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ास म् अ यन साम ी

भूगोल
भाग - 5

GUWAHATI

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भूगोल
भाग-5
क्रम ऄध्याय पृष्ठ संख्या
संख्या
1. प्रवास : कारण एवं प्रभाव 1-12
2. कृ षष : षवश्व एवं भारत 13-45

3. भारत : जल संसाधन एवं ससचाइ 46-61


4. मानव बषततयां 62-99

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प्रवास : कारण एवं प्रभाव


षवषय सूची

1. प्रवास (Migration) ___________________________________________________________________________ 3

1.1 प्रवास से सम्बंषधत कु छ मूलभूत पररभाषाएँ ________________________________________________________ 3

1.2 प्रवास के अयाम (Aspects of Migration) _______________________________________________________ 3


1.2.1 ऄंतरााष्ट्रीय प्रवास _______________________________________________________________________ 3
1.2.2 अंतररक प्रवास ________________________________________________________________________ 6

1.3 प्रवास में तथाषनक षवषभन्नता___________________________________________________________________ 7

1.4 भारत की जनगणना एवं प्रवास _________________________________________________________________ 8

1.5 प्रवास के ऄपकषा और प्रषतकषा कारक (Pull and Push Factors of Migration) _____________________________ 8

1.6 प्रवास के कारण ___________________________________________________________________________ 9

1.7 प्रवास के पररणाम _________________________________________________________________________ 11

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1. प्रवास (Migration)
 प्रवास या प्रवसन का ऄषभप्राय एक भौगोषलक आकाइ (क्षेत्र) से दूसरी भौगोषलक आकाइ में अना-
जाना या प्रवास करना है। मनुष्य में यह प्रवृषि अददम काल से वतामान तक जारी है। अददम काल
में व्यषियों और समूहों में भोजन, अश्रय, सुरक्षा, व्यापार अदद के षलए भौषतक गषतशीलता पायी
जाती थी।
 वतामान में प्रवसन व्यषि और समाज में, सामाषजक, सांतकृ षतक, अर्थथक, राजनैषतक एवं भौषतक
पररतथषतयों का नतीजा है। आस प्रकार यह लोगों द्वारा व्यषिगत ऄथवा सामूषहक रूप से ऄपने
मूल षनवास तथान को तथायी ऄथवा ऄर्द्ा-तथायी रूप से छोड़कर नये गंतव्य तथान पर षनवास
करना है। सामूषहक प्रवास ददक् एवं काल के संदभा में जनसंख्या के पुनर्थवतरण का ऄषभन्न ऄंग और
एक महत्वपूणा कारक है। यह पररवतानशील मानव-भूषम (संसाधनों) सम्बन्धों को समझने में
सहायक होता है।

1.1 प्रवास से सम्बं षधत कु छ मू ल भू त पररभाषाएँ

 प्रवासी (Immigrant) : एक तथान से दूसरे तथान पर प्रवास करने वाले व्यषि को प्रवासी कहते
हैं।
 ईत्प्रवास और अप्रवास (Emigration and Immigration) : लोगों के एक तथान (नगर-गांव) से
दूसरे तथान पर जाकर बसने को ईत्प्रवास कहते हैं। दूसरे तथानों से अकर दकसी ऄन्य तथान में
बसने को अप्रवास कहते हैं।
 ददक् पररवतान (Commutation) : दो नगरों के मध्य या दकसी नगर में असपास के गांवों और
नगरों से जनसंख्या (लोगों) का दैषनक तथानान्तरण ददक् पररवतान कहलाता है।
 सोपानी प्रवास (Stepwise migration) : कभी-कभी लोग ऄपना गांव छोड़कर छोटे शहर में अ
जाते हैं तथा कु छ समय बाद वे बड़े नगर में चले जाते हैं। लोगों का ऐसा तथानान्तरण सोपानी
प्रवास कहलाता है।
 ईद्भव तथान: प्रवासी के मूल तथान को ईसका ईद्भव तथान कहते है।
 गंतव्य तथान: प्रवासी षजस तथान पर जाकर बसता है, वह तथान ईसका गन्तव्य तथान कहलाता
है।

1.2 प्रवास के अयाम (Aspects of Migration)

प्रवास के षवषभन्न काषलक एवं तथाषनक अयाम होते हैं। ऄवषध की दृषि से यह ऄतथायी, ऄर्द्ा-तथायी

एवं तथायी होता है। ऄतथायी प्रवास वार्थषक, मौसमी या दैषनक (ऄल्पावषधक) हो सकता है। तथाषनक
पररपेक्ष में यह दो प्रकार का हो सकता है :
1. ऄंतरााष्ट्रीय प्रवास
2. अंतररक प्रवास

1.2.1 ऄं त राा ष्ट्रीय प्रवास

देश की सीमा के बाहर या ऄन्दर षतथत ऄन्य देश या ऄन्य देशों से देश की सीमा के ऄंदर होने वाला
प्रवास ऄंतरााष्ट्रीय प्रवसन कहलाता है। प्राचीन काल से ही यह प्रदक्रया ऄनवरत प्रचषलत है। दरऄसल
प्रवास का आषतहास ईतना ही पुराना है षजतना मानव आषतहास। ऄंतरााष्ट्रीय प्रवास के आषतहास को
षनम्नषलषखत तीन धाराओं में षवभि दकया जा सकता है:

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 प्रथम धारा: वतामान धारणा के ऄनुसार मनुष्य की ईत्पषि पूवी ऄफ्रीका में हुइ थी। पूवी ऄफ्रीका

से ही मनुष्य का प्रसार ऄन्य महाद्वीपों (ऄंटाका रटका ऄपवाद) में हुअ। षवगत 50,000 वषों तक

महाद्वीपों में प्रसार का यह क्रम चलता रहा है। व्यापक पैमाने पर हुअ यह मनुष्य का पहला प्रवास
था।
 षद्वतीय धारा: प्रवास की दूसरी धारा को ‘दास व्यापार ऄथवा ग्रेट ऄटलांरटक प्रवास’ भी कहते हैं।

यह प्रवास 16वीं और 17वीं शताब्दी में दकया गया था। आस दौरान लाखों ऄफ्रीकी षनवाषसयों को

यूरोपवाषसयों द्वारा जबरदतती बागानों में काम करने के षलए गुलाम श्रषमकों के रूप में ऄमेररका
ले जाया गया। चूंदक आन गुलामों को षवषभन्न ददशाओं-ईिर ऄमेररका, मध्य ऄमेररका और दषक्षण

ऄमेररका में ले जाया गया था ऄत: आसे गुलाम षत्रकोण भी कहते हैं। यह क्रम 19वीं सदी के मध्य

तक चलता रहा।
 तृतीय धारा: तीसरी धारा षवशाल ऄटलांरटक प्रवास है, षजसमें यूरोपवाषसयों ने तवयं ईिर और

दषक्षण ऄमेररका के भागों में बसना शुरू दकया। 1620 में जब यूरोपवाषसयों का पहला समूह ईिर

ऄमेररका के ऄटलांरटक तट पर षतथत प्लेमाईथ पहुंचा, आस जत्थे को ‘षपलषग्रम फादर’ के रूप में

जाना गया। यूरोपवाषसयों ने बड़ी संख्या में ‘नइ दुषनया’ की ओर प्रवास दकया। 1820 और 1900

के मध्य की ऄवषध में ही 370 करोड़ से ऄषधक यूरोपवाषसयों ने ईिर ऄमेररका के षलए प्रवास

दकया।
आनके ऄषतररि युर्द्ों द्वारा प्रेररत प्रवास, देशों के षवभाजन द्वारा प्रेररत प्रवास और शरणार्थथयों का

भारी संख्या में प्रवास आसके ऄन्य मुख्य ईदाहरण है। षवकासशील देशों में भी ऄनेक लोग औद्योषगक
रूप से षवकषसत देशों में तवेच्छा से प्रवास कर रहे हैं।
भारत एवं ऄंतरााष्ट्रीय प्रवास
I. भारत में अप्रवास:

 भारत, मध्य और पषिमी एषशया तथा दषक्षण-पूवी एषशया से अने वाले प्रवाषसयों के अगमन का

साक्षी रहा है। वाततव में भारत का आषतहास देश के षवषभन्न भागों में प्रवाषसयों की धाराओं के एक
के बाद एक अकर बसने का आषतहास है। एक नामी कषव दफराक गोरखपुरी के शब्दों में:
‘‘सर ज़मीन-ए-षहन्द पर ऄक्वाम-ए-अलम के दफराक

कारवाँ बसते गए, षहन्दोततान बनता गया’’

(समतत षवश्व से लोगों के कारवां भारत में अते रहे और भारत में बसते गए और आसी से भारत का

षनमााण हुअ।)
 षवदेशों से ऄनेक लोग यहाँ अकर षनवास करने लगे हैं। सन् 2001 की जनगणना के ऄनुसार 50

लाख से ऄषधक लोग भारत में अकर बस गए हैं। आनमें से 96% लोग पड़ोसी देशों से अए हैं:

बांग्लादेश (30 लाख) आसके बाद पादकततान (9 लाख) और नेपाल (5 लाख) आनमें षतब्बत,

श्रीलंका, बांग्लादेश, पादकततान, ऄफगाषनततान, इरान और म्यांमार के 1.6 लाख शरणाथी भी

सषम्मषलत हैं।

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देश अप्रवाषसयों की संख्या कु ल अप्रवाषसयों का प्रषतशत


कु ल ऄंतरााष्ट्रीय प्रवास 51,55,423 100
पड़ोसी देशों से प्रवास 49,18,266 95.5
ऄफगाषनततान 9,194 0.2
बांग्लादेश 30,84,824 59.8
भूटान 8,337 0.2
चीन 23,721 0.5
म्यंमार 49,086 1.0
नेपाल 5,96,696 11.6
पादकततान 9,97,106 19.3
श्रीलंका 1,49,300 2.9

ताषलका 1 : पूवा षनवास तथान के अधार पर पड़ोसी देशों से अने वाले कु ल (सभी ऄवषधयों के )
अप्रवासी (2001)
II. भारत से ईत्प्रवास:
ऐसा ऄनुमान है दक भारतीय डायतपोरा के लगभग 3 करोड़ लोग हैं जो 110 देशों में षनवास करते हैं।
बेहतर रोजगार के षलए भारत के ऄनेक भागों से लोग, मध्यपूवा (सउदी ऄरब, संयुि ऄरब ऄमीरात,
कतर, बहरीन, ओमान, यमन, कु वैत अदद) पषिमी यूरोप (यू.के , फ्रांस, जमानी अदद) ईिर और दषक्षण
ऄमेररका, अतरेषलया, पूवी और दषक्षण एषशया के देशों में बस गए हैं।
भारतीय डायतपोरा (Indian Diaspora)
भारतीय डायतपोरा में कौन सषम्मषलत है?
 भारतीय डायतपोरा एक सामान्य शब्द है आसका अशय भारतीय गणराज्य की सीमाओं के भीतर
षतथत वतामान प्रदेशों से ऄन्य देशो में प्रवास करके बसे लोगों से है। यह ईनके वंशजों को भी
संदर्थभत करता है।
 भारतीय डायतपोरा, "NRI" (भारतीय नागररक जो भारत में नहीं रहते हैं) और "PIO" (भारतीय
मूल के व्यषि षजन्होंने दकसी ऄन्य देश की नागररकता ऄर्थजत की है) से षमलकर बना है।
 यूनाआटेड नेशन षडपाटामेंट ऑफ़ आकॉनोषमक एंड सोशल ऄफे यसा के ऄनुसार षवश्व भर में भारतीय
डायतपोरा की अबादी 15.6 षमषलयन से ऄषधक है जो दक षवश्वभर में सवााषधक है।
 आसका सबसे बड़ा भाग संयुि ऄरब ऄमीरात (UAE) में रहता है। ऄबू धाबी में षतथत भारतीय
दूतावास के ऄनुसार वहाँ 3.5 षमषलयन भारतीय षनवास करते हैं। यह अबादी UAE की
जनसंख्या का 30% भाग है तथा सबसे बड़ा प्रवासी समूह है।
षवदेशों में बसे आन लोगों के प्रवास की धाराएँ षनम्नषलषखत हैं:
 प्रथम धारा: ईपषनवेश काल (षिरटश काल) के दौरान ऄंग्रेजों द्वारा ईिर प्रदेश और षबहार से
मॉरीशस, कै रे षबयन द्वीपों (षत्रनीडाड और टोबैगो तथा गुयाना) दफजी और दषक्षण ऄफ्रीका में,
फ्रांसीषसयों और जमानों द्वारा ररयूषनयन द्वीप, गुअडेलोप, माटीनीक और सूरीनाम में, डच और
पुतागाषलयों द्वारा गोवा, दमन और दीव से ऄंगोला, मोजांषबक व ऄन्य देशों में करारबर्द् लाखों
श्रषमकों को रोपण कृ षष में काम करने के षलए भेजा गया था। ऐसे सभी प्रवास (भारतीय ईत्प्रवास
ऄषधषनयम) षगरषमट एक्ट नामक समयबर्द् ऄनुबंध के तहत अते थे।

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 षद्वतीय धारा: प्रवाषसयों की दूसरी धारा में वतामान समय में व्यवसायी, षशल्पी, व्यापारी और
फै क्टरी मजदूर अर्थथक ऄवसरों की तलाश में षनकटवती देशों थाआलैंड, मलेषशया, ससगापुर,
आं डोनेषशया, िूनइ, अदद देशों में व्यवसाय के षलए गए और यह प्रवृषि ऄब भी जारी है। 1970 के
दशक में पषिम एषशया में हुइ सहसा तेल वृषर्द् द्वारा जषनत श्रषमकों की मांग के कारण भारत से
ऄधा-कु शल और कु शल श्रषमकों का षनयषमत बाह्य प्रवास हुअ। कु छ बाह्य प्रवास ईद्यषमयों, भंडार
माषलकों, व्यवसाषययों का भी पषिमी देशों में प्रवास हुअ।
 तृतीय धारा: प्रवाषसयों की तीसरी धारा में डॉक्टरों, ऄषभयंताओं (1960 के बाद) सॉफ्टवेयर
ऄषभयंताओं, प्रबंध परामशादाताओं, षविीय षवशेषज्ञों, संचार माध्यम से जुड़े व्यषियों और
(1980 के बाद) ऄन्य क्षेत्र षवशेषज्ञ व वैज्ञाषनक समाषवि थे, षजन्होंने संयुि राज्य ऄमेररका,
कनाडा, यूनाआटेड ककगडम, अतरेषलया, न्यूजीलैंड और जमानी आत्यादद में प्रवास दकया। आन
व्यवसाषययों ने सवााषधक षशषक्षत, ईच्चतम ऄजान करने वाले और सफलतम समूहों में से एक होने
की षवषशिता का अनंद षलया।

षचत्र 1 : भारतीय डायतपोरा का वैषश्वक षवतरण

1.2.2 अं त ररक प्रवास

देश के भीतर एक तथान से दूसरे तथान पर होने वाले प्रवास को अतंररक प्रवास कहते हैं। अंतररक
प्रवास के ऄंतगात चार धाराएँ सषम्मषलत की जाती हैं :
 ग्रामीण से ग्रामीण: खेषतहर देशों में एक ग्रामीण क्षेत्र से ऄन्य ग्रामीण क्षेत्र की ओर प्रवास ऄत्यंत
महत्वपूणा है। भारत जैसे कृ षष प्रधान देशों में ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के बदलते प्रषतरूप के कारण
जनसंख्या के क्षेत्रीय पुनर्थवतरण की प्रवृषत में वृषर्द् हो रही है।
 ग्रामीण से नगरीय: षवकासशील देशों में गाँव से नगर की ओर होने वाला प्रवसन ऄषधक है। आन
देशों में गाँव से नगर की ओर होने वाले प्रवास के मुख्य दो कारण है: रोजगार के ईपयुि ऄवसरों
के ऄभाव के कारण लोगों को गाँव छोड़ने के षलए बाध्य होना पड़ता है तथा शहरी चकाचोंध और
सुषवधाएँ जैसे बेहतर षशक्षा एवं तवात्य गाँव के लोगों को अकर्थषत करती हैं।
 नगरीय से नगरीय: ईच्च नगरीकृ त देशों तथा साथ ही षवकासशील देशों में नगर से नगर की ओर
प्रवास की प्रवृषत ऄषधक देखने को षमलती है।
 नगरीय से ग्रामीण: वतामान में कइ देशों में ऄर्द्ा-नगरीय ऄथवा ग्रामीण क्षेत्रों में प्रवास का प्रचलन
देखने को षमलता है। ईच्च नगरीकृ त देशों में ऐसा प्रवास ऄषधक होता है। नगरीय क्षेत्रों में ऄत्यषधक
भीड़-भाड़ एवं पयाावरण प्रदुषण से बचने हेतु साधन संपन्न धनी वगा नगरों से गाँव की ओर प्रवास
करते हैं।

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भारत में अतंररक प्रवास की प्रवृषियाँ


भारत में जनसंख्या की अतंररक प्रवास प्रवृषियों को दो वगों में षवभाषजत दकया जा सकता है :
I. राज्यांतररक प्रवास
II. ऄंतरााज्यीय प्रवास
 राज्यांतररक प्रवास: दकसी राज्य की सीमाओं के भीतर होने वाला प्रवास राज्यांतररक प्रवास
कहलाता है। यह प्रवास दो प्रकार का हो सकता है (i) षजले के भीतर व (ii) षजले के बाहर। पहले
प्रकार में षजले के भीतर ही एक तथान से दूसरे तथान पर प्रवास होता है, जबदक दूसरे प्रकार में
लोग राज्य के भीतर ही एक षजले से दूसरे षजले में प्रवास करते हैं। राज्यांतररक प्रवास से राज्य की
जनसंख्या मे कोइ पररवतान नहीं होता है।
 ऄंतरााज्यीय प्रवास: देश के भीतर एक राज्य से दूसरे राज्य में होने वाला प्रवास ऄंतरााज्यीय प्रवास
कहलाता है। षबहार से महाराष्ट्र में जाकर बसना, ऄंतरााज्यीय प्रवास का ईदाहरण है। राज्यों के
मध्य बड़े पैमाने पर प्रवसन से प्रभाषवत दोनों राज्यों की जनसंख्या में पररवतान संभव है।

षचत्र 2 : भारत में अंतररक प्रवास की प्रवृषि

1.3 प्रवास में तथाषनक षवषभन्नता

 कु छ राज्य लोगों को प्रवास हेतु अकर्थषत करते हैं तथा कु छ राज्यों से लोग ऄन्य राज्यों में प्रवास
करते हैं। महाराष्ट्र, ददल्ली, गुजरात और हररयाणा जैसे राज्य ईिर प्रदेश, षबहार आत्यादद जैसे
ऄन्य राज्यों से प्रवाषसयों को अकर्थषत करते हैं।
 महाराष्ट्र में अए अप्रवाषसयों की संख्या 23 लाख है जो सवााषधक है तथा महाराष्ट्र के पिात

ददल्ली, गुजरात एवं हररयाणा का तथान है। आसके षवपरीत ईिर प्रदेश और षबहार से ईत्प्रवास

करने वाले लोगों की संख्या 26 लाख तथा 17 लाख है।

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 नगरीय समूहों में से मुंबइ में सवााषधक संख्या में प्रवासी अए। आसमें सवााषधक भाग ऄंतःराज्यीय
प्रवाषसयों का था ऄथाात् महाराष्ट्र राज्य के लोगों की संख्या सवााषधक थी। यह ऄंतर मुख्य रूप से
राज्य के अकार के कारण है षजसमें ये नगरीय समूहन षतथत हैं।

1.4 भारत की जनगणना एवं प्रवास

 देश में प्रवास से सम्बंषधत जानकारी जनगणना से प्राप्त होती है। 1881 इ. में भारत की प्रथम
जनगणना से ही प्रवास से सम्बंषधत अंकड़ों को दजा करना अरं भ कर ददया गया था। ये अंकडें
जन्म तथान के अधार पर एकषत्रत दकए गए थे। 1961 की जनगणना में प्रथम संशोधन कर दो
घटक जोड़े गए। ये दो घटक जन्म तथान और षनवास की ऄवषध (यदद व्यषि का गणना के तथान से
ऄन्यत्र जन्म हुअ हो) थे। आसके बाद 1971 में षपछले षनवास के तथान और गणना के तथान पर

रूकने की ऄवषध की ऄषतररि सूचना को समाषवि दकया गया। 1981 की जनगणना में प्रवास के
कारणों को सषम्मषलत दकया गया।
 सन् 2001 की जनगणना के ऄनुसार जन्म तथान के अधार पर प्रवाषसयों की कु ल संख्या 30.7

करोड़ (कु ल जनसंख्या का लगभग 30%) थी तथा पूवा षनवास तथान के अधार पर प्रवाषसयों की

संख्या 31.5 करोड़ (कु ल जनसंख्या का लगभग 31%) थी।

1.5 प्रवास के ऄपकषा और प्रषतकषा कारक (Pull and Push Factors of Migration)

 नगर की अधुषनक सुषवधाएँ एवं षवषभन्न अर्थथक ऄवसर अदद ऄपकषाक कारक लोगों को नगरों में
अकर बसने के षलए अकर्थषत करते हैं। आसे ऄपकषा प्रेररत प्रवास कहते हैं।
 बेरोजगारी, भुखमरी, गरीबी अदद प्रषतकषा कारक लोगों को ऄपना तथान छोड़कर नगरों की ओर
प्रवास करने पर षववश कर देते हैं। आसे प्रषतकषा प्रेररत प्रवास कहते हैं।
 जीवन की बेहतर एवं अधुषनक सुषवधाओं (रोजगार के बेहतर ऄवसर, षनयषमत रोजगार, ईच्च

वेतन, षशक्षा की बेहतर सुषवधाएँ, तवात्य सेवाएं, मनोरं जन अदद) के षलए ही ग्रामीण क्षेत्रों को
छोड़कर लोग मुम्बइ चेन्नइ या ददल्ली जैसे महानगरों में जाते हैं। गाँवों में सीषमत संसाधनों के
कारण सभी लोगों को अजीषवका नहीं षमल पाती है। जो लोग गाँवों में अजीषवका प्राप्त नहीं कर
पाते हैं ईन्हें “ऄषधशेष जनसंख्या” कहते हैं।

प्रषतकषा कारक ऄपकषा कारक


गरीबी ऄवसर
राजनीषतक ईत्पीड़न षशक्षा
पयाावरणीय संकट अर्थथक प्रोत्साहन (ऄषधक वेतन)
भुखमरी षतथरता
युर्द् रोजगार
सुषवधाओं की कमी ईपभोग
जनसंख्या का दबाब बेहतर सुषवधाएँ
बेरोजगारी लोकषप्रय संतकृ षत
संसाधनों में कमी राजनीषतक तवतंत्रता
कजा षववाह
ताषलका 2 : प्रवास के प्रषतकषा एवं ऄपकषा कारक

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1.6 प्रवास के कारण

 लोग सामान्य रूप से ऄपने जन्म तथान से भावनात्मक रूप से जुडऺे होते हैं। ककतु लाखों लोग ऄपने
मूल षनवास तथान को छोड़ देते हैं। तथायी रूप से ऄपने मूल तथान को छोड़कर दकसी ऄन्य तथान
पर जाकर बसने के षनषित रूप से कु छ कारण होते हैं। षशक्षा की बेहतर सुषवधाएँ, तवात्य

सेवाएँ, षवषधक सलाह अदद ऄल्पावषध हेतु दकए गए प्रवास के प्रमुख कारण हैं। प्रवासन के षवषभन्न
कारणों को षनम्नषलषखत वगों में षवभि दकया जा सकता है:
I. भौषतक कारण
 भौषतक कारणों में जलवायु एक प्रमुख कारक है। ऐषतहाषसक काल में मध्य एषशया की जलवायु
शुष्क हो जाने के कारण लोगों ने यूरोप, भारत एवं चीन की ओर प्रवास दकया। अयों ने इरान,
यूरोप एवं षसन्धु घाटी की ओर प्रवास दकया एवं वहीं बस गए। षहमालय क्षेत्र की जलवायु के
कारण पशुपालक ऊतु प्रवास करते हैं।
 जलवायु के ऄषतररि सूखा, बाढ़, नदी मागा में पररवतान, भूकंप, ज्वालामुखी ईद्गार, मृदा की

ईवारता, समुद्री तट में ईत्थान या धंसाव अदद भौषतक तत्व भी प्रवास को प्रभाषवत करते हैं।
ऄत्यषधक वषाा के कारण बाढ़ की षतथषत ईत्पन्न हो जाती है पररणामतवरूप लोग सुरषक्षत तथानों
की ओर प्रवास करते हैं।
 सूखे की षतथषत में लोग प्रवासन हेतु बाध्य होते हैं; जैसे राजतथान एवं गुजरात के कु छ क्षेत्रों में
ऄत्यंत कम वषाा होने के कारण सूखे की षतथषत ईत्पन्न हो जाती है तथा लोग बड़ी संख्या में
षनकटवती क्षेत्रों में प्रवास कर जाते हैं।
 गंगा के मध्य बेषसन में कोसी एवं सोन अदद नददयों के मागा पररवर्थतत होते रहते हैं फलत: नददयों
के तट पर बसे गाँवों की षतथषतयाँ पररवर्थतत होती रहती हैं।
 आसी प्रकार भूकंप एवं ज्वालामुखी ईद्गार के कारण लोगों को ऄपना मूल तथान छोड़कर दकसी
ऄन्य तथान पर प्रवास करना पड़ता है।
II. अर्थथक कारण
 प्रवसन को षनधााररत करने में अर्थथक ऄवसरों की खोज, रोजगार, अवास की बेहतर सुषवधाएँ,

ईच्च वेतन, यातायात एवं व्यापार की सुषवधा, औद्योषगक षवकास, ससचाइ की सुषवधा एवं खषनज
सम्पदा की प्राषप्त अदद अर्थथक कारकों की महत्वपूणा भूषमका होती है।
 औद्योषगक षवकास से ऄथाव्यवतथा में तीव्रता से सुधार अता है पररणामतवरूप रोजगार के बेहतर
ऄवसरों का सृजन होता है तथा रोजगार एवं ईच्च वेतन प्राषप्त की चाह में ग्रामीण क्षेत्रों से मुंबइ,
ददल्ली जैसे महानगरों की ओर प्रवसन की प्रवृषत देखी जाती है। यातायात एवं व्यापार ने भी
प्रवसन को प्रोत्साषहत दकया है। आसी प्रकार रोजगार के बेहतर ऄवसरों की खोज हेतु भारत से
षवदेशों में भी प्रवास दकया जाता है।
 षसन्धु, नील, गंगा अदद नदी बेषसनों में ऄत्यषधक ईपजाउ भूषम प्रवसन को अकर्थषत करती है।

पंजाब, हररयाणा एवं ईिर प्रदेश जैसे राज्यों में ससचाइ की ईिम सुषवधा के कारण लोग आन क्षेत्रों
में प्रवास करते हैं।
 खषनज प्राषप्त वाले क्षेत्र भी प्रवसन को अकर्थषत करते हैं जैसे ऄलातका की बफीली एवं अतरेषलया
की मरुतथली जलवायु होने के बावजूद यहाँ पाए जाने वाले तवणा भंडारों के कारण यहाँ मानव
बषततयाँ बस गयी हैं।

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III. सामाषजक-सांतकृ षतक कारण


 भारत में कु छ सामाषजक रीषतयों के कारण षवषशि प्रकार का प्रवास होता है; ईदाहरण के षलए
षववाह के पिात् मषहलाएँ ऄपने माता-षपता का घर छोड़कर ऄपने पषत के षनवास तथान की ओर
प्रवास करती हैं। 65% षियाँ षववाह के ईपरांत ऄपने मायके से बाहर जाती हैं। भारत के ग्रामीण

क्षेत्रों में यह सवााषधक महत्वपूणा कारण हैं, मेघालय आसका ऄपवाद है जहाँ षतथषत ईलट है।
 धार्थमक कारणों से भी प्रवास होता है। प्राचीन आषतहास के ऄनुसार धमा एवं संतकृ षत के प्रचार हेतु
भारत से बड़ी संख्या में लोग म्यांमार, चीन, श्रीलंका अदद देशों में गए थे। आतलाम धमा के प्रचार
हेतु ऄरब देशों से भी प्रवसन हुअ तथा आसी दौरान इरान से कइ पारषसयों ने ऄपने धमा की रक्षा
हेतु भारत की ओर प्रवास दकया तथा गुजरात एवं महाराि राज्य के क्षेत्रों में बस गए।

रोसहग्या मुषतलम
म्यांमार की बहुसंख्यक अबादी बौर्द् है। म्यांमार में एक ऄनुमान के मुताषबक़ 10 लाख रोसहग्या

मुसलमान हैं। आन मुसलमानों के बारे में कहा जाता है दक वे मुख्य रूप से ऄवैध बांग्लादेशी प्रवासी हैं।
हाल ही सरकार ने आन्हें अतंररक सुरक्षा पहलू को ध्यान में रखते हुए नागररकता देने से आनकार कर ददया
है। हालांदक ये म्यामांर में पीदढ़यों से रह रहे हैं। रखाआन तटेट में 2012 से सांप्रदाषयक सहसा जारी है। आस

सहसा में बड़ी संख्या में लोगों की जानें गयी हैं और 2017 में एक लाख से ज्यादा लोग षवतथाषपत हुए हैं।
बड़ी संख्या में रोसहग्या मुसलमान अज भी जजार कैं पो में रह रहे हैं। रोसहग्या मुसलमानों को व्यापक
पैमाने पर भेदभाव और दुव्यावहार का सामना करना पड़ रहा है। लाखों की संख्या में षबना दततावेज़ वाले
रोसहग्या बांग्लादेश में रह रहे हैं। आन्होंने दशकों पहले म्यांमार छोड़ ददया था।

 षद्वतीय षवश्व युर्द् के अरम्भ होने से पूवा जमानी से यहूददयों का प्रवासन एवं षद्वतीय षवश्व युर्द् की
समाषप्त के पिात् समग्र षवश्व से आजरायल की ओर सभी यहूददयों का प्रवासन, धार्थमक प्रवासन का
ईदाहरण है।
IV. राजनीषतक कारण
 राजनीषतक प्रवास एक षवश्वव्यापी ऄवधारणा है। सम्पूणा आषतहास में षवशेष रूप से षपछली
शताब्दी में जनसँख्या के व्यापक समूह के प्रवास के षलए राजनीषतक कारक ईिरदायी थे। आन
राजनीषतक कारणों में प्रथम एवं षद्वतीय षवश्व युर्द् के समय तुर्ककयों, अमीषनयाइयों एवं यहूददयों
का प्रवास शाषमल दकया जा सकता है।
 भारत के षवभाजन के समय लाखों लोग भारत से पादकततान गए तथा पादकततान से भारत अकर
बस गए।
 षपछले कु छ दशकों में राजनीषतक ऄव्यवतथा एवं अतंररक ऄशांषत के कारण सीररया, इरान,
आराक एवं सूडान अदद देशों से बड़ी संख्या में लोगों ने ऄन्य देशों की ओर शरणाथी के रूप में
प्रवास दकया है।

V. जनसांषख्यकीय कारण
 प्रवसन षवषभन्न जनसांषख्यकीय घटकों पर भी षनभार करता है। दकसी क्षेत्र की जनसंख्या में वृषर्द् के
कारण ईस क्षेत्र के जनसंख्या-संसाधन के ऄनुपात का संतुलन षबगड़ जाता है षजससे संसाधनों पर
दबाव में वृषर्द् होती है। यूरोप में जनसंख्या-संसाधन में ऄसंतुलन के कारण ही यूरोषपयों द्वारा
षवषभन्न देशों को ईपषनवेश बनाया गया। वतामान में भारत में जनसंख्या के दबाव में वृषर्द् तथा
जनसंख्या-संसाधन में ऄसंतुलन के कारण षबहार एवं पूवी ईिर प्रदेश के लोग पंजाब, हररयाणा
एवं महाराष्ट्र जैसे राज्यों की ओर प्रवास कर रहे हैं।

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1.7 प्रवास के पररणाम

 प्रवास मुख्यतः क्षेत्र षवशेष में ऄवसरों के ऄसमान षवतरण एवं सुरक्षा के कारण होता है। लोगों में
कम ऄवसरों और कम सुरक्षा वाले तथान से ऄषधक ऄवसरों और बेहतर सुरक्षा वाले तथान की ओर
जाने की प्रवृषत होती है। बदले में यह प्रवास के ईद्गम और गंतव्य क्षेत्रों के षलए लाभ और हाषन
दोनों ईत्पन्न करता है। पररणामों को अर्थथक, सामाषजक, सांतकृ षतक, राजनीषतक और जनांदककीय
संदभों में देखा जा सकता है।
1. अर्थथक पररणाम
 ईद्भव तथान के षलए मुख्य लाभ प्रवाषसयों द्वारा भेजी गइ प्रेषषत मुद्रा (रे षमटेंस) हैं। ऄंतरााष्ट्रीय
प्रवाषसयों द्वारा भेजी गइ राषश षवदेशी मुद्रा भंडार के प्रमुख स्रोतों में से एक हैं। सन् 2002 में
ऄंतरााष्ट्रीय प्रवाषसयों द्वारा भारत में 11 ऄरब ऄमेररकी डॉलर प्रेषषत दकए गए। षवश्व बैंक के
अंकड़ों के ऄनुसार भारत को 2015 में करीब 72 ऄरब ऄमेररकी डॉलर की षवदेशी मुद्रा प्राप्त हुइ
है जो दक दकसी भी ऄन्य देश की तुलना में सवााषधक है। यह भारत के सकल घरे लू ईत्पाद का
3.4% है।

षचत्र: 3 भारत में प्रेषषत रे षमटेंस (2000-2016)


 पंजाब, के रल और तषमलनाडु ऄपने ऄंतरााष्ट्रीय प्रवाषसयों से महत्वपूणा राषश प्राप्त करते हैं।
ऄंतरााष्ट्रीय प्रवाषसयों की तुलना में अंतररक प्रवाषसयों द्वारा भेजी गयी राषश बहुत कम है, ककतु
यह ईद्गम क्षेत्र की अर्थथक वृषर्द् में महत्वपूणा भूषमका षनभाती है। प्रवाषसयों द्वारा भेजी गइ राषश
का प्रयोग मुख्यतः भोजन, ऊणों की ऄदायगी, ईपचार, षववाहों, बच्चों की षशक्षा, कृ षष संबंधी
षनवेश, गृह-षनमााण आत्यादद के षलए दकया जाता है। षबहार, ईिर प्रदेश, ओषडशा, अंध्र प्रदेश,
षहमाचल प्रदेश आत्यादद के हजारों षनधान गावों की ऄथाव्यवतथा के षलए ये राषश जीवनदायक का
काया करती हैं।
 हररत-क्रांषत की सफलता में पूवी ईिर प्रदेश, षबहार, मध्य प्रदेश और ईड़ीसा के ग्रामीण क्षेत्रों से
पंजाब, हररयाणा, पषिमी ईिर प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में प्रवास करने वाले मजदूरों की महत्वपूणा
भूषमका है।
 प्रवास के कारण गंतव्य तथान पर श्रषमक बल में बढ़ोिरी के कारण संसाधनों का बेहिर ऄथवा
ऄत्यषधक ईपयोग होता है जबदक ईद्गम तथान पर श्रषमक बल के प्रवसन के कारण ईपलब्ध
संसाधनों का पयााप्त ईपयोग नहीं हो पाता। यह संसाधनों की ईपलब्धता एवं ईपभोग में प्रादेषशक
ऄंतर ईत्पन्न कर देता है।
 आसके ऄषतररि ऄषनयंषत्रत प्रवास ने भारत के महानगरों को ऄषत संकुषलत कर ददया है। महाराष्ट्र,
गुजरात, कनााटक, तषमलनाडु और ददल्ली जैसे औद्योषगक दृषि से षवकषसत राज्यों में मषलन
बषततयों (तलम) का षवकास देश में ऄषनयंषत्रत प्रवास का नकारात्मक पररणाम है।

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2. सामाषजक एवं सांतकृ षतक पररणाम


 प्रवासी सामाषजक पररवतान के ऄषभकतााओं के रूप् में काया करते हैं। नगरीय क्षेत्रों से ग्रामीण क्षेत्रों
की ओर नवीन प्रौद्योषगदकयों, पररवार षनयोजन, बाषलका षशक्षा आत्यादद से संबंषधत ऄषभनव
षवचारों के प्रसार में प्रवाषसयों की महत्वपूणा भूषमका होती है।
 प्रवास से षवषवध संतकृ षतयों के लोगों का ऄंतर्थमश्रण होता है। आससे संकीणाता में कमी अती है तथा
षवचारों में खुलापन अता है। प्रवास की षमश्र संतकृ षत के ईषद्वकास में सकारात्मक भूषमका होती है।
 साथ ही प्रवास के गुमनामी एवं एके लेपन जैसे गंभीर नकारात्मक पररणाम भी होते हैं जो व्यषियों
में सामाषजक षनवाात और षनराशा की भावना भर देते हैं। षनराशा लोगों को ऄपराध और नशीली
दवाओं के सेवन जैसी ऄसामाषजक गषतषवषधयों के जाल में फं सने के षलए प्रेररत कर सकती है,
साथ ही अत्महत्या जैसी दुभााग्यपूणा घटनाओं के षलए भी ईिरदायी होती है।
3. जनांदककीय पररणाम
 प्रवास से देश में जनसंख्या का पुनर्थवतरण होता है। नगरों की जनसंख्या की वृषर्द् में ग्रामीण क्षेत्रों
से नगरीय क्षेत्रों की ओर होने वाले प्रवास का महत्वपूणा योगदान है।
 ग्रामीण क्षेत्रों से कु शल एवं दक्ष युवक-युवषतयों का प्रवास ग्रामीण जनांदककीय संघटन को प्रषतकू ल
रूप से प्रभाषवत करता है। ईद्भव क्षेत्र से गंतव्य क्षेत्रों की आन ईच्च षशक्षा प्राप्त योग्य लोगों के प्रवास
से ईच्च गुणविा का भी पलायन होता है, आसे प्रषतभा पलायन ऄथवा िेन ड्रेन (brain drain)
कहते हैं।
 ईिराखण्ड, राजतथान, मध्यप्रदेश और पूवी महाराष्ट्र से होने वाले ईत्प्रवास ने आन राज्यों की अयु
एवं सलग संरचना में गंभीर ऄसंतल ु न पैदा कर ददया हैं ऐसे ही ऄसंतुलन ईन राज्यों में भी ईत्पन्न
हो गए हैं षजनमें ये प्रवासी जाते हैं।
4. पयाावरणीय पररणाम
 ग्रामीण क्षेत्रों से नगरीय क्षेत्रों की ओर होने वाले प्रवास के कारण नगरों में भीड़-भाड़ में वृषर्द् हो
जाती है षजसके पररणामतवरूप नगरीय क्षेत्रों में सामाषजक और भौषतक ऄवसंरचना पर दबाव में
भी वृषर्द् होती है। ऄंततः आससे नगरीय बषततयों की ऄषनयोषजत वृषर्द् होती है और मषलन बषततयों
का षनमााण होता है।
 आसके ऄषतररि प्राकृ षतक संसाधनों के ऄषत दोहन के कारण नगरों में भू-जल ततर में कमी अ
जाती है तथा वायु प्रदूषण, वाषहत मल के षनपटान और ठोस कचरे के प्रबंधन जैसी गंभीर
समतयाएँ षवकराल रूप धारण कर लेती हैं।
5. ऄन्य पररणाम
 प्रवास (षववाहजन्य प्रवास को छोड़कर भी) षियों के जीवन ततर को प्रत्यक्ष ऄथवा परोक्ष रूप से
प्रभाषवत करता है। ग्रामीण क्षेत्रों से पुरुषों के प्रवास के कारण गांवों में ईनकी पषियों पर मानषसक
और शारीररक कायों का बोझ बढ जाता है। षशक्षा ऄथवा रोजगार के षलए ‘षियों’ का प्रवास ईन्हें
अत्मषनभार बनाता है तथा साथ ही ऄथाव्यवतथा में ईनकी भूषमका में वृषर्द् करता है। ककतु आसके
साथ ही प्रवास द्वारा ईनकी सुभद्य
े ता (vulnerability) बढ़ जाती है पररणामतवरूप ईनके शोषण
के ऄवसरों में वृषर्द् होती है।
 ईद्भव क्षेत्रों के दृषिकोण से यदद प्रेषषत मुद्रा (remittances) प्रवास के प्रमुख लाभ हैं तो मानव
संसाधन, षवशेष रूप से कु शल लोगों का ह्रास ईसकी गंभीर लागत है। वतामान में ऄत्यंत कु शल
लोगों की समग्र षवश्व में भारी मांग है। ऄत्यंत प्रगषतशील औद्योषगक ऄथाव्यवतथा वाले षवकषसत
देश, गरीब क्षेत्रों से ईच्च प्रषशषक्षत व्यावसाषययों को बड़ी संख्या में अकर्थषत कर रहे हैं।
पररणामतवरूप ईद्भव क्षेत्रों का षवकास नहीं हो पाता है।
 षवदेशों में षवषभन्न क्षेत्रों जैसे षवज्ञान, प्रौद्योषगकी, कला और संतकृ षत अदद में भारतीय डायतपोरा,
ऄपनी ईपलषब्धयों द्वारा भारत की बेहतर छषव प्रततुत करने में योगदान करते हैं। वतामान समय में
जुषबन मेहता, सत्या नडेला और मीरा नायर अदद भारतीय नामों को पूरा षवश्व जानता है।
व्यापार के क्षेत्र में षसषलकॉन वैली में कायारत भारतीय IT व्यवसायी एवं षसटी ग्रुप के पूवा CEO
षवक्रम पंषडत एवं गूगल के CEO सुंदर षपचइ अदद षवश्व में भारत की सुदढ़ृ छषव प्रततुत कर रहे
हैं।

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कृ षि : षिश्व एिं भारत


षििय सूची
1. कृ षि _____________________________________________________________________________________ 14

1.1 कृ षि के प्रकार ____________________________________________________________________________ 14

2. भूसस
ं ाधन _________________________________________________________________________________ 21

2.1 भारत में भू-ईपयोग िगीकरण ________________________________________________________________ 21

2.2 भारत में भू-ईपयोग पररिततन _________________________________________________________________ 23

3. भारतीय कृ षि ______________________________________________________________________________ 23

3.1 भारतीय कृ षि की मुख्य षिशेिताएँ _____________________________________________________________ 24

3.2 भारत में फ़सल ऊतुएँ ______________________________________________________________________ 25

3.3 कृ षि के प्रकार (फसल के षलए अर्द्तता के प्रमुख स्रोत के अधार पर) ________________________________________ 26

3.4 फ़सल प्रषतरूप (Cropping Pattern) __________________________________________________________ 26


3.4.1 खाद्य फ़सलें _________________________________________________________________________ 27
3.4.1.1 ऄनाज _________________________________________________________________________ 27
3.4.1.2 दलहन _________________________________________________________________________ 30
3.4.1.3 षतलहन_________________________________________________________________________ 30
3.4.2 नकदी फ़सलें _________________________________________________________________________ 31

4. भारत में कृ षि षिकास _________________________________________________________________________ 37

5. भारतीय कृ षि ऄनुसध
ं ान पररिद (ICAR) __________________________________________________________ 38

6. कृ षि षनिेश को बढाने के षलए सरकारी प्रयास _______________________________________________________ 39

7. कृ षि का सतत तथा समािेशी षिकास _____________________________________________________________ 40

8. भारतीय कृ षि की समस्याएँ____________________________________________________________________ 41

9. कृ षि-सुधारों की भािी ददशा ___________________________________________________________________ 43

10. जलिायु-पररिततन और कृ षि __________________________________________________________________ 43

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1. कृ षि
 मानिीय अर्थथक दियाओं में कृ षि सबसे ऄषधक प्राचीन, प्रचषलत और महत्िपूणत क्षेत्रों में से है।
षिश्व की लगभग अधी जनसंख्या अज भी कृ षि में संलग्न है। यद्यषप षिकषसत देशों में 10% लोग
कृ षि में लगे हैं परन्तु ऄषधकांश षिकासशील देशों में लगभग 70% लोगों का मुख्य व्यिसाय कृ षि
है।
 कृ षि एक प्राचीन अर्थथक दियाकलाप है। मेषससको, नील-घाटी, मेसोपोटाषमया, मोहनजोदड़ो,
हड़प्पा अदद प्राचीन सभ्यताएँ कृ षि के षिकास के साथ ही षिकषसत हुइ थीं। कृ षि अर्थथक दिया के
साथ-साथ एक जीिन पद्धषत भी है जो क्षेत्र षिशेि के लोगों के रीषत-ररिाजों तथा सांस्कृ षतक
लक्षणों में पररलषक्षत होती है। ईदाहरणस्िरूप् भारत षिषभन्न भागों में प्रचषलत लोहड़ी, होली,
पोंगल, ओणम अदद षिषभन्न त्यौहार कृ षि से प्रत्यक्ष एिं ऄप्रत्यक्ष रूप से सम्बंषधत हैं। कृ षि की
पद्धषतयों एिं प्रणाषलयों में भी क्षेत्रीय षिषभन्नता पायी जाती है सयोंदक ये प्रत्येक क्षेत्र के पयातिरण
से ऄनुकूलन के फलस्िरूप षिकषसत हुइ हैं।
1.1 कृ षि के प्रकार

 षिश्व के षिषभन्न भागों में षिषभन्न प्रकार की भौगोषलक, अर्थथक, सामाषजक, राजनैषतक एिं
ऐषतहाषसक पररषस्थषतयाँ पायी जाती हैं। आन सभी कारकों के प्रभािाधीन षिश्व के षिषभन्न भागों
में कृ षि के प्रारूप एिं पद्धषतयों में षभन्नता दृषिगोचर होती है।
 डी. एस. षहहटलसी ने कृ षि के प्रादेषशक स्िरूप को िातािरणीय एिं मानिीय पररषस्थषतयों के
ँ अधारों पर िगीकृ त दकया है :
ऄनुसार षनम्न पॉच
1. फसल तथा पशु साहचयत
2. भू-ईपयोग की गहनता
3. कृ षि ईत्पाद का संसाधन तथा षिपणन
4. मशीनीकरण का स्तर
5. कृ षि संबद्ध भिनों तथा ऄन्य संरचनाओं के प्रकार एिं संयोजन
ईपरोक्त अधारों पर सम्पूणत षिश्व की कृ षि प्रणाषलयों को षनम्नषलषखत प्रकारों में िगीकृ त दकया जा
सकता है :
स्थानान्तरी कृ षि (Shifting cultivation)
 स्थानान्तरी कृ षि अददम कृ षि का रूप है। यह अददकालीन जीषिकोपाजी कृ षि िततमान में भी
षिश्व के कु छ भागों में षिद्यमान है।
 यह कृ षि मुख्य रूप से ईष्णकरटबंधीय क्षेत्रों में तीन िृहत् भागों ऄथातत् ऄफ्रीका महाद्वीप में
षििुित िृत के दोनों ओर, दषक्षणी-पूिी एषशया एिं दषक्षण तथा मध्य ऄमेररका के कु छ भागों में
की जाती है।
 कृ षि की आस प्रणाली के ऄंतगतत कृ िक दकसी षिशेि स्थल की िनस्पषत को काटकर या जलाकर
साफ कर लेता है और ईस पर कृ षि कायत प्रारं भ कर देता है। आस कृ षि को ‘कततन-दहन कृ षि’
(Slash and burn agriculture) के नाम से भी जाना जाता है तथा िनस्पषत के जलने से प्राप्त
राख में पोटाश होती है, जो ईितरक का काम करती है। आस प्रदिया में कु छ ििों तक कृ षि करने के
बाद भूषम की ईपजाउ शषक्त कम हो जाने से कृ षि ईपज में कमी अ जाती है। पररणामस्िरूप
कृ िक ईस भू-भाग को छोड़कर दूसरे भू-भाग को साफ करके ईस पर कृ षि कायत करने लगता है।
आस प्रकार कृ िक समय-समय पर कृ षि के स्थान में पररिततन करता रहता है, आस कारण आसे
स्थानांतररत कृ षि कहते हैं।

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 आस कृ षि में बोये गए खेत बहुत छोटे-छोटे होते हैं एिं खेती पुराने औजारों जैसे कु दाली, फािड़े एिं
हँषसया द्वारा की जाती है। आस षिषध में हल का प्रयोग नहीं दकया जाता। षिषभन्न क्षेत्रों में आसे
षभन्न-षभन्न नामों से जाना जाता है। मलेषशया में ‘लदांग’, दफलीपाआन्स में ‘चेनषगन’, मध्य

ऄमेररका एिं मेषससको में ‘षमल्पा’, िेनज


े ुएला में ‘कोनुको’, ब्राजील में ‘रोका’ एिं जायरे एिं मध्य

ऄफ्रीका में ‘मसोले’ कहते हैं।

 भारत में स्थानान्तरी कृ षि पूिोत्तर राज्यों, ईड़ीसा, मध्यप्रदेश, अंध्र प्रदेश और के रल के कु छ


षहस्सों में छोटे पैमाने पर की जाती है। आसे देश के ऄलग भागों में ऄलग-ऄलग नामों जैस-े ईत्तरी-
पूिी राज्यों में आसे झूम, ईड़ीसा और अंध्र प्रदेश में पोडु जैसे षिषभन्न नाम से जाना जाता है।
 ईष्ण करटबंध के षजन क्षेत्रों में आस प्रकार की कृ षि होती है िे ऄषधक ििात तथा ईच्च तापिम के क्षेत्र
हैं। भारी ििात के कारण घुलनशील पोिक तत्ि षनक्षाषलत हो जाते हैं। ऄतः काबतषनक तत्िों की
कमी, षनक्षालन तथा िनस्पषतयों को जलाने के कु प्रभािों से मृदा की ईितरता समाप्त हो जाती है।
आस प्रकार एक स्थान पर के िल दो-तीन ििों तक ही कृ षि की जा सकती है।
 आस कृ षि में खाद्यान्न ही ऄषधक ईगाए जाते हैं सयोंदक यह जीषिकोपाजी कृ षि है। आस कृ षि की
मुख्य फसलें मक्का, के ला तथा शकरकन्द हैं। कृ िक जो भी फसल ईत्पन्न करता है, ईसका ईपभोग
कर लेता है। आसमें प्रषत हेसटेयर एिं प्रषत व्यषक्त ईपज कम होती है। यही कारण है दक आन क्षेत्रों में
जनसंख्या का घनत्ि कम है।
 स्थानान्तरी कृ षि की बहुत ऄषधक अलोचना की जाती है। आस अलोचना के दो अधार हैं - प्रथम
तो यह दक आससे िनों का ह्रास होता है षजससे पयातिरणीय ऄिनयन होता है। षद्वतीय, षमट्टी की
ईितरता का नाश तथा मृदा ऄपरदन है। परं तु यदद यह कृ षि एक षनषित सीमा तक की जाए
षजससे मृदा एिं िनस्पषत प्राकृ षतक प्रदिया द्वारा ऄपनी पूित षस्थषत में अ जाए एिं प्राकृ षतक तंत्र
का संतुलन न षबगड़े तो आस कृ षि से कोइ हाषन नहीं है। ऄतः यह कहना की स्थानांतररत कृ षि हर
पररषस्थषत में हाषनकारक है, न्यायसंगत नहीं है।
स्थानबद्ध कृ षि
 ऄपने अर्थथक षिकास के आषतहास के एक लंबे काल तक मनुष्य घुमक्कड़ रहा है। संग्रहणकतात,

