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सुपर 30 आनंद


संघष-गाथा
(हजार सपने, एक आनंद)

आनंद कुमार
इस पु तक का पूरा लाभांश
सुपर 30 के व तार के लए उपयोग कया
जाएगा
लेखक य
प टना, ( बहार) म 30 मई, 2008 क सुबह ब त साफ और चमक ली थी। बरतन क
आवाज आ रही थ और ब को ब तर से उठकर कूल यूनीफाम पहनने के लए राजी
कया जा रहा था। अभी सुबह ई ही थी, ले कन चाँदपुर बेला क ब ती म हलचल शु हो
गई थी। लोग ब ती के एक घर क ओर खचे जा रहे थे, शां त कुट र उस घर के बाहर एक
भीड़ इक ा थी और य द आप और आगे जाकर दे खते तो आपको कमीज पहने एक युवा
सा तीत होने वाला दखाई दे जाता, जो इस पूरी हलचल का क लग रहा था।
आनंद कुमार कई लोग से एक साथ बात करने का यास कर रहे थे, उनके के
उ र दे रहे थे, उनक शुभकामनाएँ वीकार कर रहे थे, और अपनी चता तथा बेचैनी
छु पाने क पूरी को शश कर रहे थे। उ ह ने पछले साल 30 छा को आई.आई.ट . जे.ई.ई.
क वेश परी ा के लए को चग द थी और आज प रणाम का दन था। यह रज ट का
समय था, सभी 30 छा ने रात आनंद कुमार के घर पर बताई थी और बेचैनी के कारण
कसी को न द नह आई थी। आनंद साल-दर-साल इन पल को जीते आ रहे थे, फर भी
उनक उ सुकता तब तक शांत नह होती, जब तक वे येक छा का प रणाम दे ख नह
लेते। 6 बजे तक सबने सोए होने का ढ ग करना छोड़ दया और तैयार होने लगे। आनंद
क माँ जयंती दे वी ने चाय बनाई और कुछ ही दे र म कुमार प रवार के साधारण से घर म
आनेवाले लोग क गहमागहमी शु हो गई।
सुबह के 6.30-7.00 बजते-बजते प कार भी आने लगे। आनंद ने पहले आए कुछ
प कार को समझाने का यास कया क रज ट 9 बजे के पहले नह आनेवाले, ले कन
ज द ही उ ह ने यह यास करना छोड़ दया, जब उ ह ने दे खा क वे प रणाम घो षत होने
के पहले वाले मूड को भी कैद करना चाहते ह।
2008 तक सुपर 30 एक जाना-सुना नाम बन चुका था। ‘पीपुल’ प का ने आनंद कुमार
को एक नायक का दजा दे दया था और ‘ यूजवीक’ प का ने उनक अनूठ पहल ‘सुपर
30’ को व के चार सबसे इनोवे टव कूल म से एक घो षत कया था। अपे ाएँ आकाश
छू रही थ , य क पछले वष 2007 म उनके 28 छा ने त त आई.आई.ट . जे.ई.ई.
क वेश परी ा म सफलता ा त क थी। आनंद प कार के फोन लेते रहते थे, जो
पछले कुछ वष म सुपर 30 क स फैलने के साथ उनके काफ करीब आ गए थे।
आशा करता ँ क प रणाम नराश नह करगे, घड़ी क सुई के नौ के नकट आते-आते
आनंद क उ सुकता और भी बढ़ जाती है। ले कन बाहर से दे खने पर वे शांत और आ त
नजर आते ह—छा को आ त करते ए, मी डया को स मो हत करते ए!
पौने नौ के करीब आनंद रोल नंबर क एक सूची हाथ म लेकर कं यूटर न के सामने
बैठ गए। छा उनके पास आकर खड़े हो गए और अ धक-से-अ धक लोग उस तंग कमरे
म समाने क को शश करने लगे। 9 बजकर एक मनट पर राकेश कुमार के चयन क
सूचना मल गई! खुशी क एक जयकार ई और राकेश कुमार क पीठ थपथपाई जाने
लगी। एक प कार चुपके से उसे बाहर ले जाने क को शश करने लगा, ता क उसका
इंटर ू ले सके। आनंद कुमार के पास अभी भी 29 नाम थे, जनके प रणाम उ ह जानने थे
उ ह ने अगला रोल नंबर डाला तो सब साँस रोककर इंतजार करने लगे, ले कन कुछ नह
आ, सवर जाम हो गया था। लाख उ मीदवार एक साथ अपने कोर जानने का यास
कर रहे थे। कुछ मनट बाद जय राम क सफलता सामने आई! और अब अठारह म से
अठारह का कोर हो चुका था, आनंद पसीने से नहा गए थे, ले कन उनके ह ठ पर ह क
सी मुसकान थी। वे एक के बाद एक प रणाम दे खते रहे, कभी-कभी प रणाम अचानक
सामने आ जाता और जोरदार ता लयाँ शु हो जात , और कभी-कभी कसी पेज पर एरर
आ जाता। लगभग डेढ़ घंटे बाद कं यूटर के सामने सहाय आनंद और रंजन कुमार बचे थे।
चता मत क रए, सब अ ा होगा, आनंद ने रंजन से कहा, जसका चेहरा सफेद हो गया
था। वह उ ीण हो चुका था, वह आनंद से लपटकर हँसने लगा, फर रोने लगा, और फर
जीत क खुशी म च लाने लगा।
आनंद को कंध पर उठा लया गया, उनके मुँह म ल डाले जाने लगे, लैश ब ब
चमकने लगे, अगली सुबह के अखबार क सु खयाँ लखी जाने लग , और ‘आनंद सर
जदाबाद’ के नारे गूँजने लगे। द पू कुमार के पता इस मौके पर उनके साथ रहने के लए
सुपौल से आए थे, वे इतने भाव वभोर हो गए थे क एक कोने म अकेले खड़े होकर रोने
लगे। आनंद सहाय क माँ जयंती दे वी के साथ बैठकर पू रयाँ और जले बयाँ बना रही थ ।
प कार अ धक-से-अ धक छा से बात करने का यास कर रहे थे। यह सब सच था,
आनंद व ास नह कर पा रहे थे। अपने छा के चमकते, उ ल सत चेहर को दे खकर
उ ह इतनी खुशी महसूस हो रही थी क उसके अ तरेक से उनक आँख म आँसू आ गए।
इ तहास रचा जा चुका था; सुपर 30 ने शत तशत प रणाम हा सल कया था।
1
एक हीरो का वागत
30 सतंबर , 2014 एम.आई.ट . मी डया लैब
आनंद कुमार साधारण सी कमीज और घसी ई पतलून म मंच पर खड़े थे। वे बेचैन,
ले कन आ म व ास से भरपूर थे। उनके ह ठ पर एक ह क सी मुसकान खेल रही थी।
एक ऐसी मुसकान, जसम व मय और अ व ास झलक रहा था। वे अवा त वकता क
एक अजीब सी भावना महसूस कर रहे थे। वे अपनी क पना म सबसे स मा नत और
ग रमापूण लोग के समूह के सामने खड़े थे—बो टन के मैसाचुसेट्स इं ट ूट ऑफ
टे नोलॉजी (एम.आई.ट .) के छा और ोफेसर के सामने और अपने अनूठे कूल सुपर
30 के वषय म एक ा यान दे ने क तैयारी कर रहे थे। इस नया के तरीके भी अजीब
ह। आनंद सोच रहे थे, कुछ ही समय पहले म अपनी साइ कल पर आस-पड़ोस क ग लय
के च कर लगाते ए पापड़ बेच रहा था और क ज म पढ़ने के अपने टू टे ए सपने को
भूलने क को शश कर रहा था—और आज म यहाँ खड़ा ँ।
उ ह ने अपना सर हलाया और बोलना शु कया, ‘‘मुझे यह मंच और आप सबके
सामने बोलने का अवसर दे ने के लए ध यवाद। मेरे लए व ास करना मु कल है क मुझे
नया के शीष सं ान म से एक म बोलने के लए आमं त कया गया है। इस सं ान
एम.आई.ट . म उ श ा ा त करना कई लोग का सपना है, और आज मुझे यहाँ आने
का अवसर मला है।
‘‘म बहार से आया ,ँ भारत का वह रा य, जो नालंदा और व म शला व व ालय
जैसे सं ान के साथ श ा के े म अपनी गौरवशाली परंपरा के लए जाना जाता
था। आज नया म ब त से लोग बहार के बारे म यह जानते ह क धीरे-धीरे बहार का
पतन हो गया और बहार क लगभग 40 तशत जनसं या लख-पढ़ नह सकती, ले कन
अब धीरे-धीरे बहार का चेहरा बदलने लगा है।
‘‘म यहाँ आपको कुछ नया बताने नह आया ँ। म सफ इतना कहना चाहता ँ क श ा
अभी भी नया क अ धकांश सम या से नपटने का सबसे श शाली ह थयार है,
य क अ धकांश सम या क उ प गरीबी और अ ानता से होती है। सुपर 30 इसका
उ मूलन करने क दशा म एक कदम है और म उ मीद के साथ शु आत कर रहा ँ; इस
उ मीद के साथ क तूफान चाहे कतना भी वनाशक हो, एक चतुर ना वक के धैय और
मागदशन के सहारे जहाज उसम से सुर त बाहर आ सकता है।
‘‘इस लड़के क क पना क जए। संतोष, बहार क राजधानी पटना से 40 कलोमीटर र
एक गाँव के एक अ य धक गरीब प रवार का लड़का। वो राजमाग के पास अपने माता-
पता के साथ रहता था और उसके प रवार का गुजारा स जयाँ बेचकर होता था। संतोष
एक ब त ही मामूली सरकारी कूल म जाता था और शाम को वह स जी के ठे ले पर अपने
पता क मदद करता था।
‘‘संतोष श ा क ताकत को समझता था और उसके माता- पता भी श ा के मह व को
समझते थे। उसने दसव तक क पढ़ाई पूरी कर ली; ले कन वह नह जानता था क आगे
या करना है। वह ग णत म अ ा था, इस लए आसपास के सभी लोग ने उसे
आई.आई.ट . क तैयारी करने क सलाह द और उसने पटना जाने का फैसला कर लया।
फर उसे एहसास आ क पटना म को चग लेना ब त महँगा था और वह कसी भी सूरत
म वहाँ को चग नह ले सकता था। वह उसे सुपर 30 के बारे म पता चला। उसने वेश
परी ा द और उसका चयन हो गया। उसे आई.आई.ट . खड़गपुर म दा खला मल गया।
सड़क के कनारे स जी बेचनेवाले से यूरोप म शोध छा तक क संतोष क या ा ने भारत
के अलावा जापान, जमनी और अमे रका के मी डया का भी यान आक षत कया। यहाँ
तक क उस पर एक वृ च भी बना, जसम दखाया गया था क कैसे बगैर कसी
सु वधा के और कभी-कभी बगैर भोजन के एक लालटे न क रोशनी म पढ़ाई करके वह
इतनी ऊँचाई तक प ँचा था। आज वह यूरोप क एक त त यू नव सट म है।
‘‘अब म आपको अनूप के बारे म बताता ँ। अनूप बहार के एक र-दराज के गाँव छव म
रहता था, जहाँ न स लय का कोप है। अनूप के प रवार को पेट भरने के लए संघष
करना पड़ता था। एक रात आठ वष का अनूप भूख से रो रहा था। उसक माँ ने उसके
पता से वनती क क वे बाहर जाकर कसी से थोड़ा चावल माँग लाएँ, ता क वे उसे
उबालकर नमक के साथ सबको खला सक। ले कन पानी तब तक उबलता रहा, जब तक
क बरतन म एक बूँद भी नह बचा। अनूप के पता फर कभी लौटकर नह आए। कुछ
लोग कहते ह क उ ह न स लय ने पकड़ लया था। गाँववाले कई दन तक उ ह ढूँ ढ़ते
रहे, ले कन उनका कुछ पता नह चला। अनूप बड़ा हो गया। जस घोर गरीबी से वो घरा
आ था, उससे पहले खी और फर नाराज वह दे श म गरीब और अमीर के बीच मौजूद
वशाल खाई से नराश हो गया था। वह न स लय के तरीक से आक षत होकर बदला
लेने के उपाय तलाशने लगा। ले कन उसक माँ जानती थी क सबसे श शाली ह थयार
एक ही था— श ा। उसने कड़ी मेहनत क और अनूप को कूल भेजा। अनूप ने दसव म
ब त अ े अंक ा त कए और आगे क पढ़ाई के बारे म जानकारी ा त करने पटना
आया। वह पटना म मु यमं ी ी नीतीश कुमार के घर पर जनता दरबार म प ँचे।
मु यमं ीजी से मलने के पहले ही एक अ धकारी ने अनूप क सम या सुनी और उस युवा
लड़के क बेबसी दे खकर उ ह ने सुपर 30 के बारे म बताते ए मुझसे मलने का सुझाव
दया। उ ह यह बताया गया था क आनंद कुमार कसी से कोई फ स नह लेते ब क
व ा थय को रहने-खाने क भी सु वधा नःशु क दान करते ह। मुझे उस अ धकारी का
नाम तो पता नह है, ले कन म उनका शु गुजार ँ क अनूप जैसे होनहार ब े को बड़े
ेम और शां त से उ चत सलाह द ।
‘‘जब मने पहली बार अनूप और उसक माँ को दे खा तो वे नंगे पाँव और पसीने से लथपथ
थे, ले कन उनक आँख म एक चमक थी। अनूप ने दो वष कड़ी मेहनत क और आज वह
आई.आई.ट . मुंबई म अपने तीसरे वष म है।’’
हर कहानी के बाद और आनंद कुमार के पीछे क न पर साथ-साथ चल रही छ वय
को दे खने के बाद दशक च कत हो जाते और कुछ तो ता लयाँ भी बजाने लगते, बगैर इस
बात का एहसास कए क वे एक ा यान के बीच म ता लयाँ बजा रहे थे।
आनंद ने उ ह अनूप और संतोष जैसे कुछ और छा क कहा नयाँ भी सुना । उ ह ने
दशक को अनुपम के बारे म बताया, जसके पता एक ऑटो र ा चलाते थे, और कई
अ य लोग के बारे म भी बताया, जो सुपर 30 ारा बनाई जीवनरेखा को थामकर गरीबी
के गत से बाहर नकल पाए थे।
‘‘अब म आपको सुपर 30 के वषय म बताना चा ँगा। सुपर 30 वं चत वग के छा के
लए एक काय म है, जो मने कई वष पहले 2002 म आरंभ कया था। मने भी गरीबी को
ब त नकट से दे खा है। म भी अभाव का दद समझता ँ। मेरे पताजी भारत के डाक
वभाग म एक नचले दज के लक थे। म एक ग णत बनना चाहता था और ग णत म
हमेशा नए प रणाम तक प ँचने क को शश करता रहता था। मने अपने कॉलेज के दन
म कुछ ग णतीय शोध प लखे थे, जो त त वदे शी जन स म का शत ए थे। मुझे
क ज यू नव सट म ग णत म उ श ा के लए अ ययन करने का अवसर मला था,
ले कन धन क कमी के कारण म वहाँ नह जा सका। मने मदद हा सल करने क ब त
को शश क , ले कन उस समय सभी दरवाजे मेरे मुँह पर बंद कर दए गए। मेरी नया तो
पहले ही उजड़ चुक थी, जब अपनी नराशा के चरम पर मने अचानक अपने पता को भी
खो दया। अब अपने प रवार का पेट भरने क और नराशाजनक प र तय को
सँभालने क ज मेदारी मेरे कंध पर थी। उस समय मेरा छोटा भाई प भूषण एन. राजम
का श य था और उनके संर ण म बनारस ह यू नव सट म वाय लन बजाना सीख रहा
था। पता क मृ यु के बाद मुझे डाक वभाग म अनुकंपा के आधार पर नौकरी का ताव
मला; ले कन मने उसे अ वीकार कर दया और आस-पड़ोस के इ ु क छा को ग णत
पढ़ाने लगा। मने पास ही एक कमरा कराए पर ले लया और मेरे छा मुझे अपनी
सु वधानुसार जब दे सकते, मेरी फ स दे दे ते थे। ले कन हम जी वत रहने के लए पैस क
आव यकता थी। मेरी माँ पापड़ बनाती थ , जो एक वा द भारतीय नमक न है और म
अपनी साइ कल पर घर-घर जाकर उ ह बेचता था। कभी-कभी मुझे अपमान का सामना
करना पड़ता था; ले कन मने कभी उ मीद और ह मत नह छोड़ी। धीरे-धीरे छा क भीड़
बढ़ने लगी और मेरा काय म बहार रा य के वं चत छा के बीच मश र होने लगा। एक
बार मेरे पास एक ब त ती बु का छा आया और बोला क उसके पास मेरी 500
पए क वा षक फ स दे ने क भी मता नह थी। ले कन उसने मुझे आ ासन दया क
जब उसके पता के खेत म आलु क पैदावार होगी। तो वह मेरी फ स चुका दे गा। मने
उससे पूछा क मेरी क ा म शा मल होने के लए वो पटना म कैसे रहेगा, तो उसने
जवाब दया क वह एक अमीर आदमी के घर क सी ़ढय के नीचे डेरा डालकर रहता है।
‘‘म वीकार करता ँ क मुझे कुछ संशय आ और मने उस लड़के के पास अचानक प ँच
जाने का न य कया। उस लड़के को संपूण एका ता के साथ भौ तक क पु तक म
आँख गड़ाए दे खकर म अंदर तक हल गया। मुझे अपने क ठन दन क याद आ गई। यही
घटना सुपर 30 काय म शु करने क ेरणा का ोत बन गई। मने अपने भाई णव
कुमार को बुलाया, जो अब तक एक तभाशाली वाय लन वादक बन चुका था और मुंबई
म काम करता था, और हमने एक साथ मलकर सुपर 30 क योजना पर काम करना शु
कर दया। णव पहले भी मेरी मदद करता था, ले कन अब वो सुपर 30 म सीधे-सीधे
शा मल था और उसके बंधन क ज मेदारी सँभाल रहा था। गहन जाँच के बाद वं चत
वग से 30 गरीब, ले कन तभाशाली छा सुपर 30 का ह सा बनने के लए चुने गए।
वचार था क उ ह पूणतः नशु क आई.आई.ट . को चग दान करना। आवास और
भोजन स हत शु आत म 30 छा के लए व ा करना उतना आसान नह था; ले कन
मेरे प रवार ने इस यास के लए मेरी हर संभव सहायता क । म उन छा को पढ़ाकर
पैस क व ा करता था, जो फ स दे सकते थे; जब क मेरी माँ जयंती दे वी, छा के
लए खाना बनाती थ । छा के लए सफ एक ल य था—पूरे प र म के साथ पढ़ाई
करना और अ य सम या से वच लत न होना। शु आती सफलता के बाद, मुझे मौ क
दान के ब त से ताव मले; ले कन मने वन ता से अ वीकार कर दए। कई लोग मुझसे
व ीय सहायता वीकार न करने का कारण पूछते ह। कारण है—म सा बत करना
चाहता ँ क य द आपके पास इ ा और ढ संक प है तो बहार म भी, जो भारत का
सबसे पछड़ा रा य है, आप जो चाह कर सकते ह। संसाधन और बु नयाद सु वधा का
अभाव कसी को ल य ा त करने से नह रोक सकता।
‘‘जब मेरा काय म सफलतापूवक चलने लगा तो मुझे शंसा मली; ले कन साथ ही पटना
का को चग मा फया मेरे खलाफ खड़ा हो गया। पटना म को चग एक ब त ही लाभ द
उ ोग है और सुपर 30 क सफलता और बढ़ती लोक यता उनके सामने खतरा बनकर
मँडरा रही थी। तीन बार मुझ पर सश अपरा धय ने हमला कया था। एक बार मेरे गैर-
श ण टाफ म से एक मु ा, ब त बुरी तरह घायल हो गया था। उसके पेट म चाकू घ प
दया गया था और उसे तीन महीने तक अ ताल म जीवन के लए संघष करना पड़ा था।
मेरे कुछ म ने मुझे पूछा भी क इतने खतर के बावजूद म सुपर 30 य चला रहा था।
ले कन मने कभी ह मत नह हारी। म बहार सरकार को स दय ध यवाद दे ना चाहता ँ
क सरकार ने मुझे दो सश अंगर क दान कए और वे अभी भी मेरे साथ ह। उसके
बाद कभी कोई हमला मुझ पर नह आ। जब प रणाम आने शु ए तो हम ब त खुश
ए और कुछ च कत भी। पहले ही वष म 18 छा को सफलता ा त हो गई थी। सरे
वष म 22 छा ने, तीसरे वष 26 छा ने, चौथे वष 28 छा ने, पाँचव वष 28 छा ने
और उसके बाद तीन वष लगातार सभी 30 छा ने आई.आई.ट . क वेश परी ा उ ीण
कर ली। जन छा को आई.आई.ट . म दा खला नह मला, उ ह अ य त त
इंजी नय रग कॉलेज मल गए। पछले 12 वष म 308 छा ने आई.आई.ट . जे.ई.ई. के
लए अहता ा त क । अब, मा फया मुझे परेशान नह करता, ले कन अ य रणनी तय का
सहारा लेता है, पछले कुछ समय से यहाँ गया, नालंदा, यहाँ तक क राजा, बाजा जैसे
नाम के उपसग के साथ सुपर 30 क बाढ़ आ गई है। वह साइनबोड पर न हे अ र म
मुंबई, राजा या बाजा लखते ह और बड़े-बड़े अ र म सुपर 30 लख दे ते ह। उनका उ े य
मासूम छा को बेवकूफ बनाकर सुपर 30 क सफलता भुनाना होता है। उनका उ े य
होता है इस काय म से पैसे बनाना और सरकार के साथ-साथ नजी े से भी व ीय
दान लेना। कभी-कभी ये चीज मेरे लए भी सम याएँ उ प कर दे ती ह, ले कन अ धकतर
लोग इन चाल चलनेवाल क स ाई पता कर ही लेते ह।
‘‘एक और , जसका सामना मुझे जहाँ भी म जाता ँ, करना पड़ता है। वो है—आनंद,
सुपर 30 के सफलता के पीछे या रह य है?
‘‘वा तव म, न तो इसके पीछे कोई जा है, न ही म अ य लोग से कुछ अलग ँ। म तो
एक ब त साधारण सा श क ँ। सफलता कभी भी आसानी से नह मलती। मुझे लगता
है क इन वं चत छा के श ण के दौरान सबसे मह वपूण चीज है उनके आ म व ास
का तर बढ़ाना। लंबे समय तक अभाव म रहने के कारण वे कसी भी अ य छा जतने
तभाशाली होने के बावजूद अपनी सम त आकां ाएँ खो चुके होते ह।
‘‘ले कन फर, ऐसा करना इतना आसान नह होता। यह वा तव म एक ब त मु कल
काम है; य क गरीब प रवार से आए छा हमेशा एक गंभीर हीन भावना के साथ
शु आत करते ह। हमारा पहला उ े य होता है उ ह नराशा के बादल से बाहर ख चकर
लाना और उ ह उनक मता का व ास दलाना। एक बार जब वे आई.आई.ट .
जे.ई.ई. क पढ़ाई करने के लए मान सक प से तैयार हो जाते ह तो हम आधी लड़ाई
जीत जाते ह, य क आ म व ास उ ह और अ धक यान क त करने म मदद करता है।
उ ह यह भी महसूस होने लगता है क वे भी संप प रवार के छा जतने यो य ह।
‘‘इस ब पर नरंतर बल दे ते रहने के लए मने दो च र क रचना क —भोलू और
र क । जहाँ र क संप प रवार से आता है, भोलू एक गरीब प रवार से आता है।
र क ांडेड कपड़े पहनता है, जब क भोलू साधारण सा कुरता-पाजामा पहनता है।
र क प ा-बगर खाता है, जब क भोलू म का और चपाती जैसा साधारण भारतीय
खाना खाता है। र क मोटरसाइ कल चलाता है, जब क भोलू एक पुरानी साइ कल
चलाता है। र क अं ेजी म बात करता है, जब क भोलू ानीय भाषा म बात करता है।
मेरे उदाहरण का पहला भाग हमेशा वशेषा धकार ा त लोग और वं चत लोग क
पर र वरोधी जीवन-शैली का सुझाव दे ता है; ले कन सरा भाग इस बारे म होता है क
कैसे उनक जीवन-शैली से इस बात पर कोई फक नह पड़ता क उनक उपल याँ या
होती ह। जब दोन के सम एक ग णतीय सम या तुत क जाती है तो र क के पास
सफ वही एक समाधान होता है, जो उसके श क ने उसे सखाया होता है। वो उस
को ब कुल पा पु तक शैली म और वह भी ज द से हल कर लेता है; जब क भोलू उस
के साथ संघष करता है। ले कन अंत म, भोलू नए समाधान क खोज करता है और
को व भ तरीक से हल करता है।
‘‘ऐसा करने के दो लाभ ह—मेरे छा को यह भी सीखने को मलता है क सफलता के
लए खेल का मैदान हमेशा समान तर का होता है, इस बात क परवाह कए बगैर क
कौन कहाँ पैदा आ है। इस लए, भोलू मेरे छा के लए रोल मॉडल (आदश) बन जाता
है। भोलू उ ह कभी हार न मानना सखाता है, य क सफलता ा त करना वह एकमा
तरीका है, जससे वे वार का ख अपने प म कर सकते ह। अपनी मुख ताकत के
प म कड़े प र म के साथ वे उसे हा सल करने म समय नह लगाते। परी ा भवन म वे
ज टल का सामना भी पूण आ म व ास के साथ करते ह।
‘‘अब म येक वं चत छा को श त दे खना चाहता ँ। अब मेरा एक सपना है, म अपने
छा को एम.आई.ट . म दे खना चाहता ँ। ये मेरा ब त बड़ा सपना है। मेरे कुछ छा को
अ अमे रकन यू नव सट म पढ़ने का अवसर मला है और वे यहाँ काम कर रहे ह;
ले कन अब तक कसी को एम.आई.ट . म दा खला नह मल पाया है। म नह जानता क
मेरा यह सपना पूरा होगा या नह , ले कन म जानता ँ क अपने ल य क ा त के लए
मुझे कड़ा प र म करते रहना होगा। इस समय म एक टन शेड के नीचे एक अ ायी
कूल म पढ़ा रहा ,ँ इस उ मीद म क मेरे छा यहाँ तक प ँचगे। म अपने छा को
नोबेल पुर कार वजेता एवं फ पुर कार वजेता के प म दे खना चाहता ँ।
‘‘म यहाँ आपसे कुछ माँगने नह आया ँ। जैसा क आप जानते ह, म कोई व ीय
सहायता वीकार नह करता। म इतनी र आप जैसे महान् ौ ो गक वशेष से यह
अपील करने आया ँ क ौ ो गक को सफ अ धक-से-अ धक पैसे बनाने का औजार
नह बने रहना चा हए। उसका उपयोग अ श ा के खलाफ लड़ाई म एक मह वपूण
ह थयार के प म करना चा हए, ता क गरीब-से-गरीब छा को भी उ गुणव ा क
श ा ा त हो सके। आज मुझे महसूस होता है क ौ ो गक वशाल लाभ अ जत करने
और मानवीय म पर नभरता कम करने के एक मह वपूण उपकरण के प म उभरी है।
ले कन अब यह सोचने का समय आ गया है क इसका उपयोग गरीबी से लड़ने के लए
कैसे कया जा सकता है, जो नया भर म लोग को भा वत करती है। समय आ गया है
क लैब से बाहर नकलकर दे श और गाँव म ा त गरीबी को महसूस कया जाए, जहाँ
लोग को बु नयाद बजली और साफ पानी भी नह मलता। ऐसा करने से ौ ो गक म
एक मानवीय आयाम जुड़ जाएगा, जसक नया को एक बेहतर जगह बनाने के लए
आव यकता भी है। यु क मशीन हम यु म वजय दला सकती ह, ले कन हम शां त
और आ म ान नह दे सकत ।
‘‘आज, नया चाहती है क ौ ो गक मानवता को बचाए और उसे ग रमा दान करे
और इसके लए सभी वग से सहयोग क आव यकता है। हम सबक आव यकता एक
खूबसूरत नया ही तो है। एक नया, जो गरीबी और अ श ा से मु हो; एक नया,
जसम सही समझ और क णा हो।’’
इन श द के साथ आनंद कुमार ने अपना व समा त कर दया। वे आँख म आँसू
और ह ठ पर बड़ी सी मुसकान के साथ मंच पर खड़े थे। उ ह ने अपने दोन हाथ उठाए
और झुककर दशक का अ भवादन कया। वे कुछ घबराए से लग रहे थे। ले कन ता लय
क गड़गड़ाहट थम नह रही थी। लोग खड़े होकर ता लयाँ बजा रहे थे। कुछ न प लोग
क आँख म आँसू भी थे। उ ह ने एक अ डग ईमानदारी और स े धैय का दशन दे खा
था। उ ह ने एक आदमी का उसके भा य के खलाफ संघष दे खा था, उसक न वाथता
दे खी थी और इस आदमी ने उनसे कुछ नह माँगा था। ये र गटे खड़े कर दे नेवाला काम था।
आनंद कुमार मंच से नीचे उतरे, अभी भी सर झुकाए ए और दशक क त या से
अ भभूत गोरे लोग खड़े होकर मेरे लए ता लयाँ बजा रहे ह। कुछ लोग रो भी रहे ह। उ ह ने
चार ओर दे खा और हैरानी से सोचा क लोग तसवीर लेने और बात करने उनके पास आ
रहे थे। वे सब पर समान प से यान दे रहे थे और जहाँ तक संभव था, उनके के
उ र भी दे रहे थे।
कार म एम.आई.ट . मी डया लैब से लौटते ए आनंद कुमार पछली सीट पर बैठे ए
पीछे छू टते पेड़ को, व त ै फक को, साफ व नीले आसमान को दे ख रहे थे और उ ह
असी मत अवसर नजर आ रहे थे। उ ह ने सर घुमाया और अपने भाई णव को दे खकर
मुसकराए, जो उनक बगल म बैठे थे।
‘‘हम कतनी र आ गए ह, भैया।’’ णव बोले, ‘‘आज पताजी होते तो उ ह कतना गव
होता!’’
‘‘हाँ, उ ह ने हमेशा मुझम कुछ ऐसा दे खा था, जो म खुद कभी नह दे ख पाया था। मुझे
अभी भी वह समय याद है, जब वे मुझसे मजाक करते थे और मेरे पाँव छू ने म मुझसे
त धा करते थे। जब म उनके पाँव छू ने क को शश करता था, हम कैसे मजाक कया
करते थे! वे मुझे श मदा करते थे और हमेशा मुझसे कहते थे, जब तुम बड़े आदमी बन
जाओगे, तब म नह रहा तो? इस लए मुझे अभी अपना स मान कर लेने दो।’’ आनंद ने
अपना सर हलाया और अपने आँसू नह रोक पाए।
णव ने अपने बड़े भाई के कंध को अपनी बाँह से घेरा और बहा री से अपनी
भावना को काबू करने क को शश करते ए बोले, ‘‘ पताजी ऊपर ही कह ह और हम
दे ख रहे ह, भैया। आज आप उ ह के आशीवाद से एम.आई.ट . म दशक को संबो धत
कर रहे थे।’’ आनंद उदासी से मुसकराए और उस समय को याद करने लगे, जब उनक
नया बखर रही थी और उ ह एक के बाद एक झटके लग रहे थे उस समय भी उ ह ने
अपने भा य को वीकार नह कया था, और आज भी वे सपने दे ख रहे थे।
हाँ, वे दे ख रहे ह, सुपर 30 हमारी भ योजना क एक छोट से पहल है और म इसे
ब त बड़ा बनाना चाहता ,ँ ता क म उस सपने को पूरा कर सकूँ, जो पताजी ने शु से
दे खा था म और अ धक छा क मदद करना चाहता ँ और उस भाव को गुणा करना
चाहता ,ँ जो हमने सुपर 30 के साथ दे खा है।
नया म कुछ लोग ह, जो प र तय को अपने रा ते क बाधा नह बनने दे ते। आनंद
कुमार उनम से एक थे। जैसा क ऑ कर वाइ ने कहा था, ‘हम सब गटर म ह, ले कन
हमम से कुछ सतार क ओर दे ख रहे ह।’
छा के मुख से

नाम : श श नारायण
सुपर 30 बैच : 2004
इं ट ूट और म : कं यूटर साइंस और इंजी नय रग, आई.आई.ट . खड़गपुर
वतमान जॉब : रसच एसो शएट, यू नव सट ऑफ ए डनबग
पी छे मुड़कर अपने कै रयर को दे खता ँ तो पाता ँ क सुपर 30 का ह सा बनना मेरे
जीवन को बदल दे नेवाली घटना थी। मुझे याद है, जब म जेईई क तैयारी के लए पहली
बार पटना आया और दो महीने के अंदर मुझे भीड़ म गुम हो जाने के आतंक का एहसास
आ। एक अ त साधारण प रवार का होने के नाते म अपने माता- पता का ब त आभारी
ँ, ज ह ने मेरे लए कभी कोई सीमा नधा रत नह क । उनके ो साहन से म सुपर 30 के
लए चय नत आ और उसके बाद जो भी आ, वह सब सुपर 30 क वजह से आ।
मुझे लगता है क पटना म और कई अ य ान म कई छा , वशेष प से कमजोर
आ थक पृ भू मवाले छा के पास मता तो होती है, ले कन उ चत मागदशन का अभाव
होता है। सुपर 30 ऐसे तभाशाली छा के लए वग के समान है। इसने हम पढ़ाई के
लए एक आदश वातावरण, कठोर ले कन परवाह भरा संर ण और बेशक ब त अ े
दो त दए और यह सब बगैर कसी शु क के इसने हमारे अंदर से भीड़ म गुम होने के डर
को बाहर ख चकर नकाला और हम उस तर पर प ँचाया, जहाँ हम मानने लगे क हम
अपनी अ त साधारण पृ भू म के बावजूद सफल हो सकते ह। मेरे लए वह भावना और
आंत रक श ब त व श थी और मुझे वो आनंद सर और सुपर 30 के कारण मली। म
खुद को भा यशाली समझता ँ क म ऐसी महान् सं ा का ह सा ,ँ कोटा फै टरी का
उ पाद नह ।
सुपर 30 के बाद म कं यूटर साइंस और इंजी नय रग म मेजर करने आई.आई.ट .
खड़गपुर चला गया। आनंद सर हमेशा कहते थे क मुझे उ श ा के लए जाना चा हए।
म मानता ँ क म उ ह के आशीवाद से उ श ा ा त कर सका। इस समय म
यू नव सट ऑफ ए डनबग म रसच एसो शएट ँ, जो व क मुख यू नव सट म से
एक है।
म बाद के वष म सुपर 30 क सफलता क कहा नय पर गव महसूस करता ँ। म आशा
करता ँ क नकट भ व य म हम ऐसी सं ा पर और काम करगे, जो कमजोर पृ भू म
के छा को व भ कै रयर संभावना के बारे म मागदशन दे ती ह।
2
एक मसीहा का ज म

