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System concept =

Characteristics of System in Hindi – सिस्टम


की विशे षताएं
एक system की 5 विशे षताएं होती हैं जो कि निम्नलिखित हैं :-

1. Organization
2. Interaction
3. Interdependence
4. Integration
5. Central objective

Organization –
 सिस्टम की सबसे पहली विशे षता organization है । Organization के अं दर structure
(सं रचना) और order (क् रम) आते हैं । सिस्टम का एक सही structure और order होना
चाहिए।

 structure का मतलब यह होता है की एक system में कौन-सी चीज़ कहाँ पर है । Order


का मतलब यह होता है कि सिस्टम को कौन-सा काम किसके बाद करना चाहिए। हम कह
सकते है कि order काम या process को decide करता है कि कब कौन- सा process
होना है ।

 इसका सबसे बे हतर example है एक कंप्यूटर। Computer के अं दर सारे parts एक


स्ट् रक्चर और ऑर्डर में होते है । जै से computer में सबसे पहले  input device आती है ,
उसके बाद processing unit आती है फिर उसके बाद आती है output device . यानी
सबसे पहले आप computer को कुछ input दे ते है उसके बाद processing होती है फिर
जाकर आपको कुछ output मिलता है ।

Integration –
 ू री विशे षता integration है । इं टीग्रेशन का अर्थ होता है दो या दो से
System की दस
अधिक components को आपस में मिलाकर एक सिस्टम बनाना।

 ू रे से जु ड़े हुए होते है । ताकि सिस्टम अपना


system में components आपस में एक दस
काम अच्छे से कर पाए।

 इसका उदाहरण है  CPU – जिसे हम computer system का brain यानी दिमाग भी


बोलते है । CPU के साथ बहुत सारी चीज़े connect होती है । यह अकेला किसी काम को
नहीं करता। CPU के साथ printer , monitor , mouse और keyboard जु ड़े होते है ।

Interaction –
ू रे के साथ
सिस्टम की तीसरी विशे षता Interaction है । यह बताता है कि component एक दस
किस तरह से मिलकर काम करते है ।

ू रे के साथ मिलकर काम


Interaction के कारण ही सिस्टम के component आपस में एक दस
करते है ।

Interdependence –
सिस्टम की चौथी विशे षता interdependence है । यह बताता है कि सिस्टम के components
एक दसू रे पर किस तरह से निर्भर होते है ।

ू रे
अगर कोई component किसी काम को perform या पूरा नहीं कर पा रहा है तो सिस्टम के दस
component भी काम को पूरा नही कर पाएं गे।

ू रे की मदद के बिना किसी भी काम को


साधारण भाषा में कहे तो system के component एक दस
पूरा नहीं कर सकते ।

ू रे पर पूरी तरह depend (निर्भर) रहता है ।


इसलिए system का हर एक component एक दस
ताकि काम को आसानी से किया जा सके। 

Central objective –
सिस्टम का एक central objective होता है । central objective का मतलब है कि सिस्टम का
एक मु ख्य उद्दे श्य होता है और इस मु ख्य उद्दे श्य को पूरा करने के लिए सभी components कार्य
करते हैं ।

साधारण भाषा में कहे तो छोटे छोटे component आपस में मिलके एक काम को पूरा करते है ।
जिसको हम central objective कहते है ।

यानी कि system हमारे main objective को पूरा करने के लिए छोटे छोटे components या
parts की मदद ले ता है ।