अखेटक, प्रिासी पशु-चारण करने िाले ऄथिा स्थानान्तरी कृ िक के रूप में िह एक स्थान से दूसरे
स्थान तक घूमता रहता था। ऄंततोगत्िा जब ईसने कृ षि करना सीखा तो िह समय के साथ
स्थानबद्ध हो गया।
 स्थानबद्ध कृ षि में एक पररिार या कइ पररिारों का एक समूह एक स्थान पर स्थाइ रूप से रह कर
फसलें ईगाते हैं। कहीं-कहीं पर भूषम पर स्िाषमत्ि सामूषहक होता है परं तु ऄषधकतर यह िैयषक्तक
होता है। ऐसी कृ षि की षिशेिता यह है दक दकसान भूसंरक्षण की पद्धषतयाँ ऄपनाते हैं तथा एक
फसल प्रषतमान को षिकषसत करते हैं। फसलचि से षमट्टी की ईितरता बनी रहती है। कृ षि कायों में
सहायता के षलए तथा ऄपनी अय बढाने के षलए पशुपालन भी करते हैं षजनसे ईन्हें खाद प्राप्त
होती है।
 कृ षि कायों में िह षिकास के स्तर के ऄनुसार षिषभन्न औजारों का प्रयोग करते हैं। पयातिरण की
षस्थषत तथा िधतनकाल की ऄिषध के अधार पर िे एक से ऄषधक फसलें ईत्पन्न करते हैं। कृ षि
कायों के बीच-बीच में ऄिकाश के समय िे ऄपनी अय बढाने के षलए ऄन्य काम जैसे टोकरी
बनाना, रस्सी बनाना अदद भी करते हैं। िनों के षनकट रहने िाले स्थानबद्ध कृ िक िनों से संग्रहण
भी करते हैं। आसी प्रकार बागानी कृ षि के क्षेत्रों में दकसान ऄपने षनजी खेतों के ऄषतररक्त बागानों में
भी काम करते हैं।

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 यह कृ षि मुख्य रूप से ऄमेररका, ऄफ्रीका तथा दषक्षण-पूिी के पठारी एिं ऄन्य ईच्च प्रदेशों में जाती

है। ऄपेक्षाकृ त ठं डी जलिायु, घनी जनसंख्या तथा षिरल िनस्पषत आस कृ षि के षलए ऄनुकूल
पररषस्थषतयाँ ईपलब्ध कराते हैं।
 भारत में कु छ भागों को छोड़कर ऄन्यत्र में स्थानबद्ध कृ षि की जाती है। स्थानबद्धता ने हमारे
दकसानों के सांस्कृ षतक जीिन पर प्रभाि डाला है।
गहन-कृ षि
 छोटी जोतों पर भूषम की प्रषत आकाइ पर ऄषधक पूज
ँ ी तथा श्रम लगाकर प्रषत हेसटेयर ऄषधक ईपज
प्राप्त करने हेतु की जाने िाली कृ षि, गहन कृ षि कहलाती है। आस कृ षि में बोइ जाने िाली मुख्य
फसल चािल है। आस प्रकार की कृ षि का मुख्य ईददेश्य प्रषत एकड़ ईपज को बढाना होता है।
 आसमें दकसान ऄपने पररिार के सदस्यों के साथ ऄपनी छोटी जोत पर कायत करते हैं। ईच्च ईपज
िाले बीजों का प्रयोग करते हैं। यथासंभि ऄषधक कम्पोस्ट तथा रासायषनक ईितरकों का प्रयोग
करके मृदा की ईितरता को बनाए रखते हैं। ससचाइ का प्रबंध करके फसल की सफलता के ईपाय
करते हैं। पौधों के संरक्षण के ईपाय के षलए कीटनाशक दिाओं का प्रयोग करते हैं। आस प्रकार प्रषत
हेसटेयर पूज
ं ी-षनिेश तो बढ जाता है परं तु प्रषत एकड़ ईपज भी ऄषधक प्राप्त होती है।
 गहन-कृ षि के क्षेत्र िे हैं षजनमें जनसंख्या का घनत्ि ऄषधक है तथा कृ षि योग्य भूषम पर दबाि
ऄषधक है। जापान, बांग्लादेश, दफलीपाआन्स, मलेषशया, थाइलैंड, षियतनाम, भारत तथा
आं डोनेषशया अदद आस प्रकार के कृ षि देशों के ईदाहरण हैं।
 भारत में गहन कृ षि व्यापक रूप से ईत्तरी मैदानों और तटीय मैदानों के ससषचत क्षेत्रों में की जाती
है।
षिस्तृत कृ षिः
 यह बड़ी जोतों पर कृ षि-यंत्रों की सहायता से बड़े पैमाने पर की जाने िाली कृ षि है। यह कृ षि
ईन्हीं क्षेत्रों में ऄपनाइ जा सकती है जहाँ जनसंख्या का घनत्ि कम है। ऄतः भूषम एिं मनुष्य
ऄनुपात ऄषधक है। कम तथा महंगा श्रम ईपलब्ध होने के कारण कृ षि कायों में बड़े पैमाने पर
मशीनों का प्रयोग दकया जाता है।
 षिस्तृत कृ षि की एक महत्िपूणत षिशेिता यह है दक आसमें प्रषत हेसटेयर ईपज ऄपेक्षाकृ त कम होती
है परं तु कु ल ईत्पादन ऄषधक होता है। आसका कारण कृ षित भूषम का क्षेत्रफल बड़ा होना है। कम
संख्या में श्रम लगाए जाने के कारण प्रषत व्यषक्त ईत्पादन ऄषधक होता है।
 षिस्तृत कृ षि मुख्यतः षिकषसत ऄथतव्यिस्था िाले देश में होती है। षिश्व में षिस्तृत कृ षि के प्रमुख
क्षेत्र कनाडा तथा संयुक्त राज्य ऄमेररका के प्रेयरी मैदान, ऄजेन्टाआना के पम्पास, सोषियत संघ का
स्टेपीज क्षेत्र तथा अस्रेषलया के डाईन्स हैं।
 आन क्षेत्रों के ऄषधकांश भागों में महाद्वीपीय जलिायु पायी जाती है। महाद्वीपों के अंतररक भाग में
षस्थत होने के कारण ये समुर्द् के समकारी प्रभाि से िंषचत हैं। ििात की मात्रा समुर्द् से दूर होने के
कारण कम है परं तु कम तापिम के कारण आसकी प्रभािशीलता ऄषधक है।
 षिस्तृत कृ षि में फामत का अकार बड़ा होता है। 1600 हेसटेयर तक के फामत होते हैं, कृ षि कायत

पूणतरूप से यंत्रों से दकया जाता है। जुताइ के षलए रैसटर, पाटा चलाने के षलए लेिलर, बीज बोने

के षलए सीड-षिल, कटाइ एिं मंड़ाइ के षलए कम्बाआं ड हािेस्टर का प्रयोग दकया जाता है।
 षिस्तृत कृ षि में एक या दो फसलों में षिषशिीकरण प्राप्त कर षलया जाता है जैसे आसके ऄंतगतत पैदा
दकया जाने िाला मुख्य ऄनाज गेहँ है।
 भारत में, षहमालय के तराइ क्षेत्रों और ईत्तर-पषिमी राज्यों में षिस्तृत खेती का व्यापक रूप से की
जाती है।

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जीषिकोपाजी कृ षि ऄथिा षनिातह कृ षि


 आस कृ षि का मुख्य ईद्देश्य ऐसी फसलें ईगाना होता है षजससे कृ िक के पररिार का भरण-पोिण
संभि हो सके । आस प्रकार की कृ षि में कृ षि क्षेत्र में रहने िाले स्थानीय लोग कृ षि ईत्पाद के सम्पूणत
ऄथिा ऄषधकांश भाग का स्ियं ईपभोग करते हैं। आसमें फसलों का षिषशिीकरण नहीं हो सकता है
सयोंदक कृ िक िे सारी फसले ईगाना चाहते हैं जो ईनके ईपभोग के षलए अिश्यक है। आसीषलए
जीषिकोपाजी कृ षि के फसल प्रषतमान में धान्य, दलहन, षतलहन अदद का समािेश होता है।
 षिश्व में षनिातह कृ षि के दो रूप पाए जाते हैं। पहला अददम षनिातह कृ षि है जो स्थानान्तरी कृ षि
का पयातय है। दूसरा गहन षनिातह कृ षि है जो एषशया के मानसूनी भागों में घने बसे क्षेत्रों में पायी
जाती है। आन देशों की जनसंख्या का घनत्ि ऄषधक है ऄतः ईपलब्ध भूषम का गहनतम ईपयोग
करने का प्रयत्न दकया जाता है।
 षनिातह कृ षि के ऄंतगतत धान की खेती छोटे-छोटे खेतों में पानी भर कर की जाती है। ऄषधकतर
काम हाथ से दकये जाते है। श्रम की ऄषधक माँग आस क्षेत्र की ईच्च जनसंख्या है के घनत्ि का एक
कारण हैं। छोटी जोतों के ऄषतररक्त छोटे-छोटे खेत आस क्षेत्र की षिशेिता है। आस कृ षि की एक
षिशेिता यह भी है दक एक ही िित में धान की कइ फसलें ईगाइ जाती हैं।
 गहन कृ षि दकए जाने से षमट्टी की ईितरता का हास होता है। कृ िक ईितरता नि न हो आस हेतु हरी
खाद, गोबर, कम्पोस्ट एिं रासायषनक ईितरकों का प्रयोग दकया जाता हैं। जापान में प्रषत हेसटेयर
रासायषनक ईितरकों का सबसे ऄषधक ईपयोग की जाती है।
 षजन भागों में धान की कृ षि के षलए ििात ऄपयातप्त है ऄथिा िधतनकाल सीषमत है, िहाँ धान के
ऄषतररक्त ऄन्य फसलें ईगाइ जाती हैं, जैसे गेह,ँ जौ, मक्का, ज्िार, बाजरा, सोयाबीन, षतलहन तथा
दलहन अदद। भारत के प्रायद्वीपीय पठार, ईत्तरी चीन, मंचरू रया तथा ईत्तरी कोररया में धान के
साथ-साथ ऄन्य फसलें भी ईगाइ जाती हैं। बमात के शुष्क भागों में ज्िार-बाजरा मुख्य फसलें हैं।
गहन षनिातह कृ षि के दो प्रकार हैः
 चािल प्रधान गहन षनिातह कृ षि: आसमें चािल प्रधान फसल होती है, आसषलये यह ‘एक फसली
कृ षि’ कहलाती है। ऄषधक जनसंख्या घनत्ि के कारण खेतों का अकार छोटा होता है एिं कृ षि
कायत में कृ िक का संपण
ू त पररिार लगा रहता है। भूषम का गहन ईपयोग होता है एिं यंत्रों की
ऄपेक्षा मानि श्रम का ऄषधक महत्ि है। आन क्षेत्रों में ििात पयातप्त मात्रा में हो जाती है तथा नददयों
द्वारा षनक्षेषपत ईपजाउ षमट्टी की प्रचुरता होती है तथा ईितरता बनाए रखने के षलए पशुओं के
गोबर की खाद एिं हरी खाद का ईपयोग दकया जाता है। आस कृ षि में प्रषत आकाइ ईत्पादन ऄषधक
होता है, परं तु प्रषत कृ िक ईत्पादन कम है। भारत - बांग्लादेश के गंगा-ब्रह्मपुत्र डेल्टा ि षनचला
मैदान, कम्बोषडया ि षियतनाम के मेकांग नदी का बाढ के मैदान अदद प्रमुख ईत्पादक क्षेत्र है।
 चािल रषहत गहन षनिातह कृ षि: मानसून एषशया के ऄनेक भागों में ईच्चािच, जलिायु, मृदा तथा
ऄन्य भौगोषलक कारकों की षभन्नता के कारण धान की फसल ईगाना प्रायः संभि नहीं है। ईत्तरी
चीन, मंचूररया, ईत्तरी कोररया एिं ईत्तरी जापान में गेह,ं सोयाबीन, जौ एिं सोरगम बोया जाता
है। भारत में षसन्धु-गंगा के मैदान के पषिमी भाग में गेहं दषक्षणी ि पषिमी शुष्क प्रदेश में ज्िार-
बाजरा प्रमुखत रूप में ईगाया जाता है। आस कृ षि की ऄषधकतर षिशेिताएँ िो ही है जो चािल
प्रधान कृ षि की हैं। के िल ऄंतर यह है दक आसमें ससचाइ की जाती है।
िाषणषज्यक-कृ षिः
आस प्रकार की कृ षि का मुख्य ईद्देश्य कृ षि ईत्पादों को बाजार में बेचने के षलए पैदा करना होता है। ऄत:
ईत्पादन में फसल षिषशिीकरण आसकी मुख्य षिशेिता है। संसार में यह कृ षि मुख्यतः दो रूपों में पायी
जाती है - मध्य ऄक्षाँशों में िाषणषज्यक ऄन्न कृ षि एिं ईष्ण करटबंधों में रोपण कृ षि।
(i) िाषणषज्यक ऄन्न कृ षि :
 कृ षि का यह प्रकार मुख्य रूप से मध्य-ऄक्षाँशों के अंतररक ऄधत शुष्क प्रदेशों में पाया जाता है।
आसकी मुख्य फसल गेहँ है। यद्यषप ऄन्य फसलें जैसे मक्का, जौ, राइ एिं जइ भी ईगाइ हैं।

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 यह मुख्य रूप से ईत्तरी ऄमेररका के प्रेयरी क्षेत्र, सोषियत संघ के यूिेन क्षेत्र, पषिमी यूरोप, दषक्षण
ऄमेररका में ऄजेन्टाआना, अस्रेषलया के दषक्षणी भागों में, दषक्षण एषशया में भारत के पंजाब-
हररयाणा और पषिमी ईत्तर प्रदेश के मैदानों में प्रचषलत है।
 आस कृ षि में खेतों का अकार बहुत बड़ा होता है एिं खेत से फसल काटने तक सभी कायत मशीनों
द्वारा दकए जाते हैं। आसमें प्रषत व्यषक्त ईत्पादन ऄषधक होता है परन्तु प्रषत एकड़ ईत्पादन कम होता
है।
 भारत में िाषणषज्यक कृ षि बहुत बड़े स्तर पर तो नहीं की जाती परं तु हररत िांषत के बाद कु छ हद
तक कृ षि का िाषणषज्यकीकरण हुअ है। यहाँ पर सीषमत मशीनीकरण हुअ है।
(ii) रोपण कृ षि :
 रोपण कृ षि एक षिशेि प्रकार की कृ षि है षजसका ऐषतहाषसक षिकास ईपषनिेश काल में यूरोपीय
देशों द्वारा दकया गया। यह संगरठत एिं व्यिषस्थत कृ षि है षजसकी तुलना षिषनमातण ईद्योग से की
जा सकती है। आसकी परं परागत षिशेिताएँ षनम्नषलषखत हैं:
o यह ईष्ण करटबंधीय क्षेत्रों के षिरल जनसंख्या घनत्ि िाले बहुत बड़े क्षेत्र पर की जाने िाली
कृ षि है।
o आस कृ षि का मुख्य ईद्देश्य व्यापार है। प्रारं भ में ईपषनिेशी देशों ने पूज
ँ ी षनिेश दकया तथा
बड़ी संख्या में स्थानीय मजदूरों या बाहर से लाए गए बंधअ ु मजदूरों के श्रम से कृ षि कायत
शुरू दकया। बड़े फामों का प्रबंध पूणत
त या ईपषनिेशी देशों के लोगों के हाथ में था।
o फसल षिषशिीकरण आसका मुख्य ध्येय होता है तादक एक फसल का बड़े पैमाने पर ईत्पादन
करके व्यापार दकया जा सके । ईदाहरण के षलए भारत में ऄसम की पहाषड़यों, दार्थजसलग तथा
श्रीलंका के चाय के बागान, मलेषशया के रबर के बागान, ब्राजील के कॉफी के बागान अदद।
आस कृ षि में श्रम तथा पूज
ँ ी ऄषधक लगते हैं। आसमें ऄषधकांशतः कायत बागान पर ही दकए जाते
हैं।
o षिश्व के ऄषधकांश रोपण कृ षि क्षेत्र ईष्णकरटबंधीय क्षेत्र के तटीय भागों, नौगम्य नददयों के
दकनारे ऄथिा रे ल एिं सड़क मागों के षनकट षस्थत हैं। सस्ते पररिहन के साधन आस प्रकार की
व्यापारोन्मुख कृ षि के षलए अिश्यक हैं।
 षिषभन्न देशों में रोपण कृ षि के ऄंतगतत बागानों का अकार षभन्न-षभन्न है। सामान्यतया आनका
अकार 4 हेसटेयर से 40 हेसटेयर तक होता है। परं तु कहीं-कहीं पर ये बागान बहुत बड़े अकार के
हैं।
 भारत में, रोपण कृ षि के ऄंतगतत चाय, कॉफी, मसालों, नाररयल और रबड़ का ईत्पादन दकया
जाता है।
षमषश्रत कृ षि
 षमषश्रत कृ षि में फसल ईत्पादन के साथ-साथ पशुपालन पर भी ईतना ही बल ददया जाता है।
फसल एिं पशुपालन का एक ऄच्छा संयोजन आस कृ षि की षिशेिता है। आस कृ षि में फसल के िल
खाद्यान्न प्राप्त करने के षलए ही नहीं पैदा की जाती बषल्क आनके साथ-साथ चारे तथा नगदी फसलें
भी ईसी पैमाने पर ईगाइ जाती हैं।
 षमषश्रत कृ षि पूिी संयुक्त राज्य ऄमेररका, पषिमी यूरोप तथा सोषियत संघ के ईपजाउ षत्रकोण
(लेषननग्राड, ओडेसा-आकुत टस्क को षमला कर बनने िाला षत्रभुज) में प्रचषलत है। संयुक्त राज्य
ऄमेररका का षमषश्रत कृ षि क्षेत्र मक्के की पेटी है। मक्का का प्रयोग पशुओं को षखलाने के षलए दकया
जाता है। आसके ऄषतररक्त जइ, गेहँ तथा घास भी पैदा की जाती है। सोषियत संघ के षमषश्रत कृ षि
के क्षेत्र में गेह,ँ अलू, चुकंदर भी पैदा दकए जाते हैं और साथ ही पशु-पालन भी दकया जाता है।
सूरजमुखी की खेती भी आसी क्षेत्र में की जाने लगी है। यहाँ पर अलू , गेहँ एिं राइ आत्यादद का
ईपयोग चारे की तरह दकया जाता है। पषिमी यूरोप में षमषश्रत कृ षि फ्राँस, जमतन संघीय
गणराज्य, यूनाआटेड ककगडम, नीदरलैंड, डेनमाकत तथा अयरलैंड में की जाती है।

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डेयरी कृ षिः
 दूध तथा ऄन्य दुग्ध ईत्पादों की नगरीय माँग की अपूर्थत हेतु दुधारु पशुओं, षिशेितः गायों के
पालन को डेयरी फार्थमग की संज्ञा दी जाती है। डेयरी कृ षि का षिकास यूरोप में औद्योगीकरण से
सह-संबंषधत नगरीकरण के कारण हुअ है। नगरों में जनसंख्या की िृषद्ध से दुग्ध ईत्पादों की माँग में
िृषद्ध हुइ षजसकी अपूर्थत के षलए डेयरी कृ षि षिकषसत हुइ। यूरोपीय देशों के ऄषतररक्त कनाडा,
न्यूजीलैंड, दषक्षणी-पूिी अस्रेषलया एिं तस्माषनया में भी डेयरी फार्ममग की जाती है।
 साधारणतः डेयरी ईद्योग नगरों के पास ऄिषस्थत होता है सयोंदक ये क्षेत्र ताजा दूध एिं ऄन्य
डेयरी ईत्पाद के ऄच्छे बाजार होते हैं।
 डेयरी व्यिसाय में श्रम की ऄषधक अिश्यकता होती है सयोंदक पशुओं को चराने एिं देख-रे ख अदद
कायत मशीनें नहीं कर सकतीं।
 आस ईद्योग में श्रम की भाँषत, पूंजी भी ऄषधक लगती है। षनयोषजत अिास, मशीन, चारे के षसलो
अदद के षनमातण में पूंजी लगानी पड़ती है। दूध के प्रशीतलन एिं संचयन अदद प्रबंध में भी
ऄत्यषधक धन लगता है।
 डेयरी कृ िक दुग्ध ईत्पादन के ऄषतररक्त चारा, घास, मक्का, ओट तथा गेहँ का ईत्पादन भी करता है
जो चारे के रूप में प्रयोग दकए जाते हैं।
 भारत में दुग्ध व्यिसाय ऄषधक व्यिषस्थत ढंग से गुजरात में सहकारी सषमषतयों के माध्यम से
चलाया जा रहा है। आसमें पयातप्त सफलता भी षमली है। दुग्ध व्यिसाय के षिकास के षलए राज्यों में
डेयरी डेिलमेन्ट बोडत का गठन दकया गया है। झांसी में भारतीय चरागाह एिं चारा ऄनुसंधान
संस्थान, झांसी तथा राष्ट्रीय डेयरी ऄनुसंधान संस्थान, करनाल का गठन भी दकया गया है।
भूमध्यसागरीय कृ षि
 भूमध्यसागरीय कृ षि ऄषत षिषशि प्रकार की कृ षि है। आसका षिस्तार भूमध्यसागर के समीपिती
क्षेत्र जो दषक्षणी यूरोप एिं ईत्तरी ऄफ्रीका में ट्यूनीषशया से ऄटलांरटक तट तक षिस्तृत है। आसके
ऄषतररक्त दषक्षणी कै लीफोर्थनया, मध्यिती षचली, दषक्षणी ऄफ्रीका का दषक्षणी पषिमी भाग एिं
अस्रेषलया के दषक्षणी ि दषक्षण पषिम भाग में भी यह प्रचषलत है।
 खट्टे फलों की अपूर्थत करने में यह क्षेत्र महत्िपूणत है। ऄंगूर की कृ षि भूमध्यसागरीय क्षेत्र की
षिशेिता है। आस क्षेत्र के कइ देशों में ऄच्छे दकस्म के ऄंगूरों से ईच्च गुणित्ता िाली मददरा का
ईत्पादन दकया जाता है। षनम्न श्रेणी के ऄंगूरों को सुखाकर मुनक्का एिं दकशषमश बनायी जाती है।
ऄंजीर एिं जैतन
ू का भी यहाँ ईत्पादन होता है।
रक-कृ षि
 व्यापार के ईद्देश्य से साग-सब्जी की खेती रक-कृ षि है। आस कृ षि का नगरीकरण से घषनि संबंध है।
नगरों में बहुत बड़ी जनसंख्या एक स्थान पर षनिास करती है। आससे साग-सब्जी की माँग बढ
जाती है। ऄतः नगरीय ऄंचल में कृ िक सब्जी की खेती करते हैं।
 सब्जी नाशिान ईत्पाद है आसे ऄषधक समय तक रखा नहीं जा सकता। यातायात के साधनों के
षिकास से भी आस कृ षि में ईन्नषत हुइ है। आसमें गहन कृ षि पद्धषत ऄपनाइ जाती है। छोटी जोतों में
ससचाइ के साधनों, खाद एिं ईन्नषत बीजों का प्रयोग करके यह कृ षि की जाती है। प्रषत हेसटेयर
ईपज को बढाने का हर संभि प्रयत्न दकया जाता है। प्रशीतलन एिं शीत-संचयन के साधनों द्वारा
ऄब सब्जी को ऄषधक समय तक रखा जा सकता है। बाजार की माँग की अपूर्थत के षलए ररले
फर्ममग (Relay Farming) भी की जाती है।
 यूरोप के औद्योषगक नगरों के अस-पास, संयुक्त राज्य ऄमेररका के ईत्तरी पूिी भाग तथा
कै लीफोर्थनया एिं भूमध्य सागरीय क्षेत्रों में यह कृ षि ऄषधक षिकषसत है। भारत में लम्बा िधतन
काल ईपलब्ध है। ऄतः यहाँ प्रत्येक भाग में सब्जी ईगाइ जाती है। भारत में ऄषधकाँश जनसंख्या
शाकाहारी है, ऄतः सब्जी की कृ षि पर ऄषधक बल ददया जाता है।

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ईद्यान कृ षि (Horticulture)
 ईद्यान कृ षि के मुख्य ईत्पाद फल एिं फू ल हैं। फल-फू ल की कृ षि कृ िक ऄपने ईपभोग के ऄषतररक्त
व्यापार के षलए करते हैं। आन ईत्पादों की भी माँग नगरों में ऄषधक है।
 फलों एिं फू लों में बहुत ऄषधक क्षेत्रीय षिषभन्नता पायी जाती है। ईष्ण करटबंधीय क्षेत्रों में के ला,
अम, जामुन, नाररयल, काजू, कटहल अदद, शीतोष्ण करटबंध के देशों में सेब, अडू , ऄखरोट,
नाशपाती एिं रसभरी तथा भूमध्य सागरीय देशों में खट्टे फल, जैसे संतरा, नींबू अदद मुख्य फल
हैं।
 फलों की कृ षि के षिकास का अधार पररिहन के साधनों का षिकास है। तीव्र पररिहन साधनों के
षिकास से नि होने िाले फल शीघ्र ही बाजार पहुँचा ददए जाते हैं।
 फू ल एक मुर्द्ा-दाषयनी फसल है। नगरों में आसकी माँग ऄषधक है। जार्थजया तथा अमीषनया में
गुलाब ईत्पन्न दकए जाते हैं जो सर्ददयों में सोषियत संघ के ईत्तर के नगरों में भेजे जाते हैं जहाँ आस
मौसम में फू लों की कमी रहती है। नीदरलैंड में ट्यूषलप की खेती षिश्व षिख्यात है।
 भारत में गुलाब तथा गेंदे के फू ल ऄषधक पैदा दकए जाते हैं। ऄजमेर के पास पुष्कर घाटी में गुलाब
की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है। ददल्ली के अस-पास भी फू लों की खेती िृहत् पैमाने पर की
जा रही है। कश्मीर घाटी फू ल पैदा करने षलए प्रषसद्ध है। यहाँ के करे िा भूषम पर के सर की खेती
होती है। कन्नौज, जौनपुर तथा लखनउ में फू लों पर अधाररत सुगंषधत तेल का ईत्पादन दकया
जाता है।
प्रबंधन के ऄनुसार कृ षि का षिभाजन
 एक अर्थथक दिया के रूप में कृ षि का प्रबंधन एिं कृ षि कायों की व्यिस्था आस का एक अिश्यक
पक्ष है। कृ षि की सफलता तथा ईसकी प्रगषत प्रबंधन की दक्षता एिं कु शलता पर षनभतर होती है।
ईद्योगों की भाँषत कृ षि पर भी ईत्पादन के कारकों पर स्िाषमत्ि का प्रभाि पड़ता है। भूषम तथा
कृ षि-ईत्पादन के ऄन्य कारक िैयषक्तक रूप से दकसान के स्िाषमत्ि में होते हैं ऄथिा ईन पर ग्राम
के सारे दकसानों का षमला-जुला स्िाषमत्ि होता है। कहीं-कहीं पर भूषम पर स्िाषमत्ि समाज या
सरकार का होता है।
खेषतहर कृ षि
 आस प्रकार की कृ षि का प्रबंधन दकसान िैयषक्तक रूप से करता है। भूषम तथा ईत्पादन के ऄन्य
कारकों पर ईसका स्िाषमत्ि होता है। ऄपने खेतों पर िह स्ियं तथा ऄपने पररिार के सदस्यों के
श्रम से कायत करता है। अिश्यकता पड़ने पर मजदूरों की सेिाएँ भी प्राप्त की जाती है। कु छ स्थानों
पर दकसान बँटाइ या दकराए पर जमीन लेकर ईस पर खेती करते हैं।
 भारत में स्ितंत्रता प्राषप्त के पिात् जमींदारी एिं जागीरदारी प्रथा समाप्त करके भूषम का स्िाषमत्ि
दकसानों को सौंप ददया गया। कइ स्थानों पर भूषम की ईच्चतम सीमा षनधातरण के पिात शेि
जमीन का अबंटन भूषमहीनों में कर ददया गया। भूषम सुधार संबध
ं ी कानून बनाए गए तथा प्रत्येक
राज्य भूषम के षितरण की ऄसमानता को षमटाने के षलए प्रयत्नशील है।
सहकारी खेती
 जब दकसानों का एक समूह ऄपनी कृ षि से ऄषधक लाभ कमाने के षलए स्िेच्छा से एक सहकारी
संस्था बनाकर कृ षि कायत संपन्न करे ईसे सहकारी कृ षि कहते हैं। आसमें व्यषक्तगत खेत ऄक्षुण्ण रहते
हुए सहकारी रूप से कृ षि की जाती है।
 यह सहकाररता के षसद्धांतों पर अधाररत कृ षि है। आसके ऄंतगतत ईत्पादन के कारकों पर स्िाषमत्ि
ईन सभी दकसानों का सामूषहक रूप से होता है जो सहकारी सषमषत के सदस्य होते हैं। प्रजातांषत्रक
षसद्धांतों के अधार पर आसकी कायतकाररणी के सदस्य ददन प्रषतददन के षनणतय लेते हैं। प्रत्येक सदस्य
सहकारी खेतों पर श्रम करते है।
 सहकारी खेती की षिशेिता यह है दक आसमें जोत का अकार बड़ा हो जाने के कारण मशीनीकरण
दकया जा सकता है। ईत्पादन बड़े पैमाने पर संभि होता है तथा बड़ी मात्रा में पूज
ं ी षनिेश दकया
जा सकता है।

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 यूरोप के कु छ देशों जैसे डेनमाकत , स्िीडन, नािें, नीदरलैंड तथा बेषल्जयम में सहकाररता बहुत
सफल हुइ है। भारत में स्ितंत्रता के बाद सहकारी अंदोलन चलाया गया परं तु कृ षि के क्षेत्र में
सहकाररता को सफलता कम षमली। महाराष्ट्र में सहकारी चीनी षमलें तथा सहकारी गन्ने की खेती
के प्रयोग को तथा गुजरात में सहकारी डेयरी को पयातप्त सफलता षमली है।
सामूषहक कृ षि (कोलखोज़; Kolkhoz)
 आस प्रकार की कृ षि का अधारभूत षसद्धांत यह होता है दक आसमें ईत्पादन के साधनों का स्िाषमत्ि
सम्पूणत समाज एिं सामूषहक श्रम पर अधाररत होता है। कृ षि का यह प्रकार पूित सोषियत संघ में
प्रारं भ हुअ था जहाँ कृ षि की दशा सुधारने एिं ईत्पादन में िृषद्ध के षलए सामूषहक कृ षि प्रांरभ गइ
थी। आस प्रकार की सामूषहक कृ षि को सोषियत संघ में कोलखोज़ का नाम ददया गया।
 आसके ऄंतगतत सभी दकसान ऄपने संसाधनों जैसे भूषम, पशुधन एिं श्रम को षमलाकर कृ षि कायत
करते थे। ये ऄपनी दैषनक अिश्यकताओं की पूर्थत के षलए भूषम का छोटा सा भाग ऄपने ऄषधकार
में रखते थे।
 सरकार ईत्पादन का िार्थिक लक्ष्य षनधातररत करती थी एिं ईत्पादन को सरकार ही षनधातररत
मूल्य पर खरीदती थी। लक्ष्य से ऄषधक ईत्पन्न होने िाला भाग सभी सदस्यों में षितररत कर ददया
जाता था। ईत्पादन एिं दकराये पर ली गइ मशीनों पर दकसानो को कर चुकाना पड़ता था। सभी
सदस्यों को ईनके द्वारा दकये गए कायत की प्रकृ षत के अधार पर भुगतान दकया जाता था। सोषियत
संघ के षिघटन के बाद आस प्रकार की कृ षि में संशोधन दकया गया।
सरकारी फामत (सोिखोज):
 यह कृ षि सोषियत संघ के मॉडल पर स्थाषपत कु छ ऄन्य साम्यिादी देशों की कृ षि पद्धषत है।
सितप्रथम आसका अषिभाति सोषियत संघ के नए कृ षि क्षेत्रों जैसे साआबेररया एिं कजादकस्तान में
दकया गया।
 आसके ऄंतगतत ईत्पादन कारकों पर सरकार का स्िाषमत्ि होता है। श्रषमकों को िेतन ददया जाता है।
आनका संचालन फै सरी की भांषत दकया जाता है। आसमें मशीनों का िृहत् प्रयोग दकया जाता है।
प्रत्येक कृ षि कायत ऄथातत् जुताइ से कटाइ तक मशीनों की सहायता से दकया जाता है।
 कु छ ऄन्य देशों में भी सरकारी खेती प्रारं भ की गइ है। भारत में सरकारी फामत का एक ईदाहरण
सूरतगढ (श्रीगंगानगर, राजस्थान) फामत है।

2. भू सं साधन
भूषम एक महत्िपूणत प्राकृ षतक संसाधन है। षिषभन्न प्रकार की भूषम षिषभन्न कायों हेतु ईपयोगी हैI आस
प्रकार मनुष्य भूषम को ईत्पादन, रहने तथा षभन्न प्रकार के मनोरं जक कायों हेतु संसाधन के रूप में
प्रयोग करता हैI हालांदक, भूषम षिशाल मात्रा में है लेदकन आसका ईपयोग करने की पद्धषत और श्रेणी
आसे सीषमत संसाधन बनाती हैI भूषम ईपयोग का षनधातरण करने के दो मुख्य कारक हैं:
i. भौषतक कारक: आसके ऄंतगतत स्थलाकृ षत, मृदा, जलिायु अदद कारक हैं।
ii. मानिीय कारक: जनसंख्या का षिकास, भूषम षनयंत्रण की ऄिषध, प्रौद्योषगकी, भूषम ऄषधकार,
सामाषजक, अर्थथक और सांस्कृ षतक कारक अदद कु छ मुख्य मानिीय कारक हैं।

2.1 भारत में भू - ईपयोग िगीकरण

 भारत में, भूराजस्ि षिभाग भू-ईपयोग संबंधी ऄषभलेख रखता है। भू-ईपयोग संिगों का योग कु ल
ररपोर्टटग क्षेत्र के बराबर होता है जो दक भौगोषलक क्षेत्र से षभन्न है। भूराजस्ि षिभाग द्वारा प्रस्तुत
क्षेत्रफल पत्रों के ऄनुसार ररपोर्टटग क्षेत्र पर अधाररत है जो दक कम या ऄषधक हो सकता है। कु ल
भौगोषलक क्षेत्र भारतीय सिेक्षण षिभाग के सिेक्षण द्वारा मापा गया कु ल क्षेत्रफल है तथा यह
स्थायी रहता है।

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भू-राजस्ि ऄषभलेख द्वारा ऄपनाया गया भू-ईपयोग िगीकरण षनम्न प्रकार है-
i. िनों क्षेत्र (Forest ): भारतीय सिेक्षण षिभाग की ररपोटत के ऄनुसार, िन एक ऐसा क्षेत्र है षजसे
षिभाग द्वारा भूषम के ऄंतगतत िनों के रूप में ऄषधसूषचत दकया गया है, भले ही यहाँ कोइ भी िृक्ष
अच्छाददत हो या नहीं। आस प्रकार, आस संिगत के क्षेत्रफल में िृषद्ध दजत हो सकती है परन्तु आसका
ऄथत यह नहीं है दक िहाँ िास्तषिक रूप से िन पाए जाएँगे। कु ल िन क्षेत्र में 1950-51 से 2010-
11 में 73% की िृषद्ध हुइ है। िततमान में यह लगभग 24% है, जबदक 1952 की िन नीषत में कु ल
भौगोषलक क्षेत्र के 33.33% भाग को िन क्षेत्र के ऄंतगतत लाने का लक्ष्य है।
ii. गैर-कृ षि कायों में प्रयुक्त भूषम (Land put to Non-agricultural uses): आस भाग में भौगोषलक
क्षेत्र का ग्रामीण ि शहरी बषस्तयों, ऄिसंरचना (सड़कें , नहरें अदद), ईद्योगों, दुकानों अदद हेतु भू-
ईपयोग सषम्मलत हैं। षद्वतीयक ि तृतीयक कायतकलापों में िृषद्ध से आस संिगत के भू-ईपयोग में िृषद्ध
होती है। तीव्र गषत से नगरीकरण के षिकास कारण आसमें षनरं तर िृषद्ध हो रही है।
iii. बंजर ि व्यथत-भूषम (Barren and Wastelands): िह भूषम जो प्रचषलत प्रौद्योषगकी की मदद से
कृ षि योग्य नहीं बनाइ जा सकती, जैस-े बंजर पहाड़ी भू-भाग, मरुस्थल, खड्ड अदद को कृ षि हेतु
व्यथत-भूषम में िगीकृ त दकया गया है।
iv. स्थायी चरागाह क्षेत्र (Permanent pastures): आस प्रकार की ऄषधकतर भूषम पर ग्राम पंचायत
या सरकार (भू-राजस्ि षिभाग) का स्िाषमत्ि होता है। आस भाग का के िल एक छोटा भाग षनजी
स्िाषमत्ि में होता है। ग्राम पंचायत के स्िाषमत्ि िाली भूषम को ‘साझा संपषत्त संसाधन’ कहा जाता
है। आस भूषम के लाभ पूरे समुदाय के सदस्यों को सामूषहक रूप से प्राप्त होते हैं। िततमान में आसके
क्षेत्र में कमी अ रही है, आसका ईपयोग कृ षि हेतु दकया जा रहा है।
v. षिषिध तरु-फसलों ि ईपिनों के ऄंतगतत क्षेत्र (Area under miscellaneous tree crops
and groves): ये बोए गए षनिल क्षेत्र में सषम्मषलत नहीं है। आस संिगत में िह भूषम सषम्मषलत है
षजस पर ईद्यान ि फलदार िृक्ष हैं। आस प्रकार की ऄषधकतर भूषम व्यषक्तयों के षनजी स्िाषमत्ि में
है। आसके क्षेत्र में भी बढते कृ षि कायों के कारण कमी अ रही है।
vi. कृ षि योग्य व्यथत भूषम (Culturable waste land): िह भूषम जो षपछले पाँच ििों तक या
ऄषधक समय तक परती या कृ षि रषहत है, आस संिगत में सषम्मषलत की जाती है। यह भूषम
दलदलीय, खारा, मृदा ऄपरदन के कारण कटाि युक्त या घने झाड़ीदार भूषम हो सकती है। षपछले
कु छ ििों से भूषम ईद्धार तकनीक द्वारा सुधार कर ऐसी भूषमयों को कृ षि योग्य बनाया जा रहा है।
षजससे आसके क्षेत्र में कमी अइ है।
vii. िततमान परती भूषम (Current fallow): िह भूषम जो एक कृ षि िित या ईससे कम समय तक कृ षि
रषहत रहती है, िततमान परती भूषम कहलाती है। भूषम की गुणित्ता बनाए रखने हेतु भूषम को
परती रखना एक सांस्कृ षतक चलन है। आस षिषध से भूषम की क्षीण ईितरकता या पौषिकता
प्राकृ षतक रूप से िापस अ जाती है।
viii. पुरातन परती भूषम (Fallow other than current fallow): यह भी कृ षि योग्य भूषम है जो एक
िित से ऄषधक लेदकन पाँच ििों से कम समय तक कृ षि रषहत रहती है। देश में से ऄषधकांश भूषम
या तो खराब गुणित्ता की है या आस तरह की भूषम पर कृ षि की लागत बहुत ऄषधक है। ऄगर कोइ
भू-भाग पाँच िित से ऄषधक समय तक कृ षि रषहत रहता है तो आसे कृ षि योग्य व्यथत भूषम संिगत में
सषम्मषलत कर ददया जाता है।
ix. षनिल बोया क्षेत्र (Net area sown): िह भूषम षजस पर फसलें ईगाइ ि काटी जाती हैं, िह
षनिल बोया गया क्षेत्र कहलाता है। षनिल बोया क्षेत्र, ईस िित के दकसी भी फसल सत्र में कम से
कम एक बार या एक से ऄषधक बार बोया जाता है। िततमान में षनिल बोया गया क्षेत्र कु ल
भौगोषलक क्षेत्र का 46.28% है।

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2.2 भारत में भू - ईपयोग पररितत न

 दकसी क्षेत्र में भू-ईपयोग, ऄषधकतर िहाँ की अर्थथक दियाओं की प्रिृषत पर षनभतर है। ऄथतव्यिस्था
का अकार, बढती जनसंख्या, बदलते अय-स्तर, ईपलब्ध प्रौद्योषगकी के कारण भूषम पर दबाि
षनरं तर बढता जा रहा है। पररणामस्िरूप सीमांत भूषम को भी प्रयोग में लाया जाने लगा है। समय
के साथ ऄथतव्यिस्था की संरचना में भी बदलाि से षद्वतीयक ि तृतीयक क्षेत्रकों में तीव्रता से िृषद्ध
होती है। आस प्रदिया में धीरे -धीरे कृ षि भूषम गैर-कृ षि सम्बंषधत कायों में प्रयुक्त कर ली जाती है।
 समय के साथ ऄथतव्यिस्था में कृ षि का योगदान कम होता जा रहा है, दफर भी भूषम पर कृ षि
दियाकलापों का दबाि षनरं तर बढती जनसंख्या के कारण कम नहीं हो रहा ।
 षपछले चार या पाँच दशकों में भारत की ऄथतव्यिस्था में प्रमुख बदलाि अए हैं, और आसने देश के
भूषम ईपयोग पररिततन को प्रभाषित दकया है। यह पता चलता है दक िन क्षेत्रों, गैर-कृ षि कायों में
प्रयुक्त भूषम, िततमान परती भूषम तथा शुद्ध बोए क्षेत्र अदद के ऄनुपात में िृषद्ध हुइ है।
 गैर-कृ षि कायों में प्रयुक्त क्षेत्र में िृषद्ध दर ऄषधकतम है आसका कारण भारतीय ऄथतव्यिस्था की
बदलती संरचना है, षजसकी षनभतरता औद्योषगक ि सेिा क्षेत्रों तथा ऄिसंरचना संबंधी ईत्तरोत्तर
षिस्तार पर है। ऄतः गैर-कृ षि कायों में प्रयुक्त भूषम के षिस्तार के कारण कृ षि योग्य परन्तु व्यथत
भूषम तथा कृ षि योग्य भूषम में कमी अइ है।
 बंजर भूषम, व्यथत भूषम ि कृ षि योग्य व्यथत, चरागाहों ि पेड़ों की फसलों के ऄंतगतत क्षेत्र तथा परती
भूषम में क्षेत्रीय ऄनुपात में षगरािट अइ है। समय के साथ जैसे-जैसे कृ षि तथा गैर-कृ षि कायों हेतु
भूषम पर दबाि बढा, िैस-े िैसे बंजर भूषम और कृ षि योग्य बंजर भूषम में षगरािट अइ है।

षचत्र 1 : भारत में भू-ईपयोग पररिततन

3. भारतीय कृ षि
 भारतीय ऄथतव्यिस्था अज भी मूल रूप से एक कृ षि-ऄथतव्यिस्था है। भले ही GDP में कृ षि क्षेत्र
का योगदान घटकर 2016-17 में लगभग 17.32% रह गया है, पर अज भी भारत की अधी से
ऄषधक जनसंख्या (लगभग 58%) कृ षि-कायों में संलग्न है।
 कृ षि और खाद्य-ईत्पादों के िैषश्वक षनयातत में भारत का षहस्सा 2.07% एिं िैषश्वक अयात में
1.24% है। कृ षि और खाद्य-षनयातत में भारत षिश्व में दसिें स्थान पर है। कृ षि-क्षेत्र का षिदेशी
मुर्द्ा ऄजतन की दृषि से भी महत्ि है। भारत के कु ल षनयातत में कृ षि-क्षेत्र का योगदान 10.23% एिं
कु ल अयात में 2.74% है।

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 स्पि है दक कृ षि-क्षेत्र में संलग्न जनसंख्या और ईसके GDP में योगदान पर गौर दकया जाए, तो
कहा जा सकता है दक ऄब तक कृ षि-क्षेत्र की संभािनाओं का पूणत दोहन संभि नहीं हो पाया है।
यदद कृ षि-क्षेत्र की संभािनाओं का दोहन दकया जाए तो ऄगले कु छ ििों में भारत न के िल 10
प्रषतशत की अर्थथक षिकास-दर के लक्ष्य तक पहुंच सकता है, िरन् आसे लम्बे समय तक बरकरार
भी रख सकता है।
 अज अर्थथक सुधारों को मानिीय रूप प्रदान दकए जाने की बात की जा रही है। यह तब तक संभि
नहीं है, तब तक कृ षि क्षेत्र को प्राथषमकता देते हुए अर्थथक ईदारीकरण के लाभों को गांिों और
दकसानों तक नहीं पहुंचाया जाए। आसके षलए कृ षि-क्षेत्र में अर्थथक सुधारों की शुरूअत अिश्यक
है।
 कृ षि के द्वारा अर्थथक लाभों का ऄपेक्षाकृ त समतापूितक षितरण संभि है षजससे धन के संकेंर्द्ण की
प्रदिया बाषधत होगी। आस संदभत में कृ षि का षिषिधीकरण और कृ षि-अधाररत ईद्योगों के षिकास
द्वारा रोजगार सम्भािनाओं के षिस्तार से गरीबी और बेरोजगारी की समस्या को बहुत हद तक
कम दकया जा सकता है।
 कृ षि क्षेत्र का षिस्तार भारतीय औद्योगीकरण को एक नया अयाम दे सकता है। यह कृ षि-
अधाररत ईद्योगों की स्थापना के द्वारा औद्योगीकरण की प्रदिया को तीव्रता प्रदान कर सकता है।
कृ षि-ईत्पादों के षनयातत-संिद्धतन में भी आसकी भूषमका महत्िपूणत हो सकती है। आसके जररए
भारतीय दकसानों को बाजार से जोड़ते हुए अर्थथक ईदारीकरण के लाभों को ईन तक पहुंचा पाना
संभि है, जो दकसानों की िय-क्षमता में सुधार के षलए औद्योषगक ईत्पादों की ऄषतररक्त मांग को
सृषजत करे गा। आससे औद्योषगक संिृषद्ध-दर में गषत अएगी।
 संतुषलत अर्थथक षिकास की दृषि से यह क्षेत्र भारतीय राज्यों के भौगोषलक ऄसंतुलन को कम कर
सकता है। समग्रतः भारतीय समाज में षिद्यमान-अर्थथक-सामाषजक षििमता को कम करने में
आसकी भूषमका महत्िपूणत हो सकती है।
3.1 भारतीय कृ षि की मु ख्य षिशे ि ताएँ

भारतीय कृ षि की प्रमुख षिशेिताएँ षनम्न प्रकार हैं:


 जीिन षनिातह कृ षि: सामान्य रूप से, भारतीय कृ षि की प्रकृ षत जीिन षनिातह है। दकसानों के पास
अम-तौर पर भूषम का एक छोटा सा टु कड़ा होता है और फसल ईत्पादन ऄषधकांशत: पररिार के
ईपयोग के षलए होता है और आसके ऄलािा जो कु छ शेि बचता है ईसे बाजार में बेच ददया जाता
है।
 जनसंख्या का दबाि: कृ षि तेजी से बढती हुइ जनसंख्या के षलए भोजन प्रदान करती है और
भूषमहीन श्रषमकों के एक बड़े षहस्से को रोजगार भी ईपलब्ध कराती है। आसषलए, कृ षि पर भारी
दबाि है। आसके ऄलािा, शहरीकरण की बढती हुइ प्रिृषत्त कृ षि योग्य भूषम को गैर-कृ षि ईपयोगों
में बदल रही है।
 पशुओं का महत्ि: भारत में, कृ षि से जुड़े कइ कायों जैसे जुताइ, ससचाइ और कृ षि ईत्पादों का
पररिहन अदद पशुओं द्वारा दकया जाता है। भारत में पशु दकसान के जीिन का एक प्रमुख षहस्सा
हैं। भारतीय कृ षि प्रणाली का पूणत रूप से यंत्रीकरण ऄभी भी दूर का लक्ष्य है।
 मानसून पर षनभतरता: भारतीय दकसान मुख्य रूप से मानसून पर षनभतर करता है, जो ऄषनषित,
ऄषिश्वसनीय और ऄत्यषधक ऄषनयषमत है। फसल के ऄंतगतत कु ल क्षेत्र का लगभग 44% भाग
िार्थिक ससचाइ के ऄंतगतत है और शेि मानसून की ििात पर षनभतर करता है।
 कृ षि जोतों का छोटा अकार: देश में भू-जोत के अकार का राष्ट्रीय औसत के िल 1.15 हेसटेयर है।
ये छोटे अकार के खेत अर्थथक रूप से ऄलाभकारी हैं और आस प्रकार कृ षि की प्रगषत के षलए एक
बड़ी बाधा हैं। हमारे देश के ऄषधकांश दकसान षजस भूषम पर कृ षि करते हैं ईसके िे माषलक नहीं
हैं।

