“चन्द्रिका” यक्षिणी का साधन मंतर् यह है – “ॐ हर् ीं चन्द्रिके हंस (क्लीं) स्वाहा ।” साधन बिधि – शु क्ल पक्ष में जब तक चाँदनी दिखाई दे ती रहे , तब तक इस मंतर् का जप करना चाहिए । इससे “चन्द्रिका” यक्षिणी प्रसन्न होकर साधक को अमृ त प्रदान करती है । 2. पद्माबती यक्षिणी साधना – “पद्माबती” यक्षिणी का साधन मंतर् यह है – “ॐ नमो धरणीन्द्रा पद्माबती आगच्छ आगच्छ कार्य कुरु कुरु जंहाँ भे जू बंहाँ आओं जो मंगाऊ सो आन दे ओ । आन न दे बो तो श्री पारसनाथ की आभयां सत्यमे ब कुरु कुरु स्वाहा ।” साधना बिधि – पूर्ब अथबा आग्नेय दिशा की और मु ह ँ करके बै ठे , तथा कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी से आरम्भ करके, प्रतिपदा तक इस मंतर् का नित्य 1000 की संख्या में जप करें तो पद्माबती यक्षिणी प्रसन्न होकर साधक को इच्छित बस्तु लाकर दे ती है । 3. भण्डार पूर्णा यक्षिणी साधन : “भण्डार पूर्णा ” यक्षिणी का साधन मंतर् यह है – “ॐ श्रीं हर् ीं क्लीं बामे नम: ।” साधन बिधि – दीपाबली की रात्रि में इस मंतर् को २०२८ की संख्या में जपकर लक्ष्मीजी पर सिन्दूर चढ़ाये तथा धूप, दीप, पु ष्पादि से पूजन करें तो भण्डारपूर्णा ” यक्षिणी प्रसन्न होकर साधक के भण्डार को भरा पूरा बनाये रखती है । 4. अनुरागिणी यक्षिणी साधना : “अनुरागिणी” यक्षिणी का साधन मंतर् यह है – “ॐ हर् ीं अनुरागिणी मै थुनप्रिये स्वाहा ।” साधन बिधि – भोजपत्र के ऊपर कुंकुम से यक्षिणी की प्रतिमा बनाकर, प्रतिपदा से उसका पूजन आरम्भ करें तथा तीनों संध्या काल में उक्त मंतर् का 3000 की संख्या में जप करके, रात्रि के समय पूजन करते रहें । 30 दिन तक इस क् रम के नियमित चलते रहने पर “अनुरागिणी” यक्षिणी प्रसन्न होकर अर्द्धरात्रि के समय साधक को दर्शन दे ती है तथा प्रतिदिन एक सहस्र स्वर्ण मुद ्राएं प्रदान करती है । 5. महानन्दा यक्षिणी साधना : “महानन्दा” यक्षिणी का साधन मंतर् यह है – “ॐ ऐ हर् ीं महानन्दे भीषण हर् ीं हंू स्वाहा ।” साधन बिधि – किसी तिराहे पर बै ठकर इस मंतर् का 100000 की संख्या में जप करके दशांश घी तथा गूगल का होम करने से “महानन्दा” यक्षिणी प्रसन्न होकर साधक को बिबिध सिद्धि प्रदान करती है । 6. पद्मिनी यक्षिणी साधना : “पद्मिनी” यक्षिणी का साधन मंतर् यह है – “ॐ हर् ीं पद्मिनी स्वाहा ।” साधन बिधि – स्नानोपरान्त पूजा की सामग्री एकत्र कर चन्दन की सु गन्ध से एक हाथ प्रयाण मण्डल का निर्माण करें । उस मण्डल में पद्मिनी यक्षिणी का पूजन कर धूप दें तथा प्रतिदिन 1000 की संख्या में मंतर् का जप करते रहे । उक्त बिधि से एक मास तक नित्य साधन करने पर “पद्मिनी” यक्षिणी प्रसन्न होकर रात्रि के समय साधक को निधि तथा दिव्य भोग प्रदान करती है । 7. जलबासिन यक्षिणी साधना : “जल- बासिन” यक्षिणी का साधन मंतर् यह है – “ॐ भगबती समुद ्र दे हि रत्नानि जलबासिनी हर् ीं नमोस्तु ते स्वाहा ।” साधन बिधि – समुद ्र के तट पर बै ठकर, उक्त मंतर् का 100000 की संख्या में जप करने से “जलबासिनी” यक्षिणी प्रसन्न होकर साधक को ऊतम रत्न प्रदान करती हैं । 