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िवषय सूची

1. कोड़ क सजा

2. सूद-मूल बराबर

3. चार पंि य म रामायण

4. पोथी ई समा

5. रात का भाव

6. गोनू क बहादुरी

7. पंिडताइन का सहारा

8. नहले पर दहला

9. खेत जोत गए चोर

10. जैसे को तैसा

11. अस भव आ स भव

12. कम ही पूजा है

13. गुलाब क सुग ध

14. मछली क परसादी

15. शु िमठाई का भोज

16. पेड़ पर जेवर

17. बात ऐसे बनी

18. अथ कनौसी कथा


19. माँ काली का वरदान

20. गोनू झा क िनयुि

21. लालच बुरी बला है भाई!

22. आितशबाजी का सामान

23. भाई को सीख

24. गोनू झा को ‘मृ यु दंड’

25. अपन का सच

26. गोनू झा क शरण म दरबारी

27. वग से वापसी

28. धन क सुर ा का कारण

29. साधु बन गए गोनू झा

30. दाढ़ी के बाल से मुि का माग

31. उपदेशी को सबक

32. माघ अमाव या पर ढेले का टोटका

33. खेत क संचाई

34. चोर ने तौबा कर ली

35. आँख क तौल

36. कं जूस राजा को नसीहत

37. िमिथला से चोर का सफाया

38. ठग उ मूलन अिभयान


39. गंगा का आशीवाद

40. राख क क मत म महल

41. कृ त ाणी

42. बौराये भोनू का बचाव

43. अथ ीबैल कथा

44. गोनू झा ए परािजत

45. समान िवतरण व था

46. दूध से भागने वाली िब ली

47. धान का चढ़ावा

48. पड़ोसी का पीढ़ा

49. अ ध क सूची म महाराज


कोड़ क सजा
िमिथला नरे श कलाि य ि थे। अपने रा य म कला ेिमय को ो सािहत करने के िलए
वे ायः ितयोिगता का आयोजन कराते। िविभ योहार के अवसर पर राजदरबार
क ओर से िविभ तरह के मनोरं जक काय म का आयोजन वे कराते रहते िजसके
मा यम से कलाकार को इतनी आमदनी हो जाती थी क वे अपनी कला-साधना म साल
भर लगे रह सकते थे।

कलाकार के ित िमिथला नरे श क सदाशयता क चचा दूर-दूर तक फै ली ई थी।


बाहर से आने वाले कलाकार के िलए िमिथला नरे श का दरवाजा हमेशा खुला रहता था।
ायः कलाकार कसी आव यकता के समय म राजदरबार जाते और िमिथला नरे श के
सम अपनी कला का दशन कर उनसे कु छ न कु छ पा रतोिषक ा कर लौट आते।

िमिथला नरे श ने आगंतुक कलाकार क सुिवधा के िलए एक क का िनमाण कराया


था। आगंतुक कलाकार के वागत तथा िमिथला नरे श से उनक मुलाकात कराने के िलए
एक क पाल क िनयुि उ ह ने क थी।िमिथलानरे श ने बाहर से आए कलाकार और
िमिथला के ज रतमंद कलाकार से कसी भी ण िमलने क अपनी वीकृ ित दे रखी थी।
ले कन उ ह ने क पाल को यह अिधकार भी दे रखा था क वह यह जाँच-परख ले क
कलाकार वाकई कला साधक है और ज रतम द है।

इस व था से कु छ दन तक तो सब कु छ ठीक चला क तु जब क - पाल ने देखा क


िमिथला नरे श से िमलकर लौटने वाले कलाकार तरह-तरह के उपहार ा कर वापस आते
ह तो उसने सोचा क य द वह इन फटीचर से दखने वाले कलाकार को महाराज से
िमलने क वीकृ ित दान नह करे तो या उ ह ये पुर कार िमल सकगे? नह । फर उसके
मन म िवचार आया क य न वह इन आगंतुक से सौदा करे क महाराज से िमलना है तो
उनसे ा होने वाली पुर कार रािश का प ीस ितशत वे क पाल को दान करगे। और
इस िनणय पर प च ँ जाने के बाद दूसरे ही दन से क पाल कलाकार से उनक पुर कार
रािश का प ीस ितशत वसूलने लगा।

कु छ दन यूँ ही बीते। क पाल के तबे म फक आ गया। कहाँ उसे कलाकार के वागत के


िलए िनयु कया गया था और कहाँ वह कलाकार से दबंगता से पेश आने लगा। उसके
कत म यह बात शािमल थी क िमिथला नरे श से िमलने क इ छा रखनेवाले
कलाकार क वह जाँच-परखकर ले क वह वाकई कला-साधक है या नह । मगर वह इस
नीित वा य को भूलकर हर उस ि को महाराज से िमलने क इ छा पूरी करने लगा
जो उसे प ीस ितशत का भुगतान करने को तैयार हो जाता। बाद म उसका साहस और
बढ़ गया जब कु छ लोग ने िमिथला नरे श के दरबार म वेश के िलए उसे अि म ‘चढ़ावा’
देने क पेशकश क ।

िमिथला नरे श ने महसूस कया क उनके पास कलाकार के नाम पर कु छ ऐसे लोग भी
आने लगे ह जो कला के मम नह ह और न ही ितभा के धनी।

का तक का महीना था। फसल कट चुक थ । िमिथला नरे श हर वष का तको सव का


आयोजन कराते थे। इस साल उ ह ने का तको सव को भ प देने का िन य कया था।
उ ह ने एक दन गोनू झा से कहा– ‘‘पंिडत जी! इस वष म का तको सव का भ आयोजन
कराना चाहता ।ँ म चाहता ँ क इस आयोजन म दूसरे रा य के कलाकार को भी
िवशेष आमं ण भेज।ूँ मगर मुझे संकोच हो रहा है य क इस वष अपने रा य के िजतने
भी कलाकार मुझसे िमलने और अपनी कला का दशन करने आए उनम ब त कम ऐसे
लोग थे िजनम कला के त व िव मान थे। मुझे समझ म नह आ रहा था क िमिथलांचल
म कला क अधोगित य हो रही है? बड़े और िस ह त कलाकार इस वष मुझसे िमलने
य नह आए?

जब गोनू झा ने िमिथला नरे श के मुँह से यह बात सुनी तो वे ग भीर हो गए। उ ह


महाराज क बात िच ता पैदा करने वाली लगी क इस वष महाराज से िमलने रा य का
कोई भी व र कलाकार नह आया। उ ह ने सोचा क िनि त प से कोई ऐसी ग भीर
बात है िजससे कलाकार रा य िवमुख हो रहे ह, अ यथा कला को अपने रा य म
ो सािहत करनेवाले िमिथला नरे श से कोई व र कलाकार िमलने भला य नह
आएगा?

गोनू झा ने िमिथला नरे श से कहा‘‘महाराज! आप का तको सव क तैया रय का िनदश


जारी कर और मुझे एक ह ते का समय द। मुझे नह लगता क एक वष म िमिथला म कला
क अधोगित हो गई है। य द राजदरबार म अ छे कलाकार नह आ रहे ह तो इसका कारण
कु छ और भी हो सकता है। इस एक ह ते म म अपने ढंग से इस स ब ध म जानकारी
क ँ गा और मेरा यास होगा क रा य म कला के उ थान के िलए आपके ारा कए जा
रहे स यास क राह म आ रही बाधा को दूर कर सकूँ । िमिथला म कला और कलाकार
पहले से हं◌ै और आपक कृ पा से आज भी ह और कल भी रहगे।’’

िमिथला नरे श से िवदा लेकर गोनू झा अपने ढंग से स य हो गए। िमिथला नरे श से ई
बातचीत के तीन दन बाद ही गोनू झा दरबार म आए और उ ह ने ताव रखा क रा य
के हर आयु वग के िलए एक मेधा परी ण ितयोिगता का आयोजन भी इस बार के
का तको सव म होना चािहए। ‘का तको सव’ क चचा सुनते ही िमिथला नरे श ने समझ
िलया क ज र गोनू झा को कलाकार के राज िवमुख होने का कोई सुराग िमल गया है
और वे इस ‘मेधा परी ण ितयोिगता’ के बहाने उनके सामने कु छ कट करना चाहते ह
फर भी उ ह ने दरबा रय से पूछा–‘‘आप लोग क या राय है?’’
दरबा रय म ऐसे लोग क कमी नह थी जो गोनू झा से जलते थे या ऐसे समय क
ती ा म रहते थे क गोनू झा को नीचा दखाया जा सके । ऐसे दरबा रय ने एकमत
होकर िमिथला नरे श को राय दी क का तको सव तो उमंग और उ लास के िलए
आयोिजत होता है जब क ‘मेधा परी ण ितयोिगता’ ग भीर कृ ित क ितयोिगता है।
मनोरं जन के समय ग भीर ितयोिगताएँ रस-भंग क ि थित पैदा करगी इसिलए इस
तरह क ितयोिगता का तको सव म नह होनी चािहए।

मगर गोनू झा ने िमिथला नरे श से कहा–”इस तरह क ितयोिगता के िलए का तको सव


से अ छा कोई दूसरा अवसर हो ही नह सकता। नवा के आगमन से ामीण का तक म
आ थक सम या से िनि त होते ह। गरीब से गरीब आदमी अपने भोजन-वसन क
िच ता से मु रहता है और सबसे बड़ी बात क ‘का तको सव’ म रा यभर के लोग आते ह
इसिलए रा य क ‘मेधा-शि ’ क पहचान के िलए इससे अ छा अवसर दूसरा नह हो
सकता।’’

िमिथला नरे श को गोनू झा का तक पस द आया और उ ह ने मेधा परी ण ितयोिगता


के आयोजन क वीकृ ित दे दी।

इस वीकृ ित के तुर त बाद गोनू झा ने िमिथला नरे श के सामने इ छा जताई–”महाराज,


म भी इस मेधा परी ण ितयोिगता म भाग लेना चाहता ।ँ “

दरबा रय म जैसे ही गोनू झा को महाराज से यह कहते सुना क मेधा परी ण


ितयोिगता म वह भाग लेना चाहते ह, तो उ ह ने िवरोध करना शु कर दया क इस
तरह क कसी भी ितयोिगता म राज-दरबार का कोई भी ि शािमल नह हो सकता
ले कन गोनू झा ने पुनः िमिथला नरे श से कहा–”महाराज, म इस ितयोिगता मं◌े अपनी
मेधा क वा तिवक मता क पहचान के िलए भाग लेना चाहता ।ँ मुझे पा रतोिषक क
अिभलाषा नह है।“ उ ह ने दरबार म घोषणा क क दरबारी य द उ ह इस ितयोिगता
म शािमल होने के िलए इस शत पर वीकृ ित दान कर क वे कोई भी इनाम हण नह
करगे तो वे उनके आभारी रहगे। इस पर दरबारी शा त होकर अपने आसन पर बैठ गए।

महाराज ने गोनू झा को मेधा परी ण ितयोिगता म भाग लेने क वीकृ ित दे दी।

इसके चार-पाँच दन बाद िमिथला का िस का तको सव ार भ आ। एक पखवारे


तक चलनेवाले इस आयोजन म रा य भर के कलाकार तो आए ही, रा य के बाहर के भी
िवशेष आमंि त कलाकार ने अपनी कला का दशन कया।

का तको सव के समापन समारोह के दन पुर कार िवतरण क व था के िलए िवशेष


प से बनवाया गया बृहत पंडाल खचाखच भरा था। िमिथला नरे श पुर कार िवतरण के
िलए वयं मंच पर आसीन थे। सबसे पहले मेधा परी ण ितयोिगता के प रणाम सुनाए
गए। गोनू झा का दशन सव े िन िपत आ था। ले कन उ ह ने घोषणा कर रखी थी
क वे पुर कार नह लगे इसिलए उनके बाद थम, ि तीय और तृतीय थान पर आए
लोग को पुर कार दए गए।

इस पुर कार िवतरण के बाद िमिथला नरे श ने अपनी ओर से गोनू झा को कु छ इनाम देने
क इ छा जािहर क तब गोनू झा ने कहा–”य द महाराज मुझे कु छ देना चाहते हं◌ै तो
मुझे मुँहमाँगा इनाम द।“

उनक बात सुनकर पंडाल म बैठे दरबा रय म काना-फू सी होने लगी। अ ततः िमिथला
नरे श ने गोनू झा से पूछा–‘‘हाँ, पंिडत जी, आप बताए क आपको या इनाम चािहए?’’

गोनू झा ने कहा”मुझे नंगी पीठ पर एक हजार कोड़ां◌े का इनाम द।“

उनक यह माँग सुनते ही पंडाल म स ाटा छा गया। पंडाल म बैठे ई यालु दरबा रय के
मुँह खुले के खुले रह गए। गोनू झा क माँग इतनी अ याि त थी क दरबा रय क समझ
म नह आया क आिखर गोनू झा इस तरह एक हजार कोड़ क मार य खाना चाहते ह।
पाँच-दस कोड़े म तो आदमी बेदम हो जाता है और गोनू झा हजार कोड़े खाएँग?े यह
आ मह या नह तो और या है?

िमिथला नरे श भी ह भ थे। उ ह ने गोनू झा से कु छ और माँगने को कहा मगर गोनू झा


ने कहा–‘‘महाराज, आपने मुझे मुँहमाँगा इनाम देने क घोषणा क है। अब उससे मुकर
नह ! मुझे हजार कोड़ का इनाम चािहए– नंगी पीठ पर और कु छ भी नह ।’’

अ ततः िमिथला नरे श ने गोनू झा क पीठ पर हजार कोड़े लगाने का िनदश दे दया।
कोड़े लेकर दो मु टंडे िसपाही मंच पर आ गए तब गोनू झा ने िमिथला नरे श से
कहा–”पंडाल म अगली पंि म बैठे ‘कलाकार वागत क पाल’ को पहले मंच पर बुलाया
जाए।“

िमिथला नरे श समझ चुके थे क गोनू झा अब उनके सामने कु छ रह यो ाटन करने वाले
ह। उ ह ने क पाल को मंच पर लाने का िनदश दया। क पाल जब मंच पर लाया गया
तो उसके चेहरे पर हवाइयाँ उड़ रही थ । का तक के ठं ड म भी माथे पर पसीने को बूँद
चुहचुहा आई थ । वह डरा और सहमा-सा दख रहा था। गोनू झा ने क पाल का हाथ
फै लाकर मंच पर वागत करते ए कहा–”आइए कला-पारखी-कलाकार 6 वागत-क
भारी, क पाल महोदय! िबना आपक वीकृ ित के कोई रा य ारा आयोिजत
ितयोिगता म भाग नह ले सकता। आपसे अनुमित िमलने के एवज म अपने पा रतोिषक
का प ीस ितशत भुगतान का वादा म सावजिनक प से पूरा कर रहा ँ ता क भिव य
म मेरे िलए भी आप राज दरबार म वेश का माग श त रख।“
महाराज के कान म जब गोनू झा क बात प च ँ तब उ ह ने समझ िलया क क पाल
कस तरह का गोरख-ध धा चला रहा था तथा य गोनू झा ने मेधा परी ण- ितयोिगता
के आयोजन म शरीक होने क अनुमित ली थी। उ ह ने गोनू झा क ओर देखा, तब गोनू झा
ने कहा–”महाराज, इस क पाल क पीठ पर ढाई सौ कोड़े लगवाएँ। इसने मेरे साथ सौदा
कया था क जो भी पा रतोिषक मुझे िमलेगा उसका प ीस ितशत म इसे दे दूगँ ा। ऐसा
नह करने पर इसने चेतावनी दी थी क फर यह भिव य म कभी भी नरे श से िमलने का
अवसर मुझे दान नह करे गा।“

पंडाल म बैठे कलाकार ने भी खड़े होकर क पाल क िशकायत शु कर दी।

महाराज ने सभी क बात सुन । मंच पर ही क पाल को सावजिनक प से कोड़े लगाए


गए और नौकरी से बखा त कए जाने क घोषणा भी कर दी गई। महाराज ने गोनू झा को
ढेर सारा इनाम दया और ‘कला िशरोमिण’ क उपािध से िवभूिषत कया।

का तको सव म भाग लेने आए कलाकार ने मु कं ठ से गोनू झा क शंसा क और गोनू


झा से ई या रखने वाले दरबारी अपना-सा मुँह िलये लौट गए।
सूद-मूल बराबर
गोनू झा अपने आरि भक दन म ब त गरीब थे। दो जून क रोटी जुटाना उनके िलए
क ठन था। ऐसे ही दन म घर म ऐसी ज रत आ पड़ी िजसे टालना मुि कल था। गोनू झा
को महाजन के पास जाना पड़ा और उससे सूद पर दो सौ पए उधार लेना पड़ा।

दन बीतते गए। चाहकर भी गोनू झा महाजन का पैसा वापस नह कर पाए। सूद बढ़ता
गया। एक दन गोनू झा के घर महाजन आ धमका और पैसे वापस करने क िजद करने
लगा। गोनू झा उसे टालना चाह रहे थे मगर महाजन था क टलने का नाम नह ले रहा
था।

गोनू झा से महाजन ने ठे ठ लहजे म कहा–”पंिडत जी, स क भी सीमा होती है। अब


सूद-मूल िमलकर चार सौ पए हो गए। िबना पैसे िलए म यहाँ से जाने वाला नह ।“

गोनू झा परे शान हो गए। अ त म उ ह ने कहा–”मुझे एक िच ी िलख लेने दो– फर सूद-


मूल क बात करना।“ गोनू झा ने एक कागज पर िच ी िलखी। िच ी को मोड़कर धोती के
फट म लपेट िलया और फर महाजन से बोले–‘‘सेठ जी! आप नह मान रहे ह तो लीिजए,
अब म अपनी इहलीला समा कर रहा ।ँ मने यह िच ी महाराज के नाम िलखी है िजसम
मने साफ-साफ िलख दया है क मने महाजन से सूद पर दो सौ पए िलए थे। महाजन का
कहना है क सूद समेत मुझे चार सौ पए देने ह और मेरे पास पैसे नह ह। इसिलए म
अपनी फजीहत कराने से अ छा मर जाना समझकर फाँसी लगा रहा ।ँ ’’

गोनू झा ने एक धोती समेटी और उसका फं दा बनाकर बनेरी म बाँधने लगे। महाजन के


हाथ के मानो तोते उड़ गए। उसे जैसे काठ मार गया। जब गोनू झा ने धोती का फं दा अपने
गले म लगाया तो महाजन को होश आया और उसने गोनू झा के पाँव पकड़ िलए तथा वह
िगड़िगड़ाने लगा– ”नह महाराज, नह । आप ऐसा काम नह कर। ह या का पाप मुझ
पर लगेगा–मेरा परलोक िबगडे़गा। म सूद छोड़ने को तैयार ।ँ आप मेरा मूल दो सौ पये
लौटा द, म खुशी-खुशी चला जाऊँगा।’’

ले कन गोनू झा नह माने। उ ह ने कहा–‘‘म दो सौ पया कहाँ से दू?ँ मेरे पास एक धेला


भी नह है। ऐसी िज दगी से तंग आ गया ।ँ मेरे िलए मर जाना ही बेहतर है।’’

महाजन यह सोचकर डर गया था क गोनू झा क िच ी से उस पर उ ह आ मह या के


िलए े रत करने का आरोप लगेगा और वह महाराज के कोप का भाजन बन जाएगा। डर
से महाजन के ाण सूख रहे थे। शरीर से ठं डा पसीना रस रहा था। उसने गोनू झा से
कहा–‘‘पंिडत जी! दो दन के बाद ही मेरे बेटे का िववाह है। इसीिलए पैसे क ज रत है
वरना म आपके दरवाजे पर कदम भी नह रखता। चिलए–म मूल म से एक सौ पए और
छोड़ देता ।ँ मुझे बाक पैसे दे दीिजए, म वापस चला जाऊँगा।’’

गोनू झा ने अपने गले से फं दा हटाया। चैक से नीचे उतरे । ब त शा त वर म उ ह ने


महाजन से कहा–‘‘ठीक है। आपसे मने दो सौ पए उधार िलए थे। उसम से आपने एक सौ
पए छोड़ दए ह। अब आपको मुझसे सौ पए लेने ह। परस आपके बेटे क शादी है। म
पंिडत ।ँ यह शादी म करा दूग ँ ा। एकावन पए शादी कराने के , इ स पए ितलक के ,
इ स पए नव ह शाि त के तथा इ स पए गाँठ बाँधने के यानी कु ल एक सौ चैदह
पए बनते ह। अब आप यह मान ल क आपने मुझे पंिडताई के िलए सौ पए पेशगी दी है।
िववाह स प हो जाने के बाद आप मुझे चैदह पए दे दीिजएगा। अब जाइए, िववाह क
तैयारी क िजए। हमारा आपका िहसाब बराबर हो चुका है।“

बेचारा महाजन चुपचाप वहाँ से चला गया और गोनू झा के चेहरे पर मु कान खेलने
लगी।
चार पंि य म रामायण
गोनू झा अभी जगे ही थे क चार नवयुवक उनके घर प च
ँ े और गोनू झा के दरवाजे पर
द तक दी।

गोनू झा मन ही मन भुनभुनाये–न जाने कौन आ गया, इतने सबेरे!...िब तर से उतरकर


उ ह ने दरवाजा खोला तो देखा, दरवाजे पर चार अजनबी युवक खड़े ह। देखने से
बदहवास से लग रहे युवक पर गोनू झा ने सूचक ––ि डाली और पूछा–‘‘ या बात
है?’’

चार युवक म से एक युवक ने कहा–‘‘हम पंिडत जी से िमलना है।’’

गोनू झा ने पूछा–‘‘पंिडत जी मतलब–गोनू झा?’’

युवक ने कहा–‘‘जी हाँ, जी हाँ!’’

गोनू झा ने कहा–‘‘म ही गोनू झा ,ँ किहए, या काम है मुझसे?’’

इतना सुनना था क चार युवक द डवत् क मु ा म आ गए।

उनके इस अिभवादन से गोनू झा ने इतना तो अव य भाँप िलया क ये युवक उनसे कोई


सहायता लेने आए ह। उ ह ने युवक को अपने कमरे म बुला िलया और उ ह बैठने के िलए
कहकर, पूछा–‘‘य द म ान- यान से िनवृत होकर आप लोग से बात क ँ तो...?’’

युवक ने िवन ता से कहा–‘‘जी हाँ, पंिडत जी! हम लोग ती ा कर लगे। आप ान-


यान से िनवृत हो ल।’’

थोड़ी देर बाद ही ान- यान से िनवृत होकर गोनू झा ने युवक से पूछा–‘‘बताओ भाई!
या बात है? कहाँ से आए हो और मुझसे या चाहते हो?’’

युवक ने उ ह बताया‘‘पंिडत जी हम चार किव ह। हम सबके माता-िपता हम लोग को


िनख टू समझते ह। हम लोग ने सुना था क िमिथला नरे श किवय का स मान करते ह।
इसिलए हम चार ने िमलकर एक किवता बनाई और िमिथला नरे श को सुनाने के िलए
दरबार म गए। महाराज ने हम िमलने का अवसर तो दे दया मगर किवता सुनने के बाद
हम डाँटकर भगा दया। हम बेहद अपमािनत होकर वहाँ से लौट आए। हम लोग को एक
दरबारी ने बताया क आप भी किव ह...और जैसी किवता आप करते ह, वैसी ही किवता
हमने भी क है। आपक किवता सुनकर आपको महाराज ने पुर कृ त कया था जब क
हमारी किवता सुनकर उ ह ने हम भाग जाने को कहा। उसी दरबारी ने हम बताया क
आप ही हमारी किवता का ‘भाव’ समझ सकते ह और महाराज को हमारी किवता के
गूढ़ाथ समझा सकते ह।’’

गोनू झा ने युवक क बात यान से सुनी। जब दरबारी का संग आया तो वे उ सुक ए


क आिखर महाराज के कस दरबारी ने उनके बारे म इन युवक को जानकारी दी क वे
भी उनके जैसी ही किवता करते ह? अपनी उ सुकता शा त करने के िलए उ ह ने युवक से
पूछा–‘‘वह दरबारी कौन था?’’

युवक ने बताया–‘‘हमने तो उसका नाम नह पूछा–हाँ, वह िविच ा ढंग से पगड़ी बाँधे


ए था। पगड़ी से उसक एक आँख छु पी ई थी।’’

गोनू झा समझ गए क इन युवक को ‘काना नाई’ ने उनके पास भेजा है। काना नाई
महाराज के दरबार म था और उन मह वाकां ी दरबा रय क चैकड़ी म शािमल था जो
गोनू झा से िमलते थे तथा उ ह नीचा दखाने का कोई अवसर नह खोना नह चाहते थे।
गोनू झा समझ गए क ज र इन युवक क किवता म कोई ऐसी बात है जो अशोभनीय है
अ यथा काना नाई उ ह इस तरह उ े रत कर उनके पास नह भेजता। उ ह ने युवक से
कहा–‘‘मुझे तुम लोग िव तार से बताओ क तुम लोग ने िमलकर किवता कै से िलखी और
तु हारी किवता या है?’’

युवक म से एक ने कहा–‘‘पंिडत जी, अब तो किवता पढ़ने का हौसला भी जाता रहा।


कहाँ हमने सोचा था क किवता सुनाने के बाद महाराज से जो ईनाम िमलेगा उसे ले
जाकर अपने माता-िपता को दगे ता क वे समझ सक क हम भी कु छ कर सकते ह, हम
िनख टू नह ह, हमारी भी कोई पहचान है...’’ गोनू झा ने उसे बीच म ही टोककर
कहा–‘‘यह सब रहने दो...किवता सुनाओ!’’ तब युवक म से एक ने कहा–‘‘पंिडत जी। जब
हम लोग महाराज के दरबार के िलए अपने गाँव से िनकले तो रा ते म एक गूलर का पेड़
िमला और मने एक गूलर पेड़ से टू टकर िगरते देखा तब किवता क पहली पंि बनाई
पककर गूलर िगर गयो।’’

दूसरे युवक ने कहा–‘‘और पंिडत जी, मने राह म एक पीपल के पेड़ से प े तोड़कर ले
जाती एक मिहला को उसी समय देखा तो अनायास ही मेरे मुँह से यह पंि िनकली:

लायो पीपर नारी।’’

तीसरे युवक ने कहा–‘‘पंिडत जी! मने जामुन का एक पेड़ देखा िजस पर अनिगनत
जामुन फले ए थे तो मने किवता क तीसरी पंि बनाई
जामुन अ त न पाइयो।’’

अब चैाथे युवक क बारी थी। उसने गोनू झा से कहा–”हम लोग थोड़ी दूर और बढ़े तो
देखा क कु छ ब े खेलते-खेलते झगड़ने लगे तब मने किवता क अि तम पंि जोड़ी:

बरबस ठानो रारी।’’

और इस तरह उनक किवता पूरी ई:

‘पक कर गुलर िगर गयो,


लायो पीपर नारी।
जामुन अ त न पाइयो,
बरबस ठानो रारी।’

गोनू झा समझ गए क काना नाई ने उनका उपहास उड़ाने के िलए ही इन युवक को


उनके पास भेज दया है। उ ह ने मन ही मन सोचा क ऐसे तो ये युवक मूख ह क तु उनके
मन म अपने माता-िपता को स करने क इ छा है। इस इ छा के कारण ही वे महाराज
के दरबार म किवता सुनाने चले गए। दूसरी तरफ कानानाई उनसे जलता है तथा उनका
मजाक उड़ाने के िलए इन युवक को उनके पास जाने के िलए े रत कया है। उ ह ने मन
म ठान िलया क वे इन युवक को महाराज से पुर कार दलाकर ही रहगे।

वे अपने साथ उन युवक को लेकर दरबार म प चँ ।े महाराज ने जब दरबार म युवक को


देखा तो वे आग-बबूला हो गए और डाँटते ए बोले– ‘‘अरे ! तुम लोग फर यहाँ आ गए?’’

गोनू झा ने िवन तापूवक ह त ेप कया–‘‘महाराज! इन किवय को म लेकर आया ।ँ


आपके पास।’’ िजस समय गोनू झा यह बात कह रहे थे, उस समय उनक –ि काना नाई
पर टक ई थी। गोनू झा ने मु कु राते ए फर कहा–‘‘महाराज! म तो इन युवक क
चैपाई सुनकर िवि मत-सा रह गया। मुझे आ य है क इतनी कम उ म इन युवक ने
चार पंि य म ‘स पूण रामायण!’ क रचना कै से कर ली!’’

अब महाराज के चकने क बारी थी। महाराज के मुँह से िनकला– ‘‘स पूण रामायण?’’

‘‘जी हाँ, महाराज! स पूण रामायण! य द आप अनुमित द तो म इन युवक क लघु


क तु महानतम रचना आपको सुनवाऊँ?’’ गोनू झा ने महाराज से कहा।

महाराज ने अनुमित दे दी। पूरे दरबार म उ सुकता पैदा हो चुक थी। युवक ने बारी-
बारी से अपनी-अपनी ‘रचना’ दरबार म सुनाई:

‘पक कर गुलर िगर गयो’


‘लायो पीपर नारी’
‘जामुन अ त न पाइयो’
‘बरबस ठानो रारी।’

महाराज क समझ म कु छ नह आया तब उ ह ने गोनू झा क ओर देखा।

गोनू झा समझ गए क महाराज उनसे कह रहे ह क या बकवास किवता है!

गोनू झा ने मुखर वर म कहा–‘‘महाराज! ये पंि याँ सामा य नह ह...इनसे गूढ़तम


बात विनत हो रही ह। यह तो राम-रावण के यु से लेकर उसके प रणाम तक को
रे खां कत करनेवाली रचना है। ‘पक कर गूलर िगर गयो।’ व तुतः रावण क प ी मंदोदरी
का िवलाप है–क ण रस का ऐसा वणन कसी अ य पंि म कहाँ? इस पंि म किव कहता
है क स पूण सोने क लंका, जो रावण के अिभमान का तीक थी, पके गूलर क तरह
धराशयी हो गई। ‘लायो पी-पर-नारी।’ मंदोदरी के दन म यह विनत होता है क पी
यानी मंदोदरी का िपया...पित, अथात् रावण, पर-नारी अथात् राम क प ी सीता को ले
आया िजसके कारण लंका का िवनाश आ। ‘जा-मन, अ त न पाइयो’ म भगवान ीराम
का यशोगान है क हे मन! राम तो भगवान ह–अनंत ह। उनके साम य को भला कै से जाना
जा सकता है...? और महाराज! किवता क अंितम पंि का अथ तो अब िबलकु ल साफ हो
गया क मंदोदरी िवलाप करते ए कहती है क िजस परमे र राम के मन क शि क
थाह कोई नह ले सकता उससे उसके पित रावण ने बरबस दु मनी मोल ले ली िजसका
नतीजा आ क वह आज अपने सम त ऐ य के साथ व त हो गया।’’

महाराज उस किवता से तो नह , बि क गोनू झा ारा क गई िव तापूण िववेचना से


भािवत ए। उ ह ने यह भी समझ िलया क गोनू झा इन युवक क मदद करना चाहते
ह। इसका अथ है क उ ह ने इन युवक म कोई अ छी बात ज र देखी है, अ यथा वे इ ह
लेकर दरबार म नह आते। ऐसा िवचार कर महाराज ने युवक को इनाम दया।

इनाम पाकर चार युवक स ए और दरबार से िवदा होते समय इन युवक ने जब


गोनू झा का चरण पश कया तब गोनू झा ने आशीष देने क शैली म कहा–‘‘जाओ, इनाम
म िमली धनरािश अपने माता-िपता को देकर स करो। अब घर जाकर कु छ काम क
बात सीखो। किवता से रोजी-रोटी नह िमलती।’’

युवक के जाने के बाद गोनू झा ने काना नाई क तरफ भरपूर ––ि डाली और मु कु राते
ए अपने आसन पर िवराजमान हो गए।
पोथी ई समा
गोनू झा जब ब े थे तब उनका मन पढ़ाई म नह लगता था। उनके माता-िपता थे क
उनके पीछे हाथ-धोकर पड़े रहते थे क वे पढ़। गोनू झा बातूनी भी थे और चालाक भी।
कू ल म गु जी क बत से बचने का कोई न कोई अ छा बहाना वे िनकाल ही लेते थे और
सहपा ठय के साथ चुहल करने से भी वे बाज नह आते थे। उनक हािजरजवाबी
मु धकारी थी िजसके कारण िश क का गु सा भी ठं डा हो जाया करता था।

एक दन उनके िश क ने उनसे कहा–‘‘सुनो गोनू! तुम बुि मान हो, चालक हो,
िववेकशील हो फर भी तुम शैतािनयाँ करते रहते हो। यह अ छी बात नह है। म देखता ,ँ
तुम दन भर क ा म सहपा ठय से बात करते रहते हो। अब यह सब छोड़ो और अ छे
िव ाथ क तरह क ा म यान से गु जन क बात सुनो। अपना पाठ याद करो। तुम
पढ़ाई पर थोड़ा भी यान दोगे तो ब त अ छा करोगे।’’

गोनू झा हमेशा क तरह बोले–‘‘जी, गु जी! म क ा म आपक बात यान से सुना


क ँ गा।’’

गु जी को लगा क गोनू झा पर उनक बात का असर आ है। उ ह ने गोनू झा को


चेताया–‘‘य द अब से मने देख िलया क तुम क ा म सहपा ठय से बात कर रहे हो या
सबक बनाकर नह आए हो तो समझ लो क तु ह कठोर दंड दूगँ ा।’’

गोनू झा ने गु जी क ग भीर वाणी सुनी तो घबरा गए और कहने लगे–”नह गु जी।


अब म क ा म शैतानी नह क ँ गा। कसी से बातचीत नह क ँ गा। आप जो सबक दगे,
उसे पूरा क ँ गा।’’

गु जी ने उस दन गोनू झा को पाठ याद करने के िलए दया और कहा क कल जब


िव ालय आओगे तो यह पाठ अव य याद हो जाना चािहए। गोनू झा ने हामी भर दी।
कू ल म छु ी क घंटी बजी। गोनू झा घर वापस आए। ब ता ताक पर रखा और खेलने चले
गए। खेलकर लौटे तो भोजन कया और सो गए। दूसरे दन जब वे कू ल प च ँ े तो क ा म
िश क ने पाठ सुनाने को कहा। गोनू झा ब त शा त होकर बोले–‘‘गु जी, आपने तो कहा
था क कल सुनाना। इसिलए आज म याद करके नह आया। कल सुना दूग ँ ा।’’

गु जी को गु सा आ गया। उ ह ने गोनू झा क कान उमेठ दी और बोले–‘‘कल पाठ ही


नह , पूरी पोथी ख म करके आओगे, नह तो तु ह ऐसा दंड दूग ँ ा क तु हारी सारी
चालाक आसुँ म घुल जाएगी। समझ गए न?’’
गोनू झा ने अपना कान सहलाते ए कहा–‘जी, गु जी।’

फर छु ी ई। गोनू झा घर लौटे और फर प च ँ गए खेल के मैदान म। घर प च


ँ ।े खाना
खाया। माँ से क से सुने और सो गए। दूसरे दन िव ालय जाने के िलए तैयार ए और
ब ते म लेट रहने दया और सारी कताब िनकालकर ताके पर रख द । फर चल दए
कू ल। गु जी ने क ा म हािजरी ली और उसके बाद गोनू झा क पटरी के पास प च ँ ।े
उ ह ने देखा, गोनू झा के ब ते म लेट तो है मगर कताब नह ह। गु जी गु से से आग
बबूला हो गए। सोचने लगे कतना ढीठ है गोनू झा! दो दन से डाँट सुन रहा है मगर
सुधरने का नाम नह ले रहा है। उ ह ने पूछा–‘‘गोनू, या बात है–तुम कताब ले के नह
आए हो?’’

गोनू झा खड़े ए और बोले–‘‘गु जी, कल आपने ही तो कहा था क ‘पाठ या? कल तुम


पोथी खतम करके आना,’ तो म िव ालय आने से पहले पोथी तालाब म बहाकर आया ।ँ
आपके आदेशानुसार मने पोथी ख म कर दी है।’’

गु जी को अपने श द याद आए तो वे िसर पर हाथ रखकर बैठ गए। गोनू को वे कह तो


या कह? वे समझ नह पा रहे थे और गु जी क यह हालत देखकर गोनू झा मन ही मन
मु कु रा रहे थे।
रात का भाव
गोनू झा एक रात सोए ए थे। उनक प ी गहरी न द म उसी पलंग पर सो रही थी िजस
पर गोनू झा सोए ए थे। गोनू झा क ी न द म थे। कह से आ रही खट् -पट् क आवाज से
उनक न द उचट गई। उ ह ने यान देकर इस आवाज को समझने क कोिशश क । आवाज
बाहर वाले ओसारे से आ रही थी।

गोनू झा को समझते देर न लगी क चोर ह गे। आहट कु छ टटोले जाने से पैदा हो रही थी।
ओसारे म कई ‘माठ’ पड़े थे िजनम अनाज रखे गए थे। गोनू झा ने ‘अकान’ कर समझा क
माठ म रखे ‘नपना’ के टकराने से खट-पट क आवाज पैदा हो रही है िजससे उनक िन ा
भंग ई थी।

गोनू झा के दमाग म अचानक एक िवचार क धा और वे झटके से उठे और पलंग पर


बैठकर अपनी प ी को जगाने लगे। पंिडताइन के शरीर को जोर से झकझोरते ए गोनू
झा ने आवाज लगानी शु कर दी–‘‘अरे उठो भा यवान। ज दी उठो। नह तो बड़ा अनथ
हो जाएगा।’’

पंिडताइन गहरी न द म थी। दन भर क थक -माँदी। वह क ी न द से जगाए जाने से


झ ला गई–‘‘ओह, सोने य नह देत?े ’’

‘‘अरे उठ भी! कह लाख का नुकसान न हो जाए।’’ गोनू झा ने एक-एक श द चबाते ए


कहा।

लाख का नुकसान क बात सुनकर पंिडताइन थोड़ा सजग ई और िब तर पर उठकर


बैठ गई।

उधर चोर जो ‘माठ’ से अनाज चुराने क य त म लगा था, गोनू झा के मुँह से िनकले
लाख श द सुनकर आगे क बात सुनने के िलए पैर चाँपते ए िखड़क से कान सटाकर
खड़ा हो गया।

अमावास क रात के घने अ धकार म उसे इतना इ मीनान था क भीतर से कोई उसे
देखना भी चाहे तो देख नह सके गा।

पंिडताइन ने सचेत होते ए गोनू झा से पूछा–‘‘कोई सपना देख िलए या क अचानक


आधी रात म लाख का नुकसान क बात करने लगे?’’
गोनू झा ने कहा–‘‘अरे पंिडताइन। समझो क अपने भा य जग गए। म जो एक पोटली
सबल के बीज लाया था, वह कहाँ है?’’

पंिडताइन इस बेतुक बात पर फर झ ला पड़ी। ‘‘ओ! यह या बात ई? आधी रात म


सोए से जगाया? कहने लगे लाख का नुकसान हो जाएगा, जैसे कोई हीरा-मोती, जर-
जेवरात क बात हो और अब पूछ रहे हो, सं◌ेबल के बीज कहाँ ह? कह दमाग तो नह
फर गया है?’’

गोनू झा ने पंिडताइन को डपट दया–‘‘अरे ! फालतू बकवास म मत पड़। यह बता क


सबल के बीज कहाँ हं◌?ै “

पंिडताइन गोनू झा के तेवर देखकर सहम गई और िबसूरती ई बोली– ‘‘बाहर ओसारे


क बनेरी म बीज क पोटली बँधी ई है।’’

गोनू झा ने िबगड़ते ए कहा–‘‘अरे , उस पोटली को तूने इतनी लापरवाही से रखा?’’

पंिडताइन को भी गु सा आ गया और वह भी तेज आवाज म बोल पड़ी–‘‘दू पाई का भी


होगा वह सबल का बीज, म या उसे ितजोरी म रखती? काहे आधी रात म टँटा खड़ा कर
रहे हो?’’

चोर साँस रोके गोनू झा और पंिडताइन के बीच हो रही बातचीत को सुन रहा था। उसे
भी समझ म नह ◌े आ रहा था क एक पोटली सबल के बीज के िलए गोनू झा इतना तड़क
य रहे ह!

तभी उसके कान म गोनू झा क आवाज पड़ी–‘‘अरे भा यवान! अब वह सबल का बीज


ितजोरी म ही रखा जाएगा। तु ह कु छ दन-दुिनया क खबर भी है? एक यूनानी
िच क सक ने सबल के बीज से जीवन र क औषिध बनाई है और रातां◌ेरात सबल के बीज
क क मत हीर -जवाहरात क तुलना म दो सौ गुना बढ़ गया है। जरा सोच, एक वण-
मु ा म एक तोला सोना िमल जाता है क नह ? एक यूनानी ापारी आज ही महाराज के
पास आया था। वह दो सौ वण-मु ा म एक तोला के भाव से सबल के बीज खरीदने क
बात कर रहा था। उसी ने महाराज को बताया क इस बीज से बननेवाली दवा से मरता
आदमी भी जी उठे गा। अब समझी, क म सबल के बीज के िलए इतना बेचैन य ?ँ कल
ही बाजार जाकर इन बीज को बेच आऊँगा और इनसे िमलनेवाले पैस से सबसे पहले
तु हारे िलए महल बनवाऊँगा और तु ह जेवर-जवाहरात से लाद दूग
ँ ा। चल, पोटली ले
आते ह।’’

पंिडताइन ने कहा‘‘अब रहने भी दो पंिडत जी। रात भर म कौन-सी आफत आ जाएगी।


जो बात सबल के बीज के बारे म तुमको मालूम है, वही बात अभी लोग तक प च ँ ते
प च
ँ ेगी। अभी सो जाओ। सुबह उठकर सबसे पहले पोटली ले आऊँगी और तु ह दे दूग
ँ ी।’’

गोनू झा को जो स देश बाहर खड़े चोर को देना था, वह दे चुके थे इसिलए उ ह ने मन


मारने के अ दाज म कहा–‘‘ठीक है भा यवान! जैसा तुम कहो! वैसे भी अभी सबल के बीज
क क मत महाराज के अलावा के वल म जानता ।ँ ...अ छा, चलो, सो ही जाते ह।’’

और गोनू झा िब तर पर लेट गए। पंिडताइन ने भी राहत क साँस ली और सो गई।

दूसरे दन, सुबह-सुबह पंिडताइन घबराई-सी गोनू झा को झंकोरकर जगाने


लगी–”उ ठए पंिडत जी! गजब हो गया! उ ठए!“

गोनू झा उठे । उ ह ने घबराई सी पंिडताइन को देखा तो मु कु राकर पूछने लगे–‘‘तो


पोटली गायब हो गई?’’

पंिडताइन जवाब देने क बजाय सुबकने लगी। वह पछतावे से भरी ई थी क य द उसने


गोनू झा क बात मानकर रात को ही बनेरी से पोटली खोल ली होती तो यह हादसा नह
होता। न जाने कौन रात म पोटली खोलकर ले गया िजसम ब मू य सबल के बीज थे!

गोनू झा को लगा क चोर वाला राज अब खोल देने म भलाई है! न जाने सबल के बीज
के सदम म पंिडताइन पर या गुजरे ! उ ह ने पंिडताइन क पीठ थपथपाते ए कहा–‘‘अब
जाने भी दो, दो पाई क चीज के िलए इस तरह आँसू नह बहाते।“ फर उ ह ने पंिडताइन
को बताया क रात को उ ह ने चोर क आहट सुन ली थी और उ ह गुमराह करने के िलए
सबल के बीज के भाव बताये थे तथा एक क सा गढ़ दया था।

गोनू झा क बात सुनकर पंिडताइन क जान म जान आई। गोनू झा िब तर से उठे ।


ाना द से िनवृत होकर उ ह ने व छ व ा धारण कए और बाजार क ओर चल पड़े।
बाजार प च ँ कर उ ह ने सबसे पहला काम यह कया क बाजार -सुर ा चैक पर गए और
वहाँ के चैक दार से बताया क बाजार म य द कोई सबल का बीज बेचता नजर आए तो
उसक गितिविधय पर नजर रखी जाए य क एक ठग कल से ही सबल के बीज को
‘जीवन-र क औषिध’ बताकर बेचने क कोिशश कर रहा है। वह सबल के बीज क क मत
दो सौ पए तोला बता रहा है। वे खुद उससे ठगाते-ठगाते बचे ह।

पहले तो चैक दार को िव ास ही नह आ क कोई ि इस तरह का दु साहस कर


सकता है क दो पाई क चीज के िलए दो सौ वण-मु ा क माँग करे ले कन बात चूँ क
गोनू झा क थी तो उसे सतकता दखाने क मजबूरी हो गई।

चैक दार को लेकर गोनू झा बाजार का च र लगाने लगे। एक जगह पर उ ह ने एक


ि को कपड़ा िबछाए सबल का बीज बेचते देखा। आम तौर पर सबल के बीज बाजार
म नह बेचे जाते इसिलए उ ह िव ास हो गया क यह ि कोई और नह , वही चोर है
जो रात म उनके घर से सबल के बीज क पोटली चुराकर ले आया है। उ ह ने चैक दार को
इशारा कर दया और उनके इशारे पर चैक दार चोर के पास प च
ँ ा और उससे सं◌ेबल के
बीज क क मत पूछा। चोर ने चैक दार क ओर देखकर कहा–‘‘दो सौ वण-मु ाएँ: ित
तोला।’’

चैक दार ने कया–‘‘अरे , इतना महँगा? या है इन बीज म? आिखर ये सबल के ही


बीज हं◌ै न?’’

चोर ने मु कु राते ए कहा–”अरे ये साधारण बीज नह ह? इन बीज म जीवन-र क


त व ह।’’

तब तक गोनू झा वहाँ प च ँ चुके थे और चोर-चैक दार संवाद का रस ले रहे थे। उ ह ने


चोर से कहा–‘‘अरे तू तो रात का भाव बता रहा है। चैक दार जी, जरा इसे सबल के बीज
का दन वाला भाव बता दीिजए?’’

फर या था, चोर को चैक दार ने पकड़ा। उसक मु क चढ़ा द और पीटता आ उसे


लेकर चला गया।

गोनू झा अपनी म त चाल से राजदरबार क ओर बढ़ने लगे।


गोनू क बहादुरी
गोनू झा क शादी ई। िमिथलांचल म ा ण के िववाह का आन द ही कु छ और है। ऐसे
भी रामायण काल से ही िमिथला को ‘ ेम क नगरी’ क सं ा दी जाती है। लोग मानते ह
क वह ‘पु प वा टका’ यह थी जहाँ सहेिलय के झुंड म सीता सु दरी को भगवान राम ने
पहली बार देखा था। िमिथला के कसी गाँव म िववाह हो और दू हा गाँव भर क
कशो रय क ठठोली से बचा रह जाए, ऐसा हो ही नह सकता। आम तौर पर जमाई
(दामाद) को ससुराल म कम से कम सवा महीने तक रोकने क था वहाँ ाचीन काल से
ही चली आ रही है।

गोनू झा को भी िस दूर-दान के बाद ससुराल म रोक िलया गया। ससुराल म उ ह कसी


तरह क असुिवधा न हो इस बात का खासा खयाल रखा जाता। दन भर प ी क
सहेिलयाँ नव वर-वधू को घेरे रहत । रात को वधू क मामी, भाभी आ द क चुहलबाजी
शु हो जाती। बेचारे गोनू झा िज दगी भर पु षां◌े के साथ रहे थे। मिहला के साथ
बातचीत करने म झप-झप जाते। गाँव म वधू प के स बि धय के घर से उनके िलए
तरह-तरह के सु वादु पकवान बनकर आते ले कन हँसी- ठठोली के बीच गोनू झा सही ढंग
से भोजन नह कर पाते। संकोचवश दो-चार िनवाला मुँह म रखते और पानी पीकर उठ
जाते। प ी अभी कशोरी ही थी। गोनू झा क खुराक के बारे म उसे कोई अ दाज नह था
इसिलए वह कु छ बोलती नह थी। अपने घर म होने के कारण उसम कोई संकोच का भाव
नह था इसिलए वह अपनी सहजता म भोजन करती, सहेिलय क छेड़-छाड़ का आन द
उठाती।

गोनू झा के िलए एक-एक दन पहाड़-सा होने लगा। वे समझ नह पा रहे थे क इस तरह


सवा महीना ससुराल म अधपेटा रहकर कै से जी पाएँग?े गोनू झा को िववाह के बाद जब
सुसराल म रोका गया था तब उनके ‘टहल- टकोला’ के िलए उनके गाँव का एक गरीब
ा ण युवक भी वहाँ क गया था िजसका नाम था मंगर झा। लोग उसे मंग वा पुकारते
थे। मंगलवार को उसका ज म आ था िजसके कारण पंिडत ने उसका नामकरण ‘मंगल’
कया था और लोक- चलन म उसका नाम मंगल से मंगर और मंगर से मंग आ हो गया
था।

गोनू झा भी कोई धनी प रवार से नह थे। उनका बचपन बेहद गरीबी म बीता था।
िववाह के समय म उ ह आ थक-संकट से गुजरना पड़ रहा था।

ससुराल प भी धनी नह था मगर उनक अपे ा ससुरालवाल क आ थक ि थित


अ छी थी। ससुर के दरवाजे पर गाय-भस-बकरी आ द दुधा मवेशी थे। खेत-पथार भी
था। न उधो का लेना, न माधो का देना वाली हैिसयत थी। कई गाँव म ससुर क
र तेदा रयाँ थ । िमिथलांचल क पर परा के अनुसार ससुर के येक स ब ध के घर से
िवदाई के िलए तरह-तरह क चीज आ रही थ िजनको रखने के िलए घर के दरवाजे पर
बाँस गाड़कर, बाँस क चचरी से उसक घेरा बंदी कर दी गई थी। कह से कु छ आता–एक
चचरी खोल दी जाती और सामान उसम रख दया जाता। कह से खाजा भरी चंगेरी, तो
कह से बालूशाही, कह से मखाने क चंगेरी, तो कह से ल डू क चंगेरी। ऐसे पकवान जो
महीन खराब न ह , उस अ थायी प से बनाए गए कमरे म एकि त हो रहे थे िजसक
गमक से पूरा दरवाजा मँहमँह करने लगा था।

एक दन गोनू झा कसी बहाने प ी क सहेिलय के बीच से उठकर घर के दरवाजे पर


आने म कामयाब हो गए। उ ह ने दरवाजे पर एक चटाई पर लेटे ए मँग आ को देखा तो
उसे जगाया। दरवाजे पर पकवान क खुशबू से उनक भूख जाग गई। वे बेचैन हो गए।
मँग आ ने देखा क गोनू झा कु छ मायूस दख रहे ह तो उसने इसका कारण पूछा। गोनू झा
ने मँग आ से बताया–” दन भर प ी क सहेिलयाँ घेरे रहती ह और रात को भाभी और
मािमयाँ। उनके सामने संकोचवश ठीक से भोजन नह कर पाता। अधपेटा रह जाना पड़ता
है। अभी तो सात-आठ दन ही ए ह– सवा महीना कै से कटेगा, यही सोचते-सोचते जी
हलकान हो गया है।“

मँग आ ने उ ह समझाया–”कोई बात नह है गोनू! तुम रात को ‘ दशा मैदान’ के बहाने


उठकर बाहर आ जाना। म इस ‘कोठरी’ क एक चचरी हटा दूग ँ ा। तुम भीतर जाकर जी
भर के , जो चाहो, खा लेना। फर तुम चचरी हटाकर बाहर आ जाना और जाकर सो जाना।
लोग को कान -कान खबर तक नह होगी।“

गोनू झा को मँग आ क सलाह पस द आ गई। लगभग म यराि म वे घर से बाहर


आए–मँग आ को जगाया। मँग आ ने चचरी खोली। गोनू झा भीतर घुस गए और एक
चंगेरी का ढ न खोलकर उसम टटोल-टोलकर पकवान का अ दाजा करने लगे। अँधेरा
होने के कारण अ दाज से ही उ ह ने बालूशाही िनकाली और खाने लगे। फर उ ह ने
टटोलकर खाजा िनकाला और खा िलया। इसी तरह वे बारी-बारी से चंगे रय का ढ न
खोलते, कसी से ठे कुआ िनकालकर खाते तो कसी से कसाढ़। जब उनका पेट अ छी तरह
भर गया तब वे बाहर आने के िलए चचरी हटाने क कोिशश करने लगे मगर चचरी नह
खुली।

चचरी म कु छ छेद बना दए गए थे िजनम क ल घुस जाती थ तो चचरी बंद हो जाती


थी। मंग आ और उनको इस बात का पता नह था। गोनू झा ने जब कमरे म घुसकर चचरी
बंद क थी तो यह चचरी क ल म फँ स गई थी और गोनू झा समझ नह पा रहे थे क यह
चचरी खुलेगी कै से?

थोड़ी देर तक गोनू झा यास करते रहे मगर जब चचरी नह खुली तब वह धीरे -धीरे
चचरी को थपथपाने लगे ता क इस ह क आहट से मँग आ उठ जाए और आकर चचरी
उठा दे। मगर मँग आ को न द आ गई थी इसिलए वह चचरी थपथपाये जाने से जगा नह ।

गोनू झा क बेचैनी बढ़ती जा रही थी। उ ह समझ म नह आ रहा था क कर भी तो या


कर? य द इसी तरह बंद रह गए तो सुबह म ससुराल वाल के सामने उनक भ िपट
जाएगी। मुँह दखाने के लायक भी नह रहगे। इसी बेचैनी म वे मँग आ को आवाज लगाने
लगे–‘‘रे , ख च! अरे ख च! खोल...रे ...खोल!’’

मगर मँग आ के खराट थमने का नाम ही नह ले रहे थे।

चचरी पीटे जाने और ‘खोल...ख च’ क आवाज से ससुराल के लोग क न द खुली। उ ह


लगा क कोई चोर ‘कोठरी’ म घुस आया है। वे बाहर िनकले। मँग आ भी जग गया। लोग
ने िवचारना शु कया क कोठरी म कौन घुस?े चोर का या भरोसा, कह कोई गु ी-
भुजाली लेकर न बैठा हो? कौन जोिखम ले?

गोनू झा ने बाहर हो रही खट-पट क आवाज से समझा क मँग आ जाग गया है तो फर


दबी आवाज म बोले–”रे ख च ज दी कर!“

मगर तभी उ ह कसी क आवाज सुनाई पड़ी...‘‘अरे पंिडत जी, रात भर ऐसे ही मुँह
बाए खड़े रिहएगा क चोर को पकिडएगा?’’

दरअसल बोलनेवाला यह ि गोनू झा के ससुर के कसी स ब धी का नौकर था जो


‘पुछारी’ लेकर आया आ था और उनके घर के लोग से ठीक तरह से प रिचत नह था।
उसने कहा–‘‘ह टए आप लोग! म घुसता ,ँ अके ले। आप लोग बस इतना यान रिखए क
वह य द मेरी पकड़ म नह आए और बाहर िनकलकर भागने लगे तो उसे बाहर िनकलते
ही दबोच ल!’’

गोनू झा ने जब यह सुना तो उनके पाँव के नीचे से जमीन ही िखसक गई। वे एक बड़े माठ
के पीछे दुबककर खड़े हो गए। माठ के िसरे पर एक कथरी दही पड़ी ई थी। पता नह गोनू
झा को या सूझा क उ ह ने कथरी उठाकर अपने दोन हाथ म रख ली।

जैसे ही चचरी खोलकर वह आदमी ‘कोठरी’ म घुसा, गोनू झा ने वह कथरी उसके िसर
पर दे मारी। कथरी टू ट गई और वह आदमी िसर से कं धे तक मलाई क छह-छह
परत वाली दही से पुत गया। गोनू झा ने उस ि को दबोच िलया और िच लाने
लगे–”ज दी लालटेन लाओ, मने ‘ख चो-खोलो’ को पकड़ िलया।“

वह ि इस अचानक हमले से इतना घबरा गया था क उसे कु छ समझ म नह आया


क अँधरे म उसके िसर पर या टू टा और चेहरे क या हालत हो रही है।
गोनू झा क आवाज सुनकर ससुराल के लोग कोठरी म घुसे और उस ि को घसीटकर
बाहर लाए और फर ई उसक जबद त धुनाई।

गोनू झा ने बाद म उसे छु ड़ा दया और उसे एक कोने म ले जाकर कहा–”बस, यहाँ से


भाग जाओ, इसी म तु हारी भलाई है।“

वह आदमी सकते म तो था ही, वहाँ से भाग िनकला। सोचा–‘जान बची तो लाख पाए!’
और गोनू झा अपनी म त चाल म चलते ए आए।

ससुराल के लोग उ ह मु ध नजर से देख रहे थे। उनक आँख म शंसा का भाव था क
कतने बहादुर ह हमारे मेहमान!
पंिडताइन का सहारा
जब कोई साधारण ि असाधारण सफलता अ जत कर लेता है तब एक ओर तो उसके
शंसक क बाढ़-सी आ जाती है तो दूसरी तरफ उससे ई या करने वाल क सं या भी बढ़
जाती है।

गोनू झा जब िमिथला नरे श के दरबार के िवदूषक िनयु ए तब आम दरबा रय को


यह अनुमान भी नह था क िमिथला नरे श गोनू झा से इतना भािवत हो जाएँगे क वे
येक सम या पर उनसे सलाह-मशिवरा करने लगगे। कु छ ही दन म गोनू झा ने अपनी
मेधा के बूते महाराज के दय म अपना थान बना िलया और सारे समय म उनक राय
हर मुि कल क दवा बनने लगी। एक तरह से गोनू झा सभी दरबा रय पर भारी पड़ने लगे
िजससे दरबारी उनसे जलने लगे और हमेशा ऐसे अवसर क तलाश म रहने लगे क कोई
मौका िमले तो वे गोनू झा को महाराज क नजर से िगरा द।

एक बार क बात है–िमिथला नरे श बीमार पड़े। उनक िच क सा होती रही, ले कन


बीमारी ठीक होने म व लगा। महाराज ब त कमजोर और दुबले हो गए। अिधक देर तक
बैठने से वे थक जाते। दरबार म वे आते तो थोड़ी देर बैठते, महामं ाी को कु छ िनदश देत,े
फर आराम करने महल म चले जाते।

एक दन गोनू से बैर रखने वाले दरबा रय ने आपस म मं णा क क महाराज अभी


वा य लाभ कर रहे ह। उनक मरणशि ल बी बीमारी से ीण हो गई है। सामियक
बुि भी मिलन पड़ गई है। महाराज अपनी बीमारी के कारण थोड़ा वहमी भी हो गए ह।
ऐसे म य द महाराज को कोई ऐसा सुझाव दया जाए िजसे पूरा करना टेढ़ी हो, आसान तो
कतई नह हो और कसी तरह वह मुि कल-सा काम गोनू झा के म थे मढ़वा दया जाए तो
समझो क गोनू झा क िम ी पलीद होनी ही है।

इस तरह गोनू झा के िव ष ं ा का बीजारोपण हो गया। धूत दरबा रय ने आपस म


िवचार कया क महाराज से कहा जाए क य द वे ित दन शेर का एक िगलास दूध पीएँ
तो शी ह े-क े हो जाएँगे। जब एक दरबारी महाराज को यह सुझाव दे, तो दूसरे दरबारी
उसक हाँ म हाँ िमलाएँ। और जब महाराज इस सुझाव से भािवत हो जाएँ तो उनसे कहा
जाए क शेर के दूध का इं तजाम इस दरबार म के वल गोनू झा ही कर सकते ह य क पूरे
दरबार म उन जैसी सूझ-बूझ वाला ि कोई नह है।

दूसरे ही दन जब महाराज दरबार म आए तब मं ाणा के अनु प दरबा रय ने अपनी


ितकड़मी योजना को अमल म लाना शु कर दया। महाराज अपने आसन पर बैठे ही थे
क एक दरबारी ने अपने आसन से उठकर कहा–‘‘महाराज, आप अपने वा य पर यान
द, दवा-दा ठीक से कराएँ... मा कर महाराज! म छोटी मुँह बड़ी बात कर रहा !ँ मगर
या क ँ , आपक यह हालत मुझसे देखी नह जाती। आप दनो दन कमजोर होते जा रहे
ह।’’

उसका बोलना ब द आ तो दूसरे दरबारी ने कहा–‘‘माफ कर महाराज! हमारे बंधु ने


ठीक ही कहा है। म रोज सोचता था क आपको अपने वा य पर यान देने के िलए क ,ँ
मगर साहस नह कर पाता था। इधर म आपको जब भी देखता ँ तो तरह-तरह क
आशंकाएँ मन म आने लगती ह। परमिपता परमा मा आपको हर ािध से मुि दलाएँ!
मगर महाराज! या आपने यान नह दया क इधर आपका चेहरा लगातार पीला पड़ता
जा रहा है?’’

इसके बाद तीसरा दरबारी खड़ा आ और बोलने लगा–‘‘महाराज! आप जा-पालक ह।


हमारे पालनहार ह। िमिथला क आ मा ह। य द आपको कु छ हो गया तो पूरी िमिथला
अनाथ हो जाएगी।’’ फर उसने दरबा रय से ऊँची आवाज म कहा–”भाइयो, य द आप म
से कोई अ छी सेहत पाने का कोई नु खा जानता हो तो वह महाराज को अव य बताएँ।“

संयोग क बात थी क उस दन गोनू झा तब तक दरबार म नह प च


ँ े थे िजसके कारण
दरबा रय को अपना जाल फै लाना आसान हो गया था।

तीसरे दरबारी का आ वान सुनने के बाद थोड़ी देर तक दरबार म स ाटा-सा छाया
रहा।

सब को चुप देखकर महाराज ने वयं कहा–”बताइए! आप लोग के पास कोई जानकारी


हो तो आव य बताइए!’’

तब दरबार का सबसे व थ का रं दा बोला–‘‘महाराज, म भी एक बार ब त बीमार हो


गया था। वै क िच क सा का मेरे रोग पर कोई असर नह आ तब मेरे िशकारी मामा ने
मेरे िलए शेर के दूध क व था क । बाघ का मांस िघसकर शेर के दूध म सुबह-शाम
चटाया गया िजससे म फर से सेहतमंद हो गया।’’

महाराज म एक अजीब-सी उ सुकता पैदा हो गई। उ ह ने पूछा–‘‘मगर शेर का दूध और


बाघ का मांस आएगा कहाँ से?’’

तभी एक दरबारी ने कहा–‘‘महाराज! यह काम तो कोई सूझ-बूझवाला आदमी ही कर


सकता है।’’

दूसरे ने कहा–‘‘दरबार म गोनू झा से अिधक सूझ-बूझ वाला ि और कोई नह है।’’


महाराज को भी यह बात ठीक लगी। वे गोनू झा क ती ा करने लगे।

गोनू झा जैसे ही दरबार म आए, वैसे ही महाराज ने उ ह आ ा दी– ‘‘पंिडत जी, मेरे
िलए ित दन एक िगलास शेर के दूध क व था कर और हो सके तो थोड़े से बाघ के
मांस क भी।’’

गोनू झा अचरज म पड़ गए और कु छ कहना चाहा मगर महाराज ने उ ह कहा–‘‘अगर-


मगर कु छ भी नह , यह व था आपको करनी ही पड़ेगी।“

गोनू झा चुप रह गए। कहते भी या? दरबार से लौटकर घर आए तो अनमने से रहे।


पंिडताइन ने उ ह िचि तत देखकर पूछा क आिखर बात या है, तो उ ह ने पूरी बात बता
दी। पंिडताइन ने उ ह कहा क वे िचि तत नह ह । सामा य रह। आज रात म ही वह खुद
इस सम या का िनदान कर देगी। गोनू झा ने पूछा भी क मगर कै से? तो पंिडताइन ने उ ह
कहा क इसक िच ता वे नह कर क कै से, बस कल से स िच होकर समय पर दरबार
जाएँ। इसके बाद गोनू झा को भोजन करा लेने के बाद पंिडताइन एक थापी और गंदे कपड़
क एक पोटली लेकर महाराज के सरोवर पर प च ँ गई। महाराज के कमरे के िनकट पड़ने
वाले सरोवर के पाट पर बैठकर वह जोर-जोर से कपड़ा थापी से पीटने लगी। थापी क
आवाज से महाराज क न द खुल गई और उ ह ने पंिडताइन को पकड़वाकर अपने पास
बुलवा िलया। पंिडताइन को देख महाराज अचरज म पड़ गए और पूछा–” या बात है?
इतनी रात को आप राज-सरोवर म कपड़ा धो रही ह?“

पंिडताइन ने जवाब दया”महाराज! दरबार से लौटते ही पंिडत जी ने एक ब ा जना है।


उनक तीमारदारी के बाद गंदे कपड़े धोने इस समय यहाँ आ ग ।“

महाराज चकराए‘‘अरे ! या बोल रही ह आप? मद भी कह ब ा देता है? अस भव।“


तपाक पंिडताइन ने कहा–‘‘जब शेर दूध दे सकता है, तो मद ब ा य नह पैदा कर
सकता?’’

पंिडताइन क बात सुनकर महाराज लि त ए।

दूसरे दन दरबार म उन दरबा रय क शामत आ गई िज ह ने शेर के दूध क सलाह दी


थी। उनक हालत देखकर गोनू झा मन ही मन हँस रहे थे।
नहले पर दहला
एक शाम गोनू झा अपने तालाब के पास टहल रहे थे। मंद-मंद बयार बह रही थी। गाँव के
घर से धुआँ उठने लगा था। पिनहा रन कु से पानी लेकर अपने घर क ओर जा रही
थ । कभी-कभी कु छ हलवाहे अपने हल और बैल के साथ खेत से िनकलकर पगडंिडय से
गुजरते दख पड़ते थे। तालाब के पास से जब वे गुजरते तो बैल के गले म बँधी घुँघ क
प ी से मधुर विन िनकलती और पेड़ के झुरमुट म बैठी िचिङय क चहचहाहट के साथ
िमलकर एक संगीत िमि त शोर पैदा करती।

शाम का यह मंजर ब त मनभावन था। गोनू झा शाम के इस सौ दय को िनहारते ए


कु छ गुनगुना रहे थे। तभी दूर से आते युवराज को देखकर गोनू झा क त ा भंग ई। वे
च कत से देख रहे थे क महाराज का कशोर पु ा उनक तरफ ही तेज-तेज चलते ए आ
रहा है।

गोनू झा के िलए यह अ यािशत था क महाराज का बेटा गाँव क पगडंिडय से पाँव


पैदल चलता आ इस तालाब तक आए मगर यह सच था–थोड़ी ही देर म राजा का बेटा
उनके सामने खड़ा था...। गोनू झा ने उसक ओर देखा। युवराज हाँफ-सा रहा था। तेज
चलने के कारण उसक साँस फू ल गई थ । युवराज ने गोनू झा के पास प च ँ कर उ ह
नम कार कया।

गोनू झा ने युवराज क ओर देखकर मु कु राते ए पूछा–‘‘ या बात है युवराज, गाँव क


सैर के िलए िनकले हो?’’

युवराज ने अपनी साँस पर काबू पाते ए कहा–‘‘पंिडत जी, मुझे कोई सच सा


लगनेवाला ऐसा झूठ बताइए िजससे बड़ा कोई दूसरा झूठ नह हो।’’

युवराज क बात सुनकर गोनू झा ह भ रह गए–‘‘अरे !...ऐसा या है युवराज? अचानक


आपको यह या सूझी क एक झूठ क तलाश म गाँव चले आए?’’ गोनू झा ने पूछा।
हालाँ क गोनू झा समझ चुके थे क ज र कोई ऐसी घटना हो गई है िजससे युवराज
परे शान ह और खुद चलकर उनके पास आए ह।

युवराज ने उनक ओर अनुनय-भरी –ि से देखा और कहा–‘‘बस, पंिडत जी, मुझे आप


कोई ऐसा झूठ बताइए िजसक कोई काट नह हो।’’

गोनू झा ने युवराज क बेकली भाँप ली और उसका कं धा थपथपाते ए बोले, ‘‘युवराज!


आपको झूठ सुनना है तो म ज र सुनाऊँगा। ले कन य द आप मुझे बता द क आप यह झूठ
य सुनना चाहते ह, तो शायद म आपके िलए यादा अनुकूल झूठ बता पाऊँ।...आइए, घर
चलते ह। वह बैठकर बातचीत करते ह और आपक ज रत समझकर कोई झूठ भी आपको
बता दूग
ँ ा।’’

गोनू झा अपने साथ युवराज को लेकर अपने घर आ गए। प ी को आवाज देकर युवराज
के िलए िमठाई और ल सी मँगवाई।

जलपान से िनवृत होकर युवराज ने फर गोनू झा से कहा–‘‘पंिडत जी, शाम ढल रही है।
महल म मेरे न होने से वहाँ सभी िचि तत ह गे। कृ पया मुझे कोई झूठ सुना द, ऐसा झूठ,
िजससे बड़ा झूठ कोई दूसरा मुझे नह सुना सके !’’

गोनू झा ने कहा–‘‘युवराज! पहले आप मुझे बताएँ क आप ऐसा झूठ य सुनना चाहते


ह? मुझे पूरी बात बताइए–तभी म आपक कोई सहायता कर सकूँ गा।’’

युवराज ने गोनू झा को बताना शु कया‘‘पंिडत जी! आज सुबह म दीवान और नगर-


सेठ के पु के साथ बाजार गया था। वे दोन मेरे िम ा ह और सहपाठी भी। हम तीन
बाजार म मटरग ती करते ए इधर-उधर क बातचीत कर रहे थे। थोड़ी देर म ही बात
झूठ पर टक ग । सभी तरह-तरह क झूठी ग प हाँकते और हँसते। इसी तरह बात-बात म
हम तीन ब त जोश म आ गए और हमम बाजी लग गई क जो सबसे बड़ा झूठ बोलेगा,
उसे सौ वण-मु ाएँ िमलगी।’’ इतना कहकर युवराज चुप हो गया।

युवराज क मुखमु ा देखकर गोनू झा को यह बात समझ म आ गई क बात यह ख म


नह ई है। उ ह ने युवराज से कहा–‘‘युवराज! आप चुप हो गए! आगे या आ, बताइए,
नह तो म आपक मदद नह कर पाऊँगा।’’

युवराज ने िझझकते ए कहना शु कया–‘‘पंिडत जी! इसके बाद दीवान-पु ा ने सबसे


पहले झूठ सुनाना शु कर दया। उसने कहा–‘आज से सौ साल पहले मेरे परदादा यहाँ के
राजा थे।...और आज जो िमिथला नरे श ह, उनके परदादा ब त गरीब थे–िनधन! इधर-
उधर टहल- टकोला करते उनक िज दगी गुजर रही थी। एक दन वे मेरे परदादा के पास
आए िजससे क राजकोष से उनक परव रश के िलए एक िनि त रकम वेतन के प म
िमल सके । मेरे परदादा को उन पर दया आ गई और उ ह ने उ ह ा भरने के काम पर
अपनी िनजी चाकरी के िलए रख िलया...’“

युवराज ने आगे बताया‘‘ या क ँ पंिडत जी, उसक ग प सुनते ही मेरी मित मारी गई
और मुझे गु सा आ गया।...और म गु से म बोल पड़ा– झूठ! िबलकु ल झूठ...ऐसा हो ही नह
सकता! ‘िमिथला नरे श का ‘वंश-वृ ’ (वह द तावेज िजसम वंश का उ लेख रहता है क
वतमान नरे श के िपता कौन थे, उनके िपता के िपता, िपतामह के िपता, परिपतामह के
िपता, वृ परिपतामह के िपता...यानी सुदरू अतीत से लेकर वतमान तक का पूवजीय
यौरा) राज महल म उपल ध है। चाहो तो देख लो...’ मेरा ऐसा कहना था क दीवान के
बेटे ने तपाक से कहा–‘मने कब कहा क म सच कह रहा ?ँ अरे यार! बात तो झूठ क थी।
लो, मने सुना दी सबसे बड़ी झूठ! अब िनकालो सौ वण-मु ाएँ।’ और चूँ क म शत हार
गया था, इसिलए म◌ेने दीवान पु ा को सौ वण-मु ाएँ दे द ।’’

गोनू झा पूरी त मयता से युवराज क बात सुन रहे थे। उ ह ने युवराज क ओर देखते ए
पूछा–‘‘ फर या आ युवराज?’’

