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मॊि, तॊि, ज्मोसतष, अॊक ज्मोसतष,
91+9338213418,
91+9238328785, वास्तु, पेंगशुई, टै यों, ये की एवॊ
ईभेर
gurutva.karyalay@gmail.com, अन्म आध्मात्त्भक ऻान वधाक
gurutva_karyalay@yahoo.in,
वेफ
रेख को प्रकासशत कयने हे तु बेज
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सकते हैं ।
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असधक जानकायी हे तु सॊऩका कयें ।
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GURUTVA KARYALAY
ऩत्रिका प्रस्तुसत
BHUBNESWAR-751018, (ODISHA) INDIA
स ॊतन जोशी, Call Us: 91 + 9338213418,
गुरुत्व कामाारम 91 + 9238328785
पोटो ग्राफपक्स Email Us:- gurutva_karyalay@yahoo.in,
स ॊतन जोशी, gurutva.karyalay@gmail.com
गुरुत्व कामाारम
अनुक्रभ
स्थामी औय अन्म रेख
सॊऩादकीम 4 दै सनक शुब एवॊ अशुब सभम ऻान तासरका 12
अगस्त 2020 भाससक ऩॊ ाॊग 8 फदन-यात के ौघफडमे 13
अगस्त 2020 भाससक व्रत-ऩवा-त्मौहाय 10 फदन-यात की होया 14
अगस्त 2020 -त्रवशेष मोग 12
इस त्रवशेषाॊक अॊक भें ऩढे े़
बायतीम सॊस्कृ सत भें याखी ऩूत्णाभा का भहत्व 15 श्री कृ ष्ण कृ ऩा कटाऺ स्त्रोि 48
अजा (जमा) एकादशी व्रत की ऩौयात्णक कथा 32 भनोकाभना ऩूसता हे तु त्रवसबन्न कृ ष्ण भॊि 60
कृ ष्णाश्रम स्तुसत 47
त्रप्रम आत्त्भम,
फॊध/ु फफहन
जम गुरुदे व
यऺाफॊधन- यऺाफॊधन अथाातप्रे् भ का फॊधन। यऺाफॊधन के फदन फहन बाई के हाथ ऩय याखी फाॉधती हैं ।
बायतीम सॊस्कृ सत भें आज के बौसतकतावादी सभाज भें बोग औय स्वाथा भें सरद्ऱ त्रवद्व भें बी प्राम् सबी
बायतीम सॊस्कृ सत सभग्र भानव जीवन को भहानता के दशान कयाने वारी सॊस्कृ सत हैं । बायतीम सॊस्कृ सत भें
स्त्री को केवर भाि बोगदासी न सभझकय उसका ऩूजन कयने वारी भहान सॊस्कृ सत हैं ।
फकन्तु आजका ऩढा सरखा आधुसनक व्मत्रि अऩने आऩको सुधया हुवा भानने वारे तथा ऩाद्ळात्म सॊस्कृ सत का
अॊधा अनुकयण कयके, स्त्री को सभानता फदराने वारी खोखरी बाषा फोरने वारों को ऩेहर बायत की ऩायॊ ऩरयक
सॊस्कृ सत को ऩूणा सभझ रेना ाफह की ऩाद्ळात्म सॊस्कृ सत से तो केवर सभानता फदराई हो ऩयॊ तु बायतीम सॊस्कृ सत
बावाथा: जहाॉ स्त्री ऩूजी जाती है , उसका सम्भान होता है , वहाॉ दे व यभते हैं - वहाॉ दे वों का सनवास होता है ।' ऐसा
बगवान भनु का व न है ।
श्री कृ ष्णजन्भाद्शभी को बगवान श्री कृ ष्ण के जनभोत्स्व के रुऩ भें भनामा जाता है । बगवान श्रीकृ ष्ण के
बगवद गीता भें वत्णात उऩदे श ऩुयातन कार से ही फहन्द ु सॊस्कृ सत भें आदशा यहे हैं । जन्भाद्शभी का त्मौहाय ऩुये त्रवद्व
श्रीकृ ष्ण का जन्भ बाद्रऩद भाह की कृ ष्ण ऩऺ की अद्शभी को भध्मयात्रि को भथुया भें कायागृह भें हुवा। जैसे की इस
त्जन सभग्र सॊसाय के ऩारन कताा स्वमॊ अवतरयत हुएॊ थे। अत: इस फदन को कृ ष्ण जन्भाद्शभी के रूऩ भें भनाने की
श्रीकृ ष्ण जन्भोत्सव के सरए दे श-दसु नमा के त्रवसबन्न कृ ष्ण भॊफदयों को त्रवशेष तौय ऩय सजामा जाता है ।
जन्भाद्शभी के फदन व्रती फायह फजे तक व्रत यखते हैं । इस फदन भॊफदयों भें बगवान श्री कृ ष्ण की त्रवसबन्न झाॊकीमाॊ
सजाई जाती है औय यासरीरा का आमोजन होता है । बगवान श्री कृ ष्ण की फार स्वरुऩ प्रसतभा को त्रवसबन्न शृॊगाय
साभग्रीमों से सुसत्ज्जत कय प्रसतभा को ऩारने भें स्थात्रऩत कय कृ ष्ण भध्मयािी को झूरा झुरामा जाता हैं ।
धभाशास्त्रों के जानकायों ने श्रीकृ ष्णजन्भाद्शभीका व्रत सनातन-धभाावरॊत्रफमों के सरए त्रवशेष भहत्व ऩूणा फतामा
है । इस फदन उऩवास यखने तथा अन्न का सेवन नहीॊ कयने का त्रवधान धभाशास्त्रों भें वत्णात हैं ।
गौतभीतॊिभें मह उल्रेख है -
उऩवास: प्रकताव्मोन बोिव्मॊकदा न।
कृ ष्णजन्भफदनेमस्तुबुड्क्िेसतुनयाधभ:।
सनवसेन्नयकेघोये मावदाबूतसम्प्रवभ ्॥
अथाात: अभीय-गयीफ सबी रोग मथाशत्रि-मथासॊबव उऩ ायों से मोगेद्वय कृ ष्ण का जन्भोत्सव भनाएॊ। जफ तक
उत्सव सम्ऩन्न न हो जाए तफ तक बोजन त्रफल्कुर न कयें । जो वैष्णव कृ ष्णाद्शभी के फदन बोजन कयता है , वह
सनद्ळम ही नयाधभ है । उसे प्ररम होने तक घोय नयक भें यहना ऩडता है ।
इसी सरए जन्भाद्शभी के फदन बगवान श्रीकृ ष्ण की प्रसतभा का त्रवसध-त्रवधान से ऩूजन इत्माफद कयने का
त्रवशेष भहत्व सनातन धभा भें यहा हैं । धभाग्रॊथों भें जन्भाद्शभी की यात्रि भें जागयण का त्रवधान बी फतामा गमा है ।
त्रवद्रानों का भत हैं की कृ ष्णाद्शभी की यात भें बगवान श्रीकृ ष्ण के नाभ का सॊकीतान इत्माफद कयने से बि को
श्रीकृ ष्ण की त्रवशेष कृ ऩा प्रासद्ऱ होती हैं । धभाग्रॊथों भें जन्भाद्शभी के व्रत भें ऩूये फदन उऩवास यखने का सनमभ है , ऩयॊ तु
इसभें असभथा रोग पराहाय कय सकते हैं ।
बत्रवष्मऩुयाण भें उल्रेख हैं
त्जस याद्स मा प्रदे श भें मह व्रत-उत्सव त्रवसध-त्रवधान से भनामा जाता है , वहाॊ ऩय प्राकृ सतक प्रकोऩ मा
भहाभायी इत्माफद नहीॊ होती। भेघ ऩमााद्ऱ वषाा कयते हैं तथा पसर खूफ होती है । जनता सुख-सभृत्रद्च प्राद्ऱ कयती है ।
इस व्रत के अनुद्षान से सबी व्रतीमों को ऩयभ श्रेम की प्रासद्ऱ होती है । व्रत कताा बगवत्कृ ऩा का बागी फनकय इस
रोक भें सफ सुख बोगता है औय अन्त भें वैकुॊठ जाता है । कृ ष्णाद्शभी का व्रत कयने वारे के सबी प्रकाय क्रेश दयू
हो जाते हैं । उसका दख
ु -दरयद्रता से उद्चाय होता है ।
इस भाससक ई-ऩत्रिका भें सॊफॊसधत जानकायीमों के त्रवषम भें साधक एवॊ त्रवद्रान ऩाठको से अनुयोध हैं , मफद
दशाामे गए भॊि, द्ऴोक, मॊि, साधना एवॊ उऩामों मा अन्म जानकायी के राब, प्रबाव इत्मादी के सॊकरन, प्रभाण ऩढ़ने,
सॊऩादन भें, फडजाईन भें, टाईऩीॊग भें, त्रप्रॊफटॊ ग भें, प्रकाशन भें कोई िुफट यह गई हो, तो उसे स्वमॊ सुधाय रें मा फकसी
मोग्म ज्मोसतषी, गुरु मा त्रवद्रान से सराह त्रवभशा कय रे । क्मोफक त्रवद्रान ज्मोसतषी, गुरुजनो एवॊ साधको के सनजी
अनुबव त्रवसबन्न भॊि, द्ऴोक, मॊि, साधना, उऩाम के प्रबावों का वणान कयने भें बेद होने ऩय काभना ससत्रद्च हे तु फक
जाने वारी वारी ऩूजन त्रवसध एवॊ उसके प्रबावों भें सबन्नता सॊबव हैं ।
1
शसन श्रावण शुक्र िमोदशी 22:01 भूर 06:48 वैधसृ त 09:15 कौरव 10:24 धनु -
2
यत्रव श्रावण शुक्र तुदाशी 21:32 ऩूवााषाढ़ 06:52 त्रवषकुॊब 07:46 गय 09:44 धनु 17:05
3
सोभ श्रावण शुक्र ऩूत्णाभा 21:28 उत्तयाषाढ़ 07:18 प्रीसत 06:36 त्रवत्रद्श 09:27 भकय -
4
भॊगर बाद्रऩद कृ ष्ण प्रसतऩदा 21:51 श्रवण 08:10 सौबाग्म 29:18 फारव 09:36 भकय 18:38
5
फुध बाद्रऩद कृ ष्ण फद्रतीमा 22:43 धसनद्षा 09:30 शोबन 29:13 तैसतर 10:13 कुॊब -
6
गुरु बाद्रऩद कृ ष्ण तृतीमा 24:03 शतसबषा 11:17 असतगॊड 29:31 वत्णज 11:19 कुॊब -
7
शुक्र बाद्रऩद कृ ष्ण तुथॉ 25:51 ऩूवााबाद्रऩद 13:33 सुकभाा - फव 12:54 कुॊब 20:29
8
शसन बाद्रऩद कृ ष्ण ऩॊ भी 28:10 उत्तयाबाद्रऩद 16:11 सुकभाा 06:07 कौरव 14:54 भीन -
9
यत्रव बाद्रऩद कृ ष्ण षद्षी - ये वसत 19:05 धृसत 06:59 गय 17:12 भीन 21:36
10
सोभ बाद्रऩद कृ ष्ण षद्षी 06:24 अत्द्वनी 22:05 शूर 07:57 वत्णज 06:24 भेष -
11
भॊगर बाद्रऩद कृ ष्ण सद्ऱभी 08:47 बयणी 24:56 गॊड 08:55 फव 08:47 भेष -
12
फुध बाद्रऩद कृ ष्ण अद्शभी 10:57 कृ सतका 27:26 वृत्रद्च 09:40 कौरव 10:57 भेष 23:26
13
गुरु बाद्रऩद कृ ष्ण नवभी 12:40 योफहत्ण 29:21 ध्रुव 10:05 गय 12:40 वृष -
14
शुक्र बाद्रऩद कृ ष्ण दशभी 13:46 भृगसशया - व्माघात 09:59 त्रवत्रद्श 13:46 वृष 00:09
15
शसन बाद्रऩद कृ ष्ण एकादशी 14:07 भृगसशया 06:35 हषाण 09:19 फारव 14:07 सभथुन -
16
यत्रव बाद्रऩद कृ ष्ण द्रादशी 13:41 आद्रा 07:02 वज्र 08:00 तैसतर 13:41 सभथुन 01:51
17
सोभ बाद्रऩद कृ ष्ण िमोदशी 12:29 ऩुनवासु 06:43 ससत्रद्च 06:04 वत्णज 12:29 कका -
18 ऩुष्म- 5:44-
भॊगर बाद्रऩद कृ ष्ण तुदाशी 10:36 वरयमान 24:35 शकुसन 10:36 कका 03:51
आद्ऴेषा 28:07
20
गुरु बाद्रऩद शुक्र फद्रतीमा 26:18 ऩूवाापाल्गुनी 23:50 सशव 17:37 फारव 15:51 ससॊह 05:58
21
शुक्र बाद्रऩद शुक्र तृतीमा 23:11 उत्तयापाल्गुनी 21:28 ससत्रद्च 13:54 तैसतर 12:45 कन्मा -
22
शसन बाद्रऩद शुक्र तुथॉ 20:07 हस्त 19:10 साध्म 10:12 वत्णज 09:38 कन्मा -
23
यत्रव बाद्रऩद शुक्र ऩॊ भी 17:17 स िा 17:05 शुब 06:37 फव 06:40 कन्मा 09:02
24
सोभ बाद्रऩद शुक्र षद्षी 14:45 स्वाती 15:20 ब्रह्म 24:15 तैसतर 14:45 तुरा -
25
भॊगर बाद्रऩद शुक्र सद्ऱभी - 12:37 त्रवशाखा 13:58 इन्द्र 21:35 वत्णज 12:37 तुरा 11:05
26
फुध बाद्रऩद शुक्र अद्शभी 10:55 अनुयाधा 13:03 वैधसृ त 19:18 फव 10:55 वृत्द्ळक -
27
गुरु बाद्रऩद शुक्र नवभी 09:40 जेद्षा 12:36 त्रवषकुॊब 17:23 कौरव 09:40 वृत्द्ळक 13:07
28
शुक्र बाद्रऩद शुक्र दशभी 08:53 भूर 12:37 प्रीसत 15:51 गय 08:53 धनु -
29
शसन बाद्रऩद शुक्र एकादशी 08:30 ऩूवााषाढ़ 13:02 आमुष्भान 14:40 त्रवत्रद्श 08:30 धनु 15:00
30
यत्रव बाद्रऩद शुक्र द्रादशी 08:32 उत्तयाषाढ़ 13:51 सौबाग्म 13:48 फारव 08:32 भकय -
31
सोभ बाद्रऩद शुक्र िमोदशी 08:56 श्रवण 15:03 शोबन 13:15 तैसतर 08:56 भकय 16:35
1 शसन श्रावण शुक्र िमोदशी 22:01 शसन प्रदोष व्रत, आखेटक िमोदशी (ओड़ी),
7 शुक्र बाद्रऩद कृ ष्ण तुथॉ 25:51 सॊकद्शी श्रीगणेश तुथॉ व्रत ( ॊ.उ.या.9.37), फहुरा तुथॉ,
9 यत्रव बाद्रऩद कृ ष्ण षद्षी - हरषद्षी व्रत (ररही छठ), म्ऩाषद्षी, याॊधण छठ (गुज), ॊद्रषद्षी व्रत,
11 भॊगर बाद्रऩद कृ ष्ण सद्ऱभी 08:47 श्रीकृ ष्णावताय अद्शभी व्रत (स्भाता ), काराद्शभी व्रत, भोहयात्रि,
15 शसन बाद्रऩद कृ ष्ण एकादशी 14:07 स्वतॊिता फदवस, अजा (जमा) एकादशी व्रत, गोवत्स द्रादशी,
17 सोभ बाद्रऩद कृ ष्ण िमोदशी 12:29 भाससक सशवयात्रि व्रत, अघोय तुदाशी,
अभावस्मा - 08:11 -
19 फुध बाद्रऩद कृ ष्ण स्नान-दान हे तु उत्तभ बाद्रऩदी अभावस्मा,
प्रसतऩदा 29:22
हरयतासरका तीज व्रत, फड़ी तीज, वायाहावताय जमॊती, गौयी तृतीमा व्रत,
21 शुक्र बाद्रऩद शुक्र तृतीमा 23:11
केवड़ा तीज, गौयी तीज (ओड़ीसा), त्रिरोक तीज
ऋत्रषऩॊ भी-भध्माह्न भें सद्ऱत्रषा ऩूजन, गगा एवॊ अॊसगया ऋत्रष जमॊती,
आकाश ऩॊ भी (जैन), जैन सॊवत्सयी (ऩॊ भी ऩऺ), गुरु ऩॊ भी
23 यत्रव बाद्रऩद शुक्र ऩॊ भी 17:17
(ओड़ीसा), यऺाऩॊ भी (ऩ.फॊ), बायतेंद ु जमॊती, दशरऺण व्रत 10 फदन
एवॊ ऩुष्ऩाॊजसर व्रत 5 फदन (फदगॊफय जैन), आकाश ऩॊ भी (जैन),
सूमष
ा द्षी व्रत, रोराका षद्षी (काशी), फरदे व छठ-श्रीफरयाभ जमॊती
24 सोभ बाद्रऩद शुक्र षद्षी 14:45 भहोत्सव (ब्रज), रसरता षद्षी, भॊथन षद्षी (ऩ.फॊ), स्कन्द कुभाय षद्षी
व्रत, सोभनाथ व्रत (ओड़ीसा), ॊदनषद्षी (जैन),
श्रीदग
ु ााद्शभी व्रत, श्रीअन्नऩूणााद्शभी व्रत, श्रीयाधाद्शभी व्रतोत्सव (फयसाना-
26 फुध बाद्रऩद शुक्र अद्शभी 10:55 भथुया), दधीस जमॊती, भहायत्रववाय व्रत, भूर नऺि भें ज्मेद्षागौयी का
त्रवसजान, सन:शल्म अद्शभी (फदग.जैन), दफ
ु री आठभ (द्वेत.जैन),
28 शुक्र बाद्रऩद शुक्र दशभी 08:53 दशावताय व्रत, तेजा दशभी, सुगन्ध दशभी (जैन), भहायत्रववाय व्रत
31 सोभ बाद्रऩद शुक्र िमोदशी 08:56 प्रदोष व्रत, गोत्रियाि व्रत प्रायॊ ब, यत्निम व्रत 3 फदन (फदगॊफय जैन)
मोग पर :
कामा ससत्रद्च मोग भे फकमे गमे शुब कामा भे सनत्द्ळत सपरता प्राद्ऱ होती हैं , एसा शास्त्रोि व न हैं ।
त्रिऩुष्कय मोग भें फकमे गमे शुब कामो का राब तीन गुना होता हैं । एसा शास्त्रोि व न हैं ।
फद्रऩुष्कय मोग भें फकमे गमे शुब कामो का राब दोगुना होता हैं । एसा शास्त्रोि व न हैं ।
अभृत ससत्रद्च मोग अत्मॊत शुब मोग भें सबी प्रकाय के शुब कामा फकए जा सकते हैं ।
शास्त्रोंि भत से त्रवघ्नकायक बद्रा मोग भें शुब कामा कयना वत्जात हैं ।
फदन के ौघफडमे
सभम यत्रववाय सोभवाय भॊगरवाय फुधवाय गुरुवाय शुक्रवाय शसनवाय
यात के ौघफडमे
सभम यत्रववाय सोभवाय भॊगरवाय फुधवाय गुरुवाय शुक्रवाय शसनवाय
शास्त्रोि भत के अनुसाय मफद फकसी बी कामा का प्रायॊ ब शुब भुहूता मा शुब सभम ऩय फकमा जामे तो
कामा भें सपरता प्राद्ऱ होने फक सॊबावना ज्मादा प्रफर हो जाती हैं । इस सरमे दै सनक शुब सभम ौघफड़मा
दे खकय प्राद्ऱ फकमा जा सकता हैं ।
नोट: प्राम् फदन औय यात्रि के ौघफड़मे फक सगनती क्रभश् सूमोदम औय सूमाास्त से फक जाती हैं । प्रत्मेक ौघफड़मे
फक अवसध 1 घॊटा 30 सभसनट अथाात डे ढ़ घॊटा होती हैं । सभम के अनुसाय ौघफड़मे को शुबाशुब तीन बागों भें
फाॊटा जाता हैं , जो क्रभश् शुब, भध्मभ औय अशुब हैं ।
यत्रववाय सूमा शुक्र फुध ॊद्र शसन गुरु भॊगर सूमा शुक्र फुध ॊद्र शसन
सोभवाय ॊद्र शसन गुरु भॊगर सूमा शुक्र फुध ॊद्र शसन गुरु भॊगर सूमा
भॊगरवाय भॊगर सूमा शुक्र फुध ॊद्र शसन गुरु भॊगर सूमा शुक्र फुध ॊद्र
फुधवाय फुध ॊद्र शसन गुरु भॊगर सूमा शुक्र फुध ॊद्र शसन गुरु भॊगर
गुरुवाय गुरु भॊगर सूमा शुक्र फुध ॊद्र शसन गुरु भॊगर सूमा शुक्र फुध
शुक्रवाय शुक्र फुध ॊद्र शसन गुरु भॊगर सूमा शुक्र फुध ॊद्र शसन गुरु
