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Super 30 Anand
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क
संघष-गाथा
(हजार सपने, एक आनंद)
आनंद कुमार
इस पु तक का पूरा लाभांश
सुपर 30 के व तार के लए उपयोग कया
जाएगा
लेखक य
प टना, ( बहार) म 30 मई, 2008 क सुबह ब त साफ और चमक ली थी। बरतन क
आवाज आ रही थ और ब को ब तर से उठकर कूल यूनीफाम पहनने के लए राजी
कया जा रहा था। अभी सुबह ई ही थी, ले कन चाँदपुर बेला क ब ती म हलचल शु हो
गई थी। लोग ब ती के एक घर क ओर खचे जा रहे थे, शां त कुट र उस घर के बाहर एक
भीड़ इक ा थी और य द आप और आगे जाकर दे खते तो आपको कमीज पहने एक युवा
सा तीत होने वाला दखाई दे जाता, जो इस पूरी हलचल का क लग रहा था।
आनंद कुमार कई लोग से एक साथ बात करने का यास कर रहे थे, उनके के
उ र दे रहे थे, उनक शुभकामनाएँ वीकार कर रहे थे, और अपनी चता तथा बेचैनी
छु पाने क पूरी को शश कर रहे थे। उ ह ने पछले साल 30 छा को आई.आई.ट . जे.ई.ई.
क वेश परी ा के लए को चग द थी और आज प रणाम का दन था। यह रज ट का
समय था, सभी 30 छा ने रात आनंद कुमार के घर पर बताई थी और बेचैनी के कारण
कसी को न द नह आई थी। आनंद साल-दर-साल इन पल को जीते आ रहे थे, फर भी
उनक उ सुकता तब तक शांत नह होती, जब तक वे येक छा का प रणाम दे ख नह
लेते। 6 बजे तक सबने सोए होने का ढ ग करना छोड़ दया और तैयार होने लगे। आनंद
क माँ जयंती दे वी ने चाय बनाई और कुछ ही दे र म कुमार प रवार के साधारण से घर म
आनेवाले लोग क गहमागहमी शु हो गई।
सुबह के 6.30-7.00 बजते-बजते प कार भी आने लगे। आनंद ने पहले आए कुछ
प कार को समझाने का यास कया क रज ट 9 बजे के पहले नह आनेवाले, ले कन
ज द ही उ ह ने यह यास करना छोड़ दया, जब उ ह ने दे खा क वे प रणाम घो षत होने
के पहले वाले मूड को भी कैद करना चाहते ह।
2008 तक सुपर 30 एक जाना-सुना नाम बन चुका था। ‘पीपुल’ प का ने आनंद कुमार
को एक नायक का दजा दे दया था और ‘ यूजवीक’ प का ने उनक अनूठ पहल ‘सुपर
30’ को व के चार सबसे इनोवे टव कूल म से एक घो षत कया था। अपे ाएँ आकाश
छू रही थ , य क पछले वष 2007 म उनके 28 छा ने त त आई.आई.ट . जे.ई.ई.
क वेश परी ा म सफलता ा त क थी। आनंद प कार के फोन लेते रहते थे, जो
पछले कुछ वष म सुपर 30 क स फैलने के साथ उनके काफ करीब आ गए थे।
आशा करता ँ क प रणाम नराश नह करगे, घड़ी क सुई के नौ के नकट आते-आते
आनंद क उ सुकता और भी बढ़ जाती है। ले कन बाहर से दे खने पर वे शांत और आ त
नजर आते ह—छा को आ त करते ए, मी डया को स मो हत करते ए!
पौने नौ के करीब आनंद रोल नंबर क एक सूची हाथ म लेकर कं यूटर न के सामने
बैठ गए। छा उनके पास आकर खड़े हो गए और अ धक-से-अ धक लोग उस तंग कमरे
म समाने क को शश करने लगे। 9 बजकर एक मनट पर राकेश कुमार के चयन क
सूचना मल गई! खुशी क एक जयकार ई और राकेश कुमार क पीठ थपथपाई जाने
लगी। एक प कार चुपके से उसे बाहर ले जाने क को शश करने लगा, ता क उसका
इंटर ू ले सके। आनंद कुमार के पास अभी भी 29 नाम थे, जनके प रणाम उ ह जानने थे
उ ह ने अगला रोल नंबर डाला तो सब साँस रोककर इंतजार करने लगे, ले कन कुछ नह
आ, सवर जाम हो गया था। लाख उ मीदवार एक साथ अपने कोर जानने का यास
कर रहे थे। कुछ मनट बाद जय राम क सफलता सामने आई! और अब अठारह म से
अठारह का कोर हो चुका था, आनंद पसीने से नहा गए थे, ले कन उनके ह ठ पर ह क
सी मुसकान थी। वे एक के बाद एक प रणाम दे खते रहे, कभी-कभी प रणाम अचानक
सामने आ जाता और जोरदार ता लयाँ शु हो जात , और कभी-कभी कसी पेज पर एरर
आ जाता। लगभग डेढ़ घंटे बाद कं यूटर के सामने सहाय आनंद और रंजन कुमार बचे थे।
चता मत क रए, सब अ ा होगा, आनंद ने रंजन से कहा, जसका चेहरा सफेद हो गया
था। वह उ ीण हो चुका था, वह आनंद से लपटकर हँसने लगा, फर रोने लगा, और फर
जीत क खुशी म च लाने लगा।
आनंद को कंध पर उठा लया गया, उनके मुँह म ल डाले जाने लगे, लैश ब ब
चमकने लगे, अगली सुबह के अखबार क सु खयाँ लखी जाने लग , और ‘आनंद सर
जदाबाद’ के नारे गूँजने लगे। द पू कुमार के पता इस मौके पर उनके साथ रहने के लए
सुपौल से आए थे, वे इतने भाव वभोर हो गए थे क एक कोने म अकेले खड़े होकर रोने
लगे। आनंद सहाय क माँ जयंती दे वी के साथ बैठकर पू रयाँ और जले बयाँ बना रही थ ।
प कार अ धक-से-अ धक छा से बात करने का यास कर रहे थे। यह सब सच था,
आनंद व ास नह कर पा रहे थे। अपने छा के चमकते, उ ल सत चेहर को दे खकर
उ ह इतनी खुशी महसूस हो रही थी क उसके अ तरेक से उनक आँख म आँसू आ गए।
इ तहास रचा जा चुका था; सुपर 30 ने शत तशत प रणाम हा सल कया था।
1
एक हीरो का वागत
30 सतंबर , 2014 एम.आई.ट . मी डया लैब
आनंद कुमार साधारण सी कमीज और घसी ई पतलून म मंच पर खड़े थे। वे बेचैन,
ले कन आ म व ास से भरपूर थे। उनके ह ठ पर एक ह क सी मुसकान खेल रही थी।
एक ऐसी मुसकान, जसम व मय और अ व ास झलक रहा था। वे अवा त वकता क
एक अजीब सी भावना महसूस कर रहे थे। वे अपनी क पना म सबसे स मा नत और
ग रमापूण लोग के समूह के सामने खड़े थे—बो टन के मैसाचुसेट्स इं ट ूट ऑफ
टे नोलॉजी (एम.आई.ट .) के छा और ोफेसर के सामने और अपने अनूठे कूल सुपर
30 के वषय म एक ा यान दे ने क तैयारी कर रहे थे। इस नया के तरीके भी अजीब
ह। आनंद सोच रहे थे, कुछ ही समय पहले म अपनी साइ कल पर आस-पड़ोस क ग लय
के च कर लगाते ए पापड़ बेच रहा था और क ज म पढ़ने के अपने टू टे ए सपने को
भूलने क को शश कर रहा था—और आज म यहाँ खड़ा ँ।
उ ह ने अपना सर हलाया और बोलना शु कया, ‘‘मुझे यह मंच और आप सबके
सामने बोलने का अवसर दे ने के लए ध यवाद। मेरे लए व ास करना मु कल है क मुझे
नया के शीष सं ान म से एक म बोलने के लए आमं त कया गया है। इस सं ान
एम.आई.ट . म उ श ा ा त करना कई लोग का सपना है, और आज मुझे यहाँ आने
का अवसर मला है।
‘‘म बहार से आया ,ँ भारत का वह रा य, जो नालंदा और व म शला व व ालय
जैसे सं ान के साथ श ा के े म अपनी गौरवशाली परंपरा के लए जाना जाता
था। आज नया म ब त से लोग बहार के बारे म यह जानते ह क धीरे-धीरे बहार का
पतन हो गया और बहार क लगभग 40 तशत जनसं या लख-पढ़ नह सकती, ले कन
अब धीरे-धीरे बहार का चेहरा बदलने लगा है।
‘‘म यहाँ आपको कुछ नया बताने नह आया ँ। म सफ इतना कहना चाहता ँ क श ा
अभी भी नया क अ धकांश सम या से नपटने का सबसे श शाली ह थयार है,
य क अ धकांश सम या क उ प गरीबी और अ ानता से होती है। सुपर 30 इसका
उ मूलन करने क दशा म एक कदम है और म उ मीद के साथ शु आत कर रहा ँ; इस
उ मीद के साथ क तूफान चाहे कतना भी वनाशक हो, एक चतुर ना वक के धैय और
मागदशन के सहारे जहाज उसम से सुर त बाहर आ सकता है।
‘‘इस लड़के क क पना क जए। संतोष, बहार क राजधानी पटना से 40 कलोमीटर र
एक गाँव के एक अ य धक गरीब प रवार का लड़का। वो राजमाग के पास अपने माता-
पता के साथ रहता था और उसके प रवार का गुजारा स जयाँ बेचकर होता था। संतोष
एक ब त ही मामूली सरकारी कूल म जाता था और शाम को वह स जी के ठे ले पर अपने
पता क मदद करता था।
‘‘संतोष श ा क ताकत को समझता था और उसके माता- पता भी श ा के मह व को
समझते थे। उसने दसव तक क पढ़ाई पूरी कर ली; ले कन वह नह जानता था क आगे
या करना है। वह ग णत म अ ा था, इस लए आसपास के सभी लोग ने उसे
आई.आई.ट . क तैयारी करने क सलाह द और उसने पटना जाने का फैसला कर लया।
