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स्वस्स्तक प्रततक अत्यंत प्राचिन प्रततक हैं जीसका उदभव आयय संस्रुतत और आयय धर्यसे र्ाना जाता हैं ।
स्वस्स्तकको प्रततकोंका ववश्वगुरु र्ाना जाता हैं कयुंकी र्ानव उत्पविका ये सवय प्रथर् चिन्ह हैं । हजारों
वर्षोंसे स्वस्स्तका प्रततक ही एक ऐसा प्रततक हैं जो ववश्वव्यापी और ववश्वर्ें सवयर्ान्य हैं । स्वस्स्तक
प्रततकका उपयोग ववश्वके सारे खंडोर्े पाया गया हैं । र्ानव जातीके ये सवयप्रथर् प्रततकका उपयोग परु ातन
युगोंसे ही हर संस्रूतत, सभ्यता और धर्ोंर्ें प्रत्यक्ष या परोक्ष रूपसे होता आया हैं । स्वस्स्तक ववश्वकी हर
र्ानवजातीका अत्यंत प्राण वप्रय प्रततक है कयुंकी स्वस्स्तक चिन्हको पुरातन कालसे ही एक आध्यास्त्र्क,
शुभकारी, लाभकारी पुण्यकारी और र्ौक्षदायी प्रततकके रूपर्ें आदरणीय, सन्र्ाननीय और पूजनीय र्ाना
गया हैं । स्वस्स्तकको पस्िर्ी दे शोर्ें प्रेर्, प्रकाश, जीवन और सौभाग्यका चिन्ह भी र्ाना जाता हैं ।
ववश्वकी सवयप्रथर् र्ानव संस्रुतत आययसंस्कृतत और आययधर्य या सनातनधर्यसे लेकर र्ायन, यहुदी,
एझटे क, इन्का, पेगन, ताओ, शींतो, क्ररस्ियन, इस्लार् जैसे अन्य धर्ों और ववववध संस्कृततओंने स्वस्स्तक
प्रततकका प्रयोग धार्र्यक चिन्ह, शुभकार्ना चिन्ह, लाभकारक चिन्ह, रक्षाप्रततक या तो कलात्र्क चिन्हके
रूपर्ें स्स्वकारा हैं । आज भी ववश्वके अचधकांश लोग स्वस्स्तक प्रततकको धार्र्यक,आध्यास्त्र्क, शुभ, र्ंगल
एवं लाभ और कल्याणका प्रततक र्ानते हैं और उनका आदर और सन्र्ानसे उसे ग्रहण करते हैं और
ऊसकी पज
ू ा और साधना करते हैं । आययधर्ेकी शाखाएं जैसे हहंद,ु र्शख, जैन, बौध और झोरोस्रीयन और
पव
ू क
य े अन्य ताओ, शीन्तो जैसे धर्ोंर्ें स्वस्स्तक प्रततकको ईश्वरका प्रततक र्ाना गया हैं ईसीलीए उसे
पज
ू नीयका स्थान प्रदान क्रकया गया हैं । हहंद ु धर्यर्ें स्वस्स्तकको श्री गणेश का और शक्तिका स्वरुप र्ाना
गया हैं और उसे सवय संस्कारों और पज
ू ाके ववधानोंर्े श्री गणेशजीकी तरह सवय प्रथर् स्थान दीया गया हैं ।
सख
ु शांतत, सौभाग्य और सम्रवु ि प्रदान करनेवाले ये दै वी और िर्त्कारीक प्रततककी भक्ति और साधनाकी
गंगाधारातो प्राचिनकालसे अववरत बह रही हैं र्गर स्वस्स्तकके गण
ु गानके भजन और गीत अलभ्य होनेसे
एक आध्यास्त्र्क अनभ
ु तू त उदभववत होने पर र्ैने ववश्वकी सवयप्रथर् भजन रिना ‘’ स्वस्स्तकार्त
ृ ’’
प्रकाशीत की थी और अब ये र्ेरी दस
ु री भजन, आरती गीत, धन
ू ईत्यादीकी रिना ‘’स्वस्स्तकगंगा’’
प्रकाशीत करनेके अवसर प्राप्त हुआ ईसीलीये र्ैं अने आपको धन्य और अहोभाग्य सर्झता हुं ।
ववश्वके पावन पववत्र और कल्याणकारी स्वस्स्तक प्रततकके भक्तिभावको उजागर करने और उसका प्रिार
प्रसार करनेके र्हा आशयसे लीखी हुई ये र्ेरी नवीन रिना ‘’स्वस्स्तकगंगा’’ के प्रकाशनको आप सहर्षय
स्स्वरुत करें गे। र्ेरी आप भिजनोंको नम्र बबनती हई की आप ईस गंगाजलके सर्ान पावन और पववत्र
‘’स्वस्स्तकगंगा’’के हर बुंद स्वरूप रिनका आिर्न जरूर करें गे और अन्य भि जनों कोभी प्रसादके रूपर्ें
अपयण करें गे । हर स्वस्स्तक प्रेर्ी भिजनोंको र्ेरी नम्र प्राथयना हैं की स्वस्स्तक प्रततकका उपयोग और
प्रदशयन सावयजनीक भज-क्रकतयन और अन्य धार्र्यक काययरर्ोंर्े अचधक और ववशेर्षरूपसे करें और स्वस्स्तक
प्रततकके सवोिर् वैभवपण
ू य स्थान और गरीर्ाको ववश्वर्ें प्रिाा्ररत और प्रसाररत करनेर्ें अपना योगदान प्रदान
करें । स्वस्स्तक प्रततकके बारे र्ें दस
ु रे ववश्वयुिके पयंत पस्िर्र्ें फैलाये गये अयोग्य और बबनाधार
ततरस्कार और ध्रण
ु ाका सख्त ववरोध और खंडन करके पस्िर्के अबुध और अज्ञानी लोगों को स्वस्स्तकके
सच्िे हदव्य स्वरूप और र्हिाके बारें र्े उनको प्रर्शक्षक्षण प्रदान करके सारे ववश्वर्ें स्वस्स्तककी प्रततष्ठाको
पारसीओंके ऐततहासीक स्थल संजान बंदरके पास खिलवाडा गांवर्ें हुआ था । सुरतकी पी.टी. सायन्स
कालीजर्ें अभ्यास करके उन्होंने दक्षक्षण गुजरात ववश्वववद्यालयसे रसायन और भौततकशास्त्रर्ें स्नातककी