8. बिशाला यक्षिणी साधना : “बिशाला” यक्षिणी का साधन मंतर् यह है – “ॐ ऐ बिशाले क् रीं हर् ीं क् रीं क्लीं क् रीं स्वाहा ।” साधन बिधि – पबित्र होकर चिरमिटी के बृ क्ष के नीचे बै ठकर उक्त मंतर् का 100000 की संख्या में जप करने से “बिशाला” यक्षिणी प्रसन्न होकर साधक को दिव्य –रसायन भें ट करती है । 9. चामु ण्डा यक्षिणी साधना : चामु ण्डा यक्षिणी साधन का मंतर् यह है – “ॐ क् रीं आगच्छ आगच्छ चामुड ं े श्रीं स्वाहा ।” साधन बिधि – मिट्टी तथा गोबर से पृ थ्वी को लीपकर, उस पर कुश बिछा दें , तत्पश्चात पंचोपचार एबं नै बेद्य द्वारा दे बी का पूजन कर, रुद्राक्ष की माला पर उक्त मंतर् का 1000000 की संख्या में जप करें तो “चामु ण्डा” यक्षिणी प्रसन्न होकर अर्द्धरात्रि में सोते समय साधक को सभी शु भाशु भ फल स्वप्न में कह दे ती है । 10. बिचित्रा यक्षिणी साधना : “बिचित्रा” यक्षिणी का साधन मंतर् यह है – “ॐ बिचित्र बिचित्र हर् पे सिद्धिं कुरु कुरु स्वाहा ।” साधन बिधि – बटबृ क्ष के नीचे पबित्र होकर बै ठें तथा उक्त मंतर् का 100000 की संख्या में जप करके बंधक ू - पु ष्प, शहद, अन्न तथा हबन इन सबके मिश्रण का हबन करें तो बिचित्रा यक्षिणी प्रसन्न होकर साधक को अभीलाषित फल दे ती है । 11. मदना यक्षिणी साधना : “मदना” यक्षिणी का साधन मंतर् यह है – “ॐ मदने बीड़म्बिनी अनंगसंग सन्दे हि दे हि क्लीं क् रीं स्वाहा ।” साधन बिधि – पबित्र तथा स्थिर चित्त होकर उक्त मंतर् का 100000 की संख्या में जप करें तथा दूध एबं चमेली के फू लों की 100000 आहुतियाँ दे तो “मदना” यक्षिणी प्रसन्न होकर साधक को एक गु टिका प्रदान करती है । जिसे मु ह ँ में रखने से मनु ष्य अदृश्य हो जाता है अर्थात बह स्वयं तो सबको दे ख सकता है , परन्तु उसे कोई नहीं दे ख पाता । 12. नटी यक्षिणी साधन : “नटी” यक्षिणी का साधन मंतर् यह है – “ॐ हर् ीं क् रीं नटी महानटी रूपबति स्वाहा ।” साधन बिधि – अशोक बृ क्ष के नीचे बै ठकर चन्दन का एक मण्डल निर्माण कर दे बी का पूजन करके 1000 की संख्या में धूप दें तथा 1000 की संख्या में उक्त मंतर् का जप करें । उक्त बिधि से एक मास पर्यन्त साधन करें । साधन –काल में रात्रि में केबल एक बार ही भोजन करना चाहिए तथा रात्रि में पुन: मंतर् जप कर अर्द्धरात्रि में पूजन करना चाहिए । इससे नटी यक्षिणी प्रसन्न होकर साधक को रसांजन तथा अन्य दिव्य भोग प्रदान करती है । 13. चण्डबे गा यक्षिणी साधना : चण्डबे गा यक्षिणी का साधन मंतर् यह है – (१) “ॐ नमश्चन्द्राद्दादा कर्णकारण स्वाहा ।” (२) “ॐ नमो भगबती रूद्राय चण्डबे गिने स्वाहा ।” साधन बिधि – बटबृ क्ष के ऊपर बै ठकर, मौन धारण कर, उक्त दोनों मंतर् ो में से किसी एक 100000 की संख्या में जप करें । फिर 7 बार मंतर् पढ़कर कांजी के पानी से अपने मु ह ँ को धोयें । उक्त बिधि से रात्रि के समय तीन महीने तक नित्य जप करते रहने से चण्डबे गा यक्षिणी प्रसन्न होकर साधक को दिव्य रसायन प्रदान करती है । 