शसनवाय शसन गुरु भॊगर सूमा शुक्र फुध ॊद्र शसन गुरु भॊगर सूमा शुक्र
द्र
ॊ भा फक होया सबी कामों के सरमे उत्तभ होती हैं ।
गुरु फक होया धासभाक कामा एवॊ त्रववाह के सरमे उत्तभ होती हैं ।
'मि नामास्तु ऩूज्मन्ते यभन्ते ति दे वता्। होती हैं । वेदों भें उल्रेख है फक दे व औय असुय सॊग्राभ
भें दे वों की त्रवजम प्रासद्ऱ फक काभना के सनसभत्त दे त्रव
बावाथा: जहाॉ स्त्री ऩूजी जाती है , उसका सम्भान होता है ,
इॊ द्राणी ने फहम्भत हाये हुए इॊ द्र के हाथ भें फहम्भत
वहाॉ दे व यभते हैं - वहाॉ दे वों का सनवास होता है ।' ऐसा
फॊधाने हे तु याखी फाॉधी थी। एवॊ दे वताओॊ की त्रवजम से
बगवान भनु का व न है ।
यऺाफॊधन का त्मोहाय शुरू हुआ। असबभन्मु की यऺा के
बायतीम सॊस्कृ सत स्त्री की ओय बोग की दृत्रद्श से
सनसभत्त कुॊताभाता ने उसे याखी फाॉधी थी।
न दे खकय ऩत्रवि दृत्रद्श से, भाॉ की बावना से दे खने का
इसी सॊफॊध भें एक औय फकॊवदॊ ती प्रससद्च है फक
आदे श दे ने वारी सवा श्रेद्ष बायतीम सॊस्कृ सत ही हैं ।
दे वताओॊ औय असुयों के मुद्च भें दे वताओॊ की त्रवजम को
हजायो वषा ऩूवा हभाये ऩूवज
ा ो नें बायतीम सॊस्कृ सत
रेकय कुछ सॊदेह होने रगा। तफ दे वयाज इॊ द्र ने इस मुद्च
भें यऺाफॊधन का उत्सव शामद इस सरमे शासभर फकमा
भें प्रभुखता से बाग सरमा था। दे वयाज इॊ द्र की ऩत्नी सगे बाइमों मा भुॉहफोरे बाइमों को यऺासूि फाॉधने रगीॊ।
इॊ द्राणी श्रावण ऩूत्णाभा के फदन गुरु फृहस्ऩसत के ऩास मह एक धभा-फॊधन था। यऺाफॊधन ऩवा ऩुयोफहतों द्राया
गई थी तफ उन्होंने त्रवजम के सरए यऺाफॊधन फाॉधने का फकमा जाने वारा आशीवााद कभा बी भाना जाता है । मे
सुझाव फदमा था। जफ दे वयाज इॊ द्र याऺसों से मुद्च कयने ब्राह्मणों द्राया मजभान के दाफहने हाथ भें फाॉधा जाता है ।
रे तफ उनकी ऩत्नी इॊ द्राणी ने इॊ द्र के हाथ भें यऺाफॊधन यऺाफॊधन का एक भॊि बी है , जो ऩॊफडत यऺा-सूि
फाॉधा था, त्जससे इॊ द्र त्रवजमी हुए थे। फाॉधते सभम ऩढ़ते हैं :
अनेक ऩुयाणों भें श्रावणी ऩूत्णाभा को ऩुयोफहतों
मेन फद्चो फरी याजा दानवेन्द्रो भहाफर्।
द्राया फकमा जाने वारा आशीवााद कभा बी भाना जाता
तेन त्वाॊ प्रसतफध्नासभ यऺे भा र भा र्॥
है । मे ब्राह्मणों द्राया मजभान के दाफहने हाथ भें फाॉधा
बत्रवष्मोत्तय ऩुयाण भें याजा फसर (श्रीयाभ रयत भानस के
जाता है ।
फासर नहीॊ) त्जस यऺाफॊधन भें फाॉधे गए थे, उसकी कथा
ऩुयाणों भें ऐसी बी भान्मता है फक भहत्रषा दव
ु ाासा
अक्सय उद्चत
ृ की जाती है । फसर के सॊफॊध भें त्रवष्णु के
ने ग्रहों के प्रकोऩ से फ ने हे तु यऺाफॊधन की व्मवस्था
ऩाॉ वें अवताय (ऩहरा अवताय भानवों भें याभ थे) वाभन
दी थी। भहाबायत मुग भें बगवान श्रीकृ ष्ण ने बी
की कथा है फक फसर से सॊकल्ऩ रेकय उन्होंने तीन
ऋत्रषमों को ऩूज्म भानकय उनसे यऺा-सूि फॉधवाने को
कदभों भें तीनों रोकों भें सफकुछ नाऩ सरमा था।
आवश्मक भाना था ताफक ऋत्रषमों के तऩ फर से बिों
वस्तुत् दो ही कदभों भें वाभन रूऩी त्रवष्णु ने सफकुछ
की यऺा की जा सके। ऐसतहाससक कायणों से भध्ममुगीन
नाऩ सरमा था औय फपय तीसये कदभ,जो फसर के ससय
बायत भें यऺाफॊधन का ऩवा भनामा जाता था। शामद
ऩय यखा था, उससे उसे ऩातार रोक ऩहुॉ ा फदमा था।
हभरावयों की वजह से भफहराओॊ के शीर की यऺा हे तु
रगता है यऺाफॊधन की ऩयॊ ऩया तफ से फकसी न फकसी
इस ऩवा की भहत्ता भें इजापा हुआ हो। तबी भफहराएॉ
रूऩ भें त्रवद्यभान थी।
धन वृत्रद्च फडब्फी
धन वृत्रद्च फडब्फी को अऩनी अरभायी, कैश फोक्स, ऩूजा स्थान भें यखने से धन वृत्रद्च होती हैं त्जसभें
कारी हल्दी, रार- ऩीरा-सपेद रक्ष्भी कायक हकीक (अकीक), रक्ष्भी कायक स्पफटक यत्न, 3 ऩीरी
कौडी, 3 सपेद कौडी, गोभती क्र, सपेद गुॊजा, यि गुॊजा, कारी गुॊजा, भामा जार, इत्मादी दर
ु ब
ा
वस्तुओॊ को शुब भहुता भें तेजस्वी भॊि द्राया असबभॊत्रित फकम जाता हैं ।
भूल्म भाि Rs-730 >> Order Now
तथा पसर खूफ होती है । जनता सुख-सभृत्रद्च प्राद्ऱ रोक भें कयते हैं । उनके ऩास सदै व त्स्थय रक्ष्भी होती
कयती है । इस व्रत के अनुद्षान से सबी व्रतीमों को ऩयभ है । इस व्रत के कयने के प्रबाव से उनके सभस्त कामा
श्रेम की प्रासद्ऱ होती है । व्रत कताा बगवत्कृ ऩा का बागी ससद्च होते हैं ।
फनकय इस रोक भें सफ सुख बोगता है औय अन्त भें मफद आधी यात के सभम योफहणी भें जफ
वैकुॊठ जाता है । कृ ष्णाद्शभी का व्रत कयने वारे के सबी कृ ष्णाद्शभी हो तो उसभें कृ ष्ण का अ न
ा औय ऩूजन
प्रकाय क्रेश दयू हो जाते हैं । उसका दख
ु -दरयद्रता से कयने से तीन जन्भों के ऩाऩों का नाश होता है । भहत्रषा
उद्चाय होता है । बृगु ने कहा है - जन्भाद्शभी, योफहणी औय सशवयात्रि मे
स्कन्द ऩुयाण भें उल्रेख हैं फक जो बी व्मत्रि ऩूवत्रा वद्चा ही कयनी ाफहए तथा सतसथ एवॊ नऺि के
इस व्रत के भहत्व को जानकय बी कृ ष्ण जन्भाद्शभी व्रत अन्त भें ऩायणा कयें । इसभें केवर योफहणी उऩवास ही
को नहीॊ कयता, वह भनुष्म जॊगर भें सऩा औय व्माघ्र ससद्च है ।
होता है । शास्त्रकायों नें श्रीकृ ष्ण-जन्भाद्शभी की यात्रि को
बत्रवष्म ऩुयाण उल्रेख हैं , फक कृ ष्ण जन्भाद्शभी भोहयात्रि कहा है । इस यात भें बगवान श्रीकृ ष्ण का
व्रत को जो भनुष्म नहीॊ कयता, वह क्रूय याऺस होता है । ध्मान, नाभ अथवा भॊि जऩते हुए जागयण कयने से
केवर अद्शभी सतसथ भें ही उऩवास कयना कहा गमा है । सॊसाय की भोह-भामा से आसत्रि दयू होती है । जन्भाद्शभी
मफद वही सतसथ योफहणी नऺि से मुि हो तो उसे के व्रत को व्रतयाज कहाॊ गमा है । क्मोफक, इस व्रत को
'जमॊती' नाभ से सॊफोसधत की जाएगी। ऩूणा त्रवसध-त्रवधान से कयने से भनुष्म को अनेक व्रतों से
त्रवसबन्न धभाशास्त्रों भें उल्रेख हैं , फक जो उत्तभ प्राद्ऱ होने वारे भहान ऩुण्म का पर केवर इस व्रत के
भनुष्म है । वे सनत्द्ळत रूऩ से जन्भाद्शभी व्रत को इस कयने से प्राद्ऱ हो जाता है ।
अभोद्य भहाभृत्मुॊजम कव
अभोद्य् भहाभृत्मुॊजम कव व उल्रेत्खत अन्म साभग्रीमों को शास्त्रोि त्रवसध-त्रवधान से त्रवद्रान
ब्राह्मणो द्राया सवा राख भहाभृत्मुॊजम भॊि जऩ एवॊ दशाॊश हवन द्राया सनसभात कव अत्मॊत
प्रबावशारी होता हैं ।
अभोद्य् भहाभृत्मुॊजम कव
अभोद्य् भहाभृत्मुॊजम
कव फनवाने हे तु:
अऩना नाभ, त्रऩता-भाता का नाभ, कव
गोि, एक नमा पोटो बेजे दत्ऺणा भाि: 10900
कव के त्रवषम भें असधक जानकायी हे तु गुरुत्व कामाारम भें सॊऩका कयें । >> Order Now
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e गुरुत्व ज्मोसतष 22 अगस्त 2020 | अॊक 1
गुरूदे व ने श्रीकृ ष्ण को आसशवााद दे ते हुवे कहाॊ वत्स ! तुम्हायी कीसता श्रोताओॊ को ऩत्रवि कयने वारी होगी औय
तुम्हाये द्राया अत्जात ऻान व त्रवद्या हय सभम उऩत्स्थत औय नवीन फनी यहकय सबीरोक भें तुम्हाये अबीद्श पर को
दे ने भें सभथा हों।"
कनकधाया मॊि
आज के बौसतक मुग भें हय व्मत्रि असतशीघ्र सभृद्च फनना ाहता हैं ।
कनकधाया मॊि फक ऩूजा अ न
ा ा कयने से व्मत्रि के जन्भों जन्भ के ऋण
औय दरयद्रता से शीघ्र भुत्रि सभरती हैं । मॊि के प्रबाव से व्माऩाय भें
उन्नसत होती हैं , फेयोजगाय को योजगाय प्रासद्ऱ होती हैं । कनकधाया मॊि
अत्मॊत दर
ु ब
ा मॊिो भें से एक मॊि हैं त्जसे भाॊ रक्ष्भी फक प्रासद्ऱ हे तु
अ क
ू प्रबावा शारी भाना गमा हैं । कनकधाया मॊि को त्रवद्वानो ने
स्वमॊससद्च तथा सबी प्रकाय के ऐद्वमा प्रदान कयने भें सभथा भाना हैं ।
आज के मुग भें हय व्मत्रि असतशीघ्र सभृद्च फनना ाहता हैं । धन प्रासद्ऱ
हे तु प्राण-प्रसतत्रद्षत कनकधाया मॊि के साभने फैठकय कनकधाया स्तोि का
ऩाठ कयने से त्रवशेष राब प्राद्ऱ होता हैं । इस कनकधाया मॊि फक ऩूजा अ न
ा ा कयने से ऋण औय दरयद्रता से शीघ्र
भुत्रि सभरती हैं । व्माऩाय भें उन्नसत होती हैं , फेयोजगाय को योजगाय प्रासद्ऱ होती हैं । जैसे श्री आफद शॊकया ामा द्वारा
कनकधाया स्तोि फक य ना कुछ इस प्रकाय की गई हैं , फक त्जसके श्रवण एवॊ ऩठन कयने से आस-ऩास के वामुभॊडर
भें त्रवशेष अरौफकक फदव्म उजाा उत्ऩन्न होती हैं । फठक उसी प्रकाय से कनकधाया मॊि अत्मॊत दर
ु ब
ा मॊिो भें से एक
मॊि हैं त्जसे भाॊ रक्ष्भी फक प्रासद्ऱ हे तु अ क
ू प्रबावा शारी भाना गमा हैं । कनकधाया मॊि को त्रवद्वानो ने स्वमॊससद्च तथा
सबी प्रकाय के ऐद्वमा प्रदान कयने भें सभथा भाना हैं । जगद्गरु
ु शॊकया ामा ने दरयद्र ब्राह्मण के घय कनकधाया स्तोि के
ऩाठ से स्वणा वषाा कयाने का उल्रेख ग्रॊथ शॊकय फदत्ग्वजम भें सभरता हैं । कनकधाया भॊि:- ॐ वॊ श्रीॊ वॊ ऐॊ ह्ीॊ-श्रीॊ
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दे वकी की फातें सुनकय मशोदा ने कहा "हे फहन! त्रवराऩ रूऩ भें आ गईं। फकसी प्रकाय वसुदेवजी गोकुर ऩहुॉ े
भत कयो। भैं बी गबावती हूॉ। मफद भुझे कन्मा हुई तो औय नॊद के घय भें प्रवेश कय उन्होंने अऩना ऩुि
तुभ अऩने ऩुि के फदरे उस कन्मा को रे रेना। इस तत्कार उन्हें दे फदमा औय उसके फदरे भें उनकी कन्मा
प्रकाय तुम्हाया ऩुि कॊस के हाथों भाया नहीॊ जाएगा।" रे री। वे तत्कार वहाॊ से वाऩस आकय कॊस के फॊदी
कॊस ने वाऩस आकय अऩने द्रायऩार से ऩूछा गृह भें ऩहुॉ गए।
"दे वकी कहाॉ है ? इस सभम वह फदखाई नहीॊ दे यही है ।" प्रात्कार जफ सबी याऺस ऩहये दाय सनद्रा से
तफ द्रायऩार ने कॊस से नम्रवाणी भें कहा "हे भहायाज! जागे तो कॊस ने द्रायऩार से ऩूछा फक अफ दे वकी के
आऩकी फहन जर रेने ताराफ ऩय गई हुई हैं ।" मह गबा से क्मा हुआ? इस फात का ऩता रगाकय भुझे
सुनते ही कॊस क्रोसधत हो उठा औय उसने द्रायऩार को फताओ। द्रायऩारों ने भहायाज की आऻा को भानते हुए
उसी स्थान ऩय जाने को कहा जहाॊ वह गई हुई है । कायागाय भें जाकय दे खा तो वहाॉ दे वकी की गोद भें एक
द्रायऩार की दृत्रद्श ताराफ के ऩास दे वकी ऩय ऩड़ी। तफ कन्मा थी। त्जसे दे खकय द्रायऩारों ने कॊस को सूस त
उसने कहा फक "आऩ फकस कायण से महाॉ आई हैं ।" फकमा, फकन्तु कॊस को तो उस कन्मा से बम होने रगा।
उसकी फातें सुनकय दे वकी ने कहा फक अत् वह स्वमॊ कायागाय भें गमा औय
"भेये घय भें जर नहीॊ था, भैं जर रेने उसने दे वकी की गोद से कन्मा को झऩट
जराशम ऩय आई हूॉ।" इसके ऩद्ळात सरमा औय उसे एक ऩत्थय की ट्टान ऩय
दे वकी अऩने घय की ओय री गई। ऩटक फदमा फकन्तु वह कन्मा त्रवष्णु की
कॊस ने ऩुन् द्रायऩार से कहा भामा से आकाश की ओय री गई औय
फक इस घय भें भेयी फहन की अॊतरयऺ भें जाकय त्रवद्युत के रूऩ भें
तुभ ऩूणत
ा ् यऺा कयो। अफ कॊस ऩरयत्णत हो गई।
को इतना बम रगने रगा फक बगवान त्रवष्णु ने आकाशवाणी
घय के बीतय दयवाजों भें त्रवशार कय कॊस से कहा फक "हे दद्श
ु ! तुझे
तारे फॊद कयवा फदए जैसे कोई भायने वारा गोकुर भें नॊद के घय
कायागाय हो औय दयवाजे के फाहय भें उत्ऩन्न हो क
ु ा है औय उसी से
दै त्मों औय याऺसों को ऩहये दायी के सरए तेयी भृत्मु सुसनत्द्ळत है । भेया नाभ
सनमुि कय फदमा। कॊस हय प्रकाय से अऩने तो वैष्णवी है , भैं सॊसाय के कताा
प्राणों को फ ाने के प्रमास कय यहा था। तफ बगवान त्रवष्णु की भामा से उत्ऩन्न
सबी प्रकाय के शुब भुहूता भें श्री कृ ष्ण का हुई हूॉ।" इतना कहकय वह स्वगा की ओय
जन्भ हुआ औय श्रीकृ ष्ण के प्रबाव से ही उसी ऺण री गई। उस आकाशवाणी को सुनकय कॊस
फन्दीगृह के दयवाजे स्वमॊ खुर गए। द्राय ऩय ऩहया दे ने क्रोसधत हो उठा। उसने नॊद के घय भें ऩूतना, केशी
वारे ऩहये दाय याऺस सबी भूत्च्छा त हो गए। दे वकी ने नाभक दै त्म, काल्मा्म इत्माफद फरवान याऺसों की
उसी ऺण अऩने ऩसत वसुदेव से कहा "हे स्वाभी! आऩ भृत्मु के आघात से कॊस अत्मसधक बमबीत हो गमा।
सनद्रा का त्माग कयें औय भेये इस ऩुि को गोकुर भें रे उसने द्रायऩारों को आऻा दी फक नॊद को तत्कार भेये
जाएॉ, वहाॉ इस ऩुि को नॊद गोऩ की धभाऩत्नी मशोदा को सभऺ उऩत्स्थत कयो। द्रायऩार नॊद को रेकय जफ
दे दें । उस सभम मभुनाजी ऩूणरू
ा ऩ से फाढ़ग्रस्त थीॊ, उऩत्स्थत हुए तफ कॊस ने नॊद से कहा फक मफद तुम्हें
फकन्तु जफ वसुदेवजी फारक कृ ष्ण को सूऩ भें रेकय अऩने प्राणों को फ ाना है तो ऩारयजात के ऩुष्ऩ रे
मभुनाजी को ऩाय कयने के सरए उतये उसी ऺण फारक राओ। मफद तुभ नहीॊ रा ऩाए तो तुम्हाया वध सनत्द्ळत
के यणों का स्ऩशा होते ही मभुनाजी अऩने ऩूवा त्स्थय है ।
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e गुरुत्व ज्मोसतष 26 अगस्त 2020 | अॊक 1
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भृत्मु के ऩद्ळात उनका भल्रमुद्च केशी के साथ हुआ। इस सॊसाय के सबी प्रात्णमों ने हषा ऩवा भनामा।
इस मुद्च भें श्रीकृ ष्ण औय फरदे व ने असॊ्म दै त्मों का इस कथा को सुनने के ऩद्ळात इॊ द्र ने नायदजी से
वध फकमा। फरयाभजी ने अऩने आमुध शस्त्र हर से औय कहा हे ऋत्रष इस कृ ष्ण जन्भाद्शभी का ऩूणा त्रवधान
कृ ष्ण ने सुदशान क्र से भाघ भास की शुक्र ऩऺ की फताएॊ एवॊ इसके कयने से क्मा ऩुण्म प्राद्ऱ होता है , इसके
सद्ऱभी को त्रवशार दै त्मों के सभूह का सवानाश फकमा। कयने की क्मा त्रवसध है ?
