Professional Documents
Culture Documents
शीतला माता की कहानी (19Jul2022TueSapthami) 5
शीतला माता की कहानी (19Jul2022TueSapthami) 5
शीतला सप्तमी व्रत कथा,व्रत विवध और महत्व,शीतला माता की आरती, श्री शीतला चालीसा, शीतलाष्टकम् (अथथ
सवहत), श्री शीतलाष्टक (मूल-स्तोत्र), शीतलाष्टमी के उपाय
माता शीतला गााँ ि वक गवलयो में घूम रही थी, तभी एक मकान के ऊपर से वकसी ने चािल का
उबला पानी (माुं ड) वनचे फेका॰ िह उबलता पानी शीतला माता के ऊपर वगरा वजससे शीतला माता
के शरीर में (छाले) फफोले पड गये॰ शीतला माता के पुरे शरीर में जलन होने लगी॰
शीतला माता गााँ ि में इधर उधर भाग भाग के वचल्लाने लगी अरे में जल गई, मेरा शरीर तप रहा है ,
जल रहा हे ॰ कोई मेरी मदद करो॰ लेवकन उस गााँ ि में वकसी ने शीतला माता वक मदद नही करी॰
िही अपने घर के बहार एक कुम्हारन (मवहला) बेठी थी॰ उस कुम्हारन ने दे खा वक अरे यह बूढी
माई तो बहुत जल गई है ॰ इसके पुरे शरीर में तपन है ॰ इसके पुरे शरीर में (छाले) फफोले पड़ गये
है ॰ यह तपन सहन नही कर पा रही है ॰
तब उस कुम्हारन ने कहा है मााँ तू यहााँ आकार बैठ जा, मैं तेरे शरीर के ऊपर ठुं डा पानी डालती हाँ ॰
कुम्हारन ने उस बूढी माई पर खुब ठुं डा पानी डाला और बोली है मााँ मेरे घर में रात वक बनी हुई
राबड़ी रखी है थोड़ा दही भी है ॰ तू दही-राबड़ी खा लें॰ जब बूढी माई ने ठुं डी (ज्वार) के आटे वक
राबड़ी और दही खाया तो उसके शरीर को ठुं डक वमली॰
तब उस कुम्हारन ने कहा आ मााँ बेठ जा तेरे वसर के बाल वबखरे हे ला में तेरी चोटी गुथ दे ती हु और
कुम्हारन माई वक चोटी गूथने हे तु (कुंगी) कागसी बालो में करती रही॰ अचानक कुम्हारन वक नजर
उस बुडी माई के वसर के वपछे पड़ी तो कुम्हारन ने दे खा वक एक आाँ ख िालो के अुंदर छु पी हैं ॰ यह
दे खकर िह कुम्हारन डर के मारे घबराकर भागने लगी तभी उसबूढी माई ने कहा रुक जा बेटी तु
डर मत॰ मैं कोई भुत प्रेत नही हाँ ॰ मैं शीतला दे िी हाँ ॰ मैं तो इस घरती पर दे खने आई थी वक मुझे
bmkris001@gmail.com 1
कौन मानता है ॰ कौन मेरी पुजा करता है ॰ इतना कह माता चारभुजा िाली हीरे जिाहरात के
आभूषण पहने वसर पर स्वणथमुकुट धारण वकये अपने असली रुप में प्रगट हो गई॰
माता के दशथन कर कुम्हारन सोचने लगी वक अब में गरीब इस माता को कहा वबठाऊ॰ तब माता
बोली है बेटी तु वकस सोच मे पड गई॰ तब उस कुम्हारन ने हाथ जोड़कर आाँ खो में आसु बहते हुए
कहा- है मााँ मेरे घर में तो चारो तरफ दररद्रता है वबखरी हुई हे में आपको कहा वबठाऊ॰ मेरे घर में
ना तो चौकी है , ना बैठने का आसन॰ तब शीतला माता प्रसन्न होकर उस कुम्हारन के घर पर खड़े
हुए गधे पर बैठ कर एक हाथ में झाड़ू दू सरे हाथ में डवलया लेकर उस कुम्हारन के घर वक दररद्रता