पदवी प्रथर् वगंर्ें उविणय होके प्राप्तकी थी । पश्च्यात उन्होंने हाफकीन ईंस्टीट्युट ओफ रीसिय एन्ड
बायोफार्ायस्युटीकल्स, परे ल,र्ुम्बईर्ें अभ्यास करनेके बाद पोलीर्र टे कनोलोजीकी अनुस्तानतककी पदवी
युतनवसीटी ओफ आस्टन ईन ा् बर्र्ंगहार्से प्राप्त करने केलीए १९७६र्ें ईंग्लंड आये थे । परदे शर्ें
आगर्नके बाद अभ्यासके साथ ा् साथ उन्होंने आयय धर्य, संस्कृतत, परर्परा और र्ातभ
ृ ार्षाको जीवंत और
ज्वलंत बनानेके अर्भयानर्ें अपना अर्ूल्य योगदान भी प्रदान क्रकया । ईंग्लंडकी कुछ स्थातनक
संस्थाओंके संस्थापका् प्रर्ुख औरा् अन्य राष्ट्रीय और आंतर राष्ट्रीय संस्थाओंके सदस्यभी हैं । उन्होंने
१९९५ र्ें हहंद ु स्वातंत्र्यवीर स्र्तृ त संस्थार् ा् नार्की संशोधन संस्थाकी शरुआतकी और सात दशकसे
स्जतनवार्ें पडे हुए गुजरातके सवयप्रथर् रांततकारी स्वातंत्र्यवीर पंक्तडत श्यार्जी कृष्णवर्ाय औरा् उनकी
पत्नी भानुर्तीजीके अस्थीकंु भोको भारत भेजनेके काययर्ें र्हत्वपूणय योगदान प्रादानकीया औरा् कृष्णवर्ाय
दं पतीके अंततंर् ईच्छा परीपूणय करनेर्ें अपना ववशेर्ष योगदान ा् दीया । पंक्तडत श्यार्जीकी स्र्तृ तर्ें लंडन
स्स्थत उनके र्कानपे अथाग प्रयत्न करके स्म्रुतततक्ति लगवायी और सोबोनय ववश्वववद्यालय, पेरीस औरा्
ओक्षफडय ववश्वववद्यालय, ओक्षफडयर्ें पंक्तडत श्यार्जी कृष्णवर्ाय रौप्य िंद्रककी स्थापना करवायी जो हरा् दो
साल संस्कृतके ववद्वान को आयय या वेदीक धर्यके और संस्कृत भार्षाके संशोधन और अध्ययनके लीए
ववशेर्ष पाररतोवर्षकके रुपर्ें प्रदान ा् कीया जाता हैं । श्री हे र्ंतकुर्ारने पंक्तडत श्यार्जीके ववर्षयर्ें गहन
संशोधन और अभ्यास करके श्यार्जीकी ईंग्लीशर्ें चित्रजीवनी ‘ The Photographic Reminiscance
श्री हे र्ंतकुर्ारने यव
ु ावस्थासे ही लेखन काययका शौख और धन
ू थी । वो भजनों, राष्ट्रभक्तिकें गीतों, शौयय
गीतों, आध्यास्त्र्क गीतों के रचिता कतत हैं और धार्र्यक, राजनैततक और सार्ाजीक तनबंधोंके भी
लेखक हैं । स्वस्स्तक प्रततकके युरोपर्ें सावयजतनक उपयोग पर प्रततबंध लादनेके युरोपीयन पालायर्ेन्टके
प्रस्तावके ववरोधर्ें प्रकार्शत कीया गया उनका अंग्रेजी लेख, ‘’ Hands off our Sacred Swastika’
को बहोत प्रशंशा और धन्यवाद प्राप्त हुए थे । लेखन और प्रकाशन काययकी शंख
ृ लार्ें ‘ददय ’,
‘सत्यनारायण्की कथा’, ‘स्वार्र्वववेकानंद संक्षक्षप्त जीवन िररत्र’’, हहन्द ु धर्य’, ‘स्वस्स्तकार्त
ृ ’,
‘स्वस्स्तकगंगा’ ‘स्वस्स्तकधारा (गुजराती), ‘Swastika Poems’, ‘जय हहन्दत्ु वर् (म्युझझकल सी .डी.)’
ईत्यादीका सर्ावेश होता हैं ।
पंक्तडत श्यार्जीकी स्र्तृ त सदा ज्वलंत रखनेकी उनकी र्हे च्छाके अर्भयानर्ें अपने संशोधनों और
पाध्याने अपने धर्य, संस्कृतत,साहहत्य, राष्ट्रप्रेर् और दे श्भक्ति जैसे ववववध क्षेत्रोंर्ें अपना अणर्ोल और
सदभाग्य, आबादी और शुभेच्छाके प्रततक स्वस्स्तकके सुप्रिार प्रसार और उनके पावन पववत्र, शुभ,
र्ंगल और आध्यास्त्र्क स्वरूपको पस्िर्के सर्ाजर्ें न्याय और सन्र्ान प्राप्त कराके पस्िर्के दे शोर्ें
स्वस्स्तकके प्रततकको पुनः प्रस्थावपत के अर्भयानर्ें श्री हें र्ंतकुर्ार सरीय हैं और अन्य संस्थाओंके
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धून ा्……
हरर ॐ स्वस्स्तक, हरर ॐ स्वस्स्तक हरर ॐ स्वस्स्तक स्वस्स्तका । [OR HARE HARE]
श्री ॐ स्वस्स्तक, श्री ॐ स्वस्स्तक श्री ॐ स्वस्स्तक स्वस्स्तका ।
स्वस्स्तक स्वस्स्तक स्वस्स्तक स्वस्स्तक स्वस्स्तक स्वस्स्तक स्वस्स्तका ।
शुभर् स्वस्स्तक लाभर् स्वस्स्तक र्ंगलर् ा् स्वस्स्तक स्वस्स्तका ।
हदव्यर् ा् स्वस्स्तक भव्यर् ा् स्वस्स्तक अघ्ययर् स्वस्स्तक स्वस्स्तका ।
स्वस्स्तक स्वस्स्तक स्वस्स्तक स्वस्स्तक स्वस्स्तक स्वस्स्तक स्वस्स्तका ।
सत्यर् ा् स्वस्स्तक र्शवर् ा् स्वस्स्तक सुंदरर् ा् स्वस्स्तक स्वस्स्तका ।
आराध्यर् ा् स्वस्स्तक पूजनर् ा् स्वस्स्तक, ऐश्वययर् ा् स्वस्स्तक स्वस्स्तका ।
स्वस्स्तक स्वस्स्तक स्वस्स्तक स्वस्स्तक स्वस्स्तक स्वस्स्तक स्वस्स्तका ।
स्वस्स्तक हैं अतत र्ंगलर्………..
