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EC-01
यि ट अथशा के स ा त

वधमान महावीर खु ला व व व यालय, कोटा


अनु म णका
इकाई सं या व इकाई का नाम पृ ठ सं या
ख ड-I प रचय
इकाई 1- अथशा : प रचय एवं आ थक व लेषण क व धयाँ 7—22

इकाई 2- अथशा क के य सम याएँ 23—35

इकाई 3- उपभो ता का यवहार/उपयो गता व लेषण 36—56

इकाई 4- उपभो ता क स भुता 57—62

ख ड-II उदासीनता व व लेषण


इकाई 5- उदासीनता व : वशेषताएँ, उपभो ता का संतल
ु न 63—82
इकाई 6- उदासीनता व : आय उपभोग व , क मत उपभोग व ,आय और 83—97
त थापन भाव
इकाई 7- उदासीनता व : मांग व का नमाण 98—112
ख ड-III लोच एवं उ पादन के नयम
इकाई 8- मांग एवं पू त क लोच क अवधारणा एवं मापन, आय लोच, तरछ 113—133
लोच
इकाई 9- उ पादन फलन और प रवतनशील अनुपात का नयम 134—147
इकाई 10- समो पाद व , साधन का यूनतम लागत सं योग एवं पैमाने के 148—161
तफल
ख ड-IV क मत एवं उ पादन नधारण
इकाई 11- लागत व एवं आगम व 162—186
इकाई 12- पूण तयो गता के अ तगत उ पादन तथा क मत का नधारण 187—200
इकाई 13- एका धकार एवं क मत वभेद 201—216
इकाई 14- एका धरा मक तयो गता 217—223
ख ड-V
इकाई 15- वतरण का सीमा त उ पादकता स ा त 224—232
इकाई 16- पूण तयो गता और एका धकार के अ तगत मजदूर नधारण 233—243
इकाई 17- रकाड का लगान का स ा त , आधु नक लगान स ा त, आभासी 244—253
लगान
इकाई 18- याज का ति ठत स ा त, तरलता पसंदगी स ा त 254—263
इकाई 19- लाभ के स ा त 264—277
इकाई 20- ारि भक क याणकार अथशा 278—293

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पा य म अ भक प स म त
अ य
ो. (डॉ.) नरे श दाधीच
कु लप त
वधमान महावीर खुला व व व यालय कोटा (राज थान)

संयोजक / सद य
संयोजक
डॉ. जे. के. शमा
सहायक आचाय, अथशा
वधमान महावीर खु ला व व व यालय, कोटा (राज.)

सद य
1. ो. सी.एस. बरला 2. ो. के. डी. वामी 3. डॉ. सी.आर. व नोई
सेवा नवृ त आचाय, अथशा आचाय, अथशा सहआचाय, अथशा
राज थान व व व यालय, जयपुर जयनारायन यास व व व यालय, जोधपुर राज थान व व व यालय, जयपुर
4. ो. राम लाल वमा 5. ो. फर दा शाह 6. डॉ. वी.वी. संह
सेवा नवृ त आचाय, अथशा आचाय, अथशा सहायक आचाय, अथशा
जयनारायन यास व व व यालय, जोधपुर मो. ला. सु. व व व यालय, उदयपुर राज थान व व व यालय, जयपुर
7. ो. अंजु कोहल 8. ो. एम.के. घड़ो लया
आचाय, अथशा आचाय, अथशा
मो. ला. सु. व व व यालय, उदयपुर वधमान महावीर खु ला व व व यालय, कोटा

संपादन तथा पाठ लेखन


संपादक
डॉ. वी.वी. संह
सहायक आचाय, अथशा
राज थान व व व यालय, जयपु र

पाठ के ले खक इकाई सं.


1. डॉ. सु नील दलाल (1,2,3,4,11,12) 4. ी लोकेश भ (5,6,7)
सहायक आचाय, अथशा सहायक आचाय, अथशा
व या भवन रल इं ट यू ट, उदयपु र जी. डी. राजक य क या महा व यालय, अलवर

2. डॉ. जे.के . शमा (8,9,10) 5. डॉ. ए.पी. चौधर (13,14)


सहायक आचाय, अथशा सहायक आचाय, अथशा
वधमान महावीर खुला व व व यालय, कोटा मो. ला. सु. व व व यालय, उदयपुर
3. डॉ. गोपे श भ (16,17,18) 6. डॉ. उषा राठ (19,20)
सहायक आचाय, अथशा सहायक आचाय, अथशा
बी.एस.आर. राजक य कला महा व यालय, अलवर राजक य बांगड़ महा व यालय, पाल

अकाद मक एवं शास नक यव था


ो.(डॉ.) नरे श दाधीच ो. (डॉ.) एम.के . घड़ो लया योगे गोयल
कु लप त नदे शक(अकाद मक) भार पा यसाम ी उ पादन एवं वतरण वभाग
वधमान महावीर खुला व व व यालय,कोटा संकाय वभाग वधमान महावीर खुला व व व यालय,कोटा

पा य म उ पादन
योगे गोयल
सहायक उ पादन अ धकार
वधमान महावीर खुला व व व यालय, कोटा

पु नः उ पादन फरवर 2010 ISBN 13/978-81-8496-217-8


सवा धकार सुर त : इस साम ी के कसी भी अंश को वधमान महावीर खुला व व व यालय, कोटा क ल खत अनु म त के बना कसी
भी प मे म मयो ाफ (च मु ण) के वारा या अ य पुनः तुत करने क अनु म त नह ं है ।
कु लस चव वारा वधमान महावीर खुला व व व यालय, कोटा के लये मु त एवं का शत।

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इकाई-1
अथशा : प रचय एवं आ थक व लेषण क व धयाँ

1.0 उ े य
1.1 तावना
1.2 अथशा प रभाषा
1.2.1 धन संबध
ं ी प रभाषा
1.2.2 क याण संबध
ं ी प रभाषा
1.2.3 दुलभता अथवा सी मतता धान प रभाषा
1.2.4 आधु नक अथवा वकास केि त प रभाषा
1.3 यि ट एवं समि ट अथशा
1.3.1 यि ट अथशा
1.3.2 समि ट अथशा
1.3.3 समि ट अथशा का पृथक अ ययन य?
1.3.4 समि ट तथा यि ट अथशा का पर पर संबध

1.4 आ थक थै तक तथा ावै गक
1.4.1 थै तक व लेषण
1.4.2 आ थक ावै गक
1.4.3 थै तक एवं ावै गक अथशा क तु लना
1.5 अ ययन क व धयाँ
1.5.1 नगमन व ध
1.5.2 आगमन व ध
1.6 सारांश
1.7 श दावल
1.8 संदभ थ

1.9 अ यासाथ- न

1.0 उ े य
इस इकाई के अ ययन के बाद आप समझ पायगे -
 अथशा क वषय-व तु एवं अ ययन े ।
 यि ट एवं समि ट अथशा का अथ, उनक वषय-व तु एवं उनम अंतर।
 थै तक एवं ावै गक अथशा ।
 आ थक व लेषण क व धयाँ-आगमन एवं नगमन व ध।

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1.1 तावना
तु त इकाई के मा यम से छा का अथशा वषय से प रचय कराया जायेगा। कसी
भी वषय के अ ययन के ार भ म उस वषय क वषय-व तु उसक मु ख शाखाओं एवं
अ ययन क व धय क जानकार , उस वषय का सम प व याथ के सम तु त करता है
एवं उनम वषय के गहन अ ययन के लए िज ासा पैदा होती है। इकाई के ार भ म अथशा
क व भ न प रभाषाओं के मा यम से अथशा का प रचय दे ते हु ए इसक दो मु ख शाखाओं
यि ट एवं समि ट अथशा का अथ एवं उनक वषय-व तु के बारे म व तार से बताते हु ए
उनम अंतर को प ट कया जायेगा। कसी भी वषय का मब तर के से अ ययन कर तक
स मत नणय एवं न कष पर पहु ँ चने म अ ययन क व धयाँ मह वपूण होती है अत: इसी
इकाई म अ ययन व धय क ववेचना क जायेगी।

1.2 अथशा : प रभाषा


कसी शा को प रभा षत करना उसक कृ त तथा वषय साम ी को प ट प दे ना
है। शा क नि चत एवं वै ा नक प रभाषा उनक वषय साम ी क सीमाओं को नि चत
करती है। िजसके भीतर रहकर उसका अ ययन कया जा सकता है।
अथशा क प रभाषा के बारे म अथशाि य म गहरा मतभेद रहा है। अथशा के
ज म से लेकर अब तक इतनी अ धक प रभाषाएँ द गयी है क उनम से कसी एक उ चत
प रभाषा का चु नाव करना क ठन है।

1.2.1 धन संबध
ं ी प रभाषा

अ धकांश ाचीन अथशा ी अथशा को धन का व ान मानते थे पर तु एडम ि मथ


से पूव अथशा का अपना कोई अि त व नह ं था और आ थक वचार अ य शा म ह गूँथे
हु ए थे। एडम ि मथ ने सव थम अथशा को एक पृथक व ान के प म उभारने का सफल
यास कया और इस लए एडम ि मथ को अथशा का जनक कहा जाता है।
एडम ि मथ ने सन ् 1776 म का शत अपनी पु तक रा के धन का व प तथा
कारण क खोज' म अथशा को धन का व ान कहा है। उनके अनुसार अथशा म इस बात
का अ ययन कया जाता है क मनु य धन का उ पादन एवं उपभोग कस कार करता है। जे.बी.
से के अनुसार अथशा वह व ान है जो धन संबध
ं ी नयम का अ ययन करता है। डे वड
रकाड ने धन के उ पादन व उपयोग के थान पर धन के वतरण पर बल दया।
इन प रभाषाओं के अ ययन से यह प ट होता है क अथशा क वषय साम ी का
के ब दु धन है, मानवीय सु ख का एकमा आधार धन है। साधारण यि त एक ऐसे आ थक
मनु य क भाँ त है जो नजी वाथ से े रत होकर ह आ थक याएँ करता ह एवं यि तगत
मृ से ह रा य धन म वृ होती है। अत: यि तगत एवं सामािजक हत म कोई
वरोधाभास नह ं है ।
अथशा को धन का व ान मानने से संबं धत प रभाषा से कई अथशा ी सहमत नह ं
हु ए। इनके अनुसार अथशा को केवल धन का व ान कहकर मनु य क उपे ा क गई है।
वा तव म धन केवल एक साधन मा है और मनु य का क याण सा य है। मनु य वारा धन

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का अजन इस लए कया जाता है िजससे वह जीवन- नवाह क आधारभू त सम या का समाधान
कर सक। मनु य एक सामािजक ाणी है इस लए वह केवल व हत से े रत होकर अपने यास
को धन ाि त तक ह सी मत नह ं रखता बि क वह सामािजक, राजनै तक, धा मक एवं रा य
भावनाओं े रत होकर भी काय करता है।

1.2.2 क याण संबध


ं ी प रभाषा

ए े ड माशल ति ठत समु दाय के ह एक अथशा ी थे, िज होने अथशा क धन


संबध
ं ी प रभाषाओं क हो रह आलोचनाओं एवं क मय को यान म रखते हु ए अथशा को एक
नये प म प रभा षत कर उसे स मानजनक थान दलाने का यास कया।
माशल के अनुसार ''धन मनु य के लए है, न क मनु य धन के लए।' इस लए
अथशा का मु य वषय मानव अथवा मानवीय क याण है और धन इस उ े य क पू त का
एक साधन है। माशल के अनुसार अथशा जीवन के साधारण यवसाय के संबध
ं म मनु य क
याओं का अ ययन है। इसम इस बात क जाँच क जाती है क मनु य कस कार धन
कमाता है और उसे कस कार यय करता है। इस कार यह एक तरफ 'धन' का अ ययन है तो
दूसर तरफ जो क अ धक मह वपूण वषय है, मनु य के अ ययन का एक भाग है। माशल के
अथशा क प रभाषा को इस कार तु त कया –
अथशा जीवन के साधारण यवसाय म मानव जा त का अ ययन है। यह यि तगत
तथा सामािजक याओं के उस भाग क जाँच करता है, िजसका क याण के लए आव यक
भौ तक साधन क ाि त और उनके उपयोग से नकटतम संबध
ं है। माशल के वचार का उनके
समकाल न अथशाि य - पीगू, कैनन, लाक आ द ने समथन कया।
उपयु त प रभाषा से प ट है क माशल ने धन के थान पर मनु य को मु ख थान
दया और इस लए कहा क अथशा जीवन के साधारण यवसाय का अ ययन है। माशल का
आशय उन या-कलाप से है िजनका संबध
ं धन कमाने तथा उसका योग करने से होता है। इस
कार माशल ने अथशा के मु ख वभाग - उपभोग, उ पादन, व नमय तथा वतरण आ द को
प ट कर दया य क ये हमार आ थक याओं के मु य े है। सं था पत अथशाि य -
िज ह ने अथशा को केवल वा त वक व ान माना, के वपर त माशल के अथशा को एक
आदश व ान मानते हु ए कहा क एक अथशा ी का काम केवल खोज एवं या या करना ह
नह ं है, बि क आ थक सम याओं को सु लझाते हु ए मानव क याण म नर तर वृ करना है।
ो. रॉ ब स ने अथशा क क याणवाद प रभाषा क कटु आलोचना करते हु ए कहा क
इसने अथशा का े बहु त संकु चत कर दया है, य क इसम केवल भौ तक व तु ओं का ह
समावेश है और अभौ तक व तु ओं क उपे ा कर द गई है। उनके अनुसार अभौ तक साधन से
भी हमारे क याण म वृ होती है - जैसे डाँ टर, वक ल व ोफेसर क सेवाएँ भी धन ाि त का
साधन है और उनसे मनु य क आव यकताओं क पू त भी होती है। इस लए भौ तक के साथ-साथ
अभौ तक साधन का अ ययन भी अथशा का एक अ नवाय वषय है। दूसरे , उ ह ने अथशा
को केवल सामािजक व ान का नह ं वरन मानवीय व ान भी माना है य क अथशा के कु छ
नयम ऐसे ह जो समाज म अथवा समाज के बाहर रहने वाले सभी यि तय पर समान प से
लागू होते है। रो ब स ने माशल वारा आ थक याओं को भौ तक अभौ तक व साधारण-

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असाधारण म बाँटने को भी अवै ा नक माना है य क मानवीय याओं को अलग-अलग वग
म रखना संभव नह ं है।

1.2.3 दुलभता अथवा सी मतता धान प रभाषा

ो. रॉ ब स ने अथशा क प रभाषा पर परागत ल क से हटकर एक नये एवं वै ा नक


तर के से तु त क । रॉ ब स के अनुसार अथशा वह व ान है जो ल य और वैकि पक
योग वाले सी मत साधन के पर पर संबध
ं के प म मानव यवहार का अ ययन करता है।
रॉ ब स क प रभाषा ने अथशा के अ ययन को वै ा नक आधार दान कया है। इस
प रभाषा के तीन आधार ह -
असी मत आव यकताएँ - मनु य क आव यकताएँ असी मत ह। य द एक आव यकता या
इ छा क पू त होती है तो तु रंत नयी आव यकता या इ छा उठ खड़ी होती है। मनु य के सामने
हमेशा यह सम या रहती है क वह कैसे अ धक से अ धक अपनी आव यकताओं क पू त करे एवं
अपनी स तु ि ट को अ धकतम करे ।
दुलभ साधन - मनु य के पास अपनी आव यकताओं क पू त के लए जो साधन है वे
सी मत ह।
ऐसी ि थ त म मनु य को यह चु नाव करना पड़ता है क कन आव यकताओं क पू त करे और
कनको अस तु ट छोड़ दया जाय।
साधन के वैकि पक योग - येक साधन के कई वैकि पक उपयोग ह, अथात ् उनम
से येक को कई भ न- भ न काय म योग कर सकते ह।
जब तक उपयु त तीन परि थ तयाँ उ प न न हो तब कोई आ थक सम या नह ं होती।
य द आव यकताएँ सी मत हो अथात ् मनु य केवल ाथ मक आव यकताओं - जो जीवन के लए
यूनतम आव यक है - तक सी मत रह या आव यकताओं क तरह साधन भी असी मत हो या
येक साधन/व तु का एक ह उपयोग हो तो हमारे सामने कोई सम या नह ं होगी। वा त वकता
म हम दे खते ह, यि त को हर समय चु नाव क सम या का सामना करना पड़ता है य क
उसक आव यकताएँ अ नत है एवं उ ह पूरा करने के लए उपल ध सी मत साधन के वैकि पक
उपयोग है। अत: अथशा को चु नाव का व ान भी कहा जाता है। नःस दे ह रॉ ब स क
प रभाषा ने अथशा को वै ा नक आधार दान कया है, य क उ ह ने व लेषणा मक र त
का योग कर अथशा क सावभौ मकता को काफ हद तक बढ़ा दया। इस प रभाषा का मु ख
दोष यह है क इसने अथशा को अ यि तगत, नीरस तथा उ े य के त तट थ बना दया।
अथशा को सामािजक व ान के थान पर मानवीय व ान बना दया। अथशा को केवल
वा त वक व ान मानकर मानव क याण से उसके संबध
ं को व छे द कर दया। आलोचक क
राय म उस व ान का या फायदा जो मानव यवहार का अ ययन तो करता हो पर तु उसके
भले-बुरे क अथात ् क याण क च ता न करता हो। य य प रॉ ब स क प रभाषा का
सावधानीपूवक व लेषण करने से ात होता है क सी मत साधन से अ धकतम स तु ि ट ा त
करने का ल य सह अथ म अ धकतम क याण का ह तीक है। इस कार अ य प से
इस प रभाषा म क याण का वचार शा मल है।

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रॉ ब स ने एक तरफ अथशा को चु नाव क सम या कहकर उसके े को अ य धक
व तृत कर दया, वह ं दूसर तरफ अथशा को दुलभता ज नत सम याओं के अ ययन तक
सी मत कर उसके े को संकु चत भी कर दया। रो टोव तथा गेल थ
े जैसे वचारक का मानना
है क बड़े पैमाने पर उ पादन, बेरोजगार , आ थक म द जैसे सम याओं का ज म दुलभता के
बजाय चु रता के कारण होता है।

1.2.4 आधु नक अथवा वकास केि त प रभाषा

आधु नक प रभाषा - आधु नक अथशाि य क राय म अथशा केवल सी मत साधन


से सा य को ा त करने हे तु उपयु त आवंटन का ह अ ययन नह ं करता, अ पतु सी मत
साधन के प रणाम म वृ करने के यास का अ ययन भी करता है। दूसरे श द म वतमान
समय म आ थक वकास क सम या को अथशा क वषय व तु म मु खता के साथ
सि म लत कया जा रहा है।
नोबेल पुर कार वजेता अथशा ी ो. पॉल ए. से युलसन के अनुसार अथशा इस
त य का अ ययन है क यि त और समाज, मु ा का योग करके या बना मु ा यु त कये,
वभ न योग म यु त होने वाले दुलभ संसाधन को एक समयाव ध म व भ न व तु ओं के
उ पादन म योग करने और समाज के व भ न यि तय एवं समू ह म वतमान व भावी उपभोग
म योग करने का चु नाव करते ह। से युलसन ने साधन क सी मतता के प र े य म मानव
यवहार के चु नाव के पहलु को अथशा क के य सम या माना है। साथ ह उ ह ने अपने
व लेषण को ावै गक बनाकर आ थक वकास क सम या को अथशा क वषय व तु म
शा मल कर लया।
उपयु त प रभाषाओं से यह प ट है क समय के साथ आ थक याओं क समझ म
वृ व ान के व तार से अथशा क प रभाषा म प रवतन होता रहा है। येक प रभाषा थोड़े
समय उपरा त ु टपूण और अपूण स हो जाती ह।
सार प म यह कहना ह उपयु त होगा क रॉ ब स क प रभाषा सै ाि तक एवं वै ा नक
ि ट से अ धक उपयु त है। जहाँ तक यावहा रक प का न है, माशल क प रभाषा
यथाथवाद है। मानव क याण से े रत व व म माशल क प रभाषा मह वपूण है। वकास
केि त प रभाषाओं का अभी और वकास होना शेष है।
बोध न - 1
(1) धन संबध
ं ी प रभाषा बताइए।
(2) सी मतता धान प रभाषा क या या क िजए।
(3) वकास केि त प रभाषा समझाइए।

1.3 यि ट तथा समि ट अथशा (Micro and Macro


Economics)
आ थक सम याओं का व लेषण ाय: दो तर क से कया जाता है - सू म आ थक
व लेषण एवं वृहत ् आ थक व लेषण एवं इसी आधार पर अथशा क वषय साम ी को दो

(11)
भाग म वभािजत कया गया है - यि ट अथशा एवं समि ट अथशा । इन श द का योग
सव थम रे गनार श (Regnar Frisch) ने कया।
अं ेजी का माइ ो श द ीक श द माइ ोज से बना है, िजसका अथ है, लघु और मे ो
श द मे ोज से िजसका अथ है वशाल। इस कार अथशा म लघु इकाइयाँ जैसे - यि तगत
उपभो ताओं, यि तगत फम तथा यि तगत इकाइय के छोटे समूह जैसे उ योग व बाजार का
अ ययन कया जाता है। समि ट अथशा म स पूण अथ यव था तथा उसके वशाल समूह जैसे
रा य उ पादन व आय, कु ल रोजगार, कु ल उपभोग, कु ल नवेश का व लेषण कया जाता है।
दूसरे श द म, यि ट अथशा , आ थक व लेषण का वह प है जो अथशा के एक छोटे से
भाग का अ ययन करता ह जब क समि ट अथ यव था म स पूण अथ यव था का एक साथ
अ ययन कया जाता है।

1.3.1 यि ट अथशा

यि ट अथशा म हम अथ यव था क अन गनत इकाइय का सू म व लेषण कर


उनके स तु लन का अ ययन करते ह तथा साथ ह इन इकाइय के अंतर संबध
ं क ववेचना भी
क जाती है। उदाहरणाथ, यि ट परक आ थक व लेषण म हम एक व तु के लए एक यि त
क मांग का अ ययन करते ह व इसक सहायता से उस पदाथ क बाजार मांग का पता लगाते ह
(अथात ् उस व तु का उपयोग करने वाले व भ न यि तय के समू ह क मांग का अ ययन)।
इसी कार यि तगत फम के क मत एवं उ पादन नधारण स ब धी- यवहार का अ ययन कया
जाता है और पता लगाया जाता है क मांग व पू त क दशाओं म प रवतन का उनक याओं
पर या भाव पड़ता है?
यि ट आ थक स ा त म हम यह मानकर चलते ह क साधन क मा ा नि चत है
और इस लए मु य सम या साधन के व भ न व तु ओं के उ पादन म आवंटन है। साधन के
आवंटन से ह यह नि चत होता है क कस व तु का कतना व कस कार उ पादन कया
जाये। एक वत बाजार अथ यव था म उ पादन के साधन का आवंटन व तु ओं तथा साधन
क क मत पर नभर करता है। इस कार व तु क मत तथा साधन क मत स ा त यि ट
अथशा के े म सि म लत ह।
व तु क मत स ा त से हम यह पता चलता है क व भ न व तु ओं क क मत कैसे
नधा रत होती है। इसी कार साधन क मत स ा त अथवा वतरण का स ा त हम यह बताता
है क उ पादन के साधन - म, भू म, पू ज
ं ी, साहस एवं संगठन क क मत मश: मजदूर ,
लगान, याज व लाभ का नधारण कैसे होता है।
व तु क क मत उस व तु क मांग एवं पू त क शि तय पर नभर करती है। व तु क
मांग उपभो ताओं के यवहार तथा व तु क पू त उ पादन तथा लागत क दशाओं और फम तथा
उ यमकता के यवहार पर नभर होती है। इस लए व तु एवं साधन क क मत के नधारण को
प ट करने के लए मांग एवं पू त क दशाओं का व लेषण करना आव यक होता है। अत: मांग
स ा त तथा उ पादन स ा त क मत के दो उप वभाग ह।
यि ट अथशा म इस बात का भी अ ययन कया जाता है क साधन का आवंटन
कु शल है अथवा नह ं। साधन के आवंटन म कु शलता से यह ता पय है क व भ न साधन का

(12)
आवंटन इस कार से कया जाये क यि तय को अ धकतम स तु ि ट ा त ह । इस आ थक
कु शलता के तीन पहलु ह (िजनका अ ययन आगे क इकाई म करगे) - उ पादन म कु शलता,
उपभोग कुशलता तथा आवंटन वषयक या उ पादन नदे शन म कु शलता। आ थक कु शलता क
सम या क याणकार अथशा क वषय व तु है जो यि ट अथशा क तीसर मु ख शाखा
है। इस कु शलता का अथ यह है क या व तु ओं का िजस कार उ पादन व उपभोग कया जा
रहा है उसे पुन यवि थत करके कसी व तु क मा ा म कमी कए बना कसी अ य व तु का
उ पादन बढ़ाया जा सकता है।
यि ट अथशा के स पूण े अथात ् वषय व तु को न न कार से प ट कर
सकते ह -

यि ट अथशा म स पूण अथ यव था का सू म अ ययन कया जाता है अथात ् इसम


अथ यव था क यि तगत आ थक इकाइय के यवहार, उनके पर पर संबध
ं तथा संतल
ु न
समायोजन का व लेषण कया जाता है िजससे समाज म साधन के आवंटन का नधारण होता
है। इसे सामा य स तु लन व लेषण भी कहा जाता है। इसके साथ ह इसम व श ट या आं शक
स तुलन व लेषण भी कया जाता है, िजसका अथ है, अ य दशाओं को ि थर मानते हु ए
यि तगत आ थक इकाइय के स तुलन का अ ययन करना।
अथशा म यि ट अथशा अथवा सू म आ थक व लेषण का सै ाि तक एवं
यावहा रक मह व है। यि ट अथशा से ह हम पता चलता है क मु त बाजार अथात ्
पू ज
ं ीवाद अथ यव था िजसम अनेकानेक उ पादक व उपभो ता होते ह, कस कार हजार
व तु ओं और सेवाओं म साधन का आवंटन करते है, कस कार उपभोग के लए व तु ओं और
सेवाओं का वतरण होता है, व तु ओं तथा साधन क सापे क मत कस कार नधा रत होती
है। इस कार अथ यव था के वा त वक व लेषण के साथ यह उन नी तय का सु झाव भी दे ता है
िजससे यि तय के क याण या उनक स तु ि ट को अ धकतम करने के लए आ थक यव था
म से अकु शलता को कैसे दूर कया जा सकता है। यि टपरक आ थक व लेषण का उपयोग
अथशा क यावहा रक शाखाओं जैसे लोक व त व अ तरा य अथशा म कया जाता है।

(13)
1.3.2 समि ट अथशा

आ थक व लेषण का दूसरा मह वपूण प समि ट अथशा है, िजसे यापक अथशा


या कभी-कभी सामू हक अथशा भी कहा जाता है। इसम अथशा का अ ययन सम प से
कया जाता है। इसके अंतगत वशाल समू ह जैसे कु ल रोजगार, कु ल रा य उ पादन अथवा
आय, सामा य क मत तर, कु ल उपभोग, कु ल नवेश आ द का अ ययन कया जाता है। दूसरे
श द म, यह यि तगत आय से नह ं बि क रा य आय से, यि तगत क मत से नह ं बि क
क मत तर से, यि तगत उ पादन से नह ं बि क रा य उ पादन से संबं धत है। इस कार यह
यि तगत इकाइय - जैसे प रवार, फम या उ योग का नह ं वरन ् इन इकाइय के औसत समू ह
का अ ययन है।
समि ट परक आ थक व लेषण इन बात क भी या या करता है क रा य आय व
रोजगार का तर कस कार तय होता है, रा य आय, उ पादन व रोजगार के तर म
उ चावचन कन कारण से होता है, द धकाल म रा य आय क वृ कन त व पर नभर
करती है । दूसरे श द म समि ट अथशा सम त आ थक याओं के तर, उनके उ चावचन
तथा वृ के नधारण का व लेषण करता है ।
1936 म का शत जे.एम. के ज क पु तक ''A General Theory of
Employment, Interest and Money” म आय व रोजगार के सामा य स ा त का
तपादन कया गया है। के ज का स ा त नव ति ठत स ा त से भ न था एवं उसने
आ थक स ा त म इतना मू लभू त प रवतन कया क उनका समि ट परक आ थक व लेषण
कि जयन ां त, केि जयन अथशा तथा नया अथशा के नाम से स हो गया। कज ने
यह बताया क कु ल मांग व कु ल पू त वारा रा य आय व रोजगार का तर कैसे नधा रत
होता है तथा अथ यव था पूण रोजगार से पहले क ि थ त म भी कैसे स तु लन म होती है।
समि ट अथशा क मत के सामा य तर के नधारण तथा मु ा फ त क सम या
का भी अ ययन करता है। समि ट अथशा क एक और मह वपूण शाखा आ थक वकास का
स ा त है। समि ट अथशा कु ल रा य आय के व भ न वग , मक , पू ज
ं ीप तय ,
भू मप तय - म वतरण का भी अ ययन करता है। सं ेप म समि ट परक आ थक व लेषण म
न नां कत स ा त सि म लत कये जाते ह :-

(14)
1.3.3 समि ट अथशा का पृथक् अ ययन य?

अब एक मह वपूण न उठता है क स पूण अथ यव था या इसके वशाल समू ह के


पृथक् अ ययन क आव यकता य ह? या हम यि तगत फम का उ योग के यवहार के
अ ययन से ा त न कष को औसत के आधार पर समि ट अथशा के चर को नयि त
करने वाले नयम को ा त नह ं कर सकते ह? वा तव म जो अथशा क इकाईय के बारे म
स य है आव यक नह ं क वह समू ह के बारे म भी स य हो। यि ट परक तर के से स पूण
आ थक यव था का ववेचन करना गलत है और इससे ामक न कष नकल सकते ह।
आ थक े म ऐसे कई वरोधाभास दे खने को मलते ह िजनसे पता चलता है क जो
नयम इकाईय के लए स य ह पर तु सम त समू ह के लए नह ं। जैसे बचत एक यि त के
लए सदा एक स गुण है पर तु पूर अथ यव था के लए एवं वशेष प से बेरोजगार एवं मंद
क ि थ त म अवगुण बन जाती है य क समूचे समाज वारा अ य धक बचत से सम त समथ
मांग म कमी हो जाती है। जो अथ यव था म मंद एवं बेरोजगार का कारण बनती है। ऐसे
समि टपरक आ थक वरोधाभास के कारण तथा अथ यव था के वा त वक कायचालन को समझने
के लए स पूण अथ यव था का सामू हक अ ययन आव यक है।

1.3.4 समि ट तथा यि ट अथशा का पर पर संबध


वा तव म यि ट एवं समि ट अथशा पर पर नभर ह, एक दूसरे के पूरक है,


तयोगी नह ं। ये आ थक व लेषण के दो वैकि पक प है। आ थक णाल क याशीलता को
समु चत ढं ग से समझने के लए दोन का ववेक सम त उपयोग आव यक है। उदाहरणाथ, कसी
एक फम वारा म एवं अ य क चे माल पर यय क गई रा श अथवा उसक उ पादन लागत
उस वशेष फम क मांग से नह ं बि क समूची अथ यव था क मांग से नधा रत होती है। इसी
कार सामा य क मत तर के नधारण के या या के लए व तु ओं तथा साधन क सापे
क मत का स ा त आव यक है।
ोफेसर ऐकले के अनुसार समि ट अथशा यि तगत यवहार के स ा त के लए
आधार दान करता है। दूसर ओर समि ट अथशा यि ट अथशा को समझने म सहायक ह।
बोध न - 2
(1) यि ट अथशा को प रभा षत क िजए।
(2) समि ट अथशा को प रभा षत क िजए।
(3) यि ट तथा समि ट अथशा का पर पर संबध
ं बताइए।

1.4 आ थक थै तक तथा ावै गक


आ थक थै तक एवं ावै गक अथशा क दो मह वपूण अ ययन व धयाँ ह । इन
दोन व धय के अ तर को प ट करने के लए दो अव थाओं ि थर तथा ग या मक के अंतर
को समझना आव यक है।
अथशा म एक चर को तब ि थर माना जाता है जब क समय प रवतन के साथ उस
चर के मू य म कोई प रवतन न आये। दूसर ओर चर को ग या मक अथवा प रवतनशील तब
माना जाता है जब समय के साथ-साथ उसके मू य म भी प रवतन हो।

(15)
यहाँ यह उ लेखनीय है क चर यि टपरक ि टकोण से प रवतनशील हो पर तु
समि टपरक ि टकोण से ि थर हो। उदाहरणाथ - यि तगत व तु ओं क क मत म प रवतन हो
पर तु समय के दौरान सामा य क मत तर ि थर हो। इसी तरह व श ट चर ि थर हो सकते ह,
जब क स पूण अथ यव था प रवतनशील हो। जैसे अथ यव था म नवल- नवेश का तर म
प रवतन हो तब भी यि तगत फम अथवा उ योग म नवल नवेश ि थर हो सकता है।

1.4.1 थै तक व लेषण

आ थक स ा त का मु ख काय आ थक चर के म य म फलन संबध


ं क या या
करना है। य द फलन संबध
ं उन चर के म य था पत कया गया है िजनके मू य का संबध
ं एक
ह समय या एक ह समय अव ध से है तो इस व लेषण को थै तक कहा जाता है। उदाहरण के
लए मांग का नयम ले सकते ह। इस नयम के अनुसार अ य बात समान रहने पर कसी समय
म मांग म क मत प रवतन क वपर त दशा म प रवतन होता है। दोन चर का संबध
ं एक ह
समय से होने के कारण इन संबध
ं का व लेषण थै तक व लेषण बन जाता है।
थै तक व लेषण क मा यताएँ
थै तक व लेषण म कुछ नधारक दशाओं तथा कारक को ि थर मानकर कसी समय
म संबं धत चर के संबध
ं तथा उनके पर पर समायोजन के प रणाम क या या क जाती ह
जैसे ऊपर दये गये मांग के नयम म व तु क क मत तथा मांग म संबध
ं रथा पत करने के
लए हम उपभो ता क आय, संबं धत व तु ओं क क मत, उपभो ता क पंसद, च, अ धमान,
फैशन इ या द को हम ि थर मान लेते ह। ये कारक अथवा चर समय के साथ प रव तत होते ह
और उनम प रवतन के कारण मांग फलन वव तत हो जाता है। पर तु थै तक व लेषण म
हमारा काय, दये हु ए समय- ब दु पर व तु क क मत एवं मांग के संबध
ं का नधारण करना है,
इस लए हम यह मान लेते ह क अ य नधारक कारक तथा दशाओं म प रवतन नह ं होता है।
थै तक व लेषण के संबध
ं म एक मह वपूण बात यह भी है क द हु ई दशाओं को उन
चर या इकाइय के यवहार से वतं मान लया जाता है, िजनके फलन संबध
ं का अ ययन
कया जा रहा है। अथात ् उपयु त उदाहरण के संदभ म यह मान लया जाता है क व तु क
क मत व मांग म प रवतन का भाव उपभो ता क आय, उसक च व अ धमान , संबं धत
व तु ओं क क मत आ द दशाओं पर नह ं पड़ता।
थै तक व लेषण क उपयो गता
नि चत चर के बीच संबध
ं का अ ययन करते समय अ य दशाओं और कारक को
ि थर मान लेने से ज टल आ थक याओं का अ ययन काय सरल हो जाता है। इसका ता पय
यह नह ं है क वे याह न ह, पर तु दये हु ए समय के लए उनक याओं को भु ला दे ने से
काय सरल हो जाता है।
तु लना मक थै तक
तु लना मक थै तक व लेषण एक ारि भक स तुलन अव था क उस अ य स तुलन
अव था जो क द हु ई दशाओं म प रवतन के फल व प अ तत: ा त होती ह, का तु लना मक
अ ययन है। तु लना मक थै तक उस सम त पथ का व लेषण नह ं करती, िजससे कोई
यव था एक संतु लत ि थ त से चल कर दूसर ि थ त को ा त करती है। इसम केवल दो

(16)
भ न संतु लन क ि थ तय क तु लना क जाती है। दूसरे श द म तु लना मक थै तक म हम
ग तशील या का अ ययन व भ न सा य- ब दुओं के प म करते है।
सं ेप म, थै तक व लेषण म हम समय प रवतन पर यान नह ं दे ते और एक ह
समय ब दु से संबं धत व भ न चर म ता का लक संबध
ं क थापना करते ह। सामा यत: यह
समय र हत होता है, िजसम या क अव ध के वषय म कु छ भी नह ं बताया जाता, पर तु
इसे कसी भी समय अव ध म स य होना कहा जाता है। अथशा क बहु त सी वषय साम ी
िजनका व लेषण थै तक आधार पर कया जाता है, उसम मांग व क मत का या मक संबध
ं ,
सीमा त उपयो गता ास नयम, वत यापार का स ा त, तु लना मक लागत स ा त, लगान
का स ा त, रा य आय का वतरण एवं सीमा त व लेषण मु ख ह।

1.4.2 आ थक ावै गक

जब व लेषण म यु त व भ न चर के मू य का संबध
ं व भ न समय ब दुओं से हो
तो इसको ावै गक व लेषण अथवा आ थक ावै गक कहा जाता है। ो. शु पीटर के अनुसार
''हम एक संबध
ं को ावै गक तब कहते ह य द वह व भ न समय ब दुओं से संबं धत आ थक
मा ाओं म संबध
ं था पत करता है। इस कार य द एक समय ब दु (t) पर व तु क जो मा ा
द जाती है व पूव समय ब दु (t-1) क च लत क मत पर नभर है तो इसको ावै गक संबध

कहा जाएगा।
इस कार आ थक ावै गक म दए हु ए चर के पर पर संयोजन म समय त व को
वीकार कया जाता है।
आ थक याओं म ावै गक संबध
ं के बहु त से उदाहरण दये जा सकते ह। जैसे
यि टपरक व लेषण म क मत एवं व तु क पू त के ावै गक संबध
ं को न न कार दशा
सकते ह -
St =f(Pt-1)
कसी व तु क (t) समय म बाजार म पू त उस व तु क पूव समय (t-1) म च लत
क मत पर नभर करती ह।
इसी कार समि ट परक व लेषण म य द हम यह मानकर चल क चर क
अथ यव था म कसी दये हु ए समय (t) म उपभोग पूव समय (t-1) क आय पर नभर करता
है, तो हम ावै गक संबध
ं क बात कर रहे होते ह - Ct = f (Yt-1)
उपयु त उदाहरण से प ट है क आ थक ावै गक म समय त व मह वपूण है। इसी
आधार पर ो. ह त ने आ थक ावै गक को प रभा षत करते हु ए कहा है क आ थक ावै गक
अथशा क वह शाखा है जहाँ सभी आ थक मा ाओं को दनां कत कया जाता है।
ावै गक यव था म प रवतन अथवा ग त अ तगत होती है, अथात ् एक प रवतन से ह
दूसरा प रवतन उ प न होता है। ार भ म कोई बा य प रवतन हो सकता है, पर तु इस
ारि भक बा य प रवतन के उ तर म, ावै गक यव था बना कसी अ य बा य प रवतन के
वत प से बढ़ती है एवं वगत ि थ तय से उ तरोतर नई ि थ तयाँ उ प न होती रहती ह।
दूसरे श द म ावै गक या का वकास वयं ज नत होता है।

(17)
ावै गक व लेषण म अ य बात के समान रहने नामक मा यता का न ह नह ं
उठता। ावै गक ऐसी व ध है, िजसम सभी प रवतन , वल बनाओं, अनु म , संचयी प रणाम
यहाँ तक क सभी आशंसाओं को सि म लत कया जाता है। पुराने संतु लन के भंग होने व नये
संतु लन क थापना से पूव क समय अव ध म जो आ थक समायोजन ि टगोचर होते ह यह
प त उन सभी का च ांकन करती है।
ावै गक व लेषण को एक उदाहरण से समझा जा सकता है। रा य आय का तर
सम त मांग व तथा सम त पू त व के संतु लन वारा नधा रत होता है। अब य द कसी
कारण जैसे नवेश म वृ होने से मांग म वृ हो जाये तो सम त मांग व ऊपर क ओर
वव तत हो जायेगा, िजसके कारण एक नया संतु लन ब दु था पत होगा और रा य आय का
तर बढ़ जायेगा।

रे खा च 1.1 : समि टपरक ावै गक स तु लन


रे खा च 1.1 म आय नधारण का एक सामा य समि टपरक मॉडल द शत कया गया
है। सम त मांग C+I व वारा य त क गई है। OZ रे खा आय यय के संतल
ु न को दशाता
हु आ व है जो X अ से 45° क रे खा है। सम त मांग रे खा C+I, t समय म OZ रे खा को E
ब दु पर काटती है। इस संतु लन पर रा य आय OYo पर नधा रत होती है। अब य द नवेश
म ∆I से प रवतन होता है तो नयी मांग रे खा से य त होती है। नवेश म वृ के
प रणाम व प आय बढ़नी ारं भ हो जाती है, पर तु संतल
ु न H तक पहु ँ चने म समय लगेगा। t
समय म नवेश म वृ से t+1 समय म नवेश क मा ा के बराबर रा य आय म वृ होगी,
अब यह आय वृ उपभोग म बढ़ायेगी। इस बढ़ हु ई उपभोग मांग म वृ को पूरा करने के लए
उ पादन म वृ क जायेगी, िजससे t+2 समय म आय म वृ होगी। यह म तब तक जार
रहे गा, जब तक नया संतु लन H ा त नह ं कर लया जाये, H ब दु पर रा य आय का तर
OYn होगा।
उपयु त उदाहरण से प ट है क एक संतु लन से दूसरे संतल
ु न तक पहु ँ चने म समय के
साथ चर क मा ा म समायोजन होता है अत: आ थक ावै गक म चर के समय नधारण के
साथ उनम फलना मक संबध
ं भी मह वपूण है। ावै गक अथशा म मु य प से यापार च ,

(18)
जनसं या वृ , याज का स ा त, लाभ व नवेश का स ा त, आ थक वकास एवं नयोजन
आ द का अ ययन कया जाता है।

1.4.3 थै तक एवं ावै गक अथशा क तु लना

(1) थै तक अथशा एक समय र हत वचार है जब क ावै गक अथशा का संबध


ं समय के
व भ न ब दुओं से होता है।
(2) थै तक व लेषण सा य का अ ययन है िजसम समायोजन क या, समय व सा य पथ
पर यान नह ं दया जाता पर तु ावै गक व लेषण असा य का अ ययन है। िजसम
समायोजन क या, समयाव ध एवं सा य के माग पर वशेष यान दया जाता है।
(3) थै तक अव था म ग त हो जाती है पर तु ग त क दर इतनी नि चत व नय मत होती है
क अथ यव था के व प म कोई प रवतन नह ं होता। ावै गक अव था म आधारभू त
शि तयाँ बदल जाती है िजससे अथ यव था का व प पहले से भ न हो जाता है।
(4) थै तक व लेषण अथ यव था को ख ड म बाँटकर अ ययन करता है, जब क ावै गक
व लेषण स पूण अथ यव था का अ ययन है।
बोध न - 3
(1) थै तक व लेषण क मा यताएँ बताइए।
(2) आ थक ावै गक क या या क िजए।

1.5 अथशा क अ ययन व धयाँ


अथशा म नयम एवं स ा त क खोज करने हे तु कुछ व धय का उपयोग कया
जाता है। सामा यत: आ थक अ वेषण म अथशा ी दो व धय का उपयोग करते ह -
1. नगमन व ध (Deductive Method)
2. आगमन व ध (Inductive Method)

1.5.1 नगमन व ध (Deductive Method)

इस व ध म हम सामा य से व श ट क ओर जाते ह। इसके अंतगत मानव कृ त के


कुछ सवमा य आधार मू लक एवं वयं स नयम से तक वारा उप नयम का नमाण करते ह।
दूसरे श द म, इस णाल म मान सक व लेषण वारा सामा य नयम से व श ट नयम
नकालते ह। इस व ध को सबसे यादा टे न के अथशाि य ने उपयोग म लया। इसे
व लेषणा मक, अमू त अथवा नग य व ध भी कहते ह।
नगमन व ध क तीन अव थाएँ होती ह -
1. पयवे ण वारा उन वयं स नयम या प रक पनाओं का चयन कया जाता है, िजनसे हम
न कष नकाले जाते ह।
2. दूसर अव था म ारि भक प रक पना या नयम के आधार पर तक व ध वारा अनुमान
अथवा न कष नकाले जाते ह।
3. तीसर अव था मे पयवे ण वारा पुन : नव था पत न कष का नदशन, पर ण एवं
पुि टकरण कया जाता है।

(19)
उदाहरणाथ – उपयो गता ास नयम के अनुसार जब कोई यि त कसी व तु क
अ धका धक इकाइय का उपयोग करता है तो येक अगल इकाई से ा त होने वाल उपयो गता
गरती चल जाती है। यह एक वयं स स य ह इसे कसी माण क आव यकता नह ं ह
नग य तक व ध वारा इस नयम के आधार पर कई कार के उप नयम नकाल सकते ह,
जैसे मु ा क एक नि चत मा ा से गर ब क अपे ा अमीर को कम उपायो गता ा त होती है।
इसी का और आगे ता कक व लेषण कर तो कह सकते है क य द येक यि त अपनी आय
का एक नि चत तशत कराधान के प म सरकार को दे ता है तो न चय ह अमीर पर कर
का भार कम और गर ब पर अ धक होगा। प टत: कर का बोझ उठाते समय अमीर और गर ब
का याग एक समान नह ं होगा और यह ि थ त कराधान के मह वपूण समानता स ा त के भी
व है। अतएव, कराधान म कर क दर ग तशील होनी चा हये अथात ् िजतनी अ धक आय,
कर क दर भी उतनी ह अ धक होनी चा हये।
नग य तक व ध का योग करते समय हम यथास भव सरल प रक पनाओं से
अ वेषण काय ार भ करना चा हये और फर शनै: शनै: अ धक ज टल उपक पनाओं को
व लेषण मे शा मल करना चा हये। इससे हमारा अ वेषण काय सरल हो जायेगा। वा त वक
जगत एक अ य त क ठन एवं ज टल च तु त करता है और इसी प म इसका अ ययन कर
तो कसी भी न कष पर पहु ँ चना मु ि कल होगा। पर तु सरलतम प से अ ययन ार भ करके
धीरे -धीरे वा त वक जगत क ज टलताओं का अ ययन कर तो यथाथपूण अ ययन करने म
सफल हो जायगे।
नगमन णाल अ ययन क एक सरल णाल है य क इसम हम मानव यवहार से
स बि धत कु छ आधारभूत त य क सहायता से अनेक व श ट प रणाम नकाल सकते ह। इस
वध वारा नकाले गये न कष अ धक नि चत तथा प ट होते ह। साथ ह इस तरह से
तपा दत नयम सव यापी एवं सवका लक होते ह। चू ं क ये नयम मनु य क सामा य कृ त
एवं वभाव पर आधा रत है इस लये उ ह कसी भी दे श, समाज या काल म लागू कया जा
सकता है। इस व ध से ा त न कष न प होते ह य क ये सामा य स य पर आधा रत होते
ह एवं इन पर अनुसंधानकता के वचार का कोई भाव नह ं पड़ता। इस व ध वारा आ थक
घटनाओं के बारे म अ धक अ छे ढं ग से भ व यवाणी भी क जाती ह।
नगमन णाल का मु ख दोष यह है क इस व ध वारा आ थक याओं का अ ययन
केवल थै तक दशाओं म ह कया जा सकता है । इस व ध वारा ावै गक आ थक व लेषण
स भव नह ं ह य क ावै गक अथशा आ थक दशाओं को ि थर नह ं मानता।

1.5.2 आगमन व ध (Inductive Method)

इस व ध म व श ट से सामा य क ओर जाते ह, अत: ये नगमन व ध के ठ क


वपर त ह। इसके अनुसार हम कसी आ थक घटना के बारे म इ तहास के अ ययन अथवा
पयवे ण वारा अनेक त य एक करते ह और फर इन त य के आधार पर सामा य स ा त
का तपादन करते ह। इस णाल का वकास जमनी के ऐ तहा सक स दाय के मु ख
अथशाि य जैसे े ड रक ल ट, रोशर वेगनर आ द ने कया।

(20)
इस णाल के भी तीन मु य भाग है। थम - इ तहास के अ ययन अथवा पयवे ण
वारा त य को एक करते ह। दूसरे भाग म उन त य का वै ा नक वग करण करके उनम से
सामा य न कष नकालते है। तीसरे भाग म इन नकाले हुए न कष क स यता -क पुन : त य
वारा जाँच करते है। आगमन व ध को ऐ तहा सक, अनुभवग य, उ ग य अथवा सम वयमूलक
व ध भी कहते ह।
आगमन व ध के सामा यत: दो प होते ह -
1. पर णा मक प 2. सांि यक प
1. पर ण व ध - इस व ध म नयि त दशाओं के अ तगत कये गये योग के आधार पर
सामा य स य को तपादन कया जाता है। अथशा म इसका े सी मत है य क
अथशा ी के पास योगशाला संबध
ं ी वे सभी सु वधाएँ उपल ध नह ं जो कसी भौ तक शा ी
या रसायन शा ी को उपल ध होती है। अथशाि य क मु य सम या यह है क उनका
अ ययन वषय भू त य नह ं बि क मानव है। मनु य के यवहार का नयि त प र रथ तय
म अ ययन करना संभव नह ं।
2. सांि यक य व ध - इस व ध के अंतगत रा य अथ यव था के व भ न ख ड से संबं धत
त य का सं ह करते है। त प चात ् उनका वग करण एवं सारणीय कया जाता है और
सांि यक य सू क सहायता से उनका व लेषण कर ा त न कष के आधार पर आ थक
स ा त एवं नयम का नमाण कया जाता है।
आगमन व ध से ा त न कष वा त वकता के अ धक नकट होते ह य क ये योग
तथा सव ण पर आधा रत होते ह। ावै गक आ थक व लेषण म यह व ध अ धक उपयु त है।
समि ट अथशा क मु ख सम याओं जैसे रा य आय, रोजगार, आ थक वकास आ द का
अ ययन केवल आगमन व ध वारा ह कया जा सकता है।
आगमन व ध का मु ख दोष यह है क आकड़ को एक त करना, उनका वग करण एवं
सारणीयकरण करना एवं सांि यक व ध से व लेषण करने के लए सांि यक के उ च तर य
ान क आव यकता होती है। इस लए इस व ध का उपयोग वह कर सकता है। िजसे सांि यक
का पूण ान हो। इस व ध से ा त न कष क व वसनीयता इस पर नभर करे गी क आकड़े
कतने सह या व वसनीय ह। इस व ध से ा त न कष पर अनुसध
ं ानकता के यि तगत
वचार का बहु त भाव होता है अत: इन न कष क वीकायता सी मत होती है।
उपयु त ववेचना से प ट है क वै ा नक अनुसंधान म नगमन एवं आगमन दोन
व धय का मह वपूण थान ह। ये दोन तकशा के दो प ह जो एक दूसरे क तयोगी न
होकर पूरक एवं सहसंबध
ं है और स य क थापना म सहायक ह।

1.6 सारांश
अथशा म हम मनु य के यि तगत एवं सामू हक यवहार के उन पहलु ओं का
अ ययन करते ह िजनम व भ न आ थक सम याओं का समाधान अ धकतम संतु ि ट ा त करने
के उ े य से कया जाता है। अथशा के अ ययन क ि ट से यि ट अथशा व समि ट
अथशा दो मु ख शाखाएँ ह िजनम मश: आ थक इकाईय का यि तगत एवं समू ह प म
अ ययन कया जाता है। ज टल आ थक याओं का व लेषण कर आ थक स ा त तपदान

(21)
करने के लए आगमन एवं नगमन व धय का उपयोग कया जाता है। साथ ह व भ न चर
क मा ाओं के बीच संबध
ं के अ ययन के लए थै तक एवं ावै गक व लेषण क व धय का
उपयोग कया जाता है।

1.7 श दावल
यि ट अथशा , यि ट थै तक , तु लना मक यि ट थै तक , समि ट ावै गक ,
समि ट अथशा , समि ट थै तक , तु लना मक समि ट थै तक , समि ट ावै गक , आगमन
व ध, नगमन व ध, आ थक थै तक , आ थक ावै गक ।

1.8 अ यासाथ न
न न ल खत न के उ तर सं ेप म द िजये। (150 श द म)
1. ''अथशा धन का व ान था, अब यह क याण का शा है।'' ववेचन क िजये)
2. ''चयन क सम या ह मूल आ थक सम या है।'' ववेचन क िजये।
3. यि ट एवं समि ट अथशा को प रभा षत करते हु ए इनक वषय साम ी के बारे म
बताइये।
4. थै तक और ावै गक अथशा म अंतर समझाइये।
न न ल खत न के उ तर व तार म द िजये - (500 श द म)
1. ''अथशा को प रभा षत करते समय रो ब स तक यु त व माशल यावहा रक तीत होते
है।'' समझाइये।
2. ''वा तव म नगमन एवं आगमन र तय म कोई वरोध नह ं है। दोन ह आव यक और
एक दूसरे क पूरक है।'' ववचेन क िजये।
3. यि ट तथा समि ट अथशा म अंतर प ट क िजये तथा इनक पार प रक नभरता को
समझाइये।

1.9 संदभ थ
1. आहु जा, एच. एल. - उ चतर आ थक स ा त
2. झंगन एम. एल. - यि ट अथशा
3. सेठ एम. एल. - अथशा के स ा त
4. सु दरम एवं वै य - यि ट अथशा

(22)
इकाई – 2
अथ यव था क के य सम याएँ

2.0 उ े य
2.1 तावना
2.2 अथ यव था क मू लभू त के य सम याएँ
2.2.1 या उ पादन कया जाए? (साधन के आव टन क सम या)
2.2.2 उ पादन कैसे कया जाए? (तकनीक के चु नाव क सम या)
2.2.3 उ पादन कसके लए कया जाए? ( वतरण क सम या)
2.2.4 या साधन का कु शलतापूवक उपयोग हो रहा ह?
2.2.5 या सम त साधन का पूण प से उ पादन के लए उपयोग हो रहा है?
(रोजगार क सम या)
2.2.6 या अथ यव था क उ पादन मता अथवा रा य आय म वृ हो रह ह
(आ थक वकास क सम या)
2.3 क मत तं
2.3.1 क मत तं एवं अथ यव था क मू लभू त सम याएँ
2.4 समाजवाद अथ यव था एवं मू लभूत सम याएँ
2.5 सारांश
2.6 श दावल
2.7 संदभ थ
2.8 अ यासाथ न (Unitend exercise)
(1) येक ख ड के अ त म अ यास न दे ना आव यक है ।
(2) Unit के अ त म इन अ यास न के उ तर इस इकाई म कह ं मलगे, इं गत करना
है ।

2.0 उ े य
इस इकाई के अधययन के प चात ् आप अथवयव था क मू लभू त सम याओं के बारे म
समझ सकेग के य मू लभू त सम याओं के समाधान के बारे म जानकार ा त कर सकग
क मती तं क ववेचना कर सकेग । नयोिजत अथ यव था के बारे म जान सकेग ।

2.1 तावना
येक दे श को, चाहे वो वक सत हो या वकासशील या अ वक सत, दुलभता के कारण
उ प न सम याओं का सामना करना पड़ता ह । दे श क तु लना करने पर ऐसा लग सकता है क
वक सत दे शो के पास वकासशील अथवा अ वक सत दे श क तु लना म यादा संसाधन है पर तु

(23)
दुलभता के अवधारणा वा तव म उस दे श क असी मत आव यकताओं क तु लना म सी मत
साधन क ओर संकेत करती है । येक दे श क अपनी आव यकताएँ है और उनक तु लना म
संसाधन हमेशा कम है । इसी कारण येक दे श या उ पादन कया जाये? कैसे कया जाये ? व
कसके लए कया जाय? जैसी-मू लभू त के य सम याओं का सामना करता है और अपनी
आ थक णाल म इन सम याओं का समाधान करने का यास करता है ।

2.2 अथ यव था क मू लभू त के य सम याएँ


थम इकाई म अथशा क प रभाषा एवं वषय-व तु का अ ययन करते समय यह
बताया गया क अथशा म हम चु नाव क सम या का सामना करते ह । दूसरे श द मे,
यि त अपनी असी मत आव यकताओं को वैकि पक योग वाले सी मत साधन से कैसे पूरा
करता है, इस संबध
ं ी यवहार का अ ययन अथशा ी म करते ह । कसी भी यि त एवं समाज
क के य सम या यह ह क दुलभ साधनो का व भ न त पध सा य के बीच कैसे बंटवारा
कर ।
दुलभता क मू ल सम या के कारण न न ल खत सम याओं का सामना करना पड़ता ह-
1. या उ पादन कया जाये? समाज या दे श कन व तु ओं का कतनी मा ा म उ पादन
कर एवं इन व भ न व तु ओं के उ पादन म संसाधन का आवंटन कस कार ह । इसे
संसाधन के आव टन क सम या भी कहते ह ।
2. कैसे उ पादन कया जाय ? अथात व भ न व तु ओं के उ पादन म कौन सी उ पादन क
तकनीक का योग कया जाय । इसे तकनीक के चु नाव क सम या भी कह सकते ह ।
3. उ पादन कस के लए कया जाये ? अथात कु ल उ पा दत व तु ओं का समाज के
वभ न यि तय के बीच म वतरण कस कार होता है । इसे रा य उ पादन के
वतरण क सम या कहते ह ।
उपयु त तीन न दुलभता क मू ल सम या के कारण उ प न होते ह तथा सभी
अथ यव थाएँ चाहे वे पू ज
ं ीवाद हो, समाजवाद हो या म त कार क ह , उ ह इन न का
समाधान करना होता है । पू ज
ं ीवाद अथ यव था म चू ं क संसाधन के ऊपर नजी वा म व होता
है अत: बाजार, क मत णाल के मा यम से इन न का समाधान करता ह । इसके वपर त
समाजवाद अथ यव था म संसाधन पर सामू हक वा म व अथात संसाधन रा य के अधीन, होते
ह अत: के य योजना के मा यम से यह तय कया जाता है क या उ पादन कया जाय? कैसे
कया जाय व उसका वतरण कैसे ह ? म त अथ यव था म कु छ े जहाँ नजी े को काय
करने क अनुम त है संसाधन का आव टन बाजार म क मत णाल के मा यम से होता है
जब क बाक े म के य योजना के मा यम से आव टन होता है । अब इन न को थोड़ा
और व तार से समझते ह ।

2.2.1 या उ पादन कया जाये? या साधन के आव टन क सम या

येक अथ यव था को यह नणय करना होता है क या उ पादन कया जाय? इसका


ता पय यह है क कन व तु ओं का उ पादन कया जाय व कतनी मा ा म कया जाए ।
अथ यव था म उपल ध संसाधन आव यकताओं क अपे ा कम ह इस लए व भ न व तु ओं एवं

(24)
सेवाओं का उ पादन कया जाये और कनका नह । य द अथ यव था कसी एक व तु का अ धक
मा ा म उ पादन करने का न चय करती है तो उसे क ह दूसर व तु ओं का उ पादन कम
करना पड़ेगा । इस प रि थ त को हम उ पादन संभावना व क सहायता से समझ सकते ह ।
एक उ पादन स भावना व दो व तु ओ (X,Y) के व भ न संयोग को बताता है िजनका
उ पादन उपल ध संसाधन को कुशलतापूवक आव टन करते हु ए तकनीक प से कुशल व ध का
उपयोग करते हु ए कया जा सकता ह । उ पादन स भावना व न न मा यताओं पर नभर ह-
1. केवल दो व तु एँ X (उपभो ता व तु ओ) और Y (पू ज
ं ीगत व तु ओ)ं व भ न अनुपात म
उ पा दत क जाती है !
2. दोन म से कोई एक या दोन व तु एँ उ पा दत करने के लए समान साधन योग कए जा
सकते ह ।
3. साधन क पू तया ि थर है ।
4. उ पादन क तकनीक द हु ई है और ि थर है ।
5. अथ यव था के संसाधन पूण रोजगार म लगे ह और तकनीक तौर पर द ह ।
6. समय अव ध अ प ह ।
उपयु त मा यताओं के साथ उ पादन संभावना अनुसू ची को न न ता लका से दशा
सकते ह ।
ता लका 2.1
उ पादन संभावना अनुसच
ू ी
संभावना X का उ पादन Y का उ पादन
P 0 250
B 100 230
C 150 200
D 200 150
P1 250 0
उपयु त उ पादन समभावना अनुसच
ू ी को न न रे खा च से द शत कया जा सकता है

रे खा च 2.1 : उ पादन स भावना व

(25)
उ पादन संभावना अनुसू ची को ाफ पर रे खां कत करने पर च म दशाए अनुसार व
ा त होता है । PP1 व उ पादन स भावना व है जो दोन व तु ओ के व भ न संयोग को
बताता है । येक संभावना व उ पादन संयोग का ब दु पथ है जो क साधन क एक
नि चत मा ा से ा त कया जा सकता है । उ पादन संभावना व यह दशाता है क जब एक
व तु का उ पादन बढ़ाया जाता है तो दूसर व तु का उ पादन कम करना पड़ेगा । उ पादन
स भावना व मू ल ब दु के नतोदर होता है िजसका अथ यह क व तु X क अ त र त इकाइयाँ
ा त करने के लए Y क उ तरो तर अ धक इकाइय का याग करना पड़ता है । उ पादन
संभावना व के भीतर कसी भी संयोग R का अथ है क समाज उपल ध साधन का पूरा
उपयोग नह ं कर रहा है ।
उ पादन संभावना व बाहर ि थत कसी ब दु K का अथ है इस संयोग के उ पादन के लए
पया त साधन नह है ।

2.2.2 व तुओं का उ पादन कैसे कया जाए? अथात ् उ पादन तकनीक के चु नाव क सम या

उ पादन कैसे कया जाय? से ता पय यह है क व तु ओं का उ पादन कस व ध से


अथवा तकनीक से कया जाये । व तु उ पादन क अनेक वैकि पक तकनीक होती ह और
अथ यव था को उ ह ं म से कसी एक तकनीक का चु नाव करना होता है । सामा यत: तकनीक
को दो भाग म बांटते ह - म गहन तकनीक एवं पूँजी गहन तकनीक । उ पादन क वभ न
तकनीक मे साधन का भ न- भ न मा ा म योग कया जाता है । म गहन तकनीक मे
अ धक म और पूँजी तथा पू ज
ं ी धान तकनीक म पू ज
ं ी अ धक तथा अपे ाकृ त कम म का
उपयोग कया जाता है । उ पादन कैसे कया जाये अथवा तकनीक के चु नाव को और अ धक
प ट प से ऐसे कहा जा सकता है क एक व तु के उ पादन के लए साधन के कौनसे संयोग
का उपयोग करना है । साधनो क दुलभता यह आव यक कर दे ती है क व तु ओं का उ पादन
कु शलता से कया जाए । व भ न तकनीक म से उ पादन क उस तकनीक को चु ना जायेगा
उ पादन लागत कम हो ।
यहाँ यह उ लेखनीय है क आ थक साधन असमान प से दुलभ ह अथात कु छ साधन
दूसर क अपे ा अ धक दुलभ ह । अत: यह समाज के हत म है क उ पादन के वे तर के
अपनाए जाएँ िजनम अपे ाकृ त पया त साधन का अ धकतम उपयोग कर और अपे ाकृ त दुलभ
साधन का कम से कम योग कर ।

(26)
रे खा च 2.2 : उ पादन संभावना ब एवं तकनीक का चु नाव
अथ यव था क इस दूसर के य सम या को समझने के लए उ पादन स भावना व
का योग पर प म कर सकते ह । कसी व तु के उ पादन म संसाधन को कस अनुपात म
जोड़ा जाय यह उ पादन के तर के या तकनीक के चु नाव क सम या है । माना क X1 म
धान और X2 पू ज
ं ी धान व तु है । रे खा च म ox अ पर म धान व तु X1 तथा OY
अ पर पू ज
ं ी धान व तु X2 को लया गया ह । AB उ पादन संभावना व है । य द हम
इसके N ब दु पर ह तो इसका ता पय है, तु लना मक प से हम पू ज
ं ीगत व तु X2 का अ धक
उपयोग कर रहे है । इसके वप रत M ब दु यह दशा रहा है क अथ यव था म गहन तकनीक
का अपे ाकृ त अ धक उपयोग कर X1 व तु का अ धक उ पादन कर रह है ।

2.2.3 कसके लए उ पा दत कया जाय? अथात समाज म व तु ओं का वतरण कस कार


ह (रा य उ पादन क सम या)

रा य उ पादन का वतरण कैसे ह ? से ता पय यह है क व तु ओं एवं सेवाओं क कु ल


उ पादन मा ा को समाज के सद य म कैसे वत रत कया जाय । रा य उ पादन का वतरण
मौ क आया के वतरण पर नभर करता है । िजनक मौ क आय अ धक है उनक य शि त
अ धक होगी और इस लए वे व तु ओं और सेवाओं अ धक मा ा म ा त करगे । िजनक मौ क
आय कम है उनक व तु ओं को खर दने क मता कम होगी और इस लए उ ह कम व तु एँ व
सेवाएं ा त ह गी ।
अब न यह उठता है क समाज के व भ न यि तय म मौ क आय का वभाजन
कैसे ह ? समाज के यि तय क मौ क आय उनके वा म व म उपल ध संसाधन -भू म, म
एवं पू ज
ं ी को उ पादन के लए उपल ध कराने के कारण होती है । म, भू म और पू ज
ं ी उ पादन
के व भ न साधन ह और रा य उ पादन अथवा आया को उ पा दत करने म अपना-अपना
योगदान दे रहे ह और अपने इस योगदान के बदले म क मत अथवा पा र मक ा त करते ह ।
साधन को ा त आय उ पादनक ता के लए साधन क सेवाएँ ा त करने क क मत है । अत:
वतरण का स ा त वा तव म साधन क क मत नधारण का स ा त है ।

(27)
प ट है क साधन क क मत स ांत के प म वतरण स ांत आय के काया मक
वतरण का ववेचन करता है न क आय के वैयि तक वतरण का य क इसम केवल इस बात
क या या क जाती है क साधनो क क मत जैसे मक क मजदूर , भू म का लगान, पू ज
ं ी
पर याज तथा उ यमक ता के लाभ कस कार नधा रत होते ह । एक यि त को ा त आय
इस बात पर नभर करे गी क उसने वयं उ पादन म कतना योगदान कया व कतनी मा ा म
भू म, पू ज
ं ी आ द साधन का वामी है । उ पादन के साधन का नजी वा म व एवं अ धकार म
होना पू ज
ं ीवाद णाल का मु ख अंग है । इस लए समाज म स प त का वतरण आय म
वयैि तक वतरण को वशद प से भा वत करे गा । सामा यतया पू ज
ं ीवाद अथ यव थाओं म
संसाधन (स प त) के वतरण म अ य धक असमानता पायी जाती है । इसी कारण आय क
वतरण म भी अनुपात म असमानता पायी जाती है ।
वतरण क सम या क भी या या उ पादन संभावना व के मा यम से अ य प
से क जा सकती है । जैसा क प ट कया जा चु का है क आय का वतरण संसाधन के
वतरण एवं उनक क मत पर नभर करता है । साधन क क मत साधन बाजार म साधन क
सापे दुलभता पर नभर करती है । भारत जैसे म क अ धकता वाले दे श म म क मजदूर
कम होगी तथा पू ज
ं ी दुलभ होने से याज दर ऊँची होगी । उ पादन संभावना व से एक मोटा
अनुमान आय के वतरण के बारे म लगाया जा सकता है ।

रे खा च 23. उ पादन स भावना व एवं आय का वतरण


साथ म दये गये उ पादन संभावना व AB साइ कल एवं कार के उ पादन को दशाता
है । य द अथ यव था उ पादन संभावना व के C ब दु पर उ पादन करती है जहाँ साइ कल
का उ पादन कार क तु लना म अ धक हो रहा है तो यह माना जा सकता है क आय के वतरण
म काफ समानता है । इसके वपर त D ब दु यह दशाता है क कार का उ पादन साइ कल क
अपे ा यादा हो रहा है तो यह आय के वतरण म असमानता का घातक है !
उपयु त तीन मू लभू त सम याओं के साथ कु छ और भी मह वपूण न ह िजनका
समाधान आव यक होता ह । ये ह :-

(28)
2.2.4 या साधन का कु शलता पूवक उपयोग हो रहा ह

जैसा क ऊपर बताया गया है क साधन दुलभ ह इस लए यह वांछनीय है क उनका


कु शलतापूवक उपयोग हो । या उ पादन कर, कैसे कर व उसका वतरण कैसे ह ? इन न के
बाद यह जानना समु चत होगा क या उ पादन एवं वतरण कु शलतापूवक हो रहा ह । उ पादन
कु शल तब कहलायेगा जब उ पादन के साधन को व भ न व तु ओं के उ पादन म इस कार
योग कया जा रहा हो क उनके व भ न व तु ओं म पुनराव टन से कसी व तु के उ पादन को
घटाए बना दूसर व तु के उ पाद बढ़ाना संभव न हो । उ पादन और साधन का आव टन
अकु शल होगा य द कसी व तु का उ पादन घटाऐं बना दूसर व तु का उ पादन बढ़ाना संभव
हो।
इसी कार रा य उ पादन का वतरण अकुशल होता है य द यि तय म व तु ओं के
पुन वतरण से कसी यि त क संतु ि ट को कसी अ य यि त क संतु ि ट घटाऐं बना, बढ़ाया
जा सकता ह
साधन एवं व तु ओं का कु शलता पूवक आव टन एवं वतरण समाज के अ धकतम
क याण को सु नि चत करता है । सम प म कसी भी अथ यव था म आ थक याओं का
मु य उ े य समाज अथवा दे श के आ थक क याण को अ धकतम करना होता है । अत: उ पादन
एवं वतरण क कु शलताओं एवं अकु शलताओं का अ ययन क याणकार अथशा क मु ख
वषय-व तु है ।
आ थक कु शलता एक वृहत अवधारणा है िजसके तीन मु ख घटक ह-
1. तकनीक कु शलता
2. आवंटन वषयक कु शलता
3. उपभोग अथवा वतरण वषयक कु शलता
तकनीक कु शलता से यह ता पय है क फम, उ योग अथवा स पूण अथ यव था वारा
अपने संसाधन का पूण प से अ धकतम उ पादनशीलता से योग कर अ धकतम उ पादन क
अव था को ा त करना है । जब यह तकनीक कु शलता ा त होती है तो फर साधन के पुन :
आवंटन से एक व तु के उ पादन म वृ कसी अ य व तु का उ पादन घटाए बना संभव नह ं
होती ।
आवंटन वषय कु शलता का यह अथ है क अथ यव था अपने उपल ध साधन से
व तु ओं के उस संयोग का उ पादन कर रह होती है िजसको. उपभो ता चाहते ह अथात व तु
उ पादन का ढाँचा उपभो ताओं के अ धमान के अनु प होता है । आवंटन वषयक कु शलता करके
कु छ लोग क संतु ि ट म वृ करना क ह ं अ य क संतु ि ट म कमी कये बना संभव नह ं
होगा ।
यहाँ यह उ लेखनीय है क जब कसी समाज ने तकनीक कु शलता ा त कर ल हो तो
यह आव यक नह ं हक उसन आवंटन वषयक कु शलता भी ा त क हो । तकनीक कु शलता के
साथ य द उ पादन का ढाँचा उपभो ता के अ धमान के अनु प नह ं है तो आवंटन वषयक
कु शलता ा त नह ं होगी । आवंटन वषयक अकु शलता क ि थ त म उपभो ताओं के ाथ मकता
म म उ च थान वाल व तु ओं क पू त कम होगी और न न ाथ मकता वाल व तु एँ यादा

(29)
उपल ध ह गी । ऐसी ि थ त अवांछनीय होगी । अत: यह कहा जा सकता है क समाज को
उपल ध संसाधन से न केवल अ धकतम संभव उ पादन करना है बि क साधन को व भ न
व तु ओ तथा सेवाओं के उ पादन म इस कार आवं टत करना है जो उपभो ताओं क
आव यकताओं तथा अ धमाना के अनु प ह ।
आ थक कु शलता का तीसरा पहलू उपभो ताओं म व तु ओं व सेवाओं के अनुकू लतम
वतरण से संबि धत है । इसे वतरण वषयक कु शलता अथवा उपभोग- वषयक कुशलता कहा
जाता है । इसका ता पय यह है क उ पा दत व तु ओं का समाज के व भ न उपभो ताओं म इस
कार से वतरण हो क उसके बाद कसी भी पुन वतरण वारा कसी उपभो ता क संतु ि ट म
कमी कये बना अ य कसी उपभो ता क संतु ि ट म वृ करना संभव ह ।
अत: आ थक कु शलता ा त करने म हम उपयु त तीन कु शलताओं को ा त करना
होगा ।

2.2.5 या सम त साधन का पूण प से उ पादन के लए योग हो रहा ह? अथात रोजगार


क सम या

अथशा क वषय व तु एवं मू लभू त सम याओं क ववेचना म यह बात मु खता से


उभर क आव यकताओं एवं इ छाओं क तु लना म उ ह पूरा करने के लए उपल ध संसाधन क
मा ा सी मत है । ऐसे मे साधन के पूण उपयोग क चचा करना आ चय जनक लग सकता है
य क जब साधन दुलभ ह तो यह अपे त है क समाज के लोग क अ धकतम संतु ि ट के
लए उपल ध सभी साधन का पूण उपयोग कया जायेगा । ले कन अथ यव थाओं म, वशेषकर
पू ज
ं ीवाद अथ यव थाओं म ऐसी ि थ तयाँ बनती ह जब भार मा ा म म-शि त एवं उ पादन के
अ य साधन का पूण उपयोग नह ं होता । ऐसा ि थ त को अथ यव था म मंद क ि थ त से
जाना जाता ह । पू ज
ं ीवाद अथ यव था म जब सम त भावी मांग म कमी होती है तब एक ओर
मक म यापक बेरोजगार फैल जाती है वह ं दूसर ओर कारखान व अ य उ पादन के ो का
उ पादन कम हो जाता है अथवा उ ह पूर बंद करना पड़ता है । इं लै ड के सु स अथशा ी ज
एम. के ज ने 1930 क मंद का यापक अ ययन कर साधन के यापक पैमाने पर बेकार पड़े
रहने के कारण क या या अपनी पु तक ''General Theory of Employment, Interest and
Money'' म तु त क । के ज के व लेषण से आ थक स ांत का वषय े व तृत हु आ तथा
पू ज
ं ीवाद अथ यव था के कायकरण के संबध
ं म हमार जानकार म वृ हु ई । के वारा े रत
आ थक स ांत क इस शाखा म समूची अथ यव था म कु ल रोजगार, रा य आय तथा सामा य
क मत स ांत का अ ययन कया जाता है िजसे समि टपरक आ थक स ांत कहते ह । इसके
तहत उन त व क ववेचना क जाती है िजनके वारा रा य आय के तर का नधारण एवं
उसम उतार-चढ़ाव अथात ् यावसा यक च उ प न होते ह ।

2.2.6 या अथ यव था क उ पादन मता अथवा रा य आय म वृ हो रह ह? अथात


आ थक वकास क सम या

उपयु त सभी न अथवा सम याओं के साथ ह यह जानना भी मह वपूण है क समय


के साथ अथ यव था क उ पादन मता म कस कार प रवतन हो रहे ह ? या अथ यव था

(30)
क उ पादन मता बढ़ रह ह, ि थर है अथवा घट रह है । अथ यव था क उ पादन मता म
वृ का अथ यह है क व तु ओं एवं सेवाओं का उ तरो तर अ धक उ पादन करना संभव हो
सकेगा । उ पादन मता म वृ के फल व प उ पादन एवं रा य आय म वृ होने को
आ थक वकास कहा जाता है ।
वक सत अथ यव थाओं म यापार च के प म आने वाल आ थक ि थरता एवं
वकासशील एवं पछडे दे श म द र ता एवं बेरोजगार दूर करने के यास के प रणाम व प
अथशा ीय म वकास को सम या का अ ययन करने क च जागृत हु ई एवं िजससे कई
आ थक वकास मॉडल अि त व म आय ।
आ थक वकास क सम या के अ ययन म यह हम यह जानने क को शश करते ह क
रा य आय के कतने भाग का लोग वारा उपभोग कया जाता है और कतना बचाया जाता है
ता क उसे नवेश के मा यम से पू ज
ं ी नमाण काय म लगाया जा सके । य द कसी समय
अथ यव था म उ पा दत होने वाले सम त उ पादन का उपभोग कर लया जाय तो बचत शू य
होगी एवं फल व प नवेश एवं पू ज
ं ी नमाण क दर भी शू य हो जायेगी । ऐसी ि थ त म
आ थक वकास न केवल क जायेगा अ पतु भ व य म रा य उ पादन और आय घट जायग ।
उपभोग और नवेश के बारे म नणय करने का अथ यह है क वतमान वष म उपल ध
साधन से कतनी मा ा म उपभो ता व तु एँ एवं कतनी मा ा म पू ज
ं ीगत व तु ओं का उ पादन
कया जाये । कसी दे श क पू ज
ं ीगत व तु ओं म शु वृ : भ व य म रा य आय व उ पादन मे
वृ का सूचक है । अत: प ट है क पू ज
ं ीगत व तु ओं के उ पादन म वृ या नवेश बढ़ाने के
लए कु छ उपभोग का याग करना पड़ेगा । दूसरे श द म उपभोग एवं बचत ( नवेश) के नणय
वतमान और भ व य के चयन क सम या है ।
एक अथ यव था क ये सभी के य सम याएं पर पर संबं धत और नभर ह । पहल
चार सम याएं अथात साधनो का आवंटन, तकनीक का चु नाव, वतरण क सम या एवं आ थक
क याण यि ट अथशा से संबं धत ह एवं थै तक कृ त क ह जब क रोजगार क सम या
एवं आ थक वकास क सम या समि ट अथशा से स ब ह तथा ावै गक कृ त क ह । इन
सम याओं का हल पू ज
ं ीवाद समाज म क मत तं के मा यम से तथा समाजवाद यव था म
नयोजन के मा यम से कया जाता है िजसके ववेचन हम आगे. कर रहे है ।
बोध न- 1
1. व तु ओं व उ पादन कैसे कया जाये? बताइए
2. रा य उ पादन के वतरण क सम या के बारे म समझाइए

2.3 क मत तं
पू ज
ं ीवाद या मु त अथ यव था म िजससे क मत णाल संबध
ं रखती है, उ पादन के
साधन नजी वा म व म होते ह । यि तय को अपनी इ छानुसार स प त ा त करने, उसका
उपयोग करने, उसे बेचने या प े पर दे ने का अ धकार है । उ ह पर पर वीकृ त क मत पर सौदे
करने क वतं ता है । येक यि त उपभो ता, उ पादक और साधन वामी के प म पया त
वतं ता के साथ आ थक याओं म भाग लेता है । इस कार क अथ यव था म क मत तं ,

(31)
जो क पार प रक व नमय तथा सम वय क णाल है, आ थक याओं क कु शलतापूवक
यव था और पथ- दशन करती है ।
एक तयोगी बाजार म व तु ओं और सेवाओं क पू त और मांग वारा क मत तं काय
करता है। क मत अनेक व तु ओं एवं सेवाओं के उ पादन को नधा रत एवं नयोिजत करती ह,
व तु ओं तथा सेवाओं के वतरण म सहायता दे ती ह, व तुओं क पू त को नय मत और आ थक
ग त का माग श त करती ह ।

2.3.1 क मत तं एवं अथ यव था क मू लभू त सम याएँ

या और कतना उ पादन करना ह? इस सम या का ववेचन पूव म कया जा चु का है


। यह हम यह बताने का यास करगे क क मत तं से इसका हल कैसे होता है ।
वा तव म, उपभो ता को अनेक कार क व तु ओं म से चु नाव करना पड़ता है । कु छ
व तु ओं के लए वशेष इ छा का अथ है क उपभो ता उसके लए अ धक क मत दे ने को तैयार
है । इसके वपर त िजन व तु ओं के त उपभो ता क च कम ह, कम क मत दे न को तैयार
होगा । इस कार उपभो ता क मत के वारा बाजार म व तु ओं के त अपनी पसंद एवं मांग
को कट करता है । उ पादनक ता बाजार म क मत मा यम से कट हु ए अ धमान के आधार
पर यह तय करे गा क वह या उ पादन कर । चू ं क उ पादनक ता का उ े य अपने लाभ को
अ धकतम करना है अतएव वह उन व तुओं का उ पादन करे गा िजनम उपभो ताओं क अ य धक
च है व िजसके लए वह ऊँची क मत दे ने को तैयार है तथा उन व तु ओं का कम उ पादन
करे गा िजनक क मत कम है अथात ् िजनम उपभो ताओं क कम च ह ।
व तु ओं क क मत एवं उनम होने वाले प रवतन उ पादक एवं उपभो ता के लए पथ-
दशन का काय करती है । य द कसी व तु क क मत बढ़ने लग जाये तो यह उपभो ता के
लए संकेत होगा क वह उस व तु को कम मा ा म खर द । इसके वपर त बढ़ती क मत
उ पादक को े रत करे गी क वह उस व तु का यादा उ पादन करे । ऊँची क मत एवं अ धक
लाभ नए उ पादक को भी आक षत करगी । प रणाम व प साधन वामी अपने साधन को ऊँची
क मत वाले उ योग म लगा दगे । इस कार उस व तु का अ धक उ पादन होने लग जायेगा
और जब पू त मांग से अ धक हो जायेगी तो क मत पुन : गरने लगेगी । इसके वपर त कम
क मत वाल व तु के उ पादन से साधन हटते ह तो अ तत: उसका उ पादन कम होने लग
जायेगा एवं मांग के पू त से अ धक होने क ि थ त म उसक क मत बढ़ने लगगी । यह वृि त
तब तक चलेगी जब तक व तु ओं क मांग व पू त म संतल
ु न था पत नह ं हो जाता । इस कार
मांग एवं पू त क शि तयाँ बाजार म नर तर याशील रहती है एवं मांग एवं पू त के संतल
ु न
से तय होने वाल क मत उ पादक का पथ- दशन करगी क वे या उ पादन कर व कतना
उ पादन कर ।
क मत तं का अगला काय व तु ओं के उ पादन म यु त होने वाल तकनीक के चु नाव
का है । साधन सेवाओं को मलने वाला तफल उनक क मत है अथात मजदूर , लगान, याज
एवं लाभ उ पादन के साधनो क क मत ह जो उ यमी दे ता है ।
द तम उ पादन या का योग येक उ पादक का ल य होता है । आ थक ि ट से
द तम उ पादन या वह है जो यूनतम लागत से व तु ओं का उ पादन करती है । उ पादन

(32)
तकनीक का चु नाव वा तव म साधन के संयोग का चु नाव है जो साधन सेवाओं क सापे
क मत और उ पादन क व तु ओं क मा ा पर नभर करता है ।
उ पादक, उ पादन लागत को घटाने के उ े य से महँ गे साधन को स ते साधनो से
त था पत करता है । य द म क अपे ा पू ज
ं ी स ती है तो उ पादक पू ज
ं ी गहन तकनीक का
चु नाव करे गा एवं इसके वपर त प रि थ त म म गहन तकनीक को चु नेगा । इस कार हम
दे खते ह क साधन क क मत यह तय करती ह क उ पादन कैसे कया जाय ।
क मत आय के वतरण को नधा रत करने म भी मदद करती ह । मु त अथ यव था म
व तु वतरण एवं आय वतरण एक दूसरे पर नभर रहते ह यह णाल पार प रक व नमय क
णाल है िजसम ाय: वह यि त उपभो ता भी है और उ पादक साधन वा मय से साधन क
सेवाएँ ा त करने के लए उ ह भु गतान करता है एवं व तु एँ बेचने के बदले पुन : भु गतान ा त
करता है । उ पादक के लए जो लागत है, साधनो के लए वह आय है एवं उपभो ता के लए
खच है वह उ पादक क आय है । इस कार उ पादक से उपभो ता से पुन : उ पादक क ओर
आय का वाह होता रहता है । आय के इस वाह म क मत मह वपूण ह ।
क मत णाल अथ यव था के संसाधन का पूण उपयोग करने म भी सहायक होती ह ।
संसाधन के पूण उपयोग से अ भ ाय पूण रोजगार से है । इस ि थ त को बचत व नवेश क
समानता वारा य त कया जाता है । एक वृ शील अथ यव था म बचत और नवेश म
समानता याज दर के मा यम से था पत क जाती ह य द बचत क तु लना म नवेश कम है
तो याज दर म कमी के मा यम से नवेश बढ़ाया जाता है एवं उसे बचत के तर पर लाया
जाता है ।
क मत आ थक वकास को भा वत करने वाल मु ख कारक ह । क मत तं के मा यम
से सु धार, नव- वतन और वकास क ेरणा मलती ह । ऊँची क मत एवं लाभ से े रत होकर
औ यो गक सं थाएँ और उ यमी इस बात के लए ो सा हत होते ह क अ छ तकनीक का
वकास और उनम नर तर सु धार हे तु अ वेषण और ायोगीकरण पर अ धक यय कर ।
अथ यव था क मत के मा यम से ह अपने आपक इ छाओं, साधन और तकनीक म प रवतन
के अनुकू ल ढालती है । नःसंदेह, आ थक वकास बहु त से अ य कारक पर भी नभर करता है,
फर भी, ि थरता के साथ आ थक वकास म क मत मह वपूण भू मका नभाती ह ।
इस कार मु त पू ज
ं ीवाद अथ यव था म मांग एवं पू त के मा यम से कायशील क मत तं
मु ख संगठना मक शि त का काम करता है । क मत तं , कस व तु क और कतनी मा ा
म उ पादन कया जाये, इसका नधारण करता है । यह णाल साधन सेवाओं का तफल तय
करती है और साधन का उपयु त दशाओं म आवंटन करके आय के समान वतरण का यास
करती है । यह व तु ओं के वतरण, संसाधन के पूण उपयोग एवं आ थक वृ का मु ख साधन
है ।
बोध न - 2
1. क मत तं को प रभा षत क िजए
2. र यत तं से उ पादन क सम या का समाधान कैसे होता ह? या या क िजए ।

(33)
2.4 समाजवाद अथ यव था एवं मू लभू त सम याएँ
एक समाजवाद या नयोिजत अथ यव था म बाजार का काय के य आयोजन
ा धकरण करता है य क उ पादन के सभी संसाधन का वा म व एवं नयं ण सरकार वारा
होता है । इस लए या उ पा दत करना ह? कैसे उ पा दत करना ह ? आ द न का समाधान
एक के य योजना के ढाँच के अ तगत कया जाता है । कस कार क व तु एँ कतनी मा ाओं
म उ पा दत होगी, इसका नणय आयोिजत अ धकार वारा नयत कए गए उ े य , ल य और
ाथ मकताओं के आधार पर कया जाता है । व भ न व तु ओं क क मत भी इसी अ धकार
वारा तय क जाती है । उपभो ताओं का चु नाव उन व तु ओं तक सी मत होता ह िज ह
आयोजक उ पा दत करने और पेश करने का नणय लेते ह ।
व तु ओं को कैसे उ पा दत करना है, इसका नणय भी के य आयोजन के मा यम से
होता है । साधनो का व भ न उ पादन म आवंटन एवं उ पादन का पैमाना के य आयोजन
वारा नधा रत नयम के अनुसार होता है । इन नयम के लए मागदशक त व ह- उ पादन का
ऐसे ढं ग से संयोजन करना क औसत लागत यूनतम हो एवं उस पैमाने को चु ने जो सीमांत
लागत को क मत के बराबर कर । य क सभी साधन पर सरकार का वा म व है इस लए ये
संसाधन उन क मत पर व भ न उ योग को दये जायगे जो उनक सीमा त लागत के बराबर
होती है । यह क मत लेख क मत ह एवं उनका केवल ाचा लक योग (Parametric Use) है ।
कसके लए उ पादन कया जाए क सम या का भी के य योजना अ धकार योजना
के उ े य के अनु प समाधान करता है । इस संबध
ं म नणय करते समय सामािजक अ धमान
को अ धक मह व दया जाता है । ऐसी व तु ओं और सेवाओं के उ पादन को अ धक मह व दया
जाता है िजनक अ धक लोग को आव यकता होती है । व तु ओ का वतरण लोग क यूनतम
आव यकताओं के आधार पर सरकार दुकान वारा नि चत क मत पर होता है ।
योजनाब अथ यव था म क मत तं नय मत तथा नयं त होता है । क मत क
भू मका लेख के आधार तक सी मत है । क मत तं का काय उ चत लागत लेख के मा यम से
अथ यव था म अ धकतम उ पादक द ता सु नि चत करना और लोग को पया त ेरणाएँ दान
करना है । व तु ओं क क मत क भू मका सामािजक अ धमान को य त करने तक सी मत है
। इस कार समाजवाद अथ यव था म क मत तं क मु त अथ यव था क तु लना म सी मत
भू मका है य क रा य उ पादन एवं वतरण के सभी -साधन का वा म व, नयं ण एवं
नयमन करता ह ।

2.5 सारांश
उपयु त ववेचन से प ट है क सभी कार क अथ यव थाओं को समान मू लभू त
के य सम याओं का सामना करना पड़ता है । यि टगत एवं समि टगत आ थक व लेषण के
आधार पर इन सम याओं का अ ययन कया जा सकता है । येक अथ यव था अपनी कृ त
के अनुसार इन सम याओं का समाधान करती है । पू ज
ं ीवाद मु त अथ यव था म बाजार वारा
क मत णाल के मा यम से इन सम याओं का समाधान तु त कया जाता है जब क
समाजवाद नयोिजत अथ यव था म के य आयोजन के मा यम से समाधान ा त करते ह ।
समाधान चाहे क मत णाल से ा त हो या नयोजन वारा उनक सफलता तभी मानी जायेगी