जफ अन्त भें केवर दयु ा ायी कॊस ही फ गमा तो कृ ष्ण नायदजी ने कहा हे इॊ द्र! बाद्रऩद भास की
ने कहा- हे दद्श
ु , अधभॉ, दयु ा ायी अफ भैं इस भहामुद्च कृ ष्णजन्भाद्शभी को इस व्रत को कयना ाफहए। उस फदन
स्थर ऩय तुझसे मुद्च कय तथा तेया वध कय इस सॊसाय ब्रह्म मा आफद सनमभों का ऩारन कयते हुए श्रीकृ ष्ण का
को तुझसे भुि कयाऊॉगा। मह कहते हुए श्रीकृ ष्ण ने स्थाऩन कयना ाफहए। सवाप्रथभ श्रीकृ ष्ण की भूसता स्वणा
उसके केशों को ऩकड़ सरमा औय कॊस को घुभाकय ऩृथ्वी करश के ऊऩय स्थात्रऩत कय द
ॊ न, धूऩ, ऩुष्ऩ, कभरऩुष्ऩ
ऩय ऩटक फदमा, त्जससे वह भृत्मु को प्राद्ऱ हुआ। कॊस के आफद से श्रीकृ ष्ण प्रसतभा को वस्त्र इत्माफद से सुसत्ज्जत
भयने ऩय दे वताओॊ ने शॊखघोष व ऩुष्ऩवृत्रद्श की। वहाॊ कय त्रवसधऩूवक
ा ऩूजन-अ न
ा कयना ाफहए। उऩवास की
उऩत्स्थत सभुदाम श्रीकृ ष्ण की जम-जमकाय कय यहा ऩूवा यात्रि को हल्का बोजन कयें औय ब्रह्म मा का ऩारन
था। कॊस की भृत्मु ऩय नॊद, दे वकी, वसुदेव, मशोदा औय कयना ाफहए।
सवा कामा ससत्रद्च कव के साथ भें तॊि यऺा कव के सभरे होने की वजह से ताॊत्रिक फाधाए दयू होती हैं , साथ ही
नकायात्भक शत्रिमो का कोइ कुप्रबाव धायण कताा व्मत्रि ऩय नहीॊ होता। इस कव के प्रबाव से इषाा-द्वेष यखने
वारे व्मत्रिओ द्राया होने वारे दद्श
ु प्रबावो से यऺा होती हैं ।
सवा कामा ससत्रद्च कव के साथ भें शिु त्रवजम कव के सभरे होने की वजह से शिु से सॊफॊसधत सभस्त ऩये शासनओ
से स्वत् ही छुटकाया सभर जाता हैं । कव के प्रबाव से शिु धायण कताा व्मत्रि का ाहकय कुछ नही त्रफगाड़
सकते।
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भॊि ससद्च दर
ु ब
ा साभग्री
कारी हल्दी:- 370, 550, 730, 1450, 1900 कभर गट्टे की भारा - Rs- 370
भामा जार- Rs- 251, 551, 751 हल्दी भारा - Rs- 280
धन वृत्रद्च हकीक सेट Rs-280 (कारी हल्दी के साथ Rs-550) तुरसी भारा - Rs- 190, 280, 370, 460
घोडे की नार- Rs.351, 551, 751 नवयत्न भारा- Rs- 1050, 1900, 2800, 3700 & Above
हकीक: 11 नॊग-Rs-190, 21 नॊग Rs-370 नवयॊ गी हकीक भारा Rs- 280, 460, 730
रघु श्रीपर: 1 नॊग-Rs-21, 11 नॊग-Rs-190 हकीक भारा (सात यॊ ग) Rs- 280, 460, 730, 910
नाग केशय: 11 ग्राभ, Rs-145 भूॊगे की भारा Rs- 1050, 1900 & Above
स्पफटक भारा- Rs- 235, 280, 460, 730, DC 1050, 1250 ऩायद भारा Rs- 1450, 1900, 2800 & Above
सपेद ॊदन भारा - Rs- 460, 640, 910 वैजमॊती भारा Rs- 190, 280, 460
यि (रार) ॊदन - Rs- 370, 550, रुद्राऺ भारा: 190, 280, 460, 730, 1050, 1450
भोती भारा- Rs- 460, 730, 1250, 1450 & Above त्रवधुत भारा - Rs- 190, 280
कासभमा ससॊदयू - Rs- 460, 730, 1050, 1450, & Above भूल्म भें अॊतय छोटे से फड़े आकाय के कायण हैं ।
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इन फातों से मशोदा को तयह-तयह के तका-त्रवतका होने रगे। क्मा भैं स्वप्न दे ख यही हूॉ! मा दे वताओॊ की कोई भामा
हैं मा भेयी फुत्रद्च ही व्माभोह हैं मा इस भेये कृ ष्ण का ही कोई स्वाबात्रवक प्रबावऩूणा भत्काय हैं । अन्त भें उन्होंने
मही दृढ़ सनद्ळम फकमा फक अवश्म ही इसी का भत्काय है औय सनद्ळम ही ईद्वय इसके रूऩ भें अवतरयत हुएॊ हैं । तफ
उन्होंने कृ ष्ण की स्तुसत की उस शत्रि स्वरुऩ ऩयब्रह्म को भैं नभस्काय कयती हूॉ। कृ ष्ण ने जफ दे खा फक भाता मशोदा
ने भेया तत्व ऩूणत
ा ् सभझ सरमा हैं तफ उन्होंने तुयॊत ऩुि स्नेहभमी अऩनी शत्रि रूऩ भामा त्रफखेय दी त्जससे मशोदा
ऺण भें ही सफकुछ बूर गई। उन्होंने कृ ष्ण को उठाकय अऩनी गोद भें उठा सरमा।
ऩरयवसतानी (ऩद्मा)एकादशी
तफ फसर ने अऩना ससय झुका सरमा औय भैंने बगवान त्रवष्णु का उस फदन ऩूजन कयना
अऩना ऩैय उसके भस्तक ऩय यख फदमा त्जससे भेया वह ाफहए। ऩरयवसतानी एकादशी के फदन ताॊफा, ाॊदी, ावर
बि ऩातार को रा गमा। फपय उसकी त्रवनती औय औय दही का दान कयना उस त है । यात्रि को जागयण
नम्रता को दे खकय भैंने कहा फक हे फसर! भैं सदै व अवश्म कयना ाफहए।
तुम्हाये सनकट ही यहूॊगा। त्रवयो न के ऩुि फसर के जो त्रवसधऩूवक
ा ऩरयवसतानी एकादशी का व्रत कयते
अनुयोध ऩय बाद्रऩद शुक्र एकादशी के फदन फसर के हैं , वे सफ ऩाऩों से भुि होकय स्वगा भें जाकय ॊद्रभा के
आश्रभ ऩय भेयी भूसता स्थात्रऩत हुई। सभान प्रकासशत होकय मश ऩाते हैं । जो ऩाऩनाशक इस
इसी प्रकाय दस
ू यी ऺीयसागय भें शेषनाग के ऩृद्ष कथा को ऩढ़ते मा सुनते हैं , उनको हजाय अद्वभेध मऻ
ऩय हुई! हे याजन! इस एकादशी को बगवान शमन का पर प्राद्ऱ होता है ।
कयते हुए कयवट रेते हैं , इससरए तीनों रोकों के स्वाभी ***
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॥ श्रीकृ ष्णस्तवयाज ॥
श्रीभहादे व उवा । नभस्ते नयकायाते नभस्ते भधुसूदन ।
नभस्ते रसरताऩाङ्ग नभस्ते नयकान्तक ॥११॥
शृणु दे त्रव प्रवक्ष्मासभ स्तोिभ ् ऩयभदर
ु ब
ा भ् ।
मज्ऻात्वा न ऩुनगाच्छे न्नयो सनयममातनाभ ् ॥१॥ नभ् ऩाऩहये शान नभ् सऩाबवाऩह ।
नभ् सम्बूतसवाात्भन्नभ् सम्बृतकौस्तुब ॥१२॥
नायदाम मत्प्रोिभ ् ब्रह्मऩुिेण धीभता ।
सनत्कुभाये ण ऩुया मोगीन्द्रगुरुवत्भाना ॥२॥ नभस्ते नमनातीत नभस्ते बमहायक ।
नभो त्रवसबन्नवेषाम नभ् श्रुसतऩथासतग ॥१३॥
श्रीनायद उवा ।
प्रसीद बगवन्भह्यभऻानात्कुत्ण्ठतात्भने । नभत्द्ळन्भूसताबेदेन सगात्स्थत्मन्तहे तवे ।
तवाॊसघ्रऩङ्कजयजोयासगणीॊ बत्रिभुत्तभाभ ् ॥३॥ त्रवष्णवे त्रिदशायासतत्जष्णवे ऩयभात्भने ॥१४॥
प्रसीद व्मिॊ त्रवस्तीणं त्रवस्तीणाानाभगो य । इसत हवनजऩा ााबेदतो त्रवष्णुऩूजा सनमतरृदमकभाा मस्तु
प्रसीदाद्रााद्राजातीनाॊ प्रसीदान्तान्तदासमनाभ ् ॥७॥ भन्िी स याम । स खरु सकरकाभान ् प्राप्म कृ ष्णान्त-
यात्भा जननभृसतत्रवभुिोऽत्मुत्तभाॊ बत्रिभेसत ॥१८॥
गुयोगायीम् सवेश प्रसीदानन्त दे फहनाभ ् ।
जम भाधव भामात्भन ् जम शाद्वतशङ्खबृत ् ॥८॥ गोगोऩगोत्रऩकावीतभ ् गोऩारभ ् गोषु गोप्रदभ ् ।
गोऩैयीड्क्मॊ गोसहस्रैनौसभ गोकुरनामकभ ् ॥१९॥
जम शङ्खधय श्रीभन ् जम नन्दकनन्दन ।
जम क्रगदाऩाणे जम दे व जनादा न ॥९॥ प्रीणमेदनमा स्तुत्मा जगन्नाथॊ जगन्भमभ ् ।
धभााथक
ा ाभभोऺाणाभाद्ऱमे ऩुरुषोत्तभ् ॥२०॥
जम यत्नवयाफद्चफकयीटाकान्तभस्तक ।
जम ऩत्ऺऩसतच्छामासनरुद्चाकाकयारुण ॥१०॥ ॥ इसत श्रीनायदऩञ् यािे श्रीकृ ष्णस्तवयाज् सम्ऩूण्ा ॥
श्माभॊ भहासुन्दयतासनधानॊ श्रीकृ ष्ण न्द्रॊ शयणभ ् गतोऽत्स्भ ॥१॥ ॐ ऩूणैद्वमाात्भने सशयसे स्वाहा ।
ॐ ऩूणाानन्दात्भने कव ाम हुॊ ।
भन्दादयोद्घण
ू त्रा वशारनेिॊ श्रीकृ ष्ण न्द्रॊ शयणभ ् गतोऽत्स्भ ॥३॥ ॐ ऩूणत
ा ेजात्भने नेिाभ्माॊ वौषट् ।
कोटीन्दर
ु ावण्मभुखायत्रवन्दॊ श्रीकृ ष्ण न्द्रॊ शयणभ ् गतोऽत्स्भ ॥४॥
इसत फदग्फन्ध्
भहाहा केमूयककङ्कणश्रीग्रैवेमहायावसरभुफद्रकासब् ।
त्रवस ियत्नोज्ज्वरफदव्मवासाप्रगीतयाभागुणरूऩरीरभ ् ।
भुहुभह
ुा ु ् प्रोफदतयोभहषं श्रीकृ ष्ण न्द्रॊ शयणभ ् गतोऽत्स्भ ॥७॥ सौन्दमासायभरयशङ्खवयाबमासन ।
सत्मासभेतभत्खरप्रदसभत्न्दये शभ ् ॥
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गामिी छॊ द्-, श्रीकृ ष्ण-ऩयभात्भा दे वता, क्रीॊ फीजॊ, श्रीॊ शत्रि्, ऐॊ कीरकॊ, ॐ व्माऩक्, भभ सभस्त-क्रेश-ऩरयहाथं, तुवग
ा -ा
प्राद्ऱमे, सौबाग्म वृद्चमथं जऩे त्रवसनमोग्।
ऋष्माफद न्मास्- श्रीवेदव्मास ऋषमे नभ् सशयसस, गामिी छॊ दसे नभ् भुखे, श्रीकृ ष्ण ऩयभात्भा दे वतामै नभ् रृफद, क्रीॊ फीजाम
नभ् गुह्य,े श्रीॊ शिमे नभ् नाबौ, ऐॊ कीरकाम नभ् ऩादमो, ॐ व्माऩकाम नभ् सवााङ्गे, भभ सभस्त क्रेश ऩरयहाथं, तुवग
ा ा
प्राद्ऱमे, सौबाग्म वृद्चमथं जऩे त्रवसनमोगाम नभ् अॊजरौ।
कय-न्मास्- ॐ ऐॊ श्रीॊ क्रीॊ अॊगुद्षाभ्माॊ नभ् प्राणवल्रबाम तजानीभ्माॊ स्वाहा, सौ् भध्मभाभ्माॊ वषट्, सौबाग्मदाम
अनासभकाभ्माॊ हुॊ श्रीकृ ष्णाम कसनत्रद्षकाभ्माॊ वौषट्, स्वाहा कयतरकयऩृद्षाभ्माॊ पट्।
अॊग-न्मास्- ॐ ऐॊ श्रीॊ क्रीॊ रृदमाम नभ्, प्राण वल्रबाम सशयसे स्वाहा, सौ् सशखामै वषट्, सौबाग्मदाम सशखामै कव ाम हुॊ,
श्रीकृ ष्णाम नेि-िमाम वौषट्, स्वाहा अस्त्राम पट्।
ध्मान्- "कृ ष्णॊ जगन्भऩहन-रुऩ-वणं, त्रवरोक्म रज्जाऽऽकुसरताॊ स्भयाढ्माभ ्। भधूक-भारा-मुत-कृ ष्ण-दे हॊ, त्रवरोक्म ासरॊग्म
हरयॊ स्भयन्तीभ ्।।"
बावाथा: सॊसाय को भुग्ध कयने वारे बगवान ् कृ ष्ण के रुऩ-यॊ ग को दे खकय प्रेभ ऩूणा होकय गोत्रऩमाॉ रज्जाऩूवक
ा व्माकुर होती हैं
औय भन-ही-भन हरय को स्भयण कयती हुई बगवान ् कृ ष्ण की भधूक-ऩुष्ऩों की भारा से त्रवबुत्रषत दे ह का आसरॊगन कयती हैं ।
उऩयोि सबी मॊिो को द्रादश भहा मॊि के रुऩ भें शास्त्रोि त्रवसध-त्रवधान से भॊि ससद्च ऩूणा प्राणप्रसतत्रद्षत एवॊ
ैतन्म मुि फकमे जाते हैं । त्जसे स्थाऩीत कय त्रफना फकसी ऩूजा अ न
ा ा-त्रवसध त्रवधान त्रवशेष राब प्राद्ऱ कय
सकते हैं ।
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॥सन्तानगोऩार स्तोि॥
ॐ श्रीॊ ह्ीॊ क्रीॊ ग्रौं दे वकीसुत गोत्रवन्द वासुदेव कामाकायणरूऩाम वासुदेवाम ते सदा ।
जगत्ऩते। नभासभ ऩुिराबाथा सुखदाम फुधाम ते ॥१५॥
दे फह भे तनमॊ कृ ष्ण त्वाभहॊ शयणॊ गत्॥ याजीवनेि श्रीयाभ यावणाये हये कवे ।
ॐ नभो बगवते वासुदेवाम । तुभ्मॊ नभासभ दे वेश तनमॊ दे फह भे हये ॥१६॥
सन्तानगोऩारस्तोिॊ अस्भाकॊ ऩुिराबाम बजासभ त्वाॊ जगत्ऩते ।
श्रीशॊ कभरऩिाऺॊ दे वकीनन्दनॊ हरयभ ् । दे फह भे तनमॊ कृ ष्ण वासुदेव यभाऩते ॥१७॥
सुतसॊप्राद्ऱमे कृ ष्णॊ नभासभ भधुसूदनभ ् ॥१॥ श्रीभासननीभान ोय गोऩीवस्त्राऩहायक ।
नभाम्महॊ वासुदेवॊ सुतसॊप्राद्ऱमे हरयभ ् । दे फह भे तनमॊ कृ ष्ण वासुदेव जगत्ऩते ॥१८॥
मशोदाङ्कगतॊ फारॊ गोऩारॊ नन्दनन्दनभ ् ॥२॥ अस्भाकॊ ऩुिसॊप्रासद्ऱॊ कुरुष्व मदन
ु न्दन ।
अस्भाकॊ ऩुिराबाम गोत्रवन्दॊ भुसनवत्न्दतभ ् । यभाऩते वासुदेव भुकुन्द भुसनवत्न्दत ॥१९॥
नभाम्महॊ वासुदेवॊ दे वकीनन्दनॊ सदा ॥३॥ वासुदेव सुतॊ दे फह तनमॊ दे फह भाधव ।
गोऩारॊ फडम्बकॊ वन्दे कभराऩसतभच्मुतभ ् । ऩुिॊ भे दे फह श्रीकृ ष्ण वत्सॊ दे फह भहाप्रबो॥२०॥
ऩुिसॊप्राद्ऱमे कृ ष्णॊ नभासभ मदऩ
ु ुङ्गवभ ् ॥४॥ फडम्बकॊ दे फह श्रीकृ ष्ण आत्भजॊ दे फह याघव ।
ऩुिकाभेत्रद्शपरदॊ कञ्जाऺॊ कभराऩसतभ ् । बिभन्दाय भे दे फह तनमॊ नन्दनन्दन ॥२१॥
दे वकीनन्दनॊ वन्दे सुतसम्प्राद्ऱमे भभ ॥५॥ नन्दनॊ दे फह भे कृ ष्ण वासुदेव जगत्ऩते ।
ऩद्माऩते ऩद्मनेिे ऩद्मनाब जनादा न । कभरनाथ गोत्रवन्द भुकुन्द भुसनवत्न्दत ॥२२॥
दे फह भे तनमॊ श्रीश वासुदेव जगत्ऩते ॥६॥ अन्मथा शयणॊ नात्स्त त्वभेव शयणॊ भभ ।
मशोदाङ्कगतॊ फारॊ गोत्रवन्दॊ भुसनवत्न्दतभ ् । सुतॊ दे फह सश्रमॊ दे फह सश्रमॊ ऩुिॊ प्रदे फह भे ॥२३॥
अस्भाकॊ ऩुि राबाम नभासभ श्रीशभच्मुतभ ् ॥७॥ मशोदास्तन्मऩानऻॊ त्रऩफन्तॊ मदन
ु न्दनभ ् ।
श्रीऩते दे वदे वेश दीनासताहायणाच्मुत । वन्दे ऽहॊ ऩुिराबाथं कत्रऩराऺॊ हरयॊ सदा ॥२४॥
गोत्रवन्द भे सुतॊ दे फह नभासभ त्वाॊ जनादा न ॥८॥ नन्दनन्दन दे वेश नन्दनॊ दे फह भे प्रबो ।
