You are on page 1of 6

दिल्ली विश्वविद्यालय 

रामजस कॉलेज, नई दिल्ली

हिन्दी विभाग

बीए ऑनर्स हिंदी तत


ृ ीय वर्ष
सत्र (सेमेस्टर- 5) - जुलाई दिसम्बर – २०२२

भारत दर्दु शा नाटक के आधार पर भारत की दर्दु शा के कारणों


पर प्रकाश डालिए

नाम -नितिन कुमार निर्देशक

अनुक्रमांक- 348 डॉ. नीलम

विषय- हिंदी नाटक


भमि
ु का
भारत दर्दु शा भारतेन्द ु हरिश्चन्द्र द्वारा सन 1880 ई में रचित
एक हिन्दी नाटक है । इसमें भारतेन्द ु ने प्रतीकों के माध्यम से भारत की
तत्कालीन स्थिति का चित्रण किया है । वे भारतवासियों से भारत की
दर्दु शा पर रोने और फिर इस दर्दु शा का अन्त करने का प्रयास करने का
आह्वान करते हैं। भारतेन्द ु का यह नाटक अपनी यूगीन समस्याओं को
उजागर करता है , उसका समाधान करता है । भारत दर्दु शा में भारतेन्द ु ने
अपने सामने प्रत्यक्ष दिखाई दे ने वाली वर्तमान लक्ष्यहीन पतन की ओर
उन्मुख भारत का वर्णन किया है ।

भारतेन्द ु ब्रिटिश राज और आपसी कलह को भारत की दर्दु शा का मुख्य


कारण मानते हैं। तत्पश्चात वे कुरीतियाँ, रोग, आलस्य, मदिरा,
अंधकार, धर्म, संतोष, अपव्यय, फैशन, सिफारिश, लोभ, भय,
स्वार्थपरता, अतिवष्टि
ृ , अनावष्टि
ृ , अकाल, बाढ़ आदि को भी भारत
दर्दु शा का कारण मानते हैं। लेकिन सबसे बड़ा कारण अंग्रेजों की भारत
को लूटने की नीति को मानते हैं।

रोअहु सब मिलिकै आवहु भारत भाई।


हा हा! भारतदर्दु शा न दे खी जाई ॥

भारतें द ु के अनस
ु ार हमारी यह दख
ु द स्थिति के लिए बाह्य और
आंतरिक दोनो कारण जिम्मेदार है । उन्होंने भारत दर्देु व की कल्पना में
संकेत किया है कि वह अंग्रेजी सभ्यता का प्रतीक है । जिससे स्पष्ट होता
है कि अंग्रेजी राज और उनकी शोषणकारी नीतियां हमारी इस दशा के
करनी में शामिल है । किंतु भारतें द ु उन लोगों में से नहीं है जो अपनी
समस्याओं का ठीकरा दस
ू रो पर फोड़कर शांत हो जाते हैं। उनका
ईमानदार आत्म मूल्यांकन इस तथ्य का साक्षी है कि हमारी दर्दु शा के
ज्यादा बड़े कारण हमारे भीतर ही निहित है । ऐसे मख्
ु य कारण है धर्म,
संतोष, आलस्य, मदिरा, अज्ञान तथा रोग इत्यादि।

राष्ट्रीय चेतना 

हिंदी नाटक में राष्ट्रीय चेतना को भारतें द ु युग से ही दे खा जा सकता है ।


भारतें द ु ने सभी विधाओं में सबसे सशक्त माध्यम नाटक को ही माना
और वे जानते थे कि नवजागरण और प्रगतिशील चेतना को नाटक के
माध्यम से उद्भाषित किया जा सकता है । भारतें द ु की रचना “भारत
दर्दु शा” भारतीय राष्ट्रीयता की अग्रदत
ू थी जनसाधारण के लिये ऐसी
रचनाएँ परम आवश्यक थी इनमें केवल राष्ट्रीय भावना ही नहीं वरन
अतीत गौरव के प्रति अनुराग तथा भारत की तत्कालीन दर्दु शा पर पूर्ण
प्रकाश पड़ता है । “भारत जननी ‘के माध्यम से भारतें द ु ने भारत माता
की परिकल्पना की है । “अंधेर नगरी” ब्रिटिश सत्ता के प्रबंध व्यवस्था पर
कटाक्ष करता है तथा “सत्य हरिशचंद्र” में पुरुष सत्ता का, सत्य उद्धरण
का के लिये आह्वान करते हैं। “नील दे वी” में गौरवपूर्ण अतीत का
स्मरण दिलाकर भारतीयों को स्वतंत्रता प्राप्ति के लिये अनु प्रेरित किया
गया है । 
“हे भगवती राजराजेश्वरी इसका हाथ पकड़ो”

