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भारत आदिकाल से ही नागो की धरती रहा है | आदिकाल में हमारे पूर्वजो ने विशालकाय जंगली हाथियों (नागो) को

पालतू बनाया तब स्वयं भी नाग कहे गये | अनाज उगाने के लिए जंगलो को काट कर खेत बनाये तब वे खत्रिय
(क्षत्रिय) भी कहे गये | धातुओ की खोज की गई | कल-कारखाने भी स्थापित किये गये | कल-कारखानों में काम कर
वे श्रमिक कहलाये | विकास की सीढ़िया चढ़ते हुए शारीरिक श्रम के साथ साथ चित्त को निर्मल कर ब्रम्हांड की
खोज करने लगे तब वे ब्राह्मण कहलाये | कपिलवस्तु के राजकुमार सिद्धार्थ अपने चित्त पर नियंत्रण कर के स्वयं
अपने मलिक बने, स्वयं सम्बुद्ध कहलाये |शाक्य वंश में जन्म लेने के कारण उन्हें शाक्य मुनि भी कहा जाता है |
ब्राह्मण श्रमण क्षत्रिय नाग ये सभी उपाधिया है | ये ना कोई जाती है और ना नश्ल | एक व्यक्ति अपने जीवन में
ब्राहमण श्रमण क्षत्रिय नाग में से कोई भी या ये सभी उपधिया हासिल कर सकता है तथागत भगवान बध
ु से प्रेरणा
लेकर बहुत सारे नागो ने (श्रमण-ब्राहमण) ने लोक मंगल के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया | कालांतर में
मगध सम्राट प्रिय दर्शी अशोक ने उनके दर्शन को पुरे एशिया महादीप में फैला दिया | तथागत बुध light of asia
कहे गये | एक समय ऐसा भी आया जब तथागत बुध विश्व गुरु मान लिए गये | बुद्ध भूमि होने के कारण भारत
जगत गुरु बन गया | भगवान बुद्ध के पर्निर्वान के लगभग ५०० सालो बाद तक उनकी मुर्तिया नही बनी |वे स्तूप
युगल पद चिन्ह सिंहासन आदि के माध्यम से याद किये जाते रहे | नाग भारत में बद्ध
ु ो को शिव (कल्याणकारी)
और स्तप
ू ों को शिवलिंग (कल्याण का प्रतिक) कहा गया | कालान्तर में कुषाण राजा कनिष्क ने मथरु ा में बद्ध

मूर्तिया बनवाई भारत के आदिनिवासी नागो को लगा भगवान बुद्ध की अवहे लना हुई है | नाराज नागो ने कुषाण
को पराजित कर भारत के बाहर खदे ड़ा और उत्तर पथ में बिखरे तमाम शिवलिंगों (स्तूपों) को कंधो पर लादकर वे
बनाराश (वाराणसी) ले आये | उन्ही नव नागो ने शिव लिंगो का बनारश में जलाभिषेक किया | तब वे भार शिव
(शिवलिंगों को कंधा दे ने वाले) कहे गये | थानेस्वर कन्नौज के सम्राट हर्षवर्धन ने भगवान बुद्ध की मूर्ती को कन्धा
दिया और शीलादित्य की उपाधि धारण की | ईशा की सातवी सदी पर्वा
ू र्ध तक भगवान बद्ध
ु का धम्म भारत में
अक्षुण बना रहा | आठवी सदी में मलयाली बाम्भन आदिशंकर (७८८-८२०) ने अपने आपको शिव (बुद्ध) घोषित किया
और कहा सिवोहम | ७१२ ई० का मोहम्मद बिन काशिम का हमला एक सोची समझी साजिश का हिस्सा था |
कालांतर में साजिस के तहत ही शिव (बुद्ध) को शंकर भी कहा जाने लगा | अब जब मुफ़्ती मह
ु म्मद इलियास जैसे
लोग कहने लगे की पार्वती-शंकर उनके माँ-बाप है और शंकर ही पहले पैगम्बर है तब साजिस का पर्दाफास हो जाता
है | विहिद के अन्तराष्ट्रीय मंत्री चम्पत राय अन्तराष्ट्रीय अध्यछ प्रवीन तोगड़िया और धर्म जागरण समित के नेता
राजेस्वर सिंह सोलंकी अनायास ही भारत सारे मस
ु लमानों को परु वा हिन्द ू नहीं बता रहे है | गोवा के उप मख्
ु यमंत्री
फ्रांसिस डिसूजा भी अपने आप को अनायास में इसाई हिन्द ू नहीं बता रहे है | इन शातिर नेताओ के व्यक्तव्य्यो के
निहितार्थ समझने होंगे | जैन और पारसी भी हिन्द ू बाड़े में घुस ही चुके है | वर्ष २०११ की जनगणना के अनुसार
केवल बुद्धिस्ट और नास्तिक (सम्मिलित-जनसंख्या ०.९३ फीसदी) बचते है जो हिन्द ू बाड़े घुसने को तैयार नहीं है |
सिक्ख इच्छा या अनिच्छा से हिन्द ू बाड़े के रक्षक बन चुके है | | मतलब ९९.०७ फीसदी (१००-०.९३=९९.०७) भारतीय
पूरे या अधूरे हिन्द ू है | साफ़ हो जाता है की अच्छा या बुरा जो भी होगा हिन्दओ
ु के खाते में जाएगा |

दै निक जागरण में ०३ अगस्त २०१५ को प्रकाशित एक खबर - " जागरण संवाददाता एटा अमर्यादित बयानबाजी को
लेकर अक्सर सुर्खियों में रहने वाले उन्नाव के भाजपा सांसद सच्चिदानंद हरी साक्षी ने फिर सीमा लाँघ दी है | ए
आई एम ् आई एम ् नेता असदद्द
ु ीन ओवैसी के बाबरी मस्जिद गिराने के आरोपियों को फांसी दे ने के बयां पर कहा
की मै पूछना चाहता हु की बाबर उनका पिता था क्या राम जी तो हमारे बाप थे उन्होंने ओवैसी बंधुओ को इस्लाम
विरोधी और आतंकी करार दे ते हुए उनकी प्रस्थ्भमि
ू की जांच कराने की मांग की | शिकोहाबाद रोड स्थित अपने
आश्रम में रविवार को पत्रकारों से साक्षी ने त्रिपुरा के राज्यपाल के बयान का समर्थन करते हुए कहा की जिन लोगो
ने याकूब मेमन की फांसी का विरोध किया उनकी प्रस्थ्भूमि की जांच होनी चाहिए | हर मुसलमान आतंकी नहीं है
लेकिन हर आतंकी मुसलमान ही निकलता है | पिछले दिनों गह
ृ मंत्रालय और अमेरिका ने जो ४०-५० आतंकियों की
रिपोर्ट दी है उसमे अधिकतर मुस्लिम है | अशदद्द
ु ीन ओवैसी अकबरुद्दीन ओवैसी भी आतंकी है | प्वैसी मोहम्मद
साहे ब के भी दश्ु मन है क्युकी मोहम्मद साहे ब दयालु और योगी थे | असदद्द
ु ीन की पार्टी ६७ सालो से मुसलमानों को
बेवकूफ बना रही है | ओवैसी जैसे लोग मस
ु लमानों को मख्
ु य धारा से अलग कर रहे है | कहा हमेशा भगवा शांति
का प्रतिक रहा है आतंकवाद का नहीं | शहं शाह बाबर का ओवैसी जैसे लोगो से क्या सम्बन्ध है इसका पता लगाने
के लिए त्रिकाल दर्शी महाबाम्भ्नो की कोर कमेटी को प्रकरण संदर्भित कर दिया जाना चाहिए | हाँ, शहं शाह बाबर
साक्षी जी के बाप राम जी के बहुत ख़ास सम्बन्धी है यह बात जगजाहिर है | साक्षी जी भी यह बात तो जानते ही
होंगे की शहं शाह बाबर के पोते सम्राट अकबर का विवाह राम जी की पोती जोधा बाई के साथ हुआ था | अगर
साक्षी जी को व्यवहार गणित का थोडा बहुत भी ज्ञान हो तो गणना करके जान ले की उनके बाप के सम्बन्धी से
उनका क्या रिश्ता होगा | सोलंकी तोगड़िया राय जैसे भीषण हिन्दओ
ु के अनस
ु ार भारत के सारे मस
ु लमान पर्व
ू के
हिन्द ू है तो ओवैसी भी पूर्व के हिन्द ू ही हुए | एक हिन्द ू दस
ू रे हिन्द ू का क्या होगा - धर्मबंधू | साक्षी जी सच्चे और
पुरे हिन्द ू है या नहीं यह तो वही जाने | राम जी उनके बाप है तो अधकचरे हिन्द ू तो वो हो ही गये | वाल्मीकि
और तुलसीदास जैसे भीषण बाम्भ्नो के अनुसार राम जी की एकलौती पत्नी सीता जी से दो ही पुत्र लव और कुश
थे | साक्षी जी बताये की वे राम जी की किस पत्नी के बछड़े है ? लगे हाथ ओवैसी बंधुओ की प्रस्थ्भूमि की जांच
करने वाली हाई पॉवर कमिटी से साक्षी जी की प्रस्थ्भमि
ू की भी जांच करवा लेनी चाहिए | गह
ृ मंत्रालय और
अमेरिका द्वारा दी गई रिपोर्ट के अनुसार अधिकतर आतंकी मुसलमान है तो इसमें नया क्या है ? है तो वे पूर्व
हिन्द ू ही | साक्षी जी द्वारा कमतर संख्या वाले आतंकियों की पहचान छिपाने का कारण क्या हो सकता है ? साक्षी
जी स्वतः भी अधुरा सच बोल रहे है | पूरा सच यह है की अधिकतर आतंकी मोहम्मदिया हिन्द ू है और कमतर
आतंकी नेकरिया हिन्द ू | मोहम्मद साहे ब निश्चित रूप से दयालु और योगी थे क्युकी वे बुद्धेस्वर महादे व अर्हत-
allah-जुलकिफ्ल के सच्चे पैगम्बर थे | भगवा भगवान तथागत बद्ध
ु है जो शान्ति का प्रतिक है भगवा का उदं ड और
उपद्रवी बाम्भ्नो (सरु ों) से कोई सम्बन्ध नही है | साक्षी जी हामिद अब्दल
ु कदीर की पस्
ु तक buddha the great: his
life and philosphy(अरबी अल-अकबर हयातो वा फल सफ्हतो ) पढ़िए और अपडेट हो जाइये महान श्रमण संत
कबीर ने भी कहा है - "मन न रं गाये रं गाये जोगी कपडा" साक्षी जी कपड़ा रं गाने से कुछ नहीं होने वाला | मन को
रं गाइये और भोगी से योगी बन जाइए |