फर उसे एहसास आ क पटना म को चग लेना ब त महँगा था और वह कसी भी सूरत
म वहाँ को चग नह ले सकता था। वह उसे सुपर 30 के बारे म पता चला। उसने वेश
परी ा द और उसका चयन हो गया। उसे आई.आई.ट . खड़गपुर म दा खला मल गया।
सड़क के कनारे स जी बेचनेवाले से यूरोप म शोध छा तक क संतोष क या ा ने भारत
के अलावा जापान, जमनी और अमे रका के मी डया का भी यान आक षत कया। यहाँ
तक क उस पर एक वृ च भी बना, जसम दखाया गया था क कैसे बगैर कसी
सु वधा के और कभी-कभी बगैर भोजन के एक लालटे न क रोशनी म पढ़ाई करके वह
इतनी ऊँचाई तक प ँचा था। आज वह यूरोप क एक त त यू नव सट म है।
‘‘अब म आपको अनूप के बारे म बताता ँ। अनूप बहार के एक र-दराज के गाँव छव म
रहता था, जहाँ न स लय का कोप है। अनूप के प रवार को पेट भरने के लए संघष
करना पड़ता था। एक रात आठ वष का अनूप भूख से रो रहा था। उसक माँ ने उसके
पता से वनती क क वे बाहर जाकर कसी से थोड़ा चावल माँग लाएँ, ता क वे उसे
उबालकर नमक के साथ सबको खला सक। ले कन पानी तब तक उबलता रहा, जब तक
क बरतन म एक बूँद भी नह बचा। अनूप के पता फर कभी लौटकर नह आए। कुछ
लोग कहते ह क उ ह न स लय ने पकड़ लया था। गाँववाले कई दन तक उ ह ढूँ ढ़ते
रहे, ले कन उनका कुछ पता नह चला। अनूप बड़ा हो गया। जस घोर गरीबी से वो घरा
आ था, उससे पहले खी और फर नाराज वह दे श म गरीब और अमीर के बीच मौजूद
वशाल खाई से नराश हो गया था। वह न स लय के तरीक से आक षत होकर बदला
लेने के उपाय तलाशने लगा। ले कन उसक माँ जानती थी क सबसे श शाली ह थयार
एक ही था— श ा। उसने कड़ी मेहनत क और अनूप को कूल भेजा। अनूप ने दसव म
ब त अ े अंक ा त कए और आगे क पढ़ाई के बारे म जानकारी ा त करने पटना
आया। वह पटना म मु यमं ी ी नीतीश कुमार के घर पर जनता दरबार म प ँचे।
मु यमं ीजी से मलने के पहले ही एक अ धकारी ने अनूप क सम या सुनी और उस युवा
लड़के क बेबसी दे खकर उ ह ने सुपर 30 के बारे म बताते ए मुझसे मलने का सुझाव
दया। उ ह यह बताया गया था क आनंद कुमार कसी से कोई फ स नह लेते ब क
व ा थय को रहने-खाने क भी सु वधा नःशु क दान करते ह। मुझे उस अ धकारी का
नाम तो पता नह है, ले कन म उनका शु गुजार ँ क अनूप जैसे होनहार ब े को बड़े
ेम और शां त से उ चत सलाह द ।
‘‘जब मने पहली बार अनूप और उसक माँ को दे खा तो वे नंगे पाँव और पसीने से लथपथ
थे, ले कन उनक आँख म एक चमक थी। अनूप ने दो वष कड़ी मेहनत क और आज वह
आई.आई.ट . मुंबई म अपने तीसरे वष म है।’’
हर कहानी के बाद और आनंद कुमार के पीछे क न पर साथ-साथ चल रही छ वय
को दे खने के बाद दशक च कत हो जाते और कुछ तो ता लयाँ भी बजाने लगते, बगैर इस
बात का एहसास कए क वे एक ा यान के बीच म ता लयाँ बजा रहे थे।
आनंद ने उ ह अनूप और संतोष जैसे कुछ और छा क कहा नयाँ भी सुना । उ ह ने
दशक को अनुपम के बारे म बताया, जसके पता एक ऑटो र ा चलाते थे, और कई
अ य लोग के बारे म भी बताया, जो सुपर 30 ारा बनाई जीवनरेखा को थामकर गरीबी
के गत से बाहर नकल पाए थे।
‘‘अब म आपको सुपर 30 के वषय म बताना चा ँगा। सुपर 30 वं चत वग के छा के
लए एक काय म है, जो मने कई वष पहले 2002 म आरंभ कया था। मने भी गरीबी को
ब त नकट से दे खा है। म भी अभाव का दद समझता ँ। मेरे पताजी भारत के डाक
वभाग म एक नचले दज के लक थे। म एक ग णत बनना चाहता था और ग णत म
हमेशा नए प रणाम तक प ँचने क को शश करता रहता था। मने अपने कॉलेज के दन
म कुछ ग णतीय शोध प लखे थे, जो त त वदे शी जन स म का शत ए थे। मुझे
क ज यू नव सट म ग णत म उ श ा के लए अ ययन करने का अवसर मला था,
ले कन धन क कमी के कारण म वहाँ नह जा सका। मने मदद हा सल करने क ब त
को शश क , ले कन उस समय सभी दरवाजे मेरे मुँह पर बंद कर दए गए। मेरी नया तो
पहले ही उजड़ चुक थी, जब अपनी नराशा के चरम पर मने अचानक अपने पता को भी
खो दया। अब अपने प रवार का पेट भरने क और नराशाजनक प र तय को
सँभालने क ज मेदारी मेरे कंध पर थी। उस समय मेरा छोटा भाई प भूषण एन. राजम
का श य था और उनके संर ण म बनारस ह यू नव सट म वाय लन बजाना सीख रहा
था। पता क मृ यु के बाद मुझे डाक वभाग म अनुकंपा के आधार पर नौकरी का ताव
मला; ले कन मने उसे अ वीकार कर दया और आस-पड़ोस के इ ु क छा को ग णत
पढ़ाने लगा। मने पास ही एक कमरा कराए पर ले लया और मेरे छा मुझे अपनी
सु वधानुसार जब दे सकते, मेरी फ स दे दे ते थे। ले कन हम जी वत रहने के लए पैस क
आव यकता थी। मेरी माँ पापड़ बनाती थ , जो एक वा द भारतीय नमक न है और म
अपनी साइ कल पर घर-घर जाकर उ ह बेचता था। कभी-कभी मुझे अपमान का सामना
करना पड़ता था; ले कन मने कभी उ मीद और ह मत नह छोड़ी। धीरे-धीरे छा क भीड़
बढ़ने लगी और मेरा काय म बहार रा य के वं चत छा के बीच मश र होने लगा। एक
बार मेरे पास एक ब त ती बु का छा आया और बोला क उसके पास मेरी 500
पए क वा षक फ स दे ने क भी मता नह थी। ले कन उसने मुझे आ ासन दया क
जब उसके पता के खेत म आलु क पैदावार होगी। तो वह मेरी फ स चुका दे गा। मने
उससे पूछा क मेरी क ा म शा मल होने के लए वो पटना म कैसे रहेगा, तो उसने
जवाब दया क वह एक अमीर आदमी के घर क सी ़ढय के नीचे डेरा डालकर रहता है।
‘‘म वीकार करता ँ क मुझे कुछ संशय आ और मने उस लड़के के पास अचानक प ँच
जाने का न य कया। उस लड़के को संपूण एका ता के साथ भौ तक क पु तक म
आँख गड़ाए दे खकर म अंदर तक हल गया। मुझे अपने क ठन दन क याद आ गई। यही
घटना सुपर 30 काय म शु करने क ेरणा का ोत बन गई। मने अपने भाई णव
कुमार को बुलाया, जो अब तक एक तभाशाली वाय लन वादक बन चुका था और मुंबई
म काम करता था, और हमने एक साथ मलकर सुपर 30 क योजना पर काम करना शु
कर दया। णव पहले भी मेरी मदद करता था, ले कन अब वो सुपर 30 म सीधे-सीधे
शा मल था और उसके बंधन क ज मेदारी सँभाल रहा था। गहन जाँच के बाद वं चत
वग से 30 गरीब, ले कन तभाशाली छा सुपर 30 का ह सा बनने के लए चुने गए।
वचार था क उ ह पूणतः नशु क आई.आई.ट . को चग दान करना। आवास और
भोजन स हत शु आत म 30 छा के लए व ा करना उतना आसान नह था; ले कन
मेरे प रवार ने इस यास के लए मेरी हर संभव सहायता क । म उन छा को पढ़ाकर
पैस क व ा करता था, जो फ स दे सकते थे; जब क मेरी माँ जयंती दे वी, छा के
लए खाना बनाती थ । छा के लए सफ एक ल य था—पूरे प र म के साथ पढ़ाई
करना और अ य सम या से वच लत न होना। शु आती सफलता के बाद, मुझे मौ क
दान के ब त से ताव मले; ले कन मने वन ता से अ वीकार कर दए। कई लोग मुझसे
व ीय सहायता वीकार न करने का कारण पूछते ह। कारण है—म सा बत करना
चाहता ँ क य द आपके पास इ ा और ढ संक प है तो बहार म भी, जो भारत का
सबसे पछड़ा रा य है, आप जो चाह कर सकते ह। संसाधन और बु नयाद सु वधा का
अभाव कसी को ल य ा त करने से नह रोक सकता।
‘‘जब मेरा काय म सफलतापूवक चलने लगा तो मुझे शंसा मली; ले कन साथ ही पटना
का को चग मा फया मेरे खलाफ खड़ा हो गया। पटना म को चग एक ब त ही लाभ द
उ ोग है और सुपर 30 क सफलता और बढ़ती लोक यता उनके सामने खतरा बनकर
मँडरा रही थी। तीन बार मुझ पर सश अपरा धय ने हमला कया था। एक बार मेरे गैर-
श ण टाफ म से एक मु ा, ब त बुरी तरह घायल हो गया था। उसके पेट म चाकू घ प
दया गया था और उसे तीन महीने तक अ ताल म जीवन के लए संघष करना पड़ा था।
मेरे कुछ म ने मुझे पूछा भी क इतने खतर के बावजूद म सुपर 30 य चला रहा था।