को झाड़कर डवलया में भरकर फेक वदया और उस कुम्हारन से कहा है बेटी में तेरी सच्ची भक्ति से
प्रसन्न हु अब तुझे जो भी चावहये मुझसे िरदान माुं ग ले॰
तब कुम्हारन ने हाथ जोड़ कर कहा है माता मेरी इच्छा है अब आप इसी (डु ुं गरी) गााँ ि मे स्थावपत
होकर यही रहो और वजस प्रकार आपने आपने मेरे घर वक दररद्रता को अपनी झाड़ू से साफ़ कर
दू र वकया ऐसे ही आपको जो भी होली के बाद वक सप्तमी को भक्ति भाि से पुजा कर आपको ठुं डा
जल, दही ि बासी ठुं डा भोजन चढ़ाये उसके घर वक दररद्रता को साफ़ करना और आपकी पुजा
करने िाली नारर जावत (मवहला) का अखुंड सुहाग रखना॰ उसकी गोद हमेशा भरी रखना॰ साथ ही
जो पुरुष शीतला सप्तमी को नाई के यहा बाल ना कटिाये धोबी को कपडे धुलने ना दे और पुरुष
भी आप पर ठुं डा जल चढ़ाकर, नररयल फूल चढ़ाकर पररिार सवहत ठुं डा बासी भोजन करे उसके
काम धुंधे व्यापार में कभी दररद्रता ना आये॰
तब माता बोली तथाअस्तु है बेटी जो तुने िरदान माुं गे में सब तुझे दे ती हु ॰ है बेटी तुझे आवशथिाद
दे ती हाँ वक मेरी पुजा का मुख्य अवधकार इस धरती पर वसफथ कुम्हार जावत का ही होगा॰ तभी उसी
वदन से डु ुं गरी गााँ ि में शीतला माता स्थावपत हो गई और उस गााँ ि का नाम हो गया शील वक डु ुं गरी॰
शील वक डु ुं गरी में शीतला माता का मुख्य मुंवदर है ॰ शीतला सप्तमी पर िहााँ बहुत विशाल मेला
भरता है ॰ इस कथा को पढ़ने से घर वक दररद्रता का नाश होने के साथ सभी मनोकामना पुरी होती
है ॰
bmkris001@gmail.com 2
शीतला सप्तमी का महत्व
शीतला सप्तमी का व्रत करने से शीतला माता प्रसन्न होती हैं तथा जो यह व्रत करता है , उसके
पररिार में दाहज्वर, पीतज्वर, दु गंधयुि फोड़े , नेत्र के समस्त रोग तथा ठुं ड के कारण होने िाले
रोग नहीुं होते॰ इस व्रत की विशेषता है वक इसमें शीतला दे िी को भोग लगाने िाले सभी पदाथथ एक
वदन पूिथ ही बना वलए जाते हैं और दू सरे वदन इनका भोग शीतला माता को लगाया जाता है ॰
इसीवलए इस व्रत को बसोरा भी कहते हैं ॰ मान्यता के अनुसार इस वदन घरोुं में चूल्हा भी नही ुं
जलाया जाता यानी सभी को एक वदन बासी भोजन ही करना पड़ता है ॰
bmkris001@gmail.com 3
बाुं झ पुत्र को पािे दाररद कट जाता ॰
ताको भजै जो नाहीुं वसर धुवन पवछताता ॰॰ ॐ जय शीतला माता ॰
शीतल करती जननी तुही है जग त्राता ॰
उत्पवत्त व्यावध विनाशत तू सब की घाता ॰॰ ॐ जय शीतला माता ॰
दास विवचत्र कर जोड़े सुन मेरी माता ॰
भक्ति आपनी दीजै और न कुछ भाता ॰॰ ॐ जय शीतला माता ॰
॥ चौपाई ॥
जय-जय-जय श्री शीतला भिानी ॰ जय जग जनवन सकल गुणधानी ॱ१ॱ
गृह-गृह शक्ति तुम्हारी रावजत ॰ पू रण शरदचुंद्र समसावजत ॱ२ॱ
विस्फोटक से जलत शरीरा ॰ शीतल करत हरत सब पीड़ा ॱ३ॱ
मात शीतला ति शु भनामा ॰ सबके गाढे आिवहुं कामा ॱ४ॱ
bmkris001@gmail.com 4