बिकाभद गोत्रवन्द बिॊ यऺ शुबप्रद । यभाऩते वासुदेव सश्रमॊ ऩुिॊ जगत्ऩते ॥२५॥
दे फह भे तनमॊ कृ ष्ण रुत्क्भणीवल्रब प्रबो ॥९॥ ऩुिॊ सश्रमॊ सश्रमॊ ऩुिॊ ऩुिॊ भे दे फह भाधव ।
रुत्क्भणीनाथ सवेश दे फह भे तनमॊ सदा । अस्भाकॊ दीनवाक्मस्म अवधायम श्रीऩते ॥२६॥
बिभन्दाय ऩद्माऺ त्वाभहॊ शयणॊ गत् ॥१०॥ गोऩार फडम्ब गोत्रवन्द वासुदेव यभाऩते ।
दे वकीसुत गोत्रवन्द वासुदेव जगत्ऩते । अस्भाकॊ फडम्बकॊ दे फह सश्रमॊ दे फह जगत्ऩते ॥२७॥
दे फह भे तनमॊ कृ ष्ण त्वाभहॊ शयणॊ गत् ॥११॥ भद्वात्ञ्छतपरॊ दे फह दे वकीनन्दनाच्मुत ।
वासुदेव जगद्रन्द्य श्रीऩते ऩुरुषोत्तभ । भभ ऩुिासथातॊ धन्मॊ कुरुष्व मदन
ु न्दन ॥२८॥
दे फह भे तनमॊ कृ ष्ण त्वाभहॊ शयणॊ गत् ॥१२॥ मा ेऽहॊ त्वाॊ सश्रमॊ ऩुिॊ दे फह भे ऩुिसॊऩदभ ्।
कञ्जाऺ कभरानाथ ऩयकारुत्णकोत्तभ । बिस न्ताभणे याभ कल्ऩवृऺ भहाप्रबो ॥२९॥
दे फह भे तनमॊ कृ ष्ण त्वाभहॊ शयणॊ गत् ॥१३॥ आत्भजॊ नन्दनॊ ऩुिॊ कुभायॊ फडम्बकॊ सुतभ ् ।
रक्ष्भीऩते ऩद्मनाब भुकुन्द भुसनवत्न्दत । अबाकॊ तनमॊ दे फह सदा भे यघुनन्दन ॥३०॥
दे फह भे तनमॊ कृ ष्ण त्वाभहॊ शयणॊ गत् ॥१४॥ वन्दे सन्तानगोऩारॊ भाधवॊ बिकाभदभ ् ।
॥ श्रीकृ ष्णाद्शोत्तयशतनाभस्तोिभ ् ॥
अस्म श्रीकृ ष्णाद्शोत्तयशतनाभस्तोिस्म श्रीशेष ऋत्रष । अनुद्शुऩ ् छन्द् । श्रीकृ ष्णो दे वता । श्रीकृ ष्णप्रीत्मथे
श्रीकृ ष्णाद्शोतयशतनाभजऩे त्रवसनमोग् ॥ शेष उवा ।
श्रीकृ ष्ण् कभरानाथो वासुदेव् सनातन् । वासुदेवात्भज् ऩुण्मो रीराभानुषत्रवग्रह् ॥१॥
श्रीवत्सकौस्तुबधयो मशोदावत्सरो हरय् । तुबज
ुा ात्त क्रससगदाशॊखाद्युदामुध् ॥२॥
दे वकीनॊदन् श्रीशो नॊदगोऩत्रप्रमात्भज् । मभुनावेगसॊहायी फरबद्रत्रप्रमानुज् ॥३॥
ऩूतनाजीत्रवतहय् शकटासुयबॊजन् । नॊदव्रजजनानॊदी सत्च् दानॊदत्रवग्रह् ॥४॥
नवनीतनवाहायी भु क
ु ॊ दप्रसादक् । षोडशस्त्रीसहस्त्रेशत्स्त्रबॊगी भधुयाकृ सत् ॥५॥
शुकवागभृताब्धीॊदग
ु ोत्रवॊदो गोत्रवॊदाॊ ऩसत् । वत्सऩारनसॊ ायी धेनुकासुयबॊजन् ॥६॥
तृणीकृ ततृणावतो मभराजुन
ा बॊजन् । उत्तारतारबेत्ता तभारश्माभराकृ सत् ॥७॥
गोऩगोऩीद्वयो मोगी सूमक
ा ोफटसभप्रब् । इराऩसत् ऩयॊ ज्मोसतमाादवेंद्रो मदद्र
ू ह् ॥८॥
वनभारी ऩीतवासा् ऩारयजाताऩहायक् । गोवधाना रोद्चताा गोऩार् सवाऩारक् ॥९॥
अजो सनयॊ जन् काभजनक् कञ्जरो न् । भधुहाभथुयानाथो द्रायकानामको फरी ॥१०॥
वृन्दावनाॊत्सॊ ायी तुरसीदाभबूषण् । स्मभॊतकभणेहाताा नयनायामणात्भक् ॥११॥
कुब्जाकृ ष्णाॊफयधयो भामी ऩयभऩूयष् । भुत्रद्शकासुय ाणूयभल्रमुद्चत्रवशायद् ॥१२॥
सॊसायवैयी कॊसारयभुया रयनायकाॊतक् । अनाफदब्राह्म ायी कृ ष्णाव्मसनकषाक् ॥१३॥
सशशुऩारसशयश्छे त्ता दम
ु ोधनकुराॊतकृ त ् । त्रवदयु ाक्रूयवयदो त्रवद्वरूऩप्रदशाक् ॥१४॥
सत्मवाक् सत्मसॊकल्ऩ् सत्मबाभायतो जमी । सुबद्राऩूवज
ा ो त्रवष्णुबॉष्भभुत्रिप्रदामक् ॥१५॥
जगद्गुरुजागन्नाथो वेणुवाद्यत्रवशायद् । वृषबासुयत्रवध्वॊसी फाणासुयफराॊतकृ त ् ॥१६॥
मुसधत्रद्षयप्रसतद्षाता फफहा फहाावतॊसक् । ऩाथासायसथयव्मिो गीताभृतभहोदसध् ॥१७॥
कारीमपत्णभात्णक्मयॊ त्जतश्रीऩदाॊफुज् । दाभोदय मऻबोिा दानवेन्द्रात्रवनाशन् ॥१८॥
नायामण् ऩयब्रह्म ऩन्नगाशनवाहन् । जरफक्रडासभासिगोऩीवस्त्राऩहायक् ॥१९॥
ऩुण्मद्ऴोकस्तीथाकयो वेदवेद्यो दमासनसध् । सवातीथाात्भक् सवाग्रहरूऩ् ऩयात्ऩय् ॥२०॥
इत्मेवॊ कृ ष्णदे वस्म नाम्नभद्शोत्तयॊ शतभ ् । कृ ष्णेन कृ ष्णबिेन श्रुत्वा गीताभृतॊ ऩुया ॥२१॥
स्तोिॊ कृ ष्णत्रप्रमकयॊ कृ तॊ तस्भान्भमा ऩुया । कृ ष्णनाभाभृतॊ नाभ ऩयभानॊददामकभ ् ॥२२॥
अत्मुऩद्रवद्ु खघ्नॊ ऩयभामुष्मवधानभ ् । दानॊ श्रुतॊ तऩस्तीथं मत्कृ तॊ त्त्वह जन्भसन ॥२३॥
ऩठताॊ श्रृण्वताॊ व
ै कोफटकोफटगुणॊ बवेत ् ऩुिप्रदभऩुिाणाभगतीनॊ गसतप्रदभ ् ॥२४॥
धनावहॊ दरयद्राणाॊ जमेच्छूनाॊ जमावहभ ् । सशशूनाॊ गोकुरानाॊ ऩुत्रद्शदॊ ऩुत्रद्शवधानभ ् ॥२५॥
वातग्रहज्वयदीनाॊ शभनॊ शाॊसतभुत्रिदभ ् । सभस्तकाभदॊ सद्य् कोसतजन्भाघनाशनभ ् ॥२६॥
अन्ते कृ ष्णस्भयणदॊ बवताबमाऩहभ ्। कृ ष्णाम मादवेंद्राम ऻानभुद्राम मोसगने। नाथाम रुत्क्भणीशाम नभो
वेदाॊतवेफदने॥२७॥
इभ भन्िॊ भहादे व जऩन्नेव फदवासनशभ ् । सवाग्रहानुग्रहबाक् सवात्रप्रमतभो बवेत ् ॥२८॥
ऩुिऩौिै् ऩरयवृत् सवाससत्रद्चसभृत्रद्चभान ् । सनत्रवश्म बोगानॊतेऽत्रऩ कृ ष्णसामुज्मभाप्नुमात ् ॥२९॥
॥इसत श्रीनायदऩ यािे ऻानाभृतसाये उभाभहे द्वयसॊवादान्तगातधयणीशेषसॊवादे श्रीकृ ष्णाद्शोत्तयशतनाभस्तोिॊ सॊऩूणभ
ा ्॥
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मदा तदा मथा तथा तथैव कृ ष्णसत्कथा, भमा सदै व गीमताॊ तथा कृ ऩा त्रवधीमताभ ्।
प्रभात्णकाद्शकद्रमॊ जऩत्मधीत्म म् ऩुभान, बवेत्स नन्दनन्दने बवे बवे सुबत्रिभान॥९॥
भधुयास्टकभ
अधयभ भधुयभ वदनभ भधुयभनमनभ भधुयभ हससतभ भधुयभ वसभतॊ भधुयॊ, शसभतॊ भधुयॊ, भधुयसधऩतेयत्खरॊ भधुयभ ् ॥ ५॥
रृदमभ भधुयभ गभनभ भधुयभभधुयासधऩतेय अत्खरभ भधुयभ॥१॥ गुञ्जा भधुया, भारा भधुया, मभुना भधुया, वी ी भधुया ।
व नॊ भधुयॊ, रयतॊ भधुयॊ, वसनॊ भधुयॊ, वसरतॊ भधुयभ ् । ससररॊ भधुयॊ, कभरॊ भधुयॊ, भधुयसधऩतेयत्खरॊ भधुयभ ् ॥ ६॥
सरतॊ भधुयॊ, भ्रसभतॊ भधुयॊ, भधुयासधऩतेयत्खरॊ भधुयभ ् ॥ २॥ गोऩी भधुया, रीरा भधुया, मुिॊ भधुयॊ, भुिॊ भधुयभ ् ।
वेणुभध
ा ुयो ये णुभध
ा ुय्, ऩात्णभाधुय्, ऩादौ भधुयौ । दृद्शॊ भधुयॊ, सशद्शॊ भधुयॊ, भधुयसधऩतेयत्खरॊ भधुयभ ् ॥ ७॥
नृत्मॊ भधुयॊ, स्मॊ भधुयॊ, भधुयासधऩतेयत्खरॊ भधुयभ ् ॥ ३॥ गोऩा भधुया, गावो भधुया, मत्रद्शभाधुया, सृत्रद्शभाधुया ।
गीतॊ भधुयॊ, ऩीतॊ भधुयॊ, बुिॊ भधुयॊ, सुद्ऱॊ भधुयभ ् । दसरतॊ भधुयॊ, पसरतॊ भधुयॊ, भधुयसधऩतेयत्खरॊ भधुयभ ् ॥ ८॥
रूऩॊ भधुयॊ, सतरकॊ भधुयॊ, भधुयसधऩतेयत्खरॊ भधुयभ ् ॥ ४॥
॥ इसत श्रीभद् वल्रबा ामात्रवयस तॊ भधुयाद्शकॊ सम्ऩूणभ
ा ्॥
कयणॊ भधुयॊ, तयणॊ भधुयॊ, हयणॊ भधुयॊ, यभणॊ भधुयभ ् ।
॥ गोऩी गीत ॥
कस्तूयी सतरकॊ रराट ऩटरे वऺ: स्थरे कौस्तुबॊ। यहसस सॊत्रवदो मा रृफदस्ऩृश् कुहक
नासाग्रे वयभौत्रिकॊ कयतरे वेणु: कये कॊकणॊ॥ नो भन् ऺोबमत्न्त फह॥१०॥
तव कथाभृतॊ तद्ऱजीवनॊ कत्रवसबयीफडतॊ कल्भषाऩहभ ्। मत्ते सुजात यणाम्फुरुहॊ स्तनेषु बीता् शनै् त्रप्रम दधीभफह
श्रवणभङ्गरॊ श्रीभदाततॊ बुत्रव गृणत्न्त ते बूरयदा जना्॥९॥ ककाशेषु।
तेनाटवीभटसस तद्धव्मथते न फकॊत्स्वत ् कूऩााफदसबभ्राभसत
प्रहससतॊ त्रप्रम प्रेभवीऺणॊ त्रवहयणॊ ते ध्मानभङ्गरभ ्। धीबावदामुषाॊ न्॥ १९ ॥
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e गुरुत्व ज्मोसतष 52 अगस्त 2020 | अॊक 1
तन्नोऽनङ्ग् प्र ोदमादे षाॊ भाॊ ऩातु ोध्वात् ॥३०॥ ऩुष्ऩाॊजल्मद्शकॊ दत्त्वा भूरेनैव ऩठे त्सकृ त ् ।
इसत ते कसथतॊ त्रवप्र ब्रह्म भॊिौघत्रवग्रहभ ् । दशवषासहस्त्राणी ऩूजामा् परभाप्नुमात ् ॥३७॥
िैरोक्मभॊगरॊ नाभ कव ॊ ब्रह्मरूऩकभ ् ॥३१॥
बूजे त्रवसर्माॊगुसरकाॊ स्वणास्थाॊ धायमेद्यफद ।
ब्रह्मणा कसथतॊ ऩूवं नायामणभुखाच्रतभ ् ।
कॊठे वा दत्ऺणे फाहौ सोऽत्रऩ त्रवष्णुना सॊशम् ॥३८॥
तव स्नेहान्भमाऽऽ्मातॊ प्रविव्मॊ न कस्मस त ् ॥३२॥
अद्वभेधसहस्त्रात्ण वाजऩेमशतासन ।
गुरुॊ प्रणम्म त्रवसधवत्कव ॊ प्रऩठे त्तत् ।
सकृ द् फद्रत्स्त्रमाथाऻानॊ स फह सवातऩोभम् ॥३३॥ भहादानासन मान्मेव प्रादत्ऺण्मॊ बुवस्तथा ॥३९॥
भॊिेषु सकरेष्वेव दे सशको नाि सॊशम् । कराॊ नाहा त्न्त तान्मेव सकृ दच्ु ायणात्तत् ।
शतभद्शोत्तयॊ ास्म ऩुयद्ळमात्रवसध् स्भृत् ॥३४॥ कव स्म प्रसादे न जीवन्भुिो बवेन्नय् ॥४०॥
स्ऩधााभुद्धूम सततॊ रक्ष्भीवााणी वसेत्तत् ॥३६॥ इसत श्रीनायदऩॊ यािे ऻानाभृतसाये िैरोक्मभॊगरकव ॊ
सॊऩूणभ
ा ्।
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ब्रह्मा यस त कृ ष्णस्तोि
ब्रह्मोवा : सत्न्त त्रवद्वेश त्रवधमो हे त्रवद्वेद्वय भाधव ॥६॥
दष्ु कीसताजरऩूणे दष्ु ऩाये फहुसॊकटे ॥१॥ तथाऽत्रऩ न स्ऩृहा काभे त्वद्भत्रिव्मवधामके ॥७॥
बत्रित्रवस्भृसतफीजे त्रवऩत्सोऩानदस्
ु तये । हे नाथ करुणाससन्धो दीनफन्धो कृ ऩाॊ कुरु।
अतीव सनभारऻान ऺु्-प्रच्छन्नकायणे ॥२॥ त्वॊ भहे श भहाऻाता द्ु स्वप्नॊ भाॊ न दशाम ॥८॥
स्वमॊ त्व कणाधाय् प्रसीद भधुसूदन ॥५॥ इह रोके बत्रिमुिो भद्भिप्रवयो बवेत ् ॥११॥
भफद्रधा् कसतस न्नाथ सनमोज्मा बवकभात्ण। ॥ इसत श्रीब्रह्मदे वकृ तॊ कृ ष्णस्तोिॊ सम्ऩूणभ
ा ॥्
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श्रीकृ ष्णाद्शकभ ्
ऩावात्मुवा - भुयरीवादनाधायी याधामै प्रीसतभावहन।्
कैराससशखये यम्मे गौयी ऩृच्छसत शॊकयभ।् अॊशाॊशेभ्म् सभुन्भील्म ऩूणरू
ा ऩकरामुत्॥१२॥
ब्रह्माण्डात्खरनाथस्त्वॊ सृत्रद्शसॊहायकायक्॥१॥ श्रीकृ ष्ण न्द्रो बगवान्नन्दगोऩवयोद्यत्।
त्वभेव ऩूज्मसेरौकै ब्राह्मत्रवष्णुसयु ाफदसब्। धरयणीरूत्रऩणी भाता मशोदानन्ददासमनी॥१३॥
सनत्मॊ ऩठसस दे वेश कस्म स्तोिॊ भहे द्वय्॥२॥ द्राभ्माॊ प्रामास तो नाथो दे वक्माॊ वसुदेवत्।
आद्ळमासभदभत्मन्तॊ जामते भभ शॊकय। ब्रह्मणाऽभ्मसथातो दे वो दे वयै त्रऩ सुयेद्वरय॥१४॥
तत्प्राणेश भहाप्राऻ सॊशमॊ सछत्न्ध शॊकय॥३॥ जातोऽवन्माॊ भुकुन्दोऽत्रऩ भुयरीवेदये स का।
श्री भहादे व उवा - तमासाद्चा व ्कृ त्वा ततो जातो भहीतरे॥१५॥
धन्मासस कृ तऩुण्मासस ऩावासत प्राणवल्रबे। सॊसायसायसवास्वॊ श्माभरॊ भहदज्
ु ज्वरभ।्
यहस्मासतयहस्मॊ मत्ऩृच्छसस वयानने॥४॥ एतज्ज्मोसतयहॊ वेद्यॊ स न्तमासभ सनातनभ॥१६॥
्
स्त्रीस्वबावान्भहादे त्रव ऩुनस्त्वॊ ऩरयऩृच्छसस। गौयतेजो त्रफना मस्तु श्माभतैज् सभ म
ा ेत।्
गोऩनीमॊ गोऩनीमॊ गोऩनीमॊ प्रमत्नत्॥५॥ जऩेद्रा ध्मामते वात्रऩ स बवेत्ऩातकी सशवे॥१७॥
दत्ते ससत्रद्चहासन् स्मात्तस्भाद्यत्नेन गोऩमेत।् स ब्रह्महासुयाऩी स्वणास्तेमी ऩॊ भ्।
इदॊ यहस्मॊ ऩयभॊ ऩुरुषाथाप्रदामकभ॥६॥
् एतैदोषैत्रवासरप्मे तेजोबेदान्भहे द्वरय।१८॥
धनयत्नौघभात्णक्मॊ तुयॊगॊ गजाफदकभ।् तस्भाज्ज्मोसतयबूद्धद्रे धा याधाभाधवरूऩकभ।्
ददासत स्भयणादे व भहाभोऺप्रदामकभ॥७॥
् तस्भाफददॊ भहादे त्रव गोऩारेनव
ै बात्रषतभ॥१९॥
्
तत्तेऽहॊ सॊप्रवक्ष्मासभ श्रृणष्ु वावफहता त्रप्रमे। दव
ु ााससो भुनेभोहे कासताक्माॊ यासभण्डरे।
मोऽसौ सनयॊ जनो दे वत्द्ळत्स्वरूऩी जनादा न्॥८॥ तत् ऩृद्शवती याधा सन्दे हॊ बेदभात्भन्॥२०॥
सॊसायसागयोत्तायकायणाम सदा नृणाभ।् सनयॊ जनात्सभुत्ऩन्नॊ भमाऽधीतॊ जगन्भसम।
श्रीयॊ गाफदकरूऩेण िैरोक्मॊ व्माप्म सतद्षसत॥९॥ श्रीकृ ष्णेन तत् प्रोिॊ याधामै नायदाम ॥२१॥
ततो रोका भहाभूढा त्रवष्णुबत्रित्रववत्जाता्। ततो नायदत् सवा त्रवयरा वैष्णवास्तथा।
सनद्ळमॊ नासधगच्छत्न्त ऩुननाायामणो हरय्॥१०॥ करौ जानत्न्त दे वेसश गोऩनीमॊ प्रमत्नत्॥२२॥
सनयॊ जनो सनयाकायो बिानाॊ प्रीसतकाभद्। शठाम कृ ऩणामाथ दात्म्बकाम सुयेद्वरय।
वृदावनत्रवहायाम गोऩारॊ रूऩभुद्रहन॥११॥
् ब्रह्महत्माभवाप्नोसत तस्भाद्यत्नेन गोऩमेत॥२३॥
्
इसभें मोगभ्रद्श ऩुरुष की गसत औय मोगी ऩुरुष की इसभें त्रवऻान के प्रबावसफहत ऻान की भहत्ता का वणान
भफहभा का वणान फकमा गमा हैं । फकमा गमा हैं ।
श्रीकृ ष्ण अजुन
ा से इस जगत की उत्ऩत्रत्त का वणान
सातवें अध्माम का भहत्व कयते हैं ।