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 फ़सलों के प्रकार में षिषिधता: ऄत्यषधक ऄनुकूल पयातिरणीय दशाओं के कारण, भारतीय दकसान
षिषिध प्रकार की ईष्णकरटबंधीय और समशीतोष्ण फसलों की खेती करने में सक्षम हैं। आसके
ऄंतगतत खाद्य फसलों और िाषणषज्यक फसलें शाषमल हैं।
 खाद्य फ़सलों का ऄषधक दबाि: खाद्य फसलों का ईत्पादन भारतीय दकसानों की पहली
प्राथषमकता है, सयोंदक यह देश की तेजी से बढती जनसंख्या के षलए पयातप्त भोजन ईपलब्ध कराता
है। भारत में कृ षि के ऄंतगतत कु ल भूषम का लगभग दो-षतहाइ भाग खाद्य फसलों के षलए समर्थपत
है।
 चारे की फ़सलों का कम महत्ि: पशुधन की संख्या के मामले में भारत का षिश्व में प्रथम स्थान है।
दफर भी कृ षि पद्धषत में चारे की फसलों को ईषचत स्थान नहीं ददया जाता है। आस प्रकार जब हम
ऄंतरातष्ट्रीय स्तर पर तुलना करते हैं तो हमारे घरे लू पशुओं की कु छ दकस्मे षनम्न गुणित्ता कोरट की
है।
3.2 भारत में फ़सल ऊतु एँ

हमारे देश में तीन प्रमुख फ़सल ऊतुएँ - खरीफ, रबी ि ज़ायद के नाम से जानी जाती हैं।
 खरीफ़ की फ़सलें जून-षसतंबर के महीनों में मुख्य रूप से दषक्षण पषिम मानसून के साथ बोइ जाती
हैं, षजसमें ईष्ण करटबंधीय फसलें सषम्मषलत हैं, जैस-े चािल, कपास, जूट, ज्िार, बाजरा ि ऄरहर
अदद। ईत्तरी राज्यों में खेती की जाने िाली प्रमुख फसलों में चािल, कपास, बाजरा, मक्का, ज्िार
और तुर ि दषक्षणी राज्यों में, प्रमुख फसलें चािल, मक्का, रागी, ज्िार और मूंगफली अदद शाषमल
हैं।
 रबी की ऊतु ऄसटूबर-निंबर में शरद ऊतु से प्रारं भ होकर माचत-ऄप्रैल में समाप्त होती है। आस ऊतु
में ईत्तरी राज्यों में खेती की जाने िाली प्रमुख फसलों में गेहँ, चना, तोररया और सरसों, जौ अदद
शाषमल हैं। दषक्षणी राज्यों में प्रमुख फसलों में चािल, मक्का, रागी, मूंगफली, और ज्िार शाषमल हैं।
 ज़ायद एक ऄल्पकाषलक ग्रीष्मकालीन फ़सल-ऊतु है, जो रबी फसलों की कटाइ के बाद प्रारं भ
होती है। आस ऊतु में तरबूज, खीरे , सषब्जयों और चारा फसलों की कृ षि ससषचत भूषम पर की जाती
है।
हालांदक, आस प्रकार की पृथक फ़सल ऊतुएँ देश के दषक्षणी भागों में नहीं पायी जातीं। यहाँ का तापमान
िितभर दकसी भी ईष्ण करटबंधीय फसल की बुिाइ में सहायक है, आसके षलए पयातप्त अर्द्तता ईपलब्ध
होनी चाषहए। आसषलए दषक्षण भारत में, जहाँ भी पयातप्त मात्रा में ससचाइ की सुषिधाएँ ईपलब्ध हैं िहाँ
एक कृ षि िित में एक ही फसल तीन बार ईगाइ जा सकती है।

कृ षि ऊतु ऄिषध ऊतुएँ प्रमुख फसलें

खरीफ़ जून-जुलाइ से ऄसटू बर- ििात ऊतु चािल, मक्का, ज्िार, बाजरा, कपास,
निंबर
मूंगफली और दालें जैस-े मूंग, ईड़द अदद।

रबी ऄसटू बर-निंबर से माचत- शीत ऊतु गेह,ँ जौ, चना और षतलहन जैस-े तोररया
ऄप्रैल तक और सरसों अदद।

ज़ायद माचत-ऄप्रैल से मइ-जून ग्रीष्म ऊतु सषब्जयाँ, फल जैस-े तरबूज और ककड़ी तथा
चािल, मक्का अदद।

ताषलका 1 : षिषभन्न फसल ऊतुओं में बोयी जाने िाली प्रमुख फसलें

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3.3 कृ षि के प्रकार (फसल के षलए अर्द्त ता के प्रमु ख स्रोत के अधार पर)

फसल के षलए अर्द्तता के प्रमुख ईपलब्ध स्रोत के अधार पर कृ षि को दो भागों में िगीकृ त दकया जाता
है :
(1) ससषचत कृ षि

(2) ििात अधाररत (बारानी) कृ षि

(1) ससषचत कृ षि को भी ससचाइ के ईद्देश्य के अधार दो ईपिगों में षिभाषजत दकया जाता है :

 रषक्षत ससचाइ: आसका मुख्य ईद्देश्य अर्द्तता की कमी के कारण फसलों को नि होने से बचाना है
षजसमें ििात जल की कमी को ससचाइ द्वारा पूरा दकया जाता है।
 ईत्पादक ससचाइ: आसका ईद्देश्य फसलों को पयातप्त मात्रा में जल ईपलब्ध कराकर ऄषधकतम
ईत्पादकता प्राप्त करना है। ईत्पादक ससचाइ में जल षनिेश की मात्रा रषक्षत ससचाइ की ऄपेक्षा
ऄषधक होती है।
(2) ििात षनभतर कृ षि को कृ षि ऊतु में ईपलब्ध अर्द्तता की मात्रा के अधार पर दो ईपिगों में षिभाषजत

दकया जाता है :
 अर्द्त कृ षि भूषम: अर्द्त भूषम कृ षि में, ििात ऊतु के ऄंतगतत ििात जल पौधों की जरुरत से ऄषधक

होता है। आन क्षेत्रों में िे फ़सलें ईगाइ जाती हैं षजन्हें जल की ऄषधक मात्रा में अिश्यकता होती है,

जैसे चािल, जूट और गन्ना अदद।

 शुष्क भूषम कृ षि (dry land agriculture) : भारत में शुष्क भूषम कृ षि मुख्यतः ईन प्रदेशों तक

सीषमत है जहाँ िार्थिक ििात 75 cm से कम है। आन क्षेत्रों में शुष्कता को सहने में सक्षम फसलें जैसे

रागी, बाजरा, मूंग, चना तथा ग्िार (चारा फसलों) अदद ईगाइ जाती हैं तथा आन क्षेत्रों में अर्द्तता

संरक्षण तथा ििात जल के प्रयोग की ऄनेक षिषधयाँ ऄपनाइ जाती हैं। शुष्क भूषम कृ षि की मुख्य
षिशेिताएँ षनम्नषलषखत हैं:
o आसमें ििात जल संचयन तकनीक का ईपयोग दकया जाता है। यह दो ििात की ऄिषधयों के
बीच सूखापन के ऄंतर को कम करने में मदद करता है।
o अिश्यकता से ऄषधक ििात की ईपलब्धता जल को भूषम के ऄन्दर ररसने में मदद करती है।
आससे जल संरक्षण में मदद षमलती है।
o शुष्क भूषम खेती के दो मुख्य स्रोत मृदा और जल हैं।
o यह ऄषधक समय तक शुष्कता मृदा के क्षरण को बढाती है।
o मृदा की उपरी परत के नि होने के कारण मृदा ऄनुत्पादक और ऄनुितरक हो जाती है।
o शुष्क भूषम कृ षि मुख्यतः गरीब दकसान करते हैं। ये दकसान धन की कमी के कारण, ससचाइ

और मृदा की ईितरता में षनिेश करने में ऄसमथत होते हैं।


o अय को बढाने के षलए पूरक रूप में पशुपालन दकया जाता है।

3.4 फ़सल प्रषतरूप (Cropping pattern)

 फ़सल प्रषतरूप, एक षनषित क्षेत्र पर फ़सलों के िार्थिक ऄनुिम और स्थाषनक व्यिस्था को प्रदर्थशत

करता है। यदद दकसी क्षेत्र के फसल प्रषतरूप में पररिततन होता है तो आसका ऄषभप्राय यह है की
षिषभन्न फसलों के षलए प्रयोग दकये गए क्षेत्र में पररिततन हुअ है।

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 फसल के प्रषतरूप पर दकसान का षनणतय कइ कारकों - मृदा एिं जलिायु, घरे लू अिश्यकताओं,

सामाषजक-अर्थथक मुद्दों, बाजार की संरचना, फसल कटाइ के बाद भंडारण और प्रसंस्करण की

सुषिधाओं, श्रषमकों की ईपलब्धता, तकनीकी षिकास, सरकारी नीषतयों अदद पर षनभतर करता है।

 ऄषधकांश भारतीय दकसान छोटे और बड़े पैमाने पर, ऄपने खेतों पर एक से ऄषधक फसलों की

खेती करते हैं और कु छ षिषशि फ़सल संयोजन की 3 से 4 िित की ऄिषध में दफर से पुनरािृषत

करते हैं।
 ििात षनभतर और सूखे आलाकों के क्षेत्रों में एक षिशेि फसल के तहत षिस्तृत क्षेत्रों पर खेती करने में

ऄषधक जोषखम के कारण फसल की पैदािार में बड़ी षिषिधता षमलती है, जबदक षनषित ससचाइ

के क्षेत्र में षसफत कु छ ही फसल प्रणाली का पालन दकया जाता है, ये संपूणत क्षेत्र में षिस्तृत और

राष्ट्रीय स्तर पर ऄनाज ईत्पादन के षलए महत्िपूणत योगदान देता है।

3.4.1 खाद्य फ़सलें

 देश के सभी भागों में खाद्य फ़सलें प्रमुख हैं, भले ही िहाँ जीषिका-षनिातह ऄथतव्यिस्था या

व्यापाररक कृ षि ऄथतव्यिस्था हो। समस्त बोये गए क्षेत्र के लगभग दो-षतहाइ भाग पर खाद्यान
फसलें ईगाइ जाती हैं। खाद्य फसलों को ऄनाज एिं दालों में िगीकृ त दकया जाता है।

3.4.1.1 ऄनाज

 भारत में कु ल बोये क्षेत्र के लगभग 54% भाग पर ऄनाज बोये जाते हैं। भारत षिश्व के लगभग

11% ऄनाज का ईत्पादन कर चीन और ऄमरीका के बाद तीसरे स्थान पर है। भारत षिषिध

प्रकार के ऄनाजों का ईत्पादन करता है, षजन्हें ईत्तम ऄनाजों (चािल, गेह)ं और मोटे ऄनाजों

(ज्िार, बाजरा, मक्का, रागी) अदद में िगीकृ त दकया जाता है।

चािल :
 भारत में चािल सबसे महत्िपूणत ऄनाज की फ़सल है। देश की ऄषधकतर जनसंख्या का प्रमुख
भोजन चािल है। देश के षिषभन्न कृ षि-जलिायु प्रदेशों में आसकी ऄनेक दकस्मों की पैदािार होती
है। यह एक ईष्णकरटबंधीय और ईपोष्ण करटबंधीय फ़सल है।

 आसके ईत्पादन के षलए 22 षडग्री सेषल्सयस से ऄषधक तापमान और 100cm से ऄषधक ििात की

अिश्यकता होती है। कम ििात िाले क्षेत्रों में ससचाइ अिश्यक होती है। चीका युक्त जलोढ मृदा जो
जल को संषचत रख सके चािल के षलए अदशत होती है। चािल की ऄच्छी पैदािार हेतु खेतों को
पानी से भरा रखा जाता है।

 चािल की कृ षि में श्रम की प्रधानता ऄषधक होती है। भारत षिश्व में चािल के ईत्पादन का 22%

योगदान देता है तथा यह चीन के बाद दूसरे स्थान पर है। देश में कृ षि के ऄंतगतत कु ल क्षेत्र का एक
चौथाइ षहस्सा चािल की फ़सल के ऄंतगतत है। देश में पांच प्रमुख चािल ईत्पादक राज्य पषिम

बंगाल, पंजाब, ईत्तर प्रदेश, अंध्र प्रदेश और तषमलनाडु अदद हैं।

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षचत्र 2 : भारत: चािल का षितरण

गोल्डन राआस
गोल्डन राआस एक नए दकस्म का चािल है षजसमें बीटा कै रोटीन पाया जाता है, जो षिटाषमन A का
एक स्रोत होता है। गोल्डन राआस षिटाषमन A से पररपूणत एक संभाषित नए भोजन अधाररत दृषिकोण
के रूप में षिकषसत दकया जा रहा है। षिटाषमन A की कमी एक गंभीर सामान्य स्िास््य समस्या है जो
षिश्व स्तर पर लाखों लोगों को षिशेि रूप से बच्चों और गभतिती मषहलाओं प्रभाषित करती है

गेहँ
 भारत में चािल के पिात् गेहँ दूसरा सबसे महत्िपूणत ऄनाज है। देश के कु ल बोये क्षेत्र के लगभग
14% भाग पर गेहँ की कृ षि की जाती है। चीन के बाद भारत षिश्व में गेहँ का दूसरा सबसे बड़ा
ईत्पादक देश है। यह षिश्व के 12% गेहँ का ईत्पादन करता है। यह मुख्यतः शीतोष्ण करटबंधीय
फ़सल है।
 गेहँ की ऄच्छी पैदािार के षलए लगभग 75 cm िार्थिक ििात और शीत ऊतु में 10 से 15 °C तथा
ग्रीष्म ऊतु में 21 से 26 °C के बीच तापमान की ज़रूरत होती है। ऄत्यषधक ििात गेहँ की फसल के
षलए नुकसानदायी होती है। गेहँ की कृ षि हेतु हल्की दोमट मृदा अदशत होती है।
 यह एक रबी फसल है। गेहँ की खेती में ऄत्यषधक श्रम की जरुरत नहीं होती है। आसका 85% क्षेत्र
ईत्तरी मध्य भारत में कें दर्द्त है। पांच प्रमुख गेहं ईत्पादक ईत्तर प्रदेश, पंजाब, हररयाणा, राजस्थान
और मध्य प्रदेश हैं।

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षचत्र 3 : भारत - गेहँ का षितरण


ज्िार
 यह दषक्षण ि मध्य भारत के ऄधत-शुष्क क्षेत्रों की प्रमुख खाद्य फ़सल है। दषक्षणी राज्यों में ज्िार को
खरीफ़ और रबी दोनों ऊतुओं में बोया जाता है।
 खरीफ फसल के रूप में, आसकी कृ षि 26 से 33 °C औसत माषसक तापमान िाले क्षेत्रों में होती है।
षिकास के दौरान लगभग 30 cm ििात की अिश्यकता होती है।
 ज्िार की खेती षिषभन्न प्रकार की मृदा में की जा सकती है जैसे षचकनी और बलुइ मृदा अदद।
ज्िार की खेती के षलए चीका, रे गुर और जलोढ मृदा सबसे ईपयुक्त होती हैं।
 देश के कु ल ज्िार ईत्पादन का अधे से ज्यादा ईत्पादन ऄके ले महाराष्ट्र में होता है। ज्िार के ऄन्य
प्रमुख ईत्पादक राज्य कनातटक, मध्य प्रदेश और अंध्र प्रदेश हैं।
 ईत्तर भारत में यह मुख्यतः चारा फ़सल के रूप में ईगायी जाती है।
बाजरा
 भारत के ईत्तर-पषिमी तथा पषिमी भागों में गमत और शुष्क जलिायु में बाजरे की कृ षि की जाती
है।
 यह फ़सल लगभग 40 से 50 cm ििात िाले क्षेत्रों में और लगभग 25 से 30 °C तापमान में
ईगाया जाता है।

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 यह फ़सल शुष्क जलिायु तथा सूखा सहन करने में समथत है। यह एकल तथा षमषश्रत फ़सल के रूप
में ईगाइ जाती है।
 बाजरा के ऄग्रणी ईत्पादक राज्य महाराष्ट्र, गुजरात, ईत्तर प्रदेश, राजस्थान और हररयाणा हैं।

मक्का
 मक्का एक खाद्य तथा चारा फ़सल है जो षनम्न कोरट की मृदा ि ऄधत-शुष्क जलिायिीय
पररषस्थषतयों में ईगाइ जाती है।
 आसकी कृ षि के षलए 50 से 100 cm ििात की अिश्यकता होती है तथा तापमान 21 से 27 °C के

मध्य होना चाषहए।


 यह पूिी तथा ईत्तर-पूिी भारत को छोड़कर देश के लगभग सभी षहस्सों में बोयी जाती है। मक्का के
प्रमुख ईत्पादक राज्य मध्य प्रदेश, अंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कनातटक, राजस्थान और ईत्तर प्रदेश हैं।

 ऄन्य मोटे ऄनाज की ऄपेक्षा आसकी पैदािार ऄषधक है। आसकी पैदािार दषक्षणी राज्यों में ऄषधक है
जो मध्य भागों की ओर कम होती जाती है।

3.4.1.2 दलहन

 प्रचुर मात्रा में प्रोटीन के स्रोत होने के कारण दलहन शाकाहारी भोजन के प्रमुख संघटक हैं। भारत
दालों का प्रमुख ईत्पादक देश है तथा षिश्व की लगभग 20 प्रषतशत दालें ईत्पन्न करता है। देश में

दालों की खेती ऄषधकतर दक्कन पठार, मध्य पठारी भागों तथा ईत्तर-पषिम के शुष्क भागों में की

जाती है। चना तथा ऄरहर भारत की प्रमुख दालें हैं।


चना:

 यह एक ईप-ईष्णकरटबंधीय फ़सल है। यह मुख्यतः ििात अधाररत फ़सल है जो देश के मध्य,

पषिमी तथा ईत्तर-पषिमी भागों में रबी की ऊतु में बोइ जाती है।
 आस फ़सल को सफलता पूितक कृ षि हेतु 20 °C से 25 °C तापमान एिं 40-50 cm के बीच ििात

की अिश्यकता होती है।


 आस फ़सल के प्रमुख ईत्पादक राज्य मध्य प्रदेश, ईत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, अंध्र प्रदेश और राजस्थान

हैं।
ऄरहर
 यह देश की दूसरी प्रमुख दलहन फ़सल है। आसे लाल चना तथा pigeon pea के नाम से भी जाना

जाता है। यह देश के मध्य तथा दषक्षणी राज्यों के शुष्क भागों में ििात अधाररत पररषस्थषतयों तथा
सीमांत भूक्षेत्रों में बोइ जाती है।
 ऄरहर के प्रमुख ईत्पादक राज्य महाराष्ट्र, ईत्तर प्रदेश, कनातटक, गुजरात और मध्य प्रदेश हैं।

3.4.1.3 षतलहन

 खाद्य तेल की अिश्यकता पूर्थत हेतु षतलहन की खेती की जाती है। मालिा पठार, मराठिाड़ा,

गुजरात, राजस्थान के शुष्क भागों, तेलंगाना और अंध्र प्रदेश के रायलसीमा प्रदेश और कनातटक का

पठार भारत के प्रमुख षतलहन ईत्पादक क्षेत्र हैं। भारत की प्रमुख षतलहन फ़सलों में मूंगफली,

तोररया, सरसों, सोयाबीन तथा सूरजमुखी सषम्मषलत हैं।

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मूग
ं फली
 भारत षिश्व के 17% मूंगफली का ईत्पादन करता है। यह मुख्य रूप से शुष्क प्रदेशों की ििात

अधाररत खरीफ़ फ़सल है।


 गुजरात, तषमलनाडु , अंध्र प्रदेश, कनातटक और महाराष्ट्र आसके ऄग्रणी ईत्पादक राज्य हैं।

तोररया और सरसों
 षतलहन में बहुत से फसलें सषम्मषलत हैं, जैसे राइ, सरसों, तोररया और तारामीरा अदद। ये ईप-

ईष्णकरटबंधीय फ़सलें हैं तथा भारत के ईत्तर-पषिमी ि मध्य भाग में रबी ऊतु में बोइ जाती है।
 आनके ईत्पादन का एक षतहाइ भाग राजस्थान से अता है तथा ऄन्य प्रमुख ईत्पादक राज्य ईत्तर
प्रदेश, हररयाणा, पषिम बंगाल और मध्य प्रदेश हैं। आन फ़सलों की प्रषत हेसटेयर ईत्पादकता

हररयाणा और राजस्थान में ऄपेक्षाकृ त ऄषधक है।


ऄन्य षतलहन: सोयाबीन तथा सूरजमुखी भारत में ईगाए जाने िाले ऄन्य महत्िपूणत षतलहन हैं।

 सोयाबीन ऄषधकतर मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में बोया जाता है। दोनों राज्य षमलकर देश के 90

% सोयाबीन का ईत्पादन करते हैं।

 सूरजमुखी की खेती कनातटक, अंध्र प्रदेश, तेलंगना तथा आससे जुड़े हुए महाराष्ट्र के भागों में कें दर्द्त

है। देश के ईत्तरी भागों में यह एक गौण फसल है परन्तु ससषचत क्षेत्रों में आनका ईत्पादन ऄषधक है।

3.4.2 नकदी फ़सलें

कपास
 कपास एक ईष्णकरटबंधीय फ़सल है जो देश के ऄधत-शुष्क क्षेत्रों में खरीफ के मौसम में बोइ जाती
है। भारत, छोटे रे शे िाली (भारतीय) कपास और लंबे रे शे िाली (ऄमेररकन) दोनों प्रकार की

कपास का ईत्पादन करता हैं। ऄमेररकन कपास को देश के ईत्तर-पषिमी भाग में 'नरमा' कहा

जाता है।
 कपास पर फू ल अने के समय अकाश मेघ रषहत होना चाषहए। आसकी खेती के षलए अदशत
तापमान 21 से 30 °C तथा ििात 50 से 100 cm के बीच होनी चाषहए।

 कपास के तीन मुख्य ईत्पादक क्षेत्र हैं, आनमें ईत्तर-पषिम भारत में पंजाब, हररयाणा और ईत्तरी

राजस्थान; पषिम में गुजरात तथा महाराष्ट्र तथा दषक्षण में तेलंगाना, अंध्र प्रदेश, कनातटक ि

तषमलनाडु के पठारी भाग सषम्मषलत हैं। कपास के ऄग्रणी ईत्पादक राज्य महाराष्ट्र, गुजरात, अंध्र

प्रदेश, तेलंगाना, पंजाब और हररयाणा हैं।

जूट
 यह पषिम बंगाल तथा आससे सटे पूिी भागों की एक व्यापाररक फ़सल है। पषिम बंगाल देश के
कु ल जूट ईत्पादन का लगभग तीन-चौथाइ भाग पैदा करता है। षबहार और ऄसम ऄन्य जूट
ईत्पादक क्षेत्र हैं।
 जूट की खेती के षलए अदशत तापमान 24 से 35 °C और ििात 120-150 cm के बीच होनी

चाषहए।

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षचत्र 4 : भारत - प्रमुख कपास एिं जूट ईत्पादक क्षेत्र


गन्ना:

 गन्ना एक ईष्णकरटबंधीय फसल है। ििात पर षनभतर पररषस्थषतयों में यह के िल ईप-अर्द्त और अर्द्त

जलिायु िाले क्षेत्रों में बोइ जा सकती है। आसके षलए गमत और अर्द्त जलिायु साथ ही औसत

तापमान 21 से 27 °C के मध्य एिं 75-100 cm ििात की अिश्यकता होती है।

 ससधु-गंगा के मैदानी भाग में, आसकी ऄषधकतर कृ षि ईत्तर प्रदेश तक सीषमत है। ईत्तर प्रदेश देश

का 40% गन्ना ईत्पादन करता है। पषिम भारत में गन्ना ईत्पादक प्रदेश महाराष्ट्र और गुजरात तक

षिस्तृत हैं। दषक्षणी भारत में, आसकी कृ षि कनातटक, तषमलनाडु और अंध्र प्रदेश, तेलंगाना के

ससचाइ िाले भागों में की जाती है।

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षचत्र 5 : प्रमुख गन्ना ईत्पादक क्षेत्र


चाय
 चाय एक रोपण फ़सल है। यह पेय पदाथत के रूप में प्रयोग की जाती है। यह ईष्ण अर्द्त तथा ईपोष्ण
अर्द्त करटबंधीय जलिायु िाले तरं षगत भागों पर ऄच्छे ऄपिाह िाली मृदा में बोइ जाती है।
 चाय के पौधों के िृषद्ध के षलए अदशत तापमान 20 से 30 °C और ििात 150-300 cm के
असपास होनी चाषहए।
 भारत में, चाय की खेती ऄसम की ब्रह्मपुत्र घाटी, पषिम बंगाल के ईप-षहमालयी भागों
(दार्थजसलग, जलपाइगुड़ी और कू चषबहार षजलों) और पषिमी घाट की नीलषगरी तथा आलायची
की पहाषड़यों के षनचले ढालों पर की जाती है।
 भारत चाय का ऄग्रणी ईत्पादक देश है। चाय षनयाततक देशों में भारत का श्रीलंका एिं चीन के
पिात् तीसरा स्थान है।
कॉफी
 कॉफी एक ईष्णकरटबंधीय रोपण फ़सल है। कॉफ़ी की तीन दकस्में - ऄरे षबका, रोबस्टा और
षलबेररका हैं। भारत में ईत्तम दकस्म की ऄरे षबका कॉफी का ईत्पादन दकया जाता है।
 कॉफ़ी के कृ षि के षलए अदशत तापमान 15 से 28 °C तथा ििात 150 cm से 250 cm तक होनी
चाषहए।
 कनातटक, के रल और तषमलनाडु में पषिमी घाट की ईच्च भूषम पर आसकी खेती की जाती है। देश के
समस्त कॉफी ईत्पादन का दो-षतहाइ से ऄषधक भाग ऄके ले कनातटक राज्य में ईत्पाददत दकया
जाता है।

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षचत्र 6 : भारत के प्रमुख चाय एिं कॉफी ईत्पादक क्षेत्र

फ़सलें जलिायषिक दशाएँ मृदा कृ षि क्षेत्र

चािल तापमान: 22°C से चीका युक्त जलोढ मृदा पषिम बंगाल, ईत्तर प्रदेश, अंध्र
ऄषधक प्रदेश, ओषडशा, छत्तीसगढ, षबहार,
ििात : 100 cm से पंजाब और ऄसम
ऄषधक

गेहँ तापमान: दोमट मृदा पंजाब, हररयाणा, ईत्तर प्रदेश,


शीत ऊतु 10°C - राजस्थान मध्य और प्रदेश
15°C
ग्रीष्म ऊतु 21°C-
26°C
ििात: 50-75 cm

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ज्िार तापमान: 26°C – रे गुर और जलोढ मृदा महाराष्ट्र, कनातटक, मध्य प्रदेश, अंध्र
33°C प्रदेश,तषमलनाडु , ईत्तर प्रदेश,
ििात: 30 cm राजस्थान और गुजरात

बाजरा तापमान: 25°C – 30 बलुइ दोमट, काली महाराष्ट्र, गुजरात, ईत्तर प्रदेश,
°C और लाल मृदा राजस्थान और हररयाणा.
ििात: 40 -50 cm

मक्का तापमान: 21°C – जैषिक पदाथों से मध्य प्रदेश, अंध्र प्रदेश, कनातटक,
27°C संपन्न, सुप्रिाषहत राजस्थान और ईत्तर प्रदेश
मृदा
ििात: 50 -100 cm

रागी तापमान: 20°C – लाल, हल्की काली कनातटक, तषमलनाडु , अंध्र प्रदेश,
30°C बलुइ दोमट मृदा ईड़ीसा, षबहार, गुजरात और महाराष्ट्र
ििात: 50 -100 cm

चना तापमान: 20°C – चीका युक्त दोमट मध्य प्रदेश, ईत्तर प्रदेश, राजस्थान,
25°C हररयाणा और महाराष्ट्र
ििात: 40 -50 cm

ऄरहर तापमान: शीत ऊतु बलुइ दोमट से षचका ईत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र,
15°C -18°C युक्त दोमट, गहरी, गुजरात, अंध्र प्रदेश, ईड़ीसा, कनातटक
ग्रीष्म 30°C-35°C सुप्रिाषहत मृदा और तषमलनाडु
ििात: 50-70 cm

मूंगफली तापमान: 20°C – बलुइ दोमट एिं अंध्र प्रदेश, तषमलनाडु , कनातटक,
काली मृदा गुजरात और महाराष्ट्र
30°C
िित: 50 -80 cm

तोररया ि तापमान: 10°C – जलोढ मृदा ईत्तर प्रदेश, राजस्थान, पंजाब,


सरसों
20°C हररयाणा, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ
ििात: 50 -100 cm

षतल तापमान: 20°C – सुप्रिाषहत, हल्की ईड़ीसा, राजस्थान, गुजरात,


25°C दोमट मृदा तषमलनाडु महाराष्ट्र, पषिम बंगाल
ििात: 50 cm से और मध्य प्रदेश
ऄषधक

सूयम
त ुखी तापमान: 15°C – सुप्रिाषहत, दोमट कनातटक, महाराष्ट्र,अंध्र प्रदेश,
25°C मृदा हररयाणा, षबहार और ईत्तरप्रदेश
ििात: 50 cm से
ऄषधक

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सोयाबीन तापमान: 15°C – दोमट मृदा . महाराष्ट्र, ईत्तर प्रदेश, ईत्तराखंड,


25°C मध्य प्रदेश, गुजरात और छत्तीसगढ
ििात: 40-60 cm

तीसी तापमान: 10°C – षचका युक्त दोमट, मध्य प्रदेश, ईत्तर प्रदेश, षबहार,
20°C गहरी काली मृदा छत्तीसगढ और महाराष्ट्र
और जलोढ मृदा
ििात: 50 -75 cm

कपास तापमान: 21°C – काली मृदा, जलोढ पंजाब, महाराष्ट्र, गुजरात और


30°C मृदा और लाल मृदा हररयाणा
ििात: 50 -100 cm

जूट तापमान: 24°C – हल्की बलुइ ऄथिा पषिम बंगाल, ऄसम,षबहार और


षचका युक्त दोमट ईड़ीसा
35°C
ििात: 120 -150
cm

गन्ना तापमान: 21°C – गहरी, सुप्रिाषहत, ईत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, तषमलनाडु ,


27°C दोमट मृदा कनातटक, अंध्र प्रदेश, षबहार पंजाब
ििात: 75 -100 cm

नाररयल तापमान: 20°C – समुंर्द् तटीय बलुइ के रल, तषमलनाडु और कनातटक


मृदा
25°C
ििात: 150 cm से
ऄषधक

चाय तापमान: 20°C – सुप्रिाषहत, ईपजाउ ऄसम के ब्रह्मपुत्र और सुरमा घाटी,


30°C बलुइ मृदा ईत्तरी पषिम बंगाल के दार्थजसलग
ििात: 150 -300 और जलपाइगुड़ी षजले, दषक्षण भारत

cm के षनषलषगरी, पालनी और
ऄन्नामलाइ पहाषड़याँ

कॉफ़ी तापमान:15°C – सुप्रिाषहत दोमट मृदा, कनातटक, के रल और तषमलनाडु


28°C लिण एिं ह्यूमस से
संपन्न मृदा
ििात: 150 -250
cm

रबर तापमान: 25°C – गहरी,सुप्रिाषहत के रल, तषमलनाडु , कनातटक और


35°C दोमट मृदा ऄंडमान षनकोबार द्वीपसमूह
ििात: 300 cm से
ऄषधक

ताषलका 2 : भारत : षिषभन्न फसलें, ईनकी ऄनुकूल पररषस्थषतयाँ एिं षितरण

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4. भारत में कृ षि षिकास


 कृ षि भारतीय ऄथतव्यिस्था का एक महत्िपूणत ऄंग रहा है। भारत में कृ षि की महत्ता आस त्य से
अंकी जा सकती है दक देश के लगभग 57% भूषम पर कृ षि की जाती है; जबदक षिश्व में, कु ल भूषम

पर के िल 12% भूषम पर ही कृ षि की जाती है। भारतीय कृ षि ऄथतव्यिस्था बहुत सीमा तक

जीषिकोपाजी रही है। अजादी के बाद, सरकार का तात्काषलक ईद्देश्य खाद्यान्नों के ईत्पादन में

िृषद्ध करने के साथ-साथ खाद्यान्नों में अत्मषनभतरता प्राप्त करना भी था, षजसकी प्राषप्त हेतु षनम्न
ईपाय ऄपनाए गए :
o व्यापाररक फ़सलों की जगह खाद्य फ़सलों की कृ षि;

o कृ षि गहनता को बढाना, तथा


o कृ षि योग्य बंजर तथा परती भूषम को कृ षि भूषम में पररिर्थतत करना।
 खाद्यान्नों का ईत्पादन बढाने के षलए 1950 में गहन कृ षि षजला कायतिम (IADP) तथा गहन

कृ षि क्षेत्र कायतिम (IAAP) प्रारं भ दकया गया। 1960 के दशक के मध्य में गेहँ (मैषससको) तथा

चािल (दफलीपींस) की ऄषधक ईत्पादकता िाली नइ बीज दकस्में (HYV) कृ षि के षलए ईपलब्ध

हुइ। भारत ने आसका लाभ ईठाया तथा पैकेज प्रौद्योषगकी के रूप में पंजाब, हररयाणा एिं पषिमी

ईत्तर प्रदेश के ससचाइ की सुषिधा िाले क्षेत्रों में रासायषनक ईितरक के साथ HYV बीज के दकस्मों

को ऄपनाया। कृ षि षिकास की आस नीषत द्वारा खाद्य ईत्पादन में ऄभूतपूित िृषद्ध ‘हररत िांषत’ के

नाम से जानी जाती है। कृ षि षिकास की आस नीषत से देश खाद्यान्नों के ईत्पादन में अत्मषनभतर
हुअ। लेदकन प्रारं भ में ‘हररत िांषत’ देश के ससषचत भागों तक ही सीषमत थी। आससे देश में कृ षि
षिकास में प्रादेषशक ऄसमानता बढी।
 1988 में कृ षि षिकास में प्रादेषशक संतल
ु न को प्रोत्साषहत करने हेतु देश में कृ षि-जलिायु षनयोजन

प्रारं भ दकया गया। आसने कृ षि के प्रसार और दुग्ध ईत्पादन, मुगी पालन, बागिानी, पशुपालन और

जलीय कृ षि के षिकास हेतु संसाधनों के षिकास पर भी बल ददया। हालांदक, ग्रामीण ऄिसंरचना

षिकास में कमी, फ़सलों के समथतन मूल्य तथा बीजों, कीटनाशकों पर छु ट में कटौती तथा ग्रामीण
ऊण ईपलब्धता में रुकािटें ऄंतर-प्रादेषशक और ऄंतर-व्यषक्तगत षििमताऐ अदद चुनौषतयां आनके
मागत में ऄिरोधक रही।
 कृ षि प्रौद्योषगकी में सुधार, ऄषधक ईत्पादकता िाली फ़सलों, ससचाइ में षिस्तार, ईन्नत ईितरक

और कीटनाशकों के ईपयोग ने देश में कृ षि ईत्पादकता में ईल्लेखनीय सुधार दकया है। सरकार
द्वारा राष्ट्रीय कृ षि षिकास योजना, ििात अधाररत कृ षि प्रणाली, नेशनल हॉर्टटकल्चर षमशन, मृदा

स्िास््य काडत योजना, प्रधानमंत्री कृ षि ससचाइ योजना, जैषिक खेती के प्रषत प्रोत्साषहत करने के

षलए परं परागत कृ षि षिकास योजना, मूल्य षस्थरीकरण कोि, प्रधानमंत्री कृ षि बीमा योजना
अदद योजनाएँ प्रारं भ की गयी हैं। साथ ही षतलहन और िनस्पषत तेल पर राष्ट्रीय षमशन और
षतलहन, दलहन और मक्का पर प्रौद्योषगकी षमशन के कारण भारत में कृ षि ईत्पादन में सुधार हुअ
है।

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5. भारतीय कृ षि ऄनु सं धान पररिद (ICAR)


 भारतीय कृ षि ऄनुसंधान पररिद (ICAR) कृ षि ऄनुसंधान और षशक्षा षिभाग (DARE), कृ षि

मंत्रालय, भारत सरकार के तहत गरठत एक स्िायत्त संस्था है। आसे पूित में आंपीररयल कौंषसल ऑफ

एषग्रकल्चरल ररसचत के रूप में जाना जाता था तथा यह 16 जुलाइ 1929 को स्थाषपत दकया गया

था। आस शीित संस्था को देश में बागिानी, मत्स्य पालन और पशु षिज्ञान सषहत कृ षि में ऄनुसंधान

और षशक्षा के समन्िय, मागतदशतन और प्रबंधन का दाषयत्ि सौंपा गया है।

 ICAR ने ऄपने ऄनुसंधान और प्रौद्योषगकी षिकास के माध्यम से भारत में कृ षि में हररत िांषत एिं

तत्पिात संबंषधत गषतषिषधयों के षिकास को अगे बढाने में ऄग्रणी भूषमका षनभाइ है।
ICAR के प्रमुख कायत

 कृ षि, कृ षि िाषनकी, पशुपालन, मत्स्य पालन, गृह षिज्ञान और व्यािहाररक षिज्ञान में षशक्षा को

बढािा देना और सहायता प्रदान करना, ऄनुसंधान और ईसका प्रयोग, योजना षनमातण और

समन्िय अदद करना।


 कृ षि, पशुपालन, गृह षिज्ञान और संबंषधत षिज्ञान, तथा मत्स्य पालन से संबंषधत सूचनाओं का

प्रकाशन और सूचना प्रणाली के माध्यम से ऄनुसंधान और समाशोधन गृह के रूप में कायत करना;

तथा प्रौद्योषगकी कायतिमों के हस्तांतरण की स्थापना और ईन्हें बढािा देना।


 कृ षि, कृ षि िाषनकी, पशुपालन, मछली पालन, गृह षिज्ञान और संबद्ध षिज्ञानों से संबंषधत

जानकारी, षशक्षा, ऄनुसंधान और प्रषशक्षण के बारे सूचना के प्रसार साधनों से परामशत सेिाएँ

प्रदान करना।
 कृ षि से जुड़े षिियों में ग्रामीण षिकास के व्यापक क्षेत्रों से संबंषधत समस्याओं को देखने के साथ ही,

ऄन्य संगठनों जैसे भारतीय सामाषजक षिज्ञान ऄनुसंधान पररिद, िैज्ञाषनक और औद्योषगक

ऄनुसंधान पररिद, भाभा परमाणु ऄनुसंधान कें र्द् तथा षिश्वषिद्यालयों के साथ षमलकर सहकारी

योजनाओं के षिकास द्वारा कटाइ से पहले की तकनीक का षिकास करना अदद शाषमल हैं।
 सोसायटी के ईद्देश्यों को प्राप्त करने ऄन्य अिश्यकताओं को पूरा करना।
पररिद् ने हाल में आस ददशा में ऄनेक प्रकार की पहल की है। आनमें से कु छ प्रमुख षनम्न हैं :
 फामतर फस्टत (FARMER FIRST) का ईद्देश्य प्रौद्योषगकी षिकास और कायातन्ियन के षलए

दकसानों और िैज्ञाषनकों के आं टरफे स को समृद्ध बनाना।


 स्टू डटें रे डी (STUDENT READY) नामक कायतिम का ईद्देश्य यह है दक षिद्याथी, कृ षि ईद्यमी

के रूप में ईभरें और आसके षलए यह कायतिम कृ षि षशक्षा के क्षेत्र में कौशल षनमातण और व्यापार
मोड्यूल को एकीकृ त करता है।
 अयत (ARYA) कृ षि क्षेत्र में ग्रामीण युिाओं को बरक़रार रखने, ग्रामीण क्षेत्रों में युिाओं के षिकास

के षलए व्यापक नीषत षिकषसत करने एिं नए दौर के दकसानों की अिश्यकता को समझने हेतु एक
ऄषभनि कायतिम है।
 मेरा गाँि, मेरा गौरि नामक पहल, गाँिों में िैज्ञाषनक कृ षि की प्रभािी और गहरी पहुँच बनाने हेतु

कृ षि षिश्वषिद्यालयों और संस्थानों के कृ षि षिशेिज्ञों को शाषमल दकया गया है।

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6. कृ षि षनिे श को बढाने के षलए सरकारी प्रयास


देश में कृ षि की ईपज सुधारने के षलए सरकार ने कइ कदम ईठाए हैं। बीज, ईितरक, कीटनाशकों, सूक्ष्म
पोिक और ससचाइ के कु शल ईपयोग को बढािा देने के षलए कइ कदम ईठाए गए हैं। आनमें से प्रत्येक
ईत्पादन के स्तर में िृषद्ध में भूषमका षनभाते हैं।
बीज
 कृ षि षिकास में समुन्नत बीजों का महत्िपूणत योगदान होता है। भारत में, दकसान अम तौर पर
खेत से बचाए गए बीजों पर षनभतर रहते हैं, षजसके बार-बार ईपयोग से बीज प्रषतस्थापन दर कम
और ईत्पादकता कम होती है।
 नइ दकस्मों के षिकास को प्रोत्साहन देने और दकसानों तथा पौधों के प्रजनकों के ऄषधकारों की
सुरक्षा के षलए राज्य और कें र्द् सरकारों, ICAR, राज्य कृ षि षिश्वषिद्यालयों, सहकारी बीज
सषमषतयों, और षनजी क्षेत्र की सहभाषगता से भारतीय बीज कायतिम प्रारं भ दकया गया।
 दकसानों को सस्ती कीमत पर षिषभन्न फसलों के गुणित्ता युक्त बीज ईपलब्ध करने के ईद्देश्य से ,
2005-06 के बाद से बीज के गुणित्तापूणत ईत्पादन और षितरण के षलए अधारभूत सुषिधाओं की
षिकास और सुदढृ ीकरण के षलए कें र्द्ीय योजना कायातषन्ित की जा रही है।
 बारहिीं पंचििीय योजना में कृ षि षिस्तार और प्रौद्योषगकी के षलए राष्ट्रीय षमशन के ऄंतगतत बीज
और रोपण सामग्री पर ईप-षमशन को मंजरू ी दी गइ है।
मशीनीकरण और प्रौद्योषगकी
 कृ षि यंत्रीकरण द्वारा समय की बचत, ईत्पादन लागत कम करने और कृ षि ईत्पादन बढाने में मदद
षमलती है। कृ षि कायों के संचालन में ईषचत मशीनीकरण के साथ, 10-15% तक ईत्पादन और
कृ षि की ईत्पादकता बढायी जा सकती है।
 कस्टम-भती के न्र्द्ोंएिं हाइ-टेक मशीनरी बैंकों की स्थापना के षलए कदम ईठाया गया है तादक छोटे
और सीमांत दकसानों को फामत मैकेनाआजेशन का लाभ षमल सकें ।
 सरकार ने बारहिीं पंचििीय योजना में कृ षि यंत्रीकरण पर ईप-षमशन की शुरुअत की है, षजसमें
कस्टम भती पर ध्यान कें दर्द्त दकया गया है।
एकीकृ त पोिक प्रबंधन
 भारत की 80% से ऄषधक यूररया अिश्यकताओं की पूर्थत घरे लू ईत्पादन से की जाती है लेदकन
हम पोटाश (K) और फॉस्फे रटक (P) ईितरकों की अिश्यकताओं की पूर्थत हेतु बहुत हद तक षिदेशी
अयात पर षनभतर हैं।
 नाआरोजन जषनत ईितरकों का सीमा से ऄषधक प्रयोग तथा P और K ईितरकों का सीषमत प्रयोग
एक बड़ी सचता का षििय है। आस हेतु ईितरक में छू ट को कम करके ईषचत मूल्य प्रोत्साहन की
जरूरत है तादक रटकाउ कायतप्रणाली को प्रोत्साषहत दकया जा सके ।
 सरकार ने यूररया सेसटर में नइ षनिेश नीषत 2012 (NIP-2012) को ऄषधसूषचत दकया है जो
पारम्पररक क्षमताओं में िृषद्ध कर षनिेश को बढािा देगा, अयात षनभतरता में कमी तथा अयात
प्रषतस्थापन द्वारा अयात समता मूल्य से नीचे की कीमत पर षनिेश को प्रोत्साषहत कर सषब्सडी में
बचत करे गा।
 2010 में कायातषन्ित फॉस्फे रटक और पोटाषशक (P एंड K) ईितरकों के षलए पोिक तत्ि अधाररत
सषब्सडी (NBS) योजना के ऄंतगतत, पोिक तत्ि सामग्री के अधार पर, P एंड K ईितरक के प्रत्येक
ग्रेड को िार्थिक अधार पर षनधातररत सषब्सडी की एक षनषित राषश दी गइ है। षद्वतीयक और
सूक्ष्म पोिक तत्िों के षलए ऄषतररक्त सषब्सडी भी प्रदान की जाती है। आस योजना के ऄंतगतत,
षनमातताओं / षिपणकों को ऄषधकतम खुदरा मूल्य (MRP) तय करने की ऄनुमषत दी गयी है।

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ससचाइ
 यद्यषप भारत ने ससचाइ के बुषनयादी ढांचे के षिकास में काफी प्रगषत की है, दफर भी सतही और
भूजल दोनों में ससचाइ की क्षमता कम है। कृ षि के षलए ििात पर षनभतर दकसानों को मदद करने के
षलए मृदा और जल संरक्षण षिषध षिषभन्न कृ षि-जलिायु क्षेत्रों के षलए षिकषसत की गयी हैं षजनमें
प्रभािी ििात जल प्रबंधन पर षिशेि बल ददया गया है।

7. कृ षि का सतत तथा समािे शी षिकास


राष्ट्रीय सतत कृ षि षमशन (National Mission on Sustainable Agriculture: NMSA)
 जलिायु पररिततन कृ षि ईत्पादन और ईत्पादकता के षलए एक बड़ी चुनौती बन गया है। जलिायु
पररिततन पर राष्ट्रीय कायत योजना (NAPCC) के तत्िािधान में राष्ट्रीय सतत कृ षि षमशन
(NMSA) ने भारतीय कृ षि को जलिायु पररिततनशील ईत्पादन प्रणाली में बदलने के षलए फ़सलों
और पशुपालन दोनों के क्षेत्र में ईपयुक्त ऄनुकूलन और शमन ईपायों के माध्यम से प्रयास दकया है।
 NMSA एक योजनाबद्ध हस्तक्षेप के रूप में संसाधन संरक्षण प्रौद्योषगदकयों; व्यापक मृदा स्िास््य
प्रबंधन; खेतों में कु शल जल प्रबंधन और बाररश िाले प्रौद्योषगदकयों के स्थान षिषशि एकीकृ त /
समग्र कृ षि प्रणाषलयों को बढािा देने पर कें दर्द्त है।
 NMSA, ईपयुक्त कृ षि प्रथाओं को बढािा देने के षलए 10 प्रमुख अयामों ऄथातत बीज और संस्कृ षत
जल, कीट, पोिक तत्ि, कृ षि पद्धषत, ऊण, बीमा, बाजार, सूचना और अजीषिका षिषिधीकरण
की पहचान करता है, जो चार कायातत्मक क्षेत्रों के माध्यम से ऄनुकूलन और शमन ईपायों को
शाषमल करता है, ऄथातत् ऄनुसंधान और षिकास , टेक्नोलॉजीज, प्रोडस्स एंड प्रैषसटस,
आं फ्रास्रसचर एंड कै प क्षमता षबसल्डग।
पूिी भारत में हररत िांषत लाना (BGREI)
 पूिी भारत में हररत िांषत को बढािा देने के षलए, भारत सरकार िित 2010-11 से सात पूिी
राज्यों ऄसम, षबहार, छत्तीसगढ, झारखण्ड, ओषडशा, ईत्तर प्रदेश (पूिी) और पषिम बंगाल में
राष्रीय कृ षि षिकास योजना (RKVY) की एक ईप-स्कीम ‘’पूिी भारत में हररत िांषत लाना’’ के
कायतिम का कायातन्ियन कर रही है। कायतिम का ईद्देश्य षिषभन्न कृ षि जलिायु ईप-क्षेत्रों की
प्रमुख बाधाओं का समाधान करते हुए कृ षि प्रौद्योषगदकयों के संिधतन के जररए चािल अधाररत
फसलन प्रणाली के ईत्पादकता को बढाना है।
 पूिी प्रदेशों में फ़सलों के ईत्पादन और ईत्पादकता को ऄषधकतम करने के षलए सामान्य रूप से,
षनम्नषलषखत रणनीषतयों को ऄपनाया जा रहा है:
o षजप्सम के प्रयोग द्वारा मृदा में लिण का सुधार एिं षतलहन फसलों में सूक्ष्म पोिक तत्िों जैसे
जस्ता, लौह और सल्फर का ईपयोग को बढािा देना।
o ऄम्लीय मृदा की भौषतक षस्थषत को सुधारने के षलए चूना / पेपर स्पंज / जैषिक खाद / हरी
खाद का प्रयोग कर भूषम का पुनरु
ु द्धार करना।
o ईितरक / जैषिक खाद / जैि-ईितरकों के संतुषलत ईपयोग को सुषनषित करने के षलए एकीकृ त
पोिक प्रबंधन का संिधतन करना।
o मृदा क्षरण को रोकने तथा बहते हुए जल को संग्रहीत करने के षलए मृदा और जल संरक्षण
ऄभ्यास को ऄपनाना जैसे- गर्थमयों में जुताइ, चौड़ी ऄिनाषलका, मेड़बंदी, मानसून पूित बुिाइ
और ििात जल संचयन (फामत तालाब) अदद।
o सूक्ष्म ससचाइ प्रणाली (सस्प्रसलर और षिप ससचाइ) को ऄपनाकर ससचाइ जल प्रयोग दक्षता
को बढािा देना।
o आस क्षेत्र में संकर चािल के ऄलािा शकरकं द, जौ, मक्का, दाल और षतलहन जैसे ईच्च मूल्य
िाली फसलों का संिधतन करना ।

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 पूिी क्षेत्र जो दक ऄब तक खाद्यान्न के ऄभाि िाले क्षेत्र के रूप में जाना जाता है, आस कायतिम की

मदद से, खाद्य ऄषधशेि क्षेत्र में पररिर्थतत हो गया है। आस क्षेत्र से 562.6 लाख टन चािल के

ईत्पादन का ऄनुमान है, जो षपछले िित के मुकाबले 19.8% ऄषधक है तथा देश के कु ल िृषद्ध का

7% है। आस क्षेत्र से खाद्यान्न के ईत्पादन का ऄनुमान 1032 टन है, खाद्यान्न ईत्पादन के मामले में