दै निक जागरण में 22 अगस्त २०१५ को प्रकाशित कुर्मी बाम्भन कृष्णा कुमार पाण्डेय का ब्लॉग- “भास्था और श्रद्धा
से भी लोग किस प्रकार खिलवाड़ करते है | हम दे खते है की अक्सर धार्मिक स्थलों पर प्रशाद फूल बेचने वाले
मिलावटी और बासी प्रसाद दे ने के साथ ही भगवान को लगाए गये भोग और चढ़ाए गये पुष्प , चुनरी , नारियल ,
अगरबत्ती कपूर आदि को पुनः किसी अन्य श्रद्धालु को बेच दे ते है और वो श्रद्धालु भक्ति भाव से चढ़ाए गये प्रसाद
को शद्ध
ु मन से पुनः धार्मिक स्थल पर चढ़ा दे ते है | क्या इश्वर शक्ति का भय इन व्यापारियों को नहीं रह गया है
? धार्मिक स्थल के बाहर बैठा भिखारी पैसे को ही महत्त्व क्यों दे ता है ? भोजन को क्यों नहीं ? क्या अर्थ हो सकता
है इसका | इसमें भिखारी की श्रद्धा किसके प्रति है इस्वर के प्रति या फिर पैसे के प्रति ? इसका परिणाम क्या
श्रद्धालु के प्रति ही है या फिर धन – लोलुपता से ग्रसित भिखारी को भी परिणाम मिलेगा | “ पूरा का पूरा हिन्द ू बाड़ा
इस समय कन्फ़ुजिआया हुआ है | क्रष्ण कुमार पाण्डेय स्वत भी अधकचरा ज्ञान बघार रहे है | उन्हें मालुम होना
चाहिए की उनके पुरखे अभी तेर्वी सदी तक कुर्मी हुआ करते थे , अब वे बाम्भन बन गये है | पाण्डेय जी को चाहिए
की वे हजारी प्रसाद दिवेदी की पुस्तक “अशोक के फूल” पढ़े और अपना जी के अपडेट करे | आस्था और श्रद्धा से
तो खिलवाड़ किया ही नहीं जा सकता | सच यह है की पाण्डेय जी अंध भक्ति और लोभ को आस्था और श्रद्धा कह
रहे है | जिन्हें श्रद्धालु कहा जा रहा है वे अंध भक्ति है और जिसे भक्ति भाव कहा जा रहा है वह लोभ और लालच
है | इश्वर शक्ति जैसी कोई चीज हो तब ना व्यापारी डरे | व्यापारियों को कोसने के बजाय ईश्वर शक्ति के नाम
पर लूट का धंधा चलाने वाले पंडो – पुजारियों से पूछा जाना चाहिए की वे इस तरह का गोरख धंधा क्यों चला रहे
है | पाण्डेय जी भिखारी गलत नहीं है | गलत है कथित धार्मिक गोरख धंधो के ठे केदार जो फर्जी प्राण प्रतिस्था
किया करते है | गलत था मलयाली बाम्भन आदि शंकर जिसने धम्म के खिलाफ साजिस रचा
| भगवान तथागत बद्ध
ु ने भिक्खुवो को पिंड दान (भोजन दान) ग्रहण करने का निर्देश दिया था ताकि भिक्खु दान
का मकसद ना बदल सके | क्या यह सच नहीं है की पके भोजन का संचय लम्बी अवधी के लिए नहीं किया जा
सकता जबकि सूखे अनाज और द्रव्य (मुद्रा) का संचय लम्बी अवधी के लिए किया जा सकता है | समझा जा सकता
है की भगवान तथागत बुद्ध का दर्शन कितना तार्कि क और वैज्ञानिक था | जिन्दा मनुष्य के लिए तो पिंड (भोजन)
आवश्यक है लेकिन पिंड (भोजन) मुर्दे के किस काम आएगा | भगवान बुद्ध के काल में किसी भिक्खु को चीवर
भिक्खा-पात्र सुई धागा अस्तुरा के अलावा कुछ भी रखने की इजाजत नहीं थी आज मंदिरों में सोना चांदी हीरा मोती
घोड़ा गाड़ी रूपये पैसे का अम्बार लगा रहता है | मंदिरों में रखी मर्ति
ु या और प्रतिक इनका भोग नहीं करते | वे तो
भोजन पानी भी नहीं ग्रहण करते निर्जीव मूर्तियों में प्राण प्रतिस्था और चढावे को धर्म कैसे कहा जा सकता है |
श्रद्धा किसके प्रति है इश्वर के प्रति या पैसे के प्रति ? जैसा प्रश्न पुजारियों से पूछा जाना चाहिए भिखारियों से नहीं
| कथित इश्वर अपने पुजारी की हवस पूरा नहीं कर पा रहा है तो भिखारी की भूख कैसे मिटा पायेगा ? भिखारी को
भोजन के अलावा वस्त्र भी चाहिए और दवा – दारु क्र लिए पैसे भी | कथित इश्वर के प्रति श्रद्धा रखने से भिखारी
को ना वस्त्र मिलेगा ना ही दवा दारु | इस मामले में भिखारी और पुजारी एक जैसे है दोनों की आवश्यकताए
सामान है | कथित इश्वर इन दोनों से भिन्न है | मनष्ु य तो श्रष्टि से पहले नहीं था , किन्तु आस्तिको के अनस
ु ार
कथित इश्वर श्रष्टि के भी पहले था और वही श्रष्टि का करता है | अगर आस्तिक झूट नहीं बोलते तो श्रष्टि का
करता होने के लिए कथित इश्वर को श्रष्टि
ृ से पहले होना पड़ेगा | सवाल उठता है श्रष्टि से पहले कथित इश्वर को
भोजन पानी कौन दे ता है ? उसे चढ़ावा कौन चढ़ाता है ? जहा तक परिणाम का सवाल है , परिणाम भिखारी अंध
भक्ति श्रद्धालु के साथ साथ पुजारी को भी भुगतना पड़ेगा |