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धून…..
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जयतु स्वस्स्तकर् जयतु स्वस्स्तकर् …..
नर्ो नर्ो श्री स्वस्स्तक प्रततकर्, नर्ो नर्ो श्री गणेश प्रततकर् ।
जपो जपो श्री स्वस्स्तक र्ंत्रर्, पूजो पूजो श्री स्वस्स्तक र्हायंत्रर् ।
स्र्रो स्र्रो श्री स्वस्स्तक नार्र्, भजो भजो श्री स्वस्स्तक र्हातंत्रर् ।
गाओ गाओ श्री स्वस्स्तक गानर्, करो करो श्री स्वस्स्तक र्हायोगर् ।
नर्ो नर्ो श्री स्वस्स्तक प्रततकर् …..
नर प्रततकर् नारायणी प्रततकर्, दे व प्रततकर् र्हादे वी प्रततकर् ।
हदव्य प्रततकर् प्रभावी प्रततकर्, सौयय प्रततकर् तेजस्स्व प्रततकर् ।
नर्ो नर्ो श्री स्वस्स्तक प्रततकर् …..
पावन प्रततकर् पववत्र प्रततकर्, शुि प्रततकर् सत्य प्रततकर् ।
शुभ प्रततकर् लाभ प्रततकर्, र्ंगल प्रततकर् कल्याणी प्रततकर् ।
नर्ो नर्ो श्री स्वस्स्तक प्रततकर् …..
ब्रह्मा प्रततकर् ववष्णु प्रततकर्, र्शव प्रततकर् श्री शक्ति प्रततकर् ।
सौयय प्रततकर् ईन्द्र प्रततकर्, रुद्र प्रततकर् श्री र्रूत प्रततकर् ।
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श्लोक…..
ववश्व प्रततक श्री स्वस्स्तक र्हान, स्वस्स्तक प्रततक हैं श्री गणेश सर्ान ।
स्वस्स्तक नार् जय स्वस्स्तक नार्, प्यारसे भजले तुं स्वस्स्तक नार् ।
ववश्व प्रततक श्री स्वस्स्तक र्हान …..
स्वस्स्तकको जपे जो कोई नरनार, कृपा करे वो उन पर परर् अपार ।
स्वस्स्तकको पज
ू े जो सवय प्रथर्बार, उनका हो जाये सदा र्हाकल्याण ।
ववश्व प्रततक श्री स्वस्स्तक र्हान …..
स्वस्स्तकको बबराजे जो घरके द्वार, स्वस्स्तक बने उनका सदा रक्षणहार ।
स्वस्स्तकको भजे जो हर हदन-रात, उनका हो जाये धन्य धन्य हजार ।
ववश्व प्रततक श्री स्वस्स्तक र्हान …..
स्वस्स्तकको स्र्रे जो पल पल बार, स्वस्स्तक बने उनका तारणहार ।
स्वस्स्तकको रटे जो हर हदन-रात, उनका हो जाये सदा ही बेडापार ।
ववश्व प्रततक श्री स्वस्स्तक र्हान …..
स्वस्स्तकको ध्यावे जो सदा काल, स्वस्स्तक करे उनका शुभ र्ंगलकार ।
स्वस्स्तकको नर्े जो सदा वारं वार, स्वस्स्तक दे उनको वरदान अपार ।
ववश्व प्रततक श्री स्वस्स्तक र्हान …..
स्वस्स्तकका हैं अदभूत िर्त्कार, स्वस्स्तककी हैं र्हा र्ाया अपरं पार ।
करो कोटी वंदन करो तुर् वारं वार, स्वस्स्तक करे गा तेरो भव भव पार ।
ववश्व प्रततक श्री स्वस्स्तक र्हान …..
स्वस्स्तक नार् जो स्र्रे अंततर्काल, उनको र्र्ले सदा स्वगयके द्वार ।
स्वस्स्तकानंद स्वार्र् कहे ये तुं र्ान, भज स्वस्स्तक भज गणेश नार् ।
ववश्व प्रततक श्री स्वस्स्तक र्हान …..
वंदनर् प्रतत वंदनर् …..
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धन
ू ….
हररॐ हररॐ हररॐ हररॐ सवयत्र हररॐ स्वस्स्तकर् ।
श्री ॐ श्री ॐ श्री ॐ श्री ॐ सवयत्र श्री ॐ स्वस्स्तकर् ।
शुभर् शुभर् शुभर् शुभर् सवयत्र शुभर् स्वस्स्तकर् ।
लाभर् लाभर् लाभर् लाभर् सवयत्र लाभर् स्वस्स्तकर् ।
र्ंगलर् र्ंगलर् र्ंगलर् र्ंगलर् सवयत्र र्ंगलर् स्वस्स्तकर् ।
पववत्रर् पववत्रर् पववत्रर् पववत्रर् सवयत्र पववत्रर् स्वस्स्तकर् ।
शि
ु र् शि
ु र् शि
ु र् शि
ु र् सवयत्र शि
ु पावन स्वस्स्तकर् ।
सत्यर् सत्यर् सत्यर् सत्यर् सवयत्र सत्यर् स्वस्स्तकर् ।
र्शवर् र्शवर् र्शवर् र्शवर् सवयत्र र्शवर् स्वस्स्तकर् ।
संद
ु रर् संद
ु रर् संद
ु रर् संुदरर् सवयत्र संद
ु रर् स्वस्स्तकर् ।
सुंदरशुशोर्भता…..
