र्नों की सेना र्ें अजमनु अपने त्तपताओ,ं गरुु ओ,ं भाइयों और
पत्रु ों और पौत्रों आत्तद को देखता है। स्पष्ट है त्तक ये सारे ही ररश्तेदार अजमनु के
दश्ु र्न ही थे, त्तजनसे अजमनु यद्धु करने ही गया था नात्तक संत्तध करने। अगर
कुरआन ने दश्ु र्नों से सत्तं ध ना करने की बात कही है, तो गीता भी तो यही कह
रही है।
अब आपत्ति अगर कुरआन पर है, तो गीता पर भी होनी चात्तहए और
गीता पर सबसे पहले होनी चात्तहए क्योंत्तक गीता पहले आई है और कुरआन
बाद र्ें आया है।
उपहाि करने वालों को समत् ना बनाओ:
‫” ٰٰۤیاَیُ َھا ال َ ِذی َن ا ٰۤ َم ُنوا َْل َت َت ِخذُ ْوا ال َ ِذ ْی َن اتَ َخذُ ْوا د ِْی َنک ُْم ُھ ُز ًّوا َو لَ ِع ًّبا‬
‫ار ا َ ْو ل َِياٰۤ َ ۚء َواتَق ُْوا اللٰ َہ اِ ْن‬ َ ْ ‫بم‬ َ َ ‫م‬
َ ‫ِن ق َْبلِک ُْم َوالْکُف‬ َ ‫ِن ال ِذ ْی َن ا ُ ْو ُت ْو الْ ِک ٰت‬
)۵۷:‫ني۔“ (سورة المائدة‬
َ ْ ‫ُک ْن ُت ْم ُم ْؤ ِم ِن‬
“हे ईर्ान वालो! उन्हे त्तजन्होंने तम्ु हारे धर्म को उपहास तथा खेल बना रखा है,
उन्र्े से त्तजनको तुर्से पहले पस्ु तक दी गई है तथा कात्तफरों को सहायक(त्तर्त्र)
ना बनाओ और अकलाह से डरते रहो, यत्तद तर्ु वास्तव र्ें ईर्ान वाले हो।”
(कुरआन : 5:57)
इस आयत पर आपत्ति ये है त्तक इसर्े यहूत्तदयों और ईसाइयों और
अकलाह पर त्तवश्वास ना रखने वालों से त्तर्त्रता ना रखने का आदेश त्तदया जा
रहा है। हालात्तं क सार्ान्य बत्तु द्ध(common sense) का प्रयोग करने वाले पर
यह बात स्पष्ट है त्तक आयत के के वल अनवु ाद से ही ये आसानी से सर्झ जा
सकता है त्तक उन लोगों से त्तर्त्रता ना करने की बात हो रही है जो धात्तर्मक
भावनाओ ं को ठे स पहुचाँ ाते हैं। धात्तर्मक भावनाओ ं को ठे स पहुचाँ ाने वालों से
क्यों त्तर्त्रता रखी जाए? स्वयं न्यायपवू मक बताइए तथा आपकी पत्तवत्र पस्ु तक
“र्नस्ु र्ृत्तत” र्ें क्या त्तलखा है, स्वयं त्तवचार कीत्तजए।
कुरआन पर ही आपत्ति क्यों? 26

“योSवमनयेत ते मलु े हेति


ु ास्त्राश्रयाद् सिि ।
ि िाधुसभबणसहष्कायो नासस्तको वेदसननदक ।”
“जो त्तद्वजातक (या अन्य कोई भी व्यत्ति) शाि द्वारा धर्म के र्ल ू दोनों (वेद और स्र्ृत्तत)
का अपर्ान करता है, उसे सज्जनों (gentleman) द्वारा त्ततरष्कृ त त्तकया जाना चात्तहये,
क्योंत्तक वह वेद त्तनन्दक होने से नात्तस्तक है।” (र्नस्ु र्ृत्तत: 2:11)
र्नस्ु र्ृत्तत के उपयमि
ु श्लोक से दो बातें स्पष्ट हुई:ं पहली यह त्तक वेद
और र्नस्ु र्ृत्तत का अपर्ान करने वाला नात्तस्तक है। “रार् शर्ाम त्तजगरणवी” के
द्वारा त्तलत्तखत आयम सर्ात्तजयों त्तक र्नस्ु र्ृत्तत के परु ाने उदमू छापे र्ें नात्तस्तक का
अथम “कात्तफ़र” त्तलखा हुआ है।
दसू री बात यह ज्ञात हुई त्तक साधु सतं ों को चात्तहए की नात्तस्तकों को
अपनी र्ंडली से बाहर कर दें। इन लोगों को यही आपत्ति है त्तक कुरआन ने
सर्स्त ग़ैर र्त्तु स्लर्ों को कात्तफ़र एवं नात्तस्तक कहा गया तो र्नस्ु र्ृत्तत पर भी
आपत्ति होनी चात्तहए क्योंत्तक र्नस्ु र्ृत्तत र्ें वेद और अन्य शािों र्ें त्तवश्वास ना
रखने वाले को भी नात्तस्तक कहा जा रहा है और कुरआन पर ये भी आपत्ति है
की इस्लार् धर्म का उपहास उड़ाने वालों से त्तर्त्रता ना करने का उपदेश त्तदया
गया है तो र्नस्ु र्ृत्तत पर भी आपत्ति होनी चात्तहए क्योंत्तक इसर्ें वेद त्तनदं कों का
बत्तहष्कार और उनको अपनी िोली और ग्रोह से त्तनकाल बाहर करने का उपदेश
त्तदया जा रहा है।
सधतकारे हुए लोर्:
ًّ ‫ني أ َ ْی َن َما ثُ ِقف ُْٰۤوا أ ُ ِخذُ ْوا َوق ُِتل ُْوا َت ْق ِت‬
)۶۱:‫يَل۔“ (سورة اْلحزاب‬ َ ِ‫” َمل ُْعون‬
“त्तधक्कारे हुए। वे जहााँ पाये जायें, पकड़ त्तलए जायेंगे तथा जान से र्ार त्तदये
जायेंगे।” (कुरआन: 32:61)
इस आयत र्ें भ्रष्टाचाररयों और दगं ा करने वाले धर्म त्तवरोत्तधयों और
राज्य के बात्तग़यों को जान से र्ार देने का आदेश त्तदया जा रहा है, र्त्तू तम पजू कों
और यहूत्तदयों और ईसाइयों से इस आयत का कोई संबंध नहीं है, त्तफर भी इस
आयत पर आपत्ति ये है त्तक इसर्े धर्म त्तवरोत्तधयों पर लानत(धतू कारे जाने) त्तक
बात त्तक जा रही है। चत्तलए अब देखते हैं की आपकी पत्तवत्र पस्ु तक र्ें क्या
त्तलखा है?
कुरआन पर ही आपत्ति क्यों? 27

“एतां दृसष्टमवष्ट्य नष्टात्मानोऽल्पबुद्धय ।


प्रभवनत्युग्रकमाणर् क्षयाय िर्तोऽसहता ॥16.9॥”
“इस त्तर्थ्या ज्ञान को अवलम्बन करके - त्तजनका स्वभाव नष्ट हो गया है तथा त्तजनकी बुत्तद्ध
र्न्द है, वे सब अपकार करने वाले क्रुरकर्ी र्नष्ु य के वल जगत् के नाश के त्तलए ही सर्थम
होते हैं।” (गीता: 16.9)
अथामत जो लोग कृ ष्ण द्वारा त्तदए गए आत्र्ा ज्ञान र्ें त्तवश्वास नहीं
रखते, उनका स्वभाव नष्ट और वो र्ंद बत्तु द्ध लोग हैं इसी के साथ साथ ये ऐसे
कुकर्ी र्नष्ु य हैं जो के वल जगत का नाश ही कर सकते हैं और जगत को लाभ
नहीं पहुचाँ ा सकते, अब पढ़ने वाले खदु त्तनणमय करलें त्तक त्तकसी को धत्ु कारना
ज्यादा आपत्तिजनक है या त्तकसी को र्ंद बत्तु द्ध, कुकर्ी और जगत का त्तवनाश
करने वाला कह देना।
नकण का ईधन:

‫ب َج َھ َن َم ا َن ُت ْم ل ََھا‬ َ ‫” اِ نَك ُْم َو َما َت ْع ُب ُد‬
ِ ‫ون مِن ُد‬
ِ َ ‫ون‬
ُ ‫اّلل َح َص‬
)۹۸:‫ون۔“ (سورة اْلنبياء‬
َ ‫ار ُد‬
ِ ‫َو‬
“त्तनिय तर्ु सब तथा तर्ु त्तजन (र्त्तू तमयों) को पजू रहे हो अकलाह के अत्ततररि,
नरक के ईधन ं हैं, तर्ु सब वहााँ पहुचाँ ने वाले हो।” (कुरआन: 21:98)
इस आयत पर आपत्ति यह है त्तक इसर्ें एक ईश्वर के अत्ततररि अन्य
पत्थर त्तक र्त्तू तमयों को पजू ने वालों और पजू े जा रहे पत्थरों को नकम का ईधन ं
कहा गया है, हालात्तं क बत्तु द्ध पवू मक त्तवचार त्तकया जाए, तो इस आयत पर त्तकसी
आपत्ति का होना असभं व था, आयत र्ें के वल पत्थरों और ईश्वर को छोड़कर
अन्य की पजू ा करने वालों को नकम का ईधन ं कहा गया है, क्योंत्तक जब र्ानव
अपने सृत्तष्टकताम और बनाने वाले को छोड़कर त्तकसी अन्य त्तक पजू न उपासना
करें और वास्तत्तवक ईश्वर का त्ततरस्कार करें तो त्तफर उस ईश्वर का अत्तधकार है
की वह ऐसे लोगों के साथ जो चाहे करे परंतु त्तफर भी इस आयत पर आपत्ति ही
है तो वेद के त्तनम्नत्तलत्तखत र्ंत्र के बारे र्ें क्या त्तवचार है?
“तेसिष्ठया तपनी रक्षिस्तप ये त्वा सनदे दसधरे दृष्टवीयणम् आसवस्तत्कष्व
यदिि उक््यं बहस्पते सव परररापो अदणय॥” 14।।
कुरआन पर ही आपत्ति क्यों? 28

“अपनी प्रचण्ड ज्वाला से राक्षसों को भस्र् करो, त्तजन्होंने तुम्हारे प्रकि पराक्रर् व शत्ति र्ें
तुम्हारा त्ततरस्कार त्तकया है। उस शत्ति को त्तदखाओ जो स्तुत्तत के यो्य हो दष्टु विाओ ं को नष्ट
करो, हे बृहस्पत्तत।” (ऋ्वेद, र्ण्डल: 2, सि
ू : 23, र्ंत्र: 14)
र्त्रं का ऋत्तष, ईश्वर से उन लोगों को भस्र् करने और जल देने की
प्राथना कर रहा है, जो ईश्वर की शत्तियों र्ें त्तवश्वास नहीं रखता, अगर कुरआन
र्जीद की उस आयत पर आपत्ति है, तो वेद के इस र्ंत्र पर भी आपत्ति होनी
चात्तहए।
अपरासधयों िे इतं ेकाम:
َ ‫ض َع ۡن َھاؕ اِ نَا م‬
‫ِن‬ َ ‫ت َر ِب ٖه ثُ َم ا َ ۡع َر‬ ِ ‫” َو َم ۡن ا َ ۡظل َُم ِممَ ۡن ذُ ك َِر ِباٰ ٰی‬
)۲۲:‫ن۔“ (سورة السجدة‬ َ ۡ ‫ال ُۡم ۡج ِر ِم‬
َ ‫ني ُم ۡن َت ِق ُم ۡو‬
“और उस व्यत्ति से बढ़कर अत्याचारी कौन होगा त्तजसे उसके रब की आयतों
के द्वारा याद त्तदलाया जाए, त्तफर वह उनसे र्ंहु फे र ले? त्तनिय ही हर्
अपरात्तधयों से बदला लेकर रहेंगे” (कुरआन: 32:22)
इस आयत पर आपत्ति ये है त्तक इसर्ें अपरात्तधयों और पात्तपयों से
बदला(इतं ेकार्) लेने की बात कही जा रही है, चत्तलए देखते हैं त्तक गीता र्ें क्या
त्तलखा हुआ है।
“कालोऽसस्म लोकक्षयकत्प्रवद्धो
लोकानिमाहतणसु मह प्रवि ।
ऋतेऽसप त्वां न भसवष्यसनत िवे
येऽवसस्र्ता प्रत्यनीके षु योधा ” ।।11.32।।
“र्ैं लोकों का नाश करने वाला प्रवृद्ध काल हू।ाँ इस सर्य र्ैं इन लोकों का संहार करने र्ें
प्रवृि हू।ाँ जो प्रत्ततपत्तक्षयों की सेना र्ें त्तस्थत योद्धा हैं वे सब तम्ु हारे त्तबना भी नहीं रहेंगे।”
(गीता: 11:22)
इस श्लोक र्ें श्री कृ ष्ण जी ने स्वयं के त्तलए काल(र्ौत) शब्द का
प्रयोग त्तकया और त्तफर अजमनु को यद्ध ु पर उभारने के त्तलए यह भी कहा त्तक
अगर अजमनु यद्ध ु ना भी करे गा, तब भी कौरवों की सेना का त्तवनाश त्तनिय है
अथामत र्ैं सबको र्ार दगंू ा और वह तम्ु हारे त्तबना भी नहीं रहेंगे। सोचने वाली
बात यह है त्तक क्या यह अधर्ी कौरवों से इतं ेकार् की बात नहीं कही जा रही
है? न्यायपवू मक त्तवचार कीत्तजए।
कुरआन पर ही आपत्ति क्यों? 29

माले ग़नीमत:
َ ‫ْيةًّ َتاۡ ُخذُ ۡونَ َھا فَ َع َج َل لَك ُۡم ٰھ ِذ ٖه َوك ََف ا َیۡ ِد‬
‫ى‬ ُ ٰ ‫” َو َع َدك ُُم‬
َ ۡ ‫اّلل َم َغا نِ َم َك ِث‬
ًّ ‫ني َو یَ ۡھ ِدیَك ُۡم ِص َر‬
‫اطا‬ َ ۡ ‫اس َع ۡنك ُۡمؕۚ َو لِ َتك ُۡو َن ٰا یَ ًّة لِل ُۡم ۡؤ ِم ِن‬ َ
ِ ‫الن‬
ۡ ‫ُم‬
)۲۰:‫س َت ِق ۡي ًّما۔“ (سورة الفاتح‬
“अकलाह ने तुर्से बहुत सी ग़नीर्तों का वादा त्तकया है, त्तजन्हें तर्ु प्राप्त करोगे.
यह त्तवजय तो उसने तम्ु हारे त्तलए तत्कालीन रूप से त्तनत्तित कर दी। और लोगों
के हाथ तर्ु से रोक त्तदए (त्तक वे तर्ु पर आक्रर्ण करने का साहस न कर सकें )
और तात्तक ईर्ानवालों के त्तलए एक त्तनशानी हो. और वह सीधे र्ागम की ओर
तम्ु हारा र्ागमदशमन करे ।” (कुरआन: 48:20)
इस आयत र्ें एक शब्द “र्ग़ात्तनर्” का प्रयोग त्तकया गया है, त्तजसका
अनवु ाद आपत्तिकतामओ ं द्वारा लिू के र्ाल से कर त्तदया जाता है और त्तफर यह
आपत्ति जताई जाती है की अकलाह ने र्सु लर्ानों से लिू के र्ाल का वादा
त्तकया है, हालात्तं क “र्ग़ात्तनर्” का अनवु ाद लिू के र्ाल से करना, आपत्तिकताम
के अत्यंत बत्तु द्धहीन और इसलार्ोफोत्तबया होने त्तक त्तनशानी है, चत्तलए देख लेते
हैं आपकी पस्ु तक “र्ानस्ु र्ृत्तत” र्ें क्या त्तलखा है:
“रर्ाश्वं हसस्तनं ित्ं धनं धानयं पिसनस्त्रय ।
िवणिव्यासर् कुपयं ि यो यज्ियसत तस्य तत”् ।।7.96।।
“रथ, घोड़ा, हाथी, छतरी, धन, धान्य, पश,ु िी तथा सारा िव्य सोना, चााँदी के अत्ततररि
सीसा, पीतल आत्तद इन सबको जो जीतता है वही उसका स्वार्ी है।” (र्ानुस्र्ृत्तत: 7:96)
र्ानस्ु र्ृत्तत के इस श्लोक के अनसु ार अगर कोई व्यत्ति दसू रे त्तकसी ऐसे
व्यत्ति पर आक्रर्ण करके उसको परात्तजत करदे त्तजसकी संपत्ति र्ें रथ, घोड़ा,
हाथी, छतरी, धन, धान्य, पश,ु िी तथा सारा िव्य सोना, चााँदी के अत्ततररि
सीसा, पीतल आत्तद हो, तो ये सब जीतने वाली त्तक संपत्ति हो जाएगी। त्तवचार
कीत्तजए त्तक आपत्ति इस श्लोक पर होनी चात्तहए थी, इसत्तलए की इस श्लोक र्ें
ना त्तसफम धन दौलत की लिू को लिू ने वाले की संपत्ति के अधीन बना त्तदया
गया है, बत्तकक त्तियों तक को लिु ेरों की संपत्ति र्ें दे त्तदया गया है।
कुरआन पर ही आपत्ति क्यों? 30