(34)
जब क ये समाधान साधन के आवंटन म कु शलता को नि चत कर, यूनतम लागत पर
अ धकतम उ पादन कर, आय के वतरण म समानता हो, साधन पूण प से रोजगार म लगे ह ,
लोग का अ धकतम आ थक क याण हो एवं अथ यव था नर तर ग त कर अथात उसक
उ पादन मता म लगातार वृ होती रहे ।

2.6 श दावल
दुलभता कु शलता वतरण वषयक
संसाधन / उ पादन के साधन कु शलता
साधनो का आवंटन आ थक क याण
उ पादन तकनीक; म गहन आय का वतरण
तकनीक, पू ज
ं ीगत तकनीक बाजार
उ पादन स भावना व क मत तं / क मत णाल
साधन क मत आ थक आयोजन
आ थक कु शलता तकनीक समाजवाद या नयोिजत अथ यव था

2.7 अ यासाथ - न
न न ल खत नो के उ तर सं ेप म द िजये - (15० श द म)
1. अथ यव था क मु ख के य सम याओं को सं ेप म बताइये ।
2. आ थक कु शलता क अवधारणा को समझाइये ।
3. क मत तं पर एक ट पणी ल खये ।
न न ल खत न के उ तर व तार से द िजये- (500 श द म)
1. मु त पू ज
ं ीवाद अथ यव था म क मत णाल कस कार के य सम याओं का समाधान
तु त करती है? समझाइये ।
2. आ थक नयोजन वारा के य सम याओं के समाधान पर काश डा लये ।

2.8 संदभ – ंथ
1. आहु जा, एच. एल-उ चतर आ थक स ांत
2. झंगन एम. एल. - यि ट अथशा
3. सेठ एम. एल.- अथशा के स ांत
4. सु दरम एवं वै य - यि ट अथशा

(35)
इकाई - 3
उपभो ता का यवहार : उपयो गता व लेषण

3.0 उ े य
3.1 तावना
3.2 उपयो गता
3.2.1 उपयो गता एवं स तु ि ट
3.2.2 उपयो गता गणनावाचक एवं मवाचक ि टकोण
3.3 उपयो गता का गणनावाचक व लेषण या सीमा त उपयो गता व लेषण
3.3.1 व लेषण क मा यताएँ
3.3.2 सीमा त उपयो गता एवं कुल उपयो गता
3.3.3 सीमा त उपयो गता ास नयम
3.3.4 सीमा त उपयो गता ास नयम क मा यताएँ
3.3.5 सीमा त उपयो गता ास नयम का मह व
3.4 उपभो ता का स तुलन एवं सम-सीमा त उपयो गता नयम
3.5 मांग तथा मांग का नयम
3.5.1 मांग का अथ एवं प रभाषा
3.5.2 मांग फलन
3.5.3 मांग-ता लका
3.5.4 मांग व
3.5.5 मांग का नयम
3.5.6 मांग के नयम के याशील होने के कारण
3.5.7 मांग के नयम के अपवाद
3.5.8 मांग मे वृ या कमी तथा मांग म व तार या संकुचन सारांश
3.7 श दावल
3.8 अ यासाथ न
3.9 संदभ थ

3.0 उ े य
इस इकाई के अ ययन के प चात ् आप :-
1. उपभो ता उपभोग संबध
ं ी नणय कस कार लेता है, संतल
ु न अथवा सा य क ि थ त को
कैसे ा त करता है? यह जान सकगे ।
2. उपभो ता के यवहार क या या करने के लए उपयो गता व लेषण का गणनावाचक एवं
मवाचक ि टकोण, समझ सकगे ।

(36)
3. सीमा त उपयो गता ासमान नयम का ववेचन कर सकगे ।
4. माशल के सम सीमा त उपयो गता नयम के आधार पर उपभो ता के संतु लन क या या
कर सकगे ।
5. मांग का अथ, मांग को नधा रत करने वाले घटक, मांग का नयम एवं मांग व के बारे म
जानकार ा त कर सकगे ।

3.1 तावना
तु त इकाई म उपभो ता यवहार के व भ न पहलु ओं के अ ययन से व तु क मांग
एवं उससे संबं धत मांग के नयम क या या करगे । उपभो ता अपनी सी मत आय से व भ न
आव यकताओं क संतु ि ट करने का यास करता है । उपभो ता को नणय लेना होता है क वह
कौनसी व तु ओं का, कतनी मा ा म उपभोग कर क वह अ धकतम स तु ि ट ा त कर सक ।
उपभो ता के चयन संबध
ं ी यवहार को समझने के लए दो मह वपूण अवधारणाओं से
आपका प रचय करायगे । ए े ड माशल ने उपयो गता व लेषण के गणनावाचक ि टकोण का
तपादन कया, जब क जे.आर ह स एवं आर.जे.डी. एलन ने मवाचक ि टकोण का तपादन
कया ।
उपभो ता के यवहार के व लेषण से हम यह जानने का यास करगे क उपभो ता
वारा कसी व तु क मांग कन कारक से भा वत होती है । उपभो ता के मांग फलन को
प ट करते हु ए मांग का नयम जो क व तु क मांग क गई मा ा एवं व तु क क मत के बीच
सबंध को य त करता है, क या या करते हु ए इस नयम को याशील होने के कारण पर
काश डालगे ।

3.2 उपयो गता


उपभो ता व भ न उपभो य व तु ओं का उपभोग कर स तु ि ट ा त करता है । उपभोग
एक या है िजसका प रणाम उपभो ता क स तु ि ट है, जो एक मनावै ा नक उ पाद है ।
अथशा म इसे उपयो गता के प म प रभा षत कया जाता है । उपयो गता से अ भ ाय कसी
व तु एवं सेवा क कसी मानवीय आव यकता को स तु ट करने क शि त से है । उपयो गता क
अवधारणा एक आ म न ठ (Subjective) धारणा है । यह यि त क आ त रक भावनाओं से
संबं धत है। इसका कोई प नह ं होता और न ह यह कसी भौ तक व तु म न हत होती है ।
उपयो गता तो, वा तव म, व तु के उपभो ता क मान सक दशा पर नभर करती है । जॉन
रो ब सन के अनुसार उपयो गता व तु का वह गुण है िजनके कारण यि त इ ह खर दना चाहता
है और यह त य क लोग व तु ओं को खर दना चाहते ह, यह दशाता है क उनम उपयो गता है ।
कोई व तु कसी उपभो ता को बहु त अ धक स तु ि ट दान करती है पर तु कसी अ य
उपभो ता के लए वह अनुपयोगी हो सकती है । अथात ् भ न- भ न यि तय के लए उसी
व तु क उपयो गता अलग-अलग होगी । यहाँ यह प ट करना उ चत होगा क उपयो गता और
लाभदायकता समानाथ श द नह ं ह । हो सकता है क कोई व तु लाभदायक न हो पर तु कसी
यि त वशेष के लए उपयोगी हो सकती है । उदाहरण के लए, शराब वा य के लए
हा नकारक है पर तु शराबी के लए इसक बहु त उपयो गता है । साथ ह , उपयो गता श द का

(37)
कोई नै तक अथवा वैधा नक आधार नह ं है । बना लाइसे स ह थयार रखना गैर कानूनी है पर तु
अपरा धय के लए ऐसे ह थयार क अ या धक भू मका ह ।

3.2.1 उपयो गता एवं स तु ि ट

उपयो गता एवं स तु ि ट म भी अंतर कया जाता है । उपयो गता का अथ अपे त /


अनुमा नत उपयो गता (Expected utility) है जब क स तु ि ट का अ भ ाय ा त उपयो गता से है
। उपभो ता उपयो गता के बारे म उस समय वचार करता है जब वह कसी व तु को खर दने क
सोच रहा होता है, ले कन स तु ि ट वह उस समय अनुभव करता है जब वह व तु का उपभोग कर
रहा होता है या कर चु का होता है । दूसरे श द म उपयो गता वा त वक उपभोग पर नभर नह ं
करती । कसी व तु क उपभो ता के लए उसका उपयोग कये बना भी उपयो गता हो सकती है
पर तु उसको स तु ि ट, उसका उपभोग करने के 'बाद ह मलेगी । यह भी संभव है कसी व तु
को खर दते समय िजतनी उपयो गता क अपे ा हो, उपभोग करने पर कम या अ धक स तु ि ट
मले । स तु ि ट पूण प से अमापनीय है पर तु उपयो गता को अ य त: मापा जा सकता है ।
इस कार उपयो गता एवं स तु ि ट म अंतर कया जाता है पर तु उपभो ता यवहार का अ ययन
करने म हम यह मा यता ले लेते ह क उपयो गता एवं स तु ि ट पयायवाची श द है, इनम कोई
अंतर नह ं है । अथात ् अपे त उपयो गता एवं ा त उपयो गता बराबर होती है ।

3.2.2 उपयो गता गणनावाचक एवं मवाचक ि टकोण

उपयो गता के संबध


ं म एक मह वपूण न यह है क या उपयो गता को मापा जा
सकता है ? उपयो गता को मापने के संबध
ं म अथशाि य म दो प ट वचारधाराएँ ह -
गणनावाचक ि टकोण (Cardinal Approach) एवं मवाचक ि टकोण (Ordinal Approach)
गणनावाचक एवं मवाचक - ये दोन श द ग णत से लये गए ह । ग णत म 1, 2, 3,4.....
इ या द सं याएँ गणनावाचक सं याएँ ह । इनम येक सं या का एक नि चत आकार है,
इस लए व भ न सं याओं क तु लना क जा सकती है । जैसे 3 सं या व से तीन गुनी है या 5
सं या 3 से 2 यादा है । इसके वपर त जब सं याओं को मानुसार रखा जाता है - थम,
वतीय, तृतीय, चतुथ ..... तो इ ह मवाचक सं याएँ कहते ह । इन सं याओं का म नि चत
है पर तु इनके आकार का पता नह ं होता अत: यह बताना मु ि कल होता है क व भ न सं याओं
के बीच आकार स ब ध या है । पहल , दूसर , तीसर , चौथी सं याएँ मश: 10,20,30,40 या
10, 30, 45, 70 या कु छ भी इसी तरह क सं याएँ हो सकती है ।
उपयो गता को गणनावाचक मानने वाले अथशाि य म माशल मु ख है । माशल का
मानना है क उपयो गता को नि चत प से मापा जा सकता है और उसक पर पर तु लना करना
भी स भव है । उदाहरण के लए य द कसी उपभो ता को सेब से 10 इकाई उपयो गता एवं
संतरे से 5 इकाई उपयो गता मलती है तो इसका अथ यह हु आ क संतरे क तु लना म सेब से
दुगन
ु ी उपयो गता ा त हो रह है ।
उपयो गता अथवा तु ि टगुण को मापने संबध
ं म भी दो मत ह । थम मत के अनुसार
उपयो गता को केवल स ा त म मापयो य माना जाता है अथात ् उपयो गता के सं या मक तर
क केवल क पना ह क जा सकती ह । इस मत के समथक उपयो गता को का प नक इकाईय

(38)
म मापते ह, िजसको उ ह ने यू टलस (Utils) का नाम दया । दूसरे मत के अनुसार उपयो गता
क मापनीयता न केवल सै ाि तक है, बि क यावहा रक भी है । अथात ्, वा त वक यवहार म
उपयो गता को मापा जा सकता है, यह केवल का प नक मा ा नह ं ह । माशल का प ट मत है
क उपयो गता को मु ा के प म मापा जा सकता है । उनके अनुसार मु ा सामा य य शि त
को त न ध व करती ह और इसी लए उपयो गता दान करने वाल सम त वैकि पक व तु ओं
पर इसका अ धकार होता है । ''माशल के मतानुसार कसी व तु के उपभोग से वं चत रहने के
थान पर यि त कसी व तु क एक इकाई को ा त करने के लए जो मु ा दे ने को तैयार
रहता है, उसी को व तु क उपयो गता माना जा सकता है । ''
आधु नक अथशाि य , िजनम ह स, ऐलन, पैरेटो आ द मु ख है, का मानना है क
उपयो गता का सह माप करना स भव नह ं है । इन अथशाि य ने माशल के गणनावाचक
ि टकोण क न न आधार पर कड़ी आलोचना क है –
1. तु ि टगुण एक मनोवै ा नक वषय है िजसे कसी व तु गत पैमाने से नह ं मापा जा सकता ।
2. येक मनु य क चय , अ भ चय तथा वभाव म अंतर पाया जाता है, इस लए एक ह
व तु से मलने वाल उपयो गता अलग-अलग हु आ करती है । उदाहरणाथ - शराब पीने वाले
यि त के लये शराब क उपयो गता है, ले कन नह ं पीने वाले के लए वह एक बेकार व तु
है ।
3. मु ा, उपयो गता के माप का सह पैमाना नह ं है य क इसका अपना मू य ि थर नह ं है ।
4. मु ा, उपयो गता का सह माप इस लए भी नह ं है य क य द एक नधन यि त साइ कल
खर दने म असमथ है तो इसका यह अथ नह ं क उसके लए साइ कल क कोई उपयो गता
नह ं है ।
अत: ो.पीगू के अनुसार मु ा से केवल इ छा क ती ता को मापा जा सकता है, ले कन
उपयो गता को नह ं । उपयो गता क गणना म उपयु त क ठनाईय के कारण आधु नक
अथशाि य ने मवाचक ि टकोण का तपादन करते हु ए कहा क उपयो गताओं को मापा
नह ं जा सकता । उनके अनुसार उपयो गताओं क मा ा को मापे बना भी उपभो ता यवहार के
स ा त क या या क जा सकती है । उपयो गता क मवाचक धारणा हम यह बताती है क
उपभो ता स तरे क तु लना म सेब को वर यता दे ता है ले कन सेब एवं संतरे से ा त उपयो गता
क तु लना कर हम यह नह ं कह सकते क वह सेब को कतनी वर यता दे ता है ।
बोध न - 1
(1) उपयो गता क प रभाषा बताइए ।
(2) उपयो गता एवं संतु ि ट म अंतर समझाइए ।

3.3 उपयो गता का गणनावाचक व लेषण या सीमा त उपयो गता


व लेषण
3.3.1 व लेषण क मा यताएँ

उपभो ता के यवहार के गणनावाचक ि टकोण के आधार पर व लेषण के ार भ म


उन मा यताओं का उ लेख करगे, जो इस व लेषण का आधार ह ।

(39)
1. उपयो गता का प रमाणा मक माप स भव है और इसको गणनावाचक सं याओं म य त
कया जा सकता है । अथात ्, यि त कसी व तु से ा त स तु ि ट या तु ि टगुण को
गणनावाचक अंक म य त कर सकता है ।
2. उपयो गता या तु ि टगुण वतं होते ह । इस मा यता से यह अ भ ाय है क उपभो ता को
कसी एक व तु से जो स तु ि ट मलती है वह उपभोग क गई अ य व तु ओं क मा ाओं पर
नभर नह ं करती, बि क वह तो केवल व तु क उपभोग क गई मा ा पर ह नभर करती
है।
3. मु ा क सीमा त उपयो गता को ि थर माना गया है । व तु ओं के सीमा त तु ि टगुण को
मु ा म मापना तभी संभव है, जब मु ा का सीमा त तु ि टगुण वयं ि थर रहे । अतएव मु ा
के ि थर सीमा त तु ि टगुण (उपयो गता) क मा यता माशल के व लेषण के लए मह वपूण
है ।
4. उपभो ता ववेकशील है, जो व तु ओं क इकाईय का माप, गणन, चु नाव और तु लना करता
है और उपयो गता को अ धकतम करने का उ े य रखता है ।
5. उपभो ता को व तु क उपल धता और उनक गुणव ताओं के बारे म पूण ान ह ।
6. यह व भ न व तु ओं क क मत को जानता है और उनक क मत म प रवतन उपयो गताओं
को भा वत नह ं करते ।

3.3.2 सीमा त उपयो गता एवं कुल उपयो गता

यह हमारे सामा य अनुभव क बात है क मनु य अपनी आव यकता क पू त के लए


कसी व तु क एक से अ धक इकाईय का उपयोग करता है । ऐसी ि थ त म उस व तु क
अं तम इकाई का सीमा त इकाई और उससे मलने वाल उपयो गता को सीमा त उपयो गता
कहते है । ो. एल के अनुसार '' कसी यि त के पास कसी व तु के टॉक क सीमा त इकाई
के तु ि टगुण को, उस यि त के लए व तु वशेष का सीमा त तु ि टगुण कहा जायेगा । “ ो.
बोि डंग के अनुसार '' कसी व तु क द हु ई मा ा क सीमा त उपयो गता कु ल उपयो गता म होने
वाल वह वृ है जो उसके उपभोग म एक और इकाई के बढाने के प रणाम व प होती है ।‘’
कसी व तु क सभी इकाईय के उपभोग से उपभो ता को जो उपयो गता ा त होती है.
उसे कु ल -उपयो गता कहते ह । उदाहरणाथ, य द उपभो ता व तु क '0' इकाईय का उपभोग
करता है तो '0' इकाईय से ा त उपयो गताओं के योग को कु ल उपयो गता कहगे ।
कु ल उपयो गता एवं सीमा त उपयो गता क अवधारणा एवं उनके बीच के संबध
ं को
न नता लका से प ट कया जा सकता है
ता लका - 3.1
सेब क सं या कु ल उपयो गता सीमांत उपयो गता
1 12 -
2 22 10
3 30 08
4 36 06

(40)
5 40 04
6 41 01
7 41 00
8 39 -02
9 34 -05
जब एक उपभो ता सेब खर दता है तो वह 1,2,3, 4... आ द इकाईय म लेता है । 2
सेब म 1 क अपे ा, 3 सेब म 2 क अपे ा और 4 सेब म 3 क अपे ा अ धक उपयो गता
होती है । उपभो ता उनक उपयो गता के अवरोह म म सेब का चु नाव करता है । पहला सेब
उसे अ धकतम स तु ि ट दे ता है जो 12 के बराबर है । दूसरे सेब म 10, तीसरे से 8 और चौथे से
6 के बराबर स तु ि ट ा त हु ई । उपभो ता वारा ल गई एक व तु क व भ न इकाईय क
उपयो गताओं का जोड़ कु ल उपयो गता कट करता है । उदाहरण के लए दो सेब क उपयो गता
22 (12+10), तीन क 30 (12+10+8), चार क 36 (12+10+8+6) कु ल उपयो गता है । व तु
क एक इकाई के अ त र त उपभोग से जो उपयो गता म वृ होती ह उसे सीमा त उपयो गता
कहते ह । दो सेबो से मलने वाल उपयो गता 22 है एवं तीन सेब से मलने वाल उपयो गता
30 है अथात ् तीसरे सेब से मलने वाल सीमा त उपयो गता 10 (30-20) होगी ।
उपयु त ता लका से यह भी प ट है क उपभो ता सेब क इकाईय का उपभोग जैसे-
जैसे बढ़ाता जाता है, येक अगल इकाई से मलने वाल उपयो गता बराबर घटती जाती है ।
ले कन कु ल उपयो गता बढती जा रह है । हालां क कु ल उपयो गता के बढ़ने क दर घटती हु ई है
। उपयु त ता लका म 6 इकाईय तक सीमा त उपयो गता घना मक है अतएव कु ल उपयो गता
भी बढ़ रह है । सातवीं सेब क सीमा त उपयो गता शू य है एवं उपभो ता य द इसके बाद भी
सेब का उपभोग जार रखता है तो उसे उपयो गता के थान पर अनुपयो गता मलेगी एवं
सीमा त उपयो गता ऋणा मक हो जायेगी । कु ल उपयो गता एवं सीमा त उपयो गता के इस संबध

को न न रे खा च वारा दशाया जा सकता है ।
रे खा च का ऊपर भाग कु ल उपयो गता को दशा रहा है । सेब क सातवीं इकाई पर कु ल
उपयो गता । अ धकतम पर पहु ँ चती. है एवं उसके बाद गरने लगती है । रे खा च के नीचे वाले
भाग म सेब क उ तरो तर इकाइयो से ा त घटती हु ई सीमांत उपयो गता को दशाया गया है !
सातवी इकाई पर जब कुल उपयो गता अ धकतम है, तो सीमा त उपयो गता शू य हो जाती है ।
इसके बाद सीमा त उपयो गता ऋणा मक हो जाती है ।

रे खा च 3.1 कुल उपयो गता एवं सीमा त उपयो गता

(41)
3.3.3 सीमा त उपयो गता हास नयम

सीमा त उपयो गता ास नयम उपभोग का एक मह वपूण नयम है । इस नयम का


सव थम उ लेख आि यन अथशा ी एच.एच. गौसन ने कया, िजस कारण इसे गौसन का
थम नयम भी कहते ह । टश अथशा ी व लयम टे नले जेव स थम यि त थे, िज ह ने
मू य नधारण स ब धी वषय पर इस नयम के भाव का उ लेख कया । इस नयम क
व तृत या या का ेय एल े ड माशल को दया जाता है ।
यह नयम इस त य पर आधा रत है क मनु य क आव यकता वशेष क पूण स तु ि ट
क जा सकती है । येक आव यकता शु -शु म काफ ती ता लये होती है, क तु जब हम
उस व तु क अ धका धक इकाईयाँ ा त हो जाती ह तो उनक ती ता म कमी होती चल जाती
है । अ तत: एक ऐसी ि थ त भी आ जाती है जब उस व तु क मांग घटकर शू य रह जाती है
य क व तु क पूण स तु ि ट ा त हो जाने के कारण, हम व तु का और अ धक उपयोग करना
बंद कर दे ते है । अत: अनुभव से यह पता चलता है क जैसे-जैसे कसी व तु क आव यकता क
ती ता घटती जाती है, वैस-े वैसे व तु क अगल इकाईय से ा त होने वाल उपयो गता भी घट
जाती है । दूसरा त य िजस पर यह नयम आधा रत है, वह यह है क वभ न वश ट
आव यकताओं क स तु ि ट के लए व भ न व तु एँ पूण त थापन नह ं है । जब एक यि त
एक व तु क अ धका धक इकाईय का योग करता है तो उस व तु क उस व श ट आव यकता
के लए ती ता कम हो जाती है । पर तु य द इस व तु क इकाईयाँ अ य आव यकताओं क
स तु ि ट म यु त क जा सकती है और उनसे उतनी ह स तु ि ट ा त होती है, िजतनी थम
आव यकता क पू त से हु ई तो उस व तु का सीमा त तु ि टगुण कभी कम नह ं होता ।
नयम क प रभाषा -
माशल के अनुसार '' कसी मनु य के पास कसी व तु क मा ा म वृ होने से जो
अ त र त लाभ (स तु ि ट) उसे ा त होता है, तो अ य बात के समान रहने पर, वह व तु क
मा ा म येक वृ के साथ-साथ घटता जाता है । '' ो. बोि डंग के श द म'' अ य सभी
व तु ओं के उपभोग को ि थर रखते हु ए जैसे-जैसे उपभो ता कसी व तु के उपभोग को बढ़ाता
जाता है, वैसे-वैसे ह प रवतनशील व तु क सीमा त उपयो गता घटती चल जानी चा हये । ''
उपयु त या या से प ट है क व तु क उपभोग क जाने वाल मा ा और उससे ा त
होने वाल सीमा त उपयो गता म वपर त स बंध है । आधु नक अथशा ी नयम के इस प म
थोड़ा संशोधन करते हु ए कहते ह क कु छ दशाओं म ऐसा भी हो सकता है क शु -शु म व तु
क एक अ त र त इकाई का उपभोग करने से मलने वाल उपयो गता, पहले वाल इकाई क
उपयो गता से अ धक हो । अत: उ ह ने एक सीमा के बाद या एक नि चत ब दु के बाद
सीमा त उपयो गता के घटने क वृि त पर जोर दया । वा तव म, एक सीमा या ब दु के बाद
सीमा त उपयो गता का घटना अव य भावी है और अपने इसी गुण के कारण ह यह नयम
उपभरोग का सावभौ मक नयम कहलाता है ।
सीमा त उपयो गता ास नयम, पूव म द गई ता लका (नं. 3.1) एवं रे खा च (3.1) से
प ट होता है । सेब क पहल इकाई से अ धकतम उपयो गता ा त हो रह । सेब क मा ा म
उतरो तर वृ अथात ् दूसर , तीसर , चौथी.... इकाईय से मलने वाल उपयो गता मश: कम

(42)
होती जा रह है । रे खा च के नीचे वाले भाग म सीमा न उपयो गता व को दशाया गया है, जो
बाय से दाय नीचे गरती हु ई रे खा है, जो घटती सीमा त उपयो गता को य त कर रह है ।

3.3.4 सीमा त उपयो गता ास नयम क मा यताएँ

इस नयम के याशील होने क कु छ अ नवाय शत है अथात ् इस नयम क कु छ


मा यताएँ ह िजसके अंतगत ह यह नयम लागू होता है अ यथा नह ं । नयम क मु ख
मा यताएँ न न ल खत ह -
1. व तु क सभी इकाईयाँ गुण एवं आकार म एक समान होनी चा हये ।
2. उपभोग या के दौरान उपभो ता क च, आदत, फैशन, वभाव तथा आय समान
रहनी चा हये ।
3. व तु क इकाईय का उपभोग नर तर होना चा हये ।
4. व तु के मू य म कोई प रवतन नह ं होना चा हये ।
5. व तु के थानाप न व तु ओं का मू य भी समान रहना चा हये ।
6. उपभो ता क मान सक ि थ त म कोई प रवतन नह ं होना चा हये ।
7. व तु का उपभोग उपयु त इकाईय म होना चा हये ।

3.3.5 सीमा त उपयो गता ास नयम का मह व

यह नयम अथशा के आधार मू लक नयम म से ह । वा तव म उपभोग के नयम


क यह नींव है । युि त संगत उपभो ता चयन के अ ययन म सीमा त उपयो गता हास नयम
एक आधार धारणा है । इस नयम के मह व के मु ख ब दु न न ल खत है
1. यह मांग के नयम क या या करता है ।
2. उपभो ता क बचत का स ा त इसी नयम पर आधा रत है ।
3. सम सीमा त उपयो गता नयम भी इसी पर आधा रत है ।
4. यह नयम आधु नक कर णाल का आधार है ।
5. यह नयम व नमय-मू य तथा योग मू य को प ट करता है ।
बोध न - 2
1. सीमा त उपयो गता व लेषण क मा यताएँ बताइए ।
2. सीमा त उपयो गता ास नयम का मह व समझाइए ।

3.4 उपभो ता का स तु लन एवं सम सीमा त उपयो गता नयम


उपभो ता उस समय स तुलन म होता है, जब वह अपने यय से अ धकतम स तु ि ट
ा त करता है । स तुलन से अ भ ाय व ामाव था अथवा अप रवतनशील अव था से होता है ।
उपभो ता उस समय स तुलनाव था को ा त होता है जब उसम अपनी यय प रयोजना म कसी
कार का प रवतन करने क कोई वृ त नह ं पायी जाती ।
अब न यह है क उपभो ता अ धकतम संतु ि ट कस कार ा त कर सकता है?
इसके लए उपभो ता सबसे पहले अपनी आव यकता क सभी व तु ओं को उनक उपयो गता के
म म सजा लेता है और उन पर उसी म से मु ा खच करता है । जो व तु उसे मु ा के बदले

(43)
िजतनी अ धक उपयो गता दे ती है उसे पहले खर दता है और जो व तु िजतनी कम उपयो गता
रखती है उसे उतना ह बाद म खर दता है । य द उपभो ता अपना यय इसी म म करता रहे
तो यह नि चत है क उसे सभी व तु ओं से मलने वाल उपयो गता अ धकतम होगी । इसका
कारण यह है क इस ढं ग से यय करने पर मु ा क अं तम इकाई क उपयो गता सभी व तु ओं
के लए समान या लगभग समान होगी और उपभो ता मलने वाल संतु ि ट अ धकतम हो
जायेगी।
उपभो ता वारा उपयु त ढं ग से यय करने को ह अथशा म सम सीमा त
उपयो गता नयम कहते है । गणनावाचक उपयो गता व लेषण म इसका मह वपूण थान है ।
इस नयम क सहायता से ह उपभो ता के स तुलन को समझाया जाता है । यह नयम गौसन
का दूसरा नयम, त थापन का नयम आ द नाम से भी जाना जाता है ।
गौसन के श द म ''सम-सीमा त उपयो गता नयम उपभो ता के उस यवहार को प ट
करता है, िजसे द हु ई अनेक व तु ओं और सेवाओं म अपनी सी मत आय को, यय करने के लए
चु नाव करना होता है । '' माशल के अनुसार ' 'य द कसी यि त के पास कोई ऐसी व तु (मु ा)
है िजसे वह अनेक योग म लगा सकता है तो वह उस व तु को व भ न योग म इस कार
बाँटेगा क उसक सीमा त उपयो गता सभी योग म समान बनी रहे, य क य द व तु क
सीमा त उपयो गता कसी एक योग म दूसरे योग क अपे ा अ धक है तो वह नि चत प से
दूसरे योग से व तु क कु छ मा ा हटाकर पहले योग म लगाने से अ धक लाभ (स तु ि ट)
ा त कर सकता है । '' अथात ् सम-सीमा त उपयो गता नयम हम यह बताता है क उपभो ता
अपनी मौ क आय को व भ न व तु ओं म इस कार वत रत करे गा क येक व तु पर यय
कए गए अं तम पये से ा त उपयो गता समान हो । दूसरे श द म, उपभो ता उस समय
स तुलन म होगा, जब येक व तु पर यय क गई मु ा से ा त सीमा त उपयो गता समान
हो । एक व तु पर कए गए मौ क यय के ा त सीमा त उपयो गता को उस व तु क एक
इकाई से ा त उपयो गता को उसक क मत से वभािजत कर ात कया जा सकता है । अथात ्
MU X
MU E 
PX
यहाँ MU E व तु X पर मौ यय क सीमा त उपयो गता है ।
MU X व तु X क सीमांत उपयो गता तथा
अत: उपभो ता संतल
ु न म होगा जब क
MU X MU y MU n
  ...........
PX Py Pn
अथात X, Y..... N व तु ओं पर यय कये गये अं तम पय से ा त सीमांत
उपयो गता बराबर है । नयम का उदाहरण तथा रे खा च वारा प ट करण
माना क एक उपभो ता के पास 8 पये है िज ह वह दो व तु ओं X व Y (िजनक
क मत समान है) पर ता लका मे दए हु ए म के अनुसार यय करता है । ता लका म मु ा क
येक इकाई को X व Y पर यय करने से ा त सीमांत उपयो गता द हु ई है ।

(44)
ता लका 3.2
मु ा क इकाईयाँ यय से ा त सीमांत उपयो गता
1 X व तु Y व तु
2 20(1) 16(3)
3 14(4) 9(8)
4 10(6) 4
5 9(7) 3
6 6 2
7 2 1
8 1 0
(को ठक मे मु ा क इकाइय को यय करने का म दया है)
उपयु त ता लका से प ट है क उपभो ता पहले दो पये X पर, तीसरा Y पर, चौथा
X पर, पाँचवा Y पर, छठा एवं सातवा X पर तथा आठवां Y पर यय कर रहा है । इस कार
वह X व Y पर यय कये गये अि तम पये से ा त उपयो गता को बराबर कर रहा है । X पर
यय कये गये पाँचवे पये तथा Y पर यय कये गये तीसरे पये से ा त सीमांत उपयो गता
बराबर है अथात 9 के बराबर है । इस कार उपभो ता अपने 8 पय म से 5 पये X पर तथा
3 पये Y पर खच कर अपनी कु ल उपयो गता को अ धकतम करता है । अथात ्
X व तु से ा त उपयो गता = 20+18+14+10+9=71
Y व तु से ा त उपयो गता = 16+12+9= 37
कु ल उपयो गता = 71+37=108
यह जानने के लए या यह उपभो ता के स तु लन क ि थ त है अथात या यय के
इसी ढं ग से उपभो ता को अ धकतम स तु ि ट मल रह है? हम दे खते है क या यय योजना
म प रवतन से कु छ उपयो गता बढ़ती है? माना क उपभो ता X व तु से पाँचवा पया हटाकर Y
व तु पर यय करता है । इस प रवतन से उसे 9 के बराबर उपयो गता क हा न होगी पर तु Y
पर यय बढ़ने से 4 के बराबर उपयो गता म वृ होगी । य द वह 4-4 पये दोन पर यय
करता है तो उसे उपयो गता म 5 (9-4) के बराबर हा न होगी । ऐसी ि थ त म कु छ उपयो गता
103 के बराबर होगी । इसी कार बताया जा सकता है क X पर 6 व Y पर 2 पये खच करने
पर भी कु ल उपयो गता म कमी होगी य क X पर 6 पये खच करने से उपयो गता म 4 का
लाभ होगा पर तु Y पर एक पया कम खच करने से 9 का नुकसान होगा । अत: X पर 5 व Y
पर 3 पये का यय ह ऐसी ि थ त है जहाँ उपभो ता के लए कु ल उपयो गता अ धकतम है ।
यहाँ यह उ लेखनीय है क X व Y पर यय कये गये अि तम पये से ात सीमांत
उपयो गता यय के अ य तर - जैसे X पर 7 व Y पर 6 पये या X पर 8 व Y पर 7
पये-पर भी बराबर है पर तु इन दोन ि थ तयो म यय द हु ई आय से अ धक है अत: संभव
नह ं है ।

(45)
रे खा च 3.2 (अ) एवं (ब)
सम-सीमा त तु ि टगुण का नयम: उपभो ता का स तु लन
उपयु त रे खा च से प ट है क उपभौकता उस समय स तुलन म होगा जब क वह
व तु X पर 5 पये व y पर 3 पये यय करे । इसके अ त र त यय के कोई अ य ढ़ाँचा
इससे अ धक स तु ि ट दान नह ं करे गा । सम-सीमा त उपयो गता नयम को त थापन का
नयम भी कहा जाता है य क उपभो ता अपनी स तु ि ट को अ धकतम करने के उ े य से कम
उपयोगी व तु का अ धक उपयोगी व तु से त थापन करता है ।
नयम क मा यताएँ
(1) चू ं क यह नयम सीमा त उपयो गता हास नयम पर आधा रत है अत: उपयो गता हास
नयम क सभी मा यताएँ इस नयम पर लागू होती है ।
(2) मु ा क य शि त एवं सीमा त उपयो गता ि थर रहती है ।
(3) मनु य एक ववेकशील ाणी है इस लए वह अपनी सी मत आय को सोच समझकर
यय करता है ।
(4) उपभो ता यय क सीमा त उपयो गताओं को ान रखता है ।
नयम क सीमाएँ
(1) मनु य के ववेवशील या आ थक मानव होने क मा यता पूणत: स य नह ं है । यावहा रक
जीवन म ऐसी अनेक बाधाएँ है िजनके कारण उपभो ता युि तयु त ढं ग से यवहार नह ं कर
सकता । चयन क बहु लता के कारण उपयो गतओ का सह -सह मू यांकन स भव नह ं ।
कई बार उपयो ता के पास उपयो गताओं क तु लना करने के लए आव यक जानकार का
अभाव होता है ।
(2) सम सीमा त उपयो गता नयम तभी पूणत: कायशील होता हे जब मु ा एवं इससे खर द
जाने वाल व तु एँ भी छोट इकाइय म वभा य हो । य द व तु एँ बड़े आकार क है और
छोट -छोट इकाइय म अ वभा य है तो ऐसी प रि थ त म सीमा त उपयो गता के
समानीकरण क या लगभग अस भव सी हो जायेगी ।
(3) उपभो ता के बजट क अव ध नि चत नह ं होती । यह स ा त इस मा यता पर आधा रत
है क उपभो ता के पास साधन क एक नि चत मा ा है जसे वह एक नि चत समय

(46)
अव ध म यय करता है । इतना ह नह ,ं अनेक ऐसी व तु एँ भी होती है िज ह कसी एक
बजट अव ध म खरद जाता है पर तु उनका उपयोग अगल बजट अव धय म भी कया
जाता है । ऐसी ि थ त म उपभो ता के लए एक बजट अव ध म सी मत आय से अ धकतम
स तु ि ट क गणना मु ि कल हो जायेगी ।
(4) कभी-कभी बाजार म क तपय उपयोगी व तु एँ उपल ध नह ं होती अतएव उपभो ताओं को
उनके थापना पर कम उपयोगी व तु एँ खर दनी पड़ती है ।
(5) व तु ओं के मू य म प रवतन होता रहता है िजसके कारण उपभो ता क उपयो गता संबध
ं ी
गणनाएँ बेकार स होती है ।
(6) पूरक व तु ओं का उपयोग एक नि चत अनुपात म ह कया जाता है ऐसी ि थ त म
अ धकतम स तु ि ट नयम को लागू नह ं कया जा सकता ।

3.5 मांग तथा मांग का नयम


मांग का नयम उपयो गता- व लेषण का अ भ न अंग है । इस नयम का अ ययन
करने से पूव हम मांग के अथ एवं उसके व प को प ट करगे ।

3.5.1 मांग का अथ एवं प रभाषा

ो. बे हम के अनुसार, “ कसी नि चत क मत पर कसी व तु क मांग से अ भ ाय


व तु क उस मा ा से है िजसे उस क मत पर त समय इकाई खर दा जाता है ।“ इस प रभाषा
म दो बात मु ख है - पहल मांग से अ भ ाय सदै व कसी क मत पर मांग से होता है एवं दूसर
मांग से अ भ ाय सदै व त इकाई समय से होता है ।
यहाँ यहभी उ लेखनीय है क माँग से अ भ ाय इ छा अथवा आव यकता नह ं है ।
इ छा तब तक माँग नह बनती जब तक उस इ छा को पूण करने के लए हमारे पास साधन
नह ं है और हम उन साधन का योग करने के लए त पर नह ं है । दूसरे श द म, मांग के
लए न न ल खत तीन त व का होना ज र है-
(अ) कसी व तु को ा त करने क इ छा होना,
(ब) इ छा पू त हे तु साधन का होना तथा
(स) साधन को यय करने क त परता होना ।
उदाहरण के लए, उपभो ता क कार के लए इ छा हो सकती है ले कन जब तक उसके
पास 2 लाख पये नह ं है और वह इस रा श को यय करने के लए त पर नह ं होता तब तक
उसक यह इ छा मांग का प धारण नह ं कर सकती ।

3.5.2 मांग फलन

एक दये हु ए बजार एवं एक द हु ई समयाव ध म कसी व तु क मांग फलन उस व तु


क खर द जाने वाल मा ाओं एवं उन मा ाओं को नधा रत करने वाले कारक के पर पर संबध

को य ता करता है ।

(47)
Dx  f  Px , Py , Pz , Y , T  यहाँ Dx व तु X क मांगी गयी मा ा है, Px व तु X क
क मत, Py व Pz संबि धत व तु ओं क क मत, Y उपभो ता क आय तथा च, अ धमान,
फैशन आ द है।
मांग को नधा रत करने वाले कारक
(1) व तु क क मत
यह मांग को नधा रत करने वाला सबसे मह वपूण त व है । व तु क क मत म प रवतन
होने पर व तु क मांग भी बदल जाती है । ाय: क मत घटने पर मांग बढ़ती है और
क मत बढ़ने पर मांग घट जाती
(2) उपभो ता या े ता क आय
एक उपभो ता कसी व तु क कतनी मांग करे गा यह उसक आय पर भी नभर करता है
। सामा यतया उपभो ता क आय बढ़ने पर वह व तु क अ धक मांग करे गा तथा आय के
कम होने पर मांग भी कम हो जायेगी । ह न या घ टया व तु एँ इसका अपवाद है ।
(3) संबं धत व तु ओं क क मत
संबं धत व तु एँ दो कार क होती है । (अ) थानाप न व तु एँ जैसे चाय व काँफ (ब)
पूरक व तु एँ जैसे म खन व ेड । कसी व तु क मांग का उसक थानाप न व तु क
क मत से धना मक तथा पूक व तु क क मत से ऋणा मक संबध
ं होता है ।
(4) उपभो ता क च
अ धमान, आदत, फैशन, रवाज इ या द भी व तु क मांग को भा वत करती है ।

3.5.3 मांग-ता लका

मांग ता लका, एक नि चत समय म कसी व तु क उन व भ न मा ाओं क सू ची है


जो कसी यि त या यि तय वारा व भ न मू य पर खर द जाती है । इस कार मांग-
ता लका कसी व तु क व भ न क मत तथा उन पर 'मांगी गयी मा ाओं' के बीच फलना मक
संबध को य त करती है ।
मांग-ता लका दो कार क होती है -
(अ) यि तगत मांग-ता लका
यह ता लका कसी व तु क उन व भ न मा ाओं का यौरा या सूची है जो कसी एक
े ता या उपभो ता- वशेष वारा बाजार म व भ न क मत पर खर द जाती है ।
ता लका 3.3
यि तगत मांग-ता लका
व तु X क क मत पये त इकाई मांगी गई मा ा, इकाइयाँ
16 11

15 12
14 14
13 15

(48)
12 17
(ब) बाजार मांग ता लका
कसी व तु क बाजार मांग उस व तु क यि तगत मांग-मा ाओं का योग होता है ।
यह कसी व तु क वह कु ल मांग है जो सारे बाजार म सभी े ताओं क मांगो को जोड़ने से
ा त होती है । बाजार मांग-ता लका का नमाण दो व धय से कया जा सकता है-
(i) बाजार म सभी उपभो ताओं क मांग ता लकाओं को जोड़कर, या
(ii) कसी औसत उपभो ता क मांग-ता लका को, उपभो ताओ क कु ल सं या से गुणा करके
बाजार मांग ता लका का नमाण करना ।
ता लका 3 .4
बाजार मांग-ता लका
व तु x क थम व ध दूसर वध
क मत
मांगी गई मा ा A वारा कु ल औसत उपभो ता उपभो ताओं क कु ल
B वारा C वारा योग क मांग सं या माँग

16 1 2 0 3 1 100 100
15 2 3 1 6 3 100 300
14 4 5 2 11 4 100 400
13 5 7 4 16 6 100 600
यि तगत मांग ता लका क अपे ा बाजार मांग ता लका अ धक समतल तथा सतत
होती है । इसका कारण यह है क यि त का यवहार असामा य हो सकता है पर तु यि तय
के समू ह का यवहार सामा य होगा । बाजार मांग ता लका क यावहा क उपयो गता अ धक है ।
मू य नी त, करारोपण नी त तथा आ थक नी त के नधारण म बाजार मांग ता लका मह वपूण है
। यि तगत मांग-ता लका क तु लना म बाजार मांग ता लका धन क असमानताओं व यि तय
के ि टकोण म अंतर के कारण, नमाण करना क ठन है ।

3.5.4 मांग व

मांग व , मांग ता लका का रे खीय दशन है । जब मांग-ता लका को रे खा च वारा


य त कया जाता है तो उसे मांग व कहते है । इस कार मांग-व , कसी व तु क वभ न
क मत पर उसक मांगी जाने वाल मा ाओं के बीच पाये जाने वाले संबध
ं को प ट करता है ।

(49)
रे खा च 3.3. मांग व
च म D D मांग व है जो बाय से दाय नीचे क ओर गरता हु आ है िजसका अथ
यह है क मांग तथा क मत म वपर त स ब ध है अथात क मत बढ़ने पर मांग घटती है और
क मत घटने पर मांग बढ़ती है । जब व तु क क मत OP है तो मांग OQ मा ा के बराबर है
जब क मत घटकर OP1 है तो मांग बढ़कर OQ1 हो जाती है । इसी तरह क मत के OP2 तक
घट जाने पर मांग OQ2 के बराबर हो जाती है ।

3.5.5 मांग का नयम

इसे य का थम नयम भी कहा जाता है । यह नयम व तु क क मत और बाजार म


मांग क गयी उसक मा ा के बीच संबध
ं को य त करता है । इस नयम को इस कार य त
कया जा सकता है - अ य बात के समान रहने पर, कसी व तु या सेवा क क मत म वृ
होने पर उसक मांग घटती है तथा क मत म कमी होने पर उसक मांग बढ़ती है । अतएव मांग
का नयम क मत तथा मांगी गयी मा ा म वपर त संबध
ं को बताता है ।
माशल के अनुसार, “ व तु क िजतनी अ धक मा ा बेचने के लये उपल ध होती है, उसे
उतना ह कम मू य पर बेचना पड़ता है िजससे क ाहक मल सके । “
स अथशा ी से यूलसन के अनुसार लोग कम मू य पर अ धक व तु एँ खर दते ह
और अ धक मू य पर कम व तु एँ खर दते है ।
यहाँ यह उ लेखनीय है क मांग का नयम एक गुणा मक कथन है न क प रमाणा मक
कथन । इसका ता पय यह है क तु त नयम केवल मांग म प रवतन क दशा को बताता है
अथात ् केवल यह बताता है क मांग कम होगी या अ धक । यह मांग म प रवतन के प रमाण

(50)
को नह ं बताता अथात यह नह ं बताता क मांग कतनी मा ा म कम होगी और कतनी मा ा म
अ धक।
मांग के नयम म 'अ य बात के समान रहने पर' वा यांश का उपयोग कया गया है
वह इस लये क मांग के नयम वारा व तु क क मत व मांग म दशाया गया संबध
ं इन द हु ई
प रि थ तय म ह सच है । इस वा यांश म वे सभी मा यताएँ न हत है िजनके आधार पर इस
नयम का नमाण कया गया है । ये व भ न मा यताएँ इस कार है
(1) लोग क आय म कोई प रवतन नह ं होता अथात ् आय ि थर है ।
(2) व तु से संबं धत व तुआं क क मत म भी कोई प रवतन नह ं होता ।
(3) उपभो ताओं क च व वभाव म प रवतन नह ं होना चा हये ।
(4) कसी नयी थानाप न व तु का उपभो ता का पता नह ं चलना चा हये ।
(5) भ व य म व तु ओं के मू य म अ धक प रवतन होने क स भावना नह ं होनी चा हये ।
(6) वह व तु ऐसी नह ं होनी चा हये क िजसके योग से समाज म त ठा मलती हो य क
त ठामूल कव तु एँ ाय: धनी लोग वारा ऊँचे मू य पर अ धक मा ा म खर द जाती है।

3.5.6 मांग के नयम के याशील होने के कारण

सामा यतया मांग व बाय से दाय नीचे क ओर गरता हु आ व होता है जो इस बात


का तीय है क क मत पर व तु क मांग अ धक क जाती है । हम न कर सकते है क
क मत कम होने पर व तु क मांग य बढ़ती है? अथवा मांग व क वृि त दाय नीचे क
आरे झु कने क य होती है? इसके मु य कारण इस कार है -
(1) उपयो गता हास नयम का लागू होना
मांग का नयम सीमा त उपयो गता हास नयम पर आधा रत है । इस नयम के
अनुसार व तु क मा ा मे येक वृ के साथ उससे ा त होने वाल सीमा त उपयो गता घटने
लगती है । दूसरे श दो म, सीमा त उपयो गता व नीचे को गरता हु आ होता है । एक
उपभो ता तब तक व तु का य करता है जब तक क उस व तु से ा त सीमा त उपयो गता
व तु क बाजार क मत के बराबर नह ं हो जाती । इस ि थ त म उपभो ता को अ धकतम
स तु ि ट ा त होगी । अत: क मत तथा सीमा त उपयो गता म समानता स तु लन क आव यक
शत है । जब व तु क क मत गर जाती है तो सीमा त उपभो ता व के नीचे क ओर झु के
होने के कारण यह आव यक है क उपभो ता उस व तु क अ धक मा ा य करे िजससे क
व तु क सीमा त उपयो गता गर कर उसक क मत के समान हो जाये । इसका यह अथ है क
हासमान सीमा त उपयो गता व का अ भ ाय नीचे को गरते हु ए मांग व से है अथात ् क मत
के घटने पर व तु क अ धक मा ा का य कया जायेगा ।
(2) आय भाव
जब कसी व तु क क मत म कमी होती है तो उपभो ता क आय अथवा यशि त
(वा त वक आय) म वृ हो जाती है । दूसरे श द म, क मत के घटने का उपभो ता को व तु
क उतनी ह मा ा खर दने के लए अब कम मु ा यय करनी पड़ेगी । फल व प वा त वक आय
म हु ई वृ से वह उस व तु क अ धक मा ा खर द सकेगा या कसी अ य व तु को खर दे गा या
बढ़ हु ई आय के आं शक ह से से इस व तु क अ धक मा ा खर दे गा एवं बा क से अ य व तु एँ

(51)
खर दे गा। इसे हम आय भाव कहते है । यह आय भाव घना मक, ऋणा मक अथवा शू य हो
सकता है । क मत म कमी के फल व प हु ई वा त वक आय म वृ से य द उपभो ता उस
व तु क अ धक मा ा खर दते है तो आय भाव घना मक माना जायेगा । य द बढ़ हु ई सम त
वा त वक आय को वह कसी अ य व तु पर खच करता है तो आय भाव शू य होगा और य द
व तु वशेष क मांग बढ़ने के बजाय कम हो जाती है तो आय भाव ऋणा मक होगा ।
(3) त थापन भाव
उपभो ता के यवहार क यह सामा य वृि त है क वह महंगी व तु क तु लना म
स ती को वर यता दे ता है अथवा महंगी व तु को स ती से त था पत करता है । जब व तु
वशेष क क मत कम होती है तो इसका ता पय यह है क अ य व तुओ,ं िजनक क मत म कोई
प रवतन नह ं हु आ है, क तु लना म यह व तु स ती हो गयी है । प रमाण व प लोग इस व तु
वशेष का अ य व तु ओं के थान पर त थापन करने लगगे । इस कारण इस व तु वशेष क
मांग बढ़ जायेगी । इसे ह त थापन भाव कहते है ।
(4) े ताओं क सं या म वृ या कमी
जब कसी व तु वशेष क क मत घटती है तो कु छ ऐसे यि त जो पहले उस व तु को
नह ं खर द पा रहे थे, अब खर दने लगते ह िजससे व तु क मांग बढ़ जाती है । इसके वपर त
जब व तु क क मत बढ़ती है तो कु छ यि तय के लए बढ़ हु ई क मत पर व तु को खर दना
क ठन हो जाता है िजससे मांग घट जाती है । ऊपर दये गये तक के आधार पर मांग के नयम
क याशीलता को समझा जा सकता है ।

3.5.7 मांग के नयम के अपवाद

ो. बेनहम ने मांग के नयम के कु छ अपवाद भी बताये है जहाँ व तु क क मत व मांग


म वपर त संबध
ं नह ं पाया जाता ।
(1) ग फन का वरोधाभास
मांग के नयम का सबसे मह वपूण चु नौती ग फन व तुओं के संदभ म मलती है ।
ग फन व तु एँ ाय: न न को ट क या घ टया व तु ओं को कहते ह । जैसे गेहू ँ क तु लना म
बाजरा या दे सी घी क तु लना म वन प त घी न न ेणी क व तु एँ मानी जायेगी । टने के
अथशा ी सर राबट ग फन ने सबसे पहले यह बताया क न न को ट क व तु ओं पर मांग का
नयम लागू नह ं होता अथात ऐसी व तु ओं क क मत गरने पर उनक मांग बढ़ती नह ं बि क
कम हो जाती है । इस तरह के यवहार को ग फन के नाम से ग फन का वरोधाभास' कहा
जाता है ।
इस वरोधाभास को एक उदाहरण से समझते ह- एक नधन उपभो ता है जो अपनी आय
का काफ बड़ा भाग बाजरे जैसे खा य पदाथ पर खच करता है । माना क बाजरे क क मत गर
जाती है । वाभा वक है क उपभो ता को बाजरा खर दने पर अब कम खच करना पडेगा ।
मौ क आय के ि थर रहने क ि थ त म उसक वा त वक आय बढ़ जायेगी । इस बढ़ हु ई
वा त वक आय (या यशि त) का उपयोग उपभो ता े ठ व तु जैसे गेहू ँ आ द खर दने पर
करे गा । फल व प बाजरे क क मत म कमी के बावजू द बाजरे क मांग घटा दे गा । इसके
वपर त य द बाजरे क क मत बढ़ जाती है एवं उपभो ता क मौ क आय तथा अ य व तु ओं

(52)
क क मत अब उसक वा त वक आय कम हो गयी है । अब य द बाजरे क क मत म वृ के
कारण वह बाजरे क मांग घटाता है तो स भव है उसे भू खा रहना पड़े य क बाजरा उसके
उपयोग क मु ख व तु है । इस लए बाजरे क मांग घटाना उसके लए स भव नह ं है । चू ं क
बाजरे पर यय कये जाने वाल पूव रा श से, उसे क मत वृ के कारण अब बाजरे क कम
मा ा ा त होगी इस लए उसके सामने केवल एक ह रा ता है क वह अ य व तु ओं पर कये
जाने वाले यय म कटौती करके बाजरे क मांग को बढ़ा दे ।
इस वरोधाभास क या या अनय एवं त थापन भाव के मा यम से भी क जा
सकती है । क मत कम होने क ि थ त म त थापन भाव के कारण मांग बढ़ती है एवं क मत
म वृ होने पर मांग घटती है अतएव त थापन भाव हमेशा ऋणा मक होता है । आय भाव
घना मक, ऋणा मक अथवा शू य हो सकता है । सामा य व तु ओं के लए आय भाव घना मक
होता है अथात आय बढ़ने पर मांग बढ़ती है पर तु न न ेणी क व तु ओं के लए अप रव तत
रहे या घट जाये । व तु क क मत कम होने क ि थ त म त थापन भाव हमेशा उसक मांग
म वृ करे गा ले कन य द ऋणा मक आय भाव त थापन भाव से अ धक शि तशाल है तो
कु ल भाव म मांग बढ़ने के बजाय कम हो जाती है ।
यहाँ यह प ट करना भी उ चत होगा क सभी ग फन व तु एँ न न ेणी क होती है
पर तु सभी न न ेणी क व तु एँ ग फन व तु एँ नह ं होती । ऐसा इस कारण है क सभी
न न ेणी क व तु ओं का आय भाव ऋणा मक होता है पर तु वह इतना कमजोर होता है क
त थापन भाव को कमजोर नह ं कर सकता । केवल ग फन व तु ओं के मामले म ह
ऋणा मक आय भाव इतना शि तशाल होता है क त थापन भाव को न भावी कर दे ता
है।
(2) त ठामूलक व तु एँ
त ठामूलय व तु एँ वे होती ह िजनका आ त रक मू य कु छ नह ं होता पर तु उनका
उपयोग धनी लोग वारा केवल इस लये कया जाता है क उनसे उनक स प नता का दशन
होता है । ऐसी व तु ओं पर मांग का नयम लागू नह ं होता । ऐसी त ठामूलक व तु ओं जैसे
ह रे , जवाहरात क क मत कम होने पर मांग घट जायेगी य क इनका उपयोग करना स प नता
का तीक नह ं रहा और उनका उपयोग आम लोग भी करने लगे है । यह स भव है क ऐसी
व तुओं क कु ल मांग कम न हो पर धनी वग के लए अव य घट जायेगी ।
(3) उ च मू य क व तु एँ
मांग का नयम ऐसी व तु ओं पर भी कायशील नह ं होता िजनके गुण का मू यांकन
उपभो ता उसक क मत दे खकर करते है । सौ दय साधन से संबं धत व तु ओं जैसे म,
पाउडर, ल पि टक क येक क मत वृ के बाद मांग बढ़ जाती है य क उपभो ताओं को यह
लगता है क ऊँची क मत वाल व तु एँ ह अ छ होती है ।
(4) भ व य म कसी व तु क दुभलता अथवा मू य वृ क आशंका हो तब भी यह नयम लागू
नह ं होता । भ व य म व तु क कमी एवं मू य वृ क स भावना क ि थ त म उपभो ता
वतमान म भी बढ़ हु ई क मत पर अ धक मांग करने लग जाते है ।
(5) यह नयम अ नवायताओं पर लागू नह ं होता

(53)
यह कहा जाता है क अ नवाय आव यकताओं को पूरा करना ज र होता है इस लए
क मत प रवतन का भावन इन व तु ओं पर नह ं पड़ता अथात इनक मांग यथा ि थर बनी रहती
है ।

3.5.8 मांग म वृ या कमी तथा मांग का व तार या संकुचन

'मांग' एवं 'मांगी गयी मा ा' इन दोन म अंतर है । मांग क मा ा म होने वाले
प रवतन को मांग का व तार या संकुचन कहा जाता है, जब क मांग म होने वाले प रवतन को
मांग म वृ या कमी कहा जाता है । मांगी गयी मा ा का संबध
ं व तु क क मत से होता है
अत: इससे सीधा या अ भ ाय: यह है क क मत प रवतन के कारण मांग क गई मा ा म
व तार या संकुचन होगा । ऐसी ि थ त म क मत प रवतन के साथ मांग क मा ा म प रवतन
होगा ले कन मांग व वह रहे गा । अथात उपभो ता एक ह मांग व पर रहते हु ए क मत के
साथ मा ा म बदलाव करता है ।

रे खा च 3 .4 : मांग या व तार एवं संकु चन


रे खा च 3.4 : मांग का व तार एवं संकुचन
रे खा च 3.4 म DD मांग व है । OP क मत पर OQ मा ा क मांग क जा रह है ।
य द क मत बढ़कर OP1 हो जाती है तो मांगी गयी मा ा घटकर OQ1 हो जाती है, य द क मत
घटकर OP2 हो जाती है तो उपभो ता OQ2 मा ा क मांग करे गा, इसे मांग म व तार कहगे ।
मांग म वृ या कमी मांग म प रवतन के कारण होती है । मांग को नधा रत करने
वाले कारक का उ लेख करते हु ए बताया था क मांग व तु क क मत उपभो ता क आय, च,
फैशन, अ य संबं धत व तु ओं क क मत इ या द पर नभर करती है । मांग के नयम को
था पत करते समय हमने व तु क क मत के अलावा अ य सभी कारक को दया हु आ मान
लया था । अब य द इन कारक म, िज ह हमने ि थर माना, कोई प रवतन होता है एवम ् उसक
वजह से मांग म जो प रवतन होता है उसे मांग म वृ या कमी कहे गे । व तु क क मत के
अ त र त अ य कारक म बदलाव के फल व प हम एक नया मांग व मलता है जो पुराने
मांग व के उपर या नीचे ि थत हो सकता है ।
(54)
मांग म वृ क ि थ त मांग व दायी और ऊपर क तरफ हटता है एवं इस ि थ त म
उपभो तागत द हु ई क मत पर व तु क अ धक मांग करते है । इसके वपर त जब मांग म कमी
होती है तो मांग व बांयी ओर नीचे खसकता है िजसका अथ है उसी क मत पर पहले क
अपे ा व तु क कम मांग करना ।

रे खा च 3 .5 : मांग म वृ एवं कमी


उपयु ता दोन रे खा च म DD मूल मांग व है और OP क मत पर व त क OQ
मा ा क मांग क जा रह थी । रे खा च (अ) मांग म वृ को दशा रहा है अत: नया मांग व
D'D' जो मू ल मांग व के दायीं ओर ऊपर क ओर है । इस D'D' मांग व पर OP क मत पर
उपभो ता OQ1 मा ा मांग रहा है जो OQ से यादा है । रे खा च 3.5 (ब) म D'D' मांग व
मू ल मांग व क बांयी ओर नीचे क तरफ है जो मांग म कमी को बताता है । जब मांग म
कमी हो रह है तो उपभो ता OP क मत पर OQ2 मा ा मांग रहा है जो OQ से कम है ।

3.6 सारांश
उपभो ता के उपभो य व तु ओं के चयन संबध
ं ी यवहार एवं नणय या को
उपयो गता व लेषण से समझाने का यास कया गया है । इस व लेषण के आधार पर ह
उपभो ता के स तुलन एवं मांग के नयम को भी ववेचना इस इकाई म क गई है । उपयो गता
व लेषण म उपभो ता के यवहार क जाँच के लए आ म पर ण व ध का उपयोग कया गया
है एवं स पूण व लेषण इस मा यता पर आधा रत है क उपयो गता क व तु न ठ तर के से
प रमाणा मक माप संभव है ।
आधु नक अथशा ी उपयो गता से संबं धत इस मा यता पर गंभीर प से आपि त करते
हु ए कहते है क उपयो गता एवं मनोवै ा नक त य है िजसे कसी भी व तु न ठ तर के से नह ं
मापा जा सकता एवं मु ा उपयो गता को मापने का सह पैमाना नह ं हो सकता य क इसका
वयं का मू य अि थर है । गणनावाचक ि टकोण क ऐसी ह यावहा रक मा यताओं के कारण
आधु नक अथशा ी इसक आलोचना करते है एवं उपभो ता के यवहार क या या करने के
लए मवाचक ि टकोण पर आधा रत तट थता व या उदासीन व व लेषण तु त करते है।

(55)
3.7 श दावल
उपयो गता
कु ल उपयो गता
सीमा त उपयो गता
उपयो गता का गणनावाचक ि टकोण
उपयो गता का मवाचक ि टकोण
सीमा त उपयो गता हास नयम
सम सीमा त उपयो गता नयम
उपभो ता का संतल
ु न
मांग मांग ता लका मांग व
मांग का नयम
आय भाव
त थापन भाव
न न व तु एँ
ग फन व तु एँ ग फन का वरोधाभास

3.8 अ यासाथ न
न न ल खत न का उ तर 500 श द म द िजये ।
1. मांग का नयम या है? मांग के नयम के याशील होने के कारण क या या
क िजये ।
2. उपयो गता व लेषण के आधार पर उपभो ता के स तु लन क या या क िजये ।
3. सीमा त उपयो गता हास नयम क प रभाषा एवं या या क िजये ।
4. उपयो गता व लेषण के गणनावाचक ि टकोण का आलोचना मक मू यांकन क िजये ।
5. मांग के नयम को तपा दत करते हु ए उसक या या क िजये । इस नयम के
अपवाद का भी उ लेख क िजये ।
न न ल खत न के उ तर 15० श द म द िजये ।
1. कु ल उपयो गता एवं सीमा त उपयो गता से या ता पय है?
2. उपयो गता के गणनावाचक एवं मवाचक ि टकोण म अंतर प ट क िजये ।
3. मांग म व तार एवं संकुचन से या आशय है ?
4. ग फन के वरोधाभास पर ट पणी ल खये ।
5. आय भाव एवं त थापन भाव को समझाइये ।

3.9 संदभ- थ
1. आहु जा, एच. एल.- उ चतर आ थक स ांत
2. झंगन, एम.एल. - यि ट अथशा
3. सेठ, एम.एल. - अथशा के स ा त
4. सु दरम एवं वै य- यि ट अथशा

(56)
इकाई – 4
उपभो ता क स भु ता
4.0 उ े य
4.1 तावना
4.2 उपभो ता क स भु ता क अवधारणा
4.3 उपभो ता क स भु ता क सीमाएँ
4.4 उपभो ता क स भु ता क वांछनीयता
4.5 सारांश
4.6 श दावल
4.7 अ यासाथ न
4.8 संदभ - थ

4.0 उ े य
इस इकाई के अ ययन के प चात आप
1. उ पादन संबध
ं ी नणय म उपभो ता के यवहार अथात उसक पसंद या अ धमान क
भू मका के बारे म समझ सकग ।
2. उपभो ता अपनी पसंद को कस कार य त करता है यह जान सकगे ।
3. उपभो ता क स भु ता क अवधारणा क सीमाओं एवं इसक वांछंनीयता क ववेचना कर
सकगे ।

4.1 तावना
इस इकाई म अथ यव था म साधन के आव टन म उपभो ता क पसंद एवं अ धमान
क भू मका क ववेचना क जायेगी । पू ज
ं ीवाद वतं अथ यव था म कोई भी ऐसी ऐजे सी नह ं
है जो यह बताये क कस व तु का उ पादन करना है । उ पादनक ता, उपभो ताओं क च,
पसंद अथवा अ धमान, जो क मत णाल के मा यम से बाजार म अ भ य त होता है, के आधार
पर नणय लेते ह क कस व तु का उ पादन करना चा हए । उपभो ता क चय को नजर
अंदाज कर के लए गये उ पादन के नणय से उ पादनकता को हा न क पूर संभावना ह य क
उस उ पादन बाजार से मांग नह ं होने अथवा कम मांग होने से ब भा वत होगी । अत:
उ पादन संबध
ं ी नणय म उपभो ता क च सव पर होने के कारण ह उसे राजा कहा जाता है ।

4.2 उपभो ता क स भु ता अवधारणा


उपभो ता क स भु ता क अवधारणा पू ज
ं ीवाद अथ यव था से संबं धत है । ऐसा माना
जाता है क पू ज
ं ीवाद के अ तगत उपभो ता राजा होता है । वह अपनी मौ क आय को अपनी
चय के अनुसार यय करने के लए वत होता है । िजस ढं ग से उपभो ता अपनी मौ क
आय को यय करता है, उसी से उसके अ धमानो का कट करण होता है । यह अ धमान
अथ यव था म उ पादन के व प एवं उसक मा ा को नय मत एवं नयं त करते ह । वा तव

(57)
म यह उपभो ता ह है जो व भ न व तु ओ के त अपनी पसंद, नापसंद, च के आधार पर
आ थक संसाधन के वतरण को नद शत करता है ।
अथ यव था म स पूण उ पादन उपभो ताओं क व भ न आव यकताओं एवं मांग को
पूरा करने के लए कया जाता है । अत: उ पादन संबध
ं ी नणय लेने से पूव उ पादनक ता के
लए यह आव यक है क वह उपभो ता क आव यकताओं के व प का अ ययन कर उनक
पसंद, च या अ धमान से वयं को अवगत रखे । उपभो ता के अ धमान क उपे ा कर
उ पादन संबध
ं ी नणय लेने म इस बात क पूर स भावना है क उ पादक ऐसी व तु ओ का
उ पादन कर ले िजससे उपभो ताओं को स तु ि ट नह ं मलती ह । ऐसी दशा म उस व तु क
बाजार म मांग नह ं होगी एवं उसक वजह से अंतँत: उ पादन बाजार म नह ं बकेगा और
उ पादक को हा न होगी । इसी कारण उपभो ता एक वामी, राजा एवं स पूण भु व स प न है
जो समूची पू ज
ं ीवाद अथ यव था पर शासन करता है ।
यहाँ यह उ लेखनीय है क उपभो ता क पसंद, च, अ धमान अथवा मांग का
कट करण क मत णाल के मा यम से होता है । क मत णाल के अ ययन एवं उसक पूर
जानकार से ह उ पादक को उपभो ताओं क आव यकताओं के व प क जानकार ा त होती
है । दूसरे श दो म, उ पादनक ता को यह ात होता है क उपभो ता कस व तु क कतनी
मांग कर रहा है एवं उसके लए कतनी क मत दे ने के लए तैयार है । इस जानकार को आधार
बनाकर उ पादनक ता अपने लए नणय लेता है क उसे कौनसी व तु कतनी मा ा म उ पा दत
करनी है ।
माना क दो व तु एँ X व Y है । कसी समय ऐसा होता है क उपभो ता X क तु लना म
Y को अ धक ाथ मकता दे ने लगता है । प रणामत: X क मांग म कमी आयेगी एवं Y क मांग
म बढ़ोतर होने लगेगी । X व तु क मांग म कमी होने से उसक क मत गरने लगगी वह ं Y
क क मत बढ़ने लगेगी । X व Y क मांग म प रवतन एवं उसके प रणाम व प आये क मत म
प रवतन से उ पादन के साधन का X व Y के बीच पुन वतरण होगा । X क गरती हु ई क मत
से X के उ पादनकता को हा न होगी ले कन Y क क मत बढ़ने से Y के उ पादनकताओं के लाभ
बढगे । ऐसी ि थ त म जो साधन X व तु के उ पादन म लग रहे थे वे Y व तु के उ पादन म
लगगे ता क Y क बढ़ हु ई मांग को पूरा कया जा सके ।
इस कार क मत संय वारा त बि बत उपभो ता क पसंद एवं अ धमान न केवल
उ पादन क मा ा एवं इसके व प को भा वत करते ह, बि क समय-समय पर व भ न उधोग
ध ध मे उ पादन-साधनो का पुन वतरण भी करते ह ।
येक नवेशक अपने नवेश से अ धकतम लाभ कमाना चाहता है इस लए वह अपनी
पू ज
ं ी को उस उ योग म लगाना चाहे गा िजसम उसे अ धकतम तफल मले । इस कार उ योग
का चु नाव करते समय नदे शक सामा यत: क मत णाल से मागदशन ा त करता है । अत:
कहा जा सकता है क चु नाव क वत ता के आधार पर उ पादन याओं को संचा लत करने
क इस शि त को ह उपभो ता क सावभौ मकता या स भु ता कहते ह । आ थक चु नाव के
े मे उपभो ता क ि थ त मतदाता के समान है । आ थक चु नाव म उपभो ता उतने ह मत
दे सकता है िजतनी मु ा यय करने के लये उसके पास हे । उपभो ता अपनी मु ा को आव यक
या वला सता क व तु अ छ या खराब व तु पर खच करता ह तो ऐसी ह व तु ओं का उ पादन

(58)
कया जायेगा । वा तव म, उपभो ता का चु नाव ह , चाहे वह मू खतापूण हो या ववेकपूण , हमार
आ थक याओं का संचालन करता है ।
अत: न कष के प म यह कहा जा सकता है क पू ज
ं ीवाद अथ यव था म क मत
संयं ( णाल ) वारा त बि बत यह उपभो ता का चयन ह है जो उ पादन के व प एवं
उसक मा ा को नधा रत करता ह । इसी कारण उपभो ता को राजा कहा जाता है ।
बोध न - 1
1. उपभो ता क स भु ता क अवधारणा समझाइए

4.3 उपभो ता क स भु ता क सीमाए


स ा तत: पू ज
ं ीवाद अथ यव था म उपभो ता सव पर होता है पर तु यवहार म कु छ
ऐसी प रि थ तयाँ उ प न हो जाती ह उ प न हो जाती ह जो उपभो ता क चयन क वत ता
को सी मत कर दे ती ह । उपभो ता क वत ता को सी मत करने वाल दशाएँ न न ल खत ह-
1. उ पादक शि तयाँ
उपभो ता क भु ता अथ यव था म उपल ध संसाधन से सी मत होती है । य द
अथ यव था म कसी व तु वशेष के नमाण के लए आव यक संसाधन क कमी है तो उस
मा ा तक उपभो ता सी मत हो जाती है । उपभो ता न यय ह उस व तु को चाहता है पर तु
अथ यव था म साधन क अनुपल धता से उस व तु का उ पादन नह ं हो सकता । वक सत
दे श क तु लना म पछड़े दे श मे इस कारण उपभो ता क भु ता अ धक सी मत होती है ।
2. तकनीक जानकार क अव था
अथ यव था म व तु ओं का उ पादन उपल ध तकनीक ान पर नभर करता है ।
उपल ध तकनीक से िजन व तु ओं का उ पादन कया जा सकता है उनसे ह उपभो ता को
स तु ट रहना पड़ेगा । दूसरे श द म, उपभो ता को ऐसी व तु एँ नह ं ा त हो सकती िजसका
वतमान तकनीक से नह ं कया जा सकता ।
3. य शि त
उपभो ता क यशि त, जो उसक मौ क आय से नधा रत होती है, उसके वारा
खर द जाने वाल व तु ओं को सी मत कर दे ती है । उपभो ता अपनी सी मत मौ क आय से
व भ न व तु ओं क असी मत मा ा नह खर द सकता अत: इस सीमा तक उसक भु ता सी मत
हो जाती है । इस संदभ म नधन उपभो ता क , धनी उपभो ता क तु लना म चयन वत ता
बहु त अ धक सी मत होती है ।
4. रा य वारा तब ध
रा य वारा य द कसी कार का उपभोग पर तब ध लगाया जाता है, तो उस सीमा
तक उपभो ता क भु ता सी मत हो जाती है य क रा य वारा लगाये गये तब ध उपभो ता
क व तु ओं का चु नाव करने क वत ता का हनन करते है । उदाहरणाथ सावज नक वा थय
के लए हा नकारक नशीले पदाथ के उ पादन व ब पर रा य वारा तब ध लगाये जाने पर
उपभो ता क भु ता कम हो जाती है ।
5. कराधान

(59)
रा य वारा लगाये जाने वाले व भ न कर उपभो ता क य शि त को कम करते ह
िजसके कारण उपभोग क वत ता भी सी मत हो जाती है ।
6. यावसा यक एका धकार
बाजार के तयोगी होने क ि थ त म उपभो ता अ धक उपभोग क वत ता का भोग
करता है य क तयोगी बाजार म बहु त से उ पादनकता होते ह जो व भ न क म क व तु ओं
का उ पादन करते ह । व भ न व तु ओं क उपल धता उपभो ता के चयन े का व तार
करती ह । इसके वपर त तयो गता के अभाव म अथात एका धकार क ि थ त म उपभो ता
क उपभोग वत ता नग य हो जाती है । एका धकार वारा जो कु छ भी बेचा जाता है,
उपभो ता को उसे वीकार करना पड़ता है और साथ ह मु ँहमांगी क मत भी दे नी पड़ती है । इस
कार उ पादन के कसी भी तर पर पाया जाने वाला एका धकार उपभो ताओं क उपभोग मता
पर कु ठाराघात करता है ।
7. फैशन तथा रवाज
उपभो ताओं वारा क जाने वाल मांग उस समय च लत फैशन तथा नवाज पर भी
नभर करती है । सामा य यि त समाज म वीकाय र त- रवाज एवं फैशन के अनुसार ह
व तु ओं का चयन करता है, भले ह उसे वे व तु एँ पस द न ह । उसम च लत रवाज के
व जाने का साहस नह ं होता । अत: इस ि टकोण से समाज मे च लत र त रवाज एवं
फैशन उपभो ताओं क भु ता को सी मत कर दे ते !
8. मापीकृ त उ पादन
पू ज
ं ीवाद अथ यव था म सामा यत: मापीकृ त व तु ओं का यापक पैमाने पर उ पादन
होता है िजसम यि तगत वाद क उपे ा क जाती है । ऐसी ि थ त म उपभो ताओं के लए
कोई वशेष चयन क वत ता नह ं रहती ।
9. व ापन
पू ज
ं ीवाद एवं औ यो गक ि ट से वक सत दे श म व ापन एवं व य के व भ न तौर
तर के, उपभो ता के चयन को भा वत करने म मह वपूण भू मका नभाते ह । तयोगी
उ पादक वारा सार के व भ न मा यम का उपयोग अपनी व तु ओं के चार के लये कया
जाता है । नर तर व बार-बार कये जाने वाला उ च तर य चार अ य त: उपभो ता क
चु नाव वत ता एवं भु ता को सी मत करता है । व तुत : आज के तकनीक युग म य
उ पादन का थान परो उ पादन ने ले लया है । आधु नक पू ज
ं ीवाद अथ यव था म उपभो ता
क मांग पहले नह ं होती बि क पहले व तु ओं का उ पादन कया जाता है और फर व ापन
वारा व तु क मांग उ प न कर द जाती है ।
10. राश नंग
यु काल या ऐसी ह कसी संकट क अव था म मांग व पू त के संतल
ु न को ठ क करने
हे तु पू ज
ं ीवाद दे श म भी आव यक व तु ओं क राश नंग कर द जाती है । राश नंग के अंतगत
येक नाग रक को आव यक व तु ओं क नि चत मा ा, नधा रत अव ध के उपरा त द जाती है
। नधा रत कोटे से अ धक खर दने क कसी भी नाग रक को अनुम त नह ं द जाती ।
प रणामत: उपभो ता क भु ता का गंभीर प से हनन होता है ।
11. उपभो ताओं क अ ानता

(60)
ति ठत अथशाि य का यह मानना था क उपभो ता को बाजार का पूण ान होता
है ले कन वा त वकता म उपभो ता को बाजार स ब धी बहु त कम जानकार होती है । व तु ओं
क गुणव ता एवं मू य स ब धी अन भ ता के कारण ववेकपूण नणय संभव नह ं होता, अत:
उपभो ता क स भुता सी मत हो जाती है ।
बोध न -2
1. उपभो ता क शि तय को सी मत करने म राश नंग क भू मका बताइए ।
2. उपभो ता क शि तयाँ व ापन वारा कैसे भा वत होती ह? समझाइए

4.4 उपभो ता क भु ता क वांछनीयता


उपभो ता को चयन क कतनी वतं ता होनी चा हये इस वषय पर अथशाि य म
गंभीर मतभेद है । अथशाि य का एक स दाय उपभो ताओं को व तु ओं के चु नाव मे पूण
वतं ता क बात का समथन करता है । उनक राय म रा य को उपभो ताओं के उपभोग संबध
ं ी
नणय म कसी कार का ह त ेप नह ं करना चा हये । यह स य है क व तु ओं का चु नाव
करते समय उपभो ता कई गल तयाँ कर सकता है पर तु इ ह आव यक बुराई मानते हुए अ धक
मह व नह ं दया जाना चा हये । इसके वपर त उपभो ता क सं भु ता क अवधारणा का वरोध
करने वाले अथशाि य का मानना है क उपभो ताओं को प रहाय गल तयाँ करने दे ने का कोई
औ च य नह ं है । उपभो ता को ऐसी गल तय से बचाने हे तु उसका समु चत नदशन एवं
मागदशन कया जाना चा हये । उपभो ता क सं भु ता का वरोध करने वाले मु यत: समाजवाद
अथशा ी ह । वे उपभो ताओं को चयन संबध
ं ी पूण वतं ता दे ने के व ह उ ह ने उपभो ता
क चु नाव वतं ता या उपभो ता क सं भु ता के व न न ल खत तक तु त कये-
1. पू ज
ं ीवाद अथ यव था म उपभो ता क सं भु ता क धारणा एक म है । वा तव म एक
औसत उपभो ता को पू ज
ं ीवाद समाज म चयन क कोई वतं ता नह ं होती । पू ज
ं ीवाद
समाज म भयंकर आ थक असमानताएँ पायी जाती ह । धनी वग के हाथ म स प त का
के करण होता है । वे तो चयन क वतं ता का भोग करते ह पर तु बहु सं यक नधन
वग के लए यशि त के अभाव म चयन क कोई वतं ता नह ं होती । उनक इ छाएँ एवं
आव यकताएँ बहु त होती ह पर तु यशि त के अभाव म व उ ह बाजार म य त नह ं कर
पाते । ऐसी ि थ त म उ पादनक ता उ ह व तु ओं का उ पादन करगे िजनक मांग धनी वग
करता है ।
2. समाजवा दय का दूसरा तक यह है क उपभो ता को उपभोग करने क य द पूण वतं ता दे
द जाये तो दे श के आ थक साधन का समु चत एवं मत ययतापूण उपयोग नह ं कर सकेगा
। इसका कारण यह है क उपभो ता के चयन ाय: अयुि तक (Irrahionel) होते है । साधन
का आवंटन आव यक के बजाय अनाव यक या कम ज र व तु ओं के प म हो सकता है ।
3. समाजवाद लेखक क राय म यह आव यक है क सावज नक वा य को भा वत करने
वाल व तु ओं जैसे शराब या अ य नशील व तु ओं के हा नकारक भाव से नाग रक को
बचाया जाये । इन व तु ओं के मामल म उपभोग- वतं ता दे ना उपभो ताओं के लए
खतरनाक स होगा ।

(61)
4.5 सारांश
उपभो ता क सं भु ता क धारणा को लेकर अथशाि य म मतभेद है । ति ठत एवं
नव ति ठत अथशा ी जो पू ज
ं ीवाद यव था के समथक ह उपभो ता को उपभोग हे तु व तु ओं
के चयन म अ धकतम वतं ता दे ने के प धर ह । इसके वपर त समाजवाद अथशा ी
उपभो ता के व तु चयन अ धकार को सी मत रखना चाहते ह य क उनक राय म उपभो ता
कई कारण से युि तयु त नणय लेने म असमथ ह । यावहा रक ि ट से यह कहा जा सकता
है क उपभो ता स पूण भु व स प न नह ं हो सकता पर तु उ पादन स ब धी नणय म
उसक इ छा को नजर अंदाज भी नह ं कया जा सकता है ।

4.6 श दावल
उपभो ता क सं भुता, क मत णाल

4.7 अ यासाथ – न
न न न के उ तर 15० श द म द िजये ।
1. उपभो ता क सं भुता से या आशय ह?
2. ''पू ज
ं ीवाद अथ यव था के अ तगत उपभो ता राजा होता है । ' इस कथन क या या
क िजये ।
3. उपभो ता क चयन वतं ता क सीमाओं का उ लेख क िजये ।

4.8 संदभ ंथ
एल. सेठ अथ शा के स ा त

(62)
इकाई - 5
उदासीनता व : वशेषताएं, एवं उपभो ता का स तुलन
(Indifference Curve : Characteristics and
Consumer’s Equilibrium)

इकाई क परे खा
5.0 उ े य
5.1 तावना
5.2 उदासीनता व
5.2.1 प रभाषा एवं अथ
5.2.2 उदासीनता अनुसच
ू ी
5.2.3 उदासीनता मान च
5.3 उदासीनता व व लेषण क मा यताएं
5.4 सीमा त त थापन क दर अवधारणा
5.5 ासमान सीमा त त थापन दर का स ा त
5.6 उदासीनता व क वशेषताएँ
5.7 क मत रे खा या बजट रे खा
5.7.1 केवल उपभो ता क आय म प रवतन का भाव
5.7.2 केवल व तु X क क मत म प रवतन का भाव
5.7.3 केवल व तु Y क क मत म प रवतन का भाव
5.8 उपभो ता का संतु लन
5.8.1 उपभो ता स तुलन क शत
5.8.2 उपभो ता संतल
ु न क शती क या या
5.9 सारांश
5.10 संदभ थ

5.10.1 न न न के उ तर 500 श द म द िजये
5.10.2 न न न के उ तर 15० श द म द िजये
5.11 अ यासाथ न

5.0 उ े य
इस इकाई के अ ययन के प चात आप
(1) उदासीनता व का अथ, मा यताएं एवं इनक उपयो गता समझ पायगे ।
(2) उ मान सीमा त त थापन दर म स ा त क ववेचना कर सकग ।

(63)
(3) क मत रे खा एवं उपभो ता संतल
ु न क जानकार ा त कर सकग ।

5.1 तावना
ह स एवं ऐलन नामक अथशाि य ने उदासीनता व ि टकोण तु त कया । यह
वचारधारा पयो गता व लेषण क प रमाणा मक उपयो गता क मा यता के थान पर म सू चक
ि टकोण को तु त लती है । इस ि टकोण का वकास तथा मु य आ थक वचारधारा के साथ
इसका एक करण 1930 क आ थक द तक नग य था पर तु 1934 म ो. ऐलन तथा ने ''मू य
स ा त का पुनः नमाण नामक लेख म उदासीनता व व लेषण को वै ा नक प दान कया' '
। ो. ह स ने 1930 म अपनी पु तक ''मू य एवं पू ज
ं ी'' । उदासीनता व का व तृत योग
कया । त प चात ् ह स ने अपनी पु त ''Rivision of Demand Theory'' । उदासीनता व
का व तृत योग कया । ह स उपभो ता के यवहार के अ ययन का आधार मसू चक
ाथ मकता है िजसके अनुसार उपभो ता के व भ न स तु ि ट तर क प रमाणा मक अ तर से
प ट नह ं कया जा सकता है बि क उपभो ता अपने वर यता म को यान म रखकर व भ न
संयोग से ा त स तु ि ट तर को मवाचक संखयाएं (Ordinal Number) दे कर एक म
बनाता है ये सं याऐं केवल यह प ट करती है क उपभो ता कस संयोग से कम स तु ि ट ा त
कर रहा है और कस संयोग से अ धक । क तु इन मवाचक सं याओं से स तु ि ट तर का
अ तर मा ा मक प म ात नह ं कया जा सकता है ।
व तु त: ो. ह स एवं ऐलन से पूव कु छ अथशा ी उदासीनता व व लेषण क मू ल
वचारधारा का तपादन कर चु के थे सव थम ो. राजवथ ने 1881 म पधा मक एवं पूरक
व तु ओं क या या के लए उदासीनता व का वचार तु त कया था । तदुपरा त ो. पैरेट ने
इस व लेषण के लए म वाचक सं याओं क मा यता का वकास कया । इसी म म स के
अथशा ी ो. लट क का नाम आता है क तु ो. ह स व ऐलन ने ह उदासीनता व
व लेषण को वै ा नक एवं मब आधार दे कर पूण प से वक सत कया ।

5.2 उदासीनता व
उदासीनता व व तु ओं के व भ न संयोग से स बि धत उपभो ता के यवहार क
या या करता है । उपभो ता का यवहार उसक उदासीनता अनुसू ची से द शत कया जाता है
उपभो ता क समान संतु ि ट दे ने वाल दो व तु ओं के व भ न संयोग उदासीनता अनुसू ची के अंग
होते है । इसी सू ची को ाफ के प म द शत करके उदासीनता व ा त कया जाता है । व
क प रभाषा अलग-अलग अथशाि य म अपने ढं ग से अलग-अलग द है ।

5.2.1 प रभाषा एवं अथ -

ो. ज. के. समथ के अनुसार यह व भ न व तु ओं के उन संयोग को द शत करने


वाले ब दुओं का माग है िजनके बीच यि त उदासीन रहता है इस लए इसे उदासीनता व कहत
है । चू ं क उदासीनता व के येक बंद ु पर द शत दो व तु ओं के संयोग से समान संतु ि ट
मलती है । इस लए इसे समान संतु ि ट व भी कहते है । उदासीनता व पर ि थ त येक
ब दु व तु ओं के ऐसे संयोग को द शत करता है िजससे उपभो ता को समान संतु ि ट मलती है
। फल व प उपभो ता उन संयोग म चु नाव के स ब ध म तट थ रहता है । व पर य त

(64)
कया गया कोई एक संयोग उपभो ता के लए उतना ह मह व रखता ह िजतना क उस व पर
ि थत अ य कोई संयोग ।
ो. बोि डंग के अनुसार, ''समान ाथ मक म दशाने वाल रे खाएं उदासीनता व
कहलाती है य क वे व तु ओं के ऐस संयोग को बताती है जो एक दूसरे से न तो अ छे होते है
और न बुरे।
ो. फ यू सन के अनुसार ''एक उदासीनता व न द ट बजट या व तु ओं के संयोग का
ऐसा ब दु पथ है । िजससे येक से उपभो ता को समान कु ल उपयो गता ा त होते है या
िजनके त उपभो ता उदासीन है' ' ले ट वच म मत म, ''य द हम दो व तु ओं (x तथा y) के
व भ न संयोग इस कार ल क उनम से सभी से उपभो ता को वह ं कु ल उपयो गता ा त हो
तो उपभो ता इन सभी संयोग के त समभाव द शत करे गा । अथात उदासीनता व एक
समान ऊचाई वाल या कू दूर रे खा है । है िजसके सभी ब दुओं पर उपभो ता को एक ह स तु ि ट
का तर ा त होता है अत: वह इन संयोग के चु नाव के स ब ध म उदासीन रहता है ।

5.2.2 उदासीनता अनुसच


ू ी

उदासीनता व दो व तु ओं के व भ न संयोग से स बि धत उपभो ता के यवहार क


या या करता है । उपभो ता का यवहार उसक उदासीनता अनुसू ची से द शत कया जाता है ।
उपभो ता को समान स तु ि ट दे ने वाल व तु ओं के व भ न संयोग उदासीनता अनुसू ची के अंग
होते है इसी उदासीनता को ाफ के प म द शत करके उदासीनता व ा त कया जाता है ।
वाटसन के श द म, ' 'उदासीनता अनुसू ची दो व तु ओं के संयोगो क अनुसू ची है िजसको
इस कार यि थत कया जाता है क उपभो ता उन संयोग के त उदासीनता होता है और
कसी एक को अ य क तु लना म वर यता नह ं दे ता । ''
ो. मेयस के अनुसार उदासीनता अनुसू ची वह अनुसू ची है जो क दो व तु ओं के ऐसे
व भ न संयोग को बताती है िजनसे कसी यि त को समान स तोष ा त होता है य द इस
तट थता अनुसच
ू ी को एक रे खा के प म द शत कया जाए तो तट थता रे ख ा त हो जाती
ह। ''
इस कार उदासीनता व रे खा का येक ब दु दो व तु ओं के व भ न संयोगो के साथ
साथ स तु ि ट के समान तर को बताता है ।
सारणी 5.1 - उदासीनता अनुसू ची
संयोग व तु क इकाई X व तु
A 1 25
B 2 20
C 3 16
D 4 13
E 5 11
F 6 10
उपरो त वचारधारा के एक का प नक अनुसच
ू ी के आधार पर प ट कया गया ह -

(65)
उदासीनता अनुसच
ू ी म उपभो ता के छ: संयोग को दखाया गया है िजनके म य
उपभो ता उदासीन है । चाहे वह संयोग A को चु ने या कसी अ य B,C,D,E अथवा F को संयोग
उसे समान स तु ि ट दान करते ह । य द इस उदासीनता अनुसू ची का एक रे खा च म न पत
कया जाए तो हम न न च ानुसार उदासीनता व ा त होता ह ।

च 5. 1 उदासीनता व
उपरो त च 5.1 म IC एक उदासीनता व है यह व तु X एवं व तु Y ऐसे व भ न
संयोग का ब दु पथ है जो उपभो ता को समान संतु ि ट दे ते है । अनुसच
ू ी म उपभो ता के पास
व तु X क 1 ईकाई तथा व तु Y क 25 इकाई उपल ध है तो संयोग 4 बनाती ह, अ य संयोग
B, संयोग C, संयोग D, संयोग E तथा संयोग F उपभो ता को थम संयोग A के समान
संतु ि ट दे ते है ऐसी ि थ त म उपभो ता इन संयोग के त तट थ या उदासीन है ।

5.2.3 उदासीनता मान च

उदासीनता व स तु ि ट के एक नि चत तर को बताता है स तु ि ट म प रवतन व


क ि थ त म प रवतन उ प न करता है । स तु ि ट तर म प रवतन होने पर उदासीनता रे खा
अपनी ि थ त से बाये या दाय थाना त रत होती है व भ न स तु ि ट तर सू चक व भ न
उदासीनता व से मलकर उदासीनता मान च बनता है ।

च 5.2 उदासीनता मान च

(66)
च 5.2 म चार उदासीनता व IC1, IC2, IC3, IC4 द शत कये गये है IC4
उ चतम उदासीनता व है जो अ धकतम स तु ि ट को बताता है तथा ICE न नतम स तु ि ट
तर को द शत करता है इस आधार पर प ट है क उं चा उदासीनता व सदै व ऊँचे स तु ि ट
तर को बताता है ।
(बोध न) - 1
(i) उदासीनता व म समझाइए
(ii) उदासीनता मान च क या या क िजए

5.3 उदासीनता व व लेषण क मा यताएँ


उदासीनता व उपभो ता के अ धमान के स ब ध म कु छ मा यताओं पर आधा रत होते
ह । ये मा यताएं इस कार होती ह -
(1) उपभो ता का ववेकपूण यवहार- उपभो ता एक ववेकशील ाणी है जो अपने
सी मत साधन क सहायता से अ धकतम स तु ि ट ा त करने का यास करता है । वह अनेक
उपल ध संयोग मे से उस संयोग को चु नता है जो उसे अ धकतम स तु ि ट दे ता है ।
(2) मवाचक ि टकोण - उदासीनता व व लेषण इस मा यता पर आधा रत है क
उपभो ता संयोग से ा त संतु ि ट को एक वर यता म दान कर सकता है स तु ि ट एक
मान च वृि त है िजसको मापना अस भव ह !
(3) उपभो ता का संगत यवहार - इस मा यता के अनुसार य द उपभो ता उपभोग के
लए उपल ध दो संयोग A और B म उदासीन है तथा संयोग B तथा संयोग C म भी उदासीन है
तो वह संयोग A और संयोग C म भी उदासीन होगा ।
(4) घटती हु ई सीमा त त थान दर - इस मा यता के अनुसार उपभो ता य द
उपभो ता क एक व तु क मा ा बढाता चला जाता है तो येक अ त र त इकाई के बदले वह
दूसर व तु क कम मा ा का याग करने को तैयार होता है ।
(5) व तु क क मत, उपभो ता क आदत, च एवं आय म कोई प रवतन नह ं होता ।
(6) दुलभ म ब ता - यह मा यता यह बताती है क उपभो ता द संयोग के म य
उदासीन हो सकता है क तु ा त संयोग म से एक संयोग को अ य क तु लना म नह ं चु न
सकता है ।
(7) सकमता क मा यता - इसका अ भ ाय यह है क य द एक प रि थ त म उपभो ता
ने संयोग A को संयोग B क तु लना म चु ना है तथा संयोग B को संयोग म चु ना है तो नि चत
प से C क तु लना म को चु नेगा ।
(8) व तु एँ एक प तथा वभा यनीय होती है ।

5.4 सीमा त त थापन दर अवधारणा


सीमा त त थापन क दर यह बताती है क जब कसी उपभो ता के पास दो व तु एँ
हो तो वह एक व तु के थान पर दूसर व तु को कस दर पर यागने या लेने को तैयार होता है
। िजससे उपभो ता का कु ल स तु ि ट तर समान बना रहे । उदासीनता व व लेषण का यह
एक मह वपूण उपकरण है ।

(67)
ले ट वच के श द म ''X क Y के लए सीमा त त थापन दर (MRSxy) व तु Y
क वह मा ा है िजसका व तु x क येक अ त र त इकाई को ा त करने के लए याग कया
जायेगा। ''
उदासीन अनुसच
ू ी क सहायता से सीमा त त थापन क दर अवधारणा को न न
कार समझाया जा सकता है
सारणी 5.2 त थापन क सीमा त दर
संयोग व तु X व तु Y सीमा त त थापन क दर (X क Y के लए)
A 1 20 -
B 2 16 4
C 3 13 3
D 4 11 2
E 5 10 1
उपयु त उदासीन अनुसच
ू ी म ार भ म संयोग A म उपभो ता के पास व तु X क एक
इकाई और व तु Y क बीस इकाईया ह अब वह उपभो ता व तु X क एक अ त र त इकाई
ा त करने के लए व तु Y क चार इकाईयां यागने को तैयार होता है अथात वह संयोग A के
बजाय संयोग B को ा त करने के लए व तु X क एक इकाई के बदले व तु Y क चार
ईकाइयां दे दे ता है ऐसा करने म उसक स तु ि ट तर म कोई प रवतन नह ं होता है अथात इस
अव था म व तु Y को व तु X के लए त थापन करने क सीमा त दर चार है ।
सारणी 5.2 म जब उपभो ता संयोग B से C पर आता है तो व तु Y क एक
अ त र त इकाई के लए व तु Y क तीन इकाइयां यागने को तैयार होता है अत: त थापन
क सीमा त दर तीन है इसी कार जब संयोग C से D तथा Dसे E को ा त होता है तो
त थापन क सीमा त दर मश दो और एक है अथात व तु X क व तु Y के लए
त थापन दर घट रह है इस आधार पर प ट है क सीमा त त थापन क दर घटती हु ई
होती है जो क तट थता व के ढाल को बताती है ऐसी ि थ त म वह मूल ब दु के उ नतोदर
होता है । अब न यह है क सीमा त त थापन क दर को उदासीनता व के कसी ब दु
पर कैसे जाना तथा मापा जाय? इसे न न च वारा प ट प से समझाया जा सकता है ।

च 5.3 सीमांत त थापना दर का नधारण

(68)
च 5.3 मे उदासीनता व IC पर दो संयोग A तथा B द शत कये गये है दोन
संयोग एक ह उदासीनता व होने के कारण समान संतु ि ट तर को दशाते है उपभो ता ब दु A
से B तक पहु ंचने के लए व तु X क X इकाई ा त करते हु ए व तु Y क Y इकाइय का
प र याग कर रहा है ! Y व तु क कमी Y तथा X व तु क वृ +X. X क Y के लए
सीमा त त थापन दर –Y : X द शत करती है ।
च मे
MRSxy=AP/PB
अथात MRSxy =-Y / X (ऋणा मक च ह घटती सीमांत त थापना दर को बतलाता
है !)
य द दोन ब दु A तथा B आपस म उदासीनता व पर बहु त नकट हो तब A तथा B
ब दुओं को मलाती है यह पश रे खा RS च 5.3 म अ के साथ कोण बनाती है ।

च 5.4 : सीमा त त थापन दर का नधारण


जैसा क रे खा च 5.3 म दखाया गया है समकोण भु ज APB म AB/PB, कोण
ABP के पश या के कोण के बराबर है इस लए हम इस न कष पर पहु ँ चते है
MRSxy = AP/PB = Y /X = कोण ABP का पश या
च 5.3 म कोण ABP = कोण RSO
अत: MRSxy = कोण RSO का पश या
पर तु कोण RSO का पश या OR/OS के बराबर है ।
कोण RSO का पश या उदासीन व के ब दु A अथवा B पर खींची गई पश रे खा RS के
ढाल के बराबर है इस लए यह प ट है क
MRSxy = कोण RSO का पश या = ब दु A पर अथवा B पर उदासीनता व का
ढाल = OR/OS उपयु त या या से प ट है क य द हम उदासीनता व के कसी ब दु पर
त थापन क सीमा त दर ात करनी हो तो हम ऐसे उदासीनता व के उस ब दु पर पश
रे खा खींचकर उसक ढाल का माप करके कर सकते है और यह ढाल उस २यश रे खा के अ के
साथ वाले कोण के पश या वारा मापी जाती है ।

(69)
5.5 ासमान सीमा त त थापन दर का स ा त
सीमा त त थापन दर के स ब ध म मह वपूण त य यह है क जब. कसी एक व तु
क मा ा अ धक योग क या जाए तो उपभो ता इस व तु को ा त करने के लए अ य दूसर
व तु क घटती मा ा ह यागने के लए तैयार होगा । ऐसा इस कारण होता है क जैसे जैसे
कसी व तु क उपभोग मा ा म वृ उपभो ता क उस व तु को ा त करने क इ छा कम
बल होती जाएगी । अथशा क भाषा म इस उपभोग यवहार या मनोवृ त को ासमान क
सीमांत त थापन दर का स ा त कहते है । पूव अ याय म माशल वारा तु त मांग के
उपयो गता व लेषण मे िजस वचार को ासमान सीमा त उपयो गता का नयम य त करता है
उसी वचार को ह स वारा तु त उदासीनता व व लेषण म दासमान सीमा त त थापन
दर का स ा त प ट करता है । इसे न न रे खा च 5.5 म द शत कया गया है ।

च 5.5 : ासमान सीमा त त थापन क दर स ा त


उपरो त च 5.4 म प ट है क जब उपभो ता ब दु A से ब दु B पर आता है तो
ab (अथात X)व तु Xक मा ा ा त करने के लए वह व तु Y क Aa (अथात Y)व तु Y क
मा ा प र याग करता है अथात ब दु
MRSxy = Aa/aB
इसी कार ब दु C पर
MRSxy =Bb/bc
ब दु D पर
MRSxy =Cd/dD होगी ।
जैसा क च म द शत है
aB = bC = dD है
तथा Aa > Bb > cd ह ।
अतः
MRSxy ब दु B> MRSxy ब दु C> MRSxy ब दु D
अथात व तु X क व तु Y के लए सीमा त त थापन दर घटती हु ई होती है ।
प रणाम व प उदासीनता व मू ल ब दु के उ नतोदर (Convex) होता है ।

(70)
इस नयम के कु छ अपवाद ह
(1) य द व तु एँ एक दूसरे क पूण थाना तरण है तो उनके म य सीमा त
त थापन क दर ि थर होगी और उदासीनता व एक सीधी रे खा होगी य द वह अ x के
साथ 45 का कोण बनाती है । तो सीमा त त थापन क दर 1 होगी ।
(2) य द व तु एं पूण पूरक है तो उनके म य सीमा त त थापन क दर शू य
होगी य क उदासीनता व L आकार का होता है य क व तु एं सदै व एक नि चत अनुपात म
योग क जाती है ।
बोध न -
(i) उदासीनता व व लेषण क मा यताएँ बताइए
(ii) सीमा त त थापन दर क अवधारणा समझाइए

5.6 उदासीनता व क वशेषताएँ


उदासीनता व यह बतलाते है क व भ न संयोग से उपभो ता को समान स तु ि ट
मलती है यह वअ ीय च (Two Dimensional diagram) है तट थता व म एक व तु को
x - अ तथा दूसर व तु को y अ पर दखाते है इस अ तगत हम अ ीय च (Three
dimensional diagram) के वारा तीन व तु ओं को भी द शत कर सकते है क तु ऐसी ि थ त
म उसे उदासीनता सतह (Indifference Surface) कहते है इसके वारा तीन व तु ओं के ऐसे
व भ न संयोग य त करते है िजनसे उपभो ता को समान स तु ि ट ा त होती है । ले कन यह
व लेषण काफ ज टल होता है अत: सरलता के लए उदासीनता व व लेषण म दो व तु ओं के
व भ न संयोग ह य त करते ह । इन व क न न ल खत मु ख वशेषताऐ होती है ।

5.6.1 उदासीनता व का ढाल ऋणा मक होता है -

उदासीनता व ऊपर बाय से नीचे दा हनी और झु के हु ए होते ह कु ल स तु ि ट तर


ि थर के लए यह आव यक है क उपभो ता जैसे जैसे एक व तु क मा ा बढ़ाता है वैसे वैसे
उसे दुसर व तु क मा ा कम करनी पड़ती है दोनो व तुओं क मा ा बढ़ाने पर या व तु क
मा ा ि थर रखकर दूसर व तु क मा ा बढाने पर कु छ स तु ि ट आव यक प से बढे गी ह
समान स तु ि ट के लए तो उदासीनता व दा हनी और झु केगा ह । तभी उपभो ता तट थता व
के व भ न ब दुओ के बीच उदासीनता य त कर सकता है । इसे न न च 5 .6 वारा
य त कया जा सकता है ।

च 5.6 उदासीनता व ऋणा मक ढाल -

(71)
5.6.2 उदासीनता व मूल ब दु से उ नोतोदर होते ह -

सामा यत: उदासीनता व एक सरल रे खा के प म नह ं होते । इनका ऊपर बायां भाग


सापे क प से अ धक ढालू (Relalive Steep) होता है और नीचे बायां भाग सापे क प से
समतल (relalively Horozantal) होता है य क उपभो ता जैसे जैसे व तु X का उपभोग बढ़ने
हे तु व तु Y का प र याग करता जाता है व तु Y क प र याग क जाने वाल इकाइयां या
त थापन क सीमा त दर म कमी होती जाती है अथात व तु Y के लए व तु X क
त थापन क सीमा त दर MRSxy व तु Y क वह मा ा िजसे उपभो ता व तु X क एक
अ त र त इकाई को ा त करने के लए दे ने का उ यत होता है वह घटती जाती है प रणाम
व प उदासीनता व मू ल अनोदर (Cnvex) होते है नीचे से उ नतोदर को ऊपर से नतोदर
(Concave) कहते है न न च वारा इसे प ट प से समझाया जा सकता है !

