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Gonu Jha Ki Anokhi Duniya
Gonu Jha Ki Anokhi Duniya
1. कोड़ क सजा
2. सूद-मूल बराबर
4. पोथी ई समा
5. रात का भाव
6. गोनू क बहादुरी
7. पंिडताइन का सहारा
8. नहले पर दहला
11. अस भव आ स भव
12. कम ही पूजा है
25. अपन का सच
27. वग से वापसी
41. कृ त ाणी
िमिथला नरे श ने महसूस कया क उनके पास कलाकार के नाम पर कु छ ऐसे लोग भी
आने लगे ह जो कला के मम नह ह और न ही ितभा के धनी।
िमिथला नरे श से िवदा लेकर गोनू झा अपने ढंग से स य हो गए। िमिथला नरे श से ई
बातचीत के तीन दन बाद ही गोनू झा दरबार म आए और उ ह ने ताव रखा क रा य
के हर आयु वग के िलए एक मेधा परी ण ितयोिगता का आयोजन भी इस बार के
का तको सव म होना चािहए। ‘का तको सव’ क चचा सुनते ही िमिथला नरे श ने समझ
िलया क ज र गोनू झा को कलाकार के राज िवमुख होने का कोई सुराग िमल गया है
और वे इस ‘मेधा परी ण ितयोिगता’ के बहाने उनके सामने कु छ कट करना चाहते ह
फर भी उ ह ने दरबा रय से पूछा–‘‘आप लोग क या राय है?’’
दरबा रय म ऐसे लोग क कमी नह थी जो गोनू झा से जलते थे या ऐसे समय क
ती ा म रहते थे क गोनू झा को नीचा दखाया जा सके । ऐसे दरबा रय ने एकमत
होकर िमिथला नरे श को राय दी क का तको सव तो उमंग और उ लास के िलए
आयोिजत होता है जब क ‘मेधा परी ण ितयोिगता’ ग भीर कृ ित क ितयोिगता है।
मनोरं जन के समय ग भीर ितयोिगताएँ रस-भंग क ि थित पैदा करगी इसिलए इस
तरह क ितयोिगता का तको सव म नह होनी चािहए।
इस पुर कार िवतरण के बाद िमिथला नरे श ने अपनी ओर से गोनू झा को कु छ इनाम देने
क इ छा जािहर क तब गोनू झा ने कहा–”य द महाराज मुझे कु छ देना चाहते हं◌ै तो
मुझे मुँहमाँगा इनाम द।“
उनक बात सुनकर पंडाल म बैठे दरबा रय म काना-फू सी होने लगी। अ ततः िमिथला
नरे श ने गोनू झा से पूछा–‘‘हाँ, पंिडत जी, आप बताए क आपको या इनाम चािहए?’’
उनक यह माँग सुनते ही पंडाल म स ाटा छा गया। पंडाल म बैठे ई यालु दरबा रय के
मुँह खुले के खुले रह गए। गोनू झा क माँग इतनी अ याि त थी क दरबा रय क समझ
म नह आया क आिखर गोनू झा इस तरह एक हजार कोड़ क मार य खाना चाहते ह।
पाँच-दस कोड़े म तो आदमी बेदम हो जाता है और गोनू झा हजार कोड़े खाएँग?े यह
आ मह या नह तो और या है?
अ ततः िमिथला नरे श ने गोनू झा क पीठ पर हजार कोड़े लगाने का िनदश दे दया।
कोड़े लेकर दो मु टंडे िसपाही मंच पर आ गए तब गोनू झा ने िमिथला नरे श से
कहा–”पंडाल म अगली पंि म बैठे ‘कलाकार वागत क पाल’ को पहले मंच पर बुलाया
जाए।“
िमिथला नरे श समझ चुके थे क गोनू झा अब उनके सामने कु छ रह यो ाटन करने वाले
ह। उ ह ने क पाल को मंच पर लाने का िनदश दया। क पाल जब मंच पर लाया गया
तो उसके चेहरे पर हवाइयाँ उड़ रही थ । का तक के ठं ड म भी माथे पर पसीने को बूँद
चुहचुहा आई थ । वह डरा और सहमा-सा दख रहा था। गोनू झा ने क पाल का हाथ
फै लाकर मंच पर वागत करते ए कहा–”आइए कला-पारखी-कलाकार 6 वागत-क
भारी, क पाल महोदय! िबना आपक वीकृ ित के कोई रा य ारा आयोिजत
ितयोिगता म भाग नह ले सकता। आपसे अनुमित िमलने के एवज म अपने पा रतोिषक
का प ीस ितशत भुगतान का वादा म सावजिनक प से पूरा कर रहा ँ ता क भिव य
म मेरे िलए भी आप राज दरबार म वेश का माग श त रख।“
महाराज के कान म जब गोनू झा क बात प च ँ तब उ ह ने समझ िलया क क पाल
कस तरह का गोरख-ध धा चला रहा था तथा य गोनू झा ने मेधा परी ण- ितयोिगता
के आयोजन म शरीक होने क अनुमित ली थी। उ ह ने गोनू झा क ओर देखा, तब गोनू झा
ने कहा–”महाराज, इस क पाल क पीठ पर ढाई सौ कोड़े लगवाएँ। इसने मेरे साथ सौदा
कया था क जो भी पा रतोिषक मुझे िमलेगा उसका प ीस ितशत म इसे दे दूगँ ा। ऐसा
नह करने पर इसने चेतावनी दी थी क फर यह भिव य म कभी भी नरे श से िमलने का
अवसर मुझे दान नह करे गा।“
दन बीतते गए। चाहकर भी गोनू झा महाजन का पैसा वापस नह कर पाए। सूद बढ़ता
गया। एक दन गोनू झा के घर महाजन आ धमका और पैसे वापस करने क िजद करने
लगा। गोनू झा उसे टालना चाह रहे थे मगर महाजन था क टलने का नाम नह ले रहा
था।
बेचारा महाजन चुपचाप वहाँ से चला गया और गोनू झा के चेहरे पर मु कान खेलने
लगी।
चार पंि य म रामायण
गोनू झा अभी जगे ही थे क चार नवयुवक उनके घर प च
ँ े और गोनू झा के दरवाजे पर
द तक दी।
थोड़ी देर बाद ही ान- यान से िनवृत होकर गोनू झा ने युवक से पूछा–‘‘बताओ भाई!
या बात है? कहाँ से आए हो और मुझसे या चाहते हो?’’
गोनू झा समझ गए क इन युवक को ‘काना नाई’ ने उनके पास भेजा है। काना नाई
महाराज के दरबार म था और उन मह वाकां ी दरबा रय क चैकड़ी म शािमल था जो
गोनू झा से िमलते थे तथा उ ह नीचा दखाने का कोई अवसर नह खोना नह चाहते थे।
गोनू झा समझ गए क ज र इन युवक क किवता म कोई ऐसी बात है जो अशोभनीय है
अ यथा काना नाई उ ह इस तरह उ े रत कर उनके पास नह भेजता। उ ह ने युवक से
कहा–‘‘मुझे तुम लोग िव तार से बताओ क तुम लोग ने िमलकर किवता कै से िलखी और
तु हारी किवता या है?’’
दूसरे युवक ने कहा–‘‘और पंिडत जी, मने राह म एक पीपल के पेड़ से प े तोड़कर ले
जाती एक मिहला को उसी समय देखा तो अनायास ही मेरे मुँह से यह पंि िनकली:
तीसरे युवक ने कहा–‘‘पंिडत जी! मने जामुन का एक पेड़ देखा िजस पर अनिगनत
जामुन फले ए थे तो मने किवता क तीसरी पंि बनाई
जामुन अ त न पाइयो।’’
अब चैाथे युवक क बारी थी। उसने गोनू झा से कहा–”हम लोग थोड़ी दूर और बढ़े तो
देखा क कु छ ब े खेलते-खेलते झगड़ने लगे तब मने किवता क अि तम पंि जोड़ी:
अब महाराज के चकने क बारी थी। महाराज के मुँह से िनकला– ‘‘स पूण रामायण?’’
महाराज ने अनुमित दे दी। पूरे दरबार म उ सुकता पैदा हो चुक थी। युवक ने बारी-
बारी से अपनी-अपनी ‘रचना’ दरबार म सुनाई:
युवक के जाने के बाद गोनू झा ने काना नाई क तरफ भरपूर ––ि डाली और मु कु राते
ए अपने आसन पर िवराजमान हो गए।
पोथी ई समा
गोनू झा जब ब े थे तब उनका मन पढ़ाई म नह लगता था। उनके माता-िपता थे क
उनके पीछे हाथ-धोकर पड़े रहते थे क वे पढ़। गोनू झा बातूनी भी थे और चालाक भी।
कू ल म गु जी क बत से बचने का कोई न कोई अ छा बहाना वे िनकाल ही लेते थे और
सहपा ठय के साथ चुहल करने से भी वे बाज नह आते थे। उनक हािजरजवाबी
मु धकारी थी िजसके कारण िश क का गु सा भी ठं डा हो जाया करता था।
एक दन उनके िश क ने उनसे कहा–‘‘सुनो गोनू! तुम बुि मान हो, चालक हो,
िववेकशील हो फर भी तुम शैतािनयाँ करते रहते हो। यह अ छी बात नह है। म देखता ,ँ
तुम दन भर क ा म सहपा ठय से बात करते रहते हो। अब यह सब छोड़ो और अ छे
िव ाथ क तरह क ा म यान से गु जन क बात सुनो। अपना पाठ याद करो। तुम
पढ़ाई पर थोड़ा भी यान दोगे तो ब त अ छा करोगे।’’
गोनू झा को समझते देर न लगी क चोर ह गे। आहट कु छ टटोले जाने से पैदा हो रही थी।
ओसारे म कई ‘माठ’ पड़े थे िजनम अनाज रखे गए थे। गोनू झा ने ‘अकान’ कर समझा क
माठ म रखे ‘नपना’ के टकराने से खट-पट क आवाज पैदा हो रही है िजससे उनक िन ा
भंग ई थी।
उधर चोर जो ‘माठ’ से अनाज चुराने क य त म लगा था, गोनू झा के मुँह से िनकले
लाख श द सुनकर आगे क बात सुनने के िलए पैर चाँपते ए िखड़क से कान सटाकर
खड़ा हो गया।
अमावास क रात के घने अ धकार म उसे इतना इ मीनान था क भीतर से कोई उसे
देखना भी चाहे तो देख नह सके गा।
चोर साँस रोके गोनू झा और पंिडताइन के बीच हो रही बातचीत को सुन रहा था। उसे
भी समझ म नह ◌े आ रहा था क एक पोटली सबल के बीज के िलए गोनू झा इतना तड़क
य रहे ह!
गोनू झा को लगा क चोर वाला राज अब खोल देने म भलाई है! न जाने सबल के बीज
के सदम म पंिडताइन पर या गुजरे ! उ ह ने पंिडताइन क पीठ थपथपाते ए कहा–‘‘अब
जाने भी दो, दो पाई क चीज के िलए इस तरह आँसू नह बहाते।“ फर उ ह ने पंिडताइन
को बताया क रात को उ ह ने चोर क आहट सुन ली थी और उ ह गुमराह करने के िलए
सबल के बीज के भाव बताये थे तथा एक क सा गढ़ दया था।
गोनू झा भी कोई धनी प रवार से नह थे। उनका बचपन बेहद गरीबी म बीता था।
िववाह के समय म उ ह आ थक-संकट से गुजरना पड़ रहा था।
थोड़ी देर तक गोनू झा यास करते रहे मगर जब चचरी नह खुली तब वह धीरे -धीरे
चचरी को थपथपाने लगे ता क इस ह क आहट से मँग आ उठ जाए और आकर चचरी
उठा दे। मगर मँग आ को न द आ गई थी इसिलए वह चचरी थपथपाये जाने से जगा नह ।
मगर तभी उ ह कसी क आवाज सुनाई पड़ी...‘‘अरे पंिडत जी, रात भर ऐसे ही मुँह
बाए खड़े रिहएगा क चोर को पकिडएगा?’’
गोनू झा ने जब यह सुना तो उनके पाँव के नीचे से जमीन ही िखसक गई। वे एक बड़े माठ
के पीछे दुबककर खड़े हो गए। माठ के िसरे पर एक कथरी दही पड़ी ई थी। पता नह गोनू
झा को या सूझा क उ ह ने कथरी उठाकर अपने दोन हाथ म रख ली।
जैसे ही चचरी खोलकर वह आदमी ‘कोठरी’ म घुसा, गोनू झा ने वह कथरी उसके िसर
पर दे मारी। कथरी टू ट गई और वह आदमी िसर से कं धे तक मलाई क छह-छह
परत वाली दही से पुत गया। गोनू झा ने उस ि को दबोच िलया और िच लाने
लगे–”ज दी लालटेन लाओ, मने ‘ख चो-खोलो’ को पकड़ िलया।“
वह आदमी सकते म तो था ही, वहाँ से भाग िनकला। सोचा–‘जान बची तो लाख पाए!’
और गोनू झा अपनी म त चाल म चलते ए आए।
ससुराल के लोग उ ह मु ध नजर से देख रहे थे। उनक आँख म शंसा का भाव था क
कतने बहादुर ह हमारे मेहमान!
पंिडताइन का सहारा
जब कोई साधारण ि असाधारण सफलता अ जत कर लेता है तब एक ओर तो उसके
शंसक क बाढ़-सी आ जाती है तो दूसरी तरफ उससे ई या करने वाल क सं या भी बढ़
जाती है।
तीसरे दरबारी का आ वान सुनने के बाद थोड़ी देर तक दरबार म स ाटा-सा छाया
रहा।
गोनू झा जैसे ही दरबार म आए, वैसे ही महाराज ने उ ह आ ा दी– ‘‘पंिडत जी, मेरे
िलए ित दन एक िगलास शेर के दूध क व था कर और हो सके तो थोड़े से बाघ के
मांस क भी।’’
गोनू झा अपने साथ युवराज को लेकर अपने घर आ गए। प ी को आवाज देकर युवराज
के िलए िमठाई और ल सी मँगवाई।
जलपान से िनवृत होकर युवराज ने फर गोनू झा से कहा–‘‘पंिडत जी, शाम ढल रही है।
महल म मेरे न होने से वहाँ सभी िचि तत ह गे। कृ पया मुझे कोई झूठ सुना द, ऐसा झूठ,
िजससे बड़ा झूठ कोई दूसरा मुझे नह सुना सके !’’
युवराज ने आगे बताया‘‘ या क ँ पंिडत जी, उसक ग प सुनते ही मेरी मित मारी गई
और मुझे गु सा आ गया।...और म गु से म बोल पड़ा– झूठ! िबलकु ल झूठ...ऐसा हो ही नह
सकता! ‘िमिथला नरे श का ‘वंश-वृ ’ (वह द तावेज िजसम वंश का उ लेख रहता है क
वतमान नरे श के िपता कौन थे, उनके िपता के िपता, िपतामह के िपता, परिपतामह के
िपता, वृ परिपतामह के िपता...यानी सुदरू अतीत से लेकर वतमान तक का पूवजीय
यौरा) राज महल म उपल ध है। चाहो तो देख लो...’ मेरा ऐसा कहना था क दीवान के
बेटे ने तपाक से कहा–‘मने कब कहा क म सच कह रहा ?ँ अरे यार! बात तो झूठ क थी।
लो, मने सुना दी सबसे बड़ी झूठ! अब िनकालो सौ वण-मु ाएँ।’ और चूँ क म शत हार
गया था, इसिलए म◌ेने दीवान पु ा को सौ वण-मु ाएँ दे द ।’’
गोनू झा पूरी त मयता से युवराज क बात सुन रहे थे। उ ह ने युवराज क ओर देखते ए
पूछा–‘‘ फर या आ युवराज?’’
”...इसके बाद पंिडत जी! नगर-सेठ के पु ा ने िवन तापूवक अपना गला छु ड़ाते ए
कहा–‘ ोिधत न हो युवराज! बात तो झूठ कहने क थी! मुझे खुशी है क मने आपको
सबसे बड़ा झूठ सुना दया–अब आप अंटी ढीला कर! आप शत हार गए...इसिलए
िनकािलए सौ वण-मु ाएँ।’ “ युवराज ने कहा और ल बी साँस ली, फर गोनू झा क ओर
देखकर कहा– ”बस, पंिडत जी! शत के अनुसार मने सौ वण-मु ाएँ दे द और उ ह यह
कहकर वापस आ गया क शाम होने को है, म अपनी तरफ से झूठ कल सुनाऊँगा। ”
...इसके बाद पंिडत जी, म आपको खोजता आ तालाब के पास प च ँ गया। म मुि कल
म ँ पंिडत जी, य क वे दो सौ वण-मु ाएँ राजकोष के ह। य द इ ह कोषागार म नह
डाला गया तो म कसी को मुँह दखाने के कािबल नह रह पाऊँगा। पंिडत जी! बस, आप
ही मेरी मदद कर सकते ह।’’ इतना कहकर युवराज िससकने लगा।
गोनू झा अपने थान से उठे और उसक पीठ थपथपाते ए बोले– ‘‘शा त हो जाएँ
युवराज! अभी आप घर जाएँ। िव ाम कर। कल म आपके साथ वेश बदलकर चलूँगा और
म झूठ सुनाऊँगा–उ ह! आपके दो सौ वण- मु ा के थान पर उनसे चार सौ वण-
मु ाएँ दलवाऊँगा। आप िच ता न कर। हाँ, कल जब म आपके साथ चलूँ तो आप अपने
िम से मेरा प रचय यह कहते ए कराएँ क ये मेरे मामा ह...यह सब कहते ए आप
िबलकु ल नह घबराएँ...बाक म सँभाल लूँगा।’’
उनक बात पूरी होती, उससे पहले ही गोनू झा ने अपनी जेब से एक थैली िनकाली और
उनके सामने थैली खोलते ए उ ह दखाया–‘‘यह देिखए! एक सह ा वण-मु ाएँ ह थैली
म–म तो ठहरा गँवार आदमी! थैली म युवराज को थमा देता ।ँ य द म झूठ न सुना सकूँ
तब युवराज त काल आप दोन को दो-दो सौ वण-मु ाएँ इस थैली से िनकालकर दे दगे–
ठीक है न!’’
गोनू झा ने कहना शु कया, ‘‘मेरे दादा के पास एक घोड़ा था। दस गज ऊँचा घोड़ा! मेरे
दादा के गाँव म एकमा ा ऐसी जगह थी जहाँ यह घोड़ा बाँधा जा सकता था।’’ इतना
कहने पर गोनू झा चुप हो गए तब दोन िम ने उ सुकता दखाई और पूछा–‘‘कौन-सी
जगह थी वह?’’