देश की कु ल िृषद्ध 2.2% के मुकाबले आस क्षेत्र में 11.32% की िृषद्ध हुइ है।
 संसाधन अिंटन और ईपयोग के कारण ईत्पादकता / ईत्पादन में िृषद्ध हुइ है। आस क्षेत्र में खाद्यान्नों
के ईत्पादन में ईल्लेखनीय िृषद्ध ने न के िल मध्य और प्रायद्वीपीय भारत में ईत्पादन में अइ
षगरािट की भरपाइ की है, बषल्क खाद्य पदाथों के ईच्चतम ईत्पादन में काफी योगदान ददया है।
ऄनाज ऄथातत् चािल और गेहँ के ईत्पादन में िृषद्ध स्थानीय रूप से पंजाब और हररयाणा पर दबाि
को कम करने और ऄनाजों को खरीदने तथा भण्डारण, पररिहन और ऄन्य आससे संबंषधत लागतों

को कम करने का ऄिसर प्रदान करती है। 12 िीं पंचििीय योजना के दौरान ऄब षनयषमत प्रयास
के साथ लाभ को मजबूत करने के षलए ध्यान कें दर्द्त दकया जाएगा। आसके ऄषतररक्त ईत्पाद की
खरीद और भंडारण के षलए बुषनयादी ढांचे को बेहतर बनाने और दकसानों के षलए ईषचत मूल्य
सुषनषित करने के षलए अगे और कदम ईठाए जाएंगे।

8. भारतीय कृ षि की समस्याएँ
कृ षि-पाररषस्थषतकी तथा षिषभन्न प्रदेशों के ऐषतहाषसक पररषस्थषतयों के ऄनुसार भारतीय कृ षि की
समस्याएँ भी षिषभन्न प्रकार की हैं। देश की ऄषधकतर कृ षि समस्याएँ सितव्यापी हैं। षजनमें भौषतक
बाधाओं से लेकर संस्थागत ऄिरोध तक शाषमल हैं। यह ऄनाज-के षन्र्द्त (Cereal Centric), क्षेत्रीय

पूिातग्रहों से ग्रस्त (Regionally Biased) और भूषम-जल-ईितरक जैसे आनपुट पर अधाररत (Input

Intensive) हो चुकी है। आसकी पृष्ठभूषम में तीव्र औद्योगीकरण भूषम की ईपलब्धता को प्रभाषित कर

रहा है, जलिायु-पररिततन जल की ईपलब्धता को प्रभाषित कर रहा है एिं भोजन-संबंधी अदतों में
पररिततन प्रोटीन-ईपभोग को बढा रहा है। भारतीय कृ षि द्वारा सामना की जा रही कु छ प्रमुख समस्याएँ
षनम्नषलषखत है :
 मानसून पर षनभतरता: भारतीय कृ षि की सबसे बड़ी समस्या मानसून पर षनभतरता है। भारत में
कृ षि क्षेत्र का लगभग 44% भाग ही ससषचत है। ऄतः शेि कृ षि क्षेत्र में फ़सलों का ईत्पादन प्रत्यक्ष

रूप से ििात पर षनभतर है। चूंदक, भारत में ििात ऄषनषित और ऄषनयषमत है; ऄतः आससे सूखे और

बाढ दोनों ही षस्थषतयाँ ईत्पन्न होती हैं। कम ििात िाले क्षेत्रों में सूखा एक सामान्य पररघटना है,
लेदकन यहाँ यदा-कदा बाढ भी अ जाती है।
 षनम्न ईत्पादकता: भारतीय कृ षि की षनम्न ईत्पादकता एक बड़ी सचता का षििय है। भारत में

ऄषधकतर फ़सलों जैस-े चािल, गेह,ँ कपास और षतलहन की प्रषत हेसटेयर पैदािार षिश्व के ऄन्य

देशों (ऄमेररका, रूस तथा जापान) की तुलना में कम है। भूषम संसाधनों पर ऄषधक दबाि के

कारण, ऄंतरातष्ट्रीय स्तर की तुलना में भारत में श्रम ईत्पादकता भी बहुत कम है।
 कृ षि की पुरानी पद्धषत: भारतीय कृ िक कृ षि में पुरानी तकनीकों का ईपयोग करते हैं। ऄषधकांश
कृ षि कायों को शारीररक रूप से सरल और पारं पररक ईपकरणों का ईपयोग करके संचाषलत दकया
जाता है। यह दकसानों की ईत्पादन क्षमता को बाषधत करता है।

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 षित्तीय संसाधनों की कमी तथा ऊणग्रस्तता: सीमांत और छोटे दकसानों की कृ षि बचत बहुत कम
या न के बराबर है। ऄतः िे सघन संसाधन दृषिकोण से की जाने िाली कृ षि में षनिेश करने में
ऄसमथत हैं। कृ षि से कम होती अय, मूल्यों की ऄषनषितता तथा फ़सलों के खराब होने से िे कजत के
जाल में फँ सते जा रहे हैं।
 भूषम सुधारों की कमी: भूषम सुधारों के पूणत लागू न होने के पररणामस्िरूप भूषम का ऄसमान
षितरण जारी रहा षजससे कृ षि षिकास में बाधा रही है। ईषचत भूषम ररकॉडत का न होना दकसानों
को शोिण के प्रषत सुभेद्य बनाता है।
 छोटे खेत तथा षिखंषडत जोत: भारत में छोटे ि सीमान्त दकसानों की संख्या ऄषधक है। 60% से
ऄषधक दकसानों के पास एक हेसटेयर से छोटी जोत है और लगभग 40% दकसानों की जोतों का
अकार तो 0.5 हेसटेयर से भी कम है। बढती जनसंख्या के कारण आन जोतों का अकार और भी
कम होता जा रहा है। आसके ऄषतररक्त भारत में ऄषधकतर भूजोत षबखरे हुए हैं। षिखंषडत ि छोटे
भूजोत अर्थथक दृषि से ऄलाभकारी हैं।
 िाषणज्यीकरण का ऄभाि: ऄषधकांश दकसान फ़सलों की पैदािार ऄपने ईपभोग के षलए करते हैं।
आन दकसानों के पास आतनी जमीन नहीं होती है दक िे ऄपनी जरूरतों से ऄषधक ईत्पादन कर सकें ।
ऄषधकांश छोटे और सीमांत दकसान खाद्य फ़सल की खेती करते हैं, जो ईनके ऄपने पररिार के
खपत के षलए होती है। यद्यषप ससषचत क्षेत्रों में कृ षि का अधुषनकीकरण तथा िाषणज्यीकरण हो
रहा है।
 व्यापक ऄल्प रोजगारी: भारत में कृ षि क्षेत्रों में षिशेिकर ऄससषचत क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर
बेरोजगारी पायी जाती है। आन क्षेत्रों में मौसमी बेरोजगारी है जो 4 से 8 माह तक रहती है।
 कृ षि योग्य भूषम का षनम्नीकरण: ससचाइ और कृ षि षिकास की दोिपूणत नीषतयों से ईत्पन्न हुइ
समस्याओं में भूषम संसाधनों का षनम्नीकरण सबसे गंभीर समस्या है। ईितर भूषम का एक बड़ा भाग
िायु ऄपरदन, षनितनीकरण, ऄत्यषधक चराइ, रसायनों के ऄत्यषधक प्रयोग और सामषयक ििात के
कारण मृदा क्षरण की समस्या से ग्रषसत है। यह समस्या षिशेिकर ससषचत क्षेत्रों में भयािह है।
कृ षि भूषम का एक बड़ा भाग जलािं ताता, लिणता तथा मृदा क्षारीयता के कारण ऄपनी ईितरकता
खो चुका है।
 ईषचत षिपणन व्यिस्था का ऄभाि: ग्रामीण भारत में ऄपने भारत में, षिशेिकर कृ षि ईत्पादों के
षिपणन की समुषचत व्यिस्था नहीं है। आसषलए ऄषधकांश दकसान ऄपने कृ षि ईत्पाद को स्थानीय
व्यापारी या षबचौषलयों को सस्ते मूल्य पर बेचने को मजबूर हैं।
 अधारभूत ढांचे का षपछड़ापन और जल-संसाधनों का प्रबंधन कृ षि-क्षेत्र की एक प्रमुख समस्या है।
आसके ऄषतररक्त उजात, पररिहन, भंडारण और षिपणन की समस्या भी गंभीर है।
 कृ षि-साख (Agricultural Credit) की समस्या दकसानों की प्रमुख समस्या है। सरकार की तमाम
कोषशशों के बािजूद अज भी एक षतहाइ से ऄषधक दकसान ऄपनी साख-सम्बंधी अिश्यकताओं के
षलए ऄसंगरठत क्षेत्र पर षनभतर हैं, जहां ब्याज की दर RBI की एक ररपोटत के मुताषबक 60-150
प्रषतशत तक है।
 कृ षि षिषिधीकरण का ऄभाि भारतीय कृ षि की प्रमुख समस्या है। अज फल, ईद्यानों औेर बगीचों
का कु ल कृ षि-भूषम में षहस्सा महज 3.4% है। आसके षलए बहुत हद तक सरकार की न्यूनतम
समथतन मूल्य (MSP) नीषत षजम्मेदार है, जो खाद्यान्न-फसलों के पक्ष में है।
 कृ षि-क्षेत्र दोहरी समस्याओं से जूझ रहा है- ऄनुसंधान एिं षिकास कायों को ऄपेषक्षत महत्ि नहीं
षमल पाना और ऄनुसंधानों को खोत तक पहुंचाने में षिफलता।
 गरीबी और ऄषशक्षा के कारण सरकार द्वारा चलाइ गइ योजनाओं और कायतिमों की जानकारी
अम दकसानों तक नहीं पहुंच पाती है। आसका ऄंदाजा आस बात से लगाया जा सकता है दक कु छ
ििों पहले 96% दकसानों ने कभी फसल-बीमा नहीं करिाया है और 95% दकसानों को आसकी
जानकारी तक नहीं है।

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9. कृ षि-सु धारों की भािी ददशा


भारतीय कृ षि क्षेत्र द्वारा सामना की जा रही समस्याओं के समाधान हेतु षनम्न प्रयास ऄपेषक्षत हैं :
 कृ षि-क्षेत्र में ईच्च अर्थथक संिृषद्ध-दर को प्राप्त करने के षलए साितजषनक षनिेश की मात्रा में िृषद्ध
ऄपेषक्षत है। आसके षलए कृ षि-सषब्सडी के बढते बोझ में चरणबद्ध तरीके से कटौती अिश्यक है।
षबना आसके के न्र्द्ीय और राज्य-योजनाओं में कृ षि क्षेत्र हेतु अिंरटत राषश में िृषद्ध मुषश्कल है।
 जल-प्रबंधन के साथ-साथ कृ षि-क्षेत्र से संबंषधत अधारभूत ढाँचे के षिस्तार एिं षिकास को
प्राथषमकता देनी होगी। आस संदभत में षिपणन और भंडारण से सम्बंषधत समस्याओं का षनराकरण,
उजात-सुधार और ग्रामीण क्षेत्रों में पररिहन के ढाँचे के षिस्तार के साथ-साथ ईसकी गुणिता में
सुधार ऄपेषक्षत है।
 कृ षि-साख के सांगठषनक ढाँचे का षिस्तार करते हुए कृ षि-क्षेत्र में ऊण-प्रिाह को बढाये जाने की
जरूरत है। दकसानों को ररयायती ब्याज-दर पर ईसकी ईपलब्धता को सुषनषित दकया जाए।
 कृ षि-क्षेत्र में साख-प्रिाह के षिस्तार में कृ षि ऊण जोषखम एक महत्िपूणत ऄिरोध है। आसके षलए
अिश्यक है दक कृ षि बीमा-सेिा का षिस्तार करते हुए फसल-बीमा सेिा की तजत पर मूल्य-बीमा
प्रणाली की भी शुरूअत की जाए और आसे कृ षि-ऊण से सम्बद्ध दकया जाए।
 जहाँ तक कृ षि-क्षेत्र में षनिेश और पूँजी-षनमातण की दर को बढाए जाने का प्रश्न है, तो आसमें षनजी

षनिेश की संभािनाओं की भी पड़ताल करनी होगी। यह तभी संभि है, जब कृ षि के षिषिधीकरण

के जररये षनिेश को लाभदायक बनाया जाए, षनिेश को जोषखम-रषहत बनाने को षलए पयातप्त
ईपाय दकए जाएँ और षनिेश के ऄिसरों को सृषजत दकया जाए। यह भी अिश्यक है दक व्यापक
व्यापार-नीषत को ऄपनाते हुए घरे लू और ऄंतरातष्ट्रीय व्यापार का एक प्रभािशाली तंत्र षिकषसत
दकया जाए, तादक बड़े षनिेशक आस ओर अकर्थित हो सके ।
 कृ षि में षिषिधीकरण पर जोर देते हुए और खाद्यान्न-फसलों के षिकास एिं षिस्तार को
प्राथषमकता दी जाए। साथ ही, न्यूनतम समथतन मूल्य-नीषत को दलहन और षतलहन के पक्ष में
बनाया जाए।
 कृ षि-अधाररत औद्योषगक षिकास को प्राथषमकता ददए जाने की जरूरत है, तादक दकसानों को
बाजार से जोड़ा जा सके और अर्थथक ईदारीकरण के लाभों को दकसानों तक पहुँचाया जा सके ।
साथ ही, कृ षि-क्षेत्र की षनयातत-सम्भािनाओं के दोहन की भी जरूरत है।

 कृ षि-क्षेत्र से सम्बंषधत ऄनुसंधान और षिकास कायों को प्राथषमकता ददए जाने की जरूरत है,
तादक कृ षि-ईत्पादकता में िृषद्ध संभि हो सके और ईसकी अर्थथक लागत को भी प्रषतस्पधातत्मक
बनाया जा सके । षबना आसको कृ षि-क्षेत्र की सम्भािनाओं का दोहन करना संभि नहीं होगा।
 कृ षि-षिकास की दृषि से क्षेत्रीय ऄसंतुलन को दूर करना भी ऄपेषक्षत है।

10. जलिायु - पररितत न और कृ षि


 जलिायु-पररिततन अर्थथक षिकास के षलए चुनौती भी है और ऄिसर भी। जलिायु-पररिततन
पयातिरण, पाररषस्थषतकी, जैि-षिषिधता और स्िास््य के साथ-साथ खाद्य एिं पोिक-सुरक्षा के
समक्ष चुनौती ईत्पन्न करता है। आसका कारण यह दक जलिायु-पररिततन बाढ एिं सूखे के ईन
जोषखमों को और ऄषधक बढाने में सहायक है, षजनका सामना भारतीय कृ षि को करना पड़ रहा

है। षिशेि रूप से ईस क्षेत्र की कृ षि सिातषधक प्रभाषित होगी, षजसकी ििात पर षनभतरता ऄषधक है।
आसका प्रषतकू ल ऄसर फसल-पैटनत के साथ-साथ मृदा के स्िास््य और भूषम की ईत्पादकता पर भी
पड़ रहा है।

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 भारतीय जलिायु पररिततन मूल्यांकन नेटिकत ने 2010 में ऄपनी ररपोटत में आस बात का ईल्लेख

दकया दक जलिायु-पररिततन को पररणामस्िरूप समुर्द्ी जल-स्तर में िृषद्ध, चििाती तीव्रता में

िृषद्ध, ििात जल-ससषचत फसलों की ईत्पादकता में कमी, फसल-पैटनत में पररिततन, पशुधन पर

दबाि में िृषद्ध, दुग्ध ईत्पादन में कमी और बाढ में िृषद्ध का खतरा है, जो भारतीय कृ षि-क्षेत्र पर

दबाि को बढाने का काम करे गी। आससे सिातषधक प्रभाषित जनसंख्या का िह षहस्सा होगा, षजसे

क्ांटाआल अय-समूह (समाज में षनम्न अय िगत िाला 20% षहस्सा) कहा जाता है।

 यदद जलिायु-पररिततन के प्रषतकू ल प्रभािों से कृ षि-क्षेत्र और समाज के षनचले षहस्से को बचाना है,

तो भारत को सलीन डेिलपमेंट मैकषनज्म और सलीन टेक्नोलॉजी को ऄपनाना होगा। आसके षलए
संसाधनों की जरूरत होगी सयोंदक सलीन टेक्नोलॉजी प्राप्त करने के साथ-साथ ईसके व्यािहाररक
ऄनुप्रयोग हेतु ऄषतररक्त संसाधनों की जरूरत होगी। निीनतम सलीन टेक्नोलॉजी पारं पररक
तकनीक और ईपकरणों को ऄनुपयोगी बना देगी।
 भारत िततमान में गरीबी, ऄषशक्षा, बेरोजगारी, खाद्य-ऄसुरक्षा, पोिण-ऄसुरक्षा और कु स्िास््य

जैसी समस्याओं का सामना कर रहा है। आन चुनौषतयों से षनपटने के षलए ऄपेषक्षत संसाधन ईसके
पास ईपलब्ध नहीं हैं। ऐसी षस्थषत में ईपलब्ध सीषमत संसाधनों को सलीन डेिलपमेंट मेकषनज्म
पर खचत करने के षलए ईसे ऄपने समक्ष षिद्यमान सामाषजक-अर्थथक प्राथषमकताओं की ईपेक्षा
करनी होगी, जो राष्ट्रीय स्तर पर मानिीय संकट को जन्म देगी। आससे तीव्र संिृषद्ध के साथ-साथ

समािेशी षिकास की प्रदिया ऄिरूद्ध हो सकती है। यह षस्थषत अंतररक सुरक्षा के समक्ष मौजूद
चुनौषतयों को और ऄषधक जरटलता प्रदान कर सकती है। आसीषलए ऄंतरातष्ट्रीय मोचे पर भारत की
यह कोषशश रहती है दक षिकषसत देश असान शतत पर स्िच्छ तकनीकों के हस्तांतरण पर सहमत
हों। साथ ही, जलिायु-पररिततन के संदभत में ऄपनी ऐषतहाषसक षजम्मेदारी को स्िीकार करते हुए

षिकासशील देशों को षित्तीय संसाधन ईपलब्ध करिाने पर सहमत हो, तादक षिकासशील देश

जलिायु-पररिततन की चुनौषतयों के साथ सामाषजक-अर्थथक चुनौषतयों का सामंजस्य स्थाषपत कर


सकें और ईसका प्रभािी तरीके से मुकाबला कर सकें ।
 आसका ऄथत यह नहीं है दक जलिायु-पररिततन भारत के षलए महज समस्या लेकर अयी है। सच तो
यह है दक आससे षनपटने की कोषशश युिा भारत के षलए ऄिसर बन सकती है। कारण यह दक
षनकट भषिष्य में स्िच्छ तकनीक ि प्रौद्योषगकी की जानकारी रखने िाले कु शल व्यािसाषयकों की
माँग तेजी से बढेगी और भारत ऄपनी कु शल ि युिा कायतशील जनसंख्या की बदौलत आस माँग को
पूरा कर पाने में समथत होगा।
चुनौषतयों से षनपटने के ईपायः
कृ षि क्षेत्र के समक्ष मौजूद जलिायु पररिततन की षजन चुनौषतयों की चचात उपर की गइ है, ईन

चुनौषतयों से षनपटने के षलए भारत समेदकत नजररए के साथ पहल कर रहा है। ऄंतरातष्ट्रीय स्तर पर
पहल करते हुए आसने षिकषसत देशों पर ऄंतरातष्ट्रीय दबाि को बढाया है, तादक ग्रीन हाईस गैस के

ईत्सजतन में ईनके द्वारा कमी लाइ जाए। साथ ही, घरे लू स्तर पर जलिायु-पररिततन पर प्रधानमंत्री की

राष्ट्रीय कायतयोजना ईत्सजतन में कटौती के स्िैषच्छक लक्ष्यों की घोिणा करती है। षिशेि रूप कृ षि क्षेत्र
के समक्ष ईत्पन्न चुनौषतयों के मद्देनजर षनम्न कदम ईठाए गए हैं :

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 प्रधानमंत्री जलिायु-पररिततन पररिद् द्वारा षसतंबर 2010 में राष्ट्रीय सतत कृ षि षमशन का

ऄनुमोदन दकया गया, षजसका ईद्देश्य भारतीय कृ षि को जलिायु पररिततनों को प्रषत ऄषधक
लोचशील बनाना है। आसके षलए भूषम एिं जल की जैि-षिषिधता और जनषनक संसाधन की
षिकासशील कायतयोजना के जररये खाद्य-सुरक्षा को सुषनषित करने का प्रयास दकया जा रहा है।
 राष्ट्रीय जल-षमशन के तहत् जल-संसाधनों के एकीकृ त प्रबंधन का संिद्धतन और जल के आस्तेमाल में
20% तक दकफायत को बढािा ददया जाना है।

 िित 2011-12 के दौरान राष्ट्रीय जलिायु रे षसषलएंट कृ षि-पहल ICAR के द्वारा शुरू दकया गया।
यह कृ षि-क्षेत्र में जलिायु-पररिततन को ऄनुकूलन और ऄल्पीकरण पर जोर देता है और दकसानों
को जलिायु-षनिारक प्रौद्योषगकी को स्िीकारने के षलए प्रोत्साहन प्रदान करता है। यह फसल,
पशुधन और मषत्स्यकी को ऄपने दायरे में लाते हुए ऄनुकूलन और ऄल्पीकरण संबंधी ऄनुसंधान
संस्थान की स्थापना पर बल देता है।
 10 षमलषयन हेसटेयर भूषम में िाषनकी, गुणित्ता और मात्रा को बढाने के षलए ग्रीन आं षडया षमशन

की शुरुअत के साथ-साथ सभी राज्यों को धारणीय िन-प्रबंधन हेतु के र्द् सरकार द्वारा 1-2
षबषलयन ऄमेररकी डॉलर की प्रषतपादन अधाररत ऄषतररक्त षित्तीय ऄनुदान देने की घोिणा की
गइ।
 आसके ऄषतररक्त भारत ग्रीन-हाईस गैसों के ईत्सजतन में कटौती के स्िैषच्छक लक्ष्य की प्राषप्त की
ददशा में प्रयत्नशील है। साथ ही, िनीकरण के जररए िायुमंडल में मौजूद ग्रीन हाईस गैस की मात्रा
को भी कम करने की कोषशश कर रहा है। षनिय ही आससे खतरों को कम करने में मदद षमलेगी।

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भारत: जल संसाधन एवं ससचाइ


ववषय सूची

1. ससचाइ के साधन: एक पररचय ___________________________________________________________________ 47

1.1 ससचाइ के लाभ ___________________________________________________________________________ 47

2. ससचाइ पररयोजनाओं का वगीकरण _______________________________________________________________ 48

2.1.स्त्रोतों के अधार पर _______________________________________________________________________ 48


2.1.1 कु एं एवं नलकू प_______________________________________________________________________ 49
2.1.2 नहर ______________________________________________________________________________ 49
2.1.3 तालाब_____________________________________________________________________________ 49

2.2 अकार के अधार पर _______________________________________________________________________ 51

2.3 जल ववतरण की तकनीक के अधार पर ___________________________________________________________ 52

2.4 जल के ईपयोग के तरीके के अधार पर ___________________________________________________________ 55

2.5 जल अपूर्तत की ऄववध के अधार _______________________________________________________________ 55

2.6 ससचाइ पद्धवत का चयन _____________________________________________________________________ 55

3. ससचाइ दक्षता ______________________________________________________________________________ 56

4. ससचाइ एवं राष्ट्रीय जल नीवत____________________________________________________________________ 57

5. कमान क्षेत्र ववकास एवं जल प्रबंधन (CADWM) ______________________________________________________ 57

6. सहभागी ससचाइ प्रबंधन (Participatory Irrigation Management : PIM) ________________________________ 58

7. त्वररत ससचाइ लाभ काययक्रम (Accelerated Irrigation Benefits Programme : AIBP) ______________________ 59

8. जलीय वनकायों की मरम्मत, नवीकरण एवं पुनर्सथायपन हेतु योजना (ररपेयर, रे नोवेशन एंड
ररर्सटोरे शन ऑफ़ वाटर बॉडीज र्सकीम) _______________________________________________________________ 59

9 वचुऄ
य ल वाटर (Virtual Water) __________________________________________________________________ 60

46

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1. ससचाइ के साधन: एक पररचय


 ककसी भी देश में कृ वष ववकास पयायवरणीय, राजनीवतक, संर्सथात्मक एवं अधारभूत संरचनात्मक
कारकों द्वारा प्रभाववत होता है। अधारभूत संरचनात्मक कारकों के ऄंतगयत ससचाइ, ववद्युत
अपूर्तत, रासायवनक एवं जैववक ईवयरक, ईन्नत बीज आत्याकद को शावमल ककया जाता है। ये कारक
समवि एवं व्यवि, दोनों र्सतरों पर वववशि भूवमका का वनवायहन करते हैं।
 ससचाइ कृ वत्रम वववधयों द्वारा खेतों को जल ईपलब्ध कराना है। ऄत: नहर, कु एं, नलकू प, तालाब
अकद साधनों के माध्यम से फसलों को जल अपूर्तत ककये जाने की प्रकक्रया को ससचाइ कहा जाता है।
फसलों की वृवद्ध, शुष्क क्षेत्रों में ऄसंतुवलत मृदा (disturbed soils) में पौधों के पुन: ववकास तथा
ऄपयायप्त वषाय के दौरान जल अपूर्तत के वलए ससचाइ का ईपयोग ककया जाता है। आसके ववपरीत
सीधे वषाय जल पर अवित कृ वष को वषाय ससवचत कृ वष कहते हैं। आसके ऄलावा बहुत कम वषाय वाले
क्षेत्रों में सीवमत नमी को संवचत करके तथा वबना ससचाइ वाली कृ वष शुष्क भूवम कृ वष कहलाती है।
 प्राचीन काल से ही मानव जावत ससचाइ प्रणाली से लाभावववत हो रही है। पुरातत्व संबंधी जांच में
ईन र्सथानों पर ससचाइ के प्रमाण वमले हैं जहां फसल ईत्पादन के वलए प्राकृ वतक वषाय ऄपयायप्त थी।
ईदाहरण के वलए, मेसोपोटावमया के मैदानी क्षेत्रों में बारहमासी ससचाइ की जाती थी, सीररया में
सीढ़ीदार खेत ससचाइ, वमस्र में बेवसन ससचाइ अकद। 20वीं शताब्दी में डीजल और आलेवरिक
वाटर पंप मोटरों के अगमन के पश्चात् मनुष्यों ने भूजल का ऄवधकावधक दोहन कर एवं नहरों
अकद को ववर्सतृत कर ससवचत कृ वष क्षेत्र में वृवद्ध की।
 भारतीय मानसून की प्रकृ वत ऄत्यंत ऄवनयवमत होती है। मानसून की ववफलता की वर्सथवत में फसल
नि हो जाती है। आसके ववपरीत ऄत्यवधक वषाय बाढ़ का कारण बन सकती है लेककन कम वषाय से
फसल ईत्पादन में काफी कमी हो सकती है तथा चरम दशाओं में फसल पूणयतया नि हो सकती है।
भारत के ऄवधकांश भागों में वषाय ससवचत कृ वष की जाती है।
 भारत की जनसंख्या बहुत ऄवधक है तथा ऐसा ऄनुमान है कक बढ़ती जनसंख्या की मांग को पूरा
करने के वलए भारत को ऄनाज के ईत्पादन को बढ़ाने की अवश्यकता है। वषय 2050 में जल की
मांग वषय 2000 की तुलना में लगभग 50 गुना ऄवधक होने का ऄनुमान है, वहीं दूसरी ओर खाद्य
पदाथों की मांग भी दोगुना होने का ऄनुमान है। औसतन, एक टन ऄनाज का ईत्पादन करने के
वलए लगभग एक हजार टन जल की अवश्यकता होती है। जलवायु पररवतयन के पररणामर्सवरूप
ऄपेक्षाकृ त ऄवधक ऄवनयवमत जलवायु दशाएँ ईत्पन्न होंगी और आस प्रकार फसलें वषाय में ईच्च
पररवतयनशीलता के प्रवत तुलनात्मक रूप से ऄवधक प्रवण हो जाएँगी। ससवचत भूवम की वतयमान
ईत्पादकता 2.5 टन / हेरटेयर है तथा वषाय ससवचत कृ वष भूवमयों की ईत्पादकता 0.5 टन/ हेरटेयर
से भी कम है। आस संदभय में, ससचाइ रणनीवतयों की योजना बनाने और ईवहें लागू करने की एक
त्वररत अवश्यकता है।
 भारत ववश्व की नकदयों के कु ल औसत वार्तषक जल प्रवाह का 4% प्राप्त करता है। प्राकृ वतक जल
प्रवाह की प्रवत व्यवि जल ईपलब्धता कम से कम 1100 घन मीटर प्रवत वषय है। जल की मात्रा जो
वार्सतव में लाभदायक ईपयोग के वलए प्रयुि की जा सकती है, वह मात्रा भौवतक एवं र्सथलाकृ वतक
ऄवरोधों, ऄंतरराज्यीय मुद्दों और वतयमान प्रौद्योवगकी द्वारा अरोवपत कठोर प्रवतबंधों के कारण
बहुत कम है।
1.1 ससचाइ के लाभ

 फसल ईत्पादन में वृवद्ध: सही समय पर प्रत्येक फसल के ऄनुरूप ईवचत मात्रा में जल ईपलब्ध
कराकर लगभग सभी प्रकार की फसलों के ईत्पादन में वृवद्ध की जा सकती है। जल की आस प्रकार
की वनयंवत्रत अपूर्तत के वल ससचाइ के माध्यम से ही संभव है।
 सूखे से संरक्षण: ककसी भी क्षेत्र में ससचाइ सुववधाओं की ईपलब्धता सूखे से होने वाली फसल हावन
या सूखे के कारण ईत्पन्न होने वाली ऄकाल की वर्सथवत के ववरुद्ध संरक्षण सुवनवश्चत करती है।

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ससचाइ के ऄभाव वाले क्षेत्रों में, ककसानों को फसलों की वृवद्ध के वलए के वल वषाय पर ही वनभयर
रहना पड़ता है चूकं क प्रत्येक वषय वषाय से फसल के वलए अवश्यक पयायप्त जल प्राप्त नहीं होता है,
आसवलए ककसानों को सदैव जोवखम का सामना करना पड़ता है।
 कृ वष के ऄंतगयत नए क्षेत्र: ससचाइ से नए क्षेत्रों में कृ वष संभव हो पाती है और ससवचत कृ वष के
ऄंतगयत अने वाले शुद्ध क्षेत्र में वृवद्ध होती है।
 मुख्य फसलों की कृ वष: ससचाइ के वलए जल की वनवश्चत अपूर्तत के कारण ककसान मुख्य फसलों या
यहां तक कक ऄवय फसलों की कृ वष के बारे में सोच सकते हैं, जो ऄत्यवधक मात्रा में ईपज प्रदान
करती हैं। आन फसलों का ईत्पादन वषाय ससवचत क्षेत्रों में संभव नहीं है रयोंकक ईपयुि समय पर
जल की ऄल्प ईपलब्धता के कारण भी ये फसलें नि हो सकती हैं और वनवेश की गइ सभी पूंजी
बबायद हो सकती है।
 वमवित फसल का ईवमूलन: वषाय ससवचत क्षेत्रों में ककसानों में एक ही क्षेत्र में एक से ऄवधक प्रकार
की फसल पैदा करने की प्रवृवि होती है, ईनके ऄनुसार भले ही कोइ फसल जल की अवश्यक
मात्रा के ऄभाव में नि हो जाए परवतु कम से कम बाकी बोइ गयी फसलों से ईपज प्राप्त होने की
सम्भावना ऄवधक होती है। हालांकक, आस प्रवृवत से क्षेत्र के कु ल ईत्पादन में कमी होती है। ससचाइ
द्वारा वनवश्चत मात्रा में जल की अपूर्तत के कारण ककसान ककसी भी समय एक ही क्षेत्र में के वल एक
ककर्सम की फसल की कृ वष करने में सक्षम होते है, पररणामर्सवरूप कु ल ईपज में वृवद्ध होती है।
 अर्तथक ववकास: वनवश्चत ससचाइ द्वारा ककसानों को वषय भर फसल ईत्पादन के माध्यम से
ऄपेक्षाकृ त ऄवधक लाभ प्राप्त होता है। साथ ही सरकार ववर्सताररत ससचाइ सुववधाओं के प्रसार से
ईत्पादन में वृवद्ध लाभ होता है।
 जल ववद्युत ईत्पादन: अमतौर पर ससचाइ की नहर प्रणाली में कु छ र्सथानों पर नहर के अधार की
उंचाइ में ऄंतर या ववववधता होती है। हालांकक यह ऄंतर बहुत ऄवधक नहीं होता, कफर भी उँचाइ
में ववद्यमान आस ऄंतर के सफलतापूवयक ईपयोग से ववद्युत ईत्पादन ककया जा सकता है। गंगा नहर,
शारदा नहर, यमुना नहर अकद जैसी कइ नहरों में बल्ब-टबायआन का ईपयोग कर लघु जल ववद्युत
ईत्पादन पररयोजनाओं की र्सथापना की गइ है।
 घरे लू और औद्योवगक जल की अपूर्तत: ससचाइ नहरों से कु छ जल का ईपयोग वनकट वर्सथत क्षेत्रों में
घरे लू और औद्योवगक जल अपूर्तत के वलए ककया जा सकता है। घरे लू और औद्योवगक ईपयोगों के
वलए अवश्यक जल की मात्रा ससचाइ हेतु अवश्यक जल की मात्रा की तुलना में कम होती है और
यह कु ल प्रवाह को भी ज्यादा प्रभाववत नहीं करती है। ईदाहरण के वलए, पवश्चम बंगाल के
दार्तजसलग वजले में वसलीगुड़ी कर्सबे के वनवावसयों को तीर्सता-महानंदा सलक नहर द्वारा जल अपूर्तत
की जाती है।
2. ससचाइ पररयोजनाओं का वगीकरण
 जलवायववक पररर्सथवतयों और भौवतक संरचनाओं पर अधाररत एवं प्रभाववत जल की ईपलब्धता,
भूवम की ईपलब्धता तथा तकनीकी व्यवहाययता अकद में ऄंतर के कारण ववश्व में ससचाइ की
वववभन्न तकनीकें पाइ जाती हैं। ससचाइ प्रणाली को वववभन्न योजनाओं के तहत वगीकृ त ककया गया
है जैसा कक नीचे बताया गया है:
2.1.स्त्रोतों के अधार पर

सतही और भूवमगत जल की ईपलब्धता भूवम की ढलान, वमट्टी की प्रकृ वत और ककसी क्षेत्र में ईगाइ गइ
फसलों के प्रकार के अधार पर ससचाइ के कइ स्रोतों का ईपयोग ककया जाता है। देश के वववभन्न भागों में
प्रयुि ससचाइ के मुख्य स्रोत हैं (वचत्र 1):
 कु एं एवं नलकू प
 नहरें
 तालाब
 ऄवय स्त्रोत – फव्वारों द्वारा ससचाइ, बूंद-बूंद ससचाइ, कु हल, ढेंकली, डोंग और बोक्का अकद।

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2.1.1 कु एं एवं नलकू प

 भूजल से ससचाइ के यह स्त्रोत (कु एं) प्राचीन काल से ही प्रचवलत है। वतयमान में देश के कु ल ससवचत
क्षेत्र के 62 प्रवतशत भाग पर कु ओं और ट्यूबवेल द्वारा ससचाइ की जाती है। यह ससचाइ का सबसे
सुगम स्रोत है। आस ससचाइ स्त्रोत को ऄल्प समयाववध में र्सथावपत ककया जा सकता है, हालांकक यह
महंगा है। ऄसंधारणीय तरीके से आनके द्वारा भूजल दोहन ककये जाने से भूजल-र्सतर में कमी अ रही
है। ट्यूबवेल के माध्यम से सवायवधक ससचाइ ईिर प्रदेश में की जाती है तत्पश्चात राजर्सथान,
पंजाब, मध्य प्रदेश, गुजरात और वबहार का र्सथान है।

वचत्र 1: स्त्रोतों द्वारा ससवचत वनवल क्षेत्र

2.1.2 नहर

 1950-51 में नहर को ससचाइ का मुख्य स्रोत माना जाता था तथा भारत के कु ल ससवचत क्षे त्र के
लगभग 50 प्रवतशत नहरों द्वारा सींचा जाता था। 1960 के दशक में, सरकार के प्रोत्साहन द्वारा
ट्यूबवेल द्वारा ससवचत क्षेत्र में ऄत्यवधक वृवद्ध हुइ। नतीजतन, नहर द्वारा ससवचत क्षेत्र घटकर 40
प्रवतशत से भी कम रह गया और 2009-10 में यह 26 प्रवतशत हो गया।
 नहरें वनम्न एवं समतल क्षेत्रों, ईत्पादक मैदानी क्षेत्रों में ऄवधक प्रभावी होती हैं, जहां सतही जल
वनकासी का बारहमासी स्रोत ईपलब्ध है। ऐसी वर्सथवतयां अदशय रूप में भारत के ईिरी मैदानों,
कश्मीर एवं मवणपुर की घारटयों और पूवी तटीय मैदानों में पाइ जाती हैं (वचत्र 2)। नहरों का ईच्च
घनत्व ईिर प्रदेश में गंगा नहर प्रणाली तथा पंजाब, हररयाणा और पवश्चमी राजर्सथान में आं कदरा
गांधी नहर के साथ पाया जाता है। प्रायद्वीपीय क्षेत्र में, दामोदर, महानदी, गोदावरी, कृ ष्णा,
नमयदा अकद नकदयों में महत्वपूणय नहर प्रणावलयाँ है। नहर ससचाइ में ईिर प्रदेश का पहला र्सथान
है, तत्पश्चात अंध्र प्रदेश का र्सथान है।

2.1.3 तालाब

 ससचाइ तालाब या तालाब ककसी भी अकार में वनर्तमत एक कृ वत्रम जलाशय है। आसमें संरचना के
भाग के रूप में प्राकृ वतक या मानव वनर्तमत झरने भी शावमल हो सकते हैं। देश के कु छ भागों में,
ववशेषकर प्रायद्वीपीय भारत में तालाब ससचाइ का एक महत्वपूणय स्रोत है। कु ल ससवचत क्षेत्र का
लगभग 3 प्रवतशत भाग तालाब ससचाइ के ऄंतगयत अता है।

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 2000-01 में की गइ तीसरी लघु ससचाइ गणना के ऄनुसार, देश में लगभग 5.56 लाख तालाब हैं,
वजनमें से ऄवधकांश तालाब वनम्नवलवखत राज्यों में पाए जाते हैं:
 पवश्चम बंगाल: देश में ववद्यमान कु ल तालाबों का 21.2 प्रवतशत
 अंध्र प्रदेश: 13.6 प्रवतशत
 महाराष्ट्र: 12.5 प्रवतशत
 छिीसगढ़: 7.7 प्रवतशत
 मध्यप्रदेश: 7.2 प्रवतशत
 तवमलनाडु : 7.0 प्रवतशत
 कनायटक: 5.0 प्रवतशत

वचत्र 2: भारत– ससचाइ के स्त्रोत


 हालांकक ग्रीष्म ऊतु के दौरान जब तुलनात्मक रूप से ऄवधक ससचाइ की अवश्यकता होती है , तब
कइ तालाब सूख जाते हैं। आन 15 प्रवतशत तालाबों का ईपयोग नहीं कर पाने के कारण लगभग 1

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वमवलयन-हेरटेयर ससचाइ क्षमता नि हो जाती है। साथ ही तालाबों के कम ईपयोग के कारण


लगभग 2 वमवलयन-हेरटेयर क्षमता नि हो जाती है। ससचाइ के वलए तालाबों का ईपयोग नहीं
ककये जाने के कारण मेघालय, राजर्सथान और ऄरुणाचल प्रदेश में क्षमता हावन तुलनात्मक रूप से
ऄवधक (30% से ऄवधक) है, जबकक गुजरात, नागालैंड, राजर्सथान, ऄंडमान एवं वनकोबार द्वीप
तथा दादर एवं नगर हवेली में तालाबों के ऄल्प ईपयोग के कारण ससचाइ क्षमता में हावन 50% से
ऄवधक है।
2.2 अकार के अधार पर

भारत में ससचाइ पररयोजनाओं को कृ वष योग्य कमांड क्षेत्र (Culturable Command Area: CCA)
के अधार पर तीन वगों में वगीकृ त ककया गया है:
 वृहद- वे पररयोजनाएं वजनमे 10,000 हेरटेयर से ऄवधक ववर्सतृत CCA सवम्मवलत हैं ईवहें वृहद
पररयोजनाएं कहा जाता है।
 मध्यम - वे ससचाइ पररयोजनाएं वजनमें 10,000 हेरटेयर से कम लेककन 2,000 हेरटेयर से ऄवधक
ववर्सतृत CCA क्षेत्र सवम्मवलत हो, ईवहें मध्यम पररयोजनाएं कहा जाता है।
 लघु - ईन ससचाइ पररयोजनाओं को वजनका CCA 2,000 हेरटेयर या ईससे कम क्षेत्र में ववर्सतृत
है ईवहें लघु पररयोजनाओं के रूप में जाना जाता है।

कृ वष योग्य कमांड एररया (CCA) - सकल कमान क्षेत्र में ऄनुपजाउ बंजर भूवम, क्षारीय वमट्टी, र्सथानीय
तालाब, गांव और वनवास र्सथान के रूप में ऄवय क्षेत्र शावमल हैं। आन क्षेत्रों को 'ऄनकल्चरे बल एररया' कहा
जाता है। शेष क्षेत्र जहाँ संतोषजनक ढंग से फसल ईत्पादन ककया जा सकता है ईवहें कृ वष योग्य कमान
क्षेत्र (CCA) के रूप में जाना जाता है। कृ वष योग्य कमांड एररया को 2 वगों में ववभावजत ककया जा
सकता है:
 कल्चरे बल कल्टीवेटेड एररया: वह क्षेत्र जहाँ फसल एक ववशेष समय या फसल की ऊतु में ईगाइ
जाती है।
 कल्चरे बल ऄनकल्टीवेटेड एररया: वह क्षेत्र जहाँ फसल ककसी ववशेष ऊतु में नहीं ईगाइ जाती है।

ऐसा अकवलत ककया गया है कक देश की वृहद एवं मध्यम ससचाइ पररयोजनाओं की सवायवधक ससचाइ
क्षमता लगभग 64 वमवलयन-हेरटेयर है। आन पररयोजनाओं की ससचाइ क्षमता का 66% समग्र देश के
वलए वनर्तमत ककया गया है। 1951 से 1997 तक वृहद और मध्यम पररयोजनाओं के माध्यम से ससचाइ
क्षमता के वनमायण की औसत दर प्रवत वषय 0.51 वमवलयन हेरटेयर है। वषय 1997 से 2005 के दौरान,
क्षमता वनमायण की दर प्रवत वषय 0.92 वमवलयन हेरटेयर पाइ गइ है। क्षमता वनमायण की दर में यह वृवद्ध
संभवत: आन पररयोजनाओं की सफलता के कारण हुइ है, जो कक AIBP (Accelerated Irrigation
Benefit Programme: त्वररत ससचाइ लाभ काययक्रम) के माध्यम से बढ़ी हुइ सहायता के कारण तीव्र
हो गइ है।
सतही एवं भूजल दोनों का लघु ससचाइ पररयोजनाओं में स्रोत के रूप में ईपयोग ककया जाता है, जबकक
वृहद एवं मध्यम पररयोजनाओं में मुख्यत: सतही जल संसाधनों का दोहन ककया जाता है। भूजल लघु
ससचाइ मुख्य रूप से संर्सथागत ववि और ककसानों की र्सवयं की बचत द्वारा ईनके व्यविगत और
सहकारी प्रयासों के माध्यम से की जाती है। सतही जल लघु ससचाइ योजनाएँ अम तौर पर के वल
सावयजवनक क्षेत्र से ही ववि पोवषत की जाती हैं। लघु ससचाइ योजनाओं की सवायवधक ससचाइ क्षमता
75.84 वमवलयन हेरटेयर अकवलत की गइ है, वजनमे से कु छ भाग (58.46 वमवलयन हेरटेयर) भूजल
अधाररत होगा तथा जो कु ल क्षमता का लगभग दो वतहाइ है।

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देश भर में बढ़ती ससचाइ में लघु ससचाइ योजनाओं का मुख्य योगदान है। ईपयोग में ली गइ कु ल
ससचाइ क्षमता का लगभग 65% लघु ससचाइ योजनाओं से प्राप्त होता है। लघु ससचाइ योजना को मोटे
तौर पर वनम्नवलवखत पांच प्रमुख प्रकारों में वगीकृ त ककया गया है:
 कु एं
 कम गहरी ट्यूबवेल
 गहरी ट्यूबवेल (नलकू प)
 सतही प्रवाह योजनाएं
 सतही जल वलफ्ट योजनाएं
वृहद एवं मध्यम की तुलना में लघु ससचाइ योजना
 ससचाइ ववकास के वलए रणनीवतयाँ तैयार करते समय, जल संसाधन योजनाकार को र्सथानीय
दशाओं पर अधाररत प्रत्येक प्रकार की पररयोजना के लाभों की जानकारी होनी चावहए। ईदाहरण
के वलए, वृहद/ मध्यम पररयोजनाओं के माध्यम से दूरर्सथ क्षेत्रों को लाभावववत करना सदैव संभव

नहीं हो सकता है। आन र्सथानों के वलए लघु ससचाइ योजनाएं सबसे ईपयुि होंगी। आसके ऄवतररि,

भूवम धारण आस तरह से ववभावजत ककया जा सकता है कक लघु ससचाइ ऄपररहायय हो। हालांकक,

ससचाइ क्षमता के ववकास की समग्र लागत को कम करने के वलए जहां भी संभव हो, वृहद और
मध्यम पररयोजनाओं का वनमायण ककया जाना चावहए।

2.3 जल ववतरण की तकनीक के अधार पर

 स्रोत से प्राप्त जल को खेत के भीतर ववतररत करने के मामले में वववभन्न प्रकार की ससचाइ तकनीक
ऄलग-ऄलग होती हैं। सामावय तौर पर, ससचाइ का लक्ष्य पूरे खेत में समान रूप से जल की अपूर्तत

करना है ताकक प्रत्येक पौधे को अवश्यक मात्रा में जल प्राप्त हो सके , न तो बहुत ज्यादा और न ही
बहुत कम। वववभन्न ससचाइ तकनीक वनम्नानुसार हैं:
 सतही ससचाइ: सतही ससचाइ प्रणावलयों में, जल सरल गुरुत्वाकषयण प्रवाह द्वारा खेत को तर करने
के वलए और वमट्टी में ररसने के वलए सम्पूणय भूवम पर बहता है। आसे प्राय: बाढ़ ससचाइ कहा जाता
है। आस प्रकार की ससचाइ के पररणाम कृ वष भूवम में बाढ़ अने की वर्सथवत के समान होते हैं। सतही
ससचाइ को वनम्नवलवखत वगों में ईपववभावजत ककया जा सकता है:
o बेवसन ससचाइ का ईपयोग ऐवतहावसक रूप से छोटे क्षेत्रों में ककया जाता है, ये क्षेत्र भूवम के

ककनारे से वघरी हुइ समतल सतह हैं (वचत्र 3)। पूरे बेवसन में शीघ्रता से जल प्रवावहत ककया
जाता है और जल भूवम में ररसता है। बेवसन क्रवमक रूप से जुड़े हो सकते हैं ताकक वमट्टी में
अवश्यक जल अपूर्तत होने के बाद एक बेवसन से ऄगले बेवसन में जल की वनकासी हो जाती
है।
o कुं ड ससचाइ खेत में प्रभावी ढाल की कदशा में छोटी-छोटी समानांतर नहरें बनाकर की जाती है
(वचत्र 4)। प्रत्येक कुं ड के उपरी छोर पर जल छोड़ा जाता है और गुरुत्वाकषयण के प्रभाव के
तहत जल खेत में नीचे की ओर प्रवावहत होता है।
o सीमावत पट्टी, वजसे बॉडयर चेक या बे आरीगेशन के रूप में भी जाना जाता है। सीमावत पट्टी को
लेवल बेवसन और कुं ड ससचाइ का वमवित रूप माना जा सकता है। खेत कइ खंडों या परट्टयों
में ववभावजत ककया जाता है; प्रत्येक पट्टी ऄवय पट्टी के उपर ईठे हुए चेक बैंरस (सीमावतों)
द्वारा ऄलग की जाती है। ये परट्टयां अमतौर पर बेवसन ससचाइ की तुलना में ऄवधक लंबी और
संकरी होती हैं और ये खेत की ढाल के साथ लंबाइ में संरेवखत होती हैं।

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वचत्र 3: बेवसन ससचाइ वचत्र 4: साआफन ट्युब्स के ईपयोग से कुं ड ससचाइ


 र्सथानीयकृ त ससचाइ: र्सथानीयकृ त ससचाइ एक ऐसी प्रणाली है वजसमें एक पूवय वनधायररत पैटनय में
पाआप नेटवकय के माध्यम से वनम्न दाब में जल ववतररत ककया जाता है तथा आस प्रणाली में ऄल्प
मात्रा में प्रत्येक पौधे या आसके वनकट वर्सथत पौधों को जल अपूर्तत की जाती है। आसे वनम्न प्रवाह
ससचाइ प्रणाली/ऄल्प मात्रा ससचाइ/सूक्ष्म ससचाइ के रूप में भी जाना जाता है। विप ससचाइ, र्सप्रे
या सूक्ष्म वछड़काव ससचाइ (माआक्रो सर्सप्रकलर आरीगेशन) और बबलर आरीगेशन (bubbler
irrigation) ससचाइ वववधयों के आस वगय से संबंवधत हैं।

o विप ससचाइ: जैसाकक आस पद्धवत के नाम से र्सपि है विप ससचाइ को टपक ससचाइ के रूप में
भी जाना जाता है (वचत्र 5)। जल प्रत्येक बूँद के माध्यम से पौधों की जड़ों तक पहुंचाया जाता
है। यकद ईवचत ढंग से प्रबंवधत ककया जाए तों यह पद्धवत ससचाइ की सबसे जल-कु शल पद्धवत
हो सकती है, रयोंकक वाष्पीकरण और जल ऄपवाह को वयूनतम ककया जाता है। विप ससचाइ
की खेत जल दक्षता 80 से 90 प्रवतशत है। अधुवनक कृ वष में वाष्पीकरण को कम करने एवं
ईवयरक के ववतरण के वलए विप ससचाइ को प्राय: लालावर्सटक मल्च के साथ सयुंि ककया जाता
है। आसे फर्टटगेशन के रूप में जाना जाता है।