ले कन मने कभी ह मत नह हारी। म बहार सरकार को स दय ध यवाद दे ना चाहता ँ
क सरकार ने मुझे दो सश अंगर क दान कए और वे अभी भी मेरे साथ ह। उसके
बाद कभी कोई हमला मुझ पर नह आ। जब प रणाम आने शु ए तो हम ब त खुश
ए और कुछ च कत भी। पहले ही वष म 18 छा को सफलता ा त हो गई थी। सरे
वष म 22 छा ने, तीसरे वष 26 छा ने, चौथे वष 28 छा ने, पाँचव वष 28 छा ने
और उसके बाद तीन वष लगातार सभी 30 छा ने आई.आई.ट . क वेश परी ा उ ीण
कर ली। जन छा को आई.आई.ट . म दा खला नह मला, उ ह अ य त त
इंजी नय रग कॉलेज मल गए। पछले 12 वष म 308 छा ने आई.आई.ट . जे.ई.ई. के
लए अहता ा त क । अब, मा फया मुझे परेशान नह करता, ले कन अ य रणनी तय का
सहारा लेता है, पछले कुछ समय से यहाँ गया, नालंदा, यहाँ तक क राजा, बाजा जैसे
नाम के उपसग के साथ सुपर 30 क बाढ़ आ गई है। वह साइनबोड पर न हे अ र म
मुंबई, राजा या बाजा लखते ह और बड़े-बड़े अ र म सुपर 30 लख दे ते ह। उनका उ े य
मासूम छा को बेवकूफ बनाकर सुपर 30 क सफलता भुनाना होता है। उनका उ े य
होता है इस काय म से पैसे बनाना और सरकार के साथ-साथ नजी े से भी व ीय
दान लेना। कभी-कभी ये चीज मेरे लए भी सम याएँ उ प कर दे ती ह, ले कन अ धकतर
लोग इन चाल चलनेवाल क स ाई पता कर ही लेते ह।
‘‘एक और , जसका सामना मुझे जहाँ भी म जाता ँ, करना पड़ता है। वो है—आनंद,
सुपर 30 के सफलता के पीछे या रह य है?
‘‘वा तव म, न तो इसके पीछे कोई जा है, न ही म अ य लोग से कुछ अलग ँ। म तो
एक ब त साधारण सा श क ँ। सफलता कभी भी आसानी से नह मलती। मुझे लगता
है क इन वं चत छा के श ण के दौरान सबसे मह वपूण चीज है उनके आ म व ास
का तर बढ़ाना। लंबे समय तक अभाव म रहने के कारण वे कसी भी अ य छा जतने
तभाशाली होने के बावजूद अपनी सम त आकां ाएँ खो चुके होते ह।
‘‘ले कन फर, ऐसा करना इतना आसान नह होता। यह वा तव म एक ब त मु कल
काम है; य क गरीब प रवार से आए छा हमेशा एक गंभीर हीन भावना के साथ
शु आत करते ह। हमारा पहला उ े य होता है उ ह नराशा के बादल से बाहर ख चकर
लाना और उ ह उनक मता का व ास दलाना। एक बार जब वे आई.आई.ट .
जे.ई.ई. क पढ़ाई करने के लए मान सक प से तैयार हो जाते ह तो हम आधी लड़ाई
जीत जाते ह, य क आ म व ास उ ह और अ धक यान क त करने म मदद करता है।
उ ह यह भी महसूस होने लगता है क वे भी संप प रवार के छा जतने यो य ह।
‘‘इस ब पर नरंतर बल दे ते रहने के लए मने दो च र क रचना क —भोलू और
र क । जहाँ र क संप प रवार से आता है, भोलू एक गरीब प रवार से आता है।
र क ांडेड कपड़े पहनता है, जब क भोलू साधारण सा कुरता-पाजामा पहनता है।
र क प ा-बगर खाता है, जब क भोलू म का और चपाती जैसा साधारण भारतीय
खाना खाता है। र क मोटरसाइ कल चलाता है, जब क भोलू एक पुरानी साइ कल
चलाता है। र क अं ेजी म बात करता है, जब क भोलू ानीय भाषा म बात करता है।
मेरे उदाहरण का पहला भाग हमेशा वशेषा धकार ा त लोग और वं चत लोग क
पर र वरोधी जीवन-शैली का सुझाव दे ता है; ले कन सरा भाग इस बारे म होता है क
कैसे उनक जीवन-शैली से इस बात पर कोई फक नह पड़ता क उनक उपल याँ या
होती ह। जब दोन के सम एक ग णतीय सम या तुत क जाती है तो र क के पास
सफ वही एक समाधान होता है, जो उसके श क ने उसे सखाया होता है। वो उस
को ब कुल पा पु तक शैली म और वह भी ज द से हल कर लेता है; जब क भोलू उस
के साथ संघष करता है। ले कन अंत म, भोलू नए समाधान क खोज करता है और
को व भ तरीक से हल करता है।
‘‘ऐसा करने के दो लाभ ह—मेरे छा को यह भी सीखने को मलता है क सफलता के
लए खेल का मैदान हमेशा समान तर का होता है, इस बात क परवाह कए बगैर क
कौन कहाँ पैदा आ है। इस लए, भोलू मेरे छा के लए रोल मॉडल (आदश) बन जाता
है। भोलू उ ह कभी हार न मानना सखाता है, य क सफलता ा त करना वह एकमा
तरीका है, जससे वे वार का ख अपने प म कर सकते ह। अपनी मुख ताकत के
प म कड़े प र म के साथ वे उसे हा सल करने म समय नह लगाते। परी ा भवन म वे
ज टल का सामना भी पूण आ म व ास के साथ करते ह।
‘‘अब म येक वं चत छा को श त दे खना चाहता ँ। अब मेरा एक सपना है, म अपने
छा को एम.आई.ट . म दे खना चाहता ँ। ये मेरा ब त बड़ा सपना है। मेरे कुछ छा को
अ अमे रकन यू नव सट म पढ़ने का अवसर मला है और वे यहाँ काम कर रहे ह;
ले कन अब तक कसी को एम.आई.ट . म दा खला नह मल पाया है। म नह जानता क
मेरा यह सपना पूरा होगा या नह , ले कन म जानता ँ क अपने ल य क ा त के लए
मुझे कड़ा प र म करते रहना होगा। इस समय म एक टन शेड के नीचे एक अ ायी
कूल म पढ़ा रहा ,ँ इस उ मीद म क मेरे छा यहाँ तक प ँचगे। म अपने छा को
नोबेल पुर कार वजेता एवं फ पुर कार वजेता के प म दे खना चाहता ँ।
‘‘म यहाँ आपसे कुछ माँगने नह आया ँ। जैसा क आप जानते ह, म कोई व ीय
सहायता वीकार नह करता। म इतनी र आप जैसे महान् ौ ो गक वशेष से यह
अपील करने आया ँ क ौ ो गक को सफ अ धक-से-अ धक पैसे बनाने का औजार
नह बने रहना चा हए। उसका उपयोग अ श ा के खलाफ लड़ाई म एक मह वपूण
ह थयार के प म करना चा हए, ता क गरीब-से-गरीब छा को भी उ गुणव ा क
श ा ा त हो सके। आज मुझे महसूस होता है क ौ ो गक वशाल लाभ अ जत करने
और मानवीय म पर नभरता कम करने के एक मह वपूण उपकरण के प म उभरी है।
ले कन अब यह सोचने का समय आ गया है क इसका उपयोग गरीबी से लड़ने के लए
कैसे कया जा सकता है, जो नया भर म लोग को भा वत करती है। समय आ गया है
क लैब से बाहर नकलकर दे श और गाँव म ा त गरीबी को महसूस कया जाए, जहाँ
लोग को बु नयाद बजली और साफ पानी भी नह मलता। ऐसा करने से ौ ो गक म
एक मानवीय आयाम जुड़ जाएगा, जसक नया को एक बेहतर जगह बनाने के लए
आव यकता भी है। यु क मशीन हम यु म वजय दला सकती ह, ले कन हम शां त
और आ म ान नह दे सकत ।
‘‘आज, नया चाहती है क ौ ो गक मानवता को बचाए और उसे ग रमा दान करे
और इसके लए सभी वग से सहयोग क आव यकता है। हम सबक आव यकता एक
खूबसूरत नया ही तो है। एक नया, जो गरीबी और अ श ा से मु हो; एक नया,
जसम सही समझ और क णा हो।’’
इन श द के साथ आनंद कुमार ने अपना व समा त कर दया। वे आँख म आँसू
और ह ठ पर बड़ी सी मुसकान के साथ मंच पर खड़े थे। उ ह ने अपने दोन हाथ उठाए
और झुककर दशक का अ भवादन कया। वे कुछ घबराए से लग रहे थे। ले कन ता लय
क गड़गड़ाहट थम नह रही थी। लोग खड़े होकर ता लयाँ बजा रहे थे। कुछ न प लोग
क आँख म आँसू भी थे। उ ह ने एक अ डग ईमानदारी और स े धैय का दशन दे खा
था। उ ह ने एक आदमी का उसके भा य के खलाफ संघष दे खा था, उसक न वाथता
दे खी थी और इस आदमी ने उनसे कुछ नह माँगा था। ये र गटे खड़े कर दे नेवाला काम था।
आनंद कुमार मंच से नीचे उतरे, अभी भी सर झुकाए ए और दशक क त या से
अ भभूत गोरे लोग खड़े होकर मेरे लए ता लयाँ बजा रहे ह। कुछ लोग रो भी रहे ह। उ ह ने
चार ओर दे खा और हैरानी से सोचा क लोग तसवीर लेने और बात करने उनके पास आ
रहे थे। वे सब पर समान प से यान दे रहे थे और जहाँ तक संभव था, उनके के
उ र भी दे रहे थे।
कार म एम.आई.ट . मी डया लैब से लौटते ए आनंद कुमार पछली सीट पर बैठे ए
पीछे छू टते पेड़ को, व त ै फक को, साफ व नीले आसमान को दे ख रहे थे और उ ह
असी मत अवसर नजर आ रहे थे। उ ह ने सर घुमाया और अपने भाई णव को दे खकर
मुसकराए, जो उनक बगल म बैठे थे।
‘‘हम कतनी र आ गए ह, भैया।’’ णव बोले, ‘‘आज पताजी होते तो उ ह कतना गव
होता!’’
