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तवायफों से सीखे हुए संगीत ने दिलाई मौजुद्दीन खां को शोहरत गाँव कनेक्शन   13

Sep 2019 यतींद्र की डायरी के इस नए एपिसोड में यतींद्र मिश्र सन


ु ा रहे हैं बनारस
से जुड़ी एक कहानी। बनारस का अर्थ है संगीत और मौसिकी की महफ़िल, साथ ही
यहां की तमाम सारी परम्पराएं जिसमें ठुमरी, टप्पा, दादरा, कजरी शामिल हैं। ये
कहानी उस्ताद मौजुद्दीन खां साहब से जुड़ी हुई है । बीसवीं शताब्दी की शुरुआत में
मौजद्द
ु ीन खां के पिता गल
ु ाम अली खां साहब बनारस आए और अपने साथ दो छोटे
बेटों उस्ताद मौजुद्दीन खां और उस्ताद रे हमुद्दीन खां साहब को लेकर आए। इस
समय राजा प्रभन
ु ारायण सिंह हुआ करते थे। उनके दरबार में दो बड़े कलाकार
सितारवादक आशिक़ अली खां साहब और जियां खां साहब मौजूद थे। आशिक़ अली
खां साहब से मौजद्द
ु ीन खां साहब के पिता की अच्छी दोस्ती थी और उनकी सिफारिश
पर प्रभन
ु ारायण सिंह के दरबार में गुलाम हुसैन खां साहब को अपना हुनर दिखाने
का मौका मिला। ज़ाहिर सी बात है गुलाम हुसैन खां साहब बहुत बड़े सितारवादक थे
और गायक भी। गल
ु ाम ने अपनी कला से आखिर में प्रभुनारायण सिंह का दिल जीत
ही लिया। इस तरह मौजद्द
ु ीन खां और अपने छोटे बेटे को लेकर गल
ु ाम हुसैन खां
बनारस में बस गए। यहां बच्चों की संगीत की तालीम होने लगी। ये भी पढ़ें : शकील
बदायूंनी से बेग़म अख़्तर की एक छोटी सी मल
ु ाकात का किस्सा आगे कुछ साल
बीतने पर जब मौजुद्दीन खां साहब 15 वर्ष के थे, उनका एक दोस्त बना जो बाई जी
के कोठे पर काम करता था। उनका दोस्त जब भी कोठे पर जाता तो वहां बाई जी को
बताता कि मौजद्द
ु ीन कितना अच्छा गाते-बजाते हैं। एक दिन आखिरकार बाई जी भी
सोच में पड़ गईं की आखिरकार वो कौन है जो इतना अच्छा गाता है । एक दिन
मौजुद्दीन के उस दोस्त ने उनसे कहा की बाई जी तुम्हारा गाना सुनना चाहती हैं।
मौजुद्दीन खां को तो बस एक मौका चाहिए था अपना हुनर दिखाने का और वो पहुंच
गए सुग्गन बाई की कोठे पर। कोठे पर्व पहुंचकर जब मौजुद्दीन साहब ने अपना गाना
सन
ु ाया, सग्ु गन बाई बहुत खश
ु हुईं। इस तरह शरू
ु हुई मौजद्द
ु ीन साहब की मैना और
सुग्गन बाई की कोठे पर दबे कूचे ढं ग से संगीत की तालीम। अब होता ये था कि एक
तरफ आशिक़ अली खां, अपने पिता से संगीत सीखने वाला व्यक्ति और अपनी
परं परा में संगीत जानने वाला व्यक्ति सुग्गन बाई के कोठे पर तमाम सारी मेढ़ और
खटके ये सब सीखने लगा। दे खते-दे खते दाल मंडी में रहने वाली तमाम तरह की
तवायफों के चहे ते हो गए मौजुद्दीन साहब। हर तवायफ मौजुद्दीन को उनके नाम से
पुकारती थी। मौजुद्दीन सभी के कोठी पर जाते और संगीत सीखते थे। मौजुद्दीन खां
साहब को सारी तवायफों की सोहबत बहुत रास आई। धीरे -धीरे ये बात हर जगह
फैलने लगी कि मौजद्द
ु ीन तवायफों से सीखे हुए संगीत को उनसे भी बेहतर ढं ग से
गाते हैं। अपने सीखे हुए ज्ञान के बल पर एक दिन ऐसा भी आया जब मौजुद्दीन
साहब संगीत में बाइयों को कहीं दरू पीछे छोड़ आए और पूरे बनारस में मौजुद्दीन की
वाहवाही होने लगी। ये भी पढ़ें : जब कोठे पर होने लगी उस्ताद मौज़ूद्दीन की संगीत
की तालीम आगे जब बाइयों को लगा की मौजद्द
ु ीन संगीत में उनसे कहीं आगे निकल
गए तो उन्होंने अपने ज्ञान को मौजद्द
ु ीन से छिपाने का सोचा। एक दिन ऐसा भी
आया जब मौजुद्दीन साहब शिखर पर पहुंच गए तब उनकी चाहने वाली सारी बाइयों
ने उनसे किनारा कर लिया। इतिहासकारों के मुताबिक एक सुग्गन बाई ही थीं
जिन्होंने मौजद्द
ु ीन से अंत तक किनारा नहीं किया। #Yatindra Ki Diary #Ustaad
Moujuddin Khan #History  Next Story शकील बदायन
ंू ी से बेग़म अख़्तर की
एक छोटी सी मल
ु ाकात का किस्सा 'यतीन्द्र की डायरी' गांव कनेक्शन का साप्ताहिक
शो है , जिसमें हिंदी के कवि, संपादक और संगीत के जानकार यतीन्द्र मिश्र संगीत से
जुड़े क़िस्से बताते हैं। इस बार के एपिसोड़ में यतीन्द्र ने बेग़म अख़्तर और शकील
बदायूं से जुड़ा एक दिलचस्प क़िस्सा सुनाया। गाँव कनेक्शन   19 July 2019 ये
किस्सा है मशहूर गायिका बेग़म अख्तर और शकील शकील बदायंन
ू ी की दोस्ती का।
ये किस्सा शकील बदायन
ूं ी द्वारा लिखी 'ऐ मोहब्बत तेरे अंजाम पर रोना आया' को
लेकर है । हुआ यूं था की बेग़म साहिबा अपने एक मशहूर कंसर्ट के लिए बॉम्बे गईं थीं
और उनके साथ उनकी शिष्या शांति हीरानंद भी उनके साथ थी जिन्हें वो प्यार से
बिट्टन कहती थीं ये जानना जरूरी है कि उनकी दो महत्वपर्ण
ू गंडाबंद शिष्याएं हुईं
अंजली बनर्जी और शांति हीरानंद। शांति के साथ वो पुरे दे श में घूमती थीं। शांति
हीरानन्द बताती हैं, "उस दौर में साठ के दशक में तमाम सारे नए नए रे डियो खुल रहे
थे और हर जगह इनॉगरल कंसर्ट के लिए अक्सर बेग़म अख़्तर को बल
ु ाया जाता था
तो इसी तरह की एक वाक्या से सम्बंधित एक कंसर्ट करने के लिए वो बम्बई गईं
और बंबई से जब वो चलने लगीं बॉम्बे स्टे शन पर उनसे मिलने शक़ील साहब आये
शकील साहब ने बाहर कुशल क्षेम पूछा और एक कागज़ मोड़ कर के बेग़म साहिबा
को खिड़की के माध्यम से दिया उन्होंने कहा आपके लिए गज़ल कही है इसे आराम
से पढ़िएगा और वहीं जब तक उन लोगों में और कुछ बातें होती ट्रे न आगे बढ़ गयी।"
ये भी पढ़ें : आख़िर क्यों ग़ज़ल गायिका बेग़म अख़्तर ने लौटाई थी अयोध्या के राजा
को इनाम की ज़मीन? बेग़म अख्तर साहिबा ने जिगर मुरादाबादी, शक़ील बदायूं,
कैफ़ी आज़मी, दाग़, मोमिन और ग़ालिब तक को गाकर के अपने संगीत से समद्ध

