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गुरुत्व कामाारम द्राया प्रस्तुत भाससक ई-ऩत्रिका अगस्त-2020 | अॊक 1

Nonprofit Publications .

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गुरुत्व ज्मोसतष भाससक
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गुरुत्व ज्मोसतष

ई-ऩत्रिका भें रेखन हे तु


भाससक ई-ऩत्रिका
अगस्त-2020 | अॊक 1
सॊऩादक
फ्रीराॊस (स्वतॊि) रेखकों का
स ॊतन जोशी
सॊऩका
गुरुत्व ज्मोसतष त्रवबाग
स्वागत हैं ... 
गुरुत्व कामाारम
92/3. BANK COLONY,
BRAHMESHWAR PATNA,
गुरुत्व ज्मोसतष भाससक ई ऩत्रिका
भें आऩके द्राया सरखे गमे भॊि,
BHUBNESWAR-751018,
(ODISHA) INDIA

पोन
मॊि, तॊि, ज्मोसतष, अॊक ज्मोसतष,
91+9338213418,
91+9238328785, वास्तु, पेंगशुई, टै यों, ये की एवॊ
ईभेर
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रेख को प्रकासशत कयने हे तु बेज
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ऩत्रिका प्रस्तुसत
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गुरुत्व कामाारम 91 + 9238328785
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गुरुत्व कामाारम
अनुक्रभ
स्थामी औय अन्म रेख
सॊऩादकीम 4 दै सनक शुब एवॊ अशुब सभम ऻान तासरका 12
अगस्त 2020 भाससक ऩॊ ाॊग 8 फदन-यात के ौघफडमे 13
अगस्त 2020 भाससक व्रत-ऩवा-त्मौहाय 10 फदन-यात की होया 14
अगस्त 2020 -त्रवशेष मोग 12
इस त्रवशेषाॊक अॊक भें ऩढे े़
बायतीम सॊस्कृ सत भें याखी ऩूत्णाभा का भहत्व 15 श्री कृ ष्ण कृ ऩा कटाऺ स्त्रोि 48

याखी ऩूत्णाभा से जुफड ऩौयात्णक कथाएॊ 17 भधुयास्टकभ 48

बगवान श्रीत्रवष्णु के आठवें अवताय श्रीकृ ष्ण 19 गोऩी गीत 49


फहन्द ू सॊस्कृ सत भें कृ ष्ण जन्भाद्शभी व्रत का भहत्व 20 श्रीकृ ष्ण की पोटो से सभमाओॊ का सभाधान 50

श्रीकृ ष्ण की गुरूसेवा 22 िैरोक्मभॊगर श्रीकृ ष्ण कव भ ् 51


कृ ष्ण जन्भाद्शभी व्रत की ऩौयात्णक कथा 24 ब्रह्मा यस त कृ ष्णस्तोि 53

कृ ष्ण के भुख भें ब्रह्माॊड दशान 30 श्रीकृ ष्णाद्शकभ ् 54

कृ ष्ण स्भयण का आध्मात्त्भक भहत्व 31 श्रीभद्भगवदगीता के 18 अध्माम का भहत्व 55

अजा (जमा) एकादशी व्रत की ऩौयात्णक कथा 32 भनोकाभना ऩूसता हे तु त्रवसबन्न कृ ष्ण भॊि 60

ऩरयवसतानी (ऩद्मा)एकादशी 33 कृ ष्ण भॊि 61


श्री कृ ष्ण का नाभकयण सॊस्काय 35 ऩमूष
ा ण का भहत्व 62

श्रीकृ ष्ण ारीसा 36 श्री नवकाय भॊि (नभस्काय भहाभॊि) 63

त्रवप्रऩत्नीकृ त श्रीकृ ष्णस्तोि 37 दे वदशान स्तोिभ ् 64

बगवान भहावीय की भाता त्रिशरा के 16


श्रीकृ ष्णस्तवयाज 38 65
अद्भत
ु स्वप्न
श्रीकृ ष्णस्तवयाज् 39 त्रवसबन्न भत्कायी जैन भॊि 67

जैन धभा के ौफीस तीथंकायों के जीवन का


एकाऺयकृ ष्णभन्िभ ् 39 70
सॊत्ऺद्ऱ त्रववयण
श्रीकृ ष्णद्रादशनाभस्तोिभ ् 40 श्री भॊगराद्शक स्तोि (जैन) 71

गोऩाराऺम कव भ ् 40 अथ नवग्रह शाॊसत स्तोि (जैन) 71

प्राणेद्वय श्रीकृ ष्ण भॊि 41 भहावीयाद्शक-स्तोिभ ् 72

सन्तानगोऩार स्तोि 42 भहावीय ारीसा 73

जफ भहावीय ने एक ज्मोसतषी को कहाॊ तुम्हायी


कृ ष्णाद्शोत्तयशतनाभस्तोिभ ् 45 74
त्रवद्या सच् ी है ?
याधाकृ ष्णाद्शकभ ् 46 गौतभ केवरी भहात्रवद्या (प्रद्लावरी) 75

कृ ष्णाश्रम स्तुसत 47
त्रप्रम आत्त्भम,

फॊध/ु फफहन

जम गुरुदे व
यऺाफॊधन- यऺाफॊधन अथाातप्रे् भ का फॊधन। यऺाफॊधन के फदन फहन बाई के हाथ ऩय याखी फाॉधती हैं ।

यऺाफॊधन के साथ फह बाई को अऩने सन्स्वाथा प्रेभ से फाॉधती है ।

बायतीम सॊस्कृ सत भें आज के बौसतकतावादी सभाज भें बोग औय स्वाथा भें सरद्ऱ त्रवद्व भें बी प्राम् सबी

सॊफॊधों भें सन्स्वाथा औय ऩत्रवि होता हैं ।

बायतीम सॊस्कृ सत सभग्र भानव जीवन को भहानता के दशान कयाने वारी सॊस्कृ सत हैं । बायतीम सॊस्कृ सत भें

स्त्री को केवर भाि बोगदासी न सभझकय उसका ऩूजन कयने वारी भहान सॊस्कृ सत हैं ।

फकन्तु आजका ऩढा सरखा आधुसनक व्मत्रि अऩने आऩको सुधया हुवा भानने वारे तथा ऩाद्ळात्म सॊस्कृ सत का

अॊधा अनुकयण कयके, स्त्री को सभानता फदराने वारी खोखरी बाषा फोरने वारों को ऩेहर बायत की ऩायॊ ऩरयक

सॊस्कृ सत को ऩूणा सभझ रेना ाफह की ऩाद्ळात्म सॊस्कृ सत से तो केवर सभानता फदराई हो ऩयॊ तु बायतीम सॊस्कृ सत

ने तो स्त्री का ऩूजन फकमा हैं ।.

एसे फह नहीॊ कहाजाता हैं ।

'मि नामास्तु ऩूज्मन्ते यभन्ते ति दे वता्।

बावाथा: जहाॉ स्त्री ऩूजी जाती है , उसका सम्भान होता है , वहाॉ दे व यभते हैं - वहाॉ दे वों का सनवास होता है ।' ऐसा

बगवान भनु का व न है ।

श्री कृ ष्णजन्भाद्शभी को बगवान श्री कृ ष्ण के जनभोत्स्व के रुऩ भें भनामा जाता है । बगवान श्रीकृ ष्ण के

बगवद गीता भें वत्णात उऩदे श ऩुयातन कार से ही फहन्द ु सॊस्कृ सत भें आदशा यहे हैं । जन्भाद्शभी का त्मौहाय ऩुये त्रवद्व

भें हषोल्रास एवॊ आस्था से भनामा जाता हैं ।

श्रीकृ ष्ण का जन्भ बाद्रऩद भाह की कृ ष्ण ऩऺ की अद्शभी को भध्मयात्रि को भथुया भें कायागृह भें हुवा। जैसे की इस

त्जन सभग्र सॊसाय के ऩारन कताा स्वमॊ अवतरयत हुएॊ थे। अत: इस फदन को कृ ष्ण जन्भाद्शभी के रूऩ भें भनाने की

ऩयॊ ऩया सफदमों से री आयही हैं ।

श्रीकृ ष्ण जन्भोत्सव के सरए दे श-दसु नमा के त्रवसबन्न कृ ष्ण भॊफदयों को त्रवशेष तौय ऩय सजामा जाता है ।

जन्भाद्शभी के फदन व्रती फायह फजे तक व्रत यखते हैं । इस फदन भॊफदयों भें बगवान श्री कृ ष्ण की त्रवसबन्न झाॊकीमाॊ

सजाई जाती है औय यासरीरा का आमोजन होता है । बगवान श्री कृ ष्ण की फार स्वरुऩ प्रसतभा को त्रवसबन्न शृॊगाय

साभग्रीमों से सुसत्ज्जत कय प्रसतभा को ऩारने भें स्थात्रऩत कय कृ ष्ण भध्मयािी को झूरा झुरामा जाता हैं ।

धभाशास्त्रों के जानकायों ने श्रीकृ ष्णजन्भाद्शभीका व्रत सनातन-धभाावरॊत्रफमों के सरए त्रवशेष भहत्व ऩूणा फतामा

है । इस फदन उऩवास यखने तथा अन्न का सेवन नहीॊ कयने का त्रवधान धभाशास्त्रों भें वत्णात हैं ।
गौतभीतॊिभें मह उल्रेख है -
उऩवास: प्रकताव्मोन बोिव्मॊकदा न।
कृ ष्णजन्भफदनेमस्तुबुड्क्िेसतुनयाधभ:।
सनवसेन्नयकेघोये मावदाबूतसम्प्रवभ ्॥
अथाात: अभीय-गयीफ सबी रोग मथाशत्रि-मथासॊबव उऩ ायों से मोगेद्वय कृ ष्ण का जन्भोत्सव भनाएॊ। जफ तक
उत्सव सम्ऩन्न न हो जाए तफ तक बोजन त्रफल्कुर न कयें । जो वैष्णव कृ ष्णाद्शभी के फदन बोजन कयता है , वह
सनद्ळम ही नयाधभ है । उसे प्ररम होने तक घोय नयक भें यहना ऩडता है ।
इसी सरए जन्भाद्शभी के फदन बगवान श्रीकृ ष्ण की प्रसतभा का त्रवसध-त्रवधान से ऩूजन इत्माफद कयने का
त्रवशेष भहत्व सनातन धभा भें यहा हैं । धभाग्रॊथों भें जन्भाद्शभी की यात्रि भें जागयण का त्रवधान बी फतामा गमा है ।
त्रवद्रानों का भत हैं की कृ ष्णाद्शभी की यात भें बगवान श्रीकृ ष्ण के नाभ का सॊकीतान इत्माफद कयने से बि को
श्रीकृ ष्ण की त्रवशेष कृ ऩा प्रासद्ऱ होती हैं । धभाग्रॊथों भें जन्भाद्शभी के व्रत भें ऩूये फदन उऩवास यखने का सनमभ है , ऩयॊ तु
इसभें असभथा रोग पराहाय कय सकते हैं ।
बत्रवष्मऩुयाण भें उल्रेख हैं
त्जस याद्स मा प्रदे श भें मह व्रत-उत्सव त्रवसध-त्रवधान से भनामा जाता है , वहाॊ ऩय प्राकृ सतक प्रकोऩ मा
भहाभायी इत्माफद नहीॊ होती। भेघ ऩमााद्ऱ वषाा कयते हैं तथा पसर खूफ होती है । जनता सुख-सभृत्रद्च प्राद्ऱ कयती है ।
इस व्रत के अनुद्षान से सबी व्रतीमों को ऩयभ श्रेम की प्रासद्ऱ होती है । व्रत कताा बगवत्कृ ऩा का बागी फनकय इस
रोक भें सफ सुख बोगता है औय अन्त भें वैकुॊठ जाता है । कृ ष्णाद्शभी का व्रत कयने वारे के सबी प्रकाय क्रेश दयू
हो जाते हैं । उसका दख
ु -दरयद्रता से उद्चाय होता है ।

इस भाससक ई-ऩत्रिका भें सॊफॊसधत जानकायीमों के त्रवषम भें साधक एवॊ त्रवद्रान ऩाठको से अनुयोध हैं , मफद
दशाामे गए भॊि, द्ऴोक, मॊि, साधना एवॊ उऩामों मा अन्म जानकायी के राब, प्रबाव इत्मादी के सॊकरन, प्रभाण ऩढ़ने,
सॊऩादन भें, फडजाईन भें, टाईऩीॊग भें, त्रप्रॊफटॊ ग भें, प्रकाशन भें कोई िुफट यह गई हो, तो उसे स्वमॊ सुधाय रें मा फकसी
मोग्म ज्मोसतषी, गुरु मा त्रवद्रान से सराह त्रवभशा कय रे । क्मोफक त्रवद्रान ज्मोसतषी, गुरुजनो एवॊ साधको के सनजी
अनुबव त्रवसबन्न भॊि, द्ऴोक, मॊि, साधना, उऩाम के प्रबावों का वणान कयने भें बेद होने ऩय काभना ससत्रद्च हे तु फक
जाने वारी वारी ऩूजन त्रवसध एवॊ उसके प्रबावों भें सबन्नता सॊबव हैं ।

आऩको एवॊ आऩके ऩरयवाय के सबी सदस्मों को गुरुत्व कामाारम


ऩरयवाय की औय से हाफदा क शुबकाभनाएॊ ..
आऩका जीवन सुखभम, भॊगरभम हो बगवान श्रीकृ ष्ण की कृ ऩा आऩके
ऩरयवाय ऩय फनी यहे । बगवान श्रीकृ ष्ण से महीॊ प्राथना हैं …
जैन फॊधु/फहनों कओ ऩमूष
ा ण भहाऩवा की अनेक-अनेक शुबकाभनाएॊ।
गुरुत्व कामाारम की औय से सबी को "सभच्छाभी दक्
ु कडभ ्"
स ॊतन जोशी
e गुरुत्व ज्मोसतष 6 अगस्त 2020 | अॊक 1

***** भाससक ई-ऩत्रिका से सॊफॊसधत सू ना *****


 ई-ऩत्रिका भें प्रकासशत सबी रेख गुरुत्व कामाारम के असधकायों के साथ ही आयत्ऺत हैं ।
 ई-ऩत्रिका भें वत्णात रेखों को नात्स्तक/अत्रवद्वासु व्मत्रि भाि ऩठन साभग्री सभझ सकते हैं ।
 ई-ऩत्रिका भें प्रकासशत रेख आध्मात्भ से सॊफॊसधत होने के कायण बायसतम धभा शास्त्रों से प्रेरयत होकय प्रस्तुत
फकमा गमा हैं ।
 ई-ऩत्रिका भें प्रकासशत रेख से सॊफॊसधत फकसी बी त्रवषमो फक सत्मता अथवा प्राभात्णकता ऩय फकसी बी
प्रकाय की त्जन्भेदायी कामाारम मा सॊऩादक फक नहीॊ हैं ।
 ई-ऩत्रिका भें प्रकासशत जानकायीकी प्राभात्णकता एवॊ प्रबाव की त्जन्भेदायी कामाारम मा सॊऩादक की नहीॊ हैं
औय ना हीॊ प्राभात्णकता एवॊ प्रबाव की त्जन्भेदायी के फाये भें जानकायी दे ने हे तु कामाारम मा सॊऩादक फकसी
बी प्रकाय से फाध्म हैं ।
 ई-ऩत्रिका भें प्रकासशत रेख से सॊफॊसधत रेखो भें ऩाठक का अऩना त्रवद्वास होना आवश्मक हैं । फकसी बी
व्मत्रि त्रवशेष को फकसी बी प्रकाय से इन त्रवषमो भें त्रवद्वास कयने ना कयने का अॊसतभ सनणाम स्वमॊ का होगा।
 ई-ऩत्रिका भें प्रकासशत रेख से सॊफॊसधत फकसी बी प्रकाय की आऩत्ती स्वीकामा नहीॊ होगी।
 ई-ऩत्रिका भें प्रकासशत रेख हभाये वषो के अनुबव एवॊ अनुशध
ॊ ान के आधाय ऩय फदए गमे हैं । हभ फकसी बी
व्मत्रि त्रवशेष द्राया प्रमोग फकमे जाने वारे धासभाक, एवॊ भॊि- मॊि मा अन्म प्रमोग मा उऩामोकी त्जन्भेदायी
नफहॊ रेते हैं । मह त्जन्भेदायी भॊि- मॊि मा अन्म उऩामोको कयने वारे व्मत्रि फक स्वमॊ फक होगी।
 क्मोफक इन त्रवषमो भें नैसतक भानदॊ डों, साभात्जक, कानूनी सनमभों के त्खराप कोई व्मत्रि मफद नीजी स्वाथा
ऩूसता हे तु प्रमोग कताा हैं अथवा प्रमोग के कयने भे िुफट होने ऩय प्रसतकूर ऩरयणाभ सॊबव हैं ।
 ई-ऩत्रिका भें प्रकासशत रेख से सॊफॊसधत जानकायी को भाननने से प्राद्ऱ होने वारे राब, राब की हानी मा
हानी की त्जन्भेदायी कामाारम मा सॊऩादक की नहीॊ हैं ।
 हभाये द्राया प्रकासशत फकमे गमे सबी रेख, जानकायी एवॊ भॊि-मॊि मा उऩाम हभने सैकडोफाय स्वमॊ ऩय एवॊ
अन्म हभाये फॊधग
ु ण ऩय प्रमोग फकमे हैं त्जस्से हभे हय प्रमोग मा कव , भॊि-मॊि मा उऩामो द्राया सनत्द्ळत
सपरता प्राद्ऱ हुई हैं ।
 ई-ऩत्रिका भें गुरुत्व कामाारम द्राया प्रकासशत सबी उत्ऩादों को केवर ऩाठको की जानकायी हे तु फदमा गमा हैं ,
कामाारम फकसी बी ऩाठक को इन उत्ऩादों का क्रम कयने हे तु फकसी बी प्रकाय से फाध्म नहीॊ कयता हैं । ऩाठक
इन उत्ऩादों को कहीॊ से बी क्रम कयने हे तु ऩूणत
ा ् स्वतॊि हैं ।

असधक जानकायी हे तु आऩ कामाारम भें सॊऩका कय सकते हैं ।


(सबी त्रववादो केसरमे केवर बुवनेद्वय न्मामारम ही भान्म होगा।)

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हभ e
अफ फेनाभी उऩमोगकताा
ओॊ के सरए
गुरुत्व ज्मोसतष
7 अगस्त 2020 | अॊक 1

गुरुत्व ज्मोसतष ई-ऩत्रिका को भुफ्त


डाउनरोड कयने कीसेवा फॊद कय यहे हैं ।
जीके प्रीसभमभ सदस्मता प्राद्ऱ कयें ।
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औय हभायी गुरुत्व ज्मोसतष ई-ऩत्रिका के आज तक प्रकासशत सबी अॊको
को सदस्मता की सभम अवसध के दौयान सयरता से डाउनरोड कयने की
अनुभसत प्राद्ऱ कय सकते हैं । हभ जीके प्रीसभमभ सदस्म ऩत्रिका के साथ
हभ अन्म त्रवसबन्न कई प्रकाय के असीसभत राब प्रदान कय यहे हैं । साथ
ही स्ऩेशर ऑपय के अॊतगात आगाभी (फदसम्फय-2020 तक के) प्रकासशत
होने वारे गुरुत्व ज्मोसतष ई-ऩत्रिका के सबी सॊस्कयणों को सयरता से
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e गुरुत्व ज्मोसतष 8 अगस्त 2020 | अॊक 1

अगस्त 2020 भाससक ऩॊ ाॊग


ॊद्र
वाय भाह ऩऺ सतसथ सभासद्ऱ नऺि सभासद्ऱ मोग सभासद्ऱ कयण सभासद्ऱ सभासद्ऱ
फद यासश

1
शसन श्रावण शुक्र िमोदशी 22:01 भूर 06:48 वैधसृ त 09:15 कौरव 10:24 धनु -

2
यत्रव श्रावण शुक्र तुदाशी 21:32 ऩूवााषाढ़ 06:52 त्रवषकुॊब 07:46 गय 09:44 धनु 17:05

3
सोभ श्रावण शुक्र ऩूत्णाभा 21:28 उत्तयाषाढ़ 07:18 प्रीसत 06:36 त्रवत्रद्श 09:27 भकय -

4
भॊगर बाद्रऩद कृ ष्ण प्रसतऩदा 21:51 श्रवण 08:10 सौबाग्म 29:18 फारव 09:36 भकय 18:38

5
फुध बाद्रऩद कृ ष्ण फद्रतीमा 22:43 धसनद्षा 09:30 शोबन 29:13 तैसतर 10:13 कुॊब -

6
गुरु बाद्रऩद कृ ष्ण तृतीमा 24:03 शतसबषा 11:17 असतगॊड 29:31 वत्णज 11:19 कुॊब -

7
शुक्र बाद्रऩद कृ ष्ण तुथॉ 25:51 ऩूवााबाद्रऩद 13:33 सुकभाा - फव 12:54 कुॊब 20:29

8
शसन बाद्रऩद कृ ष्ण ऩॊ भी 28:10 उत्तयाबाद्रऩद 16:11 सुकभाा 06:07 कौरव 14:54 भीन -

9
यत्रव बाद्रऩद कृ ष्ण षद्षी - ये वसत 19:05 धृसत 06:59 गय 17:12 भीन 21:36

10
सोभ बाद्रऩद कृ ष्ण षद्षी 06:24 अत्द्वनी 22:05 शूर 07:57 वत्णज 06:24 भेष -

11
भॊगर बाद्रऩद कृ ष्ण सद्ऱभी 08:47 बयणी 24:56 गॊड 08:55 फव 08:47 भेष -

12
फुध बाद्रऩद कृ ष्ण अद्शभी 10:57 कृ सतका 27:26 वृत्रद्च 09:40 कौरव 10:57 भेष 23:26

13
गुरु बाद्रऩद कृ ष्ण नवभी 12:40 योफहत्ण 29:21 ध्रुव 10:05 गय 12:40 वृष -

14
शुक्र बाद्रऩद कृ ष्ण दशभी 13:46 भृगसशया - व्माघात 09:59 त्रवत्रद्श 13:46 वृष 00:09

15
शसन बाद्रऩद कृ ष्ण एकादशी 14:07 भृगसशया 06:35 हषाण 09:19 फारव 14:07 सभथुन -

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e गुरुत्व ज्मोसतष 9 अगस्त 2020 | अॊक 1

16
यत्रव बाद्रऩद कृ ष्ण द्रादशी 13:41 आद्रा 07:02 वज्र 08:00 तैसतर 13:41 सभथुन 01:51

17
सोभ बाद्रऩद कृ ष्ण िमोदशी 12:29 ऩुनवासु 06:43 ससत्रद्च 06:04 वत्णज 12:29 कका -

18 ऩुष्म- 5:44-
भॊगर बाद्रऩद कृ ष्ण तुदाशी 10:36 वरयमान 24:35 शकुसन 10:36 कका 03:51
आद्ऴेषा 28:07

19 अभावस्मा 08:11 नाग


फुध बाद्रऩद कृ ष्ण - भघा 26:6 ऩरयघ 21:13 08:11 ससॊह -
- प्रसतऩदा 29:22

20
गुरु बाद्रऩद शुक्र फद्रतीमा 26:18 ऩूवाापाल्गुनी 23:50 सशव 17:37 फारव 15:51 ससॊह 05:58

21
शुक्र बाद्रऩद शुक्र तृतीमा 23:11 उत्तयापाल्गुनी 21:28 ससत्रद्च 13:54 तैसतर 12:45 कन्मा -

22
शसन बाद्रऩद शुक्र तुथॉ 20:07 हस्त 19:10 साध्म 10:12 वत्णज 09:38 कन्मा -

23
यत्रव बाद्रऩद शुक्र ऩॊ भी 17:17 स िा 17:05 शुब 06:37 फव 06:40 कन्मा 09:02

24
सोभ बाद्रऩद शुक्र षद्षी 14:45 स्वाती 15:20 ब्रह्म 24:15 तैसतर 14:45 तुरा -

25
भॊगर बाद्रऩद शुक्र सद्ऱभी - 12:37 त्रवशाखा 13:58 इन्द्र 21:35 वत्णज 12:37 तुरा 11:05

26
फुध बाद्रऩद शुक्र अद्शभी 10:55 अनुयाधा 13:03 वैधसृ त 19:18 फव 10:55 वृत्द्ळक -

27
गुरु बाद्रऩद शुक्र नवभी 09:40 जेद्षा 12:36 त्रवषकुॊब 17:23 कौरव 09:40 वृत्द्ळक 13:07

28
शुक्र बाद्रऩद शुक्र दशभी 08:53 भूर 12:37 प्रीसत 15:51 गय 08:53 धनु -

29
शसन बाद्रऩद शुक्र एकादशी 08:30 ऩूवााषाढ़ 13:02 आमुष्भान 14:40 त्रवत्रद्श 08:30 धनु 15:00

30
यत्रव बाद्रऩद शुक्र द्रादशी 08:32 उत्तयाषाढ़ 13:51 सौबाग्म 13:48 फारव 08:32 भकय -

31
सोभ बाद्रऩद शुक्र िमोदशी 08:56 श्रवण 15:03 शोबन 13:15 तैसतर 08:56 भकय 16:35

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e गुरुत्व ज्मोसतष 10 अगस्त 2020 | अॊक 1

अगस्त 2020 भाससक व्रत-ऩवा-त्मौहाय


फद वाय भाह ऩऺ सतसथ सभासद्ऱ प्रभुख व्रत-त्मोहाय

1 शसन श्रावण शुक्र िमोदशी 22:01 शसन प्रदोष व्रत, आखेटक िमोदशी (ओड़ी),

2 यत्रव श्रावण शुक्र तुदाशी 21:32 सशवऩत्रविायोऩण तुदाशी

स्नान-दान-व्रत हे तु उत्तभ श्रावणी ऩूत्णाभा, ऩूत्णाभा व्रत, यऺाफॊधन


(याखी), वैफदक उऩाकभा (श्रावणी), सॊस्कृ त फदवस, श्रीसत्मनायामण कथा-
ऩूजा, फरबद्र ऩूजा, कुरधभा-कृ त्म, श्रीअभयनाथ त्रवशेष दशान 2 फदन,
3 सोभ श्रावण शुक्र ऩूत्णाभा 21:28
झूरनमािा सभाऩन, कोफकरा व्रत ऩूण,ा नायमरी ऩूत्णाभा, रव-कुश
जमॊती, श्रीदाऊजी एवॊ ये वती भाता का बव्म शृग
ॊ ाय (ब्रज), फृहस्ऩसत
भहाऩूजा, गामिी जमॊती, गामिी ऩुयद्ळयण प्रायॊ ब

बाद्रऩद भें ातुभाास के व्रती हे तु दही वत्जात, श्रीभहारक्ष्भी व्रत-ऩूजा,


4 भॊगर बाद्रऩद कृ ष्ण प्रसतऩदा 21:51
अशून्मशमन व्रत, फहॊ डोरा सभाद्ऱ,

5 फुध बाद्रऩद कृ ष्ण फद्रतीमा 22:43 त्रवॊध्मा री बीभ ण्डी जमॊती,

कज्जरी (कजयी) तीज, तीजड़ी (ससन्धी), फूढ़ी तीज, गोऩूजा तृतीमा,


6 गुरु बाद्रऩद कृ ष्ण तृतीमा 24:03
सातूड़ी तीज,

7 शुक्र बाद्रऩद कृ ष्ण तुथॉ 25:51 सॊकद्शी श्रीगणेश तुथॉ व्रत ( ॊ.उ.या.9.37), फहुरा तुथॉ,

श्रीभहाकार सवायी (उज्जैन), नागऩॊ भी (गुज), गोगा ऩॊ भी,


8 शसन बाद्रऩद कृ ष्ण ऩॊ भी 28:10
यऺाऩॊ भी (उड़ी),

9 यत्रव बाद्रऩद कृ ष्ण षद्षी - हरषद्षी व्रत (ररही छठ), म्ऩाषद्षी, याॊधण छठ (गुज), ॊद्रषद्षी व्रत,

10 सोभ बाद्रऩद कृ ष्ण षद्षी 06:24 शीतरा सद्ऱभी, ठॊ डयी का ऩूजन,

11 भॊगर बाद्रऩद कृ ष्ण सद्ऱभी 08:47 श्रीकृ ष्णावताय अद्शभी व्रत (स्भाता ), काराद्शभी व्रत, भोहयात्रि,

श्रीकृ ष्ण-जन्भाद्शभी व्रत (वैष्णव), गोकुराद्शभी श्रीकृ ष्ण का जन्भोत्सव,


12 फुध बाद्रऩद कृ ष्ण अद्शभी 10:57
नन्दोत्सव दसध काॊदौ, सॊत ऻानेद्वय जमॊती

13 गुरु बाद्रऩद कृ ष्ण नवभी 12:40 गोगा नवभी

14 शुक्र बाद्रऩद कृ ष्ण दशभी 13:46

15 शसन बाद्रऩद कृ ष्ण एकादशी 14:07 स्वतॊिता फदवस, अजा (जमा) एकादशी व्रत, गोवत्स द्रादशी,

प्रदोष व्रत, कसरमुगाफद सतसथ, ससॊह-सॊक्रात्न्त, सॊक्रात्न्त का भहाऩुण्म


कार सॊध्मा 04:48 से 06:59 यात फजे तक (2 घण्टे 11 सभनट),
16 यत्रव बाद्रऩद कृ ष्ण द्रादशी 13:41
का ऩुण्म कार दोऩहय 12:25 से 06:59 यात फजे तक (6 घण्टे 34
सभनट) , द्वेताॊफय जैन ऩमुष
ा ण ऩवा प्रायॊ ब,

17 सोभ बाद्रऩद कृ ष्ण िमोदशी 12:29 भाससक सशवयात्रि व्रत, अघोय तुदाशी,

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e गुरुत्व ज्मोसतष 11 अगस्त 2020 | अॊक 1

श्राद्च हे तु उत्तभ बाद्रऩदी अभावस्मा, कुशोत्ऩाटनी (कुशग्रहणी) अभावस,


18 भॊगर बाद्रऩद कृ ष्ण तुदाशी 10:36
त्रऩठौयी अभावस,

अभावस्मा - 08:11 -
19 फुध बाद्रऩद कृ ष्ण स्नान-दान हे तु उत्तभ बाद्रऩदी अभावस्मा,
प्रसतऩदा 29:22

20 गुरु बाद्रऩद शुक्र फद्रतीमा 26:18 नवीन ॊद्र-दशान,

हरयतासरका तीज व्रत, फड़ी तीज, वायाहावताय जमॊती, गौयी तृतीमा व्रत,
21 शुक्र बाद्रऩद शुक्र तृतीमा 23:11
केवड़ा तीज, गौयी तीज (ओड़ीसा), त्रिरोक तीज

ससत्रद्चत्रवनामक तुथॉ व्रत ( ॊ.अ.या. 8.41), श्रीगणेशोत्सव 11 फदन,


श्रीकृ ष्ण-करॊकनी तुथॉ, शास्त्रोि भत से आज के फदन ॊद्रभा का
22 शसन बाद्रऩद शुक्र तुथॉ 20:07 दशान सवाथा सनत्रषद्च, ऩत्थय (ढे रा) ौथ, ौठ द्र
ॊ (सभसथ.), सौबाग्म
तुथॉ (ऩ.फॊ), सशवा तुथॉ, सयस्वती ऩूजा (ओड़ीसा), रक्ष्भी ऩूजा, जैन
सॊवत्सयी ( तुथॉ ऩऺ) (द्वेताॊफय जैन), भूरसूिवाॊ न (द्वेताॊफय जैन),

ऋत्रषऩॊ भी-भध्माह्न भें सद्ऱत्रषा ऩूजन, गगा एवॊ अॊसगया ऋत्रष जमॊती,
आकाश ऩॊ भी (जैन), जैन सॊवत्सयी (ऩॊ भी ऩऺ), गुरु ऩॊ भी
23 यत्रव बाद्रऩद शुक्र ऩॊ भी 17:17
(ओड़ीसा), यऺाऩॊ भी (ऩ.फॊ), बायतेंद ु जमॊती, दशरऺण व्रत 10 फदन
एवॊ ऩुष्ऩाॊजसर व्रत 5 फदन (फदगॊफय जैन), आकाश ऩॊ भी (जैन),

सूमष
ा द्षी व्रत, रोराका षद्षी (काशी), फरदे व छठ-श्रीफरयाभ जमॊती
24 सोभ बाद्रऩद शुक्र षद्षी 14:45 भहोत्सव (ब्रज), रसरता षद्षी, भॊथन षद्षी (ऩ.फॊ), स्कन्द कुभाय षद्षी
व्रत, सोभनाथ व्रत (ओड़ीसा), ॊदनषद्षी (जैन),

भुिाबयण सद्ऱभी व्रत, सॊतान सद्ऱभी व्रत, रसरता सद्ऱभी (ऩ.फॊ-


ओड़ीसा), नवाखाई, अऩयात्जता ऩूजा, ज्मेद्षानऺि भें ज्मेद्षागौयी का
25 भॊगर बाद्रऩद शुक्र सद्ऱभी - 12:37 ऩूजन, भहारक्ष्भी व्रत-अनुद्षान प्रायॊ ब ( ॊद्रोदम कारीन अद्शभी भें), सूमा
सामन तुरायासश भें यात्रि 8.19 फजे, शयद् सम्ऩात, भहात्रवषुव फदवस,
सूमा दत्ऺणी गोराद्र्ध भें, सनदोष-शीरसद्ऱभी (फदगॊफय जैन),

श्रीदग
ु ााद्शभी व्रत, श्रीअन्नऩूणााद्शभी व्रत, श्रीयाधाद्शभी व्रतोत्सव (फयसाना-
26 फुध बाद्रऩद शुक्र अद्शभी 10:55 भथुया), दधीस जमॊती, भहायत्रववाय व्रत, भूर नऺि भें ज्मेद्षागौयी का
त्रवसजान, सन:शल्म अद्शभी (फदग.जैन), दफ
ु री आठभ (द्वेत.जैन),

श्रीभद्भागवत जमॊती-सद्ऱाह प्रायॊ ब, नन्दानवभी, अदख


ु नवभी, श्री द्र

27 गुरु बाद्रऩद शुक्र नवभी 09:40
जमॊती, तर नवभी (ऩ.फॊ- ओड़ीसा),

28 शुक्र बाद्रऩद शुक्र दशभी 08:53 दशावताय व्रत, तेजा दशभी, सुगन्ध दशभी (जैन), भहायत्रववाय व्रत

जर झूरनी एकादशी, ऩद्मा एकादशी, ऩाद्वा ऩरयवतानी एकादशी,


29 शसन बाद्रऩद शुक्र एकादशी 08:30
ऩरयवसतानी एकादशी, धभाा-कभाा एकादशी, डोर ग्मायस (भ.प्रदे श),

द्रादशी व्रत, श्रीवाभन अवताय जमॊती, बुवनेद्वयी भहात्रवद्या जमॊती,


30 यत्रव बाद्रऩद शुक्र द्रादशी 08:32 श्माभफाफा द्रादशी, गोवत्स द्रादशी, फछवायस (याज.), श्रवण द्रादशी,
इन्द्रऩूजा प्रायॊ ब, वाभन जमॊती,

31 सोभ बाद्रऩद शुक्र िमोदशी 08:56 प्रदोष व्रत, गोत्रियाि व्रत प्रायॊ ब, यत्निम व्रत 3 फदन (फदगॊफय जैन)

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e गुरुत्व ज्मोसतष 12 अगस्त 2020 | अॊक 1

अगस्त 2020 -त्रवशेष मोग


कामा ससत्रद्च मोग
02 सुफह 06:52 से अगरे फदन सुफह 05:44 तक 18 प्रात: 05:52 से अगरे फदन प्रात: 04:08 तक
03 सुफह 07:19 से अगरे फदन सुफह 05:44 तक 26 सुफह 05:56 से दोऩहय 01:04 तक
09 यात 07:07 से अगरे फदन प्रात: 05:48 तक 30 सुफह 05:58 से दोऩहय 01:52 तक
12 यात 12:57 से अगरे फदन प्रात: 05:49 तक 31 सुफह 05:59 से दोऩहय 03:04 तक
17 प्रात: 06:44 से अगरे फदन प्रात: 05:44 तक
त्रिऩुष्कय मोग (तीन गुना पर दामक)
16 सुफह 07:03 से दोऩहय 01:50 तक 29 01:03 सेअगरे फदन प्रात: 05:48 तक
25 सुफह 05:56 से दोऩहय 12:22 तक 30 सुफह 05:58 से सुफह 08:21 तक
फद्रऩुष्कय मोग (दोगुना पर दामक)
04 यात 09:54 से अगरे फदन प्रात:05:45 तक
त्रवघ्नकायक बद्रा
02 यात 09:28 से अगरे फदन सुफह 09:25 तक 17 दोऩहय 12:35 से दे य यात 11: 42 तक
06 दोऩहय 11:29 से दे य यात 12:14 तक 22 सुफह 09:28 से यात 07:57 तक
10 सुफह 06:42 से यात 07:55 तक 25 दोऩहय 12:21 से दे य यात 11:27 तक
14 दे य यात 01:35 से दोऩहय 02:01 तक, 28 यात 08:24 से अगरे फदन सुफह 08:17 तक

मोग पर :
 कामा ससत्रद्च मोग भे फकमे गमे शुब कामा भे सनत्द्ळत सपरता प्राद्ऱ होती हैं , एसा शास्त्रोि व न हैं ।

 त्रिऩुष्कय मोग भें फकमे गमे शुब कामो का राब तीन गुना होता हैं । एसा शास्त्रोि व न हैं ।

 फद्रऩुष्कय मोग भें फकमे गमे शुब कामो का राब दोगुना होता हैं । एसा शास्त्रोि व न हैं ।

 अभृत ससत्रद्च मोग अत्मॊत शुब मोग भें सबी प्रकाय के शुब कामा फकए जा सकते हैं ।

 शास्त्रोंि भत से त्रवघ्नकायक बद्रा मोग भें शुब कामा कयना वत्जात हैं ।

दै सनक शुब एवॊ अशुब सभम ऻान तासरका


गुसरक कार (शुब) मभ कार (अशुब) याहु कार (अशुब)
वाय सभम अवसध सभम अवसध सभम अवसध
यत्रववाय 03:00 से 04:30 12:00 से 01:30 04:30 से 06:00
सोभवाय 01:30 से 03:00 10:30 से 12:00 07:30 से 09:00
भॊगरवाय 12:00 से 01:30 09:00 से 10:30 03:00 से 04:30
फुधवाय 10:30 से 12:00 07:30 से 09:00 12:00 से 01:30
गुरुवाय 09:00 से 10:30 06:00 से 07:30 01:30 से 03:00
शुक्रवाय 07:30 से 09:00 03:00 से 04:30 10:30 से 12:00
शसनवाय 06:00 से 07:30 01:30 से 03:00 09:00 से 10:30

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e गुरुत्व ज्मोसतष 13 अगस्त 2020 | अॊक 1

फदन के ौघफडमे
सभम यत्रववाय सोभवाय भॊगरवाय फुधवाय गुरुवाय शुक्रवाय शसनवाय

06:00 से 07:30 उद्रे ग अभृत योग राब शुब र कार


07:30 से 09:00 र कार उद्रे ग अभृत योग राब शुब
09:00 से 10:30 राब शुब र कार उद्रे ग अभृत योग
10:30 से 12:00 अभृत योग राब शुब र कार उद्रे ग
12:00 से 01:30 कार उद्रे ग अभृत योग राब शुब र
01:30 से 03:00 शुब र कार उद्रे ग अभृत योग राब
03:00 से 04:30 योग राब शुब र कार उद्रे ग अभृत
04:30 से 06:00 उद्रे ग अभृत योग राब शुब र कार

यात के ौघफडमे
सभम यत्रववाय सोभवाय भॊगरवाय फुधवाय गुरुवाय शुक्रवाय शसनवाय

06:00 से 07:30 शुब र कार उद्रे ग अभृत योग राब


07:30 से 09:00 अभृत योग राब शुब र कार उद्रे ग
09:00 से 10:30 र कार उद्रे ग अभृत योग राब शुब
10:30 से 12:00 योग राब शुब र कार उद्रे ग अभृत
12:00 से 01:30 कार उद्रे ग अभृत योग राब शुब र
01:30 से 03:00 राब शुब र कार उद्रे ग अभृत योग
03:00 से 04:30 उद्रे ग अभृत योग राब शुब र कार
04:30 से 06:00 शुब र कार उद्रे ग अभृत योग राब

शास्त्रोि भत के अनुसाय मफद फकसी बी कामा का प्रायॊ ब शुब भुहूता मा शुब सभम ऩय फकमा जामे तो
कामा भें सपरता प्राद्ऱ होने फक सॊबावना ज्मादा प्रफर हो जाती हैं । इस सरमे दै सनक शुब सभम ौघफड़मा
दे खकय प्राद्ऱ फकमा जा सकता हैं ।

नोट: प्राम् फदन औय यात्रि के ौघफड़मे फक सगनती क्रभश् सूमोदम औय सूमाास्त से फक जाती हैं । प्रत्मेक ौघफड़मे
फक अवसध 1 घॊटा 30 सभसनट अथाात डे ढ़ घॊटा होती हैं । सभम के अनुसाय ौघफड़मे को शुबाशुब तीन बागों भें
फाॊटा जाता हैं , जो क्रभश् शुब, भध्मभ औय अशुब हैं ।

ौघफडमे के स्वाभी ग्रह * हय कामा के सरमे शुब/अभृत/राब का


शुब ौघफडमा भध्मभ ौघफडमा अशुब ौघफड़मा ौघफड़मा उत्तभ भाना जाता हैं ।
ौघफडमा स्वाभी ग्रह ौघफडमा स्वाभी ग्रह ौघफडमा स्वाभी ग्रह
शुब गुरु य शुक्र उद्बेग सूमा * हय कामा के सरमे र/कार/योग/उद्वेग
अभृत द्र
ॊ भा कार शसन का ौघफड़मा उस त नहीॊ भाना जाता।
राब फुध योग भॊगर

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e गुरुत्व ज्मोसतष 14 अगस्त 2020 | अॊक 1

फदन फक होया - सूमोदम से सूमाास्त तक


वाय 1.घॊ 2.घॊ 3.घॊ 4.घॊ 5.घॊ 6.घॊ 7.घॊ 8.घॊ 9.घॊ 10.घॊ 11.घॊ 12.घॊ

यत्रववाय सूमा शुक्र फुध ॊद्र शसन गुरु भॊगर सूमा शुक्र फुध ॊद्र शसन
सोभवाय ॊद्र शसन गुरु भॊगर सूमा शुक्र फुध ॊद्र शसन गुरु भॊगर सूमा
भॊगरवाय भॊगर सूमा शुक्र फुध ॊद्र शसन गुरु भॊगर सूमा शुक्र फुध ॊद्र
फुधवाय फुध ॊद्र शसन गुरु भॊगर सूमा शुक्र फुध ॊद्र शसन गुरु भॊगर
गुरुवाय गुरु भॊगर सूमा शुक्र फुध ॊद्र शसन गुरु भॊगर सूमा शुक्र फुध
शुक्रवाय शुक्र फुध ॊद्र शसन गुरु भॊगर सूमा शुक्र फुध ॊद्र शसन गुरु
शसनवाय शसन गुरु भॊगर सूमा शुक्र फुध ॊद्र शसन गुरु भॊगर सूमा शुक्र

यात फक होया – सूमाास्त से सूमोदम तक


यत्रववाय गुरु भॊगर सूमा शुक्र फुध ॊद्र शसन गुरु भॊगर सूमा शुक्र फुध
सोभवाय शुक्र फुध ॊद्र शसन गुरु भॊगर सूमा शुक्र फुध ॊद्र शसन गुरु
भॊगरवाय शसन गुरु भॊगर सूमा शुक्र फुध ॊद्र शसन गुरु भॊगर सूमा शुक्र
फुधवाय सूमा शुक्र फुध ॊद्र शसन गुरु भॊगर सूमा शुक्र फुध ॊद्र शसन
गुरुवाय ॊद्र शसन गुरु भॊगर सूमा शुक्र फुध ॊद्र शसन गुरु भॊगर सूमा
शुक्रवाय भॊगर सूमा शुक्र फुध ॊद्र शसन गुरु भॊगर सूमा शुक्र फुध ॊद्र
शसनवाय फुध ॊद्र शसन गुरु भॊगर सूमा शुक्र फुध ॊद्र शसन गुरु भॊगर
होया भुहूता को कामा ससत्रद्च के सरए ऩूणा परदामक एवॊ अ क
ू भाना जाता हैं , फदन-यात के २४ घॊटों भें शुब-अशुब
सभम को सभम से ऩूवा ऻात कय अऩने कामा ससत्रद्च के सरए प्रमोग कयना ाफहमे।

त्रवद्रानो के भत से इत्च्छत कामा ससत्रद्च के सरए ग्रह से सॊफॊसधत होया का न


ु ाव कयने से त्रवशेष राब
प्राद्ऱ होता हैं ।
 सूमा फक होया सयकायी कामो के सरमे उत्तभ होती हैं ।

 द्र
ॊ भा फक होया सबी कामों के सरमे उत्तभ होती हैं ।

 भॊगर फक होया कोटा -क ेयी के कामों के सरमे उत्तभ होती हैं ।

 फुध फक होया त्रवद्या-फुत्रद्च अथाात ऩढाई के सरमे उत्तभ होती हैं ।

 गुरु फक होया धासभाक कामा एवॊ त्रववाह के सरमे उत्तभ होती हैं ।

 शुक्र फक होया मािा के सरमे उत्तभ होती हैं ।

 शसन फक होया धन-द्रव्म सॊफॊसधत कामा के सरमे उत्तभ होती हैं ।

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e गुरुत्व ज्मोसतष 15 अगस्त 2020 | अॊक 1

बायतीम सॊस्कृ सत भें याखी ऩूत्णाभा का भहत्व


 सॊकरन गुरुत्व कामाारम
यऺाफॊधन- यऺाफॊधन अथाातप्रे् भ का फॊधन। क्मोफक यऺाफॊधन के तौहाय को दृत्रद्श ऩरयवतान के उद्ङे श्म
यऺाफॊधन के फदन फहन बाई के हाथ ऩय याखी फाॉधती से फनामा गमा हो?
हैं । यऺाफॊधन के साथ फह बाई को अऩने सन्स्वाथा प्रेभ फहन द्राया याखी हाथ ऩय फॊधते ही बाई की दृत्रद्श
से फाॉधती है । फदर जाए। याखी फाॉधने वारी फहन की ओय वह त्रवकृ त
बायतीम सॊस्कृ सत भें आज के बौसतकतावादी दृत्रद्श न दे खे, एवॊ अऩनी फहन का यऺण बी वह स्वमॊ
सभाज भें बोग औय स्वाथा भें सरद्ऱ त्रवद्व भें बी प्राम् कये । त्जस्से फहन सभाज भें सनबाम होकय घूभ सके।
सबी सॊफॊधों भें सन्स्वाथा औय ऩत्रवि होता हैं । त्रवकृ त दृत्रद्श एवॊ भानससकता वारे रोग उसका भजाक
बायतीम सॊस्कृ सत सभग्र भानव जीवन को उड़ाकय नी वृत्रत्त वारे रोगो को दॊ ड दे कय सफक ससखा
भहानता के दशान कयाने वारी सॊस्कृ सत हैं । बायतीम सके हैं ।
सॊस्कृ सत भें स्त्री को केवर भाि बोगदासी न सभझकय बाई को याखी फाॉधने से ऩहरे फहन उसके भत्स्तष्क ऩय
उसका ऩूजन कयने वारी भहान सॊस्कृ सत हैं । सतरक कयती हैं । उस सभम फहन बाई के भत्स्तष्क की
फकन्तु आजका ऩढा सरखा ऩूजा नहीॊ अत्रऩतु बाई के शुद्च त्रव ाय
आधुसनक व्मत्रि अऩने आऩको औय फुत्रद्च को सनभार कयने हे तु
सुधया हुवा भानने वारे तथा फकमा जाता हैं , सतरक रगाने
ऩाद्ळात्म सॊस्कृ सत का अॊधा से दृत्रद्श ऩरयवतान की अद्भत

अनुकयण कयके, स्त्री को प्रफक्रमा सभाई हुई होती हैं ।
सभानता फदराने वारी बाई के हाथ ऩय
खोखरी बाषा फोरने वारों याखी फाॉधकय फहन उससे
को ऩेहर बायत की केवर अऩना यऺण ही नहीॊ
ऩायॊ ऩरयक सॊस्कृ सत को ऩूणा ाहती, अऩने साथ-साथ सभस्त
सभझ रेना ाफह की ऩाद्ळात्म स्त्री जासत के यऺण की काभना
सॊस्कृ सत से तो केवर सभानता फदराई हो यखती हैं , इस के साथ फहॊ अऩना बाई फाह्य
ऩयॊ तु बायतीम सॊस्कृ सत ने तो स्त्री का ऩूजन फकमा हैं । शिुओॊ औय अॊतत्रवाकायों ऩय त्रवजम प्राद्ऱ कये औय सबी
एसे फह नहीॊ कहाजाता हैं । सॊकटो से उससे सुयत्ऺत यहे , मह बावना बी उसभें सछऩी

'मि नामास्तु ऩूज्मन्ते यभन्ते ति दे वता्। होती हैं । वेदों भें उल्रेख है फक दे व औय असुय सॊग्राभ
भें दे वों की त्रवजम प्रासद्ऱ फक काभना के सनसभत्त दे त्रव
बावाथा: जहाॉ स्त्री ऩूजी जाती है , उसका सम्भान होता है ,
इॊ द्राणी ने फहम्भत हाये हुए इॊ द्र के हाथ भें फहम्भत
वहाॉ दे व यभते हैं - वहाॉ दे वों का सनवास होता है ।' ऐसा
फॊधाने हे तु याखी फाॉधी थी। एवॊ दे वताओॊ की त्रवजम से
बगवान भनु का व न है ।
यऺाफॊधन का त्मोहाय शुरू हुआ। असबभन्मु की यऺा के
बायतीम सॊस्कृ सत स्त्री की ओय बोग की दृत्रद्श से
सनसभत्त कुॊताभाता ने उसे याखी फाॉधी थी।
न दे खकय ऩत्रवि दृत्रद्श से, भाॉ की बावना से दे खने का
इसी सॊफॊध भें एक औय फकॊवदॊ ती प्रससद्च है फक
आदे श दे ने वारी सवा श्रेद्ष बायतीम सॊस्कृ सत ही हैं ।
दे वताओॊ औय असुयों के मुद्च भें दे वताओॊ की त्रवजम को
हजायो वषा ऩूवा हभाये ऩूवज
ा ो नें बायतीम सॊस्कृ सत
रेकय कुछ सॊदेह होने रगा। तफ दे वयाज इॊ द्र ने इस मुद्च
भें यऺाफॊधन का उत्सव शामद इस सरमे शासभर फकमा

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e गुरुत्व ज्मोसतष 16 अगस्त 2020 | अॊक 1