ग़नीमत की वैधता:
“‫يم۔‬
ٌ ‫ُور َر ِح‬
ٌ ‫ٱّلل َغف‬ ۚ َ َ ْ ‫”فَك ُل ُوا ْ ِممَا َغ ِن ۡم ُت ۡم َحل ٰ ًَّل َط ِی ٗب ۚا َوٱتَقُوا‬
َ َ ‫ٱّلل ِإ َن‬
)۶۹ :‫(سورة األنفال‬
“अतिः जो कुछ ग़नीर्त का र्ाल तर्ु ने प्राप्त त्तकया है, उसे वैध-पत्तवत्र सर्झकर
खाओ और अकलाह का डर रखो. त्तनिय ही अकलाह बड़ा क्षर्ाशील, अत्यन्त
दयावान है।”
(कुरआन: 8:69)
इस आयत पर भी आपत्तिकतामओ ं को ग़नीर्त के धन पर आपत्ति है
त्तक उसे वैध और पत्तवत्र बताया गया है।
“तस्मात्त्वमुसिष्ठ यिो लभस्व सित्वा ित्न् भुङ््व राज्यं िमद्धम।्
मयैवैते सनहता पवणमेव सनसमिमात्ं भव िव्यिासिन।् ।11.33।।”
“इसत्तलये तर्ु यद्ध
ु के त्तलये खड़े हो जाओ और यशको प्राप्त करो तथा शत्रओ ु कं ो जीतकर
धनधान्यसे सम्पन्न राज्यको भोगो। ये सभी र्ेरे द्वारा पहलेसे ही र्ारे हुए हैं। हे सव्यसात्तचन्
तुर् त्तनत्तर्िर्ात्र बन जाओ।”
(त्तहदं ी अनवु ाद - स्वार्ी रार्सख
ु दास जी, भगवद् गीता 11.33)
कुरआन की उपयमि ु आयत पर आपत्ति जताने से पहले गीता के इस
श्लोक पर भी आपत्ति जतानी चात्तहए थी, यहााँ श्री कृ ष्ण जी, अजमनु को धन
धान्य से सम्पन्न राज्य को भोगने का वादा देकर यद्धु पर उभार रहे हैं, अथामत
इस श्लोक के अनुसार अगर अजमनु यद्ध ु करता है, और त्तवजय होने पर जो कुछ
धन धान्य से सम्पन्न राज्य प्राप्त होता है, वह सब अजमनु के त्तलए वैध और
पत्तवत्र है, वह इच्छा अनसु ार उसका प्रयोग कर सकता है।
अगर ये श्लोक ग़लत नहीं है, तो उपयमि
ु आयत कै से ग़लत हो सकती
है, हर्ारा प्रश्न “इसलार्ोफोब्स(Islamophobs)” से है, बत्तु द्ध पवू मक त्तवचार
करें और उिर दें।
कपटिाररयों िे यद्ध
ु :
ُ ‫ِهي َو َماۡ ٰو‬
‫ٮھ ۡم‬ ؕ ۡ ِ ۡ َ ‫ني َواغۡل ُۡظ عَل‬
َ ۡ ‫ار َوال ُۡم ٰن ِف ِق‬ َ َ ‫” ٰٰۤیاَیُ َھا ا‬
ُ ِ ‫لن‬
َ ‫ب َجا ِھ ِد الۡـكُف‬
)۷۳ :‫ْي۔“ (سورة التوبة‬ ُ ۡ ‫َج َھ َـن ُمؕ َو ِب ۡئ َس ال َۡم ِص‬
कुरआन पर ही आपत्ति क्यों? 31

“ऐ नबी! इनकार करनेवालों और कपिाचाररयों से यद्ध ु करो और उनके साथ


सख़्ती से पेश आओ. उनका त्तठकाना नकम (जहन्नर्) है और वह अन्ततिः पहुचाँ ने
की बहुत बरु ी जगह है।” (कुरआन: 9:73)
इस आयत पर आपत्ति ये है त्तक इसर्ें कपिाचाररयों और इनकार करने
वालों से युद्ध का आदेश त्तदया जा रहा है और उनके साथ सख्ती से पेश आने को
कहा जा रहा है, चत्तलए देखते हैं गीता अध्याय:2, श्लोक:3 र्ें क्या त्तलखा है।
“क्लैब्यं मा स्म र्म पार्ण नैतत्त्वय्युपपद्यते।
क्षुिं हृदयदौबणल्यं त्यक्त्वोसिष्ठ परनतप ।।2.3।।”
“हे पाथम क्लीव(कायर) र्त बनो। यह तुम्हारे त्तलये अशोभनीय है? हे परंतप हृदय की क्षिु
दबु मलता को त्यागकर खड़े हो जाओ।” (त्तहदं ी अनुवाद - स्वार्ी तेजोर्यानंद, भगवद् गीता 2.3)
त्तवचार कीत्तजए त्तक श्री कृ ष्ण, अजमनु को सख्ती का ही आदेश कर रहे
हैं और चाह रहे हैं त्तक अजमनु धर्म त्तवरोत्तधयों और फ़सात्तदयों के त्तलए अपने
हृदय र्ें उभरने वाली नम्रता और दबु मलता को त्याग कर उनके त्तवरुद्ध सख्ती के
साथ यद्ध ु करने के त्तलए तैयार हो जाए, उपयमि ु आयत र्ें पात्तपयों, धर्म
त्तवरोत्तधयों और कपिाचाररयों के त्तवरुद्ध र्ानवता के अंत्ततर् दतू हज़रत र्हु म्र्द
(PBUH) को यही तो आदेश त्तदया गया है त्तक वह उनके त्तलए अपने त्तदल र्ें
कोई नरर्ी ना आने दें, क्योंत्तक उनके पाप का घड़ा भर चक ु ा है अगर ये फ़सादी
आपकी नरर्ी के कारण धरती पर बाक़ी रह गए, तो ये ईश्वर के त्तनदोष बंदों पर
अत्याचार के पहाड़ तोड़ते रहेंगे।
दुष्कसमणयों को यातना देना:
‫َّن أ َ ْس َوأ َ ٱل َ ِذى‬ ًّ ‫” فَل َ ُن ِذ ْی َق َن ال َ ِذ ْی َن َكف َُروا ْ عَذَ ا بًّا َش ِد‬
ْ ُ َ َ‫یدا َو لَ َن ْج ِز ی‬
‫ار الْ ُخل ْ ۖ ِد‬
ُ َ‫يھا د‬َ ِ‫ار ل َُھ ْم ف‬ ُ ۖ ‫الن‬ ِ َ ‫ِك َج َزا ُء أَعْ َدا ِء‬
َ ‫اّلل‬ َ ‫ُون۝ ٰذَ ل‬ َ ‫ك َانُوا ْ یَ ْع َمل‬
َ ‫َج َزا ًّء ِب َما ك َانُوا ِبآ یَاتِ َنا َی ْج َح ُد‬
)۲۷،۲۸ :‫ون۔“ (سورةالفصلت‬
“तो हर् अवश्य चखायेंगे उन्हें, जो इनकारी हो गए, कड़ी यातना और अवश्य
उन्हें कुफ़ल देंगे, उस दष्ु कर्म का, जो वे करते। ये अकलाह के शत्रओ
ु ं का प्रत्ततकार
नकम है उनके त्तलए उसर्ें स्थायी घर होंगे, उसके बदले, जो हर्ारी अयतों को
नकार रहे हैं।” (कुरआन: 41:27,28)
कुरआन पर ही आपत्ति क्यों? 32

इन दो आयतों पर आपत्ति यह जताई गई है की इनर्ें इनं काररयों


अथामत त्तजन्हें कात्तफर कहा गया है और दष्ु कत्तर्मयों को नकम स्वरूप कड़ी यातना
देने की बात कही गई है। पता नहीं इन्हें दष्ु कत्तर्मयों से इतना प्रेर् क्यों है, ठीक है!
आईये देखते हैं त्तक र्नस्ु र्ृत्तत त्तकस को नकम पहुचाँ ाती है:
“यो ह्यस्य धमणमािष्टे यश्चैवासदिसत व्रतम् ।
िोऽिवं तं नाम तम िह तेनैव मज्िसत॥4:81॥”
“जो धर्म का उपदेश और व्रत का आदेश करता है, वह उस शिू के साथ असवं तृ नार्क
अंधकारर्य नरक र्ें जा त्तगरता है।” (र्नुस्र्ृत्तत: 4.81)
इससे पहले वाले श्लोक(80) र्ें शिू को कोई यत्तु ि और धर्म व्रत का
उपदेश ना देने की बात कही गई है।
इस श्लोक र्ें ये कहा जा रहा है त्तक कोई शिू को धर्म और व्रत का
उपदेश देता है, तो वह शूि और स्वयं उपदेश देने वाला अंधकारर्य नकम र्ें जा
त्तगरता है और इस नकम का एक त्तवशेष नार् भी है “असंव्रत”।
र्ानस्ु र्ृत्तत का एक और श्लोक पत्तढ़ए:
“ब्रह्म यस्त्वननुज्ञातमधीयानादवापनयु ात।्
ि ब्रह्मस्तेयिंयुतो नरकं प्रसतपद्यते॥2:116॥”
“जो त्तकसी को गरुु से वेद पढ़ते हुए गरुु के आज्ञा के त्तबना ही वेदाथम को सनु लेता है वह
वेदों के चरु ाने वाला पाप से यि
ु होकर नरक को पाता है।” (र्नुस्र्ृत्तत: 2.116)
इस श्लोक र्ें तो गरुु की आज्ञा के त्तबना वेदों के सनु ने वाले को चोर के
सर्ान पापी र्ानकर नकम र्ें जाने का दडं सनु ा त्तदया गया, क्या त्तशक्षा इतना ही
बड़ा पाप है? क्या त्तकसी को इस श्लोक पर आपत्ति नहीं होती? हर् तो यही
कहेंगे त्तक आप बत्तु द्ध का प्रयोग करें ।
यद्ध
ु का फल:
‫ني أَنف َُس ُھ ْم َوأ َ ْم َوال َُھم ِبأ َ َن ل َُھ ُم ال َْج َن ۚ َة‬ َ ‫ىم‬
َ ‫ِن ال ُْم ْؤ ِم ِن‬ ٰ ‫َت‬ َ َ ‫” ِإ َن‬
َ َ ‫اّلل ا ْش‬
َ ‫ُون َو ْع ًّدا َعل َْي ِه َح ًّقا ِِف‬
‫الت ْو َرا ِة‬ َۖ ‫ُون َو ُی ْق َتل‬ ِ َ ‫ُون ِِف َس ِبي ِل‬
َ ‫اّلل ف ََي ْق ُتل‬ َ ‫ُیقَا ِتل‬
َ
‫َاس َت ْب ِش ُروا ِب َب ْي ِعك ُُم‬
ْ ‫اّلل ف‬ ِ ۚ َ ‫ِن‬ ٰ َ ‫آن َو َم ْن أ ْو‬
َ ‫ِف ِب َع ْھ ِد ِه م‬ ِۚ ‫اْلن ِجي ِل َوالْق ُْر‬
ِ ْ ‫َو‬
)۱۱۱ :‫يم “ (سورة التوبة‬ َ ‫َو ٰذَ ل‬
ُ ‫ِك ُھ َو الْف َْو ُز ال َْع ِظ‬ ‫ال َ ِذي َبا َی ْع ُتم ِب ۚ ِه‬
कुरआन पर ही आपत्ति क्यों? 33