वचत्र 5: विप ससचाइ प्रणाली


o सर्सप्रकलर ससचाइ: सर्सप्रकलर (वछड़काव) या ओवरहेड आरीगेशन में, खेत में एक या एक से
ऄवधक कें द्रीय र्सथानों पर जल पाआप के माध्यम से पहुँचाया जाता है तथा उपरी ईच्च दाब

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वाले सर्सप्रकलर या गन द्वारा ववतररत ककया जाता है (वचत्र 6)। आस पद्धवत में र्सथायी रूप से
र्सथावपत खड़े पाआप के उपर जुड़े र्सप्रे या गन का ईपयोग ककया जाता है तथा यह प्राय: एक
सुदढ़ृ ससचाइ प्रणाली के रूप में जानी जाती है। ईच्च दबाव वाले सर्सप्रकलसय घूमते रहते हैं, आन
सर्सप्रकलसय को रोटर कहा जाता है तथा ये बॉल िाआव, वगयर िाआव या आम्पैरट मैकेवनज्म
द्वारा संचावलत होते हैं। गन का ईपयोग के वल ससचाइ के वलए ही नहीं ककया जाता है, बवल्क
ये डर्सट सेप्रेशन और लॉसगग जैसे औद्योवगक ऄनुप्रयोगों के वलए भी प्रयुि की जाती हैं।
सर्सप्रकलसय पाआप द्वारा जल के स्रोत से जुड़े गवतशील लालेटफामय से भी जोड़े जा सकते हैं।
र्सवचावलत रूप से गवतशील प्रणाली वजसे िेवसलग सर्सप्रकलसय (वचत्र 7) से भी जाना जाता है,
द्वारा छोटे खेतों, खेल के मैदानों, बगीचों और चरागाहों अकद जैसे क्षेत्रों में ससचाइ की जा
सकती है। सर्सप्रकलर ससचाइ में खेत की जल दक्षता 60 से 70% है।

वचत्र 6: सर्सप्रकलर आरीगेशन वचत्र 7: िेवसलग सर्सप्रकलर आरीगेशन


 ईप-ससचाइ: ईप ससचाइ को सीपेज आरीगेशन भी कहा जाता है तथा ईच्च जल र्सतर वाले क्षेत्रों में
खेतो में कइ वषों से ईप ससचाइ का ईपयोग ककया जाता है। यह जल र्सतर में कृ वत्रम रूप से वृवद्ध
करने की एक वववध है ताकक पौधों के जड़ क्षेत्र से नीचे की वमट्टी को नम ककया जा सके । ये
प्रणावलयां प्राय: वनम्न भूवमयों या नदी घारटयों में र्सथायी घास के मैदानों पर वर्सथत होती हैं और
जल वनकासी से सम्बद्ध ऄवसंरचना से जुड़ी होती हैं। यह पसम्पग र्सटेशनों, नहरों, बांधों और प्रवेश
द्वारों की एक प्रणाली है जो नहरों के नेटवकय में जल र्सतर में वृवद्ध या कमी करती है और आस प्रकार
जल र्सतर को वनयंवत्रत करती हैं। ईप-ससचाइ का आर्सतेमाल वावणवज्यक ग्रीनहाईस ईत्पादन में भी
ककया जाता है, अमतौर पर ग्रीनहाईस में लगे पौधों के वलए। आसमें ऄवतररि जल को
ररसाआसरलग के वलए एकवत्रत ककया जाता है।
ससचाइ के आन र्सथानीयकृ त रूपों को ऄपनाने में कइ चुनौवतयां हैं। ईनमें से कु छ नीचे सूचीबद्ध हैं:
 व्यय: प्रारं वभक लागत ओवरहेड वसर्सटम से ऄवधक हो सकती है।
 ऄपवशि: सौययताप विप ससचाइ के वलए ईपयोग ककए जाने वाले ट्यूब्स को प्रभाववत कर सकता है,
वजससे ईनके ईपयोग की ऄववध कम हो सकती है।
 ऄवरोधक: यकद जल को ईवचत ढंग से कफ़ल्टडय नहीं ककया जाता है और ईपकरण की ठीक से
देखरे ख नहीं की जाती है, तो पररणामर्सवरूप यह ऄवरोध ईत्पन्न कर सकता है।
 यकद ससचाइ प्रणाली को ईवचत ढंग से र्सथावपत नहीं ककया जाता है तो जल, समय और फसल की
बबायदी होती है। आन प्रणावलयों के वलए भूवम र्सथलाकृ वत, वमट्टी, जल, फसल, कृ वष-जलवायु
दशाओं, और विप ससचाइ प्रणाली एवं आसके घटकों की ईपयुिता अकद जैसे सभी संबंवधत कारकों
का सावधानीपूवयक ऄध्ययन करना अवश्यक है।

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2.4 जल के ईपयोग के तरीके के अधार पर


कृ वष भूवम में जल अपूर्तत करने के तरीके के अधार पर भी ससचाइ प्रणावलयों को वगीकृ त ककया जा
सकता है, जैसे :
 फ्लो आरीगेशन वसर्सटम: वजसमे ससचाइ जल ससवचत क्षेत्र की ओर प्रवावहत करते हुए पहुँचाया
जाता है। आसे पुन: वनम्नवलवखत वगों में वगीकृ त ककया जा सकता है-
o प्रत्यक्ष ससचाइ: जहां ससचाइ जल वबना ककसी मध्यवती भंडारण के सीधे नदी से प्राप्त ककया
जाता है। आस प्रकार की ससचाइ, नदी के र्सतर को बढ़ाने के वलए एक नदी पर बाँध या बैराज
का वनमायण करके की जाती है तथा आस प्रकार यह ककसी वनकटवती नहर के माध्यम से नदी के
प्रवाह के कु छ भाग को ऄलग कर देता है, नहर में प्रवाह गुरुत्वाकषयण द्वारा होता है।
o जलाशय / तालाब / भंडारण ससचाइ: आस प्रणाली के ऄंतगयत ससचाइ जल नदी से प्राप्त ककया
जाता है, जहां नदी प्रवाह में ऄवरोध का वनमायण कर (जैसे बांध) जल का भंडारण ककया
जाता है। आससे सुवनवश्चत होता है कक जब भी नदी प्रवाह में जल की कमी होती है या जल
प्रवावहत नहीं होता है, तो भी पयायप्त मात्रा में भंडाररत जल ववद्यमान होता है आस भंडाररत
जल द्वारा नहरों की एक प्रणाली के माध्यम से खेतों की ससचाइ जारी रखी जा सकती है।
 वलफ्ट आरीगेशन वसर्सटम: आस प्रणाली में जल का र्सतर भूवम के र्सतर की तुलना में नीचे होता है ऄत:
ससचाइ हेतु जल को पंपों या ऄवय यांवत्रक ईपकरणों द्वारा उपर ईठाया जाता है तथा गुरुत्वाकषयण
के तहत प्रवावहत होने वाली नहरों के माध्यम से कृ वष भूवम में पहुंचाया जाता है। ईदाहरण के
वलए, राजर्सथान में आं कदरा गांधी नहर के एक बड़े भाग में वलफ्ट ससचाइ प्रणाली द्वारा जलापूर्तत की
जाती है।
2.5 जल अपू र्तत की ऄववध के अधार

जल अपूवत की ऄववध के अधार पर भी ससचाइ प्रणावलयों का वगीकरण ककया जा सकता है, जैसे:
 जलमग्न/ बाढ़ तुल्य ससचाइ प्रणाली: कृ वष भूवम की ससचाइ हेतु आस प्रणाली में बाढ़ के दौरान नदी
में प्रवावहत होने वाले जल की बड़ी मात्रा में अपूर्तत की जाती है, आस प्रकार वमट्टी को संतप्त
ृ ककया
जाता है। ऄवतररि जल बह जाता है और आस भूवम का ईपयोग कृ वष के वलए ककया जाता है। आस
प्रकार की ससचाइ में नदी के बाढ़ के जल का ईपयोग ककया जाता है और आसवलए यह प्रणाली वषय
के एक वनवश्चत समय तक ही सीवमत होती है। अमतौर पर नदी डेल्टा के वनकटवती क्षेत्रों में आस
प्रकार की ससचाइ की जाती है,जहां नदी और भूवम की ढलान मंद होती है। दुभायग्य से, कइ नकदयों
वजनके तटों पर पहले यह ससचाइ प्रणाली प्रयुि की गइ थी, वपछली शताब्दी में ईन पर बाँध बना
कदए गए हैं और आस प्रकार आस ससचाइ प्रणाली के प्रयोग में कमी अइ है।
 बारहमासी ससचाइ प्रणाली: आस प्रणाली में फसल के पूरे जीवन चक्र के दौरान वनयवमत ऄंतरालों
पर फसल के वलए अवश्यक जल की मात्रा के ऄनुसार ससचाइ जल की अपूर्तत की जाती है। आस
प्रकार की ससचाइ के वलए जल नकदयों से या कुँ ओं से प्राप्त ककया जा सकता है। आस प्रकार स्रोत या
तो सतही जल या भूजल स्त्रोत हो सकता है तथा जल अपूर्तत जल प्रवाह या वलफ्ट ससचाइ प्रणाली
द्वारा की जा सकती है।
2.6 ससचाइ पद्धवत का चयन

 जैसा कक हमने उपर चचाय की है, फसलों तक जल अपूर्तत करने के कइ तरीके हैं। हालांकक, ईवचत
पद्धवत का चयन एक चुनौती है। यह पद्धवत ववशेष फसल एवं वमट्टी के ऄनुकूल होनी चावहए तथा
वन:संदह
े जल की ईपलब्धता पर वनभयर करती है। ईदाहरण के वलए, नीचे वववभन्न प्रकार की
फसलों के ऄनुरूप ईपलब्ध तरीकों की एक सूची दी गइ है।

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पद्धवत ईपयुि फसलें

सीमा पट्टी ससचाइ गेह,ँ पिेदार सवब्जयाँ, चारा

कुं ड ससचाइ कपास, गन्ना, अलू

बेवसन ससचाइ बागान

तावलका 1: वववभन्न फसलों के वलए ससचाइ पद्धवत

 वजन र्सथानों पर जल की कमी पाइ जाती है तथा लागत की तुलना में जल के संरक्षण को ऄवधक
प्राथवमकता दी जाती है, ऐसे र्सथानों पर सर्सप्रकलर और विप ससचाइ प्रणाली जैसी ऄवय पद्धवतयाँ
ऄपनाइ जाती हैं। यद्यवप ऄवधकांश ईन्नत देश आन पद्धवतयों को ऄपना रहे हैं, लेककन भारत में
मुख्य में रूप से अर्तथक बाधाओं के कारण आन पद्धवतयों का प्रयोग नहीं ककया गया है। हालांकक,
समय बीतने के साथ भूवम और जल संसाधन में कमी होती जाती है, ऄत: भारत में भी आन
पद्धवतयों को ऄपनाना अवश्यक हो जाएगा।
3. ससचाइ दक्षता
 ससचाइ दक्षता को पौधों की जड़ों के साथ ववद्यमान वमट्टी की गहराइ में संग्रहीत जल तथा ससचाइ
प्रणाली द्वारा अपूर्तत ककए गए जल के ऄनुपात के रूप में पररभावषत ककया जाता है। आस प्रकार,
ससचाइ प्रणाली द्वारा ईपलब्ध कराए गए और पौधों की जड़ों के वलए ईपलब्ध नहीं कराए गए जल
का ईपयोग नहीं हो पाता है तथा आससे ससचाइ दक्षता कम हो जाती है। वनम्न ससचाइ दक्षता का
प्रमुख कारण ऄवतररि ससचाइ जल की सकक्रय जड़ों की गहराइ की तुलना में ऄवधक गहराइ में
वर्सथत वमट्टी की परतों से वनकासी है। ससचाइ के जल का गहराइ में वर्सथत वमट्टी की परतों से ररसाव
भूजल र्सतर के प्रदूषण का कारण हो सकता है। ऄत्यवधक ससचाइ और ऄल्प ससचाइ फसलों के वलए
हावनकारक हैं। आस प्रकार, ससचाइ का समय और जल अपूर्तत की मात्रा फसल की पयायप्त ईपज के
वलए महत्वपूणय है। ईदाहरण के वलए गेहं के मामले में, ससचाइ के ईवचत समय एवं ऄंतराल से जल
के कम ईपयोग के साथ ईपज में 50 प्रवतशत की वृवद्ध होती है।
 ऄवधकांश अधुवनक ससचाइ प्रणावलयों के बावजूद 100 प्रवतशत ससचाइ दक्षता नहीं पाइ जाती है।
ईच्च ससचाइ दक्षता प्राप्त करने में प्रमुख ऄवरोध साआल रूट ज़ोन की गहराइ के पुनभयरण हेतु
अवश्यक जल की मात्रा का ईवचत ऄनुमान प्राप्त करने में ऄसमथयता तथा मूलरोमों की मृदा में
वार्सतववक गहराइ से संबंवधत ईवचत एवं ररयल टाआम जानकारी का ऄभाव हैं ।
 परं परागत ऄनुमानों के ऄनुसार आितम प्रबंधन प्रकक्रयाओं के तहत 70 प्रवतशत औसत ससचाइ
दक्षता होने का ऄनुमान है। आस प्रकार, सर्सप्रकलर और विप ससचाइ के तहत औसत जल हावन 30
प्रवतशत है, लेककन कुं ड एवं बाढ़ ससचाइ के तहत यह 50 प्रवतशत से ऄवधक हो सकती है। सवोिम
प्रयासों के साथ विप ससचाइ द्वारा 90 प्रवतशत तक दक्षता प्राप्त की जा सकती है। शहरी ससचाइ
और लैंडर्सके प आरीगेशन के तहत ससचाइ जल की हावन, अपूर्तत ककये गए जल की 50 प्रवतशत तक
हो सकती है।
 भारत के राष्ट्रीय जल वमशन का ईद्देश्य जल ईपयोग दक्षता में 20 प्रवतशत की वृवद्ध करना है। देश
में कु ल जल ईपयोग का 80 प्रवतशत से ऄवधक कृ वष गवतवववधयों से सम्बद्ध है। आसवलए, आस
वमशन का मुख्य फोकस वृहद एवं मध्यम ससचाइ पररयोजनाओं, CAP&WM (कमान क्षेत्र
काययक्रम एवं जल प्रबंधन) और AIBP (त्वररत ससचाइ लाभ काययक्रम) अकद जैसी वववभन्न ससचाइ
पररयोजनाओं की दक्षता में सुधार पर है।

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4. ससचाइ एवं राष्ट्रीय जल नीवत


 भारत ने 1987 में राष्ट्रीय जल नीवत ऄपनाइ। 2002 में आस नीवत को संशोवधत ककया गया। यह
नीवत आस तथ्य पर बल देती है कक जल संसाधनों का वनयोजन, ववकास और प्रबंधन राष्ट्रीय
दृविकोण से संचावलत ककए जाने की अवश्यकता है। आस नीवत के ससचाइ से सम्बंवधत कु छ पहलु
वनम्नवलवखत हैं:
 ककसी व्यविगत पररयोजना में या ककसी वाटरशेड में ससचाइ योजना के तहत भूवम की ससचाइ
क्षमता, जल के सभी ईपलब्ध स्रोतों से प्राप्त संभव लागत प्रभावी ससचाइ ववकल्प और जल ईपयोग
दक्षता को ऄवधकतम करने के वलए ईपयुि ससचाइ तकनीकों को पूणयतया ध्यान में रखा जाना
चावहए। ईत्पादन को ऄवधकतम करने की अवश्यकता को ध्यान में रखते हुए ससचाइ गहनता ऐसी
होनी चावहए ककऄवधक से ऄवधक खेतों को ससचाइ का लाभ प्राप्त हो सके ।
 जल ईपयोग और भूवम ईपयोग नीवतयों के मध्य गहन समेकन होना चावहए।
 ककसी ससचाइ पद्धवत में जल का ववतरण समानता एवं सामावजक वयाय के अधार पर होना
चावहए। चक्रीय जल ववतरण प्रणाली तथा ऄवधकतम मूल्य एवं तकय संगत मूल्य वनधायरण के तहत
ऄनुमापी अधार पर अपूर्तत कर बड़े एवं छोटे खेतों के मध्य व्याप्त जल की ईपलब्धता में
ऄसमानताओं को दूर करना चावहए।
 यह सुवनवश्चत करने के वलए ठोस प्रयास ककए जाने चावहए कक ससचाइ क्षमता का पूरी तरह
ईपयोग ककया जाए। आस ईद्देश्य के वलए, सभी ससचाइ पररयोजनाओं में कमान क्षेत्र ववकास
दृविकोण ऄपनाया जाना चावहए।
 र्सवच्छ जल का सवायवधक ईपभोग ससचाइ के वलए ककया जाता है ऄत: जल की प्रत्येक आकाइ पर
ऄवधकतम ईत्पादकता प्राप्त करना ससचाइ का लक्ष्य होना चावहए। जहाँ संभव हो वैज्ञावनक प्रबंधन
खेत प्रणावलयाँ तथा सर्सप्रकलर एवं विप ससचाइ पद्धवत ऄपनाइ जानी चावहए।
 वैज्ञावनक एवं लागत प्रभावी ईपायों द्वारा जल-लालाववत या लवण प्रभाववत क्षेत्रों का भूवम-सुधार
करना कमान क्षेत्र ववकास काययक्रम का भाग होना चावहए।

5. कमान क्षे त्र ववकास एवं जल प्रबं ध न (CADWM)


 पहली पंचवषीय योजना (1951-56) के पश्चात् ससचाइ क्षेत्र का योजनाबद्ध ववकास व्यापक पैमाने
पर शुरू हुअ। दूसरी पंचवषीय योजना, तीसरी पंचवषीय योजना और वार्तषक योजनाओं 1966-
69 के तहत नइ पररयोजनाएं अरम्भ की गइ। चौथी पंचवषीय योजना के दौरान चालू योजनाओं
को पूरा करने पर जोर कदया गया।
 पांचवीं योजना (1974-78) में संभाववत वनमायण और ईपयोग के बीच बढ़ते ऄंतराल का ऄनुभव
ककया गया तथा तदनुसार 1974-75 में कें द्रीय प्रायोवजत योजना के रूप में कमान क्षेत्र ववकास
काययक्रम (CADP) का अरम्भ ककया गया। CADP देश में प्रमुख और मध्यम ससचाइ
पररयोजनाओं के कमान क्षेत्रों के वलए एक एकीकृ त क्षेत्र ववकास दृविकोण है। आस काययक्रम का
ईद्देश्य कमान क्षेत्र में वनर्तमत की गइ ससचाइ क्षमता और ईपयोग में ली जा रही ससचाइ् क्षमता के
बीच ववद्यमान ऄंतराल को कम करना है।
 प्रारं भ में CADP को 1974 में आं कदरा गाँधी नहर कमान क्षेत्र में प्रर्सतुत ककया गया था। माचय
1998 तक 21.78 वमवलयन हेरटेयर के कृ वष योग्य कमान क्षेत्र (CCA) तथा 23 राज्यों और 2
कें द्रशावसत प्रदेशों में ववर्सतार के साथ कमान क्षेत्र ववकास के वलए अरम्भ की गइ पररयोजनाओं की
कु ल संख्या 217 हो गइ।
 1 ऄप्रैल, 2004 को आस काययक्रम को पुनगयरठत ककया गया तथा आसमें मुख्य रूप से कृ वष ववभाग
द्वारा संचावलत गवतवववधयों को आस काययक्रम से हटा कर कवतपय ऄवय गवतवववधयों का समावेश
करते हुए 'कमान क्षेत्र ववकास एवं जल प्रबंधन काययक्रम' (CADWMP) के रूप में संशोवधत ककया

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गया है। यह योजना 11 वीं पंचवषीय योजना (2008-09 से 2011-12) के दौरान राज्य क्षेत्र की
योजना के रूप में लागू की जा रही है। बारहवीं योजना के दौरान, आस योजना को त्वररत ससचाइ
लाभ काययक्रम (AIBP) के साथ समान रूप से कक्रयावववत ककया जाना है। लगभग 7.6 Mha को
कवर करने हेतु बारहवीं योजना (कें द्र का वहर्ससा) के वलए कु ल प्रर्सताववत पररव्यय 15,000 करोड़
रुपये है।
 आस काययक्रम में खेतों पर नहरों का वनमायण और खेत में वनकासी व्यवर्सथा, भूवम का समतलन एवं
वनधायरण तथा सतही जल एवं भूजल के संयुि ईपयोग जैसे खेत संबंधी ववकास कायों का
वनष्पादन सवम्मवलत है। ककसानों को जल की समान और समय पर अपूर्तत सुवनवश्चत करने के वलए
वारबंदी या जल ववतरण की चक्रीय प्रणाली अरम्भ की गइ है।
 फसल प्रवतरूप के ववववधीकरण पर फोकस ककया गया है ताकक जल का ऄवधकतम ईपयोग
सुवनवश्चत ककया जा सके और भूवम की ईत्पादकता में वृवद्ध हो। आस तरह के पररवतयन के दौरान
वतलहन, दलहन अकद के ईत्पादन पर बल कदया जाएगा ताकक ईनकी कमी की पूर्तत की जा सके ।
 CADP के ऄंतगयत, जल संसाधन मंत्रालय ने CAD पररयोजनाओं में जागरूकता लाकर और
ककसानों के संघों को वविीय सहायता प्रदान कर सहभागी ससचाइ प्रबंधन (नीचे चचाय की गइ है)
को प्रर्सतुत ककया है और प्रोत्सावहत भी ककया है। ससवचत कमान क्षेत्रों में जलग्रर्सत क्षेत्रों में भू वम
सुधार करना भी आस काययक्रम का एक महत्वपूणय घटक है।
 आस काययक्रम के शुरू होने के बाद से माचय, 2012 के ऄंत तक लगभग 20.149 वमवलयन हेरटेयर
क्षेत्र को आसके तहत कवर ककया गया है।
6. सहभागी ससचाइ प्रबं ध न (Participatory Irrigation
Management : PIM)
 कोइ भी ससचाइ पररयोजना तब तक सफल नहीं हो सकती, जब तक कक वह साझेदारों से सम्बद्ध
नहीं हो। ये साझेदार ककसान र्सवयं होते है। वार्सतव में, र्सवतंत्रता प्रावप्त के पूवय के समय में खेत की
नहरों के नवीनीकरण और रखरखाव में लोगों की सहभावगता एक प्रमुख परम्परा थी।
 हालांकक, र्सवतंत्रता के बाद आस प्रथा पर नौकरशाही ने ऄवतक्रमण कर वलया और आस बात की
ऄनुभूवत हुइ कक ककसानों की भागीदारी के वबना ककसी ससचाइ पररयोजना का पूणय सामथ्यय प्राप्त
नहीं हो सकता है।
 ससचाइ प्रणाली के प्रबंधन में ककसानों की भागीदारी की ऄवधारणा को भारत सरकार की नीवत के
रूप में र्सवीकार ककया गया है और आसे 1987 में ऄपनाइ गइ राष्ट्रीय जल नीवत में शावमल ककया
गया है। यह कहा गया है कक
 “ससचाइ प्रणाली के प्रबंधन के वववभन्न पहलुओं में, ववशेष रूप से जल ववतरण और जल दरों के
संग्रहण में ककसानों को ऄवधकावधक शावमल करने के प्रयास ककए जाने चावहए। जल के कु शल
ईपयोग और जल प्रबंधन के सम्बवध में ककसानों को वशवक्षत करने के वलए र्सवैवच्छक संर्सथाओं की
सहायता प्राप्त की जानी चावहए।”
 कें द्र प्रायोवजत कमान क्षेत्र ववकास काययक्रम के तहत आन क्षेत्रों में ककसानों की भागीदारी के वलए
नीवतगत कदशा-वनदेश तैयार ककए गए थे। PIM के ईद्देश्यों में से एक ईपयोगकतायओं के बीच
ससचाइ प्रणाली और जल संसाधनों के र्सवावमत्व की भावना लाना ताकक जल के ईपयोग और
ससचाइ प्रणाली के संरक्षण में ऄथयव्यवर्सथा को बढ़ावा कदया जा सके ।
 पररचालन र्सतर पर, जल ईपभोिा संघ (WUA), ववतरण सवमवत और पररयोजना सवमवतयों का
गठन ककया गया है। कें द्र सरकार द्वारा ऄवधवनयवमत एक मॉडल ऄवधवनयम की सहायता से
वववभन्न राज्यों ने PIM के वलए कानून बनाए हैं। 2010 में सभी राज्यों में वववभन्न WUA के तहत
कवर ककया गया कु ल क्षेत्र लगभग 15 वमवलयन हेरटेयर है।

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7. त्वररत ससचाइ लाभ कायय क्र म (Accelerated


Irrigation Benefits Programme : AIBP)
 भारत सरकार ने 1996-97 में त्वररत ससचाइ लाभ काययक्रम (AIBP) अरं भ ककया। यह काययक्रम
कें द्रीय ऊण सहायता (CLA) द्वारा कु छ ऄपूणय प्रमुख ससचाइ पररयोजनाओं तथा काययक्रमों को पूरा
करने के वलए राज्यों को प्रोत्सावहत करने हेतु प्रारम्भ ककया गया था, ये पररयोजनाएँ तथा
काययक्रम पूरा होने के ऄवग्रम चरण में थे। वनमायण के ऄवग्रम चरण से यह अशय होगा कक:
 पहले से ही खचय ककए गए नवीनतम र्सवीकृ त ऄनुमावनत पररयोजना लागत का कम से कम 50%
रावश खचय की जा चुकी है;
 पररयोजना के अवश्यक कायों की कम से कम 50% भौवतक प्रगवत हो चुकी है; तथा
 AIBP के तहत पररयोजना को शावमल करने के वलए राज्य का प्रर्सताव एक ववश्वसनीय वनमायण
ऄनुसूची द्वारा समर्तथत होना चावहए। यह ऄनुसच
ू ी लागू ककये जा चुके कायों तथा अगे वनष्पाकदत
ककये जाने वाले कायों को ईनकी लागतों के साथ दशायती है।
 आस काययक्रम में ईन वृहद, मध्यम तथा ववर्सतार, नवीनीकरण और अधुवनकीकरण (एरसटेंशन,
रे नोवेशन एंड मॉडनायआजेशन :ERM) ससचाइ पररयोजनाओं को आस काययक्रम में शावमल ककए जाने
के वलए ववचार ककया गया था, वजवहें योजना अयोग से वनवेश मंजूरी प्राप्त थी, जो वनमायण के
ऄवग्रम चरण में थी और ऄगले चार वविीय वषय में पूरी की जा सकती थी लेककन आवहें ककसी भी
प्रकार की वविीय सहायता प्राप्त नहीं थी।
8. जलीय वनकायों की मरम्मत, नवीकरण एवं पु न र्सथाय प न हे तु
योजना (ररपे य र, रे नोवे श न एं ड ररर्सटोरे श न ऑफ़ वाटर बॉडीज
र्सकीम)
 भारत में समुदायों की वववभन्न अवश्यकताओं को पूरा करने हेतु ककए गए जल संरक्षण में तालाबों
और झीलों ने पारं पररक रूप से महत्वपूणय भूवमका वनभाइ है। ससचाइ क्षमता का 6.27 वमवलयन
हेरटेयर लघु ससचाइ स्रोतों (तालाब आत्याकद) में वनवहत है। लगभग 15-20 प्रवतशत स्त्रोतों का
ककवही कारणों से ईपयोग नहीं ककया जाता है, आसके पररणामर्सवरूप ससचाइ क्षमता का 1
वमवलयन हेरटेयर समाप्त हो जाता है तथा ऄवय ससचाइ क्षमता का लगभग 2 वमवलयन हेरटेयर
तालाबों के कम ईपयोग के कारण समाप्त हो जाता है।
 भारत सरकार ने जनवरी 2005 में "कृ वष से जुड़े जल वनकायों की मरम्मत, नवीनीकरण और
पुनर्सथायपना (RRR) के वलए राष्ट्रीय पररयोजना" हेतु एक पायलट योजना को मंजूरी दी। कें द्र और
राज्य की वविीय भागीदारी 3:1 के ऄनुपात में है। आस योजना के ईद्देश्य जल वनकायों की भंडारण
क्षमता को पुनः र्सथावपत करना और बढ़ाना तथा ईनकी पहले जैसी ससचाइ क्षमता को पुन: प्राप्त
करना एवं ससचाइ क्षमता में वृवद्ध करना अकद थे। आसके पायलट चरण में, 1.73 लाख हेरटेयर की
ससचाइ क्षमता प्राप्त की गइ।
 आस पायलट योजना की सफलता के साथ, आस योजना की ऄववध 12वीं पंचवषीय योजना तक
बढ़ा दी गइ। आस योजना के तहत 6235 करोड़ रु की के वद्रीय सहायता के साथ 10,000 जल
वनकायों में RRR कायय शुरू करने की पररकल्पना की गइ। आन 10,000 जल वनकायों में से 9,000
जल वनकायों के ग्रामीण क्षेत्रों से होने का प्रर्सताव है तथा शेष 1000 जल वनकाय शहरी क्षेत्रों में
होंगे। ईन जल वनकायों के प्रर्सताव को जल वनकायों की RRR योजना के ऄंतगयत शावमल माना
जाएगा, वजन पर एकीकृ त जल प्रबंधन काययक्रम (IWMP) कायायवववत ककया गया है।

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आस योजना के मुख्य ईद्देश्य


 जल वनकायों की पुनर्सथायपना एवं व्यापक सुधार के पररणामर्सवरूप तालाब भण्डारण क्षमता में
वृवद्ध।
 भूजल पुनभयरण
 पेयजल की ईपलब्धता में वृवद्ध
 कृ वष/बागवानी संबंधी ईत्पादकता में सुधार
 तालाब कमानों के जलग्रहण क्षेत्रों की वृवद्ध
 पयायवरण संबंधी लाभों के माध्यम से संशोवधत जल ईपयोग दक्षता; सतही जल एवं भूजल के

संयुि ईपयोग में वृवद्ध;

 प्रत्येक जल वनकाय के सतत प्रबंधन हेतु सामुदावयक भागीदारी एवं र्सवावलंबी व्यवर्सथा;
 बेहतर जल प्रबंधन हेतु समुदायों की क्षमता वनमायण करना।

9 वचुय ऄ ल वाटर (Virtual Water)


 "वचुयऄल वाटर" की ऄवधारणा 1990 के दशक के अरम्भ में प्रोफे सर एलन द्वारा प्रर्सतुत की गइ
थी तथा वचुयऄल वाटर से अशय कृ वष वर्सतुओं के ईत्पादन के वलए अवश्यक जल से है या ऄवय
शब्दों में कृ वष ईत्पादों में "ऄंतवनर्तहत" जल से है। ईदाहरण के वलए, एक मीरिक टन गेहं का

ईत्पादन करने के वलए औसतन 1,600 घन मीटर जल की अवश्यकता होती है। आस जल को


अभासी माना जाता है रयोंकक गेहं के बढ़ने के बाद आसके ईत्पादन में प्रयुि जल गेहं में सवम्मवलत
नहीं रहता है। वचुयऄल वाटर की ऄवधारणा हमें यह समझने में सहायता करती है कक वववभन्न
वर्सतुओं और सेवाओं का ईत्पादन करने के वलए ककतने जल की अवश्यकता होती है। ऄधय-शुष्क
और शुष्क क्षेत्रों में ईपलब्ध दुलभ
य जल का कु शलतम ईपयोग वनधायररत करने में ककसी वर्सतु या
सेवा के वचुऄ
य ल वाटर का मूल्य ईपयोगी हो सकता है। वचुऄ
य ल वाटर िेड से अशय आस ववचार से
है कक जब वर्सतुओं और सेवाओं का अदान-प्रदान ककया जाता है, तो वचुयऄल वाटर का अदान-
प्रदान भी होता है। जब कोइ देश घरे लू र्सतर पर ईत्पादन के बजाय एक टन गेहं का अयात करता
है, तो वह देश 1,300 घन मीटर र्सवदेशी जल की बचत करता है। यकद ककसी देश में जल की कमी

ववद्यमान है, तो 'बचाए' गए जल का ककसी ऄवय कायय में ईपयोग ककया जा सकता है। यकद

वनयायतक देश में जल की कमी है, तो भी यह 1,300 रयूवबक मीटर का वचुयऄल वाटर का वनयायत
करता है रयोंकक गेहं की वृवद्ध के वलए प्रयुि जल ऄवय प्रयोजनों के वलए ईपलब्ध नहीं रहता है।
आज़राआल जैसे देश जहाँ जल की कमी है, ववश्व के वववभन्न वहर्ससों में बड़ी मात्रा में जल के वनयायत
को रोकने के वलए संतरा (ईत्पादन में ऄपेक्षाकृ त ऄवधक जल की अवश्यकता) के वनयायत को
हतोत्सावहत करते हैं।
वचुऄ
य ल वाटर के अकलन की सीमाएँ
 वचुयऄल वाटर का अकलन आस धारणा पर वनभयर करता है कक जल चाहे वषाय के रूप में प्राप्त हो या
ससचाइ प्रणाली के माध्यम से प्रदान ककया गया हो, जल के सभी स्रोत समान मूल्य के हैं।

 पूणत
य या यह माना जाता है कक ईन गवतवववधयों वजनमे ऄवधक जल का ईपयोग ककया जाता है, को
कम कर बचाए गए जल का ईपयोग ईन गवतवववधयों में ककया जाएगा वजनमे ऄपेक्षाकृ त कम जल
का ईपयोग ककया जाएगा। ईदाहरण के वलए, ऄंतर्तनवहत धारणा यह है कक रें जलैंड बीफ़ ईत्पादन

में प्रयोग ककया जाने वाला जल ककसी वैकवल्पक ईत्पाद, कम जल-गहन गवतवववध के वलए ईपलब्ध
होगा।

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 यह माप पयायवरणीय हावन के एक संकेतक के रूप में ववफल रहती है और न ही यह कोइ संकेत
प्रदान करती है कक रया जल संसाधनों का ईपयोग संधारणीय वनकास सीमा के भीतर ककया जा
रहा है या नहीं। आसवलए वचुयऄल वाटर के ऄनुमानों का ईपयोग नीवत वनमायताओं के वलए कोइ
मागयदशयन प्रदान नहीं करता है ताकक पयायवरण के ईद्देश्यों को पूरा ककया जा सके ।
 खाद्य अयात करने से भववष्य में राजनीवतक वनभयरता का खतरा ईत्पन्न हो सकता है।
"अत्मवनभयरता" की धारणा कइ देशों के लोगों के बीच गौरव की बात है।

वचत्र 8: प्रदेशों में वचुऄ


य ल वाटर का प्रवाह
 संक्षेप में, वचुयऄल वाटर िेड जल से सम्बंवधत समर्सयाओं पर एक नवीन, ववर्सताररत पररप्रेक्ष्य
प्रर्सतुत करता है। जल संसाधनों के मांग-ईवमुख प्रबंधन से अपूर्तत-ईवमुख प्रबंधन तक के हाल के
घटनाक्रमों के फ्रेमवकय में यह प्रशासन के नए क्षेत्र ईपलब्ध कराता है तथा यह वववभन्न दृविकोण,
अधारभूत वर्सथवतयों और वहतों के ववभेदन और संतुलन की सुववधा प्रदान करता है। ववश्लेषणात्मक
रूप से यह ऄवधारणा हमें वैवश्वक, क्षेत्रीय और र्सथानीय र्सतरों और ईनके संबंधों के बीच ऄंतर
करने में सक्षम बनाती है। आस प्रकार वचुऄ
य ल वाटर िेड जल-के वद्रीयता के संकीणय वाटरशेड
दृविकोण को दूर कर सकता है।

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मानव बस्ततयाां
स्वषय सूची
1. मानव बस्ततयाां : एक पररचय ____________________________________________________________________ 63

1.1 बस्ततयों का वगीकरण ______________________________________________________________________ 63

1.1.1. ग्रामीण एवां नगरीय बस्ततयों में ाऄांतर _______________________________________________________ 63

1.1.2. ग्रामीण बस्ततयों के प्रकार _______________________________________________________________ 64

2. भारत की बस्ततयााँ ___________________________________________________________________________ 65

2.1. भारत के स्वशेष सन्दभभ में ग्रामीण बस्ततयों के प्रकार _________________________________________________ 66

2.1.1. गुस्छित बस्ततयाां (Clustered Settlements) ________________________________________________ 66

2.1.2. ाऄधभ गुस्छित बस्ततयाां (Semi Clustered Settlements) ________________________________________ 66

2.1.3. पल्ली बस्ततयााँ (Hamleted Settlements) _________________________________________________ 67

2.1.4. पररस्िप्त बस्ततयाां (Dispersed or Scattered Settlement)_____________________________________ 67

3. ग्रामीण बस्ततयों के प्रस्तरूप (Patterns of Rural Settlements) _________________________________________ 68

4. ग्रामीण बस्ततयों के प्रकायभ (Functions of Rural Settlements) _________________________________________ 71

5. ग्रामीण बस्ततयों को प्रभास्वत करने वाले कारक _______________________________________________________ 71

6. ग्रामीण बस्ततयों की समतयाएां (Problems of rural Settlements) _______________________________________ 73

7. नगरीय बस्ततयाां: एक पररचय ___________________________________________________________________ 73

7.1. नगरों की स्तथस्त और स्वन्यास ________________________________________________________________ 75

7.2. नगरीय- ग्रामीण ाऄांतसंबांध (Town-Village Inter-relationship) ______________________________________ 76

7.3. नगरीय बस्ततयों का वगीकरण ________________________________________________________________ 76

7.4. नगरों का प्रकायाभत्मक वगीकरण (Functional Classification of Towns) _______________________________ 77

7.5. नगरीय ाअकाररकी (Urbun Morphology)______________________________________________________ 80

7.6. नगरों का के न्रीय व्यापाररक िेत्र (CBD) ________________________________________________________ 80

7.7. नगर के सांदभभ में के न्रीयतथल की सांकल्पना (Central Place) __________________________________________ 81

7.8. नगरीय बस्ततयों के प्रकार (Types of Urban Setements) __________________________________________ 82

7.9. नगरीय बस्ततयों की समतयाएां (Problems of Urban Settlements) ___________________________________ 84

8. भारत में नगरीय बस्ततयाां (Urban Settlements in India) _____________________________________________ 88

8.1. भारत में नगरीकरण (Urbanisation in Indian) __________________________________________________ 91

8.2. भारत में मस्लन बस्ततयाां (Slums in India)______________________________________________________ 93

8.3. भारत में नगर स्नयोजन (Urban Planning in India) ______________________________________________ 95

8.3.1. भारत की नगरीय नीस्त (India's Urban Policy) _____________________________________________ 96

9. नगरीकरण से सांबस्ां धत नवीनतम घटनाक्रम __________________________________________________________ 98

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1. मानव बस्ततयाां : एक पररचय


 रोटी, कपड़ा और मकान मनुष्य की तीन मूलभूत ाअवश्यकताएां हैं। भले ही ाआस कथन में मकान को
तीसरे तथान पर रखा गया है, लेककन ाआससे मकान का महत्व कम नहीं हो जाता। गमी, सदी और
बरसात से बचाव के स्लए मकान ाऄस्नवायभ है। ाअकद काल की सामान्य सी गुफाओं एवां झोपस्ड़यों से
प्रारां भ करके सभ्यता के स्वकास क्रम में मनुष्य, स्वशालकाय गगनचुांबी भवनों तक पहांच गया है।
ाऄब मनुष्य ाऄांतररि में बस्ततयाां बसाने का सपना देख रहा है। बतती में रहने के स्लए मकान, पशुओं
के स्लए बाड़े (घेर) और औजारों, ाईपकरणों और ाईत्पाकदत वततुओं को रखने के स्लए भांडार गृह
और ाआन गृहों को जोड़ने वाली सड़क शास्मल है।
 मकान या घर मनुष्य की मूलभूत ाअवश्यकता है। बस्ततयाां साांतकृ स्तक भूदश्ृ य का मूल लिण है।
ककसी िेत्र की बस्ततयों की स्तथस्त, ाअकृ स्त और स्वतरण का प्रस्तरूप ाईसके पयाभवरण से सांबांस्धत
होता है। बस्ततयों से लोगों की जीवन पद्धस्त का भी पता चलता है। स्वस्शष्ट व्यावसास्यक
ाअवश्यकताओं और स्नवास्सयों के तथान की जरूरतों के कारण बस्ततयों में काइ पररवतभन ककए जाते
हैं।
 शुरुाअत में मनुष्य भोजन सांग्राहक और ाअखेटकों के िोटे-िोटे समूह में रहता था। मनुष्य के वल
घुमक्कड़ जीवन व्यतीत करता था। कु ि समय बाद मनुष्य ने पशुपालन प्रारां भ ककया और बाद में
कृ स्ष। ाआन पररवतभनों के कारण मनुष्यों को बतती बनाकर रहना पड़ा। कृ स्ष और पशुपालन से हर
समय भोजन की ाईपलब्धता के कारण तथााइ बस्ततयाां बसना शुरू हो गाइ। धीरे -धीरे ककसानों के
पास ाऄपने ाईपभोग के बाद भी खाद्यान्न बचने लगे। ाआससे कु ि लोग गैर कृ स्ष कायभ करने लगे। जैसे-
बतभन बनाना, कपड़ा बुनना, लकड़ी और धातु की ाईपयोगी वततुएां बनाना ाअकद। ाआस तरह
ाऄस्तररक्त वततुओं की ाऄदला-बदली शुरू हाइ। धीरे -धीरे यह व्यापार का रूप लेने लगा। ाइसा से
लगभग 2500 वषभ पूवभ नगरों का स्वकास हाअ। ाआस प्रकार बस्ततयों के रूप और कायभ बदलने लगे।

1.1 बस्ततयों का वगीकरण

बस्ततयों को प्रायाः दो वगों में स्वभास्जत ककया जाता है। (i) नगरीय बस्ततयाां (ii) ग्रामीण बस्ततयाां।

1.1.1. ग्रामीण एवां नगरीय बस्ततयों में ाऄां त र

ग्रामीण बस्ततयाां (Rural Settlements) नगरीय बस्ततयाां (Urban Settlements)

व्यवसायाः ग्रामीण बस्ततयों में रहने वाले लोग नगरीय बस्ततयों के लोग ाईद्योग व्यापार, पररवहन
कृ स्ष जैसे प्राथस्मक व्यवसायों में लगे होते हैं।
और सेवाओं जैसे स्ितीयक, तृतीयक और चतुथभक
व्यवसायों में लगे होते है।
ाअकार: ये बस्ततयाां िोटी होती हैं। ाआनमें घरों ये बस्ततयाां बड़ी होती हैं। कु ि नगर तो स्वशाल िेत्र
की सांख्या कम भी होती है। में फै ले होते हैं। ाआनमें हजारों, लाखों घर होते हैं।
कोलकाता और कदल्ली ऐसे ही महानगर हैं।
ाअस्ित जनसांख्या : ये बस्ततयाां बड़ी जनसांख्या ाआन बस्ततयों में रोजगार के ाऄवसर ाऄस्धक होते हैं। ये
का पालन नहीं कर सकती है। बड़ी जनसांख्या का पालन-पोषण कर सकती हैं।
जन घनत्व: ाआनमें जनसांख्या का घनत्व कम जनसांख्या का घनत्व ाऄस्धक होता है। एक हेक्टेयर
होता है। भूस्म पर हजारों लोग रहते हैं। ाआनमें कम से कम जन
घनत्व 400 व्यस्क्त प्रस्त वगभ कक.मी. होना चास्हए।

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कायाभत्मक सांबध ां : ाआन बस्ततयों के कायाभत्मक ये ाअर्थथक स्वकास के बबदु होते हैं। ाआनके ाऄपने पृष्ठ
सांबांध नगरों से होते हैं। प्रदेश से ाअर्थथक सांबांध होते हैं।
सामास्जक सांबध ां : ाईनके ाअपसी सांबांध घस्नष्ठ नगर में रहने वाले लोगों का जीवन बड़ा जरटल और
होते हैं। प्रायाः सभी एक-दूसरे को जानते हैं तथा तेज होता है। यहाां ाअपसी सांबध
ां के वल औपचाररक
एक-दूसरे के सुख-दुाःख में साथ स्नभाते हैं। होते हैं।
ाअधुस्नक सुस्वधाएां: टेलीफोन, तार, ाऄतपताल, ऐसी सुस्वधाएां खूब होती है।
स्बजली जैसी सुस्वधाएां बहत कम होती हैं।

1.1.2. ग्रामीण बस्ततयों के प्रकार

 मकानों से बना ऐसा प्रस्तरूप जो चारों ओर से खेतों से स्घरा है ाईसे ग्रामीण बतती कहते हैं। कृ स्ष
की स्वस्धयों की खोज के साथ ही मानव ने बस्ततयाां बसा कर रहना शुरू ककया। ये प्रारां स्भक
बस्ततयाां गाांव ही थे। गााँव के स्नवासी मुख्यत: प्राथस्मक कक्रयाएां करते है। एम.डी.क्लाकभ के ाऄनुसार
‘गााँव एक सामस्जक-मनोवैज्ञास्नक पयाभवरण होता है’।
 बस्ततयों के स्वभाजन का सावभभौम और सवभमान्य मापदांड नहीं है। ाईदाहरण के स्लए भारत और
चीन जैसे ाऄत्यांत सघन बसे देशों में ाऄनेक गाांव ऐसे हैं स्जनकी जनसांख्या पस्िमी यूरोप और सां. रा.
ाऄमेररका के ाऄनेक नगरों से कहीं ाऄस्धक है।
प्रकीणभ बस्ततयााँ (Dispersed Settlement)
 ाआस प्रकार की बस्ततयों में लोगों के घर एक-दूसरे से कु ि दूरी पर बने होते हैं। स्वस्शष्ट प्रकीणभ बतती
में लोग ाऄपने खेतों पर घर बनाकर रहने लगते हैं। ाआस प्रकार घर खेतों के साथ स्बखरे होते हैं। ाऄत:
ाआन्हें एकाकी बस्ततयााँ भी कहा जाता है। पूजातथल ाऄथवा कतबा ाआन बस्ततयों के लोगों को ाअपस
में जोड़े रहता है। ाआथोस्पया (ाऄफ्रीका) की ाईच्च भूस्म पर प्रकीणभ बस्ततयाां पााइ जाती है। ाअतरेस्लया,
कनाडा और सांयुक्त राज्य ाऄमेररका, द. पू. एस्शया के बागानी, कृ स्ष के िेत्रों तथा ब्राजील में कहवा
के बागानी िेत्र में भी ऐसी बस्ततयाां स्मलती है।
 ाआन बस्ततयों का ाअर्थथक दृस्ष्ट से लाभ होता है लेककन सामास्जक दृस्ष्ट से ाऄनुकूल नहीं होती है।
खेतों में रहने वाला कृ षक ाऄपनी कृ स्ष की ाईन्नस्त बेहतर ढांग से कर सकता है। दूसरी तरफ ाआस
प्रकार की बस्ततयों में रहने वाले व्यस्क्त को सामास्जक जीवन का लाभ नहीं स्मल पाता है, क्योकक
ाआस प्रकार के घर गााँव से दूर खेतों में एकाकी ही व्यवस्तथत होते है।
 प्रकीणभ बस्ततयों की स्वशेषताएां :
i. ाआनमें मकान एक-दूसरे से दूर बने होते है। कभी-कभी मकानों के बीच में काइ खेत होते हैं।
ii. ाआनमें लोग ाऄलग-थलग एकाकी रहते हैं।
iii. ाआन बस्ततयों के लोग व्यस्क्तवादी और तवतांत्र जीवन यापन करते हैं।
iv. ाआनमें पड़ोसी धमभ की भावना, सामुदास्यक ाऄांतर्थनभरता और सामास्जक ाऄांतर्क्रक्रया नहीं होती।
v. एकाकी स्नवास करने वालों को एकसाथ स्मलकर रहने वाले लोगों के स्वपरीत िम-स्वभाजन
का लाभ भी नहीं स्मलता है।
 ाआस प्रकार की बस्ततयों को बढ़ावा देने वाले कारको में भौस्तक (ाईच्चावच, वनीय िेत्र, जल की
प्रचुरता) तथा मानवीय (प्रस्त-व्यस्क्त कृ स्षभूस्म, पशुचारण, जास्त-प्रथा, सुरिा) कारक स्जम्मेदार
है।
सांहत या कें रीय बस्ततयाां (Compact or nucleated Settlements)
 ाआन बस्ततयों में सभी लोगों के ाअवास होते हैं। सुरिा की दृस्ष्ट से एक-दूसरे से सटे तथा दो मकानों
की साझा दीवारें होती हैं। एक ित से दूसरी ित पर ाअ-जा सकते हैं। घरों में या घरों के पास ही
चारा, ाइधन ाअकद के भांण्डारण और पशुओं के स्लए बाड़े बनाए जाते हैं। ऐसी बस्ततयाां नकदयों की
ाईपजााउ घारटयों और तटीय मैदानों में पााइ जाती हैं।

