You are on page 1of 8

॥ॐ॥

।।ॐ श्री परमात्मने नम:।।


॥श्री गणेशाय नमः॥

स्वस्तिवाचन

स्वस्तिवाचन www.shdvef.com Page 1


ववषयीचचस

स्वस्तिवाचन ............................................................................ 3

स्वस्तिवाचन www.shdvef.com Page 2


स्वस्तिवाचन
(शुक्ल यजुवेद)

ीभस शुभ एवं मां गविक धावमिक कायो को प्रारम्भ करने ीे


पचवि वेद मन्त्ों का पाठ स्वस्तिपाठ या स्वस्तिवाचन
कहिाता है ॰ ऋग्वेद प्रथम मण्डिका यह ८९वााँ ीचक्त
शुक्लयजुवेद वाजीनेयस-ींवहता, काण्व ींवहता, मैत्रायणस
ींवहता और ब्राह्मण तथा आरण्यक ग्रन्ों में भस प्राप्त होता
है ॰ इी ीचक्त के द्रष्टा ऋवष गौतम हैं तथा दे वता ववश्वे देव
हैं ॰ ववश्वेदेव ीे तात्पयि इन्द्र, अवि, वरुण आवद ववश्व के
ीभस दे वताओं ीे हैं ॰ मन्त्द्रष्टा महवषि गौतम ववश्वेदेवों का
आवाहन करते हुए उनीे ीब प्रकार को वनवविघ्नता तथा
मंगि प्रास्तप्त कस प्राथिना करते हैं ॰

इी स्वस्तिपाठमें 'स्वस्ति' शब्द आता है , इीसविये इी


ीचक्त का पाठ कल्याणकारस वीद्ध है ॰ इी ीचक्त में १०
ऋचाएाँ हैं वजनमे अंवतम दो ऋचाएं में शास्तिदायक दो
मन्त् ववणित हैं - आवधदै ववक, आवधभौवतक तथा
आध्यास्तिक - वत्रववध शास्तियोंको प्रदान करनेवािे हैं ॰

स्वस्तिवाचन www.shdvef.com Page 3


आ नो भद्रााः हृतवो यिु ववश्वतोऽदब्धाीो अपरसताी उस्तिदाः ॰
दे वा नो यथा ीदवमद् वृधे अीन्नप्रायुवो रवितारो वदवे वदवे ॱ१ॱ

ीब ओर ीे वनवविघ्न, स्वयं रूप, अन्य यज्ों का उत्थान करने वािे


कल्याणकारस यज् हमें प्राप्त हों॰ ीब प्रकार ीे आिस्यरवहत
होकर, प्रवतवदन रिा करनेवािे दे वता ीदै व हमारस वृस्तद्ध के विए
प्रयत्नशसि हों ॱ१ॱ

दे वानां भद्रा ीुमवतऋजचयतां दे वानां ᳬ रावतरवभ नो वनवतिताम्॰


दे वानां ᳬ ीख्यमुपीेवदमा वयं दे वा ने आयुाः प्रवतरिु जसवीे
ॱ२ॱ

यजमान का शुभ चाहने वािे दे वताओं कस कल्याण काररणस श्रेष्ठ


बुस्तद्ध ीदा हमारे ीाथ रहे , दे वताओं का दान हमें प्राप्त हो, हम
दे वताओं कस वमत्रता प्राप्त करें , दे वता हमारस आयु में वृस्तद्ध करें
ॱ२ॱ

तान्पचविया वनववदा हूमहे वयं भगं वमत्रमवदवतं दिमस्तिधम्॰


अयिमणं वरुणᳬ ीोममवश्वना ीरस्वतस नाः ीुभगा मयस्करत्
ॱ३ॱ

हम वेदरूप ीनातन वाणस के द्वारा प्रभुरूप भग, वमत्र, अवदवत,


प्रजापवत, अयिमा, वरुण, चन्द्रमा और अवश्वनसकुमारों का आह्वान
करते हैं ॰ ऐश्वयिमयस ीरस्वतस महावाणस हमें ीभस प्रकार के
प्रदान करें ॱ३ॱ

स्वस्तिवाचन www.shdvef.com Page 4


तन्नो वातो मयोभु वातु भेषजं तन्माता पृवथवस तस्तत्पता द्ौाः॰
तद् ग्रावाणाः ीोमीुतो मयोभुविदवश्वना रृणुतं वधष्ण्या युवम्
ॱ४ॱ

वायुदेवता, माता पृथ्वस तथा वपता स्वगि हमें ीुखकारस औषवधयााँ


प्रदान करें ॰ ीोम का यज् करनेवािे ीुखदाता ग्रावा उी अदृश्य
औषधरूप को प्रकट करें ॰ हे अवश्वनसकुमारों! आप दोनों ीबके
आधार हैं , हमारस प्राथिना ीुवनये ॱ४ॱ

तमसशानं जगतिस्थुषस्पवतं वधयविवमवीे हूमहे वयम्॰


पचषा नो यथा वेदीामीद् वृ धे रविता पायुरदब्धाः स्विये ॱ५ॱ

हम स्थावर-जंगम के स्वामस, बुस्तद्ध को ीिोष दे ने वािे रुद्र


दे वता का रिा के विए आह्वान करते हैं ॰ वैवदक ज्ान एवं धन कस
रिा करनेवािे, पुत्र आवद के पािक, अववनाशस पुवष्टकताि दे वता
हमारस वृस्तद्ध और कल्याण करें ॱ५ॱ

स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवााः स्वस्ति नाः पचषा ववश्ववेदााः ॰


