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संसद कैसे हटा सकती है 'इंडिया' नाम और हो सकता है दे श का नाम

केवल भारत

इस समय दे श में इस बात पर चचाा भी हो रही है और उत्सुकता भी है कक क्या सरकार दे श के नाम से


इंडिया को खत्म करके इसका नाम केवल भारत कर सकती है. क्या साधारण संववधान संशोधन के जररए
ऐसा हो सकता है या इसकी प्रकिया कुछ और भी होगी.

हाइलाइट्स

जब संविधान तैयार हो रहा था तब भी इसके मसौदे पर दे श के नाम को लेकर तीखी बहस हुई थी

दो बार ये मामला सुप्रीम कोर्ट गया और दोनों बार इसे खाररज कर ददया गया

जी20 की मीट ंग के ललए जजस तरह से राष्ट्रपतत द्वारा इसके आमंत्रण में
‘प्रेसीिें ऑफ इंडिया’ की जगह ‘प्रेसीिें ऑफ भारत’ का इस्तेमाल ककया,
उससे ये कयास लगने लगे कक क्या सरकार पूरी तरह दे श के इंडिया नाम
पर रोक लगाने और इसका नाम केवल भारत करने जा रही है , जजससे
भववष्ट्य में दे श का नाम केवल भारत ही रहे इंडिया नहीं. क्या संववधान इसे
बदलने की छू दे ता है और क्या संसद दे श का नाम बदल सकती है .

ये सवाल इस समय पूछा जा रहा है कक दे श का नाम केवल भारत संसद में


क्या ववधेयक लाने से हो जाएगा. माना यही जा रहा है कक सरकार ने 18 से
22 लसतंबर तक जो ववशेष सत्र नए संसद भवन में बुलाया है , इसमें वह इस
तरह का बबल ला सकती है .

इस चचाा को बल लमलने की मख्


ु य वजह G-20 सलम का वो आमंत्रण ही है ,
जो राष्ट्रप्रमुखों को राष्ट्रपतत की ओर से भेजा गया है . हाल ही में राष्ट्रीय
स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रमुख मोहन भागवत ने भी कहा था कक
लोगों को ‘इंडिया’ की बजाय ‘भारत’ कहना चाटहए.

संविधान में क्या कहा गया है


हमारे दे श के दो नाम हैं. पहला- भारत और दस
ू रा- इंडिया. भारतीय संववधान
के आट ा कल 1 में ललखा है , ‘इंडिया दै इज भारत’ यूतनयन ऑफ स् े ट्स.
यातन इंडिया जो भारत है और ये राज्यों का संघ है . संववधान छू दे ता है कक
सरकार को ‘गवनामें ऑफ इंडिया’ भी कहा या ललखा जा सकता है और
गवनामें ऑफ भारत यातन भारत सरकार’ भी. दोनों ही नामों का इस्तेमाल
दे श की आजादी के बाद से होता रहा है .

नाम बदलने के ललए क्या करना होगा सरकार को


अब अगर केंद्र सरकार दे श का नाम लसफा ‘भारत’ करना चाहती है तो उसे
अनुच्छेद-1 में संशोधन करने के ललए बबल लाना होगा. कुछ संशोधन
साधारण बहुमत यानी 50 फीसदी बहुमत के आधार पर हो सकते हैं. तो कुछ
संशोधन के ललए 66फीसदी बहुमत यानी कम से कम दो-ततहाई सदस्यों के
समथान की जरूरत पड़ती है . कुछ संशोधन के ललए राज्यों के भी समथान की
जरूरत होती है

