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माननया प्रतनिचरीय, समानिया अतिति गण, शिक्षक और शिक्षिकाएं और मेरे प्यारे सहपाठियों, आप सब को मेरे

नमस्कार आज इस अंतराष्ट्रीय स्वस्त दिन पर मझ ु े आपके समक्ष यह भाषण प्रस्तत


ु करते हुए हर्ष हो रहा हैं।
आज में हमारी दै निक प्रक्रिया का प्रभाव हमारे स्वास्त और शरीर पर कैसे आसार करता हैं उसके बारे में मेरे विचार
प्रस्तत
ु करुँ गी।

ऐतिहासों के पन्नो पर जिनका नाम प्रमख ु हैं, विलियम शेकस्फीयर का खद ु की यही विचार धरना हैं की "हमारा
शरीर एक बगीचे की तरह है और हमारी इच्छाएँ बागवान की तरह", आसान सब्दो में हम यह के सकते हैं की हमारे
विचारों में इतनी ताकत होती हैं के जिसे हम हमारे चाहित्र को बदलने की क्षमता हासिल कर सकते हैं। खेर अज्ज
की दनिु या में दे खा जाये तोह हमारइ विचार इंटरनेट जैसे साधन हैं और हम कंप्यट ू र, हम इंटरनेट का कोई भी हद
तक इस्तेमाल कर सकते हैं और वोही हमारी आखों के सामने जलकता हैं। वैसे ही अगर दे खा जाये तोह दनि ु या में
टे क्नीकी संसथानी की वजह से आज कल तोह हम अपने घर के बंद दरवाजो के पीछे बेथ कर भी हमारा काम पर्ण ू
कर पते हैं, और कही सारे लोग बदल टी दनि ु या के साथ सक ु ू न और व्यवस्था पर्व
ू क जीवन जीना चाहते हैं, अगर
यही हमारी दिन चरिया की प्रक्रिया रही तोह इसका असर हमारे शरीर पर भी दिखेंगे। आलस और सवि ु था के कारन
मोटापा भी बढ़े गा और मोटापे का असर होने से हमारा शरीर जल्दी हार मन जाएंगे और ढाका हुआ महसस ू करें गे
जिसे कही स्वस्त सम्बन्धी बीमारिया प्रकट हो सकती हैं जैसे डायबिटीज और हृदय से सम्बन्धिक रोग। और एक
चमतके परदे के पीछे दिन रात काम करने से भी अमर दिमाग के विचार भी उसी तरह से बंद हो जायेंगे और हम
अपनी सवि ु धा के कारन अपने सरीर का ख्याल रखना ही भल ू जायेंगे।

अपने कोरोना काल में भी दे खा होंगे जब चारो तरफ डर और खौफ चाय हुआ तोह, जिसके वजह से हमारे मन की
विचार भी नकारात्मक और उलझे रहते थे , इस उल्जन की वजह से हम हमारे सशरीर को कम ध्यान में रकते थे,
और महामारी से कुछ चाँद मिंटो के लिए ध्यान हटा ने के लिए घर के खाने में अपनी खोई हुई ख़श
ु ी धन
ु ते थे।
लेकिन कोरोना में कुछ यवु ानो ने अपने मन से जं
ग लड़ी और वोह सकरात्मक सोच के साथ कोरोना काल को चीरते
हुआ आगे बढे जिसे वह अपनी दिन चरिया की सम्पर्ण ू ता बनाये रख पाए और मेने तोह कितने किस्से सन
ु ने हैं की
कोरोना में भी इंटरनेट और टे क्नीकी संसाधोना का सही उपयोग करके कितने लोगो ने अपना वजन काम किया।

दे खिये बात वजन काम या बढ़ा ने की नहीं हैं, जरूर मद् ु दा यह हैं की हम खदु के मन में सकारात्मक माहौल बनाये
रखे जिसे हम दनि ु या में दसू रे उत्पाधनो में अपनी ख़ श
ु ी न जोड़े, जिसे हमारे शरीर भी तरु
ु स्त रहे । आज बस आप
यही शिक्षा लेके जाएँ की हम हमारे विचारो की कटपत ु ली हैं, हमारी विचार जितने स्थिर उतने ही हम भी।

अंत में आप सप्का धन्यवाद, आपके सहकार ने मझ


ु े इतनी प्रेरणा दी के मेरे बिखरे हुए शब्दों को भी भाषण के रूप
में सजा दिया।

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