भें प्रभुखता से बाग सरमा था। दे वयाज इॊ द्र की ऩत्नी सगे बाइमों मा भुॉहफोरे बाइमों को यऺासूि फाॉधने रगीॊ।
इॊ द्राणी श्रावण ऩूत्णाभा के फदन गुरु फृहस्ऩसत के ऩास मह एक धभा-फॊधन था। यऺाफॊधन ऩवा ऩुयोफहतों द्राया
गई थी तफ उन्होंने त्रवजम के सरए यऺाफॊधन फाॉधने का फकमा जाने वारा आशीवााद कभा बी भाना जाता है । मे
सुझाव फदमा था। जफ दे वयाज इॊ द्र याऺसों से मुद्च कयने ब्राह्मणों द्राया मजभान के दाफहने हाथ भें फाॉधा जाता है ।
रे तफ उनकी ऩत्नी इॊ द्राणी ने इॊ द्र के हाथ भें यऺाफॊधन यऺाफॊधन का एक भॊि बी है , जो ऩॊफडत यऺा-सूि
फाॉधा था, त्जससे इॊ द्र त्रवजमी हुए थे। फाॉधते सभम ऩढ़ते हैं :
अनेक ऩुयाणों भें श्रावणी ऩूत्णाभा को ऩुयोफहतों
मेन फद्चो फरी याजा दानवेन्द्रो भहाफर्।
द्राया फकमा जाने वारा आशीवााद कभा बी भाना जाता
तेन त्वाॊ प्रसतफध्नासभ यऺे भा र भा र्॥
है । मे ब्राह्मणों द्राया मजभान के दाफहने हाथ भें फाॉधा
बत्रवष्मोत्तय ऩुयाण भें याजा फसर (श्रीयाभ रयत भानस के
जाता है ।
फासर नहीॊ) त्जस यऺाफॊधन भें फाॉधे गए थे, उसकी कथा
ऩुयाणों भें ऐसी बी भान्मता है फक भहत्रषा दव
ु ाासा
अक्सय उद्चत
ृ की जाती है । फसर के सॊफॊध भें त्रवष्णु के
ने ग्रहों के प्रकोऩ से फ ने हे तु यऺाफॊधन की व्मवस्था
ऩाॉ वें अवताय (ऩहरा अवताय भानवों भें याभ थे) वाभन
दी थी। भहाबायत मुग भें बगवान श्रीकृ ष्ण ने बी
की कथा है फक फसर से सॊकल्ऩ रेकय उन्होंने तीन
ऋत्रषमों को ऩूज्म भानकय उनसे यऺा-सूि फॉधवाने को
कदभों भें तीनों रोकों भें सफकुछ नाऩ सरमा था।
आवश्मक भाना था ताफक ऋत्रषमों के तऩ फर से बिों
वस्तुत् दो ही कदभों भें वाभन रूऩी त्रवष्णु ने सफकुछ
की यऺा की जा सके। ऐसतहाससक कायणों से भध्ममुगीन
नाऩ सरमा था औय फपय तीसये कदभ,जो फसर के ससय
बायत भें यऺाफॊधन का ऩवा भनामा जाता था। शामद
ऩय यखा था, उससे उसे ऩातार रोक ऩहुॉ ा फदमा था।
हभरावयों की वजह से भफहराओॊ के शीर की यऺा हे तु
रगता है यऺाफॊधन की ऩयॊ ऩया तफ से फकसी न फकसी
इस ऩवा की भहत्ता भें इजापा हुआ हो। तबी भफहराएॉ
रूऩ भें त्रवद्यभान थी।

ई- जन्भ ऩत्रिका E HOROSCOPE


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e गुरुत्व ज्मोसतष 17 अगस्त 2020 | अॊक 1

याखी ऩूत्णाभा से जुफड ऩौयात्णक कथाएॊ


 सॊकरन गुरुत्व कामाारम
वाभनावताय कथा
ऩोयात्णक कथा के अनुशाय एकफाय सौ मऻ ऩूणा
कय रेने ऩय दानवो के याजा फसर के भन भें स्वगा प्रासद्ऱ
की इच्छा प्रफर हो गई तो इन्द्र का ससॊहासन डोरने
रगा। इन्द्र आफद दे वताओॊ ने बगवान त्रवष्णु से यऺा की
प्राथाना की। बगवान ने वाभन अवताय रेकय ब्राह्मण का
वेष धायण कय सरमा औय याजा फसर से सबऺा भाॊगने ऩहुॉ
गए। बगवान त्रवष्णुने फसर से तीन ऩग बूसभ सबऺा भें
भाॊग री।
फसर के गुरु शुक्रदे वजी ने ब्राह्मण रुऩ धायण फकए
हुए श्री त्रवष्णु को ऩह ान सरमा औय फसर को इस फाये भें
सावधान कय फदमा फकॊतु फसर अऩने व न से न फपये औय
तीन ऩग बूसभ दान कय दी।
अफ वाभन रूऩ भें बगवान त्रवष्णु ने एक ऩग भें
स्वगा औय दस
ू ये ऩग भें ऩृथ्वी को नाऩ सरमा। तीसया ऩैय
कहाॉ यखें? फसर के साभने सॊकट उत्ऩन्न हो गमा। मफद
वह अऩना व न नहीॊ सनबाता तो अधभा होता। आत्खयकाय
उसने अऩना ससय बगवान के आगे कय फदमा औय कहा तीसया
ऩग आऩ भेये ससय ऩय यख दीत्जए। वाभन बगवान ने वैसा ही फकमा। ऩैय यखते ही वह यसातर रोक भें ऩहुॉ गमा।
जफ फारी यसातर भें रा गमा तफ फसर ने अऩनी बत्रि के फर से बगवान को यात-फदन अऩने साभने यहने
का व न रे सरमा औय बगवान त्रवष्णु को उनका द्रायऩार फनना ऩड़ा। बगवान के यसातर सनवास से ऩये शान फक
मफद स्वाभी यसातर भें द्रायऩार फन कय सनवास कयें गे तो फैकुॊठ रोक का क्मा होगा? इस सभस्मा के सभाधान के
सरए रक्ष्भी जी को नायद जी ने एक उऩाम सुझामा। रक्ष्भी जी ने याजा फसर के ऩास जाकय उसे यऺाफन्धन फाॊधकय
अऩना बाई फनामा औय उऩहाय स्वरुऩ अऩने ऩसत बगवान त्रवष्णु को अऩने साथ रे आमीॊ। उस फदन श्रावण भास की
ऩूत्णाभा सतसथ थी मथा यऺा-फॊधन भनामा जाने रगा।

धन वृत्रद्च फडब्फी
धन वृत्रद्च फडब्फी को अऩनी अरभायी, कैश फोक्स, ऩूजा स्थान भें यखने से धन वृत्रद्च होती हैं त्जसभें
कारी हल्दी, रार- ऩीरा-सपेद रक्ष्भी कायक हकीक (अकीक), रक्ष्भी कायक स्पफटक यत्न, 3 ऩीरी
कौडी, 3 सपेद कौडी, गोभती क्र, सपेद गुॊजा, यि गुॊजा, कारी गुॊजा, भामा जार, इत्मादी दर
ु ब

वस्तुओॊ को शुब भहुता भें तेजस्वी भॊि द्राया असबभॊत्रित फकम जाता हैं ।
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e गुरुत्व ज्मोसतष 18 अगस्त 2020 | अॊक 1

बत्रवष्म ऩुयाण की कथा


बत्रवष्म ऩुयाण की एक कथा के अनुसाय एक फाय
दे वता औय दानवों भें फायह वषों तक मुद्च हुआ ऩयन्तु दे वता
त्रवजमी नहीॊ हुए। इॊ द्र हाय के बम से द:ु खी होकय दे वगुरु
फृहस्ऩसत के ऩास त्रवभशा हे तु गए। गुरु फृहस्ऩसत के सुझाव
ऩय इॊ द्र की ऩत्नी भहायानी श ी ने श्रावण शुक्र ऩूत्णाभा के
फदन त्रवसध-त्रवधान से व्रत कयके यऺासूि तैमाय फकए
औय स्वात्स्तवा न के साथ ब्राह्मण की उऩत्स्थसत भें इॊ द्राणी
ने वह सूि इॊ द्र की दाफहनी कराई भें फाॊधा त्जसके
परस्वरुऩ इन्द्र सफहत सभस्त दे वताओॊ की दानवों ऩय
त्रवजम हुई। यऺा त्रवधान के सभम सनम्न त्जस भॊि का
उच् ायण फकमा गमा था उस भॊि का आज बी त्रवसधवत
ऩारन फकमा जाता है :
"मेन फद्चोफरी याजा दानवेन्द्रो भहाफर: ।
तेन त्वाभसबफध्नासभ यऺे भा र भा र ।।"
इस भॊि का बावाथा है फक दानवों के भहाफरी याजा फसर त्जससे फाॊधे गए थे, उसी से तुम्हें फाॊधता हूॉ। हे
यऺे! (यऺासूि) तुभ रामभान न हो, रामभान न हो। मह यऺा त्रवधान श्रवण भास की ऩूत्णाभा को प्रात् कार
सॊऩन्न फकमा गमा मथा यऺा-फॊधन अत्स्तत्व भें आमा औय श्रवण भास की ऩूत्णाभा को भनामा जाने रगा।
भहाबायत सॊफॊधी कथा
भहाबायत कार भें द्रौऩदी द्राया श्री कृ ष्ण को तथा कुन्ती द्राया असबभन्मु को याखी फाॊधने के वृत्ताॊत सभरते हैं ।
भहाबायत भें ही यऺाफॊधन से सॊफॊसधत कृ ष्ण औय द्रौऩदी का एक औय वृत्ताॊत सभरता है । जफ कृ ष्ण ने सुदशान क्र
से सशशुऩार का वध फकमा तफ उनकी तजानी भें ोट आ गई। द्रौऩदी ने उस सभम अऩनी साड़ी पाड़कय उनकी
उॉ गरी ऩय ऩट्टी फाॉध दी। मह श्रावण भास की ऩूत्णाभा का फदन था। श्रीकृ ष्ण ने फाद भें द्रौऩदी के ीय-हयण के
सभम उनकी राज फ ाकय बाई का धभा सनबामा था।

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e गुरुत्व ज्मोसतष 19 अगस्त 2020 | अॊक 1

बगवान श्रीत्रवष्णु के आठवें अवताय श्रीकृ ष्ण


 सॊकरन गुरुत्व कामाारम
फहन्द ू धभा भें श्रीकृ ष्ण बगवान श्रीत्रवष्णु के आठवें अवताय भाने जाते हैं ।
श्रीकृ ष्ण को गोऩार, कन्है मा, श्माभ, केशव, द्रायकाधीश तथा वासुदेव इत्माफद त्रवसबन्न नाभों से जाना जाता हैं । फहन्द ू
धभा भें श्रीकृ ष्ण को एक आदशा, सनष्काभ कभामोगी एवॊ त्रवऩुर दै वी सॊऩदाओॊ से ऩरयऩूणा भान जाता हैं । श्रीकृ ष्ण का
जन्भ द्राऩयमुग भें हुआ था। श्रीकृ ष्ण को उस दौय के सवाश्रद्ष
े ऩुरुष मा मुगऩुरुष मा मुगावताय भान जाता हैं ।
श्रीकृ ष्ण वसुदेव औय दे वकी की 8वीॊ सॊतान भाना गमा हैं । श्रीकृ ष्ण का जन्भ भथुया के कायावास भें हुआ था औय
गोकुर भें मशोदा औय नन्द उनका रारन-ऩारन फकमा था।
श्रीकृ ष्ण का फ ऩन गोकुर भें ही व्मसतत हुआ था। श्रीकृ ष्ण ने फाल्म अवस्था भें ही फड़े से फड़े साहसी कामा
फकमे त्जसे कयना फकसी साधायण भनुष्म के सरए असम्बव हैं । श्रीकृ ष्ण नें भथुया भें अऩने भाभा कॊस का वध फकमा
था। श्रीकृ ष्ण ने गुजयात के सौयाद्स भें द्रायका नगयी भें अऩना याज्म फसामा।
भहत्रषा वेदव्मास द्राया यस त धभाग्रॊथ श्रीभद्भागवत औय भहाबायत भें श्रीकृ ष्ण के जीवन रयि का त्रवस्तृत
वणान फकमा गमा है ।
श्रीभद्भगवदगीता भें श्रीकृ ष्ण औय अजुन
ा का सॊवाद का वणान सभरता है , त्जसभें बगवान श्रीकृ ष्ण ने अजुन

को उऩदे श फदमा त्जसभें भनुष्म जीवन की हय सभस्मा का हर सछऩा है । गीता के 18 अध्माम औय 700 द्ऴोक भें
धभा, कभा, कभापर, जन्भ, भृत्मु, सत्म, असत्म आफद जीवन से जुड़े त्रवसबन्न प्रद्लों के उत्तय भौजूद हैं ।
श्रीकृ ष्ण ने अजुन
ा को गीता के द्ऴोक उस सभम सुनामे जफ भहाबायत के मुद्च के सभम अजुन
ा मुद्च कयने से
भना कयते हैं तफ श्री कृ ष्ण अजुन
ा को गीता के द्ऴोक सुनाते हैं औय कभा एॊव धभा के सनातन ऻान से अवगत
कयाते हैं । श्रीकृ ष्ण के इन्हीॊ उऩदे शों को बगवत गीता भें सॊग्रफहत फकमा गमा है । कौयवों व ऩाॊडवों के फी हुवे
भहाबायत के मुद्च के दौयान श्रीकृ ष्ण ने अजुन
ा के सायथी की बूसभका सनबाई औय अजुन
ा को बगवद्गीता का ऻान
फदमा। मुद्च भें श्री कृ ष्ण ने अजुन
ा को फदमे गमे ऩयभ दर
ु ब
ा उऩदे शों के कायण श्रीकृ ष्ण को जगतगुरु का सम्भान
फदमा जाता है ।
श्रीभद्भगवदगीता को श्री कृ ष्ण की जीवन की सवाश्रद्ष
े य ना भानी जाती है । श्रीकृ ष्ण नें ऩाॊडवों की सभम-
सभम ऩय भदद की औय उनकी त्रवसबन्न आऩत्रत्तमों भें सहामता कय उनकी यऺा की। श्रीकृ ष्ण नें 124 वषों के अऩने
जीवनकार भें अनसगनत रीराएॊ की ऩश्च्मात उन्होंने अऩनी रीरा सभाद्ऱ की।

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e गुरुत्व ज्मोसतष 20 अगस्त 2020 | अॊक 1

फहन्द ू सॊस्कृ सत भें कृ ष्ण जन्भाद्शभी व्रत का भहत्व


 सॊकरन गुरुत्व कामाारम
श्री कृ ष्णजन्भाद्शभी को बगवान श्री कृ ष्ण के गौतभीतॊिभें मह उल्रेख है -
जनभोत्स्व के रुऩ भें भनामा जाता है । बगवान श्रीकृ ष्ण उऩवास: प्रकताव्मोन बोिव्मॊकदा न।
के बगवद गीता भें वत्णात उऩदे श ऩुयातन कार से ही कृ ष्णजन्भफदनेमस्तुबुड्क्िेसतुनयाधभ:।
फहन्द ु सॊस्कृ सत भें आदशा यहे हैं । जन्भाद्शभी का त्मौहाय सनवसेन्नयकेघोये मावदाबूतसम्प्रवभ ्॥
ऩुये त्रवद्व भें हषोल्रास एवॊ आस्था से भनामा जाता हैं । अथाात: अभीय-गयीफ सबी रोग मथाशत्रि-
श्रीकृ ष्ण का जन्भ बाद्रऩद भाह की कृ ष्ण ऩऺ मथासॊबव उऩ ायों से मोगेद्वय कृ ष्ण का
की अद्शभी को भध्मयात्रि को भथुया भें कायागृह जन्भोत्सव भनाएॊ। जफ तक उत्सव सम्ऩन्न
भें हुवा। जैसे की इस त्जन सभग्र सॊसाय के न हो जाए तफ तक बोजन त्रफल्कुर न
ऩारन कताा स्वमॊ अवतरयत हुएॊ थे। अत: कयें । जो वैष्णव कृ ष्णाद्शभी के फदन
इस फदन को कृ ष्ण जन्भाद्शभी के रूऩ भें बोजन कयता है , वह सनद्ळम ही नयाधभ
भनाने की ऩयॊ ऩया सफदमों से री आयही है । उसे प्ररम होने तक घोय नयक भें
हैं । यहना ऩडता है ।
श्रीकृ ष्ण जन्भोत्सव के सरए दे श- इसी सरए जन्भाद्शभी के फदन
दसु नमा के त्रवसबन्न कृ ष्ण भॊफदयों को बगवान श्रीकृ ष्ण की प्रसतभा का
त्रवशेष तौय ऩय सजामा जाता है । त्रवसध-त्रवधान से ऩूजन इत्माफद

जन्भाद्शभी के फदन व्रती कयने का त्रवशेष भहत्व


सनातन धभा भें यहा हैं ।
फायह फजे तक व्रत
धभाग्रॊथों भें
यखते हैं । इस फदन
जन्भाद्शभी की यात्रि भें
भॊफदयों भें बगवान श्री कृ ष्ण जागयण का त्रवधान बी
की त्रवसबन्न झाॊकीमाॊ सजाई फतामा गमा है ।
जाती है औय यासरीरा का त्रवद्रानों का भत हैं
आमोजन होता है । बगवान की कृ ष्णाद्शभी की
यात भें बगवान
श्री कृ ष्ण की फार
श्रीकृ ष्ण के नाभ का सॊकीतान इत्माफद कयने से
स्वरुऩ प्रसतभा को
बि को श्रीकृ ष्ण की त्रवशेष कृ ऩा प्रासद्ऱ होती हैं ।
त्रवसबन्न शृॊगाय साभग्रीमों से सुसत्ज्जत कय प्रसतभा को
धभाग्रॊथों भें जन्भाद्शभी के व्रत भें ऩूये फदन उऩवास यखने
ऩारने भें स्थात्रऩत कय कृ ष्ण भध्मयािी को झूरा का सनमभ है , ऩयॊ तु इसभें असभथा रोग पराहाय कय
झुरामा जाता हैं । सकते हैं ।
धभाशास्त्रों के जानकायों ने श्रीकृ ष्णजन्भाद्शभीका बत्रवष्मऩुयाण भें उल्रेख हैं
व्रत सनातन-धभाावरॊत्रफमों के सरए त्रवशेष भहत्व ऩूणा त्जस याद्स मा प्रदे श भें मह व्रत-उत्सव त्रवसध-
फतामा है । इस फदन उऩवास यखने तथा अन्न का सेवन त्रवधान से भनामा जाता है , वहाॊ ऩय प्राकृ सतक प्रकोऩ मा
नहीॊ कयने का त्रवधान धभाशास्त्रों भें वत्णात हैं । भहाभायी इत्माफद नहीॊ होती। भेघ ऩमााद्ऱ वषाा कयते हैं

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e गुरुत्व ज्मोसतष 21 अगस्त 2020 | अॊक 1

तथा पसर खूफ होती है । जनता सुख-सभृत्रद्च प्राद्ऱ रोक भें कयते हैं । उनके ऩास सदै व त्स्थय रक्ष्भी होती
कयती है । इस व्रत के अनुद्षान से सबी व्रतीमों को ऩयभ है । इस व्रत के कयने के प्रबाव से उनके सभस्त कामा
श्रेम की प्रासद्ऱ होती है । व्रत कताा बगवत्कृ ऩा का बागी ससद्च होते हैं ।
फनकय इस रोक भें सफ सुख बोगता है औय अन्त भें मफद आधी यात के सभम योफहणी भें जफ
वैकुॊठ जाता है । कृ ष्णाद्शभी का व्रत कयने वारे के सबी कृ ष्णाद्शभी हो तो उसभें कृ ष्ण का अ न
ा औय ऩूजन
प्रकाय क्रेश दयू हो जाते हैं । उसका दख
ु -दरयद्रता से कयने से तीन जन्भों के ऩाऩों का नाश होता है । भहत्रषा
उद्चाय होता है । बृगु ने कहा है - जन्भाद्शभी, योफहणी औय सशवयात्रि मे
स्कन्द ऩुयाण भें उल्रेख हैं फक जो बी व्मत्रि ऩूवत्रा वद्चा ही कयनी ाफहए तथा सतसथ एवॊ नऺि के
इस व्रत के भहत्व को जानकय बी कृ ष्ण जन्भाद्शभी व्रत अन्त भें ऩायणा कयें । इसभें केवर योफहणी उऩवास ही
को नहीॊ कयता, वह भनुष्म जॊगर भें सऩा औय व्माघ्र ससद्च है ।
होता है । शास्त्रकायों नें श्रीकृ ष्ण-जन्भाद्शभी की यात्रि को
बत्रवष्म ऩुयाण उल्रेख हैं , फक कृ ष्ण जन्भाद्शभी भोहयात्रि कहा है । इस यात भें बगवान श्रीकृ ष्ण का
व्रत को जो भनुष्म नहीॊ कयता, वह क्रूय याऺस होता है । ध्मान, नाभ अथवा भॊि जऩते हुए जागयण कयने से
केवर अद्शभी सतसथ भें ही उऩवास कयना कहा गमा है । सॊसाय की भोह-भामा से आसत्रि दयू होती है । जन्भाद्शभी
मफद वही सतसथ योफहणी नऺि से मुि हो तो उसे के व्रत को व्रतयाज कहाॊ गमा है । क्मोफक, इस व्रत को
'जमॊती' नाभ से सॊफोसधत की जाएगी। ऩूणा त्रवसध-त्रवधान से कयने से भनुष्म को अनेक व्रतों से
त्रवसबन्न धभाशास्त्रों भें उल्रेख हैं , फक जो उत्तभ प्राद्ऱ होने वारे भहान ऩुण्म का पर केवर इस व्रत के
भनुष्म है । वे सनत्द्ळत रूऩ से जन्भाद्शभी व्रत को इस कयने से प्राद्ऱ हो जाता है ।

अभोद्य भहाभृत्मुॊजम कव
अभोद्य् भहाभृत्मुॊजम कव व उल्रेत्खत अन्म साभग्रीमों को शास्त्रोि त्रवसध-त्रवधान से त्रवद्रान
ब्राह्मणो द्राया सवा राख भहाभृत्मुॊजम भॊि जऩ एवॊ दशाॊश हवन द्राया सनसभात कव अत्मॊत
प्रबावशारी होता हैं ।

अभोद्य् भहाभृत्मुॊजम कव
अभोद्य् भहाभृत्मुॊजम
कव फनवाने हे तु:
अऩना नाभ, त्रऩता-भाता का नाभ, कव
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e गुरुत्व ज्मोसतष 22 अगस्त 2020 | अॊक 1

श्रीकृ ष्ण की गुरूसेवा


 सॊकरन गुरुत्व कामाारम
सहस्त्र भुखो से बी गुरु की भफहभा फखाण ना सॊबव नहीॊ हैं । क्मोकी गुरु की भफहभा अऩयॊ ऩाय हैं । इसी सरमे
तो स्वमॊ बगवान को बी जगत के कल्माणा हे तु जफ भानवरूऩ भें अवतरयत होना ऩडता हैं तो ऻान प्रासद्ऱ हे तु गुरू
की आवश्मिा होती हैं ।
ऩौयात्णक शास्त्रो के अनुशाय द्राऩय मुग भें जफ बगवान श्रीकृ ष्ण जफ बूरोक ऩय अवतरयत हुएॊ। काराॊतय भें
कॊस का त्रवनाश होने के ऩद्ळमात बगवान श्रीकृ ष्ण ने शास्त्रोि त्रवसध-त्रवधान से अऩने हाथ भें ससभधा रेकय अऩने
गुरू श्रीसाॊदीऩनी के आश्रभ भें गमे। गुरुआश्रभ भें श्रीकृ ष्ण बत्रिऩूवक
ा गुरू की सेवा कयने रगे। गुरू आश्रभ भें
सेवा कयते हुए बगवान श्रीकृ ष्ण ने वेद-वेदाॊग, उऩसनषद, भीभाॊसाफद
षड्क्दशान, अस्त्र-शस्त्रत्रवद्या, धभाशास्त्र औय याजनीसत आफद अनेको त्रवद्याएॊ
प्राद्ऱ की। श्रीकृ ष्ण नें अऩनी प्रखय फुत्रद्च के कायण गुरू के
एक फायफताने भाि से ही सफ सीख सरमा। त्रवष्णुऩुयाण के अनुशाय
श्रीकृ ष्ण ने 64 कराएॉ केवर64 फदन भें ही सीख रीॊ। जफ त्रवद्या
अभ्मास ऩूणा हुआ, तफ श्रीकृ ष्ण ने गुरूदे व से दत्ऺणा हे तु
अनुयोध फकमा। श्रीकृ ष्ण् "गुरूदे व ! आऻा कीत्जए, भैं आऩकी क्मा
सेवा करूॉ ?" गुरू् "कोई आवश्मकता नहीॊ है ।" श्रीकृ ष्ण् "गुरूदे व
आऩको तो कुछ नहीॊ ाफहए, फकॊतु हभें फदमे त्रफना न
ै नहीॊ ऩड़े गा।
कुछ तो आऻा कयें !" गुरू् "अच्छा जाओ, अऩनी गुरू भाॉ से ऩूछ
रो।" श्रीकृ ष्ण गुरूऩत्नी के ऩास गमे औय फोरे् "भाॉ ! कोई
सेवा हो तो फताइमे।"
गुरूऩत्नी जानती थीॊ फक श्रीकृ ष्ण कोई साधायण भानव नहीॊ स्वमॊ
बगवान हैं , अत् वे फोरी् "भेया ऩुि प्रबास ऺेि भें भय गमा है ।
उसे राकय दे दो ताफक भैं उसे ऩम् ऩान कया सकूॉ।"
श्रीकृ ष्ण फोरे: "जो आऻा।"
श्रीकृ ष्ण यथ ऩय सवाय होकय प्रबास ऺेि ऩहुॉ े। सभुद्र ने
उन्हें दे खकय उनकी मथामोग्म ऩूजा की। श्रीकृ ष्ण फोरे् "तुभने अऩनी फड़ी फड़ी रहयों से हभाये गुरूऩुि को हय सरमा
था। अफ उसे शीघ्र रौटा दो।"
सभुद्र् "भैंने फारक को नहीॊ हया है , भेये बीतय शॊखरूऩ से ऩॊ जन नाभक एक फड़ा दै त्म यहता है , सनसॊदेह उसी ने
आऩके गुरूऩुि का हयण फकमा है ।"
श्रीकृ ष्ण ने उसीऺण जर के बीतय घुसकय ऩॊ जन नाभक दै त्म को भाय डारा, ऩय उसके ऩेट भें गुरूऩुि
नहीॊ सभरा। तफ उसके शयीय का ऩाॊ जन्म शॊख रेकय श्रीकृ ष्ण जर से फाहय सनकर कय मभयाज की मभनी ऩुयी भें
गमे। वहाॉ बगवान ने उस शॊख को फजामा। कथा कहती हैं फक शॊख ध्वसन को सुनकय नायकीम जीवों के ऩाऩ नद्श हो
गमे औय वे सबी जीव वैकुॊठ ऩहुॉ गमे।
मभयाज ने श्रीकृ ष्ण को दे खकय उनकी फड़ी बत्रि के साथ ऩूजा की औय प्राथाना कयते हुए कहा् "हे ऩुरूषोत्तभ ! भैं
आऩकी क्मा सेवा करूॉ ?"

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e गुरुत्व ज्मोसतष 23 अगस्त 2020 | अॊक 1

श्रीकृ ष्ण् "तुम्हाये दत


ू कभाफॊधन के अनुसाय हभाये गुरूऩुि को महाॉ रे आमे हैं । उसे भेयी आऻा से वाऩस दे दो।"
'जो आऻा' कहकय मभयाज उस फारक को रे आमे।
श्रीकृ ष्ण ने गुरूऩुि को, त्जस रुऩ भें वह भया था उसी रुऩभें ऩून् उसका शयीय फनाकय, यत्नाफद के साथ गुरू यणों भें
अत्रऩत
ा कय फदमा।
श्रीकृ ष्ण ने कहा्"गुरूदे व ! औय जो कुछ बी आऩ ाहें , आऻा कयें ।"
गुरूदे व् "वत्स ! तुभने अऩनी गुरूदत्ऺणा बरी प्रकाय से सॊऩन्न कय दी। तुम्हाये जैसे सशष्म से गुरू की कौन-सी
काभना अवशेष यह सकती है ?
वत्स ! अफ तुभ अऩने घय जाओ।

गुरूदे व ने श्रीकृ ष्ण को आसशवााद दे ते हुवे कहाॊ वत्स ! तुम्हायी कीसता श्रोताओॊ को ऩत्रवि कयने वारी होगी औय
तुम्हाये द्राया अत्जात ऻान व त्रवद्या हय सभम उऩत्स्थत औय नवीन फनी यहकय सबीरोक भें तुम्हाये अबीद्श पर को
दे ने भें सभथा हों।"

कनकधाया मॊि
आज के बौसतक मुग भें हय व्मत्रि असतशीघ्र सभृद्च फनना ाहता हैं ।
कनकधाया मॊि फक ऩूजा अ न
ा ा कयने से व्मत्रि के जन्भों जन्भ के ऋण
औय दरयद्रता से शीघ्र भुत्रि सभरती हैं । मॊि के प्रबाव से व्माऩाय भें
उन्नसत होती हैं , फेयोजगाय को योजगाय प्रासद्ऱ होती हैं । कनकधाया मॊि
अत्मॊत दर
ु ब
ा मॊिो भें से एक मॊि हैं त्जसे भाॊ रक्ष्भी फक प्रासद्ऱ हे तु
अ क
ू प्रबावा शारी भाना गमा हैं । कनकधाया मॊि को त्रवद्वानो ने
स्वमॊससद्च तथा सबी प्रकाय के ऐद्वमा प्रदान कयने भें सभथा भाना हैं ।
आज के मुग भें हय व्मत्रि असतशीघ्र सभृद्च फनना ाहता हैं । धन प्रासद्ऱ
हे तु प्राण-प्रसतत्रद्षत कनकधाया मॊि के साभने फैठकय कनकधाया स्तोि का
ऩाठ कयने से त्रवशेष राब प्राद्ऱ होता हैं । इस कनकधाया मॊि फक ऩूजा अ न
ा ा कयने से ऋण औय दरयद्रता से शीघ्र
भुत्रि सभरती हैं । व्माऩाय भें उन्नसत होती हैं , फेयोजगाय को योजगाय प्रासद्ऱ होती हैं । जैसे श्री आफद शॊकया ामा द्वारा
कनकधाया स्तोि फक य ना कुछ इस प्रकाय की गई हैं , फक त्जसके श्रवण एवॊ ऩठन कयने से आस-ऩास के वामुभॊडर
भें त्रवशेष अरौफकक फदव्म उजाा उत्ऩन्न होती हैं । फठक उसी प्रकाय से कनकधाया मॊि अत्मॊत दर
ु ब
ा मॊिो भें से एक
मॊि हैं त्जसे भाॊ रक्ष्भी फक प्रासद्ऱ हे तु अ क
ू प्रबावा शारी भाना गमा हैं । कनकधाया मॊि को त्रवद्वानो ने स्वमॊससद्च तथा
सबी प्रकाय के ऐद्वमा प्रदान कयने भें सभथा भाना हैं । जगद्गरु
ु शॊकया ामा ने दरयद्र ब्राह्मण के घय कनकधाया स्तोि के
ऩाठ से स्वणा वषाा कयाने का उल्रेख ग्रॊथ शॊकय फदत्ग्वजम भें सभरता हैं । कनकधाया भॊि:- ॐ वॊ श्रीॊ वॊ ऐॊ ह्ीॊ-श्रीॊ
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e गुरुत्व ज्मोसतष 24 अगस्त 2020 | अॊक 1

कृ ष्ण जन्भाद्शभी व्रत की ऩौयात्णक कथा


 सॊकरन गुरुत्व कामाारम
एक फाय इॊ द्र ने नायद जी से कहा "हे भुसनमों भें सोरह कराओॊ से ऩूणा श्रीकृ ष्ण से आऩका मुद्च होगा।
सवाश्रद्ष
े , सबी शास्त्रों के ऻाता, हे दे व, व्रतों भें उत्तभ उस उसी मुद्च भें वे आऩका वध कयें गे। इससरए हे भहायाज!
व्रत को फताएॉ, त्जस व्रत के कयने से भनुष्मों को भुत्रि, आऩ अऩनी यऺा मत्नऩूवक
ा कयें ।"
राब प्राद्ऱ हो तथा उस व्रत से प्रात्णमों को बोग व इतना फताने के ऩद्ळात नायद जी ने इॊ द्र से कहा
भोऺ दोनो की प्रासद्ऱ हो जाए।" "ज्मोसतषी द्राया फताए गए सभम ऩय ही कॊस की भृत्मु
दे वयाज इॊ द्र के व नों को सुनकय नायद जी ने कहा कृ ष्ण के हाथ सन्सॊदेह होगी।" तफ इॊ द्र ने कहा "हे
"िेता मुग के अॊत भें औय द्राऩय मुग के प्रायॊ ब सभम भें भुसन! उस दयु ा ायी कॊस की कथा का वणान कीत्जए,
धृत्णत कभा को कयने वारा कॊस नाभ का एक अत्मॊत औय फताइए फक कृ ष्ण का जन्भ कैसे होगा तथा कॊस
ऩाऩी दै त्म हुआ। उस दद्श
ु व दयु ा ायी कॊस की की भृत्मु कृ ष्ण द्राया फकस प्रकाय
दे वकी नाभ की एक सुॊदय व सुशीर फहन थी। होगी।"
उस दे वकी के गबा से उत्ऩन्न आठवाॉ इॊ द्र की फातों को
ऩुि कॊस का वध कये गा।" सुनकय नायदजी ने ऩुन् कहना
नायद जी की फातें सुनकय इॊ द्र ने प्रायॊ ब फकमा "उस दयु ा ायी
कहा हे प्रबो "उस दयु ा ायी कॊस कॊस ने अऩने एक द्रायऩार से
की कथा का त्रवस्तायऩूवक
ा कहा भेयी इस प्राणों से त्रप्रम
वणान कीत्जए। क्मा दे वकी के फहन दे वकी की ऩूणा सुयऺा
गबा से उत्ऩन्न आठवाॉ ऩुि कयना।" द्रायऩार ने कहा "ऐसा
अऩने भाभा कॊस की हत्मा ही होगा भहायाज।" कॊस के
कये गा! मह सॊबव है ।" इॊ द्र जाने के ऩद्ळात उसकी छोटी फहन
की सन्दे ह बयी फातों को दे वकी द्ु त्खत होते हुए जर रेने के
सुनकय नायदजी ने कहा हे फहाने घड़ा रेकय ताराफ ऩय गई। उस
अफदसत ऩुि इॊ द्र! एक सभम ताराफ के फकनाये एक वृऺ के नी े फैठकय
की फात है । उस दद्श
ु कॊस ने एक ज्मोसतषी से ऩूछा दे वकी योने रगी। उसी सभम एक सुॊदय स्त्री, त्जसका
"भेयी भृत्मु फकस प्रकाय औय फकसके द्राया होगी।" नाभ मशोदा था, उसने आकय दे वकी से त्रप्रम वाणी भें
ज्मोसतषी फोरे "हे दानवों भें श्रेद्ष कॊस! "वसुदेव की ऩत्नी कहा "हे दे वी! इस प्रकाय तुभ क्मों त्रवराऩ कय यही हो।
दे वकी है औय आऩकी फहन बी है । उसी के गबा से अऩने योने का कायण भुझसे फताओ।" तफ दख
ु ी दे वकी
उत्ऩन्न उसका आठवाॊ ऩुि जो फक शिुओॊ को ऩयात्जत ने मशोदा से कहा "हे फहन! नी कभों भें आसि
कय इस सॊसाय भें "कृ ष्ण" के नाभ से त्रव्मात होगा, दयु ा ायी भेया ज्मेद्ष भ्राता कॊस है ।
वही एक सभम सूमोदम कार भें आऩका वध कये गा।" उस दद्श
ु भ्राता ने भेये कई ऩुिों का वध कय
ज्मोसतषी की फातों को सुनकय कॊस ने कहा "हे दै वज, फदमा। इस सभम भेये गबा भें आठवाॉ ऩुि है । वह इसका
अफ आऩ मह फताएॊ फक दे वकी का आठवाॊ ऩुि फकस बी वध कय डारेगा, क्मोंफक भेये ज्मेद्ष भ्राता को मह बम
भास भें फकस फदन भेया वध कये गा।" ज्मोसतषी फोरे है फक भेये अद्शभ ऩुि से उसकी भृत्मु अवश्म होगी।"
"हे भहायाज! भाघ भास की शुक्र ऩऺ की सतसथ को

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e गुरुत्व ज्मोसतष 25 अगस्त 2020 | अॊक 1

दे वकी की फातें सुनकय मशोदा ने कहा "हे फहन! त्रवराऩ रूऩ भें आ गईं। फकसी प्रकाय वसुदेवजी गोकुर ऩहुॉ े
भत कयो। भैं बी गबावती हूॉ। मफद भुझे कन्मा हुई तो औय नॊद के घय भें प्रवेश कय उन्होंने अऩना ऩुि
तुभ अऩने ऩुि के फदरे उस कन्मा को रे रेना। इस तत्कार उन्हें दे फदमा औय उसके फदरे भें उनकी कन्मा
प्रकाय तुम्हाया ऩुि कॊस के हाथों भाया नहीॊ जाएगा।" रे री। वे तत्कार वहाॊ से वाऩस आकय कॊस के फॊदी
कॊस ने वाऩस आकय अऩने द्रायऩार से ऩूछा गृह भें ऩहुॉ गए।
"दे वकी कहाॉ है ? इस सभम वह फदखाई नहीॊ दे यही है ।" प्रात्कार जफ सबी याऺस ऩहये दाय सनद्रा से
तफ द्रायऩार ने कॊस से नम्रवाणी भें कहा "हे भहायाज! जागे तो कॊस ने द्रायऩार से ऩूछा फक अफ दे वकी के
आऩकी फहन जर रेने ताराफ ऩय गई हुई हैं ।" मह गबा से क्मा हुआ? इस फात का ऩता रगाकय भुझे
सुनते ही कॊस क्रोसधत हो उठा औय उसने द्रायऩार को फताओ। द्रायऩारों ने भहायाज की आऻा को भानते हुए
उसी स्थान ऩय जाने को कहा जहाॊ वह गई हुई है । कायागाय भें जाकय दे खा तो वहाॉ दे वकी की गोद भें एक
द्रायऩार की दृत्रद्श ताराफ के ऩास दे वकी ऩय ऩड़ी। तफ कन्मा थी। त्जसे दे खकय द्रायऩारों ने कॊस को सूस त
उसने कहा फक "आऩ फकस कायण से महाॉ आई हैं ।" फकमा, फकन्तु कॊस को तो उस कन्मा से बम होने रगा।
उसकी फातें सुनकय दे वकी ने कहा फक अत् वह स्वमॊ कायागाय भें गमा औय
"भेये घय भें जर नहीॊ था, भैं जर रेने उसने दे वकी की गोद से कन्मा को झऩट
जराशम ऩय आई हूॉ।" इसके ऩद्ळात सरमा औय उसे एक ऩत्थय की ट्टान ऩय
दे वकी अऩने घय की ओय री गई। ऩटक फदमा फकन्तु वह कन्मा त्रवष्णु की
कॊस ने ऩुन् द्रायऩार से कहा भामा से आकाश की ओय री गई औय
फक इस घय भें भेयी फहन की अॊतरयऺ भें जाकय त्रवद्युत के रूऩ भें
तुभ ऩूणत
ा ् यऺा कयो। अफ कॊस ऩरयत्णत हो गई।
को इतना बम रगने रगा फक बगवान त्रवष्णु ने आकाशवाणी
घय के बीतय दयवाजों भें त्रवशार कय कॊस से कहा फक "हे दद्श
ु ! तुझे
तारे फॊद कयवा फदए जैसे कोई भायने वारा गोकुर भें नॊद के घय
कायागाय हो औय दयवाजे के फाहय भें उत्ऩन्न हो क
ु ा है औय उसी से
दै त्मों औय याऺसों को ऩहये दायी के सरए तेयी भृत्मु सुसनत्द्ळत है । भेया नाभ
सनमुि कय फदमा। कॊस हय प्रकाय से अऩने तो वैष्णवी है , भैं सॊसाय के कताा
प्राणों को फ ाने के प्रमास कय यहा था। तफ बगवान त्रवष्णु की भामा से उत्ऩन्न
सबी प्रकाय के शुब भुहूता भें श्री कृ ष्ण का हुई हूॉ।" इतना कहकय वह स्वगा की ओय
जन्भ हुआ औय श्रीकृ ष्ण के प्रबाव से ही उसी ऺण री गई। उस आकाशवाणी को सुनकय कॊस
फन्दीगृह के दयवाजे स्वमॊ खुर गए। द्राय ऩय ऩहया दे ने क्रोसधत हो उठा। उसने नॊद के घय भें ऩूतना, केशी
वारे ऩहये दाय याऺस सबी भूत्च्छा त हो गए। दे वकी ने नाभक दै त्म, काल्मा्म इत्माफद फरवान याऺसों की
उसी ऺण अऩने ऩसत वसुदेव से कहा "हे स्वाभी! आऩ भृत्मु के आघात से कॊस अत्मसधक बमबीत हो गमा।
सनद्रा का त्माग कयें औय भेये इस ऩुि को गोकुर भें रे उसने द्रायऩारों को आऻा दी फक नॊद को तत्कार भेये
जाएॉ, वहाॉ इस ऩुि को नॊद गोऩ की धभाऩत्नी मशोदा को सभऺ उऩत्स्थत कयो। द्रायऩार नॊद को रेकय जफ
दे दें । उस सभम मभुनाजी ऩूणरू
ा ऩ से फाढ़ग्रस्त थीॊ, उऩत्स्थत हुए तफ कॊस ने नॊद से कहा फक मफद तुम्हें
फकन्तु जफ वसुदेवजी फारक कृ ष्ण को सूऩ भें रेकय अऩने प्राणों को फ ाना है तो ऩारयजात के ऩुष्ऩ रे
मभुनाजी को ऩाय कयने के सरए उतये उसी ऺण फारक राओ। मफद तुभ नहीॊ रा ऩाए तो तुम्हाया वध सनत्द्ळत
के यणों का स्ऩशा होते ही मभुनाजी अऩने ऩूवा त्स्थय है ।
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e गुरुत्व ज्मोसतष 26 अगस्त 2020 | अॊक 1

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e गुरुत्व ज्मोसतष 27 अगस्त 2020 | अॊक 1

भृत्मु के ऩद्ळात उनका भल्रमुद्च केशी के साथ हुआ। इस सॊसाय के सबी प्रात्णमों ने हषा ऩवा भनामा।
इस मुद्च भें श्रीकृ ष्ण औय फरदे व ने असॊ्म दै त्मों का इस कथा को सुनने के ऩद्ळात इॊ द्र ने नायदजी से
वध फकमा। फरयाभजी ने अऩने आमुध शस्त्र हर से औय कहा हे ऋत्रष इस कृ ष्ण जन्भाद्शभी का ऩूणा त्रवधान
कृ ष्ण ने सुदशान क्र से भाघ भास की शुक्र ऩऺ की फताएॊ एवॊ इसके कयने से क्मा ऩुण्म प्राद्ऱ होता है , इसके
सद्ऱभी को त्रवशार दै त्मों के सभूह का सवानाश फकमा। कयने की क्मा त्रवसध है ?
जफ अन्त भें केवर दयु ा ायी कॊस ही फ गमा तो कृ ष्ण नायदजी ने कहा हे इॊ द्र! बाद्रऩद भास की
ने कहा- हे दद्श
ु , अधभॉ, दयु ा ायी अफ भैं इस भहामुद्च कृ ष्णजन्भाद्शभी को इस व्रत को कयना ाफहए। उस फदन
स्थर ऩय तुझसे मुद्च कय तथा तेया वध कय इस सॊसाय ब्रह्म मा आफद सनमभों का ऩारन कयते हुए श्रीकृ ष्ण का
को तुझसे भुि कयाऊॉगा। मह कहते हुए श्रीकृ ष्ण ने स्थाऩन कयना ाफहए। सवाप्रथभ श्रीकृ ष्ण की भूसता स्वणा
उसके केशों को ऩकड़ सरमा औय कॊस को घुभाकय ऩृथ्वी करश के ऊऩय स्थात्रऩत कय द
ॊ न, धूऩ, ऩुष्ऩ, कभरऩुष्ऩ
ऩय ऩटक फदमा, त्जससे वह भृत्मु को प्राद्ऱ हुआ। कॊस के आफद से श्रीकृ ष्ण प्रसतभा को वस्त्र इत्माफद से सुसत्ज्जत
भयने ऩय दे वताओॊ ने शॊखघोष व ऩुष्ऩवृत्रद्श की। वहाॊ कय त्रवसधऩूवक
ा ऩूजन-अ न
ा कयना ाफहए। उऩवास की
उऩत्स्थत सभुदाम श्रीकृ ष्ण की जम-जमकाय कय यहा ऩूवा यात्रि को हल्का बोजन कयें औय ब्रह्म मा का ऩारन
था। कॊस की भृत्मु ऩय नॊद, दे वकी, वसुदेव, मशोदा औय कयना ाफहए।

श्रात्रऩत मोग सनवायण कव


बायतीम ज्मोसतष शास्त्र भें शुब औय अशुब दोनों प्रकाय के मोगों का वणान सभरता हैं । इन मोगों भें एक मोग "श्रात्रऩत मोग" हैं
इसे "शात्रऩत दोष" बी कहा जाता हैं । इस मोग के सॊफॊध भें कहाॊ जाता हैं की त्जस व्मत्रि की कुण्डरी भें श्रात्रऩत मोग होता है ,
उनकी कुण्डरी भें भौजूद अन्म शुब मोगों का प्रबाव कभ हो जाता है त्जससे व्मत्रि को जीवन भें त्रवसबन्न कफठनाईमों एवॊ

ु ौसतमों का साभना कयना ऩड़ता है । कुछ जानकाय कुण्डरी भें भौजूद श्रात्रऩत मोग का कायण बी ऩूवा जन्भ के कभों का पर
भानते हैं । कुछ ज्मोसतषी का भानना हैं की श्रात्रऩत मोग अत्मॊत अशुब परदामी हैं । श्रात्रऩत मोग का पर व्मत्रि को अऩने कभों
के अनुसाय बोगना ऩड़ता हैं । कैसे जाने जन्भ कुॊडरी भें श्रात्रऩत मोग हैं मा नहीॊ? यतीम ज्मोसतषशास्त्र भें सूम,ा भॊगर, शसन, याहु
औय केतु को अशुब ग्रहों भाना गमा है । इन अशुब ग्रहों भें जफ शासन औय याहु की एक यासश भें भौजूद हो तो श्रात्रऩत मोग का
सनभााण होता है । शसन औय याहु दोनों ही ग्रह अशुब पर दे ते हैं इससरए इन दोनों ग्रहों के सॊमोग से फनने वारे मोग को शात्रऩत
मोग मा श्रात्रऩत मोग कहा जाता है । कुछ ज्मोसतष के जानकाय मह भानते हैं फक शसन की याहु ऩय दृत्रद्श होने से बी इस मोग का
सनभााण होता हैं । साधायण बाषा भें सभझे तो शाऩ का अथा शुब परों नाश होना भाना जाता है । उसी प्रकाय शात्रऩत मोग का
अथा हैं , शुब मोगों को नाश कयने वारा मोग। त्जस फकसी की कुण्डरी भें मह मोग का सनभााण होता है उसे इसी प्रकाय का पर
सभरता है अथाात उनकी कुण्डरी भें त्जतने बी शुब मोग होते हैं वे इस मोग के कायण प्रबावहीन हो जाते हैं ! आभतौय ऩय ऐसा
भाना जाता हैं की शात्रऩत मोग से ऩीफड़त व्मत्रि को अऩने कामों भें त्रवसबन्न प्रकाय की कफठन न
ु ौसतमों एवॊ भुत्श्करों का
साभना कयना होता हैं । रेफकन कुछ ज्मोसतषी इससे सहभत नहीॊ हैं , उनका भानना हैं की शात्रऩत मोग से सॊफॊसधत मह धायण
ऩूयी तयह गरत है , त्जस व्मत्रि की कुण्डरी भें शात्रऩत मोग फनता है , उन व्मत्रि की कुण्डरी भें अन्म मोगों की अऩेऺा शात्रऩत
मोग असधक प्रबावशारी होकय व्मत्रि को शुब पर दे ता हैं ! त्जस प्रकाय ज्मोसतषशास्त्र के अनुशाय जफ दो सभि ग्रहों की मुसत
फकसी यासश भें फनती है तो उनका अशुब प्रबाव सभाद्ऱ हो जाता है औय दोनों सभिग्रह सभरकय व्मत्रि को शुब पर दे ते हैं । उसी
प्रकाय से वह शसन एवॊ याहु के मोग से सनसभात होने वारे शात्रऩत मोग को अशुब नहीॊ भानते हैं । रेफकन मह एक वै ारयक
भतबेद का भुद्ङा हैं , मफद आऩकी जन्भ कुॊडरी भें श्रात्रऩत मोग का सनभााण हो यहा हो, औय आऩको इससे सॊफॊसधत कद्श प्राद्ऱ हो
यहे हो तो आऩ श्रात्रऩत मोग सनवायण कव को धायण कयके धायण कताा को त्रवशेष राब प्राद्ऱ कय अऩनी ऩये शासनमों को दयू कय
सकते हैं । इस कव के प्रबाव से श्रात्रऩत मोग के प्रबावों भें न्मूनता आती हैं । भूल्म Rs.1900

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e गुरुत्व ज्मोसतष 28 अगस्त 2020 | अॊक 1

सवा कामा ससत्रद्च कव


त्जस व्मत्रि को राख प्रमत्न औय ऩरयश्रभ कयने के फादबी उसे
भनोवाॊसछत सपरतामे एवॊ फकमे गमे कामा भें ससत्रद्च (राब) प्राद्ऱ
नहीॊ होती, उस व्मत्रि को सवा कामा ससत्रद्च कव अवश्म धायण
कयना ाफहमे।
कव के प्रभुख राब: सवा कामा ससत्रद्च कव के द्राया सुख
सभृत्रद्च औय नव ग्रहों के नकायात्भक प्रबाव को शाॊत कय धायण
कयता व्मत्रि के जीवन से सवा प्रकाय के द:ु ख-दारयद्र का नाश हो
कय सुख-सौबाग्म एवॊ उन्नसत प्रासद्ऱ होकय जीवन भे ससब प्रकाय के
शुब कामा ससद्च होते हैं । त्जसे धायण कयने से व्मत्रि मफद व्मवसाम
कयता होतो कायोफाय भे वृत्रद्च होसत हैं औय मफद नौकयी कयता होतो
उसभे उन्नसत होती हैं ।

 सवा कामा ससत्रद्च कव के साथ भें सवाजन वशीकयण कव के


सभरे होने की वजह से धायण कताा की फात का दस
ू ये व्मत्रिओ
ऩय प्रबाव फना यहता हैं ।

 सवा कामा ससत्रद्च कव के साथ भें अद्श रक्ष्भी कव के सभरे


होने की वजह से व्मत्रि ऩय सदा भाॊ भहा रक्ष्भी की कृ ऩा एवॊ
आशीवााद फना यहता हैं । त्जस्से भाॊ रक्ष्भी के अद्श रुऩ (१)-आफद
रक्ष्भी, (२)-धान्म रक्ष्भी, (३)- धैमा रक्ष्भी, (४)-गज रक्ष्भी, (५)-सॊतान रक्ष्भी, (६)-त्रवजम रक्ष्भी, (७)-त्रवद्या
रक्ष्भी औय (८)-धन रक्ष्भी इन सबी रुऩो का अशीवााद प्राद्ऱ होता हैं ।