क्या राज्यों के समथटन की जरूरत भी होगी


अनुच्छेद-1 में संशोधन करने के ललए केंद्र सरकार को कम से कम दो-ततहाई
बहुमत की जरूरत होगी. लोकसभा में इस समय 539 सांसद हैं. इस संसोधन
बबल को पास करने के ललए 356 सांसदों का समथान चाटहए होगा. राज्यसभा
में 238 सांसद हैं. वहां 157 सदस्यों के समथान की जरूरत होगी. हालांकक
कुछ ववशेषज्ञों का कहना है कक चंकू क संववधान में भारत को राज्यों का संघ
कहा गया है ललहाजा इसे संसद के साथ राज्यों से भी पास कराने की जरूरत
होगी. वैसे इस पर स्पष्ट् ता नहीं है .
दो नाम कैसे पडे?
1947 में जब आजादी लमली तो भारत का संववधान बनाने के ललए संववधान
सभा बनाई गई. इसमें दे श के नाम को लेकर तीखी बहस हुई. बहस 18
नवंबर 1949 को हुई थी. बहस की शुरुआत संववधान सभा के सदस्य एचवी
कामथ ने की थी. उन्होंने अंबेिकर सलमतत के उस मसौदे पर आपवि जताई
थी, जजसमें दे श के दो नाम थे- इंडिया और भारत.कामथ ने अनुच्छेद-1 में
संशोधन का प्रस्ताव रखा. अनुच्छेद-1 कहता है - ‘इंडिया दै इज भारत’.
उन्होंने प्रस्ताव रखा कक दे श का एक ही नाम होना चाटहए. उन्होंने
‘टहंदस्
ु तान, टहंद, भारतभूलम और भारतवषा’ जैसे नाम सुझाए.

खुद कांग्रेस सांसद ने नाम बदलने के ललए बबल पेश ककया था


2010 और 2012 में कांग्रस
े के सांसद शांताराम नाइक ने दो प्राइवे बबल
पेश ककए थे. इसमें उन्होंने संववधान से इंडिया शब्द ह ाने का प्रस्ताव रखा
था. साल 2015 में योगी आटदत्यनाथ ने भी प्राइवे बबल पेश ककया था.
इसमें उन्होंने संववधान में ‘इंडिया दै इज भारत’ की जगह ‘इंडिया दै इज
टहंदस्
ु तान’ करने का प्रस्ताव टदया.

सुप्रीम कोर्ट का क्या रुख था इस पर


सुप्रीम को ा में हाल के बरसों में दो ऐसी याचचकाएं पहुंचीं, जजसमें ये कहा
गया था कक दे श का नाम इंडिया से बदलकर भारत कर दे ना चाटहए। पहली
याचचका वषा 2016 में दायर की गई तो दस
ू री याचचका वषा 2020 में . जानते
हैं कक इन याचचकाओं पर दे श की सवोच्च अदालत का क्या रुख था.

वषा 2020 में सुप्रीम को ा में टदल्ली के नमः ने याचचका दायर करके अपील
की कक इंडिया का बदल कर भारत ककया जाए. क्योंकक इंडिया नाम ववदे लशयों
द्वारा टदया गया, ये नाम हमारे स्वतंत्रता संग्राम के संघषा के साथ न्याय
नहीं करता. ये हमारी औपतनवेलशक दासता को ज्यादा जाटहर करता है . इसे
ह ाया जाना चाटहए.

संविधान में क्या कहा गया है


हमारे दे श के दो नाम हैं. पहला- भारत और दस
ू रा- इंडिया. भारतीय संववधान
के आट ा कल 1 में ललखा है , ‘इंडिया दै इज भारत’ यूतनयन ऑफ स् े ट्स.
यातन इंडिया जो भारत है और ये राज्यों का संघ है . संववधान छू दे ता है कक
सरकार को ‘गवनामें ऑफ इंडिया’ भी कहा या ललखा जा सकता है और
गवनामें ऑफ भारत यातन भारत सरकार’ भी. दोनों ही नामों का इस्तेमाल
दे श की आजादी के बाद से होता रहा है .

नाम बदलने के ललए क्या करना होगा सरकार को


अब अगर केंद्र सरकार दे श का नाम लसफा ‘भारत’ करना चाहती है तो उसे
अनच्
ु छेद-1 में संशोधन करने के ललए बबल लाना होगा. कुछ संशोधन
साधारण बहुमत यानी 50 फीसदी बहुमत के आधार पर हो सकते हैं. तो कुछ
संशोधन के ललए 66फीसदी बहुमत यानी कम से कम दो-ततहाई सदस्यों के
समथान की जरूरत पड़ती है . कुछ संशोधन के ललए राज्यों के भी समथान की
जरूरत होती है

