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चार साहिबज़ादे
चार साहिबज़ादे
चार साहिबज़ादे शब्द का प्रयोग सिखों के दशम गुरु श्री गुरु गोबिन्द सिंह जी के चार सुपुत्रों - साहिबज़ादा अजीत सिंह,
जुझार सिंह, ज़ोरावर सिंह, व फतेह सिंह को सामूहिक रूप से संबोधित करने हेतु किया जाता है।
छोटे साहिबजादे
“निक्कियां जिंदां, वड्डा साका”.... गुरु गोबिंद
सिंह जी के छोटे साहिबजादों की शहादत को जब भी याद किया जाता है तो
सिख संगत के मुख से यह लफ्ज़ ही बयां होते हैं।
जुदाई
सरसा नदी पर जब गुरु गोबिंद सिंह जी परिवार जुदा हो रहे थे, तो एक ओर जहां बड़े साहिबजादे गुरु जी के साथ चले
गए, वहीं दूसरी ओर छोटे साहिबजादे जोरावर सिंह और फतेह सिंह, माता गुजरी जी के साथ रह गए थे। उनके साथ ना
कोई सैनिक था और ना ही कोई उम्मीद थी जिसके सहारे वे परिवार से वापस मिल सकते।
गंगू नौकर
अचानक रास्ते में उन्हें गंगू मिल गया, जो किसी समय पर गुरु महल की सेवा करता था। गंगू ने उन्हें यह आश्वासन
दिलाया कि वह उन्हें उनके परिवार से मिलाएगा और तब तक के लिए वे लोग उसके घर में रुक जाएं।
वे ना डरे
दोनों ने सिर ऊं चा करके जवाब दिया कि ‘हम अकाल पुरख और अपने गुरु पिता के अलावा किसी के भी सामने सिर नहीं
झुकाते। ऐसा करके हम अपने दादा की कु र्बानी को बर्बाद नहीं होने देंगे, यदि हमने किसी के सामने सिर झुकाया तो हम
अपने दादा को क्या जवाब देंगे जिन्होंने धर्म के नाम पर सिर कलम करवाना सही समझा, लेकिन झुकना नहीं’।
शहादत का फै सला
आखिर में दोनों साहिबजादों को जिंदा दीवारों में चुनवाने का ऐलान किया गया। कहते हैं दोनों साहिबजादों को जब दीवार
में चुनना आरंभ किया गया तब उन्होंने ‘जपुजी साहिब’ का पाठ करना शुरू कर दिया और दीवार पूरी होने के बाद अंदर
से जयकारा लगाने की आवाज़ भी आई।
मुगलों का कहर
ऐसा कहा जाता है कि वजीर खां के कहने पर दीवार को कु छ समय के बाद तोड़ा गया, यह देखने के लिए कि साहिबजादे
अभी जिंदा हैं या नहीं। तब दोनों साहिबजादों के कु छ श्वास अभी बाकी थे, लेकिन मुगल मुलाजिमों का कहर अभी भी
जिंदा था। उन्होंने दोनों साहिबजादों को जबर्दस्ती मौत के गले लगा दिया।
रणभूमि में गए
उन्होंने स्वयं अपने हाथों से अजीत सिंह को युद्ध लड़ने के लिए तैयार किया, अपने हाथों से उन्हें शस्त्र दिए थमाए और
पांच सिखों के साथ उन्हें किले से बाहर रवाना किया। कहते हैं रणभूमि में जाते ही अजीत सिंह ने मुगल फौज को थर- थर
कांपने पर मजबूर कर दिया। अजीत सिंह कु छ यूं युद्ध कर रहे थे मानो कोई बुराई पर कहर बरसा रहा हो।
टूट गई तलवार
लेकिन तभी अजीत सिंह ने म्यान से तलवार निकाली और बहादुरी से मुगल फौज का सामना करना आरंभ कर दिया।
कहते हैं तलवार बाजी में पूरी सिख फौज में भी अजीत सिंह को कोई चुनौती नहीं दे सकता था तो फिर ये मुगल फौज
उन्हें कै से रोक सकती थी। अजीत सिंह ने एक- एक करके मुगल सैनिकों का संहार किया, लेकिन तभी लड़ते- लड़ते उनकी
तलवार भी टूट गई।
इनके नाम पर पंजाब के मोहाली शहर का नामकरण साहिबज़ादा अजीत सिंह नगर किया गया।
सन्दर्भ
"https://hi.wikipedia.org/w/index.php?
title=चार_ साहिबज़ादे &oldid=5716822" से प्राप्त
अंतिम बार 5 दिन पहले रोहित साव 27 द्वारा संपादित किया गया