 डॉक्टर रामविलास शर्मा के अनुसार


 “भारतें द ु ने अपने नाटक साहित्य के जरिए इतिहास ,परु ाण और
वर्तमान जीवन के विविध स्रोतों को नया आयाम प्रदान किया है ।
इतना ही नहीं उन्होंने अपने नाटकों के माध्यम से  नई हिंदी को
लोकप्रिय बनाया। पारसी रं गमंच का विशेष लोकप्रियता तथा प्राचीन
नाटकों के उद्धार किया  गेआत्मक प्रस्तति
ु करण किया।’

 बाबू गुलाब राय ने भारत दर्दु शा को दख


ु ांत माना है भारत दर्दु शा
नाटक के संबध
ं में आपत्ति की है कि वह दख
ु ांत  है और इसमें
आशा का कोई संदेश नहीं है , कवी  का उद्देश्य जागति
ृ /उत्पन्न
करना था व आशा और उत्साह द्वारा हो  चाहे करुणा के द्वारा।’

 राम चंद्र शक्


ु ला ने ‘भारतें द ु को लल्लल
ू ाल व इंशा अल्लाह खान की
अगली पीढ़ी मान उसको उत्तराधिकारी माना है ।’

भारत दर्दु शा का कारण

भारतें द ु ने भारत दर्दु शा का कारण सामाजिक विकृतियों को माना। लोगों


में व्याप्त हालत व रूढ़िवादी सोच को माना है । लोगों के निराशावादी
,लक्ष्यहीन ,व  पत्तनों उन्मख
ु ी सोच ,को भारतें द ु ने भारत दर्दु शा का
कारण माना  व समाज में जो आर्थिक संरचना धार्मिक संरचना है वह
समाज की नींव को  खोखली कर रही है । आपस में भेदभाव व जाति
का  वर्गीकरण आपसी मनमट
ु ाव स्वार्थ परखता ,लोग भारत की दर्दु शा
का कारण है । भारत सदै व धार्मिक व अंधविश्वास की रूढ़ियों व परं परा
मान्यताओं से ग्रसित रहा है ,जिसके कारण एक धर्म दस
ू रे धर्म को
नीचा दिखाने के लिए आपस में लड़ता रहा। जिसके कारण विदे शियों का
भारत में आगमन हुआ और सारे विनाश का कारण बना।

” हरि वैदिक जैन डुबाई पुस्तक सारी ।


करी कलह बुलाई जवन सैन पुनि  भारी।।”

समाज का एक बड़ा तबका आलसी ,अशिक्षित वह कमजोर का है जो


अपनी पुरानी सड़ी-गली मान्यता को ढो  रहा  है । वह अपने तक ही

ू रा वर्ग इस समाज का निरं तर शोषण करता रहा है । किंतु


केंद्रित है दस
यह उस परं परा का विरोध नहीं करते वह निराशावादी वह भाग्यवादी होते
जा रहे हैं। यही  कारण है कि कुमति व आलस का वर्चस्व समाज में
बढ़ते जा रहा है

निष्कर्ष

भारतें द ु ने भारत – दर्दु शा में प्रतिकात्मक पात्रों की सहायता से दर्दु शा के


कारणों की खोज की ,पहचान किया। जिसमें सबसे बड़ा कारण मदिरा ,
लोभ , अशिक्षा को माना उसकी पहचान कर भारतें द ु ने उसका साथ
छोड़ने का आग्रह किया। यह सभी वास्तव में आज समाज की जड़ें
खोखली करने में अहम भूमिका निभा रही है । भारतें द ु ने जगह-
जगह मदिरा व निर्लज्जता के माध्यम से समाज में एक निश्चित ही
सार्थक संदेश दिया जो सर्वनाश का कारण है । उसके साथ न जाने का
आग्रह किया। समाज में  असंतोष ,लज्जा ,मदिरा दर्देु व  आदि ने अपनी
जड़ें इतनी जमा रखी है कि भारत भाग्य अपनी तमाम कोशिशों के बाद
भी सफल नहीं हो पाता और अंत में कटार मारकर आत्महत्या कर लेता
है ।

You might also like