“त्तनस्सदं हे अकलाह ने ईर्ानवालों से उनके प्राण और उनके र्ाल इसके बदले र्ें
ख़रीद त्तलए हैं त्तक उनके त्तलए जन्नत है. वे अकलाह के र्ागम र्ें लड़ते हैं, तो वे
र्ारते भी हैं और र्ारे भी जाते हैं. यह उसके त्तज़म्र्े तौरात, इनजील और क़ुरआन
र्ें (त्तकया गया) एक पक्का वादा है. और अकलाह से बढ़कर अपने वादे को परू ा
करनेवाला हो भी कौन सकता है? अतिः अपने उस सौदे पर खत्तु ु़ शयााँ र्नाओ, जो
सौदा तर्ु ने उससे त्तकया है. और यही सबसे बड़ी सफलता है।” (कुरआन: 9:111)
इस आयत पर आपत्ति, अनवु ाद से ही स्पष्ट हो गई होगी त्तक यद्ध ु करने
वालों के त्तलए स्वगम प्रात्तप्त की खशु खबरी सनु ाई जा रही है, आइए देखते हैं त्तक
र्नस्ु र्ृत्तत र्ें क्या त्तलखा है:
“आहवेषु समर्ोऽनयोनयं सिघांिनतो महीसक्षत ।
युध्यमान परं िक्त्या स्वर्व यानत्यपराङ्मुखा ॥7:89॥”
“परस्पर एक दसू रे को र्ारने की इच्छा करने वाले और सम्पणू म शत्ति यद्ध ु र्ें लगाकर लड़ने
वाले राजा यद्ध
ु र्ें पीठ ना त्तदखाकर सीधे स्वगम को जाते हैं।” (र्नुस्र्ृत्तत: 7.89)
कुरआन र्जीद की उपयमि ु आयत र्ें भी यही बात है त्तक शत्रओ
ु ं से
यद्ध
ु करने वाले और पीठ ना त्तदखाने वाले अगर शहीद हो जाते हैं, तो सीधा
स्वगम जाते हैं और र्नस्ु र्ृत्तत र्ें भी पीठ ना त्तदखाकर यद्ध
ु र्ें बलपवू मक लड़ने
वाले राजाओ ं को स्वगम की प्रात्तप्त की खश ु खबरी सनु ाई जा रही है, अगर
आपत्ति कुरआन पर है, तो र्नस्ु र्ृत्तत पर भी होनी चात्तहए।
युद्ध पर उभारना:
‫ك ۡن ِم ۡنك ُۡم ِع ۡش ُر ۡو َن‬ ِ ‫ني ع َََل ا لۡ ِق َت‬
ُ َ‫ال اِ ۡن ی‬ َ ۡ ‫ب َح ِر ِض ال ُۡم ۡؤ ِم ِن‬ َ ‫” ٰٰۤیـاَیُ َھا ا‬
ُ ِ ‫لن‬
َ ‫ك ۡن ِم ۡنك ُۡم ِما َئ ٌة یَ ۡغلِ ُب ۡوٰۤا ا َلۡفًّا م‬
‫ِن‬ ُ َ‫ني َواِ ۡن ی‬ ِۚ ۡ ‫اب ُر ۡو َن َی ۡغلِ ُب ۡوا ِما َئ َت‬
ِ ‫َص‬
َ ‫ال َ ِذیۡ َن َكف َُر ۡوا ِباَ نَ ُھ ۡم ق َۡو ٌم َْل َی ۡفق َُھ ۡو‬
)۶۵:‫ن۔“ (سورة اْلنفال‬
“ऐ नबी! र्ोत्तर्नों को लड़ाई पर उभारो. यत्तद तम्ु हारे बीस आदर्ी जर्े होंगे, तो वे
दो सौ पर प्रभावी होंगे और यत्तद तर्ु र्ें से ऐसे सौ होंगे तो वे इनकार करनेवालों र्ें
से एक हज़ार पर प्रभावी होंगे, क्योंत्तक वे नासर्झ लोग हैं” (कुरआन: 8.65)
इस आयत पर बड़ी आपत्ति यह है त्तक इसर्े कुरआन, र्सु लर्ानों को
कात्तफ़रों के क़त्ल पर उभार रहा है, हालात्तं क यह बड़ी ग़लतफ़हर्ी है, हर् त्तकसी
कुरआन पर ही आपत्ति क्यों? 34

आयत पर भी त्तवस्तार से स्पष्टीकरण नहीं त्तलखेंगे, क्योंत्तक र्त्तु स्लर् त्तवद्वानों द्वारा
कई पस्ु तकों र्ें उन सभी आयतों की सही व्याख्या करदी गई है, त्तजनपर
आपत्तियााँ की जाती हैं, यहााँ हर् के वल अनवु ाद पेश करके यह बताने की र्ंशा
रखते हैं त्तक अगर आप के वल अनवु ाद से ही कुरआन सर्झेंगे, तो यह त्तसद्धातं
आप अपनी पस्ु तकों पर भी लागू करें , त्तफर देखें कै से अथम का अनथम होता है,
खैर आइए देखते हैं त्तक र्नस्ु र्ृत्तत क्या कहती है।
“एक ितं योधयसत प्राकारस्र्ो धनुधणर ।
ितं दििहस्त्रासर् तस्माद् दुर्व सवधीयते॥7:74॥”
“त्तकले र्ें रहने वाला एक धनुधामरी बाहर वाले सौ योद्धाओ ं का सार्ना कर सकता है और
त्तकले की एक सौ सेना दस सहस्र सेना के साथ यद्ध ु कर सकती है, इसत्तलए दगु म अवश्य
बनाना चात्तहये।” (र्नुस्र्ृत्तत: 7.74)
त्तवचार कीत्तजए त्तक र्नस्ु र्ृत्तत के इस श्लोक र्ें कुरआन र्जीद की
उपयमि ु आयत से त्तर्लती जुलती बात कही गई है, परंतु ना जाने क्यों देश के
अर्न व सक ु ू न को ग़ारत करने वाले कुरआन पर तो आपत्ति करते हैं, लेत्तकन
र्नस्ु र्ृत्तत के इस श्लोक पर नहीं।
ित्ु को राज़दार ना बनाना:
َ ‫” ٰٰۤیـاَیُ َھا ال َ ِذ ۡی َن ٰا َم ُن ۡوا َْل َت َت ِخذُ وا ال َۡي ُھ ۡودَ َو‬
ُ ‫الن ٰص ٰ ٰۤرى ا َ ۡو ل َِيآ َء ؕ بَ ۡع‬
‫ض ُھ ۡم‬
َ ٰ ‫َِّنؕ اِ َن‬
‫اّلل َْل یَ ۡھ ِدى‬ ۡ ُ ۡ ‫ا َ ۡو ل َِيآ ُء َب ۡعضؕ َو َم ۡن یَ َت َول َ ُھ ۡم ِم ۡنك ُۡم فَاِ نَ ٗه م‬
)۵۱:‫ني۔“ (سورة المائدة‬ ٰ ‫الۡق َۡو َم‬
َ ۡ ‫الظلِ ِم‬
“ऐ ईर्ान लाने वालो! तुर् यहूत्तदयों और ईसाइयों को अपना त्तर्त्र (राज़दार) न
बनाओ. वे (तम्ु हारे त्तवरुद्ध) परस्पर एक-दसू रे के त्तर्त्र हैं. तुर्र्ें से जो कोई उनको
अपना त्तर्त्र बनाएगा, वह उन्हीं लोगों र्ें से होगा. त्तनस्संदहे अकलाह
अत्याचाररयों को र्ागम नहीं त्तदखाता।” (कुरआन: 5.51)
इससे त्तर्लती जुलती एक आयत पीछे आ चक ु ी है और उसर्ें बताया
जा चक ु ा है त्तक आयत र्ें सारे र्श ु रीकीन र्रु ाद नहीं हैं, इसी तरह इस आयत र्ें
सारे ही यहूदी और नसारा र्रु ाद नहीं हैं, बत्तकक त्तजस सर्य यह आयत नात्तज़ल
हुई, उस सर्य के र्क्का, र्दीने और इन दोनों इलाक़ों के इदम त्तगदम रहने वाले वे
कुरआन पर ही आपत्ति क्यों? 35

