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Guru Gobind Essay
Guru Gobind Essay
रहा है। दुनिया के इतिहास में सिख गुरुओं की कु र्बानी का कोई सानी नहीं
है। साहस, त्याग और बलिदान का सबसे बड़ा उदाहरण कायम करते हुए एक
पिता ने अपने धर्म और मातृभूमि की रक्षा के लिए अपने दो अनमोल पुत्र
रत्नों को हँसते-हँसते दीवार में चुनवा दिया ! ऐसे वीर महापुरुष का नाम था,
श्री गुरु गोविन्द सिंह जी ! सिख समुदाय के दसवें धर्म-गुरु (सतगुरु) गोविंद
सिंह जी का जन्म पौष शुदि सप्तमी संवत 1723 (22 दिसंबर, 1666) को
हुआ था । उनका जन्म बिहार के पटना शहर में हुआ था।
सरसा नदी पर बिछु ड़े माता गुजरीजी एवं छोटे साहिबजादे जोरावर सिंह जी 7
वर्ष एवं साहिबजादा फतेह सिंह जी 5 वर्ष की आयु में गिरफ्तार कर लिए गए।
उन्हें सरहंद के नवाब वजीर खाँ के सामने पेश कर माताजी के साथ ठंडे
बुर्ज में कै द कर दिया गया और फिर कई दिन तक नवाब और काजी उन्हें
दरबार में बुलाकर धर्म परिवर्तन के लिए कई प्रकार के लालच एवं धमकियाँ
देते रहे। दोनों साहिबजादे गरज कर जवाब देते, ' हम अकाल पुर्ख (परमात्मा)
और अपने गुरु पिताजी के आगे ही सिर झुकाते हैं, किसी ओर को सलाम
नहीं करते। हमारी लड़ाई अन्याय, अधर्म एवं जुल्म के खिलाफ है। हम तुम्हारे
इस जुल्म के खिलाफ प्राण दे देंगे लेकिन झुकें गे नहीं। उन्होंने जवाब दिया था
धरम न तजहें कभी तुर्क न बने हैं।शीश निज देहे जैसे बड़ों ने दिये हैं।।अत:
वजीर खाँ ने उन्हें जिंदा दीवारों में चिनवा दिया। साहिबजादों की शहीदी के
पश्चात बड़े धैर्य के साथ ईश्वर का शुक्रिया अदा करते हुए माता गुजरीजी ने
अरदास की एवं अपने प्राण त्याग दिए। तारीख 26 दिसंबर, पौष के माह में
संवत् 1761 को गुरुजी के प्रेमी सिखों द्वारा माता गुजरीजी तथा दोनों छोटे
साहिबजादों का सत्कारसहित अंतिम संस्कार कर दिया गया।छोटे भाई फतेह
सिंघ ने गुरूवाणी की पँक्ति कहकर दो वर्ष बड़े भाई को साँत्वना दी थी चिंता
ताकि कीजिए, जो अनहोनी होइ ।इह मारगि सँसार में, नानक थिर नहि कोइ ।
जब गुरु गोविंद सिंह जी को यह खबर मिली तब आप के मुख से यह
निकला :इन पुत्रन के शीश पर ,वार दिये सुत चार चार मुए तो क्या भया
,जीवत कई हजार।
भारत सदैव उनका ऋणि रहेगा।यह बहादुर कौम देश की सुरक्षा में हमेशा आगे
रही। पूरे भारत की आबादी का के वल 2% होने के बावजूद भी देश की सेना
में 10% योगदान इन्हीं का है।मुगलों के जमाने से लेकर स्वतंत्रता संग्राम, विश्व
युद्धों से लेकर चीन और भारत-पाकिस्तान युद्धों में सिखों की बहादुरी को
आज भी हम नहीं भूले हैं। धर्मनिरपेक्षता का सबसे बड़ा उदहारण भी गुरु
नानक देव के विचारों में है। उन्होंने बिना किसी भय के ‘एकं सत्’ के वैदिक
परंपरा को आगे बढ़ाते हुए कहा कि न कोई हिंदू है, न मुसलमान,‘‘अव्वल
अल्लाह नूर उपाया कु दरत के सब बंदे, एक नूर से सब जग उपजिया कौन
भले कौन मंदे।’