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 गाांवों का ाअकार भूस्म के िेत्रफल और ाईसके ाईपजााउपन पर स्नभभर करता है। ाईपजााउ कृ स्ष भूस्म
वाले गाांव में 1000 या ाईससे भी ाऄस्धक लोग रहते हैं। ाआन बस्ततयों में रहने वाले लोग कृ स्ष कायभ
ाअपस में स्मलकर करते है।
 ाआन बस्ततयों के स्वकास के स्लए स्जम्मेदार कारक ाआस प्रकार है - सामान्यत: मनुष्य ाऄके ला नहीं
रहना चाहता है, कृ स्ष कायों में ाऄस्धक लोगों की ाअवश्यकता का होना, सुरिा सांबांधी कारण,
धार्थमक प्रवृस्तयााँ, ाउपजााउ स्मट्टी ाअकद।
पल्ली बस्ततयााँ (Hamleted Settlements)
 ये सघन बस्ततयााँ नहीं होती हैं, स्जनके साथ एक या ाआससे ाऄस्धक पुरवे भी होते हैं। ये वाततव में
मध्यम प्रकार की बस्ततयाां हैं, जो प्रकीणभ और सघन बस्ततयों के मध्य पााइ जाती हैं।ाआन बस्ततयों को
पुरवा बस्ततयाां (Hamleted Settlements) भी कहा जाता है।
 पल्ली बस्ततयों की स्वशेषताएां:
i. ाआनमें मकान ाऄस्धक सटे नहीं होते हैं।
ii. ाआनका स्वततार ाऄपेिाकृ त बड़े िेत्र में होता है।
iii. मुख्य बतती के साथ एक या ाईससे ाऄस्धक पुरवे होते हैं।
iv. भीड़ बढ़ जाने पर बतती के कें रीय भाग से स्नकलकर लोग गाांव की सीमा
से लगे खेतों में घर बनाकर रहने लगते हैं।
v. ककसी स्वशाल गााँव का ऐसा खांडीभवन प्राय: सामास्जक एवां मानवजातीय
कारकों िारा ाऄस्भप्रेररत होता है।
vi. ाआन ाआकााआयों को देश के स्वस्भन्न भागों में तथानीय ततर पर पान्ना, पाड़ा,
पाली, नगला, ढााँणी ाआत्याकद कहा जाता है।
ाऄधभ गुस्छित बस्ततयाां (Semi Clustered Settlements)
 ाआन्हें ाऄधभ स्बखरी बस्ततयाां (Semi-Sprinkled Settlements) भी कहा जाता है।
 ाऄधभ गुस्छित बस्ततयों की स्वशेषताएां :
i. मकान एक दूसरे से ाऄलग लेककन एक ही बतती में होते है।
ii. बतती ाऄनेक पुरवों में स्वभास्जत होती है।
iii. ऐसी स्तथस्त में ग्रामीण समाज के एक ाऄथवा ाऄस्धक वगभ तवेछिा से ाऄथवा
बलपूवभक मुख्य गुछि ाऄथवा गााँव से थोड़ी दूरी पर रहने लगते हैं।
iv. कभी-कभी िोटी-िोटी बस्ततयाां, लेककन ाऄसांबद्ध रूप में कदखााइ पड़ती है।
v. प्रायाः जमीन के मास्लक धनी और प्रभावशाली व्यस्क्त गाांव के मध्य में
रहते हैं जबकक समाज के स्नचले तबके के लोग और स्नम्न कायों में सांलग्न लोग गााँव
के बाहरी स्हतसों में बसते हैं।
vi. ाऄलग-ाऄलग पुरवों में प्रायाः ाऄलग-ाऄलग जास्तयों के लोग रहते हैं।
vii. पुरवों के नाम जास्त के नामों पर रखे जाते हैं।
 ाऄधभ गुस्छित बस्ततयों की ाईत्पस्ि में प्रभावी कारक : (i) भू-जल की प्रयाभप्त मात्रा, (ii) भू-जलततर
का धरातल के स्नकट होना, (iii) कृ स्ष मजदूरों का बाहल्य (iv) भू-तवास्मयों िारा भूस्म को ठे के पर
देना, (v) बस्ततयों का सुरस्ित होना, (vi) कम लागत में हैण्डपांप और कु एां बनाना।

2. भारत की बस्ततयााँ
 मकान रहने की मूलभूत ाआकााइ है। घरों के समूह से बतती बनती है। बतती में 6 से लेकर 12 तक
झोपस्ड़याां हो सकती हैं या दस-बीस या सैकड़ों घरों का एक गााँव। बस्ततयाां िोटे-बड़े नगरों के रूप
में भी हो सकती है। नगर, महानगरों, ाऄथवा स्वश्वनगरों (Ecumenopolis) का रूप भी धारण

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कर सकते हैं। ाऄस्भन्यास (प्लान) वाले मकानों और झोपस्ड़यों के समूह को बतती कहते हैं। बतती में
रहने के स्लए मकान, पशुओं के स्लए बाड़े, औजारों, ाईपकरणों और ाईत्पाकदत वततुओं को रखने के
स्लए भांडार गृह एवां ाआन गृहों को जोड़ने वाली सड़क शास्मल है।
 वतभमान में कृ स्ष और पररवहन के साधनों के मशीनीकरण से ककसानों की जरूरते बदल गईं हैं। ाऄब
ाईसके कृ स्षयांत्र ऐसे नहीं स्जसे गाांव के बढ़ाइ-लोहार ठीक कर सकें या बना सके । ाआसीस्लए ाऄब गाांवों
में नए यांत्रों की मरम्मत के स्लए कायभशालाएां खुलने लगी हैं। गाांव की ाअर्थथक समृस्द्ध के साथ ाऄब
मकान के वल तथानीय घास फू स, लकड़ी और स्मट्टी-गारे से ही नहीं ाऄस्पतु पक्की ईंटों, सीमेंट, कां क्रीट
और लोहे से बनने लगे हैं। शौचालय और रसोाइ का ाअधुस्नकीकरण हाअ है, लेककन ाऄभी भी
ाऄस्धकतर घर पुराने ढांग के ही हैं।
2.1. भारत के स्वशे ष सन्दभभ में ग्रामीण बस्ततयों के प्रकार

 ग्रामीण बस्ततयों के प्रकारों का मुख्य ाअधार ाईनके स्बखराव (Dispersion) और सघनता


(Nucleation) की मात्रा है। बतती के प्रकार का स्नणभय करते समय मकानों की सांख्या और मकानों
के बीच की पारतपररक दूरी को ध्यान में रखा जाता है। भौस्तक और साांतकृ स्तक तत्व ग्रामीण
बस्ततयों के प्रकारों को प्रभास्वत करते हैं। ाआनके प्रभाव से बस्ततयाां सघन या प्रकीणभ हो जाती हैं।
कें रोमुखी (Centrepetal) शस्क्तयों के प्रभाव से बस्ततयाां सघन तथा ाऄपके न्री (Centrifugal)
शस्क्त के प्रभाव से ये प्रकीणभ/स्बखरी हो जाती है। बस्ततयों को स्नम्नस्लस्खत प्रकारों में बाांटा जा
सकता है:
2.1.1. गु स्छित बस्ततयाां (Clustered Settlements)

o गुस्छित बस्ततयों को ाऄनेक भूगोलवेिाओं ने सांकेस्न्रत (Concentrated), गुस्छित (Clustered),


के स्न्रत (Nucleated), और सांकुस्लत (Agglomerated) बस्ततयाां भी कहा है।
o ये प्रायाः खेतों के मध्य ककसी ाउाँचे और बाढ़ ाअकद से सुरस्ित तथानों पर बसी होती हैं।
o ाआनमें सभी मकान एक दूसरे से सटाकर बनाए जाते है।
o गली के दोनों ओर मकानों की दीवारें एक दूसरे से स्मली होती हैं बीच में कोाइ खाली तथान नहीं
होता है।
o कभी-कभी ये ज्यास्मतीय प्रस्तरूप जैसे-ाअयातों, ाऄथवा वगों के रूप में कदखााइ पड़ती है, जबकक
कु ि दूर से ढेर के रूप में कदखााइ पड़ती है।
o ाआन बस्ततयों का ाअकार स्भन्न होता है। ाईच्च घनत्व वाले िेत्रों में िोटी बस्ततयाां 30-40 मकानों से
लेकर सैकड़ों मकानों की होती है।
o ाआस प्रकार की बड़ी बस्ततयों में हजारों की सांख्या में लोग एक-एक बतती में रहते हैं।
2.1.2. ाऄधभ गु स्छित बस्ततयाां (Semi Clustered Settlements)

 ाआन बस्ततयों को पुरवा बस्ततयाां (Hamleted Settlements) भी कहा जाता है। ाआन्हें ाऄधभ स्बखरी
बस्ततयाां (Semi-Sprinkled Settlements) भी कहा है। ये सांस्हत बस्ततयाां मालवा के पठारी
िेत्र तथा नमभदा घाटी में पााइ जाती है।
 ाऄधभ गुस्छित बस्ततयों की स्वशेषताएां
i. मकान एक दूसरे से ाऄलग लेककन एक ही बतती में होते है।
ii. बतती ाऄनेक पुरवों में स्वभास्जत होती है।
iii. कभी-कभी िोटी-िोटी बस्ततयाां, लेककन ाऄसांबद्ध रूप में कदखााइ पड़ती है।
iv. प्रायाः जमीन के मास्लक धनी और प्रभावशाली व्यस्क्त गाांव के मध्य में रहते हैं और गाांव का
एक ही नाम होता है।
v. ाऄलग-ाऄलग पुरवों में प्रायाः ाऄलग-ाऄलग जास्तयों के लोग रहते हैं।

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vi. पुरवों के नाम जास्त के नामों पर रखे जाते हैं।


 ाऄधभ गुस्छित बस्ततयों की ाईत्पस्ि में प्रभावी कारक
o जास्त सांरचना के ाऄलावा ाआन बस्ततयों को स्नम्नस्लस्खत कारक भी प्रभास्वत करते है: (i) भू-

जल की प्रयाभप्त मात्रा, (ii) भू-जलततर का धरातल के स्नकट होना, (iii) कृ स्ष मजदूरों का

बाहल्य (iv) भू-तवास्मयों िारा भूस्म को ठे के पर देना, (v) बस्ततयों का सुरस्ित होना, (vi)
कम लागत में हैण्डपांप और कु एां बनाना।
 स्वतरण:
o भारत का ाईतरी मैदान।
o पस्िम बांगाल, ब्रह्मपुत्र नदी घाटी।
o बुांदल
े खांड एवां बघेलखांड।
o ाअांध्रप्रदेश एवां तस्मलनाडु के मैदानी भाग।
o मस्णपुर तथा िोटानागपुर िेत्र में नदी ककनारों पर, तटीय िेत्रों में ाआस प्रकार की बस्ततयाां
मिु ाअरों के गाांवों के रूप में हो सकती हैं।

2.1.3. पल्ली बस्ततयााँ (Hamleted Settlements)

o ये सघन बस्ततयााँ नहीं होती हैं, स्जनके साथ एक या ाआससे ाऄस्धक पुरवे भी होते हैं। ये वाततव

में मध्यम प्रकार की बस्ततयाां हैं, जो प्रकीणभ और सघन बस्ततयों के मध्य पााइ जाती हैं।
o पल्ली बस्ततयों की स्वशेषताएां:
i. ाआनमें मकान ाऄस्धक सटे नहीं होते हैं।
ii. ाआनका स्वततार ाऄपेिाकृ त बड़े िेत्र में होता है।
iii. मुख्य बतती के साथ एक या ाईससे ाऄस्धक पुरवे होते हैं।
iv. भीड़ बढ़ जाने पर बतती के कें रीय भाग से स्नकलकर लोग गाांव की सीमा से लगे खेतों में घर
बनाकर रहने लगते हैं।

2.1.4. पररस्िप्त बस्ततयाां (Dispersed or Scattered Settlement)

 ाआन्हे पररस्िप्त (Dispersed), एकाकी (isolated), स्बखरी हाइ (Sprinkled) बस्ततयाां भी कहते

हैं। भारत के स्हमाचल प्रदेश, ाईिराखांड, स्सकक्कम और ाईिरी बांगाल में प्रकीणभ बस्ततयाां पााइ जाती
है। भारत के पठारी भाग में भी ऐसी बस्ततयाां हैं।
 स्वशेषताएां :
i. ाआनमें मकान एक-दूसरे से दूर बन होते है। कभी-कभी मकानों के बीच में काइ खेत होते हैं।
ii. ाआनमें लोग ाऄलग-थलग एकाकी रहते हैं।
iii. ाआन बस्ततयों के लोग व्यस्क्तवादी और तवतांत्र जीवन यापन के ाऄभ्यतत होते हैं।
iv. ाआनमें पड़ोसी धमभ की भावना, सामुदास्यक ाऄांतर्थनभरता और सामास्जक ाऄांतर्क्रक्रया नहीं होती।
 स्वतरणाः
i. स्हमालय िेत्र में कश्मीर से लेकर ाऄरूणाचल प्रदेश तक ऐसी बस्ततयाां पााइ जाती हैं।
ii. स्हमालय का तरााइ और भाबर िेत्र।
iii. पस्िमी ाईिर प्रदेश का गांगा के खादर का िेत्र।
iv. पस्िमी घाट पर महाराष्ट्र से के रल तक की ाईच्चभूस्म पर।
v. पांजाब एवां हररयाणा का मैदानी िेत्र।

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vi. थार मरुतथल।

3. ग्रामीण बस्ततयों के प्रस्तरूप (Patterns of Rural


Settlements)
 प्रस्तरूप शब्द से ककसी स्नस्ित ाअकृ स्त या ाईनके क्रमबद्धता पर जमावट का बोध होता हैं, बस्ततयों
के प्रकार में प्रस्तरूप का ाऄथभ ाईसके तथास्नक बसावट के गुणों का बोध कराता है। ग्रामीण बस्ततयों
के प्रस्तरूप स्नधाभरण में ाईनके पयाभवरण की महत्वपूणभ भूस्मका होती है। गाांवों में मकान एक-दूसरे
के साथ ककस प्रकार बनाए गए हैं, ाआसकी झलक ग्रामीण बस्ततयों के प्रस्तरूपों में कदखााइ पड़ती है।
गाांव की ाअकृ स्त और ाअकार ाईसकी स्तथस्त, तथलाकृ स्त और भूभाग(Terrain)के ाउाँचे-स्नचलेपन से
प्रभास्वत होते हैं।
ग्रामीण बस्ततयों का वगीकरण (Classification of Rural Settlements)
ग्रामीण बस्ततयों को स्नम्नस्लस्खत मापदांडों के ाअधार पर वगीकृ त ककया जा सकता हैाः
 स्वन्यास के ाअधार पर (On the Basis of Setting): ाआस वगभ के मुख्य प्रकार ये हैं: मैदानी गाांव,
पठारी गाांव, तटीय गाांव, वन-गाांव और मरूतथलीय गाांव।
 कायों के ाअधार पर (On the basis of functions): ाआस वगभ में कृ षीय गाांव, मिु ाअरों के गाांव,
लकड़हारों के गाांव चरवाहों के गाांव ाअकद ाअते हैं।
 ाअकृ स्त के ाअधार पर बस्ततयाां (On the basis of forms of Shapes of the Settlements):
ाआसमें ज्यामीस्तय रूप और ाअकृ स्त के गाांव हो सकते हैं।
1. रै स्खक ाअकृ स्त की बतती (Linear Pattern): ऐसी बस्ततयों का स्वकास सड़कों, रे ल मागों,
नकदयों, नहरों या सीधे समुर तट के साथ-साथ होता है। ाआन बस्ततयों में मकान और बाड़े, सड़कों,
और नहरों और नकदयों के समाांतर बने होते हैं तथा एक िृांखला में िेणीबद्ध मकान होते है। पवभतीय
िेत्र में भी ऐसी बस्ततयाां नकदयों के ककनारे स्वकस्सत हो जाती है।

2. क्रास की ाअकृ स्त की बतती (Cross Shaped Settlemen): ऐसी


बस्ततयों का स्वकास चौराहों पर प्रारां भ होता हैं जहााँ चौराहे से चारों कदशाओं में
बसाव ाअरां भ हो जाता है।

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3. ाअयताकार प्रस्तरूप (Rectangular Pattern) : यह बहत ही सामान्य

प्रकार है, जो कृ स्ष जोतों के चारों ओर स्वकस्सत होता है। ाआनका स्नमाभण समतल
िेत्रों में होता है यहााँ सड़कें एक दूसरे को समकोण पर काटती हैं।
4. तारक ाअकृ स्त की बतती (Star like Pattern): कभी-कभी काइ सड़क
मागभ स्वस्भन्न कदशाओं से ाअकर एक बबदु पर स्मलते हैं। ऐसे तथानों पर बसे गाांवों में
सभी कदशाओं से ाअने वाली सड़कों के ककनारे मकान बने होते हैं। स्जनके एक तारे
जैसी ाअकृ स्त बन जाती है।

5. 'T'ाअकृ स्त की बतती ('T' Shape Settlement): ऐसी बस्ततयाां वहाां


स्वकस्सत होती हैं जहाां कोाइ सड़क मुख्य सड़क से ाअकर स्मलती है और वहीं खत्म
हो जाती है। ाऄथाभत् ऐसी बस्ततयाां सड़क के स्तराहे पर स्वकस्सत होती हैं। ऐसे
तथानों पर सड़कों के ककनारे बने मकानों से 'T'ाअकृ स्त की बतती स्वकस्सत हो जाती
है।
6. ‘Y’ ाअकार की बतती ('Y' Shape Settlement):- ऐसी बस्ततयों का
स्नमाभण ाईन िेत्रों में होता है जहााँ दो मागभ ाअकर तीसरे मागभ से स्मलते हैं।
7. वृिाकार बतती (Circular Pattern): ऐसी बस्ततयाां मुख्य रूप से ककसी
तालाब, झील, हरे -भरे मैदान या बाग के चारों ओर स्वकस्सत हो जाती है। प.
बांगाल के गाांव में तालाब या पोखर ाऄवश्य होता है। कभी-कभी गाांव ाआस प्रकार
स्नयोस्जत ककया जाता है कक मध्यवती भाग खुला रहे। मध्य में स्तथत ाआस खुले तथान

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का ाईपयोग रास्त्र में पशुओं को जांगीली जानवरों से सुरस्ित रखने के स्लए ककया
जाता है।

8. युग्म ाअकृ स्त की बतती (Double Pattern): ऐसी बस्ततयाां सामान्यताः


वहाां बसती है जहाां कोाइ सड़क ककसी नहर या नदी पर बने पुल से गुजरती है। ाआन
तथानों पर नदी, नहर और सड़क के ककनारे पर मकान बन जाते हैं। ाआनसे युग्म
ाअकृ स्त की बतती का प्रस्तरूप बन जाता है।
9. ाऄरीय स्त्रज्या ाअकृ स्त (Radial Pattern): ाआस प्रकार के प्रस्तरूप में काइ
सड़कें या गस्लयाां ककसी के न्रीय तथान जैसे जल का स्रोत (तालाब, कु ाअाँ ), मांकदर,
मस्तजद, व्यावसास्यक गस्तस्वस्ध के कें र या खुली जगह की ओर ाऄस्भमुख होती हैं।
10. पांखनुमा ाअकृ स्त (Fan Pattern): ाआस प्रकार का प्रस्तरूप नदी डेल्टाओं,
जलोढ़ पांख वाले िेत्रों में देखने को स्मलता है। ाईदाहरण के स्लए स्हमालय में जलोढ़
पख िेत्रों में तथा गोदावरी, कृ ष्णा नदी डेल्टा िेत्र में।
11. सीढ़ीनुमा प्रस्तरूप: यह प्रस्तरूप पहाड़ी ढलानों पर स्मलते है। ाआन्हीं
ढलानों पर लोगों िारा सीढ़ीनुमा खेती भी की जाती है। घरों की स्तथस्त कें रीकृ त या
स्बखरे हए रूप में स्मलती है। ाईदाहरण के स्लए स्हमालय, ाअल्प्स, रॉकी
पवभतमालाओं पर।

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12. हेररग बोन प्रस्तरुप: ाआस प्रस्तरूप के ाऄांतगभत एक ाअयताकार िेत्र में एक
मुख्य सड़क से सभी ाईप-सड़कें स्नस्ित कोण पर ाअकर स्मलती हैं। यह प्रस्तरूप
हेररग मिली के कां काल समान स्वकस्सत होता है।
4. ग्रामीण बस्ततयों के प्रकायभ (Functions of Rural
Settlements)
 ग्रामीण बस्ततयाां प्राथस्मक कक्रयाकलापों पर ाअधाररत होती हैं। स्जन गाांवों में कृ स्ष महत्वपूणभ
कक्रया है ाईस गाांव को कृ स्ष गाांव कहते हैं। ऐसे ाऄस्धकतर गाांव ाईपजााउ मैदानों और नदी घारटयों में
स्वकस्सत होते हैं। घास भूस्मयों में रहने वाले लोग सामान्यताः पशुपालन में लगे होते हैं। ऐसे लोगों
की बस्ततयों को पशुचारस्णक गाांव कहा जाता है।
 खस्नज सांपन्न िेत्रों में खस्नजों के ाईपयोग करने से काइ बस्ततयाां बस जाती हैं खनन कक्रया में लगे
िस्मकों िारा बसी बस्ततयों को खनन बस्ततयाां कहा जा सकता है। ाआसी प्रकार जलाशयों के स्नकट
बसी बस्ततयों को जहाां बहसांख्यक लोग मत्तयन कक्रयाकलाप में लगे हैं। मत्तयन गाांव कहलाते हैं।
जो लोग वनों के स्नकट लकड़ी काटने या लकड़ी ाआकट्ठा करने ाऄथवा वन ाईत्पादों को ाआकट्ठा करने में
लगे हैं, ाईनके िारा बसााइ बस्ततयों को वनखांड गाांव कहते हैं।
 बस्ततयों के प्रकायभ वे कक्रयाकलाप हैं जो वहाां के रहने वाले ाऄस्धकतर लोग करते हैं। ाआसका
ाऄस्भप्राय यह नहीं है कक प्रत्येक बतती का के वल एक ही प्रकायभ है। हो सकता है कक कु ि लोग सेवा
प्रदान करने में लगे हो। ाईदाहरण के स्लए हर गाांव में लोगों की कदन-प्रस्तकदन की ाअवश्यकताओं
की पूर्थत के स्लए एक -दो दुकानें होती हैं। गाांवों में कु ि एक कारीगर भी होते हैं जो औजार बनाते
हैं ाऄथवा औजारों की मरम्मत करते हैं। परां तु प्रमुख व्यवसाय के ाअधार पर ही बतती के प्रकायभ का
प्रकार स्नधाभररत ककया जाता है।

5. ग्रामीण बस्ततयों को प्रभास्वत करने वाले कारक


 ऐसे ाऄनेक कारक हैं जो ग्रामीण बस्ततयों के प्रकार को स्नधाभररत करते हैं। ककसी भी बतती को
बसाने से पूवभ लोग काइ बातों पर स्वचार करते हैं। लोगों और पशुओं के पीने के स्लए पानी की
ाईपलब्धता ाईपजााउ भूस्म, ाआमारती सामान ाअकद को ध्यान में रखकर ही बतती का तथान चुना

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जाता था। ग्रामीण बतती के स्लए स्तथस्त के चुनाव में मुख्य रूप से स्नम्नस्लस्खत ाअधारों पर ध्यान
रखा जाता था:
o भौस्तक दशाएां : ाईच्चावच, मृदा, प्राकृ स्तक वनतपस्त, समुर तल से ाउाँचााइ, जलवायु।
o जल (Water Supply): ककसी बतती के स्वकास के स्लए जल-ाअपूर्थत के स्नयस्मत स्रोत
ाअवश्यक है। ाआसस्लए बस्ततयाां हमेशा जल के स्रेात के स्नकट; जैस-े नदी ाऄथवा झील ाऄथवा
जहाां भौम जल ाअसानी से सुलभ हो, बसााइ जाती है। जल के वल घरे लू ाईपयोग के स्लए ही

ाअवश्यक नहीं होता है, ाऄस्पतु बसचााइ, मत्तयन और नौसांचालन ाअकद के स्लए भी ाअवश्यक
है।
o साांतकृ स्तक और नृजातीय कारक : गाांव में कौन-सी जास्तयाां या जनजास्तयाां रहती हैं तथा
लोग ककन धमों के ाऄनुयायी हैं, ाअर्थथक एवां सामास्जक ाऄांतरस्नभभरता, सामास्जक ाईत्सव,
सामास्जक सांगठन।
o प्राथस्मक सांसाधनों के ाईपयोग करने की सहजता (Ease of Using Primary
Resources): ग्रामीण बस्ततयाां प्राथस्मक सांसाधनों पर स्नभभर होने के कारण वहीं बसााइ
जाती है, जहाां प्राथस्मक सांसाधन सहज सुलभ होते हैं और स्जनका ाअसानी से ाईपयोग ककया
जा सके । ाआस प्रकार खेस्तहर बस्ततयाां ाईपजााउ मृदा वाले िेत्रों में स्वकस्सत होती हैं। मिली
पकड़ने वालों की ग्रामीण बस्ततयाां जल खांडो के स्नकट पनपती हैं। ाआसी प्रकार जो बस्ततयाां
ाऄपने स्नवभहन के स्लए वनों पर स्नभभर हैं वे वन िेत्रों के पास पनपती हैं। यूरोप में लोग
दलदली ाऄथवा स्नचले िेत्रों में रहना पसांद नहीं करते। ाआसस्लए यहाां गाांव लहरदार िेत्रों में
ाअ बसते हैं। दस्िण पूवभ एस्शया में लोग नदी घारटयों तटीय मैदानों और स्नचले भू-भागों में
रहना पसांद करते हैं जहाां चावल जैसी फसलें ाईगााइ जा सकें । ाआस प्रकार की बतती ‘ाअरभ बबदु
बस्ततयाां’ कहलाती है।
o ाईच्च भूस्म बस्ततयाां (Upland Settlements): जहाां ककसी बतती को पनपने के स्लए जल

ाअवश्यक है, वहाां ाआसकी ाऄस्धकता भी हास्नकारक है। बाढ़ प्रवण िेत्रों में बस्ततयाां ाईच्च भूस्म
पर स्वकस्सत होती हैं। ाआस प्रकार की बस्ततयों को शुष्क बबदु बस्ततयाां कहा जाता है। नदी
घारटयों में बस्ततयाां वेकदकाओं और तटबांधों पर स्वकस्सत होती हैं। भारी वषाभ वाले िेत्रों तथा
दलदल दशाओं वाले िेत्रों में लोग ाऄपने घरों कों बासों के खम्भों पर बनाते हैं।
o ाआमारती सामान की ाईपलब्धता (Building Material): बतती बसाते समय ाआमारती सामान
की ाईपलब्धता का भी ध्यान रखा जाता है। जैसे खान से पत्थर और वनों से लकड़ी स्मल जाती
है। वनों में मकान प्रायाः लकड़ी के ही बनाए जाते है।
o सुरिा (Defence): मनुष्य सुरस्ित तथान पर रहना पसांद करता है। चोर, डाकु ओं, शत्रु
समुदायों से सुरिा के ाईपाय ककए जाते थे। ाऄताः राजनैस्तक ाऄस्तथरता, युद्ध और शत्रुता रखने
वाले पड़ोस्सयों से सुरिा के स्लए सुरस्ित पहास्ड़यों और िीपों पर बस्ततयाां बसाते थे।
नााआजीररया में लोग ाआन्सेलबगभ पर बस्ततयाां बसाते थे, क्योंकक यह एक सुरस्ित तथान होता
था। भारत के ाऄस्धकतर ककले ाईां चे तथानों या पहास्ड़यों पर बने होते हैं।
o स्नयोस्जत बस्ततयाां (Planned settlements):कु ि गाांव भी स्नयोस्जत होते हैं। ऐसे गाांव
सरकार िारा ाऄस्धग्रहीत भूस्म पर बसाए जाते हैं। ऐसे गाांवों का स्नयोजन सरकार करती है।
स्नवास्सयों की ाआसमें कोाइ भूस्मका नहीं होती। सरकार ऐसे स्नयोस्जत गाांवों के ाअवास, जल
की सुस्वधाएां और ाऄन्य ाऄवसांरचनाएां ाईपलबध कराती है। ाआस्थयोस्पया में ग्रामीकरण की

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योजना तथा भारत में ाआां कदरा गाांधी नहर कमाांड िेत्र में नहर कालोनी, स्नयोस्जत गाांवों के
ाऄछिे ाईदाहरण हैं।
6. ग्रामीण बस्ततयों की समतयाएां (Problems of rural
Settlements)
सांसार के स्वकासशील देशों में ग्रामीण बस्ततयों की बड़ी भारी सांख्या है। ाआनमें ाऄवसांरचनात्मक
सुस्वधाओं की बहत कमी है। योजनाकारों के सामने ये बहत बड़ी चुनौती और ाऄवसर है कक गाांवों को
ककस प्रकार सुस्वधा सांपन्न बनाया जाए। गाांवों की समतयाएां स्नम्न हैं:
 पेयजल का ाऄभावाः सांसार के ाऄस्धकतर गाांवों में पेयजल की बड़ी भारी समतया है। मस्हलाओं को
काइ-काइ कक.मी. दूर से पानी लाना पड़ता है। पानी के कमी का ाऄथभ बसचााइ की सुस्वधाओं के
ाऄभाव से भी है। पानी की कमी से फसलों को नुकसान होता हैं।
 जल वास्हत रोगाः पेयजल की गुणविा ठीक न होने से जल वास्हत रोग जैसे-हैजा, पीस्लया ाअकद
फै लते हैं।
 बाढ़ और सूखााः दस्िण एस्शया के देशों के गाांव बाढ़ और सूखे दोनों की ही मार सहने को ाऄस्भशप्त
है। सूखे और बाढ़ की पुनरावृस्ि हर वषों में चक्रीय रूप में होती रहती है। बसचााइ के ाऄभाव में
सूखा पड़ने पर जन-धन की भारी हास्न होती है।
 शौचालयों और कचरे की समतयााः गाांव में शौचालयों के न होने से मस्हलाओं को बहत परे शानी
ाईठानी पड़ती है। वे ाआसी कारण ाऄनेक रोगों की स्शकार हो जाती है। गाांवों में कचरे की स्नपटान
की कोाइ सुचारु व्यवतथा नहीं है। गाांवों के चारों ओर कचरे के ढेर, ाआसी कहानी का बखान करते हैं।
 मकानों की गुणविा: स्वस्भन्न पयाभवरणों में स्भन्न प्रकार के मकान बनाए जाते हैं। स्मट्टी, घास-फू स
और लकड़ी से बने मकानों को ाअग, बाढ़, भारी वषाभ ाअकद से बहत नुकसान होता है। हर साल
ाआनकी मरम्मत जरूरी होती है। ाआन मकानों में प्रकाश और हवा के ाअने की व्यवतथा प्रायाः नहीं
होती।
 मानव और पशु एक साथाः पशुओं को और ाईनके चारे को ाऄपने घर में या घर के ाऄस्त स्नकट घेर में
रहना ककसान की मजबूरी है। लेककन ाआससे ाऄनेक रोगों के फै लने का खतरा बना रहता है।
 पररवहन और सांचाराः भारत में गाांव का प्रशासन पांचायत जैसी तथानीय सांतथाओं के हाथों में होता
है स्जससे पास पक्की सड़कें और ाअधुस्नक सांचार सुस्वधाएां ाईपलब्ध कराने के स्लए पयाभप्त सांसाधन
नहीं होते हैं। ाऄताः ाअपातकाल में गाांव शेष दुस्नया से कट जाते हैं। ाऄनेक गाांव वषाभ ाऊतु में सांपकभ
स्वहीन बने रहते हैं।
 तवात्य और स्शिााः गाांवों में तवात्य और स्शिा की सुस्वधाओं की कमी है। तवात्य और स्शिा
सेवाओं के ाऄभाव में गाांवों के लोग ाऄपनी कु शलताओं और व्यस्क्तत्व में भली प्रकार से स्वकास नहीं
कर पाते हैं।
 पयाभवरणीय समतयाएां: कृ स्ष व्यवतथा में पररवतभन से ाईत्पन्न स्वस्भन्न समतयाएां, मृदा स्नम्नीकरण,
प्रदूषण ाअकद।
 ाईपरोक्त समतयाएां ाईन गाांवों में और भी ज्यादा हैं जहाां ग्रामीकरण सही ढांग से नहीं हाअ है और घर
दूर-दूर पर फै ले हैं।
7. नगरीय बस्ततयाां : एक पररचय
 ‘नगर’ शब्द की ाईत्पस्ि ग्रीक शब्द ाऄबभन्स (URBANUS) से हाइ है। स्जसका ाऄथभ भर ाऄथवा स्शष्ट
और सुसांतकृ त है। िोटी नगर बस्ततयों को कतबा कहा जाता है और बड़ी नगर बस्ततयों को नगर
कहते हैं। नगरों का ाईद्भव स्वगत 7000 वषों में गैर-कृ षीय बस्ततयों के रूप में हाअ है। नगरों ने
ाअर्थथक, प्रशासस्नक, सामास्जक और राजनीस्तक प्रकायों के स्लए ाअदशभ कें रों के रूपों में सेवा की
है। नगरीय िेत्रों में रहने वाले लोग गैर-कृ षीय कक्रयाकलापों जैसे - व्यापार वास्णज्य, प्रशासस्नक
तथा प्रबांध कायों में लगे होते हैं। ाआस प्रकार ाआन बस्ततयों में स्ितीयक, तृतीयक तथा चतुथक

कक्रयाकलाप ाऄस्धक ककये जाते हैं।

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 नगर ाअर्थथक प्रगस्त के सांचालक रहे हैं। स्वकाशील देशों के सकल राष्ट्रीय ाईत्पाद में नगरों का
योगदान 60 से 80 प्रस्तशत तक हैं। नगर ाअर्थथक स्वकास के साथ-साथ समतयाओं को भी जन्म देते
हैं। नगरीकरण से ग्रामीण और नगरीय दोनों बस्ततयाां ही प्रभास्वत होती हैं। नगरीकरण को कु ि
लोग ग्रामीण जनसांख्या से नगरीय जनसांख्या में रूपान्तरण मात्र मानते हैं। लेककन यह धारणा सही
नहीं है। नगरीकरण में ग्रामीण जनसांख्या के नगरीय जनसांख्या में रूप पररवतभन मात्रात्मक (ाऄस्धक
जनसांख्या, ाऄस्धक मकान, ाऄस्धक सड़कें ाअकद) तथा गुणात्मक (बेहतर जीवन ततर, सुख-सुस्वधाएां
ाअकद) हैं।
 ाईपनगरीय: स्वगत कु ि वषों में बस्ततयों का एक नया वगभ ाईभरा है। ाआन्हें ाईपनगर (Suburban
settlement) या नगरोन्मुख ग्राम (Rurban Settlement) कहते हैं। नगरों के ाअस-पास ऐसी
ाऄनेक बस्ततयाां बस गाइ हैं, जहाां नगरों में काम करने वाले लोग रहते हैं और काम के स्लए प्रस्तकदन
नगरों में चले जाते हैं।
 मेगास्सटी: सांयुक्त राष्ट्र की पररभाषा के ाऄनुसार 1 करोड़ से ाऄस्धक जनसांख्या वाला नगर
मेगास्सटी कहलाता है। लेककन कु ि भूगोलवेिा ऐसे नगरों को मेगास्सटी मानते हैं, स्जनकी
जनसांख्या महानगर के समान हैं।
 नगरीकरण में ग्रामीण जनसांख्या के नगरीय जनसांख्या के रूप में पररवतभन के साथ सामास्जक और
ाअर्थथक पररवतभन भी होते हैं। ये पररवतभन मात्रात्मक (ाऄस्धक जनसांख्या, ाऄस्धक मकान, ाऄस्धक
सड़कें ाअकद) तथा गुणात्मक (बेहतर जीवन ततर, सुख सुस्वधाएां ाअकद) हैं। वतभमान में स्वश्व की
लगभग 50 प्रस्तशत जनसांख्या नगरों में रहती है। सन् 1750 में के वल 3 प्रस्तशत जनसांख्या
नगरीय थी, जो 1900 में बढ़कर 14 प्रस्तशत हो गाइ एवां 1950 में 30 प्रस्तशत हो गाइ। 1950 में
के वल 83 नगर (दस लाख) जनसांख्या वाले थे। 1996 में ाआनकी सांख्या 280 थी। सन् 2015 तक
सांसार में दस लाखी नगरों की सांख्या 500 से ाऄस्धक हो जाएगी। लांदन सांसार का पहला ऐसा नगर
है, स्जसकी जनसांख्या सन् 1810 में ही दस लाख हो गाइ थी।
वषभ प्रस्तशत
1800 3
1850 6
1900 14
1950 30
1982 37
2008 49
2016 54.5
2030 60
(नगरीय िेत्रों में रहने वाली स्वश्व की जनसांख्या का प्रस्तशत)
 सबसे ाऄस्धक नगरीय जनसांख्या वाले देशाः बसगापुर (100%), बेस्ल्जयम (97%), ाआजरायल
(91%), ाउरुग्वे (91%), नीदरलैंड और यू. के . (89%)।
 सबसे कम नगरीय जनसांख्या वाले देशाः रवाांडा (6%), भूटान (8%), बुरुांडी (8%), नेपाल
(11%), तवाजीलैण्ड (12%)।

नगर की पहचान
 हम सभी नगरों को देखते, महसूस करते और ाईनमें स्नवास भी करते रहे हैं। लेककन नगर वाततव में
ककस बतती को कहा जाता हैं? नगर, ककस तरह से गाांवों से स्भन्न है। ाआन प्रश्नों के ाईिर ाऄांस्तम रूप
से नहीं कदए जा सके है। नगरों की स्जतनी भी पररभाषाएां दी गाइ, ाईनमें कोाइ न कोाइ त्रुरट रह ही

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जाती थी। ाऄस्धकतर भूगोलवेिाओं ने नगरों को गाांवों से ाऄलग करने के स्लए जनसांख्या के
सांकेन्रण और लोगों के गैर-कृ स्ष कायों में लगे होने को ाअधार बनाया हैं।
 प्रस्सद्ध मानव भूगोलवेिा ब्लाश (फ्राांस) के ाऄनुसार ‘‘नगर एक व्यापक िेत्र वाला सामास्जक
सांगठन होता है, यह मानव सभ्यता की ाईस सीढ़ी का प्रस्तस्नस्धत्व करता है, स्जस तक कु ि िेत्र
नहीं पहांच पाए हैं और जहाां शायद कभी पहांच भी न सकें ।’’ नगरों ाऄथवा नगरीय िेत्रों की
पररभाषा एक-दूसरे देश में स्भन्न-स्भन्न होती है।
 ाआनके ाऄस्तररक्त प्रमुख स्नयोस्जत कालोस्नयों, सघन औद्योस्गक स्वकास िेत्रों, रे लवे कालोस्नयों,
प्रमुख पयभटन के न्रों ाअकद को भी नगर की पररभाषा में रखा गया है। ाआनके साथ ही मुख्य नगर से
सटकर बसााइ गाइ नाइ बस्ततयाां जैसे रे लवे कालोनी, स्वश्वस्वद्यालय पररसर, पिन िेत्र, सैस्नक
िावनी ाअकद को भी नगर ही माना गया है।
7.1. नगरों की स्तथस्त और स्वन्यास

 स्तथस्त से ाऄस्भप्राय नगरों की ाऄवस्तथस्त से है और स्वन्यास का ाऄथभ नगरों के चारों ओर का िेत्र।


नगरों और कतबों के प्रकायों को स्नधाभररत करने में दोनों ही महत्वपूणभ हैं। प्राचीन काल में जल की
ाईपलब्धता, भवन स्नमाभण सामग्री और ाईपजााउ भूस्मयाां नगरीय बस्ततयों की स्तथस्त का ाअधार
हाअ करती थी। ाअज भी ये ाअधार साथभक हैं परां तु प्रौद्योस्गकी महत्वपूणभ भूस्मका स्नभाती है।
ाईदाहरण के स्लए िु ट्टी मनाने के स्लए ाईपयुक्त तथल, औद्योस्गक नगर से स्भन्न स्तथस्त हो सकती है।
ाईनकी ाऄनुकूल स्तथस्त और स्वन्यास के कारण काइ नगरीय कें र बहप्रकार्थयय हो गए हैं। सामररक
नगर जैसे - िावनी नगर प्राकृ स्तक सुरिा वाली स्तथस्त चाहते हैं। पिन नगरों को स्भन्न प्रकार की
स्तथस्त व स्वन्यास ाऄपेस्ित होती है।
 ाआस स्तथस्त के ाऄस्तररस्क्त स्वन्यास ककसी तथान की बनावट तथा भौस्तक पदाथों की ाईपलस्ब्ध
स्नधाभररत करता है। यह नगरों के भावी स्वकास में महत्वपूणभ भूस्मका स्नभाता है। ाईदाहरण के स्लए
जो नगर कें र महत्वपूणभ व्यापार मागभ के स्नकट स्तथत होते हैं वे तीव्र स्वकास का ाऄनुभव करते हैं।
ाअधुस्नक नगर वतभमान ाईपलब्ध प्रौद्योस्गकी के ाअधार पर सुदरू वती ाऄवस्तथस्तयों पर भी तथास्पत
ककए जा सकते हैं। ाऄवस्तथस्त और स्तथस्त की तुलना में स्वन्यास नगरीय मूल्यों और स्वततार लाने
में बीच की भूस्मका स्नभाता है।
 प्राचीन काल में नगरीय बस्ततयों की स्तथस्त के ाअधार जल की ाईपलब्धता, ाआमारती सामान (भवन
स्नमाभण सामग्री) तथा ाईपजााउ भूस्म हाअ करती थी। ाअज भी ाआन ाअधारों का पयाभप्त महत्व है।
लेककन ाअधुस्नक प्रौद्योस्गकी के बलबूते पर नगर ाआन ाअधारों से दूर भी बसाए जा सकते हैं। जल
पााआपलााआन िारा लाया जा सकता है तथा भवन स्नमाभण सामग्री सड़कों, रे लों या जहाजों िारा
दूरतथ तथानों से भी लााइ जा सकती है।
 स्तथस्त (site) और ाऄवस्तथस्त (Situation): स्तथस्त की तुलना में ाऄवस्तथस्त नगरों के स्वततार में
महत्वपूणभ भूस्मका स्नभाती है। महत्वपूणभ व्यापाररक मागभ पर बसे नगरों का स्वततार ाऄपेिाकृ त
ाऄस्धक तेजी से हाअ है।
नगरों की स्वशेषताएाँ
o सघन जनसांख्या
o बस्ततयों का कें रीकरण
o स्मली-जुली राजनीस्तक, सामास्जक तथा ाअर्थथक सांरचना
o नगर ाऄपने स्लए खाद्य ाअपूर्थत, कच्चे माल तथा ाऄन्य सेवाएां ाऄपने ाआदभ-स्गदभ के ग्रामीण िेत्रों से
प्राप्त करते हैं।
o ग्रामीण िेत्रों को तैयार वततुएां तथा सेवाएां प्रदान करते हैं।
o नगर वततुओं और सेवाओं के ाअदान-प्रदान के कें र के रूप में काम करते हैं।
o नगर पूरे राज्य ाऄथवा देश के प्रशासन और राजनीस्तक गस्तस्वस्धयों के कें र भी होते है।

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7.2. नगरीय- ग्रामीण ाऄां त सं बां ध (Town-Village Inter-relationship)

 ग्रामीण और नगरीय बस्ततयाां एक-दूसरे की पूरक हैं। गाांवों के कृ स्ष ाईत्पादों की नगरवास्सयों को
जरूरत होती है। ग्रामवासी नगरों पर औद्योस्गक वततुओं, स्चककत्सा और स्शिा सुस्वधाओं के स्लए
ाअस्ित रहते हैं। ाआस दृस्ष्ट से गाांव और नगर एक-दूसरे के प्रस्ततपधी नहीं ाऄस्पतु पूरक है। गाांव और
नगर सड़कों या रे लों िारा एक-दूसरे से जुड़े हए हैं तथा एक-दूसरे पर ाअस्ित हैं। गाांव और नगरों
में स्नम्नस्लस्खत चार प्रकार के सांबांध स्वकस्सत होते हैं:
o व्यापाररक सांबध
ां : ग्रामीण बस्ततयाां व्यापार के माध्यम से नगरों और कतबों से जुड़ी है।
गाांववासी ाऄपने ाऄस्धशेष ाईत्पादों को ले जाकर नगरों में बेचते हैं। ाआनके बदले में वे ाईद्योगों में
स्नर्थमत ाऄपने ाईपभोग की वततुएां खरीदते हैं। नगर व्यापार और ाईद्योगों के के न्र होते हैं। नगर
के ाऄनेक व्यापारी ाऄपने ग्रामीण ग्राहकों को ध्यान में रखकर ही दुकानों में वे सब वततुएां रखते
हैं, स्जनकी गाांवों में माांग होती है।
o सामास्जक सांबध
ां : नगर साांतकृ स्तक और मनोरां जन की गस्तस्वस्धयों के के न्र होते हैं। स्सनेमा,
मेल,े धार्थमक ाअयोजन, प्रदशभनी ाअकद नगरों की ही स्वशेषताएां हैं। यकद गाांववासी ाआन सेवाओं
का मनोरां जन के स्लए ाईपयोग करते हैं तो ये काइ सामास्जक बुरााआयाां दूर करने में मदद कर
सकते हैं। नगर गाांवों के स्लए रोजगार और स्शिा की सुस्वधाओं का सृजन करते हैं।
o पररवहनीय सांबध
ां : ग्रामवासी काम के स्लए, मनोरां जन और खरीददारी ाअकद के स्लए, जब
नगरों में जाते हैं, तो पररवहन के साधनों का ाईपयोग करते हैं। यह नगरवास्सयों की ाअय का
एक स्रोत है।
o परतपर पूरकता: यद्यस्प काइ स्विान यह सोचते हैं कक ग्रामीण और नगर िेत्र एक-दूसरे से पूरी
तरह स्भन्न हैं, परां तु यह वाततस्वकता नहीं है। गाांव और कतबे या नगर सामास्जक और ाअर्थथक
िेत्रों में एक-दूसरे के पूरक है। ाईनकी ाअर्थथक, सामास्जक और पयाभवरणीय ाअवश्यकताओं के
सांतल
ु न से दोनों के योगदानों को बढ़ाया जा सकता है।

7.3. नगरीय बस्ततयों का वगीकरण

नगरों में रहने वाली जनसांख्या को नगरीय जनसांख्या तथा गाांवों में रहने वाली जनसांख्या को ग्रामीण
जनसांख्या कहते हैं। गाांवों और नगरों के लिण स्भन्न होते हैं। ाआन्हीं लिणों के ाअधार पर ाईन्हें गाांव या
नगर कहा जाता हैाः
o जनसांख्या का ाअकाराः नगरों को गाांवों से ाऄलग करने के स्लए ककसी स्नस्ित जनसांख्या को
ाअधार माना जाता है। जैसे डेनमाकभ , तवीडन और कफनलैण्ड में 250 लोगों की बतती को नगर
कहा जाता है। ाआसके स्वपरीत भारत में 5,000 लोगों की बतती ही नगर कहलाती है।
सामान्यताः नगरीय बस्ततयाां ग्रामीण बस्ततयों से बड़ी होती है। जनसांख्या के ाअकार के ाअधार
पर नगरीय बस्ततयों और ग्रामीण बस्ततयों में ाऄांतर का कोाइ सवभमान्य मापदांड नहीं है। जापान
में नगरीय बस्ततयाां कहलाने के स्लए 30,000 जनसांख्या ाऄपेस्ित है। ाआसके ाऄलावा नगरीय
बस्ततयाां कहलाने के स्लए जनसांख्या के घनत्व को भी ध्यान में रखा जाता है। यह भी तवीकारा
गया है कक नगरों में जनसांख्या घनत्व ग्रामीण िेत्रों से ाऄस्धक होता है। भारत में नगरीय बतती
को पररभास्षत करने के स्लए कम से कम जनसांख्या घनत्व 400 व्यस्क्त प्रस्तवगभ ककलोमीटर
होना चास्हए।
o ाअर्थथक ाअधार या व्यावसास्यक सांरचनााः कु ि देशों में नगर की पररभाषा में वहाां की
जनसांख्या की ाअर्थथक सांरचना को भी ाअधार बनाया जाता है। गाांवों के ाऄस्धकतर लोग कृ स्ष
कायों में तथा नगरों में ाऄस्धकतर लोग गैर-कृ स्ष कायों में लगे होते हैं। ाआटली में वह बतती

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नगर कहलाती है स्जससे 50 प्रस्तशत से ाऄस्धक ाअर्थथक रूप से ाईत्पादक जनसांख्या गैर-कृ षीय
कक्रयाकलापों में लगी होती है। भारत में नगरों की पररभाषा में 75% से ाऄस्धक जनसांख्या
गैर-कृ स्ष कायों में लगी होती है। भारत में नगरों की पररभाषा में 75% से ाऄस्धक जनसांख्या
गैर-कृ स्ष कायों में लगी होनी चास्हए।
o प्रशासस्नक ाअधाराः नगरों की पररभाषा में प्रशासन भी एक मुख्य ाअधार है। भारत में वही
बतती नगर कहलाती है, जहाां नगर स्नगम, नगरपास्लका, िावनी बोडभ ाऄथवा नोटीफााआड
टााईन एररया कमेटी हो। कु ि देशों में प्रशासस्नक कायभ करने वाली िोटी से िोटी बतती को
भी नगर कहा जाता है। लैरटन ाऄमेररकी देशों, ब्राजील और बोस्लस्वया में िोटे से िोटा
प्रशासस्नक के न्र नगर कहलाता है।

7.4. नगरों का प्रकायाभ त्मक वगीकरण (Functional Classification of Towns)