च 5 .7 - उदासीनता बक उ नोतोदर
च 5.7 म प ट है क उपभो ता जब व तु y क मा ा याग करके व तु X क मा ा
बढ़ाता है तो ा त संयोग मश: F, G, H, I व J ा त होते है ले कन व तु Y के त थान
क दर मश: घटती जाती है व तु X क येक इकाई के लए व तु Y क मा ा
AB>BC>CD>ED लगातार घट रह है इस कारण से उदासीनता व मू ल ब दु से उ नतोदर
होते ह । य द त थापन क दर ि थर रहती है तो उदासीनता व एक सरल रे खा का प
धारण कर लेता है जैसा क न न च 5.7 म द शत कया गया है ।

च 5.8 - सरल रे खीय उदासीनता व


(72)
ले कन य द दोन व तु एं पूण थानाप न (Perfectly Substitut) व तु एं है तो
उदासीनता व Y अ तथा X अ के साथ 45० का कोण बनाती हु ई एक सरल रे खा होगी
यवहार म ऐसी ि थ त सामा यत: नह ं पाई जाती है ।
य द दो व तु एं एक दूसरे क पूणपूरक (Perfectly Compalimentany) होती है तो
उदासीनता व का आधार दो सरल रे खाओं के प म एक दूसरे के साथ 90० का कोण बनाती
हु ई होती है अथात येक रे खा एक अ के समाना तर होती है जैसा क न न च 5.8 म
द शत ह ।

च 5 .9 -समकोणीय उदासीनता व
जैसा क च 5.9 से द शत है क व तु ओं के पूण पूरक होने पर उदासीनता व
समकोणीय होते है सामा यत: यवहार म यह ि थ त नह पायी जाती है ।

5.6.3 दो व एक दूसरे को नह ं काटते

दो उदासीनता व दो व तु ओं के व भ न संयोग से ा त भ न स तु ि ट तर को
द शत करते है दो व के काटने के ब दु पर दोन समान स तु ि ट को बताते है जो क
अस भव है इसे न न कार च 5.10 वारा प ट प से समझाया जा सकता है -

च 5.10 - दो काटते हु ए उदासीन व


उदासीनता व IC1 तथा IC2 अगर दोनो A ब दु पर काट तो ब दु A पर IC1 तथा
IC2 दोन उदासीनता व ो से समान स तु ि ट मलती है ले कन यह अस भव है य क
(73)
उदासीनता व IC2 उदासीनता व IC1 तु लना म अ धक स तु ि ट का घोतक है । इसको
ग णतीय प म भी बताया जा सकता है
उदासीनता व IC1 के ब दु A व ब दु B पर समान स तुि ट मलनी चा हए अत:
OX = OY =OX1 =OY1 …………………………(1)
इसी कार उदासीनता व IC2 के ब दु A तथा ब दु C पर समान स तु ि ट मलनी
चा हए । अत:
OX + OY = OX2 + OY2 ..............................(2)
समीकरण (1) तथा समीकरण (2) से प ट है क
OY2 = OY1
पर तु यह अस भव है य क अ Y पर OY1 मा ा OY2, मा ा से अ धक है । OY1
= OY2 इस आधार पर प ट प से कहा जा सकता है क दो उदासीनता व एक दूसरे को नह ं
काट सकते ह ।

5.6.4 ऊंचे उदासीनता व पर सदै व अ धक स तु ि ट ा त होती है -

ऊंचे उदासीनता व पर उपभो ता को सदै व अ धक उपयो गता ा त होती है य क


इसके येक ब दु पर उपभो ता नचले उदासीनता व क अपे ा X व तु एवं Y व तु दोन
अथवा दोन म से कम से कम एक क अ धक इकाईयां ा त होती है यह कारण है क
उपभो ता उदासीनता व के मान च म उ चतम व पर जाना चाहे गा । ले कन वह कस
उदासीनता व पर जायेगा । यह उसके पास उपल ध साधन क मा ा पर नभर करता है ।
न न च 5.1.1 म तीन उदासीनता व द शत कये गये ह

च 5.11 उदासीनता व मान च


उदासीनता व क तु लना म IC2 व IC1 क तु लना म IC3 अ धक स तु ि ट तर को
द शत करता है अत: हम कह सकते है क उ चतम उदासीनता व उ च संतु ि ट तर को
बतलाता है ।
बोध न -3 उदासीनता व क वशेषताएं बताइए

(74)
5.7 क मत रे खा या बजट रे खा
एक उपभो ता अपने वा त वक य का नधारण दो घटक म यान म रखकर करता
ह-
(i) आय तर (Income Level),
(ii) उपभोग व तु ओं क मत (Prices of Consmption Goods)
एक उपभो ता क इ छाएं एवं आव यकताएँ असी मत होती है । संतु ि ट का ऊंचे से ऊंचा
तर ा त करने के लए उपभो ता उदासीनता मान च के ऊंचे से ऊंचे उदासीनता व को ा त
करने क इ छा रखता है क तु उपभो ता के उपभोग क सीमा उपभो ता क आय एवं उपभोग
व तु ओं क क मत वारा नयं त होती है। उपभो ता क आय एवं व तु ओं क क मत से
उपभोग क जो सीमा रे खा तैयार होती है उसे क मत रे खा अथवा बजट रे खा(Price Line Or
Budget line)
क मत रे खा के अ भ ाय को एक का प नक उदाहरण वारा समझा जा सकता है-मान
लिजए एक उपभो ता क आय 50 पये है िजसे वह दो व तु ओं तथा पर यय करना
चाहता है िजनक त इकाई क मत मश: 5 पये तथा 1० पये ह । द गई आय एवं क मत
क प रसीमा म उपभो ता अपने चयन के लए छ: संयोग बना सकता है िजसे ता लका 3 म
दखाया गया है ।
सारणी 53 उपभोग संयोग
संयोग ब दु व तु X व तु Y
R 0 5
P 2 4
Q 4 3
K 6 2
T 8 1
S 10 0
Z……………………………… द गई आय एवं व तु क मत
के अ तगत अ ा य संयोग
उपयु त ता लका यह बताती है क उपभो ता अपनी सी मत आय से संयोग ब दु R,
P, Q, T, K अथवा S खर द सकता है । अगर उपभो ता स पूण आय X व तु पर यय करता
है तो वह अ धकतम 10 इकाई खर द सकता है । इसके वर त, य द उपभो ता स पूण यय
व तु Y पर यय करता है तो वह अ धकतम 5 इकाई खर द सकता है । च 15 म ये ि थ तयाँ
मश: ब दु S तथा ब दु R पर दखायी गयी है । इन दोन ब दुओं को मलाने वाल रे खा ह
क मत रे खा कहलाती है । उपभो ता इस सीमा रे खा के बाहर कसी संयोग ब दु पर उपभोग नह ं
कर सकता य क वह उसक रे खा या बजट रे खा के अ तगत नह ं आता च म यह ि थ त
ब दु Z पर दखायी गयी है जो उपभो ता क पहु ँ च के बाहर ह ।

(75)
च 5.12 क मत रे खा
इस कार क मत ऐसे ब दुओं का ब दु पथ है जो उपभो ता क द गई आय एवं उपभोग
व तु ओं क क मत के आधार उपभो ता वारा दो व तु ओं के ा य संयोग के प म ा त
कये जा सकते ह ।
क मत रे खा RS का ढाल
= tan of RSX
= tan of (180-RSX)
= tan of RSO
= - tan of RSO
= RO/OS ( य क tan$= ल ब/आधार)
= - आय/Py { च मे RO=5
आय / Px य क RO = आय /Py
= 50/10 = 5}
= -Px /Py
अथात क मत रे खा का ढाल दो उपभोग व तु ओं X तथा Y के क मत अनुपात को बताता है ।
क मत रे खा म तीन कार के प वतन उपि थत हो सकते ह -

5.7.1 केवल आय प रव तत हो जब क व तु क क मत ि थर रह ।

ारि भक क मत रे खा R1, S1 ह । आय कम होने पर जब क Px तथा Py ि थर है,


क मत रे खा मू ल ब दु क ओर समाना तर प से थाना त रत ह गी य क अब उपभो ता पूव
क भाँ त दोन व तु ओं क कम इकाइया उपभोग कर पायेगा (R2S2)

च 5.1.3 क मत रे खा म त थापन
(76)
इसके वपर त आय बढने पर नई क मत रे खा R3 S3 होगी य क आय बढ़ने पर उपभो ता
दोन व तु ओं क अ धक इकाईयां खर द सकेगा और क मत रे खा मू ल ब दु से समाना तर दूर
पर हटती चल जायेगी ।
बोध न -3
(i) वीयत रे खा क प रभाषा बताइए

5.7.2 य द आय तथा y व तु क क मत Py ि थर रह तथा X व तु क क मत Px म


प रवतन ह -

ारि भक क मत रे खा RS है तथा रे खा का ढलना Px / Py है । य द Px म कमी होती है तो


रे खा का ढलान कम होता है य क आय और Py ि थर है और िजसके फल व प क मत रे खा
X अ पर मू ल ब दु से दूर थाना त रत होगी जब क Y अ पर ब दु R यथावत ् रहता है
इसके वपर त Px म वृ होने पर रे खा का ढाल Px/Py म वृ होती है और रे खा X अ
पर मू ल ब दु क ओर थाना त रत होती ह

च 5. 14 क मत रे खा मे घूणन

5.7.3 य द आय तथा X व तु क क मत Px ि थर हो तथा y व तु क क मत Py म


प रवतन ह -

-च 5.14 म क मत रे खा क ारि भक अव था RS ह ।

च 5.15 क मत रे खा म घूणन

(77)
रे खा का ढाल Px/Py के बराबर है ! आय तथा Px के ि थर रहते हुए Py मे वृ क मत
रे खा के ढाल Px/Py को घटायेगी िजसके फल व प क मत रे खा Y अ पर मूल ब दु क ओर
हटती चल जयगी जब क X अ का ब दु Sयथावत रहता है ! इसके वपर त Py मे कमी
क मत रे खा के ढाल को बढ़ाएगी और रे खा Yअ से दूर थाना त रत होगी !

5.8 उपभो ता का स तु लन
स तुलन क अव था म उपभो ता अपनी उपभोग वृ त म प रवतन का इ छुक नह ं
होता । एक उपभोकता स तुलन क अव था म तब होता है जब क वह अपनी सी मत आय एवं
द गई व तु क मत के अ तगत व तु ओं का एक ऐसा संयोग खर दता है िजससे उसे अ धकतम
स तु ि ट ा त हो । इस कार उपभो ता के स तु लन को उपभो ता क आय एवं व तु ओं क
क मत भा वत करती है ।
उदासीन व व लेषण म उपभो त के स तुलन क ि थ त कु छ मा यताओं पर
आधा रत ह, जो इस कार है
(1) उपभो ता के पास यय करने के लए एक नि चत आय होती है, िजसम कोई
प रवतन नह ं होता ।
(2) उपभो ता दो व तु एं X और Y का उपभोग करता है
(3) व तु X और व तु Y क क मत ि थर होती ह और उनम कोई प रवतन नह ं
होता ।
(4) व तु एं X और Y सम प और वभा य है ता क इन व तु ओं से व भ न संयोग
बनाये जा सक ।
(5) उपभो ता क समय वशेष म च एवं आदत ि थर होती है ता क एक
उदासीनता मान च एक वर यता म को दखाया जा सके ।
(6) उपभो ता ववेकशील ाणी ह, ववेकशील से अ भ ाय यह है क उपभो ता अपने
स तु ि ट तर को अ धकतम करना चाहता है । इस कार उदासीनता व व लेषण म
उपभो ता उ चतम उदासीनता व पर पहु ँ च कर अ धकतम स तु ि ट ा त करने का यास
करता है ।
(7) बाजार म पूण तयो गता ह ।

5.8.1 उपभो ता स तुलन क शत -

द गई आय एवं क मत क दशा म उपभो ता अ धकतम स तु ि ट का तर उस दशा


म ा त करे गा जब:
(1) क मत रे खा (अथवा बजट रे खा) उदासीनता व को पश कर (Price line should
be tanget to the indifference Curve)
दूसरे श द म, व तु X क व तु Y के लए सीमा त त थापन दर X व तु क क मत
एवं Y व तु क क मत के अनुपात के बराबर ह ; अथात MRSxy = Px/Py

(78)
(2) थायी स तुलन के लए स तु लन के ब दु पर उदासीनता व मू ल ब दू क ओर
उ नतोदर होना चा हए।(For stable equilibrium indifference curve shoulde convex to
the origin at the point of equilibrium)
दूसरे शबद म,
थायी स तुलन के लए स तु लन के ब दु पर सीमा त त थापन दर (अथात ्
MRSxy) ऋणा मक होनी चा हए ।

5.8.2 शत क या या

च 5.16 म एक उपभो ता का मान च तु त कया जाता है िजसम क मत रे खा RS


तथा चार उदासीनता व IC1, IC2, ic3 तथा IC4 व भ न संयोग को द शत करते ह ।
क मत रे खा RS व तु ओं के उन व भ न संयोग को कट करती जो क उपभो ता अपनी द हु ई
मौ क आय तथा दोन व तु ओं क द हु ई क मत पर य कर सकता है । उपभो ता क
उपभोग सीमा रे खा RS है य क इस रे खा के बाहर कोई भी उदासीनता व उसके उपभोग े
के बाहर है । उदासीनता व IC4 का ब दु K उपभो ता का उपभोग ब दु नह ं बन सकता
य क यह क मत रे खा RS के बाहर है ।

च 5.16 उपभोगता का संतु लन


उदासीनता व ICI पर दो संयोग ब दु p तथा y क तु लना म उदासीनता व IC2 के दो
संयोग ब दु तथा T उपभो ता को अ धक स तुि ट दगे य क व IC2 पहल व IC1 क
तु लना म उं चे स तु ि ट तर को बताता है । अत: उपभो ता ब दु P तथा ब दु H क अपे ा
ब दु Q तथा ब दु T पर उपभोग करना पस द करना करे गा । पुन : उदासीनता व IC3 का
ब दु E, ब दु Q तथा T क तु लना म उपभो ता को अ धक स तु ि ट दे गा । सबसे उं चा
उदासीनता व , िजस पर उपभो ता क मत रे खा RS के साथ पहु ंच सकता है, IC3 है जो
क मत रे खा RS को पश करता है । व तु ओं का कोई अ य संयोग जो क मत रे खा RS पर
ि थत है, सदै व उपभो ता को ब दु है क तु लना म कम स तु ि ट दे गा । कोई भी व क मत

(79)
रे खा को केवल एक ब दु पर ह पश कर सकता है । अत: ब दु E ह अि तम उपभोग
ब दु है जहाँ क मत रे खा RS उदासीनता व IC3 को पश कर रह है ।
स तुलन क इस पहल शत को सीमा त त थापन दर के श द म भी य त कया
जा सकता है :
''स तुलन ब दु E पर उदासीनता व का ढाल एवं क मत रे खा का ढाल आपस म
बराबर होते ह । (At the point of equilibrium. The slope of indifference curve
should be equal to the slope of price line)
च 5.16 म क मत रे खा RS का ढाल
=tan of RAX
=tan of (180-RSO)
=tan RSO
=-RO/OS
ब दु E पर उदासीनता व का ढाल व तु X क Y के लए सीमा त त थापन दर के
बराबर होता ह ।
अथात ् MRSxy= - y/x
समीकरण (1) के अनुसार ,
क मत रे खा ढाल =RS/OS
= - आय / Py
= आय / Px
= - Px/Py
समीकरण (1) तथा (2) के वतरण से प ट है क उपभो ता के स तुलन क ि थ त म,
क मत रे खा का ढाल= उदासीनता व का ढाल
अथवा Px/Py =MRSxy
अथात ् उपभो ता के स तु लन क दशा म व तु X क y के लए सीमा त त थापन
दर उन व तु ओं क क मत के बराबर होती है ।MRSxy का ऋणा मक च ह घटती सीमा त
त थापन दर (Diminishing Marginal rate of Substitution) को सू चत करता है (िजसक
या या हम उपभो ता स तु लन क दूसर शत के प म कर रहे ह ।)
उपभो ता स तुलन क थम शत आव यक तो है क तु पया त नह ं । थम शत के
पूरा होते हु ए भी यह आव यक नह ं ह क ा त स तु लन का ब दु थायी स तु लन (Stable
Equilibrium) का ब दु ह हो । जब तक उदासीनता व पर मूल ब दु क ओर उ नतोदर नह ं
होगा । वह ब दु अि तम स तु लन ब दु नह ं हो सकता । इस अव था को च 5.16 क
सहायता से प ट कया गया है ।
च 5.16 म उदासीनता व IC1 क मत रे खा RS को ब दु P पर पश करता है ।
ब दु P पर उदासीनता व मू ल ब दु क ओर अवनतोदर (Concave) है । इस दशा म
उपभो ता क स तु ि ट पहल शत पूर होते हु ए भी, अ धकतम नह ं है । जब उदासीनता व मू ल
व क ओर अवनतोदर होता है तो सीमा त त थापन दर घटती हु ई नह ं होती बि क बढती

(80)
हु ई होती है । च 5.6 म ब दु p क तु लना म ब दु K तथा T पर स तु ि ट अ धक है ।
य क ये ब दु उं चे उदासीनता व मश: IC2 तथा IC3 पर है जो स तु ि ट के ऊंचे तर को
बताते ह । अत: उपभो ता स तुलन क अि तम एवं आव यक शत यह है क स तुलन ब दु पर
उदासीनता व मू ल ब दु क ओर उ नतोदर (Convex) होना चा हए । दूसरे श द म, स तुलन
ब दु पर MRSxy घटती हु ई होनी चा हए (MRSxy should be diminishing at point of the
Equilibrium)
इस कार प ट है क उपभो ता के थायी स तुलन के लए दोन शत एक साथ पूर
होनी चा हए-
(1) स तुलन ब दु पर उदासीनता व क मत रे खा को पश कर ।
(2) स तुलन ब दु पर उदासीनता व मूल ब दु क ओर उ नतोदर (Convex) हो ।

5.9 सारांश
उपरो त व लेषण के आधार पर प ट है क उपयो गता एक मनोवै ा नक अवधारणा है
अत: मवाचक ि टकोण के आधार पर उदासीनता व एवं बजट रे खा क सहायता से उपभो ता
के संतु लन का नधारण सरलता से संभव है ले कन उनके लए न न दो शत स तु ट होना
आव यक है -
(1) द हु ई बजट रे खा या क मत रे खा का कसी उदासीनता व से पश करना अथवा दूसरे
श द म त थापन क सीमांत दर का दो व तु ओं क क मत अनुपात के बराबर होना
उपभो ता के स तु लन क आव यक शत तो है पर तु पया त शत नह ं ।
(2) एक अ य शत यह भी है क संतु लन के ब दु पर उदासीनता व मूल ब दु क ओर
आव यक प से उ नतोदर (Convex) होना चा हए अथात ् व तु X क व तु Y के लए
त थापन क सीमांत दर घट रह हो ।

5.10 श दावल
उदासीनता व - वह व जो दो व तु ओं के ऐसे व भ न संयोग का य त करता है
िजन से उपभो ता को समान संतु ि ट ा त होती है और उनके चयन म वह तट थ रहता है ।
म वाचक ि टकोण - वह व लेषण जो वर यता म पर आधा रत हो ।
सीमा त त थापन दर - वह दर जो यह बतलाती है क एक व तु के थान पर दूसर
व तु को कस दर पर यागने या लेने को उपभो ता तैयार है ।
बजट रे खा - वह रे खा जो दो व तु ओं के ऐसे व भ न अ धकतम संयोग को द शत
करती है । िज हे उपभो ता व तु क द हु ई क मत के आधार पर अपनी सी मत आय से खर द
सकता है ।

5.11 अ यासाथ न
5.11.1 न न ल खत न के उ तर 500 श द म द िजये -

न सं या - 1 - उदासीनता व या ह? उनक वशेषताओं को च क सहायता से


समझाइये।

(81)
न सं या - 2- उदासीनता व तथा बजट रे खा को प रभा षत क िजये एवं इनक सहायता से
उपभो ता के स तु लन क च वारा या या क िजये ।

5.11.2 न न ल खत न के उ तर 200 श द म द िजये -

न सं या - 1 - उदासीनता व मान च व सीमा त त थापन क दर अवधारणा


समझाइये।
न सं या - 2- उदासीनता व मू ल ब दु के उ नतोदर होते है ! प ट क िजए
न सं या -3 - बजट रे खा म तथा व तु ओं क क मत म होने वाले प रवतन भाव च
वारा प ट क िजए ।

5.12 संदभ ंथ
आहू जा, एच. एल (2006) : उ चतर आ थक स ा त, एस च द ए ड
क पनी ल. नई द ल
नाथूरामका, ल मी नारायण : याि ट अथशा , कालेज बुक हाउस,
(2006) जयपुर
बारला, सी. एस. (2005) : यि ट अथशा , म लक ए ड क पनी,
जयपुर

(82)
इकाई – 6
उदासीनता व : क मत उपभोग व , आय उपभोग व ,
और त थान भाव
Price Consumption Curve & Income Consumption
Curve and Income effect & Substitution effect

6.0 उ े य
6.1 तावना
6.2 क मत भाव
6.2.1 क मत उपभोग व
6.2.2 मांग क लोच एवं क मत उपभोग व
6.3 आय भाव
6.3.1 आय का उपभोग व
6.3.2 व तु क कृ त एवं आय उपभोग व
6.4 त थापन भाव
6.4.1 ह स का ि टकोण
6.4.2 ट क का ि टकोण
6.5 क मत भाव आय भाव व त थापन भाव का स ब ध
6.6 क मत भाव को वभािजत करने के लाभ
6.7 सारांश
6.8 श दावल
6.9 अ यासाथ न
6.10 स दभ थ

6.0 उ े य :
इस इकाई के अ ययन के प चात ् आप उदासीनता व क सहायता से व तु क क मत
म प रवतन होने से उसक मांग पर पड़ने वाले भाव को समझ सकगे ।
उपभो ता क आप म प रवतन होने से उसक उपयोग मा ा पर पड़ने वाले भाव को
जान सकगे त थापन भाव के बारे म समझ सकगे

6.1 तावना
पूव इकाई म उपभो ता स तुलन अ ययन इस मा यता के आधार म तु त कया था
क उपभो ता क आय द हु ई होती है तथा व तु ओं क क मते यथा ि थर रहती है । पर तु
(83)
यवहार म आय तथा व तु ओं क क मते प रवतनशील रहती है । माशल के उपयो गता व लेषण
का मु य दोष यह था क उसम आय म प रवतन होने के प रणाम व प मांग म होने वाले
प रवतन पर यान नह ं दया था जब क ह स ने आय भाव क तथा क मत भाव क तथा
क मत भाव क या या प ट प से क है और क मत उपभोग व तथा आय उपभोग व
क अवधारणा तु त क िजनके आधार पर उपभो ता के यवहार को प ट प से समझा जा
सकता है ।

6.2 क मत भाव
क मत भाव के अ तगत उपभो ता क मो क आय को ि थर मान लया जाता है
जब क व तु ओं क क मत म प रवतन होते रहते है व तु क क मत म प रवतन का भाव
उपभो ता के सा य पर पड़े बना नह ं रह सकता है इसे प ट करने के लए क मत उपभोग व
का योग कया जाता है

6.2.1 क मत उपभोग व

जब कसी व तु क क मत म कमी या वृ होती है तो उपभो ता क स तु ि ट म भी


प रवतन होगा अथात ् व तु क क मत के कम होने पर उपभो ता का सा य तर पूव के तर
क तु लना म एक उं चे उदासीनता तर पर पहु ंच जाता है । इसके वप रत य द व तु क क मत
बढ़ती है तो उसके कारण उपभो ता का सा य तर पूव क तु लना म नीचे उदासीनता व पर
आ जाएगा । जब क उपभो ता क आय म कोई तपूरक प रवतन नह ं कया जाता है । इसे
क मत भाव कहते है इसे च 6.1 व तथा च 6.2 वारा न न कार द शत कया जा
सकता है ।

उपरो त च 6.1 मे व तु X व व तु Y तथा उपभो ता क द हु ई मो क आय को बजट


रे खा ML1 य त करती है और उपभो ता उदासीनता व IC1, के ब दु R1 पर संतु लन म है
। इस सा य अव था म वह व तु X क OM1 तथा व तु Y क ON1 मा ा य करता है
क पना क िजये क व तु X क क मत घट जाती है जब क व तु Y क क मत तथा मौ क
आय समान रहती है तो प रणाम व प बजट रे खा प रव तत होकर ML2, हो जायेगी और
उपभो ता उं चे तट थता व IC2 के ब दु R2 पर संतु लन म होगा इस ि थ त म वह व तु X

(84)
क ON2 मा ा और व तु Y क OY2 मा ा य कर रहा है अथात व तु X क क मत के
घटने के फल व प पहले से अ धक संतु ट हो गया है क पना क िजए क व तु X क क मत
और घट जाती है िजससे बजट रे खा प रव तत होकर ML3 हो जाती है बजट रे खा ML3
उपभो ता उदासीनता व IC3 के ब दु R3 पर संतु लन म है जहां व तु X क मांग मा ा
ON3 और व तु Y क OY3 मा ा ा त कर रहा है इस कार ा त व भ न ब दुओं R1,
R2, R3 को पर पर मलाया जाता है तो एक व ा त होता है िजसे क मत उपभोग व
कहते है यह व ह क मत भाव को कट करता है यह इस बात को द शत करता है क
उपभो ता क चय एवं आय ि थर रहने पर व तु क क मत म प रवतन से उपभो ता
वारा व तु X क य मा ा पर या भाव पड़ता है रे खा च 6.1 म नीचे झुका हु आ क मत
उपभोग व द शत कया गया है जो इस बात को द शत करता है क जब व तु X क
क मत घटती है तो उपभो ता वारा उसक अ धक मा ा य करता है और व तु Y क कम
मा ा । ले कन क मत उपभोग व के अ य भी कई प हो सकते है रे खा च 6.2 म उपर को
चढता हु आ क मत उपभोग व दखाया गया है जो यह बतलाता है क जब व तु X क क मत
घटती है तो दोन व तु ओं X तथा Y क मांग मा ा बढ़ती है । क मत उपभोग व के दोन
अ य प न न च मे द शत कये गये है।

च 6.3 म द शत PPC ै तज अ के समाना तर है जो इस बात को द शत करता है


क व तु X क क मत घटती है तो इसक खर द गई मा ा बढ़ती है ले कन व तु Y क मांग
मा ा अ भा वत रहती है ।
जैसा क च 6.4 म द शत है PPC पीछे क ओर मु ड़ रहा है यह इस बात को इं गत
करता है क जब व तु X क क मत घटती है तो इसक मांग मा ा भी घट जाती है हम आगे
यह पढ़े गे क यह मांग के नयम का अपवाद है ऐसी व तु ओं को ग फन व तु कहते ह ।
उपरो त व लेषण से प ट है क क मत उपभोग व वभ न कार के होते है ।

6.3.2 मांग क लोच तथा क मत उपभोग व :-

जैसा क उपरो त व लेषण म द शत कया गया है क क मत उपभोग व क आकृ त


कई कार क हो सकती है ले कन इसका मांग क लोच से गहरा स ब ध होता है जब क मत
उपभोग व ै तज अ के समा तर होता है तो मांग क लोच ईकाई के बराबर होती है । और

(85)
क मत उपभोग व जब उपर क ओर उठता हु आ होता है तो मांग क लोच ईकाई के बराबर
होती है । और क मत उपभोग व जब उपर क ओर उठता हु आ होता है तो मांग क लोच ईकाई
से अ धक होती है । तथा जब नीचे क ओर झु का हु आ होता है तो मांग क लोच इकाई से कम
होती है यह न न च क सहायता से प ट हो जाता है ।

च 6.5 मांग क लोच ब क मत उपयोग बक का पर पर स ब ध


च 6.5 A. B व C म Ox अ पर व तु X तथा OY अ पर मु ा मापी गयी है ML1
ारि भक क मत रे खा है क मत रे खा है व तु X क क मत घटने पर कभी क मत रे खा ML2
हो जाती है तब उपभो ता का स तुलन ार भ म R1 पर और क मत घटने पर R2 होता है
उसके पास कु ल रा श है OM पर वह व तु X क ON1 मा ा खर दता है तथा मु ा क R1
N1 रा श अपने पास रा श रखता है अथात ON1 मा ा ा त करने के लए MP मु ा का कु ल
यय करता है क मत के घटने पर व तु क य मा ा बढ़कर ON2 हो जाती है ले कन कु ल
यय MP1 ि थर बना रहता है प रणाम व प मांग क लोच इकाई होती ह ।
च 6.5 C म क मत के घटने पर कु ल यय R1 N1 से घटकर R2 N2 हो जाता है जो
मांग क लोच ईकाई से कम होने का सू चक ह ।
च 6.5 B म क मत के घटने पर कु ल यय R1 N1 से बढ़कर R2 N2 हो जाता है जो
मांग क लोच ईकाई से अ धक होने का सू चक है ।
इस कार क मत उपभोग व क सहायता से मांग क लोच जानी जा सकती है ।
बोध न - 1
1. व तु क वर यता का उपभो ता पर या भाव पड़ता ह?
2. वर यत उपभोग व के बारे म समझाइए ।

6.4 आय भाव
व तु ओं क क मत तथा उपभो ता क चय और आय ि थर रहने पर य द उसक
मौ क आय म प रवतन होता है तो उपयोग क मा ा भी भा वत होती है इसे आय भाव कहते
है प रणाम व प उपभो ता का सा य भी भा वत होता है इसे प ट करने के लए आय
उपभो ता व का उपयोग कया जाता है ।

6.4.1 आय उपभोग व

जब उपभो ता क आय म कमी या वृ होती है तो उपभो ता क स तु ि ट म भी


प रवतन होगा अथात उपभो ता क आया म वृ होने पर उपभो ता का सा य तर पूव क

(86)
तु लना म एक ऊँचे उदासीनता तर पर पहु ंच जाता है इसके वपर त य द उपभो ता क आय म
कमी हो जाती है तो उपभो ता का सा य तर पूव क तु लना म नीचे उदासीनता व पर आ
जाएगा । इसे आय भाव कहते है इसे च 6.6 वारा न न कार द शत कया जा सकता है।

च 6.6 आय उपभोग व
च 6.6 म द शत है क व तु ओं क क मते तथा आय द हु ई होने पर बजट रे खा M1 L1
कट होती है तो उपभो त उदासीनता व IC1 के ब दु R1 पर सा य म है और इस सा य
अव था म वह व तु X क ON1 मा ा और व तु Y क OY1 मा ा य कर रहा है अब
क पना किजये क उपभो ता क आय म वृ होती है िजससे उपभो ता दोन व तु ओं क
अ धक मा ाएं य कर सकेगा िजसके प रणाम व प बजट रे खा उपर क ओर त था पत हो
जाएगी और वह थम बजट रे खा के समा तर होगी । अब हम यह क पना करते है क
उपभो ता क आय इतनी बढ़ती है क िजससे नयी बजट रे खा M2 L2 बनती है । उपभो ता
क आय व तु X म L1L2 और व तु Y म M1M2 बढ़ है इस कार बजट रे खा M2L2 पर
उपभो ता उदासीनता व IC2 के ब दु R2 पर सा य म ह और इस संतु लन अव था म वह
व तु Y क OY2 मा ा तथा व तु X क ON2 मा ा य कर रहा है । इस कार हम दे खते
है उपभो ता क आय म वृ के प रणाम व प उसके वारा दोन व तु ओ क खर द गई
मा ाएं बढ गई है य क उपभो ता उच उदासीनता व IC2 पर सा य म है इस लए अब
प हले से उसक संतु ि ट बढ़ जाएगी । य द उपभो ता क आय म ओर वृ होती है तो और
संतु ि ट के तर म वृ हो जायेगी । जैसा क च 6.6 म प ट है उसका सा य तर IC3
के ब दु R3 पर हो जायेगा । इस कार व भ न सा य ब दु R1 R2 R3 आ द को मलाया
जाता है । जो क व भ न आय के तर पर उपभो ता के सा य को य त करते है तो हमे
एक व ा त होता है जो आय उपभो ता व कहलाता है । यह व आय भाव को कट
करता है । जो इस बात को द शत करता है क दोन व तु क क मत ि थर रहने पर
उपभो ता क आय म प रवतन से व तु X व व तु Y क य मा ा पर या भाव पड़ता है।

(87)
6.4.2 व तु क कृ त एवं आय उपभोग व

आय भाव धना मक व ऋणा मक दोन कार का हो सकता है । आय भाव धना मक


तब होता है जब उपभो ता क आय म वृ होने से उसके वारा व तु का उपभोग अथवा मांग
बढ़ जाती है यह एक सामा य बात है ऐसी ि थ त म आय उपभोग व ऊपर क ओर अ सर
होता है जैसा क च 6.6 मे द शत कया गया है । इन व तु ओं को सामा य व तु कहते है
ले कन जब आय भाव ऋणा मक होता है तब उपभो ता क आय म वृ होने पर भी व तु का
उपभोग अथवा मांग घट जाती है ऐसी व तु ओं को ह न व तु कहते ह ऐसी ि थ त मे उपभो ता
उ च को ट क व तु का उपभोग बढ़ा दे ता है ।

च 6.7 व तु Y ह न व तु होने पर ICC व


ऋणा मक आय भाव के स ब ध म दो ि थ तयां उ प न हो सकती ह-
(1) जब व तु X े ठ व तु तथा व तु: न न व तु ह ।
इसे च वारा न न कार द शत कर सकते है ।

च 6.7 ऋणा मक आय भाव जब क व तु Y न न व तु है


जब व तु Y न न व तु होती है तो उपभो ता क आय म वृ होने के कारण कु छ समय
प चात ् व तु Y के उपभोग को कम करे गा तथा व तु X के उपभोग को बढ़ायेगा उपरो त च
6.7 म ICC से प ट है क इसका ढाल ब दु R2 तक धना मक है अथात क मत रे खा

(88)
M2L2 तक व तु Y न न व तु नह है क तु इसके उपरा त आय म वृ के कारण
त था पत क मत रे खा M3L3तक व तु Y को न न व तु बना दे ती है तथा ICC व
ब दु R2 के प चात ऋणा मक ढाल यु त हो जाता है प रणाम व प व तु X े ठ एवं व तु
Y न न व तु हो जाती है ।
(2) जब व तु Y े ठ व तु एवं व तु X न न व तु हो तो इसे च वारा न न कार
द शत कर सकते ह ।

च 6 .8 ऋणा मक आय भाव व तु X न न व तु है ।
जब व तु X न न व तु होती है तो उपभो ता क आय म वृ के कारण कु छ समय प चात
व तु X के उपभोग को कम करे गा तथा व तु Y के उपभोग को बढ़ायेगा उपरो त च 6.8 म
ICC से प ट है क इसका ढाल ब दु R2 तक धना मक है अथात क मत रे खा M2 L2
तक व तु X न न व तु नह ं है क तु इसके उपरा त आय म वृ होने पर क मत रे खा
त था पत होकर M3 L3हो जाने पर व तु X न न व तु बन जाती है तथा ICC व ब दु
R2 के प चात ऋणा मक ढाल यु त हो जाता है प रणाम व प व तु Y े ठ एवं व तु Y
न न व तु हो जाती है ।
ऋणा मक आय भाव क दोन ह ि थ तय म एक बात यान दे ने यो य है । मे दोन
ह प रि थ तय म ब दु R2 के बाद ह व तु न न व तु बन रह है अथात एक नि चत आय
तर के बाद ह कोई व तु न न व तु बनती है । इसका अ भ ाय यह है क एक नि चत आय
तर तक न न व तु भी उपभो ता के लए े ठ व तु होती है ।
बोध - न 2
1. आय म प रवतन से उपभो ता पर या भाव पड़ता ह?
2. ऋणा मक आय भाव के बारे म समझाइए ।

(89)
6.5 त थापना भाव
उपभो ता अपनी मनोवै ा नक कृ त के कारण सदै व तु लना मक प से स ती व तु का
अ धक उपभोग करने का यास करता है जब आय के समान रहने पर दो व तु ओं म से एक
व तु क क मत म प रवतन होता है तब व तु ओं क सापे त क मत म प रवतन होता है तथा
उपभो ता मंहगी व तु को तु लना मक प से स ती व तु वारा त था पत करता है दूसरे श द
म जब दो व तु ओं म से कसी एक व तु क क मत म कमी होती है तब उपभो ता महंगी व तु
के थान पर स ती व तु वारा त था पत करता है यह त थापन भाव कहलाता है । इसके
कारण व तु ओं के उपभोग के संयोग म प रवतन होने पर भी उपभो ता क स तु ि ट पर कोई
भाव नह ं पड़ता है । अथात ् उपभो ता क वा त वक आय अप रव तत रहती है । त थापन
भाव के वषय म दो कार क अवधारणाएं तु त क गयी है :-
(1) ह स का त थापन भाव (2) ल क का त थापन भाव

6.5.1 त थापन भाव: ह स का ि टकोण

ह स के अनुसार त थापन भाव म मौ क आय म तपू त प रवतन इस कार


कया जाता है क उपभो ता क मत प रवतन से पूव के अपने उदासीनता व पर बना रहे । दूसरे
श द म ह स के ि टकोण के अनुसार त थापन भाव म उपभो ता एक ह उदासीनता व
पर एक संयोग ब दु से दूसरे संयोग ब दू पर थाना त रत हो जात है िजसके कारण उसका
स तु ि ट का तर बना रहता है । ह स के त थापन भाव को च 6.9 म दखाया गया है ।
उपभो ता के आरि भक स तुलन क ि थ त को ब दु p पर दखाया गया है । जहाँ उपभो ता
क मत रे खा PS तथा उदासीनता व RS तथा उदासीनता व IC के साथ स तुलन म है ।
ब दु P पर आरि भक स तुलन क दशा मे उपभो ता व तु X तथा Y व तु क मश: OA
तथा OC मा ाएं उपभोग कर रहा है ।
अब य द Y व तु क क मत तथा उपभो ता क मो क आय के ि थर रहने पर व त X
क क मत म कमी होती है तब न न ल खत दशाएँ एक साथ उ प न होगी :

च 6.9- त थापन भाव ( ह स का ि टकोण)


(1) क मत रे खा RS के थान पर RISI हो जायेगी ।
(2) उपभो ता क वा त वक आय म वृ हो जायेगी ।

(90)
(3) व तु Y क क मत ि थर होने पर भी व तु Y सापे त: व तु X क तु लना म महँ गी हो
जायेगी ।
त थापन भाव म य क केवल व तु ओं क सापे क मत के प रवतन का अ ययन
कया जाता है अत: व तु X क क मत म कमी के कारण बढ़ हु ई वा त वक आय को घटाकर
ठ क उसी तर पर लाया जाता है िजसे क मत प रवतन से पूव उपभो ता को ा त था ।
ारि भक आय तर ा त करने के लए नयी क मत रे खा R1 S1 को मू ल ब दु क ओर
समाना तर प से इस कार खसकाया जात है क खसकायी गई क मत रे खा को KT दखाया
गया है जो ारि भक उदासीनता व IC को ब दु Q पर पश करती ह । ब दु P तथा Q एक
ह उदासीनता व के दो ब दु है जो उपभो ता को एक समान स तु ट दे त ह । च 6.9 से
प ट है क व तु ओं क क मत म सापे क प रवतन एवं वा त वक आय म तपू त
समायोजन के बाद उपभो ता ब दु Q पर व तु X क OB मा ा तथा व तु Yक OD मा ा
खर दता है । दूसरे श द म व तु X के सापे त: महँ गा हो जाने के कारण उपभो ता व तु X का
उपभोग OA से बढ़ाकर OB तथा व तु Y का उपभोग OC से घटाकर OD कर दे ता ह । ब दु
P से ब दु Q तक गमन त थापन भाव के ह स के ि टकोण को बताता है ।

6.5.2 त थापन भाव: ल क का ि टकोण

अथशा ी ल क ने त थापन भाव का एक आं शक प रव तत प तु त कया


है। इस र त म त थापन भाव ात करने के लए वा त वक आय को ि थर रखने के लए
उपभो ता क मौ क आय को इस कार प रव तत कया जाता है क उपभो ता क मत प रवतन
से पूव के अपने ारि भक संयोग को खर द सक । इस र त म त थापन भाव ात करने के
लए मो क आय म समायोजन लागत-अ तर के आधार पर कया जाता है । दूसरे श द म
उपभो ता क मौ क आय म प रवतन पूव -क मत पर व तु क य क गई मा ा क लागत
तथा प रव तत क मत पर उसी मा ा को य करने क लागत अ तर के बराबर कया जाता है ।
ल क वारा तपा दत त थापना भाव को च 6.10 व 6.11 म समझाया गया है।

च 6.10- X व तु के मू य म कमी च 6.11 - X व तु के मू य मे वृ


च 6.10 म पूव क मत रे खा RS है जो X व तु क क मत म कमी के बाद RS1 हो गयी
है । ारि भक अव था म उपभो ता उदासीनता व IC1 के ब दु P पर स तुलन क अव था
म है और X व तु क इकाई तथा Y व तु क OC ईकाई योग कर रहा है । X व तु क
क मत म कमी के बाद उपभो ता क वा त वक आय को ि थर रखने के लए नयी क मत रे खा

(91)
न RS1 को मू ल ब दू क और समा ना तर प से इस कार खसकाया जाता है । क
प रव तत क मत रे खा पुराने स तु लन ब दु P से गुजरे । इस ि थ त म उपभो ता अगर चाहे
तो पूव संयोग P को खर द सकता है । अि तम क मत रे खा KT है । उपभो ता पूव संयोग P
को खर द तो सकता है । क तु यह ब दु उसके स तुलन का ब दु नह ं होगा य क क मत
रे खा KT क सहायता से उपभो ता एक उँ चे उदासीनता व IC2 के ब दु Q पर स तुलन क
अव था म होगी । नयी प रि थ त म जब क व तु X सापे त: व तु Y क तु लना म स ती
हो गई है उपभो ता व तु X का उपभोग OA से बढ़ाकर OB कर दे ता है तथा व तु Y के
सापे त: महँ गा हो जाने के कारण व तु Y का उपभोग OC से घटाकर OD कर दे ता है ।
ल क के अनुसार त थापन भाव म उपभोकता व तु ओं का उनक सापे क मत के
प रवतन के कारण प रव तत संयोग एक उँ चे उदासीनता व पर ा त करता । च ए6.10 म
ब दु P से Q तक गमन त थापन भाव का प रणाम है ।
इसके वप रत च 6.11 म व तु क क मत वृ से स बि धत ल क का
त थापन द शत कया गया है । इस प रि थ त म X व तु क वृ के बाद उपभो ता क
वा त वक आय को ि थर रखने के लए क मत रे खा RS1 को मू ल ब दु से दूर समाना तर प
से इस कार हटाया जाता है क उपभो त पूव संयोग P को खर द सके क तु उपभो ता P
ब दु पर संतल
ु न क अव था म नह ं होगा । य क वह प रव तत क तम रे खा KT ा त होने
पर उचे उदासीनता व IC2 के ब दु Q पर स तु ि ट के ऊंचे तर को ा त कर सकेगा । ब दु
P से Q का गमन ल क का त थापन भाव ह ।
दोनो ह ि थ तय म प ट है क ल क त थापन भाव म उपभो ता एक उं चे
उदासीनता व पर पहु ंच जाता है अथात ल क का त थापन भाव उपभो ता क स तु ि ट
म वृ करता है ।

6.6 क मत भाव, आय भाव तथा त थापन भाव


ो. ह स के अनुसार, एक व तु के मू य म कसी उस व तु क माँग को दो कार से
भा वत करती ह –
थम, यह उपभो ता क वा त वक आय म वृ करके उसक ि थ त सुधारती है और
इसका भाव उपभो ता क माँग पर ठ क उसी कार पड़ता है जैसा उपभो ता क मौ क आय
क वृ का । इसे ह स ने आय भाव का नाम दया ।
वतीय, यह सापे त मू य म प रवतन करती है अत: वा त वक आय के प रवतन के
अ त र त उपभोकता म एक व तु से दूसर व तु को थानाप न करने क वृ त उ प न होती
है। िजसे ो. ह स ने त थापन भाव का नाम दया ।
इस कार
क मत भाव = आय + त थापन
क मत भाव का उपयु त दो घटक म वभाजन दो र तय क सहायता से कया जा
सकता ह.
1. ह स - ऐलन क र त वारा

(92)
2. लट क क र त वारा
6.6.1 ह स ऐलन र त मे त थापन भाव के अ तगत उपभो ता पूव के उदासीनता व
पर रहता है । इस ि थ त को च 6.12 क सहायता से दखाया गया है ।
च 6.12 म ारि भक ि थ त के अ तगत क मत रे खा R1S दखायी गयी है ।
उपभो ता क द हु ई आय तथा द हु ई व तु ओं क क मत के अ तगत उपभो ता उदासीनता व
IC1 के ब दु P पर स तु लन क अव था म है । जब व तु X क क मत म कमी होती है तो
नई क मत रे खा R1S1 के साथ उपभो ता ऊंचे उदासीनता व IC2 के ब दु R पर स तु लन
ा त करता है । ब दु P से ब दु R का गमन क मत भाव द शत करता है िजसे क मत
उपभोग व PCC से दखाया गया है । क तु उपभो ता P से R तक सीधे नह ं पहु ंचता है ।
बि क पहले P से Q तथा उसके बाद ब दु Q से R तक पहु ंचता है । व तु X क क मत म
कमी होने के कारण उपभो ता क वा त वक आय म वृ हो जाती है िजसे आय तपू त
प रवतन क सहायता से पुन उसी स तु ि ट तर पर ले आया जाता है । च 6.12 म यह
ि थ त क मत रे खा KT क सहायता से द शत क गयी है । उपभो ता व तु X के सापे मू य
म कमी के कारण उसी उदासीनता व IC1 के ब दु P से ब दु Q तक थाना त रत हो जाता
है िजसे त थापन भाव कहते ह । य द अब उपभो ता क मौ क आय म कमी, जो आय
तपूरक प रवतन म घटायी गयी थी ( च 6.12 म तपरक प रवतन व तु X के लए TS1
तथा व तु Y के लए R1 K1 दखाया गया ह)

च 6.12 - क मत भाव का वभाजन ह स – एलेन र त


च 6.12 क मत भाव का वभाजन ह स-एलेन र त(X ब तु को क मत कम होने
पर) उपभो ता को वापस कर द जाय तो उपभो ता एक उचे उदासीनता व IC2 के ब दु R
पर पहु च जाता है जो एक ऊंचे संतु ि ट तर को दखाता है ! उपभो ता का ब दु Qसे ब दु R
तक गमन आय भाव द शत करता है !
इस कार,
कु ल क मत भा = त थापन भाव + आय भाव
अथवा ब दु P से R तक ब दु P से Q तक ब दु Q से R तक
गमन गमन गमन
(93)
अथवा (M3-M1) = (M2-M1) + (M3 –M2)
अथवा M1 –M3 = M1-M2 दूर + M2 – M3 दूर
क मत भाव का वभाजन X व तु क क मत वृ के फल व प इसक मांग मे कमी
आती है ! क मत मे वृ के कारण उपभोगता संतु लन ब दु P से R तक पहु चता है िजसके
कारण व तु X क मांग घटकर OM1 से OM1 हो जाती है दूसरे मे M1 M3 मांग कम हो जाती
है! इसमे P से Q का गमन त थापन भाव है यो क X व तु क क मत बढ़ जाने पर आय
तपूरक प रवतन से वा त वक आय को ि थर रखने के लए क मत रे खा R1S1 को मू ल ब दु
सा दूर खसकाकर KT कया गया है! अब अगर तपूरक प रवतन मे द गयी मो क आय को
उपभो ता ब दु Q से ब दु R पर एक नीचे उदासीनता व पर आ जाता है । Q से R तक
गमन आय भाव है ।

च - 6.13 क मत भाव वभाजन (Xव तु क क मत वृ म) ह स -ऐलन र त


इस कार,
कु ल क मत भाव = त थापन भाव + आय भाव
अथवा ब दु P से R तक = ब दु P से Q तक + ब दु Q से R तक
गमन गमन गमन
अथवा (M1 – M3) = (M1 - M2) + (M2-M3)
अथवा M3 - M1 दूर = M2 - M1 दूर + M3-M2 दूर

6.6.2 क मत भाव के वभाजन क ल क र त

च 6.14 म द शत है क व तु X म क मत कमी के फल व प उपभो ता क क मत


रे खा R1S प रव तत होकर R1S1 हो रह है िजसके कारण उपभो ता ब दु P से ब दु R तक
क मत भाव के अ तगत थाना त रत हो रहा है । व तु X क क मत म कमी से उपभो ता क
वा त वक आय म वृ होगी । त थापन भाव ात करने के लए उपभो ता क मौ क आय
को इतना कम कया जाता है । क उपभो ता ब दु P पर व तु ओं को खर द सके । प रव तत
KT क मत रे खा पहल क मत रे खा R1S1 के समानाना तर है । का प नक क मत रे खा KT पर

(94)
उपभो ता ब दु Q पर स तु लत होता है1 जो उं चे उदासीनता व IC2 पर है । ब दु P से
ब दु Q तक का गमन त थापन भाव के कारण है । य द अब उपभो ता से छ नी गयी
मौ क आय (व तु Y के स दभ म R1K) वापस कर द जाये तो उपभो ता ब दु Q से ब दु
R तक गमन करता है जो आय भाव द शत करता है ।

च 6.13 - क मत भाव वभाजन ल क र त-X


व तु क क मत कम होने पर
इस कार,
कु ल क मत भाव = त थापन भाव + आय भाव
अथवा ब दु P से R = ब दु P से Q तक + ब दु Q से R तक
गमन गमन गमन
अथवा (M3 – M1) = (M2 - M1) + (M3 - M2)
अथवा M1 - M3 दूर = M2 - M3 दूर + M2 - M3 दूर

6.7 क मत भाव को आय था त थापन भावो मे वभािजत


करने का लाभ
क मत भाव को आय भाव तथा त थापन भाव के योग के प म समझने का
वशेष लाभ यह है । क हमसे एक व तु क क मत म प रवतन के फल व प उसक माँग-मा ा
म प रवतन को अ धक उ तम तथा सु गम प से समझा जा सकता है । अ धकांश व तु ओं क
दशा म, आय भाव तथा त थापन भाव समान दशा म काय करते ह । पर तु कु छ व तु ओं
क अव था म ये दो भाव वपर त दशा म काय करते ह । त थापन भाव क दशा तो
ब कु ल नि चत ह। एक व तु क सापे क मत म कमी उसक माँग -मा ा बढ़ाने क ओर काय
करती है अथात ् त थापन भाव उपभो ता को सदा ह स ती व तु अ धक मा ा म य करने
के लए े रत करता है । पर तु आय भाव क दशा के बारे म इतना नि यतपूवक नह ं कहा
जा सकता । आय म वृ के फल व प यि त सामा यत: एक व तु क अ धक मा ा खर दे गा
। क तु य द कोई व तु न न अथवा ह न पदाथ है तो यि त आय बढ़ने पर उसक कम मा ा
खर दे गा य क वह तब उसके थान पर उ चको ट क थानाप न व तु ओं का अ धक योग
करे गा । इस कार हम दे खते ह क आय भाव के कारण व तु क माँग बढ़ भी सकती है अथवा

(95)
घट भी अथात आय भाव मश: धना मक भी ह सकता है अथवा ऋणा मक भी । य द एक
व तु के लए भाव धना मक है जैसा क सामा य व तु ओं क ि थ त म होता है, तो यह उसी
दशा म याशील होगा ओर त थापन भाव काय करता ह अथात दोन
भाव उस व तु क खर द अथवा माँग को िजसक क मत घट गई है, बढ़ायेग ।
पर तु न न पदाथ के लए िजनक दशा म आय भाव ऋणा मक होता है । क मत म
नह त आय भाव उसके त थापन भाव क वपर त दशा म काय करे गा । अतएव ऐसी दशा
म नवल प रणाम दो भाव क सापे शि तय पर नभर करे गा । य द कसी न न पदाथ क
दशा म ऋणा मक आय भाव त थापन भाव क तु लना म कम शि तशाल है तो उसक
क मत घटने पर उसक माँग, सामा य व तु ओं क भाँ त बढे गी । पर तु य द कसी न न पदाथ
क दशा मे ऋणा मक आय भाव त थापन भाव क अपे ा अ धक शि तशाल है तो उसक
क मत घटने पर उसक माँग घट जाएगी । अतएव कसी व तु क माँग-मा ा उसक क मत घटने
अथवा बढने पर कस दशा म बदलेगी, यह एक ओर आय भाव क दशा और शि त पर और
दूसर ओर त थापन भाव क शि त पर नभर करता है ।
इस कार हम दे खते ह क व तु क क मत म प रवतन के फल व प उसक माँग म
प रवतन क दशा को समझने के लए क मत भाव को उसके दो भाग , आय भाव तथा
त थापन भाव, म वभािजत करना आव यक है । माशल ऐसा न कर सका ओर इस लए वह
न न व गफन पदाथ क दशा म क मत और माँग म स ब ध क समु चत या या करने म
वफल रहा।

6.8 सारांश
इस अ याय म तट थता वक क सहायता के क मत भाव क या या ह स व
ल क वधी के वारा प ट क गई इसके अनुसार सामा य व तु घ टया व तु का
वभ तीकरण सरलता से कया गया है क वे व तु य िजनम आय भाव धना मक होता है
साम य व तु कहलाती है । तथा िजनम ऋणा मक होता ह घट या व तु य कहलाती है । गफन
व तु क ि थ त म क मत के कम होने पर व तु क माँग के घटने क या उदासीनता व ो
क सहायता से समझाई जा सकती है अत: प ट है क तट थता वक उपभो ता के यवहार को
समझाने म मह वपूण भू मका नभाते ह ।

6.9 श दावल
1. क मत भाव - व तु ओं के उपभोग म होने वाले वह प रवतन जो दो व तु ओं म से कसी
एक क क मत म प रवतन के कारण संभव होता है जब क दूसर व तु क क मत व
उपभो ता क आय ि थर रहती है ।
2. त थापन भाव - सापे क मत के प रवतन के कारण व तु ओं क खर द गई मा ा म
प रवतन जब क उपभो ता क आय ि थर रहती है ।
3. आय भाव - उपभो ता क आय म प रवतन के कारण व तु ओं क खर द गई मा ा म
प रवतन जब क व तु ओं क सापे क मत ि थर ह ।
4. क मत उपभोग व -मो क आय और अ य सभी व तु ओं क क मत ि थर रहने पर ा त
वह व जो उपभो ताओं के ा त स तुलन का ब दु पथ दशाता है ।
(96)
5. आय उपभोग व - वह व जो मो क आय के व भ न तर तथा ि थर क मत के
प रणाम व प ा त स तुलन के ब दु पथ को दशाता है।

6.10 बोध न
6.10.1 न न ल खत नो के उ तर 500 श द म द िजये :-
न सं या 1- क मत उपभोग व से या ता पय है? क मत भाव को आय भाव
त थापन भाव म वभािजत किजए - ह स का ि टकोण
न सं या 2- क मत उपभोग व को युि पत क िजए तथा इसक मांग लोच
य त करने क द ता बतलाइये ।
6.10.2 न न ल खत न के उ तर 200 श द म द िजये ।
न सं या 1- आय उपभोग व क यु प त च वारा प ट प से समझाइये ।
न सं या 2- क मत भाव के त थापन व आय भाव के अलगाव क ह स व
ल क वधी क तु लना क िजए ।

6.11 संदभ ंथ
आहू जा, एच० एल० (2006) : उ चतर आ थक स ा त
एस च द ए ड क पनी ल०, नई द ल
नाथू रामका, ल मीनाराण (2006) : यि ट अथशा , म लक
ए ड क पनी, जयपुर
जैन, ट ० आर० एवं अ य (2007) : यि ट अथशा ी, वी० के० ए टर ाईज
नई द ल

(97)
इकाई - 7
उदासीनता व : माँग व का नमाण

7.0 उ े य
7.1 तावना
7.2 मांग का नयम
7.2.1 मांग का अथ एवं भा वत करने वाले त व
7.2.2 मांग का नयम
7.2.3 मांग क अनुसू चत एवं मांग व
7.3 मांग के नयम के अपवाद
7.4 वैयि तक मांग व एवं बाजार मांग व
7.5 तट थता व से मांग व क यु प त
7.6.1 वैयि तक मांग व नकालने
7.6.2 वैयि तक मांग व नकालने क व तय व ध
7.6 सारांश
7.7 अ यासाथ न
7.8 संदभ न

7.0 उ े य
इस इकाई के अ ययन के प चात आप माँग के नयम के बारे म जान सकेगे वैयि तक
मांगव एवं बाजार मांग व के बारे म जानकार ा त कर सकगे तट थता व से माँग व
क यु प त करना समझ सकगे ।

7.1 तावना
वतमान इकाई म उपभो ता के मांग व को तट थता व के क मत उपभोग व वारा
युि पत कया जायेगा । ले कन इससे पूव भाग का अथ, मांग का नयम व मांग व का
व लेषण तु त कया जायेगा िजससे यह प ट कया जा सके क उपभो ता के यवहार को
व ले षत करने म यह अवधारणा कतना मह व रखती है । मांग के नयम का प ट करण करते
समय यह आव यक है क या यह नयम सावभौ मक स य ह अथवा कु छ इसके अपवाद भी है
अत: अपवाद का व लेषण भी अव य भावी हो जाता है । चूँ क बाजार का नमाण यैि तक
इकाई के वारा होता है । अत: यैि तक मांग व व बाजार के मांग व का तु लना मक
अ ययन तु त इकाई म व ले षत कया जा रहा है ।

(98)
7.2 मांग का नयम
मांग का नयम स पूण आ थक याओं को य अथवा पर प से अव य भा वत
करता है । अथशा के े म मांग को एक घु ी क सं ा द जा सकती है िजसके चारो ओर
स पूण याए च कर लगाती है क तु मांग का नयम समझने से पूव मांग का अथ समझना
अ त आव यक है य क इ छा आव यकता व मांग शबद अलग-अलग अथ रखते है जब क
सामा यत: इन तीन श द को पयायवाची मान लया जाता है ।

7.2.1 मांग का अथ एवं भा वत करने वाले त व

मानवीय इ छाऐं अन त व असी मत होती है िजनका स ब ध मनु य क क पनाओं से


होता ह । मनु य क येक क पना मनु य के जीवन मे पूर नह ं होती । मानवीय मनोवृ त
सदै व मनु य को अ छे से अ छा उपभोग करने क ेरणा दे ती है क तु मनु य के पास इन
असी मत इ छाओं क पू त के लए सी मत साधन होते है । िजन इ छाओं क पू त के लए हम
अपने सी मत साधन को यय करने को तैयार होते है वे इ छाय हमार आव यकता बन जाती है
िजन आव यकताओं को पूरा कर लया जाता है । वे मांग कहलाती है । अथात इ छा जब य
शि त वारा घो षत करके पूर कर ल जाती है । तब इ छा मांग मे प रव तत हो जाती ह ।
ो० पे सन के अनुसार 'मांग एक भावी इ छा है िजसम तीन त य सि म लत होते ह -
(1) व तु को ा त करने क इ छा (2) व तु खर दने के लए साधन उपल धता तथा (3) व तु
खर दने के लए साधन को यय करने क त परता ।
ो० पे सन क प रभाषा मु यत: आव यकताओं के संदभ म ह लागू होती ह और इसके
वारा माँग क मौ लक वृि तय का ान नह ं होता है । इसके अ त र त यह प रभाषा
आव यकता एवं माँग म अ तर भी प ट नह ं करती । इ ह क मय के कारण इस प रभाषा को
पूण प रभाषा नह ं कहा जा सकता ।
ो० जे. एस. मल के अनुसार, ''मांग शबद का अ भ ाय मॉगी गई उस मा ा से लगाया
जाना चा हए जो एक नि चत क मत पर य क जाती है ।
ो० बे हम के अनुसार कसी द गई क मत पर व तु क माँग व तु क वह मा ा है जो
उस क मत पर एक नि चत समय म खर द जाती है ।
ो० मेयस के अनुसार '' कसी द गई क मत पर व तु क माँग व तु क वह मा ा है जो
उस क मत पर एक नि चत समय म खर द जाती है ।“ दूसरे श द म '' कसी व तु क माँग
उन मा ाओं क ता लका होती है िज ह े ता एक समय वशेष पर सभी स भव क मत पर
खर दने को तैयार रहता है ।
उपरो त प रभाषाओं का य द व लेषण कया जाये तो मांग म न न ल खत पाँच त व
न हत होते ह:
(1) व तु क इ छा
(2) व तु य के लए पया त साधन
(3) साधन यय करने क त परता
(4) एक नि चत क मत

(99)
(5) नि चत समयाव ध
माँग क प रभाषाओं मे हम माँग को भा वत करने वाले िजन त व का उ लेख मलता
है उनके अ त र त कु छ अ य घटक भी वा त वक प म माँग को भा वत करते है, जो
न न ल खत ह.
(1) व तु क उपयो गता - उपयो गता का अ भ ाय ह - आव यकता पू त क मता ।
एक द गई समयाव ध म व तु क माँग का आकार इस बात पर नभर करता है क व तु म
मनु य क आव यकता पू त क कतनी मता उपि थत है । अ धक अपयो गता वाल व तु क
माँग कम होगी ।
(2) आय तर - आय- तर का माँग पर य भाव पड़ता है । कसी यि त क
आय िजतनी अ धक होगी उस यि त क माँग उतनी ह अ धक हो जायेगी तथा इसके वपर त
आय का कम तर माँग पर तकू ल भाव डालेगा ।
(3) धन का वतरण - समाज म धन के वतरण का भी माँग पर भाव पड़ता है ।
समाज म धन और आय का वतरण य द असमान है तो धनी वग वारा वला सता क व तुओं
क माँग अ धक होगी । जैसे-जैसे समाज म धन का वतरण समान होता जायेगा । वैस-े वैसे
समाज म आव यक एवं आरामदायक व तु ओं क माँग बढ़ती जायेगी ।
(4) व तु क क मत - व तु क क मत माँग को मु य प से भा वत करती है । कम
क मत पर व तु क अ धक माँग तथा अ धक क मत पर व तु क कम माँग उ प न होती है ।
इस घटक क व तृत या या हम इसी अ याय म माँग के नयम म करगे ।
(5) स बि धत व तु ओं क क मते - स बि धत व तु एँ दो कार क होती ह -
(a) थानाप न व तु एँ - जैसे चीनी -गुड़ चाय-काफ आ द ।
(b) पूरक व तु एँ - जैसे कार-पै ोल, याह -कलम, डबलरोट -म खन आ द ।
थानाप न व तु ओं म एक व तु क क मत का प रवतन दूसर व तु क माँग को
वपर त दशा म भा वत करे गा तथा पूरक व तु ओं म एक व तु के क मत प रवतन
के कारण दूसर व तु क माँग समान दशा म बदलेगी ।
(6) च. फैशन आ द - व तु क माँग पर उपभो ता क च उसक आदत च लत
फैशन आ द का भी भाव पड़ता है । कसी व तु वशेष का समाज म फैशन आ द का भी भाव
पड़ता है । कसी व तु वशेष का समाज म फैशन होने पर नि चत प से उसक माँग म वृ
होगी ।
(7) भ व य म क मत प रवतन क आशा - सरकार नय ण, दे वी वपती क आशंका,
यु स भावना आ द अनेक अ या शत एवं या शत घटक का भी व तु क माँग पर भाव
पड़ता है ।
इसके अ त र त जनसंखया प रवतन, यापार दशा म प रवतन, जलवायु मौसम आ द
का भी व तु क माँग पर भाव पड़ता है ।
माँग को मु य प से तीन प म वग कृ त कया जा सकता है.
(1) क मत माँग - क मत माँग से अ भ ाय व तु क उन मा ाओं से है जो एक
नि चत समयाव ध म नि चत क मत पर उपभो ताओं वारा माँगी ह । 'य द अ य बात
समान रह' तो व तु क क मत बढ जाने से उसक माँग कम हो जायेगी और व तु क क मत

(100)
घट जाने से उसक माँग बढ जायेगी । यहाँ अ य बाते समान रह श द का अ भ ाय यह है क
िजस समय वशेष पर उपभो ता कसी व तु वशेष क माँग करता है उस समय उपभो ता क
आय, च, यवहार एवं उसके आय तर म कसी कार का कोई भी प रवतन नह ं होना
चा हए ।

च 7.1 - क मत मांग व
क मत एवं व तु माँग म वपर त स ब ध होने के कारण क मत-माँग व का ढाल ऋणा मक
होता है अथात ् क मत माँग व बाय से दाय नीचे गरता हु आ होता है । ऋणा मक ढाल वाले
क मत -माँग च 7.1 म द शत कया गया है । DD व बाय से दाय नीचे गरता क मत-
माँग व है जो यह बताता है । क व तु क क मत एवं माँग मे वपर त स ब ध पाया जाता
है ।OP क मत पर व तु क माँग OQ है । क मत के OP से घटकर OP1 हो जाने पर
अ य बात के समान रहने पर माँग OQ से बढ़कर OQ1 हो जाती है ।
(2) आय माँग - सामा यत: आय माँग का अथ व तु ओं एवं सेवाओं क उन मा ाओं
से लगाया जाता है । जो अ य बात के समान रहने क दशा म उपभो ता द गई समयाव ध
म आय के वभ न तर पर खर दने क मता रखता है । आय-माँग व को जमनी के
अथशा ी ऐंिजल के नाम पर ऐंिजल व भी कहा जाता है !
आय माँग व तु क कृ त पर नभर होती है । व तु एँ दो वग म बाँट जा सकती है:
(a) े ठ व तु एँ
(b) न न व तु एँ
(i) े ठ व तु ओं के स ब ध म आय-माँग व धना मक ढाल वाला होता है अथात बाय
से दाय उपर चढता हु आ होता है । े ठ व तु ओं का धना मक ढाल वाला आय-माँग व यह
बतलाता है क उपभो ता क आय म येक वृ उसक माँग म (अ य बात के समान रहने
पर) भी वृ करती है तथा इसके वपर त आय क येक कमी सामा य दशाओं म माँग म भी
काय उ प न करती है । इस ि थ त क या या च 7.2 म क गई है ।

(101)
च 7.2 - े ठ व तु ओं का आय माँग व
च 7.2 म DD आय-माँग व ( े ठ व तु ओं के लए) को बताता है । Oy आय- तर पर
माँग OQ है । आय तर म OY से OY1 तक वृ होने पर अ य बातो के समान रहने पर
माँग भी OQ से बढ़कर OQ1 हो जाती है ।
(ii) न न व तु एँ वे व तु एँ होती ह िज ह उपभो ता ह न ि ट से दे खता है और आय-
तर के पया त नह होने पर उपभोग करता है जैसे -मोटा. अनाज, उपभोग म वृ करने लगता
है अथात ् ह न व तु ओं के लए आय-माँग व ऋणा मक ढाल वाला बाय से दाय नीचे गरता
हु आ है जैसा च 7.3 म द शत कया गया है ।

च 7.3 - न न व तु का आय मॉग व
DD व ह न व तु ओं के लए आय माँग को बताता है । आय के OY तर पर न न (अथवा
ह न) व तु ओं क माँग OQ है । आय तर म OY1 तक वृ होने पर उपभो ता न न व तु
क माँग OQ से घटाकर OQ1 कर दे ता है अथात वह े ठ व तु का उपभोग अ धक आर भ
कर दे ता है । आय माँग के इस वरोधाभास पर इं लै ड के अथशा ी राबट ग फन (Robert
Giffin) ने सव थम काश डाला तथा उ ह के स मानाथ इसे हम ग फन का वरोधाभास के
नाम से जानते ह ।

(102)
(3) आडी अथवा तरछ माँग - अ य बात समान रहने पर कसी व तु X क
क मत म प रव तत होने से उसके सापे स बि धत व तु Y क माँग म ज प रवतन होता है
उसे आडी माँग कहते ह । दूसरे श द म आडी माँग म एक व तु क क मत का उसके सापे
स बि धत दूसर व तु क माँग पर भाव दे खा जाता है । ये स बि धत दुसर व तु क माँग
पर भाव दे खा जाता है । ये स बि धत व तु एँ दो कार क हो सकती है ।
(i) थानाप व तु एँ - थानाप व तु एँ वे व तु एँ ह जो एक-दूसरे के बदले एक ह
उ े य के लए योग क जाती है जैसे -चाय-काफ । ऐसी व तु ओं म जब एक व तु क क मत
म वृ होती है तब अ य बात समान रहने क दशा म (अथात थानाप व तु क क मत
अप रव तत रहने पर) थानाप व तु क माँग म वृ हो जायेगी । उदाहरणाथ काफ क क मत
बढने क दशा म चाय क माँग म वृ होगी । इस ि थ त को च 5 म दखाया गया है ।

च 7.4 था नापन व तु का माँग व


च 7.4 DD व थानाप न व तु के माँग व को द शत करता है । व तु Y क मत
OP1 होने पर थानाप न व तु क माँग OX1 है । य द X व तु क क मत बढकर OP1 हो
जाती है तो अनेक उपभो ता Y व तु का उपभोग कर थानाप न व तु X के उपभोग पर
थाना त रत हो जायगे िजससे X व तु क माँग म वृ हो जायेगी ।
(ii) पूरक व तु एँ -पूरक व तु एँ वे व तु एँ ह जो कसी नि चत उ े य क पू त के
लए एक साथ योग क जाती है जैसे कू टर- े ोल । य द कू टर क क मत म ती वृ हो
जाये तब पूरक व तु पे ोल क माँग पर तकूल भाव पड़ता है जब क पे ोल क क मत
अप रव तत रहती है इस कार पूरक व तु ओं क क मत और खर द जाने वाल मा ा म वपर त
स ब ध पाया जाता है । िजसे च 7.5 म द शत कया गया है ।

च 7.5 - पूरक व तु का माँग वक


(103)
च 7.5 म DD पूरक व तु ओं क माँग रे खा है । य द Y व तु क क मत OP1 से बढ़कर
OP2 हो जाती है तो Y व तु क पूरक व तु X क माँग OX1 से घटकर OX2 रह जाती है।
(4) माँग के अ य कार
(a) संयु त माँग - यह माँग पूरक माँग का ह एक प है । जब एक ह उ े य क पू त के
लए एक ह समय पर एक से अ धक व तु ओं क माँग एक साथ क जाती है तब ऐसी माँग
कहा जाता है । जैसे गद-ब ला, जू ता-मोजा, कू टर-पे ोल आ द । संयु त माँग म एक व तु का
योग दुसरे के अभाव म नह कया जा सकता ।
(b) यू प न माँग - जब एक ह व तु क माँग से दूसर व तु क माँग वत: उ प न हो
जाती है तो इस कार क माँग को यु प न कहत है । जैसे कपड़े क माँग बढ़ने के उ पादन म
योग होने वाले उ प त के साधन क माँग म वृ । यह कारण है क उ प त के साधन क
माँग होती है य क इनक माँग उस व तु क माँग पर नभर करती है िजसके उ पादन म ये
साधन योग कये जाते है।
(c) सामू हक माँग - जब एक व तु दो या दो से अ धक उयोग म माँगी जाती है तब ऐसी
व तु क माँग को सामू हक माँग कहते ह । जैसे-कोयला, बजल , दूध आ द । कोयला अनेक
योग म योग कया जाता है-घर म भोजन बनाने हे तु रे लवे म ईधन शि त हे तु कारखान म
भ ी का ईधन आ द ।
7.2.2 माँग का नयम
माँग का नयम व तु क क मत और उस क मत पर माँगी उस क मत पर माँगी जाने
वाल मा ा के गुणा मक स ब ध को बताता है । उपभो ता अपनी मनोवै ा नक वृ त के
अनुसार अपने यावहा रक जीवन म उची क मत पर व तु क कम मा ा खर दता है और कम
क मत पर व तु क अ धक मा ा ! उपभो ता क इसी मनोवै ा नक उपभो ता वृ त पर माँग
का नयम आधा रत है ।
माँग का नयम यह बतलाता है क 'अ य बात के समान रहने पर व तु क क मत एवं
व तु क मा ा म तलोम स ब ध पाया जाता है । दूसरे श द म, अ य बात के समान रहने
क दशा मे कसी व तु क क मत म वृ होने पर उसक माँग म वृ हो जाती है ।
माशल के अनुसार, 'क मत म' कमी के फल व प व तु क माँगी जाने वाल मा ा म
वृ होती है तथा क मत म वृ होने से माँग घटती है । '
से यूलसन के श द म '' दये गये समय म अ य बात के समान रहने क दशा म जब
व तु क क मत म वृ होती है तब उसक कम मा ा क माँग क जाती है यि त कम क मत
पर कम व तु एँ खर दते है “
उपयु त प रभाषाओं से प ट है क व तु क क मत और व तु क माँग म द गई
ि थर दशाओं के अ तगत वपर त स ब ध पाया जाता है अथात ्
Dp/<0
dp = व तु क क मत म प रवतन
dQ= व तु क माँग म प रवतन

(104)
उपरो त समीकरण बताता है क क मत बढने पर माँग घटे गी तथा क मत घटने पर
माँग पर माँग बढ़े गी । माँग का नयम एक गुणा मक कथन है, मा ा मक कथन नह ं । यह
केवल क मत और माँग के प रवतन क दशा बतलाता है, प रवतन क मा ा नह ं ।
माँग के नयम क याशीलता कु छ मा यताओं पर आधा रत है दूसरे श द म
न न ल खत मा यताओं के अ तगत ह माँग का नयम याशील होता ह :
1. उपभो ता क आय मे कोई प रवतन नह ं होना चा हए ।
2. उपभो ता क च, वाभाव पस द आ द ि थर होने चा हए ।
3. स बि धत व तु ओं क क मत म कोई प रवतन नह होना चा हए ।
4. कसी नवीन थानाप न व तु का उपभो ता को ान नह ं होता ।
5. भ व य म व तु क क मत म प रवतन क स भावना नह ं होती ।

7.2.3 मांग क अनुसच


ू ी एवं माँग व

कसी दये समय पर व तु क व भ न क मत एवं उन क मत पर माँगी जाने वाल


व तु क मा ाओं के पार प रक स ब ध को बताने वाल ता लका माँग ता लका कहलाती है ।
दूसरे श द म एक नि चत समय पद बाजार म द गई व भ न क मत पर व तु क िजतनी
मा ाएँ बेची जाती है य द इस स ब ध को (अथात क मत व माँग के स ब ध को) एक ता लका
के प म य त कया जाये तो यह माँग ता लका कहलाती है ।
उदाहरण -मांग ता लका के वचार को एक का प नक उदाहरण से समझा जा सकता है
ता लका 71 का प नक माँग ता लका
व तु क मत त इकाई मांगी गई व तु X क इकाइयाँ
2 200
4 150
6 130
8 100
10 80
12 60
उपयु त ता लका को य द ाफ पेपर पर खीचा जाय तो च 7.6 क भां त हम DD
व ा त होता है । यह मांग व है ।

च 7.6 - मॉग व

(105)
(i) माँग का नयम समझाइए
(ii) माँग अनुसू ची से माँग व का नमाण क िजए

7.3 माँग के नयम के अपवाद


कु छ दशाओं म क मत और माँग का तलोम स ब ध याशील नह ं होता । ऐसी
दशाओं को नयम का अपवाद कहा जाता है जो न न ल खत है ।
1. भ व य म क मत वृ क स भावना - कु छ भावी या शत रि थ तयो के कारण जैसे
यु , अकाल, ाि त सरकार नी त, सी मत पू त जैसी स भावनाओं म क मत वृ के बावजू द
माँग म उ तरो तर वृ होती चल जायेगी य क उपभो ता भ व य म और क मत वृ क
आशंका से वतमान माँग को बढ़ा दे गा । ऐसी दशा म क मत और माँग म तलोम संबध
ं न
होकर सीधा संबध
ं था पत होता है और माँग व बाय से दाय उपर क ओर चढता हु आ बन
जाता है ।
2. त ठा सू चक व तु एँ - त ठासू चक व तु ओं म म या आकषण (False show) के
कारण माँग का नयम याशील नह ं होता । समाज का धनी वग अपनी े ठता द शत करने
के लए उँ ची क मत वाल व तु ओं का अ धक य करता है । ह रे जवाहरात, बहु मू य आभू षण,
क मती कलाकृ तयां आ द व तु ओं क माँग प रवतन का भाव नह ं पड़ता । वा त वकता तो यह
है क इन व तु ओं क क मत म जैसे -जैसे वृ होती जाती है धनी वग म या आकषण के
वशीभूत होकर इन व तु ओ क माँग भी बढ़ाता जाता है ।
3. उपभो ता क अ ानता - जब उपभो ता अपनी अ ानता के कारण उँ ची क मत दे कर
यह अनुभव करता है क उसने अ धक टकाउ एवं े ठ व तु खर द है तब उँ ची क मत माँग को
भा वत नह ं करती । उसके अ त र त जब कसी व तु को घ टया समझकर अनुभोग नह ं
करता। ऐसी दशा म क मत पर उपभोग अ धक होन के थान पर कम हो जाता है और माँग का
नयम याशील नह ं होता ।
4. ग फन का वरोधाभास - न न को ट क व तु एँ - जब उपभोग क दो व तु ओं म एक
व तु न न व तु हो तथा दूसर े ठ व तु हो तब ग फन का वरोधाभास उ प न होता है ।
न न व तु एँ होती है िजनका उपभोग उपभो ता वारा इस लए कया जाता है य क उपभो ता
अपनी सी मत आय और े ठ व तु क उँ ची क मत के कारण कम क मत वाल व तु अथात ्
न न व तु का उपभोग करता है । ऐसी दशा म न न व तु क क मत म जब कमी होती है तब
उपभो ता क मत के घटने के कारण सृिजत अ र र त यशि त से अ छ व तु का उपभोग बढ़ा
दे ता है तथा न न व तु का उपभोग घटा दे ता ह । इस कार न न व तु क ओर सव थम
इं लै ड के अथशा ी राबट ग फन ने यान आकृ ट कया था । स मानाथ उ ह ं के नाम पर
इसे ग फन का वरोधाभास के नाम से जाना जाता है । ग फन वरोधाभास वाल न न व तु के
माँग व को च 7.7 म दखाया गया है ।

(106)
च 7.7 - न न व तु का माँग व
च 7.7 म DD न न व तु का माँग व है जो बाय से दाय उपर क ओर बढ़ता हु आ है
।OP क मत पर उपभो ता न न व तु क OQ मा ा य करता है । जब उपभो ता क य
शि त म न न व तु क क मत घटने ( च म OP से OP1) से वृ होती है तब उपभो ता
न न व तु का उपभोग OQ से OQ1 तक घटाकर े ठ व तु क ओर उपभोग बढ़ा दे ता है ।
दूसरे श द म न न व तु क क मत घटने पर उसक माँग म कमी होती है । यह माँग के
नयम का अपवाद ह ।

7.4 यैि त माँग व एवं बाजार माँग व


माँग व दो कार के हो सकते है । (a) यि त माँग व (b) बाजार माँग व
7.4.1 यैि तक माँग व - यैि तक माँग व वह व है जो कसी व तु क वभ न
क मत पर एक उपभो ता वारा उस व तु क मांगी गई मा ा को कट करता है ! नीचे च
7.8 म यि तगत माँग व को प ट कया गया है ।

च 7.8 - यि तगत मांग व


यि तगत मांग व वह व है जो कसी व तु क व भ न क मत पर एक उपभो ता
वारा उस व तु क मांगी गई मा ा को कट करती है । च 7.8 म यि तगत मांग व को
प ट कया गया है । इसम X अ पर व तु क मांग तथा Y अ पर क मत कट क गई है

(107)
। मांग व है । इस मांग व का येक ब दु क मत तथा मांग म स ब ध कट करता है ।
जब क मत 4 पए है तो मांग 1 इकाई है । जब क मत 1 पया है । तो मांग 4 इकाइयां है ।
इस मांग व का ढलान उपर बाई और से नीचे दाई ओर को है, जो यह दशाता है क क मत
अ धक होने पर मांग कम होता है तथा क मत कम होने पर मांग अ धक होती है ।
7.4.2 बाजार मांग व - बाजार मांग व कसी व तु वशेष क व भ न क मत पर व भ न
उपभो ताओं वारा मांगी गई मा ाओं के जोड को कट करता है । इस मांग व को
यि तगत मांग व के सम त जोड वारा खीचा जाता है । न न ल खत मांग ता लका 7.2
के आधार पर बाजार मांग व को कट कया गया है ।
ता लका 7.2 -उपभो ता A व B क माँग
व तु X क क मत उपभो ता A क माँग उपभो ता B क मांग बाज़ार मांग
1 4 5 9
2 3 4 7
3 2 3 5
4 1 2 3
च 7.9 म उपरो त ता लका 7.2 के आधार पर माँग व कट कया गया है ।

च 7.9- बाजार माँग व


च 7.9 म OX अ पर मा ा तथा OY अ पर क मत कट क गई है । इसके 1
च म 'A' क मांग तथा (ii) म 'B' क मांग व तथा (iii) म बाजार क मांग व कट क
गई है । जब क मत 4 पए त इकाई है तब 'A' क मांग 1 इकाई और 'B' क मांग 2
इकाइयां है य द बाजार म केवल दो उपभो ता ह तब बाजार मांग 1+2= 3 इकाइयां ह गी ।
यि तगत मांग व के सम तर जोड (Horizontal Summation) वारा बाजार मांग व ा त
हो जाता है, इस लए इसका ढलान भी ऋणा मक (Negative) है ।
बोध न - 2
(i) माँग के नयम के अपवाद बताइए ।
(ii) वैयि तक माँग व एवं बाजार मांग व म अ तर प ट क िजए ।

(108)
7.5 तट थता व ो से माँग व क यु प त
उपभो ता के मांग व से आप भल भां त प र चत हो चुके ह पर तु मांग व माशल
क इस धारणा के आधार पर खींचा जाता है क तु ि ट गुण का मापन संभव है और मु क
सीमा त उपयो गता ि थर रहती है तट थता व क व ध म मांग क इन अवा त वक
मा यताओं के बना भी यु प त क जाती है अत: अब हम उपभो ता के मांग व तट थता व
व ध से यु प दत करे गा । इसके लए यह पता होना चा हए क उपभो ता का अ धमान कम
कैसा है उसक आय कतनी है । उसका अ धमान कम तो हम उसके तट थतामान च वारा
ात हो जाएगा और उसक आय बजट रे खा म आ जाएगी । मांग व क यु प त क दो व ध
न न कार है ।

7.5.1 यैि तक मांग व नकालने क थम व ध-

माँग के ववेचन म बतलाया जा चु का है क माँग -व , अ य बात के समान रहने पर,


व भ न क मत पर माँग क व भ न मा ाएँ दशाता है । थोड़ा -सा यान दे ने पर यह प ट हो
जाएगा क एक यि तगत माँग का उपभो ता के क मत उपभोग व -(PCC) से गहरा स ब ध
होता है। नीचे तट थता व क सहायता से यु पि त प ट क गयी है ।
च 7.10 म OX अ पर X व तु क मा ाऐं व OX अ पर मु ा क मा ाएँ आँक
गई है । MN, MN1, MN2 व MN3 व भ न क मत रे खाएँ ह और MABCD क मत उपभोग
व है । उपभो ता के पास कु ल मु ा OM पये है । A ब दु पर X क OA1 मा ा ल जाती है
। िजसके लए उपभो ता मु ा क MR मा ा दे ता है । दूसरे श द म, वह A ब दु पर X क
OA1, मा ा व मु ा क OR=AA1 रा श का संयोग लेता है । MN क मत - रे खा का ढाल
OM/ON है और यह X क त इकाई क मत भी है (चूँ क OM= कु ल मु ा व ON= X क कु ल
मा ा है, जो OM मु ा -रा श के यय से ा त होती है)

च 7.10 - यैि तक माँग वक क यु प त –


अब हम OX अ पर A1 X1 व तु क एक इकाई माप लेते है , और X1 मे से PX1
रे खा MN के समांतर (parallel) डालते है , जो AA1को p पर काटती ह ! P ब दु यि तगत
उपभो ता के मांग व का एक ब दु ह! PA1 त इकाई क मत पर Xव तु क OA1 मा ा
(109)
होती है! यह आसानी से प ट कया जा सकता है ! कPA1/ A1X1=PA1 = त इकाई क मत
हो जाती है!
इसी तरह आगे बढ़ते हु ए हम मांग व के अ य ब दु p1,P2 व P3 नकाल लेते है
और इनको मलाकर वैयि तक मांग व बन जाता है ! च म P1B1 त इकाई क मत पर क
मांग क X मा ा P2C1 क मत पर OCI मांग क मा ा एवं P3D1 क मत पर मांग क ODI
होती है ! इस कार क मत उपभो ता व (PCC) का उपयोग करके एक उपभो ता का मांग व
नकाला जा सकता है !
वैयि तक मांग – व ो से बाजार मांग – व का नमाण सरलता से कया जाता है
ले कन मरण रहे क उपयु त च 7.10 मे हमने मांग व एक व तु के लए एक उपभो ता
तट थता –व ो क सहायता से नकालता ह !