‘‘हाँ, उ ह ने हमेशा मुझम कुछ ऐसा दे खा था, जो म खुद कभी नह दे ख पाया था। मुझे
अभी भी वह समय याद है, जब वे मुझसे मजाक करते थे और मेरे पाँव छू ने म मुझसे
त धा करते थे। जब म उनके पाँव छू ने क को शश करता था, हम कैसे मजाक कया
करते थे! वे मुझे श मदा करते थे और हमेशा मुझसे कहते थे, जब तुम बड़े आदमी बन
जाओगे, तब म नह रहा तो? इस लए मुझे अभी अपना स मान कर लेने दो।’’ आनंद ने
अपना सर हलाया और अपने आँसू नह रोक पाए।
णव ने अपने बड़े भाई के कंध को अपनी बाँह से घेरा और बहा री से अपनी
भावना को काबू करने क को शश करते ए बोले, ‘‘ पताजी ऊपर ही कह ह और हम
दे ख रहे ह, भैया। आज आप उ ह के आशीवाद से एम.आई.ट . म दशक को संबो धत
कर रहे थे।’’ आनंद उदासी से मुसकराए और उस समय को याद करने लगे, जब उनक
नया बखर रही थी और उ ह एक के बाद एक झटके लग रहे थे उस समय भी उ ह ने
अपने भा य को वीकार नह कया था, और आज भी वे सपने दे ख रहे थे।
हाँ, वे दे ख रहे ह, सुपर 30 हमारी भ योजना क एक छोट से पहल है और म इसे
ब त बड़ा बनाना चाहता ,ँ ता क म उस सपने को पूरा कर सकूँ, जो पताजी ने शु से
दे खा था म और अ धक छा क मदद करना चाहता ँ और उस भाव को गुणा करना
चाहता ,ँ जो हमने सुपर 30 के साथ दे खा है।
नया म कुछ लोग ह, जो प र तय को अपने रा ते क बाधा नह बनने दे ते। आनंद
कुमार उनम से एक थे। जैसा क ऑ कर वाइ ने कहा था, ‘हम सब गटर म ह, ले कन
हमम से कुछ सतार क ओर दे ख रहे ह।’
छा के मुख से
नाम : श श नारायण
सुपर 30 बैच : 2004
इं ट ूट और म : कं यूटर साइंस और इंजी नय रग, आई.आई.ट . खड़गपुर
वतमान जॉब : रसच एसो शएट, यू नव सट ऑफ ए डनबग
पी छे मुड़कर अपने कै रयर को दे खता ँ तो पाता ँ क सुपर 30 का ह सा बनना मेरे
जीवन को बदल दे नेवाली घटना थी। मुझे याद है, जब म जेईई क तैयारी के लए पहली
बार पटना आया और दो महीने के अंदर मुझे भीड़ म गुम हो जाने के आतंक का एहसास
आ। एक अ त साधारण प रवार का होने के नाते म अपने माता- पता का ब त आभारी
ँ, ज ह ने मेरे लए कभी कोई सीमा नधा रत नह क । उनके ो साहन से म सुपर 30 के
लए चय नत आ और उसके बाद जो भी आ, वह सब सुपर 30 क वजह से आ।
मुझे लगता है क पटना म और कई अ य ान म कई छा , वशेष प से कमजोर
आ थक पृ भू मवाले छा के पास मता तो होती है, ले कन उ चत मागदशन का अभाव
होता है। सुपर 30 ऐसे तभाशाली छा के लए वग के समान है। इसने हम पढ़ाई के
लए एक आदश वातावरण, कठोर ले कन परवाह भरा संर ण और बेशक ब त अ े
दो त दए और यह सब बगैर कसी शु क के इसने हमारे अंदर से भीड़ म गुम होने के डर
को बाहर ख चकर नकाला और हम उस तर पर प ँचाया, जहाँ हम मानने लगे क हम
अपनी अ त साधारण पृ भू म के बावजूद सफल हो सकते ह। मेरे लए वह भावना और
आंत रक श ब त व श थी और मुझे वो आनंद सर और सुपर 30 के कारण मली। म
खुद को भा यशाली समझता ँ क म ऐसी महान् सं ा का ह सा ,ँ कोटा फै टरी का
उ पाद नह ।
सुपर 30 के बाद म कं यूटर साइंस और इंजी नय रग म मेजर करने आई.आई.ट .
