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।। श्री दर्

ु गा चगलीसग ।।

वेद , रगमगयण ,र्ीतग, महगभगरत , पुरगण, उपनिषद , र्ौमगतग , आयुवेद


आदद धगर्माक पस्
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।। ॐ श्री र्णेशगय िमः ।।

िमो िमो दर्


ु े सख
ु करिी, िमो िमो अम्बे दःु ख हरिी ।। 1

निरिं कगर है ज्योनत तुम्हगरी, नतहिं लोक फैली उजजयगरी ।। 2

शर्श ललगट मुख महगववशगलग, िेत्र लगल भक


ृ ु दट ववकरगलग ।। 3

रूप मगतु को अधधक सुहगवे, दरश करत जि अनत सुख पगवे ।। 4

हे मगाँ दर्
ु गा आप सभी सुखों की दगतग है और आप ही सभी दख
ु ों को
समगप्त करिे वगली मगाँ अम्बग है , आपको िमि है ।1

आपके प्रकगश की चमक असीम और व्यगप्त है और तीिों लोकों (पथ्


ृ वी,
स्वर्ा और पगतगल) में फैली हैं।2

आपकग ललगट ववशगल और मुख चिंद्रमग के समगि है । ववकरगल भक


ृ ु दट के
सगथ आपके िेत्र लगल चमक र्लए हुए हैं।3

हे मगतग! आपकग स्वरुप मिंत्रमग्ु ध कर दे िे वगलग है , जजसके दशाि मगत्र से


ही भक्तो को अत्यिंत सुखो की प्रगजप्त होती है ।4
तम
ु सिंसगर शजक्त लै कीिग, पगलि हे तु अन्ि धि दीिग ।। 5

अन्िपणगा हुई जर् पगलग, तुम ही आदद सुन्दरी बगलग ।। 6

प्रलयकगल सब िगशि हगरी, तुम र्ौरी र्शवशिंकर प्यगरी ।। 7

र्शव योर्ी तम्


ु हरे र्ण
ु र्गवें, ब्रह्मग ववष्णु तम्
ु हें नित ध्यगवें ।। 8

सिंसगर की सभी शजक्तयगाँ तुम्हगरे अिंदर हैं और यह तुम ही हो जो सिंसगर


के पगलि के र्लए अन्ि और धि प्रदगि करती हो।5

आप ही इस परे ब्रह्मगिंि कग पगलि-पोषण करिे वगली मगिं अन्िपणगा हो


और आपकग स्वरुप सदै व बगलग सिंद
ु री की तरह रहतग हैं।6

हे मगाँ प्रलयकगल के समय यह आप ही हैं जो सब कुछ िष्ट कर दे ती


है। और आप ही भर्वगि र्शवशिंकर की वप्रय र्ौरी हैं|7

भर्वगि र्शव तथग सभी योर्ी आपकी स्तनु त र्गते हैं, ब्रह्मग, ववष्णु और
अन्य सभी दे वतग नित आपकग ध्यगि करते हैं।8

रूप सरस्वती को तम
ु धगरग, दे सुबुद्धध ऋवष मुनिि उबगरग ।। 9

धरयो रूप िरर्सिंह को अम्बग, परर्ट भई फगड़कर खम्बग ।। 10

रक्षग करर प्रह्लगद बचगयो, दहरण्यगक्ष को स्वर्ा पठगयो ।। 11

लक्ष्मी रूप धरो जर् मगहीिं, श्री िगरगयण अिंर् समगहीिं ।। 12


आप दे वी सरस्वती के रूप में ऋवषयों और मुनियों को सुबुद्धध प्रदगि
कर उिकग कल्यगण करती हैं।9