सातवें अध्माम को ऻान त्रवऻान मोग नाभ फदमा गामा है । बगवान का सतयस्काय कयने वारे, आसुयी प्रकृ सत के रोग
इसके 30 द्ऴोकों भें श्रीकृ ष्ण सनयऩेऺ बाव से एवॊ दै वी प्रकृ सत वारे बि बजन का प्रकाय का वणान
अजुन
ा को अवगत कयाते हैं । इसभें सवाव्माद्ऱ बगवान के स्वरूऩ का वणान फकमा
सभस्त ऩदाथों भें बगवान की व्माऩकता का वणान इसभें सकाभ औय सनष्काभ त्रव ायों का वणान, उऩासना
आसुयी स्वबाव वारें रोगों की सनॊदा औय बगवान के इसभें बगवान की सनष्काभ बत्रि का पर एवॊ भफहभा
बिों की प्रशॊसा का वणान फकमा गमा हैं । का वणान फकमा गमा हैं ।
आठवें अध्माम को अऺयब्रह्म मोग नाभ फदमा गामा है । के अॊत का कायण फन जाते हैं ।
के ससद्चाॊत से अवगत कयाते हैं । श्रीकृ ष्ण फताते हैं कैसे बाव, सॊकल्ऩ एवॊ अऩनी मोगशत्रि से सात भहत्रषा वसशद्ष,
भृत्मु से ऩहरे व्मत्रि के त्रव ाय एवॊ आध्मात्त्भक सॊसाय त्रवद्वासभि, कण्व, बायद्राज, अत्रि, वाभदे व औय शौनक तथा
तथा नयक औय स्वगा को जाने की त्स्थती का वणान ाय उनसे बी ऩूवा भें उत्ऩन्न होने वारे सनक, सनन्दन,
कयते हैं । सनातन व सनत्कुभाय तथा तथा स्वामम्बुव, स्वयोस ष,
इसभें अजुन
ा ब्रह्म, अध्मात्भ औय कभााफद के सॊफॊध भें
सात प्रद्ल कयते हैं त्जसका उत्तय श्रीकृ ष्ण दे ते हैं ।
इसभें ऩयभ ऩुरुष की प्रासद्ऱ एवॊ बत्रि मोग का वणान
फकमा गमा हैं ।
इसभें श्रीकृ ष्ण अजुन
ा को शुक्र भागा औय कृ ष्ण भागा से
अवगत कयाते हैं ।
उत्तभ (औत्तभ), ताभस, यै वत, ाऺुष, वैवस्वत, सावत्णा, वणान तथा तुबज
ुा भें दशान कयाकय वाऩस अऩने सौम्म
दऺसावत्णा, ब्रह्मसावत्णा, धभासावत्णा, रुद्रसावत्णा, दे व रूऩ आने का प्रसॊग वत्णात हैं ।
सावत्णा, इन्द्रसावत्णा इस सबी ौदह भनु को बी अऩनी इसभें बगवान द्राया तुबज
ुा रूऩ के दशान की दर
ु ब
ा ता
मोगशत्रि से उत्ऩन्न फकमा है । य औय अ यरूऩ व्माद्ऱ एवॊ उसका प्रबाव पर के फाये भें उल्रेख फकमा गमा हैं ।
सबी प्रजा इस सफ के द्राया सभग्र सॊसाय भें उत्ऩन्न
हुई हैं । फायहवें अध्माम का भहत्व
बत्रिमोग का पर औय प्रबाव सफहत कथन का वणान फायहवें अध्माम को बत्रि मोग नाभ फदमा गामा है ।
फकमा गमा है । इसके 20 द्ऴोकों भें श्रीकृ ष्ण अजुन
ा को अध्माम भें
अजुन
ा द्राया बगवान श्रीकृ ष्ण की स्तुसत तथा त्रवबूसत बगवान बत्रि के भागा की भफहभा फताते हैं एवॊ बत्रि
औय मोगशत्रि को जानने का वणान फकमा गमा है । मोग का वणान सभझाते हैं ।
इस भें बगवान श्रीकृ ष्ण द्राया अऩनी त्रवबूसतमों औय इसभें साकाय औय सनयाकाय के उऩासकों की श्रेद्षता,
मोगशत्रि का वणा कयते है । कफठनता, ध्मान, कभा तथा त्माग के सनणाम औय
बगवत्प्रासद्ऱ के उऩाम का वणान फकमा गमा हैं ।
ग्मायहवें अध्माम का भहत्व इसभें बि के रऺण एवॊ उनकी भफहभा का वणान फकमा
गामा है ।
इसके 55 द्ऴोकों भें अजुन
ा के सनवेदन ऩय श्रीकृ ष्ण तेयहवें अध्माम का भहत्व
अऩना त्रवद्वरूऩ धायण कय रेते हैं । तेयहवें अध्माम को ऺेि ऺेिऻ मोग नाभ फदमा गामा है ।
सॊजम द्राया धृतयाद्स को श्रीकृ ष्ण के त्रवद्वरूऩ की भफहभा इसके 35 द्ऴोकों भें श्रीकृ ष्ण अजुन
ा को ऺेि औय ऺेिऻ
का वणान कयते है । के ऻान के फाये भें फताते है तथा सत्व, यज औय तभ
अजुन
ा ने जफ बगवान के त्रवद्वरूऩ का दे खा, तो त्रवद्वरूऩ गुणों द्राया उत्तभ शयीय भें जन्भ रेने का उऩाम फताते हैं ।
की स्तुसत की, बगवान का साभथ्मा एवॊ प्रबाव को जाना, इस भें ऺेि एवॊ ऺेिऻ का रऺण एवॊ स्वरुऩ, त्रवकाय,
तीनों सेनाओॊ के सबी मोद्चाओॊ को बगवान के त्रवयाट गुण, वैयाग्म, ऻान-अऻान इत्माफद का वणान फकमा गमा है ।
भुख भें प्रवेश होने का वणान हैं । प्रकृ सत द्राया उद्ऱन्न त्रवसबन्न त्रवकाय गणों की उत्ऩत्रत्त
इसभें बगवान द्राया अऩने फदव्म प्रबाव का वणान औय त्रवसबन्न दे हों की प्रासद्ऱ, ध्मान मोग, ऻान मोग एवॊ कभा
अजुन
ा को मुद्च के सरए उत्साफहत कयने का वणान मोग से ऺेि की प्रासद्ऱ एवॊ ऺेिऻ भें बेद आफद का वणान
सभरता हैं । फकमा गमा है ।
बमबीत होकय अजुन
ा बगवान की स्तुसत कयते हैं औय
बगवान को तुबज
ुा रूऩ भें दशान दे ने के सरए प्राथाना ौदहवें अध्माम का भहत्व
कयते हैं । ौदहवें अध्माम को गुणिम त्रवबाग मोग नाभ फदमा
बगवान द्राया अऩने त्रवद्वरूऩ के दशान की भफहभा का
तॊि यऺा कव
तॊि यऺा कव को धायण कयने से व्मत्रि के उऩय फकगई सभस्त ताॊत्रिक फाधाएॊ दयू होती हैं , उसी के साथ ही धायण
कताा व्मत्रि ऩय फकसी बी प्रकाय फक नकायत्भन शत्रिमो का कुप्रबाव नहीॊ होता। इस कव के प्रबाव से इषाा-द्रे ष यखने
वारे सबी रोगो द्वाया होने वारे दद्श
ु प्रबावो से यऺाहोती हैं । भूल्म भाि: Rs.910
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फाधाओॊ एवॊ कद्शों से भुत्रि सभरती हैं एवॊ सुख फक प्रासद्ऱ फक सबी फाधाएॉ स्वत् सभाद्ऱ हो जाती हैं ।
भॊि के सनमसभत जाऩ कयने से व्मत्रि को भॊि ससद्च हो व्मत्रि को सभस्त असबद्श वस्तुओॊ फक प्रासद्ऱ होती हैं ।
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कृ ष्ण भॊि
बगवान श्री कृ ष्ण से सॊफध
ॊ ी भॊि तो शास्त्रों भें बये ऩडे हैं । रेफकन जन साधायण भें कुछ खास भॊिों का ही प्र रन औय
अत्मासधक भहत्व हैं ।
ॐ कृ ष्णाम वासुदेवाम हयमे ऩयभात्भने।
प्रणत् क्रेशनाशाम गोत्रवॊदाम नभो नभ्॥
इस भॊि को सनमसभत स्नान इत्माफद से सनवृत होकय स्वच्छ कऩडे ऩहन कय 108 फाय जाऩ कयने से व्मत्रि के जीवन
भें फकसी बी प्रकाय के सॊकट नहीॊ आते।
ॐ नभ् बगवते वासुदेवाम कृ ष्णाम
क्रेशनाशाम गोत्रवॊदाम नभो नभ्।
इस भॊि को सनमसभत स्नान इत्माफद से सनवृत होकय स्वच्छ कऩडे ऩहन कय 108 फाय जाऩ कयने से आकत्स्भक
सॊकट से भुत्रि सभरसत हैं ।
हये कृ ष्ण हये कृ ष्ण, कृ ष्ण-कृ ष्ण हये हये ।
हये याभ हये याभ, याभ-याभ हये हये ।
इस भॊि को सनमसभत स्नान इत्माफद से सनवृत होकय स्वच्छ कऩडे ऩहन कय 108 फाय जाऩ कयने से व्मत्रि को
जीवन भे सभस्त बौसतक सुखो एवॊ भोऺ प्रासद्ऱ होती हैं ।
भॊि ससद्च दर
ु ब
ा साभग्री
कारी हल्दी:- 370, 550, 730, 1450, 1900 कभर गट्टे की भारा - Rs- 370
भामा जार- Rs- 251, 551, 751 हल्दी भारा - Rs- 280
धन वृत्रद्च हकीक सेट Rs-280 (कारी हल्दी के साथ Rs-550) तुरसी भारा - Rs- 190, 280, 370, 460
घोडे की नार- Rs.351, 551, 751 नवयत्न भारा- Rs- 1050, 1900, 2800, 3700 & Above
हकीक::11:नॊग-Rs-190, 21:नॊग Rs-370 नवयॊ गी हकीक भारा Rs- 280, 460, 730
रघु श्रीपर::1:नॊग-Rs-21, 11:नॊग-Rs-190 हकीक भारा (सात यॊ ग) Rs- 280, 460, 730, 910
नाग केशय::11 ग्राभ, Rs-145 भूॊगे की भारा Rs- 1050, 1900 & Above
स्पफटक भारा- Rs- 235, 280, 460, 730, DC 1050, 1250 ऩायद भारा Rs- 1450, 1900, 2800 & Above
सपेद ॊदन भारा - Rs- 460, 640, 910 वैजमॊती भारा Rs- 190, 280, 460
यि (रार) ॊदन - Rs- 370, 550, रुद्राऺ भारा: 190, 280, 460, 730, 1050, 1450
भोती भारा- Rs- 460, 730, 1250, 1450 & Above त्रवधुत भारा - Rs- 190, 280
कासभमा ससॊदयू - Rs- 460, 730, 1050, 1450, & Above भूल्म भें अॊतय छोटे से फड़े आकाय के कायण हैं ।
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ऩमूष
ा ण का भहत्व
सॊकरन गुरुत्व कामाारम
ऩमूष
ा ण ऩवा इद्श आयाधना औय ऺभा का ऩवा बी हैं । ऩमूष
ा ण को भु्मत: भनुष्म के ऩुनसनभााण का द्योतक भानाजाता
हैं । ऩमूष
ा ण भें भनुष्म अऩने सबतय की त्रवकृ सतमों का त्माग कयता हैं ।
ऩमूष
ा ण के फदनों भें श्रावक-श्रात्रवकाएॊ ब्रह्म मा का ऩारन, यात्रि बोज त्माग, सस त्त का त्माग यखते हैं । व्रत-
उऩवास, साभसमक-प्रसतक्रभण, प्रव न-श्रवण आफद के भाध्मभ से इन फदनों असघक से असघक सभम धभा ध्मान भें
ऩमूष
ा ण के फदन श्रावक-श्रात्रवकाएॊ उऩवास यखते हैं औय स्वमॊ के ऩाऩों की आरो ना कयते हुए बत्रवष्म भें
उनसे फ ने की प्रसतऻा कयते हैं । इसके साथ ही वे ौयासी राख मोसनमों भें त्रव यण कय यहे , सभस्त जीवों से ऺभा
भाॉगते हुए मह सूस त कयते हैं फक उनका फकसी से कोई फैय नहीॊ है ।
श्रावक-श्रात्रवकाएॊ ऩयोऺ रूऩ से वे मह सॊकल्ऩ कयते हैं फक वे प्रकृ सत भें कोई हस्तऺेऩ नहीॊ कयें गे। भन, व न
औय कामा से जानते मा अजानते वे फकसी बी फहॊ सा की गसतत्रवसध भें बाग न तो स्वमॊ रेंगे, न दस
ू यों को रेने को
कहें गे औय न रेने वारों का अनुभोदन कयें गे। मह आद्वासन दे ने के सरए फक उनका फकसी से कोई फैय नहीॊ है , वे मह
बी घोत्रषत कयते हैं फक उन्होंने त्रवद्व के सभस्त जीवों को ऺभा कय फदमा है औय उन जीवों को ऺभा भाॉगने वारे से
ऺभा दे ने से भनुष्म अन्म सभस्त जीवों को अबमदान दे ते हैं औय उनकी यऺा कयने का सॊकल्ऩ रेते हैं । तफ
व्मत्रि सॊमभ औय त्रववेक का अनुसयण कयें गे, आत्त्भक शाॊसत अनुबव कयें गे औय सबी जीवों औय ऩदाथों के प्रसत भैिी
बाव यखेंगे। आत्भा तबी शुद्च यह सकती है जफ वह अऩने सेफाहय हस्तऺेऩ न कये औय फाहयी तत्व से त्रव सरत न
जैन धभा भें द्वेताम्फय भूसताऩूजक ऩयम्ऩया भें आठ फदनों तक "कल्ऩसूि" ऩढ़ा व सुना जाता हैं ।
जफफक जैन धभा भें स्थानकवासी ऩयम्ऩया भें आठ फदनों तक "अन्तकदृशा सूि" का वा न फकमा जाता हैं ।
जफ कोई व्मत्रि ऩूया नवकाय भॊि जऩता हैं , तो गबावती त्स्त्रमों के सरए इस भॊि का जाऩ कयना
उसके 500 सागयोऩभ त्जतने ऩाऩ नद्श होते हैं । फच् े के सरमे असत उत्तभ हैं ।
मफद कोई व्मत्रि प्रात् कार उठकय 8 नवकाय भॊि जन्भ के सभम मफद फारक के कान भें मह भॊि
जऩता हैं , तो उसके 4000 सागयोऩभ त्जतने ऩाऩ सुनामा जामे तो उसे जीवन भें सुख-सभृत्रद्च प्राद्ऱ
नद्श होते हैं । होती हैं ।
सॊऩूणा नवकाय भॊि की 1 भारा सगनने से 54000 मफद फकसी जीव को भृत्मु के सभम नवकाय भॊि
सागयोऩभ त्जतने ऩाऩ नद्श होते हैं । सुनामा जामे तो उसे सदगसत प्राद्ऱ होती हैं ।
(सागयोऩभ अथाात ् त्जसे सगनने भें कफठनाई हो नवकाय भॊि की भफहभा अनॊत व अऩाय हैं इसी
इतने अयफों वषा।) सरमे नवकाय भॊि को शत्रिदामक, त्रवध्नत्रवनाशक,
अत्मॊत प्रबावशारी व भत्कायी हैं ।
दे वदशान स्तोिभ ्
दशानॊ दे वदे वस्म, दशानॊ ऩाऩनाशनभ ्।
अन्मथा शयणॊ नात्स्त, त्वभेव शयणॊ भभ।
दशानॊ स्वगासोऩानॊ, दशानॊ भोऺसाधनभ ्।1।
तस्भात्कारुण्म-बावेन, यऺ यऺ त्जनेद्वय।8।
दशानेन त्जनेन्द्राणाॊ, साधूनाॊ वॊदनेन ।
न फह िाता न फह िाता, न फह िाता जगत्िमे।
न स यॊ सतद्षते ऩाऩॊ, सछद्रहस्ते मथोदकभ ्।2।
त्जनधभा - त्रवसनभुि
ा ो, भा बवेच् क्रवत्मात्रऩ।
दशानॊ त्जन ॊद्रस्म, सद्चभााभत
ृ -वषाणभ ्।
स्माच् ेटोऽत्रऩ दरयद्रोऽत्रऩ त्जनधभाानव
ु ाससत्।11।
जन्भ-दाह-त्रवनाशाम, वद्चा नॊ सुख-वारयधे्।5।
अऩने साये स्वप्न फताएॊ, त्जससे उसी प्रकाय उसका पर कल्माणकायी होगा।
यानी को दस
ू ये स्वप्न भें एक सपेद यॊ ग का वृषब कहाॊ वह ऩुि सूमा के सभान तेजमुि यौ औय ऻान का
फदखाई फदमा था। प्रकाश पैराने वारा होगा।
ज्मोसतष शास्त्र के त्रवद्रानों ने स्वप्न का पर फताते हुवे
कहाॊ वह ऩुि सॊसाय का कल्माण कयने 8.