”वह जगह थी गाँव के तीन सौ साल पुराने वट-वृ क छतनार डािलय के नीचे य क
हमारे इलाके म आम घर क ऊँचाई दो गज होती थी और पेड़ आ द भी, ब त ए तो
तीन-चार गज ऊँचे–बस! और घोड़ा दस गज का!“
‘‘ क सागोई म मािहर गोनू झा अपने चेहरे के हाव-भाव के साथ अपने कहने के अ दाज
म भी उतार-चढ़ाव लाते थे िजसके कारण सभी मु ध भाव से उनक कहानी सुन रहे थे।
गोनू झा हँस पड़े–”य द मेरी बात झूठ ह तो िनकालो दो-दो सौ वण- मु ाएँ, नह तो म
िनकालता ँ तु हारे दादाजी के द तावेज!“
दोन झप गए! वे शत हार चुके थे। दो-दो सौ वण-मु ाएँ देना उनके वश क बात नह
थी इसिलए दोन ही युवराज के सामने िगड़िगड़ाने लगे! युवराज का दल भी अपने िम
क बेबसी पर िपघल गया और उसने गोनू झा से कहा–‘‘जाने दीिजए मामा जी!’’
बात आई-गई हो गई। गोनू झा दूसरे घरे लू काय को िनपटाने म लग गए। बंजर को
आबाद करने का खयाल उनके दमाग से ही िनकल गया। गाँव म वे इधर-उधर जाते।
हमजोिलय से िमलते। दरबार के औपचा रक जीवन से मु , ठे ठ अपनी शैली म
ठहाके बाजी करते। कह उनके िलए भात-मछली और पकौड़े तले जाते तो कह भाँग घ टा
जाता। एक रात, इसी तरह क मटरग ती करके भाँग के तरं ग म ‘नचारी’ गाते ए गोनू
झा अपने घर क ओर लौट रहे थे क उनक नजर चार-पाँच िहलते-डु लते साय पर पड़ी।
गोनू झा ने सोचा–यह उनका म हो सकता है य क उ ह ने भाँग पी रखी है। मगर फर
भी वे आँख फाड़े अँधेरे म देखते रहे। अ ततः गोनू झा ठमक गए। उ ह प भान आ क
िहलते-डु लते साए चार-पाँच नह , आठ-दस ह और उनके घर के आस-पास मंडरा रहे ह।
उ ह ने दो साय को तेजी से अपने घर के िपछवाड़े जाते देखा। गोनू झा जहाँ थे वह एक
पेड़ क ओट म खड़े होकर इन साय क गितिविधयाँ देखने लगे। उ ह ने देखा क शेष रह
गए साये दो भाग म बँट गए। येक भाग म चार-चार साए थे। तेजी से चार गोनू झा के
घर के उ र, खुले थान म लगाए गए फलदार वृ के बगीचे म घुस गए और चार घर के
दि ण भाग म लगे आम के बगान म घुस गए।
गोनू झा के िलए पंिडताइन ने खाना परोस दया। उ ह देखकर समझने क कोिशश करने
लगी क गोनू झा या सचमुच नशे म ह या यूँ ही नशे म होने का वाँग कर रहे ह। अभी
पंिडताइन इस उधेड़बुन म थी क उ ह महसूस आ क घर के िपछवाड़े क जो िखड़क
आँगन से खुलती है वहाँ से कु छ खटर-पटर क आवाज आ रही हं◌।ै
गोनू झा कु छ कहते, उससे पहले ही कमरे क िखड़क के पास खटका आ। गोनू झा अभी
उस आवाज पर यान दे रहे थे क पंिडताइन बोली– ”अरे कु छ नह है। िब ली रात-बेरात
इसी तरह उछल-कू द के िशकार करती रहती है। तुम बताओ न, या बतानेवाले थे?“
सुबह पौ फटने से पहले ही पंिडताइन जग गई। नारी सुलभ िज ासा उसे बेचैन कए थी
क इतना सोना जब घर म आएगा तब वह या- या करे गी? कई बार उसका मन आ क
गोनू झा को जगा ले और उ ह मजदूर लाने के िलए भेज दे। सबेरा हो जाने के बाद जन
कमाने िनकल जाते ह– या पता पंिडत जी अगर देर से जग तो कोई मजदूर िमले न िमले।
एक क बात रहती तो चलो, कोई बात नह थी, ज रत तो दस-प ह मजदूर क
है...घंटा भर म दो क े जमीन क सफाई और कोड़ाई तो दस-प ह आदमी कर ही
लगे...हाँ, उस समय खुद भी सतक रहना होगा। घड़ा िमलने पर तुर त खेत से घड़े को ले
आना होगा। कसी को भनक भी न लगे क उन घड़ म सोना है।
इतना सुनना था क खेत जोतने म लगे लोग कु दाल-गता छोड़कर भागे। मगर वे भाग के
जाते कहाँ? सवेरा हो चुका था। लोग शौचा द के िलए घर से िनकल चुके थे। गोनू झा ने
चोर-चोर का शोर मचाया...चीखने लगे–”पकड़ो...कोई भागने न पाए!“
उनके बयान पर शेष चोर भी पकड़ िलए गए। उनक िपटाई और पूछताछ से मालूम आ
क ये सभी लोग कसी न कसी तरह लंगडू उ ताद से स बि धत ह। लंगडू उ ताद ने गोनू
झा को सबक िसखाने का संक प ले रखा है। उसके कहने पर ही ये लोग गोनू झा के घर
चोरी करने के इरादे से आए थे। गोनू झा को अपनी प ी से खेत म वण-मु ा से भरे घड़े
होने क बात कहते सुनकर उन लोग ने उसी को िनकालकर ले जाने का मन बना िलया।
हलवाई ने अँगूठी अपने हाथ म लेकर देखी। उसक आँख म काइयाँपन उभर आया।
उसने गोनू झा से कहा–‘‘भाई, लगता है क तुम भूखे हो। भूखे को खाना िखलाना धरम है
इसिलए म तु ह िखलाऊँगा–िजतनी खा सको, खा लो...और डेढ़ सेर या, दो सेर िमठाई ले
जाओ ले कन यह मत सोचना क इस चार आना भर के चाँदी के छ ले के िलए तु ह ये
िमठाइयाँ िखलाई ह...पड़ोस गाँव से आए हो, इस नाते हमारे मेहमान ही ए। और
मेहमान का स कार भला कोई कै से नह करे गा?’’
कहते ह क िनयित के रं ग-ढंग िनराले होते ह। संयोग क रचना भी िनयित ही करती है।
संयोगवश गोनू झा के गाँव म एक बार फर अकाल पड़ा। भोनू क परव रश को लेकर गोनू
झा फर परे शान हो गए। और एक दन फर भोनू को साथ लेकर उसी क बे म काम क
खोज के िलए प चँ े।
िसपाही ने गोनू झा क तरफ देखा। वे खाकर हाथ-मुँह धो रहे थे। िसपाही ने गोनू झा को
आवाज दी तो गोनू झा फू ट-फू टकर रोते ए िसपाही के पास प च ँ ।े िसपाही ने कहा–‘‘अरे
तुम य रो रहे हो? म तु ह कु छ नह क ँ गा भाई! डरो मत।’’
भोनू झा भी समझ गया क उसके भैया ने हलवाई को सबक िसखाने के िलए तेरहम-
िवधा का इ तेमाल कया।
अस भव आ स भव
िमिथला नरे श के दरबार म जब कभी कोई काम नह रहता या महाराज मनोरं जन क
इ छा कट करते तो सारी औपचा रकताएँ समा हो जात और दरबा रय को मनचाहा
कहने-सुनने क छू ट िमल जाती।
बात ब त सामा य ढंग से कही गई थी ले कन उसे सुनते ही दरबारी हँसने लगे। गोनू झा
को यह बात चुभ सी गई। वे मु कु राते ए अपने आसन से उठे और महाराज से
बोले–‘‘महाराज! म सुराही म क हरा भर सकता ँ य द आप कह...!’’
महाराज को लगा क अब गोनू झा अपनी बुि के घमंड म शेखी बघार रहे ह। उ ह लगा
क गोनू झा को अपने पद क ग रमा का यान रखकर ही कु छ बोलना
चािहए...बड़बोलेपन से बचना चािहए।
िमिथला नरे श ने उ ह टोका–‘‘पंिडत जी! कां◌ेहरा–क हरा होता है, पानी या आटा नह
है क आप सुराही म भर ल!’’
दूसरे दन से दरबार सामा य ढंग से चलने लगा। गोनू झा भी सामा य और सहज थे।
पलटू झा और अ य दरबारी उनके चेहरे पर कोई िच ता क रे खा नह देखकर असमंजस म
थे, फर भी उ ह लग रहा था क तीन माह बाद गोनू झा िनि त प से दंिडत
ह गे...सुराही म कोई क हरा डाल सकता है भला!
देखते-देखते तीन महीने बीत गए। दरबार म कसी दरबारी ने महाराज को याद
दलाया–‘‘महाराज, आज ठीक तीन महीने पूरे हो गए। आज गोनू झा हम लोग को
सुराही म क हरा भरकर दखाने वाले थे।’’
महाराज आगे कु छ बोल पाते क गोनू झा ने अपने आसन से उठकर पूरी िवन ता के
साथ कहा–‘‘एक सुराही म क हरे क बात थी महाराज! मुझे याद है। एक क जगह म
दरबार म दस बड़ी सुरािहय म भरे क हरे तुत करने जा रहा ।ँ एक महाराज के िलए
भट व प! एक भाई पलटू झा के िलए भट व प। शेष कोहरे वाली सुराही महाराज क
इ छा पर 4 िवशेष योजन के िलए सुरि त रखी जा सकती है या कसी िवशेष अवसर
पर कसी मेहमान को उपहार व प भट म दी जा सकती है!
दरबार म सनसनी पैदा हो गई। सभी दरबारी एक दूसरे को च कत –ि से देख रहे थे।
कोई िव ास नह कर पाया क ऐसा भी हो सकता है।
थोड़ी ही देर बाद सभी दरबा रय ने देखा, दस आदमी अपने कं ध पर सुराही उठाए
दरबार म प च ँ े। महाराज के पास आकर उ ह ने सुरािहयाँ रख द तथा उ ह णाम कर
दरबार से बाहर हो गए।
गोनू झा अपने आसन से उठे और सबसे बड़ी सुराही को पूरी ताकत से उठाकर धीरे -धीरे
चलते ए महाराज के पास आए और उसे महाराज के आसन के पास रखते ए
बोले–‘‘महाराज, यह सबसे बड़ा क हरा आपके िलए।’’
दरबार म साँस साधे लोग यह कौतुक देख रहे थे। कसी ने कहा क यह कोई घनच र है।
तब गोनू झा ने सभी दरबा रय को आमंि त कया क वे आएं और सुरािहय को ठीक से
देख ल क इनम क हरे भरे ह या नह !
हठात् मं ो ार बंद हो गया। एक तेज वी साधू को यूँ गु ग भीर वाणी म बोलता सुन
िमिथलांचल के धमभी लोग सहम गए। सबको जैसे काठ मार गया!
तेज वी-सा दखने वाले साधू ने ऊँची आवाज म कहा–”मूख, मुझे नह पहचानता? म
िहमालय के शीष पर ‘इ -आराधना’ म शत वष म शत को ट इं ोपासन मं ा का जप
करनेवाला म शत-ठोप-महाराज ?ँ मुझसे स होकर इ भगवान ने मुझे एक ऐसा
बाँस दान कया है िजसके िहलाने से वषा होने लगती है और तू पूछ रहा है क म कौन
होता ँ अशु मं ाघोष का िवरोध करनेवाला?“
जब लोग ने उसे टोका–बाबा, कधर चले? तब उसने कहा–जरा मैदान जाना है–
लघुशंका के िलए! कु छ लोग उसके पीछे-पीछे चले ले कन अँधेरे का लाभ उठाकर वह साधू
कसी झाड़ी म जा छु पा। लोग िनराश लौट आए।
एक दन िमिथला नरे श अपनी पु पवा टका म टहल रहे थे। उनके साथ थे उनके मं ी।
कसी कारणवश गोनू झा महाराज से िमलने आए तो महाराज ने उनको भी पु पवा टका
म ही बुला िलया।
महाराज अपने मं ी से कु छ बात करते रहे, कु छ िनदश देते रहे। गोनू झा उन दोन के
साथ टहलते रहे। मं ी मन ही मन खुश हो रहा था क महाराज गोनू झा को मह व नह दे
रहे ह। मं ी को िनदश दे चुकने के बाद महाराज अचानक मं ी से कहने लगे–”मं ी जी,
इस पु पवा टका म म जब कभी आता ँ तो मु ध हो जाता हँ◌।ू िजस पौधे के पास जाओ,
उसी पौधे से एक िवशेष सुगंध का अहसास मन म भर जाता है। ले कन मुझे इन सभी फू ल
म गुलाब अिधक पस द है। देखने म भी सु दर और सुग ध ऐसी क लान मन को भी
आनि दत कर दे। या ऐसा कोई उपाय है क म िजस पौधे के पास जाऊँ, वहाँ से मुझे
गुलाब क सुग ध ही िमले?“
थोड़ी देर वहाँ टहलते रहे महाराज और उसके बाद दूसरे फू ल क ओर बढ़ते ए उ ह ने
गोनू झा से पूछा–”पंिडत जी! या कोई उपाय है क म िजन फू ल के पास जाऊँ उनसे
गुलाब क सुगंध ही आए?“
हजाम क बात सुनकर गोनू झा का माथा ठनका–‘‘अरे । तु हारा दमाग तो ठीक है? या
बक रहे हो? कह नशा-वशा तो नह कर िलया है तुमने? सुबह ही तो म घर से िनकला ।ँ
वहाँ सब कु शल-मंगल था।’’ गोनू झा ने बेचैन होते ए कहा।
गोनू झा क आँख म बरबस आँसू आ गए। वे अपनी माँ को ब त यार करते थे। हाथ क
मछली उ ह ने हजाम को थमा दी और िबना कु छ बोले ल बे-ल बे डग भरते ए अपने घर
प च
ँ ।े घर प च
ँ ने पर उ ह ने पाया क दरवाजे पर बैठी उनक माँ मजू रन से धान छँटवा
रही ह। घर म सबकु छ सामा य है। गोनू झा ने समझ िलया क वे हजाम क धूतई का
िशकार हो गए ह। गोनू झा के ह ठ पर रह यमयी मु कान तैर गई। मतलब था क गोनू
झा ने हजाम क ‘हजामत’ करने का फै सला कर िलया है।
उन दन गाँव म हजाम फोड़ म चीरा लगाने का काम भी करते थे। इसिलए हजाम को
इस बात का अहसास तक नह हो पाया क उसका पाला गोनू झा से पड़ चुका है।
दूसरे दन हजाम आया तो गोनू झा उसे ितरपाल वाले घेरे म ले गए और खुद टेबल पर
बैठे और हजाम को टेबल के नीचे जाने को कहा। हजाम अपने औजार लेकर जैसे ही टेबल
के नीचे गया क गोनू झा ने मल-िन तरण या शु कर दी। उनके मल ार से
िपचकारी क तरह मल िनकल रहा था और टेबल के नीचे बैठा हजाम मल- ान कर रहा
था। जुलाब के असर से एक बार म ही गोनू झा का पेट साफ हो गया। गोनू झा टेबल से उठ
गए और हजाम हड़बड़ाकर टेबल से बाहर िनकला। वह बोल पाने क ि थित म नह था।
िसर से मल टपक रहा था। दुग ध से सराबोर जाम कु छ समझ नह पाया क वह करे भी
तो या करे । उसके कपड़े भी मल से तरबतर थे।
हजाम बाहर आया तो पानी, साबुन और धोती उसके िलए तैयार था। खूब साबुन मलकर
उसने ान कया और गोनू झा म ती म खड़े मु कु राते ए उसे नहाता आ देखते रहे।
हजाम िबना कु छ बोले वहाँ से चला गया और गोनू झा मु कु राते ए अपने घर आ गए।
शु िमठाई का भोज
गोनू झा अपनी माँ से ब त यार करते थे। उनक माँ ब त वृ हो चुक थ । एक दन
उनक माँ बीमार पड़ । वै आए। उ ह देखा। दवा दी। मगर उनक माँ क हालत म सुधार
नह आ। गोनू झा िचि तत थे। उ ह ने वै से माँ क बीमारी के बारे म पूछा तो वै जी
ने कहा–‘‘सबसे बड़ी बीमारी तो बुढ़ापा क जीण-शीण काया है पंिडत जी। इसका इलाज
तो मह ष यवन के पास भी नह था। अब जी भरकर माँ क सेवा क िजए और उनका
‘गोदान’ भी करा ही लीिजए। यह समिझए क चल-चलंती क बेला है। म तो दवा
इसिलए दे रहा ँ क जब तक साँस, तब तक आस। बाक सब ऊपरवाले के हाथ म ह।’’
पाँत दर पाँत लोग बैठे। गाँव के खेत और सड़क तक ा का भोज खाने आए लोग से
पट गया। प ल िबछ जाने के बाद गोनू झा सभी प ल म एक-दो ईख का टु कड़ा रखते चले
गए और पाँत के अ त म खड़े होकर हाथ जोड़कर बोले–‘‘कृ पया अब भोजन हण कर।’’
सजा काट रहे चोर संक प ले चुके थे क सजा क अविध पूरी होने के बाद जैसे ही वे
कारागार से बाहर आएंगे, वैसे ही गोनू झा को मजा चखा दगे। चोर क सजा क अविध
भी पूरी ई और वे कारागार से बाहर भी आ गए। अपने संक प के अनु प कारागार से
िनकलकर वे सीधे गोनू झा के आवास क ओर गए और गोनू झा के मकान के आस-पास
मँडराने लगे।
सूरज डू ब चुका था। नीम अँधेरा फै ला आ था। चोर के सरदार ने अपने सािथय को
बुलाकर कहा–‘‘तुम लोग घर जाओ। आज म अके ले ही गोनू झा के घर म चोरी क ँ गा। जो
कु छ भी हाथ लगेगा, उसम तुम सभी को बराबर का िह सा िमलेगा।’’
गोनू झा दरबार से िनकलकर बाजार होते ए लौट रहे थे। हाथ म एक झोला था िजसम
उ ह ने कु छ स जी-भाजी खरीदकर रख ली थी। उनक प ी ने सुबह ही कहा था–‘‘शाम
को स जी लेते आइएगा। नह तो रात को खाने म स जी नह िमलेगी। अचार-मुर बा से ही
काम चलाना पड़ेगा... फर मुझसे कु छ मत किहएगा।’’
गोनू झा जब अपने अहाते क तरफ मुड़ने लगे तो चोर का सरदार िनि त भाव से
चलता आ उनके पास आ गया और बोला–‘‘राम-राम पंिडत जी!’’