युवराज ने फर कहना शु कया–‘‘पंिडत जी! इसके बाद नगर-सेठ के पु ा ने कहना


शु कया–‘एक बार क बात है...रा य म भयंकर बाढ़ आई ई थी। सारे खेत-खिलहान
डू ब गए थे। गाँव के लोग जीवन-र ा के िलए पलायन कर गए। यही हाल नगर का था।
नगरवासी भी बाढ़ क िवनाशलीला से बचने के िलए सुरि त थान पर आ चुके थे। नगर
म के वल मेरा प रवार बचा रह गया था या फर महाराज का। चूँ क मेरा प रवार ापार
से धन अजन करता है इसिलए हमारे पास अनाज का अकू त भंडार था, जो हमारे भवन के
सबसे ऊपरी त ले पर रखा गया था क य द बाढ़ का पानी हमारे भवन म वेश करे तो
अनाज को कोई ित न प च ँ ।े बाढ़ के कारण, राजभवन के छोटे कमचारी और
िखदमतगार भाग चुके थे। एक दन बाढ़ का पानी राजभवन म घुस ही गया और देखते-
देखते राजभवन का अ -भंडार पानी म डू ब गया...। इसके बाद राजभवन के लोग भूख से
िबलिबलाने लगे तब महाराज वयं मेरे िपता के पास आए और अपना अंग-व ाम उनके
सामने फै लाकर िवनती क क सेठ जी! दया करके हमारे महल म कु छ अनाज क बो रयाँ
िभजवा दीिजए! भगवान आपको मदद करे गा...! ठीक वैसे ही बोल रहे थे महाराज, जैसे
िभखमंगे भीख माँगने के िलए बोलते ह... गुहार लगाते ह।’ बस, पंिडत जी! इतना सुनते ही
मुझे ोध आ गया और म नगर सेठ के बेटे पर टू ट पड़ा। उसका गला दबाते ए म चीखने
लगा–‘शम नह आती तु ह...महाराज के ित ऐसा झूठा बकवास करते ए! तु हारे िपता
जैसे हजार ापारी िमलकर भी िमिथला नरे श क स पदा क बराबरी नह कर सकते।’

”...इसके बाद पंिडत जी! नगर-सेठ के पु ा ने िवन तापूवक अपना गला छु ड़ाते ए
कहा–‘ ोिधत न हो युवराज! बात तो झूठ कहने क थी! मुझे खुशी है क मने आपको
सबसे बड़ा झूठ सुना दया–अब आप अंटी ढीला कर! आप शत हार गए...इसिलए
िनकािलए सौ वण-मु ाएँ।’ “ युवराज ने कहा और ल बी साँस ली, फर गोनू झा क ओर
देखकर कहा– ”बस, पंिडत जी! शत के अनुसार मने सौ वण-मु ाएँ दे द और उ ह यह
कहकर वापस आ गया क शाम होने को है, म अपनी तरफ से झूठ कल सुनाऊँगा। ”

...इसके बाद पंिडत जी, म आपको खोजता आ तालाब के पास प च ँ गया। म मुि कल
म ँ पंिडत जी, य क वे दो सौ वण-मु ाएँ राजकोष के ह। य द इ ह कोषागार म नह
डाला गया तो म कसी को मुँह दखाने के कािबल नह रह पाऊँगा। पंिडत जी! बस, आप
ही मेरी मदद कर सकते ह।’’ इतना कहकर युवराज िससकने लगा।
गोनू झा अपने थान से उठे और उसक पीठ थपथपाते ए बोले– ‘‘शा त हो जाएँ
युवराज! अभी आप घर जाएँ। िव ाम कर। कल म आपके साथ वेश बदलकर चलूँगा और
म झूठ सुनाऊँगा–उ ह! आपके दो सौ वण- मु ा के थान पर उनसे चार सौ वण-
मु ाएँ दलवाऊँगा। आप िच ता न कर। हाँ, कल जब म आपके साथ चलूँ तो आप अपने
िम से मेरा प रचय यह कहते ए कराएँ क ये मेरे मामा ह...यह सब कहते ए आप
िबलकु ल नह घबराएँ...बाक म सँभाल लूँगा।’’

युवराज आ त होकर गोनू झा के घर से राजमहल वापस लौट गया।

दूसरे दन गोनू झा के साथ युवराज बाजार प च


ँ ा। थोड़ी ही देर म दीवान का पु ा और
नगर-सेठ का पु ा भी वहाँ प चँ गए। दोन मन ही मन स थे क कल तो युवराज से
सौ-सौ वण-मु ाएँ दोन ने जीत ली थ , शायद आज भी कु छ ल मी-कृ पा हो जाए।

युवराज अपने िम के साथ बाजार के म य म बने चबूतरे तक आया जहाँ बाजार म


आए लोग आव यकता पड़ने पर िव ाम करते थे। इसके बाद उसने अपने िम का
प रचय अपने मामा बने गोनू झा से कराया। युवराज के िम ा उतावले हो रहे थे क
युवराज सफल नह होगा और उ ह फर सौ-दो सौ वण-मु ाएँ बैठे-िबठाये हाथ लग
जाएँगी इसिलए िबना ‘मामा’ पर यान दए ही दोन ने युवराज से कहा–‘‘युवराज! अब
सुनाओ सबसे बड़ा झूठ।’’

युवराज ने अपने िम से कहा–‘‘ य न हम इस झूठ- ितयोिगता म मामाजी को भी


शािमल कर ल?’’

दीवानपु और नगर-सेठ के पु ा ने गोनू झा पर –ि डाली। गोनू झा ने अपना वेश


िबलकु ल गँवार क तरह बना रखा था। दोन ने गोनू झा को देखकर सोचा–‘यह तो िनपट
गँवार लग रहा है...यह भला या झूठ सुनाएगा! शािमल होने दो...इसक गाँठ से भी कु छ
वण-मु ाएँ िमल जाएँगी।’ फर दोन ने लगभग एक साथ कहा–‘‘कोई बात नह युवराज,
इ ह भी शािमल कर लो मगर शत इ ह बता दो क सबसे बड़ा झूठ य द ये नह बोल पाए
तो इ ह दो-दो सौ वण-मु ाएँ देनी पड़गी।’’

युवराज ने चककर पूछा–‘‘दो-दो सौ वण-मु ाएँ? य ? कल तो शत सौ वण-मु ा


पर ही लगी थी...?’’

युवराज के दोन िम ा मु कु राए और बोले–”कल क बात कल गई, आज तो यही शत


लगेगी।’’

युवराज कु छ कहता क उससे पहले युवराज के मामा बने गोनू झा ने कहा–‘‘मुझे आप


लोग क शत मंजूर है! अब आप लोग बताएँ, पहले कौन झूठ सुनाएगा?’’
युवराज को भरोसा हो चुका था क अब कमान गोनू झा के हाथ म आ चुक है–इसिलए
युवराज चुप रहा। उसके दोन िम ा बोल पड़े– ‘‘लगभग एक साथ ही–आप युवराज के
मामा ह तो हमारे िलए भी आप मामा ही ह–आप ही पहले सुनाएँ–झूठ! ले कन याद रहे–
झूठ ऐसा हो िजसका तोड़ न हो, वरना आप याद रख, दो-दो सौ वण-मु ाएँ...’’

उनक बात पूरी होती, उससे पहले ही गोनू झा ने अपनी जेब से एक थैली िनकाली और
उनके सामने थैली खोलते ए उ ह दखाया–‘‘यह देिखए! एक सह ा वण-मु ाएँ ह थैली
म–म तो ठहरा गँवार आदमी! थैली म युवराज को थमा देता ।ँ य द म झूठ न सुना सकूँ
तब युवराज त काल आप दोन को दो-दो सौ वण-मु ाएँ इस थैली से िनकालकर दे दगे–
ठीक है न!’’

दोन िम स हो गए और वीकृ ित म अपना िसर िहलाया और बोले–‘‘ठीक है।’’

गोनू झा ने कहना शु कया, ‘‘मेरे दादा के पास एक घोड़ा था। दस गज ऊँचा घोड़ा! मेरे
दादा के गाँव म एकमा ा ऐसी जगह थी जहाँ यह घोड़ा बाँधा जा सकता था।’’ इतना
कहने पर गोनू झा चुप हो गए तब दोन िम ने उ सुकता दखाई और पूछा–‘‘कौन-सी
जगह थी वह?’’

”वह जगह थी गाँव के तीन सौ साल पुराने वट-वृ क छतनार डािलय के नीचे य क
हमारे इलाके म आम घर क ऊँचाई दो गज होती थी और पेड़ आ द भी, ब त ए तो
तीन-चार गज ऊँचे–बस! और घोड़ा दस गज का!“

‘‘ क सागोई म मािहर गोनू झा अपने चेहरे के हाव-भाव के साथ अपने कहने के अ दाज
म भी उतार-चढ़ाव लाते थे िजसके कारण सभी मु ध भाव से उनक कहानी सुन रहे थे।

‘‘...कु छ दन म ही घोड़े के शरीर पर एक वट वृ पैदा हो गया। घोड़े क पीठ पर उगे


वट वृ क डाल तीन-चार मील तक आकाश म फै ल ग । मेरे दादा जी ने उन डाल पर
बाँस क चचड़ी बनवाई–मजबूत चचड़ी पर दस फ ट िम ी डलवा दी–इस तरह दादाजी ने
घोड़े क पीठ पर उगे वट वृ को तीन मील ल बे और तीन मील चैड़े समतल भूतल के प
म बदल िलया और वे उस पर खेती करने लगे। संचाई क आकाशी व था थी। मतलब
क जहाँ कह भी पानी बरसता, दादा जी घोड़े को वहाँ ले जाते–घोड़े के साथ-साथ खेत
भी वषा वाले थान पर प च ँ जाता और खेत म लगी फसल क संचाई हो जाती।...

इतना कहकर गोनू झा चुप हो गए और सुत िनकालकर अपनी हथेली पर अँगूठे से


रगड़ने लगे। सभी युवक उनक इस अजीबो-गरीब कहानी दलच पी से सुन रहे थे। उ ह
चुप देखकर वे पूछने लगे–‘‘ फर या आ मामा जी?’’

गोनू झा ने सुत अपने ह ठ म दबाते ए कहा–‘‘एक बार दादाजी के रा य म भयानक


सूखा पड़ा। खेत म बीज ठरप गए...दूर-दूर तक ह रयाली झुलस गई। पेड़ ठँ ◌ूठ बन गए।
लोग ािह- ािह करने लगे ले कन घोड़े क पीठ पर उगे वट-वृ पर बने खेत क फसल
लहलहा रही थ । जहाँ कह भी बरसात होती, दादाजी घोड़े क पीठ पर सवार होकर
घोड़ा को वहाँ ले जाते! सारे रा य म अनाज-भंडार र हो गए ले कन हमारे दादाजी का
अनाज भंडार अनाज से ठसाठस भरा आ था।

‘‘...सूखे के कारण जो तबाही पैदा ई थी उससे नगर-सेठ के दादा और दीवान जी के


दादा भी भािवत ए थे। एक दन वे दोन मेरे दादाजी के पास आकर रोने लगे...और
बताने लगे क उनका प रवार अनाज के अभाव म भूख मर रहा है। उनका दन सुनकर
मेरे दादाजी को दया आ गई और उ ह ने दीवान के दादा को एक हजार मन गे ,ँ एक
हजार मन चावल और पाँच सौ मन दाल देकर उसका कागज बनवा िलया क जब उनके
पास इतना अनाज हो जाएगा तब वे मेरे दादाजी को वह अनाज वापस कर दगे। मेरे
दादाजी ने नगर-सेठ के दादाजी को भी इतना ही अनाज दया और उसके द तावेज
बनाकर उनसे अँगूठे का िनशान लगवा िलया क जब उ ह उनका अनाज वापस िमल
जाएगा तब वे द तावेज न कर दगे। तब से हमारी दो पीढ़ी गुजर गई और अब वह
द तावेज मेरे पास आया है–नगर- सेठ और दीवान ने अब तक हमारे दादा जी का अनाज
वापस नह कया है।“

दीवान और नगर-सेठ के पु ने जब गोनू झा क ‘कथा’ सुनी तो वे युवराज क तरफ


देखते ए बोले–‘‘कसम से! यह आदमी झूठा है। ऐसा कभी नह आ...भला दस गज का
भी घोड़ा हो सकता है...? कपोल- कि पत बात कहकर तु हारे मामा हमारा अपमान कर
रहे ह...।’’

गोनू झा हँस पड़े–”य द मेरी बात झूठ ह तो िनकालो दो-दो सौ वण- मु ाएँ, नह तो म
िनकालता ँ तु हारे दादाजी के द तावेज!“

दोन झप गए! वे शत हार चुके थे। दो-दो सौ वण-मु ाएँ देना उनके वश क बात नह
थी इसिलए दोन ही युवराज के सामने िगड़िगड़ाने लगे! युवराज का दल भी अपने िम
क बेबसी पर िपघल गया और उसने गोनू झा से कहा–‘‘जाने दीिजए मामा जी!’’

गोनू झा ने मु कु राते ए कहा‘‘जाने तो दूग


ँ ा युवराज, य द ये दोन आपक वण-मु ाएँ
लौटा द और यह संक प ल क भिव य म इस तरह क शत वे कसी के साथ भी नह
लगाएँग–े तब।’’

नगर-सेठ और दीवान के पु ा ने युवराज से जीती गई रकम युवराज को लौटा दी और


गोनू झा के सामने हाथ जोड़कर बोले–‘‘मामाजी, अब कभी हम इस तरह क शत नह
लगाएँग.े ..हम मा कर। हम आपको वचन देते ह क भिव य म धन- ाि के िलए उिचत
माग ही तलाशगे। इसके िलए शत लगाने या जुआ खेलने क क पना भी नह करगे।’’
उनक बात सुनकर गोनू झा खुश ए और तीन युवक को िमठाई क दुकान म ले जाकर
अपनी ओर से जी भरकर िमठाई िखलाई और खुद भी जी भर के िमठाइयाँ खा । फर वे
लोग अपने घर वापस आ गए।
खेत जोत गए चोर
खेत भी तरह-तरह के होते ह। सब कु छ िम ी पर िनभर है क कस खेत का या नाम होगा
और कस तरह क िम ी वाले खेत को या कहगे। गोनू झा के घर के िपछवाड़े म खुली
जमीन थी। पथरीली और कं कड़ीली जमीन होने के कारण उसे बंजर परती क सं ा दी
जाती थी। ायः वहाँ अकवन, िचरिचरी, सरकं डे जैसीे वन पित उग जाती थी, या फर
उग जाती थी कं टैया। इस तरह क वन पितय का कोई घरे लू उपयोग नह था िजसके
कारण इसी तरह के झार झंकार से गोनू झा के घर का िपछवाड़ा भरा आ था। पहले गोनू
झा अपने घर के अहाते का यान रखते भी थे क तु जब से वे िमिथला नरे श के दरबार म
िवदूषक बनाये गए तब से उ ह मौका ही नह िमलता क कहाँ या करना है।

एक बार महाराज भव संह तीथाटन के िलए िनकले तो गोनू झा को अपने घर पर रहने


का अवसर िमला। एक दन वे अपनी प ी के साथ अपने घर के अहाते का प र मण कर
रहे थे क उनक नजर घर के िपछवाड़े क खुली जमीन पर पड़ी। उ ह ने अपनी प ी से
कहा–”तुमने कभी बताया नह क घर के िपछवाड़े म झािङय का जंगल-सा बन चुका है?
इस खर-पतवार म तो साँप-िब छू , िसयार सब क बहार हो जाएगी। चोर-उ के य द
इसम छु प जाएँ तो पता भी लगाना मुि कल होगा।“

पंिडताइन चुप रही। कु छ बोली नह ।

गोनू झा ने फर कहा–”देखो पंिडताइन, इतनी समझदार तो हो ही क समझ सको क


अपनी सुर ा और अपनी िहफाजत के िलए हर ि को वयं सतक रहना चािहए। ऐसे
भी िमिथला के शाितर चोर और ठग क मुझसे सीधे-सीधे ठनी ई है। जो चोर-उच े
कारावास म कै द ह, उनके सगे-स ब धी तो ह गे ही। या पता, उनम से कोई ताक लगाए
बैठा हो क कब मौका िमले क गोनू झा को सबक िसखाया जाए।...म ज दी ही इस खर-
पतवार को साफ करवाऊँगा। जब इस बंजर जमीन पर खर-पतवार पैदा हो सकता है तो
कु छ और भी पैदा हो सकता है। पहले म पता कर लेता ँ क यहाँ पर और या- या पैदा
हो सकता है...“

बात आई-गई हो गई। गोनू झा दूसरे घरे लू काय को िनपटाने म लग गए। बंजर को
आबाद करने का खयाल उनके दमाग से ही िनकल गया। गाँव म वे इधर-उधर जाते।
हमजोिलय से िमलते। दरबार के औपचा रक जीवन से मु , ठे ठ अपनी शैली म
ठहाके बाजी करते। कह उनके िलए भात-मछली और पकौड़े तले जाते तो कह भाँग घ टा
जाता। एक रात, इसी तरह क मटरग ती करके भाँग के तरं ग म ‘नचारी’ गाते ए गोनू
झा अपने घर क ओर लौट रहे थे क उनक नजर चार-पाँच िहलते-डु लते साय पर पड़ी।
गोनू झा ने सोचा–यह उनका म हो सकता है य क उ ह ने भाँग पी रखी है। मगर फर
भी वे आँख फाड़े अँधेरे म देखते रहे। अ ततः गोनू झा ठमक गए। उ ह प भान आ क
िहलते-डु लते साए चार-पाँच नह , आठ-दस ह और उनके घर के आस-पास मंडरा रहे ह।
उ ह ने दो साय को तेजी से अपने घर के िपछवाड़े जाते देखा। गोनू झा जहाँ थे वह एक
पेड़ क ओट म खड़े होकर इन साय क गितिविधयाँ देखने लगे। उ ह ने देखा क शेष रह
गए साये दो भाग म बँट गए। येक भाग म चार-चार साए थे। तेजी से चार गोनू झा के
घर के उ र, खुले थान म लगाए गए फलदार वृ के बगीचे म घुस गए और चार घर के
दि ण भाग म लगे आम के बगान म घुस गए।

अब गोनू झा खुद ऐसे लड़खड़ाते ए चलने लगे मानो ब त नशे म ह । वे गुनगुनाते भी


जा रहे थे। कभी-कभी वे ब त ऊँची आवाज म गुनगुनाते मगर यह समझ म नह आ रहा
था क वे या गुनगुना रहे ह। उनक नशे म डू बी आवाज रात के स ाटे म कु छ यादा ही
तेज तीत होती थी। अपने दरवाजे पर वे प चँ े ही थे क पंिडताइन हाथ म दीया िलए घर
से बाहर िनकली। गोनू झा को इस हालत म देखकर पंिडताइन को काठ मार गया। वह
समझ नह पा रही थी क पंिडत जी आज इतने तरं ग म कै से आ गए। ये तो कभी इतनी
भाँग पीते नह क चढ़ जाए। होली म जब सारा गाँव भंिगयाया रहता है तब भी पंिडत जी
पूरे होश म रहते ह। पंिडताइन को दीया िलये आते देखकर गोनू झा ने लटपटाती ई
आवाज म कहा, ‘‘अरे भा यवान, जरा दूरा पर के छोटक कोठ रया खोल के िजतना
कु दाल, फावड़ा है सब िनकाल लाओ।...अरे नह , तुम कोठरी खोल दो, ज रत का सामान
िनकालकर म ही रखता ।ँ ’’

पंिडताइन झ ला गई। अब आधी रात म इनको यह या धुन सवार हो गई है? पंिडताइन


को िव ास हो गया था क गोनू झा इस समय नशे म ह। इसिलए उसने उनसे कु छ नह
कहा। चुप-चाप कोठरी खोल दी। इस कोठरी म खेती के उपकरण थे। गोनू ने चार गता
िनकालकर दरवाजे पर रखा। फर चार कु दाल िनकाले। फर दो फावड़ा। बत क चार-
पाँच टोक रयाँ भी उ ह ने िनकाल । सारा सामान बाहर रखकर वे दरवाजे पर खुले थान
पर खड़े हो गए और प ी से कहा–”जाओ आधा डोल पानी ले के आओ।“

पंिडताइन मन-ही-मन िचढ़ रही थी। कु छ बोली नह । पानी लेकर आ गई।

गोनू झा ने कु ला कया। हाथ-पैर धोए। फर िसर पर दो लोटा पानी डाला और कं धे पर


रखे गमछा से िसर प छते ए घर म घुस गए।

डोल-लोटा लेकर उनके पीछे-पीछे पंिडताइन भी घर म घुसकर दरवाजा ब द कर िलया।

गोनू झा के िलए पंिडताइन ने खाना परोस दया। उ ह देखकर समझने क कोिशश करने
लगी क गोनू झा या सचमुच नशे म ह या यूँ ही नशे म होने का वाँग कर रहे ह। अभी
पंिडताइन इस उधेड़बुन म थी क उ ह महसूस आ क घर के िपछवाड़े क जो िखड़क
आँगन से खुलती है वहाँ से कु छ खटर-पटर क आवाज आ रही हं◌।ै

उसी समय गोनू झा ने पंिडताइन को आवाज लगाई और ऊँची आवाज म बोले–”अरे


भा यवान! कु दाल-फावड़ा िनकालने के िलए तुमने दीया दखाया है। इसका जो ईनाम
तु ह कल िमलने वाला है उसक तुम क पना भी नह कर सकती हो।“

पंिडताइन उ सुकता से भरकर आँगन म आ गई और पूछने लगी– ‘‘ऐसा या?...मुझे तो


समझ म नह आ रहा है क रात म कु दाल, गता य िनकलवा रहे ह आप। कम से कम
प ह जन के औजार आपने िनकलवाए ह। या होगा इनका?“

”अरे भा यवान। कल इस कु दाल-फावड़े से समझो क अपनी कं गाली जड़ से खुद


जाएगी। इतना धन इन औजार से ा होने वाला है िजसक तुम क पना नह कर
सकत । मुझे तो ब त पहले यह कदम उठा लेना चािहए था मगर अ ल आती है आते-
आते...“

”मुझे कु छ भी समझ म नह आ रहा...तुम कै सी पहेिलयाँ बुझा रहे हो!“ धन क बात


सुनकर पंिडताइन क उ सुकता जग चुक थी।

गोनू झा ने तपाक से कहा–”पगली! धन-वैभव क बात तु ह यहाँ खुले म बताऊँ? इतना


तेज नशा नह आ है अभी क अपना होश गँवा बैठँू । तुम मेरी अधािगनी हो। तु ह सब
बता देना मेरा धम है। अि के सात फे र म िलए जाने वाले सात संक प म एक संक प
यह भी तो होता है। ले कन यहाँ नह , चलो, कमरे म बताता ।ँ “ इतना कहकर गोनू झा
मु कु राते ए प ी का कं धा पकड़कर कमरे म आ गए और गुनगुनाने लगे।

पंिडताइन कु छ देर तो शा त रहकर उनके चुप होने क ती ा करती रही ले कन जब


उससे नह रहा गया तब बोली–”अरे बताओ भी क कस धन क बात कर रहे थे और उस
धन का इन खेती के औजार से या स ब ध है?“

गोनू झा कु छ कहते, उससे पहले ही कमरे क िखड़क के पास खटका आ। गोनू झा अभी
उस आवाज पर यान दे रहे थे क पंिडताइन बोली– ”अरे कु छ नह है। िब ली रात-बेरात
इसी तरह उछल-कू द के िशकार करती रहती है। तुम बताओ न, या बतानेवाले थे?“

गोनू झा चलते ए िखड़क के पास प च ँ गए और ऊँची आवाज म बोलने लगे–”मेरे


िपताजी ने मरने से पहले मुझे बताया था क िपछवाड़े क जमीन को उ ह ने जान-बूझकर
बंजर रख छोड़ा है ता क कसी को भी इस जमीन म छु पे खजाने का पता न चल सके । इस
जमीन म सात थान पर िपताजी ने सोने क मोहर से भरे घड़े गड़वा रखे ह। मुझसे
उ ह ने कहा था क जब ब त ज रत महसूस हो तब इन खजान का उपयोग करना। मने
भी उनके मरने के बाद िपछवाड़े क जमीन पर कु दाल नह चलवाई। सोचा, इस दो क े म
बाड़ी न भी लगे तो या है? मगर आज भाँग छाँकते समय 5 अचानक मेरे मि त क म यह
िवचार क धा क इतना सोना रहते ए मेरी पंिडताइन एक पतली िसकड़ी पहनती है।
खपरै ल घर म रहती है। मुझे अपने धन का वैभवपूण उपयोग करना चािहए। जानती हो
न...सोम का धन शैतान खाता है। तब से ही म इन घड़ को िनकलवाने के िलए बेचैन ।ँ
खैर, आज नह , तो कल सही। कल पौ फटते ही म प ह-बीस मजदूर को पकड़ लाऊँगा।
घंटे-दो घंटे म जमीन के खर-पातर क सफाई और जमीन खोदकर वण-मु ा से भरे
घड़ को िनकालकर आराम क िज दगी!“ इसके बाद गोनू झा खूब जोर-जोर से हँसने
लगे–”हा...हा...हा! फर महाराज क चाकरी करने क ज रत नह । नगर सेठ म बैठँू गा।
म तु ह रानी क तरह सजाकर रखूँगा। हा...हा...हा...!“ हँसी का अटू ट िसलिसला-सा चल
पड़ा।

गोनू झा को इस तरह हँसते देख पंिडताइन भयभीत हो गई क कह गोनू झा को भाँग तो


नह चढ़ गई! वह बेचैन हो गई। और गोनू झा को अनुनय-िवनय के साथ िब तर पर ले
आई। गोनू झा ज दी ही गहरी न द म सो गए। पंिडताइन क भी आँख लग ग ।

सुबह पौ फटने से पहले ही पंिडताइन जग गई। नारी सुलभ िज ासा उसे बेचैन कए थी
क इतना सोना जब घर म आएगा तब वह या- या करे गी? कई बार उसका मन आ क
गोनू झा को जगा ले और उ ह मजदूर लाने के िलए भेज दे। सबेरा हो जाने के बाद जन
कमाने िनकल जाते ह– या पता पंिडत जी अगर देर से जग तो कोई मजदूर िमले न िमले।
एक क बात रहती तो चलो, कोई बात नह थी, ज रत तो दस-प ह मजदूर क
है...घंटा भर म दो क े जमीन क सफाई और कोड़ाई तो दस-प ह आदमी कर ही
लगे...हाँ, उस समय खुद भी सतक रहना होगा। घड़ा िमलने पर तुर त खेत से घड़े को ले
आना होगा। कसी को भनक भी न लगे क उन घड़ म सोना है।

पंिडताइन क न द खुली तो फर दुबारा आँख नह लग । गुन-धुन लगा रहा क सोना


घर म आ जाएगा तब वह या करे गी।

िचिडय क चहचहाहट ने पंिडताइन को बेचैन कर दया...और वह अपने को रोक नह


पाई। गोनू झा का कं धा िहलाते ए धीमे-धीमे आवाज देने लगी–”पंिडत जी, जािगए।
सबेरा हो गया।“

गोनू झा क न द खुली। आँख मलते ए वे िब तर से उठे । कु ला कया। फर पंिडताइन


से पूछने लगे–‘‘अरे भा यवान! इतनी ज दी य जगा दी...?’’

”आपको कु छ याद भी रहता है? आपने ही तो कहा था क सुबह म दस-प ह मजदूर


लाने जाना है, भूल गए?“

‘‘अरे , हाँ!’’ गोनू झा ने चकते ए कहा–‘‘चलो, तुम भी चलो मेरे साथ।’’


”म जाऊँ? मजदूर लाने? लोग या कहगे?“ पंिडताइन बोली।

‘‘अरे , बाहर तक तो चलो।“ गोनू झा ने पंिडताइन क कलाई पकड़ ली और दरवाजा


खोलकर प ी के साथ बाहर िनकले। बोले–”चलो, जरा िपछवाड़े से हो आएँ।“

वे दोन िपछवाड़े क ओर गए तो देखा, दस आदमी जमीन क खुदाई करने म लगे ए ह।


अपने काम म वे लोग इतने त मय थे क गोनू झा और पंिडताइन के प च
ँ ने का उ ह पता
ही नह चला।

गोनू झा ने ताली बजाई। बोले”वाह, भाइयो, तुम लोग ने तो रात- भर म जमीन क


सूरत ही बदल दी!“

इतना सुनना था क खेत जोतने म लगे लोग कु दाल-गता छोड़कर भागे। मगर वे भाग के
जाते कहाँ? सवेरा हो चुका था। लोग शौचा द के िलए घर से िनकल चुके थे। गोनू झा ने
चोर-चोर का शोर मचाया...चीखने लगे–”पकड़ो...कोई भागने न पाए!“

गाँववाल ने भागते चोर म से चार को पकड़ िलया। उनक जबद त धुनाई ई। इस


धुनाई के बाद उ ह कोतवाल के हवाले कर दया गया।

उनके बयान पर शेष चोर भी पकड़ िलए गए। उनक िपटाई और पूछताछ से मालूम आ
क ये सभी लोग कसी न कसी तरह लंगडू उ ताद से स बि धत ह। लंगडू उ ताद ने गोनू
झा को सबक िसखाने का संक प ले रखा है। उसके कहने पर ही ये लोग गोनू झा के घर
चोरी करने के इरादे से आए थे। गोनू झा को अपनी प ी से खेत म वण-मु ा से भरे घड़े
होने क बात कहते सुनकर उन लोग ने उसी को िनकालकर ले जाने का मन बना िलया।

कु दाल आ द तो गोनू झा िनकालकर गए ही थे...वे अ त तक यह नह समझ पाए क वे


गोनू झा के झाँसे का िशकार हो गए। गोनू झा ने पहले ही भाँप िलया था क चोर ने उनके
घर पर घात लगा रखा है। इसके कारण ही उ ह ने खजाने क कहानी प ी को सुनाई थी।

हवालात म ब द चोर को देखने के िलए गोनू झा जब प च ँ ,े उस समय भी वे तरं ग म


उसी तरह गुनगुना रहे थे...चोर से उ ह ने कहा–”अरे भाई लोग! तुम लोग ने मेरी बंजर
भूिम क बि़ढया खुदाई क । कारावास क सैर से लौटकर आना तो मेहनताना ले जाना।“
जैसे को तैसा
बात उन दन क है जब गोनू झा िमिथला नरे श के दरबारी नह थे। उनके दन अभाव म
गुजर रहे थे। उनके साथ उनका छोटा भाई भी था। दोन के िलए भोजन-वसन जुटाना गोनू
झा के िलए मुि कल हो रहा था। गाँव म रोजगार नह । एक बार सूखा पड़ा तो खेत-पथार
सभी सूख गए। िजधर भी –ि जाती फटी िबबाइय वाली बंजर धरती ही दखती। ा ण
होते ए भी गोनू झा ने िव -वृित नह अपनाई थी क कह माँगकर खा ल और अपने भाई
भोनू झा म भी यह वृित नह पनपने दी थी। चाहते तो वे भी ‘पोथी-पतरा’ लेकर ज म
कु डली बनाते या घर-घर जाकर पूजा कराते और जजमनका से िमले ‘सीधा’ से अपना
और अपने भाई का पेट सुख से पाल लेते क तु बचपन से ही वािभमानी गोनू झा को
कसी के आगे हाथ फै लाना गँवारा नह था।

एक दन ऐसी नौबत आ गई क घर म एक भी दाना नह बचा। गोनू झा को िच ता ई


क आिखर वे भोनू झा को िखलाएँ तो या? वे खुद तो एक-दो दन उपवास कर सकते थे
क तु भोनू झा भोजन-भ थे। भूख लगी नह क बेहाल हो जाते। गोनू झा सबकु छ देख
सकते थे मगर भोनू झा को भूख से िबलिबलाते ए नह देख सकते थे। उ ह ने सोचा–पास
के क बे म जाकर कोई काम कर लूँ, शाम तक कु छ न कु छ मेहनताना तो िमल ही जाएगा।
भोनू झा को घर पर ही रहने क नसीहत देकर वे पास के गाँव क ओर चल पड़े।

गोनू झा ने कभी मजदूरी नह क थी। रा ते म वे सोचते जा रहे थे क आिखर क बे म वे


कसके पास जाएँगे और या काम माँगगे? घर से चलते समय उ ह ने सोचा था क कु छ
भी कर लगे मगर अब उनक समझ म नह आ रहा था क आिखर करगे भी तो या? क बे
मप च ँ कर वे इधर-उधर भटकते रहे मगर उ ह यह नह सूझ रहा था क कसके पास
जाकर वे काम माँग और या काम माँग? क बे म भटकते-भटकते वे थक से गए। मानिसक
प से बोिझल और िवचारशू य! कु छ भी समझ म नह आ रहा था क कर भी तो या
कर? थकान के कारण बुरा हाल था। जेठ क सुलगती झुलसती हवा और तपती धूप से
परे शान, पसीने से तरबतर, गोनू झा को लगा क य द वे इस तरह भटकते रहे तो लू क
चपेट म आ ही जाएँग।े उ ह ने आस-पास ऐसी जगह के िलए –ि घुमाई जहाँ दो घड़ी के
िलए वे बैठ जाएँ। यास से कं ठ खु क हो रहा था और गम से मन ाकु ल। उनक नजर
एक हलवाई क दुकान पर पड़ी। वे उस दुकान म चले गए। दुकान म िमठाइय को देखकर
उनक अँतिडयाँ कु लबुलाने लग । दुकान म पीढ़े पर वे बैठे और हलवाई उनके पास पानी
लेकर आ गया। गोनू झा ने थोड़ा सु ता लेने के बाद भर छाँक पानी पीया।

हलवाई ने उनसे पूछा–‘‘ य भइया? या खाओगे?’’


गोनू झा ने अपनी त द सहला रहे हलवाई क ओर देखा और ब त संकोच से
बोले–‘‘भाई! मुझे खाना भी है और डेढ़-दो सेर िमठाई भी लेकर जाना है मगर मेरे पास
पैसे नह ह। तुम चाहो तो म तु ह अपनी अँगूठी दे देता ।ँ म दो-तीन दन म आकर तु ह
पैसे दे जाऊँगा और अपनी अँगूठी ले जाऊँगा।“ गोनू झा ने अपने दाएँ हाथ क अनािमका
से एक चाँदी का छ ला िनकालकर हलवाई क ओर बढ़ाया और फर कहा–‘‘म पड़ोस के
गाँव का .ँ ..मेरा िव ास करो।’’

हलवाई ने अँगूठी अपने हाथ म लेकर देखी। उसक आँख म काइयाँपन उभर आया।
उसने गोनू झा से कहा–‘‘भाई, लगता है क तुम भूखे हो। भूखे को खाना िखलाना धरम है
इसिलए म तु ह िखलाऊँगा–िजतनी खा सको, खा लो...और डेढ़ सेर या, दो सेर िमठाई ले
जाओ ले कन यह मत सोचना क इस चार आना भर के चाँदी के छ ले के िलए तु ह ये
िमठाइयाँ िखलाई ह...पड़ोस गाँव से आए हो, इस नाते हमारे मेहमान ही ए। और
मेहमान का स कार भला कोई कै से नह करे गा?’’

गोनू झा ने मन ही मन सोचा क कतना काइयाँ आदमी है यह! आठ आना भर चाँदी क


अँगूठी को यह चार आना भर कह रहा है! वे कु छ बोले नह । भर पेट जलेबी और कचैड़ी
खाई। फर रसगु ले और कु छ पंतुआ भी खाए। हलवाई ने उ ह दो सेर िमठाइयाँ भी
तौलकर िम ी क हंडी म डालकर दे दी। गोनू झा ने कु छ कचैड़ी और जलेबी भी भोनू के
िलए बँधवाया। मन ही मन गोनू झा ने सोचा क कह से कु छ पैस का जुगाड़ करके वे
हलवाई के पैसे दे जाएँगे और अपनी अँगूठी ले जाएँग।े गोनू झा मन ही मन ब त स थे
क चलो, भोनू क भूख िमटाने क व था हो गई।

मगर दो-तीन दन म पैसे का इं तजाम गोनू झा नह कर पाए। दो-तीन माह म भी नह ।


गाँव के एक धनी कसान के ब को पढ़ाने का काम उ ह िमल गया था, सो कसी तरह वे
अपना और अपने भाई का पेट पाल रहे थे।

संयोग यह आ क इसके कु छ माह बाद अ छी बा रश ई। अ छी फसल के कारण गाँव


म खुशहाली आई। गोनू झा क माली हालत म सुधार आ। वे एक दन उस हलवाई के
पास गए और उसक िमठाइय के पैसे चुकाकर अँगूठी क माँग क मगर हलवाई ने उनसे
पैसे लेने और उ ह पहचानने से इनकार कर दया। गोनू झा मन मसोसते ए वापस आ
गए।

कहते ह क िनयित के रं ग-ढंग िनराले होते ह। संयोग क रचना भी िनयित ही करती है।
संयोगवश गोनू झा के गाँव म एक बार फर अकाल पड़ा। भोनू क परव रश को लेकर गोनू
झा फर परे शान हो गए। और एक दन फर भोनू को साथ लेकर उसी क बे म काम क
खोज के िलए प चँ े।

दन चढ़ने पर भोनू झा भूख से िबलिबलाने लगा और गोनू झा से बार-बार कु छ िखलाने


के िलए कहने लगा। जब दोन भाई उसी हलवाई क दुकानवाली राह पर प च ँ े तो अतीत
क मृितयाँ गोनू झा के दमाग म क ध ग और उ ह ने तुर त फै सला कर िलया क
हलवाई को सबक िसखाने का यही मौका है। भोनू झा को अँगूठी वाली घटना क कोई
जानकारी नह थी। उ ह ने भोनू झा से कहा”हम दोन भाई भर पेट िमठाई खा सकते ह।
इस हलवाई क दुकान म जो कु छ भी पस द आए, तुम जाकर खाओ। म थोड़ी देर बाद
आऊँगा। तुमसे अलग बैठँू गा। तुम दुकान म अजनबी क तरह रहना। भूलकर भी न मेरी
तरफ देखना और न बात करना। जो खाना है, खा-पीकर चल देना। दुकानदार से डरना
मत। दुकानदार तुम पर िच लाए तो कहना क तुम खाने से पहले ही पैसे दे चुके हो।
दुकानदार तुमसे झगड़े, तुम अपनी बात पर डटे रहना। इसके बाद म सब सँभाल लूँगा।“

भोनू झा सशं कत मन से हलवाई क दुकान म गया और कचैड़ी, तरकारी, जलेबी, दही


और रसगु ले मँगाकर उन पर टू ट पड़ा।

जब भोनू झा का खाना लगभग समा होकाने को था तब दुन म गोनू झा आए। उ ह ने


भी अपने िलए कचैड़ी-जलेबी, रसगु ले और दही मँगाई और खाने म म हो गए। अभी
उ ह ने चार कचैािङयाँ ही खा थी क भोनू झा क आवाज उनके कान से टकराई–‘म तो
खाने से पहले ही पैसा दे चुका ।ँ ’ थोड़ी ही देर म हलवाई और भोनू झा के बीच म
जबरद त तू-तू, म-म होने लगी। भोनू झा पूरी तरह से डटा आ था और गोनू झा खाने म
लगे ए थे। दुकान म झगड़ा होते देख राहगीर दुकान के पास जमा हो गए। ह ला-हंगामा
के कारण बाजार क चैकसी करनेवाला िसपाही दुकान म प च ँ गया और दुकानदार से
पूछने लगा क या बात ई है? हलवाई कु छ बोले, उससे पहले ही भोनू झा ने उस
िसपाही से कहा–‘‘इस दुकानदार ने खाना देने से पहले मुझसे पैसे ले िलए। अब म जा रहा
ँ तो यह दुबारा पैसे माँग रहा है।’’

दुकानदार इस सफे द झूठ से उ ेिजत हो गया और आवेश म बोला, ‘‘िसपाही जी, यह


सरासर झूठ बोल रहा है।’’

भोनू झा ने िसपाही से कहा‘‘म अगर झूठ बोल रहा ँ तो आप उस आदमी से पूिछए जो


वहाँ खाना खा रहा है। िजस समय म पैसे दे रहा था उस समय ही यह आदमी यहाँ आया
था।’’

िसपाही ने गोनू झा क तरफ देखा। वे खाकर हाथ-मुँह धो रहे थे। िसपाही ने गोनू झा को
आवाज दी तो गोनू झा फू ट-फू टकर रोते ए िसपाही के पास प च ँ ।े िसपाही ने कहा–‘‘अरे
तुम य रो रहे हो? म तु ह कु छ नह क ँ गा भाई! डरो मत।’’

गोनू झा ने सुबकते ए कहा–‘‘म आपसे नह , इस हलवाई से डर रहा ।ँ खाना देने से


पहले इसने मुझसे भी पूरी फे ह र त ली क म या- या खाऊँगा और जब मने इससे कहा
क भाई, पहले खा तो लेने दो– फर पैसे ले लेना तब इसने कहा क इस दुकान का द तूर
यही है–पहले पैसा, तब सामान। कोई खाकर चल देगा तो म या क ँ गा? यह भाई जी
ठीक ही कह रहे ह–पैसा चुकाकर जब ये खाना खाने बैठे, उसी समय तो यह हलवाई पैसा
िगनते ए मुझसे त कर रहा था।’’

हलवाई गोनू झा क बात सुनकर ह भ रह गया। ‘‘अरे ! या बोल रहे हो भाई? य


झूठ बोलकर मुझे फँ सा रहे हो?’’ उसने गोनू झा से कहा।

मगर गोनू झा ने िसपाही का हाथ पकड़ते ए कहा–‘‘आप ही इ साफ क रए माई-बाप!


यह दुकानदार तो मुझे भी झूठा कह रहा है!’’

फर या था! िसपाही ने ‘तड़ाक’ एक बत हलवाई क पीठ पर लगाई और कहा–‘‘बंद


कर अपनी जुबान। ये दोन शरीफ आदमी ह। हम भी आदमी पहचानते ह। तुम बेकार का
पंच रचकर ाहक को लुटते हो। म तु ह हवालात क सैर कराकर र ग ँ ा।’’ िसपाही ने
गोनू झा और भोनू झा को दुकान से जाने को कह दया और हलवाई से उलझता रहा।

गोनू झा समझ चुके थे क यह िसपाही भी हलवाई से अपना ‘चढ़ावा’ वसूल कर ही उसे


छोड़ेगा। गोनू झा ने रा ते म भोनू झा को ‘अँगूठी’ वाली घटना बता दी ता क भोनू झा के
मन म इस घटना का बुरा भाव नह पड़े।

भोनू झा भी समझ गया क उसके भैया ने हलवाई को सबक िसखाने के िलए तेरहम-
िवधा का इ तेमाल कया।
अस भव आ स भव
िमिथला नरे श के दरबार म जब कभी कोई काम नह रहता या महाराज मनोरं जन क
इ छा कट करते तो सारी औपचा रकताएँ समा हो जात और दरबा रय को मनचाहा
कहने-सुनने क छू ट िमल जाती।

िमिथला नरे श के दरबार म एक दरबारी थे पलटू झा। गोनू झा से पुराने और महाराज के


मुँहलगे। गोनू झा के दरबार म बढ़ते रसूख से वे भीतर ही भीतर जलते थे ले कन कट प
से गोनू झा क सराहना करते। उनके बारे म दरबार म भी यह आम राय थी क पलटू झा
से सलामत दूर क अ छी। न इनक दो ती अ छी, न इनक दु मनी अ छी।...बड़े घाघ
माने जाते थे पलटू झा। दोमुँहा साँप के नाम से दरबारी उनक पीठ पीछे चचा करते। गोनू
झा क मेधा से भी दरबा रय को िचढ़ होती थी िजसके बूते सभी पुराने दरबा रय को
पीछे छोड़ते गोनू झा महाराज के चहेते बन गए थे। कोई भी महीना ऐसा नह जाता जब
कसी न कसी कारण से महाराज दरबार म उनक खास चचा करते और यह चचा या
होती? बस वही, गोनू झा के बुि कौशल क सराहना। मतलब यह क गोनू झा और पलटू
झा क चचा कसी न कसी कारण से दरबा रय के बीच होती ही रहती थी। उनके बीच
यह भी चचा होती क य द कसी बात पर गोनू झा और पलटू झा के बीच िभडंत हो जाए
तो कसका पलड़ा भारी रहेगा? कौन जीतेगा? ले कन गोनू झा और पलटू झा एक दूसरे से
िभड़ने क बजाय ऐसी कसी स भावना के पनपते ही क ी काट जाते। ठीक ही कहते ह क
समान सूझवाले ानी पर पर िवरोधी िवचार के होते ए भी आपस म जूझते नह बि क
अपने काम म, अपनी धुन म लगे रहते ह और िनणय लोग पर छोड़ते ह।

ले कन एक दन वह अवसर आ ही गया जब पलटू झा क एक चुनौती गोनू झा को


वीकार करनी पड़ गई।

आ यह क िमिथला नरे श उस दन दरबार म प च ँ ते ही चुटकु ल , क स -कहािनय


क बात छेड़ बैठे। दरबारी म त हो गए। समझ गए, आज महाराज मनोरं जन करना चाहते
ह। ऐसे दन, दरबा रय को अपने नर के दशन का अवसर िमल जाया करता था। इधर-
उधर क बात होती रह । दरबार म हँसी- ठठोली का वातावरण बन गया। दरबारी
औपचा रकताएँ सरक ग । तभी कसी बात पर पलटू झा ने तंज कसा– ”अरे भाइयो! हम
सभी गोनू झा क बुि मानी क चचा करते रहते ह ले कन य द गोनू झा सुराही म क हरा
भर लाएँ तो म उनक बुि का लोहा मान लूँ!’’

बात ब त सामा य ढंग से कही गई थी ले कन उसे सुनते ही दरबारी हँसने लगे। गोनू झा
को यह बात चुभ सी गई। वे मु कु राते ए अपने आसन से उठे और महाराज से
बोले–‘‘महाराज! म सुराही म क हरा भर सकता ँ य द आप कह...!’’

महाराज को लगा क अब गोनू झा अपनी बुि के घमंड म शेखी बघार रहे ह। उ ह लगा
क गोनू झा को अपने पद क ग रमा का यान रखकर ही कु छ बोलना
चािहए...बड़बोलेपन से बचना चािहए।

िमिथला नरे श ने उ ह टोका–‘‘पंिडत जी! कां◌ेहरा–क हरा होता है, पानी या आटा नह
है क आप सुराही म भर ल!’’

गोनू झा उसी तरह मु कु राते ए बोले–”महाराज! क हरा हम उपजाते ह! क हरे क


कृ ित हम जानते ह, तब ही यह कह रहे ह क य द आप आदेश कर तो सुराही म क हरा
भरकर दखा दू!ँ ’’

गोनू झा और महाराज के बीच के वातालाप सुनकर दरबार म खामोशी छा गई। पलटू


झा ने तो यूँ मजाक-मजाक म वह बात कह दी थी और दरबार म वही बात एक संजीदा
मोड़ पर प च ँ चुक थी...यह सब देखकर वे भी सकते म आ गए। महाराज को गोनू झा क
बात अ छी नह लग । उ ह लगा क गोनू झा दंभ म आकर वह बात कह रहे ह–जो अस भ
है आज। वह कल भी अस भ ही रहेगा: भला सुराही के छोटे से मुँह से क हरा कै से घुस
सकता है सुराही म...? ‘न भूतो न भिव यित!’ ऐसा हो ही नह सकता। महाराज ने सोचा।
उ ह ने गोनू झा पर ग भीर –ि डाली तो देखा क गोनू झा अब भी मु कु रा रहे ह। गोनू
झा क मु कान से महाराज उ िे लत हो उठे । उनके मन म िवचार उठा–यह कु टल मु कान!
गोनू झा को उनके दंभ क सजा िमलनी चािहए।

उ ह ने गोनू झा से ग भीर वर म पूछा‘‘तो पंिडत जी! आप अब भी कह रहे ह क


सुराही म क हरा भरा जा सकता है?’’

दरबारीगण महाराज क ग भीरता से स ाटे म आ गए ले कन वे मन ही मन खुश थे क


गोनू झा अब महाराज का कोपभाजन बनने वाले ह। गोनू झा अपनी उसी सहजता म
बोले–‘‘जी हाँ, महाराज! अभी क हरा फलने का मौसम भी है। मुझे तीन माह का अवसर
द, तो म यह काम करके दखा दू।ँ ’’

महाराज ने उनक बात को ग भीरता से िलया तथा घोषणा क क आज से ठीक तीन


माह बाद गोनू झा दरबार म क हरे से भरी सुराही तुत करगे! य द वे नह कर पाएँगे तो
दंड के भागी ह गे। इस ग भीर घोषणा के बाद उस दन महाराज दरबार से उठ गए।
दरबारी मन ही मन खुश थे, गोनू झा पर सामत आने वाली है...।

दूसरे दन से दरबार सामा य ढंग से चलने लगा। गोनू झा भी सामा य और सहज थे।
पलटू झा और अ य दरबारी उनके चेहरे पर कोई िच ता क रे खा नह देखकर असमंजस म
थे, फर भी उ ह लग रहा था क तीन माह बाद गोनू झा िनि त प से दंिडत
ह गे...सुराही म कोई क हरा डाल सकता है भला!

देखते-देखते तीन महीने बीत गए। दरबार म कसी दरबारी ने महाराज को याद
दलाया–‘‘महाराज, आज ठीक तीन महीने पूरे हो गए। आज गोनू झा हम लोग को
सुराही म क हरा भरकर दखाने वाले थे।’’

महाराज को तीन महीने पहले क घटना याद हो आई और उ ह ने गोनू झा से


पूछा–‘‘ य पंिडत जी?’’

महाराज आगे कु छ बोल पाते क गोनू झा ने अपने आसन से उठकर पूरी िवन ता के
साथ कहा–‘‘एक सुराही म क हरे क बात थी महाराज! मुझे याद है। एक क जगह म
दरबार म दस बड़ी सुरािहय म भरे क हरे तुत करने जा रहा ।ँ एक महाराज के िलए
भट व प! एक भाई पलटू झा के िलए भट व प। शेष कोहरे वाली सुराही महाराज क
इ छा पर 4 िवशेष योजन के िलए सुरि त रखी जा सकती है या कसी िवशेष अवसर
पर कसी मेहमान को उपहार व प भट म दी जा सकती है!

महाराज गोनू झा के उ र से च कत हो गए और उ सुकतावश उ ह ने पूछा–‘‘ले कन


कब?’’

गोनू झा ने कहा‘‘महाराज! बैलगाड़ी म दस सुरािहयाँ लादे हमारे आदमी प च


ँ नेवाले ही
ह गे।’’

दरबार म सनसनी पैदा हो गई। सभी दरबारी एक दूसरे को च कत –ि से देख रहे थे।
कोई िव ास नह कर पाया क ऐसा भी हो सकता है।

थोड़ी ही देर म ारपाल ने आकर सूचना दी क गोनू झा के घर से एक बैलगाड़ी आई है


िजस पर सुराही लदी ह तथा उस बैलगाड़ी के साथ आए लोग सुरािहयाँ दरबार म लाना
चाहते ह।

महाराज ने उ ह दरबार म वेश करने क इजाजत दे दी।

थोड़ी ही देर बाद सभी दरबा रय ने देखा, दस आदमी अपने कं ध पर सुराही उठाए
दरबार म प च ँ े। महाराज के पास आकर उ ह ने सुरािहयाँ रख द तथा उ ह णाम कर
दरबार से बाहर हो गए।

गोनू झा अपने आसन से उठे और सबसे बड़ी सुराही को पूरी ताकत से उठाकर धीरे -धीरे
चलते ए महाराज के पास आए और उसे महाराज के आसन के पास रखते ए
बोले–‘‘महाराज, यह सबसे बड़ा क हरा आपके िलए।’’

महाराज ने महसूस कया क गोनू झा का दम फू ल रहा है–शायद भार उठाने के कारण।

महाराज ने सुराही को देखा–सुराही के मुँह के पास क हरे क बेल का कटा आ िह सा


था। महाराज ने उसे छू कर देखा–अभी ताजा था। उ ह ने उसे ख चने क कोिशश क तो
वह बेल सुराही से थोड़ा सा खंचा ले कन उसके बाद सुराही िहलने लगी। महाराज ने
सुराही का मुँह पकड़कर एक हाथ से उठाने क कोिशश क तो उ ह लगा क सुराही को
उठाना आसान नह है।

तभी एक सुराही गोनू झा, पलटू झा के आसन तक ले गए और बोले– ‘‘पलटू भाई, यह


आपके िलए।’’

दरबार म साँस साधे लोग यह कौतुक देख रहे थे। कसी ने कहा क यह कोई घनच र है।
तब गोनू झा ने सभी दरबा रय को आमंि त कया क वे आएं और सुरािहय को ठीक से
देख ल क इनम क हरे भरे ह या नह !

बारी-बारी से सभी ने सुराही का मुआयना कया। कह कोई चालाक नजर नह आई।


मगर एक दरबारी ने शंका जताई क यह कै से पता चलेगा क सुराही म क हरा ही है?

तभी गोनू झा ने हँसते ए कहा–”ऐसे!“ यह कहते ए उ ह ने एक सुराही उठाई और उसे


दीवार से टकरा दया। सुराही चकनाचूर हो गई और उसके भीतर से सुराही क आकृ ित
का क हरा िनकल आया।

सभी के सभी च कत ए। मगर उपहास करने के िलए बेताब दरबा रय म से कसी क


िह मत नह ई क वे पूछ सक क आिखर गोनू झा ने यह अजूबा कै से अंजाम दया।

महाराज ने दरबार म गोनू झा के इस क र मे क मु -कं ठ से सराहना क । दरबार के


समापन के बाद महाराज ने गोनू झा को अपने पास बैठाया और कहा–‘‘सच बात तो यह है
पंिडत जी क मुझे िव ास नह था क आप सचमुच सुराही म क हरा भर के दखा सकते
ह। म सोच रहा था क आप दंभ म आकर इस तरह क बात कर रहे ह।’’

गोनू झा के ह ठ पर सरल ि मत तैर गई और उ ह ने कहा–‘‘महाराज! मुझे इसका भान


है अ यथा आप दरबार म मुझे दंिडत करने क घोषणा नह करते!’’ महाराज चुप रहे।
थोड़ी देर के बाद उ ह ने पूछा–‘‘पंिडत जी, मुझे अभी भी समझ म नह आया क आपने
यह क र मा कै से कर दखाया?’’ गोनू झा ने महाराज को बताया–‘‘महाराज! मेरे दरवाजे
पर क हरे क लतर पहले से ही लगी ई थी। क हरा पक जाने के बाद ल बे अरसे तक
सड़ता नह और न सूखकर खराब होता है। इसिलए हम लोग भिव य क ज रत को देखते
ए क हरा सहेजते ह। जब मुझे सुराही म क हरा भरने क आ ा िमली तो मने घर
प चँ कर देखा, क हर क लता म बीस ‘बितया’ िनकल चुके थे। मने दूसरे दन ही बीस
सुरािहयाँ मँगवा और लता को नरमी से मोड़कर बितया सिहत सुराही म डाल दया।
तीन महीने तक मने क हरे क जड़ और लता क सतकता के साथ सेवा क । ज रत के
मुतािबक पानी और खाद देता रहा। बीस म से प ह बितया क हरे के प म िवकिसत हो
ग और पाँच मुरझाकर सूख ग । प ह म से दस क हरे ीमान के दरबार म तुत कर म
राजदंड का भागी बनने से बच पाया।’’

गोनू झा क बात सुनकर िमिथला नरे श के चेहरे पर एक सल मु कान आई और


उ ह ने गोनू झा से कहा–‘‘पंिडत जी, आपक मेधा क िजतनी तारीफ क जाए, कम है।’’
कम ही पूजा है
एक बार िमिथलांचल म भयंकर सूखा पड़ा। अनावृि और अकाल से ा त
िमिथलावािसय के िलए अनाज का दाना तक मय सर होना क ठन हो गया। अनावृि के
कारण पेड़-प े मुझा गए। लोग ािह- ािह करने लगे।

िमिथला नरे श ने अपनी जा के िलए राज-गोदाम के दरवाजे खुलवा दये मगर उ ह


िच ता सताने लगी क रा य के अनाज भंडार को रीतते देर नह लगेगी। तब या होगा,
जब यह अनाज भंडार भी खाली हो जाएगा? िमिथलांचल के िविभ इलाक से सा कार
और अनाज िव े ता ारा लोग के दोहन क सूचना से भी वे िवकल थे मगर कु छ भी
कर पाने क ि थित म नह थे। पूरे िमिथलांचल क जा और मवेिशय क हालत खराब
थी और लोग पलायन के िलए िववश हो रहे थे। इस ि थित को देखकर िमिथला नरे श ने
मुनादी कराई क कोई भी ि कसी साथक अनु ान से बा रश कराने क यो यता
रखता हो तो वह सामने आए और अनु ान का आयोजन राजिहत म करे ।

इस मुनादी के एक-दो दन बाद ही िमिथला नरे श के दरबार म एक ह ा-क ा साधू


प चँ ा। उसने अपने ललाट पर एक टीका तो लगा ही रखा था साथ ही चंदन के बीस ठोपे
से अपने ललाट को आ छा दत कर रखा था। उसने महाराज को बताया क वह एक िस
पु ष है और िहमालय क एक कं दरा म बीस वष तक कठोर तप या उसने क है। वह
उनचास पवन सिहत सम त मेघ को आमंि त करने म समथ है, य द य -अनु ान क
उिचत व था और साधन िमल जाए–तब!

अ धे को या चािहए–दो आँख! महाराज साधू क वाणी से भािवत ए और उसका


भरपूर स मान करते ए य -अनु ान के िलए उसके ारा बताई गई सिमधा क व था
करा दी।

अनन-फानन म य क तैया रयाँ हो ग ।

राजमहल के सामने के खुले मैदान म य -मंडप बनाया गया। आस-पास के गाँव म इस


िस पु ष क चचा होने लगी। कोई कहता–‘बीस-ठोप-बाबा’ बड़े चम कारी ह, तो कोई
कहता–ऐसा िस पु ष लाख वष के बाद धरती पर आता है!

यह घटना उस समय क है जब गोनू झा कसी योजन से िमिथलांचल के बाहर गए ए


थे। जब वे अपने गाँव लौटे तब उ ह ने सुना क िमिथलांचल म वषा कराने के िलए
महाराज ने ‘मेघ य ’ कराने क व था क है तथा िहमालय क कं दरा से तप या करके
िसि ा ‘बीस-ठोप-बाबा’ यह य करवा रहे ह। यह सुनते ही गोनू झा बेचैन हो गए।
उ ह इस बात का अहसास आ क मेघ य कराने वाला ि ढ गी होगा िव सनीय
नह ।

वैसे भी गोनू झा कमिन ि थे। साधु, गंडा, ताबीज आ द म िव ास नह करते थे।


ढ गी साधु क कलई खोलने म उ ह बड़ा मजा आता था। गोनू झा अपने तर पर स य
हो गए तथा ‘बीस-ठोप-बाबा’ के बारे म तरह-तरह क जानका रयाँ उ ह ने ा क ।
मसलन, वे कै से दखते ह, या पहनते ह, कै से बोलते ह, कै से चलते ह आ द।

दूसरे दन, शाम ढलने को थी। य थल पर िमिथलावािसय क भीड़ थी और हवन-कुं ड


म आ ितयाँ डाली जा रही थ । मं घोष हो रहा था। तभी लोग क भीड़ चीड़ता आ
नाटे कद का एक थूलकाय साधू य - थल पर प च ँ ा और गरजती-गुराती सी आवाज म
बोला–”यह अशु मं का घोष य हो रहा है? इससे दशाएँ कं िपत हो रही ह और
अि कु िपत! य द अशु मं ो ार होता रहा तो अिन क आशंका को टालना स भव नह
होगा!“

हठात् मं ो ार बंद हो गया। एक तेज वी साधू को यूँ गु ग भीर वाणी म बोलता सुन
िमिथलांचल के धमभी लोग सहम गए। सबको जैसे काठ मार गया!

य कराने वाले साधु ने य म प च ँ ी इस बाधा और द -सा दख रहे साधु को देख


थोड़ा अचि भत आ य क उसे यह िव ास ही नह हो रहा था क िमिथला नरे श क
अनुमित से आर भ कए गए अनु ान म कोई अड़चन भी डाल सकता है। य म भाग ले
रहे लोग क हालत देखकर उसने तुर त महसूस कया क य द वह चुप रहा तो उसके
‘ भाव’ को ठे स प च
ँ ेगी इसिलए वेदी से उठते ए उसने कु िपत होकर कहा–”तू कौन है?
कै से कहता है क अशु मं ो ार हो रहा है?“

तेज वी-सा दखने वाले साधू ने ऊँची आवाज म कहा–”मूख, मुझे नह पहचानता? म
िहमालय के शीष पर ‘इ -आराधना’ म शत वष म शत को ट इं ोपासन मं ा का जप
करनेवाला म शत-ठोप-महाराज ?ँ मुझसे स होकर इ भगवान ने मुझे एक ऐसा
बाँस दान कया है िजसके िहलाने से वषा होने लगती है और तू पूछ रहा है क म कौन
होता ँ अशु मं ाघोष का िवरोध करनेवाला?“

य कता साधू इस उ र से भीतर ही भीतर डर गया ले कन लोग के सामने अपनी


ित ा बचाए रखने के िलए उसने कहा–”इस तरह का बाँस तू रखता कहाँ है?“

तेज वी दखनेवाले साधू ने कु िपत होकर कहा”तुम जैसे ढ गी साधु के मुँह म–


दखाऊँ?“
इतना सुनना था क वह साधू शा त हो गया और य थल से पीछे क ओर बढ़ने लगा।

जब लोग ने उसे टोका–बाबा, कधर चले? तब उसने कहा–जरा मैदान जाना है–
लघुशंका के िलए! कु छ लोग उसके पीछे-पीछे चले ले कन अँधेरे का लाभ उठाकर वह साधू
कसी झाड़ी म जा छु पा। लोग िनराश लौट आए।

उधर य थल का नजारा बदला आ था। तेज वी अपना गे वा लबादा उतार चुका था


और दाढ़ी, मूँछ और जटा-जूट िनकालकर य -मंडप के पास रख दया। लोग ने देखा–अरे
यह तो अपने गोनू पंिडत ह!

गोनू झा ने ठहाका लगाते ए लोग से कहा–”देख िलया न ढ गी साधू का हाल! अरे


भाइयो, ऐसे ढां◌ेिगय से बच के रहना सीखो। य द वह िस पु ष होता तो य महाराज
और आप लोग से दान-दि णा और चढ़ावा क बात करता? समझा करो भाई! जाओ,
अपने-अपने काम म लगो। समझो, कम ही पूजा है।
गुलाब क सुग ध
िमिथला के लोग पाक-कला म िनपुण होते ह। तीज- योहार पर तो ायः हर घर म तरह-
तरह के पकवान बनते ह। आम दन का भोजन भी सु वादु होता है। रं ग से िमिथलांचल
के लोग का खास लगाव है। कला- ेमी ऐसे क अपनी िच ाकारी म ाकृ ितक रं ग का ही
उपयोग ाचीन काल से करते आ रहे ह। सुग ध- ेमी भी ह िमिथलावासी। ायः हर घर के
अहाते म बेला, चमेली, कचनार, जूही, कनक, कटेली च पा, रातरानी जैसे पु प के पौधे
िमल ही जाएँग।े

एक दन िमिथला नरे श अपनी पु पवा टका म टहल रहे थे। उनके साथ थे उनके मं ी।
कसी कारणवश गोनू झा महाराज से िमलने आए तो महाराज ने उनको भी पु पवा टका
म ही बुला िलया।

महाराज अपने मं ी से कु छ बात करते रहे, कु छ िनदश देते रहे। गोनू झा उन दोन के
साथ टहलते रहे। मं ी मन ही मन खुश हो रहा था क महाराज गोनू झा को मह व नह दे
रहे ह। मं ी को िनदश दे चुकने के बाद महाराज अचानक मं ी से कहने लगे–”मं ी जी,
इस पु पवा टका म म जब कभी आता ँ तो मु ध हो जाता हँ◌।ू िजस पौधे के पास जाओ,
उसी पौधे से एक िवशेष सुगंध का अहसास मन म भर जाता है। ले कन मुझे इन सभी फू ल
म गुलाब अिधक पस द है। देखने म भी सु दर और सुग ध ऐसी क लान मन को भी
आनि दत कर दे। या ऐसा कोई उपाय है क म िजस पौधे के पास जाऊँ, वहाँ से मुझे
गुलाब क सुग ध ही िमले?“

मं ी ने जब महाराज क बात सुन तो वह अवाक् रह गया। उसक समझ म नह आया


क वह महाराज को या उ र दे। भला कचनार से गुलाब क सुग ध कै से आ सकती है?
कोई भी फू ल अपना ही सुवास देगा। महाराज को यह या सूझी? अचानक मं ी को आई
बला को टालने क तरक ब सूझ गई। उसने तुर त महाराज से कहा–”महाराज! गोनू झा के
रहते ए इस का उ र म दू,ँ उिचत नह लगता!“

महाराज समझ गए क मं ी उ ह कोई उपाय बताने क ि थित म नह है, इसिलए वह


बात टाल रहा है। वे मन ही मन मु कु राए और फर गोनू झा क ओर देखा।

गोनू झा ने एक पल भी गँवाए िबना कहा–”महाराज! शाम ढल रही है। आपको ठं ड लग


सकती है। म तुर त आपका दुशाला लेकर आता ,ँ “ और महाराज क वीकृ ित के िबना ही
मुड़े और महल क ओर चले गए।
महाराज मं ी के साथ पु पवा टका म टहलते रहे, जैसे पहले टहल रहे थे।

थोड़ी ही देर म गोनू झा मंद-मंद मु कु राते ए वहाँ आए। महाराज के पास के और


स मानपूवक दुशाला उनके कं ध पर फै लाकर डाल दया। महाराज ने दुशाले के एक छोर
को खुद सीने से लपेटते ए दूसरे छोर को अपने कं धे पर रख िलया। उस समय महाराज
गुलाब के बीच ही थे। गुलाब क सुंगध से सराबोर!