रा ज साद पटना के एक मीठापुर मुह ले के गौड़ीय मठ नाम क ब ती म अपनी प नी


जयंती दे वी, माता- पता और पैर से वकलांग भाई के साथ रहते थे। वे रेलवे क मेल सेवा
म प क छँ टाई का काम करते थे और मु कल से गुजारा चलने लायक कमाते थे।
भुखमरी उनसे कभी र नह रहती थी, ले कन प रवार कसी तरह पेट भरने और उस
मकान का कराया भरने जतना जुटा लेता था, जो पटना के मानक से भी बेहद मामूली
था। 8 फ ट बाई 8 फ ट के दो कमरे, एक साझा रसोईघर और बरामदा, जो दो प रवार को
समायो जत करता था। आधे ह से म राज साद और जयंती रहते थे; जब क उनके भाई
मीना साद और उनका प रवार शेष आधे ह से म रहते थे। उनके माता- पता के पास
अपना कोई कमरा नह था और वे कभी राज के कमरे म और कभी मीना साद के कमरे
म सोते थे।
साद प रवार उन 7.5 करोड़ लोग म से था, जो सन् 1973 म बहार क आबाद का
नमाण करते थे और जसम से 70 तशत गरीबी रेखा के नीचे रह रहे थे। 54 तशत के
रा ीय औसत क तुलना म भारत क जी.डी.पी. वकास दर रा ीय तर पर 1 तशत से
कम थी और बहार इस मामूली वृ का भी मह वपूण लाभाथ नह था।
गरीबी एक संकु चत करनेवाली पीड़ा होती है। संप लोग क पना भी नह कर सकते क
गरीब अपनी प र तय म रहते ए एक-एक दन कैसे गुजारते ह, ले कन गरीब लोग
को खु शयाँ भी मलती ह। ऐसी चीज होती ह, जो उ ह घोर नराशा से बाहर लेकर आती ह
और ऐसी ही एक खुशी ने साद प रवार के दरवाजे पर द तक द —और उस खुशी के
लए उससे बेहतर और कोई समय नह हो सकता था।
1 जनवरी, 1973 क स दय क एक सद शाम थी और राज साद े न म प छाँटते
ए कलक ा गए ए थे। गौड़ीय मठ म उनक प नी जयंती दे वी पसीने से नहाई ई थ
और सव पीड़ा से बेहाल थ और म हलाएँ उ ह एक अलग कमरे म ले गई थ । शां त दे वी
ने ढ़तापूवक दो अ य म हला को नदश दए और जयंती दे वी को कोमल वर म
आ त करने लग ; ले कन अपने दल म वे डरी ई थ ।
पाँच साल पहले राज साद के सबसे छोटे भाई नर के कसर के आगे घुटने टे क
दे ने के बाद से उनका प रवार उदासी म डू बा आ था। वह सफ 18 वष का था। प रवार
क नर से ब त उ मीद थ , य क वो एक तभाशाली युवक था। जसम डॉ टर बनने
के गुण थे। ले कन भा य से क मत क कुछ और ही योजनाएँ थ । डॉ टर बनकर
प रवार को गरीबी से मु करने के बजाय नर को कसर से बचने के यास म प रवार क
पूरी जमा-पूँजी खच हो गई। उ ह ने पूरा एक साल मुंबई के टाटा कसर सटर म बताया।
ले कन अंत म जीत कसर क ई;
इस त का असर पूरे प रवार पर आ, ले कन इस ःख को सहने म सबसे अ धक
मु कल शां त दे वी को ई। उ ह इस त ने तोड़कर रख दया। दन बीतते गए, ले कन
उनका ःख कम नह आ। प रवार को डर था क वे तनाव त हो जाएँगी और उ ह लगा
क शायद वातावरण बदलने से उ ह मदद मले। उ ह ने द ली म रहनेवाले र तेदार के
पास जाकर कुछ दन रहने का नणय लया। हालात और बगड़ गए, जब राज साद
और जयंती दे वी ने अपनी छह माह क बेट को सं त बीमारी म खो दया। द ली के
र तेदार भी क ठनाई से जीवन बता रहे थे, ले कन फर भी उ ह ने पया त क णा दखाई
और शां त दे वी को गौड़ीय मठ क भयावहता से कुछ दन क राहत दान करने को तैयार
हो गए।
द ली म शां त पाने के लए बेताब शां त दे वी एक दानेवाले बाबा के पास ग , जो
लोग क बीमा रय के बारे म सुनते थे और फर इलाज के प म अनाज के कुछ दाने दे ते
थे। शोकाकुल शां त दे वी ने बाबा को अपने जवान बेटे और न ही पोती क अचानक मृ यु
के बारे म बताया। बाबा ने उ ह एक दाना दया और बोले, ‘तुम य रो रही हो? तु हारा
बेटा ठ क है और रा ते म है। अपने घर वापस जाओ।’ शां त दे वी आ यच कत हो ग ।
ले कन उ ह बाबा पर व ास था। उ ह ने उसी रात पटना वापस जाने के लए े न पकड़
ली और जब वे घर प ँच तो उ ह पता चला क जयंती दे वी गभवती थ । उ ह ने अपनी ब
को गले लगा लया और धीरे से बोल , ‘‘ चता मत करो, हमारी बुरी क मत चली
जाएगी।’’
गभाव ा का समय ब त नाजुक था, य क जयंती दे वी ने कुछ ही महीन पहले
अपनी ब ी खोई थी और वे ब त कमजोर शारी रक व मान सक त म थ । इस सरी
ासद ने प रवार को और गहरी नराशा म डु बो दया था। इस लए, शां त दे वी द ली से
अपने घर एक उ मीद और वादे के साथ लौट और तब से उ ह ने अपनी ब क अ
तरह से दे खभाल क ज मेदारी अपने ऊपर ले ली।
उनका घर रेलवे क पट रय से 15 फ ट क री पर था और जतनी बार कोई े न वहाँ से
गुजरती, उनका छोटा सा घर खड़खड़ाने लगता और नीचे क जमीन हलने लगती। 1
जनवरी को जब सब म हलाएँ एक कमरे म बंद हो ग तो प रवार का येक सद य अपने
नजी डर का सामना करते ए कसी अ खबर के लए उ साह से ाथना करने लगा।
जब शां त दे वी ने ब े को अपने हाथ म लया तो कई वष के बाद उनके चेहरे पर
एक वा त वक मुसकान आई। मेरा बेटा वापस आ गया। वे कसी मं क तरह लगातार
दोहरा रही थ । राज के पता कामता साद ने, जो गली म चहलकदमी कर रहे थे, जब क
उनका बेटा मीना साद चुपचाप बरामदे म बैठा था, घर के अंदर से आती रोने क आवाज
सुनी तो भागकर अंदर गए। उ ह ये सब एक चम कार लग रहा था। उनके प रवार को हाल
म इतने भा य का सामना करना पड़ा था क उन सबने इस बात पर व ास करना शु
कर दया था क उनके जीवन म इस नराशाजनक अ त व के अलावा कुछ बचा ही नह
था।
शां त दे वी एक मोटे कंबल म लपटे ब े को दोन पु ष के पास ला । मीना साद क
खुशी का ठकाना नह था। उसे अफसोस हो रहा था क उसका भाई उस समय वहाँ नह
था। इसके अलावा, उसे अपनी माँ को फर से मुसकराता दे ख ब त राहत महसूस हो रही
थी। अचानक वह घर, जो भू तया और अँधेरा सा लगता था, खुशी और आशा से चहकने
लगा। सब एक- सरे से गले मलकर खुशी के अ तरेक से रोने लगे। पड़ो सय ने घर से
आती आवाज सुन तो वे भी उनके घर के बाहर एक हो गए और ज द ही पूरे मोह ले म
खबर फैल गई क साद प रवार म एक व बालक का ज म आ है।
दो दन बाद राज साद े न से उतरे, इस बात से अनजान क घर म कौन सी खबर
उनका इंतजार कर रही थी। वे काफ च तत थे और ज द -से-ज द अपनी प नी के पास
प ँचना चाहते थे, य क वे जानते थे क वह इस गभ को लेकर कतनी घबराई ई थी।
रा ते म उ ह रमेश शमा मले, ज ह ने उ ह पता बनने को लेकर छे ड़ा और दल से बधाई
द । राज हैरान हो गए। संचार सु वधा क कमी के कारण उ ह ब कुल अंदाजा नह था
क ब े का ज म हो चुका था। घर के पास प ँचने पर उ ह ने अपने कदम तेज कर दए।
और अं तम कुछ मीटर तो उ ह ने भाग कर तय कए उनका भाई मीना साद उ ह गले से
लगाकर च लाने लगा, लड़का आ है। और राज अपने घुटन के बल जमीन पर बैठ
गए। उनक आँख आसमान क ओर थ और हाथ ाथना म जुड़े ए थे।
उ ह ने अपनी माँ और प नी को दे खा। शां त दे वी ने खुशी के आँसु के साथ कहा,
‘‘आनंद आ गया! अब सब ठ क हो जाएगा। और इसी के बाद ब े का नाम आनंद हो
गया।’’
आनंद गौड़ीय मठ म बड़ा आ, जो पटना क ओर जानेवाली एक मु य सड़क और
द ली-हावड़ा रेलवे लाइन, जो बहार क सबसे त रेलवे लाइन है, के बीच त था।
रेल क पट रयाँ म य भारत से पूव भारत क ओर या ी और माल ले जाने म त रहती
थ और अभी भी रहती ह। आनंद, अपने नाम के अनु प, साद प रवार म खु शयाँ लेकर
आया था और कभी-कभी वे भूल जाते थे क वे इतनी गंदगी के बीच रहते थे और अश
कर दे नेवाली गरीबी से कुछ ही इंच क री पर थे।
आनंद के दादा कामता साद जब भी मं दर या कसी अ य सामा जक समारोह म जाते तो
न हे आनंद को अपने कंध पर बैठाकर ले जाते। बा रश के दन म या कड़ी धूप म वे
अपनी लुंगी उतारकर मौसम के कोप से बचाने के लए ब े के चेहरे को ढक दे ते और
घर के अंदर सफ अपने चारखाने के जाँ घये म वेश करते।
आनंद के दादाजी शौक के तौर पर तबला बजाते थे और बालक को अपने खलौन
पर हाथ मारकर या जब खलौने सामने नह होते थे तो एक का प नक तबले पर अपनी
उँ ग लय क थाप दे कर उनक नकल उतारने म मजा आता था। भा य से आनंद जब
सफ तीन वष का था तो उसके दादाजी क मृ यु हो गई, इस लए वह लंबे समय तक उनके
अनुभव और यार का लाभ नह उठा पाया; ले कन प रवार के बाक सद य ने कामता
साद क मृ यु के बाद आनंद का और अ धक यान रखकर उनक कमी को पूरा कर
दया।
आनंद के ज म के दो वष बाद प रवार म और वृ ई। उसके भाई णव के ज म के
साथ, जो उसका सबसे अ ा म बन गया, कूल के पहले के उन शु आती दन म
उनके घर का 3 फ ट बाई 6 फ ट का दालान उनका खेल का मैदान था। मीना साद का
बेटा ओम कुमार उनके ता का लक वृ क तकड़ी को पूरा कर दे ता था, ले कन गौड़ीय
मठ के आसपास क ग लय के सभी ब े उन तीन के लए उनके नरंतर साथी थे।
आनंद एक शरारती और उ सुक बालक था। उसक माँ अकसर उसे कसी-न- कसी
बवाल म फँसा आ पाती थी, जनम से यादातर के लए वह खुद ही ज मेदार होता था।
वो हर एक चीज के काम करने का तरीका जानना चाहता था। वो जानना चाहता था क
मोटर गा ़डयाँ पे ोल से य चलती थ , पानी से य नह ; वो जानना चाहता था क टॉच
और रे डयो को बैटरी क ज रत य होती है। जहाँ अ य ब े अपने खलौन से खेल कर
संतु रहते थे, उसे मु य प से खुशी मलती थी खलौने को तोड़कर दे खने म क वह
कैसे काम करता था।
जब आनंद ने पहली बार चुंबक दे खी तो वह पूरी तरह मो हत हो गया था। वह जानना
चाहता था क य लोहे के सफ कुछ ही टु कड़े चुंबक य होते थे और य वह सफ
धातु को आक षत करते थे, गैर-धातु को नह । उसने अपने कई दो त से पूछा,
ले कन उसे सबसे अलग-अलग जवाब मले। फर वह कसी बड़े के पीछे पड़ा तो उ ह ने
बताया क एक लोहे के टु कड़े म चुंबक य श तब वक सत होती है जब उसे बजली का
झटका दया जाता है। अब आनंद को खुद ऐसा करके दे खना था। उसने अपने घर म इधर-
उधर लटक रहे बजली के कुछ तार का योग कया, जसका नतीजा शॉट स कट के प
म सामने आया। एक जोर का धमाका आ और बजली गुल हो गई। आनंद घबरा गया।
बड़ से सजा मलने के डर से वह वहाँ से भाग गया और कुछ र जाकर छु प गया। वो घर
तभी लौटा, जब मकान मा लक ने यूज ठ क कर दया और घर म बजली आ गई।
एक अ य दो त ने उसे बताया क य द लोहे को रेल क पट रय पर रखा जाए और
उस पर से े न गुजर जाए तो दबाव के कारण उसम चुंबक य गुण उ प हो जाएँगे। आनंद
उ सा हत हो गया और फौरन लोहे के कुछ टु कड़े लेकर अपने घर के पीछे मौजूद रेल क
पट रय पर प ँच गया। दो त क मौजूदगी म, उसने लोहे के टु कड़े यान से पट रय पर
रखे और इंतजार करने लगा। कुछ ही दे र म एक े न आई और उन टु कड़ पर से गुजर गई।
े न के जाने के बाद स आनंद ने उन टु कड़ म चुंबक य श क जाँच क ; ले कन
उसके हाथ नराशा लगी। बाद म अपनी कूली श ा के दौरान उसे समझ म आया क
लोहे के टु कड़ म चुंबक य गुण उ प करने के लए चुंबक य े क आव यकता होती है,
सफ दबाव या बजली क नह हालाँ क, प रणाम के बावजूद, ये योग उसके शु आती
दन का मह वपूण ह सा थे।
जैस-े जैसे वह बड़ा होने लगा, प रवार के सद य और पड़ो सय को आनंद के अनूठे
तरीक और चुनौ तयाँ सुलझाने क उसक लगन क आदत पड़ने लगी। जब वह दस या
यारह वष का था तो उसने का प नक रे डयो क रचना करके एक खेल बनाया।
वाभा वक प से उस का प नक रे डयो को का प नक एंट ना क आव यकता थी, जसे
अ ा रसप स पाने के लए जतना संभव हो, उतना ऊँचा रखना था। ऐसा करने के लए
चढ़ाई क कई घटनाएँ , जनम से सब सफल नह रह । ये घटनाएँ इतनी आम हो गई
थ क ऐसे ही एक चढ़ाई अ भयान के दौरान जब वह पास के एक खंभे से गरा तो उसक
चीखने क आवाज सुनकर पड़ो सय ने सर हलाकर कहा, आनंद होगा।
आ खरकार, उसने का प नक रे डयो से वा त वक रे डयो तक का सफर तय कर
लया। रे डयो से आवाज आ रही थी और वह खुद तो गान को सुन ही रहा था और लोग
को सुनाने क भी को शश कर रहा था। जब भी उसे कोई टू टा आ रे डयो मलता तो वह
उसे घर लाकर उसक मर मत करने क को शश करता। अपने इन यास म उसने उनम
से कई को पूरी तरह खराब कर दया। ले कन उसके योग हमेशा बेकार नह जाते थे और
फर एक दन आया, जब उसने अपने हाथ से एक रे डयो ठ क कर ही दया। हालाँ क उस
रे डयो ने कुछ ही दन काम कया, ले कन युवा आनंद के लए वह एक नणायक ण था,
य क उसने सीख लया था क ढ़ संक प से आप कसी भी चुनौती का सामना कर
सकते ह।
संगीत साद प रवार क परंपरा का अ भ ह सा था। अपने दादाजी के पद-
च पर चलते ए आनंद ने मा 11 वष क उ म पटना के मश र रव भवन आट
थएटर म आयो जत तबला वादन तयो गता म थम पुर कार जीता। मीना साद ने
हारमो नयम बजाया था और वे ेमपूवक याद करते ह क आनंद का दशन कतना अ त
और मनोरंजक था।
राज साद आनंद को एक अ े कूल म भेजने के इ ु क थे। वे अ तरह समझते थे
क श ा ही गरीबी के चंगुल से बाहर नकलने का एकमा रा ता है और यही बात वे
आनंद के दमाग म भी अ तरह ा पत करने का यास कर रहे थे। जब आनंद 4 वष
का आ तो उसका दा खला पटना के सट जोजफ कॉ वट कूल म हो गया।
हमेशा से एक बोधग य ब ा रहा। आनंद संप प रवार के ब और खुद के बीच
के फक को गौर से दे खता था। जहाँ गौड़ीय मठ म फटे -पुराने कपड़े पहनना और सड़क के
कनारे बकनेवाली चीज भी खरीद पाने के लए पैसे न होना सामा य बात थी, वहाँ पर
अ य छा के साफ-सुथरे, लाड़- यार से दमकते चेहरे उसके मन म कसक पैदा करते थे।
ले कन उसे अ धक दन तक यह तकलीफ नह सहनी पड़ी। नजी सं ान होने के कारण
राज के लए वहाँ अपने बेटे को पढ़ा पाना मु कल था और जब वह क ा 4 म था तो
आनंद को मॉडल सट जे वयस कूल म ानांत रत कर दया गया। यह पहली बार था,
हालाँ क ःखद प से अं तम बार नह क आनंद ने सीखा क कैसे पैसा एक
वशेषा धकार था और कस तरह गरीबी आपके मुँह पर अवसर के दरवाजे बंद कर दे ती
है।
राज साद आनंद को चाय के साथ सुबह-सुबह जगाते थे और कभी-कभी उसे
ब तर से उठाने के लए गाना भी सुनाते थे...जागो मोहन यारे। आनंद ब तर से उछलकर
बाहर नकलता और अपने पता के पाँव छू लेता। कभी-कभी आनंद को श मदा करते ए,
जवाब म उसके पता भी उसके पाँव छू लेते, जैसे क उससे त धा कर रहे ह —तुम
कसी दन बड़े आदमी बन सकते हो, जसके पाँव सब लोग छु एँगे। अगर तब तक म नह
रहा तो? आनंद के वरोध करने पर वे हँसते ए कहते। सुबह क यह बातचीत इस युवक
के व के नमाण म ब त मह वपूण ान रखती थी। भले ही राज साद गरीब थे,
ले कन वे बु मान थे और आनंद के साथ मह वपूण मु पर चचा करते थे। आनंद क
राजनी त और नया को दे खने के उसके नज रए पर उसके पता के अनुभव और
संवेदनशीलता का गहरा भाव था।
राज साद दे वदहा नाम के गाँव म बड़े ए थे, जो पटना से सफ 30 कलोमीटर क
री पर था, हालाँ क वह 1,000 क.मी. भी हो सकता था, यह दे खते ए क दोन ान
म कतनी भ ता थी। पटना एक बड़ा शहर था, जब क 1950 के दशक म जब राज
कशोराव ा म थे, दे वदहा क आबाद सफ 2,000 थी। साद प रवार के पास ब त ही
थोड़ी जमीन का संयु वा म व था और राज के पता कामता साद कुलप त थे। बहार
म उस समय भारत के अ धकांश ह स क तरह भू म सबकुछ होती थी और सबसे धनी
प रवार बड़े-बड़े जम दार के होते थे, जो अपने कमचा रय को गुलाम से कुछ ही बेहतर
समझते थे। कामता साद के पास भू म थी, ले कन वे एक छोटे भू- वामी थे और प रवार
के लए पैसा एक लभ व तु थी, जब क वे गाँव के च क सक भी थे। वे कृत गाँववाल
को पारंप रक ओष धयाँ दे ते थे, ले कन उनक पैसे चुकाने क मता यूनतम थी। इस लए
कामता साद के ब के नसीब म एक कमीज और एक नेकर ही होती थी, जो वे साल
भर चलाते थे।
वडंबना ही थी क कामता साद के खुद च क सक होने के बावजूद उनके आठ
ब े जवान होने के पहले ही वग सधार गए, और ऐसा आधु नक दवा के अभाव और
समु चत आहार के अभाव के प रणाम व प आ। यह जानते ए क शायद श ा ही वह
एकमा रा ता था, जो उनके बेटे को ामीण बहार के क द जीवन से बाहर नकाल
सकता था, कामता ने राज को उसक पु तक पर यान दे ने के लए और जतनी हो सके,
श ा ा त करने के लए ो सा हत कया। कई वष बाद राज भी आनंद के साथ ऐसा
ही करने वाले थे; हालाँ क ऐसा करने क तुलना म कहना आसान था, य क दे वदहा म
एक ब े के लए श ा ा त करना कोई आसान काम नह था। सबसे नकट का कूल
लगभग 6-7 क.मी. र था और गाँव का जो ब ा कूल जाना चाहता था, उसे पढ़ने के
लए त दन पैदल आना-जाना पड़ता था।
जब राज युवा थे तो उ ह लगता था क उनके भाई मीना साद को भी, जो बचपन
से ही वकलांग था और ठ क से नह चल पाता था, पढ़ने का अवसर मलना चा हए और
इस लए वह त दन अपने बड़े भाई को कंध पर बैठाकर कूल ले जाते थे। भीषण गरमी
के दन म भी खुद पसीने से तर-बतर होने के और रा ते म साँस लेने के लए कई बार
कने क आव यकता पड़ने के बावजूद वह अपने भाई को लेकर जाते थे। राज ब त ही
तभाशाली छा थे और उ ह ने दसव क ा थम ेणी के अंक के साथ उ ीण क ।
सन् 1961 म वे आगे क पढ़ाई के लए पटना चले गए और इस कार वे गौड़ीय मठ प ँच
गए, जहाँ वे अपने प रवार के पहले कॉलेज नातक बनने वाले थे।
सन् 1966 म राज ने जयंती से ववाह कया और मीना साद को साथ लेकर वे इस छोटे
से दो कमरे के मकान म आ गए, जहाँ आगे जाकर आनंद कुमार का ज म होने वाला था।
एक दन गौ रयामठ के आसपास के पूरे इलाके म एक धमाके क आवाज सुनाई द ,
जसने वहाँ के नवा सय को उनक दनचया से और उनके घर से बाहर नकलने पर
मजबूर कर दया। वहाँ उप त लोग ने एक वशाल सफेद रोशनी दे खी और फर अँधेरा
हो गया और अब उनके सामने एक छोट सी आग म जलता आ ला टक रह गया इस
अपराध का संयोजक और कोई नह ब क ज ासु आनंद कुमार था, जो अब यारह वष
का था।
या आ? जयंती दे वी ने अपने बेटे को गु से से घूरते ए पूछा। उसक हरकत अब
उनक दनचया का ह सा बनती जा रही थ । ले कन यह हरकत जस प रमाण क थी,
उसम उसके स म होने क उ ह ने क पना भी नह क थी। पड़ोसी भी ब त नाराज लग
रहे थे। यारह वष के बालक ने अपनी माँ क ओर और सं या म बढ़ते पड़ो सय क ओर
शरमाते ए दे खा और अपने पास रखी बा ट भर म से बची-खुची आग बुझाने लगा।
पूव चतन के इस सबूत को दे खकर जयंती दे वी का गु सा और बढ़ गया।
‘अपने पताजी को आने दो, ऐसे खतरनाक योग करने के लए तु ह अ सजा
मलेगी।’ और आनंद के वरोध क उपे ा करते ए वे अपने काम नपटाने चली ग । शाम
को जब राज साद घर आए तो उ ह आनंद क हरकत के बारे म बताया गया, ‘ठ क-
ठ क बताओ, या आ? म आनंद के मुँह से ही सुनना चाहता ँ।’ कोई कुछ कहता,
उसके पहले ही आनंद के पताजी ने घोषणा कर द । सब लोग उस बालक क ओर दे खने
लगे, जसे दे खकर ऐसा लग रहा था जैसे वो द वार म समा जाने क को शश कर रहा हो।
‘ पताजी, बात यह है क हम कूल म के म पढ़ रहे थे और उसम यह समीकरण था क
य द आप काबाइड और पानी को मलाते ह और उसे गरम करते ह तो आपको बड़ी मा ा
म ऊजा मलती है।’ आनंद ने पेशकश क ।
‘कैसी ऊजा? वो तो एक छोटे बम व ोट क तरह था।’ उसक माँ ने बीच म टोका।
सरी ओर उसके पता ने, जो नाराज से यादा उ सुक थे, पूछा क ‘काबाइड या होता
था?’ कॉलेज नातक होने के नाते उ ह उसके बारे म पढ़े या सुने होने क धुँधली-सी याद
थी, ले कन वह ठ क से याद नह कर पा रहे थे क वह वा तव म या होता था।
‘यह एक कंपाउं ड होता है।’ आनंद ने जवाब दया। ‘म दे खना चाहता था क इस
त या ारा उ पा दत ऊजा एक कार चलाने के लए पया त होगी या नह ।’ आनंद ने
वीकार कया, ‘ले कन शायद कुछ गड़बड़ हो गई।’
राज साद ने वचारपूण मु ा म सर हलाया और उससे कहा क वा तव म कोई
गलती ही हो गई होगी। जयंती दे वी अपने प त से नाराज थ , य क उ ह ने बेटे को उससे
अ धक कुछ नह कहा और वे राज को गु से से घूरने लग । उनक गु से भरी नजर को
दे खकर राज को वा ालाप का मूल उ े य याद आया और वे आनंद क ओर उँ गली
हलाते ए बोले, ‘ओह, ओह! हाँ, हाँ, आइंदा कभी इस तरह क हरकत मत करना!’
ले कन य द आपने आनंद कुमार से पूछा होता तो वे बताते क उनके पता वा तव म उनसे
नाराज नह थे, वे बस अपने बेटे के योग से आनं दत थे। बस, कसी क जान मत लेना।
जैसे ही उसक माँ वहाँ से ग , उ ह ने मजाक कया और बाप-बेटे दोन मंद-मंद मुसकरा
रहे थे। मुझे तुमसे ब त बड़ी उ मीद ह, आनंद को पता का एक दन कहना याद आता है,
‘य द तुम सच म एक वै ा नक बनना चाहते हो तो तु ह ब त पढ़ाई करनी पड़ेगी। ग णत
ब त मह वपूण है, य क उसक आव यकता व ान म भी होती है।’ उसके पता ने
उसके गाल थपथपाते ए कहा, ‘पता नह य , ले कन मुझे महसूस होता है क तुम कोई
ब त बड़ा काम करोगे।’
जब आनंद कूल म नह होता या पढ़ाई नह कर रहा होता तो वह अपना खाली समय
बताने के ऐसे तरीके ढूँ ढ़ता, जनम अ धकांश ब को कोई दलच ी नह होती। जहाँ
उसके अ य दो त व भ खेल क ओर आक षत होते, मु यतः फुटबॉल और केट क
ओर। आनंद क दलच ी व भ योग करने और नई-नई चीज बनाने म होती थी। वह
तरह-तरह के योग करता और जो कुछ भी वह अपनी कताब म दे खता, वो उसके योग
का वषय बन जाता। मोम से बने वालामुखी, मॉडल मोटर कार...वो हमेशा नए योग
करने के लए बेचैन रहता था।
औजार हमेशा उसके पास होते थे, और ानीय तकनी शयन नवो दत योगकता को
पुराने टे लीफोन सेट और डाइनेमो जैसे टू टे-फूटे उपकरण क आपू त कर दे ते थे। यह पूरी
तरह हो चुका था क बेकार चीज से कुछ नया न मत करना उसे उ े जत करता था।
जब मोह ले के ब े केट खेलते थे, आनंद व ान क उन फट -पुरानी पु तक को
पढ़ता था, जो उसके पता कसी तरह बचाए पैस से पुरानी पु तक क कान से
खरीदकर लाते थे। सरी ओर, समय के साथ यह होता गया क उसके छोटे भाई
णव को संगीत म यादा दलच ी थी। णव अपने पता के पद- च का अनुसरण
करते ए एक वाय लन वादक के प म अपनी यो यता का वकास कर रहा था।
1970 के दशक के अंत और 1980 के दशक के आरंभ म कई भारतीय प रवार के
लए कूल जानेवाला ब ा उनके लए एक सुनहरे अवसर के समान होता था और जैस-े
जैसे भारत म ौ ो गक उ ोग ने फलना-फूलना शु कया, माता- पता क अपे ाएँ,
क उनके ब े व ान क पढ़ाई करके अ नौक रयाँ पाएँ, भी बढ़ने लग । चूँ क आनंद
पहले से ही एक उ सा हत छा क भू मका का नवाह कर रहा था, णव को उसक
संगीत तभा का वकास करने क वतं ता दे द गई। वह आगे जाकर भारतीय संगीत
प र य म एक यश वी वाय लन वादक बनकर काय म तुत करने लगा था; ले कन
अंततः भा य ने उसे जीवन क दशा बदलने के लए बा य कर दया था।
बाद के वष म पता के साथ ए वा ालाप से आनंद कुमार को महसूस आ क उसके
पता को उस गरीबी का पूरा एहसास था, जसने उनके प रवार को और उनके पड़ो सय
के प रवार को कई पी ़ढय से जकड़ रखा था। वे इस बात से भयभीत थे क उनक
ज मभू म बहार म अवसर के अभाव ने रा य के अ धकांश वं चत पर अपना
वनाशकारी जाल फैला दया था। जहाँ भारत के कई ह से औ ो गक करण और
आधु नकता क दशा म कदम बढ़ा रहे थे, बहार वकास के मामले म र खड़ा था।
इससे भी बदतर यह एहसास था क कई मामल म वह पीछे क ओर जा रहा था।
रा य भर म सावज नक श ण सं ान के पतन क शु आत होने लगी थी और जा त-
आधा रत संघष से उ प होनेवाला र पात एक बार फर खबर म छाया आ था। उ ह
यह वा त वकता भी खी करती थी क अनेक बहारी भारत के अ य रा य क ओर
पलायन कर रहे थे और उनम से अ धकांश कभी लौटकर नह आए थे।
राज साद को व ास था क बहारी लोग अ यंत तभाशाली और यो य होते थे;
ले कन उनके पास उनक यो यता द शत करने के लए कोई मंच नह था। उ ह ने बचपन
से वह अ या शत खेल दे खा था, जो मानसून कसान के साथ खेलता था। बा रश
अ धकतर या तो ब त कम होती थी या ब त यादा। कभी-कभी ही उसका संतुलन सही
होता था। गंगा नद भी अपने आसपास कहर बरपाने के लए जानी जाती थी। जब
मानसून आव यकता से अ धक बा रश भेज दे ता था, उनका अपना गाँव भी कई बार बाढ़
क चपेट म आ चुका था।
आनंद के बड़े होने के दौरान राज इन सब बात पर उससे खुलकर चचा करते थे और
समय बीतने के साथ जब उनके बेट ने कशोराव ा म वेश कर लया तो वे ना ते के
समय उ ह राजनी तक व सामा जक चचा म शा मल करने लगे। हर सुबह वे तीन
अखबार को वभा जत कर लेते और अपनी दलच ी क खबर चुनकर पढ़ते। फर वे उन
खबर पर चचा करते।
‘‘म अपने पता क नजर के मा यम से नया को एक अलग नज रए से दे खने लगा।’’
आनंद कहते ह, ‘‘आज म को शश करता ँ क त दन 4 या 5 अखबार पढ़ सकूँ, और
इस आदत के लए पताजी को ध यवाद दे ता ँ।’’
आनंद कुमार ने अपनी ग णतीय तभा का संकेत दसव क ा म आने के बाद ही
दे ना शु कया—काफ कुछ अ बट आइं टाइन क तरह, जनक ग णत म उ कृ ता भी
उनक कशोराव ा के म य म दखनी शु ई थी। जयंती दे वी ने यान दया क उसका
ग णत म दशन काफ बेहतर होता जा रहा है, जो क उसके उ अंक से था।
उसके अ यापक भी इस वषय म उसक उ मता पर ट पणी करने लगे थे।
दसव क ा उ ीण करने के बाद उसने पटना के बी.एन. कॉलेज म दा खला ले लया,
जहाँ उसके साथी व ान वषय का चुनाव कर रहे थे, ता क वे एक दन इंजी नय रग के
पेशे म जा सक। वह आनंद ने ै क पर रहते ए ग णत का चुनाव कया।
‘‘उस वषय का चुनाव करो, जसके साथ तुम सहज महसूस करो।’’ उसके पता ने सुझाव
दया, ‘‘ले कन सु न त करो क तु ह उस वषय म उ कृ ता ा त हो।’’
जहाँ पटना म जीवन हमेशा क तरह चलता रहा, एक छा —सबसे अनजान—अपने
वा त वक प म आया और खुद म एक ज मजात तभा क खोज क ।
वाभा वक प से यह आसान नह था। अब तक वह जस कार का ग णत पढ़ रहा था,
वह मु यतः सै ां तक था और राह म आनेवाली बाधा को पार करने के लए मदद क
आव यकता थी। अपनी पढ़ाई के त आनंद के उ साह, को हल करने क उसक
मता और सवाल पूछते समय उसक ढता ने उसके श क को भा वत कर दया। वे
इस युवक क ओर यान दे ने लगे, जसक सं या के साथ वशेष दो ती थी और उसक
तभा का पोषण करने लगे।
दे वी साद वमा जो पटना यू नव सट म आनंद के ोफेसर थे, ने इस छा क तभा
और मता पर ब त पहले यान दे ना शु कर दया था। ‘‘वो उसका कोण था, जो
उसे मेरे इतने करीब लाया।’’ वमा याद करते ह, ‘‘वो ब त वन था, ले कन हमेशा
वभ ोत से नए के साथ तैयार रहता था। उसके पास एक खोजपूण दमाग था,
जो प का और जनल से परामश लेकर ग णत के े म नई-नई चीज क तलाश
करता रहता था। एक ऐसा काम, जो हर नया छा नह करना चाहेगा।’’
बहार कॉलेज ऑफ इंजी नय रग (जो अब एन.आई.ट ., पटना है) के ोफेसर
मोह मद शहाबु न अब पटना म सेवा नवृ जीवन बता रहे ह; ले कन उ ह 1980 के
दशक के अंत और 1990 के दशक के आरंभ का एक युवा छा याद है, जो नय मत प
से उनके साधारण से घर के दरवाजे पर सवाल पूछने और शंका का समाधान करने
आया करता था। फुलवारी शरीफ के उपनगर म, जो ग लय और सड़क क भूलभुलैया के
प म जाना जाता है, एक घर तलाश करना कोई आसान काम नह था। ले कन कई शाम
को जब ोफेसर साहब अपनी खड़क से बाहर दे खते तो दरवाजे पर शरमीली मुसकान के
साथ एक युवक खड़ा दखाई दे ता, जसके चेहरे पर उ मीद का भाव मु कल से छु पाया
होता था।
‘‘एक द तक मेरा यान आक षत करती और सामने का दरवाजा खोलने पर मुझे वहाँ
आनंद खड़ा दखाई दे ता। मेरे लए वो हैरानी क बात होती, य क म छा को अपने घर
आने के लए कभी ो सा हत नह करता था; ब क जब ऐसा पहली बार आ तो मने
उसक उपे ा कर द थी।’’ वे बताते ह।
ले कन आनंद ने हार नह मानी और अगली शाम वह फर उनके दरवाजे पर था।
‘‘म उससे दरवाजे के बाहर मला। उसे उन के बारे म कुछ पूछना था, जो मने छा
को दए थे। मने उसे समझाया क उ ह कैसे करना था और उसे वापस भेज दया।’’
ले कन यह एक ऐसे म क शु आत थी, जो ब त लंबे समय तक हर सरे दन, और
कभी-कभी त दन दोहराया जाने वाला था।
‘‘वो मेरे घर आता था।’’ शहाबु न कहते ह, ‘‘और हम के हल के बारे म दरवाजे के
बाहर चचा करते थे। संतु होकर वो (आनंद) घर चला जाता था, कभी पैदल और कभी
साइ कल से। फर एक दन उसक ढता और ग णत के लए उसक भूख से भा वत
होकर मने उसे घर के अंदर बुला लया। तब से वो मेरे लए मेरे प रवार के सद य क तरह
है।’’
ोफेसर शहाबु न इन घटना को अ य धक गौरव के साथ सुनाते ह, हालाँ क वे वीकार
करते ह क उस समय उ ह एहसास नह आ था क यह असाधारण युवक नया भर म
धूम मचा दे गा, ले कन जो वे जानते थे, वह ये था क उनके इस छा म सही मायन म
ग णत का स ा श य बनने के गुण मौजूद थे।
शु आती दन म दल म सैकड़ सवाल लये आनंद बी.एन. कॉलेज म दा खल ए।
लास का आभामंडल कुछ ऐसा था क लगा यहाँ ग णत के साथ जदगी के सवाल भी
हल हो जाएँगे। वहाँ ग णत के ोफेसर ी बाल गंगाधर साद से मुलाकात ई। या
अंदाज था। सीधा व सट क। ो. गंगाधर साद के पढ़ाने क शैली से आनंद बेहद भा वत
ए। वे ोफेसर से मले, उनसे आ ह कया क वे उनके घर पढ़ाई के सल सले म आना
चाहते ह। ले कन जवाब मला—कॉलेज म ही उनसे सवाल पूछ लया कर। इसके बाद
एक दन संयोग बना। कॉलेज के चपरासी क पलजी ने आनंद को ोफेसर के घर का पता
बताया। आनंद से रहा नह गया। वह सीधे ोफेसर के घर प ँच गया। दरवाजे पर कॉल-
बेल लगा था। दबा दया। अंदर से आवाज आई—‘‘कौन है?’’ घबराए गले ने आनंद ने
कहा—‘‘सर, म आनंद।’’ दरवाजा बाल गंगाधरजी ने ही खोला। अचरज से भरी आँख
लये कहा—‘‘आओ आनंद। कैसे हो?’’ जवाब म आनंद के हाथ उनके पैर तक प ँच
गए। उ ह ने आनंद क लगन दे खकर उ ह गु ान दया। यह भी बताया क नंबर योरी
के लए आनंद ोफेसर दे वी साद वमा से मुलाकात कर। उनका यह सुझाव ब त काम
आया।
ो. बाल गंगाधर साद उन बीती याद को आज भी अपनी आँख म कैद कए बैठे
ह। वे कहते ह—‘‘आनंद क आँख म एक अजीब सी ललक छलकती थी। वह पढ़ने म हर
दन एक नया योग करता था। योरी से खेलता था। ग णत के सवाल से खलवाड़ करता
था। वह इतना सट क व ता कक तरीके से अपने सवाल को हल करता था क दे खकर मन
स हो जाया करता था। मुझे याद है क वह नंबर गेम म कभी भी शा मल नह रहा। वह
सवाल के पूरी तरह हल नह हो जाने तक उसे पूरी तरह माँजा करता था। एक वशेष गुण,
जो उसे अ य छा से अलग करता था, वह यह क वह अपनी व श पा शैली को
अपने तक ही सी मत नह रखता था, ब क अ य छा से उसे साझा भी करता था। और
यही कारण है क आनंद आज इस ऊँचाई तक प ँचा है। मुझे आनंद पर ब त गव है।’’
छा के मुख से