गोनू झा ने जैसे ही चोर क बात सुन तो उनका दमाग तेज गित से काम करने लगा।
आज ही दरबार म उ ह ने चचा सुनी थी क उ ह ने िजन चोर को पकड़वाया था, आज वे
सभी कारागार से रहा हो गए। इस अजनबी का इस तरह अचानक िमलना और चोर से
बचने क तरक ब पूछना उ ह सामा य नह लगा। मन म उमड़ रहे स देह पर काबू पाने क
कोिशश करते ए गोनू झा ने कहा–‘‘अरे भाई! पड़ोस के गाँव से आए हो तो पड़ोसी ए।
आयँ! ए क नह ? तब बताओ, या यह पड़ोसी का वहार है क दरवाजे पर खड़ा
होकर बात करे ? आयँ, बोलो! ...तरक ब भी बताएँगे और चोर का इलाज भी। ले कन पहले
तुम चलो। एक आध िगलास दूध-म ा जो भी घर म होगा, उससे तु हारा अितिथ-स कार
करने दो।’’
चोर का सरदार ब त खुश आ। उसे लगा क मनमाँगी मुराद िमल गई है। उसने गोनू
झा से कहा–‘‘जैसी आपक आ ा पंिडत जी! मेरे जैसा आदमी आपक बात टालने क
िह मत भी नह कर सकता।’’
गोनू झा मु कु राते ए बोले–‘‘अरे भाई! इतनी-सी बात भी नह समझे? सचमुच तुम बड़े
भोले हो! अरे , जब चोर का उ पात पड़ोस के गाँव म हो रहा है तो या चोर िज दगी भर
उसी गाँव म चोरी करगे? एक-दो दन म कसी दूसरे गाँव म जाएँगे क नह ? पड़ोस के
गाँव से िनकलकर वे इस गाँव म भी तो आ सकते ह! बोलो–है क नह ?
’’ थोड़ी देर क चुपी के बाद उ ह ने कहा–‘‘तु हारे घर के आस-पास कोई पेड़ तो होगा?
अपने घर क क मती व तुएँ एक थैली म रखकर पेड़ क कसी डाल म अ छी तरह बाँध
दो और पेड़ क कु छ पतली टहिनयाँ ख च-मचोड़कर उस पर इस तरह झुका दो क कसी
क नजर भी वहाँ पड़े तो थैली उसे दखाई न पड़े।’’
गोनू झा ने कहा–‘‘चलो भइया! अब तुम भी अपने गाँव का रा ता लो। रात गहरा रही
है। अँधेरे म रा ता सूझता नह है। िजतनी ज दी हो अपने घर प च
ँ ो। ऐसा न हो क तुम
यहाँ चोरी से बचने क तरक ब सीखते रहो और उधर चोर तु हारे घर पर हाथ क सफाई
दखा द।’’
और आ भी ऐसा ही। गोनू झा के मकान से सटे जो गली थी, चोर उसम मुड़ गया। यह
गली गोनू झा के मकान के िपछवाड़े तक जाती थी। गोनू झा के मकान के िपछवाड़े म आम-
लीची का बगान था। इस बगान म अम द, कर दा, नीबू आ द के पेड़ थे। गली मकान से
इतनी सटी ई थी क घर म होनेवाली बात कोई भी गली से गुजरने वाला ि सुन
सकता था। दरअसल यह गोनू झा क िनजी गली थी जो बगान म प च ँ ने के िलए बनाई
गई थी। ि थित को भाँप चुकने के बाद गोनू झा ने ऊँची आवाज म अपनी प ी से
कहा–‘‘जानती हो पंिडताइन! यह जो भला आदमी आया था वह बता रहा था क पड़ोस
के गाँव म चोर का उ पात शु हो गया है। िनकालो अपने जेवर, सारे के सारे और देखो
मेरे ब से म िजतनी भी नकदी है, उसे भी। सब लाओ, ज दी से। अभी म उ ह बगीचे म ले
जाऊँगा और सुरि त थान देखकर छु पा आऊँगा। चोर का या भरोसा! आज उस गाँव म
तो कल इस गाँव का ख करगे ही।’’
चोर कह गया नह था। गली म गोनू झा के कमरे क िखड़क के पास दुबककर कमरे म
होने वाली बात सुन रहा था। इस बात का अहसास गोनू झा को भी था। गोनू झा अपनी
जगह से उठे और चीखकर पूछा– ”पंिडताइन वह बड़का च र कहाँ है? खोज रहे ह तो
िमलबे नह करता है? अरे भगवान, सामान तो ठीक से रखा करो क ज रत पड़ने पर
तुर त िमल जाए।’’
पंिडताइन उनक बात सुनकर खीझ उठी और तड़ककर बोली–‘‘यह अचानक आपको
या हो गया? इतना काहे गरज रहे ह? कौन च र चािहए?’’
गोनू झा उसी तरह गु से म झ लाते ए ऊँची आवाज म बोले–‘‘सारी रामायण पढ़ गए
और सीता कसक जो ? अब हम तुमसे कु छ नह बताएँग।े मुझे करने दो, जो कर रहा ।ँ
बस, अब कु छ बोलना नह !’’
तीन पहर रात गुजर चुक थी क बगीचे से ब त जोर से आवाज ई–‘ध प!’ और इसके
साथ ही कोई जोर से चीखा–”बाप रे ! बचाओ।’’
घर म बढ़ती परे शानी और सूखे के असर से पैदा ए चारा के अभाव से गोनू झा परे शान
हो गए। पता नह िवपता कहाँ से हरी-हरी घास लेकर आता था! उसने कभी सूखा का
रोना नह रोया।
उधर सूखे क मार ने राम खेलौना को भी ा त कर रखा था। पहले गाँव के लोग तरस
खाकर उसे रोटी-तरकारी िखला भी देते थे ले कन सूखे क आफत ने लोग का जीना मुहाल
कर दया था। ऐसे म वे खुद अपनी रोटी के िलए दूसर का मुँह ताकने पर मजबूर थे। गरज
यह क राम खेलौना का भी जीना मुहाल हो रहा था।
एक दन शाम को गोनू झा दरबार से लौट रहे थे तो उ ह राह म राम खेलौना िमल गया।
उ ह ने सोचा क य न राम खेलौना को बथान के काम म लगा दया जाए! जब तक
िवपता व थ होकर आएगा, तब तक राम खेलौना बथान का काम सँभाल लेगा। िवपता के
आने पर देखगे क राम खेलौना को कौन सा काम द। उ ह ने राम खेलौना को रोका, पास
बुलाया, उसका कु शल- ेम पूछा और जब राम खेलौना ने अपनी बदहाली का रोना रोया
तो गोनू झा ने उसे बथान का काम सँभालने के िलए कहा। बदले म दो जून खाना के
अलावा कु छ पैसा देने क भी बात ई।
राम खेलौना जो जीवन भर लहेरा क तरह रहा था, पहली बार जीवन म ग भीर होकर
काम करने क कोिशश म जुट गया। एक तो पंिडताइन का वभाव; दूसरा गोनू झा का
वहार उसे इतना अ छा लगने लगा क उसके काम टालने, अहमक क तरह जीने और
दूसर से माँग-चाँगकर खाने क वृित म आमूल-चूल प रवतन हो गया और दो-तीन दन
म ही उसने बथान का काम सँभाल िलया। गोनू झा िनि त ए। पंिडताइन ने संतोष क
साँस ली।
बथान का काम राम खेलौना ने सँभाल िलया था। इसिलए गोनू झा चाहते थे क िवपता
पूरी तरह ठीक हो जाए तब ही काम पर लौटे।
उधर राम खेलौना का मन पूरी तरह काम म रम गया था। उसे लगता क काम ही या
है? दो घंटे सुबह और दो घंटे शाम मन लगा के काम कर िलया जाए तो पूरे दन मटरग ती
क छु ी। मटरग ती करते ए जहाँ हरी घास दख जाए–गढ़ िलया और लौट आए। दन म
भी भर पेट भोजन और रात म भी पेटभर भोजन। खाना कहाँ से आएगा, इसक कोई
िच ता नह । अब कसी से रोटी माँगने क क पना से भी शम आती राम खेलौना को।
महीने भर म ही गोनू झा और पंिडताइन के साथ रहते ए राम खेलौना के सोचने का
तरीका बदल गया था। उसका वािभमान जाग गया था।
गोनू झा ने भी देखा क राम खेलौना पूरी तरह बदल गया है। उ ह ने सोचा क िवपता
आ जाए तो उसे बथान के काम म लगा दगे और राम खेलौना को खेत-खिलहान क
िज मेदारी स प दगे। लड़का मेहनती है, ज दी सीख जाएगा खेत-खिलहान का काम भी।
िवपता अभी बीमारी से उठा है, उसे खेत-पथार का काम देना ठीक नह होगा।
गोनू झा ने उसे ब त समझाने क कोिशश क मगर वह अपनी िजद पर अड़ा रहा। गोनू
झा उसे खेती- कसानी का मह व समझाते रहे:
‘उ म खेती, म यम वान
गोनू झा उसके मनोभाव को अ छी तरह समझ रहे थे। उसम आए सकारा मक बदलाव
से वे भािवत भी थे, ले कन िवपता को काम देना ज री था। दस साल का था िवपता तब
से उनके घर टहल- टकोला म लगा था। िबलकु ल घर के सद य क तरह हो गया था
िवपता।
जब राम खेलौना क िजद बनी रही तब गोनू झा ने उससे कहा–”ठीक है, तब गाय नह ,
एक बिछया ले जाओ। जाओ, बथान म चुन लो।“
गोनू झा मु कु राते ए बथान से बाहर िनकल गए। राम खेलौना भी उनके पीछे-पीछे
आया और बोला–”पहले सामने वाले खेत म हाथ लगाते ह पंिडत जी!“
राम खेलौना को मानो सारा जहाँ िमल गया। गोनू झा वहाँ से चले गए और राम खेलौना
बथान म एक गाय क पीठ सहलाने लगा।
अथ कनौसी कथा
गोनू झा का हास-प रहास और अपने कारनाम से लोग को िश ा देने क कृ ित के वल
िमिथला नरे श के दरबार तक सीिमत नह थी। वे अपनी कारगुजा रय से अपने सगे-
स बि धय और इ -िम को भी सबक देते रहते थे। एक बार उनक चपेट म उनक प ी
भी आ गई।
आ यूँ क एक दन, शाम ढले गोनू झा एक भोज म शरीक होने के िलए घर से िनकलने
क तैयारी कर रहे थे। गुलाबी रं ग से रं गी धोती, रे शम का कु ता पहनकर ल े का गमछा
कं धे पर रख गोनू झा आइने के सामने खड़े होकर अपने को िनहारते ए अपनी मूँछं◌े
सँवार रहे थे तभी उनके कमरे म उनक प ी आ गई। गोनू झा को इस तरह सजते-सँवरते
देखकर पंिडताइन ने द लगी क –”लग रहा है क कसी को रझाने क तैयारी हो रही
है!’’
मगर गोनू झा तो गोनू झा थे। उ ह ने कमरे म वेश करते ही कहा– ‘‘लो, देख लो, दोन
कान म कनौिसयाँ सुरि त ह! अब जाओ और चैन से सो जाओ!’’
गोनू झा सोये ए थे। माँ काली ने अपना भयंकरतम प िलया। एक शरीर दो भुजाएँ
क तु एक सह शीष वाली माँ काली कट हो ग । व लोक म िवचरण कर रहे गोनू
झा माँ का यह प देखकर हँसने लगे। माँ काली ने उ ह हँसता देख िव मय से मुँह खोला।
गोनू झा ठठाकर हँस पड़े। तब माँ काली ने अपना िव मय कट करते ए पूछा–‘‘गोनू, तुम
मेरा यह प देखकर डरे नह ?’’ गोनू झा ने उ र दया–‘‘माँ! म तो आपका पु ा ।ँ
आपक गोद म ही खेलता रहता ।ँ आप चाहे िजस प म ह , मुझ बालक के िलए तो आप
हर प म माँ ह। और भला कसी बालक को माँ से कभी डर लगता है! चाहे वह जैसा भी
प बना ले–बालक माँ को पहचान ही जाता है।“
गोनू झा माँ काली के सामने िबलकु ल िनद ष बालक क तरह बोल रहे थे। उनक बाल-
सुलभ बात सुनकर माँ स तथा कहा–‘‘पु , म तु हारी बात से स ई। वर
माँगो।’’
गोनू झा बोले–‘‘माँ म या वर माँगूँ? आपका ेह िमलता रहे, यही मेरे िलए काफ है।
आपक कृ पा-–ि मुझ पर बनी रहे, इससे बड़ी उपलि ध मेरे िलए और या होगी?’’
महाराज चक पड़े। चक पड़े मैदान म खड़े हजार ितयोगी युवक। सभी क आँख मंच के
पास खड़े युवक पर टक ई थ ...और मंच के पास खड़ा वह युवक मु कु रा रहा था
आ मिव ास से भरा आ।
इसके थोड़ी ही देर बाद मंच से घोषणा ई–‘‘चार माह बाद! पाँचव महीने क पू णमा
के दन, इसी ांगण म गोनू झा नामक यह मेधावी ितयोगी ‘आकाश-महल’ का िनमाण-
काय ार भ करे गा। इस अवसर पर सभी आमंि त ह।’’
इसी तरह क चचा म चार माह बीत गए...और पाँचव माह क पू णमा भी आ गई।
राजमहल के सामने के मैदान म हजार नर-नारी उपि थत हो गए। ितयोिगता म भाग
लेने आए युवक भी यह देखने के िलए उस मैदान म फर जुटे क गोनू झा नाम का वह
युवक वहाँ आता है या नह और य द वह आता है तो ‘आकाश-महल’ का िनमाण कै से शु
कराता है। सबको देखकर आ य आ क गोनू झा पहले से ही मंच के पास एक आसन पर
िवराजमान है।
‘‘जी हाँ, महाराज, य द आप आ ा द...मेरे मजदूर, राजिम तरी सभी उिचत थान पर
ती ा कर रहे ह। आपक आ ा िमलते ही काम शु हो जाएगा।’’ उ ह ने एक ल बी
सूची महाराज के सामने तुत क और कहा–”महाराज, इस सूची म महल-िनमाण के
िलए आव यक साम ी प रमाण सिहत दज है।’’ फर उ ह ने एक बड़ा-सा कागज
महाराज के हाथ म स पा और कहा, ‘‘और महाराज, यह तािवत ‘आकाश-महल’ का
न शा है।’’
गोनू झा ने अपने हाथ म एक हरे रं ग क झंडी ले रखी थी। उ ह ने झंडी खोली। आसमान
क ओर हाथ ऊँचा कया और जोर-जोर से झंडी िहलाने लगे। महाराज और मैदान म खड़े
लोग गोनू झा को अचरज-भरी –ि से देख रहे थे। गोनू झा अपना हाथ उसी तरह उठाए
ए मैदान म इधर-उधर भाग रहे थे और जोर-जोर से झंडी िहला रहे थे। उ ह ऐसा करते
देख मैदान म खड़े लोग क हँसी छू ट गई। वे हँसने लगे क तभी आसमान से आवाज आने
लगी–‘अरे ! तैयार हो जाओ! महल-िनमाण का काम शु करो!’ यह आवाज लोग ने साफ
सुनी। वे आसमान क तरफ देखने लगे। उनक समझ म कु छ नह आ रहा था। फर उन
लोग ने सुना–आकाश से ही आवाज आ रही थ –‘ ट लाओ! मसाला तैयार करो! पानी
लाओ!’ इस बार इस तरह क आवाज आकाश म कई दशा से आती तीत हो रही थी।
आवाज का शोर बढ़ रहा था, जैसे बोलने वाल क सं या बढ़ती जा रही हो! महाराज भी
उस आवाज से च कत थे और आसमान क ओर देख रहे थे।
गोनू झा ने सहजता से जवाब दया–‘‘अरे भइया पलाल। अभी गोनू झा के पास इतने
पैसे नह ए क भस खरीदे। यह तो आज िमिथला नरे श ने मेरी एक बात पर खुश होकर
मुझे भं◌ेट म दी है। अब मुझे भी तु हारी तरह घर म दूध-दही, घी-म खन का मजा
िमलेगा।’’
गोनू झा ने सहज होकर कहा–‘‘हाँ भइया, ज री काम है तो उसे पहले िनपटा लो,
हमारा िमलना-जुलना तो होता ही रहेगा।’’
गाँव म बात फै लते देर नह लगती। जंगल क आग क तरह पूरे गाँव म गोनू झा क भस
के अ वल आने क खबर फै ली तो उतनी ही तेजी से यह बात भी फै ली क गोनू झा कहते ह
क भस पालने क ताकत तो महाराज म भी नह है।
इसी तरह सात दन बीत गए। आठव दन अमावस क रात आई। गोनू झा पेड़ पर चढ़े
ए थे क कु छ चोर पेड़ के नीचे आकर बैठ गए। गोनू झा ने ऊपर से ही अनुमान लगाया–
कम से कम चार चोर ह गे। चोर म से एक ने ढबरी जला ली और ढबरी क ह क
रोशनी म वे चोरी का माल आपस म बाँटने लगे। गोनू झा भस क खाल थामे थोड़ा सा
झुककर यह देखने क कोिशश करने लगे क चोर आपस म या बाँट रहे ह? गोनू झा के
झुकते ही चोर ने एक थैली पलटी और थैली से अश फयाँ िगरने लग – छन-छन-छनाक,
छनन-छनन! अश फय क दमक से गोनू झा िवि मत हो गए और डाल से उनका पाँव
फसल गया। पेड़ से िगरने से बचने क कोिशश म शरीर का स तुलन बनाए रखने के िलए
उ ह ने भस क खाल छोड़ दी और पेड़ क एक डाल पकड़ ली। यह सब इतनी तेजी से
घ टत आ क गोनू झा को भी समझ म नह आया क या कु छ घ टत हो गया। भस क
खाल पेड़ पर धूप म सूखकर कड़ी हो चुक थी। गोनू झा के हाथ से छू टते ही यह खाल पेड़
क डाल पर प से टकराती, अजीब आवाज पैदा करती ई चोर पर िगरी। चोर इसे ेत
लीला समझकर वहाँ से डरकर िसर पर पैर रखकर भागे।
गोनू झा ने देखा, चोर िबना पीछे मुड़े भागते जा रहे ह और अ ततः घने अ धकार म
िवलीन हो गए। काफ देर तक गोनू झा पेड़ क डाल पर बैठे अपने को संयत करते रहे। जब
उ ह भरोसा हो गया क चोर अब वापस नह आएँगे तब उ ह ने चोर का असबाब देखा
िजसके बँटवारे के िलए पेड़ के नीचे एकि त ए थे।
घर प च ँ ते-प च
ँ ते सबेरा होने लगा। पेड़ पर िचिङय का कलरव शु हो गया। घर
प च
ँ ने पर गोनू झा ने संतोष क साँस ली क उ ह रा ते म कसी ने देखा नह । गोनू झा ने
मन ही मन सोचा क यह ई रीय कृ पा ही है क उ ह इतना धन ा हो गया है।
अनायास ही अब उनके मन म यह िज ासा पनपी क उनके पास वण-मु ाएँ कतनी हं◌,ै
यह जान ल। जेवर क एक पोटली बनाकर उ ह ने स दूक म रख िलया और वण-मु ा
का प रमाण देखकर उ ह लगा क य द इ ह वे िगनने म लग जाएँगे तो दन ढल जाएगा
तब भी शायद िगनती पूरी न हो। य द इन वण-मु ा को तौल िलया जाए तो काम चल
जाएगा। यह िवचार मन म आते ही उनके सामने सम या आई क तौल तो कै से तौल? घर
म तो तराजू ही नह है। फर उ ह ने सोचा क चलो, पलाल के घर से तराजू ले आते ह।
उसके पास तराजू ज र होगा। लहना-पसारी का उसका काम है–पु तैनी। तरह-तरह के
तराजू ह उसके पास। पलाल का खयाल उनके मन म दो कारण से आया। एक तो
पलाल उनका बाल-सखा है, दूसरा यह क उसका घर उनके घर से महज एक फलाग क
दूरी पर है। मन म तराजू का खयाल आते ही गोनू झा पलाल के घर क ओर चल दए।
पलाल उस समय अपनी भस के िलए चारा तैयार करने म लगा था। गोनू झा को अपने
घर आया देखकर वह कु छ च कत सा आ और आगे बढ़कर पूछा–” य भाई गोनू, इतने
सबेरे कै से आना आ? तु हारी आँख चढ़ी ई ह! रात भर सोए नह या?“
गोनू झा ने कहा–” पलाल, तुमने ठीक कहा, रात को सोया नह । अभी तुम मुझे तराजू
और बाट दे दो। जरा ज दी म ।ँ चैन से बैठँू गा तो बात क ँ गा।“
आ भी यही। दन चढ़ते ही गोनू झा के पास बधाई देने के िलए लोग आने लगे। उनका
मकसद बधाई देना कम, यह जानना ज री था क आिखर गोनू झा के पास इतना धन