दै निक जागरण में ३० अगस्त २०१५ को प्रकाशित एक खबर – “जास मेरठ : मेरठ समेत प्रदे श के ३२ जिलो से
हरियाणा के संत राम पाल के द्वारा एकत्र की गई चल अचल संपत्ति के बारे में ब्योरा शाशन ने तलब किया है |
राम पाल की चल अचल संपत्ति के बारे में ब्योरा उपलब्ध कराने के लिए आयक्
ु त एवं सचिव राजस्व परिषद्
लखनऊ ने रात ३१ जुलाई को आदे श जारी किये थे |” रामपाल धर्म के गोरख धंधे का कोई अकेला व्यापारी नहीं है
| भारत में आसाराम उर्फ़ आसुमल रामदे व उर्फ़ राम खेलावन यादव असीमा नन्द स्वरूपा नन्द वासुदेवानंद
........जैसे धर्म के लाखो व्यापारी सक्रिय है | राम पाल इन सभी की तल
ु ना में अधकचरा व्यापारी था बेचारा पकड़ा
गया | अनुभवहीन है लेकिन वाजिब शुल्क अदा करके बाइज्जत बरी भी हो जाएगा | हिन्द ू बाड़े की कोइ आचार
संहिता नहीं है | धर्म के नाम पर सब कुछ चलता है | सबसे अजीब स्थित जैनी हिन्दओ
ु की है | ३६४(३६५) गायो
की ह्त्या से इनकी धार्मिक भावना आहात नहीं होती मात्र एक गाय की हत्या से इनकी भावना आहत हो जाती है |
मै यह नहीं कह रहा हूँ की हर हिन्द ू ऐसा ही करता हैं लेकिन ऐसा करने वाले सभी हिन्द ू ही निकले |

दै निक जागरण में ०३ अगस्त २०१५ को प्रकाशित एक खबर – नयी दनि


ु या ब्यूरो , अनूपपुर : केंद्रिय मंत्री गिरी राज
सिंह ने दे श में बढ़ रहे आतंकवाद के मुद्दे पर हिन्दओ
ु को डर – पोक बताया है | अमरकंटक में एक निजी कार्यकर्म
में रविवार को शामिल होने आये सिंह ने विशेष बातचीत में कहा की हिन्द ू सहिष्णु होने की बात करते है लेकिन
असल में वो डरपोक है | सनातनी हिन्द ू आपस में बटे है | यही वजह है की वो किसी भी स्थति का सामना नहीं
कर पाते | उन्होंने आतंकी याकूब मेनन की फांसी पर आपत्ति जताने वालों को भी आड़े हाथो में लिया | सिंह ने
कहा जो लोग उसकी फांसी पर आंसू बहा रहे है , उन्हें सोचना चाहिए मेनन कोई शहीद भगत सिंह नहीं था | यह
बेहद दर्भा
ु ग्यपूर्ण है | उन्होंने कहा की गरु दासपुर में पाकिस्तानी आतंकवादियों के हमले के मामले में ईट का जवाब
पत्थर से दिया जायेगा | गिरिराज सिंह पुरे और सच्चे हिन्द ू है या नहीं यह तो वही जाने | लेकिन वे मुलायम और
कल्याण जैसे 24 कैरे ट वाले हिन्द ू जरुर है | उन्होंने हिन्दओ
ु को डरपोक बताया यह उनका जातीय मामला है |
उन्होंने यह कतई नहीं कहा की हिन्द ू सहिष्णु भी है | उन्होंने कहा की हिन्द ू सहिष्णु होने की केवल बात करते है
किन्तु असल में हिन्द ू डरपोक है | गिरिराज सिंह हिन्द ू है इसलिए उन्होंने यह बात सम्यक निरिक्षण परिक्षण और
अनुभव के बाद ही कहा होगा | उन्होंने यह तो कहा की सनातनी हिन्द ू आपस में बाते है किन्तु अघुनातनी हिन्दओ

पर वे रहस्यमय चुप्पी साध गये | हमारे अवध में एक कहावत कही जाती है की मौन आधी स्वीकृति होती है |
अधुनातनी हिन्दओ
ु पर गिरिराज सिंह की चुप्पी बता रही है की अधुनातनी हिन्द ू और भी ज्यादा खांचो में बट गये
है मुझे पता नहीं है मुलायम और गिरिराज सनातनी हिन्द ू है या अधुनातनी लेकिन भारतीय मीडिया मुलायम को
कथित सेकुलर और गिरिराज स्वयंभू रास्ट्रवादी खांचो में बाटकर दे खती है | राम विलास पासवान शातिर समाजवादी
है भारतीय मीडिया भी निश्चित रूप से नहीं बता सकती की वे अगली पारी किसके साथ खेलेंगे | गिरिराज ने कहा
बटे होम के कारण हिन्द ू किसी भी स्थति का सामना नहीं कर पाते | शायद धनुहा राम भी हिन्द ू होने के कारण ही
बाली का सामना नहीं कर पाया होगा और पेड़ के पीछे से छिपकर उसे मारा होगा | हिन्द ू होने के कारण ही त्रेता
वाला बाम्भन वीर वर संबुक का सामना नहीं कर पाया होगा | और धनुहा राम को उकसा कर वीरवर संबुक की
हत्या करवाया होगा | गिरिराज को सादव
ु ाद की उन्होंने हिंदत्ु वा जैसी भीषण बिमारी का सरिक लक्षण बताया |
बाम्भन सच्चे और परु े हिन्द ू होते है | शायद इसीलिए आज भी बाम्भन प्रत्यक्ष सत्ता के बजाय परोक्ष सत्ता को
ज्यादा प्राथमिकता दे ते है यह बात सच है कि याकूब मेनन शहीद भगत सिंह नहीं था लेकिन धनुहा राम भी तो
शहीद भगत सिंह नहीं था | पाकिस्तानी भी तो भारतीयों के ही सरोदर है पूर्व हिन्द ू है | गिरिराज सिंह उन पर ईट
पत्थर जो भी मारना चाहे मारे लेकिन जान ले की ईट पत्थर मारने वाले सभ्य नहीं कहे जाते | भारत भगवान
तथागत बद्ध
ु की धरती है और भगवान ने लोकानक्
ु म्पाय पंचशील का उपदे श दिया है |
दै निक जागरण में ०४ अगस्त २०१५ को प्रकासित एक खबर – मुंबई प्रेट : हिन्द ू आतंकवाद पर बहस में
आक्रामक सरु अपनाते हुए शिवसेना ने सोमवार को कहा की भारत हिन्द ू रास्ट्र है और इस समद
ु ाय के पास अपने
ही दे श में आतंक फ़ैलाने का कोई कारण नहीं है शिव सेना का यह बयान केंद्रीय गह
ृ मंत्री राजनाथ सिंह के संसद
में दिए उस बयान के बाद आया है जिसमे उन्होंने कांग्रेस पर हिन्द ू आतंकवाद शब्द गढ़कर आतंक के खिलाफ
लड़ाई को कमजोर करने का आरोप लगाया था | सेना के मुख पात्र सामना के सम्पादकीय में सोमवार को कहा गया
की आतंक को भगवा रं ग दे ना और इसे लेकर राजनीति करना धूर्त और स्वार्थी चाल है | हिन्दओ
ु को आतंक बताना
और पाकिस्तान द्वारा प्रायोजित हरे आतंक पर पर्दा डालना अपने दे श के साथ धोखा है |........सेना ने आगे कहा है
की क्या जम्मू कश्मीर की आतंकी गतिविधियों को हिन्द ू संगठनों पर थोपा जा सकता है ? क्या अफजल गरु
ु और
अजमल कसाब के क्रत्यो को हिन्द ू आतंक कहा जाएगा ? कांग्रेस ने जो अफवाहे फैलाई उससे पाकिस्तानियों की
साजिस को बल मिला | शिव शब्द का प्रयोग प्रथम बार बद्ध
ु के लिए किया गया | शिव शब्द कल्याणकारी के लिए
प्रयुक्त होता है | ज्ञात इतिहास में भगवान तथागत बुद्ध ने भिक्खुओ को तब लोकानुम्पाय चारिका करने को कहा
था जब मनुष्येत्तर हिन्दओ
ु का धरती पर आस्तित्व ही नहीं था | तब धरती पर कोइ इसाई पारसी मुसलमान भी
नहीं था छत्रपति शिवाजी और उनके पूर्वज भी हिन्दी नहीं थे | उनके वंशज भी हिन्द ू नहीं है | शिवाजी के वंशजो
का सम्बन्ध आदिनिवासी नागो की लिछिव शाखा से है | अफ़सोस तो इस बात का है की भार – शिव काल के शिव
शब्द को चुराकर शिवसेना नामक गैंग गठित कर लेने के बावजूद नेकरिये मनुष्य नहीं बन पाए | तथागत भगवान
बुद्ध ने कभी कोई हथियार नहीं उठाया कभी कोई सेना नहीं बनाई | 23 जून २०१४ तक हिन्द ू शब्द अपरिभाषित भी
है | नेकरियो को चाहिए की वो पहले अपने हिंदत्ु व को परिभाषित करे फिर भारत के मनुष्यों से संवाद कर के सभी
की सहमती से उन्हें मनुष्येत्तर हिन्द ू बनाए | तब भारत को हिन्द ू रास्ट्र बनाने का सपना दे खे | भारत आदिकाल
से शांतिप्रिय मनष्ु यो का दे श रहा है | यरू े शियाई सरु ों (बाम्भ्नो) के संपर्क में आने से पहले तक भारत के
आदिनिवासी नागो ने यहा कभी आतंक नहीं फैलाया | मनुष्य तो कही भी आतंक नहीं फैलाते किन्तु मनुष्येत्तर
कही (अपने दे श में भी) पर भी आतंक फैला सकते है | कांग्रेस सभी पार्टियों की अम्मा है | हिन्दब
ु ाड़े के तीन बड़े
जमूरो चम्पत राय , प्रवीण तोगडिया , राजेस्वर सिंह सोलंकी के अनुसार बौद्धों और नास्तिको को छोड़कर बाकी
सभी हिन्द ू है | मुसलमान भी तो पूर्व हिन्द ू है फिर मनुष्येत्तर मुसलमानों द्वारा फैलाये गये आतंकवाद को हिन्द ू
आतंकवाद कहना गलत कैसे है ? कथित हिन्दओ
ु की दो पोथिया रामायण और महाभारत स्वतः बताती है की इनके
परु खो ने लंका और कुरुक्षेत्र में काफी उत्पात मचाया आतंक फैलाया | दर्गा
ु पज ू ा के अवसर पर बनाई गई हथियार
बंद मूर्तिया शांति की प्रतीक तो नहीं कही जा सकती | भगवा शब्द भी बुद्ध के दर्शन से चुराया गया शब्द है |
भगवा वस्त्र पहन लेने से मात्र कोई भोगी योगी नहीं बन जाता | दरसल नेकरिये भगवा शब्द की आड़ लेकर अपने
कुक्रत्व्यो को छिपाना चाहते है | वे चाहते है की दनि
ु या इन्हें भगवा शब्द से ही संबोधित करे | इनके अधकचरे
विरोधी भी ऐसा करके इन्हें गलतफैमी का शिकार बनाये दे रहे है | वर्ष २०११ की जनगणना क आकडे बताते है की
भारत में ९९.०७ फीसदी हिन्द ू (नेकरिया और मोहम्मदिया आदि को शामिल करते हुए) है | विडंबना यह है की सभी
एक दस
ू रे से भयभीत है आतंकित है और परस्पर दोषारोपण भी करते है | इस बहुसंख्य गिरोह का अध्यन करके
दे खे हर हिन्द ू दोगला तेगला........नहीं है लेकिन हर तोगला तेगला हिन्द ू ही निकलता है | भारत और पकिस्तान
सहोदर है साडी बुराइया अपने सहोदर के खाते में डालना और अपनी बुराइयों पर पर्दा डालना भी अपने दे श के साथ
धोखा खा जायेगा | अपनी बुराइयों या दस
ु रो की अच्छाइयो पर पर्दा डालना भी ५० फीसदी दे श घात है
| पंचशील अपनाकर तो हम परू े दे शभक्त हो सकते है लेकिन पकिस्तान (अपने सहोदर) को गरियाए बगैर अपनी
कुछ बुरइयो को दरू कर के भी हम ५० फीसदी दे शभक्त हो सकते है | समझ से परे है कि केवल पाकिस्तान को
गरियाकर नेकरिये १०० फीसदी दे शभक्त क्यों दिखना चाहते है ? डी.एन.ए की जाँच करने वाले तोगड़िया, रे और
सोलंकी डी.एन.ए जाँच करा कर दे खे अफजल गुरु और अजमल कशाद हिन्द ू ही निकलेंगे | आजमखान के साथ ये
दोनों भी तोगड़ियो के धर्मबंधू निकलेंगे |