नमो नमो त्रलोक्य िुंवदनी ॰ दु खदाररद्रक वनकुंवदनी ॱ२५ॱ
श्री शीतला, शेढ़ला, महला ॰ रुणलीहृणनी मातृ मुंदला ॱ२६ॱ
हो तुम वदगम्बर तनु धारी ॰ शोवभत पुं चनाम असिारी ॱ२७ॱ
रासभ, खर, बैसाख सु नुंदन ॰ गदथ भ दु िाथ कुंद वनकुंदन ॱ२८ॱ
कोढी, वनमथल काया धारै ॰ अुंधा, दृग वनज दृवष्ट वनहारै ॱ३३ॱ
बुंध्या नारी पुत्र को पािै ॰ जन्म दररद्र धनी होइ जािै ॱ३४ॱ
मातु शीतला के गुण गाित ॰ लखा मूक को छुं द बनाित ॱ३५ॱ
यामे कोई करै जवन शुं का ॰ जग मे मैया का ही डुं का ॱ३६ॱ
॥ दोहा ॥
यह चालीसा शीतला पाठ करे जो कोय॰
सपनें दु ख व्यापे नहीुं वनत सब मुंगल होय॰॰
बुझे सहस्र विक्रमी शुक्ल भाल भल वकुंतू॰
जग जननी का ये चररत रवचत भक्ति रस वबुंतू॰॰
॥ इवत श्री शीतला चालीसा ॥
अथथ : ईश्वर बोले - गदथ भ(गधा) पर विराजमान, वदगम्बरा, हाथ में माजथनी(झाड़ू) तथा कलश धारण
करने िाली, सूप से अलुंकृत मस्तक िाली भगिती शीतला की मैं िन्दना करता हाँ .
िन्दे Sहं शीतलां दे िी ं सिथ रोगभयापहाम् ।
bmkris001@gmail.com 5
अथथ : मैं सभी प्रकार के भय तथा रोगोुं का नाश करने िाली उन भगिती शीतला की िन्दना करता
हाँ , वजनकी शरण में जाने से विस्फोटक अथाथ त चेचक का बड़े से बड़ा भय दू र हो जाता है .
शीतले शीतले चे वत यो ब्रूयाद्याहपीवडत:।
अथथ : चेचक की जलन से पीवड़त जो व्यक्ति “शीतले-शीतले” - ऎसा उच्चारण करता है , उसका
भयुंकर विस्फोटक रोग जवनत भय शीघ्र ही नष्ट हो जाता है .
यस्त्वामुदकमध्ये तु धृत्वा पू र्यते नर:।
अथथ : जो मनुष्य आपकी प्रवतमा को हाथ में लेकर जल के मध्य क्तस्थत हो आपकी पूजा करता है ,
उसके घर में विस्फोटक, चेचक, रोग का भीषण भय नहीुं उत्पन्न होता है .
शीतले ज्वरदग्धस्य पू वतगन्धयु तस्य च।
अथथ : हे शीतले! ज्वर से सुंतप्त, मिाद की दु गथन्ध से युि तथा विनष्ट नेत्र ज्योवत िाले मनुष्य के वलए
आपको ही जीिनरूपी औषवध कहा गया है .
शीतले तनुर्ान् रोगान्नृणां हसरर दु स्त्यर्ान्।
विस्फोटककविदीणाथ नां त्वमे कामृतिवषथणी।।6।।
अथथ : हे शीतले! मनुष्योुं के शरीर में होने िाले तथा अत्यन्त कवठनाई से दू र वकये जाने िाले रोगोुं
को आप हर लेती हैं , एकमात्र आप ही विस्फोटक - रोग से विदीणथ मनुष्योुं के वलये अमृत की िषाथ
करने िाली हैं .
गलगण्डग्रहा रोगा ये चान्ये दारुणा नृणाम् ।
त्वदनुध्यानमात्रे ण शीतले यान्ति संियम् ।।7।।
अथथ : हे शीतले! मनुष्योुं के गलगण्ड ग्रह आवद तथा और भी अन्य प्रकार के जो भीषण रोग हैं , िे
आपके ध्यान मात्र से नष्ट हो जाते हैं .
न मन्त्रो नौषधं तस्य पापरोगस्य विद्यते।
त्वामेकां शीतले धात्री ं नान्यां पश्यावम दे िताम्।।8।।
अथथ : हे दे वि! जो प्राणी मृणाल - तन्तु के समान कोमल स्वभाि िाली और नावभ तथा हृदय के मध्य
विराजमान रहने िाली आप भगिती का ध्यान करता है , उसकी मृत्यु नहीुं होती.