यहूदी और नसारा र्रु ाद हैं, त्तजन्होंने र्सु लर्ानों पर धरती तगं करदी थी। इसी
प्रकार त्तजस सर्य त्तहन्दू शािों(वेदों आत्तद) को त्तलखा जा रहा था, उस सर्य
त्तहन्दू धर्म के र्ानने वालों के शत्रु यहूद और नसारा नहीं थे बत्तकक बोद्ध धर्म के
र्ानने वाले, शूि इत्यात्तद थे और उनको क्या कुछ नहीं कहा गया आइए देखते
हैं अपसतंबा धर्म सत्रू र्ें क्या त्तलखा हुआ है:
“yatha candāla upasparśane sambhāṣāyām darśane ca
dosas tatra prayascittam.” (Apastamba dharma sutra: ||2.1.2.8||)
“As it is forbidden to touch a Caṇdālā, to speak to him or
to look at him. The penance for these [offences will be
declared]”
“चाँत्तू क त्तकसी चडं ाल को छूना, उससे बात करना या उसकी ओर देखना वत्तजमत
है। इनके त्तलए प्रायत्तित [अपराध घोत्तषत त्तकया जाएगा]।”
(Apastamba dharma sutra:||2.1.2.8||)
उिाना िंसहता अध्याय 2, श्लोक 4 िे 6 र्ें त्तलखा है त्तक चंडाला
और र्लेच्छ इसी प्रकार तलाक शदु ा िी और शिू से बात करने के बाद या
र्लर्त्रू पीने या छूने के बाद र्ंहु अशद्ध ु हो जाता है, इसी कारण कुकली करके
अपने र्ंहु को शद्ध ु करना चात्तहए। इस श्लोक र्ें एक शब्द है “र्लेच्छ”, र्लेच्छ
ग़ैर भारतीयों या त्तवदेत्तशयों को कहा जाता है, इसत्तलए ये नफरती लोग
र्सु लर्ानों को र्लेच्छ भी कहते हैं, आज के संदभम र्ें इस श्लोक का अथम ये
होगा त्तक एक त्तहन्दू को त्तकसी र्सु लर्ान से बात करने के बाद अपने र्ंहु को
कुकली के द्वारा शद्ध ु कर लेना चात्तहए। उपयमि
ु आयत र्ें के वल दश्ु र्न ईसाइयों
और यहूत्तदयों को राज़दार बनाने से र्ना त्तकया गया है, लेत्तकन उपयमि ु श्लोक र्ें
राज़दार बनाना तो दरू के वल बात करने से ही र्हंु अशद्ध ु हो रहा है, र्लेच्छ,
चंडाला, तलाक शदु ा िी एवं शिू की तल ु ना र्लर्त्रू से की जा रही है, इसी
तरह त्तवष्णस्ु र्ृत्तत अध्याय 71 श्लोक 58 से 59 के अनसु ार र्हार्ारी वाली िी
एवं त्तनचली ज़ात के र्नष्ु यों (शिू ों) से बात करने से र्ना त्तकया है। त्तवष्णु परु ाण
प:ु 3, अ: 18 के अनसु ार “राज्य सतधन”ु का पनु र जन्र् एक कुिे के रूप र्ें
हुआ, इसत्तलए त्तक उसने त्तवशेष व्रत के दौरान एक नात्तस्तक (कात्तफ़र) से बात की
थी, त्तवचार कीत्तजए त्तक इन श्लोकों र्ें बात करने को भी पाप त्तगना जा रहा है,
जबत्तक कुरआन की आयत र्ें त्तसफम राज़दार ना बनाने की बात कही जा रही है।
कुरआन पर ही आपत्ति क्यों? 36

युद्ध कर:
َ ‫اّلل َو َْل ِبا ل َْي ْو ِم ْاْلخ ِِر َو َْل ُی َح ِر ُم‬
‫ون َما‬ َ ‫”قَاتِل ُوا ال َ ِذی َن َْل ُی ْؤ ِم ُن‬
ِ َ ‫ون ِب‬
ُ
‫اب‬َ ‫ِن ال َ ِذی َن أو ُتوا الْ ِك َت‬ َ ‫ون ِدی َن الْ َح ِق م‬ ُ َ ‫َح َر َم‬
َ ‫اّلل َو َر ُسولُ ُه َو َْل َی ِدی ُن‬
)۲۹:‫ون۔“ (سورة التوبة‬ َ ‫ّت یُ ْع ُطوا الْ ِج ْزیَ َة َعن یَد َو ُھ ْم َصا ِغ ُر‬ ٰ َ ‫َح‬
“(हे ईर्ान वालो!) उनसे यध्ु द करो, जो न तो अकलाह (सत्य) पर ईर्ान लाते हैं
और न अत्तन्तर् त्तदन (प्रलय) पर और न त्तजसे, अकलाह और उसके रसूल ने ह़रार्
(वत्तजमत) त्तकया है, उसे ह़रार् (वत्तजमत) सर्झते हैं, न सत्धर्म को अपना धर्म बनाते
हैं, उनर्ें से जो पस्ु तक त्तदये गये हैं, यहााँ तक त्तक वे अपने हाथ से त्तजज़या दें और
वे क़ाननू व्यवस्था के अधीन होकर रहें।” (कुरआन: 9.29)
एक शब्द त्तजज़या अथामत रक्षा-कर, जो उस रक्षा का बदला है जो
इस्लार्ी देश र्ें बसे हुये त्तकताब वालों(यहूदी व ईसाई) से इस त्तलये त्तलया जाता है
तात्तक वह यह सोचें त्तक अकलाह के त्तलये गरीबों को ज़कात न देने और गुर्राही
पर अड़े रहने का र्ूकय चक ु ाना त्तकतना बड़ा दभु ाम्य है त्तजस र्ें वह फंसे हुये हैं।
आयत र्ें आगे कहा गया है त्तक यदी वह देश के अधीन रहें तो अब उनसे यध्ु द
नहीं त्तकया जाएगा बत्तकक उनको जनता सर्झा जाएगा और जनता वाले सारे
अत्तधकार उन्हें प्राप्त होंगें।
इस आयत पर आपत्ति यह है त्तक इसर्ें इश्वर के त्तनदेशों को अस्वीकार करने
वालों से यद्ध ु का आदेश त्तकया जा रहा है
आईये देखते हैं गीता र्ें क्या त्तलखा है:
“अनतवनत इमे देहा सनत्यस्योता िरीररर् ।
अनासिनोऽप्रमेयस्य तस्माद्युध्यस्व भारत॥2:18॥”
“इस नाशरत्तहत, अप्रर्ेय, त्तनत्यस्वरूप जीवात्र्ाके ये सब शरीर नाशवान् कहे गये हैं।
इसत्तलये हे भरतवंशी अजमनु ! तू यद्ध ु कर।” (गीता: 2.18)
कुरआन र्ें खदू ा के दश्ु र्नों से यदू ध की बात की जा रही है और गीता
र्ें कृ ष्ण उन लोगों से यध्ु द का आदेश कर रहै हैं जो धर्म के दश ू र्न हैं त्तफर इस
यदू ध के पीछे का लोत्तजक भी बता रहे हैं।
“वािांसि िीर्ाणसन यर्ा सवहाय नवासन र्ह्णासत नरोऽपरासर्। तर्ा
िरीरासर् सवहाय िीर्ाण नयनयासन ियं ासत नवासन देही ॥2:22॥”
कुरआन पर ही आपत्ति क्यों? 37

