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भारत का वह सन्यासी कौन था जिसकी चर्चा अमेरिका में सबसे पहले हुई?

भारत का वह महान विचारक कौन था जिसकी चर्चा अमेरिका में सबसे पहले हुई?

भारत का वह महान सुधारक कौन था जिसकी चर्चा अमेरिका में सबसे पहले हुई?

भारत का वह कौन सा महात्मा था जिसकी चर्चा अमरीका में सबसे पहले हुई ?

भारत का वह कौन सा महापुरुष था जिसकी चर्चा अमेरिका में सबसे पहले हुई ?

भारत का वह कौन सा दे श भक्त था जिसकी चर्चा अमेरिका में सबसे पहले हुई?

भारत का वह कौन सन्यासी, महात्मा, योगी, सुधारक, विचारक था जिसका फोटो अमेरिका की किसी
मैगजीन में सबसे पहले छपा ?

अधिकांश लोगों का उत्तर होगा- स्वामी विवेकानंद !

परं तु यह उत्तर सही नहीं है ।

आपको जानकर आश्चर्य होगा कि महाराष्ट्र अकोला के भाई राहुल आर्य जी ने जो नए ऐतिहासिक
दस्तावेज ढूंढे हैं, उनके आधार पर इतिहास का यह स्वर्णिम अध्याय प्रकाश में आया है कि अमेरिका
में जिस भारतीय संन्यासी, महात्मा, मुनि, विचारक, सुधारक, दे शभक्त, योगी की चर्चा सर्वप्रथम हुई -

वह -महर्षि दयानंद सरस्वती जी थे।

यह जानकारी ऐतिहासिक दस्तावेज अमेरिका की *फ्रेंक लेस्ली सन्डे मैगजीन* जो कि सन 1878 में
छपी है , उससे प्राप्त हुआ है ।

यह बहुत ही आश्चर्य की बात है कि महर्षि दयानंद जी तो कभी विदे श गए ही नहीं ।

उनको अंग्रेजी आदि कोई विदे शी भाषा भी नहीं आती थी।

वह विदे शी शक्ति, सत्ता ,सभा, संस्था के समर्थक, प्रशंसक, कृपा पात्र भी नहीं थे।

तो भी उनकी महिमा समुद्र पार अमेरिका तक जा पहुंची।

इस सन्डे मैगजीन में यह बताया गया है कि-" कई महीने पूर्व प्रयाग से प्रकाशित होने वाले अंग्रेजी
समाचार पत्र* द इंडियन ट्रिब्यून* में यह लिखा है कि -
आर्य समाज इस शताब्दी का सर्वाधिक उल्लेखनीय धार्मिक आंदोलन है । अब तक भारत भर में आर्य
समाज की संख्या 47 है परं तु पंडित लेख राम जी आर्य पथिक दिसंबर सन 18 78 तक आर्य समाजों
की संख्या 50 बताते हैं।

सन्डे मैगजीन का लेखक स्पष्ट शब्दों में लिखता है कि ऋषि दयानंद कोई नवीन मत पंथ चलाना
नहीं चाहते। वह तो वेद के विशुद्ध आस्तिकवाद का संदेश दे ते हैं।

लेखक पंजाब में महर्षि दयानंद जी के प्रभाव का इन शब्दों में वर्णन करता है -" जहां कहीं स्वामी
दयानंद जाते हैं , उनके भव्य शरीर ,उनके पांडित्य पर्ण
ू प्रवचना, उनकी सिंह गर्जना, उनकी वाकपटुता
तथा उनके तीक्ष्ण तर्क के सामने सारा विरोध मंद बंद शांत हो जाता है ।"

महर्षि दयानंद जी की पंजाब यात्रा पर टिप्पणी करते हुए सन्डे मैगजीन का लेखक लिखता है
-"जनता अब जाग उठी है । उठकर हुंकार लगा रही है कि अब हम अज्ञान अंधकार के अवस्था में नहीं
पड़े रहें गे। अब हम परु
ु षार्थ करें गे । अपने लिए आप सोचें गे। हमने धर्त
ू छलिए परु ोहित वर्ग को बहुत
दे ख लिया है । पतन कारी मर्ति
ू पज ू ा का फल भी बहुत चख चक
ु े । अब हम इनको और नहीं झेल
सकते । अब हम यग
ु ों से चली आ रही इस कुरुपता को - इन कुरीतियों के- अंधविश्वासों के धब्बों को
धो दें गे। इन्हें मिटा कर रख दें गे। अब हम अपने आर्य पर्व
ू जों के सदृश अपने मल
ू स्वरूप में अपनी
परु ानी शान और चमक-दमक दिखा दें गे।"

इस लेख की इन बातों से यह स्पष्ट है कि अंग्रेजी सरकार का गुप्तचर विभाग, अंग्रेजी सरकार की


एजेंसियां अपने-अपने ढं ग से ऋषि दयानंद की गतिविधियों की पूरी पूरी जानकारी सरकार को दे रही
थीं। अभी तो आर्य समाज को स्थापित हुए मात्र 3 वर्ष ही हुए थे और आर्य समाजियों की संख्या दे श
में 20 लाख से ऊपर पहुंच चुकी थी।

विदे शी इसाई शासक आर्य समाज के द्वारा हिंद ू जाति के जागरण को दे खकर चिंतित हो चुके थे।