आया तो आया कहाँ से क वण-मु ाएँ िगनने क जगह उ ह तौलना पड़ा? पलाल भी
उन िज ासु म था।
ामीण को तो मानो खजाने क चाबी िमल गई। सभी खुश-खुश लौटे। गोनू झा को
ामीण क चाल देखकर समझ म आ गया क वे जो चाहते थे वह हो गया।
दूसरे दन पूरे गाँव म दूध के िलए हाहाकार मच गया। गाँव क िजतनी भस थ , मारी
जा चुक थ । खाल उतारकर इन भस को खेत म दफना दया गया था। गोनू झा तक बात
प च ँ ी तो वह बुदबुदाए–‘जैसी करनी वैसी भरनी।’ फर गुनगुनाने लगे–‘‘लालच बुरी
बला रे भैया...लालच बुरी बला।’’ गोनू झा ने देखा, ामीण का झु ड रोज रात को गाँव के
बाहर वाले बरगद के पेड़ के पास हाथ म भस क खाल लेकर जाता और सुबह तक
इं तजार करने के बाद लौट आता। इनम पलाल भी था। गोनू झा उ ह देखकर मन ही मन
खूब हँसते और म ती म आकर गुनगुनाने लगते–‘लालच बुरी बला रे भइया, लालच बुरी
बला।’
गोनू झा मानिसक तौर पर इस ि थित के िलए तैयार थे। वे महाराज के दरबार म हािजर
ए।
महाराज ने ामीण ारा उनके ऊपर लगाए गए अिभयोग के बारे म उनसे जवाब-तलब
कया तो गोनू झा ने मु कु राते ए अपनी सहज भंिगमा म कहा–‘महाराज! इनसे आप यह
पूछ क या मने इ ह भस को मारने 8 क सलाह दी? ये मुझसे यह पूछने आए थे क मेरे
पास अकू त धन कहाँ से आया? चूँ क इनका कपोल कि पत था इसिलए मने इ ह भस
क खाल क कथा सुना दी यानी कपोल कि पत का कपोल कि पत उ र दे दया। और
महाराज, इ ह कथा सुनाने के बाद मने यह नीित वा य कई बार दुहराया क ‘लालच बुरी
बला है भाई–लालच बुरी बला।’ मगर इ ह भूत ेत पर िव ास है, िपशाच और वेताल
के अि त व को ये वीकारते और पूजते हं◌ै इसिलए इन अ धिव ास वाले मि त क म
लालच नह करने क सलाह का भी कोई अथ नह पनपा। अब आप ही कह महाराज क
या म इनक करनी का दोषी ?ँ य द आपको म दोषी लगूँ तो आप जो चाहे सजा दे ल
मुझको।“
गोनू झा थोड़ी देर तक अपने आसन पर मौन बैठे रहे मगर जब महाराज ने उ ह आशा-
भरी नजर से देखा तो वे अपने आसन से उठे और बोले‘‘महाराज! म िबना संदकू ची खोले
यह बता सकता ,ँ इसम आपके िलए या उपहार लाया गया है। ले कन मेरी एक शत
ापारी महोदय को माननी होगी। शत यह है क आज रात वे संदक ू ची के साथ मेरे
आवास पर मेरा आित य वीकार। य द मने कल सुबह उनको सही उ र दे दया तो वे
अपने देश जाकर िमिथलावािसय क ाशीलता क चचा करगे, उ ह मेरी गुलामी नह
करनी होगी। म िव ास दलाता ँ क ‘स दूकची’ के साथ कोई छेड़-छाड़ नह होगी। आप
चाह तो चार हरी तैनात करवा द और उनक िनगरानी म संदक ू ची रखवा द।
गोनू झा अपने आसन से उठकर सभी दरबा रय को बारी-बारी से देखने लगे। दरबा रय
को लगा क गोनू झा फँ स चुके ह और उनको कोई उ र नह सूझ रहा है। दरबार म
फु सफु साहट शु क गोनू झा ने ऊँचे वर म कहा–”महाराज, ापारी महोदय आपके
िलए आितशबाजी का सामान उपहार व प लेकर आए ह। अनार, फु लझिडय और
आसमान म जाकर फटने वाली आितशबािजय से इनक संदक ू ची भरी ई है।“
गोनू झा अपने छोटे भाई, भोनू झा को समझा रहे थे। शाम का समय था। हवा मंथर गित
से बह रही थी। गम का मौसम होने के कारण उमस थी। गोनू झा अभी-अभी दरबार से
लौटे थे। पसीने से तरबतर थे। दरबार से लौटते समय उ ह ने सोचा था क घर प च ँ ते ही
वे भोनू झा को बोलगे क कु एँ से चार डोल पानी ख च दो क जी भर नहा लू।ँ दरबार म
आज इतने पेचीदे मसल पर चचा ई थी क दन भर वे उसम ही उलझे रह गए थे। गम
और उमस के कारण बेचैनी थी। दन भर तनावपूण काय को िनपटाने म लगे रहने के
कारण उनका िसर फटा जा रहा था। घर म कु छ दन से और कोई नह था, िसफ गोनू झा
और भोनू झा ही थे।
गोनू झा सहज- ातृ व के ेह से भरे ए थे और ायः यूँ ही कसी काम के िलए भोनू झा
को कह दया करते थे और भोनू झा भी गोनू झा के ेह का आदर करते ए बेिहचक उनका
काम कर दया करता था। ले कन उस शाम भोनू झा ोध से भरा था...जैसे ही उसने गोनू
झा क बात सुनी वैसे ही उ ेिजत होकर गोनू झा को जवाब दया–‘‘थक गए ह तो म या
क ँ ? भगवान ने हाथ-पैर दया है...ह े-क े हो, चार डोल पानी नह ख च सकते? और
नह ख च सकते तो रख लो कोई टलहवा... पैसे क तो कमी नह है। महाराज के दरबार म
इनाम क बरसात ही होती रहती है आप पर! टहल- टकोला करने के िलए आदमी तो रख
ही सकते ह आप!...’’
उनका इतना कहना था क भोनू झा फर तड़क गया और बोला–‘‘म खाऊँ न खाऊँ, सोऊँ
या कु छ और क ँ , आपको इससे कोई मतलब नह होना चािहए। महाराज के दरबार म ही
आपक ये बात असर दखाएँगी। मुझ पर नह ! म अब आपक िचकनी-चुपड़ी बात म नह
आनेवाला।’’
गोनू झा ने उसक बात अनसुनी कर देने म ही भलाई समझी। वे अपने कमरे म चले गए।
भोनू क बात से गोनू झा आहत थे। उ ह ने न तो ान कया और न ही कु छ खाया। देर
रात तक गुमसुम से अपने िब तर पर पड़े रहे। रह-रहकर उनके कलेजे से क-सी उठती
रही। वे अपने छोटे भाई भोनू को ब त यार करते थे। वे चाहते थे क भोनू झा पढ़-
िलखकर कु छ अ छा करे , मगर भोनू झा को गाँव म अपनी चैकड़ी के साथ मटरग ती करने
म ही आन द आता था...। गोनू झा िब तर पर पड़े-पड़े सोचते रहे क इन दन भोनू म जो
बदलाव आया है वह घर के िलए और खुद भोनू झा के िलए ठीक नह है। उनके मन म
सवाल उठ रहा था क आिखर भोनू झा उनसे मुँह लगने क और उनको चेतावनी देने क
िहमाकत कै से कर बैठा?...जब उनके दमाग म यह बात क धी क भोनू झा नशे म था तब
वे और भी बेचैन हो गए...उ ह इस बात पर भी आ य हो रहा था क आिखर भोनू झा नशे
म उनके सामने आने क िह मत कै से कर बैठा?...इसके बाद गोनू झा ने फर सोचा–भले ही
भोनू झा पढ़ने-िलखने म मन नह लगा पाया और इधर-उधर मटरग ती करने म लगा
रहा...मगर वह दल का बुरा नह है। गाँव म ऐसे भी कौन पढ़ने-िलखने म लगा रहना
चाहता है? िजसके पास खेत-पथार, गाय-बैल है वह उसके बूते ही जी लेने का िवचार
रखता है।...इसी तरह के गुन-धुन म गोनू झा देर तक लगे रहे। अचानक उनके दमाग म
एक बात क धी क ज र कसी ने भोनू झा को उनके िव भड़काया है। मन म यह
िवचार उठते ही गोनू झा िब तर पर ही पालथी मारके बैठ गए। वे अब सामा य दख रहे
थे। भोनू झा के िव उनके मन का आ ोश समा हो गया। वे चैत य होकर सोचने लगे
क य द भोनू झा को कसी ने भड़काया है तो वह आदमी कौन हो सकता है? दमाग म यह
सवाल पैदा होते ही गोनू झा याद करने लगे क भोनू झा इन दन कन लोग के साथ
घूमता- फरता है और कसक संगित म यादा रहता है। उनके दमाग म भोनू झा के िम
क छिव क धने लगी। मुनेसर, गोनौरा, परमेसर, पलाल–वे बारी-बारी से भोनू झा के
िम को याद करने लगे।
उसने जवाब दया‘‘आपके भाई भोनू झा ने पंचायत बुलाई है। आप तैयार होकर पंचायत
के िलए पलाल जी के दरवाजे पर प चँ जाइए।’’
गोनू झा को जैसे झटका लगा–कहाँ वे सोच रहे थे क अपने भाई भोनू झा को समझा लगे
और कहाँ वह पंचायत बुला रहा है! वे समझ नह पा रहे थे क आिखर िववाद या है?
भोनू पंचायत य कराना चाहता है? दोन भाइय के बीच कोई ं तो है ही नह ! फर
उ ह ने सोचा–पंचायत क सूचना िमल गई है तो उ ह जाना पड़ेगा ही। भ गे मन से गोनू
झा ने ान- यान कया और पलाल के घर प च ँ ।े
...मगर भोनू के दमाग पर मानो शैतान का वास हो गया था। वह िबगडै़ल साँढ़ क तरह
फुँ फकारते ए बोला–‘‘आपको जो भी कहना है– पंच के सामने किहएगा। मुझसे ल लो-
च पो करने क ज रत नह ! म आपको अ छी तरह समझ चुका ।ँ आप मुझे ‘टलहवा’
बनाकर ही रखगे– ये लाओ...वो लाओ...ये कर दो...वो कर दो...ऐसा न करना और वैसा न
करना–अब यह सब बंद! म आपसे मुि चाहता ।ँ म आपके साथ नह र ग ँ ा ह गज नह !
आज घर का बँटवारा होकर रहेगा...ब त करा ली चाकरी आपने–भाई बनकर!’’
पंच बने पलाल ने गोनू झा क ओर देखते ए कहा–‘‘ य गोनू जी! आपका या कहना
है?’’
गोनू झा ने फर संि उ र दया–”भोनू जहाँ रहना चाहे, रहे और मेरे िलए िजधर
जगह दे दे, म उधर रह लूँगा।’’
गोनू झा ने िबना कसी आपि के िसर झुकाकर पंच का फै सला सुना और अपनी सहमित
जताकर वह से दरबार चले गए।
भंस अपनी जगह से इधर-उधर ई और भोनू झा के हाथ से बतन िगर गया। दूध जमीन
पर िगर गया। शाम को भी गोनू झा ने क बल पानी म धो खंगालकर भोनू झा के िलए
छोड़ दया। अब वे ऐसा रोज करने लगे।
गोनू झा उसे कु एँ क ओर जाते ए देखते रहे। उनका मन हलका हो चुका था। आँख म
खुशी क चमक थी। अनायास ही उनक आँख भर आ ।
गोनू झा को ‘मृ यु दंड’
गोलू झा के वा चातुय और बुि -कौशल पर मु ध थे िमिथला नरे श! कोई भी उलझन
आए, गोनू झा उसे चुट कय म सुलझा लेते। रा य क मयादा, रा य के मान-स मान,
दरबार क ग रमा, स ा के आदश, पड़ोसी रा य से कू टनीितक स ब ध, सीमा त े क
गितिविधय पर नजर, कलाकार को ो साहन यानी ऐसा वह सबकु छ, जो रा य-धम के
िनवाह के िलए ज री हो, गोनू झा का यान उन सभी बात पर लगा रहता था। उनक
इस ब आयामी ितभा के कायल थे िमिथला नरे श और उनक इसी ब आयामी ितभा से
जलते थे िमिथला-दरबार के दरबारी।
अपनी कायकु शलता और बुि -लाघव के कारण िमिथला नरे श के दरबार म गोनू झा न
के वल नरे श ारा शंिसत होते रहते थे बि क ायः कसी न कसी कारण से उ ह पुर कृ त
भी कया जाता था। इस तरह िमलने वाले पुर कार से गोनू झा के स मान म तो वृि
होती ही थी, उनक आ थक ि थित म भी लगातार सुधार हो रहा था। दरबा रय के उनसे
जलने का कारण यही था। दरबारी सोचते कहाँ दो जून रोटी के िलए तरसनेवाला गरीब
ा ण ‘गोनू झा’ और कहाँ िमिथला नरे श के दरबार म ब शंिसत दरबारी गोनू झा! ऐसे
अनेक अवसर उस दरबार म आ चुके थे जब सभी दरबा रय ने िमलकर गोनू झा को नीचा
दखाने क कोिशश क थी। मगर, गोनू झा अपनी बुि के बल से उन सब पर भारी पड़े थे।
इसिलए गोनू झा से ई या रखनेवाले दरबारी उनसे सीधी ट र लेने क बजाय उ ह कसी
सािजश के तहत महाराज क नजर से िगराने के अवसर क ताक म लगे रहते थे।
िमिथला नरे श ने अंग देश के राजा क आगवानी के िलए िविश दरबा रय क सूची
तैयार करवाई ले कन इस सूची म गोनू झा को थान नह िमला। सभी दरबारी खुश ए।
उ ह लगा क गोनू झा क औकात ही या है? है तो भांड ही न! चाटु का रता करके
महाराज का मुँहलगा बन गया है और अपने को महािव ान समझता है। महाराज गुण को
समझते ह, तब ही तो इस िवशेष अवसर पर गोनू झा को अपने से दूर रखा है। आिखर
रा य के बीच कू टनीितक स ब ध का सवाल है। इसम भांड का या काम!
वहाँ खड़े सभी दरबारी खुश हो गए। उनम से एक ने कहा–‘‘मतलब क लोहा गरम है।
बस, चोट करने क ज रत है! यह अवसर हाथ से जाना नह चािहए। महाराज ने गोनू को
अंग-राज के आगमन से लेकर थान तक क तैया रय का िज मा स पा है तथा सांकेितक
श द म यह चेतावनी भी दे दी है क तैया रयाँ टहीन होनी चािहए। हम लोग िमलकर
कु छ ऐसा कर क ‘अंग-राज’ के आगमन के दन ही वागत क तैया रय म कोई ऐसा खोट
कट हो जाए िजससे महाराज को ब त बुरा लगे और य द ऐसा हो जाता है तब गोनू झा,
महाराज का कोपभाजन बनने से बचे नह रह सकगे। जब उस खोट के िलए दरबार म कोई
बात उठे गी तब हम लोग एक साथ िमलकर उसे अ य अपराध क सं ा दगे और उसके
िलए गोनू झा को कठोर से कठोर दंड दए जाने क माँग करगे। बोलो भाइयो, आप सबक
या राय है? इस तरह साँप भी मरे गा और लाठी भी नह टू टेगी।’’
सबने हामी भर दी। उनक मं ाणा अभी समा नह ई थी। मूल खड़ा था–आिखर
ऐसा या कया जाए िजससे अंग-राज के आगमन के दन ही कु छ ऐसा हो जाए िजससे
महाराज कु िपत हो जाएँ और गोनू झा दंिडत कए जा सके ।
दरबा रय म एक ‘काना नाई’ भी था जो बरस से गोनू झा से खार खाए बैठा था। उसने
सुझाव दया–‘‘बात ब त आसान है। य द हम सभी साथ ह तो गोनू झा इस बार मुँह क
खाएँग।े यह बात स य है क ‘अके ला चना भाड़ नह फोड़ता’ और गोनू झा इस बार
िनता त अके ले पड़ गए ह और उनके िज मे ऐसा काम है िजसम थोड़ा-सा भी खोट सीधे
झलक जानेवाला है–छु पनेवाला नह ! मेरी सलाह है क सीमा त े ा से राजमहल के
बीच ‘खजूर व ी’ के पास सड़क संकरी और बदहाल है। य द हम लोग वहाँ मजदूर को
कु छ पैस का लोभ देकर उस सड़क म ग े करवाकर उसको क चड़ से भरवा द और उस
क चड़ पर फू ल क मोटी परत िबछवा द तो बात आसान हो जाएगी। उधर से महाराज
अंग नरे श के साथ रथ पर ही गुजरगे। हो सकता है क रथ म जुते घोड़ के टाप से क चड़
उछले और महाराज और उनके अितिथ को ‘क च- ात’ कर दे और यह भी हो सकता है
क रथ क चड़ म फँ स जाए! होने को तो यह भी हो सकता है क अचानक ग े म पाँव पड़ने
से घोड़ा ही िगर जाए!“
सभी इस सलाह से उछल पड़े और काना नाई क सलाह को सव वीकृ ित िमल गई।
िमिथला के सीमा त े ा म िमिथला नरे श अपने दरबा रय के साथ खड़े थे। अंग नरे श
के आगमन क ती ा थी। तभी घोड़ के टाप क आवाज ने उनका यान आक षत कया।
थोड़ी ही देर म अंग नरे श अपने सुर ाक मय के बीच घोड़े पर सवार आते दखे। जब वे
लोग सीमांत े ा पर प च ँ े तो िमिथला नरे श के दरबा रय ने जयघोष कर अंग नरे श का
वागत कया। अंग नरे श घोड़े से उतरे और िमिथला नरे श ने उ ह गले से लगा िलया। फू ल
से सजे रथ पर अंग नरे श के साथ िमिथला नरे श बैठे। गाजे-बाजे बजने लगे।
िमिथलांचलवािसय क जयघोष से दशाएँ गूँज उठ । अंग नरे श ने इतने भ वागत क
क पना नह क थी। वे फु ि लत मन से िमिथला नरे श से िमिथला के जन-जीवन क बात
करने लगे। रथ चला। धीमी गित से। दोन नरे श रथ पर खड़े होकर जाजन का
अिभवादन वीकारने लगे।
एक भ आयोजन के बाद अंग नरे श क िवदाई क घड़ी आई। महाराज वयं उनके साथ
सीमा त तक गए। भावभीनी िवदाई के बाद एक दन शाि तपूवक बीता। दूसरे दन
दरबार म महामं ी ने ताव रखा क अंग नरे श के आगमन से लेकर थान तक के
काय म क समी ा होनी चािहए। दरबारी मानो इस पल क ती ा ही कर रहे थे।
सबने एक वर म वीकृ ित दे दी। महाराज ग भीर मु ा म दरबा रय को देख रहे थे।
गोनू झा शा त थे।
िमिथला नरे श मु कु राए और सहज भाव से पूछा–‘‘पंिडत जी! मने आपसे आपक
अि तम इ छा पूछी है।’’
दरबारी एक-दूसरे का मुँह ताकने लगे। तभी उनके कान म महाराज क गुर-ग भीर
वाणी गूँजी–”आप सभी दरबारी यान दगे! आपस म पधा होनी चािहए ले कन, वह
रचना मक होनी चािहए। कसी को नुकसान प च ँ ाने के उ े य से कया जानेवाला कम
कभी भी िहतकर नह होता। मुझे िव ास है क आप लोग मेरी बात समझ गए ह गे’’।
महाराज थोड़ी देर चुप रहे फर कहा–”मेरा वादा है पंिडत जी, य द ऐसा आ तो दस
हजार अिवल ब आपके प रजन तक भेजने क व था हो जाएगी।’’
महाराज के िलए यह तोता अ भुत था। बड़े जतन से िसखाया-पढ़ाया गया यह तोता
दरबार के िलए शोभा बन गया। महाराज ने उसके िलए अपने संहासन के पास ही एक
मेज लगवा ली। जब महाराज दरबार म आते तो उनके साथ यह तोता भी पंजड़े म लाया
जाता। जब महाराज महल म जाते तो उनके साथ तोते का पंजरा भी ले जाया जाता।
समय गुजरता गया और महाराज का इस तोते के साथ लगाव भी बढ़ता गया। दूसरे
रा य से य द कोई िवशेष अितिथ महाराज से िमलने आता तो महाराज अपने तोते क
कौतुक पैदा करनेवाली पंि य से उसे चम कृ त करने म गौरव महसूस करते।
पूरी कहानी सुनने के बाद गोनू झा ग भीर मु ा म अपने आसन पर जाकर बैठ गए। गोनू
झा को चुप देखकर कु छ दरबारी उनके पास आए तथा उनसे पूछने लगे क अब या होगा?