दै निक जागरण में ०७ अगस्त २०१५ को प्रकाशित एक खबर – “नासिक : द्वारिका पीठ शंकराचार्य स्वरूपानंद
सरस्वती ने मांग की है की उधोगपति से संत बने सच्चिदानंद गिरी साध्वी त्रिकाल भवनता और राधे माँ को
नासिक कुम्भ मेले में शाही स्नान करने से रोका जाये | तीर्थ स्थल त्रिम्ब्केश्वर में गुरुवार को शंकराचार्य का यह
बयान ऐसे समय आया जब एक दिन पहले ही शराब के धंधे और आपराधिक गतिविधियों में लिप्त सच्चिदानंद का
महामंडलेश्वर की उपाधि छीन लि गई है |उन्होंने संवाददाताओ से बातचीत में कहा कि परि अखाड़े की साध्वी
त्रिकाल भवनता और मुंबई की राधे माँ के साथ ही सच्चिदानंद गिरी को पवित्र सही स्नान में शामिल होने का कोई
अधिकार नहीं है | अगर उन्हें यंहा स्नान करना है तो वह सामान्य नागरिक की तरह ही कर सकते है |” भारत का
संविधान किसी भी तरह के शाही या साधारण स्नान की न परिभाषा करता है और ना व्यवस्था दे ता है | संविधान
भारत के समस्त नागरिको समता स्वतंत्रता और बंधुता से जीवन जीने की व्यवस्था दे ता है | स्नान करने में
भेदभाव घोर मनस्
ु येत्तर प्रवति
ृ है | स्वरूपानंद की इस तरह की बेतरतीब मांग विकृति मानसिकता का परिणाम है
भारत के संविधान के अनछ
ु े द – 15 (1) में प्राविधान किया गया है कि जाति, धर्म, लिंग, जन्मस्थान और नश्ल के
आधार पर किया जाने वाला किसी प्रकार का भेदभाव अपराध की श्रेणी में आता है | स्वरूपानंद का यह कहना है
कि त्रिकाल भवनता राधे माँ और सच्चिदानंद गिरी को शाही स्नान में शामिल होने का अधिकार नहीं है इसी श्रेणी
का अपराध है | त्रिकाल भवनता और राधे माँ के साथ उनके लिंग के आधार पर भेदभाव किया जा रहा है | द:ु खद
है की ये दोनों भद्र महिलाए अपने साथ होने वाले भेदभाव के विरुद्ध न्याय की मांग नहीं कर रही है | इसमें भी
ज्यादा द:ू खद यह है कि एक कमिंन बाम्भन भारत के संविधान की सरे आम अवहे लना कर रहा है और संविधान के
संरक्षक राष्ट्रपति और सर्वोच्च न्यायालय मौन साढ़े बैठे है |तिलक जैसा महा बाम्भन इसी तरह के स्वराज
(बाम्भंराज) को अपना जन्मसिद्ध अधिकार कहा करता था | भारत के संविधान के इस तरह के अपमान के लिए
आदिनिवासी नाग कम दोषी नहीं है | उन्हें जागना होगा और भारत के गौरव की रक्षा का दायित्व अपने हाथो में
लेना होगा | भारत यूरेशियाई बाम्भनो की नहीं आदिनिवासी नागो की धरती है |

दै निक जागरण में 07 अक्टूबर 2015 को प्रकाशित एक दस


ू री खबर – “गुरुपूर्णिमा पर्व (31 जुलाई) को
संन्यास दिलाकर बाघम्बरी गड्डी में सच्चिदानंद (सचिन्दत्ता) को निरं जना अखाड़े का महामंडलेश्वर बनाया गया था
| सचिन की चादर पोशी के समय दो हे लीकाप्टर से पुष्पवर्षा की गई थी | समारोह में संतो के साथ मंत्री शिवपाल
यादव ओमप्रकाश सिंह भी मौजूद थे | दै निक जागरण ने सचिन के पुराने कारनामो को उजागर किया तो धर्माचार्य
सकते में आ गये | सचिन को महामंडलेश्वर बनाने वाले महं त नरे न्द्र गिरी विवादों में घिर गये | उनके धरु विरोधी
महं त ज्ञानदास ने मौके का फायदा उठाते हुए मोर्चा सम्भाल लिया |......सचिन्दत्ता को महामंडलेश्वर बनाने की
पैरवी करने वाले अग्नि अखाड़े के महामंडलेश्वर कैलाश्नंद ने मौन धारण कर लिया |” जिस तरह गाय-गोरु के बिक्री
का गोरखधंधा आधा वैध और आधा अवैध माना जाता है उसी तरह हिन्दब
ु ाडे का अखाडची गोरखधंधा भी |
सचिन्दत्ता उर्फ़ सच्चिदानंद गिरी ने महामंडलेश्वर की पदवी खरीदा था और नन्द गिरी ने बेचा था | कैलाश्नंद
मध्यस्थ दलाल था | यहाँ पर भी खरीददार पर कठोर कार्यवाही हुई और विक्रेता बाइज्जत बरी हो गया | दै निक
जागरण ने सचिन के पुराने कारनामो का खुलासा तो किया लेकिन कैलाश नन्द की दलाली पर चुप्पी साध गया |
नरे न्द्र गिरी ने चादर पोशी की फीस भी वसूल लिया और सचिन का चादर भी उतार लिया | सवाल उठता है कि
उसका यह धंधा किस श्रेणी में आयेगा ? स्पष्ट हो जाता है कि हर बाम्भन तो कमीन नहीं है लेकिन हर कमिन
बाम्भन ही निकलता है | सचिन्दत्ता बंगाली बाम्भन है | बंगाल वाली दर्गा
ु भैसा भी खाती है और दारु भी पीती है
| इलाहबाद वाली इमलिया इमिलिया माई सूअर खाती है ? सचिन्दत्ता ने महामंडलेश्वर की पदवी नरे न्द्र गिरी से
खरीदा था और नरे न्द्र गिरी ने बाकायदा उसे बेचा था | मथैतो को चाहिए की प्रकरण की पूरी जांच करे और नरे न्द्र
गिरी से पदवी का विक्रय मूल्य हर्जा-खर्चा सहित सचिन्दत्ता को वापस कराये | वरना कहना पडेगा कि हर बाम्भन
अपने धर्म का सौदा नहीं करता लेकिन पकड़ा गया हर धर्म विक्रेता बाम्भन ही निकलता है |