स्वस्स्त न इन्द्रो वि
ृ श्रवाः । स्वस्स्त नः पूर्षा ववश्ववेदाः ।
स्वस्स्त नस्ताक्ष्यो अररष्टनेर्र्ः । स्वस्स्त नो बब्रहस्पततदय धातु |
ॐ शास्न्तः ॐ शास्न्तः ॐ स्वस्स्तका ॐ स्वस्स्तका ॥
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धन
ू …..
श्री ॐ नार् स्वस्स्तकर्, श्री ॐ कार स्वस्स्तकर्, र्ंगल र्ंगल र्ंगल, र्ंगल स्वस्स्तक र्ंगलर् ।
स्वस्स्त स्वस्स्त स्वस्स्त स्वस्स्त, स्वस्स्तक र्ंगलर्, र्ंगल र्ंगल र्ंगल, र्ंगल स्वस्स्तक र्ंगलर् ।
श्री गणेश र्ंगलर् श्री ववनायक र्ंगलर्, र्ंगल र्ंगल र्ंगल र्ंगल स्वस्स्तक प्रततक र्ंगलर् ।
श्री गणपतत र्ंगलर् श्री गजानन र्ंगलर्, र्ंगल र्ंगल र्ंगल र्ंगल स्वस्स्तक आकार र्ंगलर् ।
श्री ववघ्नेश्वराय र्ंगलर् श्री वरदाय र्ंगलर्, र्ंगल र्ंगल र्ंगल र्ंगल स्वस्स्तकाकृतत र्ंगलर् ।
श्री र्सविववनायक र्ंगलर् श्री अष्टववनायक र्ंगलर्, र्ंगल र्ंगल र्ंगल र्ंगल स्वस्स्तकचिन्ह र्ंगलर् ।
श्री ॐ स्वस्स्तक वंदनर् श्री ओर् गणेश वंदनर्, वंदन वंदन वंदन वंदन स्वस्स्तक-गणेश वंदनर् ।
हे …धून लगी धून लगी धून लगी रे …..
हे …धन
ू लगी धन
ू लगी धन
ू लगी रे , हर्ें स्वस्स्तक नार्की धन
ू लगी रे ।
हे …धन
ू लगी धन
ू लगी धन
ू लगी रे , हर्ें स्वस्स्तक ध्यानकी धन
ू लगी रे ।
हे …धन
ू लगी धन
ू लगी धन
ू लगी रे …..
स्वस्स्तक प्रततक हैं हर्ें प्राणसेभी प्यारां, ववश्वजओंका हैं लादलां दल
ु ारां ।
स्वस्स्तक प्रततक हैं सारे ववश्वर्ें तनराला, भावसे भजत हैं उसे ववश्व सारां ।
हे …धन
ू लगी धन
ू लगी धन
ू लगी रे …..
स्वस्स्तक प्रततक हैं बडा सुंदर सलौनां, शुशोर्भत कलार्य शोभे वो न्यारां ।
स्वस्स्तक प्रततक हैं बडा अदभूत अनौखा, नयन्रम्य र्नर्ोहक प्रततक हैं र्धरु ां ।
हे …धन
ू लगी धन
ू लगी धन
ू लगी रे …..
स्वस्स्तक प्रततक हैं स्वयं स्वरूप प्रभुका, श्रािा आस्थासे पूजे उसे ववश्वजन सारां ।
स्वस्स्तक प्रततक हैं शुभ र्ंगल शगुनवंता, भाव भक्तिसे भजे उसे ववश्व्जन सारां ।
हे …धन
ू लगी धन
ू लगी धन
ू लगी रे …..
स्वस्स्तक प्रततक हैं पुतनत पावन पववत्र, आययजनोंका प्रथर् चिन्ह है वो प्यारां ।
स्वस्स्तक प्रततक हैं दयालु और र्ायालु, भिजनोंपे सदा सवयदा कृपा करनेवाला ।
हे …धन
ू लगी धन
ू लगी धन
ू लगी रे …..
स्वस्स्तक प्रततक हैं सदा कल्याण करनेवाला, सख
ु सम्पवि और संततत दे नेवाला ।
स्वस्स्तक प्रततक हैं सदा भाग्योदय करनेवाला, शांतत संतोर्ष और परर्ानंद दे नेवाला ।
हे …धन
ू लगी धन
ू लगी धन
ू लगी रे …..
स्वस्स्तक प्रततक हैं सदा शवु ि ववृ ि करनेवाला, र्हा पण्
ु य और र्हाफल दे नेवाला ।
स्वस्स्तक प्रततक हैं आध्यात्र् और ऐश्वयय दे नेवाला, शभ
ु ार्शर्ष और शभ
ु वर दे नेवाला ।
हे …धन
ू लगी धन
ू लगी धन
ू लगी रे …..
स्वस्स्तक प्रततक हैं आत्र्शुवि करनेवाला, ररवि, र्सवि और बल-बुवि दे नेवाला ।
स्वस्स्तक प्रततक हैं स्वयं श्री गणेश स्वरूपा, भक्ति शक्ति र्ुक्ति और र्ौक्ष दे नेवाला ।
हे …धन
ू लगी धन
ू लगी धन
ू लगी रे ….. हर्ें स्वस्स्तक नार्की धन
ू लगी रे ।
हे …धन
ू लगी धन
ू लगी धन
ू लगी रे ….. हर्ें स्वस्स्तक प्रततककी धन
ू लगी रे ।
हे …धन
ू लगी धन
ू लगी धन
ू लगी रे ….. हर्ें श्रीगणेश नार्की धन
ू लगी रे ।
हे …धन
ू लगी धन
ू लगी धन
ू लगी रे ….. हर्ें गजानन नार्की धन
ू लगी रे ।
दशयन द्यो स्वस्स्तक गणेश र्ेरे…..
दशयन द्यो स्वस्स्तक गणेश र्ेरे…, नयनां प्यासे रे ….[२] +++++
कृपा दया जब तेरी उतरे ….रं क बने र्हाराजा रे …..