“जैसे र्नुष्य परु ाने विोंको त्यागकर दसू रे नये विोंको ग्रहण करता है, वैसे ही जीवात्र्ा
परु ाने शरीरोंको त्यागकर दसू रे नये शरीरोंको प्राप्त होता है” (गीता: 2.22)
“देही सनत्यमवध्योऽयं देहे िवणस्य भारत।
तस्मात्िवाणसर् भतासन न त्वं िोसितुमहणसि॥2:30॥”
“हे अजमनु ! यह आत्र्ा सबके शरीरोंर्ें सदा ही अवध्य है। इस कारण सम्पणू म प्रात्तणयोंके
त्तलये तू शोक करनेके यो्य नहीं है।” (गीता: 2.30)
अथामत धर्म के दश्ु र्नों को र्ारो और उनसे यध्ु द करो और यद्ध ु करते
हुए कोई शोक र्त करो क्योंकी तर्ु के वल शरीर नष्ट करोगे आत्र्ा को नहीं,
आत्र्ा अर्र है इसी त्तलए र्रने वाले अगले जन्र् र्ें पेदा हो जाएंगे। इन श्लोकों
पर होने वाली आपत्तियों का उिर दे त्तदजीए त्तफर हर् आयत पर होने वाली
आपत्ति का उिर दे देंगै।
िहां पाओ, वध करो:
ْ ُ ْ ‫ون َس َوآ ًّء ف َََل َت َت ِخذُ وام‬
‫َِّن‬ َ ُ‫ون ك ََما َكف َُروا فَ َتكُون‬
َ ‫كف ُُر‬ْ ‫”ودُوال َْو َت‬ َ
‫اّلل ف َِإن َت َول َ ْوا فَ ُخذُ و ُھ ْم َواقْ ُتل ُو ُھ ْم‬
ِ َ ‫واِف َس ِبي ِل‬ ٰ َ ‫ا َ ْو ل َِيآ َء َح‬
ِ ‫ّت یُ َھا ِج ُر‬
)۸۹:‫ْيا “ (سورة النسآء‬ ْ ُ ْ ‫ث َو َجدتُ ُمو ُھ ْم َو َْل َت َت ِخذُ وا م‬
ًّ ‫َِّن َو ل ًِّيا َو َْل نَ ِص‬ ُ ‫َح ْي‬
“(हे ईर्ान वालो!) वे तो ये कार्ना करते हैं त्तक उन्हीं के सर्ान तर्ु भी कात्तफ़र हो जाओ
तथा उनके बराबर हो जाओ। अतिः उनर्ें से त्तकसी को त्तर्त्र न बनाओ, जब तक वे अकलाह
की राह र्ें त्तहजरत न करें । यत्तद वे इससे त्तवर्ख
ु हों, तो (यद्ध
ु स्थल र्ें) उन्हें जहााँ पाओ, वध
करो और उनर्ें से त्तकसी को त्तर्त्र न बनाओ और न सहायक।” (कुरआन: 4.89)
इस आयत र्ें “जहां पाओ वध करो” पर आपत्ति है हालात्तं क यहां
ररयासत के दश्ु र्नों और बात्तग़यों की बात हो रही है, चत्तलए ठीक है देखते हैं
वेदों र्ें क्या त्तलखा है:
“वश्चृ॒ प्र वश्चा॑ ृ॒ िं वश्चा॑ ृ॒ दह ृ॒ प्र दहा॑ ृ॒ िं दहा॑ ॥12:5:62॥”
“[वेदवाणी!] तू [वेदत्तनन्दक को] (वृि) काि डाल, (प्र वृि) चीर डाल, (सं वृि) फाड़
डाल, (दह) जला दे, (प्र दह) फाँू क दे, (सं दह) भस्र् कर दे।” (अथमववेद: 12.5.62)
यह अनवु ाद आयम सर्ाज त्तवद्वान पंत्तडत खीर्करणदास त्तत्रवेदी का है।
वेदों र्ें त्तवश्वास रखने वालों को कुरआन पर आपत्ति का कोई
अत्तधकार नहीं है क्योंकी वेद भी वेदों र्ें त्तवश्वास ना रखने वालों को बरु ी तरह
र्ार देने की बात कर रहा है।
कुरआन पर ही आपत्ति क्यों? 38

युद्ध पर उभारना:
ْ ِ ْ َ ‫اّلل ِباَ ْی ِد ْیك ُْم َو ُی ْخ ِز ِھ ْم َو َی ْن ُص ْرك ُْم عَل‬
‫ِهي َو‬ ُ ٰ ‫”قَاتِل ُْو ُھ ْم ُی َع ِذ ْب ُھ ُم‬
)۱۴:‫ني۔“(سورة التوبة‬ َ ْ ‫ف ُص ُد ْو َر ق َْوم ُم ْؤ ِم ِن‬ِ ‫َی ْش‬
“उनसे यध्ु द करो, उन्हें अकलाह तम्ु हारे हाथों दण्ड देगा, उन्हें अपर्ात्तनत करे गा,
उनके त्तवरुध्द तम्ु हारी सहायता करे गा और ईर्ान वालों के त्तदलों का सब दिःु ख दरू
करे गा।” (कुरआन: 9.14)
इस आयत पर आपत्ति अनवु ाद से ही स्पष्ट है त्तक इन्हें यद्ध ु पर उभारे
जाने पर आपत्ति है, आइए देखते हैं त्तक वेदों र्ें क्या त्तलखा है:
“एवा ा॑
ृ॒ त्वं देव्यघ्नये ब्रह्मृ॒ज्यस्य ा॑ कृ॒ तार्िा॑ ो देवपीयृ॒ ोररा॑ ाधृ॒ ि ा॑ ॥65॥
वज्रेर्ा॑ िृ॒तपवा॑ णर्ा ती्ृ॒ र्ेन ा॑ क्षरभ ु ृ॒ सा॑ ष्टना ॥66॥
प्र स्कृ॒नधानप्र सिरो ा॑ िसह ॥67॥
लोमाना॑ यस्यृ॒ िं सिसा॑ नधृ॒ त्विमा॑ स्यृ॒ सव वेष्टा॑ य ॥68॥
मांिृ॒ ानयस्ा॑ य िातयृ॒ स्नावाना॑ यस्यृ॒ िं वहा॑ ॥69॥
ा॑
अस्र्ीनयस्य पीडय मज्ृ॒ िानमा॑ स्यृ॒ सनिणसा॑ ह ॥70॥
िवाणस्ृ॒ याङ्र्ा ृ॒ पवाणसा॑ र्ृ॒ सव श्रर्य ा॑ ॥71॥”
“हे देवी! [उिर् गणु वाली], हे अवध्य ! [न र्ारने यो्य, प्रबल वेदवाणी] तू इसी प्रकार
ब्रह्मचाररयों के हात्तनकारक, अपराध करनेवाले, त्तवद्वानों को सतानेवाले, अदानशील परुु ष
के सैकड़ों जोड़ वाले, तीक्ष्ण, छुरे की सी धारवाले वज्र से कन्धों और त्तशर को तोड़-तोड़ दे
उस [वेदत्तवरोधी] के लोर्ों को काि डाल, उसकी खाल उतार ले उसके र्ांस के िुकड़ों को
बोिी-बोिी कर दे, उसके नसों को ऐठं दे उसकी हड्त्तडयााँ र्सल डाल, उसकी र्ींग त्तनकाल
दे उसके सब अङ्गों और जोड़ों को ढीला कर दे।” (अथमववेद: 12.5.65-71)
इन र्ंत्रों को पढ़ने वालों की र्ानत्तसकता क्या बनी होगी? क्या ये र्ंत्र
पढ़ने वालों के त्तदलों र्ें वेदों र्ें त्तवश्वास ना रखने वाले र्सु लर्ानों, ईसाइयों,
यहूत्तदयों, जैन, बौद्धों एवं अन्य धर्ों के र्ानने वालों के त्तलए घृणा नहीं बैठी
होगी? इस वेद र्ंत्र पर भी कोई आपत्ति करे ?
रोब:
‫ن ۡل ِب ٖه‬ ِ ٰ ‫ب ِب َماٰۤ ا َۡش َرك ُۡوا ِب‬
ِ َ ‫اّلل َما ل َۡم ُی‬ ُ ‫ِق ِِف ۡ ُقل ُۡو ِب الَ ِذ ۡی َن َكف َُروا‬
َ ‫الر ۡع‬ ۡ ِ ۡ‫” َس ُنل‬
)۱۵۱:‫ني۔“ (سورة اٰل عمران‬ ٰ ‫ار َو ِب ۡئ َس َم ۡث َوى‬
َ ۡ ‫الظ ِل ِم‬ َ ‫ٮھ ُم‬
ؕ ُ ‫الن‬ ُ ‫ُسل ٰۡط ًّنا ؕۚ َو َماۡ ٰو‬
कुरआन पर ही आपत्ति क्यों? 39