दै निक जागरण में 07 अगस्त 2015 को प्रकाशित खबर – “जास इलाहबाद : डिस्कोथेक बार संचालक व रियल
इस्टे ट कारोबारी सच्चिदानंद गिरी उर्फ़ सचिन्दत्ता निरं जनी अखाड़े से निष्कासित कर दिए गये है | अब वह ना तो
निरं जनी अखाड़े के महामंडलेश्वर रहे और न ही सन्यासी | इसकी घोषणा नासिक में निरं जनी अखाडा कार्यकारिणी
की बैठक के बाद की गई | अखाड़े के महं त रविन्द्रपरु ी व महं त नरे न्द्र गिरी की ओर से जारी बयान में कहा गया
की विवादित होने के चलते सच्चिदानंद को हटाया जा रहा है |” त्रिकालदर्शी बाम्भ्नो को अज्ञानी कैसे कहा जा
सकता है ? यह कैसे माना जा सकता है कि नरे न्द्र गिरी को सचिन्दत्ता के पुराने कारोबार की जानकारी नहीं थी |
निश्चित रूप से नरे न्द्र गिरी जैसा लालची बाम्भन बार संचालक रियलइस्टे ट कारोबारी सचिनदत्ता की खनकती
मुद्राओं की ओर खिचता चला गया होगा | सन्यासी होना बाम्भनो के बस की बात नहीं है | प्रबुद्ध बारात में सभी
नाग सामान रूप से सन्यासी हो जाया करते थे | तब ब्राहम्मण और सन्यासी अर्जित की जाने वाली उपाधिया थी |
बाम्भन भारत में सचिन्दत्ता ने महामंडलेश्वर की पदवी खरीदी, सच्चिदानंद बना | अब भारत पन
ु ः सचिन्दत्ता बनने
को मजबूर कर दिया गया | बात साफ हो जाती है की बभ्नौटी में सब कुछ ठीक ठाक नहीं चल रहा है भगवान
तथागत बद्ध
ु अपने काल में धरती पर वास्तविक सन्यासी थे | महिलाओं के भी सन्यस्त हो जाने पर उन्होंने अलग
भिक्खुनी संघ का प्रावधान किया | उस काल में भिक्खुओ और भिक्खुनियो अलग अलग स्वतंत्र संघ थे सवाल
उठता है की हिन्दब
ु ाड़े में साधुआइनो के साधुओ के साथ रहने को बाध्य क्यों किया जाता है ? सवाल यह भी उठता
है कि जब अखाडची साधुओ ने भैसों की तरह लड़ लड़ कर 13 अखाड़े बनाए तब महिलाओं का चौदहवा अखाड़ा बन
जाने पर इनका धर्म पतित कैसे हो जाएगा ? त्रिकाल भवनता और राधे माँ को आगे आकर बताना चाहिए की धर्म
की आड़ में अखाड़ो के अन्दर होता क्या-क्या है ;यकीन प्राची , त्रिकाल भावंता और राधे माँ में आम्रपाली जैसा
साहस कहा है ? दरअसल स्वयंभू साधू और सधुवाइने भगवान तथागत बद्ध
ु का भगवा धारण कर उनके धम्म को
कलंकित कर रहे है इस तरह के घोर अनर्थ की सुरुआत मलयाली बाम्भन आदि शंकर ने किया | आदिनिवासी नागो
को आगे जाना होगा और तथागत बुद्ध के भगवा को अखाद्चियो से मुक्त करना होगा |
दानिक जागरण में 06 अगस्त 2015 को प्रकाशित एक खबर – “जागरण संवाददाता, इलाहबाद
सनातनधर्म एवं संस्कृति की रक्षा उसके निरं तर प्रचार – प्रसार के लिए आदि गरु
ु शंकराचार्य ने अखाड़ो की नीव
रखी थी | यह रहने वाले सन्यासी सिर्फ धर्म के निमित कार्य करे भोग विलास से दरू रहे , इसके मद्द्दे नजर
अखाड़ो में प्रवेश का नया नियम बना वर्षो की कड़ी तपस्या के बाद सन्यासी का ही दर्जा दिए जाने की ही बात थी
पर मौजूदा दौर में अखाड़े उद्देश्य से भटक गये है | आदि शंकराचार्य का सपना तार तार हो चला है | शायद
इसीलिए पैदा हो जाते है सचिन्दत्ता उर्फ़ सच्चिदानंद गिरी तथा नित्यानंद | आदिशंकराचार्य ने दक्षिण दिशा में
श्रंगेरी मठ की स्थापना की | अपने विद्द्वान शिष्यों को यह पीठाधीश्वर बनाया | मठो में रहने वाले सन्यासियों को
वेद, वेदांग , उपनिषद का अध्यन कर धर्म प्रचार की जिमीदारी दी गई | महा महोपाध्याय डा. राम जी मिस्र कहते है
आदि शंकराचार्य को लगा की धर्म सिर्फ विद्द्ता से नहीं बढे गा दष्ु टों को उन्ही की भाषा में जवाब दे ना आवश्यक है
तब उन्होंने अखाड़ो की नीव रखी | अखाड़ो के सदस्य समूह में रहे इसके लिए उन्हें अखंड की संज्ञा दी गई | वहा
सन्यासियों को अस्त्र – शास्त्रों के संचालन व मल्ल विद्द्या की शिक्षा दी जाती थी | कालान्तर में अखंड शब्द
अखाड़ा हो गया | साथ ही संयाश्र्म को शास्त्रामुनोदित एवं सुनियामो से संगठित कर 10 पद (नाम) दे कर दशनामी
सन्यासियों की सम्प्रदाय परम्परा प्रारम्भ हुई | यह सम्प्रदाय थे क्रमशः गिरी, पूरी, भारती, वन, अरण्य, पर्वत, सागर,
तीर्थ, आश्रम और सरस्वती | आगे चलकर सन्यासियों के छह अखाड़े जन
ु ा निरं जनी, महानिर्वानी, आनंद, अटल, और
आह्वान के रूप में सामने आये | अग्नि अखाड़ा ब्रम्ह्चारियो का बना | वैष्णो का निर्वाणी अनी, दिगंबर अनी व
निर्मोही अनी अखाड़ा हुआ | उदासीन सम्प्रदाय का बड़ा पंचायती उदासीन , नया उदासीन औए एक सिक्ख समुदाय
का निर्मल अखाड़ा हुआ | महिलाओं का एक मात्र पारी अखाड़ा है | समय के साथ सन्यासियों की संख्या बढ़ी ,
परन्तु वह अपने उद्देश्य से भटक गये | हर अखाड़ा के आश्रम भव्यता के केंद्र बने हुए है अखाड़ा परिषद् में अध्यक्ष
को लेकर वर्षो से चल रही रार अभी भी कायम है | आपसी लड़ाई एवं एक दस
ू रे को नीचा दिखाने की होड़ में वह
धार्मिक कृत्यों से दरू होते जा रहे है |” सचिन्दत्ता और त्रिकाल भवनता के बहाने ही सही अखाद्चियो की कुछ
हकीकत तो बाहर आयी | दरअसल , मंडान मिस्र कांड को अलग रख कर मलयाली बाम्भन आदिशंकर का मुखौटा
पूरी तरह नही उतारा जा सकता | भारतीय दर्शन में आदिशंकर को प्रच्छन्न बौध कहा जाता है | तथागत बुध से
उसका क्या सम्बन्ध है जाने बगैर अखाद्चियो की करतत
ू ों का खुलासा नही किया जा सकता | 23 जून 2014 तक
अखाद्चियो के हिन्द ू बाड़े को परिभाषित नही किया जा सकता है | तब यह कैसे कहा जा सकता है आठवी – नवी