14. हंसी यक्षिणी साधना : “हंसी” यक्षिणी का साधन मंतर् यह है – “ॐ हंसि हंसि जने हर् ीं क्लीं स्वाहा ।” साधन बिधि – पबित्र होकर नगर के भीतर प्रबेश करके उक्त मंतर् का 100000 की संख्या में जप करके तथा घी के मिले हुए कमल के पत्तों का दशांश हबन करने से हसी यक्षिणी प्रसन्न होकर, साधक को एक अंजन दे ती है , जिसे आँखों में लगाने बाला पृ थ्वी के भीतर गढ़े हुए धन को दे ख ले ता है । जब साधक को ऐसा धन दिखाई दे तो उसे ग्रहण कर लेना चाहिए । 15. महाभया यक्षिणी साधन : “महाभया” यक्षिणी का साधन मंतर् यह है – “ॐ क् रीं महाभये क्लीं स्वाहा ।” साधन बिधि – सर्बप्रथम मनु ष्य की हड् डीयों की माला बनाकर कंठ, दोनों कानों में धारण करे , फिर निर्भय तथा पबित्र होकर उक्त मंतर् का 100000 की संख्या में जप करे । इससे “महाभया” यक्षिणी एक ऐसा रसायन दे गी, जिसे खाने से हर प्रकार के रत्न हस्तागत होगें । 16. रक्त कम्बला यक्षिणी साधना : “रक्त –कम्बला” यक्षिणी का साधन मंतर् यह है – “ॐ हर् ीं रक्त कम्बले महादे बी मृ तकमु त्थापय प्रतिमां चालय पर्बतान् कम्पय नीलयबिलसत हुं हुं स्वाहा ।” साधन बिधि – उक्त मंतर् का तीन मास तक नित्य जप करने से “रक्त – कम्बला” यक्षिणी प्रसन्न होकर मृ तक को जीबित तथा प्रतिमाओं को चलयामान कर दे ती है – ऐसा कहा जाता है । 17. धनदा यक्षिणी साधना : “धनदा” यक्षिणी का साधन मंतर् यह है – “ॐ ऐ हर् ीं श्रीं धनं कुरु कुरु स्वाहा ।” साधन बिधि – पीपल के बृ क्ष के नीचे बै ठकर एकाग्रचित से उक्त मंतर् को 10008 की संख्या में जप करने से धनदा यक्षिणी प्रसन्न होकर साधक को धन प्रदान करती है । 18. राज्यप्रदा यक्षिणी साधन : “राज्यप्रद” यक्षिणी का साधन मंतर् यह है – “ॐ ऐ हर् ीं नम: ।” साधन बिधि – तुलसी के पौधे की जड़ से समीप बै ठकर, एकाग्रचित से , उक्त मंतर् का 10000 की संख्या में जप करने से “राज्यप्रदा” यक्षिणी प्रसन्न होकर साधक को आकस्मिक रूप से राज्यधिकार प्रदान करती है । 19. जया यक्षिणी साधन : “जया” यक्षिणी का साधन मंतर् यह है – “ॐ जय कुरु कुरु स्वाहा ।” साधन बिधि – आक के पौधे की जड़ के पास बै ठकर, एकाग्रचित से उक्त मंतर् का 10000 की संख्या में जप करने से “जया” यक्षिणी प्रसन्न होकर साधक को सभी कार्यो में बिजय प्रदान करती है । 20. सर्ब कार्य सिद्धिदा यक्षिणी साधना : “सर्बकार्य सिद्धिदा” यक्षिणी का साधन मंतर् यह है – “ॐ बाड् भयं नम: ऐ ।” साधन बिधि – कुश की जड़ के समीप बै ठकर, एकाग्रचित से उक्त मंतर् का 10000 की संख्या में जप करने से “सर्ब कार्य सिद्धिदा” यक्षिणी साधक पर प्रसन्न होकर उसके सब कार्यो में सिद्धि प्रदान करती है । 21. अशु भ क्षय कारिणी यक्षिणी साधना : “अशु भ क्षय कारिणी” यक्षिणी का साधन मंतर् यह है – “ॐ क्लीं नम: ।” साधन बिधि – आँबले के बृ क्ष की जड़ के समीप बै ठकर एकाग्रचित से उक्त मंतर् का 10000 की संख्या में जप करने से अशु भ क्षय कारिणी यक्षिणी प्रसन्न होकर साधक के सभी अशु भ (कष्ट अथबा अमंगल) को दूर कर दे ती हैं ।