7.5.2 तट थ –व ो से वैयि तक मांग – व नकालने क वतीय व ध –

एक दूसर व ध का योग करके तट थता – व ो से मांग क यु प त दखाई जा


सकती है ! इसमे दो च ो का उपयोग होने से ववेचन अपे ाकृ त अ धक सरल व अ धक प ट
हो जाता है ! इसके लए च नीचे दशाए गए है ! ( च 7.11)

च 7.11 – यैि तक मांग व यु पि त

(110)
च 7.11 के उपर भाग म OX अ पर व तु क मा ा व OY अ पर मौ क आय
दखायी जाती MN, MN1 व MN2 तीन क मत रे खाएँ है तथा ABC क मत उपभोग व
(PCC) है । MN क मत रे खा होने पर व तु क क मत OM/ON होती है जो च के नचले
भाग म OY अ पर OP1 त इकाई क मत के वारा दशायी गयी है । इसी कार OP2
त इकाई क मत OM/ON का प रणाम है,, तथा OP3 क मत OM/ON2 का प रणाम है ।
च 7.11 के उपर भाग म A,. B व C ब दुओं के नचले भाग पर तीन ल ब डालते
ह जो नचले OX अ को मश: A, B व C ब दुओं पर काटते ह ।
अत: OP1 क मत पर माँग क मा ा= OA
OP2 क मत पर माँग क मा ा = OB तथा
OP3 क मत पर माँग क मा ा = OC होती ह ।
P1 क सीध म P1A1 = OA,P2 क सीध म P2B1 तथा P3 क सीध म मापने पर
माँग व के तीन ब दु मश: A1, B1, व C1 ा त हो जात ह िजनक मलाने पर DD माँग
व बन जाता है ।
इस कार तट थता व का उपयोग करके माँग व नकाला जाता है ।

7.6 सारांश
उपरो त ववेचन से प ट है क तट थता व व लेषण यैि तक उपभो ता क माँग
का अ ययन करने के लए उपयो गता व लेषण के वक प के प म यु त कया जाता है और
यह अ धक वै ा नक यापक एवं उपयोग है इसके पीछे मा यताएँ अपे ाकृ त कम व न कष
अ धक है इस कारण यह उपयो गता व लेषण से बेहतर माना गया है ।

7.7 बोध न
7.8.1 न न ल खत न के उ तर 500 श द म द िजये
न 1. माँग व क प रभाषा द िजये । तट था व क सहायता से यैि त मांग व
क यु प त च क सहायता से प ट क िजए ।
न 2. तट थता व व लेषण उपयो गता व लेषण क तु लना म वै ा नक उपयोगी
तथा यापक है या आप इस कथन से सहमत ह ? ववेचना क िजए ।
7.8.2 न न न के उ तर 150 शबदो म द िजए ।
न 1. न 1 माँग का नयम या है इसके उपवाद क या या क िजए ।
न 2. न 2 उदाहरण का उपयोग करते हु ए यैि त एवं बाजार माँग व क
अवधारणा को प ट क िजए ।

7.8 स दभ ंथ
आहू जा, एच० एल० (2006) : उ चतर आ थक स ा त
एस च द ए ड क पनी ल० नई द ल
नाथू राम का, ल मीनारायण (2006) : यि ट अथशा , म लक
ए ड क पनी, जयपुर

(111)
जैन, ट oआरo एवं अ य (2007) : यि ट अथशा ी, वी० के० ए टर ाईज
नई द ल

(112)
इकाई - 8
माँग एवं पू त क लोच क अवधारणा एवं मापन. आय लोच,
तरछ लोच

इकाई क परे खा
8.0 उ े य
8.1 तावना
8.2 लोच क अवधारणा एवं प रभाषा
8.3 मांग क लोच क े णयां
8.4 मांग क लोच क े णयां
8.4.1 कुल यय व ध
8.4.2 तशत व ध
8.4.3 ब दु व ध
8.4.4 मांग क चाप लोप व ध
8.5 मांग क आय लोच
8.6 मांग क तरछ लोच
8.7 पू त क लोच क अवधारणा
8.8 पू त क लोच क अवधारणा
8.9 पू त क लोच क माप
8.10 मांग क लोच के नधारक त व
8.11 मांग क लोच का मह व
8.12 पू त के लोच के नधारक त व
8.13 सारांश
8.14 स दभ थ

8.15 बोध न के उ तर
8.16 अ यासाथ न

8.0 उदे य
इस इकाई के अ ययन के प चात आप -
 मांग एवं पू त क लोच क अवधारणा समझ सकेग ।
 मांग एवं पू त को लोच क वभ न े णय के बारे म जान सकगे ।
 मांग एवं पू त क लोच क ववेचना कर सकगे ।

(113)
उपभो ता क आय म प रवतन होने से व तु क मांग पर पड़ने वाले भाव को समझ
सकेग ।
एक व तु क क मत म प रवतन से होने उससे संबं धत दूसर व तु क मांग पर पड़ने
वाले भाव को समझ सकगे ।

8.1 तावना
व तु क क मत म प रवतन होने पर उसक मांग म प रवतन हो जाता है । क मत म
प रवतन से कु छ व तु ओं क मांग म अ य धक प रवतन होता ह, कु छ प रवतन क मांग म
कम प रवतन होता है और कु छ व तु ओं क मांग अ भा वत रहती है । व तु क मांग पर केवल
व तु क क मत का ह नह ं उपभो ता क आय का भी भाव पड़ता है । एक व तु क क मत म
प रवतन होने से उसक थानाप न व तु एवं पूरक व तु क मांग भी भा वत होती है ।
व तु क क मत म प रवतन का केवल व तु क मांग पर ह नह ं उसक पू त पर भी
भाव पड़ता है । व तु क क मत और उसक पू त म धना मक संबध
ं होता है ।

8.2 लोच क अवधारणा एवं प रभाषा


इस पा य म क इकाई सं या 3 म हमने माँग के नयम का अ ययन कया है । यह
नयम हम बताता है अ य नधारक त व म प रवतन नह ं होने पर जब कसी व तु के मू य म
कमी होती है तो उसक माँग बढ़ती है और जब उसके मू य म वृ होती है तो उसक माँग
घटती है । यह एक गुणा मक नयम है, प रणा मक नह ं यह केवल दशा बताता है अथात
प रवतन के प रमाण को नह ं बताता । कसी व तु क क मत म प रवतन के फल व प उसक
माँग म होने वाले प रवतन क मा ा को माँग क लोच कहते है । हम यह भी दे खते ह क
क मत म थोड़ा सा प रवतन का भाव सभी व तु ओं क मांग पर एक समान नह ं पड़ता है ।
कु छ व तु ओं क क मत म थोड़ा सा प रवतन करने पर ह उनक मांग क मा ा म काफ
प रवतन हो जाता है और कु छ व तु एं ऐसी होती ह िजनक क मत म काफ प रवतन करने पर
भी उनक मांग क मा ा म प रवतन बहु त कम होता है । मांग म होने वाले प रवतन क मा ा
क लोच क अवधारणा का तपादन ो. माशल ने कया था । ो. माशल के अनुसार बाजार म
मांग क लोच का कम या अ धक होना इस बात पर नभर करता है क एक नि चत मा ा म
क मत के घट जाने पर माँग क मा ा म अ धक वृ होती है या कम तथा एक नि चत मा ा
म क मत के बढ़ जाने पर मांग क मा ा म अ धक कमी आती है या कम । “
लैफट वच के अनुसार माँग क लोच एक व तु क क मत मे प रवतन से उसक माँग क मा ा
क त या शीलता क माप होती है । ''
ो. ई थम के अनुसार कसी व तु क क मत म एक तशत प रवतन के फल व प उस व तु
क माँग म जो प रवतन होगा उसे मांग' क लोच कहत ह । ''
मांग म त श प रतवतन
मांग क लोच =
क मत म तशत प रवतन
ीमती जॉन रा ब सन के अनुसार मांग क लोच, कसी क मत म थोड़े से प रवतन के
फल व प खर द जाने वाल मा ा के अनुपा तक प रवतन म क मत के आनुपा तक प रवतन से
भाग दे ने पर ा त होती ह ।“

(114)
मांगी गयी मा ा म प रवतन
माँग म अनु पा तक प रवतन ार भ म मांगी गयी मा ा
माँग क लोच = = क मत म प रवतन
क मत म आनु पा तक प रवतन
ारि भक क मत
अथवा
x
x p
ed  x  
p x p
p
मांग क लोच
x  x
xx
यहां पर p = व तु क मांग मे प रवतन क मा ा
व तु क पूव मा ा
क मत म प रवतन, p = पूव क मत

8.3 माँग क लोच क े णयाँ


माँग क लोच क े णयाँ न न कार ह
1. पूणतया लोचदार माँग (Perfeclty Elastic Demand)
कसी व तु क क मत म थोड़ा सा प रवतन होने पर या प रवतन नह ं होने पर भी
उसक माँग म प रवतन होता रहता है तो इसे पूणतया लोचदार माँग कहते ह ।

च सं या 8.1 से प ट है क माँग क रे खा सदै व आधार रे खा के समानांतर रहती है । इस


च म बताया गया है op क मत पर व तु क माँग OQ होती है, कभी OQ1 एवं कमी
OQ2 हो जाती है । व तु क क मत op पर ि थर है और इसक माँग घटती-बढती रहती है ।
पूणतया लोचदार माँग एक का प नक वचार है । वा त वक जीवन म ऐसी कोई व तु नह ं है
िजसक माँग पूणतया लोचदार होती है ।
2. अ य धक लोचदार माँग (Highly elastic demand)
िजन व तु ओं के मू य म थोड़ा सा प रवतन करने पर उनक माँग म बहु त अ धक
प रवतन होता जाता है । तो ऐसी व तु ओं क माँग को अ य धक लोचदार माँग कहते ह । अथात ्
जब कसी व तु क माँग म अनुपा तक प रवतन, क मत के आनुपा तक प रवतन से अ धक होता
है तो ऐसी दशा को अ य धक लोचदार माँग कहते ह । उदाहरण के लए य द कसी व तु के
मू य म तशत क वृ होने पर उसक माँग म 15 तशत क कमी हो जाये तो ऐसी व तु

(115)
क माँग अ य धक लोचदार कह जायेगी । इसे इकाई से अ धक ''लोच'' भी कहते है ग णत क
भाषा म इसे ed>1 वारा य त कया जाता है ।

च स या 8.2
च 8.2 म दे खा जा सकता है क जब व तु क क मत OP थी तो इसक माँग OQ
थी और जब क मत बढ़कर OP1 हो जाती है तो माँग घटकर OQ1 हो जाती ह । माँग म
अनुपा तक प रवतन (QQ1) से क मत म आनुपा तक प रवतन (PP1) कम है । ऐसी व तु ओं का
माँग व आधार रे खा पर कम ढालू होता है । इस कार क माँग क लोच ाय: वला सत क
व तु ओं म पायी जाती है ।
3. लोचदार माँग (Elastic Demand)
जब कसी व तु के मू य म होने वाला प रवतन और इसके प रणाम व प उसक माँग
म होने वाला प रवतन बराबर होता है तो इसे लोचदार माँग कहते ह । अथात जब मांग का
आनुपा तक प रवतन क मत कं आनुपा तक प रवतन के बराबर होता है तो इसे लोचदार माँग
कहते है । यह लोच इकाई के बराबर (ed=1) होती है । उदाहरण के लए य द कसी व तु के
मू य म 20 तशत क कमी हो जाने पर उस व तु क माँग म भी 20 तशत क वृ हो
जाये तो उस व तु क माँग लोचदार माँग कह ं जायेगी ।

च सं या 8.3
च 8.3 म OP क मत पर व तु क माँग OQ ह क मत कम होकर OP1 हो जाती है
तो व तु क माँग बढ़कर OQ1 हो जाती है । अथात क मत म PP1 क कमी और व तु क
माँग म OQ1 क वृ बराबर है । आरामदायक व तु ओं क माँग क लोच ाय: लोचदार होती है
उनक लोच इकाई के बराबर होती (ed=1)
4. बेलोचदार माँग (Inelartic Demand)

(116)
जब कसी व तु क माँग म होने वाला प रवतन उसके मू य म होने वाले प रवतन से
कम होता है तो इसे बेलोचदार माँग कहते ह । जब मांग का आनुपा तक प रवतन क मत के
आनुपा तक प रवतन से कम होता है तो माँग बेलोचदार होती है । उदाहरण के लए य द कसी
व तु का मू य 20 तशत कम होने पर भी उसक माँग से केवल 5 तशत क वृ होती है
तो ऐसी माँग को बेलोचदार माँग कहते ह । इसे इकाई से कम लोच भी कहते है । ग णत क
भाषा म इसे ed>1 वारा य त कया गया है ।

च सं या 8.4 म बताया गया है क व तु क क मत OP होने पर उसक माँग OQ है ।


जब क मत घटाकर OP 1 कर द जाती है तो माँग बढ़कर OQ1 हो जाती है । हम दे खते ह
क क मत Pएवं P1 का अ तर मांग Q एवं Q1 क तुलना म बहु त अ धक ह अथात ् क मत
म कमी अ धक मा ा म क गयी है जब क माँग म वृ बहु त कम हु ई ह ।
5. पूणतया बेलोचदार माँग (Perfectly Inelastic Demand)
कसी व तु क क मत म प रवतन होने पर भी उसक माँग म कोई प रवतन नह ं होता,
इसे पूणतया बेलोचदार माँग कहते ह । व तु क क मत म चाहे कतनी भी वृ हो या कतनी
भी कमी हो उसक माँग क मा ा अप रव तत ह रहती है ।

च सं या 6.5
च 8.5 का अ ययन करने पर हम दे खते ह क व तु क क मत op होने पर माँग OQ है,
क मत बढ़कर OP और OP2 होने पर भी माँग ०ए ह रहती है । इस दशा म माँग रे खा
आधार रे खा पर ल ब होती है ।
इस कार क माँग क लोच भी का प नक होती है । वा त वक जीवन म इस कार क
माँग क लोच दे खने म नह ं आती है । ग णतीय भाषा म इसे e=0 कहा जाता है ।
माँग क क मत लोच के प (Forms of Price Elasticity of Demand)

(117)
च सं या-8.6
च सं या – 8.6 म हम दे खते ह क DD3 व लोचदार माँग व है । इससे DD1
व और DD5 व क दूर समान है । DD3 से मांगा व से DD1 मांग व क और बढ़ते ह
तो मांग क लोच बढ़ती जाती है । अत: रे खा च म DD2 माँग व अ धक लोचदार माँग व है
और DD1 व पूणतया लोचदार माँग व है । इसके वपर त जैसे-जैसे हम DD3 व से DD5
व क तरफ बढ़ते ह तो माँग व कम लोचदार होता जाता है । रे खा च म DD4 माँग च
बेलोचदार या कम लोचदार माँग व और DD5 माँग पूणतया बेलोचदार माँग व है ।

8.4 माँग क लोच क नाप (Measurement of Elasticity of


Demand)
यह जानने के लए क माँग म लोच कतनी ह, इसके लए लोच क सह माप आव यक
है । इसके लए न न व धयाँ मु ख ह :-
8.4.1 कु ल यय व ध 8.4.2 तशत व ध 8.43 ब दु व ध 8.4.4 माँग क चाप लोच
8.4.1 कु ल यय व ध (Total expenditure method) :-
इस व ध क खोज डा. ए फड माशल वारा क गयी थी । कसी व तु क लोच तथा
उस पर कये गये कु ल यय म घ न ठ संबध
ं होता है । इस व ध के अनुसार कसी व तु के
मू य म होने वाले प रवतन के प रणाम व प उस पर कये जा रहे यय पर पडने वाले भाव
क माप करके उस व तु क माँग क लोच का पता लगाया जा सकता है । इसके अ तगत माँग
क लोच का नधारण करने के लए कसी व तु क क मत म प रवतन से पहले उपभो ता उस
पर कतना यय करता था और क मत म प रवतन के बाद कतना यय करता है इनका
तु लना मक अ ययन कया जाता है । इसम कु ल यय क रा ष व तु क य क गयी मा ा को
उसक क मत से गुणा करके ात करते ह । इसम यह दे खा जाता ह क कु ल यय रा श पहले
से कम है, अ धक है या बराबर है इस कार माँग क लोच क तीन े णयाँ होती ह -
1. माँग क लोच इकाई के बराबर (ED= 1) य द उपभो ता कसी व तु क क मत बढ़ने
पर उसक माँग कम कर दे ता है और क मत घटने पर माँग बढ़ा दे ता है और इस व तु पर
कये जाने वाले कु ल यय क रा श समान बनाये रखता है, तो ऐसी व तु क माँग क लोच
को इकाई के बराबर कहते ह ।

(118)
2. माँग क लोच इकाई से अ धक (ED>1) य द उपभो ता कसी व तु क क मत बढने पर
उस व तु क माँग इतनी कम कर दे ता है क कु ल यय पहले क तु लना म कम हो जाता है और
क मत घटाने पर माँग इतनी अ धक कर दे ता है क कु ल यय पहले क तु लना म अ धक हो
जाता है इस ि थ त को िजसम क मत म वृ होने पर कुल यय कम हो जाये और क मत म
कमी होने पर कु ल यय अ धक हो जाय, इसे अ धक लोचदार माँग कहते ह ।
3. माँग क लोच इकाई से कम (ED>1) य द उपभो ता कसी व तु क क मत बढ़ने पर
उस व तु क माँग तो घटा दे ता है, क तु उसक क मत म वृ होने क तु लना म कम मा ा म
घटाता है इसके प रणाम व प उसका कु ल यय पहले क तु लना म अ धक हो जायेगा । इसी
कार उस व तु क क मत म कमी होने पर उस व तु क माँग तो बढ़ा दे गा क तु उसक
क मत म कमी होने क तु लना म कम मा ा म बढ़ायेगा इससे उसका यय पहले क तु लना म
घट जायेगा । इस कार हमने दे खा क कु ल यय उसी दशा म बदलता है िजस दशा म व तु
क क मत बदलती है । व तु क क मत म वृ होने पर उस पर होने वाला कु ल यय बढ़ जाता
है और क मत म कमी होने पर कु ल यय घट जाता है तो ऐसी ि थ त म माँग क लोच इकाई
से कम होती है ।
उपरो त तीन ि थ तय को न न सारणी 8.1 एवं च 8.7 क सहायता से समझाया
जा सकता है ।
सारणी 8.1
माँग क लोच क कुल यय र त
व तु का थम अव था Ed=I वतीय अव था Ed>I तृतीय अव था Ed<1
मू य
. त कलो मांगी गई मा ( क) यय मांगी गई ( क) कु ल मांगी गई मा ा ( क)
यय यय
10 8 80 8 80 8 80
20 4 80 2 40 5 100
5 16 80 24 120 14 70

च 8.7 के वारा यय व ध म मांग क लोच क माप एक च वारा समझायी गयी है ।


OX- अ पर व तु के उपभोग पर होने वाले कु ल यय को दशाया गया है । और OY- अ

(119)
पर व तु के मू य को दशाया गया है । इस च म यह दे खत ह क जब व तु का मू य
OPसे गरकर OP1 तक आता है वैस-े वैसे कुल यय बढ़ता जाता है । इस कार मू य OP1
तक लोच इकाई से अ धक है । OP1 से OP2 तक मू य घटता है, तब व तु पर कया जाने
वाला कु ल यय ि थर रहता है । अत: यहाँ पर लोच इकाई के बराबर है । OP2 से OP3
तक जब मू य घटता है तब व तु पर कया जाने वाला कु ल यय घटता जाता है । यहाँ लोच
पर इकाई से कम है ।

8.4.2 तशत व ध (Percentage Method)

इस व ध का तपादन अथशा ी ल स ने कया था । कु ल यय र त म हम माँग


क लोच को सं या मक प म नह ं माप सकते । माँग क लोच को सं या मक प म मापने के
लए इस व ध क खोज क गयी । इस व ध के अ तगत कसी व तु क क मत म होने वाले
तशत प रवतन क तु लना माँग म होने वाले तशत प रवतन के साथ क जाती है । य द
कसी व तु क माँग अ धक लोचदार होगी । य द माँग म तशत प रवतन उसक क मत म
तशत प रवतन क तु लना म कम है तो माँग क लोच इकाई से कम होगी और य द माँग म
तशत प रवतन क मत म तशत प रवतन के बराबर है तो माँग क लोच इकाई के बराबर
होगी ' इस व ध म व तु क मांग म होने वाले आनुपा तक प रवतन म उसक क मत म होने
वाले आनुपा तक से भाग दे कर मांग क लोच ात क जाती है ।
सू न न कार है -
मांग म तशत प रवतन
मांग क लोच =
क मत मे तशत प रवतन
मांगी म वृ या कमी

अथवा मांग क लोच = क मतारिम वृभक माँ ग


या कमी
ारि भक क मत
q
q q p q p
Ed  या  या
p q p q q
p
(मांग व क ल बाई 4'' ह और ब दु Y ह । अत: AY क ल बाई 2'' है ।)
(ii) X ब दु पर माँग क लोच = XB/XA = 3”/1” = 3 इकाई से अ धक
(मांग व AX क ल बाई 1 '' ह और BX क ल बाई 3''है ।)

(iii) Z ब दु पर माँग क लोच = ZB/ZA = 1/3 =0.33 है


(मांग व 28 क ल बाई 3'' ह और ZB क ल बाई 1''है ।)

(120)
च 8.8
च 8.8 म AB एक सीधी माँग रे खा है । XYZ इस पर लये गये तीन ब दु है । X
ब दु पर माँग क लोच इकाई से अ धक है । Y ब दु पर माँग क लोच इकाई के बराबर है और
Z ब दु पर माँग क लोच ात करत ह ।
व आकार के मांग व पर भी मांग क लोच ात करने का सू वह है िजसक
सहायता से सीधी मांग रे खा पर मांग क लोच ात क जाती है । व आकार के माँग व पर
िजस ब दु पर माँग क लोच ात करनी होती है । उस ब दु पर एक पश रे खा खींचनी होती
है जो OX और OY अ तक जाती है । इसी पश रे खा क सहायता से उपर बताय गये सू
क सहायता से माँग क लोच ात कर सकते ह । माँग व च 8.9 का अ ययन करने पर
हम दे खते ह क DD व आकार का मांग व है । इस व पर X ब दु पर माँग क लोच
ात करने के लए एक पश रे खा खींचते है । यह पश रे खा OX अ से A ब दु पर और
OY अ को B ब दु पर काटती है । X ब दु पर माँग क लोच ात करने के लए सू है ।
िजस ब दु पर लोच ात करनी ह
उस ब दु से नीचे का भाग
उस ब दु से ऊपर का भाग
इस सू के आधार पर यह पता लगाया जाता है क माँग क लोच इकाई से अ धक है,
इकाई के बराबर है या इकाई से कम ह ।
(i) उदाहरणाथ : 20 . क मत पर व तु क माँग है 200 क. ा. इसक क मत घटाकर
15 . कर द जाती है तो व तु क माँग बढ़कर 280 क. ा. हो जाती है । इसक माँग क
लोच होगी
P= 20 . q = 200 क. ा.
p  20  15  5, q  280  200  80
q p 80 20 1600 8
Ed        1.6 क. ा.
q q 5 200 1000 5
Ed =1-6 इकाई से अ धक लोचदार मांग
(ii) व तु क क मत 20 . है तो व तु क माँग है 200 क. ा. क मत घटाकर 10 . कर
दे ने पर व तु क माँग बढ़कर 300 क ा. हो जाने पर माँग क लोच होगी ।

(121)
P=20, q=200
 p = 20 – 8 =12
q p 120 20 2000
 q = 320-200=100 Ed      1
q q 12 200 2000
Ed = 1 लोच इकाई के बराबर
(iii) व तु क क मत 20 . है तो व तु माँग है 200 कं . ा. क मत घटाकर 5 . कर दे ने
पर व तु क माँग बढ़कर हो जाती है 320 कं . ा. माँग क लोच होगी ।
p = 20 . p = 200 कं . ा.
 p = 20-5=15  q = 320 -200 =120
q p 120 20 2400 4
Ed        0.8 क. ा.
q q 15 200 3000 5
p = 20, q = 100
मांग क लोच 0.8 अथात इकाई से कम है ।

8.4.3 ब दु ब ध

ब दु व ध का योग तब कया जाता है जब माँग व म कसी वशेष ब दु पर


क मत लोच का पता लगाना हो । माँग व के व भ न ब दुओं पर माँग क लोच आसमान
होती है । माँग रे खा व क श ल दो कार क हो सकती है ।
(1) माँग रे खा सीधी रे खा हो और (2) माँग रे खा व के प म हो । दोन ह दशाओं म माँग
क ब दु लोच ात क जाती है ।
सीधी रे खा पर माँग क लोच ात करने के लए च सं. 8.8 म द गयी ओं सरल
रे खा, जो माँग रे खा है पर वचार करते ह ।
कसी ब दु पर माँग क लोच = उस ब दु से नीचे का भाग
उस ब दु से ऊपर का भाग
च म AB एक सीधी रे खा है (ल बाई 4'') है । AB पर म य ब दु Y है इस पर माँग क
लोच ात करनी है अत: 78 2''
(i) y ब दु पर माँग क लोच = YB/YA = 2”/2” = 1 इकाई के बराबर है ।

च 8.9
च 8.9 म DD माँग रे खा है इस पर दो ब दु X और Y पर माँग क लोच ात करनी है ।

(122)
नीचे का भाग
= ऊपर का भाग = = = इकाई से अ धक
YB 1
ब दु Y पर   0.33 इकाई से कम
YB 3
8.4.4 माँग क चाप लोच

ब दु व ध वारा माँग वारा लोच म क मत म प रवतन के फल व प माँग मा ा म


प रवतन क चचा क जाती है, जब क क मत म प रवतन बहु त ह कम होता है । क तु जब
क मत म प रवतन अ धक होता है तब मांग क लोच ात करने के लए क मत एवं मांग क
मा ा क एवं बाद क सं याओं का योग करना उ चत रहे गा । अथात जब माँग व के लोच का
माप करना होता है तो चाप लोच क धारणा का योग कया जाता है।
चाप लोच न न सू क सहायता से मापी जा सकती है –

Q  Q1 p  p1 Q  Q1 p  p1
अथवा  अथवा 
Q  Q1 p  p1 Q  Q1 p  p1
माँग क चाप लोच का च वारा समझना - मांग क चाप लोच का अ ययन मांग व
के दो ब दुओ के बीच म कया जाता है । यह च 8.10 वारा समझाया गया है । मान
ल िजए मांग रे खा DD पर हम A और B ब दु के बीच मांग क लोच क माप करना चाहते ह ।
A से B तक का ह सा च म बताया गया है क व तु क क मत जब 12 पए है तब उसक
मांग है । 20 इकाइयाँ । क मत घटकर जब 10 पऐ हो जाती है तो माँग बढ़कर हो जाती है 24
इकाइयाँ चाप लोच के सू के अनुसार मांग रे खा पर क ह दो ब दुओं के बीच क लोच के चाप
लोच कहते है ।
XA
x ब दु पर माँग क लोच = के बराबर होगी
XB
इस ब दु पर XB क ल बाई XA क ल बाई से अ धक है ।
अत: माँग क लोच इकाई से अ धक है ।
Q  Q1 p  p1

Q  Q1 p  p1
20  24 12  10 4 2
 अथवा 
20  24 12  10 44 22
4 22
अथवा   1 मांग क लोच इकाई
44 2
बराबर ed = 1
च 8.10

(123)
बोध न -2
1. मांग क लोच क कु ल यय व ध क ववेचना क िजये ।
2. चाप लोच के बारे म बताइये ।

8.5 माँग क आय लोच


व तु क माँग पर केवल क मत का ह भाव नह ं पड़ता है इस पर आय का भी भाव
पड़ता है माँग क आय लोच यह बताती है क उपभो ता क आय म प रवतन होने पर उसके
वारा खर द जाने वाल व तु ओं क मा ा पर या भाव पड़ता है । सामा यत: उपभो ता क
आय और व तु ओं क माँग म धना मक संबध
ं पाया जाता है । माँग क आय लोच वह दर है
िजस पर उपभो ता क आय म प रवतन के कारण माँग क मा ा म प रवतन होता है। इसे
न न सू वारा समझाया जा सकता है -
माँग मा ा म आनु पा तक प रवतन
आय लोच =
उपभो ता क आय म आनु पा तक प रवतन
माँग म प रवतन
ारि भक माँग क मा ा = माँग म प रवतन आय म प रवतन

आय म प रवतन ारि भक माँग क मा ा ारि भक आय
ारि भक आय
माँग म प रवतन ारि भक आय
अथवा = x
ारि मक माँग क मा ा आय म प रवतन

i = आय लोच
यद Y ारि भक आय, y आय म प रवतन
q = ारि भक माँग क मा ा, q माँग म प रवतन
q y q y
तो Ei    
q y y q
उदाहरणाथ य द कसी उपभो ता क आय 50 से बढ़कर 60 पऐं हो जाती है तो
कसी व तु क माँग 200 इकाइय से बढ़कर 250 इकाइयाँ हो जाती है तो आय लोच न न
कार ात क जा सकती है-
q  50, q  200, y  50, y  10
50 50 2500 25
    1.20
10 200 2000 20
माँग क आय लोच के प
1. आय म प रवतन होने पर व तु क माँग म कोई प रवतन नह ं होता इसे पूणतया माँग क
बेलोचदार आय लोच (Ei = 0) कहते ह ।
2. आय म प रवतन होने पर व तु क माँग म आनुपा तक प से अ धक प रवतन होता है इसे
माँग क इकाई से अ धक आय लोच (Ei>1) कहते है । यह वला सता व तु ओं के साथ होता
है ।
3. आय म आनुपा तक प रवतन तथा व तु क माँग म आनुपा तक प रवतन बराबर होते है, इसे
माँग क इकाई के बराबर आय लोच (Ei=1) कहते ह ।

(124)
4. आय म प रवतन होने पर व तु क माँग म आनुपा तक प से कम प रवतन होता है, इसे
माँग क इकाई से कम लोचदार आय लोच (Ei<1) कहते ह । आव यक व तु ओं के संबध
ं म
ऐसा होता है ।
5. आय म बना कोई प रवतन हु ए ह व तु क माँग म प रवतन हो जाता है तो इसे माँग क
पूणतया लोचदार आय लोच (E=00) कहते ह ।
6. आय के बढ़ने पर व तु क माँग क मा ा घटती है और आय के घटने पर माँग क मा ा
बढ़ती है । ऐसा नकृ ट व तु ओं के संबध
ं म होता है इसे माँग क ऋणा मक आय-लोच (Ei=
-) कहते ह ।

8.6 माँग क तरछ लोच


कसी एक व तु क क मत म प रवतन होने पर दूसर संबं धत व तु क माँग क मा ा
म प रवतन हो जाता है तो इसे माँग क तरछ लोच कहते ह । ऐसी व तु ओं के संबध
ं म होता
है जो एक दूसरे क पूरक होती है । जैसे कार और पे ोल एवं एक दूसरे क थानाप न जैसे चाय
और काफ । उदाहरण के लए Y व तु क क मत म आनुपा तक प रवतन से X व तु क माँग
मा ा म आनुपा तक प रवतन होता है तो X और Y के बीच माँग क आड़ी लोच न नसू वारा
ात क जा सकती ह -
व तु क माँग मा ा म आनु पा तक प रवतन
माँग क आडी लोच =
व तु क क मत म आनु पा तक प रवतन
Qx
Qx Qx PY Qx PY
Ei     
PY Qx PY PY Qx
PY
Qx  x व तु क माँग म प रवतन,Qx = x व तु क ारि भक माँग,
PY  Y व तु क क मत म प रवतन, PY = Y व तु क ारि भक क मत
1. थानाप न व तु एं व मांग क तरछ लोच
थानाप न व तु ओं म एक व तु का मु य घटने से और दूसर व तु क क मत
अप रव तत रहने से दूसर व तु क माँग घट जाती है । उदाहरण के लए चाय क क मत घटने
से और काफ क क मत म प रवतन नह ं होने से काफ क मांग घट जाती है । इस कार
थानाप न व तु ओं म माँग क तरछ लोच धना मक होती है । थानाप न व तु च सं या
8.11 के अ ययन से यह प ट होता है क चाय क क मत P से घटकर P1 हो जाती है तो
काँफ क माँग Q से घटकर Q1 हो जाती है । इसी कार य द चाय क क मत बढ़ कर P से
P2 हो जाती है तो काँफ क माँग बढ़कर Q से Q2 हो जाती है । अत: यह प ट है क
थानाप न व तु ओं क क मत तथा माँगी गयी मा ा म सीधा संबध
ं होता है । य क एक व तु
क क मत म वृ होने से व तु क माँग म वृ एवं क मत म कमी होने से माँग म कमी हो
जाती है ।

(125)
च सं. 8.11
2. पूरक व तुएं व माँग क तरछ लोच
कार और पै ोल पूरक व तु एँ ह । य द कार क क मत म वृ होती है तो पै ोल क
माँग म कमी हो जायेगी । इसी कार कार क क मत म कमी होने पर पै ोल क माँग बढ़
जायेगी । पूरक व तु एँ वे व तु एं होती ह जो दूसर व तु से घ न ठ प से जु ड़ी होती है और
दोन का उपयोग साथ-साथ होता है, उदाहरण के लए कार पै ोल, पैन और याह ेड और
म खन इस कार पूरक व तु ओं क तरछ लोच ऋणा मक होती है ।
च सं. 8.12 का अ ययन करने पर हम पाते ह क अगर कार क क मत OP से
घटकर OP1 हो जाती है तो पै ोल क माँग OQ से बढ़कर OQ2 हो जाती है । और कार क
क मत OP से बढ़कर OP2 हो जाती है । तो पै ोल क माँग OQ से घटकर OQ1 हो जाती है ।
अथात ् दोन म वपर त संबध
ं होता है ।

च 8.12 पै ोल क माँग मा ा
बोध न - 3
1. मांग क आय लोच के बारे म समझाइए ।
2. मांग क तरछ लोच क ववेचना क िजये ।

(126)
8.7 पू त क लोच क अवधारणा
कसी व तु क क मत म प रवतन के फल व प उसक पू त क मा ा म जो प रवतन
होता है उसे पू त क लोच कहा जाता है । इसे न न सू वारा समझ सकते है ।
पू त म तशत प रवतन
पू त क लोच es =
मू य म तशत प रवतन
इसे हम न न उदाहरण वारा समझ सकते ह ।
कसी व तु का मू य 25 . होने पर उसक पू त होती है 200 इकाइयाँ । मू य बढ़कर
30 . होने पर उसक पू त 250 इकाइयाँ हो जाती है । पू त क लोच होगी ।
पू त म तशत प रवतन
पू त क लोच es =
मू य म तशत प रवतन
es = 25/20 = 1.25
पू त क लोच = 1.25

8.8 पू त क लोच क े णयाँ


पू त के नयम के अनुसार कसी व तु क
क मत म कमी होने से उसक पू त मे कमी हो
जाती है अ य बात म प रवतन नह ं होने पर और
क मत म वृ होने से उसक पू त म वृ हो
जाती है । इस नयम से हमे यह मालू म नह ं
चलता है क क मत म प रवतन होने से व तु क
पू त क मा ा म कतना प रवतन होगा । वह पू त
क लोच से मालूम चलता है ।
1. पूणतया लोचदार पू त क मत मे प रवतन नह ं
होने पर या बहु त कम होने पर भी पू त क
मा ा म बहु त अ धक प रवतन हो जाये, तो
इसे पूणतया लोचदार पू त कहते है।

2. अ धक लोचदार पू त - क मत म थोड़ा सा
प रवतन करने पर पू त क मा ा म बहु त
अ धक प रवतन हो जाये तो इसे अ धक
लोचदार पू त कहते ह ।

3. लोचदार पू त - क मत म िजतना प रवतन


होता है पू त क मा ा मे उतना ह प रवतन

(127)
होता है तो इसे लोचदार पू त कहते है ।
4. बेलोचदार या कम लोचदार पू त - जब व तु के मू य व तु क म प रवतन क तु लना म
व तु क पू त क मा ा म क मत प रवतन होता है । उसे बेलोचदार पू त कहते ह ।
5. पूणत: बेलोचदार पू त व तु क क मत म प रवतन होने दग क पर भी उसक पू त म कोई
प रवतन नह ं होता है । इसे क मत पूणत: बेलोचदार पू त कहते ह ।

8.9 पू त क लोच माप


पू त क लोच को मापने क न न ल खत दो व धयाँ ह ।
1. तशत व ध - इस वध वारा पू त पू त क लोच का माप करने के लए व तु क
क मत म होने वाले आनुपा तक प रवतन से उसक पू त क मा ा म होने वाले आनुपा तक
प रवतन म भाग दया जाता है भागफल य द 1 के बराबर आता है तो इकाई के बराबर 1
से कम आने पर इकाई से कम होती है इसे न न सू वारा कया जा सकता है।
पू त क मा ा म आनुपा तक प रवतन
क मत म आनुपा तक प रवतन
Q यहां पर es पू त क लोच

es 
Q

Q P Q P
   Q = ारि भक पू त क मा ा
P Q P Q P  Q = पू त म प रवतन
p
P= ारि भक
Q P
   P= पू त म प रवतन
P Q

च 8.18
च 8.18 म S-S पू त व के A ब दु पर पू त क लोच ात करने के लए इस
ब दु से एक पश रे खा आधार रे खा क और बढ़ाते ह । यह पश रे खा OY- अ को काटते हु ए
आधार रे खा क और बढ़ाते ह । यह पश रे खा आधार रे खा क T ब दु पर पश करती है । इस
ब दु पर पू त क लोच होगी -

(128)
TQ
es 
OQ
च 8.18 म A es=
TQ
es   TQ  OQ
OQ
TQ
च 8.18 मे A es=  TQ  OQ
OQ
TQ
च 8.16 म A es =  TQ  OQ
OQ

ब दु व ध -इस व ध म अ तगत पू त व के कसी भी ब दु पर पू त क लोच


जानने के लए उस ब दु से एक पश रे खा को नीचे आधार रे खा तक बढ़ाया जाता है । यह रे खा
आधार रे खा का िजस थान पर काटती है उसी के आधार पर न न सू वारा पू त क लोच
ात क जाती है ।
TQ
es 
OQ
पू त रे खा एक सीधी रे खा होने पर न न कार पू त क जा सकती है ।
व आकार के पू त व पर पू त क लोच पू त व म िजस ब दु पर ात करनी हो
उस ब दु से कम उस पू त व क पश रे खा खींचते ह । पश रे खा आधार रे खा को िजस
थान पर काटती है उसी के अनुसार न न सू वारा पू त क लोच ात क जा सकती है ।
TQ
OQ
TQ < OQ अत: पू त क लोच इकाई से कम होगी, पश रे खा क दशा म सू TQ /
OQ को लागू करके पू त क क मत लोच ात करते रे खा च 8 म पू त 55 क ब दु K पर
पश रे खा ttl खींची गयी है । यहाँ पर पू त क क मत लोच के TQ / OQ बराबर होगी ।

8.10 मांग क क मत लोच के नधारक त व


कसी व तु क माँग क क मत लोच को नधा रत करने वाले मह वपूण त व
न न ल खत ह
1. उपभो ता क आय-माँग क क मत लोच पर उपभो ता क आ थक ि थ त का बहु त भाव
पड़ता है । य द उपभो ता बहु त धनी यि त है तो माँग क लोच का उस पर भाव नह ं
पड़ता है । व तु क क मत बढ़ने पर भी उसके लए माँग अप रव तत रहती है । कमजोर

(129)
आ थक ि थ त वाले उपभो ता के लए व तु क माँग लोचदार होती है, य क व तु क
क मत म प रवतन का उसक माँग पर भाव पड़ता ह ।
2. व तु क क मत - व तु क क मत क माँग क लोच पर बहु त भाव पड़ता ह क मत तर
नीचा होने पर माँग क लोच कम होती है । जैसे-जैसे क मत तर बढ़ता है माँग क लोच भी
बढ़ती है । क मत तर अ धक (ऊँचा) होने पर माँग क लोच अ धक होगी ।
3. व तु क कृ त - व तु अगर टकाऊ नह ं है जैसे फल, स जी आ द इसक माँग कम
लोचदार या बेलोचदार होती है । व तु य द टकाऊ है तो उसक माँग लोचदार होगी ।
4. उपभो ता क आदत - उपभो ता क च क माँग क लोच पर भाव पड़ता है । िजन
व तु ओ का उपयोग करने क आदत पड़ जाती है उनक क मत मे प रवतन होने पर भी
उपभो ता उनका उपयोग करे गा अत: ऐसी व तु ओं क माँग कम लोचदार होती है ।
5. समय - माँग क लोच समय का बहु त भाव पड़ता है । अ पकाल म उपभो ता वारा
क मत बढ़ने के बावजू द भी उस व तु के थान पर दूसर वैकि पक व तु का उपयोग करना
अस भव होता है अत: माँग बेलोचदार होती है । अत: द घकाल म थानाप न व तु का
उपयोग आसान हो जाता है अत: माँग लोचदार होती है ।
6. व तु ओं क उपयोग क सं या - अनेक उपयोग म काम म आने वाल व तु क माँग
लोचदार होती है । ऐसी व तु क क मत कम होने पर उसे व भ न काम म (अ धक सं या
म) काम म लया जाता है । अत: माँग अ धक होगी । क मत अ धक होने पर केवल
मह वपूण काय (कम सं या) म काम म लया जाता है । अत: माँग कम होगी । उदाहरण
के लए ऐसी व तु एँ ह - बजल , दूध आ द ।
7. थानाप न व तु ओं का भाव - ऐसी व तु एँ िजसक थानाप न व तु ओं क सं या अ धक
होती है उनक माँग लोचदार होती है । और ऐसी व तु एँ िजनक थानाप न व तु एँ नह ं होती
या बहु त कम होती ह उनक माँग बेलोचदार होती है ।
8. ऐसी व तु एँ िजनके उपयोग को कु छ समय के लए थ गत कया जा सकता है तो इनक
क मत बढ़ने पर इनका उपयोग नह ं करने से इनक माँग घट जायेगी । अत: इनक माँग
लोचदार होती है । और ऐसी व तु एँ िजनका उपयोग थ गत नह ं कया जा सकता है, उनक
क मत बढ़ने के बावजू द भी उनक माँग नह ं घटे गी । अत: इनक माँग बेलोचदार होती है ।

8.11 मांग क लोच का मह व


माँग क क मत लोच क अवधारणा ा आ थक व लेषण म काफ मह व ह इनका
सै ाि तक एवं यावहा रक दोन ह े म मह व है ।
1. सरकार के लए मह व - व तमं ी को दे श क अश यव था के वकास के लए कर के
मा यम से धन जुटाना पड़ता है । इसके लए वे उन व तु ओं पर अ धक कर लगाते है
िजनक माँग बेलोचदार होती है । और लोचदार व तु ओं पर कम कर लगाते ह । (माँग क
लोच का अ ययन करना लाभदायक होता ह) बेलोचदार व तु ओं पर लगाये गये कर भार
उ पादक क मत बढ़ाकर उपभो ताओं पर नह ं डाला जा सकता य क अ धक क मत पर
उपभो ता व तु का उपयोग थ गत कर दे गा । अत: कर भाग उ पादक को ह वहन करना
पड़ेगा ।

(130)
दे श के भु गतान संतल
ु न क ि थ त को अपने प म करने के लए माँग क लोच का ान
बहु त मददगार सा बत हो सकता है । अपनी मु ा के अवमू यन वारा आयाम- नयात क
ि थ त पर पड़ने वाले भाव को समझना आव यक है । य द आयात नयात दोन क माँग
बेलोचदार है तो अवमू यन वारा लाभ ा त नह ं होगा और दोन क माँग लोचदार है तो
लाभदायक रहे गा
2. अ तरा य यापार म मह व - दे श के वारा नयात क जाने वाल व तु ओं क माँग
बेलोचदार है तो इनक क मत बढ़ाकर लाभ अिजत कया जा सकता है । य क ऊँची क मत
पर भी इसका नयात जार रहे गा । लोचदार व तु ओं क क मत बढ़ाने से इनका नयात घट
जायेगा ।
आयात क जाने वाल व तु ओं क माँग य द बेलोचदार है तो ऊँची क मत पर हमारे दे श
को उनका आयात करना पड़ेगा जो हमारे लए नुकसान दायक है और लोचदार व तु ओं क
क मत बढ़ने पर हम उनका आयात रोक सकते ह । इस कार यापार क शत के लए
माँग क लोच का ान आव यक है !
3. मू य नधारण म - माँग क लोच हम यह बताती है क कस व तु क क मत बढ़ाने पर या
घटाने पर उसक माँग कतनी घट जायेगी या बढ़ जायेगी । अत: व े ता उस व तु क
क मत बढ़ाकर अ धक लाभ अिजत करना चाहे गा िजसक माँग बेलोचदार होगी या कम
लोचदार या अ धक लोचदार होगी । लोचदार या अ धक लोचदार माँग वाल व तु ओं क
क मत नह बढ़ाना चाहे गा ।
एका धकार का अपनी व तु क पू त पर पूण नयं ण होता ह ले कन उसक माँग पर नह
। अत: एका धकार व तु के मू य का नधारण करते समय उसक माँग क लोच का यान
रखेगा। बेलोचदार माँग वाल व तु क क मत वह अपनी सु वधा के अनुसार तय करने
अ धकतम लाभ अिजत कर सकता है । लोचदार माँग वाल व तु क क मत बढ़ाने से
उसक माँग घट जायेगी और क मत घटाने से उसक माँग बढ़ जायेगी, अत: ऐसी व तु क
क मत घटाकर वह लाभ अिजत कर सकता ह । एका धकार व भ न बाजार मे एक ह
व तु क माँग क लोच को जानकार के आधार पर उस व तु के सबसे कम लोचदार या
बेलोचदार माँग वाले बाजार म सम अ धक क मत एवं अ धक लोचदार माँग वाले बाजार
मे कम क मत लेकर लाभ अिजत कर सकता है ।
4. वतरण स ा त म मह व - उ पि त के व भ न साधन क मजदूर तय करने मे माँग क
लोच का बहु त मह व है । उ पादक बेलोचदार माँग वाले उ पि त के साधन को अ धक
मजदूर एवं लोचदार माँग वाल उ पि त के साधनो को कम मजदूर दे ता है ।

8.12 पू त के नधारक त व
पू त क लोच पर न न बात का भाव पड़ता है -
1. व तु क कृ त - ऐसी व तु एँ जो नाशवान होती ह जैसे स जी, फल, दुध आ द इनक पू त
पर इनक क मत का कम भाव पड़ता है य क क मत घटने पर इ ह रोका नह ं जा सकता
और क मत बढ़ने पर एकाएक पू त भी नह ं बड़ाई जा सकती है अत: इन व तु ओं क पू त

(131)
बेलोचदार होती है । ऐसी व तु एँ जो टकाऊ होती है क मत बढ़ने पर पू त क जा सकती है
इनक पू त लोचदार होती है ।
2. उ पादन क व ध - उन व तु ओं क पू त लोचदार होती है । िजनक उ पादन व ध सरल
होती है य क क मत म प रवहन के अनुसार उनक मा ा घटायी या बढ़ायी जा सकती है ।
ज टल व धय वारा उ पा दत व तु ओ क पू त बेलोचदार होती ह य क क मत म
प रवतन होने पर त काल उनक पू त म प रवतन करना (उ पादन घटाना / बढ़ाना) संभव
नह ं हो सकता ।
3. समय- कसी भी व तु म समय का बहु त भाव पडता है । अ पकाल म पू त क मा ा म
प रवतन कना बहु त मु शकल होता है । अत: पू त बेलोचदार होती है । द घकाल म पू त क
मा ा म प रवतन करना आसान होता है । अत: पू त लोचदार होती है ।
4. उ योग म उ पा दत व तु ओं क क मे - ऐसे उ योग िजनम बहु त अ धक कार क व तु एं
उ पा दत क जाती है । उनक पू त क लोच अ धक होते है । य क व तु क क मत
प रवतन के अनुसार वे अपने साधनो का वेकि पक योग कर सकते ह जो एक या दो कार
क व तु ओं का उ पादन करते ह य क उनके लए साधन का वैकि पत उपयोग करना
स भव नह ं होता । सारांश

8.13 सारांश
कसी व तु क क मत म प रवतन होने पर उसक माँग क मा ा म प रवतन हो जाता
है । इसे क मत क माँग लोच एवं पू त लोच कहते ह । कसी व तु क क मत म थोड़ा सा
प रवतन उसक माँग एवं पू त क मा ा म बहु त अ धक प रवतन भी उसक माँग एवं पू त म
बहु ंत कम प रवतन होता है । या ब कु ल प रवतन नह ं होता है । ये दोनो चरम सीमाएँ है ।
इनके बीच क ि थ तयाँ भी उपि थत रहती है । जैसे िजतना कसी व तु क क मत म प रवतन
होता ह उतना ह मा ा एवं पू त क मा ा म प रवतन होता ह, कु छ व तु ओं क माँग एवं पू त
क मा ा म क मत से थोड़ा का और कु छ म क मत म थोड़ा अ धक प रवतन होता है । इस
कार व भ न व तु ओं क क मत म प रवतन का भाव उसक माँग एवं पू त क मा ा पर
अलग-अलग पड़ता है । व तु क माँग क लोच पर उपभो ता क आय का, व तु क क मत का,
व तु क कृ त उपभो ता क आदत, फैशन आ द त व का भाव भी पड़ता है । माँग क लोच
का सरकार के लए अ तरा य यापार के लए मू य नधारण म एवं वतरण म बहु त मह व
ह।

8.14 सं दभ ंथ
1. एस.पी.दुबे एवं वी.सी.सी हा- अथशा के स ा त वकास आफसैट शाहदर, नई द ल
1994
2. Jeffrly 2.M. Perloff: Micro Economics Addirson Werlery Louaman
482F.I.E
Patpataj Delhi 2001
3. डोना ड ट वे सन ना सन मेर ए. हालमन मू य स ा त एवं उसके उपयोग, ह रयाणा
सा ह य अकाद मक च डीगढ़ 1996

(132)
8.15 बोध न के उ तर

बोध शन 1
1. इसके लए 8.2 दे खए
2. इसके लए 8.3 दे खए
बोध न 2
1. इसके लए 8.4.1 दे खए
2. इसके लए 8.4.4 दे खए
बोध न 3
1. इसके लए 8.5 दे खए
2. इसके लए 8.6 दे खए

8.16 अ यासाथ न
1. पू त क लोच क अवधारणा प ट क िजये ।
2. पू त क लोच क माप क व धय क ववेचना क िजये ।
3. मांग क लोच के नधारक त व बताइए ।
4. मांग क लोच का मह व समझाइये ।

(133)
इकाई- 9
उ पादन फलन और प रवतन अनुपात का नयम
(Production Function And Law of Variable
Proportions)
इकाई क परे खा
9.0 उदे ् य
9.1 तावना
9.2 उ पादन-फलन का अथ एवं प रभाषा
9.3 कॉब-डगलस उ पादन-फलन
9.4 उ पादन-फलन क मा यताएं
9.5 उ पादन-फलन क वशेषताएं
9.6 प रवतनशील अनुपात का नयम
9.7 प रवतनशील अनुपत के नयम क मा यताएं
9.8 प रवतनशील अनुपात के नयम का मह व
9.9 प रवतनशील अनुपात के नयम के त ति ठत एवं आधु नक अथशाि य का
ि टकोण
9.10 सारांश
9.11 संदभ थ
9.12 बोध न के उ तर
9.13 अ यासाथ न

9.0 उ े य
इस इकाई के अ ययन के प चात आप
 उ पादन-फलन के बारे म समझ सकगे
 कॉब-डगलस दारा तैयार कये गये वा त वक उ पादन-फलन को समझ सकगे
 प रवतनशील अनुपात के नयम क ववेचना कर सकगे

9.1 तावना
उ पादन के पाँच साधन होते ह-भू म, मपू ज
ं ी, संगठन और साहस । इ ह ं उ पादन के
साधन क मदद से कसी भी व तु का उ पादन कया जा सकता है । उ पादन क मा ा उ पि त
के साधन क मा ा पर नभर करती है । उ पि त के साधन अ धक होने पर उ पादन क मा ा
अ धक होगी और साधन कम होने पर उ पादन क मा ा कम होगी । येक फम इन उ पादन
के साधन के उ चत संयोग से उ पादन क अ धकतम मा ा ा त करने का यास करती है ।

(134)
उ पादन के साधन को पड़त या आगत (Inputs) कहते ह और उ पादन को उ पाद या नगत
(Output) कहते ह ।
उ पादन के साधन के व भ न संयोग दारा उ पादन क अ धकतम मा ा उ पादन फलन
दारा जानी जाती है । अ पकाल के समय बहु त कम होने के कारण उ पादन के सभी साधन म
प रवतन करना संभव नह ं होता इस लए कु छ साधन को ि थर रखते हु ए साधन क मा ा म
प रवतन करने से उ पादन क मा ा म जो प रवतन होता है । इसका अ ययन प रवतनशील
अनुपात के नयम के तहत कया जाता है ।

9.2 उ पादन-फलन का अथ एवं प रभाषा


उ पादन-फलन का अथ-उ पादन के साधन (Input) एवं उ पाद (Output) के बीच भौ तक
संबध
ं को अथशा म उ पादन फलन (Production Function) कहते ह ।
इसे ग णतीय प म न न कार से य त कया जा सकता है-
Q = f (a,b,c,d......... n)
यहाँ पर q = उ पादन क मा ा
a,b,c,d......... n= उ पादन के साधन
f = फलन ( नभरता का सूचक)
उपरो त समीकरण से यह प ट होता है क उ पादन क मा ा उ पि त के साधन क
मा ा पर नभर करती है । उ पादन फलन उ पादन के साधन के व भ न संयोग वारा नि चत
तकनीक तर पर एक नि चत समय म ा त क गयी । उ पादन क अ धकतम मा ा को
बताता है ।
प रभाषा- ो. से युलसन के अनुसार ''उ पादन-फलन वह तकनीक स ब ध है जो यह
बताता है क आगत के येक वशेष समू ह वारा कतना उ पादन कया जा सकता है । यह
स ब ध कसी दये हु ए तकनीक लान के तर के लए य त कया जाता है ।
ो. ले ट वच के अनुसार '' उ पादन फलन श द भौ तक संबध
ं के लए यु त कया
जाता है जो एक फम के साधन क इकाइय और त इकाई समयानुसार ा त व तु ओं और
सेवाओं (उ पाद के बीच पाया जाता है।''
ो. वाटसन के अनुसार '' कसी फम क भौ तक पड़त (Input) तथा उपज क भौ तक
मा ा (Output) के बीच के स ब ध को उ पादन-फलन कहते ह ।
उपरो त प रभाषाओं से यह प ट है क उ पादन-फलन एक नि चत तकनीक तर पर
एक नि चत समय म उ पि त के साधन क इकाइय म प रवतन से उ पादन क मा ा म होने
वाले प रवतन को बताता उ पादन-फलन को न न उदाहरण से प ट कया जा सकता है- तु त
सारणी 9.1 मे एक तरफ म क 1 से 6 इकाइयाँ दशायी गई है और दूसर तरफ पूँजी क 1 से
6 इकाइय दशायी गई है । इस सारणी से म तथा पूँजी क व भ न इकाइय के संयोजन से
ा त क जा सकने वाल व तु X के उ पादन क व भ न मा ाओं क जानकार ा त क जा
सकती है ।
उदाहरण के लए पूँजी क 6 इकाइय और म क एक इकाई के संयोग से व तु (x) क
54 इकाइयाँ ा त होती है । ये 54 इकाइयाँ, ा त. करने के लए पूँजी और म के व भ न

(135)
संयोग का चु नाव कया जा सकता है जैसे- (i) म क 6 इकाइयाँ एवं पूँजी क एक इकाई (ii)
म क 3 इकाइयाँ एवं पूँजी क 2 इकाइयाँ (iii) म क 2 एवं पूँजी क 3 इकाइयाँ (iv) म क
1 इकाई एवं पूँजी क 6 इकाइयाँ
इसी कार म एवं पूँजी क एक-एक इकाई के संयोग से व तु क 22 इकाइयाँ ा त
क जा सकती है, दो-दो इकाइय के संयोग से 44 इकाइयाँ अथात ् आगत के दुगने संयोग से
उ पाद क मा ा । गुणा ा त क जा सकती है । म एवं पूँजी दोन क 6-6 इकाइय के संयोग
से व तु क 132 इकाइयाँ ा त क जा सकती है । इस कार उ पादन- फलन पूँजी तथा म के
अलग- अलग संयोग से ा त होने वाल उ पादन क अ धकतम मा ा बताता है ।
इस सारणी से पूँजी तथा म के व भ न संयोग से ा त होने वाल उ पादन क मा ा
क जानकार ा त क जा सकती है
(i) पूँजी क 1 इकाई के साथ म क 1,2,3,4,5 एवं 6 इकाइय के संयोग से उ पादन
क मश: 22,32,40,46,5० एवं 54 इकाइयाँ ा त क जा सकती है । इस कार पूँजी क मा ा
को ि थर रखकर म क मा ा म प रवतन करने से उ पादन क मा ा म जो प रवतन आता है
वह दे खा जा सकता है ।
सारणी-9.1

(ii) म क 1 इकाई के साथ पूँजी क 1,2,3,4,5 एवं 6 इकाइय के संयोग से उ पादन


क मश: 22,32,40,46,50 एवं 54 इकाइयाँ ा त क जा सकती है । इस कार म क मा ा
को ि थर रखकर पूँजी क मा ा म प रवतन करने से उ पादन क मा ा म होने वाले प रवतन को
दे खा जा सकता है ।
(iii) x व तु क 66 इकाइयाँ, 5 पूँजी एवं 2 म 3 पूँजी एवं 3 म एवं 2 पूँजी एवं 5
म से ा त क जा सकती है । इसी कार 62 इकाइयाँ, 4 पूँजी व 2 म, 2 पूँजी एवं 4 म
से 98 इकाइयाँ 5 पूँजी व 4 म एवं 4 पूँजी व 5 म के संयोग से ा त क जा सकती है ।
इस कार उपरो त सारणी से उ प त के दोन साधन को व भ न अनुपात म बदलकर
उ पि त पर भाव दे ख सकते ह, म क अ धक इकाइयाँ लेते ह तो पूँजी क कम इकाइयाँ लेते
ह और म क कम इकाइयाँ तो पूँजी क अ धक इकाइयाँ लेते ह ।

(136)
ऊपर व णत सारणी उ पादन-फलन के संबध
ं म बहु त मह वपूण है । इस सारणी के
वारा उ पादन के दोन नयम प रवतनशील अनुपात का नयम एवं पैमाने के तफल को
समझाया जा सकता है । प रवतनशील अनुपात के नयम म कु छ साधन ि थर एवं कु छ
प रव तत कये जाते ह जब क पैमाने के तफल म सभी साधन समान अनुपात म प रव तत
कये जाते ह । उपरो त सारणी से दोन ि थ तय म उ पादन पर पड़ने वाले भाव को समझा
जा सकता है । एक साधन क मा ा को ि थर रखकर दूसरे साधन क मा ा म प रवतन करने से
उ पादन पर भाव दे खा जा सकता है । इसी कार एक साथ दोन साधन एक अनुपात म
प रव तत करने से उ पादन क मा ा पर पड़ने वाले भाव को भी दे खा जा सकता है ।
उपरो त सारणी से उ पादन के साधन के व भ न संयोग से ा त होने वाल उ पादन
क व भ न इकाइय क मा ा क जानकार ा त होती है । ले कन उ पादन पर होने वाल
लागत क जानकार इससे ा त नह ं होती है । इसके लए उ पादन के साधन के मू य को
यान म रखते हु ए इनके संयोग का चु नाव करके कम से कम लागत पर उ पादन क मा ा ा त
करना काय कु शलता का घोतक होगा । उदाहरण के लए हम यह मानते ह क फम x व तु क
54 इकाइय का उ पादन करने का वचार कर रह है ले कन इसके लए सारणी 92 म दशाये गये
चार संयोग म से एक का चु नाव म एवं पूँजी क इकाइय के सापे मू य के आधार पर कया
जायेगा ।
उ पादन के साधन म एवं पू ज
ं ी के व भ न संयोग क मू य सापे ता सारणी 9.2 म
दशायी गयी है –
सारणी 9.2
यूनतम लागत संयोग
X व तु क 54 इकाइयाँ ा त करने हे तु
म ,पू ज
ं ी A ि थत B ि थत
कु ल लागत जब कु ल लागत जब
म का मू य 7 /इकाई म का मू य7 /इकाई
पू ज
ं ी का मू य 10 /इकाई म का मू य7 /इकाई
1+6 67 . 31 .
2+3 44 . 26 .
3+2 41 . 29 .
6+1 52 . 46 .
उपरो त सारणी के अ ययन से हम भल भां त समझ सकते हे क A ि थ त म जब
म का मू य 7 . त इकाई है और पूँजी का मू य 10 . त इकाई है तो इन उ पादन के
साधन का तीसरा संयोग अथात म क 3 इकाइय और पूँजी क 2 इकाइय वारा उ पादन
करने पर उ पादक क लागत यूनतम रहे गी । माना क म का मू य ि थर रहता है अथात 7
. त इकाई ले कन पूँजी का मू य घटकर 10 . त इकाई के थान पर 4 . त इकाई
हो जाता है । जैसा क B ि थ त म बताया गया है । इस ि थ त म उ पादन के साधन का
दूसरा संयोग अथात म क दो इकाइय एवं पूँजी क 3 इकाइय दारा उ पादन करने पर

(137)
उ पादक क लागत यूनतम रहे गी । इससे यह प ट प से समझ म आ रहा है क A ि थ त
म म, पूँजी क तु लना म स ता होने से इसक अ धक 3 इकाइय एवं पूँजी क कम (2)
इकाइय का योग कया जा रहा था । ले कन B ि थ त म म क तु लना म पूँजी स ती हो
जाने से पूँजी क अ धक (3) एवं म क कम (2) इकाइय का योग कया जाने लगा है ।

9.3 कॉब-डगलस उ पादन फलन


अथशाि य ने उ पादन के साधन और उ पादन म प रवतन के आपसी संबध
ं के
सांि यक य व लेषण का योग करके वा त वक उ पादन-फलन का नमाण कया है । अमे रका
के दो अथशा ी पॉल एच.डगलस एवं सी.ड यू.कॉब, वारा सांि यक य व लेषण के आधार पर
तैयार कया गया उ पादन-फलन इ ह ं के नाम से जाना जाता है- ' 'कॉब-डगलस उ पादन फलन'
' । कॉब-डगलस उ पादन-फलन व नमाण उ योग पर लागू होता है । यह उ पादन-फलन उ पादन
के दो साधन - म एवं पूँजी को लेकर तैयार कया गया था । यह फलन यह था पत करता है
क म एवं पूँजी क मा ा पर ह उ पादन क मा ा नभर करती है । इसको न न कार से
ग णतीय प म लखा जाता है-
यहां पर-
-a
Q=KL .................C1 Q= उ पादन क मा ा
L= म क मा ा
C= पूँजी क मा ा
K तथा a= धना मक ि थर चर िजनम
a का मान 1 से कम होता है ।
इस उ पादन-फलन क मा यता के अनुसार म तथा पूँजी उ पादन के केवल दो साधन
होते ह और इनक सभी इकाइय एक प तथा समान ह और उ पादन क वृ म 75 तशत
म का योगदान एवं 25 तशत पूँजी का योगदान होता है ।
आ थक स ा त म हम उ पादन-फलन म उ पादन के साधन के दो कार के स ब ध
का वशेष अ ययन करते ह-
(1) उ पादन के कु छ साधन ि थत ह तथा कु छ साधन क मा ा म प रवतन कया
जाता है, इसे अ पकाल न उ पादन-फलन कहते है । इसका ''प रवतनशील अनुपात के नयम'' के
अ तगत अ ययन कया जाता है ।
(2) उ पादन के सभी स धन म प रवतन कया जाता है, इसे द घकाल न उ पादन-
फलन कहते है । इसका अ ययन ''पैमाने के तफल' ' के अ तगत कया जाता है ।
बोध न- 1
1. उ पादन-फलन को प रभा षत क िजए ।
2. काब-डगलस उ पादन फलन क या या क िजए ।
3. उ पादन-फलन क वशेषताएं बताइए ।

(138)
9.4 उ पादन-फलन क मा यताएँ (Assumptions of production
Function)
(1) उ पादन-फलन एक नि चत समय पर ह लागू होता है ।
(2) उ पादन-फलन के लए नधा रत समयाव ध म तकनीक तर म कोई प रवतन नह ं होता है।
(3) अ पकाल न उ पादन-फलन म कु छ साधन ि थर एवं कु छ प रवतनशील होते ह ।
(4) द घकाल न उ पादन-फलन म सभी साधन प रवतनशील होते है ।
(5) उ पादन के साधन छोट -छोट इकाइय म वभा य ह ।
(6) उ पादन के साधन त था पत कये जा सकते ह ।
(7) उ पादन-फलन म उ पि त के साधन के सबसे उ तम संयोग के वारा उ पादन क अ धक
से अ धक मा ा ा त क जा सकती है ।

9.5 उ पादन-फलन क वशेषताएँ (Characteristics Of


Production)
(1) उ पादन-फलन उ पादन के साधन क मा ा एवं उ पाद क मा ा के बीच संबध
ं य त करता
है ।
(2) उ पादन फलन म उ पादन के साधन क एवं उ पाद क क मत का कोई मह व नह ं है
ले कन उ पादन के लए नणय लेते समय इनक क मत पर भी यान दया जाता है ।
(3) उ पादन फलन क एक नि चत समयाव ध एक घ टा या एक दन हो सकती है ।
(4) उ पादन फलन के लए नि चत तकनीक तर होता है अगर तकनीक तर म प रवतन
आता है तो यह माना जाता है क उ पादन क मा ा पहले से अ धक ा त होगी, उ पादन
के साधन वह ह गे और उ पादन फलन बदल जायेगा ।
(5) उ पादन फलन म उ पादन के एक साधन के थान पर दूसरे को त था पत कया जा
सकता है ।

9.6 प रवतनशील अनु पात का नयम (Characteristics Of


Production Fuction)
कसी भी व तु का उ पादन उ पि त के व भ न संयोग से होता है । उ पादन क मा ा
बढ़ाने के लए उ पादन के साधन क मा ा भी बढ़ानी पड़ती है । अ पकाल म सभी साधन क
मा ा बढ़ाना संभव नह ं होता है अत: उ पादन के अ य साधन को ि थत रखकर प रवतनशील
एक या एक से अ धक साधन क मा ा को बढ़ाया जाता है । उ पादन क मा ा म वृ करने के
लए प रवतनशील साधन क मा ा को बढ़ाते रहते ह, इससे इस साधन का अनुपात बढ़ता रहता
है और प रवतनशील साधन एवं ि थत साधन का अनुपात बदलता रहता है ।
इस नयम के तहत उ पादन पर उ पि त के साधन के अनुपात म होने वाले प रवतन
का या भाव पड़ता है यह अ ययन कया जाता है, इस लये इसे ''प रवतनशील अनुपात का
नयम'' कहते ह । प रवतनशील साधन क मा ा बढ़ाते रहने से एक सीमा के बाद सीमा त

(139)
उ पि त घटने लगती है । अत: पहले इसे हासमान तफल का नयम कहा जाता था । इस
कार प रवतनशील अनुपात का नयम एवं हासमान तफल का नयम दोन एक ह है ।
ति ठत अथशा ी यह मानते थे क ासमान तफल का नयम केवल कृ ष े म
ह लागू होता है । ो. माशल ने कृ ष के सबंध म घटते तफल क ववेचना क और इसे
प रभा षत कया क ''य द कृ ष म कोई सु धार न हो तो भू म पर उपयोग क जाने वाल पूँजी
तथा म क मा ा म वृ करने से उ पादन म सामा यतया अनुपात म कम वृ होती है । ''
ो. माशल के अनुसार उ पादन के साधन म भू म को ि थर रखा गया है और पूँजी एवं
म क मा ा म प रवतन कया गया है । इसके अनुसार पूँजी और म क मा ा म वृ करने
से कु ल उ पादन म घटती हु ई दर से वृ होती है । ले कन कृ ष तकनीक म कोई सु धार नह ं
होना चा हए । य द कृ ष तकनीक म सु धार होता है तो उ पादन म बढ़ती हु ई दर से वृ हो
सकती है।
हम उपरो त नयम न न सारणी 9.3 के अ ययन उदाहरण से समझ सकते है ।

रे खा च 9.1
कसी यि त के पास 1 है टे यर भू म है इसम उ पादन के लए ार म म वह 1 इकाई
पूँजी व म लगाता है । उ पादन 20 टन होता है । वह उ पादन क मा ा बढ़ाने के लए पूँजी
एवं म क दूसर इकाई लगाता है तब कु ल उ पादन बढ़कर 36 टन हो जाता है । म एवं पूँजी
क मा ा दुगन
ु ी कर दे ने पर भी उ पादन क मा ा दुगन
ु ी नह ं हो पायी । म एवं पूँजी क मा ा
बढ़ाकर 3 इकाई, 4 इकाई एवं 5 इकाई करने पर उ पादन क मा ा बढ़कर मश: 48 टन, 56
टन एवं 60 टन हो जाती है और सीमांत उ पादन मश: 12 टन, 8 टन एवं 4 टन होता है ।
इससे यह स होता है क म एवं पूँजी क अ त र त वृ करने से कु ल उ पादन म घटती हु ई

(140)
दर से वृ होती है, अथात ् सीमांत उ पादन बराबर घटता रहता है । उ पादन क इसी कृ त को
ासमान कहते ह ।
रे खा च वारा प ट करण
च सं या एक म म एवं पूँजी क एक इकाई से 20 टन, दूसर से 16, तीसर से
12, चौथी से 8 एवं पाँचवी से 4 टन उ पादन ा त होता है । PP रे खा जो ऊपर से नीचे क
और झु क हु ई है । इससे यह त य प ट होता है क कृ ष म भू म क मा ा ि थर रखने पर,
पूँजी एवं म क इकाइय बढ़ाने पर उ पादन म घटती हु ई दर से वृ होती है ।
आधु नक अथशाि य क यह मा यता है क प रवतनशील अनुपात के नयम का े
केवल भू म एवं कृ ष ह नह ं है, यह नयम बहु त यापक है और उ पादन के सभी े म लागू
होता है। इनका मानना है क उ पादन के कसी भी साधन को ि थर रखा जा सकता है, जब क
ति ठत अथशा ी केवल म को ि थर मानते थे । ीमती जॉन रा ब सन के अनुसार
''उ पि त हास नयम यह बतलाता है क य द उ पि त के कसी एक साधन क मा ा को ि थर
रखा जाये तथा अ य साधन क मा ा म उ तरो तर वृ क जाये तो एक ब दु के बाद
उ पादन म घटती हु ई दर से वृ होगी । '' इससे यह मालूम चलता है क ीमती जॉन र ब सन
एक साधन को ि थर एवं अ य साधन को प रवतनशील मानती थी ।
ो. बे हम के अनुसार '' उ पादन साधन के संयोग म कसी एक साधन का अनुपात
जैसे-जैसे बढ़ाया जाता है एक ब दु के बाद उस साधन क सीमा त तथा औसत उपज घटने लग
जाती है। '' ो. ि टगलर का मानना है क ''जब कु छ साधन को ि थर रखकर एक साधन म
समान वृ य क जाती है तो एक सीमा के प चात उ पादन म होने वाल वृ यां कम हो जायेगी
अथात सीमा त उ पादन घट जायगे । '' ो. बोि डंग ासमान तफल (Diminishing return)
श द को अ प ट मानते ह, वे मानते ह क इसके कई अथ कये जा सकते ह, इस लए वे इसे ''
अंततः ासमान सीमांत भौ तक उ पादकता नयम (Law of Eventually Diminishing
Marginal physical productivity) कहना अ धक उपयु त मानते ह । उनके अनुसार '' जब कु छ
साधन क ि थर मा ा के साथ कसी अ य साधन क मा ा को बढ़ाया जाता है तो प रवतनशील
साधन क सीमांत भौ तक उ पादकता अ ततः अव य ह घट जायेगी । '' इस कार हमने दे खा है
क ो. बे हम, ो. ि टगलर एवं ो. बोि डंग अ य सारो को ि थर मानकर केवल एक साधन को
प रवतनशील मानते थे ।
आधु नक अथशाि य का यह भी मानना है क प रवतनशील साधन क सीमा त
उ पादकता एवं औसत उ पादकता अ तत: घटने लग जाती है ।
इस नयम को हम एक उदाहरण वारा समझ सकते ह- यहाँ पर एक साधन (भू म) को
ि थर रखा गया है और अ य साधन को प रवतनशील रखते ह, इ ह हम म क इकाइय के
प म मानते ह ।
सारणी 9.4
10 है टे यर भू म पर म क व भ न इकाइय के लगाने से उ पि त पर भाव
ि थर साधन प रवतनशील कु ल उ पादन औसत सीमा त वभ न
भू म साधन म क (टन) उ पादन उ पादन अव थाएं 10
(है टे यर) इकाईयां (टन) (टन)

(141)
10 1 8 0 0 थम
10 2 20 10 12 अव था
10 3 33 11 13
10 4 48 12 15
10 5 60 12 12 वतीय
10 6 66 11 6 अव था
10 7 70 10 4
10 8 70 8.75 0 तृतीय
10 9 68 8.75 -2 अव था
उपरो त सारणी का अ ययन करने से उ पि त हास नयम क आधु नक या या के
अनुसार उ पि त क तीन अव थाएं ा त होती है ।
थम अव था- इस अव था म ि थर साधन (भू म) के साथ प रवतनशील साधन ( म)
क मा ा का संयोजन कया जाता है । ार भ म जब प रवतनशील साधन क मा ा कम होती है
तब उ पादन कम मा ा म ा त होता है और जैसे-जैसे प रवतनशील साधन क इकाइयां बढ़ाते
जाते ह उ पादन क मा ा ती ग त से बढ़ती है । इसका कारण यह है क ार भ म
प रवतनशील साधन क मा ा कम होने के कारण ि थर साधन का पूण प से उपयोग नह ं हो
पाता है और प रवतनशील साधन भी उ पादन के सारे काय करने म असमथ रहता है इस कारण
उ पादन क मा ा कम होती है । जैसे-जैसे प रवतनशील साधन क मा ा बढ़ती जाती है, ि थर
साधन क काय मता बढ़ जाती है और इसका पूण उपयोग होने लगता है, इससे उ पादन क
मा ा ती ग त से बढ़ने लगती है ।
प रवतनशील साधन क मा ा म वृ होने से इसक काय मता म वृ होती है और
इसक सं या उ चत मा ा म होने से इनम म वभाजन ( वशेषीकरण) भी हो जाता है इससे
इनक उ पादकता बढ़ जाती है । प रवतनशील साधन क सीमांत उ पादकता और औसत
उ पादकता म लगातार वृ होती रहती है । औसत उ पादकता लगातार बढ़ती रहती है, सीमा त
उ पादकता लगातार नह ं बढ़ती, ार भ म बढ़ती है और फर घटना ार भ कर दे ती है, ले कन
घटते हु ए भी यह इस अव था म औसत उ पादन से अ धक होती है । इस अव था म
प रवतनशील साधन एवं ि थर साधन का अनुकूलतम संयोग होने से कु ल उ पादन क मा ा म
बढ़ती हु ई दर से वृ होती है इस लए इस अव था को बढ़ते तफल क अव था कहते ह ।
वतीय अव था- प रवतनशील साधन क मा ा म लगातार वृ करते रहने से ि थर
साधन क मा ा इसक तु लना म कम हो जाती है और उ पादन के साधन का अनुकू लतम संयोग
नह ं रह पाता है । इस कारण प रवतनशील साधन के औसत उ पादन एवं सीमांत उ पादन घटने
लगते है, ले कन दोन ह धना मक रहते है, पर तु इस अव था के अ त म सीमा त उ पादकता
शू य हो जाती है ।
प रवतनशील साधन क मा ा ि थर साधन क मा ा क तुलना म अ धक होने से ि थर
साधन का अ य धक उपयोग होने लगता है । इस कारण से कु ल उ पादन म वृ घटती हु ई दर
से होने लगती है । इसका कारण ासमान सीमांत तफल नयम का लागू होना है ।

(142)
ीमती जॉन रा ब सन का यह मानना है क उ पादन के साधन एक दूसरे के लए अपूण
त थापन होते ह । तीय अव था म हमने दे खा है क जब ि थर साधन क मा ा
प रवतनशील साधन क मा ा क तु लना म कम हो जाती है तब इसके साथ प रवतनशील साधन
क इकाई का त थापन कया जाता है तो घटते तफल ा त होते है । अगर उ पादन के
साधन का आपस म पूण त थापन होता तो उ पादन क मा ा म कमी नह ं होती और
उ पादन लगातार बढ़ता रहता, य क जो भी साधन कम होता उसके थान पर दूसरे साधन को
त था पत कर दया जाता । ीमती जॉन रा ब सन के अनुसार साधन के बीच त थापन
सापे ता अन त से कम होती है, इसी कारण घटते तफल ा त होते ह । यह अव था
मह वपूण अव था होती है य क उ पादक इसी अव था म व तु का उ पादन करना चाहे गा ।
यह अव था ासमान तफल क अव था कहलाती है य क इस अव था म औसत उ पादकता
और सीमा त उ पादकता दोन ह लगातार घटते रहते है ।
तृतीय अव था- प रवतनशील साधन क मा ा को लगातार बढ़ाते जाने पर ि थर साधन
क मा ा इसक तु लना म बहु त कम हो जाती है । इससे ि थर साधन क उ पादकता घटने
लगती है । प रवतनशील साधन भी जब सं या म अ धक हो जाते है और काम कम हो जाता है
तो ये दूसर इकाइय पर भार हो जाते है और उनको भी काय करने से रोकते ह । बात करगे,
थान घेरगे, दूसरे के काम म ह त ेप करगे, इससे प रवतनशील साधन क सीमांत उ पादकता
ऋणा मक हो जाती है, उ पादन के दोन साधन क काय कु शलता घट जाती है । इस कारण
इस लए इस अव था को ऋणा मक तफल क अव था कहा जाता है । ि थर साधन एवं
प रवतनशील साधन का संयोग काफ असंतु लत होने के कारण कु ल उ पादन घटने लगता है ।
ऊपर व णत उ पादन क तीन अव थाओं को रे खा च वारा न न कार से दशाया जा सकता
है ।

रे खा च 9.2
रे खा च 9.1 मे TP (कु ल उ पादन) व , AP (औसत उ पादन) व और MP (सीमांत
उ पादन) व दखाये गये है । OX- अ पर मक (प रवतनशील साधन) क मा ा और OY-
अ पर कु ल उ पादन, औसत उ पादन और सीमांत उ पादन बताये गये ह । एक साधन को
ि थर रखकर प रवतनशील साधन क मा ा म वृ करने पर (साधन के अनुपात म प रवतन

(143)
होने से) कु ल उ पादन, औसत उ पादन और सीमांत उ पादन म िजस कार प रवतन आते ह
उनका अ ययन इस रे खा च वारा कया जा सकता है ।
उ पादन क न न ल खत तीन अव थाएं है- थम अव था O से E तक, वतीय
अव था E और F के बीच क और, तृतीय अव था F के बाद क है ।
थम अव था (Stage-1) रे खा च से यह प ट होता है क कु ल उ पादन व TP क
ढाल ब दु O से लेकर A तक बढ़ रह है अथात ब दु A तक कु ल उ पादन बढ़ती हु ई दर से
बढ़ता है। A ब दु के प चात TP व उपर क ओर बढ़ता जाता है ले कन इसक ढाल घटती
जाती रह है इसका अथ यह है क कु ल उ पादन A ब दु के प चात घटती दर से बढ़ता है । A
ब दु को मोड़ ब दु (Point Of Inflexions) कहते है । रे खा च म ब दु A के ठ क नीचे
सीमा त उ पादन ब दु C पर उ चतम ि थ त म होता है इसके प चात यह घटना ार भ कर
दे ता है । इसके घटने का भाव कु ल उ पादन पर पड़ता है और इस ब दु A के प चात कु ल
उ पादन घटती दर से बढ़ता है, जब सीमांत उ पादन बढ़ता रहता है कु ल उ पादन बढ़ती हु ई दर
से बढ़ता है । (A) ब दु तक ।
इस ब दु D पर सीमांत उ पादन व औसत उ पादन व को ऊपर से काटता है और
इसके प चात यह औसत उ पादन व से नीचे रहता है ।
थम अव था वहां समा त होती है जहां औसत उ पादन व अपनी उ चतम ि थ त म
होता है और सीमांत उ पादन व इसे ऊपर से काटता है ।
थम अव था म प रवतनशील साधन का औसत उ पादन बढ़ता रहता है और जहां पर
थम अव था समा त होती है उस ब दु D पर यह अ धकतम होता है और उसके प चात घटना
ारं भ कर दे ता है । इस अव था म सीमांत उ पादन पहले से बढ़ता रहता है और यह औसत
उ पादन से अ धक होता है । ब दु E थम अव था का अं तम थान है यहां पर (E ब दु पर)
यह औसत उ पादन को उपर से काटता है और इसके प चात यह औसत उ पादन से नीचे रहता
है ।
वतीय अव था (।। Stage) - दूसर अव था E ब दु से ार भ होती है और F ब दु
तक रहती है । इस अवसी म कु ल उ पादन व (TP) घटती दर से बढ़ते हु ए अपने उ चतम
ब दु B तक जाता है । इस अव था म बढ़ते हु ए औसत उ पादन व (AP) एवं सीमांत उ पादन
व (MP) दोन ह घटते हु ए ह पर तु धना मक ि थ त म है । इस अव था के अं तम ब दु F
पर सीमा त उ पादन व शू य होता है । यह ब दु कु ल उ पादन व के ब दु B के ठ क नीचे
ि थर होता है । यह अव था मह वपूण अव था होती है ।
तृतीय अव था (।।। Stage)- यह अव था F ब दु से ार भ होती है । इस अव था म
प रवतनशील साधन का सीमांत उ पादन ऋणा मक हो जाता है और सीमांत उ पादन व X के
नीचे क ओर झु क जाता है । औसत उ पादन भी घटता है ले कन धना मक रहता है । इस
अव था म कु ल उ पादन घटता है इस लए कु ल उ पादन व नीचे क ओर झु कता है । इस
अव था म ि थर साधन क तु लना म प रवतनशील साधन क मा ा बहु त अ धक होने से
उ पादन घटता रहता है इसे ऋणा मक तफल क अव था कहा जाता उ पादन क तीन
अव थाओं का अ ययन कया है हम यह दे खना है क उपरो त तीन अव थाओं म से कौनसी
अव था उ पादन क ि ट से उपयु त है । थम अव था म प रवतनशील साधन क मा ा म

(144)
वृ करने से ि थर साधन एवं प रवतनशील साधन दोन क कायकु शलता म वृ होने से
उ पादन क मा ा बढ़ती है । ले कन इस अव था म उ पादन के दोन साधन क पूण मता का
उपयोग करना संभव नह ं होता है । वतीय अव था म प रवतनशील साधन क मा ा म ओर
वृ करने से कु ल उ पादन क मा ा म और वृ होती है और वह उ चतम तर पर पहु ंच जाती
है । तृतीय अव था म म क इकाईय म और वृ करने से म क सीमांत उ पादकता
ऋणा मक हो जाती है । इससे कु ल उ पादन घटने लग जाता है । इस अव था म औसत उ पादन
भी गरने लग जाता है । अत: उ पादक के लए वतीय अव था ह सबसे अ धक े ठ है ।
बोध न- 2
1. प रवतनशील अनुपात के नयम क ति ठत अथशाि य वारा द गयी प रभाषा
बताइए ।
2. प रवतनशील अनुपात के नयक क ीमती जॉन रा ब सन वारा द गयी प रभाषा
बताइए ।
3. फम प रवतनशील अनुपात के नयम क कस अव था म उ पादन करना चाहे गी।

9.7 प रवतनशील अनु पात के नयम क मा यताएं


प रवतनशील अनुपात का नयम न न ल खत मा यताओं पर आधा रत है ।
1. तकनीक ान का तर अप रव तत (ि थर) रहता है य क तकनीक ान म सु धार होने
पर उ पादन क मा ा बढ़ने क संभावना रहती है ।
2. फम का ढाँचा, बंधक य मता एवं संगठन अप रव तत रहते ह ।
3. इस नयम का संबध
ं उ पादन क मा ा से है, उ पा दत व तु के मू य से नह ं ।
4. उ पादन के साधन म से कु छ साधन क मा ा को ि थर रखा जाता है एवं कु छ साधन क
मा ा म प रवतन कया जाता है । य द सभी साधन को प रव तत कर दया जाता है तो यह
नयम लागू नह ं होगा ।
5. प रवतनशील साधन को छोट -छोट इकाइय म वभािजत कया जा सकता है ।
6. साधन क सभी इकाइयाँ समान होती है एवं एक समान कायकु शल होती है ।
7. उ पादन के साधन क लागत से कोई संबध
ं नह ं होता है ।

9.8 प रवतनशील अनु पात के नयम का मह व


वकासशील दे श म इस स ा त का बहु त मह व है । इन दे श म जनसं या का मु य
यवसाय कृ ष होता है । लगभग 80 तशत जनसं या कृ ष काय से जु ड़ी होती है । इन दे श म
जनसं या वृ क ग त अ धक होने से भू म पर जनसं या का भार बहु त अ धक होता है
उ पादन के दोन साधन भू म (ि थर साधन) और जनसं या अथात मक (प रवतनशील साधन)
असंतु लत हो जाते है । भू म क तु लना म मक क सं या अ धक होने से मक क सीमांत
उ पादकता घटना ार भ हो जाती है और जनसं या के बढ़ने से मक क सं या अ धक मा ा
म होने से सीमांत उ पादकता शू य एवं ऋणा मक भी हो सकती है । इस ि थ त म कु ल
उ पादन भी घटने लग जाता है । यह ासमान तफल के नयम क याशीलता को द शत
करती है । वकासशील दे श के आ थक वकास के लए यह ि थ त अ छ नह ं है । अथशाि य

(145)
ने इस ि थ त से नपटने के लए वचार य त कये ह और यह सु झाव दया है क इस
अतर त म को अ य यवसाय म लगाया जाये इससे भू म क उ पादकता भी बढ़े गी और
अतर त मक क सीमांत उ पादकता भी धना मक होगी । न स के अनुसार अनु पादकता
(अ त र त) म म छपी हु ई बचत संभावनाएं होती है । इस अ त र त म को भू म नमाण से
हटाकर अ य काय जैसे-सड़क बनवाना, नहर खु दवाना, पुल बनवाना, भवन बनवाना आ द म
लगाने से इसक उ पादकता भी बढ़े गी और भू म से हटाने से ासमान तफल क ि थ त को
टाला जा सकता है । इस कार प रवतनशील अनुपात के नयम का अ ययन वकासशील दे श के
लए बहु त मह व रखता है ।

9.9 प रवतनशील अनु पात के नयम के त ति ठत एवं


आधु नक अथशाि य का ि टकोण
1. ति ठत अथशा ी इस स ा त को केवल भू म पर याशील मानते ह । आधु नक
अथशा ी इस स ा त को सभी े म याशील मानते है ।
2. ति ठत अथशा ी केवल भू म को ि थर मानते थे, आधु नक अथशाि य के अनुसार
भी उ पादन का कोई भी साधन ि थर हो सकता है ।
3. ति ठत अथशा ी प रवतनशील साधन के औसत उ पादन और सीमांत उ पादन को
ार भ से ह घटते हु ए मानते थे, जब क आधु नक अथशा ी मानते ह क औसत उ पादन और
सीमांत उ पादन पहले बढ़ते ह फर अ धकतम बंद ु पर जाकर घटना ार भ करते है ।
4. ति ठत अथशाि य के अनुसार कु ल उ पादन ार भ से ह घटती हु ई दर से बढ़ता है
। आधु नक अथशा ी कु ल उ पादन को पहले बढ़ती हु ई दर से बढ़ता हु आ मानते है इसके
प चात घटती हु ई दर से बढ़ता हु आ और इसके प चात घटता हु आ मानते ह ।
5. ति ठत अथशा ी उ पादन के तीन अलग- अलग नयम मानते थे- वधमान तफल
का नयम, ि थर तफल का नयम और ासमान तफल का नयम । आधु नक अथशा ी
केवल एक नयम प रवतनशील अनुपात का नयम मानते है और इस नयम क तीन अव थाएं,
वधमान ि थर एवं ासमान मानते है ।

9.10 सारांश
येक फम कम से कम लागत पर अ धक से अ धक उ पादन ा त करना चाहती है ।
वह उ पि त के साधन के उ चत संयोग से उ पादन क अ धकतम मा ा ा त करने का यास
करती है । इसके लए उ पि त के साधन क इकाइय म प रवतन करके साधन का उ चत
संयोग ा त करने का यास करती है, इसे उ पादन फलन कहते ह- अथात, उ पादन-फलन एक
नि चत समय म एक नि चत तकनीक तर पर उ पादन के साधन के व भ न संयोग वारा
ा त क गयी उ पादन क अ धकतम मा ा को बताता है । अ पकाल म समयाभाव के कारण
उ पि त के सभी साधन म प रवतन करना संभव नह ं होता है । अत: कु छ साधन को ि थर
रखकर कु छ साधन क मा ा म प रवतन कया जाता है और साधन के उ चत संयोग से
उ पादन क अ धकतम मा ा ा त करने का यास कया जाता है इसे प रवतनशील अनुपात का
नयम कहते है । इसम उ पि त क तीन अव थाएं ा त होती है । थम अव था म

(146)
प रवतनशील साधन क इकाइय म वृ होने से कु ल उ पादन क मा ा म बढ़ती हु ई दर से वृ
होती है । वतीय अव था म प रवतनशील साधन क मा ा म लगातार वृ करते रहने से
औसत उ पादन म घटती हु ई दर से वृ होती है । सीमांत उ पादकता अंत म शू य हो जाती है
इस अव था म कु ल उ पादकता अ धकतम ब दु पर होती है । तृतीय अव था म प रवतनशील
साधन क इकाइयाँ अ धक होने से इसक औसत उ पादकता घटने लगती है और सीमांत
उ पादकता ऋणा मक हो जाती है इससे कु ल उ पादन घटने लगता है । फम वतीय अव था म
उ पादन करना चाहे गी य क उ पि त के साधन के उ चत संयोग से अ धकतम उ पादन इसी
अव था म ा त कया जा सकता है ।

9.11 संदभ ंथ
Ahuja, H.L.-Advance Economic Theory
सै युअलसन, पीए. : - अथशा , कैपीटल बुक हाउस, 26 यू.बी. जवाहर नगर, द ल
सेठ, एम. एल. : - अथशा के स ांत

9.12 बोध न के उ तर
उ तर- 1 -9.2, 2-9.3, 3-9.5
उ तर 2-9.6, 2-9.6, 3-9.6

9.13 अ यासाथ न
1. प रवतनशील अनुपात के नयम क मा यताएं बताइए?
2. प रवतनशील अनुपात के नयम का मह व समझाइए?
3. प रवतनशील अनुपात के नयम के संबध
ं म ति ठत एवं आधु नक अथशाि य के
ि टकोण?