नाम : चरंजीव कुमार


नाम : चरंजीव कुमार
सुपर 30 बैच : 2010
इं ट ूट और म : कं यूटर साइंस और इंजी नय रग, आई.आई.ट .
बी.एच.यू., वाराणसी।
वतमान जॉब : एडॉब स ट स
म ने दसव तक क कूली श ा अपने गाँव म पूरी क । मेरे पताजी कसान ह और मेरी
माँ कपड़े सलने का काम करती थ , इस लए मेरे माता- पता मुझे सफ ाथ मक श ा
दला पाने म स म थे। चूँ क मेरा गाँव बाघमती नद के नकट है, इस लए वहाँ हर साल
बाढ़ आ जाती थी और हम कुछ महीने (मई से जुलाई) एक बाँध पर गुजारने पड़ते थे। मने
ब त मेहनत क और बना कसी ूशन या को चग के दसव म 81.8 तशत अंक ले
आया। म पटना साइंस कॉलेज म दा खला लेना चाहता था। ले कन वे इंटरमी डएट के लए
छा वीकार नह कर रहे थे। मेरा सपना टू ट गया और ऊपर से मेरे पास इंजी नय रग क
कसी वेश परी ा के लए पैसे भी नह थे। मुझे सुपर 30 के बारे म पता चला और
सौभा य से मेरा पहले ही यास म चयन भी हो गया। म आनंद सर के पढ़ाने क शैली से
ब त रोमां चत हो गया। वे ग णत के ब त ज टल का हल 7 या 8 व भ तरीक के
योग से नकालते थे और समाधान क ा या अपने मश र काटू न च र भोलू व
र क क मदद से करते थे। इस क ठन वषय को पढ़ाने क उनक प त असाधारण है
और म उनका ब त बड़ा शंसक बन गया। सुपर 30 क सद यता और मागदशन ने मेरी
ब त मदद क , बना एक पैसा लये। और म पहले ही यास म आई.आई.ट . बी.एच.यू. म
कं यूटर साइंस (इंजी नय रग) म के लए चय नत हो गया। कुछ महीन तक म व ास
भी नह कर पा रहा था क मने इतने अ त वातावरण म श ा ा त क है। चार वष म
मने कं यूटर क सभी चाल , है कग, मशीन क भाषा और तकनीक नया के वषय म
सीखने पर यान क त कया। कॉलेज के बाद मने एडॉब स ट स म काम करना शु
कया। यहाँ म सॉ टवेयर के बु नयाद ढाँचे के नमाण के लए कोड लखता ,ँ जससे
उसक हे प वेबसाइट, help.adobe.com के सभी भौगो लक ान और अ धकांश भाषा म
कुशल संचालन म मदद मलती है। मेरा मानना है क टे नोलॉजी नया को बदल सकती
है और आनंद सर जैसे लोग, जो इसे संभव बनाने के मशन पर ह, वा तव म असाधारण
ह।
3
एक अपूण य त

व ष 1991 क एक गरम दोपहर को आनंद गहरे वचार म डू बा आ अपनी पुरानी एवन


साइ कल पर बी.एन. कॉलेज से वापस लौट रहा था। चाँदपुर बेला तक क लंबी या ा म
यातायात के जाम और नरंतर पीछा कर रहे धूल के बादल के बीच आनंद के पास पटना
के जीवन का नरी ण करने और अपनी खुद क त पर आ म व ेषण करने के लए
पया त समय था। एक नजी कूल क बस के पीछे साइ कल चलाते ए वह संप प रवार
के दमकते, स च ब को दे खकर खी हो रहा था, ज ह शायद अपने कूल से मले
होमवक के अलावा कसी बात क चता नह करनी पड़ती थी।

जब उसके पताजी ने 1988 म चाँदपुर बेला म दो कमरे का घर बनाया था, तब उस


इलाके म सफ एक ाइमरी कूल था। 2012 म वो उदास होकर सोचने लगा। कुछ भी
नह बदला था, सवाय आबाद म वृ के। चाँदपुर बेला का एकमा ाइमरी कूल अभी
भी ब त तंग था। अपया त रोशनी और सी मत ान के साथ गने-चुने कुरसी-टे बल थे,
जनसे काम नह चलता था और जहाँ इस वशेष कूल म लैकबोड क सु वधा थी, जस
पर अ यापक पाठ समझा सकते थे। वह आए दन चॉक ख म हो जाना कोई असामा य
बात नह थी। कूल म कोई वा त वक खेल का मैदान नह था। बस, कूल के सामने एक
सँकरी सी गली थी, जसका उपयोग ब े असली और का प नक खेल खेलने के लए
करते थे। अ यापक को ब त कम वेतन मलता था; ले कन वे उस मु कल वातावरण म
उ मीद पैदा करने का यास करते रहते थे।
इलाके का एकमा हाई कूल 2-3 कलोमीटर र था और समुदाय के बाहर त था।
चाँदपुर बेला से वा तव म वहाँ तक प ँचनेवाले छा म से कुछ ही होते थे, जो कभी
नातक हो पाते थे। आस-पड़ोस म से अकेला आनंद ही था, जो इस समय पटना
व व ालय के बी.एन. कॉलेज का छा था। आनंद के आस-पड़ोस के अ धकांश लोग
के लए श ा उनक ाथ मकता म नह आती थी और इस बारे म न त तौर पर आम
वीकृ त नह थी क श ा जीवन म आगे जाकर बड़े लाभ दान कर सकती है।
सारी बात आनंद को ब त परेशान करती थ । दो चीज उसे नरंतर त करती रहती थ
—एक तो आजी वका क चता और सरे उसके आसपास शै क अवसर क कमी।
उस समय जस कार वह खुद संग ठत तरीके से सोचने और अपनी त को बेहतर
बनाने म स म था, उसे वा तव म लगता था क सरे ब े भी गरीबी और बेरोजगारी के
च से बाहर नकल सकते ह। बस, उ ह उ चत श ा क आव यकता थी। घर के पास
आते-आते उसके दमाग म एक वचार ज म लेने लगा था।
आनंद ग णत जानता था। उसे अचानक एहसास आ और वह जानता था क वह सर
को भी ग णत अ तरह समझा सकता है, जैसा क पटना व व ालय के उन कई
सहपा ठय से था, जो अपनी सम या के समाधान के लए उसक मदद लेते थे।
इस वचार क ावहा रकता और संभावना के बारे म काफ दे र गंभीरता से सोचने के
बाद आनंद ने कुछ शु क के बदले छा को ग णत पढ़ाने का नणय लया। वो ग णत को
सम पत एक कार का लब शु करना चाहता था, जहाँ छा आते और हाई कूल
उ ीण करने जतनी ग णत सीख लेते और फर शायद कॉलेज भी जाते।
यह क पना के कसी भी कोने से एक मूल वचार नह था। आ खरकार, पटना म
अन गनत को चग सं ान फैले ए थे, लगभग एक ा नक क तरह; ले कन आनंद को
जो खाई दखी, वह उनक ता का लक झु गी ब ती म य दखाई दे रहा था। आसपास
के इलाक के इ ु क छा को पढ़ाने म मदद करने के लए वहाँ कोई ढं ग के ूटस
उपल नह थे।
कुछ ऐसी ही कहानी पूरे बहार क थी। दानापुर गाँव म, जहाँ वह कभी-कभी जाता था,
आनंद एक प रवार को जानता था, जसम 12 वष के जुड़वाँ ब े थे। दोन लड़के र व
कुमार और अर वद कुमार शायद ही कभी कूल जाते थे; य क उनके पता शंभू राय को
यह ज री नह लगता था। उनके लए त दन प रवार का पेट भरने और सर छु पाने के
लए छत बनाए रखने क सम या यादा मायने रखती थी। न तो शंभू राय और न ही
उनक प नी कभी कूल गए थे और संभावना थी क वे जीवन भर नर र ही रहने वाले
थे। उनके पास गाय थ , जनका ध वे घर-घर जाकर बेचते थे और शंभू को लगता था क
उनके बेट के लए कूल जाकर समय बरबाद करने से बेहतर होगा क वे पा रवा रक
वसाय सीख ल।
शंभू राय ने एक बार आनंद से कहा था क उ ह अपने बेट को उस दशा म ो सा हत
करने क आव यकता नह महसूस होती थी; जब क वे वयं पूरे दन आजी वका कमाने म
त रहते ह। शंभू को उसक साइ कल के दोन ओर भारी, ध से भरे ए युमी नयम के
ड बे लटकाए, यान से संतुलन बनाए त दन नकलते दे खना पड़ोस का एक आम य
था।
आनंद जानता था क र व और अर वद अपने दन बाहर खेलते ए या गाय चराते ए
बता दगे और फर एक दन साइ कल क कठोर सीट पर बैठकर ध बेचने क उनक
बारी आ जाएगी। इस अवसर को फर अगली पीढ़ के लए गत कर दया जाएगा और
एक अ श ा ारा प रवार क आशा व मह वाकां ा को आकार दे ने के ताव
म और दे र हो जाएगी।
एक दन, जब आनंद अपने प रवार के साथ ना ता करने बैठे, जो अ धकांश दन म
कसी कार का चीला और चटनी होता था तो उ ह ने अपने पता से कहा, ‘‘चाँदपुर बेला
और उसके आसपास कोई ढं ग के श क नह ह। मुझे लगता है क मेरे पास इनम से कुछ
ब को हमारे घर के पछवाड़े पढ़ाने का अवसर है।’’ राज साद ने उनका उ साह
बढ़ाया और उस दन से उनके बीच कसी कार का कूल खोलने के बारे म स यता से
चचा शु हो गई।
साइ कल से कॉलेज आते-जाते समय आनंद के दमाग म सफ एक कूल खोलने क बात
घूमती रहती थी। उ ह एहसास आ क उ ह कसी प रसर क आव यकता होगी, य क
वे छा को कसी भी त म अपने तंग घर के अंदर नह पढ़ा सकते थे। ले कन फर
कराए के लए पैसे कहाँ से आएँग?े कई ब के पास फ स दे ने के लए पैसे नह ह गे,
खासतौर से शु आत म।
वैसे भी, पहला काम था इ ु क छा क तलाश करना। उ ह अ धक र नह जाना
पड़ा, य क उनके छोटे भाई के दो दो त मनीष ताप सह और रजनीश कुमार सीखने
और जीवन म आगे बढ़ने के लए उ सुक थे। दोन ही लक के बेटे होने के नाते गरीबी के
अ भशाप से अप र चत नह थे और कड़ा प र म करने के लए तैयार थे। दो उ सा हत
छा मलने के बाद आनंद पढ़ाने के लए एक जगह क तलाश म जुट गए। थोड़ी तलाश
के बाद वे पड़ोस के एक जाने-पहचाने राम नारायण सह को समझाने म सफल हो
गए और उ ह ने पढ़ाने के लए अपने घर म कुछ जगह इ तेमाल करने क अनुम त दे द ।
जब आनंद ने कराए के बारे म पूछा तो मकान मा लक ने कहा क जब वे कुछ कमाने
लगगे तो जो रा श उ चत समझ, दे सकते ह।
आनंद अ भभूत हो गए और उनक बात को इस बात का संकेत समझा क वे सही दशा म
जा रहे थे।
10 अग त 1992 को आनंद कुमार ने दो छा और एक लास म के साथ अपना छोटा
सा मै स लब आरंभ कया। क ा ग णत क चचा को सम पत थी और आनंद ने कई
महीन तक स ताह म 3 से 5 दन, 2 से 3 घंटे अपने छा को ूशन पढ़ाया। यहाँ तक क
कुछ ऐसे श क भी, ज ह ने इस नवो दत ग णत को पटना व व ालय म पढ़ाया था,
उसक क ा म समय दे ने लगे।
आनंद को सबसे यादा आ य यह दे खकर आ क उनके दोन छा सीखने के त
कतने उ साही थे। उ ह अकसर खुद को यह बात याद दलानी पड़ती थी क वे लगभग
उसी क उ के थे, य क जस कार वे उसके कहे हर श द पर यान दे ते थे, उससे
ब कुल वपरीत संकेत मलता था। मनीष और रजनीश हमेशा उस ान के लए अ यंत
आभारी रहते थे, जो उ ह ा त हो रहा था और हर उस चीज को ंज क तरह सोख लेते
थे, जो आनंद और सरे श क उ ह सखाते थे। इसके प रणाम व प उ ह ने बारहव
क ा के ग णत के पच म ब त अ ा दशन कया। ज द ही आनंद उ ह उनक
आई.आई.ट . जे.ई.ई. परी ा के लए पढ़ा रहे थे। वे तुरंत जान गए क उ ह कुछ करना है।
ज द ही उनके इस छोटे से मै स लब के बारे म खबर फैलने लगी और उसके बाद
आनंद ने दे खा क ग णत के श क और कुछ अ य छा सफ ग णत के और
सम या के बारे म उनसे चचा करने के लए वहाँ आने लगे। उनका छोटा सा लास म
ज द ही कई लोग के लए इस वषय पर चचा करने का ान बन गया।
मनीष ताप सह ने ग णत म नातक क ड ी ा त कर ली और बाद म एक इंजी नय रग
कॉलेज क वेश परी ा म भी बैठा; ले कन उ ीण नह हो पाया। हालाँ क, वह यू नयन
बक ऑफ इं डया म नौकरी ा त करने म सफल रहा और आज राँची, झारखंड म यू नयन
बक क शाखा का मैनेजर है। आनंद के उसे ूशन दे ने के नणय के बाद से जस कार
उसके जीवन म बदलाव आया, उससे वह न संदेह ब त खुश ह।
अब मनीष उस छोटे से कराए के कमरे को ेमपूवक याद करता है, जसम ग णत क
क ाएँ चलती थ । वो एक ब त वन शु आत थी, ले कन उसे याद है क उन मु कल
दन म भी आनंद अपने दो छा के कूल को अंतररा ीय तर तक ले जाने क बात करते
थे। उस समय मनीष ने नह सोचा था क वह सपना आगे जाकर एक सफल, अ त
वा त वकता का प ले लेगा। आनंद के भाई णव को जानने के लए आभारी मनीष को
गव है क वह आनंद कुमार के पहले दो छा म से एक है और खुशी है क कूल क
ापना के समय वह मौजूद था।
सरा छा रजनीश कुमार उस समय 19 वष का था। वो जानता था क आनंद चाँदपुर
बेला म एक छोटे से दो कमरे के मकान म अपने प रवार के साथ रहते ह और उनके पास
खुद के पैसे भी नह ह। इसके बावजूद आनंद ने कभी उनसे कसी फ स क माँग नह क ।
वे उ ह ब त मामूली सी फ स दे ते थे और वह भी तब, जब उनके पास पैसे होते थे और वे
हमेशा अपने श क क दया और जुनून के लए आभारी रहते थे। रजनीश न सफ उस
असाधारण लब क शु आत का ह सा बनने से खुश था, ब क उस कम उ म भी वह
जानता था क आनंद उन सभी श क से अलग थे, ज ह ने अब तक उसे पढ़ाया था।
वषय को उनके लए दलच बनाने के लए आनंद ग णत और वा त वक जीवन के बीच
संबंध दरशाते थे। यही चीज थी, जसने इन दो युवा छा को ग णत क अवधारणाएँ सही
मायन म समझने म मदद क ।
क ा 11 क परी ाएँ समा त होने तक रजनीश क ग णत क भाषा और स ांत पर
पकड़ काफ बेहतर हो गई थी। हालाँ क उसने त त आई.आई.ट . जे.ई.ई. के लए
यास कया, ले कन उसके भा य ने साथ नह दया और उसका चयन नह आ। बाद म
उसने अथशा म नातक क ड ी हा सल क और फर कानून क पढ़ाई क । पटना हाई
कोट म कुछ समय वकालत करने के बाद वह एक बेहतर भ व य क तलाश म मुंबई चला
गया। अब वह एगॉन रे लगेयर जीवन बीमा कंपनी म लीगल मैनेजर है।
एक ग णत थे, ज ह ने आनंद को ब त भा वत कया था और एक श क के प म
आनंद क या त बढ़ने के बाद भी वे उ ह भा वत करते रहे, वो थे महान् ग णत
ी नवास रामानुजन। आनंद अपने हीरो के बारे म और अ धक जान पाने का कोई भी
अवसर सामने आने पर उछल पड़ते थे। वे उनके काय से ब त े रत थे और उ ह एहसास
था क रामानुजन क जी.एच. हाड के साथ साझेदारी कतनी मह वपूण थी। आनंद ने
अपने कूल का नाम ‘द रामानुजन कूल ऑफ मैथमे ट स’ रखने का नणय लया। इस
महान् भारतीय ग णत के स मान म, ज ह ने शु ग णत क नया म ऐसी असाधारण
अंत तुत क थी, ले कन भा य से सफ 32 वष क अ पायु म उनका नधन हो
गया था।
वष 1993 म वेश करते ए मौ खक चार के प रणाम व प कूल म 40 छा का
नामांकन हो गया। उनके लास म म, जो 15 बाई 20 फ ट का एक हॉल था, गनती क
बच और डे क थे, ले कन एक अ ा लैकबोड था और ढे र सारी चॉक थी, सफ वे छा
जनके पास साधन थे, कूल के मामूली फ स भरते थे, जो अ य कूल क फ स का
दसवाँ भाग थी। श ण का काम मु यतः आनंद करते थे और उनके भाई णव कूल के
शास नक पहलु को सँभालते थे। लास म का कराया भरना, कहने क आव यकता
नह है, मु कल होता था; ले कन मकान मा लक का समझपूण रवैया उन शु आती दन
म ब त मददगार था। गनीमत थी क कई छा नय मत प से फ स भर दे ते थे, जसक
वजह से बकाया रा श कभी भी ब त बड़ी नह होती थी; मकान मा लक और कराएदार
के बीच स मान के तर म तेजी से वृ होने लगी; य क मकान मा लक को एहसास था
क उनका कराएदार हर संभव को शश कर रहा है और कराएदार को एहसास था क
मकान मा लक उसे ा पत होने का ब त बड़ा अवसर दे रहा है।
जब आनंद को कुछ आय मलनी शु हो गई, चाहे अ र ही सही, तो उसने अपनी
खुद क आगे क पढ़ाई के बारे म सोचना शु कया। वो फुटपाथ पर बकनेवाली ग णत
क पु तक खरीद लेता, जनम से अ धकांश सी या अमे रक लेखक क होती थ और
रात भर बैठकर उ ह यान से पढ़ता। उसने कई स ग णत क जीव नयाँ भी पढ़ ,
जनम रामानुजन क जीवनी भी शा मल थी, जसे वह ेरणा लेने के लए बार-बार पढ़ता
था। यह वो समय था, जब इंटरनेट क उप त आज क तरह सव ापी नह थी। ट .वी.
पर भी कुछ खास नह होता था, और समाचार-प म भी आमतौर पर ानीय और
रा ीय समाचार ही होते थे। इस लए युवा आनंद के बुने अ धकांश सपने इन जीव नय और
अ य पु तक से ही उपजे थे। उसके दमाग म एक वचार आकार लेने लगा था। उसक
पढ़ अ धकतर पु तक म यू नव सट ऑफ क ज को उस उदार गॉडफादर का दजा दया
गया था, जसने कई असाधारण तभा को उनक सबसे बड़ी यो यता क खोज करने
म मदद क थी। आनंद गु त प से इस महान् सं ान म श ा ा त करके अपनी एक
अलग पहचान बनाने क गहरी इ ा मन म सँजोने लगा, जैसा क पहले भी कई महान्
ग णत कर चुके थे।
इस बीच आनंद का छोटा भाई णव वाय लन वादन का कोस करने बनारस ह
यू नव सट चला गया, जहाँ एन. राजम गु - श य परंपरा के अंतगत सखाती थ । इससे
आनंद को अवसर मल गया क वह अपने भाई से मलने जाए और बी.एच.यू. क स ल
लाइ ेरी क खोज करे। स ल लाइ ेरी एक अमू य खजाना थी। आनंद ने ग णत के कई
जन स पढ़े , जनक लाइ ेरी के पास सद यता थी। वह नोट् स बनाता और उन जन स म
दए गए कई को हल करने क को शश करता और अकसर कसी-न- कसी सवाल म
इतना डू बा रहता क उससे छु टकारा पाने के लए लाइ े रयन को ब ी बंद करनी पड़ती।
एक बार एक व तरीय को हल करने क को शश म एक-एक पूरी नोटबुक को
भरने के बाद कई पृ म काटा-पीट करने के बाद सरे पृ पर दोबारा उसे हल करने का
यास करने म आ खर उसे एक समाधान मल गया। वह कुछ ऐसा था जैसे आप अँधेरे म
ठोकर खा रहे ह और तभी अचानक कोई ब ी जला दे !
आनंद ने अपने समाधान पर काम कया और उसे अं तम प दया और फर उसे
लखना शु कर दया। ले कन उसके लेखन म कमी थी। उसम काफ बचपना था। वो
अपना समाधान ोफेसर डी.पी. वमा के पास लेकर गया, जो पटना साइंस कॉलेज म
ग णत वभाग के हेड ( मुख) थे। ो. वमा ने आनंद के काम को काशन यो य बनाकर
उसे बेहतर ढं ग से तुत करने म मदद क । कौशल अ जताभ, जो आनंद से 7 या 8 वष
सी नयर था, उस समय साचुसेट्स इं ट ूट ऑफ टे नोलॉजी (एम.आई.ट .) से पी-
एच.डी. कर रहा था। आनंद उनका ब त स मान करता था और उसने अपने पेपस उनके
पास समी ा के लए भेजे। कौशल ने पेपस दे खे और बारीक से उ ह संपा दत कया। ो.
वमा और कौशल दोन ही उसके वचार क मौ लकता से अ य धक भा वत ए और
उ ह ने आनंद को ो सा हत कया क वह उन पेपस को काशन के लए भेजे।
1993 म कई लंबे दन और जागती रात के बाद युवा आनंद का एक मौ लक पेपर
यू नव सट ऑफ शेफ के ‘मैथमे टकल े म’ नाम के एक त त जनल म
का शत आ। पेपर का शीषक था—‘है पी नंबस’ और उसम नंबर योरी (सं या के
स ांत) के वषय म एक नया वचार रेखां कत कया गया था। उस पेपर ने अंतररा ीय
ग णत प र य पर एक नए वचारक के आगमन का सू पात भी कया।
अब जब क आनंद एक होनहार ग णत के प म उभर रहा था तो रमेश शमा ने,
जनके घर म राज साद पटना म पढ़ाई के दौरान रहे थे, उनका प रचय तलक
दासगु ता से कराया। दासगु ता एक वतं प कार थे, जो उस समय पटना म रहते थे और
गरीबी, बेरोजगारी और असमानता क त के बारे म लखते थे। दासगु ता आनंद के
जीवन पर सबसे बड़ा भाव छोड़नेवाले लोग म से एक थे। उ ह ने आनंद से आ ह कया
क वह अपनी यो यता और तभा के लए एक ऊँचा उ े य तलाश कर और अपने
गत लाभ के बारे म न सोच।
आज भी जब आनंद को जीवन का कोई बड़ा नणय लेना होता है तो वह तलक सर के
पास जाते ह। आनंद और उनक प नी ऋतु अकसर तलक दासगु ता के प रवार से मलने
कोलकाता जाते ह। उनके र ते क जड़ इतनी गहरी हो चुक ह क आज आनंद के जीवन
के सव े पल वे होते ह, जो वे तलक सर के साथ बात करते ए बताते ह। ऐसा भाव
था उस का, जससे आनंद पहली बार 1993 म मले थे।
आनंद के कुछ और पेपस का शत ए, जनम से एक ‘मैथमे टकल गजट’ म का शत
आ और उनका आ म व ास बढ़ता गया। इसी समय के आसपास तलक दासगु ता के
मा यम से उनक मुलाकात ‘टाइ स ऑफ इं डया’ के पटना सं करण के संपादक उ म
सेनगु ता से ई। आनंद म वा तव म कोई खास बात थी, जैसा क उनके ोफेसर डी.पी.
वमा कहा करते थे। वे अपने पेशेवर कै रयर म सफ दो वा त वक जी नयस से मले थे।
पहले थे—व श नारायण सह नाम के एक तभाशाली ग णत (जो 1993 के आसपास
कई मान सक आघात से गुजरे थे और बाद म सं ागत कर दए गए थे) और सरे, उस
समय उनके कॉलेज म पढ़ रहा एक युवा छा आनंद कुमार।
आनंद ने सेनगु ता से एक वशेष अनुरोध कया। वह उस तयो गता के वजेता के
लए आयो जत समारोह म सेनगु ता को स मा नत अ त थ बनाना चाहते थे, जो उ ह ने
अपने छा को चुनौती दे ने के लए रखी थी। सेनगु ता रामानुजन कूल के पीछे क
कहानी से और इस बात से क कैसे ये युवा छा खुद होनहार छा को पढ़ाता था और
कुछ से तो कोई शु क भी नह लेता था, ब त रोमां चत थे। यह एक ऐसी दो ती क
शु आत थी, जो जीवन भर जारी रहने वाली थी।
संपादक शु म उसका अनुरोध वीकार करने म हचक रहे थे, य क—जैसा क उ ह ने
आनंद को बताया—वे कूल म ग णतीय कौशल का चमकता उदाहरण नह आ करते थे
और उ ह ने परी ा म इस वषय म सफ 40 तशत अंक ा त कए थे। ले कन जतनी
वे भ व य म ग णत के स ांत के बारे म लखने के आनंद के ल य के बारे म बात करते
गए, उतनी ही सेनगु ता क उनके समारोह म स मा नत अ त थ बनने क इ ा बढ़ती गई।
जन स म का शत आनंद के पेपस दे खने के बाद सेनगु ता ने आनंद से क ज म आवेदन
करने का आ ह कया। अब तक क ज म जाना उसक एक गु त आकां ा थी, खुली
आँख से दे खा एक सपना था और अब एक व र संपादक गंभीरता से उसे वहाँ आवेदन
करने क सलाह दे रहे थे। आनंद हचक रहा था, ले कन उ मीद जैसी कसी चीज ने उसे
इस बात के लए मना लया।
अ ैल 1994 म आनंद ने क ज म दा खले के लए आवेदन प भरा, अपने का शत
प संल न कए और आवेदन शु क या कसी भी कार के शु क के मद म एक पैसा दए
बना उसे भेज दया। बाद के दन म वह उस आवेदन को भूलने क को शश करने लगा,
य भेजा मने वो? वहाँ के सब ोफेसर लोग बैठकर मुझ पर हँस रहे ह गे। रात को ब तर
पर जागते ए आनंद सोच रहा था। क ज जाएँगे जनाब, उसने अपने आपको ताना
दया।
‘रामानुजन कूल ऑफ मैथमे ट स’ क लोक यता बढ़ती जा रही थी और आनंद
अपने छा के साथ और अ धक समय बताने लगे थे। अब कूल म के म और
फ ज स भी पढ़ाई जा रही थी और छा को आई.आई.ट . जे.ई.ई. क वेश परी ा के
लए को चग द जा रही थी। यह उ लेखनीय था क यह सब बना कसी व ापन या
चार के हो रहा था—एक ऐसे समय पर, जब पटना को चग सं ान से व तुतः अटा पड़ा
था। एक सुबह, जब आनंद कॉलेज जाने के लए तैयार हो रहे थे तो उ ह ने अपनी माँ को
च लाते सुना—‘‘आनंद! आनंद! क ज का लेटर आया है!’’ जयंती दे वी एक हाथ म प
और सरे हाथ म बेलन लये उसक ओर भागी चली आ रही थ । राज साद भी दे खने
चले आए क इतना हंगामा कस बात पर हो रहा था। आनंद ने प खोला और अपने पता
के हाथ म दे दया। आनंद कुमार को क ज यू नव सट म वीकार कर लया गया था!
राज साद ज द से बाहर गए और मीना साद और उसक प नी को पुकारने लगे।
कुछ ही दे र म वहाँ एक भीड़ जमा हो गई, जो समझने क को शश कर रही थी क या
खबर आई थी। आनंद क ज जाएगा! क ज! पता नह कहाँ से ल भी आ गए और
बँटने लगे। कुछ ब ने गाना शु कर दया, आनंद भैया, मान गए! आनंद ह ठ पर
उदास मुसकान लये इस ज से कुछ र खड़े थे। वे नह जानते थे क उ ह खुश होना
चा हए या खी। राज साद ने आनंद को एक कोने म उदास खड़े दे खा तो वे उनके पास
आ गए, या बात है, बेटा? यह तो ब त अ खबर है। इस मोह ले के लोग ने तो
क ज का नाम भी नह सुना है, जाना तो र क बात है। तुम या सोच रहे हो?’’
‘‘ पताजी, फ स ब त यादा है। हम कसी भी तरह इतने पैस का इंतजाम नह कर
सकते, जससे म अपने इस बेवकूफ भरे सपने को पूरा कर सकूँ।’’
‘‘पागल हो गए हो या? तुम जानते हो, इसका मतलब या है? हम सब जानते थे क
तु हारे अंदर कोई वशेष तभा है। तु हारे लए यही एक रा ता है, जससे तुम इस नरक
से बाहर नकलकर कुछ बड़ा हा सल कर सकते हो। या तु ह लगता है क रामानुजन ने
पैस क कमी को अपने रा ते क कावट बनने दया था? चता मत करो, जब तक
तु हारा पता जी वत है, तु ह पैसे जैसी मामूली बात के लए परेशान होने क ज रत नह
है। तुम अपनी पढ़ाई पर यान दो, बेटा।’’ आँसू भरी आँख से आनंद ने अपने पता को
गले लगा लया।
राज साद को वे स दयाँ याद आ रही थ , जो पटना म पढ़ने के दौरान उ ह ने सफ
सूती कपड़ म गुजारी थ । उ ह ने अपने मन म तय कर लया क उनके बेटे के पास इं लड
म पया त गरम कपड़े होने चा हए। उ ह ने अपना कोट भी नकाल लया, जो उनके पास
एकमा अ ा कोट था और उसे आनंद के नाप का करवा दया।
इन सब तैया रय के बीच, बढ़ती सं या म र तेदार और म आनंद को उनक सफलता
के लए शुभकामनाएँ दे ने आ रहे थे। उनके जाने का समय नकट आने पर वातावरण म
उ ेजना साफ झलकने लगी थी और तभी नय त ने एक घातक हार कया।
23 अग त, 1994 को राज साद झपक ले रहे थे। वे अकसर जमीन पर ही सो जाते
थे और उस बरसात क रात को भी वे प रवार को उसी जगह मले, जब उ ह ने उनक
क ठनाई से चलती साँस क आवाज सुनी। आनंद और उसक माँ दौड़कर बीमार राज
क सहायता के लए प ँच,े जो ब त क म थे और मु कल से साँस ले पा रहे थे। आनंद
तेज बा रश म बाहर भागे, ता क कसी को मदद के लए बुला सक। ले कन चाँदपुर बेला म
कोई डॉ टर नह था। एक कंपाउं डर, जसे सब ‘डॉ टर भगत’ कहते थे, शां त कुट र से
करीब 500 मीटर क री पर रहता था। आनंद कंपाउं डर के घर प ँचे और उससे फौरन
साथ चलने क वनती क । डॉ टर भगत आनंद के साथ शां त कुट र आ गए। उ ह ने
राज साद क जाँच करके बताया क उनक त गंभीर थी और उ ह तुरंत अ ताल
ले जाने क आव यकता थी, य क उनका उपचार घर पर हो पाना संभव नह था।
वा तव म कंपाउं डर को यक न था क राज साद का नधन हो चुका था; ले कन वे उस
प रवार को यह अं तम सूचना नह दे सकते थे, जो इतनी उ मीद भरी नगाह से उ ह दे ख
रहा था। उ ह ने पु के लए उ ह डॉ टर के पास ले जाने का आ ह कया। वहाँ कोई
टै सी उपल नह थी, इस लए उन लोग ने उ ह धीरे से एक ठे ले पर लटाया और आनंद
अपने पता के धे शरीर को धकेलते ए नजद क अ ताल क ओर दौड़ पड़े। बाहर
अभी भी बा रश हो रही थी।
खराब यता, बा रश और ग से भरी सड़क ने या ा को और अ धक ददनाक व दय-
वदारक बना दया था।
अंत म, जब वे पटना मे डकल कॉलेज के इमरजसी क म प ँचे तो रात हो चुक थी।
उनके सामने एक नराशाजनक य था। ऑडरली इधर-उधर घूम रहे थे और बुरी तरह
भीगे आनंद एवं ठे ले पर पड़े उसके पता क ओर कोई यान नह दे रहा था।
‘‘कृपया मेरी मदद क रए। मेरे पताजी साँस नह ले रहे ह। उ ह बचा ली जए। भगवान् के
लए... म वनती करता ँ।’’
जब कोई मदद नह मली तो आनंद के अंदर एक अजीब सी ोध- म त लाचारी पैदा हो
गई। आ ामक हो गए, चीखने लगे और अ ताल के टाफ को गा लयाँ दे ने लगे। उसके
बाद भी उनके पता क मदद करने के बजाय टाफ ने पु लस को बुला लया।
वह एक दल तोड़ने वाला य था। एक जवान लड़का, जसने क ज म पढ़ने का सपना
दे खा था, जसे अभी भी अपने पता के जी वत होने क उ मीद थी, पु लस ारा घसीटा
जा रहा था; य क वो पागल क तरह च ला रहा था।
अब तक पटना मे डकल कॉलेज के अंदर और बाहर मलाकर लगभग 100 लोग हो गए
थे। ज ह ने आनंद को दे खा था, उ ह ने आगे आकर पु लस को सारी बात समझाई और
आनंद को छोड़ दया गया। डॉ टर ने उनके पता क जाँच क और उ ह मृत घो षत कर
दया।
घर वापसी क या ा और अवसादपूण थी। सब लोग सुबह होने का इंतजार कर रहे थे
और इतने सदमे म थे क समझ नह पा रहे थे, या आ था। आनंद क दाद शां त दे वी
दे वदहा म थ और रात को ही कसी को मोटरसाइ कल से उ ह लाने के लए भेज दया
गया। हालाँ क कसी ने उ ह बताया नह क घर म कौन सी बुरी खबर उनका रा ता दे ख
रही थी।
शां त दे वी को कोई नह सँभाल पा रहा था। वे एक बेटे को पहले ही खो चुक थ और
सरे को खो दे ना उनके लए ब त बड़ा झटका था। वे अपने बाल नोच रही थ , छाती पीट
रही थ और लगातार रो रही थ । उनका दद कम करने के लए कोई कुछ नह कर सकता
था।
कुछ ही दन पहले जो लोग उ ह बधाई दे ने आए थे, अब उनके पास शोक कट करने आ
रहे थे।
मशान भू म पर आनंद सबकुछ बेसुध होकर कर रहा था। उसने सारे कमकांड पूरे कए,
जो उसके लए ब कुल नए और ब त ही क द थे। जब मुखा न दे ने का समय आया तो
वो फूट-फूटकर रो पड़ा। ले कन गरीब को तो शां त से शोक कट करने क भी अनुम त
नह होती। पं डत ने आनंद से पैस क माँग क , जैसी क चता को अ न दे ने से पहले
र म होती है। पहले तो अपने ःख म आनंद समझ नह पाया क उसे य रोका जा रहा
है, फर जब उसे समझ म आया क उससे पैसे दे ने क अपे ा क जा रही है तो उसके
अंदर फर वही ोध उबलने लगा, जो अ ताल म उबला था। णव को भी गु सा आ रहा
था; ले कन वह अपने भाई को समझाने क को शश करने लगा, ‘‘जा लम, सब जा लम
ह।’’ आनंद पीड़ा से चीखने लगा।
मशान भू म खचाखच भरी थी। ब त से लोग दे वदहा से भी आए थे, जनम राज
साद के डाक वभाग के सहक मय के अलावा वहाँ के पड़ोसी भी शा मल थे। ऐसा लग
रहा था क कसी ानीय नेता या मं ी जैसे मह वपूण का नधन आ हो। सच तो
यह था क राज साद एक ऐसे थे, ज ह ने कभी एक म खी को भी चोट नह
प ँचाई थी और सभी लोग उ ह ब त यार व स मान दे ते थे। पछले कई वष म उ ह ने
अन गनत लोग क सहायता क थी और बदले म कभी कोई अपे ा नह क । वहाँ
पं डतजी थे, जनका खूबसूरत बेटा लापता हो गया था और उसे ढूँ ढना राज ने अपना
गत मशन बना लया था। वो जवान लड़का एक क से कुचले जाने के बाद मृत
पाया गया था। वहाँ पासवान मौजूद थे, जो आज भी आनंद को यह बताने का कोई अवसर
नह छोड़ते क उनके पता ई र व प थे। पासवान का बेटा खहरण एक मज र है, जो
काम ढूँ ढने के लए बाहर जाया करता था। एक बार जब कई दन तक उसक कोई खबर
नह मली तो पासवान ने उसका पता लगाने म राज साद क सहायता माँगी। पैसे और
साधन न होने के बावजूद राज उसक मदद करने के लए तैयार हो गए। लोग से
पूछताछ करते और संकेत का अनुसरण करते ए वे बनारस प ँचे, जहाँ उ ह ने दे खा क
खहरण का एक हाथ गायब है। उ ह यह जानकर ःख आ क उसका मा लक उसे गाँव
वापस नह जाने दे रहा था, य क उसे डर था क नमाण ल पर ए इस हादसे के
कारण कोई मुसीबत खड़ी हो सकती थी। अंत म राज खहरण को गाँव वापस लाने म
सफल रहे।
यह क सा वशेष प से इस लए बताने यो य है, य क आनंद को अपने पता क
थोड़ी-ब त वृ वरासत म मली लगती है। य द आज वे गरीब के लए काम कर पाते
ह और गत लाभ के बारे म नह सोचते तो इस लए, य क उ ह ने बचपन से इस
कार का बड़ा दल दे खा है। राज को इस बात क कोई परवाह नह थी क उनके पास
लोग क मदद करने के लए पैसे नह थे या उ ह ऐसा करके कोई स या धन नह
मलनेवाला था। उ ह नह लगता था क एक बूढ़ औरत क , जसके साथ उनका कोई
संबंध नह था, अपने घर म दे खभाल करके वे कोई बड़ा काम कर रहे थे। अपनी युवाव ा
म वे उसके साथ समय बताते थे और उसक सभी आव यकता का यान रखते थे;
य क वह ब तर से नह उठ सकती थी। उस माहौल म भी, जहाँ जा त और पंथ
अ य धक मह व रखते थे, उ ह ने घर के सामने रहनेवाली सरी जा त क एक गूँगी औरत
के साथ संपक ा पत करने के लए एक सांके तक भाषा वक सत क थी। वे इन
मतभेद से ऊपर उठकर इनसान को उनके वा त वक प म दे ख पाने म स म थे—
अ नवाय प से एक समान।
उस दन घर लौटने के बाद आनंद अपने भाई के बगल म, जमीन पर लेटे ए थे और
तभी उ ह अंदर लटके उस कोट क एक झलक दखी, जो उनके पता ने उ ह दया था।
एक झटके के साथ आनंद को एहसास आ क उ ह वो उपहार मले 24 घंटे से भी कम
समय बीता था। उ ह ने कसम खाई क वे तब तक उस कोट को नह पहनगे, जब तक वे
उसके यो य नह बन जाते।
छा के मुख से