Element of system -:
Output और Input –
 सिस्टम का मु ख्य उद्दे श्य आउटपु ट प्रदान करना होता है जो उसके user के लिए उपयोगी
हो.
 Input एक सूचना होती है जिसे सिस्टम को processing के लिए दिया जाता है .
 Output प्रोसे सिंग के बाद प्राप्त हुआ परिणाम (result) होता है .
Processor –
 Processor सिस्टम का एक component है जो प्रोसे सिंग की प्रक्रिया को पूरा करता
है अर्थात् यह input को output में बदलता है .
 यह सिस्टम का operational component है .
Control –
 Control सिस्टम को guide करता है अर्थात् यह सिस्टम का मार्गदर्शन करता है .
 यह input, output और processor की कार्यविधि को control (नियं त्रित) करता है .
Feedback –
 यह system को फीडबै क प्रदान करता है .
 positive feedback सिस्टम की performance को प्रोत्साहित (encourage) करता है .
 Negative feedback सिस्टम को information (सूचना) प्रदान करता है . इस सूचना के
आधार पर system को बे हतर बनाया जाता है .
Environment –
 environment एक “supersystem” होता है जिसके अं दर organization कार्य करती है .
 यह बाहरी elements का एक source (स्रोत) होता है .
 यह निर्धारित करता है कि सिस्टम को को कैसे कार्य करना चाहिए.
Boundaries and Interface –
 एक सिस्टम को उसकी boundaries (सीमाओं) के द्वारा अवश्य define किया जाना
चाहिए.
 प्रत्ये क system के पास boundaries होती है जो उसके प्रभाव और नियन्त्रण के क्षे तर्
को निर्धारित करती हैं .

Types of system -:
Physical and Abstract System in Hindi
 Physical system वह सिस्टम होता है जिनका nature (प्रकृति) tangible होता
है । Tangible का मतलब होता है जिन चीज़ो को हम छू सकते है और महसूस कर सकते
हैं ।

 आसान शब्दों में कहें तो, “वह सिस्टम जिसे हम touch कर सकते है और महसूस कर
सकते हैं उसे Physical system कहते हैं ।”

 फिजिकल सिस्टम dynamic और static दोनों तरह के होते हैं । Dynamic का मतलब
होता है जो अपने आपको change कर ले और static का अर्थ है जो change नही होता।

 फिजिकल सिस्टम के उदाहरण हैं –  chair (कुर्सी), desk (मे ज) और computer. ये सभी
tangible है । आप इनको दे ख और छू सकते है ।
इसमें कुर्सी और मे ज static है और कंप्यूटर के अं दर जो programs होते हैं वे dynamic
होते हैं क्योंकि वे user के हिसाब से change होते रहते हैं ।
 Abstract system एक non-physical सिस्टम होता है अर्थात हम इसे ना तो touch कर
सकते है ना ही महसूस कर सकते हैं ।

 Abstract system एक concept पर आधारित होता है जै से कि – formula (सूतर् ), और


model आदि।

 Abstract system वास्तविक चीज़ो का एक representation (प्रस्तु तिकरण) होता है ।


जै से किसी के घर का नक्शा बनाना या design बनाना आदि .

Open and closed system in Hindi


 Open system वह सिस्टम होता है जो अपने आस-पास के environment (वातावरण)
के साथ interact करता है । यानी environment के साथ मे ल जोल बनाकर रखता है ।

 Open system यूजर की जरूरत के अनु सार अपने आपको change कर ले ते है । इसके
अलावा open system इनपु ट को receive करते है और आउटपु ट को deliver करते है ।
यानी यह command के अनु सार काम करते है ।
 इसको एक example की मदद से समझते है । मान लीजिए एक software
development कंपनी है । जो software को बनाती है । अब user वहाँ पर जाकर अपनी
जरूरत के हिसाब से software को बनवा सकता है । कंपनी उस user को software
बनाकर दे गी। ये user कंपनी में काम नहीं करता। फिर भी कंपनी ने उस user को काम
करके दिया। कहने का मतलब यह है की open system बाहरी environment के साथ
interact हो जाते है ।

 Closed system वह सिस्टम होता है जो environment से isolate ( दरू ) रहता है ।


close system किसी भी प्रकार से environment के साथ interact नहीं करता।

 Isolate रहने के कारण Closed system असल दुनिया में पाया नहीं जाता है । यह केवल
एक concept है ।
Natural and Manufactured system in Hindi
Natural system वह सिस्टम होता है जिसे nature (प्रकृति) के द्वारा बनाया जाता है । यानी ये
सिस्टम nature के दवारा बनाये जाते है । इस सिस्टम में किसी human being (इं सान) की
ज़रूरत नहीं पड़ती।

इसमें सारा प्रोसे स natural यानी nature के द्वारा होता है । इसका सबसे अच्छा example है
solar system और season .