 सवा कामा ससत्रद्च कव के साथ भें तॊि यऺा कव के सभरे होने की वजह से ताॊत्रिक फाधाए दयू होती हैं , साथ ही
नकायात्भक शत्रिमो का कोइ कुप्रबाव धायण कताा व्मत्रि ऩय नहीॊ होता। इस कव के प्रबाव से इषाा-द्वेष यखने
वारे व्मत्रिओ द्राया होने वारे दद्श
ु प्रबावो से यऺा होती हैं ।

 सवा कामा ससत्रद्च कव के साथ भें शिु त्रवजम कव के सभरे होने की वजह से शिु से सॊफॊसधत सभस्त ऩये शासनओ
से स्वत् ही छुटकाया सभर जाता हैं । कव के प्रबाव से शिु धायण कताा व्मत्रि का ाहकय कुछ नही त्रफगाड़
सकते।

अन्म कव के फाये भे असधक जानकायी के सरमे कामाारम भें सॊऩका कये :


फकसी व्मत्रि त्रवशेष को सवा कामा ससत्रद्च कव दे ने नही दे ना का अॊसतभ सनणाम हभाये ऩास सुयत्ऺत हैं ।
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e गुरुत्व ज्मोसतष 29 अगस्त 2020 | अॊक 1

भॊि ससद्च दर
ु ब
ा साभग्री
कारी हल्दी:- 370, 550, 730, 1450, 1900 कभर गट्टे की भारा - Rs- 370
भामा जार- Rs- 251, 551, 751 हल्दी भारा - Rs- 280
धन वृत्रद्च हकीक सेट Rs-280 (कारी हल्दी के साथ Rs-550) तुरसी भारा - Rs- 190, 280, 370, 460
घोडे की नार- Rs.351, 551, 751 नवयत्न भारा- Rs- 1050, 1900, 2800, 3700 & Above
हकीक: 11 नॊग-Rs-190, 21 नॊग Rs-370 नवयॊ गी हकीक भारा Rs- 280, 460, 730
रघु श्रीपर: 1 नॊग-Rs-21, 11 नॊग-Rs-190 हकीक भारा (सात यॊ ग) Rs- 280, 460, 730, 910
नाग केशय: 11 ग्राभ, Rs-145 भूॊगे की भारा Rs- 1050, 1900 & Above
स्पफटक भारा- Rs- 235, 280, 460, 730, DC 1050, 1250 ऩायद भारा Rs- 1450, 1900, 2800 & Above
सपेद ॊदन भारा - Rs- 460, 640, 910 वैजमॊती भारा Rs- 190, 280, 460
यि (रार) ॊदन - Rs- 370, 550, रुद्राऺ भारा: 190, 280, 460, 730, 1050, 1450
भोती भारा- Rs- 460, 730, 1250, 1450 & Above त्रवधुत भारा - Rs- 190, 280
कासभमा ससॊदयू - Rs- 460, 730, 1050, 1450, & Above भूल्म भें अॊतय छोटे से फड़े आकाय के कायण हैं ।
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भॊि ससद्च स्पफटक श्री मॊि


"श्री मॊि" सफसे भहत्वऩूणा एवॊ शत्रिशारी मॊि है । "श्री मॊि" को मॊि याज कहा जाता है क्मोफक मह अत्मन्त
शुब फ़रदमी मॊि है । जो न केवर दस
ू ये मन्िो से असधक से असधक राब दे ने भे सभथा है एवॊ सॊसाय के हय
व्मत्रि के सरए पामदे भद
ॊ सात्रफत होता है । ऩूणा प्राण-प्रसतत्रद्षत एवॊ ऩूणा त
ै न्म मुि "श्री मॊि" त्जस व्मत्रि के
घय भे होता है उसके सरमे "श्री मॊि" अत्मन्त फ़रदामी ससद्च होता है उसके दशान भाि से अन-सगनत राब एवॊ
सुख की प्रासद्ऱ होसत है । "श्री मॊि" भे सभाई अफद्रसतम एवॊ अद्रश्म शत्रि भनुष्म की सभस्त शुब इच्छाओॊ को
ऩूया कयने भे सभथा होसत है । त्जस्से उसका जीवन से हताशा औय सनयाशा दयू होकय वह भनुष्म असफ़रता से
सफ़रता फक औय सनयन्तय गसत कयने रगता है एवॊ उसे जीवन भे सभस्त बौसतक सुखो फक प्रासद्ऱ होसत
है । "श्री मॊि" भनुष्म जीवन भें उत्ऩन्न होने वारी सभस्मा-फाधा एवॊ नकायात्भक उजाा को दयू कय
सकायत्भक उजाा का सनभााण कयने भे सभथा है । "श्री मॊि" की स्थाऩन से घय मा व्माऩाय के स्थान ऩय स्थात्रऩत
कयने से वास्तु दोष म वास्तु से सम्फत्न्धत ऩये शासन भे न्मुनता आसत है व सुख-सभृत्रद्च, शाॊसत एवॊ ऐद्वमा फक
प्रसद्ऱ होती है । >> Shop Online | Order Now
गुरुत्व कामाारम भे त्रवसबन्न आकाय के "श्री मॊि" उप्रब्ध है
भूल्म:- प्रसत ग्राभ Rs. 28.00 से Rs.100.00

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e गुरुत्व ज्मोसतष 30 अगस्त 2020 | अॊक 1

कृ ष्ण के भुख भें ब्रह्माॊड दशान


 सॊकरन गुरुत्व कामाारम
एक फाय फरयाभ सफहत ग्वार फार खेर यहें थे
खेरते-खेरते मशोदा के ऩास ऩहुॉ े औय मशोदाजी से
कहा भाॉ! कृ ष्ण ने आज सभट्टी खाई हैं । मशोदा ने
कृ ष्ण के हाथों को ऩकड़ सरमा औय धभकाने रगी फक
तुभने सभट्टी क्मों खाई! मशोदा को मह बम था फक
कहीॊ सभट्टी खाने से कृ ष्ण कोई योग न रग जाए। भाॉ
फक डाॊट से कृ ष्ण तो इतने बमबीत हो गए थे फक वे भाॉ
की ओय आॉख बी नहीॊ उठा ऩा यहे थे। तफ मशोदा ने
कहा तूने एकान्त भें सभट्टी क्मों खाई! सभट्टी खाते हुए
तुजे फरयाभ सफहत औय बी ग्वार ने दे खा हैं । कृ ष्ण ने
कहा- सभट्टी भैंने नहीॊ खाई हैं । मे सबी रोग झुठ फोर यहे हैं । मफद आऩको रगता हैं भैंने सभट्टी खाई हैं , तो स्वमॊ
भेया भुख दे ख रे। भाॉ ने कहा मफद ऐसा है तो तू अऩना भुख खोर। रीरा कयने के सरए फार कृ ष्ण ने अऩना भुख
भाॉ के सभऺ खोर फदमा। मशोदा ने जफ भुख के अॊदय दे खते फह उसभें सॊऩूणा त्रवद्व फदखाई ऩड़ने रगा। अॊतरयऺ,
फदशाएॉ, द्रीऩ, ऩवात, सभुद्र, ऩृथ्वी,वामु, त्रवद्युत, ताया सफहत स्वगारोक, जर, अत्ग्न, वामु, आकाश इत्माफद त्रवस ि सॊऩूणा
त्रवद्व एक ही कार भें फदख ऩड़ा। इतना ही नहीॊ, मशोदा ने उनके भुख भें ब्रज के साथ स्वमॊ अऩने आऩको बी दे खा।

इन फातों से मशोदा को तयह-तयह के तका-त्रवतका होने रगे। क्मा भैं स्वप्न दे ख यही हूॉ! मा दे वताओॊ की कोई भामा
हैं मा भेयी फुत्रद्च ही व्माभोह हैं मा इस भेये कृ ष्ण का ही कोई स्वाबात्रवक प्रबावऩूणा भत्काय हैं । अन्त भें उन्होंने
मही दृढ़ सनद्ळम फकमा फक अवश्म ही इसी का भत्काय है औय सनद्ळम ही ईद्वय इसके रूऩ भें अवतरयत हुएॊ हैं । तफ
उन्होंने कृ ष्ण की स्तुसत की उस शत्रि स्वरुऩ ऩयब्रह्म को भैं नभस्काय कयती हूॉ। कृ ष्ण ने जफ दे खा फक भाता मशोदा
ने भेया तत्व ऩूणत
ा ् सभझ सरमा हैं तफ उन्होंने तुयॊत ऩुि स्नेहभमी अऩनी शत्रि रूऩ भामा त्रफखेय दी त्जससे मशोदा
ऺण भें ही सफकुछ बूर गई। उन्होंने कृ ष्ण को उठाकय अऩनी गोद भें उठा सरमा।

श्री भहारक्ष्भी मॊि


धन फक दे वी रक्ष्भी हैं जो भनुष्म को धन, सभृत्रद्च एवॊ ऐद्वमा प्रदान कयती हैं । अथा(धन) के त्रफना भनुष्म जीवन द्ु ख, दरयद्रता,
योग, अबावों से ऩीफडत होता हैं , औय अथा(धन) से मुि भनुष्म जीवन भें सभस्त सुख-सुत्रवधाएॊ बोगता हैं । श्री भहारक्ष्भी मॊि के
ऩूजन से भनुष्म की जन्भों जन्भ की दरयद्रता का नाश होकय, धन प्रासद्ऱ के प्रफर मोग फनने रगते हैं , उसे धन-धान्म औय
रक्ष्भी की वृत्रद्च होती हैं । श्री भहारक्ष्भी मॊि के सनमसभत ऩूजन एवॊ दशान से धन की प्रासद्ऱ होती है औय मॊि जी सनमसभत
उऩासना से दे वी रक्ष्भी का स्थाई सनवास होता है । श्री भहारक्ष्भी मॊि भनुष्म फक सबी बौसतक काभनाओॊ को ऩूणा कय धन
ऐद्वमा प्रदान कयने भें सभथा हैं । अऺम तृतीमा, धनतेयस, दीवावरी, गुरु ऩुष्माभृत मोग यत्रवऩुष्म इत्माफद शुब भुहूता भें मॊि की
स्थाऩना एवॊ ऩूजन का त्रवशेष भहत्व हैं ।
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e गुरुत्व ज्मोसतष 31 अगस्त 2020 | अॊक 1

कृ ष्ण स्भयण का आध्मात्त्भक भहत्व


 सॊकरन गुरुत्व कामाारम
शय्मासनाटनाराप्रीडास्नानाफदकभासु।
श्री शुकदे वजी याजा ऩयीत्ऺत ् से कहते हैं -
न त्रवद्ु सन्तभात्भानॊ वृष्णम् कृ ष्ण ेतस्॥
सकृ न्भन् कृ ष्णाऩदायत्रवन्दमोसनावेसशतॊ तद्गुणयासग मैरयह।
बावाथा: श्रीकृ ष्ण को अऩना सवास्व सभझने वारे बि
न ते मभॊ ऩाशबृतद्ळ तद्भटान ् स्वप्नेऽत्रऩ ऩश्मत्न्त फह
श्रीकृ ष्ण भें इतने तन्भम यहते थे फक सोते, फैठते, घूभते,
ीणासनष्कृ ता्॥
फपयते, फात ीत कयते, खेरते, स्नान कयते औय बोजन
बावाथा: जो भनुष्म केवर एक फाय श्रीकृ ष्ण के गुणों भें
आफद कयते सभम उन्हें अऩनी सुसध ही नहीॊ यहती थी।
प्रेभ कयने वारे अऩने स त्त को श्रीकृ ष्ण के यण कभरों
वैयेण मॊ नृऩतम् सशशुऩारऩौण्र-
भें रगा दे ते हैं , वे ऩाऩों से छूट जाते हैं , फपय उन्हें ऩाश
शाल्वादमो गसतत्रवरासत्रवरोकनाद्यै्।
हाथ भें सरए हुए मभदत
ू ों के दशान स्वप्न भें बी नहीॊ हो ध्मामन्त आकृ तसधम् शमनासनादौ
सकते।
तत्साम्मभाऩुयनुयिसधमाॊ ऩुन् फकभ॥्
अत्रवस्भृसत् कृ ष्णऩदायत्रवन्दमो्
बावाथा: जफ सशशुऩार, शाल्व औय ऩौण्रक आफद याजा
त्ऺणोत्मबद्रत्ण शभॊ तनोसत ।
वैयबाव से ही खाते, ऩीते, सोते, उठते, फैठते हय वि श्री
सत्वस्म शुत्रद्चॊ ऩयभात्भबत्रिॊ
हरय की ार, उनकी स तवन आफद का स न्तन कयने के
ऻानॊ त्रवऻानत्रवयागमुिभ॥्
कायण भुि हो गए, तो फपय त्जनका स त्त श्री कृ ष्ण भें
बावाथा: श्रीकृ ष्ण के यण कभरों का स्भयण सदा फना
अनन्म बाव से रग यहा है , उन त्रवयि बिों के भुि
यहे तो उसी से ऩाऩों का नाश, कल्माण की प्रासद्ऱ, अन्त्
होने भें तो सॊदेह ही क्मा हैं ?
कयण की शुत्रद्च, ऩयभात्भा की बत्रि औय वैयाग्ममुि
एन् ऩूवक
ा ृ तॊ मत्तद्राजान् कृ ष्णवैरयण्।
ऻान-त्रवऻान की प्रासद्ऱ अऩने आऩ ही हो जाती हैं ।
जहुस्त्वन्ते तदात्भान् कीट् ऩेशस्कृ तो मथा॥
ऩुॊसाॊ कसरकृ तान्दोषान्द्रव्मदे शात्भसॊबवान।्
बावाथा: श्रीकृ ष्ण से द्रे ष कयने वारे सभस्त नयऩसतगण
सवाान्हरयत स त्तस्थो बगवान्ऩुरुषोत्तभ्॥
अन्त भें श्री बगवान के स्भयण के प्रबाव से ऩूवा सॊस त
बावाथा:बगवान ऩुरुषोत्तभ श्रीकृ ष्ण जफ स त्त भें त्रवयाजते
ऩाऩों को नद्श कय वैसे ही बगवद्रऩ
ू हो जाते हैं , जैसे
हैं , तफ उनके प्रबाव से कसरमुग के साये ऩाऩ औय द्रव्म,
ऩेशस्कृ त के ध्मान से कीड़ा तद्रऩ
ू हो जाता है , अतएव
दे श तथा आत्भा के दोष नद्श हो जाते हैं ।
श्रीकृ ष्ण का स्भयण सदा कयते यहना ाफहए।

हभाये त्रवशेषऻ ज्मोसतषी से ऩूछें अऩने प्रद्ल


सम्ऩूणा ज्मोसतष ऩयाभशा, जन्भ कुण्डरी सनभााण, प्रद्ल कुण्डरी, गुण सभरान, भुहूत,ा यत्न औय रुद्राऺ
ऩयाभशा, वास्तु ऩयाभशा एवॊ अन्म फकसी बी सभस्मा का सभाधान ज्मोसतष, मॊि, भॊि एवॊ अन्म सयर
घये रु उऩामो द्राया सनदान हे तु सॊऩका कये । हभायी सेवाएॊ न्मूनतभ शुल्क ऩय उप्रब्ध है ।
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e गुरुत्व ज्मोसतष 32 अगस्त 2020 | अॊक 1

अजा (जमा) एकादशी व्रत की ऩौयात्णक कथा


 सॊकरन गुरुत्व कामाारम
बाद्रऩद भास कृ ष्णऩऺ की एकादशी
एक फाय मुसधत्रद्षय ने बगवान श्रीकृ ष्ण से ऩूछते हैं , हे बगवान! बाद्रऩद कृ ष्ण एकादशी का क्मा नाभ है ? इसभें
फकस दे वता की ऩूजा की जाती है औय इसका व्रत कयने से क्मा पर सभरता है ? " व्रत कयने की त्रवसध तथा इसका
भाहात्म्म कृ ऩा कयके कफहए। बगवान श्रीकृ ष्ण कहने रगे फक इस एकादशी का नाभ अजा एकादशी है । अफ आऩ
शाॊसतऩूवक
ा इस व्रतकी कथा सुसनए। अजा एकादशी व्रत सभस्त प्रकाय के ऩाऩों का नाश कयने वारी हैं । जो भनुष्म
इस फदन बगवान ऋत्रषकेश की ऩूजा कयता है उसको वैकुॊठ की प्रासद्ऱ अवश्म होती है । अफ आऩ इसकी कथा सुसनए।
प्रा ीनकार भें आमोध्मा नगयी भें हरयश द्र
ॊ नाभक एक क्रवतॉ याजा याज्म कयता था। हरयश द्र
ॊ अत्मन्त
वीय, प्रताऩी तथा सत्मवादी था। एक फाय दै वमोग से उसने अऩना याज्म स्वप्न भें फकसी ऋत्रष को दान कय फदमा
औय ऩरयत्स्थसतवश के वशीबूत होकय अऩना साया याज्म व धन त्माग फदमा, साथ ही अऩनी स्त्री, ऩुि तथा स्वमॊ को
बी फे फदमा।
उसने उस ाण्डार के महाॊ भृतकों के वस्त्र रेने का काभ फकमा । भगय फकसी प्रकाय से सत्म से त्रव सरत
नहीॊ हुआ। जफ इसी प्रकाय उसे कई वषा फीत गमे तो उसे अऩने इस कभा ऩय फड़ा द्ु ख हुआ औय वह इससे भुक्त
होने का उऩाम खोजने रगा । कई फाय याजा स त
ॊ ा भें डू फकय अऩने भन भें त्रव ाय कयने रगता फक भैं कहाॉ जाऊॉ ,
क्मा करूॉ, त्जससे भेया उद्चाय हो।
इस प्रकाय याजा को कई वषा फीत गए। एक फदन याजा इसी स त
ॊ ा भें फैठा हुआ था फक फहाॉ गौतभ ऋत्रष आ
गए। याजा ने उन्हें दे खकय प्रणाभ फकमा औय अऩनी सायी द:ु खबयी कहानी कह सुनाई। मह फात सुनकय गौतभ
ऋत्रष कहने रगे फक याजन तुम्हाये बाग्म से आज से सात फदन फाद बाद्रऩद कृ ष्ण ऩऺ की अजा नाभ की एकादशी
आएगी, तुभ त्रवसधऩूवक
ा व्रत कयो तथा यात्रि को जागयण कयो।
गौतभ ऋत्रष ने कहा फक इस व्रत के ऩुण्म प्रबाव से तुम्हाये सभस्त ऩाऩ नद्श हो जाएॉगे। इस प्रकाय याजा से
कहकय गौतभ ऋत्रष उसी सभम अॊतध्माान हो गए। याजा ने उनके कथनानुसाय एकादशी आने ऩय त्रवसधऩूवक
ा व्रत व
जागयण फकमा। उस व्रत के प्रबाव से याजा के सभस्त ऩाऩ नद्श हो गए। स्वगा से फाजे-नगाड़े फजने रगे औय ऩुष्ऩों
की वषाा होने रगी। उसने अऩने साभने ब्रह्मा, त्रवष्णु, भहादे वजी तथा इन्द्र आफद दे वताओॊ को खड़ा ऩामा । उसने
अऩने भृतक ऩुि को जीत्रवत औय अऩनी स्त्री को वस्त्र तथा आबूषणों से मुि दे खा। वास्तव भें एक ऋत्रष ने याजा की
ऩयीऺा रेने के सरए मह सफ कौतुक फकमा था । फकन्तु अजा एकादशी के व्रत के प्रबाव से साया षड मॊि सभाप्त हो
गमा औय व्रत के प्रबाव से याजा को ऩुन: याज्म सभर गमा। अॊत भें वह अऩने ऩरयवाय सफहत स्वगा को गमा।
हे याजन! मह सफ अजा एकादशी के प्रबाव से ही हुआ। अत: जो भनुष्म मत्न के साथ त्रवसधऩूवक
ा इस व्रत को
कयते हुए यात्रि जागयण कयते हैं , उनके सभस्त ऩाऩ नद्श होकय अॊत भें वे स्वगारोक को प्राद्ऱ होते हैं । इस एकादशी
की कथा के श्रवणभाि से अद्वभेध मऻ का पर प्राद्ऱ होता है ।
कथा का उद्ङे श्म : हभें को ईश्वय के प्रसत ऩूणा आस्था एवॊ सनष्ठा यखनी ाफहए । त्रवऩरयत ऩरयत्स्थसतमों भें बी हभें
सत्म का भागा नहीॊ छोड़ना ाफहए।

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e गुरुत्व ज्मोसतष 33 अगस्त 2020 | अॊक 1

ऩरयवसतानी (ऩद्मा)एकादशी

 सॊकरन गुरुत्व कामाारम


बाद्रऩद भास शुक्रऩऺ की एकादशी आऩके शमन कयने ऩय भनुष्म का क्मा कताव्म है । मह
एक फाय मुसधत्रद्षय ने बगवान श्रीकृ ष्ण से ऩूछते सफ आऩ भुझसे त्रवस्ताय से फताइए।
हैं , हे केशव ! कृ ऩमा मह फताइमे फक बाद्रऩद शुक्रऩऺ बगवान श्रीकृ ष्ण कहने रगे फक हे याजन!
भें जो एकादशी होती है , उस का क्मा नाभ है ? इसभें िेतामुग भें फसर नाभक एक दै त्म था। जो भेया ऩयभ
फकस दे वता की ऩूजा की जाती है औय इसका व्रत कयने बि था। त्रवत्रवध प्रकाय से भेया ऩूजन फकमा कयता था
से क्मा पर सभरता है ? " व्रत कयने की त्रवसध तथा औय सनत्म ही ब्राह्मणों का ऩूजन तथा मऻ का आमोजन
इसका भाहात्म्म कृ ऩा कयके कफहए। बगवान श्रीकृ ष्ण कयता था। रेफकन उसका इॊ द्र से द्रे ष था त्जस कायण
कहने रगे फक इस एकादशी का नाभ ऩद्मा मा उसने इॊ द्ररोक तथा सबी दे वताओॊ को जीत सरमा था।
ऩरयवसतानी एकादशी मा वाभन एकादशी है । अफ आऩ एक फाय सबी दे वता एकि होकय सो -त्रव ायकय
शाॊसतऩूवक
ा इस व्रतकी कथा सुसनए। त्जसे ब्रह्माजी ने बगवान के ऩास गए। फृहस्ऩसत सफहत इॊ द्र आफदक
दे वत्रषा नायद से कही थी। दे वता प्रबु के सनकट आकय औय नतभस्तक होकय
ऩरयवसतानी एकादशी व्रत सभस्त प्रकाय के ऩुण्म, बगवान का ऩूजन औय स्तुसत कयने रगे। दे वताओॊ ने
स्वगा औय भोऺ को दे ने वारी तथा सफ ऩाऩों का नाश फसर से दे वरोक वाऩस रेने का अनुयोध फकमा। दे वताओॊ
कयने वारी, इसका मऻ कयने से वाजऩेम मऻ का पर के अनुग्रह ऩय भैंने ऩाॊ वाॊ अवताय वाभन रूऩ धायण
सभरता है । ऩात्रऩमों के ऩाऩ नाश कयने के सरए इससे कय सरमा औय फपय अत्मॊत तेजस्वी रूऩ धायण कय
उत्तभ कोई उऩाम नहीॊ। जो भनुष्म इस फदन बगवान के याजा फसर को जीत सरमा।
वाभन रूऩ की ऩूजा कयता है वह भनुष्म तीनों रोक भें इतनी कथा सुनकय याजा मुसधत्रद्षय फोरे फक हे
ऩूज्म होते हैं । अत: भोऺ की इच्छा कयने वारे भनुष्म जनादा न! आऩने वाभन रूऩ धायण कयके उस भहाफरी
को इस व्रत को अवश्म कयना ाफहए। दै त्म को फकस प्रकाय जीता?
अफ भैं उत्तभ ऩरयवसतानी एकादशी का भाहात्म्म श्रीकृ ष्ण कहने रगे भैंने वाभन रूऩधायण कय
भैं तुभसे कहता हूॊ तुभ ध्मानऩूवक
ा सुनो। जो बगवान फसर से तीन ऩग बूसभ की मा ना कयते हुए कहा हे
का कभर से ऩूजन कयते हैं , वे अवश्म बगवान के याजन मह तुभको अवश्म ही दे नी होगी।
सभीऩ होते हैं । याजा फसर ने इसे तुच्छ मा ना सभझकय तीन
त्जस भनुष्म ने बाद्रऩद शुक्र एकादशी को ऩग बूसभ का सॊकल्ऩ भुझे दे फदमा औय भैंने अऩने त्रि-
त्रवसध-त्रवधान से व्रत औय ऩूजन अवश्म कयना ाफहए। त्रवक्रभ रूऩ को फढ़ाकय महाॊ तक फक बूरोक भें ऩद,
इस फदन बगवान श्रीहरय कयवट रेते हैं , इससरए इसे बुवरोक भें जॊघा, स्वगारोक भें कभय, आनन्दरोक भें
ऩरयवसतानी एकादशी बी कहते हैं । ऩेट, जनरोक भें रृदम, मभरोक भें कॊठ की स्थाऩना कय
बगवान श्रीकृ ष्ण के व न सुनकय मुसधत्रद्षय फोरे सत्मरोक भें भुख, उसके ऊऩय भस्तक स्थात्रऩत फकमा।
हे बगवान! भुझे असत कुतूहर हो यहा है फक आऩ फकस सूम,ा द्र
ॊ भा आफद सफ ग्रह गण, मोग, नऺि,
प्रकाय सोते औय कयवट रेते हैं तथा फकस तयह याजा इॊ द्राफदक दे वता औय शेष आफद सफ नागगणों ने त्रवत्रवध
फसर को फाॊधक फनामा औय वाभन रूऩ धायण कय प्रकाय से से प्राथाना की। तफ भैंने याजा फसर का हाथ
क्मा-क्मा रीराएॊ कीॊ? इस व्रत की क्मा त्रवसध है तथा ऩकड़कय कहा फक हे याजन! एक ऩद से ऩृथ्वी, दस
ू ये से
स्वगारोक ऩूणा हो गए। अफ तीसया ऩग कहाॊ यखूॊ?

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e गुरुत्व ज्मोसतष 34 अगस्त 2020 | अॊक 1

तफ फसर ने अऩना ससय झुका सरमा औय भैंने बगवान त्रवष्णु का उस फदन ऩूजन कयना
अऩना ऩैय उसके भस्तक ऩय यख फदमा त्जससे भेया वह ाफहए। ऩरयवसतानी एकादशी के फदन ताॊफा, ाॊदी, ावर
बि ऩातार को रा गमा। फपय उसकी त्रवनती औय औय दही का दान कयना उस त है । यात्रि को जागयण
नम्रता को दे खकय भैंने कहा फक हे फसर! भैं सदै व अवश्म कयना ाफहए।
तुम्हाये सनकट ही यहूॊगा। त्रवयो न के ऩुि फसर के जो त्रवसधऩूवक
ा ऩरयवसतानी एकादशी का व्रत कयते
अनुयोध ऩय बाद्रऩद शुक्र एकादशी के फदन फसर के हैं , वे सफ ऩाऩों से भुि होकय स्वगा भें जाकय ॊद्रभा के
आश्रभ ऩय भेयी भूसता स्थात्रऩत हुई। सभान प्रकासशत होकय मश ऩाते हैं । जो ऩाऩनाशक इस
इसी प्रकाय दस
ू यी ऺीयसागय भें शेषनाग के ऩृद्ष कथा को ऩढ़ते मा सुनते हैं , उनको हजाय अद्वभेध मऻ
ऩय हुई! हे याजन! इस एकादशी को बगवान शमन का पर प्राद्ऱ होता है ।
कयते हुए कयवट रेते हैं , इससरए तीनों रोकों के स्वाभी ***

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e गुरुत्व ज्मोसतष 35 अगस्त 2020 | अॊक 1

श्री कृ ष्ण का नाभकयण सॊस्काय


 सॊकरन गुरुत्व कामाारम
वसुदेवजी की प्राथाना ऩय मदओ
ु ॊ के ऩुयोफहत गगाा ामाजी ने वसुदेव से कहा योफहणी का मह
भहातऩस्वी गगाा ामाजी ब्रज नगयी ऩहुॉ े। उन्हें दे खकय ऩुि गुणों से अऩने रोगों के भन को प्रसन्न कये गा।
नॊदफाफा अत्मसधक प्रसन्न हुए। उन्होंने हाथ जोड़कय अत् इसका नाभ याभ होगा। इसी नाभ से मह ऩुकाया
प्रणाभ फकमा औय उन्हें त्रवष्णु तुल्म भानकय उनकी जाएगा। इसभें फर की असधकता असधक होगी। इससरए
त्रवसधवत ऩूजा की। इसके ऩद्ळात नॊदजी ने उनसे कहा इसे रोग फर बी कहें गे। मदव
ु ॊसशमों की आऩसी पूट
आऩ कृ प्मा भेये इन दोनों फच् ों का नाभकयण सॊस्काय सभटाकय उनभें एकता को मह स्थात्रऩत कये गा, अत्
कय दीत्जए। रोग इसे सॊकषाण बी कहें गे। अत् इसका नाभ फरयाभ
इस ऩय गगाा ामाजी ने कहा फक ऐसा कयने भें होगा।
कुछ अड़ नें हैं । भैं मदव
ु ॊसशमों का ऩुयोफहत हूॉ, मफद भैं अफ उन्होंने मशोदा औय नॊद को रक्ष्म कयके
तुम्हाये इन ऩुिों का नाभकयण सॊस्काय कय दॉ ू तो रोग कहा- मह तुम्हाया ऩुि प्रत्मेक मुग भें अवताय ग्रहण
इन्हें दे वकी का ही ऩुि भानने रगेंगे, क्मोंफक कॊस तो कयता यहता हैं । कबी इसका वणा द्वेत, कबी रार, कबी
ऩहरे से फह ऩाऩभम फुत्रद्च वारा हैं । वह सवादा सनयथाक ऩीरा होता है । ऩूवा के प्रत्मेक मुगों भें शयीय धायण
फातें ही सो ता है । दस
ू यी ओय तुम्हायी व वसुदेव की कयते हुए इसके तीन वणा हो क
ु े हैं । इस फाय कृ ष्णवणा
भैिी है । का हुआ है , अत् इसका नाभ कृ ष्ण होगा। तुम्हाया मह
अफ भु्म फात मह हैं फक दे वकी की आठवीॊ ऩुि ऩहरे वसुदेव के महाॉ जन्भा हैं , अत् श्रीभान वासुदेव
सॊतान रड़की नहीॊ हो सकती क्मोंफक मोगभामा ने कॊस नाभ से त्रवद्रान रोग ऩुकायें गे।
से मही कहा था अये ऩाऩी भुझे भायने से क्मा पामदा तुम्हाये ऩुि के नाभ औय रूऩ तो सगनती के ऩये
है ? वह सदै व मही सो ता है फक कहीॊ न कहीॊ भुझे हैं , उनभें से गुण औय कभा अनुरूऩ कुछ को भैं जानता
भायने वारा अवश्म उत्ऩन्न हो क
ु ा हैं । मफद भैं हूॉ। दस
ू ये रोग मह नहीॊ जान सकते। मह तुम्हाये गोऩ
नाभकयण सॊस्काय कयवा दॉ ग
ू ा तो भुझे ऩूणा आशा हैं फक गौ एवॊ गोकुर को आनॊफदत कयता हुआ तुम्हाया
वह भेये फच् ों को भाय डारेगा औय हभ रोगों का कल्माण कये गा। इसके द्राया तुभ बायी त्रवऩत्रत्तमों से बी
अत्मसधक असनद्श कये गा। भुि यहोगे। इस ऩृथ्वी ऩय जो बगवान भानकय इसकी
नॊदजी ने गगाा ामाजी से कहा मफद ऐसी फात है बत्रि कयें गे उन्हें शिु बी ऩयात्जत नहीॊ कय सकेंगे।
तो फकसी एकान्त स्थान भें रकय त्रवसध ऩूवक
ा इनके त्जस तयह त्रवष्णु के बजने वारों को असुय नहीॊ
फद्रजासत सॊस्काय कयवा दीत्जए। इस त्रवषम भें भेये अऩने ऩयात्जत कय सकते। मह तुम्हाया ऩुि सौंदमा, कीसता,
आदभी बी न जान सकेंगे। नॊद की इन फातों को प्रबाव आफद भें त्रवष्णु के सदृश होगा। अत् इसका
सुनकय गगाा ामा ने एकान्त भें सछऩकय फच् े का ऩारन-ऩोषण ऩूणा सावधानी से कयना। इस प्रकाय कृ ष्ण
नाभकयण कयवा फदमा। नाभकयण कयना तो उन्हें अबीद्श के त्रवषम भें आदे श दे कय गगाा ामा अऩने आश्रभ को
ही था, इसीसरए वे आए थे। रे गए।

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e गुरुत्व ज्मोसतष 36 अगस्त 2020 | अॊक 1

॥ श्रीकृ ष्ण ारीसा ॥


दोहा केसतक भहा असुय सॊहायमो।
् कॊसफह केस ऩकफड़ दै भायमो॥

फॊशी शोसबत कय भधुय, नीर जरद तन श्माभ। भात-त्रऩता की फत्न्द छुड़ाई। उग्रसेन कहॉ याज फदराई॥
अरुणअधयजनु त्रफम्फपर, नमनकभरअसबयाभ॥ भफह से भृतक छहों सुत रामो। भातु दे वकी शोक सभटामो॥
ऩूणा इन्द्र, अयत्रवन्द भुख, ऩीताम्फय शुब साज। बौभासुय भुय दै त्म सॊहायी। रामे षट दश सहसकुभायी॥
जम भनभोहन भदन छत्रव, कृ ष्ण न्द्र भहायाज॥ दै बीभफहॊ तृण ीय सहाया। जयाससॊधु याऺस कहॉ भाया॥
जम मदन
ु ॊदन जम जगवॊदन। जम वसुदेव दे वकी नन्दन॥ असुय फकासुय आफदक भायमो।
् बिन के तफ कद्श सनवायमो॥

जम मशुदा सुत नन्द दर
ु ाये । जम प्रबु बिन के दृग ताये ॥ दीन सुदाभा के द्ु ख टायमो।
् तॊदर
ु तीन भूॊठ भुख डायमो॥

जम नट-नागय, नाग नथइमा॥ कृ ष्ण कन्हइमा धेनु यइमा॥ प्रेभ के साग त्रवदयु घय भाॉगे। दम
ु ोधन के भेवा त्मागे॥
ऩुसन नख ऩय प्रबु सगरयवय धायो। आओ दीनन कद्श सनवायो॥ रखी प्रेभ की भफहभा बायी। ऐसे श्माभ दीन फहतकायी॥
वॊशी भधुय अधय धरय टे यौ। होवे ऩूणा त्रवनम मह भेयौ॥ बायत के ऩायथ यथ हाॉके। सरमे क्र कय नफहॊ फर थाके॥
आओ हरय ऩुसन भाखन ाखो। आज राज बायत की याखो॥ सनज गीता के ऻान सुनाए। बिन रृदम सुधा वषााए॥
गोर कऩोर, स फुक अरुणाये । भृद ु भुस्कान भोफहनी डाये ॥ भीया थी ऐसी भतवारी। त्रवष ऩी गई फजाकय तारी॥
यात्जत यात्जव नमन त्रवशारा। भोय भुकुट वैजन्तीभारा॥ याना बेजा साॉऩ त्रऩटायी। शारीग्राभ फने फनवायी॥
कुॊडर श्रवण, ऩीत ऩट आछे । कफट फकॊफकणी काछनी काछे ॥ सनजभामा तुभ त्रवसधफहॊ फदखामो। उय ते सॊशम सकर सभटामो॥
नीर जरज सुन्दयतनु सोहे । छत्रफरत्ख, सुयनय भुसनभन भोहे ॥ तफ शत सनन्दा करय तत्कारा। जीवन भुि बमो सशशुऩारा॥
भस्तक सतरक, अरक घुॉघयारे। आओ कृ ष्ण फाॊसुयी वारे॥ जफफहॊ द्रौऩदी टे य रगाई। दीनानाथ राज अफ जाई॥
करय ऩम ऩान, ऩूतनफह तायमो।
् अका फका कागासुय भायमो॥
् तुयतफह वसन फने नॊदरारा। फढ़े ीय बै अरय भुॉह कारा॥
भधुवन जरतअसगन जफज्वारा। बैशीतररखतफहॊ नॊदरारा॥ अस अनाथ के नाथ कन्हइमा। डू फत बॊवय फ ावइ नइमा॥
सुयऩसत जफ ब्रज ढ़्मो रयसाई। भूसय धाय वारय वषााई॥ 'सुन्दयदास' आस उय धायी। दमा दृत्रद्श कीजै फनवायी॥
रगत रगत व्रज हन फहामो। गोवधान नख धारय फ ामो॥ नाथ सकर भभ कुभसत सनवायो। ऺभहु फेसग अऩयाध हभायो॥
रत्ख मसुदा भनभ्रभ असधकाई। भुखभॊह ौदह बुवन फदखाई॥ खोरो ऩट अफ दशानदीजै। फोरो कृ ष्ण कन्हइमा की जै॥
दद्श
ु कॊस असत उधभ भ ामो। कोफट कभर जफ पूर भॊगामो॥ दोहा
नासथ कासरमफहॊ तफ तुभ रीन्हें । यण स ह्न दै सनबाम कीन्हें ॥ मह ारीसा कृ ष्ण का, ऩाठ कयै उय धारय।
करय गोत्रऩन सॊग यास त्रवरासा। सफकी ऩूयण कयी असबराषा॥ अद्श ससत्रद्च नवसनसध पर, रहै ऩदायथ ारय ॥

नवयत्न जफड़त श्री मॊि


शास्त्र व न के अनुसाय शुद्च सुवणा मा यजत भें सनसभात श्री मॊि के ायों औय मफद नवयत्न जड़वा ने ऩय मह नवयत्न
जफड़त श्री मॊि कहराता हैं । सबी यत्नो को उसके सनत्द्ळत स्थान ऩय जड़ कय रॉकेट के रूऩ भें धायण कयने से व्मत्रि
को अनॊत एद्वमा एवॊ रक्ष्भी की प्रासद्ऱ होती हैं । व्मत्रि को एसा आबास होता हैं जैसे भाॊ रक्ष्भी उसके साथ हैं ।
नवग्रह को श्री मॊि के साथ रगाने से ग्रहों की अशुब दशा का धायण कयने वारे व्मत्रि ऩय प्रबाव नहीॊ होता हैं ।
गरे भें होने के कायण मॊि ऩत्रवि यहता हैं एवॊ स्नान कयते सभम इस मॊि ऩय स्ऩशा कय जो जर त्रफॊद ु शयीय को
रगते हैं , वह गॊगा जर के सभान ऩत्रवि होता हैं । इस सरमे इसे सफसे तेजस्वी एवॊ परदासम कहजाता हैं । जैसे
अभृत से उत्तभ कोई औषसध नहीॊ, उसी प्रकाय रक्ष्भी प्रासद्ऱ के सरमे श्री मॊि से उत्तभ कोई मॊि सॊसाय भें नहीॊ हैं एसा
शास्त्रोि व न हैं । इस प्रकाय के नवयत्न जफड़त श्री मॊि गुरूत्व कामाारम द्राया शुब भुहूता भें प्राण प्रसतत्रद्षत कयके
फनावाए जाते हैं । Rs: 4600, 5500, 6400 से 10,900 से असधक से असधक >> Order Now

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e गुरुत्व ज्मोसतष 37 अगस्त 2020 | अॊक 1

त्रवप्रऩत्नीकृ त श्रीकृ ष्णस्तोि


त्रवप्रऩत्न्म ऊ ्ु

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e गुरुत्व ज्मोसतष 38 अगस्त 2020 | अॊक 1

॥ श्रीकृ ष्णस्तवयाज ॥
श्रीभहादे व उवा । नभस्ते नयकायाते नभस्ते भधुसूदन ।
नभस्ते रसरताऩाङ्ग नभस्ते नयकान्तक ॥११॥
शृणु दे त्रव प्रवक्ष्मासभ स्तोिभ ् ऩयभदर
ु ब
ा भ् ।
मज्ऻात्वा न ऩुनगाच्छे न्नयो सनयममातनाभ ् ॥१॥ नभ् ऩाऩहये शान नभ् सऩाबवाऩह ।
नभ् सम्बूतसवाात्भन्नभ् सम्बृतकौस्तुब ॥१२॥
नायदाम मत्प्रोिभ ् ब्रह्मऩुिेण धीभता ।
सनत्कुभाये ण ऩुया मोगीन्द्रगुरुवत्भाना ॥२॥ नभस्ते नमनातीत नभस्ते बमहायक ।
नभो त्रवसबन्नवेषाम नभ् श्रुसतऩथासतग ॥१३॥
श्रीनायद उवा ।
प्रसीद बगवन्भह्यभऻानात्कुत्ण्ठतात्भने । नभत्द्ळन्भूसताबेदेन सगात्स्थत्मन्तहे तवे ।
तवाॊसघ्रऩङ्कजयजोयासगणीॊ बत्रिभुत्तभाभ ् ॥३॥ त्रवष्णवे त्रिदशायासतत्जष्णवे ऩयभात्भने ॥१४॥

अज प्रसीद बगवन्नसभतद्युसतऩञ्जय । क्रसबन्नारय क्राम फक्रणे क्रवल्रब ।


अप्रभेमॊ प्रसीदास्भद्ङ्ु खहन्ऩुरुषोत्तभ ॥४॥ त्रवद्वाम त्रवद्ववन्द्याम त्रवद्वबूतानुवसताने ॥१५॥

स्वसॊवेद्य प्रसीदास्भदानन्दात्भन्ननाभम । नभोऽस्तु मोसगध्मेमात्भन्नभोऽस्त्वध्मात्त्भरूत्रऩणे ।


अस न्त्मसाय त्रवद्वात्भन्प्रसीद ऩयभेद्वय ॥५॥ बत्रिप्रदाम बिानाॊ नभस्ते भुत्रिदासमने ॥१६॥

प्रसीद तुङ्गतुङ्गानाॊ प्रसीद सशवशोबन । ऩूजनॊ हवनॊ ेज्मा ध्मानभ ् ऩद्ळान्नभत्स्क्रमा ।


प्रसीद गुणगम्बीय गम्बीयाणाॊ भहाद्युते ॥६॥ दे वेश कभा सवं भे बवेदायाधनभ ् तव ॥१७॥

प्रसीद व्मिॊ त्रवस्तीणं त्रवस्तीणाानाभगो य । इसत हवनजऩा ााबेदतो त्रवष्णुऩूजा सनमतरृदमकभाा मस्तु
प्रसीदाद्रााद्राजातीनाॊ प्रसीदान्तान्तदासमनाभ ् ॥७॥ भन्िी स याम । स खरु सकरकाभान ् प्राप्म कृ ष्णान्त-
यात्भा जननभृसतत्रवभुिोऽत्मुत्तभाॊ बत्रिभेसत ॥१८॥
गुयोगायीम् सवेश प्रसीदानन्त दे फहनाभ ् ।
जम भाधव भामात्भन ् जम शाद्वतशङ्खबृत ् ॥८॥ गोगोऩगोत्रऩकावीतभ ् गोऩारभ ् गोषु गोप्रदभ ् ।
गोऩैयीड्क्मॊ गोसहस्रैनौसभ गोकुरनामकभ ् ॥१९॥
जम शङ्खधय श्रीभन ् जम नन्दकनन्दन ।
जम क्रगदाऩाणे जम दे व जनादा न ॥९॥ प्रीणमेदनमा स्तुत्मा जगन्नाथॊ जगन्भमभ ् ।
धभााथक
ा ाभभोऺाणाभाद्ऱमे ऩुरुषोत्तभ् ॥२०॥
जम यत्नवयाफद्चफकयीटाकान्तभस्तक ।
जम ऩत्ऺऩसतच्छामासनरुद्चाकाकयारुण ॥१०॥ ॥ इसत श्रीनायदऩञ् यािे श्रीकृ ष्णस्तवयाज् सम्ऩूण्ा ॥

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e गुरुत्व ज्मोसतष 39 अगस्त 2020 | अॊक 1

श्रीकृ ष्णस्तवयाज् ॥ एकाऺयकृ ष्णभन्िभ ् ॥


कृ ष्णदासत्रवयस त् ॐ ऩूणऻ
ा ानात्भने रृदमाम नभ् ।

अनन्तकन्दऩाकरात्रवरासॊ फकशोय न्द्रॊ यससकेन्द्रशेखयभ ् ।

श्माभॊ भहासुन्दयतासनधानॊ श्रीकृ ष्ण न्द्रॊ शयणभ ् गतोऽत्स्भ ॥१॥ ॐ ऩूणैद्वमाात्भने सशयसे स्वाहा ।

अनन्तत्रवद्युद्युसत ारुऩीतॊ कौशेमसॊवीतसनतम्फत्रफम्फभ ् । ॐ ऩूणऩ


ा यभात्भने सशखामै वषट् ।

अनन्तभेघच्छत्रवफदव्मभूसतं श्रीकृ ष्ण न्द्रॊ शयणभ ् गतोऽत्स्भ ॥२॥

ॐ ऩूणाानन्दात्भने कव ाम हुॊ ।

भहे न्द्र ाऩच्छत्रवत्रऩच्छ ढ


ू ॊ कस्तूरयकास िकशोसबभारभ ् ।

भन्दादयोद्घण
ू त्रा वशारनेिॊ श्रीकृ ष्ण न्द्रॊ शयणभ ् गतोऽत्स्भ ॥३॥ ॐ ऩूणत
ा ेजात्भने नेिाभ्माॊ वौषट् ।

भ्रात्जष्णुगल्रॊ भकयात्ङ्कतेन त्रवस ियत्नोज्ज्वरकुण्डरेन । ॐ ऩूणश


ा क्त्मात्भने अस्त्राम पट् ।

कोटीन्दर
ु ावण्मभुखायत्रवन्दॊ श्रीकृ ष्ण न्द्रॊ शयणभ ् गतोऽत्स्भ ॥४॥
इसत फदग्फन्ध्

वृन्दाटवीभञ्जुरकुञ्जवाद्यॊ श्रीयाधमा साधाभुदायकेसरभ ् । ॥ एकाऺय श्रीकृ ष्णभहाभन्िस्म ब्रह्मा ऋत्रष्

आनन्दऩुञ्जॊ रसरताफददृश्मॊ श्रीकृ ष्ण न्द्रॊ शयणभ ् गतोऽत्स्भ ॥५॥ सन त


ृ ् गामिी छन्द् श्रीकृ ष्णो दे वता

श्रीकृ ष्णप्रीत्मथे जऩे त्रवसनमोग् ॥

भहाहा केमूयककङ्कणश्रीग्रैवेमहायावसरभुफद्रकासब् ।

त्रवबूत्रषतॊ फकत्ङ्कत्णनूऩुयाभ्माॊ श्रीकृ ष्ण न्द्रॊ शयणभ ् गतोऽत्स्भ ॥६॥ ध्मानभ ्

ध्मामेद्चरयॊ भत्णसनबॊ जगदे कवन्द्यॊ

त्रवस ियत्नोज्ज्वरफदव्मवासाप्रगीतयाभागुणरूऩरीरभ ् ।

भुहुभह
ुा ु ् प्रोफदतयोभहषं श्रीकृ ष्ण न्द्रॊ शयणभ ् गतोऽत्स्भ ॥७॥ सौन्दमासायभरयशङ्खवयाबमासन ।

श्रीयासधकेमाधयसेवनेन भाद्यन्तभुच् ै यसतकेसररोरभ ् । दोसबादाधानभत्जतॊ सयसॊ सबैष्भी

स्भयोन्भदान्धॊ यससकेन्द्रभौसरॊ श्रीकृ ष्ण न्द्रॊ शयणभ ् गतोऽत्स्भ ॥८॥

सत्मासभेतभत्खरप्रदसभत्न्दये शभ ् ॥

अङ्के सनधाम प्रणमेन याधाॊ भुहुभह


ुा ु द्ळुत्म्फततन्भुखेन्दभ
ु ्।
त्रवस िवेषै् कृ ततफद्रबूषणॊ श्रीकृ ष्ण न्द्रॊ शयणभ ् गतोऽत्स्भ ॥९॥ भूरभन्िॊ ॐ क्रीॊ ॐ

इसत एकाऺयकृ ष्णभन्िॊ सम्ऩूणभ


ा ्।
॥इसत कृ ष्णदासत्रवयस त् श्रीकृ ष्णस्तवयाज् सम्ऩूण:ा ॥

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e गुरुत्व ज्मोसतष 40 अगस्त 2020 | अॊक 1

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e गुरुत्व ज्मोसतष 41 अगस्त 2020 | अॊक 1

प्राणेद्वय श्रीकृ ष्ण भॊि


 सॊकरन गुरुत्व कामाारम
भॊि:-
"ॐ ऐॊ श्रीॊ क्रीॊ प्राण वल्रबाम सौ् सौबाग्मदाम श्रीकृ ष्णाम स्वाहा।"
त्रवसनमोग्- ॐ अस्म श्रीप्राणेद्वय श्रीकृ ष्ण भॊन्िस्म बगवान ् श्रीवेदव्मास ऋत्रष्,

गामिी छॊ द्-, श्रीकृ ष्ण-ऩयभात्भा दे वता, क्रीॊ फीजॊ, श्रीॊ शत्रि्, ऐॊ कीरकॊ, ॐ व्माऩक्, भभ सभस्त-क्रेश-ऩरयहाथं, तुवग
ा -ा
प्राद्ऱमे, सौबाग्म वृद्चमथं जऩे त्रवसनमोग्।
ऋष्माफद न्मास्- श्रीवेदव्मास ऋषमे नभ् सशयसस, गामिी छॊ दसे नभ् भुखे, श्रीकृ ष्ण ऩयभात्भा दे वतामै नभ् रृफद, क्रीॊ फीजाम
नभ् गुह्य,े श्रीॊ शिमे नभ् नाबौ, ऐॊ कीरकाम नभ् ऩादमो, ॐ व्माऩकाम नभ् सवााङ्गे, भभ सभस्त क्रेश ऩरयहाथं, तुवग
ा ा
प्राद्ऱमे, सौबाग्म वृद्चमथं जऩे त्रवसनमोगाम नभ् अॊजरौ।
कय-न्मास्- ॐ ऐॊ श्रीॊ क्रीॊ अॊगुद्षाभ्माॊ नभ् प्राणवल्रबाम तजानीभ्माॊ स्वाहा, सौ् भध्मभाभ्माॊ वषट्, सौबाग्मदाम
अनासभकाभ्माॊ हुॊ श्रीकृ ष्णाम कसनत्रद्षकाभ्माॊ वौषट्, स्वाहा कयतरकयऩृद्षाभ्माॊ पट्।
अॊग-न्मास्- ॐ ऐॊ श्रीॊ क्रीॊ रृदमाम नभ्, प्राण वल्रबाम सशयसे स्वाहा, सौ् सशखामै वषट्, सौबाग्मदाम सशखामै कव ाम हुॊ,
श्रीकृ ष्णाम नेि-िमाम वौषट्, स्वाहा अस्त्राम पट्।
ध्मान्- "कृ ष्णॊ जगन्भऩहन-रुऩ-वणं, त्रवरोक्म रज्जाऽऽकुसरताॊ स्भयाढ्माभ ्। भधूक-भारा-मुत-कृ ष्ण-दे हॊ, त्रवरोक्म ासरॊग्म
हरयॊ स्भयन्तीभ ्।।"