नाम : न ध झा
सुपर 30 बैच : 2013-14
इं ट ूट और म : स वल इंजी नय रग, इं डयन कूल ऑफ माइंस
वतमान पेशा : छा
म इस समय 18 वष क ँ और जब यह सब शु आ, तब 16 वष क थी।
आई.आई.ट . जे.ई.ई. : मेरा बड़ा सपना। मने सुपर 30 और आनंद सर के आकषण के बारे
म सुना था और जस वष मने जे.ई.ई. क तैयारी के लए ॉप कया, उस वष मुझे यह
अनुभव करने का मौका भी मल गया। म मूल प से वाराणसी क रहनेवाली ँ और इस
समय इं डयन कूल ऑफ माइंस (आई.एस.एम.), धनबाद म पढ़ रही ँ, एक सं ान, जो
आई.आई.ट . म प रव तत होने क या म है।

म चार बहन और एक भाई के प रवार का ह सा ँ। मेरे पताजी एक कराए का


ऑटो र ा चलाते ह और मेरी माँ गृ हणी ह। जैसा क हम जानते ह, श ा इस समय
सबसे बड़ा बाजार है और को चग ब त महँगी होती है; ले कन सुपर 30 मेरी मदद के लए
आगे आया। आनंद सर हम सबके लए एक नरंतर ेरणा रहे ह, जब भी कोई नराश
महसूस करता, वे ही उसका मनोबल बढ़ाने आते। वे मेरे जीवन का आदश ह। उ ह क
वजह से म पूरे वष अ े से रहने का साहस जुटा पाई। उनका प रवार भी, खासतौर से
णव सर, ब त सहायक है और उ ह ने हमेशा हम सब को अपने प रवार के सद य क
तरह समझा है।
म यह भी कहना चा ँगी क मेरा जीवन उस का ऋणीदार है और म सुपर 30 और
आनंद सर को अपने जीवन का अ भ और वशेष ह सा समझती ँ।
4
पापड़वाला लड़का

शां त कुट र म छाए ःख के अँधेरे से बाहर नकलना प रवार के लए मु कल था।


आनंद के म और र तेदार उन पर क ज जाने के लए धन जुटाना जारी रखने के लए
दबाव डाल रहे थे। आनंद अपने म उ म सेनगु ता के पास गए, ज ह ने ‘टाइ स ऑफ
इं डया’ के मा यम से उसक बात लोग तक प ँचाने म मदद क । पटना यू नव सट से एक
हद के ोफेसर आगे आए और उ ह ने पटना म एक मं ी के साथ उसक मुलाकात तय
कर द । मं ी का रवैया सकारा मक था और उ ह ने अगले दन सुबह 11 बजे आनंद को
मलने बुलाया।

आनंद समय से आ गए, ले कन उ ह गेट पर रोक दया गया।


‘‘मं ी महोदय ने मुझे 11 बजे मेरी क ज क योजना के बारे म बात करने बुलाया है।’’
आनंद ने समझाया।
काफ पूछताछ के बाद उ ह अंदर जाने क अनुम त मल गई और फर उ ह लॉबी म
इंतजार करने के लए कहा गया। आधा घंटा और बीतने के बाद उ ह एक बड़े से कमरे के
अंदर भेज दया गया। कमरे म वेश करने पर आनंद हैरान रह गए। उ ह ने अपे ा क थी
क अकेले म न टर साहब से बात होगी, ले कन वहाँ तो ब त से नेता नुमा लोग बैठे थे
और सब जोर-जोर से बोलते ए कसी राजनी तक चचा म लगे ए थे।
‘‘आओ आनंद, आओ। बैठो, बैठो बेटा।’’ म न टर साहब ने मुसकराकर आनंद का
वागत कया और कमरे के एक कोने म रखी कुरसी पर बैठने का संकेत कया। आनंद को
लगा क म न टर साहब उससे थोड़ी दे र म बात करगे, य क अभी मह वपूण मु पर
चचा हो रही थी।
पहले तो उसने अगोचर होने क को शश क ; ले कन फर हवा म उड़ते वा य उसके कान
म पड़ने लगे।
‘‘ये सीट उसे नह दे नी चा हए. ब क हम ये सीट...’’
‘‘हाँ-हाँ, उसके पास ब त बड़ा जा त-आधा रत वोट बक है। वो बेहतर उ मीदवार है।’’
आनंद बैठे ए सब सुन रहे थे और जो सुन रहे थे, उस पर उ ह व ास नह हो रहा था। म
ग णत के समीकरण पर अपना समय बताता ँ, ले कन यहाँ तो नेता लोग ऐसे ज टल
जा त और सं दाय के समीकरण पर मंथन कर रहे ह! आनंद हैरान रह गए।
उ ह ने 15-20 मनट इंतजार कया और फर वन ता से मं ीजी का यान अपनी ओर
ख चा।
‘‘सर, आपने मेरी क ज जाने क योजना के बारे म बात करने के लए मुझे बुलाया
था...’’
‘‘हाँ, ब कुल। म उन सबको बुलाता ,ँ जो कड़ी मेहनत से पढ़ते ह और रा य के हत के
बारे म सोचते ह। म उनक इ त करता ँ और उ ह ो सा हत करता ँ।’’ म न टर
साहब ने अपनी बाँह उठाते ए बुलंद आवाज म कहा और एक बार फर अपना यान उस
अ भयान बंधन क ओर मोड़ दया, जस पर नेता लोग चचा कर रहे थे।
आनंद घबराए ए सोच रहे थे, म न टर साहब पैसे के वषय म मेरा संकेत नह समझ रहे
ह। शायद मुझे सीधे-सीधे बात कर लेनी चा हए।
‘‘जी सर,’’ आनंद ने एक बार फर उनक चचा म बाधा डाली, ‘‘ले कन जैसा क ोफेसर
साहब ने आपसे कहा था, मुझे कुछ आ थक सहायता क ज रत है।’’
‘‘हाँ, मने पैसे से सहायता क बात क थी, ले कन पैसे के च कर म अ े -अ े लोग
बरबाद हो जाते ह। पैसे के पीछे मत भागो। अ े कम करते रहो, तु ह सबकुछ मल
जाएगा’’ और एक बार फर वे अपनी राजनी तक चचा म मशगूल हो गए।
लगभग 15 मनट और बीत जाने के बाद आनंद ने सीधे-सीधे कह दया, ‘‘सर, बुरा न
मान; ले कन मुझे क ज जाने के लए कुछ पैस क स त आव यकता है।’’
‘‘हाँ, ज र जाओ, अमे रका जाओ, लंदन जाओ, जापान जाओ, ांस जाओ, नया के
बड़े-से-बड़े सं ान म जाओ। मेहनत से पढ़ाई करो! रात- दन एक कर दो! दखा दो,
बहार क म म कतनी ताकत है! ले कन अपनी जड़ को कभी मत भूलना और फर
बु और महावीर क इस धरती पर वापस लौट आना। मने तु ह यही कहने के लए बुलाया
था। भूलना मत, बेटा, तु हारे दे श को तु हारी ज रत है।’’
आनंद समझ गए क वहाँ से उ ह कोई ठोस मदद नह मलनेवाली थी और वहाँ से चले
आए।
आनंद म न टर के बँगले से बाहर नकले तो वह काफ उदास दख रहे थे। बँगले के सरी
ओर क सड़क पर उ ह ने एक ठे ले पर चाय क कान दे खी। जेब टटोलने पर उ ह कुछ
पैसे मल गए। उ ह ने एक कप चाय पीते ए अपने वचार को संग ठत करने का फैसला
कया। चायवाले ने हाथ म माण-प का एक बंडल थामे सर पकड़कर बैठे युवक को
दे खा तो उससे पूछा, ‘‘ या आ? कस काम से गए थे म न टर साहब के पास? नौकरी
के लए?’’
नराश और थके ए आनंद ने सहानुभू त दखा रहे अजनबी को पूरी कहानी सुना द ।
‘‘पैसे? कस बेवकूफ ने तु ह यहाँ भेजा? ये लोग पछले चार महीन से मेरी चाय उधार पी
रहे ह, ले कन अब तक पैसे नह चुकाए और तुम इनसे आ थक मदद क उ मीद रखते हो?
ये लोग कसी काम के नह ह। अपने सपने को भूल जाओ और कह नौकरी ढूँ ढ़ लो।’’
आनंद अपने चाय के कप को घूरता आ चायवाले के श द पर गहराई से वचार करने
लगे।
आनंद नराश हो गए। जब उनके पता उनके साथ थे, तब भी उ ह ऐसी हताशा का
सामना करना पड़ा था। कुछ लोग ने उनके पता को एक ऐसे धा मक संगठन के बारे म
बताया था, जो कुछ छा को श ण के लए इं लड भेजता है और उनके सारे खच वहन
करता है। यह सुनकर पता-पु उस या के बारे म और जानकारी ा त करने के लए
उस संगठन के द तर म गए थे। पहले तो उन लोग ने कहा क आनंद को उनका धम
वीकार करना पड़ेगा, फर अपना नाम बदलना पड़ेगा और कुछ कानूनी औपचा रकताएँ
पूरी करनी पड़गी। फर, उ ह ने कहा, ‘‘आप हमारे पास अपने आवेदन के साथ
आइएगा।’’
आमतौर पर कहा जाता है क बहार और उ र दे श जा तवाद म घुसे ए ह। यहाँ क
पूरी राजनी त जा त-आधा रत है और वोट बक अ यंत मह वपूण होते ह। इस लए कुछ
लोग ने राज साद को उनक जा त के नेता के पास जाने का सुझाव दया, इस
आ ासन के साथ क वे ज र मदद करगे। इस नेता के साथ उनक भट काफ सफल रही
और नेताजी ने कहा क वे दो-चार दन म पैस क व ा करवा दगे। राज साद और
आनंद बेहद खुश थे।
दो दन बाद वे फर नेताजी से मलने गए।
‘‘हाँ, पैस क व ा हो रही है। आपको अपने बेटे क शाद एक ब त संप आदमी क
बेट से करनी पड़ेगी। चता मत क रए, वे अपनी ही जा त समाज के ह। पैसे आपको दहेज
के प म मल जाएँगे।’’
उदास मन से राज साद अपने बेटे को लेकर वहाँ से चले आए।
पता क मृ यु के बाद आनंद को एक ऐसे का प मला, जसने उनके बारे म ‘द
ह ’ म पढ़ा था। उसने बताया क वह द ली का एक अमीर ापारी था और आनंद को
मलने के लए अपने घर बुलाया। आनंद ने खुद के पैसे खच करके एक सामा य ेणी का
टकट लया और द ली रवाना हो गए।
सफदरजंग ए लेव प ँचने पर उनका गमजोशी से वागत आ, चाय द गई और फर
उस ापारी के साथ एक सं त, ले कन उ साहजनक मुलाकात ई। वापस लौटने के
बाद उ ह ने द ली के उस ापारी को कई बार फोन कया; ले कन ःखद प से सारे
फोन कॉल थ गए।
‘‘जब आपको वा तव म मदद क ज रत होती है तो कोई आपक मदद के लए आगे नह
आता। ये सारे वयंसेवी संगठन, एन.जी.ओ., सबके पोल खुल जाते ह। ये सफ उन लोग
क मदद करना चाहते ह, जो इनका चार करवा सकते ह।’’ आनंद कड़वाहट के साथ
सोच रहे थे।
उ म सेनगु ता ने लालू साद यादव से बात करके एक बार और आनंद क मदद करने
का यास कया। आनंद उनसे मलने गए, ले कन उनके स चव ारा रोक दए गए। स चव
ने उनसे मुलाकात का उ े य एक कागज पर लखने के लए कहा और सूचना द क
लालूजी उपल नह थे। धीरे-धीरे यह होता जा रहा था क क ज जाने क उनक
उ मीद उसके पता के साथ ही ख म हो गई थी।
जयंती दे वी रोज आनंद को बना कसी सफलता के घर लौटते दे खत तो उनका दल
और बैठ जाता। डाक कायालय से मलनेवाली मामूली सी पशन से मेज पर खाना लगाने
के लए उ ह संघष करना पड़ता था। ले कन इसके बावजूद वे आनंद को उ मीद न छोड़ने
के लए समझाती रहती थ । एक शाम जब आनंद घर लौटे तो उ ह ने उनसे कहा, ‘‘मने
तय कर लया है। तुम मेरे यह गहने बेच दो और जो भी पैसे मल, ले लो। तुम और णव
मेरे असली गहने हो। म इन बेकार धातु का या क ँ गी?’’ आनंद का दल भर आया
और उ ह ने कहा, ‘‘पागल मत बनो, माँ। इन धातु से कुछ नह मलनेवाला है। इनक
क मत सफ भावना मक है। इ ह बेचकर भी क ज जाने का खच नह नकल सकता।
चलो, खाना खाते ह और कुछ दे र के लए इन सब बात को भूल जाते ह।’’ ले कन जब वे
खाना खाने बैठे तो मेज पर सफ रो टयाँ थ । मा सक खच के पैसे ख म होते जा रहे थे।
इसके अलावा, उन कुछ मामल के वपरीत जब एक युवा मौत के मामले म सरकार
मुआवजा दे ती है, यह बात सामने आई क राज साद ने अ य ऋण के अलावा घर के
नमाण के लए एक सहकारी ऋण भी लया था। प रवार को 18,000 पए क रा श
चुकानी थी। यही वह समय था, जब आनंद ने अपने क ज के सपने को दफनाकर प रवार
क ज मेदारी अपने कंध पर लेने का फैसला कर लया।
‘रामानुजन कूल ऑफ मैथमे ट स’ अ ायी प से बंद कर दया गया; य क वह दोन
भाइय का काफ समय ले लेता था और उससे कोई वशेष आय भी नह होती थी।
ता का लक ाथ मकता थी पैसे कमाना, वरना उ ह दो समय के भोजन का भी अभाव हो
जाता। जयंती दे वी ने एक योजना पर काररवाई करने का फैसला कर लया। उ ह ने कभी
घर से बाहर जाकर काम नह कया था और प त क मृ यु होने तक उनक नया एक
आदश गृ हणी बने रहने तक ही सी मत रहती थी। वे य नपूवक अपने प रवार क ज रत
पूरी करत ; नयम से पड़ो सय , संबं धय और म के घर जात और खाली समय म
पूजा-पाठ करत । उनम कोई और वसाय करने क द ता नह थी; ले कन वे रसोई
बनाने म मा हर थ और उनके बनाए पापड़ ब त मश र थे। उ ह ने ताव रखा क वे
पापड़ बना सकती थ और वे उसे मामूली लाभ के साथ बेच सकते थे। आनंद तैयार हो
गए।
पापड़ आमतौर पर चावल या दाल से बनता है। जयंती दे वी सूखी काली दाल को
पीसकर पाउडर बनात और फर उसम पानी, नमक व मसाले डालकर आटा तैयार कर
लेत । तैयार आटे को बेलन से ब त पतला-पतला बेलकर धूप म सुखाया जाता। यह कमर
तोड़ दे नेवाला काम था, य क वह इतना सारा आटा हाथ से गूँधते थे और फर उ ह ब त
सतक रहना पड़ता था, य क हवा का एक झ का भी छत पर सूख रहे सारे-के-सारे
पापड़ को उड़ाकर नीचे गरा सकता था। वे ब त नाजुक भी होते थे और उ ह ब त यान
से रखना पड़ता था, य क कानदार टू टे पापड़ लेने से मना कर दे ता था। कुछ ही दन म
थोड़ी-ब त मदद के साथ, जयंती एक दन म सैकड़ पापड़ बनाने लग ।
आनंद अपने प रवार के म को कानदार को बेचने के लए सड़क और ग लय म
घूमा करते थे। दन म वे पापड़ बेचते थे और रात को पढ़ाई करते थे। उनक माँ उ ह
कताब बंद करके कुछ दे र सो लेने को कहती थ । इस कार का काम करना आनंद के
लए आसान नह था। सामा जक संकोच और एक ारं भक चु पी पापड़ के वसाय को
इस युवा व ान् के लए असहज बना दे ते थे; ले कन ज रत ने इस काम क बा यता
सा बत कर द थी और समय के साथ उसे यह वसाय पसंद आने लगा। आनंद जब भी
कभी उदास होते तो सोचा करते थे क पताजी ने ही तो कहा है क कोई काम छोटा नह
होता है। बस ज रत तो इस बातक है क बेटे तुम ईमानदार बने रहो। और यही बात
आनंद कुमार को ताकत दया करती थ ।
आनंद सुबह-सुबह अपनी साइ कल क पछली सीट पर सुर त प से पापड़ बाँधकर
तैयार हो जाते, फर वे मोह ले के च कर लगाने शु करते। कई कानदार इस मनोहर
युवा से आसानी से पापड़ ले लेत,े खासतौर से उनके प रवार क ासद के बारे म पता
चलने के बाद। ले कन अ य कानदार उतने दयालु नह थे और उसके साथ ब त बुरा
वहार करते थे। कानदार उसे ‘पापड़वाला लड़का’ कहकर बुलाने लगे। चूँ क वतरण
और मानव श उनक सबसे बड़ी कमजो रयाँ थ , आनंद ने महसूस कया क जी वका
कमाने के लए उसे नजी संसाधन पर नभर होना पड़ेगा और कानदार के साथ संबंध
का लाभ उठाना पड़ेगा। ऐसा करना आसान नह था; ले कन वे कड़वे श द या चुभती ए
तान से वच लत नह होता था। उसने ज द ही उन बड़ी चुनौ तय को जान लया,
जनका सामना हर ापारी करता है और उस मोट चमड़ी को वक सत करना शु कर
दया, जो आज तक उनक मदद करती है।
पापड़ वसाय से होनेवाली आय ब त शानदार तो नह थी, ले कन धीरे-धीरे उसने उस
आय का ान ले लया, जो राज साद अपने प रवार को दान करते थे। साल-दो साल
म वे 18,000 पए का ऋण चुकाने म स म हो गए थे। फर भी, काम मु कल था
खासतौर से जयंती के लए और उसका असर सबके ऊपर होता था।
मीना साद, ज ह आनंद, णव और ओम सब ‘गु जी’ कहकर बुलाते थे, राज साद
के नधन के दो वष पहले शां त कुट र से चले गए थे। उ ह ने वहाँ से कुछ र एक
अपे ाकृत सूखे इलाके म रहने का नणय लया था। अब चीज बदल गई ह, ले कन उन
दन मानसून के दौरान चाँदपुर बेला म काफ जल जमाव हो जाता था और सड़क पर
कई ह ते घुटन तक पानी भरा रहता था। एक अपा हज के लए, जसे चलने म
परेशानी होती थी, ऐसी त म रहना ब त मु कल था। लड़क म से कोई गु जी को
कंधे पर बैठाकर सड़क पार करा दे ता था, ले कन यह साफ था क उ ह ऐसे ान क
आव यकता थी, जो सूखा और सुर त हो। इस लए गु जी चाचीजी (उनक प नी) के
साथ वहाँ से कुछ ऊँचाई पर एक मामूली से घर म रहने चले गए और आनंद, णव तथा
ओम दोन घर के बीच आते-जाते रहते थे। चाचीजी, जैसा क आनंद और णव उ ह
पुकारते थे, कभी-कभी कुछ पैस क व ा कर दे त और कभी-कभी जब लड़के दाल-
भात खाकर परेशान हो जाते तो उनके लए कोई स जी बना दे त ।
प रवार म ए हादसे के बाद ओम कुमार भी पैसे कमाने के संघष का ह सा बन गया
था। ब के बड़े होने के दौरान कोई नह बता पाता था क कौन कसका बेटा है। तीन के
बीच कोई फक नह समझा जाता था। आनंद और णव अपने चाचा मीना साद को
‘गु जी’ कहते थे और ओम भी उ ह उसी नाम से पुकारता था। णव और ओम कूल म
एक ही क ा म थे, य क ओम णव से सफ 4 महीने छोटा था। तीन भाइय म हमेशा
से ब त ेम था। ओम और णव क जोड़ी तो अ वभा य थी, ले कन जहाँ आनंद
अ ययनशील था और णव का संगीत क ओर झुकाव था, ओम बड़ा होने के साथ कुछ
गलत संगत म पड़ गया। उसने पढ़ाई म यान दे ना कम कर दया और उसका समय गली-
मोह ले के दो त के साथ घूमने म बरबाद होने लगा। एक दन उसक दसव क परी ा के
कुछ दन पहले राज साद ने उसे बुलाया, ‘‘तुम मेरे लए बेटे जैसे हो। तुम अपना जीवन
य बरबाद कर रहे हो? मने तु ह कभी आनंद या णव से अलग नह समझा। मुझसे कहाँ
गलती हो गई?’’ यह कहकर वे रोने लगे। राज साद क आँख म आँसू दे खकर ओम
अपराध भाव से भर गया। उसने उनका दल कभी नह खाना चाहा था। वा तव म ओम
ने हमेशा उ ह ‘ पताजी’ ही कहा था, जैसा क णव और आनंद कहते थे। ओम को
एहसास हो गया क उसक वजह से प रवार को कतना क हो रहा है। उसने राज साद
से वादा कया, ‘‘आज के बाद म आपको शकायत का मौका नह ँ गा, पताजी। म सब
गलत काम छोड़ ँ गा और अपनी पूरी ताकत पढ़ाई म लगाऊँगा।’’ उसने एक नई शु आत
क , ब त मेहनत से पढ़ाई क । ले कन मन लगाकर पढ़ाई करने के बावजूद वह दसव म
अ े अंक नह ला पाया।
ले कन सबने दे खा था क उसने ईमानदारी से को शश क थी।
राज साद ने उसे टाइ पग सीखने के लए कहा। उन दन टाइप करना सीख लेना
रोजगार कौशल को बढ़ाने का अ ा तरीका था। राज साद क मृ यु के बाद ओम ने
चुपचाप उनका शोक मनाया। जस ने उसे े रत कया था, वह अब नया म नह
था। उसने मन लगाकर टाइ पग सीखना शु कर दया, ले कन अपने दोन भाइय क
तरह उसे भी पापड़ वसाय म शा मल होना पड़ा। आनंद दे ख रहा था क कस तरह ओम
सुबह कॉलेज जाता, फर 4-5 घंटे टाइ पग का अ यास करता और फर पापड़ वतरण के
अपने रा ते पर, जो आनंद से अलग था, नकल जाता था।
वष 1997-98 म आ खरकार ओम क कड़ी मेहनत रंग लाई। जैसी क पताजी ने
भ व यवाणी क थी, उसने पहले ही यास म कमचारी चयन आयोग ( टाफ सले न
कमीशन—एस.एस.सी.) क परी ा उ ीण कर ली और उसे इलाहाबाद म एक टे नो
टाइ प ट क नौकरी मल गई। उसने वहाँ अपना श ण जारी रखा और आज वह पटना
म भारत सरकार का लेखा अ धकारी है।
महीने बीतते गए और पापड़ बल का भुगतान करने म मदद करते रहे। हालाँ क इतना
नह क उनके दरवाजे से भूख पूरी तरह मटा सके। ऐसी रात भी होती थ , जब आनंद
और उसके भाई को ब त थोड़ा खाकर सोना पड़ता था। जब भोजन होता था तो वे अपनी
माँ के साथ जमीन पर पालथी मारकर बैठ जाते और साधारण रोट -स जी को उ साह से
खाते। उन दन जब कभी उसक माँ उसक पसंद दा पनीर क स जी और रोट बनाती तो
आनंद को जैसे वग मल जाता, हालाँ क जस दन कुछ कम खाने को होता, आनंद एक
गलास ठं डा पानी पीकर अपनी भूख क उपे ा करने क को शश करता। जो क बहार म
कई लोग के लए जीवन जीने का तरीका था।
जीवन म पहली बार आनंद को वा तव म भूख के वनाशकारी मनोवै ा नक भाव का
एहसास आ, जो शारी रक भाव से अ धक श शाली था। उसे एहसास आ क
उसका प रवार कतना भा यशाली था क उ ह वह मामूली सा मा सक वेतन मलता था,
जो उसके पताजी डाक वभाग क नौकरी से अ जत करते थे। उसे यह भी समझ म आने
लगा क कुछ लोग भूख के शकंजे से बचने के लए वह सब य करते थे, जो वे करते थे।
अपने कमजोर पल म आनंद के मन म बेहतर कमाई करने के लए मुंबई या कोलकाता
जाने का वचार आता; ले कन जब भी वह अपनी माँ को और घर को छोड़ने क क पना
करता, वह खुद को खोखला महसूस करता। म ऐसा नह कर सकता। यह तो अपने हाथ
काटकर जीवन म आगे बढ़ने जैसा होगा। आनंद सोचने लगता।
आनंद को लगने लगा क उनक शै णक आकां ाएँ एक धीमी मौत मर चुक थ । ‘म
एक श त ँ। य द हम कमर-तोड़ मेहनत करके गुजारा चलाने क को शश करते
रहगे तो जीवन म या हा सल कर पाएँग?े श ा का या लाभ है, अगर आप कुछ बेहतर
नह कर सकते?’
पापड़ वसाय से लाभ कम होता था, ले कन वह एक र आय का ज रया था। आनंद
ने खुद से तक कया और उ ह लगा क उ ह उस वसाय को जारी रखने क ज रत थी,
ले कन ‘रामानुजन कूल ऑफ मैथमे ट स’ बंद करने के लगभग एक वष बाद वह उसे
दोबारा खोलने के बारे म भी वचार करने लगे। णव ने भी उ ह ो सा हत कया और
उसक माँ ने कहा क य द उसके पता जी वत होते तो वे भी यही चाहते। आनंद भी यह
बात जानते थे। राज साद कभी कूल को बंद करने के प म नह होते।
आनंद ने बैल को स ग से पकड़ने का नणय लया और श ण का एक और यास करने
का फैसला कर लया। उ ह ने सन् 1995 म ‘रामानुजन कूल ऑफ मैथमे ट स’ दोबारा
खोल लया। आनंद ने पापड़ बेचकर कमाए पैस का कुछ अंश कराया दे ने म इ तेमाल
कया। आरं भक त या ब त उ साहजनक नह थी, जहाँ सफ छह छा ने काय म
म दा खला लया; ले कन इस बात ने आनंद को हतो सा हत नह कया, ब क उ ह लगने
लगा क उ ह सतानेवाले सभी वचार कनारे हो गए थे। क ा म, सब छा के सामने, वे
ब कुल नडर महसूस करते थे। सारी चताएँ उनके मन के पीछे चली ग और वे अपनी
पूरी लगन व ढ संक प के साथ अपने छह छा को पढ़ाने म जुट गए। क ा म आनंद
ब कुल बदल जाते थे।
आनंद के छा को दोन ही बात पसंद आती थ —जो आनंद पढ़ाते थे, वो भी और जस
तरह वे पढ़ाते थे, वो भी। उनका पढ़ाने का तरीका और ावहा रक था और छा को
लगने लगा था क उ ह दया गया काय उ ह बना अ धक क ठनाई के ग णत क
सम या को अपने आप सुलझाने म स म बना रहा है। यह बात फैलने म अ धक समय
नह लगी क यह युवा श क एक बार फर अपना जा चलाने लगा है।
रामानुजन के कुछ छा आई.ट . जे.ई.ई. और अ य तयोगी परी ाएँ दे ने के बारे म
गंभीर थे। हालाँ क, अ य को चग सं ान ारा माँगी जानेवाली फ स हद से यादा थी
और ये छा कसी भी तरह उतनी फ स नह दे सकते थे। आनंद ने इन छा को उस फ स
का दसवाँ ह सा लेकर कोच करने का फैसला कया। आनंद क ूशन णाली
अ व सनीय प से सरल थी—आप अपनी सु वधानुसार कसी भी प म भुगतान कर
सकते थे। आपके पास जब भी पैसे ह , आप भुगतान कर सकते थे, न कोई अ म
भुगतान, न कोई छु पा आ भुगतान, जो इन साधारण प रवार के ब के लए दे ना
मु कल होता।
आनंद सुबह के समय पापड़ का वतरण करने नकलते और साइ कल चलाने के समय
का उपयोग अपनी शाम क क ा क तैयारी के लए करते। यह न त प से
अपरंपरागत था; ले कन वे वा त वकता म न हत उपा यान और उदाहरण को उठाने म
स म थे और उनक मदद से छा के साथ अ ा सामंज य बैठा लेते थे। इसी समय के
आसपास आनंद ने नय मत प से ‘टाइ स ऑफ इं डया’ के लए युवा पाठक को ल य
करके ग णतीय पहे लयाँ बनानी शु क । एक ऐसा काम, जो उ म सेनगु ता के साथ
उनके बढ़ते अपनेपन के कारण संभव आ। उ म क आनंद क संपूण कृ तय म आ ा
नरंतर बनी रही और उनके पास आनंद को दे ने के लए और कुछ नह तो नै तक समथन
हमेशा रहता था। उस समय दै नक समाचार-प म आनंद का कॉलम ब त लोक य हो
गया था और वह ‘कै रयर एंड कं पट शंस’ नाम के एक स ताहांत पुल-आउट म भी छपने
लगा, जो वशेष प से छा को ल य करके नकाला जाता था। इस कॉलम ने और
रामानुजन कूल के छा के मुँह से हो रहे चार ने आनंद क लोक यता बढ़ा द और
कूल म दा खले क दर बढ़ने लगी। वष 1996 तक कूल म छा क सं या 36 हो गई
थी।
कूल के बढ़ने के साथ आनंद के प रवार क व ीय सम याएँ धीरे-धीरे कम होने लग ।
येक सफल छा क कहानी पढ़ने के बाद इ ु क नए छा को कूल लेकर आती और
पापड़ वसाय और ूशन फ स के बीच अब जीवन क आव यकता को पूरा करने के
लए कुछ पैसे बच जाते थे।
छा क सं या बढ़ने के साथ आनंद को एहसास आ क उ ह और अ धक ान क
आव यकता थी, इस लए उ ह ने कूल को म य पटना के राज नगर म एक बड़े प रसर म
ानांत रत कर दया।
वसाय के प र े य से ये एक ब त समझदारी भरा कदम था, य क अब कूल एक
ऐसे इलाके म आ गया था, जहाँ प ँचना आसान था और इस लए इसके और अ धक छा
को आक षत करने क संभावना थी। यह एक नई शु आत थी, य क उन दन म य
पटना को चग सं ान का गढ़ था और नई जगह, असाधारण श ण और ब त कम फ स
के कारण गरीब समुदाय के छा रामानुजन कूल ऑफ मैथमे ट स म आने लगे। इस
बीच णव, जो मुंबई म वाय लन वादक के प म अपने कै रयर को आगे बढ़ा रहा था,
कूल के शास नक प क दे खभाल करने पटना आता रहता था। उ ह ने छा को
फ ज स और के म पढ़ाने के लए भी कुछ श क नयु कर लये थे, जससे
वाभा वक प से ऊपरी खच बढ़ गए थे और णव क ज मेदा रयाँ और मह वपूण हो
गई थ ; य क य द कूल को लंबी अव ध के लए सफल बनाए रखना था और हर चीज
और हर को सँभालना था तो कूल के व ीय संसाधन का सावधानी से लेखांकन
करते रहना आव यक था।
वष 1997 तक रामानुजन कूल म छा क सं या 300 से अ धक हो गई थी।
लास म तंग थे, ले कन उससे छा के बीच सौहाद और जुड़ाव क भावना बढ़ती थी,
जसका छा मजा भी लेते थे। अ य को चग सं ान यह दे खकर दं ग थे क कैसे
आई.आई.ट . जे.ई.ई. का हर आकां ी रामानुजन के दरवाजे पर द तक दे रहा था। इसका
एक कारण यह भी था क आनंद छा के अ ययन पाठ म गत प से शा मल होते
थे। कूल म इतने सारे छा होने के बावजूद आनंद येक छा को उसके पहले नाम से
जानते थे और येक छा क सीखने क मता और उसके अं तम ल य के बारे म भी
जानते थे। येक छा को उनका गत यान ा त होता था और हर छा जानता था
क वह उनसे कसी भी वषय पर बात कर सकता है। छा वहाँ सफ ग णत नह सीख रहे
थे, ब क जीवन के सबक, उसक चुनौ तय और उनके संभव समाधान के बारे म भी
सीख रहे थे—यह वे पाठ नह थे, जो मोट फ स दे कर खरीदे जा सकते थे।
आनंद साल-दर-साल कूल म सु वधाएँ बढ़ाते रहे और वहाँ द जानेवाली श ा क
गुणव ा म नरंतर सुधार लाने का यास करते रहे। उ ह ने एक प लक ए ेस स टम
(जन संबोधन णाली) खरीदा, जसम कई ीकर थे और उ ह कूल के येक कोने म
ा पत करवा दया, ता क हर रोज एक होनेवाले छा के वशाल समूह को संबो धत
कया जा सके, जो कई मौक पर 300 के लगभग भी हो जाते थे। वे खुद एक ऊँचे मंच पर
खड़े हो जाते थे, ता क छा उ ह साफ-साफ दे ख सक। जस लैकबोड का वे समीकरण
और आरेख बनाने के लए योग करते थे, वह हमेशा उनके पीछे रखा रहता था, जसके
साथ ढे र सारी चॉक रहती थी। छा चौकस रहते थे। वे खुद उ सा हत रहते थे और
प रणाम ब त कुछ कह जाते थे।
सन् 1998 तक आनंद के पास काम क अ धकता हो गई। छा क सं या एक- तहाई
और बढ़ गई थी और 400 छा को पढ़ाने क ज मेदारी के अपने लाभ भी थे और
चुनौ तयाँ भी थ ।
उसी वष आनंद को आई.आई.ट . कानपुर क या ा करनी थी। द ली से उ ह ने उ म
सेनगु ता को फोन कया, जो उस समय लखनऊ म ‘टाइ स ऑफ इं डया’ के संपादक थे।
वे लखनऊ ककर अपने इस दो त से मलने के लए ब त उ सुक थे, जसने उनके संघष
के दन म उनका ढता से साथ दया था। वे दे र शाम सेनगु ता के घर प ँचे और े न क
या ा से थके होने के कारण सबसे पहले उ ह नान करके तरोताजा होने क ज रत
महसूस ई। जब उनके अ त थ नान कर रहे थे, तब सेनगु ता क नजर पु तक से भरे
उन दो बैग पर पड़ी, जो आनंद अपने साथ लाए थे। ज ासावश वे पु तक दे खने लगे और
उ ह यह दे खकर सुखद आ य आ क येक पु तक वदे श म का शत ग णतीय ंथ
थी, जो गौड़ीय मठ क झु गी-ब ती से आए एक साधारण पापड़ बेचनेवाले के लए काफ
महँगी वला सता क ेणी म आती थी। जब आनंद बाहर आए तो सेनगु ता ने उन बैग क
ओर इशारा करके पूछा क उनके लए इन पु तक को खरीदना कैसे संभव हो पाया।
आनंद ने सरलता से जवाब दया, ‘‘ कूल से कमाए पैस से।’’ रामानुजन म उस समय
400 छा पढ़ रहे थे और येक छा फ स के प म तवष 500 पए दे ता था। कुल
मलाकर यह रा श दो लाख पए तवष हो जाती थी। टाफ का वेतन, कूल का कराया
और अ य ऊपरी खच नकालने के बाद भी पया त रा श बच जाती थी।
अब प रवार क आय र हो गई थी और भुखमरी उनके दरवाजे पर द तक नह दे ती
थी; ले कन इस सुर ा क उ ह क मत चुकानी पड़ती थी। दन ख म होने तक सब लोग,
वशेष प से आनंद, बुरी तरह थक जाते थे। वे अभी भी सुबह पापड़ वत रत करने जाते
थे और दोपहर व शाम को कई घंटे अपना अ यापन काय करते थे। बचे ए अ त सी मत
समय म वे अभी भी ग णत पढ़ते थे। एक शाम जयंती दे वी उ ह वतरण के लए पापड़
पैक करने म मदद कर रही थ । आनंद के लए आँख खुली रख पाना मु कल हो रहा था
और उनका चेहरा याह हो गया था। जयंती दे वी ने उनका माथा छु आ तो वह तप रहा था।
‘‘तुम इस तरह काम नह करते रह सकते!’’ उ ह ने आनंद से कहा, ‘‘म ठ क ँ।’’ माँ,
आनंद ने बात टाल द ।
‘‘तुम प ीस साल के हो और तु हारी यह हालत हो गई है। म यह नह दे ख सकती। या
फायदा इस पैसे का, अगर तु ह कुछ हो जाता है तो?’’ पसीने से चमकते चेहरे के साथ
उ ह ने कहा।
प रवार के बाक सद य के साथ लंबी व मु कल चचा के बाद यह नणय लया गया
क वह पापड़ का वसाय बंद करके कूल पर यान क त करगे।
वष 2000 तक कूल के र ज टर म लगभग 500 छा के नाम अं कत हो चुके थे।
उपल दर के आधार पर यह पटना म अब तक का सबसे सफल सं ान था। वह छा ,
जो रामानुजन कूल से उ कृ को चग और आ म व ास ा त कर रहे थे, अ य सं ान
के छा क तुलना म आई.आई.ट . जे.ई.ई. और अ य तयोगी परी ा म कह अ धक
सफलता पा रहे थे।
यह भी एक खुला रह य था क इनम से कुछ सं ान ने साथ मलकर एक को चग
मा फया का प ले लया था और वह अपना मनचाहा करवाने के लए हसा और
धम कय का उपयोग करने से भी पीछे नह हटते थे। यह आनंद का भा य था क इस
को चग मा फया के सद य के वा म ववाले कूल भी उनम शा मल थे, जनका इस
नवागंतुक क सफलता से सबसे नुकसान आ था। कुछ सं ान के दमाग म तो यह बात
बैठ गई क य द उनके कूल को बने रहना है तो इस सम या का कोई हल नकालना
होगा।
वष 2000 म आनंद, उनके कूल और मकान माल कन—एक बंगाली म हला, जसने
रामानुजन कूल को अपना प रसर कराए पर दया था—के खलाफ धम कय का एक
सल सला शु हो गया। जस भू म पर कूल त था, उसके वा म व को हड़पने का
यास कया गया—और आगे जाकर मकान माल कन व कूल के खलाफ एक स वल
केस भी दायर कया गया, जसका ववरण सं द ध था। ानीय पु लस ने अपरा धय से
हाथ मला लया था। एक बार तो पु लस आनंद को ख चकर सड़क पर भी ले आई और
उ ह त काल कूल प रसर खाली करने का आदे श दे दया। जब युवा श क ने ऐसा करने
से इनकार कर दया तो उ ह गर तार करके ानीय पु लस टे शन ले जाया गया।
जब आनंद के छा को त क भनक लगी तो वे बड़ी सं या म पु लस टे शन प ँचे
और जबरद ती अंदर घुसकर अपने य श क को रहा करने क माँग करने लगे। साथ
ही वे यह भी जानने क माँग कर रहे थे क उ ह य गर तार कया गया था। अंत म
आनंद को बना कोई आरोप लगाए पु लस क हरासत से रहा कर दया गया; ले कन ये
उनक मुसीबत का अंत नह था।
को चग मा फया चुपचाप बैठे रहनेवाल म से नह था और जुलाई 2000 म उसने बात
बढ़ाने का न य कर लया। तीन सश त गुंड ने आकर कूल पर गोलीबारी शु कर द
और आतंक फैलाने के लए दे सी बम फकने लगे। एक बार फर आनंद के छा बचाव के
लए आगे आए। उ ह ने कूल से बाहर नकलकर गुंड को च का दया। उन लोग के
खलाफ मन म दबा रोष, जो उनके ज म के समय से उ ह कुचल रहे थे, बाहर नकल
आया और कुछ ही दे र म छा तीन म से दो गुंड को शारी रक प से काबू करने म सफल
हो गए। आनंद ने पु लस को बुलाया और हमलावर उसे स प दए गए।
शां त क एक झलक लौट आई; ले कन को चग मा फया क ओर से मनी अभी भी
साफ नजर आ रही थी। भू म का मु ा एक बड़ी सम या बनता जा रहा था, य क बंगाली
मकान माल कन दबाव महसूस करने लगी थी और अब वह अपने प रसर म आनंद का
कूल जारी रखने के लए ब त उ सुक नह लग रही थी। 500 छा के साथ यह इमारत
भी छोट सा बत हो रही थी और आसपास ऐसा कुछ नह था, जो उनके उ े य क पया त
प से पू त कर पाता। आनंद के लए उनके छा क सुर ा भी ब त मह व रखती थी,
वशेष प से बम व ोट के यास के बाद।
काफ तलाश करने के बाद आनंद को पटना के बाहरी े म कु हरार के नकट शहर के
एक सुनसान ह से म एक बड़ा सा इलाका मला, जहाँ अकसर जल-जमाव होता रहता
था। उन लोग ने जल जमाववाले ह से को बालू और प र से भर दया और कुछ ही
दन म उसे रहने यो य बना दया। यह नया ान एक जो खम था, य क वे को चग
जले के क म त एक मुख ान से र आ रहे थे और कुछ लोग को लग रहा था
क छा इतनी र पढ़ने के लए नह आएँगे।
अपनी ओर से आनंद को तमाम बाधा के बावजूद व ास था क उनक श ण
मताएँ छा को उनके पास लाती रहगी—और अंत म वे सही सा बत ए। छा बा रश
म घुटन तक पानी म चलकर भी उनक क ा म आते थे। आनंद के मन म, और शायद
छा के भी, उनका लास म उनके गरीब छा के लए सचमुच म एक श ा का
नख ल तान बन गया था। नए ान ने रामानुजन कूल क ग त को ब कुल भी कम नह
कया और नए छा क भीड़ ने इस बात को सा बत कर दया।
समय बीतने के साथ माँग उ बनी रही; ले कन आनंद को लगता था क 500 से अ धक
छा को दा खला दे ना कूल के सी मत ान और संसाधन को दे खते ए अ ावहा रक
होगा। अब समय था नामांकन को सी मत करने का उपाय खोजने का, और अ य श क
के साथ चचा के बाद यह नणय लया गया क वेश परी ा ही वां छत ल य को ा त
करने का एकमा तरीका था। पहली ही परी ा म 7,500 छा क अभूतपूव सं या टे ट
के लए बैठ ।
कुछ ऐसे लोग भी थे, ज ह ने र त के मा यम से प रणाम को भा वत करने क
को शश क ; ले कन आनंद और णव यह सु न त करने के अपने ढ संक प के त
कठोर थे क रामानुजन कूल म दा खले के लए यो यता ही नणायक कारक होगी। र त
को साफ इनकार कर दया गया, यह जानते ए क उससे उनके प रवार क आ थक
त म कतना फक आ सकता था और ूशन फ स जान-बूझकर कम रखी गई, ता क
गरीब छा भी कूल म दा खला ले सक। घोर गरीबी का सामना कर रहे छा क फ स
पूरी तरह माफ कर द गई।
वष 2000 के अंत तक रामानुजन कूल अपने नए ान म मजबूती से ा पत हो गया।
ान पूणता से ब त र था। हर जगह पानी था। सफ छत और द वार और श ण के
लए उपकरण भी सी मत थे। ले कन कूल के 500 छा वहाँ स दयशा के लए नह
आते थे। वे वहाँ आते थे सीखने के लए, उ अंक ा त करने के लए, मा य मक श ा
के बाद होनेवाली सं ान क वेश परी ा के लए को चग ा त करने और उन
परी ा म उ ीण होने के लए। वे उस असाधारण ग णत से पढ़ने के लए सबकुछ
सहने के लए तैयार थे, जसके पढ़ाने का तरीका कुछ अलग हटकर था, जो अपने छा
क परवाह करता था और उ ह उनके सपने पूरे करते ए दे खने के लए जो भी आव यक
होता था, करता था।
आनंद का जीवन पटरी पर चलता तीत हो रहा था। बहार का एक गरीब प रवार और
या चाह सकता है! उनके पास पया त पैसे थे और हालात बेहतर होते दखाई दे रहे थे।
उ ह या पता था क आनंद क अंतरा मा बेचैन थी और कुछ ही समय म घटना क
एक शृंखला पलड़े को सरी ओर झुकाकर यह दखा दे ने वाली थी क यह सरल,
नरहंकारी या कुछ करने म स म था।
छा के मुख से

