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www.jainelibrary.org and register your e-mail id (or sign in if previously registered). जैन दर्शन के नवतत्त्व (फोल्डर नं. ००१६७६) मख् ु य टाइटल प्रकाशकीय----------------------------------------------------------------------------------------------------------- ३ About us------------------------------------------------------------------------------------------------------------ 4 Research Foundation for Jainology------------------------------------------------------------------------- 5 प्राक्कथन------------------------------------------------------------------------------------------------------------- ६ उज्ज्वल धर्म प्रभाविका महासतीवर्या डॉ. धर्मशीलाजी म.सा. संक्षिप्त परिचय--------------------------------९ आचार्य सम्राट दे वेन्द्रमुनिजी म. का शुभ संदेश----------------------------------------------------------------१४ विषयानुक्रम-------------------------------------------------------------------------------------------------------- १५ अध्याय-१ – प्रस्तावना------------------------------------------------------------------------------------------ १-१० तत्त्व क्या है तत्त्व की मान्यता तत्त्व कितने है तत्त्व सात या नौ अध्याय-२ – जीवतत्त्व----------------------------------------------------------------------------------------- ११-६५ मुख्य तत्त्व दो – जीव और अजीव जीवतत्त्व को ही अग्रस्थान क्यों आत्मवाद की उत्क्रांति का इतिहास अन्य दर्शनों की मान्यता जीव का लक्षण उपयोग के भेद जीव के अन्य लक्षण जीव के भेद चेतना के तीन भेद जीव के भाव जीव के तीन भाव जीवों की संख्या जीव की शाश्वतता संसारी जीव के अन्य दो भेद त्रस जीव के चार भेद नारकी मनुष्य तिर्यंच दे व स्थावर जीव के भेद पथ् ृ वी आदी की सजीवता जीव-अजीव वस्तु विस्तार मन के भेद शरीर के भेद दे ह परिमाण जीव जीव और कर्म आधुनिक विज्ञान औऱ जीवतत्त्व जीव का विकास क्रम आत्मा के अस्तित्व की सिद्धि विभिन्न वैज्ञानिकों के आत्मा विषयक विचार अध्याय-३ – अजीव तत्त्व----------------------------------------------------------------------------------- ६६-१०६ अजीवतत्त्व द्रव्य के लक्षण द्रव्य का स्वरूप द्रव्य का क्षेत्रप्रमाण रूपी-अरूपी द्रव्य प्रत्येक द्रव्य का अस्तित्व अस्तिकाय का अर्थ प्रदे श का अर्थ धर्मास्तिकाय और अधर्मास्तिकाय आकाशास्तिकाय अवगाहन-सिद्धि काल द्रव्य समस्त द्रव्यों पर काल द्रव्य के उपकार निश्चय काल और व्यवहार काल पद्ग ु ल की व्याख्या पुद्गल के दो भेद-अणु और स्कंध परमाणुओं की सूक्ष्मता आधनि ु क विज्ञान में परमाणु पुद्गल के बीस गुण अणुवाद ग्रीस का अणुवाद जैन और वैशेषिक का अणुवाद अध्याय-४ – पुण्य तत्त्व और पाप तत्त्व----------------------------------------------------------------- १०७-१५६ पुण्य पाप की व्याख्याएँ पूर्वकृत पाप पुण्य द्रव्य पण् ु य-भावपण् ु य पुण्य के और दो भेद पुण्य के नौ भेद पण् ु य का फल सुखप्राप्ति पुण्य के कारण ही पुण्य की महिमा सच्चा पुण्यवान कौन उपयोग क्या है शभ ु ोपयोग और अशभ ु ोपयोग पुण्य पाप चर्चा चार वादों का निराकरण स्वभाववाद का निरास-स्वतंत्रवाद स्वीकार्य पुण्य पाप में अंतर पाप की हे यता पाप कब होता है द्रव्यपाप और भावपाप पाप के अठारह भेद पाप का फल पुण्य पाप कल्पना विषयक विद्वानों के विचार पण् ु य पाप का अस्तित्व पुण्य पाप की कसौटी अन्य स्थान पर पाप-पुण्य विवेक यही पुण्य अध्याय-५ – आस्रव तत्त्व---------------------------------------------------------------------------------- १५७-१९१ आस्रव तत्त्व और आस्रवद्वार आस्रव द्वार या बंध हे तु पुण्यास्रव और पापास्रव द्रव्यास्रव