Manufactured system को man-made system भी कहते है । क्योकि इन system को इं सान


के द्वारा बनाया जाता है । इसका example है - rocket , mobile, train आदि।

SDLC (software development life cycle) -:


SDLC का पूरा नाम software development life cycle है इसे system development life
cycle भी कहते है । SDLC एक software या system के life cycle(जीवन चक् र) की व्याख़्या
करता है ।

डे टाबे स डिज़ाइन SDLC का एक मूलभूत घटक है । किसी भी सिस्टम (सॉफ्टवे र) को develop


करने में जितने steps या process आते है उन सभी steps को मिलाके SDLC कहते है ।
1-: सिस्टम डवलपमे न्ट लाइफ साइकिल का यह सबसे पहला फेज़ होता है । system
study किसी भी बिजने स प्रोब्लम की अन्डरस्टे डिग के साथ शु रू होती है । इसमे
किसी भी समस्या को समझने के बाद उस समस्या को दरू करने के उपाय पर ध्यान
दे ना चाहिए तथा उस प्रोजे क्ट की भविष्य में क्या उपयोगिता है उसका पता लगाना
चाहिए । system study को दो घटक किया जाता है -
( 1 ) First phase में system या project के बारे में servay किया जाता है कि इस
system या project का future में scope होगा या नहीं । 
( 2 ) Second phase में उस system या project की सारी Details ली जाती है तथा
पूरी डे फ्थ ( depth ) तथा study की जाती है तथा यह पता लगाया जाता है कि user
की आवश्यकता क्या - क्या है तथा वर्तमान में जो system है उससे क्या - क्या
( problem ) समस्याएं हैं ।

2. Feasibility study-:
Feasibility study,  सिस्टम डवलपमे न्ट लाइफ साइकिल (sdlc)का दस ू रा महत्वपूर्ण
चरण है । इसका मु ख्य कार्य यह है कि किसी भी प्रोजे क्ट को पूरा करने के लिए किस
प्रकार के वातावरण की आवश्यकता होगी, उस प्रोजे क्ट को बनाने में काम आने
वाले स्त्रोतो का पता लगाना है । feasibility study का मु ख्य कार्य किसी भी
समस्या को सु लझाना ही नही बल्कि सिस्टम के लिए उस लक्ष्य को प्राप्त करना है ।
जिससे उस सिस्टम का आगे अच्छा स्कोप हो सके । इसके लिए feasibility
study को तीन भागो मे वर्गीकृत किया जाता है ।
1. Technical feasibility study ( in hindi)

2 . Economical feasibility study 

3 . operation feasibility study 


1. Technical feasibility study : -

इसके अन्तर्गत यह पता लगाया जाता है कि बिजने स मे सिस्टम का विकास करने के


लिए आवश्यक हार्डवेयर व साफ्टवेयर काम्पोने न्ट को डवलप किया जा सकता है या
नहीं । तथा यह भी पता लगाया जाता है कि बिजने स के उद्दे श्यो को प्राप्त करने के
लिए यह प्रोजे क्ट उपयोगी है या नही ।
2. Economical feasibility study :-

इसमे दो बे सिक प्रश्नो को ध्यान में रखा जाता है :-

1. क्या प्रोजे क्ट की कोस्ट बे निफिट से ज्यादा है या नहीं । 


2.क्या प्रोजे क्ट को जै सा शिड्यूल किया गया है । उसके अनु सार डवलप किया गया
है या नही ।
इसमे ब्रेक इवन एनालिसस , रिर्टन ऑन इनवे स्टमे न्ट तथा ने ट प्रजे न्ट वे ल्यू मे थर्ड
3.