खड़गपुर चला गया। आनंद सर हमेशा कहते थे क मुझे उ श ा के लए जाना चा हए।
म मानता ँ क म उ ह के आशीवाद से उ श ा ा त कर सका। इस समय म
यू नव सट ऑफ ए डनबग म रसच एसो शएट ँ, जो व क मुख यू नव सट म से
एक है।
म बाद के वष म सुपर 30 क सफलता क कहा नय पर गव महसूस करता ँ। म आशा
करता ँ क नकट भ व य म हम ऐसी सं ा पर और काम करगे, जो कमजोर पृ भू म
के छा को व भ कै रयर संभावना के बारे म मागदशन दे ती ह।
2
एक मसीहा का ज म
नाम : न ध झा
सुपर 30 बैच : 2013-14
इं ट ूट और म : स वल इंजी नय रग, इं डयन कूल ऑफ माइंस
वतमान पेशा : छा
म इस समय 18 वष क ँ और जब यह सब शु आ, तब 16 वष क थी।
आई.आई.ट . जे.ई.ई. : मेरा बड़ा सपना। मने सुपर 30 और आनंद सर के आकषण के बारे
म सुना था और जस वष मने जे.ई.ई. क तैयारी के लए ॉप कया, उस वष मुझे यह
अनुभव करने का मौका भी मल गया। म मूल प से वाराणसी क रहनेवाली ँ और इस
समय इं डयन कूल ऑफ माइंस (आई.एस.एम.), धनबाद म पढ़ रही ँ, एक सं ान, जो
आई.आई.ट . म प रव तत होने क या म है।
नाम : शवांगी गु ता
सुपर 30 बैच : 2012-13
सं ा एवं वषय : के मकल इंजी नय रग, भारतीय ौ ो गक सं ान, ड़क
वतमान पेशा : छा ा
म कानपुर के पास एक गाँव के एक नधन प रवार से आती ँ। मेरे पता का समाचार
प -प का का एक टॉल है और हमारे प रवार म पाँच सद य ह। मने सेकंडरी क
पढ़ाई सरकारी कूल से क । मुझे सुपर 30 के बारे म पता चला और मेरा सौभा य रहा क
मने इसक चयन या पास कर ली, और पटना म मने आई.आई.ट . जे.ई.ई. क तैयारी
शु कर द ।
हालाँ क री केवल कुछ 130 कलोमीटर क ही थी, ले कन उसे अठारह घंटे से यादा
लग गए। उसक जेब म 500 से थोड़े ही यादा पए थे, ले कन उसके पास सपने पूरे थे
क कैसे वह इस काय म के ज रए आई.आई.ट . जे.ई.ई. क परी ा पास करेगा और
उसके बाद अ नौकरी करेगा, जससे वह करोड़ पए कमा सकेगा। उसके सपने और
न द दोन टू ट गए, जब े न पटना टे शन पर जोर क आवाज और झटके के साथ क ।
झटके से सबक न द खुल गई। एक छोटा सा ब सा और पीठ पर एक थैला लये यह
युवक रामानुजन कूल क ओर बड़ी उ मीद से बढ़ने लगा। करीब 9 बजे सुबह वह इस
स कूल म प ँचा। र से ही उसे मश र श क आनंद कुमार दखाई दए, जो एक
मंच पर छा के एक समूह को पढ़ा रहे थे। छा बड़े यान से नोट् स बना रहे थे। पास के
ै फक के शोरगुल का उन पर कोई असर पड़ता नह दख रहा था। ब े ने आनंद कुमार
के कने तक ती ा क । उनसे मलने क उ मीद से उसके अंदर कुछ बेचैनी सी पैदा हो
गई और उसे पसीना आने लगा—गरमी से नह ब क घबराहट के कारण। जब पढ़ाई
क , तब भी उसे काफ इंतजार करना पड़ा; य क ढे र सारे छा ने आनंद को घेर लया
था और उनसे अपनी शंका का समाधान कराने लगे थे। आ खरकार उस लड़के ने
ह मत क और अपने को आगे धकेलते ए, अपना दा हना हाथ उठाते ए वह च लाया,
‘‘आनंद सर!’’ लड़के को न पहचानते ए आनंद ने उसक ओर हाथ हलाकर अपने
खचाखच भरे ऑ फस म आने का इशारा कया। छा के साथ अपनी बातचीत ख म होने
पर खुद भी ऑ फस प ँचे। नेह के साथ उ ह ने लड़के से उसके आने का मकसद पूछा,
हालाँ क वे दे खते ही उसका मकसद समझ चुके थे।
‘‘सर, म सुपर 30 म पढ़ना चाहता ँ। मेरी मदद क जए। म कड़ी मेहनत क ँ गा, यह मेरा
वादा है आपसे।’’ आनंद कुमार इस तरह का अनुरोध रोज सुनते थे। एक दशक पहले से,
जब से सुपर 30 शु आ था, तब से वे ऐसे हजार अनुरोध सुन चुके थे।
उ ह ने लड़के क पृ भू म, कूल म नंबर और आ थक त के बारे म जानकारी ली।
अंत म वे के और लड़के क ओर सहानुभू त भरी नजर से दे खते ए बोले, ‘‘मुझे लगता
है क तु हारा यहाँ आना बेकार गया। तुमने सुपर 30 क दा खला परी ा के बारे म नह
सुना था या? इस साल क परी ा तो हो चुक है और सारी सीट भर चुक ह।’’
आनंद को उस लड़के क आँख म तबाही का मंजर दखाई दे रहा था; ले कन वे उसे
अगली दा खला परी ा के बारे म जानकारी दे ने के अलावा कुछ नह कर सकते थे। मायूस
होकर वह लड़का अपने घर लौट गया, ले कन उसे यह सबक भी मल गया क अगर
जीवन म कुछ पाना चाहते हो तो सही तरीके से यास करना चा हए और कड़ी मेहनत
करनी चा हए।
इस लड़के क कहानी जैसी थी, वैसी हजार कहा नयाँ आनंद के दल म हर दन तैरती
रहती ह। वे जानते ह क दहलीज पर आनेवाले हर व ाथ क मदद नह क जा सकती;
ले कन इससे उसे वापस लौटा दे ने म जो दद महसूस होता है, वह तो कम नह हो जाता। वे
जानते ह क या ा करके उन तक आनेवाले युवा क बड़ी सं या के लए गरीबी और
भेदभाव से पी ़डत गाँव और झु गय से नकल पाने का एकमा रा ता सुपर 30 ही है।
आनंद ने महसूस कया क उनक ओर से कसी भी तरह क कमी से श थलता क
सं कृ त और कानून का अपमान होगा, जससे वे सुपर 30 को बचाना चाहते थे। जब यह
काय म ही स दयता पर आधा रत था तो इसम कसी तरह क कठोरता रखने का कोई
कारण नह था। वा तव म आनंद का मानना था क आई.आई.ट . जे.ई.ई. के परी ा म
सुपर 30 क सफलता के लए छा क बु और यो यता क परखकरनेवाले ये नयम
और परी ण व धयाँ आव यक थ । हर साल आशा लगाए सैकड़ लड़के सुपर 30 म
दा खले के लए परी ा दे ने आते ह, ता क उ ह नामी श क आनंद कुमार से पढ़ने का
मौका मल सके और हर साल सैकड़ छा को नराश लौटना पड़ता है। अगर यह कसी
हद तक अनु चत भी लगता है तो एक और ज री सबक सीखने क ज रत है—जीवन
अकसर न प नह होता, ले कन अगर कसी म तकद र बदलने क धुन है तो उसके लए
अवसर हमेशा रहते ह।
यही लगन वष 2009 म सुपर 30 म आनेवाले एक लड़के क सफलता का मु य आधार
थी।
अनूप राज कुछ अलग तरह का छा था। व च बात यह थी क उसका जीवन ब त
कुछ आनंद कुमार के अपने जीवन क याद दलाने वाला था। अनूप बहार म बोध गया
और नालंदा के बीच पड़नेवाले जले औरंगाबाद के छोटे , गरीब और पहाड़ी गाँव चेव का
रहनेवाला था। अनूप के पता राम वेश थोड़े-ब त पढ़े थे; ले कन जब अनूप छोटा था,
तभी से को शश के बावजूद बेरोजगार थे। उसक माँ मीना दे वी गृ हणी थ , जो अनूप और
राम वेश क ज रत पूरी करने क अपनी मता भर को शश करती थ । ले कन घर म
खाने-पीने के सामान क हमेशा कमी रहती थी जसका मतलब आमतौर पर दाल और
रोट तक सी मत था। राम वेश ने ापार म हाथ आजमाया था, ले कन उसम उ ह
सफलता नह मली। चेव गाँव म भ व य क कोई उ मीद नह थी और घर क ज रत पूरी
कर पाने म अ मता के कारण वे एक तरह से मान सक संतुलन खो बैठे थे। अकसर वे
सड़क पर काम क तलाश म भटकते ए अपने आप बड़बड़ाते रहते।
बहार म बुआई एवं कटाई के बीच महीन का अंतराल होता है और इस बीच खेती पर
नभर रहनेवाले लोग के पास अ धकतर कोई काम नह रहता। राम वेश क हालत भी
ऐसी ही थी। एक बार अग त म शाम को बा रश के बीच अपने छोटे से मकान म बैठा
अनूप रोने लगा।
‘‘ या आ, बेटा?’’ अनूप क माँ मीना ने च तत होकर अपने बेटे से पूछा।
‘‘माँ, खाना।’’ अनूप ने आँसी आवाज म कहा।
ले कन घर म तो खाने को कुछ था नह । बेबस मीना ने सारे ड बे-बरतन खँगाल डाले,
ले कन उ ह कुछ नह मला। वे थक-हारकर जमीन पर बैठ ग और उनक आँख से आँसू
बहने लगे। राम वेश अपनी प नी और ब े क यह हालत सहन नह कर सके।
‘‘म कह से कुछ दाल और चावल लेकर आता ँ। चता मत करो।’’ उ ह ने कहा।
‘‘कुछ चावल भर ले आओ। म उ ह ही उबाल ँ गी और हम नमक के साथ खा लगे।’’
मीना ने अपने प त से कहा।
राम वेश ने सर हलाया, ले कन वह सोच म पड़ गए क चावल मलगे कहाँ से? ब नया ने
भी उधार दे ने से मना कर दया था।
‘‘तुम लक ़डयाँ सुलगाकर चू हा जलाओ और पानी उबलने के लए रखो। म अभी आता
ँ।’’ वे मीना से यह कहकर घर से नकल गए।
चू हा जलाने और पानी उबलने के लए रखने म अनूप क माँ को आधा घंटा लग गया।
पानी उबलने लगा। लक ़डयाँ जलकर बुझ ग और पानी ठं डा भी होने लगा; ले कन
राम वेश लौटकर नह आए। माँ-बेटे को चता होने लगी। भूख के साथ-साथ अब उ ह
राम वेश क भी चता होने लगी।
सुबह ई तो अनूप क माँ ने अपने प त क तलाश के लए नकलने का न य कया।
अनूप के बचपन म औरंगाबाद जले के गाँव एक और सम या से त थे, जसके बीच
लोग मु कल से जी पाते थे और अब भी वही त है। वह इलाका पछले पचास वष से
आतंकवाद और राजनी तक हसा से पी ़डत रहा है। गरीबी, भुखमरी, रोजगार क कमी,
भाई-भतीजावाद और ाचार के कारण वह इलाका माओवाद हसा क चपेट म आ
गया है। अपने को न सलवाद कहनेवाले लोग सरकारी कमचा रय व पु लसक मय क
लगातार ह याएँ करते ह और धनी लोग का अपहरण करके उनसे फरौती वसूल करते ह।