दशयन द्यो स्वस्स्तक गणेश र्ेरे…..
रि रं गके फूल िढाउं …पच्िीश पकवानके भोग लगाउं … आ..आ..
र्धरु र्ेवाका प्रसाद िढाउं …उतारुं र्ैं तेरी आरती रे ….
दशयन द्यो स्वस्स्तक गणेश र्ेरे…..
ज्योततर्यय हदपर्ाल प्रगटाउं … संध्या पूजा पाठ कराउं ..आ…आ…
नवरत्नोंके अलंकार िढाउं ….तेरे िरण कर्लर्ें रे ….
दशयन द्यो स्वस्स्तक गणेश र्ेरे…..
हर पल तेरा ध्यान लगाउं …हर घडी तेरा भजन र्ैं गाउं ..आ… आ
नीशहदन र्ैं तेरे गन
ु गाउं …जपजाप करुं र्ैं तेरा रे …..
दशयन द्यो स्वस्स्तक गणेश र्ेरे…..
तेरे बबरहर्ें आंसु बहाउं … र्नको र्ैं कैसे सर्झाउं …. आ..आ…
आंखर्र्िोली अबतो छोडो…हे स्वस्स्तक स्वार्र् रे ….
दशयन द्यो स्वस्स्तक गणेश र्ेरे…..
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धून…..
हरर ॐ स्वस्स्तक हरर ॐ स्वस्स्तक हरर ॐ स्वस्स्तक हरर हरर…
श्री ॐ स्वस्स्तक श्री ॐ स्वस्स्तक श्री ॐ स्वस्स्तक हरर हरर…..
ॐ ॐ स्वस्स्तक ॐ ॐ स्वस्स्तक ॐ ॐ स्वस्स्तक हरर हरर…..
ह्ीं ॐ स्वस्स्तक ह्ीं ॐ स्वस्स्तक ह्ीं ॐ स्वस्स्तक हरर हरर…..
श्रीं ॐ स्वस्स्तक श्रीं ॐ स्वस्स्तक श्रीं ॐ स्वस्स्तक हरर हरर…..
कलीं ॐ स्वस्स्तक रीं ॐ स्वस्स्तक रीं ॐ स्वस्स्तक हरर हरर…..
गं ॐ स्वस्स्तक गं ॐ स्वस्स्तक गं ॐ स्वस्स्तक हरर हरर…..
स्वं ॐ स्वस्स्तक स्वं ॐ स्वस्स्तक स्वं ॐ स्वस्स्तक हरर हरर…
ॐ ह्ीं श्रीं कलीं गं स्वं श्री स्वस्स्तकायनर्ः ।
ॐ नर्ो श्री स्वस्स्तकाय……
संद
ु रर् संद
ु रर् र्र् स्वस्स्तक प्रततक हैं संद
ु रर् ।
वंदनर् वंदनर् र्र् स्वस्स्तक प्रततक हैं वंदनर् ।
संद
ु रर् संद
ु रर् र्र् …..
संद
ु रर् संद
ु रर् र्र् शभ
ु प्रततक हैं संद
ु रर् ।
वंदनर् वंदनर् र्र् शभ
ु प्रततक वंदनीयर् ।
संद
ु रर् संद
ु रर् र्र् …..
सुंदरर् सुंदरर् र्र् लाभ प्रततक हैं सुंदरर् ।
वंदनर् वंदनर् र्र् लाभ प्रततक हैं वंदनीयर् ।
सुंदरर् सुंदरर् र्र् …..
सुंदरर् सुंदरर् र्र् भाग्य प्रततक हैं सुंदरर् ।
वंदनर् वंदनर् र्र् भाग्य प्रततक वंदनीयर् ।
सुंदरर् सुंदरर् र्र् …..
सुंदरर् सुंदरर् र्र् र्ंगल प्रततक हैं सुंदरर् ।
वंदनर् वंदनर् र्र् र्ंगल प्रततक वंद नीयर् ।
सुंदरर् सुंदरर् र्र् …..
सुंदरर् सुंदरर् र्र् गणेश प्रततक हैं सुंदरर् ।
वंदनर् वंदनर् र्र् गणेश प्रततक वंदनीयर् ।
सुंदरर् सुंदरर् र्र् …..
सुंदरर् सुंदरर् र्र् आयय प्रततक हैं सुंदरर् ।
वंदनर् वंदनर् र्र् आयय प्रततक वंद नीयर् ।
सुंदरर् सुंदरर् र्र् …..
सुंदरर् सुंदरर् र्र् धर्य प्रततक हैं सुंदरर् ।
वंदनर् वंदनर् र्र् धर्य प्रततक वंदनीयर् ।
सुंदरर् सुंदरर् र्र् …..
संद
ु रर् संद
ु रर् र्र् कर्य प्रततक हैं संद
ु रर् ।
वंदनर् वंदनर् र्र् कर्य प्रततक वंदनीयर् ा् ।
संद
ु रर् संद
ु रर् र्र् …..
संद
ु रर् संद
ु रर् र्र् र्ौक्ष प्रततक हैं संद
ु रर् ।
वंदनर् वंदनर् र्र् र्ौक्ष प्रततक वंदनीयर् ।
संद
ु रर् संद
ु रर् र्र् …..
स्वस्स्तक तेरो नार् …..
श्लोक…..
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धन
ू …..
धून ा्.....
जय जय स्वस्स्त स्वस्स्तक हरी बोल…[४] हरर बोल हरर बोल हरर हरर बोल[२]
जय…… जय….स्वस्स्त… स्वस्स्तक….. हरर…. बोल……
स्वस्स्त बोल स्वस्स्त बोल स्वस्स्त बोल [४]…जय…जय…]
शभ
ु र् बोल शभ
ु र् बोल शभ
ु र् बोल..[४] ….जय जय…
र्ंगल बोल र्ंगल बोल र्ंगल बोल ..[२]… जय जय…
जय श्री स्वस्स्तक प्यारे बोल ..[२] जय श्री गणेश प्यारे बोल ..[२]
जय श्री र्सविववनायक बोल…जय श्री अष्ठववनायक बोल..[२]..जय… जय….