का प्रयोग किया जाता है ।

3:- Analysis:- planning phase में problems को define किया जाता है तथा analysis
phase में उन problems को अधिक details के साथ examine किया जाता है ।
analysis phase में यूजर की requirements को दे खा जाता है , कि End users की क्या क्या
जरूरतें है । इस phase में सिस्टम के हार्डवे यर और सॉफ्टवे यर को अच्छी तरह से study किया
जाता है । इसमें end users तथा designers दोनों मिलके problem areas को हल करते है ।

4:-Design:- detail system design phase में डिज़ाइनर सिस्टम के प्रोसे स के डिज़ाइन को


पूरा करता है । system में सम्पूर्ण technical specifications को include किया जाता है जिससे
सिस्टम और भी ज्यादा interactive तथा efficient बन जाएँ ।

4:-Implementation:- इस फेज में , हार्डवे यर, DBMS सॉफ्टवे यर तथा एप्लीकेशन प्रोग्राम्स


को install किया जाता है तथा डे टाबे स डिज़ाइन को implement किया जाता है । इससे पहले की
डे टाबे स डिज़ाइन को implement किया जाएं सिस्टम को टे स्टिं ग,कोडिं ग, तथा debugging
प्रोसे स से होकर गु जरना पड़ता है । SDLC में यह सबसे लम्बे समय तक चलने वाला phase है ।

5:-Maintenance:- यह SDLC का सबसे अं तिम phase है । जब सिस्टम (सॉफ्टवे यर) बनके


तै यार हो जाता है तथा यूजर उसका प्रयोग करना शु रू कर दे ते है तब जो problems उसमें आती
है उनको time-to-time हल करना पड़ता है ।
तै यार सिस्टम (सॉफ्टवे यर) को समय अनु सार उसका ख्याल रखना तथा उसे maintain रखना ही
maintenance कहलाता है । SDLC में तीन प्रकार के maintenance होते है :-
1. corrective maintenance
2. adaptive maintenance
3. perfective maintenance.

Ch-2
कॉस्ट-बेनेफिट एनालिसिस क्या होता है ?
कॉस्ट-बे नेफिट एनालिसिस (Cost Benefit Analysis) एक प्रणालीगत प्रक्रिया होती
है जिसे व्यावसायिक घराने इसका विश्ले षण करने के लिए उपयोग में लाते हैं कि कौन से
फैसले करने हैं और कौन से छोड़ दे ने हैं । कॉस्ट-बे नेफिट एनालिसिस किसी स्थिति या कदम
से अपे क्षित सं भावित नतीजों का सं क्षिप्त विवरण प्रस्तु त करता है और फिर उस कदम को
उठाने से सं बंधित कुल लागत को घटा दे ता है । कुछ परामर्शदाता या विश्ले षक किसी खास
शहर में रहने से सं बंधित लाभें और लागतों जै सी अमूर्त वस्तु ओं पर डॉलर मूल्य निर्धारित
करने के लिए मॉडलों का निर्माण भी करते हैं । सीबीए में किसी प्रॉजे क्ट को आगे बढ़ाने के
निर्णय के परिणामस्वरूप अर्जित राजस्व या बचत की गई लागत जै से मापयोग्य वित्तीय
मे ट्रिक्स शामिल होते हैं । एक सीबीए में कर्मचारी के मनोबल और ग्राहक सं तुष्टि जै से
निर्णयों से अमूर्त लाभ और लागत या प्रभाव भी शामिल हो सकता है ।
Data flow diagram (DFD) in hindi:-
data flow diagram इनफार्मे शन सिस्टम से गु जरने वाले डे टा के flow का एक ग्राफिकल
प्रस्तु तीकरण है .
जै सा कि इसके नाम से पता चल रहा है यह केवल डे टा (सूचना) के फ्लो, डे टा कहाँ से आया, यह
कहाँ जाये गा, तथा यह कैसे स्टोर होगा इस पर केन्द्रित होता है .