स्वस्ति निार्क्ष्यो अररष्टनेवमाः स्वस्ति नो बृहस्पवतदि धातु ॱ६ॱ

अत्यवधक कसवतिवािे ऐश्वयि शािस इन्द्र हमारा कल्याण करें , ीविज्,


ीबके पोषणकताि ीच यि हमारा कल्याण करें ॰ वजनकस वनवविघ्न चहृ
के ीमान गवत को कोई रोक नहसं ीकता, वे गरुड़दे व हमारा
कल्याण करें ॰ वेदवाणस के अवधपवत बृहस्पवत हमारा कल्याण
करें ॱ६ॱ

पृषदश्वा मरुताः पृविमातराः शुभं यावानो ववदथेषु जग्मयाः॰

स्वस्तिवाचन www.shdvef.com Page 5


अविवजह्वा मनवाः ीचरचिीो ववश्वे नो दे वा अवीागमवन्नह ॱ७ॱ

रं गवबरं गे वणि के घोड़ोंवािे , माता अवदवत ीे उत्पन्न, ीबका


कल्याण करनेवािे , यज्शािाओं में जानेवािे , अविरूपस वजह्वा
वािे, ीविज्, ीचयिरूप नेत्रवािे मरुद्गण और ववश्वेदेव-दे वता हवव
रूप अन्न को ग्रहण करने के विये हमारे इी यज् में पधारें ॱ७ॱ

भद्रं कणेवभाः रृणुयाम दे वा भद्रं पश्येमािवभयिजत्रााः॰


स्तस्थरै रङ्गैिुष्टु वाᳬीिनचवभर्व्िशेमवह दे ववहतं यदायुाः ॱ८ॱ

हे यजमानों के रिक दे वताओ ! हम दृढ़ अंगों वािे शरसर ीे


अपने पुत्र, बंधु - बां धवों ीवहत वमिकर आपकस िुवत गाते हुए,
अपने कानों ीे कल्याणकारस वचनों का श्रवण करें , नेत्रों ीे
कल्याणमयस विुओं को अविोकन करें तथा दे वताओं कस
उपाीना योग्य आयु प्राप्त करें ॱ८ॱ

शतवमन्नु शरदो अस्ति दे वा यत्रा नश्चहृा जरीं तनचनाम्॰


पुत्राीो यत्र वपतरो भवस्ति मा नो मध्या रसररषतायुगििोाः ॱ९ॱ

हे दे वताओं ! आप ीौ वषि कस आयुपयिि हमारे ीमसप बने रहें ,


वजी आयु में हमारे शरसर को जरावस्था प्राप्त हो, वजी आयु में
हमारे पुत्र-वपता अथाि त् पुत्रवान् बन जायाँ , हमारस उी गमनशसि
आयु को आपिोग बसच में खस्तण्डत न होने दें ॰ ॱ९ॱ

अवदवतद्ौरवदवतरिररिमवदवतमाि ता ी वपता ी पुत्राः॰


ववश्वे दे वा अवदवताः पञ्च जना अवदवतजाि तमवदवतजिवनत्वम् ॱ१०ॱ

स्वस्तिवाचन www.shdvef.com Page 6


अखस्तण्डत पराशस्तक्त स्वगि है , वहस अिररिरूप है , वहस
पराशस्तक्त माता, वपता और पुत्र भस है ॰ ीमि दे वता पराशस्तक्त
के हस स्वरूप हैं , अन्त्यज ीवहत चारों वणो के ीभस मनुष्य
पराशस्तक्तमय हैं , जो भचतकाि में उत्पन्न हो चुका है और भववष्य
में उत्पन्न होगा, ीभस पराशस्तक्त के हस स्वरूप हैं ॱ१०ॱ

द्ौाः शास्तिरिररिᳬ ॐ शास्तिाः पृवथवस शास्तिराषाः


शास्तिरोषधयाः शास्तिाः ॰
वनस्पतयाः शास्तिवविश्वे दे वााः शास्तिब्रिह्म शास्तिाः ीवि ᳬ शास्तिाः
शास्तिरे व शास्तिाः ीा मा शास्तिरे वध ॱ११ॱ

द्ोिोकरूप शास्ति, अिररिरूप शास्ति, भचिोकरूप शास्ति,


जिरूप शास्ति, ओषवधरूप शास्ति, वनस्पवतरूप शास्ति,
ीविदेवरूप शास्ति, ब्रह्मरूप शास्ति, ीविजगत् -रूप शास्ति और
ववश्व में स्वभावताः जो भस शास्ति रहतस है , वह अभस शास्ति मुझे
परमािा कस कृपा ीे प्राप्त हो ॱ११ॱ

यतो यताः ीमसहीे ततो नो अभयं कुरु॰


शं नाः कुरु प्रजाभ्योऽभयं नाः पशुभ्याः ॱ१२ॱ

हे परमेश्वर ! आप वजी रूप ीे हमारे कल्याण कस चेष्टा करते हैं ,


उीस प्रकार हमें भय रवहत कसवजये॰ हमारस ीिानों का कल्याण
कसवजये और हमारे पशुओं को भस भयमुक्त कसवजये ॱ१२ॱ

स्वस्तिवाचन www.shdvef.com Page 7


संकलनकर्ाा:

श्री मनीष त्यागी

संस्थापक एवं अध्यक्ष

श्री हहं दू धमा वै हदक एजुकेशन फाउं डेशन

www.shdvef.com

।।ॐ नमो भगवर्े वासुदेवाय:।।

स्वस्तिवाचन www.shdvef.com Page 8

You might also like