हे मगाँ अम्बग, खम्बे को फगड़ कर प्रकट होिे वगलग िरर्सिंह रूप में आप
ही थी।10

आपिे िरर्सिंह बि दहरण्यकश्यप कग वध कर उसे स्वर्ा भेज ददयग और


इस प्रकगर आपिे प्रह्लगद की रक्षग की|11

आप दे वी लक्ष्मी के रूप में इस सिंसगर में ववद्यमगि है , और श्री िगरगयण


में आप ही समगई हैं।12

क्षीरर्सन्धु में करत ववलगसग, दयगर्सन्धु दीजै मि आसग ।। 13

दहिंर्लगज में तम्


ु हीिं भवगिी, मदहमग अर्मत ि जगत बखगिी ।। 14

मगतिंर्ी अरु धमगवनत मगतग, भव


ु िेश्वरी बर्लग सख
ु दगतग ।। 15

श्री भैरव तगरग जर् तगररणी, नछन्ि भगल भव दःु ख निवगररणी ।। 16

भर्वगि ववष्णु के सगथ आप क्षीर सगर्र में ववरगजमगि है | हे दयग की


सगर्र मगाँ, मेरी मि की इच्छगओिं को परग कीजजये।13

हे मगाँ भवगिी, दहिंर्लगज दे वी कोई और िहीिं बजल्क आप स्वयिं हैं। आपकी


मदहमग कग बखगि करिग सिंभव िहीिं है |14
आप ही मगतिंर्ी और धमगवती मगतग हैं और आप ही भव
ु िेश्वरी और
बर्लगमुखी दे वी के रूप में सभी को प्रसन्ितग प्रदगि करती हैं।15

आप ही भव तगरती हैं जैसे आपिे श्री भैरवी को तगरग और आप


नछन्िमस्तग दे वी के रूप में दख
ु ों कग निवगरण करती हैं।16

केहरर वगहि सोह भवगिी, लिंर्ुर वीर चलत अर्वगिी ।। 17

कर में खप्पर खड्र् ववरगजै, जगको दे ख कगल िर भगजे ।। 18

सोहै अस्त्र और त्रत्रशलग, जगते उठत शत्रु दहय शलग ।। 19

िर्रकोट में तम्


ु हीिं ववरगजत, नतहुाँलोक में ििंकग बगजत ।। 20

आप अपिे वगहि र्सिंह पर सुशोर्भत है और वीर लिंर्र भर्वगि ् हिुमगि


आपकी अर्व
ु गई करते है |17

जब आप मगाँ कगली रूप में अपिे हगथो में खप्पर और खड्र् र्लए प्रकट
होती हैं, तो स्वयिं कगल भी आपसे िरकर भगर्तग है |18

आपके हगथो में अस्त्र और त्रत्रशल सुशोर्भत है , जजिके उठते ही शत्रु कग


ह्रदय भय से कगपिे लर्तग है ।19

कगिंर्ड़ग के िर्रकोट में दे वी के रूप में आप ही हैं। और तीिों लोकों में


आपके प्रतगप कग ििंकग बजतग है |20
शम्
ु भ निशम्
ु भ दगिव तम
ु मगरे , रक्तबीज शिंखि सिंहगरे ।। 21

मदहषगसुर िप
ृ अनत अर्भमगिी, जेदह अघ भगर मही अकुलगिी ।। 22

रूप करगल कगर्लकग धगरग, सेि सदहत तम


ु नतदह सिंहगरग ।। 23

परी र्गढ़ सन्ति पर जब जब, भई सहगय मगतु तम


ु तब तब ।। 24

आपिे शुम्भ और निशुम्भ जैसे दगिवो कग वध ककयग और आपिे ही


खिंखगर रगक्षस रक्तबीज के हजगर रूपों कग सिंहगर ककयग।21

जब पथ्
ृ वी अर्भमगिी दगिव मदहषगसरु के घोर पगपों के भगर से बरु ी तरह
व्यधथत थी।22

आपिे दे वी कगली कग ववकरगल रूप धरकर मदहषगसुर कग उसकी सेिग


सदहत सिंहगर ककयग।23

इसी प्रकगर जब जब सिंतो पर सिंकट आयग तब तब आपिे उिकी


सहगयतग कर उिको सिंकटों से उबगरग|24

अमरपुरी अरु बगसव लोकग, तब मदहमग सब रहें अशोकग ।। 25

ज्वगलग में है ज्योनत तम्


ु हगरी, तम्
ु हें सदग पजें िर-िगरी ।। 26

प्रेम भजक्त से जो यश र्गवें, दःु ख दगररद्र निकट िदहिं आवें ।। 27

ध्यगवे तुम्हें जो िर मि लगई, जन्म-मरण तगकौ छुदट जगई ।। 28


आपकी कृपग से अमरपुरी सदहत सभी लोकों में दःु ख कम और प्रसन्ितग
अधधक बिी रहती है |25