(147)
इकाई- 10
समो पाद व , साधन का यूनतम लागत संयोग एवं पैमाने
के तफल (ISO Product curve, Least cost
combination of Factors and Returns to Scale)

इकाई क परे खा
10.0 उदे ् य
10.1 तावना
10.2 समो पादक व का अथ, प रभाषा एवं वशेषताएं
10.3 तकनीक त थापन क सीमांत दर
10.4 सम लागत रे खाएं
10.5 साधन का यूनतम लागत संयोग
10.6 समो पाद व क सहायता से उ पादक का संतल
ु न
10.7 पैमाने के तफल
10.7.1 पैमाने के बढ़ते हु ए तफल
10.7.2 पैमाने के समान तफल
10.7.3 पैमाने के ासमान तफल
10.8 सारांश
10.9 संदभ थ
10.10 अ यासाथ न

10.0 उ े य
इस इकाई के अ ययन के प चात आप
 समो पाद के बारे म जान सकग
 तकनीक त थापन क सीमांत दर के बारे म समझ सकगे
 सम-लागत रे खा क जानकार ा त कर सकगे
 समो पाद व एवं सम-लागत रे खा क सहायता से उ पादक के संतु लन क ववेचना कर
सकगे
 उ पादन के सभी साधन क मा ा म समान अनुपात म प रवतन करने से उ पादक के लए
कौनसी अव था लाभदायक रहे गी यह समझ सकगे ।

10.1 तावना
समो पाद व क सहायता से यह समझा जा सकता है क दो साधन के व भ न
संयोगो से कसी व तु का समान मा ा म उ पादन ा त कया जा सकता है । दो साधन के

(148)
संयोग म एक साधन क एक इकाई के थान पर दूसरे साधन क कतनी इकाइय को
त था पत कया जा सकता है यह तकनीक त थापन क सीमांत दर को समझा जा सकता
है । उ पादन साधन क क मत तथा उ पादक वारा साधन पर कये जाने वाले कु ल यय को
जानने के लए समलागत रे खा का अ ययन करना आव यक है । उ पादक कम से कम लागत
पर अ धकतम उ पादन क मा ा ा त करने के लए उ पादन के साधन के कस संयोग का
चु नाव करे गा, यह समो पादक व एवं क मत रे खा दोन के वारा समझा जा सकता है ।
द घकाल म उ पादक उ पि त के सभी साधन म समान अनुपात म प रवतन कर सकता है ।
अत: उसे इन साधन म कस अनुपात म प रवतन करना चा हए िजससे उसे अ धकतम उ पादन
क मा ा ा त हो सके, यह पैमाने के तफल क तीन अव थाओं के अ ययन से समझ सकते
है ।

10.2 समो पाद व


समो पाद व (Iso Product Curve)-समो पाद व क सहायता से उ पादन के स ांत
का अ ययन कया जाता है जैसे एक उपभो ता को दो व तु ओं के व भ न संयोग से ा त
संतु ि ट का अ ययन उदासीनता व क सहायता से कया जाता है, उसी कार एक फम केवल
दो साधन के व भ न संयोग से समान मा ा म उ पादन ा त करती है, यह अ ययन समो पाद
व क सहायता से कया जाता है । ो. श, ो. कोहन, ो. सीमट, ो. क र टे ड, ो. ह स,
एवं ो. बोि डंग आ द अथशाि य ने सम उ पाद व व लेषण क सहायता से उ पादन के
त व के संयोग के स ात को समझाया है ।
अथ-समो पाद व उ पादन के क ह ं दो साधन के उन व भ न संयोग को य त
करता है िजनके वारा कसी उ पादन क समान मा ा ा त क जा सकती है । ो. कोहन एवं
सीमट के अनुसार ''एक समो पाद व वह व होता है िजस पर उ पादन क अ धकतम ा य
यो य दर ि थत होती है ।''
ो. क र टे ड के अनुसार ''समो पाद व दो साधन के उन संभावी संयोग को य त
करते है िजनसे एक समान कु ल उ पादन ा त होता है ।''
व वान वारा समो पा व के भ न- भ न नाम दये गये है जैसे-Iso Product
Curve, Iso quants, Equal Product Curves एंव Production Indifference Curves.
''समो पादक व ऐसे व को कहते ह िजस पर ि थत सभी ब दु उ पादन के क ह ं दो
साधन के उन सभी संभावी संयोग को य त करते ह िजनसे समान कु ल उ पादन ा त कया
जा सकता है तथा उ पादक का इन संयोग के म य कोई अ धमान नह ं होगा ।
समो पाद व को हम एक उदाहरण के वारा समझ सकते ह- उ पादन के दो साधन
म एवं पूँजी के व भ न संयोग से कसी फम को कसी व तु के उ पादन क 50 इकाइयां
ा त होती ह। इसे हम न न ता लका 10.1 वारा समझ सकते ह ।

(149)
ता लका सं. 10.1
साधन के व भ न संयोग
संयोग पूजी क मा ा म क मा ा कु ल उ पादन
A 16 3 50
B 12 4 50
C 9 5 50
D 7 6 50
E 6 7 50
ता लका 10.1 के अ ययन से ात होता है क उ पादक को 3 मक और 16 पूँजी
क इकाइय से िजतना उ पादन ा त होता है उतना ह उ पादन 4 मक, 12 पूँजी क
इकाइय से, 5 मक, 9 पूँजी क इकाइय से, 6 मक 7 पूँजी क इकाइय से और 7
मक एवं 6 पूँजी क इकाइय से ा त होगा ।
उपरो त समो पाद ता लका म दशाये गये उ पादन के म एवं पूँजी के व भ न -संयोग
के आधार एक व बनाया जाये तो हम एक समो पाद व ा त होगा, जौ न न कार से
बनेगा ।
इस कार एक समो पाद व दो साधन के उन संयोग को बताता है िजससे एक
उ पादक को उ प त ा त होती है ।

रे खा- च 10.1 म OX अ पर मक क सं या एवं OY अ पर पू ज


ं ी क मा ा को
दशाया गया है ।A,B,C,D एवं E ब दु पू ज
ं ी एवं म के व भ न संयोग को य त करते है ।
A ब दु पर 3 मक एवं 16 पूँजी क मा ा से िजतना उ पादन ा त होता है उतना ह
उ पादन इन दोन उ पि त के साधन व भ न संयोग से मश: ब दु B,C,D एवं E पर ा त
होता है । इन ब दुओं (A,B,C,D) जोड़ने पर हम एक समो पाद व PP ा त होता है । इस
समो पाद व के येक ब दु पर उ पादक एक समान उ पादन ा त होता है इसी लए उ पादक
व भ न संयोग के त तट थ रहता है ।

रे खा च 10.2

(150)
रे खा च 10.2 म समो पाद व के समू ह को दशाया गया है । समो पाद व के समूह
को समो पाद व मान च कहते है। इस मान च म ि थत जो समो पाद व मू ल ब दु से
िजतना अ धक दूर होगा वह उतनी ह अ धक उ पादन क मा ा दे गी । IP, 50 टन उ पादन
दे गा, । IP4 200 टन उ पादन क मा ा दे गा ।

10.2.1 समो पाद व क वशेषताएं (Characteristics of iso-Product Curve)

(1) समो पाद व पर ि थत येक ब दु उ पादन के दो साधन से समान उ पादन क मा ा


को दशाते है ।
(2) समो पाद व बाय से दाय क ओर नीचे को झु का हु आ होता ह ।
(3) समो पाद व मू ल ब दु के त उ नतोदर होते ह । पर तु जब उ पादन के साधन
पूणतया थानाप न होते ह तो समो पाद व मू ल ब दु के त उ नतोदर नह ं होते, ऋणा मक
ढाल वाल सीधी रे खा के प म ह गे ।
(4) समो पाद व एक दूसरे को नह ं काटते ।
(5) समो पाद व कसी भी अ को पश नह ं करते ।
(6) मू ल ब दु से अ धक दूर पर ि थत समो पादक व अ धक उ पादन क मा ा को दशाते ह
(7) समो पाद व खड़ी रे खा नह हो सकता ।
(8) आधार रे खा (OX-अ ) के समाना तर अथात ै तज भी नह ं हो सकता ।
बोध न
1. समो पाद व क प रभाषा बताइए ।
2. समो पाद व क वशेषताएं बताइए ।
3. समो पाद व के बारे म समझाइए ।

10.3 तकनीक त थापन क सीमांत दर (Marginal Rate of


Technical Substitution)
समो पाद व के अ ययन से हमने यह दे खा है क उ पादन के साधन संयोगो म
प रवतन होता है और उ पादन ि थर रहता है । साधन संयोग म यह प रवतन, साधन क
तकनीक त थापन क दर पर आधा रत होता है । इसे हम इस कार प रभा षत कर सकते है-
''दो साधन म (x) एवं पूँजी (y) के म य तकनीक त थापन क सीमांत दर वह दर है िजसके
अनुसार, साधन म क एक अ त र त इकाई को साधन पूँजी क कतनी इकाइय के थान पर
त था पत कया जा सकता है, िजससे उ पादन क मा ा अप रव तत रहे ।'
इसे हम न न ता लका सं या 10.2 से समझ सकते है-
ता लका सं या 10.2
तकनीक त थापन क सीमांत दर
संयोग मक क सं या (X) पू ज
ं ी क मा ा कु ल उ पादन (X)क (Y) के लए तकनीक
(Y) टन त थापन क दर
A 3 16 50 …..

(151)
B 4 12 50 4:1
C 5 9 50 3:1
D 6 7 50 2:1
E 7 6 50 1:1
उपरो त ता लका के अ ययन से यह ात होता है क म एवं पूँजी क इकाइय के
व भ न संयोग के समान उ पादन क मा ा ा त होती है । ये सभी संयोग एक ह समो पाद
व पर ि थत हे । संयोग A म (3 मक (X) एवं 16 पू ज
ं ी (Y) क इकाइयां) है और संयोग B
म (4 मक (X) एवं 12 पू ज
ं ी (Y) क इकाइयां है । इनक तु लना करने कर पर यह प ट पता
चलता है क साधन म (X) क एक इकाई का साधन पूँजी (Y) क चार इकाइय के थान पर
योग कया जा सकता है जब क उ पादन क मा ा म कोई प रवतन नह ं होता है । अत: यहां
पर तकनीक त थापन क सीमांत दर 4 : 1 है । इसी कार B और C संयोग क तु लना
करने पर हम पाते है क साधन म (X) क एक इकाई का साधन पू ज
ं ी (Y) क तीन इकाइय
के थान पर योग कया जा सकना है, इस अव था म उ पादन ि थर रहता है । अत: यहां पर
तकनीक त थापन क सीमांत दर 3 : 1 है । इसी कार C और D के संयोग के बीच
तकनीक त थान क सीमांत दर 2 : 1 है । और इसी कार D और E के संयोग के बीच
तकनीक त थापन क सीमांत दर वन है ।
तकनीक त थापन क सीमांत दर (MRTS) को न न कार लखा जा सकता है ।
MRTS= यहां पर ∆ प रवतन का घोतक है ।


∆Y= पू ज
ं ी के उपयोग म प रवतन
∆x = म के उपयोग म प रवतन
तकनीक त थापन क सीमांत दर उ पादन के लए उपयोग म ल जाने वाल पू ज
ं ी क
मा ा को म क मा ा वारा त थापन करके नयं त करने पर वभा य फल है ।
समो पाद व क ढाल को दशाता है । अत: हम समो पाद व के कसी ब दु पर


तकनीक त थापन क सीमांत दर (MRTS) वहां पर खींची गयी पश रे खा (Tangent) क
ढाल से ात कर सकते है!

रे खा च 10.3
च 10.3 म समो पाद व । IP खींचा गया है । इस पर दो ब दु M और N लये
गये ह । ब दु M पर KK1 और ब दु N पर LL1 पश रे खाए (Tangents) खींची गयी है ।
पश रे खा KK1 क ढाल OK / OK1 के बराबर है । अतएव समो पाद व IP के ब दु M पर
तकनीक त थापन क सीमांत दर (MRTS), OK / OK1 के बराबर ह । इसी कार पश रे खा
(152)
1
LL1 क ढाल OL / OL के बराबर है । इस लए समो पाद व IP के ब दु N पर तकनीक
1
त थापन क सीमांत दर OL/OL के बराबर होगी ।
जैस- जैसे v साधन का योग Y साधन के थान पर बढ़ाया जाता है तो X साधन क
एक इकाई के थान पर साधन क कम क जाने वाल इकाइय क सं या घटती जायेगी । यह
ि थ त ता लका सं या 10.2 म प ट क गयी है । इसे ासमान तकनीक त थापन क
सीमा त दर का नयम (Law of Diminishing Marginal Rate of Technical Substitution)
कहते है । इस नयम का कारण ासमान सीमांत तफल (Law of Diminishing Returns) के
नयम क याशीलता है । जैसे-जैसे म क मा ा बढ़ायी जाती है इसक सीमा त घटती जाती
है । और पू ज
ं ी क मा ा जैसे-जैसे घटती जाती है इसक सीमा त उ पादकता बढ़ती जाती है ।
अत: उ पादन क मा ा को ि थर रखने के लए म क एक इकाई के थान पर पू ज
ं ी क पहले
से कम इकाइय को घटाया जायेगा । दो साधन कस सीमा तक एक दूसरे के थानाप न ह ।
इसक जानकार त थापन क दर के घटने से चलती है । य द कोई दो साधन एक दूसरे के
पूण थानाप न ह तो उनको एक - दूसरे के थान पर सरलता से योग म लया जा सकता है,
इससे सीमा त त थापन क दर कम नह ं होगी ।

10.4 सम लागत रे खा (Iso-Cost Line)


सम-लागत रे खा उ पादन के साधन के उन व भ न संयोग को दशाती है जो एक फम
(उ पादक) एक नि चत लागत पर य कर सकती है । अथात ् सम लागत रे खा उदासीनता व
व लेषण क मू य रे खा (Price Line) के समान है । िजस कार मू य रे खा उपभो ता क आय
के तर पर दो व तु ओं के व भ न संयोग को बताती है । उसी कार सम रे खा उ पादन साधन
क क मत तथा उ पादक वारा साधन पर कये जाने वाले कु ल यय को दशाती है ।
समलागत रे खा क अवधारणा को हम न न उदाहरण वारा समझ सकते ह माना क
उ पादक उ पादक के दो साधन (पू ज
ं ी एवं म) पर 100 . यय करना चाहता है । य द एक
पू ज
ं ी क इकाई क क मत 5 . है और म क एक इकाई क क मत 4 . है । ऐसी ि थ त म
वह साधन के व भ न संयोग को ा त कर सकता है यह नयम ता लका म दशाया गया है-
ता लका सं. 10.3
उ पादन साधन के व भ न संयोग
मक पूजी कु ल लागत ( .)
4 . त इकाई 4 . त इकाई मक + पूजी
25 0 100+0=100
चु ंक 20 4 80+20=100
15 8 60+40=100
10 12 40+60=100
5 16 20+80=100
0 20 00+100=100
च सं. 10.4

(153)
उपरो त रे खा च म OX- अ पर म और OY अ पर पू ज
ं ी क इकाइय को दशाया
गया है । AB साधन क मत रे खा उसे समान लागत रे खा भी कहते ह जो 100 . क लागत से
म एवं पू ज
ं ी के व भ न संयोग को द शत करती है । इस रे खा पर A बंद ु यह बताता है क
द हु ई क मत पर उ पादक केवल 20 इकाई पू ज
ं ी का य कर सकता है म शू य होगा, J बंद ु
पर 16 इकाई पू ज
ं ी एवं 5 इकाई म का य कर सकता ह इसी कार K बंद ु पर 12 इकाई
पू ज
ं ी एवं 10 इकाई म, L बंद ु पर 8 इकाई पू ज
ं ी एवं 15 इकाई म, M बंद ु पर 4 इकाई पू ज
ं ी
एवं 20 इकाई म और B बंद ु पर केवल 25 इकाई का य कर सकता है पू ज
ं ी क इकाई शू य
होगी । केवल A और B को मलाने पर AB रे खा ा त होती ह, यह AB रे खा सम लागत रे खा
(Iso-Cost Line) कहलाती है । यह रे खा पू ज
ं ी और म के व भ न संयोग को बताती है जो
100 . से य कये जा सकते है । सक लागत रे खा को क मत रे खा (Price-Line), भी कह
सकते ह ।
साधन के उन व भ न इसे क मत रे खा भी कहते ह य क उ पादन के साधन क
क मत के आधार पर ह उ पादक इन साधन का य कर सकेगा । उ पादक के पास 100 .
कुल यय करने के लए थे तब वह अब अगर उ पादक के पास उ पादन के साधन य करने के
लए कु य यय म कमी भी सकती ह और वृ भी हो सकती ह । इस ि थ त म उ पादक
उ पादन के साधन के कन संयोग का चु नाव करे गा यह हम न न ता लका एवं च वारा
समझ सकते ह।
ता लका सं या 10.4
संयोग कु ल यय
80 . 200 . 300 .
A 20+0=80 50+00=200 75+00=300
B 15+4=80 35+12=200 50+20=300
C 10+8=80 20+24=200 25+40=300
D 5+12=80 5+36=200 5+56=300
E 00+16=80 00+40=200 00+60=300

(154)
उपरो त ता लका एवं च के अनुसार उ पादन क य शि त घट कर 80 . रह जाती
ह तो वह म क 20 इकाइयां और पू ज
ं ी क शू य इकाइयां खर दे गा ।

10.5 साधन का यू नतम लागत संयोग (Least-Cost Factor


Combination)
सम उ पाद व उ पादन क समान क मा ा को दशाता ह । और सम लागत व
साधन क क मत के अनुपात और उन पर कये जाने वाले कु ल यय को दशाता ह ।
कसी व तु क मा ा का उ पादन करने के लए उ पादक उ पादन के साधन के कस
संयोग का चयन करे गा यह समो पाद व क सहायता से समझाया जा सकता ह ।
येक उ पादक का उ े य कम से कम लागत पर अ धकतम लाभ ा त करना होता ह
इसके लए वह साधन के ऐसे संयोग का चु नाव करे गा िजनसे कम से कम लागत पर अ धकतम
उ पादन क मा ा ा त क जा सके । हम न न च वारा यह समझ सकते ह । माना क
उ पादक को 50 टन उ पादन क मा ा चा हये ।
च म OX - अ पर म इकाइयां एवं OY- अ पर पू ज
ं ी क इकाइयां दशायी गयी
ह।

रे खा च 10.6

(155)
च सं या 10.6 म दशाये गये IP व पर कसी भी ब दु पर 50 टन व तु का
उ पादन कया जा सकता ह । इसके लए उ पादक यूनतम लागत संयोग का चु नाव करे गा ।
च म सम लागत रे खाएं CD, EF,GH,IJ ह । इनम CD रे खा उ प त के साधन के सबसे कम
एवं IJ रे खा सबसे अ धक यय को दशाती है । समउ पाद व (IP) EF क मत रे खा को D बंद ु
पर पश करता ह । यह उ पादक का सा य ब दु ह । उ पादक IP व के J व K बंदओ
ु ं पर
भी उ पादन कर सकता है । ले कन इन पर उ पादन क क मत अ धक होगी इसी कार वह LM
कसी भी ब दु पर उ पादन कर सकता ह । ले कन इन ब दुओं पर भी क मत अ धक होगी,
य क JKLM उं चे समलागत व पर ि थत ह अत: 50 इकाइयां के लए अ धक लागत चुकानी
पड़ेगी । अत: 50 इकाइयां उ पा दत करने के लए Q बंद ु पर लागत यूनतम होने से सबसे
अ धक उपयु त ब दु ह ।
बोध न- 2
1. तकनीक त थापन क सीमांत दर को प रभा षत क िजए ।
सम लागत रे खा क या या क िजए ।
यूनतम लागत संयोग क ववेचना क िजए ।

10.6 समो पाद व क सहायता से उ पादक का संतु लन


(Producer’s Equilibrium with the help of Iso-Product
curves)
उ पादक कसी व तु क नि चत मा ा का उ पादन करने के लए समो पाद व क
सहायता से सा य क ि थ त के ब दु का पता चला सकता ह । अथात ् वह उ पादन क मा ा के
लए साधन के संयोग क जानकार ा त कर सकता ह ।

च 10.7 म समो पाद व क सहायता से उ पादक का संतु लन


च 10.7 म OX- अ पर म क इकाइयां एवं OY- अ पर पू ज
ं ी क इकाइयां
दशायी गयी ह। IP1 Ip2 एवं IP3 तीन समो पाद व ह । AB सम लागत व ह । AB व
IP2 के ब दु D पर पश करता ह, यह उ पादक का सा य ब दु ह । यहाँ पर वह OQ म
क इकाइयां और OP पू ज
ं ी क इकाइय का उपयोग करे गा । इस च से यह प ट होता ह क
उ पादक IP1 पर उ पादन नह ं करे गा य क इस व पर उसक उ पादन मता का पूण

(156)
उपयोग नह ं होता ह । IP3 व पर वह उ पादन करने क मता नह ं रखता य क यह व
उसक लागत रे खा से बाहर ह । अत: वह IP2 पर ह उ पादन करे गा ।
च म समउ पाद व के सभी ब दुओं पर उ पादन क समान मा ा ा त क सकती
ह । IP समो पाद व के सभी ब दुओं पर उ पादन क समान मा ा ा त क जा सकती ह ।
IP समो पाद व ह इसके येक ब दु पर उ पादन क समान मा ा ा त क जा सकती ह ।
समलागत रे खाएं उ पादक वारा उ प त के साधन पर कये जाने वाले कु ल यय को बताती ह
अथात ् यह रे खा यह बताती ह क उ पादक कु ल यय वारा उ प त के दोन साधन क कतनी-
कतनी मा ा का य करे गा ।
Q से अ धक होगी ।
Q संयोग इ टतम ह । उ पादन लागत यूनतम होती ह ।
िजस ब दु पर सम लागत व सम उ पाद व को पश करे गा, वह उ पादक का
सा य ब दु होगा । इस ब दु पर यूनतम लागत पर अ धकतम उ पादन ा त होगा ।
AB समलागत व ह । IP1,IP2,IP3, तीन सम उ पाद व ह । AB व IP2 को E
बंद ु पर पश करता ह । यह उ पादक का सा य ब दु ह । इस ब दु पर X साधन क OM
तथा Y साधन क ON मा ा का योग करे गा । IP1,पर उ पादन मता का पूण उपयोग नह ं
कर पायेगा । IP3 उसक लागत रे खा से बाहर ह अत: इस पर वह उ पादन नह ं कर सकता ।

10.7 पैमाने के तफल (Returns to Scale)


इकाई 9 म हमने यह समझा ह क अ प काल म एक साधन को ि थर रखकर दूसरे
साधन क मा ा म वृ करने के उ प त पर या भाव पड़ता ह । द धकाल म उ पादक के पास
इतना समय होता ह क वह सभी साधन मे प रवतन कर सकता ह । उ पादन के सभी साधन
म समान अनुपात से प रवतन करने से उ पादन पर जो भाव पड़ता ह वह हम पैमाने के
तफल म दे खते ह ।
पैमाने के तफल का अथ- द धकाल म उ पादन के सभी साधन क मा ाओं म समान
अनुपात म एक साथ प रवतन करने पर उ पादन पर पड़ने वाले भाव को दे खा जाता ह इसक
तीन अव थाएं होती -
1. उ पादन के सभी साधन क मा ा म 20 तशत वृ करने पर कु ल उ पादन क मा ा म
25 तशत से अ धक वृ होती ह तो इसे वधमान तफल कहते ह ।
2. उ पादन के सभी साधन म 25 तशत वृ करने पर कुल उ पादन क मा ा म भी 25
तशत वृ हो, इसे पैमाने के समान तफल कहते ह ।
3. उ पादन के सभी साधन म 25 तशत वृ करने पर कु ल उ पादन क मा ा म 25
तशत से कम वृ होती ह तो इस ासमान तफल कहते ह ।
पैमाने के तफल नयम न न मा यताओं पर आधा रत ह ।
1. ये द घकाल से संबं धत होते ह ।
2. सभी साधन म प रवतन समान अनुपात म कया जाता ह अथात म एवं पू ज
ं ी क समान
इकाइयां योग म ल जाती ह । ार म म 1 म + 1 इकाई पू ज
ं ी बाद म 3 इकाई म+ 3
इकाई पू ज
ं ी, 5 इकाई म + 5 इकाई पू ज
ं ी के प म लया जाता ह ।

(157)
3. यह माना जाता ह क एक फम के लए साधन क क मत ि थर होती ह ।

10.7.1 पैमाने के बढ़ते हु ए तफल (Increasing Returns to Scale)

उ पादन के साधन क मा ा म वृ िजस अनुपात म क जाती ह उ पादन म वृ


उससे अ धक अनुपात म होती ह तो इसे पैमाने के बढ़ते हु ए तफल कहा जाता ह । उ पादन के
सभी साधन म वृ समान प से 25 तशत क जाती ह और उ पादन म वृ 35 तशत
होती ह, इसे पैमाने के बढ़ते हु ए तफल क दशा कहा जाता ह । इसे न न च वारा
समझाया जा सकता ह ।

रे खा च 10.8
उपरो त च सं या 10.8 म OX अ पर म क मा ा तथा OY अ पर पू ज
ं ी क
मा ा को दशाया गया ह । IP1, IP2,IP3,IP4.,IP5, समउ पाद रे खाएं है जो उ पादन क समान
मा ाओं को द शत करती ह । इस च से हम यह समझ सकते ह क म एवं पू ज
ं ी मा ा क
तु लना म उ पादन क मा ा अ धक ा त हो रह ह । इस च से यह प ट हो रहा ह क
उ पादन क इस मा ा को ा त करने के लए पू ज
ं ी एवं म क मा ा म क जाने वाल वृ
लगातार घटती जा रह ह । और उ पादन क मा ा म वृ होती जा रह ह इस अव था को
पैमाने के बढ़ते हु ए तफल कहते ह ।
पैमाने के बढ़ते हु ए तफल ा त होने के न न ल खत कारण ह-
1. उ पादक के पास पया त समय होने के कारण वह सभी साधन म प रवतन
करता ह । इससे पूज
ं ीगत संप त के आकार म वृ होने के कारण इससे ा त उ पादन लागत से
अ धक अनुपात ा त होता ह य क त इकाई लागत घट जाती ह ।
2. बड़े पैमाने के उ योग म तकनीक उ च तर क होती ह, म- वभाजन कया
जा सकता ह । बड़ी मशीन का उपयोग होता ह एवं व श ट करण के कारण उ पादन लागत म
कमी होती ह ।
3. उ पादन बड़े पैमाने पर होने के कारण ब
ं धन यव था म वशेष को
सि म लत करके इसे नई तर पर वभािजत करके यो य यि तय को उनक यो यतानुसार
काय दे ने से मक काय मता बढ़ जाती ह । इससे उ पादन लागत कम हो जाती ह ।
4. उ पादक सं था का आकार बड़ा होने के कारण कम याज पर अ धक मा ा म
पू ज
ं ी एवं अ य कार क साख सु वधाएं भी ा त हो जाती है ।

(158)
5. वके करण के लाभ, सू चना के लाभ, क चे माल संबध
ं ी लाभ, आ द बाहय
मत ययता भी ा त होती ह ।

10.7.2 पैमाने का समता तफल (Constant Returns to scale)

उ पादन के सभी साधन क मा ा म िजस अनुपात म वृ क जाती ह उ पादन म भी


उसी अनुपात म वृ होती ह तो इसे पैमाने का समता तफल कहा जाता ह य द उ पादन के
साधन म 25 तशत वृ क जाती ह और उ पादन म भी 25 तशत वृ ा त होती ह तो
इसे समता तफल कहा जाता ह । इसे न न च सं या 10 वारा समझाया जा सकता ह ।
रे खा च 10.8

च सं या 10 OX अ पर म क मा ा तथा OY अ पर पू ज
ं ी क मा ा को दशाया
गया ह।IP1, IP2, IP3, IP4, IP5, समउ पाद रे खाएं ह जो उ पादन क समान मा ाओं को
द शत करती ह । इन रे खाओं से यह प ट हो रहा ह क उ पादन क मा ा एक समान ह और
इस च से यह प ट हो रहा ह क पू ज
ं ी एवं म क मा ा म क जाने वाल वृ भी उसी
अनुपात म ह, िजस अनुपात म उ पादन क मा ा ा त हो रह ह इसी ि थ त को पैमाने के
समता तफल कहा जाता ह ।

10.7.3 पैमाने के ासमान तफल (Decreasing Returns to Scale)

यह अव था तब होती ह जब उ पादन के सभी साधन म एक समान अनुपात म वृ


क जाती ह ले कन उ पादन क मा ा म वृ इनक तुलना म कम अनुपात म होती ह ।
उदाहरण के लए उ पादन के सभी साधन म वृ 25 तशत क जाती ह और उ पादन म वृ
20 तशत ा त होती ह इस ि थ त को पैमाने के ासमान तफल कहा जाता ह । इसे च
10 से दशाया जा सकता ह ।

(159)
उपरो त च म X अ पर म (L) तथा? अ पर पू ज
ं ी (C) क मा ा को दशाया
गया ह । IP1, IP2, IP3, IP4, IP5, IP6, समउ पाद रे खाएं ह । ये रे खाएं उ पादन क एक
समान मा ा को य त करती है । इस च से यह प ट प से समझ म आ रहा है क
उ पादन इस मा ा को ा त करने के लए पू ज
ं ी और म क मा ा म क जाने वाल वृ
लगातार बढ़ती जा रह ह इससे यह प ट हो रहा है क पू ज
ं ी एवं म क मा ा म क जान
वाल वृ क तु लना म उ पादन क मा ा म होने वाल वृ कम हो रह ह । यह पैमाने का
ासमान तफल कहलाता है ।
उपरो त तीन अव थाओं को हम न न उदाहरण वारा आसानी से समझ सकते ह ।
ता लका 10.5 म तीन अव थाओं के बारे म समझाया गया है ।
ता लका सं या 10.5
. स. पैमाना कु ल उ पादन सीमांत उ पादन
1 1 मक + 2 है टयर भू म 15 ि वंटल 15 ि वंटल
2 2 मक + 4 है टयर भू म 35 ि वंटल 20 ि वंटल
3 3 मक +6 है टयर भू म 60 ि वंटल 25 ि वंटल
4 4 मक +8 है टयर भू म 90 ि वंटल 30 ि वंटल
5 5 मक + 10 है टयर भू म 110 ि वंटल 30 ि वंटल
6 6 मक + 12 है टयर भू म 140 ि वंटल 30 ि वंटल

7 7 मक + 14 है टयर भू म 160 ि वंटल 15 ि वंटल


8 8 मक +16 है टयर भू म 175 ि वंटल 20 ि वंटल
9 9 मक +18 है टयर भू म 205 ि वंटल 15 ि वंटल
उ प त के सभी साधन क मा ा म समान अनुपात म वृ करने पर उ पादन क मा ा
म जो प रवतन होता है उसके बारे म हमने अ ययन कया है क इसम दे खा ह क उ प त म
साधन क मा ा म वृ करते है तो ारि भक अव था म उ पादन क मा ा म वृ से अ धक
ा त होती है । साधन को दुगन
ु ा करने पर कु ल उ पादन बढ़कर दुगन
ु े से भी अ धक हो जाता ह
। उ पादन के साधन को तीन गुणा कर दे ने से तीन गुणे से भी अ धक 60 ि व. हो जाता ह ।
चार गुणा करने पर कु ल उ पादन 90 ि वं. हो जाता है इस कार हम दे खते है क कु ल उ पादन
म लगातार वृ होती रहती है । साधन क मा ा के चौथे पैमाने तक सीमांत उ पादन लगातार
बढ़ता रहता ह । इसके प चात इसम गरावट आना आर भ होता ह । लगातार गरता हु आ 9 व
पैमाने तक 10 ि व. तक आ जाता ह ।
इस कार हमने अ ययन कया ह क पैमाने के तफल म 'उ पादन साधन क मा ा
म जैसे- जैसे वृ क जाती है ार भ म वृ शील तफल ा त होता है । एक तर के प चात
तफल ि थरता आ जाती है और उसके बाद तफल म गरावट ार म हो जाती है । इसके
लए कई कारण िज मेदार है ले कन मु यत: बड़े पैमाने के उ पादन म ब धन, सम वय तथा
नयं ण संबध
ं ी क ठनाईय के उ प न हो जाने के कारण कु शलतापूवक उ पादन संचालन नह ं हो
पाता ह

(160)
10.8 सारांश
उ प त के साधन क मा ाओं म प रवतन करके इनके व भ न संयोग के उ पादन क
मा ा म वृ क जा सकती है । दो साधन के व भ न संयोगो से उ पादन क मा ा ा त करना
चाहता ह । इसका अ ययन साधन के यूनतम लागत संयोग के वारा कया जा सकता है ।
ल बी समया व ध म उ पादन के पास इतना समय होता ह क वह उ प त म सभी साधन म
प रवतन कर सकता ह । उ प त के साधन म समान अनुपात म प रवतन करने से उ पादन पर
जो भाव पड़ता है । इसका अ ययन हम पैमाने के तफल के अ तगत करते है । उ पादन के
सभी साधन के समान अनुपात म प रवतन करने से ार भ म वृ शील उ पादन क मा ा होती
है । इसके प चात ि थर तफल एवं अ त म ासमान तफल ा त होती है ।

10.9 संदभ ंथ
Ahuja, H.L Advance Economic Theory
सै युअलसन, पीए. :- अथशा , कैपीटल बुक हाउस, 26 यू.बी. जवाहर नगर, द ल
सेठ,एम.एल. :- अथशा के स ा त

10.10 अ यासाथ न
1. समो पाद व क सहायता से उ पादन के संतल
ु न क ववेचना क िजए ।
2. पैमाने के तफल का अथ एवं मा यताए बताइए ।
3. वृ शील पैमाने के तफल क या या क िजए ।
4. ासमान पैमाने के तफल क ववेचना क िजए ।

(161)
इकाई – 11
लागत व एवं आगम व

11.0 उ े य
11.1 तावना
11.2 लागत क अवधारणाएँ
11.2.1 मौ क लागत, वा त वक लागत एवं अवसर लागत एवं अवसर लागत
11.2.2 नजी लागत एवं सामािजक लागत
11.2.3 लेखा लागत एवं आ थक लागत
11.2.4 कुल लागत, ि थर लागत एवं प रवतनशील लागत
11.2.5 कुल लागत, औसत लागत एवं सीमा त लागत
11.3 लागत व
11.3.1 अ पकाल न लागत व -कुल, औसत एवं सीमा त लागत व
11.3.2 औसत लागत एवं सीमा त लागत व क कु ल लागत व से यु प त
11.3.3 अ पकाल न औसत लागत एवं सीमा त लागत व म संबध

11.3.4 द घकाल न लागत व -कुल लागत व औसत लागत व एवं सीमा त लागत

11.4 आगम क अवधारणा एवं आगम व
11.4.1 पूण तयो गता क दशा म औसत आगम व , सीमा त आगम व तथा
कु ल आगम व
11.4.2 अपूण तयो गता क दशा म कु ल आगम व , औसत आगम व तथा
सीमांत आगम व
11.5 सारांश
11.6 श दावल
11.7 अ यासाथ न
11.8 संदभ थ

11.0 उ े य
इस इकाई के अ ययन के प चात आप :
 वभ न कार क लागत के बीच अंतर कर सकगे ।
 लागत क अवधारणाओं को व के मा यम से द शत कर सकगे ।
 वभ न कार क लागत के बीच संबध
ं था पत कर सकगे ।
 द घकाल न एवं अ पकाल न लागत म अंतर कर सकेग एवं उनके बीच संबध
ं को दशा सकगे।

(162)
 आगम क व भ न अवधारणाएँ, उनके बीच संबध
ं तथा इन संबध
ं ो को व वारा दशा
सकगे।

11.1 तावना
आधु नक क मत स ा त म फम एवं उ योग के स तुलन का मह वपूण थान है
य क व तु क पू त एवं क मत उनके स तु लन वारा नि चत होती है । फम के स तु लन क
या या करते समय अथशा ी यह मह वपूण मा यता लेते ह क फम का मु य उ े य अपने
लाभ को अ धकतम करना ह, अतएव फम उस समय स तुलन म होगी जब वह अ धकतम लाभ
अिजत कर रह होगी । फम का लाभ, उसक लागत एवं आय पर नभर करता है । यह जानने
के लये क फम स तु लनाव था है, हम यह जानना होगा क - (1) उपज क व भ न मा ाओं
को बेच कर फम को कतना आगम ा त हो रहा है तथा (2) उपज क इन व भ न मा ाओं का
उ पादन कस लागत पर हो रहा है । एक फम का लाभ अ धकतम तब होगा जब क फम क
कु ल आय कु ल लागत म अ तर अ धक से अ धक हो । अत: फम के स तु लन ात करने के
लए हम उसक आय व लागत क या या करना आव यक है । लागत एवं आगम, क मत
स ा त के दो मह वपूण सै ाि तक उपकरण है । इस अ याय म इ ह दो उपकरणो के बारे म
व तार से चचा क जायेगी ।

11.2 लागत क अवधारणाएँ


अथशा म 'लागत श द को कई अथ म योग कया जाता है । लागत के
न न ल खत वग करण कये जा सकते ह -
(i) मौ क लागत, वा त वक लागत तथा अवसर लागत
(ii) नजी लागत एवं सामािजक लागत
(iii) लेखा लागत तथा आ थक लागत
(iv) ि थर लागत एवं प रवत या प रवतनशील लागत
(v) कु ल लागत, औसत लागत एवं सीमांत लागत

11.2.1 मौ क लागत. वा त वक लागत तथा अवसर लागत

मौ क लागत -एक उ पादक कसी व तु का उ पादन करने हे तु उ प त के वभ न


साधन के योग के लये जो धन यय करता है, वह उसक मौ क लागत कहलाती है । मौ क
लागत म ाय: तीन मद सि म लत क जाती ह
(i) प ट या व हत लागत (Explicit costs) - प ट लागत उ ह कहते ह जो एक उ पादक को
व भ न साधन को खर दने के लए यय करनी पड़ती ह । उदाहरणाथ, मक एवं
ब धक य टाँफ को दये जाने वाल मजदूर एवं वेतन, क चे, माल क खर द पर कया
गया भु गतान, मशीनर एवं उपकरण, बजल , पानी, प रवहन, व ापन इ या द मद पर
कया गया यय-ये सब मलकर उ पादन क मौ क लागत कहलाते ह । सं ेप म, प ट
लागते उ पि त के बाहर साधन अथात खर दे गए साधन को कया गया मौ क भु गतान है।
(ii) अ य त या न हत लागत (Implicit cost) - ाय: एक उ पादनक ता उ पादन काय म कु छ
ऐसे साधन को भी यु त करता ह िजनके लए य प से कोई क मत नह ं चु कता

(163)
य क उन साधन का वह वयं मा लक होता ह, पर तु उन साधन क क मत को मौ क
लागत म शा मल करना ज र होता ह । उदाहरण के लए, साहसी वयं ब धक के प म
काय करता है पर तु अपने आपको कोई वेतन नह ं दे ता, वयं क पूँजी यवसाय म लगाता
है पर तु याज नह ं लेता या वंय के भवन का उपयोग यवसाय म करता है पर तु कराया
नह ं लेता । अत: प ट है क साहसी के वयं के साधनो क क मत अ य त लागत
कहलाती ह िजनके लये कोई भु गतान नह ं कया जाता ले कन उनको मौ क लागत म
अव य जोड़ा जाता है ।
(iii) सामा य लाभ - सामा य लाभ, लाभ क उस यूनतम मा ा को कहते ह जो एक उ पादक
को उस उ योग मे बने रहने के लये अव य ह मलना चा हये अ यथा वह उ पादक काय
ब द कर दे गा । दूसरे श द म, सामा य लाभ साहसी को उ योग म बनाये रखने क लागत
है और इस लए मौ क लागत का आव यक अंग है ।
मौ क लागत = प ट लागत + अ य त लागत + सामा य लाभ
वा त वक लागत - यह लागत क मनोवै ा नक धारणा है । वा त वक लागत म वे
सब यास, क ट तथा याग सि म लत होते ह जो कसी व तु को उ पा दत करते समय उठाने
पड़ते ह । इस ि ट से वा त वक लागत कसी व तु को उ पा दत करने क सामािजक लागत
कह जा सकती है । ो. माशल के अनुसार , कसी व तु के नमाण म य अथवा पर प
से लगने वाले सभी कार के यास, और उसम लगायी गयी पूँजी क बचत के लये कया
गया याग, संयम अथवा ती ा, इन सभी कार के यास या याग को मलाकर उस व तु
क वा त वक लागत क गणना क जा सकती है । वा त वक लागत क धारणा क मत
व लेषण के लए अनुपयोगी है य क क ट, याग, ती ा ये सभी मनोवै ा नक एवं
आ म न ठ ह िजनक सह गणना नह ं क जा सकती ।
अवसर लागत - आधु नक अथशाि य ने वा त वक लागत के थान पर अवसर लागत
क धारणा तु त क िजसे वैकि पक लागत या ह ता तरण आय भी कहते ह । अवसर लागत
क धारणा इस त य पर आधा रत है क उ पादन के साधन सी मत ह तथा उनके कई वैकि पक
योग है । जब कसी एक साधन को उ पादन क कसी या वशेष म यु त कया जाता है
तो वह साधन कसी अ य उ पादन म यु त होने का अवसर खो दे ता है । अत: कसी व तु क
अवसर लागत, उस व तु को उ पा दत करने के लए कसी अ य सव तम वैकि पक व तु का
प र याग है । उदाहरण के लये, जो साधन यु साम ी का उ पादन करने म यु त कये जाते
ह इनसे कार अथवा अ य कार के वाहन का उ पादन भी कया जा सकता है । इस लये यु
साम ी के उ पादन क अवसर लागत प र याग क गई कार अथवा अ य वाहन का उ पादन है।
इसी कार एक कसान अपने साधन से गेहू ँ या बाजरे का उ पादन कर सकता है । य द कसान
गेहू ँ उ पादन का नणय करता है गेहू ँ उ पादन क अवसर लागत बाजरे के उ पादन क वह मा ा
होगी जो कसान उ ह ं साधन का योग कर उ पा दत कर सकता था । अवसर लागत क
धारणा को साधन लागत के प म भी प ट कया जा सकता है । कसी साधन क अवसर
लागत वह क मत है जो उस साधन को उसी उ योग म बनाये रखने के लये आव यक होती है ।
ो. बे हम के अनुसार ''मु ा क वह मा ा जो एक साधन इकाई कसी दूस रे सव े ठ वैकि पक

(164)
योग म ा त कर सकती है, उसे उसक ह ता तरण आय कहते ह । '' ीमती जोन रा ब सन
के अनुसार ''वह क मत जो एक साधन क द हु ई इकाई को उपयोग म बनाये रखने के लये
आव यक होती है ह, उसक ह ता तरण क मत कहलाती ह । ''
अवसर लागत के लए यह प ट करना उ चत होगा क ये मौ क लागत होती है
िजससे प ट लागत व अ य त लागत दोन ह शा मल होती है ।

11.2.2 नजी लागत एवं सामािजक लागत

नजी एवं सामािजक लागत क धारणा सव थम पीगू वारा तु त क गई । नजी


लागत एक फम वारा एक व तु या सेवा के उ पादन पर कया गया खच है । इसम प ट तथा
अ य त दोन कार क लागत शा मल होती है । नजी लागत वह लागत है िजनका
उ पादनक ता उ पा दत क जाने वाल व तु के उ पादन तथा क मत से संबं धत नणय करते
समय यान रखता है ।
नजी लागत के अ त र त एक फम वारा व तु का उ पादन अ य लोग को ऐसे लाभ
या हा नयाँ पहु ँ चाता है िजनक फम वारा उपे ा क जाती है पर तु वे सामािजक ि टकोण से
मह वपूण होती ह । उदाहरणाथ, क टनाशक दवाओं, ट ल, रबड़ जैसी व तु ओं का उ पादन
वातावरण को दू षत करता है । अत: सामािजक लागत, नजी लागत तथा उनके वारा अ य
पर कये गये वशु आ थक नुकसान तथा द त लाभ का योगफल होती ह ।

11.2.3 लेखा लागत एवं आ थक लागत

जब कोई साहसी या उधमी कोई उ पादन काय करता ह तो उसे उन साधन क क मत


का भु गतान करना पड़ता है िज ह वह उ पादन के लए यु त करता है । जैसे नयोिजत
मजदूर , को मजदूर उपयोग कये गये क चे माल, ईधन तथा ऊजा क क मत, भवन का
कराया, उधार ल गई पूँजी पर याज का भु गतान आ द ऐसे भु गतान है िजनका हसाब लेखाकार
वारा लेखा पु तक म कया जाता है । ये प ट लागत होती है । अत: लेखा लागत वह लागत
होती है िजनका फम के साहसी वारा अ य लोग को भु गतान कया जाता है एवं िज हे लेखा
पु तक म दशाया जाता है । एक अथशा ी के लये लागत का वचार लेखाकार से अलग होता
है । अथशा ी लागत के अ तगत लेखा लागत के साथ-साथ उन मौ क मू य को भी शा मल
करता है जो क साहसी तब अिजत कर सकता ह जब क वह अपनी मौ क पूँजी व नयोिजत
कये होता है । तथा अपनी सेवाओं तथा अ य साधन को अ य सव तम वैकि पक उपयोग म
बेच दया होता । अथात
आ थक लागत = लेखा लागत + अ प ट या न हत लागत

11.2.4 कुल लागत ि थर लागत तथा प रवतनशील लागत

कु ल लागत-फम के वारा उ पादन क एक नि चत मा ा को पैदा करने के लये िजतना


यय करना पड़ता है, वह कु ल लागत कहलाती है । कु ल लागत उ पादन क मा ा बढ़ने के साथ
बढ़ती जाती है । कु ल लागत म सामा यतया दो कार क लागते सि म लत क जाती ह - (अ)
ि थर लागत (Fixed costs) तथा (ब) प रवतनशील लागत (Variable costs) ।

(165)
ि थर लागत वे होती ह जो एक फम को उ पादन के ि थर साधन के योग करने पर
यय करनी पड़ती है । ि थर लागत का उ पादन क मा ा से कोई संबध
ं नह ं होता य क
उ पादन न करने क ि थ त म भी इस कार क लागत को एक फम के लये वहन करना
ज र होता है । उदाहरणाथ भवन का कराया, पूँजी पर याज, थायी कमचा रय का वेतन,
मशीन का मू यहास इ या द ऐसे यय ह िजनका उ पादन क मा अथवा उ पादन जार रहने न
रहने से कोई संबध
ं नह ं है । दूसरे श द म अ पकाल मे 'उ पादन के कु छ साधन ऐसे होते ह
िजनक पू त ि थर रहती ह । य द नयोजक चाहे तब भी वह इनक मा ाओं मे प रवतन नह ं
कर सकता । इस कार के साधन पर आने वाल लागत को ि थर लागत कहते ह । इ ह उप र
लागत (overhead costs) अथवा पूरक लागत भी कहते ह य क इनका उ पादन क मा ा के
साथ इनका य संबध
ं नह ं होता ।
ि थर लागत के वपर त प रवत या प रवतनशील लागत वे लागत होती ह जो उ पादन
के उन साधन से संबं धत होती ह िजनक पू त अ पकाल म प रवतनशील होती है तथा िजसम
उ पादन क मा ा के साथ-साथ प रवतन होता है । सरल श द म, ये लागत उ पादन क मा ा
के बढ़ने पर बढ़ती ह, उ पादन के घटने पर घटती ह और उ पादन के शु य होने पर ये लागत
भी शू य हो जाती है । उदाहराणाथ, क चे माल का मू य, ईधन यय, बजल यय, प रवहन
यय, मजदूर इ या द प रवतनशील लागत के घटक ह । इन लागत को य लागत भी कहते
ह य क इनका उ पादन क मा ा के साथ य संबध
ं होता है ।
यहां यह उ लेखनीय है क लागतो के ि थर एवं प रवतनशील लागत म वग करण करने
म समय त व मह वपूण ह । आ थक व लेषण म समय त व दो प मे शामील होता ह -
अ पकाल एवं द घकाल । अ पकाल वह समयाव ध है िजसके भीतर उ पादन के सभी साधन म
प रवतन करना संभव नह ं होता अथात कु छ साधन ि थर होते है व कु छ प रवतनशील ।
अ पकाल म प रवतनशील साधन क मा ा म ह बदलाव स भव है । जैसे अ धक क चे माल
एवं मजदूर क सं या बढ़ाकर उ पादन म वृ करना । अ पकाल म इतना समय नह होता क
उ पादनक ता उ पादन के पैमाने म प रवतन (अथात पू ज
ं ीगत सामान एवं मशीनर क या ा) कर
उ पादन क मा ा म प रवतन कर सके । इसके वपर त द घकाल म इतना पया त समय होता है
क उ पि त के सभी साधन म प रवतन कया जा सके । इसम कोई भी साधन ि थर नह ं होता।
उ पादन के पैमाने को आव यकता अनुसार घटाया बढ़ाया जा सकता है । समय त व के इस
आधार पर लागत को अ पकाल न लागत को अ पकाल न लागत व द घकाल न लागत म
वभािजत कया जा सकता है ।
कु ल लागत = ि थर लागत + प रवतनशील लागत

11.2.5 कुल लागत, औसत लागत एवं सीमांत लागत

जैसा क उपर प ट कया जा चु का ह क कु ल लागत से हमारा आ य उ पादन क कु ल


मा ा पर कये गये स पूण यय से ह ।
औसत लागत (Average cost) उ पादन क त इकाई लागत को कहते ह और कु ल
लागत को उ पा दत इकाइयो वारा भाग दे ने से औसत लागत ा त होती है । सू प म
कुल लागत ( )
औसत लागत =
कुल उ पादन क मा ा ( )

(166)
सीमा त लागत- कसी फम के उ पादन क सीमा त इकाई को उ प न करने क लागत
सीमा त लागत कहलाती है । दूसरे श द म, सीमा त लागत उ पादन क एक अ त र त इकाई
उ पा दत करने से कु ल लागत म होने वाल वृ है । सू प म सीमा त लागत उ प त क n
इकाइय क कु ल लागत तथा n-1 इकाइय क लागत का अ तर ह -
MC=Tcn – Tcn-1
यहाँ MC - सीमा त लागत TCn = n इकाइयो क कु ल लागत Tcn-1 = n- 1 इकाइय
क कु ल लागत है । यहाँ यह उ लेखनीय है क सीमा त लागत, ि थर लागत से न तो संबं धत
होती है और न ह उस पर नभर करती ह य क ि थर लागत उ पादन क मा ा के बदलने के
साथ नह ं बदलती है । चू ं क अ पकाल म उ पादन क मा ा म प रवतन करने पर केवल
प रवतनशील लागत ह बदलती ह इस लए सीमा त लागत क उ पि त केवल प रवतनशील
लागत म प रवतन होने के कारण होती ह ।
अभी तक हमने लागत से संबं धत व भ न अवधारणाओं को सै ाि तक ववेचन वारा
प ट करने का यास कया है । लागत क इन व भ न अवधारणाओं म से क मत व लेषण
हे तु कु ल लागत, ि थर लागत, प रवतनशील लागत, औसत लागत एवं सीमा त लागत क
अवधारणाएँ मह वपूण है । आगे के ख ड म हम इन मह वपूण अवधारणाओं को उनके व वारा
द शत करग तथा व के आकार क या या करगे ।
बोध न - ।
(i) अवसर लागत के बारे म बताइए
(ii) नजी लागत क या या क िजए
(iii) प रवतनशील लागत के बारे म समझाइए

11.3 लागत व
जैसा क ऊपर प ट कया जा चु का ह, लागत के व लेषण म समय त व मह वपूण
भू मका नभाता है । समय के आधार पर लागत को हमने अ पकाल न लागत व द घकाल न
लागत म बाँटा ह । अ पकाल म चू ं क कु छ साधन को ि थर रखते हु ए प रवतनशील साधन क
मा ा म प रवतन कर उ पादन मा ा म बदलाव लाया जाता है अत: अ पकाल न लागत का ि थर
एवं प रवतनशील लागत म भेद करते है । अत: अ पकाल न लागत व के अ तगत हम कु ल
लागत व , औसत लागत व , सीमा त लागत व , औसत ि थर लागत व तथा औसत
प रवतनशील लागत व का अ ययन करगे । द घकाल म चू ं क सभी साधन क मा ा मे
प रवतन कर उ पादन म बदलाव लाया जा सकता है अत: यहाँ पर केवल कु ल लागत व . औसत
लागत व व सीमा त लागत व - तीन ह व ह गे िजनका हम अ ययन करगे ।

11.3.1 अ पकाल न लागत व -

अ पकाल म कु ल लागत, ि थर लागत व कु ल प रवतनशील लागत का योग होती है ।


इन लागत को न न ल खत रे खा च वारा दशाया जा सकता है -

(167)
रे खा च 11.1
उपयु त रे खा च 1 म X- अ पर उ पादन क मा ा तथा Y - अ पर लागत को
लया गया है । कु ल ि थर लागत व X -अ के समाना तर सीधी रे खा है य क ि थर लागत
म उ पादन क मा ा के साथ कोई बदलाव नह ं होता । कु ल ि थर लागत व Y अ के एक
ब दु P से ार म होता है िजसका ता पय यह है क उ पादन शू य होने पर भी OP के बराबर
ि थर लागत उठानी पड़ती है । कु ल प रवतनशील लागत व मू ल ब दु से ार भ होकर ऊपर
क और चढ़ता हु आ है जो बताता है क जब उ पादन शू य है तो कु ल प रवतनशील लागत भी
शू य है । फर जैसे-जैसे उ पादन म वृ होती है प रवतनशील लागत भी बढ़ती है ।
प रवतनशील लागत व ार भ म X - अ के त नतोदर (Concave) है एवं एक ब दु के
बाद उ नतोदर (Convex) हो जाता है । प रवतनशील लागत व क आकृ त को प रवतनशील
अनुपात के नयम के संदभ म समझा जा सकता है । इस नयम के अनुसार, ार भ म ि थर
साधन के साथ प रवतनशील साधन क मा ा म येक वृ से उ पादन म बढ़ती हु ई दर से
वृ होती है । इस ि थ त मे प रवतनशील लागत घटती दर से बढ़ती है । एक ब दु के बाद
ि थर साधन के अनुपात म प रवतनशील साधनो के अ धक योग से उ पादन घटती हु ई दर से
बढ़ता है । अतएवं प रवतनशील लागत बढ़ती हु ई दर से बढ़ती है ।
कु ल लागत व क आकृ त भी कु ल प रवतनशील लागत व के समान ह होती है
पर तु यह ि थर लागत के तर से ार भ होता है । कु ल लागत व को कु ल ि थर लागत व
म कु ल प रवतनशील लागत को जोड़कर ा त कया जा सकता है । रे खा च से प ट है क
कु ल प रवतनशील लागत व तथा कु ल लागत व के बीच का अ तर उ पादन के सभी तर
पर समान है य क ये अ तर ि थर लागत को दशा रहा है जो क अ पकाल म उ पादन बढ़ने
पर ि थर रहती है । इस लये इन दो व ो म दूर बलकुल समान रहती है ।
औसत ि थर लागत व औसत प रवतनशील लागत व औसत कु ल लागत व तथा सीमा त
लागत व
फम के अ पकाल न व लेषण म कु ल लागत क तुलना म औसत लागत अ धक
मह वपूण होती है । फम वारा उ पा दत व तु क सभी इकाइय समान लागत पर उ पा दत नह ं
होती पर तु उ ह समान क मत पर बेचना पड़ता है । इस लए फम को त इकाई लागत या
औसत लागत जानना ज र ह । औसत ि थर लागत औसत प रवतनशील लागत तथा औसत

(168)
कु ल लागत क अवधारणाओं का ववेचन कया जा चु का ह । अब हम व के मा यम से
दशायेग।

रे खा च 11. 2
औसत एवं सीमांत लागत व
रे खा च 11 .2 औसत ि थर लागत, औसत प रवतनशील लागत, कु ल लागत तथा
सीमा त लागत व को एक साथ दशाया गया है । औसत ि थर लागत व (AFC) को च म
गए से दशाया गया है । यह बायी और नीचे गरता हु आ व है जो यह दशा रहा है क उ पादन
बढ़ने के साथ-साथ औसत ि थर लागत घटती जा रह ह । इसका कारण यह है क जैसे-जैसे
उ पादन बढ़ता है तो कु ल ि थर लागत व तु क अ धक इकाईय पर फैलती अथवा वत रत होती
ह इस लए ये लगातार घटती जाती है । जब उ पादन बहु त अ धक हो जाता है तो औसत ि थत
लागत के शू य होने क वृि त होगी अथात औसत ि थर लागत व के X -अ के नकट
पहु ँ चने क वृि त होगी पर तु उसको पश या काटे गा नह ं य क औसत ि थर लागत शू य
नह ं होगी । औसत ि थर लागत व पर ि थत येक ब दु वारा य त औसत ि थर लागत
व उ पादन क मा ा का गुणनफल समान होगा य क ये गुणनफल कु ल ि थर लागत को दशा
रहा है जो उ पादन क येक मा ा पर ि थर है । औसत ि थर लागत को दशा रहा है जो
उ पादन क येक मा ा पर ि थर है । औसत ि थर लागत व क इस आकृ त को आयताकार
अ तपरवलय (Rectangular hyperbola) कहते ह । औसत प रवतनशील लागत व (AVC) -
औसत प रवतनशील लागत, कु ल प रवतनशील लागत को व तु क कु ल उ पादन मा ा से भाग
दे ने पर ा त होती है ।
कु ल प रवतनशील लागत
औसत प रवतनशील लागत =
उ पादन क मा ा
TVC
AVC 
Q
औसत प रवतनशील लागत व का आकार अं ेजी अ र U जैसा है जो यह दशाता है
क ार भ म औसत प रवतनशील लागत सामा यतया घटती है य क फम को उ पादन के
बढ़ते तफल ा त होता ह ले कन यूनतम पर पहु ँ चने के बाद ासमान तफल के कारण ये
तेजी से बढ़ती जाती है । औसत प रवतनशील लागत व क आकृ त को प रवतनशील साधन क
उ पादकता म प रवतन के आधार पर समझा जा सकता है माना क कसी व तु के उ पादन म

(169)
म प रवतनशील साधन ह । व तु क उ पादन मा ा को Q से म क मा ा को L से व म
क त इकाई क मत को W से य त कर तो –
TVC L.W
AVC  
Q Q
तथा कु ल उ पादन Q = AP.L AP म क औसत उ पादकता
LW .
अत: AVC 
AP.L
W  1 
  
AP  AP 
अत: प ट है क प रवतनशील साधन म क तइकाई क मत (W) के ि थर रहने पर
औसत प रवतनशील लागत का म क औसत उ पादकता के साथ पर पर वलोम संबध
ं है ।
इस लए जब औसत उ पादकता आर भ म प रवतनशील साधन क इकाइयाँ बढ़ाने पर बढ़ती है
तो औसत प रवतनशील लागत अव य ह घटे गी और कु छ सीमा के बाद प रवतनशील साधन क
औसत उ पादकता घटती है तो औसत प रवतनशील लागत अव य ह बढ़े गी । उ पादन के उस
तर पर जहाँ क औसत उ पादकता अ धकतम होती है औसत प रवतनशील लागत यूनतम
होगी । इस कार औसत' प रवतनशील लागत व औसत उ पादकता व के उलट आकृ त का
होता है ।
औसत कु ल लागत, औसत प रवतनशील लागत और औसत ि थर लागत के जोड़ के
बराबर होती है । अथात
TC = TVC = TFC
TC TVC  TFC
  
Q Q
TC TVC TFC
  समीकरण को Q से वभािजत करने पर
Q Q Q
ATC  AVC AFC
अत: प ट है क औसत कु ल लागत व क आकृ त औसत प रवतनशील लागत व
तथा औसत ि थर व के यवहार पर नभर करे गी । जैसा क हम दे ख चु के ह, औसत ि थर
लागत व बायीं और लगातार गरता हु आ व है एवं औसत प रवतनशील व भी ार भ म
गरता है एवं यूनतम पर पहु ँ चने के बाद बढ़ता है । जब औसत प रवतनशील लागत व बढ़ने
लगता है तब भी कु छ दूर तक औसत कु ल लागत व गरता ह य क औसत ि थर लागत
लगातार घट रह ह एवं औसत ि थर लागत म कमी औसत प रवतनशील लागत म वृ से
अ धक है । जब उ पादन को और अ धक बढ़ाया जाता है तो औसत प रवतनशील लागत म वृ
औसत ि थर लागत म कमी से अ धक हो जाती है तब औसत कु ल लागत व बढ़ना ार भ कर
दे ता है । इस लए कु ल लागत व क आकृ त भी अं ेजी के अ र U समान होती है । यहाँ यह
उ लेखनीय है क औसत प रवतनशील लागत पहले यूनतम पर पहु ँ चती है फर उसके बाद
औसत कु ल लागत अपना यूनतम ा त करती है ।

(170)
सीमा त लागत का आ थक व लेषण म मु ख थान है । सीमा त लागत उ पादन क
एक अ त र त इकाई उ पा दत करने से कु ल लागत मे वृ को कहते है ।
अथात MCn = TCn – TCn-1
TC
या MC =  
Q
जैसा क पूव मे प ट कया जा चु का है सीमांत लागत ि थर लागत से वत होती है
। सीमा त लागत केवल प रवतनशील लागत म प रवतन होने से बदलती है । इसे सू क
सहायता से न न कार से बता सकते
MCn = TCn – TCn-1
= (TVCn + TFC) – (TVCn – 1 + TFC)
= TVCn +TFC – TVCn – 1 – TFC)
= TVCn – TVC n-1

TC
MC   
Q
 (W .L)
MC 
Q
L
अथात MC  W   ( TVC = W.L)
Q
-(1) (W को ि थर मानने पर
Q
 MP  -(2)
L
प रवतनशील साधन का सीमा त उ पादन प रवतनशील साधन म एक इकाई क वृ के
फल व प कु ल उ पादन म प रवतन के बराबर होता है ।
समीकरण (2) से सीमांत उ पादकता का यू म
1 L

MP Q
L 1
समीकरण (i) म W  के थान पर रखने पर
Q MP
1
MC  W   3
MP
चू ं क प रवतनशील साधन क क मत को ि थर माना है इस लए समीकरण (3) के
आधार पर प ट है क सीमा त लागत म प रवतनशील साधन क सीमा त उ पादकता से
वपर त दशा मे प रवतन होगा । सीमा त लागत व क आकृ त को सीमा त लागत एवं
सीमा त उ पादकता के बीच संबध
ं के आधार पर समझा जा सकता है । प रवतनशील अनुपात के
नयम से हम जानते ह क उ पादन के ार भ म जब प रवतनशील साधन क मा ा बढ़ाते ह तो
सीमा त उ पादकता बढ़ती है अत: ार भ म सीमा त लागत घटती हु ई होगी । एक सीमा के
बाद प रवतनशील साधन क मा ा बढ़ाने पर उस साधन क सीमा त उ पादकता घटने लग जाती

(171)
है । अतएव सीमा त लागत बढ़ने लग जायेगी । इस कार सीमा त उ पादकता के ार भ म
बढ़ने और अ धकतम तर तक पहु ँ चने के बाद घटने से सीमा त लागत आर भ म घटती है और
यूनतम तर ा त करने के बाद बढ़ने लगती है । सीमा त लागत व क आकृ त भी अं ेजी
के अ र U के समान होगी ।

11.3.2 औसत लागत एवं सीमा त लागत व क कु ल से यु पि त

औसत एवं' सीमा त लागत व ो क आकृ त को कु ल लागत व ो से उनक यु पि त


वारा भी समझा जा सकता है ।
औसत ि थर लागत व क कु ल ि थर लागत व से यु पि त
कु ल औसत लागत व (TFC) से औसत ि थर लागत व (AFC) क यु पि त को
रे खा च 11.3 म दशाया गया है । रे खा च के ऊपर भाग म कु ल ि थर लागत को दशाया गया
है जो उ पादन के सभी तर पर 1000 के बराबर है । कु ल उ पादन मा ा OQ1 (=100
AQ1 1000 AQ1
इकाइय ) पर औसत ि थर लागत   10 औसत ि थर लागत मू ल ब दु O से
OQ 100 OQ1
A तक खींची गई सरल रे खा के ढाल के बराबर है । दूसरे श द म कु ल ि थर लागत व के
कसी भी ब दु से मू ल ब दु को मलाने वाल रे खा का ढाल उस ब दु पर औसत ि थर लागत
दशायेगा! रे खा च 11.3 म दशाये गये व भ न ब दुओं B, C पर औसत ि थर लागत मश:
BQ2  1000  CQ3  1000 
   5,   3.3  है !
OQ2  200  OQ3  300 

रे खा च 11. 3
कु ल ि थर लागत से औसत ि थर लागत व क यु पि त

(172)
अत: प ट है जैसे-जैसे उ पादन बढ़ रहा है औसत ि थर लागत कम होती जा रह है ।
या म तय ि ट से जैसे-जैसे TFC व पर आगे बढ़ते है मू ल ब दु को मलाने वाल रे खा का
ढाल कम होता जा रहा है । रे ख च 11.3 के नीचे वाले भाग म AFC व को दशाया है जो A'
B' C को मलाने से बना है । A' B' व मश उ पादन के OQ, OQ, एवं OQ3 तर पर औसत
लागत है । औसत प रवतनशील लागत व क यु प त

रे खा च – 11.4
कु ल प रवतनशील लागत से औसत प रवतनशील लागत व क यु पि त
रे खा च व 11.4 के उपर भाग म TVC कु ल प रवतनशील लागत व है । औसत
प रवतनशील लागत को कु ल प रवतनशील लागत व पर मू ल ब दु से खींची गयी रे खा क ढाल
से मापा जा सकता है ।
AQ1
उ पादन तर OQ1 पर औसत प रवतनशील लागत रे खा OA के ढाल के बराबर है
OQ1
िजसे रे खा च के नीचे वाले भाग म A ब दु से दशाया गया है । इसी कार OQ2 एवं OQ3
उ पादन तर पर औसत प रवतनशल लागत मश: OB एवं OC रे खाओं का ढाल वारा
BQ2 CQ3
मापी जा सकती है । OB एवं OC रे खाओं का ढाल मश: तथा ह, िज ह
OQ2 OQ3
रे खा च के नीचे वाले भाग म B1 व C1 ब दु से दशाया गया है । A1 ए B1 एवं C1 को
मलाने से औसत प रवतनशील लागत व AVC ा त होता है । इस रे खा च से यह भी प ट
होता है क मू ल ब दु से TVC व पर खींची गयी सरल रे खा का ढाल उ पादन मा ा OQ2 तक

(173)
घटाया जाता है और इसके प चात ् यह बढ़ने लगता है । इस कार हम दे खते ह क AVC व
पर उ पादन मा ा OQ2 तक घटता है और इसके प चात ् यह ऊपर क और बढ़ता है ।
कु ल लागत व से औसत लागत व क यु पि त -
अ पकाल न कु ल लागत (STC) से अ पकाल न औसत लागत व (SAC) क यु पि त
भी ठ क उसी कार क जा सकती है जैसे क हमने कु ल कुल प रवतनशील लागत व (TVC)से
औसत प रवतनशील लागत व AVC क यु पि त क थी ।

रे खा च 11. 5
अ पकाल न कु ल लागत व से अ पकाल न औसत कु ल लागत व
रे खा च 11.5 के ऊपर भाग म STC अ पकाल न कु ल लागत व है इस व के
व भ न ब दुओं ABCD को मू ल ब दु O से मलाने वाल रे खाएँ OA, OB, OC,व OD है ।
AQ1 BQ2 CQ6 DQ7
िजनका ढाल मश: , , तथा जो उ पादन के OQ1, OQ2, OQ3, ,OQ4 से
OQ1 OQ2 OQ6 OQ7
संबं धत है । इन रे खाओं के ढाल, जो उ पादन के इन व भ न तर पर औसत लागत को दशा
रहे ह को रे खा च के नीचे वाले भाग म A; B; C; व D' ब दु से दखाया गया है । इन
ब दुओं को मलाने से अ पकाल न औसत कु ल लागत व ा त होता है जो U आकृ त का है ।
यह ं यह उ लेखनीय है क मू ल ब दु से STC व पर ि थत ब दुओं का ढाल उ पादन के

(174)
OQ6 तर तक घटता जाता है िजसे C' वारा दशाया है इसके प चात ् ये पुन : बढ़ने लगता है ।
अथात ् OQ6 उ पादन तर तक औसत कु ल लागत घटती हु ई एवं इस ब दु पर यूनतम ह एवं
इसके बाद ये बढ़ती है ।
अ पकाल न सीमा त लागत व क यु पि त-
जैसा क हम जानते ह सीमा त लागत को न न सू से य त कया जाता है -
TC
MC   
Q
अथात उ पादन म यून प रवतन के फल व प कु ल लागत म हु आ प रवतन सीमा त
लागत कहलाता है । सीमा त लागत व को कु ल लागत व से यु पा दत कया जा सकता है ।

उ पादन क मा ा
रे खा च 11.6
अ पकाल न सीमा त लागत व क कुल लागत से यु प त
रे खा च 11.6 अ पकाल न सीमा त लागत व क कु ल लागत से यु प त उपयु त
रे खा च के ऊपर भाग म अ पकाल न कु ल लागत व दशाया गया है । अब माना क उ पादन
OQ1 से OQ2 तब बढ़ाया जाता है तो उ पादक STC पर A से B क तरफ बढ़ता है एवं लागत
C1 से बढ़कर C2 हो जाती है ।
TC C2  C1 BH
MC     
Q Q2  Q1 AH

(175)
अब य द हम यह मान क कु ल लागत व के ब दु B को A के इतना नकट ले आये
क A और B के बीच दूर नगणय हो जाये तो B ब दु पर खींची गई पश रे खा क ढाल
 BH 
  सीमा त लागत का अ धक े ठ माप बन जाती है । दूसरे श द म, कु ल लागत व
 AH 
के कसी भी ब दु पर खींची गई पश रे खा क ढाल उ पादन के उस तर पर सीमा त लागत
को य त करती है । अत: हम अ पकाल न कु ल लागत व पर C,D,E अ य ब दु लेते ह जो
उ पादन के OQ3 OQ4 एवं OQ5 तर से संबं धत है । इन ब दुओं पर खींची गई पश रे खा
उ पादन के इन तर पर सीमा त लागत को दशायेगी । सीमा त लागत के इसी माप को
रे खा च के नीचे वाले भाग म मश: B1, C1, D1, एवं E० ब दुओं से दशाया गया है एवं इन
ब दुओं को मलाने से अ पकाल न सीमांत लागत व ा त होता है । रे खा च से प ट है क
अ धक उ पादन के तर के अनु प अ पकाल न कु ल लागत व STC के व भ न ब दुओं से
खींची पश रे खाओं क ढाल उ पादन तर O3, तक कम होती जाती है । इसके बाद पश रे खा
क ढाल अथात सीमा त लागत बढ़ती जा रह है ।उ पादन मा ा Q3 पर सीमा त लागत
न नतम है ।

11.3.3 अ पकाल न औसत लागत तथा सीमा त लागत व म संबध


रे खा च 11.7
रे ख च 11.7 म अ पकाल न औसत तथा सीमा त लागत व दशाये गय ह । इनके
बीच पार प रक स ब ध क या या इस कार क जा सकती है -
(1) जब तक औसत गरती रहती है तब तक सीमा त लागत उससे कम बनी रहती है ।
अथात तब तक MC व AC व के नीचे रहता है तब तक AC व नीचे गरता
हु आ होता है ।
(2) जब औसत लागत बढ़ती है तो सीमा त लागत भी बढ़ती है और इसक वृ दर
औसत लागत से अ धक होती है । अथात जब MC व AC व के ऊपर होता है
AC व भी ऊपर क ओर उठता हु आ होता है ।
(3) सीमा त लागत व (MC) औसत लागत व को सदै व उसके यूनतम पर काटता
है जहाँ MC=AC होता है ।

(176)
11.3.4 द घकाल न लागत व

जैसा क पहले प ट कया जा चु का है क द घकाल म फम के पास इतना पया त


समय होता ह क वह उ पादन के सभी साधन म आव यकता अनुसार बदलाव कया जा सकता
है । यह ं तक क संय के आकार अथवा फम के संगठना मक ढाँचे म भी बदलाव करने के
लए पया त समय होता है । दूसरे श द म अ पकाल म संय , संगठन व ब ध जैसे साधन
क अ वभा यता के कारण काय पैमान म प रवतन करना संभव नह ं होता पर तु द घकाल म ये
साधन पूणतया अ वभा य नह ं रहते इस लए कम अथवा अ धक उ पादन हे तु काय पैमाने म
प रवतन कया जा सकता है । अत: फम को द घकाल म उ पादन के कई पैमाने म प रवतन
कया जा सकता है । अत: फम को द घकाल म उ पादन के कई काय पैमाने उपल ध होते ह
िजनम से वो उ पादन क आव यकता अनुसार उनम चयन कर सकता है । येक काय पैमाने से
स बि धत एक अ पकाल न लागत व होता है । काय पैमाने म प रवतन के साथ अ पकाल न
लागत व भी बदल जाता है । द घकाल न उ पादन लागत कसी दये हु ए उ पादन तर को
उ पा दत करने क यूनतम स भव लागत है । द घकाल न लागत व . उ पादन मा ा और
द घकाल न उ पादन लागत के बीच स ब ध को य त करता है ।
द घकाल न औसत लागत द घकाल न कु ल लागत को उ पादन क मा ा से वभािजत
करने पर ा त क जाती है । अ पकाल म फम का केवल एक ह औसत लागत व होता है
पर तु द घकाल म फम के उतने ह औसत लागत व होते है िजतने क उसे काय पैमाने
उपल ध ह । मान लिजये क फम को द घकाल म तीन काय पैमाने उपल ध ह । इन पैमान से
स बि धत औसत लागत व को न न रे खा च के अनुसार दशाया जा सकता है।

रे खा च 11.8
अ पकाल न एवं द घकाल न औसत लागत व
अ पकाल न एवं द घकाल न औसत लागत व
उपयु त रे खा च म SAC1, SAC2 तथा SAC3, तीन व भ न काय पैमान से
स बि धत औसत लागत व है । द घकाल म फम को इस बात का नणय करना है क संय
के कस आकार अथवा कस काय पैमाने अथवा कस अ पकाल न औसत लागत पर उ पा दत
कर सक । रे खा च 11.8 से प ट है क उ पादन क OQ1 मा ा को उ पा दत करने के लए
फम को SAC1 तथा SAC2 व से स बि धत काय पैमाने या संय उपल ध है । इसम से
फम SAC1 को चु नेगी य क OQ1 मा ा तक उ पादन के लए SAC1 उपयु त है । जब
उ पादन को OQ2 से बढ़ाकर OQ3 करना हो तब भी फम को SAC1 उपयु त है । जब उ पादन
(177)
को OQ2 स बढ़ाकर OQ3 का चु नाव करे गी य क OQ3 मा ा को SAC2 से उ पा दत करने क
लागत EQ3 है जो क संय SAC1 क लागत DQ3 से कम है । इस तरह रे खा च से प ट
है क OQ2 से अ धक एवं OQ4 तक क उ पादन मा ा के लये फम SAC3 का चु नाव करे गी।
य द फम को OQ4 से अ धक उ पादन करना है तो वह SAC3 संय का योग करे गी।
य द फम को रे खा च 11.8 म दखाये तीन संय ह उपल उपल ध ह तब द घकाल न
औसत लागत व अ पकाल न औसत लागत व ो के उन भाग से बना होगा िजन पर क फम
द घकाल म उ पादन करे गी । रे खा च म व के वे भाग िजनक अ धक थूल करके दखाया ह,
फम का द घकाल न औसत लागत व है । अब क पना क िजये क फम को अनेक काय पैमाने
उपल ध ह य क संय के आकार को सू म प म बदला जा सकता है । येक संय के
अनु प अ पकाल न औसत लागत व ह गे । ऐसी दशा म द घकाल न औसत लागत व बना
बल के(Smooth)तथा सतत रे खा क आकृ त का होगा । ऐसे द घकाल न औसत लागत व को
रे खा च 11.9 म दशाया गया है ।

रे खा च 11.9
द घकाल न औसत लागत व
रे खा च से प ट है क द घकाल म फम उ पादन क मा ा के अनु प द घकाल न
औसत लागत व का ब दु चयन करके उसके अनुसार संय था पत करके उ पादन करे गी ।
व तु क OQ1 मा ा के लए फम LAC व पर G ब दु का चयन करे गी । इस ब दु पर
SAC2, LAC व को पश कर रहा है । इसी तरह OQ2 OQ3 एवं OQ4 मा ाओं के लए फम
LAC व मश: H, I,T ब दुओं पर होगी एवं SAC3, SAC4 SAC5 व इन ब दुओं पर
LAC व को पश कर रहे है । फम इन व के अनु प संय का चु नाव कर उ पादन करे गी
। द घकाल न औसत लागत व LAC को आवरण (envelop) भी कहा जाता है य क यह
अनेक अ पकाल न औसत लागत व को घेरता ह ।
द घकाल न औसत लागत व क वशेषताएँ -
1. द घकाल न औसत लागत व ार म म नीचे गरता है और फर एक ब दु के प चात ्
ऊपर क और चढ़ता है । द घकाल न औसत लागत व क आकृ त भी अं ेजी के अ र

(178)
U जैसी होती है । पर तु अ पकाल न औसत लागत क तु लना म यह अ धक चपटा
होता है । द घकाल न औसत लागत व क आकृ ती का कारण पैमाने के तफल ह ।
जैसे-जैसे हम उ पादन के पैमाने म वृ करते ह तो ार भ म हम पैमाने के वृ
तफल के कारण द घकाल न औसत लागत उ पादन के बढ़ने पर घटती है । कु छ सीमा
के बाद पैमाने के घटते तफल के कारण द घकाल न औसत लागत उ पादन बढ़ने पर
बढ़ने लग जाती है । उ लेखनीय ह क पैमाने के बढ़ते तफल फम को आ त रक एवं
बाहा बचत के कारण तथा घटते तफल आ त रक एवं बाहा हा नय के कारण ा त
होते ह ।
2. द घकाल न औसत लागत व अ पकाल न औसत लागत व के यूनतम ब दुओं से
पश नह ं करता । जब द घकाल न औसत लागत व घट रहा होता है तो यह
अ पकाल न औसत लागत गरते भाग के ब दुओं को पश करता है । अथात फम
संय वशेष क यूनतम लागत ब दु से बायीं और उ पादन करे गी िजसका ता पय
यह है क OQ3 मा ा से कम उ पादन यूनतम स भव लागत पर करने के लए फम
एक उ चत संय लगाकर उसको उसक पूण मता से कम तर पर योग करे गी ।
इसके वपर त जब द घकाल न औसत व बढ़ रहा होता है तो यह अ पकाल न औसत
लागत व के चढ़ते भाग को पश करे गा । इसका ता पय यह है क व तु क O3
मा ा से अ धक उ पादन करने के लए फम एक उ चत आकार का संय लगाकर उससे
उसक इ टतम मता से अ धक उ पादन करे गी अथात ् यूनतम लागत ब दु से दायीं
और के ब दु पर उ पादन करे गी । LAC व केवल उस SAC को ह उसके यूनतम
तर पर पश करता है जो LAC व के यूनतम पर ि थत ह ।
3. व तु क बड़ी मा ाओं को बड़े संय तथा कम मा ाओं को छोटे संय के साथ
यूनतम लागत पर उ पा दत कया जा सकता है । एक अपे ाकृ त बड़ा संयं जो क
अ धक मंहगा होता है को व तु क कम मा ा उ पा दत करने के लए योग म लेने पर
त इकाई लागत अ धक होगी य क संयं का मता से कम उपयोग हो रहा है ।
इसके वपर त एक बड़ी उ पादन मा ा को छोटे आकार के उ पादन संयं से उ पा दत
करने पर इसक उ पादन मता सी मत होने के कारण त इकाई लागत अ धक
आयेगी ।
द घकाल न सीमा त लागत व -
द घकाल न सीमा त लागत व (पथp) कु ल लागत व से सीधे तौर पर ा त कया जा
सकता ह य क कसी उ पादन मा ा पर द घकाल न सीमांत लागत उ पादन क उस मा ा पर
कु ल लागत व क ढाल के बराबर होती है । इसके अ त र त LMC व को LAC व से भी
ा त कया जा सकता है । इसे न न रे खा च वारा समझा जा सकता है ।

(179)
रे खा च 11.10
द घकाल न सीमा त लागत व क यु प त
उपयु त रे खा च म LAC व दखाया गया है जो कई SAC व को घेरे है । च म
तीन SAC व दखाये गये ह जो LAC व को A, B, व C ब दुओं पर पश कर रहे ह । इन
SAC व के त स ब धी अ पकाल न सीमांत लागत व मश: SMC1, SMC2 तथा SMC3
भी च म दशाये गये ह । A,B,व C ब दुओं से X अ पर मश: AQ1 तथा BQ2 व CQ3
ल ब गराओ । ये ल ब SMC1, SMC2, व SMC3 को मश: D,B व E पर काटते ह । D,
B व E को मलाने से द घकाल न सीमा त लागत व ा त होता है । यह ं यह उ लेखनीय ह
क द घकाल न सीमा त लागत व का द घकाल न सीमा त लागत का अ पकाल न औसत लागत
से होता ह ।
द घकाल न कु ल लागत व एवं व तार पथ
व तार पथ से द घकाल न कु ल लागत व क यु पि त क जा सकती है । व तार
पथ (िजसका अ ययन आपने सम-उ पादक व संबं धत इकाई म कया होगा) साधन के उन
संयोग को दशाता ह-िजनसे उ पादन क व भ न मा ाओं को यूनतम स भव लागत पर
उ पा दत कया जा सकता है। यह ं हम मान लेते ह क उ पादन के दो ह साधन ह तथा इनक
क मत ि थर ह।

रे खा च 11.11
व तार एवं कु ल लागत व

(180)
सम उ पाद व व ध के अनुसार उ पादन क एक न द ट मा ा को उ प न करने क
यूनतम लागत उस ब दु पर होगी जहाँ उस मा ा से संबं धत समो पाद व सम-लागत व को
पश करे । इस ब दु पर तकनीक त थापन क दर व साधन क क मत का अनुपात समान
होगा।
रे खा च 11.11(अ) म तीन सम उ पाद व Q1, Q2 व Q3 दशाये गये ह जो तीन
उ पादन मा ाओं से स बि धत है । इन तीन सम उ पाद व को सम लागत व C1,L1,L2,L3
व C3 L3, मश: A, B व C ब दुओं पर पशकर रह है जो सा य क ि थ त को दश रहे ह
अथात म एवं पू ज
ं ी के उन संयोग को बता रहे ह जो उ पादन क Q1, Q2, व Q3, मा ाओं
को यूनतम लागत पर उ पा दत कर सके । A, B, C, ब दुओं को मलाने से व तार पथ OP
ा त होता है । व तार पथ OP से प ट है क Q1 मा ा उ पा दत करने क यूनतम लागत
TC1 है Q2 मा ा उ पा दत करने क लागत TC2 है व Q3 मा ा उ पा दत करने क यूनतम
लागत TC3 है । रे खा च 11.11(ब) भाग म कु ल लागत मा ाओं TC1, TC2, TC3 को
त स बि धत उ पादन मा ाओं के व अं कत करने पर हम कु ल लागत व LTC ा त होता
है ।

11.4 आगम क अवधारणा एवं आगम व


'आगम' श द से अ भ ाय कसी फम वारा एक व तु क नि चत मा ा को बेचने से
होने वाल आय से है । आगम से अवधारणा का संबध
ं कुल आगम, औसत आगम तथा सीमांत
आगम से है।
कु ल आय या आगम (Total-Revenue) -एम फम वारा अपनी व तु क सम त
इकाइयाँ बेचने से जो रा श ा त होती है उसे कु ल आगम कहते है । व तु क बेची जाने वाल
कु ल इकाइय को उसक त इकाई क मत से गुणा करने पर कु ल आगम ा त होता है ।
TR = P x Q
TR - कु ल आगम
P - त इकाई क मत व Q- व तु क मा ा
औसत आगम (Average Revenue) - औसत आगम से अ भ ाय व तु क त इकाई
आगम से ह । कु ल आगम को व तु क बेची गयी मा ा से भाग दे ने पर औसत आगम ा त
होता है ।
A R= TR/Q = PQ/Q = P A R - औसत आगम
सीमा त आगम (Marginal Revenue) - उ पादन क एक अ त र त इकाई बेचने से
कु ल आगम म जो वृ होती ह उसे फम क सीमा त आय कहते ह । दूसरे श द म, सीमा त
आगम व तु क अि तम इकाई को बेचने से होने वाल आय है ।
बोध न - 2
(i) अवसर लागत व क या या क िजए ।
(ii) आपा काल न लागत व के बार म समझाइए
(iii) द घकाल न लागत व क ववेचना क िजए ।

(181)
MR = TRn – TRn -1 MR - सीमा त आगम
TRn व तु क n इकाइय को बेचने से ा त आगम
Rn-1 व तु क n- 1 इकाइय को बेचने से ा त आगम
औसत आगम के संबध
ं म यह उ लेखनीय है क सामा यतया व े ता व तु क सम त
इकाइयाँ एक ह क मत पर बेचता है इस लए व तु क क मत व औसत आगम समान ह गे । उस
प रि थ त म क मत व औसत आगम अलग-अलग ह गे जब व े ता व तु क व भ न इकाइय
को भ न- भ न क मत पर बेचता है या व े ता क मत वभेद करण कर रहा होता है ।
औसत आगम व वा तव म उपभो ता का मांग व होता है य क मांग व व तु क
व भ न क मत पर े ताओं वारा खर द गयी मा ा को बताता है इस लए यह औसत आय या
क मत को कट करता है ।
अब हम पूण तयो गता एवं अपूण तयो गता वाले बाजार के लए आगम व का
अलग-अलग अ ययन करगे ।

11.4.1 पूण तयो गता क दशा म औसत आगम व , सीमा त आगम व तथा कु ल आगम

पूण तयो गता क दशा से यह अ भ ाय है क उ योग म फम क सं या इतनी


अ धक है क कोई एक फम उ पादन -मा ा संबध
ं ी नी तय और नणय वारा व तु क क मत
को भा वत नह ं कर सकती, वरन ् बाजार म उस व तु क जो क मत च लत है उस पर िजतनी
मा ा चाहे बेच सकता है । अथात पूण तयो गता म फम उ योग के कु ल मांग व कु ल पू त
व के सा य वारा नधा रत क मत को हण करती है । ऐसी ि थ त म फम उस द हु ई
क मत पर िजतनी चाहे उतनी मा ा म व तु बेच सकती है । अत: फम का औसत आगम व
तज या X अ के समाना तर एक सरल रे खा वारा य त होगा । चू ं क येक अ त र त
इकाई को बेचने से क मत के बराबर समान आगम ा त हो रहा है अत: सीमांत आगम और
औसत आगम दोन बराबर ह गे । औसत व सीमा त के संबध
ं को एक ता लका वारा दशाते ह –
ता लका 11.1
पूण तयोगता म कु ल, औसत एवं सीमा त आगम
बेची गई इकाइय क सं या कु ल आगम औसत आगम/ क मत सीमांत आगम
1 20 20 20
2 40 20 20
3 60 20 20
4 80 20 20
5 100 20 20
6 120 20 20
7 140 20 20
उपयु त ता लका से प ट है क अ त र त इकाई से ा त होने कल' अगम औसत कम
के बराबर है ' इसे न न रे खा च वारा दशाया जा सकता ह -

(182)
पूण तयोगता क ि थ त म आगम व
रे खा च – (अ) म फम का कु ल आगम (TR) व दखाया है जो क मू ल ब दु से ऊपर
उठती हु ई सरल रे खा ह जो व य क गई मा ा म वृ होने पर आगम म समान वृ को दशा
रह है रे खा च म –(ब) म औसत आगम व तथा सीमा त आगम व दोन ह एक ह रे खा जो
X अ के समांतर है , वारा दखाये गए ह य क पूण तयोगता म औसत आगम व सीमांत
आगम दोन ह व तु क क मत के बराबर ह एवं क मत ि थर ह !