नाम : मोह मद अक बुर रहमान


सुपर 30 बैच : 2008
इं ट ूट और म : मी नग मशीनरी इंजी नय रग, आई.एस.एम. धनबाद;
आई.आई.एम. अहमदाबाद
वतमान जॉब : माक टग मैनेजर, कारदे खो.कॉम
ै ड हेनरी ने कहा था—एक अ ा श क उ मीद जगा सकता है, क पना को व लत
कर सकता है और सीखने के त ेम उ प कर सकता है। यह वणन आनंद सर पर
ब कुल सट क बैठता है, ज ह ने न सफ मुझसे ग णतीय अवधारणा क क पना
करवाई, ब क बड़े सपने दे खने म मेरी मदद क और उ ह पूरा करने के लए मुझे े रत
कया। उ नर रता दरवाले े और समुदाय से आया होने के कारण मेरे प रवार ने
और मने कभी नह सोचा था क म वहाँ तक प ँच पाऊँगा, जहाँ म आज ँ। जस कार
आनंद सर हमेशा मूल बात पर यान क त करते ह और जस कार वे लास म म
हा य और अंतः याशीलता का योग करते ह, क मेरे लए आज भी उनक सखाई
कसी ग णतीय अवधारणा को याद करना ब त आसान है। आनंद सर खूबसूरत तरीके से
ग णत सखाने के अलावा अपने लास म म जीवन भर के लए सीख दान करते ह, जो
उनके छा को अपना ल य ा त करने के लए लड़ने और संघष करने के लए े रत
करती है— समय और प र त ारा उ प कसी भी क ठनाई से वच लत ए बना। वे
खुद भी वं चत और द लत के लए एक आदश ह। वे ही ह, जो हम छा म यह
आ म व ास पैदा करते ह क हम चाह तो कुछ भी हा सल कर सकते ह, चाहे प र तयाँ
कैसी भी ह ।
5
सुपर 30 क ताकत

व ष 2002 के आरंभ म अ भषेक राज नाम का एक लड़का रामानुजन कूल ऑफ


मैथेमे ट स म आया। अपनी माँ के साथ आए अ भषेक ने आनंद से कहा क वह
आई.आई.ट . वेश परी ा के लए इस कूल म दा खला लेना चाहता है, ले कन अभी
उसके पास दे ने को फ स नह है। उसने कहा क जब उसके पता के पास आलू क खेती
से कुछ पैसा आ जाएगा, तब वह क त म फ स चुका पाएगा।

उसक माँ ने भी कहा क अ भषेक पढ़ाई म ब त हो शयार है और अपने गाँव के कूल म


हमेशा थम आता रहा है।
उन दन फ स मा 1,000 पए सालाना होती थी। आनंद ने उस ब े और उसक माँ को
बैठाया और उनसे उनके बारे म और व तार से बताने को कहा।
अ भषेक बहार के एक छोटे से गाँव रसालपुर का रहनेवाला था। उसके पता एक गरीब
कसान थे और अ नय मत मानसून के बीच कभी-कभार बच जानेवाली आलू क फसल से
होनेवाली थोड़ी सी आय के अलावा उनके पास आमदनी का कोई और ज रया नह था।
अ भषेक गाँव म ही कूल म जाने लगा और अ े नंबर लाने लगा। उसे इस बात से भी
कोई फक नह पड़ता था क कूल म मेज-कुर सयाँ होना तो र क बात, दरवाजे-
खड़ कयाँ तक सलामत नह थे। अ भषेक के पता के पास कताब खरीदने या अपने बेटे
को कसी अ े ाइवेट कूल म पढ़ाने लायक पैसे नह होते थे। हालाँ क उसक माँ सुधा
कुमारी कुछ पढ़ - लखी म हला थ । उ ह ने ूशन क तलाश शु क , जो क रसालपुर
जैसी जगह म मलना ब त मु कल था; ले कन कसी तरह से वह ूशन के ज रए हर
माह सौ पए तक कमाने लग । यह रकम ब त कम थी, पर उनके पास इसके अलावा
कोई और चारा नह था।
आनंद यह जानकर दं ग रह गए क सुधा कुमारी ने इतनी कड़ी मेहनत करके, इतनी कम
आय होने के बावजूद अपने बेटे को पढ़ाया।
उ ह ने माँ-बेटे को बताया क वे एक नया ो ाम शु कर रहे ह और उ ह अगले स ताह
फर से आने को कहा। स ाई तो यह थी क ऐसा दयनीय मामला आनंद के सामने कोई
पहली बार नह आया था।
कशन कुमार नाम का एक लड़का भी आनंद के पास आया था। नंगे पैर और फट शट
पहने कशन ने आनंद से कहा था क वह इंजी नयर बनना चाहता है ले कन उसके पास
ूशन फ स दे ने के लए पैसे नह ह।
‘पटना म तुम कहाँ रहते हो?’ आनंद ने उससे पूछा था।
‘म एक धनी आदमी के मकान क दे ख-रेख करता ँ और वह रहता ँ। ले कन म
चौक दार नह ँ।’ उसने ह मत के साथ जवाब दया, ‘म इंजी नयर बनने पटना आया ँ।
म रोज पढ़ाई करता ँ।’
आनंद को कुछ संदेह आ, इस लए उ ह ने उस धनी आदमी के मकान का पता पूछा और
वयं वहाँ जाकर दे खने का न य कया। शाम को वे अपने भाई णव के साथ उस मकान
पर गए। वहाँ उ ह ने कशन कुमार को गेट पर बैठे कताब हाथ म लए दे खा। अँधेरा हो
चुका था और वह ट लाइट क रोशनी म पढ़ रहा था। दोन भाइय का दल भर आया।
आनंद बेचैन हो गए। ‘जब मुझे क ज जाने के लए पैसे क ज रत थी, तब कसी ने मेरी मदद नह क थी।
अगर म ऐसे होनहार छा क मदद नह कर सकता तो मेरे कूल का या मतलब रह जाता है? फर, इन ब क
गलती तो बस, यही है न क वे गरीब घर म पैदा ए ह।’ यह संवेदनशील घटना उ ह परेशान कए
रही।
उ ह महसूस आ क कशन कुमार या अ भषेक राज क तरह ब त सारे लड़के ऐसे ह गे,
जो को चग क सालाना हजार पए क फ स भी नह दे सकते। उनके बारे म भी य न
सोचा जाए!
‘ पता तो मुझसे और यादा अपे ा करते थे। भले ही मेरे छा अ ा दशन कर रहे ह, ले कन उन गरीब छा का या
जनके पास पटना म फ स दे ने क बात तो र रहने-खाने के लए भी पैसे नह ह।’ उ ह ने सोचा।
‘यह सही नह है।’ उनके दमाग म रह यमय तरीके से एक आवाज गूँजी, जो उनक पता क आवाज क तरह लग रही
थी। ‘तुम उनको केवल पढ़ा भर नह रहे हो। तुम अपना कत भर नह कर रहे हो, ब क उससे भी आगे बढ़कर हजार
छा क मदद कर रहे हो और बदले म नाममा क फ स ले रहे हो! मत भूलो क तु हारा मकसद ब त बड़ा है।’
आनंद के मन म राज साद क आवाज गूँज रही थी।
‘गजब। अब तो म खुद पागल आ जा रहा ँ। म कतना महान् श क ँ।’ आनंद ने इन
वचार को भुलाने के लए अपने सर को झटका दया। जब वे घर लौटे तो उ ह ने न य
कया क वे इस उधेड़बुन से बाहर नकलगे और ऐसे ब क सहायता और भलाई के
लए कुछ-न-कुछ ज र करगे, जो पढ़ाई- लखाई का खचा वहन नह कर पा रहे। हमेशा
क तरह, जब भी कभी वे फुरसत म होते, उनके दमाग म ये वचार बार-बार आने लगते।
हालाँ क, इस बार आनंद को लगा क उ ह अपने इस सपने के बारे म अपने प रवार से
बात करनी चा हए और इसे मूत प दे ना चा हए।

‘हम तीस ब को मु त म नह खला सकते! तुम हो या? संत-महा मा हो या?’


जयंती दे वी बोल ।
आनंद ने अपने दल क बात णव और जयंती दे वी को बताई। अब, जब क उनके पास
कुछ पैसा आ चुका था तो वे गरीबी से लड़ने के लए कुछ खास करना चाहते थे। जब से
क ज जाने का उनका सपना नदयतापूवक चकनाचूर आ था, तभी से आनंद ऐसे लाख
अवसर के बारे म अकसर सोचा करते थे, जनका फायदा ब े केवल इस लए नह ले
पाते थे, य क उनके पास पैसा नह होता था। वे इन ब के लए कुछ करना चाहते थे,
ले कन भा य से अब तक उनके पास साधन नह थे। अब, जब क उनके पास कुछ
नय मत आय का ज रया हो गया था, इस लए अब वे रामानुजन कूल का व प बदलने
के बारे म सोचने लगे। उ ह ने उन ब के बारे म वचार करना शु कर दया, जो कूल
क मामूली सी फ स भी नह दे पा रहे थे।
उ ह ने तय कया क वे वं चत तबके के ब क मता परखने के लए एक वेश
परी ा लगे। इस परी ा के ज रए वे टॉप के 30 व ा थय का चयन करगे और उ ह
आई.आई.ट . जे.ई.ई. क तैयारी मु त म कराएँगे। इतना ही नह , वे उन ब क रहने क
व ा भी पास म ही कराएँग,े हालाँ क तब तक उ ह यह पता नह था क यह सब होगा
कैसे। वे तो बस, बातचीत के ज रए अपनी माँ से अनुरोध ही कर रहे थे क वे उन ब के
लए खाना बना दया कर, य क बाहर से उन ब के लए खाना मँगाना ब त महँगा
पड़ेगा। 30 क इस सं या पर आनंद ब त सोच- वचारकर प ँचे थे। वे पहले यह सं या
50 रखना चाहते थे, ले कन यह उनक मता से बाहर थी। इस लए उ ह लगा क वे 30
ब का खचा ही वहन कर सकते ह।
‘माँ, इसके बारे म सोचना। तुमने तो श ा क ताकत दे खी है। आज हम आराम से
इसी लए रह पा रहे ह, य क पताजी ने हम पढ़ाने के लए कड़ी मेहनत क थी। जसके
पास पैसा न हो, उसके पास भा य से बचने का एकमा तरीका पढ़ाई का ही है। जब
आप एक ब े को पढ़ाते हो तो एक पूरे गाँव का भला होता है।’
उनक माँ ने उनक ओर गव से दे खा, ले कन को शश क क उ ह इसका आभास न हो
पाए—‘तु ह लगता है क तुम कोई महामानव हो! ये सब तुम कैसे कर पाओगे?’ अब तक
पूरी बातचीत को सुनता रहा णव अब बोल उठा, ‘भैया, आप उनका नाम ‘सुपर 30’ रख
सकते ह।’ जब जयंती दे वी ने दे खा क वे दोन अपने वचार पर ढ ह तो वे बोल , ‘ठ क
है। दे खती ,ँ म या कर सकती ँ।’ आनंद ने उठकर अपनी माँ के पैर छू लये। वे जानते
थे क उनके इस अ भयान म माँ क भू मका अहम होगी।
माँ ने जो कुछ कहा था, उसक बदौलत ही ‘सुपर 30’ नाम चुन लया गया। णव तो
आनंद क इस योजना का पूरी तरह से समथन कर रहा था। उसने इस काय का
शास नक ह सा सँभालने का वादा कया और आनंद से उसने कहा क वे कोस और
चयन का मापदं ड तैयार करने पर यान द। अभी सामान का हसाब भी करना था। ऐसी
जगह क भी ज रत थी, जहाँ वे 30 छा -छा ा को रख सक।
‘इसे दन का कूल जैसा रखना होगा, भैया? और इन सारे ब को अपने साथ ही
ठहराने क व ा करनी होगी।’ णव ने आनंद से कहा।
‘म नह चाहता क मेरे व ाथ केवल पटना के ही ह । बहार के गरीब गाँव से
आनेवाले व ाथ पटना म रहने का इंतजाम नह कर पाएँगे। वे तभी पढ़ाई कर पाएँग,े
जब उ ह पैस क चता न रहे।’ आनंद ने णव से कहा।
आनंद का दमाग इस तेजी से बढ़ रहे वचार म पूरी तरह से जुट गया। हालाँ क उ ह ने
णव से यह बात कही नह , ले कन उ ह लगा क ब को उनके रोजमरा के दयनीय
जीवन से अलग रखने और पढ़ाई के लए उ चत माहौल दे ने क ज रत है। वे चाहते थे क
अगर इन ब को कूल और जीवन म अ ा दशन करना है तो इनको उनक नगरानी
म रहना चा हए; य क उ ह ब त सारी काउं स लग और आ म व ास वक सत करने क
ज रत पड़ेगी।