बावाथा: सॊसाय को भुग्ध कयने वारे बगवान ् कृ ष्ण के रुऩ-यॊ ग को दे खकय प्रेभ ऩूणा होकय गोत्रऩमाॉ रज्जाऩूवक
ा व्माकुर होती हैं
औय भन-ही-भन हरय को स्भयण कयती हुई बगवान ् कृ ष्ण की भधूक-ऩुष्ऩों की भारा से त्रवबुत्रषत दे ह का आसरॊगन कयती हैं ।

इस भॊि का त्रवसध-त्रवधान से १,००,००० जाऩ कयने का त्रवधान हैं ।

द्रादश भहा मॊि


मॊि को असत प्रास न एवॊ दर
ु ब
ा मॊिो के सॊकरन से हभाये वषो के अनुसॊधान द्राया फनामा गमा हैं ।
 ऩयभ दर
ु ब
ा वशीकयण मॊि,  सहस्त्राऺी रक्ष्भी आफद्च मॊि
 बाग्मोदम मॊि  आकत्स्भक धन प्रासद्ऱ मॊि
 भनोवाॊसछत कामा ससत्रद्च मॊि  ऩूणा ऩौरुष प्रासद्ऱ काभदे व मॊि
 याज्म फाधा सनवृत्रत्त मॊि  योग सनवृत्रत्त मॊि
 गृहस्थ सुख मॊि  साधना ससत्रद्च मॊि
 शीघ्र त्रववाह सॊऩन्न गौयी अनॊग मॊि  शिु दभन मॊि

उऩयोि सबी मॊिो को द्रादश भहा मॊि के रुऩ भें शास्त्रोि त्रवसध-त्रवधान से भॊि ससद्च ऩूणा प्राणप्रसतत्रद्षत एवॊ
ैतन्म मुि फकमे जाते हैं । त्जसे स्थाऩीत कय त्रफना फकसी ऩूजा अ न
ा ा-त्रवसध त्रवधान त्रवशेष राब प्राद्ऱ कय
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e गुरुत्व ज्मोसतष 42 अगस्त 2020 | अॊक 1

॥सन्तानगोऩार स्तोि॥
ॐ श्रीॊ ह्ीॊ क्रीॊ ग्रौं दे वकीसुत गोत्रवन्द वासुदेव कामाकायणरूऩाम वासुदेवाम ते सदा ।
जगत्ऩते। नभासभ ऩुिराबाथा सुखदाम फुधाम ते ॥१५॥
दे फह भे तनमॊ कृ ष्ण त्वाभहॊ शयणॊ गत्॥ याजीवनेि श्रीयाभ यावणाये हये कवे ।
ॐ नभो बगवते वासुदेवाम । तुभ्मॊ नभासभ दे वेश तनमॊ दे फह भे हये ॥१६॥
सन्तानगोऩारस्तोिॊ अस्भाकॊ ऩुिराबाम बजासभ त्वाॊ जगत्ऩते ।
श्रीशॊ कभरऩिाऺॊ दे वकीनन्दनॊ हरयभ ् । दे फह भे तनमॊ कृ ष्ण वासुदेव यभाऩते ॥१७॥
सुतसॊप्राद्ऱमे कृ ष्णॊ नभासभ भधुसूदनभ ् ॥१॥ श्रीभासननीभान ोय गोऩीवस्त्राऩहायक ।
नभाम्महॊ वासुदेवॊ सुतसॊप्राद्ऱमे हरयभ ् । दे फह भे तनमॊ कृ ष्ण वासुदेव जगत्ऩते ॥१८॥
मशोदाङ्कगतॊ फारॊ गोऩारॊ नन्दनन्दनभ ् ॥२॥ अस्भाकॊ ऩुिसॊप्रासद्ऱॊ कुरुष्व मदन
ु न्दन ।
अस्भाकॊ ऩुिराबाम गोत्रवन्दॊ भुसनवत्न्दतभ ् । यभाऩते वासुदेव भुकुन्द भुसनवत्न्दत ॥१९॥
नभाम्महॊ वासुदेवॊ दे वकीनन्दनॊ सदा ॥३॥ वासुदेव सुतॊ दे फह तनमॊ दे फह भाधव ।
गोऩारॊ फडम्बकॊ वन्दे कभराऩसतभच्मुतभ ् । ऩुिॊ भे दे फह श्रीकृ ष्ण वत्सॊ दे फह भहाप्रबो॥२०॥
ऩुिसॊप्राद्ऱमे कृ ष्णॊ नभासभ मदऩ
ु ुङ्गवभ ् ॥४॥ फडम्बकॊ दे फह श्रीकृ ष्ण आत्भजॊ दे फह याघव ।
ऩुिकाभेत्रद्शपरदॊ कञ्जाऺॊ कभराऩसतभ ् । बिभन्दाय भे दे फह तनमॊ नन्दनन्दन ॥२१॥
दे वकीनन्दनॊ वन्दे सुतसम्प्राद्ऱमे भभ ॥५॥ नन्दनॊ दे फह भे कृ ष्ण वासुदेव जगत्ऩते ।
ऩद्माऩते ऩद्मनेिे ऩद्मनाब जनादा न । कभरनाथ गोत्रवन्द भुकुन्द भुसनवत्न्दत ॥२२॥
दे फह भे तनमॊ श्रीश वासुदेव जगत्ऩते ॥६॥ अन्मथा शयणॊ नात्स्त त्वभेव शयणॊ भभ ।
मशोदाङ्कगतॊ फारॊ गोत्रवन्दॊ भुसनवत्न्दतभ ् । सुतॊ दे फह सश्रमॊ दे फह सश्रमॊ ऩुिॊ प्रदे फह भे ॥२३॥
अस्भाकॊ ऩुि राबाम नभासभ श्रीशभच्मुतभ ् ॥७॥ मशोदास्तन्मऩानऻॊ त्रऩफन्तॊ मदन
ु न्दनभ ् ।
श्रीऩते दे वदे वेश दीनासताहायणाच्मुत । वन्दे ऽहॊ ऩुिराबाथं कत्रऩराऺॊ हरयॊ सदा ॥२४॥
गोत्रवन्द भे सुतॊ दे फह नभासभ त्वाॊ जनादा न ॥८॥ नन्दनन्दन दे वेश नन्दनॊ दे फह भे प्रबो ।
बिकाभद गोत्रवन्द बिॊ यऺ शुबप्रद । यभाऩते वासुदेव सश्रमॊ ऩुिॊ जगत्ऩते ॥२५॥
दे फह भे तनमॊ कृ ष्ण रुत्क्भणीवल्रब प्रबो ॥९॥ ऩुिॊ सश्रमॊ सश्रमॊ ऩुिॊ ऩुिॊ भे दे फह भाधव ।
रुत्क्भणीनाथ सवेश दे फह भे तनमॊ सदा । अस्भाकॊ दीनवाक्मस्म अवधायम श्रीऩते ॥२६॥
बिभन्दाय ऩद्माऺ त्वाभहॊ शयणॊ गत् ॥१०॥ गोऩार फडम्ब गोत्रवन्द वासुदेव यभाऩते ।
दे वकीसुत गोत्रवन्द वासुदेव जगत्ऩते । अस्भाकॊ फडम्बकॊ दे फह सश्रमॊ दे फह जगत्ऩते ॥२७॥
दे फह भे तनमॊ कृ ष्ण त्वाभहॊ शयणॊ गत् ॥११॥ भद्वात्ञ्छतपरॊ दे फह दे वकीनन्दनाच्मुत ।
वासुदेव जगद्रन्द्य श्रीऩते ऩुरुषोत्तभ । भभ ऩुिासथातॊ धन्मॊ कुरुष्व मदन
ु न्दन ॥२८॥
दे फह भे तनमॊ कृ ष्ण त्वाभहॊ शयणॊ गत् ॥१२॥ मा ेऽहॊ त्वाॊ सश्रमॊ ऩुिॊ दे फह भे ऩुिसॊऩदभ ्।
कञ्जाऺ कभरानाथ ऩयकारुत्णकोत्तभ । बिस न्ताभणे याभ कल्ऩवृऺ भहाप्रबो ॥२९॥
दे फह भे तनमॊ कृ ष्ण त्वाभहॊ शयणॊ गत् ॥१३॥ आत्भजॊ नन्दनॊ ऩुिॊ कुभायॊ फडम्बकॊ सुतभ ् ।
रक्ष्भीऩते ऩद्मनाब भुकुन्द भुसनवत्न्दत । अबाकॊ तनमॊ दे फह सदा भे यघुनन्दन ॥३०॥
दे फह भे तनमॊ कृ ष्ण त्वाभहॊ शयणॊ गत् ॥१४॥ वन्दे सन्तानगोऩारॊ भाधवॊ बिकाभदभ ् ।

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e गुरुत्व ज्मोसतष 43 अगस्त 2020 | अॊक 1

अस्भाकॊ ऩुिसॊप्राप्त्मै सदा गोत्रवन्दभच्मुतभ ् ॥३१॥ गोत्रवन्द ऩुण्डयीकाऺ यभानाथ भहाप्रबो ।


ॐकायमुिॊ गोऩारॊ श्रीमुिॊ मदन
ु न्दनभ ् । दे फह भे तनमॊ कृ ष्ण त्वाभहॊ शयणॊ गत् ॥४९॥
क्रीॊमुिॊ दे वकीऩुिॊ नभासभ मदन
ु ामकभ ् ॥३२॥ श्रीनाथ कभरऩिाऺ गोत्रवन्द भधुसूदन ।
वासुदेव भुकुन्दे श गोत्रवन्द भाधवाच्मुत । भत्ऩुिपरससद्धध्मथं बजासभ त्वाॊ जनादा न ॥५०॥
दे फह भे तनमॊ कृ ष्ण यभानाथ भहाप्रबो ॥३३॥ स्तन्मॊ त्रऩफन्तॊ जननीभुखाॊफुजॊ त्रवरोक्म
याजीवनेि गोत्रवन्द कत्रऩराऺ हये प्रबो । भन्दत्स्भतभुज्ज्वराङ्गभ ् ।
सभस्तकाम्मवयद दे फह भे तनमॊ सदा ॥३४॥ स्ऩृशन्तभन्मस्तनभङ्गुरीसबवान्दे
अब्जऩद्मसनबॊ ऩद्मवृन्दरूऩ जगत्ऩते । मशोदाङ्कगतॊ भुकुन्दभ ् ॥५१॥
दे फह भे वयसत्ऩुिॊ यभानामक भाधव ॥३५॥ मा ेऽहॊ ऩुिसन्तानॊ बवन्तॊ ऩद्मरो न ।
नन्दऩार धयाऩार गोत्रवन्द मदन
ु न्दन । दे फह भे तनमॊ कृ ष्ण त्वाभहॊ शयणॊ गत् ॥५२॥
दे फह भे तनमॊ कृ ष्ण रुत्क्भणीवल्रब प्रबो ॥३६॥ अस्भाकॊ ऩुिसम्ऩत्तेत्द्ळन्तमासभ जगत्ऩते ।
दासभन्दाय गोत्रवन्द भुकुन्द भाधवाच्मुत । शीघ्रॊ भे दे फह दातव्मॊ बवता भुसनवत्न्दत ॥५३॥
गोऩार ऩुण्डयीकाऺ दे फह भे तनमॊ सश्रमभ ् ॥३७॥ वासुदेव जगन्नाथ श्रीऩते ऩुरुषोत्तभ ।
मदन
ु ामक ऩद्मेश नन्दगोऩवधूसुत । कुरु भाॊ ऩुिदत्तॊ कृ ष्ण दे वेन्द्रऩूत्जत ॥५४॥
दे फह भे तनमॊ कृ ष्ण श्रीधय प्राणनामक ॥३८॥ कुरु भाॊ ऩुिदत्तॊ मशोदात्रप्रमनन्दनभ ् ।
अस्भाकॊ वात्ञ्छतॊ दे फह दे फह ऩुिॊ यभाऩते । भह्यॊ ऩुिसन्तानॊ दातव्मॊबवता हये ॥५५॥
बगवन ् कृ ष्ण सवेश वासुदेव जगत्ऩते ॥३९॥ वासुदेव जगन्नाथ गोत्रवन्द दे वकीसुत ।
यभारृदमसॊबायसत्मबाभाभन् त्रप्रम । दे फह भे तनमॊ याभ कौशल्मात्रप्रमनन्दन ॥५६॥
दे फह भे तनमॊ कृ ष्ण रुत्क्भणीवल्रब प्रबो ॥४०॥ ऩद्मऩिाऺ गोत्रवन्द त्रवष्णो वाभन भाधव ।
न्द्रसूमााऺ गोत्रवन्द ऩुण्डयीकाऺ भाधव । दे फह भे तनमॊ सीताप्राणनामक याघव ॥५७॥
अस्भाकॊ बाग्मसत्ऩुिॊ दे फह दे व जगत्ऩते ॥४१॥ कञ्जाऺ कृ ष्ण दे वेन्द्रभत्ण्डत भुसनवत्न्दत ।
कारुण्मरूऩ ऩद्माऺ ऩद्मनाबसभस त
ा । रक्ष्भणाग्रज श्रीयाभ दे फह भे तनमॊ सदा ॥५८॥
दे फह भे तनमॊ कृ ष्ण दे वकीनन्दनन्दन ॥४२॥ दे फह भे तनमॊ याभ दशयथत्रप्रमनन्दन ।
दे वकीसुत श्रीनाथ वासुदेव जगत्ऩते । सीतानामक कञ्जाऺ भु क
ु ु न्दवयप्रद ॥५९॥
सभस्तकाभपरद दे फह भे तनमॊ सदा ॥४३॥ त्रवबीषणस्म मा रङ्का प्रदत्ता बवता ऩुया ।
बिभन्दाय गम्बीय शङ्कयाच्मुत भाधव । अस्भाकॊ तत्प्रकाये ण तनमॊ दे फह भाधव ॥६०॥
दे फह भे तनमॊ गोऩफारवत्सर श्रीऩते ॥४४॥ बवदीमऩदाॊबोजे स न्तमासभ सनयन्तयभ ् ।
श्रीऩते वासुदेवेश दे वकीत्रप्रमनन्दन । दे फह भे तनमॊ सीताप्राणवल्रब याघव ॥६१॥
बिभन्दाय भे दे फह तनमॊ जगताॊ प्रबो॥४५॥ याभ भत्काम्मवयद ऩुिोत्ऩत्रत्तपरप्रद ।
जगन्नाथ यभानाथ बूसभनाथ दमासनधे । दे फह भे तनमॊ श्रीश कभरासनवत्न्दत ॥६२॥
वासुदेवेश सवेश दे फह भे तनमॊ प्रबो ॥४६॥ याभ याघव सीतेश रक्ष्भणानुज दे फह भे ।
श्रीनाथ कभरऩिाऺ वासुदेव जगत्ऩते । बाग्मवत्ऩुिसन्तानॊ दशयथत्रप्रमनन्दन ।
दे फह भे तनमॊ कृ ष्ण त्वाभहॊ शयणॊ गत् ॥४७॥ दे फह भे तनमॊ याभ कृ ष्ण गोऩार भाधव ॥६४॥
दासभन्दाय गोत्रवन्द बिस न्ताभणे प्रबो । कृ ष्ण भाधव गोत्रवन्द वाभनाच्मुत शङ्कय ।
दे फह भे तनमॊ कृ ष्ण त्वाभहॊ शयणॊ गत् ॥४८॥ दे फह भे तनमॊ श्रीश गोऩफारकनामक ॥६५॥

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e गुरुत्व ज्मोसतष 44 अगस्त 2020 | अॊक 1

गोऩफार भहाधन्म गोत्रवन्दाच्मुत भाधव । गोत्रऩकात्जातऩङ्केजभयन्दासिभानस ।


दे फह भे तनमॊ कृ ष्ण वासुदेव जगत्ऩते ॥६६॥ दे फह भे तनमॊ कृ ष्ण त्वाभहॊ शयणॊ गत् ॥८४॥
फदशतु फदशतु ऩुिॊ दे वकीनन्दनोऽमभ ् यभारृदमऩङ्केजरोर भाधव काभद ।
फदशतु फदशतु शीघ्रॊ बाग्मवत्ऩुिराबभ ् । भभाबीद्शसुतॊ दे फह त्वाभहॊ शयणॊ गत् ॥८५॥
फदशतु फदशतु शीघ्रॊ श्रीशो याघवो याभ न्द्रो वासुदेव यभानाथ दासानाॊ भङ्गरप्रद ।
फदशतु फदशतु ऩुिॊ वॊश त्रवस्तायहे तो् ॥६७॥ दे फह भे तनमॊ कृ ष्ण त्वाभहॊ शयणॊ गत् ॥८६॥
दीमताॊ वासुदेवेन तनमोभत्त्प्रम् सुत् । कल्माणप्रद गोत्रवन्द भुयाये भुसनवत्न्दत ।
कुभायो नन्दन् सीतानामकेन सदा भभ ॥६८॥ दे फह भे तनमॊ कृ ष्ण त्वाभहॊ शयणॊ गत् ॥८७॥
याभ याघव गोत्रवन्द दे वकीसुत भाधव । ऩुिप्रद भुकुन्दे श रुत्क्भणीवल्रब प्रबो ।
दे फह भे तनमॊ श्रीश गोऩफारकनामक ॥६९॥ दे फह भे तनमॊ कृ ष्ण त्वाभहॊ शयणॊ गत् ॥८८॥
वॊशत्रवस्तायकॊ ऩुिॊ दे फह भे भधुसूदन । ऩुण्डयीकाऺ गोत्रवन्द वासुदेव जगत्ऩते ।
सुतॊ दे फह सुतॊ दे फह त्वाभहॊ शयणॊ गत् ॥७०॥ दे फह भे तनमॊ कृ ष्ण त्वाभहॊ शयणॊ गत् ॥८९॥
भभाबीद्शसुतॊ दे फह कॊसाये भाधवाच्मुत । दमासनधे वासुदेव भुकुन्द भुसनवत्न्दत ।
सुतॊ दे फह सुतॊ दे फह त्वाभहॊ शयणॊ गत्॥७१॥ दे फह भे तनमॊ कृ ष्ण त्वाभहॊ शयणॊ गत् ॥९०॥
न्द्राकाकल्ऩऩमान्तॊ तनमॊ दे फह भाधव । ऩुिसम्ऩत्प्रदातायॊ गोत्रवन्दॊ दे वऩूत्जतभ ् ।
सुतॊ दे फह सुतॊ दे फह त्वाभहॊ शयणॊ गत्॥७२॥ वन्दाभहे सदा कृ ष्णॊ ऩुि राब प्रदासमनभ ् ॥९१॥
त्रवद्यावन्तॊ फुत्रद्चभन्तॊ श्रीभन्तॊ तनमॊ सदा । कारुण्मसनधमे गोऩीवल्रबाम भुयायमे ।
दे फह भे तनमॊ कृ ष्ण दे वकीनन्दन प्रबो ॥७३॥ नभस्ते ऩुिराबाम दे फह भे तनमॊ त्रवबो ॥९२॥
नभासभ त्वाॊ ऩद्मनेि सुतराबाम काभदभ ् । नभस्तस्भै यभेशाम रुसभणीवल्रबाम ते ।
भुकुन्दॊ ऩुण्डयीकाऺॊ गोत्रवन्दॊ भधुसूदनभ ् ॥७४॥ दे फह भे तनमॊ श्रीश गोऩफारकनामक ॥९३॥
बगवन ् कृ ष्ण गोत्रवन्द सवाकाभपरप्रद । नभस्ते वासुदेवाम सनत्मश्रीकाभुकाम ।
दे फह भे तनमॊ स्वासभॊस्त्वाभहॊ शयणॊ गत् ॥७५॥ ऩुिदाम सऩेन्द्रशासमने यङ्गशासमने ॥९४॥
स्वासभॊस्त्वॊ बगवन ् याभ कृ ष्न भाधव काभद । यङ्गशासमन ् यभानाथ भङ्गरप्रद भाधव ।
दे फह भे तनमॊ सनत्मॊ त्वाभहॊ शयणॊ गत् ॥७६॥ दे फह भे तनमॊ श्रीश गोऩफारकनामक ॥९५॥
तनमॊ दे फहओ गोत्रवन्द कञ्जाऺ कभराऩते । दासस्म भे सुतॊ दे फह दीनभन्दाय याघव ।
सुतॊ दे फह सुतॊ दे फह त्वाभहॊ शयणॊ गत्॥७७॥
सुतॊ दे फह सुतॊ दे फह ऩुिॊ दे फह यभाऩते ॥९६॥
ऩद्माऩते ऩद्मनेि प्रद्युम्न जनक प्रबो ।
मशोदातनमाबीद्शऩुिदानयत् सदा ।
सुतॊ दे फह सुतॊ दे फह त्वाभहॊ शयणॊ गत् ॥७८॥
दे फह भे तनमॊ कृ ष्ण त्वाभहॊ शयणॊ गत्॥९७॥
शङ्ख क्रगदाखड्क्गशाङ्गाऩाणे यभाऩते ।
भफदद्शदे व गोत्रवन्द वासुदेव जनादा न ।
दे फह भे तनमॊ कृ ष्ण त्वाभहॊ शयणॊ गत् ॥७९॥
दे फह भे तनमॊ कृ ष्ण त्वाभहॊ शयणॊ गत् ॥९८॥
नायामण यभानाथ याजीवऩिरो न ।
नीसतभान ् धनवान ् ऩुिो त्रवद्यावाॊद्ळ प्रजाऩते ।
सुतॊ भे दे फह दे वेश ऩद्मऩद्मानुवत्न्दत ॥८०॥
बगवॊस्त्वत्कृ ऩामाद्ळ वासुदेवेन्द्रऩूत्जत ॥९९॥
याभ याघव गोत्रवन्द दे वकीवयनन्दन ।
रुत्क्भणीनाथ सवेश नायदाफदसुयास त
ा ॥८१॥ म्ऩठे त ् ऩुिशतकॊ सोऽत्रऩ सत्ऩुिवान ् बवेत ।

दे वकीसुत गोत्रवन्द वासुदेव जगत्ऩते । श्रीवासुदेवकसथतॊ स्तोियत्नॊ सुखाम ॥१००॥


दे फह भे तनमॊ श्रीश गोऩफारकनामक ॥८२॥ जऩकारे ऩठे त्न्नत्मॊ ऩुिराबॊ धनॊ सश्रमभ ् ।
भुसनवत्न्दत गोत्रवन्द रुत्क्भणीवल्रब प्रबो । ऐद्वमं याजसम्भानॊ सद्यो मासत न सॊशम् ॥१०१॥
दे फह भे तनमॊ कृ ष्ण त्वाभहॊ शयणॊ गत् ॥८३॥ ॥इसत श्रीसॊतानगोऩार-स्तोि सम्ऩूणभ
ा ्॥
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e गुरुत्व ज्मोसतष 45 अगस्त 2020 | अॊक 1

॥ श्रीकृ ष्णाद्शोत्तयशतनाभस्तोिभ ् ॥
अस्म श्रीकृ ष्णाद्शोत्तयशतनाभस्तोिस्म श्रीशेष ऋत्रष । अनुद्शुऩ ् छन्द् । श्रीकृ ष्णो दे वता । श्रीकृ ष्णप्रीत्मथे
श्रीकृ ष्णाद्शोतयशतनाभजऩे त्रवसनमोग् ॥ शेष उवा ।
श्रीकृ ष्ण् कभरानाथो वासुदेव् सनातन् । वासुदेवात्भज् ऩुण्मो रीराभानुषत्रवग्रह् ॥१॥
श्रीवत्सकौस्तुबधयो मशोदावत्सरो हरय् । तुबज
ुा ात्त क्रससगदाशॊखाद्युदामुध् ॥२॥
दे वकीनॊदन् श्रीशो नॊदगोऩत्रप्रमात्भज् । मभुनावेगसॊहायी फरबद्रत्रप्रमानुज् ॥३॥
ऩूतनाजीत्रवतहय् शकटासुयबॊजन् । नॊदव्रजजनानॊदी सत्च् दानॊदत्रवग्रह् ॥४॥
नवनीतनवाहायी भु क
ु ॊ दप्रसादक् । षोडशस्त्रीसहस्त्रेशत्स्त्रबॊगी भधुयाकृ सत् ॥५॥
शुकवागभृताब्धीॊदग
ु ोत्रवॊदो गोत्रवॊदाॊ ऩसत् । वत्सऩारनसॊ ायी धेनुकासुयबॊजन् ॥६॥
तृणीकृ ततृणावतो मभराजुन
ा बॊजन् । उत्तारतारबेत्ता तभारश्माभराकृ सत् ॥७॥
गोऩगोऩीद्वयो मोगी सूमक
ा ोफटसभप्रब् । इराऩसत् ऩयॊ ज्मोसतमाादवेंद्रो मदद्र
ू ह् ॥८॥
वनभारी ऩीतवासा् ऩारयजाताऩहायक् । गोवधाना रोद्चताा गोऩार् सवाऩारक् ॥९॥
अजो सनयॊ जन् काभजनक् कञ्जरो न् । भधुहाभथुयानाथो द्रायकानामको फरी ॥१०॥
वृन्दावनाॊत्सॊ ायी तुरसीदाभबूषण् । स्मभॊतकभणेहाताा नयनायामणात्भक् ॥११॥
कुब्जाकृ ष्णाॊफयधयो भामी ऩयभऩूयष् । भुत्रद्शकासुय ाणूयभल्रमुद्चत्रवशायद् ॥१२॥
सॊसायवैयी कॊसारयभुया रयनायकाॊतक् । अनाफदब्राह्म ायी कृ ष्णाव्मसनकषाक् ॥१३॥
सशशुऩारसशयश्छे त्ता दम
ु ोधनकुराॊतकृ त ् । त्रवदयु ाक्रूयवयदो त्रवद्वरूऩप्रदशाक् ॥१४॥
सत्मवाक् सत्मसॊकल्ऩ् सत्मबाभायतो जमी । सुबद्राऩूवज
ा ो त्रवष्णुबॉष्भभुत्रिप्रदामक् ॥१५॥
जगद्गुरुजागन्नाथो वेणुवाद्यत्रवशायद् । वृषबासुयत्रवध्वॊसी फाणासुयफराॊतकृ त ् ॥१६॥
मुसधत्रद्षयप्रसतद्षाता फफहा फहाावतॊसक् । ऩाथासायसथयव्मिो गीताभृतभहोदसध् ॥१७॥
कारीमपत्णभात्णक्मयॊ त्जतश्रीऩदाॊफुज् । दाभोदय मऻबोिा दानवेन्द्रात्रवनाशन् ॥१८॥
नायामण् ऩयब्रह्म ऩन्नगाशनवाहन् । जरफक्रडासभासिगोऩीवस्त्राऩहायक् ॥१९॥
ऩुण्मद्ऴोकस्तीथाकयो वेदवेद्यो दमासनसध् । सवातीथाात्भक् सवाग्रहरूऩ् ऩयात्ऩय् ॥२०॥
इत्मेवॊ कृ ष्णदे वस्म नाम्नभद्शोत्तयॊ शतभ ् । कृ ष्णेन कृ ष्णबिेन श्रुत्वा गीताभृतॊ ऩुया ॥२१॥
स्तोिॊ कृ ष्णत्रप्रमकयॊ कृ तॊ तस्भान्भमा ऩुया । कृ ष्णनाभाभृतॊ नाभ ऩयभानॊददामकभ ् ॥२२॥
अत्मुऩद्रवद्ु खघ्नॊ ऩयभामुष्मवधानभ ् । दानॊ श्रुतॊ तऩस्तीथं मत्कृ तॊ त्त्वह जन्भसन ॥२३॥
ऩठताॊ श्रृण्वताॊ व
ै कोफटकोफटगुणॊ बवेत ् ऩुिप्रदभऩुिाणाभगतीनॊ गसतप्रदभ ् ॥२४॥
धनावहॊ दरयद्राणाॊ जमेच्छूनाॊ जमावहभ ् । सशशूनाॊ गोकुरानाॊ ऩुत्रद्शदॊ ऩुत्रद्शवधानभ ् ॥२५॥
वातग्रहज्वयदीनाॊ शभनॊ शाॊसतभुत्रिदभ ् । सभस्तकाभदॊ सद्य् कोसतजन्भाघनाशनभ ् ॥२६॥
अन्ते कृ ष्णस्भयणदॊ बवताबमाऩहभ ्। कृ ष्णाम मादवेंद्राम ऻानभुद्राम मोसगने। नाथाम रुत्क्भणीशाम नभो
वेदाॊतवेफदने॥२७॥
इभ भन्िॊ भहादे व जऩन्नेव फदवासनशभ ् । सवाग्रहानुग्रहबाक् सवात्रप्रमतभो बवेत ् ॥२८॥
ऩुिऩौिै् ऩरयवृत् सवाससत्रद्चसभृत्रद्चभान ् । सनत्रवश्म बोगानॊतेऽत्रऩ कृ ष्णसामुज्मभाप्नुमात ् ॥२९॥
॥इसत श्रीनायदऩ यािे ऻानाभृतसाये उभाभहे द्वयसॊवादान्तगातधयणीशेषसॊवादे श्रीकृ ष्णाद्शोत्तयशतनाभस्तोिॊ सॊऩूणभ
ा ्॥

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e गुरुत्व ज्मोसतष 46 अगस्त 2020 | अॊक 1

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e गुरुत्व ज्मोसतष 47 अगस्त 2020 | अॊक 1

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e गुरुत्व ज्मोसतष 48 अगस्त 2020 | अॊक 1

॥श्री कृ ष्ण कृ ऩा कटाऺ स्त्रोि ॥


बजे व्रजैकभण्डनॊ सभस्तऩाऩखण्डनॊ, स्वबिस त्तयॊ जनॊ सदै व नन्दनन्दनभ ्।
सुत्रऩच्छगुच्छभस्तकॊ सुनादवेणुहस्तकॊ, अनॊगयॊ गसागयॊ नभासभ कृ ष्णनागयभ ्॥१॥
भनोजगवाभो नॊ त्रवशाररोररो नॊ, त्रवधूतगोऩशो नॊ नभासभ ऩद्मरो नभ ्।
कयायत्रवन्दबूधयॊ त्स्भतावरोकसुन्दयॊ , भहे न्द्रभानदायणॊ नभासभ कृ ष्णावायणभ ्॥२॥

कदम्फसूनकुण्डरॊ सु ारुगण्डभण्डरॊ, व्रजाॊगनैकवल्रबॊ नभासभ कृ ष्णदर


ु ब
ा भ ्।
मशोदमा सभोदमा सगोऩमा सनन्दमा, मुतॊ सुखक
ै दामकॊ नभासभ गोऩनामकभ ्॥३॥
सदै व ऩादऩॊकजॊ भदीम भानसे सनजॊ, दधानभुिभारकॊ नभासभ नन्दफारकभ ्।
सभस्तदोषशोषणॊ सभस्तरोकऩोषणॊ, सभस्तगोऩभानसॊ नभासभ नन्दरारसभ ्॥४॥

बुवो बयावतायकॊ बवात्ब्धकणाधायकॊ, मशोभतीफकशोयकॊ नभासभ स त्त ोयकभ ्।


दृगन्तकान्तबॊसगनॊ सदा सदासरसॊसगनॊ, फदने फदने नवॊ नवॊ नभासभ नन्दसम्बवभ ्॥५॥
गुणाकयॊ सुखाकयॊ कृ ऩाकयॊ कृ ऩाऩयॊ , सुयफद्रषत्न्नकन्दनॊ नभासभ गोऩनन्दनभ ्।
नवीनगोऩनागयॊ नवीनकेसररम्ऩटॊ , नभासभ भेघसुन्दयॊ तफडत्प्रबारसत्ऩटभ ्॥६॥

सभस्तगोऩनन्दनॊ रृदम्फुजैकभोदनॊ, नभासभ कुॊजभध्मगॊ प्रसन्नबानुशोबनभ ्।


सनकाभकाभदामकॊ दृगन्त ारुसामकॊ, यसारवेणुगामकॊ नभासभ कुॊजनामकभ ्॥७॥
त्रवदग्धगोत्रऩकाभनोभनोऻतल्ऩशासमनॊ, नभासभ कुॊजकानने प्रव्रद्चवत्न्हऩासमनभ ्।
फकशोयकात्न्तयॊ त्जतॊ दृअगॊजनॊ सुशोसबतॊ, गजेन्द्रभोऺकारयणॊ नभासभ श्रीत्रवहारयणभ ्॥८॥

मदा तदा मथा तथा तथैव कृ ष्णसत्कथा, भमा सदै व गीमताॊ तथा कृ ऩा त्रवधीमताभ ्।
प्रभात्णकाद्शकद्रमॊ जऩत्मधीत्म म् ऩुभान, बवेत्स नन्दनन्दने बवे बवे सुबत्रिभान॥९॥

भधुयास्टकभ
अधयभ भधुयभ वदनभ भधुयभनमनभ भधुयभ हससतभ भधुयभ वसभतॊ भधुयॊ, शसभतॊ भधुयॊ, भधुयसधऩतेयत्खरॊ भधुयभ ् ॥ ५॥
रृदमभ भधुयभ गभनभ भधुयभभधुयासधऩतेय अत्खरभ भधुयभ॥१॥ गुञ्जा भधुया, भारा भधुया, मभुना भधुया, वी ी भधुया ।
व नॊ भधुयॊ, रयतॊ भधुयॊ, वसनॊ भधुयॊ, वसरतॊ भधुयभ ् । ससररॊ भधुयॊ, कभरॊ भधुयॊ, भधुयसधऩतेयत्खरॊ भधुयभ ् ॥ ६॥
सरतॊ भधुयॊ, भ्रसभतॊ भधुयॊ, भधुयासधऩतेयत्खरॊ भधुयभ ् ॥ २॥ गोऩी भधुया, रीरा भधुया, मुिॊ भधुयॊ, भुिॊ भधुयभ ् ।
वेणुभध
ा ुयो ये णुभध
ा ुय्, ऩात्णभाधुय्, ऩादौ भधुयौ । दृद्शॊ भधुयॊ, सशद्शॊ भधुयॊ, भधुयसधऩतेयत्खरॊ भधुयभ ् ॥ ७॥
नृत्मॊ भधुयॊ, स्मॊ भधुयॊ, भधुयासधऩतेयत्खरॊ भधुयभ ् ॥ ३॥ गोऩा भधुया, गावो भधुया, मत्रद्शभाधुया, सृत्रद्शभाधुया ।
गीतॊ भधुयॊ, ऩीतॊ भधुयॊ, बुिॊ भधुयॊ, सुद्ऱॊ भधुयभ ् । दसरतॊ भधुयॊ, पसरतॊ भधुयॊ, भधुयसधऩतेयत्खरॊ भधुयभ ् ॥ ८॥
रूऩॊ भधुयॊ, सतरकॊ भधुयॊ, भधुयसधऩतेयत्खरॊ भधुयभ ् ॥ ४॥
॥ इसत श्रीभद् वल्रबा ामात्रवयस तॊ भधुयाद्शकॊ सम्ऩूणभ
ा ्॥
कयणॊ भधुयॊ, तयणॊ भधुयॊ, हयणॊ भधुयॊ, यभणॊ भधुयभ ् ।

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e गुरुत्व ज्मोसतष 49 अगस्त 2020 | अॊक 1

॥ गोऩी गीत ॥

कस्तूयी सतरकॊ रराट ऩटरे वऺ: स्थरे कौस्तुबॊ। यहसस सॊत्रवदो मा रृफदस्ऩृश् कुहक
नासाग्रे वयभौत्रिकॊ कयतरे वेणु: कये कॊकणॊ॥ नो भन् ऺोबमत्न्त फह॥१०॥

रसस मद्धव्रजाच् ायमन्ऩशून ् नसरनसुन्दयॊ नाथ ते ऩदभ ्।


सवांगे हरय न्दनॊ सुरसरतॊ कॊठे भुिावरी।
सशरतृणाङ्कुयै ् सीदतीसत न् कसररताॊ भन् कान्त
गोऩस्त्रीऩरयवेत्रद्शतो त्रवजमते गोऩार ड
ू ाभत्ण:॥
गच्छसत॥११॥
जमसत तेऽसधकॊ जन्भना ब्रज् श्रमत इत्न्दया फदनऩरयऺमे नीरकुन्तरैवन
ा रुहाननॊ त्रफभ्रदावृतभ ्।
शद्वदि फह। दसमत दृश्मताॊ फदऺु तावका घनयजस्वरॊ दशामन्भुहुभन
ा सस न् स्भयॊ वीय मच्छसस॥१२॥
स्त्वसम धृतासवस्त्वाॊ त्रवस न्वते॥१॥
प्रणतकाभदॊ ऩद्मजास त
ा ॊ धयत्णभण्डनॊ ध्मेमभाऩफद।
शयदद
ु ाशमे साधुजातसत ् सयससजोदयश्रीभुषा दृशा। यणऩङ्कजॊ शॊतभॊ ते यभण न् स्तनेष्वऩामासधहन ्॥१३॥
सुयतनाथ तेऽशुल्कदाससका वयद सनघ्नतो नेह फकॊ वध्॥२॥
सुयतवधानॊ शोकनाशनॊ स्वरयतवेणुना सुद्षु त्ु म्फतभ ्।
त्रवषजराप्ममाद्धव्मारयाऺसाद्रषाभारुताद्रै द्युतानरात ्। इतययागत्रवस्भायणॊ नृणाॊ त्रवतय वीय नस्तेऽधयाभृतभ ्॥१४॥
वृषभमात्भजाफद्रद्वतोबमा दृषब ते वमॊ यत्ऺता भुहु्॥३॥
अटसत मद्भवानफह्न काननॊ िुफटमुग
ा ामते त्वाभऩश्मताभ ्।
न खरु गोत्रऩकानन्दनो बवानत्खरदे फहनाभन्तयात्भदृक् । कुफटरकुन्तरॊ श्रीभुखॊ ते जड उदीऺताॊ
त्रवखनसासथातो त्रवद्वगुद्ऱमे सख उदे समवान ् सात्वताॊ कुरे॥४॥ ऩक्ष्भकृ द्ङशाभ
ृ ्॥१५॥

त्रवयस ताबमॊ वृत्ष्णधुमा ते यणभीमुषाॊ सॊसत


ृ ेबम
ा ात ्। ऩसतसुतान्वमभ्रातृफान्धवानसतत्रवरङ्घ्म तेऽन्त्मच्मुतागता्।
कयसयोरुहॊ कान्त काभदॊ सशयसस धेफह न् श्रीकयग्रहभ ्॥५॥ गसतत्रवदस्तवोद्गीतभोफहता् फकतव मोत्रषत्
कस्त्मजेत्न्नसश॥१६॥
व्रजजनासताहन्वीय मोत्रषताॊ सनजजनस्भमध्वॊसनत्स्भत।
बज सखे बवत्त्कॊकयी् स्भ नो जररुहाननॊ ारु दशाम॥६॥ यहसस सॊत्रवदॊ रृच्छमोदमॊ प्रहससताननॊ प्रेभवीऺणभ ्।
फृहदयु ् सश्रमो वीक्ष्म धाभ ते भुहुयसतस्ऩृहा भुह्यते
प्रणतदे फहनाॊ ऩाऩकशानॊ तृण यानुगॊ श्रीसनकेतनभ ्। भन्॥१७॥
पत्णपणात्रऩत
ा ॊ ते ऩदाॊफुजॊ कृ णु कु ेषु न् कृ त्न्ध रृच्छमभ ्॥७॥
व्रजवनौकसाॊ व्मत्रियङ्ग ते वृत्जनहन््मरॊ त्रवद्वभङ्गरभ ्।
भधुयमा सगया वल्गुवाक्ममा फुधभनोऻमा ऩुष्कये ऺण। त्मज भनाक् नस्त्वत्स्ऩृहात्भनाॊ स्वजनरृद्रज
ु ाॊ
त्रवसधकयीरयभा वीय भुह्यतीयधयसीधुनाऽऽप्माममस्व न्॥८॥ मत्न्नषूदनभ ्॥१८॥

तव कथाभृतॊ तद्ऱजीवनॊ कत्रवसबयीफडतॊ कल्भषाऩहभ ्। मत्ते सुजात यणाम्फुरुहॊ स्तनेषु बीता् शनै् त्रप्रम दधीभफह
श्रवणभङ्गरॊ श्रीभदाततॊ बुत्रव गृणत्न्त ते बूरयदा जना्॥९॥ ककाशेषु।
तेनाटवीभटसस तद्धव्मथते न फकॊत्स्वत ् कूऩााफदसबभ्राभसत
प्रहससतॊ त्रप्रम प्रेभवीऺणॊ त्रवहयणॊ ते ध्मानभङ्गरभ ्। धीबावदामुषाॊ न्॥ १९ ॥

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e गुरुत्व ज्मोसतष 50 अगस्त 2020 | अॊक 1

श्रीकृ ष्ण की पोटो से सभमाओॊ का सभाधान


 सॊकरन गुरुत्व कामाारम
त्जस प्रकाय बगवान श्री कृ ष्ण के नाभ का स्भयण,स त
ॊ न अनॊत ऩाऩों का नाश कयने वारा हैं ।
सकृ न्भन् कृ ष्णाऩदायत्रवन्दमोसनावेसशतॊ तद्गुणयासग मैरयह।
न ते मभॊ ऩाशबृतद्ळ तद्भटान ् स्वप्नेऽत्रऩ ऩश्मत्न्त फह ीणासनष्कृ ता्॥
बावाथा: जो भनुष्म केवर एक फाय श्रीकृ ष्ण के गुणों भें प्रेभ कयने वारे अऩने स त्त को श्रीकृ ष्ण के यण कभरों भें
रगा दे ते हैं , वे ऩाऩों से छूट जाते हैं , फपय उन्हें ऩाश हाथ भें सरए हुए मभदत
ू ों के दशान स्वप्न भें बी नहीॊ हो सकते।
अत्रवस्भृसत् कृ ष्णऩदायत्रवन्दमो् त्ऺणोत्मबद्रत्ण शभॊ तनोसत ।
सत्वस्म शुत्रद्चॊ ऩयभात्भबत्रिॊ ऻानॊ त्रवऻानत्रवयागमुिभ॥्
बावाथा: श्रीकृ ष्ण के यण कभरों का स्भयण सदा फना यहे तो उसी से ऩाऩों का नाश, कल्माण की प्रासद्ऱ, अन्त् कयण
की शुत्रद्च, ऩयभात्भा की बत्रि औय वैयाग्ममुि ऻान-त्रवऻान की प्रासद्ऱ अऩने आऩ ही हो जाती हैं ।

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e गुरुत्व ज्मोसतष 51 अगस्त 2020 | अॊक 1

िैरोक्मभॊगर श्रीकृ ष्ण कव भ ्


िैरोक्मभॊगरकव भ ् ह्दमॊ बुवनेशान् क्रीॊ कृ ष्ण् क्रीॊ स्तनौ भभ ॥१४॥
कुत्ञ् ताधयऩुटेन ऩूयमन ् वॊसशकाप्र रदॊ गुरीतसत् । गोऩारामात्ग्नजामान्तॊ कुत्ऺमुग्भॊ सदाऽवतु ।
भोहमन्सुयसबवाभरो ना् ऩातु कोऽत्रऩ नवनीयदच्छत्रव्॥ क्रीॊ कृ ष्णाम सदा ऩातु ऩाद्वामुग्भभनुत्तभ् ॥१५॥
गणेशाम नभ् । नायद उवा । कृ ष्णगोत्रवॊदकौ ऩाताॊ स्भयाद्यौ डे मुतौ भनु् ।
बगवन्सवाधभाऻ कव ॊ मत्प्रकासशतभ ् । अद्शाऺय् ऩातु नासबॊ कृ ष्णेसत द्रमऺयोऽवतु ॥१६॥
िैरोक्मभॊगरॊ नाभ कृ ऩमा कथम प्रबो ॥१॥ ऩृद्षॊ क्रीॊ कृ ष्णकॊ गल्रॊ क्रीॊ कृ ष्णाम फद्रठान्तक् ।
सनत्कुभाय उवा । सत्क्थनी सततॊ ऩातु श्रीॊ ह्ीॊ क्रीॊ कृ ष्णठद्रमभ ् ॥१७॥
श्रृणु वक्ष्मासभ त्रवऩेन्द्र कव ॊ ऩयभाद्बुतभ ् । ऊरू सद्ऱाऺय् ऩामािमोदशाऺयोऽवतु ।
नायामणेन कसथतॊ कृ ऩमा ब्रह्मणे ऩुया ॥२॥ श्री ह्ीॊ क्रीॊ ऩदतो गोऩीजनवल्रबऩदॊ तत् ॥१८॥
ब्रह्मणा कसथतॊ भह्यॊ ऩयॊ स्नेहाद्रदासभ वै । बाम स्वाहे सत ऩामुॊ वै क्रीॊ ह्ीॊ श्रीॊ स दशाणाक् ।
असतगुह्यतयॊ तत्त्वॊ ब्रह्मभॊिौघत्रवग्रहभ ् ॥३॥ जानुनी सदा ऩातु ह्ीॊ श्रीॊ क्रीॊ दशाऺय् ॥१९॥
मद्चत्ृ वा ऩठनाद्ब्रह्मा सृत्रद्शॊ त्रवतनुते ध्रुवभ ् । िमोदशाऺय् ऩातु ज्म्घे क्राद्युदामुध् ।
मद्चत्ृ वा ऩठनात्ऩासत भहारक्ष्भीजागिमभ ् ॥४॥ अद्शादशाऺय् ह्ीॊ श्रीॊ ऩूवक
ा ो त्रवॊशदणाक् ॥२०॥
ऩठनाद्चायणाच्छॊ बु् सॊहताा सवाभॊित्रवत ् । सवांगॊ भे सदा ऩातु द्रायकानामको फरी ।
िैरोक्मजननी दग
ु ाा भफहषाफदभहासुयान ् ॥५॥ नभो बगवते ऩश् ाद्रासुदेवाम तत्ऩयभ ् ॥२१॥
वयदृद्ऱान ् जघानैव ऩठनाद्चायणाद्यत् । तायाद्यो द्रादशाणोऽमॊ प्राच्माॊ भाॊ सवादाऽवतु ।
एवसभन्द्रादम् सवे सवैद्वमाभवाप्नुमु् ॥६॥ श्रीॊ ह्ीॊ क्रीॊ दशाणास्तु ह्ीॊ क्रीॊ श्रीॊ षोडशाणाक् ॥२२॥
इदॊ कव भत्मॊतगुद्ऱॊ कुिात्रऩ नो वदे त ् । गदाद्युदामुधो त्रवष्णुभााभग्नेफदा सश यऺतु ।
सशष्माम बत्रिमुिाम साधकाम प्रकाशमेत ् ॥७॥ ह्ीॊ श्रीॊ दशाऺयो भॊिो दत्ऺणे भाॊ सदाऽवतु ॥२३॥
शठाम ऩयसशष्माम दत्त्वा भृत्मुभवप्नुमात ् । तायो नभो बगवते रुत्क्भणीवल्रबाम ।
िैरोक्मभॊगस्मास्म कव स्म प्रजाऩसत् ॥८॥ स्वाहे सत षोडशाणोऽमॊ नैऋत्माॊ फदसश यऺतु ॥२४॥
ऋत्रषश्छॊ दद्ळ गामिी दे वो नायामण् स्वमभ ् । क्रीॊ ह्षीकेशाम ऩदॊ नभो भाॊ वारुणेऽवतु ।
धभााथक
ा ाभभोऺेषु त्रवसनमोग् प्रकीसतात् ॥९॥ अष्तादशाणा् काभान्तो वामव्मे भाॊ सदाऽवतु ॥२५॥
प्रणवो भे सशय् ऩातु नभो नायामणाम । श्रीॊ भामाकाभकृ ष्णाम गोत्रवॊदाम फद्रठो भनु् ॥
बारॊ भे नेिमुगरभद्शाणो बुत्रिभुत्रिद् ॥१०॥ द्रादशाणाात्भको त्रवष्णुरुत्तये भाॊ सदाऽवतु ॥२६॥
क्रीॊ ऩामाच्रत्रिमुग्भॊ क
ै ाऺय् सवाभोहन् । वाग्बमॊ काभकृ ष्णामॊ ह्ीॊ गोत्रवॊदाम तत्ऩयभ ् ।
क्रीॊ कृ ष्णाम सदा घ्राणॊ गोत्रवॊदामेसत त्जफिकाभ ् ॥११॥ श्रीॊ गोऩीजनवल्रबान्ताम स्वाहा कयौ तत् ॥२७॥
गोऩीजनऩदवल्रबाम स्वाहाननॊ भभ । द्रात्रवॊशत्मऺयो भॊिो भाभैशान्मे सदाऽवतु ।
अद्शादशाऺयो भॊि् कण्ठॊ ऩातु दशाऺय् ॥१२॥ कासरमस्म पणाभध्मे फदव्मॊ नृत्मॊ कयोसत तभ ् ॥२८॥
गोऩीजनऩदवल्रबाम स्वाहा बुजद्रमभ ् । नभासभ दे वकीऩुिॊ नृत्मयाजानभच्मुतभ ् ।
क्रीॊ ग्रौं क्रीॊ श्माभराङ्गाम नभ् स्कॊधौ दशाऺय्॥१३॥ द्रात्रिॊशदऺयो भॊिोऽप्मधो भाॊ सवादाऽवतु ॥२९॥
क्रीॊ कृ ष्ण् क्रीॊ कयौ ऩामात ् क्रीॊ कृ ष्णो भाॊ गतोऽवतु। काभदे वाम त्रवद्महे ऩुष्ऩफाणाम धीभफह ।

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e गुरुत्व ज्मोसतष 52 अगस्त 2020 | अॊक 1

तन्नोऽनङ्ग् प्र ोदमादे षाॊ भाॊ ऩातु ोध्वात् ॥३०॥ ऩुष्ऩाॊजल्मद्शकॊ दत्त्वा भूरेनैव ऩठे त्सकृ त ् ।
इसत ते कसथतॊ त्रवप्र ब्रह्म भॊिौघत्रवग्रहभ ् । दशवषासहस्त्राणी ऩूजामा् परभाप्नुमात ् ॥३७॥
िैरोक्मभॊगरॊ नाभ कव ॊ ब्रह्मरूऩकभ ् ॥३१॥
बूजे त्रवसर्माॊगुसरकाॊ स्वणास्थाॊ धायमेद्यफद ।
ब्रह्मणा कसथतॊ ऩूवं नायामणभुखाच्रतभ ् ।
कॊठे वा दत्ऺणे फाहौ सोऽत्रऩ त्रवष्णुना सॊशम् ॥३८॥
तव स्नेहान्भमाऽऽ्मातॊ प्रविव्मॊ न कस्मस त ् ॥३२॥
अद्वभेधसहस्त्रात्ण वाजऩेमशतासन ।
गुरुॊ प्रणम्म त्रवसधवत्कव ॊ प्रऩठे त्तत् ।
सकृ द् फद्रत्स्त्रमाथाऻानॊ स फह सवातऩोभम् ॥३३॥ भहादानासन मान्मेव प्रादत्ऺण्मॊ बुवस्तथा ॥३९॥

भॊिेषु सकरेष्वेव दे सशको नाि सॊशम् । कराॊ नाहा त्न्त तान्मेव सकृ दच्ु ायणात्तत् ।

शतभद्शोत्तयॊ ास्म ऩुयद्ळमात्रवसध् स्भृत् ॥३४॥ कव स्म प्रसादे न जीवन्भुिो बवेन्नय् ॥४०॥

हवनाफदन्दशाॊशेन कृ त्वा तत्साधमेद् ध्रुवभ ् । िैरोक्मभ ् ऺोबमत्मेव िैरोक्मत्रवजमी बवेत ् ।

मफद स्मात्त्सद्चकव ो त्रवष्णुयेव बवेत्स्वमभ ् ॥३५॥ इदभ ् कव भऻात्व मजेद्य् ऩुरुशोत्तभभ ् ।

भॊिससत्रद्चबावेत्तस्म ऩुरुद्ळमाात्रवधानत् । शतरऺॊ प्रजद्ऱोऽत्रऩ न भन्िस्तस्म ससध्मसत ॥४१॥

स्ऩधााभुद्धूम सततॊ रक्ष्भीवााणी वसेत्तत् ॥३६॥ इसत श्रीनायदऩॊ यािे ऻानाभृतसाये िैरोक्मभॊगरकव ॊ
सॊऩूणभ
ा ्।

भॊि ससद्च स्पफटक श्री मॊि


"श्री मॊि" सफसे भहत्वऩूणा एवॊ शत्रिशारी मॊि है । "श्री मॊि" को मॊि याज कहा जाता है क्मोफक मह
अत्मन्त शुब फ़रदमी मॊि है । जो न केवर दस
ू ये मन्िो से असधक से असधक राब दे ने भे सभथा है एवॊ
सॊसाय के हय व्मत्रि के सरए पामदे भॊद सात्रफत होता है । ऩूणा प्राण-प्रसतत्रद्षत एवॊ ऩूणा ैतन्म मुि "श्री मॊि"
त्जस व्मत्रि के घय भे होता है उसके सरमे "श्री मॊि" अत्मन्त फ़रदामी ससद्च होता है उसके दशान भाि से
अन-सगनत राब एवॊ सुख की प्रासद्ऱ होसत है । "श्री मॊि" भे सभाई अफद्रसतम एवॊ अद्रश्म शत्रि भनुष्म की
सभस्त शुब इच्छाओॊ को ऩूया कयने भे सभथा होसत है । त्जस्से उसका जीवन से हताशा औय सनयाशा दयू
होकय वह भनुष्म असफ़रता से सफ़रता फक औय सनयन्तय गसत कयने रगता है एवॊ उसे जीवन भे सभस्त
बौसतक सुखो फक प्रासद्ऱ होसत है । "श्री मॊि" भनुष्म जीवन भें उत्ऩन्न होने वारी सभस्मा-फाधा एवॊ
नकायात्भक उजाा को दयू कय सकायत्भक उजाा का सनभााण कयने भे सभथा है । "श्री मॊि" की स्थाऩन से घय
मा व्माऩाय के स्थान ऩय स्थात्रऩत कयने से वास्तु दोष म वास्तु से सम्फत्न्धत ऩये शासन भे न्मुनता आसत है
व सुख-सभृत्रद्च, शाॊसत एवॊ ऐद्वमा फक प्रसद्ऱ होती है ।
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e गुरुत्व ज्मोसतष 53 अगस्त 2020 | अॊक 1

ब्रह्मा यस त कृ ष्णस्तोि
ब्रह्मोवा : सत्न्त त्रवद्वेश त्रवधमो हे त्रवद्वेद्वय भाधव ॥६॥

यऺ यऺ हये भाॊ सनभग्नॊ काभसागये । न कभाऺेिभेवेद ब्रह्मरोकोऽमभीत्प्सत्।

दष्ु कीसताजरऩूणे दष्ु ऩाये फहुसॊकटे ॥१॥ तथाऽत्रऩ न स्ऩृहा काभे त्वद्भत्रिव्मवधामके ॥७॥

बत्रित्रवस्भृसतफीजे त्रवऩत्सोऩानदस्
ु तये । हे नाथ करुणाससन्धो दीनफन्धो कृ ऩाॊ कुरु।

अतीव सनभारऻान ऺु्-प्रच्छन्नकायणे ॥२॥ त्वॊ भहे श भहाऻाता द्ु स्वप्नॊ भाॊ न दशाम ॥८॥

जन्भोसभा-सॊगसफहते मोत्रषन्नक्राघसॊकुरे। इत्मुक्त्वा जगताॊ धाता त्रवययाभ सनातन्।

यसतस्रोत्सभामुिे गम्बीये घोय एव ॥३॥ ध्मामॊ ध्मामॊ भत्ऩदाब्जॊ शद्वतसस्भाय


् भासभसत ॥९॥

प्रथभासृतरूऩे ऩरयणाभत्रवषारमे। ब्रह्मणा कृ तॊ स्तोिॊ बत्रिमुिद्ळ म् ऩठे त।्

मभारमप्रवेशाम भुत्रिद्रायासतत्रवस्तृतौ ॥४॥ स ैवाकभात्रवषमे न सनभग्नो बवेद् ध्रुवभ ् ॥१०॥

फुद्ध्मा तयण्मा त्रवऻानैरुद्चयास्भानत् स्वमभ।् भभ भामाॊ त्रवसनत्जात्म स ऻानॊ रबते ध्रुवभ।्

स्वमॊ त्व कणाधाय् प्रसीद भधुसूदन ॥५॥ इह रोके बत्रिमुिो भद्भिप्रवयो बवेत ् ॥११॥

भफद्रधा् कसतस न्नाथ सनमोज्मा बवकभात्ण। ॥ इसत श्रीब्रह्मदे वकृ तॊ कृ ष्णस्तोिॊ सम्ऩूणभ
ा ॥्

 क्मा आऩके फच् े कुसॊगती के सशकाय हैं ?