11.4.2 अपूण तयो गता क दशा म कु ल आगम व औसत आगम व तथा सीमांत आगम

अपूण तयो गता क दशा म एक फम अपनी व तु क उतरो तर अ धक इकाइयाँ


क मत म कमी करके ह बेच सकता ह । ऐसी ि थ त म व तु क ब से ा त कु ल आगम
औसत आगम व सीमा त आगम को न न ता लका से दशाया जा सकता है ।
ता लका 11.2
अपूण तयो गता म आगम
व तु क बेची गई कु ल आगम औसत आगम / सीमांत आगम
मा ा क मत
1 20 20 20
2 18 36 16
3 16 48 12
4 14 56 8
5 12 60 4
6 10 60 0
7 8 54 -4
उपयु त ता लका से प ट है क व तु क बेची गयी मा ा म वृ होने पर कु ल आगम
बढ़ रहा है पर तु उसके बढ़ने क दर घटती हु ई है । य क येक अ त र त इकाई को बेचने से
ा त सीमा त आगम घटता जा रहा है । औसत आगम भी कम हो रहा है िजसका कारण पूव म

(183)
प ट कया जा चु का है क अ धक इकाइय को बेचने के लए क मत म लगातार कमी करनी
होगी । ता लका से यह भी प ट है क ब के येक तर पर औसत आगम क अपे ा
सीमा त आगम कम है एवं सीमा त आगम म कमी क दर औसत आगम क अपे ा अ धक है ।
अपूण तयो गता क दशा म आगम व रे खा च म दशाये अनुसार ा त ह गे ।

रे खा च 11.13
अपूण तयो गता क दशा म आगम व
रे खा च 11.3 (अ) कु ल आगम व (TR) खीचा गया है जो व तु क ब म वृ
होने पर बढ़ रहा है पर तु घटती दर से । कु ल आगम व से औसत आगम व तथा सीमा त
आगम व क यु प त उसी कार क जा सकती है जैसे क कु ल लागत व से औसत एवं
सीमा त लागत व ो क यु प त क थी । आगम व के कसी ब दु से मू ल ब दू को मलाने
वाल रे खा का ढाल औसत आगम बताता है । रे खा च 11.13 (अ) म OQ1 मा ा उ पा दत करने
OA
पर औसत आगम A ब दु से खींची गई रे खा OA के ढाल के बराबर ह । इसी तरह
OQ1

OQ2 मा ा पर औसत आगम OB रे खा के ढाल OB बराबर है । रे खा OB का ढाल OA क


OQ1
तु लना म कम है अथात OQ1 से ब OQ2 करने पर औसत आगम घट गया है ।
सीमा त आगम कु ल आगम व के कसी ब दु पर खींची गई पश रे खा के ढाल के
बराबर होता है । OQ1 व तु क मा ा के अनु प कु ल आगम व ब दु A पर सीमा त आय
खींची गई पश रे खा के ढाल के बराबर है । इसी कार व तु क मा ा OQ2 के अनु प TR व
के B पर खींची गई पश रे खा का ढाल सीमा त आगम को दशायेगा । ब दु B पर TR व क
ढाल शू य है इस लए व तु क OQ2 मा ा पर MR शू य होगी । औसत आगम व सीमा त
आगम के यवहार को रे खा च 11.13 (ब) म दशाया गया है । रे खा च से प ट है क जब
औसत आगम व नीचे को गर रहा है तो सीमा त आय व उसके नीचे ि थत है एवं उसके
गरने क दर औसत आगम से अ धक है । OQ2 व तु क मा ा के तर पर सीमा त आगम
शू य है एवं कु ल आगम अ धकतम है । इससे अ धक ब पर सीमा त आगम ऋणा मक हो

(184)
जायेगा एवं कु ल आगम गरने लगेगा । औसत आगम व एवं सीमा त आगम व के बीच
संबध
ं म यह बात मह वपूण है क जब औसत आगम व एक सरल रे खा के प म नीचे गरता
हु आ हो तब सीमांत आगम व , औसत आगम व से Y- अ क ओर आधी दूर पर होगा ।
य द औसत आगम व उ गम ब दु क ओर उ तल हो तो सीमा त आगम व औसत व से
आधी से अ धक दूर तथा अवतल होने क ि थ त म आध से कम दूर पर ि थत होगा ।

11.5 सारांश
आ थक व लेषण म फम एवं उ योग के उ पादन एवं क मत संबध
ं ी नणय म लागत
एवं आगम संबध
ं ी अवधारणाएँ एवं व मह वपूण उपकरण स हु ए ह । लागत एवं आगम व
क सहायता से फम एवं उ योग के सा य क ि थ त का व लेषण कया जा सकता है । बाजार
क व भ न प रि थ तय म औसत आगम व उ पादक के लए क मत रे खा है एवं उसे औसत
लागत व से संबं धत कर फम के अ त र त लाभ या सामा य लाभ या घाटे क ि थ त के बारे
म बताया जा सकता है । इसी कार फम अपनी उ पादन मता के कस तर पर काय कर रह
है यह भी लागत एवं आगम व से जाना जा सकता है । अत: फम एवं उ योग के स तुलन के
व लेषण से पूव आगम एवं लागत व ो का व तृत अ ययन आव यक है ।

11.6 श दावल
मौ क लागत, अ य त या न हत लागत, प ट या व हत लागत, वा त वक लागत,
अवसर लागत, नजी लागत, सामािजक लागत, लेखा लागत, आ थक लागत, कु ल लागत, औसत
लागत, सीमा त लागत, ि थर लागत, प रवतनशील लागत, अ पकाल न लागत, द घकाल न
लागत, कु ल लागत, औसत आगम, सीमा त आगम ।

11.7 अ यासाथ न
न न ल खत न के उ तर सं प
े म द िजये । (150 श दो म)
1. अवसर लागत क अवधारणा को उदाहरण स हत समझाइये ।
2. आ थक लागत एवं लेखा लागत म अ तर प ट क िजये ।
3. प ट लागत एवं अ य त लागत म अ तर को उदाहरण से प ट क िजये ।
4. ि थर एवं प रवतनशील लागत क या या क िजए ।
5. औसत लागत व के आकार क या या क िजए ।
6. औसत लागत व एवं सीमा त लागत व के बीच स ब ध का ववेचन क िजये ।
7. आगम क व भ न अवधारणाओं को समझाइये ।
8. लागत एवं आगम व ो के मह व पर ट पणी ल खये ।
न न ल खत न के उ तर व तार से द िजये (500 श द म)
1. द घकाल न औसत लागत व क कृ त क ववेचना क िजये । द घकाल न औसत लागत
व अ पकाल न औसत लागत व क अपे ा चपटा य ह?
2. पूण एवं अपूण तयो गता क ि थ तय म औसत आगम एवं सीमा त आगम के स ब ध
को रे खा च क सहायता से प ट क िजये ।

(185)
3. अ पकाल न कु ल लागत व से औसत लागत एवं सीमा त लागत क यु प त को रे खा च
क सहायता से समझाइये ।
4. एक दये हु ए कु ल आगम व से आप औसत आगम एवं सीमा त आगम व कैसे खचगे ।

11.8 संदभ – ंथ
1. आहु जा, एच. एल. - उ चतर आ थक स ांत
2. झंगन एम. एल. - यि ट अथशा
3. सेठ एम. एल. - अथशा के स ांत
4. सु दरम एवं वै य - यि ट अथशा

(186)
इकाई - 12
पूण तयो गता के अ तगत उ पादन तथा क मत का
नधारण

12.0 उ े य
12.1 तावना
12.2 पूण तयोगी बाजार
12.3 फम का सा य या स तुलन
12.3.1 अ पकाल म फम का स तुलन
12.3.2 फम का द घकाल न स तु लन
12.4 उ योग का स तुलन
12.4.1 उ योग का अ त अ पकाल न स तुलन
12.4.2 उ योग का अ पकाल न स तु लन
12.4.3 उ योग का द घकाल न स तुलन
12.5 सारांश
12.6 श दावल
12.7 अ यासाथ
12.8 संदभ थ

12.0 उ े य
इस इकाई के अ ययन के प चात आप
 पूण तयोगी बाजार क वशेषताएँ समझ सकगे
 फम एवं उ योग के स तुलन क दशाएँ जान सकेगे
 अ पकाल एवं द घकाल म फम का स तु लन क मत एवं उ पादन का नधारण कर सकगे
 अ पकाल एवं द घकाल म उ योग के स तुलन के बारे म समझ सकगे
 अ पकाल एवं द घकाल न स तुलन म अ तर जान सकगे

12.1 तावना
व भ न व तु ओं के मू य तथा उ पादन का नधारण, बाजार ढाँचे के उस प पर नभर
करता है िजसम वे उ पा दत कये जाते है, तथा बेचे जाते है । बाजार ढाँचे का नधारण
न न ल खत तीन मह वपूण त व पर नभर करता है -
(1) व तु को उ पा दत करने वाल फम क सं या
(2) व तु का ा प अथात या व तु एँ सम प ह या वभेद कृ त
(3) नई फम के वेश क वत ता या वेश पर कोई ब धन या तब ध ।

(187)
उपयु त आधार पर अथशा ी व भ न बाजार क दशाओं को (अ) पूण तयो गता(ब)
एका धका रक तयो गता (स) अ पा धकार तथा (द) एका धकार म वग कृ त करते ह ।
एका धका रक तयो गता, अ पा धकार एवं एका धकार सामा यता अपूण तयो गता के अ तगत
समू ह कृ त कये जाते ह य क बाजार के ये तीन प तयो गता म अपूणता के अंश के
स ब ध म भ न होते ह । एका धका रक तयो गता सबसे कम अपूण तथा एका धकार सबसे
अ धक अपूण बाजार ढाँचे का प है ।

12.2 पू ण तयोगी बाजार


एक बाजार को हम उस ि थ त म पूण तयोगी बाजार कहगे जब न न ल खत शत
पूर होती ह -
(1) े ताओं और व े ताओं क अ धक सं या
पूण तयोगी बाजार म े ता एवं व े ता बहु त अ धक सं या म होते ह । े ताओं एवं
व े ताओं क अ धक सं या स यह अ भ ाय है क स पूण बाजार क तु लना म एक े ता
िजतनी मा ा म व तु खर दता है या एक व े ता िजतनी मा ा म बेचता है वो इतनी कम है
क उनक याएँ बाजार को भा वत नह ं करती । दूसरे श द म, कोई भी एक े ता अथवा
व े ता इतना शि तशाल नह ं होता क वो बाजार को अपने हत म भा वत कर सके ।
वा त वकता म पूण तयो गता के अ तगत व तु क बाजार क मत सभी े ताओं और
व े ताओं क संयु त याओं वारा नधा रत होती है । एक बार बाजार वारा क मत नधा रत
हो जाने पर येक व े ता उसे वीकार कर उ पादन क मा ा को उसके अनुसार समायोिजत
करता है । अथात ् पूण तयोगी बाजार म उ योग वारा तय होती है िजसे यि तगत फम
वीकार करती है ।
(2) सम प व तु एँ
पूण तयोगी बाजार म वभ न व े ताओं या फम वारा बेची जाने वाल व तु एँ
सम प होती है ।अथात ् व भ न फम वारा बेची जाने वाल व तु एँ े ताओं क ि ट म एक
दूसरे क पूण थानाप न होती है । ऐसी ि थ त म व तु ओं क तलोच (Cross Elasticity)
अन त होती है । व तु ओं के सम प होने क मा यता से यह प ट है क े तागण क कसी
फम वशेष वारा उ पा दत व तु के त कोई लगाव नह ं होता । अत: कोई भी व े ता
च लत बाजार क मत से त नक भी अ धक क मत नह ं ले सकता । य द वह ऐसा करता है तो
सभी े ता या ाहक उसे छोड़ जायगे । प रणामत: बाजार म क मत अ तर नह ं पाये जाते ।
(3) फम का नबाध वेश एवं ब हगमन
पूण तयोगी बाजार के अ तगत फम को उ योग म व ट होने अथवा बाहर
नकलने क पूण वत ता होती है । यह मा यता द घकाल म लागू होती है य क अ पकाल
म न तो फम अपने सय का आकार बदल सकती है और न ह नई फम वेश कर सकती है
और न पुरानी फम उसको छोड़ सकती है । य द अ पकाल म फम सामा य लाभ से अ धक
लाभ अिजत कर रह ह तो द घकाल म उस उ योग म नई फम आकृ ट होगी और इस कार
असामा य लाभो को समा त कर दे गी । इसी कार य द फम हा न उठा रह है तो द घकाल म

(188)
वे बाजार छोड़ दे गी । िजसके प रणाम व प व तु क पू त म कमी होगी व क मत बढ़ जायेगी
। अत: जो फम उ योग म बच जायगी वे सामा य लाभ अिजत करे गी ।
(4) बाजार प रि थ तय का पूण ान
पूण तयोगी बाजार म े ताओं तथा व े ताओं म नकट का स पक होता है अतएव
उ ह उन क मत का पूण ान होता है िजन पर व तु एँ खर द या बेची जा रह है । उ ह उस
थान का भी पूरा ान होता है जहाँ व तु ओं का य- व य हो रहा है । बाजार प रि थ तय
का ऐसा ान व े ता को अपनी व तु बाजार म च लत क मत पर बेचने एवं े ता को उसे
उस क मत पर खर दने को ववश करता है । पूण तयोगी बाजार म बाजार प रि थ तय के
पूण ान क मा यता से यह भी प ट होता है क व तु के बारे म जानने यो य बात क
े ताओं को पूण जानकार होने से फम को व ापन एवं चार पर यय करने क आव यकता
नह ं रहती ।
उपयु त मह वपूण मा यताओं के साथ यह भी माना जाता है क सरकार या कसी अ य
एजसी क ओर व तु ओं क मांग या पू त या क मत को नयं त करने का कोई यास नह ं होता
। सभी फम अपने लाभ को अ धकतम करने के उ े य से काय करती ह । व तु एँ एवं साधन पूण
प से ग तशील होते ह तथा प रवहन लागत अनुप ि थत होती है ।
पूण तयो गता एवं शु तयो गता म अ तर
कु छ अथशा ी, जैसे क ो. चे बर लन पूण तयो गता एवं शु तयो गता म अ तर
करते ह । उनके अनुसार शु तयो गता उस तयो गता को य त करती है िजसम एका धकार
का क ई अंश उपि थत न हो । अथात ् एका धकार का अभाव या अनुपि थ त शु तयो गता
कहलाती है । इसके वपर त पूण तयो गता एक यापक धारणा है िजसम केवल एका धकार क
अनुपि थ त ह नह ं बि क कई अ य कार क शु ताएं पायी जाती ह । ये अ य शु ताएँ ह -
साधन क पूण ग तशीलता एवं व े ताओं एवं े ताओं को भ व य के बारे म पूण ान होना ।
य य प वा त वक जगत म पूण तयो गता क शत पूर नह ं होती, फर भी पूण
तयो गता का अ ययन से अथ यव था के कायकरण को समझने म सहायता मलती है, जहाँ
तयोगी यवहार से संसाधन का े ठतम आवंटन एवं उ पादन का द तम संगठन होता है ।
बोध न - 1
(i) पूण तयोगी बाजार क शत बताइए
(ii) पूण तयोगी एवं शु तयो गता म अ तर बताइए

12.3 फम का सा य या स तु लन
फम के सा य या स तु लन से अ भ ाय क मत व उ पादन मा ा के उस तर का
नधारण से है िजस पर उसका लाभ अ धकतम होता है । यह वह ि थ त है िजसम फम कोई
प रवतन नह ं करना चाहे गी । जैसा क बताया जा चु का है, पूण तयो गता के अ तगत फम का
व तु क क मत पर कोई नय ण नह ं होता और उसे बाजार म च लत क मत को ह वीकार
करते हु ए उ पादन मा ा का नधारण करना होता है । य य प एक द हु ई क मत पर फम व तु
क िजतनी मा ा चाहे बेच सकती है पर तु येक फम व तु क केवल उतनी ह मा ा का
उ पादन कर ब करे गी िजस पर उसका कु ल लाभ अ धकतम हो ।

(189)
फम के स तु लन क मा यताएँ
पूण तयो गता म फम के स तुलन क या या करते समय हमार दो मा यताएँ ह गी-
(1) येक फम अपने मौ क लाभ को अ धकतम करने का यास करती है ।
(2) सभी फम क उ पादन लागत समान है िजसका अथ यह है क फम वारा योग
कये जाने वाले उ पि त के साधन समान प से कायकु शल ह ।

12.3.1 कुल आगम व तथा कु ल लागत व वारा फम का स तुलन -

इस र त के अनुसार उ पादन क िजस मा ा पर फम क कु ल आय (TR) एवं उसक


कु ल लागत (TC) के बीच सवा धक अ तर होता है, उस ब दु पर फम का लाभ अ धकतम होगा
एवं फम स तुलन क अव था म होगी । इसे रे खा च 12.1 म प ट कया गया ह ।

रे खा च 12.1
कु ल लागत व कु ल आगम व वारा फम का स तु लन
उपयु त रे खा च म TR कु ल आगम व है जो मू ल ब दु से सरल रे खा क आकृ त का
होता है। व तु क क मत TR व के ढाल के बराबर होती है । TC कु ल लागत व है जो मू ल
ब दु से ऊपर F से आर भ हो रहा है िजसका अ भ ाय: यह है क OF कु ल ि थर लागत ह ।
TC व आर भ म घटती दर से बढ़ रहा है और एक ब दु के प चात ् बढ़ती हुई दर से बढ़ रहा
है (इसके बारे म व तार से इकाई - 11 म बताया जा चु का है ।)
व तु के व भ न उ पादन तर पर अिजत कु ल लाभ को कु ल आगम व (TR) तथा
कु ल लागत व (TC) म ल बा मक अ तर वारा मापा जा सकता है । रे खा च से प ट है क
OQ1 उ पादन मा ा तक कु ल लागत व TC कु ल आगम व TR के ऊपर है िजसका अथ है
क OQ1 मा ा से कम उ पादन पर फम को हा न उठानी पड़ेगी । OQ1 उ पादन मा ा पर कु ल
आगम एवं कु ल लागत दोन आपस म बराबर है अत: ये ब दु शू य लाभ एवं शू य हा न क
ि थ त अथात ् ब दु B समि थ त ब दु (Break even Point) ह ।

(190)
जब फम OQ1 से अ धक उ पादन करती है तो कु ल आगम, कु ल लागत से अ धक होता
है । कु ल आगम व कु ल लागत का अ तर, उ पादन मा ा OQ2 तब बढ़ता है एवं इसके बाद पुन :
कम होने लगता है अथात ् फम के लाभ कम होने लगते ह एवं OQ3 उ पादन मा ा पर पुन :
लाभ शू य हो जाते ह । OQ3 से अ धक उ पादन पर फम को पुन : हा न उठानी पड़ेगी । अत:
प ट है क OQ2 उ पादन तर िजस पर TR एवं TC व के बीच ल बा मक अ तर सबसे
अ धक है, फम अ धकतम लाभ अिजत करे गी एवं सा य क ि थ त म होगी ।
(2) सीमा त तथा औसत व क र त
इस र त के अनुसार फम का सा य उस उ पादन मा ा पर होता है जहाँ उसक
सीमा त लागत (MC) सीमा त लागत (MC) सीमा त आगम (MR) के बराबर होती है तथा
सीमा त लागत व (MC) सीमा त आगम व के नीचे से काटते हु ए ऊपर उठ रहा हो ।
उ पादन के इस तर पर फम का लाभ अ धकतम होगा ।
जैसा क पूव म प ट कया जा चु का ह पूण तयो गता म फम को उ योग वारा
नधा रत क मत वीकार कर उ पादन मा ा का समायोजन करना पड़ता है । पूण तयो गता म
फम का मांग व अथवा औसत आगम व एक आगम या क मत के बराबर होता है य क
उ पादन क सभी इकाइयाँ एक समान क मत पर बेची जा सकती ह ।

रे खा च 12.2
फम का अ पकाल न स तुलन
च लत क मत OP है । PL रे खा फम का मांग व अथवा सीमा त आगम एवं औसत आगम
व अथवा सीमा त आगम एवं औसत आगम व है । रे खा च 12.2 म MC व , MR व
को A तथा B दो ब दुओं पर काटता है । ब दु A पर य य प MC =MR है पर तु फम इस
पर स तुलन म नह ं होगी य क ब दु A से आगे उ पादन बढ़ाने पर फम क सीमा त लागत

(191)
सीमा त आय (आगम) से कम है अथात ् फम उ पादन बढ़ाकर अपने लाभ को बढ़ा सकती है ।
ब दु B पर अथात ् OQ2 उ पादन तर पर फम स तु लन म मानी जायेगी य क इस ब दु
पर MC = MR है एवं MC व MR व को नीचे से काटते हु ए ऊपर उठ रहा है अथात
इस ब दु से आगे उ पादन बढ़ाने पर फम क लागत उसके आगम से अ धक हो जायेगी
फल व प फम को हा न होगी । सा य क ि थ त म फम को लाभ हो रहा ह या हा न, यह
जानने के लये हम औसत लागत व पर भी यान दे ना होगा । चू ं क अ पकाल म इतना
समय नह ं होता क मांग के अनुसार पू त को समायोिजत कया जा सके, इस लए अ पकाल म
स तुलन क ि थ त म फम को असामा य लाभ, सामा य लाभ या हा न, तीन म से कसी भी
ि थ त का सामना करना पड़ सकता है । इन तीन दशाओं को न न रे खा च क सहायता से
समझा जा सकता है -

रे खा च 12.3
अ पकाल म फम का स तुलन एवं लाम-हा न क ि थ त
रे खा च 12.3 के तीन च म फम का स तु लन E ब दु पर दखाया गया है जहाँ
MR= MC ह एवं MC व MR व को नीचे से काट रहा ह । इन तीन च म अ पकाल न
लागत व भी दखाया ह, िजसक ि थ त म अ तर के कारण ह फम असामा य लाभ, हा न

(192)
अथवा सामा य लाभ अिजत कर रह होती है । तीन ह ि थ तय म क मत OP है ले कन त
इकाई लागत म अ तर है । रे खा च 12.3 (अ) म स तुलन ब दु E पर फम OQ मा ा का
उ पादन कर रह है । इस उ पादन तर पर औसत लागत SQ है । जो क मत से कम है । इस
उ पादन को (OP) क मत ((=EQ) पर बेचने से त इकाई ES के बराबर असामा य लाभ ा त
होता है एवं कु ल असामा य लाभ ExRS(RS=OQ))अथात PRES े के बराबर होगा ।
रे खा च 12.3 (ब) म संतु लन ब दु E व OQउ पादन क त इकाई लागत SQ है जो क मत
या त इकाई आगम (EQ(=OP)से अ धक है अत: फम को त इकाई SE का नुकसान हो रहा
ह एवं कु ल नुकसान PRSE के बराबर होगा । रे खा च 12.3(स) म OQ उ पादन तर पर
औसत आगम औसत लागत के बराबर है, अत: फम सामा य लाभ अिजत कर रह ह ।
फम कस सीमा तक हा न वहन कर उ पादन जार रखेगी ?
इस न का उ तर दे ने के लये हम लागत के ि थर एवं प रवतनशील भाग को यान
म रखना होगा । जैसा क पूव म बताया जा चु का है, ि थर लागत का उ पादन क मा ा से कोई
स ब ध नह ं होता अथात ् उ पादन शू य होने पर भी फम को ि थर लागत वहन करनी पड़ती है
। प रवतनशील लागत म उ पादन क मा ा के साथ प रवतन होता है एवं उ पादन के शू य होने
पर यह भी शू य हो जाती है । लागत के इस यवहार को यान म रखते हु ए हम अपने न
पर वचार करत है । अ पकाल म जब फम को हा न हो रह होती है तो फम अपने नुकसान को
यूनतम रखने का यास करे गी । अब य द हम यह सोच क फम हा न क ि थ त म अपने
उ पादन को बंद करने का नणय करती है तो उस ि थ त मे प रवतनशील लागत तो शू य हो
जायेगी पर तु ि थर लागत तो फम को वहन करनी पड़ेगी अथात ् फम का नुकसान ि थर लागत
के बराबर होगा । य द फम उ पादन जार रखने का नणय करती है एवं उ पादन को बेचने से
होने वाल औसत आय औसत प रवतनशील लागत से अ धक है तो फम न केवल प रवतनशील
लागत को पूरा कर रह है बि क ि थर लागत के कु छ भाग को भी पूरा कर रह ह । फल व प
उसक कु ल हा न घटकर कु ल हा न घटकर कु ल ि थर लागत से कम हो जायेगी । इस लए एक
फम के लए यह उ चत होगा क अ पकाल म वह अपना उ पादन तब तक जार रखे जब तक
क उसे प रवतनशील लागत से अ धक आय ा त हो रह ह, भले ह कु ल मलाकर उसे हा न हो
रह हो । य द व तु क क मत इतनी कम हो जाये क फम क औसत प रवतनशील लागत भी
पूर न होती हो तो फम क औसत प रवतनशील लागत भी पूर न होती हो तो फम को अपना
उ पादन ब द कर दे ना चा हये य क ऐसी ि थ त म ि थर लागत के साथ-साथ प रवतनशील
लागत के कु छ भाग क पू त भी नह ं हो रह है प रणाम व प फम क कु ल हा न और भी
अ धक हो जायेगी । सं ेप म हम यह कह सकते ह क उ पादन को जार रखने क आव यक
शत यह है क -फम क कम से कम प रवतनशील लागत अव य पूर ह । इस त य को न न
रे खा च से प ट कया जा सकता है ।

(193)
रे खा च 12.4
पूण तयोगी फम के लए उ पादन बंद करने का ब दु
ार भ म फम का स तु लन E ब दु पर ह जहाँ MC=MR ह एवं इस ब दु पर OQ
उ पादन मा ा तथा OP क मत ह । इस ब दु पर चू ं क त इकाई OP क मत, त इकाई
लागत OR से कम है इस लए फम को PRSE े फल के बराबर हा न हो रह है । इस ि थ त
म भी फम को उ पादन जार रखना चा हये य क OP क मत औसत प रवतनशील लागत OK
से अ धक है । ऐसी ि थ त म फम अपनी कु ल प रवतनशील लागत OKLQ के साथ ि थर
लागत के KE:EP भाग को पूरा कर रह है ।
अब माना क नया मांग व नीचे खसक कर P1D1 हो जाता है, िजससे फम का
स तुलन E1 ब दु पर होगा िजस पर क मत OP1 तथा उ पादन OQ1 है । इस ब दु पर
क मत OP1 केवल प रवतनशील लागत को पुरा कर रह है अथात ् फम क कु ल हा न ि थर
लागत, जो P1 ABE, े फल के बराबर है, के बराबर होगी । इस ि थ त म फम उ पादन जार
रखने या बंद करने के त उदासीन होगी य क दोन ह ि थ तय म उसे कु ल ि थर लागत के
बराबर हा न हो रह है । अब य द बाजार म व तु क क मत न नतम औसत प रवतनशील
लागत से भी घटकर OP2 हो जाये तो फम को उ पादन तुर त ब द कर दे ना चा हये य क इस
क मत पर सम त प रवतनशील लागत भी पूर नह ं हो रह ह । इस ि ट से E1 ब दु को
उ पादन ब द होने का ब दु (Shut down point) कहगे तथा OP1 को उ पादन ब द करने क
क मत (Shout down price) कहगे ।

12.3.2 फम का द घकाल न स तु लन

द घकाल इतनी ल बी समय अव ध होती है क फम अपने सभी साधन म प रवतन कर


सकती है अथात ् मांग के अनु प उ पादन को घटाया -बढ़ाया जा सकता है । इसके अ त र त
द घकाल म नई फम वतमान फम क तयो गता म उस उ योग म वेश कर सकती है या -
फम उ योग छोड़कर बाहर भी जा सकती है । द घकाल म फम के स तुलन के अ ययन म

(194)
औसत कु ल लागत ह मह वपूण है य क द घकाल म सभी लागत प रवतनशील होती है और
कोई भी लागत ि थर नह ं होती ।
द घकाल म भी फम का उ े य अपने लाभ को अ धकतम करना होता है अत: सा य क
शत यह है क उसक सीमा त लागत उसक सीमा त आय अथवा क मत के बराबर हो । चू ं क
द घकाल म सभी फम सामा य लाभ ह कमा सकती है अत: यह भी ज र है क व तु क
क मत औसत लागत के बराबर हो । इसका कारण यह है क य द क मत, औसत लागत से
अ धक है तो फम को सामा य से अ धक लाभ ा त ह ग । इन असामा य लाभ से आकृ ट
होकर नयी फम को सामा य से अ धक लाभ ा त ह गे । इन असामा य लाभ से आकृ ट होकर
नयी फम उ योग म वेश करगी । उ योग म नयी फम के वेश से व तु के उ पादन एवं पू त
म वृ होगी । व तु क पू त म वृ से व तु क क मत गर जायेगी । नयी फम के वेश से
फम क उ पादन लागत म भी वृ होगी य क उ पादन के साधन के लए तयो गता बढ़
जाने से उनक क मत बढ़ जायेगी । इस कार उ योग म नयी फम के वेश से एक तरफ व तु
क क मत म कमी होती है तो दूसर तरफ व तु क उ पादन लागत म वृ होती है । नयी फम
उ योग म तब वेश करे गी जब तक क क मत औसत लागत के बराबर नह ं हो जाती एवं
असामा य लाभ समा त नह ं हो जाते ।
इसके वपर त य द व तु क क मत, औसत लागत से कम है तो फम को हा न होगी
एवं इन हा नय के कारण कु छ फम उ योग छोड़ दे गी । प रणाम व प व तु के उ पादन म कमी
से उसक क मत बढ़ जायेगी । साथ ह , कु छ फम के उ योग छोड़ दे ने से साधन क मांग कम
हो जायेगी िजससे उनक क मत घट जाएगी । फम उ योग को छोड़ती रहगी जब तब क क मत
औसत लागत के बराबर नह ं हो जाती और उ योग म रह गई फम केवल सामा य लाभ नह ं
कमा रह होती । अत: द घकाल म स तुलन क ि थ त म -
AR = MR = MC = AC = price
द घकाल म फम के स तुलन को रे खा च 12.5 म दशाया जाता है । च से प ट है
क स तुलन क ि थ त 'E' म फम OQ मा ा का उ पादन करती है तथा OP क मत पर बेचती
ह । फम का सा य OP क मत से कम या अ धक कसी भी अ य ब दु पर नह ं हो सकता
य क इसी ब दु पर स तु लन क ऊपर व णत शत पूर होती ह । (174)

द घकाल म फम का सा य
(195)
च से यह भी प ट है क स तुलन के ब दु पर AR व MR व LAC व को
यूनतम पर पश कर रहे ह व MC व भी LAC के यूनतम पर काट रहा है, अत: क मत
औसत लागत के बराबर है एवं फम सामा य लाभ ा त कर रह है ।
यहाँ यह भी उ लेखनीय है क फम वारा द घकाल न औसत लागत व के न नतम
ब दु पर उ पादन करना इस बात का योतक है क फम इ टतम आकार (Optimum size) क
है एवं यूनतम स भव औसत लागत पर उ पादन कर रह है । फम के इ टतम आकार पर
उ पादन करने से संसाधन का अ धकतम कु शल योग सु नि चत होता है एवं उपभो ताओं को
न नतम स भव क मत पर व तु ा त होती है ।
बोध न - 2
(i) आयात म फम के संतु लन क या या क िजए ।
(ii) फम कस सीमा तब हा न वहन करके उ पादन जार रख सकती ह ?
समझाइए

12.4 उ योग का स तु लन
पूण तयो गता के अ तगत एक उ योग ऐसी फम का समू ह है जो केवल एक ह व तु
का उ पादन करता है । उ योग के स तुलन से अ भ ाय उस ि थ त से है जब उस उ योग म
व तु के कु ल उ पादन क मा ा म घटने-बढ़ने क वृि त न हो अथात उ योग वारा उ पा दत
व तु क मांग मा ा, उसके वारा क गई पू त बराबर हो । जब व तु क मांग और पू त क
मा ाएँ समान नह ं होती, उ योग वारा व तु के उ पादन मा ा म घटने'-बढ़ने क वृि त होगी ।
यद च लत क मत पर व तु क मांग उसक पू त से अ धक है तो उ योग उस व तु का
उ पादन बढ़ाने को े रत होगा । इसके वपर त च लत क मत पर मांग के पू त से कम होने पर
उ योग उस व तु का उ पादन घटाने के लए े रत होगा । अत: यह कहा जा सकता है क व तु
क िजस मा ा तथा क मत पर उसका मांग व एवं पू त व एक दूसरे को काटगे, उस उ पादन
मा ा पर उ योग का स तुलन होगा । यहाँ यह जानना भी मह वपूण होगा क उ योग क पू त
अथवा उ पादन कैसे बदल सकता है । कसी उ योग के उ पादन म दो कार से प रवतन हो
सकता है-
(1) य द उ योग क वतमान फम अपना-अपना उ पादन बदल द,
(2) य द उस उ योग म नई फम व ट हो जाये या वतमान फम उसे उ योग को छोड़ द ।
अत: उ योग क पू त अथवा उ पादन मा ा तब ि थर रहे गी जब क उस उ योग क
सभी वतमान फम स तुलन म हो अथात ् अपनी उ पादन मा ा म बदलाव न करना चाहे तथा उस
उ योग म कोई भी नई फम वेश न करे और न ह कोई फम उ योग से बाहर हो । दूसरे श द
म हम यह कह सकते ह क उ योग उस ि थत म स तुलन म होगा जब उस उ योग क येक
फम स तुलन म हो एवं सामा य लाभ अिजत कर रह ह । उपयु त ववेचन के आधार पर यह
न कष नकलता है क उ योग के स तुलन के लए न न ल खत तीन शत पूर होनी चा हये
(1) उ योग वारा उ पा दत व तु क मांग एवं पू त मा ाएँ बराबर ह अथात ् जहाँ मांग और पू त
व एक दूसरे को काटते ह ।

(196)
(2) उ योग वारा नधा रत क मत पर सभी फम अपने यि तगत संतल
ु न क ि थत
(MR=MC = क मत) म हो ।
(3) नई फम के उ योग म वेश करने क तथा वतमान फम क उ योग से बाहर जाने क
वृि त न हो अथात ् जब वतमान फम केवल सामा य लाभ ह आजत कर रह हो ।
उ योग के अ पकाल म स तुलन के लए पहल दो शत तथा द घकाल म स तु लन के
लये तीन ह शत का पूरा होना आव यक है । उ योग के स तुलन क रे खा च वारा या या
से पूव उसके मांग व पू त व के आकार के बारे म ववेचन करना उपयु त होगा ।
उ योग का मांग व
उ योग के लये कसी व तु क मांग, उपभो ताओं क यि तगत मांग का कु ल योग
अथवा उ योग मे उपि थत फम क मांग का योग के बराबर ह गी । पूण तयो गता म
यि तगत फम का मांग व एक सरल पड़ी रे खा होती है । पर तु उ योग का मांग व बाय से
दाय नीचे गरता हु आ होता है, िजसका अथ यह है क उ योग अपनी व तु क अ धक मा ा कम
क मत पर और ऊँची क मत पर कम मा ा बेच पाता है ।
उ योग का पू त व
कसी व तु के लए उ योग का पू त व यि तगत फम क पू त का ै तज योग
होता है । अथात ् सभी यि तगत फम क पू त को जोड़कर उ योग क पू त का पता लगाया जा
सकता है । उ योग का पू त व बाय से दाय ऊपर उठता हु आ घना मक ढाल वाला होता है
िजसका अथ यह है क ऊँची क मत पर पू त क मा ा अ धक होगी और नीची क मत पर पू त
क मा ा कम होगी । अ त अ पकाल म उ योग का पू त व एक खड़ी या उद रे खा (Vertical
line) होती है । इसका कारण यह है क अ त अ पकाल इतनी कम समय अव ध है क पू त
पूणतया बेलोचदार होती है ।

12.4.1 उ योग का अ त अ पकाल न सा य

जैसा क ऊपर बताया जा चु का है, पूण तयो गता क ि थ त म उ योग उस ब दु पर


सा य म होता है जहाँ उ योग क पू त उसक मांग के बराबर होती ह । अ त अ पकाल म व तु
का पू त व SS एक खड़ी रे खा है एवं मांग व DD बाय से दाय गरता हु आ व है । रे खा च
व 12.6 म व तु क मांग व पू त व वारा क मत उ पादन स तु लन दखाया गया है। व तु
क ारि भक मांग DD वारा य त होने पर क मत OP है । मांग के बढ़कर D1 D1 होने पर
क मत बढ़कर OP1 हो जाती है तथा घटने पर D2 D2 होने पर क मत कम होकर OP2 हो जाती
है ।

उ योग का अ त अ पकाल न सा य
(197)
12.4.2 उ योग का अ पकाल न स तु लन

अ पकाल म फम क सं या ि थर होने के कारण उपि थ त फम ह अनेक उ पादन म


समायोजन करती ह उ योग के अ पकाल म स तुलन के लये भी यह आव यक है क व तु क
मांग एवं पू त बराबर हो ।

अ पकाल म उ योग का सा य
उपयु त रे खा च म DD ारि भक मांग व है तथा SS उ योग का कु ल पू त व ह
जो एक-दूसरे को E ब दु पर काटते ह । इस ब दु पर उ योग म व तु का कु ल उ पादन OQ
है एवं क मत OP है । य द मांग बढ़कर D1D1 से जाये तो उ योग म उपि थत फम अपनी
उ पादन मा ा म समायोजन करगी फल व प पू त बढ़कर OQ1 तथा क मत OP1 हो जायेगी ।
इसके वपर त य द व तु क मांग घटकर D2D2 हो जाये तो संतु लन E2 ब दु पर होगा जहाँ
व तु क क मत OP2 एवं पू त OQ2 है अथात ् मांग कम होने पर उपि थत फम अपने उ पादन
को कम कर दगी ।
उ योग के अ पकाल न संतल
ु न म य य प उसक सभी वतमान फम यि तगत प से
स तुलन म होती है पर तु वे असामा य लाभ कमा सकती है अथवा उ ह हा न उठानी पड़ सकती
है । (जैसा क फम अ पकाल न संतल
ु न क ववेचना म बताया जा चु का है ।)

।2.4.3 उ योग का द घकाल न स तुलन

उ योग के द घकाल न सा य क ि थ त म सभी फम केवल सामा य लाभ ा त करती


है अतएव फम क सं या अथवा उ योग के आकार मे कोई प रवतन नह ं होता । दूसरे श द मे,
उ योग क सभी फम द घकाल न सा य क ि थ त म होती है ।
सामा य प म एक उ योग के द घकाल न सा य के लये, सा य क मत पर उ योग क
कु ल पू त उसक कु ल मांग के बराबर होनी चा हये । उ योग के द घकाल न सा य को रे खा च
12.8 म दशाया गया ह ।

(198)
रे खा च 12.7
उ योग का द घकाल न स तुलन
उपयु त रे खा च 12.8 के (अ) भाग म उ योग के मांग व पू त व एक दूसरे को E
ब दु पर काट रहे ह तथा इस ब दु पर क मत OP तथा उ पादन OQ नधा रत हो रहा है ।
उ योग वारा नधा रत क मत OP पर फम भी द घकाल न सा य म है अथात ् फम यूनतम
लागत पर उ पादन कर रह है एवं सामा य लाभ अिजत कर रह है िजसे रे खा च के (ब) भाग
म दखाया गया है । फम OP क मत पर OX मा ा का उ पादन कर रह है एवं उसके स तु लन
क ि थ त म LMC = SMC = P = MR है ! यह बराबरता फम के अ धकतम लाभ को
सु नि चत कर रह है । फम सामा य लाभ कमा रह है य क LAC = SAC = P क शत भी
E ब दु पर पूर हो रह है ।
t c OP क मत पर उ योग म उपि थत सभी फम स तुलन म है एवं सामा य लाभ
कमा रह है अथात ् फम के वेश या नकासी क कोई स भावना नह ं है । ऐसी ि थ त म
उ योग का पू त व ि थर होगा एवं दये हु ए मांग व DD के साथ OP क मत द घकाल न
सा य क मत होगी।
च से यह भी प ट है क फम द घकाल न व अ पकाल न दोन ह अव धय क ि ट
से स तु लन म है इस लए उ योग के द घकाल न सा य को पूण सा य कहते ह ।

12.5 सारांश
पूण तयोगी बाजार क वशेषताओं के आधार पर हम कह सकते ह क ये बाजार क
आदश ि थ त ह । वा त वक बाजार क प रि थ तयाँ पूण तयो गता से भ न होती ह । फर
भी पूण तयोगी बाजार म फम एवं उ योग के स तुलन का अ ययन इस लये मह वपूण है क
आदश ि थ त म क मत एवं उ पादन मा ा के नधारण क या क समझ के आधार पर हम
वा त वक जगत के अपूण तयोगी बाजार. क व भ न दशाओं म फम एवं उ योग के स तु लन
का व लेषण कर पायगे ।

12.6 श दावल
पूण तयो गता सम प व तुए,ँ फम का सा य, उ योग का सा य, सामा य लाभ,
असामा य या आ थक लाभ ।

(199)
12.7 बोध न
न न ल खत न के उ तर सं ेप म द िजये (150 श दो म)
1. पूण तयोगी बाजार क वशेषताएँ बताइये ।
2. ''पूण त प ा क दशा म फम क सम या केवल उ पादन मा ा नि चत करता है ।“ इस
कथन क ववेचना क िजये ।
3. पूण तयो गता म एक उ योग के सा य क दशाओं को बताइये ।
4. पूण तयो गता म फम के सा य क दशा को बताइये ।
5. पूण तयो गता म क मत कैसे नधा रत होती ह ?
न न ल खत न के उ तर व तार से द िजये-
1. ''द घकाल म येक फम यूनतम औसत लागत पर काय करती ह, और यह क मत के
बराबर होती है ।‘’ इस कथन क समी ा क िजये ।
2. पूण तयो गता के अ तगत फम के स तु लन क अव था को रे खा च क सहायता से
समझाइये ।

12.8 संदभ
1. आहु जा, एच. एल. - उ चतर आ थक स ांत
2. झंगन एम. एल. - यि ट अथशा
3. सेठ एम. एल. - अथशा के स ांत
4. सु दरम एवं वै य - यि ट अथशा

(200)
इकाई-13
एका धकार एवं क मत वभेद Monopoly and Price
Discrimination

इकाई क परे खा
13.0 उ े य
13.1 तावना
13.2 एका धकार का अथ
13.3 एका धकार का उ े य
13.4 एका धकार के अ तगत मू य नधारण
13.4.1 एका धकार फम का मांग व
13.4.2 एका धकार फम का पू त व
13.5 एका धकार उ योग का संतल
ु न
13.5.1 अ तअ पकाल म एका धकार संतु लन
13.5.2 अ पकाल म एका धकार संतु लन
13.5.3 द घकाल म एका धकार सा य
13.6 एका धकार एवं पूण तयो गता क तु लना
13.7 एका धकार उ प न होने के कारण
13.8 एका धार के लाभ व हा नयां
13.9 वभेदा मक एका धकार अथवा क मत वभेद
13.9.1 क मत वभेद क शत
13.9.2 वभेदा मक एका धकार के अ तगत मू य तथा उ पादन का नधारण
13.10 सारांश
13.11 श दावल
13.12 संदभ थ
13.13 बोध न के उ तर
13.14 अ यासाथ न

13.0 उ े य (Objectives)
इस इकाई के अ ययन के प चात ् आप-
 एका धकार के बारे म समझ पायगे
 एका धकार के अ तगत मू य तथा उ पादन नधारण कैसे होता है, इसका ववेचन
कर सकगे ।

(201)
 एका धकार तथा पूण तयो गता म अंतर समझ सकगे ।
 एका धकार से होने वाले लाभ व हा न के बारे म जान सकगे ।
 क मत वभेद करण का ता पय व इसके अ तगत मू य नधारण क जानकार ा त
कर सकगे।

13.1 तावना (Introduction)


व नमय अथशा के अ ययन का एक मह वपूण भाग होता है । इसके अंतगत बाजार,
बाजार क दशाएं एवं मू य नधारण का अ ययन कया जाता है । अथशा के अ ययन का
मु य उ े य संसाधन के अनुकू लतम योग के वारा लाभ को अ धकतम तथा लागत को
यूनतम करना होता है । िजस कार एक उपभो ता अपने सी मत संसाधन वारा अपनी संतु ि ट
को अ धकतम करना चाहता है उसी कार एक यावसा यक फम भी अपने मौ क लाभ को
अ धकतम करना चाहती है । इसके लए वह एक ओर लागत को यूनतम करने का यास
करती है तो दूसर ओर व तु के मू य को इस कार नधा रत करती है क फम का लाभ
अ धकतम हो । अथशा म मु यत: बाजार क तीन ि थ तय का अ ययन कया जाता है ।
पूण तयो गता, एका धकार एवं एका धकारा मक तयो गता । पूण तयो गता म े ताओं एवं
व े ताओं के म य अ य धक तयो गता पायी जाती है । यह तयो गता क उ चतम सीमा
होती है । पूण तयो गता म मू य नधारण बाजार क शि तय अथात ् कु ल मांग व पू त वारा
होता है । एका धकार के अ तगत व तु का एक उ पादक व व े ता होने के कारण व तु क पू त
पर उसका पूण नयं ण होता है व मू य नधारण वह वयं करता है । इसम तयो गता का
पूणतया अभाव पाया जाता है । एका धकारा मक तयो गता तीसर बाजार ि थ त है । इसे
अपूण तयो गता भी कहते ह । यह पूण तयो गता व एका धकार के बीच क ि थ त होती है ।
तु त इकाई म एका धकार के अ तगत मू य नधारण का अ ययन कया गया है ।

13.2 एका धकार का अथ (Meaning of Monopoly)


जब बाजार म कसी व तु का केवल एक ह उ पादक अथवा व े ता होता है तो उसे
एका धकार कहते ह । (Monopoly) श द अं ेजी भाषा के दो अ र से बना है Mono तथा Poly
। Mono का अथ है एक तथा Poly का अथ है बेचना । इस कार बाजार म व तु का एक ह
व े ता पाये जाने क प रि थ त को एका धकार कहा जाता है । यह एका धकार का शाि दक अथ
है । अथशा म 'एका धकार' से अ भ ाय बाजार म च लत तयो गता के अंश (Degree) से
होता है । य द बाजार म व तु का एक ह व े ता होता है तथा तयो गता का पूण अभाव होता
है तो इसे वशु अथवा पूण अथवा नरपे एका धकार कहा जाता है । एका धकार म फम म ह
उ योग होती है तथा इसम नकट थानाप न व तु का अभाव पाया जाता है । इस कार वशु
एका धका२ से ता पय उस एकाक फम / उ योग से है जहां पर फम क व तु तथा बाजार म
बेची जाने वाल अ य व तु ओं के बीच मांग क आड़ी लोच शू य होती है । व तु क पू त पर
पूण नयं ण होने के कारण वह व तु का मू य वयं नधा रत करता है वह कोई भी मू य
नधा रत कर सकता है । मू य नधारण करते समय एका धकार का उ े य अपने कु ल लाभ को
अ धकतम करना होता है । टो नयर एवं हे ग ने एका धकार को इस कार प रभा षत कया है :-

(202)
“एका धकार उस बाजार ि थ त को कहते ह िजसम व तु का एक ह उ पादक होता है तथा उसका
अपनी व तु क पू त पर, िजसका कोई नकट थानाप न नह ं होता, पूण नयं ण होता है । ''
सं ेप म एका धकार क शत न न ह, इनम से एक का भी अभाव होने पर बाजार
वशु एका धकार नह ं होता ।
 बाजार म व तु वशेष एक ह उ पादक या व े ता का होना ।
 व तु क नकट थानाप न व तु का अभाव अथात ् व तु क आडी मांग क लोच शू य
होती है।
 एक फम उ योग ।
 नई फम के वेश म भावपूण कावट का होना ।

13.3 एका धकार का उ े य (Objective of a Monopolist)


एक एका धकार फम का उ े य अपने 'कु ल लाभ’ को अ धकतम करना होता है न क -
त इकाई को लाभ को । साथ ह एका धकार फम पूण तयोगी फम क भां त केवल सामा य
लाभ से ह संतु ट नह ं होती वरन ् उसका उ े य असामा य लाभ ा त करना होता है य य प
अ पकाल म ि थर लागत के अ धक होने पर एका धकार को हा न उठानी पड सकती है क तु
द घकाल म वह अपनी एका धकार शि त के कारण सदैव सामा य लाभ से अ धक लाभ क
आशा रखता है । एक एका धकार को सामा य लाभ से अ त र त जो लाभ ा त होता है । उसे
माशल ने शु एका धकार लाभ कहा है । माशल के श द म “ एक एका धकार का प ट उ े य
अपनी पू त को मांग के अनुसार इस कार समायोिजत करना नह ं है क वह क मत िजस पर वह
अपनी व तु बेच सकता है, वह उसक केवल उ पादन लागत को ह पूरा कर बि क इस कार
करता है क िजससे उसको अ धकतम कु ल शु एका धकार लाभ ा त हो सक ।“
एक एका धकार का असामा य लाभ उस समय अ धकतम होता है जब सीमा त इकाई
से उसे केवल सामा य लाभ ा त होता हो अथात ् सीमा त इकाई पर असामा य लाभ शू य ह ।
एका धकार तब तक अपने उ पादन म वृ करता रहता है जब तक उसक एका धकार फम का
सीमा त आगम (MR) उसक सीमा त लागत (MC) से अ धक रहता है िजस ब दु पर सीमा त
आगम सीमा त लागत के बराबर हो जाता है उस ब दु पर एका धकार का कु ल लाभ अ धकतम
होता है । इसके बाद उ पादन म वृ करना उसके लए लाभ द नह ं होता ।
बोध न-
1. एका धकार को प रभा षत क िजए ।
2. वा त वक जगत म बाजार म कौन सी तयो गता पायी जाती ह?
3. मांग क आड़ी लोच कसे कहते ह?
4. एकाक फम उ योग से या आशय ह ?
5. एका धकार का मु य उ े य या होता ह?
6. शु एका धकार लाभ कसे कहते ह?

(203)
13.4 एका धकार के अ तगत मू य नधारण (Price
Detgermination under Monopoly)
यद प एका धकार का अपनी व तु क क मत तथा पू त पर पूण नयं ण होता है क तु
वह क मत तथा पू त को एक साथ नि चत नह ं कर सकता । वह एक समय म या तो क मत
को या पू त क मा ा को ह नि चत कर सकता है । य द वह पू त क मा ा को नि चत करता
है तो उसे क मत को, मांग क दशाओं के अनुसार तय होने के लए वतं छोड़ना पड़ता है ।
इसके वपर त क मत नधा रत करने पर वह इस क मत पर मांग क दशाओं के अनुसार पू त क
मा ा को समायोिजत करता है ।
सामा यतया एक एका धकार मू य को नि चत करता है व नि चत क गई इस क मत
पर व तु क मांगी जाने वाल मा ा के अनुसार वह अपनी पू त को आसानी से समायोिजत कर
लेता है । इसके वपर त य द वह क मत के थान पर पू त को नि चत करता है तो मांग म
अ धक कमी हो जाने पर (मांग क अ नि चतता व इस पर कोई नयं ण नह ं होने के कारण)
उसे हा न उठानी पड़ सकती ह ।
एका धकार के अंतगत क मत एवं उ पादन, नधारण क या को समझने के लए
एका धकार फम क मांग (आगम), पू त (लागत) क दशाओं का ान आव यक है । इनका
सं त ववरण न न है -

13.4.1 एका धकार फम का मांग व

एका धकार के अंतगत उ योग क व तु का मांग व बायीं से दायीं ओर नीचे गरता है


। यह इस त य को मा णत करता केवल क मत म कटौती करके ह है क कम क मत पर
एका धकार फम व तु क अ धक मा ा बेच सकती है । एका धकार फम का मांग व ह उसका
औसत आगम व होता है । औसत आगम व के नीचे सीमा त आगम व होता है जो औसत
आगम व क तु लना म अ धक तेजी से नीचे गरता है । इसे रे खा च व 13.1 म द शत
कया गया है ।

रे खा च 13.1 म X - अ पर उ पादन क मा ा तथा Y - अ पर मू य लया गया


है औसत आगम व (AR) तथा सीमा त आगम व (MR) दोन नीचे गर रहे ह । औसत
आगम व क तु लना म सीमा त आगम व अ धक पाती (Steeper) होता है जो यह प ट

(204)
करता है क उ पादन क अ धक मा ा बेचने के लए मू य को कम करना आव यक होता है व
मू य म कमी सभी इकाइय म होती ह ।

13.4.2 एका धकार फम का पू त व

एका धकार फम का पू त व या लागत व पूण तयो गता वाल फम के लागत व


के आकार का ह होता है । अ पकाल म पूण तयो गता क भां त एका धकार म भी ि थर
साधन म प रवतन नह ं कया जा सकता जब क द घकाल म सभी साधन प रवतनशील होते ह ।
अ पकाल म लागत व का आकार अं ेजी के अ र U के समान होता है क तु द घकाल म
उ पि त के नयम के अनु प उनके आकार म अ तर पाया जाता है !
उ पि त ास नयम
य द एका धकार फम उ पि त हास नयम के अनुसार उ पादन कर रह है तो ऐसी
ि थ त म औसत तथा सीमा त लागत व बाय से दाय ऊपर उठते हु ये होते ह तथा सीमा त
लागत व (MC) औसत आगम व (AC) के उपर ि थत होता है इसे रे खा च व 13.2 म
द शत कया गया है ।

रे खा च 13.2 से प ट है क उ पि त हास नयम के अ तगत उ पादन होने पर जैसे-


जैसे उ पादन क मा ा म वृ क जाती है औसत व सीमा त लागत म वृ होती जाती है ।
उ पि त समता नयम
उ पि त समता नयम के अ तगत उ पादन होने पर सीमा त व औसत लागत व एक
ै तज रे खा होते ह । उ पादन क मा ा म वृ करने पर सीमा त लागत म वृ समान दर से
होती है। फल व प औसत लागत भी समान दर से बढ़ती है इसे रे खा च 13.3 म द शत कया
गया है।

(205)
उ पि त वृ नयम
य द व तु का उ पादन उ पि त वृ नयम के अनुसार हो रहा है तो सीमा त व औसत
लागत व बाय से दाय नीचे गरते हु ये होते ह व सीमा त लागत व औसत लागत व के
नीचे ि थत होता है । इसे रे खा च 13.4 मे दखाया गया है !

13-5 एका धकार उ योग का संतु लन (Equilibrium of Monopoly


Industry)
मांग व पू त व का ान ा त करने के प चात हम एका धकार हम वभ न
समायाव धय म मू य नधारण का अ ययन करगे । इसके अंतगत न न 3 प रि थ तय म
मू य नधारण या एका धकार संतु लन का अ ययन कया जायेगा ।

13.5.1 अ त अ पकाल या बाजार अव ध म एका धकार संतु लन

अ त अ पकाल या बाजार अव ध कु छ घंट या बहु त कम समय का काल होता है । इस


अव ध म पू त ि थर रहने के कारण कु ल लागत ि थर होती है व मू य नधारण म लागत का
कोई मह व नह ं होता । ऐसी ि थ त म एका धकार व तु का मू य व तु के नि चत टॉक तथा
व तु क मांग के आधार पर इस कार नि चत करे गा क उसका कु ल लाभ अ धकतम ह । इसे
रे खा च 13.5 म द शत कया गया है ।

रे खा च 13.5 म प ट है क ARL(D) एका धकार क मांग रे खा या औसत आगम


व है तथा उसके पास व तु का कु ल टॉक OQ है िजसे एका धकार बेचना चाहता है । OQ

(206)
उ पादन क मा ा बेचने के लए उसे OP या OQ मू य नधा रत करना होगा । क तु इस मू य
से उसका कु ल लाभ अ धकतम नह ं होगा य क इस मू य पर उसका सीमा त आगम ऋणा मक
हो चु का है, फम का कु ल लाभ या आगम ब दु पर अ धकतम होता है जब सीमांत आगम शू य
होता है । यह फम का समय ब दु होता है । इस लए एका धकार अपनी व तु क क मत OP1
नधा रत करे गा व OQ1 मा ा बेचेगा । व तु के नाशवान

13.5.2 अ पकाल म एका धकार संतु लन

अ पकाल म एका धकार फम उस उ पादन तर पर स तुलनाव था को ा त होती है


जहां इसक सीमा त लागत इसके सीमा त आगम के बराबर होती है । उ पादन के इस तर पर
फम अपने लाभ को अ धकतम तथा हा न को यूनतम कर लेती है ।
अ पकाल म समय इतना कम होता है क एका धकार फम ि थर साधन के आकार म
कोई प रवतन नह ं कर सकती अथात अ पकाल म फम के ि थर साधन अप रवतनशील होते है ।
व तु क मांग म प रवतन होने क दशा म प रवतनशील साधन क मा ा को प रव तत करके ह
पू त को मांग के अनु प घटाया या बढ़ाया जाता है ।
अ पकाल न सा य के लए आव यक है क सीमा त लागत सीमा त आगम के बराबर
हो । य द सीमा त आगम सीमा त लागत से अ धक है (MR>MC) तो इस ि थ त म एक
अ त र त इकाई को बेचने से कु ल आगम (TR) म होने वाल वृ उस अ त र त इकाई के
उ पादन से कु ल लागत (TC) म होने वाल वृ से अ धक होगीं । इस ि थ त म एका धकार के
लए अ त र त इकाई का उ पादन व व य करना लाभ द होगा । एका धकार व तु का
अ त र त उ पादन करके अपने लाभ को तब तक बढ़ाता जायेगा जब तक (MR=MC नह ं हो
जाता । MR<MC क ि थ त म एका धकार उ पादन कम मा ा को तब घटायेगा जब तक
सीमा त आगम सीमा त लागत के बराबर हो जायेगा । अ पकाल म एका धकार स तुलन क
तीन ि थ तयां हो सकती ह- अ धकतम लाभ क ि थ त, सामा य लाभ क ि थ त, हा न क
ि थ त । तीन ह ि थ तय का अ ययन अलग-अलग कया गया है । अ धकतम लाभ क
ि थ त को रे खा च 13.6 म द शत कया गया है ।

रे खा च 13.6
रे खा च 13.6 म अ पकाल न सीमा त लागत व (SMC) तथा सीमा त आगम व
(MR) एक दूसरे को E बंद ु पर काटते ह इस सा य E बंद ु एक एका धकार OQ मा ा का
उ पादन करे गा तथा OP मू य पर बेचेगा । OH त इकाई लागत है । HP या TS त इकाई
लाभ है तथा कु ल लाभ =OQXHP=HTPS े फल के बराबर होगा । इस कार एका धकार

(207)
लाभ क ि थ त म P>MC कभी -कभी अ पकाल म एका धकार को मा सामा य लाभ ा त हो
सकता है इसे रे खा च 13.7 म दशाया गया है ।

रे खा च व 13.7 म शू य एका धकार लाभ या सामा य लाभ क ि थ त को दशाया


गया है । E सा य बंद ु है जो MR तथा MC के संतल
ु न से ा त हु आ है । व तु क क मत
OP है तथा कु ल उ पादन OQ है । उ पादन के इस तर पर व तु का मू य फम क औसत
लागत तथा औसत आय के बराबर है अथात ् P=AR=AC च से प ट है क फम क कु ल
लागत तथा कु ल आगम का े OQPR के बराबर है जो यह दशाता है क फम केवल सामा य
लाभ ा त कर रह है जो उसक उ पादन लागत म पहले से ह सि म लत है ।
अ पकाल म फम को हा न भी हो सकती है । अ पकाल म ि थर साधन के
अप रवतनशील होने के कारण पू त को मांग के अनुसार समायोिजत नह ं कया जा सकता ।
एका धकार फम को अ धक से अ धक हा न फम क कुल ि थर लागत के बराबर हो सकती है
उससे अ धक नह ं । अ पकाल म एका धकार फम तब तक व तु का उ पादन जार रखती है जब
तक वह क मत से औसत प रवतनशील लागत को नकाल लेती है परं तु जैसे ह क मत औसत
प रवतनशील लागत से कम होती है फम उ पादन बंद कर दे ती है । य क अ पकाल म
एका धकार को ि थर लागत का भु गतान करना ह पड़ता है भले ह वह उ पादन न कर अत:
हा न क मा ा कु ल ि थर लागत के बराबर हो सकती है । इसे रे खा च 13.8 म दशाया गया है।

रे खा च 13.8 म एका धकार फम क हा न क ि थ त को दशाया गया है । फम का सा य


वंद ु E रे खा च 13.6

(208)
जहां SMC=MR है । इस संतल
ु न बंद ु के आधार पर OQ मा ा का उ पादन कया
जायेगा िजसे OP मू य पर बेचा जायेगा । फम क त इकाई लागत OB है जो त इकाई
मू य OP से अ धक है OB=OP=PB फम क त इकाई हा न है । फम क कु ल हा न का
े फल PABHसे अ धक हो जायेगी ।
अ पकाल म एका धकार फम को अ धकतम हा न उसक ि थर लागत HC के बराबर हो
सकती है । OP क मत AVC से अ धक है इस लए एका धकार अ पकाल म हा न होने पर भी
आशा से उ पादन करता रहे गा क द घकाल म हा न समा त हो कर लाभ ा त होने लगेगा ।
य द क मत AVC से भी कम होने लगेगी तो एका धकार व तु का उ पादन नि चत प से बंद
कर दे गा ।

13.5.3 द घकाल म एका धकार सा य

द घकाल म भी एका धकार फम उ पादन के उस तर पर संतु लन को ा त होती है


जहां पर इसका द घकाल न सीमा त लागत व (LPMC) इसके द घकाल न सीमांत आगम व
(LPMR) के बराबर होता है । इस अव ध म मांग के अनुसार उ पादन क मा ा को समायोिजत
करने के लए फम के पास पया त ल बा समय होता है । इस अव ध म प रवतनशील साधन के
साथ-साथ ि थर साधन म भी प रवतन कया जा सकता है । द घकाल म एका धकार को सदै व
असामा य लाभ ा त होता है य क एका धकार फम क औसत आय अथात क मत सदै व
उ पादन लागत से अ धक होती है । तथा उ योग म नई फम के वेश क संभावना शू य होती
है। द घकाल म एका धकार फम को हा न क संभावना भी नह ं होती । व तु त: द घकाल म
एका धकार फम असामा य लाभ बराबर कमाती रहती है । द घकाल न एका धकार संतल
ु न को
रे खा च व 13.9 के मा यम से दशाया गया है ।

रे खा च 13.9
द घकाल न एका धकार संतल
ु न को रे खा च 13.9 वारा द शत कया गया है । E
संतु लन बंद ु है जहां LPMC=LPMR है । कु ल उ पादन OQ है तथा OP या QA क मत है ।
यह औसत लागत BQ से अ धक है । फम का त इकाई लाभ AB है । कु ल एका धकार लाभ
PRBA े के बराबर है । द घकाल म एका धकार अपनी व तु का मू य अ धक या कम
नधा रत करे गा, यह दो बात पर नभर है थम व तु के मांग व क लोच वतीय उ पादन म
वृ करने पर औसत लागत का यवहार । य द मांग क लोच न न है तो एका धकार व तु का
मू य ऊँचे तर पर नधा रत कर सकता है य क ऊँचे मू य का मांग पर वपर त भाव नह ं
पड़ेगा । इसके वपर त मांग क लोच अ धक होने पर एका धकार न न क मत पर व तु क

(209)
अ धक मा ा बेचकर अपने लाभ को अ धकतम करने का यास करे गा । औसत लागत का
यवहार उ पादन के उस नयम से नधा रत होता है जो फम पर याशील होता है ।
फम के उ पादन पर तीन म से कोई भी नयम याशील हो सकता है । य द फम के
उ पादन पर उ प त वृ नयम या ासमान लागत नयम कायशील होता है िजसके अंतगत
उ पादन वृ के साथ-साथ फम क औसत लागत कम होती जाती है तो ऐसी प रि थ त म
औसत लागत म कटौती करने हे तु अ धक उ पादन करना व कम मू य पर व य करना
एका धकार फम के हत म होगा । इसके वपर त उ पादन पर य द उ प त हास नयम या
लागत वृ नयम याशील होता है अथात उ पादन वृ के साथ-साथ औसत लागत म वृ
होती जाती है तब व तु का कम उ पादन करना व ऊँची क मत नधा रत करना एका धकार के
हत म होगा । इससे एका धकार को अ धकतम लाभ ा त होगा । उ प त समता नयम या
ि थर लागत नयम एका धकार को भा वत नह ं करता प ट है क जब एका धकार सीमांत
आगम तथा सीमांत लागत के म य समानता था पत करता है तो वह इन दोन त व (मांग क
लोच तथा लागत के यवहार) को यान म रखते है ।
बोध न - 2
1. या एका धकार अपनी व तु का मू य तथा उ पादन क मा ा दोन को एक साथ
नधा रत कर सकता है ।
2. एका धकार फम का मांग व कैसा होता ह?
3. ु न बंद ु कौनसा होता ह?
एका धकार फम का संतल
4. अ त अ पकाल म एका धकार फम के मू य नधारण म कौनसी शि त भावी
रहती ह?
5. या अ पकाल म एका धकार के हा न हो सकती ह?
6. व तु क मांग क लोच का उसके मू य नधारण पर या भाव पड़ता ह?

13.6 एका धकार एवं पू ण तयो गता क तु लना (Comparision


between Monopoly and Perfect Competition)
एका धकार अंतर पूण तयो गता
1. एक उ पादकता तथा व े ता अनेक उ पादक तथा व े ता
2. एक फम उ योग उ योग म अनेक फम अनेक उ पादक तथा व े ता
3. नई फम के वेश म भावपूण कावट नयी फम के वेश व ब हगमन क वतं ता
4. फम का AR व बायं से दायी और फम का AR व पूणतया लोचदार अथात X-
गरता है व MR उसके नीचे ि थत होता अ के सामाना तर एक सरल रे खा होता है
है । तथा MR व उसम मला होता है अथात
AR=MR
5. फम मू य नधारण वयं करती है । फम मू य वसू ल करती है मू य नधारण
मांग व पू त वारा कया जाता है ।
6. एक व तु सम प व तु सम प व तु
(210)
7. एका धकार सा य ि थत म पूण तयोगी सा य म P=MR=MC
MC=MR<price
8. द घकाल म एका धकार फम को सदै व द घकाल म पूण तयोगी फम को केवल
सामा य असामा य लाभ ा त होता है । लाभ ा त होता है ।
9. मू य वभेद संभव एक मू य

13.7 एका धकार उ प न होने के कारण (Causes of Emergence


of Monopoly)
यद प शु एका धकार बाजार क का प नक ि थ त होती है क तु -दुबल एका धकार क
संभावना बाजार म सदै व बनी रहती है । इसके उदय होने के मु य कारण न न ह -
 कभी -कभी सरकार कानून वारा एका धकार था पत कर दे ती है जैसे कसी नगर म
सरकार वारा जल या वधुत यव था कसी क पनी को स प दे ना ।
 कभी-कभी कसी व तु के नमाण के लए आव यक क चे माल का आपू त कता एक ह
यि त होने से एका धकार क ि थ त उ प न हो जाती है ।
 कु छ उ योग म भार व नयोग क आव यकता होती है । बड़े उ योग कता तयो गता के
अभाव म एका धकार क ि थ त ा त कर लेते ह ।
 अ य धक यापा रक या त के कारण अ य फम उ योग म ठहर नह ं पाती व धीरे -धीरे
फम का एका धकार था पत होने लगता है ।
 ती गलाकाट तयो गता से बचने के लए कभी-कभी सभी फम आपस म मलकर
समझौता कर लेती ह अथवा संघ या काटल का नमाण कर लेती ह िजससे अंतत:
एका धकार था पत हो जाता है ।
 सावज नक हत क सु र ा व सावज नक व तु ओं क सु चा आपू त क ि ट से
एका धकार था पत कये जाते ह जैसे रे ल यातायात, जल आपू त टे लफोन आ द ।
 उ पादक वारा व तु का पेटट करा लेने पर या े ड माक का पंजीकरण ा त कर लेने पर
उस व तु पर उसका एका धकार हो जाता है ।
बोध न -3
1. एका धकार सा य व पूण तयोगी सा य म अ तर बताइये ।
2. एका धकार उ प न होने के दो कारण बताइये ।
3. गलाकाट तयो गता कसे कहते ह?
4. काटल से या अ भ ाय ह?

(211)
13.9 वभेदा मक एका धकार अथवा क मत वभेद (Discriminating
Monopoly or Price Discrimination)
क मत वभेद से ता पय एक व े ता वारा अपनी व तु को भ न- भ न े ताओं को
भ न- भ न मू य पर बेचना ह । यह ि थ त एका धकार म पायी जाती है । एक समय पर एक
ह व तु के लए एका धकार फम व भ न े ताओं से व भ न क मत वसू ल करती है । इस
कार का क मत वभेद बाजार म च लत प रि थ तय पर नभर करता है । क मत वभेद क
चरम सीमा म एका धकार फम एक ह ाहक से एक ह व तु क व भ न इकाइय क वभ न
क मत वसू ल करती ह । इसे पूणतया भेदपूण एका धकार (Perfectly Discriminationg
Monopoly) कहत ह । यह एक का प नक ि थ त ह होती है । वा त वक यवहार म क मत
वभेद से अ भ ाय ाहक के व भ न वग के म य क मत वभेद करण से है । ो. सटगलर ने
क मत वभेद को प रभा षत करते हु ए लखा है- ''क मत वभेद का अथ है तकनीक ि ट से
सम प व तु ओं को इतनी भ न- भ न क मत पर बेचना जो उनक सीमांत लागत के अनु प
नह ं होती अथात सीमांत लागत के अनुपात से कह अ धक होती ह । ''

13.9.1 क मत वभेद क शत

क मत वभेद क नी त पूण तयो गता बाजार म संभव नह ं होती य क वहां समान


मू य क वृ त पायी जाती है । क मत वभेद करण न न दशाओं म ह संभव होता है ।
 बाजार म अपूण तयो गता के अंतगत एका धकार फम का पाया जाना ।
 एका धकार व तु के लए अलग-अलग मांग क लोच वाले दो या दो से अ धक बाजार का
होना ।
 क मत वभेद वाले बाजार का एक दूसरे से पृथक होना िजससे ऊँची क मत वाले बाजार के
े ता नीची क मत वाले बाजार से व तु न खर द सक । साथ ह दोन बाजार के े ताओं
म भी कोई संपक नह ं होना चा हए । िजससे न न क मत वाले बाजार के े ता उ च
क मत वाले बाजार के े ता को व तु क पुन ब न कर सक ।
 े ताओं क य शि त म व भ नता के कारण क मत वभेद क संभावना बढ़ जाती है ।
 ीमती जॉन रा ब सन के अनुसार आडर पर व तु ओं के उ पादन तथा व य होने क
ि थ त म क मत वभेद आसानी से कया जा सकता है य क एक े ता को दूसरे े ता से
लये जाने वाले मू य क जानकार नह ं होती ।
 कभी-कभी सरकार वयं एका धकार फम को उसक व तु क व भ न क मत वसू ल करने
का अ धकार दे दे ती है जैसे घरे लू तथा यावसा यक वधुत उपयोग के लए व भ न दर ।

13.9.2 वभेदा मक एका धकार के अंतगत मू य तथा उ पादन का नधारण

वभेदा मक एका धकार के अंतगत मू य तथा उ पादन नधारण के लए यह मान लेते ह


क एका धकार ने संपण
ू बाजार केवल को दो भाग (A तथा B बाजार) म बांट रखा है ।
वभेदा मक एका धकार के अंतगत एका धकार को न न नणय लेने होते ह ।
 व तु क कतनी मा ा का उ पादन कया जाये ।

(212)
 व तु के कु ल उ पादन को बाजार के दोन भाग म कस कार बांटे ।
 दोन बाजार म व तु क कतनी- कतनी क मत वसूल ।
वभेदा मक एका धकार का उ े य भी अपने लाभ को अ धकतम करना होता है । अत:
वभेदा मक एका धकर संतल
ु न के लए आव यक है क सीमांत आगम तथा सीमांत लागत
बराबर (MR=MC) हो तथा दोन बाजार से समान सीमांत आय ा त हो । य द पहले A बाजार
का MR1 दूसरे B बाजार के MR2 से अ धक है तो एका धकार के लए यह अ धक लाभ द
होगा क वह व तु कु छ इकाईय को A बाजार से हटाकर B म बेचे । यह ह तांतरण तब तक
होना चा हए जब तक क दोन बाजार म सीमांत आय न हो जाये अथात MR1=MR2=MR
वभेदा मक एका धकार के अंतगत मू य तथा उ पादन नधारण को रे खा च 13.10 म दशाया
गया है ।

रे खा च 13.10
रे खा च 13.10 म A तथा B दो बाजार लये गये ह व उनका योग कु ल बाजार ह ।
बाजार A म मांग क लोच कम है तथा बाजार B म अ धक है । एका धकार के कु ल उ पादन
का सा य बंद ु E है । इस बंद ु पर AMR = MC ह । OQ उ पादन क कु ल मा ा ह जो दोन
बाजार के उ पादन OQ1+ OQ2 का योग है । एका धकार इस कु ल उ पादन को A तथा B
बाजारो म इस कार बांटेगा क येक बाजार म सीमांत आगम सीमांत लागत के बराबर हो तथा
दोन बाजार का सीमांत आगम भी समान हो । य द संतु लन बंद ु E से एक पड़ी रे खा ET खींची
जाय तो यह B तथा A बाजार के सीमांत आगम व MR2 तथा MR1 को मश: E2 तथा E1
बंद ु पर काटे गी िजन पर दोन बाजार क सीमांत आय समान ह (E1M1 = E2M2) बाजार A
क OP1
क मत बाजार B क OP2 क मत से अ धक है य क बाजार A मांग क लोच कम है । दोन
बाजार म सीमांत आगम समान है अथात EM1= E2M2 इस कार वभेदा मक करने का
यास करता है । क मत वभेद का एक व श ट उदाहरण रा श पतन है िजसम एका धकार
वदे शी बाजार म व तु को कम मू य पर बेचकर अपने लाभ को अ धकतम करता है ।
बोध न - 4
1. क मत वभेद कसे कहते ह?
2. क मत वभेद कब संभव होता ह?
3. ''पूणतया भेदपूण '’ एका धकार कसे कहते ह ?
4. रा श पतन कसे कहते ह '

(213)
13.10 सारांश (Summary)
प ट है क एका धकार बाजार क ि थ त ह िजसम व तु का एक व े ता होता है ।
व तु क त थानाप न व तु क क मत अ य व तु क क मत से न तो भा वत होती है न ह
भा वत होती है । यद प एका धकार व तु का मू य व उ पादन वयं नधा रत करता है कं तु
वह दोन को एक साथ नधा रत नह ं कर सकता । साथ ह एका धकार का उ े य त इकाई
लाभ के अ धकतम न करके कु ल लाभ का अ धकतम करना होता है । अपने कु ल लाभ को
अ धकतम करने के लए एका धकार क मत वभेद क नी त भी अपनाता है िजसम वह अलग-
अलग बाजार म व तु के मू य अलग-अलग नधा रत करता है । एका धकार एक का प नक
बाजार ि थ त है जो वा त वक जगत म कम पायी जाती है ।

13.11 श दावल (Glossary)


 अनुकु लतम योग सबसे अ छा वैकि पक ।
 अपूण तयो गता (Imperfect Compition) पूण तयो गता के वपर त ि थ त
 थानाप न व तु (Substitute) व तु के थान पर योग क जाने वाल -समान कार क
व तु एं
 ि थर लागत (Fixed cost) वो लागत जो उ पादन के कम, यादा या बंद होने पर भी
समान रहती है ।
 आड़ी लोच (Cross elasticity) थानाप न व तु क लोच A के मू य प रवतन का B क
मांग पर भाव।
 एका धकारा मक तयो गता (Monopolistic Competition) बाजार ि थ त िजसम कु छ
उ पादक नकट थानाप न व तु ऐं बेचते ह व आपस म कड़ी तयो गता करते ह ।
वा त वकता बाजार म यह ि थ त पायी जाती है ।

13.12 संदभ थ (References)


आहू जा ,एच. एल : अथशा , कैपीटल बुक हाउस, 26 यू. बी. जवाहर नगर, द ल
सेठ, एम. एल. : अथशा के स ा त
ववेद , डी.एन. : Principles & Economics, Vikas Publishing House
Pvt. Ltd. New Delhi
संह, एस. पी : माइ ो अथशा , एस चंद एंड कंपनी ल. नई द ल
जैन के. पी. : अथशा के स ांत

13.13 बोध न के उ तर
बोध न - 1
1. एका धकार वह बाजार ि थ त है िजसम व तु का एक ह उ पादक अथवा व े ता होता है ।
2. वा त वक जगत म बाजार म एका धकारा मक तयो गता पायी जाती है ।
3. एकांक फम उ योग से आशय उ योग म एक ह फम का पाया जाना है ।

(214)
4. मांग क आड़ी लोच से ता पय थानाप न व तु क मांग से है अथात जब तक एक व तु
के मू य से दूसर व तु क मांग भा वत होती है तो उसे मांग क आड़ी लोच कहते ह ।
5. एका धकार का मु य उ े य अपने कुल लाभ को अ धकतम करना होता ह ।
6. 6. शु एका धकार लाभ सामा य लाभ से अ धक होता है । जब औसत लागत क मत से
कम होती है तब एका धकार को शु एका धकार लाभ ा त होता है ।
बोध न - 2
1. एका धकार अपनी व तु का मू य तथा उ पादन क मा ा दोन को एक साथ नधा रत नह ं
कर सकता ।
2. एका धकार फम का मांग व उपर से नीचे दायीं ओर गरता है ।
3. एका धकार फम के संतु लन बंद ु पर सीमांत आय एक दूसरे के बराबर होते ह ।
4. अ त अ पकाल म एका धकार फम के मू य नधारण म मांग क शि त भावी रहती है ।
6. य द व तु क मांग क लोच अ धक होती है तो व तु का मू य कम तथा मांग क
लोच कम होती है तो व तु का मू य अ धक नि चत कया जाता है ।
बोध न -3
1. एका धकार सा य -MR=MC पूण तयो गता म सा य –AR=MR=AC=MC
2. I भार व नयोग क आव यकता
II कानून वारा था पत एका धकार
3. जब उ पादक व तु के व य के लए अ य धक तयो गता करते ह व व भ न उपाय
वारा व य वृ का यास करते ह तो उसे गलाकाट तयो गता कहते ह ।
4. गलाकाट तयो गता से बचने के लए जब कु छ व े ता आपस म संघ बना लेते ह तथा
समान मू य नी त अपनाते ह तो उस संघ को काटल कहते ह ।
बोध न - 4
1. जब अलग-अलग बाजार म व तु को अलग-अलग मू य पर बेचा जाता है तो उसे क मत
वभेद कहते है ।
2. क मत भेद के लए आव यक है क अलग-अलग बाजार म व तु क मांग क लोच भ न-
भ न हो तथा बाजार दूर -दूर ि थत ह ।
3. पूणतया भेदपूण एका धकार म एका धकार एक ह व तु क व भ न इकाइय का एक ह
यि त को अलग-अलग मू य पर बेचता है ।
4. जब व े ता व तु को घरे लू बाजार म अ धक मू य पर व वदे शी बाजार म कम मू य पर
बेचता ह तो इस ि थ त को रा श पातन कहते ह ।

13.14 अ यासाथ न
1. उन त व का ववरण द िजए जो एका धकार के अंतगत क मत को भा वत करते ह ।
2. एका धकार के अंतगत अ पकाल म मू य तथा उ पादन नधारण को समझाइये ।
3. क मत वभेद करण क अंतगत क मत तथा उ पादन नधारण क या या क िजए ।

(215)
4. एका धकार म द घकाल न संतल
ु न का व लेषण क िजए ।

(216)
इकाई – 14
एका धकारा मक तयो गता Monopolistic Competition

इकाई क परे खा
14.0 उ े य
14.1 तावना
14.2 अपूण तयो गता एवं एका धकारा मक तयो गता
14.3 एका धकारा मक तयो गता
14.4 अ पकाल म एका धकारा मक तयो गता म मू य तथा उ पादन नधारण
14.5 द घकाल म एका धकारा मक तयो गता म मू य तथा उ पादन नधारण
14.6 व य लागत
14.7 पूण तयो गता, एका धकार तथा एका धकारा मक तयो गता म अ तर
14.8 सारांश
14.9 श दावल
14.10 संदभ थ
14.11 बोध न के उ तर
14.12 अ यासाथ न

14.0 उ े य
इस इकाई के अ ययन के प चात आप
 अपूण तयो गता व एका धकारा मक तयो गता के बारे म जान सकगे
 एका धकारा मक तयो गताक वशेषताएं समझ सकगे
 इसम अ पकाल न व द घकाल न मू य नधारण क ववेचना कर सकगे
 व य लागत के बारे म जान सकगे और एका धकारा मक तयो गता म इनका
मह व जान सकगे
 पूण तयो गता, एका धकार एवं एका धकारा मक तयोगी क जानकार ा त कर
सकेग

14.1 तावना
बाजार म मू य नधारण के स ब ध म पूण तयो गता एवं एका धकार दो चरम
ि थ तयां ह । वा त वक जीवन म न तो पूण तयो गता क ि थ त पायी जाती है न एका धकार
क । वा त वक जगत म इन दोन ि थ तय के म य क ि थ त पायी जाती है िजसे
एका धकारा मक तयो गता कहा जाता है । एका धकारा मक तयो गता क अवधारणा का
तपादन ो. एडवड एच. चैर बरलेन ने 1933 म कया था । 1933 से पूण अथशाि यो का
व वास था क आ थक शि तयाँ .................................जाता है । अथात ् अपूण तयो गता वह

(217)
बाजार ि थ त ह । जो पूण तयो गता एवं वशु एका धकार क दोनो चरम ि थ तय के म य
म ि थत रहती है । वा तव म अपूण तयो गता एक बहु त यापक श द है । इसम कई कार
क बाजार ि थ तयाँ सि म लत क जा सकती ह । एका धकारा मक तयो गता अपूण
तयो गता का एक कार है । इसके अ य वग अ पा धकार एवं वया धकार है ।

14.2 एका धकारा मक तयो गता


यह वह बाजार अव था है िजसम कसी व तु के बहु त से व े ता होते ह । व उन सब
क व तु एं सम प न हो कर एक दूसरे क व तु ओं से कसी न कसी कार से भ न अव य
होती है । इसी भ नता के कारण ये व तु एं एक दूसरे क व तुओं के लए अपूण त थापन
व तु एं स होती है । तथा मान सक प से उपभो ता उ ह एक दूसरे से भ न मानत है । साथ
ह येक फम क आकार बाजार क कु ल पू त म तु लना मक प से इतना छोटा होता है । क
वह फम वयं के या कलापो वारा अ य फम को कसी भी कार से भा वत नह ं कर पाती
है । ो. ले ट वच ने एका धकारा मक तयो गता को इस कार से प रभा षत कया है
एका धकारा मक तयो गता के बाजार म एक वशेष क म क व तु के अनेक व े ता होते है
और येक व े ता क व तु कसी न कसी प म दूसरे व े ता क व तु से भ न होती है ।
जब व े ताओं क सं या इतनी अ धक होती है क व े ता के काय का भी उस पर कोई प ट
भाव नह ं पड़ता है तो वह उ योग एका धकारा मक त पधा का उ योग बन जाता है ।
त वं दय टो नयर एवं हे ग के अनुसार ''अपूण तयो गता क दशा म अ धकांश
उ पादक क व तु एं अनेक त व य क व तु ओं से बहु त मलती जु लती है । फल व प इन
उ पादक को सदै व यह यान रखना पड़ता है क त व दय क याएं उनके लाभ को कैसे
भा वत करगी? आ थक स ा त म इस तरह क ि थ त का व लेषण एका धकारा मक
तयो गता अथवा समू ह स तुलन के अ तगत कया जाता है । इनम से एक व तु एं बनाने वाल
फम म तयो गता पूण न होकर ती होती है ।
एका धकारा मक तयो गता म कोई भी फम सम प व तु का उ पादन नह ं करती
इसम उ योग के थान पर समूह श द का योग कया जाता है व पया त प से मलती जु लती
व तु ओं का उ पादन करने वाल फम होती है ।

14.3.1 एका धकारा मक तयो गता क वशेषताएं

एका धकारा मक तयो गता क मु य वशेषताएं भ न ह :-

14.3.2 फम क अ धक सं या:-

एका धकारा मक तयो गता म बाजार म फम क सं या अ धक होती है । व फम का


आकार छोटा होता है । अथात ् बाजार क पू त के एक बड़े भाग पर कसी व े ता का नय ण
नह ं रहता । येक फम कु ल बाजार के एक बहु त छोटे से अंश को नयि त करती है इस लए
फम क ग त व धयाँ अ य फम या बाजार को वशेष प से भा वत नह ं करती ।
14.3.3 एका धकारा मक तयो गता के अ तगत वभ न व े ताओं वारा न मत व तु एं
सम प नह होती ह । वरन एक दूसर से भ न होती है । यह भेद वा त वक अथवा का प नक

(218)
हो सकता है । व तु वभेद करण के कारण ये व तु एं एक दूसरे क पूण थानाप न न होकर
नकट थानाप न होती ह । व तु ओं का वभेद करण कई कार से कया जा सकता है ।
क चे माल क गुणवता, व तु के रं ग, प, सु ग ध, टकाऊपन, े ड माक आ द म अ तर
कर व तु के साथ ाहक को अ य सेवाऐं दान करके (साख सु वधा, घर पहु ँ चाने क सु वधा,
मु त मर मत क सु वधा, एक दूसरे के साथ मु त या अ य उपहार आ द दान करके)
व ापन, चार वारा इसे ब ो न त कहते ह । यह आजकल व य क मह वपूण नी त है
व इसके अ य कारण ाहक इस फम को अ य फम क व तु ओं से उ कृ ट समझने लगते ह,
इसे गैर मू य तयो गता कहते ह ।

14.3.4 फम को वेश एवं ब हगमन क वतं ता -

एका धकारा मक तयो गता म कसी फम को उ योग समू ह म व ट होने अथवा


वतमान फम को उ योग से ब हगमन करने क वतं ता होती है । य क इसके अ तगत फम
का आकार छोटा होता है उ पादन व ध सरल होती है । तथा कम पू ज
ं ी क फम होने के कारण
वि ट ब हगमन म वशेष क ठनाई नह ं होती ।

13.4.5 फम का लोचदार मांग व -

एका धकारा मक तयो गता म येक फम व तु के कु ल उ पादन के बहु त थोड़े भाग


को नयि त करती है । सभी फम क व तु एँ एक -दूसरे के नकट थानाप न होती है अत:
एक फम मू य म कमी करके अपनी व तु को बहु त अ धक मा ा म बेच सकती है बशत क
अ य दूसर फम मू य कम न कर । इसी तरह एक फम वारा मू य वृ करने पर े ता दूसर
फम क व तु एँ य करने लगते ह, अत: एका धकारा मक तयो गता म फम का मांग व
अ धक लोचदार होता ह ।
बोध न - 1
1. एका धकारा मक तयो गता क अवधारणा का तपादन कस अथशा ी ने कया ?
2. अपूण तयो गता कसे कहते ह?
3. वा त वक जगत म कौन -सी तयो गता पायी जाती ह?
4. व तु वभेद से या ता पय ह?
5. नकट थानाप न व तु ओ से आप या समझत ह ?