थोड़ी देर वहाँ टहलते रहे महाराज और उसके बाद दूसरे फू ल क ओर बढ़ते ए उ ह ने
गोनू झा से पूछा–”पंिडत जी! या कोई उपाय है क म िजन फू ल के पास जाऊँ उनसे
गुलाब क सुगंध ही आए?“

गोनू झा मु कु राए और बोले–”उ र िमल जाएगा महाराज!“

थोड़ी देर म ही वे लोग पु पवा टका के ऐसे छोर पर प च


ँ गए जहाँ बेला-जूही-चमेली
जैसे ेत पु प क िनराली छटा िबखरी ई थी मगर महाराज को वहाँ भी गुलाब क
सुग ध िमल रही थी। भीनी-भीनी सुगंध! महाराज ने मं ी से पूछा–”इन फू ल से कै सी
सुग ध आ रही है?“

मं ी ने कहा–”बेला-जूही क िमली-जुली सुग ध!“

महाराज ने गोनू झा से भी वही सवाल दुहराया।

गोनू झा महाराज के पूछने का अथ समझ गए। उ ह ने कहा–”महाराज, फू ल म तो वही


सुग ध है जो नैस गक प से उनम िव मान है ले कन आप जहाँ कह भी जाएँगे वहाँ
आपको गुलाब क भीनी सुग ध िमलेगी। आपने आ ा दी थी क म कु छ ऐसा उपाय बताऊँ
क आप इस पु पवा टका म जहाँ कह भी जाएँ, आपको गुलाब क सुग ध िमले। मने वह
उपाय कर दखाया है।“

अब तक मं ी गोनू झा को इसी उपाय के मामले म मुँह लटकाए देखने क उ मीद कर


रहा था ले कन गोनू झा क बात सुनकर उसके चेहरे का रं ग उतर गया।

महाराज ने पूछा–” या सच आपने ऐसा कु छ कया है? म अब भी गुलाब क सुग ध का


अनुभव कर रहा ।ँ “

गोनू झा ने मु कु राते ए कहा–”मने कु छ नह कया है। बस, थोड़ा-सा गुलाब का इ ा


आपके दुशाले पर लगा दया है।“
मछली क परसादी
मछली, पान और मखाना िमिथला क सं कृ ित से इस तरह घुले-िमले ह क िमिथलांचल
के लोग इनके िबना नह रह सकते। एक दन गोनू झा कह से लौट रहे थे। रा ते म हाट
लगा आ था। हाट म उ ह ने ताजा मछली देखी। गोनू झा मछली ब त िच से खाते थे।
सो, उ ह ने एक बड़ी सी रो मछली खरीद ली। मछली के मुँह म सुतली का फं दा लगाकर
मछली को हाथ म लटकाए गोनू झा अपने घर क ओर चल दए।

अभी वे थोड़ी ही दूर चले थे क रा ते म उ ह गाँव के हजाम ने देखा। हाथ म मछली


िलए गोनू झा म त चाल म चले आ रहे थे। हजाम पूरे गाँव म अपनी धूतता के कारण
िस था। ायः गाँव के हर ि को वह चूना लगा चुका था मगर कभी गोनू झा को वह
अपना िशकार नह बना पाया था। गोनू झा के हाथ क मछली पर जब उसक नजर पड़ी
तो उसके मन म िवचार आया क य न गोनू झा को वह आज अपनी चालाक का िशकार
बनाकर उनसे यह मछली झटक ले।

पूरे काइं येपन के साथ हजाम गोनू झा के पास प च


ँ ा और गोनू झा के आगे आकर फफक-
फफककर रोने लगा।

गोनू झा ककर बोले–” या आ? तुम मुझे देखकर रोने य लगे?“

उनके इस सवाल पर हजाम ने िबना कु छ कहे पु फाड़ के रोना शु कर दया।

गोनू झा ने हजाम का इस तरह रोना सुना तो भावुक हो उठे । उसका कं धा सहलाते ए


बोले–‘‘मत रो भाई। मत रो। बता, या बात है? कोई परे शानी है तो बता। कोई सहायता
चािहए तो बेिझझक बता। मगर रो मत।’’

गोनू झा के ऐसा कहने पर संयत होते ए हजाम ने आँसी आवाज म कहना शु


कया–‘‘ या बताएँ पंिडत जी। अभी म आपके घर से ही आ रहा ।ँ वहाँ सभी िबलख रहे
ह। बस, आपका ही इ तजार कर रहे ह...“

हजाम क बात सुनकर गोनू झा का माथा ठनका–‘‘अरे । तु हारा दमाग तो ठीक है? या
बक रहे हो? कह नशा-वशा तो नह कर िलया है तुमने? सुबह ही तो म घर से िनकला ।ँ
वहाँ सब कु शल-मंगल था।’’ गोनू झा ने बेचैन होते ए कहा।

हजाम ने गोनू झा पर अपनी बात का वांिछत भाव देखा तो मन ही मन खुश होता


आ बोला–‘‘पंिडत जी! आपके घर से िनकलते ही आपक माँ नहाने के िलए अरगनी से
कपड़ा उतारकर ान घर म जाने लग ◌े क अचानक वह बैठ गय और ब रानी को
आवाज लगाई मगर जब तक ब रानी आती तब तक उनके ाण-पेख उड़ गए।“ वह
फफक पड़ा। फफकते ए बोला–‘‘गाँव के लोग कह रहे ह क वे बड़ी धमा मा थ िजसके
कारण उ ह इतनी अ छी मौत िमली है। चलते- फरते इहलीला समा होना सीधे वग
जाने का तीक है।...बस पंिडत जी, अब देर नह क िजए। ज दी जाइए। सब आपके
इं तजार म ह।’’

गोनू झा क आँख म बरबस आँसू आ गए। वे अपनी माँ को ब त यार करते थे। हाथ क
मछली उ ह ने हजाम को थमा दी और िबना कु छ बोले ल बे-ल बे डग भरते ए अपने घर
प च
ँ ।े घर प च
ँ ने पर उ ह ने पाया क दरवाजे पर बैठी उनक माँ मजू रन से धान छँटवा
रही ह। घर म सबकु छ सामा य है। गोनू झा ने समझ िलया क वे हजाम क धूतई का
िशकार हो गए ह। गोनू झा के ह ठ पर रह यमयी मु कान तैर गई। मतलब था क गोनू
झा ने हजाम क ‘हजामत’ करने का फै सला कर िलया है।

इसके बाद हजाम कई बार गोनू झा को रा ते म िमला। उ ह णाम कया। गोनू झा


मु कान के साथ उसे आशीष देते ए अपनी राह चले जाते। इतना समा य वहार करते
क जैसे कु छ आ ही न हो। हजाम क समझ म आया क गोनू झा मछली वाली बात भूल
गए ह। मगर गोनू झा तो गोनू झा थे। वे हजाम को ऐसा सबक िसखाना चाहते थे क फर
िज दगी म वह उनके साथ धूतई करने का साहस न कर सके । एक दन, गोनू झा एक
बारात म गए। िमिथला के गाँव म भोज-भात म मछली और िमठाइयाँ खूब िखलाई जाती
ह। गोनू झा ने जी भरकर मछली खाई और खूब रसगु ले चापे। वह उ ह हजाम भी दख
गया। गोनू झा उसे देखकर मन ही मन ब त खुश ए और उसे आवाज देकर अपने पास
बुला िलया। जब हमाज आया तो गोनू झा उसे कं धा पकड़कर थोड़ी दूर ले गए। उ ह ने
ऐसा दशाया मानो वे एका त चाह रहे ह । फर इधर-उधर देखकर उ ह ने हजाम से
फु सफु साते ए कहा–‘‘सुन भाई, एक ज री काम है–मगर कसम है तु ह कसी को बताना
मत।’’

हजाम ने कहा–‘‘बताइए पंिडत जी, हम कसी को नह बताएँगे।’’

गोनू झा हजाम से फु सफु साते ए कहा–‘‘मेरे मल- ार पर एक बड़ा-सा फोड़ा हो गया


है। शायद बालतोड़ है। पक गया है। इतना टसकता है क न तो बैठा जा रहा है और न ही
खड़ा आ जाता है। कल आके चीरा लगा दो।’’

उन दन गाँव म हजाम फोड़ म चीरा लगाने का काम भी करते थे। इसिलए हजाम को
इस बात का अहसास तक नह हो पाया क उसका पाला गोनू झा से पड़ चुका है।

गोनू झा घर प चँ े और सीधे दरवाजे के सामने खुली जमीन पर गए और वहाँ पर चार


बाँस गाड़कर उसे चार तरफ ितरपाल से घेर दया। फर उ ह ने पड़ोस से बढ़ई बुलाकर
आनन-फानन म एक टेबल बनवाया िजसके बीच म छह इं च क प रिध म गोलाकार छेद
करवा दया। टेबुल को वे ितरपाल घेरकर बनाए गए कमरे जैसे घेरे म ले गए। वहाँ घेरे के
बीचोबीच उ ह ने टेबल रख दया। उस समय उनके ह ठ पर वही रह मयी मु कान खेल
रही थी। इसके बाद, अपने कमरे म गए और जुलाब लेकर सो गए।

दूसरे दन हजाम आया तो गोनू झा उसे ितरपाल वाले घेरे म ले गए और खुद टेबल पर
बैठे और हजाम को टेबल के नीचे जाने को कहा। हजाम अपने औजार लेकर जैसे ही टेबल
के नीचे गया क गोनू झा ने मल-िन तरण या शु कर दी। उनके मल ार से
िपचकारी क तरह मल िनकल रहा था और टेबल के नीचे बैठा हजाम मल- ान कर रहा
था। जुलाब के असर से एक बार म ही गोनू झा का पेट साफ हो गया। गोनू झा टेबल से उठ
गए और हजाम हड़बड़ाकर टेबल से बाहर िनकला। वह बोल पाने क ि थित म नह था।
िसर से मल टपक रहा था। दुग ध से सराबोर जाम कु छ समझ नह पाया क वह करे भी
तो या करे । उसके कपड़े भी मल से तरबतर थे।

गोनू झा ने आवाज लगाई–”आ जा भइया। तेरे ान और व ा प रवतन क व था


बाहर है।“

हजाम बाहर आया तो पानी, साबुन और धोती उसके िलए तैयार था। खूब साबुन मलकर
उसने ान कया और गोनू झा म ती म खड़े मु कु राते ए उसे नहाता आ देखते रहे।

जब वह नहाकर कपड़े बदल चुका तब उ ह ने हजाम से कहा–”यह थी मछली के बाद


मछली क परसादी। समझ ही गए होगे।“

हजाम िबना कु छ बोले वहाँ से चला गया और गोनू झा मु कु राते ए अपने घर आ गए।
शु िमठाई का भोज
गोनू झा अपनी माँ से ब त यार करते थे। उनक माँ ब त वृ हो चुक थ । एक दन
उनक माँ बीमार पड़ । वै आए। उ ह देखा। दवा दी। मगर उनक माँ क हालत म सुधार
नह आ। गोनू झा िचि तत थे। उ ह ने वै से माँ क बीमारी के बारे म पूछा तो वै जी
ने कहा–‘‘सबसे बड़ी बीमारी तो बुढ़ापा क जीण-शीण काया है पंिडत जी। इसका इलाज
तो मह ष यवन के पास भी नह था। अब जी भरकर माँ क सेवा क िजए और उनका
‘गोदान’ भी करा ही लीिजए। यह समिझए क चल-चलंती क बेला है। म तो दवा
इसिलए दे रहा ँ क जब तक साँस, तब तक आस। बाक सब ऊपरवाले के हाथ म ह।’’

गोनू झा समझ गए क उनक माँ अब बचनेवाली नह ह। वे मन लगाकर अपनी माँ क


सेवा करते रहे और एक दन उनक माँ क मौत हो गई। अपनी माँ क मौत पर फू ट-
फू टकर रोए गोनू झा! गाँववाल ने उ ह समझाया–‘‘सबक माँ मरती है। इस तरह मन
छोटा करने से नह चलेगा। उ ह अब माँ के अि तम सं कार और याकम क तैयारी म
लगना चािहए। यही दुिनयादारी है।’’ गोनू झा शा त ए। गाँववाल ने उनका साथ दया
और उनक माँ क अं येि स प ई।

अभी उनक माँ क िचता ठं डी भी नह हो पाई थी क गाँववाल ने गोनू झा को घेरकर


समझाना शु कया क उ ह अभी से माँ के याकम और ा के िलए तैयारी शु कर
देनी चािहए।

पहले तो गोनू झा शा त रहकर ामीण क बात सुनते रहे फर उ ह ने ामीण से


कहा–‘‘आप लोग ठीक ही कह रहे ह–मगर म ठहरा गरीब ा ण। कोई बड़ा इ तजाम तो
म कर नह पाऊँगा–माँ के ा पर पाँच ा णा को भोजन करवाने से काम चल
जाएगा?’’

उनक बात सुनकर एक वृ ामीण बोल पड़ा–‘‘ ा ण होकर य चंडाल क तरह


बात कर रहे हो गोनू? तु हारी माँ गाँव क सबसे वृ मिहला थ । उनका सरोकार इस
गाँव से तो या, आस-पास के सभी गाँव से था। उनके ा पर तो तु ह प ीस गाँव के
लोग को बड़ा भोज देना चािहए–शु िमठाइय का भोज, समझे।“

गोनू झा ने पूछा–‘‘शु िमठाइय का भोज?’’

ामीण ने कहा–‘‘और नह तो या?’’


उस समय गोनू झा चुप रह गए।

अं ये ी स प हो जाने के बाद सभी ामीण के साथ वे भी गाँव लौट आए। ले कन


प ीस गाँव के भोज क बात उ ह बेचैन कर रही थी। शु िमठाई का भोज...और प ीस
गाँव के लोग!

अ ततः गोनू झा ने नाई को बुलाया और अपनी माँ के ा पर प ीस गाँव को ‘शु


मीठा’ भोज के िलए आमं ाण भेज दया।

अ ततः ा का दन आ गया। गोनू झा ने सुबह म ही अपने खेत से ईख कटवाकर मँगवा


िलए थे और ईख को छोटे टु कड़ म कटवा िलया था।

पाँत दर पाँत लोग बैठे। गाँव के खेत और सड़क तक ा का भोज खाने आए लोग से
पट गया। प ल िबछ जाने के बाद गोनू झा सभी प ल म एक-दो ईख का टु कड़ा रखते चले
गए और पाँत के अ त म खड़े होकर हाथ जोड़कर बोले–‘‘कृ पया अब भोजन हण कर।’’

उनक इस बात पर भोज खाने आये लोग गु से म आ गए और कहने लगे–‘‘पंिडत जी,


यह या? यह तो सरासर हमारा अपमान है। इस तरह कोई घर बुलाकर मेहमान का
अपमान करता है? शु िमठाई के भोज क बात कहकर आपने हम लोग को बुलाया और
अब ग े का टु कड़ा परोस रहे ह?’’

गोनू झा अपने दोन हाथ जोड़कर िवन तापूवक बोले–‘‘आगत अितिथयो, आप सब का


म दय से वागत कर रहा ।ँ आप सोच, मुझ गरीब ा ण से मेरे गाँव के वृ जन ने
प ीस गाँव के लोग को शु िमठाई का भोज देने को कहा। मने सबसे अपनी गरीबी का
वा ता देकर पाँच ा ण को भोजन करवाकर ा क या पूरी कर लेने का आ ह 3
कया था मगर कसी ने मेरी बात नह मानी...अ त म मने शु मीठा भोज देना वीकार
कर िलया। आप लोग भी वीकार करगे क ग े से यादा शु और मीठा कोई फसल
हमारे खेत म नह उपजता–आप लोग इसे हण कर और मेरी माँ क आ मा क शाि त के
िलए भगवान से ाथना कर।’’

उनक बात सुनकर पड़ोस के गाँव के लोग ने उनक िववशता समझी और िच से ग ा


चूसा और वहाँ से िवदा होते समय गोनू झा से कहा– ”आपने जो भी कया अ छा
कया...इससे आपके लोभी गाँववाल को भी अ छा सबक िमल गया...अब वे लोग कसी
क मजबूरी का फायदा उठाकर अपना पेट छ पन पकवान से भरने क क पना नह
करगे।“

दूसरे गाँव से आए लोग क ित या सुनकर गोनू झा के गाँव के उन लोग का चेहरा


उतर चुका था िजन लोग ने गोनू झा को शु िमठाइय का भोज कराने क सलाह दी थी।
पेड़ पर जेवर
गोनू झा अपनी ती बुि के कारण न के वल िमिथला म िस थे बि क उनक िसि
दूर-दराज तक प च ँ गई थी। उनके वाणी-चातुय क सराहना िमिथला नरे श कई बार भरे
दरबार म कर चुके थे। गोनू झा के कारनाम क चचा नमक-िमच लगाकर, उनसे जलने
वाले भी लोग से करते रहते थे। गोनू झा ने अपनी अ लम दी के नए क तमान थािपत
कए थे। उन क तमान म एक था गाँव म चोरी क घटना पर अंकुश लगाना। अपनी
बुि के बूते गोनू झा ने गाँव म स य चोर-िगरोह को न के वल पकड़वाया था बि क उ ह
सजा भी दलाई थी।

सजा काट रहे चोर संक प ले चुके थे क सजा क अविध पूरी होने के बाद जैसे ही वे
कारागार से बाहर आएंगे, वैसे ही गोनू झा को मजा चखा दगे। चोर क सजा क अविध
भी पूरी ई और वे कारागार से बाहर भी आ गए। अपने संक प के अनु प कारागार से
िनकलकर वे सीधे गोनू झा के आवास क ओर गए और गोनू झा के मकान के आस-पास
मँडराने लगे।

सूरज डू ब चुका था। नीम अँधेरा फै ला आ था। चोर के सरदार ने अपने सािथय को
बुलाकर कहा–‘‘तुम लोग घर जाओ। आज म अके ले ही गोनू झा के घर म चोरी क ँ गा। जो
कु छ भी हाथ लगेगा, उसम तुम सभी को बराबर का िह सा िमलेगा।’’

चोर म से एक ने कु छ कहने के िलए मुँह खोला ही था क चोर के सरदार ने


कहा–‘‘कोई अगर-मगर करने क ज रत नह । गोनू झा मेरा िशकार है, उससे मुझे अके ले
िनपटने दो। तुम लोग अपने-अपने घर जाओ। अपने बाल-ब से िमलो। मुझे अके ला छोड़
दो ता क म गोनू झा से िनपटने के िलए कोई तरक ब सोच सकूँ । गोनू झा को अपने
ितकड़मी दमाग का बड़ा गु र हो गया है, म उसे ऐसा सबक िसखाना चाहता ँ क वह
िज दगी भर याद रखे और अपने दमाग पर इतराना भूल जाए।’’

बात सरदार क थी। कसी दूसरे चोर को कु छ भी बोलने क िह मत नह ई। सरदार


को अके ला छोड़कर शेष सभी चोर अपने-अपने घर क ओर चल दए।

चोर का सरदार गोनू झा के घर क चहारदीवारी के पास चहलकदमी करने लगा। उसने


अपने कं धे पर लटक रहा गमछा हाथ म ले िलया और अपने माथे पर लपेट िलया–पगड़ी
क तरह। और फर वह टहलने लगा।

गोनू झा दरबार से िनकलकर बाजार होते ए लौट रहे थे। हाथ म एक झोला था िजसम
उ ह ने कु छ स जी-भाजी खरीदकर रख ली थी। उनक प ी ने सुबह ही कहा था–‘‘शाम
को स जी लेते आइएगा। नह तो रात को खाने म स जी नह िमलेगी। अचार-मुर बा से ही
काम चलाना पड़ेगा... फर मुझसे कु छ मत किहएगा।’’

गोनू झा जब अपने अहाते क तरफ मुड़ने लगे तो चोर का सरदार िनि त भाव से
चलता आ उनके पास आ गया और बोला–‘‘राम-राम पंिडत जी!’’

गोनू झा ने उसक तरफ देखा तो पहचान नह पाए क यह आदमी कौन है, फर भी


औपचा रकतावश उ ह ने जवाब दया–‘‘राम राम!’’

चोर के सरदार ने कहा–‘‘पंिडत जी! आप तो मुझे नह पहचानते ह गे ले कन म आपको


अ छी तरह जानता ।ँ आपके पड़ोस के गाँव से आपक क त सुनकर आया ।ँ मेरे गाँव म
चोर ने उ पात मचा रखा है। मने सुना है क आपने अपने गाँव से चोर का सफाया करा
दया। मुझे कोई तरक ब सुझाइए क अपने घर म चोरी नह होने दूँ और अपने गाँव वाल
को भी चोर के कोप से बचने क तरक ब सुझा सकूँ ।’’

गोनू झा ने जैसे ही चोर क बात सुन तो उनका दमाग तेज गित से काम करने लगा।
आज ही दरबार म उ ह ने चचा सुनी थी क उ ह ने िजन चोर को पकड़वाया था, आज वे
सभी कारागार से रहा हो गए। इस अजनबी का इस तरह अचानक िमलना और चोर से
बचने क तरक ब पूछना उ ह सामा य नह लगा। मन म उमड़ रहे स देह पर काबू पाने क
कोिशश करते ए गोनू झा ने कहा–‘‘अरे भाई! पड़ोस के गाँव से आए हो तो पड़ोसी ए।
आयँ! ए क नह ? तब बताओ, या यह पड़ोसी का वहार है क दरवाजे पर खड़ा
होकर बात करे ? आयँ, बोलो! ...तरक ब भी बताएँगे और चोर का इलाज भी। ले कन पहले
तुम चलो। एक आध िगलास दूध-म ा जो भी घर म होगा, उससे तु हारा अितिथ-स कार
करने दो।’’

चोर का सरदार ब त खुश आ। उसे लगा क मनमाँगी मुराद िमल गई है। उसने गोनू
झा से कहा–‘‘जैसी आपक आ ा पंिडत जी! मेरे जैसा आदमी आपक बात टालने क
िह मत भी नह कर सकता।’’

बात यह थी क अँधेरा फै ल चुका था– गोनू झा उस ि को अपने घर ले जाना चाहते


थे क वहाँ लालटेन क रोशनी म उसे अ छी तरह देख सक। उनको लग रहा था क यह
ि उनके साथ िजतने सीधे-स े ि क तरह वहार कर रहा है वैसा व तुतः वह है
नह । दाल म ज र कु छ काला है।

दूसरी तरफ चोर के सरदार को लग रहा था क गोनू झा उसके झाँसे म आ चुके ह। अब


जब वह उनके घर जा ही रहा है तो इससे यह फायदा अव य िमल जाएगा क घर म कहाँ
या सामान रखा आ है, उसका अ दाज तो िन य ही आसानी से लग जाएगा।
गोनू झा अपने बैठक म चोर के सरदार के साथ प च
ँ े और उसे आसन पर बैठाया तथा
पंिडताइन को आवाज देकर ल सी बनाने को कहा। ल सी आ गई तब गोनू झा ने ल सी का
लोटा थमाते ए कहा, ‘‘लो भाई, ल सी िपयो और अब बताओ क मुझसे या चाहते
हो?’’

ऐसा कहते ए गोनू झा ने लालटेन क ब ी तेज क और चोर के सरदार क ओर देखने


लगे। गोनू झा को ऐसा लगा क इस ि को उ ह ने कह देखा है। मगर उ ह याद नह
आ रहा था क कहाँ और कब।

चोर के सरदार ने पुनः अपनी वही बात दुहराई और घर म इधर-उधर देखते ए ल सी


पीले लगा।

अचानक गोनू झा को याद आया–अरे ! यह तो वही आदमी है िजसको उ ह ने अपने घर म


पलंग के नीचे चोरी क मंशा से छु पे रहने पर, एक रात पड़ोिसय को ब त चालाक से
पुकारकर पकड़वाया था। बस, फर या था! उ ह ने ण भर म समझ िलया क यह चोर
उनसे बदला लेने के इरादे से ही आया है। उ ह ने इस बात को कट नह होने दया और
कहा– ‘‘अ छा आ भाई–तुम यहाँ आ गए! मुझे लगता है क भगवान ने ही तु ह मेरी
मदद के िलए भेजा है। तु हारी मदद तो बाद म होगी, मेरी तो समझो क हो गई।’’

चोर का सरदार गोनू झा क बात सुनकर चकरा गया–‘‘अरे ! यह या कह रहे ह पंिडत


जी आप? मने या मदद कर दी आपक ?’’

गोनू झा मु कु राते ए बोले–‘‘अरे भाई! इतनी-सी बात भी नह समझे? सचमुच तुम बड़े
भोले हो! अरे , जब चोर का उ पात पड़ोस के गाँव म हो रहा है तो या चोर िज दगी भर
उसी गाँव म चोरी करगे? एक-दो दन म कसी दूसरे गाँव म जाएँगे क नह ? पड़ोस के
गाँव से िनकलकर वे इस गाँव म भी तो आ सकते ह! बोलो–है क नह ?

चोर के सरदार ने हामी भर दी। वह मन ही मन इस बात पर स हो रहा था क गोनू


झा उसे ‘भोला’ समझ रहे ह।

गोनू झा ने कहा–‘‘चोर से बचाव का सबसे सीधा और सरल तरीका है क घर क


क मती चीज को एक जगह एकि त करके उसक थैली बना लो और उसे ऐसी जगह रखो
िजसके बारे म कोई सोच भी नह सके क ऐसी जगह पर कोई क मती व तु, नकदी और
जेवरात आ द भी रख सकता है। म तो आज ही अपने घर क तमाम चीज एकि त कर ऐसे
ही कसी सुरि त थान पर रख आऊँगा। न रहेगा बाँस, न बजेगी बाँसुरी!...

’’ थोड़ी देर क चुपी के बाद उ ह ने कहा–‘‘तु हारे घर के आस-पास कोई पेड़ तो होगा?
अपने घर क क मती व तुएँ एक थैली म रखकर पेड़ क कसी डाल म अ छी तरह बाँध
दो और पेड़ क कु छ पतली टहिनयाँ ख च-मचोड़कर उस पर इस तरह झुका दो क कसी
क नजर भी वहाँ पड़े तो थैली उसे दखाई न पड़े।’’

चोर का सरदार ब त खुश आ।

गोनू झा ने कहा–‘‘चलो भइया! अब तुम भी अपने गाँव का रा ता लो। रात गहरा रही
है। अँधेरे म रा ता सूझता नह है। िजतनी ज दी हो अपने घर प च
ँ ो। ऐसा न हो क तुम
यहाँ चोरी से बचने क तरक ब सीखते रहो और उधर चोर तु हारे घर पर हाथ क सफाई
दखा द।’’

चोर का सरदार आसन से उठा और गोनू झा को नम कार कर वहाँ से चल दया।

गोनू झा क आँख उसक पीठ से िचपक रह । वे समझ रहे थे क चोर कह जाएगा नह ।

और आ भी ऐसा ही। गोनू झा के मकान से सटे जो गली थी, चोर उसम मुड़ गया। यह
गली गोनू झा के मकान के िपछवाड़े तक जाती थी। गोनू झा के मकान के िपछवाड़े म आम-
लीची का बगान था। इस बगान म अम द, कर दा, नीबू आ द के पेड़ थे। गली मकान से
इतनी सटी ई थी क घर म होनेवाली बात कोई भी गली से गुजरने वाला ि सुन
सकता था। दरअसल यह गोनू झा क िनजी गली थी जो बगान म प च ँ ने के िलए बनाई
गई थी। ि थित को भाँप चुकने के बाद गोनू झा ने ऊँची आवाज म अपनी प ी से
कहा–‘‘जानती हो पंिडताइन! यह जो भला आदमी आया था वह बता रहा था क पड़ोस
के गाँव म चोर का उ पात शु हो गया है। िनकालो अपने जेवर, सारे के सारे और देखो
मेरे ब से म िजतनी भी नकदी है, उसे भी। सब लाओ, ज दी से। अभी म उ ह बगीचे म ले
जाऊँगा और सुरि त थान देखकर छु पा आऊँगा। चोर का या भरोसा! आज उस गाँव म
तो कल इस गाँव का ख करगे ही।’’

पंिडताइन च कत होकर बाहर आई और कु छ पूछने को उ त ई तो गोनू झा ने उसे चुप


रहने का इशारा कया।

चोर कह गया नह था। गली म गोनू झा के कमरे क िखड़क के पास दुबककर कमरे म
होने वाली बात सुन रहा था। इस बात का अहसास गोनू झा को भी था। गोनू झा अपनी
जगह से उठे और चीखकर पूछा– ”पंिडताइन वह बड़का च र कहाँ है? खोज रहे ह तो
िमलबे नह करता है? अरे भगवान, सामान तो ठीक से रखा करो क ज रत पड़ने पर
तुर त िमल जाए।’’

पंिडताइन उनक बात सुनकर खीझ उठी और तड़ककर बोली–‘‘यह अचानक आपको
या हो गया? इतना काहे गरज रहे ह? कौन च र चािहए?’’
गोनू झा उसी तरह गु से म झ लाते ए ऊँची आवाज म बोले–‘‘सारी रामायण पढ़ गए
और सीता कसक जो ? अब हम तुमसे कु छ नह बताएँग।े मुझे करने दो, जो कर रहा ।ँ
बस, अब कु छ बोलना नह !’’

चोर के सरदार ने घर म खट् -पट् क आवाज सुन । तकरीबन एक घंटे तक यह खटाक-


पटाक क- ककर होता रहा। फर गोनू झा एक बड़ी-सी पोटली िसर पर उठाए आते
दखे। चोर का सरदार दीवार से िचपककर साँस रोके खड़ा रहा। गोनू झा सीधे बगीचे म
गए। चोर का सरदार वह से बगीचे क आहट लेने लगा। उसने डाल टू टने क आवाज
सुनी। प े िनचोड़े जाने क आवाज सुन । फर ऐसी आवाज भी सुनी जैसे कोई कसी ऊँची
जगह से छलाँग लगाने से पैदा होती है। उसने मन ही मन अनुमान लगाया क गोनू झा के
िसर पर जो बड़ी-सी पोटली थी, उसम गोनू झा के घर के क मती सामान, जेवर व नकदी
रहे ह गे िजसे लेकर गोनू झा बगीचे के कसी पेड़ पर चढ़े और कसी डाल पर बाँधकर पेड़
से नीचे उतरने के िलए पेड़ क कसी िनचली डाल से उ ह ने छलाँग लगा दी। और अब वे
गली क ओर आ रहे ह गे। चोर तेजी से गली के बाहर िनकल आया। चोर का अनुमान सही
था। थोड़ी ही देर म गोनू झा बगीचे से गली म आए और उससे गुजरकर अपने घर म घुसे
और दरवाजा बंद कर िलया।

गोनू झा के बगीचे म एक आम के पेड़ पर मधुमि खय का एक बड़ा-सा छ ा था िजसके


बारे म गोनू झा को पहले से पता था। उ ह ने अपने िसर पर जो पोटली रखी थी उसम घर
का कचड़ा भरा था िजसे गोनू झा बगीचे के एक कोने पर बने ग े म फक आए थे। अपने
कमरे म आकर वे जोर से बोले–‘‘अरे पंिडताइन, अब काहे को मुँह फु लाए बैठी हो? अरे
तु ह तो इस गोनू झा को ध यवाद देना चािहए जो तु हारे जेवर को सुरि त थान पर रख
आया है।’’ आवाज इतनी ऊँची थी क चोर के सरदार के कान तक आसानी से प च ँ गई।
िन त ध रात थी। अगर कोई आवाज थी तो झ गुरां◌े क –झन झन झन झन! बस! गोनू
जानते थे क अब या होनेवाला है। वे मु कु राते ए अपने िब तर पर आए और लालटेन
क ब ी धीमी क और लेट गए।

तीन पहर रात गुजर चुक थी क बगीचे से ब त जोर से आवाज ई–‘ध प!’ और इसके
साथ ही कोई जोर से चीखा–”बाप रे ! बचाओ।’’

गोनू झा समझ गए क या आ है। उ ह ने पंिडताइन को जगाया। हाथ म लाठी और


र सी ली। पंिडताइन से कहा क वे लालटेन लेकर साथ चल। पंिडताइन के साथ जब गोनू
झा बगीचे म प च ँ े तो माजरा देखकर मु कु राए िबना नह रह पाए। चोर जमीन पर
सरकने क कोिशश करता जा रहा था और बेचैनी से िबलिबला रहा था। गोनू झा को
समझते देर न लगी क यह चोर पेड़ पर चढ़ा और मधुमि खय के छ े को जेवर क
पोटली समझकर उसे न चने लगा। जािहर है क मधुमि खय ने उस पर हमला बोल
दया। मधुमि खय के डंक के कारण चोर पेड़ से िगर पड़ा और शायद पेड़ से िगरने के
कारण उसका पैर टू ट गया है िजसके कारण वह िघसट रहा है। मघुमि खय का ोध भी
शा त नह आ है और चोर उनके डंक से अब भी आहत हो रहा है।

गोनू झा ने बगीचे क जमीन पर पड़े सूखे प को समेटकर एकि त कया और उसम


आग लगा दी िजससे धुआँ उठने लगा और थोड़ी ही देर म मधुमि खयाँ वहाँ से गायब हो
ग । फर गोनू झा ने पड़ोिसय को आवाज दी। लोग जगे और बगीचे म प च ँ ।े गोनू झा ने
उ ह सारा वाकया बताया। फर या था, लोग ने चोर को क जे म ले िलया। चोर के एक
पैर क ह ी टू ट गई थी इसिलए लोग ने उसक िपटाई नह क । चोर को हवालात भेजने
से पहले गोनू झा ने चोर के सरदार से कहा–‘‘ य भाई? मने तुमसे कहा था न क चोर
का इलाज भी बताऊँगा। कै सा रहा इलाज?...जय राम जी क !“
बात ऐसे बनी
गोनू झा का पड़ोसी था–राम खेलौना। ा ण कु ल म ज मा था क तु आचरण से शू ।
उसके िपता ने उसे पढ़ाने-िलखाने क बड़ी कोिशश क क तु वह गु कु ल आने के थान पर
गाछी म इस पेड़ से उस पेड़ चढ़ता-उतरता रहता। गाँव म उसके जैसे और भी ब े थे।
लहेरागीरी करने, धमाचैकड़ी करने, ध गाम ती करने म पूरा दन गुजार देता। इसी तरह
वह बड़ा आ था। न तो खेत-खिलहानी का काम जानता था और न गाय-गो का लालन-
पालन। जब तक उसके िपता जीिवत रहे तब तक उसे भोजन क िच ता नह करनी पड़ी,
ले कन िपता क मृ यु के बाद वह दाने-दाने के िलए मोहताज हो गया। उसक हालत पर
तरस खाकर गाँव के लोग ने उसक मदद भी क ले कन कोई कतने दन तक कसी क
मदद कर सकता है!

एक बार बा रश नह होने के कारण गाँव म सूखा पड़ा तो राम खेलौना क हालत और


खराब हो गई। संयोग क बात थी क उ ह दन गोनू झा का हरवाहा िवपता बीमार पड़
गया। पहले ह का बुखार आ। ठीक तरह से दवा-दा नह कराने के कारण बुखार ने
अपना वभाव बदला। वै ने बताया क उसे िमयादी बुखार है। कम से कम इ स दन
लगगे। बुखार ठीक होने के बाद भी परहेज से रहना होगा और अिधक शारी रक म नह
करना होगा। नीरोग होने के बाद जब वह फर से त दु ती हािसल कर ले, तब चाहे जो
करे ।

िवपता के बीमार होने से गोनू झा क परे शानी बढ़ गई थी। एक ओर तो दरबार जाना


पड़ता था सही समय पर, दूसरी ओर उनके बथान म बँधी गाय-बछड़ -बैल क देखभाल
थी। खेत क तमाई-िनराई का अलग झंझट था। गोनू झा का भाई भोनू झा मनमौजी था।
मन आया तो कसी काम म हाथ बँटा दया नह , तो अपनी म ती म गाँव म मटरग ती
करता फरता। पंिडताइन बथान के काम म गोनू झा का हाथ ज र बँटा देती थी मगर
गाय- बछड़ के िलए कु ी काटना, घास काटना, सानी-पानी तैयार करना, गाय-बछड़ को
नहलाना, दूध दूहना, गोबर से गोइठा थापना–बथान से जुड़े इतने काम थे क अके ले
पंिडताइन सँभाल ही नह सकती थी। आिखर घर का काम भी तो उसी पर िनभर था। वह
सुबह म सबसे पहले जागती, नहा-धोकर पूजा करती। वह जब जलपान तैयार कर रही
होती तब जाकर कह गोनू झा क न द खुलती। फर शु होती बात-बात पर पंिडताइन
क पुकार! गोनू झा अढ़ाते, पंिडताइन उसे पूरा करती। गोनू झा के दरबार जाने तक
पंिडताइन को दम मारने क फु सत नह िमलती। फर घर म कु टाई-िपसाई, ग दे कपड़
क धुलाई, चैका-बतन–समय कै से गुजर जाता, पता ही नह चलता। िवपता था तो बथान
क िज मेदारी से गोनू झा और पंिडताइन मु थे। खेत-खिलहान क भी उन लोग को
िच ता नह करनी पड़ती थी। अभी दो दन से िवपता नह आ रहा था, तो गोनू झा के
बथान-घर, खेत-खिलहान सबके काम आधे-अधूरे ही हो पाते। पंिडताइन कहती– िवपता
था तो पता ही नह चलता था क काम कै से हो गया। ठीक ही कहा गया है क आदमी के
नह रहने पर ही उसके गुण क पहचान हो पाती है।

घर म बढ़ती परे शानी और सूखे के असर से पैदा ए चारा के अभाव से गोनू झा परे शान
हो गए। पता नह िवपता कहाँ से हरी-हरी घास लेकर आता था! उसने कभी सूखा का
रोना नह रोया।

उधर सूखे क मार ने राम खेलौना को भी ा त कर रखा था। पहले गाँव के लोग तरस
खाकर उसे रोटी-तरकारी िखला भी देते थे ले कन सूखे क आफत ने लोग का जीना मुहाल
कर दया था। ऐसे म वे खुद अपनी रोटी के िलए दूसर का मुँह ताकने पर मजबूर थे। गरज
यह क राम खेलौना का भी जीना मुहाल हो रहा था।

एक दन शाम को गोनू झा दरबार से लौट रहे थे तो उ ह राह म राम खेलौना िमल गया।
उ ह ने सोचा क य न राम खेलौना को बथान के काम म लगा दया जाए! जब तक
िवपता व थ होकर आएगा, तब तक राम खेलौना बथान का काम सँभाल लेगा। िवपता के
आने पर देखगे क राम खेलौना को कौन सा काम द। उ ह ने राम खेलौना को रोका, पास
बुलाया, उसका कु शल- ेम पूछा और जब राम खेलौना ने अपनी बदहाली का रोना रोया
तो गोनू झा ने उसे बथान का काम सँभालने के िलए कहा। बदले म दो जून खाना के
अलावा कु छ पैसा देने क भी बात ई।

राम खेलौना जो जीवन भर लहेरा क तरह रहा था, पहली बार जीवन म ग भीर होकर
काम करने क कोिशश म जुट गया। एक तो पंिडताइन का वभाव; दूसरा गोनू झा का
वहार उसे इतना अ छा लगने लगा क उसके काम टालने, अहमक क तरह जीने और
दूसर से माँग-चाँगकर खाने क वृित म आमूल-चूल प रवतन हो गया और दो-तीन दन
म ही उसने बथान का काम सँभाल िलया। गोनू झा िनि त ए। पंिडताइन ने संतोष क
साँस ली।

िवपता का बुखार एक महीने से यादा रहा। उन दन ािध त ि को बुखार


रहते, भोजन कदािप नह दया जाता था। बुखार उतरने के बाद भी िवपता क हालत
जजर थी। कसी का सहारा लेकर िब तर से उठता और कोई सहारा देता तो िब तर पर
लेट पाता। आठ-दस कदम चलता क हाँफने लगता। गोनू झा, जब भी समय िमलता, उसे
देखने चले जाते। उसके प य क व था करते और लौट आते। िवपता क हालत ऐसी
नह थी क दो-तीन महीने से पहले ठीक हो जाए।

बथान का काम राम खेलौना ने सँभाल िलया था। इसिलए गोनू झा चाहते थे क िवपता
पूरी तरह ठीक हो जाए तब ही काम पर लौटे।
उधर राम खेलौना का मन पूरी तरह काम म रम गया था। उसे लगता क काम ही या
है? दो घंटे सुबह और दो घंटे शाम मन लगा के काम कर िलया जाए तो पूरे दन मटरग ती
क छु ी। मटरग ती करते ए जहाँ हरी घास दख जाए–गढ़ िलया और लौट आए। दन म
भी भर पेट भोजन और रात म भी पेटभर भोजन। खाना कहाँ से आएगा, इसक कोई
िच ता नह । अब कसी से रोटी माँगने क क पना से भी शम आती राम खेलौना को।
महीने भर म ही गोनू झा और पंिडताइन के साथ रहते ए राम खेलौना के सोचने का
तरीका बदल गया था। उसका वािभमान जाग गया था।

गोनू झा ने भी देखा क राम खेलौना पूरी तरह बदल गया है। उ ह ने सोचा क िवपता
आ जाए तो उसे बथान के काम म लगा दगे और राम खेलौना को खेत-खिलहान क
िज मेदारी स प दगे। लड़का मेहनती है, ज दी सीख जाएगा खेत-खिलहान का काम भी।
िवपता अभी बीमारी से उठा है, उसे खेत-पथार का काम देना ठीक नह होगा।

जब िवपता पूरी तरह व थ होकर गोनू झा के घर आया तब गोनू झा ने राम खेलौना से


खेत का काम सँभालने और बथान का काम िवपता को स प देने को कहा तो राम खेलौना
के पाँव के नीचे से िम ी िखसकती महसूस ई। वह बथान के काम म पूरी तरह िनपुण हो
गया था। अपना काम पूरे मनोयोग से करता था। पंिडताइन को चाची-चाची कहता था
ले कन माँ क तरह स मान देता था। उसे समझ म नह आया क उससे कहाँ भूल हो गई
क गोनू झा उसे बथान के काम से हटाकर खेत-पथार का काम सँभालने को कह रहे ह। उस
समय तो वह चुप रहा मगर दूसरे दन उसने गोनू झा से कहा क वह खेत का काम नह
करे गा। उसे मेहनताने के प म गोनू झा एक गाय दे द तो वह उसक सेवा करते ए
अपनी रोटी भी जुटा लेगा और गाय क सेवा का लाभ भी उसे िमलेगा। आिखर ा ण
कोई िनिखद काम तो कर नह सकता न!

गोनू झा ने उसे ब त समझाने क कोिशश क मगर वह अपनी िजद पर अड़ा रहा। गोनू
झा उसे खेती- कसानी का मह व समझाते रहे:

‘उ म खेती, म यम वान

िनकृ चाकरी, भीख िनदान।’

ले कन राम खेलौना ु ध था। उसे बस इतना लग रहा था क गोनू झा बथान के काम से


उसे अकारण हटा रहे ह और खेत म बैल क तरह जोत रहे ह। वह अपने को ितर कृ त
महसूस कर रहा था और इस कारण ु ध था।

गोनू झा उसके मनोभाव को अ छी तरह समझ रहे थे। उसम आए सकारा मक बदलाव
से वे भािवत भी थे, ले कन िवपता को काम देना ज री था। दस साल का था िवपता तब
से उनके घर टहल- टकोला म लगा था। िबलकु ल घर के सद य क तरह हो गया था
िवपता।

जब राम खेलौना क िजद बनी रही तब गोनू झा ने उससे कहा–”ठीक है, तब गाय नह ,
एक बिछया ले जाओ। जाओ, बथान म चुन लो।“

राम खेलौना बोला”बिछया! मतलब गाय क ब ी? हम ले के या करगे?“ तब गोनू झा


ने कहा–”य द तु ह बिछया इसिलए नह चािहए क वह गाय क ब ी है तो बथान म
जाओ और िजस गाय क ब ी न हो, उसे ले जाओ।“

राम खेलौना के साथ गोनू झा बथान म आए और राम खेलौना से बोले–”जाओ, चुन


लो।“

राम खेलौना ने एक सु दर-सी गाय क पीठ पर हाथ रखा तो गोनू झा ने पूछा, ‘‘ या यह


ऊँट क ब ी है?’’

राम खेलौना को बात समझ म आ गई। जो भी गाय थ , सभी तो कभी बिछया ही थ ।


उदास होकर राम खेलौना बथान म एक से दूसरी गाय के पास जाता और उसे यार से
सहलाता। गाय उसे चाटती।

गोनू झा ने देखा क बथान क सारी गाय राम खेलौना के पश से पुल कत हो जाती थ ।


उ ह ने राम खेलौना से कहा–”मने तु ह यह थोड़े ही न कहा था क तुम बथान म आओ ही
नह ! अरे पगले, िवपता बीमारी से उठा है। खेत नह जा सकता, इसिलए खेत क बात
तु ह कही थी।“

राम खेलौना के चेहरे से उदासी के भाव हट गए। उसके चेहरे क रं गत लौट आई और


उसने एक गाय का िसर सहलाते-सहलाते उसे चूम िलया।

गोनू झा मु कु राते ए बथान से बाहर िनकल गए। राम खेलौना भी उनके पीछे-पीछे
आया और बोला–”पहले सामने वाले खेत म हाथ लगाते ह पंिडत जी!“

गोनू झा मु कु राए और उसका कं धा थपथपाते ए बोले–‘‘तु हारा काम है–जैसे करो! म


उसमं दखल नह दूग ँ ा! अपनी गाय-बिछया पर भी नजर रखना!“

राम खेलौना को मानो सारा जहाँ िमल गया। गोनू झा वहाँ से चले गए और राम खेलौना
बथान म एक गाय क पीठ सहलाने लगा।
अथ कनौसी कथा
गोनू झा का हास-प रहास और अपने कारनाम से लोग को िश ा देने क कृ ित के वल
िमिथला नरे श के दरबार तक सीिमत नह थी। वे अपनी कारगुजा रय से अपने सगे-
स बि धय और इ -िम को भी सबक देते रहते थे। एक बार उनक चपेट म उनक प ी
भी आ गई।

आ यूँ क एक दन, शाम ढले गोनू झा एक भोज म शरीक होने के िलए घर से िनकलने
क तैयारी कर रहे थे। गुलाबी रं ग से रं गी धोती, रे शम का कु ता पहनकर ल े का गमछा
कं धे पर रख गोनू झा आइने के सामने खड़े होकर अपने को िनहारते ए अपनी मूँछं◌े
सँवार रहे थे तभी उनके कमरे म उनक प ी आ गई। गोनू झा को इस तरह सजते-सँवरते
देखकर पंिडताइन ने द लगी क –”लग रहा है क कसी को रझाने क तैयारी हो रही
है!’’

गोनू झा मु कु राए और कहा–‘‘ठीक समझी, जरा कनौसी िनकाल के ले आओ (कान म


पु ष ारा पहना जानेवाला एक जेवर), कान सूना लग रहा है!’’ पंिडताइन ने कहा–‘‘अरे
पंिडत जी, भोज-भात से रात बे-रात लौटना होगा। गाँव म चोर-उच क कमी नह है।
कनौसी पहनने क या ज रत है...आधा भरी सोने क कनौसी है। जमाना खराब है। कह
कसी उच े क नजर खराब हो गई तो?’’

गोनू झा को पंिडताइन क यह शंका अ छी नह लगी। उ ह ने चीढ़ते ए कहा–‘‘जाकर


कनौसी लाओ! अब तो कनौसी पहनकर ही जाऊँगा! और हमेशा पहने र ग ँ ा! तु ह मेरी
नह , आधा तोले सोने क फ है। यही तु हारा मेरे ित ेह है? तु ह यह िच ता नह क
रात के अँधरे म कह मुझे दरबार से लौटते समय साँप-िब छू न डस ले, िच ता है आधा
तोले सोने क ?’’

पंिडताइन ठगी-सी रह गई। उसने सोचा भी नह था क गोनू झा उसक सलाह का ऐसा


अथ िनकालगे। उसने लाड़-भरे वर म गोनू झा से कहा– ‘‘आपक चंता य नह है?
साँप-िब छू डसे आपके दु मन को! आप रहगे तो ब त सोना आ जाएगा। सोना आपसे
बढ़के कै से हो सकता है क म सोने क िच ता क ँ –यह लीिजए कनौसी–पहन लीिजए! मने
तो यूँ ही आपको सचेत करने के िलए कहा था क दन-दुिनया ठीक नह ...’’

गोनू झा ने बीच म ही पंिडताइन क बात काटते ए कहा–‘‘हाँ-हाँ! समझ गया...अब


तु ह दखा के मानूँगा क तु ह मेरी िच ता है या कनौसी क !’’
गोनू झा क आवाज म त खी भाँपकर पंिडताइन चुप रह गई। गोनू झा ने अपने कान म
कनौसी डाली और चल पड़े भोज खाने! देर रात सकु शल लौट आए।

आम रात क तरह उस रात पंिडताइन सोई नह , जागकर गोनू झा क ती ा करती


रही। पंिडताइन क मंशा थी क वह गोनू झा को दखाए क वाकई वह गोनू झा क िच ता
करती है।

मगर गोनू झा तो गोनू झा थे। उ ह ने कमरे म वेश करते ही कहा– ‘‘लो, देख लो, दोन
कान म कनौिसयाँ सुरि त ह! अब जाओ और चैन से सो जाओ!’’

पंिडताइन गोनू झा क बात सुनकर भौचक रह गई। कहाँ तो वह अपना पित- ेम


द शत करने के िलए ‘जागरण-मं ा’ का सहारा िलया था और कहाँ उसक चे ा गोनू झा
क –ि म ‘कनौसी- ेम’ बनकर उभरा! बेचारी पंिडताइन से कु छ भी कहते नह बना और
वह जाकर सो गई।

कु छ दन ऐसे ही बीत गए। गोनू झा ायः अपनी प ी को, कह से भी लौटकर यह कहते


ए छेड़ते–देख लो, ‘कनौसी’ सुरि त है। बेचारी पंिडताइन उनके कटा से ममाहत होती
और अपने को मन ही मन कोसती क न जाने कस मु त म उसके मुँह से कनौसी वाली
बात िनकल पड़ी!

एक दन, सुबह म गोनू झा िब तर से नह उठे । पंिडताइन उ ह जगाने आई तो पाया क


उनका शरीर अकड़ा आ है। ब त य करने के बाद भी जब गोनू झा नह जगे तब वह
िबलख-िबलखकर िवलाप करने लगी। आस-पास के लोग जुटे। सबने गोनू झा के अकड़े पड़े
शरीर का अवलोकन कया और सबने मान िलया क गोनू झा गोलोकवासी हो गए। िवत
कर देने वाले ं दन से गोनू झा के अि तम सं कार क तैयारी ज दी करने क ज रत बताई
और रोनेवाल को समझाया क दुिनया म जो भी आया है उसे एक न एक दन जाना ही
पड़ता है। कोई पहले जाता है, तो कोई बाद म!’’

अि तम सं कार के िलए ले जाने के पहले मृतक के शरीर का ान कराने और च दना द


का लेपन करने क जब रीित िनभाई जा रही थी तब िबलखती, िवलापती, सुबकती
पंिडताइन भी वह थी। जब ान के बाद गोनू झा के शरीर पर कफन डाला जाने लगा तब
पंिडताइन सुबकती ई बोली–‘‘अरे देखो, उनके कान म अभी भी कनौसी है–उसे खोल के
दे दो!’’

पंिडताइन के मुँह से ये बात िनकली ही थी क अचानक एक झटके के साथ गोनू झा उठ


के बैठ गए और उ ह नहलानेवाले च कत और कं कत मूढ़ से हो गए।

गोनू झा ने बैठे-बैठे ही हाँक लगाई–‘‘ य पंिडताइन, ‘कनौसी’ चािहए?’’


और पंिडताइन का आ ला दत हो रहा मन उमंग और उ लास कट करने का अवसर दे,
उससे पहले ही गोनू झा क बात से वह शम से गड़ी-सी जा रही थी। जब गोनू झा को
अहसास आ क प रहास का प रणाम उनके दा प य जीवन को भािवत भी कर सकता
है तब उ ह ने हँसते ए कहा–‘‘अरे पंिडताइन, शरीर नाशवान है, िमट जाता है। पदाथ
अिवनाशी है, टका रहता है। चाहे िजस प म टके ! तुमने कु छ भी अनुिचत नह कया, न
अनुिचत कहा–म तो मजाक कर रहा था...’’

पंिडताइन गोनू झा से िलपटकर फू ट-फू टकर रो पड़ी।


माँ काली का वरदान
सभी जानते ह क गोनू झा माँ काली के परम भ थे। गोनू झा क ाभि से माँ काली
स हो ग । उ ह ने गोनू झा को दशन देने का मन बना िलया। उ ह ने सोचा क गोनू झा
ब त चालाक है। इसिलए दशन देने से पहले उसे छकाया जाए।

गोनू झा सोये ए थे। माँ काली ने अपना भयंकरतम प िलया। एक शरीर दो भुजाएँ
क तु एक सह शीष वाली माँ काली कट हो ग । व लोक म िवचरण कर रहे गोनू
झा माँ का यह प देखकर हँसने लगे। माँ काली ने उ ह हँसता देख िव मय से मुँह खोला।
गोनू झा ठठाकर हँस पड़े। तब माँ काली ने अपना िव मय कट करते ए पूछा–‘‘गोनू, तुम
मेरा यह प देखकर डरे नह ?’’ गोनू झा ने उ र दया–‘‘माँ! म तो आपका पु ा ।ँ
आपक गोद म ही खेलता रहता ।ँ आप चाहे िजस प म ह , मुझ बालक के िलए तो आप
हर प म माँ ह। और भला कसी बालक को माँ से कभी डर लगता है! चाहे वह जैसा भी
प बना ले–बालक माँ को पहचान ही जाता है।“

माँ काली गोनू झा के उ र से स । पुनः उ ह ने पूछा–‘‘मेरे सह मुख दशन कर


तुम हँसे य ?’’

गोनू झा ने उ र दया–”माते। यह सोचकर मुझे हँसी आ गई क आपके सह मुख ह और


सह नाक भी। क तु हाथ दो ही हं◌।ै मेरा एक मुँह एक ही नाक है और भुजाएँ दो ह। जब
मुझे जुकाम होता है तो प छते-प छते म परे शान हो जाता ।ँ जब आपको जुकाम होगा तो
इन दो हाथ से एक हजार नाक कै से पोछगी? बस, यही सोचकर मुझे हँसी आ गई।’’

गोनू झा माँ काली के सामने िबलकु ल िनद ष बालक क तरह बोल रहे थे। उनक बाल-
सुलभ बात सुनकर माँ स तथा कहा–‘‘पु , म तु हारी बात से स ई। वर
माँगो।’’

गोनू झा बोले–‘‘माँ म या वर माँगूँ? आपका ेह िमलता रहे, यही मेरे िलए काफ है।
आपक कृ पा-–ि मुझ पर बनी रहे, इससे बड़ी उपलि ध मेरे िलए और या होगी?’’

माँ काली गोनू झा क बात , ा और िववेकपूण वहार से स तो थ ही, उ ह ने


कहा–‘‘पु ! तुमने कु छ नह माँगा फर भी म तु ह वरदान देती ँ क कोई भी सम या
तु ह उलझा नह पाएगी। हर तरह क सम या का समाधान तुम चुट कय म कर लोगे।
बुि , िववेक, ान और वाणी-कौशल म तु ह कोई परा त नह कर सके गा।’’ ऐसा कह-कर
माँ काली अ त यान हो ग और गोनू झा हाथ फै लाए–‘माते! माते!’ कहते ए िब तर पर
उठकर बैठ गए।

ब त देर तक बैठे वे अपने व क मीमांसा करते रहे। इसके बाद गोनू झा का


बुि चातुय और वाणी-कौशल िव म िव यात आ।
गोनू झा क िनयुि
पूरे िमिथलांचल के नौजवान म खलबली मची ई थी। ायः हर बेरोजगार नौजवान उस
ितयोिगता क तैयारी म जुटा आ था जो महाराज के दरबार म एक माह बाद आयोिजत
होने वाली थी। महाराज ने पूरे रा य म मुनादी करा दी थी क उ ह एक ऐसे सहयोगी क
आव यकता है जो रिसक भी हो और िवल ण बुि का भी। रा य तरीय ितयोिगता
अगले माह पू णमा के दन राजदरबार म होगी।

िमिथला के नौजवान म इस ितयोिगता म भाग लेने का उ साह था। या पता, कह वे


ितयोिगता म सफल होकर महाराज के सहयोगी बन जाएँ! फर तो मजा ही आ
जाएगा...राज दरबार म जगह िमलेगी और महाराज का खास सहयोगी होने से समाज म
ित ा भी बढ़ेगी।

िनयत समय पर राजदरबार म ितयोिगता आर भ ई। हजार क सं या म


ितयोिगता म भाग लेने के िलए युवक वहाँ जमा ए। महाराज ने युवक के उमड़ते
सैलाब को देखकर ितयोिगता का थान राजदरबार के थान पर राजमहल के बाहर के
मैदान म बदल दया।

मैदान म जब सभी ितयोगी एकि त ए तब महाराज उनके बीच प च ँ ।े मैदान के म य


म उनके िलए चार ओर से खुला आ मंच तैयार कया गया था। महाराज मंच पर प च ँ े
और अपना आसन हण कया। ितयोिगता आर भ होने क घोषणा ई।

महाराज अपने आसन से उठे । उ ह ने ऊँची आवाज म कहा–‘‘जैसा क आप सभी जानते


ह क मुझे एक ऐसे सहयोगी क आव यकता है जो िवल ण बुि का हो। ितयोगी
युवा क बुि क परी ा के िलए इस पद के िलए मने एक शत रखी है क मेरा सहयोगी
वही बन सकता है जो आकाश म महल का िनमाण-काय करने या कराने म समथ हो। इस
काय के िलए उसे राजकोष से मुँहमाँगी रकम और इि छत व तुएँ उपल ध करा दी
जाएँगी।’’

मैदान म स ाटा-सा छा गया। हजार क सं या म उपि थत युवा को जैसे काठ मार


गया! भला आकाश म भी कोई महल बना सकता है? ितयोगी मन ही मन िवचार करने
लगे–ज र महाराज का दमाग खराब हो गया है...यह कोई शत ई...! अरे नौकरी देने क
मंशा नह थी तो मुनादी य कराई...? ले कन कु छ भी बोलने क िह मत उनम नह थी।
सभी अपने-अपने थान पर खड़े थे–बगल झाँकते ए। कु छ युवक जो मैदान के कनारे खड़े
थे, वे वहाँ से िखसकने लगे।
तभी भीड़ से एक युवक रा ता बनाता आ मंच के पास प च ँ ा। उस युवक ने
कहा–‘‘महाराज क जय हो! महाराज, य द आ ा द तो म ‘आकाश महल’ बनाने का काय
कर सकता ँ क तु इस काय का आर भ कराने म मुझे चार माह का समय चािहए।’’

महाराज चक पड़े। चक पड़े मैदान म खड़े हजार ितयोगी युवक। सभी क आँख मंच के
पास खड़े युवक पर टक ई थ ...और मंच के पास खड़ा वह युवक मु कु रा रहा था
आ मिव ास से भरा आ।

महाराज अपने आसन से फर उठे और मंच के कनारे तक चलकर आए। उ ह ने उस


युवक को करीब से देखा। मंच के पास खड़ा युवक उ ह आ मिव ासी लगा।

उस युवक क आँख म एक िवशेष क म क चमक थी िजसे देखकर महाराज को लगा


क ज र यह युवक अ य ितयोिगय से िभ है। उ ह ने युवक से पूछा–‘‘युवक! या तुम
िव ासपूवक कह सकते हो क आकाश म महल बना लोगे...?’’

‘‘जी हाँ, महाराज!’’ युवक ने संि उ र दया।

‘‘तु हारा नाम या है युवक?’’ महाराज ने पूछा।

‘‘गोनू झा।’’ युवक ने फर संि उ र दया।

महाराज उसके साहस से स थे। उ ह लग रहा था क उ ह जैसे सहयोगी क ज रत


है, वह िमल गया है। अपने मन म उठते िवचार को िनयंि त रखते ए महाराज ने गोनू
झा से पूछा–‘‘अ छा, गोनू झा! य द पाँचव महीने क पू णमा से तु ह आकाश-महल के
िनमाण क या ार भ करने के िलए कहा जाए तो या तुम यह कायार भ कर
सकोगे?“

‘‘अव य महाराज!’’ गोनू झा ने उ र दया।

महाराज ने कहा‘‘ठीक है!’’ और वे अपने आसन पर बैठ गए।

इसके थोड़ी ही देर बाद मंच से घोषणा ई–‘‘चार माह बाद! पाँचव महीने क पू णमा
के दन, इसी ांगण म गोनू झा नामक यह मेधावी ितयोगी ‘आकाश-महल’ का िनमाण-
काय ार भ करे गा। इस अवसर पर सभी आमंि त ह।’’

इस घोषणा के बाद सभी ितयोगी अपने-अपने घरां को लौट गए। रा य भर म गोनू झा


नाम के उस युवक क चचा होने लगी। सबको लग रहा था क यह युवक भी िसर फरा है।
जैसे महाराज ने आकाश महल के िनमाण क शत रखकर अपने सनक होने का प रचय
दया है, वैसे ही गोनू झा नाम के युवक ने इस शत को पूरा करने क बात कहकर अपनी
जान जोिखम म डाल ली है। िनि त प से वह युवक इस शत को पूरा नह कर पाएगा
और महाराज उसे कठोर दंड दगे।

इसी तरह क चचा म चार माह बीत गए...और पाँचव माह क पू णमा भी आ गई।
राजमहल के सामने के मैदान म हजार नर-नारी उपि थत हो गए। ितयोिगता म भाग
लेने आए युवक भी यह देखने के िलए उस मैदान म फर जुटे क गोनू झा नाम का वह
युवक वहाँ आता है या नह और य द वह आता है तो ‘आकाश-महल’ का िनमाण कै से शु
कराता है। सबको देखकर आ य आ क गोनू झा पहले से ही मंच के पास एक आसन पर
िवराजमान है।

महाराज आए। आसन पर बैठने से पहले ही वे मंच के कनारे प च


ँ ।े उ ह देखकर गोनू झा
अपने आसन से उठे और उनका अिभवादन कया। महाराज ने पूछा–‘‘ य गोनू झा!
‘आकाश-महल’ के िनमाण क या ार भ कराने के िलए तैयार हो?’’

‘‘जी हाँ, महाराज, य द आप आ ा द...मेरे मजदूर, राजिम तरी सभी उिचत थान पर
ती ा कर रहे ह। आपक आ ा िमलते ही काम शु हो जाएगा।’’ उ ह ने एक ल बी
सूची महाराज के सामने तुत क और कहा–”महाराज, इस सूची म महल-िनमाण के
िलए आव यक साम ी प रमाण सिहत दज है।’’ फर उ ह ने एक बड़ा-सा कागज
महाराज के हाथ म स पा और कहा, ‘‘और महाराज, यह तािवत ‘आकाश-महल’ का
न शा है।’’

महाराज ने कहा‘‘ठीक है गोनू झा...अब तुम आकाश-महल का िनमाण-काय आर भ


कराओ!’’

गोनू झा ने अपने हाथ म एक हरे रं ग क झंडी ले रखी थी। उ ह ने झंडी खोली। आसमान
क ओर हाथ ऊँचा कया और जोर-जोर से झंडी िहलाने लगे। महाराज और मैदान म खड़े
लोग गोनू झा को अचरज-भरी –ि से देख रहे थे। गोनू झा अपना हाथ उसी तरह उठाए
ए मैदान म इधर-उधर भाग रहे थे और जोर-जोर से झंडी िहला रहे थे। उ ह ऐसा करते
देख मैदान म खड़े लोग क हँसी छू ट गई। वे हँसने लगे क तभी आसमान से आवाज आने
लगी–‘अरे ! तैयार हो जाओ! महल-िनमाण का काम शु करो!’ यह आवाज लोग ने साफ
सुनी। वे आसमान क तरफ देखने लगे। उनक समझ म कु छ नह आ रहा था। फर उन
लोग ने सुना–आकाश से ही आवाज आ रही थ –‘ ट लाओ! मसाला तैयार करो! पानी
लाओ!’ इस बार इस तरह क आवाज आकाश म कई दशा से आती तीत हो रही थी।
आवाज का शोर बढ़ रहा था, जैसे बोलने वाल क सं या बढ़ती जा रही हो! महाराज भी
उस आवाज से च कत थे और आसमान क ओर देख रहे थे।

तभी गोनू झा ने आवाज दी–”महाराज, हमारे मजदूर और िम तरी काम पर तैनात ह।


कृ पया सूची के मुतािबक िनमाण-साम ी उन तक प च
ँ ाने का बंध कर।
महाराज समझ गए क सचमुच िवल ण बुि वाले ि से उनका पाला पड़ा है। वे
बोले–‘‘गोनू झा! तुमने शत पूरी कर दखाई है इसिलए हम तु ह अपना िवशेष सहयोगी
िनयु करते ह। अभी तुम अपने मजदूर और िम त रय को वापस ले जाओ। तु हारी
सूची के मुतािबक साम ी का ब ध होने पर हम आकाश-महल का कायार भ कराएँग!े
अभी रहने दो।’’

महाराज क बात सुनते ही गोनू झा ने हरी झंडी लपेटकर रख दी और अपने पास से एक


दूसरी झंडी िनकाली जो लाल रं ग क थी। इस झंडी को िनकालकर पहले क भाँित ही हवा
म लहराते ए गोनू झा दौड़ने लगे। थोड़ी ही देर म आसमान से ‘ ट लाओ, मसाला तैयार
करो, काम म लगो’ आ द आवाज आनी बंद हो ग । मैदान म एकि त लोग वापस लौट
गए।

महाराज ने गोनू झा को दरबार म बुलाया। उनक िनयुि ई। महाराज के पास बैठने के


िलए उनका आसन लगाया गया। महाराज ने उ ह उनके आसन पर बैठने क आ ा दी।
दरबार क कायवाही चली फर दरबार िवस जत आ।

जब गोनू झा उठने लगे तब ेहपूवक महाराज ने उनका हाथ थामते ए कहा–”जाने से


पहले एक बात बताइए गोनू झा क आकाश से जो आवाज आ रही थ , वे आवाज कै से आ
रही थ ? ऐसा तीत हो रहा था क हर दशा से मजदूर आवाज लगा रहे ह...!’’

गोनू झा िवन ता से बोले‘‘महाराज, वे आवाज मजदूर क नह , पहाड़ी मैना और तोत


क थी िज ह मने चार महीने म िशि त कया था। यहाँ प च ँ कर उ ह हवा म छोड़ दया
था–वे आस-पास के पेड़ पर बैठे थे। हरा झंडा देखकर बोलते थे और लाल झंडा देखकर
चुप हो जाते थे।“

महाराज उनक बात सुनकर हँस पड़े और देर तक हँसते रहे।


लालच बुरी बला है भाई!
गोनू झा ग द मन से िमिथला नरे श के दरबार से अपने घर क ओर जा रहे थे। महाराज ने
उ ह एक भस भट क थी। भस बड़ी म त, मोटी ताजी थी। दूध भी खूब देती थी। गोनू झा
अपने हाथ म भस के गले क र सी थामे म त चाल मं◌े चले जा रहे थे। रा ते म उ ह
पलाल िमल गया। पलाल उनके बचपन का दो त और पड़ोसी था। जब से गोनू झा
िमिथला नरे श के दरबार म नौकरी करने लगे थे तब से उनका पलाल से िमलना- जुलना
नह हो पाता था। पलाल गोनू झा क दन दूनी, रात चैगुनी गित देखकर उनसे मन ही
मन जलने लगा था और पीठ पीछे उनक िशकायत करने से भी नह चुकता था। जब भी
मौका िमलता तो कह बैठता–‘अरे गोनुआ कल तक रोटी के िलए मारा-मारा फरता था।
दो जून रोटी नसीब नह होती थी। कई बार तो म उसे अपने घर ले जाकर िखला दया
करता था...आिखर वो मेरा बाल सखा जो ठहरा!’ गोनू झा को जब इस तरह क बात का
पता चलता तो उ ह कभी बुरा नह लगता य क तीन बात सही थ । वे गरीबी म पले
थे। कई बार भूखे रहकर दन गुजारा था। पलाल उनका बाल सखा था और ायः अपने
घर ले जाकर, अपने साथ बैठाकर उ ह भोजन करा चुका था।

पलाल को देखकर गोनू झा स हो गए और पलाल का कु शल- ेम पूछने लगे।


पलाल ने औपचा रकतावश उनक बात का जवाब दया ले कन उसक आँख इस
शानदार भस पर टक रह । पलाल ने उनसे पूछा–‘‘ य भाई गोनू! यह भस कतने म
ली?’’