सदी का सनातन धर्म ही हिन्दब
ु ाडा है | आठवी – नवी सदी के धर्म को जानने के लिए उसके पर्व
ू का अध्यन करना
होगा | ई० पूर्व 534 कपिलवस्तु के राजकुमार सिद्धार्थ ग्रह त्याग कर प्रब्रजित हो गये | ई० पूर्व 528 में बुद्धत्व
हासिल हुआ और वे बुद्ध हो गये | उसके बाद 45 वर्ष तक वे लगातार धम्म (ABSOLUTE TRUTH) का प्रचार करते
रहे | उन्हें परनिरवाण के बाद उनके तमाम अनुयायी उन्हें स्तूप, यग
ु ल पद चिन्ह, सिंहासन के रूप में याद करते रहे
| कालान्तर में सम्राट अशोक ने 84000 स्तूप बनवाए अपने पुत्र पुत्री और दत
ू ो के माध्यम से धम्म को विदे शो में
प्रचारित करवाया | संपत्ति संचय के पूर्ण निषेध के कारण सन्यासियों के मध्य पूर्ण समता थी | कही कोई दष्ु ट
प्रचार में आड़े नहीं आया | तथागत बध
ु का समता वाला यह सिद्धांत ई० पर्व
ू 185 में पहली बार महाबाभन पतंजलि
के चेले पुष्यमित्र सुंग को नागवार गुजरा | उसने मगध सम्राट ब्रह्द्रथ की हत्या करके धम्म को मिटाने का असफल
प्रयास किया ईसा की पहली सदी में कुसाण राजा कनिष्क ने मथुरा में भगवान बुद्ध की प्रतिमाये बनवाई | कुषाणों
को पराजित कर भारत के आदिनिवासी नाग मथुरा मद्र अहिच्च्न्ना आदि से स्तूपों (शिवलिंगों) को कंधो पर लादकर
बनारस लाये और जलाभिषेक किया | तब वही नवनाग भार-शिव कहलाये | सातवी सदी के पर्वा
ू र्ध में थानेस्वर
कन्नौज के शासक सम्राट हर्ष वर्धन ने बद्ध
ु के प्रतिको और मर्ति
ू यों को सामान रूप से स्वीकारा | इसके बाद ही
मलयाली बाभन आदिशंकर आता है जो मंडान मिस्र कांड का सह उत्पाद है पासी बाभन डा० राम जी मिस्र के कथन
‘आदिशंकराचार्य को लगा की धर्म सिर्फ विद्द्ता से नही बढे गा दष्ु टों को उन्ही की भाषा में जवाब दे ना आवश्यक है |
पर गौर करे बाभनो की नजरो में दष्ु ट कौन है ? वह जो उनकी बेतरतीब हरकतों का अंधसमर्थन न करे | दनि
ु या
भर के समतावादी इसी श्रेणी में आते है हिरण्यकश्यप, बाली, रावण आदि इनकी नजरो में दष्ु ट है | पित्रघाती
प्रहलाद, विभीषण, सग्र
ु ीव अदष्ु ट (सज्जन) थे | भगवान तथागत बद्ध
ु इनकी नजरो में सर्वाधिक दष्ु ट थे | पासियो के
पुरखा भर्ग ऋषि को भी ये दष्ु ट बताते इसके पहले उन्होंने इनके विष्णु को ही लतखोर बना डाला | केदारनाथ धाम
के रावल भीमा शंकर लिंग लिंगायत (भारशिव) समुदाय से सम्बंधित है | वे भी भ्रग के ही वंशज है | उनका सामना
होते ही स्वरूपानंद को लात वाली बात याद आ जाती है और अपनी पीठ खुजलाने लगता है | मिश्रा जी परे शांन
मत होइए | अखाणचिये अपने उद्देश्य से भटके नही है | वे मलयाली बाभन आदि शंकर के सपनो को परू ा करने के
मार्ग पर ही अग्रसर है | आदिशंकर ने अखाणचियो शास्त्र के साथ अस्त्र की भी व्यवस्था की है | अखाडचिये अब
अस्त्राभ्यास कर रहे हैं | शिवपरु ाण नामक पोथी के माध्यम से भगवान बद्ध
ु के दर्शन को विकृत करने का प्रयास
किया गया | कावड यात्रा के माध्यम से नागो के घरो में करोणों प्रहलाद विभीषण सुग्रीव पैदा किये जा रहे है |
बुद्धिस्ट नागो के विनाश के लिए ही तो मलयाली बाभन आदि शंकर ने प्रच्छन्न बौध की उपाधि धारण किया था |
सवालाख बाभनो द्वारा गलत बयानी की जा रही है सनातन धर्म एवं संस्कृति की रक्षा उसके निरं तर प्रचार प्रसार
के लिए आदिशंकर ने अखाड़ो की नीव रखी थी सनातन धर्म और संस्कृति भारत के आदिनिवासी नागो का अपना
धर्म और उनकी अपनी संस्कृति है | भारत का ऐतिहशिक काल भगवान तथागत बद्ध
ु से शरू
ु होता है | ऐसा नही है
कि उन के पहले धरती पर मनुष्य थे ही नही | उनके पहले भी धरती पर मनुष्य थे | चौपाये से दो पाए का विकास
आदिमानव है आदिमानव से विवेकशील मानव बनने की एक लम्बी अवधी है | लम्बी अवधी में भी कुछ न कुछ
मानवों के मस्तिष्क अन्यो की अपेक्षा ज्यादा सक्रिय हुए होंगे | ऐसे विवेकशील मानवों का दस्तावेज साक्ष्य भले ही
उपलब्ध न हो किन्तु उनके अस्तित्वा को नाकारा नहीं जा सकता | मनुष्य के मस्तिष्क का 81-82 फीसदी हिस्सा
अभी भी किर्यशील नही हो पाया है | बात साफ़ हो जाती है कि धरती पर न पहले बुद्ध है और न अंतिम | शायद
इसीलिए उस समय के मानवों को कहना पड़ा होगा- ‘येच बद्ध
ु ा अतीत च येच बद्ध
ु ा अनागता, पच्चप
ु न्ना च ये बद्ध
ु ा
अहं वान्दामी सब्ब्दा |‘ अर्थात जो बुद्ध अतीत में हुए, जो भविष्य में होंगे और जो वर्तमान में है , सभी वंदनीय है |
मानव विकास के कर्म में पशुपालक नागो का मुकाम काफी प्रारं भिक मुकाम है | उनका धर्म और उनकी संस्कृति
अनाम ही रहे | वही अनाम धर्म और संस्कृति भारत के सनातन धर्म और संस्कृति होंगे | उस सनातन काल और
मलयाली बाभन आदिशंकर के काल के बीच लगभग बारह सौ वर्षो की लम्बी अवधी वाला तथागत बुद्ध का काल है
| तथागत बुद्ध के पहले वाले सनातन धर्म और संस्कृति से यहा के आदिनिवासी नागो का सम्बन्ध तो हो सकता है
लेकिन यरु े शय
ु ाई और सवालाखी बाभनो का कोई सम्बन्ध कटाई नही हो सकता | सवाल उठता है की मलयाली
बाभन आदिशंकर ने किस सनातन धर्म एवं संस्कृति के रक्षार्थ अखाड़ो का गठन किया ? डा० पासी मिसिर ने
अधकचरा ज्ञान बघारकर यही सन्दे श दिया की हर बाभन छोटे दष्ु ट से निपटने के लिए बड़ा दष्ु ट नहीं बनता लेकिन
छोटे दष्ु ट से निपटने वाला हर बड़ा दष्ु ट बाभन ही निकलता है |