सन्डे मैगजीन का लेखक लिखता है महर्षि दयानंद एक सशक्त ओजस्वी वक्ता हैं। वह एक
असाधारण विद्वत्ता के व्यक्ति हैं और उनकी धर्म परायणता चरित्र की पावनता अति उच्च कोटि
की है ।

भारत के अधिकांश तपस्वी पीर फकीर संत महं त व गुरु लोग जादई
ु शक्ति जाद ू टोना चमत्कार
दिखाने का दावा करते हैं लेकिन स्वामी दयानंद जी के विषय में ऐसी कोई जानकारी नहीं मिली है ।
उनके शिष्यों में बहुत से नामी पंडित और विद्वान हैं। कई बहुत संपन्न भारतीय राजा महाराजा भी
हैं । "

इसके ऊपर आर्य समाज इतिहास के भीष्म पितामह प्राध्यापक श्री राजेंद्र जिज्ञासु जी अबोहर लिखते
हैं कि यह विचित्र बात है कि अमेरिका के इस लेख में यह कैसे लिख दिया गया कि कई राजा
महाराजा महर्षि दयानंद जी व आर्य समाज से जुड़ चुके हैं। तब तक छलेसर, मसूदा व रे वाड़ी के राजा
अवश्य वैदिक धर्म व ऋषि भक्त बन चक
ु े थे। इंदौर के तक
ु ा जी राव होलकर ने 1876 में इंदौर यात्रा
में ऋषि का सम्मान किया था।

इस लेख में भारतीय राजाओं के ऋषि दयानंद व आर्य समाज के साथ जोड़ने का उल्लेख है तो
अमेरिका के इस लेखक को अवश्य अंग्रेजी सरकार के सूत्रों से जानकारी मिली होगी। यह अत्यंत
ध्यान दे ने की बात है अंग्रेजी सरकार आर्य समाज से कितनी भयभीत थी।

सन्डे मैगजीन में आगे लिखा है कि महर्षि दयानंद जी का तेजस्वी प्रतापी व्यक्तित्व तथा झकझोर
कर रख दे ने वाली वाणी निसंदेह उनकी सफलता के मुख्य कारण हैं। एक ओर तो पुरोहित वर्ग भ्रष्ट
है । वह अपने आत्मोदय अभिवत्ति
ृ समद्धि
ृ के लिए जनता को वर्ष प्रतिवर्ष अंधविश्वासों में मूर्ति पूजा
की ओर धकेल रहा है । हालांकि विद्वान स्वामी महात्मा दयानंद जी को उनके कड़े विरोध का सामना
करना पड़ा है ।

सन्डे मैगजीन में आगे लिखा है ऋषि दयानंद तो विशुद्ध वैदिक आस्तिकवाद व एक ईश्वर वाद के
महत्व पर बल दे ते हैं। बौद्धों में ब्राह्मणों हिंदओ
ु ं में , ईसाई धर्म प्रचारकों ने अब तक जो कुछ किया है
व पाया है स्वामी दयानन्द जी ने उन सब के पुरुषार्थ व परिश्रम से कहीं बढ़कर तपस्या की है ।

वेद भाष्य विषयक विवाद की चर्चा करते हुए लेखक स्पष्ट शब्दों में लिखता है कि दे श भर के एक
भी पंडित को सार्वजनिक सभा में महर्षि दयानंद के सामने उपस्थित होकर वेद से मूर्ति पूजा सिद्ध
करने का साहस नहीं हो सका।

मुझे ऐसा लगता है कि आर्य समाज तो अंग्रेजी सरकार के संरक्षण के बिना भी फलेगा व फूलेगा।
स्वामी दयानंद सरस्वती विश्व के महानतम सुधारकों की पंक्ति में स्थान प्राप्त करें गे।""

हम इस ऐतिहासिक दस्तावेज की खोज तथा इसे प्रकाश में लाने के लिए-


अकोला महाराष्ट्र के भाई राहुल आर्य जी को

हार्दिक धन्यवाद दे ते हैं। इस समस्त विवरण को परोपकारिणी सभा अजमेर ने *महर्षि दयानंद पर
इतिहास बोल पड़ा* इस पुस्तक में प्रकाशित कर दिया है ।

इस नवीनतम जानकारी से समस्त भारतीयों को यह गौरव की अनुभूति होगी कि अमेरिका में जिस
भारतीय सन्यासी सुधारक विचारक योगी की चर्चा सर्वप्रथम हुई तथा जिन का फोटो अमेरिका की
पत्रिका में सर्वप्रथम छपा वह महर्षि दयानंद सरस्वती जी थे।

स्वामी विवेकानंद जी तो उनके 15 वर्ष पश्चात अमेरिका के शिकागो सम्मेलन में स्वयं गए तब वहां
उनकी चर्चा हुई। जिस समय अमेरिका में स्वामी विवेकानंद जी हिंद ू धर्म की ध्वजा फहरा रहे थे, उसी
समय भारत में हजारों हिंद ू अपना धर्म छोड़कर, ईसाई बन रहे थे यह बात भी ध्यान दे ने की है ।

प्रस्तति

धर्मेंद्र जिज्ञासु

महामंत्री आर्य वीर दल हरियाणा

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