हे र्ेरे र्नर्ें .. हे र्ेरे तनर्ें …….
श्लोक…..
स्वस्स्तक नार्.. स्वस्स्तक नार्.. स्वस्स्तक नार्.. स्वस्स्तक नार्.. [४] ******************
स्वस्स्तक नार्.. नार्.. नार्.. बोलो जय जय श्री स्वततक नार् …
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स्वस्स्तक शांतत..
स्वस्स्तक शांतत.. स्वस्स्तक शांतत.. स्वस्स्तक शांतत.. हरर ॐ ।
स्वस्स्त ॐ स्वस्स्त ॐ, स्वस्स्तक शुभर्ंगल शांतत.. हरर ॐ. ।
स्वस्स्तक शांतत.. स्वस्स्तक शांतत.. शांतत शांतत…. हरर ॐ. ।
जलर्ें हो शांतत.. थलर्े हो शांतत, शांतत शांतत.. स्वस्स्त ॐ ।
स्वगयर्ें हो शांतत.. पस्ृ ववपे हो शांतत, शांतत शांतत.. स्वस्स्त ॐ ।
स्वस्स्तक शांतत..
बत्रभूवनर्ें हो शांतत अंतररक्षर्े हो शांतत, शांतत शांतत.. स्वस्स्त ॐ ।
ववश्वदे वोर्ें हो शांतत ब्रह्मार्ें हो शांतत, शांतत शांतत.. स्वस्स्त ॐ ।
स्वस्स्तक शांतत..
और्षचधर्ें हो शांतत वनस्पततर्ें हो शांतत, शांतत शांतत.. स्वस्स्त ॐ ।
सवयत्र हो शांतत सवयर्ें हो शांतत, शांतत शांतत … श्री स्वस्स्तक ॐ ।
स्वस्स्तक शांतत..
तनभयय कताय शक्ति दे ता.....
स्वस्स्तक हैं शभ
ु प्रततकर्.. सत्यर् र्शवर् हैं संद
ु रर् ा्… [४]
स्वस्स्तक हैं र्ंगल प्रततकर्.. सत्यर् र्शवर् हैं सुंदरर् ा्… [४]
स्वस्स्तक हैं सौभाग्य प्रततकर्.. सत्यर् र्शवर् हैं सुंदरर् ा्… [४]
स्वस्स्तकर्ेव जयते, स्वस्स्तकर्ेव जयते, जयते जयते जयते, स्वस्स्तकर्ेव जयते..
आययर्ेव जयते, अययर्ेव जयते, जयते जयते जयते, आययर्ेव जयते..
स्वस्स्तकर्ेव जयते…..
सत्यर्ेव जयते सत्यर्ेव जयते, जयते जयते जयते बोलो सत्यर्ेव जयते..
प्रेर्र्ेव जयते प्रेम्र्ेव जयते, जयते जयते जयते बोलो प्रेम्र्ेव जयते..
स्वस्स्तकर्ेव जयते…..
धर्यर्ेव जयते धर्यर्ेव जयते, जयते जयते जयते बोलो धर्यर्ेव जयते..
कर्यर्ेव जयते कर्यर्ेव जयते, जयते जयते जयते बोलो कर्यर्ेव जयते..
स्वस्स्तकर्ेव जयते…..
अहहंसार्ेव जयते अहहंसार्ेव जयते, जयते जयते जयते बोलो अहहंसार्ेव जयते..
करूणार्ेव जयते करूणार्ेव जयते, जयते जयते जयते बोलो करूणार्ेव जयते..
स्वस्स्तकर्ेव जयते…..
शांततर्ेव जयते शांततर्ेव जयते, जयते जयते जयते बोलो शांततर्ेव जयते..
आध्यात्म्यर्ेव जयते आध्यात्म्यर्ेव जयते, जयते जयते जयते बोलो आध्यात्म्यर्ेव जयते..
स्वस्स्तकर्ेव जयते…..
श्लोक…..
धून…..
श्रेष्ठ उिर् शश
ु ील संस्कारी, र्ानवताका प्रततक परोपकारी ।
आदशय शीलर्ें सबसे न्यारां, स्वस्स्तक हैं हर्ें प्राणसे प्यारां ।
श्रेष्ठ उिर् शश
ु ील संस्कारी….
शभ
ु लाभ और सर्
ु ंगलकारी, वैभव ववलाश और सख
ु कारी ।
दःु ख दररद्र और संकटहारी, कष्ट वपडा भय हर ववघ्नहारी ।
श्रेष्ठ उिर् शश
ु ील संस्कारी….
प्रेर् स्नेह र्ाया गुणकारी, दया कृपा करुणां अनुकंपाकारी ।
शुकनवं सदा सौभाग्यकारी, संतती सम्पवि और सर्वृ िदायी ।
श्रेष्ठ उिर् शुशील संस्कारी….
र्नोहर सुंदर सौम्यरूपधारी, आनंद उर्ंग और उत्सवकारी ।
संयर् संतोर्ष और शांततकारी, सदा सवयदा यश ववजयकारी ।
श्रेष्ठ उिर् शुशील संस्कारी….
अदभूत अलौकीक िेतनकारी, स्वस्स्तक प्रततक कल्याणकारी ।
भव्य हदब्य और िर्त्कारी, स्वस्स्तक तो हैं र्हागुणकारी ।
श्रेष्ठ उिर् शुशील संस्कारी….
स्वततक प्रततकर् पावन प्रततकर्…..