दै निक जागरण में 07 अगस्त 2015 को प्रकाशित एक खबर – “जागरण संवाददाता , हरिद्द्वार: अपने बयानों
को लेकर अक्सर चर्चा में रहने वाली विश्व हिन्द ू परिषद् की नेता साध्वी प्राची एक बार सुर्खियों में है | हरिद्वार
पहुची साध्वी ने याकूब मेनन की फासी का विरोध करने वालो पर टिपण्णी करते हुए कहा कि आतंकवादियों का
समर्थन करने वाले भी उस श्रेणी में आते है | उन्हें दे श भक्त कैसे कहा जा सकता है | वह यही पर नही रुकी कहा
‘संसद में भी एक दो आतंकी बैठे है |‘ ऐसे लोगो को सबक सिखाया जाना जरुरी है , उनके साथ भी आतंकवादियों
जैसा बर्ताव करना चाहिए | कश्मीर में पकडे गये आतंकी नावेद पर टिपण्णी करते हुए साध्वी ने कहा कि वो
हिन्दओ
ु को मारने की बात कर रहा था | सुरक्षा बल उससे पूछताछ कर जरुरी जानकारी ले | इसके बाद उसे हिन्द ू
संगठन को सौप दे | उन्होंने कहा कि हिन्दओ
ु के खिलाफ हिंसा बर्दास्त नहीं की जाएगी |” लगता है की सारे
अगिया बैताल निहिपिया नेता और नेताइन बेलगाम हो चक
ु े है | अनाप-सनाप जो मर्जी आता वही भौकने लगते है
| अब प्राची नाम की विहिप नेताइन जबरदस्ती दे शभक्ति का प्रमाण पात्र बांटती घूम रही है | सवाल उठता है कि
उससे दे शभक्ति का सर्टिफिकेट मांग कौन रहा है ? छपास रोग से ग्रसित नेता और नेताइन सदै व घुमा फिराकर
बात किया करते है | एक दो आतंकी का क्या मतलब ? एक या दो या फिर एक-दो मिलकर तीन ? सवाल यह भी
उठता है कि वह संसद में बैठे आतंकियों के नामो का खुलासा क्यों नही कर रही है ? क्या इस तरह की सौदे बाजी
करके वह स्वयं भी आतंकियों का समर्थन नही कर रही है ? वह ऐसा ही कर रही है | और ऐसा वह अंतिम दम
तक करें गी , क्यक
ु ी वे आतंकी उनके अपने धर्मबंधु है , कश्मीर में पकडे गये नावेद को वह कथित हिन्द ू संगठनों को
सौपने की बात कर रही है | सवाल उठता है कि ऐसा वह किस है सियत से कह रही है ? न तो वह भारत की
राष्ट्रपति (प्रथम पुरुष) है न ही राष्ट्रपति की मेहरारू (प्रथम महिला) | वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार भारत में
कथित हिन्दओ
ु की आबादी 96.16 करोड़ है सवाल उठता है कि मुट्ठी भर निहिपिये इतने विशाल गिरोह के स्वयं भू
ठे केदार कैसे हो सकते है ? वैसे भी परी अखाड़े को मान्यता न दे कर अखाड़चियो ने स्पष्ट कर दिया है कि हिन्दब
ू ाड़े
में महिलाओं का दर्जा दोयम ही है | बेहतर होगा की प्राची जी अपना इतिहास-भग
ू ोल जाने और तोगड़ियो की जमरू ी
बनने की बजाय बेतरतीब स्वरूपनन्दो का मुकाबला कर रही त्रिकाल भवंता और राधे माँ का साथ दे | वरना कहना
पड़ेगा की हर हिन्द ू औरत गुलाम नही होती लेकिन हर गुलाम औरत हिन्द ू ही होती है |