और भावास्रव ईर्यापथ और सांपरायिक आस्रव आस्रव की संख्या आस्रव के पाँच भेद प्रमाद के पांच भेद कषाय के भेद योग के भेद आस्रव के बीस भेद आस्रव के बयालीस भेद प्रश्नव्याकरण और आस्रव द्वार आस्रव और संवर में भेद आस्रव और बंध में भेद बौद्ध साहित्य में आस्रव आस्रव और कर्म भिन्न भिन्न हैं निरास्रवी कैसे होना है अध्याय-६ – संवर तत्त्व------------------------------------------------------------------------------------ १९२-२४७ संवर की व्याख्याएं संवत्त ृ आत्मा और आस्रव आत्मा संवर के संबंध में कुछ उदाहरण मोक्ष मार्ग के लिए संवर उत्तम गण ु रत्न है संवर के दो भेद संवर के पांच भेद सम्यक्त्व सम्यक्त्व का लक्षण सम्यक्त्व का महत्त्व सम्यक्त्व के भेद सम्यक्त्व के पांच अतिचार दोष संवर के बीस भेद संवर के सत्तावन भेद तीन गुप्तियाँ, पाँच समितियाँ समिति-गुप्ति का महत्त्व दस धर्म बौद्धों के दस धर्म ख्रिश्चनों के दस धर्म हिन्दओ ु ं के दस धर्म क्षमा के विषय में विद्वानों के विचार बारह अनुप्रेक्षाएं द्वाविंश परिषहजय पांच चारित्र संवर की महिमा बौद्ध दर्शन में संवर अध्याय-७ – निर्जरा तत्त्व---------------------------------------------------------------------------------- २४८-२८८ निर्जरा की व्याख्या निर्जरा का स्वरूप निर्जरा के दो भेद निर्जरा के बारह भेद बाह्य और अभ्यंतर तप का समन्वय विज्ञानयग ु में ध्यान का महत्त्व तप का माहात्म्य अध्याय-८ – बंध तत्त्व------------------------------------------------------------------------------------ २८९-३३५ बंध की व्याख्याएँ बंध का स्वरूप बंध के कारण द्रव्यबंध और भावबंध बंध के चार भेद प्रकृतिबंध के आठ भेद धाती कर्म और अघाती कर्म आठ कर्मों का क्रम कर्म शब्द की व्युत्पत्तियाँ कर्म शब्द के विविध अर्थ कर्म सिद्धान्त कर्म संक्रमण कर्मबंध प्रक्रिया कर्म और अकर्म शुभ और अशुभ कर्म द्रव्य कर्म और भावकर्म कर्मवाद कर्म की अवस्थाएं भाग्यपरिवर्तन की प्रक्रिया-करण करण ज्ञान की उपयोगिता कर्म चर्चा बंध-मोक्ष चर्चा बंध से मुक्ति अध्याय-९ – मोक्ष तत्त्व------------------------------------------------------------------------------------ ३३६-४०६ मोक्ष का स्वरूप मोक्ष प्राप्ति के उपाय मोक्ष का लक्षण मोक्ष का विवेचन विभिन्न दर्शनों में मोक्ष मोक्ष-एक विश्लेषण मोक्ष मीमांसा द्रव्यमोक्ष और भावमोक्ष कर्मक्षय का क्रम कर्म की निर्जरा कर्म का अंत मोक्षों के नाम सिद्धस्थान का स्वरूप मोक्ष मार्ग के सम्बन्ध में मान्यताएँ मोक्ष मार्ग सम्यक्त्व सम्यक्त्व के दोष सम्यक्त्व के आठ अंग सम्यक् दर्शन का स्वरूप सम्यक् दर्शन सम्यक् ज्ञान सम्यक् ज्ञान के भेद सम्यक् ज्ञान के दोष का स्वरूप सम्यग्ज्ञान औऱ मिथ्याज्ञान सम्यक् चारित्र चारित्र्य के दो भेद सम्यग्दर्शन और सम्यक् ज्ञान का पूर्वापर सम्बन्ध मोक्ष मार्ग का समन्वय सम्यक् ज्ञान औऱ सम्यक् चारित्र का पर्वा ू पर सम्बन्ध अन्य दर्शन के त्रिविध साधना मार्ग त्रिविध साधऩा मार्ग और मुक्ति सिद्ध किसे कहें सिद्धों के भेद सिद्ध आत्माओं के नाम सिद्ध आत्मा का स्वरूप सिद्धों को सुख कर्म क्षय के बाद के कार्य मोक्ष की सिद्धता अध्याय-१० – उपसंहार------------------------------------------------------------------------------------- ४०७-४४० जीवतत्त्व न्याय-वैशेषिक दर्शन का जीवतत्त्व वेदान्त दर्शन का जीवतत्त्व सांख्य-योग दर्शन का जीवतत्त्व मीमांसा दर्शन का जीवतत्त्व चार्वाक दर्शन का जीवतत्त्व बौद्ध दर्शन का जीवतत्त्व जैन दर्शन का जीवतत्त्व और अन्य दर्शनों में जैन दर्शन का वैशिष्ट्य अजीवतत्त्व पुण्यतत्त्व-पापतत्त्व आस्रव तत्त्व और संवर तत्त्व निर्जरा तत्त्व बंध तत्त्व मोक्ष तत्त्व चित्रोंकी जानकारी और चित्र------------------------------------------------------------------------------ ४४१-४४४