शभ
ु दार् र्ंगलां पावन पववत्रार्
रिवणां स्वस्स्तकर् ।
हदव्यदशयनाितभ
ु ज
ूय ाधारीणां
शशीस्वरूपवतसंद
ु रसश
ु ोर्भतां
ज्योततर्ययी र्धक
ु र स्वरुपार्
सुखदां शांततदां स्वस्स्तकर् ।।१॥ वन्दे स्वस्स्तकर् ।
कोहट कोहट युग हर स्थल सवयत्र प्रकटे
कोहट कोहट जन वंदन पूजते ।
सदा सुभार्शर्ष दे ते ।
बलशक्तिदायकर् नर्ार्र् र्ुक्तिदां ।
भयदख
ु हाररणां स्वस्स्तकर् ।।२॥ वन्दे स्वस्स्तकर् ।
तुर्हो हदव्यर् तुर्हो भव्यर्
तुर्हो कल्याणकारकर्
तुर्हो भक्ति तुर्हो शक्रक
तुर्हो र्ुक्तिदायकर्
तुम्हारी प्रततर्ा शोभे
हरघर र्ंहदरे स्वस्स्तकर् ॥३॥ वन्दे स्वस्स्तकर् ।
त्वं हह दे वो नवदग
ु ायशक्तिदे ववयां
सवयत्रार् सवयज्ञां सवयव्यापी
र्शव शक्तिस्वरुपार्, नर्ार्र् त्वार्
नर्ार्र् सुखदां शुभदां शांततदार्
श्रीगणेशां ववनायकां स्वस्स्तकर् ।।४॥ वन्दे स्वस्स्तकर् ।
आयां प्रततकां ववश्वतां पस्ु जतां
नर्ार्र्ं वंदनार्र्ं स्वस्स्तकर् ॥५॥ वन्दे स्वस्स्तकर् ।
प्रथर् पूजा हर् करते हैं…..
प्रथर् पज
ू ा हर् करते हैं, स्वस्स्तक प्रभु हर् आपकी ।
शभ
ु लाभ र्ंगलकारीकी, स्वस्स्तक र्ंत्रके जापकी ।
प्रथर् पज
ू ा हर् करते हैं…..
परर् पावन पवोत्र प्रततक, जीवन करे उिार ।
स्वस्स्तकाकार बीज र्ंत्र हैं, गणेशजीका अवतार ।
प्रथर् पूजा हर् करते हैं…..
ॐ नर्ो श्री स्वस्स्तकर्, ॐ नर्ो श्री गजाननर् ।
ॐ नर्ो श्री ववनायकर्, ॐ नर्ो श्री गणेशर् ।
र्नोकार्ना परीपूणय होती, हदव्य प्रेरणा प्रगट होती ।
आचध व्याचध सब कुछ र्र्ट जाता,सुख िैन शांतत हो जाती ।
श्री स्वस्स्तकके जापसे, होता हैं तनवायण ।
श्रवण स्वस्स्त र्हार्ंत्रका, करे आत्र् कल्याण ।
ॐ नर्ो श्री स्वस्स्तकर्….. आ…आ…
तन र्न स्जवन परर्ानंदर्य,हो जाता हैं जापसे ।
प्राणी वैकंु ठर्ें जाता हैं, भक्ति पूजा र्हा पाठसे ।
जो नीश हदन स्र्रे र्हार्ंत्र ये, वो पावे र्हापद र्ान ।
पाता हैं वो ऐश्वययका र्र्य, श्रीगणेशजीका वरदान ।
ॐ नर्ो श्री स्वस्स्तकर्….. आ…आ…
दःु ख दररद्र सब दरू भागे, संकट कष्ट कभी नहहं आवे ।
भय भूत दर सब दरू भागे, जीवन धन्य धन्य हो जाये ।
ररवि र्सवि र्ाता कहे , धरो श्री गणेशका ध्यान ।
ववश्वर्ें अलभ्य कुछ नहहं, कओ स्वस्स्तकको प्रणार् ।
ॐ नर्ो श्री स्वस्स्तकर्….. आ…आ…
तनत्य यज्ञ संध्या पज
ू ा करते, शत शत उन्हें प्रणांर् हैं ।
जहां रहे स्वस्स्तक जीस स्थलपे, वहींपे प्रभक
ु ा वास हैं ।
कोटी नर्न गौरीसत
ु गजानन, कोटी नर्न स्वस्स्तक ।
स्वस्स्तकानंद दास तम्
ु हारो, वंदन करे वारं वार ।
ॐ नर्ो श्री स्वस्स्तकर्….. आ…आ…
प्रथर् पज
ू ा हर् करते हैं…..
प्रथर् पूस्जतर् स्वस्स्तक प्रततकर् …..
श्लोक……
स्वस्स्तकं स्वस्स्तकाकारं स्वस्स्तकात्र्ानं सवोिर्र् ।
स्वस्स्तर्ागय प्रणेधारर् प्रणतोस्स्र् स्वस्स्तकर् ।
*
नर्ार्ी स्वस्स्तक प्रततकंपववत्रं,करोर्र् स्वस्स्तक पुजनं सदा ।
जपार्र् स्वस्स्तक नार् शुिं ,स्र्रार्र् र्ंगलं स्वस्स्तकर् ा् ।
*
र्ंगलर् भगवान स्वस्स्तक, र्ंगलर् ा् स्वस्स्तवािनर् ा् ।
र्ंगलर्ं र्सविववनाकाय, र्ंगलाय तनो दे व ।
सवय र्ांगल र्ांगल्ये , स्वस्स्तके सवायथय साचधके ।
शरण्ये गणेशे ववृ ि, र्सवि बुवि नर्ोस्तुते ।
*
स्वस्स्तकाकरर् ा् परर् पववत्रर् ा्, रि वणयर् ा् ज्योततर्ययर् ा् ।
पावनर् ा् र्ोक्षदर् ा् पूण्यर् ा्, स्वस्स्तर् ा् प्रणर्ाम्यहर् ा् ।
स्वस्स्तक स्वस्स्तक …..
वर दे वर दे वर दे , हे स्वस्स्तक हर्ें शभ
ु वर दे ।
भर दे भर दे भर दे , खाली झोली र्ेरी भर दे ।
भाव भक्तिसे ध्यान ज्ञानसे, प्रेर्भावसे तुं भर दे ।
बल शक्तिसे आरोग्य ऐश्वययसे, हे झोली तुं भर दे ।
वर दे वर दे वर दे …..
धन धान्यसे वैभव ववलाससे, सुख सर्वृ िसे भर दे ।
ररवि र्सविसे बुवि िातुयस
य े, हे झोली तुं भर दे ।
वर दे वर दे वर दे …..
आनंद उर्ंगसे संतोर्ष शांततसे, आध्यात्र्से तुं भर दे ।
ववनय वववेकसे दया करूणासे, हे झोली तुं भर दे ।
वर दे वर दे वर दे …..