यह आपकी ही मदहमग है, जो ज्वगलग जी में सदै व ज्योनत जलती रहती


है। सभी िर व िगरी सदग आपको पजते है |26

द:ु ख और दररद्रतग उिके निकट भी िहीिं आते है , जो प्रेम और भजक्त


भगव के सगथ आपके यश-मदहमग को र्गते है |27

वह जो सच्चे मि से आपके रूप कग ध्यगि करते है , वह जन्म और


मत्ृ यु के चक्र से छुटकगरग पगते है ।28

जोर्ी सुर मुनि कहत पुकगरी, योर् ि हो त्रबि शजक्त तुम्हगरी ।। 29

शिंकर आचगरज तप कीिो, कगम अरु क्रोध जीनत सब लीिो ।। 30

निर्शददि ध्यगि धरो शिंकर को, कगहु कगल िदहिं सर्ु मरो तम
ु को ।। 31

शजक्त रूप कग मरम ि पगयो, शजक्त र्ई तब मि पनछतगयो ।। 32

सभी योर्ी, दे वतग और ऋवष-मनु ि बोलते हैं कक आपकी शजक्त के त्रबिग


योर् ( ईश्वर में र्मल जगिग ) सिंभव िहीिं है ।29

शिंकरगचगया जी िे भर्वगि ् र्शव को तपस्यग कर प्रसन्ि ककयग, तपस्यग


फलस्वरूप उन्होंिे कगम और क्रोध को वश में कर र्लयग थग।30
उन्होंिे नित भर्वगि ् र्शव कग ध्यगि ककयग और एक पल के र्लए अपिे
मि को आपकग सुर्मरि िहीिं ककयग।31

उन्हें आपकी अपगर मदहमग कग एहसगस िहीिं हुआ, इससे उिकी सगरी
शजक्तयगाँ खत्म हो र्ईं और तब उिके मि में पश्चगतगप हुआ।32

शरणगर्त हुई कीनता बखगिी, जय जय जय जर्दम्ब भवगिी ।। 33

भई प्रसन्ि आदद जर्दम्बग, दई शजक्त िदहिं कीि ववलम्बग ।। 34

मोको मगतु कष्ट अनत घेरो, तुम त्रबि कौि हरै दःु ख मेरो ।। 35

आशग तष्ृ णग निपट सतगवें, ररपु मरु ख मोही िरपगवे ।। 36

कफर, उन्होंिे आपकी कीनता कग बखगि ककयग और आपकी शरण ली,


आपकी मदहमग कग जगप जय जय जय जर्दम्ब भवगिी र्गयग।33

इससे मगाँ जर्दिं बग आपिे प्रसन्ि होकर त्रबिग कोई ववलम्ब ककए उिकी
खोई हुई शजक्तयों उन्हें प्रदगि की|34

हे मगतग, अिेको कष्टों िे मुझे घेर रखग हैं और आपके र्सवग कौि है जो
मेरे दःु खो को हरै | कृपयग मेरे कष्टों कग अिंत करें |35

आशगएाँ और तष्ृ णगएाँ मझ


ु े बहुत सतगती हैं। मै मरु ख शत्रओ
ु के िर से
सदग िरग हुआ रहतग हाँ|36
शत्रु िगश कीजै महगरगिी, सर्ु मरौं इकधचत तम्
ु हें भवगिी ।। 37

करो कृपग हे मगतु दयगलग, ऋद्धध-र्सद्धध दै करहु निहगलग ।। 38

जब लधर् जजऊिं दयग फल पगऊिं, तुम्हरो यश मैं सदग सुिगऊिं ।। 39

श्री दर्
ु गा चगलीसग जो कोई र्गवै, सब सख
ु भोर् परमपद पगवै ।। 40

दे वीदगस शरण निज जगिी, करहु कृपग जर्दम्ब भवगिी ।। 41

हे महगरगिी, मेरे शत्रुओ कग िगश कर मेरे ह्रदय को शगिंत कीजजये जजससे


मै धचत से मगाँ भवगिी केवल आपकग सर्ु मरि कर सकाँ |37

हे दयगलु मगतग, मझ
ु पर कृपग कीजजये और मझ
ु े धि-धगन्य और
आध्यगजत्मक शजक्तयगिं दे कर मुझे निहगल कीजजये।38

हे मगाँ, आपकी दयग कग फल मुझे जीवि भर र्मलतग रहे , और आपके


यश कग र्ण
ु र्गि मै सदग करतग रहाँ| मझ
ु े ऐसग आशीवगाद दीजजये|39

जो कोई भी इस दर्
ु गा चगलीसग को र्गतग है , वह इस सिंसगर के सभी सख
ु ों
को भोर्कर अिंत में आपके चरणों को प्रगप्त करतग है ।40

मुझ दे वीदगस को अपिी शरण में जगिकर, हे जर्दम्बे भवगिी मगाँ, मुझ
पर कृपग कीजजये|41

।। इनत श्री दर्


ु गा चगलीसग सम्पणं ।।

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