दै निक जागरण में 23 अगस्त 2015 प्रकाशित एक खबर – “प्रमोद यादव , वाराणसी द्वारिका एवं ज्योतिष पीठ के
शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती ने अपने साईं विरोधी अभियान में अब साहित्य जगत को भी साथ लेते हुए एक
पुस्तक प्रकाशित की है | हिन्द ू धर्म स्वरुप और साईं का सच नामक एक पुस्तक लिखी है साहित्यकार नीरज माधव
ने जिन्होंने आरोप-प्रत्यारोप के बजाय विवाद के सरे पहलुओ को सामने रखते हुए निर्णय पाठको पर छोड़ दिया है |
पुस्तक में दे वालयों में उभरती हुई साईं प्रतिमाओ के प्रति जनमानस का ध्यान दिलाते हुए इसे हिन्द ू धर्म पर
आक्रमणों के इतिहास से भी जोड़ा गया है | धर्म से जुड़े गंभीर मसलो को सड़क के बजाय तर्क के सहारे निपटाने
का मार्ग भी प्रसस्त्र करती दिखती है पस्
ु तक | यह बिना किसी की भावना को आहत करते हुए सनातन धर्मियों को
संचित करती है | ‘यह बात पुस्तक की आवश्यकता क्यों‘ शीर्षक से लिखी भूमिका में झलकती है | हिंदत्ु व क्या है ,
हिन्द ू धर्म और इस्लाम, हिन्द ू धर्म स्रोत और सामान्य लक्षण व इसके निष्कर्ष पर साईं जैसे बिन्दओ
ु का स्पष्ट कर
बताने की कोशिश की गई है कि भला साईं ईश्वर कैसे हो सकते है ? हिन्द ू धर्म में औतारो की विवेचना के बाद
तर्कों के साथ बताया गया है कि साईं अवतार हो ही नही सकते साईं कौन, उनके प्रचारित प्रसारित रूप, उनके विचार
और उनसे सम्बंधित साहित्य का वर्णन करने के बाद लेखिका भ्रम निवारण की ओर बढ़ी है | तथ्यों के साथ
किताब यह बताने में सक्षम है कि साईं एक मुस्लिम फ़क़ीर थे और हिन्द ू रीति रिवाजो में उनका भरोसा नही था |
वह मांसाहारी थे नशा करते थे और नत्ृ य दे खने के शौक़ीन थे | हालांकि पुस्तक इस्लाम का विरोध नही करती
तथापि यह सवाल जरुर उठाती है कि यदि साईं समर्थक उनको हिन्द ू मुस्लिम एकता का प्रतीक मानते है तो
मस
ु लमान भी क्यों नही उनकी इबादत करते | इस्लाम धर्मावलम्बी अपने धर्म के प्रति अडिग होते है | और इस
तरह की व्यर्थ की बातो को महत्व नही दे ते है |” स्वरूपानंद अब पुस्तक प्रकाशन भी बन गया है | उसने नीरजा
माधव लिखित पुस्तक ‘हिन्दध
ू र्म स्वरुप और साईं का सच‘ प्रकाशित किया है | दस हजार विद्द्वान बाभनो द्वारा
लिखित पुस्तक ‘एन्साईंक्लोपिडिया आफ हिन्दज्
ु म‘ का 23 जून 2014 को राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने विमोचन किया
और कहा कि हिंदत्ु व अभी भी अपरिभाषित है | भारत की सर्वोच्च अदालत ने कहा कि हिन्द ू जीवन शैली है | अब
नीरजा माधव कह रही है कि हिन्द ू धर्म है | पता नहीं इनमे झूठ कौन बोल रहा है | वैसे भी हिन्दब
ु ाडा औरतो को
तोड़ने लायक ही समझता है | फिर भी नीरजा माधव धर्म में पिली पड़ी है | कन्फुजियाई नीरजा कह रही है कि
साईं के माध्यम से हिन्द ू धर्म पर आक्रमण हुआ है | हिन्दओ
ु की गीता कहती है कि धर्म की हानि होने पर विष्णु
सीधे भारत की धरती पर कूद पड़ता है | साईं के माध्यम से कथित हिन्द ू धर्म पर आक्रमण हुआ और विष्णु नही
कूदा | सवाल उठता है कि क्या गीता में झठ
ू लिखा गया ? नीरजा जी , हिन्द-ू बाड़े में तर्क की गुन्जाईस ही कहा है
कि धर्म से जुड़े गंभीर मसलो को सड़क के बजाय तर्क से निपटाया जायेगा | भारत के आदिनिवासी नागो के
सनातन धर्म और हिन्द-ू बाड़े के मध्य लगभग 1200 साल तथागत बद्ध
ु का धम्म भारत का मार्ग प्रसस्त करता रहा
| नीरजा जी साईं के अवतार होने पर आपत्ति कर रही है | साईं तो सौ फीसदी मनुष्य रहे है | सवाल उठता है कि
मछली , कछुआ , सूअर , अर्ध जानवर अवतार हो सकते है तो मनुष्य अवतार क्यों नहीं हो सकता ? नीरजा जी
स्वत स्वीकार रही है कि साईं मुस्लिम ( मुसल्लम = साबुत ईमान वाले ) फ़क़ीर थे | नीरजा जी और स्वरूपानंद को
स्पष्ट करना चाहिए की ईमानदार होना बुराई है क्या ? हिन्द ू रीति रिवाजो में साईं का भरोसा नहीं था | यह तो
और अच्छी बात है | सवाल उठता है कि ईमान वाले बेईमानो पर भरोसा क्यों करे ? नीरजा जी ने साईं पर आरोप
मढ़ा है कि वे मंशाहारी थे | नशा करते थे और न्रत्य दे खने के शौक़ीन थे | क्या नीरजा जी दावे के साथ कह
सकती है कि उनका हिन्द-ू बाड़ा मान्शाहार , नशाखोरी और नाच गाने से पूरी तरह मुक्त है |? साईं पर इस तरह की
टिपण्णी करने से पहले नीरजा जी को चाहिए था कि अपने इंद्रा विष्णु दर्गा
ु ओ के कारनामो का सम्यक अध्यन कर
लेती | नीरजा अपने विरोधियों से तर्क और संवाद कर के दे ख लीजिये | इस तर्क के आरोप आपके अपने सुरों पर
भी है हिन्द-ू बाड़े पर आक्रमण का कोई इतिहास नही है लेकिन आदिनिवासी नागो के सनातन धर्म पर आक्रमण कर
के ही मलयाली बाभन आदि शंकर ने हिन्द ू बाड़े का गठन किया था | अखाद्चियो का वर्तमान आचरण इस बात का
प्रमाण है कि अखाड़ो का गठन अराजक और सही अंदाज के लिए हुआ था | वरना अखाद्ची शाही स्नान और
साधारण स्नान में भेद क्यों करते ?
अखाद्चिये जिन्हें दष्ु ट घोषित करते है उनसे तो लड़ते ही है अपने सह धर्मियों से भी लड़ा करते है |
दै निक जागरण में 30 अगस्त 2015 को प्रकाशित एक खबर – “ओम प्रकाश तिवारी नाशिक | नासिक त्र्यम्बकेश्वर
सिंहस्थ कुम्भ का पहला शाही स्नान शनिवार को संपन्न हो गया | महिला सन्यासियों के लिए अलग घाट नही
आवंटित किये जाने के विरोध में पारी अखाड़े ने इस शाही स्नान का विरोध किया | यह पवित्र गोदावरी नदी एवं
त्रम्ब्केश्वर के कुशावर्त कंु द सहित 20 से अधिक घटो पर बड़ी संख्या में श्रद्धुलुओ ने दब
ु की लगाई , लेकिन आमद
उम्मीद से कम रही |... दे श के 12 ज्योतिलिंगो में शुमार त्रम्ब्केश्वर से 200 मी. दरू पवित्र कुशावर्त कंु ड में सुबह
करीब 4;15 बजे से शैव एवं उदासीन सन्यासियों के 10 अखाड़ो का शाही स्नान जून अखाड़े के स्नान के साथ शुरू
हुआ |.... एखादी की शाही सवारियों का स्वागत स्थानीय लोगो ने उनके रास्ते में आकर्षक रं गोलिया बनाकर किया
|” नीरजा जी के अनुसार साईं न्रत्य दे खने के शौक़ीन थे | तिवारी जी के अनुसार हिन्द ू हिन्द ू मठे त शाही स्नान
और रं गोली के शौक़ीन है | सवाल उठता है कि सन्यास और शाही के स्नान के बीच क्या सम्बन्ध है ? भगवान
तथागत बद्ध
ु और महावीर जैन सन्यासी थे लेकिन दोनों ने कभी शाही स्नान नहीं किया उनके काल में कभी
भिक्खुनियो के अलग स्नान करने पर भी कभी विरोध नही किया गया | रं गीन मिजाज हिन्द ू (अ) सन्यासी स्नान
करती महिलाओ को खुली आँखों से दे खने के शौक़ीन है तभी तो वे महिला सन्यासियों के अलग घाट का विरोध कर
रहे है | सवाल उठता है कि परु
ु षो की भीड़ में वे महिलाओ के शारीर का खल
ु ा प्रदर्शन क्यों करना चाहते है ? कथित
हिन्द ू संगठन अपने इस धर्म गुरुओ के रं गीन आचरण पर कैसी टिपण्णी करें गे ? इनके जगत गुरु पद धारी धर्म
गुरु भी पक्के अखाडची है | दै निक जागरण में 06 अगस्त 2015 को प्रकाशित एक खबर- “विधि संवाददाता इलाहबाद
: इलाहबाद हाईकोर्ट ने ज्योतिष पीठ बदरिका आश्रम के शंकराचार्य के विवाद पर अंतरिम आदे श पारित करने के
मुद्दे पर सुनवाई शुरू कर दी है | कोर्ट अब इस मुद्दे पर प्रतिदिन सुनवाई करे गी | न्यायालय ने एक बार पुनः
बसद
ु े वानंद के वकील से कहा कि कोर्ट उन्हें अंतरिम आदे श पर बहस करने के बजाय अंतिम फैसले के लिए बहस
का मौका दे ती है | परन्तु उनके वकील ने अंतरिम आदे श पर बहस शुरू की न्यायालय ने अपीलार्थी बसुदेवानंद की
तरफ से पेपरबुक कोर्ट में दाखिल न करने को गंभीरता से लिया है |” प्रकरण में बासुदेवानंद और स्वरूपानंद जैसे
दो स्वयंभू जगत गुरु एक दस
ू रे के खिलाफ मोर्चा खोले हुए है | सवाल उठता है कि जब जगत एक है तब जगत
गुरु एक से ज्यादा कैसे हो गये ? सुनने में तो यह तक अ रहा है कि अब एक जगतगुरु का गुरुआना जगत की
चालीसवे हिस्से तक सिमट गया है | पारी अखाड़े की ये परिया जिन्होंने ये शाही स्नान का बहिष्कार किया है कभी
भी मेनका उर्वसी बन सकती है | मतलब हिन्दब
ु ाडे के अन्दर भी सब कुछ ठीक ठाक नहीं चल रहा है | बचपन में
मैंने अपनी माँ को कहते सुना था पत
ू वही जो हाड़ गया पहुचाये | तब उनकी इस बात का आशय मै नही समझता
था | अब समझ में आया कि मेरी माँ आदिनिवासी नाग थी , बुद्धिष्ट थी | बचपन में मै भी अल्पज्ञ था | भगवान
बुद्ध के बारे में कुछ नही जानता था | मेरे कंु ए की जगत पर माँ ने कुछ स्तूप नुमा पत्थर रखे थे | एक बार मैंने
उन पत्थरों को कंु ए में फेक दिया था | माँ ने दे खा तो उसी तरह के पत्थर पुनः ले आई और वही रखकर पुनः
भगवान से मेरे लिए दआ
ु मांगती रही | मेरी माँ बुद्ध्भूमि गया को पवित्र स्थान मानती थी | लेकिन वे बुद्ध को
शिवरूप में ही स्वीकारती थी | मेरी माँ ऐसी अकेली बद्धि
ु ष्ट नही थी | एक समय परू ा भारत ही बद्धि
ु ष्ट था |
मलयाली बाभन आदिशंकर भी बुद्ध बिहार में ही रहकर पढ़ा था | प्रबुद्ध भारत की बुनियाद पर ही उसने अपना हिन्द ू
बाड़ा खड़ा किया | हमारे पुरुष भले ही अनपढ़ रहे हो लेकिन किस्सों कहानियो के माध्यम से वे अपने पुरखो का
इतिहास अगली पीढ़ी को स्थान्तरित करते रहे है | सवालाखी बाभनो की आठ सौ साल से भी ज्यादा पुरानी गाथा
हमे किस्सों के माध्यम से ही मिली | अखिल भारतीय सिविल सेवा के अंग्रेज अधिकारियों ने लिपिबद्ध
ु किया श्रमण
भारत उन अंग्रेज अधिकारियों का शुक्रगुजार है | एम ् ए शेरिग
ं की प्रतिभा को सलाम | बाभनो का तीन हजार साल
का इतिहास उन्होंने एक वाक्य में लिखा- THE BRAHMAN ON THE BANK OF SARASWATI IN PUNJAB WAS A
BEING DEFFERENT FROM THE BRAHMAN ON THE BANK OF GANGA OR SARJOO AND BOTH WITH DREW
THEIR SYMPATHIES FROM THE BRAHMANS OF NARBUDDHA VALLEY OF GODAWARI AND THE COUNTRY
BEYOND . अर्थात सरस्वती तट वाले यूरेशियाई बाभन , गंगा-सरयू के तट वाले सवालाखी बाभनो से भिन्न है लेकिन
नागार्जुन कोंडा वाले बद्धि
ु ष्ट ब्राह्मणों से दोनों सहानभति
ू नही रखते | बाभनो के बारे में सिर्फ इतना ही कहा जा
सकता है कि हर बाभन अखाडची नही होता लेकिन हर अखाडची बाभन ही निकलता है | भारत के आदिनिवासी
नागो का हित इसी में है कि वे शिव ( बुद्ध ) को बाभनो से मक्
ु त कराये |.

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