गोनू झा ने सहजता से जवाब दया–‘‘अरे भइया पलाल। अभी गोनू झा के पास इतने
पैसे नह ए क भस खरीदे। यह तो आज िमिथला नरे श ने मेरी एक बात पर खुश होकर
मुझे भं◌ेट म दी है। अब मुझे भी तु हारी तरह घर म दूध-दही, घी-म खन का मजा
िमलेगा।’’

पलाल के साथ ही गोनू झा अपने घर आए और भस के िलए खूँटा गाड़ने के काम म लग


गए। पलाल को लगा क गोनू झा उसक उपे ा कर रहे ह, इसिलए वह गोनू झा से यह
कहकर िवदा हो गया क घर म कु छ काम है, िजसे अभी ही कर लेना ज री है।

गोनू झा ने सहज होकर कहा–‘‘हाँ भइया, ज री काम है तो उसे पहले िनपटा लो,
हमारा िमलना-जुलना तो होता ही रहेगा।’’

पलाल ने इसे भी अपनी उपे ा ही समझा। उसने मन ही मन सोचा–‘ई गोनू झा एक


भस या पा गया क इतराने लगा। इतने दन के बाद म इसके दरवाजे पर आया–पानी के
िलए पूछना तो दूर, बैठने तक के िलए नह कहा।’ वह मन ही मन कु ढ़ते ए अपने घर
चला गया।

गोनू झा से जला-भुना पलाल जब भी अवसर िमलता तो लोग से गोनू झा क


मग रयत के क से नमक-िमच लगाकर बताता रहता।

घर म भस आ जाने से गोनू झा क िज मेदारी बढ़ गई थी। वे राजदरबार जाने से पहले


भस क कु ी-सानी लगाते, पानी िपलाते और शाम को दरबार से िनकलते ही सीधे घर
आते और भस को नहलाने-घुलाने और उसक कु ी-सानी करने म लग जाते। दन ऐसे ही
गुजर रहे थे।

एक दन गाँव म मवेिशय का मेला लगा। मेले म गाँव के मवेिशय के वा य परी ण


क भी व था थी तथा अ छे रख-रखाव वाले मवेिशय क एक ितयोिगता भी थी।
ितयोिगता और वा य परी ण म िमिथला नरे श क भस भी शािमल और पलाल
क भस भी ले कन गोनू झा क भस को वा य और रख-रखाव दोन ही –ि से अ वल
घोिषत कया गया। इस बात से पलाल ु ध हो गया और उसने एक कु टल चाल चल
दी। पलाल ने िमिथला नरे श क भस के साथ ितयोिगता म आए मवेशी अिधकारी के
कान भरते ए कहा क इस पुर कार से गोनू झा इतराने लगा है और अपने को महाराज से
भी यादा समझदार समझने लगा है। कह रहा था क भस पालना सबके बूते क बात
नह । देख िलया न, महाराज क भस भी मेरी भस का मुकाबला नह कर पाई।

पलाल ने ामीण के कान म भी यह बात दुहराई और मेले से अपनी भस लेकर अपने


घर लौट आया।

गाँव म बात फै लते देर नह लगती। जंगल क आग क तरह पूरे गाँव म गोनू झा क भस
के अ वल आने क खबर फै ली तो उतनी ही तेजी से यह बात भी फै ली क गोनू झा कहते ह
क भस पालने क ताकत तो महाराज म भी नह है।

यह चचा फै ली तो महाराज तक भी प च ँ ी। िमिथला नरे श को इस बात पर िव ास ही


नह आ क गोनू झा उनके बारे म ऐसी बात भी कह बोल सकते ह ले कन जब उ ह ने
अपने रा य के पशु अिधकारी से पशु मेले के बारे म जानका रयाँ हािसल क तब उस
अिधकारी ने भी गोनू झा क भस के अ वल आने और गोनू झा ारा अकड़ म आकर
महाराज के िव ट पणी करने क बात बताई।

अब िमिथला नरे श को अपने अिधकारी क बात पर िव ास नह करने का कोई कारण


नह रहा। गु चर से तो उ ह पहले ही गोनू झा के गाँव म फै ली चचा के बाबत जानकारी
हो चुक थी। ोध म आकर िमिथला नरे श ने गोनू झा क भस को मरवा देने का आदेश
अपने खास ह रय को दे दया।
इस बीच गोनू झा को भी गाँव म उड़ी अफवाह का पता चल चुका था। वे इस अफवाह के
बारे म महाराज को सफाई देते, उससे पहले ही उनक भस मरवा दी गई। गोनू झा सकते
म आ गए। उ ह ने कसी से कु छ नह कहा। महाराज से भी नह । चमार को बुलाकर
उ ह ने भस क खाल उतरवा ली और भस के शव को खेत म गड़वा दया। भस क खाल
को लेकर गोनू झा गाँव के सरहद के पार प च
ँ े और वहाँ एक बरगद के पेड़ पर चढ़कर भस
क खाल को पेड़ क डाल पर पसार दया। वे रोज रात को उस पेड़ के पास प च ँ ते और
पेड़ पर चढ़कर भस क खाल को छू कर संक प लेते क जब तक इस भस को मरवाने वाल
से वे बदला नह लगे तब तक रात को चैन क न द नह सोएँग।े

इसी तरह सात दन बीत गए। आठव दन अमावस क रात आई। गोनू झा पेड़ पर चढ़े
ए थे क कु छ चोर पेड़ के नीचे आकर बैठ गए। गोनू झा ने ऊपर से ही अनुमान लगाया–
कम से कम चार चोर ह गे। चोर म से एक ने ढबरी जला ली और ढबरी क ह क
रोशनी म वे चोरी का माल आपस म बाँटने लगे। गोनू झा भस क खाल थामे थोड़ा सा
झुककर यह देखने क कोिशश करने लगे क चोर आपस म या बाँट रहे ह? गोनू झा के
झुकते ही चोर ने एक थैली पलटी और थैली से अश फयाँ िगरने लग – छन-छन-छनाक,
छनन-छनन! अश फय क दमक से गोनू झा िवि मत हो गए और डाल से उनका पाँव
फसल गया। पेड़ से िगरने से बचने क कोिशश म शरीर का स तुलन बनाए रखने के िलए
उ ह ने भस क खाल छोड़ दी और पेड़ क एक डाल पकड़ ली। यह सब इतनी तेजी से
घ टत आ क गोनू झा को भी समझ म नह आया क या कु छ घ टत हो गया। भस क
खाल पेड़ पर धूप म सूखकर कड़ी हो चुक थी। गोनू झा के हाथ से छू टते ही यह खाल पेड़
क डाल पर प से टकराती, अजीब आवाज पैदा करती ई चोर पर िगरी। चोर इसे ेत
लीला समझकर वहाँ से डरकर िसर पर पैर रखकर भागे।

गोनू झा ने देखा, चोर िबना पीछे मुड़े भागते जा रहे ह और अ ततः घने अ धकार म
िवलीन हो गए। काफ देर तक गोनू झा पेड़ क डाल पर बैठे अपने को संयत करते रहे। जब
उ ह भरोसा हो गया क चोर अब वापस नह आएँगे तब उ ह ने चोर का असबाब देखा
िजसके बँटवारे के िलए पेड़ के नीचे एकि त ए थे।

गोनू झा क खुशी का ठकाना नह था। उनके सामने वण-मु ा क ढेर सी लगी थी


और जेवर क थैिलयाँ पड़ी थ । गोनू झा के सामने सम या थी क यह धन वे कै से लेकर
अपने घर जाएँ। अ ततः उ ह ने अपना कु ता उतारा और उसके गले वाले भाग को बाँधकर
उसम सारा धन समेट िलया और फर अ छी तरह गाँठ लगाकर िसर पर रख िलया और
अपने घर वापस आ गए।

घर प च ँ ते-प च
ँ ते सबेरा होने लगा। पेड़ पर िचिङय का कलरव शु हो गया। घर
प च
ँ ने पर गोनू झा ने संतोष क साँस ली क उ ह रा ते म कसी ने देखा नह । गोनू झा ने
मन ही मन सोचा क यह ई रीय कृ पा ही है क उ ह इतना धन ा हो गया है।
अनायास ही अब उनके मन म यह िज ासा पनपी क उनके पास वण-मु ाएँ कतनी हं◌,ै
यह जान ल। जेवर क एक पोटली बनाकर उ ह ने स दूक म रख िलया और वण-मु ा
का प रमाण देखकर उ ह लगा क य द इ ह वे िगनने म लग जाएँगे तो दन ढल जाएगा
तब भी शायद िगनती पूरी न हो। य द इन वण-मु ा को तौल िलया जाए तो काम चल
जाएगा। यह िवचार मन म आते ही उनके सामने सम या आई क तौल तो कै से तौल? घर
म तो तराजू ही नह है। फर उ ह ने सोचा क चलो, पलाल के घर से तराजू ले आते ह।
उसके पास तराजू ज र होगा। लहना-पसारी का उसका काम है–पु तैनी। तरह-तरह के
तराजू ह उसके पास। पलाल का खयाल उनके मन म दो कारण से आया। एक तो
पलाल उनका बाल-सखा है, दूसरा यह क उसका घर उनके घर से महज एक फलाग क
दूरी पर है। मन म तराजू का खयाल आते ही गोनू झा पलाल के घर क ओर चल दए।

पलाल उस समय अपनी भस के िलए चारा तैयार करने म लगा था। गोनू झा को अपने
घर आया देखकर वह कु छ च कत सा आ और आगे बढ़कर पूछा–” य भाई गोनू, इतने
सबेरे कै से आना आ? तु हारी आँख चढ़ी ई ह! रात भर सोए नह या?“

गोनू झा ने कहा–” पलाल, तुमने ठीक कहा, रात को सोया नह । अभी तुम मुझे तराजू
और बाट दे दो। जरा ज दी म ।ँ चैन से बैठँू गा तो बात क ँ गा।“

पलाल तराजू लेने के िलए अपने घर के अ दर गया। वह शंकालु तो था ही। मन ही मन


सोचने लगा, आिखर या बात है? गोनू झा रात भर सोया नह और सबेरे-सबेरे तराजू लेने
आ गया? आिखर वह रात म जगा य ? तराजू पर इतने सबरे या तौलेगा? अपने संदह े
क यास बुझाने के िलए उसने थोड़ी-सी लेई तराजू क पदी म यह सोचकर लगा दया क
गोनू झा इस तराजू से जो कु छ भी तौलगे उसका कु छ अंश उसम ज र िचपक जाएगा।
उसने गोनू झा को तराजू और बाट दे दए।

गोनू झा तराजू और बाट लेकर अपने घर आ गए। वण-मु ाएँ तौलकर उ ह ने उ ह एक


छोटी बोरी म भरकर संदक ू म रखा तथा तराजू वापस करने के िलए चले तो देखा क
तराजू के पदे म एक वण-मु ा िचपक गई है। उ ह ने समझ िलया था क पलाल ने
तराजू के पदे म लेई लगाई है। शायद वह यह जानने को उ सुक था क म या तौलूँगा।
गोनू झा के ह ठ पर एक रह यमयी मु कान तैर गई और उ ह ने तराजू के पदे म वण-
मु ा को ठीक से िचपकाया और तराजू पलाल को लौटा आए। गोनू झा को िव ास था
क अब वण-मु ाएँ तौले जाने क खबर पूरे गाँव 6 म फै ल जाएगी य क वे जानते थे क
बचपन से ही पलाल के पेट म कोई बात पचती नह है। उसके पास जो भी नई सूचना
होती है उसे बढ़ा-चढ़ाकर लोग को बताने म उसे आनंद आता है। और गोनू झा चाहते थे
क गाँव वाल को जानकारी िमले क गोनू झा के पास हजार वण-मु ाएँ ह।

आ भी यही। दन चढ़ते ही गोनू झा के पास बधाई देने के िलए लोग आने लगे। उनका
मकसद बधाई देना कम, यह जानना ज री था क आिखर गोनू झा के पास इतना धन
आया तो आया कहाँ से क वण-मु ाएँ िगनने क जगह उ ह तौलना पड़ा? पलाल भी
उन िज ासु म था।

गोनू झा ने अपने दरवाजे पर खड़े ामीण को देखा तो मन ही मन सोचने लगे–‘ये वही


लोग ह िजनके ारा उड़ाई गई अफवाह के चलते उनक यारी भस को महाराज ने मरवा
दया।’

अ ततः पलाल ने जब उनसे बचपन क दो ती का वा ता देकर धन का रह य जानना


चाहा, तब गोनू झा बोले–‘‘भाई पलाल, तुमसे या छु पाना? भस के मरने के बाद मने
उसक खाल उतरवा ली थी य क मुझे मालूम था क गाँव के बाहर बरगद के पेड़ पर एक
िपशाच रहता है। उसे भस क खाल ब त भाती है और वह भस क खाल के िलए िजतना
चाहो उतना धन देता है। म रोज रात को बरगद के पेड़ के पास भस क खाल लेकर जाता
था। कल अमावस क रात को वह िपशाच मुझे िमल ही गया और उसके बाद उसने मुझसे
भस क खाल लेकर मुझे वण-मु ाएँ द । उस िपशाच ने मुझसे और भी भस क खाल देने
को कहा य क उस िपशाच क बेटी क शादी है तथा वह येक बाराती को एक-एक
खाल देने का फै सला कर चुका है। िपशाच ने मुझसे कहा क धन क िच ता मत करो, भस
क खाल के िलए वह मुझे मुँहमाँगी क मत देने को तैयार है ले कन मेरे पास अब कोई भस
तो है नह , क उ ह मारकर िपशाच को बेच आऊँ इसिलए जो िमल गया, उसी से संतोष
कर रहा ।ँ वैसे भी कहते ह क लालच बुरी बला है!“

ामीण को तो मानो खजाने क चाबी िमल गई। सभी खुश-खुश लौटे। गोनू झा को
ामीण क चाल देखकर समझ म आ गया क वे जो चाहते थे वह हो गया।

दूसरे दन पूरे गाँव म दूध के िलए हाहाकार मच गया। गाँव क िजतनी भस थ , मारी
जा चुक थ । खाल उतारकर इन भस को खेत म दफना दया गया था। गोनू झा तक बात
प च ँ ी तो वह बुदबुदाए–‘जैसी करनी वैसी भरनी।’ फर गुनगुनाने लगे–‘‘लालच बुरी
बला रे भैया...लालच बुरी बला।’’ गोनू झा ने देखा, ामीण का झु ड रोज रात को गाँव के
बाहर वाले बरगद के पेड़ के पास हाथ म भस क खाल लेकर जाता और सुबह तक
इं तजार करने के बाद लौट आता। इनम पलाल भी था। गोनू झा उ ह देखकर मन ही मन
खूब हँसते और म ती म आकर गुनगुनाने लगते–‘लालच बुरी बला रे भइया, लालच बुरी
बला।’

अ ततः अमावस क रात भी आकर गुजर गई। ामीण क भस क खाल खरीदने के


िलए कोई िपशाच नह आया। बरगद के पेड़ के पास जो स ाटा पसरा था–पसरा ही रहा।
एक के बाद दूसरी अमावस क रात जब यूँ ही गुजर गई तब ामीण ने खुद को ठगा आ
महसूस करना शु कर दया। दूध के अभाव मं◌े गाँव म ािह- ािह मची थी और ायः
सभी गाँव वाल के खेत से भस के शव के सड़ने के कारण सड़ाँध क भभक पैदा होने लगी
थी। हारे और ोध से उफनते गामीण का ज था अब और ती ा करने क ि थित म नह
था। उनके स का बाँध टू ट चुका था। वे सब गोलबंद होकर िमिथला नरे श के दरबार म
अपनी फ रयाद लेकर गए। महाराज से उ ह ने कहा‘महाराज! गोनू झा के कारण आज
गाँव म एक भी भस जीिवत नह है। हमने उसके बहकावे म आकर अपनी भस मार डाल ।
दूध के िलए तरस रहे ह और गोद के ब े ‘दूध क टू’ हो रहे ह। मवेिशय के शव के सड़ने
से पूरे गाँव म सं ामक रोग फै लने का खतरा पैदा हो गया है।“

महाराज को गोनू झा पर ब त गु सा आया। हरी को भेजकर उ ह ने गोनू झा को


दरबार म हािजर होने को कहा।

गोनू झा मानिसक तौर पर इस ि थित के िलए तैयार थे। वे महाराज के दरबार म हािजर
ए।

महाराज ने ामीण ारा उनके ऊपर लगाए गए अिभयोग के बारे म उनसे जवाब-तलब
कया तो गोनू झा ने मु कु राते ए अपनी सहज भंिगमा म कहा–‘महाराज! इनसे आप यह
पूछ क या मने इ ह भस को मारने 8 क सलाह दी? ये मुझसे यह पूछने आए थे क मेरे
पास अकू त धन कहाँ से आया? चूँ क इनका कपोल कि पत था इसिलए मने इ ह भस
क खाल क कथा सुना दी यानी कपोल कि पत का कपोल कि पत उ र दे दया। और
महाराज, इ ह कथा सुनाने के बाद मने यह नीित वा य कई बार दुहराया क ‘लालच बुरी
बला है भाई–लालच बुरी बला।’ मगर इ ह भूत ेत पर िव ास है, िपशाच और वेताल
के अि त व को ये वीकारते और पूजते हं◌ै इसिलए इन अ धिव ास वाले मि त क म
लालच नह करने क सलाह का भी कोई अथ नह पनपा। अब आप ही कह महाराज क
या म इनक करनी का दोषी ?ँ य द आपको म दोषी लगूँ तो आप जो चाहे सजा दे ल
मुझको।“

महाराज ने ामीण के ज थे क ओर देखा–सभी चुप थे। आँख नीची कए खड़े। महाराज


समझ गए क ामीण ने अपनी लालच म भस गँवायी है। उ ह ने गोनू झा को सस मान
वापस भेज दया जब क ामीण को उनक मूखता के िलए फटकार लगाई। ामीण
महाराज के पास से अपना-सा मुँह लेकर लौटे। महाराज ने रा य क ओर से गाँव के ब
के िलए दूध क व था करा दी य क यह उनका राजधम था और गोनू झा म ती म
गुनगुनाते ए अपने घर क ओर जा रहे थे–‘लालच बुरी भला है भइया, लालच बुरी
बला।’
आितशबाजी का सामान
िमिथला नरे श का दरबार लगा आ था। सभा म गोनू झा भी उपि थत थे। एक ि एक
छोटे संदक
ू के साथ दरबार म आया तथा उसने महाराज से बताया क वह एक ापारी है।

महाराज ने पूछा क वह या बेचने आया है तब उस ापारी ने बड़े नाटक य ढंग से


कहा:
”दूर देश से आया ँ
लेकर अ भूत उपहार
िबना जड़ का पेड़ उगा दूँ
दंग हो जाए संसार
आग फू ल सा िखले,
ऐसा कर सकता ँ चम कार!“

महाराज सिहत सभी सभासद उसके इन दाव से भािवत ए। ापारी ने उसी


नाटक यता से कहा–”य द दरबार म बैठा कोई भी आदमी यह बता दे क वह महाराज के
िलए अपनी संदकू ची म या उपहार लाया है तो वह उस ि क गुलामी करने को
तैयार है और य द सभा का कोई भी ि अनुमान लगाने म सफल होता है तो वह
महाराज के ईनाम पाने का हकदार होगा।“

सभा म स ाटा छा गया! महाराज भी नह समझ पा रहे थे क आिखर इस संदक ू ची म


ऐसा या है जो यह ापारी ऐसे दावे कर रहा है। दरबा रय म भी खुसर-पुसुर होने
लगा–‘आग का फू ल’ और ‘िबना जड़ का पेड़’ न कसी ने देखा था, न सोचा था।

गोनू झा थोड़ी देर तक अपने आसन पर मौन बैठे रहे मगर जब महाराज ने उ ह आशा-
भरी नजर से देखा तो वे अपने आसन से उठे और बोले‘‘महाराज! म िबना संदकू ची खोले
यह बता सकता ,ँ इसम आपके िलए या उपहार लाया गया है। ले कन मेरी एक शत
ापारी महोदय को माननी होगी। शत यह है क आज रात वे संदक ू ची के साथ मेरे
आवास पर मेरा आित य वीकार। य द मने कल सुबह उनको सही उ र दे दया तो वे
अपने देश जाकर िमिथलावािसय क ाशीलता क चचा करगे, उ ह मेरी गुलामी नह
करनी होगी। म िव ास दलाता ँ क ‘स दूकची’ के साथ कोई छेड़-छाड़ नह होगी। आप
चाह तो चार हरी तैनात करवा द और उनक िनगरानी म संदक ू ची रखवा द।

ापारी गोनू झा क शत मान गया और गोनू झा के साथ उनके आवास पर राि -


िव ाम के िलए आ गया।

गोनू झा ने ापारी क खूब खाितरदारी क । तरह-तरह के पकवान िखलाए।

राि -भोजन के बाद गोनू झा ापारी के साथ टहलने िनकले। संदक ू ची ह रय क


सुर ा म थी। टहलते-टहलते गोनू झा ने ापारी के साथ इधर-उधर क बात छेड़ द ।
बात करते-करते गोनू झा ने ापारी से पूछा– ”आप जो िबना जड़ के पेड़ उगाते ह उसम
पानी भी पटाते हं?“

ापारी तरं ग म था, ब त अिभमान से बोला–‘‘पानी नह , आग!“

” दन म ही इस पेड़ म फू ल लगते ह या रात म भी?“ गोनू झा ने पूछा।

”रात म तो उस पेड़ और उसके फू ल का आकषण हजार गुना बढ़ जाता है।“ शेखी


बघारते ए ापारी बोला।

बातचीत करते ए गोनू झा घर क ओर लौट पड़े। अपने क म ही उ ह ने ापारी के


सोने का ब ध कराया था तथा बाहर के ओसारे पर ह रय क िनगरानी म संदक
ू ची
रखी गई थी।

गोनू झा खाट पर जाते ही चैन क न द सो गए मगर ापारी जागता रहा क कह गोनू


झा उठकर संदकू ची का रह य जानने क कोिशश न कर।

दूसरे दन दरबार म प चँ ने पर महाराज ने गोनू झा से पूछा–” य पंिडत जी, संदक


ू ची
म या है–बताएँगे आप?“

गोनू झा अपने आसन से उठकर सभी दरबा रय को बारी-बारी से देखने लगे। दरबा रय
को लगा क गोनू झा फँ स चुके ह और उनको कोई उ र नह सूझ रहा है। दरबार म
फु सफु साहट शु क गोनू झा ने ऊँचे वर म कहा–”महाराज, ापारी महोदय आपके
िलए आितशबाजी का सामान उपहार व प लेकर आए ह। अनार, फु लझिडय और
आसमान म जाकर फटने वाली आितशबािजय से इनक संदक ू ची भरी ई है।“

महाराज ने ापारी से पूछा” या गोनू झा ठीक कह रहे ह?“

ापारी, जो आ य से गोनू झा को देख रहा था, बोला–”जी हाँ, महाराज! गोनू झा ने


ठीक कहा है।“

महाराज ने गोनू झा को उपहार दए और ापारी को नसीहत दी क अिभमान करना


ठीक नह होता है।
ापारी लि त आ और गोनू झा के पास आकर बैठ गया। सभा िवस जत होने के बाद
वह गोनू झा के साथ ही दरबार से बाहर आया। उसने साथ चलते ए गोनू झा से
पूछा–‘‘आपने कै से जाना क संदक
ू ची म आितशबाजी का सामान ही है?’’

गोनू झा मु कु राते ए बोले–”रात म भोजन के बाद जब आपने बताया क पेड़ स चने के


िलए पानी नह , आग का उपयोग करते ह आप और जो पेड़ आप उगाते ह उसके फू ल क
खूबसूरती रात को हजार गुना बढ़ जाती है, तो मेरे िलए यह समझना आसान हो गया क
संदक
ू ची म आितशबाजी क चीज ही रखी ई ह।“
भाई को सीख
‘‘देख भोनू! म तु हारा बड़ा भाई ।ँ तु हारा भला ही सोचँ◌ूगा। यह घर हमारा है–हम
लोग का है। घर क बात घर म रहने दे।...तु ह हो या गया है? तुम तो बचपन से ही मेरे
लाड़- यार म रहे हो! भला बताओ, म तुमसे अलग कै से हो जाऊँ; या तुमको अलग कै से हो
जाने दू?ँ ...ई र ने ही हम एक घर म रहने के िलए भेजा है। ऐसा न होता तो बताओ–हम
एक घर म य पैदा ए होते? य द हम अलग-अलग रहने क सोच, घर को बाँटने क
सोचं◌,े तो यह ई रीय इ छा का अनादर करना होगा न? इतनी-सी बात भी नह समझ
सकते क आपस म लड़ना-झगड़ना नह चािहए? और मान लो क कसी बात के िलए
रं िजश भी हो गई तो हम आपस म अपनी सम याएँ िमल-बैठकर सुलझा सकते ह! इसके
िलए पड़ोिसय और पंच को योतने क बात तो होनी ही नह चािहए!’’

गोनू झा अपने छोटे भाई, भोनू झा को समझा रहे थे। शाम का समय था। हवा मंथर गित
से बह रही थी। गम का मौसम होने के कारण उमस थी। गोनू झा अभी-अभी दरबार से
लौटे थे। पसीने से तरबतर थे। दरबार से लौटते समय उ ह ने सोचा था क घर प च ँ ते ही
वे भोनू झा को बोलगे क कु एँ से चार डोल पानी ख च दो क जी भर नहा लू।ँ दरबार म
आज इतने पेचीदे मसल पर चचा ई थी क दन भर वे उसम ही उलझे रह गए थे। गम
और उमस के कारण बेचैनी थी। दन भर तनावपूण काय को िनपटाने म लगे रहने के
कारण उनका िसर फटा जा रहा था। घर म कु छ दन से और कोई नह था, िसफ गोनू झा
और भोनू झा ही थे।

अभी गोनू झा अपने घर क ओर मुड़े ही थे क दरवाजे पर ही भोनू झा दख गए। उ ह ने


दूर से ही कहा, ‘‘अरे भोनू! भाई, जरा कु एँ पर चल। चार डोल पानी ख च दे। ब त थक
गया ।ँ नहा लूँ तो शायद कु छ ठीक लगे।’’

गोनू झा सहज- ातृ व के ेह से भरे ए थे और ायः यूँ ही कसी काम के िलए भोनू झा
को कह दया करते थे और भोनू झा भी गोनू झा के ेह का आदर करते ए बेिहचक उनका
काम कर दया करता था। ले कन उस शाम भोनू झा ोध से भरा था...जैसे ही उसने गोनू
झा क बात सुनी वैसे ही उ ेिजत होकर गोनू झा को जवाब दया–‘‘थक गए ह तो म या
क ँ ? भगवान ने हाथ-पैर दया है...ह े-क े हो, चार डोल पानी नह ख च सकते? और
नह ख च सकते तो रख लो कोई टलहवा... पैसे क तो कमी नह है। महाराज के दरबार म
इनाम क बरसात ही होती रहती है आप पर! टहल- टकोला करने के िलए आदमी तो रख
ही सकते ह आप!...’’

गोनू झा को जैसे अपने कान पर िव ास नह आ। वे जहाँ थे वह थम से गए। भोनू झा


ने कभी उनसे खुलकर बात नह क थी और आज वही भोनू झा उन पर ं य बाण क
बौछार कर रहा था। वे भोनू झा क आवाज म उभरी त खी से आहत हो उठे । ले कन
उ ह ने अपने को संयत रखा और धीरे -धीरे चलते ए वे भोनू झा के पास आए और उसके
कं धे पर यार से हाथ रखते ए कहा–‘‘अरे भोनू... या हो गया है तुझे ? भैया से ऐसे बात
कर रहे हो...?’’

मगर उनके ेिहल श द का असर भोनू झा पर नह आ। अपना कं धा झटकाकर उसने


गोनू झा के हाथ को वहाँ से हटाया और बोला– ”रहने दीिजए...भैया-तइया! यही सब
कहकर आप मुझे नौकर जैसा खटाते ह...अब म आपके साथ नह र ग ँ ा।’’

गोनू झा क इ छा ई क वे अपने भाई को एक चाँटा जड़ द ले कन उसके आवेश को


देखते ए वे शा त रहे। गोनू झा ने यह भी महसूस कया क भोनू झा क आँख म लाल
डोरे पड़े ए हं◌ै और उसक आँख चढ़ी ई ह। इसका मतलब उ ह साफ समझ म आया क
भोनू झा नशे म है। गोनू झा ने सोचा क अभी भोनू झा से बात करना उिचत नह है। नशे
म आदमी कई बार उिचत-अनुिचत का खयाल नह रख पाता है। इस खयाल से ही उ ह ने
भोनू झा से कहा–‘‘ठीक है भोनू! तू जा, खा-पी के सो जा। म खुद ही कु एँ से पानी
िनकालकर नहा लूँगा!’’

उनका इतना कहना था क भोनू झा फर तड़क गया और बोला–‘‘म खाऊँ न खाऊँ, सोऊँ
या कु छ और क ँ , आपको इससे कोई मतलब नह होना चािहए। महाराज के दरबार म ही
आपक ये बात असर दखाएँगी। मुझ पर नह ! म अब आपक िचकनी-चुपड़ी बात म नह
आनेवाला।’’

गोनू झा से भोनू क यह धृ ता सही नह गई और उ ह ने उसके गाल पर एक तमाचा


जड़ दया। इस तमाचे ने आग म घी का काम कया।...और भोनू तैश म आकर चीख
पड़ा–‘‘आपने मुझे चाँटा मारा! इस चाँटे को म हमेशा याद रखूँगा। अब देिखए, इस घर म
या होता है।’’

गोनू झा ने उसक बात अनसुनी कर देने म ही भलाई समझी। वे अपने कमरे म चले गए।
भोनू क बात से गोनू झा आहत थे। उ ह ने न तो ान कया और न ही कु छ खाया। देर
रात तक गुमसुम से अपने िब तर पर पड़े रहे। रह-रहकर उनके कलेजे से क-सी उठती
रही। वे अपने छोटे भाई भोनू को ब त यार करते थे। वे चाहते थे क भोनू झा पढ़-
िलखकर कु छ अ छा करे , मगर भोनू झा को गाँव म अपनी चैकड़ी के साथ मटरग ती करने
म ही आन द आता था...। गोनू झा िब तर पर पड़े-पड़े सोचते रहे क इन दन भोनू म जो
बदलाव आया है वह घर के िलए और खुद भोनू झा के िलए ठीक नह है। उनके मन म
सवाल उठ रहा था क आिखर भोनू झा उनसे मुँह लगने क और उनको चेतावनी देने क
िहमाकत कै से कर बैठा?...जब उनके दमाग म यह बात क धी क भोनू झा नशे म था तब
वे और भी बेचैन हो गए...उ ह इस बात पर भी आ य हो रहा था क आिखर भोनू झा नशे
म उनके सामने आने क िह मत कै से कर बैठा?...इसके बाद गोनू झा ने फर सोचा–भले ही
भोनू झा पढ़ने-िलखने म मन नह लगा पाया और इधर-उधर मटरग ती करने म लगा
रहा...मगर वह दल का बुरा नह है। गाँव म ऐसे भी कौन पढ़ने-िलखने म लगा रहना
चाहता है? िजसके पास खेत-पथार, गाय-बैल है वह उसके बूते ही जी लेने का िवचार
रखता है।...इसी तरह के गुन-धुन म गोनू झा देर तक लगे रहे। अचानक उनके दमाग म
एक बात क धी क ज र कसी ने भोनू झा को उनके िव भड़काया है। मन म यह
िवचार उठते ही गोनू झा िब तर पर ही पालथी मारके बैठ गए। वे अब सामा य दख रहे
थे। भोनू झा के िव उनके मन का आ ोश समा हो गया। वे चैत य होकर सोचने लगे
क य द भोनू झा को कसी ने भड़काया है तो वह आदमी कौन हो सकता है? दमाग म यह
सवाल पैदा होते ही गोनू झा याद करने लगे क भोनू झा इन दन कन लोग के साथ
घूमता- फरता है और कसक संगित म यादा रहता है। उनके दमाग म भोनू झा के िम
क छिव क धने लगी। मुनेसर, गोनौरा, परमेसर, पलाल–वे बारी-बारी से भोनू झा के
िम को याद करने लगे।

पलाल क याद आते ही उनके दमाग म मानो एक धमाका आ। गोनू झा को लगा क


भोनू झा को भड़काने म पलाल का हाथ हो सकता है। पलाल गोनू झा के बचपन का
साथी था। जब तक गोनू झा क िनयुि राजदरबार म नह ई थी तब तक गोनू झा उसके
साथ अपना खाली समय िबताते थे। खूब अ ब े ाजी होती। पलाल के साथ गोनू झा
िहलना-िमलना राजदरबार म िनयुि के बाद से कम होता गया।

महाराज के चहेते दरबारी होने के कारण गोनू झा के िज मे ब त से ऐसे काम रहते थे


िजसके बारे म महाराज को आशंका रहती थी क य द कसी दूसरे को वह काम स पा गया
तो गोपनीयता बरकरार नह रहेगी या रहेगी भी तो काम दु त नह होगा। महाराज के
चहेते होने के कारण गोनू झा का तबा बढ़ गया था। ायः कह ◌े न कह से, कोई न कोई
गोनू झा से कसी तरह का परामश लेने उनके घर आता ही रहता था। पलाल चूँ क
उनका पड़ोसी था इसिलए वह यह सब कु छ देखता रहता था।

पलाल को महाराज के दरबार म कसी कारणवश आना पड़ा। उस दन महाराज के


पास दूसरे रा य से कु छ मेहमान आए ए थे िजसके कारण महाराज ने गोनू झा को अपने
साथ ही रहने का आदेश दे रखा था। जब पलाल दरबार प च ँ ा तो गोनू झा से िमलने क
इ छा क । उसका संदश े गोनू झा तक प च
ँ ा और गोनू झा अपनी तता के बावजूद
महाराज से समय लेकर पलाल से मुलाकात क । हाल-चाल पूछा और दरबार म आने का
कारण पूछा। पलाल िजस काम से वहाँ आया था उसक जानकारी लेकर गोनू झा ने
पलाल को उस काम से स बि धत कमचारी से िमला दया। गोनू झा ने उस कमचारी को
यह भी बता दया क पलाल उसके बाल सखा ह। उनके काम म िवल ब नह होना
चािहए! इसके तुर त बाद गोनू झा ने पलाल से अपनी िववशता बताते ए िवदा ले ली
और महाराज के पास चले गए।
पलाल को उ मीद थी क बाल सखा होने के कारण गोनू झा उसके साथ दरबार म
उसका काम हो जाने तक ज र रहगे। जब गोनू झा वहाँ से आनन-फानन म चले गए तब
पलाल को यह बात बुरी लगी। दरबार म पलाल का काम तो होना ही था य क
कमचारी के िलए इतना ही काफ था क गोनू झा ने खुद उसके पास आकर वह काम
यथाशी कर देने क िसफा रश क थी। अपना काम कराकर पलाल जब गाँव वापस
आया तब उसने अपने िम से यह कहना शु कर दया क गोनू झा को घमंड हो गया है।
राजदरबार म अपने वा चातुय से उसने महाराज का मन या फे र िलया क बचपन के
िम को भी वह िहकारत क –ि से देखता है। गाँव म कोई भी बात जंगल क आग क
तरह फै लती है।

अपने घमंडी होने क चचा गोनू झा तक भी प च ँ ी। गोनू झा को समझते देर नह लगी


क इस चचा के पीछे पलाल ही है। स ाई यह थी–गोनू झा क तर और शाही तबे से
उसके बचपन के िम ा जलने लगे थे। पड़ोसी होने के कारण पलाल गोनू झा के ऐ य म
हो रही वृि को ब त करीब से देख रहा था। गोनू झा के ित उसक ई या का यह मुख
कारण था। इस चचा पर गोनू झा ने यान नह दया। उ ह ने सोचा क जब कभी भी
पलाल से मुलाकात होगी वे उसे समझा लगे।

एक दन बाजार म, पलाल उ ह दखा भी ले कन संयोग ऐसा था क गोनू झा उस दन


भी हड़बड़ी म थे ले कन जब उ ह ने पलाल को नम कार कया तो पलाल ने नम कार
का जवाब देने क बजाय अपना मुँह दूसरी तरफ फे र िलया और ल बे-ल बे डग भरता आ
दूसरी तरफ चला गया। गोनू झा ने समझा क उनका िम ा उनसे ठा आ है। वे मन ही
मन मु कु राए और सोचा, पलाल अब तक वही कशोर मन वाला बना आ है। छोटी-
छोटी बात पर तुनक जाना और ठ जाना तो उसके बचपन का वभाव रहा है...अब कसी
दन उसके घर जाना ही पड़ेगा ता क उसके मन क भड़ास िनकल जाए। मन म य द कोई
ि थ बनी रह जाए तो िम ाता के िलए ठीक नह होती। स ब ध म दरार आने का
मह वपूण कारण यही गं◌ िथयाँ ह जो छोटी-मोटी गफलत के कारण पैदा होती ह।
ले कन गोनू झा क तता बनी रही और वे पलाल के घर नह जा सके । इधर दो-तीन
महीने म उ ह ने अपने भाई भोनू को पलाल के साथ कई बार देखा। उ ह ने इस पर
यान नह दया। उ ह लगा क गाँव के लखैर के साथ मटरग ती करने से तो अ छा है क
भोनू झा अब पलाल के साथ समय िबता रहा है। पलाल समझदार आदमी है। उनके
बचपन का िम ा है। वह भोनू झा को कु छ अ छी बात ही िसखाएगा...।

...अतीत और वतमान का िव ेषण करते-करते गोनू झा को न द आने लगी, तो वे लेट


गए और सोचते-सोचते सो गए।

सुबह म उनक न द दरवाजा खटखटाए जाने से खुली। दरवाजा खोला तो देखा क ाम


पंचायत का मुलािजम दरवाजे पर खड़ा है।
उ ह ने उससे पूछा–” या बात है मंग आ?“

उसने जवाब दया‘‘आपके भाई भोनू झा ने पंचायत बुलाई है। आप तैयार होकर पंचायत
के िलए पलाल जी के दरवाजे पर प चँ जाइए।’’

गोनू झा को जैसे झटका लगा–कहाँ वे सोच रहे थे क अपने भाई भोनू झा को समझा लगे
और कहाँ वह पंचायत बुला रहा है! वे समझ नह पा रहे थे क आिखर िववाद या है?
भोनू पंचायत य कराना चाहता है? दोन भाइय के बीच कोई ं तो है ही नह ! फर
उ ह ने सोचा–पंचायत क सूचना िमल गई है तो उ ह जाना पड़ेगा ही। भ गे मन से गोनू
झा ने ान- यान कया और पलाल के घर प च ँ ।े

घर के बाहर ही उ ह भोनू झा दख गए जो पंचायत म आनेवाले लोग को नम कार कर


उनक आगवानी कर रहा था।

गोनू झा के मन म अभी भी भोनू झा के ित कोई दुराव नह था। वे सोच रहे थे क भोनू


झा जो कु छ भी कर रहा है, वह नासमझी है–बचपना है, इससे यादा कु छ नह । वे भोनू
झा के पास क गए और भोनू से कहा–‘‘यह या तमाशा कर रहे हो भोनू ?’’

...मगर भोनू के दमाग पर मानो शैतान का वास हो गया था। वह िबगडै़ल साँढ़ क तरह
फुँ फकारते ए बोला–‘‘आपको जो भी कहना है– पंच के सामने किहएगा। मुझसे ल लो-
च पो करने क ज रत नह ! म आपको अ छी तरह समझ चुका ।ँ आप मुझे ‘टलहवा’
बनाकर ही रखगे– ये लाओ...वो लाओ...ये कर दो...वो कर दो...ऐसा न करना और वैसा न
करना–अब यह सब बंद! म आपसे मुि चाहता ।ँ म आपके साथ नह र ग ँ ा ह गज नह !
आज घर का बँटवारा होकर रहेगा...ब त करा ली चाकरी आपने–भाई बनकर!’’

गोनू झा के पास अब कोई चारा नह रहा तो वे पलाल के दरवाजे क ओर बढ़ते ए


बोले–‘‘भोनू, घर क बात घर म सुलझे तो उ म। घर क बात बाहर आते ही घर क
ित ा धूिमल हो जाती है।’’

भोनू झा ने उनक बात अनसुनी कर दी और अपना मुँह दूसरी तरफ फे र िलया।

पंचायत क व था पलाल के दरवाजे पर थी। िसर पर बड़ी-सी रे शमी पगड़ी बाँधे


मूँछ पर ताव देते ए पलाल ने गोनू झा को देखा और मु कु राते ए बोला–”आइए
पंिडत जी! िवरािजए!“

लोग को बैठने के िलए दरी-जािजम िबछी ई थी। गोनू झा ि थित क मु ा म


िनःसंकोच एक कनारे बैठ गए। पंचायत म भोनू झा ने िजन लोग को बुलाया था, उनम से
अिधकांश लोग गोनू झा के पुराने साथी थे और गोनू झा क याित से ई या करने लगे थे।
गोनू झा ने िन य कर िलया था क भोनू झा को अब वे रोके -टोकगे नह और भोनू झा जो
चाहेगा, वह होने दगे। उ ह िव ास था क एक दन ऐसा अवसर ज र आएगा जब भोनू
को अहसास होगा क उसने गलती क है। आिखर वह उनका छोटा भाई है गैर थोड़े ही है?

पंचायत शु ई और पंच के सामने भोनू झा ने एकसू ी ताव रखा–‘‘म अपने बड़े


भाई, गोनू झा के साथ नह रहना चाहता ,ँ इसिलए हमारे घर-जमीन और सभी चल-
अचल स पि का बँटवारा हो जाना चािहए।’’

पंच बने पलाल ने गोनू झा क ओर देखते ए कहा–‘‘ य गोनू जी! आपका या कहना
है?’’

गोनू झा ने संि उ र दया–‘‘जैसा भोनू चाहे!’’

घर के बँटवारे क जब बात उठी तब भी गोनू झा से पूछा गया–‘‘वे घर के कस िह से म


रहना चाहगे?’’

गोनू झा ने फर संि उ र दया–”भोनू जहाँ रहना चाहे, रहे और मेरे िलए िजधर
जगह दे दे, म उधर रह लूँगा।’’

गोनू झा ने तय कर िलया था क पंचायत म वे कु छ भी ऐसा नह होने दगे िजससे दोन


भाइय का िववाद बढ़े। भोनू झा क इ छा अनुसार घर के सामने का िह सा उसे दया
गया। गोनू झा के िह से म घर के पीछे बना भंडार घर आया। सारे सामान बँट गए। बड़ा
स दूक भोनू झा के िह से, घर क खानदानी ितजोरी भोनू झा के िह से। गोनू झा समझ रहे
थे क पंच बने पलाल ारा यह जो एकप ीय िनणय हो रहा है, उसका सीधा उ े य है
क गोनू झा उ ेिजत ह और भोनू से झगड़ पड़ मगर गोनू झा अपने िनणय पर अिडग रहे।
अब उलझन घर के एकमा ा क बल और भस को लेकर पैदा हो रही थी। पंच बने पलाल
ने कहा–‘‘भाई, भस तो काटकर बाँटी नह जा सकती। गोनू झा अपने घर के ही नह , गाँव
क भी पहचान बन गए ह...और कसी क भी पहचान उसके चेहरे से होती है... इसिलए
भस के िसर से पेट तक का िह सा गोनू झा के िह से। रही क बल क बात, तो गोनू झा बड़े
भाई ह। बड़ा भाई होने के कारण उनको मौका िमलना चािहए। दन म क बल गोनू झा के
िज मे रहेगा और बाद म, रात को क बल भोनू झा के िज मे।’’

गोनू झा ने िबना कसी आपि के िसर झुकाकर पंच का फै सला सुना और अपनी सहमित
जताकर वह से दरबार चले गए।

शाम को लौटे और भंडार घर म जाकर अपनी धोती ओढ़कर सो गए। क बल तो भोनू के


िह से म था–रात को! पहले दोन भाई एक ही क बल म मजे से सोते थे।
सुबह म िब तर छोड़ने के बाद गोनू झा ने भस को ‘सानी-पानी’ दया और भोनू झा दूध
दूहने बैठा। अब यह रोज का म था। भस को िखलाने का काम गोनू झा करते और दूहने
और उपल के िलए गोबर जमा करने का काम भोनू करता। ले कन इसका मलाल गोनू झा
को नह था। वे घर के बँटवारे को अपनी उपलि ध समझ रहे थे।

कु छ दन ऐसे ही गुजर गए। गोनू झा ने एक दन िवचार कया क अब य द भोनू झा को


सबक नह िसखाया गया तब भोनू झा को बहकने से रोकना अस भव हो जाएगा। इस
िनणय के साथ वे भस को सानी-पानी देकर एक स टा हाथ म लेकर भस के पास खड़े हो
गए। जैसे ही भोनू झा दूध दूहने के िलए बैठा वैसे ही गोनू झा ने भं◌ैस के िसर पर दो चार
स टे जड़ दए–सट् ◌ाक...सट् ◌ाक...सट् ◌ाक!

भंस अपनी जगह से इधर-उधर ई और भोनू झा के हाथ से बतन िगर गया। दूध जमीन
पर िगर गया। शाम को भी गोनू झा ने क बल पानी म धो खंगालकर भोनू झा के िलए
छोड़ दया। अब वे ऐसा रोज करने लगे।

गोनू झा सुबह-शाम भस के दूध से वंिचत रहने लगा और गीले क बल के कारण रात को


ठठु रने लगा। भोनू झा का पारा फर चढ़ने लगा। उसने फर पंचायत बुलाने क ठान ली।
उसने पलाल से िमलकर उसे अपनी था-कथा सुनाई और गोनू झा से खार खाये बैठा
पलाल जैसे मनचाहा अवसर पा गया–गोनू झा को एक बार और नीचा दखाने का
अवसर!

आनन-फानन म गोनू झा को पंचायत क सूचना भेजी गई और पंचायत म शािमल होने


का फरमान भेज दया गया।

गोनू झा पंचायत म हािजर ए। पंच के सामने भोनू झा ने अपनी था-कथा दुहराई।


पंच ने एक वर म कहा क गोनू झा अपने भाई भोनू झा को अ य प से तािड़त
कर रहे ह और उ ह ऐसा नह करना चािहए।

गोनू झा तो पहले से तैयार बैठे थे, उ ह ने पंच से कहा–‘‘िपछली पंचायत म पंच ने जो


आदेश दया वे उसका अ रशः पालन कर रहे ह और उन पर कोई आरोप नह बनता।
क बल के उपयोग का अिधकार उ ह दन म ा है तथा भस के शरीर का िसर से पेट तक
का भाग उनके अिधकार म है। क बल उपयोग म लाए जाने के बाद गंदा होता ही है तो गंदे
क बल को धोना उनका कत है। अब उनके पास क बल धोने के िलए शाम को ही समय
िमलता है तो शाम को ही क बल धोना उनक िववशता है। इसम भोनू को तािड़त करने
क मंशा नह । रही भस क बात तो पंच के िनदश के अनुसार भस के िसर से पेट तक क
व था वे करते ह। भस को समय पर सानी-पानी लगाने का काम वे पंचायत के बाद से
िनयिमत प से कर रहे ह। रही भस को स टा मारने क बात तो उ ह अपराधी तब ही
कहा जाएगा जब वे भस के पीछे के िह से पर हार करगे। भस को िखलाने और दुलारने
का हक य द उनको ा है तो भस को ज रत पड़ने पर पीटने का हक भी उ ह है। भला,
गाँव का कौन ऐसा ि है जो अपने मवेिशय को सां◌ेटा नह मारता...? अब भी य द
मेरी बात आप लोग क समझ म नह आयी है तब आप सब लोग इस बात के िलए तैयार
हो जाएँ क इस पंचायत के िनणय पर िववाद अब महाराज के दरबार म होगा और वहाँ से
जो फै सला होगा वह मुझे भी मा य होगा और आप लोग के िलए भी मा य होना ही है
य क महाराज तो महाराज ही ह...’’ गोनू झा क बात सुनकर पंचायत म स ाटा छा
गया। पलाल जैसे आसमान से िगरा और भोनू झा को तो मानो साँप सूँघ गया। गोनू झा
पंचायत से उठकर चले आए। उनके पीछे-पीछे पंचायत म शािमल लोग भी उठ गए। उनम
से कु छ गोनू झा के पीछे-पीछे उनके घर तक आ गए और गोनू झा क िचरौरी करने लगे–
भाई गोनू, तुम तो समझदार आदमी हो...घर क बात दरबार तक न जाए तो अ छा! भोनू
को बोल-बितयाकर समझा लो क वो पलाल के च र म न पड़े। सारे िववाद क जड़ म
पलाल है। वही भोनू झा को नशा कराता है और उसके कान भरता है। हम लोग अब
तु हारे घर के झगड़े म नह पडेग ़ं ।े “ ऐसा कह के वे लोग गोनू झा से िवदा लेकर चले गए।

गोनू झा ने उन लोग से कु छ नह कहा। बस, उनक ओर देखकर मु कु राते रहे।

उधर पलाल के दरवाजे पर के वल पलाल और भोनू झा बच गए। पलाल ने समझ


िलया क अब बाजी उसके हाथ से िनकल चुक है। गोनू झा य द महाराज के दरबार म
िशकायत कर दे तो...? इस सवाल के मन म उठने से पलाल िसहर सा गया। उसे यह
अहसास तो था ही क गोनू झा को नीचा दखाने के िलए ई या वश उसने भोनू झा को
बहकाया है...गोनू झा क तनी भृकु टय से उसे यह संदश
े िमल गया था क य द अब उसने
भोनू झा को भड़काया तो अंजाम बुरा होगा। उसके दरवाजे से गाँव वाल के उठकर चले
जाने से भी पलाल समझ गया था क गाँव वाल ने भी उसका साथ छोड़ दया है।
अ ततः पलाल ने भोनू झा से कहा–‘‘भाई भोनू, जो होना था, हो चुका। अब गोनू झा से
िबगाड़कर रहने म भलाई नह है। तुम जाओ और अपने घर का फै सला आपस म ही िमल-
बैठकर कर लो...।’’

भोनू झा ने देखा क अब वह पूरी तरह से अके ला पड़ चुका है। मन ही मन पछताते ए


भोनू झा घर लौटा। दरवाजे पर ही उसे गोनू झा दख गए। भोनू झा दौड़कर गोनू झा के
पास प च ँ ा और हाथ जोड़कर उनसे माफ माँगने लगा–‘‘भैया, मेरी धृ ता को मा कर
दो...मने आपको ब त क प च ँ ाया है।’’

अपने भाई के मुँह से ये बात सुनते ही गोनू झा क आँख छलछला आ । उ ह ने भोनू झा


को कलेजे से लगाते ए कहा–‘‘भोनू! तू मेरा भाई है...मेरा जो कु छ भी है, वह सब तेरा है–
यह घर, जमीन, भं◌ैस सब तो पुरख से आया है–इस पर म या दावा क ँ ? तू जैसे चाह,
वैसे इसका उपयोग कर...मगर इतना यान रख क घर क बात घर म ही रहे, नह तो वह
कहावत च रताथ होती है–‘घर फू टे तो गँवार लूटे...’ पलाल जैसा िम ा अिम ा हो गया
और उसक ब मागी के कारण हमारा ातृ व भािवत आ, यह तो हमारे िलए कलंक
क बात है–है न?’’ गोनू झा उसे सहलाते रहे।

आँसु क धारा म भोनू झा के मन का मैल िनकल गया। जब वह शा त आ तब गोनू


झा भंडार-घर क ओर जाने लगे, मगर भोनू झा ने उनके पाँव पकड़ िलए और
कहा–”भइया, अब मुझे माफ कर द। अब आप वहाँ नह सोएँगे। भंडार घर–भंडार-घर ही
रहेगा। म आपके पास सोऊँगा–एक ही क बल म, जैसे पहले हम दोन भाई सोते थे।’’

गोनू झा ने भोनू झा को अपने आ लंगन म ले िलया और उसका माथा चूमते ए


कहा–‘‘जैसा तू चाहे भोनू! वैसा ही क ँ गा...बस, जा, कु एँ से चार डोल पानी िनकाल–म
जरा नहा लूँ।’’

और भोनू झा कु एँ क ओर चल पड़ा– फु िलत मन से।

गोनू झा उसे कु एँ क ओर जाते ए देखते रहे। उनका मन हलका हो चुका था। आँख म
खुशी क चमक थी। अनायास ही उनक आँख भर आ ।
गोनू झा को ‘मृ यु दंड’
गोलू झा के वा चातुय और बुि -कौशल पर मु ध थे िमिथला नरे श! कोई भी उलझन
आए, गोनू झा उसे चुट कय म सुलझा लेते। रा य क मयादा, रा य के मान-स मान,
दरबार क ग रमा, स ा के आदश, पड़ोसी रा य से कू टनीितक स ब ध, सीमा त े क
गितिविधय पर नजर, कलाकार को ो साहन यानी ऐसा वह सबकु छ, जो रा य-धम के
िनवाह के िलए ज री हो, गोनू झा का यान उन सभी बात पर लगा रहता था। उनक
इस ब आयामी ितभा के कायल थे िमिथला नरे श और उनक इसी ब आयामी ितभा से
जलते थे िमिथला-दरबार के दरबारी।

अपनी कायकु शलता और बुि -लाघव के कारण िमिथला नरे श के दरबार म गोनू झा न
के वल नरे श ारा शंिसत होते रहते थे बि क ायः कसी न कसी कारण से उ ह पुर कृ त
भी कया जाता था। इस तरह िमलने वाले पुर कार से गोनू झा के स मान म तो वृि
होती ही थी, उनक आ थक ि थित म भी लगातार सुधार हो रहा था। दरबा रय के उनसे
जलने का कारण यही था। दरबारी सोचते कहाँ दो जून रोटी के िलए तरसनेवाला गरीब
ा ण ‘गोनू झा’ और कहाँ िमिथला नरे श के दरबार म ब शंिसत दरबारी गोनू झा! ऐसे
अनेक अवसर उस दरबार म आ चुके थे जब सभी दरबा रय ने िमलकर गोनू झा को नीचा
दखाने क कोिशश क थी। मगर, गोनू झा अपनी बुि के बल से उन सब पर भारी पड़े थे।
इसिलए गोनू झा से ई या रखनेवाले दरबारी उनसे सीधी ट र लेने क बजाय उ ह कसी
सािजश के तहत महाराज क नजर से िगराने के अवसर क ताक म लगे रहते थे।

एक बार क बात है अंग देश के महाराज ने िमिथला नरे श को संदश े भेजा क वे


िमिथला- मण हेतु आना चाहते ह। िमिथला नरे श इस संदशे से स ए और अंग नरे श
को संदशे भेज दया क उनके वागत के िलए िमिथला उनक राह देख रही है। आम-लीची
से भरे िमिथला के बाग, रो , कतला, बचवा, पुघता, आसर, बामी, गइं चा जैसी मछिलय
से भरे तालाब, कमल और मखान से सुवािसत िमिथला के सरोवर, कनेर, गुलाब आ द
िविवध पु प से सजी िमिथला क फु लवा रयाँ उनक बेताबी से ती ा कर रही ह।

अंग देश िमिथला का िम ा रा य है। वहाँ के नरे श के आगमन पर रा य म उनके वागत


म कै से आयोजन होना चािहए–यह यान म रखकर महाराज ने िवशेष दरबार लगाया और
सभी दरबा रय से राय ली गई और तय आ क िमिथलांचल म वेश के समय सीमा त
े ा पर वयं िमिथला नरे श ‘अंग नरे श’ का वागत करने के िलए उपि थत रहगे। उनके
साथ ह गे िमिथला नरे श और िमिथला दरबार के िविश दरबारीगण। गाजे-बाजे के साथ
अंग नरे श का वागत होगा। सीमा त े ा से लेकर राजमहल तक पु प से आ छा दत
तोरण ार क शृंखला होगी तथा पूरी राह म, माग के दोन कनार पर सु दर व म
सजे-धजे िमिथलांचल वासी पंि ब होकर अंग नरे श के आगमन को ती ा करगे।
स पूण माग सुवािसत पण-पु प से आ छा दत रहेगा। जब अंग नरे श इस माग से गुजरगे
तब िमिथलावासी िमिथला और अंग देश क मै ाी का गुणगान करगे और दोन रा य के
िलए जयघोष करगे।

राजमहल म भी तरह-तरह के रं गारं गा काय म के आयोजन क सूची तैयार ई। नृ य,


गीत, संगीत, नाटक के अलावा कु ती, कब ी, खोखो, म लयु आ द के आयोजन को भी
सूची म थान िमला।

िमिथला नरे श ने अंग देश के राजा क आगवानी के िलए िविश दरबा रय क सूची
तैयार करवाई ले कन इस सूची म गोनू झा को थान नह िमला। सभी दरबारी खुश ए।
उ ह लगा क गोनू झा क औकात ही या है? है तो भांड ही न! चाटु का रता करके
महाराज का मुँहलगा बन गया है और अपने को महािव ान समझता है। महाराज गुण को
समझते ह, तब ही तो इस िवशेष अवसर पर गोनू झा को अपने से दूर रखा है। आिखर
रा य के बीच कू टनीितक स ब ध का सवाल है। इसम भांड का या काम!

गोनू झा को वागतकता को सूची म शािमल नह कए जाने से दरबारी मन ही मन


ब त खुश थे। उनम कु छ दरबारी ऐसे भी थे जो यह कयास लगा रहे थे क महाराज कसी
बात से, गोनू झा से अव य नाराज ह। अगर ऐसा नह होता तो महाराज उ ह अव य अंग
नरे श के वागत के िलए अपने साथ लेकर जाते। दरबारी इसी गुन-धुन म लगे थे क
िमिथला नरे श ने घोषणा क क रा य म अंग नरे श के आगमन से लेकर थान तक क
सभी तैया रय का िज मा गोनू झा को स पा जाता है। उ ह यह अिधकार भी दया जाता
है क इन तैया रय के िलए आव यक धन वे रा य कोषागार से ा कर सकगे क तु उ ह
येक य का यौरा कोषागार को देना होगा। उनसे रा य यह अपे ा रखता है क ये
तैया रयाँ आकषक, मनोरं जक और िनद ष हां◌े। गोनू झा वयं अनुभवी और िज मेदार ह
इसिलए उ ह यह बताने क आव यकता नह क यह दो िम ा रा के बीच आपसी
तालमेल और समझ क बुिनयाद को मजबूत करने का अवसर भी है। दरबा रय के कान
खड़े थे। महाराज क घोषणा का एक-एक श द उ ह ने गौर से सुना। दरबार के समापन के
बाद गोनू झा के िवरोधी दरबारी आपसी मं ाणा के िलए एक थान पर एकि त ए।
उनका दय झूम रहा था। बाछ िखली ई थ ।

एक दरबारी ने दूसरे उ दराज और अनुभवी दरबारी से पूछा–‘‘आज राजदरबार म


महाराज ारा क गई घोषणा का आप या अथ िनकालते ह? राजा क भाषा म गोनू झा
के ित कह आ मीयता लि त नह हो पाई।’’

बाक दरबारी भी उ सुक हो उठे । तब एक अनुभवी दरबारी ने कहा– ‘‘राजा क भाषा


समझना कभी आसान नह होता। इसीिलए यह कं वद ती चिलत है–राजा के अगारी
और घोड़ा के पछारी मत जाना। समझे कु छ?’’
दो-तीन दरबारी एक साथ पूछ बैठे–” या मतलब? जरा ठीक से समझाइए।’’ उनके
वर म आवेश, उ ेजना और उ सुकता के िमले-जुले भाव थे और आँख म थी ती
ता।

अनुभवी दरबारी ने मु कु राते ए कहा–”समझो, गोनू झा के दन लद गए। वह अपने को


‘तीस मार खाँ’ समझता था। राजा का चापलूसी करता रहता था। िजतने कम समय म वह
राजा का मुँहलगा बन गया और राजा के आगे-पीछे करने लगा–समझो उसका अ त आ
गया। शायद गोनू झा पहला आदमी होगा जो ब त कम समय म राजा का चहेता बना और
उससे भी कम समय म राजदरबार से बाहर आ।’’

वहाँ खड़े सभी दरबारी खुश हो गए। उनम से एक ने कहा–‘‘मतलब क लोहा गरम है।
बस, चोट करने क ज रत है! यह अवसर हाथ से जाना नह चािहए। महाराज ने गोनू को
अंग-राज के आगमन से लेकर थान तक क तैया रय का िज मा स पा है तथा सांकेितक
श द म यह चेतावनी भी दे दी है क तैया रयाँ टहीन होनी चािहए। हम लोग िमलकर
कु छ ऐसा कर क ‘अंग-राज’ के आगमन के दन ही वागत क तैया रय म कोई ऐसा खोट
कट हो जाए िजससे महाराज को ब त बुरा लगे और य द ऐसा हो जाता है तब गोनू झा,
महाराज का कोपभाजन बनने से बचे नह रह सकगे। जब उस खोट के िलए दरबार म कोई
बात उठे गी तब हम लोग एक साथ िमलकर उसे अ य अपराध क सं ा दगे और उसके
िलए गोनू झा को कठोर से कठोर दंड दए जाने क माँग करगे। बोलो भाइयो, आप सबक
या राय है? इस तरह साँप भी मरे गा और लाठी भी नह टू टेगी।’’

सबने हामी भर दी। उनक मं ाणा अभी समा नह ई थी। मूल खड़ा था–आिखर
ऐसा या कया जाए िजससे अंग-राज के आगमन के दन ही कु छ ऐसा हो जाए िजससे
महाराज कु िपत हो जाएँ और गोनू झा दंिडत कए जा सके ।

दरबा रय म एक ‘काना नाई’ भी था जो बरस से गोनू झा से खार खाए बैठा था। उसने
सुझाव दया–‘‘बात ब त आसान है। य द हम सभी साथ ह तो गोनू झा इस बार मुँह क
खाएँग।े यह बात स य है क ‘अके ला चना भाड़ नह फोड़ता’ और गोनू झा इस बार
िनता त अके ले पड़ गए ह और उनके िज मे ऐसा काम है िजसम थोड़ा-सा भी खोट सीधे
झलक जानेवाला है–छु पनेवाला नह ! मेरी सलाह है क सीमा त े ा से राजमहल के
बीच ‘खजूर व ी’ के पास सड़क संकरी और बदहाल है। य द हम लोग वहाँ मजदूर को
कु छ पैस का लोभ देकर उस सड़क म ग े करवाकर उसको क चड़ से भरवा द और उस
क चड़ पर फू ल क मोटी परत िबछवा द तो बात आसान हो जाएगी। उधर से महाराज
अंग नरे श के साथ रथ पर ही गुजरगे। हो सकता है क रथ म जुते घोड़ के टाप से क चड़
उछले और महाराज और उनके अितिथ को ‘क च- ात’ कर दे और यह भी हो सकता है
क रथ क चड़ म फँ स जाए! होने को तो यह भी हो सकता है क अचानक ग े म पाँव पड़ने
से घोड़ा ही िगर जाए!“
सभी इस सलाह से उछल पड़े और काना नाई क सलाह को सव वीकृ ित िमल गई।

गोनू झा बड़ी लगन से अंग नरे श के आगमन से लेकर िवदाई तक के काय म का


िनधारण करके उनके आयोजन क तैया रय म जुट गए। वे वयं घोड़े पर सवार होकर
आगवानी-िब दु से लेकर महल तक का च र लगाते। यह देखते क तोरण ार के म य क
दूरी एक फलाग से अिधक न हो। मु य माग के अगल-बगल नरे श के वागत के िलए खड़े
रहने वाले लोग क सुिवधा के िलए जगह-जगह पर याऊ क व था; रा य क ओर से
इन लोग के िलए दही, छाछ व जलपान का बंध; तोरण ार के म य क दूरी को रं ग-
िबरं गे पताक से सजाने का काय–एक-एक काम को बारीक से देखते गोनू झा समझ रहे थे
क महाराज ने उ ह यह काम इसिलए स पा है क यही काय सबसे मह वपूण था। रा य
भर के कलाकार को आमं ाण भेजना, िव ान के वागत-स मान समारोह क योजना
बनाना, उनसे स पक करना और रा य के व र िव ान से इस आयोजन को सफल बनाने
के िलए सलाह लेना–गोनू झा इन काय म त थे। न दन को चैन, न रात को िव ाम।
एक ही धुन म रमे थे गोनू झा क उ ह जो िज मेदारी स पी गई है, वे उसे खूबी के साथ
अंजाम दे पाएँ।

अंग नरे श के आने क घड़ी नजदीक आ चुक थी। गोनू झा मु य माग क स ा का


िनरी ण और अवलोकन कर चुके थे। िमिथला नरे श भी मु य माग का जायजा ले चुके थे
और इस अभूतपूव स ा क मन ही मन शंसा कर चुके थे। उ ह ने महल म प च
ँ ने के बाद
महारानी से कहा भी था क गोनू झा जैसा िवल ण ि स दय म कभी जनमता होगा।
उ ह ने मन ही मन तय कर िलया था क अंग नरे श क िवदाई के बाद वे गोनू झा को
उनक िविश कायशैली के िलए रा य क ओर से स मान दगे।

िमिथला के सीमा त े ा म िमिथला नरे श अपने दरबा रय के साथ खड़े थे। अंग नरे श
के आगमन क ती ा थी। तभी घोड़ के टाप क आवाज ने उनका यान आक षत कया।
थोड़ी ही देर म अंग नरे श अपने सुर ाक मय के बीच घोड़े पर सवार आते दखे। जब वे
लोग सीमांत े ा पर प च ँ े तो िमिथला नरे श के दरबा रय ने जयघोष कर अंग नरे श का
वागत कया। अंग नरे श घोड़े से उतरे और िमिथला नरे श ने उ ह गले से लगा िलया। फू ल
से सजे रथ पर अंग नरे श के साथ िमिथला नरे श बैठे। गाजे-बाजे बजने लगे।
िमिथलांचलवािसय क जयघोष से दशाएँ गूँज उठ । अंग नरे श ने इतने भ वागत क
क पना नह क थी। वे फु ि लत मन से िमिथला नरे श से िमिथला के जन-जीवन क बात
करने लगे। रथ चला। धीमी गित से। दोन नरे श रथ पर खड़े होकर जाजन का
अिभवादन वीकारने लगे।

जगह-जगह रं ग-िबरं गे कपड़ से सजे-धजे नर-ना रय क जयघोष करती कतार को


देखकर अंग नरे श ने सोचा– कतने खुशहाल ह–िमिथला के वासी! ऐसा आध्◌ाद, ऐसी
उमंग और ऐसा उ साह अंग नरे श ने अपने रा य म कसी अितिथ के िलए नह देखा था।
रं ग क चमक-दमक, पु प- गु छ से आ छा दत तोरण ार से उठनेवाली सुग ध ने अंग
नरे श पर जादुई भाव डाला था और वे राह क थकान भूल, मु ध होकर राजमहल जाने
वाली राह क स ा और स िच िमिथलावािसय को देख रहे थे क अचानक एक
धचके के साथ रथ के पीछे का दोन पिहया क चड़ म फँ स गया और घोड़ के टाप से
उछले क चड़ से रथ के फू ल लथ-पथ हो गए।

िमिथला नरे श इस आस वधान से चक पड़े। रथ-चालक ने ब त कोिशश क मगर


घोड़े रथ को ख च नह पाए। रथ का एक पिहया बुरी तरह एक ग े म फँ सा आ था।
अ ततः महाराज के सुर ाक मय ने रथ को कं धे के सहारे उठाया और फर मु यमाग पर
रथ लाया गया। रथ क सफाई क गई। घोड़े बदले गए। रथ महल क ओर चला। महाराज
इस वधान से ु ध हो उठे , मगर समय को यान म रखते ए शा त रहे। उनक समझ
म नह आ रहा था क राह म य द ग ा था तो उसे भरा य नह गया? और राह म उस
ग ढ़े म इतना क चड़ कहाँ से आ गया? बरसात का मौसम नह क राह म क चड़ हो!
‘खजूर व ी’ का इलाका ऐसे भी जन-शू य थान है। वहाँ नाले भी नह ह! कसी के ारा
लगातार पानी बहाने क भी स भावना नह है! सबसे बड़ा सवाल उनके मन म यह उठ
रहा था क क चड़ को फू ल से ऐसे कसने ढँका क वह शेष राह जैसा ही दखे? आिखर
ऐसा करने वाले क मंशा या रही होगी? उ ह ने अंग नरे श से इस वधान के िलए खेद
जताया और अंग नरे श ने उ ह आ त कया क के इस घटना को मह व नह दे रहे।

राजमहल म प च ँ ने के बाद अंग नरे श के िलए भ प से सजाए गए क म उ ह ले


जाया गया और इसके बाद एक से बढ़कर एक भ और मनोरं जक काय म क शृंखला
शु ई। लगभग एक माह के वास पर आए अंग नरे श के िलए एक से बढ़कर एक,
यादगार काय म क तुित ई। िमिथलावािसय के िलए भी यह अवसर अपने
सां कृ ितक धरोहर को उजागर करने वाला था।

भोजन, मनोरं जन और िव ाम क िनद ष तैया रय क सराहना मन ही मन िमिथला


नरे श भी कर रहे थे ले कन उनके मन म अंग नरे श के आगमन के दन क घटना शूल क
तरह चुभा रही थी। वे समझ नह पा रहे थे क इतनी अ छी व था म वह दोष कै से
उ प हो गया?

एक भ आयोजन के बाद अंग नरे श क िवदाई क घड़ी आई। महाराज वयं उनके साथ
सीमा त तक गए। भावभीनी िवदाई के बाद एक दन शाि तपूवक बीता। दूसरे दन
दरबार म महामं ी ने ताव रखा क अंग नरे श के आगमन से लेकर थान तक के
काय म क समी ा होनी चािहए। दरबारी मानो इस पल क ती ा ही कर रहे थे।
सबने एक वर म वीकृ ित दे दी। महाराज ग भीर मु ा म दरबा रय को देख रहे थे।

समी ा-मीमांसा म एक से बढ़कर एक आयोजन क एक वर म सराहना ई। जब अंग


नरे श क अगवानी क तैया रय क समी ा शु ई तो पूरे दरबार म फु सफु साहट तेज हो
ग ।

िमिथला नरे श ने दरबा रय म आए इस प रवतन पर गौर कया। उनका मन पहले से ही


आशं कत था। अब उनक यह आशंका बलवती हो गई क िनि त प से मु यमाग म ग ा
खोदा गया, उसम क चड़ भरकर फू ल से उसे छु पाया गया, वरना इस ताव पर
दरबा रय म ऐसी खलबली पैदा नह होती।

महाराज ने महामं ी को इशारा कया। महामं ी ने आसन से उठकर अिभयोग


सुनाया–”अंग नरे श क अगवानी के दन रथ का पिहया क चड़ म फँ स जाने क घटना के
िलए गोनू झा को दोषी माना जाता है। चूँ क यह दािय व गोनू झा का था क नरे श क
या ा सीमांत े ा से लेकर राजमहल तक िन व और िनबाध स प हो और यह काय
राजक य मह व का था इसिलए उनका दोष अ य है। अंग नरे श हमारे िलए िवशेष
मह व रखते ह। उनका िमिथला आगमन दोन रा य के मै ाी स ब ध को गाढ़ करने के
िलए था इसिलए इस मह वपूण काय क िज मेदारी गोनू झा को स पी गई थी क वे ा
सप ाणी ह और इस काय के मह व को समझते ह मगर माग म जो वधान उपि थत
आ, उससे गोनू झा के काय के ित लापरवाही और उदासीनता दोन कट ई। यह
लापरवाही िमिथला के िहत म कदािप नह कही जाएगी और इसके िलए मेरी गुजा रश है
क महाराज िमिथला नरे श, गोनू झा को कड़ा से कड़ा दंड द ता क भिव य म कोई भी
ि ऐसा आचरण करने का साहस नह कर सके िजसम दो रा य के मधुर स ब ध
भािवत होने के आसार नजर आते ह । मेरी समझ म यह घटना छोटी नह है और यह
कारांतर से राज ोह क कृ ित का संकेत देती है िजसके िलए रा य के िवधान म
‘मृ युदड
ं ’ िनधा रत है।“

दरबा रय ने जब धानमं ी क बात सुन तो वे स हो उठे । एक हष विन–समवेत–


उठी और महाराज ने दरबा रय क मुखमु ा से समझ िलया क गोनू झा को मृ युदड
ं क
पेशकश से वे सभी स ह। महाराज ने गोनू झा क ओर देखा–गोनू झा शा त थे। उनके
चेहरे पर भय का कोई भाव नह था। महाराज अपने आसन से उठे और दरबा रय से
पूछा– ‘‘आप सबक या राय है?’’

दरबारी एक वर से चीख पड़े” धानमं ी महोदय का िनणय िवधान- स मत है। गोनू


झा दंड के भागी ह और उ ह कड़ी सजा िमलनी चािहए।’’

महाराज ने गोनू झा क ओर देखा और ग भीर मु ा म बोले–‘‘पंिडत जी! आप कु छ


कहना चाहते ह?’’

गोनू झा ने कहा–‘‘महाराज! धानमं ी महोदय क याय- व था से म सहमत ।ँ म


उस दन क घटना के िलए िज मेदार ँ और वीकार करता ँ क उस गफलत के कारण
कु छ भी ऐसा घ टत हो सकता था िजससे दो िम ा रा य के स ब ध मं◌े कटु ता आ
सकती थी। अपना अपराध वीकार करते ए म अपने िलए कठोर से कठोर दंड दए जाने
क पेशकश करता ।ँ ’’

महाराज गोनू झा के चेहरे को देख रहे थे। गोनू झा क मुख-मु ा शा त और िनद ष थी


और उनके मुँह से िनकलने वाला येक श द संतुिलत विन के साथ दरबार म अनुगूँिजत
हो रहा था। महाराज ने दरबा रय क ओर देखा–सभी दरबारी स मु ा म बैठे थे तथा
महाराज ारा दंड सुनाए जाने क ती ा म थे। महाराज के पास दंड देने क शि थी
और दंड मु करने का अिधकार भी। महाराज इतना भाँप चुके थे क दरबारी गोनू झा को
दंिडत करवाना चाह रहे ह और वे यह भी समझ चुके थे क गोनू झा िनद ष ह, उ ह कसी
ष ं ा के तहत अपराधी के प म दरबार म खड़ा करने का माहौल तैयार कया गया है।
मन ही मन कु छ िन य कर महाराज ने हठात् ऊँची आवाज म दो पंि य म अपना फै सला
सुनाया–‘‘गोनू झा! आप राज ोह के दोषी ह। म आपको मृ युदड ं देने का िनणय सुनाता
।ँ ’’

महाराज क आवाज सुनकर दरबार म हष- विन ई। स मु ा म दरबा रय ने मन ही


मन सोचा–‘िनकल गया कांटा।’

गोनू झा शा त थे।

तभी महाराज ने पूछा–‘‘गोनू झा! आपक कोई अि तम इ छा हो तो कह! हम उसे


अव य पूरी करगे।’’

गोनू झा ने कहा‘‘महाराज! आपका दंड िशरोधाय! म फाँसी पर लटकने को तैयार ।ँ


राजा ा का पालन मेरा धम है। मने जो अपराध कया है, उसक सजा मुझे िमलनी ही
चािहए।’’

िमिथला नरे श मु कु राए और सहज भाव से पूछा–‘‘पंिडत जी! मने आपसे आपक
अि तम इ छा पूछी है।’’

गोनू झा ने उसी तरह शा त वर म कहा‘‘महाराज, मेरी एक ही अिभलाषा है क म


आपके परपोते को गोद म खेलाऊँ।’’

महाराज मु कु राए और उ ह ने घोषणा क क मेरे पु के पु के पु के अवतरण तक


य द गोनू झा जीिवत रहते ह तो मृ युद ड के भागी ह गे।

दरबारी एक-दूसरे का मुँह ताकने लगे। तभी उनके कान म महाराज क गुर-ग भीर
वाणी गूँजी–”आप सभी दरबारी यान दगे! आपस म पधा होनी चािहए ले कन, वह
रचना मक होनी चािहए। कसी को नुकसान प च ँ ाने के उ े य से कया जानेवाला कम
कभी भी िहतकर नह होता। मुझे िव ास है क आप लोग मेरी बात समझ गए ह गे’’।

महाराज ने दरबा रय क ओर देखा–सबके चेहरे लटक चुके थे। महाराज ने मु कु राते ए


अपने गले से मोितय क माला उतारी और गोनू झा के आसन के पास प च ँ कर वह माला
उनके गले म डालते ए कहा, ‘‘पंिडत जी! आप इसी ‘दंड’ के यो य ह!“

गोनू झा ानत होकर अपने आसन से उठ खड़े ए और िमिथला नरे श ने उ ह अपने


गले से लगा िलया।
अपन का सच
गोनू वृ हो चले थे। महाराज के दरबार म वे एक ह ती बन चुके थे। एक दन महाराज ने
अपने िपता क पु य ितिथ पर एक आयोजन कया। बृहद आयोजन था यह। ऐसे आयोजन
को गोनू झा थ मानते थे। भोज के बाद गोनू झा ने िवनयपूवक महाराज से
पूछा–‘‘महाराज! इस आयोजन पर कतना य आ?’’

महाराज ने सरलता से उ र दया–”यही कोई दस हजार।’’

गोनू झा ने उनसे कहा–‘‘महाराज! म वृ हो चला ।ँ कभी भी यह िम ी क काया िम ी


म िमल जाएगी। तब या आप मेरे ा के िलए इतनी ही बड़ी रािश मेरे प रवार के
लोग को दे सकगे?’’