वष 2002 क वसंत ऋतु म आनंद के मकान के बगल म टन क छतवाला एक छोटा सा


छ पर तैयार कया गया। लकड़ी का लैकबोड तैयार कया गया और साधारण मेज-
कुर सयाँ लगाई ग और इस तरह से क ा तैयार हो गई। ये सारी तैया रयाँ णव ने ही क ।
इसके बाद उ ह 30 व ा थय के रहने क व ा करनी थी। शु म उ ह ने शां त कुट र
के पास कई सारे ान तलाश कए, जहाँ व ाथ समूह म रह सक। (बाद म जब आनंद
को लगा क सभी व ा थय का एक साथ रहना उपयोगी होगा तो उ ह ने बाद के वष म
व ा थय के लए एक छा ावास बनवाया।) आ खर म आनंद के च क सक म डॉ.
बी.के. साद ज रत पड़ने पर उन छा का इलाज मु त म करने पर तैयार हो गए।
ऐसा लगने लगा था क सुपर 30 का अ त और उ साही योग अब धीरे-धीरे साकार होता
जा रहा है।
तय आ था क आनंद क माँ जयंती दे वी सुपर 30 के व ा थय के लए झ पड़ी के
कोने म छोटे से रसोईघर म दोन समय का खाना बनाया करगी। रसोई म कड़ा हयाँ और
खाना पकाने के बरतन जुटाए गए। भोजन सादा ले कन पोषक था, ता क व ाथ भूखे न
रह और पढ़ाई से उनका मन वच लत न हो।
णव ने इस प रयोजना के बजनेस मैनेजर और सुपरवाइजर का काम सँभाला और
श क का काम तो आनंद को सँभालना ही था।
कहने क ज रत नह क यह प रयोजना कसी ा प क तरह ही थी, ले कन आनंद के
सं ामक उ साह ने धीरे-धीरे सबको जकड़ लया। उ ह व ास था क ो ाम का खचा
रामानुजन कूल ऑफ मैथेमे ट स क आय से नकल आएगा और उ ह कसी से चंदा नह
माँगना पड़ेगा, न ही कसी का चंदा वीकारना पड़ेगा। हाँ, लोग सहायता करने के इ ु क
ज र थे। ले कन आनंद को लगता था क कह ऐसा न हो क सुपर 30 के सफल होने पर
उस पर कसी तरह के ाचार के आरोप लगने लग और इस सबसे बचने का सबसे
बेहतर तरीका यही था क कसी से कोई धन न लया जाए, चाहे वह कोई भी हो। यह कोई
ब त गव क बात भी नह थी। यह दखाने का ढ़ न य दखाना ही एकमा कारण नह
था क उनक दे खरेख का कारण केवल धन ही नह था, जसके लए समाज म एक ढ़
न यी लगा था। अगर उ ह सफलता मलनी थी तो वह केवल उनक कड़ी मेहनत
के बल पर मलनी थी।
सबसे यादा मह वपूण बात एक टे ट को तैयार करना था, जससे 30 सुयो य
व ा थय का चयन हो सके। आनंद और उनक ट म का प का मत था क सबसे होनहार
और सबसे ज रतमंद व ाथ ही सुपर 30 के अवसर का लाभ उठा सक। यह तय करने
के मापदं ड थे वाभा वक अ भ च, सीखने क ललक और हर प र त म कड़ी मेहनत
करने क इ ा। इतने साल म आनंद ने दे खा था क अनेक तभाशाली छा सही श ा
के लए पटना आते थे, ले कन पैस के अभाव म वापस गाँव जाने पर मजबूर हो जाते थे
और नतीजतन उ ह सही अवसर नह मल पाते थे। जब उ ह ने सुपर 30 क प रयोजना
शु क , तब उनके दमाग म यही ब े थे।
कई बार आनंद अपने काय म के और उ ह ने वचार कया, ‘ या यह सचमुच हो पाएगा? अभी तो
हर कोई उ सा हत है और इसके उ ाटन म लगा आ है; ले कन या इतना ही पया त होगा? अगर यह बुरी तरह से
असफल रहा तो या होगा? अगर इन लोग क आपस म नह पट और ये साथ म नह रह पाए तो? आ खरकार इन
तीस व ा थय क भलाई का ज मेदार तो म ही ँ न।’ और इसी तरह के अ य वचार मन म आते रहे।
हालाँ क, उनके इस संशय के बावजूद कुछ तो ऐसा था, जो उ ह आगे बढ़ाता रहा। उ ह
अपने पता के उस कोट क याद आई, जसे उ ह ने बड़े यार से अपने बेटे के लए अ टर
करके फट करवाया था। आनंद उस कोट को पहनने के सुपा बनना चाहते थे। वे सोचते
थे, ‘अगर चार या पाँच व ाथ भी परी ा म पास हो गए तो यह कुछ नह से तो बेहतर ही होगा। उनके पास खोने के
लए तो कुछ है नह । इसी तरह मेरे पास भी खोने के लए कुछ नह है।’
आनंद अब णवक सहायता से चयन परी ा के काम म जुट गए और आरं भक
नग या लागू क गई। टे ट म कुल 30 रखे गए—भौ तक-शा , रसायन-
शा और ग णत से दस-दस। इनम एक सही वक पवाले व तु न थे और यह सब
एन.सी.ई.आर.ट . के पा म पर आधा रत थे। उ ह ने रामानुजन कूल के व ा थय
को इस काय म के बारे म बताया और अपने जाननेवाल के बीच इसका चार करने को
कहा। टे ट मई म रखा गया और सुपर 30 के तीस ान के लए सैकड़ उ मीदवार ने
आवेदन कए।
काय म के आरं भक वष म परी ा क व ा करना अपे ाकृत आसान था; ले कन
सात-आठ च के बाद इसका आकार बढ़ता गया, य क पूरे उ र भारत से अ धक-से-
अ धक व ाथ सुपर 30 म दा खले के लए आने लगे। वष 2002 म केवल एक परी ा
क रखा गया था; ले कन आज पटना, बनारस, द ली और अ य जगह समेत पूरे उ र
भारत म अनेक परी ा क बनाए जाते ह। चयन परी ा के लए फ स ब त ही मामूली,
50 पए त आवेदक रखी गई और इससे ा त पैसे को परी ा भवन के कराए, प
क छपाई और अ य खच म खच कया जाता है। परी ा से एक तरह से कोई आमदनी
नह होती, ब क कभी-कभी तो घर से खच करना पड़ जाता है।
आनंद और उनके कुछ व त लोग ने जाँच करके सुपर 30 के पहले बैच के व ा थय
का चयन कया। बीस दन बाद शां त कुट र के दरवाजे पर एक कागज चपकाया गया।
इस पर 30 व ा थय के नाम हाथ से लखे थे। चयन परी ा का प रणाम घो षत हो चुका
था। तो, इस तरह से शु आत ई।
बाहर के गेट पर नो टस लगने के कुछ ही दन के बाद क ाएँ लगनी शु हो ग । व ाथ
अपने रहने-सोने-खाने और क ा क जगह दे खने आ प ँचे। व ा थय को पहले सबक
के प म समय बंधन सखाया गया, य क समय ब त कम था और परी ा के लए
करने को ब त कुछ था। आई.आई.ट . जे.ई.ई. क परी ा ठ क एक साल बाद थी और
इसम सफलता पानी थी तो इन उ साही युवा व ा थय के लए एक-एक मनट क मती
था।
आरंभ म अ धकतर व ा थय को नए प रवेश म ढलने म द कत आई। उनका उनके
प रवार से ब त कम संपक था और सबसे यादा द कत यह थी क वे एकदम नई जगह
पर थे।
अनजान व ा थय और श क का भी मामला अनसुलझा था। जब भी अनजाने लोग
का कोई समूह लाया जाता, सुपर 30 के व ा थय व कमचा रय को अ य त होने और
आरं भक झझक र करने म कुछ समय लगता था। भा य से, उन सबका एक समान
मकसद था और इस सबके बारे म सोचने के लए ब त ही कम समय था।
मु कल से उबरना सुपर 30 के लए क ठन नह था। मनोरंजन के रा ते ब त कम थे और
अ धकतर व ा थय के पास समय या पैसा ही नह था क वे कसी और जगह अपना
दमाग लगा पाएँ। अपवाद थे तो बस, भारत और पा क तान के केट मैच; तब वे ज र
आनंद को चकमा दे जाते और कोर पता करने क यथासंभव को शश करते रहते।
पा म के साथ-साथ चलने के लए दे र रात तक पढ़ना ज री था; ले कन ऐसे म अगले
दन सुबह उठना चुनौती क तरह होता था। इस लए व ा थय के पास बरबाद करने के
लए समय बचता ही नह था। व ा थय को खुद पढ़ाई तो करनी ही होती थी, साथ ही
उ ह दए गए पाठ भी नपटाने होते थे। समय बंधन उनके लए बड़ी ाथ मकता बन गया
था। वाभा वक प से, कुछ ने यह काम यादा अ े तरीके से कया।
अपनी तरफ से आनंद और णव ने अपनी फुरसत का सारा समय व ा थय के साथ
बताने लगे और उनक क ठनाइय और समझने म आ रही द कत को सुलझाने लगे।
दोन भाई सफलता पाने के ब त इ ु क थे और उनके ावहा रक तरीके सबसे अ े
समझ आ रहे थे।
आनंद ग णत पढ़ाते थे और उनके पुराने व ाथ भौ तक-शा , रसायन-शा पढ़ाते थे।
णव ने कूल के बंधन क ज मेदारी सँभाल ली।
पहले कुछ स ताह बाद जब हर कोई एक- सरे से और सुपर 30 से भी यादा प र चत हो
गया तो दनचया नय मत हो गई और ये वष से चली आ रही दनचया के लगभग एक
समान ही थी।
सामा य दन छा के क ा म जुटने से शु होता और पछले दन के पाठ व सम या
क चचा होती। भोजन के बाद व ाथ क ा म जुटते और पछले दन के पाठ और
सम या पर चचा करते। आनंद या कोई अ य श क उनके साथ रहते और उस दन का
पाठ शु करते। आज भी सुपर 30 म दन इसी तरह से शु होता है।
अब ो ाम का सरा स ताह शु हो चुका था। आनंद व ा थय के समूह से मलने
और उनक सम या पर चचा करने प ँचे। अपने श क को आता दे ख ब े शांत होकर
अपनी बच पर बैठ गए। लास म म आगे अपने ान से आनंद को क ा के सभी
व ाथ दख रहे थे। ब को उनक पढ़ाई कतनी समझ आ रही है, यह दे खना उ ह
पसंद था। गरमी के दन थे, इस लए आनंद कुमार पसीना प छने के लए अपने कंधे पर
एक तौ लया रखे थे।
आनंद के पढ़ाने क शैली उ साही और ब त भावशाली थी। वे अकसर हाथ के इशार
का योग करते और चॉक रख दे ते। ब कुल शु आत से ही उ ह ने पूछकर चुनौतीपूण
व धय का माहौल तैयार कया। क ा म वे बार-बार यह लाइन दोहराते थे, ‘‘ या इस
सम या को सॉ व करने का कोई तरीका है?’’ वे व ा थय को सम या क मूल कृ त
समझना और फर उसे हल करने के व भ तरीके सखाते। वे उनसे कहते, ‘‘जीवन क
सम या को सुलझाने का केवल एक ही तरीका नह होता और भी तरीके होते ह। इसी
तरह से ग णत म भी होता है।’’
पाठ को अ धक मजेदार और आकषक बनाने के लए आनंद अपने तरीके म दो
का प नक च र का इ तेमाल करते थे। पहला र क था, जो जी स और ांडेड कपड़े
पहने शहरी लड़का था, जो भावशाली पृ भू म से आता था। सरा लड़का भोलू ामीण
पृ भू म से आया था और परंपरागत कुरता-पाजामा पहनता था। र क अं ेजी धारा-
वाह बोलता था, जब क भोलू हद और बहार क ानीय बो लय म यादा सहज होता
था। र क जाने-माने नजी कूल म पढ़ा था, जब क भोलू ने गाँव के कूल से पढ़ाई क
थी। सुपर 30 के व ाथ अपने को भोलू के यादा नकट पाते थे। ऐसे म आनंद एक
म ट मी डया ोजे टर पर दखाते थे क एक सवाल लैकबोड पर र क और भोलू के
सामने कट होता है। र क उस सवाल को ज द से हल कर दे ता है और सवाल हल
करने म जूझ रहे भोलू का मजाक उड़ाता था। वह कहता था, ‘‘दे खो, मने इसे हल कर
दया है। तुम सरकारी कूल के ब े तो ब त मंद होते हो। न तो तु ह ढं ग क श ा मली
है और न अ को चग।’’
भोलू उसको ललकारते ए कहता था, ‘‘तु ह या लगता है, तुम अपनी पढ़ाई के कारण
यहाँ आ पाए हो? या पढ़ाई केवल बड़े कूल म ही होती है? यह तो समपण और लगन से
हा सल होती है। दे खो, मने भी यह सवाल हल कर दया है। हालाँ क, मने इसी सवाल को
बीजग णत, कोण म त, कैलकुलस, स म सं या और रेखाग णत के ज रए हल
कया है और इसे अनेक अ य व धय से भी हल कर सकता ँ।’’ इसके बाद भोलू उस
सवाल का सामा यीकरण करता है; य क वह आई.आई.ट . क तैयारी कर रहा है और
उसक पृ भू म व ान क है। उस सवाल से संबं धत भोलू अ य सवाल भी तैयार कर
सकता है। इसके बाद भोलू र क से पूछता है, ‘‘अब बताओ, हीरो कौन है, तुम या म?’’
आनंद का मकसद यह दखाना था क दोन म फक होने के बावजूद जहाँ सीखने और
सफलता पाने क बात आती, भोलू र क जैसा ही तेज था और संभवतः उससे बेहतर ही
था, य क वह केवल अपने आप पर नभर था। जहाँ र क महँगी-महँगी कताब ,
कं यूटर और अ य इले ॉ नक गजट क मदद लेता था, जनक वजह से उसे समझने म
आसानी होती थी, जब क भोलू और सुपर 30 के व ाथ केवल अपने दमाग का
इ तेमाल करते थे और मदद के लए एक- सरे पर ही नभर थे। आनंद का ल य
व ा थय म आ म व ास पैदा करके उ ह यह बताना था क अ े कूल या कं यूटर न
मलने या अं ेजी न आने के बावजूद वह आई.आई.ट . जे.ई.ई. पास कर सकते ह, वह भी
ब त अ े रक से। वे चाहते थे क व ाथ बड़े सपने दे ख और उ ह साकार करने के लए
खुद यास कर। वे उ ह यह भी समझाने क को शश करते थे क मानव मू य और ग रमा
का आकलन पैसे से तय नह कया जा सकता है और हर कसी के साथ आदर से वहार
करना चा हए और सबको मौके दए जाने चा हए।
व ा थय को समझने म आनंद के सफल होने का कारण उनक ग णतीय
अवधारणा क ता, हॉलमाक वा लट का होना, सम या समाधान करनेवाला
रवैया और व तार से समझाने पर जोर रहा। वे जानते थे क व ा थय को आई.आई.ट .
जे.ई.ई. म सफलता दलाने के लए अ यापन का भावशाली तरीका तैयार करना होगा।
उनक शैली व ा थय को समझ म आती थी और वह उनक बात समझने म और उनसे
संवाद करने म आसानी महसूस करते थे। अ यापन तकरीबन पूरे दन चलता रहता था।
सुबह क क ा होने के बाद जयंती दे वी अपने सहायक के साथ व ा थय को भोजन
परोसत , जसम अ धकतर चावल, चपा तयाँ, दाल और स जी रहती थी। जयंती दे वी हर
बात का यान रखती थ और अ ा पौ क भोजन तैयार करती थ , ता क ब े पूरे दन
अ े तरीके से पढ़ाई कर सक। ब के मुँह से भोजन के बारे म बस यही नकलता था—
ब ़ढया। सुपर 30 का हर व ाथ आज भी यही कहेगा क उस वा द भोजन से हमेशा
उनका मन तृ त हो जाता है। अनेक ब के लए यह भोजन उससे एकदम अलग होता,
जो वे अपने जीवन म अ धकतर करते रहे ह। क ा से लगी छोट सी रसोई म तैयार भोजन
और लक ़डय क आग से परेशानी भी थी; य क गीली लक ़डय से नकलनेवाला धुआँ
अकसर क ा म घुस जाता था। हालाँ क, बरतन और कप- लेट एकदम चमचमाते ए
साफ रहते थे और जयंती दे वी अपने कमजोर हाथ से ही अ धकतर काटने, पकाने और
सफाई करने का काम करती रहती थ । यह पूरी या दन म दो बार, स ताह म सात
दन क जाती थी।
उनके इस काम के कारण वष से व ाथ जयंती दे वी को ‘माँ’ कहकर पुकारते ह। वष
2002 के शु आती दन म उ ह ने अपने को पूरी तरह से झ क दया, ता क ब को
कसी तरह क कमी न महसूस हो। सुपर 30 क सफलता म वे उसी तरह से लगी ई थ ,
जस तरह से उनके बेटे लगे ए थे। अब अपने ब को अ ा दशन करते दे ख उनका
दय गव से फूल जाता है। वे शां त कुट र से ब त ही कम बाहर जाती ह, ले कन सुपर 30
से नकलने के बाद यहाँ के व ाथ र- र क या ा करते ह और उनके लए यही काफ
है। अकसर पूरा प रवार ही खाने के दौरान व ा थय के बीच आ जाता है और तब ऐसा
लगता है जैसे एक बड़ा प रवार एक साथ इक ा हो और जयंती दे वी सबक दे खभाल कर
रही ह ।
क ा का पूरा प रसर, रसोई और आँगन करीब 600-700 वग फ ट का है। इतने
साधारण नवास म चलनेवाले शायद ही कसी अ य सं ा ने इतने सारे छा को
आई.आई.ट . जे.ई.ई. म सफलता दलाई होगी। इस छोट सी सुंदर जगह क सुंदरता
बढ़ाने के लए एक छोटा सा बगीचा भी है, जसम क लगे रहते ह।
दोपहर के भोजन के बाद कुछ और पढ़ाई होती है, ले कन 3 बजे तक व ाथ क ा से
चले जाते ह। अ धकतर तो पास के छा ावास म ही अपने-अपने कमर म जाकर आराम
करते ह। शु आती दन म, आनंद और णव ने जहाँ तक संभव आ, पास म ही जगह
का इंतजाम कया था, ले कन बाद म उ ह ने एक छा ावास बनवा दया, जो अभी पूरा तो
नह है, ले कन बु नयाद सु वधाएँ वहाँ सारी ह। अब ट से बनी वह इमारत ब मं जली हो
चुक है, जसम सँकरी और फसलनदार सी ़ढयाँ भी ह। करीब पं ह व ाथ एक समय
पाँच कमर म रहते ह। हर व ाथ को लकड़ी का एक साधारण ब तर दया जाता है,
जस पर पतली चादर बछ रहती है। त कया कुछ इंच का ही होता है और व ा थय के
सर को सहारा दे ने म मु कल से काम आ पाता है; जब क उनके सर म ही उनक सारी
ाथ मक संप होती है। घर म जस तरह से ये व ाथ रहते आए ह, उसके हसाब से
अ धकतर के लए ये बु नयाद सु वधाएँ ही कसी वला सता से कम नह ह। उ ह तो बस,
नल म पानी आता रहे और शौचालय ठ क से काम करता रहे, यही काफ होता है।
दोपहर के अंत और शाम को व ाथ मलकर ग णत व व ान क सम याएँ हल करते
ह, जो उ ह अ यास के लए द जाती ह। अकसर ये लोग क ा के पीछे , मैदान म बैठे गृह
काय करते और सवाल हल करते पाए जाते ह, ज ह उ ह अगले दन अ यापक को
दखाना पड़ता है। उनक कॉ पयाँ नोट् स, कैलकुलेशन, सू और सं त ट प णय से
भरी रहती ह। पास क सड़क क हलचल और घटनाएँ उनका मन ख चती ह, ले कन
उनक वचार तं ा नह टू टती। कसी-न- कसी तरह वे यह समझते ह क उ ह यह लभ
मौका मला है और कुछ इसे चौपट करने पर तुले ह।
इनम से कसी भी छा के पास कं यूटर नह होता, ले कन उससे उ ह कुछ फक नह
पड़ता, य क वे जो सीखना-समझना चाह रहे ह, उसम कं यूटर कोई मदद नह करता।
इसके बजाय, अगर वे साथ पढ़ाई कर, एक- सरे से अपने वचार कर और
आई.आई.ट . जे.ई.ई. म सफलता के लए मददगार पा साम ी से एक- सरे क मदद
कर तो बेहतर होता है—जैसे क वे एक साथ पा म को जी रहे ह ।
लोग आनंद से पूछते ह, ‘‘सुपर 30 क सफलता का राज या है?’’
इसका जवाब है, यहाँ पर मेल-जोलवाले माहौल म हर कोई आक षत होता है, जसम
व ाथ आपस म बात करते ह और जीवन म एक बार अपने भा य को सँवारने के लए
उनको दए एक समान ल य पर क त रहते ह। वे अपने अ यास पूरे करने के अलावा
और कुछ सोचते तक नह और दे र तक जागते रहते ह। शाम को कभी कोई व ाथ
इलायचीवाली चाय बना लेता है, जससे उ ह न द भगाने और दे र रात तक जागने म मदद
मलती है। जब कोई उ ह घेर लेता है तो वे समूह म इक े हो जाते ह। जब तक कोई
उ र मल नह जाता है, तब तक वे आपस म तक- वतक करते रहते ह और एक- सरे को
टोका-टाक करते रहते ह। थक रहे दमाग म र -संचालन करते रहने के लए वे लोग उठ
जाते ह, कमरे म ही टहलने लगते ह और कभी-कभी एक-दो चुटकुले भी सुना लेते ह।
इसके बाद फर से अपने सवाल म जूझने लगते ह।
सामू हक ग त व धय के ज रए सीखने क ताकत सुपर 30 म हमेशा रही और है और
समूह के कारण ही व ा थय का वकास नजी प से भी यादा होता है। कुछ स ताह म
ही सुपर 30 का काय म सामा य से अलग दखने लगता है और शरमीले व ाथ अपनी
ढता दखाने लगते ह। उनका सामा जक मेल-जोल ब त यादा बढ़ जाता है। उनक
कड़ी मेहनत का फल दखने लगता है। क ठन सवाल को हल करना कुछ आसान होने
लगता है। एक साथ पलते-बढ़ते ये व ाथ ऐसे लगते ह जैसे गंगा के कनारे कसी
उपजाऊ जमीन पर फसल लहलहा रही हो। जब वे कसी क ठन सम या से जूझ रहे होते
ह, तब उनके चेहर पर एका ता और उ साह दखना आम हो जाता है और जब वे सम या
के समाधान म सफलता पा लेते ह तो उनके चेहरे भी वजयी मुसकान के साथ खल जाते
ह। वे एक- सरे क सहायता करते ह और आपसी भलाई के लए एक- सरे के साथ लगे
रहते ह। वे चाहे क ा म ह या पीछे छा ावास म—आनंद तो हर जगह उ ह े रत करने,
उकसाने, ो सा हत करने, बात करने, उनक सम या सुनने, पढ़ाने और आमतौर पर पता
का संर ण दे ने के लए हमेशा मौजूद रहते ही ह। जब भी ब े कुछ कमजोर पड़ने लगते
ह तो वे आनंद क ओर ही दे खते ह। आनंद को ब क पा रवा रक पृ भू म का पता
होता है; सुपर 30 तक आने म उ ह ने जो संघष कया है, उसके बारे म पता है। पछले
तेरह साल म उ ह ने सुपर 30 के करीब 390 व ा थय को पढ़ाया है और हैरत क बात
यह है क उ ह उन सबके नाम, प र तयाँ, परी ा म कया दशन और आज क उनक
त के बारे म सबकुछ पता है।
अगर उ ह लगता है क व ा थय का जोश कम हो रहा है, वे कुछ ढ ले पड़ रहे ह तो
आनंद कहते ह, ‘‘आप लोग गरीबी से आए हो, म भी गरीबी से आया ँ। हमारी
पर तय म अंतर हो सकता है, ले कन आशा और आकां ा के मामले म कोई अंतर
नह होना चा हए। अपने आपको ही नह , अपने प रवार और अपने समाज को भी गरीबी
के चंगुल से नकालना आपके ऊपर है। आप नराश नह हो सकते।’’ वामी ववेकानंद
को याद करते ए आनंद व ा थय से कहते ह, ‘‘उठो, जागो! और तब तक मत को,
जब तक क तु ह अपना ल य हा सल न हो जाए।’’
ऐसे समय जब व ाथ यहाँ होते ह तब उनका प रवार से संपक ब त कम होता है।
शु आती दन म तो कोई मोबाइल फोन भी वहन नह कर पाता था और आज भी केवल
पाँच या छह व ा थय के बीच केवल एक ही मोबाइल होता है, जसका वे अपने घर बात
करने के लए कफायत से इ तेमाल करते ह। यह हैरत क बात लगती है क ये लोग
केट, बॉलीवुड क फ म और युवा के सामा य मनोरंजन के साधन से भी र रहते
ह। ले कन आनंद उनसे कहते ह, जब वे कुछ बन जाएँगे तो फर इस सबके लए ढे र सारा
समय मला करेगा।
अब, यह एक न त भरोसे क बात हो गई है क अगर आपका चयन सुपर 30 म हो
गया है और आप ब ़ढया पढ़ाई करते ह और सारी ज री चीज सीख लेते ह तो आपके
आई.आई.ट . जे.ई.ई. म चय नत होने के ब त अ े आसार होते ह। हालाँ क, वष 2002-
03 के शु आती दौर म ऐसा कोई व ास नह था। व ाथ तो नई जगह दाँव लगा ही रहे
थे और उनका नेतृ व करनेवाला भी असमंजस म था। हालाँ क, एक बार जब दनचया
नयत हो गई, समूची कवायद म एका ता और सफलता समा हत हो गई, श क के
यास शु हो गए, कड़ी मेहनत होने लगी तो आनंद ने वही दनचया लागू कर द , जो
उ ह ने वष 2002 म तैयार क थी। साल-दर-साल उस प रसर म आते ह, सुपर 30 के
काय म म शा मल होते ह और हर तरह क बाधा को पार करते ए अपनी परी ाएँ
पास कर जाते ह। आनंद म वही उ साह, वही ेरणा और वही कड़ी मेहनत का ज बा
बरकरार रहता है।
सद का मौसम धीरे-धीरे नकलता जा रहा था और आनंद नकट आ रही वेश परी ा
क चता म दे र रात तक जागते रहते थे। परी ाएँ वैसे थोड़ी र थ , ले कन आनंद को लगा
क परी ा पास करने के लए जो कुछ भी ज री है, वह सबकुछ उ ह आने लगा है। उ ह
लगा क उनका पा म संतोष द है; ले कन फर भी उ ह ने रवीजन पेपर पर जोर
दया और व ा थय के लए नए-नए तरीके सोचने लगे, जनक ज रत कुछ माह बाद
परी ा म पड़ने वाली थी।
हालाँ क सुबह जब वे क ा म थे, तभी वे फर से उ सा हत महसूस करने लगे। क ा म
आने के बाद से इन ब ने काफ लंबा सफर तय कया था। आनंद उनक तब ता
और चुनौ तय के त रवैए से ब त यादा ो सा हत ए।
परी ा त थ क अव ध तक उ ह ने व ा थय के साथ एक-एक करके पढ़ाने और उनक
नजी सम याएँ र करने के लए अ धक-से-अ धक समय बताना शु कर दया।
हालाँ क वे एक न वाथ श क थे, ले कन उ ह अपने को सा बत करना था।
साल भर तक इस व तृत सपने को बुनने और कड़ी मेहनत करने के बाद आ खरकार
परी ा क त थ आ गई। आई.आई.ट . जे.ई.ई. क परी ा पास करना सबसे मु कल
काम माना जाता है। 15,00,000 व ा थय म से केवल 10,000 व ाथ ही इसम उ ीण
होते ह और आनंद ने सवा धक आशावान् होकर भी यही सोचा क उनके चार या पाँच
व ाथ यह परी ा पास कर सकगे।
प रणाम घो षत होने तक के दन काफ तनावपूण रहे। जब प रणाम आया तो आनंद को
व ास नह आ! तनाव म तो वे काफ लंबे समय से थे, ले कन कुछ समय के लए तो
एकदम त रह गए। उस समय उनके कुछ व ाथ उनके साथ थे और इसके पहले क
उ ह कुछ पता चल पाता, ये व ाथ उनसे बुरी तरह से लपट गए। अठारह व ाथ पास
हो चुके थे। अठारह! आनंद ने जब सव ान पानेवाले व ाथ को दे खा तो उनके
शरीर म सहरन-सी उठ गई। सव ान पानेवाला लड़का अ भषेक राज था। वही
लड़का, जो अपनी माँ के साथ आया था और जसक जेब म एक पैसा नह था और उसने
आलू क फसल आने पर फ स दे ने का वादा कया था।
जयंती दे वी मुसकरा रही थ और अपने चेहरे पर बहते आँसू प छने क को शश कर रही
थ । णव ब त उ साह म था, ‘मुझे पता था!’ सभी सहायक कमचारी, पड़ोसी भी एक-
सरे के गले लग गए और खुशी मनाने लगे, ज ह पता तक नह था क या आ है। ऐसा
लग रहा था जैसे भारत क ट म ने केट व कप म पा क तान को फाइनल मैच म हरा
दया हो। क ा के 60 तशत व ा थय ने पहले ही यास म परी ा पास कर ली थी!
बाक बचे 12 को भी त त सं ान म दा खला मल गया था।
जो कुछ आ, वह सब सचमुच अ या शत था। कसी को नह लग रहा था क सुपर 30
को इतनी बड़ी सफलता मलेगी। यह पहला यास आनंद और उनका साथ दे नेवाल के
लए ब त उ साहवधक था। यह एक ां त क शु आत थी, जो क बहार के एक ह से
को हला दे ने वाली थी। ज द ही भारतीय ेस, सरकार और आ खरकार अंतररा ीय
मी डया को जैसे ही इसके बारे म पता चला, सबके सब इस जा को जानने के उ सुक हो
उठे , जो आनंद कुमार ने कर दखाया था।
छा के मुख से

नाम : शवांगी गु ता
सुपर 30 बैच : 2012-13
सं ा एवं वषय : के मकल इंजी नय रग, भारतीय ौ ो गक सं ान, ड़क
वतमान पेशा : छा ा
म कानपुर के पास एक गाँव के एक नधन प रवार से आती ँ। मेरे पता का समाचार
प -प का का एक टॉल है और हमारे प रवार म पाँच सद य ह। मने सेकंडरी क
पढ़ाई सरकारी कूल से क । मुझे सुपर 30 के बारे म पता चला और मेरा सौभा य रहा क
मने इसक चयन या पास कर ली, और पटना म मने आई.आई.ट . जे.ई.ई. क तैयारी
शु कर द ।

सुपर 30 के प रवेश के बारे म क ँ तो म आनंद सर के घर पर रही और उनका प रवार मुझे


घर क सद य क तरह ही मानता था। हम सारी को चग और रहने क जगह पटना म ही
मु त म द गई। पूरा साल बेहद यादगार रहा, जसम ब त कुछ सीखने को मला और
तरह-तरह के अनुभव ए।
हमारी रोज योरी क लास होती थ और हम घर पर करने के लए एसाइनमट दए जाते
थे। आनंद सर क ा म ब त ो सा हत करते थे। उनक उप त मा और पुराने छा
क सफलता क कहा नयाँ ही हमारे लए नै तक बल और ेरणा का ोत थ , जनक
वजह से हम आगे बढ़े ।
उनके पढ़ाने के तरीके के बारे म क ँ तो वे इस बात पर जोर दे ते थे क हम लोग सम या
को व भ कोण से दे ख और एक ही सवाल को कई तरह से हल कर। योरी क लास म
वे हम उदाहरण दे ते थे और एक ही सम या को व भ तरीक से हल करते थे। इसी तरह
से हमने रसायन-शा और भौ तक-शा क भी सुपर 30 म तैयारी क । शै णक ान
के अलावा, वे छा को अ ा इनसान बनने के बारे म भी सखाते थे।
और, आ खरकार मने आई.आई.ट . जे.ई.ई. क परी ा पास कर ली। वतमान म मने
आई.आई.ट . ड़क म के मकल इंजी नय रग पढ़ रही ँ और तृतीय वष म ँ।
आई.आई.ट . म पढ़ाई के लए शु म मुझे फ स के खच क द कत ई । सुपर 30 ने
मुझे बक से पढ़ाई के लए ऋण दलवाने म मदद क और उसके लए ज री गारंट द ।
इसके अ त र , आनंद सर सुपर 30 छोड़ने के तीन साल बाद भी हमेशा सहायता, ेरणा
और मागदशन के लए कसी-न- कसी तरह से साथ रहे।
आनंद सर से जो सहायता, श ा और ेरणा मुझे मली, म उसके लए उनक कृत और
आभारी ँ।
6
आरं भक कहा नयाँ

व ष 2013 तक सुपर 30 क चचा रा ीय व अंतररा ीय तर पर फैल चुक थी। नेपाल


सीमा के पास रहनेवाला अठारह साल का एक लड़का दो रात क या ा करके उस साल
सुपर 30 म दा खला लेने प ँचा था। उस गरीब प रवार के ब े ने अपने बुजुग माता- पता
को भरोसा दलाया था क वह सुपर 30 काय म म शा मल करने के लए आनंद कुमार
को मना लेगा। कूल म उसने ग णत म 90 तशत अंक पाए थे और अगर उसे माता- पता
के साथ खेत म काम करने के बजाय ठ क से क ा म जाने का मौका मलता तो वह कुछ
और यादा अंक ला सकता था। खैर, कोई बात नह । अब भी त नयं ण से बाहर नह
ई थी। सुपर 30 उसके और उसके प रवार क तकद र बदल सकता था और उसका
सपना उसी तरह से पूरा हो सकता था जस तरह से उसने पटना तक क या ा े न से पूरी
क थी।