यानी को आठवें स्वप्न भें कभर ऩिों से ढॊ के हुए दो
वारा होगा।
स्वणा करश फदखाई फदमे थे।
3.
ज्मोसतष शास्त्र के त्रवद्रानों ने स्वप्न का पर फताते हुवे
यानी को तीसये स्वप्न भें सपेद यॊ ग औय रार फारों
कहाॊ वह ऩुि अनेक सनसधमों का स्वाभी होगा।
वारा ससॊह फदखाई फदमा था।
9. होगा।
यानी को नौवें स्वप्न भें सयोवय भें क्रीड़ा कयती दो 13.
भछसरमाॊ फदखाई दी थी। यानी को तेयहवें स्वप्न भें दे व त्रवभान फदखाई फदमा था।
ज्मोसतष शास्त्र के त्रवद्रानों ने स्वप्न का पर फताते हुवे ज्मोसतष शास्त्र के त्रवद्रानों ने स्वप्न का पर फताते हुवे
कहाॊ वह ऩुि भहाआनॊद का दाता, दख
ु ीका दख
ु हताा होगा। कहाॊ इस जन्भ से ऩूवा वह ऩुि स्वगा का दे वता होगा।
10. 14.
यानी को दसवें स्वप्न भें कभरों से बया सयोवय फदखाई यानी को ौदहवें स्वप्न भें ऩृथ्वी को बेद कय सनकरता
फदमा था। नागों के याजा नागेन्द्र का त्रवभान फदखाई फदमा था।
ज्मोसतष शास्त्र के त्रवद्रानों ने स्वप्न का पर फताते हुवे ज्मोसतष शास्त्र के त्रवद्रानों ने स्वप्न का पर फताते हुवे
कहाॊ वह ऩुि शुब रऺणों से मुि एवॊ कभराकाय कहाॊ वह ऩुि जन्भ से ही त्रिकारदशॉ होगा।
ससॊहासन त्रवयाजभान होगा।
15.
11. यानी को ऩन्द्रहवें स्वप्न भें यत्नों का ढे य फदखाई फदमा
यानी को ग्मायहवें स्वप्न भें रहयें उछारता सभुद्र फदखाई था।
फदमा था। ज्मोसतष शास्त्र के त्रवद्रानों ने स्वप्न का पर फताते हुवे
ज्मोसतष शास्त्र के त्रवद्रानों ने स्वप्न का पर फताते हुवे कहाॊ वह ऩुि अनॊत गुणों से सॊऩन्न होगा।
कहाॊ ऩुि बूत-बत्रवष्म-वताभान का ऻाता होगा।
16.
12. यानी को सोरहवें स्वप्न भें धुआॊयफहत अत्ग्न फदखाई दी थी।
यानी को फायहवें स्वप्न भें हीये -भोती औय यत्नजत्े़डत ज्मोसतष शास्त्र के त्रवद्रानों ने स्वप्न का पर फताते हुवे
स्वणा ससॊहासन फदखाई फदमा था। कहाॊ वह ऩुि साॊसारयक कभों का अॊत कयके भोऺ
ज्मोसतष शास्त्र के त्रवद्रानों ने स्वप्न का पर फताते हुवे (सनवााण) को प्राद्ऱ होगा।
कहाॊ ऩुि याज्म का स्वाभी औय प्रजा का फहतस त
ॊ क ***
षद्शाऺयी भॊि :-
1. अयहन्त ससद्च
2. अयहन्त सस सा
3. ॐ नभ् ससद्चे भ्म
4. नभोहा त्त्सद्चे भ्म्
सद्ऱाऺयी भॊि:-
ॐ श्रीॊ ह्ीॊ अहं नभ्।
अद्शाऺयी भॊि:-
ॐ नभो अरयहॊ ताणॊ।
जो अशयीयी अथाात ससद्च का 'अ' हैं । ओभ शब्द भें ॐ ह्ीभ ् अहा भ ् अससआउसा सवाशात्न्तभ ् कुरु कुरु स्वाहा।
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॥ भहावीयाद्शक-स्तोिभ ् ॥
सशखरयणी छॊ द कनत्स्वणााबासोऽप्मऩगत-तनुऻाान-सनवहो
त्रवस िात्भाप्मेको नृऩसत-वय-ससद्चाथा-तनम:।
मदीमे त
ै न्मे भुकुय इव बावात्द्ळदस त: अजन्भात्रऩ श्रीभान ्? त्रवगत-बव-यागोद्भत
ु -गसत?
सभॊ बात्न्त ध्रौव्म व्मम-जसन-रसन्तोऽन्तयफहता:। भहावीय-स्वाभी नमन-ऩथ-गाभी बवतु भे॥5॥
जगत्साऺी भागा-प्रकटन ऩयो बानुरयव मो
भहावीय-स्वाभी नमन-ऩथ-गाभी बवतु भें॥1॥ मदीमा वाग्गॊगा त्रवत्रवध-नम-कल्रोर-त्रवभरा
फृहज्ऻानाभ्बोसबजागसत जनताॊ मा स्नऩमसत।
अताम्रॊ मच् ऺु: कभर-मुगरॊ स्ऩन्द-यफहतॊ इदानीभप्मेषा फुध-जन-भयारै ऩरयस ता
जनान्कोऩाऩामॊ प्रकटमसत वाभ्मन्तयभत्रऩ। भहावीय-स्वाभी नमन-ऩथ-गाभी बवतु भे॥6॥
स्पुटॊ भूसतामस्
ा म प्रशसभतभमी वासतत्रवभरा
असनवाायोद्रे कत्स्त्रबुवन-जमी काभ-सुबट:
भहावीय-स्वाभी नमन-ऩथ-गाभी बवतु भे॥2॥
कुभायावस्थामाभत्रऩ सनज-फराद्येन त्रवत्जत:
नभन्नाकेंद्रारी-भुकुट-भत्ण-बा जार जफटरॊ स्पुयत्न्नत्मानन्द-प्रशभ-ऩद-याज्माम स त्जन:
रसत्ऩादाम्बोज-द्रमसभह मदीमॊ तनुबत
ृ ाभ ्?। भहावीय-स्वाभी नमन-ऩथ-गाभी बवतु भे॥7॥
बवज्ज्वारा-शान्त्मै प्रबवसत जरॊ वा स्भृतभत्रऩ
भहाभोहातक-प्रशभन-ऩयाकत्स्भक-सबषक?
भहावीय स्वाभी नमन-ऩथ-गाभी बवतु भे॥3॥
सनयाऩेऺो फॊधु त्रवाफदत-भफहभा भॊगरकय:।
शयण्म: साधूनाॊ बव-बमबृताभुत्तभगुणो
मदच् ाा-बावेन प्रभुफदत-भना ददा यु इह
भहावीय-स्वाभी नमन-ऩथ-गाभी बवतु भे॥8॥
ऺणादासीत्स्वगॉ गुण-गण-सभृद्च: सुख-सनसध:।
रबन्ते सद्भिा: सशव-सुख-सभाजॊ फकभुतदा भहावीयाद्शकॊ स्तोिॊ बक्त्मा बागेन्द ु ना कतभ।
भहावीय-स्वाभी नमन-ऩथ-गाभी बवतु भे॥4॥ म: मठे च्रणुमाच् ात्रऩ स मासत ऩयभाॊ गसतभ॥9॥
॥ भहावीय ारीसा ॥
दोहा सनत्रवाष कयो आऩ बगवन्ता । अनहद शब्दबमो सतहुॉरोका ।
भहाभत्त गज भद को झायै , इन्द्र ने नेि सहस्र करय दे खा,
ससद्च सभूह नभों सदा,
बगै तुयत जफ तुझे ऩुकायै । सगयी सुभेय फकमो असबषेखा ।
अरु सुभरूॊ अयहन्त ।
पाय डाढ़ ससॊहाफदक आवै, काभाफदक तृष्णा सॊसायी,
सनय आकुर सनवांच्छ हो,
ताको हे प्रबु तुही बगावै । तज तुभ बए फार ब्रह्म ायी ।
गए रोक के अॊत ॥
होकय प्रफर अत्ग्न जो जायै , असथय जान जग असनत त्रफसायी,
भॊगरभम भॊगर कयन,
तुभ प्रताऩ शीतरता धायै । फारऩने प्रबु दीऺा धायी ।
वधाभान भहावीय ।
शस्त्र धाय अरय मुद्च रड़न्ता, शाॊत बाव धय कभा त्रवनाशे,
तुभ स त
ॊ त स त
ॊ ा सभटे ,
तुभ प्रसाद हो त्रवजम तुयन्ता । तुयतफह केवर ऻान प्रकाशे ।
हयो सकर बव ऩीय ॥
ऩवन प्र ण्ड रै झकझोया, प्र जड़- ेतन िम जग के साये ,
ौऩाई बु तुभ हयौ होम बम ोया । हस्त ये खवत ्? सभ तू सनहाये ।
जम भहावीय दमा के सागय, झाय खण्ड सगरय अटवी भाॊहीॊ, रोक-अरोक द्रव्म षट जाना,
जम श्री सन्भसत ऻान उजागय । तुभ त्रफनशयण तहाॊ कोउ नाॊहीॊ । द्वादशाॊग का यहस्म फखाना ।
शाॊत छत्रव भूयत असत प्मायी, वज्रऩात करय घन गयजावै, ऩशु मऻों का सभटा करेशा,
वेष फदगम्फय के तुभ धायी । भूसरधाय होम तड़कावै । दमा धभा दे कय उऩदे शा ।
कोफट बानु से असत छत्रफ छाजे, होम अऩुि दरयद्र सॊताना, अनेकाॊत अऩरयग्रह द्वाया,
दे खत सतसभय ऩाऩ सफ बाजे । सुसभयत होत कुफेय सभाना । सवाप्रात्ण सभबाव प्र ाया ।
भहाफरी अरय कभा त्रवदाये , फॊदीगृह भें फॉधी जॊजीया, ऩॊ भ कार त्रवषै त्जनयाई,
जोधा भोह सुबट से भाये । कठ सुई असन भें सकर शयीया । ाॊदनऩुय प्रबुता प्रगटाई ।
काभ क्रोध तत्ज छोड़ी भामा, याजदण्ड करय शूर धयावै, ऺण भें तोऩसन फाफढ-हटाई,
ऺण भें भान कषाम बगामा। ताफह ससॊहासन तुही त्रफठावै । बिन के तुभ सदा सहाई ।
यागी नहीॊ नहीॊ तू द्रे षी, न्मामाधीश याजदयफायी, भूयख नय नफहॊ अऺय ऻाता,
वीतयाग तू फहत उऩदे शी । त्रवजम कये होम कृ ऩा तुम्हायी । सुभयत ऩॊफडत होम त्रव्माता ।
प्रबु तुभ नाभ जगत भें साॊ ा, जहय हराहर दद्श
ु त्रऩमन्ता, सोयठा
सुभयत बागत बूत त्रऩशा ा । अभृत सभ प्रबु कयो तुयन्ता । कये ऩाठ ारीस फदन
याऺस मऺ डाफकनी बागे, ढ़े जहय, जीवाफद डसन्ता, सनत ारीसफहॊ फाय ।
तुभ स त
ॊ त बम कोई न रागे । सनत्रवाष ऺण भें आऩ कयन्ता । खेवै धूऩ सुगन्ध ऩढ़,
भहा शूर को जो तन धाये , एक सहस वसु तुभये नाभा, श्री भहावीय अगाय ॥
होवे योग असाध्म सनवाये । जन्भ सरमो कुण्डरऩुय धाभा । जनभ दरयद्री होम अरु
व्मार कयार होम पणधायी, ससद्चायथ नृऩ सुत कहराए, त्जसके नफहॊ सन्तान ।
त्रवष को उगर क्रोध कय बायी । त्रिशरा भात उदय प्रगटाए । नाभ वॊश जग भें रे
भहाकार सभ कयै डसन्ता, तुभ जनभत बमो रोक अशोका, होम कुफेय सभान ॥
हुआ है । ऩदस ह्न वहीॊ ऩूये होते हैं । उसके इदा सगदा दे खा, हुआ सनयाश होकय जा यहा था वह सन्तुद्श होकय,
सभाधान ऩाकय प्रणाभ कयता हुआ फोरा् "हाॉ
ेहये ऩय दे खता यहा। इतने भें भहावीय की आॉख खुरी।
भहायाज ! इस यहस्म का भुझे आज ऩता रा। भेयी
अफतक ज्मोसतषी स न्ता भें डू फता जा यहा था।
त्रवद्या बी सच् ी औय आऩका भागा बी सच् ा है ।"
ऩुष्म ज्मोसतषी ने भहावीय से ऩूछा "मे ऩदस ह्न तो
***
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e गुरुत्व ज्मोसतष 75 अगस्त 2020 | अॊक 1
112: आऩका अबीद्श प्रद्ल राबदामक है । धन की प्रासद्ऱ तक फन सके वहाॉ तक धभा कयो। अऩने इद्शदे व की
होगी। बाग्मोदम के फदन अफ नजदीक आ गए हैं । त्जस मथाशत्रि आयाधना तथा भन्ि का जऩ कयो, त्जससे
कामा को हाथ भें रोगे, उसभें जम प्राद्ऱ कयोगे। त्रप्रमजन तकरीप दयू होगी।
का सभराऩ होगा। धभा के कामा कयते यहो, त्जससे ऩुण्म 123: आऩके अबीद्श कामा भें सपरता अवश्म सभरेगी।
की प्रासद्ऱ होगी तथा सुख बी सभरेगा। भन स त्न्तत इतने ऩाऩकभा के थे तथा आऩने भहान सॊकट उठामे हैं ।
यहता है । बाइमों से जुदाई होगी। भकान फनाने का अफ शुब फदन आए हैं । फहुतों का बरा फकमा, फकन्तु
इयादा कयते हो वह ऩाय ऩड़े गा। जभीन से तुभको राब उन्होनें उऩकाय न भाना। धभा के सनसभत्त का सनकारा
हुआ ऩैसा घय भें न यखो। तीथों की मािा कयो, त्जस
बत्रवष्म भें धभा कामा कय सकोगे। रृदम भें त्जस कामा धायणा सपर होगी। स न्ता के फदन अफ दयू हुए हैं । दे व
की स न्ता है , वह धभा के प्रबाव से दयू हो जाएगी, गुरु तथा धभा की सेवा कयो। दश्ु भन रोग सताते हैं ,
इससरए धभा ऩय श्रद्चा यखो, त्जससे सपरता प्राद्ऱ कय फकन्तु अफ तुम्हाया प्रायब्ध फरवान ् फना है त्जससे इन
सकोगे। रोगों का जोय नहीॊ रेगा। जभीन से राब होगा। कीसता
232: जो काभ त्रव ाया है , उसे छोड़कय कोई दस
ू या काभ के सरए ख ा असधक कयना ऩड़ता है । सभिों से राब
कयो। त्रव ाये हुए कामा को कयने भें राब नहीॊ है , मफद होगा।
कयोगे तो तुभको तुम्हाया स्थान छोड़कय दस
ू ये स्थान ऩय 321: जभीन, भकान अथवा फाग-फगी े से राब होगा।
जाना ऩड़े गा, कुटु म्फीजनों का त्रवमोग होगा। इससरए धन प्राद्ऱ कयोगे, स्नेही जन से सभराऩ होगा। फकसी बी
उस त है फक इस कामा को छोड़ दो। धभा भें होसशमाय भनुष्म के साथ सभिता होगी औय उसके द्वाया धनाफद की
यहना तथा अऩनी शत्रि के अनुसाय दान-ऩुण्म कयना प्रासद्ऱ होगी। ऩुण्म के उदम से इच्छाएॉ ऩयीऩूणा होगी।
त्जससे सुख हो। धभा का आयाधन कयो। दश्ु भन रोग ऩग-ऩग ऩय तैमाय
233: थोड़े फदनों भें धन सभरेगा। जो काभ त्रव ाया है , यहें गे, फकन्तु सन्भुख होने से उनका जोय नहीॊ रेगा।
वह ऩूणा होगा। त्रप्रमजनों से सभराऩ होगा। जभीन, अऩनी शत्रि के अनुसाय ख ा कयो। भकान फनाने के
जागीय अथवा भकान से राब होगा। आफरु फढ़े गी। धभा भनोयथ परीबूत होंगे। धन ऩैदा कयते हो, फकन्तु ख ा
कामों भें ख ा कयो। उसके प्रताऩ से सुख- न
ै यहे गा। असधक होने से इकट्ठा नहीॊ होता है , त्रऩता से धन थोड़ा
याज्मऩऺ से राब होगा। भन की धायणा ऩूणा होगी। स्त्री सभरेगा। स्त्री की तयप से राब होगा। वृद्चावस्था भें धभा
की तयप से सुख है । एक सभम अकस्भात ् राब के कामा फन सकते हैं ।
सभरेगा। 322: जो कामा आऩने भन भें त्रव ाया है , उसभे शिु
311: मह सवार फहुत ही गयभ है । त्जस कामा का रोग त्रवघ्न डारेंगे, ऩरयणाभ अच्छा नहीॊ। याज्म की तयप
त्रव ाय फकमा है , वह ऩूणा होगा। भुकदभा जीत जाओगे, से नायाजगी होगी मफद सुखी होना ाहते हो, तो त्रव ाया
व्माऩाय योजगाय भें राब होगा। कीसता फढ़े गी, याज्म की हुआ कामा छोड़कय दस
ू या कामा कयो, तुम्हाये सहमोगी
तयप से राब होगा। धभा के प्रबाव से सुख सभरा है फदर गए हैं , उनका त्रवद्वास भत कयना। बजन-ऩूजन,
तथा बत्रवष्म भें बी सभरेगा। दस
ू यों के कामा ऩरयश्रभ से व्रत-सनमभ भें ध्मान दो।
ऩूया कयते हो, फकन्तु अशुब कभा उफदत होने से अऩने 323: त्जस कामा का भन भें त्रव ाय फकमा है , उसभें
कभा भें उदासीन यहते हो, त्रवदे श मािा होगी औय वहाॉ राब होगा, इच्छा ऩूणा होगी, स्नेही का सभराऩ होगा, जो
राब होगा। धभा ऩय श्रद्चा यखो त्जससे सॊकट दयू हों। जो स न्ताएॉ उऩत्स्थत हुई हैं , वे सफ दयू होंगी। धभा के
अऩने हाथ से रक्ष्भी प्राद्ऱ कयोगे। कामा फन सकेंगे। फहुत फदनों से ऩयदे श भें द्ु ख प्राद्ऱ