महाराज िवत हो उठे । उ ह ने कहा–‘‘पंिडत जी! ऐसी बात न कर। आप जीएँ और


हमारे राजकाज म अपना सुाव देते रह।’’

गोनू ने उनसे कहा–”महाराज! आप मेरे को टाल रहे ह।’’

महाराज थोड़ी देर चुप रहे फर कहा–”मेरा वादा है पंिडत जी, य द ऐसा आ तो दस
हजार अिवल ब आपके प रजन तक भेजने क व था हो जाएगी।’’

इस घटना के कु छ दन बाद ही अपने भाई भोनू झा के साथ गोनू झा नदी कनारे प च


ँ े।
नदी म बा-सजय़ आई थी और पानी क तेज धारा कनारे क िम ी का कटाव कर रही थी।
भोनू झा कटाव देखने म म थे। गोनू झा ने एक बड़ासा प थर उठाकर पानी म उछाल
दया और खुद को पेड़ क ओट म छु पा िलया। भोनू झा ने ‘छपाक’ क विन सुनी। फर
अपने पास भाई को नह पाकर बेचैन होकर इधरउधर देखने लगे। जब उ ह गोनू झा
दखाई नह पड़े तो उ ह ने मान िलया क गोनू झा को नदी लील गई है। वे िवलाप करते
ए अपने घर लौट आए। घटना क जानकारी

िमलने पर घर म मातम छा गया। घटना क जानकारी महाराज को भी िमली तो उ ह ने


गोनू झा के ा के िलए दस हजार पए राजकोष से अिवल ब उनके प रजन को स पने
का िनदश जारी कर दया।

महाराज के िनदश के बाद खजांची का एक अदली गोनू झा के घर भेजा गया क कोई


आकर पए ले जाए। गोनू झा क प ी ने अपने पु को भेजा। पु ने शी पैसे ा करने
के िलए खजांची को एक हजार पए देने का लोभन दया। बात बन गई। आननफानन म
खजांची ने गोनू झा के पु को नौ हजार पए थमाए और एक कागज ब-सजय़ाते ए कहा
क इस कागज पर कोष मं ी के मुहर लगवा लो। गोनू झा के पु से मं ी जी ने भी मुहर
लगाने के िलए एक हजार पए ले िलये। फर गोनू झा के पु ने भी शेष पय म से एक
हजार पए िनकालकर अपनी दूसरी जेेब म रख िलया और घर प च ँ कर अपनी माँ को
सात हजार पए दए। गोेनू झा क प ी ने भी सोचा क अब तो ‘ वामी’ रहे नह –सामने
पड़ी है पहाड़ जैसी िज दगी। कु छ पैसे दु दन के िलए बच जाएँ तो अ छा। उसने इन सात
हजार पय म से तीन हजार अपनी साड़ी के खूँट म बाँधा और चार हजार पए भोनू झा
को थमा दए और कहा क अपने भैया का ा ठीक -सजयंग से करो। भोनू झा भी कम न
थे। उ ह ने सोचा क जानेवाला तो जा चुका अब उसके नाम पर दखावे म फजूलखच
करना थ है। उसने दो हजार पए अपनी जेब म रखे और दो हजार म ा के कमकांड
िनपटा िलए।

इसके दो दन बाद ही गोनू झा दरबार म उपि थत हो गए। उ ह देखकर महाराज सिहत


सभी दरबारी ह भ रह गए। तब गोनू झा ने महाराज को बताया–”मरने के बाद कोई भी
अपना, अपना नह रह जाता। महाराज, आपने तो दस हजार ा के िलए देकर अपना
वचन पूरा कया ले कन खजांची, मं ी, मेरे पु , मेरी प ी और मेरे भाई ने जो कया वह
आँख खोल देने वाली घटना है। मने मरने का वांग रचने से पहले तय कर िलया था क
रा य के उ तरीय शासन म घुस आए इस ाचार का पदाफाश करके र ग ँ ा। मुे ब त
पहले से इस बात क खबर थी क मं ी और खजांची या गुल िखला रहे ह इसिलए मने
िनजी तौर पर गु चर लगा दए थे। ‘ ा ’ के नाटक के दौरान मुे एकएक घटना क
जानकारी

िमलती रही... फर उ ह ने अपने मरने के नाटक का भी खुलासा महाराज के सामने


कया और कहा–”महाराज! स ा जब हो जाती है तो जनता भी हो जाती है। अब
हम व छ शासन के िलए कठोर कदम उठाने ह गे।

महाराज ने त काल भाव से मं ी और खजांची को बखा त कर उ ह कारागार म डाल


दया।

जब गोनू झा अपने घर गए तब उनके पु , प ी और भाई ने उनके पैर पकड़ िलए और


िबलखिबलखकर रो पड़े। तब गोनू झा ने सबको सीने से लगाकर कहा–”प ा ाप से
आ मा पिव ा होती है। भूल जाओ। जो आ सो आ।
गोनू झा क शरण म दरबारी
गोनू झा अपने वा चातुय से सबका दल जीत लेते थे। महाराज उनक ितभा के कायल
थे। क ठन से क ठन अवसर पर गोनू झा का सुझाव उ ह जँचता और वे उसे आजमाते।
उलझन सुलझ जात । ायः िमिथला नरे श भरे दरबार म गोनू झा के सुझाव क सराहना
करते। समय-समय पर गोनू झा को पुर कृ त भी करते िजसके कारण िमिथला दरबार के
अिधकांश दरबारी उनसे िचढ़ते थे और ई या वश उ ह नीचा दखाने का अवसर तलाशते
रहते थे। गोनू झा इस ि थित से प रिचत थे मगर इन बात पर वे यान नह देते थे क
उ ह कौन या कहता है। म त रहना उनके वभाव म शािमल था।

िमिथला नरे श के दरबार म एक बार एक बहेिलया एक तोता लेकर आया जो समय के


अनुसार उिचत बात बोल सकता था। जैसे सवेरा होने पर तोता गाता–‘सूरज िनकला पूरब
ओर, जागो भइया हो गई भोर।’

कसी आगंतुक क आहट पर वह पूछता–‘कौन हो भाई? कहाँ से आए हो? थोड़ी ती ा


करो। वामी िव ाम कर रहे ह।’

कसी के थान करने पर बोलता–‘अ छा लगा आपसे िमलकर। फर आइएगा। शुभ


िवदा।’

िमिथला नरे श को जब बहेिलए ने तोता दखलाया तो उ ह ने उसे एक साधारण तोता


समझा ले कन बहेिलया ारा चुटक बजाए जाने पर तोते ने कहा–‘‘महाराज क जय हो!
हम आपक सेवा म सम पत ह। आदेश कर महाराज!’’

महाराज तोता क मु धकारी आवाज सुनकर च कत ए। उ ह ने बहेिलए से पूछा”यह


और या बोलता है?“

बहेिलए के कु छ पूछने से पहले ही तोते ने जवाब दया–”ब त कु छ महाराज!“

महाराज को तोता पस द आया। बहेिलए ने महाराज को बताया क समय के अनुसार


ि थित भाँपकर यह तोता लगभग सौ तरह के वा य बोल सकता है। महाराज ने बहेिलए
को तोते क मुँहमाँगी क मत देकर िवदा कया।

महाराज के िलए यह तोता अ भुत था। बड़े जतन से िसखाया-पढ़ाया गया यह तोता
दरबार के िलए शोभा बन गया। महाराज ने उसके िलए अपने संहासन के पास ही एक
मेज लगवा ली। जब महाराज दरबार म आते तो उनके साथ यह तोता भी पंजड़े म लाया
जाता। जब महाराज महल म जाते तो उनके साथ तोते का पंजरा भी ले जाया जाता।

समय गुजरता गया और महाराज का इस तोते के साथ लगाव भी बढ़ता गया। दूसरे
रा य से य द कोई िवशेष अितिथ महाराज से िमलने आता तो महाराज अपने तोते क
कौतुक पैदा करनेवाली पंि य से उसे चम कृ त करने म गौरव महसूस करते।

एक दन क बात है। महाराज को अचानक कसी कायवश दरबार से उठकर कह जाना


पड़ा। जाते समय महाराज ने दरबा रय को िनदश दया क वे तोते का खयाल रख तथा
चेतावनी भी दी क तोते के साथ य द कोई छेड़छाड़ ई तो कसी क खैर नह ।

संयोग था क उस समय तक दरबार म गोनू झा नह आए थे। महाराज के जाने के बाद


गोनू झा दरबार म आए तो पाया क सभी दरबारी मुँह लटकाए बैठे ह। महाराज दरबार म
नह हं◌ै तथा तोता पंजरे म मरा पड़ा है।

गोनू झा ने एक दरबारी से पूछा‘‘महाराज कहाँ हं? तोते क यह हालत कसने क ?’’

दरबारी ने उ ह बताया‘‘महाराज अचानक कसी काम से उठकर कह गए ह तथा वे


जाते-जाते यह कह गए थे क तोते का खयाल रखना। महाराज ने यह चेतावनी भी दी थी
क तोते के साथ कसी ने छेड़छाड़ क तो उसक खैर नह । सभी दरबारी अपने आसन पर
बैठे महाराज के आने क ती ा करते रहे। इस बीच न जाने कधर से एक संकरा साँप
पंजरे से िलपट गया। तोता के ट-ट से हम लोग का यान उधर गया। हम लोग कु छ कर
पाते इससे पहले ही साँप ने तोते को डँस िलया।’’

पूरी कहानी सुनने के बाद गोनू झा ग भीर मु ा म अपने आसन पर जाकर बैठ गए। गोनू
झा को चुप देखकर कु छ दरबारी उनके पास आए तथा उनसे पूछने लगे क अब या होगा?
महाराज जब पूछगे क तोता कै से मरा?... इतने दरबारी एक तोता का यान नह रख
पाए...तब हम लोग या जवाब दगे?

गोनू झा ने उनसे कहा–‘‘आप लोग िव ान ह, म आपको जवाब सुझाऊँ, यह मुझे शोभा


नह देता।’’

दरबा रय ने उनका कटा भाँप िलया। फर भी उनम से कु छ ऐसे दरबारी गोनू झा के


आसन के िनकट आ गए जो वाकई गोनू झा के वा चातुय के शंसक थे। उन लोग के आ ह
पर गोनू झा ने कहा–”ठीक है, तोते क मृ यु क सूचना म अपने ढंग से महाराज को देू दूग
ँ ा
ले कन आप सभी वही करगे जो म क ग ँ ा, तब तो यह िज मा म ले लूँगा और य द आपम से
एक भी आदमी मेरी बात से सहमत नह हो तो तब म इस मामले म नह पडू ग ं ा ’’

सभी दरबारी एक वर म बोले–‘‘पंिडत जी! आप जो भी िनदश द, उसका पालन हम


लोग करगे।’’

तब गोनू झा ने कहा”सबसे पहले तोते का पंजरा आप दरबार से बाहर ले जाकर रख


दीिजए। महाराज जब पंजड़े के बारे म पूछं◌ेगे तो आप म से हर आदमी के वल यही कहेगा
क पंजड़ा बाहर है। जब महाराज कसी को पंजरा लाने के िलए कह तो वह बाहर चला
जाए मगर वापस नह आए।“

सभी ने गोनू झा का यह िनदश मानने क वीकृ ित दे दी और बोले ”बस पंिडत जी, आप


जैसा कह हम करगे। हम आपक शरण म ह। महाराज के ोध से बचाने का बस आप ही
कोई उपाय कर सकते ह।“

जब महाराज दरबार म वापस आए तो पाया क तोते का पंजड़ा वहाँ नह है। उ ह ने


दरबा रय से उसके बारे म पूछा तो जवाब िमला–”बाहर है।“

महाराज ने पूछा” य बाहर है, जाइए, उसे लेकर आइए।“ उ ह ने एक दरबारी को


इशारा कया। दरबारी उठा बाहर चला गया। मगर लौटा नह ।

एक के बाद एक दरबारी भेजे गए मगर उनम से कोई वापस नह आया। राजा तोते के
िलए बेचैन थे। अ ततः उ ह ने गोनू झा से कहा– ‘‘ या बात है? या तोता मर गया?’’

गोनू झा ने कहा–‘‘महाराज! म यह कै से कह सकता ?ँ छोटी मुँह बड़ी बात होगी।’’

”चिलए पंिडत जी! हम वयं देखते ह,“ िमिथला नरे श ने गोनू झा से कहा।

गोनू झा त परता से उठे और महाराज के साथ चल पड़े। दरबार से बाहर िनकलने पर


महाराज ने दाएँ-बाएँ िसर घुमाकर तोते के पंजड़े क खोज क तो उ ह पास म ही रखा
गया पंजड़ा दख गया।

पंजडे म तोता लुढ़का आ पड़ा था। उसे देखते ही महाराज िवि मत भाव म बोल
पड़े–‘‘अरे , यह तो सचमुच ही मर गया है!’’

गोनू झा ने कहा‘‘जब आप बोल रहे ह महाराज, तो सच ही होगा।’’

महाराज समझ गए क तोते क मौत क खबर दरबारी उनके डर के कारण ही उ ह नह


दे पाए।

उ ह ने दरबार म जाकर शेष रह गए दरबा रय से कहा–”तोते के मरने का मुझे ब त


दुःख है मगर म जानता ँ क इस तोते क मौत का कारण आप म से कोई नह है इसिलए
िबना कसी भय के आप मुझे बताएँ क तोते को या हो गया अचानक क वह मर गया।“
तब एक दरबारी ने डरते-डरते तोते को साँप के काटने क घटना बताई िजसे सुनने के
कु छ देर बाद ही महाराज संहासन से उठ खड़े ए और उस दन दरबार थिगत कर दया
गया और महाराज महल क ओर चले गए।

यह पहला मौका था जब गोनू झा दरबार से िनकल रहे थे तो राजदरबार के सभी


दरबारी उनके आस-पास, या पीछे-पीछे चल रहे थे तथा उनक सराहना कर रहे थे। गोनू
झा क चाल म अलम ती बढ़ गई थी।
वग से वापसी
िमिथला महाराज के दरबार म गोनू झा का स मान दन - दन बढ़ता जा रहा था। उनके
बढ़ते भाव से महाराज के दरबार के अ य दरबारी उनसे ई या करने लगे थे। वे पीठ पीछे
गोनू झा के िव िवष-वमन करते रहते मगर मुँह पर कु छ भी बोलने का साहस नह जुटा
पाते।

महाराज के दरबार म एक हजाम भी था जो गोनू झा से जलता था। उसने धीरे -धीरे गोनू
झा से ई या रखनेवाले दरबा रय से दो ती गाँठ ली और उनका चहेता बन गया। यह
हजाम ब त चालाक और धूत क म का इनसान था। एक दन महाराज ने गोनू झा क
सराहना खुले दरबार म क । दरबारी जल-भुनकर रह गए। हजाम ऐसे ही दन क ती ा
म था। उसने दरबा रय से कहा क य द आप लोग साथ द तो म ऐसी जुगत िभड़ाऊँगा क
इस गोनू झा क सदा के िलए छु ी हो जाएगी। दरबा रय ने हजाम से वादा कर िलया क
वह जैसा कहेगा वे वैसा ही करगे। हजाम खुश होकर उनसे िवदा लेकर अपने घर लौट
गया।

महाराज के िपता क कु छ माह पहले ही मौत हो गई थी। राजमहल के सामने ही उनक


समािध बनाई गई थी। महाराज सुबह म ान आ द से िनवृ होकर पहले तो अपने िपता
क समािध पर जाते वहाँ फू ल चढ़ाते तब राजभवन प च ँ कर राज-काज म लगते। िपता
क मृ यु के बाद से उनका रोज का िनयम यही था।

हजाम इस बात को जानता था। एक दन जब महाराज समािध- थल पु प अ पत करने


प चँ े तो देखा क एक कागज मुड़ा आ समािध पर रखा आ है। उ ह ने उस कागज को
उठाया और खोला तो पाया क वह कागज कु छ और नह –प है। यह प उनको ही
स बोिधत कर िलखा गया है। प का मजमून था क–‘मेरे पु । म जानता ँ तुम मेरे
िवयोग से िथत हो। अब तु ह िथत होने क कोई ज रत नह है य क मुझे वग म
थान िमल गया है। यहाँ मुझे कसी चीज क कोई कमी नह है। कमी तो के वल एक बात
क क मेरे पास कोई एक अ छा पंिडत नह है जो मेरे पूजन-काय स प कराए। अ छा
होता क तुम अपने दरबारी गोनू झा को मेरे पास भेज देते। उसके सीधे वग आने का
तरीका तु ह भेज रहा ।ँ अपने रा य के पूव मशान के टीले पर तुम गोनू झा को बैठाकर
उस पर दो खेत के पुआल डलवाकर आग लगवा दो। पिव ा अि क लौ और धुएँ के साथ
त काल उसक आ मा को सीधे वग म वेश िमल जाएगा। यह काय तुम यथाशी स प
कराओ! तु हारा िपता।’

प पढ़कर महाराज असमंजस म पड़ गए। ओह, ऐसा कै से हो सकता है? अब तक कभी


सुना नह , न देखा कह । या वग से कोई प आ सकता है–मृ युलोक म? उलझन म पड़े
महाराज दरबार म आए।

उ ह िचि तत देखकर दरबा रय ने पूछा–” या बात है महाराज? आप कु छ िच ता म


ह?“

महाराज ने कहा–‘‘एक सवाल मेरे मन म उमड़-घुमड़ रहा है क या वग से कोई प


मृ युलोक म आ सकता है?’’

दरबा रय म बैठा हजाम बोला–‘‘ य नह महाराज! वग लोक म देव योिन है िजसके


िलए कु छ भी स भव है।“

गोनू झा से खार खाए दरबा रय ने हजाम को हर तरह का सहयोग देने का वचन दया
था इसिलए उन लोग ने समवेत वर म कहा–”स भव है! स भव है!’’

तब महाराज ने समािध पर प िमलने क घटना दरबार म सुनाई और अपने िपता का


प भी पढ़कर सुनाया। गोनू झा समझ गए क वे बुरी तरह फँ स गए ह इसिलए उ ह ने
खुद ही उठकर कहा–‘‘महाराज, म वगारोहण के िलए तैयार ।ँ मगर मुझे तीन माह का
समय चािहए।’’

महाराज मान गए। तीन माह के बाद गोनू झा पूव मशान के टीले पर प च ँ ।े उन पर
पुआल लादा गया और आग लगा दी गई। आग तीन दन तक सुलगती रही। लोग ने मान
िलया क गोनू झा का वगारोहण हो गया है। दरबारी खुश थे क तु महाराज दुखी।

इस घटना के ठीक तीन माह बाद महाराज के दरबार म गोनू झा ने मु कु राते ए वेश
कया। सभी आ यच कत रह गए। महाराज चैाककर संहासन से उठ खड़े ए क कह वे
प तो नह देख रहे!

ले कन गोनू झा का आना सच था, सपना नह । गोनू झा ने ऊँची आवाज म


कहा–‘‘महाराज क जय हो! वग म आपके िपता कु शल ह और उ ह ने मुझे इस प के
साथ धरती पर भेज दया है।“

महाराज ने प िलया और ऊँची आवाज म पढ़ने लगे ता क दरबारी भी बड़े महाराज के


प का िववरण जान ल। महाराज पढ़ रहे थे–‘पु ा। गोनू झा ने मुझे पूजन-काय के िनयम
िसखला दए ह इसिलए उसे म वापस भेज रहा ।ँ वग म देवगण को दाढ़ी बनाने क
ज रत नह पड़ती इसिलए यहाँ नाई नह ह। मेरी दाढ़ी और मेरे बाल बढ़ गए ह। तुम
अपने दरबार से हजाम को उसी िविध से वग भेजो िजस िविध से गोनू झा को भेजा था।
तु हारा िपता।’
दरबार म स ाटा छा गया। हजाम क हालत खराब थी। वह अपने आसन से उठा और
घरबराते ए महाराज के पास प च ँ कर कहने लगा– ‘‘महाराज! यह झूठ है। आप कृ पा कर
मेरी बात सुिनए। गोनू झा वाला प वग से नह आया था। उसे मने ही िलखा था। मेरी
गलती माफ क िजए। मेरी जान ब श दीिजए।’’

महाराज कं कत िवमूढ़ से थे। तभी गोनू झा ने कहा–”महाराज! यह सही कह रहा है।


मने वह प देखते ही समझ िलया था क मेरे िव ष ं रचा गया है। इसिलए ही मने
तीन माह का समय आप से िलया था और तीन महीन म मने अपने कमरे से मसान के
टीले तक क एक सुरंग खोद ली थी। जब लोग मुझ पर पुआल डाल रहे थे तब म सुरंग से
उतरकर अपने कमरे म चला आया था और तीन माह तक अपने घर म ही रहा।“

महाराज ब त ोिधत ए और कहा–”हजाम क इस दु चे ा के िलए इसे फाँसी पर


लटकाया जाना चािहए।“

तब हजाम ने गोनू झा के पाँव पकड़ िलए और उनके सामने िगड़िगड़ाने लगा। तब गोनू
झा ने महाराज से अनुनय कर उसे ाणदंड से मुि दलाई मगर महाराज ने हजाम को
कारागार म डलवा दया।
धन क सुर ा का कारण
गोनू झा िमिथला-दरबार के िवदूषक बनाए जाने से पहले िवप थे। उ ह कोई पूछता नह
था। जब वे िमिथला नरे श के िति त दरबारी बन गए तो गाँव म ‘गोर लागै छी’ (पाँव
छू ता )ँ कहने वाल क कमी न रही। िववाह के बाद तो नाते- र त क भी बाढ़ आ गई।
कोई उनके ममहर से आता तो कोई बुआ के घर से। घर म आने-जाने वाल क सं या म
लगातार वृि हो रही थी।

एक रात गोनू झा अपने िब तर पर पड़े-पड़े अतीत क बात याद कर रहे थे। िपता के
मरने के बाद कतने बुरे दन देखे थे उ ह ने! उ ह याद आया क िमिथला म एक बार
अकाल पड़ा था और वे अपने अनुज भोनू को लेकर बाजार म मजदूरी करने के इरादे से गए
थे। कह कोई काम नह िमला था और भोनू भूख से िबलिबला रहा था। अ त म उ ह ने
भोनू को एक हलुवाई क दुकान म भेजकर उसे भर पेट भोजन करवाया था और पैसे क
माँग पर दुकानदार को झूठ बोलकर आफत म डाल दया था क भोनू खाने से पहले ही
पैसा दे चुका है। इस घटना को याद करते ए उनका मन भर आया और आँख िगली हो
ग । उफ! कै स-कै से दन कटा? फर भगवान क माया। दन पलटे। भा य बदला। जो लोग
देखकर मुँह फे र लेते थे, आज उ ह देखकर आ ला दत हो उठते ह। जीवन के इस प रवतन
पर गोनू झा वयं िव मय कर रहे थे। कतना कु छ बदल गया है! पहले एक कटोरी दूध के
िलए तरसते थे। आज बथान म दिसय गाय ह। सोने के िलए कभी िचथड़ी सी चटाई थी,
आज मेहमान के िलए भी पलंग है।

अतीत के िच तन से गोनू झा को लगने लगा क आज उनके पास पैसा है इसिलए उ ह


लोग पूछने आते ह। जब वे आ थक िवप ता के िशकार थे तो कोई बासी रोटी भी देने के
िलए तैयार नह था। समय कतना बदल गया! फटी ई धोती क जगह आज चक-चक
रे शमी धोती म वे िनकलते ह। दरवाजे पर गाय-बैल, नौकर-चाकर या नह है उनके पास!
आिखर यह सब तो पैसे के कारण ही–‘बाप बड़ा न भैया, सबसे बड़ा पैया।’ यह सब
पैया का खेल है! चाँदी का चम कार है। इसी िच तन म गोनू झा क रात कट गई। सुबह वे
देर तक सोते रहे। प ी ने जब उ ह जगाया तब दन चढ़ आया था।

जगने पर भी गोनू झा अनमने से दख रहे थे। न दरबार जाने क हड़बड़ी थी, न आम


दन क तरह बात-बात पर पंिडताइन से चुहल करने क शोखी। प ी ने जब पूछा क
तैयार कब ह गे, दन चढ़ आया है, दरबार नह जाना है या, तब ब त ही उदास वर म
गोनू झा ने उ र दया–‘‘नह ! आज कु छ भी करने का जी नह हो रहा है।“ और वे फर से
िब तर पर लेट गए।
पंिडताइन आई। चंतातुर होकर। नेह से भरकर। गोनू झा का ललाट छु आ–यह देखने के
िलए क या गोनू झा को बुखार तो नह है?

गोनू झा ने यार से अपनी प ी का हाथ पकड़ िलया। बोले–‘‘नह , बुखार नह है।’’ फर


उ ह ने पंिडताइन से कहा–‘‘एक बात बताओ, य द मेरे पास यह धन-दौलत और सुख-
सुिवधा नह होती, तब भी या तुम मुझसे इतना ही यार करत ?’’

पंिडताइन अवाक् रह गई। अरे ! यह या बात ले बैठे? कह कसी ने कान तो नह भरे


इनके ? चुगली लगाने वाल क तो कमी नह है न! घर म ही तो कतने ह जलनेवाले! मन
म इस तरह क उठती आशंका को दबाते ए पंिडताइन ने कहा–‘‘आप कै सी बात कर
रहे ह? ज म-ज मांतर का स ब ध है हमारा। आपके मन म यह सवाल य आया क आप
अपनी तुलना धन-दौलत से करने लगे? मेरे िलए सारी दुिनया क दौलत एक ओर और
आपको एक ओर रखकर पूछा जाए क मुझे या चािहए तो म आपका साथ पस द क ँ गी।
अब कभी मुझसे ऐसी बात न किहएगा।“

प ी क बात सुनकर गोनू झा मु कु राए और प ी का हाथ चूम िलया। थोड़ी देर तक


पलक बंद कए लेटे रहे। फर बोले–‘‘जाओ, जरा माँ को भेज दो।’’

प ी चली गई। कमरे म माँ आ । बेटे के अ व थ होने क बात ब ने उ ह बता दी थी।


इसिलए मातृ-सुलभ ेह से भरकर गोनू झा के िसरहाने बैठकर उ ह ने गोनू झा का िसर
सहलाना शु कर दया। गोनू झा ने आँख ब द कए ए ही अपने िसर पर फर रहे माँ के
हाथ को थाम िलया। फर पूछा–‘‘माँ, तुम मुझे इतना यार करती हो, कु छ हो जाता है तो
बेचैन हो जाती हो, आिखर य ?’’

गोनू झा क माँ बोल –‘‘बावरे ! ये भी कोई बताने क बात है? तू मेरी कोख का जाया है।
मने तुझे पय पान कराया है। गोद म खेलकर तू बड़ा आ है। भला मुझे तु हारी िच ता न
होगी तो और कसक होगी?’’

गोनू झा उसी तरह आँख ब द कए थोड़ी देर तक चुपचाप लेटे रहे। फर माँ से
पूछा–‘‘माँ, बुरा न मानो तो एक और बात पूछूँ?’’

‘‘हाँ बेटा, बोल! या बात है। म तेरी कसी भी बात का बुरा नह मानूँगी।’’ माँ ने उ र
दया।

गोनू झा ने संयत वर म पूछा–‘‘माँ, य द मेरे पास यह समृि न होती तब भी या मेरे


िलए तु हारे मन म ऐसा यार उमड़ता?’’

गोनू झा क माँ के मुँह से एक सद आह िनकली। उनका हाथ काँपने लगा–”अरे , आज मेरे


लाल को या हो गया है, जो ऐसी बहक -बहक बात कर रहा है?“ अिन क आशंका से
उनका मन काँप गया और वे फफक पड़ । टप्! आँख से आँसू िनकलकर गोनू झा के ललाट
पर िगर पड़ा।

गोनू झा ने आँख खोल तो पाया क उनक माँ रो रही ह फर भी उ ह ने अपनी


संवेदना पर काबू पाते ए माँ से कहा–‘‘माँ, रो मत, मुझे बता–जब मेरे पास धन नह
होता तब भी या तुम मुझसे इतना ही यार करत ? मेरा मन यह जानने के िलए बेचैन हो
रहा है क दुिनया म जन का मह व है या धन का? य इतनी पधा है? य इतना फरे ब
है? य लोग दूसर क तर से जलते ह? य इतनी आपाधापी मची रहती है? य ,
आिखर य ? तुम मुझे बचपन से अ छी-अ छी बात िसखाती रही हो। जब मेरा मन इन
सवाल से िवचिलत हो रहा है तब तु ह बताओ न माँ क म कससे जाकर पूछूँ? मेरी
ज मदाता भी तु ह हो। ानदाता भी तु ह हो। तु हारे िसवा मेरा गु कोई दूसरा नह
है।’’ गोनू झा भावाितरे क म बोलते गए।

माँ क आँख फर भर आ । अपने पु ा के दय म उनके ित जो मान था, आज पहली


बार इस तरह कट आ था। उ ह लगा क गोनू आज भी ब ा है–उनका यारा, लाडला,
दुलारा ब ा। ेह से गोनू झा के बाल को सहलाते ए वे बोल –‘‘बेटा! मेरे िलए अब धन
का या मोल? तू है तो संसार है। तेरी खुिशयाँ देखते-देखते ही आँख ब द ह , यही अरमान
िलए जीती ।ँ ’’ फर वे गोनू झा के िसर को चूमते ए बोल – ‘‘बेटा! इस तरह क बात
मत सोचा कर। इस तरह क बात से िवरि पैदा होती है। अभी तू जवान है। जीवन के
रं ग म रम। मत सोच मेरे लाल। कु छ मत सोच।’’

गोनू झा थोड़ी देर तक िब तर पर लेटे रहे–पलक मूँद।े माँ के पश का सुख ा करते


रहे। थोड़ी देर बाद उ ह ने कहा–‘‘जाओ माँ, आराम करो। मुझे कु छ नह आ है। हाँ, जरा
भोनू को भेज देना। काम है।“

माँ को लगा, गोनू झा पर उनक बात का असर आ है। वे संतोष से उठ और भोनू झा


को भेज दया।

भोनू झा को भी जानकारी िमल चुक थी क आज भैया का वा य ठीक नह है िजसके


कारण वे दरबार नह गए ह। माँ ने जब उससे बताया क जाओ, भैया बुला रहा है तब
भोनू झा तेजी से गोनू झा के पास आया। गोनू झा क आँख ब द देखकर उसने सोचा–भैया
शायद सो गए ह। ऐसा सोचकर वह गोनू झा के पायताने म जाकर बैठ गया और धीरे -धीरे
उनके पाँव दबाने लगा।

गोनू झा ने िबना आँख खोले भोनू झा से पूछा–‘‘भोनू! मेरे भाई! एक बात बता–य द
तु हारा भैया इतना स प नह होता, तब भी या तू मुझे इतना ही स मान देता?’’
भोनू को लगा क भैया को बँटवारे वाली बात शायद आज भी मन म बैठी ई है। एक
बार वह पलाल के बहकावे म आकर घर का बँटवारा करा िलया था ले कन यह तो भैया
ही थे क समझदारी से पलाल क चाल को मात दे दी थी और घर टू टने से बचा िलया
था। भोनू झा का मन लािन से भर उठा। उसने गोनू झा से कहा–‘‘भैया। पुरानी बात को
भूल जाओ। म आपका भोनू ।ँ वही भोनू िजसे आप अपने क धे पर बैठाकर घुमाते थे। वही
भोनू िजसक छोटी से छोटी इ छा पूरी करने के िलए आप अपनी भी परवाह नह करते
थे। धन-दौलत मेरे िलए ब त माने नह रखते। मेरे िलए तो बस आपका आशीवाद काफ
है।’’

गोनू झा ने कहा–‘‘ठीक है भोनू। जाओ, जो कर रहे थे, करो। मेरा मन घबरा रहा है। मुझे
आराम करने दो। घर म सबसे कह दो–मुझे जगाए नह , य द म सो जाऊँ तो।’’

भोनू चला गया।

गोनू झा िब तर पर लेटे रहे। दन ढला। शाम ई। फर रात। चाँद आसमान म चढ़ने


लगा। एक पहर रात चढ़ने के बाद गोनू झा क प ी कमरे म आई तो यह देखकर चक गई
क गोनू झा का शरीर उसी मु ा म है िजस मु ा म दन म था। मुँह खुला आ है। हाथ
ठा-सा है। टाँगं◌े अकड़ी ई ह। उसका कलेजा धड़कने लगा। दैव! यह या? या ये चले
गए? ऐसा सोचते- सोचते उसके मुँह से िवकल सी चीख िनकल गई– ”माँ...जी। भोनू...?
दैब रे दैब!“ वह दहाड़ मारकर रो पड़ी। उसका िवलाप सुनकर गोनू झा क माँ कमरे म
आ । भोनू झा भी कमरे म आया। भोनू ह भ रह गया और गोनू झा क माँ गोनू झा का
ठा शरीर और ब का िवलाप सुनते बेहोश हो ग ।

गोनू क प ी का िवलाप सुनकर आसपास के लोग जुट आए। गाँव म यह खबर जंगल क
आग क तरह फै ल गई क गोनू झा नह रहे।

आसपास के घर क मिहलाएँ भी जुट आ । कोई गोनू झा क माँ को होश म लाने का


य करने लगी तो कोई गोनू झा क प ी के साथ ही िवलाप करने लगी। सारा माहौल
िवत कर देनेवाला हो गया। गाँव के लोग ने गोनू झा के शरीर को िब तर से उठाकर
आँगन म रखा। उनम कु छ लोग ऐसे भी थे जो पहले भी गोनू झा को मुदा देख चुके थे और
‘शव ान’ करा चुके थे। वे लोग आपस म खुसुर-पुसुरकर रहे थे–बड़ा िविच ा ाणी है यह
मरकर भी जी उठने वाला। या पता, फर जी जाए? जब क कु छ लोग कह रहे थे–गम का
मौसम है–बास आने से पहले लाश उठ जाए तो ठीक रहेगा।... गोनू झा के अि तम या ा
क तैया रयाँ होने लग । मशाल जला िलए गए क उसक रोशनी म मशान या ा हो
सके । घर म शोक का वातावरण था।

गोनू झा क माँ होश म आ गई थ और वे गाँव क वृ मिहला के साथ िवलाप कर


रही थ । उ ह दलासा देनेवािलय का कलेजा बैठा जा रहा था। गोनू झा क प ी छाती
पीट-पीटकर क ण वर म दन कर रही थी। भोनू झा को तो जैसे काठ मार गया था।
अवस अव था म वह गाँव के युवक से िघरा था।

जब गोनू झा के शरीर का ान हो चुका और लोग शरीर को उठाने लगे तब माँ ने


िवलापते ए ही कहा–”अरे भोनू, गोनू क अँगुली म सोने क अँगूठी है और कान म
कनौसी, िनकाल ले! जानेवाला तो चला गया बेटा। अब उसक चीज ही तो उसक
यादगार रहं◌ेगी। इ ह मृितय के सहारे अब बाक जीवन िबताना होगा।“ फर वे जोर
से िवलाप करने लग ।

भोनू झा ने कनौसी और अँगूठी िनकाल ली और वहाँ से हटने ही वाला था क गोनू झा


क प ी ने िवलाप करते ए कहा–”भोनू, उनके जनेऊ म स दूक क चाबी है–बँधी ई।
खोल लेना।“ िवलाप के वर म ही उनका दूसरा आदेश उमड़ा–”रे भोनू, तु हारे भैया के
डाँरा (काला धागा जो िमिथलांचल के लोग कमर म बाँधते ह) म ितजोरी क चाबी बँधी
है– िनकाल लेना रे । दैब रे दैब...’’ और फर उसके िवलाप का वर पहले क लय म आ
गया। भोनू झा ने जनेऊ और डाँरा से चािबयाँ खोल ल ।

तभी एक चम कार-सा आ। गोनू झा के मुँह से िनकला–”हे राम! दीनब धु! दीनदयाल।


जै माँ!“ और वे उठकर बैठ गए। आँगन म मशाल के नीम उजाले म लोग ने देखा, गोनू झा
उठकर बैठ गए और पास म पड़े कपड़े से अपना तन ढँक िलया और अनजान बनते ए
बोले–‘‘ या बात है? म आँगन म इस हाल म य पड़ा ?ँ यहाँ इतनी भीड़ य है?“
कसी को कोई जवाब देते नह बना। सब अपने-अपने घर क ओर चल पड़े। आपस म इस
‘चम कार’ के बारे म बितयाते ए।

गोनू झा को जीिवत देख उनक माँ और प ी का िवलाप थम-सा गया। वे ई र के ित


ानत हो ग क गोनू झा का जीवन वापस हो गया है। उनक साँस लौट आई ह।

गोनू झा स िच वहाँ से उठे । भोनू झा ने उ ह सहारा दया तो भोनू के कं धे को यार


से थपथपाते ए उ ह ने कहा–‘‘मेरे भाई। िनि त रहो। तु हारे भैया को कु छ नह
होनेवाला। जाओ भाभी से बोलो मेरे िलए भोजन परोस दे। म मुँह धोकर अभी आता ।ँ ’’

गोनू झा क प ी ने खाना गम कया और यार से परोसा। जब गोनू झा खाने बैठे तो


उनक माँ हाथ म बेना (पंखा) लेकर उनके पास बैठ । उनक प ी और भाई भोनू भी उनके
पास आकर बैठे। गोनू झा ने खाते ए ही कहा–”आज एक बात और समझ म आ गई क
जन का मह व कम है और धन का मह व यादा। आदमी गुजर जाता है ले कन धन बना
रहता है इसिलए धन क सुर ा ज री लगती है।“ यह सुनकर तीन सकते म आ गए और
गोनू झा चैन से भोजन करने लगे।
साधु बन गए गोनू झा
िमिथलांचल म साधु-स त म लोग को काफ भरोसा है। गोनू झा के जमाने म भी था।
गोनू झा के िपता स संग ेमी थे। साधु-स त क सेवा करना अपना धम समझते थे।
तांि क - योितिषय पर खच करने से भी वे पीछे नह रहते। गोनू झा ने उ ह कई बार
समझाया मगर उनके िपता पर कोई असर नह आ। आए दन योितिषय और साधु-
स त का आना उनके घर म जारी रहा।

एक दन गोनू झा ने अपने िपता को साधु-स त क अंध आ था से िनकालने क ठान ली।


उ ह ने घर म घोषणा क क उ ह कु छ काम से बाहर जाना है, दो-तीन माह म वे लौट
आएँगे। माता-िपता के चरण छू कर वे घर से िनकल पड़े।

गाँव से बाहर जाकर गोनू झा ने एक तालाब म ान कया। झोले से गे आ


व िनकालकर धारण कया। नकली दाढ़ी-मूँछ और जटा जैसी संरचना क टोपी लगाई
और फर िसर पर गे आ पगड़ी लगा ली क यह तो लगे क जटाधारी साधु ह मगर जटा
नकली है इसका अ दाजा कसी को नह लगे। दपण म झाँककर देखा तो पूरी तरह स तु
ए क उ ह कोई पहचान नह सकता। फर उ ह ने रही सही कसर ललाट पर च दन के
आलेपन से पूरी क ।

उसी तालाब के पास के एक बरगद के पेड़ के नीचे उ ह ने धूनी रमाई और प ासन


लगाकर यानम त मु ा म आ गए। उ ह मालूम था क देर-सबेर गाँव का कोई न कोई
आदमी इधर से गुजरे गा ही और एक साधु को धूनी रमाये वहाँ बैठा देख, इस बात क
सूचना उनके िपता को अव य देगा। अभी अिधक समय नह गुजरा था क गाँव का एक
कसान उनके पास आया मगर गोनू झा तो यानम त थे–उसक तरफ देखा तक नह ,
कसान थोड़ी देर तक हाथ जोड़े बैठा रहा। मगर जब ‘साधु महाराज’ िहले तक नह तो
वहाँ म था टेककर उठ खड़ा आ। गोनू झा उसे जाता देख मन ही मन खुश ए। उ ह
िव ास था क गाँव म अब यह चचा हो जाएगी क तालाब के कनारे एक िस महा मा
धूनी रमाये बैठे ह।

गोनू झा अपने साथ झोले म पया मेवे और फल लेकर आए थे। इसिलए उ ह भोजन क
परवाह नह थी।

दूसरे दन जब आम साधु क तरह वे भोजन क व था के िलए गाँव म नह गए तब


ामीण को िव ास हो गया क तालाब कनारे बैठा साधु कोई िस पु ष है। इस बात
क खबर गोनू झा के िपता को भी लगी तो उनसे रहा नह गया। वे महा मा के दशन के
िलए तालाब कनारे प च ँ े। अपने िपता को आया देख गोनू झा यानम त हो गए। गोनू झा
के िपता वहाँ काफ देर तक बैठे रहे मगर साधु महाराज क तं ा भंग नह ई। उनके िपता
गाँव लौट आए। गाँव म चचा फै ल गई क गाँव के बाहर एक महा मा तप या म लीन ह–
समािध क अव था म ह। ‘साधु महाराज’ के दशन के िलए ताँता लग गया।

तीसरे दन उस थान पर ामीण क भीड़ जम गई। कु छ उ साही ामीण ने वहाँ


भजन-क तन करना शु कर दया तब जाकर ‘महा मा जी’ ने आँख खोल । ले कन कु छ
बोले नह । सबसे अिधक उ सुकता गोनू झा के िपता को ही थी। वे बढ़े और महा मा जी के
चरण छू िलए और कहा– ‘‘कु छ बताइए महाराज!“

गोनू झा ने प ासन म बैठे-बैठे ही पास पड़ी एक लेट उठाई और उस पर चाॅक से


िलखा–‘‘आप लोग जाएँ। कल आएँ। मेरा मौन त है।’’ सभी लौट गए।

दूसरे दन ामीण आए। कोई फल लेकर तो कोई िमठाई लेकर। सबने साथ लाई चीज
‘साधु महाराज’ के क बल पर ापूवक रख द –धूनी के पास और म था टेककर बैठ गए।
गोनू झा ने लेट पर िलखा–‘आप सब लौट जाएँ। आज के वल एक ि ,’ और उ ह ने
अपने िपता को इशारा से बुलाया और बैठ जाने का संकेत कया। ामीण लौट गए। भला
महाराज जी के आदेश क अवहेलना कै से होती?

गोनू झा के िपता ग द थे। उ ह ने फर कहा–”महाराज कु छ बताइए!“

और गोनू झा ने लेट पर उनके अतीत के बारे म ऐसी-ऐसी बात िलख जो गाँव के लोग
कतई नह जानते थे। इसी तरह उनके रोग, उनक कामनाएँ, पु ा और प ी से स ब ध के
बारे म भी लेट पर सटीक एवं िबलकु ल खड़ी बात गोनू झा ने िलख द । गोनू झा उनके बेटे
ही तो थे। उनक सारी स ाइय से अवगत। गोनू झा के िपता ने अब तक ऐसा गुनी
महा मा नह देखा था...वे अिभभूत हो गए और महा मा जी के चरण पकड़ िलए।

‘‘मेरा क याण कर महाराज! मेरे घर पधार।’’ उ ह ने िवनती क ।

महा मा बने गोनू झा ने लेट पर िलखा–‘धैय धारण कर। अव य आऊँगा। एक दन।


अभी आप जाएँ। िव ाम कर।’

गोनू झा के िपता लौट आए। गाँव के लोग ने उ ह अपने घर जाते देखा तो पूछने चले
आए–”महा मा जी ने या कहा? वे बोले या वैसे ही लेट पर िलखकर ही कु छ बताया?’’

गोनू झा के िपता ने महा मा जी क खूब सराहना क । ामीण का ताँता इसके बाद गोनू
झा के धूनी थल पर रोज लगने लगा। रोज कसी न कसी को गोनू झा रोक लेते और
उसके अतीत क सीधी-स ी बात लेट पर िलखकर कु छ ज री सलाह भी उसके साथ
िलख देते। अब तो गाँव म ‘महा मा जी’ क धूम मच गई। इस तरह

एक महीना बीत गया। गोनू झा अब इस ‘नाटक’ से ऊब गए थे। उ ह ने उस दन लेट


पर िलखा–‘कल म मौन त खोलूँगा। आज मुझे एकांत चािहए।’

ामीण आए। माथा टेका और वापस लौट गए। इसके बाद वाले दन गाँव के लोग सुबह
से ही वहाँ प च
ँ ने लगे। सबसे पहले आने वाले म गोनू झा के िपता थे। गोनू झा ने मौन त
खोला, सबको उपदेश दया और कहा क अब वे थान करगे। ामीण इस बात का आ ह
कर रहे थे क वे एक बार गाँव अव य चल। गोनू झा के िपता ने उ ह याद दलाया,
‘‘महा मा जी! आपने मुझे आ त कया था क एक दन मेरे घर अव य आएँग।े ’’

गोनू झा ने अपनी िविश मु ा म कहा–‘‘अव य! मुझे मरण है!’’

फर गोनू झा ामीण के साथ अपने िपता के दरवाजे पर प च


ँ ।े उ ह ने कहा–”अब
िवल ब नह कर। मुझे थान करना है।“

ामीण अपने-अपने घर से चढ़ावा लेकर आए और आ हपूवक गोनू झा ‘महाराज जी’


को भट कया। उनके िपता ने भी एक र जिङत वण मु का उ ह भट क और आ हपूवक
दि णा के प म एक हजार एक पए दान कए। ामीण ने भी यथाशि ‘भि ’
दखलाई। महा मा बने गोनू झा ने वह धनरािश अपने झोले म डाली और ‘अलख िनरं जन’
का घोष करते ए उठ खड़े ए। ामीण उनके पीछे पीछे गाँव के बाहर तक आए। फर
गोनू झा ने ककर सबसे कहा–‘‘आप सब अपने घरां◌े को लौट जाएँ। मोह म नह पड़।
अपने क त का पालन कर,“ फर ‘अलख िनरं जन का घोष करते ए खड़ाऊँ खटखटाते
ए आगे बढ़ गए।

इसके दस दन के बाद गोनू झा अपने समा य प म घर लौटे। उ ह घर आया देख उनके


सरल िच िपता ब त खुश ए। उ ह ने गाँव म एक िस -पु ष के आने क घटना का पूरा
वृता त उ ह िव तारपूवक बताया।

गोनू झा मु कु राते ए अपने िपता क बात सुनते रहे। जब उनके िपता चुप ए तब गोनू
झा ने अपनी जेब से ढेर सारे पए िनकालकर अपने िपता को दए। उनके िपता इतने सारे
पए देखकर च कत हो गए। फर गोनू झा ने जेब से अँगूठी िनकाली और अपने िपता को दे
दी। अँगूठी देखते ही उनके िपता चक पड़े य क यही अँगूठी उ ह ने महा मा जी को
ापूवक भट क थी।

िबना कु छ बोले गोनू झा ने अपने झोले से जटा-जूट, दाढ़ी-मँ◌ूछ और गे आ


व िनकालकर िपता के सामने रख दया।
उनके िपता समझ गए क महा मा जी का रह य या था। वे बोले– ”बेटा गोनू! तुमने
मेरी आँख खोल द । म अब कभी भी महा मा के च र म नह पडू ग
ं ा।’’
दाढ़ी के बाल से मुि का माग
िमिथला नरे श के दरबार म एक तहसलीदार नया-नया बहाल आ था। लोग से जबरन
मालगुजारी वसूलकर वह महाराज क नजर म अपना मह व बढ़ाना चाहता था। लोग
उसके रवैये से दुःखी थे।

तहसलीदार गोनू झा के गाँव म प च


ँ ा और वहाँ भी अपने तबे के रोब म लोग से
अ याचार पूवक मालगुजारी क वसूली करने लगा। दबाव बनाने के िलए उसने कई
बकायेदार के फसल कटवा िलए।

बात गोनू झा तक प च
ँ ी। गोनू झा कु छ गाँव वाल के साथ वहाँ प च
ँ े जहाँ तहसीलदार
ठहरा आ था।

गोनू झा और उनके साथ आए ामीण ने तहसीलदार को नम कार कया। उस समय


तहसीलदार तहमद लपेटे कु स पर बैठा, धूप सक रहा था। उसने गाँव वाल को आया देख
अपनी दाढ़ी सहलाते ए कहा–‘‘इस समय आप लोग यहाँ य आए ह?’’

गोनू झा ने बात क कमान सँभाली और कहा–‘‘कल दरबार म महाराज आपक शंसा


कर रहे थे क आप जब से आए ह–राजकोष म तेजी से वृि ई है इसिलए म आपसे
िमलने चला आया ।ँ ये गाँव वाले भी आपके दशन के िलए उपि थत ए ह।’’ गोनू झा क
बात सुनकर तहसीलदार क अकड़ बढ़ गई। तभी गोनू झा को कु स के पास एक बाल दख
गया। उ ह ने उस बाल को चुटक से पकड़कर उठा िलया। उसे माथे से लगाया। फर उस
बाल को चूमा और अपनी दोन आँख से सटाया फर धोती के खूँटे म बाँध िलया। गाँव
वाले अचरज म डू ब गए क पंिडत जी को यह या सूझी क इस जानवर से बदतर आदमी
के बाल को इतना स मान दशाते ए सहेज रहे ह?

गाँव वाल ने पूछा–‘‘पंिडत जी! बाल आप य सहेज रहे ह?

गोनू झा ने कहा–‘‘मेरे तो भा य ही जग गए। मने सुबह-सुबह सपना देखा क मुझे


भिव यवाणी ई है क जाओ। तहसीलदार साहब के दरबार म वहाँ से उनक दाढ़ी का
एक बाल कसी तरह ा करो। य द तुम ऐसा करने म सफल रहे तो तु ह कसी चीज क
कमी नह रहेगी। तहसीलदार का बाल िजस कसी के भी पास होगा उसके भा य चमक
उठगे और दीन-दशा से मुि का माग िमल जाएगा।’’

तहसीलदार यह सब सुनकर फू ले नह समाया। कु छ ामीण बढे़ और तहसीलदार के पाँव


छू िलए। ब त ा और िवनय के साथ उससे एक दाढ़ी का बाल माँगा। तहसीलदार ने
अपनी दाढ़ी से एक बाल न चकर उ ह थमा दया।

गोनू झा ामीण के साथ वापस आकर अपने रोजमर के काम म लग गए। उनके चेहरे
पर रह यमयी मु कान उभर आ थी।

थोड़ी ही देर म पूरे गाँव म तहसीलदार क चम कारी दाढ़ी क चचा होने लगी। पूरा
गाँव तहसीलदार के आवास पर उमड़ पड़ा। पहले तो तहसीलदार ने कु छ लोग को अपनी
दाढ़ी से बाल ख च ख चकर दया मगर माँगने वाल का सैलाब उमड़ता ही जा रहा था।

गोनू झा ने तहसीलदार को सबक िसखाने का िबना कु छ कहे जो नु खा आजमाया उसका


अि तम नजारा यह था क तहसीलदार भागा जा रहा था और उसक मुि दाियनी दाढ़ी
का एक बाल पाने के िलए ामीण उसके पीछे दौड़ रहे थे। तहसीलदार के पास जो भी
प चँ ता, उसक एक दाढ़ी न च लेता...। कसी तरह तहसीलदार गाँव से बाहर िनकल
गया। उसने अपने सामान चपरािसय को भेजकर मँगा िलए और फर कभी गोनू झा के
गाँव म मालगुजारी वसूल करने जाने क उसे िह मत नह ई।
उपदेशी को सबक
गोनू झा एक दन िमिथला बाजार म चहल-कदमी कर रहे थे। वहाँ एक सेठ एक भारी
ब सा िलए बैठा था और बार-बार मजदूर को बुलाता और उनसे कु छ बात करता और
मजदूर गदन िहलाते ए या हाथ को इनकार क मु ा म िहलाते ए वहाँ से चले जाते।

काफ देर तक बाजार चैक पर यह नजारा देखने के बाद गोनू झा ने सोचा–चलो, चल के


देख क माजरा या है? वैसे वे इतना समझ चुके थे क सेठ वह ब सा उठवाकर कह ले
जाना चाहता है मगर मजदूर कम मेहनताना के कारण इनकार करके वहाँ से चले जा रहे
ह।

गोनू झा सेठ के पास प च


ँ े और सेठ से पूछा–‘‘ या बात है सेठ जी, आप ब त देर से यहाँ
परे शान हाल बैठे ह?’’

सेठ ने कहा–‘‘हाँ, भाई! मुझे एक मजदूर चािहए जो यह ब सा उठा- कर यहाँ से तीन


कोस क दूरी पर जो गाँव है, वहाँ प च
ँ ा दे।’’

गोनू झा ने कहा–‘‘म भी यहाँ काम क तलाश म आया –ँ चिलए, म ही प च


ँ ा दू!ँ
बोिलए मजूरी या दगे?’’

सेठ मु कु राया, बोला–‘‘मेरे पास देने के िलए तीन अनमोल उपदेश ह जो म हर एक कोस
पर तु ह एक-एक कर दूग ँ ा!’’

गोनू झा ने कहा–‘‘यानी पैसा- पया कु छ नह ? खाना-खुराक भी नह ? िसफ उपदेश?“

सेठ ने कहा–‘‘तीन अनमोल उपदेश, िजससे तु हारा जीवन बदल जाएगा।’’

गोनू झा ने मजदूर क तरह ही हाव-भाव बनाते ए कहा–‘‘सो तो ठीक है, मगर उपदेश
हर आधा कोस पर दीिजए!’’

सेठ ने कहा–”ठीक है मगर तीसरा और अि तम उपदेश सुनने के बाद तु ह तीन कोस


चलकर मुझे उस गाँव तक प च
ँ ाने का वादा करना होगा!“

गोनू झा ने वादा कर िलया। गोनू झा मन ही मन सोच रहे थे क उपदेश लेना बुरा नह


है। हो सकता है क कोई काम क बात सुनने को िमल जाए और य द सेठ ने ठगने क
कोिशश क तो उसे सबक िसखाकर ही लौटूँगा...।
जब गोनू झा ब सा उठाने के िलए झुके तो सेठ ने कहा–‘‘अहा! जरा सावधानी से! इसम
बेहद नाजुक चीज ह!’’

गोनू झा ने सावधानीपूवक िसर पर ब सा उठा िलया। आधा कोस चले तो सेठ से


कहा–‘‘सेठ जी, पहला उपदेश दे दीिजए।’’

‘‘ऐसे आदमी पर भरोसा न करना जो कहे क के वल अपना पेट भरने से अ छा है भूखा


रह जाना।’’ सेठ ने उपदेश दया।

गोनू झा को सेठ क बात पस द आई।

जब गोनू झा दूसरे आधे कोस म वेश कर गए तब दूसरा उपदेश सुनने क बेचैनी होने
लगी। उ ह ने सेठ से दूसरा उपदेश देने को कहा।

सेठ ने दूसरा उपदेश सुनाया–‘‘ऐसा आदमी िव सनीय नह जो कहे, घोड़े पर सवार


होने से अ छा है पैदल चलना!’’

गोनू झा यह सुनकर शा त रह गए। बात ठीक भी थी क जब घोड़ा हो तो कोई पैदल


य चले?

तीसरे अधकोसी म वेश के बाद गोनू झा ने सेठ से कई बार कहा क उपदेश सुनाए मगर
सेठ टालता गया। जब ग त क दूरी महज दो फलाग बची तो गोनू झा क गए और
बोले–‘‘अब तीसरा और अि तम उपदेश दे दीिजए सेठ जी वरना अब एक कदम आगे नह
बढ़ाऊँगा! य द आप यह सोच रहे ह क उपेदश सुनने के बाद म यह ब सा आपके थान
तक नह प चाऊँगा तो यह बात मन से िनकाल दीिजए। म ा ण ँ और झूठा वादा नह
करता ।ँ ’’

िववश होकर सेठ ने तीसरा उपदेश सुनाया–‘‘उस आदमी पर भरोसा न करना जो कहे
क संसार म तुमसे भी बड़ा कोई मूख होगा!’’

गोनू झा को बात समझ म आ गई क सेठ उससे मु त म ब सा ढु लवा कर उ ह संसार का


सबसे बड़ा मूख भी बता रहा है। मगर वे चुपचाप चलते रहे।

जब सेठ का घर आ गया तब उसने गोनू झा से कहा–‘‘ब सा यहाँ रख दो!’’

सेठ क बात पूरी भी नह ई थी क गोनू झा ने ब सा िसर से ही धरती पर पटक दया


‘धड़ाम–चनन्–चनाक–छन!’ क आवाज ब सा िगरते ही पैदा ई।

सेठ चीखा‘‘अरे मने तु ह सावधानी बरतने को कहा था!’’


गोनू झा ने कहा–‘‘सेठ जी! भूिलए मत! आपने मुझे सावधानी से ब सा उठाने के िलए
कहा था–रखने के िलए नह ।’’

सेठ वह िसर पकड़कर बैठ गया य क ब से म काँच से बनी चीज रखी थ और गोनू
झा अपने ह ठ पर िवजयी मु कान िलए वहाँ से लौट आए।
माघ अमाव या पर ढेले का टोटका
गोनू झा के गाँव म एक बार चोर का एक िगरोह स य हो गया। गोनू झा के घर से भी
कु छ सामान क चोरी हो गई। गोनू झा ने उस दन ही संक प ले िलया क जब तक वे
चोर को सबक न िसखा द तब तक चैन क साँस नह लगे।

माघ का महीना! कड़ाके क ठं ड! शाम होते-होते गाँव म धुँध सा छा जाता और सुबह


सूय दय के घंट बाद भी घना कोहरा पूरे गाँव पर छाया रहता। लोग शाम होते ही या तो
घूरे को घेरकर आग तापने के िलए बैठ जाते या फर अपनी रजाइय म दुबक जाते। गाँव
क सड़क ायः शाम ढलने के बाद िनजन सी हो जात । चोर को माघ का महीना अपने
िलए क र माई महीना लगने लगा था। रोज गाँव के कसी न कसी घर म चोरी होती।
रोज चोर क का र तानी का िशकार ए घर म कोहराम मचता और जब आवाज गोनू
झा तक प च ँ ती तो उनका संक प और –ढ़ होता जाता और वे िवचार-मंथन करने बैठ
जाते क या कर क चोर को काबू म िलया जा सके ।

गोनू झा ने गाँव म ई चो रय के बारे म जानका रयाँ जुटा तो इस त य का उ ाटन


आ क अिधकांश चो रयाँ रात नौ बजे से यारह बजे के बीच या सुबह ढाई बजे से चार
बजे के बीच ई हं◌ै। गोनू झा ने इसका अथ िनकाला क जाड़े क रात म आम तौर पर
गाँव के घर म लोग दरवाजे पर अलाव जलाकर सप रवार आग तापने के िलए बैठते ह या
फर घर के कसी कमरे म बोरसी म आग रखकर सप रवार हाथ सकने बैठते ह। चोर या
तो इस समय अपने हाथ क सफाई दखाते ह या फर सुबह म जब िब तर गम हो जाता है
तब रजाइय म िलपटे लोग को गहरी न द आ चुक होती है, चोर उस समय उनक न द
का लाभ उठाकर अपने काम को अंजाम देते ह।

अब, जब यह रह य गोनू झा ने खोज िलया तब ायः वे शाम को दरबार से लौटते समय


गाँव के कसी थान पर लगे अलाव के पास हाथ सकने के िलए बैठ जाते। धीरे -धीरे चोर
को पता चल गया क गोनू झा शाम म घर नह लौटते। कई बार तो रात के दस- यारह,
यहाँ तक क बारह बजे तक उनका पता नह रहता। फर या था! चोर ने फर से गोनू
झा के घर को िनशाना बना िलया और वहाँ से बड़ा हाथ मारने क तैयारी म जुट गए।

अमावस क रात थी। गोनू झा गाँव के मुिखया के दरवाजे से आग तापकर अलम ती म


गुनगुनाते ए अपने घर आए। दरवाजे पर उ ह ने कु छ अटपटी आवाज सुनी तो उ ह ने
आवाज क दशा म देखना शु कया। उनके घर के िपछवाडे़ बगीचा था िजसम आम,
लीची, कटहल, अम द आ द अनेक फलदार वृ लगे ए थे। और सफाई नह कराए जाने
के कारण घनी झािङयाँ फै ली थ । आहट उ ह घनी झािङय क ओर से आ रही थी।
गोनू झा ने एक बड़ा सा रोड़ा उठाकर आवाज क दशा म िनशाना साधकर फका तो
झािङय म सरसराहट ई। गोनू झा को समझते देर न लगी क झािङय म कोई छु पा आ
है। फर या था! उ ह ने ऊँची आवाज म अपनी प ी को आवाज दी। जब पंिडताइन घर
से बाहर िनकली तब गोनू झा ने कहा‘‘पंिडताइन! देख, इधर-उधर ब त ढेला होगा। एक
सौ आठ ढेला चुन के लाओ। आज माघ अमाव या क रात है। आज क म य राि तक घर
के दि ण दशा म एक सौ आठ ढेले फके जाएँ तो घर के लोग पर य द कसी ह का
दु भाव पड़ने वाला हो तो वतः दूर हो जाता है। जाओ, देर न करो। थोड़ी ही देर म रात
का दूसरा पहर गुजर जानेवाला है।’’

पंिडताइन वहाँ से बुदबुदाती ई गई। क ी न द से जगी थी सो खीज गई थी। पंिडताइन


जब एक ढेला लेकर आई तो गोनू झा ने ढेला अपने हाथ म लेते ए कहा‘‘अरे भा यवान!
कु ढ़ना बाद म। तु ह इस काम का मह व नह मालूम इसिलए गु सा कर रही हो। जाओ,
िजतनी ज दी हो, अँचरा म ढेला भर-भर के यहाँ रखती जाओ, म खुद िगन-िगनकर ढेला
फे कूँ गा। ढेला फकने के समय मं ा भी पढ़ना होता है। कु छ भी ऐसा मत करना िजससे मुझे
गु सा आए।’’

पंिडताइन झुँझलाती ई गई और अपने आँचल म कु छ रोड़े लेकर आई। गोनू झा के


सामने उन रोड़ को पटकते ए बोली–‘‘लोग का उ बढ़ता है तो दमाग समझदार होता
है और एक ‘ई’ ह क उ बढ़ने के साथ-साथ बे दमाग होते जा रहे ह–सारा ान खूँटा म
टाँग के जोग-ट ग और टोना-टोटका करने म लगे ह। आधी रात होने को आई और ये ह क
खाना-पीना याग के ह-दशा सुधारने के काम म लगे ए ह।’’

गोनू झा ने प ी क झुँझलाहट पर यान नह दया और अंधेरे म िनशाना साध-साधकर


ढेला फकते रहे।

प ी दो-तीन च र ढेला ढोने के बाद हाँफने लगी और बोली–‘‘अब म नह जाती ढेला


चुनने। या बेकार के काम म लगे ए हो! जाओ, हाथ- मुँह धो लो और चल के खाना खा
लो। भला ढेला फकने से कह कसी क ह-दशा सुधरी है!’’

गोनू झा ने डपटते ए कहा, ‘‘शुभ-शुभ बोलो भा यवान! तुम तो के वल ढेला ढोने म थक


रही हो। आिखर म जो कर रहा ँ वह पूरे घर क भलाई के िलए ही तो कर रहा ।ँ ’’

पंिडताइन का गु सा सातव आसमान पर जा प च ँ ा। वह लगभग फँ ◌ुकारते ए


बोली–‘‘म अब ढेला-रोड़ा नह चुनँ◌ूगी। तु ह ह-दशा सुधारनी है तो खुद जाओ और
चुनकर लाओ ढेला-रोड़ा और फकते रहो रात भर घर के दि खन म।’’

गोनू झा भी तेवर म आ गए। एक ढेला हाथ म लेकर िनशाना साधते ए उ ह ने बगीचे


म फका। ढेला इधर कसी को छ प से लगा। झाड़ी थोड़ी िहली और शा त हो गई। गोनू झा
क आँख अब तक अँधेरे म देखने क अ य त हो चुक थ और अपने ल य पर टक थ ।
दूसरा ढेला हाथ म तोलते ए उ ह ने कहा–”जाओ, ढेला लेकर आओ। अब म ा सधने
लगा है। कोई िव मत डालो।’’

पंिडताइन अड़ी ई थी क वह ढेला चुनने के िलए कतई नह जाएगी। नौबत यह आई


क गोनू झा िनशाना साधकर एक ढेला फकते और प ी को कोसने लगते–‘‘हे भगवान!
यह कै सा कलयुग आ गया क प ी अपने पित क बात नह मानती। पित तो िमिथलांचल
क मिहला के िलए परमे र होता था...’’

पंिडताइन गोनू झा के गु से से बेपरवाह अड़ी थी क वह अब ढेला नह चुनेगी। गोनू झा


के यापा से वह और भड़क और मुँह लगा जवाब देने लगी। दोन का तू-तू, म-म धीरे -धीरे
चीख-िच लाहट म बदलने लगा। गोनू झा चीख रहे थे–”जा’–जा।“

पंिडताइन चीखती–‘‘नह जाती। नह लाती।’’

गोनू झा चीखते–‘‘दे।’’

पंिडताइन चीखती–‘‘नह देती।’’

दोन क चीख-िच लाहट से पड़ोिसय क न द खुली। वे यह देखने के िलए क गोनू झा


और उसक प ी य चीख रहे ह–हाथ म लाठी और मशाल िलए अपने घर से िनकल
आए। गोनू झा ने देखा क पास-पड़ोस के लोग उनके घर प च ँ गए ह तब उ ह ने
कहा–”आइए भाइयो। देिखए कलयुग का नजारा। ये मेरी धमप ी ह–पित ता नारी।
इनको मने इधर-उधर से एक सौ आठ ढेला चुनकर लाने को कहा तो चालीस-पचास ढेला
लाने के बाद अपना पित त धम यागकर पित से मुँह लगाने लग और उधर देिखए...“
उ ह ने बगीचे क ओर इशारा करते ए कहा–”वहाँ वह भाई साहब ह जो चालीस-पचास
ढेला खाने के बाद भी एक श द नह बोले।“

बगीचे म छु पा चोर अब समझ गया था क गोनू झा ढेला उसी को िनशाना साधकर मार
रहे थे। वह वहाँ से भागने क कोिशश करने के िलए उठा ले कन मशाल और लाठी से लैस
गोनू के पड़ोिसय के आगे उसक एक न चली। अ ततः लोग ने उसे दबोच िलया। गोनू झा
उसके पास आए और उसका चेहरा देखते ए कहने लगे, अरे ! भाई। ढेल से चोट ज र
लगी होगी। अब जाओ हवालात म। ये लोग तु हारी मरहम प ी का इ तजाम कर दगे।’’
चोर को हवालात भेजने के बाद गोनू झा ने अपनी प ी का हाथ पकड़ा और बोले, ‘‘ढेला
ढोने से हाथ दुख रहा होगा चल दबा दू।ँ ’’

पंिडताइन जो क इस तरह घटना म म आए नाटक य प रवतन से घबरा गई थी,


बोली–”न पंिडत जी। हाथ नह दुख रहा। म असल म समझी नह थी क तुम या कर रहे
हो इसिलए गु सा आ गया।’’

गोनू झा ने हँसते ए प ी को अपनी बाँह म भर िलया। बोले–”देर से माघ के पाला म


कठु आती रही हो–चलो, अब गरमा देता ।ँ ’’

और उनक प ी उनसे िछटकते ए बोली–‘‘धत्! दरवाजे पर इस तरह का धर-पकड़ कर


रहे हो–कोई देख लेगा...तब?’’

गोनू झा ने हँसते ए पंिडताइन को अपने से सटा िलया और उसका कं धा थपथपाते ए


घर क ओर जाते ए बोले–‘‘चलो, बाहर क हदशा तो सुधरी–अब भीतर क ह दशा
सुधार।“

घर म वेश करने के बाद गोनू झा ने दरवाजा ब द कया तब पंिडताइन क आवाज


आई–‘‘हाय, इतने िनदयी न बनो!’’
खेत क संचाई
शाितर चोर को हवालात क सैर करवाने के कारण गोनू झा पूरे िमिथलांचल के चोर क
आँख क कर करी बन गए। िमिथला म ठग और चोर गोनू झा से बदला लेने क ताक म
रहने लगे। ठग और चोर क नाक म नके ल डालने के कारण िमिथला नरे श क –ि म
गोनू झा का स मान और बढ़ गया।

लंगड़ू उ ताद के िगरोह के कु छ लोग कारावास से सजा काटकर बाहर आए। कारावास से
छू टने से पहले उ ह ने लंगडू उ ताद के सामने शपथ ली क जब तक गोनू झा से बदला नह
ले लगे तब तक चैन से नह बैठगे।

गोनू झा इस ि थित का अनुमान उस दन ही लगा चुके थे िजस दन उनके दरवाजे पर


लंगड़ू उ ताद का िगरोह िगर त म आया था इसिलए उ ह ने कोतवाल को कु छ आव यक
िनदश दए थे।

कोतवाल गोनू झा का अहसानमंद था य क चोर िगरोह क िगर तारी के बाद गोनू झा


क अनुशंसा पर महाराज ने उसक पगार बढ़ा दी थी। एक तरह से पूरी िमिथला से
अपरािधय का सफाया हो चुका था िजसके कारण कोतवाल भी िनि त था। रिसक
वृि का कोतवाल मौज-म ती म डू बा रहने लगा।

उन दन िमिथला म भाँग और ताड़ी का नशा चलन म था ले कन रिसक कोतवाल


अपने िलए पि म बंगाल से म दरा मँगाया करता था। उसके कु छ आसामी उसके िलए
खास मनोरं जन क व था करते थे िजसम पीना-िपलाना तो होता ही था–रास-रं ग के
भी अवसर थे। मखाना और मछली के ापारी कोतवाल को स रखने के िलए वह सब
व था करते िजसक ललक एक रिसक ि को रहती है।

कोतवाल अपने आवास के बाहरी कमरे म बैठा था। उसके हाथ म म दरा थी। सामने
थाल म भूनी ई मछिलयाँ रखी थ । एक मांसल शरीर क बाला ठु मका लगा-लगाकर कु छ
गा रही थी।

तभी कसी ने ार पर द तक दी। कोतवाल ने बुरा-सा मुँह बनाया और झ लाते ए


उठा। उसने नतक को इशारा कया। नतक पद क ओट म चली गई। कोतवाल क से
बाहर आया। ार पर उसका मु य मुखबीर खड़ा था। उसने कोतवाल को फु सफु साते ए
कु छ कहा और वहाँ से वापस चला गया।
कोतवाल वापस अपने कमरे म आया। उसने नतक क ओर हसरत-भरी िनगाह से
देखा–उफ! यह उफनाता यौवन...वतुल मांसल उरोज...मदभरे ह ठ...उसने नतक का प-
यौवन अपनी आँख म बसा लेने का यास कया। थोड़ी देर तक उस पसी को िनहारने के
बाद कोतवाल ने कहा– ”मुझे अभी िनकलना पड़ेगा ि ये! अभी, और इसी समय...“

नतक ने आँख क भंिगमा बदली, मानो पूछ रही हो–ऐसी भी या ज दी है? ले कन


कोतवाल ने िसर पर पगड़ी डाली और नतक को कु छ मु ाएँ थमाते ए कहा–”ज दी ही
िमलगे...इस यासी शाम क कसम! अभी तु ह जाना ही पड़ेगा।“ कहकर कोतवाल कमरे
से बाहर िनकल गया।

नतक भी मु ाएँ अपने बटु ए म डालते ए–ठु मकती ई कमरे से िनकल गयी।

कोतवाल तेज गित से कह जाने लगा। उसक मुखमु ा ग भीर थी।

गोनू झा अपने दरवाजे पर टहल रहे थे। शाम ढल चुक थी ले कन ह का उजाला फै ला


आ था। तभी गोनू झा को घोड़े क टाप क आवाज सुनाई पड़ी। उ ह ने मन ही मन
सोचा क इस समय भड़ौरा जैसे गाँव से कौन घुड़सवार गुजर सकता है?