महाराज जब पूछगे क तोता कै से मरा?... इतने दरबारी एक तोता का यान नह रख
पाए...तब हम लोग या जवाब दगे?
एक के बाद एक दरबारी भेजे गए मगर उनम से कोई वापस नह आया। राजा तोते के
िलए बेचैन थे। अ ततः उ ह ने गोनू झा से कहा– ‘‘ या बात है? या तोता मर गया?’’
”चिलए पंिडत जी! हम वयं देखते ह,“ िमिथला नरे श ने गोनू झा से कहा।
पंजडे म तोता लुढ़का आ पड़ा था। उसे देखते ही महाराज िवि मत भाव म बोल
पड़े–‘‘अरे , यह तो सचमुच ही मर गया है!’’
महाराज के दरबार म एक हजाम भी था जो गोनू झा से जलता था। उसने धीरे -धीरे गोनू
झा से ई या रखनेवाले दरबा रय से दो ती गाँठ ली और उनका चहेता बन गया। यह
हजाम ब त चालाक और धूत क म का इनसान था। एक दन महाराज ने गोनू झा क
सराहना खुले दरबार म क । दरबारी जल-भुनकर रह गए। हजाम ऐसे ही दन क ती ा
म था। उसने दरबा रय से कहा क य द आप लोग साथ द तो म ऐसी जुगत िभड़ाऊँगा क
इस गोनू झा क सदा के िलए छु ी हो जाएगी। दरबा रय ने हजाम से वादा कर िलया क
वह जैसा कहेगा वे वैसा ही करगे। हजाम खुश होकर उनसे िवदा लेकर अपने घर लौट
गया।
गोनू झा से खार खाए दरबा रय ने हजाम को हर तरह का सहयोग देने का वचन दया
था इसिलए उन लोग ने समवेत वर म कहा–”स भव है! स भव है!’’
महाराज मान गए। तीन माह के बाद गोनू झा पूव मशान के टीले पर प च ँ ।े उन पर
पुआल लादा गया और आग लगा दी गई। आग तीन दन तक सुलगती रही। लोग ने मान
िलया क गोनू झा का वगारोहण हो गया है। दरबारी खुश थे क तु महाराज दुखी।
इस घटना के ठीक तीन माह बाद महाराज के दरबार म गोनू झा ने मु कु राते ए वेश
कया। सभी आ यच कत रह गए। महाराज चैाककर संहासन से उठ खड़े ए क कह वे
प तो नह देख रहे!
तब हजाम ने गोनू झा के पाँव पकड़ िलए और उनके सामने िगड़िगड़ाने लगा। तब गोनू
झा ने महाराज से अनुनय कर उसे ाणदंड से मुि दलाई मगर महाराज ने हजाम को
कारागार म डलवा दया।
धन क सुर ा का कारण
गोनू झा िमिथला-दरबार के िवदूषक बनाए जाने से पहले िवप थे। उ ह कोई पूछता नह
था। जब वे िमिथला नरे श के िति त दरबारी बन गए तो गाँव म ‘गोर लागै छी’ (पाँव
छू ता )ँ कहने वाल क कमी न रही। िववाह के बाद तो नाते- र त क भी बाढ़ आ गई।
कोई उनके ममहर से आता तो कोई बुआ के घर से। घर म आने-जाने वाल क सं या म
लगातार वृि हो रही थी।
एक रात गोनू झा अपने िब तर पर पड़े-पड़े अतीत क बात याद कर रहे थे। िपता के
मरने के बाद कतने बुरे दन देखे थे उ ह ने! उ ह याद आया क िमिथला म एक बार
अकाल पड़ा था और वे अपने अनुज भोनू को लेकर बाजार म मजदूरी करने के इरादे से गए
थे। कह कोई काम नह िमला था और भोनू भूख से िबलिबला रहा था। अ त म उ ह ने
भोनू को एक हलुवाई क दुकान म भेजकर उसे भर पेट भोजन करवाया था और पैसे क
माँग पर दुकानदार को झूठ बोलकर आफत म डाल दया था क भोनू खाने से पहले ही
पैसा दे चुका है। इस घटना को याद करते ए उनका मन भर आया और आँख िगली हो
ग । उफ! कै स-कै से दन कटा? फर भगवान क माया। दन पलटे। भा य बदला। जो लोग
देखकर मुँह फे र लेते थे, आज उ ह देखकर आ ला दत हो उठते ह। जीवन के इस प रवतन
पर गोनू झा वयं िव मय कर रहे थे। कतना कु छ बदल गया है! पहले एक कटोरी दूध के
िलए तरसते थे। आज बथान म दिसय गाय ह। सोने के िलए कभी िचथड़ी सी चटाई थी,
आज मेहमान के िलए भी पलंग है।
गोनू झा क माँ बोल –‘‘बावरे ! ये भी कोई बताने क बात है? तू मेरी कोख का जाया है।
मने तुझे पय पान कराया है। गोद म खेलकर तू बड़ा आ है। भला मुझे तु हारी िच ता न
होगी तो और कसक होगी?’’
गोनू झा उसी तरह आँख ब द कए थोड़ी देर तक चुपचाप लेटे रहे। फर माँ से
पूछा–‘‘माँ, बुरा न मानो तो एक और बात पूछूँ?’’
‘‘हाँ बेटा, बोल! या बात है। म तेरी कसी भी बात का बुरा नह मानूँगी।’’ माँ ने उ र
दया।
गोनू झा ने िबना आँख खोले भोनू झा से पूछा–‘‘भोनू! मेरे भाई! एक बात बता–य द
तु हारा भैया इतना स प नह होता, तब भी या तू मुझे इतना ही स मान देता?’’
भोनू को लगा क भैया को बँटवारे वाली बात शायद आज भी मन म बैठी ई है। एक
बार वह पलाल के बहकावे म आकर घर का बँटवारा करा िलया था ले कन यह तो भैया
ही थे क समझदारी से पलाल क चाल को मात दे दी थी और घर टू टने से बचा िलया
था। भोनू झा का मन लािन से भर उठा। उसने गोनू झा से कहा–‘‘भैया। पुरानी बात को
भूल जाओ। म आपका भोनू ।ँ वही भोनू िजसे आप अपने क धे पर बैठाकर घुमाते थे। वही
भोनू िजसक छोटी से छोटी इ छा पूरी करने के िलए आप अपनी भी परवाह नह करते
थे। धन-दौलत मेरे िलए ब त माने नह रखते। मेरे िलए तो बस आपका आशीवाद काफ
है।’’
गोनू झा ने कहा–‘‘ठीक है भोनू। जाओ, जो कर रहे थे, करो। मेरा मन घबरा रहा है। मुझे
आराम करने दो। घर म सबसे कह दो–मुझे जगाए नह , य द म सो जाऊँ तो।’’
गोनू क प ी का िवलाप सुनकर आसपास के लोग जुट आए। गाँव म यह खबर जंगल क
आग क तरह फै ल गई क गोनू झा नह रहे।
गोनू झा अपने साथ झोले म पया मेवे और फल लेकर आए थे। इसिलए उ ह भोजन क
परवाह नह थी।
दूसरे दन ामीण आए। कोई फल लेकर तो कोई िमठाई लेकर। सबने साथ लाई चीज
‘साधु महाराज’ के क बल पर ापूवक रख द –धूनी के पास और म था टेककर बैठ गए।
गोनू झा ने लेट पर िलखा–‘आप सब लौट जाएँ। आज के वल एक ि ,’ और उ ह ने
अपने िपता को इशारा से बुलाया और बैठ जाने का संकेत कया। ामीण लौट गए। भला
महाराज जी के आदेश क अवहेलना कै से होती?
और गोनू झा ने लेट पर उनके अतीत के बारे म ऐसी-ऐसी बात िलख जो गाँव के लोग
कतई नह जानते थे। इसी तरह उनके रोग, उनक कामनाएँ, पु ा और प ी से स ब ध के
बारे म भी लेट पर सटीक एवं िबलकु ल खड़ी बात गोनू झा ने िलख द । गोनू झा उनके बेटे
ही तो थे। उनक सारी स ाइय से अवगत। गोनू झा के िपता ने अब तक ऐसा गुनी
महा मा नह देखा था...वे अिभभूत हो गए और महा मा जी के चरण पकड़ िलए।
गोनू झा के िपता लौट आए। गाँव के लोग ने उ ह अपने घर जाते देखा तो पूछने चले
आए–”महा मा जी ने या कहा? वे बोले या वैसे ही लेट पर िलखकर ही कु छ बताया?’’
गोनू झा के िपता ने महा मा जी क खूब सराहना क । ामीण का ताँता इसके बाद गोनू
झा के धूनी थल पर रोज लगने लगा। रोज कसी न कसी को गोनू झा रोक लेते और
उसके अतीत क सीधी-स ी बात लेट पर िलखकर कु छ ज री सलाह भी उसके साथ
िलख देते। अब तो गाँव म ‘महा मा जी’ क धूम मच गई। इस तरह
ामीण आए। माथा टेका और वापस लौट गए। इसके बाद वाले दन गाँव के लोग सुबह
से ही वहाँ प च
ँ ने लगे। सबसे पहले आने वाले म गोनू झा के िपता थे। गोनू झा ने मौन त
खोला, सबको उपदेश दया और कहा क अब वे थान करगे। ामीण इस बात का आ ह
कर रहे थे क वे एक बार गाँव अव य चल। गोनू झा के िपता ने उ ह याद दलाया,
‘‘महा मा जी! आपने मुझे आ त कया था क एक दन मेरे घर अव य आएँग।े ’’
गोनू झा मु कु राते ए अपने िपता क बात सुनते रहे। जब उनके िपता चुप ए तब गोनू
झा ने अपनी जेब से ढेर सारे पए िनकालकर अपने िपता को दए। उनके िपता इतने सारे
पए देखकर च कत हो गए। फर गोनू झा ने जेब से अँगूठी िनकाली और अपने िपता को दे
दी। अँगूठी देखते ही उनके िपता चक पड़े य क यही अँगूठी उ ह ने महा मा जी को
ापूवक भट क थी।
बात गोनू झा तक प च
ँ ी। गोनू झा कु छ गाँव वाल के साथ वहाँ प च
ँ े जहाँ तहसीलदार
ठहरा आ था।
गोनू झा ामीण के साथ वापस आकर अपने रोजमर के काम म लग गए। उनके चेहरे
पर रह यमयी मु कान उभर आ थी।
थोड़ी ही देर म पूरे गाँव म तहसीलदार क चम कारी दाढ़ी क चचा होने लगी। पूरा
गाँव तहसीलदार के आवास पर उमड़ पड़ा। पहले तो तहसीलदार ने कु छ लोग को अपनी
दाढ़ी से बाल ख च ख चकर दया मगर माँगने वाल का सैलाब उमड़ता ही जा रहा था।
सेठ मु कु राया, बोला–‘‘मेरे पास देने के िलए तीन अनमोल उपदेश ह जो म हर एक कोस
पर तु ह एक-एक कर दूग ँ ा!’’
गोनू झा ने मजदूर क तरह ही हाव-भाव बनाते ए कहा–‘‘सो तो ठीक है, मगर उपदेश
हर आधा कोस पर दीिजए!’’
जब गोनू झा दूसरे आधे कोस म वेश कर गए तब दूसरा उपदेश सुनने क बेचैनी होने
लगी। उ ह ने सेठ से दूसरा उपदेश देने को कहा।
तीसरे अधकोसी म वेश के बाद गोनू झा ने सेठ से कई बार कहा क उपदेश सुनाए मगर
सेठ टालता गया। जब ग त क दूरी महज दो फलाग बची तो गोनू झा क गए और
बोले–‘‘अब तीसरा और अि तम उपदेश दे दीिजए सेठ जी वरना अब एक कदम आगे नह
बढ़ाऊँगा! य द आप यह सोच रहे ह क उपेदश सुनने के बाद म यह ब सा आपके थान
तक नह प चाऊँगा तो यह बात मन से िनकाल दीिजए। म ा ण ँ और झूठा वादा नह
करता ।ँ ’’
िववश होकर सेठ ने तीसरा उपदेश सुनाया–‘‘उस आदमी पर भरोसा न करना जो कहे
क संसार म तुमसे भी बड़ा कोई मूख होगा!’’
सेठ वह िसर पकड़कर बैठ गया य क ब से म काँच से बनी चीज रखी थ और गोनू
झा अपने ह ठ पर िवजयी मु कान िलए वहाँ से लौट आए।
माघ अमाव या पर ढेले का टोटका
गोनू झा के गाँव म एक बार चोर का एक िगरोह स य हो गया। गोनू झा के घर से भी
कु छ सामान क चोरी हो गई। गोनू झा ने उस दन ही संक प ले िलया क जब तक वे
चोर को सबक न िसखा द तब तक चैन क साँस नह लगे।
गोनू झा चीखते–‘‘दे।’’
बगीचे म छु पा चोर अब समझ गया था क गोनू झा ढेला उसी को िनशाना साधकर मार
रहे थे। वह वहाँ से भागने क कोिशश करने के िलए उठा ले कन मशाल और लाठी से लैस
गोनू के पड़ोिसय के आगे उसक एक न चली। अ ततः लोग ने उसे दबोच िलया। गोनू झा
उसके पास आए और उसका चेहरा देखते ए कहने लगे, अरे ! भाई। ढेल से चोट ज र
लगी होगी। अब जाओ हवालात म। ये लोग तु हारी मरहम प ी का इ तजाम कर दगे।’’
चोर को हवालात भेजने के बाद गोनू झा ने अपनी प ी का हाथ पकड़ा और बोले, ‘‘ढेला
ढोने से हाथ दुख रहा होगा चल दबा दू।ँ ’’
लंगड़ू उ ताद के िगरोह के कु छ लोग कारावास से सजा काटकर बाहर आए। कारावास से
छू टने से पहले उ ह ने लंगडू उ ताद के सामने शपथ ली क जब तक गोनू झा से बदला नह
ले लगे तब तक चैन से नह बैठगे।
कोतवाल अपने आवास के बाहरी कमरे म बैठा था। उसके हाथ म म दरा थी। सामने
थाल म भूनी ई मछिलयाँ रखी थ । एक मांसल शरीर क बाला ठु मका लगा-लगाकर कु छ
गा रही थी।
नतक भी मु ाएँ अपने बटु ए म डालते ए–ठु मकती ई कमरे से िनकल गयी।
गोनू झा कु छ सोच पाते, तभी दूर से आते घुड़सवार पर उनक नजर पड़ गई। शाम ढल
चुकने के कारण नीम-अँधेरे म घुड़सवार क आकृ ित तो समझ म आ रही थी क तु वे उसे
पहचान नह पा रहे थे। उ सुकता बनी ई थी क घुड़सवार कौन है–इसिलए वे उधर ही
देखते रहे। थोड़ी ही देर म घुड़सवार उनके पास ही आकर क गया। वह कोई और नह
नगर कोतवाल था। गोनू झा का अिभवादन करने के बाद कोतवाल ने लंगडू उ ताद के
िगरोह के कु छ चोर के कारावास से मु होने क खबर दी।
थोड़ी देर के बाद एक ि उनके पास आया और पूछने लगा, ‘‘ या खोज रहे ह पंिडत
जी?’’
वह ि गोनू झा के जाने के बाद उनके बगान म घुस गया जहाँ उसके चार साथी
इ तजार कर रहे थे। गोनू झा के हाथ म चमचमाते िस े उसने देखे थे और उसे िव ास हो
गया था क गोनू झा के घर म अभी सौ सोने के िस े ह। चार थोड़ी देर तक गुपचुप
मं ाणा करते रहे। फर उ ह ने देखा क गोनू झा कह जा रहे ह–शायद बाजार। घंटे भर
बाद गोनू झा लौटे।
‘‘तुम भी ब जैसी बात कर रही हो? कु आँ अपने दरवाजे पर है। कोई बाहर का आदमी
इससे पानी लेने आता नह है। जब ज रत होगी तो कु एँ का पानी बाहर िनकाल लगे।
कतना समय लगेगा? दो घड़ी, न चार घड़ी। एक पहर, न दोपहर...और या? कतने जन
लगगे? दो जन नह , तो चार जन। चलो, बा टी अभी ही िनकालकर र सी समेत कु एँ पर
रख देता ।ँ जब तेरी इ छा हो–म र ँ न र –ँ तुम भी चाहो तो जन-मजदूर लगाकर कु एँ
का पानी िनकलवा लेना...लाओ, अब वण-मु ा क थैली मुझे दे दो।’’
थोड़ी देर बाद एक आवाज उभरी–छपाक! जैसे कोई भारी व तु पानी म फक गई हो!