उनसे धोखा करनेवाले लोग क ह याएँ भी आम ह। न सलवाद उस इलाके म लोग के
बीच ही रहते ह, ले कन ब त कम लोग को उनक मौजूदगी का पता चल पाता है। उनके
ठकान म लाल कपड़ा रहता है, जससे लोग समझ जाते ह क वहाँ पर जाना खतरनाक
हो सकता है। गाँववाल को उनके ठकान और काम क जानकारी रहती है; ले कन वे
बताते कुछ नह , जससे न स लय को पकड़ना मु कल हो जाता है। जब लाल झंडे
गायब हो जाते ह तो गाँववाले अपने घर से बाहर नकलते ह और तब उनका जीवन
सामा य हो पाता है। यही बड़ा कारण है क पयटक बोध गया और बु के अ य प व
तीथ क या ा करने से बचते ह।
उस दन मीना न स लय के इलाके म प ँच और उ ह ने राम वेश के बारे म पूछा।
हालाँ क न स लय ने कहा क हम तु हारे प त का या करगे? वे ानीय पु लस थाने ग
और पु लस अ धकारी से गुहार लगाई; ले कन उसने भी कोई मदद नह क ।
‘‘ जदा होगा तो अपने आप लौट आएगा।’’ पु लस से यही जवाब मीना को मला था।
अनूप और मीना फर कभी राम वेश को नह दे ख पाए। ब े क उ तब केवल नौ साल
क थी।
उस समय तक अनूप ने कूल जाना शु नह कया था। इसके बजाय, वह खेत म या घर
के काम म लगा रहता था।
उसको धान बुआई क बु नयाद समझ हा सल हो गई थी और वह प रवार क आय
बढ़ाने के लए बोरे पीठ पर लादकर खेत से कान तक लाने लगा था। गरमी और धूप म
पेड़ क छाया म सोते ए उसे कुछ आराम मलता; ले कन यादातर दन उसे काम और
प रवार क रोजी-रोट क तलाश म लगना पड़ता था। कताब का उसके लए कोई
मतलब नह था; पर हाँ, कभी-कभार तसवीर दे खने के लए वह उनके प े पलट लेता था।
पता के गायब होने से ब े के मन म कई सवाल रह गए थे और उसके मन म एक बड़ा
खालीपन पैदा हो गया था। दन और महीने गुजरते गए और वह अकसर अपने पता को
याद करता रहता था। पता के गायब होने के बारे म जो सवाल उसके मन म थे, वे
अनु रत ही बने रहे। मीना ने बेटे को पढ़ाने का न य कया और उसने उसका दा खला
गाँव के कूल म करवा दया। कूल के कमरे ब त छोटे थे और श क ब त कम थे। ब े
टू टे-फूटे फश पर बैठा करते थे और क ा म पढ़ाई का तर भी फश क तरह का ही था—
टू टा-फूटा और अ नय मत।
सरी ओर, चेव गाँव म पढ़ाई के लए ब े होना, श क होना और कूल क इमारत
होना अपने आप म एक बड़ी सफलता मानी जाती थी। यहाँ तक क एक दशक पहले भी
ऐसी सु वधा अ या शत ही होती थी। गाँववाले श क का ब त अहसान मानते थे। वे
उ ह अनाज, स जयाँ, ध, अंडे आ द भट करते रहते थे। अनूप भी उन ब म शुमार हो
गया और पढ़ाई- लखाई म औसत होने के बावजूद वह क ा-7 तक प ँच गया। उसी समय
उसने पढ़ाई म यादा दलच ी लेनी शु कर द । आँधी, बाढ़, बा रश—कोई भी बाधा हो
—वह कूल जाना नह छोड़ता था। चेव क धूल भरी ग लय म अकेले जाते समय वह
अकसर अपने पता के बारे म सोचा करता था।
इसी ढ़ न य के साथ उसने बहार बोड क परी ा म 84.8 तशत अंक हा सल
कए। हर तरह से ये अंक ब त ही अ े थे। समूचे गाँव को उस पर गव आ। कई दन
तक खु शयाँ मनाई जाती रह । इस अवसर पर मीना क आँख म फर से आँसू आए;
ले कन इस बार वे खुशी के थे। भा य से खुशी का माहौल यादा दन नह रहा, य क
कड़वी स ाई फर से हक कत के प म सामने थी। पता के मागदशन और धन के
अभाव म आगे क पढ़ाई संभव नह थी। ले कन अनूप और मीना भी हार मानने को तैयार
नह थे। दोन ने कसी तरह से पैसा जुटाकर इतना इंतजाम कया क उसका नाम यारहव
क ा के लए गया कॉलेज म लखाया जा सका। एक बार फर अनूप ने अ पढ़ाई क
और परी ा म शानदार दशन करते ए 81.8 तशत अंक हा सल कए। हालाँ क, उसने
मीना को बताए बना एक ानीय को रयर कंपनी म काम भी कर लया, ता क उसक माँ
पर आ थक बोझ यादा न पड़े। मीना को जब यह पता चला तो वे ब त नाराज और
उ ह ने उससे वह नौकरी छोड़ने को कहा। उ ह ने उसे इसके बजाय केवल पढ़ाई पर यान
दे ने को कहा।
अनेक होनहार छा क तरह अनूप ने पटना म कई सारे को चग सं ान म जाकर वहाँ
क फ स पता क । साल म एक लाख से दो लाख पए तक क फ स दे पाना उसके लए
असंभव था। वह पटना क सड़क पर नए-नए को चग सं ान के बड़े-बड़े पो टर और
पं लैट दे खता रहता था। कुछ ने आई.आई.ट . जे.ई.ई. परी ा म सफलता के बड़े-बड़े
दावे कए थे, जब क कुछ अ य ने उ श त और यो य श क होने का चार कया
था। कुछ ने सफल व ाथ के फोटो और माण लगाए थे। अनूप को इन सबक स यता
परखना ब त क ठन लगा। इसके अलावा, उसके पास पैसा भी तो नह था। वह अपनी माँ
से सलाह करने चेव गाँव लौट आया। माँ ने उसे उ मीद न छोड़ने का अनुरोध कया।
पटना म मीना ने अपने बेटे के साथ बहार के मु यमं ी नीतीश कुमार से मलने क भी
को शश क , ता क वह इंजी नय रग म कै रयर बनाने के लए कसी काय म म शा मल
होने म मदद मल सके। जब वे मु यमं ी के आवास पर प ँचे तो एक स दय अ धकारी ने
उ ह बताया क इस तरह का कोई काय म सरकार नह चलाती और इसके बजाय उसने
उ ह सुपर 30 के बारे म बताया। उसने उ ह सुपर 30 का फोन नंबर और पता भी बता दया
और आनंद कुमार से मलने को कहा। ‘‘अगर वे तु ह सुपर 30 म ले लेते ह तो तु हारी
आ थक क ठनाइयाँ और बाक सम याएँ हल हो जाएँगी। वे को चग, खाने और रहने का
कोई पैसा नह लेते।’’
इतने स करनेवाले बोल तो अनूप ने पछले कई साल से नह सुने थे और जब वह
उस अ धकारी से मलकर नकला तो पहली बार संतु महसूस कर रहा था।
ज द ही उ ह ने आनंद कुमार से फोन पर बात क और माँ-बेटे ने उनसे मलने का समय ले
लया।
‘‘पटना म कब से आए ए ह आप लोग?’’ आनंद ने उनसे पूछा।
‘‘चार दन से, बाबू।’’ मीना ने जवाब दया।
‘‘ठहरे कहाँ पर ह?’’
‘‘ कने क कोई जगह नह है। पूरे दन को चग या मदद क तलाश करते रहते ह और रात
म थक-हारकर रेलवे लेटफॉम पर अखबार बछाकर सो जाते ह। सूखे चने और मुरमुरे
खाकर नल से पानी पी लेते ह।’’
आनंद ने दे खा क वह म हला इस तेज गरमी म नंगे पैर थी, ले कन उसके चेहरे पर
कसी तरह क कड़वाहट या कुंठा नह दख रही थी। आनंद उस म हला क आशा और
संक प दे खकर च कत थे। उसे सचमुच व ास था क उसके बेटे म होनहार और सफल
होने के उसम सारे गुण ह। ‘इस नया म कुछ ब को पाँच सतारा कूल म पढ़ने को मलता है, ले कन
उनका मन फेसबुक और पाट बाजी म यादा लगता है और इधर एक स ाई यह भी है।’ आनंद ब त वत
ए।
‘‘ठ क है, सुपर 30 का टे ट आज से पाँच दन बाद है। अगर तु हारे पास मता है तो तुम
उसम पास हो जाओगे। इसम हम छा क अ भ च का टे ट लेते ह। मोटे तौर पर
इंटरमी डएट लेबल के, ले कन अवधारणा मक होते ह।’’ आनंद ने अनूप और उसक माँ
को समझाया। मीना ने आनंद से अनुरोध कया क वे अनूप को बना टे ट के ही ले ल;
ले कन आनंद ने उनक इस बात पर यान नह दया, य क वे नयम नह तोड़ना चाहते
थे।
पाँच दन बाद अनूप ने टे ट दया, ले कन ब त कम अंक से पास होने से रह गया। वह
एकदम टू ट गया। कुछ कारण ऐसा था क आनंद के मन से भी अनूप क कहानी हट नह
पा रही ती। उ ह ने उसक पृ भू म, पता के गायब होने, गरीबी, चेव म न सलवा दय के
आतंक के साये म रहने और संघष करने के बारे म और यादा जानकारी ली। उ ह यह भी
पता चला क इन संघष म युवा ने लचीलापन दखाया है। जस क णा के लए आनंद
कुमार जाने जाते ह, उसी को दखाते ए उ ह ने अनूप से कहा क उ ह लगता है क उसके
अंदर आई.आई.ट . जे.ई.ई. पास करने क मता है, इस लए उ ह ने इस तभाशाली
ले कन गरीब लड़के क मदद करने के लए भाई णव से वचार- वमश करके नयम थोड़ा
श थल कर दया। इस सब उदारता के पीछे एक अ य कारण यह था क वह परी ा के
लए तैयार था और ब त ही कम अंक से कट-ऑफ लाने म चूका था।
आनंद अ य ब के लए तो नयम श थल नह करते थे, फर इसके लए ही ऐसा य
कया? इसका कारण यह था क आनंद को लगा क चेव जैसी जगह के होनहार और
लगनशील युवा के लए मौके ब त सी मत ह। यह समझना कोई क ठन नह था क
अनूप जैसे लड़के आसानी से गाँव म फैले हसक जीवन के चंगुल म फँस सकते ह।
हो शयार और मह वाकां ी होने के कारण वह गरोह का सरगना या न सलवा दय का
कमांडर भी बन सकता था और फरौती तथा ह या के ज रए वसूली कर सकता था।
ऐसा करनेवाला वह कोई पहला युवक नह होता। आनंद ने वचार कया क कतने
होनहार युवा इस जो खम भरी राह पर चल नकले। और तब उ ह ने तय कया क अगर
अनूप क मदद क जाए तो वह इस राह पर नह जाएगा।
जैसा क लग रहा था, चेव और आस-पास के इलाक म फैली सम या का संभा वत ह सा
होने क जगह अनूप चेव के ब के लए ेरणा ोत बन गया था। उसने आई.आई.ट .