 क्मा आऩके फच् े आऩका कहना नहीॊ भान यहे हैं ?
 क्मा आऩके फच् े घय भें अशाॊसत ऩैदा कय यहे हैं ?
घय ऩरयवाय भें शाॊसत एवॊ फच् े को कुसॊगती से छुडाने हे तु फच् े के नाभ से गुरुत्व कामाारत द्वाया
शास्त्रोि त्रवसध-त्रवधान से भॊि ससद्च प्राण-प्रसतत्रद्षत ऩूणा त
ै न्म मुि वशीकयण कव एवॊ
एस.एन.फडब्फी फनवारे एवॊ उसे अऩने घय भें स्थात्रऩत कय अल्ऩ ऩूजा, त्रवसध-त्रवधान से आऩ त्रवशेष
राब प्राद्ऱ कय सकते हैं । मफद आऩ तो आऩ भॊि ससद्च वशीकयण कव एवॊ एस.एन.फडब्फी फनवाना
ाहते हैं , तो सॊऩका इस कय सकते हैं ।

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e गुरुत्व ज्मोसतष 54 अगस्त 2020 | अॊक 1

श्रीकृ ष्णाद्शकभ ्
ऩावात्मुवा - भुयरीवादनाधायी याधामै प्रीसतभावहन।्
कैराससशखये यम्मे गौयी ऩृच्छसत शॊकयभ।् अॊशाॊशेभ्म् सभुन्भील्म ऩूणरू
ा ऩकरामुत्॥१२॥
ब्रह्माण्डात्खरनाथस्त्वॊ सृत्रद्शसॊहायकायक्॥१॥ श्रीकृ ष्ण न्द्रो बगवान्नन्दगोऩवयोद्यत्।
त्वभेव ऩूज्मसेरौकै ब्राह्मत्रवष्णुसयु ाफदसब्। धरयणीरूत्रऩणी भाता मशोदानन्ददासमनी॥१३॥
सनत्मॊ ऩठसस दे वेश कस्म स्तोिॊ भहे द्वय्॥२॥ द्राभ्माॊ प्रामास तो नाथो दे वक्माॊ वसुदेवत्।
आद्ळमासभदभत्मन्तॊ जामते भभ शॊकय। ब्रह्मणाऽभ्मसथातो दे वो दे वयै त्रऩ सुयेद्वरय॥१४॥
तत्प्राणेश भहाप्राऻ सॊशमॊ सछत्न्ध शॊकय॥३॥ जातोऽवन्माॊ भुकुन्दोऽत्रऩ भुयरीवेदये स का।
श्री भहादे व उवा - तमासाद्चा व ्कृ त्वा ततो जातो भहीतरे॥१५॥
धन्मासस कृ तऩुण्मासस ऩावासत प्राणवल्रबे। सॊसायसायसवास्वॊ श्माभरॊ भहदज्
ु ज्वरभ।्
यहस्मासतयहस्मॊ मत्ऩृच्छसस वयानने॥४॥ एतज्ज्मोसतयहॊ वेद्यॊ स न्तमासभ सनातनभ॥१६॥

स्त्रीस्वबावान्भहादे त्रव ऩुनस्त्वॊ ऩरयऩृच्छसस। गौयतेजो त्रफना मस्तु श्माभतैज् सभ म
ा ेत।्
गोऩनीमॊ गोऩनीमॊ गोऩनीमॊ प्रमत्नत्॥५॥ जऩेद्रा ध्मामते वात्रऩ स बवेत्ऩातकी सशवे॥१७॥
दत्ते ससत्रद्चहासन् स्मात्तस्भाद्यत्नेन गोऩमेत।् स ब्रह्महासुयाऩी स्वणास्तेमी ऩॊ भ्।
इदॊ यहस्मॊ ऩयभॊ ऩुरुषाथाप्रदामकभ॥६॥
् एतैदोषैत्रवासरप्मे तेजोबेदान्भहे द्वरय।१८॥
धनयत्नौघभात्णक्मॊ तुयॊगॊ गजाफदकभ।् तस्भाज्ज्मोसतयबूद्धद्रे धा याधाभाधवरूऩकभ।्
ददासत स्भयणादे व भहाभोऺप्रदामकभ॥७॥
् तस्भाफददॊ भहादे त्रव गोऩारेनव
ै बात्रषतभ॥१९॥

तत्तेऽहॊ सॊप्रवक्ष्मासभ श्रृणष्ु वावफहता त्रप्रमे। दव
ु ााससो भुनेभोहे कासताक्माॊ यासभण्डरे।
मोऽसौ सनयॊ जनो दे वत्द्ळत्स्वरूऩी जनादा न्॥८॥ तत् ऩृद्शवती याधा सन्दे हॊ बेदभात्भन्॥२०॥
सॊसायसागयोत्तायकायणाम सदा नृणाभ।् सनयॊ जनात्सभुत्ऩन्नॊ भमाऽधीतॊ जगन्भसम।
श्रीयॊ गाफदकरूऩेण िैरोक्मॊ व्माप्म सतद्षसत॥९॥ श्रीकृ ष्णेन तत् प्रोिॊ याधामै नायदाम ॥२१॥
ततो रोका भहाभूढा त्रवष्णुबत्रित्रववत्जाता्। ततो नायदत् सवा त्रवयरा वैष्णवास्तथा।
सनद्ळमॊ नासधगच्छत्न्त ऩुननाायामणो हरय्॥१०॥ करौ जानत्न्त दे वेसश गोऩनीमॊ प्रमत्नत्॥२२॥
सनयॊ जनो सनयाकायो बिानाॊ प्रीसतकाभद्। शठाम कृ ऩणामाथ दात्म्बकाम सुयेद्वरय।
वृदावनत्रवहायाम गोऩारॊ रूऩभुद्रहन॥११॥
् ब्रह्महत्माभवाप्नोसत तस्भाद्यत्नेन गोऩमेत॥२३॥

ऩसत-ऩत्नी भें करह सनवायण हे तु


मफद ऩरयवायों भें सुख-सुत्रवधा के सभस्त साधान होते हुए बी छोटी-छोटी फातो भें ऩसत-ऩत्नी के त्रफ भे
करह होता यहता हैं , तो घय के त्जतने सदस्म हो उन सफके नाभ से गुरुत्व कामाारत द्राया शास्त्रोि
त्रवसध-त्रवधान से भॊि ससद्च प्राण-प्रसतत्रद्षत ऩूणा त
ै न्म मुि वशीकयण कव एवॊ गृह करह नाशक
फडब्फी फनवारे एवॊ उसे अऩने घय भें त्रफना फकसी ऩूजा, त्रवसध-त्रवधान से आऩ त्रवशेष राब प्राद्ऱ कय
सकते हैं । मफद आऩ भॊि ससद्च ऩसत वशीकयण मा ऩत्नी वशीकयण एवॊ गृह करह नाशक फडब्फी
फनवाना ाहते हैं , तो सॊऩका आऩ कय सकते हैं ।
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e गुरुत्व ज्मोसतष 55 अगस्त 2020 | अॊक 1

श्रीभद्भगवदगीता के 18 अध्माम का भहत्व


 सॊकरन गुरुत्व कामाारम
श्रीभद्भगवदगीता भें श्रीकृ ष्ण औय अजुन
ा का व्माद्ऱ हुए। मुद्च कयने से डयते हैं । श्रीकृ ष्ण ने अजुन
ा की
सॊवाद का वणान सभरता है , त्जसभें बगवान श्रीकृ ष्ण ने एसी त्स्थसत दे खकय जान सरमा फक अजुन
ा का शयीय
अजुन
ा को उऩदे श फदमा त्जसभें भनुष्म जीवन की हय ठीक है , फकॊतु मुद्च आयॊ ब होने से ऩहरे ही उस बीतय के
सभस्मा का हर सछऩा है । गीता के 18 अध्माम औय ऺत्रिम का भनोफर टू ट यहा है । मुद्च बूसभ भें त्रफना भन
700 द्ऴोक भें धभा, कभा, कभापर, जन्भ, भृत्मु, सत्म, के मह शयीय रड़ नहीॊ सकता। इस सरए बगवान
असत्म आफद जीवन से जुड़े त्रवसबन्न प्रद्लों के उत्तय श्रीकृ ष्ण फकस तयह अजुन
ा को सभझाते हैं उसका
भौजूद हैं । वणान हैं ।
श्रीकृ ष्ण ने अजुन
ा को गीता के द्ऴोक उस सभम
सुनामे जफ भहाबायत के मुद्च के सभम अजुन
ा मुद्च कयने दस
ू ये अध्माम का भहत्व
से भना कयते हैं तफ श्री कृ ष्ण अजुन
ा को गीता के द्ऴोक दस
ू ये अध्माम को साॊ्म मोग नाभ फदमा गामा है ।
सुनाते हैं औय कभा एॊव धभा के सनातन ऻान से अवगत इसके 72 द्ऴोकों भें श्रीकृ ष्ण अजुन
ा को कभामोग,
कयाते हैं । श्रीकृ ष्ण के इन्हीॊ उऩदे शों को बगवत गीता भें ऻानमोग, साॊ्ममोग, फुत्रद्च मोग औय आत्भ का ऻान
सॊग्रफहत फकमा गमा है । कौयवों व ऩाॊडवों के फी हुवे दे ते हैं ।
भहाबायत के मुद्च के दौयान श्रीकृ ष्ण ने अजुन
ा के सायथी दस
ू ये अध्माम भें अजुन
ा की कामयता का वणान हैं ।
की बूसभका सनबाई औय अजुन
ा को बगवद्गीता का ऻान इसी भें श्रीकृ ष्ण द्राया अजुन
ा को फदमा गमा साॊ्म मोग
फदमा। मुद्च भें श्री कृ ष्ण ने अजुन
ा को फदमे गमे ऩयभ के उऩदे श का वणान हैं ।
दर
ु ब
ा उऩदे शों के कायण श्रीकृ ष्ण को जगतगुरु का श्रीकृ ष्ण अजुन
ा से उसके ऺत्रिम धभा का ऩारन कयने का
सम्भान फदमा जाता है । श्रीभद्भगवदगीता को श्री कृ ष्ण उऩदे श दे कय उसे धभा के अनुसाय अऩने कताव्म का
की जीवन की सवाश्रद्ष
े य ना भानी जाती है । ऩारन एवॊ मुद्च का प्रसतसनसधत्व कयने को कहते हैं ।

प्रथभ अध्माम का भहत्व


प्रथभ अध्माम को अजुन
ा त्रवषादमोग नाभ फदमा गामा है ।
इसके 46 द्ऴोकों भें अजुान के भन की त्स्थसत का वणान
फकमा गमा है ।
प्रथभ अध्माम श्रीकृ ष्ण के उऩदे श का अफद्रतीम वणान
फकमा गमा हैं ।
त्जसभें श्रीकृ ष्ण अजुन
ा को जीवन की असत गॊबीय
सभस्मा के सभाधान के सरमे उऩदे श दे ते हैं ।
श्रीकृ ष्ण अजुन
ा को दोनों सेनाओॊ के शूयवीय एवॊ उनकी
ऺभताओॊ से अवगत यकवाते हैं ।
दोनों सेनाओॊ की शॊख-ध्वसन का वणान फकमा गमा है ।
अजुन
ा द्राया सेना-सनयीऺण का वणान फकमा गमा है ।
अजुन
ा अजुन
ा के कामयता, स्नेह औय शोकमुि व न)
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रेफकन अजुन
ा अऩने स्वजन-सगे-सॊफॊसधमों से भोह से 4.8" Inch Only Rs.1099
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e गुरुत्व ज्मोसतष 56 अगस्त 2020 | अॊक 1

श्रीकृ ष्ण द्राया अजुन


ा को सनष्काभ कभा मोग के उऩदे श ऩाॊ वें अध्माम का भहत्व
का वणान हैं । ऩाॊ वें अध्माम को कभा सॊन्मास मोग नाभ फदमा गामा है ।
श्रीकृ ष्ण अजुन
ा को त्स्थत प्रऻ ऩुरुष के रऺण फताते हैं । इसके 29 द्ऴोकों भें अजुान श्रीकृ ष्ण से ऩूछते हैं कभामोग
दस
ू या अध्माम (साॊ्म मोग) वास्तव भें सॊऩूणा गीता का औय साॊ्म मोग दोनों भें से उनके सरए कौन-सा मोग
सायाॊश है । त्जसे अत्मॊत भहत्वऩूणा भाना जाता है । उत्तभ है । उत्तभ भें श्रीकृ ष्ण कहते दोनों का रक्ष्म एक है
रेफकन दोनों भें कभा मोग उत्तभ है ।
तीसये अध्माम का भहत्व साॊ्ममोगी औय सनष्काभ कभामोगी के रऺण औय उनकी
भफहभा का वणान फकमा गमा हैं ।
तीसये अध्माम को कभा मोग नाभ फदमा गामा है ।
ऻानमोग से सॊफॊसधत त्रवस्तृत वणान फकमा गमा हैं ।
इसके 43 द्ऴोकों भें श्रीकृ ष्ण अजुन
ा को ऩरयणाभ की
बत्रि एवॊ ध्मान का वणान फकमा गमा हैं ।
स त
ॊ ा फकए त्रफना अऩना कभा कयते यहने का ऻान दे ते हैं ।
छठे अध्माम का भहत्व
श्रीकृ ष्ण अजुन
ा को मऻाफद कभों की आवश्मकता का
छठे अध्माम को आत्भसॊमभ मोग नाभ फदमा गामा है ।
ऻान दे ते हैं ।
इसके 47 द्ऴोकों भें श्रीकृ ष्ण अजुन
ा को अद्शाॊग मोग के
श्रीकृ ष्ण अजुन
ा से ऻानी औय बगवान के सरए बी रोक
फाये भें फताते हैं फक फकस प्रकाय भन की दत्रु वधा को दयू
सॊग्रह के सरमे फकमे जाने वारे कभों की आवश्मकता का
फकमा जा सकता है ।
वणान हैं ।
श्रीकृ ष्ण अजुन
ा को सनष्काभ कभा मोग भें सॊरग्न ऩुरुष
श्रीकृ ष्ण अजुन
ा को अऻानी एवॊ ऻानी के रऺण तथा
के रऺण फताते है ।
याग, द्रे ष से उऩय उठ कय कभा कयने के सरए प्रेयणा
इसभें आत्भ-उद्चाय की प्रेयणा औय ऩयभात्भा को प्राद्ऱ
दे ते हैं ।
ऩुरुष के रऺण एवॊ भहत्व का वणान फकमा गमा हैं ।
आगे श्रीकृ ष्ण अजुन
ा को काभ एवॊ काभरुऩ का त्रवयोध
त्रवस्ताय से ध्मान मोग की त्रवसध, उसके पर, सनमभ,
सभझाते हैं औय फताते हैं की फकस प्रकाय त्रवषम काभ ध्मानमोग बत्रि एवॊ साॊ्म मोग प्राद्ऱ ऩुरुष के रऺण
द्राया ऻानी का ऻान ढॉ का यहता है । का वणान फकमा गमा हैं । भन को वश भें कयने के
भहत्व का त्रवस्तृत वणान फकमा गमा हैं ।
तुथा अध्माम का भहत्व
तुथा अध्माम को ऻानकभा सॊन्मास मोग नाभ फदमा
गामा है ।
इसके 42 द्ऴोकों भें श्रीकृ ष्ण अजुन
ा को धभाऩायामण के
सॊयऺण औय अधभॉ के त्रवनाश भें सरए गुरु के भहत्व
को सभझाते हैं ।
सद्गण
ु , ऻान एवॊ ईद्वय का प्रबाव औय सनष्काभ कभामोग
का वणान फकमा गमा हैं ।
मोगी भहाऩुरुषों के आ यण एवॊय उनकी भफहभा का
वणान फकमा गमा हैं ।
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त्रवसबन्न मऻों का पर कथन फकमा गमा हैं ।
आगे श्रीकृ ष्ण अजुन
ा को तत्व ऻान की भफहभा 21 Pcs x 4 Colour Only Rs.505
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सभझाते हैं ।

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e गुरुत्व ज्मोसतष 57 अगस्त 2020 | अॊक 1

इसभें मोगभ्रद्श ऩुरुष की गसत औय मोगी ऩुरुष की इसभें त्रवऻान के प्रबावसफहत ऻान की भहत्ता का वणान
भफहभा का वणान फकमा गमा हैं । फकमा गमा हैं ।
श्रीकृ ष्ण अजुन
ा से इस जगत की उत्ऩत्रत्त का वणान
सातवें अध्माम का भहत्व कयते हैं ।

सातवें अध्माम को ऻान त्रवऻान मोग नाभ फदमा गामा है । बगवान का सतयस्काय कयने वारे, आसुयी प्रकृ सत के रोग

इसके 30 द्ऴोकों भें श्रीकृ ष्ण सनयऩेऺ बाव से एवॊ दै वी प्रकृ सत वारे बि बजन का प्रकाय का वणान

वास्तत्रवकता औय अन्म भ्राभक शत्रि एवॊ भामा से फकमा गमा हैं ।

अजुन
ा को अवगत कयाते हैं । इसभें सवाव्माद्ऱ बगवान के स्वरूऩ का वणान फकमा

ऻान त्रवऻान मोग का वणान फकमा गमा हैं । गमा हैं ।

सभस्त ऩदाथों भें बगवान की व्माऩकता का वणान इसभें सकाभ औय सनष्काभ त्रव ायों का वणान, उऩासना

फकमा गमा हैं । से पर फक प्रासद्ऱ का उल्रेख फकमा गमा हैं ।

आसुयी स्वबाव वारें रोगों की सनॊदा औय बगवान के इसभें बगवान की सनष्काभ बत्रि का पर एवॊ भफहभा

बिों की प्रशॊसा का वणान फकमा गमा हैं । का वणान फकमा गमा हैं ।

दे वताओॊ की उऩासना का वणान फकमा गमा हैं ।


बगवान के प्रबाव औय स्वरूऩ को जानने वारों की दसवें अध्माम का भहत्व
भफहभा एवॊ नहीॊ जानने वारों का वणान फकमा गमा हैं । दसवें अध्माम को त्रवबूसत मोग नाभ फदमा गामा है ।
इसके 42 द्ऴोकों भें श्रीकृ ष्ण अजुन
ा को फताते हैं फकस
आठवें अध्माम का भहत्व प्रकाय सबी प्रकाय के तत्व औय आध्मात्त्भक अत्स्तत्व

आठवें अध्माम को अऺयब्रह्म मोग नाभ फदमा गामा है । के अॊत का कायण फन जाते हैं ।

इसके 28 द्ऴोकों भें श्रीकृ ष्ण अजुन


ा को स्वगा औय नयक श्रीकृ ष्ण फताते हैं फकस प्रकाय उन्हों ने अऩने

के ससद्चाॊत से अवगत कयाते हैं । श्रीकृ ष्ण फताते हैं कैसे बाव, सॊकल्ऩ एवॊ अऩनी मोगशत्रि से सात भहत्रषा वसशद्ष,
भृत्मु से ऩहरे व्मत्रि के त्रव ाय एवॊ आध्मात्त्भक सॊसाय त्रवद्वासभि, कण्व, बायद्राज, अत्रि, वाभदे व औय शौनक तथा
तथा नयक औय स्वगा को जाने की त्स्थती का वणान ाय उनसे बी ऩूवा भें उत्ऩन्न होने वारे सनक, सनन्दन,
कयते हैं । सनातन व सनत्कुभाय तथा तथा स्वामम्बुव, स्वयोस ष,
इसभें अजुन
ा ब्रह्म, अध्मात्भ औय कभााफद के सॊफॊध भें
सात प्रद्ल कयते हैं त्जसका उत्तय श्रीकृ ष्ण दे ते हैं ।
इसभें ऩयभ ऩुरुष की प्रासद्ऱ एवॊ बत्रि मोग का वणान
फकमा गमा हैं ।
इसभें श्रीकृ ष्ण अजुन
ा को शुक्र भागा औय कृ ष्ण भागा से
अवगत कयाते हैं ।

नौवें अध्माम का भहत्व


नौवें अध्माम को याजत्रवद्यायाजगुह्य मोग नाभ फदमा गामा है ।
इसके 34 द्ऴोकों भें श्रीकृ ष्ण अजुन
ा को फताते हैं , कैसे
आॊतरयक ऊजाा का सृजन कयती है , सृत्रद्श भे व्माद्ऱ होती
है औय ऩूये ब्रह्माॊड को नद्श कय दे ती है ।

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e गुरुत्व ज्मोसतष 58 अगस्त 2020 | अॊक 1

उत्तभ (औत्तभ), ताभस, यै वत, ाऺुष, वैवस्वत, सावत्णा, वणान तथा तुबज
ुा भें दशान कयाकय वाऩस अऩने सौम्म
दऺसावत्णा, ब्रह्मसावत्णा, धभासावत्णा, रुद्रसावत्णा, दे व रूऩ आने का प्रसॊग वत्णात हैं ।
सावत्णा, इन्द्रसावत्णा इस सबी ौदह भनु को बी अऩनी इसभें बगवान द्राया तुबज
ुा रूऩ के दशान की दर
ु ब
ा ता
मोगशत्रि से उत्ऩन्न फकमा है । य औय अ यरूऩ व्माद्ऱ एवॊ उसका प्रबाव पर के फाये भें उल्रेख फकमा गमा हैं ।
सबी प्रजा इस सफ के द्राया सभग्र सॊसाय भें उत्ऩन्न
हुई हैं । फायहवें अध्माम का भहत्व
बत्रिमोग का पर औय प्रबाव सफहत कथन का वणान फायहवें अध्माम को बत्रि मोग नाभ फदमा गामा है ।
फकमा गमा है । इसके 20 द्ऴोकों भें श्रीकृ ष्ण अजुन
ा को अध्माम भें
अजुन
ा द्राया बगवान श्रीकृ ष्ण की स्तुसत तथा त्रवबूसत बगवान बत्रि के भागा की भफहभा फताते हैं एवॊ बत्रि
औय मोगशत्रि को जानने का वणान फकमा गमा है । मोग का वणान सभझाते हैं ।
इस भें बगवान श्रीकृ ष्ण द्राया अऩनी त्रवबूसतमों औय इसभें साकाय औय सनयाकाय के उऩासकों की श्रेद्षता,
मोगशत्रि का वणा कयते है । कफठनता, ध्मान, कभा तथा त्माग के सनणाम औय
बगवत्प्रासद्ऱ के उऩाम का वणान फकमा गमा हैं ।
ग्मायहवें अध्माम का भहत्व इसभें बि के रऺण एवॊ उनकी भफहभा का वणान फकमा

ग्मायहवें अध्माम को त्रवद्वस्वरूऩदशान मोग नाभ फदमा गमा है ।

गामा है ।
इसके 55 द्ऴोकों भें अजुन
ा के सनवेदन ऩय श्रीकृ ष्ण तेयहवें अध्माम का भहत्व
अऩना त्रवद्वरूऩ धायण कय रेते हैं । तेयहवें अध्माम को ऺेि ऺेिऻ मोग नाभ फदमा गामा है ।
सॊजम द्राया धृतयाद्स को श्रीकृ ष्ण के त्रवद्वरूऩ की भफहभा इसके 35 द्ऴोकों भें श्रीकृ ष्ण अजुन
ा को ऺेि औय ऺेिऻ
का वणान कयते है । के ऻान के फाये भें फताते है तथा सत्व, यज औय तभ
अजुन
ा ने जफ बगवान के त्रवद्वरूऩ का दे खा, तो त्रवद्वरूऩ गुणों द्राया उत्तभ शयीय भें जन्भ रेने का उऩाम फताते हैं ।
की स्तुसत की, बगवान का साभथ्मा एवॊ प्रबाव को जाना, इस भें ऺेि एवॊ ऺेिऻ का रऺण एवॊ स्वरुऩ, त्रवकाय,
तीनों सेनाओॊ के सबी मोद्चाओॊ को बगवान के त्रवयाट गुण, वैयाग्म, ऻान-अऻान इत्माफद का वणान फकमा गमा है ।
भुख भें प्रवेश होने का वणान हैं । प्रकृ सत द्राया उद्ऱन्न त्रवसबन्न त्रवकाय गणों की उत्ऩत्रत्त
इसभें बगवान द्राया अऩने फदव्म प्रबाव का वणान औय त्रवसबन्न दे हों की प्रासद्ऱ, ध्मान मोग, ऻान मोग एवॊ कभा
अजुन
ा को मुद्च के सरए उत्साफहत कयने का वणान मोग से ऺेि की प्रासद्ऱ एवॊ ऺेिऻ भें बेद आफद का वणान
सभरता हैं । फकमा गमा है ।
बमबीत होकय अजुन
ा बगवान की स्तुसत कयते हैं औय
बगवान को तुबज
ुा रूऩ भें दशान दे ने के सरए प्राथाना ौदहवें अध्माम का भहत्व
कयते हैं । ौदहवें अध्माम को गुणिम त्रवबाग मोग नाभ फदमा
बगवान द्राया अऩने त्रवद्वरूऩ के दशान की भफहभा का

तॊि यऺा कव
तॊि यऺा कव को धायण कयने से व्मत्रि के उऩय फकगई सभस्त ताॊत्रिक फाधाएॊ दयू होती हैं , उसी के साथ ही धायण
कताा व्मत्रि ऩय फकसी बी प्रकाय फक नकायत्भन शत्रिमो का कुप्रबाव नहीॊ होता। इस कव के प्रबाव से इषाा-द्रे ष यखने
वारे सबी रोगो द्वाया होने वारे दद्श
ु प्रबावो से यऺाहोती हैं । भूल्म भाि: Rs.910

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e गुरुत्व ज्मोसतष 60 अगस्त 2020 | अॊक 1

भनोकाभना ऩूसता हे तु त्रवसबन्न कृ ष्ण भॊि


 सॊकरन गुरुत्व कामाारम
भूर भॊि : तेईस अऺय भॊि:

कृॊ कृ ष्णाम नभ् ॐ श्रीॊ ह्ीॊ क्रीॊ श्रीकृ ष्णाम गोत्रवॊदाम


मह बगवान कृ ष्ण का भूरभॊि हैं । इस भूर भॊि के गोऩीजन वल्रबाम श्रीॊ श्रीॊ श्री
सनमसभत जाऩ कयने से व्मत्रि को जीवन भें सबी मह तेईस अऺय भॊि के सनमसभत जाऩ कयने से व्मत्रि

फाधाओॊ एवॊ कद्शों से भुत्रि सभरती हैं एवॊ सुख फक प्रासद्ऱ फक सबी फाधाएॉ स्वत् सभाद्ऱ हो जाती हैं ।

होती हैं । अट्ठाईस अऺय भॊि:

सद्ऱदशाऺय भॊि: ॐ नभो बगवते नन्दऩुिाम


ॐ श्रीॊ नभ् श्रीकृ ष्णाम ऩरयऩूणत
ा भाम स्वाहा आनन्दवऩुषे गोऩीजनवल्रबाम स्वाहा
मह बगवान कृ ष्ण का सत्तया अऺय का हैं । इस भूर मह अट्ठाईस अऺय भॊि के सनमसभत जाऩ कयने से

भॊि के सनमसभत जाऩ कयने से व्मत्रि को भॊि ससद्च हो व्मत्रि को सभस्त असबद्श वस्तुओॊ फक प्रासद्ऱ होती हैं ।

जाने के ऩद्ळमात उसे जीवन भें सफकुछ प्राद्ऱ होता हैं ।

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e गुरुत्व ज्मोसतष 61 अगस्त 2020 | अॊक 1

कृ ष्ण भॊि
बगवान श्री कृ ष्ण से सॊफध
ॊ ी भॊि तो शास्त्रों भें बये ऩडे हैं । रेफकन जन साधायण भें कुछ खास भॊिों का ही प्र रन औय
अत्मासधक भहत्व हैं ।
ॐ कृ ष्णाम वासुदेवाम हयमे ऩयभात्भने।
प्रणत् क्रेशनाशाम गोत्रवॊदाम नभो नभ्॥
इस भॊि को सनमसभत स्नान इत्माफद से सनवृत होकय स्वच्छ कऩडे ऩहन कय 108 फाय जाऩ कयने से व्मत्रि के जीवन
भें फकसी बी प्रकाय के सॊकट नहीॊ आते।
ॐ नभ् बगवते वासुदेवाम कृ ष्णाम
क्रेशनाशाम गोत्रवॊदाम नभो नभ्।
इस भॊि को सनमसभत स्नान इत्माफद से सनवृत होकय स्वच्छ कऩडे ऩहन कय 108 फाय जाऩ कयने से आकत्स्भक
सॊकट से भुत्रि सभरसत हैं ।
हये कृ ष्ण हये कृ ष्ण, कृ ष्ण-कृ ष्ण हये हये ।
हये याभ हये याभ, याभ-याभ हये हये ।
इस भॊि को सनमसभत स्नान इत्माफद से सनवृत होकय स्वच्छ कऩडे ऩहन कय 108 फाय जाऩ कयने से व्मत्रि को
जीवन भे सभस्त बौसतक सुखो एवॊ भोऺ प्रासद्ऱ होती हैं ।

भॊि ससद्च दर
ु ब
ा साभग्री
कारी हल्दी:- 370, 550, 730, 1450, 1900 कभर गट्टे की भारा - Rs- 370
भामा जार- Rs- 251, 551, 751 हल्दी भारा - Rs- 280
धन वृत्रद्च हकीक सेट Rs-280 (कारी हल्दी के साथ Rs-550) तुरसी भारा - Rs- 190, 280, 370, 460
घोडे की नार- Rs.351, 551, 751 नवयत्न भारा- Rs- 1050, 1900, 2800, 3700 & Above
हकीक::11:नॊग-Rs-190, 21:नॊग Rs-370 नवयॊ गी हकीक भारा Rs- 280, 460, 730
रघु श्रीपर::1:नॊग-Rs-21, 11:नॊग-Rs-190 हकीक भारा (सात यॊ ग) Rs- 280, 460, 730, 910
नाग केशय::11 ग्राभ, Rs-145 भूॊगे की भारा Rs- 1050, 1900 & Above
स्पफटक भारा- Rs- 235, 280, 460, 730, DC 1050, 1250 ऩायद भारा Rs- 1450, 1900, 2800 & Above
सपेद ॊदन भारा - Rs- 460, 640, 910 वैजमॊती भारा Rs- 190, 280, 460
यि (रार) ॊदन - Rs- 370, 550, रुद्राऺ भारा: 190, 280, 460, 730, 1050, 1450
भोती भारा- Rs- 460, 730, 1250, 1450 & Above त्रवधुत भारा - Rs- 190, 280
कासभमा ससॊदयू - Rs- 460, 730, 1050, 1450, & Above भूल्म भें अॊतय छोटे से फड़े आकाय के कायण हैं ।
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e गुरुत्व ज्मोसतष 62 अगस्त 2020 | अॊक 1

ऩमूष
ा ण का भहत्व
 सॊकरन गुरुत्व कामाारम

जैन धभा के अनुमामी ऩमूष


ा ण ऩवा को जीव की आत्भ शुत्रद्च का भागा फताते हैं । जैन भुसनजनो के अनुसाय

ऩमूष
ा ण ऩवा इद्श आयाधना औय ऺभा का ऩवा बी हैं । ऩमूष
ा ण को भु्मत: भनुष्म के ऩुनसनभााण का द्योतक भानाजाता

हैं । ऩमूष
ा ण भें भनुष्म अऩने सबतय की त्रवकृ सतमों का त्माग कयता हैं ।

ऩमूष
ा ण के फदनों भें श्रावक-श्रात्रवकाएॊ ब्रह्म मा का ऩारन, यात्रि बोज त्माग, सस त्त का त्माग यखते हैं । व्रत-

उऩवास, साभसमक-प्रसतक्रभण, प्रव न-श्रवण आफद के भाध्मभ से इन फदनों असघक से असघक सभम धभा ध्मान भें

व्मतीत फकमा जाता हैं ।

ऩमूष
ा ण के फदन श्रावक-श्रात्रवकाएॊ उऩवास यखते हैं औय स्वमॊ के ऩाऩों की आरो ना कयते हुए बत्रवष्म भें

उनसे फ ने की प्रसतऻा कयते हैं । इसके साथ ही वे ौयासी राख मोसनमों भें त्रव यण कय यहे , सभस्त जीवों से ऺभा

भाॉगते हुए मह सूस त कयते हैं फक उनका फकसी से कोई फैय नहीॊ है ।

श्रावक-श्रात्रवकाएॊ ऩयोऺ रूऩ से वे मह सॊकल्ऩ कयते हैं फक वे प्रकृ सत भें कोई हस्तऺेऩ नहीॊ कयें गे। भन, व न

औय कामा से जानते मा अजानते वे फकसी बी फहॊ सा की गसतत्रवसध भें बाग न तो स्वमॊ रेंगे, न दस
ू यों को रेने को

कहें गे औय न रेने वारों का अनुभोदन कयें गे। मह आद्वासन दे ने के सरए फक उनका फकसी से कोई फैय नहीॊ है , वे मह

बी घोत्रषत कयते हैं फक उन्होंने त्रवद्व के सभस्त जीवों को ऺभा कय फदमा है औय उन जीवों को ऺभा भाॉगने वारे से

डयने की जरूयत नहीॊ है ।

ऺभा दे ने से भनुष्म अन्म सभस्त जीवों को अबमदान दे ते हैं औय उनकी यऺा कयने का सॊकल्ऩ रेते हैं । तफ

व्मत्रि सॊमभ औय त्रववेक का अनुसयण कयें गे, आत्त्भक शाॊसत अनुबव कयें गे औय सबी जीवों औय ऩदाथों के प्रसत भैिी

बाव यखेंगे। आत्भा तबी शुद्च यह सकती है जफ वह अऩने सेफाहय हस्तऺेऩ न कये औय फाहयी तत्व से त्रव सरत न

हो। ऺभा-बाव जैन धभा का भूरभॊि है ।

जैन धभा भें द्वेताम्फय भूसताऩूजक ऩयम्ऩया भें आठ फदनों तक "कल्ऩसूि" ऩढ़ा व सुना जाता हैं ।

जफफक जैन धभा भें स्थानकवासी ऩयम्ऩया भें आठ फदनों तक "अन्तकदृशा सूि" का वा न फकमा जाता हैं ।

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e गुरुत्व ज्मोसतष 63 अगस्त 2020 | अॊक 1

श्री नवकाय भॊि (नभस्काय भहाभॊि)


 सॊकरन गुरुत्व कामाारम
भैं आ ामा बगवॊतों को नभन कयता हूॊ।
भैं उऩाध्माम बगवॊतों को नभन कयता हूॊ।
भैं रोक भें यहे हुए सबी साधु बगवॊतों को नभन कयता हूॊ।
इन ऩाॊ ों को फकमा हुआ नभस्काय
सबी ऩाऩों को नद्श कयता हैं ।
एवॊ सबी भॊगरों भें बी
प्रथभ (श्रेद्ष) भॊगर हैं ।

जैन भुसनमों के भत से नवकाय भहाभॊि जैन


धभा का ससद्च एवॊ अत्मॊत प्रबावशारी भॊि हैं । इस भॊि
भें सभस्त रयत्रद्चमाॉ औय ससत्रद्चमाॉ त्रवद्यभान हैं । हय जैन
धभा के अनुमामी नवकाय भॊि का जऩ कयता हैं ।
नवकाय भहाभॊि अथवा नभस्काय भहाभॊि भें
त्जस ऩयभेद्षी बगवन्तों की आयाधना की जाती है उन
बगवन्तों भें तऩ, त्माग, सॊमभ, वैयाग्म इत्माफद सात्त्वक
नवकाय भॊि सभस्त जैन धभाावरॊत्रफमो का भु्म भॊि है । गुण होते हैं । नवकाय भॊि के भाध्मभ से अरयहॊ त, ससद्च,
आ ामा, उऩाध्माम औय साधु, इन ऩाॉ बगवॊतों को ऩयभ
नभो अरयहॊ ताणॊ
इद्श भाना हैं । इससरमे इनको नभन कयने की त्रवसध को
नभो ससद्चाणॊ नवकाय भहाभॊि अथवा नभस्काय भहाभॊि कहा जाता है ।
वैसे तो हय भॊि अऩने आऩ भें यहस्म सरमे होता है ,
नभो आमरयमाणॊ
ऩयॊ तु नवकाय भहाभॊि तो ऩयभ यहस्मभम हैं ।
नभो उवज्झामाणॊ नवकाय भहाभॊि के असत फदव्म प्रताऩ से साधक
के सभस्त द्ु ख सुख भें फदर जाता हैं ।
नभो रोएसव्वसाहूणॊ
जैन त्रवद्रानो के भत से नवकाय भॊि के स्भयण,
स न्तन, भनन औय उच् ायण से ही भनुष्म के जन्भ-
जन्भाॊतयों के ऩाऩों से भुि हो कय उसे शाद्वत सुख प्राद्ऱ
एसो ऩॊ नभुक्कायो
होता हैं ।
सव्व ऩावप्ऩणासणो नवकाय भॊि जऩ के राब
भॊगराणॊ सव्वेससॊ  जफ कोई व्मत्रि श्रद्चा ऩूणा बाव से नवकाय भॊि का
केवर एक अऺय उच् यण कयता हैं , तो उसके 7
ऩढभॊ हवई भॊगरॊ
सागयोऩभ त्जतने ऩाऩो का नाश होता हैं ।
अथा:  जफ कोई व्मत्रि "नभो अरयहॊ ताणॊ" का उच् यण
भैं अरयहॊ त बगवॊतों को नभन कयता हूॊ। कयत्ता हैं , तो उसके 50 सागयोऩभ त्जतने ऩाऩ नद्श
भैं ससद्च बगवॊतों को नभन कयता हूॊ। होते हैं ।

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e गुरुत्व ज्मोसतष 64 अगस्त 2020 | अॊक 1

 जफ कोई व्मत्रि ऩूया नवकाय भॊि जऩता हैं , तो  गबावती त्स्त्रमों के सरए इस भॊि का जाऩ कयना
उसके 500 सागयोऩभ त्जतने ऩाऩ नद्श होते हैं । फच् े के सरमे असत उत्तभ हैं ।
 मफद कोई व्मत्रि प्रात् कार उठकय 8 नवकाय भॊि  जन्भ के सभम मफद फारक के कान भें मह भॊि
जऩता हैं , तो उसके 4000 सागयोऩभ त्जतने ऩाऩ सुनामा जामे तो उसे जीवन भें सुख-सभृत्रद्च प्राद्ऱ
नद्श होते हैं । होती हैं ।
 सॊऩूणा नवकाय भॊि की 1 भारा सगनने से 54000  मफद फकसी जीव को भृत्मु के सभम नवकाय भॊि
सागयोऩभ त्जतने ऩाऩ नद्श होते हैं । सुनामा जामे तो उसे सदगसत प्राद्ऱ होती हैं ।
 (सागयोऩभ अथाात ् त्जसे सगनने भें कफठनाई हो  नवकाय भॊि की भफहभा अनॊत व अऩाय हैं इसी
इतने अयफों वषा।) सरमे नवकाय भॊि को शत्रिदामक, त्रवध्नत्रवनाशक,
अत्मॊत प्रबावशारी व भत्कायी हैं ।

दे वदशान स्तोिभ ्
दशानॊ दे वदे वस्म, दशानॊ ऩाऩनाशनभ ्।
अन्मथा शयणॊ नात्स्त, त्वभेव शयणॊ भभ।
दशानॊ स्वगासोऩानॊ, दशानॊ भोऺसाधनभ ्।1।

तस्भात्कारुण्म-बावेन, यऺ यऺ त्जनेद्वय।8।
दशानेन त्जनेन्द्राणाॊ, साधूनाॊ वॊदनेन ।
न फह िाता न फह िाता, न फह िाता जगत्िमे।
न स यॊ सतद्षते ऩाऩॊ, सछद्रहस्ते मथोदकभ ्।2।

वीतयागात्ऩयो दे वो, न बूतो न बत्रवष्मसत ।9।


वीतयागभुखॊ द्रष्ट्वा, ऩद्मयागसभप्रबॊ।
जन्भ-जन्भकृ तॊ ऩाऩॊ दशानेन त्रवनश्मसत।3।
त्जनेबत्रा ि् त्जनेबत्रा ि् त्जनेबत्रा ि् फदने फदने।
सदा भेऽस्तु, सदा भेऽस्तु, सदा भेऽस्तु बवे
दशानॊ त्जनसूमस्
ा म, सॊसाय-ध्वान्त-नाशनॊ।
बवे।10।
फोधनॊ स त्त-ऩद्मस्म, सभस्ताथा-प्रकाशनभ ्।4।

त्जनधभा - त्रवसनभुि
ा ो, भा बवेच् क्रवत्मात्रऩ।
दशानॊ त्जन ॊद्रस्म, सद्चभााभत
ृ -वषाणभ ्।
स्माच् ेटोऽत्रऩ दरयद्रोऽत्रऩ त्जनधभाानव
ु ाससत्।11।
जन्भ-दाह-त्रवनाशाम, वद्चा नॊ सुख-वारयधे्।5।

जन्भ-जन्भकृ तॊ ऩाऩॊ, जन्भ-कोफटभुऩात्जातभ ्।


जीवाफद तत्त्व प्रसतऩादकाम, सम्मक्त्व-भु्माद्श-
जन्भ-म्रत्मु-जया-योगॊ, हन्मते त्जन-दशानात ्।12।
गुणाणावाम।
प्रशाॊत-रुऩाम फदगम्फयाम, दे वासधदे वाम नभो
अद्याबवत्सपरता नमनद्रमस्म,
त्जनाम ।6।
दे व ! त्वदीम यणाम्फुज वीऺणेन।

स दानन्दै क-रुऩाम, त्जनाम ऩयभात्भने। अद्य त्रिरोक-सतरकॊ ! प्रसतबासते भे,


ऩयभात्भ-प्रकाशाम, सनत्मॊ ससद्चात्भने नभ्।7। सॊसाय-वारयसधयमॊ र
ु क
ु -प्रभाणभ ्।13।

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e गुरुत्व ज्मोसतष 65 अगस्त 2020 | अॊक 1

बगवान भहावीय की भाता त्रिशरा के 16 अद्भत


ु स्वप्न
 सॊकरन गुरुत्व कामाारम
जैन धभा के 24वे तीथंकय बगवान भहावीय के जन्भ से ज्मोसतष शास्त्र के त्रवद्रानों ने स्वप्न का पर फताते हुवे
ऩूवा आषाढ़ शुक्र षद्षी के फदन उनकी भाता त्रिशरा कहाॊ वह ऩुि ससॊह के सभान फरशारी होगा।
नगय भें हो यही अद्धबुत घटना के फाये भें सो यही थीॊ।
4.
भाता त्रिशरा उसी फाये भें सो ते-सो ते गहयी नीॊद भें
यानी को ौथे स्वप्न भें कभर आसन ऩय त्रवयाजभान
सो गई। उसी यात्रि के अॊसतभ प्रहय भें भाता त्रिशरा ने
रक्ष्भी का असबषेक कयते हुए दो हाथी फदखाई फदमे थे।
सोरह शुब एवॊ भॊगरकायी स्वप्न दे खे। नीॊद से जागने
ज्मोसतष शास्त्र के त्रवद्रानों ने स्वप्न का पर फताते हुवे
ऩय यानी त्रिशरा ने भहायाज ससद्चाथा से अऩने सोहर
कहाॊ दे वरोक से दे वगण आकय उस ऩुि का असबषेक
स्वप्न के त्रवषम भें ाा की औय उसका पर जानने
कयें गे।
की इच्छा प्रकट की। तफ भहायाजा ससद्चाथा ने भहायानी
त्रिशरा द्राया दे खे गए सऩनों की त्रवस्तृत जानकायी 5.
ज्मोसतष त्रवद्रानोकों दी, तफ त्रवद्रानों ने कहाॊ भहायाज यानी को ऩाॊ वें स्वप्न भें दो सुगॊसधत ऩुष्ऩभाराएॊ
भहायानी ने स्वप्न भें भॊगरभम प्रसतको के दशान फदखाई दी थी।
फकए हैं । ज्मोसतष शास्त्र के त्रवद्रानों ने स्वप्न का पर फताते हुवे
त्रवद्रानों ने यानी से कहा फक वह एक-एक कय कहाॊ वह ऩुि धभा प्र ायक होगा औय जन-जन के सरए

अऩने साये स्वप्न फताएॊ, त्जससे उसी प्रकाय उसका पर कल्माणकायी होगा।

फताते गए। तफ भहायानी त्रिशरा ने अऩने साये स्वप्न 6.