हालाँ क री केवल कुछ 130 कलोमीटर क ही थी, ले कन उसे अठारह घंटे से यादा
लग गए। उसक जेब म 500 से थोड़े ही यादा पए थे, ले कन उसके पास सपने पूरे थे
क कैसे वह इस काय म के ज रए आई.आई.ट . जे.ई.ई. क परी ा पास करेगा और
उसके बाद अ नौकरी करेगा, जससे वह करोड़ पए कमा सकेगा। उसके सपने और
न द दोन टू ट गए, जब े न पटना टे शन पर जोर क आवाज और झटके के साथ क ।
झटके से सबक न द खुल गई। एक छोटा सा ब सा और पीठ पर एक थैला लये यह
युवक रामानुजन कूल क ओर बड़ी उ मीद से बढ़ने लगा। करीब 9 बजे सुबह वह इस
स कूल म प ँचा। र से ही उसे मश र श क आनंद कुमार दखाई दए, जो एक
मंच पर छा के एक समूह को पढ़ा रहे थे। छा बड़े यान से नोट् स बना रहे थे। पास के
ै फक के शोरगुल का उन पर कोई असर पड़ता नह दख रहा था। ब े ने आनंद कुमार
के कने तक ती ा क । उनसे मलने क उ मीद से उसके अंदर कुछ बेचैनी सी पैदा हो
गई और उसे पसीना आने लगा—गरमी से नह ब क घबराहट के कारण। जब पढ़ाई
क , तब भी उसे काफ इंतजार करना पड़ा; य क ढे र सारे छा ने आनंद को घेर लया
था और उनसे अपनी शंका का समाधान कराने लगे थे। आ खरकार उस लड़के ने
ह मत क और अपने को आगे धकेलते ए, अपना दा हना हाथ उठाते ए वह च लाया,
‘‘आनंद सर!’’ लड़के को न पहचानते ए आनंद ने उसक ओर हाथ हलाकर अपने
खचाखच भरे ऑ फस म आने का इशारा कया। छा के साथ अपनी बातचीत ख म होने
पर खुद भी ऑ फस प ँचे। नेह के साथ उ ह ने लड़के से उसके आने का मकसद पूछा,
हालाँ क वे दे खते ही उसका मकसद समझ चुके थे।
‘‘सर, म सुपर 30 म पढ़ना चाहता ँ। मेरी मदद क जए। म कड़ी मेहनत क ँ गा, यह मेरा
वादा है आपसे।’’ आनंद कुमार इस तरह का अनुरोध रोज सुनते थे। एक दशक पहले से,
जब से सुपर 30 शु आ था, तब से वे ऐसे हजार अनुरोध सुन चुके थे।
उ ह ने लड़के क पृ भू म, कूल म नंबर और आ थक त के बारे म जानकारी ली।
अंत म वे के और लड़के क ओर सहानुभू त भरी नजर से दे खते ए बोले, ‘‘मुझे लगता
है क तु हारा यहाँ आना बेकार गया। तुमने सुपर 30 क दा खला परी ा के बारे म नह
सुना था या? इस साल क परी ा तो हो चुक है और सारी सीट भर चुक ह।’’
आनंद को उस लड़के क आँख म तबाही का मंजर दखाई दे रहा था; ले कन वे उसे
अगली दा खला परी ा के बारे म जानकारी दे ने के अलावा कुछ नह कर सकते थे। मायूस
होकर वह लड़का अपने घर लौट गया, ले कन उसे यह सबक भी मल गया क अगर
जीवन म कुछ पाना चाहते हो तो सही तरीके से यास करना चा हए और कड़ी मेहनत
करनी चा हए।
इस लड़के क कहानी जैसी थी, वैसी हजार कहा नयाँ आनंद के दल म हर दन तैरती
रहती ह। वे जानते ह क दहलीज पर आनेवाले हर व ाथ क मदद नह क जा सकती;
ले कन इससे उसे वापस लौटा दे ने म जो दद महसूस होता है, वह तो कम नह हो जाता। वे
जानते ह क या ा करके उन तक आनेवाले युवा क बड़ी सं या के लए गरीबी और
भेदभाव से पी ़डत गाँव और झु गय से नकल पाने का एकमा रा ता सुपर 30 ही है।
आनंद ने महसूस कया क उनक ओर से कसी भी तरह क कमी से श थलता क
सं कृ त और कानून का अपमान होगा, जससे वे सुपर 30 को बचाना चाहते थे। जब यह
काय म ही स दयता पर आधा रत था तो इसम कसी तरह क कठोरता रखने का कोई
कारण नह था। वा तव म आनंद का मानना था क आई.आई.ट . जे.ई.ई. के परी ा म
सुपर 30 क सफलता के लए छा क बु और यो यता क परखकरनेवाले ये नयम
और परी ण व धयाँ आव यक थ । हर साल आशा लगाए सैकड़ लड़के सुपर 30 म
दा खले के लए परी ा दे ने आते ह, ता क उ ह नामी श क आनंद कुमार से पढ़ने का
मौका मल सके और हर साल सैकड़ छा को नराश लौटना पड़ता है। अगर यह कसी
हद तक अनु चत भी लगता है तो एक और ज री सबक सीखने क ज रत है—जीवन
अकसर न प नह होता, ले कन अगर कसी म तकद र बदलने क धुन है तो उसके लए
अवसर हमेशा रहते ह।
यही लगन वष 2009 म सुपर 30 म आनेवाले एक लड़के क सफलता का मु य आधार
थी।
अनूप राज कुछ अलग तरह का छा था। व च बात यह थी क उसका जीवन ब त
कुछ आनंद कुमार के अपने जीवन क याद दलाने वाला था। अनूप बहार म बोध गया
और नालंदा के बीच पड़नेवाले जले औरंगाबाद के छोटे , गरीब और पहाड़ी गाँव चेव का
रहनेवाला था। अनूप के पता राम वेश थोड़े-ब त पढ़े थे; ले कन जब अनूप छोटा था,
तभी से को शश के बावजूद बेरोजगार थे। उसक माँ मीना दे वी गृ हणी थ , जो अनूप और
राम वेश क ज रत पूरी करने क अपनी मता भर को शश करती थ । ले कन घर म
खाने-पीने के सामान क हमेशा कमी रहती थी जसका मतलब आमतौर पर दाल और
रोट तक सी मत था। राम वेश ने ापार म हाथ आजमाया था, ले कन उसम उ ह
सफलता नह मली। चेव गाँव म भ व य क कोई उ मीद नह थी और घर क ज रत पूरी
कर पाने म अ मता के कारण वे एक तरह से मान सक संतुलन खो बैठे थे। अकसर वे
सड़क पर काम क तलाश म भटकते ए अपने आप बड़बड़ाते रहते।
बहार म बुआई एवं कटाई के बीच महीन का अंतराल होता है और इस बीच खेती पर
नभर रहनेवाले लोग के पास अ धकतर कोई काम नह रहता। राम वेश क हालत भी
ऐसी ही थी। एक बार अग त म शाम को बा रश के बीच अपने छोटे से मकान म बैठा
अनूप रोने लगा।
‘‘ या आ, बेटा?’’ अनूप क माँ मीना ने च तत होकर अपने बेटे से पूछा।
‘‘माँ, खाना।’’ अनूप ने आँसी आवाज म कहा।
ले कन घर म तो खाने को कुछ था नह । बेबस मीना ने सारे ड बे-बरतन खँगाल डाले,
ले कन उ ह कुछ नह मला। वे थक-हारकर जमीन पर बैठ ग और उनक आँख से आँसू
बहने लगे। राम वेश अपनी प नी और ब े क यह हालत सहन नह कर सके।
‘‘म कह से कुछ दाल और चावल लेकर आता ँ। चता मत करो।’’ उ ह ने कहा।
‘‘कुछ चावल भर ले आओ। म उ ह ही उबाल ँ गी और हम नमक के साथ खा लगे।’’
मीना ने अपने प त से कहा।
राम वेश ने सर हलाया, ले कन वह सोच म पड़ गए क चावल मलगे कहाँ से? ब नया ने
भी उधार दे ने से मना कर दया था।
‘‘तुम लक ़डयाँ सुलगाकर चू हा जलाओ और पानी उबलने के लए रखो। म अभी आता
ँ।’’ वे मीना से यह कहकर घर से नकल गए।
चू हा जलाने और पानी उबलने के लए रखने म अनूप क माँ को आधा घंटा लग गया।
पानी उबलने लगा। लक ़डयाँ जलकर बुझ ग और पानी ठं डा भी होने लगा; ले कन
राम वेश लौटकर नह आए। माँ-बेटे को चता होने लगी। भूख के साथ-साथ अब उ ह
राम वेश क भी चता होने लगी।
सुबह ई तो अनूप क माँ ने अपने प त क तलाश के लए नकलने का न य कया।
अनूप के बचपन म औरंगाबाद जले के गाँव एक और सम या से त थे, जसके बीच
लोग मु कल से जी पाते थे और अब भी वही त है। वह इलाका पछले पचास वष से
आतंकवाद और राजनी तक हसा से पी ़डत रहा है। गरीबी, भुखमरी, रोजगार क कमी,
भाई-भतीजावाद और ाचार के कारण वह इलाका माओवाद हसा क चपेट म आ
गया है। अपने को न सलवाद कहनेवाले लोग सरकारी कमचा रय व पु लसक मय क
लगातार ह याएँ करते ह और धनी लोग का अपहरण करके उनसे फरौती वसूल करते ह।
उनसे धोखा करनेवाले लोग क ह याएँ भी आम ह। न सलवाद उस इलाके म लोग के
बीच ही रहते ह, ले कन ब त कम लोग को उनक मौजूदगी का पता चल पाता है। उनके
ठकान म लाल कपड़ा रहता है, जससे लोग समझ जाते ह क वहाँ पर जाना खतरनाक
हो सकता है। गाँववाल को उनके ठकान और काम क जानकारी रहती है; ले कन वे
बताते कुछ नह , जससे न स लय को पकड़ना मु कल हो जाता है। जब लाल झंडे
गायब हो जाते ह तो गाँववाले अपने घर से बाहर नकलते ह और तब उनका जीवन
सामा य हो पाता है। यही बड़ा कारण है क पयटक बोध गया और बु के अ य प व
तीथ क या ा करने से बचते ह।
उस दन मीना न स लय के इलाके म प ँच और उ ह ने राम वेश के बारे म पूछा।
हालाँ क न स लय ने कहा क हम तु हारे प त का या करगे? वे ानीय पु लस थाने ग
और पु लस अ धकारी से गुहार लगाई; ले कन उसने भी कोई मदद नह क ।
‘‘ जदा होगा तो अपने आप लौट आएगा।’’ पु लस से यही जवाब मीना को मला था।
अनूप और मीना फर कभी राम वेश को नह दे ख पाए। ब े क उ तब केवल नौ साल
क थी।
उस समय तक अनूप ने कूल जाना शु नह कया था। इसके बजाय, वह खेत म या घर
के काम म लगा रहता था।
उसको धान बुआई क बु नयाद समझ हा सल हो गई थी और वह प रवार क आय
बढ़ाने के लए बोरे पीठ पर लादकर खेत से कान तक लाने लगा था। गरमी और धूप म
पेड़ क छाया म सोते ए उसे कुछ आराम मलता; ले कन यादातर दन उसे काम और
प रवार क रोजी-रोट क तलाश म लगना पड़ता था। कताब का उसके लए कोई
मतलब नह था; पर हाँ, कभी-कभार तसवीर दे खने के लए वह उनके प े पलट लेता था।
पता के गायब होने से ब े के मन म कई सवाल रह गए थे और उसके मन म एक बड़ा
खालीपन पैदा हो गया था। दन और महीने गुजरते गए और वह अकसर अपने पता को
याद करता रहता था। पता के गायब होने के बारे म जो सवाल उसके मन म थे, वे
अनु रत ही बने रहे। मीना ने बेटे को पढ़ाने का न य कया और उसने उसका दा खला
गाँव के कूल म करवा दया। कूल के कमरे ब त छोटे थे और श क ब त कम थे। ब े
टू टे-फूटे फश पर बैठा करते थे और क ा म पढ़ाई का तर भी फश क तरह का ही था—
टू टा-फूटा और अ नय मत।
सरी ओर, चेव गाँव म पढ़ाई के लए ब े होना, श क होना और कूल क इमारत
होना अपने आप म एक बड़ी सफलता मानी जाती थी। यहाँ तक क एक दशक पहले भी
ऐसी सु वधा अ या शत ही होती थी। गाँववाले श क का ब त अहसान मानते थे। वे
उ ह अनाज, स जयाँ, ध, अंडे आ द भट करते रहते थे। अनूप भी उन ब म शुमार हो
गया और पढ़ाई- लखाई म औसत होने के बावजूद वह क ा-7 तक प ँच गया। उसी समय
उसने पढ़ाई म यादा दलच ी लेनी शु कर द । आँधी, बाढ़, बा रश—कोई भी बाधा हो
—वह कूल जाना नह छोड़ता था। चेव क धूल भरी ग लय म अकेले जाते समय वह
अकसर अपने पता के बारे म सोचा करता था।
इसी ढ़ न य के साथ उसने बहार बोड क परी ा म 84.8 तशत अंक हा सल
कए। हर तरह से ये अंक ब त ही अ े थे। समूचे गाँव को उस पर गव आ। कई दन
तक खु शयाँ मनाई जाती रह । इस अवसर पर मीना क आँख म फर से आँसू आए;
ले कन इस बार वे खुशी के थे। भा य से खुशी का माहौल यादा दन नह रहा, य क
कड़वी स ाई फर से हक कत के प म सामने थी। पता के मागदशन और धन के
अभाव म आगे क पढ़ाई संभव नह थी। ले कन अनूप और मीना भी हार मानने को तैयार
नह थे। दोन ने कसी तरह से पैसा जुटाकर इतना इंतजाम कया क उसका नाम यारहव
क ा के लए गया कॉलेज म लखाया जा सका। एक बार फर अनूप ने अ पढ़ाई क
और परी ा म शानदार दशन करते ए 81.8 तशत अंक हा सल कए। हालाँ क, उसने
मीना को बताए बना एक ानीय को रयर कंपनी म काम भी कर लया, ता क उसक माँ
पर आ थक बोझ यादा न पड़े। मीना को जब यह पता चला तो वे ब त नाराज और
उ ह ने उससे वह नौकरी छोड़ने को कहा। उ ह ने उसे इसके बजाय केवल पढ़ाई पर यान
दे ने को कहा।
अनेक होनहार छा क तरह अनूप ने पटना म कई सारे को चग सं ान म जाकर वहाँ
क फ स पता क । साल म एक लाख से दो लाख पए तक क फ स दे पाना उसके लए
असंभव था। वह पटना क सड़क पर नए-नए को चग सं ान के बड़े-बड़े पो टर और
पं लैट दे खता रहता था। कुछ ने आई.आई.ट . जे.ई.ई. परी ा म सफलता के बड़े-बड़े
दावे कए थे, जब क कुछ अ य ने उ श त और यो य श क होने का चार कया
था। कुछ ने सफल व ाथ के फोटो और माण लगाए थे। अनूप को इन सबक स यता
परखना ब त क ठन लगा। इसके अलावा, उसके पास पैसा भी तो नह था। वह अपनी माँ
से सलाह करने चेव गाँव लौट आया। माँ ने उसे उ मीद न छोड़ने का अनुरोध कया।
पटना म मीना ने अपने बेटे के साथ बहार के मु यमं ी नीतीश कुमार से मलने क भी
को शश क , ता क वह इंजी नय रग म कै रयर बनाने के लए कसी काय म म शा मल
होने म मदद मल सके। जब वे मु यमं ी के आवास पर प ँचे तो एक स दय अ धकारी ने
उ ह बताया क इस तरह का कोई काय म सरकार नह चलाती और इसके बजाय उसने
उ ह सुपर 30 के बारे म बताया। उसने उ ह सुपर 30 का फोन नंबर और पता भी बता दया
और आनंद कुमार से मलने को कहा। ‘‘अगर वे तु ह सुपर 30 म ले लेते ह तो तु हारी
आ थक क ठनाइयाँ और बाक सम याएँ हल हो जाएँगी। वे को चग, खाने और रहने का
कोई पैसा नह लेते।’’
इतने स करनेवाले बोल तो अनूप ने पछले कई साल से नह सुने थे और जब वह
उस अ धकारी से मलकर नकला तो पहली बार संतु महसूस कर रहा था।
ज द ही उ ह ने आनंद कुमार से फोन पर बात क और माँ-बेटे ने उनसे मलने का समय ले
लया।
‘‘पटना म कब से आए ए ह आप लोग?’’ आनंद ने उनसे पूछा।
‘‘चार दन से, बाबू।’’ मीना ने जवाब दया।
‘‘ठहरे कहाँ पर ह?’’
‘‘ कने क कोई जगह नह है। पूरे दन को चग या मदद क तलाश करते रहते ह और रात
म थक-हारकर रेलवे लेटफॉम पर अखबार बछाकर सो जाते ह। सूखे चने और मुरमुरे
खाकर नल से पानी पी लेते ह।’’
आनंद ने दे खा क वह म हला इस तेज गरमी म नंगे पैर थी, ले कन उसके चेहरे पर
कसी तरह क कड़वाहट या कुंठा नह दख रही थी। आनंद उस म हला क आशा और
संक प दे खकर च कत थे। उसे सचमुच व ास था क उसके बेटे म होनहार और सफल
होने के उसम सारे गुण ह। ‘इस नया म कुछ ब को पाँच सतारा कूल म पढ़ने को मलता है, ले कन
उनका मन फेसबुक और पाट बाजी म यादा लगता है और इधर एक स ाई यह भी है।’ आनंद ब त वत
ए।
‘‘ठ क है, सुपर 30 का टे ट आज से पाँच दन बाद है। अगर तु हारे पास मता है तो तुम
उसम पास हो जाओगे। इसम हम छा क अ भ च का टे ट लेते ह। मोटे तौर पर
इंटरमी डएट लेबल के, ले कन अवधारणा मक होते ह।’’ आनंद ने अनूप और उसक माँ
को समझाया। मीना ने आनंद से अनुरोध कया क वे अनूप को बना टे ट के ही ले ल;
ले कन आनंद ने उनक इस बात पर यान नह दया, य क वे नयम नह तोड़ना चाहते
थे।
पाँच दन बाद अनूप ने टे ट दया, ले कन ब त कम अंक से पास होने से रह गया। वह
एकदम टू ट गया। कुछ कारण ऐसा था क आनंद के मन से भी अनूप क कहानी हट नह
पा रही ती। उ ह ने उसक पृ भू म, पता के गायब होने, गरीबी, चेव म न सलवा दय के
आतंक के साये म रहने और संघष करने के बारे म और यादा जानकारी ली। उ ह यह भी
पता चला क इन संघष म युवा ने लचीलापन दखाया है। जस क णा के लए आनंद
कुमार जाने जाते ह, उसी को दखाते ए उ ह ने अनूप से कहा क उ ह लगता है क उसके
अंदर आई.आई.ट . जे.ई.ई. पास करने क मता है, इस लए उ ह ने इस तभाशाली
ले कन गरीब लड़के क मदद करने के लए भाई णव से वचार- वमश करके नयम थोड़ा
श थल कर दया। इस सब उदारता के पीछे एक अ य कारण यह था क वह परी ा के
लए तैयार था और ब त ही कम अंक से कट-ऑफ लाने म चूका था।
आनंद अ य ब के लए तो नयम श थल नह करते थे, फर इसके लए ही ऐसा य
कया? इसका कारण यह था क आनंद को लगा क चेव जैसी जगह के होनहार और
लगनशील युवा के लए मौके ब त सी मत ह। यह समझना कोई क ठन नह था क
अनूप जैसे लड़के आसानी से गाँव म फैले हसक जीवन के चंगुल म फँस सकते ह।
हो शयार और मह वाकां ी होने के कारण वह गरोह का सरगना या न सलवा दय का
कमांडर भी बन सकता था और फरौती तथा ह या के ज रए वसूली कर सकता था।
ऐसा करनेवाला वह कोई पहला युवक नह होता। आनंद ने वचार कया क कतने
होनहार युवा इस जो खम भरी राह पर चल नकले। और तब उ ह ने तय कया क अगर
अनूप क मदद क जाए तो वह इस राह पर नह जाएगा।
जैसा क लग रहा था, चेव और आस-पास के इलाक म फैली सम या का संभा वत ह सा
होने क जगह अनूप चेव के ब के लए ेरणा ोत बन गया था। उसने आई.आई.ट .
जे.ई.ई. म अ सफलता हा सल क और पढ़ाई के लए भारतीय ौ ो गक सं ान,
मुंबई चला गया।
मई 2010 म रा ीय राजनी तक दल ने एक दन क दे श ापी हड़ताल क तो पटना म
भी राजनी तक हलचल तेज हो गई। पटना म भी दशनकारी अगर अपनी योजना के
अनुसार आगे बढ़ते तो वहाँ जनजीवन ठ प होने वाला था। अनूप समेत सुपर 30 क
दा खला परी ा क तैयारी कए हजार व ा थय को चता हो गई थी, य क दे श ापी
हड़ताल उसी दन थी, जस दन वह परी ा होनी थी। तय था क उस दन सड़क पर
वाहन नह चलने थे; ले कन व ाथ कसी तरह से पटना के बाँक पुर ग स हाई कूल
प ँच गए। कुछ च का जाम पार करने म सफल ए तो कुछ अ य कई दन पहले से ही
परी ा क के लए रवाना हो गए थे। इसके अलावा, पथराव का भी डर था। पु लस ने
शहर के अ धक हसक और संवेदनशील इलाक म कानून व व ा बनाए रखने के लए
क यू लगा दया था।
सौभा य से, हड़ताल का आ ान करनेवाले व भ राजनी तक दल के नेता म सामा य
बु थी। जब उ ह सुपर 30 क लोक यता और उसक परी ा के मह व के बारे म पता
चला तो उ ह ने छा को आने-जाने का रा ता दे ने का न य कया, य क उ ह समझ म
आ गया था क अगर छा को परी ा दे ने से रोका गया तो नधन छा का भ व य खराब
हो जाएगा।
इस कार जहाँ पटना के बीचोबीच हड़ताल के कारण सुनसान था, वह बाँक पुर ग स
हाई कूल म ल खत परी ा दे ने के लए सैकड़ छा इक ा थे। परी ा क पर कोई
पु लस नह थी। उस दन अनूप और उनके सा थय क खुशी का ठकाना नह रहा।
सुपर 30 म सामू हक पढ़ाई के अनुभव ने अनूप का कायाक प कर दया था और यह
केवल उसी के साथ नह आ था। उसक सफलता का मतलब चेव के कई और छा भी
उ श ा क ओर आक षत हो रहे ह और कई अ य अपनी सम या के व रत
समाधान के लए हसा को ‘न’ कहने लगे ह।
अनूप राज क कहानी आनंद कुमार और उनके साथी श क के सा य म पढ़ने के
लए शां त कुट र क या ा करनेवाले 390 गरीब लड़के-लड़ कय क कहा नय म से एक
है। पछले तेरह साल म करीब 390 व ा थय म से 333 ने आई.आई.ट . जे.ई.ई. म
सफलता हा सल क । यह कारनामा भारत म कसी अ य को चग सं ान ने नह कया है
और जब हर साल आनेवाले इन बेचैन ले कन आशावान व ा थय क पृ भू म पर वचार
कर तो उनक यह सफलता वाकई चम कारी लगती है।
ऐसा ही काश द प न ध झा थी। ऑटो र ा चालक क बेट न ध वाराणसी क थी।
चार बे टय और एक बेटे के पता सुनील झा का एकमा सपना था क उनक संतान को
वैसी गरीबी न झेलनी पड़े, जो उ ह ने पूरी जदगी र ा चलाते ए झेली थी। हालाँ क,
उनके पास नजी ूशन का खच वहन करने लायक पैसा नह था।
न ध का सनातन धम इंटर कॉलेज म दा खल कराया गया। शु से ही वह बेहद
लगनशील छा ा थी और पुरानी फट - चथी कताब म घंट उलझी रहती थी।
जब उसने दसव क परी ा पास क तो यह उसके लए सोच से परे क चीज थी। इससे
उसे इतना आ म व ास मला क वह उस सपने को पूरा कर सके, जसके लए अनेक
माता- पता ने पास के मं दर म पूजा क थी। वह अकसर उ ह ाथना करते सुना करती
थी, ‘‘हे भगवान्! मेरे बेटे को डॉ टर बना दो। इंजी नयर बना दो।’’ बना कसी बाहरी
मागदशन या औपचा रक को चग के केवल पुरानी कताब पढ़ते ए उसने आई.आई.ट .
वेश परी ा क तैयारी शु क थी। हालाँ क, वह सफल नह हो पाई; वह परी ा पास
नह कर सक ।
उसका सपना चूर-चूर हो गया। वह रोने लगी और अपने भा य को कोसने लगी। नराश
होकर उसने सरकारी कॉलेज म बी.एस-सी. म दा खला ले लया। तभी एक दन अखबार
म उसने सुपर 30 के बारे म पढ़ा। नराश हो चुक उसक आँख म फर से आशा क लौ
जगमगाने लगी। वह पटना प ँची और वेश परी ा पास करके सुपर 30 का ह सा बन
गई। सुपर 30 म लड़क क तुलना म लड़ कयाँ ब त कम थ , इस लए वह आनंद के
प रवार का ह सा बन गई। जयंती दे वी को वह ‘दाद ’ कहने लगी और मन लगाकर
मेहनत से पढ़ने लगी। अपने प रवार क त उसके दमाग म घूमती रहती—ऑटो र ा
चलाते पता, नमक न बेचते दादा, कसी क गाड़ी चलाते चाचा। इसके कारण उसक
पढ़ने क लगन बढ़ती गई। कई बार जयंती दे वी उससे थोड़ा आराम करने, ट .वी. दे खकर
तनाव-मु होने के लए कहत ; ले कन वह जवाब दे ती, ‘‘दाद , इस सबके लए तो पूरी
जदगी पड़ी है, ले कन यह मौका तो मुझे दोबारा नह मलेगा न।’’
रज ट आया और न ध पास हो गई। इंजी नय रग क पढ़ाई के लए वह भारतीय खनन
कूल, धनबाद गई। ांसीसी डायरे टर पा कल पकासो ने न ध के जीवन पर फ म
बनाई। वह फ म वष 2015 म रलीज ई और आनंद एवं णव के साथ न ध का प रवार
फ म का ी मयर दे खने पे रस गया था। वाराणसी म द र ता का जीवन बतानेवाले न ध
के प रवार के लए यह ब कुल व ल ण था। अचानक उ ह वह सब दखाई दे रहा था,
जसक उ ह ने अपनी बेट के लए क पना तक नह क थी।
जब आनंद और णव ने पे रस क सड़क पर न ध क तसवीर वाले पो टर दे खे तो दोन
भाई कृत ता के भाव से भर गए। उनक कामयाबी दे खकर उनके दल म एक सुकून-सा
भर गया।
स य साद सह और उनके प रवार क कहानी भी इतनी ही स मोहक है। वे एक
छोटे -मोटे कसान ह, जनके पास एक भस थी, जससे वे अपने प रवार का भरण-पोषण
करते थे। आसपास के घर और कान म वे ध बेचते थे। ले कन इस काम म यादा पैसा
नह था। स य साद के पास उनक भस के अलावा बस जमीन का एक छोटा सा टु कड़ा
था। जानवर को चराना और उसक ज रत पूरी करना ब त मु कल और थकानेवाला
काम था। गंगा क बाढ़ ने मानसून म उनक जमीन बरबाद कर द थी, इस लए आजी वका
क सारी आशाएँ केवल भस के ध तक सी मत हो चुक थ । कहने क ज रत नह क
स य साद नह चाहते थे क उनके बेटे आलोक को भी यही सब झेलना पड़े। अपने
वसाय म बार-बार नाकाम होने से तंग आकर उ ह ने बदहाली से कुछ हद तक छु टकारा
पाने के लए अपनी जमीन बेच डालने का न य कया। गाँववाल ने इसे आ मघाती कदम
माना। स य ने जमीन बेचने का मकसद अपने प रवारवाल और नकट म के अलावा
कसी को नह बताया था। जमीन बेचने से मले पैसे से उ ह ने आलोक का नाम एक अ े
एक कूल म लखवा दया। वे जानते थे क उनके गाँव म पढ़ाई- लखाई क हालत उस
सूखे चारे के समान ही है, जो वे अपने जानवर को खलाया करते थे।
स य क योजना ने नराश नह कया। आलोक को कूल भेजने से स य साद क
हालत भूख मरने जैसी हो गई; ले कन उ ह उ मीद थी क हालत ज र सुधरेगी।
कूल क पढ़ाई पूरी करने के बाद आलोक का चयन सुपर 30 म और फर आई.आई.ट .
म हो गया।
अब वह पावर ड म इंजी नयर ह और जब छु य म अपने घर जाता है तो गाँव के ब े
उसे घेर लेते ह। गाँव के उस वीरान हो चुके कूल क हालत म अब कुछ सुधार आ है और
वहाँ ब क हा जरी बढ़ने लगी है। आने वाले समय म और भी सुधार क संभावना है।
स य साद अब भी भस का काम करते ह; ले कन अब उ ह भ व य क चता नह है,
य क उनका बेटा कुछ बन गया है।
सुपर 30 से नकलनेवाले ब े अलग-अलग तरह से ऐसी ही क ठनाइय और तकलीफ ,
आनंद और उ लास से गुजरते ह, जो क कसी भी उ तरीय ट म के साथ होता है। वे
साथ रहते ह, साथ काम करते ह, साथ हँसते-बोलते ह, ध गा-म ती करते ह, सामान
सहेजते ह, एक- सरे को अपनी बात बताते ह और एक ट म के सद य के प म डू बते या
पार उतरते ह।
वाभा वक प से जब आप एक ट म म ह तो एक महान् कोच होना अखरता नह ।
आनंद कुमार और उनका प रवार वष से अनुकरणीय रोल मॉडल बना आ है। आनंद के
प रवार से मलनेवाली स ाव, शां त और सहानुभू त क भावना छा के लए मजबूत
आधार है, जो उन पर भरोसा करके आते ह। अ धकतर व ाथ अपने कोच के गुण सीख
लेते ह, जो वे अपने दै नक अनुभव और अ य तरीक से हण करते ह।
छा के मुख से

नाम : अ भषेक राज


सुपर 30 बैच : 2003 (सुपर 30 का थम बैच)
सं ान और वषय : भूभौ तक , भारतीय ौ ो गक सं ान, खड़गपुर
वतमान पद : े भू-भौ तक वद, मबरगर, मॉ को
मे रा ज म बहार के एक र-दराज के गाँव रसालपुर म आ था। मेरा प रवार बहार का
गरीब कसान प रवार था। मने कूली पढ़ाई और इंटरमी डएट क परी ा बहार शरीफ से
पास क और उसके बाद म आई.आई.ट . जे.ई.ई. क तैयारी के लए पटना आ गया। सुपर
30 म मेरा चयन परंपरागत प से नह आ था, य क सुपर 30 वेश परी ा मे मेरा रक
थोड़ा कम रह गया था। मेरे पास आई.आई.ट . जे.ई.ई. क तैयारी के लए टे ट ो ाम
करने लायक पैसा था नह , इस लए मने आनंद सर से अपनी टे ट सीरीज म मौका दे ने को
कहा। सौभा य से, मने पहले ही टे ट म अ ा कया और आनंद सर ने मुझे ट म म शा मल
होने के लए कह दया।

यह एकदम अलग तरह का अनुभव था, जब हम सब एक ट म के प म साथ म पढ़ते


थे। आनंद सर हम भोजन, नवास और क ा समेत सबकुछ उपल कराकर हमारे
कॉ से ट सुधारते थे। मुझे पढ़ानेवाले अ धकतर अ यापक कॉ से ट-ओ रएंटेड ही थे;
हालाँ क आनंद सर सम या का समाधान करनेवाला रवैया रखते ह। वे एक टॉ पक के
तहत अ धकतर सम या के आधार पर कॉ से ट को प रभा षत या वक सत कया
करते थे, जो क उनक अनोखी वशेषता थी। हर स ताह वे हमसे उस टॉ पक या अलग
अ याय के बारे म पूछा करते थे, जो हम क ठन लगता था या जसम हम सबसे कमजोर
आ करते थे और तब वे उ ह खासतौर पर समझाने के लए क ाएँ लगाया करते थे।
आनंद सर ने जे.ई.ई. म सफलता के लए अनूठा त धा मक माहौल तैयार कर दया,
जसका एक ही मकसद होता था—जे.ई.ई. म सफलता, जीवन म सफलता। उ ह ने जो
मुझे और मेरे जैसे सैकड़ छा को मौका दया, उसके लए म उ ह ध यवाद दे ता ँ। म
मानता ँ क इस तरह का सं ान बनाकर वे लाख छा -छा ा को हर दन े रत करते
ह।
7
सुनहरा कल

व ष 2003 के अ या शत प रणाम के बाद आनंद ो साहन और नए उ साह से लबरेज


होकर सुपर 30 के नए बैच के चयन क तैयारी म जुट गए। हालाँ क अ े चार और
शंसा के बीच एक बढ़ती ई सम या फर से उभर आई। पटना का को चग उ ोग जतना
बड़ा है, उतना ही कु यात भी और उसके बीच जहरीली ई या भी पनप रही है। कारण
ब त सरल, ले कन अपने आप म पूरा नह था। नए लोग म आनंद कुमार भारत के सबसे
यो य ग णत श क के प म ब त तेजी से उभर रहे थे। ऐसे म इस वषय के
मह वाकां ी छा क वे वाभा वक प से पहली पसंद बन गए थे। आनंद इस तरह के
नकारा मक चार से अप र चत नह थे और उ ह ने इसका जवाब और अ धक तब ता
के साथ पढ़ाई के ज रए दया।