जे.ई.ई. म अ सफलता हा सल क और पढ़ाई के लए भारतीय ौ ो गक सं ान,
मुंबई चला गया।
मई 2010 म रा ीय राजनी तक दल ने एक दन क दे श ापी हड़ताल क तो पटना म
भी राजनी तक हलचल तेज हो गई। पटना म भी दशनकारी अगर अपनी योजना के
अनुसार आगे बढ़ते तो वहाँ जनजीवन ठ प होने वाला था। अनूप समेत सुपर 30 क
दा खला परी ा क तैयारी कए हजार व ा थय को चता हो गई थी, य क दे श ापी
हड़ताल उसी दन थी, जस दन वह परी ा होनी थी। तय था क उस दन सड़क पर
वाहन नह चलने थे; ले कन व ाथ कसी तरह से पटना के बाँक पुर ग स हाई कूल
प ँच गए। कुछ च का जाम पार करने म सफल ए तो कुछ अ य कई दन पहले से ही
परी ा क के लए रवाना हो गए थे। इसके अलावा, पथराव का भी डर था। पु लस ने
शहर के अ धक हसक और संवेदनशील इलाक म कानून व व ा बनाए रखने के लए
क यू लगा दया था।
सौभा य से, हड़ताल का आ ान करनेवाले व भ राजनी तक दल के नेता म सामा य
बु थी। जब उ ह सुपर 30 क लोक यता और उसक परी ा के मह व के बारे म पता
चला तो उ ह ने छा को आने-जाने का रा ता दे ने का न य कया, य क उ ह समझ म
आ गया था क अगर छा को परी ा दे ने से रोका गया तो नधन छा का भ व य खराब
हो जाएगा।
इस कार जहाँ पटना के बीचोबीच हड़ताल के कारण सुनसान था, वह बाँक पुर ग स
हाई कूल म ल खत परी ा दे ने के लए सैकड़ छा इक ा थे। परी ा क पर कोई
पु लस नह थी। उस दन अनूप और उनके सा थय क खुशी का ठकाना नह रहा।
सुपर 30 म सामू हक पढ़ाई के अनुभव ने अनूप का कायाक प कर दया था और यह
केवल उसी के साथ नह आ था। उसक सफलता का मतलब चेव के कई और छा भी
उ श ा क ओर आक षत हो रहे ह और कई अ य अपनी सम या के व रत
समाधान के लए हसा को ‘न’ कहने लगे ह।
अनूप राज क कहानी आनंद कुमार और उनके साथी श क के सा य म पढ़ने के
लए शां त कुट र क या ा करनेवाले 390 गरीब लड़के-लड़ कय क कहा नय म से एक
है। पछले तेरह साल म करीब 390 व ा थय म से 333 ने आई.आई.ट . जे.ई.ई. म
सफलता हा सल क । यह कारनामा भारत म कसी अ य को चग सं ान ने नह कया है
और जब हर साल आनेवाले इन बेचैन ले कन आशावान व ा थय क पृ भू म पर वचार
कर तो उनक यह सफलता वाकई चम कारी लगती है।
ऐसा ही काश द प न ध झा थी। ऑटो र ा चालक क बेट न ध वाराणसी क थी।
चार बे टय और एक बेटे के पता सुनील झा का एकमा सपना था क उनक संतान को
वैसी गरीबी न झेलनी पड़े, जो उ ह ने पूरी जदगी र ा चलाते ए झेली थी। हालाँ क,
उनके पास नजी ूशन का खच वहन करने लायक पैसा नह था।
न ध का सनातन धम इंटर कॉलेज म दा खल कराया गया। शु से ही वह बेहद
लगनशील छा ा थी और पुरानी फट - चथी कताब म घंट उलझी रहती थी।
जब उसने दसव क परी ा पास क तो यह उसके लए सोच से परे क चीज थी। इससे
उसे इतना आ म व ास मला क वह उस सपने को पूरा कर सके, जसके लए अनेक
माता- पता ने पास के मं दर म पूजा क थी। वह अकसर उ ह ाथना करते सुना करती
थी, ‘‘हे भगवान्! मेरे बेटे को डॉ टर बना दो। इंजी नयर बना दो।’’ बना कसी बाहरी
मागदशन या औपचा रक को चग के केवल पुरानी कताब पढ़ते ए उसने आई.आई.ट .
वेश परी ा क तैयारी शु क थी। हालाँ क, वह सफल नह हो पाई; वह परी ा पास
नह कर सक ।
उसका सपना चूर-चूर हो गया। वह रोने लगी और अपने भा य को कोसने लगी। नराश
होकर उसने सरकारी कॉलेज म बी.एस-सी. म दा खला ले लया। तभी एक दन अखबार
म उसने सुपर 30 के बारे म पढ़ा। नराश हो चुक उसक आँख म फर से आशा क लौ
जगमगाने लगी। वह पटना प ँची और वेश परी ा पास करके सुपर 30 का ह सा बन
गई। सुपर 30 म लड़क क तुलना म लड़ कयाँ ब त कम थ , इस लए वह आनंद के
प रवार का ह सा बन गई। जयंती दे वी को वह ‘दाद ’ कहने लगी और मन लगाकर
मेहनत से पढ़ने लगी। अपने प रवार क त उसके दमाग म घूमती रहती—ऑटो र ा
चलाते पता, नमक न बेचते दादा, कसी क गाड़ी चलाते चाचा। इसके कारण उसक
पढ़ने क लगन बढ़ती गई। कई बार जयंती दे वी उससे थोड़ा आराम करने, ट .वी. दे खकर
तनाव-मु होने के लए कहत ; ले कन वह जवाब दे ती, ‘‘दाद , इस सबके लए तो पूरी
जदगी पड़ी है, ले कन यह मौका तो मुझे दोबारा नह मलेगा न।’’
रज ट आया और न ध पास हो गई। इंजी नय रग क पढ़ाई के लए वह भारतीय खनन
कूल, धनबाद गई। ांसीसी डायरे टर पा कल पकासो ने न ध के जीवन पर फ म
बनाई। वह फ म वष 2015 म रलीज ई और आनंद एवं णव के साथ न ध का प रवार
फ म का ी मयर दे खने पे रस गया था। वाराणसी म द र ता का जीवन बतानेवाले न ध
के प रवार के लए यह ब कुल व ल ण था। अचानक उ ह वह सब दखाई दे रहा था,
जसक उ ह ने अपनी बेट के लए क पना तक नह क थी।
जब आनंद और णव ने पे रस क सड़क पर न ध क तसवीर वाले पो टर दे खे तो दोन
भाई कृत ता के भाव से भर गए। उनक कामयाबी दे खकर उनके दल म एक सुकून-सा
भर गया।
स य साद सह और उनके प रवार क कहानी भी इतनी ही स मोहक है। वे एक
छोटे -मोटे कसान ह, जनके पास एक भस थी, जससे वे अपने प रवार का भरण-पोषण
करते थे। आसपास के घर और कान म वे ध बेचते थे। ले कन इस काम म यादा पैसा
नह था। स य साद के पास उनक भस के अलावा बस जमीन का एक छोटा सा टु कड़ा
था। जानवर को चराना और उसक ज रत पूरी करना ब त मु कल और थकानेवाला
काम था। गंगा क बाढ़ ने मानसून म उनक जमीन बरबाद कर द थी, इस लए आजी वका
क सारी आशाएँ केवल भस के ध तक सी मत हो चुक थ । कहने क ज रत नह क
स य साद नह चाहते थे क उनके बेटे आलोक को भी यही सब झेलना पड़े। अपने
वसाय म बार-बार नाकाम होने से तंग आकर उ ह ने बदहाली से कुछ हद तक छु टकारा
पाने के लए अपनी जमीन बेच डालने का न य कया। गाँववाल ने इसे आ मघाती कदम
माना। स य ने जमीन बेचने का मकसद अपने प रवारवाल और नकट म के अलावा
कसी को नह बताया था। जमीन बेचने से मले पैसे से उ ह ने आलोक का नाम एक अ े
एक कूल म लखवा दया। वे जानते थे क उनके गाँव म पढ़ाई- लखाई क हालत उस
सूखे चारे के समान ही है, जो वे अपने जानवर को खलाया करते थे।
स य क योजना ने नराश नह कया। आलोक को कूल भेजने से स य साद क
हालत भूख मरने जैसी हो गई; ले कन उ ह उ मीद थी क हालत ज र सुधरेगी।
कूल क पढ़ाई पूरी करने के बाद आलोक का चयन सुपर 30 म और फर आई.आई.ट .