उन्हें एक-एक कय त्रवस्ताय से सुनाएॊ जो इस प्रकाय हैं .. यानी को छठे स्वप्न भें ऩूणा द्र
ॊ भा फदखाई फदमा था।
ज्मोसतष शास्त्र के त्रवद्रानों ने स्वप्न का पर फताते हुवे
1.
कहाॊ उसके जन्भ से तीनों रोक आनॊफदत होंगे औय वह
यानी को ऩहरे स्वप्न भें एक असत त्रवशार सपेद यॊ ग
द्र
ॊ भा के सभान शीतर व सौम्म होगा।
का हाथी फदखाई फदमा था।
7.
ज्मोसतष शास्त्र के त्रवद्रानों ने स्वप्न का पर फताते हुवे यानी को सातवें स्वप्न भें उदम होता सूमा फदखाई फदमा
कहाॊ उनके घय एक अद्भत
ु ऩुि यत्न उत्ऩन्न होगा। था।

2. ज्मोसतष शास्त्र के त्रवद्रानों ने स्वप्न का पर फताते हुवे

यानी को दस
ू ये स्वप्न भें एक सपेद यॊ ग का वृषब कहाॊ वह ऩुि सूमा के सभान तेजमुि यौ औय ऻान का
फदखाई फदमा था। प्रकाश पैराने वारा होगा।
ज्मोसतष शास्त्र के त्रवद्रानों ने स्वप्न का पर फताते हुवे
कहाॊ वह ऩुि सॊसाय का कल्माण कयने 8.
यानी को आठवें स्वप्न भें कभर ऩिों से ढॊ के हुए दो
वारा होगा।
स्वणा करश फदखाई फदमे थे।
3.
ज्मोसतष शास्त्र के त्रवद्रानों ने स्वप्न का पर फताते हुवे
यानी को तीसये स्वप्न भें सपेद यॊ ग औय रार फारों
कहाॊ वह ऩुि अनेक सनसधमों का स्वाभी होगा।
वारा ससॊह फदखाई फदमा था।

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e गुरुत्व ज्मोसतष 66 अगस्त 2020 | अॊक 1

9. होगा।
यानी को नौवें स्वप्न भें सयोवय भें क्रीड़ा कयती दो 13.
भछसरमाॊ फदखाई दी थी। यानी को तेयहवें स्वप्न भें दे व त्रवभान फदखाई फदमा था।
ज्मोसतष शास्त्र के त्रवद्रानों ने स्वप्न का पर फताते हुवे ज्मोसतष शास्त्र के त्रवद्रानों ने स्वप्न का पर फताते हुवे
कहाॊ वह ऩुि भहाआनॊद का दाता, दख
ु ीका दख
ु हताा होगा। कहाॊ इस जन्भ से ऩूवा वह ऩुि स्वगा का दे वता होगा।

10. 14.
यानी को दसवें स्वप्न भें कभरों से बया सयोवय फदखाई यानी को ौदहवें स्वप्न भें ऩृथ्वी को बेद कय सनकरता
फदमा था। नागों के याजा नागेन्द्र का त्रवभान फदखाई फदमा था।
ज्मोसतष शास्त्र के त्रवद्रानों ने स्वप्न का पर फताते हुवे ज्मोसतष शास्त्र के त्रवद्रानों ने स्वप्न का पर फताते हुवे
कहाॊ वह ऩुि शुब रऺणों से मुि एवॊ कभराकाय कहाॊ वह ऩुि जन्भ से ही त्रिकारदशॉ होगा।
ससॊहासन त्रवयाजभान होगा।
15.
11. यानी को ऩन्द्रहवें स्वप्न भें यत्नों का ढे य फदखाई फदमा
यानी को ग्मायहवें स्वप्न भें रहयें उछारता सभुद्र फदखाई था।
फदमा था। ज्मोसतष शास्त्र के त्रवद्रानों ने स्वप्न का पर फताते हुवे
ज्मोसतष शास्त्र के त्रवद्रानों ने स्वप्न का पर फताते हुवे कहाॊ वह ऩुि अनॊत गुणों से सॊऩन्न होगा।
कहाॊ ऩुि बूत-बत्रवष्म-वताभान का ऻाता होगा।
16.
12. यानी को सोरहवें स्वप्न भें धुआॊयफहत अत्ग्न फदखाई दी थी।
यानी को फायहवें स्वप्न भें हीये -भोती औय यत्नजत्े़डत ज्मोसतष शास्त्र के त्रवद्रानों ने स्वप्न का पर फताते हुवे
स्वणा ससॊहासन फदखाई फदमा था। कहाॊ वह ऩुि साॊसारयक कभों का अॊत कयके भोऺ
ज्मोसतष शास्त्र के त्रवद्रानों ने स्वप्न का पर फताते हुवे (सनवााण) को प्राद्ऱ होगा।
कहाॊ ऩुि याज्म का स्वाभी औय प्रजा का फहतस त
ॊ क ***

त्रववाह सॊफॊसधत सभस्मा


क्मा आऩके रडके-रडकी फक आऩकी शादी भें अनावश्मक रूऩ से त्रवरम्फ हो यहा हैं मा उनके वैवाफहक
जीवन भें खुसशमाॊ कभ होती जायही हैं औय सभस्मा असधक फढती जायही हैं । एसी त्स्थती होने ऩय
अऩने रडके-रडकी फक कॊु डरी का अध्ममन अवश्म कयवारे औय उनके वैवाफहक सुख को कभ कयने
वारे दोषों के सनवायण के उऩामो के फाय भें त्रवस्ताय से जनकायी प्राद्ऱ कयें ।
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e गुरुत्व ज्मोसतष 67 अगस्त 2020 | अॊक 1

त्रवसबन्न भत्कायी जैन भॊि


 सॊकरन गुरुत्व कामाारम
ऩॊ ाऺयी भॊि :-
अ सस आ उ सा

षद्शाऺयी भॊि :-
1. अयहन्त ससद्च
2. अयहन्त सस सा
3. ॐ नभ् ससद्चे भ्म
4. नभोहा त्त्सद्चे भ्म्

सद्ऱाऺयी भॊि:-
ॐ श्रीॊ ह्ीॊ अहं नभ्।

अद्शाऺयी भॊि:-
ॐ नभो अरयहॊ ताणॊ।

सोरह अऺयों का भॊि :-


अयहॊ त ससद्च आइरयमा उवज्झामा साहू

एका अऺय का भॊि :- 35 अऺयों का भॊि :-


ॐ (ओभ ्) णभो अरयहॊ ताणॊ, णभो ससद्चाणॊ, णभो आइरयमाणॊ ।
ॐ शब्द की ध्वसन ऩाॊ ो ऩयभेद्षी नाभों के ऩहरे अऺय णभो उवज्झामाणॊ, णभो रोए सव्वसाहूणॊ ।।
को सभराने ऩय फनती हैं ।
जैन भुसनमों के भत से अयहन्त का ऩहरा अऺय 'अ' रघु शात्न्त भॊि:-

जो अशयीयी अथाात ससद्च का 'अ' हैं । ओभ शब्द भें ॐ ह्ीभ ् अहा भ ् अससआउसा सवाशात्न्तभ ् कुरु कुरु स्वाहा।

आ ामा का 'आ', उऩाध्माम का 'उ', तथा भुसन अथाात साधु


भनोयथ ससत्रद्चदामक भॊि :-
जनो का 'भ ्', इस प्रकाय सबी शब्दो को जोडने ॐ फनता
ॐ ह्ीभ ् श्रीभ ् अहा भ ् नभ् ।
हैं ।
योगनाशक भॊि :-
दो अऺयों का भॊि :- ॐ ऐभ ् ह्ीभ ् श्रीभ ् कसरकुण्डदण्डस्वासभने नभ् आयोग्म-
1. ससद्च ऩयभेद्वमाभ ् कुरु कुरु स्वाहा ।
2. ॐ ह्ीॊ (योग शाॊसत हे तु उि भन्ि को श्रीऩाद्वानाथ जी की प्रसतभा
ाय अऺयों का भॊि :- के सम्भुख शुद्चता व ् सनमभ से 108 फाय जऩ कयना असत
1. अयहन्त राबदामक होता हैं ।)
2. अ सस साहू

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e गुरुत्व ज्मोसतष 68 अगस्त 2020 | अॊक 1

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e गुरुत्व ज्मोसतष 69 अगस्त 2020 | अॊक 1

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e गुरुत्व ज्मोसतष 70 अगस्त 2020 | अॊक 1

जैन धभा के ौफीस तीथंकायों के जीवन का सॊत्ऺद्ऱ त्रववयण


 सॊकरन गुरुत्व कामाारम
जन्भ जन्भ भाता त्रऩता वैयाग्म प्रसतक
क्र तीथंकाय
स्थान नऺि का नाभ का नाभ वृऺ स ह्न
१ ऋषबदे वजी अमोध्मा उत्तयाषाढ़ा भरूदे वी नासबयाजा वट वृऺ फैर
२ अत्जतनाथजी अमोध्मा योफहणी त्रवजमा त्जतशिु सऩाऩणा वृऺ हाथी
३ सम्बवनाथजी श्रावस्ती ऩूवााषाढ़ा सेना त्जतायी शार वृऺ घोड़ा
४ असबनन्दनजी अमोध्मा ऩुनवासु ससद्चाथाा सॊवय दे वदाय वृऺ फन्दय
५ सुभसतनाथजी अमोध्मा भद्या सुभॊगरा भेधप्रम त्रप्रमॊगु वृऺ कवा
६ ऩद्मप्रबुजी कौशाम्फीऩुयी स िा सुसीभा धयण त्रप्रमॊगु वृऺ कभर
७ सुऩाद्वानाथजी काशीनगयी त्रवशाखा ऩृथ्वी सुप्रसतद्ष सशयीष वृऺ सासथमा
८ न्द्रप्रबुजी द्र
ॊ ऩुयी अनुयाधा रक्ष्भण भहासेन नाग वृऺ न्द्रभा
९ ऩुष्ऩदन्तजी काकन्दी भूर याभा सुग्रीव सार वृऺ भगय
१० शीतरनाथजी बफद्रकाऩुयी ऩूवााषाढ़ा सुनन्दा दृढ़यथ प्रऺ वृऺ कल्ऩवृऺ
११ श्रेमान्सनाथजी ससॊहऩुयी वण त्रवष्णु त्रवष्णुयाज तेंदक
ु ा वृऺ गेंडा
१२ वासुऩुज्मजी म्ऩाऩुयी शतसबषा जऩा वासुऩुज्म ऩाटरा वृऺ बैंसा
१३ त्रवभरनाथजी कात्म्ऩल्म उत्तयाबाद्रऩद शभी कृ तवभाा जम्फू वृऺ शूकय
१४ अनन्तनाथजी त्रवनीता ये वती सूवश
ा मा ससॊहसेन ऩीऩर वृऺ सेही
१५ धभानाथजी यत्नऩुयी ऩुष्म सुव्रता बानुयाजा दसधऩणा वृऺ वज्रदण्ड
१६ शाॊसतनाथजी हत्स्तनाऩुय बयणी ऐयाणी त्रवद्वसेन नन्द वृऺ फहयण
१७ कुन्थुनाथजी हत्स्तनाऩुय कृ त्रत्तका श्रीदे वी सूमा सतरक वृऺ फकया
१८ अयहनाथजी हत्स्तनाऩुय योफहणी सभमा सुदशान आम्र वृऺ भछरी
१९ भत्ल्रनाथजी सभसथरा अत्द्वनी यत्ऺता कुम्ऩ कुम्ऩअशोक वृऺ करश
२० भुसनसुव्रतनाथजी कुशाक्रनगय श्रवण ऩद्मावती सुसभि म्ऩक वृऺ कछुवा
२१ नसभनाथजी सभसथरा अत्द्वनी वप्रा त्रवजम वकुर वृऺ नीरकभर
२२ नेसभनाथजी शोरयऩुय स िा सशवा सभुद्रत्रवजम भेषश्रृग
ॊ वृऺ शॊख
२३ ऩार्श्रवानाथजी वायाणसी त्रवशाखा वाभादे वी अद्वसेन घव वृऺ सऩा
२४ भहावीयजी कुॊडरऩुय उत्तयापाल्गुनी त्रिशारा ससद्चाथा सार वृऺ ससॊह
(त्रप्रमकारयणी)

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e गुरुत्व ज्मोसतष 71 अगस्त 2020 | अॊक 1

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e गुरुत्व ज्मोसतष 72 अगस्त 2020 | अॊक 1

॥ भहावीयाद्शक-स्तोिभ ् ॥
सशखरयणी छॊ द कनत्स्वणााबासोऽप्मऩगत-तनुऻाान-सनवहो
त्रवस िात्भाप्मेको नृऩसत-वय-ससद्चाथा-तनम:।
मदीमे त
ै न्मे भुकुय इव बावात्द्ळदस त: अजन्भात्रऩ श्रीभान ्? त्रवगत-बव-यागोद्भत
ु -गसत?
सभॊ बात्न्त ध्रौव्म व्मम-जसन-रसन्तोऽन्तयफहता:। भहावीय-स्वाभी नमन-ऩथ-गाभी बवतु भे॥5॥
जगत्साऺी भागा-प्रकटन ऩयो बानुरयव मो
भहावीय-स्वाभी नमन-ऩथ-गाभी बवतु भें॥1॥ मदीमा वाग्गॊगा त्रवत्रवध-नम-कल्रोर-त्रवभरा
फृहज्ऻानाभ्बोसबजागसत जनताॊ मा स्नऩमसत।
अताम्रॊ मच् ऺु: कभर-मुगरॊ स्ऩन्द-यफहतॊ इदानीभप्मेषा फुध-जन-भयारै ऩरयस ता
जनान्कोऩाऩामॊ प्रकटमसत वाभ्मन्तयभत्रऩ। भहावीय-स्वाभी नमन-ऩथ-गाभी बवतु भे॥6॥
स्पुटॊ भूसतामस्
ा म प्रशसभतभमी वासतत्रवभरा
असनवाायोद्रे कत्स्त्रबुवन-जमी काभ-सुबट:
भहावीय-स्वाभी नमन-ऩथ-गाभी बवतु भे॥2॥
कुभायावस्थामाभत्रऩ सनज-फराद्येन त्रवत्जत:
नभन्नाकेंद्रारी-भुकुट-भत्ण-बा जार जफटरॊ स्पुयत्न्नत्मानन्द-प्रशभ-ऩद-याज्माम स त्जन:
रसत्ऩादाम्बोज-द्रमसभह मदीमॊ तनुबत
ृ ाभ ्?। भहावीय-स्वाभी नमन-ऩथ-गाभी बवतु भे॥7॥
बवज्ज्वारा-शान्त्मै प्रबवसत जरॊ वा स्भृतभत्रऩ
भहाभोहातक-प्रशभन-ऩयाकत्स्भक-सबषक?
भहावीय स्वाभी नमन-ऩथ-गाभी बवतु भे॥3॥
सनयाऩेऺो फॊधु त्रवाफदत-भफहभा भॊगरकय:।
शयण्म: साधूनाॊ बव-बमबृताभुत्तभगुणो
मदच् ाा-बावेन प्रभुफदत-भना ददा यु इह
भहावीय-स्वाभी नमन-ऩथ-गाभी बवतु भे॥8॥
ऺणादासीत्स्वगॉ गुण-गण-सभृद्च: सुख-सनसध:।
रबन्ते सद्भिा: सशव-सुख-सभाजॊ फकभुतदा भहावीयाद्शकॊ स्तोिॊ बक्त्मा बागेन्द ु ना कतभ।
भहावीय-स्वाभी नमन-ऩथ-गाभी बवतु भे॥4॥ म: मठे च्रणुमाच् ात्रऩ स मासत ऩयभाॊ गसतभ॥9॥

सयस्वती कव एवॊ मॊि


उत्तभ सशऺा एवॊ त्रवद्या प्रासद्ऱ के सरमे वॊसत ऩॊ भी ऩय दर
ु ब
ा तेजस्वी भॊि शत्रि द्वाया ऩूणा प्राण-प्रसतत्रद्षत एवॊ ऩूणा त
ै न्म मुि
सयस्वती कव औय सयस्वती मॊि के प्रमोग से सयरता एवॊ सहजता से भाॊ सयस्वती की कृ ऩा प्राद्ऱ कयें ।
मॊि भूल्म:325 से 1450 तक
कव भूल्म:910 से 1050 तक

भॊि ससद्च धन वृत्रद्च साभग्री


शास्त्रोि त्रवसध-त्रवधान से तेजस्वी भॊिों द्राया असबभॊत्रित धनवृत्रद्च ऩाउडय को
प्रसत फुधवाय के फदन अऩने कैश फोक्स, भनीऩसा आफद भें थोडा डारने से सनयॊ तय
धन सॊ म होता हैं । भूल्म 1 Box Rs- 280
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e गुरुत्व ज्मोसतष 73 अगस्त 2020 | अॊक 1

॥ भहावीय ारीसा ॥
दोहा सनत्रवाष कयो आऩ बगवन्ता । अनहद शब्दबमो सतहुॉरोका ।
भहाभत्त गज भद को झायै , इन्द्र ने नेि सहस्र करय दे खा,
ससद्च सभूह नभों सदा,
बगै तुयत जफ तुझे ऩुकायै । सगयी सुभेय फकमो असबषेखा ।
अरु सुभरूॊ अयहन्त ।
पाय डाढ़ ससॊहाफदक आवै, काभाफदक तृष्णा सॊसायी,
सनय आकुर सनवांच्छ हो,
ताको हे प्रबु तुही बगावै । तज तुभ बए फार ब्रह्म ायी ।
गए रोक के अॊत ॥
होकय प्रफर अत्ग्न जो जायै , असथय जान जग असनत त्रफसायी,
भॊगरभम भॊगर कयन,
तुभ प्रताऩ शीतरता धायै । फारऩने प्रबु दीऺा धायी ।
वधाभान भहावीय ।
शस्त्र धाय अरय मुद्च रड़न्ता, शाॊत बाव धय कभा त्रवनाशे,
तुभ स त
ॊ त स त
ॊ ा सभटे ,
तुभ प्रसाद हो त्रवजम तुयन्ता । तुयतफह केवर ऻान प्रकाशे ।
हयो सकर बव ऩीय ॥
ऩवन प्र ण्ड रै झकझोया, प्र जड़- ेतन िम जग के साये ,
ौऩाई बु तुभ हयौ होम बम ोया । हस्त ये खवत ्? सभ तू सनहाये ।
जम भहावीय दमा के सागय, झाय खण्ड सगरय अटवी भाॊहीॊ, रोक-अरोक द्रव्म षट जाना,
जम श्री सन्भसत ऻान उजागय । तुभ त्रफनशयण तहाॊ कोउ नाॊहीॊ । द्वादशाॊग का यहस्म फखाना ।
शाॊत छत्रव भूयत असत प्मायी, वज्रऩात करय घन गयजावै, ऩशु मऻों का सभटा करेशा,
वेष फदगम्फय के तुभ धायी । भूसरधाय होम तड़कावै । दमा धभा दे कय उऩदे शा ।
कोफट बानु से असत छत्रफ छाजे, होम अऩुि दरयद्र सॊताना, अनेकाॊत अऩरयग्रह द्वाया,
दे खत सतसभय ऩाऩ सफ बाजे । सुसभयत होत कुफेय सभाना । सवाप्रात्ण सभबाव प्र ाया ।
भहाफरी अरय कभा त्रवदाये , फॊदीगृह भें फॉधी जॊजीया, ऩॊ भ कार त्रवषै त्जनयाई,
जोधा भोह सुबट से भाये । कठ सुई असन भें सकर शयीया । ाॊदनऩुय प्रबुता प्रगटाई ।
काभ क्रोध तत्ज छोड़ी भामा, याजदण्ड करय शूर धयावै, ऺण भें तोऩसन फाफढ-हटाई,
ऺण भें भान कषाम बगामा। ताफह ससॊहासन तुही त्रफठावै । बिन के तुभ सदा सहाई ।
यागी नहीॊ नहीॊ तू द्रे षी, न्मामाधीश याजदयफायी, भूयख नय नफहॊ अऺय ऻाता,
वीतयाग तू फहत उऩदे शी । त्रवजम कये होम कृ ऩा तुम्हायी । सुभयत ऩॊफडत होम त्रव्माता ।
प्रबु तुभ नाभ जगत भें साॊ ा, जहय हराहर दद्श
ु त्रऩमन्ता, सोयठा
सुभयत बागत बूत त्रऩशा ा । अभृत सभ प्रबु कयो तुयन्ता । कये ऩाठ ारीस फदन
याऺस मऺ डाफकनी बागे, ढ़े जहय, जीवाफद डसन्ता, सनत ारीसफहॊ फाय ।
तुभ स त
ॊ त बम कोई न रागे । सनत्रवाष ऺण भें आऩ कयन्ता । खेवै धूऩ सुगन्ध ऩढ़,
भहा शूर को जो तन धाये , एक सहस वसु तुभये नाभा, श्री भहावीय अगाय ॥
होवे योग असाध्म सनवाये । जन्भ सरमो कुण्डरऩुय धाभा । जनभ दरयद्री होम अरु
व्मार कयार होम पणधायी, ससद्चायथ नृऩ सुत कहराए, त्जसके नफहॊ सन्तान ।
त्रवष को उगर क्रोध कय बायी । त्रिशरा भात उदय प्रगटाए । नाभ वॊश जग भें रे
भहाकार सभ कयै डसन्ता, तुभ जनभत बमो रोक अशोका, होम कुफेय सभान ॥

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e गुरुत्व ज्मोसतष 74 अगस्त 2020 | अॊक 1

जफ भहावीय ने एक ज्मोसतषी को कहाॊ तुम्हायी त्रवद्या सच् ी है ?

 सॊकरन गुरुत्व कामाारम


बगवान भहावीय के सभम भें ऩुष्म नाभ का एक आऩके भारूभ होते हैं ?"
फड़ा सुप्रससद्च ज्मोसतषी था। उसका ज्मोसतष ऻान इतना भहावीय फोरे: "हाॉ।"
सटीक यहता था फक ऩुष्मको अऩने ज्मोसतष ऻान ऩय ऩुष्म कहने रगे "भुझे अऩने ज्मोसतष ऩय बयोसा हैं ।
ऩूया त्रवद्वास था। दयू दे श से रोग उससे ज्मोसतष त्रवद्या के आज तक भेया ज्मोसतष झूठा नहीॊ ऩड़ा। ऩदस ह्नों से
त्रवषम भें ऩूछने आते थे। रगता है फक आऩ क्रवतॉ सम्राट हो। रेफकन आऩको
ऩुष्म ज्मोसतषी जो कह दे ते, वस्तुत् सच् ा ऩड़ फेहार दे खकय दमा आती है फक आऩ सबऺुक हो। भेयी
जाता। ज्मोसतषी त्रवद्या भें वहॊ इतने तेज थे की रोगों के त्रवद्या आज झूठी कैसे ऩड़ी ?"
ऩदस ह्न की ये खाएॉ दे खकय बी वह रोगों की त्स्थसत फता भहावीय भुस्कयाकय फोरे् "तुम्हायी त्रवद्या झूठी नहीॊ है ,
सकते थे। ऐसे फफढ़मा कुशाग्र ज्मोसतषी थे। सच् ी है ।
उन फदनों भें वधाभान (बगवान भहावीय) घय फदन एक फात फताओॊ क्रवतॉ को क्मा होता है ?"
भें तो भ्रभब कयते औय जैसे सॊध्मा होती, अॊधेया होते ही ऩुष्म फोरे: "उसके ऩास ध्वजा होती है , कोष होता है ,
एकान्त खोजकय फैठ जाते। थोड़ी दे य आयाभ कय रेते उसके ऩास सैन्म होता है । आऩ तो फेहार हो"
फपय फैठकय ऩ
ु ाऩ, ध्मान भें त्स्थय हो जाते। भहावीय फपय भुस्कयाकय फोरे् "धभा की ध्वजा भेये ऩास
ऩुष्म ज्मोसतषी ने दे खा की ये त ऩय फकसी के है । कऩड़े की ध्वजा ही सच् ी ध्वजा नहीॊ है । सच् ी
ऩदस ह्न हैं । ऩदस ह्नों को ध्मान से ऩयखा ओय ज्मोसतष ध्वजा तो धभा की ध्वजा है । भेये ऩास सदत्रव ायरूऩी
त्रवद्या से जाना की मे तो क्रवतॉ के ऩदस ह्न हैं । सैन्म है जो कुत्रव ायों को भाय बगाता है । ऺभा भेयी
क्रवतॉ मदी महाॉ से गुजये है तो उनके साथ भें भॊिी यानी है । क्रवतॉ के आगे क्र होता है तो सभता भेया
होने ाफहए, सस व होने ाफहए, अॊगयक्ष्क होने ाफहए, क्र है , ऻान का प्रकाश भेया क्र है ।
ससऩाही होने ाफहए। ऩदस ह्न क्रवतॉ के औय साथ भें ज्मोसतषी ! क्मा मह जरूयी है फक फाहय का क्र ही
कोई औय ऩदस ह्न नहीॊ मह सम्बव नहीॊ हो सकता। क्रवतॉ के ऩास हो ? फाहय की ही ध्वजा हो ? धभा की
ऩयॊ तु ऩुष्म ज्मोसतषी ऩहूॊ ा हुवा ज्मोसतष था बी ध्वजा हो सकती है । धभा का बी कोष हो सकता है ।
ध्मान औय ऩुण्मों का बी कोई खजाना होता है ।
उसको अऩनी ज्मोसतष त्रवद्या ऩय ऩूया बयोसा था। उसकी
याजा वह त्जसके ऩास बूसभ हो, सत्ता हो। सुफह
नीॊद हयाभ हो गमी। ाॉदनी यात थी इस सरमे जहाॉ तक
जो सो े तो शाभ को ऩरयणाभ आ जाम। ऻानयाज्म भें
र सका ऩदस ह्न दे खता हुआ रा, फपय कहीॊ रुक कय
भेयी सनद्षा है । जो बी भेये भागा भें प्रवेश कयता है , सुफह
आयाभ कय सरमे। फपय सुफह-सुफह जल्दी रना ारू को ही रे तो शाभ को शाॊसत का एहसास हो जाता है ,
फकमा। उसेतो खोजना था, ऩदस ह्न कहाॉ जा यहे हैं । दे खा थोड़ा फहुत ऩरयणाभ आ जाता है ।
फक त्रफना कोई साधन के, एक व्मत्रि शाॊत बाव भें फैठा मह भेयी ऻान की बूसभ है ।" जो ज्मोसतषी हाया

हुआ है । ऩदस ह्न वहीॊ ऩूये होते हैं । उसके इदा सगदा दे खा, हुआ सनयाश होकय जा यहा था वह सन्तुद्श होकय,
सभाधान ऩाकय प्रणाभ कयता हुआ फोरा् "हाॉ
ेहये ऩय दे खता यहा। इतने भें भहावीय की आॉख खुरी।
भहायाज ! इस यहस्म का भुझे आज ऩता रा। भेयी
अफतक ज्मोसतषी स न्ता भें डू फता जा यहा था।
त्रवद्या बी सच् ी औय आऩका भागा बी सच् ा है ।"
ऩुष्म ज्मोसतषी ने भहावीय से ऩूछा "मे ऩदस ह्न तो
***
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e गुरुत्व ज्मोसतष 75 अगस्त 2020 | अॊक 1

गौतभ केवरी भहात्रवद्या (प्रद्लावरी)


 सॊकरन गुरुत्व कामाारम
होगा। आभदनी से ख ा असधक होता है । तीथों की मािा
111 112 113 121 122 123 131 132 133 कयने की असबराषा है , वह ऩूणा होगी। धासभाक कामा
सम्ऩन्न होगा।
211 212 213 221 222 223 231 232 233
113: आऩका अबीद्श प्रद्ल अच्छा है । तुम्हाये फदर को
आयाभ सभरेगा। सुख- न
ै प्राद्ऱ कयोगे। जो कामा भन भें
311 312 313 321 322 323 331 332 333
सो ा है , उसभें त्रवजम प्राद्ऱ कयोगे। त्रप्रमजनों का सभराऩ
होगा। स न्ता के फदन सनकर क
ु े हैं तथा अफ अच्छे
उऩय दशााएॊ गमे अॊक शकुनावरी प्रद्लावरी से उत्तय
फदन आए हैं । धभा के प्रबाव से सुखी हुए हो तथा आगे
प्राद्ऱ कयने से ऩूवा शुद्च एवॊ ऩत्रवि होकय अऩने इद्श दे व
बी सुख प्राद्ऱ कयोगे। कद्श सहन कयते हुए बी दस
ू ये का
का स्भयण कयते हुवे उऩय दशााएॊ गमे अॊक कोद्शको भें से
कामा कयते हो ऩयन्तु अऩने कामा भें सुस्ती यखते हो।
फकसी एक कोद्शक ऩय अऩनी अॊगुरी अथवा शराका यखें।
फुत्रद्च तेज है , त्रफगड़े कामा को बी सुधाय रेते हो। बत्रवष्म
त्जस कोद्शक ऩय आऩने अॊगुरी अथवा शराका यखी हैं
भें राब सभरेगा।
उस कोद्शक भें अॊफकत सॊ्मा के अनुसाय आऩके अबीद्श
121: आऩका त्रव ाया हुआ प्रद्ल राबदामक है । फहुत
प्रद्ल का हर नी े क्रभश् अॊको भें फदमा गमा हैं ।
फदनों तक द्ु ख सहन कयने से सनयाश हो गए हो, फुये
111: आऩने जो प्रद्ल त्रव ाया है वह सपर होगा।
फदन सनकर गए हैं औय अफ शुब फदन आए हैं । भन की
तुम्हाये खयाफ फदनों का नाश होकय अच्छे फदन आए हैं ।
इच्छाएॉ परीबूत होंगी। त्जतनी रक्ष्भी गॊवाई है उससे
भन की काभनाएॉ ऩूणा होंगी। त्रवत्रवध प्रकाय की स त
ॊ ाएॉ
बी असधक प्राद्ऱ कयोगे। त्जस काभ की स न्ता कयते हो
भन भें यहती हैं , वे अफ थोड़े फदनों भें नाश हो जाएॉगी।
वह स न्ता सभट जामेगी, उसभें एक व्मत्रि त्रवघ्न
एक सभि के धोखे को बोग यहे हो। धभा कामा की इच्छा
उऩत्स्थत कयने आमेगा, फकन्तु अन्त भें तुभको सपरता
है , ऩयन्तु ऩाऩकभा से त्रवघ्न आता है । आभदनी से ख ा
प्राद्ऱ होगी। बाइमों तथा सम्फत्न्धमों का सनबाव कयते
असधक यहता है । कोई कामा ससद्च होने को आता है , तो
हो, त्जससे तुम्हायी कीसता फढ़ी है । फदर के उदाय हो, जहाॉ
शिु उसभें त्रवघ्न डार दे ते हैं । दान-ऩुण्म कयो। त्जससे
जाते हो वहाॉ सुख सभरता है ।
भन की असबराषा ऩूणा होगी। त्रवयोधी ाहे फकतनी
122: आऩने जो काभ त्रव ाया है , उसभें सपरता नहीॊ
कोसशश कयें , ऩयन्तु तुम्हायी धायणा अवश्म परीबूत
सभर ऩाएगी। आऩने आज तक फहुतों का बरा फकमा है ।
होगी।
अशुब कभा के उदम से त्रवघ्न उऩत्स्थत होते हैं । जहाॉ

112: आऩका अबीद्श प्रद्ल राबदामक है । धन की प्रासद्ऱ तक फन सके वहाॉ तक धभा कयो। अऩने इद्शदे व की

होगी। बाग्मोदम के फदन अफ नजदीक आ गए हैं । त्जस मथाशत्रि आयाधना तथा भन्ि का जऩ कयो, त्जससे

कामा को हाथ भें रोगे, उसभें जम प्राद्ऱ कयोगे। त्रप्रमजन तकरीप दयू होगी।

का सभराऩ होगा। धभा के कामा कयते यहो, त्जससे ऩुण्म 123: आऩके अबीद्श कामा भें सपरता अवश्म सभरेगी।

की प्रासद्ऱ होगी तथा सुख बी सभरेगा। भन स त्न्तत इतने ऩाऩकभा के थे तथा आऩने भहान सॊकट उठामे हैं ।

यहता है । बाइमों से जुदाई होगी। भकान फनाने का अफ शुब फदन आए हैं । फहुतों का बरा फकमा, फकन्तु

इयादा कयते हो वह ऩाय ऩड़े गा। जभीन से तुभको राब उन्होनें उऩकाय न भाना। धभा के सनसभत्त का सनकारा
हुआ ऩैसा घय भें न यखो। तीथों की मािा कयो, त्जस

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e गुरुत्व ज्मोसतष 76 अगस्त 2020 | अॊक 1

स्थान ऩय द्ु खी हुए हो, उस स्थान का त्माग कयो, दस


ू ये सहन फकमा। जहाॉ तक फना दस
ू यों का बरा फकमा,
स्थान भें जाकय यहो। ऩयदे श भें राब होगा। तुम्हाया ऩयन्तु उन रोगों ने गुण नहीॊ भाना। शिु रोग ऩग-ऩग
फदर स न्ता भें डू फा यहता है । अफ शुब कभा का उदम ऩय तैमाय यहते हैं , फकन्तु उनका जोय नहीॊ रता क्मोंफक
हुआ है । त्रव ाये हुए कामा भें सपरता एवॊ धन प्राद्ऱ तुम्हाया बाग्म फरवान ् है । ऩास भें धन थोड़ा है , फकन्तु
होगा। इज्जत अच्छी है , इससरमे त्जतना प्राद्ऱ कयने का त्रव ाय
131: जो फात आऩने सो ी है वह अवश्म ससद्च होगी, कयोगे उतना प्राद्ऱ कय सकोगे। सभि रोगों से जैसा
त्जसका नुकसान हुआ है वह दयू होकय बत्रवष्म भें राब ाफहए वैसा सुख नहीॊ है । इज्जत आफरु के सरमे ख ा
होगा। धन सभरेगा। तुम्हाये हाथ से धभा के कामा होंगे। फहुत कयते हो। तुम्हाया धभा सुधया हुआ है , इससरए धभा
त्जस भनुष्म से भुराकात ाहते हो वह होगी। स न्ता के ऩय श्रद्चा यखो।
फदन अफ गए हैं । धातु, धन, सम्ऩत्रत्त औय कुटु म्फ की 221: इतने फदन गए वे अच्छे गए, जो जो कामा फकए
वृत्रद्च होगी। वे बी ऩाय ऩड़ गए, फकन्तु अफ जो कामा फदर भें त्रव ाया
132: आज तक तुम्हाये फड़े -फड़े दश्ु भन हुए अफ उनका है वह ऩाऩ कभा के उदम से ऩूणा नहीॊ होगा। सभि रोग
जोय नहीॊ रेगा। भन भें त्रव ाये हुए कामों भें सपरता बी शिु हो जाएॉगे। कुटु म्फ भें अनफन यहे गी, बाई जुदा
प्राद्ऱ कयोगे। इज्जत भें वृत्रद्च होगी। तुम्हाये हाथों से धभा होंगे। जो काभ फदर भें त्रव ाया है , उसका त्माग कयना
के कामा होंगे, भन वाॊसछत सुख की प्रासद्ऱ होगी। बाइमों ही श्रेद्ष है । धभा ऩय श्रद्चा यखो, इद्शदे व की सेवा कयो,
का सभराऩ होगा। दान-ऩुण्म के प्रबाव से सुखी होंगे। दान-ऩुण्म के प्रबाव से सुख सभरेगा।
133: इतने फदन सॊकट यहा। स सॊ तत कामा अच्छी तयह 222: जो काभ भन भें त्रव ाया है , उसको छोड़कय दस
ू या
से ऩाय न ऩड़ा, अफ अच्छे फदनों की शुरुआत हुई है , जो काभ कयो। मफद इस त्रव ाये हुए कामा को कयोगे तो
कामा त्रव ाया है वह परीबूत होगा, फकसी बी प्रकाय का सॊकट उत्ऩन्न होगा, नुकसान होगा, शिु रोग त्रवघ्न
त्रवघ्न नहीॊ आमेगा। इद्शदे व के प्रबाव से रक्ष्भी प्राद्ऱ उऩत्स्थत कयें गे। इद्शदे व की सेवा कयो, तीथों ऩय जाओ,
होगी, त्रप्रमजन से अ ानक राब होगा। त्जससे दस
ू ये कामा बी सुधयें गे। फदर भें त्रवत्रवध प्रकाय की
211: तुभने भन भें त्जस कामा का त्रव ाय फकमा है , वह स न्ताओॊ ने वास फकमा है , वह त्रव ाये हुए कामा को छोड़
सपर नहीॊ होगा। इसके ससवाम कोई दस
ू या काभ कयो। दे ने से दयू होगी।
तीथों की मािा कयो, त्जससे ऩुण्म का राब हो। दश्ु भन 223: मह सवार अच्छा है , सुख के फदन नजदीक आए
रोग तुभको फाधाएॉ डारते हैं । हैं । व्माऩाय से धन प्राद्ऱ होगा, ऐशो-आयाभ प्राद्ऱ कयोगे।
212: त्रव ाया हुआ कामा होगा। प्रेसभका से राब होगा। ऩत्नी का सुख प्राद्ऱ कयोगे तथा सॊतान की वृत्रद्चहोगी, जो
कुटु म्फ की वृत्रद्च होगी। फहुत भुद्ङत से त्रव ाया हुआ कामा कामा कयोगे उसभें राब प्राद्ऱ कयोगे। ईभानदायी से काभ
होगा। दश्ु भन तुम्हाये त्रवरुद्च कोसशश कयें गे, फकन्तु तुम्हाये कयते हो तो अन्त भें बरा ही होगा। धभा के प्रबाव से
सद्भाग्म के आगे उनका जोय नहीॊ रेगा। तीथों की मािा सुखी होंगे, इससरमे धभा को बूरना भत, धभा के कामों
कयने की इच्छा है वह हो सकेगी। भकान फनाने का भें सुस्ती यखना ठीक नहीॊ।
तथा जभीन खयीदने का तुम्हाया इयादा सपर होगा। 231: त्जस कामा के सरए भन भें त्रव ाय फकमा है , वह
तुभको जभीन से राब है । बाग्मफर से कामा ससद्च होंगे। कामा तीन भास भें होगा। अऩनी स्त्री की तयप से राब
213: द्ु ख के फदन अफ दयू हो गए हैं । सुख के फदन होगा। आज तक कुटु म्फीजनों की तयप से सुख नही
शुरु हुए हैं । फहुत फदनों से कद्श उठा यहे हो, ऩयदे श गए सभरा, फकन्तु बत्रवष्म भें सभरेगा। सॊतानों की वृत्रद्च होगी।
तो बी सुख की प्रासद्ऱ न हुई, फकन्तु अफ सुख बोगने के ससुयार के ख ा की स न्ता है , सो सभट जाएगी। आफरु
फदन प्राद्ऱ हुए हैं । आफरु फढ़े गी, सॊतान का सुख होगा। के सरए आभदनी से ख ा असधक कयना ऩड़ता है । तीथों
इतने फदनों सभिों तथा कुटु म्फी जनों की तयप से द्ु ख की मािा कयने का इयादा है , फकन्तु त्रवघ्न आता है ।
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e गुरुत्व ज्मोसतष 77 अगस्त 2020 | अॊक 1

बत्रवष्म भें धभा कामा कय सकोगे। रृदम भें त्जस कामा धायणा सपर होगी। स न्ता के फदन अफ दयू हुए हैं । दे व
की स न्ता है , वह धभा के प्रबाव से दयू हो जाएगी, गुरु तथा धभा की सेवा कयो। दश्ु भन रोग सताते हैं ,
इससरए धभा ऩय श्रद्चा यखो, त्जससे सपरता प्राद्ऱ कय फकन्तु अफ तुम्हाया प्रायब्ध फरवान ् फना है त्जससे इन
सकोगे। रोगों का जोय नहीॊ रेगा। जभीन से राब होगा। कीसता
232: जो काभ त्रव ाया है , उसे छोड़कय कोई दस
ू या काभ के सरए ख ा असधक कयना ऩड़ता है । सभिों से राब
कयो। त्रव ाये हुए कामा को कयने भें राब नहीॊ है , मफद होगा।
कयोगे तो तुभको तुम्हाया स्थान छोड़कय दस
ू ये स्थान ऩय 321: जभीन, भकान अथवा फाग-फगी े से राब होगा।
जाना ऩड़े गा, कुटु म्फीजनों का त्रवमोग होगा। इससरए धन प्राद्ऱ कयोगे, स्नेही जन से सभराऩ होगा। फकसी बी
उस त है फक इस कामा को छोड़ दो। धभा भें होसशमाय भनुष्म के साथ सभिता होगी औय उसके द्वाया धनाफद की
यहना तथा अऩनी शत्रि के अनुसाय दान-ऩुण्म कयना प्रासद्ऱ होगी। ऩुण्म के उदम से इच्छाएॉ ऩयीऩूणा होगी।
त्जससे सुख हो। धभा का आयाधन कयो। दश्ु भन रोग ऩग-ऩग ऩय तैमाय
233: थोड़े फदनों भें धन सभरेगा। जो काभ त्रव ाया है , यहें गे, फकन्तु सन्भुख होने से उनका जोय नहीॊ रेगा।
वह ऩूणा होगा। त्रप्रमजनों से सभराऩ होगा। जभीन, अऩनी शत्रि के अनुसाय ख ा कयो। भकान फनाने के
जागीय अथवा भकान से राब होगा। आफरु फढ़े गी। धभा भनोयथ परीबूत होंगे। धन ऩैदा कयते हो, फकन्तु ख ा
कामों भें ख ा कयो। उसके प्रताऩ से सुख- न
ै यहे गा। असधक होने से इकट्ठा नहीॊ होता है , त्रऩता से धन थोड़ा
याज्मऩऺ से राब होगा। भन की धायणा ऩूणा होगी। स्त्री सभरेगा। स्त्री की तयप से राब होगा। वृद्चावस्था भें धभा
की तयप से सुख है । एक सभम अकस्भात ् राब के कामा फन सकते हैं ।
सभरेगा। 322: जो कामा आऩने भन भें त्रव ाया है , उसभे शिु
311: मह सवार फहुत ही गयभ है । त्जस कामा का रोग त्रवघ्न डारेंगे, ऩरयणाभ अच्छा नहीॊ। याज्म की तयप
त्रव ाय फकमा है , वह ऩूणा होगा। भुकदभा जीत जाओगे, से नायाजगी होगी मफद सुखी होना ाहते हो, तो त्रव ाया
व्माऩाय योजगाय भें राब होगा। कीसता फढ़े गी, याज्म की हुआ कामा छोड़कय दस
ू या कामा कयो, तुम्हाये सहमोगी
तयप से राब होगा। धभा के प्रबाव से सुख सभरा है फदर गए हैं , उनका त्रवद्वास भत कयना। बजन-ऩूजन,
तथा बत्रवष्म भें बी सभरेगा। दस
ू यों के कामा ऩरयश्रभ से व्रत-सनमभ भें ध्मान दो।
ऩूया कयते हो, फकन्तु अशुब कभा उफदत होने से अऩने 323: त्जस कामा का भन भें त्रव ाय फकमा है , उसभें
कभा भें उदासीन यहते हो, त्रवदे श मािा होगी औय वहाॉ राब होगा, इच्छा ऩूणा होगी, स्नेही का सभराऩ होगा, जो
राब होगा। धभा ऩय श्रद्चा यखो त्जससे सॊकट दयू हों। जो स न्ताएॉ उऩत्स्थत हुई हैं , वे सफ दयू होंगी। धभा के
अऩने हाथ से रक्ष्भी प्राद्ऱ कयोगे। कामा फन सकेंगे। फहुत फदनों से ऩयदे श भें द्ु ख प्राद्ऱ
312: जो कामा त्रव ाया है उसे छोड़कय कोई दस
ू या काभ फकमा है , फकन्तु अफ द्ु ख के फदन गए। तीथामािा होगी।
कयो अन्मथा शिु रोग त्रवघ्न डारेंगे, दौरत की खयाफी अफ दे श भें जाकय आनन्द प्राद्ऱ कयोगे। धभा के कामों भें
होगी, घय के भनुष्मों तथा ऩशुओॊ ऩय सॊकट आएगा, रक्ष्म यखो, त्जससे सफ सुख प्राद्ऱ कयोगे।
इससरए त्रव ाये हुए कामा को छोड़ दे ना ही उस त है । 331: तुम्हाये भन की स न्ता सभटे गी। फीभायी की
धभा के प्रबाव से सफ कामा सपर होते हैं । सनयासश्रतों को परयमाद दयू होगी। भन की धायणा ऩूणा होगी। थोड़े फदनों
आश्रम दो तथा दे वासधदे व का स्भयण कयो त्जससे सुखी भें ही धन की प्रासद्ऱ होगी। स्नेही का सभराऩ होगा।
होंगे। धभा-कभा भें ऩैसा ख ा कयो, त्जससे ऩरयणाभ भें पामदा
313: मह प्रद्ल अच्छा है । धन तथा स्त्री से सहमोग एवॊ होगा। अच्छे फदन आए हैं , ऩाऩकभा से इतने फदन द्ु ख
सुख सभरेगा। सॊतान से सुख सभरेगा। सॊतान होगी, प्राद्ऱ फकमा है , ऩयन्तु अफ वे फीत गए हैं ।
त्रप्रमजन का सभराऩ होगा। अभुक भुद्ङत की धायी हुई 332: फुये फदन गए अफ अच्छे फदन आए हैं । जभीन
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e गुरुत्व ज्मोसतष 78 अगस्त 2020 | अॊक 1

तथा धन-दौरत भें जो हासन हुई है , वह सभट जाएगी होगी। जीवनसाथी से सुख प्राद्ऱ होगा, तीन भफहने फाद
तथा बत्रवष्म भें राब होगा। ऩयभेद्वय का ध्मान कयो। अच्छे फदन आएॉगे। इद्शदे व की आयाधना कयो। आभदनी
रृदम शुद्च है , त्जससे भन की स न्ता जल्दी दयू होगी। से ख ा असधक है , धन इकट्ठा फकमा नहीॊ, सभि की
ऩयदे श भें यहे भनुष्म की स न्ता है सो उसका सभराऩ तयप से धोखा सभरा है , दश्ु भन रोग ऩीछे से सनन्दा
होगा। धभा के प्रबाव से सुखी होंगे। कयते हैं , फकन्तु साभने आकय फोर नहीॊ सकते। जभीन
333: इतने फदन सनधान अवस्था भें व्मतीत फकए, से राब होगा। ऩयभेद्वय का जऩ कयो ।
फकन्तु अफ धन प्राद्ऱ होगा तथा भन की धायणा परीबूत

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e गुरुत्व ज्मोसतष 79 अगस्त 2020 | अॊक 1

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e गुरुत्व ज्मोसतष 80 अगस्त 2020 | अॊक 1

कारसऩा मोग एक कद्शदामक मोग !


