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शिव कृपा से आपकी सभी मनोकामना जरूर परू ी होंगी तो आपके मन में जैसी
कामना हो वैसा ही रुद्राभिषेक करिए और अपने जीवन को शभ
ु ओर मंगलमय
बनाइए.
रुद्रहृदयोपनिषद में शिव के बारे में कहा गया है कि सर्वदे वात्मको रुद्र: सर्वे दे वा:
शिवात्मका अर्थात सभी दे वताओं की आत्मा में रुद्र उपस्थित हैं और सभी
दे वता रुद्र की आत्मा हैं।
वेदों और परु ाणों में शिव रुद्राभिषेक के बारे में कहा गया है कि रावण ने अपने
दसों सिरों को काटकर उसके रक्त से शिवलिंग का अभिषेक किया था तथा
सिरों को हवन की अग्नि को अर्पित कर दिया था जिससे वो त्रिलोकजयी हो
गया।
ज्योतिर्लिंग क्षेत्र एवं तीर्थस्थान तथा शिवरात्रि प्रदोष, श्रावण के सोमवार आदि
पर्वों में शिववास का विचार किए बिना भी शिव रुद्राभिषेक किया जा सकता है ।
वस्तत
ु : शिवलिंग का अभिषेक आशत ु ोष शिव को शीघ्र प्रसन्न करके साधक
को उनका कृपापात्र बना दे ता है और उनकी सारी समस्याएं स्वत: समाप्त हो
जाती हैं। अत: हम यह कह सकते हैं कि रुद्राभिषेक से मनष्ु य के सारे पाप-ताप
धल
ु जाते हैं।
विशेष अवसर पर या सोमवार, प्रदोष और शिवरात्रि आदि पर्व के दिनों में मंत्र,
गोदग्ु ध या अन्य दध ू मिलाकर अथवा केवल दध ू से भी अभिषेक किया जाता
है । रुद्राभिषेक में शक्
ु ल यजर्वे
ु द के रुद्राष्टाध्यायी के मंत्रों का पाठ करते हैं.
शिव कृपा से आपकी सभी मनोकामना जरूर परू ी होंगी तो आपके मन में जैसी
कामना हो वैसा ही रुद्राभिषेक करिए और अपने जीवन को शभ
ु ओर मंगलमय
बनाइए.
शिव को ही 'रुद्र' कहा जाता है , क्योंकि रुतम ्-द:ु खम ्, द्रावयति-नाशयतीतिरुद्र:
यानी भोले सभी द:ु खों को नष्ट कर दे ते हैं।
रुद्रहृदयोपनिषद में शिव के बारे में कहा गया है कि सर्वदे वात्मको रुद्र: सर्वे दे वा:
शिवात्मका अर्थात सभी दे वताओं की आत्मा में रुद्र उपस्थित हैं और सभी
दे वता रुद्र की आत्मा हैं।
वेदों और परु ाणों में शिव रुद्राभिषेक के बारे में कहा गया है कि रावण ने अपने
दसों सिरों को काटकर उसके रक्त से शिवलिंग का अभिषेक किया था तथा
सिरों को हवन की अग्नि को अर्पित कर दिया था जिससे वो त्रिलोकजयी हो
गया।
कालसर्प योग, गह
ृ क्लेश, व्यापार में नक
ु सान, शिक्षा में रुकावट सभी कार्यों की
बाधाओं को दरू करने के लिए शिव रुद्राभिषेक आपके अभीष्ट सिद्धि के लिए
फलदायक है ।
ज्योतिर्लिंग क्षेत्र एवं तीर्थस्थान तथा शिवरात्रि प्रदोष, श्रावण के सोमवार आदि
पर्वों में शिववास का विचार किए बिना भी शिव रुद्राभिषेक किया जा सकता है ।
वस्तत
ु : शिवलिंग का अभिषेक आशत ु ोष शिव को शीघ्र प्रसन्न करके साधक
को उनका कृपापात्र बना दे ता है और उनकी सारी समस्याएं स्वत: समाप्त हो
जाती हैं। अत: हम यह कह सकते हैं कि रुद्राभिषेक से मनष्ु य के सारे पाप-ताप
धल
ु जाते हैं।
विशेष अवसर पर या सोमवार, प्रदोष और शिवरात्रि आदि पर्व के दिनों में मंत्र,
गोदग्ु ध या अन्य दध ू मिलाकर अथवा केवल दध ू से भी अभिषेक किया जाता
है । रुद्राभिषेक में शक्
ु ल यजर्वे
ु द के रुद्राष्टाध्यायी के मंत्रों का पाठ करते हैं.
तत्परु
ु षाय विद्महे महादे वाय धीमहि। तन्नो रुद्रः प्रचोदयात ्॥
अघोरे भ्योथघोरे भ्यो घोरघोरतरे भ्यः सर्वेभ्यः सर्व सर्वेभ्यो नमस्ते अस्तु
रुद्ररुपेभ्यः ॥
वामदे वाय नमो ज्येष्ठारय नमः श्रेष्ठारय नमो
त्र्यम्बकं यजामहे सग
ु न्धिं पष्टि
ु बर्धनम ् उर्वारूकमिव बन्धनान ् मत्ृ योर्मुक्षीय मा
मतृ ात ् ॥
सर्वो वै रुद्रास्तस्मै रुद्राय नमो अस्तु । परु
ु षो वै रुद्र: सन्महो नमो नम: ॥
विश्वा भत
ू ं भव
ु नं चित्रं बहुधा जातं जायामानं च यत ् । सर्वो ह्येष रुद्रस्तस्मै
रुद्राय नमो अस्तु ॥
रुद्राष्टाध्यायी में कुल कुल दस अध्याय हैं, जिनका पाठ रुद्राभिषेक के समय
किया जाता है । इनमें भी आठ अध्याय प्रमख ु हैं, जिनके आधार पर ही इसको
रुद्राष्टाध्ययी कहा गया है ।
रुद्राष्टाध्यायी यजर्वे
ु द का एक अंग माना गया है ।
भगवान शिव को समर्पित और उनकी महिमा का गण ु गान करने वाले इस
शक्
ु ल यजर्वे
ु दीय रुद्राष्टाध्यायी में कुल दस अध्याय हैं |
लेकिन मख्ु य आठ अध्यायों में भगवान शिव की समस्त महिमा और कृपा
शक्ति के बारे में बताया गया है और उनका गण
ु गान किया गया है ।
इसलिए इन आठ अध्यायों के आधार पर ही इसे अष्टाध्यायी कहा जाता है ।
- धन में वद्
ृ धि के लिए जल में शहद डालकर अभिषेक करें ।
- पत्र
ु प्राप्ति, रोग शांति तथा मनोकामनाएं पर्ण
ू करने के लिए गाय के दग्ु ध से
अभिषेक करें ।
- सद्बद्
ु धि और ज्ञानवर्धन के लिए दग्ु ध में चीनी मिलाकर अभिषेक करें ।
- वंश वद्
ृ धि के लिए घी से अभिषेक करना चाहिए।
- पापों से मक्ति
ु चाहते हैं तो शद्
ु ध शहद से शिव रुद्राभिषेक करें ।