“शीघ्र ही हर् कात्तफ़रों के त्तदलों र्ें तम्ु हारा भय डाल देंगे, इस कारण त्तक उन्होंने
अकलाह का साझी उसे बना त्तलया है, त्तजसका कोई तकम (प्रर्ाण) अकलाह ने
नहीं उतारा है और इनका आवास नरक है और वह क्या ही बरु ा आवास है?”
(कुरआन: 3.151)
इस आयत र्ें एक शब्द आया है “रौब”, यह आयत पढ़कर नफरत
फै लाने वाले र्सु लर्ानों को दहशतगदम (Terrorist) कह देते हैं, आइए देखते
हैं वेदों र्ें क्या त्तलखा है:
“ऋसषनृ॒ ण स्तु्वा ा॑ सवक्षृ॒ ु प्रिा॑ ृ॒स्तो वाि
ृ॒ ी न प्रीतृ॒ ो वयो ा॑ दधासत ॥1:66:4॥”
“जो र्नुष्य घर के सर्ान रर्णीयस्वरूप पके सख ु करने वाले यव के सर्ान र्न्त्रों के अथम को
जानने वाले त्तवद्वान् के सर्ान सत्कार के यो्य वेगवान् घोड़े के सर्ान कर्नीय प्रजाओ ं र्ें
श्रेष्ठ र्नुष्य आत्तद प्रात्तणयों को सख
ु प्राप्त करानेवाला जीवन धारण करता है, वह रक्षा को
धारण करता है।” (ऋ्वेद: 1.66.4)
र्नस्ु र्ृत्तत र्ें त्तलखा है:
“ब्राह्मर्ानबाधमानं तु कामादवरवर्णिम।्
हनयासच्ित्ैवणधोपायैरिेिनकरैनणप ॥9:248॥”
“यत्तद शिू इच्छा से (शारीररक क्लेशों द्वारा) ब्राह्मण को कष्ट देता हो तो राजा उस शिू को
छे दन, ताड़न आत्तद कत्तठन प्राणनाशक उद्वेगकारी दण्डों को दे।” (र्नुस्र्ृत्तत: 9.248)
इस श्लोक के अनसु ार शिू को ऐसा दडं देना चात्तहए त्तक त्तजससे उसके
त्तदल र्ें दहशत बैठ जाए, दसू रे शब्दों र्ें ये कत्तहए त्तक र्नस्ु र्ृत्तत र्ें ऐसे शब्द का
प्रयोग त्तकया गया है त्तजसका अथम दहशत और भय डालना होता है, वहीं वेदों
र्ें रक्षा को धारण करने वाला कहकर दसू रों के र्न र्ें रोब डाला गया है:
नबी के ज़माने के कपटिाररयों िे यद्ध
ु :
‫ث ا َ ْخ َر ُج ْوك ُْم َو‬ ْ ‫ث ثَ ِق ْف ُت ُم ْو ُھ ْم َو ا َ ْخ ِر ُج ْو ُھ ْم م‬
ُ ‫ِن َح ْي‬ ُ ‫”اقْ ُتل ُْو ُھ ْم َح ْي‬
‫ام َح ّٰت‬ ۚ ِ ‫ِن الْ َقت‬
ِ ‫ َو َْل ُت ٰق ِتل ُْو ُھ ْم ِع ْن َد ال َْم ْس ِج ِد ال َْح َر‬-‫ْل‬ َ ‫الْ ِف ْت َن ُة ا َ َش ُد م‬
‫ك ِف ِر ْی َن فَ ِا ِن‬ َ ‫كَذٰ ل‬-‫فَ ِا ْن ٰق َتل ُْوك ُْم فَاقْ ُتل ُ ْو ُھ ْم‬-‫ُی ٰق ِتل ُْوك ُْم ِف ْي ِ ۚه‬
ٰ ْ‫ِك َج َزآ ُء ال‬
)۱۹۲،۱۹۱:‫م۔“(سورة االبقرة‬ َ ٰ ‫ا نْ َت َھ ْوا فَاِ َن‬
ٌ ‫اّلل َغف ُْو ٌر َر ِح ْي‬
कुरआन पर ही आपत्ति क्यों? 40

“और उनका वध करो, जहााँ पाओ और उन्हें त्तनकालो, जहााँ से उन्होंने तुम्हें त्तनकाला है,
इसत्तलए त्तक त्तफ़तना (उपिव), हत करने से भी बरु ा है और उनसे र्त्तस्जदे ह़रार् के पास यध्ु द न
करो, जब तक वे तुर्से वहााँ यद्ध
ु ना करें , अगर वे तुर्से यद्ध ु करने लगें, तुर् भी उिर स्वरूप
यद्ध
ु करो, यही बदला इनकार करने वालों का। त्त फर यत्त द वे (आक्रर्ण करने से) रुक जायें, तो
अकलाह अत्तत क्षर्ी, दयावान् है।” (कुरआन: 2.191,192)
इस आयत पर आपत्ति यह है त्तक इसर्ें दष्ु कत्तर्मयों, पात्तपयों और
कर्जोर वगम को दबाने वाले अत्याचाररयों से यद्ध ु करने एवं उनको उनके स्थान
से त्तनष्कात्तसत करने पर उभारा जा रहा है। न्यायपवू मक सोचा जाए, तो उस सर्य
के र्सु लर्ानों पर अत्याचार करने वालों और उनको उनके घर बार छोड़कर
र्दीना प्रस्थान करने पर र्जबरू करने वालों से यद्ध ु पर उभारा जा रहा है,
लेत्तकन इसलार्ोफोत्तबया(islamophobia) से ग्रस्थ दृत्तष्टहीन िोले को इस
आयत पर आपत्ति है, आइए देखते हैं त्तक गीता र्ें क्या त्तलखा है:
“यदा यदा सह धमणस्य नलासनभणवसत भारत।
अ्युत्र्ानमधमणस्य तदाऽऽत्मानं ििाम्यहम।् ।4:7।।
“हे भारत जबजब धर्म की हात्तन और अधर्म की वृत्तद्ध होती है तबतब र्ैं स्वयं को प्रकि
करता हू।ाँ ” (गीता: 4.7)
इस श्लोक र्ें बताया जा रहा है त्तक धर्म की वृत्तद्ध के त्तलए श्री कृ ष्ण
अवतार लेते हैं, इससे पहले बताया जा चक ु ा है त्तक धर्म वह है जो गीता र्ें कहा
गया, त्तजसके अनसु ार जो गीता र्ें त्तवश्वास नहीं रखते, वे अधर्ी हैं, आइए
अधत्तर्मयों के बारे र्ें गीता र्ें क्या त्तलखा, उसको भी देखते हैं:
पररत्ार्ाय िाधनां सवनािाय ि दुष्कताम।्
धमणिंस्र्ापनार्ाणय िंभवासम युर्े युर्े।।4:8।।”
“साधओ ु (ं भिों) की रक्षा करनेके त्तलये पापकर्म करने वालों का त्तवनाश करनेके त्तलये और
धर्मकी भली भााँत्तत स्थापना करनेके त्तलये र्ैं यगु यगु र्ें प्रकि हुआ करता हू।ाँ ” (गीता: 4.8)
इस श्लोक र्ें सारे ही अधत्तर्मयों का त्तवनाश करने की बात कही जा रही
है, जबत्तक उपयमि ु कुरआन की आयत र्ें के वल उनसे यद्ध ु करने को कहा जा
रहा है, त्तजन्होंने र्हु म्र्द (PBUH) के ज़र्ाने र्ें अत्याचार त्तकये।
िम्मासनत महीने र्ज़
ु र िाने के बाद यद्ध
ु :
‫ث َو َج ْد ُت ُم ۡو ُھ ۡم‬ َ ۡ ‫” َف ِا َذا ا ْن َسلَ َخ ۡاْل َۡش ُھ ُر ال ُۡح ُـر ُم فَا ۡق ُتلُوا ال ُۡم ۡش ِرك‬
ُ ‫ِني َح ۡي‬
َ ‫اح ُص ُر ۡو ُھ ۡم َواق ُۡع ُد ۡوا ل َُھ ۡم ك ُ َل َم ۡر َص ۚد َف ِا ۡن َتا ُب ۡوا َواَقَا ُموا‬
‫الصلٰو َة َو‬ ۡ ‫َو ُخذُ ۡو ُھ ۡم َو‬
)۵:‫م۔“(سورةالتوبة‬ َ ٰ ‫الز كٰو َة َف َخلُ ۡوا َس ِب ۡيل َُھ ۡم ِا َن ا‬
ٌ ‫ّلل َغف ُۡو ٌر َر ِح ۡي‬ َ ‫ٰا َت ُوا‬
कुरआन पर ही आपत्ति क्यों? 41

“अतिः जब सम्र्ात्तनत र्हीने बीत जायें, तो त्तर्श्रणवात्तदयों (र्त्तु श्रकों) का वध करो, उन्हें जहााँ
पाओ और उन्हें पकड़ो और घेरो और उनकी घात र्ें रहो। त्तफर यत्तद वे तौबा कर लें और
नर्ाज़ की स्थापना करें तथा ज़कात दें, तो उन्हें छोड़ दो। वास्तव र्ें, अकलाह अत्तत
क्षर्ाशील, दयावान् है।” (कुरआन: 9.5)
इस्लार् से घृणा करने वाले इस आयत को त्तनकालकर लाते हैं और
कहते हैं त्तक देत्तखए कुरआन र्ें कै से र्ारने कािने की बात कही जा रही है, हर्
इनकी आपत्तियों के जवाब दे चक ु े हैं, लेत्तकन त्तफर भी इनको कुरआन, अपने
तरीक़े से ही सर्झना है, ठीक है त्तफर अपनी त्तकताबों को भी इसी तरीक़े से ही
सर्त्तझए:
यजवु ेद र्ें त्तलखा है:
“उदननेा॑ सतष्ठ ृ॒ प्रत्यातना॑ ुष्वृ॒ नयसमत्ार२ा॑ ऽ ओषतात् सतनमहेते। यो नोऽृ॒ अरासा॑ त
िसमधान िृ॒क्रे नीि ृ॒ ा तं ध्ा॑ यतिृ॒ ं न िुष्का॑म।् ।13:12।।”
“हे (अ्ने) तेजधारी सभा के स्वार्ी! आप राजधर्म के बीच उन्नत्तत को प्राप्त होइए। धर्ामत्र्ा
परुु षों के त्तलये सख
ु ों का त्तवस्तार कीत्तजये। हे तीव्र दण्ड देने वाले राजपरुु ष! धर्म के द्वेषी
शत्रओु ं को त्तनरन्तर जलाइये। हे सम्यक् तेजधारी जन! जो हर्ारे शत्रु को उत्साही करता है,
उसको नीची दशा र्ें करके सख ू े काष्ठ (घााँस) के सर्ान जलाइये” (यजुवेद: 13.12)
इस र्ंत्र र्ें अधत्तर्मयों को क्रूरता से सख
ु ी घााँस के सर्ान जलाने की
बात कही जा रही है, इसलार्ोफोब्स(Islamophobs), इसका उिर दें। हर्ें ये
सर्झ नहीं आता त्तक इस प्रकार के श्लोक और र्ंत्र इनकी आाँखों के सार्ने से
नहीं गजु रते या कभी अपनी पस्ु तकों को पढ़ते ही नहीं, अब तक जो कुछ र्त्रं व
श्लोक त्तलखे गए हैं, वे के वल उदाहरण स्वरूप हैं वरना इस प्रकार के श्लोक व
र्ंत्र त्तगनती से बाहर हैं।
कुरआन पर ही आपत्ति क्यों? 42