चोर ने आवाज सुनी। अब वे गोनू झा और उनक प ी के सोने का इ तजार करने लगे।
रात गहरा रही थी। चार ओर स ाटा पसरा आ था। कभी-कभी िसयार क आवाज
इस स ाटे को तोड़ती थी। जब चोर को िव ास हो गया क गोनू झा सप ीक सो चुके ह–
वे पाँव दबाए कु एँ तक आए। यह देखकर उनक बाछ िखल ग क सचमुच कु एँ पर चार
बाि टयाँ र सी सिहत रखी ई ह। वे पानी ख चने म लग गए। कोई कु छ बोल नह रहा
था। कु एँ म बा टी भी इतनी धीमी गित से डाली जाती क कोई आवाज नह उभरे ।
सबेरा होने को आया। चार चोर त मयता से अपने काम म लगे थे। अचानक उनम से
एक ने कहा–”कु आँ म अब पानी कम ही बचा है। हमम से एक आदमी कु एँ म र सी के
सहारे उतरकर पानी से वह थैली िनकाल सकता है।“
यह िवचार आते ही वे इस बहस म पड़ गए क पानी म कौन उतरे गा। तभी एक साथ कई
लोग बागान से िनकले और उन चोर पर झपट पड़े।
दरअसल, रात को ही गोनू झा को स देह हो गया था क चोर उनके घर धावा बोल सकते
ह इसिलए बाजार जाकर एक सुर ाकम के माफत उ ह ने कोतवाल को खबर कर दी थी।
सुर ाकम उ ह पकड़कर ले गए।
चोर ने तौबा कर ली
गोनू झा और चोर के बीच आँख-िमचैली बरस चलती रही। गोनू झा महाराज को वचन
दे चुके थे क उनके रहते िमिथला म चोर का मनोबल बढ़ने नह दया जाएगा। संयोग
ऐसा रहा क हमेशा चोर को गोनू झा से मुँह क खानी पड़ी।
एक बार क बात है। गोनू झा दरबार से लौटकर अपने दरवाजे पर टहल रहे थे। सतक
रहने क आदत ने गोनू झा को थोड़ा शंकालु बना दया था। वे टहलते समय भी इतने
चैाक े रहते, िजतना क बाज रहता है। अचानक उ ह ने कु े के भ कने क आवाज सुनी।
सोचने लगे, कु ा इस समय इस तरह नह भूँकता है। उ ह ने यान देकर सुना–यह पड़ोसी
मदन झा के कु े के भ कने क आवाज थी।
उनसे िवदा लेने के बाद गोनू झा के दमाग म उस आदमी क चाल बार-बार क ध जाती
थी...थोड़ा उचक-उचककर चलता यह ह ा-क ा आदमी...उ ह लगा क कह उसे देखा है।
दमाग पर जोर डाला तो कु छ याद नह आया।
रात को भोजन करने के बाद वे फर टहलने के िलए िनकल गए। अपने दरवाजे से
िनकलकर वे गाँव क मु य सड़क पर आ गए और टहलते ए मदन झा के घर से थोड़ी दूर
आगे तक िनकल गए। अचानक मदन झा का कु ा जोर-जोर से भ कने लगा। गोनू झा जहाँ
थे वह एक पेड़ क ओट म खड़े हो गए और मदन झा के घर क ओर देखने लगे। चाँदनी
रात थी इसिलए सब-कु छ साफ दख रहा था। उ ह ने उचक-उचककर चलने वाले आदमी
को सड़क से गुजरते देखा।...थोड़ी दूर चलकर वह आदमी गोनू झा के बगान क ओर मुड़
गया।
गोनू झा घर लौट आए। अपनी प ी को बाँह म भरकर यार करने लगे। यार करने के
उनके नए अ दाज से पंिडताइन चैाक । िब तर से अलग उनका वहार शालीन होता था
ले कन पंिडताइन को गोनू झा म आया यह प रवतन पुल कत कर रहा था...िमिथला क
नारी होने के कारण उनके वहार म सहज संकोच तरं िगत होने लगा और वह पित क
बाँह से िनकलने का यास करने लगी।
गोनू झा क बाँह म पंिडताइन थी मगर उनका यान बाहर था। खट् - खट् क आवाज
िपछवाड़े क दीवार से आ रही थी। गोनू झा को समझते देर न लगी क पीछे क दीवार म
सं◌ेध लगाई जा रही है। वे प ी को बाँह म िलए िब तर पर आ गए और अपनी गम साँस
से पंिडताइन के उघड़े अंग को सहलाने लगे।
गोनू झा ने पंिडताइन को अपने सीने से सटा िलया–‘‘छोड़ो भी, रहने दो खुला। अभी तो
ब त कु छ खुलना बाक है।’’
गोनू झा ने फर कहना शु कया”म अपने बेटे का, पहले बेटे का नाम मदन रखूँगा।“
”पहले बेटे का नाम मदन?“ पंिडताइन ने उनक बात दुहराई और लजाते ए
बोली–”इसका मतलब... क दूसरा बेटा भी होगा?“
उनक आवाज सुनकर उनके पड़ोसी मदन झा, सुमन झा, और लखन झा हाथ म लाठी
िलए दौड़े आए और गोनू झा का दरवाजा ठकठकाने लगे। गोनू झा पलंग से उतरे और
दरवाजा खोल दया। घर म तीन घुसे और पूछा–”कहाँ है चोर?“
महाराज आए। दरबारी आए। दरबार खचाखच भर गया। िमिसर जी महाराज के पास
प च
ँ े और कहा ”महाराज, म पये ले आया ँ और आपके सामने गोनू झा को दे रहा ।ँ वे
भी मुे आपके सामने मेरी आँख दे द। िमिसर जी मन ही मन खुश हो रहे थे क आज गोनू झा
क खैर नह । अब िनकाले अपनी एक आँख। िमिसर जी सोच रहे थे क अब उ ह-लोग
काना गोनू ही बुलाएँग,े जैसे लोग काना िमिसर कहते ह पीठपीछे।
गोनू झा अपनी रह यमयी मु कान के साथ अपने आसन पर आकर बैठ गए।
कं जूस राजा को नसीहत
िमिथला नरे श के दरबार म गोनू झा के बुि कौशल और वा चातुय का जो जादू चल रहा
था उसक क त िमिथलांचल के आस-पास के े म भी फै ल चुक थी। िमिथला के
पड़ोसी रा य अंग देश के राजा ने रा यो सव के कई अवसर पर गोनू झा को िवशेष प से
आमंि त कया था तथा उ ह पुर कार-अलंकरण आ द से स मािनत कया था।
अंग देश के राजा म उदारता थी ले कन युवराज अपने िपता के ठीक िवपरीत वृि के
थे। हद से यादा िमत यी। राजा के जीवनकाल म ही युवराज क कं जूसी क कथाएँ पूरे
देश म मश र हो चुक थ । राजा ने युवराज को ब त समझाया क जा-पालन के िलए
उदारता, क णा, सहानुभूित आ द क भी ज रत होती है। इन गुण को राजा का आभूषण
माना जाता है। पर परा से चली आ रही रीितय का िनवाह भी राजनीित का एक
मह वपूण अंग है। ा ण, चारण आ द को रा या य िमलना चािहए। कलाकार और
सािह यकार को ो साहन देने के िलए रा य क ओर से ितयोिगता का आयोजन और
पुर कार क व था राजधम है। िखलािङय के मनोबल को बढ़ाने के िलए भी राजकोष
का उपयोग कया जाना चािहए। जैसे सैिनक को तरोताजा बनाए रखने के िलए ित दन
उसक कवायद पर राजकोष से य कया जाता है, वैसे ही िखलािङय और कलाकार के
िलए रं गशाला के िनमाण और उनके रख-रखाव क व था करना राजधम है। मगर
युवराज को अपने िपता क ये बात भािवत नह करत । उसे लगता क इस तरह के
आयोजन से धन और समय दोन का अप य होता है। चारण और ा ण तो युवराज को
िम याभाषी और लोलुप लगते थे। य द राजा का भय नह होता तो वह अपने महल म
चारण और ा ण के वेश पर भी ितबंध लगा देता।
एक बार अंग देश के राजा बीमार पड़े। राज वै ने अपने अनुभव से समझ िलया क
राजा अब बचनेवाले नह ह। उिचत औषिध राजा को देकर उसने महामं ी को परामश
दया क युवराज के रा यािभषेक क व था कराएँ।
युवराज अपने िपता क बीमारी से दुखी था। अपने िपता क हालत से िथत युवराज
को राजा बनने से कोई स ता नह ई। राज संहासन पर बैठे नए राजा के तुित गान के
िलए चारण आए और नए राजा को आशीष देने ा ण मगर राजा ने उनक ओर कोई
यान नह दया। चारण तुित गान और ा ण मं ो ार करने के बाद नए राजा क ओर
आशा-भरी –ि से देखते ए अपने थान पर खड़े रहे, मगर नए राजा ने उनक ओर देखा
तक नह ।
काफ देर तक नया राजा उ ह च कत-सा देखता रहा फर उसके स का बाँध टू ट गया।
उसने िवि मत भाव से पूछा–” या आप लोग मेरे रा यािभषेक पर स ता कर रहे
ह?“
गोनू झा ने पूव क भाँित ही एक हाथ क अँगुिलय को नचाया और मुँह बाए अपनी पूव
क मु ा म आ गए।
उिचत आसन एवं उपहार िमलने के बाद गोनू झा ने सहज मु ा अपना ली। उनके साथ
आए लोग ने भी ऐसा ही कया। फर गोनू झा ने नए राजा से कहा–”राजन! म यहाँ
आपके िपता के दशन के िलए उपि थत आ ।ँ मेरे साथ जो लोग ह, वे आपके रा य क
िवभूितयाँ ह। इनके मुँह से अमृत वचन िनकला करते थे। उस संहासन पर जहाँ आज आप
िवराजमान ह, वहाँ वृ महाराज िवराजमान आ करते थे। राजन्, जब िव ान , ा ण ,
चारण और कलाकार क िज ◌्वा से श द कट नह हो तो भरे दरबार म कस तरह क
कं कत िवमूढ़ता क ि थित उपि थत हो जाती है यह आपने कु छ ही पल पहले देखा और
अनुभव कया। अब मेरी ाथना है क आप वयं िनणय कर क वृ महाराज के
शासनकाल म सर वती के इन साधक के ित जो राज- वहार था, उसे जारी रखा जाए
या नह । राजन्! जब िव ान चुप हो जाएगा, कलाकार मौन हो जाएगा तब रा य म िन ा
क कमी आएगी और लोग शु क वृि क ओर वृत ह गे। राजधम है क जनजीवन म
सरसता बनी रहे। इसके िलए ही वृ महाराज इन लोग को मह व दया करते थे।’’
नए राजा को गोनू झा क बात समझ म आ और उसने िवन तापूवक अंग देश के
िव जन से अपने वहार के ित मा माँगी तथा बताया क अपने वृ िपता के
आरो य के िलए िचि तत रहने के कारण उसने उनके साथ शु क वहार कया था जो
कसी भी राजा के िलए शोभनीय नह था।
चलते-चलते गोनू झा सोच रहे थे, इतने बड़े िमिथलांचल म चोर के संग ठत िगरोह का
उ े दन कोई साधारण बात तो है नह । जो काम रा य का िशि त और संग ठत खु फया-
तं ा कर पाने म असमथ रहा, उस काम को म अके ले कै से अंजाम दूग
ं ा। महाराज ने कह तो
दया है क रा य का कोई भी अिधकारी कसी भी तरह के सहयोग के िलए हमेशा तैयार
रहेगा... मगर जब कोई सू ा हाथ लगे तब न कसी तरह के सहयोग क बात उठे गी?
अभी गोनू झा मिहला से मटरमाला छीने जाने क घटना के बारे म सुन ही रहे थे क पूरे
बाजार म सनसनी-सी फै ल गई। चोर ने कई दुकान के ग ले से सारे पैसे बटोर िलए थे।
बेचारी पंिडताइन करती भी या? गोनू झा के िनदश के अनुसार दीया बुझाया और गोनू
झा के बगल म आकर सो गई दन भर क थक -मांदी होने के कारण पंिडताइन को ज दी
ही न द आ गई मगर गोनू झा क आँख म न द कहाँ? बाजार म घ टत ई मब चोरी
क घटना उनक चेतना पर आ छा दत थी और महाराज का यह अनुनय क ‘वे कु छ भी
कर मगर रा य म चोर का सफाया होना चािहए...’ बार-बार उनके दमाग म क ध रहा
था। अजीब इि फाक क बात थी क महाराज ने उनसे रा य म चोर के उ पात का िज
कया और उसके कु छ देर बाद ही चोर क आततायी हरकत गोनू झा क आँख के सामने
आ गई। चोर के उ पात क सम या कतनी ग भीर है, इस बात से गोनू झा काफ उ िे लत
थे ले कन उ ह कु छ सूझ नह रहा था क चोर पर काबू कै से पाया जाए।
चोर पर काबू पाने क तरक ब सोचते-सोचते गोनू झा ने करवट म रात गुजार दी।
सुबह म िखड़क से आती ठं डी हवा के झ को ने उनके शरीर को सहलाना शु कया तब
उ ह न द आ गई।
सूरज ने पूरब का कोना छोड़ा। खुली िखड़क से आती धूप क गम के कारण गोनू झा क
न द खुली। उ ह ने िखड़क के प ल को सटा दया और िब तर पर पड़े रहे। पंिडताइन ने
उ ह जगा देखकर पूछा–”दरबार नह जाना या?“
गोनू झा ने कहा–”अभी नह । मन थका-सा है। तबीयत ठीक रही तो शाम को महल चला
जाऊँगा और महाराज के दशन करके लौट आऊँगा।“
गोनू झा ने िबना कसी भूिमका के महाराज से कहा–‘‘महाराज! तीन साल पहले मेरे घर
से एक चोर पकड़ा गया था। उसे ामीण ने हवालात िभजवा दया था। म जानना चाहता
ँ क वह चोर अब कहाँ है?’’
अब गोनू झा के सामने नगर कोतवाल हाथ जोड़े खड़ा था। उसक भयभीत मु ा देखकर
गोनू झा ने उससे कहा–”अभी तु ह डरने क ज रत नह है, बस जो पूछूँ, सच-सच
बताना।“ इतना कहकर गोनू झा ने अपनी बात का भाव देखने के िलए कोतवाल को
ऊपर से नीचे तक िनहारा। उनक –ि और भंिगमा से कोतवाल भीतर ही भीतर काँप
गया।
थर-थर काँपते ए कोतवाल ने कहा–‘‘पंिडत जी, मुझे माफ कर। अब ऐसी गलती नह
होगी। कल म सुर ा ह रय को काम बताकर नौटंक देखने चला गया था क ‘बड़ा
बाजार’ म वह कांड हो गया। मुझे अवसर द। तमाम उच क नाक म नके ल डालकर
आपके कदम म ला पटकूँ गा। मुझे माफ कर द। फर कभी काम म ऐसी लापरवाही नह
क ँ गा।’’
नगर कोतवाल क जान म जान आ गई। उसे संयत होने का अवसर देने के बाद गोनू झा
ने उससे कहा–”तीन साल पहले भड़ौरा ि थत मेरे आवास से एक चोर पकड़ा गया था।
उसक टाँग क ह ी टू ट गई थी। मुझे उसके बारे म जानकारी चािहए क अब वह कहाँ है।
‘बड़ा बाजार’ चूँ क भड़ौरा तहसील म पड़ता है और वह उस इलाके का पुराना िखलाड़ी
है, इसिलए तु ह कल रात ‘बड़ा बाजार’ म ई चोरी क घटना क त तीश म भी उससे
कु छ सुराग िमल जाएगा।“
गोनू झा फु लवारी क ओर मुड़ गए। महाराज वहाँ िचि तत मु ा म टहल रहे थे। गोनू झा
को देखकर उ ह ने कहा–‘‘कल रात क घटना के बारे म तो आपको जानकारी िमल ही गई
होगी?’’