अष्टकं शीतलादे व्या यो नर: प्रपठे त्सदा।
bmkris001@gmail.com 6
विस्फोटकभयं घोरं गृहे तस्य न र्ायते।।10।।
अथथ : जो मनुष्य भगिती शीतला के इस अष्टक का वनत्य पाठ करता है , उसके घर में विस्फोटक
का घोर भय नहीुं रहता.
श्रोतव्यं पवठतव्यं च श्रद्धाभन्तिसमन्तन्रतै:।
अथथ : मनुष्योुं को विघ्न-बाधाओुं के विनाश के वलये श्रिा तथा भक्ति से युि होकर इस परम
कल्याणकारी स्तोत्र का पाठ करना चावहए अथिा श्रिण (सुनना) करना चावहए.
शीतले त्वं र्गन्माता शीतले त्वं र्गन्तिता।
शीतले त्वं र्गद्धात्री शीतलायै नमो नम:।।12।।
अथथ : हे शीतले! आप जगत की माता हैं , हे शीतले! आप जगत के वपता हैं , हे शीतले! आप जगत का
पालन करने िाली हैं , आप शीतला को बार-बार नमस्कार हैं .
रासभो गदथ भश्चैि खरो िै शाखनन्दन:।
13 ि 14 का अथथ : जो व्यक्ति रासभ, गदथ भ, खर, िैशाखनन्दन, शीतला िाहन, दू िाथ कन्द -
वनकृन्तन - भगिती शीतला के िाहन के इन नामोुं का उनके समक्ष पाठ करता है , उसके घर में
शीतला रोग नहीुं होता है .
शीतलाष्टकमे िेदं न दे यं यस्य कस्यवचत्।
दातव्यं च सदा तस्मै श्रद्धाभन्तियुताय िै ।।15।।
अथथ : इस शीतलाष्टक स्तोत्र को वजस वकसी अनवधकारी को नहीुं दे ना चावहए अवपतु भक्ति तथा
श्रिा से सम्पन्न व्यक्ति को ही सदा यह स्तोत्र प्रदान करना चावहए.
।।इवत श्रीस्कन्दमहापुराणे शीतलाष्टकं सम्पूणथम्।।
bmkris001@gmail.com 7
मानस-पूर्नः
ॐ लुं पृथ्वी-तत्त्वात्मकुं गन्धुं श्री शीतला-दे िी-प्रीतये समपथयावम नमुः॰
ॐ हुं आकाश-तत्त्वात्मकुं पुष्पुं श्री शीतला-दे िी-प्रीतये समपथयावम नमुः॰
ॐ युं िायु-तत्त्वात्मकुं धूपुं श्री शीतला-दे िी-प्रीतये समपथयावम नमुः॰
ॐ रुं अवि-तत्त्वात्मकुं दीपुं श्री शीतला-दे िी-प्रीतये समपथयावम नमुः॰
ॐ िुं जल-तत्त्वात्मकुं नैिेद्युं श्री शीतला-दे िी-प्रीतये समपथयावम नमुः॰
ॐ सुं सिथ-तत्त्वात्मकुं ताम्बूलुं श्री शीतला-दे िी-प्रीतये समपथयावम नमुः॰
मंत्र :
ॐ ह्ी ं श्री ं शीतलायै नमः [११ बार]
श्री शीतलाष्टक मूल-स्तोत्र
॥ ईश्वर उिाच ॥
िन्दे ऽहुं शीतलाुं -दे िीुं, रासभस्थाुं वदगम्बराम् ॰
माजथनी-कलशोपेताुं , शूपाथ लङ्कृत-मस्तकाम् ॱ1ॱ
bmkris001@gmail.com 8
॥ फल-श्रुवत ॥
मृणाल-तन्तु-सदृशीुं, नावभ-हृन्मध्य-सुंक्तस्थताम् ॰
यस्त्ऱाुं वचन्तयते दे वि ! तस्य मृत्युनथ जायते ॱ9ॱ
शीतलाष्टमी के उपाय
शीतलाष्टमी पर करें ये उपाय, दू र होंगे सारे संकट, वमलेगी तरक्की
आपको बता दें वक चैत्र कृष्ण पक्ष की अष्टमी वतवथ को श्री शीतलाष्टमी के नाम से जानते हैं ॰ इस
वदन माता शीतला जी की पूजा की जाती है ॰ शीतलाष्टमी पर दे िी माुं की विवध विधान पूिथक पूजा
करके उन्हें बासी भोजन का भोग लगाया जाता है ॰ इसके साथ ही खुद भी प्रसाद के रूप में बासी