312: जो कामा त्रव ाया है उसे छोड़कय कोई दस
ू या काभ फकमा है , फकन्तु अफ द्ु ख के फदन गए। तीथामािा होगी।
कयो अन्मथा शिु रोग त्रवघ्न डारेंगे, दौरत की खयाफी अफ दे श भें जाकय आनन्द प्राद्ऱ कयोगे। धभा के कामों भें
होगी, घय के भनुष्मों तथा ऩशुओॊ ऩय सॊकट आएगा, रक्ष्म यखो, त्जससे सफ सुख प्राद्ऱ कयोगे।
इससरए त्रव ाये हुए कामा को छोड़ दे ना ही उस त है । 331: तुम्हाये भन की स न्ता सभटे गी। फीभायी की
धभा के प्रबाव से सफ कामा सपर होते हैं । सनयासश्रतों को परयमाद दयू होगी। भन की धायणा ऩूणा होगी। थोड़े फदनों
आश्रम दो तथा दे वासधदे व का स्भयण कयो त्जससे सुखी भें ही धन की प्रासद्ऱ होगी। स्नेही का सभराऩ होगा।
होंगे। धभा-कभा भें ऩैसा ख ा कयो, त्जससे ऩरयणाभ भें पामदा
313: मह प्रद्ल अच्छा है । धन तथा स्त्री से सहमोग एवॊ होगा। अच्छे फदन आए हैं , ऩाऩकभा से इतने फदन द्ु ख
सुख सभरेगा। सॊतान से सुख सभरेगा। सॊतान होगी, प्राद्ऱ फकमा है , ऩयन्तु अफ वे फीत गए हैं ।
त्रप्रमजन का सभराऩ होगा। अभुक भुद्ङत की धायी हुई 332: फुये फदन गए अफ अच्छे फदन आए हैं । जभीन
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e गुरुत्व ज्मोसतष 78 अगस्त 2020 | अॊक 1
तथा धन-दौरत भें जो हासन हुई है , वह सभट जाएगी होगी। जीवनसाथी से सुख प्राद्ऱ होगा, तीन भफहने फाद
तथा बत्रवष्म भें राब होगा। ऩयभेद्वय का ध्मान कयो। अच्छे फदन आएॉगे। इद्शदे व की आयाधना कयो। आभदनी
रृदम शुद्च है , त्जससे भन की स न्ता जल्दी दयू होगी। से ख ा असधक है , धन इकट्ठा फकमा नहीॊ, सभि की
ऩयदे श भें यहे भनुष्म की स न्ता है सो उसका सभराऩ तयप से धोखा सभरा है , दश्ु भन रोग ऩीछे से सनन्दा
होगा। धभा के प्रबाव से सुखी होंगे। कयते हैं , फकन्तु साभने आकय फोर नहीॊ सकते। जभीन
333: इतने फदन सनधान अवस्था भें व्मतीत फकए, से राब होगा। ऩयभेद्वय का जऩ कयो ।
फकन्तु अफ धन प्राद्ऱ होगा तथा भन की धायणा परीबूत
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घये रू टोने-टोटके
छोटे -छोटे मॊि, भॊि
ससद्च उऩाम एवॊ साधना
जफ 7 ग्रह याहु औय केतु के भध्म भे त्स्थत हो मह इन सफ फातों का बी सॊफॊसधत जातक ऩय भहत्वऩूणा प्रबाव
आजाने से याहु केतु अन्म शुब ग्रहों के प्रबावों को ऺीण कय दे ते इससरए भािा कारसऩा मोग सुनकय बमबीत हो जाने
हों!, तो अशुब कारसऩा मोग फनता है , क्मोफक ज्मोसतष भे याहु की जरूयत नहीॊ फत्ल्क उसका जानकाय मा कुशर ज्मोसतषी से
को सऩा(साऩ) का भुह(भुख) एवॊ केतु को ऩूॊछ कहा जाता है । ज्मोसतषीम त्रवद्ऴेषण कयवाकय उसके प्रबावों की त्रवस्तृत
जानकायी हाससर कय रेना ही फुत्रद्चभत्ता है । जफ असरी कायण
कारसऩा मोग का प्रबाव क्म होता है ? ज्मोसतषीम त्रवद्ऴेषण से स्ऩद्श हो जामे तो तत्कार उसका उऩाम
त्जस प्रकाय फकसी व्मत्रि को साऩ काट रे तो वह कयना ाफहए। उऩाम से कारसऩा मोग के कुप्रबावो को कभ
व्मत्रि शाॊसत से नही फेठ सकता वेसे ही कारसऩा मोग से ऩीफड़त फकमा जा सकता है ।
व्मत्रि को जीवन ऩमान्त शायीरयक, भानससक, आसथाक ऩये शानी मफद आऩकी जन्भ कुॊडरी भे बी अशुब कारसऩा मोग का फन
का साभना कयना ऩडता है । त्रववाह त्रवरम्फ से होता है एवॊ यहा हो औय आऩ उसके अशुब प्रबावों से ऩये शान हो, तो
त्रववाह के ऩश्च्मात सॊतान से सॊफॊधी कद्श जेसे उसे सॊतान होती कारसऩा मोग के अशुब प्राबावों को शाॊत कयने के सरमे त्रवशेष
ही नहीॊ मा होती है तो योग ग्रस्त होती है । उसे जीवन भें फकसी अनुबत
ू उऩामों को अऩना कय अऩने जीवन को सुखी एवॊ सभृद्च
न फकसी भहत्वऩूणा वस्तु का अबाव यहता है । जातक को फनाए।
कारसऩा मोग के कायण सबी कामों भें अत्मासधक सॊघषा कयना ***
भॊि ससद्च दर
ु ब
ा साभग्री
कारी हल्दी:- 370, 550, 730, 1450, 1900 कभर गट्टे की भारा - Rs- 370
भामा जार- Rs- 251, 551, 751 हल्दी भारा - Rs- 280
धन वृत्रद्च हकीक सेट Rs-280 (कारी हल्दी के साथ Rs-550) तुरसी भारा - Rs- 190, 280, 370, 460
घोडे की नार- Rs.351, 551, 751 नवयत्न भारा- Rs- 1050, 1900, 2800, 3700 & Above
हकीक: 11 नॊग-Rs-190, 21 नॊग Rs-370 नवयॊ गी हकीक भारा Rs- 280, 460, 730
रघु श्रीपर: 1 नॊग-Rs-21, 11 नॊग-Rs-190 हकीक भारा (सात यॊ ग) Rs- 280, 460, 730, 910
नाग केशय: 11 ग्राभ, Rs-145 भूॊगे की भारा Rs- 1050, 1900 & Above
स्पफटक भारा- Rs- 235, 280, 460, 730, DC 1050, 1250 ऩायद भारा Rs- 1450, 1900, 2800 & Above
सपेद ॊदन भारा - Rs- 460, 640, 910 वैजमॊती भारा Rs- 190, 280, 460
यि (रार) ॊदन - Rs- 370, 550, रुद्राऺ भारा: 190, 280, 460, 730, 1050, 1450
भोती भारा- Rs- 460, 730, 1250, 1450 & Above त्रवधुत भारा - Rs- 190, 280
कासभमा ससॊदयू - Rs- 460, 730, 1050, 1450, & Above भूल्म भें अॊतय छोटे से फड़े आकाय के कायण हैं ।
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सवा कामा ससत्रद्च कव के साथ भें तॊि यऺा कव के सभरे होने की वजह से ताॊत्रिक फाधाए दयू होती हैं , साथ ही
नकायात्भक शत्रिमो का कोइ कुप्रबाव धायण कताा व्मत्रि ऩय नहीॊ होता। इस कव के प्रबाव से इषाा-द्वेष यखने
वारे व्मत्रिओ द्राया होने वारे दद्श
ु प्रबावो से यऺा होती हैं ।
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से स्वत् ही छुटकाया सभर जाता हैं । कव के प्रबाव से शिु धायण कताा व्मत्रि का ाहकय कुछ नही त्रफगाड़
सकते।
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श्री गणेश मॊि के ऩूजन से व्मत्रि को फुत्रद्च, त्रवद्या, त्रववेक का त्रवकास होता हैं औय योग, व्मासध एवॊ सभस्त त्रवध्न-
फाधाओॊ का स्वत् नाश होता है । श्री गणेशजी की कृ ऩा प्राद्ऱ होने से व्मत्रि के भुत्श्कर से भुत्श्कर कामा बी
आसान हो जाते हैं ।
त्जन रोगो को व्मवसाम-नौकयी भें त्रवऩयीत ऩरयणाभ प्राद्ऱ हो यहे हों, ऩारयवारयक तनाव, आसथाक तॊगी, योगों से
ऩीड़ा हो यही हो एवॊ व्मत्रि को अथक भेहनत कयने के उऩयाॊत बी नाकाभमाफी, द:ु ख, सनयाशा प्राद्ऱ हो यही हो, तो
एसे व्मत्रिमो की सभस्मा के सनवायण हे तु तुथॉ के फदन मा फुधवाय के फदन श्री गणेशजी की त्रवशेष ऩूजा-
अ न
ा ा कयने का त्रवधान शास्त्रों भें फतामा हैं ।
त्जसके पर से व्मत्रि की फकस्भत फदर जाती हैं औय उसे जीवन भें सुख, सभृत्रद्च एवॊ ऐद्वमा की प्रासद्ऱ होती हैं ।
त्जस प्रकाय श्री गणेश जी का ऩूजन अरग-अरग उद्ङे श्म एवॊ काभनाऩूसता हे तु फकमा जाता हैं , उसी प्रकाय श्री
गणेश मॊि का ऩूजन बी अरग-अरग उद्ङे श्म एवॊ काभनाऩूसता हे तु अरग-अरग फकमा जाता सकता हैं ।
श्री गणेश मॊि के सनमसभत ऩूजन से भनुष्म को जीवन भें सबी प्रकाय की ऋत्रद्च-ससत्रद्च व धन-सम्ऩत्रत्त की प्रासद्ऱ
हे तु श्री गणेश मॊि अत्मॊत राबदामक हैं । श्री गणेश मॊि के ऩूजन से व्मत्रि की साभात्जक ऩद-प्रसतद्षा औय कीसता
ायों औय पैरने रगती हैं ।
त्रवद्रानों का अनुबव हैं की फकसी बी शुब कामा को प्रायॊ ऩ कयने से ऩूवा मा शुबकामा हे तु घय से फाहय जाने से ऩूवा
गणऩसत मॊि का ऩूजन एवॊ दशान कयना शुब परदामक यहता हैं । जीवन से सभस्त त्रवघ्न दयू होकय धन,
आध्मात्त्भक ेतना के त्रवकास एवॊ आत्भफर की प्रासद्ऱ के सरए भनुष्म को गणेश मॊि का ऩूजन कयना ाफहए।
गणऩसत मॊि को फकसी बी भाह की गणेश तुथॉ मा फुधवाय को प्रात: कार अऩने घय, ओफपस, व्मवसामीक
स्थर ऩय ऩूजा स्थर ऩय स्थात्रऩत कयना शुब यहता हैं ।
गुरुत्व कामाारम भें उऩरब्ध अन्म : रक्ष्भी गणेश मॊि | गणेश मॊि | गणेश मॊि (सॊऩूणा फीज भॊि सफहत) | गणेश
ससद्च मॊि | एकाऺय गणऩसत मॊि | हरयद्रा गणेश मॊि बी उऩरब्ध हैं । असधक जानकायी आऩ हभायी वेफ साइट ऩय प्राद्ऱ
कय सकते हैं ।
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दे वी के आसशवााद से व्मत्रि को ऻान, सुख, धन-सॊऩदा, ऐद्वमा, रूऩ-सौंदमा की प्रासद्ऱ सॊबव हैं । व्मत्रि को वाद-त्रववाद भें
दश भहात्रवद्या को शास्त्रों भें आद्या बगवती के दस बेद कहे गमे हैं , जो क्रभश् (1) कारी, (2) ताया, (3) षोडशी, (4)
बुवनेद्वयी, (5) बैयवी, (6) सछन्नभस्ता, (7) धूभावती, (8) फगरा, (9) भातॊगी एवॊ (10) कभात्त्भका। इस सबी दे वी
स्वरुऩों को, सत्म्भसरत रुऩ भें दश भहात्रवद्या के नाभ से जाना जाता हैं ।
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श्री मॊि (सॊऩूणा भॊि सफहत) रक्ष्भी दामक ससद्च फीसा मॊि श्री श्री मॊि (रसरता भहात्रिऩुय सुन्दमै श्री भहारक्ष्भमैं श्री भहामॊि )
श्री मॊि (फीसा मॊि) रक्ष्भी दाता फीसा मॊि अॊकात्भक फीसा मॊि
श्री मॊि श्री सूि मॊि रक्ष्भी फीसा मॊि ज्मेद्षा रक्ष्भी भॊि ऩूजन मॊि
श्री मॊि (कुभा ऩृद्षीम) रक्ष्भी गणेश मॊि धनदा मॊि > Shop Online | Order Now
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सवाससत्रद्चदामक भुफद्रका
इस भुफद्रका भें भूॊगे को शुब भुहूता भें त्रिधातु (सुवणा+यजत+ताॊफ)ें भें जड़वा कय उसे शास्त्रोि त्रवसध-
त्रवधान से त्रवसशद्श तेजस्वी भॊिो द्राया सवाससत्रद्चदामक फनाने हे तु प्राण-प्रसतत्रद्षत एवॊ ऩूणा त
ै न्म मुि फकमा
जाता हैं । इस भुफद्रका को फकसी बी वगा के व्मत्रि हाथ की फकसी बी उॊ गरी भें धायण कय सकते
हैं । महॊ भुफद्रका कबी फकसी बी त्स्थती भें अऩत्रवि नहीॊ होती। इससरए कबी भुफद्रका को उतायने की
आवश्मिा नहीॊ हैं । इसे धायण कयने से व्मत्रि की सभस्माओॊ का सभाधान होने रगता हैं ।
धायणकताा को जीवन भें सपरता प्रासद्ऱ एवॊ उन्नसत के नमे भागा प्रसस्त होते यहते हैं औय जीवन
भें सबी प्रकाय की ससत्रद्चमाॊ बी शीध्र प्राद्ऱ होती हैं । भूल्म भाि- 6400/-
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(नोट: इस भुफद्रका को धायण कयने से भॊगर ग्रह का कोई फुया प्रबाव साधक ऩय नहीॊ होता हैं ।)
सवाससत्रद्चदामक भुफद्रका के त्रवषम भें असधक जानकायी के सरमे हे तु सम्ऩका कयें ।
उऩयोि सबी मॊिो को द्रादश भहा मॊि के रुऩ भें शास्त्रोि त्रवसध-त्रवधान से भॊि ससद्च ऩूणा
प्राणप्रसतत्रद्षत एवॊ ैतन्म मुि फकमे जाते हैं । त्जसे स्थाऩीत कय त्रफना फकसी ऩूजा
अ न
ा ा-त्रवसध त्रवधान त्रवशेष राब प्राद्ऱ कय सकते हैं ।
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घय ऩरयवाय भें शाॊसत एवॊ फच् े को कुसॊगती से छुडाने हे तु फच् े के नाभ से गुरुत्व कामाारत
द्राया शास्त्रोि त्रवसध-त्रवधान से भॊि ससद्च प्राण-प्रसतत्रद्षत ऩूणा ैतन्म मुि वशीकयण कव एवॊ
एस.एन.फडब्फी फनवारे एवॊ उसे अऩने घय भें स्थात्रऩत कय अल्ऩ ऩूजा, त्रवसध-त्रवधान से आऩ
त्रवशेष राब प्राद्ऱ कय सकते हैं । मफद आऩ तो आऩ भॊि ससद्च वशीकयण कव एवॊ
एस.एन.फडब्फी फनवाना ाहते हैं , तो सॊऩका इस कय सकते हैं ।
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बी शसन द्राया ही सभरती है अत् मह मॊि असत उऩमोगी मॊि है त्जसके द्राया शीघ्र ही राब ऩामा जा सकता है ।
भूल्म: 1225 से 8200 >> Shop Online | Order Now
सॊऩूणा प्राणप्रसतत्रद्षत
22 गेज शुद्च स्टीर भें सनसभात अखॊफडत
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गरे भें होने के कायण मॊि ऩत्रवि यहता हैं एवॊ स्नान कयते सभम इस मॊि ऩय स्ऩशा कय जो जर
त्रफॊद ु शयीय को रगते हैं , वह गॊगा जर के सभान ऩत्रवि होता हैं । इस सरमे इसे सफसे तेजस्वी