गोनू झा के इस उ र से महाराज आ त ए।
लगभग घंटे भर बाद गोनू झा जगे। हाथ म लोटा िलए और कं धे पर गमछा रखे गोनू झा
शौच के िलए िनकले तो दरवाजे पर नगर-कोतवाल को बैठा देखकर उ ह ने समझ िलया
क चोर के बारे म जानकारी कोतवाल को िमल गई है। कोतवाल ने गोनू झा को आते देखा
तो चैक से उठकर खड़ा हो गया और नम कार कया। गोनू झा उसे बैठे रहने का इशारा
करते ए वहाँ से शौच के िलए िनकल गए।
कोतवाल ने ह षत होते ए बताया‘‘हाँ, पंिडत जी। तीन महीने पहले वह चोर कारागार
से मु कया गया है।’
नगर कोतवाल गोनू झा को आवेश म पहली बार देख रहा था। अब तक उसके मन म
गोनू झा क छिव एक मसखरे क थी। मगर गोनू झा का यह प देखकर उसे कु छ सूझ नह
रहा था क वह या बोले।
शाम ढले नगर कोतवाल आया और गोनू झा को बताया क उनके आवास से पकड़ा गया
चोर कारावास म लंगड़ू उ ताद के नाम से िस हो गया था। उसके साथ तीन और
अपराधी उसक कोठरी म रखे गए थे– हरखू, बसावन और िवसनाथ। ये तीन राहजनी के
छोटे-मोटे मामले म पकड़े गए थे। कारागार म लंगड़ू उ ताद क पहचान दो बड़े
अपरािधय से भी ई थी। भोजन के समय ये दोन उसके आस-पास ही बैठते थे। इनम से
एक लुटेरा ऐसा था जो लूट के दौरान घातक-पैने हिथयार का योग करता था। सीमा त
े ा म एक ापारी को लूटने के म म वह पकड़ा गया था। तीन माह पहले जब लंगडू
उ ताद कारागार से छोड़ा गया, उसके दो ह त के अ तराल पर ये लोग भी छोड़े गए।
चाकू बाज लूटेरा उस दन ही छोड़ा गया िजस दन ‘बड़ा बाजार’ वाली घटना घ टत ई।
कोतवाल ने गोनू झा को उन सब के नाम-पता ठकाना आ द क सूची भी स प दी।
इसी दौरान उनके चु नंदे सुर ा हरी और िवशेष िशि त ं ग ट उनके घर आते और
अपने काम क जानकारी उ ह देत।े गाँव के लोग को गोनू झा बताते क ब त बड़ा जलसा
होगा। महाराज भी इस जलसे म आएँग।े
गोनू झा के दरवाजे पर सफे द, अरबी न ल का घोड़ा बँधा था। ऐसा घोड़ा महाराज के
घुड़साल म भी नह था। फर एक दन गोनू झा के घर के सामने वाले खेत म बड़ा सा
पंडाल बनने लगा। कनात लगने लगे। िमिथलांचल के िविभ बाजार म तैनात उनके
दुकानदार ारा िविभ तरह क खरीददा रयाँ क ग और खूबसूरत िड ब और थैिलय
म इन चीज को ऐसे रखा गया मानो इनम कोई ब मू य व तु हो! ये िड बे गोनू झा के
दरवाजे पर रखी चैक पर रखे जाते जहाँ उनक फे ह र त बनती। फर इस काम म इतना
िवल ब कया जाता क घंट ये चीज चैक पर ही पड़ी रहत । इस बीच गाँव के लोग उधर
से गुजरते और उन चीज को देखने के िलए गोनू झा के दरवाजे पर मजमा-सा लगा लेते।
जब भीड़ ढ़ती तब गोनू झा बाहर िनकलते और चीखते–‘‘अरे मूख ! दरवाजे पर इन चीज
क दशनी लगाना ज री है या? उठाओ यह सब–मेरी कोठरी म ले जाकर रखो। वह
िहसाब- कताब कया करो।“ फर ामीण से बोलते–”अरे भाई लोगो! ये चकमक करते
िड बे मँगवाए ह। यहाँ जो जलसा होगा न, उसम बाहर से कई मह वपूण, नामी-िगरामी
लोग भी आएँगे। उ ह इन िड ब म िमठाई दी जाएगी। भं◌ेट के प म थैिलय म
िमिथलं◌ाचल का उपहार–मखाना भरा जाएगा। जाइए आप लोग, जलसे के दन तो आप
सब यहाँ आमंि त ह ही। जो होगा, वह देख ही लीिजएगा। जाइए, अपने काम-धाम म
लिगए।’’
...और गाँव के लोग आपस म बितयाते ए लौटते क जड़ाऊ थैली म मखाना? अरे उस
छोटी थैली म मखाना कतना आएगा? पाव भर भी समा जाए तो गनीमत है। गोनू झा के
पास दौलत या आ गई क पूरा गाँव को मूख समझने लगे।
लंगडू उ ताद गोनू झा के सवाल से सकपका गया। बोला–‘‘मािलक, कभी इतना बड़ा
जलसा के िलए काम नह कया है। कै से बताएँ? भात, दाल, भुिजया, पापड़, अचार, दही,
तरकारी, ल डू, बुिनया बनाने का काम जानते ह...।’’
गोनू झा मु कु राते ए वहाँ से लौट आए। थोड़ी ही देर म लंगडू उ ताद के गाँव म तैनात
ं ग ट भागते ए गोनू झा के पास प च
ँ ।े
गोनू झा उसी तरह प ी को आगोश म िलए बोलने लगे–‘‘अरे कोई बात नह है जलसे
क तैयारी चल रही है न, तो थोड़ी आवाज तो आएँगी ही। आओ...’’
पंिडताइन कु छ समझ पाती, उससे पहले ही गोनू झा ने उसका एक हाथ अपने हाथ म
िलया और दरवाजे क तरफ बढ़ गए।
कोतवाला बोला‘‘जी हाँ, जूर! महाराज जैसे ही जगगे, उ ह सूचना िमल जाएगी।’’
महाराज वहाँ से िवदा ए। नगर कोतवाल सभी चोर को लेकर हवालात प चँ ा जहाँ से
उ ह कारागार भेज दया गया। उनसे पूछताछ के आधार पर िमिथलं◌ाचल के बाजार म
स य चोर के बारे म मह वपूण जानका रयाँ िमल िजससे ह ते भर म ही बड़े पैमाने पर
चोर क िगर तारी ई। इस तरह चोर क िगर तारी होने से अ य चोर या तो िमिथला
से भाग गए या फर भूिमगत हो गए।
हाट म घूम-घूमकर थक जाने के बाद वह जवान एक जगह पर बैठ गया। उसने महसूस
कया क उसके आस-पास, थोड़ी-थोड़ी दूरी पर चार लोग बैठ गए ह। चुपचाप! सब क
पीठ उसक तरफ थी। जवान ने फर अपनी अंटी से पैस क थैली िनकाली और वहाँ
बैठकर उ ह िगनने लगा। पैसे िगनकर उसने थैली म डाले और थैली अपनी अंटी म रखकर
वह फर से मंडी के च र लगाने लगा। च र लगाते-लगाते उसक नजर एक छोटे से बछड़े
पर पड़ी। वह बछड़े के मािलक से उसका मोल पूछा। पहले तो बछड़े का मािलक उस पर
नाराज आ मगर जब उसने अपनी अंटी से पए िनकालकर दखाए तो उसने उसक
क मत दो सौ पए बताई। मोल-तोल करने के बाद डेढ़ सौ पए म बछड़ा खरीदकर वह
जवान उस बछड़े को अपने कं धे पर लाद िलया और गोनू झा के गाँव क ओर चलने को
आ तो िजसने बछड़ा बेचा था, वह उसक मूखता पर हँसते ए पूछा– ‘‘बड़े मजबूत
जवान हो! कस गाँव से आए हो?“
इतने म चार लोग उसके पास से लगभग दौड़ते ए िनकल गए। जवान ने देखा, ये वही
चार लोग थे जो कु छ देर पहले उसके आस-पास आकर बैठ गए थे। जवान ने उ ह देखकर
अनदेखा कर दया और धीमी चाल से वह आगे क ओर चल पड़ा। मवेशी मंडी से थोड़ी दूर
िनकल जाने के बाद एक मोड़ पर उसने देखा क एक आदमी उसे कने का इशारा कर रहा
है, मगर वह उस पर िबना यान दए धीरे -धीरे आगे बढ़ता रहा। उसे इशारा करनेवाला
आदमी तेज कदम से चलकर उसके पास आ गया और कहने लगा–‘‘का गणेशी भाई!
नाराज छी क ? अतेक आवाज देल , इशारो कै लो, अहाँ यानो न देल ? कऐक?“ ( य
गणेशी भाई, नाराज ह या? इतनी आवाज दी, इशारा भी कया मगर आपने यान ही
नह दया, य ?)
जवान अपनी धीमी गित से चलता रहा। उस आदमी ने फर कहा– ‘‘क बात छई,
बोलवे न हं करई छी?’’ ( या बात है? बोलते ही नह ह?)
तब जवान ने िबना उसक ओर देखे कहा–”मेरा नाम गणेशी नह , माधो है। माधो!
माधव झा! मुकुंद माधव झा!’’
बाछा है–बाछा।’’ ‘‘बाछा? कौन कहता है? अरे बकरा और बाछा म अ तर नह समझता
या? या मेरे पास आँख नह हं◌?ै य मूख बना रहे हो?’’ वह आदमी अब रोष म बोल
रहा था।
माधो ने भी उ ेिजत होकर जवाब दया–‘‘हाँ, बाछा है, बाछा... बाछा... बाछा...। एक
नह , सौ बार बाछा।’’
माधो फर चीखा–‘‘बाछा...बाछा...बाछा!’’
ऐसे ही चीखते-चीखते दोन गाँव के मोड़ तक प च ँ गए। वहाँ उ ह तीन आदमी दखे।
उनम से एक ने उ ह टोका–”अरे ! य चीख रहे हो दोन ?’’
माधो ने आँसा होकर कहा–‘‘यह आदमी मेरे बाछा को बकरा बता रहा है।’’
उसक बात सुनकर माधो ने अपने कं धे से बाछा को उतारा और उसे देखने लगा। फर
बोला–‘‘यह बाछा ही है। य मुझे परे शान कर रहे हो? जाओ, अपना रा ता देखो।’’
अभी ये बात हो ही रही थ क गाँव के मोड़ पर खड़े दो आदमी माधो क तरफ आ गए।
माधो ने उ ह देखा–उसे याद आया–जब वह मंडी म सु ताने के िलए बैठा था तब यही
चार उसके आजू-बाजू आकर बैठ गए थे।
माधो बारी-बारी से चार को देख रहा था। उसे चुप देखकर उन चार म से एक ने
कहा–”अरे भाई, तुम तो बाछा खरीदने गए थे। मतलब क तु ह तो बाछा क ज रत है,
बकरे क नह । ऐसे म ई बकरा तो तु हारे िलए बेकार आ न? ऐसे...तु हारी मज । तु हारे
िलए जो फालतू चीज है– उसक हम ज रत है। तु ह तो खुश होना चािहए क जो चीज
तु हारे िलए फालतू है उसका खरीददार तु ह राह चलते िमल गया। बेचना चाहो तो बेच
दो। िजतने म लाए हो उतनी रकम तु ह हम दे दगे। बोलो, कतने म खरीदा था?“
माधो ने फर िसर िहलाकर न कहा। उसके चेहरे पर उस समय मूखता बरस रही थी।
”तो एक पाँच शू य म से, शू य हटा दो तो बचे एक और पाँच यानी एक पर पाँच–प ह!
ये लो प ह पए।“ उनम से एक ने माधो के हाथ म प ह पए रखते ए कहा–‘‘अब यह
बकरा हमारा आ।’’
वे लोग भी अ य ामीण मंिडय म इसी तरह ठगी के िशकार ए थे। गोनू झा मु कु राते
ए उनक बात सुनते रहे और अगले मंडी के दन मंडी म ही िमलने क बात कहकर उन
लोग को िवदा कया और फर सोने चले गए।
अपने गाँव के पास लगने वाली मवेशी मंडी म अगले स ाह गोनू झा मंडी लगने से पहले
ही प चँ गए और एक पेड़ के नीचे बोरा िबछाकर बैठ गए। उ ह देखकर कोई कह नह
सकता था क वे िमिथला नरे श के दरबार के नामचीन दरबारी ह। साधारण कृ षक के
िलबास म गोनू झा ठे ठ ामीण लग रहे थे। गोनू झा के मंडी म प च
ँ जाने के बाद धीरे -धीरे
मवेशी बाजार जमने लगा। दो घंटे म बाजार पूरी तरह सज गया। गोनू झा क आँख माधो
को तलाश रही थ । एक पेड़ के नीचे बैठा माधो उ ह दख गया। वह पोटली से पए बार-
बार िनकाल उ ह िगनने म लगा आ था। लगभग डेढ़-दो घंटे बाद माधो अचानक अपनी
जगह से उठा और तेजी से मवेशी मंडी के पूव कोने क ओर जाने लगा। गोनू झा भी उठे
और धीमी गित से माधो क तरफ जाने लगे।
गोनू झा ने फर जोर से, लगभग चीखते ए पूछा–”अरे बकरे का दाम कौन बताएगा?
बता ज दी!“
गोनू झा ने अपनी आवाज को और धीमा कया और लगभग फु सफु साते ए बोले, ‘‘दो
सौ पए मतलब–200,–है न? और दो सौ पए का मतलब दो शू य शू य।’’ इतना कहने के
बाद वे उन चार म से एक के पास प च ँ े और उसके कान के पास फु सफु साते ए
बोले–”और िहसाब- कताब म शू य का कोई मतलब नह होता। है न? तो दो शू य हटे–
बच गया दो। यह लो दो पए और यह बकरा मेरा आ।’’
दूसरे दन, दूसरे गाँव क मंडी म छह और तीसरे दन तीसरे गाँव क मंडी म दस लोग
को इसी तरह गोनू झा क सूझ-बूझ से रं ग ट ने धर दबोचा। सात दन के अिभयान म
ही पूरे िमिथलांचल म छोटी-बड़ी ठगी करते पचास से अिधक लोग पकड़ म आ गए। इसके
बाद उनक िपटाई कर रं ग ट ने कु छ और ठगी करनेवाल का नाम-पता हािसल कया
और जाल िबछाकर उ ह ठगी करते रं गे हाथ िगर तार कर िलया।
दरबार समा हो जाने के बाद महाराज, गोनू झा को अपने साथ महल म लेकर आ गए
और उ ह उिचत आसन पर बैठाकर पूछा क आिखर िमिथला के सभी ठग को इस तरह
दबोचने म उ ह सफलता कै से िमली?
गोनू झा मानो इस के िलए तैयार थे। उ ह ने छू टते ही कहा– ”महाराज! मने आपक
आ ा से, सुर ा ह रय म से ऐसे जवान छाँटे जो देखने म मूख या बेअ ल तीत होते
थे। इन जवान को मने राजकोष से कु छ पए दलाए िजसक सहायता से ये जवान
ामीण-पयटक के प म घूम सकते थे और कु छ खरीददा रयाँ कर सकते थे। तीन दन
तक मने इ ह मूख दखने और मूखतापूण आचरण करने का िश ण दया। पूरे
िमिथलं◌ाचल को मने सात े म बाँटा और इन सात े के िलए सात के थािपत
कए। इन जवान के साथ ही मने गाँव म लगनेवाली मंिडय म ामीण वेशधारी रं ग ट
को तैनात कया। जवान को मने खुला िनदश दया क जब कोई उ ह ठगने क कोिशश
करे तो वे ऐसा दखाएँ क वे उसके झाँसे म आ गए ह और ठगे जाएँ। रं ग ट को िनदश था
क जब कोई जवान ठगा जाए तो वे उसे ठगनेवालां◌े को भनक तक लगे िबना, उसके घर
तक पीछा कर। नाम-पता आ द क सूची तैयार कर ल। सच कह महाराज, मने तो अँधेरे म
तीर चलाया था जो ठीक िनशाने पर लगा।“
जोड़ा जीव क बिल का मतलब था–दो ख सी क बिल! पंिडताइन हामी भरकर लौट
आई।
गोनू झा ने पंिडताइन को अपनी बाँह म समेटते ए कहा–”अ छा, ठीक है–जोड़ा बिल
क बात है तो कल ही चलते ह। सुबह म गंगा ान भी हो जाएगा और तु हारी म त भी
पूरी हो जाएगी।“
सुबह गोनू झा देर तक सोते रहे। पंिडताइन ने उ ह जगाया तो वे अपनी समा य दनचया
म लग गए। पंिडताइन को लगा क गोनू झा रात के आ ासन को भूल गए ह इसिलए
उ ह ने गोनू झा को ‘गंगा ान’ वाली बात याद दलाई।
गोनू झा ने हाथ म गुड़ क ढेली लेकर उसे िचउड़ा, दही म िमलाने के िलए अँगूठे का
दबाव देकर तोड़ना चाहा ले कन गुड़ क ढेली िछटककर प ल से बाहर िनकल गई। ढेली
पर मि खयाँ िभनिभनाने लग । पंिडताइन भी भ ाकर बोलने लगी, ‘‘ य जी, भूल गए?
गंगा मैया को जोड़ा बिल देने क बात भूल गए?’’
गोनू झा उस समय गुड़ क ढेली पर बैठी मि खय पर काक-–ि डाले ए थे। उ ह ने
कहा–”कु छ नह भूला ँ भा यवान। जा, एक छोटा कपड़ा का टु कड़ा िनकाल। अभी करता
ँ जोड़ा जीव क बिल का इं तजाम।
कु छ देर के बाद गोनू झा बाजार गए। वहाँ से उ ह ने कु छ बोरे खरीदे। दो मजदूर साथ म
ही लेते आए। गोनू झा ने घर के जलकर राख ए िह स को समेटना शु कया फर
मजदूर से उ ह बोर म भरवाया। बोर के मुँह पर चमक ले कागज लगवाकर बोर का
मुँह ब द करवाया। इस तरह कु ल बारह बोर म राख भरकर वे फर बाहर िनकल पड़े और
एक बैलगाड़ी कराए पर लेकर लौटे। उ ह ने बोर को बैलगाड़ी पर लदवाया और गाँव से
बाहर जाने वाली राह पर बैलगाड़ी लेकर चल पड़े। बैलगाड़ी वे वयं चला रहे थे।
गोनू झा को ऐसे जाते देख गाँव के लोग च कत थे।...सभी आपस म बात कर रहे
थे–”कै सा जीवट वाला आदमी है! इतनी भ हवेली खाक बन गई मगर उसके मुँह पर
मलाल का भाव तक नह आया।“ वे गोनू झा क बैलगाड़ी को जाता आ देखते रहे जब
तक क वह ओझल न हो गई।
शाम ढलने को आई। गोनू झा को लगा क रात म सफर जारी रखना उिचत नह होगा
तो उ ह ने तय कर िलया क अब रा ते म जैसे ही कोई गाँव आएगा–वे िव ाम करने के
िलए थान क व था कर लगे।
गोनू झा ने कनात तानकर अपनी दुकान का घेरा बना िलया और उसम उ ह ने बैलगाड़ी
से राख झड़ती बो रयाँ उतारकर करीने से रखवा िलया। शाम ढलने को आई। गोनू झा क
दुकान के ठीक सामने एक ब त बड़ी दुकान का खाका तैयार हो रहा था। गोनू झा उस
दुकान क तरफ देख रहे थे। अब तक दुकान का मािलक नजर नह आया था।
थोड़ी ही देर बाद कई बैलगािङय पर ढेर सामान उस दुकान पर आया और उतारा जाने
लगा। गोनू झा थकान महसूस कर रहे थे, इसिलए वे जहाँ थे वह सो गए। न कु छ खाया, न
िपया। रात कट गई। दूसरे दन सुबह वे शौच आ द से िनवृत होकर लौटे ही थे क देखा,
सामने वाली दुकान से वे दोन शानदार ि उनक दुकान पर आकर उन बोर को देख
रहे ह।
गोनू झा ने भी सेठ का िलबास धारण कर रखा था। मूँछ तनी थ । शानदार पगड़ी उनके
िसर क शोभा बढ़ा रही थी। अपनी दुकान के समाने खड़े ापा रय से वे ब त भ ता से
िमले। गोनू झा का ि व भावशाली तो था ही, ज दी ही वे दोन ापारी उनसे घुल-
िमल गए। गोनू झा ने उनसे अपना प रचय वाल भ म, मु ा भ म िव े ता के प म
दया। वण भ म, रजत भ म आ द भी मेल के िलए अपने पास रखने क बात कही। वे
ापारी इन भ म का नाम सुन चुके थे मगर देखा नह था। गोनू झा ने उ ह एक बोरा
खोलकर उसम से एक चुटक राख िनकाली, ह क च पई आभा वाली खुरदुरी सी राख को
उ ह ने वाल भ म बताया। दोन ापारी उनसे भािवत तो थे ही, वाल भ म देखने के
बाद गोनू झा पर मु ध हो गए। पूछने लगे–‘‘भाई साहब ! वाल का मतलब मूंगा ही होता
है न?“
शाम तक इन दोन ापा रय क दुकान म सामान प च ँ ाकर वे सारे लोग लौट गए।
वहाँ अब तीन आदमी ही रह गए–एक गोनू झा और दोन - ापारी। रात गहराने से पहले
ही दोन ापा रय ने पुनः गोनू झा से अपने साथ भोजन कर लेने का आ ह कया। गोनू
झा ने उनका आमं ाण वीकार कर िलया।
भोजन करने के बाद गोनू झा ने अपनी दुकान के आगे कु छ बुदबुदाते ए एक चाकू से
िम ी पर लक र ख ची फर उनके बुदबुदाने का वर कु छ तेज आ िजससे कट आ क वे
कोई मं ा पढ़ रहे ह।
दरबारी अटकल लगाने लगे। एक ने कहा–”शेर महाराज, शेर। शेर से बड़ा कृ त ाणी
भला कौन होगा? बड़े से बड़ा जानवर उससे घबराता है। खरगोश हो या हाथी, सबको
चटकर जाता है। एक बार पेट भर जाए तो प ह दन तक िहलता-डु लता नह । अघाया
आ पड़ा रहता है।“
दूसरे ने कहा‘‘अरे महाराज! यही आदत तो बाघ, चीता, तदुआ आ द म भी है। आिखर
यह कै से तय होगा क इनम से कौन कृ त है?“
दूसरे दन उनका दामाद बन-ठनकर तैयार आ। उसने रे शमी धवल व ा धारण कए।
युवा और आकषक तो वह था ही। गोनू झा के साथ दरबार म प च
ँ ने के बाद उसने दरबार
क शोभा देखी। अिभभूत आ।
”अरे म तो भूल ही गया था आपका दामाद। मेरा भी तो कु छ होता है।“ उ ह ने अपने गले
से मोितय क माला उतारकर गोनू झा के दामाद के गले म डाल दी और बोले–‘‘पु ! यह
तो तु हारा अिधकार है। इसे धारण करो। इससे तुम कृ त नह हो जाओगे। पंिडत जी ने
तो उस था पर चोट क है िजससे बेटी के बाप को अपना सबकु छ लुटाकर दामाद क
लोलुपता क तुि करनी पड़ती है।“
आधे घंटे के बाद दरबार लगा तब भोनू झा को महाराज के सामने पेश कया गया।
महाराज ने भोनू झा से पूछा–‘‘तुम कौन हो? और य मुझसे िमलना चाहते थे, बताओ?’’