14.4 अ पकाल म एका धकारा मक तयो गता मे मू य तथा


उ पादन नधारण
एका धकारा मक तयो गता म भी फम वारा मू य तथा उ पादन का नधारण बाजार
क अ य ि थ तय क भाँ त कया जाता है । अ पकाल म समय इतना कम होता है क फम
अपने संय के आकार म कोई प रवतन नह ं कर सकती । न ह फम समू ह म वेश कर सकती
है । अ पकाल म फम अपनी व तु के व ापन, क म तथा डजाइन म मामूल प रवतन कर
सकती है, अ पकाल म फम अपनी व तु क मांग के अनुसार उ पादन क मा ा एवं मू य का
नधारण करती है । अ पकाल म एका धकारा मक तयो गता म एक फम अपना उ पादन उस

(219)
समय तक बढ़ाती है जब तक एक अ त र त इकाई को बेचने से ा त आगम उसक लागत के
बराबर नह ं हो जाता है । जैसे ह व तु क सीमा त लागत एवं सीमा त आगम दोन बराबर होते
ह, फम सा याव था के बाद उ पादन बढ़ाने या घटाने का यास नह ं करती । अ पकाल म फम
असामा य लाभ, सामा य, लाभ, हा न क ि थ त म हो सकती है । अ पकाल म य द बाजार क
ि थ त फम के अनुकू ल है, अथात व तु का मू य व तु क औसत लागत से अ धक है तो फम
असामा य लाभ कमाती ह । असामा य लाभ क ि थ त को रे खा च 14.1 म दशाया गया है ।
रे खा च 14.1 म फम क सीमा त लागत (MC) ने सीमा त आगम (MR) को E ब दु
पर काटा है अत: E स तुलन ब दु है । इस सा य ब दु पर फम (OQ) मा ा का उ पादन एवं
व य करती है । (OP) क मत अथवा (SQ) औसत आगम है । तथा (TQ) अथवा (OR) औसत
लागत है । फम का त इकाई अ त र त लाभ (RP) अथवा (TS) है कु ल असामा य लाभ
(RPST) के बराबर है ।
य द अ पकाल म व तु का मू य इसक औसत लागत के बराबर हो तो फम
सा याव था म न लाभ न हा न क ि थ त म रहती है । इस ि थ त म फम केवल सामा य
लाभ कमाती है । रे खा च 14.2 म सामा य लाभ को द शत कया गया है ।
रे खा च 14.2 म E सा य ब दु ह जहाँ MC=MR च बनाना है । इस ब दु फम
व तु क OQ मा ा का उ पादन व व य करती है । PO या OR व तु का मू य है यह औसत
लागत भी है । अत: फम को सामा य लाभ ा त हो रहा है ।
य द अ पकाल म मू य फम के तकू ल है तो सा याव था म फम क औसत लागत
फम के औसत आगत मू य से अ धक होती है । तथा फम को हा न होती है । यह ि थ त
रे खा च 14.3 म दशायी गयी है । क आशा नह क जाएंगी य क उ योग क फम सम प
व तु ओं का उ पादन नह करती है । येक फम वयं का लाभ अ धकतम करने क ि थ त को
ढू ं ढ लेती है। येक फम वयं च बनाइए एवं पूरा पैरा टाइप क िजए सीमा त लागत को अपनी
सीमा त आय के बराबर करती है । ले कन व भ न उ पाद के वारा ल जाने वाल क मत एक
दूसरे से बहु त यादा व भ न नह ं होती है । अ पकाल न स तु लन म हम यह तो आशा कर
सकत ह क क मत पर पर समीप हो ले कन यह आव यक नह ं है क वे एक-दूसरे के बराबर ह
यद प येक उ पादक को अपनी क मत नधा रत करने म वयं का कु छ नणय दखाने का
अवसर मलता है। फर भी उसके वारा उ पा दत क जाने वाल व तु के नकट के थानाप न
पदाथ के तब धक भाव पड़ते रहते है ।

14.5 द घकाल मे एका धकारा मक तयो गता मे मू य तथा


उ पादन नधारण
द घकाल म एका धकारा मक तयो गता क ि थ त म कायशील फम के पास इतना
ल बा समय होता है क वे उ पादन के सभी साधन म इ छानुसार प रवतन कर सकती ह ।
अथात ् कोई भी फम उ पादन के पैमाने घटा-बढ़ा सकती है । द घकाल म वतमान फम के वारा
असामा य लाभ कमाये जाने क ि थ त म नई फम वेश करगी व कु छ फम हा न होने पर
उ योग छोड़कर बाहर चल जाएंगी । इस वेश म ब हगमन क या स प न हो जाती है ।

(220)
अ पकाल म जो फम असामा य लाभ कमा रह ह, द घकाल म फम के वेश के फल व प
सामा य लाभ ह कमा सकेगी । उसी कार द घ काल म कोई भी फम हा न नह ं उठायेगी।
एका धकारा मक तयो गता म द घकाल म भी फम असामा य लाभ कमाती ह तो उस
समू ह म नई फम वेश करगी, नई फम के वेश करने से दो भाव ह गे । थम, नई फम के
वेश से वतमान बाजार अ धक व े ताओं म वभािजत हो जाता है । िजससे येक फम पहले
क तु लना म कम मा ा म व तु का व य कर पाती है । फल व प येक फम का मांग व
नीचे क ओर बाएँ को सरक जाता ह । वतीय, नई फम के वेश करने से साधन के मू य
वृ के कारण येक फम क लागत बढ़ जाती ह । व लागत व ऊपर सरक जाते ह । मांग
व के नीचे क ओर सरकने क दोहर समायोजन या के कारण असामा य लाभ समा त हो
जाते ह तथा येक फम केवल सामा य लाभ ह कमा सकती है । द घकाल म एका धकारा मक
तयो गता म मू य तथा उ पादन तथा नधारण 14.4 म दशाया गया है ।
रे खा च 14.4 म द घकाल न सा य ब दु E है जहाँ MC=MR है । फम व तु क QR
मा ा का उ पादन व व य कर रह है । व तु का मू य OP व QR है । यह व तु क औसत
लागत है। औसत लागत औसत आगम (मू य) के बराबर होने के प रणाम व प फम केवल
सामा य लाभ ा त करे गी ।
द घकाल म कोई भी फम हा न नह ं उठा सकती है । य क हा न क ि थ त म हा न
उठाने वाल फम उ योग छोड़ दे गी । उ योग छोड़ने से एक ओर व तु क पू त कम होने से
मू य बढ़ जायेगा । दूसर ओर उ पादन के साधन क मांग कम होने के कारण उनका मू य कम
हो जायेगा व लगत कम हो जायेगी । इस मू य बढ़ने तथा लागत कम होने क या के
फल व प हा न समा त हो जाएगी व येक फम केवल सामा य लाभ ा त कर सकेगी ।
व य लागत :-
एका धकारा मक तयो गता म व भ न फम वारा उ पा दत व तु ओं म व तु वभेद
पाया जाता है । व व तु एं एक-दूसरे के नकट थानाप न होती ह । अत: येक फम अपनी
व तु क ब बढ़ाने के लए व ापन का सहारा लेकर दूसर फम क व तु ओं को घ टया व
अपनी व तु ओं को अ छ बताने का यास करती है । उपभो ता के मन म यह बात बैठायी जाती
है क एक फम वशेष क व तु एँ अ य फम क व तु ओं से े ठ ह अत: वे सब बैठायी जाती है
क एक फम वशेष क व तु एँ अ य फम क व तु ओं से े ठ है । अत: वे सब लागत जो कसी
व तु के मांग व को दा हनी और ऊपर क तरफ उठाने (मांग वृ ) के लए लगाई जाती ह,
व य लागत कहलाती ह । व य लागत म सभी कार के व ापन व व य कताओं
(salesman) के वेतन, व य वभाग स ब धी यय, दुकान क खड़ कय म (Show Case)
कये जाने वाले दशन यय, नमू ना खच, फुटकर व थोक व े ताओं को दये गये उपहार आ द
सि म लत होते ह। एका धकारा मक तयो गता म व य लागत फम के लए मांग स बि धत
मह वपूण भू मका अदा करती है । इनके वारा उपभो ताओं का फम क व तु ओं क जानकार द
जाती है, िजससे दूसर फम को व य लागत के स ब ध, म नणय लेते समय व य संव न
क सीमा त लागत व सीमा त आगम से कम है तो व य लागत को उस समय तक बढ़ाते
रहना चा हये जब तक सीमा त व य लागत सीमा त आगम के बराबर नह ं हो जाती है ।

(221)
बोध न - 2
1. या अ पकाल म फम अपने आकार म प रवतन कर सकती ह?
2. एका धकारा मक फम का सा य ब दु कौन - सा होता ह?
3. फम को असामा य लाभ कब ा त होता है?
4. सामा य लाभ से आप या समझत ह?
5. द घकाल म फम को मा सामा य लाभ य ा त होता ह?
6. व य लागत का या मह व ह ?

14.6 पू ण तयो गता एका धकार तथा एका धकारा मक तयो गता
मे अंतर
पूण तयो गता एका धकार एका धकारा मक तयो गता
1. असं य व े ता एक व े ता बहु त से व े ता
2. सम प व तु का पूण ऐसी व तु िजसके नकट नकट थानाप न व तु ओं का
थानाप न थानाप न नह होते है उ पादन
3. सामा य मू य मू य वभेद समान मू य
4. व य लागत का अभाव व य लागत का अभाव व य लागत मह वपूण
5. पूणतया लोचदार मांग बेलोचदार मांग व अ धक लोचदार मांग व

6. उ योग क कु ल मांग फम वारा मू य फम वारा मू य नधारण क तु
व व पू त वारा मू य नधारण अ य फम से भी भा वत
नधारण
7. फम का वत वेश फम म वेश म फम का वत वेश व ब हगमन
व ब हगमन भावपूण कावट
8. द घकाल म फम को द घकाल म फम को द घकाल म फम को केवल सामा य
केवल सामा य लाभ सामा य लाभ लाभ

14.7 सारांश
उपयु त ववेचन से प ट है क एका धकारा मक तयो गता अपूण तयो गता के
व भ न उपवग म से केवल एक उपवग है । यह पूण तयो गता के अ धक नकट पायी जाती
है । वा त वक जगत म यह तयो गता बाजार म उपि थत रहती है । िजससे अनेक व े ता
नकट थानाप न व तु ओं का व य करते ह । व आपस म कड़ी तयो गता करते ह । इनम
आपस म गैर मू य तयो गता भी पायी जाती है । इस तयो गता म े ताओं को अपनी ओर
आक षत करने के लए व य संवधन उपाय का भी सहारा लेते ह । वा त वक जगत म
एका धकारा मक तयो गता के अनेक उदाहरण ह जैसे नहाने के साबुन , तेल, साधन साम ी,
इले ो नक उ पादन आ द ।

(222)
14.8 श दावल
अ पा धकार Oligopoly कु छ व े ताओं का बाजार
वया धकार Duopoly दो व े ताओं का बाजार
नकट थानाप न Close Substitute एक सीमा के बाद व तु का

14.9 संदभ ंथ
अ वाल: अथशा के स ा त – The Student Book company. जयपुर

(223)
इकाई 15
वतरण का सीमांत उ पादकता स ा त MARGINAL
PRODUCTIVITY THEORY OF DISTRIBUTION

इकाई क परे खा
15.0 उ े य
15.1 तावना
15.2 उ पादन के साधन
15.3 सीमा त उ पादकता क अवधारणाएं
15.3.1 सीमा त भौ तक उ पादकता
15.3.2 सीमा त आगम उ पादकता
15.3.3 सीमा त उ पादकता का मू य
15.4 वतरण का सीता त उ पादकता स ा त
15.4.1 स ा त का सामा य कथन एवं या या
15.4.2 स ा त क मा यताएं
15.4.3 स ा त क आलोचनाएं
15.5 सारांश
15.6 श दावल
15.7 कु छ उपयोगी पु तक
15.8 बोध न के उ तर

15.0 उ े य
इस इकाई के अ ययन के प चात ् आप
 कसी साधन क सीमा त उ पादकता के मापन के स ब ध म कौन-कौन सी
अवधारणाएं च लत है यह जान सकेग
 वतरण क सीमा त उ पादकता स ा त के सामा य कथन के बारे म समझ
सकगे
 यह स ा त उ पादन के साधन के पुर कार अथवा क मत नधारण क सामा य
या या कस कार तु त करता है यह समझ सकगे ।

15.1 तावना
सीमा त उ पादकता स ा त वतरण का मह वपूण स ा त माना गया है । यह
स ा त उ पादन को उ पादन के साधन म वभािजत करने क या या तु त करता ह हम
जानत है क उ पादन क या म उ पादन के साधन (भू म, पूँजी, म, साहस एवं संगठन)
क भागीदार होती है । ये सभी साधन अपने सहयोग के बदले तफल क आशा करते ह ।

(224)
संयु त उ प त का इन साधन (जो इसके उ पादन म सहयोग करते ह) के बीच वभाजन एक
ज टल सम या होती है । साधन के मू य नधारण या वतरण णाल का दे श के उ पादन,
आ थक समृ तथा आ थक क याण पर गहरा भाव पड़ता है । वतरण क समानता,
यायो चतता तथा उपयु तता दे श म आ थक क याण का माग श त करती है । वतरण का
सीमा त उ पादकता स ा त संयु त उ पि त म इन साधन क अंश भा गता को नधा रत कर
उनक क मत नधा रत करता है । वतरण िजतना यायपूण होगा साधन उतना ह संतु ट रहे गा
वतरण के सीमा त उ पादकता स ा त का व तृत ववेचन जे बी. लाक, वालरस, जेव स
वक ट ड आ द अथशाि य वारा कया गया है । लाक का मानना था क तयोगी
प रि थ तय म म ह नह ं अ पतु उ पादन के येक साधन का पा र मक कु ल उ पादन म
इनके योगदान के समान ह होता है । य द येक साधन का पा र मक कु ल उ पादन म इनके
योगदान के समान ह होता है । य द येक साधन को उसके सीमा त उ पादन के आधार पर
पा र मक दया जावे तो कु ल उ पादन का उ पादन के साधन के म य पूरा-पूरा बंटवारा हो जाता
है । इसे सामा य तौर पर लाक व सट ड का उ पादन समाि त मेय (Product Exhaustion
Theocrem) के नाम से जाना जाता ह हालां क वतरण का सीमा त उ पादकता स ा त काफ
च लत रहा एवं कु ल उ पादन के यायो चत वतरण का ठोस आधार बना । वतरण के सीमा त
उ पादकता स ा त क या या करने से पूव हम उ पादन के साधन एवं स ा त म उपयु त
मु य श द सीमा त उ पादकता का अथ भल भां त समझना उ चत होगा ।

15.2 उ पादन के साधन


येक दे श म तवष बहु त सी व तु ओं एवं सेवाओं का उ पादन कया जाता है ।
उ पादन क या म उ पादन के साधनो का सहयोग आव यक होता है । अथशा म भू म,
पू ज
ं ी, म एवं साहसी या उ ाम को उ पादन के साधन कहते ह । इनक सामा यत: च लत
प रभाषाएं न न कार ह :-
1. भू म :- यह कृ त से ा त भौ तक संसाधन है इसम सभी ख नज, ठोस एवं जल संसाधन
सि म लत है ।
2. म :- इसम मनु य वारा उ पादन क या म कए जाने वाले सभी भौ तक एवं बौ क
यास सि म लत है ।
3. पू ज
ं ी :- कृ त क दे न को व तु ओं म प रव तत करने के यास, म मानव समय पर कु छ
पदाथ को इस कार बदलता-ढालता रहा है क व तु नमाण काय और सहज हो सके ।
इ ह ं प रव तत व प पदाथ को दान कया गया साझा नाम पू ज
ं ी है ।
4. साहसी :- उ पादन क या या करने एवं जो खम उठाने क मानवीय यो यता वशेष को
उ ाम कहते ह । उ पादन क या म उपरो त साधन (भू म, म, पू ज
ं ी एवं साहसी)
मलकर सहयोग करते ह । इसके तफल के प म भू म को लगान, म को को मजदूर ,
पू ज
ं ी को याज तथा साहसी को लाभ ा त होता है । इसके नधारण म सबसे बड़ी क ठनाई
यह आती है क कु ल उ पादन क उ पि त म येक साधन का योगदान कतना कतना है ।
वतरण का उ पादकता स ा त मु य प से उ पादन के येक साधन का उसक सीमा त
उ पादकता के आधार पर योगदान नधा रत कर उसक क मत नधा रत करता है ।

(225)
15.3 सीमा त उ पादकता क अवधारणाएं
वतरण के सीमा त उ पादकता स ा त के मु ख श द सीमा त उ पादकता के स ब ध
म आ थक जगत म सामा यत: तीन अवधारणाएं च लत ह -
(1) सीमा त भौ तक उ पादकता (Marginal Physical Productivity i. e,MPP)
(2) सीमा त आगम उ पादकता (Marginal Revenue Productivity i. e,MRP)
(3) सीमा त उ पादकता का मू य (Value of Marginal Product i. e, VMP)
(4) सीमा त भौ तक उ पादकता (Marginal Physical Productivity i. e, MPP)
उ पादन क या म उ पादन के अ य साधन को ि थर रखकर एक साधन क मा ा
म एक इकाई वृ करने से कु ल भौ तक उ पादन म होने वाल वृ उस साधन क सीमा त
भौ तक उ पादकता कहलाती है । ग णतीय है । ग णतीय प म इसे न न कार य त कया
जा सकता है ।
TPP
MPP 
F
यहां पर
MPP : साधन क सीमा त भौ तक उ पादकता
TPP : कु ल भौ तक उ पादन म होने वाला प रवतन
 F - साधन क मा ा म होने वाला प रवतन
एक का प नक उदाहरण क सहायता म इसे न न कार प ट कया जा सकता है ।
उदाहरण -
मान लिजए 20 ं ी क 20 इकाईय का
मक पू ज योग कर 500 पैन का उ पादन
ं ी क 20 इकाइय के साथ
करते ह । य द पू ज मक क 21 इकाइय का योग कया जाता
है तो 540 पैन का उ पादन होता ह इससे प ट हो जाता है क 21 वे मक का कु ल
उ पादन म योगदान 540-500 = 40 पैन का ह । यह म क भौ तक उ पादकता (MPP)
कहलायेगी । सू का योग कर MPP क गणना न न कार क जायगी ।
TPP
MPP 
F
यहां पर TPP = 540-500 = 40
L = 21-20 = 1
40
अत: MPP =  40
1
प रवतनशील अनुपात के नयम (Low of variable Proportion) कारण ार भ म
प रवतन शील साधन क सीमा त भौ तक उ पादकता बढ़ती है, एक ब दु पर अ धकतम हो
जाती है । त प चात गरने लगती है । दूसरे श द म सीमा त भौ तक उ पादकता व (MPP
Curve) क आकृ त उ टे U - आकार (Inverted U-Shape) क होती है ।
(II) सीमा त आगम उ पादकता (Marginal Revenue Productiviy i. MRP)

(226)
उ पादन के अ य साधन को ि थर रखकर एक साधन क मा ा म एक इकाई वृ
करने से कु ल आगम म होने वाल वृ उस साधन क सीमा त आगम उ पादकता (MRP)
कहलाती ह। ग णतीय प म इसे न न कार य त कया जा सकता ह –
TPP
MPP 
P
यहाँ पर
MRP - साधन क सीमा त आगम उ पादकता
 TPR - कुल आगम म होने वाला प रवतन
 F - साधन क मा ा म होने वाला प रवतन
सीमा त आगम उ पादकता को एक दूसर कार से भी कया जा सकता है । य द
साधन क सीमा त भौ तक उ पादकता (MPP) को सीमा त आगम (MR) से गुणा कर दया
जावे तो जो गुणनफल ा त होगा वह उस साधन क सीमा त आगम उ पादकता (MRP) होगी ।
सू ानुसार
MRP = MPP + MR
एक का प नक उदाहरण क सहायता से इसे प ट कया जा सकता है ।
उदाहरण -
मान लिजये 20 मक एवं 20 पू ज
ं ी क इकाईय का योग करके उ पा दत होने वाले
500 पैन बेचने से 2000 पये का आगम ा त होता है । तथा य द मक क 21 इकाई एवं
पू ज
ं ी क 20 इकाइय का योग करने से उ पा दत 540 पैन बेचने से 2160 पये का आगम
ा त होता है तो म क सीमा त आगम उ पादकता 160 पये होगी । सू का योग कर
सीमा त आगम उ पादकता क गणना न न कार क जा सकती है । सू ानुसार
TR
MRP =
F
 TR = 2160-2000=160
 F = 21-20=1
160
MRP =
1
= 160
MRP क गणना वैकि पक सू का योग करके भी क जा सकती है ।
वैकि पक सू
MRP=MPP+MR
नानुसार MPP= 40 है य द अ त र त पैन क क मत 4 पये है तो MR = 4 होगा
तथा MRP = 40 + 4 = 160 पये होगी ।
(III)सीमा त उ पादकता का मू य (Value of Marginal Product i. e, VMP)
सीमा त भौ तक उ पादकता (MPP) को व तु क क मत से गुणा करने पर जो
गुणनफल ा त होता है वह सीमा त उ पादकता का मू य (VMP) कहलाता है ।
सू ानुसार

(227)
VMP = MPP X P
यहां
VMP = साधन क सीमा त उ पादकता का मू य
MPP= सीमा त भौ तक उ पादकता
P = व तु क क मत
पूण तयो गता के अ तगत व तु क क मत (P), औसत आगम (AR) तथा सीमा त
आगम (MR) तीन बराबर होते ह अथात ् P = AR = MR ऐसी ि थ त म MRP = VMP होगा
। पर तु अपूण तयो गता क ि थ त म व तु क क मत सामा यत: सीमा त आगम से अ धक
होती है इस लए P = AR> MR ह गा । िजसके कारण MRP<VMP या VMP>MRP हो
जायेगा।
बोध न - 1
1. सीमा त भौ तक उ पादकता (MPP) क अवधारणा को समझाइये ।
2. सीमा त आगम उ पादकता (MRP) क अवधारणा क या या क िजये ।
3. सीमा त उ पादकता का मू य (VMP) क अवधारणा को प ट क िजये ।
4. एक फम म 10 मक काय करे है और यह फम त दन 20 मेज उ पा द कर उ ह
100 पये त इकाई क दर से बेच दे ती है । य द यह फम एक और मक को
काम पर लगाले तो वह 25 मेज उ पा दत कर सकती है और उ ह उसी क मत पर
बेच सकती ह । इस जानकार के आधार पर बताइये क
क. म क सीमा त भौ तक उ पादकता (MPP) या ह
ख. म क सीमा त आगम उ पादकता (MRP) या ह
ग. म क सीमा त उ पादकता का मू य (VMP) या ह

15.4 वतरण का सीमा त उ पादकता स ांत


सीमा त उ पादकता स ा त वतरण का मह वपूण स ा त है । सव थम यह स ा त
मजदूर के नधारण क या या के लए तु त कया गया था । पर तु बाद म उ पादन के
अ य साधन (भू म, पू ज
ं ी, आ द) क क मत के नधारण क या या भी इसके वारा क गई ।
जे. बी. लाक, जेव स, वालरस, माशल तथा ह स आ द अथशाि य ने इसके वकास म
मह वपूण योगदान दया ।

15.4.1 स ा त का सामा य कथन एवं या या

वतरण के सीमा त उ पादकता स ा त का सामा य कथन यह है क द घकाल म


येक उ पादन साधन क क मत उस साधन क सीमा त उ पादकता के बराबर होती है । मो रस
एवं फ ल स के अनुसार ''एक तयोगी फम अ धकतम लाभ ाि त के लए प रवतनशील साधन
क इकाईय को उस ब दु तक रोजगार दान करे गी िजस पर साधन क सीमा त भौ तक
उ पादकता का मू य साधन क क मत के बराबर हो जाय ।“ यह तब ह स भव होगा जब फम
के लाभ को अ धकतम करने वाल कसी साधन क मा ा न न ल खत शत को पूरा करे ।

(228)
(1) जब केवल एक ह प रवतनशील साधन है तो फम अ धकतम लाभ ा त करने
के लए साधन को उस मा ा म रोजगार दान करे गी िजस पर उस समय साधन क सीमा त
आगम उ पादकता (MRP) तथा उस साधन क क मत बराबर हो ।
ग णतीय प म
Pf = MRPF
यहां
Pf = साधन क क मत
MRPF = साधन क सीमा त आगम उ पादकता
(2) उ पादन के साधन क सीमा त उ पादकता सभी उ योग मे बराबर हो । सू
के प म इसे न न कार य त कया जा सकता है । X साधन A उ योग म सीमा त
आगम उ पादकता = X साधन क B उ योग म सीमा त आगम उ पादकता है ।
(3) जब एक से अ धक प रवतनशील साधन हो तो फम अ धकतम लाभ ा त करने
के लए इन साधन के उस संयोग को रोजगार दान करे गी जहां पर येक साधन क सीमा त
आगम उ पादकता और उसक क मत का अनुपात बराबर हो जायेगा अथात ् X साधन क सीमा त
आगम उ पादकता (MRPx तथा उसक क मत Rx) का अनुपात दूसरे साधन (Y साधन) क
सीमा त आगम उ पादकता (MRPy) तथा उसक क मत (Py) के बराबर होयेगा ।
MRPx = MRPy
Px Py
15.4.2 वतरण स ा त क मा यताएँ सीमा त उ पादकता स ा त न न ल खत मा यताओं
पर आधा रत है ।
1. व तु बाजार म पूण तयो गता पाई जाती है ।
2. साधन बाजार म भी पूण तयो गता होती है । िजसके कारण एक फम साधन क
च लत क मत पर उसक िजतनी चाहे मा ा को काम पर लगा सकती है ।
3. उ पादन करने का उ े य अ धकतम लाभ ा त करना होता है ।
4. साधन क येक इकाई सम प है ।
5. यह स ा त पूण रोजगार क मा यता पर आधा रत है ।
6. स ा त म यह मान लया गया है क उ पादन म प रवतनशील अनुपात का नयम
याशील रहता है ।
7. उ पादन क या म एक साधन ह प रवतनशील होता है अ य साधनो को ि थर
मान लया जाता है ।
8. उ पादन क तकनीक ि थर रहती है ।
9. यह स ा त द घकाल न वृि त को बतलाता ह ।
10. साधन क सीमा त उ पादकता को मापा जा सकता है ।

15.4.3 स ा त क आलोचनाएं

अवा त वक एवं अ यावहा रक मा यताओं पर आधा रत होने के कारण इस स ा त क


अनेक आलोचनाएं हु ई िजनम से कु छ मु ख आलोचनाएं न न कार ह -
(229)
1. एक सामा य स ा त के प म यह स ा त अपना थान नह ं बना पाया य क
इस स ा त म साधन के क मत नधारण म मांग और पू त प पर समान प से
यान न दे कर केवल मांग प पर ह जोर दया गया है ।
2. यह स ा त द घकाल न ि टकोण रखता है और अ पकाल म साधन के क मत
नधारण का सह व लेषण तु त नह ं करता ।
3. पूण तयो गता एवं पूण रोजगार क धारणा का प नक ह । वा त वक जीवन म ये
नह पाई जाती है । जब क इस स ा त म इ ह मान लया गया है ।
4. य द उ पादन के े मे उ प त वृ नयम काम कर रहा हो तो यह स ा त लागू
नह हो पाता । जब क यावहा रकता म उ पादन क या म उ प त वृ नयम
भी पाया जाता है ।
5. कसी साधन क सीमा त उ पादकता को ात करना अ य त क ठन होता है ।
य क वा त वकता म कसी व तु का उ पादन व भ न साधन के संयु त य न
का प रणाम होता है। तथा ऐसी ि थ त म एक साधन क सीमा त उ पादकता को
पृथक करके ात करना अ य त क ठन काय है ।
6. यह स ा त द घकाल न ि थर अथ यव था क मा यता पर नभर करता है पर तु
वा त वक जीवन म ग या मक अव था पाई जाती है तथा अ पकाल का वशेष
मह व होता है ।
7. साधन क येक इकाई सम प होती है । यह मा यता वा त वकता से हट कर ल
गई मा यता है । य क वा त वकता म तो साधन क येक इकाई म असमानता
पाई जाती है ।
बोध न - 2
1. वतरण के सीमा त उ पादकता स ा त क या मा यताएं ह ?
2. वतरण के सीमा त उ पादकता स ा त का आलोचना मक पर ण क िजये ।

15.5 सारांश
साधन क मत नधारण म वतरण के सीमा त उ पादकता स ा त का मह वपूण थान
है । इस स ा त के अनुसार साधनो क क मत उनक सीमा त उ पादकता के वारा नधा रत
होती है तथा साधनो को तफल उनक सीमा त उ पादकता के अनुसार दया जाना चा हय क
यह सामािजक ि ट से उ चत तथा नै तक ि ट से वांछनीय भी है क व भ न साधन को
भु गतान उनक सीमा त उ पादकता के बराबर दया जाये । सीमा त उ पादकता के मापन के
स ब ध म तीन अवधारणाएं च लत ह - 1, सीमा त भौ तक उ पादकता (MPP) 2- सीमा त
आगम उ पादकता (MRP) तथा 3. सीमा त उ पादकता का मू य (VMP) पूण तयो गता क
ि थ त म MRP=PP होता है । संतु लन क ि थ त के लए आव यक है क साधन क वभ न
इकाइय को सभी उ योग म एक सा पा र मक मले तथा यह उनक सीमा त आगम
उ पादकता के बराबर हो । य द साधन क क मत उसक सीमा त आगम उ पादकता से कम है
तो साधन का शोषण होगा और वह इस उ योग को छोड़कर दूसरे उ योग म चला जायेगा । यह
म तब तक चलता रहे गा जब तब P =MRP न हो जाय इसके वपर त य द साधन क क मत

(230)
उसक MRP से अ धक ह तो उ पादक को हा न होगी और वह साधन क इकाइय को कम करने
लगेगा ये िजससे साधन क सीमा त आगम उ पादकता बढ़ जायेगी और यह या तब तक
चलेगी जब तब तक P = MRP ह होगा । यह स ा त अनेक अवा त वक एवं अ यावहा रक
मा यताओं जैसे पूण तयो गता, पूण रोजगार, उ पादन क तकनीक का ि थर होना, सीमा त
आगम उ पादकता का मापन स भव होना, प रवतनशील अनुपात नयम का याशील होना आ द
मा यताओं पर टका हु आ होने के कारण व भ न आलोचनाओं का शकार हु आ, पर तु फर भी
वतमान म यह साधन क मत नधारण म अपना मह व बनाये हु ये है य क सीमा त उ पादकता
साधन क क मत को नधा रत करने वाला एक मह वपूण आ थक कारण है इसे नकारा नह ं जा
सकता है ।

15.6 श दावल
उ पादन समाि त मेय (Product Exhaustion Theorm
यह येक साधन क येक इकाई को उस साधन क सीमा त उ पादकता के समान
तफल दया जाए तो सारा उ पादन पूर तरह बट जाता है ।
प रवतनशील अनुपात का नयम (Law of Variable Prortions)
जब अ य साधन क मा ा को ि थर रखकर एक साधन क मा ा को बढ़ाया जाता है
तो प रवतनशील साधन क सीमा त भौ तक उ पादकता अ तोग वा अव य घटती है ।
पूण तयो गता (Perfect Competition))
बाजार क वह ि थ त िजनम अनेक े ता, अनेक व े ता, सम प व तु वतं वेश,
बाजार का पूण ान, साधन म पूण ग तशीलता एवं प रवहन लागत क अनुपि थ त पाई जाती
है पूण तयोगी कहलाती है । इस बाजार म े ता या व े ता बाजार क मत पर नयं ण नह ं रख
पाता है ।

15.7 संदभ ंथ
आहू जा एच. एल. : उ चतर आ थक स ा त, एस. चांद ए ड क पनी, नई द ल,
2006
बरला सी. एस, : उ चतर यि टगत अथशास , नेशनल पि ल शंग हाऊस जयपुर , 1999
Salvatore D : Mirco Economic Theory and Applications, 4th Edition, 2003
Stoneier A.W.and Hauge D.C : A Text Book of Economic theory,
Macmillan, Landon,

15.8 बोध न के उ तर
बोध न - 1
न (1) भाग 15.3 दे ख ।
न (2) भाग 15.3 दे ख ।
न (3) भाग 15.3 दे ख ।
न (4 - क) -5
न (4 - ख) -125 पये

(231)
न (4 - ग) - 125 पये
बोध न - 2
न (1) उपभोग 15.4.2 दे ख ।
न (2) भाग 15.4 दखे ।

(232)
इकाई – 16
पूण तयो गता एवं एका धकार के अ तगत मजदूर
नधारण wage Determination Under Perfect
Competition And Monopoly

इकाई क परे खा
16.0 उ े य
16.1 तावना
16.2 मजदूर नधारण
16.2.1 म क मांग
16.2.1 मांग क पू त
16.3 पूण तयो गता के अ तगत मजदूर का नधारण
16.4 एका धकार के अ तगत मजदूर का नधारण
16.5 सारांश
16.6 श दावल
16.7 संदभ ं थ
16.8 बोध न के उ तर

16.0 उ े य
इस इकाई के अ ययन करने के प चात आप
 मजदूर का ता पय समझ सकगे
 मौ क एवं वा त वक मजदूर म अ तर समझ सकगे
 मजदूर का पूण तयो गता तथा एका धकार के अ तगत कस कार नधारण कया जाता
है उसक ववेचना कर सकगे

16.1 तावना
म के योग के लए द गई क मत मजदूर कहलाती है । अथशा म म उन सब
मान सक एवं शा र रक काय के लए योग कया जाता है जो धन ा त करने के उ े य से
कये जाते ह । म उ पादन का एक स य एवं मह वपूण साधन कया जाता है । उ पि त के
साधन के प म म को रा य आय म जो भाग मलता है वह मजदूर कहलाती है । दूसरे
श दो म रा य आय का वह भाग जो म उ पादन या म सहयोग के बदले ा त होता है
मजदूर कहलाता है। अथशा म मजदूर के स ब ध म दो अवधारणाएं च लत ह
(1) मौ क मजदूर
(2) वा त वक मजदूर

(233)
(1) मौ दक मजदूर
वह मजदूर जो मक को य या मु ा के प म ा त होती है मौ क मजदूर
कहलाती है । ो. हाइट हैड के अनुसार ''मौ क मजदूर एक मक वारा अिजत मु ा क
वा त वक मा ा ह” (Money wages refers to the actual money earned by the
worker)
अत: यह नकद मजदूर क वह मा ा है जो मक को म के एक नि चत समय ( त
घ टा, त दन, तमाह इ याद ) म मु ा या य के प म द जाती है ।
(2) वा त वक मजदूर
यह व तु ओं और सेवाओं क मा ा को बताती ह जो क एक यि त अपनी नकद या
ाि यक मजदूर से ा त कर सकता है । दूसरे श द म वा त वक मजदूर मौ क मजदूर क
य शि त होती है । वा त वक मजदूर म मौ क मजदूर के अ त र त कु छ लाभ तथा सु वधाएं
भी शा मल होती ह जैसे नःशु क च क सा सु वधा, स ता मकान आ द । वा त वक मजदूर के
नधारण म नकद मजदूर , क मत तर, काय के घ टे , रोजगार क कृ त, सहायक आय
( नःशु क मकान, भोजन, वद च क सा सु वधाएं आ द) तथा काय क दशाय आ द त व
मह वपूण भू मका अदा करते है ।
बोध न - 1
1. मजदूर क प रभाषा बताइए तथा मौ क मजदूर तथा वा त वक मजदूर म अ तर
प ट क िजये ।

16.2 मजदूर का नधारण


मजदूर नधारण के स ब ध म समय-समय पर अपने समय क प रि थ तय को यान
म रखते हु ए अथशाि य वारा मु य प से न न ल खत स ा त तपा दत कये गये ह :-
1. मजदूर का जीवन तर स ा त
2. मजदूर का जीवन नवाह स ा त
3. मजदूर कोष स ा त
4. मजदूर का अवशेष अ धकार स ा त
5. मजदूर का ब ा स हत सीमा त उ पादकता स ा त
6. मजदूर का सीमा त उ पादकता स ा त
7. मजदूर का आधु नक स ा त
उपरो त स ा त म से पहले पाँच स ा त का अपूण, दोषपूण , तथा अनेक
आलोचनाओं के कारण वतमान म कोई मह व नह ं रहा है । मजदूर के सीमा त उ पादकता
स ा त का एक साधन के स दभ म व तृत ववरण इकाई - 15 म दया जा चु का ह। वतमान
समय म मजदूर का आधु नक स ा त ह सबसे अ धक च लत है तथा मजदूर नधारण म
अपना वशेष मह व रखता है ।
मजदूर के आधु नक स ा त के अनुसार िजस कार कसी व तु का मू य नधारण उस
व तु क मांग एवं पू त क शि तय के सा य से होता है, ठ क उसी कार मजदूर का नधारण
भी मक क मांग एवं पू त क पार प रक शि तय के संतु लन से होता है । दूसरे श द म एक

(234)
उ योग म मजदूर का नधारण उस ब दु पर होता है जहां म को कु ल मांग व एवं म का
कु ल पू त व एक दूसरे को काटते ह । अत: मजदूर का नधारण करने के लए म क मांग
व एक दूसरे को काटते ह । अत: मजदूर का नधारण करने के लए म क मांग व एवं
पू त तथा इनक अ त या (Interaction) का ववेचन करना आव यक है ।

16.2.1 म क मांग

म क मांग उ पादको वारा उ पादन काय के लए क जाती है य क म उ पादन


का एक स य एवं मह वपूण साधन होता है । म क मांग यु प न मांग (Derived
Demand) होती है । य क यह उन व तु ओं एवं सेवाओं क मांग पर नभर करती है िजनके
उ पादन म म का योग हु आ है । अत: हम कह सकते ह क म क मांग मजदूर क
नि चत दर पर मक क वह सं या है िज ह उ पादक काम पर लगाना चाहता है । उ पादक
म क मांग म क सीमा त उ पादकता (Marginal Productivity) को यान म रखकर करता
है । कोई उ पादक सामा यत: म को उसक सीमा त उ पादकता से अ धक मजदूर नह ं दे ना
चाहता है । वह हमेशा म को उसक सीमा त उ पादकता के बराबर ह मजदूर अदा करना
चाहे गा ।
मजदूर क दर एवं म क मांग म उ टा स ब ध (Inverse Relation) पाया जाता है
। इसका ता पय यह है क जब मजदूर क दर अ धक होगी तो म क मांग कम होगी तथा
जब मजदूर क दर कम होगी तो म क मांग अ धक होगी । म का मांग व च - 16.1
के अनुसार बांये से दांये क ओर उपर से नीचे गरती रे खा होती है ।

म क इकाइयां
च सं या 16.1
च सं या 16.1 म OX अ पर मक क सं या तथा OY अ पर मजदूर क दर
को लया जाता है । DD म क मांग व है । जो यह बतलाता है क जैसे-जैसे मजदूर क दर
घटती जाती है म क माँग बढ़ती जाती है । और जैसे-जैसे मजदूर क दर बढ़ती जाती है म
क मांग कम होती जाती है ।

16.2.2 म क पू त

कसी उ योग के लए म क पू त का अ भ ाय एक वशेष कार के मक क उस


सं या से है जो व भ न मजदूर दर पर अपनी सेवाओं को अ पत करने को त पर है । य द
मजदूर क दर एक म क पू त के बीच के स ब ध को दे खा जाये तो हम पाते ह क मजदूर

(235)
क अ धक दर पर अ धक मक काम करने को त पर होते ह जब क मजदूर क नीची (कम)
दर पर कम मक काम करने के लये तैयार होते ह । अत: यह कट होता है क मजदूर क
दर एवं म क पू त म सीधा स ब ध पाया जाता ह । यहां यह यान दे ने क बात है क
मक क पू त क नीचल सीमा मको के जीवन तर वारा नधा रत होती है । य द मजदूर
क दर उनके यूनतम जीवन तर क लागत से कम है तो मक काय करने के लए अपनी
पू त नह ं करगे । अथात ् यूनतम जीवन तर वारा नधा रत होती है । य द मजदूर क दर
उनसे यूनतम जीवन तर क लागत से कम है तो मक काय करने के लये अपनी पू त नह ं
करगे। अथात ् यूनतम जीवन तर के लए आव यक मजदूर क दर से कम मजदूर क दर पर
मक एवं मनोवै ा नक त व भी होते ह । अना थक त व म घर के लए मोह, सामािजक
वातावरण घरे लू वातावरण आ द मु ख ह जब क मनोवै ा नक त व म काय तथा आराम के
म य समय का वभाजन मु ख होता है ।
यद म क पू त के स ब ध म नधारक तीन त व (आ थक, अना थक एवं
मनोवै ा नक) को यान म रखकर मजदूर क दर एवं म क पू त का व लेषण कया जाय तो
यह ात होता है क ार भ म मजदूर क वृ से म क पू त बढ़े गी पर तु एक सीमा के बाद
या न मजदूर क दर म और वृ हो गई तो म क पू त कम हो जायेगी । य क हो सकता है
मक आय भात के कारण कम घ टे ह काय करना चाहे । ऐसी ि थ त म म का पू त व
पीछे ओर मुड़ने वाला (Backward Sioping) होगा। इसे च - 2 वारा न न कार दशाया जा
सकता है।

च सं या 16.2
च सं या 16.2 म म क पू त तथा मजदूर क दर के स ब ध को दशाया गया है ।
OX अ पर म क पू त तथा OY अ पर मजदूर क दर को लया गया है । SS म का
व है। जब मजदूर क दर OW1 से बढ़कर OW2 हो जाती है तो म क पू त ON1 से बढ़कर
ON2हो जाती है पर तु य द मजदूर क दर म और अ धक वृ हो जाय अथात ् वह OW2 से
बढ़कर OW3 हो जाये तो म क पू त ON2 से घटकर ON3 रह जाती है ।
बोध न - 2
1. म क मांग एवं मजदूर क दर के स ब ध को प ट क िजये ।
2. पीछे क ओर मु ड़ते हु ए म के पू त व पर सं त ट पणी ल खये ।
(236)
16.3 पू ण तयो गता के अ तगत मजदूर का नधारण
एक उ योग के लए पूण तयो गता क ि थ त म मजदूर वहाँ पर नधा रत होती है
जहाँ पर म क माँग एवं म क पू त बराबर हो । पूण तयो गता क ि थ त म मजदूर
नधारण को च सं या 16.3 क सहायता से प ट कया जा सकता है -
च सं या 16.3 म OX अ पर मक क सं या OY अ पर मजदूर क दर को
लया गया है । एक उ योग के लए DD मक का माँग व है तथा SS मक का पू त व
ह । ये दोन व एक-दूसरे को K ब दु पर काटते ह अत: K ब दु संतु लन का ब दु होगा तथा
इस ि थ त म मजदूर क दर OW नधा रत होगी तथा म क माँग एवं पू त कम मा ा
ONहोगी । य द मजदूर क दर OW1 हो जाये तो मक क मांग ON2 तथा मक क पू त
ON1 हो जायेगी । चूँ क इस मजदूर दर पर मक क माँग पू त से N1N2 अ धक है जो
मजदूर क दर बढे गी जब तक क यह बढ़कर OW न हो जाये इसके वपर त य द मजदूर क
दर OW2 नधा रत हो गयी तो इस मजदूर क दर पर मक क माँग ON3 तथा

च सं या 16.3
मक क पू त ON4 हो जायेगी । च से प ट है क इस मजदूर क दर पर मक क
माँग मक क पू त से N3N4 कम है । जो मजदूर क दर को तब तक घटयेगी जब तक
क पुन: मजदूर क संतु लन क दर OW नधा रत न हो जाय ।
न कष मजदूर क वह दर नधा रत होगी जहाँ पर मक क मांग तथा मक क
पू त बराबर होगी । च म OW संतल
ु न क अव था म नधा रत मजदूर क दर है तथा ON
मक क माँग एवं ON मक क पू त ह जो बराबर है ।
पूण तयो गता क अव था म जब एक बार उ योग वारा मजदूर क दर नधा रत हो
जाती है तो येक फम को इस मजदूर क दर को वीकार करना होता है । एक फम के लए
इस बाजार म उ योग वारा नधा रत मजदूर क दर पर मक क पू त पूणतया लोचदार होती
है । ऐसी ि थ त म एक फम के लए औसत मजदूर तथा सीमा त मजदूर बराबर होती है ।
तथा मक का पू त व ै तज रे खा होता है । पूण तयो गता म फम संतु लन क ि थ त म
तब होती है जब फम क सीमा त मजदूर (MW) फम के सीमा त आगम उ पाद (MRP) के
बराबर होगी । एक फम के संतल
ु न क ि थ त का अ ययन अ पकाल एवं द घकाल म न न
कार कया जा सकता है!

(237)
(A) अ पकाल
इस काल मे एक फम मक के योग क ि ट से तीन ि थ तय म हो सकती है -
1. लाभ क ि थ त
2. सामा य लाभ क ि थ त
3. हा न क ि थ त
1. लाभ क ि थ त
य द औसत मजदूर (AW)औसत आगम उ पाद(ARP)से कम हो तो फम को लाभ ा त
होगा। इसे च सं या 16.4 वारा न न कार प ट कया जा सकता है ।

च सं या 16.4
च सं या 16.4 म OX अ पर म क इकाइयाँ तथा OYअ पर मजदूर क दर, औसत
आगम उ पादकता तथा सीमा त आगम उ पादकता को लया जाता है । AW=MW औसत
मजदूर एंव सीमा त मजदूर रे खा है । ARP औसत आगम व एवं MRP सीमा त आगम
व ह । संतु लन क अव था वहाँ होगी जहाँ MW = MRP होगा । च म यह ि थ त K
ब दु पर होगी । अत: K ब दु सा य का ब दु होगा तथा इस ि थ त म फम OW मजदूर
क दर पर म क ON इकाईयाँ काम म लेगी । तथा म क औसत आगम उ पादकता OP
होगी । च से प ट है क इस ब दु पर औसत आगम उ पादकता सीमा त मजदूर से
अ धक होगा (ARP) अत: फम को त इकाई PW लाभ ा त होगा । तथा कु ल लाभ
PWKM होगा ।
2. सामा य लाभ क ि थ त
य द औसत मजदूर (AW) औसत उ पादकता (ARP) के बराबर है तो फम सामा य
लाभ क ि थ त म होगी । च सं या व 16.5 वारा इसे प ट कया जा सकता है ।

(238)
च सं या 16.5
जैसा क हम जानते ह संतु लन क ि थ त वह ं होगी जहाँ MRP = MW होगा ।
च ानुसार यह ि थ त K ब दु पर ा त होती है । अत:K ब दु सा याव था का ब दु होगा
सा य क ि थ त म OW मजदूर क दर तथा औसत आगम उ पादकता (ARP) भी OW ह
होगी। चूँ क AW=ARP अत: फम को सामा य लाभ ा त होगा । एवं फम म क ON मा ा
यु त करे गी ।
3. हा न क ि थ त
य द औसत मजदूर (AW) औसत आगम उ पादकता (ARP) अ धक है तो फम हा न क
ि थ त म होगी । इसे च सं या 16.6 वारा न न कार प ट कया जा सकता ह ।

च सं या 16.6

(239)
सा याव था क ि थ त वहाँ ा त होती है जहाँ MW=MRP होगा । च म यह ि थ त
K ब दु पर ा त होगी । अत: K ब दु संतु लन का ब दु है । इस ब दु पर म क ON
इकाईयाँ यु त क जायगी, औसत मजदूर क दर (AW)=OW होगी तथा औसत आगम
उ पादकता (ARP)=PO होगी । चू ं क 'ARP<AW है । अत: फम को हा न होगी । त इकाई
हा न क मा ा WP होगी तथा कु ल हा न WPMK के बराबर होगी ।
(B) द घकाल
द घकाल म पूण तयो गता म फम को केवल सामा य लाभ ह ा त होता है । वह न
तो लाभ क ि थ त म रह सकती है और न हा न म य क य द फम लाभ क ि थ त म होगी
तो नयी फम लाभ से आक षत होकर उ योग म वेश करे गी । इससे मक क माँग बढ़े गी
और मजदूर क दर बढ़ जायेगी तथा साथ ह व तु का उ पादन भी बढ़े गा । और इससे उसक
क मत भी घट जायेगी । क मत के घटने से ARP कम हो जायेगी । ये दोन याएँ तब तक
चलती रहे गी जब तक ARP=AW न हो जाये इसी कार य द फम को हा न दत होती है तो
फम उ योग को छोड़ दे गी । इससे मक क माँग घट जायेगी और उनक मजदूर AW भी
कम हो जायेगी साथ ह व तु क क मत बढ़ जायेगी और ARP बढ़ जायेगा । इन दोन बात का
प रणाम यह होगा क अ तत: ARP तथा AW बराबर हो जायेग न कष प म द घकाल म फम
केवल सामा य लाभ क ि थत म ह रहे गी । सामा य लाभ क इस ि थत म
AW=MW=ARP=MRP होगा । इसे च सं या16.7 कार प ट कया जा सकता है ।

च सं या 16.7
मक के योग करने क ि ट से एक फम के सा य क ि थ त म MRP=MW तथा
ARP=AW होना चा हए । यह ि थ त च म K ब दु पर ा त होती ह अत: K ब दु स तुलन
का ब दु होगा । इस ि थ त म मजदूर क दर OW होगी मक क मा ा ON होगी एवं फम
सामा य लाभ क ि थ त म होगा ।

(240)
16.4 एका धकार के अ तगत मजदूर का नधारण
यहाँ बाजार क उस अव था म मजदूर के नधारण का ववेचन कया जा रहा है जब
केवल साधन बाजार म य एका धकार हो तथा व तु बाजार म पूण तयो गता क ि थ त ह ।
इस अव था म केवल एक ह उ यमी या फम है जो मक को रोजगार दान करती है अथात ्
एक अकेले उ पादक के सम बड़ी सं या म मक है जो असंग ठत ह । ऐसी अव था म
उ पादक या फम मजदूर क अ धक माँग करता है तो उसे अ धक मजदूर दे नी पड़ती ह । पर तु
य द वह मजदूर क कम माँग करता है तो कम मजदूर दे नी पड़ती है । इस लए सीमा त
मजदूर एवं औसत मजदूर अलग-अलग होगी । म बाजार म अपूणता होने के कारण औसत
मजदूर रे खा (Average wage Line) ऊपर क ओर उठ रह होती है । पूण तयो गता क
भाँ त ै तज नह ं होगी । सीमा त मजदूर रे खा (Marginal Warge Line) भी ऊपर क ओर
उठती हु ई होती है और वह औसत मजदूर रे खा के ऊपर होती है । एका धकार क इस ि थ त म
फम या उ पादक के लए मक का माँग व सीमा त आगम उ पादकता. व होता है ।
संतु लन क अव था म इस ि थ त के बाजार म सा य फम मको क वह मा ा योग करे गा
जहाँ पर क MRP=MW होता है अथात ् सीमा त आगम उ पादकता तथा सीमा त मजदूर बराबर
हो । च सं या 16.8 म वारा इसे प ट कया जा सकता है ।

च सं या 16.8
च सं या 16.8 म AW औसत मजदूर व है, MW सीमा त मजदूर व है, औसत
आगम उ पादकता व है तथा MRP सीमा त आगम उ पादकता व है । संतु लन क अव था
म म क सीमा त आगम उ पादकता (MRP) तथा म क सीमा त मजदूर (MW) बराबर
होती है । च ानुसार यह ि थ त K ब दु पर ा त होती है । अत: K ब दु संतु लन का ब दु
होगा । इस ब दु पर PN मक को रोजगार दया जायेगा । औसत मजदूर NS होगी चू ं क
औसत मजदूर सीमा त आगम उ पादकता से कम है । अत: म का शोषण होगा । म का
शोषण NK-NS=SK होगा ।

(241)
बोध न - 3
1. पूण तयो गता के अ तगत मजदूर के नधारण को प ट क िजये ।
2. एका धकार के अ तगत मजदूर के नधारण का स च वणन क िजये ।

16.5 सारांश
म उ पादन का स य एवं मह वपूण साधन होता है । म के योग के लए द गई
क मत मजदूर कहलाती है। अथशा म धन ाि त के उ े य से कया गया कोई भी शार रक
एवं मान सक काय म कहलाता है । मजदूर के स ब ध म सामा यत: दो अवधारणाएं मु य
प से चलन म है । एक मौ क मजदूर एवं दूसर वा त वक मजदूर । वा त वक मजदूर म
मौ क मजदूर के साथ अ य सु वधाओं जैसे नःशु क मकान आ द को भी शा मल कया जाता
है । मजदूर के नधारण के स ब ध म अनेक स ा त तपा दत कये गये है । मजदूर
नधारण का आधु नक स ा त ह वतमान समय सवा धक ासं गकता रखता ह इसके अनुसार
मजदूर का नधारण मक क मांग एवं मक क पू त क शि तय पर नभर रखता है ।
संतु लन क अव था म मजदूर वहां नधा रत होती ह जहां म क मांग एवं म क पू त बराबर
होती ह । मजदूर का नधारण पूण तयो गता एवं एका धकार क ि थ त म कया जा सकता है
। पूण तयो गता क ि थ त म एक उ योग मजदूर वहाँ नधा रत करता है जहाँ पर म क
माँग म क पू त के बराबर होती ह । इस तयो गता म फम उ योग वारा नधा रत मजदूर
को हण कर लेती है तथा अ पकाल म लाभ, सामा य लाभ एवं हा न म से कसी भी ि थ त म
हो सकती है, पर तु द घकाल म संतल
ु न क अव था म सामा य लाभ क ि थ त ह पायी जाती
है । इस ि थ त म MW=MRP तथा AW=ARP होता ह । एका धकार क व भ न ि थ तयाँ हो
सकती ह पर तु सामा यत: साधन बाजार म य एका धकार तथा व तु बाजार म पूण
तयो गता क ि थ त का अ ययन अ धक ासं गक लगता है । इस ि थ त म संतु लन वहां
होता है जहां म क सीमा त आगम उ पादकता म क सीमा त मजदूर के बराबर होती है
अथात MRP=MWहोगा । इस तयो गता म मक को मजदूर उसक औसत आय उ पादकता
आय उ पादकता से कम मलती है तथा म का शोषण होता है ।

16.6 श दावल
मो क मजदूर = वह मजदूर जो मक को मु ा के प म ा त होती है ।
वा त वक मजदूर = व तु ओं और सेवाओं क वह मा ा िज ह एक यि त अपनी नकद
मजदूर से ा त कर सकता है ।
अ पकाल = समय क वह अव ध है िजसम कम से कम साधन क पू त ि थर होती है
फम केवल घटत-बढ़ते जैसे मक क सं या म प रवतन करके पू त म प रवतन कर सकती ह
द घकाल = समय क वह अव ध है िजसम फम के संयं स हत सभी साधन म
प रवतन कया जा सकता है ।
म क औसत आगम उ पादकता (ARP) = कु ल आगम म म क मा ा का भाग दे ने
से जो भागफल ा त होता है वह (ARP) कहलाता है ।

(242)
म क सीमा त आगम उ पादकता (MAP) म क मा ा म एक इकाई प रवतन करने
से कु ल आगम म होने वाला प रवतन म क सीमा त आगम उ पादकता कहलाता है । यह म
क सीमानत भौ तक उ पादकता एवं म क सीमा त आगम का गुणनफल होता है ।

16.7 सं दभ ंथ
आहु जा एच. एल. : उ चतर आ थक स ा त, एस. चांद ए ड क पनी नई द ल
2008
बरला सी. एस. : उ चतर यि टगत अथशा , नेशनल पि ल शंग, हाऊस, जयपुर ,
1999
Salvatore d : Micro Ecinomic Theory and Applications,4th Edition
2003
Stoneier A.W. and Hauge D.C. A Taxt Book of Economic Theory,
Macmillan,Landon,

16.8 बोध नो के उ तर
बोध न 1 भाग 16.1 दे ख ।
बोध न 2 भाग 16.2 दे ख ।
बोध न 3 भाग 16.3 एवं 16.4 दखे

(243)
इकाई - 17
रकाड का लगान का स ा त, आधु नक लगान स ा त,
आभास लगान RECARDIAN AND MODERN
THEORY MODERN THEORY OF RENT,
QUASIRENT

इकाई क परे खा
17.0 उ े य
17.1 तावना
17.2 लगान का अथ
17.3 रकाड का लगान स ा त
17.3.1 स ा त क मा यताएं
17.3.2 स ा त क या या
17.3.3 आलोचनाएं
17.4 आधु नक लगान स ां त
17.5 आभास लगान
17.6 सारांश
17.7 श दावल
17.8 कु छ उपयोगी पु तक
17.9 बोध नो के उ तर

17.0 उ े य
इस इकाई के अ ययन के प चात आप : -
 लगान क अवधारणा को समझ पायगे;
 रकाड के लगान के स ा त एवं आधु नक लगान स ा त के अनुसार लगान के
नधारण क या या कर सकगे ; एवं
 आभास लगान क धारणा एवं इसका नधारण कर पायगे ।

17.1 तावना
लगान के स ब ध म अथशाि य वारा व भ न अवधारणाय तपा दत क गई ह ।
ला सकल अथशाि य एवं आधु नक अथशाि य के ि टकोण म इस स ब ध म अ तर दे खने
को मलता है । रकाड का लगान का स ा त जो भू म तथा अ य ाकृ तक साधनो के योग
क क मत क सम या का अ ययन करता ह जब क लगान का आधु नक स ा त िजसम कसी

(244)
उ पादन के साधन क इकाई वारा उसके वतमान उपयोग अथवा पेशे म काम करते रहने के
लये े रत करने के लये आव यक आय से अ त र त अिजत आय का वणन कया गया है ।
रकाड के अनुसार लगान भू म के योग के लए दया गया जाता है अथात ् लगान का स बध
केवल भू म से होता है पर तु लगान के आधु नक स ा त के अनुसार लगान केवल भू म को ह
ा त नह ं होता अ पतु उ पि त के सभी साधन भू म, म, पू ज
ं ी, संगठन तथा साहसी को ा त
हो सकता है । (218)

17.2 लगान का अथ
अथशा म लगान (Rent) श द का योग उ पादन के उन साधन को दये जाने वाले
भु गतान के लए कया जाता है िजनक पू त अपूणतया लोचदार होती है इस स ब ध म मु ख
उदाहरण भू म का दया जाता है भू म कृ त वारा दया गया नःशु क साधन है । इस लए
लगान का अ भ ाय केवल उस भु गतान से है जो भू म या अ य कृ तद त उपहार के योग के
बदले भू वामी को दया जाता ह रकाड के अनुसार, लगान भू म क उपज का वह भाग ह जो
भू वा मय को भू म क मौ लक एवं अ वनाशी शि तयो के योग के बदले म दया जाता है । '
ीमती जान रा ब सन ने लगान क आधु नक या या तु त कर कहा क लगान क लगान क
धारणा का आशय उस आ ध य क धारणा से ह जो उ पादन के कसी साधन क एक इकाई को
उ पादन म बनाये रखने के लए आव यक यूनतम आय से अ धक है ।
लगान श द का योग आ थक लगान एवं ठे का लगान के प म कया जाता है ।
रकाड के अनुसार आ थक लगान का ता पय रा य आय के उस भाग से है जो भू वामी को
भू म के योग के बदले मलता है यह अ धसीमा त एवं सीमा त भू म क उपज के बीच का
अ तर होता है । जब क आधु नक अथशाि य के अनुसार यह साधन क वतमान आय एवं
थाना तरण आय के अ तर के बराबर होता है । ठे का लगान का नधारण कृ षक एवं भू वामी के
बीच पार प रक समझौते, अनुब ध या इकरार के आधार पर तय कया जाता है । ठे का लगान
आ थक लगान से अ धक कम या बराबर हो सकते ह य क ठे का लगान का नधारण भू म क
मांग एवं पू त क शि तय के आधार पर होता है । सामा यत: अथशा म लगान से ता पय
आ थक लगान से ह होता है ।

17.3 रकाड का लगान का स ा त


रकाड के अनुसार ''लगान भू म क उपज का वह भाग है जो भू म क मौ लक एवं
अ वनाशी शि तय के लए भू म के वामी को दया जाता है ।''

17.3.1 स ा त क मा यताएं

रकाड ने लगान स ा त क २य ट या या तु त करने हे तु अनेक मा यताओं को


आधार बनाया जो न न कार ह -
1. भू म क पू त ि थर होती है ।
2. भू म म उपजाऊ मौ लक तथा अ वनाशी होती ह तथा यह भू म के व भ न टु कड़ो
क अलग- अलग होती है ।

(245)
3. भू म के वैकि पक उपय ग नह ं होते । भू म का केवल एक ह उपयोग होता है और
वह है उस पर खेती करना ।
4. भू म पर खेती का काय भू म क उपजाऊ शि त के म म कया जाता है अ धक
उपजाऊ भू म पर कम उपजाऊ भू म क अपे ा पहले खेती क जाती है ।
5. कृ ष े म घटते तफल का नयम लागू होता है ।
6. व तु बाजार म पूण तयो गता पाई जाती है ।

17.3.2 स ा त का या या

रकाड ने लगान के स ा त का तपादन कृ ष भू म के स ब ध म ह कया पर तु


यह स ा त अ य ाकृ तक साधन के स ब ध म भी लगान प से लागू होता है । रकाड के
अनुसार भू म क उवरता म अ तर होता ह िजसके कारण समान उ पादन लागत लगाने पर भी
े ठ (अ धक उपजाऊ) भू म को न न को ट (कम उपजाऊ) क भू म तु लना अ धक बचत ा त
होती है । इस भेदा मक बचत को रकाड ने लगान कहा है । लगान का नधारण दो कार से
प ट कया जा सकता है -
1. व तृत खेती, तथा
2. गहन खेती
1. व तृत खेती के अ तगत लगान
व तृत खेती वह खेती होती है िजसम उ पादन बढ़ाने के लए भू म के े फल को
बढ़ाकर उ पादन बढ़ाया जाता है । ऐसी खेती म लगान को नधा रत करने के लए रकाड ने एक
ऐसे भू भाग क क पना क जहां अनेक कार क गुणवता वाले भू ख ड है । मान लिजए इनक
चार े णयां है, A,B,C एवं D उपजाऊ शि त के अनुसार A ेणी का भू ख ड सबसे े ठ ह
उससे कम उपजाऊ भूख ड है । C णी भूख ड क उपजाऊ शि त उससे भी कम ह तथा D
ेणी का भू य ड सबसे कम उपजाऊ शि त वाला है इसक उपज का मू य उसके आगत के
मू य के समान है । अत: इस (D ेणी के) भू ख ड पर कोई अ तरे क या बचत ा त नह ं होती ।
इस D ेणी के भू ख ड को सीमा त भू ख ड कहा जाता है ।
A, B, C ेणी के सभी भू ख ड ऐसे ह िजन पर होने वाला उ पादन का मू य उन पर
होने वाले आगत के मू य (लागत) से अ धक ह । ये भू ख ड अ धसीमा त भू ख ड कहलाते ह ।
रकाड के अनुसार अ धसीमा त भू म एवं सीमा त भू म के बीच उ पादन का अ तर ह लगान
होता है । एक का प नक उदाहरण क सहायता से इसे प ट कया जा सकता ह ।
मान लिजये एक दे श म A ेणी क भू म पर त एकड़ उपज 5० ि वंटल, B े णी क
भू म पर त एकड़ उपज 40 ि वंटल C ेणी क भू म पर त एकड़ उपज 30 ि वंटल तथा D
ेणी क भू म पर त एकड़ उपज 20 ि वंटल गेहू ं उ पा दत होता है । D ेणी क भू म
सीमा त भू म है । अत: इस पर कोई लगान नह ं होगा । A,B तथा C अ धसीमा त भू मयाँ ह
इन पर ा त होने वाला उ पादन अ त रक जो A ेणी क भू म पर 50-20=30 ि वंटल त
एकड़ B ेणी क भू म पर 40-20= 20 ि वंटल त एकड़ तथा C ेणी क भू म पर 30-20
=10 ि वंटल त एकड़ लगान कहलायेगा । इसका कु ल योग 30+20+10=60 ि वंटल त एकड़
होगा । च वारा इसे न न कार प ट कया जा सकता ह ।

(246)
च -1

च - 1 म OX अ पर भू म क ेणी तथा OY अ पर उ पादन क मा ा को


दशाया गया है। A, B, C तथा D चार भू म क े णया ह । A,B,C,D के ऊपर बने खान
(Bars) क ऊचाई त एकड़ उ पादन को दशाती है । D ेणी क भू म पर त एकड़ उ पादन
उस पर आने वाल त एकड लागत के बराबर है । अत: यह लगान र हत भू म है । दूसरे श द
म यह सीमा त भू म ह । शेष नह तीन ेणी क भू मय A, B,C पर त एकड़ उ पादन उन
पर आने वाल त एकड़ लागत से अ धक है । अत: ये तीन ेणी (A, B, C) क भू मयां
अ धसीमा त भू म ह । अत: इन पर मलने वाला त एकड़ उ पादन अ तरे क लगान होगा । जो
च ानुसार A ेणी क भू म पर 30 ि वंटल, B ेणी क भू म पर 20 ि वंटल, C ेणी क भू म
पर 10 ि वंटल त एकड़ है ।
2. गहन खेती के अ तगत लगान
गहन खेती वह खेती होती ह िजसम उ पादन बढ़ाने के लये भू म के नि चत े फल
पर म तथा पू ज
ं ी क अ धक इकाईय का योग कया जाता है । रकाड के अनुसार चू ं क कृ ष
म घटते तफल को नयम (Law of Diminishing Returns) लागू होता है । िजसके कारण
गहन खेती के अ तगत भी लगान के नधारण को प ट कया जा सकता है ।
माना एक भू वामी भू म के एक नि चत े फल के टु कड़े पर म व पू ज
ं ी क इकाईय
को उ पादन बढ़ाने के उ े य से तब तक लगाता जावेगा जब तक क इन इकाईय से मलने वाले
सीमा त उ पादन क क मत इन पर होने वाल सीमा त लागत बराबर न हो जावे । पू ज
ं ी और
म क िजस इकाई से मलने वाला सीमा त उ पादन तथा उसक सीमा त लागत बराबर हो
जाती है वह सीमा त इकाई (Marginal Unit) कहलाती है तथा इस इकाई से प हले िजतनी
इकाईयां लगायी गई ह वे अ धसीमा त इकाईया (Super Marginal Unit) कहलाती ह । रकाड
के अनुसार गहन खेती के अ तगत इन अ धसीमा त इकाईय तथा सीमा त इकाई के उ पादन
का अ तर लगान कहलाता है । च -2 इसे न न कार से प ट कया जा सकता है ।

(247)
च - 2 म OX अ पर म व पू ज
ं ी क इकाईय को तथा OY अ पर सीमा त
उ पि त को लया गया है । भू म के एक नि चत े फल के टु कड़े पर म व पू ज
ं ी क पहल
इकाई लगाने से होने वाला उ पादन 50 ि वंटल है । म व पू ज
ं ी क दूसर इकाई लगाने से
दूसर इकाई का सीमा त उ पादन 40 ि वंटल है तथा म व पू ज
ं ी क तीसर इकाई लगाने से
तीसर इकाई का सीमा त 30 ि वंटल है । जब म व पू ज
ं ी क चौथी इकाई लगाई जाती है तो
चौथी इकाई का सीमा त उ पादन 20 ि वंटल आता है । य द चौथी इकाई को लगान र हत इकाई
माना जावे तो यह सीमा त इकाई कहलायेगी अथात ् यह वह इकाई है िजसका सीमा त उ पादन
एवं सीमा त लागत बराबर है तो पहल तीन इकाईयां अ धसीमा त इकाईयां कहलायेगी तथा इन
तीन इकाईय से ा त होने वाला सीमा त उ पादन अ तरे क लगान होगा जैसा क च म
दशाया गया है क थम इकाई से ा त लगान 30 ि वंटल, दूसर इकाई से ा त लगान 20
ि वंटल तथा तीसर इकाई से ा त लगान 10 ि वंटल ह ।

17.3.3 आलोचनाएं

रकाड के लगान स ा त क अनेक वशेषता होने के उपरा त भी अवा त वक एवं


अ यवहा रक मा यताओं के कारण कु छ आलोचनाएं हु ई जो न न ल खत है :-
1. रकाड के अनुसार लगान भू म क मौ लक एवं अ वनाशी शि तय के कारण
मलता है पर तु वा त वकता म भू म उवरा शि त न तो मौ लक होती है और न ह
अ वनाशी । वतमान समय म इसे तकनी क का सहारा लेकर प रव तत कया जा
सकता है ।
2. रकाड का यह मानना है क सबसे अ छ भू म पर सबसे पहले खेती हु ई तथा
उसके बाद उससे कम अ छ भू म पर ऐ तहा सक ि ट से सह नह ं लगता ।
3. पूण तयो गता क मा यता अवा त वक ह ।
4. रकाड ने भू म के केवल एक उपयोग कृ ष को माना जो पूणतया अ यवहा रक है ।
भू म के अनेको वैकि पक उपयोग होते ह ।
5. कु छ अथशाि य का मानना है क लगान के उ प न होने का कारण भू म का
उपजाऊपन न होकर उसक सी मतता होता है ।

(248)
6. वतमान समय से लगान र हत भू म का पाया जाना वा त वकता से परे क बात
लगती है ।
बोध न - 1
1. रकाड के अनुसार लगान का अथ प ट क िजये ।
2. न न ल खत को प ट क िजये ।
1. गहन खेती
2. व तृत खेती

17.4 आधु नक लगान स ा त


आधु नक स ा त के अनुसार लगान केवल भू म से ह स बि धत नह ं होता बि क
येक साधन लगान ा त कर सकता है । लगान का नधारण साधन क वा त वक आय एवं
थाना तरण आय के अ तर के वारा कया जाता है । सू के प म :-
लगान = वा त वक आय - थाना तरण आय या वैकि पक आय
वा त वक आय एवं थाना तरण आय के बीच अ तर िजतना अ धक होगा उतना ह
अ धक होगा । अगर यह अ तर कम होगा तो लगान भी कम होगा । य द वा त वक आय एवं
थाना तरण आय बराबर होगी तो लगान शू य होगा । वा त वक आय वह आय है जो साधन
को वतमान म ा त हो रह है जब क थाना तरण आय वह आय जो साधन क इकाई के
सव े ठ वैकि पक योग से ा त हो सकती है दूसरे श द म यह वह आय ह जो साधन क एक
कसी उ योग म बनाये रखने के लये आव यक होती है ।
लगान के उ प न होने का कारण उ पि त के साधन क व श टता होती है अथात ्
लगान साधन क व श टता का प रणाम होता है जो साधन पूणतया अ व श ट होते ह उ ह
लगान ा त नह ं होता है । य क पूणतया अ व श ट साधन क थाना तरण आय उसक
वा त वक आय के बराबर होती है । जब साधन पूणतया व श ट होता है तो उसक थाना तरण
आय शू य होती है िजसके कारण उसक सार वा त वक आय ह लगान कहलाती है ।
आधु नक अथशाि य के अनुसार िजस कार कसी व तु क क मत का नधारण मांग
एवं पू त के वारा तय कया जाता है लगान को भी उ पादन के साधन क पू त एवं मांगो के
वारा तय कया जाता है । उ पादन के साधन क पू त के स ब ध म तीन प र रथ तया हो
सकती ह ।
1. जब साधन क पू त पूणतया लोचदार हो,
2. जब साधन क पू त पूणतया बेलोचदार हो तथा
3. जब साधन क पू त पूणतया लोचदार से कम हो ।
लगान का नधारण इन तीन प रि थ तय म न न कार कया जा सकता ह ।
1. जब साधन क पू त पूणतया लोचदार हो
साधन क पू त पूणतया लोचदार होती है तो साधन पूणतया अ व श ट होता है और
उसक वा त वक आय उसक थाना तरण आय बराबर होती है । ऐसी ि थ त म लगान शू य
होता है । च -3 वारा इसे न न कार समझाया जा सकता है ।

(249)
च - 3 म OX अ पर साधन क मा ा तथा OY अ पर साधन क क मत को
लया गया है। DD साधन का मांग व है । SS साधन पू त व है । यह X अ के
समाना तर है जो बताता है क साधन क पू त पूणतया लोचदार है । साधन का मांग व DD
पू त व SS को K ब दु पर काटता ह । साधन क त इकाई क मत KQ नधा रत होती है ।
कु ल आय OQKS होगी जो उसक थाना तरण आय के बराबर है । अत: लगान शू य होगा ।
(223)
2. जब साधन क पू त पूणतया बेलोचदार हो
जब साधन क पू त पूणतया बेलोचदार हो तो इसका ता पय है क साधन क पू त ि थर
है । पूणतया बेलोचदार पू त होने पर साधन पूणतया व श ट होता है । ऐसी ि थ त म साधन क
थाना तरण आय शू य होती है िजसके कारण वा त वक आय एवं थाना तरण आय का अ तर
वा त वक आय के बराबर आयेगा और इसके फल व प सार वा त वक आय लगान होगी ।
च ानुसार इसे न न कार प ट कया जा सकता हे ।
च - 4

च - 4 म साधन DD साधन का मांग व है । SS साधन का पू त व है । जो OY


अ के समा तर है । K ब दु स तु लन का ब दु है जहां मांग व DD तथा पू त व SS एक
दूसरे को काटते ह । संतु लन क ि थ त म साधन क वा त वक आय OSKP नधा रत होती है
जब क इसक थाना तरण आय शू य है । अत: कु ल वा त वक आय OSKP लगान होगी ।
3. जब साधन क पू त पूणतया लोचदार से कम हो

(250)
जब साधन क पू त पूणतया बेलोचदार से कम हो तो साधन आ शक प से व श ट
होता है । ऐसी ि थ त म लगान के नधारण को च -5 क सहायता से प ट कया जा सकता
है ।
च – 5

च - 5 म साधन का मांग व है । तथा SS साधन का पू त व ह । ये दोन आपस


म एक दूसरे को K ब दु पर काटते ह । अत: K ब दु स तु लन का ब दु होगा । इस ि थ त म
साधन क वा त वक आय के OQKP के बराबर होगी जब क साधन क थाना तरण आय
OQKS के बराबर होगी । अत: साधन क OQ मा ा के लए इसक वा त वक आय OQKP
तथा थाना तरण आय OQKS का अ तर SKP लगान को बतलायेगा ।
बोध न - 1
1. वा त वक आय एवं थाना तरण आय क प रभाषा द िजए ।
2. व श ट एवं अ व श ट साधन म अ तर बताइये ।
3. लगान के आधु नक स ा त के अनुसार लगान का नधारण कैसे कया जाता है।

17.5 आभास लगान


अथशा म आभास लगान क धारणा का योग माशल ने भू म के अ त र त मनु य
वारा बनाये गये उन साधन से ा त आय के लए कया िजनक पू त अ पकाल म ि थर होती
है । द घकाल म आभास लगान नह ं मलता है । आभास लगान कु ल आगम एवं कु ल
प रवतनशील लागत के अ तर के बराबर होता है । सू ानुसार : -
TQR = TR-TVC
यहाँ
TQR = कु ल आभास लगान
TR = कु ल आगम
TVC = कु ल प रवतनशील लागत या
AQC = AR-AVC
यहाँ
AQC = त इकाई आभासा लगान
AR = औसत आगम
AVC = औसत प रवतनशील लागत
(251)
च -6 क सहायता से आभास लगान के नधारण को प टत: समझा जा सकता है ।
च – 6

च - 6 म OX अ पर उ पादन क मा ा तथा OY अ पर क मत एवं लागत को


लया गया है । AR=MR औसत आगम एवं सीमा त आगम व ह । SAVCअ पकाल न औसत
प रवतनशील लागत व है । SMC अ पकाल न सीमा त लागत व है । पूण तयो गता म
फम के सा य क ि थ त वहां होती है जहां MR=MC होता है । च म K ब दु संतु लन का
ब दु होगा । उ पादन क मा ा OQ तथा क मत OP नधा रत होगी । OQ उ पादन के तर
पर त इकाई आगम OK तथा कु ल आगम OQKP होगा । OQ उ पादन के तर पर त
इकाई अ पकाल न औसत प रवतनशील लागत QN है जब क अ पकाल न कु ल प रवतनशील
लागत OQNT है। अत: त इकाई आभास लगान QK-QN=NK होगा । तथा कु ल आभास
लगान OQKP- OQNT=TNKP होगा ।
बोध न - 3
1. आभास लगान क अवधारणा को समझाइये ।

17.6 सारांश
इस इकाई म लगान का अथ एवं लगान के नधारण के स ब ध म रकाड के स ा त
तथा आधु नक स ा त का वणन कया गया है । रकाड के अनुसार लगान केवल भू म पर ह
मलता है तथा यह भू म क अ वनाशी एवं मौ लक शि तय के योग के बदले भू- वामी को
ा त होता है । लगान अ धसीमा त एवं सीमा त भू म को उपज के बीच का अ तर होता है जो
व तृत खेती एवं गहन खेती म समान प से लागू होता है । जब क आधु नक वचारधारा के
अनुसार लगान केवल भू म को ह ा त नह ं होता अ पतू उ पादन के सभी साधन को ा त होता
ह तथा यह साधन क वा त वक आय एवं उसक थाना तरण आय के अ तर के बराबर होता है
। लगान के आधु नक स ा त के अनुसार लगान साधन क व श टता का प रणाम होता है ।
इकाई के अं तम भाग म आभास लगान के अ तर के बराबर होती है तथा यह वचार अ पकाल
से ह स बि धत है । माशल के अनुसार इसका योग भू म के अ त र त मनु य वारा न मत
उन साधन से ा त आय के लए जा सकता है िजनक पू त अ पकाल म ि थर होती है।

17.3 श दावल
व तृत खेती

(252)
वह खेती िजसम उ पादन बढ़ाने के लए े फल को बढ़ाया जाता है ।
गहन खेती
वह खेती िजसमे उ पादन बढ़ाने के लए भू म के एक नि चत े फल पर म एवं पू ज
ं ी
क अ धक इकाईय का योग कया जाता है ।
थाना तरण आय
वह आय जो साधन क इकाई के सव े ठ वैकि पक योग से ा त हो सकती है ।
व श ट साधन
वह साधन िजसक थाना तरण आय शू य होती है ।
अ व श ट साधन
वह साधन िजसक थाना तरण आय उसक वा त वक आय के बराबर होती है ।

17.4 कुछ उपयोगी पु तक :


आहू जा एच. एल. उ चतर आ थक स ा त, एस. चांद ए ड क पनी, नई द ल
2006
बरला सी. एस. उ चतर यि टगत अथशा , नेशनल पि ल शंग हाऊस, जयपुर, 1999
Salvatore d : Micro Ecinomic Theory and Applications,4th Edition
2003
Stoneier A.W. and Hauge D.C. A taxt Book of Economic Theory,
Macmillan,Landon, 1980

17.5 बोध न के उ तर
बोध न न - 1
न (1) भाग 17.2 दे ख ।
न (2) भाग 17.3 दे ख ।
बोध न -2
न (1) भाग 17.4 दे ख ।
न (2) भाग 17.4 दे ख ।
न (3) भाग 17.4 दे ख ।
बोध न - 3
न (1) भाग 17.5 दे ख ।

(253)
इकाई - 18
याज का ति ठत स ा त, तरलता पस दगी स ा त
THEAY AND HATERST LIQUIDIT PRELEARCE
THEORY OF INTERES

इकाई क परे खा
18.0 उ े य
18.1 तावना
18.2 याज का ला सकल स ा त
18.2.1 पू ज
ं ी क मांग
18.2.2 पू ज
ं ी क पू त
18.2.3 याज क दर का नधारण
18.2.4 आलोचनाएं
18.3 याज का तरलता पस दगी स ा त
18.3.1 मु ा क मांग
18.3.2 मु ा क पू त
18.3.3 याज क दर का नधारण
18.3.4 आलोचनाएं
18.4 सारांश
18.5 श दावल
18.6 स दभ थ

18.7 बोध न के उ तर

18.0 उ े य
इस इकाई के अ ययन के बाद आप
 याज का अथ जान सकगे
 ला सकल स ा त के अनुसार याज क दर का नधारण कस कार कया जाता है
यह समझ सकेग याज के तरलता पस दगी स ा त के अनुसार याज क दर कस कार
नधा रत यह समझ सकगे ।

18.1 तावना
याज मु ा क सेवाओं के लए दया जाने वाला भु गतान होता है । एक यि त जो मु ा
उधार दे ता है उसे ऋणदाता(Lander) तथा जो यि त उधार दे ता है उसे ऋणी (Borrower) कहा

(254)
जाता है । जब ऋणदाता अपनी मु ा एक नि चत समय के लए कसी को उधार दे ता है तो उसे
उस समय के लए मु ा या तरलता का याग करना पड़ता है । इस याग के बदले म जो रा श
ा त होती है वह याज कहलाती है । दूसरे श द म याज एक नि चत समय के लए तरलता
के प र याग का पुर कार होता है । याज क दर के नधारण के स ब ध म अथशाि य वारा
अनेक स ा त तपा दत कये गये ह । याज का ला सकल स ा त तथा याज का तरलता
पस दगी स ा त इस स ब ध म अपना मह वपूण थान रखते ह ।

18.2 याज का ला सकल स ा त


इस स ा त का तपादन मल, माशल, पीगू वालरस, नाईट आ द अथशाि य ने
कया । स ा त म याज क दर के नधारण म पु ज
ं ी क उ पादकता तथा बचत दोन त व पर
यान दया गया है । इस लए इसे याज का वा त वक स ा त भी कहा जाता है ।

18.2.1 पू ज
ं ी क मांग

पूँजी क माँग पू ज
ं ीगत व तु ओं को य करने के लए क जाती है । इन पू ज
ं ीगत
व तु ओं के उपयोग से उ पादकता म वृ होती है । पू ज
ं ी क इकाइय म नर तर वृ क जाय
तो उसक सीमा त उ पादकता पर घटते तफल का नयम लागू होने के कारण सीमा त
उ पादकता घटती जाती है । एक उ पादक पू ज
ं ी क मांग उस ब दु तक करता है जहां पर याज
क दर एवं पू ज
ं ी क सीमा त उ पादकता बराबर हो । याज क दर के अ धक होने पर पू ज
ं ी क
मांग कम तथा याज क दर के कम होने पर पू ज
ं ी क मांग अ धक होगी । पू ज
ं ी क मांग अथात ्
नवेश म तथा याज क दर म वपर त स ब ध पाया जाता है । अथात ् नवेश याज क दर का
वपर त फलन होता है ।
ग णतीय प म :-
I=F(r)
यहाँ
I = नवेश
r = याज
पू ज
ं ी क मांग या नवेश तथा याज क दर के स ब ध को च सं या व 8.1 के अनुसार
नवेश मांग व के वारा न न कार प ट कया जा सकता है ।
च - 1

च सं. 18.1

(255)
च सं या 18.1 म OX अ पर पू ज
ं ी क मा ा तथा OY अ पर याज क दर को
लया गया है । DD व पू ज
ं ी क मांग मा ा या नवेश तथा याज के वपर त स ब ध को कट
करता है । यह बतलाता है क जैसे-जैसे याज क दर बढ़ती जाती है पू ज
ं ी क मांग या नवेश
घटता जाता है तथा जैसे-जैसे याज क दर घटती जाती है, पू ज
ं ी क मांग या नवेश बढ़ता जाता
है ।

18.2.2 पू ज
ं ी क पू त

पू ज
ं ी क पू त बचत पर नभर करती है ।बचत याज क दर का य फलन होती है ।
िजसका ता पय यह है क जैसे-जैसे याज क दर बढ़ती है बचत भी बढ़ती जाती है और जैसे-
जैसे याज क दर घटती जाती है बचत भी कम होती जाती है । ग णतीय प म बचत एवं
याज क दर के फलना मक स ब ध को न न कार कट कया जा सकता है : -
S=F(r)
यहां
S = बचत
r याज क दर
चू ं क पू ज
ं ी क पू त बचत पर नभर करती है । इस लए पू ज
ं ी क पू त एवं याज क दर म भी
सीधा स ब ध पाया जायेगा और पू ज
ं ी का पू त व नीचे से ऊपर क ओर उठता हु आ होगा जो
च सं या 18.2 म दशाया गया है ।

च सं 18.2
च सं या 18.2 म OX अ पर पू ज
ं ी क पू त मा ा तथा OY अ पर याज क दर
को लया गया है । SS पू ज
ं ी का पू त व है जो यह बतलाता है क जैसे-जैसे याज क दर
बढ़ती है पू ज
ं ी क पू त मा ा बढ़ती जाती है । तथा याज क दर के घटने पर पू ज
ं ी क पू त भी
कम हो जाती है ।

18.2.3 याज क दर का नधारण

याज के ला सकल स ा त के अनुसार याज उस ब दु पर नधारण होता है जहां


पू ज
ं ी क मांग एवं पू त एक दूसरे के बराबर होती है । यह ब दु संतल
ु न का ब दु होगा तथा इस

(256)
ब दु पर याज क दर, बचत एवं नवेश भी बराबर होग । च सं या 18.3 वारा इस न न
कार प ट कया जा सकता है ।

च सं. 18.3
च सं या 18.3 म OX अ पर पू ज
ं ी क मा ा तथा OY अ पर याज क दर को
लया गया है । DDव व भ न याज क दर पर पू ज
ं ी क मांग मा ा या नवेश को बतलाता है
जब क SS व व भ न याज क दर पर पू ज
ं ी क पू त या बचत को बतलाता है पू ज
ं ी का मांग
व DD तथा पू ज
ं ी का पू त व SS एक दूसरे को K ब दु संतु लन का ब दु होगा तथा इस
ब दु पर याज क दर OR नधा रत होगी ।

18.2.4 आलोचनाएं

याज के ला सकल स ा त क कु छ मु य आलोचनाएं न न कार ह :-


1. क स के अनुसार बचत एवं नवेश म संतल
ु न याज क दर से नह ं होता बि क यह आय म
होने वाले प रवतन के कारण होता है ।
2. ला सकल अथशाि य का यह वचार क बचत एवं नवेश दोन पर याज क दर का
सवा धक भाव पड़ता है सह तीत नह ं होता य क बचत पर याज क अपे ा आय का
तथा नवेश पर याज क अपे ा पू ज
ं ी क सीमा त उ पादकता का अ धक भाव पड़ता है ।
3. स ा त पूण रोजगार क मा यता पर आधा रत है जो अवा त वक है ।
4. स ा त के अनुसार याज क दर बचत एवं नवेश से नधा रत होती है । जब क
वा त वकता म यह बचत एवं नवेश को नधा रत करती ह ।
5. स ा त म उपभोग के लए क गई मु ा क मांग क पूण प से उपे ा कर द गई है जो
वा त वकता से परे ह ।
बोध न – 1
1. याज के ला सकल स ा त क या या क िजये ।
2. याज के ला सकल स ा त क मु ख आलोचनाएं बताईय ।

(257)
18.3 याज का तरलता पस दगी स ा त
स ा त का तपादन ो. जे. एम. क स वारा कया गया । इस स ा त के अनुसार
' याज एक नि चत समय के लए तरलता के प र याग का पुर कार है । (Interest is the
reward for perting with Iiquidity for a specified period) याज क दर का नधारण मु ा
क मांग एंव मु ा क पू त के वारा कया जाता है । मु ा क मांग एवं मु ा क पू त जहां
बराबर होती ह । वहां याज क दर नधा रत होती है । मु ा क मांग एवं मु ा क पू त के
स ब ध म इस स ा त म क गई या या न न कार है ।

18.3.1 मु ा क मांग

इस स ा त के अनुसार मु ा क मांग तरलता अ धमान के लए जाती है । दूसरे श द म मु ा


क मांग का अ भ ाय है क यि त मु ा क कतनी मा ा अपने पास नकद या तरल प म
रखना चाहते ह । मु ा को तरल प म रखने के न न ल खत तीन कारण ह :-
1. य- व य उ े य
2. सतकता उ े य
3. स ा उ े य
1. य- व य उ े य
सामा यत: प रवार को दन- त दन के उपयोग के लए तथा यावसा यक फम को
क चे माल, म आ द पर यय करने के लए अपने पास कु छ मु ा तरल प म अथात ् नकद
प म रखनी पड़ती है । मु ा क यह मांग लेन-दे न उ े य से क गई मु ा कहलाती है । यह
मांग आय के तर पर नभर करती है । ग णतीय प म इसे न न कार य त कया जा
सकता है ।
L1 = F(Y)
यहां
L1 = लेन-दे न उ े य से क गई मु ा क मांग
Y = आय
2. सतकता उ े य
अ याि त या भावी प रि थ तय का सामना करने के लए भी यि त अपने पास कु छ मु ा
तरल प म रखना पस द करते ह । िजससे आव यकता पड़ने पर आकि मक खच को पूरा
कया जा सके । मु ा क यह मांग सतकता उ े य से क गई मु ा क मांग होती है । यह
मांग भी आय का फलन होती है । ग णतीय प म इस न न कार कया जा सकता है :-
L2 = F(Y)
यहां
L2 = सतकता उ े य से क गई मु ा क मांग
Y = आय
3. स ा उ े य

(258)
स ा उ े य से मु ा को तरल प म रखने क मांग का मु य कारण यि तय म
आकि मक लाभ कमाने क वृि त होती है । स े के उ े य के लए मु ा को तरल प म रखने
का याज क दर से गहरा स ब ध होता है । यह स ब ध वपर त दशा वाला होता है अथात ्
यद याज क दर कम होगी तो स ा उ े य से मु ा को तरल प म रखने क अ धक वृि त
होगी और य द याज क दर अ धक होगी तो स ा उ े य से मु ा को तरल प म रखने क
अ धक वृि त होगी और य द याज क दर अ धक होगी तो स ा उ े य के लए मु ा को तरल
प म रखने क वृि त कम होगी । इसे ग णतीय प म न न कार य त कया जा सकता
है ।
L3 = F(r)
यहाँ
L3 = स ा उ े य से क गई मु ा क मांग
r = याज क दर
उपरो त ववेचन से प ट है क मु ा को तरल प म रखने क कु ल मांग (MD) लेन-दे न
उ े य से क गई मु ा क मांग (L1) सतकता उ े य से क गई मु ा क मांग (L2) तथा स ा
उ े य से क गयी मु ा क माँग (L3) का जोड़ होती है ।
ग णतीय प म
MD=L1+L2+L3
जैसा क हम जानते ह L1 व L2 आय के फलन ह जब क L3 याज क दर का फलन है ।
अत: MD आय एवं याज क दर का फलन होगा अथात ्
MD= F(Y,r)
यहाँ यह यान रखने क बात है क लेन-दे न उ े य तथा सतकता उ े य से क गई मु ा क
मांग अ पकाल म ि थर होती है तथा याज क दर का इस पर कोई भाव नह ं पड़ता है
जब क स ा उ े य से मु ा क मांग याज क दर पर नभर करती है । मु ा क तरलता
पस दगी क कु ल मांग एवं याज क दर का रे खा च बनाया जाय तो उसक आकृ त न न
कार होगी :-

च सं.18.4

(259)
च सं या 18.4 म LP व मु ा को तरल प म रखने क मांग एवं याज क दर के संबध

को बतलाता है । इसे तरलता पस दगी व कहा जाता है । याज क वह दर िजस पर मु ा
क मांग अन त हो जाती है वह तरलता जाल क ि थ त कहलाती है ।

18.3.2 मु ा क पू त

कसी समय वशेष म उपल ध मु ा क कु ल मा ा िजसम वा त वक वैधा नक मु ा तथा


साख मु ा दोन का समावेश हो मु ा क पू त होती है । मु ा क पू त याज के स दभ म
पूणतया बेलोच होती है । मु ा क पू त का व च सं या18.5 म दशाया गया ह ।

च सं. 18.5
च सं या 18.5 म MS मु ा क पू त व है जो यह बतलाता है क याज क दर का मु ा
क पू त पर कोई भाव नह ं पड़ता है ।

18.3.3 याज क दर का नधारण

याज के तरलता पस दगी स ा त म याज क दर का नधारण वहां पर होता है जहां मु ा


क मांग (तरलता पस दगी) तथा मु ा क पू त बराबर हो जाती है अथात ्
MD = MS
यहाँ
MD = मु ा क मांग
MS = मु ा क पू त
याज क दर के नधारण को च सं या 18.6 क सहायता से न न कार प ट कया जा
सकता है ।

(260)
च सं. 18.6
च सं या 18.6 म OX अ पर मु ा क मा ा तथा OY क मा ा च सं या 18.6 अ
पर याज क दर को लया गया है । LP व मु ा तरलता पस दगी (मु ा क मांग) तथा याज
के स ब ध को कट करता है जब क MS व मु ा क पू त को सू चत करता है । LP व MS
व को K ब दु पर काटता है । अत: K ब दु संतु लन का ब दु होगा तथा इस ब दु पर मु ा
क मांग एवं मु ा क पू त बराबर होगी । इस ब दु पर याज क दर OR नधा रत होगी । मु ा
क मांग एवं पू त म प रवतन होने से याज क दर पर पड़ने वाले भाव क या या न न
कार क जा सकती है -
1. य द मु ा क मांग म कोई प रवतन न हो तथा मु ा क पू त बढ़ जाये तो याज क दर
कम हो जाती है पर तु जब याज क दर घट कर इतनी हो जाय क LP व OX ये अ
के समाना तर हो जाय तो इसका अथ यह है क इससे याज क दर कम होने पर यि त
उधार दे ने के बजाय अपने पास नकद रखना पस द करगे । दूसरे श द म याज क वह दर
िजस पर मु ा क तरलता पस दगी मांग अन त हो जाती है वह तरलता जाल क ि थ त
कहलाती ह ।
2. य द मु ा क पू त ि थर रहे और तरलता अ धमान बढ़ जाये तो याज क दर भी बढ़ जाती
है ।

18.3.4 आलोचनाएं

इस स ा त म भी अनेक वशेषताएं होने पर भी कई क मयां पाई गई िजसके कारण


इसक भी आलोचना क गई । कु छ मु ख आलोचनाएं न न कार ह: -
1. इस स ा त के अनुसार याज तरलता के याग का पुर कार है न क बचत का पर तु बचत
के बना तरलता नह ं आती । अत: याज क दर के नधारण म बचत को पूणतया मह व न
दे ना उ चत नह ं है !
2. यह स ा त केवल मौ क त व को मु खता दे ता है जब क याज क दर के नधारण पर
अमौ क त व का मह वपूण भाव पड़ता है ।
3. इस स ा त म पू ज
ं ी क उ पादकता के मह व क उपे ा क गई है जो उ चत नह ं है ।

(261)
4. यह स ा त केवल अ पकाल म पाई जाने वाल याज दर क या या करता है । द घकाल
म याज क दर या होगी, इसक या या नह ं करता ।
5. स ा त म मु ा क स ा मांग याज क दर पर नभर करती है । अत: याज क दर पहले
ात होनी चा हये । याज क दर के अभाव म स ा उ े य से मु ा क मांग ात करना
क ठन है और स े के लए मु ा क मांग के नधारण कये बना याज नधारण संभव नह ं
हो सकता अत: स ा त वृ ताकार तक म डाल दे ता है िजससे यह क ठन हो जाता है क
कौन कसे नधा रत करता है और ऐसी ि थ त म याज क दर अ नधारणीय हो जाती है ।
उपरो त आलोचनाओं के बावजू द भी याज का तरलता पस दगी स ा त याज के नधारण म
अपना नवीन ि टकोण तु त करने के कारण आ थक जगत म वशेष मह व रखता है ।
बोध न - 2
1. याज के तरलता पस दगी स ा त के अनुसार मु ा क मांग के मु ख उ े य
को प ट क िजये ।
2. याज के तरलता पस दगी स ा त के अनुसार याज दर के नधारण को
प ट क िजये ।
3. याज के तरलता पस दगी स ा त क या क मयां ह ?