कार का भतरफ है भृत्मु । ज्मोसतष के जानकायों के ऩड़ताअ है । उसकी योजी-योटी का जुगाड़ बी फड़ी भुत्श्कर से हो
अनुसाय त्जस व्मत्रि का जन्भ अशुबकायी कारसऩा मोग भे ऩाता है । अगय जुगाड़ होजामे तो रम्फे सभम तक फटकती नही
हुवा हो वह व्मत्रि जीवन बय भृत्मु के सभान कद्श बोगने वारा है । फाय-फाय व्मवसाम मा नौकयी भे फदराव आते ये हते है ।
होता है , व्मत्रि जीवन बय कोइ ना कोइ सभस्मा से ग्रस्त होकय धनाढम घय भें ऩैदा होने के फावजूद फकसी न फकसी वजह से
अशाॊत स त होता है । उसे अप्रत्मासशत रूऩ से आसथाक ऺसत होती यहती है । तयह-तयह
कारसऩा मोग अशुब एवॊ ऩीड़ादामक होने ऩय व्मत्रि के जीवन की ऩये शानी से सघये यहते हैं । एक सभस्मा खतभ होते ही दस
ू यी
को अत्मॊत द्ु खदामी फना दे ता है । ऩाव ऩसाये खडी होजाती है । कारसऩा मोग से व्मत्रि को ैन
नही सभरता उसके कामा फनते ही नही औय फन जामे आधे भे
कारसऩा मोग भतरफ क्मा?
रुक जाते है । व्मत्रि के 99% हो ुका कामा बी आखयी ऩरो भे
जफ जन्भ कुॊडरी भें साये ग्रह याहु औय केतु के फी
अकस्भात ही रुक जात है ।
त्स्थत यहते हैं तो उससे ज्मोसतष त्रवद्या के जानकाय उसे
ऩयॊ तु मह ध्मान यहे , कारसऩा मोग वारे सबी जातकों
कारसऩा मोग कहा जाता है ।
ऩय इस मोग का सभान प्रबाव नही ऩड़ता। क्मोफक फकस बाव
कारसऩा मोग फकस प्रकाय फनता है औय क्मों फनता भें कौन सी यासश अवत्स्थत है औय उसभें कौन-कौन ग्रह कहाॊ
हैं ? त्स्थत हैं औय दृत्रद्श कय यहे है उस्का प्रबाव फराफर फकतना है -

जफ 7 ग्रह याहु औय केतु के भध्म भे त्स्थत हो मह इन सफ फातों का बी सॊफॊसधत जातक ऩय भहत्वऩूणा प्रबाव

अत्च्छ त्स्थसत नफह है । याहु औय केतु के भध्म भे फाकी सफ ग्रह ऩड़ता है ।

आजाने से याहु केतु अन्म शुब ग्रहों के प्रबावों को ऺीण कय दे ते इससरए भािा कारसऩा मोग सुनकय बमबीत हो जाने

हों!, तो अशुब कारसऩा मोग फनता है , क्मोफक ज्मोसतष भे याहु की जरूयत नहीॊ फत्ल्क उसका जानकाय मा कुशर ज्मोसतषी से

को सऩा(साऩ) का भुह(भुख) एवॊ केतु को ऩूॊछ कहा जाता है । ज्मोसतषीम त्रवद्ऴेषण कयवाकय उसके प्रबावों की त्रवस्तृत
जानकायी हाससर कय रेना ही फुत्रद्चभत्ता है । जफ असरी कायण
कारसऩा मोग का प्रबाव क्म होता है ? ज्मोसतषीम त्रवद्ऴेषण से स्ऩद्श हो जामे तो तत्कार उसका उऩाम
त्जस प्रकाय फकसी व्मत्रि को साऩ काट रे तो वह कयना ाफहए। उऩाम से कारसऩा मोग के कुप्रबावो को कभ
व्मत्रि शाॊसत से नही फेठ सकता वेसे ही कारसऩा मोग से ऩीफड़त फकमा जा सकता है ।
व्मत्रि को जीवन ऩमान्त शायीरयक, भानससक, आसथाक ऩये शानी मफद आऩकी जन्भ कुॊडरी भे बी अशुब कारसऩा मोग का फन
का साभना कयना ऩडता है । त्रववाह त्रवरम्फ से होता है एवॊ यहा हो औय आऩ उसके अशुब प्रबावों से ऩये शान हो, तो
त्रववाह के ऩश्च्मात सॊतान से सॊफॊधी कद्श जेसे उसे सॊतान होती कारसऩा मोग के अशुब प्राबावों को शाॊत कयने के सरमे त्रवशेष
ही नहीॊ मा होती है तो योग ग्रस्त होती है । उसे जीवन भें फकसी अनुबत
ू उऩामों को अऩना कय अऩने जीवन को सुखी एवॊ सभृद्च
न फकसी भहत्वऩूणा वस्तु का अबाव यहता है । जातक को फनाए।
कारसऩा मोग के कायण सबी कामों भें अत्मासधक सॊघषा कयना ***

कारसऩा शाॊसत हे तु अनुबूत एवॊ सयर उऩाम


भॊि ससद्च भॊि ससद्च
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e गुरुत्व ज्मोसतष 81 अगस्त 2020 | अॊक 1

भॊि ससद्च दर
ु ब
ा साभग्री
कारी हल्दी:- 370, 550, 730, 1450, 1900 कभर गट्टे की भारा - Rs- 370
भामा जार- Rs- 251, 551, 751 हल्दी भारा - Rs- 280
धन वृत्रद्च हकीक सेट Rs-280 (कारी हल्दी के साथ Rs-550) तुरसी भारा - Rs- 190, 280, 370, 460
घोडे की नार- Rs.351, 551, 751 नवयत्न भारा- Rs- 1050, 1900, 2800, 3700 & Above
हकीक: 11 नॊग-Rs-190, 21 नॊग Rs-370 नवयॊ गी हकीक भारा Rs- 280, 460, 730
रघु श्रीपर: 1 नॊग-Rs-21, 11 नॊग-Rs-190 हकीक भारा (सात यॊ ग) Rs- 280, 460, 730, 910
नाग केशय: 11 ग्राभ, Rs-145 भूॊगे की भारा Rs- 1050, 1900 & Above
स्पफटक भारा- Rs- 235, 280, 460, 730, DC 1050, 1250 ऩायद भारा Rs- 1450, 1900, 2800 & Above
सपेद ॊदन भारा - Rs- 460, 640, 910 वैजमॊती भारा Rs- 190, 280, 460
यि (रार) ॊदन - Rs- 370, 550, रुद्राऺ भारा: 190, 280, 460, 730, 1050, 1450
भोती भारा- Rs- 460, 730, 1250, 1450 & Above त्रवधुत भारा - Rs- 190, 280
कासभमा ससॊदयू - Rs- 460, 730, 1050, 1450, & Above भूल्म भें अॊतय छोटे से फड़े आकाय के कायण हैं ।
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भॊि ससद्च स्पफटक श्री मॊि


"श्री मॊि" सफसे भहत्वऩूणा एवॊ शत्रिशारी मॊि है । "श्री मॊि" को मॊि याज कहा जाता है क्मोफक मह अत्मन्त
शुब फ़रदमी मॊि है । जो न केवर दस
ू ये मन्िो से असधक से असधक राब दे ने भे सभथा है एवॊ सॊसाय के हय
व्मत्रि के सरए पामदे भद
ॊ सात्रफत होता है । ऩूणा प्राण-प्रसतत्रद्षत एवॊ ऩूणा त
ै न्म मुि "श्री मॊि" त्जस व्मत्रि के
घय भे होता है उसके सरमे "श्री मॊि" अत्मन्त फ़रदामी ससद्च होता है उसके दशान भाि से अन-सगनत राब एवॊ
सुख की प्रासद्ऱ होसत है । "श्री मॊि" भे सभाई अफद्रसतम एवॊ अद्रश्म शत्रि भनुष्म की सभस्त शुब इच्छाओॊ को
ऩूया कयने भे सभथा होसत है । त्जस्से उसका जीवन से हताशा औय सनयाशा दयू होकय वह भनुष्म असफ़रता से
सफ़रता फक औय सनयन्तय गसत कयने रगता है एवॊ उसे जीवन भे सभस्त बौसतक सुखो फक प्रासद्ऱ होसत
है । "श्री मॊि" भनुष्म जीवन भें उत्ऩन्न होने वारी सभस्मा-फाधा एवॊ नकायात्भक उजाा को दयू कय
सकायत्भक उजाा का सनभााण कयने भे सभथा है । "श्री मॊि" की स्थाऩन से घय मा व्माऩाय के स्थान ऩय स्थात्रऩत
कयने से वास्तु दोष म वास्तु से सम्फत्न्धत ऩये शासन भे न्मुनता आसत है व सुख-सभृत्रद्च, शाॊसत एवॊ ऐद्वमा फक
प्रसद्ऱ होती है । >> Shop Online | Order Now
गुरुत्व कामाारम भे त्रवसबन्न आकाय के "श्री मॊि" उप्रब्ध है
भूल्म:- प्रसत ग्राभ Rs. 28.00 से Rs.100.00

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e गुरुत्व ज्मोसतष 82 अगस्त 2020 | अॊक 1

त्रवद्या प्रासद्ऱ हे तु सयस्वती कव औय मॊि


आज के आधुसनक मुग भें सशऺा प्रासद्ऱ जीवन की भहत्वऩूणा
आवश्मकताओॊ भें से एक है । फहन्द ू धभा भें त्रवद्या की असधद्षािी दे वी
सयस्वती को भाना जाता हैं । इस सरए दे वी सयस्वती की ऩूजा-
अ न
ा ा से कृ ऩा प्राद्ऱ कयने से फुत्रद्च कुशाग्र एवॊ तीव्र होती है ।
आज के सुत्रवकससत सभाज भें ायों ओय फदरते ऩरयवेश
एवॊ आधुसनकता की दौड भें नमे-नमे खोज एवॊ सॊशोधन के
आधायो ऩय फच् ो के फौसधक स्तय ऩय अच्छे त्रवकास हे तु
त्रवसबन्न ऩयीऺा, प्रसतमोसगता एवॊ प्रसतस्ऩधााएॊ होती यहती हैं ,
त्जस भें फच् े का फुत्रद्चभान होना असत आवश्मक हो जाता हैं ।
अन्मथा फच् ा ऩयीऺा, प्रसतमोसगता एवॊ प्रसतस्ऩधाा भें ऩीछड
जाता हैं , त्जससे आजके ऩढे सरखे आधुसनक फुत्रद्च से सुसॊऩन्न
रोग फच् े को भूखा अथवा फुत्रद्चहीन मा अल्ऩफुत्रद्च सभझते हैं ।
एसे फच् ो को हीन बावना से दे खने रोगो को हभने दे खा हैं ,
आऩने बी कई सैकडो फाय अवश्म दे खा होगा?
ऐसे फच् ो की फुत्रद्च को कुशाग्र एवॊ तीव्र हो, फच् ो की
फौत्रद्चक ऺभता औय स्भयण शत्रि का त्रवकास हो इस सरए
सयस्वती कव अत्मॊत राबदामक हो सकता हैं ।
सयस्वती कव को दे वी सयस्वती के ऩयॊ भ दर
ू ब
ा तेजस्वी भॊिो
द्राया ऩूणा भॊिससद्च औय ऩूणा ैतन्ममुि फकमा जाता हैं । त्जस्से जो
फच् े भॊि जऩ अथवा ऩूजा-अ न
ा ा नहीॊ कय सकते वह त्रवशेष राब प्राद्ऱ
कय सके औय जो फच् े ऩूजा-अ न
ा ा कयते हैं , उन्हें दे वी सयस्वती की कृ ऩा शीघ्र प्राद्ऱ हो इस
सरमे सयस्वती कव अत्मॊत राबदामक होता हैं ।
सयस्वती कव औय मॊि के त्रवषम भें असधक जानकायी हे तु सॊऩका कयें ।
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सयस्वती कव : भूल्म: 1050 औय 910 सयस्वती मॊि :भूल्म : 550 से 1450 तक

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e गुरुत्व ज्मोसतष 83 अगस्त 2020 | अॊक 1

सवा कामा ससत्रद्च कव


त्जस व्मत्रि को राख प्रमत्न औय ऩरयश्रभ कयने के फादबी उसे
भनोवाॊसछत सपरतामे एवॊ फकमे गमे कामा भें ससत्रद्च (राब) प्राद्ऱ
नहीॊ होती, उस व्मत्रि को सवा कामा ससत्रद्च कव अवश्म धायण
कयना ाफहमे।
कव के प्रभुख राब: सवा कामा ससत्रद्च कव के द्राया सुख
सभृत्रद्च औय नव ग्रहों के नकायात्भक प्रबाव को शाॊत कय धायण
कयता व्मत्रि के जीवन से सवा प्रकाय के द:ु ख-दारयद्र का नाश हो
कय सुख-सौबाग्म एवॊ उन्नसत प्रासद्ऱ होकय जीवन भे ससब प्रकाय के
शुब कामा ससद्च होते हैं । त्जसे धायण कयने से व्मत्रि मफद व्मवसाम
कयता होतो कायोफाय भे वृत्रद्च होसत हैं औय मफद नौकयी कयता होतो
उसभे उन्नसत होती हैं ।

 सवा कामा ससत्रद्च कव के साथ भें सवाजन वशीकयण कव के


सभरे होने की वजह से धायण कताा की फात का दस
ू ये व्मत्रिओ
ऩय प्रबाव फना यहता हैं ।

 सवा कामा ससत्रद्च कव के साथ भें अद्श रक्ष्भी कव के सभरे


होने की वजह से व्मत्रि ऩय सदा भाॊ भहा रक्ष्भी की कृ ऩा एवॊ
आशीवााद फना यहता हैं । त्जस्से भाॊ रक्ष्भी के अद्श रुऩ (१)-आफद
रक्ष्भी, (२)-धान्म रक्ष्भी, (३)- धैमा रक्ष्भी, (४)-गज रक्ष्भी, (५)-सॊतान रक्ष्भी, (६)-त्रवजम रक्ष्भी, (७)-त्रवद्या
रक्ष्भी औय (८)-धन रक्ष्भी इन सबी रुऩो का अशीवााद प्राद्ऱ होता हैं ।

 सवा कामा ससत्रद्च कव के साथ भें तॊि यऺा कव के सभरे होने की वजह से ताॊत्रिक फाधाए दयू होती हैं , साथ ही
नकायात्भक शत्रिमो का कोइ कुप्रबाव धायण कताा व्मत्रि ऩय नहीॊ होता। इस कव के प्रबाव से इषाा-द्वेष यखने
वारे व्मत्रिओ द्राया होने वारे दद्श
ु प्रबावो से यऺा होती हैं ।

 सवा कामा ससत्रद्च कव के साथ भें शिु त्रवजम कव के सभरे होने की वजह से शिु से सॊफॊसधत सभस्त ऩये शासनओ
से स्वत् ही छुटकाया सभर जाता हैं । कव के प्रबाव से शिु धायण कताा व्मत्रि का ाहकय कुछ नही त्रफगाड़
सकते।

अन्म कव के फाये भे असधक जानकायी के सरमे कामाारम भें सॊऩका कये :


फकसी व्मत्रि त्रवशेष को सवा कामा ससत्रद्च कव दे ने नही दे ना का अॊसतभ सनणाम हभाये ऩास सुयत्ऺत हैं ।
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e गुरुत्व ज्मोसतष 84 अगस्त 2020 | अॊक 1

श्री गणेश मॊि


गणेश मॊि सवा प्रकाय की ऋत्रद्च-ससत्रद्च प्रदाता एवॊ सबी प्रकाय की उऩरत्ब्धमों दे ने भें सभथा है , क्मोकी श्री गणेश मॊि
के ऩूजन का पर बी बगवान गणऩसत के ऩूजन के सभान भाना जाता हैं । हय भनुष्म को को जीवन भें सुख-सभृत्रद्च
की प्रासद्ऱ एवॊ सनमसभत जीवन भें प्राद्ऱ होने वारे त्रवसबन्न कद्श, फाधा-त्रवघ्नों को नास के सरए श्री गणेश मॊि को
अऩने ऩूजा स्थान भें अवश्म स्थात्रऩत कयना ाफहए। श्रीगणऩत्मथवाशीषा भें वत्णात हैं ॐकाय का ही व्मि स्वरूऩ
श्री गणेश हैं । इसी सरए सबी प्रकाय के शुब भाॊगसरक कामों औय दे वता-प्रसतद्षाऩनाओॊ भें बगवान गणऩसत का प्रथभ
ऩूजन फकमा जाता हैं । त्जस प्रकाय से प्रत्मेक भॊि फक शत्रि को फढाने के सरमे भॊि के आगें ॐ (ओभ ्) आवश्म
रगा होता हैं । उसी प्रकाय प्रत्मेक शुब भाॊगसरक कामों के सरमे बगवान ् गणऩसत की ऩूजा एवॊ स्भयण असनवामा
भाना गमा हैं । इस ऩौयात्णक भत को सबी शास्त्र एवॊ वैफदक धभा, सम्प्रदामों ने गणेश जी के ऩूजन हे तु इस प्रा ीन
ऩयम्ऩया को एक भत से स्वीकाय फकमा हैं ।

श्री गणेश मॊि के ऩूजन से व्मत्रि को फुत्रद्च, त्रवद्या, त्रववेक का त्रवकास होता हैं औय योग, व्मासध एवॊ सभस्त त्रवध्न-
फाधाओॊ का स्वत् नाश होता है । श्री गणेशजी की कृ ऩा प्राद्ऱ होने से व्मत्रि के भुत्श्कर से भुत्श्कर कामा बी
आसान हो जाते हैं ।
त्जन रोगो को व्मवसाम-नौकयी भें त्रवऩयीत ऩरयणाभ प्राद्ऱ हो यहे हों, ऩारयवारयक तनाव, आसथाक तॊगी, योगों से
ऩीड़ा हो यही हो एवॊ व्मत्रि को अथक भेहनत कयने के उऩयाॊत बी नाकाभमाफी, द:ु ख, सनयाशा प्राद्ऱ हो यही हो, तो
एसे व्मत्रिमो की सभस्मा के सनवायण हे तु तुथॉ के फदन मा फुधवाय के फदन श्री गणेशजी की त्रवशेष ऩूजा-
अ न
ा ा कयने का त्रवधान शास्त्रों भें फतामा हैं ।
त्जसके पर से व्मत्रि की फकस्भत फदर जाती हैं औय उसे जीवन भें सुख, सभृत्रद्च एवॊ ऐद्वमा की प्रासद्ऱ होती हैं ।
त्जस प्रकाय श्री गणेश जी का ऩूजन अरग-अरग उद्ङे श्म एवॊ काभनाऩूसता हे तु फकमा जाता हैं , उसी प्रकाय श्री
गणेश मॊि का ऩूजन बी अरग-अरग उद्ङे श्म एवॊ काभनाऩूसता हे तु अरग-अरग फकमा जाता सकता हैं ।
श्री गणेश मॊि के सनमसभत ऩूजन से भनुष्म को जीवन भें सबी प्रकाय की ऋत्रद्च-ससत्रद्च व धन-सम्ऩत्रत्त की प्रासद्ऱ
हे तु श्री गणेश मॊि अत्मॊत राबदामक हैं । श्री गणेश मॊि के ऩूजन से व्मत्रि की साभात्जक ऩद-प्रसतद्षा औय कीसता
ायों औय पैरने रगती हैं ।
 त्रवद्रानों का अनुबव हैं की फकसी बी शुब कामा को प्रायॊ ऩ कयने से ऩूवा मा शुबकामा हे तु घय से फाहय जाने से ऩूवा
गणऩसत मॊि का ऩूजन एवॊ दशान कयना शुब परदामक यहता हैं । जीवन से सभस्त त्रवघ्न दयू होकय धन,
आध्मात्त्भक ेतना के त्रवकास एवॊ आत्भफर की प्रासद्ऱ के सरए भनुष्म को गणेश मॊि का ऩूजन कयना ाफहए।
 गणऩसत मॊि को फकसी बी भाह की गणेश तुथॉ मा फुधवाय को प्रात: कार अऩने घय, ओफपस, व्मवसामीक
स्थर ऩय ऩूजा स्थर ऩय स्थात्रऩत कयना शुब यहता हैं ।
गुरुत्व कामाारम भें उऩरब्ध अन्म : रक्ष्भी गणेश मॊि | गणेश मॊि | गणेश मॊि (सॊऩूणा फीज भॊि सफहत) | गणेश
ससद्च मॊि | एकाऺय गणऩसत मॊि | हरयद्रा गणेश मॊि बी उऩरब्ध हैं । असधक जानकायी आऩ हभायी वेफ साइट ऩय प्राद्ऱ
कय सकते हैं ।
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e गुरुत्व ज्मोसतष 85 अगस्त 2020 | अॊक 1

दस भहात्रवद्या ऩूजन मॊि


Das Mahavidy a Poojan Yantra | Dasmahavidy a Pujan Yantra

दस भहात्रवद्या ऩूजन मॊि को दे वी दस

भहात्रवद्या की शत्रिमों से मुि अत्मॊत प्रबावशारी

औय दर
ु ब
ा मॊि भाना गमा हैं ।

इस मॊि के भाध्मभ से साधक के ऩरयवाय ऩय

दसो भहात्रवद्याओॊ का आसशवााद प्राद्ऱ होता हैं । दस

भहात्रवद्या मॊि के सनमसभत ऩूजन-दशान से भनुष्म की

सबी भनोकाभनाओॊ की ऩूसता होती हैं । दस भहात्रवद्या

मॊि साधक की सभस्त इच्छाओॊ को ऩूणा कयने भें

सभथा हैं । दस भहात्रवद्या मॊि भनुष्म को शत्रि सॊऩन्न

एवॊ बूसभवान फनाने भें सभथा हैं ।

दस भहात्रवद्या मॊि के श्रद्चाऩूवक


ा ऩूजन से

शीघ्र दे वी कृ ऩा प्राद्ऱ होती हैं औय साधक को दस

भहात्रवद्या दे वीमों की कृ ऩा से सॊसाय की सभस्त

ससत्रद्चमों की प्रासद्ऱ सॊबव हैं । दे वी दस भहात्रवद्या की

कृ ऩा से साधक को धभा, अथा, काभ व ् भोऺ तुत्रवाध

ऩुरुषाथों की प्रासद्ऱ हो सकती हैं । दस भहात्रवद्या मॊि भें

भाॉ दग
ु ाा के दस अवतायों का आशीवााद सभाफहत हैं ,
इससरए दस भहात्रवद्या मॊि को के ऩूजन एवॊ दशान भाि से व्मत्रि अऩने जीवन को सनयॊ तय असधक से असधक साथाक एवॊ

सपर फनाने भें सभथा हो सकता हैं ।

दे वी के आसशवााद से व्मत्रि को ऻान, सुख, धन-सॊऩदा, ऐद्वमा, रूऩ-सौंदमा की प्रासद्ऱ सॊबव हैं । व्मत्रि को वाद-त्रववाद भें

शिुओॊ ऩय त्रवजम की प्रासद्ऱ होती हैं ।

दश भहात्रवद्या को शास्त्रों भें आद्या बगवती के दस बेद कहे गमे हैं , जो क्रभश् (1) कारी, (2) ताया, (3) षोडशी, (4)

बुवनेद्वयी, (5) बैयवी, (6) सछन्नभस्ता, (7) धूभावती, (8) फगरा, (9) भातॊगी एवॊ (10) कभात्त्भका। इस सबी दे वी

स्वरुऩों को, सत्म्भसरत रुऩ भें दश भहात्रवद्या के नाभ से जाना जाता हैं ।
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e गुरुत्व ज्मोसतष 86 अगस्त 2020 | अॊक 1

अभोद्य भहाभृत्मुॊजम कव
अभोद्य् भहाभृत्मुॊजम कव व उल्रेत्खत अन्म साभग्रीमों को शास्त्रोि त्रवसध-त्रवधान से
त्रवद्रान ब्राह्मणो द्राया सवा राख भहाभृत्मुॊजम भॊि जऩ एवॊ दशाॊश हवन द्राया सनसभात कव
अत्मॊत प्रबावशारी होता हैं ।

अभोद्य् भहाभृत्मुॊजम कव
अभोद्य्
कव फनवाने हे तु:
अऩना नाभ, त्रऩता-भाता का नाभ, भहाभृत्मुॊजम कव
गोि, एक नमा पोटो बेजे दत्ऺणा भाि: 10900

कव के त्रवषम भें असधक जानकायी हे तु गुरुत्व कामाारम भें सॊऩका कयें । >> Order Now
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श्री हनुभान मॊि


शास्त्रों भें उल्रेख हैं की श्री हनुभान जी को बगवान सूमद
ा े व ने ब्रह्मा जी के आदे श ऩय हनुभान जी को
अऩने तेज का सौवाॉ बाग प्रदान कयते हुए आशीवााद प्रदान फकमा था, फक भैं हनुभान को सबी शास्त्र का
ऩूणा ऻान दॉ ग
ू ा। त्जससे मह तीनोरोक भें सवा श्रेद्ष विा होंगे तथा शास्त्र त्रवद्या भें इन्हें भहायत हाससर होगी
औय इनके सभन फरशारी औय कोई नहीॊ होगा। जानकायो ने भतानुशाय हनुभान मॊि की आयाधना से ऩुरुषों
की त्रवसबन्न फीभारयमों दयू होती हैं , इस मॊि भें अद्भत
ु शत्रि सभाफहत होने के कायण व्मत्रि की स्वप्न दोष,
धातु योग, यि दोष, वीमा दोष, भूछाा, नऩुॊसकता इत्माफद अनेक प्रकाय के दोषो को दयू कयने भें अत्मन्त
राबकायी हैं । अथाात मह मॊि ऩौरुष को ऩुद्श कयता हैं । श्री हनुभान मॊि व्मत्रि को सॊकट, वाद-त्रववाद, बूत-
प्रेत, द्यूत फक्रमा, त्रवषबम, ोय बम, याज्म बम, भायण, सम्भोहन स्तॊबन इत्माफद से सॊकटो से यऺा कयता हैं
औय ससत्रद्च प्रदान कयने भें सऺभ हैं । श्री हनुभान मॊि के त्रवषम भें असधक जानकायी के सरमे गुरुत्व
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e गुरुत्व ज्मोसतष 87 अगस्त 2020 | अॊक 1

भॊि ससद्च ऩायद प्रसतभा


ऩायद श्री मॊि ऩायद रक्ष्भी गणेश ऩायद रक्ष्भी नायामण ऩायद रक्ष्भी नायामण

21 Gram से 5.250 Kg तक 100 Gram 121 Gram 100 Gram


उऩरब्ध
ऩायद सशवसरॊग ऩायद सशवसरॊग+नॊफद ऩायद सशवजी ऩायद कारी

21 Gram से 5.250 Kg तक 101 Gram से 5.250 Kg 75 Gram 37 Gram


उऩरब्ध तक उऩरब्ध
ऩायद दग
ु ाा ऩायद दग
ु ाा ऩायद सयस्वती ऩायद सयस्वती

82 Gram 100 Gram 50 Gram 225 Gram


ऩायद हनुभान 2 ऩायद हनुभान 3 ऩायद हनुभान 1 ऩायद कुफेय

100 Gram 125 Gram 100 Gram 100 Gram


हभायें महाॊ सबी प्रकाय की भॊि ससद्च ऩायद प्रसतभाएॊ, सशवसरॊग, त्रऩयासभड, भारा एवॊ गुफटका शुद्च ऩायद भें उऩरब्ध हैं ।
त्रफना भॊि ससद्च की हुई ऩायद प्रसतभाएॊ थोक व्माऩायी भूल्म ऩय उऩरब्ध हैं ।
ज्मोसतष, यत्न व्मवसाम, ऩूजा-ऩाठ इत्माफद ऺेि से जुडेे़ फॊधु/फहन के सरमे हभायें त्रवशेष मॊि, कव , यत्न, रुद्राऺ व अन्म दर
ु ब
साभग्रीमों ऩय त्रवशेष सुत्रफधाएॊ उऩरब्ध हैं । असधक जानकायी हे तु सॊऩका कयें ।
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e गुरुत्व ज्मोसतष 88 अगस्त 2020 | अॊक 1

हभाये त्रवशेष मॊि


व्माऩाय वृत्रद्च मॊि: हभाये अनुबवों के अनुसाय मह मॊि व्माऩाय वृत्रद्च एवॊ ऩरयवाय भें सुख सभृत्रद्च हे तु त्रवशेष प्रबावशारी
हैं ।
बूसभराब मॊि: बूसभ, बवन, खेती से सॊफॊसधत व्मवसाम से जुड़े रोगों के सरए बूसभराब मॊि त्रवशेष राबकायी ससद्च
हुवा हैं ।
तॊि यऺा मॊि: फकसी शिु द्राया फकमे गमे भॊि-तॊि आफद के प्रबाव को दयू कयने एवॊ बूत, प्रेत नजय आफद फुयी
शत्रिमों से यऺा हे तु त्रवशेष प्रबावशारी हैं ।
आकत्स्भक धन प्रासद्ऱ मॊि: अऩने नाभ के अनुसाय ही भनुष्म को आकत्स्भक धन प्रासद्ऱ हे तु परप्रद हैं इस मॊि
के ऩूजन से साधक को अप्रत्मासशत धन राब प्राद्ऱ होता हैं । ाहे वह धन राब व्मवसाम से हो, नौकयी से हो, धन-
सॊऩत्रत्त इत्माफद फकसी बी भाध्मभ से मह राब प्राद्ऱ हो सकता हैं । हभाये वषों के अनुसॊधान एवॊ अनुबवों से हभने
आकत्स्भक धन प्रासद्ऱ मॊि से शेमय ट्रे फडॊ ग, सोने- ाॊदी के व्माऩाय इत्माफद सॊफॊसधत ऺेि से जुडे रोगो को त्रवशेष रुऩ
से आकत्स्भक धन राब प्राद्ऱ होते दे खा हैं । आकत्स्भक धन प्रासद्ऱ मॊि से त्रवसबन्न स्रोत से धनराब बी सभर सकता
हैं ।
ऩदौन्नसत मॊि: ऩदौन्नसत मॊि नौकयी ऩैसा रोगो के सरए राबप्रद हैं । त्जन रोगों को अत्मासधक ऩरयश्रभ एवॊ श्रेद्ष
कामा कयने ऩय बी नौकयी भें उन्नसत अथाात प्रभोशन नहीॊ सभर यहा हो उनके सरए मह त्रवशेष राबप्रद हो सकता हैं ।
यत्नेद्वयी मॊि: यत्नेद्वयी मॊि हीये -जवाहयात, यत्न ऩत्थय, सोना- ाॊदी, ज्वैरयी से सॊफॊसधत व्मवसाम से जुडे रोगों के सरए
असधक प्रबावी हैं । शेय फाजाय भें सोने - ाॊदी जैसी फहुभूल्म धातुओॊ भें सनवेश कयने वारे रोगों के सरए बी त्रवशेष
राबदाम हैं ।
बूसभ प्रासद्ऱ मॊि: जो रोग खेती, व्मवसाम मा सनवास स्थान हे तु उत्तभ बूसभ आफद प्राद्ऱ कयना ाहते हैं , रेफकन उस
कामा भें कोई ना कोई अड़ न मा फाधा-त्रवघ्न आते यहते हो त्जस कायण कामा ऩूणा नहीॊ हो यहा हो, तो उनके सरए
बूसभ प्रासद्ऱ मॊि उत्तभ परप्रद हो सकता हैं ।
गृह प्रासद्ऱ मॊि: जो रोग स्वमॊ का घय, दक
ु ान, ओफपस, पैक्टयी आफद के सरए बवन प्राद्ऱ कयना ाहते हैं । मथाथा
प्रमासो के उऩयाॊत बी उनकी असबराषा ऩूणा नहीॊ हो ऩायही हो उनके सरए गृह प्रासद्ऱ मॊि त्रवशेष उऩमोगी ससद्च हो सकता
हैं ।
कैरास धन यऺा मॊि: कैरास धन यऺा मॊि धन वृत्रद्च एवॊ सुख सभृत्रद्च हे तु त्रवशेष परदाम हैं ।
आसथाक राब एवॊ सुख सभृत्रद्च हे तु 19 दर
ु ब
ा रक्ष्भी मॊि >> Shop Online | Order Now

त्रवसबन्न रक्ष्भी मॊि


श्री मॊि (रक्ष्भी मॊि) भहारक्ष्भमै फीज मॊि कनक धाया मॊि
श्री मॊि (भॊि यफहत) भहारक्ष्भी फीसा मॊि वैबव रक्ष्भी मॊि (भहान ससत्रद्च दामक श्री भहारक्ष्भी मॊि)

श्री मॊि (सॊऩूणा भॊि सफहत) रक्ष्भी दामक ससद्च फीसा मॊि श्री श्री मॊि (रसरता भहात्रिऩुय सुन्दमै श्री भहारक्ष्भमैं श्री भहामॊि )

श्री मॊि (फीसा मॊि) रक्ष्भी दाता फीसा मॊि अॊकात्भक फीसा मॊि
श्री मॊि श्री सूि मॊि रक्ष्भी फीसा मॊि ज्मेद्षा रक्ष्भी भॊि ऩूजन मॊि
श्री मॊि (कुभा ऩृद्षीम) रक्ष्भी गणेश मॊि धनदा मॊि > Shop Online | Order Now
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e गुरुत्व ज्मोसतष 89 अगस्त 2020 | अॊक 1

सवाससत्रद्चदामक भुफद्रका
इस भुफद्रका भें भूॊगे को शुब भुहूता भें त्रिधातु (सुवणा+यजत+ताॊफ)ें भें जड़वा कय उसे शास्त्रोि त्रवसध-
त्रवधान से त्रवसशद्श तेजस्वी भॊिो द्राया सवाससत्रद्चदामक फनाने हे तु प्राण-प्रसतत्रद्षत एवॊ ऩूणा त
ै न्म मुि फकमा
जाता हैं । इस भुफद्रका को फकसी बी वगा के व्मत्रि हाथ की फकसी बी उॊ गरी भें धायण कय सकते
हैं । महॊ भुफद्रका कबी फकसी बी त्स्थती भें अऩत्रवि नहीॊ होती। इससरए कबी भुफद्रका को उतायने की
आवश्मिा नहीॊ हैं । इसे धायण कयने से व्मत्रि की सभस्माओॊ का सभाधान होने रगता हैं ।
धायणकताा को जीवन भें सपरता प्रासद्ऱ एवॊ उन्नसत के नमे भागा प्रसस्त होते यहते हैं औय जीवन
भें सबी प्रकाय की ससत्रद्चमाॊ बी शीध्र प्राद्ऱ होती हैं । भूल्म भाि- 6400/-
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(नोट: इस भुफद्रका को धायण कयने से भॊगर ग्रह का कोई फुया प्रबाव साधक ऩय नहीॊ होता हैं ।)
सवाससत्रद्चदामक भुफद्रका के त्रवषम भें असधक जानकायी के सरमे हे तु सम्ऩका कयें ।

ऩसत-ऩत्नी भें करह सनवायण हे तु


मफद ऩरयवायों भें सुख-सुत्रवधा के सभस्त साधान होते हुए बी छोटी-छोटी फातो भें ऩसत-ऩत्नी के त्रफ भे
करह होता यहता हैं , तो घय के त्जतने सदस्म हो उन सफके नाभ से गुरुत्व कामाारत द्राया शास्त्रोि
त्रवसध-त्रवधान से भॊि ससद्च प्राण-प्रसतत्रद्षत ऩूणा ैतन्म मुि वशीकयण कव एवॊ गृह करह नाशक फडब्फी
फनवारे एवॊ उसे अऩने घय भें त्रफना फकसी ऩूजा, त्रवसध-त्रवधान से आऩ त्रवशेष राब प्राद्ऱ कय सकते हैं ।
मफद आऩ भॊि ससद्च ऩसत वशीकयण मा ऩत्नी वशीकयण एवॊ गृह करह नाशक फडब्फी फनवाना ाहते हैं ,
तो सॊऩका आऩ कय सकते हैं ।

100 से असधक जैन मॊि


हभाये महाॊ जैन धभा के सबी प्रभुख, दर
ु ब
ा एवॊ शीघ्र प्रबावशारी मॊि ताम्र ऩि,
ससरवय ( ाॊदी) ओय गोल्ड (सोने) भे उऩरब्ध हैं ।
हभाये महाॊ सबी प्रकाय के मॊि कोऩय ताम्र ऩि, ससरवय ( ाॊदी) ओय गोल्ड (सोने) भे फनवाए जाते है ।
इसके अरावा आऩकी आवश्मकता अनुसाय आऩके द्राया प्राद्ऱ (स ि, मॊि, फड़जाईन) के अनुरुऩ मॊि बी
फनवाए जाते है . गुरुत्व कामाारम द्राया उऩरब्ध कयामे गमे सबी मॊि अखॊफडत एवॊ 22 गेज शुद्च
कोऩय(ताम्र ऩि)- 99.99 ट शुद्च ससरवय ( ाॊदी) एवॊ 22 केये ट गोल्ड (सोने) भे फनवाए जाते है । मॊि
के त्रवषम भे असधक जानकायी के सरमे हे तु सम्ऩका कयें ।
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e गुरुत्व ज्मोसतष 90 अगस्त 2020 | अॊक 1

द्रादश भहा मॊि


मॊि को असत प्रास न एवॊ दर
ु ब
ा मॊिो के सॊकरन से हभाये वषो के अनुसॊधान द्राया
फनामा गमा हैं ।
 ऩयभ दर
ु ब
ा वशीकयण मॊि,  सहस्त्राऺी रक्ष्भी आफद्च मॊि
 बाग्मोदम मॊि  आकत्स्भक धन प्रासद्ऱ मॊि
 भनोवाॊसछत कामा ससत्रद्च मॊि  ऩूणा ऩौरुष प्रासद्ऱ काभदे व मॊि
 याज्म फाधा सनवृत्रत्त मॊि  योग सनवृत्रत्त मॊि
 गृहस्थ सुख मॊि  साधना ससत्रद्च मॊि
 शीघ्र त्रववाह सॊऩन्न गौयी अनॊग मॊि  शिु दभन मॊि

उऩयोि सबी मॊिो को द्रादश भहा मॊि के रुऩ भें शास्त्रोि त्रवसध-त्रवधान से भॊि ससद्च ऩूणा
प्राणप्रसतत्रद्षत एवॊ ैतन्म मुि फकमे जाते हैं । त्जसे स्थाऩीत कय त्रफना फकसी ऩूजा
अ न
ा ा-त्रवसध त्रवधान त्रवशेष राब प्राद्ऱ कय सकते हैं ।
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 क्मा आऩके फच् े कुसॊगती के सशकाय हैं ?

 क्मा आऩके फच् े आऩका कहना नहीॊ भान यहे हैं ?

 क्मा आऩके फच् े घय भें अशाॊसत ऩैदा कय यहे हैं ?

घय ऩरयवाय भें शाॊसत एवॊ फच् े को कुसॊगती से छुडाने हे तु फच् े के नाभ से गुरुत्व कामाारत
द्राया शास्त्रोि त्रवसध-त्रवधान से भॊि ससद्च प्राण-प्रसतत्रद्षत ऩूणा ैतन्म मुि वशीकयण कव एवॊ
एस.एन.फडब्फी फनवारे एवॊ उसे अऩने घय भें स्थात्रऩत कय अल्ऩ ऩूजा, त्रवसध-त्रवधान से आऩ
त्रवशेष राब प्राद्ऱ कय सकते हैं । मफद आऩ तो आऩ भॊि ससद्च वशीकयण कव एवॊ
एस.एन.फडब्फी फनवाना ाहते हैं , तो सॊऩका इस कय सकते हैं ।

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e गुरुत्व ज्मोसतष 91 अगस्त 2020 | अॊक 1

सॊऩूणा प्राणप्रसतत्रद्षत 22 गेज शुद्च स्टीर भें सनसभात अखॊफडत

ऩुरुषाकाय शसन मॊि


ऩुरुषाकाय शसन मॊि (स्टीर भें) को तीव्र प्रबावशारी फनाने हे तु शसन की कायक धातु शुद्च
स्टीर(रोहे ) भें फनामा गमा हैं । त्जस के प्रबाव से साधक को तत्कार राब प्राद्ऱ होता हैं । मफद
जन्भ कॊु डरी भें शसन प्रसतकूर होने ऩय व्मत्रि को अनेक कामों भें असपरता प्राद्ऱ होती है , कबी व्मवसाम भें
घटा, नौकयी भें ऩये शानी, वाहन दघ
ु ट
ा ना, गृह क्रेश आफद ऩये शानीमाॊ फढ़ती जाती है ऐसी त्स्थसतमों भें
प्राणप्रसतत्रद्षत ग्रह ऩीड़ा सनवायक शसन मॊि की अऩने को व्मऩाय स्थान मा घय भें स्थाऩना कयने से अनेक
राब सभरते हैं । मफद शसन की ढै े़मा मा साढ़े साती का सभम हो तो इसे अवश्म ऩूजना ाफहए। शसनमॊि के
ऩूजन भाि से व्मत्रि को भृत्मु, कजा, कोटा केश, जोडो का ददा , फात योग तथा रम्फे सभम के सबी प्रकाय के
योग से ऩये शान व्मत्रि के सरमे शसन मॊि असधक राबकायी होगा। नौकयी ऩेशा आफद के रोगों को ऩदौन्नसत

बी शसन द्राया ही सभरती है अत् मह मॊि असत उऩमोगी मॊि है त्जसके द्राया शीघ्र ही राब ऩामा जा सकता है ।
भूल्म: 1225 से 8200 >> Shop Online | Order Now

सॊऩूणा प्राणप्रसतत्रद्षत
22 गेज शुद्च स्टीर भें सनसभात अखॊफडत

शसन तैसतसा मॊि


शसनग्रह से सॊफॊसधत ऩीडा के सनवायण हे तु त्रवशेष राबकायी मॊि।
भूल्म: 640 से 12700 >> Shop Online | Order Now

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e गुरुत्व ज्मोसतष 92 अगस्त 2020 | अॊक 1

नवयत्न जफड़त श्री मॊि


शास्त्र व न के अनुसाय शुद्च सुवणा मा यजत
भें सनसभात श्री मॊि के ायों औय मफद नवयत्न
जड़वा ने ऩय मह नवयत्न जफड़त श्री मॊि
कहराता हैं । सबी यत्नो को उसके सनत्द्ळत
स्थान ऩय जड़ कय रॉकेट के रूऩ भें धायण
कयने से व्मत्रि को अनॊत एद्वमा एवॊ रक्ष्भी
की प्रासद्ऱ होती हैं । व्मत्रि को एसा आबास
होता हैं जैसे भाॊ रक्ष्भी उसके साथ हैं । नवग्रह
को श्री मॊि के साथ रगाने से ग्रहों की अशुब
दशा का धायणकयने वारे व्मत्रि ऩय प्रबाव
नहीॊ होता हैं ।

गरे भें होने के कायण मॊि ऩत्रवि यहता हैं एवॊ स्नान कयते सभम इस मॊि ऩय स्ऩशा कय जो जर
त्रफॊद ु शयीय को रगते हैं , वह गॊगा जर के सभान ऩत्रवि होता हैं । इस सरमे इसे सफसे तेजस्वी
एवॊ परदासम कहजाता हैं । जैसे अभृत से उत्तभ कोई औषसध नहीॊ, उसी प्रकाय रक्ष्भी प्रासद्ऱ के
सरमे श्री मॊि से उत्तभ कोई मॊि सॊसाय भें नहीॊ हैं एसा शास्त्रोि व न हैं । इस प्रकाय के नवयत्न
जफड़त श्री मॊि गुरूत्व कामाारम द्राया शुब भुहूता भें प्राण प्रसतत्रद्षत कयके फनावाए जाते हैं ।
Rs: 4600, 5500, 6400 से 10,900 से असधक
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असधक जानकायी हे तु सॊऩका कयें ।

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e गुरुत्व ज्मोसतष 93 अगस्त 2020 | अॊक 1

भॊि ससद्च वाहन दघ


ु ट
ा ना नाशक भारुसत मॊि
ऩौयात्णक ग्रॊथो भें उल्रेख हैं की भहाबायत के मुद्च के सभम अजुन
ा के यथ के अग्रबाग ऩय भारुसत ध्वज एवॊ
भारुसत मन्ि रगा हुआ था। इसी मॊि के प्रबाव के कायण सॊऩूणा मुद्च के दौयान हजायों-राखों प्रकाय के आग्नेम अस्त्र-
शस्त्रों का प्रहाय होने के फाद बी अजुन
ा का यथ जया बी ऺसतग्रस्त नहीॊ हुआ। बगवान श्री कृ ष्ण भारुसत मॊि के इस
अद्भत
ु यहस्म को जानते थे फक त्जस यथ मा वाहन की यऺा स्वमॊ श्री भारुसत नॊदन कयते हों, वह दघ
ु ट
ा नाग्रस्त कैसे
हो सकता हैं । वह यथ मा वाहन तो वामुवेग से, सनफाासधत रुऩ से अऩने रक्ष्म ऩय त्रवजम ऩतका रहयाता हुआ
ऩहुॊ ेगा। इसी सरमे श्री कृ ष्ण नें अजुन
ा के यथ ऩय श्री भारुसत मॊि को अॊफकत कयवामा था।
त्जन रोगों के स्कूटय, काय, फस, ट्रक इत्माफद वाहन फाय-फाय दघ
ु ट
ा ना ग्रस्त हो यहे हो!, अनावश्मक वाहन को
नुऺान हो यहा हों! उन्हें हानी एवॊ दघ
ु ट
ा ना से यऺा के उद्ङे श्म से अऩने वाहन ऩय भॊि ससद्च श्री भारुसत मॊि अवश्म
रगाना ाफहए। जो रोग ट्रान्स्ऩोफटं ग (ऩरयवहन) के व्मवसाम से जुडे हैं उनको श्रीभारुसत मॊि को अऩने वाहन भें
अवश्म स्थात्रऩत कयना ाफहए, क्मोफक, इसी व्मवसाम से जुडे सैकडों रोगों का अनुबव यहा हैं की श्री भारुसत मॊि को
स्थात्रऩत कयने से उनके वाहन असधक फदन तक अनावश्मक ख ो से एवॊ दघ
ु ट
ा नाओॊ से सुयत्ऺत यहे हैं । हभाया
स्वमॊका एवॊ अन्म त्रवद्रानो का अनुबव यहा हैं , की त्जन रोगों ने श्री भारुसत मॊि अऩने वाहन ऩय रगामा हैं , उन
रोगों के वाहन फडी से फडी दघ
ु ट
ा नाओॊ से सुयत्ऺत यहते हैं । उनके वाहनो को कोई त्रवशेष नुक्शान इत्माफद नहीॊ होता
हैं औय नाहीॊ अनावश्मक रुऩ से उसभें खयाफी आसत हैं ।
वास्तु प्रमोग भें भारुसत मॊि: मह भारुसत नॊदन श्री हनुभान जी का मॊि है । मफद कोई जभीन त्रफक नहीॊ यही हो, मा
उस ऩय कोई वाद-त्रववाद हो, तो इच्छा के अनुरूऩ वहॉ जभीन उस त भूल्म ऩय त्रफक जामे इस सरमे इस भारुसत मॊि
का प्रमोग फकमा जा सकता हैं । इस भारुसत मॊि के प्रमोग से जभीन शीघ्र त्रफक जाएगी मा त्रववादभुि हो जाएगी।
इस सरमे मह मॊि दोहयी शत्रि से मुि है ।
भारुसत मॊि के त्रवषम भें असधक जानकायी के सरमे गुरुत्व कामाारम भें सॊऩका कयें ।
भूल्म Rs- 325 से 12700 तक

श्री हनुभान मॊि शास्त्रों भें उल्रेख हैं की श्री हनुभान जी को बगवान सूमद
ा े व ने ब्रह्मा जी के आदे श ऩय
हनुभान जी को अऩने तेज का सौवाॉ बाग प्रदान कयते हुए आशीवााद प्रदान फकमा था, फक भैं हनुभान को सबी शास्त्र
का ऩूणा ऻान दॉ ग
ू ा। त्जससे मह तीनोरोक भें सवा श्रेद्ष विा होंगे तथा शास्त्र त्रवद्या भें इन्हें भहायत हाससर होगी औय
इनके सभन फरशारी औय कोई नहीॊ होगा। जानकायो ने भतानुसाय हनुभान मॊि की आयाधना से ऩुरुषों की त्रवसबन्न
फीभारयमों दयू होती हैं , इस मॊि भें अद्भत
ु शत्रि सभाफहत होने के कायण व्मत्रि की स्वप्न दोष, धातु योग, यि दोष,
वीमा दोष, भूछाा, नऩुॊसकता इत्माफद अनेक प्रकाय के दोषो को दयू कयने भें अत्मन्त राबकायी हैं । अथाात मह मॊि
ऩौरुष को ऩुद्श कयता हैं । श्री हनुभान मॊि व्मत्रि को सॊकट, वाद-त्रववाद, बूत-प्रेत, द्यूत फक्रमा, त्रवषबम, ोय बम, याज्म
बम, भायण, सम्भोहन स्तॊबन इत्माफद से सॊकटो से यऺा कयता हैं औय ससत्रद्च प्रदान कयने भें सऺभ हैं ।
श्री हनुभान मॊि के त्रवषम भें असधक जानकायी के सरमे गुरुत्व कामाारम भें सॊऩका कयें ।
भूल्म Rs- 910 से 12700 तक

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e गुरुत्व ज्मोसतष 94 अगस्त 2020 | अॊक 1

त्रवसबन्न दे वताओॊ के मॊि


गणेश मॊि भहाभृत्मुज
ॊ म मॊि याभ यऺा मॊि याज
गणेश मॊि (सॊऩण
ू ा फीज भॊि सफहत) भहाभृत्मुज
ॊ म कव मॊि याभ मॊि
गणेश ससद्च मॊि भहाभृत्मुज
ॊ म ऩूजन मॊि द्रादशाऺय त्रवष्णु भॊि ऩूजन मॊि
एकाऺय गणऩसत मॊि भहाभृत्मुॊजम मुि सशव खप्ऩय भाहा सशव मॊि त्रवष्णु फीसा मॊि
हरयद्रा गणेश मॊि सशव ऩॊ ाऺयी मॊि गरुड ऩूजन मॊि
कुफेय मॊि सशव मॊि स ॊताभणी मॊि याज
श्री द्रादशाऺयी रुद्र ऩूजन मॊि अफद्रतीम सवाकाम्म ससत्रद्च सशव मॊि स ॊताभणी मॊि
दत्तािम मॊि नृससॊह ऩूजन मॊि स्वणााकषाणा बैयव मॊि
दत्त मॊि ऩॊ दे व मॊि हनुभान ऩूजन मॊि
आऩदद्च
ु ायण फटु क बैयव मॊि सॊतान गोऩार मॊि हनुभान मॊि
फटु क मॊि श्री कृ ष्ण अद्शाऺयी भॊि ऩूजन मॊि सॊकट भो न मॊि
व्मॊकटे श मॊि कृ ष्ण फीसा मॊि वीय साधन ऩूजन मॊि
कातावीमााजन
ुा ऩूजन मॊि सवा काभ प्रद बैयव मॊि दत्ऺणाभूसता ध्मानभ ् मॊि

भनोकाभना ऩूसता एवॊ कद्श सनवायण हे तु त्रवशेष मॊि


व्माऩाय वृत्रद्च कायक मॊि अभृत तत्व सॊजीवनी कामा कल्ऩ मॊि िम ताऩोंसे भुत्रि दाता फीसा मॊि
व्माऩाय वृत्रद्च मॊि त्रवजमयाज ऩॊ दशी मॊि भधुभेह सनवायक मॊि
व्माऩाय वधाक मॊि त्रवद्यामश त्रवबूसत याज सम्भान प्रद ससद्च ज्वय सनवायण मॊि
फीसा मॊि
व्माऩायोन्नसत कायी ससद्च मॊि सम्भान दामक मॊि योग कद्श दरयद्रता नाशक मॊि
बाग्म वधाक मॊि सुख शाॊसत दामक मॊि योग सनवायक मॊि
स्वत्स्तक मॊि फारा मॊि तनाव भुि फीसा मॊि
सवा कामा फीसा मॊि फारा यऺा मॊि त्रवद्युत भानस मॊि
कामा ससत्रद्च मॊि गबा स्तम्बन मॊि गृह करह नाशक मॊि
सुख सभृत्रद्च मॊि सॊतान प्रासद्ऱ मॊि करेश हयण फत्रत्तसा मॊि
सवा रयत्रद्च ससत्रद्च प्रद मॊि प्रसूता बम नाशक मॊि वशीकयण मॊि
सवा सुख दामक ऩैंसफठमा मॊि प्रसव-कद्शनाशक ऩॊ दशी मॊि भोफहसन वशीकयण मॊि
ऋत्रद्च ससत्रद्च दाता मॊि शाॊसत गोऩार मॊि कणा त्रऩशा नी वशीकयण मॊि
सवा ससत्रद्च मॊि त्रिशूर फीशा मॊि वाताारी स्तम्बन मॊि
साफय ससत्रद्च मॊि ऩॊ दशी मॊि (फीसा मॊि मुि ायों वास्तु मॊि
प्रकायके)
शाफयी मॊि फेकायी सनवायण मॊि श्री भत्स्म मॊि
ससद्चाश्रभ मॊि षोडशी मॊि वाहन दघ
ु ट
ा ना नाशक मॊि
ज्मोसतष तॊि ऻान त्रवऻान प्रद ससद्च फीसा अडसफठमा मॊि प्रेत-फाधा नाशक मॊि
मॊि
ब्रह्माण्ड साफय ससत्रद्च मॊि अस्सीमा मॊि बूतादी व्मासधहयण मॊि
कुण्डसरनी ससत्रद्च मॊि ऋत्रद्च कायक मॊि कद्श सनवायक ससत्रद्च फीसा मॊि
क्रात्न्त औय श्रीवधाक ौंतीसा मॊि भन वाॊसछत कन्मा प्रासद्ऱ मॊि बम नाशक मॊि
श्री ऺेभ कल्माणी ससत्रद्च भहा मॊि त्रववाहकय मॊि स्वप्न बम सनवायक मॊि

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e गुरुत्व ज्मोसतष 95 अगस्त 2020 | अॊक 1

ऻान दाता भहा मॊि रग्न त्रवघ्न सनवायक मॊि कुदृत्रद्श नाशक मॊि
कामा कल्ऩ मॊि रग्न मोग मॊि श्री शिु ऩयाबव मॊि
दीधाामु अभृत तत्व सॊजीवनी मॊि दरयद्रता त्रवनाशक मॊि शिु दभनाणाव ऩूजन मॊि

भॊि ससद्च त्रवशेष दै वी मॊि सूस


आद्य शत्रि दग
ु ाा फीसा मॊि (अॊफाजी फीसा मॊि) सयस्वती मॊि
भहान शत्रि दग
ु ाा मॊि (अॊफाजी मॊि) सद्ऱसती भहामॊि(सॊऩण
ू ा फीज भॊि सफहत)
नव दग
ु ाा मॊि कारी मॊि
नवाणा मॊि ( ाभुड
ॊ ा मॊि) श्भशान कारी ऩूजन मॊि
नवाणा फीसा मॊि दत्ऺण कारी ऩूजन मॊि
ाभुड
ॊ ा फीसा मॊि ( नवग्रह मुि) सॊकट भोस नी कासरका ससत्रद्च मॊि
त्रिशूर फीसा मॊि खोफडमाय मॊि
फगरा भुखी मॊि खोफडमाय फीसा मॊि
फगरा भुखी ऩूजन मॊि अन्नऩूणाा ऩूजा मॊि
याज याजेद्वयी वाॊछा कल्ऩरता मॊि एकाॊऺी श्रीपर मॊि

भॊि ससद्च त्रवशेष रक्ष्भी मॊि सूस


श्री मॊि (रक्ष्भी मॊि) भहारक्ष्भमै फीज मॊि
श्री मॊि (भॊि यफहत) भहारक्ष्भी फीसा मॊि
श्री मॊि (सॊऩण
ू ा भॊि सफहत) रक्ष्भी दामक ससद्च फीसा मॊि
श्री मॊि (फीसा मॊि) रक्ष्भी दाता फीसा मॊि
श्री मॊि श्री सूि मॊि रक्ष्भी गणेश मॊि
श्री मॊि (कुभा ऩृद्षीम) ज्मेद्षा रक्ष्भी भॊि ऩूजन मॊि
रक्ष्भी फीसा मॊि कनक धाया मॊि
श्री श्री मॊि (श्रीश्री रसरता भहात्रिऩुय सुन्दमै श्री भहारक्ष्भमैं श्री भहामॊि) वैबव रक्ष्भी मॊि (भहान ससत्रद्च दामक श्री भहारक्ष्भी मॊि)
अॊकात्भक फीसा मॊि
ताम्र ऩि ऩय सुवणा ऩोरीस ताम्र ऩि ऩय यजत ऩोरीस ताम्र ऩि ऩय
(Gold Plated) (Silver Plated) (Copper)
साईज भूल्म साईज भूल्म साईज भूल्म
1” X 1” 550 1” X 1” 370 1” X 1” 325