उन दन जम दार, राजा-महाराजा या राजदरबार का कोई ऊँचा ओहदेदार ही घोड़े क


सवारी करता था। नगर कोतवाल, सेनापित और रं ग ट मुख को रा य क ओर से घोड़े
िमले ए थे िजनका उपयोग वे िवशेष प रि थितय म करते थे।

गोनू झा कु छ सोच पाते, तभी दूर से आते घुड़सवार पर उनक नजर पड़ गई। शाम ढल
चुकने के कारण नीम-अँधेरे म घुड़सवार क आकृ ित तो समझ म आ रही थी क तु वे उसे
पहचान नह पा रहे थे। उ सुकता बनी ई थी क घुड़सवार कौन है–इसिलए वे उधर ही
देखते रहे। थोड़ी ही देर म घुड़सवार उनके पास ही आकर क गया। वह कोई और नह
नगर कोतवाल था। गोनू झा का अिभवादन करने के बाद कोतवाल ने लंगडू उ ताद के
िगरोह के कु छ चोर के कारावास से मु होने क खबर दी।

गोनू झा ने कोतवाल से कहा–”तीन साल तक तुमने खूब मौज-म ती कर ली, अब क


के ित सतक और त पर हो जाओ। आगे तुम जानते हो क तु ह या करना है। कोतवाल
वहाँ से चला गया। गोनू झा अपने घर क ओर चल दए।

इस घटना के कई दन बीत गए। फर महीने और साल भी बीता। िमिथलांचल म अमन-


चैन रहा। कह कोई चोरी क घटना नह घ टत ई। एक शाम गोनू झा दरबार से वापस
आ रहे थे क अचानक उनक नजर चार-पाँच लोग पर पड़ी। वे सभी ह े-क े थे–घुटने के
ऊपर धोती समेटकर बाँधे ए और नंगे बदन। उनके नंगे बदन पर अजीब-सी चमक थी,
जैसे तेल चुपड़ा आ हो!
गोनू झा इस तरह क अ वाभािवक बात को नजरअ दाज नह करते थे। उनका दमाग
तुर त स य हो गया। वे एक पेड़ क ओट म खड़े हो गए और उन लोग पर नजर रखने
लगे।

वे चार गोनू झा के घर के आस-पास ही चहल-कदमी करते रहे फर उनम से तीन उनके


बगान क ओर चले गए। एक आदमी उनके घर के आस-पास बना रहा।

गोनू झा को इन चार का वहार ब त असामा य लगा। अ ततः कु छ सोचकर गोनू झा


सामा य चाल से चलते ए अपने घर प च ँ गए। थोड़ी देर बाद हाथ म मशाल िलए वे
बाहर िनकले और मशाल क रोशनी म घर के दरवाजे से लेकर घर तक आने क राह तक
वह झुक-झुककर कु छ तलाशते रहे। थोड़ी-थोड़ी देर पर वे कमर सीधी करने के िलए खड़े
होते और फर कु छ खोजने लगते।

थोड़ी देर के बाद एक ि उनके पास आया और पूछने लगा, ‘‘ या खोज रहे ह पंिडत
जी?’’

‘‘अरे , या बताएं भाई! आज ही महाराज ने मुझे सौ वण-मु ाएँ उपहार व प दान


क थ । उनम से पाँच वण-मु ाएँ कह िगर ग । मेरी प ी इससे इतनी कु िपत है क या
क !ँ कहती है, जब तक पाँच वण- मु ाएँ िमल न जाएँ तब तक मुँह मत दखाना।’’

वण-मु ा क बात सुनकर वह ि उ सुक आ और गोनू झा के साथ झुककर वण-


मु ाएँ खोजने म उनक मदद करने लगा।

अचानक एक थान पर गोनू झा ज दी से लपके , झुककर एक मु ा जमीन से उठाई और


बोले–‘‘चलो भाई! एक तो िमला।’’

उस ि ने देखा, गोनू झा क दो अँगुिलय के बीच एक वण-मु ा चमचमा रही थी।


इसी तरह गोनू झा इधर-उधर मशाल िलए मु ाएँ तलाशते रहे और एक-एक कर पाँच
वण-मु ाएँ उ ह अपने घर के आस-पास ही िमल ग । उ ह ने राहत क साँस लेते ए उस
आदमी से कहा–‘‘अरे भाई! तु हारा आना ब त शुभ रहा। मेरी पाँच वण-मु ाएँ िमल
ग । अब जाकर अपनी प ी के सामने इ ह पटक दूग ँ ा–और क ग
ँ ा–लो, िगन लो, पूरी सौ
वण-मु ाएँ। जाओ भाई, तुम भी अपनी राह लो।’’ इतना कहकर वे अपने घर क ओर चल
दए।

वह ि गोनू झा के जाने के बाद उनके बगान म घुस गया जहाँ उसके चार साथी
इ तजार कर रहे थे। गोनू झा के हाथ म चमचमाते िस े उसने देखे थे और उसे िव ास हो
गया था क गोनू झा के घर म अभी सौ सोने के िस े ह। चार थोड़ी देर तक गुपचुप
मं ाणा करते रहे। फर उ ह ने देखा क गोनू झा कह जा रहे ह–शायद बाजार। घंटे भर
बाद गोनू झा लौटे।

वे चार कोई और नह , साल भर पहले कारावास से मु ए लंगड़ू उ ताद के िगरोह के


सद य थे। गोनू झा के घर चोरी करके उनसे बदला लेने का संक प पूरा करने आए थे। चूं क
चोर पहले भी गोनू झा से ग ा खा चुके थे इसिलए इस बार वे फूँ क-फूँ ककर कदम रखना
चाहते थे। उनके बीच फु सफु साहट म ही बात ई। कोई मानने को तैयार नह था क
िजसके पास वण-मु ाएँ ह गी, वह उसक चचा सरे आम कसी अजनबी के साथ करता
फरे गा।

जब गोनू झा बाजार से लौटकर आए तब वे चार चोर गोनू झा क िखड़क के पास प च ँ े


और भीतर या हो रहा है, उसका आहट से लेने लगे। भीतर गोनू झा अपनी प ी से कह
रहे थे–‘‘अरे भा यवान, समझा करो। ये वण-मु ाएँ घर म रखना ठीक नह है। मुझ पर
िव ास करो–म इ ह ऐसी जगह रख दूग ँ ा जहाँ से चोर तो या, चोर का बाप भी इ ह नह
चुरा सकता। जमाना खराब है। कब कसक नीयत बदल जाए, कौन जानता है–लाओ,
थैली मुझे दे दो, म इ ह कु एँ म डाल आता ।ँ ’’

फर पंिडताइन क आवाज उभरी–”और जब ज रत होगी तब आप इसे िनकालगे


कै से?’’

‘‘तुम भी ब जैसी बात कर रही हो? कु आँ अपने दरवाजे पर है। कोई बाहर का आदमी
इससे पानी लेने आता नह है। जब ज रत होगी तो कु एँ का पानी बाहर िनकाल लगे।
कतना समय लगेगा? दो घड़ी, न चार घड़ी। एक पहर, न दोपहर...और या? कतने जन
लगगे? दो जन नह , तो चार जन। चलो, बा टी अभी ही िनकालकर र सी समेत कु एँ पर
रख देता ।ँ जब तेरी इ छा हो–म र ँ न र –ँ तुम भी चाहो तो जन-मजदूर लगाकर कु एँ
का पानी िनकलवा लेना...लाओ, अब वण-मु ा क थैली मुझे दे दो।’’

थोड़ी देर बाद एक आवाज उभरी–छपाक! जैसे कोई भारी व तु पानी म फक गई हो!
चोर ने आवाज सुनी। अब वे गोनू झा और उनक प ी के सोने का इ तजार करने लगे।

रात गहरा रही थी। चार ओर स ाटा पसरा आ था। कभी-कभी िसयार क आवाज
इस स ाटे को तोड़ती थी। जब चोर को िव ास हो गया क गोनू झा सप ीक सो चुके ह–
वे पाँव दबाए कु एँ तक आए। यह देखकर उनक बाछ िखल ग क सचमुच कु एँ पर चार
बाि टयाँ र सी सिहत रखी ई ह। वे पानी ख चने म लग गए। कोई कु छ बोल नह रहा
था। कु एँ म बा टी भी इतनी धीमी गित से डाली जाती क कोई आवाज नह उभरे ।

सबेरा होने को आया। चार चोर त मयता से अपने काम म लगे थे। अचानक उनम से
एक ने कहा–”कु आँ म अब पानी कम ही बचा है। हमम से एक आदमी कु एँ म र सी के
सहारे उतरकर पानी से वह थैली िनकाल सकता है।“
यह िवचार आते ही वे इस बहस म पड़ गए क पानी म कौन उतरे गा। तभी एक साथ कई
लोग बागान से िनकले और उन चोर पर झपट पड़े।

बाहर से उठा-पटक क आवाज आने से गोनू झा क न द खुल गई। उ ह ने प ी को


जगाया। दोन उठकर बाहर आए। सामने देखा–कु एँ के पास चार चोर बँधे पड़े थे। नगर
कोतवाल अपने जवान को कु छ समझा रहा था। गोनू झा पर नजर पड़ते ही उसने उनका
अिभवादन कया।

इस बार गोनू झा से पहले उनक प ी बोली‘‘अरे ! इन लोग को बाँध य दया? रात


भर इन लोग ने हमारे बगान म पानी पटाया है। ऐसी संचाई तो हम पैसा देकर भी नह
करा पाते। पेड़ क यास बुझानेवाल के साथ ऐसा वहार ठीक नह । इन लोग को ले
जाइए और इतनी आवभगत क िजए क इनका मेहनताना वसूल हो जाए।’’

दरअसल, रात को ही गोनू झा को स देह हो गया था क चोर उनके घर धावा बोल सकते
ह इसिलए बाजार जाकर एक सुर ाकम के माफत उ ह ने कोतवाल को खबर कर दी थी।
सुर ाकम उ ह पकड़कर ले गए।
चोर ने तौबा कर ली
गोनू झा और चोर के बीच आँख-िमचैली बरस चलती रही। गोनू झा महाराज को वचन
दे चुके थे क उनके रहते िमिथला म चोर का मनोबल बढ़ने नह दया जाएगा। संयोग
ऐसा रहा क हमेशा चोर को गोनू झा से मुँह क खानी पड़ी।

दूसरी तरफ चोर िबरादरी के लोग लंगडू उ ताद से वचनब थे क जब भी मौका


िमलेगा, वे गोनू झा के घर ऐसी चोरी करगे िजसे उनके सात पु त मरण रखगे।

घात- ितघात क यह बात गोनू झा समझते थे और हमेशा सतक रहते थे।

एक बार क बात है। गोनू झा दरबार से लौटकर अपने दरवाजे पर टहल रहे थे। सतक
रहने क आदत ने गोनू झा को थोड़ा शंकालु बना दया था। वे टहलते समय भी इतने
चैाक े रहते, िजतना क बाज रहता है। अचानक उ ह ने कु े के भ कने क आवाज सुनी।
सोचने लगे, कु ा इस समय इस तरह नह भूँकता है। उ ह ने यान देकर सुना–यह पड़ोसी
मदन झा के कु े के भ कने क आवाज थी।

मदन झा ने हाल म ही गोनू झा के अहाते के बगल म जमीन खरीदी थी और वहाँ अपना


मकान बना िलया था। ब त शौक न आदमी था मदन झा। दलेर और उ साही भी। उसके
आजू-बाजू उसके दो र तेदार ने भी मकान बनाया था। देर रात उनके घर क मिहलाएँ
एक जगह एकि त होकर गीत गात –‘सोना-चकवा’ के गीत। पंिडताइन से भी वे काफ
िहल-िमल गई थ । कई बार वे अपने साथ पंिडताइन को भी ले गई थ गीत गाने।

मदन झा के दोन स ब धी लखन झा और सुमन झा भी िमलनसार थे। गोनू झा का


स मान करते थे। ‘घर- वेश’ के अवसर पर उ ह ने गोनू झा को िवशेष प से आमि ात
कया था।

कु े के भ कने क आवाज कभी धीमी पड़ती और फर कभी तेज हो जाती। गोनू झा


सशं कत मन से मदन झा के घर क ओर टहलते ए बढ़े। उ ह ने एक आदमी को उसी
समय उधर से गुजरते ए देखा। आदमी क चाल उ ह ठीक नह लगी। मदन झा उ ह अपने
दरवाजे पर ही िमल गए। थोड़ी देर तक उनसे इधर-उधर क बात करके गोनू झा अपने घर
क ओर लौटने लगे तभी लखन झा और सुमन झा उ ह रा ते म िमल गए। गोनू झा का
उ ह ने अिभवादन कया और अनुनय करके गोनू झा को अपने घर ले आए। शबत िपलाया।
इधर-उधर क बात होती रह । थोड़ी देर के बाद गोनू झा ने उनसे िवदा ली। िवदा होते-
होते उ ह ने कहा–”आजकल गाँव म अजनबी चेहरे फर दखने लगे ह। कह फर से चोर-
उच का उ पात न शु हो जाए। आप लोग भी सावधान रहा क रए। एक समय इस गाँव
म चोर के उ पात से ािह- ािह क ि थित रही है।“

उनसे िवदा लेने के बाद गोनू झा के दमाग म उस आदमी क चाल बार-बार क ध जाती
थी...थोड़ा उचक-उचककर चलता यह ह ा-क ा आदमी...उ ह लगा क कह उसे देखा है।
दमाग पर जोर डाला तो कु छ याद नह आया।

रात को भोजन करने के बाद वे फर टहलने के िलए िनकल गए। अपने दरवाजे से
िनकलकर वे गाँव क मु य सड़क पर आ गए और टहलते ए मदन झा के घर से थोड़ी दूर
आगे तक िनकल गए। अचानक मदन झा का कु ा जोर-जोर से भ कने लगा। गोनू झा जहाँ
थे वह एक पेड़ क ओट म खड़े हो गए और मदन झा के घर क ओर देखने लगे। चाँदनी
रात थी इसिलए सब-कु छ साफ दख रहा था। उ ह ने उचक-उचककर चलने वाले आदमी
को सड़क से गुजरते देखा।...थोड़ी दूर चलकर वह आदमी गोनू झा के बगान क ओर मुड़
गया।

गोनू झा घर लौट आए। अपनी प ी को बाँह म भरकर यार करने लगे। यार करने के
उनके नए अ दाज से पंिडताइन चैाक । िब तर से अलग उनका वहार शालीन होता था
ले कन पंिडताइन को गोनू झा म आया यह प रवतन पुल कत कर रहा था...िमिथला क
नारी होने के कारण उनके वहार म सहज संकोच तरं िगत होने लगा और वह पित क
बाँह से िनकलने का यास करने लगी।

गोनू झा क बाँह म पंिडताइन थी मगर उनका यान बाहर था। खट् - खट् क आवाज
िपछवाड़े क दीवार से आ रही थी। गोनू झा को समझते देर न लगी क पीछे क दीवार म
सं◌ेध लगाई जा रही है। वे प ी को बाँह म िलए िब तर पर आ गए और अपनी गम साँस
से पंिडताइन के उघड़े अंग को सहलाने लगे।

गोनू झा से अचानक पंिडताइन ने कहा–”अँगनावाला दरवाजा खुला रह गया


है...छोिङए, ब द कर आऊँ।“

गोनू झा ने पंिडताइन को अपने सीने से सटा िलया–‘‘छोड़ो भी, रहने दो खुला। अभी तो
ब त कु छ खुलना बाक है।’’

इसी समय एक साया उस दरवाजे से घुटने के बल सरकता आ कमरे म आ गया और


सरकता आ गोनू झा के पलंग के नीचे घुस गया। गोनू झा अपनी प ी को बाँह म समेटे
दुलारते रहे। दुलारते ए बोलने लगे– ‘‘पंिडताइन, म सोच रहा ँ क जब हमारे ब े
ह गे...’’

‘‘धत्!“ पंिडताइन ने नारी सुलभ ल ा के साथ कहा।


”धत् कहती हो! म भिव य के िलए क पनाएँ सँजो रहा ।ँ तुम हो क धत् कह रही हो।“
गोनू झा ने थोड़ी तेज आवाज म कहा।

पंिडताइन को अपनी बोली के िलए पछतावा-सा आ िजससे रं ग म भंग पड़ता लग रहा


था। उ ह ने गोनू झा के शरीर पर अपनी एक बाँह रखी और गोनू झा क पीठ सहलाते ए
पूछने लगी, ”हाँ... या बोल रहे थे. ..बोिलए न!“

गोनू झा ने फर कहना शु कया”म अपने बेटे का, पहले बेटे का नाम मदन रखूँगा।“
”पहले बेटे का नाम मदन?“ पंिडताइन ने उनक बात दुहराई और लजाते ए
बोली–”इसका मतलब... क दूसरा बेटा भी होगा?“

”दूसरा या, तीसरा भी होगा।“ गोनू झा बोले। ”

अ छा, ठीक...ले कन ब क सं या बढ़ाने से पहले दूसरे और तीसरे बेटे का नाम भी तो


बताओ।“

” .ँ ..बताता ँ भा यवान...दूसरे बेटे को म लखन बुलाऊँगा...और तीसरे को ? तीसरे को


सुमन।“

अचानक गोनू झा प ी को छोड़कर पालथी लगाकर पलंग पर बैठ गए और


बोले–‘‘पंिडताइन, क पना करो क एक दन तीन ब े घर से बाहर खेलने चले जाएँ और
इस बीच ही घर म चोर आ जाए तब तुम या करोगी?“

पंिडताइन गोनू झा के वहार म आए इस प रवतन से िख हो गई। वैसे ही, जैसे कसी


यासे के होठ के पास से पानी से भरा िगलास हटा िलया जाए। ु ध होकर बोली–‘‘यह
या बात ई? ऐसी घड़ी म यह भी कोई क पना करने क बात है?’’

गोनू झा बोले”तुम न करो तो न करो। म तो क ँ गा।“ उ ह ने आँख बंद क और पुकारने


लगे–”लखन! मदन! सुमन! ज दी आओ हो...लखन, मदन, सुमन दौड़ो...ज दी आओ...घर
म चोर घुसल हो...“ पंिडताइन उ ह चुप रहने को बोलती और गोनू झा पंिडताइन को
िचढ़ाते ए चीख पड़ते– ”दौड़ो भाई! ज दी आओ!“

उनक आवाज सुनकर उनके पड़ोसी मदन झा, सुमन झा, और लखन झा हाथ म लाठी
िलए दौड़े आए और गोनू झा का दरवाजा ठकठकाने लगे। गोनू झा पलंग से उतरे और
दरवाजा खोल दया। घर म तीन घुसे और पूछा–”कहाँ है चोर?“

गोनू झा ने पलंग के नीचे इशारा कर दया। फर तो चोर को वे लोग पलंग के नीचे ही


छाँकने लगे और बेदम करके उसे पलंग से बाहर िनकाला। चोर हवालात भेजा गया।
इसके बाद फर कसी चोर ने गोनू झा के घर क ओर आने क िह मत नह क ।
आँख क तौल
िमिथला दरबार म गोनू झा क धूम मची रहती थी िजससे राम खेलावन िम उफ िमिसर
जी ब त खीजे रहते थे। राम खेलावन यानी िमिसर जी क चलती तो आज और अभी गोनू
झा क खाल नोच लेते। वे हमेशा गोनू झा को नीचा दखाने क ताक म लगे रहते मगर
गोनू झा थे क उनक एक न चलने देत।े

एक बार महाराज के दरबार म िमिसर जी प च


ँ े और महाराज से कहने लगे ”महाराज!
मेरे साथ इ साफ क िजए।“

महाराज ने पूछा ”किहए राम खेलावन, या हो गया? कै सा इ साफ चािहए?

िमिसर जी ने महाराज से कहना शु कया ‘‘महाराज! गोनू झा आज से दस साल पहले


मेरे पास मदद माँगने आये थे। उ ह एक आँख क ज रत थी। उ ह ने मुसे कहा ‘िमिसर
जी, मुे अपनी एक आँख दे दीिजए।’ मने अपनी एक आँख उ ह दे दी। अब म◌े उनसे अपनी
आँख माँग रहा ँ तो वे दे नह रहे ह।

दरअसल राम खेलावन िमिसर क एक आँख बचपन म ही फू ट गई थी। एक आँख वाले


िमिसर जी क बात सुनकर महाराज ने पूछा ‘‘ठीक से बताइए, या आ था...।’’

गोनू झा दरबार म थे। उ ह ने सम िलया क ज र िमिसर जी कोई चाल चलने वाले ह।


उनके चेेहरे पर रह मयी मु कान आ गई। उ ह ने खुद आगे कर महाराज से कहा
”महाराज, सच तो यह है क िमिसर जी के पास म नह गया था। दस साल पहले िमिसर
जी मेरे पास आए थे। उ ह पैस क ज रत थी। वे अपनी एक आँख िगरवी रखकर मुसे
तीन हजार पए उधार ले गए थे। वे मेरे पैसे वापस कर द तो म उनक आँख वापस-कर
दूग
ँ ा।

िमिसर ने सोचा अब गोनू झा फँ स गए। और उ ह ने महाराज से कहा ‘‘यही सही


महाराज। यही सही। मुे तीन दन क मोहलत दीिजए। म आपके सामने गोनू झा को तीन
हजार पए दूग
ँ ा और गोनू झा भी आपके सामने ही मेरी आँख वापस कर द।’’

गोनू झा मान गए।

महाराज अब तक सम नह पाए थे क आिखर यह सब हो या रहा है? भला कोई अपनी


आँख िगरवी कै से रख सकता है? और भला कोई कसी क आँख िगरवी य रखेगा? मगर
जब इस िब दु पर दोन रजामंद थे, महाराज भी या करते? उनके सामने तो एक बेहद
रोचक सम या आई थी और वे देखना चाहते थे क इसका समाधान या है।

दरबा रय ने जब सुना तो वे आ य से दाँत तले उँ गिलयाँ दबाने लगे। सबको इस बात


क ती ा थी क कै से तीन दन बीते क वे इस ‘रे हन’ क सम या का समाधान देख। सब
सोच रहे थे क या गोनू झा तीन हजार के बदले म अपनी आँख दे दगे?

अभी एक दन बीता था क गोनू झा ने एक िशकारी को बुलाकर कु छ पैसे दए और कहा


”जाओ, कल सुबह मुे कु छ जानवर क आँख चािहए।

गोनू झा दूसरे दन दातून कर रहे थे क िशकारी एक बतन म कई जानवर क दस आँख


एक कपड़े म लपेटकर ले आया। उसने गोनू झा को वे आँख दखा तो गोनू झा ब त खुश
ए। उ ह ने िशकारी से वे आँख लेकर एक िड बे म रख ल । इनम कु छ आँख बड़ी थ , कु छ
छोटी। कु छ कसी बड़े जानवर क तो कु छ छोटे जानवर क । गोनू झा इन आँख को देखकर
मु कु रा रहे थे। वे तैयार ए और आँख वाला िड बा लेकर दरबार म प च
ँ गए।

महाराज आए। दरबारी आए। दरबार खचाखच भर गया। िमिसर जी महाराज के पास
प च
ँ े और कहा ”महाराज, म पये ले आया ँ और आपके सामने गोनू झा को दे रहा ।ँ वे
भी मुे आपके सामने मेरी आँख दे द। िमिसर जी मन ही मन खुश हो रहे थे क आज गोनू झा
क खैर नह । अब िनकाले अपनी एक आँख। िमिसर जी सोच रहे थे क अब उ ह-लोग
काना गोनू ही बुलाएँग,े जैसे लोग काना िमिसर कहते ह पीठपीछे।

गोनू झा उठे और िमिसर जी से पए ले िलए िगने। पूरे तीन हजार थे। अब उ ह ने


आँख वाला िड बा िनकाला और कहा ‘‘महाराज, िमिसर जी को अपनी आँख इस िड बे से
िनकाल लेने को कह।“

महाराज यह देखकर दंग थे क िड बे म एक नह , दस आँख थ । िमिसर जी भी परे शान


थे, अब या कर? उ ह ने तो सोचा था क नौबत गोनू झा क आँख िनकालने क आएगी।
अब तो माजरा ही बदल गया। िमिसर जी ने िड बे म रखी आँख देख और अपनी अि तम
चाल चली। कहा ‘‘इसम मेरी आँख नह ह। गोनू झा ने तुर त िनदान सुाया और बोले
”महाराज म भी नह पहचान पा रहा ँ क इसम िमिसर जी वाली आँख कौनसी है। मने
अब तक दस आँख िगरवी म रखी ह। वे सारी आँख इसी म ह।“ फर उ ह ने महाराज से
कहा ‘‘महाराज, आप कृ पा कर एक तुला मँगवा द। िमिसर जी अपनी आँख िनकालकर
तुला के एक पलड़े पर रख द। म उस आँख क तौल के बराबर क आँख उ ह िनकालकर दे
दूग
ँ ा।’’

िमिसर जी ने आपि उठाई ‘भला म अपनी आँख िनकालकर कै से तौलवाऊँ?’’

गोनू झा ने कहा ‘‘जैसे आपने आँख िनकालकर िगरवी रखी थी।’’


अब िमिसर जी से कु छ भी बोलते नह बना तो वे मैदान छोड़कर लौटने लगे। महाराज
सम गये क िमिसर जी गोनू झा पर झूठा आरोप कर परे शान कर रहे थे। उ होने भरे
दरबार म राम खेलावन िमिसर को बुरी तरह फटकारा और चेतावनी दी क अब कभी
उ ह ने ऐसी हरकत क तो उनको दंड का भागी बनना पड़ेगा।

गोनू झा अपनी रह यमयी मु कान के साथ अपने आसन पर आकर बैठ गए।
कं जूस राजा को नसीहत
िमिथला नरे श के दरबार म गोनू झा के बुि कौशल और वा चातुय का जो जादू चल रहा
था उसक क त िमिथलांचल के आस-पास के े म भी फै ल चुक थी। िमिथला के
पड़ोसी रा य अंग देश के राजा ने रा यो सव के कई अवसर पर गोनू झा को िवशेष प से
आमंि त कया था तथा उ ह पुर कार-अलंकरण आ द से स मािनत कया था।

अंग देश के राजा म उदारता थी ले कन युवराज अपने िपता के ठीक िवपरीत वृि के
थे। हद से यादा िमत यी। राजा के जीवनकाल म ही युवराज क कं जूसी क कथाएँ पूरे
देश म मश र हो चुक थ । राजा ने युवराज को ब त समझाया क जा-पालन के िलए
उदारता, क णा, सहानुभूित आ द क भी ज रत होती है। इन गुण को राजा का आभूषण
माना जाता है। पर परा से चली आ रही रीितय का िनवाह भी राजनीित का एक
मह वपूण अंग है। ा ण, चारण आ द को रा या य िमलना चािहए। कलाकार और
सािह यकार को ो साहन देने के िलए रा य क ओर से ितयोिगता का आयोजन और
पुर कार क व था राजधम है। िखलािङय के मनोबल को बढ़ाने के िलए भी राजकोष
का उपयोग कया जाना चािहए। जैसे सैिनक को तरोताजा बनाए रखने के िलए ित दन
उसक कवायद पर राजकोष से य कया जाता है, वैसे ही िखलािङय और कलाकार के
िलए रं गशाला के िनमाण और उनके रख-रखाव क व था करना राजधम है। मगर
युवराज को अपने िपता क ये बात भािवत नह करत । उसे लगता क इस तरह के
आयोजन से धन और समय दोन का अप य होता है। चारण और ा ण तो युवराज को
िम याभाषी और लोलुप लगते थे। य द राजा का भय नह होता तो वह अपने महल म
चारण और ा ण के वेश पर भी ितबंध लगा देता।

एक बार अंग देश के राजा बीमार पड़े। राज वै ने अपने अनुभव से समझ िलया क
राजा अब बचनेवाले नह ह। उिचत औषिध राजा को देकर उसने महामं ी को परामश
दया क युवराज के रा यािभषेक क व था कराएँ।

महामं ी समझ गए क राजा अब व थ नह हो सकगे। रा य योितषी से परामश कर


युवराज के रा यािभषेक के िलए शुभ मु त और शुभ ितिथ िनधा रत क गई। इस व था
के बाद राज वै ने राजा को पूणिव ाम म रहने तथा रा य संचालन क िज मेदारी पु ा
को स प देने क सलाह दी।

वा य के कारण राजा भी अब राज-काज से मु होना चाहते थे, ऊपर से बीमारी ने


उ ह अश कर रखा था। राजवै क सलाह उ ह पस द आई। िनधा रत ितिथ को शुभ
मु त म युवराज का रा यािभषेक आ। राजा ने अपने पु ा को वयं राज संहासन पर
बैठाया और िव ाम करने के िलए अपने क म चले गए।

युवराज अपने िपता क बीमारी से दुखी था। अपने िपता क हालत से िथत युवराज
को राजा बनने से कोई स ता नह ई। राज संहासन पर बैठे नए राजा के तुित गान के
िलए चारण आए और नए राजा को आशीष देने ा ण मगर राजा ने उनक ओर कोई
यान नह दया। चारण तुित गान और ा ण मं ो ार करने के बाद नए राजा क ओर
आशा-भरी –ि से देखते ए अपने थान पर खड़े रहे, मगर नए राजा ने उनक ओर देखा
तक नह ।

महामं ी ने राजा का यान जब चारण और ा ण क ओर आक षत कया तो नए


राजा ने कहा, ‘‘महामं ी जी! मेरे िपता मरणास ह। ऐसे राज-काज सँभालना मेरा
दािय व था इसिलए यह मेरे िलए कोई स ता क बात नह । राजग ी मुझे िमलनी ही
थी, सो िमली। नया या आ? अब से मेरे दरबार म इस तरह के ‘याचक ’ का वेश
व जत है। राज-काज इनक तुित और मं ो ार से नह , राजनीितक कौशल से चलता है।
मुझम मेरे िपता वाली उदारता नह है क इन िनख टू-चापलूस पर धन जाया क ँ –इ ह
अभी इसी ण दरबार से िनकल जाने को कह।’’

नए राजा के इस वहार से ा ण और चारण दुखी ए। रा य के कलाकार और किव-


सािह यकार को उ मीद थी क युवराज के राजा बनने पर राजमहल म कोई रं गारं ग
काय म होगा िजसम उ ह अपनी कला का दशन करने का अवसर िमलेगा ले कन ऐसा
कु छ भी नह आ। हद तो तब हो गई जब राजा बनने के बाद नए राजा ने िव जन क
बैठक नह बुलाई। अंग देश म नए राजा क आलोचना होने लगी। िजधर सुनो, बस यही
चचा क नया राजा दंभी और वे छाचारी है। जा के दुःख-सुख से इसे कु छ भी लेना-देना
नह ।

ा ण , चारण और कलाकार ने सोचा क िबना रा या य के उनके िलए


जीिवकोपाजन क ठन है। उनके पास दो ही रा ते ह–या तो नए राजा को राजमहल क
पर परा के िनवाह के िलए समझाया जाए या फर वे राज छोड़कर कह कसी अ य
रा य म आ य ल। अ ततः अंग देश के िव जन , ा ण , चारण एवं कलाकार को गोनू
झा क याद आई तथा तय आ क इस मुि कल क घड़ी म गोनू झा से परामश करना
उिचत होगा। इस िन य के बाद ये तमाम लोग िमिथला आए और गोनू झा के आवास पर
प चँ ।े

गोनू झा अंग देश के िस लोग के समूह को अपने दरवाजे पर देखकर आ यच कत


रह गए। उ ह ने आगंतुक अितिथय का वागत कया तथा स मानपूवक उ ह बैठाया। फर
उनसे कु शल- ेम पूछते ए िमिथला पधारने का योजन पूछा।

उन लोग ने जब अंग देश के नए राजा के वहार के बारे म गोनू झा को जानकारी दी


तब गोनू झा को भी लगा क नए राजा के वहार से पड़ोसी रा य म असंतोष पैदा होगा
और इसका भाव िमिथलं◌ाचल पर भी पड़ेगा। गोनू झा को अंग देश के वृ महाराज के
ण होने के समाचार ने भी िथत कया और उ ह ने तय कर िलया क वे इन लोग के
साथ अंग देश जाएँग।े नए राजा को रा यानुकूल आचरण िसखाएँगे तथा वृ महाराज का
दशन कर उ ह आरो य लाभ के िलए शुभकामनाएँ दगे। गोनू झा ने यह िनणय इसिलए
िलया क अंग देश के िव जन ने उनके पास आकर उनके ित आ था जताई थी तथा
िमिथलांचल क पर परा रही है क दरवाजे पर आए अितिथय क मता भर इ छापू त
का उपाय कया जाना चािहए। गोनू झा के ित अंग देश के वृ महाराज का ेह भाव
ार भ से ही बना आ था। ायः येक रा यो सव म उ ह ने गोनू झा को अव य बुलाया
था और उिचत स मान व उपहार देकर उ ह िवदा कया था। वृ महाराज के ण होने
क सूचना पर गोनू झा उ िे लत न होते तो कै से?

गोनू झा अंग देश को िव जन के साथ चल दए। रा ते म उ ह ने नए राजा के आचरण-


वहार आ द क पूरी जानकारी ा क फर उ ह ने उन लोग को सलाह दी क जब वे
नए राजा से िमलने दरबार म जाएँ तो कोई कु छ भी नह बोले। बस, वे जैसा कर, वैसा ही
वे सब भी करते जाएँ। लोग ने उ ह अपनी सहमित दे दी।

गोनू झा ने दरबार म खबर िभजवाई क िमिथला से गोनू झा आए ह और वे अपने अंग


देश के िम के साथ नए राजा के दशन के िलए दरबार म उपि थत होना चाहते ह।

नए राजा को जब सूचना िमली क गोनू झा आए ह तो उसने सस मान दरबार म बुलाने


का िनदश दया। नए राजा को गोनू झा के बारे म इतना तो पता ही था क उसके िपता
गोनू झा को ायः बुलाया करते थे। गोनू झा क िव ता और िवनोदि यता क चचा भी
उसने सुन रखी थी ले कन उनके साथ अंग देश के िव जन को आते देख उसक पेशािनय
पर बल पड़ गए मगर उसने कु छ कहा नह । गोनू झा के अिभवादन के िलए नया राजा
संहासन से उतरकर खड़ा हो गया। गोनू झा ने उसे नम कार करने के िलए अपने हाथ
जोड़े तब उनके साथ आए अंग देश के िव जन ने भी अपने हाथ जोड़े और फर गोनू झा
ने अपने हाथ फै लाकर मुँह खोल िलया और उसी मु ा म मू तवत् खड़े हो गए। उनके साथ
दरबार म उपि थत िव जन ने भी ऐसा ही कया। गोनू झा सिहत इतने सारे लोग को
हाथ फै लाए और मुँह बाये खड़े देखकर नया राजा कु छ समझ नह पाया। दरबारी भी इस
कौतुक को िव मय से देख रहे थे।

काफ देर तक नया राजा उ ह च कत-सा देखता रहा फर उसके स का बाँध टू ट गया।
उसने िवि मत भाव से पूछा–” या आप लोग मेरे रा यािभषेक पर स ता कर रहे
ह?“

गोनू झा ने के वल एक हाथ क अँगुिलय को एक बार नचाया फर पूव क भाँित ही


मू तवत् हो गए। उनके साथ आए लोग ने भी वैसा ही कया। दरबारी च कत थे और नया
राजा कु छ भी समझ नह पा रहा था।

उसने फर गोनू झा से पूछा–‘‘ या आप लोग वृ महाराज के आरो य लाभ क कामना


कट कर रहे ह?’’

गोनू झा ने पूव क भाँित ही एक हाथ क अँगुिलय को नचाया और मुँह बाए अपनी पूव
क मु ा म आ गए।

इस तरह क िविच ि थित क क पना न नए राजा ने कभी क थी और न उसके


दरबा रय ने। अ ततः नए राजा ने महामं ी से धीरे से पूछा क वह या करे ?

महामं ी भी उलझन म थे क पता नह गोनू झा या कहना चाह रहे ह। फर उ ह ने


गोनू झा के साथ आए लोग को देखा तो पाया क ये लोग वृ महाराज के राज म दरबार
म िवशेष स मान के अिधकारी थे। इनम चारण और ा ण भी थे िज ह नये राजा ने कोई
तरजीह नह दी थी।

महामं ी ने नए राजा से अपने अनुमान के आधार पर कहा–”राजन् स भवतः ये लोग


आपसे कु छ दान-दि णा क याशा रखते तीत होते ह। इ ह कु छ उपहार दान कर और
यथायो य आसन दान कर तो स भवतः गोनू झा के यहाँ पधारने का योजन प हो
पाए।“

नये राजा ने ऐसा ही कया। िमिथला से आए गोनू झा जैसे िव ान ा ण का आदर


करना नए राजा ने राजनीितक आव यकता के प म िलया तथा उनके साथ आए लोग
को भी उसने इसी –ि से समा–त कया।

उिचत आसन एवं उपहार िमलने के बाद गोनू झा ने सहज मु ा अपना ली। उनके साथ
आए लोग ने भी ऐसा ही कया। फर गोनू झा ने नए राजा से कहा–”राजन! म यहाँ
आपके िपता के दशन के िलए उपि थत आ ।ँ मेरे साथ जो लोग ह, वे आपके रा य क
िवभूितयाँ ह। इनके मुँह से अमृत वचन िनकला करते थे। उस संहासन पर जहाँ आज आप
िवराजमान ह, वहाँ वृ महाराज िवराजमान आ करते थे। राजन्, जब िव ान , ा ण ,
चारण और कलाकार क िज ◌्वा से श द कट नह हो तो भरे दरबार म कस तरह क
कं कत िवमूढ़ता क ि थित उपि थत हो जाती है यह आपने कु छ ही पल पहले देखा और
अनुभव कया। अब मेरी ाथना है क आप वयं िनणय कर क वृ महाराज के
शासनकाल म सर वती के इन साधक के ित जो राज- वहार था, उसे जारी रखा जाए
या नह । राजन्! जब िव ान चुप हो जाएगा, कलाकार मौन हो जाएगा तब रा य म िन ा
क कमी आएगी और लोग शु क वृि क ओर वृत ह गे। राजधम है क जनजीवन म
सरसता बनी रहे। इसके िलए ही वृ महाराज इन लोग को मह व दया करते थे।’’
नए राजा को गोनू झा क बात समझ म आ और उसने िवन तापूवक अंग देश के
िव जन से अपने वहार के ित मा माँगी तथा बताया क अपने वृ िपता के
आरो य के िलए िचि तत रहने के कारण उसने उनके साथ शु क वहार कया था जो
कसी भी राजा के िलए शोभनीय नह था।

गोनू झा नए राजा क इस आ म- वीकृ ित से स ए और कहा– ”राजन्! हम सभी


वृ महाराज से िमलकर उनके आरो य लाभ क कामना करने के इ छु क ह। य द आप
इसक आ ा द तो हम कृ ताथ ह गे।“

गोनू झा ने जान-बूझकर ब त औपचा रक भाषा का योग कया था य क वे नए राजा


को स देश देना चाहते थे क रा य-संचालन के िलए के वल अपने संवेग , संवद
े ना और
भावना का ही नह बि क पर परा से चली आ रही औपचा रकता का भी िनवाह
कया जाना चािहए।

नए राजा ने गोनू झा क िवन ता क मन ही मन सराहना क और उ ह लेकर अपने


िपता के क म प च ँ ।े उनके साथ अंग देश के िव जन का ज था भी था।

गोनू झा और अपने रा य के िवभूितय को अपने क म आया देख वृ महाराज ब त


स ए। उ ह ने गोनू झा से कु छ दन तक राज-अितिथ के प म अंग देश म रहने का
आ ह कया िजसे गोनू झा ने मान िलया।

गोनू झा ने वृ महाराज से िमलकर यह महसूस कया क महाराज का एकाक पन भी


उनके आरो य लाभ म बाधक है। उ ह ने राज वै से इस स ब ध म परामश कया और
उनक अनुमित से वृ महाराज के क म ित दन कसी न कसी कलाकार को बुलाकर
उसका गायन, वादन आ द का आयोजन कराते रहे। चारण तो वे खुद थे। वे इस बात का
यान रखते थे क महाराज उदास और एकाक न ह ।

वृ महाराज का क कलाकार के आने-जाने से जीवंत हो उठा और देखते ही देखते वृ


महाराज के वा य म सुधार होने लगा। राज वै ने भी वृ महाराज के वा य म तेजी
से हो रहे सुधार को वीकार कया तथा घोषणा क क वृ महाराज अब खतरे से बाहर
ह।

नए राजा ने जब अपने िपता के वा य म आए इस प रवतन को देखा तब वे गोनू झा के


ित आभार-बोध से भर गया। मगर गोनू झा ने नए राजा को समझाया क कलाकार क
संगित से महाराज के वा य म यह सुधार आ है। वृ महाराज का एकाक जीवन उनके
वा य क राह म अड़चन था। उनके साथ राज वै से लेकर सेवक तक ऐसा वहार कर
रहा था क वे ब त बीमार ह तथा उनका बचना मुि कल है। दरअसल, ऐसा वहार तो
कसी व थ ि को भी रोगी बना देगा। कलाकार संवेदनशील होते ह। वे महाराज के
मनोभाव को समझते ए उनके साथ वैसा ही वहार कर रहे थे िजसक आव यकता
महाराज को थी। इस कारण वृ महाराज के वा य म ती ता के साथ सुधार आ।

नए राजा को अब समझ म आया क िज ह वे िनख टू और याचक क सं ा दे रहे थे,


उनक उपयोिगता रा य के िलए कतनी अहम है।

जब गोनू झा अंग देश से िवदा होने को ए तो नए राजा ने राजमहल म एक रं गारं ग


काय म का आयोजन कया िजसम रा य के ायः सभी कलाकार क कला का दशन
आ। इस आयोजन म वृ महाराज भी उपि थत ए। नए राजा ने गोनू झा को िवदाई से
पहले ढेर सारे उपहार दए और अंग देश के िव जन गोनू झा को िमिथला तक प च ँ ाने
आए। वे सभी गोनू झा के ित कृ त ता-बोध से भरे ए थे।
िमिथला से चोर का सफाया
िमिथलंचल िजस तरह मछली और मखाने के िलए िस रहा है, कभी यह चोर के
उ पात के िलए भी उतना ही बदनाम था। िमिथला नरे श चोर के उ पात से तंग आ चुके
थे। चोरी क घटना म लगातार वृि से रा य क सुर ा- व था के आगे सवािलया
िनशान आ खड़ा आ था। बाजार, गली, मुह ला, कोई थान सुरि त नह था। कसी ने
बाजार म कु छ खरीदा और उस सामान को बगल म रखकर याऊ पर पानी पीने लगा।
पानी पीकर बगल से सामान उठाने लगा तो देखा, उसका सामान गायब। रोज दरबार म
महाराज के सामने कोई न कोई फ रयादी अपनी ऐसी ही िशकायत के साथ उपि थत
होता। महाराज को कु छ सूझ नह रहा था क वे चोरी क घटना पर काबू पाने के िलए
आिखर कौन सा कदम उठाएँ। अपने खु फया-तं ा के शीष अिधकारी से इस संग म कई
बार बात कर चुके थे ले कन कोई साथक प रणाम सामने नह आया था।

एक दन दरबार के समापन पर, महाराज ने गोनू झा को रोक िलया। सभी दरबा रय के


चले जाने के बाद महाराज गोनू झा के साथ राजमहल क फु लवारी क ओर िनकल गए।
गोनू झा समझ रहे थे क महाराज कसी ग भीर सम या पर िवचारम ह। वे महाराज के
साथ मूक बने फु लवारी म टहलते रहे। इसी तरह कु छ समय तीत आ। एक थान पर
महाराज के और गोनू झा से बोले–‘‘पंिडत जी! िमिथलांचल म चोर का उ पात बढ़ता
ही जा रहा है िजससे रा य क बदनामी हो रही है। चोर का मनोबल लगातार बढ़ रहा है।
मेरे िनदश के बावजूद रा य का खु फया तं ा पूरे िमिथलं◌ाचल म फै ले चोर के संग ठत
िगरोह का उ े दन करने म िवफल रहा है। आप समझ सकते ह क िजस रा य म जा क
जान-माल क सुर ा नह , उस रा य के राजा के ित जा क िन ा क क पना भी नह
क जा सकती। आपने एक बार िमिथलांचल को ठग क चपेट से कु शलता पूवक उबारा है।
अब आप ही कोई ऐसा उपाय कर क िमिथलांचल से चोर का आतंक सदा के िलए िमट
जाए।’’

गोनू झा ने पूरी ग भीरता से महाराज क बात सुन । कु छ देर सोचते रहे, फर उ ह ने


महाराज से कहा–‘‘महाराज, आपका आदेश-पालन मेरा कत है। आपने अभी-अभी कहा
है क पूरे िमिथलं◌ाचल म चोर का संग ठत िगरोह स य है। आप इस िन कष पर कै से
प चँ ,े कृ पा कर बताएँ।’’

महाराज ने गोनू झा से िमिथलांचल म हो रही चोरी क घटना के बारे म खु फया


जाँच के िन कष का िज करते ए कहा–‘‘अिधकांश चोरी क घटनाएँ एक जैसी ह। ये
घटनाएँ रात के थम हर म या चैाथे हर म घ टत हो रही ह। रात के थम हर म आम
घर के पु ष चैपाल आ द म त रहते ह और मिहलाएँ बतन-वासन, चू हा-चैका म
त रहती ह। चोर इसी तता का लाभ उठाकर घर से क मती चीज उड़ा लेते ह।
िमिथलांचल के अनेक गाँव म रात के चैाथे हर म भी चोरी क घटनाएँ दज क गई ह।
यह ऐसा समय है जब घर म लोग गहरी न द म सोए होते ह। चोर घर के दरवाजे क
कु डी न जाने कै से खोल लेते ह और घर म वेश कर माल-असबाब उठाकर ले जाते ह। ये
चो रयाँ इतनी चालाक से क जाती ह क कसी के हाथ कोई सुराग नह आता क
चो रयाँ कै से क ग । चोर -उ क का मन इतना बढ़ गया है क अब रा य के कई इलाक
से राहजनी क घटना क खबर भी आ रही है। य द अब भी हम सचेत नह ए और
जा को चोर के कहर से िनजात दलाने के िलए ठोस उपाय नह कया तो जा का हम
पर भरोसा उठ जाएगा।’’

महाराज क बात सुनकर गोनू झा ग भीर हो गए और उ ह ने महाराज से


कहा–‘‘महाराज! मुझे सोचने का कु छ मौका दीिजए।’’

मगर महाराज ने गोनू झा क बात अनसुनी करते ए कहा–‘‘पंिडत जी! मौका-वौका का


व नह है। व है कु छ करने का। या करगे– कै से करगे, यह आप सोिचए। मुझसे अथवा
राजकोष से आपको जैसी भी सहायता चािहए, िमलेगी। आप अभी से चोर के उ पात से
रा य को बचाने का काम ार भ कर द। म अभी महामं ी से कहकर यह आदेश िनगत
करवा देता ँ क गोनू झा िजस कसी भी अिधकारी से कसी तरह क सहायता माँग तो
उ ह वह सहायता अिवल ब िमलनी चािहए।’’

गोनू झा के िलए अब कु छ भी बोलना असंगत था। वे महाराज से आ ा लेकर अपने गाँव


क ओर चल पड़े।

चलते-चलते गोनू झा सोच रहे थे, इतने बड़े िमिथलांचल म चोर के संग ठत िगरोह का
उ े दन कोई साधारण बात तो है नह । जो काम रा य का िशि त और संग ठत खु फया-
तं ा कर पाने म असमथ रहा, उस काम को म अके ले कै से अंजाम दूग
ं ा। महाराज ने कह तो
दया है क रा य का कोई भी अिधकारी कसी भी तरह के सहयोग के िलए हमेशा तैयार
रहेगा... मगर जब कोई सू ा हाथ लगे तब न कसी तरह के सहयोग क बात उठे गी?

इसी गुन-धुन म गोनू झा लगे ए थे क एक आदमी कु छ ल बे डग भरता आ उनके पास


से गुजर गया। इस आदमी ने घुटने के ऊपर धोती बाँध रखी थी ले कन उसका शरीर नंगा
था। उसके शरीर पर शायद तेल लगा आ था जो नीम-अँधेरे म चमचमा रहा था।

उस आदमी का यह िलया गोनू झा को कु छ अजीब सा लगा। अब तक वह आदमी


बाजार जाने वाली राह पर मुड़ गया था। लगभग दो फलाग क दूरी पर बाजार था, जहाँ
फल, सि जयाँ, मछली, चावल, दाल, मसाले आ द रोजमर क चीज क दुकान थ । एक-
दो दुकान सुनार ने भी खोल रखी थ जो सोने और चाँदी के आभूषण बेचा करते थे।
अचानक गोनू झा के दमाग म स देह पैदा आ क अभी-अभी जो ि उनके पास से
तेज कदम से गुजरा है वह चोर हो सकता है। इस संदह
े के पैदा होते ही उनके कदम बाजार
वाली सड़क क ओर बढ़ गए।

गोनू झा अभी बाजार म वेश भी नह कर पाए थे क अचानक ‘पकड़ो-पकड़ो, जाने न


पाए’ का शोर बाजार क एक दुकान से उभरा। कई लोग बाजार क सड़क पर दौड़ लगाने
लगे। एक-दो दुकानदार लाठी लेकर अपनी-अपनी दुकान से िनकल आए। गोनू झा जब
उस थान पर प च ँ े जहाँ इस तरह का हंगामा हो रहा था। वहाँ गोनू झा को पता चला क
एक आदमी बाजार म तेज कदम से चलता आ आया और एक मिहला के गले से सोने क
मटरमाला झटककर भागने लगा। मिहला के शोर मचाने से एक राहगीर ने उस भागते ए
आदमी को पकड़ना चाहा ले कन उस आदमी के शरीर पर इतना अिधक तेल चुपड़ा आ
था क वह फसलकर िनकल भागा।

अभी गोनू झा मिहला से मटरमाला छीने जाने क घटना के बारे म सुन ही रहे थे क पूरे
बाजार म सनसनी-सी फै ल गई। चोर ने कई दुकान के ग ले से सारे पैसे बटोर िलए थे।

गोनू झा को यह समझते देर नह लगी क योजनाब तरीके से चोर के संग ठत िगरोह


के सद य ने बाजार के कई दुकान म चोरी क घटना को अंजाम देकर वे वहाँ से चलते
बने। यह चोर के बढ़े मनोबल का तीक था। पूरे बाजार म चहल-पहल और सैकड़ लोग
क आवाजाही के बीच एक चोर, एक मिहला के गले से, सोने का आभूषण झटक लेता है।
इस अ यािशत घटना से लोग का यान बँटता है। बाजार म खलबली मचती है।
दुकानदार का भी यान बँटता है। सबके -सब उस मिहला के साथ ए वारदात के बारे म
जानने के िलए उ सुक होते ह। इस मानवीय कमजोरी का अनुमान चोर-िगरोह के सद य
को पहले से था। जैसे ही दुकानदार का यान बँटता है, घात लगाए चोर िबना अवसर
गँवाए दुकानदार के ग ले पर हाथ साफ करके , बाजार म मची अफरा-तफरी का लाभ
उठाकर आराम से िनकल जाते ह।

गोनू झा बाजार म घूमते ए हर उस दुकान के पास कते ह जहाँ चोर ने ‘आँख ब द,


िड बा गायब’ का खेल खेला। उनका दमाग ि थितय को समझने और चोर को सबक
िसखाने के उ े य से लगातार स य रहता है...इस उ मीद म क कह कोई सुराग िमल
जाए। चलते-टहलते, लोग से बितयाते गोनू झा थक गए। बाजार क अफरा-तफरी समा
ई। उस घटना के बाद से जैसे बाजार बेनूर हो गया। अ ततः थके -हारे गोनू झा अपने घर
लौट आए। हमेशा ताजा दम दखने वाले गोनू झा को हताश और परे शान-सा देखकर वह
बेचैन हो गई मगर गोनू झा क ग भीर मुखमु ा देखकर वह कु छ पूछने का साहस नह कर
पाई। गोनू झा हाथ-मुँह धोकर पीढ़ा पर बैठ गए और पंिडताइन ने भोजन परोस दया।
दो-चार िनवाला अनमने ढंग से खाकर गोनू झा उठ गए और िब तर पर जाकर लेट गए।

पंिडताइन ने उ ह देखा मगर गोनू झा के िच तन क मु ा म कोई प रवतन नह आ।


पंिडताइन को अपनी ओर ममता भरी –ि से ताकते देखकर गोनू झा क त ा भंग ई।
उ ह ने पंिडताइन से कहा–”दीया बुझा दो और सो जाओ–थक गई होगी। म कु छ देर बाद
सोऊँगा।“ पंिडताइन ने कु छ पूछने के िलए मुँह खोला ही था क गोनू झा ने मुँह पर उँ गली
रखकर चुप रहने का संकेत करते ए कहा–”सो जाओ। बाद म बात करगे।“

बेचारी पंिडताइन करती भी या? गोनू झा के िनदश के अनुसार दीया बुझाया और गोनू
झा के बगल म आकर सो गई दन भर क थक -मांदी होने के कारण पंिडताइन को ज दी
ही न द आ गई मगर गोनू झा क आँख म न द कहाँ? बाजार म घ टत ई मब चोरी
क घटना उनक चेतना पर आ छा दत थी और महाराज का यह अनुनय क ‘वे कु छ भी
कर मगर रा य म चोर का सफाया होना चािहए...’ बार-बार उनके दमाग म क ध रहा
था। अजीब इि फाक क बात थी क महाराज ने उनसे रा य म चोर के उ पात का िज
कया और उसके कु छ देर बाद ही चोर क आततायी हरकत गोनू झा क आँख के सामने
आ गई। चोर के उ पात क सम या कतनी ग भीर है, इस बात से गोनू झा काफ उ िे लत
थे ले कन उ ह कु छ सूझ नह रहा था क चोर पर काबू कै से पाया जाए।

चोर पर काबू पाने क तरक ब सोचते-सोचते गोनू झा ने करवट म रात गुजार दी।
सुबह म िखड़क से आती ठं डी हवा के झ को ने उनके शरीर को सहलाना शु कया तब
उ ह न द आ गई।

िचिङय के कलरव के वर से पंिडताइन क न द खुली। गोनू झा को बेसुध सोया देख


पंिडताइन ने समझ िलया क गोनू झा देर रात तक जगे रहे ह वरना इस समय तो वे भात
फे री के िलए िनकल जाते और शौच-मैदान करके पोखरी म डु बक लगाकर लौट आते।
पंिडताइन ने उ ह जगाया नह और अपनी दनचया म लग गई।

सूरज ने पूरब का कोना छोड़ा। खुली िखड़क से आती धूप क गम के कारण गोनू झा क
न द खुली। उ ह ने िखड़क के प ल को सटा दया और िब तर पर पड़े रहे। पंिडताइन ने
उ ह जगा देखकर पूछा–”दरबार नह जाना या?“

गोनू झा ने कहा–”अभी नह । मन थका-सा है। तबीयत ठीक रही तो शाम को महल चला
जाऊँगा और महाराज के दशन करके लौट आऊँगा।“

पंिडताइन गोनू झा के पास आई और उनके शरीर को तलहथी से पश कर जानना चाहा


क कह उ ह बुखार तो नह है ले कन शरीर का तापमान सामा य देखकर वह आ त हो
गई और बोली–”लगता है, हरारत है। ब त दन हो गए दरबार से घर करते ए...ठीक ही
है, थोड़ा आराम कर लीिजए।“

गोनू झा प ी क बात सुनकर मु कु रा दए। कु छ बोले नह ।


िब तर पर पड़े-पड़े ही गोनू झा को याद आया क एक बार एक चोर को उ ह ने ग ा
दया था–घर के तमाम जेवर पेड़ पर टँगे होने क बात कहकर। पेड़ पर ततैये के छ े को
ही चोर ने जेवर क पोटली समझ िलया और पेड़ पर चढ़कर पोटली झटकने क कोिशश म
ततैये के दंश का िशकार आ िजससे पेड़ पर वह अपना स तुलन बनाए नह रख सका और
िगर पड़ा। ऊँचाई से िगरने के कारण उसके एक पैर क ह ी टू ट गई। गोनू झा ने पड़ोिसय
को बुलाकर पहले तो उसक धुनाई कराई, बाद म हवालात िभजवा दया।

इस घटना क याद आते ही गोनू झा बला क फु त से िब तर से उठे । नहा-धोकर तैयार


ए और ज दी-ज दी जलपान करके तेज कदम से दरबार क ओर चल दए।

रा ते म गोनू झा चोर को काबू म करने के उपाय के बारे म सोचते रहे।

दरबार म प चँ कर गोनू झा अपने आसन पर चुपचाप बैठे रहे। सभा क कायवाही म


उ ह ने कोई िच नह दखाई। महाराज ने उ ह एक-दो बार उचटती िनगाह से देखा भी
मगर िवचारम देखकर उ ह टोका नह । गोनू झा क मु ा देखकर महाराज भाँप गए क
पंिडत जी िनि त प से उनसे कु छ परामश करना चाहते ह।

सभा क कायवाही के समापन के बाद महाराज अपने क म चले गए और और एक


यादे को भेजकर गोनू झा को अपने क म बुलवा िलया।

महाराज ने गोनू झा को अपने पास बैठाया और पूछा–‘‘ या बात है पंिडत जी, ब त


ग भीर ह?’’

गोनू झा ने िबना कसी भूिमका के महाराज से कहा–‘‘महाराज! तीन साल पहले मेरे घर
से एक चोर पकड़ा गया था। उसे ामीण ने हवालात िभजवा दया था। म जानना चाहता
ँ क वह चोर अब कहाँ है?’’

गोनू झा के सवाल से महाराज मन-ही-मन स ए। उ ह लगा क गोनू झा


िमिथलांचल को चोर से िनजात दलाने के काम म जुट गए ह। मन म यह खयाल आते ही
महाराज ने ारपाल को आ ा दी–”नगर कोतवाल को अिवल ब मेरे सम उपि थत होने
के िलए कहो।“

थोड़ी ही देर म नगर कोतवाल घबराया-सा महाराज के सम उपि थत आ। वह


भयभीत था क बीती रात उसके े ा के ‘बड़ा बाजार’ म चोर के िगरोह ने िमलकर
अभूतपूव उ पात मचाया और दुकानदार क लाख क नगदी लेकर च पत हो
गया...ज र महाराज उस घटना के बारे म उससे द रया त करगे।

मगर क म उसके वेश करते ही महाराज ने उससे कहा–”पंिडत जी जो पूछ–बताओ।


जो कह वह करो। अभी से तुम इनके मातहत हो।“ यह कहते ए महाराज क से बाहर
चले गए।

अब गोनू झा के सामने नगर कोतवाल हाथ जोड़े खड़ा था। उसक भयभीत मु ा देखकर
गोनू झा ने उससे कहा–”अभी तु ह डरने क ज रत नह है, बस जो पूछूँ, सच-सच
बताना।“ इतना कहकर गोनू झा ने अपनी बात का भाव देखने के िलए कोतवाल को
ऊपर से नीचे तक िनहारा। उनक –ि और भंिगमा से कोतवाल भीतर ही भीतर काँप
गया।

गोनू झा ने पूछा–‘‘कल रात तुम कहाँ थे?’’

थर-थर काँपते ए कोतवाल ने कहा–‘‘पंिडत जी, मुझे माफ कर। अब ऐसी गलती नह
होगी। कल म सुर ा ह रय को काम बताकर नौटंक देखने चला गया था क ‘बड़ा
बाजार’ म वह कांड हो गया। मुझे अवसर द। तमाम उच क नाक म नके ल डालकर
आपके कदम म ला पटकूँ गा। मुझे माफ कर द। फर कभी काम म ऐसी लापरवाही नह
क ँ गा।’’

कोतवाल क बात सुनकर गोनू झा मन-ही-मन मु कु राए, ले कन कट प म उ ह ने


कहा–”काम म लापरवाही करने वाले लोग तु हारी तरह ही ल बे-चैाड़े वादे करते ह...’’

वे कु छ और बोलते क कोतवाल ने गोनू झा के पाँव पकड़ िलए और िगड़िगड़ाते ए


कहने लगा–”पंिडत जी! एक मौका द। मेरे बाल-ब के िलए ही सही। फर कभी कोई
लापरवाही नह होगी। जीवन-भर आपका ऋणी र ग ँ ा।’’

गोनू झा ऐसा कट कर रहे थे क वे ‘बड़ा बाजार’ म ई शं◌ृखलाब चोरी के बाबत ही


कोतवाल से पूछ-ताछ कर रहे ह।

गोनू झा क भंिगमा से कोतवाल समझ रहा था क गोनू झा को मालूम है क कल वह


‘बड़ा बाजार’ म सुर ा- व था का काम अपने मातहत पर छोड़कर खुद मौज-म ती
करने के िलए िनकल गया था।

कोतवाल को भयभीत देखकर गोनू झा ने उससे कहा–”ठीक है, जो आ सो आ। अब


काम के ित थोड़ी भी लापरवाही नह होनी चािहए।’’

नगर कोतवाल क जान म जान आ गई। उसे संयत होने का अवसर देने के बाद गोनू झा
ने उससे कहा–”तीन साल पहले भड़ौरा ि थत मेरे आवास से एक चोर पकड़ा गया था।
उसक टाँग क ह ी टू ट गई थी। मुझे उसके बारे म जानकारी चािहए क अब वह कहाँ है।
‘बड़ा बाजार’ चूँ क भड़ौरा तहसील म पड़ता है और वह उस इलाके का पुराना िखलाड़ी
है, इसिलए तु ह कल रात ‘बड़ा बाजार’ म ई चोरी क घटना क त तीश म भी उससे
कु छ सुराग िमल जाएगा।“

गोनू झा का िनदश िमलते ही नगर कोतवाल वहाँ से चला गया।

इसके बाद गोनू झा महाराज के क से बाहर िनकल गए ले कन ार पर ही एक हरी ने


िवन ता से अिभवादन करते ए उनसे कहा–‘‘महाराज फु लवारी म आपक ती ा कर
रहे ह।’’

गोनू झा फु लवारी क ओर मुड़ गए। महाराज वहाँ िचि तत मु ा म टहल रहे थे। गोनू झा
को देखकर उ ह ने कहा–‘‘कल रात क घटना के बारे म तो आपको जानकारी िमल ही गई
होगी?’’

गोनू झा ने महाराज से कहा‘‘संयोग क बात है क ‘बड़ा बाजार’ क घटना मेरी आँख


के सामने घ टत ई। मने चोर के संग ठत िगरोह क स यता का पता लगाने के िलए
अपने ढंग से काम करना शु कर दया है। मुझे िव ास है क म इस घटना म संिल चोर
को खोज िनकालूँगा।’’

‘‘के वल इस घटना?’’ महाराज ने पूछा।

‘महाराज, यह तो शु आत होगी। कह से तो शु करना ही होगा। उ े य तो आपके


आदेश का अनुपालन ही है।’’ गोनू झा ने उ र दया।

गोनू झा के इस उ र से महाराज आ त ए।

गोनू झा महाराज से िवदा लेकर वापस अपने घर लौट आए।

दूसरे दन पौ फटते ही कोतवाल गोनू झा के घर प च


ँ गया। उस समय न गोनू झा जगे थे
और न उनक प ी। थोड़ी देर कोतवाल गोनू झा के दरवाजे के आसपास चहल-कदमी
करता रहा। फर एक पेड़ के नीचे रखी चैक पर बैठ गया और गोनू झा के जगने क
ती ा करता रहा।

लगभग घंटे भर बाद गोनू झा जगे। हाथ म लोटा िलए और कं धे पर गमछा रखे गोनू झा
शौच के िलए िनकले तो दरवाजे पर नगर-कोतवाल को बैठा देखकर उ ह ने समझ िलया
क चोर के बारे म जानकारी कोतवाल को िमल गई है। कोतवाल ने गोनू झा को आते देखा
तो चैक से उठकर खड़ा हो गया और नम कार कया। गोनू झा उसे बैठे रहने का इशारा
करते ए वहाँ से शौच के िलए िनकल गए।

शौच से िनवृत होकर गोनू झा घर प च


ँ ।े ान- यान के बाद नगर कोतवाल को अपने
कमरे म बुलवा िलया। और पूछा–”तो पता चल गया उस चोर का?“

कोतवाल ने ह षत होते ए बताया‘‘हाँ, पंिडत जी। तीन महीने पहले वह चोर कारागार
से मु कया गया है।’

‘‘और कु छ?’’ गोनू झा ने पूछा।

‘‘जी, बस इतना ही।’’ कोतवाल ने कहा।

कोतवाल का यह उ र सुनकर गोनू झा आवेश म आ गए और ोिधत वर म बोले, ‘‘अरे


तुम कोतवाल हो या भरभूज?े तु हारे इलाके म िबलकु ल सुिनयोिजत ढंग से शं◌ृखला-ब
चोरी ई। चोर आनन-फानन म बड़ा-बाजार के बड़े दुकानदार का सारा माल-असबाब
उड़ाकर ले गए। उस घटना के बारे म सुराग खोजने क कोई उ सुकता तुमम नह है?’’

नगर कोतवाल गोनू झा को आवेश म पहली बार देख रहा था। अब तक उसके मन म
गोनू झा क छिव एक मसखरे क थी। मगर गोनू झा का यह प देखकर उसे कु छ सूझ नह
रहा था क वह या बोले।

गोनू झा ने कहा‘‘सुनो कोतवाल, मुझे शाम तक पूरी त तीश से बताओ क कारागार म


उस चोर का आचरण कै सा था, उसके साथ और कौन-कौन लोग ब द थे, कारागार म
उसक कस- कस कै दी से बातचीत होती थी, उसका आम कै दय से कै सा वहार था,
कारागार से िनकलने के बाद वह कहाँ गया, वह मूलतः कहाँ का रहने वला था, कारावास
से िनकलने के बाद वह या- या कर रहा है।’’ कोतवाल िसर झुकाए गोनू झा क बात
सुनता रहा और जब नम कार कर जाने लगा तभी गोनू झा ने उसे टोका–‘‘और सुनो, सादे
िलबास म कु छ िसपािहय को आस-पास के गाँव के बाजार म तैनात कर दो। उ ह यह
िनदश दो क वे दुकान के आस-पास क गितिविधय पर नजर रख य क चोर का
मनोबल बढ़ा आ है वे कह भी इस तरह क घटना को अंजाम दे सकते ह।’’

नगर कोतवाल वहाँ से चला गया।

गोनू झा दरबार गए और महाराज से िमलकर उ ह ने उ ह सूचना दी क वे अब कु छ


दन तक दरबार नह आएँगे। और न बताएँगे क वे या कर रहे ह। महाराज ने उ ह
वीकृ ित दे दी।

इसके बाद गोनू झा ने उन सुर ा- ह रय से स पक साधा िजनका उपयोग उ ह ने ठग


उ मूलन अिभयान के दौरान कया था। कोषागार से उ ह आव यक धन उपल ध कराकर
गोनू झा ने उनम से कु छ को िमिथलांचल के िविभ े म छोटी दुकान खोलकर बैठ
जाने को कहा और कु छ को, याऊ बनाकर बैठ जाने का िनदश दया। उ ह ने उ ह यह
िनदश भी दया क इन काय क व था करके दो दन के बाद वे उनके आवास पर आ
जाएँ।

इस पूरी या से िनबटकर गोनू झा अपने घर लौट आए। िब तर पर लेट गए। थोड़े


िव ाम के बाद वे गाँव क तरफ िनकल गए। अपने पुराने प रिचत से िमलते रहे। गोनू झा
को अपने दरवाजे पर आया देख उनसे जलनेवाले भी स हो रहे थे। गाँव म गोनू झा
िजससे भी िमले, उसने ‘बड़ा बाजार हादसे’ का िज उनसे ज र कया। गोनू झा को
समझते देर नह लगी क गाँववाले चोर क स यता के ित सतक ह। वे शाम तक घर
वापस आए और बाहर ही चैक पर बैठे-बैठे नगर कोतवाल के आने क ती ा करने लगे।

शाम ढले नगर कोतवाल आया और गोनू झा को बताया क उनके आवास से पकड़ा गया
चोर कारावास म लंगड़ू उ ताद के नाम से िस हो गया था। उसके साथ तीन और
अपराधी उसक कोठरी म रखे गए थे– हरखू, बसावन और िवसनाथ। ये तीन राहजनी के
छोटे-मोटे मामले म पकड़े गए थे। कारागार म लंगड़ू उ ताद क पहचान दो बड़े
अपरािधय से भी ई थी। भोजन के समय ये दोन उसके आस-पास ही बैठते थे। इनम से
एक लुटेरा ऐसा था जो लूट के दौरान घातक-पैने हिथयार का योग करता था। सीमा त
े ा म एक ापारी को लूटने के म म वह पकड़ा गया था। तीन माह पहले जब लंगडू
उ ताद कारागार से छोड़ा गया, उसके दो ह त के अ तराल पर ये लोग भी छोड़े गए।
चाकू बाज लूटेरा उस दन ही छोड़ा गया िजस दन ‘बड़ा बाजार’ वाली घटना घ टत ई।
कोतवाल ने गोनू झा को उन सब के नाम-पता ठकाना आ द क सूची भी स प दी।

गोनू झा ने नगर कोतवाल क पीठ थपथपाई और कहा–”अब तुमने नगर कोतवाल क


तरह काम कया है। जाओ, अपने ढंग से ‘बड़ा बाजार कांड’ क जाँच शु करो। जैसे ही
कोई सुराग हाथ लगे, मुझे खबर करना।“

दो दन शाि त से गुजरे । कह कोई घटना नह ई। गोनू झा इन दो दन म गाँव म


घूमते रहे और गाँव वाल से कहते रहे क वे एक बड़ा जलसा करने वाले ह। महाराज के
दरबार म िवदूषक बनाए जाने के बाद वे सीधे दरबार के काम से जुड़ गए। गाँव के लोग से
िमल नह पाए। अब महाराज से छु ी माँगकर वे अपने-लोग से िमलने-जुलने का काम कर
रहे ह। ज दी ही गाँव भर को भोज कराएँग।े शुभ मु त देखने के बाद ितिथ क घोषणा
करगे।

इसी दौरान उनके चु नंदे सुर ा हरी और िवशेष िशि त ं ग ट उनके घर आते और
अपने काम क जानकारी उ ह देत।े गाँव के लोग को गोनू झा बताते क ब त बड़ा जलसा
होगा। महाराज भी इस जलसे म आएँग।े

फर एक दन गाँव म अचानक खबर फै ली क दरअसल गोनू झा को अश फय से भरा


गागर िमला है हजार अश फय से भरा गागर। ल मी क इसी अनुक पा के कारण गोनू
झा जैसे िन ावान और सूझ-बूझवाला आदमी महाराज क नजर म कोई दूसरा नह है।
ल मी कृ पा के कारण ही गोनू झा बड़ा जलसा करने क सोच रहे ह और महाराज इस
जलसे म इसिलए शािमल ह गे क वे गोनू झा को िसफ दरबारी नह , अपना िम ा भी
मानते ह। इसके बाद तो हर रोज नई-नई खबर फै लत । गोनू झा के पास रं ग ट का आना-
जाना बढ़ गया।

एक दन गाँववाल ने देखा, गोनू झा रे शम का कु ता-धोती पहने सफे द घोड़े पर सवार


होकर कह जा रहे ह। गोनू झा घोड़े पर सवार होकर पड़ोस के गाँव के बाजार म गए और
वहाँ एक सादे िलबास म सुर ा हरी क दुकान म काफ देर तक ाहक के प म बैठे।
इसी तरह दूसरे दन दूसरे बाजार म, तीसरे दन तीसरे बाजार म गोनू झा दुकानदार बने
सुर ा- ह रय क दुकान म जाते, बैठते और वापस लौट आते। अचानक ही गोनू झा के
रहन-सहन म बदलाव देखा जाने लगा और ह ता भर म ही पूरे िमिथलांचल म चचा होने
लगी क गोनू झा के पास अकू त दौलत आ गई है।

गोनू झा के दरवाजे पर सफे द, अरबी न ल का घोड़ा बँधा था। ऐसा घोड़ा महाराज के
घुड़साल म भी नह था। फर एक दन गोनू झा के घर के सामने वाले खेत म बड़ा सा
पंडाल बनने लगा। कनात लगने लगे। िमिथलांचल के िविभ बाजार म तैनात उनके
दुकानदार ारा िविभ तरह क खरीददा रयाँ क ग और खूबसूरत िड ब और थैिलय
म इन चीज को ऐसे रखा गया मानो इनम कोई ब मू य व तु हो! ये िड बे गोनू झा के
दरवाजे पर रखी चैक पर रखे जाते जहाँ उनक फे ह र त बनती। फर इस काम म इतना
िवल ब कया जाता क घंट ये चीज चैक पर ही पड़ी रहत । इस बीच गाँव के लोग उधर
से गुजरते और उन चीज को देखने के िलए गोनू झा के दरवाजे पर मजमा-सा लगा लेते।
जब भीड़ ढ़ती तब गोनू झा बाहर िनकलते और चीखते–‘‘अरे मूख ! दरवाजे पर इन चीज
क दशनी लगाना ज री है या? उठाओ यह सब–मेरी कोठरी म ले जाकर रखो। वह
िहसाब- कताब कया करो।“ फर ामीण से बोलते–”अरे भाई लोगो! ये चकमक करते
िड बे मँगवाए ह। यहाँ जो जलसा होगा न, उसम बाहर से कई मह वपूण, नामी-िगरामी
लोग भी आएँगे। उ ह इन िड ब म िमठाई दी जाएगी। भं◌ेट के प म थैिलय म
िमिथलं◌ाचल का उपहार–मखाना भरा जाएगा। जाइए आप लोग, जलसे के दन तो आप
सब यहाँ आमंि त ह ही। जो होगा, वह देख ही लीिजएगा। जाइए, अपने काम-धाम म
लिगए।’’

...और गाँव के लोग आपस म बितयाते ए लौटते क जड़ाऊ थैली म मखाना? अरे उस
छोटी थैली म मखाना कतना आएगा? पाव भर भी समा जाए तो गनीमत है। गोनू झा के
पास दौलत या आ गई क पूरा गाँव को मूख समझने लगे।

रं ग ट का द ता गोनू झा के िनदश पर लंगडू उ ताद और उसके सािथय के गाँव म


मटरग ती करता रहता था। इन गाँव म गोनू झा के जलसे क तैयारी, अचानक अश फय
का अकू त भंडार िमलने, शानदार कपड़ म घुड़सवारी करने आ द क खबर फै ल चुक थ ।
चचा लंगडू उ ताद के कान म पड़ी। वह गोनू झा को भूला नह था। भूलता भी कै से। उनके
कारण उसे अपनी एक टाँग गँवानी पड़ी और तीन साल कारावास म रहना पड़ा।

लंगडू उ ताद ने अपने सािथय से स पक साधा और उन सबको गोनू झा के पास जाकर


जलसे क तैयारी के िसलिसले म काम माँगने के िलए कहा। गोनू झा के पास जब कु छ
अजनबी काम माँगने आए तब गोनू झा ने उ हं◌े गौर से देखा। ऐसा पहली बार हो रहा था
क कोई उनके पास बाँस-कनात लगाने का काम माँगने आया था। मन-ही-मन गोनू झा ने
कु छ िवचार कया और उन लोग को बाँस खड़ा करने के िलए िम ी खोदने के काम म लगा
दया। इसके थोड़ी ही देर बाद रं ग ट ने आकर खबर दी क कल रात से ही लंगडू उ ताद
के पाँच साथी अपने घर से लापता ह। गोनू झा इस सूचना पर मु कु रा दए और उन
रं ग ट को जहाँ कनात लगाए जाने क व था ई थी उस ओर संकेत करते ए
कहा–”तुम लोग वहाँ िम ी खोदने के काम म लगे लोग पर नजर रखो। यान रहे, उनसे
कोई बातचीत नह करोगे मगर उनक येक हरकत तुम लोग क नजर म होनी
चािहए।“

सूरज अ त हो चुका था। गोनू झा मु तैदी से कनात लगाने क तैया रय का जायजा ले


रहे थे। एक आदमी, माथे पर पगड़ी बाँधे लंगड़ाता आ गोनू झा के पास आया और
नम कार करके बोला–”मािलक, सुना है क आपके यहाँ कोई बड़ा भोज-भात होने वाला
है। म हलवाई ।ँ य द भासन-भात बनाने का काम िमल जाता...“

गोनू झा ने उसे देखा और उ ह समझते देर नह लगी क यह आदमी और कोई नह ,


लंगडू उ ताद ही है। उ ह ने हँसते ए कहा–‘‘अब मेरे दरवाजे से कोई िनराश नह
लौटेगा। यह बताओ क दो-ढाई हजार आदमी के िलए छ पन पकवान बनाने के िलए
कतने चू ह क ज रत होगी और यह कतने दन म तैयार हो जाएगा?’’