म हो गया।
अब वह पावर ड म इंजी नयर ह और जब छु य म अपने घर जाता है तो गाँव के ब े
उसे घेर लेते ह। गाँव के उस वीरान हो चुके कूल क हालत म अब कुछ सुधार आ है और
वहाँ ब क हा जरी बढ़ने लगी है। आने वाले समय म और भी सुधार क संभावना है।
स य साद अब भी भस का काम करते ह; ले कन अब उ ह भ व य क चता नह है,
य क उनका बेटा कुछ बन गया है।
सुपर 30 से नकलनेवाले ब े अलग-अलग तरह से ऐसी ही क ठनाइय और तकलीफ ,
आनंद और उ लास से गुजरते ह, जो क कसी भी उ तरीय ट म के साथ होता है। वे
साथ रहते ह, साथ काम करते ह, साथ हँसते-बोलते ह, ध गा-म ती करते ह, सामान
सहेजते ह, एक- सरे को अपनी बात बताते ह और एक ट म के सद य के प म डू बते या
पार उतरते ह।
वाभा वक प से जब आप एक ट म म ह तो एक महान् कोच होना अखरता नह ।
आनंद कुमार और उनका प रवार वष से अनुकरणीय रोल मॉडल बना आ है। आनंद के
प रवार से मलनेवाली स ाव, शां त और सहानुभू त क भावना छा के लए मजबूत
आधार है, जो उन पर भरोसा करके आते ह। अ धकतर व ाथ अपने कोच के गुण सीख
लेते ह, जो वे अपने दै नक अनुभव और अ य तरीक से हण करते ह।
छा के मुख से
दसंबर 2015 म एक दन बड़े सुबह आनंद कुमार शां त कुट र के बाहर खड़े थे। दन शु
होने से पहले उनके मन म कुछ वचार उमड़ रहे थे। तज म दे खते ए वे मन-ही-मन
दन के अ याय क तैयारी कर रहे थे। तभी उनका मोबाइल बज उठा। उ ह ने फोन दे खा,
कोई अनजान नंबर था। आनंद अपना नंबर जहाँ-तहाँ दे ते रहते ह और दन भर उनके पास
अनेक चाही-अनचाही कॉ स आती रहती ह, जनम प कार से लेकर दा खले क
जानकारी चाहनेवाले लोग और उ ह गे ट ले चर के लए बुलानेवाले लोग शा मल होते ह।
आनंद ने फोन उठाया। फोन एक प कार का था, जो उनसे उ ह हाल म जमन सरकार से
मले स मान के बारे म जानना चाहता था। उ ह जमनी के से सनी ांत म बुलाया गया था,
जहाँ उ श ा और शोध रा य मं ी इवा मा रया टज ने उ ह उनके सराहनीय काय के
लए स मा नत कया था। उ ह ने उस स मान के बारे म थोड़ी बात क और फोन वापस
अपनी आगे क जेब म रखकर आँख बंद कर ल ।
पीछे से उ ह घर के अ य लोग के जागने और हलचल क आवाज आ रही थ । वे जानते थे
क उनका बेटा जगत् कुछ ही दे र म अपनी माँ के पास से उठकर उ ह ढूँ ढ़ता आ आ
जाएगा।
आनंद का ववाह ऋतु से वष 2008 म आ है जो आई.आई.ट . वाराणसी से नातक ह।
ऋतु एक सॉ टवेयर इंजी नयर के प म काम कर रही थ ; ले कन आनंद से ववाह के
बाद वे पूरी तरह से सुपर 30 म अपना योगदान दे ती ह।
वष 2010 म उ ह एक बेटा आ और ज द ही शां त कुट र क ा ही नह रह गया और
ब े क कलकारी से गूँजने लगा। जगत् कुमार केवल जयंती दे वी और बाक प रवार का
ही नह , सुपर 30 के ब के लए भी आकषण का क बन गया और वे भी उस ब े के
साथ खेलना और तनाव-मु होना पसंद करने लगे।
आनंद को कसी ने नाम से पुकारा तो वे च क गए। चाय बन चुक थी। आनंद सुपर 30
के भ व य और उससे मली स के बारे म सोच रहे थे, तभी उ ह मु ा इशारा करके
बुलाता दखा। चताम न आनंद को वे सारी चुनौ तयाँ याद आ ग , जो उ ह ने पछले वष
म झेली थ । वे सोच रहे थे क अगर उ ह णव, ऋतु, जयंती दे वी और हाँ, मु ा जैसे लोग
का सहयोग न मला होता तो आज सुपर 30 कुछ भी न होता।
आनंद अपने साधारण मकान म घुसे, जसने इतना कुछ बदलाव दे खा था। उ ह याद आया
क उनके पता राज साद उनसे या अपे ाएँ कर रहे थे। उनसे जो अपे ाएँ क जा रही
थ , वे उनके बारे म सोच रहे थे। आनंद जहाँ भी जाते ह, बड़ी सं या म हजार युवा उ ह
सुनने के लए और श ा के े म हो रही इस ां त का ह सा बनने के लए आ जाते ह।
कुछ लोग को लगता है क आनंद अब ब त बड़े आदमी हो गए ह और अकसर गरीब
म हला अपने नौ साल के ब े को पढ़ाने क वनती करते उनके पास आ जाती है। कई
बार ऐसा भी आ है, जब एक ऐसी म हला उनके पास मदद के लए आई, जसक
ससुरालवाले उसे दहेज के लए परेशान करते थे। लगभग हर दन कम-से-कम दस लोग
तो अलग-अलग तरह क सम याएँ लेकर आनंद के पास आते ही ह— कसी का प त
पीटता है, कोई अपने ब को पढ़ाना चाहता है, कसी को झूठे मुकदमे म फँसा दया
गया है। सबको लगता है क आनंद उनक मदद कर सकते ह। और आनंद कुछ मामल म
को शश करते भी ह; ले कन यादा कुछ न कर पाने के लए वे ल त भी महसूस करते
ह। लोग क दयनीय सूरत, मदद क आशा लये आँख उ ह और मजबूर कर दे ती ह। उ ह
लगता है क सुपर 30 केवल एक छोट सी शु आत है। वे दे श और गरीब के लए ब त
कुछ करना चाहते ह, ता क वे एक दन अपने पता का कोट पहनने के का बल हो जाएँ,
जो अब भी हगर पर टँ गा आ है।
छा के मुख से
वह जीवन का एक मोड़ था। हालाँ क, बहार म मेरा यारहवाँ ान आया था, ले कन मुझे
कुछ पता नह था क मेरा जीवन कहाँ जाएगा। सुपर 30 मेरे लए जीवन-रेखा बन गया।
उस पल के बाद से मने कभी पीछे मुड़कर नह दे खा। अब दे खते ह, यह सब कहाँ तक
बढ़ता है।
सभी छा -छा ा क अपनी-अपनी खू बयाँ और कमजो रयाँ थ । हमने जी पास करने
के लए एक- सरे क मदद क । आनंद सर हम लोग को अपार ऊजा से भर दया करते
थे। हम इसके सहारे चौदह घंटे लगातार पढ़ाई कर लेते थे।
इस अ यास ने मेरा जीवन बदल दया। म पाठक बन गया। अब म हर बार तीन से चार
कताब पढ़ लेता ;ँ ले कन अब उनका वषय मेरे बजनेस से संबं धत होता है।
र क और भोलू क अनूठ कहानी मुझे महसूस कराती थी क म परी ा पास कर सकता
ँ। मेरे लए संभव है। अब मुझे यह ेरणा दे ती है क म अपनी पृ भू म क परवाह कए
बना कुछ भी कर सकता ँ। अब आनंद सर को मागदशक, म और अ भभावक के प
म पाना मेरा सौभा य है। इसे श द म बयान नह कया जा सकता।
सुपर 30 म सीखे ये सबक मुझे जीवन भर याद रहगे—‘क ठन समय म भी आपको अपने
आप पर व ास करना सीखना होगा।’
संदभ सूची
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http://www.thehindu.com/news/national/other-states/obamas-special-envoy-hailssuper-
30/article 559325.ece .
2. Mishra, Alok K.N.—‘Big B Gets Teaching Tips from Super 30’s Anand’. 31 July,
2011.Times of India .
http://timesofindia.indiatimes.com/india/Big-B-gets-teaching-tips-from-Super-30s-
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3. Sarin, Jitendra. ‘Government Staff, Politicos Must Send Their Kids to Govt. Schools:
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http://www.hindustantimes.com/india/govt-staff-politicos-must-sendkids-to-govt-schools-
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5. Verma, Sanjeev Kumar. ‘Plea to Include IIT Counselling Fee in Loan’. 11 March, 2015.
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6. ‘UP Daily Wager Is Happy Father As His Son Cracks IIT’. 21 June, 2015. Hindustan
Times. http://www.hindustantimes.com/india/up-daily-wager-is-happy-father-ashis-sons-
crack-iit-govt-waives-fee/storymAQIE57E1Fs3MSri1XWcWK.html .