क्या राज्यों के समथटन की जरूरत भी होगी


अनुच्छेद-1 में संशोधन करने के ललए केंद्र सरकार को कम से कम दो-ततहाई
बहुमत की जरूरत होगी. लोकसभा में इस समय 539 सांसद हैं. इस संसोधन
बबल को पास करने के ललए 356 सांसदों का समथान चाटहए होगा. राज्यसभा
में 238 सांसद हैं. वहां 157 सदस्यों के समथान की जरूरत होगी. हालांकक
कुछ ववशेषज्ञों का कहना है कक चंकू क संववधान में भारत को राज्यों का संघ
कहा गया है ललहाजा इसे संसद के साथ राज्यों से भी पास कराने की जरूरत
होगी. वैसे इस पर स्पष्ट् ता नहीं है .

दो नाम कैसे पडे?


1947 में जब आजादी लमली तो भारत का संववधान बनाने के ललए संववधान
सभा बनाई गई. इसमें दे श के नाम को लेकर तीखी बहस हुई. बहस 18
नवंबर 1949 को हुई थी. बहस की शुरुआत संववधान सभा के सदस्य एचवी
कामथ ने की थी. उन्होंने अंबेिकर सलमतत के उस मसौदे पर आपवि जताई
थी, जजसमें दे श के दो नाम थे- इंडिया और भारत.कामथ ने अनुच्छेद-1 में
संशोधन का प्रस्ताव रखा. अनुच्छेद-1 कहता है - ‘इंडिया दै इज भारत’.
उन्होंने प्रस्ताव रखा कक दे श का एक ही नाम होना चाटहए. उन्होंने
‘टहंदस्
ु तान, टहंद, भारतभलू म और भारतवषा’ जैसे नाम सझ
ु ाए.
बहस में क्या और तकट आए
नाम को लेकर आपवि जताने वालों में कामथ अकेला नाम नहीं थे. सेठ
गोववंद दास ने भी इसका ववरोध ककया था. उन्होंने कहा था, ‘इंडिया यानी
भारत’ ककसी दे श के नाम के ललए सुंदर शब्द नहीं है . उन्होंने पुराणों से लेकर
महाभारत तक का जजि ककया. साथ ही चीनी यात्री ह्वेन सांग के लेखों का
हवाला दे ते हुए कहा कक दे श का मूल नाम ‘भारत’ ही है .

दास ने महात्मा गांधी का जजि करते हुए कहा था कक उन्होंने दे श की


आजादी के लड़ाई ‘भारत माता की जय’ के नारे के साथ लड़ी थी. इसललए
दे श का नाम भारत ही होना चाटहए. बहस में आंध्र प्रदे श से संववधान सभा के
सदस्य केवी राव ने भी दो नाम पर आपवि जताई थी. उन्होंने इसका नाम
‘टहंदस्
ु तान’ करने पर बल टदया था. बीएम गुप्ता, श्रीराम सहाय, कमलापतत
बत्रपाठी और हर गोववंद पंत जैसे सदस्यों ने भी दे श का नाम लसफा भारत रखे
जाने का समथान ककया था. हालांकक इन तकों पर उनकी िॉ. बीआर अंबि
े कर
से तीखी बहस भी हुई.

खुद कांग्रेस सांसद ने नाम बदलने के ललए बबल पेश ककया था


2010 और 2012 में कांग्रस
े के सांसद शांताराम नाइक ने दो प्राइवे बबल
पेश ककए थे. इसमें उन्होंने संववधान से इंडिया शब्द ह ाने का प्रस्ताव रखा
था. साल 2015 में योगी आटदत्यनाथ ने भी प्राइवे बबल पेश ककया था.
इसमें उन्होंने संववधान में ‘इंडिया दै इज भारत’ की जगह ‘इंडिया दै इज
टहंदस्
ु तान’ करने का प्रस्ताव टदया.

सुप्रीम कोर्ट का क्या रुख था इस पर


सुप्रीम को ा में हाल के बरसों में दो ऐसी याचचकाएं पहुंचीं, जजसमें ये कहा
गया था कक दे श का नाम इंडिया से बदलकर भारत कर दे ना चाटहए। पहली
याचचका वषा 2016 में दायर की गई तो दस
ू री याचचका वषा 2020 में . जानते
हैं कक इन याचचकाओं पर दे श की सवोच्च अदालत का क्या रुख था.