भोजन का सेिन वकया जाता है ॰ आपको बता दें वक शीतला माता स्वच्छता की दे िी हैं ॰ माता
रानी हम सभी को पयाथ िरण को साफ सुथरा रखने की प्रेरणा दे तीुं हैं ॰ ऐसी मान्यता है वक
शीतलाष्टमी के वदन बासी भोजन का सेिन करने से व्यक्ति सेहतमुंद बना रहता है और वकसी भी
प्रकार की बीमारी या परे शानी नही ुं होती है ॰
ज्योवतष शास्त्र के अनुसार अगर व्यक्ति को जीिन में परे शावनयोुं का सामना करना पड़ रहा है तो
ऐसी क्तस्थवत में शीतलाष्टमी पर कुछ उपाय वकए जा सकते हैं ॰ इन उपायोुं को करने से घर में
सुख-समृक्ति में बढ़ोतरी होती है , नौकरी में तरक्की वमलती है , हर काम में लाभ और कामयाबी
bmkris001@gmail.com 9
प्राप्त होती॰ अगर शीतलाष्टमी पर कुछ सरल से उपाय वकए जाएुं तो इससे जीिन की बहुत सी
परे शावनयाुं दू र हो सकती हैं ॰ तो चवलए जानते हैं शीतलाष्टमी पर कौन से उपाय करने चावहए॰
शीतला अष्टमी पर आप भगिती शीतला की िुंदना करें और उनके मुंत्र “िन्दे ऽहुं शीतलाुं
दे िीुं रासभस्थाुं वदगम्बराम्॰॰, माजथनी कलशोपेताुं सूपथ अलुंकृत मस्तकाम्॰॰” का 11 बार
जाप कीवजए॰ ऐसा करने से दे िी भगिती की कृपा दृवष्ट आपके ऊपर हमेशा बनी रहे गी
और उनकी कृपा से जीिन में सफलता हावसल करें गे॰
शीतलाष्टमी पर स्नान आवद के पश्चात शीतला माुं का ध्यान करते हुए घर पर एक आसन
वबछाकर बैठ जाएुं और दे िी माुं के 9 अक्षरोुं के मुंत्र “ऊाँ ह्ी ुं श्रीुं शीतलायै नमुः॰” का जाप
108 बार कीवजए॰ इस उपाय को करने से घर में सुख-समृक्ति बढ़ती है ॰
अक्सर दे खा गया है वक व्यक्ति के मन में वकसी ना वकसी बात को लेकर बेचैनी बनी रहती
है ॰ व्यक्ति काफी परे शान रहता है ॰ अगर आप अपने मन को शाुं त करना चाहते हैं तो
इसके वलए एक छोटा सा चाुं दी का टु कड़ा लीवजये और माता शीतला के मुंवदर में जाकर
दे िी माुं को भेंट कर दीवजए॰ अगर उस चाुं द के टु कड़े पर माता का वचत्र बना है तो यह
बहुत ही अच्छा माना जाता है ॰
शीतला अष्टमी पर आप स्नान आवद करने के पश्चात दू ध-चािल की खीर बनाएुं और उसे
दे िी माुं को भोग लगाएुं ॰ भोग लगाने के पश्चात बाकी खीर को प्रसाद के रूप में बच्चोुं को
बाुं ट दीवजए और थोड़ा सा प्रसाद स्वयुं भी ग्रहण कीवजए॰ इस उपाय को करने से आपको
हर काम में लाभ वमलता है और आपको कामयाबी हावसल होती है ॰
आप शीतला माता के आगे घी का एक दीपक जलाएुं और उनकी आरती का एक पाठ
करें ॰ इस उपाय को करने से वदन दु गनी रात चौगुनी तरक्की वमलती है ॰
शीतला अष्टमी पर स्नान आवद करने के पश्चात शीतला चालीसा का पाठ करें और पाठ
करने के पश्चात दे िी माुं को फूल अवपथत कीवजए॰ ऐसी मान्यता है वक शीतला चालीसा का
केिल एक बार पाठ करने मात्र से ही नौकरी में जो भी परे शानी उत्पन्न हो रही है , िह दू र
हो जाती है ॰
bmkris001@gmail.com 10