 ककसी स्वशेष कायभ के ाअधार पर नगर प्रस्सद्ध हो जाते हैं। जैसे-हररिार एक तीथभ तथान (धार्थमक
नगर) है। यह ाऄलग बात है कक ाऄब यहाां स्बजली के बड़े ाईपकरण बनाने वाला ाईद्योग भी स्वकस्सत
हो गया है। वाराणसी प्राचीन काल से स्वद्या का के न्र रहा है। लेककन नगरों के कायभ सदैव एक से
नहीं रहते। वे समय और ाअवश्यकता के ाऄनुसार बदलते रहते हैं। जो नगर कभी गाांवों के हाट
बाजार थे, ाअज औद्योस्गक नगर बन गए हैं। प्रकायों के ाअधार पर नगरों का स्नम्न प्रकार से
वगीकरण ककया जा सकता हैं यह ाऄलग बात है कक एक स्वस्शष्ट वगभ के नगर में ाऄन्य कायभ भी
महत्वपूणभ हो सकते हैं:
 प्रशासकीय नगराः ये नगर देश या राज्यों की राजधास्नयाां होती हैं। यहीं से के न्र और राज्यों का
प्रशासन चलाया जाता है। यहीं से के न्र और राज्यों का प्रशासन चलाया जाता हैं कु ि नगर स्जलों
के मुख्यालय भी होते है। नाइ कदल्ली, कै नबरा (ऑतरेस्लया), मातको, बीबजग, ाअकदस ाऄबाबा
(ाआथोस्पया), वाबशगटन डी.सी., पेररस और लांदन राष्ट्रीय राजधास्नयाां हैं।
 सुरिा नगराः ाआन नगरों को सुरिा की दृस्ष्ट से बसाया गया था। ये तीन प्रकार के हैाः
o ककला नगराः प्राचीनकाल में राजा-महाराजा ाऄपनी सुरिा के स्लए ककले बनवाते थे। ककलों के
चारों ओर नगर बस जाता था। जोधपुर, स्चिौडगढ़ ाअकद ऐसे ही नगर हैं।
o गैरीसन नगराः ऐसे नगरों में सेना के दतते रहते हैं। एक ऐसा ही नगर महू, ाआां दौर के स्नकट है।
महू (Mhow) स्मस्लरी हेडक्वाटभर ऑफ वार का सांस्िप्त रूप है।
o नौसैस्नक नगराः नौसैस्नक गस्तस्वस्धयों के के न्रों ने भी नगरों का रूप धारण कर स्लया है।
भारत के पस्िमी तट पर कोस्च्च और कारवार नौसैस्नक नगर हैं।
 साांतकृ स्तक नगराः ये नगर सामान्यताः ाईच्च स्शिा, कला-सांतकृ स्त और मनोरां जन ाअकद के के न्र होते
हैं। ाआनमें से कु ि तीथभतथान भी होते हैं। ाआस दृस्ष्ट से ये तीन प्रकार के हो सकते हैं:
o स्शिा के न्राः ये नगर ाईच्च स्शिा के के न्र होते हैं। ाआन नगरों में स्शिा की प्राचीन परां परा होती
है। ये नगर ाअधुस्नकतम स्शिा सुस्वधाओं से पूणभ होते हैं। ऑक्सफ़ोडभ, कै स्म्ब्रज, वाराणसी
(काशी), स्पलानी (राजतथान) ाअकद ऐसे ही नगर हैं। प्राचीनकाल में भारत में तिस्शला और
नालांदा स्शिा के स्लए स्वश्व स्वख्यात नगर थे।
o धार्थमक नगराः ाआन नगरों का सांबध
ां ककसी न ककसी धमभ से होता है। धमभप्राण तीथभ यात्री ाआन
नगरों में ाअते रहते हैं। ाआन नगरों में यास्त्रयों की सुस्वधाओं के स्लए धमभशालाएां ाअकद बनााइ
जाती हैं। हररिार, ाऄयोध्या, पुरी (ओस्डशा), जेरुशलम, मक्का-मदीना, ाऄमृतसर ऐसे ही
धार्थमक नगर हैं।

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o मनोरां जन के न्राः कु ि नगर मनोरां जन की सुस्वधाओं के के न्र बन जाते हैं। लास वेगास (सां. रा.
ाऄमेररका), दार्थजबलग (भारत) तथा पटाया (थााइलैंण्ड) ऐसे ही नगर हैं।
 ाअर्थथक कक्रयाओं से सांबस्ां धत नगराः कु ि नगरों का स्वकास व्यापार और ाईद्योग जैसी ाअर्थथक
कक्रयाओं के के न्र के रूप में होता है। ऐसे नगर ाऄपनी प्रमुख ाअर्थथक कक्रया के ाअधार पर काइ प्रकार
के हो सकते हैं।
o खनन के न्राः कु ि नगर खस्नजों के िेत्र में खनन के न्र के रूप में स्वकस्सत हो जाते हैं। धनबाद,
खेतड़ी, ाऄांकलेश्वर, कालगूली एवां कु लगाडी (ऑतरेस्लया) ऐसे ही प्रस्सद्ध खनन के न्र हैं।
o औद्योस्गक नगराः कु ि नगर औद्योस्गक के न्रों के रूप में स्वकस्सत होते हैं। जमशेदपुर से पहले
वहाां साक्ची नाम का गाांव था। जमशेदजी टाटा के वहाां लोहे व ाआतपात का कारखाना खोलने
के बाद वह िोटा-सा गाांव एक बड़ा नगर बन गया। दुगाभपुर, कानपुर, स्भलााइ, ाऄहमदाबाद,
कोयम्बटू र ाअकद भारत के औद्योस्गक नगर हैं। स्पट्सबगभ, एसेन, तुलौन(फ्राांस), बर्ममघम (यू.
के .) योकोहामा (जापान) ाअकद भी ऐसे ही नगर हैं।
o व्यापाररक नगर: कु ि व्यापाररक के न्र व्यापार में वृस्द्ध के साथ बड़े नगरों का रूप ले लेते हैं।
ाआन नगरों में व्यापार की सुस्वधा के स्लए बैंक, भांडारघर ाअकद की व्यवतथा होती है। भारत के
ाअगरा, मुजफ्फरनगर, हापुड़ ाअकद व्यापाररक के न्र हैं। चीन का काश्गर, लाहौर
(पाककततान), जमभनी का डु सल
े डोफभ , कनाडा का स्वनीपेग तथा ाआराक का बगदाद व्यापाररक
के न्र हैं।
 पररवहन नगराः पररवहन के के न्र भी नगरों के रूप में स्वकस्सत हो जाते हैं। ाआसके दो प्रमुख प्रकार
नीचे कदये गए हैं:
o पिन नगराः समुर के तट पर बसे कु ि नगर ाअयात और स्नयाभत के के न्र हैं। यहाां जहाजों के
स्लए पोतािय होता है। ऐसे नगरों के लोगों को व्यापार और पररवहन में ही रोजगार स्मला
होता है। भारत के मुबाइ, मांगलौर, तूतीकोररन, चेन्नाइ, पारािीप, स्वशाखापिनम नगरों के
ाईदाहरण हैं। न्यूयाकभ , लांदन, हाांगकाांग, शांघााइ, न्यूाअर्थलयन्स, ररयो-स्ड-जनेररयो, राटरडम,
हैम्बगभ ाअकद सांसार के कु ि पिन नगर हैं।
o रे ल जांक्शन नगर: रे ल मागों के जांक्शन भी नगरों के रूप में स्वकस्सत हो जाते हैं। भारत के
मुगलसराय, ाआटारसी, नागपुर और बीना रे ल जांक्शन नगर हैं। घाना (ाऄफ्रीका) का कु मासी
तथा ाआांग्लैंड का नार्थवच(Norwich) नगर पररवहन के न्र हैं।
 मनोरां जन या पयभटन नगर: कु ि नगर ाऄपने प्राकृ स्तक सौंदयभ, तवात्यप्रद जलवायु या ऐस्तहास्सक
भव्य ाआमारतों ाअकद के कारण पयभटकों के ाअकषभण का के न्र बन जाते हैं। पवभतीय नगर स्शमला,
नैनीताल, दार्थजबलग, धमभशाला, मनाली, मसूरी पयभटन नगरों के रूप में स्वकस्सत हो गए हैं।
फतेहपुरी सीकरी ऐस्तहास्सक नगर होने के साथ-साथ पयभटन के न्र भी हैं।
 स्नयोस्जत नगराः वतभमान युग की ाअवश्यकता के ाऄनुसार कु ि तथानों पर नगर योजनाबद्ध तरीके
से बसाए गए हैं। चांढीगढ़ (भारत), ाआतलामाबाद (पाककततान), ब्रासीस्लया (ब्राजील), कै नबरा

(ाअतरेस्लया), कालभस्त्रूही (जमभनी) स्नयोस्जत और ाऄपेिाकृ त नए नगर हैं।


तवतथ नगर:
स्वश्व तवात्य सांगठन (WHO) के ाऄनुसार ाऄन्य बातों (सुस्वधाओं) के साथ-साथ एक तवतथ नगर में ये
सब होना चास्हएाः
 तवछि और सुरस्ित पयाभवरण।

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 ‘सभी’ स्नवास्सयों की ‘मूल ाअवश्यकताएां’ पूरी होती है।


 तथानीय प्रशासन में समुदाय की भागीदारी हो।
 सभी को तवात्य (स्चककत्सा) सुस्वधाएां ाअसानी से स्मलती हो।
ाऄवैध/ाऄनस्धकृ त बतती क्या है?

 नगरों में गरीबों का ाअवासीय िेत्र, स्जसकी भूस्म पर ाईनक वैध ाऄस्धकार नहीं होता है। ऐसे लोग
सरकारी या स्नजी भूस्म पर कब्जा कर लेते हैं।
 स्वकासशील देशों में ही नहीं स्वकस्सत देशों में भी 5-6 करोड़ लोग मस्लन बस्ततयों में रहते हैं।

न्यूयाकभ में ‘ब्रौक्स’ (Bronx) तथा भारत की ‘धारावी’ (मुांबाइ) मस्लन बततयों के एक ाईत्कृ ष्ट
ाईदाहरण है।

रचना के ाअधार पर नगरों का वगीकरण (Classification of Towns on the Basis of Forms)


 सभी नगर देखने में एक जैसे नहीं होते हैं। ाईनकी ाअकृ स्त और रूप में स्भन्नता होती है। सभी नगरों
का ाऄपना ाऄलग प्रस्तरूप और स्वशेषताएां होती हैं। नगरीय बतती की ाअकृ स्त और रूप काइ कारकों
पर स्नभभर करता है जैसे तथान जहाां ाईनका ाईद्भव हाअ है, राजनीस्तक साांतकृ स्तक दशाएां और प्रमुख

कायभ जो वहाां ककए जाते हैं। ककसी कतबे ाऄथवा नगर का रूप ाऄथवा ाअकृ स्त रै स्खक, ाअयताकार,
ताराकार ाऄथवा चापाकार हो सकती है।
 ाऄस्धकतर प्राचीन नगर ाऄस्नयोस्जत ढांग से स्वकस्सत हए हैं। काइ मामलों में तो ाआनका स्वकास
बहत ही ाऄव्यवस्तथत रूप में होता है। ऐसे मामलों में ाईनकी ाअकृ स्त का स्वकास तथान की
स्वशेषताओं तथा ऐस्तहास्सक और राजनीस्तक कारकों का ही पररणाम होता है। ाईदाहरण के स्लए,
ककला नगरों की ाअकृ स्त गोलाकार होती है क्योंकक लोग जहाां तक सांभव होता है ककले की सुरिा के
स्नकट ही रहना पसांद करते हैं। ऐसी बस्ततयाां ाऄस्धक सघन होती है। काइ एक पुराने कतबे और
नगरों के चारों ओर दीवार होती थी। ाआनके स्वततार के कारण ाऄब ये दीवार से बाहर स्वकस्सत हए
है। दूसरी ओर कतबे और नगर जो महामागों ाऄथवा समुर के ककनारे ाईभरे हैं, ाईनकी ाअकृ स्त रै स्खक
होती है।
 प्राचीन ाऄस्नयोस्जत नगरों के स्वपरीत ाअधुस्नक स्नयोस्जत नगरों का सुस्नस्ित प्रस्तरूप होता है
जो ाईनके कायों िारा स्नधाभररत होता है। चांढीगढ़ और कै नबरा स्नयोस्जत नगरों के ाईदाहरण हैं।
चांढीगढ़ को एक प्रशासस्नक नगर के रूप में, ाईनके कायभ को ध्यान में रखते हए स्वस्भन्न सेक्टरों में
बाांटा गया है।
 नगरीकरण का ाऄथभ है देश की कु ल जनसांख्या में नगरीय िेत्रों में रहने वाले लोगों की सांख्या में
वृस्द्ध, स्जसे प्रस्तशत में व्यक्त करते हैं।

 नगरीयता का ाऄथभ नगरीय जीवन की स्वशेषताओं से है। स्वषमता, स्नभभरता, कदखावा ाअकद ाआसकी
स्वशेषताएां है।
 ाईपनगरीय: स्वगत कु ि वषों में बस्ततयों का एक नया वगभ ाईभरा है। ाआन्हें ाईपनगर (Suburban

settlement) या नगरोन्मुख ग्राम (Rurban Settlement)कहते हैं। नगरों के ाअस-पास ऐसी

ाऄनेक बस्ततयाां बस गाइ हैं, जहाां नगरों में काम करने वाले लोग रहते हैं और काम के स्लए प्रस्तकदन
नगरों में चले जाते हैं।
 ाऄनुषग
ां ी नगर (Satellite town): एक बड़े शहर से ाऄलग ककतु ाईससे सांबद्ध िोटे-िोटे ाऄन्य नगर
जो ाऄनेक ाअवश्यक कायों एवां सेवाओं के स्लए ाईस (बड़े शहर) पर स्नभभर रहते हैं। ाआन नगरों को
सेटेलााआट नगर या ररग नगर भी कहा जाता है। जैसे ाईिर प्रदेश राज्य में स्तथत नोएडा, मेरठ,

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गास्जयाबाद राष्ट्रीय राजधानी िेत्र कदल्ली का एक ाऄनुषांगी नगर है।

7.5. नगरीय ाअकाररकी (Urbun Morphology)

 ाअकाररकी का ाऄथभ है नगरों के ाअकारों या तवरूपों के स्वषय में ाऄध्ययन करना है। दूसरे ाऄथों में
ाआसका ाअशय नगरीय िेत्रों की प्रकृ स्त, कायों, तवरूपों, िेत्रों की पातपररक स्तथस्त, एक-दूसरे पर

सामास्जक स्नभभरता का ाऄध्ययन करना, स्जससे कक नगरीय िेत्रों का भौगोस्लक वणभन ककया जा

सके ।
 शहरों में स्वद्यमान सड़क, रे ल, गस्लयााँ ाअकद के कारण ाईत्पन्न स्वस्वधताओं का स्नयोस्जत ाऄध्ययन

नगरीय ाअकाररकी के माध्यम से ककया जाता है। ाऄत: ाआसके ाऄांतगभत नगर के ाअांतररक स्वन्यास
तथा बाह्य प्रस्तरूपों का ाऄध्ययन ककया जाता है।
 नगरीय ाअकाररकी के सांघटक तत्व: व्यवहाररक दृस्ष्ट से ाआसे स्नम्नस्लस्खत तीन भागों में बााँटा जा
सकता है:
o भौस्तक ाअकाररकी: ाआसके ाऄांतगभत नगर के ाऄांदर यातायात मागों, भवनों की बनावट, स्तथस्त

ाअकद का ाऄध्ययन ककया जाता है। नगर के ाअांतररक एवां बाह्य स्वन्यास का भी ाऄध्ययन ककया
जाता है।
o कायाभत्मक ाअकाररकी: नगर के ाऄांदर भूस्म का स्वस्भन्न कायो के स्लए ाईपयोग ककया जाता है,

जैसे बैंक, कायाभलय ाअकद। ाआसके ाऄांतगभत यह ाऄध्ययन ककया जाता है नगर के ककस भाग में

कौन-सी कक्रयाएाँ सांपन्न की जा रही है और वो कक्रयाएाँ वही क्यों की जा रही है।


o जनाांकककीय ाअकाररकी: ाआसके ाऄांतगभत नगर के ाऄांदर रहने वाले लोगों से सांबांस्धत स्वस्भन्न
पिों का ाऄध्ययन ककया जाता है। ाईदाहरण के स्लए जनसाँख्या घनत्व, ाअयु सांरचना,

बलगानुपात, सािरता, कायाभत्मक सांरचना ाअकद का ाऄध्ययन ककया जाता है।

 नगरीय ाअकाररकी को प्रभास्वत करने वाले कारण:


o प्राकृ स्तक कारण: ाआसके ाऄांतगभत नदी, सपाट मैदान, पठार, समुर के ककनारे ाअकद तथलों पर

नगरों की बसाव स्तथस्त को देखा जाता है। ाईदाहरण के स्लए खुले एवां सपाट मैदानों में नगरों
का स्वकास चारों ओर समान रूप से होता है वही दूसरी तरफ नदी या समुर के ककनारों पर
नगरों का स्वकास ककनारे -ककनारे होता है।
o सामास्जक-साांतकृ स्तक कारण: नगरों में स्नवास करने वाले लोगों के रीस्त-ररवाज, धार्थमक

मान्यताएाँ, ऐस्तहास्सक बाज़ार, धार्थमक तथल ाअकद नगरों की ाअकाररकी को प्रभास्वत करते

है। जैसे जयपुर, मदुराइ ाअकद नगरों का स्वकास।

7.6. नगरों का के न्रीय व्यापाररक िे त्र (CBD)

 यह ककसी भी नगर का सबसे महत्त्वपूणभ भाग होता है। CBD में मुख्य रूप से व्यापाररक कायभ ही

ककये जाते है। ाआस िेत्र में नगर की ाऄस्धकाांश दुकानें, स्सनेमाघर, सरकार और स्नजी कायभकाल, बैंक
ाअकद ाऄवस्तथत होते है। यह िेत्र पूरे नगर के साथ-साथ नगरीय प्रभाव िेत्र को ाअसानी से सेवाएाँ
प्रदान करता है।

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 ज्यादातर पुराने नगरों का CBD कें र में ही ाऄवस्तथत होता था लेककन वतभमान में CBD नगर के
कें र भाग में न होकर नगर के सीमाांत भाग में भी हो सकता है।
 CBD की मुख्य स्वशेषताएाँ:
o ाआस िेत्र में व्यापार की प्रधानता होती है।
o सरकारी एवां स्नजी कायाभलयों का सांकेन्रण पाया जाता है।
o यहााँ पररवहन मागों का के न्रीकरण होता है।
o बहमांस्जली ाआमारतों का बह-ाईद्देशीय ाईपयोग ककया जाता है, जैसे एक ही ाआमारत में बैंक,
सरकारी व स्नजी कायाभलय ाअकद की स्तथस्त होती है।
o ाआस िेत्र में स्नमाभण ाईद्योगों की ाईनुपस्तथस्त होती है।
o ाअवासीय एवां तथायी जनसांख्यााँ का ाऄभाव पाया जाता है। ाआस िेत्र में लोग कदन के समय
कायभ करते है तथा रात में ाऄपने घरों को लौट जाते है।
 CBD की सांरचना

o CBD को मुख्य रूप से तीन भागों में वगीकृ त ककया जाता है:
 कोर िेत्र: यह भाग CBD के कें र में ाऄवस्तथत होता है। यह ाऄत्यस्धक भीड़-भाड़ वाला
िेत्र होता है।
 मध्य िेत्र: यह िेत्र कोर भाग के चारों फै ला होता है। यह िेत्र कोर भाग की ाऄपेिा कम
भीड़-भाड़ वाला होता है। यहााँ पर बैंक, कायाभलय ाअकद ाऄवस्तथत होते है।

 बाह्य िेत्र: यह नगर का सबसे बाहरी िेत्र होता है, स्जसमे मुख्य रूप से थोक की दुकानें
या गोदाम ाऄवस्तथत होते है। ाआस िेत्र में मुख्य रूप से स्नम्न ाअय वाले लोग रहते है।
o भारत के CBD िेत्र: कदल्ली में कनॉट प्लेस, चााँदनी चौक, लुस्धयाना का चौड़ा बाज़ार
ाअकद।

पस्िमी देशों में CBD (यूरोप, ाऄमेररका) पूवी देशों में CBD (एस्शया)

ाआमारतें बहमांस्जली एवां काफी ाउाँची होती है। ाऄपेिाकृ त कम ाउाँची।

CDB की ाऄवस्तथस्त काफी सुव्यवस्तथत तरीके से। CDB की ाऄवस्तथस्त सुबद्ध तरीके से नहीं।

फु टकर दुकानों पर स्बकने वाली वततुओं की फु टकर दुकानों पर स्बकने वाली वततुओं में
स्वस्वधता ाऄस्धक। स्वस्वधता कम देखने को स्मलती है।

CBD का तपष्ट सीमाांकन ककया जा सकता है। CBD का तपष्ट सीमाांकन नहीं ककया जा सकता
है।

CBD में के वल क्रय-स्वक्रय का कायभ ककया जाता है। CBD में क्रय-स्वक्रय के साथ-साथ कु ि वततु
स्नमाभण का कायभ भी ककया जाता है।

7.7. नगर के सां द भभ में के न्रीयतथल की सां क ल्पना ( Central Place)

 नगरीय िेत्र के सांदभभ में ाईन ाऄस्धवासों को के न्रीय तथल माना जाता जो ाऄपने चारों ओर स्तथत
पररिेत्र को ाअवश्यक वततुएां एवां सेवाएाँ प्रदान करते है। के न्रीय िेत्र ाऄपने चारों ओर या सहायक
िेत्र से कायाभत्मक रूप से जुड़ा होता है। ाआसी कारण के न्रीय तथल को सेवा कें र के रूप में भी जाना
जाता है।

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 के रीय तथल स्वस्भन्न ाअकार का हो सकता है। ककसी प्रदेश में स्तथत के न्रीय तथल के ाअकार,

सांख्या, प्रदान की जाने वाली सेवाएाँ, ाईसके िारा ककये जाने वाले कायों की प्रकृ स्त तथा पारतपररक
तथास्नक दूररयों में घस्नष्ठ सांबांध पाया जाता है।
 के न्रीय तथल का स्नधाभरण एवां ाईसका वणभन सवभप्रथम कक्रतटोलर िारा ककया गया था। ाआन्होने
बताया कक ककसी भी समतल प्रदेश में स्वस्भन्न पदानुक्रम वाले के न्रीय तथल स्तथत होते है। ाईन्होंने
ाआसको 7 भागों में बाांटा, जो स्नम्न प्रकार है:

1. बाज़ार कें र
2. टााईनस्शप कें र
3. कााईन्टी स्सटी
4. जनपदीय नगर
5. लघुराज्य राजधानी
6. प्राांतीय प्रधा न नगर
7. प्रादेस्शक राजधानी नगर

7.8. नगरीय बस्ततयों के प्रकार (Types of Urban Setements)

 ाअकार, ाईपलब्ध सेवाओं और ककए जाने वाले कायों के ाअधार पर नगरीय के न्रों को स्नम्नस्लस्खत
नाम कदए जा सकते है।
o कतबा (Towns): कतबे सबसे िोटी नगरीय बस्ततयाां है। ाअकार के ाअधार पर कतबा, ग्रामीण

बतती-‘गाांव’ से ाऄलग ककया जा सकता है। कतबा कायों के ाअधार पर भी गाांव से स्भन्न है।
कतबों और नगरों में लोगों के प्रमुख व्यवसाय के ाअधार पर ाऄांतर ककया जाता हैं कतबे में
बहसांख्यक लोग गैर-कृ षीय स्वशेष कक्रयाकलापों; जैस-े खुदरा और थोक व्यापार और ाऄन्य

व्यावसास्यक सेवाओं में लगे होते हैं, जबकक गाांववासी प्राथस्मक व्यवसाय में लगे होते हैं।

o नगर (City) : नगर को ाऄग्रणी कतबा कह सकते हैं, जो ाऄपने तथानीय या प्रादेस्शक

प्रस्तिांकदयों से ाअगे स्नकल गया है। लेस्वस ममफोडभ के ाऄनुसार, “नगर ाईच्चतम और ाऄत्यस्धक
जरटल प्रकार के सहचारी जीवन के मूतभ रूप हैं नगर कतबों की तुलना में बहत बड़े होते हैं।
ाआनमें ाअर्थथक कक्रयाएां भी ाऄस्धक होती है। ाआनमें पररवहन के ाऄांस्तम तटेशन, प्रमुख स्विीय
सांतथाएां और प्रादेस्शक प्रशासस्नक कायाभलय होते हैं। जब ाआनकी जनसांख्या दस लाख से ाऄस्धक
हो जाती है, तो ाआन्हें स्मस्लयन स्सटी कहते हैं।

o महानगर (Megalopolis): मेगालोपोस्लस ाऄांग्रज


े ी के शब्द की व्यत्पुस्ि यूनानी शब्द से हाइ

है, स्जसका ाऄथभ है, महान नगर। ाआस शब्द को 1957 में जीन गोटमैन ने लोकस्प्रयता प्रदान की
थी। मेगालोपोस्लस में काइ ाईपनगरीय समूहन शास्मल होते हैं। यह ाऄस्त स्वस्शष्ट महानगरीय
प्रदेश हैं, जो दूर तक फै ला होता है। महानगर का सबसे ाऄछिा ाईदाहरण सांयुक्त राज्य
ाऄमेररका में ाईिर के बोतटन नगर से लेकर वाबशगटन के दस्िण तक फै ला नगरीय िेत्र है।
महानगर की स्वशालता का ाऄनुमान ाआसी से लगाया जा सकता है कक बोतटन और वाबशगटन
के बीच न्यूयाकभ , कफलाडेस्ल्फया और बाल्टीमोर जैसे तीन महानगर है।

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o स्मस्लयन स्सटी (Million city): कोाइ नगर स्जसकी जनसांख्या 10 लाख या 10 लाख से
ाऄस्धक हो वह स्मस्लयन स्सटी कहलाते है। सांसार में ऐसे नगरों की सांख्या में ाऄभूतपूवभ वृस्द्ध हो
रही है। सन् 1800 में लांदन की जनसांख्या दस लाख की सीमा के पार हाइ। ाआसके बाद 1950

में पेररस और 1960 में न्यूयाकभ ने यह सीमा पार की। 1950 में 84 स्मस्लयन स्सटी थी। प्रस्त

तीन दशक में स्मस्लयन स्सटी की वृस्द्ध तीन गुनी थी। 1970 में 162 दस स्मस्लयन स्सटी थी

तथा 2007 में ाआनकी सांख्या बढ़कर 468 हो गाइ।

नगरों के क्रस्मक स्वकास की ाऄवतथाएाँ


 ाआयोपोस्लस (Eopolis): यह प्रारां स्भक ाऄवतथा है स्जसमें गााँव एवां िोटे-िोटे ाईद्योगों का स्वकास
होना प्रारम्भ होता है।
 पोस्लस (Polis): ाआस ाऄवतथा में गौण का रूप कतबे में पररवर्थतत हो जाता है। व्यापार का िेत्र
बढ़ने लगता है।
 मेरोपोस्लस (Metropolis): बड़े-बड़े नगरों का स्वकास होता है, स्जनमें ाईद्योग, व्यापार,
प्रशासस्नक कक्रयाएाँ ाअकद का ाईच्च ततर पाया जाता है।
 मेगालोपोस्लस (Megalopolis): यह ाऄवतथा नगर स्वकास की ाऄांस्तम/चरम ाऄवतथा है।

 टायरनोपोस्लस (Tyranopolis): ाआस ाऄवतथा में सामास्जक-ाअर्थथक या ाऄन्य कारणों से नगरों का


स्वकास ाऄवरुद्ध हो जाता है और नगर का पतन होना शुरू हो जाता है।
 नेक्रोपोस्लस (Nekropolis): यह नगरों के नष्ट होने की ाऄवतथा होतो है।

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7.9. नगरीय बस्ततयों की समतयाएां (Problems of Urban Settlements)

 स्वकासशील देशों के नगरों की जनसांख्या में ाऄभूतपूवभ वृस्द्ध देखी जा रही है। ाईदाहरण के स्लए
लांदन की 5 लाख जनसांख्या 190 वषों के बाद दस लाख हाइ। ाआस प्रकार न्यूयाकभ की जनसांख्या को
5 लाख से दस लाख होने में 140 वषभ लगे। ाआसके स्वपरीत स्वकासशील देशों के मैस्क्सको नगर,
साओपालो, कोलकाता, स्सयोल और मुम्बाइ की 5 लाख जनसांख्या के वल 75 वषों में ही बढ़कर दस
लाख हो गाइ।
 ाऄस्त नगरीकरण या ाऄस्नयांस्त्रत नगरीकरण से झुग्गी-झोंपस्ड़यों या मस्लन बस्ततयों का जन्म हाअ
है। सम्पूणभ सांसार में एक ाऄरब लोग जीवन के स्लए खतरनाक पररस्तथस्तयों में रह रहे हैं। यही नहीं

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30 करोड़ लोग स्नम्नततरीय गरीबी का जीवन जीने को मजबूर हैं। भारत में चार करोड़ से ाऄस्धक
लोग नगरों में मस्लन बस्ततयों में रहते हैं, जो कु ल नगरीय जनसांख्या का 22.58 प्रस्तशत है।
 नगरीय िेत्रों की ाऄस्धकतर समतयाएां ाईनके ाऄस्नयोस्जत स्वकास के कारण गाांवों से नगरों में लोगों
का प्रवास है। एक ओर गाांवों में यह िम की कमी का कारण बनता है वहाां नगरीय िेत्रों के
सांसाधनों पर ाऄनावश्यक दबाव बढ़ाता है। नगरों की कु ि महत्वपूणभ समतयाएां यहाां दी गाइ हैाः
 ाअर्थथक समतयाएां (Economic Problems)
o स्वकासशील देशों में ग्रामीण और िोटे कतबों में रोजगार के ाऄवसर स्नरां तन घट रहे हैं।
o गाांवों में रोजगार न स्मलने के कारण लोग नगरों की ओर पलायन कर रहे हैं।
o नगरों में बड़ी सांख्या में प्रवासी जनसांख्या के कारण ाऄकु शल और ाऄद्धभ कु शल िस्मकों की
सांख्या बढ़ रही है |
o नगरों में पहले से ही िस्मकों की सांख्या ाअवश्यकता से ाऄस्धक है।
o कम वेतन के कारण लोगों को गरीबी और कु पोषण की दशाओं में जीवनयापन करना पड़ता
है।
 सामास्जक-साांतकृ स्तक समतयाएां (Socio-Cultural Problems)
o प्रवासी जनसांख्या को काम नहीं स्मल पाता है जो शहर के स्वकास/स्तथस्त को हास्न पहाँचाता
है। कु ि बेरोजगार लोग गैर-कानूनी गस्तस्वस्धयों में शास्मल हो जाते हैं।
o शहरों की सुस्वधाओं पर ाऄस्धक दबाव पड़ता है। यहाां तक सामास्जक ाअवश्यकताओं की भी
कमी हो जाती है।
o स्वश्व के स्वकासशील देशों के ाऄस्धकतर नगरों में मकानों, तवात्य सेवाओं और स्शिा की
कमी जैसी समतयाएां बनी हाइ हैं। ाईपलब्ध स्शिा और तवात्य सुस्वधाएां नगरीय गरीबों की
पहांच से बाहर हैं
o स्वकासशील देशों के नगरों में तवात्य के सांकेतक ाऄांधकारमय ततवीर ही प्रततुत करते हैं।
o गाांवों से नगरों की ओर जनसांख्या के प्रवास, नगरीय िेत्रों का बलग ाऄनुपात तथा जनसांख्या
की प्राकृ स्तक वृस्द्ध दर को बदल देता है।
o बेरोजगारी ाऄनेक प्रकार की बुरााइयों को जन्म देती है।
 पयाभवरणीय समतयाएां (Environmental Problems)
o जल की समतयााः स्वकासशील देशों में नगरों की स्वशाल जनसांख्या ाऄत्यस्धक मात्रा में जल का
ाईपयोग करती है। पररणाम तवरूप ाआसकी ाऄसाधारण कमी होती जा रही है।
o जल के ाऄस्धक ाईपयोग से ाऄस्धक मल-जल पैदा होता है।
o मल-जल के स्नपटान की समतया स्वकट रूप धारण कर रही हैं। ाआससे तवात्य के स्लए
हास्नकारक पररस्तथस्तयाां ाईत्पन्न हो रही है।
o पीने के स्लए, घरे लू और औद्योस्गक ाईपयोग के स्लए नगरों में जल की कमी हो गाइ है। नगर,
माांग के ाऄनुसार जल की ाअपूर्थत करने में ाऄसमथभ है।
o वायु प्रदूषणाः घरों और ाईद्योगों में पारां पररक ईंधन के ाईपयोग से वायु प्रदूषण बढ़ रहा है।
o ाऄपस्शष्ट (Waste) की समतयााः घरे लू और औद्योस्गक ाऄपस्शष्ट भारी मात्रा में स्नकलता है।
ाआसे स्बना ककसी ाईपचार के सीवर में या बाहर सड़कों में कहीं भी फें क कदया जाता है।
o ाउष्मािीप: स्वशाल जनसांख्या को ाअवास ाईपलब्ध कराने के स्लए कां क्रीट की स्वशालकाय
ाआमारतों के बनने से ‘ाउष्मािीप’ बन गए हैं। नगरों और ाईनके ाअस-पास िेत्रों में तापमान का
ाऄांतर ाऄनुभव ककया जाता है।
o ध्वस्न प्रदूषण का ाईच्च ततर भी एक समतया है, स्जसका ाअज बड़े नगर सामना कर रहे हैं।

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मस्लन बस्ततयाां एवां ाईनकी स्वशेषताएां (Characteristics of Slums): नगरीय मस्लन बस्ततयों की
सामान्य स्वशेषताएां स्नम्नाांककत हैं -
o मस्लन बस्ततयों की सवाभस्धक महत्वपूणभ तथा सावभभौस्मक स्वशेषता स्नधभरता है। मस्लन
बस्ततयों में सामान्यताः कम ाअय वाले लोग रहते हैं। ाऄल्प ाअय वाले मजदूर, ररक्शा-ताांगा या
टैक्सी चालक, गााँवों से पालास्यत बेरोजगार ाअकद मस्लन बस्ततयों में कम ककराये वाले
ाअियों में स्नवास करते हैं।
o मस्लन बस्ततयाां ाऄस्धकाांशताः नगर के भीतरी भाग में के न्रीय व्यापाररक िेत्र (C.B.D.) के
पीिे ाऄथवा कारखानों के समीप पायी जाती हैं। नगर के भीतर पुराने तथा जजभर भवनों वाले
िेत्र (Bright area) में ाऄल्पायु वाले िस्मक समूह स्नवास करते हैं जहाां वे कम ककराये पर
मकान पा जाते हैं।
o कारखानों के समीप ाऄथवा ाऄन्य खुली सरकारी या सावभजस्नक भूस्मयों को ाऄवैध रूप से
ाऄस्धग्रहीत करके ाईन पर ाऄस्नयोस्जत तथा ाऄव्यवस्तथत रूप से झोपड़ी, िप्पर, टीन,
एतबेतटस, खपरे ल वाले गृह बना स्लए जाते हैं और वहाां लोग रहने लगते हैं।
o मस्लन बस्ततयों में सावभजस्नक सुस्वधाओं-सड़क, शुद्ध पेय जल, स्वद्युत ाअकद का पूणत
भ या या
लगभग ाऄभाव पाया जाता है। जल स्नकास (नास्लयों) के ाऄभाव में गांदा जल रातते पर फै ला
रहता है।
o मस्लन बस्ततयाां पयाभवरण प्रदूषण के साथ ही सामास्जक प्रदूषण की भी के न्र होती हैं जहाां
शराब पीने, जुाअ खेलने, वेश्यावृस्त, चोरी, बलात्कार, हत्या जैसी ाऄनेक सामास्जक बुरााआयाां
पनपती हैं। ाआन गांदी बस्ततयों में पनपने वाली बुरााआयाां के वल ाआन्हीं तक सीस्मत नहीं होती हैं
बस्ल्क ाआनका दुष्प्रभाव बड़े िेत्रों या पूरे नगर पर पड़ता है।
मस्लन बस्ततयों के ाईद्भव के स्लए ाईिरादायी कारक:
 नगरों में मस्लन बस्ततयों के स्वकास के स्लए ाऄनेक ाअर्थथक, सामास्जक तथा राजनीस्तक कारक
ाईिरदायी होते हैं स्जनमें प्रमुख स्नम्नाककत हैं-
o औद्योगीकरण (Industrialization) - नगरों में तीव्र औद्योगीकरण ने मस्लन बस्ततयों को
जन्म कदया है। कारखानों में काम करने के स्लए ग्रामीण िेत्रों से बड़ी सांख्या में लोग नगर में
एकस्त्रत होते हैं और ाऄपने कायभतथल (working place) के स्नकट रहना चाहते हैं। जब
ाऄल्पाय वाले िस्मकों को रहने के स्लए कम ककराये पर योग्य मकान नहीं स्मल जाते हैं तब वे
पुराने, जजभर और स्गराये जाने योग्य और गांदगी पूणभ मकानों में रहने लगते हैं ाऄथवा कहीं
समीप में खाली पड़ी सावभजस्नक भूस्म पर ाऄनस्धकृ त कब्जा करके कच्चे घर बना लेते हैं और
ाईसमें रहते हैं। ाआस प्रकार कारखानों के ाअस-पास मस्लन बस्ततयों का स्वकास होता है।
o स्नधभनता (Poverty) - स्वश्व के ाऄस्धकाांश देशों में नगर की लगभग जनसांख्या न तो नगर के
ाईां चे मूल्य वाली भूस्म को क्रय करने तथा मकान बनवाने में समथभ होती है और न ही वह
सुस्वधा सम्पन्न मकानों का ककराया देने में ही सिम होती है । ऐसी स्तथस्त में स्नधभन िस्मक
ररक्शा-ताांगा चालक कु ली, खोंचा लगाने वाले, गाांवों से ाअये हए बेरोजगार तथा ाआसी प्रकार
जीस्वका के पयाभप्त साधन जुटा पाने में ाऄसमथभ लोग ऐसे ाअिय की खोज करते हैं जहाां वे रह
सकें और ककसी तरह जीवन स्नवाभह कर सकें । स्नधभनता के कारण ाऄसांख्या लोग मस्लन
बस्ततयों की शरण लेते हैं।
o ग्रामीण बेरोजगारी (Rural Poverty) - ग्रामों में ाईद्योग और कृ स्ष िेत्र के कम स्वकस्सत होने
पर वहाां रोजगार की कमी हो जाती है। प्रस्त वषभ ग्रामीण िेत्रों से रोजगार की खोज में बड़ी
सांख्या में लोग समीपवती नगरों तथा दूरवती महानगरों में जाते हैं।

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o तीव्र नगरीकरण (Rapid Urbanization) - ग्रामीण िेत्रों से नगरों के स्लए बड़ी सांख्या में
जनसांख्या तथानाांतरण के कारण नगरीय जनसांख्या तेजी से बढ़ती जा रही है। ककन्तु स्जस गस्त
से जनसांख्या ाअकार में वृस्द्ध हो रही है ाईसी गस्त से नगर में ाअवासीय गृहों का स्नमाभण नहीं
हो पाता है, स्जसके कारण गृहों का ाऄभाव होने लगता है।
o नगरीय ाअकषभण (Urban Attraction) - नगरों में रोजगार, स्शिा, स्चककत्सा, मनोरां जन,
स्वद्युत ाअकद काइ सुस्वधाएां स्वद्यमान होती हैं स्जन का ग्रामीण िेत्रों में प्रायाः ाऄभाव पाया
जाता है। नगरीय सुस्वधाओं से ाअकर्थषत हेाकर प्रस्त वषभ बड़ी सांख्या में ग्रामीण-नगरीय
तथानाांतरण के पररणामतवरूप नगरीय जनसांख्या में वृस्द्ध हो जाती है।
o घरों का ाऄभाव (Shortage of Houses) - नगरों में मकानों के ाऄभाव के कारण लाखों
लोगों को मस्लन बस्ततयों में रहने के स्लए स्ववश होना पड़ता है। मकानों की माांग की तुलना
में पूर्थत बहत कम होने के कारण एक तरफ तो कमरों के ककराऐ बढ़ जाते हैं और दूसरी ओर
भूतवामी तथा मकान मास्लक ाऄत्यांत िोटे-िोटे कमरे बनवाकर ककराये पर देते हैं जहाां
स्नानागार, शौचालाय, जलापूर्थत ाअकद का सामूस्हक प्रयोग करना होता है ाऄथवा वे ाआन
सुस्वधाओं से भी वांस्चत रहते हैं।
o नगरीय प्रदूषण (Urban Pollution) - महानगरों के पुराने बसे हए भागों (प्रायाः C.B.D. के
पीिे) में जहाां मकान ाऄत्यांत पुराने, जजभर, स्गराने योग्य तथा स्नवास के ाऄयोग्य होत हैं वहाां
पर पाये जाने वाले शोर-शराबा, भीड़-भाड़ तथा ाऄन्य प्रदूषणों से ाउबकर ाईच्च वगीय तथा
सम्पन्न पररवार ाईसे नगर के बाह्य भागों की ओर तथानाांतररत हो जाते हैं।
o सरकारी प्रयासों का ाऄभाव (Lack of Government Efforts) - महानगरों में मस्लन
बस्ततयों के स्वकास के स्लए सरकारें और महानगरीय प्रशासन भी ाईिरदायी होते हैं। प्रशासन
िारा िस्मक बस्ततयों में सफााइ, स्बजली, स्चककत्सा, जलापूर्थत ाअकद ाअवश्यक सुस्वधाओं की
व्यवतथा के प्रस्त ाईपेिात्मक व्यवहार मस्लन बस्ततयों के तवरूप को और ाऄस्धक स्वकृ त बना
देता है।
स्वश्व में मस्लन बस्ततयाां (Slums in the World)
 स्वश्व के लगभग सभी महानगरों में मस्लन बस्ततयाां ककसी न ककसी रूप् में पायी जाती हैं। मस्लन
बस्ततयों की समतया के वल स्वकासशील देशों तक ही सीस्मत नहीं है बस्ल्क ाऄनेक पािात्य
स्वकस्सत देशों के महानगरों में भी ाआस प्रकार की ाअवासीय समतयाएां पााइ जाती हैं।
 स्वश्व के सुन्दरतम नगर पेररस में जहाां एक ओर ाअधुस्नक साज-सज्जा से युक्त बहमांस्जला भव्य
भवन देखने को स्मलते हैं, वहीं दूसरी ओर नगर के कु ि स्हतसों में स्नधभन लोगों की स्नम्न ततरीय
बस्ततयाां भी पायी जाती हैं स्जन्हें मस्लन बस्ततयों की ही िेणी में रखा जा सकता है।
 ाआां ग्लैड में स्वदेशी ाऄश्वेत लोग स्वस्भन्न नगरों के पुराने भागों में जहाां मकान ाऄत्यांत पुराने और जजभर
हो चुके हैं, वहाां स्नवास करते हैं। एक ाऄनुमान के ाऄनुसार मेनचेतटर और बर्ममघम में 20 प्रस्तशत
और होल में 30 प्रस्तशत ाअवासीय गृह ाऄत्यांत प्राचीन और स्गराने योग्य है जहाां स्नम्न ाअय वगीय
जनसांख्या ने शरण ले रखा है।
 सांयक्त
ु राज्य ाऄमेररका के न्यूयाकभ , स्शकागो, बर्थमघम, डेरायट, सैन फ्राांस्सतको ाअकद के काइ
महानगरों में जहाां नीग्रो लोगों की बस्ततयाां हैं, मकानों का ककराया कम होता है ककन्तु मकानों की
मरम्मत, सफााइ, पाकभ तथा जनोपयोगी सामान्य सुस्वधाएां प्रायाः ाईपेस्ित होती हैं।
 रोम और नेपल्स कस्तपय भागों में भी मस्लन बस्ततयाां पायी जाती हैं जो मुख्यताः नगर के भीतर
और के न्रीय व्यापार िेत्र के पीिे स्तथत हैं।
 ब्राजील के बास्हया नगर में ग्रामीण िेत्रों से ाअये हए स्नम्न ाअय वगीय लोगों ने स्पलुररन्हों पहाड़ी
पर स्नवास बना स्लया है। ाआस मस्लन बस्तत में ियरोग तथा वेश्यावृस्ि जैसी सामास्जक बुरााआयाां
चरमसीमा पर बतायी गयी हैं।

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8. भारत में नगरीय बस्ततयाां (Urban Settlements in


India)
 नगरीकरण की ाअधुस्नक प्रवृस्ियों का सबसे ाऄछिा ाईदाहरण एस्शया महािीप में देखा जा सकता
है। कभी का गाांवों का महािीप ाऄब नगरों और कतबों का महािीप बन गया है। एस्शया की कु ल
जनसांख्या 2008 में 4.052 ाऄरब थी, स्जसमें से 1.7 ाऄरब से ाऄस्धक नगरीय जनसांख्या थी। स्वगत
5 दशकों में एस्शया की नगरीय जनसांख्या में 5 गुनी वृस्द्ध हाइ है। एस्शया में सांसार की 52%
नगरीय जनसांख्या का स्नवास है।
 भारत की जनगणना 2001 में ाऄपनााइ गाइ नगरीय िेत्र की पररभाषा ाआस प्रकार हैाः
o नगर पास्लका, नगर स्नगम, िावनी बोडभ, या ाऄस्धसूस्चत नगर िेत्र सस्मस्त, ाअकद सस्हत
सभी साांस्वस्धक (Statutory) तथान।
o ऐसा तथान जो एक साथ स्नम्नस्लस्खत तीन शतों को पूरा करता हो -
 कम से कम 5,000 की जनसांख्या
 कम से कम 75 प्रस्तशत पुरूष जनसांख्या, जो गैर कृ स्ष कायभकलापों में कायभरत हो और
 जनसांख्या का घनत्व कम से कम 400 व्यस्क्त प्रस्त वगभ कक.मी. (1,000 प्रस्त वगभ मील)
हो।
नगरों और शहरों का प्रकायाभत्मक वगीकरण (Functional Classification of Towns and Cities)
 कतबे और नगर ाऄपनी जनसांख्या तथा ाऄपने पृष्ठ प्रदेशों के स्लए स्वस्भन्न कायभ करते हैं। यद्यस्प
प्रत्येक कतबा ाऄथवा नगर बड़ी सांख्या में कायभ करते हैं। ाआनमें से कु ि कायभ ाऄन्य की ाऄपेिा ाऄस्धक
महत्वपूणभ हो जाते हैं। नगरों के स्वस्शष्ट या प्रमुख कायों के ाअधार पर नगरों को स्नम्नस्लस्खत रूप
में वगीकृ त ककया जा सकता है।
o प्रशासस्नक नगर: ऐसे नगर राज्यों/देश की राजधास्नयों के रूप में प्रस्सद्ध हो जाते हैं।
प्रशासस्नक कायों की महिा के कारण ाआन्हें प्रशासस्नक नगर कहते हैं- ाईदाहरण नाइ कदल्ली,
चांडीगढ़, भोपाल, गाांधी नगर ाअकद।
o औद्योस्गक नगराः ऐसे नगरों में ाअस-पास के या बाहर से मांगाए गए कच्चे माल से वततुओं का
स्नमाभण ककया जाता है। एक नगर में काइ प्रकार के ाईद्योग भी हो सकते हैं। ाईदाहरण मुांबाइ,
सेलम, कोयम्बटू र, जमशेदपुर, हगली, मोदी नगर, दुगाभपुर, स्भलााइ ाअकद।
o ऐसे नगर ाअदशभ स्तथस्तयों में स्वकस्सत होते हैं जहाां सड़कें ाऄथवा रे लमागभ ाअपस में स्मलते हैं।
o पररवहन नगराः ये नगर पररवहन मागों के स्मलन स्बन्दु पर स्वकस्सत हो जाते है। ऐसे नगरों
के ाईदाहरण के रूप में ाअगरा, धूस्लया, मुगल सराय, कटनी, ाआटारसी, जैसलमेर और
पठानकोट के नाम स्लए जा सकते हैं। कु ि नगर समुरतट पर ाअयात-स्नयाभत के िार के रूप में
भी स्वकस्सत हो जाते हैं। काांडला, कोस्च्च, कालीकट, स्वशाखापतनम, हस्ल्दया, पारादीप ाअकद
ऐसे ही नगर हैं।
o व्यापाररक नगराः प्रारां भ में ाआन नगरों का स्वकास स्वतरण के न्र के रूप में होता है। पररवहन
और सांचार साधनों के स्वकास के साथ ाआनका स्वकास भी होता जाता है। धीरे -धीरे यहाां
ाईद्योग भी स्वकस्सत होने लगते हैं। कोलकाता, सतना, सहारनपुर, हापुड़, मेरठ, िी
गांगानगर, रायपुर ाअकद व्यापाररक नगर है।
o खनन नगराः ये नगर खानों के स्नकट बसे होते हैं। ाईदाहरण झररया, रानीगांज, हजारीबाग,
बिदवाड़ा कोलार, कोडरमा, स्डगबोाइ, ाऄांकलेश्वर ाअकद।

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o िावनीनगराः ये वे नगर हैं, जहाां सैस्नक टु कस्ड़याां रहती हैं तथा ाईनके शस्त्रों के भांडार होते हैं।
ाऄांबाला, मेरठ, रूड़की, महू, जबलपुर, सागर ाअकद शैस्िक नगर हैं।
o शैस्िक नगराः कु ि नगर स्शिा के न्रों के रूप में प्रस्सद्ध हो जाते हैं। ाऄलीगढ़, स्पलानी, रूड़की,
खड़गपुर, शास्न्त-स्नके तन, पांतनगर, सागर ाअकद शैस्िक नगर हैं।
o धार्थमक और साांतकृ स्तक नगराः ऐसे नगरों का स्वकास नकदयों के ककनारे , समुर तट पर या
पहाड़ी िेत्रों में हाअ है। कु रूिेत्र, मथुरा, गया, पुरी, वाराणसी, प्रयाग, मदुरै और स्तरुपस्त
धार्थमक और साांतकृ स्तक नगर हैं।
o पयभटन नगराः मनभावन पयाभवरण तथा सुखद जलवायु वाले तथानों का पयभटन के के न्रों के रूप
में स्वकास हो जाता हैं ाईदाहरण, पांचमढ़ी, स्शमला, मसूरी, ाउटी, मााईां टाअबू, डलहौजी ाअकद।
o समय के साथ नगर ाआतने स्वकस्सत हो जाते हैं कक ाईनका एक ही कायभ प्रधान नहीं रह जाता।
वे बह-प्रकायाभत्मक हो जाते हैं- जैसे कदल्ली और मुब
ां ाइ प्रशासस्नक, ऐस्तहास्सक, पयभटन,

व्यापाररक के न्र, औद्योस्गक नगर, पररवहन नगर ाअकद के रूप में महत्वपूणभ बन गए हैं।

प्राथस्मक नगर (Primate City):


 ककसी भी देश के सबसे बड़े नगर को ाईस देश का प्राथस्मक नगर कहा जाता है। यह नगर ाईस देश
की प्रमुख सामास्जक-साांतकृ स्तक, राजनीस्तक, ाअर्थथक, व्यापाररक ाअकद गस्तस्वस्धयों का प्रमुख कें र
होता है। ाआस नगर का स्वकास ाऄन्य नगरों की ाऄपेिा ाऄस्धक तीव्र गस्त से होता है।
 ‘प्राथस्मक नगर’ ककसी भी देश की प्रवृस्त तथा प्रभाव को बताता है। यह नगर स्वकस्सत एवां
स्वकासशील दोनों देशों में पाया जाता है।
 भारत में राष्ट्रीय ततर पर कोाइ प्राथस्मक नगर नहीं है, क्योंकक कोाइ भी ऐसा नगर नहीं है जो