2” X 2” 910 2” X 2” 640 2” X 2” 550

3” X 3” 1450 3” X 3” 1050 3” X 3” 910

4” X 4” 2350 4” X 4” 1450 4” X 4” 1225

6” X 6” 3700 6” X 6” 2800 6” X 6” 2350

9” X 9” 9100 9” X 9” 4600 9” X 9” 4150

12” X12” 12700 12” X12” 9100 12” X12” 9100

मॊि के त्रवषम भें असधक जानकायी हे तु सॊऩका कयें । >> Shop Online | Order Now
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e गुरुत्व ज्मोसतष 96 अगस्त 2020 | अॊक 1

यासश यत्न
भेष यासश: वृषब यासश: सभथुन यासश: कका यासश: ससॊह यासश: कन्मा यासश:
भूग
ॊ ा हीया ऩन्ना भोती भाणेक ऩन्ना

Red Coral Diamond Green Emerald Naturel Pearl Ruby Green


(Special) (Special) (Old Berma) Emerald
(Special) (Special) (Special)
(Special)
5.25" Rs. 1050 10 cent Rs. 4100 5.25" Rs. 9100 5.25" Rs. 910 2.25" Rs. 12500 5.25" Rs. 9100
6.25" Rs. 1250 20 cent Rs. 8200 6.25" Rs. 12500 6.25" Rs. 1250 3.25" Rs. 15500 6.25" Rs. 12500
7.25" Rs. 1450 30 cent Rs. 12500 7.25" Rs. 14500 7.25" Rs. 1450 4.25" Rs. 28000 7.25" Rs. 14500
8.25" Rs. 1800 40 cent Rs. 18500 8.25" Rs. 19000 8.25" Rs. 1900 5.25" Rs. 46000 8.25" Rs. 19000
9.25" Rs. 2100 50 cent Rs. 23500 9.25" Rs. 23000 9.25" Rs. 2300 6.25" Rs. 82000 9.25" Rs. 23000
10.25" Rs. 2800 10.25" Rs. 28000 10.25" Rs. 2800 10.25" Rs. 28000
All Diamond are Full ** All Weight In
** All Weight In Rati ** All Weight In Rati ** All Weight In Rati ** All Weight In Rati
White Colour. Rati

तुरा यासश: वृत्द्ळक यासश: धनु यासश: भकय यासश: कॊु ब यासश: भीन यासश:
हीया भूग
ॊ ा ऩुखयाज नीरभ नीरभ ऩुखयाज

Diamond Red Coral Y.Sapphire B.Sapphire B.Sapphire Y.Sapphire


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e गुरुत्व ज्मोसतष 97 अगस्त 2020 | अॊक 1

श्रीकृ ष्ण फीसा मॊि


फकसी बी व्मत्रि का जीवन तफ आसान फन जाता हैं जफ उसके ायों औय का भाहोर उसके अनुरुऩ उसके वश भें
हों। जफ कोई व्मत्रि का आकषाण दस
ु यो के उऩय एक ुम्फकीम प्रबाव डारता हैं , तफ रोग उसकी सहामता एवॊ सेवा
हे तु तत्ऩय होते है औय उसके प्राम् सबी कामा त्रफना असधक कद्श व ऩये शानी
से सॊऩन्न हो जाते हैं । आज के बौसतकता वाफद मुग भें हय व्मत्रि के सरमे श्रीकृ ष्ण फीसा कव
दस
ू यो को अऩनी औय खी ने हे तु एक प्रबावशासर ुॊफकत्व को कामभ श्रीकृ ष्ण फीसा कव को केवर
यखना असत आवश्मक हो जाता हैं । आऩका आकषाण औय व्मत्रित्व आऩके त्रवशेष शुब भुहुता भें सनभााण फकमा
ायो ओय से रोगों को आकत्रषात कये इस सरमे सयर उऩाम हैं , श्रीकृ ष्ण फीसा
जाता हैं । कव को त्रवद्रान कभाकाॊडी
मॊि। क्मोफक बगवान श्री कृ ष्ण एक अरौफकव एवॊ फदवम ुॊफकीम व्मत्रित्व
ब्राहभणों द्राया शुब भुहुता भें शास्त्रोि
के धनी थे। इसी कायण से श्रीकृ ष्ण फीसा मॊि के ऩूजन एवॊ दशान से
त्रवसध-त्रवधान से त्रवसशद्श तेजस्वी भॊिो
आकषाक व्मत्रित्व प्राद्ऱ होता हैं ।
द्राया ससद्च प्राण-प्रसतत्रद्षत ऩूणा त
ै न्म
श्रीकृ ष्ण फीसा मॊि के साथ व्मत्रिको दृढ़ इच्छा शत्रि एवॊ उजाा प्राद्ऱ होती
मुि कयके सनभााण फकमा जाता हैं ।
हैं , त्जस्से व्मत्रि हभेशा एक बीड भें हभेशा आकषाण का केंद्र यहता हैं ।
मफद फकसी व्मत्रि को अऩनी प्रसतबा व आत्भत्रवद्वास के स्तय भें वृत्रद्च, त्जस के पर स्वरुऩ धायण कयता

अऩने सभिो व ऩरयवायजनो के त्रफ भें रयश्तो भें सुधाय कयने की ईच्छा होती व्मत्रि को शीघ्र ऩूणा राब प्राद्ऱ होता

हैं उनके सरमे श्रीकृ ष्ण फीसा मॊि का ऩूजन एक सयर व सुरब भाध्मभ हैं । कव को गरे भें धायण कयने
सात्रफत हो सकता हैं । से वहॊ अत्मॊत प्रबाव शारी होता
श्रीकृ ष्ण फीसा मॊि ऩय अॊफकत शत्रिशारी त्रवशेष ये खाएॊ, फीज भॊि एवॊ हैं । गरे भें धायण कयने से कव
अॊको से व्मत्रि को अद्धद्भत
ु आॊतरयक शत्रिमाॊ प्राद्ऱ होती हैं जो व्मत्रि को हभेशा रृदम के ऩास यहता हैं त्जस्से
सफसे आगे एवॊ सबी ऺेिो भें अग्रत्णम फनाने भें सहामक ससद्च होती हैं ।
व्मत्रि ऩय उसका राब असत तीव्र
श्रीकृ ष्ण फीसा मॊि के ऩूजन व सनमसभत दशान के भाध्मभ से बगवान
एवॊ शीघ्र ऻात होने रगता हैं ।
श्रीकृ ष्ण का आशीवााद प्राद्ऱ कय सभाज भें स्वमॊ का अफद्रतीम स्थान स्थात्रऩत
भूरम भाि: 2350 >>Order Now
कयें ।
श्रीकृ ष्ण फीसा मॊि अरौफकक ब्रह्माॊडीम उजाा का सॊ ाय कयता हैं , जो एक प्राकृ त्रत्त भाध्मभ से व्मत्रि के बीतय
सद्ङबावना, सभृत्रद्च, सपरता, उत्तभ स्वास्थ्म, मोग औय ध्मान के सरमे एक शत्रिशारी भाध्मभ हैं !
 श्रीकृ ष्ण फीसा मॊि के ऩूजन से व्मत्रि के साभात्जक भान-सम्भान व ऩद-प्रसतद्षा भें वृत्रद्च होती हैं ।
 त्रवद्रानो के भतानुसाय श्रीकृ ष्ण फीसा मॊि के भध्मबाग ऩय ध्मान मोग केंफद्रत कयने से व्मत्रि फक ेतना शत्रि
जाग्रत होकय शीघ्र उच् स्तय को प्राद्ऱहोती हैं ।
 जो ऩुरुषों औय भफहरा अऩने साथी ऩय अऩना प्रबाव डारना ाहते हैं औय उन्हें अऩनी औय आकत्रषत
ा कयना ाहते
हैं । उनके सरमे श्रीकृ ष्ण फीसा मॊि उत्तभ उऩाम ससद्च हो सकता हैं ।
 ऩसत-ऩत्नी भें आऩसी प्रभ की वृत्रद्च औय सुखी दाम्ऩत्म जीवन के सरमे श्रीकृ ष्ण फीसा मॊि राबदामी होता हैं ।

भूल्म:- Rs. 910 से Rs. 12700 तक उप्रब्द्च >> Shop Online


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e गुरुत्व ज्मोसतष 98 अगस्त 2020 | अॊक 1

जैन धभाके त्रवसशद्श मॊिो की सू ी


श्री ौफीस तीथंकयका भहान प्रबात्रवत भत्कायी मॊि श्री एकाऺी नारयमेय मॊि
श्री ोफीस तीथंकय मॊि सवातो बद्र मॊि
कल्ऩवृऺ मॊि सवा सॊऩत्रत्तकय मॊि
स ॊताभणी ऩाद्वानाथ मॊि सवाकामा-सवा भनोकाभना ससत्रद्चअ मॊि (१३० सवातोबद्र मॊि)
स ॊताभणी मॊि (ऩैंसफठमा मॊि) ऋत्रष भॊडर मॊि
स ॊताभणी क्र मॊि जगदवल्रब कय मॊि
श्री क्रेद्वयी मॊि ऋत्रद्च ससत्रद्च भनोकाभना भान सम्भान प्रासद्ऱ मॊि
श्री घॊटाकणा भहावीय मॊि ऋत्रद्च ससत्रद्च सभृत्रद्च दामक श्री भहारक्ष्भी मॊि
श्री घॊटाकणा भहावीय सवा ससत्रद्च भहामॊि त्रवषभ त्रवष सनग्रह कय मॊि
(अनुबव ससद्च सॊऩण
ू ा श्री घॊटाकणा भहावीय ऩतका मॊि)
श्री ऩद्मावती मॊि ऺुद्रो ऩद्रव सननााशन मॊि
श्री ऩद्मावती फीसा मॊि फृहच् क्र मॊि
श्री ऩाद्वाऩद्मावती ह्ींकाय मॊि वॊध्मा शब्दाऩह मॊि
ऩद्मावती व्माऩाय वृत्रद्च मॊि भृतवत्सा दोष सनवायण मॊि
श्री धयणेन्द्र ऩद्मावती मॊि काॊक वॊध्मादोष सनवायण मॊि
श्री ऩाद्वानाथ ध्मान मॊि फारग्रह ऩीडा सनवायण मॊि
श्री ऩाद्वानाथ प्रबुका मॊि रधुदेव कुर मॊि
बिाभय मॊि (गाथा नॊफय १ से ४४ तक) नवगाथात्भक उवसग्गहयॊ स्तोिका त्रवसशद्श मॊि
भत्णबद्र मॊि उवसग्गहयॊ मॊि
श्री मॊि श्री ऩॊ भॊगर भहाश्रृत स्कॊध मॊि
श्री रक्ष्भी प्रासद्ऱ औय व्माऩाय वधाक मॊि ह्ीॊकाय भम फीज भॊि
श्री रक्ष्भीकय मॊि वधाभान त्रवद्या ऩट्ट मॊि
रक्ष्भी प्रासद्ऱ मॊि त्रवद्या मॊि
भहात्रवजम मॊि सौबाग्मकय मॊि
त्रवजमयाज मॊि डाफकनी, शाफकनी, बम सनवायक मॊि
त्रवजम ऩतका मॊि बूताफद सनग्रह कय मॊि
त्रवजम मॊि ज्वय सनग्रह कय मॊि
ससद्च क्र भहामॊि शाफकनी सनग्रह कय मॊि
दत्ऺण भुखाम शॊख मॊि आऩत्रत्त सनवायण मॊि
दत्ऺण भुखाम मॊि शिुभख
ु स्तॊबन मॊि
मॊि के त्रवषम भें असधक जानकायी हे तु सॊऩका कयें ।

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e गुरुत्व ज्मोसतष 99 अगस्त 2020 | अॊक 1

घॊटाकणा भहावीय सवा ससत्रद्च भहामॊि को स्थाऩीत


कयने से साधक की सवा भनोकाभनाएॊ ऩूणा होती हैं ।
सवा प्रकाय के योग बूत-प्रेत आफद उऩद्रव से यऺण
होता हैं । जहयीरे औय फहॊ सक प्राणीॊ से सॊफॊसधत बम
दयू होते हैं । अत्ग्न बम, ोयबम आफद दयू होते हैं ।
दद्श
ु व असुयी शत्रिमों से उत्ऩन्न होने वारे बम
से मॊि के प्रबाव से दयू हो जाते हैं ।
मॊि के ऩूजन से साधक को धन, सुख, सभृत्रद्च,
ऎद्वमा, सॊतत्रत्त-सॊऩत्रत्त आफद की प्रासद्ऱ होती हैं । साधक
की सबी प्रकाय की सात्त्वक इच्छाओॊ की ऩूसता होती
हैं ।
मफद फकसी ऩरयवाय मा ऩरयवाय के सदस्मो ऩय
वशीकयण, भायण, उच् ाटन इत्माफद जाद-ू टोने वारे
प्रमोग फकमे गमें होतो इस मॊि के प्रबाव से स्वत्
नद्श हो जाते हैं औय बत्रवष्म भें मफद कोई प्रमोग
कयता हैं तो यऺण होता हैं ।
कुछ जानकायो के श्री घॊटाकणा भहावीय ऩतका मॊि
से जुडे अद्धद्भत
ु अनुबव यहे हैं । मफद घय भें श्री
घॊटाकणा भहावीय ऩतका मॊि स्थात्रऩत फकमा हैं औय
मफद कोई इषाा, रोब, भोह मा शिुतावश मफद अनुस त कभा कयके फकसी बी उद्ङे श्म से साधक को
ऩये शान कयने का प्रमास कयता हैं तो मॊि के प्रबाव से सॊऩण
ू ा ऩरयवाय का यऺण तो होता ही हैं ,
कबी-कबी शिु के द्राया फकमा गमा अनुस त कभा शिु ऩय ही उऩय उरट वाय होते दे खा हैं । भूल्म:-
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e गुरुत्व ज्मोसतष 100 अगस्त 2020 | अॊक 1

अभोघ भहाभृत्मुॊजम कव
अभोद्य् भहाभृत्मुॊजम कव व उल्रेत्खत अन्म साभग्रीमों को शास्त्रोि त्रवसध-त्रवधान से त्रवद्रान
ब्राह्मणो द्राया सवा राख भहाभृत्मुॊजम भॊि जऩ एवॊ दशाॊश हवन द्राया सनसभात फकमा जाता हैं
इससरए कव अत्मॊत प्रबावशारी होता हैं । >> Order Now

अभोद्य् भहाभृत्मुॊजम कव
अभोद्य् भहाभृत्मुॊजम
कव फनवाने हे तु:
अऩना नाभ, त्रऩता-भाता का नाभ, कव
गोि, एक नमा पोटो बेजे दत्ऺणा भाि: 10900

याशी यत्न एवॊ उऩयत्न


त्रवशेष मॊि

हभायें महाॊ सबी प्रकाय के मॊि सोने- ाॊफद-


ताम्फे भें आऩकी आवश्मिा के अनुसाय
फकसी बी बाषा/धभा के मॊिो को आऩकी
आवश्मक फडजाईन के अनुसाय २२ गेज
शुद्च ताम्फे भें अखॊफडत फनाने की त्रवशेष
सबी साईज एवॊ भूल्म व क्वासरफट के
सुत्रवधाएॊ उऩरब्ध हैं ।
असरी नवयत्न एवॊ उऩयत्न बी उऩरब्ध हैं ।
हभाये महाॊ सबी प्रकाय के यत्न एवॊ उऩयत्न व्माऩायी भूल्म ऩय उऩरब्ध हैं । ज्मोसतष कामा से जुडेे़
फधु/फहन व यत्न व्मवसाम से जुडे रोगो के सरमे त्रवशेष भूल्म ऩय यत्न व अन्म साभग्रीमा व अन्म
सुत्रवधाएॊ उऩरब्ध हैं ।

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e गुरुत्व ज्मोसतष 101 अगस्त 2020 | अॊक 1

सवा योगनाशक मॊि/कव


भनुष्म अऩने जीवन के त्रवसबन्न सभम ऩय फकसी ना फकसी साध्म मा असाध्म योग से ग्रस्त होता
हैं । उस त उऩ ाय से ज्मादातय साध्म योगो से तो भुत्रि सभर जाती हैं , रेफकन कबी-कबी साध्म योग होकय
बी असाध्म होजाते हैं , मा कोइ असाध्म योग से ग्रससत होजाते हैं । हजायो राखो रुऩमे ख ा कयने ऩय बी
असधक राब प्राद्ऱ नहीॊ हो ऩाता। डॉक्टय द्राया फदजाने वारी दवाईमा अल्ऩ सभम के सरमे कायगय सात्रफत
होती हैं , एसी त्स्थती भें राब प्रासद्ऱ के सरमे व्मत्रि एक डॉक्टय से दस
ू ये डॉक्टय के क्कय रगाने को फाध्म
हो जाता हैं ।
बायतीम ऋषीमोने अऩने मोग साधना के प्रताऩ से योग शाॊसत हे तु त्रवसबन्न आमुवये औषधो के
असतरयि मॊि, भॊि एवॊ तॊि का उल्रेख अऩने ग्रॊथो भें कय भानव जीवन को राब प्रदान कयने का साथाक
प्रमास हजायो वषा ऩूवा फकमा था। फुत्रद्चजीवो के भत से जो व्मत्रि जीवनबय अऩनी फदन माा ऩय सनमभ,
सॊमभ यख कय आहाय ग्रहण कयता हैं , एसे व्मत्रि को त्रवसबन्न योग से ग्रससत होने की सॊबावना कभ होती
हैं । रेफकन आज के फदरते मुग भें एसे व्मत्रि बी बमॊकय योग से ग्रस्त होते फदख जाते हैं । क्मोफक सभग्र
सॊसाय कार के अधीन हैं । एवॊ भृत्मु सनत्द्ळत हैं त्जसे त्रवधाता के अरावा औय कोई टार नहीॊ सकता, रेफकन
योग होने फक त्स्थती भें व्मत्रि योग दयू कयने का प्रमास तो अवश्म कय सकता हैं । इस सरमे मॊि भॊि एवॊ
तॊि के कुशर जानकाय से मोग्म भागादशान रेकय व्मत्रि योगो से भुत्रि ऩाने का मा उसके प्रबावो को कभ
कयने का प्रमास बी अवश्म कय सकता हैं ।
ज्मोसतष विद्या के कुशर जानकय बी कार ऩुरुषकी गणना कय अनेक योगो के अनेको यहस्म को
उजागय कय सकते हैं । ज्मोसतष शास्त्र के भाध्मभ से योग के भूरको ऩकडने भे सहमोग सभरता हैं , जहा
आधुसनक स फकत्सा शास्त्र अऺभ होजाता हैं वहा ज्मोसतष शास्त्र द्राया योग के भूर(जड़) को ऩकड कय उसका
सनदान कयना राबदामक एवॊ उऩामोगी ससद्च होता हैं ।
हय व्मत्रि भें रार यॊ गकी कोसशकाए ऩाइ जाती हैं , त्जसका सनमभीत त्रवकास क्रभ फद्च तयीके से होता
यहता हैं । जफ इन कोसशकाओ के क्रभ भें ऩरयवतान होता है मा त्रवखॊफडन होता हैं तफ व्मत्रि के शयीय भें
स्वास्थ्म सॊफॊधी त्रवकायो उत्ऩन्न होते हैं । एवॊ इन कोसशकाओ का सॊफॊध नव ग्रहो के साथ होता हैं । त्जस्से
योगो के होने के कायण व्मत्रि के जन्भाॊग से दशा-भहादशा एवॊ ग्रहो फक गो य त्स्थती से प्राद्ऱ होता हैं ।
सवा योग सनवायण कव एवॊ भहाभृत्मुॊजम मॊि के भाध्मभ से व्मत्रि के जन्भाॊग भें त्स्थत कभजोय
एवॊ ऩीफडत ग्रहो के अशुब प्रबाव को कभ कयने का कामा सयरता ऩूवक
ा फकमा जासकता हैं । जेसे हय व्मत्रि
को ब्रह्माॊड फक उजाा एवॊ ऩृथ्वी का गुरुत्वाकषाण फर प्रबावीत कताा हैं फठक उसी प्रकाय कव एवॊ मॊि के
भाध्मभ से ब्रह्माॊड फक उजाा के सकायात्भक प्रबाव से व्मत्रि को सकायात्भक उजाा प्राद्ऱ होती हैं त्जस्से योग
के प्रबाव को कभ कय योग भुि कयने हे तु सहामता सभरती हैं ।
योग सनवायण हे तु भहाभृत्मुॊजम भॊि एवॊ मॊि का फडा भहत्व हैं । त्जस्से फहन्द ू सॊस्कृ सत का प्राम् हय
व्मत्रि भहाभृत्मुॊजम भॊि से ऩरयस त हैं ।
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e गुरुत्व ज्मोसतष 102 अगस्त 2020 | अॊक 1

कव के राब :
 एसा शास्त्रोि व न हैं त्जस घय भें भहाभृत्मुॊजम मॊि स्थात्रऩत होता हैं वहा सनवास कताा हो नाना प्रकाय
फक आसध-व्मासध-उऩासध से यऺा होती हैं ।
 ऩूणा प्राण प्रसतत्रद्षत एवॊ ऩूणा ैतन्म मुि सवा योग सनवायण कव फकसी बी उम्र एवॊ जासत धभा के रोग
ाहे स्त्री हो मा ऩुरुष धायण कय सकते हैं ।
 जन्भाॊगभें अनेक प्रकायके खयाफ मोगो औय खयाफ ग्रहो फक प्रसतकूरता से योग उतऩन्न होते हैं ।
 कुछ योग सॊक्रभण से होते हैं एवॊ कुछ योग खान-ऩान फक असनमसभतता औय अशुद्चतासे उत्ऩन्न होते हैं ।
कव एवॊ मॊि द्राया एसे अनेक प्रकाय के खयाफ मोगो को नद्श कय, स्वास्थ्म राब औय शायीरयक यऺण
प्राद्ऱ कयने हे तु सवा योगनाशक कव एवॊ मॊि सवा उऩमोगी होता हैं ।
 आज के बौसतकता वादी आधुसनक मुगभे अनेक एसे योग होते हैं , त्जसका उऩ ाय ओऩये शन औय दवासे
बी कफठन हो जाता हैं । कुछ योग एसे होते हैं त्जसे फताने भें रोग फह फक ाते हैं शयभ अनुबव कयते हैं
एसे योगो को योकने हे तु एवॊ उसके उऩ ाय हे तु सवा योगनाशक कव एवॊ मॊि राबादासम ससद्च होता हैं ।
 प्रत्मेक व्मत्रि फक जेसे-जेसे आमु फढती हैं वैसे-वसै उसके शयीय फक ऊजाा कभ होती जाती हैं । त्जसके
साथ अनेक प्रकाय के त्रवकाय ऩैदा होने रगते हैं एसी त्स्थती भें उऩ ाय हे तु सवायोगनाशक कव एवॊ
मॊि परप्रद होता हैं ।
 त्जस घय भें त्रऩता-ऩुि, भाता-ऩुि, भाता-ऩुिी, मा दो बाई एक फह नऺिभे जन्भ रेते हैं , तफ उसकी भाता
के सरमे असधक कद्शदामक त्स्थती होती हैं । उऩ ाय हे तु भहाभृत्मुॊजम मॊि परप्रद होता हैं ।
 त्जस व्मत्रि का जन्भ ऩरयसध मोगभे होता हैं उन्हे होने वारे भृत्मु तुल्म कद्श एवॊ होने वारे योग, स ॊता
भें उऩ ाय हे तु सवा योगनाशक कव एवॊ मॊि शुब परप्रद होता हैं ।
नोट:- ऩूणा प्राण प्रसतत्रद्षत एवॊ ऩूणा ैतन्म मुि सवा योग सनवायण कव एवॊ मॊि के फाये भें असधक
जानकायी हे तु सॊऩका कयें । >> Shop Online | Order Now

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e गुरुत्व ज्मोसतष 103 अगस्त 2020 | अॊक 1

भॊि ससद्च कव
भॊि ससद्च कव को त्रवशेष प्रमोजन भें उऩमोग के सरए औय शीघ्र प्रबाव शारी फनाने के सरए तेजस्वी भॊिो द्राया शुब भहूता भें शुब
फदन को तैमाय फकमे जाते है । अरग-अरग कव तैमाय कयने केसरए अरग-अरग तयह के भॊिो का प्रमोग फकमा जाता है ।
 क्मों ुने भॊि ससद्च कव ?  उऩमोग भें आसान कोई प्रसतफन्ध नहीॊ  कोई त्रवशेष सनसत-सनमभ नहीॊ  कोई फुया प्रबाव नहीॊ

भॊि ससद्च कव सूस


राज राजेश्वरी किच 11000 विष्णु बीसा किच
Raj Rajeshwari Kawach ………..……………………… Vishnu Visha Kawach ………..………………………... 2350
अमोघ महामृतयुुंजय किच रामभद्र बीसा किच
Amogh Mahamrutyunjay Kawach ……………………. 10900 Ramabhadra Visha Kawach ………..………………… 2350
दस महाविद्या किच कु बेर बीसा किच
Dus Mahavidhya Kawach ………..……………………. 7300 Kuber Visha Kawach ………..…………………………. 2350
श्री घुंटाकणण महािीर सिण वसवि प्रद किच गरुड बीसा किच
Shri Ghantakarn Mahavir Sarv Siddhi Prad Kawach.. 6400 Garud Visha Kawach ………..………………………… 2350
सकल वसवि प्रद गायत्री किच लक्ष्मी बीसा किच
Sakal Siddhi Prad Gayatri Kawach …………………... 6400 Lakshmi Visha Kawach ……..…………………………. 2350
निदुगाण शवि किच ससह बीसा किच
Navdurga Shakiti Kawach ………..…………………… 6400 Sinha Visha Kawach ………..…………………………. 2350
रसायन वसवि किच निाणण बीसा किच
Rasayan Siddhi Kawach ………..…………………….. 6400 Narvan Visha Kawach ………..……………………….. 2350
पुंचदेि शवि किच सुंकट मोवचनी कावलका वसवि किच
Pancha Dev Shakti Kawach ………..…………………. 6400 Sankat Mochinee Kalika Siddhi Kawach ………..…… 2350
सिण कायण वसवि किच राम रक्षा किच
Sarv Karya Siddhi Kawach ………..………………….. 5500 Ram Raksha Kawach ………..………………………… 2350
सुिणण लक्ष्मी किच नारायण रक्षा किच
Suvarn Lakshmi Kawach ………..……………………. 4600 Narayan Raksha Kavach .……………………………... 2350
स्िणाणकर्णण भैरि किच हनुमान रक्षा किच
Swarnakarshan Bhairav Kawach ………..…………… 4600 Hanuman Raksha Kawach ………..………………….. 2350
कालसपण शाुंवि किच भैरि रक्षा किच
Kalsharp Shanti Kawach ………..…………………….. 3700 Bhairav Raksha Kawach ………………………………. 2350
विलक्षण सकल राज िशीकरण किच शवन साड़ेसािी और ढ़ैया कष्ट वनिारण किच
Vilakshan Sakal Raj Vasikaran Kawach ………..…… 3250 Shani Sadesatee aur Dhaiya Kasht Nivaran Kawach ….. 2350
इष्ट वसवि किच श्रावपि योग वनिारण किच
Isht Siddhi Kawach ………..…………………………… 2800 Sharapit Yog Nivaran Kawach ……..………………… 1900
परदेश गमन और लाभ प्रावि किच विर् योग वनिारण किच
Pardesh Gaman Aur Labh Prapti Kawach ………...... 2350 Vish Yog Nivaran Kawach ……..……………………. 1900
श्रीदुगाण बीसा किच सिणजन िशीकरण किच
Durga Visha Kawach ………..…………………………. 2350 Sarvjan Vashikaran Kawach ……..…………………… 1450
कृ ष्ण बीसा किच वसवि विनायक किच
Krushna Bisa Kawach ………..………………………... 2350 Siddhi Vinayak Ganapati Kawach ……..…………….. 1450
अष्ट विनायक किच सकल सम्मान प्रावि किच
Asht Vinayak Kawach ………..………………………... 2350 Sakal Samman Praapti Kawach ……..………………. 1450
आकर्णण िृवि किच स्िप्न भय वनिारण किच
Aakarshan Vruddhi Kawach ……..…………………… 1450 Swapna Bhay Nivaran Kawach ……..……………….. 1050

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e गुरुत्व ज्मोसतष 104 अगस्त 2020 | अॊक 1

िशीकरण नाशक किच सरस्ििी किच (कक्षा +10 के वलए)


Vasikaran Nashak Kawach ……..…………………….. 1450 Saraswati Kawach (For Class +10) ………………….. 1050
प्रीवि नाशक किच सरस्ििी किच (कक्षा 10 िकके वलए)
Preeti Nashak Kawach ……..…………………………. 1450 Saraswati Kawach (For up to Class 10) …………….. 910
चुंडाल योग वनिारण किच िशीकरण किच (2-3 व्यविके वलए)
Chandal Yog Nivaran Kawach ……..………………… 1450 Vashikaran Kawach For (For 2-3 Person) ……………. 1250
ग्रहण योग वनिारण किच पत्नी िशीकरण किच
Grahan Yog Nivaran Kawach ……..………………….. 1450 Patni Vasikaran Kawach ………………………………... 820
माुंगवलक योग वनिारण किच (कु जा योग ) पवि िशीकरण किच
Magalik Yog Nivaran Kawach (Kuja Yoga) …………. 1450 Pati Vasikaran Kawach …………………………………. 820
अष्ट लक्ष्मी किच िशीकरण किच ( 1 व्यवि के वलए)
Asht Lakshmi Kawach ……..………………………... 1250 Vashikaran Kawach (For 1 Person) …………………… 820
आकवस्मक धन प्रावि किच सुदशणन बीसा किच
Akashmik Dhan Prapti Kawach ……..……………….. 1250 Sudarshan Visha Kawach ……..…………………...…... 910
स्पे.व्यापार िृवि किच महा सुदशणन किच
Special Vyapar Vruddhi Kawach ……..……………… 1250 Mahasudarshan Kawach ……..……………...…………. 910
धन प्रावि किच िुंत्र रक्षा किच
Dhan Prapti Kawach ……..…………………………... 1250 Tantra Raksha Kawach …………………………………. 910
कायण वसवि किच िशीकरण किच (2-3 व्यविके वलए)
Karya Siddhi Kawach ……..…………………………… 1250 Vashikaran Kawach For (For 2-3 Person) ……………. 1250
भूवमलाभ किच पत्नी िशीकरण किच
Bhumilabh Kawach ……..……………………………. 1250 Patni Vasikaran Kawach ………………………………... 820
निग्रह शाुंवि किच पवि िशीकरण किच
Navgrah Shanti Kawach ……..……………………….. 1250 Pati Vasikaran Kawach …………………………………. 820
सुंिान प्रावि किच िशीकरण किच ( 1 व्यवि के वलए)
Santan Prapti Kawach ……..………………………….. 1250 Vashikaran Kawach (For 1 Person) …………………… 820
कामदेि किच सुदशणन बीसा किच
Kamdev Kawach ……..………………………………. 1250 Sudarshan Visha Kawach ……..…………………...…... 910
हुंस बीसा किच महा सुदशणन किच
Hans Visha Kawach ……..…………………………….. 1250 Mahasudarshan Kawach ……..……………...…………. 910
पदौन्नवि किच िुंत्र रक्षा किच
Padounnati Kawach ……..…………………………. 1250 Tantra Raksha Kawach …………………………………. 910
ऋण / कजण मुवि किच वत्रशूल बीसा किच
Rin / Karaj Mukti Kawach ……..……………………… 1250 Trishool Visha Kawach ……..…………………………... 910
शत्रु विजय किच व्यापर िृवि किच
Shatru Vijay Kawach ………………………………….. 1050 Vyapar Vruddhi Kawach ………………………………... 910
वििाह बाधा वनिारण किच सिण रोग वनिारण किच
Vivah Badha Nivaran Kawach ………………………... 1050 Sarv Rog Nivaran Kawach ……………………………... 910
स्िवस्िक बीसा किच शारीररक शवि िधणक किच
Swastik Visha Kawach ……..…………………………. 1050 Sharirik Shakti Vardhak Kawach ..……………………... 910
मवस्िष्क पृवष्ट िधणक किच वसि शुक्र किच
Mastishk Prushti Vardhak Kawach …………………… 820 Siddha Shukra Kawach …………………………………. 820

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e गुरुत्व ज्मोसतष 105 अगस्त 2020 | अॊक 1

िाणी पृवष्ट िधणक किच वसि शवन किच


Vani Prushti Vardhak Kawach ………………………… 820 Siddha Shani Kawach …………………………………... 820
कामना पूर्ति किच वसि राहु किच
Kamana Poorti Kawach ………………………………. 820 Siddha Rahu Kawach …………………………………… 820
विरोध नाशक किच वसि के िु किच
Virodh Nashan Kawach ………………………………. 820 Siddha Ketu Kawach ……………………………………. 820
वसि सूयण किच रोजगार िृवि किच
Siddha Surya Kawach …………………………………. 820 Rojgar Vruddhi Kawach ………………………………… 730
वसि चुंद्र किच विघ्न बाधा वनिारण किच
Siddha Chandra Kawach ……………………………… 820 Vighna Badha Nivaran Kawah …………………………. 730
वसि मुंगल किच (कु जा) नज़र रक्षा किच
Siddha Mangal Kawach (Kuja) ……………………… 820 Najar Raksha Kawah ……………………………………. 730
वसि बुध किच रोजगार प्रावि किच
Siddha Bhudh Kawach ………………………………… 820 Rojagar Prapti Kawach …………………………………. 730
वसि गुरु किच दुभाणग्य नाशक किच
Siddha Guru Kawach ………………………………..… 820 Durbhagya Nashak ……………………………………… 640

उऩयोि कव के अरावा अन्म सभस्मा त्रवशेष के सभाधान हे तु एवॊ उद्ङे श्म ऩूसता हे तु कव का सनभााण फकमा जाता हैं । कव के त्रवषम भें
असधक जानकायी हे तु सॊऩका कयें । *कव भाि शुब कामा मा उद्ङे श्म के सरमे >> Shop Online | Order Now

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e गुरुत्व ज्मोसतष 106 अगस्त 2020 | अॊक 1

Gemstone Price List


NAME OF GEM STONE GENERAL MEDIUM FINE FINE SUPER FINE SPECIAL
Emerald (ऩन्ना) 200.00 500.00 1200.00 1900.00 2800.00 & above
Yellow Sapphire (ऩुखयाज) 550.00 1200.00 1900.00 2800.00 4600.00 & above
Yellow Sapphire Bangkok (फैंकोक ऩुखयाज) 550.00 1200.00 1900.00 2800.00 4600.00 & above
Blue Sapphire (नीरभ) 550.00 1200.00 1900.00 2800.00 4600.00 & above
White Sapphire (सफ़ेद ऩुखयाज) 1000.00 1200.00 1900.00 2800.00 4600.00 & above
Bangkok Black Blue(फैंकोक नीरभ) 100.00 150.00 190.00 550.00 1000.00 & above
Ruby (भात्णक) 100.00 190.00 370.00 730.00 1900.00 & above
Ruby Berma (फभाा भात्णक) 5500.00 6400.00 8200.00 10000.00 21000.00 & above
Speenal (नयभ भात्णक/रारडी) 300.00 600.00 1200.00 2100.00 3200.00 & above
Pearl (भोसत) 30.00 60.00 90.00 120.00 280.00 & above
Red Coral (4 यसत तक) (रार भूॊगा) 125.00 190.00 280.00 370.00 460.00 & above
Red Coral (4 यसत से उऩय)( रार भूॊगा) 190.00 280.00 370.00 460.00 550.00 & above
White Coral (सफ़ेद भूॊगा) 73.00 100.00 190.00 280.00 460.00 & above
Cat’s Eye (रहसुसनमा) 25.00 45.00 90.00 120.00 190.00 & above
Cat’s Eye ODISHA(उफडसा रहसुसनमा) 280.00 460.00 730.00 1000.00 1900.00 & above
Gomed (गोभेद) 19.00 28.00 45.00 100.00 190.00 & above
Gomed CLN (ससरोनी गोभेद) 190.00 280.00 460.00 730.00 1000.00 & above
Zarakan (जयकन) 550.00 730.00 820.00 1050.00 1250.00 & above
Aquamarine (फेरुज) 210.00 320.00 410.00 550.00 730.00 & above
Lolite (नीरी) 50.00 120.00 230.00 390.00 500.00 & above
Turquoise (फफ़योजा) 100.00 145.00 190.00 280.00 460.00 & above
Golden Topaz (सुनहरा) 28.00 46.00 90.00 120.00 190.00 & above
Real Topaz (उफडसा ऩुखयाज/टोऩज) 100.00 190.00 280.00 460.00 640.00 & above
Blue Topaz (नीरा टोऩज) 100.00 190.00 280.00 460.00 640.00 & above
White Topaz (सफ़ेद टोऩज) 60.00 90.00 120.00 240.00 410.00& above
Amethyst (कटे रा) 28.00 46.00 90.00 120.00 190.00 & above
Opal (उऩर) 28.00 46.00 90.00 190.00 460.00 & above
Garnet (गायनेट) 28.00 46.00 90.00 120.00 190.00 & above
Tourmaline (तुभर ा ीन) 120.00 140.00 190.00 300.00 730.00 & above
Star Ruby (सुमका ान्त भत्ण) 45.00 75.00 90.00 120.00 190.00 & above
Black Star (कारा स्टाय) 15.00 30.00 45.00 60.00 100.00 & above
Green Onyx (ओनेक्स) 10.00 19.00 28.00 55.00 100.00 & above
Lapis (राजवात) 15.00 28.00 45.00 100.00 190.00 & above
Moon Stone ( न्द्रकान्त भत्ण) 12.00 19.00 28.00 55.00 190.00 & above
Rock Crystal (स्फ़फटक) 19.00 46.00 15.00 30.00 45.00 & above
Kidney Stone (दाना फफ़यॊ गी) 09.00 11.00 15.00 19.00 21.00 & above
Tiger Eye (टाइगय स्टोन) 03.00 05.00 10.00 15.00 21.00 & above
Jade (भयग ) 12.00 19.00 23.00 27.00 45.00 & above
Sun Stone (सन ससताया) 12.00 19.00 23.00 27.00 45.00 & above
Note : Bangkok (Black) Blue for Shani, not good in looking but mor effective, Blue Topaz not Sapphire This Color of Sky Blue, For Venus
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e गुरुत्व ज्मोसतष 107 अगस्त 2020 | अॊक 1

GURUTVA KARYALAY
YANTRA LIST EFFECTS
Our Splecial Yantra
1 12 – YANTRA SET For all Family Troubles
2 VYAPAR VRUDDHI YANTRA For Business Development
3 BHOOMI LABHA YANTRA For Farming Benefits
4 TANTRA RAKSHA YANTRA For Protection Evil Sprite
5 AAKASMIK DHAN PRAPTI YANTRA For Unexpected Wealth Benefits
6 PADOUNNATI YANTRA For Getting Promotion
7 RATNE SHWARI YANTRA For Benefits of Gems & Jewellery
8 BHUMI PRAPTI YANTRA For Land Obtained
9 GRUH PRAPTI YANTRA For Ready Made House
10 KAILASH DHAN RAKSHA YANTRA -

Shastrokt Yantra

11 AADHYA SHAKTI AMBAJEE(DURGA) YANTRA Blessing of Durga


12 BAGALA MUKHI YANTRA (PITTAL) Win over Enemies
13 BAGALA MUKHI POOJAN YANTRA (PITTAL) Blessing of Bagala Mukhi
14 BHAGYA VARDHAK YANTRA For Good Luck
15 BHAY NASHAK YANTRA For Fear Ending
16 CHAMUNDA BISHA YANTRA (Navgraha Yukta) Blessing of Chamunda & Navgraha
17 CHHINNAMASTA POOJAN YANTRA Blessing of Chhinnamasta
18 DARIDRA VINASHAK YANTRA For Poverty Ending
19 DHANDA POOJAN YANTRA For Good Wealth
20 DHANDA YAKSHANI YANTRA For Good Wealth
21 GANESH YANTRA (Sampurna Beej Mantra) Blessing of Lord Ganesh
22 GARBHA STAMBHAN YANTRA For Pregnancy Protection
23 GAYATRI BISHA YANTRA Blessing of Gayatri
24 HANUMAN YANTRA Blessing of Lord Hanuman
25 JWAR NIVARAN YANTRA For Fewer Ending
JYOTISH TANTRA GYAN VIGYAN PRAD SHIDDHA BISHA
26 YANTRA
For Astrology & Spritual Knowlage
27 KALI YANTRA Blessing of Kali
28 KALPVRUKSHA YANTRA For Fullfill your all Ambition
29 KALSARP YANTRA (NAGPASH YANTRA) Destroyed negative effect of Kalsarp Yoga
30 KANAK DHARA YANTRA Blessing of Maha Lakshami
31 KARTVIRYAJUN POOJAN YANTRA -
32 KARYA SHIDDHI YANTRA For Successes in work
33  SARVA KARYA SHIDDHI YANTRA For Successes in all work
34 KRISHNA BISHA YANTRA Blessing of Lord Krishna
35 KUBER YANTRA Blessing of Kuber (Good wealth)
36 LAGNA BADHA NIVARAN YANTRA For Obstaele Of marriage
37 LAKSHAMI GANESH YANTRA Blessing of Lakshami & Ganesh
38 MAHA MRUTYUNJAY YANTRA For Good Health
39 MAHA MRUTYUNJAY POOJAN YANTRA Blessing of Shiva
40 MANGAL YANTRA ( TRIKON 21 BEEJ MANTRA) For Fullfill your all Ambition
41 MANO VANCHHIT KANYA PRAPTI YANTRA For Marriage with choice able Girl
42 NAVDURGA YANTRA Blessing of Durga
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e गुरुत्व ज्मोसतष 108 अगस्त 2020 | अॊक 1

YANTRA LIST EFFECTS

43 NAVGRAHA SHANTI YANTRA For good effect of 9 Planets


44 NAVGRAHA YUKTA BISHA YANTRA For good effect of 9 Planets
45  SURYA YANTRA Good effect of Sun
46  CHANDRA YANTRA Good effect of Moon
47  MANGAL YANTRA Good effect of Mars
48  BUDHA YANTRA Good effect of Mercury
49  GURU YANTRA (BRUHASPATI YANTRA) Good effect of Jyupiter
50  SUKRA YANTRA Good effect of Venus
51  SHANI YANTRA (COPER & STEEL) Good effect of Saturn
52  RAHU YANTRA Good effect of Rahu
53  KETU YANTRA Good effect of Ketu
54 PITRU DOSH NIVARAN YANTRA For Ancestor Fault Ending
55 PRASAW KASHT NIVARAN YANTRA For Pregnancy Pain Ending
56 RAJ RAJESHWARI VANCHA KALPLATA YANTRA For Benefits of State & Central Gov
57 RAM YANTRA Blessing of Ram
58 RIDDHI SHIDDHI DATA YANTRA Blessing of Riddhi-Siddhi
59 ROG-KASHT DARIDRATA NASHAK YANTRA For Disease- Pain- Poverty Ending
60 SANKAT MOCHAN YANTRA For Trouble Ending
61 SANTAN GOPAL YANTRA Blessing Lorg Krishana For child acquisition
62 SANTAN PRAPTI YANTRA For child acquisition
63 SARASWATI YANTRA Blessing of Sawaswati (For Study & Education)
64 SHIV YANTRA Blessing of Shiv
Blessing of Maa Lakshami for Good Wealth &
65 SHREE YANTRA (SAMPURNA BEEJ MANTRA)
Peace
66 SHREE YANTRA SHREE SUKTA YANTRA Blessing of Maa Lakshami for Good Wealth
67 SWAPNA BHAY NIVARAN YANTRA For Bad Dreams Ending
68 VAHAN DURGHATNA NASHAK YANTRA For Vehicle Accident Ending
VAIBHAV LAKSHMI YANTRA (MAHA SHIDDHI DAYAK SHREE Blessing of Maa Lakshami for Good Wealth & All
69 MAHALAKSHAMI YANTRA) Successes
70 VASTU YANTRA For Bulding Defect Ending
71 VIDHYA YASH VIBHUTI RAJ SAMMAN PRAD BISHA YANTRA For Education- Fame- state Award Winning
72 VISHNU BISHA YANTRA Blessing of Lord Vishnu (Narayan)
73 VASI KARAN YANTRA Attraction For office Purpose
74  MOHINI VASI KARAN YANTRA Attraction For Female
75  PATI VASI KARAN YANTRA Attraction For Husband
76  PATNI VASI KARAN YANTRA Attraction For Wife
77  VIVAH VASHI KARAN YANTRA Attraction For Marriage Purpose
Yantra Available @:- Rs- 325 to 12700 and Above…..
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e गुरुत्व ज्मोसतष 109 अगस्त 2020 | अॊक 1

सू ना
 ऩत्रिका भें प्रकासशत सबी रेख ऩत्रिका के असधकायों के साथ ही आयत्ऺत हैं ।

 रेख प्रकासशत होना का भतरफ मह कतई नहीॊ फक कामाारम मा सॊऩादक बी इन त्रव ायो से सहभत हों।

 नात्स्तक/ अत्रवद्वासु व्मत्रि भाि ऩठन साभग्री सभझ सकते हैं ।

 ऩत्रिका भें प्रकासशत फकसी बी नाभ, स्थान मा घटना का उल्रेख महाॊ फकसी बी व्मत्रि त्रवशेष मा फकसी बी स्थान मा
घटना से कोई सॊफॊध नहीॊ हैं ।

 प्रकासशत रेख ज्मोसतष, अॊक ज्मोसतष, वास्तु, भॊि, मॊि, तॊि, आध्मात्त्भक ऻान ऩय आधारयत होने के कायण मफद
फकसी के रेख, फकसी बी नाभ, स्थान मा घटना का फकसी के वास्तत्रवक जीवन से भेर होता हैं तो मह भाि एक सॊमोग
हैं ।

 प्रकासशत सबी रेख बायसतम आध्मात्त्भक शास्त्रों से प्रेरयत होकय सरमे जाते हैं । इस कायण इन त्रवषमो फक सत्मता
अथवा प्राभात्णकता ऩय फकसी बी प्रकाय फक त्जन्भेदायी कामाारम मा सॊऩादक फक नहीॊ हैं ।

 अन्म रेखको द्राया प्रदान फकमे गमे रेख/प्रमोग फक प्राभात्णकता एवॊ प्रबाव फक त्जन्भेदायी कामाारम मा सॊऩादक फक
नहीॊ हैं । औय नाहीॊ रेखक के ऩते फठकाने के फाये भें जानकायी दे ने हे तु कामाारम मा सॊऩादक फकसी बी प्रकाय से फाध्म
हैं ।

 ज्मोसतष, अॊक ज्मोसतष, वास्तु, भॊि, मॊि, तॊि, आध्मात्त्भक ऻान ऩय आधारयत रेखो भें ऩाठक का अऩना त्रवद्वास
होना आवश्मक हैं । फकसी बी व्मत्रि त्रवशेष को फकसी बी प्रकाय से इन त्रवषमो भें त्रवद्वास कयने ना कयने का अॊसतभ
सनणाम स्वमॊ का होगा।

 ऩाठक द्राया फकसी बी प्रकाय फक आऩत्ती स्वीकामा नहीॊ होगी।

 हभाये द्राया ऩोस्ट फकमे गमे सबी रेख हभाये वषो के अनुबव एवॊ अनुशॊधान के आधाय ऩय सरखे होते हैं । हभ फकसी बी
व्मत्रि त्रवशेष द्राया प्रमोग फकमे जाने वारे भॊि- मॊि मा अन्म प्रमोग मा उऩामोकी त्जन्भेदायी नफहॊ रेते हैं ।

 मह त्जन्भेदायी भॊि-मॊि मा अन्म प्रमोग मा उऩामोको कयने वारे व्मत्रि फक स्वमॊ फक होगी। क्मोफक इन त्रवषमो भें
नैसतक भानदॊ डों, साभात्जक, कानूनी सनमभों के त्खराप कोई व्मत्रि मफद नीजी स्वाथा ऩूसता हे तु प्रमोग कताा हैं अथवा
प्रमोग के कयने भे िुफट होने ऩय प्रसतकूर ऩरयणाभ सॊबव हैं ।

 हभाये द्राया ऩोस्ट फकमे गमे सबी भॊि-मॊि मा उऩाम हभने सैकडोफाय स्वमॊ ऩय एवॊ अन्म हभाये फॊधग
ु ण ऩय प्रमोग फकमे
हैं त्जस्से हभे हय प्रमोग मा भॊि-मॊि मा उऩामो द्राया सनत्द्ळत सपरता प्राद्ऱ हुई हैं ।

 ऩाठकों फक भाॊग ऩय एक फह रेखका ऩून् प्रकाशन कयने का असधकाय यखता हैं । ऩाठकों को एक रेख के ऩून् प्रकाशन
से राब प्राद्ऱ हो सकता हैं ।

 असधक जानकायी हे तु आऩ कामाारम भें सॊऩका कय सकते हैं ।

(सबी त्रववादो केसरमे केवर बुवनेद्वय न्मामारम ही भान्म होगा।)


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स ॊतन जोशी
सॊऩका

गुरुत्व ज्मोसतष त्रवबाग


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e गुरुत्व ज्मोसतष 111 अगस्त 2020 | अॊक 1

हभाया उद्ङे श्म


त्रप्रम आत्त्भम
फॊधु/ फफहन
जम गुरुदे व
जहाॉ आधुसनक त्रवऻान सभाद्ऱ हो जाता हैं । वहाॊ आध्मात्त्भक ऻान प्रायॊ ब हो
जाता हैं , बौसतकता का आवयण ओढे व्मत्रि जीवन भें हताशा औय सनयाशा भें फॊध
जाता हैं , औय उसे अऩने जीवन भें गसतशीर होने के सरए भागा प्राद्ऱ नहीॊ हो ऩाता
क्मोफक बावनाए फह बवसागय हैं , त्जसभे भनुष्म की सपरता औय असपरता
सनफहत हैं । उसे ऩाने औय सभजने का साथाक प्रमास ही श्रेद्षकय सपरता हैं ।
सपरता को प्राद्ऱ कयना आऩ का बाग्म ही नहीॊ असधकाय हैं । ईसी सरमे हभायी
शुब काभना सदै व आऩ के साथ हैं । आऩ अऩने कामा-उद्ङे श्म एवॊ अनुकूरता हे तु
मॊि, ग्रह यत्न एवॊ उऩयत्न औय दर
ु ब
ा भॊि शत्रि से ऩूणा प्राण-प्रसतत्रद्षत स ज वस्तु
का हभेंशा प्रमोग कये जो १००% परदामक हो। ईसी सरमे हभाया उद्ङे श्म महीॊ हे
की शास्त्रोि त्रवसध-त्रवधान से त्रवसशद्श तेजस्वी भॊिो द्राया ससद्च प्राण-प्रसतत्रद्षत ऩूणा
ैतन्म मुि सबी प्रकाय के मन्ि- कव एवॊ शुब परदामी ग्रह यत्न एवॊ उऩयत्न
आऩके घय तक ऩहो ाने का हैं ।
सूमा की फकयणे उस घय भें प्रवेश कयाऩाती हैं ।
जीस घय के त्खड़की दयवाजे खुरे हों।

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e गुरुत्व ज्मोसतष 112 अगस्त 2020 | अॊक 1

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