िजस समय भोनू झा को कारावास म डालने का आदेश महाराज दे रहे थे, ठीक उसी
समय गोनू झा दरबार म वेश कर रहे थे। उ ह ने महाराज के आदेश को सुन िलया और
महाराज के सामने खड़े भोनू झा को भी पहचान िलया। गोनू झा को समझते देर नह लगी
क आज भी अपनी धुनक म भोनू झा कोई भूल कर बैठा है।
गोनू झा को देखकर महाराज ने पूछा–‘‘ य पंिडत जी, यह आदमी आपका भाई है?’’
गोनू झा ने कहा–‘‘जी हाँ, ीमान! यह मेरा भाई है। मगर बात या ई है? आप इतने
नाराज य ह?’’
गोनू झा भी उससे बात करते ए चल रहे थे–‘‘अरे , या बताएँ भाई, मेरे पास एक
जोड़ी बैल था। दस दन ए–एक बैल बीमार पड़ा। दवा-दा क मगर बचा नह पाया–
मर गया। इसीिलए एक बैल क ज रत थी। ठीक- ठाक िमल गया इसिलए ले िलया। मेरे
पास एक बैल इसी कद-काठी का है।’’
कु छ दूर चलने के बाद वह ि अपनी राह चला गया। गोनू झा सोचते रहे क यह
ि कौन था, ले कन वे उस ि को याद नह कर पाए। राजदरबार म होने के कारण
गोनू झा क याित दूर-दूर तक फै ली ई थी। उ ह जानने-पहचानने वाले लोग भी ब त
थे। उ ह ने सोचा– छोड़ो, रहा होगा कोई। अभी वे कु छ दूर ही चल पाए थे क रा ते म
एक पगड़ीधारी ि उ ह कहा–”पा लागूँ महोपा याय जी!“
गोनू झा घर प चँ ते-प च
ँ ते इस से खीज-से गए। उ ह लगने लगा क य द उनक
झ लाहट बढ़ी तो हो सकता है क बैल के बारे म पूछने वाले क वे ऐसी क तैसी कर द।
गोनू झा िववेक तो थे ही। घर प च ँ कर बथान म बैल को खूँटे से बाँधा और उसे सानी-
पानी देकर, सहला-पुचकारकर अपने कमरे म गए।
उनक चीख सुनकर गाँव के लोग अपने हाथ म लाठी, भाला, फरसा, तलवार आ द िलए
दौड़ते आए। उन लोग ने देखा, गोनू झा एक पेड़ पर चढ़े आवाज लगा रहे ह। गोनू झा का
िच लाना जारी था। जब उ ह िव ास हो गया क पेड़ के नीचे गाँव के तमाम लोग जमा
हो गए ह तब उ ह ने िच लाना बंद कया।
गोनू झा ने खूँटे से बैल बाँधते ए कहा–”गाँव वाल को ‘अथ ीबैल कथा’ बाँचने गया
था भा यवान!“ इतना कहकर गोनू झा मु कु राने लगे।
गोनू झा ए परािजत
बसुआ यानी बासुदव े । गोनू झा के टहल- टकोला म लगा रहने वाला उनके गाँव का एक
कशोर। बसुआ, िजसका अपना सगा कोई नह था। गाँव म उसक एक छोटी-सी झां◌ेपड़ी
थी। गोनू झा के खेत के पास। बसुआ दन भर इधर-उधर रहता। कसी ने कु छ करने को
कहा, कर दया। अलम त था बसुआ। न दन क फ , न रात क िच ता। जब थक जाता
तो चला आता अपनी झ पड़ी म। उसे झ पड़ी कहने क बजाय उसका रै न बसैरा कह तो
यादा ठीक होगा–बसुआ म त-मलंग क तरह पड़ा रहता। न उधो का देना, न माधो का
लेना! िनि त रहता बसुआ। कसी क उसे परवाह नह थी। न कोई छोटा-मोटा, न कोई
बड़ा। उसक नजर म सब बराबर! कोई ब ा भी उसे कसी काम के िलए कहता तो वह
‘जी मािलक’ कहकर उसका काम कर देता। कह से दो जून रोटी िमल गई तो खा िलया
और चला आया अपनी झ पड़ी म। यही थी बसुआ क दनचया।
गोनू झा ने कहा–‘‘बसुआ, दो-चार दन तू मेरा खेत जोत दे! हरवाहा बीमार पड़ गया है।
वह ठीक हो जाएगा तब तक भले ही कसी और काम म लग जाना!’’
गोनू झा दरबार के िलए तैयार होकर अपने खेत क ओर से ही दरबार के िलए िनकले।
उ ह ने देखा, बसुआ त मयता के साथ खेत जोतने म लगा आ है। मन ही मन खुश होते
ए गोनू झा ने बसुआ को आवाज दी–‘‘ओ बसुआ! जरा इधर आ!’’
गोनू झा ने बसुआ से कहा‘‘देख बसुआ!...मन लगा के खेत जोतना! अपना काम समझ
के –िजतना कर सको, करना। शाम को दरबार से लौट- कर तु ह हलवा िखलाऊँगा!’’
इसके बाद गोनू झा दरबार चले गए और बसुआ पूरे उमंग के साथ खेत जोतने म लग
गया। जब थोड़ी थकान होती, बसुआ गाने लगता– ‘‘मािलक आएँगे! हलवा लाएँगे! म तो
जी भर के हलुआ खाऊँगा...म त होके सोने जाऊँगा...!’’
दरबार से लौटते समय भी गोनू झा खेत वाली राह से ही आए। उ ह ने देखा, बसुआ खेत
जोतने म जुटा आ है। उ ह देखकर आ य आ क िजतना खेत उनका हरवाहा सात दन
म जोतता, उससे कह अिधक खेत बसुआ एक दन म ही जोत चुका था...। गोनू झा घर
लौटे। वे अपने साथ बाजार से ही थोड़ा हलवा खरीदकर खेत क ओर आए थे।
बसुआ ने कहा–‘‘मगर मािलक! इतना ही? इससे मेरा पेट कहाँ भरे गा?’’
गोनू झा ने कहा‘‘देखो, मने तुझे कहा था क हलवा िखलाऊँगा तो हलवा ले आया तु हारे
िलए...मने यह तो नह कहा था क भर पेट हलवा िखलाऊँगा? अब यादा बक-बक मत
कर। जो है सो खा ले।’’
दूसरी तरफ, गोनू झा बसुआ के काम से खुश थे। उ ह ने सोचा– बेचारा बसुआ! दन भर
काम म जुटा रहा...उ मीद से यादा खेत जोत दया ले कन उसे आज अधपेटा रहना पड़
गया। खैर! कल उसके िलए कचैड़ी-जलेबी लेकर आऊँगा...इतना क उसका पेट भर जाए!“
दूसरे दन शाम को खेत पर जब गोनू झा हाथ म कचैड़ी, जलेबी से भरा बतन लेकर
प च
ँ े तो देखा, बसुआ एक ही जगह हल-बैल चलाए जा रहा है। दन भर म वह क ा भर
जमीन भर नह जोत पाया है। हाँ, िजतनी जमीन जोता है उतनी जमीन क िम ी चूड़
होकर पाउडर क तरह महीन हो चुक है। गोनू झा को कु छ समझ म नह आया क बसुआ
एक ही जगह हल य चलाए जा रहा है? उ ह ने ोध म आवाज दी–‘‘ओए बसुआ, इधर
आ!’’
बसुआ हल-बैल छोड़कर गोनू झा के पास आने से पहले कु एँ पर गया और हाथ-पैर धोकर
गोनू झा के पास प च
ँ ा और बोला–‘‘लाइए मािलक, मजेदार और चटपटी चीज! भूख लगी
है खा तो लूँ!’’
गोनू झा उसे खाता देखकर मन ही मन खीज रहे थे। जब बसुआ खा चुका और बतन
धोकर उ ह थमाने लगा तब गोनू झा ने बतन लेते ए बसुआ से पूछा–‘‘बसुआ! आज दन
भर म तू क ा भर जमीन भी नह जोत पाया! ऐसे ही जोताई होती है?’’
साधु ने बताया क वह चार धाम का मण करके लौटा है। िमिथला म अपने यजमान
को साद बाँटता आ महाराज के पास उ ह और उनके दरबा रय को साद देने क
इ छा से वह वहाँ आया है। साद िवतरण तक ही वह वहाँ के गा, उसके बाद िवदा हो
जाएगा। साधु ने महाराज को अपनी थैली से िनकालकर चार बताशे दए और
कहा–”राजन्! ये चार बताशे, चार धाम के साद ह। इनका समान िवतरण यहाँ
दरबा रय के बीच होना चािहए। हाँ, यान रहे क साद सबसे पहले आप ही हण
करगे।“
महाराज िवि मत भाव से अपनी तलहथी पर पड़े चार बतास को थोड़ी देर तक देखते
रहे फर उ ह ने अपने दरबा रय क तरफ देखा। उनक समझ म नह आ रहा था क इन
चार बताश का सभी दरबा रय के बीच समान िवतरण कै से हो सकता है? अ ततः उ ह ने
एक वृ दरबारी को बुलाकर चार बताशे दए और बोले–”आप बुजुग ह। आप हीे इन
बताश का समान िववरण कर।“
दरबार म बैठा काना नाई, जो गोनू झा से बैर भाव रखता था, हठात् अपने आसन से उठा
और महाराज से कहने लगा–”महाराज! यह काय इस दरबार म के वल एक ही ि कर
सकता है–वह और कोई नह , हमारे दरबार के सबसे गुणी ि गोनू झा जी ह। आप यह
काय उ ह स पे... फर कोई सम या नह रहेगी।“
महाराज काना नाई क कु टलता भाँप गए। गोनू झा ने भी समझ िलया क काना नाई ने
इस काय को अस भव मानकर उ ह नीचा दखाने के िलए उनके नाम का ताव कया है।
इस बात को भाँपते ही गोनू झा के ह ठां◌े पर मु कान तैर गई।
गोनू झा क माँग त काल पूरी करने का िनदश महाराज ने दे दया। थोड़ी ही देर म सारी
व तुएँ दरबार म आ ग । गोनू झा ने चीनी पानी से भरे माठ म डाल दया। फर उसम
गुलाब जल क बोतल खोलकर सारा गुलाब जल उड़ेल दया। फर उ ह ने एक करछु ल क
माँग क । करछु ल भी आया। एक आदमी को गोनू झा ने माठ के पानी म डाले गए चीनी को
िहलाकर पानी म घुलाने का िनदश दया। दरबारीगण आँख फाड़े सारी गितिविधयाँ देख
रहे थे। कसी क भी समझ म नह आ रहा था क गोनू झा आिखर करना या चाहते ह।
गोनू झा रोज गाय का दूध पीते। दही खाते। मलाई खाते। दूध के तरह-तरह के पकवान
उनके घर म बनते रहते थे।
दूसरी तरफ गाँव के लोग म होड़-सी मची थी क कसक िब ली यादा दमदार दखती
है। अपनी िब ली के साज-सँवार म ये लोग िजतना यान दे रहे थे, कभी उतना यान
अपने ब क परव रश पर भी इन लोग ने नह दया था।
दूध को गाढ़ा होने तक उबाला जाता ता क िब ली जो दूध पीए, वह यादा पौि क हो।
कहने का ता पय यह क लोग अपना कम और िबि लय का खयाल यादा रख रहे थे।
गोनू झा सबसे अलग अपनी िब ली के साथ एक कनारे खड़े थे। जब महाराज उनके पास
प चँ े तो चक गए–‘‘अरे , यह या पंिडत जी! िब ली बीमार है या?’’ उ ह ने गोनू झा से
पूछा।
गोनू झा का यह उ र सुनकर महाराज तैश म आ गए। तुर त एक कटोरी दूध मँगाई। दूध
देखते ही गोनू झा क िब ली गोनू झा क गोद से जबरन छटपटाकर िनकली और छलाँग
लगाकर दूसरी ओर महाराज के बैठने के िलए रखे आसन के पास जाकर छु प गई। महाराज
को िव ास हो गया क गोनू झा क िब ली दूध नह पीती।
महाराज ने सबको िबि लयाँ छोड़ देने के िलए कहा। सबक िब ली जमीन पर रखी गई।
गोनू झा ने चूहद
े ानी का मुँह खोल दया। सभी देखते रह गए। िबजली जैसी तेजी से गोनू
झा क िब ली ने ताबड़-तोड़ सारे चूहे मार डाले। अ य लोग क िबि लयाँ दूध से अघाई;
अपने थान पर अलसाई ई पड़ी रह ।
गोनू झा अपने दरवाजे पर गाँव के बड़े-बुजुगा◌े को समझा रहे थे। दरअसल िमिथलांचल
म उस वष धान क फसल अ छी ई थी। खेत म धान नह , सोने क बािलयाँ मचल रही
थ । गोनू झा के गाँव म ही सोने-सी चमकती धान क बािलय ने ामीण को मं ामु ध
कर रखा था। गाँववाले इसे ई र क कृ पा मान रहे थे। उ ह लग रहा था क भगवान
गाँववाल पर स है िजसके कारण उनके गाँव म धान क फसल ब त अ छी ई है।
गाँववाले एकजुट होकर धनकटनी के समय अ छी फसल के िलए उ सव मनाना चाहते थे।
धान क अ छी फसल के िलए सव थम वे भगवान से फसल क र ा के िलए सामूिहक
प से म त माँगना चाहते थे। ायः येक ामीण ने भगवान को अ छी फसल देने के
िलए कु छ न कु छ चढ़ावा चढ़ाने क म त माँगी थी। कौन भगवान को या चढ़ाएगा,
कसके घर से भगवान के िलए या चढ़ावा आएगा, इसक एक सूची तैयार कर ली गई थी
मगर इस सूची म गोनू झा का नाम नह था इसिलए गाँव के बड़े-बुजुग का एक ज था
उनके पास आया आ था यह कहने के िलए क वे भी अपना नाम इस सूची म दज करा ल
तथा वे भगवान को या चढ़ावा चढ़ाएंगे यह िलखा द। मगर गोनू झा तो गोनू झा थे। वे
इन बुजुग क बात मानने को तैयार नह थे और वे ामीण को कमयोग क िश ा देने म
लगे ए थे।...
गोनू झा अपनी बात कहे जा रहे थे‘‘देिखए! आप सभी बड़े ह–मेरे िलए िपता समान है!
म आप लोग क हर बात मानने के िलए तैयार ँ मगर यह चढ़ावा और म त वाली बात
रहने दीिजए। वैसे भी पूजा और चढ़ावा तो आ था क बात है। आपक आ था है–आप
चढ़ाएँ। ले कन इसके िलए मुझे तो या, कसी और को भी बा य नह कर।’’
मगर ामीण का दवाब गोनू झा पर बना रहा और उनसे पंड छु ड़ाने के िलए गोनू झा ने
उनसे कहा–‘‘ठीक है! जब आप लोग का यही खयाल है क मुझे कोई चढ़ावा चढ़ाना
चािहए तो म एक छ टा (बाँस क टोकरी) धान चढ़ावा के प म चढ़ाने के िलए तैयार ँ
मगर शत यह है क एक पिथया धान हो।’’
गोनू झा ने ामीण को देखते ही उनके आने का कारण समझ िलया और धान से भरे
टोकरे को उठाकर ‘पिथया’ म पलटते ए कहा–‘‘ या कर भाई...ई पिथया भर ही नह
रहा है। सुबह से कोिशश कर रहा ।ँ धान पिथया म जाते ही िबला जा रहा है...यह देिखए
अि तम टोकरा है धान का आप लोग के सामने। यह देिखए, पिथया म डाला धान और
देिखए, धान िबला गया।“
गोनू झा को मौन देखकर उनके र तेदार ने अपनी बात जारी रखी। उसने गोनू झा को
बताया क आम क फसल को वषा से बचाने के िलए उसने देवी माँ से म त माँगी है क
आम तैयार होते ही ित दन दो आम उनके मि दर म चढ़ाएँगे।
गोनू झा या कहते! बस, सुिध ोता क तरह उनके साथ बागान म टहलते रहे।
गोनू झा ने संयत होते ए कहा–‘‘आपके साथ इसी जगह पर नदी मइया से मने म त
माँगी क कह से कु छ ज र चढ़ाऊँगा। ब त जगह गया, कह कु छ नह िमला। अब भा य
देिखए। आपके घर आते ही आपने कु छ मँगा दया और मने नदी मइया को कु छ चढ़ा दया।
इस तरह म त पूरी हो गई।’’
गोनू झा का र तेदार उनका मुँह देखता रह गया।
अ ध क सूची म महाराज
गोनू झा के साथ एक दन िमिथला नरे श अपने बाग म टहल रहे थे। उ ह ने यूँ ही गोनू
झा से पूछा क देखना और –ि -स प होना एक ही बात है या अलग-अलग अथ रखते
ह?
गोनू झा अपने थान से उठे और महाराज के कान म धीरे से फु सफु साए–”खाते म आपका
नाम दज कर रहा था।“ ‘‘खाते म? कस तरह के खाते म?’’ महाराज ने पूछा। गोनू झा
बोले–‘‘आपने ही तो िमिथला के –ि -स प लोग क सं या बताने को कहा है, तो मने
अपने गाँव से ही पड़ताल आर भ कर दी है। ज दी ही पूरे िमिथला का आँकड़ा तैयार हो
जाएगा।’’