एवॊ परदासम कहजाता हैं । जैसे अभृत से उत्तभ कोई औषसध नहीॊ, उसी प्रकाय रक्ष्भी प्रासद्ऱ के
सरमे श्री मॊि से उत्तभ कोई मॊि सॊसाय भें नहीॊ हैं एसा शास्त्रोि व न हैं । इस प्रकाय के नवयत्न
जफड़त श्री मॊि गुरूत्व कामाारम द्राया शुब भुहूता भें प्राण प्रसतत्रद्षत कयके फनावाए जाते हैं ।
Rs: 4600, 5500, 6400 से 10,900 से असधक
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असधक जानकायी हे तु सॊऩका कयें ।
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श्री हनुभान मॊि शास्त्रों भें उल्रेख हैं की श्री हनुभान जी को बगवान सूमद
ा े व ने ब्रह्मा जी के आदे श ऩय
हनुभान जी को अऩने तेज का सौवाॉ बाग प्रदान कयते हुए आशीवााद प्रदान फकमा था, फक भैं हनुभान को सबी शास्त्र
का ऩूणा ऻान दॉ ग
ू ा। त्जससे मह तीनोरोक भें सवा श्रेद्ष विा होंगे तथा शास्त्र त्रवद्या भें इन्हें भहायत हाससर होगी औय
इनके सभन फरशारी औय कोई नहीॊ होगा। जानकायो ने भतानुसाय हनुभान मॊि की आयाधना से ऩुरुषों की त्रवसबन्न
फीभारयमों दयू होती हैं , इस मॊि भें अद्भत
ु शत्रि सभाफहत होने के कायण व्मत्रि की स्वप्न दोष, धातु योग, यि दोष,
वीमा दोष, भूछाा, नऩुॊसकता इत्माफद अनेक प्रकाय के दोषो को दयू कयने भें अत्मन्त राबकायी हैं । अथाात मह मॊि
ऩौरुष को ऩुद्श कयता हैं । श्री हनुभान मॊि व्मत्रि को सॊकट, वाद-त्रववाद, बूत-प्रेत, द्यूत फक्रमा, त्रवषबम, ोय बम, याज्म
बम, भायण, सम्भोहन स्तॊबन इत्माफद से सॊकटो से यऺा कयता हैं औय ससत्रद्च प्रदान कयने भें सऺभ हैं ।
श्री हनुभान मॊि के त्रवषम भें असधक जानकायी के सरमे गुरुत्व कामाारम भें सॊऩका कयें ।
भूल्म Rs- 910 से 12700 तक
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ऻान दाता भहा मॊि रग्न त्रवघ्न सनवायक मॊि कुदृत्रद्श नाशक मॊि
कामा कल्ऩ मॊि रग्न मोग मॊि श्री शिु ऩयाबव मॊि
दीधाामु अभृत तत्व सॊजीवनी मॊि दरयद्रता त्रवनाशक मॊि शिु दभनाणाव ऩूजन मॊि
मॊि के त्रवषम भें असधक जानकायी हे तु सॊऩका कयें । >> Shop Online | Order Now
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e गुरुत्व ज्मोसतष 96 अगस्त 2020 | अॊक 1
यासश यत्न
भेष यासश: वृषब यासश: सभथुन यासश: कका यासश: ससॊह यासश: कन्मा यासश:
भूग
ॊ ा हीया ऩन्ना भोती भाणेक ऩन्ना
तुरा यासश: वृत्द्ळक यासश: धनु यासश: भकय यासश: कॊु ब यासश: भीन यासश:
हीया भूग
ॊ ा ऩुखयाज नीरभ नीरभ ऩुखयाज
* उऩमोि वजन औय भूल्म से असधक औय कभ वजन औय भूल्म के यत्न एवॊ उऩयत्न बी हभाये महा व्माऩायी भूल्म ऩय उप्रब्ध
हैं । >> Shop Online | Order Now
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अऩने सभिो व ऩरयवायजनो के त्रफ भें रयश्तो भें सुधाय कयने की ईच्छा होती व्मत्रि को शीघ्र ऩूणा राब प्राद्ऱ होता
हैं उनके सरमे श्रीकृ ष्ण फीसा मॊि का ऩूजन एक सयर व सुरब भाध्मभ हैं । कव को गरे भें धायण कयने
सात्रफत हो सकता हैं । से वहॊ अत्मॊत प्रबाव शारी होता
श्रीकृ ष्ण फीसा मॊि ऩय अॊफकत शत्रिशारी त्रवशेष ये खाएॊ, फीज भॊि एवॊ हैं । गरे भें धायण कयने से कव
अॊको से व्मत्रि को अद्धद्भत
ु आॊतरयक शत्रिमाॊ प्राद्ऱ होती हैं जो व्मत्रि को हभेशा रृदम के ऩास यहता हैं त्जस्से
सफसे आगे एवॊ सबी ऺेिो भें अग्रत्णम फनाने भें सहामक ससद्च होती हैं ।
व्मत्रि ऩय उसका राब असत तीव्र
श्रीकृ ष्ण फीसा मॊि के ऩूजन व सनमसभत दशान के भाध्मभ से बगवान
एवॊ शीघ्र ऻात होने रगता हैं ।
श्रीकृ ष्ण का आशीवााद प्राद्ऱ कय सभाज भें स्वमॊ का अफद्रतीम स्थान स्थात्रऩत
भूरम भाि: 2350 >>Order Now
कयें ।
श्रीकृ ष्ण फीसा मॊि अरौफकक ब्रह्माॊडीम उजाा का सॊ ाय कयता हैं , जो एक प्राकृ त्रत्त भाध्मभ से व्मत्रि के बीतय
सद्ङबावना, सभृत्रद्च, सपरता, उत्तभ स्वास्थ्म, मोग औय ध्मान के सरमे एक शत्रिशारी भाध्मभ हैं !
श्रीकृ ष्ण फीसा मॊि के ऩूजन से व्मत्रि के साभात्जक भान-सम्भान व ऩद-प्रसतद्षा भें वृत्रद्च होती हैं ।
त्रवद्रानो के भतानुसाय श्रीकृ ष्ण फीसा मॊि के भध्मबाग ऩय ध्मान मोग केंफद्रत कयने से व्मत्रि फक ेतना शत्रि
जाग्रत होकय शीघ्र उच् स्तय को प्राद्ऱहोती हैं ।
जो ऩुरुषों औय भफहरा अऩने साथी ऩय अऩना प्रबाव डारना ाहते हैं औय उन्हें अऩनी औय आकत्रषत
ा कयना ाहते
हैं । उनके सरमे श्रीकृ ष्ण फीसा मॊि उत्तभ उऩाम ससद्च हो सकता हैं ।
ऩसत-ऩत्नी भें आऩसी प्रभ की वृत्रद्च औय सुखी दाम्ऩत्म जीवन के सरमे श्रीकृ ष्ण फीसा मॊि राबदामी होता हैं ।
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अभोघ भहाभृत्मुॊजम कव
अभोद्य् भहाभृत्मुॊजम कव व उल्रेत्खत अन्म साभग्रीमों को शास्त्रोि त्रवसध-त्रवधान से त्रवद्रान
ब्राह्मणो द्राया सवा राख भहाभृत्मुॊजम भॊि जऩ एवॊ दशाॊश हवन द्राया सनसभात फकमा जाता हैं
इससरए कव अत्मॊत प्रबावशारी होता हैं । >> Order Now
अभोद्य् भहाभृत्मुॊजम कव
अभोद्य् भहाभृत्मुॊजम
कव फनवाने हे तु:
अऩना नाभ, त्रऩता-भाता का नाभ, कव
गोि, एक नमा पोटो बेजे दत्ऺणा भाि: 10900
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कव के राब :
एसा शास्त्रोि व न हैं त्जस घय भें भहाभृत्मुॊजम मॊि स्थात्रऩत होता हैं वहा सनवास कताा हो नाना प्रकाय
फक आसध-व्मासध-उऩासध से यऺा होती हैं ।
ऩूणा प्राण प्रसतत्रद्षत एवॊ ऩूणा ैतन्म मुि सवा योग सनवायण कव फकसी बी उम्र एवॊ जासत धभा के रोग
ाहे स्त्री हो मा ऩुरुष धायण कय सकते हैं ।
जन्भाॊगभें अनेक प्रकायके खयाफ मोगो औय खयाफ ग्रहो फक प्रसतकूरता से योग उतऩन्न होते हैं ।
कुछ योग सॊक्रभण से होते हैं एवॊ कुछ योग खान-ऩान फक असनमसभतता औय अशुद्चतासे उत्ऩन्न होते हैं ।
कव एवॊ मॊि द्राया एसे अनेक प्रकाय के खयाफ मोगो को नद्श कय, स्वास्थ्म राब औय शायीरयक यऺण
प्राद्ऱ कयने हे तु सवा योगनाशक कव एवॊ मॊि सवा उऩमोगी होता हैं ।
आज के बौसतकता वादी आधुसनक मुगभे अनेक एसे योग होते हैं , त्जसका उऩ ाय ओऩये शन औय दवासे
बी कफठन हो जाता हैं । कुछ योग एसे होते हैं त्जसे फताने भें रोग फह फक ाते हैं शयभ अनुबव कयते हैं
एसे योगो को योकने हे तु एवॊ उसके उऩ ाय हे तु सवा योगनाशक कव एवॊ मॊि राबादासम ससद्च होता हैं ।
प्रत्मेक व्मत्रि फक जेसे-जेसे आमु फढती हैं वैसे-वसै उसके शयीय फक ऊजाा कभ होती जाती हैं । त्जसके
साथ अनेक प्रकाय के त्रवकाय ऩैदा होने रगते हैं एसी त्स्थती भें उऩ ाय हे तु सवायोगनाशक कव एवॊ
मॊि परप्रद होता हैं ।
त्जस घय भें त्रऩता-ऩुि, भाता-ऩुि, भाता-ऩुिी, मा दो बाई एक फह नऺिभे जन्भ रेते हैं , तफ उसकी भाता
के सरमे असधक कद्शदामक त्स्थती होती हैं । उऩ ाय हे तु भहाभृत्मुॊजम मॊि परप्रद होता हैं ।
त्जस व्मत्रि का जन्भ ऩरयसध मोगभे होता हैं उन्हे होने वारे भृत्मु तुल्म कद्श एवॊ होने वारे योग, स ॊता
भें उऩ ाय हे तु सवा योगनाशक कव एवॊ मॊि शुब परप्रद होता हैं ।
नोट:- ऩूणा प्राण प्रसतत्रद्षत एवॊ ऩूणा ैतन्म मुि सवा योग सनवायण कव एवॊ मॊि के फाये भें असधक
जानकायी हे तु सॊऩका कयें । >> Shop Online | Order Now
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Our Goal
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prestigious full consciousness (Puarn Praan Pratisthit) Give miraculous powers & Good effect All
types of Yantra, Kavach, Rudraksh, preciouse and semi preciouse Gems stone deliver on your
door step.
भॊि ससद्च कव
भॊि ससद्च कव को त्रवशेष प्रमोजन भें उऩमोग के सरए औय शीघ्र प्रबाव शारी फनाने के सरए तेजस्वी भॊिो द्राया शुब भहूता भें शुब
फदन को तैमाय फकमे जाते है । अरग-अरग कव तैमाय कयने केसरए अरग-अरग तयह के भॊिो का प्रमोग फकमा जाता है ।
क्मों ुने भॊि ससद्च कव ? उऩमोग भें आसान कोई प्रसतफन्ध नहीॊ कोई त्रवशेष सनसत-सनमभ नहीॊ कोई फुया प्रबाव नहीॊ
उऩयोि कव के अरावा अन्म सभस्मा त्रवशेष के सभाधान हे तु एवॊ उद्ङे श्म ऩूसता हे तु कव का सनभााण फकमा जाता हैं । कव के त्रवषम भें
असधक जानकायी हे तु सॊऩका कयें । *कव भाि शुब कामा मा उद्ङे श्म के सरमे >> Shop Online | Order Now
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YANTRA LIST EFFECTS
Our Splecial Yantra
1 12 – YANTRA SET For all Family Troubles
2 VYAPAR VRUDDHI YANTRA For Business Development
3 BHOOMI LABHA YANTRA For Farming Benefits
4 TANTRA RAKSHA YANTRA For Protection Evil Sprite
5 AAKASMIK DHAN PRAPTI YANTRA For Unexpected Wealth Benefits
6 PADOUNNATI YANTRA For Getting Promotion
7 RATNE SHWARI YANTRA For Benefits of Gems & Jewellery
8 BHUMI PRAPTI YANTRA For Land Obtained
9 GRUH PRAPTI YANTRA For Ready Made House
10 KAILASH DHAN RAKSHA YANTRA -
Shastrokt Yantra
सू ना
ऩत्रिका भें प्रकासशत सबी रेख ऩत्रिका के असधकायों के साथ ही आयत्ऺत हैं ।
रेख प्रकासशत होना का भतरफ मह कतई नहीॊ फक कामाारम मा सॊऩादक बी इन त्रव ायो से सहभत हों।
ऩत्रिका भें प्रकासशत फकसी बी नाभ, स्थान मा घटना का उल्रेख महाॊ फकसी बी व्मत्रि त्रवशेष मा फकसी बी स्थान मा
घटना से कोई सॊफॊध नहीॊ हैं ।
प्रकासशत रेख ज्मोसतष, अॊक ज्मोसतष, वास्तु, भॊि, मॊि, तॊि, आध्मात्त्भक ऻान ऩय आधारयत होने के कायण मफद
फकसी के रेख, फकसी बी नाभ, स्थान मा घटना का फकसी के वास्तत्रवक जीवन से भेर होता हैं तो मह भाि एक सॊमोग
हैं ।
प्रकासशत सबी रेख बायसतम आध्मात्त्भक शास्त्रों से प्रेरयत होकय सरमे जाते हैं । इस कायण इन त्रवषमो फक सत्मता
अथवा प्राभात्णकता ऩय फकसी बी प्रकाय फक त्जन्भेदायी कामाारम मा सॊऩादक फक नहीॊ हैं ।
अन्म रेखको द्राया प्रदान फकमे गमे रेख/प्रमोग फक प्राभात्णकता एवॊ प्रबाव फक त्जन्भेदायी कामाारम मा सॊऩादक फक
नहीॊ हैं । औय नाहीॊ रेखक के ऩते फठकाने के फाये भें जानकायी दे ने हे तु कामाारम मा सॊऩादक फकसी बी प्रकाय से फाध्म
हैं ।
ज्मोसतष, अॊक ज्मोसतष, वास्तु, भॊि, मॊि, तॊि, आध्मात्त्भक ऻान ऩय आधारयत रेखो भें ऩाठक का अऩना त्रवद्वास
होना आवश्मक हैं । फकसी बी व्मत्रि त्रवशेष को फकसी बी प्रकाय से इन त्रवषमो भें त्रवद्वास कयने ना कयने का अॊसतभ
सनणाम स्वमॊ का होगा।
हभाये द्राया ऩोस्ट फकमे गमे सबी रेख हभाये वषो के अनुबव एवॊ अनुशॊधान के आधाय ऩय सरखे होते हैं । हभ फकसी बी
व्मत्रि त्रवशेष द्राया प्रमोग फकमे जाने वारे भॊि- मॊि मा अन्म प्रमोग मा उऩामोकी त्जन्भेदायी नफहॊ रेते हैं ।
मह त्जन्भेदायी भॊि-मॊि मा अन्म प्रमोग मा उऩामोको कयने वारे व्मत्रि फक स्वमॊ फक होगी। क्मोफक इन त्रवषमो भें
नैसतक भानदॊ डों, साभात्जक, कानूनी सनमभों के त्खराप कोई व्मत्रि मफद नीजी स्वाथा ऩूसता हे तु प्रमोग कताा हैं अथवा
प्रमोग के कयने भे िुफट होने ऩय प्रसतकूर ऩरयणाभ सॊबव हैं ।
हभाये द्राया ऩोस्ट फकमे गमे सबी भॊि-मॊि मा उऩाम हभने सैकडोफाय स्वमॊ ऩय एवॊ अन्म हभाये फॊधग
ु ण ऩय प्रमोग फकमे
हैं त्जस्से हभे हय प्रमोग मा भॊि-मॊि मा उऩामो द्राया सनत्द्ळत सपरता प्राद्ऱ हुई हैं ।
ऩाठकों फक भाॊग ऩय एक फह रेखका ऩून् प्रकाशन कयने का असधकाय यखता हैं । ऩाठकों को एक रेख के ऩून् प्रकाशन
से राब प्राद्ऱ हो सकता हैं ।
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अगस्त-2020 | अॊक::1
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