हालात तब और बगड़ गए, जब कुछ अपराधी भी मैदान म आ गए, खासकर एक


कु यात गग टर, जो ानीय हाई स यो रट जेल म आजीवन कारावास क सजा काट
रहा था। वह हर तरह के कारनाम के लए कु यात था। बहार के हर तरह के अपराधी उस
बदमाश से टकराने से बचते थे। कहा जाता था क वह जेल म रहते ए भी लंबी प ँच
रखता था। वसूली उसके लए ब त आसान काम था।
एक दन वष 2003 म आनंद और णव अपने यहाँ आए चचेरे भाई ववेक सह से बात
कर रहे थे, तभी लडलाइन फोन क घंट बजी। ववेक ने फोन उठाया।
‘‘हैलो!’’
‘‘मा टर को फोन दो। उससे बोलो, उसका सबसे भयानक सपना उसे बुला रहा है।’’
‘‘कौन बोल रहा है?’’
‘‘तू मुझे नह जानता?’’ गग टर ने अपना नाम बताते ए कहा, ‘‘अब फोन मा टर को
दे ।’’
आनंद को चता होने लगी। यह आदमी य फोन कर रहा है? णव ने ववेक के हाथ से
रसीवर लया और बोला, ‘‘हाँ, या चा हए?’’ तब तक फोन कट चुका था।
थोड़ी दे र म फोन दोबारा बजा। इस बार आनंद ने ही उठाया। गग टर ने आनंद को
धमकाना और गाली दे ना शु कर दया।
‘‘म जानता ,ँ तुम कौन हो। तुम वही हो न, जो सुपर 30 का टे ट पास नह कर पाए थे, है
न? तुम कसी और के नाम से मुझे य धमका रहे हो? तु ह शम आनी चा हए। म पु लस
को रपोट कर ँ गा।’’ आनंद ने कहकर फोन पटक दया।
तभी फोन दोबारा बज उठा।
‘‘अबे ओ मा टर, तू मुझे नह पहचानता? म तेरी जदगी बरबाद कर ँ गा।’’
आनंद ने उसे झड़कने क को शश क , ले कन णव ने उनसे फोन ले लया। गग टर
गा लय क बौछार कए जा रहा था, ‘‘इस आनंद कुमार से कहो क सुपर 30 बंद कर दे ।
उससे बोल दे ना, अगर उसने को चग बंद नह क तो म उसक जान ले लूँगा। को चग
करनी है तो मेरे पास भी कुछ पैसा प ँचाना पड़ेगा। हाँ, ये महा मा बनने क को शश न
करे।’’
अब यह था क फोन करनेवाला वह गग टर ही था।
आनंद परेशान हो उठे ।
णव उनके भाव समझ गया। उ ह परेशान दे खकर उसने उ ह ह मत बँधाई।
‘‘भैया, चता मत क रए। दे खते ह, या होता है। च लए, पु लस से शकायत करते ह। ऐसी
धम कय से हम डरगे नह ।’’
कुछ वष बाद, जब आई.जी. पु लस का तबादला पटना से द ली हो रहा था, तब उ ह ने
आनंद को बताया था क वह गग टर उ ह धमक इस लए दे रहा था, य क आनंद क
तर क से परेशान न सफ कुछ को चग संचालक थे ब क कुछ यूरो े ट् स उनक स
से जलने लगे थे।
यह डर तब और बढ़ गया, जब वष 2003 म आनंद के घर के बाहर ही उन पर हमले का
यास कया गया। उनका एक कमचारी मु ा हमलावर के रा ते म आ गया था। मु ा के
पेट म छु रे से कई वार कए गए, ले कन वह हमलावर को घर म घुसने से रोकने म सफल
रहा था। मु ा के च लाने क आवाज सुनकर क ा म पढ़ रहे ब े तुरंत उसे बचाने के
लए दौड़े।
सुपर 30 के लोग और आसपास के पचास से यादा लोग मु ा को ानीय अ ताल
लेकर गए। रा ते भर उसका खून बहता रहा। जब उसका इलाज कर रहे डॉ टर ने आनंद
को बताया क मु ा क जान बचाने के लए खून चढ़ाने क ज रत पड़ेगी तो तुरंत कई
छा तैयार हो गए और र दान के लए आगे आ गए।
जब तक मु ा क हालत खतरे से बाहर नह हो गई, तब तक वे लड़के वहाँ से हटे नह ।
मु ा भी मानता है क लड़क क ाथना और आनंद कुमार क स ावना से ही उसक
जान बच पाई थी। मु ा के पेट पर छु रे के नशान अब भी आनंद को खतरे क याद रोजाना
दलाते ह।
आनंद कुमार को इसके बाद बहार पु लस के दो ह थयारबंद जवान क सुर ा लगातार
मुहैया कराई गई। यह फैसला त कालीन डी.जी.पी. बहार ने लया था। आनंद कुमार को
कुछ हो जाता तो बहार क कानून और व ा क त पर गंभीर सवाल उठते।
हालाँ क आनंद क सुर ा ज द हटा ली गई। इसके बाद वष 2005 म जब नीतीश कुमार
क सरकार स ा म आई तो उनक सुर ा ायी कर द गई और इसी के साथ उ ह
मलनेवाली धम कयाँ भी बंद हो ग ।
अगले साल वष 2004 म आई.आई.ट . जे.ई.ई. पास करनेवाले व ा थय क सं या 18
से बढ़कर 22 हो गई। 2005 म ये सं या 28 हो गई। 2006 और 2007 म 28-28 व ाथ
इस बेहद त धा मक टे ट म पास ए। लोग हर तरफ इसी क चचा करने लगे। हर
कोई जानना चाहता है क आनंद कुमार के पास कौन सा ऐसा फॉमूला है, जससे वे यह
जा कर दखाते ह। हालाँ क यह तो आनंद ही जानते थे क यह कैसे हो रहा है। तुरंत और
आसान शॉटकट से सफलता पानेवाले लोग को भा वत करने के लए यह ब त बड़ी बात
थी। इन लोग को तब बड़ा सदमा लगा, जब आनंद ने बताया क सफलता का कारण और
कुछ नह , छा का उनम व ास और उनक दन-रात क कड़ी मेहनत ही है, जसके
ज रए वे सा बत करना चाहते ह क उनक प र तयाँ उ ह रोक नह सकत ।
इन वष म जापान का भी यान सुपर 30 क ओर गया और वष 2005 म ही जापानी
चैनल एन.एच.के. ने उनके कूल पर पहली डॉ युमटरी फ म बनाई थी। इसके बाद वष
2007 म जापानी अ भने ी और पूव मस जापान नो रका फुजीवारा भी सुपर 30 पर एक
और डॉ युमटरी फ म बनाने आ । आनंद कुमार के पटना म कए जा रहे इस यास से
बेहद भा वत मस फुजीवारा के आने के बाद से ही भारतीय मी डया को पता चला क
सुपर 30 ने कतनी बड़ी सनसनी पैदा कर द है।
वष 2015 म दो व ा थय का चयन टो यो यू नव सट ने फुल कॉलर शप के साथ
उ श ा के लए कया। इतने वष म सुपर 30 पर जापान म कई डॉ युमटरी बन चुक
थ और जापान के स काशक भूषण ने इस पर एक कताब ‘इंडो नो शोउगेक ’ भी
छापी, जसे ट .वी. चैनल एन.एच.के. के प कार ने लखा था। जापान ने इस ग णत के
वजन क सराहना क और सुपर 30 के स होने से पहले ही उसके उ े य का समथन
कया था।
इसके बाद संपूणता का वष आया। अब तक भारतीय मी डया को आनंद कुमार के बारे
मअ तरह से पता चल चुका था। उसे पता चल चुका था क इस ने हर साल
कुछ असाधारण उपल हा सल क है और वे अकसर उसे फोन करने लगे, संपक म
रहने लगे और जहाँ भी जाते, उसक खबर रखने लगे। वष 2008 म पहली बार सुपर 30
के सभी 30 व ाथ आई.आई.ट . जे.ई.ई. म सले ट ए। यह बात व ास के परे थी,
ले कन 2009 म भी सुपर 30 ने फर से शत- तशत रज ट दया। इसी साल ड कवरी
चैनल ने सुपर 30 पर डॉ युमटरी बनाई, जसका नमाण वेरो नका हॉल ने और नदशन
टोफर मशेल ने कया था। वष 2010 म शत- तशत रज ट लाकर सुपर 30 ने है क
कर दखाई। लगातार तीसरे साल सुपर 30 के सभी ब े आई.आई.ट . जे.ई.ई. पास कर
रहे थे।
वष 2010 म बराक ओबामा के वशेष त रशद सैन सुपर 30 आए और उसे उ ह ने दे श
के सव े सं ान क सं ा द ।
‘‘सुपर 30 भारत का सबसे अ ा सं ान और प रवतन का उदाहरण है। रा प त बराक
ओबामा श ा के े म जा त-न ल से परे ऐसा ही सपना दे खते ह।’’ अमे रक रा प त
के ऑगनाइजेशन ऑफ द इ ला मक कॉ स के वशेष त ने कहा था।
इसके बाद तो शंसा और पहचान लगातार मलती गई। जैसे-जैसे लोग को आनंद
कुमार क को शश और सफलता के बारे म पता चलता गया, मी डया क खबर और
वशेष ज के ज रए उ ह मलनेवाला ो साहन बढ़ता गया। ‘टाइम’ प का ने वष
2010 म सुपर 30 को ए शया का सव े कूल बताया था। ‘ यूजवीक’ ने नया के चार
इनोवे टव कूल म शुमार कया। इसके बाद ांसीसी डायरे टर पा कल पकासो ने ‘द
बग डे’ नाम से फ म बनाई, जसम 2014 म जे.ई.ई. (एडवां ड) परी ा पास करनेवाली
और अभी आई.एस.एम. धनबाद म पढ़ रही न ध झा क कहानी शा मल क । दे श म ही
मश र फ म नमाता- नदशक काश झा जब ‘आर ण’ (2011) फ म बना रहे थे तो
उ ह ने आनंद कुमार से परामश कया था। यह फ म श ा और व ा म मौजूद
जा तगत आर ण पर आधा रत थी, जसम अ मताभ ब न, सैफ अली खान और
द पका पा कोण ने काम कया था। ब न ने भाकर आनंद नाम के ऐसे सपल का
करदार नभाया था, जो कहानी के एक अ य पहलू म अलग तरीके से वं चत तबके के
ब को ग णत पढ़ाता था। अ मताभ ब न ने वीकार कया था क उनके करदार का
यह ह सा आनंद कुमार पर आधा रत था। ‘‘मुझे बग बी और सैफ के करदार को वं चत
तबके के ब को ग णत पढ़ाते ए नद शत करना था। मुझे पता नह था क यह कैसे
कया जाए। इस लए, मने आनंदजी से अनुरोध कया क कुछ समय नकाल और वे इसके
लए आसानी से तैयार हो गए।’’ काश झा ने बताया।
‘‘उनक अनोखी शैली ने हमारा काम आसान कर दया। उ ह ने जो सहायता क , उसके
लए म उनका आभारी ँ।’’ झा कहते ह। आनंद क ा क रकॉ डग लेकर काश झा के
ऑ फस गए, जसे अ मताभ ब न और सैफ अली खान को अपने करदार अ तरह
से समझने म मदद मली। इस सबसे पता चलता है क आनंद कुमार कस तरह से
अनुकरणीय श क और रोल मॉडल ह, जो न केवल अपने छा से जुड़ जाते ह, ब क
उनके मागदशक के प म भी काम करते ह।
ब त छोटे तर से शु आत करनेवाले कसी भी के लए यह सारा घटना म एकदम
असाधारण लगता है। ले कन इस बढ़ती या त म कई काँटे भी थे।
वष 2010 म असम के त कालीन मु यमं ी त ण गोगोई ने भी सुपर 30 क या ा क
और बेहद भा वत ए। मजे क बात यह क उनक या ा के बाद उनके पास आ थक
मदद के लए सुपर 30 के नाम से एक फोन आया। भा य से मु यमं ी के कायालय ने
आनंद कुमार से बात करके यह पता करने क को शश नह क क यह फोन सही था या
कसी ठग क करामात थी। और इस तरह से वह ठग सुपर 30 म दा खला लेने के बहाने
मु यमं ी से एक बड़ी रकम ख चने म सफल हो गया। यह कोई पहला मौका नह था, जब
सुपर 30 के सरोकार से सहानुभू त रखनेवाल से पैसा ठगने क को शश क गई थी।
आनंद ने बार-बार यह करने क को शश क क ऐसे कसी भी अनुरोध क जाँच क
जानी चा हए; य क सुपर 30 कसी भी तरह का चंदा नह लेता।
कहते ह क अनुकरण ही शंसा का सबसे बड़ा प है। अगर यादा-से- यादा आनंद
कुमार ह और वे भी सुपर 30 क तरह वही कर, जो साल से ये करता आ रहा है तो यह
ब त अ ा होगा। हालाँ क, अभी तक ऐसा दे खने को नह मला है और बहार म कोई
और ऐसा सं ान नह खुला है, जो बगैर चंदा लये इस तरह से मु त श ा, रहन-सहन
और भोजन उपल कराता हो। भा य से, को चग वसाय जैसे आकषक उ ोग म
शा तर चाल चलकर सीधे-सादे छा और अ भभावक को ठगना ब त आसान है। सुपर
30 क स बढ़ने के साथ ही उसक लोक यता को भुनाने के लए पटना और
आसपास के इलाक म अनेक को चग सं ान खुल गए। आसपास सुपर 50, सुपर 100
और सुपर 20 नाम से अनेक सं ान और उनके परचे दखने लगे। ये लोग को गुमराह
करके यह समझाने क को शश करने लगे क वे सुपर 30 क ही शाखाएँ और उसका
व तार ह। कुछ ने अ धक बेहतर ूशन दे ने क शेखी बघारी, ले कन मु त इन-हाउस
े नग दे ने क बात कसी ने नह क । कसी का तर भी आनंद कुमार ारा ा पत तर
के समान नह था। प रणाम व प उनम से कोई भी यादा दन नह टक पाया और अब
उनका नामो नशान तक नह बचा।
अपने वेबपेज पर आनंद कुमार ने एकदम घोषणा कर रखी है क पटना म केवल एक
सुपर 30 है, जो वे शां त कुट र म चलाते ह। उसी पेज पर यह भी कया गया है क
सुपर 30 सं ान के बंधन के लए कसी भी उप म से कोई अनुदान नह लेता।
एक बात और आनंद कुमार को खी करती है, जब लोग यह सोचते ह क सुपर 30 म
छा का चयन जा त के आधार पर होता है और आर त कोटे के छा -छा ा को
दा खला आसानी मल जाता है। यह स य नह है और छा -छा ा के चयन का एकमा
आधार उनका आ थक पछड़ापन होता है।
आनंद को लगभग हर स ताह व व ालय, कॉरपोरेट, सरकारी सं ान चचा या
ा यान के लए बुलाते ह। उनके अ यापन पर इनका कोई असर न पड़े, इसका यान
रखते ए वे इन ा यान के लए अकसर जाने क को शश करते ह। वे समझते ह क वे
सुपर 30 क पहचान ह और दे श से भेदभाव, गरीबी जैसी अनेक सम या को मटाने के
लए बहार जैसे बेरोजगारी और अभाव से त रा य म श ा ही लोग को जाग क
करने का मह वपूण साधन है।
शु आती दन म भी जब आनंद गरीब ब को अपनी पीठ पर भारी ब ता लादे पैदल
चलते दे खते थे तो वे उनम तथा ए.सी. बस म चलनेवाले अ य समृ ब म अंतर साफ
दे खते थे। वे दे खते ह क व भ सामा जक तर के इन ब के बीच के ये अंतर लगातार
बढ़ते जा रहे ह और भ व य म इनके ख म होने के भी आसार नह ह, जससे दे श म
आ थक वषमता बढ़ती जा रही है। इसका एक समाधान तो श ा के ज रए सबको
समान अवसर उपल कराने का है। वष 2010 म श ा का अ धकार लागू आ, जससे
भारतीय सं वधान के अनु े द 21 ए के तहत छह से चौदह वष क उ के सभी ब को
मु त और अ नवाय श ा का अ धकार दया गया है। आदश प म इस अ ध नयम को
यह सु न त करना चा हए क सभी ब को शु आती दन म पया त श ा मले,
जससे वे उ श ा के लए तैयार हो सक। मड डे मील जैसी अनेक आकषक योजनाएँ
भी ब क हा जरी सु न त करने के लए लागू क ग । वा षक श ा तर रपोट
ए.एस.ई.आर. (2014) म ब के कूल म दा खला होने क दर 96.7 तशत है, जो क
वै क दर के नकट है।
हालाँ क, चता क वजह ामीण भारत म श ा क गुणव ा और ाथ मक कूल क
दशा है। वष 2015 म इलाहाबाद उ यायालय ने नदश दया था क सरकारी
अ धका रय के ब े सरकारी कूल म ही दा खल कराए जाएँ, ता क उन कूल क
त से वे अवगत हो सक और उनम सुधार सु न त कर सक।
अदालत ने माना था क दे श के कूल जानेवाले 90 तशत ब को सँभालनेवाले
सरकारी कूल क हालत खराब है, ले कन संबं धत अ धका रय को उनक परवाह नह
है।
ए.एस.ई.आर. के अनुसार, 96.7 तशत ब के कूल म दा खल होने के बावजूद
पाँचव क ा के हर दो म से एक से भी कम ब े सरी क ा क कताब पढ़ पाते ह, जो
क वष 2013 म 47 तशत से थोड़ा ही यादा था। बु नयाद अंकग णतीय कौशल तो
(वष 2013 म 46 तशत तक) वा तव म गरा है—आठव क ा के केवल 44.1 तशत
ब े ही भाग के सवाल हल कर पाते ह, जो क छोट क ा के पा म का बु नयाद
ह सा होते ह।
यह कोई नई बात नह है क कसी संगठन क सफलता या असफलता उस संगठन म
शा मल लोग से जुड़ी होती है और सुपर 30 भी इसका अपवाद नह है। पहले ही दन से
सभी तर के कमचा रय म एक समान बु नयाद गुण रहे, जनका काय म क सफलता
म योगदान है, जनम से संगठन के लए पूरा समपण, समय क पाबंद , मानदारी और
काम के घंट का पया त लचीलापन शा मल है।
जहाँ तक प रणाम क बात है तो सुपर 30 क ट म न त ही पूरे भारत क और संभवतः
नया भर क सबसे सफल व शै णक इकाइय म से एक है। असफलता क दर कम है
और सफलता क दर यादा है।
सुपर 30 म आनेवाले छा -छा ा को वह हा सल होता है, जो वे चाहते ह और इसम
उनक कड़ी मेहनत तथा लगन तो शा मल है ही, साथ ही उनक सफलता का बड़ा ह सा
आनंद कुमार, णव कुमार एवं जयंती दे वी क ट म और उनके प रवार को भी जाता है।
यह सब इस लए, य क अपने छा -छा ा के त उनक तब ता अ तीय है।
छा -छा ाएँ जस दन से सुपर 30 म आ जाते ह, उसी दन से वे इस प रवार क
ाथ मकता म आ जाते ह। अपने अ यापक और गु का समपण और ऊजा उ ह हर
रोज मलता है और यह समपण काय म छोड़ दे ने के बाद भी जारी रहता है। उनम से एक
भी छा -छा ा को वे नह भूलते और यहाँ तक क जो आई.आई.ट . जे.ई.ई. पास नह कर
पाते, वे भी उनसे सलाह और सहयोग हमेशा लेते रहते ह।
जो आई.आई.ट . जे.ई.ई. पास कर जाते ह, उनके लए भी सुपर 30 का सहयोग समा त
नह होता। सुपर 30 म लए जानेवाले सभी व ाथ आ थक प से बदहाली वाले होते ह।
इस कारण उ ह सफल होने के बाद आई.आई.ट . क चार साल क उ श ा म ूशन,
रहने-खाने और अ य खच म तंगी रहने क पूरी आशंका रहती ही है। आनंद कुमार
आई.आई.ट . जे.ई.ई. पास करनेवाले इन छा -छा ा क आ थक ज रत से पूरी तरह
से अवगत रहते ह, इस लए वे अपने संपक को लगातार बढ़ाते जाते ह, ता क इन
ज रतमंद छा -छा ा क मदद क जा सके।
आरं भक वष म उन छा -छा ा को अपनी आ थक बदहाली के कारण बक से ऋण
लेने म ब त द कत आती थ । आई.आई.ट . क फ स दे पाना, खासकर हाल क बढ़ोतरी
के बाद, इन प रवार के लए ब त मु कल होता है, जो दो जून क रोट तक न जुटा पाते
ह । और अगर बक ऋण दे ने के लए तैयार भी हो जाएँ, तब भी हर सफल अ यथ को
क ाएँ शु होने से पहले काउं स लग के समय 40,000 पए जमा करने होते ह। ूशन
फ स के लए तो ऋण उपल हो भी जाता है, ले कन आरं भक काउं स लग फ स के लए
नह , य क तब तक अ यथ का दा खला नह आ होता है। अतीत म पढ़ाई का खचा न
उठा सकनेवाले छा -छा ा को सूदखोर से मदद लेनी पड़ती थी, जो ज रतमंद छा -
छा ा से ब त यादा याज वसूलने म लगे रहते थे।
आनंद ने सुपर 30 के सफल अ य थय को मुसीबत म फँसे दे खा और अगर उ ह अपनी
पढ़ाई जारी रखनी है तो उ ह इ ह बेशम सूदखोर का भारी ऋण झेलना पड़ता है। कुछ तो
करने क ज रत थी और इसी लए ज द ही सुपर 30 ने आई.आई.ट . जे.ई.ई. पास कर
लेनेवाले छा -छा ा क मदद के लए रा ते तलाशने शु कर दए।
आनंद कुमार के सबसे पुराने छा मनीष ताप सह णव के ब त गहरे म भी ह। वे
झारखंड म राँची क यू नयन बक ऑफ इं डया के ांच मैनेजर भी ह। आई.आई.ट . क
चार साल क पढ़ाई पूरी करने म इन गरीब छा -छा ा को जो मु कल पेश आती ह,
उनसे वे अ तरह से प र चत थे। उ ह ने सुझाव दया क आनंद को इन बक से संपक
करके उनसे संबंध ा पत करने चा हए, ता क वे सुपर 30 के छा -छा ा को ऋण दे ने
म, खासकर काउं स लग के लए, कुछ उदारता बरत। जब कोई अ यथ श ा ऋण के
लए बक जाता तो बकवाले उसे दा खले का सबूत माँगते थे। हालाँ क वे छा तो
काउं स लग के लए ऋण चाह रहे होते ह, जो क सं ान म दा खले से पहले चा हए होता
है। और यह त बकवाल को समझना ब त मु कल होता था।
माच 2015 म आनंद क य व रा यमं ी जयंत स हा से भी मले थे और उनसे अनुरोध
कया था क बक ऋण म काउं स लग क फ स को भी शा मल कया जाए और मं ी भी
ऐसे अ या थय को अ धक उदार बक ऋण दे ने के वचार के त काफ त पर दखे।
वष 2015 म दो भाइय राजू और बृजेश क कहा नयाँ मी डया म आ , जो आई.आई.ट .
म सले ट हो जाने के बाद भी काउं स लग फ स वहन नह कर पाए थे। अ खलेश यादव,
मृ त ईरानी और रा ल गांधी जैसे राजनेता ने उनक परेशा नय को समझा और उनक
फ स माफ कर द गई थी। आनंद कुमार और उनके सुपर 30 क व सनीयता को यान म
रखते ए अब आई.डी.बी.आई. बक काउं स लग फ स के लए ऋण दे ता है और इस तरह
से एक बड़ी व ीय बाधा र हो चुक है।
पैसा इन छा -छा ा के लए तो ब त मह वपूण था, ले कन वयं आनंद के लए
इसक यादा अह मयत नह है। उ ह अपने को धनी बनाने के लए अनेक मौके आए। इस
प रयोजना को सफल बनाने के इ ु क अनेक शुभ चतक ने उ ह सहारा दे ने या व तार के
अवसर पैदा करने के लए बड़ी-बड़ी धनरा श दे ने का ताव कया। कहने क ज रत
नह क सुपर 30 ांड क पहली साल क सफलता के बाद से ही इस ांड से फायदा
उठाने के इ ु क अनेक अवसरवाद इद- गद मँडराने लगे थे। सुपर 30 और इसके छा -
छा ा क सफलता या असफलता म धन को ेरक या नधारक कारक बनाने के लए
आनंद अ न ु क रहे और इसक सराहना उनके म भी करते ह। रामानुजन कूल म
आनंद के छा रहे रजनीश कुमार ने हालाँ क अलग राह चुनी और अथशा तथा कानून
क पढ़ाई करके वे मुंबई त एगन ऐ लगेयर लाइफ इं योरस कंपनी म लीगल मैनेजर बन
गए, ले कन वे अपने म के काय से वष से जुड़े ह और उ ह सराहते ह। ज रत पड़ने
पर वे आनंद और सुपर 30 को कानूनी सलाह भी दे ते ह।
यह कहना सही होगा क रजनीश ने काफ सफलता हा सल कर ली है, ले कन वे अब भी
अपने गु क ताकतवर पैसे के आगे न झुकने के वचार को सराहते ह।
‘‘इतने वष म वे ब कुल भी नह बदले ह।’’ अपने छा -छा ा के साथ बैठे कुछ खा
रहे आनंद क ओर इशारा करते ए रजनीश कहते ह, ‘‘वह रहते ह और दन म अ धकतर
समय दै नक ग त व धय म लगे रहते ह।’’
आनंद आज भी ब त साधारण ह। रजनीश इस बात को मानते ह क उनके हसाब से
आनंद का मकसद पैसा कमाना कभी नह रहा और इस मामले म उनक ईमानदारी हर
संदेह से परे ह।
उ ह ने जो नाम और स अ जत क है, उससे लाख -करोड़ पए कमाए जा सकते ह;
ले कन उ ह ने स ा श क रहना पसंद कया। सौभा य से वे सव े ह।
यह कोई राज क बात नह क आनंद इस पूरी सफलता का ेय लगन और इ ा को
दे ते ह। वे चाहे अपने छा -छा ा से बात कर रहे ह या सरकार के मं य से या बजनेस
लीडर से, वे बार-बार अपना यही व ास दोहराते ह क बाधा को पार करने क इ ा
ही सफलता का मु य कारण है और बड़ी-से-बड़ी और असंभव लगने वाली बाधा और
अंततः सफलता या असफलता के बीच सेतु का काम अकसर यही लगन करती है।
आपक इ ा-श ही आपको सफलता क ओर ले जाती है, यह आनंद कुमार क
पसंद दा पं है, जो वे टो यो यू नव सट , टश कोलं बया यू नव सट , एम.आई.ट .,
हावड, टे नफोड, आई.आई.एम., कॉरपोरेट और यहाँ तक क गाँव -मुह ल जैसी छोट
जगह पर भी बोलते ह।
आनंद से नेकनीयत अ भभावक और अ य लोग अकसर पूछते ह क तयोगी परी ाएँ
पास करने के लए को चग य इतनी ज री हो गई ह। या ब े अपने आप तैयारी नह
कर सकते? हायर सेकंडरी श ा का या मतलब है, अगर उसम आई.आई.ट . जे.ई.ई.
जैसी तयोगी परी ा क तैयारी नह कराई जाती?
ये अकसर उनके सामने रखे जाते ह। सुबह कूल जाना और फर उ ह वषय क
पढ़ाई के लए ूशन जाने का मतलब है क हमारी श ा णाली म कमी है और वा तव
म आमूलचूल प रवतन क ज रत है। जे.ई.ई. वेश परी ा म जो पूछे जाते ह, वे +2
तर से ब कुल अलग होते ह। यह अंतर ठ क करने क ज रत है। जे.ई.ई. का व प
अनूठा है और छा से यह अपे ा करना क वे बना कसी गाइडस के अपने आप उसे
पास कर लगे, यह अ ासं गक है। कूल म तो उ ह रा य या क य बोड परी ा के
सवाल हल करना ही सखाया जाता है।
आई.आई.ट .-जे.ई.ई. के अ य थय क एक और सीमा यह है क कोई भी अ यथ
लगातार वष म केवल दो बार आई.आई.ट .-जे.ई.ई. एडवां ड परी ा म बैठ सकता है।
हद मा यम कूल से आनेवाले वं चत तबके के अ य थय के लए इससे बड़ी द कत
होती है। के तौर-तरीक को समझने म उ ह समय लगता है और सम या-समाधान
तथा टकल थ कग पर एका करने और सहज होने के लए उ ह अकसर दो यास
क ज रत पड़ती है।
आनंद ने हाल ही म सरकार के साथ इस तरह का ो ाम तैयार करने के लए बात क है,
जसम इंजी नयर बनना चाह रहे कूली ब को ऑनलाइन सपोट उपल कराया जा
सके। इस तरह से उ ह महँगी ाइवेट को चग पर पूरी तरह से नभर नह रहना पड़ेगा, जो
कब और उनके प रवार पर आ थक बोझ ही होती है।
हर साल जब छा -छा ा का नया बैच आई.आई.ट . और अ य सं ा म वेश करता
है तो उनके ढे र फोन आनंद के पास आते रहते ह। सुपर 30 के छा -छा ा क एक
सामा य शकायत यह है क आई.आई.ट . वैसे नह होते जैसी उ ह ने क पना क थी या
जैसा उ ह होना चा हए। जस सं ान म दा खले के लए वे दन-रात एक कर दे ते ह और
सोते-जागते सफ एक ही चीज का सपना दे खते ह, उसके बारे म उनक अपे ा क
क पना क जए। इस तरह के अभी सं ान के लए वे इतनी यादा मेहनत करते ह, वह
वा तव म उनक अपे ा पर अकसर खरा नह उतरता।
इतने वष म आनंद भी आई.आई.ट . के तौर-तरीके समझ गए ह। अनेक छा -छा ा
ने उनसे शकायत क है क वहाँ सीखना कोई नह चाहता और सब ड ी मलते ही मोटे व
आकषक पैकेज ह थयाने क दौड़ म रहते ह। यहाँ तक क अखबार भी लेसमट के दौरान
मलनेवाले बड़े-बड़े पैकेज क सराहना करते रहते ह। शोध प रयोजना और इनोवेशन
को पया त कवरेज न दया जाना सोच का वषय है।
नवाचार और रचनाशीलता क सं कृ त तो एकदम शु से ो सा हत कए जाने क
ज रत है। छा से यह अपे ा करना अनु चत होगा क वे अचानक सीखने के तौर-तरीके
बदल द; जब क पूरे जीवन भर म र ा मारते रहे ह। वतमान णाली म सम या समाधान के
कौशल बु नयाद त य को समझने और उन पर जोर दे ने क व भ व धय को
ो सा हत नह करता। ब े अ धकतर समय पा पु तक म लखी बात और सै ां तक
प को श ण ग त व धय और खेल के ज रए समझने के बजाय उ ह याद करने म खच
करते रहते ह। जहाँ परी ा म लाए जानेवाले अंक से छा का भा य नधा रत होता है
और वजन, समझ तथा मता जैसे समान प से मह वपूण कारक उपे त रहते ह ,
वहाँ रचनाशीलता कोस क कताब म पड़ी छटपटाती रहती है।
क ज, हॉवड और एम.आई.ट . के व व ालय इसी लए महान् ह, य क वे नया
को समाधान और मौ लक वचार दान करते ह। आनंद महसूस करते ह क जब भी
सव े के साथ धा करने क बात आती है तो हम कुछ पीछे रह जाते ह और इसका
कारण यह है क यहाँ क णाली म छा -छा ा को सम या के य और कैसे के
करना नह सखाया जाता। रामानुजन कूल म पढ़ाने के दौरान और सुपर 30 म को चग
दे ने के दौरान आनंद हर समाधान पर तक करने और वैक पक समाधान नकालने क
आदत वक सत करने क को शश करते ह। आनंद क श ण शैली इस बात का सजीव
माण है क आज क णाली म वशेष श क क ज रत है, जो शु से ही केवल मान
लेने के बजाय व ेषण करने क मता वक सत कर। इस बारे म ब त शोध हो चुका है,
जससे पता चलता है क कस तरह से सारे ब े ज ासु पैदा होते ह; ले कन बँधा-बँधाया
ढरा और पा म अकसर इस मौ लकता का दम घ ट दे ता है।
यही सब शोध के साथ भी है। ग णतीय स ांत म आनंद क शु आती च ने उ ह शोध
करने को े रत कया और उ ह ने ऐसे श क तलाशने क को शश क जो उ ह वक सत
करने म मदद कर; ले कन उ ह ने पाया क अगर यह ेरणा कूली तर से ही द जाती तो
उनके लए यादा आसानी होती। आज भी जो थोड़ी-ब त प रयोजनाएँ सामने आ भी रही
ह, वे अ धकतर व व ालय तर पर नातको र, डॉ टरेट और पो ट डॉ टरेट के छा -
छा ाएँ कर रहे ह। आरं भक अव ा म ही शोध क भावना पैदा करने के यास से
अ धक-से-अ धक छा का इस े म आगे आना सु न त होगा, जो हर े म
लीडर शप और नवाचार का वकास करगे।
30 साल से कम उ के लोग क आबाद भारत म नया भर से यादा है और यह
आँकड़ा एक ज री बात—युवा, और इस लए मता क ओर इशारा करता है। यही
मता है, जस पर आनंद सुपर 30 के लए छा -छा ा का चयन करते समय यान दे ते
ह और जो उ ह रामानुजन कूल ऑफ मैथमे ट स के ज रए अ धक-से-अ धक लोग को
श ा उपल कराने के लए े रत करती है। भारत म ब त बड़ी सं या म मानव संसाधन
उपल ह, वह बड़े सं ान म वेश के लए धा कर रहे छा क सं या भी यहाँ
सबसे यादा है। इसका मतलब यह है क हर औसत के लए अवसर का तर कम
है। हमारी श ा- णाली क सम या को मटाने के लए आनंद कुमार जैसे अ धक-से-
अ धक श क तैयार हो सक, इसके लए समाज, सरकार और खासकर आपको एक
साथ काम करने क ज रत है।
हालाँ क, हाल के वष म उनक कही बात केवल शां त कुट र क छोट सी क ा तक ही
सी मत नह रहती, ब क बड़े तर पर सुनी जाती है; ले कन दो दशक क अथक मेहनत
के बाद भी उनके पढ़ाने क भूख र ी भर भी कम नह ई है। नया भर म अपनी
या ा के बावजूद उनक ाथ मकता सुपर 30 और रामानुजन कूल के छा -छा ाएँ ही
ह, जहाँ वे सवा धक उ पादक सा बत होते ह। लैकबोड पर ग णतीय सवाल को लखना
और छा को उ ह हल करने क चुनौती दे ना उनका सबसे पसंद दा काय है। जब ये छा
अपने खुद के हल वक सत करते ह तो उनक आँख खुशी से भर जाती ह और उनके लए
यह सबसे बड़ी संतु होती है, और इसी तरह क संतु उ ह अपने प रवार से मलती है।

दसंबर 2015 म एक दन बड़े सुबह आनंद कुमार शां त कुट र के बाहर खड़े थे। दन शु
होने से पहले उनके मन म कुछ वचार उमड़ रहे थे। तज म दे खते ए वे मन-ही-मन
दन के अ याय क तैयारी कर रहे थे। तभी उनका मोबाइल बज उठा। उ ह ने फोन दे खा,
कोई अनजान नंबर था। आनंद अपना नंबर जहाँ-तहाँ दे ते रहते ह और दन भर उनके पास
अनेक चाही-अनचाही कॉ स आती रहती ह, जनम प कार से लेकर दा खले क
जानकारी चाहनेवाले लोग और उ ह गे ट ले चर के लए बुलानेवाले लोग शा मल होते ह।
आनंद ने फोन उठाया। फोन एक प कार का था, जो उनसे उ ह हाल म जमन सरकार से
मले स मान के बारे म जानना चाहता था। उ ह जमनी के से सनी ांत म बुलाया गया था,
जहाँ उ श ा और शोध रा य मं ी इवा मा रया टज ने उ ह उनके सराहनीय काय के
लए स मा नत कया था। उ ह ने उस स मान के बारे म थोड़ी बात क और फोन वापस
अपनी आगे क जेब म रखकर आँख बंद कर ल ।
पीछे से उ ह घर के अ य लोग के जागने और हलचल क आवाज आ रही थ । वे जानते थे
क उनका बेटा जगत् कुछ ही दे र म अपनी माँ के पास से उठकर उ ह ढूँ ढ़ता आ आ
जाएगा।
आनंद का ववाह ऋतु से वष 2008 म आ है जो आई.आई.ट . वाराणसी से नातक ह।
ऋतु एक सॉ टवेयर इंजी नयर के प म काम कर रही थ ; ले कन आनंद से ववाह के
बाद वे पूरी तरह से सुपर 30 म अपना योगदान दे ती ह।
वष 2010 म उ ह एक बेटा आ और ज द ही शां त कुट र क ा ही नह रह गया और
ब े क कलकारी से गूँजने लगा। जगत् कुमार केवल जयंती दे वी और बाक प रवार का
ही नह , सुपर 30 के ब के लए भी आकषण का क बन गया और वे भी उस ब े के
साथ खेलना और तनाव-मु होना पसंद करने लगे।
आनंद को कसी ने नाम से पुकारा तो वे च क गए। चाय बन चुक थी। आनंद सुपर 30
के भ व य और उससे मली स के बारे म सोच रहे थे, तभी उ ह मु ा इशारा करके
बुलाता दखा। चताम न आनंद को वे सारी चुनौ तयाँ याद आ ग , जो उ ह ने पछले वष
म झेली थ । वे सोच रहे थे क अगर उ ह णव, ऋतु, जयंती दे वी और हाँ, मु ा जैसे लोग
का सहयोग न मला होता तो आज सुपर 30 कुछ भी न होता।
आनंद अपने साधारण मकान म घुसे, जसने इतना कुछ बदलाव दे खा था। उ ह याद आया
क उनके पता राज साद उनसे या अपे ाएँ कर रहे थे। उनसे जो अपे ाएँ क जा रही
थ , वे उनके बारे म सोच रहे थे। आनंद जहाँ भी जाते ह, बड़ी सं या म हजार युवा उ ह
सुनने के लए और श ा के े म हो रही इस ां त का ह सा बनने के लए आ जाते ह।
कुछ लोग को लगता है क आनंद अब ब त बड़े आदमी हो गए ह और अकसर गरीब
म हला अपने नौ साल के ब े को पढ़ाने क वनती करते उनके पास आ जाती है। कई
बार ऐसा भी आ है, जब एक ऐसी म हला उनके पास मदद के लए आई, जसक
ससुरालवाले उसे दहेज के लए परेशान करते थे। लगभग हर दन कम-से-कम दस लोग
तो अलग-अलग तरह क सम याएँ लेकर आनंद के पास आते ही ह— कसी का प त
पीटता है, कोई अपने ब को पढ़ाना चाहता है, कसी को झूठे मुकदमे म फँसा दया
गया है। सबको लगता है क आनंद उनक मदद कर सकते ह। और आनंद कुछ मामल म
को शश करते भी ह; ले कन यादा कुछ न कर पाने के लए वे ल त भी महसूस करते
ह। लोग क दयनीय सूरत, मदद क आशा लये आँख उ ह और मजबूर कर दे ती ह। उ ह
लगता है क सुपर 30 केवल एक छोट सी शु आत है। वे दे श और गरीब के लए ब त
कुछ करना चाहते ह, ता क वे एक दन अपने पता का कोट पहनने के का बल हो जाएँ,
जो अब भी हगर पर टँ गा आ है।
छा के मुख से

नाम : अनूप राज (अनूप कुमार)


सुपर 30 बैच : 2010
सं ान और वषय : बी. टे क., स वल इंजी नय रग, आई.आई.ट ., मुंबई
वतमान पद : सहसं ापक और सी.ट .ओ., पी.एस. टे ककेयर
सु पर-30 का टे ट पास करने के बाद ज द ही मेरा सा
ा कार आ और मुझे छा ावास
म जगह मल गई। म पूरे जीवन भर वह जगह नह भूल सकता। पढ़ाई के लए वह एकदम
सही जगह थी। मुझे नह लगता क आई.आई.ट . समेत कोई अ य कूल इस तरह का
माहौल मुहैया करा सकता है—सफेद टाइल का फश, जसे बाद म हमने लू माकर
इ तेमाल कर-करके नीला कर डाला था।

वह जीवन का एक मोड़ था। हालाँ क, बहार म मेरा यारहवाँ ान आया था, ले कन मुझे
कुछ पता नह था क मेरा जीवन कहाँ जाएगा। सुपर 30 मेरे लए जीवन-रेखा बन गया।
उस पल के बाद से मने कभी पीछे मुड़कर नह दे खा। अब दे खते ह, यह सब कहाँ तक
बढ़ता है।
सभी छा -छा ा क अपनी-अपनी खू बयाँ और कमजो रयाँ थ । हमने जी पास करने
के लए एक- सरे क मदद क । आनंद सर हम लोग को अपार ऊजा से भर दया करते
थे। हम इसके सहारे चौदह घंटे लगातार पढ़ाई कर लेते थे।
इस अ यास ने मेरा जीवन बदल दया। म पाठक बन गया। अब म हर बार तीन से चार
कताब पढ़ लेता ;ँ ले कन अब उनका वषय मेरे बजनेस से संबं धत होता है।
र क और भोलू क अनूठ कहानी मुझे महसूस कराती थी क म परी ा पास कर सकता
ँ। मेरे लए संभव है। अब मुझे यह ेरणा दे ती है क म अपनी पृ भू म क परवाह कए
बना कुछ भी कर सकता ँ। अब आनंद सर को मागदशक, म और अ भभावक के प
म पाना मेरा सौभा य है। इसे श द म बयान नह कया जा सकता।
सुपर 30 म सीखे ये सबक मुझे जीवन भर याद रहगे—‘क ठन समय म भी आपको अपने
आप पर व ास करना सीखना होगा।’
संदभ सूची
1. ‘Obama’s Special Envoy Hails Super 30’. 9 August, 2010. The Hindu
http://www.thehindu.com/news/national/other-states/obamas-special-envoy-hailssuper-
30/article 559325.ece .
2. Mishra, Alok K.N.—‘Big B Gets Teaching Tips from Super 30’s Anand’. 31 July,
2011.Times of India .
http://timesofindia.indiatimes.com/india/Big-B-gets-teaching-tips-from-Super-30s-
Anand/articleshow/9433908.cms?referral=PM .
3. Sarin, Jitendra. ‘Government Staff, Politicos Must Send Their Kids to Govt. Schools:
Allahabad HC’. 19 August, 2015. Hindustan Times .
http://www.hindustantimes.com/india/govt-staff-politicos-must-sendkids-to-govt-schools-
allahabad-hc/story-COWyikj8YXWbc0CQILw1bO.html .
4. ‘Grade F’. 15 January, 2015. Indian Express .
http://indianexpress.com/article/opinion/editorials/grade-f/ .
5. Verma, Sanjeev Kumar. ‘Plea to Include IIT Counselling Fee in Loan’. 11 March, 2015.
Telegraph . http://www.telegraphindia.com/1150311/jsp/bihar/story_7896.jsp .
6. ‘UP Daily Wager Is Happy Father As His Son Cracks IIT’. 21 June, 2015. Hindustan
Times. http://www.hindustantimes.com/india/up-daily-wager-is-happy-father-ashis-sons-
crack-iit-govt-waives-fee/storymAQIE57E1Fs3MSri1XWcWK.html .

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