वषा 2020 में सुप्रीम को ा में टदल्ली के नमः ने याचचका दायर करके अपील
की कक इंडिया का बदल कर भारत ककया जाए. क्योंकक इंडिया नाम ववदे लशयों
द्वारा टदया गया, ये नाम हमारे स्वतंत्रता संग्राम के संघषा के साथ न्याय
नहीं करता. ये हमारी औपतनवेलशक दासता को ज्यादा जाटहर करता है . इसे
ह ाया जाना चाटहए.

तब सुप्रीम को ा के मुख्य न्यायाधीश शरत पी बोबिे थे. उनकी अगुवाई में


03 सदस्यीय बैंच के सामने जब ये मामला आया तो उसने साफ शब्दों में
कहा कक संवैधातनक तौर पर इस दे श का नाम इंडिया और भारत दोनों है ,
ललहाजा इस याचचका का कोई औचचत्य नहीं. इसके साथ ही उन्होंने इस
याचचका को खाररज कर टदया था. तब अदालत ने याचचकाकताा को अपनी
याचचका ववचाराथा संबंचधत मंत्रालय के सामने भेजने की अनम
ु तत जरूर दी.

भारत और इंडिया दोनों कहने की आजादी


हालांकक याचचका में ये पैरवी की गई थी कक संववधान के आट ा कल1 में कहे
गए इंडिया दै इज भारत, यतू नयन ऑफ स् े ट्स…यातन इंडिया जो भारत है ,
जो राज्यों का संघ है …वाक्य से इंडिया शब्द को ह ाएं. तब सप्र
ु ीम को ा ने
साफ कहा कक ऐसा क्यों करें जब संववधान भारत और इंडिया दोनों नामों के
इस्तेमाल की इजाजत दे ता है . भारत के नागररक को आजादी है कक वो अपने
दे श को चाहे भारत कहे या कफर इंडिया.

हालांकक याचचका में ये पैरवी की गई थी कक संववधान के आट ा कल1 में कहे


गए इंडिया दै इज भारत, यतू नयन ऑफ स् े ट्स…यातन इंडिया जो भारत है ,
जो राज्यों का संघ है …वाक्य से इंडिया शब्द को ह ाएं. तब सुप्रीम को ा ने
साफ कहा कक ऐसा क्यों करें जब संववधान भारत और इंडिया दोनों नामों के
इस्तेमाल की इजाजत दे ता है . भारत के नागररक को आजादी है कक वो अपने
दे श को चाहे भारत कहे या कफर इंडिया.

सुप्रीम कोर्ट 2016 इस याचिका को खाररज कर ददया था


इससे पहले वषा 2016 में सुप्रीम को ा के सामने भी इंडिया का नाम बदलकर
भारत करने संबंधी याचचका दायर की गई, जजसे तत्कालीन मख्
ु य न्यायाधीश
ीएस ठाकुर ने खाररज कर दी थी. तब जजस् स ीएस ठाकुर और यूयू
लललत की बेंच ने ऐसी याचचकाओं पर नाराजगी भी जाटहर की थी. इस बार
याचचकाकताा का नाम तनरं जन भ वाल था, जो महाराष्ट्र का सामाजजक
कायाकताा थे.तब भी सुप्रीम को ा ने कहा था अगर वे इसे भारत कहना चाहें
तो कह सकते हैं.कोई ककसी को रोक नहीं रहा है . इस आदे श से पहले सुप्रीम
को ा की पीठ का नेतत्ृ व मख्
ु य न्यायाधीश एचएल दिा ने ककया था, जजन्होंने
अप्रैल 2016 में भ वाल की जनटहत याचचका पर केंद्र, राज्यों और केंद्र
शालसत प्रदे शों से प्रततकिया मांगी थी.उन्होंने ये भी तका टदया कक संववधान
दे श की मूल अवधारणा है . उसने भारत को आचधकाररक नाम के रूप में
अपनाया है . अनच्
ु छेद 1 में साफ ललखा है , इंडिया जो सदै व भारत है , उसे
राज्यों का संघ होना चाटहए.

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