बनाया बेग़म साहिबा एक तरफ जहां पर्वी
ू ठुमरी, चैती, दादरा और तमाम तरह की
उप-शास्त्रीय गायन में पारं गत थीं। गज़ल में बेगम साहिबा के लिए कहा जाता है की
उन्होंने हमेशा अल्फाज़ को संगीत को और उसके पूरे प्रदर्शन को शायरी के तलफ़्फ़ुज़
को बहुत खूबसूरती से पिरो कर के सामान्य जन के लिए आसान बनाया। उनका
नाम बहुत एहतराम से आज भी लिया जाता है । शांति हीरानन्द आगे बताती हैं,
"जैसा की उस ज़माने में भी चौबीस घंटे लगते थे बंबई से लखनऊ आने में रात में
बेगम साहिबा को नींद आ गयी वो सो गयीं सब
ु ह बहुत तड़के भोर में चाय पीते हुए
अचानक बेगम साहिबा बोलीं "बिट्टन ज़रा निकालो तो वो कागज़ वो कहां रख दिया
तुमने जो कल रात मैंने तुम्हे दिया था दे खें शकील साहब ने क्या लिखा है ।" उन्होंने
गज़ल पढ़ी और मुझे थमाते हुए जल्दी से अपना हारमोनियम निकाल मुझसे गज़ल
के बोल पढ़ने को बोला और ख़द
ु धन
ु दे ती गयीं। शकील बदायंू की हस्तलिखित
गज़ल जो बाद में चलकर बहुत मशहूर हुई लेकिन इसको अमर गज़ल बेगम साहिबा
ने बनाया। #Yatindra Ki Diary #Begum Akhtar  More Stories शकील
बदायूंनी से बेग़म अख़्तर की एक छोटी सी मल
ु ाकात का किस्सा 19 July 2019
जब कोठे पर होने लगी उस्ताद मौज़द्द
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सन
ु कर शहनाई के जादग
ू र उस्ताद बिस्मिल्लाह ख़ान हुए... 13 May 2019 जब बड़े
गल
ु ाम अली खां साहब भल
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