लंगडू उ ताद गोनू झा के सवाल से सकपका गया। बोला–‘‘मािलक, कभी इतना बड़ा
जलसा के िलए काम नह कया है। कै से बताएँ? भात, दाल, भुिजया, पापड़, अचार, दही,
तरकारी, ल डू, बुिनया बनाने का काम जानते ह...।’’

गोनू झा ने द रया दली दखाते ए कहा–‘‘कोई बात नह । आज से तुम पहले छ पन


चू हे बनाने के िलए िम ी खोदो। अके ले न कर सको तो बाँस के िलए िम ी खोदने के काम
म लगे लोग को साथ म ले लो।“ फर उ ह ने बाँस लगाने के काम म लगे लोग से
कहा–”अरे तुम सब सुन लो, यह हलवाई तु ह जो कहे, वह करना। काम अ छा होना
चािहए। मजदूरी के साथ ही भोजन और इनाम दोन िमलेगा। समझ गए?“

सभी ने हामी भरी।

गोनू झा मु कु राते ए वहाँ से लौट आए। थोड़ी ही देर म लंगडू उ ताद के गाँव म तैनात
ं ग ट भागते ए गोनू झा के पास प च
ँ ।े

गोनू झा पहले ही समझ चुके थे क या बताने आए ह। उ ह ने मु कु राते ए


कहा–‘‘तु हारा ‘असामी’ िम ी खोदने के काम म लगा है। जाओ, उन पर नजर रखो।’’

गोनू झा ब त खुश थे। उ ह अपनी कामयाबी का पूरा भरोसा हो गया था। एक रं ग ट


को भेजकर उ ह ने नगर कोतवाल को तलब कया। नगर कोतवाल के आने पर उ ह ने
िनदश दया क सादे िलबास म आज रात अपने सभी िसपािहय के साथ वह उनके घर के
आस-पास च र लगाता रहे। काम मु तैदी से होना चािहए, और पूरी गोपनीयता बरती
जाए।

कोतवाल को िनदश देकर वे घर म गए और पंिडताइन को सोलह ृंगार करने को कहा।


पंिडताइन कु छ बोलती, इससे पहले ही गोनू झा ने कहा क समय नह है सवाल-जवाब
करने का। खुद वे कपड़ा बदलने लगे। रे शम का कु ता। उसम नगीने जड़े सोने के बटन।
मलमल क धोती। पाँव म जूता।

पंिडताइन भी सज-धजकर तैयार हो गई। उसको कु छ भी समझ म नह आ रहा था क


इन दन गोनू झा या कर रहे ह और य कर रहे ह। गोनू झा के तेवर और मुख-मु ा से
यही लग रहा था क वे कु छ सुनगे नह । इसिलए पित ता नारी क तरह पंिडताइन दूसरे
आदेश क ती ा म खड़ी हो गई।

गोनू झा ने कहा”हाय! इस प को देख लोग गश खा जाएँगे। जरा घूँघट िनकाल लो।“


खुद हाथ बढ़ाकर उ ह ने पंिडताइन का घूँघट तैयार कया िजसम पंिडताइन का चेहरा
दखे भी और यह भी लगे क उ ह ने घूँघट िनकाल रखा है। फर उ ह ने पंिडताइन का
हाथ थामा और घर से बाहर आए। बाहर आकर उ ह ने पंिडताइन का हाथ छोड़ा और
साथ-साथ चलते ए वहाँ प च ँ े जहाँ पंडाल बनाने क तैयारी चल रही थी। ायः हर
मजदूर के पास ककर गोनू झा पंिडताइन से कु छ-कु छ बताते रहे। गाँव वाल क जब उन
दोन पर नजर पड़ी तब धीरे -धीरे वहाँ भीड़ जुटने लगी। घंटे-डेढ़ घंटे के बाद पंिडताइन
को लेकर गोनू झा अपने घर म चले आए।

सूरज ढलने के बाद काम ब द आ। मजदूर और रं ग ट काम बंद कर हाथ-मुँह धोने के


िलए तालाब क ओर िनकल गए। गोनू झा अपने चुिन दा सुर ाक मय के साथ अपने घर
के बाहर वाले कमरे म चले गए। यह वही कमरा था िजसम खूबसूरत िड बे और थैिलयाँ
सजाकर रखी गई थ ।

रात को गोनू झा के दरवाजे पर छोटे भोज का – य था। रं ग ट, सुर ा हरी और


मजदूर के वेश म आए लोग भोजन कर रहे थे।
जब सोने क तैयारी शु ई तब गोनू झा ने लंगड़ाकर चलने वाले हलवाई से
कहा–‘‘भाई, तुम ईमानदार, मेहनती और िन ावान ि लगते हो। जमाना ब त खराब
है। इधर आओ।’’ िड बे और थैिलय वाले क म ले जाकर उसे खड़ा कया और
कहा–”देखो, इस क म लाख का सामान पड़ा है।“ दीवार के कनारे एक के ऊपर एक
बोरे रखे ए थे। उ ह दखाते ए गोनू झा ने लंगडू से कहा–”भोज क तैयारी के िलए इन
बोर म चावल, दाल, आलू, याज आ द रखा आ है। इतने लोग म तुम ही एक ऐसे
आदमी हो िजसे म यह दखा रहा ।ँ तुम बरामदे म सोना और इस कमरे पर नजर रखना।
जमाना खराब है। या पता, कब कसक िनयत म खोट आ जाए!’’

लंगड़ा हलवाई ने गोनू झा क बात सुन तो उसके मन म ल डू फू टने लगे। उसने


कहा–‘‘मािलक, म हो तो कु छ लोग को और साथ ले लू?ँ लाख क रखवाली क बात
है। हम रात भर जगकर पहरा दगे। या मजाल क िचिङया भी पर मार सके !’’

गोनू झा ने कहा–‘‘जैसा तुम ठीक समझो। वे लोग कै से ह, जो तु हारे साथ िम ी खोदने


का काम कर रहे थे?’’

‘‘जी, मािलक, ब त होिशयार लोग ह। अब तो दो ती भी हो गई है। कह तो उ ह ही


बुला लूँ?’’ लंगड़ा हलवाई ने पूछा।

‘‘हाँ-हाँ, य नह ! उ ह ही बुला लो। ले कन यान रखना, दरवाजे का ताला कमजोर है।


एक झटके म खुल जाता है। काम क भीड़ म ताला मँगवाना भूल गया। कल मँगा लूँगा।
आज रात क ही बात है।...देखो, तुम पर भरोसा करके यह िज मेदारी तु ह स प रहा ।ँ “

गोनू झा वहाँ से मु कु राते ए अपने घर म चले गए। दो हर रात बीतने तक स ाटा


छाया रहा। रात का तीसरा हर शु आ ही गोनू झा के दरवाजे से ‘ध प! धड़ाम!!’ जैसी
आवाज के साथ कसी क घुटी-घुटी चीख क आवाज आने लग । पंिडताइन क न द
खुली और वे गोनू झा को जगाने के उ े य से गोनू झा का कं धा पकड़कर िहलाने लगी। गोनू
झा सोए नह थे। उ ह ने पंिडताइन को अपनी बाँह म भर िलया और उसे चूमते ए कहने
लगे–”न जाने कतने दन से अरमान था क तुम पहल करो।“ पंिडताइन शरमा गई और
बोली–‘‘धत्! बाहर सुन नह रहे क कै सी आवाज आ रही ह? आप ह क द लगी कर रहे
ह।’’

गोनू झा उसी तरह प ी को आगोश म िलए बोलने लगे–‘‘अरे कोई बात नह है जलसे
क तैयारी चल रही है न, तो थोड़ी आवाज तो आएँगी ही। आओ...’’

पंिडताइन उनसे िछटककर दूर हो गई। फर बोली–‘‘पंिडत जी, लग रहा है क ‘दुअरा’


पर मार-पीट हो रही है।’’
ले कन गोनू झा ने फर प ी को बाँह म भ च िलया और बोले–‘‘तो आओ न, यहाँ भी
कु छ उठा-पटक हो जाए।’’

पंिडताइन ने उ ह फर अपने से झटककर अलग कया। बोली– ‘‘आपको कु छ बुझाता


नह है क कब या कर? बाहर धमाचैकड़ी क आवाज आ रही ह। ऐसा लग रहा है क
ब त से लोग आपस म मारपीट कर रहे ह और आप ह क रिसक िबहारी बने ए ह।’’

प ी क झुँझलाहट का आन द लेते ए गोनू झा िब तर से उठे । कु ता पहना और


बोले–‘‘हाँ, तो भा यवान अब अपना आँचल ठीक कर लो। तु ह ले ही चलूँ बाहर जलसा
दखाने। अब पौ फटने ही वाला है। गाँव के लोग तमाशा देखने प च
ँ गए ह गे। सुबह तक
महाराज भी आ ही जाएँगे।’’

अभी उनक बात ख म भी नह ई थ क दरवाजे पर द तक होने लगी। पंिडताइन ने


वाचक –ि से गोनू झा क ओर देखा तो गोनू झा मु कु राए और बोले–‘‘िसर पर प लू
रख लो। शुभ मु त क सूचना आ गई है। हम पित-प ी एक साथ िनकलगे और जलसे के
खास मेहमान का वागत करगे।’’

पंिडताइन कु छ समझ पाती, उससे पहले ही गोनू झा ने उसका एक हाथ अपने हाथ म
िलया और दरवाजे क तरफ बढ़ गए।

गोनू झा के दरवाजे पर बड़ी भीड़ थी। गाँव म ह ला हो गया था क गोनू झा के घर


डाका डालने के िलए डकै त का िगरोह आया आ था िजसको मजदूर ने पकड़ िलया है।
नगर कोतवाल न जाने कहाँ से पूरे दल-बल के साथ वहाँ प च ँ गया और सारे डाकू
िगर तार कर िलए गए।

गोनू झा अपनी प ी के साथ घर से बाहर आए तो ामीण म उ सुकता जगी। वे उनक


ओर आने लगे। गोनू झा ने ऊँची आवाज म कहा–‘‘अरे कोई नह है या–हमारे गाँव के
लोग जलसा का मजा लेने आए ह और यहाँ रोशनी का इं तजाम तक नह है?’’

आनन-फानन म कु छ मशाल जला ली ग । गोनू झा ने कोतवाल को बुलाया और


पूछा–‘‘ य भाई, नगर कोतवाल, जलसा का उ ाटन भी हो गया और न हम खबर दी, न
गाँववाल को? महाराज को खबर दी या नह ?’’

कोतवाला बोला‘‘जी हाँ, जूर! महाराज जैसे ही जगगे, उ ह सूचना िमल जाएगी।’’

गाँववाल को इशारा करते ए गोनू झा ने कहा–‘‘आओ भाइयो! जब तक महाराज प च



तब-तक जलसा का मजा ले लो। या कर, अचानक शुभ मु त िनकल आया इसिलए आप
लोग के पास बुलावा भेज नह पाया। अब इसे ही हमारा सादर आम ाण समिझए।“
गाँववाले गोनू झा और पंिडताइन के पास प च
ँ गए।

पंिडताइन कु छ समझ नह पा रही थी क माजरा या है? गाँववाल के साथ-साथ वह


भी च कत, भरमाई-सी खड़ी रही।

गोनू झा लंगड़ा हलवाई के पास प चँ े और उसका कं धा थपथपाते ए कहने लगे–‘‘ य


भाई, यह तु हारा हाथ-पाँव कसने बाँध दया? कोई बात नह , अब तु हारा हाथ-पाँव
जब खुलेगा, तब भात, दाल, भुिजया, तरकारी बनाने का काम ही करना। म इ तजाम कर
दूग
ँ ा। गम न करो। जो आ, सो आ।“ बाक चोर क ओर इशारा करते ए उ ह ने
कहा–‘‘तुम चाहते थे क ये लोग तु हारे साथ रह। दो ती हो गई थी न! कोई बात नह ।
ऐसा ही इ तजाम करवा दूग ँ ा क तुम सब साथ-साथ रहो। रात भर जागकर बात करते
रहना। ठीक है न? यही इ छा जताई थी न तुमने?’’

गोनू झा ने रं ग ट को इशारे से बुलाया और ामीण के बैठने का इ तजाम करने को


कहा। दरी-जािजम आई। िबछाई गई। मशाल क रोशनी म गोनू झा का दरवाजा
आलो कत हो रहा था, जैसे वहाँ वाकई कोई जलसा हो रहा हो! गाँव क मिहलाएँ भी वहाँ
जमा हो ग । ब े भी। गोनू झा बीच-बीच म कह उठते–”भाइयो, उकताना नह । यह ऐसा
जलसा है, ऐसा तमाशा जैसा तुम लोग ने कभी देखा न होगा।“

इसी तरह समय बीतता रहा।

पूरब के आकाश म लािलमा छा चुक थी। पि य क चहचहाहट से दशाएँ अनुगूँिजत


होने लग । म द शीतल समीर के साथ उजास फै लने लगा। मशाल बुझा दी ग । रं ग ट ने
ामीण को शबत िपलाया। ामीण इस आस म बैठे थे क सच म वहाँ कोई जलसा होगा
और उसके बाद गोनू झा इन ‘डकै त ’ क खबर लगे। महाराज वहाँ खुद पधारनेवाले ह, यह
सुनकर भी गाँव के लोग क भीड़ जमी ई थी। दरी-जािजम िबछ जाने से उनको सुिवधा
हो गई थी–बैठने क । अब शबत भी बँट रहा था। ामीण उ सुकता से बँधे बैठे थे। गोनू झा
के चुिन दा लोग स य थे। गोनू झा के दरवाजे पर बने चबूतरे पर एक आसन रखा गया।
फर दो छोटे आसन उस बड़े आसन के आजू-बाजू रखे गए। इन आसन पर मखमल के
खोलवाले ग े िबछाए गए...।

अब पूरी तरह से उजाला हो चुका था। तभी कु छ रं ग ट दौड़ते ए आए और गोनू झा के


कान म कु छ फु स-फु साकर लौट गए। गोनू झा ने अपनी-प ी क कलाई पकड़ी और
ामीण से कहा–‘‘आओ भाइयो, महाराज पधारनेवाले ह! एक बार इस खुशी म जयकारा
लगाओ।’’ गोनू झा जयकारा लगाने लगे–”महाराज क ...“ ामीण ने ऊँचे वर म कहा–
”जय हो!“

कु छ देर म ही महाराज क सवारी गोनू झा के दरवाजे पर प च


ँ ी और जयनाद से उनका
वागत आ। मु दत मन से महाराज ने आसन- हण कया। उनके आजू-बाजू गोनू झा और
पंिडताइन बैठे। ामीण भी अपने थान पर बैठ गए।

महाराज ने धीरे से कहा–‘‘यह या पंिडत जी, आपने तो अ छा मजमा लगा िलया।


इतनी भीड़ तो कसी सभा म भी नह जुटती। लगता है, पूरा गाँव यहाँ जमा है।’’

गोनू झा ने भी धीमे वर म कहा‘‘महाराज! मजमा तो अनायास लग गया है। मने तो


िमिथलांचल को चोर के उ पात से छु टकारा दलाने के योजन से अपने ढंग से अिभयान
चलाया था और मुझे इस अिभयान क ऐसी सफलता का भरोसा भी नह था ले कन संयोग
कु छ ऐसे जुटते गए क अपने आप चोर का एक शाितर िगरोह फं दे म आ गया। ज दी ही
अ य चोर क िगर तारी हो जाएगी।’’

महाराज ने मु दत मन से पूछा–”मुझे बताइए पंिडत जी, या आ और कै से आ?’’

गोनू झा ने कहा–‘‘महाराज, म सो रहा था। जो भी कु छ आ, वह इन जवान से मुझे भी


पूछना है। य द आ ा द, तो ामीण के सामने इन रं ग ट से सारी कहानी सुनी जाए।
इससे ामीण को भरोसा होगा क आप जाव सल ह और उनक सुर ा के िलए
िमिथलांचल क शासन व था चाक-चैब द है।’’

एक िव त रं ग ट को गोनू झा ने बुलाया और आ ा दी क वह सारी घटना का


िववरण दे।

रं ग ट ने चोर को जाल म फँ साने के िलए कए गए सभी य का यौरा दया फर


बताया क िजस कमरे म ब मू य साम ी और लाख का सामान होने क बात कही गई
थी उस कमरे म बोर म घुसकर रं ग ट बैठे थे। कसी को इस बात क भनक तक नह थी।
यह बात या तो गोनू झा जानते थे या फर वही रं ग ट जो बोरे म ब द थे। आधी रात के
बाद चोर ने दरवाजे का ताला झटका मारकर खोल िलया और कमरे म वेश कर भीतर
से कुं डी लगा ली। ये लोग उन िड ब को समेटने म लग गए िजनम क मती उपहार होने का
अंदश े ा था। उसी समय बोर म ब द सभी रं ग ट झटके से बाहर आए और उन चोर को
दबोच िलया।

महाराज ने मु कं ठ से गोनू झा क शंसा क ।

गोनू झा ने महाराज से कहा–‘‘महाराज, अब इस काय म िजन जवान के सहयोग से


सफलता िमली है, उ ह अपने हाथ से पुर कार दान कर।’’

न शीदार िड बे मँगाए गए और एक-एक रं ग ट और सुर ा हरी को वे िड बे दए


गए। फर बारी आई ामीण क तो उ ह थैिलयाँ भट क ग । सचमुच थैिलय म मखाना
और बताशा ही थे। मगर ामीण खुश थे क महाराज के हाथ उ ह यह उपहार िमला।

महाराज वहाँ से िवदा ए। नगर कोतवाल सभी चोर को लेकर हवालात प चँ ा जहाँ से
उ ह कारागार भेज दया गया। उनसे पूछताछ के आधार पर िमिथलं◌ाचल के बाजार म
स य चोर के बारे म मह वपूण जानका रयाँ िमल िजससे ह ते भर म ही बड़े पैमाने पर
चोर क िगर तारी ई। इस तरह चोर क िगर तारी होने से अ य चोर या तो िमिथला
से भाग गए या फर भूिमगत हो गए।

जब महीने-दो महीने तक िमिथला म चोरी क कोई घटना नह ई तब एक दन


महाराज ने दरबार म बताया क कस तरह गोनू झा क सूझ-बूझ से िमिथला से चोर का
सफाया हो पाया।

गोनू झा के िलए यही ब त बड़ा पुर कार था।


ठग उ मूलन अिभयान
िमिथला म चोर-उच और ठग का कभी ब त जोर था। चोर-उच के इस जोर के
कारण ही कोई अजनबी न तो िमिथला जाना चाहता था और न वहाँ के लोग से मेल-जोल
बढ़ाने का ही साहस कर पाता था। िमिथलांचल नरे श ने चोरी और ठगी रोकने के कई
उपाय कए ले कन सारे िवफल रहे।

एक दन उ ह ने गोनू झा से कहा–”अब आप ही कोई उपाय कर पंिडत जी! रा य म


चोरी और ठगी क घटनाएँ इतनी बढ़ गई ह क पड़ोस के रा य से कोई िमिथला मण के
िलए आना ही नह चाहता। िमिथला क कला मक त वीर के िलए पहले यहाँ पयटक क
भीड़ लगी रहती थी। िमिथला अपने ाकृ ितक रं ग-िनमाण के िलए अपनी िसि के
कारण ापा रय को भी आक षत करता था। मखाने क खेती म यह े ा अ वल है
ले कन चोर और ठग के उ पात के कारण अब मखाने के ापार पर भी असर पड़ने लगा
है। िमिथला क मछिलयाँ दूर-दराज तक के खरीददार ले जाया करते थे ले कन मछिलय
क माँग भी कम होती जा रही है। य द यही हाल रहा तो राज व म कमी आएगी और हम
नए कर लगाने ह गे। इससे हमारी जा पर अित र आ थक दबाव आएगा। यह उिचत
नह होगा। मुझे िव ास है पंिडत जी आप ही कोई ऐसा रा ता िनकालगे िजससे िमिथला
क जा को इन ठग -चोर और लुटेर से िनजात िमल सके गी।“

गोनू झा िमिथला नरे श क बात को प आदेश के प म लेते थे। खर बुि और


व रत सूझ के अपने िविश गुण के कारण गोनू झा िमिथला नरे श के दरबार म सभी
दरबा रय से िभ थे। उनक इस िवशेषता के कारण ही िमिथला नरे श उनका स मान
करते थे। िमिथला नरे श क बात सुनकर गोनू झा ने कहा–”महाराज! आपका आदेश िसर-
आँख पर। बस, मुझे रा य के सुर ा- ह रय म से कु छ ह रय का चुनाव कर उनसे
मनचाहा काम लेने क सुिवधा दान कर।“

महाराज ने गोनू झा को यह सुिवधा दान कर दी।

गोनू झा ने सुर ा ह रय म से अपनी पस द के जवान का चुनाव कया और उ ह अपने


गाँव म ामीण जैसे िलबास म बुलवाया। तीन-चार दन तक वे उ ह समझाते रहे क
उ ह या करना है। इसके बाद वे महाराज के पास गए तथा कहा–”महाराज, अब म ठगी-
चोरी िनषेध अिभयान पर लग गया ।ँ न तो अगले तीन माह तक म दरबार म आऊँगा
और न यह बताऊँगा क म और मेरे हरी या कर रहे ह और न यह बात आप कसी भी
कारण से मुझसे पूछगे।“
महाराज ने वीकृ ित दे दी।

गोनू झा ने इन सुर ा ह रय को पयटक के वेश म िविभ े के धमशाला म


ठहर जाने का िनदश दया तथा राजकोष से मँगाकर सबको कु छ-कु छ धन भी दान
कया। जवान के चयन म गोनू झा ने एक िवशेष नीित अपनाई थी। उ ह ने ऐसे जवान
का चयन कया था जो देखने म मूख लगते थे। तीन दन के िश ण के दौरान उ ह ने इन
जवान को मूखतापूण ढंग से देखने, बोलने आ द क कला भी िसखाई थी।

गोनू झा के गाँव से थोड़ी दूरी पर एक मवेशी मंडी थी जहाँ रिववार को मवेिशय का


बाजार लगा करता था। एक सुर ा हरी कसान के वेश म उस हाट म भेजा गया। वह
दन भर हाट म घूमता रहा और मूख के से हाव-भाव के साथ मवेिशय के पास जाता,
उ ह िनहारता और फर उसके मािलक से उसक क मत पूछता फर अपनी अंटी से पैसे
िनकालकर उ ह सबके सामने िगनने बैठ जाता। फर कहता क उसके पास पैसे कम ह।
लगभग चार-पाँच च र वह पूरे हाट का लगा चुका था। अब वह कसी भी मवेशी के पास
कता तो मवेशी का मािलक उसे दु कार कर भगा देता–‘‘जा-जा, आगे बढ़। लेना न देना
आ गया फर मगज चाटने!’’

हाट म घूम-घूमकर थक जाने के बाद वह जवान एक जगह पर बैठ गया। उसने महसूस
कया क उसके आस-पास, थोड़ी-थोड़ी दूरी पर चार लोग बैठ गए ह। चुपचाप! सब क
पीठ उसक तरफ थी। जवान ने फर अपनी अंटी से पैस क थैली िनकाली और वहाँ
बैठकर उ ह िगनने लगा। पैसे िगनकर उसने थैली म डाले और थैली अपनी अंटी म रखकर
वह फर से मंडी के च र लगाने लगा। च र लगाते-लगाते उसक नजर एक छोटे से बछड़े
पर पड़ी। वह बछड़े के मािलक से उसका मोल पूछा। पहले तो बछड़े का मािलक उस पर
नाराज आ मगर जब उसने अपनी अंटी से पए िनकालकर दखाए तो उसने उसक
क मत दो सौ पए बताई। मोल-तोल करने के बाद डेढ़ सौ पए म बछड़ा खरीदकर वह
जवान उस बछड़े को अपने कं धे पर लाद िलया और गोनू झा के गाँव क ओर चलने को
आ तो िजसने बछड़ा बेचा था, वह उसक मूखता पर हँसते ए पूछा– ‘‘बड़े मजबूत
जवान हो! कस गाँव से आए हो?“

जवान ने चलते ए कहा–”भड़ौरा गाँव है मेरा। भड़वारा जानते हो न? वही।’’

इतने म चार लोग उसके पास से लगभग दौड़ते ए िनकल गए। जवान ने देखा, ये वही
चार लोग थे जो कु छ देर पहले उसके आस-पास आकर बैठ गए थे। जवान ने उ ह देखकर
अनदेखा कर दया और धीमी चाल से वह आगे क ओर चल पड़ा। मवेशी मंडी से थोड़ी दूर
िनकल जाने के बाद एक मोड़ पर उसने देखा क एक आदमी उसे कने का इशारा कर रहा
है, मगर वह उस पर िबना यान दए धीरे -धीरे आगे बढ़ता रहा। उसे इशारा करनेवाला
आदमी तेज कदम से चलकर उसके पास आ गया और कहने लगा–‘‘का गणेशी भाई!
नाराज छी क ? अतेक आवाज देल , इशारो कै लो, अहाँ यानो न देल ? कऐक?“ ( य
गणेशी भाई, नाराज ह या? इतनी आवाज दी, इशारा भी कया मगर आपने यान ही
नह दया, य ?)

जवान अपनी धीमी गित से चलता रहा। उस आदमी ने फर कहा– ‘‘क बात छई,
बोलवे न हं करई छी?’’ ( या बात है? बोलते ही नह ह?)

तब जवान ने िबना उसक ओर देखे कहा–”मेरा नाम गणेशी नह , माधो है। माधो!
माधव झा! मुकुंद माधव झा!’’

”हाँ यौ झा जी। ई बताऊ क ई बकरा कतेक म भेटल? (हाँ! झा जी। यह बताइए क यह


बकरा कतने म िमला?)

‘‘ई बकरा?’’...माधो झुंझलाया और बोला–‘‘तु ह यह बकरा दख रहा है?’’

‘‘त आउर का?’’ (तो और या?)

माधो चलते ए बोल रहा था–‘‘भाई, इ बकरा नह है।

बाछा है–बाछा।’’ ‘‘बाछा? कौन कहता है? अरे बकरा और बाछा म अ तर नह समझता
या? या मेरे पास आँख नह हं◌?ै य मूख बना रहे हो?’’ वह आदमी अब रोष म बोल
रहा था।

माधो ने भी उ ेिजत होकर जवाब दया–‘‘हाँ, बाछा है, बाछा... बाछा... बाछा...। एक
नह , सौ बार बाछा।’’

उस आदमी ने माधो से भी ऊँची आवाज म कहा, ‘‘बकरा-बकरा-बकरा!’’

माधो फर चीखा–‘‘बाछा...बाछा...बाछा!’’

ऐसे ही चीखते-चीखते दोन गाँव के मोड़ तक प च ँ गए। वहाँ उ ह तीन आदमी दखे।
उनम से एक ने उ ह टोका–”अरे ! य चीख रहे हो दोन ?’’

माधो ने आँसा होकर कहा–‘‘यह आदमी मेरे बाछा को बकरा बता रहा है।’’

‘‘बाछा?’’ चककर उस टोकनेवाले आदमी ने पूछा–‘‘कहाँ है बाछा?’’

माधो ने मासूिमयत से जवाब दया–‘‘मेरे कं धे पर।’’

वह आदमी ठठाकर हँस पड़ा। फर हँसते-हँसते बोला–‘‘अ छा मजाक कर लेते हो।’’


‘‘मजाक? म मजाक नह कर रहा ।ँ मेरे कं धे पर बाछा है और यह आदमी मुझे तब से
तंग कर रहा है–‘बाछा नह , बकरा है’ कह-कहकर मुझे आिजज कर चुका है।’’

‘‘अरे भाई! है बकरा तो बाछा कै से कह दे कोई? अब तुमको बाछा को बकरा कहना हो


तो कहो।’’ उस आदमी ने कहा।

उसक बात सुनकर माधो ने अपने कं धे से बाछा को उतारा और उसे देखने लगा। फर
बोला–‘‘यह बाछा ही है। य मुझे परे शान कर रहे हो? जाओ, अपना रा ता देखो।’’

अभी ये बात हो ही रही थ क गाँव के मोड़ पर खड़े दो आदमी माधो क तरफ आ गए।
माधो ने उ ह देखा–उसे याद आया–जब वह मंडी म सु ताने के िलए बैठा था तब यही
चार उसके आजू-बाजू आकर बैठ गए थे।

उन दोन ने बाछा को सहलाया, फर बोले–‘‘वाह! या बात है! ब त म त बकरा है


तु हारा। बोलो, बेचोगे?’’

माधो उनक बात सुनकर हताश-सा दखने लगा। उनम से एक ने फर कहा–‘‘बताओ


कतने म बेचोगे? मुझे पस द आ गया है। ब त शानदार बकरा है।’’

माधो बारी-बारी से चार को देख रहा था। उसे चुप देखकर उन चार म से एक ने
कहा–”अरे भाई, तुम तो बाछा खरीदने गए थे। मतलब क तु ह तो बाछा क ज रत है,
बकरे क नह । ऐसे म ई बकरा तो तु हारे िलए बेकार आ न? ऐसे...तु हारी मज । तु हारे
िलए जो फालतू चीज है– उसक हम ज रत है। तु ह तो खुश होना चािहए क जो चीज
तु हारे िलए फालतू है उसका खरीददार तु ह राह चलते िमल गया। बेचना चाहो तो बेच
दो। िजतने म लाए हो उतनी रकम तु ह हम दे दगे। बोलो, कतने म खरीदा था?“

माधो ने मायूसी-भरे श द म बोला–‘‘डेढ़ सौ म।’’

‘‘डेढ़ सौ यानी एक सौ पचास पए। एक सौ पचास पए मतलब– 150 पए। है न


भाई?’’ एक आदमी ने माधो से पूछा।

माधो ने िसर िहलाकर हामी भर दी।

फर उनम से एक ने माधो का क धा थपथपाकर कहा, ‘‘भाई मेरे। एक पाँच शू य पए


म एक और पाँच का तो मतलब है मगर िहसाब- कताब म शू य का तो कोई मानी होता ही
नह है। बताओ, होता है या?’’

माधो ने फर िसर िहलाकर न कहा। उसके चेहरे पर उस समय मूखता बरस रही थी।
”तो एक पाँच शू य म से, शू य हटा दो तो बचे एक और पाँच यानी एक पर पाँच–प ह!
ये लो प ह पए।“ उनम से एक ने माधो के हाथ म प ह पए रखते ए कहा–‘‘अब यह
बकरा हमारा आ।’’

माधो हाथ म प ह पए थामे उन लोग को देखता रहा और वे लोग बाछा लेकर एक


साथ मुड़ गए और तेज गित वे वहाँ से जाने लगे।

माधो उन लोग को जाते ए देखता रहा। जब वे लोग उसक आँख से ओझल हो गए


तब माधो ने गोनू झा के गाँव क तरफ अपना ख कया। उस समय सूरज डू ब रहा था।
गाँव क पगडंिडय के आस-पास के पेड़ पर िचिङय क चहचहाहट का शोर था। हवा
मंथर वेग से बह रही थी। माधो धीरे -धीरे चलते ए गोनू झा के घर आया। उस समय
आसमान म िसतारे टम टमाने लगे थे। आसमान म चाँद क मि म रोशनी फै ल चुक थी।
चाँदनी रात म गोनू झा अपने दरवाजे पर ख टया रखकर उस पर अधलेटे से पड़े थे। वह
माधो को आता देख ख टया से उठ गए और टहलते ए माधो के पास प च ँ गए। माधो ने
उ ह सारी घटना बता दी। गोनू झा मु कु राते ए माधो क बात सुनते रहे। फर उ ह ने
माधो का कं धा थपथपाते ए कहा–‘‘तुमने ब त बुि मानी से काम कया। ठीक ऐसा ही
काम म चाहता था। अब अगले ह ते हाट के दन हम लोग अलग-अलग मवेशी मंडी
प चँ गे। मुझे िव ास है, उस दन ये चार उस बाछा को बेचने आएँग।े अब सात दन तक
तुम म ती करो।“

माधो के जाने के बाद गोनू झा ने अ य रं ग ट को बुलवाया और उनसे जानकारी ली।

वे लोग भी अ य ामीण मंिडय म इसी तरह ठगी के िशकार ए थे। गोनू झा मु कु राते
ए उनक बात सुनते रहे और अगले मंडी के दन मंडी म ही िमलने क बात कहकर उन
लोग को िवदा कया और फर सोने चले गए।

अपने गाँव के पास लगने वाली मवेशी मंडी म अगले स ाह गोनू झा मंडी लगने से पहले
ही प चँ गए और एक पेड़ के नीचे बोरा िबछाकर बैठ गए। उ ह देखकर कोई कह नह
सकता था क वे िमिथला नरे श के दरबार के नामचीन दरबारी ह। साधारण कृ षक के
िलबास म गोनू झा ठे ठ ामीण लग रहे थे। गोनू झा के मंडी म प च
ँ जाने के बाद धीरे -धीरे
मवेशी बाजार जमने लगा। दो घंटे म बाजार पूरी तरह सज गया। गोनू झा क आँख माधो
को तलाश रही थ । एक पेड़ के नीचे बैठा माधो उ ह दख गया। वह पोटली से पए बार-
बार िनकाल उ ह िगनने म लगा आ था। लगभग डेढ़-दो घंटे बाद माधो अचानक अपनी
जगह से उठा और तेजी से मवेशी मंडी के पूव कोने क ओर जाने लगा। गोनू झा भी उठे
और धीमी गित से माधो क तरफ जाने लगे।

माधो चलते ए िजस जगह पर क गया था, उस जगह पर चारआदमी एक सफे द और


शानदार बछड़े के साथ खड़े थे। माधो ने उनके पास प च
ँ कर बछड़े को सहलाना शु
कया। शायद उन चार ने माधो को पहचाना नह था या फर पहचानकर भी अनजान
बन रहे थे। माधो को यार से बछड़े को सहलाते देखकर उनम से एक ने कहा–‘‘ या बात
है, पस द आ गया?...पूरे बाजार म ऐसा बाछा तु ह देखने को नह िमलेगा। बोलो, लेना
है?’’

माधो ने गदन िहलाकर हामी भरी। फर पूछा–” कतने म दोगे?“

”दो सौ पए। एक दाम।“ उसने जवाब दया।

अभी बात का िसलिसला शु ही आ था क गोनू झा वहाँ प च


ँ गए और ऊँची आवाज
म पूछा–‘‘अरे यह बकरा कसका है?’’

चार के चेहरे का रं ग इस सवाल पर उड़ गया। ठीक उसी समय माधो ने कहा–‘‘अरे !


लगता है मेरा ही दमाग खराब हो गया है क बकरा मुझे बाछा सा दखता है। िपछले
ह ते भी मने एक बकरा को बाछा समझकर खरीद िलया था।’’

गोनू झा ने फर जोर से, लगभग चीखते ए पूछा–”अरे बकरे का दाम कौन बताएगा?
बता ज दी!“

गोनू झा क इस आवाज को सुनकर चार-पाँच ह े-क े ामीण दौड़कर उस थान पर


प च
ँ गए और बछड़े के साथ आए चार ठग के आजू-बाजू म जाकर खड़े हो गए।

गोनू झा के चीखकर पूछने पर उन चार म से एक ने कहा–‘‘दो सौ का बाछा है जूर।


यह बकरा नह , बाछा है।’’

गोनू झा मु कु राए, फर बोले–”जो भी हो, म तो बकरा ही क ग


ँ ा... “ गोनू झा थोड़ी देर
बारी-बारी से उन चार को देखते रहे फर मु कु राते ए धीमी आवाज म बोले–‘‘दो सौ
दाम बताया न? दो सौ पए। है न?’’

उन चार ने गदन िहलाकर हामी भरी।

गोनू झा ने अपनी आवाज को और धीमा कया और लगभग फु सफु साते ए बोले, ‘‘दो
सौ पए मतलब–200,–है न? और दो सौ पए का मतलब दो शू य शू य।’’ इतना कहने के
बाद वे उन चार म से एक के पास प च ँ े और उसके कान के पास फु सफु साते ए
बोले–”और िहसाब- कताब म शू य का कोई मतलब नह होता। है न? तो दो शू य हटे–
बच गया दो। यह लो दो पए और यह बकरा मेरा आ।’’

गोनू झा क बात सुनकर चार आदमी ने भागने क कोिशश क ले कन उनके आजू-बाजू


खड़े लोग ने उ ह धर दबोचा और उनक मु क चढ़ाकर उ ह बाँध दया गया। मंडी म
रौनक होने के कारण वहाँ भीड़ लग गई। तब गोनू झा ने भीड़ म शािमल लोग से पूरा
वृ ा त कह सुनाया क कै से इन लोग ने माधो को असमंजस म डालकर उसका बाछा
प ह पय म ले गए थे।

फर गोनू झा ने उन लोग से िज ह ने इन चार क मु क चढ़ा दी थ , कहा–‘‘जाओ, इ ह


ले जाकर हवालात म ब द कर दो। कल फर मुकाम पर तैनात रहो।’’

जब ये लोग उन चार को लेकर जाने लगे तो गोनू झा ने हँसते ए कहा–‘‘जाओ भाइयो,


ये लोग तु ह िहसाब- कताब म शू य का योग कै से होता है, बता दगे।’’ इसके बाद गोनू
झा और माधो वह बाछा लेकर घर आ गए।

दूसरे दन, दूसरे गाँव क मंडी म छह और तीसरे दन तीसरे गाँव क मंडी म दस लोग
को इसी तरह गोनू झा क सूझ-बूझ से रं ग ट ने धर दबोचा। सात दन के अिभयान म
ही पूरे िमिथलांचल म छोटी-बड़ी ठगी करते पचास से अिधक लोग पकड़ म आ गए। इसके
बाद उनक िपटाई कर रं ग ट ने कु छ और ठगी करनेवाल का नाम-पता हािसल कया
और जाल िबछाकर उ ह ठगी करते रं गे हाथ िगर तार कर िलया।

तीन माह तीत हो गए। गोनू झा के ठग उ मूलन अिभयान को िमिथलांचल म अपार


सफलता िमली। तकरीबन पौने दो सौ ठग को रं ग ट ने अपनी िगर त म ले िलया।

तीन माह पूरा होते ही गोनू झा िमिथला दरबार म उपि थत ए और महाराज को


अपनी सफलता का पूरा वृ ा त कह सुनाया। महाराज खुश ए तथा गोनू झा क सफलता
से स होकर िवशेष दरबार का आयोजन कया। दरबा रय के सामने उन ठग को पेश
कया गया िज ह गोनू झा क सूझ-बूझ के कारण पकड़ा गया था। महाराज ने दरबार म
गोनू झा क मु कं ठ से शंसा क । गोनू झा से जलने वाले दरबारी नाक-भ िसकोड़ने
लगे। काना नाई तो इस घोषणा से इतना िथत आ क दरबार से ही बाहर चला गया।
महाराज उसे जाते ए देखते रहे। वे जानते थे क उनका यह दरबारी गोनू झा से ई या
करता है।

दरबार समा हो जाने के बाद महाराज, गोनू झा को अपने साथ महल म लेकर आ गए
और उ ह उिचत आसन पर बैठाकर पूछा क आिखर िमिथला के सभी ठग को इस तरह
दबोचने म उ ह सफलता कै से िमली?

गोनू झा मानो इस के िलए तैयार थे। उ ह ने छू टते ही कहा– ”महाराज! मने आपक
आ ा से, सुर ा ह रय म से ऐसे जवान छाँटे जो देखने म मूख या बेअ ल तीत होते
थे। इन जवान को मने राजकोष से कु छ पए दलाए िजसक सहायता से ये जवान
ामीण-पयटक के प म घूम सकते थे और कु छ खरीददा रयाँ कर सकते थे। तीन दन
तक मने इ ह मूख दखने और मूखतापूण आचरण करने का िश ण दया। पूरे
िमिथलं◌ाचल को मने सात े म बाँटा और इन सात े के िलए सात के थािपत
कए। इन जवान के साथ ही मने गाँव म लगनेवाली मंिडय म ामीण वेशधारी रं ग ट
को तैनात कया। जवान को मने खुला िनदश दया क जब कोई उ ह ठगने क कोिशश
करे तो वे ऐसा दखाएँ क वे उसके झाँसे म आ गए ह और ठगे जाएँ। रं ग ट को िनदश था
क जब कोई जवान ठगा जाए तो वे उसे ठगनेवालां◌े को भनक तक लगे िबना, उसके घर
तक पीछा कर। नाम-पता आ द क सूची तैयार कर ल। सच कह महाराज, मने तो अँधेरे म
तीर चलाया था जो ठीक िनशाने पर लगा।“

गोनू झा क , महराज ने खूब आवभगत क और उ ह महल के दरवाजे तक छोड़ने आए।


गोनू झा को िवदा करते समय ग द कं ठ से महाराज बोले–”तो पंिडत जी आज से
िमिथलांचल ठग-मु े ा घोिषत कया जा सकता है न!“

गोनू झा ने उ ह नम कार करते ए कहा–” य नह महाराज!“


गंगा का आशीवाद
एक बार क बात है। गोनू झा का पु बीमार पड़ गया। गाँव के वै क िच क सा चली
मगर वह ठीक नह आ। राज वै से परामश िलया गया मगर थ। राज वै के िनदान
भी िवफल हो गए। गोनू झा और पंिडताइन दोन अपने पु के वा य क िच ता म
िनम थे। तभी कसी ने उ ह घौघड़ बाबा से ब े को झड़वा लेने क सलाह दी। गोनू झा
बुि जीवी थे। टोना-टोटका, ज तर-म तर, झाड़-फँ ◌ूक आ द म उनका िव ास नह था।

पंिडताइन िमिथलांचल क अ य मिहला क तरह ही सामा य- सं कार वाली मिहला


थी। पूजा-पाठ, िनयम-धरम पर चलने वाली। साधु-संत का स मान करने वाली।
एकादशी, पूरनमासी करनेवाली। सूय को जल दए िबना एक दाना भी मुँह म नह डालती
थी।

जब घौघड़ बाबा से ब े क झाड़-फूँ क कराने क बात आई तो गोनू झा भ ा गए और


परामशदाता को िझड़क दया।

मगर परामशदाता क बात पंिडताइन के मन म बैठ गई। वह सोचने लगी क या पता


कोई दैव-लीला ही न हो! भगवान तरह-तरह से अपने भ क परी ा लेते ह– या पता
‘घौघड़ बाबा’ के झाड़ने फँ ◌ूकने से ही ब ा ठीक हो जाए! संयोग को कौन जानता है!
उसने गोनू झा को मनाने क कोिशश क , मगर गोनू झा तो गोनू झा थे, भला अपना िनणय
कै से बदल लेते? उ ह ने ब े को दवा दी और पंिडताइन से कहा क वह इन अंध-िव ास
से दूर रहे। इसी म ब े क भी भलाई है और भिव य का संर ण भी।

प ी को समझाकर गोनू झा दरबार चले गए और महाराज से पु क बीमारी के बारे म


चचा क । महाराज ने राज वै को बुलाकर गोनू झा के ब े क बीमारी के बारे म पूछा तो
राज वै ने बीमारी के बारे म महाराज को बताया और यह भी बता दया क शी
वा य लाभ देने वाली जो औषिधयाँ ह उनम वाल िपि , वण भ म, मु ा िपि जैसी
अनेक ऐसी औषिधय का समावेश करना पड़ता है जो काफ मू यवान है। इस औषिध का
मू य गोनू झा नह दे पाएँगे इसिलए ब े को जो दवा दी जा रही है, उससे वह ठीक तो हो
जाएगा मगर कु छ ह ते लग जाएँगे।

महाराज ने राज वै क बात सुनने के बाद राज वै को िनदश दया क वे ब े के िलए


ती असरकारक औषिध तैयार कर ल तथा औषिध पर आने वाले खच का भुगतान
राजकोष से करवा ल।
गोनू झा के ब े के िलए आनन-फानन म औषिध तैयार ई। औषिध कै से दी जाती है,
प य-अप य आ द का कै से यान रखना है, आ द जानकारी औषिध के साथ राज वै ने
गोनू झा को दे दी।

उधर गोनू झा क प ी ने सोचा क गोनू झा तो दरबार गए ह, शाम तक लौटगे, इस


बीच य न घ घड़ बाबा से परामश ले ले। वह चुपके से घर के िपछवाड़े वाली राह से
घौघड़ बाबा के पास प च ँ ी। घौघड़ बाबा ने उसे भभूत दया और कहा–‘‘जा, तेरा ब ा
ठीक हो जाए तो गंगा मैय् को जोड़ा जीव क बिल देना।’’

जोड़ा जीव क बिल का मतलब था–दो ख सी क बिल! पंिडताइन हामी भरकर लौट
आई।

गोनू झा जब शाम से पहले दरबार से लौटे तो पंिडताइन मन ही मन भगवान को हाथ


जोड़ने लगी क वह समय रहते ही लौट आई, नह तो शामत आ जाने वाली थी। पंिडताइन
कभी गोनू झा क बात काटती नह थी मगर पु -मोह म पहली बार उसने गोनू झा के
िनदश क अवहेलना क थी। उसका मन सशं कत हो उठा था।

गोनू झा ने राज वै से ा औषिध क एक पुि़डया िनकाली और मधु म िमलाकर


उ ह ने ब े को दवा चटा दी। उस समय पंिडताइन चैका म गोनू झा के िलए दूध गम कर
रही थी इसिलए उसे दवा के बारे म कोई जानकारी नह हो पाई। गोनू झा ब े को दवा
देने के बाद घर से बाहर आकर टहलने लगे। पंिडताइन उ ह दूध देकर खुद घर के काम-
काज म लग गई।

राज वै के िनदश के अनुसार गोनू झा ने सूरज ढलने के बाद ब े को दवा क दूसरी


खुराक दी। रात म जब उ ह ने भोजन कर िलया और पंिडताइन चैका-बतन म लगी तब
उ ह ने ब े को दवा क तीसरी खुराक दी।

दूसरे दन सुबह म ब ा कलका रयाँ भरते ए उठा और िब तर पर खेलने लगा िजसे


देखकर पंिडताइन ने समझा क यह घौघड़ बाबा के भभूत का चम कार है और गोनू झा ने
समझा क राज वै क दवा का असर है। गोनू झा नहा-धोकर पूजा आ द से िनवृत ए।
दरबार जाने क तैयारी म लगे तब उ ह याद आया क अभी उनके पास औषिध क एक
पुिङया और बची ई है। पंिडताइन उस समय खाना पकाने म त थी। गोनू झा ने
औषिध मधु म िमलाई और ब े को चटा दी। भोजन आ द हण करने के बाद वे दरबार
गए और वहाँ महाराज और राज वै को ब े क कु शलता क खबर सुना दी। दोन स
ए।

इसके बाद गोनू झा अपनी सामा य दनचया म लग गए ले कन पंिडताइन को लग रहा


था क घौघड़ बाबा के भभूत से ही ब ा ठीक आ है इसिलए घौघड़ बाबा के िनदश के
अनुसार उसे जोड़ा जीव क बिल क व था कर लेनी चािहए। गोनू झा को घौघड़ बाबा
वाली बात बताने क उ ह िह मत ही नह हो रही थी। दन-रात वे इसी गुन-धुन म लगी
रहती ले कन मन क बात पित से बता न पाती।

एक रात िब तर पर अ तरं ग ण म जब गोनू झा मनुहार क मु ा म थे तब पंिडताइन


ने भी यार से उनके गले म बाँह डाल द और अनुनय-भरे श द म बोली–‘‘पंिडत जी,
मेरी एक इ छा है–छोटी सी! य द पूरी हो जाती तो मेरे मन को राहत िमलती।“

शायद संसार क हर ाी अपने इन अ तरं ग ण का उपयोग पित से मन क बात


मनवा लेने के िलए करती है। पंिडताइन भी यही कर रही थी। गोनू झा स थे और प ी
के आ लंगन से मु दत भी इसिलए उ ह ने तुर त कहा–”बोलो न! या इ छा है?“

पंिडताइन ने कहा”जब बबुआ बीमार था तब मने गंगा मैया से म त माँगी थी क बबुआ


ठीक हो जाए तो जोड़ा बिल चढ़ाऊँगी। बबुआ को ठीक ए महीन हो गए मगर मेरी
िह मत न ई क आपसे यह बात बताऊँ।“

गोनू झा ने पंिडताइन को अपनी बाँह म समेटते ए कहा–”अ छा, ठीक है–जोड़ा बिल
क बात है तो कल ही चलते ह। सुबह म गंगा ान भी हो जाएगा और तु हारी म त भी
पूरी हो जाएगी।“

सुबह गोनू झा देर तक सोते रहे। पंिडताइन ने उ ह जगाया तो वे अपनी समा य दनचया
म लग गए। पंिडताइन को लगा क गोनू झा रात के आ ासन को भूल गए ह इसिलए
उ ह ने गोनू झा को ‘गंगा ान’ वाली बात याद दलाई।

गोनू झा भी आम पितय क तरह ही ‘रात गई–बात गई’ वाली कहावत को च रताथ


कर सकते थे पर तु पंिडताइन के चेहरे पर अनुनय के भाव से भािवत होकर उ ह ने तय
कया क चलो, गंगा नहा आते ह। प ी को साथ म दही-िचउड़ा, गुड़ और अचार रख लेने
का िनदश देकर कपड़ा पहनने लगे। प ी झटपट सारा सामान पोटली म रखकर तैयार ई।
ब े के साथ दोन गंगा तट पर प च ँ ।े पहले ब े को गंगा म नहाया। फर दोन ने डु बक
लगाई। कपड़ा बदलकर गोनू झा ने गंगा तट पर ही प ल िबछाई–अपने िलए, प ी के
िलए और न हे ब े के िलए भी जो अब डेढ़ साल का हो चुका था और उछल-कू द करने
लगा था।

गोनू झा ने हाथ म गुड़ क ढेली लेकर उसे िचउड़ा, दही म िमलाने के िलए अँगूठे का
दबाव देकर तोड़ना चाहा ले कन गुड़ क ढेली िछटककर प ल से बाहर िनकल गई। ढेली
पर मि खयाँ िभनिभनाने लग । पंिडताइन भी भ ाकर बोलने लगी, ‘‘ य जी, भूल गए?
गंगा मैया को जोड़ा बिल देने क बात भूल गए?’’
गोनू झा उस समय गुड़ क ढेली पर बैठी मि खय पर काक-–ि डाले ए थे। उ ह ने
कहा–”कु छ नह भूला ँ भा यवान। जा, एक छोटा कपड़ा का टु कड़ा िनकाल। अभी करता
ँ जोड़ा जीव क बिल का इं तजाम।

पंिडताइन ने उधर मुँह घुमाया ही था क गोनू झा ने गुड़ क ढेली पर झप ा मारा और


िबजली क फु त से उसे अपने पंजे से ढक िलया।

पंिडताइन जब कपड़ा लेकर आई तो गोनू झा ने गुड़ क ढेली से िचपक मि खय को


कपड़े पर िनकाल-िनकालकर रखना शु कया। पंख म दही से गीला आ गुड़ लग जाने
के कारण मि खयाँ उड़ नह पा रही थ । पूरी दस मि खयाँ ऐसी थ जो जीिवत थ । गोनू
झा ने कपड़े के चार कनार को सावधानीपूवक पकड़ा और िसर को िमलाकर अटका
दया िजससे मि खयाँ कपड़े के अधर म जा लटक । गोनू झा उस कपड़े के साथ गंगा तट
पर प च ँ े और ापूवक उसे जल म वािहत कर हाथ जोड़कर ाथना करने लगे–”हे
मैया! मेरी प ी ने आपको जोड़ा जीव क बिल देने क म त माँगी थी। म मूढ़ ाणी ।ँ
उसक म त उतारने म देरी कर दी। मुझे अ ानी समझकर मा करना। म जोड़ा जीव क
बिल क म त पाँच जोड़ा जीव क बिल देकर पूरी कर रहा ।ँ इसम से एक जोड़ा जीव
ब े के व थ होने क म त पूरी करने के िलए। एक जोड़ा जीव ब े को भिव य म
स बुि दान करने के िलए। एक जोड़ा जीवन समृि के िलए और एक जोड़ा जीव हमारे
दा प य जीवन को सुखमय बनाए रखने के िलए तु ह भट है। कृ पया वीकार करो माता।“

गोनू झा जब अपने दोन हाथ जोड़े यह ाथना कर रहे थे तब ही गंगा क लहर म


अचानक हलचल-सी मची और पंिडताइन ने देखा क लहर से गंगा माँ िनकल आय और
गोनू झा से कहा–”पु गोनू म तुमसे स ।ँ तुमने म त भी पूरी कर दी और कसी
िनरीह ाणी का वध भी नह कया। तुमने जो कु छ भी माँगा है वह तु ह िमलेगा।“ इतना
कहकर गंगा माँ अ तधान हो ग ।

गोनू झा क प ी क त ा भंग ई। उस समय भी गोनू झा आँख ब द कए, दोन हाथ


जोड़े ाथना क मु ा म खड़े थे। उनके चेहरे पर एक तेज था िजसे पंिडताइन पहली बार
देख रही थी। अपने पित के इस प से पंिडताइन ानत हो गई और आकर अपने पित
का चरण- पश करने लगी।

चरण पश से गोनू झा का यान भंग आ। उ ह ने अपनी प ी को चरण म झुका देख,


यार से उसका कं धा पकड़कर उठाया और बोले–”लो, तेरी म त पूरी हो गई भा यवान!
जा, अब बबुआ को लेकर आ। कब से िचउड़ा-दही सना आ है।
राख क क मत म महल
गोनू झा के जीवन म ऐसा नह क क ठनाइयाँ नह आ ...आ और लगातार आती रह ।
कभी ठग के प म, तो कभी काना नाई के प म, कभी चोर के प म, कभी भाई भोनू
के प म। अनवरत परे शािनय से िघरे रहकर भी गोनू झा ने अपना हौसला बनाए रखा।
उनके च र ा क एक िवशेषता यह भी थी क वे अपने िवरोिधय से भी मु कु राकर िमलते
थे...इस उ मीद के साथ क कभी तो यह ि वा तिवकता को समझेगा क ई या से
कभी िवकास नह होता। िवकास के िलए आव यक है यास करते रहना, अपना हौसला
बनाए रखना। अपने इस िववेक के बूते ही वे िमिथला नरे श के दरबार तक प च
ँ ।े अपनी
िन ा, ईमानदारी, कायकु शलता और हािजरजवाबी के कारण ही वे महाराज के सबसे
िव सनीय ि बन गए। कभी कं गाल -सा जीवन गुजारनेवाले गोनू झा अब अपने गाँव
ही नह , अपनी तहसील के सबसे स प ि थे। उ ह ने अपने रहने के िलए एक ऐसी
कोठी बनवाई िजसे देखकर लोग को अच भा होता था। इतना आकषक भवन आस-पास
तो या, दूर-दराज तक कसी के पास नह था।

गोनू झा क दन दूनी रात चैगुनी, तर देखकर उनसे जलनेवाले लोग उ ह चोट


प च
ँ ाने क कोिशश करते, मगर गोनू झा क ती ण बुि के आगे कसी क कु छ नह
चलती थी। कोई ितकड़म काम नह आता था।

एक बार गोनू झा कसी काम से िमिथला से बाहर गए ए थे। उनसे ई या भाव


रखनेवाले ामीण ने मौका देखा और एक रात उनके भवन म आग लगा दी।

गोनू झा जब वापस लौटे तो भवन का भ ावशेष या कह क भ मावशेष देखा। उनके


िलए यह एक अचि भत कर देनेवाला – य था। वे अपने भवन क हालत देखकर िवत हो
उठे ले कन उ ह ने अपने मन को –ढ़ कया। गाँव के लोग उ ह सा वना देने के िलए आए।
गोनू झा सबसे मु कु राते ए िमले, जैसे कु छ आ ही न हो!

कु छ देर के बाद गोनू झा बाजार गए। वहाँ से उ ह ने कु छ बोरे खरीदे। दो मजदूर साथ म
ही लेते आए। गोनू झा ने घर के जलकर राख ए िह स को समेटना शु कया फर
मजदूर से उ ह बोर म भरवाया। बोर के मुँह पर चमक ले कागज लगवाकर बोर का
मुँह ब द करवाया। इस तरह कु ल बारह बोर म राख भरकर वे फर बाहर िनकल पड़े और
एक बैलगाड़ी कराए पर लेकर लौटे। उ ह ने बोर को बैलगाड़ी पर लदवाया और गाँव से
बाहर जाने वाली राह पर बैलगाड़ी लेकर चल पड़े। बैलगाड़ी वे वयं चला रहे थे।

गाँव के कु छ लोग ने उनसे पूछा भी क घर के राख को बोरे म ब द कर आप कहाँ जा रहे


ह पंिडत जी? गोनू झा ने उ ह इतना ही कहा–”शुभ मु त िनकला जा रहा है–लौटूँगा तब
बताऊँगा।“

गोनू झा को ऐसे जाते देख गाँव के लोग च कत थे।...सभी आपस म बात कर रहे
थे–”कै सा जीवट वाला आदमी है! इतनी भ हवेली खाक बन गई मगर उसके मुँह पर
मलाल का भाव तक नह आया।“ वे गोनू झा क बैलगाड़ी को जाता आ देखते रहे जब
तक क वह ओझल न हो गई।

बैलगाड़ी हाँकते ए गोनू झा बड़ा बाजार प च ँ े। वहाँ उ ह ने एक बड़ा-सा दपण खरीदा।


एक कं घी। सेठ जैसे कु छ प रधान और एक शानदार पगड़ी खरीदकर वे भोजनालय म
गए। भोजन कया और कु छ पकवान खरीदकर उसे अपने साथ िलए बैलगाड़ी के पास
आए। सारे सामान को बैलगाड़ी पर रखकर वे फर से बैलगाड़ी चलाने लगे। वे बस चले जा
रहे थे। कहाँ, वे नह जानते थे। या करगे, इस बात का भी उ ह बोध न था।

रा ते म एक थान पर उ ह तालाब दखा। तालाब के पास अ छी हरी- हरी घास थी–


दूर तक। उ ह ने बैल को गाड़ी से हटाया और उ ह चरने के िलए छोड़ दया। खुद तालाब
म घुस गए। ान करने के बाद सेठ वाला प रधान िनकालकर पहना। िसर पर पगड़ी
डाली। दपण म खुद को िनहारकर स तु ए–हाँ, अब वे कोई अमीर ापारी लग रहे थे।
बैल को देखा तो वे बैठकर पगुरा रहे थे। मतलब साफ था क बैल को िजतना चरना था,
चर चुके थे। अब बैठकर सु ता रहे ह। उ ह ने बैल को पुचकारकर उठाया और उ ह
तालाब म ले जाकर पानी िपलाया। बैल तृ ए तब उ ह बैलगाड़ी म जोतकर गोनू झा
अनाम मंिजल क ओर बढ़ने लगे।

शाम ढलने को आई। गोनू झा को लगा क रात म सफर जारी रखना उिचत नह होगा
तो उ ह ने तय कर िलया क अब रा ते म जैसे ही कोई गाँव आएगा–वे िव ाम करने के
िलए थान क व था कर लगे।

थोड़ी ही देर म एक गाँव आ गया और उ ह ने गाँव क ओर बैलगाड़ी मोड़ दी।

राह म उ ह एक ामीण िमला तो उ ह ने बैलगाड़ी उसके पास रोक और बैलगाड़ी से


उतरकर उससे िव ाम करने के िलए उिचत थान के बारे म पूछने लगे। उस ामीण ने
उनक वेश-भूषा से समझ िलया क यह ि कोई बड़ा ापारी है। उसने सहष
कहा–”बंधु, यहाँ कोई धमशाला आ द नह है। आप चाह तो हमारे अितिथ हो जाएँ।“

गोनू झा ने स ता के साथ उस ि का आित य वीकार कर िलया। उसे अपनी


बैलगाड़ी म बैठाकर उसके घर प च
ँ ।े उस ि ने गोनू झा के िलए अपने घर का बाहरी
कमरा खुलवा दया। बैल को अपने मवेिशय के बीच बाँधकर उनके िलए चारा क
व था कर दी।
राि िव ाम के बाद दूसरे दन तड़के ही गोनू झा जगे। अपने आित य दाता से उ ह ने
िवदा लेने से पहले यह जानकारी ा क क आस-पास कोई बाजार लगता है जहाँ
क मती व तु क खरीद-फरो त होती है। आित य दाता ने उ ह बताया था क पास म
ही फू लपुर बाजार है। वहाँ हर तरह क क मती व तुएँ िमलती ह।

गोनू झा वहाँ से फू लपुर बाजार क ओर चल पड़े। यह बाजार नजदीक ही था। दोपहर


बाद वे वहाँ प च
ँ गए। बाजार के मािलक से उ ह ने अपनी दुकान लगाने के िलए भूिम
कराए पर ली। प ह दन का कराया उ ह ने पेशगी दया। बाजार म अभी रौनक नह
थी। प ह दन के बाद से बाजार शु होकर अगले तीन महीने तक लगा रहना था।
बाजार के बारे म जमीन के मािलक ने गोनू झा को बताया क बाजार शु होने पर मेले
जैसी रौनक हो जाती है। दूर-दराज के सेठ-सा कार आते ह। बाजार के दौरान खेल-तमाश
का भी आयोजन होता है।

गोनू झा ने कनात तानकर अपनी दुकान का घेरा बना िलया और उसम उ ह ने बैलगाड़ी
से राख झड़ती बो रयाँ उतारकर करीने से रखवा िलया। शाम ढलने को आई। गोनू झा क
दुकान के ठीक सामने एक ब त बड़ी दुकान का खाका तैयार हो रहा था। गोनू झा उस
दुकान क तरफ देख रहे थे। अब तक दुकान का मािलक नजर नह आया था।

शाम ढलने के बाद, गोनू झा को दो आदमी ऐसे दखे जो दूर से शानदार ि व का


मािलक नजर आ रहे थे। दोन गोनू झा के सामने क दुकान तक गए और वह पालथी
मारकर बैठ गए। गोनू झा ने अनुमान लगाया क यही दोन उस दुकान के मािलक हो
सकते ह।

थोड़ी ही देर बाद कई बैलगािङय पर ढेर सामान उस दुकान पर आया और उतारा जाने
लगा। गोनू झा थकान महसूस कर रहे थे, इसिलए वे जहाँ थे वह सो गए। न कु छ खाया, न
िपया। रात कट गई। दूसरे दन सुबह वे शौच आ द से िनवृत होकर लौटे ही थे क देखा,
सामने वाली दुकान से वे दोन शानदार ि उनक दुकान पर आकर उन बोर को देख
रहे ह।

गोनू झा ने भी सेठ का िलबास धारण कर रखा था। मूँछ तनी थ । शानदार पगड़ी उनके
िसर क शोभा बढ़ा रही थी। अपनी दुकान के समाने खड़े ापा रय से वे ब त भ ता से
िमले। गोनू झा का ि व भावशाली तो था ही, ज दी ही वे दोन ापारी उनसे घुल-
िमल गए। गोनू झा ने उनसे अपना प रचय वाल भ म, मु ा भ म िव े ता के प म
दया। वण भ म, रजत भ म आ द भी मेल के िलए अपने पास रखने क बात कही। वे
ापारी इन भ म का नाम सुन चुके थे मगर देखा नह था। गोनू झा ने उ ह एक बोरा
खोलकर उसम से एक चुटक राख िनकाली, ह क च पई आभा वाली खुरदुरी सी राख को
उ ह ने वाल भ म बताया। दोन ापारी उनसे भािवत तो थे ही, वाल भ म देखने के
बाद गोनू झा पर मु ध हो गए। पूछने लगे–‘‘भाई साहब ! वाल का मतलब मूंगा ही होता
है न?“

गोनू झा ने कहा–”जी हाँ, भाई साहब।“

वे और उ सुक ए और पूछा–”तब तो यह सब ब त क मती होगा?’’