data flow diagram का प्रयोग सॉफ्टवे यर सिस्टम के overview को बनाने के लिए किया


जाता है .
data flow diagram जो है वह आने वाले (इनपु ट) डे टा फ्लो, जाने वाले (आउटपु ट) डे टा फ्लो
तथा स्टोर किये हुए डे टा को डायग्राम अर्थात् ग्राफिकल रूप में प्रस्तु त करता है ले किन DFD
इसकी प्रोसे स के बारें में विस्तार से नहीं बताता है . ले किन इसके लिए flow chart है . flow
chart और DFD दोनों अलग अलग टॉपिक है .

types of DFD in hindi:-

DFD दो प्रकार का होता है .


1:- लॉजिकल DFD
2:- फिजिकल DFD
1:- logical DFD:- लॉजिकल DFD बिज़ने स एक्टिविटी पर केन्द्रित रहता है अर्थात् यह
सिस्टम में डे टा के फ्लो तथा सिस्टम के प्रोसे स पर केन्द्रित रहता है .
2:- physical DFD:- फिजिकल DFD इस बात पर केन्द्रित रहता है कि वास्तव में डे टा फ्लो
सिस्टम में किस प्रकार implement (कार्यान्वित) हुआ है .
Data flow diagram का सबसे पहला प्रयोग 1970 के दशक में किया था तथा इसे larry
constantine तथा Ed yourdon ने वर्णित किया था.

DFD components:-

DFD में निम्न चार मु ख्य कंपोनें ट् स होते है .


1:- entities
2:- data storage
3:- processes
4:- data flow
1:- entities:- डे टा के source तथा destination को entities कहते है . entities को
rectangle (आयत) के द्वारा प्रदर्शित किया जाता है .
2:- data storage:- ऐसी जगह जहाँ डे टा स्टोर होता है . इसे एक ऐसे आयत से प्रदर्शित किया
जाता है जिसकी एक साइड नहीं होती या दोनों साइड नहीं होती है .
3:- process:- यह एक कार्य होता है जो कि सिस्टम के द्वारा किया जाता है . इसे circle (वृ त्त) या
round-edged rectangle (गोल-धारित आयत) के द्वारा प्रदर्शित किया जाता है .
4:- data flow:- यह डे टा के movement (गति) को दिखाता है . इसे arrow (तीर) द्वारा पर्दर्शित
किया जाता है .

System Testing-:
System Testing एक प्रकार की टे स्टिं ग तकनीक है जिसमें पूरे system को test किया जाता है .

सिस्टम टे स्टिं ग में  software requirement specification (SRS) के आधार पर पूरे software
product के behavior (स्वभाव) को check किया जाता है .
इस टे स्टिं ग का मु ख्य उद्दे श्य Business और end user की जरूरतों को evaluate (मूल्यां कित)
करना होता है .

यह black box testing का एक प्रकार है और इसमें software के बाहरी structure को test


किया जाता है . इसमें tester को software के internal structure की जानकारी होना जरुरी नहीं
होता है .

Need of System Testing-:


1. Software development life cycle (SDLC) में system testing को टे स्टिं ग के
पहले level के रूप में perform किया जाता है जहाँ system को पूरी तरह से test
किया जाता है .

2. टे स्टिं ग के इस step में यह check किया जाता है कि यह functional


requirement को पूरा करता है या नहीं.

3. इसके द्वारा हम application architecture और business requirements दोनों


को test, validate, और verify कर सकते हैं .