सनवेदन
भारत र्ें त्तहन्दू र्सु लर्ान, सत्तदयों से एक साथ रहते आरहे हैं, लेत्तकन
एक कड़वा सच यह है त्तक ये दोनों ही एक दसू रे के धर्म के बारे र्ें ग़लत
फ़हत्तर्यों तथा भ्रात्तं तयों के त्तशकार हैं, इन ग़लत फ़हत्तर्यों के चलते दोनों धर्म के
अनयु ायी एक दसू रे से घृणा करने लगते हैं, त्तजसका नक़ ु सान देश को होता है,
देश का अर्न खतरे र्ें पड़ जाता है, जो त्तकसी भी भारत प्रेर्ी के त्तलए ठीक
नहीं है, इसी कारण हर् सबको त्तर्ल जल ु कर देश की तरक़्क़ी के त्तलए त्तनरंतर
प्रयास करना होगा और धात्तर्मक र्द्दु ों पर चचाम के त्तलए एक ऐसा र्होल बनाना
होगा जहााँ र्ोहब्बत, भाईचारा व प्रेर् की छााँव र्ें बेठकर दोनों ही धर्म के
त्तवद्वान, शांत्ततपणू म वातावरण र्ें एक दसू रे के धर्म को जान सकें और सर्झ सकें
और हर्ारे दरत्तर्यान की ग़लत फ़हत्तर्यों और दरू रयों का अंत हो।
र्ैं! कुरआन पर आपत्तियााँ करने वालों, हर हर पाठक और आर्
नागररकों से त्तवनम्रतापवू मक आग्रह करता हूाँ त्तक इस प्रकार का वातावरण बनाने
का प्रयास करें , चंत्तू क इस्लार् के त्तखलाफ़ (त्तहन्दू धर्म की अपेक्षा र्ें) अत्तधक
भ्रांत्ततयााँ व ग़लत फ़हत्तर्यााँ फै लाई गई हैं, इसत्तलए शांत्तत के र्ाहौल र्ें आप सब
इस्लार् को उसके त्तवद्वानों से सर्झने के त्तलए आगे क़दर् बढ़ाए,ं हर् आपके
देशवासी हैं, आपके अपने हैं, हर्ारे बारे र्ें या हर्ारी र्ान्यताओ ं और
त्तवशेषकर धर्म से जड़ु ी त्तकसी भी प्रकार की ग़लत फ़हर्ी के बारे र्ें शांत्तत के
वातावरण र्ें र्त्तु स्लर् त्तवद्वानों से पछ ू ें तात्तक त्तकसी भी प्रकार की ग़लत फ़हर्ी
आपको ना रहे।
बात सर्झने की यह है त्तक ईश्वर ने ब्रह्माण की कोई भी बड़ी-छोिी
वस्तु की रचना अकारण नहीं की है, हर एक वस्तु का कोई ना कोई उद्देश्य है,
थोड़ी सी बत्तु द्ध लगाकर हर् इन वस्तओ ु ं के वास्तत्तवक उद्देश्य को सर्झ सकते
हैं, लेत्तकन कभी हर्ने यह सोचा त्तक स्वयं र्ानव जाती का क्या उद्देश्य है?
सरू ज, चिं र्ा, नदी, नहरें , झीलें, सर्दं र और जल इत्यात्तद के भात्तं त हर्ारा भी
कोई उद्देश्य है? स्पष्ट है त्तक ब्रह्माण की प्रत्ततयेक वस्तु र्ानव सेवा के त्तलए
प्रस्ततु है लेत्तकन स्वयं र्ानव क्या इन वस्तओ ु ं की सेवा के त्तलए है? ब्रह्माण को
र्ानव भोगता है अतिः ब्रह्माण की देख रे ख उसकी आवेश्यकता है, उद्देश्य नहीं।
कुरआन पर ही आपत्ति क्यों? 43

कोई इस वास्तत्तवकता को भी अस्वीकार नहीं कर सकता त्तक र्ानव का कोई


उद्देश्य ही नहीं, क्योंत्तक अगर र्ानव जीवन को अकारण र्ान त्तलया जाए, तो
त्तफर र्ानव, संसार की हर वस्तु के र्क़ ु ाबले र्ें नीचे अजाएगा, यह तकम संगत
बात नहीं त्तक ब्रह्माण र्ें त्तदखने वाली हर हर वस्तु का कोई उद्देश्य र्ान त्तलया
जाए और बत्तु द्ध यि ु सर्झ बूझ वाली र्ानव रचना को उद्देश्य हीन। यही एक
वास्तत्तवकता है त्तक र्ानव, ब्रह्माण की त्तकसी भी वस्तु के त्तलए नहीं है, बत्तकक
ये सारी ही वस्तएु ाँ र्ानव के त्तलए हैं, इसका प्रर्ाण यह है त्तक अगर कोई र्ानव,
संसार को अलत्तवदा कह देता है, तो संसार की प्रत्येक वस्त,ु जाँू की ताँू रहती है,
लेत्तकन अगर ससं ार की कोई वस्त,ु र्ानव को ना त्तर्ले (उदाहरण के तौर पर
अगर उसे पानी ना त्तर्ले) तो र्ानव जीत्तवत नहीं रहता, लेत्तकन र्ानव ना हो, तो
जल, वाय,ु सयू म, चंि, इत्यात्तद अपना कार् करते रहेंगे अतिः र्ानव का उद्देश्य
कुछ और है, प्रश्न यह है त्तक त्तफर र्ानव का उद्देश्य क्या है? यह र्ानव सर्ाज के
सार्ने सबसे बड़ा प्रश्न है, लेत्तकन सबसे अत्तधक लापरवाही इसी प्रश्न के उिर
की खोज र्ें र्ानव सर्ाज बरतता है। हर व्यत्ति का कतमव्य है, अगर वह
परर्ेश्वर पर त्तवश्वास रखता है, तो उसके बताए और त्तदखलाये हुए र्ागम की
खोज र्ें त्तनरंतर प्रयास करता रहे। संसार र्ें ईश्वर का त्तदखाया हुआ सत्य एक ही
हो सकता है और उस सत्य को त्तकसी त्तवशेष जात्तत का कोई अत्तधकार नहीं है,
बत्तकक उसपर सारे र्नष्ु यों का बराबर अत्तधकार है।
ज्ञान, त्तवज्ञान की खोज, सम्पणू म र्ानव जात्तत की आवश्यकता है, परंतु
सत्य की खोज, र्ानव जात्तत का उद्देश्य है, क्या कोई बत्तु द्धर्ान व्यत्ति इस सत्य
से इनकार कर सकता है त्तक ईश्वर ने र्ानव जीवन की सारी भौत्ततक
आवश्यकताएं परू ी कर दीं, परंतु प्रश्न यह है त्तक उस ईश्वर ने आध्यात्तत्र्क जीवन
के त्तलए हर्ारी आवश्यकताओ ं को परू ा त्तकया है या नहीं? अगर परू ा त्तकया, तो
त्तकस प्रकार और त्तकस र्ाध्यर् से? हर्ारी हर पाठक से यही अपील है त्तक वह
इस जीवन र्ें लगकर, जीवन के वास्तत्तवक उद्देश्य की खोज करें ।
कुरआन पर आपत्तियों के त्तवषय र्ें हर् अपने पाठकों से हर्ारी इस
पस्ु तक “कुरआन पर ही आपत्ति क्यों” के अलावा स्वार्ी लक्ष्र्ी शक ं राचायम
द्वारा त्तलत्तखत पस्ु तक “इस्लार् आतंक या आदशम? (प्रकाशन: स्वार्ी लक्ष्र्ी
कुरआन पर ही आपत्ति क्यों? 44

शक ं राचायम, भारत जन सेवा प्रकाशन, A+P.O. – Amour, Distt.-


Kanpur (U.P) 209401)” नसीर् ग़ाज़ी फ़लाही द्वारा त्तलत्तखत “कुरआन पर
अनत्तु चत आक्षेप (प्रकाशन: र्धरु संदश े संगर्, E-20, Abul Fazal
Enclave, Jamia Nagar, New Delhi-110025)” का भी अध्ययन करने
का आग्रह करते हैं, इन पस्ु तकों र्ें कुरआन पर होने वाली त्तनराधार आपत्तियों
का त्तवस्तारपवू मक उिर त्तदया गया है।
त्तनवेदक:
र्हु म्र्द जनु ैद

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