गोनू झा उ ह देखकर मु कु राए और बोले–” या क रएगा दाम जानकर? बस, यह


समिझए क ब त क मती भ म है यह और ाणदाियनी शि से लैस ह। आयुवदाचाय
इनम से चुटक भर भ म के उपयोग से कसी क डू बती साँस लौटा सकते ह। जीवन र ा
के अलावा इन भ म से वाजीकरण क खास दवाएँ तैयार क जाती ह◌ै। आयुवद के अ छे
जानकार ही इन भ म का उपयोग करते ह। मेरे अिधकांश ाहक कसी न कसी रा य के
राज-वै ही ह। सामा य िच क सक के पास इतना पैसा ही नह होता क इन भ म क
खरीदकर सक। म तोला म तो भ म नह ही बेचता ।ँ इसिलए छोटे ाहक मेरी दुकान से
दूर ही रहते ह।“

वे दोन ापारी गोनू झा क बात म आ गए और मान िलया क बोर म करोड़ का


सामान है। वे गोनू झा को मालदार ापारी तो समझ ही रहे थे और ऐसा आदमी भी
िजसका स ब ध कई राज-दरबार से हो सकता है। राज-वै होने का मतलब तो राजा का
खास आदमी होता है। भोग-िवलास के िलए आम तौर पर राजा-महाराजा ही वाजीकरण
क औषिधय का सेवन करते ह। आम लोग के पास इतना धन ही कहाँ होता है क वे इस
तरह क औषिधय का उपयोग कर। कमाकर पेट भर ल, अपना और अपने प रवार का,
यही उनक अिधकतम महा वाकां ा होती है। वे दोन गोनू झा से आ ह करने लगे–
”चिलए, हमारे साथ, हमारी दुकान पर। हमारे साथ भोजन हण क िजए।“

मगर, गोनू झा ने शालीनता से इनकार कर दया, यह कहकर ब धु, ”अभी तक मेरे


आदमी यहाँ नह प च ँ े ह। दो अ रोही कु छ ब मू य व तुएँ लेकर आनेवाले थे। स भवतः
वे राह भटक गए ह। जब तक वे आ न जाएँ, म इस दुकान से िहल भी नह सकता। शौच-
कम तो िववशता होती है वरना म उसके िलए भी नह जाता।“

अ ततः दोन ापा रय ने अपने आदिमय से गोनू झा क दुकान पर ही भोजन मँगा


िलया और आ हपूवक गोनू झा को अपने साथ बैठाकर भोजन कया। रात भर के भूखे गोनू
झा सु वादु भोजन करके तृ ए।

शाम तक इन दोन ापा रय क दुकान म सामान प च ँ ाकर वे सारे लोग लौट गए।
वहाँ अब तीन आदमी ही रह गए–एक गोनू झा और दोन - ापारी। रात गहराने से पहले
ही दोन ापा रय ने पुनः गोनू झा से अपने साथ भोजन कर लेने का आ ह कया। गोनू
झा ने उनका आमं ाण वीकार कर िलया।
भोजन करने के बाद गोनू झा ने अपनी दुकान के आगे कु छ बुदबुदाते ए एक चाकू से
िम ी पर लक र ख ची फर उनके बुदबुदाने का वर कु छ तेज आ िजससे कट आ क वे
कोई मं ा पढ़ रहे ह।

जब उनका मं ो ार पूरा हो गया तब उनसे उन दोन ापा रय म से एक ने


पूछा–”भाई! आपने यह रे खा य ख ची?“

गोनू झा ने उ र दया–”ब धु, म सोने क तैयारी कर रहा ।ँ यह सामा य रे खा नह है।


इसे अि रे खा कहते ह। इस रे खा को वही लाँघ सकता है जो सरल मन का ि होगा,
अ यथा नह । अब म रात को िनि त होकर सो सकूँ गा।“

उन दोन ापा रय ने भी वह रात गुजारने क इ छा जताई। उनम से एक वहाँ से


गया और िब तर लेकर आ गया। सोने से पहले दोन गोनू झा से इधर-उधर क बात करते
रहे। गोनू झा को उनक बात से मालूम आ क ये लोग महल बनाने के काम म आने वाले
प थर, संगमरमर के तरासे गए चैखंड, महल क स ा के काम आने वाले सामान आ द के
ापारी ह। एक खेप माल आज ही आया है, दूसरा खेप बाजार शु होने के दन तक
प चँ ेगा। चैबीस बैलगािङय पर अभी भी माल कसा पड़ा है। उस दन ही खोला जाएगा
जब बाजार का उ ाटन होगा। ब त से अमीर लोग बैलगाड़ी सिहत सामान खरीदकर ले
जाते ह–इसिलए ही बैलगािङय पर माल लदा रहने दया गया है।

इन बात का सू वे गोनू झा को थमाकर यह जानना चाहते थे क इन बो रय म कसे


गए भ म क वा तिवक क मत या होगी? उन लोग ने जब भी पूछा, गोनू झा उसे टाल
गए। अ त म गोनू झा ने रह य उगलने के अ दाज म कहा–”आप दोन सरल दय के
स न ह इसिलए बता रहा ।ँ इन बोर म ढाई करोड़ के औषधीय गुण वाला भ म भरा
आ है...“

थोड़ी देर के बाद गोनू झा गहरी न द म सो गए।

भ म क क मत जानकर उन दोन ापा रय क न द हवा हो चुक थी। वे दोन


ापारी र ते म भाई थे। एक ने धीरे से कहा–”भइया, हम चाह तो रात -रात करोड़पित
बन सकते ह।“

दूसरे ने कहा–”अरे , चुप रह। अि रे खा वाली बात भूल गए?“

दोन थोड़ी देर चुप रहे, फर एक ने कहा–”भइया, िह मत से काम लो–म देखता ँ क


रे खा के पार जा सकता ँ या नह । म सरल ँ और अब तक जीवन म कसी को कोई क
नह ...“
वह कु छ आगे बोलता क उसके भाई ने उसके मुँह पर अपनी हथेली रख दी। धीरे से
फु सफु साते ए बोला–‘‘जो सोच रहे हो–कर के देखने म कोई बुराई नह ...मगर सावधानी
से।“

उनम से एक उठा और धीरे -धीरे चलता आ ‘अि रे खा’ के पार प च


ँ गया। वह से
उसने हवा म हाथ उछाला और खुशी जताई। उसका भाई भी उठा और अपने छोटे भाई के
पास प च
ँ गया। दोन भाई खुशी से फू ले नह समा रहे थे।

दोन ने एक-एक बोरी अपनी पीठ पर डाली और गोनू झा क बैलगाड़ी पर रख आए।


इसी तरह सारी बो रयाँ उ ह ने बैलगाड़ी म लाद और गाड़ी म बैल को जोतकर वहाँ से
िनकल गए।

दूसरे दन सूरज क करण आँख पर पड़ने के कारण गोनू झा क न द खुली। वे उठकर


बैठ गए। अपने पास दोन ापा रय को नह देखकर उ ह ने सोचा क दोन ही शौच के
िलए गए ह गे। इसके बाद उनक नजर अपनी दुकान पर पड़ी तब उ ह ने पाया क उनक
दुकान पूरी तरह खाली है। अनायास ही गोनू झा क हँसी फू ट पड़ी। अके ले ही गोनू झा देर
तक हँसते रहे।

इसके बाद गोनू झा सामा य ढंग से उठे । िब तर लपेटा। शौच आ द से िनवृत ए।


ापा रय क बैलगािङय म बैल जोता। दो दजन बैलगाि़डयाँ और चार दजन बैल।
बैलगािङय पर लदा महल बनाने और सजाने का सामान। गोनू झा ने अपनी मूँछ पर
ताव दया और बैलगािङय का का फला लेकर अपने गाँव के िलए कू च कया।

जब गोनू झा इन बैलगािङय पर लदे सामान के साथ अपने गाँव प च ँ े तब गाँववाल क


आँख िव मय से फै ल ग । गोनू झा से लोग ने पूछा– ”पंिडत जी! इतना सारा सामान कहाँ
से ले आए?“

गोनू झा ने उ र दया–”मेरे घर क राख क िब से जो धन हािसल आ, उससे ही यह


सब खरीदकर लाया ।ँ आज ही, शुभ मु त देखकर मकान बनवाने का काम शु करवा
दूग
ँ ा।“

कु छ ही दन म गोनू झा का भ महल वह बना जहाँ कभी उनका पुराना मकान जला


दया गया था। इसके बाद गाँव म यह चचा फै ल गई क गोनू झा पर देवी क िवशेष कृ पा
है िजसके कारण कोई उनका बाल भी बाँका नह कर सकता।
कृ त ाणी
िमिथला नरे श क जैसे-जैसे उ बढ़ रही थी, वैसे-वैसे वे मनमौजी होते जा रहे थे। कई बार
तो दरबारी उनके वहार से च कत हो जाते और आपस म बितयाते क महाराज तो इन
दन सनक होते जा रहे ह। जब देखो तब बेतुक बात करने लगते ह।

एक दन ऐसे ही िमिथला नरे श दरबार म बहक गए और दरबा रय से पूछा–”आप म से


कोई बता सकता है क संसार का सबसे कृ त ाणी कौन है?“

दरबारी अटकल लगाने लगे। एक ने कहा–”शेर महाराज, शेर। शेर से बड़ा कृ त ाणी
भला कौन होगा? बड़े से बड़ा जानवर उससे घबराता है। खरगोश हो या हाथी, सबको
चटकर जाता है। एक बार पेट भर जाए तो प ह दन तक िहलता-डु लता नह । अघाया
आ पड़ा रहता है।“

दूसरे ने कहा‘‘अरे महाराज! यही आदत तो बाघ, चीता, तदुआ आ द म भी है। आिखर
यह कै से तय होगा क इनम से कौन कृ त है?“

तीसरे ने कहा–”महाराज, सबसे कृ त ाणी लकड़ब घा होता है। शरीर से कु छ और


िसर से कु छ और दखता है। छोटे जीव और कमजोर ब को अपना आहार बनाता है।“

मतलब यह क दरबार म बतकही का दौर चला तो चलता ही रहा। गोनू झा इन बात म


िच नह ले रहे थे। उ ह अनमना देखकर महाराज ने उनसे कहा–” या बात है पंिडत जी?
आप चुप य हं◌?ै आप भी कु छ बताइए।“

गोनू झा ने महाराज से िवनीत- वर म कहा–‘‘महाराज! म आज नह , कल बताऊँगा क


संसार का सबसे कृ त ाणी कौन होता है।“ फर महाराज से आ ा लेकर अपने आसन पर
बैठ गए।

दरबार के समापन के बाद गोनू झा अपने घर आए। उन दन उनके घर एक स ब धी


आया आ था। दूर का स ब ध था, वह भी दामाद का। गोनू झा ने उससे कहा–”मेहमान!
कल दरबार चलना। इतने दन ए तु ह आए, कह कु छ देखा नह –न मने तु ह दखाया।
कल तु ह दरबार ले चलूँगा। वहाँ काम-काज देखना। शाम को तु ह महाराज क फु लवारी
दखाने ले चलूँगा। तरह-तरह के फू ल ह वहाँ। ब त ही सु दर फ वारा है। उ ान ऐसा जैसा
आस-पास कसी रा य म नह है। एक बार यहाँ अंगदेश के महाराज आए थे तो अिधकांश
समय उसी उ ान म तीत करते थे। उ ह वहाँ इतनी शाि त िमलती थी क कहते थे–
यहाँ से जाने का मन ही नह करता। वापसी के समय फु लवारी म लगे तरह-तरह के फू ल
के बीज अपने साथ लेते गए। देखोगे तो मन ह षत होगा।“

दूसरे दन उनका दामाद बन-ठनकर तैयार आ। उसने रे शमी धवल व ा धारण कए।
युवा और आकषक तो वह था ही। गोनू झा के साथ दरबार म प च
ँ ने के बाद उसने दरबार
क शोभा देखी। अिभभूत आ।

दरबार म जब महाराज आए तो उ ह देखकर दरबारी समझ गए क महाराज आज भी


हास-प रहास और बतकही म दन गुजार दगे। आ भी वैसा ही। देर तक इधर-उधर क
बात होती रह । अचानक महाराज क नजर गोनू झा पर पड़ी तो उ ह मरण हो आया क
आज गोनू झा को बताना था क संसार का सबसे कृ त ाणी कौन है।

महाराज ने गोनू झा से पूछा”पंिडत जी! आज तो आप बताएँगे क संसार का सबसे कृ त


ाणी कौन है?“

गोनू झा अपने आसन से उठे और अपने दामाद क ओर इं िगत करते ए कहा–”महाराज!


यह युवक, जो मेरे पास बैठा है–मेरा दामाद है। संसार का सबसे कृ त ाणी दामाद होता
है। दामाद को उसका ससुर अपनी पु ी स पता है। उसके साथ सौगात के प म उसक
आव यकता को यान म रखते ए हर तरह क व तु देता है। यथा साम य धन भी देता
है। मगर दामाद कभी स तु नह होता। उसक इ छा रहती है क ससुराल से उसे और
धन िमले। वह कभी यह नह सोचता क उसक प ी बनकर उसके घर म आई क या ने
उससे स ब ध बनाने के िलए अपना सब कु छ छोड़ा है–माता-िपता, भाई-बहन, सगे-
स ब धी, सहेली-िम –सब कु छ, फर भी दामाद तो दामाद है–उसक लोलुप –ि ससुराल
के धन पर बनी रहती है।“

महाराज ने जब गोनू झा क बात सुन तो तैश म आ गए और बोले– ”सच कहते ह पंिडत


जी, ऐसे ाणी को कृ त तो या, कृ त तम् ाणी कहगे।“ उ ह ने तुर त आ ा दी–”इस
अधम ाणी को कारागार म डाल दया जाए।“

गोनू झा ने िवन ता से कहा”महाराज! यह ठीक है क दामाद को मने कृ त कहा, ले कन


महाराज! हम सभी कसी न कसी के दामाद ह। हम सबम यह दुगुण मौजूद है। सोच के
देख महाराज, तो आपको मेरी बात ठीक लगेगी। हम सभी अपनी पि य को अपनी
जागीर समझते ह। कभी यह नह सोचते क उसे भी अपने बचपन के दन क मृित हो
आती होगी। उसका भी जी करता होगा अपने सगे-स बि धय से िमलने का।... मने यह तो
कहा नह क मेरा दामाद ही कृ त ाणी है।“

दामाद, िजसके हलक तक आ गए थे– ाण और जो भरे दरबार म अपने को अपमािनत


आ महसूस कर रहा था–अब थोड़ा संयत आ। महाराज को भी बात समझ म आ गई।
दरबार के समापन के बाद गोनू झा अपने दामाद को लेकर महाराज के पास प च
ँ े और
बोले–‘‘महाराज, म मेहमान को फु लवारी घुमाने लाया ।ँ ’’

महाराज बोले”पंिडत जी! आप इस तरह क औपचा रकता से ऊपर ह। यह फु लवारी


आप क ही है।“

”अरे म तो भूल ही गया था आपका दामाद। मेरा भी तो कु छ होता है।“ उ ह ने अपने गले
से मोितय क माला उतारकर गोनू झा के दामाद के गले म डाल दी और बोले–‘‘पु ! यह
तो तु हारा अिधकार है। इसे धारण करो। इससे तुम कृ त नह हो जाओगे। पंिडत जी ने
तो उस था पर चोट क है िजससे बेटी के बाप को अपना सबकु छ लुटाकर दामाद क
लोलुपता क तुि करनी पड़ती है।“

गोनू झा के दामाद ने जब महाराज के चरण छु ए तब महाराज ने उसे अपने गले से लगा


िलया।

बाद म गोनू झा ने अपने दामाद को महराज क फु लवारी घुमाई और अपने घर क ओर


चल पड़े।

उनका दामाद ग द मन से गोनू झा के साथ चल रहा था।


बौराये भोनू का बचाव
भोनू झा गोनू झा के छोटे भाई थे। बड़े भाई के ित स मान भाव क कमी नह थी भोनू म,
ले कन उसे मलाल इस बात का था क लोग िजस तरह गोनू झा को मानते और जानते ह,
उस तरह उसे नह । जो आता है–वह गोनू झा से िमलने। जो भी पूछता है गोनू झा के बारे
म पूछता है। कोई य द भोनू झा से बात भी करता तो उसम भी कह न कह गोनू झा क
चचा आ ही जाती है। भोनू झा को लगा क गोनू झा को यह स मान महज इसिलए ा है
क गोनू महाराज के दरबार म जाते ह और महाराज को िव मयकारी और अ भुत बात
बताते ह। इस िन कष पर प च ँ ते ही भोनू झा ने िन य कया क वह भी अपनी बुि के
बूते िमिथला नरे श के दरबार म जगह बनाएगा।

इस िन य के साथ ही वह तरह-तरह क क पनाएँ करने लगा और एक दन उसे कोई


िविच ा-सी बात सूझ ही गई। फर या था! भोनू झा क क पना क उड़ान उसके दमाग
को सातव आसमान पर ले गई। वह अपना सबसे क मती कु ता और रे शमी धोती
िनकालकर पहना। करीने से बाल सँवारे , और िमिथला नरे श के दरबार क ओर चल पड़ा।
रा ते भर वह अपने चेहरे पर तरह-तरह क भंिगमाएँ बनाता रहा। कु छ बुदबुदाता रहा।
यानी वह रा ते भर उस बात को दुहराता-ितहराता रहा िजस बात को बताने वह िमिथला
नरे श के पास जा रहा था।

जब भोनू िमिथला नरे श के दरबार के पास प च ँ ा तब उसे मु य ार पर ही हरी ने


रोक िलया। हरी क इस गु ताखी पर भोनू आग-बबूला हो गया। एक साधारण हरी क
यह मजाल क उसे रोके ? आिखर वह िमिथला नरे श के दरबार का भावी िवदूषक है। हरी
से िजस समय भोनू झा दरबार म वेश करने क त कर रहा था उसी समय महाराज
टहलते ए उधर आए। जब महाराज ने सुना क उनसे िमलने के िलए कोई आया है और
मु य ार पर वह हरी से उलझ रहा है तब उ ह ने अपने संतरी को िनदश दया क
जाओ, हरी को बोल दो क जो ि मुझसे िमलना चाहता है उसे दरबार लगते ही
हािजर करे । इस िनदश के बाद हरी ने भोनू झा को आगंतुक क म ले जाकर बैठा दया।

आधे घंटे के बाद दरबार लगा तब भोनू झा को महाराज के सामने पेश कया गया।
महाराज ने भोनू झा से पूछा–‘‘तुम कौन हो? और य मुझसे िमलना चाहते थे, बताओ?’’

भोनू झा महाराज के सामने तनकर खड़े ए और कहा, ‘‘महाराज, म गोनू झा का भाई


।ँ म आपको एक अ भुत जीव के बारे म जानकारी देने आया ।ँ ’’

भोनू झा के बोलने के अ दाज से ही महाराज ने समझ िलया क इस ि म िश ाचार


एवं सामा य ान का अभाव है फर भी उ ह ने भोनू झा से कहा–‘‘बताओ, या जानकारी
देना चाहते हो तुम?’’

“महाराज!“ अपनी आँख को फै लाते ए भोनू झा ने कहा, मानो कोई िव मयकारक


व तु उसके सामने हो, और वह उसे देख रहा हो। ”म जब बाजार क ओर जा रहा था तब
मने एक ब त बड़ा खरगोश देखा। वह खरगोश कम से कम हाथी िजतना बड़ा था। उसक
आँख शेर जैसी और नाक हाथी के सूँड़ जैसा था। उस जीव के िसर पर क या जैसे कोमल
बाल थे और उसक आवाज कोयल जैसी थी...“

महाराज समझ गए क यह मूढ़ उनके सामने थ क बकवास कर रहा है। महाराज को


गु सा आ गया और उ ह ने उससे पूछा–”तुम वह जीव मुझे दखा सकते हो?“

इस सवाल का जवाब भोनू झा को देते नह बना और वह िसटिपटाया-सा महाराज के


सामने खड़ा रहा।

महाराज गु से म तो थे ही, उ ह ने आदेश दया क इस मूढ़ को ले जाकर कै दखाने म


डाल दो!

िजस समय भोनू झा को कारावास म डालने का आदेश महाराज दे रहे थे, ठीक उसी
समय गोनू झा दरबार म वेश कर रहे थे। उ ह ने महाराज के आदेश को सुन िलया और
महाराज के सामने खड़े भोनू झा को भी पहचान िलया। गोनू झा को समझते देर नह लगी
क आज भी अपनी धुनक म भोनू झा कोई भूल कर बैठा है।

गोनू झा को देखकर महाराज ने पूछा–‘‘ य पंिडत जी, यह आदमी आपका भाई है?’’

गोनू झा ने कहा–‘‘जी हाँ, ीमान! यह मेरा भाई है। मगर बात या ई है? आप इतने
नाराज य ह?’’

महाराज ने गोनू झा को सारा क सा कह सुनाया। गोनू झा महाराज के सामने हँस पड़े


और बोले–‘‘महाराज! भोनू ने तो ब त बुि म ापूण बात बताई है। इसने बाजार जाते
समय सड़क पर खरगोश देखा। खरगोश या खरहा य द झािङय म दखे तो अचरज क
बात नह । खरगोश शम ला ाणी है। बाजार क चहल-पहल वाली सड़क पर खरगोश
दखना िव मयकारी है। हाथी जैसा खरगोश इसने इसिलए कहा क खरगोश उसी तरह
संवेदनशील और बुि मान जानवर है िजस तरह क हाथी। शेर जैसी आँख बताकर इसने
आपको यह बताना चाहा क शेर जैसी सू मभेदी –ि खरगोश क भी होती है। कसी भी
क या के बाल कोमल होते ह और खरगोश के भी! कोयल क आवाज जैसी खरगोश क
आवाज बताकर इसने आपको यह बताने क कोिशश क क कोयल क आवाज यदा-कदा
ही सुनने को िमलती है। बसंत ऋतु के समा होने के बाद तो कभी कोयल क कू क सुनाई
ही नह पड़ती। खरगोश भी मूक ाणी है। महाराज, इसने िब ब के मा यम से ला िणक
भाषा का उपयोग करके आपके सामने यह मािणत करने क कोिशश क क वह भी
बुि मान है और श द को अपने ढंग से अथ दे सकता है।’’

महाराज समझ गए क गोनू झा अपने अनुज क तरफदारी कर रहे ह। और भोनू झा को


यह बात समझ म आ गई क आिखर कन कारण से महाराज गोनू झा को इतना मह व
देते ह।

महाराज ने भोनू झा को बरी कर दया और गोनू झा क ओर देखकर मु कु राते ए


बोले–”बात करने क कला तो पंिडत जी, कोई आप से सीखे।“

महाराज क बात सुनकर गोनू झा भी मु कु राने लगे।


अथ ीबैल कथा
‘अरे वाह, पंिडत जी! ब त शानदार बैल िलए जा रहे ह! कतने म िमला?“ गोनू झा अभी
पशु मेले से िनकले ही थे क एक ि ने उनसे पूछा।

गोनू झा ने उस ि क ओर देखा क तु उसे पहचान नह पाए। फर भी अपने चेहरे


पर औपचा रक मु कान लाकर बोले–”बस, संयोग से िमल गया–दस पए म। अ छा लगा
सो ले िलया। ज रत भी थी।’’

‘‘आइसा। ले कन पंिडत जी, आपको बैल िमला ब त शानदार–मगर एक ही य , कम


से कम एक जोड़ी बैल लेते...’’ उस अजनबी ने गोनू झा से पूछा।

गोनू झा भी उससे बात करते ए चल रहे थे–‘‘अरे , या बताएँ भाई, मेरे पास एक
जोड़ी बैल था। दस दन ए–एक बैल बीमार पड़ा। दवा-दा क मगर बचा नह पाया–
मर गया। इसीिलए एक बैल क ज रत थी। ठीक- ठाक िमल गया इसिलए ले िलया। मेरे
पास एक बैल इसी कद-काठी का है।’’

कु छ दूर चलने के बाद वह ि अपनी राह चला गया। गोनू झा सोचते रहे क यह
ि कौन था, ले कन वे उस ि को याद नह कर पाए। राजदरबार म होने के कारण
गोनू झा क याित दूर-दूर तक फै ली ई थी। उ ह जानने-पहचानने वाले लोग भी ब त
थे। उ ह ने सोचा– छोड़ो, रहा होगा कोई। अभी वे कु छ दूर ही चल पाए थे क रा ते म
एक पगड़ीधारी ि उ ह कहा–”पा लागूँ महोपा याय जी!“

गोनू झा सं कृ त के िव ान थे और सं कृ त िश ा क े तम उपािध ‘महोपा याय’ से


िवभूिषत थे। उ ह ने जब अपने िलए ‘महोपा याय’ का स बोधन सुना तो वे चके । उ ह ने
उस ि क तरफ देखा तो एक झलक म ही पहचान गए–यह ि उनके सं कृ त के
आचाय के यहाँ काम कया करता था। नाम था गोनउरा। गोनू झा ने उसका हालचाल
पूछा। अ ततः बातचीत पुनः बैल पर आ गई। गोनू झा ने पुनः बैल वृता त सुनाकर उसक
िज ासा शा त क । कु छ दूर चलकर गोनउरा भी गोनू झा से िवदा लेकर अपने गाँव क
ओर मुड़ गया।

और अपने गाँव तक प च ँ ते-प च


ँ ते गोनू झा को रा ते म कम से कम प ीस लोग ऐसे
िमले िज ह ने उनसे बैल के बारे म पूछा और िज ह गोनू झा ने बैल के मरने से लेकर बैल के
खरीदे जाने तक का वृता त कह सुनाया। अपने गाँव म गोनू झा सड़क से गुजर रहे ह और
उ ह टोकने वाला न िमले, ऐसा भला कै से हो सकता था! अब गाँव क राह म भी वही
िसलिसला शु हो गया। बैल के बारे म हर दस-बीस कदम पर गोनू झा से कोई न कोई
पूछ ही देता क ‘पंिडत जी, यह बैल कतने म खरीदा?’

गोनू झा घर प चँ ते-प च
ँ ते इस से खीज-से गए। उ ह लगने लगा क य द उनक
झ लाहट बढ़ी तो हो सकता है क बैल के बारे म पूछने वाले क वे ऐसी क तैसी कर द।
गोनू झा िववेक तो थे ही। घर प च ँ कर बथान म बैल को खूँटे से बाँधा और उसे सानी-
पानी देकर, सहला-पुचकारकर अपने कमरे म गए।

पंिडताइन यानी क उनक प ी और उनका भाई भोनू झा, दोन को बुलाकर उ ह ने


कहा–”पशु मेले म दस पए म बैल खरीदकर लाया ।ँ दूसरे बैल के जोड़ का बैल है।
जाकर बथान म बैल देख लो और अब इस बैल के बारे म मुझसे कु छ मत पूछना। थक गया
,ँ अब आराम क ँ गा।“ कहते-कहते गोनू झा चैक पर पसर गए।

उ ह ने सोचा य द कोई उपाय नह कया तो गाँव का हर आदमी आ-आकर बैल के बारे


म पूछेगा ही। कोई बैल क न ल जानना चाहेगा तो कोई बैल क क मत। कोई उ ह
बताएगा क बैल क सानी म सरस और तीसी क खली ज र िमलाएँ तो कोई कहेगा क
ह ते म एक बार बैल को पाव भर नमक चटाएँ। कस- कसको वे बैल क क मत और जाित
बताते फरगे और कस- कसको बताएँगे क कस कारण से बैल खरीदना पड़ा। कस-
कससे नसीहत लेते रहगे क बैल को कै से पाला जाता है, या- या िखलाया जाता है।
फर कु छ मन ही मन तय कर लेने के बाद वे चैक से उठे । हाथ-मुँह धोया। पंिडताइन ने
उनके और भोनू झा के िलए भोजन परोस दया। खा-पीकर गोनू झा सो गए।

दूसरे दन सबेरे-सबेरे गोनू झा बैल को बथान से िनकालकर गाँव के बीच वाले िह से म


ले गए और बैल को एक खेत म घुसा दया जहाँ बैल म ती म चरने लगा। गोनू झा खुद एक
पेड़ पर चढ़कर िच लाने लगे– ”दौड़ो भाइय , ज दी आओ! आओ गाँववालो, ज दी आओ!
खेत म बाघ घुसा है, ज दी आओ!“

उनक चीख सुनकर गाँव के लोग अपने हाथ म लाठी, भाला, फरसा, तलवार आ द िलए
दौड़ते आए। उन लोग ने देखा, गोनू झा एक पेड़ पर चढ़े आवाज लगा रहे ह। गोनू झा का
िच लाना जारी था। जब उ ह िव ास हो गया क पेड़ के नीचे गाँव के तमाम लोग जमा
हो गए ह तब उ ह ने िच लाना बंद कया।

गाँववाल ने पूछा‘‘कहाँ पंिडत जी, कहाँ है बाघ?’’

गोनू झा ने पेड़ से उतरकर गाँववाल को खेत म चर रहे बैल को दखाया–‘‘वहाँ देिखए,


दखा आप लोग को?’’

गाँव वाले बोले‘‘नह , पंिडत जी–वहाँ तो बैल दख रहा है–बाघ नह ।’’


हाँ, ठीक दख रहा है–बैल ही है, बाघ नह । और यह बैल मने कल दस पए म खरीदा है।
मेरे पास पहले एक जोड़ा बैल था। दस-एक दन पहले उसम से एक बैल मर गया इसिलए
मुझे यह बैल खरीदना पड़ा। अगर आप लोग को बैल के बारे म कु छ और जानना-समझना
हो तो पूछ लीिजए। कल शाम से म पचास लोग को जवाब देते-देते आिजज आ चुका ।ँ
और अगर कसी को कु छ नह पूछना है तब सब लोग अपने-अपने काम म लग जाइए। मुझे
आप लोग को यही बताना था क मने बैल खरीदा है। गाँव के िजन लोग को यह बात नह
मालूम हो उ ह भी आप लोग बता दीिजए। मगर मेरी िवनती है क अब मुझसे इस बैल के
बारे म कु छ मत पूिछए।’’

गाँव वाले अपने-अपने हरबा-हिथयार के साथ लौट गए। कहाँ तो वे आए थे बाघ का


िशकार करने, कहाँ गोनू झा के बैल का दशन करके अपना सा मुँह िलए लौट रहे थे।

गोनू झा अपनी म ती म मूँछ पर ताव देते ए अपने घर प च


ँ ।े घर प च
ँ ने पर उनक
प ी ने पूछा–”इतने सबेरे कहाँ चले गए थे?“

गोनू झा ने खूँटे से बैल बाँधते ए कहा–”गाँव वाल को ‘अथ ीबैल कथा’ बाँचने गया
था भा यवान!“ इतना कहकर गोनू झा मु कु राने लगे।
गोनू झा ए परािजत
बसुआ यानी बासुदव े । गोनू झा के टहल- टकोला म लगा रहने वाला उनके गाँव का एक
कशोर। बसुआ, िजसका अपना सगा कोई नह था। गाँव म उसक एक छोटी-सी झां◌ेपड़ी
थी। गोनू झा के खेत के पास। बसुआ दन भर इधर-उधर रहता। कसी ने कु छ करने को
कहा, कर दया। अलम त था बसुआ। न दन क फ , न रात क िच ता। जब थक जाता
तो चला आता अपनी झ पड़ी म। उसे झ पड़ी कहने क बजाय उसका रै न बसैरा कह तो
यादा ठीक होगा–बसुआ म त-मलंग क तरह पड़ा रहता। न उधो का देना, न माधो का
लेना! िनि त रहता बसुआ। कसी क उसे परवाह नह थी। न कोई छोटा-मोटा, न कोई
बड़ा। उसक नजर म सब बराबर! कोई ब ा भी उसे कसी काम के िलए कहता तो वह
‘जी मािलक’ कहकर उसका काम कर देता। कह से दो जून रोटी िमल गई तो खा िलया
और चला आया अपनी झ पड़ी म। यही थी बसुआ क दनचया।

एक दन गोनू झा का हरवाहा बीमार पड़ गया। गोनू झा को अपना खेत तैयार करना


था। वे सोचने लगे–अब या कर! अचानक खेत क मँ◌ुडरे पर उ ह बसुआ दख गया। वे
खुश हो गए। उ ह लगा क बसुआ उनका कहना नह टालेगा। इसिलए उ ह ने बसुआ को
आवाज दी–‘‘बसुआ– ओ बसुआ!’’

बसुआ ने उनक आवाज सुनी तो वह से िच लाया–”पाँव लागन मािलक!“ और दौड़ता


आ गोनू झा के पास प च
ँ गया।

गोनू झा ने कहा–‘‘बसुआ, दो-चार दन तू मेरा खेत जोत दे! हरवाहा बीमार पड़ गया है।
वह ठीक हो जाएगा तब तक भले ही कसी और काम म लग जाना!’’

बसुआ मान गया। गोनू झा के घर से हल और बैल ले आया और खेत क जोताई म लग


गया।

गोनू झा दरबार के िलए तैयार होकर अपने खेत क ओर से ही दरबार के िलए िनकले।
उ ह ने देखा, बसुआ त मयता के साथ खेत जोतने म लगा आ है। मन ही मन खुश होते
ए गोनू झा ने बसुआ को आवाज दी–‘‘ओ बसुआ! जरा इधर आ!’’

बसुआ खेत के बीच से ही िच लाया–‘‘आया मािलक!’’ और दौड़ता आ गोनू झा के पास


प च
ँ ा और हाँफते ए पूछा–‘‘जी, मािलक?’’

गोनू झा ने बसुआ से कहा‘‘देख बसुआ!...मन लगा के खेत जोतना! अपना काम समझ
के –िजतना कर सको, करना। शाम को दरबार से लौट- कर तु ह हलवा िखलाऊँगा!’’

बसुआ खुश हो गया और बोला–‘‘जी, मािलक!’’

इसके बाद गोनू झा दरबार चले गए और बसुआ पूरे उमंग के साथ खेत जोतने म लग
गया। जब थोड़ी थकान होती, बसुआ गाने लगता– ‘‘मािलक आएँगे! हलवा लाएँगे! म तो
जी भर के हलुआ खाऊँगा...म त होके सोने जाऊँगा...!’’

दरबार से लौटते समय भी गोनू झा खेत वाली राह से ही आए। उ ह ने देखा, बसुआ खेत
जोतने म जुटा आ है। उ ह देखकर आ य आ क िजतना खेत उनका हरवाहा सात दन
म जोतता, उससे कह अिधक खेत बसुआ एक दन म ही जोत चुका था...। गोनू झा घर
लौटे। वे अपने साथ बाजार से ही थोड़ा हलवा खरीदकर खेत क ओर आए थे।

खेत प च ँ कर उ ह ने बसुआ को आवाज दी–‘‘ओ बसुआ! आ! ब त हो गया! अब कल


जोतना! चला आ! हाथ-मुँह धो ले। थक गया होगा। तु ह भूख भी लगी होगी। ज दी
आ...म तु हारे िलए हलवा ले के आया ।ँ ’’

बसुआ ने दूर से ही देखा गोनू झा के हाथ म बड़ा सा बतन देखकर वह ब त खुश आ


और कु एँ पर प च
ँ कर हाथ-पाँव धोया, कु ला-गरारी कया और झूमते ए गोनू झा क
ओर चला–गाते-गाते–‘‘जी भर के हलुवा खाऊँगा! तब म सोने जाऊँगा...!’’

जब वह गोनू झा के पास प चँ ा तब तक गोनू झा ने उसक ओर वह बतन बढ़ा दया जो


उनके हाथ म था। बतन जैसे ही बसुआ ने पकड़ा तो उसके वजन से ही बसुआ को लगा क
बतन खाली है। बसुआ ने जब बतन म झाँका तो उसका सारा उ साह फ का पड़ गया और
उसके मुँह से िनकला–‘‘यह या मािलक! आपने तो मुझसे कहा था क आप मुझे हलवा
िखलाएँग,े मगर...।’’

गोनू झा ने बसुआ को बीच म ही टोकते ए कहा–”हलुवा ही तो है...“

बसुआ ने कहा–‘‘मगर मािलक! इतना ही? इससे मेरा पेट कहाँ भरे गा?’’

गोनू झा ने कहा‘‘देखो, मने तुझे कहा था क हलवा िखलाऊँगा तो हलवा ले आया तु हारे
िलए...मने यह तो नह कहा था क भर पेट हलवा िखलाऊँगा? अब यादा बक-बक मत
कर। जो है सो खा ले।’’

बसुआ ने आँसा होकर गोनू झा क ओर देखा और कहा–‘‘जी, मािलक।’’ बसुआ ने


हलवा खा िलया और कु एँ पर जाकर पानी िपया फर बतन धोकर गोनू झा को लौटा
दया।
गोनू झा बतन लेकर जब घर क ओर लौटने लगे तब उ ह ने बसुआ से कहा–‘‘कल म घर
से सीधे दरबार चला जाऊँगा। शाम को जब दरबार से लौटूँगा तब तु हारे िलए कु छ
मजेदार चटपटी चीज लेता आऊँगा–जी भर के खाना! हाँ, देख, सुबह से खेत जोतने म
ज र लग जाना!’’

बसुआ ने कहा–‘‘जी, मािलक!’’

गोनू झा चले गए।

बसुआ हल-बैल लेकर बथान पर प च ँ ा आया। फर अपनी झ पड़ी म प च ँ ा। उसके पेट


म चूहे दौड़ रहे थे। खलबली मची ई थी। लोटा भर पानी पीकर कसी तरह बसुआ ने रात
िबताई। रात को ही उसने सोच िलया था क गोनू झा को वह ज र मजा चखाएगा।

दूसरी तरफ, गोनू झा बसुआ के काम से खुश थे। उ ह ने सोचा– बेचारा बसुआ! दन भर
काम म जुटा रहा...उ मीद से यादा खेत जोत दया ले कन उसे आज अधपेटा रहना पड़
गया। खैर! कल उसके िलए कचैड़ी-जलेबी लेकर आऊँगा...इतना क उसका पेट भर जाए!“

दूसरे दन शाम को खेत पर जब गोनू झा हाथ म कचैड़ी, जलेबी से भरा बतन लेकर
प च
ँ े तो देखा, बसुआ एक ही जगह हल-बैल चलाए जा रहा है। दन भर म वह क ा भर
जमीन भर नह जोत पाया है। हाँ, िजतनी जमीन जोता है उतनी जमीन क िम ी चूड़
होकर पाउडर क तरह महीन हो चुक है। गोनू झा को कु छ समझ म नह आया क बसुआ
एक ही जगह हल य चलाए जा रहा है? उ ह ने ोध म आवाज दी–‘‘ओए बसुआ, इधर
आ!’’

बसुआ उनक ओर देखा और िच लाकर बोला–‘‘आया मािलक!’’

बसुआ हल-बैल छोड़कर गोनू झा के पास आने से पहले कु एँ पर गया और हाथ-पैर धोकर
गोनू झा के पास प च
ँ ा और बोला–‘‘लाइए मािलक, मजेदार और चटपटी चीज! भूख लगी
है खा तो लूँ!’’

गोनू झा ने हाथ का बतन बसुआ क ओर बढ़ा दया। बसुआ बतन म जलेबी-कचैड़ी


देखकर ब त खुश आ और वह पालथी मारकर बैठ गया और खाने लगा।

गोनू झा उसे खाता देखकर मन ही मन खीज रहे थे। जब बसुआ खा चुका और बतन
धोकर उ ह थमाने लगा तब गोनू झा ने बतन लेते ए बसुआ से पूछा–‘‘बसुआ! आज दन
भर म तू क ा भर जमीन भी नह जोत पाया! ऐसे ही जोताई होती है?’’

बसुआ ने गोनू झा क आवाज से उ प आवेश को महसूस कया और तड़ककर


बोला‘‘मािलक! आप नाराज य होते ह? मने तो कहा था, खेत जोतूँगा सो जोत रहा था।
मने यह थोड़े ही कहा था क सारा खेत जोत दूग
ँ ा?’’ गोनू झा को तुर त हलवा वाली बात
याद आ गई, और उनका आवेश जाता रहा। बसुआ ने उ ह अहसास करा दया था क
दूसर को ग ा देने वाले को खुद भी ग ा खाना पड़ सकता है। बसुआ क म त-मलंग
आवाज से गोनू झा हँस दए और बोले‘‘बसुआ...सच म तुम ब त अ छे इ सान हो। कल
मुझसे गलती हो गई थी, अब ऐसा कभी नह होगा–म सदैव इस बात का यान रखूँगा!’’

बसुआ हँस दया–म त हँसी और हल-बैल लेकर बथान क ओर चल पड़ा।

गोनू झा उसे म त चाल म जाते ए देखते रहे।


समान िवतरण व था
एक दन िमिथला नरे श के दरबार म एक साधु आया। नरे श ने उनक आवभगत क । ा
से कर जोड़े। आशीष हण कया।

साधु ने बताया क वह चार धाम का मण करके लौटा है। िमिथला म अपने यजमान
को साद बाँटता आ महाराज के पास उ ह और उनके दरबा रय को साद देने क
इ छा से वह वहाँ आया है। साद िवतरण तक ही वह वहाँ के गा, उसके बाद िवदा हो
जाएगा। साधु ने महाराज को अपनी थैली से िनकालकर चार बताशे दए और
कहा–”राजन्! ये चार बताशे, चार धाम के साद ह। इनका समान िवतरण यहाँ
दरबा रय के बीच होना चािहए। हाँ, यान रहे क साद सबसे पहले आप ही हण
करगे।“

महाराज िवि मत भाव से अपनी तलहथी पर पड़े चार बतास को थोड़ी देर तक देखते
रहे फर उ ह ने अपने दरबा रय क तरफ देखा। उनक समझ म नह आ रहा था क इन
चार बताश का सभी दरबा रय के बीच समान िवतरण कै से हो सकता है? अ ततः उ ह ने
एक वृ दरबारी को बुलाकर चार बताशे दए और बोले–”आप बुजुग ह। आप हीे इन
बताश का समान िववरण कर।“

वह दरबारी कु छ कह नह पाया। उसक भी ि थित महाराज जैसी ही थी। िजस तरह


महाराज क समझ म कु छ नह आया था, उसी तरह इस वृ दरबारी क समझ म कु छ
नह आया क आिखर कै से इन चार बताश को सभी दरबा रय के बीच बराबर-बराबर
बाँटा जाए?

थोड़ी देर मौन रहने के बाद साहस करके उस वृ दरबारी ने महाराज से


कहा–”महाराज! मुझे ऐसी युि मरण नह िजससे इन चार बताश को सभी दरबा रय
म बराबर-बराबर बाँटा जा सके । महाराज, मुझे मा कर और यह काय कसी अ य को
स प द।“

महाराज ने कई दरबा रय को बुलाया ले कन उनम से कोई भी दरबारी इस काम के


िलए राजी नह आ।

दरबार म बैठा काना नाई, जो गोनू झा से बैर भाव रखता था, हठात् अपने आसन से उठा
और महाराज से कहने लगा–”महाराज! यह काय इस दरबार म के वल एक ही ि कर
सकता है–वह और कोई नह , हमारे दरबार के सबसे गुणी ि गोनू झा जी ह। आप यह
काय उ ह स पे... फर कोई सम या नह रहेगी।“

महाराज काना नाई क कु टलता भाँप गए। गोनू झा ने भी समझ िलया क काना नाई ने
इस काय को अस भव मानकर उ ह नीचा दखाने के िलए उनके नाम का ताव कया है।
इस बात को भाँपते ही गोनू झा के ह ठां◌े पर मु कान तैर गई।

महाराज ने गोनू झा क तरफ देखा ही था क गोनू झा अपने आसन से उठ गए और


मु कु राते ए बोले–‘‘जी हाँ, महाराज म इस साद का सभी दरबा रय म समान िवतरण
क ँ गा। आप आदेश द।’’

महाराज ने उ ह बुलाकर बताशे दे दए। गोनू झा ने ापूवक अपनी ‘अँजुरी’ म बताशे


िलए और महाराज से िवनीत वर म बोले–‘‘महाराज! कृ पा कर एक ‘माठ’ (िम ी का
बड़ा घड़ा) जल, दरबार म उपि थत लोग क गणना के बराबर िम ी के कु हड़, एक
बोतल गुलाब जल और एक पसेरी चीनी क व था यथाशी करवा द।“

गोनू झा क माँग त काल पूरी करने का िनदश महाराज ने दे दया। थोड़ी ही देर म सारी
व तुएँ दरबार म आ ग । गोनू झा ने चीनी पानी से भरे माठ म डाल दया। फर उसम
गुलाब जल क बोतल खोलकर सारा गुलाब जल उड़ेल दया। फर उ ह ने एक करछु ल क
माँग क । करछु ल भी आया। एक आदमी को गोनू झा ने माठ के पानी म डाले गए चीनी को
िहलाकर पानी म घुलाने का िनदश दया। दरबारीगण आँख फाड़े सारी गितिविधयाँ देख
रहे थे। कसी क भी समझ म नह आ रहा था क गोनू झा आिखर करना या चाहते ह।

थोड़ी देर तक दरबा रय क िवि मत िनगाह का गोनू झा आन द उठाते रहे। अ त म


उ ह ने अपने हाथ से चार बताशे को एक-एक कर पानी म डाल दया और ऊँची आवाज
म बोले–‘‘महाराज! अब यह पूरा माठ बताशे के शबत से भरा आ है और शबत, के वल
शबत न माना जाए। यह चार धाम का साद है।“ अपने दोन हाथ म एक-एक कु हड़
शबत लेकर गोनू झा महाराज के पास आए और बोले–”साधु महाराज क आ ा के
अनुसार सबसे पहले साद आप हण कर।“ दूसरा कु हड़ उ ह ने साधु क ओर बढ़ाया
और बोले–”आप इस रा य के शुभ क कामना रखते ह तभी महाराज को साद देने के
िलए पधारे । आप हमारे अितिथ ह–देवता समान। इसिलए यह साद आप भी हण कर।’’

इसके बाद सम त दरबा रय म कु हड़ म शबत बाँटा गया। गोनू झा ने भी शबत पीया।

अभी शबत पीने-िपलाने का दौर चल ही रहा था क साधु अपने आसन से उठ खड़ा आ


और बोला–‘‘राजन! िजस रा य म ऐसा गुणी आदमी मौजूद है उस रा य म हमेशा
ीवृि होती रहेगी।“

साधु आशीष देता आ वहाँ से चला गया।


दरबारी मु कं ठ से गोनू झा क शंसा कर रहे थे और काना नाई जल-भुनकर खाक
आ जा रहा था।
दूध से भागने वाली िब ली
िमिथला म एक बार चूह क सं या इतनी बढ़ गई क लोग का जीना हराम हो गया। चूहे
खेत-खिलहान म उ पात मचाते। धान क को ठय म िबल बनाते। चैका म उछल-कू द
करते। राजमहल भी चूह के आमद का िशकार हो गया था। एक रात चूहे ने महाराज क
पगड़ी कु तर डाली और सुबह जब महाराज ने अपनी पगड़ी क हालत देखी तो उ ह ब त
गु सा आया।

उसी दन महाराज ने बड़ी तादाद म िबि लयाँ मँगा । अपने रा य के सम त प रवार को


एक-एक िब ली पालने का म दया। गरीब जा इस फरमान के िव खड़ी हो गई।
दरबार म इस सम या पर िवचार-िवमश आ। महराज क िच ता का िवषय था क
िमिथला के लोग मृदभु ाषी होते ह। िवरोध या ि दोह से उनका कोई स ब ध नह है फर
िब ली पालने के राजा ा का उ लंघन करने पर वे कै से आमादा हो गए?

िन कष िनकला क लोग अपना और अपने प रवार का भरण-पोषण ब त मुि कल से


कर पाते ह। ऐसे म वे िब ली पालने के िलए दूध कहाँ से लाएँग?े

मूल बात महाराज को भी समझ म आ गई और उ ह ने नया फरमान जारी कया क


िजन लोग को िबि लयाँ दी गई ह, वे उन िबि लय के लालन-पालन के िलए रा य-
गौशाला से एक-एक गाय ले जाएँ।

जा तक जब यह बात प चँ ी तो उनम खुशी क लहर दौड़ गई। महाराज को जाव सल


कहा जाने लगा। महाराज ने खुद अपनी देख-रे ख म गाय का िवतरण कया। येक ऐसे
ि को, िजसे वे गाय क र सी थमाते, यह िनदश भी देते क िब ली को दूध देने म कोई
कमी नह होनी चािहए। अगले साल रा य म िबि लय क ितयोिगता कराई जाएगी।
िजसक िब ली ब त मजबूत होगी, मोटी और सु दर, उस ि को पा रतोिषक दान
कया जाएगा। इसके िवपरीत िजस ि क िब ली कमजोर होगी उसे दंिडत कया
जाएगा।

गोनू झा को भी िब ली दी गई थी। गोनू झा भी अपने साथ गाय लेकर घर प च


ँ ।े शाम
को गाय दूहकर उ ह ने भरी बा टी अपनी प ी को थमाई और कहा क एक कटोरा दूध
खूब गम करके लाओ।

पंिडताइन ने दूध उबालकर कटोरा म भरा और आँचल से कटोरा पकड़े ए गोनू झा के


पास आई और उनके पास कटोरा रख दया।
गोनू झा िब ली के ब े को गोद म िलए बैठे थे। दूध क ग ध पाकर िब ली के ब े ने
उनक गोद से िनकलने क कोिशश क । गोनू झा ने िब ली के ब े का िसर अपनी
अँगुिलय से पकड़ िलया और बोले–‘‘दूध पीओ।’’ इतना कहकर उ ह ने िब ली के ब े का
मुँह दूध से भरे कटोरे म सटा दया। िब ली गम दूध होने के कारण छटपटाकर गोनू झा के
हाथ से िनकलने क कोिशश करने लगी। गोनू झा ने िब ली के ब े को पुचकारकर शा त
कया और फर ‘दूध पीओ’ कहकर उसका मुँह गम दूध म डु बोकर िनकाल िलया। इस बार
िब ली का ब ा अपनी पूरी ताकत से गोनू झा के हाथ से िनकलने क कोिशश करने लगा।
उसके पंज से गोनू झा के हाथ म कई थान पर खर चे भी आ ग । गोनू झा ने िब ली के
ब े को अपने हाथ से िनकल जाने दया।

एक ह ते तक गोनू झा अपने ढंग से िब ली के ब े को दूध िपलाने के िलए खूब गम दूध


मँगाते और वही या दुहराते। ि थित यह हो गई क िब ली का ब ा ‘दूध’ श द सुनते ही
डरकर दुबक जाता। दूध क कटोरी पड़ी रहती मगर उसक ओर देखता तक नह ।

थोड़े ही दन म गोनू झा ने अपनी िब ली को चूह के िशकार के िलए े रत करना शु


कया। ि थित यह ई क चूहा देखते ही गोनू झा क िब ली उस पर झपट पड़ती और
अपने पंज म दबोचकर उसके साथ िखलवाड़ करती और अ ततः उससे अपनी ुधापू त
करती। दूध क ओर जाना तो दूर, उसक ओर देखना तक इस िब ली को गँवारा न था।

गोनू झा रोज गाय का दूध पीते। दही खाते। मलाई खाते। दूध के तरह-तरह के पकवान
उनके घर म बनते रहते थे।

दूसरी तरफ गाँव के लोग म होड़-सी मची थी क कसक िब ली यादा दमदार दखती
है। अपनी िब ली के साज-सँवार म ये लोग िजतना यान दे रहे थे, कभी उतना यान
अपने ब क परव रश पर भी इन लोग ने नह दया था।

गाँव म ायः चचा होती रहती थी क अमुक ि क िब ली ब त सु दर है। अमुक क


िब ली के याऊँ बोलने का अ दाज ब त यारा है। अमुक क िब ली बड़ी ढीठ है तो अमुक
क िब ली बड़ी चपल है।

लोग अपनी िब ली को नहला-धुलाकर घंट उसके रो को तरह-तरह का उप म करके


चमकाने म लगे रहते। उनम से कु छ तो अपनी िब ली को नहलाने के बाद कं घी करने म
लगते।

दूध को गाढ़ा होने तक उबाला जाता ता क िब ली जो दूध पीए, वह यादा पौि क हो।
कहने का ता पय यह क लोग अपना कम और िबि लय का खयाल यादा रख रहे थे।

ामीण म इस बात क खुशी थी क गोनू झा क िब ली िपलिपलही है। बीमार-सी


दखती है। लोग फु सफु साकर आपस म बात भी करते थे क गोनू झा खुद गाय का दूध पी
जाते ह, िब ली बेचारी तो इधर-उधर मुँह मारकर गुजारा करती है। ामीण को िव ास
था क इस बार गोनू झा इस िब ली वाले मसले पर ज र राजद ड के भागी बनगे।

इसी तरह एक साल बीत गया।

एक दन महाराज ने मुनादी करा दी क शरद पू णमा के दन सभी ामीण अपनी-


अपनी िब ली के साथ राज-उ ान म उपि थत ह ।

देखते-देखते शरद पू णमा का दन भी आ गया। राज-उ ान म ामीण अपनी िबि लय


के साथ उपि थत ए। महाराज ने ामीण के पास जा-जाकर उनक िबि लयाँ देख ।
सहला । यार कया और आगे बढ़ते गए। उ ह स ता हो रही थी क उनके रा य म अब
िबि लय क कमी नह है। रा य से चूह का सफाया होना िनि त है।

गोनू झा सबसे अलग अपनी िब ली के साथ एक कनारे खड़े थे। जब महाराज उनके पास
प चँ े तो चक गए–‘‘अरे , यह या पंिडत जी! िब ली बीमार है या?’’ उ ह ने गोनू झा से
पूछा।

‘‘नह , महाराज! िब ली व थ है, मगर यह दूध नह पीती।’’

गोनू झा का यह उ र सुनकर महाराज तैश म आ गए। तुर त एक कटोरी दूध मँगाई। दूध
देखते ही गोनू झा क िब ली गोनू झा क गोद से जबरन छटपटाकर िनकली और छलाँग
लगाकर दूसरी ओर महाराज के बैठने के िलए रखे आसन के पास जाकर छु प गई। महाराज
को िव ास हो गया क गोनू झा क िब ली दूध नह पीती।

दूसरे ही ण गोनू झा ने महाराज से कहा–‘‘महाराज! मेरी िब ली म वे तमाम गुण ह


जो एक िब ली म होने चािहए। यह चूहे का िशकार करने म ब त कु शल है। इतनी कु शल
क यहाँ उसके मुकाबले म कोई िब ली नह है। महाराज! मेरी िवनती है क आप सभी
स न से अपनी िब ली छोड़ देने के िलए कह। मेरे पास एक पंजड़े म कई चूहे ब द ह, म
उ ह खोलता ।ँ ’’

महाराज ने सबको िबि लयाँ छोड़ देने के िलए कहा। सबक िब ली जमीन पर रखी गई।
गोनू झा ने चूहद
े ानी का मुँह खोल दया। सभी देखते रह गए। िबजली जैसी तेजी से गोनू
झा क िब ली ने ताबड़-तोड़ सारे चूहे मार डाले। अ य लोग क िबि लयाँ दूध से अघाई;
अपने थान पर अलसाई ई पड़ी रह ।

गोनू झा ने कहा‘‘महाराज! रा यिहत म यही है क िब ली ऐसी हो जो चूह को मार


सके ।’’
महाराज गोनू झा के तक से स हो गए और उस वष िब ली पालन का पा रतोिषक
गोनू झा को ही ा आ।
धान का चढ़ावा
‘‘ई र सव ापी है ले कन वह मनु य के कम म ह त ेप नह करता। उसे मनु य के भाव,
मनु य क आ था से ही सरोकार है...यह म त और चढ़ावा क बात मेरी समझ से परे ह।’’

गोनू झा अपने दरवाजे पर गाँव के बड़े-बुजुगा◌े को समझा रहे थे। दरअसल िमिथलांचल
म उस वष धान क फसल अ छी ई थी। खेत म धान नह , सोने क बािलयाँ मचल रही
थ । गोनू झा के गाँव म ही सोने-सी चमकती धान क बािलय ने ामीण को मं ामु ध
कर रखा था। गाँववाले इसे ई र क कृ पा मान रहे थे। उ ह लग रहा था क भगवान
गाँववाल पर स है िजसके कारण उनके गाँव म धान क फसल ब त अ छी ई है।
गाँववाले एकजुट होकर धनकटनी के समय अ छी फसल के िलए उ सव मनाना चाहते थे।
धान क अ छी फसल के िलए सव थम वे भगवान से फसल क र ा के िलए सामूिहक
प से म त माँगना चाहते थे। ायः येक ामीण ने भगवान को अ छी फसल देने के
िलए कु छ न कु छ चढ़ावा चढ़ाने क म त माँगी थी। कौन भगवान को या चढ़ाएगा,
कसके घर से भगवान के िलए या चढ़ावा आएगा, इसक एक सूची तैयार कर ली गई थी
मगर इस सूची म गोनू झा का नाम नह था इसिलए गाँव के बड़े-बुजुग का एक ज था
उनके पास आया आ था यह कहने के िलए क वे भी अपना नाम इस सूची म दज करा ल
तथा वे भगवान को या चढ़ावा चढ़ाएंगे यह िलखा द। मगर गोनू झा तो गोनू झा थे। वे
इन बुजुग क बात मानने को तैयार नह थे और वे ामीण को कमयोग क िश ा देने म
लगे ए थे।...

गोनू झा अपनी बात कहे जा रहे थे‘‘देिखए! आप सभी बड़े ह–मेरे िलए िपता समान है!
म आप लोग क हर बात मानने के िलए तैयार ँ मगर यह चढ़ावा और म त वाली बात
रहने दीिजए। वैसे भी पूजा और चढ़ावा तो आ था क बात है। आपक आ था है–आप
चढ़ाएँ। ले कन इसके िलए मुझे तो या, कसी और को भी बा य नह कर।’’

बुजुग म से एक ने गोनू झा पर फ ती कसी–‘‘का हो गोनू! नाि तक हो गए हो या...?’’

गोनू झा ने कहा‘‘कौन कहता है क म नाि तक ?ँ मुझे ई र म आ था है। म तो इन


कमकांड म िव ास नह करता िजसके िलए आप लोग कह रहे ह। अभी यह आव यक
नह है क आप चढ़ावा के िलए सोच या फसल क र ा के िलए म त माँगे। आव यक यह
है क आप सभी अपने-अपने खेत क रखवाली कर ता क कोई जानवर इन तैयार फसल
को नुकसान नह प च ँ ाए।’’

मगर ामीण का दवाब गोनू झा पर बना रहा और उनसे पंड छु ड़ाने के िलए गोनू झा ने
उनसे कहा–‘‘ठीक है! जब आप लोग का यही खयाल है क मुझे कोई चढ़ावा चढ़ाना
चािहए तो म एक छ टा (बाँस क टोकरी) धान चढ़ावा के प म चढ़ाने के िलए तैयार ँ
मगर शत यह है क एक पिथया धान हो।’’

उनक बात सुनकर ामीण खुश हो गए और उ ह ने समझ िलया क आज उ ह ने गोनू


झा क अकड़ ढीली कर दी। वे स होकर अपने-अपने घर क ओर लौट गए।

उनके जाने के बाद गोनू झा ने भी तय कर िलया क उ ह इन ामीण को सबक िसखाना


है। उ ह ने अपने घर म धान रखने के िलए एक ब त बड़ी ‘कोठी’ बनवाई िजसके उपरी
भाग का मुँह एक पिथया के बराबर था। उ ह ने एक पिथया का पदा कटवाकर कोठी के
मुँह पर लगा दया, िजससे लगे क वहाँ पिथया ही है–‘कोठी’ नह ।

अ ततः कटनी शु ई। धान टोकर म भरकर घर तक प च


ँ ने लगे। गोनू झा ने भी
अपनी कोठी म अपने खेत का धान सरकाना शु कया।

गाँववाल को गोनू झा के चढ़ावे क याद आई। ामीण का ज था गोनू झा के पास


प च
ँ ा। ामीण देखना चाह रहे थे क गोनू झा चढ़ावा के िलए धान िनकालते भी ह या
नह ।

गोनू झा ने ामीण को देखते ही उनके आने का कारण समझ िलया और धान से भरे
टोकरे को उठाकर ‘पिथया’ म पलटते ए कहा–‘‘ या कर भाई...ई पिथया भर ही नह
रहा है। सुबह से कोिशश कर रहा ।ँ धान पिथया म जाते ही िबला जा रहा है...यह देिखए
अि तम टोकरा है धान का आप लोग के सामने। यह देिखए, पिथया म डाला धान और
देिखए, धान िबला गया।“

ामीण ने देखा। हालाँ क वे ‘कोठी’ क स ाई नह समझ पाए मगर इतना समझ गए


क गोनू झा से पार पाना उनके बस क बात नह है सो वे अपना-सा मुँह लेकर वापस लौट
गए।

इधर गोनू झा कोठी के ऊपर से पिथया िनकालकर कोठी का मुँह उसके ढ न से ब द


करने म लग गए।
पड़ोसी का पीढ़ा
िमिथलांचल म खुिशय क सौगात लेकर आम मंजराए। गाँव म बस त का आगमन उस
साल कु छ ऐसा आ क हर चेहरे पर रौनक बढ़ गई। आसार इस बात के थे क आम खूब
फलगे। मंजर बौ रय म बदले फर टकु ल म। टकु ल ने आम का प िलया।

िमिथलांचल के हर गाँव म बस यही चचा थी क इस बार आम म इतनी कमाई हो


जाएगी क साल भर के खच के िलए सोचना नह पड़ेगा। मगर, िविध का िवधान कु छ
और था। आम अभी तैयार नह ए थे क जबद त ओला वृि ई और होने लगी
मूसलाधार बा रश–तेज झ ड़ के साथ। गाँव-दर-गाँव आम के बगीच म एक मुदनी-सी छा
चुक थी। काले बादल ने गाँव वाल क खुिशय को पूरी तरह ढँक िलया था। बगीच -
बगान म िजन आम के पेड़ पर हजार आम दखते थे, बा रश ख म होने के बाद वे पेड़
ठूँ ठ बने खड़े थे।

एक साल के बाद फर आम के पेड़ मँजर से गदगदाए। गाँव के लोग ने भगवान से


ाथना क क इस साल आम क फसल बबाद न होने पाए। ायः सभी ने अपने-अपने ई
देव को चढ़ावा चढ़ाने क म तं◌े माँग , मगर गोनू झा मौन रहे।

जब से गोनू झा को िमिथला नरे श के दरबार म थान ा आ था तब से िमिथलं◌ाचल


के ामीण के िलए वे आदश बन गए थे। उनके गाँव के लोग जब िमिथलं◌ाचल के अ य
गाँव म जाते तो गव से कहते क वे गोनू झा के गाँव से आ रहे ह। यहाँ तक क गोनू झा से
जलने वाले लोग भी दूसरे गाँव म जाकर उनके शंसक हो जाते थे। ऐसे म गोनू झा के
ामीण म यह उ सुकता पैदा होना अचरज क बात नह थी क गोनू झा ने आम क
फसल को बरबादी से बचाने के िलए आिखर या म त माँगी है! लोग जब कभी गोनू झा
से पूछते तो गोनू झा इस को टाल जाते।

एक दन गोनू झा अपने एक दूर के र तेदार के घर गए थे। नदी के कनारे उनके


र तेदार का घर था। नदी से सटे ही उनका बड़ा-सा आम-बागान था िजसम सैकड़ आम
के पेड़ थे। या कलमी और या बीजू! बीजू आम के िलए उनका बागान पूरे िमिथलं◌ाचल
म मश र था। इस बागान म िबढ़िनया, कपूरी, संदरू ी, िमठु आ, सुग धा जैसे प ीस क म
के बीजू आम के पेड़ थे। ब बइया आम के पेड़ से तो उ ह ने अपने बागान क घेराब दी ही
कर रखी थी। मालदह क कई क म के कलमी आम उ ह ने अपने बागान म लगा रखे थे।
गोनू झा के आने पर ब त खुश ए उनके र तेदार और उ ह आम के बागान म ले गए और
ायः हर आम के पेड़ के बारे म उ ह बताने लगे क इसक कलम उ ह ने कहाँ से मँगाई।
अपने बगीचे म लगे आम के िविभ क म को लेकर उनके र तेदार यह गव ि भी
करने से बाज नह आए क उनके बागान म िजतने तरह के आम के पेड़ ह, उतने आम क
क म तो िमिथला नरे श के बागान म भी नह ह गी।

उनक इस गव ि से गोनू झा खीज गए ले कन उ ह ने कु छ भी नह कहा।

गोनू झा को मौन देखकर उनके र तेदार ने अपनी बात जारी रखी। उसने गोनू झा को
बताया क आम क फसल को वषा से बचाने के िलए उसने देवी माँ से म त माँगी है क
आम तैयार होते ही ित दन दो आम उनके मि दर म चढ़ाएँगे।

गोनू झा या कहते! बस, सुिध ोता क तरह उनके साथ बागान म टहलते रहे।

जब गोनू झा के र तेदार को यह महसूस आ क वे ही लगातार बोलते जा रहे ह और


गोनू झा लगातार चुपचाप उनक बात सुनते जा रहे ह मगर कु छ बोलते नह तो उ ह ने
गोनू झा से पूछा–‘‘आप बताइए पि डत जी! आपने या म त माँगी है अपने ई देव से?’’

गोनू झा ने उ ह बताया–‘‘मने अभी तक कोई म त नह माँगी है। फसलं◌े कृ ित पर


िनभर ह। मौसम सामा य रहा तो आम क पैदावार अ छी होगी। आँधी-बा रश ई तो
आम क फसल भािवत होगी। इसम नया या है?’’

मगर उनके र तेदार ने उ ह कहा–‘‘ या पि डत जी! राजदरबार म आप या प च


ँ गए
क पूरे नाि तक हो गए?’’

यह बात गोनू झा को बुरी लगी। मगर उ ह ने अपनी भावना कट नह होने दी और


कहा–‘‘मने तो यथाथ कहा। इसम नाि तक या आि तक होने क बात ही नह है।’’

‘‘जब आि तक-नाि तक क बात नह है तो आपको कु छ चढ़ावा चढ़ाने क म त माँगनी


चािहए ता क आपके आम क पैदावार भी अ छी हो।’’ गोनू झा से उनके र तेदार ने कहा।

गोनू झा ने उनसे पंड छु ड़ाने के िलए कह दया–‘‘अ छा, चिलए! आम क फसल अ छी


ई तो हम भी कह से कु छ चढ़ा दगे।’’

गोनू झा के र तेदार स हो गए और गोनू झा ने उनसे िवदा ली।

संयोग ऐसा आ क इस बार वाकई आम क फसल ब त अ छी ई। गाँव के ायः हर


बागान म आम के पेड़ फल से लदे ए थे। आँधी-पानी, झ ड़ सबसे िनजात पाकर आम
क तैयार पैदावार गाँव के लोग को भिव य के सपने बुनने म मदद कर रहे थे। अ ततः
आम पेड़ से तोड़े गए। बाजार म प च
ँ ाए गए। गाँववाल को इतनी रकम िमल गई िजससे
िपछले बरस ए नुकसान क भरपाई भी हो गई यानी आम के आम और गुठिलय के दाम।
एक दन फर गोनू झा अपने उसी र तेदार के पास प च ँ ।े उ ह ने मन ही मन िवचार
कर िलया था क अपने र तेदार क गव ि क वे उनक ही शैली म जवाब दगे। असल म
िमिथला नरे श ने गोवा से अ फांसो नाम के आम के कु छ कलम मँगवाए थे। चार-पाँच
कलम गोनू झा को भी उ ह ने दे दया था। ‘दसहरी’ नाम के आम के कलम भी याग से
मँगाए गए थे िजनके पाँच-सात कलम गोनू झा को महाराज ने दये थे। अब ये कलम पेड़
बच चुक थ और इन पेड़ पर आम फल रहा था। इन पेड़ म जब आम तैयार आ तब
दोन जाितय के एक-एक आम अपने साथ लेकर गोनू झा अपने र तेदार के घर प च ँ े
और उ ह ये दोन आम थमाते ए कहा–”ले भाई, ये दो आम। जरा छोटा-छोटा टु कड़ा काट
के घर के सभी लोग को साद क तरह बाँट दे।“

गोनू झा के र तेदार को लगा क गोनू झा िनि त प से आम क अ छी फसल के बाद


म त पूरा करके आए ह और साद बाँट रहे ह। उ ह ने पूछा–‘‘ य पि डत जी, अपने
भगवान को चढ़ावा चढ़ा िलया या?“ उ ह इस बात का गव हो रहा था क उ ह ने ही
गोनू झा को भगवान से म त माँगने के िलए े रत कया था...।

गोनू झा ने उ ह जवाब दया–‘‘अभी कहाँ भाई।’’

उनके र तेदार ने अपने घर के लोग को आवाज लगाई–‘‘अरे कु छ लाओ...पि डत जी


को बैठने के िलए।’’

घर से एक ब ा हाथ म पीढ़ा िलए आया और गोनू झा के िनकट रख गया। गोनू झा ने


पीढ़ा हाथ म उठा िलया और र तेदार क ओर देखकर ल बी साँस छोड़ते ए कहा–‘‘तो
आिखर कु छ िमल ही गया!“ यह कहते ए वे पीढ़ा लेकर नदी क तरफ दौड़े।

उनका र तेदार पहले तो हत भ-सा रह गया मगर जब चैत य आ तो गोनू झा के पीछे


वह भी दौड़ पड़ा। दौड़ते ए उसने आवाज लगाई– ‘‘अरे या आ पि डत जी, य दौड़
रहे ह?’’

गोनू झा ने दौड़ते-दौड़ते ए कहा, ‘‘अरे कु छ क तलाश म था और कु छ िमल गया, अभी


म त पूरी करके आता .ँ ..’’ तब तक नदी का कनारा आ गया। गोनू झा ने पीढ़ा नदी म
उछाल दया। ‘छपाक’ क आवाज गोनू झा के र तेदार ने सुनी, वह कु छ समझ नह
पाया। गोनू झा के करीब आने पर हाँफते ए उसने गोनू झा से पूछा–‘‘ या आ?’’

गोनू झा ने संयत होते ए कहा–‘‘आपके साथ इसी जगह पर नदी मइया से मने म त
माँगी क कह से कु छ ज र चढ़ाऊँगा। ब त जगह गया, कह कु छ नह िमला। अब भा य
देिखए। आपके घर आते ही आपने कु छ मँगा दया और मने नदी मइया को कु छ चढ़ा दया।
इस तरह म त पूरी हो गई।’’
गोनू झा का र तेदार उनका मुँह देखता रह गया।
अ ध क सूची म महाराज
गोनू झा के साथ एक दन िमिथला नरे श अपने बाग म टहल रहे थे। उ ह ने यूँ ही गोनू
झा से पूछा क देखना और –ि -स प होना एक ही बात है या अलग-अलग अथ रखते
ह?

गोनू झा म बात करने क अ भुत सूझ थी। उ ह ने कहा–‘‘महाराज, देखना एक या


भर है, जैसे आप मुझे देख रहे ह क तु –ि म सूझ भी होती है िजससे भिव य के िलए
मागदशन िमल सकता है।’’

िमिथला नरे श को गोनू झा क बात पस द आई। उ ह ने गोनू झा से फर


पूछा–‘‘िमिथला म दृि -स प कतने लोग ह गे?’’

गोनू झा ने त परता से कहा–‘‘महाराज! –ि वान् ि िवरल होते ह। आसानी से


िमलते कहाँ ह?“

ले कन महाराज का िज ासु भाव बना रहा। उ ह ने पूछा–‘‘ फर भी, कु छ तो ह गे?’’

गोनू झा ने महाराज से कहा–‘‘मुझे कु छ दन क मोहलत द तो म आपको ठीक-ठीक


बता सकूँ गा क िमिथला म –ि -स प ह भी या नह ।’’

महाराज शा त हो गए। दूसरे दन महाराज घोड़े पर सवार होकर गोनू झा के गाँववाले


माग से गुजर रहे थे। उ ह ने एक अजीब माजरा देखा। उ ह ने देखा क सड़क के बीचोबीच
कु छ लोग एक ि को घेरे खड़े ह। वे घोड़े से उतरकर भीड़ म गए यह देखने क आिखर
वहाँ हो या रहा है। भीड़ म शािमल होते ही उ ह ने पूछा–‘‘यहाँ या हो रहा है? माग
अव य है?’’

तभी भीड़ के बीच म बैठे ि ने उनसे कहा–”अपना नाम बताओ।’’

महाराज ने देखा–नाम बताने के िलए कहने वाला ि कोई और नह , गोनू झा ह जो


सड़क के म य म एक खाट बुनने म लगे ह और पास म ही एक काॅपी रखी है। जैसे ही उनसे
कोई कु छ पूछता है, वैसे ही वे उससे उसका नाम पूछकर उस काॅपी म दज कर लेते ह।

िमिथला नरे श को कु छ समझ म नह आया क आिखर गोनू झा यह या कर रहे ह।


उ ह ने गोनू झा से पूछ ही िलया–‘‘यह या पंिडत जी? आप यहाँ–इस हाल म, बीच सड़क
पर बैठकर यह या कर रहे ह?“
उनक ओर देखकर गोनू झा ने काॅपी उठाई और उसम कु छ िलखने लगे।

महाराज ने फर पूछा–‘‘अरे पंिडत जी, कु छ तो बोिलए–यह या िलख रहे ह?’’

गोनू झा अपने थान से उठे और महाराज के कान म धीरे से फु सफु साए–”खाते म आपका
नाम दज कर रहा था।“ ‘‘खाते म? कस तरह के खाते म?’’ महाराज ने पूछा। गोनू झा
बोले–‘‘आपने ही तो िमिथला के –ि -स प लोग क सं या बताने को कहा है, तो मने
अपने गाँव से ही पड़ताल आर भ कर दी है। ज दी ही पूरे िमिथला का आँकड़ा तैयार हो
जाएगा।’’

महाराज ने िज ासावश पूछा–‘‘आपने खाते म मेरा नाम दज कया है, वह कै सा खाता


है? म कु छ समझ नह पाया?’’ गोनू झा ने कहा–‘‘महाराज, यह खाता –ि हीन का है।
इसम उ ह लोग का नाम शािमल है िज ह ने मुझे खाट बुनते देखकर भी पूछा–आप या
कर रहे ह? और मा कर महाराज, आप भी अपवाद नह ह।’’

महाराज को गोनू झा के कहने का अथ समझ म आ गया और उ ह ने गोनू झा से


कहा–‘‘बस, पंिडत जी! अब मुझे अपने का उ र िमल गया। अब आप यह खाता–पोथी
बंद कर और अपनी सामा य दनचया म लग।’’

महाराज क बात सुनकर गोनू झा अनायास ही मु कु रा दए।

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