18.4 सारांश
कसी ऋणी वारा ऋण के योग के बदले ऋणदाता को दया गया भु गतान याज
कहलाता है । याज क दर के नधारण के स ब ध म अनेक स ा त तपा दत कये गये ह ।
याज का ला सकल स ा त एवं याज का तरलता पस दगी स ा त इनम मह वपूण थान
रखते ह । इन दोन स ा त का इस इकाई म व तृत ववेचन कया गया है ।
याज के ला सकल स ा त के अनुसार याज क दर उस ब दु पर नधा रत होती है
वहां पू ज
ं ी क मांग तथा पू ज
ं ी क पू त के बराबर होती है । दूसरे श द म यह वह ि थ त होती है
। जहां नवेश एवं बचत एक-दूसरे के बराबर होते है य क ला सकल स ा त के अनुसार पू ज
ं ी
क मांग का मु य कारण नवेश होता है । जब क पू त बचत पर नभर करती है । हालां क यह
स ा त याज का वा त वक स ा त माना जाता है । पर तु मौ क त व क उपे ा एवं अ य
क मय के कारण इसक अनेक आलोचनाएं भी हु ई । याज क दर के नधारण क दशा म
क स का मु ा का तरलता पस दगी स ा त भी अपना वशेष थान रखता है । इस स ा त के
अनुसार याज क दर का नधारण उस ब दु पर होता है । जहां मु ा क मांग या तरलता
पस दगी तथा मु ा क पू त बराबर होती है । इस स ा त क मु य वशेषता यह है क इसम
याज को मु ा क तरलता के याग का पुर कार बताया गया है तथा मु ा क मांग उसक
तरलता पस दगी या नकद अ धमान के वारा कट होती है । स ा त म मु ा क मांग के तीन
उ े य (लेन-दे न उ े य सतकता उ े य तथा स ा उ े य) बताय गय ह तथा इनक व तृत चचा
क गई ह । मु ा क मांग प पर अ य धक बल तथा पू त प को गौण मानने के कारण इस
स ा त क भी आलोचनाएं हु ई है पर तु फर भी वतमान समय म यह अपना वशेष थान
रखता है ।

(262)
18.4 श दावल
स ा उ े य
भ व य के स ब ध म बाजार क तु लना म अ धक जानकार वारा लाभ ा त करने का उ े य
स ा उ े य कहा जाता ह ।
तरलता पस दगी
मु ा को नकद या तरल प म रखने क मांग तरलता पस दगी कहलाती है ।
तरलता जाल क ि थ त
याज क वह दर िजस पर मु ा क तरलता पस दगी मांग अन त हो जाती है वह तरलता जाल
क ि थ त कहलाती है ।

18.5 संदभ ंथ
आहू जा एच. एल. : उ चतर आ थक स ा त, एस. चांद ए ड क पनी, नई द ल , 2008
बरला, सी. एस. : उ चतर यि टगत अथशा , नेशनल पि ल शंग हाऊस जयपुर 1999
Salvatore d : Micro Economic Theory and Applications,4th Edition 2003
Stoneier A.W. and Hauge D.C. A Taxt Book of Economic Theory,
Macmillan,Landon,

8.7 बोध न के उ तर
बोध न न – 1
न (1) भाग 18.2 दे ख ।
न (2) भाग 18.2.4 दे ख ।
बोध न - 2
न (1) भाग 18.3.1 दखे ।
न (2) भाग 18.3 दे ख ।
न (3) भाग 18.3.4 दे ख ।

(263)
इकाई - 19
लाभ के स ा त (Theories ऑफ Profit)
इकाई क परे खा :
19.0 उ े य
19.1 तावना
19.2 लाभ का अथ एवं प रभाषा
19.3 लाभ का लगान स ा त
19.4 लाभ का मजदूर स ा त
19.5 लाभ का समाजवाद स ा त
19.6 लाभ का सीमा त उ पादकता स ा त
19.7 लाभ का ावै गक स ा त
19.8 लाभ का जो खम स ा त
19.9 लाभ का अ नि चतता वहन स ा त
19.10 लाभ का नव वतन स ा त
19.11 लाभ का आधु नक स ा त
19.12 लाभ का औ च य
19.13 बोध सारांश
19.14 न के उ तर
19.15 स दभ ग ध
19.16 श दावल

19.0 उ े य
तु त इकाई के अ ययन के प चात आप
(i) उ पादन या म साहसी को दये जाने वाले पा र मक लाभ का अथ
(ii) साहसी क उ पादन या म होने वाल भू मका जानकार ा त कर सकगे इसक ववेचना
कर सकगे
(iii) वतमान म व भ न बाजार ि थ तय म लाभ का नधारण कस कार कया जाता है इसक
ववेचना कर सकेग

19.1 तावना
पछल इकाइय म आपने उ पादन के व भ न साधन को दये जाने वाले पा र मक
जैसे मजदूर , लगान तथा याज आ द के व भ न स ा त का अ ययन कया । उ यमी भी
उ पादन का एक मह वपूण साधन है तथा लाभ उ यमी को उ य मतापूण काय को करने के लए
ो साहन के प म दया जाता है । तु त इकाई म लाभ का अथ एवं प रभाषा, लाभ क

(264)
वशेषताएँ आ द समझाने के प चात लाभ के व भ न स ा त का ववेचन कया गया है य य प
लाभ के स ब ध म व भ न अथशाि य ने अलग-अलग स ा त तपा दत कये है तथा कोई
भी एक ऐसा सवमा य स ा त नह ं है जो लाभ के सभी पहलु ओं पर काश डाल सक । तु त
इकाई म कु छ मु ख स ा त का ववेचन कया गया है ।

19.2 लाभ का अथ एवं प रभाषा


लाभ रा य आय का वह भाग है जो साहसी को उ पादन के साधन के प म उसके
काय के लए पुर कार व प मलता है । दूसरे श द म, ''रा य आय का वह अंश जो
उ पादन या म साहसी को मलता है, लाभ कहा जाता ह । ''
ो० माशल के अनुसार, 'लाभ बंध क कमाई है । '' जब क ो० हे नर ेशन के
अनुसार, ''लाभ को नव वतन का पुर कार, जो खम और अ नि चतताओं को उठाने का तफल
अथवा बाजार म अपूणताओं के प रणाम के प म समझा जा सकता है । ''
1. लाभ क वशेषताएँ : -
लाभ क न न वशेषताएँ
(i) लाभ एक अवशेष आय है अथात ् कु ल आय म से उ पादन के साधन का पुर कार चु काने के
बाद जो शेष भाग शेष भाग साहसी को ा त होता है, वह लाभ है ।
(ii) लाभ क मा ा म भार उतार-चढ़ाव होते है, अथात ् तेजी काल म लाभ बहु त अ धक तथा मंद
काल म हा न भी हो सकती है ।
(iii) लाभ ऋणा मक भी हो सकता है अथात ् साह सय को हा न भी हो सकती है ।
(iv) लाभ अ नि चत अवशेष होता ह ।
2. कु ल लाभ और शु लाभ : -
साधारण भाषा म कु ल लाभ को ह शु लाभ कहा जाता है । जब क अथशा म कु ल
लाभ एवं शु लाभ म अ तर कया जाता है । शु लाभ का अ भ ाय कु ल लाभ के केवल उस
अंश से है जो साहसी को केवल उ पादन या म जो खम उठाने, अ नि चतता वहन करने तथा
नव वतन के तफल के प म ा त होता है । ो० टामस क अनुसार, ''शु लाभ केवल
साहसी के जो खम उठाने का पुर कार है । साहसी का यह काय ऐसा है जो केवल वह कर सकता
है । “
जब क कु ल आगम म से य कये गये माल क क मत, उ पादन साधन के पुर कार
(भू म, पू ज
ं ी, म तथा ब ध) तथा संभा वत घसाई यय नकाल दे ने के बाद जो शेष बचता है,
वह कु ल लाभ कहलाता है । सू के प म :
कु ल लाभ = शु लाभ + साहसी के साधन का तफल + आकि मक लाभ +
एका धकार लाभ + प ट लागत ।
शु लाभ = कु ल लाभ - (साहसी के साधन का तफल + प ट लागत +
एका धकार लाभ + आकि मक लाभ)

3. सकल लाभ म भ नता के कारण :

(265)
व भ न यवसाय म उ यमी को मलने वाले कु ल लाभ म भ नता के न न कारण हो
सकते ह
(i) साह सय क संगठन एवं संचालन यो यता म अंतर ।
(ii) जो खम तथा अ नि ताओं म भ नता ।
(iii) यावसा यक प रि थ तय म अंतर ।
(iv) तयो गता म अंतर ।
(v) उ पादन लागत म भ नता ।
4. लाभ के व भ न व प : -
लाभ के अनेक प है िजनका सं त ववरण न न ह :-
(i) त प ा मक लाभ :- पूण तयो गता क प रि थ त म यवसाय मे ा त
होने वाला लाभ ह त प ा मक लाभ कहलाता है । इस अव था म सभी े
म लाभ क वृि त समान होने क होती है ।
(ii) एका धकार लाभ :- यह उस व तु के उ पादक को मलता है जो कसी व तु
के एक मा पू तकता है तथा िजनका बाजार क पू त पर पूण नयं ण होता है,
इस लए ये व तु का मू य लागत से अ धक रखते ह । इसे असमा य लाभ भी
कहते ह ।
(iii) सामा य लाभ :- यह लाभ का वह न नतम तर है जो कसी भी साहसी को
उ योग म बनाए रखने के लए आव यक है । सामा य लाभ क मत म
सि म लत होता है ।
(iv) असामा य लाभ या अ त र त लाभ :- सामा य लाभ से अ धक लाभ होने क
अव था को असामा य लाभ कहते ह । ो० नाइट के अनुसार, ''सामा य लाभ
ात जो खम का तथा असामा य लाभ अ ात जो खम का प रणाम ह ।
(v) आकि मक लाभ या अ या शत लाभ :- जो कसी उ योग क व भ न फम
को बना कसी आशा के, ऐसी शि तय से जो फम के नयं ण से बाहर ह,
संयोगवश लाभ ा त होता है तो इसे आकि मक लाभ कहते ह जैसे: वृ तेजी
अथवा मंद आ द से उ प न लाभ आकि मक लाभ क ेणी म आते ह ।
बोध न - 1
न -1 लाभ का अथ एवं प रभाषा बताइए
न -2 कु ल लाभ एवं शु लाभ म या अंतर ह
न -3 लाभ के व भ न व प बताइये ।

19.3 लाभ का लगान स ा त


यह स ा त अमे रका के स अथशा ी ो० वाकर व उसके सहयो गय ने दयां
उनके अनुसार, ''लाभ यो यता का लगान है ।“ उनके अनुसार उ योग म सभी साहसी समान
यो यता वाले नह ं होते । अत: अ धक यो यता वाले साहसी को कम यो यता वाले साहसी को
कम यो यता वाले साह सय क तु लना म पुर कार व प जो अ त र त रा श ा त होती ह, वह
लाभ ह । ो० वाकर के श द म, ''शु लाभ कमाने क तरह वह पुर कार है जो केवल े ठ

(266)
उ यमी को उसक वशेष यो यताओं के कारण ा त होता है । '' अथात ् लाभ एक भेदा मक
बचत ह जो व तु क क मत को नधा रत नह ं करता ।
1. आलोचनाएँ :-
व भ न अथशाि य ने अनेक कारण से इस स ा त क आलोचनाएँ क है जो
न न ल खत ह:-
(i) यह स ा त लाभ के कारण पर काश नह ं डालता ।
(ii) लाभ नधारण म जो खम तथा अ नि चतता के त व क उपे ा उ चत नह ं ।
(iii) लाभ और लगान पृथक-पृथक होते ह ।
(iv) लाभ भी साहसी के पुर कार के प म क मत म सि म लत होता है ।
बोध न - 2
न 1. लाभ के लगान स ा त के तपादक कौन थे?
न 2. लाभ के लगान स ा त या ह?

19.4 लाभ का मजदूर स ा त


यह स ा त अमे रक अथशा ी ो० टॉिजंग वारा तपा दत कया गया । ो० टॉिजंग
के श द म ''लाभ उ यमकता क वह मजदूर है जो उसे उसक वशेष यो यता तथा बु मता के
बराबर ा त होती है ।'' उनके अनुसार उ पादन के साधन के तफल के प म िजस कार
मक को मजदूर मलती है उसी कार साहसी को लाभ ाि त होती ह इस स ा त म साहस
व म को समानता के तर पर रख दया है
1. आलोचनाएँ -
इस स ा त क मु ख आलोचनाएँ न न ह :-
(i) लाभ ा त करने वाले उ यमी एवं मक क ि थ त समान नह ं होती ।
(ii) लाभ के कारणो पर काश नह ं डालता ।
(iii) मजदूर एवं लाभ भ न- भ न ह ।
(iv) यह स ा त अनु चत एवं अवै ा नक है ।
बोध न : 3
.1 लाभ का मजदूर स ा त के तपादक का नाम बताइये ।
.2 लाभ का मजदूर स ा त या ह?

19.5 लाभ का समाजवाद स ा त


यह स ा त समाजवाद के जनक ो० कालमा स ने तपा दत कया । इनके अनुसार
लाभ मक के शोषण के कारण उ प न होता ह । मा स के अनुसार उ यमी व तु क क मत
का बहु त कम भाग मक को दे ता है तथा बाक क मत वयं हड़प लेता है । क मत एवं मजदूर
के इस अ तर को मा स ने 'अ त र त मू य' माना एवं इसे ह लाभ क उ पि त का कारण माना
। उनके अनुसार िजतना अ धक मक का शोषण होगा उतनी ह लाभ क मा ा अ धक होगी ।
इसी लए कालमा स ने लाभ को समा त करने हे तु कहां ।
1. आलोचना : -

(267)
इस स ा त म अनेक ु टयां ह । जो न न ह:-
(i) उ पादन या म साहसी क भी मह वपूण भू मका होती है ।
(ii) लाभ साहसी के जो खम तथा अ नि चतता वहन करने का तफल है न क मक
के शोषण का ।
(iii) व तु क क मत केवल म या ा से नधा रत नह ं होती वरन ् उ पि त के अ य
साधन जैसे भू म, एवं बंध आ द वारा भी नधा रत होती ह ।
बोध न : 4
.1 लाभ का समाजवाद स ा त समझाइये ।
.2 लाभ का समाजवाद स ा त क आलोचनाएँ बताइये ।

19.6 लाभ का सीमा त उ पादकता स ा त


इस स ा त के तपादन के ेय एँजवथ, चैपमेन, ि टगलर, टो नयर तथा हे ग आ द
सीमा तवाद अथशाि य को जाता है । इस स ा त के अ तगत साहसी को भी उ प त का एक
मह वपूण साधन माना गया है तथा उसे भी अ य साधन क भाँ त उसक सीमा त उ पादकता
के बराबर तफल दे ने हे तु कहा गया है, िजसे लाभ माना गया है । अथात ् द घकाल म उ यमी
का पुर कार (लाभ) उसक सीमा त उ पादकता के मू य के बराबर होता है । िजन उ योग म
साह सय क पू त मांग क अपे ा कम होगी उनम उनक सीमा त उ पादकता अ धक होगी
फल व प लाभ भी अ धक होगा । जैसे-जैसे साह सय क पू त बढ़े गी, लाभ क मा ा कम होती
जायेगी ।
1. आलोचनाएँ :-
उपरो त स ा त क न न आलोचनाएँ ह :-
(i) यह स ा त एक प ीय ह, केवल उ यमी क मांग प पर यान दे ता हं, पू तप
पर नह ।ं
(ii) उ यमी क सीमा त उ पादकता ात करना क ठन होता है ।
(iii) यह द घकाल स ा त है ।
बोध न : 5
.1. लाभ का सीमा त उ पादकता स ा त समझाइये ।

19.7 लाभ का ावै गक स ा त


इस स ा त का तपादन ो० जे. वी. लाक ने कया । ो० लाक के अनुसार, ''लाभ
प रवतन का प रणाम है । यह केवल ावै गक अथ यव था म ह उ प न होता ह, ि थर
अथ यव था म नह ं । ''
लाक के अनुसार ावै गक अथ यव था वह अथ यव था है जहां जनसं या, पू ज
ं ी क
मा ा, उपभो ताओं क आय, च एवं फैशन, उ पादन व धय व तकनीक तथा ओ यो गक
इकाइय के व प आद म नर तर प रवतन होते रहते ह इन प रवतन के अभाव वाल
अथ यव था को ि थर अथ यव था कहा जाता है । ि थर अथ यव था म अ नि चतता व जो खम

(268)
का अभाव होता है इस लए लाभ उ प न नह ं होता । जब क ावै गक अथ यव था म नर तर
प रवतन के कारण जो खम अ धक रहती है जो लाभ को ज म दे ती है ।
1. आलोचनाएँ :-
उपरो त स ा त क मु य आलोचनाएँ न न ह :-
(i) यह स ा त साहसी के काय क उपे ा करता है जो उपयु त नह ं ह ।
(ii) ो० नाइट के अनुसार लाभ ावै गक प रवतन के कारण नह ं बि क अ नि चतताओं
के कारण उ प न होता है ।
बोध न : 6
.1 लाभ का ावै गक स ा त के तपादक कौन ह ।
.2 लाक के अनुसार ावै गक अथ यव था का अथ बताइये ।

19.8 लाभ का जो खम स ा त
इस स ा त का तपादन अमे रका के अथशा ी हॉले ने 1907 म कया था इसी लए
इसे हॉले का लाभ स ा त भी कहा जाता है । हॉले के अनुसार येक यव था म कु छ न कु छ
जो खम अव य होती है, य द कोई उ यमी यह जो खम उठता है तो उसे लाभ अव य ा त होगा
। िजतनी अ धक जो खम उठाई जायेगी, लाभ क मा ा उतनी ह अ धक होगी । ो० हॉले के
श द म, '' कसी उप म म लाभ ब ध या सम वय का पुर कार नह ं है बि क जो खम या
उ तरदा य व उठाने का तफल ह, जो यवसाय को चलाने वाला उठाता ह । ''
यवसाय म जो खम के कारण साह सय के वेश म बाधा उ प न होती है इस लए
अ धक जो खमपूण यवसाय म साह सय क पू त कम होती है, इस लए लाभ क मा ा कम
जो खमपूण यवसाय क तु लना म अ धक होती है ।
1. आलोचनाएँ :-
अ य स ा त क भां त इस स ा त क भी आलोचनाएँ क गई जो न न ह :-
(i) ो० नाइट के अनुसार सभी कार क जो खम लाभ को ज म नह ं दे ती । कु छ
जो खम जो पहले से ात होती ह, उनके लए उ यमी यव था कर लेता है इस लए
अ ात जो खम ह लाभ का कारण बनती ह ।
(ii) ो० कारवर के अनुसार लाभ जो खम वहन का पुर कार नह ं बि क जो खम को कम
करने क यो यता का तफल है । उनके अनुसार जो उ यमी जो खम को कम
करने म सफल होते ह, वह लाभ कमाने म सफल होते ह ।
(iii) उ यमी यवसाय म वेश सदै व जो खम उठाने के लए नह ं करता बि क कई अ य
कारण भी उसे यवसाय म वेश हे तु ो सा हत करते ह ।
(iv) लाभ केवल जो खम वहन के कारण ह उ प न नह ं होता बि क कई अ य घटक
जैसे उ यमी क कायकु शलता, नव वतन एवं एका धकार ि थ त आ द भी लाभ
उ प त का कारण होते ह िजनक अवहे लना उ चत नह ं है ।
बोध न : 7
.1. लाभ के जो खम स ा त का तपादन कसने तथा कब कया?
.2. लाभ के जो खम स ा त को समझाइये ।

(269)
19.9 लाभ का अ नि चतता सहन स ा त
इस स ा त का तपादन ो० नाइट ने 1921 म कया, इसी कारण इस स ा त को
नाइट का लाभ स ा त भी कहते ह । ो० नाइट के अनुसार, ''सभी कार क जो खम लाभ को
ज म नह ं दे ती जो जो खम ात होती ह, उनसे लाभ उ प न नह ं होता, केवल अ ात एवं
अ नि चत जो खम के कारण ह लाभ उ प न होता है । अत: लाभ को जो खम का पुर कार
कहने के थान पर अ नि चतताओं का पुर कार कहना अ धक उपयु त है !”
ो० नाइट ने जो खम और अ नि चतता म भेद को प ट करने हे तु जो खम को दो
भाग म वभािजत कया ह :-
(i) बीमा यो य जो खम ।
(ii) बीमा अयो य जो खम ।
(i) बीमा यो य जो खम :- ये वे जो खम है िजनके उपि थत होने का अनुमान उ यमी पहले से
ह लगा सकता है । उ यमी इन जो खम क सांि यक य गणना से अनुमान लगाकर बीमा
करवा लेता है जैसे : आग, दुघटना एवं अ य ाकृ तक कारण से होने वाल हा नय का
बीमा करवाया जा सकता है और उ यमी बीमा क क त जमा करवाकर इन जो खम से
होने वाले नुकसान क च ता से मु त हो जाता है । बीमा क त क रा श चू ं क लागत का
ह एक भाग होती ह और व तु क क मत मे सि म लत हो जाती ह इस लए ये जो खम
कोई अ नि चतता उ प न नह ं करती और इसी लए ये लाभ को भी ज म नह ं दे ती ।
(ii) बीमा अयो य जो खम :- उ योग म कुछ ऐसी जो खम भी होती ह िजनका सांि यक य माप
संभव नह ं होता और न ह इनका बीमा करवाया जा सकता है, अत: ऐसी जो खम का भार
उ यमी को वहन करना ह पड़ता है । ये बीमा अयो य जो खम ह लाभ क उ पि त का
कारण होती ह । कु छ बीमा अयो य जो खम न न ह :-
(a) त प ा स ब धी जो खम, जो नये-नये उ य मय के वेश के कारण उ प न होती ह।
(b) सरकार क आ थक नी तय स ब धी जो खम, िजनम नर तर प रवतन होते रहते ह ।
(c) यां क जो खम जो नयी-नयी मशीन के आ व कार अथवा तकनीक म प रवतन के
कारण उ प न होती ह ।
(d) यापार च स ब धी जो खम, जो बाजार म यापक आ थक तेजी अथवा म द के
कारण होती है।
(e) उपभो ताओं क च, फैशन एवं अ धमान म प रवतन स ब धी जो खम ।
ो० नाइट के अनुसार चू ं क उ यमी उपरो त बीमा अयो य जो खम को वहन करता है,
इसी लए वह लाभ का भी हकदार होता है ।
ो० नाइट के श द म, ''अ नि चतता सहन करने का पुर कार ह लाभ ह । लाभ क
मा ा अ नि चतता क मा ा पर नभर करती है और दोन म घ न ठा एवं य स ब ध ह ।
कमी यवसाय म िजतनी अ धक अ नि चतता होगी, लाभ क दर भी उतनी ह अ धक होगी । ''
1. आलोचनाएँ :-
अ य स ा त क भाँ त - इस स ा त क भी कई आलोचनाएँ क गई ह जैसे :-

(270)
(i) लाभ केवल अ नि चतता के कारण ह उ प न नह ं होता वरन ् उ यमी क
कायकु शलता एवं अनेक अ य त वो के कारण भी उ प न होता है ।
(ii) उ यमी के अ य काय जैसे उ योग का कु शल संचालन, नव वतन का योग,
संगठन एवं सम वय करना आ द क पूणतया उपे ा कर द गई है । लाभ केवल
अ नि चतता वहन करने का पुर कार ह नह ं बि क उपरो त सभी काय का
सामू हक तफल है ।
(iii) नाइट का स ा त शु लाभ क या या नह ं करता वरन ् केवल आकि मक लाभ
क या या करता ह ।
(iv) अ नि चतता उठाने के त व को उ पादन का एक पृथक साधन नह ं माना जा
सकता, यह तो उ यमी के काय क एक वशेषता मा है ।
बोध न :- 8
न 1. लाभ का अ नि चतता सहन स ा त कसने तथा कब तपा दत कया?
न 2. बीमा यो य जो खम तथा बीमा अयो य जो खम म अंतर प ट क िजए।

19.10 लाभ का नव वतन स ा त


इस स ा त का तपादन ो० शु पीटर ने कया । शु पीटर के अनुसार, ''लाभ क
उ पि त नये-नय आ व कार , अ वेषण अथवा नव वतन के कारण होती है । “ नव वतन के
वभ न प न न ह :-
(i) नई-नई मशीन के आ व कार एवं योग ।
(ii) क चे माल के नये ोत क खोज ।
(iii) नये-नये बाजार क खोज ।
(iv) व य क नवीन र तय क खोज ।
(v) नई-नई व तु ओं का उ पादन ।
शु पीटर के अनुसार लाभ नव- वतन का कारण एवं प रणाम दोन है । साहसी लाभ म
वृ हे तु नव वतन को अपनाता है एवं नव वतन लागत म कमी करके लाभ म वृ करते ह ।
ारं भ म नव वतन के योग वारा लाभ उ प न होते ह क तु जैसे-जैसे नव वतन का
अनुकरण अ य साह सय वारा कया जाता है वैसे-वैसे नवीनता के अभाव म लाभ कम होने
लगते ह ले कन उ य मय वारा नव वतन को अपनाने का म नर तर चलता रहता है ।
1. आलोचनाएँ :-
इस स ा त क मु य आलोचनाएँ न न ह :-
(i) इसम उ यमी के अ य काय को कोई मह व नह ं दया गया है ।
(ii) लाभ सदै व नव वतन के कारण ह नह ं होता बि क उ यमी क अ नि चतता एवं
जो खम सहन करने क वशेषताओं के कारण उ प न होता ह ।
(iii) उ पादन के अ य साधन क तरह उ यमी भी उ पादन का एक मह वपूण साधन है
िजसक इस स ा त म उपे ा कर द गई ह ।

(271)
बोध न - 9
.1 लाभ का नव वतन स ा त का तपादन कसने दया?
.2 नव वतन के व भ न प बताइये ।

19.11 लाभ का माँग एवं पू त स ांत


इस स ा त को लाभ का आधु नक स ा त भी कहते ह । इस स ा त के समथक
लाभ को साहसी क क मत मानते ह । िजस कार कसी व तु क क मत उसक माँग व पू त
क सापे क शि तय के सा य से नधा रत होती ह, उसी कार साहसी क क मत भी माँग व
पू त क सापे क शि तय के सा य से नधा रत होती है ।
(i) साहसी क माँग :
साहसी क माँग उसक सीमा त आगम उ पादकता पर नभर होती है । साहसी क
सीमांत आगम उ पादकता साहसी क सहायता से ा त कु ल उ पादन मू य और उ पादन मू य
और उसके अभाव म ा त कु ल उ पादन मू य के अंतर के ात होती है । साहसी क सीमा त
आगम उ पादकता िजतनी अ धक होगी साहसी क मांग भी उतनी ह अ धक होगी । साहसी क
मांग को भा वत करने वाले अ य त व न न ह :-
(a) औ यो गक उ न त ।
(b) उ पादन का आकार ।
(c) उ योग क कृ त ।
स पूण अथ यव था म साह सय का मांग व अ य व तुओं क भाँ त ह गरता हु आ
होता है । जैसा क च 19.1 से प ट है । जैसे-जैसे साह सय क सं या बढ़ती ह, उनक
सीमा त आगम उ पादकता मश: गरती जाती है ।

(ii) साहसी क पू त :
कसी भी उ योग म साहसी क पू त लाभ क दर पर नभर करती है । लाभ क दर
िजतनी अ धक होगी, साहसी क पू त भी अ धक होगी । अथात ् लाभ क दर एवं साहसी क पू त
म य स ब ध होता ह । साहसी क पू त को भा वत करने वाले अ य त व न न ह :-
(a) दे श म साह सय क सं या ।
(b) जनसं या का आकार ।
(c) पू ज
ं ी क मा ा ।

(272)
(d) आय का वतरण आ द ।
अथात ् िजस दे श म साह सय क सं या अ धक, बाजार व तृत तथा आय मे समानता
होगी उनमे साह सय क पू त अपे ाकृ त अ धक होगी । स पूण अथ यव था क ि ट से साहसी
का पू त व च 19.2 म दखाया गया है.

साहसी क पू त
(iii) सा य ब दु नधारण :- साहसी क माँग एवं पू त के संदभ म सा य ब दु नधारण
न न ल खत दो बाजार म दया जा रहा है :-
(a) पूण तयो गता एवं लाभ का नधारण ।
(b) अपूण तयो गता एवं लाभ का नधारण ।
(c) पूण तयो गता और सामा य लाभ नधारण
(a) पूण तयो गता एवं लाभ का नधारण
पूण तयो गता बाजार म एक उ योग म सभी उ यमी सम प तथा समान द ता के
होत ह इस लए द घकाल म उधमी क पू त अन त लोचदार होती है और येक उ यमी अपनी
थाना तरण आय के बराबर केवल सामा य लाभ ह अिजत करता ह । य द कोई उ यमी
सामा य लाभ से कम अिजत करता है तो वह कसी अ य उ योग म सामा य लाभ अिजत
करने हे तु चला जायेगा । अत: द घकाल म उ यमता का पू त व X अ के समाना तर सरल
रे खा होगा । इसे रे खा च 19.3 से समझा जा सकता है ।

(273)
रे खा च 19.3 म आधार अ (OX) पर साहसी क मांग एवं पू त तथा ल ब अ पर सीमा त
आगम उ पादकता एवं लाभ क दर को दशाया गया है । E ब दु पर साहसी का माँग व एवं
पू त व पर पर काँटते ह तथा लाभ क सामा य दर OP नधा रत होती है । द घकाल म पूण
तयो गता बाजार म उ यमी केवल सामा य लाभ अिजत करता है य क साह सय म पूण
ग तशीलता होती है तथा साह सय के वेश तथा ब हगमन पर कसी कार क कावट नह ं
होगी।
(b) अपूण तयो गता एवं लाभ का नधारण :-
अपूण तयो गता के अ तगत के अंतगत उ पादक का व तु क पू त पर पूरा नयं ण
होता है इस लए उ पादक व तु क पू त को नयं त कर बाजार क क मत को भा वत कर
सकता है । फम: औसत लागत से अ धक क मत पर अपने उ पाद बेचती ह फलत: साहसी
हमशा सामा य लाभ से अ धक लाभ कमाता है । इस ि थ त को रे खा च 19.4 म दशाया
गया ह ।

रे खा च म DD तथा SS मश: साहसी का माँग व एवं पू त व है । E ब दु पर मांग


व एवं पू त व पर पर काटते ह । कु ल लाभ OQEP है िजसम OQES सामा य लाभ है ।
जब क PES अ त र त लाभ है ।
कु ल लाभ = सामा य लाभ + अ त सामा य लाभ ।
OQEP = OQES + PES
प ट है क अपूण तयो गता बाजार म साहसी अ त र त लाभ कमाता है । साह सय
को सामा य लाभ से अ धक मलने वाला यह लाभ एक कार से लगान के प म ा त होता है।
बोध न : 10
न न नो का उ तर द िजए :
.1 साहसी क मांग कन कारक वारा नधा रत होती ह ?
.2 साहसी क पू त को भा वत करने वाले त व क ववेचना क िजए ।
.3 पूण तयो गता एवं अपूण तयो गता बाजार म लाभ के नधारण क सच
या या क िजए ।

(274)
19.12 लाभ का औ च य
लाभ कसी अथ यव था म आय, उ पादन तथा रोजगार के तर को बनाए रखने म
मह वपूण भू मका अदा करता है । लाभ ह वह ो साहन है जो साहसी को यवसाय म बनाए
रखता है । पूँजीवाद अथ यव था म इसे अ छा माना जाता है ले कन समाजवाद , अथ यव था म
इसे अ छा नह ं माना जाता
1. पूँजीवाद अथ यव था म लाभ का औ च य :-
समाजवाद अथ यव था को मु यतया क याणकार अथ यव था के प म समझा जाता
है । इस लए इसम लाभ को उ चत नह ं माना जाता । ले कन फर भी उ पादन या को
नरं तर रखने के लए लाभ को ो साहन आव यक है । अत: न न आधार पर समाजवाद
अथ यव था म लाभ को उ चत माना जाता है
(i) नव वतन को अपनाने के लए उ योग म लाभ का होना आव यक ह, तभी पू ज
ं ी
क पया तता रहे गी ।
(ii) समाजवाद अथ यव था का मु य ल य सामािजक क याण है, क याणकार
योजनाओं को पूरा करने के लए भी लाभ आव यक है ।
(iii) लाभ साहसी क उ पादक य एवं बंधक य यो यता का प रमापक है अत: लाभ
कु शल बंधको को काय के तपादन म द ता अपनाने को े रत करता ह ।
न कषत: हम कह सकते ह क सभी कार क अथ यव थाओं म लाभ का होना आव यक ह ।
लाभ आ थक ग त के लए आव यक है । लाभ के प म अिजत आय का अ धकांश भाग
पुन : व नयोिजत कर दया जाता है िजससे आय, उ पादन तथा रोजगार के तर को ऊँचा
उठाया जा सके ।
बोध न : 11
. 1 लाभ का औ च य समझाइये ।
. 2 पू ज
ं ीवाद तथा समाजवाद अथ यव थाओं म लाभ का औ च य बताइये ।

19.13 सारांश
चूँ क उ पादन म, साहसी के अ त र त उ पादन के अ य सभी साधनो के मू य भु गतान
के प चात ् बची रा श ह लाभ होती है इस लए लाभ को एक कार क अव श ट आय ह माना
जाता है । पर तु अथशा क ि ट से लाभ उ पादन यय का एक अंश भी है य क उ पादन
या म साहसी क मह वपूण भू मका होती है । अत: सामा य लाभ उ पादन लागत का भाग
होता है जब क अ त र त लाभ नह ं होता । प ट है क साहसी उ पादन या के दौरान कई
काय करता है जैसे-नव वतन, जो खम उठाना, अ नि चतता वहन करना आ द, िजनके तफल के
प म उसे लाभ ा त होता है तथा लाभ का नधारण उ यमी क मांग, पू त तथा बाजार ि थ त
पर नभर होता है ।

19.14 बोध न के उ तर
बोध न - 1

(275)
उ तर (1) दे खये 19.2 एवं 19.2.1
उ तर (2) दे खये 19.2.4
उ तर (3) दे खये व 19.2.4
बोध न - 2
उ तर (1) ो० वाकर तथा उनके सहयोगी ।
उ तर (2) लाभ े ठ उ य मय को उनक वशेष यो यताओ के कारण दया जाने वाला लगानहै
बोध न -3
उ तर (1) ो० टॉिजग
उ तर (2) लाभ का मजदूर स ा त के अनुसार िजस कार उ पादन के साधन के तफल के
प म मक को मजदूर मलती है उसी साहसी को भी लाभ दया जाता है ।
बोध न -4
उ तर (1) लाभ का समाजवाद स ा त के अनुसार उ यमी व तु क क मत का बहु त कम भाग
मक को मजदूर के प म दे ता है तथा शेष भाग वयं ले लेता है । क मत एवं
मजदूर का यह अंतर ह लाभ है ।
उ तर (2) दे खये 19.5.2
बोध न -5
उ तर (1) इस स ा त के अनुसार द घकाल म उ यमी को मलने वाला लाभ उसक सीमा त
उ पादकता के मू य के बराबर होता है । अथात ् लाभ का नधारण साहसी क
सीमा त उ पादकता के वारा होता है ।
बोध न – 6
उ तर (1) ो० जे. बी. लाक
उ तर (2) दे खये 19.7
बोध न -7
उ तर (1) अमे रकन अथशा ी जे. बी. हॉले ने वष 1907 म कया ।
उ तर (2) दे खये 19.8
बोध न – 8
उ तर (1) ो० नाइट ने वष 1921 म
उ तर (2) दे खये 19.9
बोध न -9
उ तर (1) ो० श पीटर
उ तर (2) दे खये 19.10
बोध न – 10
उ तर (1) दे खये 19.11
उ तर (2) दे खये 19.11 (ii)
उ तर (3) दे खये 19.11 (a) तथा (b)
बोध न – 11

(276)
उ तर (1) अथ यव था म आय, उ पादन एवं रोजगार के तर को बनाए रखने के लए लाभ क
मह वपूण भू मका है ।
उ तर (2) दे खये 19.12.1 तथा 19.12.2

19.15 श दावल
उ यमी ावै गक
साहसी जो खम
लगान अ नि चतता वहन
मजदूर नव वतन
समाजवाद समाजवाद
सीमा त उ पादकता, पू ज
ं ीवाद
पूण तयो गता अपूण तयो गता

19.16 अ यासाथ न
न न न के उ तर 500 श द म द िजए :-
. 1. लाभ का अथ, प रभाषा एवं कार बताते हु ए लाभ का आधु नक स ा त समझाइये ।
. 2. पूण तयो गता एवं अपूण तयो गता बाजार ि थ तय म लाभ का नधारण कस
कार कया जाता है? रे खा च वारा प ट क िजए ।
न न न के उ तर 150 श द म द िजए ।
. 1. लाभ का अ नि चतता वहन स ा त व तार से समझाइये ।
. 2. लाभ का ावै गक स ा त तथा जो खम स ा त समझाइये ।

19.17 संदभ ंथ
1. एच. एल. आहु जा, उ चतर यि ट अथशा ।
2. एन. डी. माथुर, ओ जी. गु ता . यि ट अथशा ।
3. ल मीनारायण नाथु रामका यि ट अथशा ।
4. Variar ; Intermediate Micro Economics.

(277)
इकाई - 20
ारि भक क याणकार अथशा (Welfare Economics)
इकाई क परे खा :
20.0 उ े य
20.1 तावना
20.2 क याणवाद अथशा का अथ एवं प रभाषा
20.2.1 क याण वाद अथशा क वशेषताएं
20.3 क याण वाद अथशा के स ा त
20.3.1 ाचीन क याण वाद अथशा
20.3.2 नवीन क याणवाद अथशा
20.4 सामािजक क याण फलन
20.5 सारांश
20.6 बोध न के उ तर
20.7 श दावल
20.8 संदभ थ

20.0 उ े य
तु त इकाई के अ ययन के प चात ्
(i) अथ यव था म संसाधनो का आवंटन कस कार कया जाए ता क अ धकतम क याण क
ाि त क हो सके यह समझ सकगे ।
(ii) अ धकतम क याण के उ े य क ाि त हे तु व भ न अथशाि य वारा दये गये मानदं ड
जान सकगे ।
(iii) सामािजक क याण फलन का नधारण कस कार कया जाता है इससे प र चत हो सकगे ।
(iv) ाचीन क याणवाद अथशा ी क याण का आधार कसको मानते थे इसक बात ा त कर
सकगे ।
(v) क याण के वषय म नवीन क याणवाद वचारधारा क ववेचना कर सकग ।

20.1 तावना
ाचीन अथशाि यो ने क याणकार अथशा का योग वा त वक अथशा के साथ
कया था । वा त वक अथशा म ' या ह और कैसे ह क या या क जाती है अथात ्
वा त वक अथशा म एक अथ यव था म संसाधनो का आवंटन कैसे होता है, इस का अ ययन
कया जाता है जब क क याणकार अथशा म अ ययन कया जाता है क संसाधन का आवंटन
कायकु शल है या नह ं अथवा अथ यव था म संसाधन का आवंटन तथा उपयोग कस कार कया
जाए ता क अ धकतम क याण क ाि त हो सके । तु त इकाई म क याणवाद अथशा का
अथ एवं प रभाषा समझाने के प चात क याणवाद अथशा के व भ न स ा त का ववेचन

(278)
कया गया है । क याणवाद अथशा के स ा त को मु यता दो भाग म वग कृ त कया गया
ह : ाचीन क याणवाद अथशा तथा नवीन क याणवाद अथशा । ाचीन क याणवाद
अथशा के अ तगत वा ण यवाद ि टकोण, ति ठत ि टकोण तथा नव ति ठत ि टकोण
को समझाया गया है जब क नवीन क याणवाद अथशा के अ तगत परे ट , ह स तथा
का डोर, साइटोव क आ द अथशाि य के ि टकोण समझाएं गये ह ।

20.2 क याणवाद अथशा का अथ एवं प रभाषा


क याणवाद अथशा का के ब दु सामािजक क याण को अ धकतम करना है और
इस उ े य क ाि त के लए आ थक नी तय के तपादन, या वयन एवं आव यक सु धार
आ द क याणवाद अथशा क वषय साम ी ह इस कार क याणवाद अथशा , अथशा क
वह शाखा है जो वैकि पक आ थक नी तय का व लेषण सामािजक वांछनीयता के आधार पर
अ धकतम सामािजक क याण के संदभ म करती है । ो० रे डर के अनुसार ''क याणवाद
अथशा आ थक व ान क वहा शाखा ह जो आ थक नी तयो के लए औ च यपूण मापद ड क
थापना तथा योग करने का य न करता है ।
ो० सटोव क के अनुसार, “क याणवाद अथशा आ थक स ा त का वह भाग है जो
मु यतया नी त से स बि धत होता है !''
ो० व लयम जे० बॉमोल के अनुसार, “ क याणवाद अथशा ा यादातर स ब ध
उन नी तगत, वषय से ह जो व भ न व तु ओं के बीच इनपूट के वतरण तथा वभ न
उपभो ताओं के बीच व तु ओं के वतरण म साधन के आवंटन से उ प न होते ह ।

20.2.1 क याणवाद अथशा क वशेषताएँ -

व भ न प रभाषाओं के व लेषण से क याणवाद अथशा क न न वशेषताएँ


ि टगोचर होती ह ।
(i) यह आ थक व लेषण क एक व श ट शाखा है िजसका वकास मु य प म 1914
से हु आ
(ii) इसका मु ख उ े य समाज के भौ तक क याण को अ धकतम करना है ।
(iii) इसम आ थक नी तय के औ च य का व लेषण करते ह तथा उपयु त नी तपरक
सु झाव दये जाते ह ।
(iv) यह एक वशु वा त वक व ान न होकर आदश व ान है जो बताता है क '' या
है और या होना चा हए ।
(v) यह वतमान युग क सवा धक लोक य शाखा के प म वक सत हो रहा है तथा
आ थक नी तय के नधारण म मह वपूण भू मका नभाती है ।

20.3.2 क याणवाद अथशा के स ा त :-

क याणवाद अथशा के स ा त का तपादन य य प ाचीनकाल से शु होता है ।


पर तु इ ह वै ा नक प म तु त करने का ेय ो० पीगू तथा ो० माशल को जाता ह । इसके
प चात ् इसे और अ धक उपयोगी बनाने का ेय नवीन क याणवाद अथशाि य पेरेट , ह स,

(279)
कातडोर, ल टल, से यूलसन एवं साइटोव क आ द अथशाि य को जाता है । अत: क याणवाद
अथशा के स ा त का वग करण दो े णय म वभािजत कया जा सकता है :-

(i) वा ण यवाद ि टकोण (i) परे टो का क याणवाद ि टकोण


(ii) तष टत ि टकोण (ii) ह स एवं का डोर ि टकोण
(iii) नव ति ठत ि टकोण (iii) माइटोव क क 'दोहर कसौट
(iv) सामािजक क याण फलन
(a) ो० माशल का ि टकोण
(b) ो० पीगू का ि टकोण
अ यास न :
न न न के उ तर द िजए ।
. 1 क याणवाद अथशा क वषय साम ी या ह ?
. 2 क याणवाद अथशा कस कार वा त वक अथशा से भ न ह ?
. 3 क याणवाद अथशा क वशेषताऐ बताइये ।

20.3.1 ाचीन क याणवाद अथशा

वा ण यवाद आ थक क याण म वृ के लए अ धक से अ धक नयात तथा कम से


कम आयात करने क सरकार नी तय का समथन करते थ, ता क यापार आ ध य से भु गतान
म दे श को अ धका धक सोना चांद एवं बहु मू य धातु एं मले तथा दे श क भौ तक समृ से
क याण बढ़े ।
इस वचारधारा से शि तशाल रा ने पछड़े एवं गर ब दे श को अ धका धक नयात
कर उनका शोषण कया, इससे एकप ीय आ थक क याण क वचारधारा पनपने लगी िजससे
वा तव म जो क याण के अ धकार थे, वे तो शा षत बन गये तथा शि तशाल , रा का ह
अ धक आ थक क याण होने लगा, इससे इसक आलोचना होने लगी ।

20.3.2 ति ठत ि टकोण :-

ति ठत अथशाि य म मु य प से एडम ि मथ, रकॉड तथा मा थस के नाम लये


जा सकते है िज ह ने क याणवाद ि टकोण का तपादन कया । ये सभी अथशा ी
वा णकवाद ि टकोण से अ य त भा वत थे । उ ह ने धन और क याण मे सीधा स ब ध
था पत कया था ।
एडम ि मथ ने अपनी पु तक ''Wealth of Nations” म अथशा को धन का व ान
कहकर स बो धत कया । इनका ढ़ वचार था क बना धन के आ थक क याण म वृ
स भव नह ं है। रकाड तथा ज. एस मल आ द ने भी एडम ि मथ के वचार का भार समथन
कया । उनक यह धारणा थी क दे श म िजतना अ धक उ पादन होगा उतना ह धन बढ़े गा और

(280)
अ धक लोग को रोजगार मलेगा िजससे रा क स प नता बढ़े गी और आ थक क याण म वृ
होगी। रकाड ने भी शु आय को अ धकतम करने पर बल दया । प ट है क ये सभी
स ा त अथ यव था म उ पादन को अ धकतम करके आ थक क याण म वृ को संभव बनाने
से संबि धत थे ।

20.3.3 नव ति ठत स दाय म क याणवाद अथशा :-

नव ति ठत स दाय म क याणवाद अथशा को दो भाग म बाँटा जा सकता ह :-


(a) ो० माशल का ि टकोण ।
(b) ो० पीगू का ि टकोण ।
(a) माशल का क याणवाद अथशा :- माशल ने ति ठत स दाय के उन
वचार का वरोध कया िजसम उ ह ने धन को आ थक क याण से जोड़ा । उ ह ने धन को
गौण तथा मानव को अ धक मह व दे कर क याणवाद अथशा को अथशा क एक व श ट
शाखा के प म तपा दत कया ।
ो० माशल ने अपनी पु तक Industry and Trade म क याण क या या तु त क
उनके अनुसार आ थक क याण म वृ कु ल बचत म वृ वारा ह संभव है, य क बचत के
बढ़ने से व नयोग बढ़ते है िजससे रोजगार के अवसर तथा उ पादन म वृ होती है । उनका तक
था क येक व तु के लए कु ल बचत का नमाण उपभो ता क बचत' तथा 'उ पादक क बचत'
के योग से होता है और िजस उ पादन मा ा पर कु ल बचत मा ा अ धकतम होती है, वह समाज
को अ धकतम सामािजक क याण क ाि त होती है । जैसा क न न रे खा च से प ट है :-

रे खा च 20.3.1 म DD मांग व तथा SS पू त व अथवा सीमा त लागत व है ।


E संतल
ु न ब दु है जहाँ दोन व पर पर काटते है जहां व तु का मू य OP तथा उ पादन एवं
उपभोग मा ा OQ ह, िजस पर कु ल बचत मा ा SED है िजसम से SEP उ पादक क बचत का
े है जब क PED उपभो ता क बचत का े है ।
कु ल बचत = उ पादक क बचत + उपभो ता क बचत
SED = SEP + PED
अब य द कसी कारणवश उ पादन मा ा OQ से घटकर OQ1, रह जाती है तो नया
संतु लन ब दु E1 पर होगा । जहां क मत OP से बढ़कर OP1, हो जायेगी तथा कु ल बचत े

(281)
म TEE के बराबर कमी हो जायेगी । उपभो ता क बचत PREID उ पादक क बचत PRST के
बराबर होगी जो पूव क तु लना म मश: FIRE तथा RET के बराबर कम होगी ।
कु ल बचत म कमी = पूव म बचत - नई बचत
TEE1 = SED – SET1D
इस कार रे खा च से प ट है क ो० माशल के अनुसार समाज को अ धकतम
क याण क ाि त उस ि थ त म होती है जब मांग व पू त क सापे क शि तय म सा य
था पत होता ह, अथात जहां क मत तथा सीमांत लागत बराबर होते है । यह सा याव था
अ धकतम बचत तथा अ धकतम क याण क ि थ त का योतक है ।
आलोचनाएं - माशल के क याणवाद अथशा के स ा त क व वान ने कई आलोचनाऐं क
ह जो न न ल खत है -
(i) माशल क अ धकतम संतु ि ट क धारणा एक मनोवै ा नक वचार है िजसका मापन
क ठन है।
(ii) माशल के स ा त को लागू करने के लए आव यक है क समाज म आय का वतरण
समान हो तथा सभी उ योग लागत समता नयम के अ तगत काय कर रहे ह । जब क
ऐसी ि थ त को ा त करना अतय त क ठन है ।
(iii) पूण तयो गता एक का प नक ि थ त है जो यवहार म नह पाई जाती ।
(b) ो० पीगू का ि टकोण :- ो० पीगू ने क याणवाद अथशा क या या अपनी पु तक
क याण का अथशा म क है । पीगू ने क याण को दो भाग म वभािजत कया ह -
(1) आ थक क याण (2) गैर आ थक क याण ।
ो० पीगू के श द म, ''आ थक क याण सामािजक क याण का वह भाग है जो य
अथवा अ य प से मु ा के मापदं ड से मापा जा सकता है । '' ो० पीगू ने ो० बथम के इस
ि टकोण को अपनाया है क समाज का क याण यि तय के क याण का योग है और इसे ह
सामािजक क याण कहा जायेगा । सामािजक क याण को अ धकतम करने के लए पीगू ने न न
दो कसौ टयाँ बताई ह -
(i) रा य आय को अ धकतम करना :- पीगू के अनुसार रा य आय म वृ करने से ह
सामािजक क याण म वृ होती है । सामािजक क याण अ धकतम करने के लए पीगू
ने कहा क अथ यव था म सभी उ योग म सीमांत यि तगत शु उ पादन एक समान
होना चा हए । य द ऐसा न हो तो सरकार को कर तथा अनुदान के मा यम से समानता
क ि थ त लानी चा हए।
(ii) रा य आय का सह वतरण करना :- पीगू के अनुसार य द वा त वक रा य आय का
वतरण धनी वग से नधन वग क ओर कया जाए तो इससे सामािजक क याण म
वृ होगी । अथात सामािजक क याण म वृ के लए आय क समानता' होनी चा हए
। धनी वग से नधन वग क ओर रा य आय के ह ता तरण को रे खा च वारा
द शत कया गया है :-

(282)
रे खा च 20.3.2 म MU व दशाता है क जैसे-जैसे आय म वृ होती है, वैस-े वैसे
मु ा क सीमा त उपयो गता घटती जाती है । रे खा च म नधन वग क आय OP तथा धनी
वग क आय OS है । अब य द धनी वग से RS आय (कर के प म लेकर य द नधन वग को
ह ता त रत कर द जाय अनुदान के प म) तो नधन वग क आय बढ़कर OQ तथा धनी वग
क आय OR हो जायेगी । च से प ट है क धनी वग के क याण म CR के बराबर कमी
होगी जब क नधन वग के क याण म BQ के बराबर वृ होगी । (BQ>CR) अथात ् BT शु
क याण म वृ होगी । प ट है क धनी वग से नधन वग क ओर आय का ह ता तरण करने
से धनी वग को कम हा न होगी । जब क नधन वग को अ धक लाभ होगा ।
ो० पीगू क याणवाद अथशा न न मा यताओं पर आधा रत ह :-
(i) उपयो गता (संतु ि ट) मापनीय होती है और इसे मु ा के वारा मापा जा सकता है ।
(ii) मु ा क सीमा त उपयो गता ि थर रहती है ।
(iii) उपभो ता ववेकपूण यवहार करता ह अथात ् वह अपने सी मत साधन को सोच
समझकर यय करता है ।
(iv) व भ न यि त समान वा त वक आय से समान संतु ि ट ा त करते ह ।
(v) जैसे-जैसे मौ क आय बढ़ती है, उसक सीमा त उपयो गता मश: घटती जाती है ।
(vi) उपभो ता जब अलग-अलग व तु ओं का उपभोग करता है तो वह उन व तु ओं से
ा त होने वाल उपयो गता क पर पर तु लना करता है ।
आलोचनाऐ :-
नव ति ठत क याणवाद अथशा क न न आलोचनाऐं ह -
(i) उपयो गता का मापन संभव नह ं ह ।
(ii) मु ा क वयं क उपयो गता म प रवतन होते रहते है । अत: मु ा के प म
उपयो गता का मापन संभव नह ं है ।
(iii) पूण उपयो गता एक का प नक एवं अवा त वक दशा है जो यवहार म नह ं पाई
जाती ।
(iv) आलोचक के अनुसार आ थक समानता से पू ज
ं ी नमाण पर तकू ल भाव पड़ता है
य क नधन वग अपनी बढ़ हु ई आय को वयं के उपभोग पर यय कर दे गा
िजससे बचत के तर म गरावट ह गी िजससे पू ज
ं ी नमाण क दर घटे गी ।

(283)
(v) आलोचक के अनुसार आ थक क याण म वृ का मु ा उ पादन क कु शलता से
जुड़ा हु आ होता है न क धन के समान वतरण से ।
(vi) ति ठत अथशा म गैर, आ थक क याण क उपे ा कर द गई है जो क उ चत
नह ं है। क याण क या या सम प म होनी चा हए ।
अ यास न - 1
.1. मु ख ाचीन क याणवाद अथशाि य के नाम बताइये ।
.2. वा णि यक स दाय क क याणवाद अथशा क अवधारणा को समझाइये ।
.3. क याणवाद अथशा क नव ति ठत स दाय ने कस कार ववेचना क ह?

20.4 नवीन क याणवाद अथशा :-


ाचीन क याणवाद अथशा मे उपयो गता को मापनीय माना गया था जब क नवीन
क याणवाद अथशा म उपयो गता के मवाचक ि टकोण के आधार पर व लेषण कया गया
है । ो० परे टो को नवीन क याणवाद , अथशा का जनक माना जाता है । इसके अ त र त
ो० ह स, ऐलन, कालडोर साइटोव क , ल टल, वगसल तथा सै युलसन आ द अथशाि य ने
भी नवीन क याणवाद अथशा के वकास म योगदान दया ।
नवीन क याणवाद अथशा म मु यतया न न दो वचारधाराओं का सू पात ह :-
(i) नवीन क याणवाद अथशा िजसके नमाता, परटो कालडोर ह स व साइटोव क
है ।
(ii) सामािजक क याणफलन िजसके नमाता बगसन से युलसन आ द अथशा ी है ।

20.4.1 पेरेटो का क याणबाद अथशा :-

परे ट ने क याणवाद अथशा का व लेषण उपयो गता के मवाचक वचार पर


आधा रत कया। परे टो ने उपभो ता के यवहार का व लेषण उदासीनता व के आधार पर कया
िजसम उपभो ता व तु ओं के एक संयोग क अपे ा दूसरे संयोग से अ धक संतु ि ट का अनुभव
करता ह अथवा कम अथवा दोन के बीच उदासीन रहता है ।
परे ट के अनुसार समु दाय का कु ल क याण उस समय इ टतम होता है जब समु दाय म
कसी भी यि त क आ थक ि थ त म कसी अ य यि त क आ थक ि थ त को वकृ त कये
बना सुधार असंभव होता है । परे टो के श द म, ''अ धकतम क याण क ि थ त वह ि थ त है
जहां सब यि तय के क याण म वृ करना असंभव होता है ।
परे ट के क याणवाद अथशा क मा यताऐं :-
पेरेट ने क याणवाद अथशा क या या करने म न न मा यताऐं मानी :-
(i) उपयो गता के म वाचक ि टकोण को आधार माना है ।
(ii) क याण व तु ओं एवं सेवाओं क मा ाओं का सीधा फलन है अथात ् व तु ओं एवं
सेवाओं क मा ा म वृ होने पर कु ल क याण म भी वृ होती है ।
(iii) यि तय के अ धमान दये हु ए होते ह ।
(iv) साधन के वतरण क सम याओं के अ तगत केवल उ पादन एवं व नमय क
कु शलता क ह मा यता द गई है ।

(284)
पेरेट अनुकू लतम क कसौ टयाँ :-
पेरेट के अनुसार, ''अगर कोई प रवतन कसी को हा न पहु ँ चाये बना कु छ लोग का
े ठतर बनता ह तो वह सु धार है । ''

पेरेट के इस वचार को एजवथ बाउले बॉ स रे खा च वारा समझा जा सकता है ।


माना क समाज म दो यि त X तथा Y है जो मश: A तथा B व तु का उपभोग करते ह
न न रे खा च म X तथा Y यि तय के मू ल ब दु मश: OX तथा OY ह । X यि त के
बढ़ते संतु ि ट अ धमान व IX1, IX2 तथा IX3 है जब क Y यि त के बढ़ते संतु ि ट अ धमान
व मश: IY1, IY2, IY3 माना क X तथा Y यि तय के लए A तथा B व तु ओं क
वतरण ि थ त K है िजसके अनुसार X यि त के पास A व तु क OG मा ा तथा B व तु क
GK मा ा इसी कार Y यि त के पास A व तु क YE मा ा तथा B व तु क EK मा ा है ।
पेरेटो मापद ड के अनुसार य द आप का पुन वतरण K ब दु से R ब दु क ओर होता है तो Y
यि त क संतु ि ट पूववत रहती है जब क X यि त के संतु ि ट तर म वृ होती ह य क Y
यि त तो उसी अ धमान व Y1, पर रहता है जब क Y यि त अपे ाकृ त ऊँचे अन धमान व
IX3 पर पहु ँ च जाता है । अत: K ब दु परे ट के अनुसार सामािजक अनुकु लतम क ि थ त नह ं
है । इसी कार य द पुन वतरण K ब दु से P ब दु पर होता है तो X यि त क ि थ त
पूववत रहते हु ए Y यि त क ि थ त म सुधार होता है । इस कार दोन यि तय के व भ न
तट थता व ो के पश ब दु सामा य अनुकू लतम के ब दु होते ह जो सं वदा व CC वारा
दशाये गये है । सं वदा व पर ि थत P,Q तथा R संयोग से कौनसा संयोग े ठ है यह पेरेट
का स ा त प ट नह ं करता ।
परे ट के स ा त क आलोचनाऐं :-
पेरेट के अनुकु लतम स ा त क कई आधार पर आलोचनाऐं क गई ह जो न न
कार ह :-
(i) क याण एक सापे क वचार :- क याण एक सापे क वचार ह जो एक दूसरे के
क याण से भा वत होता है और करता है । परे ट क यह मा यता गलत है क
एक यि त का क याण दूसरे यि तय के क याण म वतं है ।

(285)
(ii) नै तक नणय :- परे ट के अनुकु लतम स ा त नै तक नणय से मु त नह ं है ।
इसक मा यता है क '' बना कसी दूसरे को हा न पहु ँ चाये एक यि त क ि थ त
म सु धार ह । '' अ धक अथशाि य सै युलसन, बगसन आ द का भी यह वचार
है क अथपूण क याणवाद अथशा के लए नै तक नणय को सि म लत करना
आव यक है ।
(iii) सी मत योग - यावहा रक जीवन म कु छ आ थक नी तयां ऐसी होती है िजनम
कु छ को लाभ मलता है क तु ये दूसर के लए हा नकारक होती है । पेरेट के
स ा त से ऐसी ि थ त म सह मू यांकन करना क ठन है ।
(iv) अनेक अनुकु लतम ब दु :- परे ट के स ा त म सबसे बड़ा दोष यह है क परे ट ने
एक आदश अनुकु लतम ब दु क ववेचना नह ं क । उनके अनुसार य द एक
यि त से आय लेकर दूसरे यि त को ह ता त रत कर द जाये तो नया
अनुकु लतम ब दु ा त होगा पर तु यह नया ब दु पहले क तु लना म े ठ है या
खराब यह नणय करना क ठन है ।
(v) अवा त वक मा यताऐं - परे ट का क याणवाद अथशा अनेक अवा त वक
मा यताओं पर आधा रत ह, इस कारण यह अ यावहा रक हो जाता है ।
2. कालंडोर - ह स का तपूरक ि टकोण :-
कालडोर ह स का तपूरक स ा त परे ट क अनुकुलतम अवधारणा पर एक सुधार
एवं व तार है । यह नवीन क याणवाद अथशा का के य वचार है । इस ि टकोण के
अनुसार य द कसी प रवतन के फल व प समाज म कु छ लोग क ि थ त म सुधार हो जाता है
तथा कु छ लोग क ि थ त पहले क अपे ा बगड़ जाती है पर तु आय का पुन वतरण करके य द
नुकसान का अनुभव करने वाल क तपू त कर द जाती है तथा लाभ ा त करने वाले सुधार
का अनुभव करते ह तो ऐसे प रवतन से समाज के आ थक क याण म वृ होगी ।
कालडोर तथा ह स के तपूरक ि टकोण को रे खा च 20.4.2 वारा समझा जा
सकता है । इस रे खा च के अनुसार य द अथ यव था C ब दु से D ब दु क ओर ग तमान
होती है B वग के क याण म वृ ले कन A वग के क याण म कमी होगी ले कन B वग के
क याण म होने वाल वृ A वग के क याण म होने वाल कमी क तु लना म अ धक है
इस लए कु ल क याण म वृ होगीं । C ब दु से E; F अथवा G ब दु क ओर अथ यव था के
ग तमान होने से तो A तथा B दोन वग के क याण म वृ होगी िजसका ववरण पेरेट ने भी
कया ले कन C से D ब दु क ओर चलन के स ब ध म परे ट क कसौट असहाय हो जाती है
। इसी लए कालडोर हवस का तपूरक ि टकोण A परट के ि टक ण पर एक सु धार ह ।

(286)
आलोचनाऐं :-
(i) अ यावहा रक कसौट :- कालडोर ह स स ा त इस छपी मा यता पर आधा रत है
क धनी एवं नधन सभी यि तय के लए य क सीमा त उपयो गता समान
होती है जो पूणतया अ यवहा रक है ।
(ii) बा य भाव क उपे ा अनु चत :- यह स ा त यह मानकर चलता है क कसी
यि त का आ थक क याण उसक अपनी आ थक ि थ त पर नभर करता है तथा
अ य यि तय क ि थ त से अ भा वत रहता है जो क उ चत नह ं ह ।
(iii) सावभौ मक स यता का अभाव :- आलोचक के अनुसार कालडोर ह स कसौट के
अनुसार पू ज
ं ीवाद अथ यव था म उ पादन कु शलता एवं आय- वतरण पर कसी
नी त के भाव को अलग-अलग संभव नह होता, यह केवल समाजवाद
अथ यव था म ह संभव होता है, अत: पू ज
ं ीवाद अथ यव था म यह कसौट लाग
नह ं होने से इसम सावभौ मक स यता नह ं है ।
(iv) का प नक क याण - यह स ा त संभा य क याण पर आधा रत है जब क
वा त वक क याण अपे ाकृ त अ धक मह वपूण है अत: यह का प नक स ा त है ।
(v) क याण क वै ा नक या या का अभाव :- तपू त स ा त एवं उसक कसौट
तट थता व व लेषण पर आधा रत है जो क का प नक मा यताओं पर आधा रत
है अत: इस क याण क वै ा नक यव था नह ं कहा जा सकता ।
(vi) अपया त :- इसका योग केवल दो ि थ तय क तु लना करने के लए ह कया जा
सकता है । जब क यवहार म दो से अ धक ि थ तय क तु लना क आव यकता
होती है ।
3. साइटोव क का ि टकोण :-
साइटोवसक के अनुसार कालडोर ह स कसौट से पर पर वरोधी दशाओं का नमाण भी
हो सकता है । उनके अनुसार ऐसा संभव है क वे लोग िजनको अथ यव था के पुन ठन के
कारण हा न होने क आंशका है वे उन लोगो को र वत दे कर पुनगठन के काय को बंद करवा दे
िजनको पुनगठन से लाभ होने वाला है । ऐसी ि थ त म कालडोर ह स स ा त के अनुसार कोई
लाभ नह ं होगा ।
साइटोव क क दोहर कर कसौट क या या न न कार से क जा सकती ह, ''कोई
प रवतन साधन होता है । य द प रव तत ि थ त से लाभाि वत यि त हा न उठाने वाले यि त
को प रवतन ि थ त को वीकार करने के लए े रत करने म समथ है तथा साथ ह त त
यि त लाभाि वत यि तय को मौ लक ि थ त पर बने रहने के लए े रत करने म असमथ
हो। '' दूसरे श द म यह कहा जा सकता है क य द B ि थ त A ि थ त से े ठ (बेहतर) है तो
उसी मापद ड के आधार पर B ि थ त से पुन : A ि थ त पर प रवतन े ठ नह ं है ।
साइटोव क के इस दोहरे मापद ड को न न रे खा च से समझाया जा सकता है :-

(287)
रे खा च म अलग-अलग वग A तथा B के लए दो अलग-अलग उ पादन तर पर
उपयो गता संभावना व p1Q1 तथा P2Q2 है । ये दोन उपयो गता संभावना व एक दूसरे को
काटते नह ं । ऐसी ि थ त म ब दु E से ब दु H क ओर चलन कालडोर ह स कसौट के
अनुसार एक सु धार है य क H ब दु अपे ाकृ त ऊँचे उपयो गता संभावना व P2Q2 पर ि थत
है जो अ धक संतु ि ट को दशाता है । इसके वपर त H ब दु से E ब दु पर चलन सु धार नह ं है
य क यह दोन यि तय के न न क याण तर को बताता है । इस कार साइटोव क के
मापद ड से दोहर जाँच पूर हो जाती है, इस कार साइटोव क के अनुसार आय के पुन वतरण
क संभावना पुनगठन से पहले तथा बाद दोन ह ि थ तय म दे खी जानी चा हए और य द सभी
वग पुन वतरण के फल व प अ छ ि थ त म आ जाये तो यह माना जायेगा क पुन वतरण के
फल व प क याण म वृ हु ई है ।
आलोचनाऐं -
(i) सावभौ मक स यता का अभाव :- कालडोर ह स कसौट केवल उ पादन कु शलता को ह
क याण का आधार मानती है जब क वतरण क सम याओ पर कोई काश नह डालती
इस लए यह सभी प रि थ तय म लागू नह ं होती ।
(ii) यवहा रक कसौट :- यह कसौट इस छपी मा यता पर आधा रत है क धनी एवं नधन
सभी यि तय के लए य क सीमा त उपयो गता समान होती है जब क यवहार म ऐसा
नह ं पाया जाता ।
(iii) ा ा भाव क उपे ा अनु चत :- यह स ा त इस मा यता पर आधा रत ह एक यि त का
आ थक क याण उसक अपनी आ थक ि थ त पर नभर करता है तथा दूसरे यि तय क
आ थक ि थ त से अ भा वत रहता है जो उ चत नह ं है ।
(iv) का प नक क याण :- यह स ा त का प नक क याण क मा यता पर आधा रत है जब क
वा त वक क याण अपे ाकृ त अ धक मह वपूण ह ।
(v) क याण क अवै ा नक या या :- का प नक एवं अवा त वक मा यताओं पर आधा रत होने
के कारण इस स ा त के वारा क याण क वै ा नक या या नह ं क जा सकती ।
(vi) अपया त स ा त : - इस कसौट के योग से केवल क याण क दो ि थ तय क पर पर
तु लना क जा सकती है दो से अ धक ि थ तय क तु लना हे तु इस कसौट का योग नह ं
कया जा सकता।

(288)
अ यास न - 2
न न न के उ तर द िजए :-
. 1. नवीन क याणवाद अथशा का जनक कसे कहा गया ह ?
. 2. मु ख नवीन क याणवाद अथशाि य के नाम बताइये ?
. 3. का डोर का तपूरक स ा त कस कार परे टो क अवधारणा पर एक सुधार
ह ? समझाइये ।

20.4 सामािजक क याण न :-


सामािजक क याण फलन का तपादन ो० बगसन ने सव थम अपने लेख ''A
Reformulation of certain aspects of Welfare Economics'' म कया । सामािजक
क याण फलन उन सभी त व / चर को बताता है िजन पर समाज के सभी यि तय के सभी
यि तय का क याण नभर करता है ।
पर परागत अथशाि य ने रा य आय के वतरण को आ थक क याण का आधार
माना जब क नव पर परागत अथशाि य ने उ पादन क मा ा एवं कु शलता को क याण का
आधार मान इन स ा त क अपया तता के कारण ो० बगसन से युलसन आ द अथशाि य
ने सामािजक क याण क या या करने के लए इसम इसक भा वत करने वाले, कई घटक को
शा मल कया तथा जो स ा त तपा दत कया उसे सामािजक क याण फलन के नाम से जाना
जाता है
ो० बगसन के अनुसार, सामािजक क याण समाज के येक सद य वारा उपभोग क
जाने वाल व तु ओं एवं सेवाओं क मा ा पर येक यि त वारा क गई सेवाओं पर आय के
वतरण क ढं ग पर, उपभो ताओं क सावभौ मकता आ द कई त व पर नभर करता है । इसे
न न कार से य त कया जा सकता ह :-
w=f(a,b,c,d,......n)
जहाँ W= सामािजक क याण
f = फलन
a,b,c,d,......n,= वे त व िजन पर क याण नभर करता है ।

20.5 सामािजक क याण फलन क वशेषताएं :-


सामािजक क याण फलन, ''अ य धक सामा य वभाव वाला'' है िजसके अ तगत येक
यि त का क याण व तु ओं एवं सेवाओं के वयं के उपभोग पर नह ं बि क अ य यि तय के
उपभोग के तर, समाज म आय के वतरण के त ि टकोण आ द कई घटक पर नभर करता
है ।

20.5.2 सामािजक क याण फलन क मा यताऐं :-

ो० बगसन तथा से युलसन ने अपने सामािजक क याण फलन को न न मा यताओं


पर आधा रत माना
(i) यह उपयो गता के मवाचक ि टकोण पर आधा रत है ।

(289)
(ii) यह क याण के आ त रक एवं बाहय घटक से भा वत होता है ।
(iii) यह उपयो गता के अ तवैयि तक तु लनाओं क आ ा दे ता है और नै तक
नणय का समावेश करता ह ।
(iv) इनम उन सभी त व एवं चरो का समावेश कया जाता है । िजन पर समाज के
सभी यि तय का क याण नभर करता है ।
सामािजक क याण फलन को न न रे खा च वारा प ट कया जा सकता है । माना
क समाज म दो यि त A तथा B है िजनके लए उपयो गता के व भ न संयोग को तट थता
मान च के प म सामािजक क याण व मश: W1, W2, W3, और W4 को दशाया गया है
। मू ल ब दु से ऊपर सामािजक क याण व नीचे वाले क याण व क तु लना म अ धक
क याण को दशाता है :-

PQ उपयो गता सीमा रे खा है जो उपयो गता संयोग के उन तर को बताती है जो दये


हु ए संसाधन से भौ तक प म ा त कये जा सकते है । ब दु R से S तथा S से T क ओर
चलन नि चत प सेक याण का सू चक है य क ये अपे ाकृ त ऊँचे अन धमान व पर ि थत
है । T ब दु सव तम ा य क याण ब दु है । य क इसी ब दु पर उपयो गता सीमा रे खा
PQ सामािजक क याण रे खा W4 पर पश रे खा है ।

20.5.3 आलोचनाऐं :-

(i) ो० बोमोल के अनुसार सामािजक क याण फलन उन नदशो को नह ं बताता िजससे


क याण के लए मू यगत नणय लये जा सके ।
(ii) ो० ऐरो के अनुसार बहु मत नणय के आधार पर न मत यह फलन सामा यत:
वरोधा मक प रणाम दे ता है ।
(iii) य य प सामािजक क याण फलन सामािजक क याण का या या का एक
सै ाि तक उपकरण है पर तु उसके ग णतीय व प को कोई यावहा रक मह व नह ं
ह ।

20.5.4 केनेथ जे ऐरो का असंभवता मेय :-

नोबेल पुर २कार वजेता केनोथ जे. ऐसे ने अपने 'असंभवता मेय' म यह स करने का
यास कया क लोकतां क मज के आधार पर सामािजक क याण फलन नकालना संभव नह ं है

(290)
। उनके अनुसार वैयि तक वर यता को सू चत करने वाले सामािजक क याण फलन म न न चार
शत पूर होना आव यक ह :-
(i) सामािजक क याण स ब धी चु नाव सकमक पी होने चा हए अथात ् य द A को B
बेहतर तथा B को C से बेहतर वक प माना है तो A को C से बेहतर वक प
मानना चा हए ।
(ii) सामािजक क याण स ब धी चु नाव वैयि तक वर यता के प रवतन के वपर त दशा
म नह ं जाने चा हए ।
(iii) सामािजक क याण के चु नाव के स ब ध म समाज के बाहर या अ दर कसी एक
यि त वारा आदे श नह ं दये जाने चा हए ।
(iv) सामािजक क याण स ब धी चु नाव नरथक वक प से वतं रहना चा हए ।
केनथ जे. एरो ने अपने असंभवता मेय म यह स करने का यास कया क उपरो त
चार शत म से कम से कम एक शत को तोड़े बना लोकतां क मत वारा सामािजक क याण
फलन नकालना संभव नह ं है ।

20.5.5 वतीय सव े ठ का सामा य स ा त :-

क याणवाद अथशा से स बि धत इस स ा त का तपादन ल से एवं लंका टर ने


1956 म का शत अपने लेख म कया था इस स ा त के अनुसार पेरेट अनु ठतम क सब शत
पूर नह ं होने पर यादा से यादा शत पूर कर लेने मा से सामािजक क याण म वृ क
अ नवायत: सव े ठ ि थ त नह ं बन जाती । ल से तथा लंकारटरइr का वतीय सव े ठ का
सामा य स ा त न न रे खा च वारा प ट ह -

च म W1, W2, W3, कसी समाज के लए व तु X तथा व तु Y के बढ़ते संतु ि ट


अ धमान व है । इसम पेरेटो अनकु लतम ब दु PQ उ पादन संभा यता व के E ब दु पर ह
य द कु छ सं थागत तबंधो के कारण CC रे खा के दाँयीं और से संयोग ा त होना संभव नह ं
हो तो उ पादन संभावना व के F तथा G ब दुओं के थान पर सामािजक तट थता व W2
के E2 ब दु पर वतीय सव े ठ क याण क ि थ त ा त होगी । य य प F तथा G ब दुओं
पर पेरेटो अनुकुलतम एक शत तो पूर होती है क तु यह E2 क तु लना म नचले सामािजक
तट थता व W1 पर ि थत ह । अत: E2 ब दु वतीय सव े ठ क याण क ि थ त का
योतक बन जाता है ।

(291)
अ यास न :-
न न न के उ तर द िजए
. 1 सामािजक क याण फलन के तपादक कौन थे ?
. 2. सामािजक क याण फलन को प रभा षत क िजए ।
. 3. वतीय सव े ठ का सामा य स ा त कसने तथा कब तपा दत कया ?
. 4. केनेथ जे. ऐर के अनुसार सामािजक क याण फलन क शत या ह ?

20.6 सारांश :
उपरो त इकाई के अ ययन से प ट है क वतमान म क याणवाद , अथशा ,
अथशा का के य ब दु है व भ न अथशाि य ने अ धकतम क याण ाि त हे तु व भ न
कसौ टय / मानदं ड का नधारण कया ह जो सम त नी त नधारण हे तु अ य त उपयोगी
सा बत हु ए है । य य प क याणवाद अथशा काफ भावना मक ह, फर भी वतमान म
अ धकतम सामािजक क याण के उ े य क ाि त हे तु आ थक नी तय के तपादन,
या वयन, मू यांकन एवं सु धार हे तु क याण के अथशा के उपयो गता नरं तर बढ़ती जा रह
है ।

20.7 आ यास न के उ तर :
20.2
उ तर (1) क याणवाद अथशा के अ तगत सामािजक क याण को अ धकतम
करने के लए आ थक नी तय के तपादन, या वयन, मू यांकन एवं
आव यक सु धार आ द का अ ययन कया जाता है ।
उ तर (2) वा त वक अथशा म ' या है' और 'कैसे ह ।' क या या क जाती है
जब क क याणवाद अथशा म ' या' और कैसे होना चा हए का
अ ययन कया जाता है ।
उ तर (3) दे खये 20.2.1
20.3
उ तर (1) एडमि मथ रकोड , मा थस, माशल तथा पीगू आ द ।
उ तर (2) वा ण यवाद अथशा ी आयात कम तथा नयात अ धक करने क नी त
अपनाकर यापार आ ध य से दे श के क याण म वृ के प धर थे ।
उ तर (3) दे खये 20.3.3
20.4
उ तर (1) ो० परे ट
उ तर (2) सामािजक क याण फलन उन सभी त व / चर को बताता है । टनम
पर समाज के सभी यि तय का क याण नभर करता है ।
उ तर (3) ल से तथा लंका टर ने वष 1956 म ।
उ तर (4) दे खये 20.5.4

(292)
बोध न
I न न न के उ तर 150 श द म द िजए ।
. 1. पीगू के क याणवाद अथशा क आलोचना मक या या क िजए ।
. 2. परे ट के क याणवाद अथशा क आलोचना मक या या क िजए ।
. 3. सामािजक क याण फलन क अवधारणा को व तार से समझाइये ।
I न न न के उ तर 150 श द म द िजए ।
. 1. क याणवाद अथशा क प रभाषा दे ते हु ए इसक वशेषताऐं समझाइये ।
. 2. माशल का क याणवाद ि टकोण समझाइये ।
. 3. ट प णयां ल खये :
(i) साइटोव क का दोहरा मापद ड ।
(ii) ह स तथा कालडोर का तपूरक ि टकोण ।
(iii) वा ण यवाद म क याणवाद अथशा ।

20.8 श दावल :
सामािजक क याण उपयो गता
क याणवाद अथशा पू ज
ं ी नमाण
उपभो ता क बचत मवाचक धारण
उ पादक क बचत अन धमान व
यापार आ ध य उपयो गता संभावना व
पूण तयो गता तपूरक ि टकोण
आ थक क याण सामािजक क याण फलन
गैर आ थक क याण असंभवता मेय

20.9 ासं गक पठनीय ंथ :

(293)
(294)

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