पूण्य कर्यसे परोपकारसे, सेवाभावसे तुं भर दे ।
सुवविारसे सदभावसे, हे झोली तुं भर दे ।
वर दे वर दे वर दे …..
सदािारसे सद्व्यवहारसे, आत्र्शुविसे भर दे ।
प्रभु भक्तिसे श्रिाभावसे, खाली झोली र्ेरी भर दे ।
वर दे वर दे वर दे …..
र्ंगल गीत सुनाओ साधो.....
धून…..
हरर ॐ स्वस्स्तका... हरर ॐ स्वस्स्तका...
ॐ गं णणेशा... ॐ गं गणणेशा...
स्वस्स्त स्वस्स्त स्वतत स्वस्स्त..[२] स्वस्स्तक बोल…. स्वस्स्त बोल स्वस्स्तक बोल…….[४]
स्वस्स्त बोल स्वस्स्त बोल.. स्वस्स्तक बोल स्वस्स्तक बोल..[२]
स्वस्स्त स्वस्स्त स्वतत स्वस्स्त….
स्वस्स्त स्वस्स्त स्वतत स्वस्स्त..[२] स्वस्स्त बोल…. सत्य बोल सत्य बोल…….[४]
सत्य बोल सत्य बोल.. सत्य बोल सत्य बोल..[२]
स्वस्स्त स्वस्स्त स्वतत स्वस्स्त……
स्वस्स्त स्वस्स्त स्वतत स्वस्स्त..[२] स्वस्स्त बोल…. र्शव बोल र्शव बोल…….[४]
र्शव बोल र्शव बोल.. र्शव बोल र्शव बोल..[२]
स्वस्स्त स्वस्स्त स्वतत स्वस्स्त……
स्वस्स्त स्वस्स्त स्वतत स्वस्स्त..[२] स्वस्स्त बोल…. सद
ुं र बोल सुंदर बोल…….[४]
सुंदर बोल सुंदर बोल.. सुंदर बोल सुंदर बोल..[२]
स्वस्स्त स्वस्स्त स्वतत स्वस्स्त….
स्वस्स्त स्वस्स्त स्वतत स्वस्स्त..[२] स्वस्स्त बोल…. शभ
ु बोल शुभ बोल…….[४]
शुभ बोल शुभ बोल.. शुभ बोल शुभ बोल..[२]
स्वस्स्त स्वस्स्त स्वतत स्वस्स्त….
स्वस्स्त स्वस्स्त स्वतत स्वस्स्त..[२] स्वस्स्त बोल…. र्ंगल बोल र्ंगल बोल…….[४]
र्ंगल बोल र्ंगल बोल.. र्ंगल बोल र्ंगल बोल..[२]
स्वस्स्त स्वस्स्त स्वतत स्वस्स्त….
स्वस्स्त स्वस्स्त स्वतत स्वस्स्त..[२] स्वस्स्त बोल…. हरर ॐ बोल हरर ॐ बोल…….[४]
हरर ॐ बोल हरर ॐ बोल.. हरर ॐ बोल हरर ॐ बोल..[२]
स्वस्स्त स्वस्स्त स्वतत स्वस्स्त….
धून ा्…..
सारे ववश्वर्ें हैं सदा वो छायां, ववश्वजनोंको वो हैं प्यारां ! ………..पुरे ववश्वर्ें
अदभत
ू , अहद्वतीय, अलौक्रकक, लाभ आकार हैं हर्ारां । ………..परु े ववश्वर्ें
आयय र्ल्
ु यों और परं पराका, स्वस्स्तक तो हैं प्राणदाता । ………..परु े ववश्वर्ें
परर् पावन पववत्र हैं वो, शुभ लाभ र्ंगल प्रततक हैं वो ।
शभ
ु कार्ना और शभ
ु ावर्षशका, प्रािीन प्रततक हर्ारां । ……………..परु े ववश्वर्ें
सख
ु शांतत सर्वृ ि प्रगततका, ववश्व राजदत
ू है वो हर्ारां ।
हर्तो पूजक हैं सवस्स्तकके, वो परर् पूज्य दे वता हर्ारां । ………..पुरे ववश्वर्ें
स्वस्स्तक स्वस्स्तक हरी ॐ स्वस्स्तक…..
शभ
ु लाभ कताय हैं स्वस्स्तक, आनंद सर्
ु ंगल करता हैं स्वस्स्तक ।
र्नोरथ पूणय करता हैं स्वस्स्तक, र्नोकार्ना पूणय करता हैं स्वस्स्तक ।
सौभाग्य सस्
ु वास्वय दे ता हैं स्वस्स्तक, शक्ति सार्वयय दे ता हैं स्वस्स्तक ।
दख
ु दर्न हताय हैं स्वस्स्तक, तुवष्ट पुवष्ट कताय हैं स्वस्स्तक ।
दररद्र कष्ट र्र्टाता हैं स्वस्स्तक, आचध व्याचध र्र्टाता हैं स्वस्स्तक ।
शुभ कार्ना कताय हैं स्वस्स्तक, सवय सदा र्ंगल कताय हैं स्वस्स्तक ।
जय स्वस्स्तक नार्….
जय स्वस्स्तक नार्….
जय स्वस्स्तक नार्….
जय स्वस्स्तक नार्….
हदव्य प्रततक श्रीगणेश सर्ान, भजलो प्यारे सदा स्वस्स्तक नार् ..[२] ..[२]
श्री स्वततका श्री स्वस्स्तका....
श्री स्वस्स्तका..तर्
ु दे वा गणेशा… तर्
ु शभ
ु र्ंगलकारीणी..
प्रथर् पज
ू ीत तर्
ु प्रततक प्रभक
ु ा..
तर्
ु हो एकदं त तर्
ु हो ववनायक..[२] तर्
ु गजाजन गणपतत
श्री स्वस्स्तका..तर्
ु दे वा गणेशा…
श्री स्वस्स्तका..तर्
ु दे वा गणेशा…
श्री स्वस्स्तका..तर्
ु दे वा गणेशा…
जगपतत स्वस्स्तक प्रततक र्हान …..
स्वस्स्तक र्हार्ंत्र…..
स्वस्स्तक वंदना…..