पूणभरूप से राष्ट्र को प्रभास्वत करता हो। ाआसके स्लए देश का स्वशाल ाअकार, ाईपस्नवेशवादी
स्वरासत ाअकद कारण स्जम्मेदार रहे है।
 ाआसके ाऄस्तररक्त भारत में राज्य ततर पर कु ि प्रमुख नगर ाऄवस्तथत है। ये नगर मुख्य रूप से राज्यों
की राजधास्नयों के रूप में स्वकस्सत हए है। ाईदाहरण के स्लए कोलकाता, चेन्नाइ, गुवाहाटी,
ाऄहमदाबाद ाअकद।
सन्नगर (Conurbation)
 ाआसका ाऄथभ है व्यापक िेत्र में नगरों का स्वकास होना। यह दो नगरों के मध्य स्नर्थमत िेत्र को व्यक्त
करता है। दो नगर धीरे -धीरे ाआमारतों, कारखानों, व्यापाररक गस्तस्वस्धयों ाअकद के कारण ाअपस में
स्मल जाते है।
 सन्नगर का स्वकास स्नम्न पररस्तथस्तयों के कारण होता है:
o जब के वल एक ही नगर फै लकर ाअसपास के िेत्रों को ाऄपने में स्मला लेता है।
o जब दो स्नकटवती नगर ाअपस में स्मलकर स्वततृत नगरीय िेत्र का स्नमाभण करते हो।
ाईदाहरण के स्लए कोलकाता-हावड़ा नगरीय िेत्र।
o जब दो से ाऄस्धक नगर ाअपस में स्मलकर एक बड़े नगरीय िेत्र का स्नमाभण करते हो।
ाईदाहरण के स्लए कदल्ली-फरीदाबाद-गुरुग्राम-नॉएडा -बहादुरगढ़ नगरीय िेत्र।
ाऄनुषग
ां ी नगर (Satellite City)
 ाऄनुषांगी वह नगर होता है स्जसका स्वकास मुख्य नगर की ाऄस्तररक्त जनसांख्या को बसाने के स्लए
ककया जाता है। ाआसे ाईपग्रह नगर के नाम से भी जाना जाता है। ये नगर मुख्य नगर से काफी दूरी
पर ाऄवस्तथत होते है।

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 सामान्यत: मुख्य नगर एवां ाऄनुषग


ां ी नगर के बीच ाअवागमन कम होता है, लेककन ाअधुस्नक समय
में प्रस्तकदन लोग रोज़गार के स्लए मुख्य नगर की यात्रा करते रहते है। मुख्य नगर के लोग खुले
वातावरण, लागत में कमी का लाभ ाईठाने के स्लए ाऄनुषांगी नगरों में ाअकर बस जाते है। ाआसी
कारण ाऄनुषांगी नगरों में ाईद्योग, तवात्य, स्शिा जैसी सुस्वधाओं का स्वकास हो जाता है।
 ाऄनुषांगी नगर एवां मुख्य नगर के बीच ाअर्थथक गस्तस्वस्धयों के कारण घस्नष्ट सांबांध होता है। दृष्टव्य
है कक ाऄनुषांगी नगरों की ाऄपेिा ाईपनगर मुख्य नगर के ाऄस्धक स्नकट होते है।
 ाऄनुषांगी नगर ग्रामीण-नगर ाईपाांत (Rural-Urbun Fringe) िेत्र से बाहर ाऄवस्तथत होते है
जबकक ाईपनगर ाआस िेत्र के ाऄांदर ाऄवस्तथत होते है।
 ाऄनुषांगी नगरों की स्वशेषताएां है - लघु औद्योस्गक कें र, सामान्यत: ाअत्मस्नभभर, यहााँ स्तथत ाईद्योगों
में ाअसपास के िेत्रों से लोग काम करने के स्लए ाअते है।
 ाईदाहरण के स्लए: ाआन ाऄनुषांगी नगरों का ाऄत्यस्धक स्वकास सांयक्त
ु राज्य ाऄमेररका में हाअ है। यहााँ
का लगभग 50% शहरी जनसाँख्या का 25% ाऄनुषांगी नगरों में स्नवास करती है। भारत में
ाऄस्धकाांश ाऄनुषग
ां ी नगर ाअवासीय नगर है। ाआन नगरों के स्नवासी प्रस्तकदन ाअजीस्वका कमाने के
स्लए मुख्य नगर की यात्रा करते है तथा रात को ाऄपने घर वापस लौट ाअते है। रे वाड़ी, मेरठ,
पानीपत ाअकद कदल्ली के ाऄनुषग
ां ी नगर हैं।

नगरों का ऐस्तहास्सक पररप्रेक्ष्य (A Historical Perspective of City)


 नगर ाआस्तहासकार भारत के नगरों को तीन वगों में बाांटते हैं : (i) प्राचीन नगर, (ii) मध्यकालीन
नगर और (iii) ाअधुस्नक नगर।

o प्राचीन नगर: भारत में नगरों की परां परा बड़ी पुरानी है। 5,000 वषों से भी ाऄस्धक पुरानी
बसधु घाटी सभ्यता के मोहन जोदड़ो, हड़प्पा, कालीबांगा, लोथल, धौलावीरा ाअकद नगरों के
ध्वांसावशेष ाआसी त्य की पुस्ष्ट करते हैं ये नगर सुस्नयोस्जत और स्वशाल थे। वैकदक काल के
थानेश्वर, पानीपत, सोनीपत ाअकद नगर ाईल्लेखनीय हैं। महाभारत काल में हस्ततनापुर के
ाऄलावा ाईज्जस्यनी, कन्नौज, पाटस्लपुत्र (पटना) नागपिनम (दस्िण भारत) ाअकद प्रमुख नगर
थे। बौद्धकाल तो नगरों के स्वकास की दृस्ष्ट से भारत का तवणभयग
ु था। मौयभवांश और गुप्तवांश के
शासकों ने सुस्नयोस्जत नगर बसाए थे। ाआस काल के तिस्शला, नालन्दा, कौशाांबी, साांची
ाअकद नगर महत्वपूणभ हैं।
o मध्यकालीन नगर: ाआस काल में लगभग 101 वतभमान नगरों का स्वकास हाअ। ाआस काल के
नगरों का स्वकास मुख्य रूप से ररयासतों और राज्यों के मुख्यालयों या राजधास्नयों के रूप में
हाअ। फतेहपुर सीकरी, ाऄहमदनगर, औरां गाबाद ाअकद ाआसके ाईदाहरण हैं। ाआनमें से ाऄस्धकतर
वे नगर हैं, जहाां ककले बनाए गए थे। ाआस काल के नगर ाआन्हीं के खांडहरों पर बसे हए हैं। ाआस
काल के प्रमुख नगर हैं : कदल्ली, हैदराबाद, ाऄहमदाबाद, जयपुर, जोधपुर, ाअगरा, लखनाउ,
नागपुर, ाईदयपुर और मैसूर।
o ाअधुस्नक नगर: ये नगर दो प्रकार के हैं: स्ब्ररटश कालीन तथा तवतांत्रता के बाद के नगर।
 औपस्नवेस्शक नगर: ाऄांग्रेज, फ्राांसीसी, डच और पुतभगाली यूरोप से ाअए थे। भारत में
ाऄपनी सिा को मजबूत करते के स्लए ाईन्होनें समुर तट पर नगर बसाए। ये व्यापाररक
पिन थे। ाआनमें प्रमुख हैं: सूरत, दमन, गोवा और पाांस्डचेरी। ाअगे चलकर ाऄांग्रज
े ों ने मुांबाइ
चेन्नाइ और कोलकाता जैसे नगर बसाये जो पहले िोटे-िोटे मत्तयन गाांव मात्र थे।

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 ाईपस्नवेश काल के दौरान ाऄस्ततत्व में ाअए नगरों में कु ि ाऄन्य महत्वपूणभ नगर भी स्वकस्सत हए।
स्जनमें िावनी और स्सस्वल लााआन ाईल्लेखनीय थे। ाऄांग्रज
े ों ने ाऄनेक प्रशासस्नक नगरों, पयभटन

नगरों (पहाड़ी नगर नैनीताल, स्शमला ाअकद) का स्वकास ककया। ाआसी दौरान जमशेदपुर जैसे
औद्योस्गक ाईद्योग नगरों का स्वकास भी हाअ।
o तवतांत्रता के बाद स्वकस्सत नगर: ाअजादी के बाद देश में योजनानुसार ाऄनेक प्रशासस्नक और
औद्योस्गक नगर बसाए गए। चांडीगढ़, भुवनेश्वर, गाांधी नगर (ाऄहमदाबाद) कदसपुर ाअकद

प्रशासस्नक कें र हैं। दुगाभपरु , स्भलााइ, स्सन्दरी, बरौनी ाअकद औद्योस्गक नगर हैं।
o प्राचीन नगरों के ाईपनगराः कु ि पुराने नगरों और महानगरों के ाअस-पास ाऄनेक ाईपनगर
स्वकस्सत हो गए। ाईदाहरण के स्लए कदल्ली के चारों ओर स्वकस्सत, गास्जयाबाद, नोएडा,

बहादुरगढ़, गुड़गाांव ाअकद ऐेसे ही औद्योस्गक ाईपनगर हैं। ाअर्थथक स्वकास के साथ-साथ देश में
ाऄनेक िोटे नगरों और कतबों का भी स्वकास हाअ है। बड़े गाांव कतबे बनकर ग्रामीण िेत्र के
स्लए औद्योस्गक वततुओं और ाऄन्य सेवाओं के कें र के रूप में कायभ करने लगे हैं।

8.1. भारत में नगरीकरण (Urbanisation in Indian)

 भारत को ाऄभी भी गाांवों का देश कहा जाता है। सांसार के ाऄनेक देशों में 90 प्रस्तशत से ाऄस्धक

लोग नगरों में रहते हैं। ाआसके स्वपरीत भारत में नगरीय जनसांख्या के वल 31 प्रस्तशत ही है। लेककन

भारत की नगरीय कु ल जनसांख्या सांसार के काइ देशों की कु ल जनसांख्या से ाऄस्धक है। 1901 में कु ल

नगरीय जनसांख्या 10.84 प्रस्तशत ाऄथाभत् ढााइ करोड़ ही थी। ाअज भारत में 37.7 (2011) लोग

नगरवासी हैं। भारत में नगरों की जनसांख्या दो तरह से बढ़ी हैाः (i) पुराने नगरों का स्वततार तथा

(ii) नए नगरों की तथापना। गाांवों से नगरों के लोगों के प्रवास के कारण भारत में नगरों का तेजी से
स्वकास हो रहा है।
नगरीय के न्रों का वगीकरण (Classification of Urban Centres)

 नगरों के वगीकरण के मुख्य रूप से दो ही ाअधार हैं : (i) जनसांख्या की दृस्ष्ट से ाअकार, (ii) नगरों

के कायभ (प्रशासस्नक, पिन ाअकद)

 जनसांख्या के ाअकर के ाअधार पर कतबों और नगरों का वगीकरण (Towns and Cities based

on Population Size) : भारतीय जनगणना स्वभाग ने जनसांख्या के ाअकार के ाअधार पर भारत

के नगरों को िाः वगों में स्वभास्जत ककया है। 2001 की जनगणना ररपोटों में एक लाख से कम

जनसांख्या वाली नगरीय बस्ततयों को नगर (Town) तथा एक लाख से ाऄस्धक जनसांख्या वाली

नगरीय बस्ततयों को स्सटी (City) कहा गया है। 10 से 50 लाख की सांख्या वाले नगरीय बस्ततयों

को महानगर या मेरोपोस्लटन स्सटी (Metropolitan Cities) कहा जाता है। लेककन 50 लाख से

ाऄस्धक जनसांख्या वाली नगरीय बस्ततयों को मेगा स्सटी (Mega Cities) कहा गया है।

 महानगर और मेगास्सटी वाततव में नगरीय सांकुल (Urban Agglomeration) है। जनगणना

2001 के ाऄनुसार, ‘‘भारतीय सांकुल’’ (समूह) सतत् नगरीय फै लाव से बनता है।

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वषभ नगरों की नगरीय जनसांख्या (हजार में) कु ल जनसांख्या का दशकीय वृस्द्ध (%)
सांख्या प्रस्तशत
1901 1827 25891.9 10.84 -

1911 1815 25941.6 10.29 0.35

1921 1949 28086.2 11.18 8.27

1931 2072 33456. 11.99 19.12

1941 2250 44153.3 13.86 31.97

1951 2843 62443.7 17.29 41.42

1961 2365 78936.6 17.97 26.41

1971 2590 109113.9 19.91 28.23

1981 3378 159462.5 23.34 24.16

1991 4689 217611.0 25.71 36.47

2001 5161 285543.7 27.80 31.13

2011 - 3,77,196.9 31.16 -

वगभ जनसांख्या का नगरों की जनसांख्या कु ल नगरीय जनसांख्या प्रस्तशत वृस्द्ध


ाअकार सांख्या करोड़ में का प्रस्तशत 1991-2001
िेणी 5161 28.554 100 31.13

I 1,00,000 और 423 17.204 61.48 23.12


ाऄस्धक
II 50,000- 498 3.443 12.30 43.45

99,999

III 20,000- 1386 4.197 15.00 46.19

49,999

IV 10,000- 1560 2.260 8.08 32.94

19,999

V 5,000-999 1057 0.798 2.85 41.49

VI 5,000 और कम 227 0.080 0.29 21.21

(भारताः जनसांख्या ाअकार के ाऄनुसार नगरीय के न्रों को ाईपयुक्त


भ 6 िेस्णयों में बाांटा गया है)

 ाईपयुभक्त तास्लका के ाऄध्ययन से यह पता चलता है कक भारत की 61 प्रस्तशत से ाऄस्धक नगरीय

जनसांख्या के वल 423 नगरों में रहती है। ये नगर कु ल नगरों का के वल 8.2% हैं। ाआन 423 नगरों

में से 10 लाख से ाऄस्धक की जनसांख्या वाले 35 महानगर हैं। ऐसे नगरों को स्मस्लयन प्लस स्सटी

(Million plus cities) भी कहते हैं। ाआनमें से 50 लाख से ाऄस्धक की जनसांख्या वाले िाः मेगा

स्सटी (Megacities) भी है।

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 ाआन िाः नगरों में देश की 21 प्रस्तशत से ाऄस्धक नगरीय जनसांख्या रहती हैं। देश के 35 महानगरों
में (िाः मेगा स्सटी सस्हत) भारत की लगभग 38% नगरीय जनसांख्या का स्नवास है। 20,000 से
कम जनसांख्या वाले नगरों (Towns) की कु ल सांख्या 2,844 है, जो नगरों की कु ल सांख्या का
55% से ाऄस्धक है। ाआन 2,844 नगरों में देश की 11 प्रस्तशत नगरीय जनसांख्या रहती है। देश के
मध्यम ाअकार (वगभ II व III के नगरों की सांख्या 1884 है। ाआनमें भारत की 27.30 प्रस्तशत नगरीय
जनसांख्या रहती है। 1999-2001 के दशक में ाआन नगरों की सांख्या सबसे ाऄस्धक बढ़ी है। 1991 में
मध्यम ाअकार के नगरों में 24.3 प्रस्तशत जनसांख्या रहती थी, जो 2001 में बढ़कर 27.3 प्रस्तशत
हो गाइ। यही सांख्या 2011 में बढ़कर 31.16 प्रस्तशत हो गयी है।
भारत के महानगर (Metropolitan Cities)
 1991-2001 के बीते दशक में स्मस्लयन प्लस नगरों की सांख्या 23 से बढ़कर 35 हो गाइ है। यही
सांख्या बढ़कर 2011 में 53 हो गयी है। ाआनमें से बृहिर मुांबाइ (1.64 करोड़) सबसे बड़ा नगर हैं
कोलकाता, चेन्नाइ ाअकद 13 नगरों की जनसांख्या 20 लाख से ाऄस्धक है। ाआन 35 महानगरों की कु ल
जनसांख्या 10.788 करोड़ है। 1991 में ऐसे 23 नगरों की कु ल जनसांख्या 6.94 करोड़ थी, जो कु ल
नगरीय जनसांख्या का 32.5 प्रस्तशत थी।

8.2. भारत में मस्लन बस्ततयाां (Slums in India)

 भारत के नगरों में स्वशेषताः महानगरों में मस्लन बस्ततयों की स्वकराल समतया है। भारत में
नगरीय जनसांख्या का लगभग 20 प्रस्तशत और महानगरों का लगभग 30 प्रस्तशत मस्लन बस्ततयों
में रहता है। जनगणना 1991 के ाऄनुसार देश की लगभग 5 करोड़ नगरीय जनसांख्या मस्लन
बस्ततयों में रहती थी।
 भारतीय महानगरों की मस्लन बस्ततयों में स्नवास करने वाले व्यस्क्तयों का जीवन ततर ाऄत्यस्धक
ख़राब या स्नकृ ष्ट और पयाभवरण ाऄतवात्यकर होता है। ाऄल्पाय, स्नरिरता, ाऄकु शलता ाअकद के
कारण ाईनमें ाऄनेक सामास्जक बुरााआयाां जैसे शराब पीना, जुाअ खेलना, चोरी, हत्या ाअकद ाऄनुषांगी
बन जाती है। मस्लन बस्ततयों में मकान ाऄव्यवस्तथत, ाऄस्धक सघन, िोटे-िोटे कमरों और प्रायाः
कच्चे एवां झोपड़ी के रूप में पाए जाते हैं।

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 मुम्बाइ महानगर के स्वस्भन्न भागों में स्बखरी हाइ मस्लन बस्ततयों में लगभग 44 प्रस्तशत जनसांख्या
का स्नवास हैं। ाआनमें रहने वाले तीन-चौथााइ से ाऄस्धक लोग ाऄल्प ाअय वाले हैं। रोजगार ाअकद के
स्लए ग्रामीण िेत्रों और िोटे नगरों से भी बड़ी सांख्या में लोग मुम्बाइ ाअते रहे हैं स्जससे यहाां
जनसांख्या तीव्रता से बढ़ती गयी ककन्तु तथानीय प्रशासन िारा ाअवास पर ाईस्चत ध्यान नहीं कदया
जाता है।
 कोलकाता महानगर में औद्योस्गक िेत्रों के स्नकटवती भागों में िोटे-िोटे मकानों और झोपस्ड़यों
वाली सघन बस्ततयाां स्मलती हैं जहाां जल स्नकास, शौचालय, स्नानागार ाअकद की ाईस्चत व्यवतथा
न होने के कारण सड़क पर गांदगी फै ली रहती है और नास्लयों से दुगभन्ध स्नकलती रहती है स्जसके
कारण वहाां रहने वाले नागररकों का जीवन ाऄत्यांत ाऄतवतथकर रहता है।
 कदल्ली के बाहरी भागों में काम करने वाले िस्मकों तथा स्नम्न ाअय वगभ के ाऄन्य व्यस्क्तयों की
झुग्गी-झोपस्ड़यों वाली मस्लन बस्ततयाां कदखायी पड़ती है स्जनमें से ाऄस्धकाांश कारखानों के
समीपवती भागों में स्तथत हैं।
 चेन्नाइ की मस्लन बस्ततयों को चेरी के नाम से जाना जाता है। चेरी में ाऄस्धकाांशताः झोपस्ड़याां और
कच्चे मकान पाये जाते हैं स्जनमें कम ाअय वाले मजदूर ाअकद रहते हैं।
 ाऄहमदाबाद महानगर की मस्लन बस्ततयाां ाऄस्धकाांशताः सूती वस्त्र स्मलों के स्नकटवती भागों में
स्तथत है जहाां ाऄस्धकाांश गृह टीन, खपरै ल, एतबेतटस ाअकद से ढके होते हैं और प्रायाः कच्ची या ाइट
की दीवारों वाले हैं।
 औद्योस्गक नगर कानपुर की लगभग 35 प्रस्तशत जनसांख्या मस्लन बस्ततयों में रहती है। कानपुर
की मस्लन बस्ततयाां ‘कटरा’ या ‘ाऄहाता’ के नाम से जानी जाती हैं। यह एक बड़ा ाऄहाता
(enclosure) होता है ाआनमें ाऄनेक िोटे-िोटे मकान बने होते हैं स्जनमें एक या दो पररवार ाअिय
प्राप्त करते हैं।
मस्लन बस्ततयों के दुष्पररणाम (Bad Effects of Slums)
 भारत के स्वस्भन्न महानगरों में मस्लन बस्ततयों की ाईपस्तथस्त एक गांभीर समतया बन गयी है
स्जसके ाऄनेक दूरगामी दुष्पररणाम होते हैं जो काइ प्रकार से ाअर्थथक, सामास्जक, साांतकृ स्तक एवां
राजनीस्तक िस्त पहांचाते हैं। मस्लन बस्ततयों के कु ि प्रमुख दुष्पररणाम स्नम्नाांककत हैं-
o तवात्य में ह्रास - मस्लन बस्ततयों में सफााइ, शुद्ध पेयजल, रोशनी ाअकद के ाऄभाव तथा
प्रदूस्षत पयाभवरण के कारण यहाां ाऄनेक प्रकार की बीमाररयाां फै लती रहती हैं स्जनका जन-
तवात्य पर स्वपरीत प्रभाव पड़ता हैं।
o कायभ िमता में ह्रास - प्रदूस्षत पयाभवरण और कु पोषण के कारण मस्लन बस्ततयों के स्नवास्सयों
का तवात्य प्रायाः ाऄछिा नहीं होता है और वे ककसी न ककसी बीमारी से पीस्ड़त होते रहते हैं।
तवात्य ाऄछिा न रहने और स्विाम के स्लए पयाभप्त एवां ाईपयुक्त तथान के ाऄभाव में िस्मकों
की कायभ िमता घट जाती है। व्यापक ाऄस्शिा के कारण ाऄस्धकाांश िस्मक ाऄकु शल होते हैं।
o नैस्तक पतन तथा ाऄपराध में वृस्द्ध - दूस्षत पयाभवरण, ाऄस्शिा तथा ाऄसामास्जक तत्वों की
सांगस्त ाअकद के कारण बहत से बालक और युवक ाऄपराधी बन जाते हैं। मस्लन बस्ततयों में
चोरी, शराब पीने, जुाअ खेलने, वेश्यावृस्त, हत्या, बाल ाऄपराध, बलात्कार ाअकद सामास्जक
बुरााआयाां फै ली होती हैं स्जसके पररणामतवरूप ाआसके स्नवास्सयों का नैस्तक पतन होता है जो
सभ्य समाज और देश के स्लए गांभीर खतरा बन जाता है।
o जीवन-ततर में ह्रास - ाईस्चत तवात्य, स्शिा तथा कायभिमता में कमी का मस्लन बतती के
स्नवास्सयों की ाअय पर स्वपरीत प्रभाव पड़ता है। ाअय कम होने तथा भौस्तक एवां सामास्जक
रूप से प्रदूस्षत पयाभवरण में रहते हए लोगों का जीवन-ततर ाऄत्यांत स्नम्न और दयनीय हो
जाता है। ाऄल्पायु के कारण ाऄस्धकाांश लोग पररवार की दैस्नक ाअवश्यक ाअवश्यकताओं को
भी पूरा करने में ाऄसमथभ होते हैं।

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o पाररवाररक एवां सामास्जक स्वघटन - मस्लन बतती के स्नवासी िस्मकों को मनोरां जन, स्विाम
ाअकद की ाअवश्यक सुस्वधाएां नहीं स्मल पाती हैं स्जससे वे मानस्सक स्चन्ता, बेचन
ै ी, स्नराशा
ाअकद के स्शकार हो जाते हैं और मादक वततुओं का सेवन करने लगते हैं, बुरी ाअदतों में फां स
जाते हैं और ाईनका पररवार के प्रस्त लगाव समाप्त होने लगता है। यह प्रवृस्ि पाररवाररक
स्वखराव को जन्म देती है। पाररवाररक स्बखराव तथा ाऄसामास्जक प्रवृस्ियों के बढ़ने से
सामास्जक स्वघटन होने लगता है।
मस्लन बस्ततयों के सुधार हेतु सुझाव -
 महानगरों में ाअवास तथा मस्लन बस्ततयों की समतया को हल करने के स्लए के न्र एवां राज्य
सरकारों, नगर स्नगमों, स्वि एवां बीमा कम्पस्नयों तथा तवैस्छिक सामास्जक सांगठनों िारा समय-
समय पर प्रयास ककये जाते रहे हैं। भारत की ाऄनेक पांचषीय योजनाओं में ाअवासीय सुस्वधाएां
जुटाने के स्लए प्रततास्वत धनरास्श में स्नरन्तर वृस्द्ध की जाती है।
 महानगरों में मस्लन बस्ततयों की समतयाओं के स्नराकरण हेतु कस्तपय सुझाव स्नम्नाांककत हैं:
o स्वके स्न्रत ाऄथभव्यवतथा - बडेऺ-बड़े नगरों के रूप में जनसांख्या का सांकेरण के न्रीकृ त
ाऄथभव्यवतथा का पररणाम है। ाईद्योग, व्यापार ाअकद ाअर्थथक कक्रयाओं के कु ि स्वस्शष्ट तथानों
(महानगरों) में के न्रीभूत हो जाने के कारण ाआन तथलों पर जनसांख्या पूज
ां ीभूत (सांकेस्न्रत)
होती रहती है।
o बहमुखी ग्रामीण स्वकास - महानगरों में ाअवासीय गृहों की कमी और मस्लन बस्ततयों के
स्वकास के स्लए सवाभस्धक ाईिरदायी कारक है ग्रामों से नगरों की ओर जनसांख्या का
तथानाांतरण। ाऄपेस्ित रोजगार, स्शिा, तवात्य, मनोरां जन ाअकद सुस्वधाओं से वांस्चत ाऄसांख्या
ग्रामीण युवक प्रस्तवषभ गाांव िोड़कर नगरों में पहांचते हैं स्जससे नगरीय जनसांख्या में वृस्द्ध और
ाअवसीय (मस्लन बस्ततयों) की समतयाएां बढ़ती जाती हैं।
o स्नम्न ाअय वगभ के स्लए कालोस्नयों का स्नमाभण - मस्लन बस्ततयों की समतया से मुस्क्त के स्लए
ऐसी ाअवास योजनाओं के कक्रयान्वयन की महती ाअवश्यकता है स्जससे ाआन बस्ततयों के
स्नवास्सयों को ाऄन्यत्र बसाया जा सके । सरकारी प्रयास से स्नम्न ाअय वगभ की ाअवासीय
कालोस्नयों के स्नमाणभ िारा बहत से लोगों को बसाया जा सके ।
o मस्लन बस्ततयों का सुधार - नगरीय ाअवासीय समतयाओं को हल करने की स्वस्भन्न योजनाओं
के साथ ही मस्लन बस्ततयों के सुधार पर ध्यान देना ाऄस्नवायभ है। सड़कों तथा नास्लयों के
स्नमाभण स्बजली, पेयजल, शौचालायों ाअकद ाअवश्यक सुस्वधाओं को प्रदान करके तथा
औषधालय, तकू ल, खेल के मैदान, पाकभ ाअकद की सुस्वधाएां ाईपलब्ध कराकर मस्लन बस्ततयों
के स्नवास्सयों के जीवन-ततर में सुधार लाया जा सकता है।
o ाऊण की समतया - लघु भवनों के स्नमाभण तथा पुराने भवनों की मरम्मत के स्लए
ाअवश्यकतानुसार ाऊण प्रदान करने की व्यवतथा की जा सकती है। ाअसान ककततों पर सुगमता
से ाऊण प्राप्त हो जाने पर ाऄनेक पररवार तवयां ही ाअवासीय समतयाओं को दूर करने में समथभ
हो सकें गे।
8.3. भारत में नगर स्नयोजन (Urban Planning in India)

 भारत में नगरीय स्नयोजन का ाआस्तहास ाऄत्यांत लम्बा हैं ाअज से लगभग 5000 वषभ पूवभ स्सन्धु
घाटी में मोहनजोदड़ो, हड़प्पा, लोथल ाअकद नगरों के भग्नावशेष प्राप्त हए हैं स्जससे स्वकदत होता हैं
कक ये नगर स्नयोस्जत ढांग से बसाये गये थे। मोहनजोदड़ो स्नयोस्जत नगर था स्जसकी सड़कें सीधी
तथा एक दूसरे को लम्बवत काटती हाइ चैक पट्टी स्वन्यास पर ाअधाररत थीं। नगर में जल स्नकास
और जलापूर्थत की ाईिम व्यवतथा की गयी थी। ाआसी प्रकार की योजना के प्रमाण हड़प्पा और
लोथल तथानों पर खुदााइ से भी प्राप्त हए है।

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 प्राचीन भारतीय ग्रांथों में वर्थणत त्यों से पता चलता है कक वैकदक काल में ाऄनेक नगर स्वकस्सत थे
जो सुस्नयोस्जत रूप से बसाये गये थे स्जनमें ाऄलग-ाऄलग कायाभत्मक िेत्र स्तथत थे। ाऄयोध्या,
काशी, हस्ततनापुर, वैशाली, पाटस्लपुत्र, कौशाम्बी, मदुरा, काांचीपुरम, साांची ाअकद ाआसी प्रकार के
वैकदक कालीन नगर थे। प्राचीन भारत में ाऄनेक दुगभ नगरों या राजधानी नगरों को स्नयोस्जत
पद्धस्त से तथास्पत ककया गया था।
 मुगल काल में देश के स्वस्भन्न भागों में बहत से नये नगर बसाये गये और ाईनके स्नयोस्जत स्वकास
के प्रयास ककये गये। शाहजहानाबाद (वतभमान पुरानी कदल्ली), ाअगरा, िीनगर, फतेहपुर सीकरी,
बुलन्दशहर ाअकद तत्कालीन स्नयोस्जत नगरों के ाईदाहरण हैं।
 मध्यकाल में बसाये गये नगरों में जयपुर का स्वस्शष्ट तथान है स्जसे 1727 ाइ. में महाराजा सवााइ
जय बसह ने सुस्नयोस्जत ढांग से बसाया था। ाअयताकार प्रस्तरूप वाले जयपुर को स्ग्रडरान या
शतरां जी स्वन्यास के ाऄनुसार बसाया गया है स्जसकी सड़कें एक-दूसरे को लम्बवत काटती हैं।
 स्ब्ररटश काल में ाऄांग्रज
े ों िारा भारत में पािात्य नगर योजना के ाऄनुसार काइ नगरों या नगरों के
कु ि स्हतसों को स्वकस्सत ककया गया। स्ब्ररटश काल में मुख्यताः प्रशासकीय नगरों, िावस्नयों तथा
बन्दरगाहों (समुर पिनों) को तथास्पत करने पर स्वशेष ध्यान कदया गया। प्रशासकीय नगरों में
ाऄस्धकाररयों तथा ाऄांग्रज
े ों के रहने के स्लए चौड़ी-चौड़ी सड़कों तथा खुले तथान वाले स्सस्वल
लााआन्स को स्वकस्सत ककया गया। प्रस्सद्ध स्ब्ररटश नगर स्नयोजक पैररक गेस्डस (P. Geddes) के
सुझाव पर भारत में नगर स्नयोजन का कायभ नगरपास्लकाओं को कदया गया और सवभप्रथम 1898
में बम्बाइ में सुधार न्यास (Improvement Trust) की तथापना की गयी। ाआसके पिात् मैसूर
(1903), कलकिा (1911), कानपुर (1919), लखनाउ (1919), ाआलाहाबाद (1920) ाअकद नगरों
में सुधार न्यास तथास्पत ककये गये।
 1950 के पिात् स्नयोजन काल में स्वस्भन्न पांचवषीय योजनाओं में नगरीय स्नयोजन पर महत्वपूणभ
कायभ हए। औद्योस्गक एवां व्यापाररक स्वकास के स्लए तथा प्रशासकीय के न्र के रूप में ाऄनेक नये
नगर योजनाबद्ध तरीके से बसाये गये। साथ ही पाककततान से ाअये स्वतथास्पतों को बसाने के स्लए
भी ाऄनेक नगर तथास्पत ककये गये। तवतांत्र भारत में तथास्पत स्नयोस्जत नगरों में प्रशासकीय नगर
चांढीगढ़, भुवनेश्वर, गाांधीनगर, ाइटानगर ाअकद; औद्योस्गक नगर दुगाभपरु , रााईरके ला, स्भलााइ,
बोकारो, स्वजयनगर ाअकद और पिन नगर काांडला, पारादीप ाअकद स्वशेष ाईल्लेखनीय हैं। वतभमान
समय में नगरों की स्वस्भन्न समतयाओं के स्नराकरण हेतु सुधारात्मक तथा नवस्नमाभण योजनाओं में
तथानीय पयाभवरण को ध्यान में रखते हए तैयार करने पर बल कदया गया है और नगर को तवछि,
सुस्वधापूणभ और सुन्दर बनाने का प्रयास ककया गया है। ाऄस्धकाांश बड़े नगरों के स्लए मातटर प्लान
तैयार ककये गये हैं जो नगर की भावी ाअवश्यकताओं को ध्यान में रखकर बनाया गया हैं।
8.3.1. भारत की नगरीय नीस्त (India's Urban Policy)

 तवतांत्रता प्रास्प्त से पहले भारत में कोाइ तपष्ट नगरीय नीस्त नहीं थी और ाईस समय तक देश की
लगभग 17 प्रस्तशत जनसांख्या ही नगरों में रहती थी। स्नयोजन काल के ाअरां भ (1951) में भारत
की 6.24 करोड़ (17.3 प्रस्तशत) जनसांख्या िोटे-बड़े कु ल 3059 नगरों में स्नवास करती थी।
स्नयोजन काल के 50 वषों में ाअर्थथक स्वकास के साथ-साथ ग्रामों से नगरों के स्लए बड़ी सांख्या में
जनसांख्या के तथानाांतरण की गस्त तीव्र होती गयी। तीव्र नगरीकरण से ाऄनेक प्रकार की सामास्जक,
ाअर्थथक, जनाांकककीय एवां पयाभवरणीय समतयाएां ाईत्पन्न होती हैं स्जनके स्नराकरण तथा तवतथ
नगरीय जीवन के समुस्चत नगरीय नीस्त का स्नधाभरण ाऄस्नवायभ है। भारत की राष्ट्रीय नगरीय नीस्त
की प्रमुख स्वशेषताएां स्नम्नस्लस्खत हैं:

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o नगरीय स्वकास में स्नजी तथा सावभजस्नक दोनों िेत्रों के सहयोग को तवीकार ककया गया है।
मस्लन बस्ततयों के सुधार तथा ाऄल्प ाअय वगभ के लोगों के स्लए ाअवास सुलभ कराने का
ाईिरदास्यत्व सावभजस्नक िेत्र को प्रदान ककया गया है क्योंकक मध्यम तथा ाईच्च ाअय वगभ के
लोग स्नजी ततर पर ाअवास की व्यवतथा कर सकते हैं।
o राष्ट्रीय नगर नीस्त में ग्रामीण-नगरीय सातव्य के स्वकास को प्रमुख लक्ष्य बनया गया है स्जसके
ाऄनुसार ग्राम के क्रस्मक स्वकास से ाईसकी पदोन्नस्त लघु नगर (कतबा) तथा नगर (स्सटी) के
रूप में होती है। यद्यस्प नव नगर भी तथास्पत ककये जा सकते हैं ककन्तु ऐसे नगरों की ाअवृ स्ि
ाऄत्यांत सीस्मत है।
o महानगरों में मस्लन बस्ततयों की समतया के समाधान के स्लए दो मुख्य ाईपाय हैं- (i) मस्लन
बस्ततयों को ध्वतत कराकर ाईनके स्नवास्सयों को ाऄन्यत्र तथास्पत ाअवासीय कालोस्नयों में
बसाना, और (ii) मस्लन बस्ततयों को हटाने के बजाय ाईनमें सड़क, जल स्नकास, पेयजल,
स्बजली, सफााइ ाअकद ाअवश्यक सुस्वधाएां प्रदान करके ाईनका सुधार करना। राष्ट्रीय नगरीय
नीस्त में दूसरे ाईपाय ाऄथाभत मस्लन बस्ततयों के सुधार पर बल कदया गया है।
o नगरों स्वशेषताः वृहत नगरों में ाअवास स्वकास प्रास्धकरण (Urban Develoopment
Authorities) तथास्पत ककये गये हैं जो नगर के वतभमान तथा भावी स्वकास के स्लए कायभक्रमों
तथा नीस्तयों का स्नधाभरण करते हैं और ाईनके ाऄनुपालन को सुस्नस्ित करते हैं। ये प्रास्धकरण
सामान्यताः नगर पास्लकाओं एवां नगर स्नगमों के सहयोग से कायभ करते हैं। ाअवास स्वकास
प्रास्धकरण नगर के मध्य खाली पड़ी भूस्म ाऄथवा समीप स्तथत भूस्म को ाअवश्यक सुस्वधाएां
(सड़क, स्बजली, टेलीफोन, पेयजल, जल स्नकास ाअकद) प्रदान करके स्वकस्सत करते हैं और
ाअवासीय कालोस्नयों का स्नमाभण करते हैं।
o नगरीय िेत्रों में ाअवास स्नमाभण हेतु प्लाट खरीदने ाऄथवा मकान बनवाने हेतु स्वस्भन्न स्विीय
सांतथाओं जैसे हडको (HUDCO), भारतीय जीवन बीमा स्नगम, राष्ट्रीय बैकों ाअकद िारा
ाअसान ककततों पर ाऊण के रूप में स्विीय सहायता प्रदान करने का प्रावधान ककया गया है।
o राज्य सरकारों तथा तथानीय स्नकायों को सावभजस्नक ाईपयोग जैसे कारखाना या सांयांत्र
तथास्पत करने, सड़क या पाकभ बनाने ाअकद के स्लए व्यस्क्तगत सम्पस्ि, भूस्म ाअकद को समुस्चत
िस्तपूर्थत प्रदान करके ाऄस्धग्रहण का ाऄस्धकार प्रदान ककया गया है।
o नगरीय भूस्म (ाऄस्धकतम सीमा एवां स्नयमन) ाऄस्धस्नयम 1976 के ाऄांतगभत राज्य सरकारों को
नागररकों के स्लए नगरीय भूस्म की ाऄस्धकतम सीमा स्नधाभररत करने का ाऄस्धकार प्रदान
ककया गया है स्जससे नगरीय िेत्र में भूस्म का समुस्चत ाअवांटन ककया जा सके ।
o नगरीय नीस्त की प्राथस्मकताओ में लघु तथा मध्यम िेणी के नगरों में सांरचनात्मक
(infrastructure) सुस्वधाओं को स्वकस्सत करना सवभप्रमुख है। ाआसके िार नगर ग्रामीण िेत्रों
के मध्य के न्र तथल (central place) की भूस्मका ाऄदा कर सकें गे।
o नगर के भावी स्वततार तथा तदनुकूल सुस्वधाओं की ाअपूर्थत सुस्नस्ित करने के ाईद्देश्य से
राष्ट्रीय नीस्त के ाऄांतगभत सभी लघु, मध्यम एवां वृहत नगरों के स्लए मातटर प्लान तैयार करना
ाऄस्नवायभ कर कदया गया है।
o नगरों की प्रबांध व्यवतथा तथा स्वकास का ाईिरदास्यत्व सम्बस्न्धत राज्य सरकारों को प्रदान
ककया गया है जो ाआसे तथानीय स्नकायों के माध्यम से सम्पन्न कराती है।
o महानगरों में भीड़-भाड़ तथा प्रदूषण को कम करने के ाईद्देश्य से लघु एवां मध्यम िेणी के नगरों
के स्वकास पर ाऄस्धक बल देने का प्रावधान है। ाईद्यस्मयों िारा लघु एवां मध्यम िेणी के नगरों
में नये ाईद्योगों को लगाने पर काइ तरह की ररयायतें प्रदान करने की व्यवतथा है।
o राष्ट्रीय नगरीय नीस्त का मुख्य ाईद्देश्य ऐसे सुदढ़ृ नगरीय ढाांचे का स्नमाभण करना है जो ग्रामीण
स्वकास का पूरक बन सके और देश के सवांगीण स्वकास में योगदान दे सके ।
o नगरीय नीस्त में नगरीय समतयाओं तथा स्वकास से सम्बस्न्धत स्वस्भन्न त्यों पर शोध करने
तथा समुस्चत सुझाव प्रदान करने के साथ ही ाईपयोग नीस्त स्नधाभरण की भी व्यवतथा है।

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क्या होता है मातटर प्लान


 ककसी स्वद्यमान नगर में सुधार करना या नए नगर के स्नमाभण के स्लए भावी ाअवश्यकताओं को
ध्यान में रखते हए ाईस नगर के स्लए बनायी गयी स्वततृत योजना को ही ‘मातटर प्लान' कहा जाता
है। ाआसके ाऄांदर नगर की वतभमान दशा को सुधारने के ाईद्देश्य से स्नर्थमत प्रततावों की रुपरे खा होती है।
 मातटर प्लान एक दीघभकास्लक योजना होती है स्जसके ाऄांतगभत 20 या 30 या ाआससे ाऄस्धक वषों की
योजना बनायी जाती है। ाआस प्लान के ाऄांदर सम्पूणभ नगर को एक ाआकााइ माना जाता है। ाआसी प्लान
में नगर की वतभमान के साथ-साथ भावी ाअवश्यकताओं एवां समतयाओं को ध्यान में रखते हए
योजनाएां तैयार की जाती है।
 यह प्लान एक बहाईद्देशीय योजना होता है स्जसका ाईद्देश्य नगर को तवछि, सुांदर, प्रदूषण मुक्त,
ाअवश्यक जन सुस्वधाओं की ाईपलब्धता ाअकद योग्य बनाना है। ाआसका मुख्य ाईद्देश्य नगर का बहमुखी
स्वकास करना है।
 ाआसके ाऄांतगभत नगर की भावी ाअवश्यकताओं को ध्यान में ाईद्योग, व्यापार, प्रशासन, स्शिा,
यातायात ाअकद के स्लए ाईपयुक्त िेत्रों का स्नधाभरण ककया जाता है तथा ाईसके ाऄनुसार नगरीय
पुनर्थनमाभण और नवीन स्नमाभण पपर बल कदया जाता है।
 ाआस प्लान के ाऄांतगभत ाआस पर भी बल कदया जाता है कक नगरीय भूखांड पर स्नमाभण कायभ करने से पूवभ
भू-तवामी को नगर स्वकास प्रास्धकरण से ाऄनुमस्त प्राप्त करनी होगी तथा स्नमाभण कायभ भी मातटर
प्लान के ाऄनुसार ही होना चास्हए।
 भारत में मातटर प्लान के ाईदाहरण: 1915 में सबसे पहले मुम्बाइ के स्लए मातटर प्लान तैयार ककया
गया था, ाआसके बाद 1920 में चेन्नाइ के स्लए मातटर प्लान तैयार ककया गया था। वतभमान समय में
ज़्यादातर 1 लाख से ाऄस्धक जनसांख्या वाले नगरों के स्लए मातटर प्लान तैयार ककये जा चुके है।

9. नगरीकरण से सां बां स्धत नवीनतम घटनाक्रम


तमाटभ स्सटी स्मशन
 भारत की वतभमान जनसांख्या का लगभग 31% शहरों में बसता है और ाआनका सकल घरे लू ाईत्पाद
में 63% (जनगणना 2011) का योगदान हैं। ऐसी ाईम्मीद है कक वषभ 2030 तक शहरी िेत्रों में
भारत की ाअबादी का 40% स्नवास करने लगेगा और भारत के सकल घरे लू ाईत्पाद में ाआसका
योगदान 75% का होगा । ाआसके स्लए भौस्तक, सांतथागत, सामास्जक और ाअर्थथक बुस्नयादी ढाांचे
के व्यापक स्वकास की ाअवश्यकता है। ये सभी जीवन की गुणविा में सुधार लाने एवां लोगों और
स्नवेश को ाअकर्थषत करने, स्वकास एवां प्रगस्त के एक गुणी चक्र की तथापना करने में महत्वपूणभ हैं।
तमाटभ स्सटी का स्वकास ाआसी कदशा में एक कदम है।
 ाआस स्मशन में 100 शहरों को शास्मल ककया गया है और ाआसकी ाऄवस्ध पाांच साल (स्विीय वषभ
2015-16 से स्विीय वषभ 2019-20) की होगी। स्वशेष ध्यान रटकााउ और समावेशी स्वकास पर है
और एक रे स्प्लके बल मॉडल बनाने के स्लए है जो ऐसे ाऄन्य ाआछिु क शहरों के स्लए प्रकाश पुज
ां का
काम करे गा।
 तमाटभ स्सटी स्मशन ऐसा ाईदाहरण प्रततुत करने के स्लए है स्जसे तमाटभ स्सटी के भीतर और बाहर
दोहराया जा सके , स्वस्भन्न िेत्रों और देश के स्हतसों में भी ाआसी तरह के तमाटभ स्सटी के सृजन को
ाईत्प्रेररत ककया जा सके ।
 तमाटभ स्सटी स्मशन रणनीस्त: पूरे शहर के स्लए पहल स्जसमे कम से कम एक तमाटभ समाधान
शहरभर में लागू ककया गया है-िेत्र का कदम-दर-कदम स्वकास
िेत्र के ाअधार पर प्रगस्त के तीन मॉडल, रे रोकफरटग, पुनर्थवकास और हररतिेत्र।

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 कोर बुस्नयादी सुस्वधाओं के तत्व: पयाभप्त पानी की ाअपूर्थत, स्नस्ित स्वद्युत ाअपूर्थत, ठोस ाऄपस्शष्ट,
प्रबांधन सस्हत तवछिता, कु शल शहरी गस्तशीलता और सावभजस्नक पररवहन, ककफायती ाअवास,
स्वशेष रूप से गरीबों के स्लए, सुदढ़ृ ाअाइटी कनेस्क्टस्वटी और स्डस्जटलीकरण, सुशासन, स्वशेष
रूप से ाइ-गवनेंस और नागररक भागीदारी, रटकााउ पयाभवरण, नागररकों की सुरिा और सांरिा,
स्वशेष रूप से मस्हलाओं, बच्चों एवां बुजुगों की सुरिा, तवात्य और स्शिा।
 तमाटभ स्सटी स्मशन के ाऄांतस्भ नस्हत लाभ:
o यह पहली बार है जब एक एमओयूडी कायभक्रम के स्वि-पोषण के स्लए शहरों का चयन करने
के स्लए 'चैलज
ें ' या प्रस्तयोस्गता स्वस्ध का ाईपयोग और िेत्र के ाअधार पर स्वकास की एक
रणनीस्त का प्रयोग ककया गया है। यह 'प्रस्ततपधी और सहकारी सांघवाद' की भावना को
दशाभता है।
o राज्य और शहरी तथानीय स्नकायों को तमाटभ स्सटी के स्वकास में एक महत्वपूणभ सहायक
भूस्मका स्नभानी होगी। ाआस ततर पर तमाटभ नेतृत्व और दृस्ष्ट एवां स्नणाभयक कारभ वााइ करने की
िमता स्मशन की सफलता का स्नधाभरण करने में महत्वपूणभ कारक होगी।
o नीस्त स्नमाभताओं, कायाभन्वयन करने वालों एवां ाऄन्य स्हतधारकों िारा स्वस्भन्न ततरों पर
रे रोकफरटग की ाऄवधारणाओं को समझना, पुनर्थवकास और ग्रीनफील्ड स्वकास हेतु िमता
सहायता की जरूरत होगी। चैलज ें में भाग लेने से पूवभ योजना बनाने के दौर में ही समय और
सांसाधनों में प्रमुख स्नवेश करना होगा।
o तमाटभ स्सटी स्मशन को सकक्रय रूप से प्रशासन और सुधारों में भाग लेने वाले तमाटभ लोगों की
ाअवश्यकता है। नागररक भागीदारी शासन में एक औपचाररक भागीदारी की तुलना में काफी
ाऄस्धक है। तमाटभ लोगों की भागीदारी ICT के बढ़ते ाईपयोग, स्वशेष रूप से मोबााआल
ाअधाररत ाईपकरणों के माध्यम से तपेशल पपभज व्हीकल (SPV) िारा सकक्रय ककया जायेगा।
ाऄटल शहरी नवीकरण और पररवतभन स्मशन (ाऄमृत)
 ाआस स्मशन में एक लाख से ाऄस्धक ाअबादी वाले 500 शहरों को शास्मल ककया जायेगा। स्मशन में
जलापूर्थत, सीवरे ज सुस्वधाएां, बाढ़ को कम करना, पैदल-मागभ, गैर-मोटरीकृ त और सावभजस्नक
पररवहन सुस्वधाएां, पार्ककग तथल पर ध्यान देना, बच्चों के स्लए हररत तथलों और पाकों और
मनोरां जन के न्रों का स्नमाभण करना ाअकद प्रमुख िेत्रों पर ध्यान कदया जाएगा।
 स्मशन घटक : स्मशन घटकों का वणभन नीचे कदया गया है:-
o जलापूर्थत: स्वद्यमान जलापूर्थत में वृस्द्ध करना, जलाशयों का पुनरुद्धार करना, दुगभम, पहाड़ी
और तटीय िेत्रों के स्लए जलापूर्थत की व्यवतथा करना।
o सीवरे ज: स्वद्यमान सीवरे ज प्रणास्लयों और सीवरे ज शोधन सांयांत्रों में सुधार करना।
o वषाभ जल स्नकासी: बाढ़ को कम करने के स्लए नालों और वषाभ जल नालों का स्नमाभण करना
तथा स्वद्यमान व्यवतथा में सुधार करना।
o शहरी पररवहन प्रणाली: गैर मोटरीकृ त पररवहन (जैसे सााइककलों) के स्लए फु टपाथ, पटरी,
फु ट ओवरस्ब्रज, बहततरीय पार्ककग जैसी सुस्वधाओं का स्नमाभण करना।
o हररत तथल और पाकभ का स्नमाभण करना।
o िमता स्नमाभण: ाआसके दो घटक हैं –व्यस्क्तगत और साांतथास्नक िमता स्नमाभण करना।
प्रधानमांत्री ाअवास योजना (शहरी)
 ाआस योजना की शुरुवात 25 जून, 2015 को हाइ थी। ाआस स्मशन के तहत देश के सभी बेघरों और
कछचे घरों में रहने वाले लोगों को ाअवश्यक बुस्नयादी सुस्वधाओं से युक्त बेहतर पक्के मकान 2022
तक सुलभ कराये जायेंगे। यह योजना सभी 29 राज्यों और 7 कें र शास्सत प्रदेशों के सभी 4,041
शहरों और कतबों में कायाभस्न्वत की जा रही है।

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