4. system testing को ऐसे environment में perform किया जाता है जो विशे ष


रूप से प्रभावी production environment से मिलता-जु लता है जहाँ
software/ application को आखिर में deploy किया जाता है .
System Testing :-

 Usability Testing में मु ख्य रूप से इन बातों की जाँच की जाती है की system


उपयोगकर्ता के लिए उपयोग करने में आसान ( ease to use ) है या नहीं।
 Load Testing में System आवश्यकतानु सार अत्यधिक Work Load
झे लने में सक्षम है या नहीं इन बातों की जांच की जाती है ।
 Regression Testing में यह सु निश्चित किया जाता है की विकास
प्रक्रिया के दौरान किए गए परिवर्तनों से या किसी नए सॉफ्टवे यर
मॉड्यूल के system से जु ड़ने के बाद system में कोई  नए समस्या तो
नहीं उत्पन्न हो गई है ।
 Recovery Testing यह जांचने के लिए किया जाता है की किसी
सं भावित क् रै श से software solution को सफलतापूर्व क पु नर्प्रा प्त कर
सकता है ।
 Migration Testing यह सु निश्चित करने के लिए की जाती है कि
सॉफ्टवे यर को पु राने सिस्टम इन्फ् रास्ट् रक्चर ( जिसमे software को
बनाया गया है ) से मौजूदा सिस्टम इन्फ् रास्ट् रक्चर ( जिसमे customer
द्बारा software को उसे किया जाये गा ) में बिना किसी समस्या के
स्थानां तरित किया जा सके ।
 Functional Testing इसमें परीक्षक उन सं भावित लापता जरूरतों की
एक सूची बनाता है जिनकी आवश्यकता सॉफ्टवे यर यूजर्स को पड़ने वाली
है । इसमें परीक्षक मु ख्य रूप से यह जांचने के का प्रयास करता है कि
सिस्टम यूजर्स के सभी सं भावित जरूरतों को पूरा करने में सक्षम है या
नहीं।
 Hardware/Software Testing में परीक्षक सिस्टम परीक्षण के दौरान
हावे यर और सॉफ़्टवे यर के परस्पर क्रिया पर अपना ध्यान केंद्रित करता
है ।
System secyrit-:

किसी भी कंप्यूटर की सु रक्षा सबसे बड़ी जिम्मे वारी होती है । इसका अर्थ हुआ कि ऑपरे टिंग सिस्टम के
इं टीग्रिटी और confidentiality को सु निश्चित करने की प्रक्रिया। एक सिस्टम को सिक्योर यानी
सु रक्षित तभी कहा जा सकता है जब उसके सारे सं साधनों का प्रयोग किसी भी स्थिति में इक्षित रूप से
किया जा सके। ले किन कोई भी सिस्टम पूरी तरह से सु रक्षित होने की गारं टी नहीं दे सकता क्यों बहुत सारे
ऐसे वायरस, थ्रेट और बाहरी एक्से स के प्रयाद होते हैं । किसी भी सिस्टम की सु रक्षा को इन दो तरीकों से
ठे स पहुंचाई जा सकती है :

 Threat:एक प्रोग्राम जिसके पास सिस्टम को खराब करने की क्षमता मौजूद होती है ।
 Attack:सु रक्षा घे रा को तोड़ने का प्रयास और सं साधनों का बिना अनु मति एक्से स करना।

दो तरह के सिक्यूरिटी violation होती हैं - malicious और एक्सीडें टल। Malicious threats एक


प्रकार के हानिकारक कंप्यूटर कोड या फिर वे ब स्क्रिप्ट होते हैं जिन्हें सिस्टम में खराबी लाने के लिए
डिजाईन गया होता है ।

इस से सिस्टम में कोई भी पीछे से घु स सकता है । Accidental Threats से सु रक्षित रहने कि प्रक्रिया
तु लनात्मक रूप से आसान है । जै से, DDoS अटै क।

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